दीवारों की सुरक्षा चाहिए सफाई नहीं

दिल्ली को हाई राइज सिटी बनाने की कवायद शुरू होने जा रही है. दिल्लीवासी कैसे रहें, यह ठेका वैसे दिल्ली सरकार, डीडीए (दिल्ली डैवलपमैंट अथौरिटी), केंद्र सरकार और नगर निगमों के पास है. आम नागरिक तो बेचारा है. वह इन के कार्यालयों के आगे भीख मांगता रहता है और जब कुछ मिल जाता है तो अपनी जमीन पर, अपने पैसे से अपनी आधीअधूरी पसंद वाला मकान बना पाता है. सरकारी विभागों का कहना है कि अगर दिल्लीवासियों को छूट दे दी जाए तो वे दिल्ली को तहसनहस कर देंगे. मानो आजकल दिल्ली बड़ा सुंदर, संगठित, करीने से बसा साफसुथरा शहर है. दिल्ली में रहने वाला हर जना जानता है कि दिल्ली शहर कूड़े के बेतरतीब बिखरे कई नगरों, उपनगरों, बस्तियों, महल्लों, स्लमों का शहर है, जिसे एकदूसरे से सड़कें जोड़ती हैं, जो ट्रैफिक जाम में फंसी रहती हैं. दिल्ली वाले खुश हैं तो सिर्फ इसलिए कि दूसरे शहर और भी ज्यादा बेतरतीब, गंदे, बिखरे हैं.

अब दिल्ली शहर में ऊंची इमारतों को बनाने की इजाजत दी जाने वाली है. फिलहाल यह छूट बड़े प्लाटों पर होगी जो मैट्रो के निकट हैं. भेदभाव क्यों किया जा रहा है यह अस्पष्ट है, क्योंकि अगर कुछ जगह ज्यादा बनाने की इजाजत दी जा रही है तो सभी जगह दी जानी चाहिए. यह इजाजत बरसों पहले मिल जानी चाहिए थी. दिल्ली में रहने वाले अब सिर पर छत चाहते हैं चाहे माहौल गंदा हो, सीवर भरा हो और कूड़े के ढेर से गुजर कर जाना पड़ता हो. हर घर वाली को दीवारों की सुरक्षा चाहिए, सफाई नहीं. सफाई की तो तब सोचेंगे जब जेब में 4 पैसे होंगे और मकान ढंग के होंगे. दिल्ली में दाम इस कदर बढ़ गए हैं कि अच्छेखासे कमाने वाले भी आज सड़कों पर रहने को मजबूर हैं. अगर बरसों पहले ऊंचे मकान बनाने की इजाजत दे दी जाती तो चाहे गंदे मुंबईनुमा टौवर दिखते पर दाम तो ठीक होते. अब जो छूट दी जा रही है, वह दिल्ली का पेट भरने के लिए काफी नहीं है. जरूरत तो इस बात की है कि ‘अपनी जमीन पर चाहे जैसे रहो’ की नीति अपनाई जाए. सरकार का काम यह हो कि वह सार्वजनिक जमीन पर एक ईंट न रखने दे, एक झुग्गी न बनने दे, एक दुकान न चलने दे, एक पटरी को घेरने न दे. आम आदमी के लिए घर के बाहर पूरी तरह बंधन हो, घर में वह पूरी तरह आजाद हो. वह वहां कितने कमरे बनवाए, क्या व्यापार करे, किसे किराए पर दे यह उस की अपनी मरजी पर हो. लेकिन बाहर वह न गाड़ी खड़ी करे, न पटरी घेरे, न दुकान एक इंच बढ़ाए. सरकार की तमाम रोकटोक के बावजूद अपनी जगह पर तो दिलेर लोग मनमरजी तो करते ही हैं पर साथ ही सरकार के निकम्मेपन के कारण पब्लिक स्पेस और पब्लिक लैंड पर कब्जा भी कर लेते हैं. क्या सरकारों के पास जीवन सुखी बनाने का फौर्मूला है?

आतंकवाद से ज्यादा खौफनाक है छेड़खानी

छेड़खानी की शिकायत करने पर दिल्ली में एक लड़की की दिन की रोशनी में सरेआम एक लड़के द्वारा हत्या कर दी गई. इस तरह का मामला कोई पहली बार नहीं हुआ है जब लड़की की शिकायत पर उसे या उस के घर वालों को धमकाया या मारापीटा गया हो. देश भर में इस तरह के मामले रोज होते हैं पर हत्या की हद कभीकभार ही पार होती है. इस मामले में दिल्ली के निम्नवर्गीय इलाके में एक 19 वर्ष की लड़की की 22 वर्ष के लड़के ने इसलिए छुरे से हत्या कर दी, क्योंकि 2 साल पहले लड़की ने लड़के द्वारा छेड़खानी करने की शिकायत की थी और लड़के को जेल में रहना पड़ा था. जेल में सुधरने के बजाय वह और ज्यादा अपराधीमन का बन गया और उस ने मौका देख कर बिना अंजाम की परवाह किए लड़की पर हमला कर दिया.

और ज्यादा दुख की बात तो यह है कि जब लड़का छुरे से वार कर रहा था तब लड़के की मां और भाई ने लड़की को पकड़ रखा था. इस मामले में अब क्या होगा? शायद जेल की सीखचों के पीछे रह कर अपराधी ने यह जान लिया. अब उस की धमकियों के कारण गवाह अदालत में मुकर जाएंगे. मुकदमा चलेगा. लड़का 2-3 साल जेल में रहेगा पर फिर जमानत पर छूट जाएगा. 4-5 साल बाद जब पहली अदालत का फैसला आएगा तब तक लड़की के घर वालों का गुस्सा शांत हो चुका होगा और वे बजाय कानून के जरीए न्याय मांगने के अपने बचाव में लगे होंगे.

सरकारी वकील, जो अपराधी के खिलाफ पैरवी करते हैं आमतौर पर केवल खानापूरी करते हैं. उन्हें न मरने वाले के प्रति सहानुभूति होती है और न ही अपराधी के प्रति गुस्सा. वे रोज दसियों ऐसे मामले देखते हैं. उन की रुचि तारीखें लेने में ज्यादा होती है. छेड़खानी के खिलाफ कानून है पर यदि अपराधी दिलेर है और घर वाले चिंता न करने वाले तो उस का बहुत कम बिगड़ेगा. पुलिस को अपना मेहनताना मिला तो वह उस हत्या को दुर्घटना बना सकती है. मुकदमे के दौरान लड़की के चरित्र पर भी छींटे उछाले जा सकते हैं. इस मामले में नेताओं से तो कुछ होगा ही नहीं. पीडि़ता से हमदर्दी का तो सवाल ही नहीं उठता है. 

छेड़खानी से निबटना किसी भी समाज के लिए अभी तक संभव नहीं हुआ है. पश्चिमी देशों में भी यह आतंक जेहादियों के आतंक से ज्यादा घिनौना व डरावना है, क्योंकि यह पास में होता है और आसपास के कितने ही घर इस के आंखों देखे गवाह होते हैं. दुनिया के अमीर देश भी ऐसी पुलिस नहीं बना पाए हैं, जो लड़कियों को आजादी से जीने का हक दिला सके. हर जगह पीडि़ता खुद को अपराधी समझने लगती है कि वह घर से बाहर निकली ही क्यों. मातापिता अपने को कोसने लगते हैं कि उन्होंने लड़की को पैदा ही क्यों किया. कन्या भू्रण हत्या के पीछे छिपा एक कारण यह भी है कि अभिभावक अपनी बेटियों को सुरक्षित नहीं मानते और अगर तकनीक उपलब्ध है, तो वे क्यों न उसे इस्तेमाल करें. अपराध हर समय होते रहते हैं, हर जगह होते हैं पर जब जेल काट आए अपराधी हत्या करने लगें तो जेलों, न्याय और पुलिस पर औरतों की रक्षा के बारे में सवाल उठेंगे ही.

मैं हर तरह की भूमिकाएं कर सकती हूं

अपनी अदायगी के दम पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाली अभिनेत्री तब्बू ने हर तरह के रोल को नया आयाम दिया है. वह चाहे फिल्म ‘हैदर’ में एक कशमकश में फंसी मां का रोल हो या ‘चांदनी बार’ फिल्म में बार डांसर का रोल. हर रोल में जान डालने वाली तब्बू का मानना है कि ‘हैदर’ के पहले तक निर्देशक मेरे बारे में हमेशा दुविधा में रहते थे कि मुझे किस तरह की भूमिकाएं दें क्योंकि 40 के बाद यहां ऐक्ट्रैस को सिर्फ गंभीर रोल औफर किए जाते हैं. पर मैं हर तरह की भूमिकाएं कर रही हूं. फिल्म ‘दृश्यम’ में मैं एक तेजतर्रार पुलिस औफिसर की भूमिका में हूं, तो फिल्म ‘फितूर’ में मेरी एक अलग तरह की भूमिका देखने को मिलेगी.

मैं नहीं लिख सकता था

1975 में आई सुपरडुपर हिट फिल्म ‘शोले’ की हिट जोड़ी जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) के अलावा गब्बर सिंह (अमजद खान) भी ‘शोले’ फिल्म की जान थे. ‘शोले’ के बाद अमजद खान और अमिताभ की जोड़ी ने कई हिट फिल्मों में काम किया. फिल्म ‘याराना’ में अमित और अमजद के बीच फिल्माया गया गाना, ‘तेरे जैसा यार कहां…’ तो आज भी दोस्ती की मिसाल की याद दिलाता है. अमजद खान के बेटे शादाब खान ने अपने पिता पर ‘मर्डर इन बौलीवुड’ के नाम से एक किताब लिखी है. इस किताब के अनावरण के मौके पर पहुंचे अमिताभ बच्चन ने शादाब को गले लगा कर उस की जम कर तारीफ की और कहा कि वह मुझे कल की ही बात लगती है जब तुम पैदा हुए थे. आज तुम्हें इस मुकाम पर देख कर बहुत खुशी हो रही है. जिस किताब को तुम ने लिखा है उसे मैं चाह कर भी नहीं लिख सकता था क्योंकि लिखने की कला मुझ में है ही नहीं. आज मैं यहां आया हूं तो सिर्फ अमजद भाई की वजह से.

कंगना लिख रहीं सफलता की नई इबारत

आईफा में सर्वशे्रष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार अपने नाम करने वाली बेहतरीन अदाकारा कंगना रानावत आज अपने दम पर सफलता की नई इबारत लिख रही हैं. कंगना की पहचान इंड्रस्ट्री में आज वही है जो कुछ समय पहले विद्या बालन की थी. कंगना बौलीवुड में फिल्म हिट कराने की गारंटी बन गई हैं और खास बात यह कि फिल्म को हिट कराने के लिए उन्हें किसी सुपरहिट कोऐक्टर की जरूरत नहीं होती. फिल्म ‘क्वीन’ से ले कर 150 करोड़ी फिल्म ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न’ तक के फिल्मी सफर में कंगना की अदाकारी में लगातार निखार आया है. ,एक इवेंट में उन्होंने कहा कि इंड्रस्ट्री में इतने साल के अनुभव के बाद मैं ने यह पाया है कि जिस के पास पैसा है वह सब कुछ कर सकता है. हालांकि पैसे से सब कुछ खरीदा नहीं जा सकता पर आप अपने परिवार की जिंदगी आरामदायक और अपना भविष्य सुरक्षित बना सकते हैं.

मलाइका चाहती हैं सिंगर बनना

मलाइका अरोड़ा खान जैसी 10 साल पहले दिखती थीं आज भी वैसी ही दिखती हैं क्योंकि वे अपनी फिटनैस पर खास ध्यान देती हैं. एक इवैंट में उन से मिल कर बात करना रोचक रहा:

आप अपनी प्रोफैशनल जर्नी को कैसे देखती हैं?

मेरी जर्नी अच्छी रही. मैं जो भी काम करती हूं उसे ऐंजौय करती हूं. यही वजह है कि मुझे कामयाबी मिलती है. फिर बात चाहे ‘छैंयाछैंया…’ गाने की हो, ‘मुन्नी बदनाम हुई…’ गाने की या फिर ‘अनारकली डिस्को चली…’ गाने की. अभी मैं अपने पति के साथ फिल्म निर्माण का काम सीख रही हूं. इस के अलावा अपना रेस्तरां भी खोलना चाहती हूं.

आप अपनी किस प्रतिभा को आगे लाना चाहती हैं?

मैं सिंगिंग करना चाहती हूं पर मेरी आवाज अच्छी नहीं है. आज की हीरोइनों की आवाज काफी अच्छी है. विश्वास नहीं होता कि वे इतना अच्छा कैसे गा लेती हैं. मुझे गाने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी.

आप हेलन से कितनी प्रभावित हैं?

मैं उन से बहुत प्रभावित हूं. वे रुपहले परदे की कमाल की डांसर हैं. मुझे उन का डांस बहुत पसंद है.

परिवार के साथ समय कैसे बिताती हैं?

परिवार के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है मुझे. और घर के काम करना, कुकिंग करना आदि सब पसंद है. महिलाओं को काम के साथसाथ अपने परिवार की देखभाल भी करनी पड़ती है. ऐसे में अगर आप में टाइम मैनेजमैंट का ज्ञान है तो सब काम आसानी से कर सकती हैं. परिवार के साथ घूमना भी बहुत अच्छा लगता है.

अपनी फिटनैस पर कैसे ध्यान देती हैं?

महिलाओं को हमेशा अपनी फिटनैस पर ध्यान देना चाहिए. मैं यह बिलकुल नहीं पसंद नहीं करती कि शादी हो जाए या बच्चे तो अपने शरीर की फिक्र छोड़ दें. फिटनैस का शादी या बच्चों से कोई लेनादेना नहीं. फिटनैस का अर्थ है आप स्वस्थ रहें, स्वस्थ महसूस करें. फिट रहने पर ही आप अपने परिवार की सही देखभाल कर सकती हैं. मैं कितनी भी व्यस्त क्यों न होऊं, जिम जाना स्किप नहीं करती.

काम के लिए खुद को टौर्चर नहीं करता : अनिल कपूर

80के दशक में उम्दा डायलौग डिलिवरी, डांस और अभिनय के बल पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले अनिल कपूर ऐसे अभिनेता हैं, जो आज की अभिनेत्रियों के अपोजिट भी परफैक्ट नजर आते हैं. उन्होंने अपने जीवन के 38 साल फिल्म इंडस्ट्री में गुजारे हैं और आज भी अभिनय करते जा रहे हैं. उन की ‘मशाल’, ‘तेजाब’, ‘बेटा’, ‘रामलखन’, ‘वो सात दिन’, ‘लम्हे’, ‘मेरी जंग’, ‘जांबाज’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘विरासत’ आदि कई ऐसी फिल्में हैं, जिन की तारीफ आज भी की जाती है. बौलीवुड में अभिनय के साथ अनिल कपूर की दूसरी पहचान प्रोड्यूसर के रूप में भी है.हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर को पढ़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, लेकिन अभिनय का शौक उन्हें बचपन से ही था. वे हमेशा क्लासरूम की पिछली सीट पर बैठा करते थे ताकि छिप कर सो सकें. उन का प्रिय विषय इतिहास हुआ करता था, जिस में उन्हें दुनिया में क्या कुछ हुआ है, कैसे देश बने आदि के बारे में जानना दिलचस्प लगता था. लेकिन अब वे शिक्षा के महत्त्व को समझते हैं.

हर फिल्म एक नई सीख

वे कहते हैं कि बच्चों के जीवन में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इस से वे अपनेआप को सफल व्यक्ति के रूप में ढालने में समर्थ होते हैं. मेरे 3 बच्चे हैं. मैं उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाने की हर संभव कोशिश कर रहा हूं ताकि भविष्य में आत्मनिर्भर हो कर फैसले लेने में उन्हें मदद मिले. शिक्षा प्रत्येक बच्चे का मूलभूत अधिकार है, उस से वंचित किया जाना ठीक नहीं. शिक्षा के आधार पर ही देश, समाज और परिवार आगे बढ़ सकेगा. अनिल कपूर के कैरियर में अनेक उतारचढ़ाव आए पर उन्होंने हमेशा उस में से कुछ सकारात्मक चीजें खोज निकालीं और खुश रहे. उन का कहना है कि जीवन में मैं वह काम नहीं करता जिसे करने में खुशी न मिले. मेरे पास आजकल फिल्मों के औफर कम आते हैं, लेकिन जो भी काम मुझे मिलता है उसे मैं 100% सही ढंग से पूरा करता हूं. कई बार फिल्म अच्छी चल जाती है, तो कई बार नहीं चलती, पर मैं उस पर अधिक विचार नहीं करता. तनाव कई बार जबरदस्त होता है पर मैं उस से निकलना जानता हूं. मैं अपनी फिल्में नहीं देखता, लेकिन हर फिल्म एक नई सीख दे जाती है.

मेरी ‘लम्हे’ और ‘1942 ए लव स्टोरी’ फिल्में नहीं चलीं पर लोगों ने मेरे काम को पसंद किया. उसी से मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली. जीवन में सुखदुख का दौर चलता रहता है.

रील लाइफ और रियल लाइफ

उम्र के इस पड़ाव में भी अनिल कपूर हमेशा ऐनर्जेटिक दिखते हैं. सही आहार और व्यायाम ही उन्हें ऐसा रखता है. कई बार वे इस नियम को तोड़ते भी हैं पर अगले ही दिन फिर वर्कआउट कर अपनेआप को संभाल लेते हैं. हाल में फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ उन की सफल फिल्म थी, जिस में उन्होंने परिवार के मुखिया के रूप में अभिनय किया. इस की सफलता के बारे में वे कहते हैं कि कहानी अच्छी थी, इसलिए मुझे काम करने में मजा आया और फिल्म सफल रही. लेकिन फिल्म के चरित्र जैसा मैं नहीं हूं. फिल्मी चरित्र और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है. फिल्मों में कहानी को रियल होने पर भी मनोरंजक तरीके से दिखाया जाता है. मैं तो अपने बच्चों को पूरी आजादी देता हूं. अधिक रोकटोक नहीं करता. आजकल के बच्चों पर अधिक रोक लगाएंगे तो वे बगावत करेंगे. अच्छा यही है कि आप उन से दोस्ती रखें और प्यार से अपनी बात मनवाएं. उन्हें डौमिनेट कर आप कुछ नहीं कर सकते. जितना समय और प्यार बच्चों को देंगे, उतना ही वह आप को वापस मिलेगा. प्यार से परिवार में मधुरता आती है.

खुद पर भी ध्यान

इतने सालों तक फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के बावजूद अनिल कपूर को हर फिल्म नई लगती है, हर अभिनय नया लगता है. इंडस्ट्री में आए बदलावों और उन की सोच के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं कि पहले कहानियां जिस ढंग से कही जाती थीं, अब उस से अलग ढंग से कही जाती हैं. ऐसा बदलाव दर्शकों की पसंद की वजह से है क्योंकि फिल्में उन के लिए ही बनाई जाती हैं. उन्हें फिल्म पसंद आई तो हिट, न पसंद आई तो फ्लौप. मैं इन बातों पर ध्यान नहीं देता. बस आगे बढ़ता चला जाता हूं. जो जैसा है उसे उसी तरह अडौप्ट कर लेता हूं. अधिक नहीं सोचता. ,आज के सिने जगत में कई सारी नई तकनीकें आ गई हैं. जिस से काम करना आसान हो गया है. लेकिन समय तो देना ही पड़ता है. अपनी दिनचर्या के बारे  में अनिल कपूर का कहना है कि वह कभी निश्चित नहीं रहता. जब भी जो काम सामने आता है, उसे कर लेता हूं. लेकिन इन सब के बीच मैं नियमित व्यायाम अवश्य करता हूं. कई बार मैं खानेपीने में गलतियां करता हूं. जैसे एक बार मैं अपनी पत्नी के साथ वैडिंग ऐनिवर्सरी पर बाहर डिनर के लिए गया तो वहां दिल खोल कर सब खाया. लेकिन अगले दिन गरमी और धूप में मैं ने इतना व्यायाम किया कि सांस फूलने लगी. हर दिन आप ऐंजौय नहीं कर सकते, तो हर दिन त्याग भी नहीं कर सकते. इस का बैलेंस बनाए रखना जरूरी होता है. अगर मैं ऐसा नहीं करूं तो चेहरे की रौनक खत्म हो जाएगी. मेरी लेट नाइट शूटिंग होती है तो मैं दोपहर में सो जाता हूं. लेकिन सिर्फ घर में ही नहीं गाड़ी में बैठ कर भी सो लेता हूं. काम के लिए अपनेआप को टौर्चर नहीं करता. अगर मैं फ्रैश रहूंगा तो जो काम 10 घंटे में होता है, मैं उसे 4 घंटे में कर सकता हूं. मैं अपनी उम्र के हिसाब से ही दिनचर्या रखता हूं. फिल्मों में चरित्र भी उसी हिसाब से ही करता हूं ताकि लोग मुझे पसंद करें. लेकिन पूरा दिन मैं काम में व्यस्त रहना पसंद करता हूं.

अभी अनिल कपूर एक मराठी फिल्म भी बनाने वाले हैं. इस के अलावा उन की ‘वैलकम बैक’, ‘नो ऐंट्री में ऐंट्री’ आदि कई आने वाली फिल्में हैं. इस के अलावा वे अपनी बेटी रिया कपूर के साथ नए युवा कलाकारों को ले कर एक फिल्म बनाने वाले हैं. कौमेडी पर आधारित इस फिल्म में युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया जाएगा.

समुद्री जीवों पर भारी साजशृंगार

पुलिस और पीपल फौर ऐनिमल्स की संगठित टीम ने 2009 में गणेश नामक व्यापारी को शंखों की दुर्लभ प्रजाति के साथ गिरफ्तार किया. पुलिस ने उस के कब्जे से शंखों के 10 बैग बरामद किए. 28 अगस्त, 2009 को वन विभाग, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट औफ इंडिया और पीपल फौर ऐनिमल्स ने छापा मार कर लाखों रुपए कीमत की सीपियों को जब्त किया, जिन्हें समुद्री इलाकों से ला कर ऋषिकेश और नैनीताल में बेचा जा रहा था. पहले तो सीपियों के व्यापारियों ने छापामार टीम का यह कहते हुए हिंसात्मक विरोध किया कि उन को सीपियों के अवैध होने की जानकारी नहीं थी. पर जैसे ही उन का झूठ उजागर हुआ, उन्होंने सीपियों पर से अपना अधिकार छोड़ दिया. 25 सितंबर, 2009 को दिल्ली के लाहौरी गेट इलाके से पुलिस ने पीपल फौर ऐनिमल्स की सहायता से शंख जब्त किए. इन्हें अंडमान से तस्करी कर के लाया जा रहा था. 22 नवंबर, 2009 को दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होने वाले व्यापार मेले से दिल्ली वाइल्ड लाइफ डिपार्टमैंट, दिल्ली पुलिस और पीपल फौर ऐनिमल्स की संगठित टीम ने 400 शंख जब्त किए. तमिलनाडु और ओडिशा के स्टाल्स पर काम कर रहे 4 लोगों को इस अवैध कारोबार के लिए गिरफ्तार किया गया. जब्त किए गए सामान में बुल माउथ और हौर्न हैलमेट प्रजाति के शंख भी थे जिन्हें शैड्यूल-ढ्ढ में रखा गया है. शेर की खाल और हाथीदांत की तस्करी भी इसी शैड्यूल में है. इस के अलावा जब्त किए शंखों में स्पाइडर शंख, लिमासीना काउरी, टौप शेल और ट्रैटीजियम शंख भी थे.

पीपल फौर ऐनिमल्स ने इस मामले को गंभीरता से लिया और 28 नवंबर, 2009 को चंडीगढ़ पुलिस के साथ मिल कर शंखों और काउरी शेल्स के साथ 2 दुकानदारों सुरिंदर जैन और मदन सिंह को गिरफ्तार किया. इन्हें वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन ऐक्ट की धाराओं 9, 39, 44, 50 और 51 के तहत गिरफ्तार किया गया, जिस में 3 से 7 साल तक की सजा के साथसाथ

35 हजार जुर्माना भी शामिल है.

आप भी जागरूक बनें: हम सभी को ऐसे कानूनों के बारे में जानकारी होनी चाहिए ताकि सीपियों और शंखों के अवैध कारोबार पर रोक लगाई जा सके. ऐनिमल्स वैलफेयर बोर्ड औफ इंडिया की सहायता से पीपल फौर ऐनिमल्स ने एक बुकलेट तैयार की है, जिसे आप पीपल फौर ऐनिमल्स के पते पर 60 रू. दे कर पा सकते हैं. 

इन में भी है जीवन: आभूषणों के रूप में या पूजापाठ के लिए कभी शंख या सीपी न खरीदें. इन में जीवन होता है और ये समुद्री वातावरण के संतुलन के लिए जरूरी हैं. इन्हें कानूनी संरक्षण प्राप्त है. इन्हें घर में रखना आप को कानून के शिकंजे में फंसा सकता है. दरअसल, सीपियां मुलायम मोलसकस का बाहरी खोल यानी कंकाल होती हैं. इंसानों से विपरीत मोलसकस का कंकाल इस के शरीर के बाहर विकसित होता है ताकि इस की रक्षा कर सके. मोलसकस समुद्र का कचरा खा कर समुद्र को साफ रखते हैं. ये रीफ यानी शैलभीति बनाने में भी सहायक हैं. छोटीछोटी सीपियों में भी ऐसे जीव रहते हैं, जो समुद्र को साफ रखते हैं. इन की मृत्यु के बाद इन के कंकाल समुद्र के पानी में कैल्सियम और चूना पत्थर बनाते हैं.

हर जगह इन का व्यापार: अंडमाननिकोबार और लक्षद्वीप दीपसमूह सहित देश के सभी समुद्री भागों में सीपियां पाई जाती हैं. मोलसकस की लगभग 5,042 प्रजातियां भारत में पाई गई हैं. जो सीपियां समुद्री किनारों पर देखने को मिलती हैं वे दुकानों पर नहीं बेची जातीं. प्रोफैशनल शिकारी मोलसकस का शिकार करने के लिए समुद्र में भीतर तक जाते हैं. इन के अंदर के जीव को चाकू से निकाल कर उबाल लिया जाता है और खोलों को दुकानदारों को बेच दिया जाता है. ये बेचारे जीव जोकि समुद्र को साफ रखने के लिए बेहद जरूरी हैं, इंसानों के घर की सजावट का सामान बन कर रह जाते हैं. काउरी जैसी सीपियों का इस्तेमाल नैकलैस, चूडि़यां, झुमके, साड़ी क्लिप, कीचेन, ज्वैलरी बौक्स, पैन होल्डर और बटन बनाने में किया जाता है. नैनकाउरी और नौटिलस सीपियों को टेबल लैंप, गमले, ऐशट्रे, पेपरवेट, बैग, कुशन कवर, परदे बनाने और सजाने के काम में लाया जाता है. चैंक्स यानी शंख हिंदुओं को बेचे जाते हैं.

सीपियों के मुख्य व्यापारिक केंद्र मन्नार और पाक की खाडि़यां, रामेश्वरम, कन्याकुमारी व तमिलनाडु के सागरी तटों पर बसे कसबे, अंडमान का पोर्टब्लेयर, ओडिशा का पुरी शहर, कच्छ की खाड़ी, आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम और काकीनाड़ा शहर हैं. धार्मिक स्थलों के आसपास यह धंधा खूब फूलताफलता है. तूतीकोरीन के पास तिरसपुरम, कीलाकरी, रामेश्वरम और कन्याकुमारी में यह धंधा सब से ज्यादा होता है. चाहे वे छोटे दुकानदार हों, प्लेटफार्म पर सामान बेचने वाले वैंडर हों या गिफ्ट शौप्स, यह धंधा पूरे भारत में चल रहा है. बड़े ठिकाने भी हैं: कोलकाता इन जगहों में प्रमुख है जहां आभूषणों से ले कर अन्य सामान तक सीपियों से बनाया जाता है. इस सामान को ऐक्सपोर्ट करने का मुख्य केंद्र मुंबई है. भारतीय समुद्री सीपियों में सब से ज्यादा ऐक्सपोर्ट की जाने वाली प्रजातियां हैं- चिकोरस रिमोसस, टर्बीनेला पायरम, कासिस. इन में से जो प्रजातियां खतरे में हैं, वे हैं- टरबन शेल या ग्रीन स्नेल, इंडियन सैके्रड चैंक, क्लाम शेल्स, हौर्सेस हूप क्लैम, पर्ल ओयस्टर, काउरी की सभी प्रजातियां और स्कौर्पियन सी शैल.

कैसे लगे रोक: इंडिया वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन ऐक्ट, 1972 के अनुसार वाइल्ड लाइफ की परिभाषा कुछ इस तरह है, ‘कोई भी जीव, जलचर या भूमिचर जो प्रकृति का संरक्षण और संरचना करता हो.’ इस में मधुमक्खियां, तितलियां, कड़े खोल वाले जलजीव, मछलियां इत्यादि भी शामिल हैं. ये सभी सरकारी संरक्षण में हैं और इन को किसी भी तरह की चोट पहुंचाना कानूनन अपराध है. आयातनिर्यात नियमों के अनुसार सभी जंगली जीवजंतुओं, उन के शारीरिक अंगों या उन से बने उत्पादों की खरीदफरोख्त पर पूरी तरह से पाबंदी है. इस में सिर्फ मान्यताप्राप्त शैक्षणिक संस्थानों और रिसर्च करने वालों को छूट प्राप्त है, वह भी वाइल्ड लाइफ नियमों के दायरे में रह कर.

इस व्यापार पर रोक लगाने का सब से अच्छा तरीका है इस के खरीदारों पर रोक लगाना. इस के लिए अपने इलाके, स्कूलकालेज और बाजारों में जागरूकता फैलाएं. यदि आप किसी के घर में सीपियों से बना सामान देखें तो इसे उतना ही गंभीर मामला समझें जितना कि शेर की खाल को रखना है. सभी दुकानदारों की पुलिस को सूचना हो और चेतावनी भी जारी की जाए. टूरिस्ट शौप्स, धार्मिक स्थलों, होटलों आदि में जा कर इस के लिए जागरूकता फैलाएं. यदि समुद्री किनारे पर कोई व्यक्ति इन चीजों की व्यापार कर रहा हो तो उसे गिरफ्तार कराएं. यदि किसी वैबसाइट पर भी यह धंधा चल रहा हो तो हमें सूचित करें या वैबसाइट चलाने वाले को बताएं कि ऐसा करना कानूनी तौर पर गलत है.

ऐसी किसी भी गतिविधि की जानकारी लोकल पुलिस या वन विभाग को दे सकते हैं. इस के अलावा पीपल फौर ऐनिमल्स, 14, अशोका रोड, नई दिल्ली-110001 फोन: 011-23719293, 23357088 या डायरैक्टर, टै्रफिक, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया, 172-बी, लोधी ऐस्टेट, नई दिल्ली-110003 फोन: 011-24698578 पर भी जानकारी दे सकते हैं. सचेत हो जाएं. मौंगूज हेयरब्रश का व्यापार रोकने में हमें 3 साल लगे थे और वह भी कड़ी मेहनत करने पर. देखते हैं, इस व्यापार को हम कब तक रोक पाते हैं.

फिल्मों में गालियों का फौर्मूला कहां तक सही

90 के दशक में शेखर कपूर की फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ की चर्चा बोल्डनैस के अलावा उस फिल्म में भरी गालियों की वजह से अधिक हुई थी. इस के बाद अनुराग की फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में भी गालियों की भरमार थी. अब निर्देशक चंद्र प्रकाश द्विवेदी की फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ भी इस के लिए चर्चा में है. फिल्म तो 2011 में ही बन गई थी, लेकिन रिलीज इस साल अक्तूबर में होने वाली है.यह फिल्म, लेखक डा. काशीनाथ सिंह के उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ पर बनी है. इस फिल्म का अभी यू ट्यूब पर ट्रेलर लौंच किया है जिस में गालियों की भरमार है और इस फिल्म में सनी देओल और साक्षी तंवर पतिपत्नी की भूमिका निभा रहे हैं. फिल्म की कहानी वाराणसी में पर्यटन के व्यवसायीकरण पर आधारित है, जिस में सनी एक पुजारी बने हैं.सोशल मीडिया पर लीक हुआ यह ट्रेलर गालियों से भरा है इस ट्रेलर में सनी अपनी बाकी फिल्मों से अलग बेहिसाब गालियां देते नजर आ रहे हैं. साथ ही इस में ऐक्टर्स अश्लील बातें भी कर रहे हैं. हालांकि यू ट्यूब से फिल्म का टीजर हटा लिया गया है.

सैंसर बोर्ड की भूमिका

इस फिल्म में एक खास बात यह भी है कि फिल्म के निर्देशक चंद्र प्रकाश द्विवेदी खुद सैंसर बोर्ड के सदस्य हैं. यह वही सैंसर बोर्ड है जिस ने पिछले दिनों धर्म की कुरूतियों पर प्रहार करने वाली फिल्म ‘धर्म संकट में’ और ‘पीके’ के रिलीज पर अपनी आपत्ति जताई कुछ महिने पहले सैंसर बोर्ड द्वारा ऐसे शब्दों को, जो गालियों में शामिल होते हैं फिल्मों में निषेध कर दिया गया है. फिल्म जगत में इस फरमान के बाद अच्छा खासा होहल्ला उठा था. कई निर्देशक और फिल्म लेखक इसे तुगलकी फरमान मान कर चल रहे हैं. उन का कहना है कि अगर सैंसर बोर्ड की शब्दावली के अनुसार उन्हें कहानी लिखनी पड़े या फिल्म बनानी पड़े तो उन की फिल्मों की तो वास्तविकता ही खत्म हो जाएगी. किसी डकैत या अंडरवर्ल्ड पर बनने वाली फिल्म में जब तक उसी के बोलचाल वाले शब्दों का प्रयोग न किया जाए (जिन शब्दों में अधिकतर गालियां होती हैं) तो फिल्म बनावटी लगेगी. इस पर ऐड गुरु प्रहलाद कक्कड़ का कहना है कि अगर आप फिल्मों को बांध कर रखेंगे तो कैसे चलेगा? फिल्में वह नहीं दिखा पाएंगी जो निर्देशक का उद्देश्य रहा हो. मगर कई फिल्मों और छोटे परदे पर अभिनय के जौहर दिखा चुके अक्षय आनंद का कहना है कि हर डायलौग में गालियों को शामिल करना कुछ अजीब नहीं लगता इस से तो यही प्रतीत होता है कि ऐसी फिल्मों के निर्देशक जानबूझ कर पब्लिसिटी स्टंट के लिए ऐसा करते हैं.

बेवजह मत शामिल करो

फिल्मों की भाषा में इन द्विअर्थी शब्दों के प्रयोग और गालियों की भरमार पर धारावाहिक ‘सरोजनी एक नई पहल’ में पूर्वांचल के दबंग और बिगड़ैल लड़के की भूमिका निभा रहे मोहित सहगल का मानना है कि धारावाहिकों और फिल्मों में वास्तविकता दिखाने के लिए उस क्षेत्र विशेष की भाषा का उपयोग अच्छा रहता है, न कि ऐसे शब्दों को डालना जो द्विअर्थी और गालियों वाले हों. क्या फिल्मों में गालियों का फौर्मूला सिर्फ पब्लिक को खींचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है या वजह कुछ और है? फिल्मों के निर्देशक तो इन गालियों की फिल्म में मौजूदगी को रिऐलिटी दिखाने की वजह बताते हैं पर मांबहन की गालियों को बेमतलब फिल्मों में ठूंसना कहां तक सही है?

सौंदर्य समस्याएं

मैं 30 वर्षीय महिला हूं. मेरी समस्या यह है कि बरसात के मौसम में मेरे काले घने बाल बेजान और चिपचिपे से हो जाते हैं और सिर में खुजली भी होती है. ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से मेरे बाल बरसात के मौसम में भी खिलेखिले और संवरे दिखें?

बरसात के मौसम में नमी के कारण बाल चिपचिपे हो जाते हैं और सिर में खुजली भी होती है. इन परेशानियों से बचने के लिए आप 1 कप कुनकुने पानी में 2 बड़े चम्मच सिरका डालें और बालों को शैंपू करने के बाद सिरके के पानी से धो कर सूखने दें. सिरके में मौजूद एंजाइम्स जीवाणुओं को मारते हैं, जिस से खुजली की समस्या से राहत मिलती है और बाल चिपचिपे नहीं होते.

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मैं 40 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ दिनों से मेरे चेहरे पर कालेकाले धब्बे हो गए हैं. इन की वजह से चेहरा बहुत खराब दिखता है. इन्हें मेकअप से छिपाने की कोशिश करती हूं, लेकिन कोई फायदा नहीं होता. कृपया चेहरे के इन काले दागधब्बों को हटाने का घरेलू उपाय बताएं?

आप खीरा, पपीता और टमाटर का रस बराबर मात्रा में ले कर उसे अच्छी तरह मिला कर चेहरे पर लगाएं. जब यह सूख जाए तो दोबारा चेहरे पर लगाएं. इस प्रक्रिया को 3-4 बार दोहराएं. फिर चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. ऐसा 7-8 दिन लगातार करें. इस से चेहरे के धब्बों में भी कमी आएगी और त्वचा भी निखरेगी.

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मैं कालेज में पढ़ने वाली छात्रा हूं. घर से बाहर मुझे बंद फुटवियर अधिक सुविधाजनक लगते हैं, इसलिए मैं हमेशा बंद जूते या सैंडल ही पहनती हूं. लेकिन शाम को घर जा कर जब मैं जूते खोलती हूं तो पैरों से बहुत बदबू आती है. बताएं मैं क्या करूं जिस से मेरी इस समस्या का समाधान हो जाए?

पैरों से दुर्गंध हटाने के लिए आप एक टब में कुनकुना पानी लें और उस में 2 चम्मच बेकिंग सोडा व नीबू का रस डालें. फिर 10 मिनट तक उस में पैरों को डुबोए रखें. अगर इस के बाद भी पैरों में रूखापन महसूस हो तो पैरों में मौइश्चराइजर लगाएं. फिर सूती मोजे पहनें. कई बार बंद जूते पहनने से पैरों में फंगल इन्फैक्शन भी हो जाता है. इस से बचने के लिए एक टब में सिरका व गरम पानी बराबर मात्रा में मिला लें व आधे घंटों तक पैरों को उस में डुबोए रखें. सिरका पैरों में जमी गंदगी को साफ करने में मदद करता है व इन्फैक्शन को भी दूर करता है.

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मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरा रंग सांवला है. सभी मुझे घर से बाहर निकलते समय सनस्क्रीन या सनब्लौक लगाने की सलाह देते हैं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या सनस्क्रीन या सनब्लौक एक जैसे ही ब्यूटी प्रोडक्ट हैं या दोनों में कोई अंतर होता है?

सनस्क्रीन और सनब्लौक दोनों ही सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों से त्वचा की सुरक्षा करते हैं, लेकिन दोनों में अंतर होता है. दरअसल, अल्ट्रावायलेट किरणों की 2 कैटेगिरी होती है- यूएवी और यूवीबी. इन में यूएवी किरणें त्वचा के लिए अधिक हानिकारक होती हैं. ये किरणें त्वचा पर लंबे समय तक रहने वाला असर छोड़ती हैं जबकि यूवीबी किरणें सनबर्न और फोटोएजिंग के लिए जिम्मेदार होती हैं. सनस्क्रीन यूवीबी किरणों को मामूली रूप से फिल्टर करता है जबकि सनब्लौक में जिंक औक्साइड होता है जो दोनों तरह की किरणों से त्वचा की रक्षा करता है. इसलिए सनस्क्रीन की अपेक्षा सनब्लौक त्वचा को अधिक सुरक्षा देता है.

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मैं 32 वर्षीय विवाहित महिला हूं. मेरी समस्या मेरे पैरों को ले कर है. मेरे पैरों की त्वचा बहुत ड्राई है साथ ही उन में काले धब्बे व दरारें भी हैं. वैक्सिंग से भी ये नहीं जातीं. इन की वजह से मैं शौर्ट ड्रैसेज पहनने का शौक पूरा नहीं कर पाती. कृपया समाधान बताएं?

जहां तक पैरों की ड्राइनैस की समस्या है, तो उस के लिए पैरों की नियमित क्लींजिंग, टोनिंग व मौइश्चराइजिंग करें. पानी का भरपूर सेवन करें. इस से त्वचा को अंदर से नमी मिलेगी. नहाते समय ज्यादा गरम पानी के प्रयोग से बचें. त्वचा की रोज औलिव औयल से मसाज करें. पैरों के काले धब्बों को हटाने के लिए एक कटोरी में टमाटर व नीबू का रस मिलाएं व धब्बों पर लगाएं. 15 मिनट बाद धो लें. ऐसा लगातार करें. इन दोनों चीजों में विटामिन सी होता है जो दागधब्बों को हलका करने में सहायक होता है.

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मेरी उम्र 13 साल है. मेरी कुहनियों व घुटनों का रंग काफी काला है. इस की वजह से मैं स्लीवलैस व शौर्ट ड्रैसेज नहीं पहन पाती हूं. रंगत निखारने का कोई उपाय बताएं?

आमतौर पर हम अपने चेहरे की जितनी देखभाल करते हैं उतनी अपनी कुहनियों या घुटनों की नहीं करते. यानी इन की सफाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. कुहनियों व घुटनों का कालापन दूर करने के लिए बेकिंग सोडा व दूध को मिक्स कर के पेस्ट बनाएं. उस से कुहनियों को रगड़ें. फिर पानी से धो लें. ऐसा हर दूसरे दिन करें. आप को फर्क दिखेगा. इस के अलावा नीबू को काट कर उस पर थोड़ी चीनी बुरकें व उस से कुहनियों व घुटनों को रगड़ें. इस से गंदगी साफ होगी व त्वचा की नैचुरल ब्लीचिंग होगी.

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सनटैनिंग की वजह से मेरी गरदन बहुत काली हो गई है. उस की रंगत निखारने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

गरदन की रंगत निखारने के लिए चंदन पाउडर व हलदी पाउडर को एकसाथ बराबर मात्रा में मिला कर पेस्ट बनाएं. इस पेस्ट को गरदन पर लगाएं. इस से गरदन का रंग साफ होगा व टैनिंग भी दूर होगी.

– समाधान ब्यूटी ऐक्सपर्ट संगीता सभरवाल के सहयोग से

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