बुनियादी शिक्षा भविष्य की सुरक्षा

ऐक्स्पर्ट्स मानते हैं कि मात्र 5 वर्ष की आयु तक बच्चे के लगभग 75% मस्तिष्क का विकास हो जाता है. ऐसे में सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बचपन जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण होता है. बच्चा सब से पहले घर के सदस्यों के बीच रह कर वहीं से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करता है. भाषा, संस्कार व कुछ मूलभूत जानकारियां उसे घर से ही मिलती हैं. तभी तो अमेरिका में बच्चों को अंगरेजी नहीं सिखानी पड़ती और भारतीय बच्चों को हिंदी खुदबखुद आ जाती है. फिर धीरेधीरे बच्चा बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है. इस के अलावा स्कूल की भी बच्चे के जीवन में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. यह जरूरी है कि बच्चे के पूर्ण विकास के लिए उन की नींव ठोस हो.

सोचसमझ कर बोलें

अकसर पेरैंट्स सोचते हैं कि वे जो बातें करते हैं बच्चे की समझ में नहीं आती. जबकि इस से उलट बच्चा अपने आसपास के लोगों की सभी बातें बड़ों से ज्यादा औब्जर्व करता है. इसलिए बच्चे के सामने शिष्ट व्यवहार व सोचसमझ कर बात करनी चाहिए. बच्चा वही सीखता है, जो वह देखता व सुनता है.

गुणों को पहचानिए

हर बच्चे में कोई न कोई गुण अवश्य होता है. अगर उसे सही समय पर पहचान लिया जाए, तो बच्चा जीवन में बहुत आगे जाता है. उदाहरण के लिए प्रसिद्ध चैस खिलाड़ी तान्या सचदेव मात्र 7 साल की आयु में चैस के बारे में पिता से प्रश्न करने लगी और तभी उन के पिता ने पहचान लिया कि तान्या में यह प्रतिभा छिपी है. फिर उस की प्रतिभा को उभारने के प्रयत्न किए गए और आज वे किसी पहचान की मुहताज नहीं. बच्चे की हर क्रिया को ध्यान से देखें. उसे क्या करना अच्छा लगता है, क्या नहीं, पहचानें. इस का उस के भविष्य पर निश्चय ही प्रभाव पड़ेगा.

प्रश्नों के तार्किक जवाब

लगभग सभी पेरैंट्स की यह शिकायत होती है कि बच्चे इतने प्रश्न पूछते हैं कि उन के हर सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जाता है, इसलिए वे बात को खत्म करने के लिए कुछ भी कह देते हैं. पर ऐसा न करें. बच्चे की जिज्ञासा को पौजिटिव सैंस में लें और उस के प्रश्नों के उत्तर तर्क के आधार पर सूझबूझ से दें.

खेलने को कहें

‘पढ़ोगेलिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगेकूदोगे हो जाओगे खराब…’, यह कहावत अब बिलकुल महत्त्वहीन है. बच्चे को पढ़ाई के साथसाथ खेलने के लिए भी प्रेरित करें. इस से उस का ध्यान टीवी की ओर न जा कर प्रकृति से जुड़ेगा, जो सेहत के लिए हितकर होता है. वहीं स्पोर्ट्स में यदि बच्चे का हुनर है, तो वह भी निकल कर सामने आ पाएगा.

कहानियों से दें जानकारी

बच्चे कहानी बड़े चाव से सुनते हैं इसलिए रात को सोने से पहले या जब भी समय हो बच्चे को कहानियों के जरिए नईनई जानकारियां दें. इस से उस का मनोरंजन होगा, पेरैंट्स से लगाव बढ़ेगा, नई जानकारियां मिलेंगी व उस की कल्पनाशक्ति बढ़ेगी, जो मस्तिष्क के लिए काफी लाभकारी होती है. कहानियों के साथसाथ बच्चे को खेलखेल में नईनई चीजे सिखाएं, उस के साथ ऐसे गेम्स खेलें, जिस से उस की बुद्घि तेज हो, जैसे उसे कोई कविता या शब्दों की स्पैलिंग सुनाने को कहें.

स्कूल का चुनाव

स्कूल बच्चे के पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. स्कूल में बच्चा आधा दिन व्यतीत करता है, इसलिए वैसा स्कूल चुनें जो सिर्फ किताबी नहीं, पूर्ण शिक्षा प्रदान करने में सक्षम हो. जो बच्चों की शैक्षिक योग्यता ही नहीं व्यक्तित्व को भी निखार कर संपूर्ण विकास करने में विश्वास रखता हो. बचपन किसी पौधे के बीज जैसा है. जो बीज ढंग से बोया जाएगा, उसी का अच्छा पौधा उगेगा. आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में बच्चे की अच्छी देखभाल मुख्य समस्या है, लेकिन बच्चे को क्वालिटी टाइम और क्वालिटी ऐजुकेशन देना मातापिता का कर्तव्य है. तभी उस का भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा.

मेरे लिए नई भूमिका चुनौतीपूर्ण

बौलीवुड की देशी गर्ल प्रियंका के अभिनय का कैरियर ग्राफ इस समय काफी ऊंचा चल रहा है. तभी तो वे एक अमेरिकी टीवी शो ‘क्वांटिको’ में अपनी अदाकारी के जलवे दिखाने के बाद अब संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में पूरी तरह रम गई हैं. इस मेगा बजट मूवी में वे बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई का रोल निभा रही हैं. प्रियंका बताती हैं कि काशीबाई के किरदार को परदे पर जीवंत करना आसान काम नहीं है, क्योंकि कहानी में काशीबाई एक दुखी किरदार है. उस जमाने में महिलाएं ज्यादा नहीं बोला करती थीं, इसलिए भावभंगिमाओं से ही काम चलता था.

अरुणा शानबाग : भावनाहीन जीवन का अंत

27नवंबर, 1973 की त्रासदी वाली रात. इस रात मुंबई के केईएम अस्पताल में कार्यरत नर्स अरुणा शानबाग के साथ वहीं जो हादसा हुआ उस ने उन की जिंदगी को त्रासदीपूर्ण बना अस्पताल के बैड में कैद कर दिया. दरअसल, अरुणा उसी अस्पताल में अस्थायी सफाई कर्मचारी सोहनलाल भारथा वाल्मीकि की खुन्नस और यौन लालसा की शिकार बनीं और जिस समय अरुणा के साथ यह घटना घटी, तब उन की उम्र महज 25 साल 5 महीने 26 दिन थी. इस के बाद लंबे त्रासदीपूर्ण जीवन से अरुणा को जब 18 मई, 2015 की रात मुक्ति मिली. तब उन की उम्र 66 साल 11 महीने 17 दिन हो चुकी थी यानी अरुणा शानबाग ने 41 साल 5 महीने 31 दिन त्रासदी के बीच काटे.इस बीच कितना कुछ बीत गया. सोहनलाल भारथा वाल्मीकि अपनी सजा काट कर आजाद भी हो गया. जो जुर्म उस ने किया, उस के लिए उसे महज 7 साल की सजा मिली और यह सजा उसे केवल अरुणा शानबाग पर हमला करने और लूटपाट के लिए दी गई. अस्पताल के प्रबंधकों ने चूंकि बलात्कार के मामले को दबा दिया था, इसलिए सोहनलाल पर बलात्कार या अप्राकृतिक यौन हमले का केस नहीं बना. लेकिन सोहनलाल की विकृत मानसिकता का खमियाजा लगभग 42 साल अरुणा को झेलना पड़ा. इतने लंबे समय तक अरुणा को परसिस्टैंट वैजिटेटिव यानी आंशिक होश की स्थिति से गुजरना पड़ा.

भावनाहीन जीवन

अरुणा के इस त्रासदीपूर्ण जीवन पर बहुत सारे लेख लिखे गए, तो कई कहानियां, सीरियल, नाटक व किताबें भी लिखी गईं. यहां तक कि इस नारकीय जीवन से अरुणा को मुक्ति दिलाने के लिए पिंकी विरानी नामक एक पत्रकार ने पैसिव यूथनेसिया यानी इच्छामृत्यु के लिए आवेदन भी किया. लेकिन सर्वोच्च अदालत ने विशेष परिस्थिति में पैसिव यूथनेसिया को मंजूर किया. इस के तहत सर्वोच्च अदालत ने चिकित्सा बंद कर व लाइफ सपोर्ट सिस्टम को हटा कर अप्रत्यक्ष रूप से जीवन का अंत करने को मंजूरी दी. सर्वोच्च न्यायलय का यह फैसला ऐतिहासिक माना गया. पूरे देश भर में इस को ले कर नए सिरे से बहस शुरू हुई. एक तरफ समाज के कई तबकों द्वारा यह आशंका जताई गई कि इस का बेजा इस्तेमाल कहीं अधिक होगा, तो दूसरी तरफ लंबे समय से अरुणा की देखभाल कर रहीं केईएम अस्पताल की नर्सें पैसिव यूथनेसिया के लिए तैयार नहीं हुईं. उन का कहना यही था कि अरुणा उन्हें रिस्पौंस करती हैं. लिहाजा, अरुणा की लौ बुझी नहीं. यह और बात है कि नर्सों के इस फैसले को चिकित्सा जगत के कुछ लोगों ने मैडिकल पौलिटिक्स का नाम दिया. हालांकि यह विषय अलग से विचार करने का है कि 42 सालों तक परसिस्टैंट वैजिटेटिव स्थिति में जीवन का महज भ्रम जगाए रहने वाली, देखनेसुनने, बोलने, हिलनेडुलने में नाकाम, भावनाहीन अरुणा शानबाग इस मुद्दे पर क्या कुछ कहना चाहती थीं, कोई नहीं जान पाया. हमें नहीं पता कि अपनी पीड़ा को वे किन शब्दों में बयान करती थीं और कुछ नहीं तो उन की जिस प्रतिक्रिया का हवाला उन की सेवा करने वाली नर्सों ने दिया वे क्या वैसी थीं?

हालांकि यह भी सही है कि अरुणा शानबाग से बलात्कार की घटना पहले देश में बलात्कार संबंधी कानून को ले कर बहस का मुद्दा बनी, जैसा कि हर चर्चित बलात्कार कांड के बाद होता रहा है. यह और बात है कि सही माने में देश में बलात्कार कानून सख्त नहीं बना. अगर ऐसा होता तो निर्भया कांड जैसी वारदातें देश में न होतीं. आएदिन चलती बस व गाड़ी में गैंगरेप की घटना न घटती. लेकिन देश में पैसिव यूथनेसिया के मामले में अरुणा का नाम जरूर अग्रणी बना. लेकिन क्या किसी अन्य मरीज को पैसिव यूथनेसिया का अब तक लाभ मिला. बहरहाल, अरुणा लड़ाई जीत न सकीं.

अपने लिए जीता मौत को

लेकिन कैलिफोर्निया की ब्रिटनी ने अपने लिए मौत को जीत ही लिया. गौरतलब है कि अभी पिछले साल पैसिव यूथनेसिया के मामले को ले कर ब्रिटनी लौरेन मेनार्ड का नाम दुनिया भर में चर्चा का विषय बना. अमेरिका के कैलिफोर्निया की ब्रिटनी पेशे से टीचर थीं. जनवरी, 2014 को महज 30 साल की उम्र में उन्हें मस्तिष्क कैंसर का पता चला. शुरू में डाक्टर ने इलाज से स्वस्थ्य हो जाने का भरोसा दिया, लेकिन अप्रैल तक ढेर सारी जांच के बाद खुलासा हुआ कि काफी देर हो चुकी है. पूरे मस्तिष्क में कैंसर फैल चुका है. स्वस्थ होने की गुंजाइश लगभग नहीं के बराबर है. जीते रहने के लिए समयसमय पर पूरे मस्तिष्क में समयसमय पर रेडिएशन लेने की सलाह डाक्टरों ने दी. लेकिन ब्रिटनी जानती थीं कि इस से उन के सिर पर एक भी बाल का अस्तित्व नहीं रहेगा. साथ ही पूरे सिर पर जले का निशान बन जाएगा. अंदेशा यह भी था कि इलाज के बाद वे बात करने की भी स्थिति में नहीं रहेंगी. कुल मिला कर स्वस्थ व सामान्य होने की भी कोई गारंटी नहीं थी.

वैसे ब्रिटनी की उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी. उन के और किसी अंगप्रत्यंग में कहीं कोई बीमारी भी नहीं थी. लेकिन मस्तिष्क का कैंसर जिस मोड़ तक पहुंच चुका था, वहां सामान्य जीवन की आजादी तारतार हो जाती है, इसीलिए ऐसी विकृति के साथ लंबा जीवन जीने को वे तैयार नहीं थीं. उस विकृत रूप के साथ जीने का भ्रम पाले रख कर मौत का इंतजार करना उन्हें कतई गवारा नहीं था. ब्रिटनी की सोच यह थी कि जब स्वस्थ व सामान्य जीवन की उम्मीद ही न हो, तो समय के सहारे जीवन को छोड़ देने का कोई अर्थ नहीं होता. इसीलिए उन्होंने दुनिया को अलविदा कहने का निर्णय लिया. ब्रिटनी अपने लिए डैथ विद डिग्निटी चाहती थीं. उन के परिवार ने भी उन का साथ दिया.

जीवन को अलविदा कहा

लेकिन अमेरिका के जिन 5 राज्यों में डैथ विद डिग्निटी को मान्यता प्राप्त है, उस में तब कैलिफोर्निया शामिल नहीं था. ऐसे में ब्रिटनी ने ओरेगोन चले जाने का फैसला किया. ओरेगोन अमेरिका के उन राज्यों में से एक है, जहां बेगैरत जिंदगी को सम्मानपूर्वक अलविदा कहने को कानूनी मान्यता प्राप्त है. ब्रिटनी वहीं चली आईं, जीवन को हमेशा के लिए अलविदा कहने को. यहां चिकित्सकों द्वारा प्रिस्क्राइब की गई घातक दवा की मदद से ब्रिटनी मेनार्ड ने 1 नवंबर, 2014 को अपने दोस्तों, परिजनों के सामने जीवन को अलविदा कहा.

काश, अरुणा शानबाग के साथ भी ऐसा कुछ हो पाता. उन के दर्द को भी देश, समाज समझ पाता. ऐसा भी नहीं है कि वे मरमर कर जीवन जीती रहीं, बल्कि वे तो हर रोज तिलतिल कर मरती रहीं और फिर उन्हें इस त्रासदी से मुक्ति मिल ही गई. काश यह मुक्ति उन्हें और पहले मिल जाती. जहां तक हमारे देश में इच्छा मृत्यु को मान्यता देने का सवाल है, तो यह बहुत कुछ 9 महीने में महज अढ़ाई कोस चलने जैसा है. इतने वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथनेसिया का एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. नएनए मोदी मंत्रिमंडल के पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन ने इच्छामृत्यु के मामले में कहा था कि इस से जुड़े और भी बहुत सारे मुद्दे हैं. इस बारे में सरकार हड़बड़ी में कुछ नहीं करना चाहती. सब को साथ ले कर सब की सहमति से आगे बढ़ना होगा. अब अगर कैलिफोर्निया की बात की जाए तो ब्रिटनी मेनार्ड के बाद वहां भी डैथ विद डिग्निटी पर कानून बनाने की तैयारी शुरू हो गई. वहीं नीदरलैंड, जरमनी, बेल्जियम समेत अन्य कई देशों में यह कानून अलगअलग नाम से है. कहीं डैथ विद डिग्निटी, तो कहीं इसे असिस्टैंट सुसाइड का नाम दिया गया है. अगर ओरेगोन की ही बात करें तो यहां 1999 में डैथ विद डिग्निटी को कानूनी मान्यता मिली. ओरेगोन अमेरिका का पहला राज्य बना, जहां लाइलाज बीमारी से ग्रस्त मरीज को कानूनन अपने लिए मौत चुनने का मौका दिया गया. मान्यता मिलने के बाद पहले ही साल इस कानून का 16 मरीजों को लाभ मिला. लेकिन 17 सालों बाद यानी 2014 में यह आंकड़ा 105 तक पहुंच गया. अब कैलिफोर्निया इसी रास्ते पर चलने की तैयारी में है. हालांकि ऐसे मुद्दे के लिए बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ती है. कैलिफोर्निया को भी लड़नी पड़ी. कैलिफोर्निया मैडिकल ऐसोसिएशन, कैथोलिक चर्च और अपंगों के एक संगठन ने इस पर आपत्ति जताई है. पर अब सीनेट में यह बिल पास हो गया है.

हमारे यहां अभी हाल ही में आत्महत्या को अपराध का दर्जा देने वाली भारतीय दंड विधान की धारा 309 को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. पर इस में भी 44 साल का समय लग गया. 1971 में पहली बार कानून आयोग ने अपनी 42वीं रिपोर्ट में इस धारा को खत्म करने की सिफारिश की थी. इसी कड़ी में 2013 में मानसिक स्वास्थ्य सेवा बिल पास हुआ, जिस में कहा गया कि अन्य कोई उद्देश्य प्रमाणित न होने पर आत्महत्या की कोशिश करने वाले व्यक्ति को मानसिक रूप से विक्षिप्त माना जाएगा. ऐसे व्यक्ति पर धारा 309 नहीं लगाई जा सकती. इस धारा के रद्द हो जाने के बाद आत्महत्या की कोशिश में असफल हो जाने के बाद सजा का डर नहीं रहा. इस से पहले आत्महत्या की कोशिश में असफल होने पर 1 साल की सजा व जुर्माना या दोनों अदा करने का प्रावधान था. बहरहाल, कानून आयोग की सिफारिश के बाद 44 साल तक अल्ट्रा स्लो मोशन में आगे बढ़ते हुए अंतत: यह धारा निरस्त्र हो गई. अब इच्छामृत्यु को कानूनी जामा पहनाने की बात पर तो सुप्रीम कोर्ट के पैसिव यूथनेसिया के ऐतिहासिक फैसले के बाद हमारे देश में गंभीरता से चर्चा शुरू हो गई है. इसे कानूनी मान्यता मिलने में हो सकता है 50 साल का समय लग जाए, लेकिन इस समय एक रास्ता जरूर खुल गया है.

2014 में आत्महत्या को अपराध बताने वाली धारा 309 के निरस्त्र हो जाने के बाद उम्मीद की एक किरण नजर आ रही है. पर इच्छामृत्यु को ले कर पुख्ता कानून बनाने के लिए अभी थोड़ा और जोर लगाना होगा ताकि इस का बेजा इस्तेमाल न हो. इस के खिलाफ विरोध के भी सुर उठेंगे और उठ भी रहे हैं. इस के पक्षधरों के एक दल का यह भी मानना है कि अब जब आत्महत्या अपराध नहीं रहा तो इच्छामृत्यु का अधिकार स्वत: मिल जाता है. लेकिन फिर भी इसे कानूनी जामा पहनाया जाना जरूरी है. यहां सवाल यह भी उठाया जा सकता है कि आत्महत्या अगर अब अपराध नहीं रहा तो सरकार इच्छामृत्यु का अधिकार क्यों नहीं दे देती 

अगर लाइलाज बीमारी से ग्रस्त कोई व्यक्ति देश का नागरिक होने के नाते राष्ट्र से सम्मानित तरीके से इच्छामृत्यु का अधिकार मांगे तो यह उसे क्यों नहीं मिलना चाहिए?

संथारा व प्रयोपवेशन की परंपरा

यह वही देश है जहां संथारा और प्रयोपवेशन यानी अन्नजल त्याग कर मृत्यु का वरण करने की परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. इसे बंद करने के लिए देश की किसी भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. हालांकि 2006 में राजस्थान हाईकोर्ट में जैन समुदाय में सैकड़ों साल से चली आ रही संथारा की परंपरा के खिलाफ एक याचिका दायर हुई थी. कोर्ट ने राज्य सरकार का पक्ष जानना चाहा था. लेकिन अपना पक्ष बताने में राज्य सरकार को 3 साल लग गए. अंतत: सरकार ने ईसा से 250 साल पुरानी संथारा की प्रथा पर रोक न लगाने का फैसला किया. 2006 में ही जयपुर में कैंसर पीडि़त 61 वर्षीय विमला देवी ने मौत को गले लगाने के लिए संथारा का रास्ता चुना था. बताया जाता है कि हर साल देश के विभिन्न हिस्सों में 200 से अधिक लोग संथारा के जरीए मृत्यु का वरण करते हैं. भारत में प्रयोपवेशन की परंपरा के बारे में बहुत पुरानी कहानियां प्रचलित हैं. भगवत पुराण के अनुसार राजा परीक्षित ने गंगा किनारे प्रयोपवेशन कर के अपने प्राण त्याग दिए थे. वायु पुराण में भी प्रयोपवेशन का जिक्र है. दरअसल, यह वह अवस्था है ज मृत्यु का संकल्प ले कर कोई व्यक्ति आजीवन अन्नजल त्याग कर ध्यानमुद्रा में आसीन हो कर शरीर का त्याग करता है. पिंकी विरानी द्वारा अरुणा शानबाग के लिए दायर की गई यूथनेसिया मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से राय मांगी थी. लेकिन केंद्र सरकार ने इच्छामृत्यु को आत्महत्या मानते हुए इस की इजाजत देने से मना कर दिया था. लेकिन अब जब आत्महत्या अपराध नहीं है, तो लाइलाज बीमारी से ग्रस्त व त्रस्त निष्क्रिय व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु की अपील को मंजूर किया जाना चाहिए और इस से संबंधित पुख्ता कानून बनाना चाहिए. केंद्र में मोदी सरकार आजकल विज्ञान को वैदिक सभ्यता से जोड़ कर देख रही है. हवाई जहाज को पुष्पक विमान, एटम बम को ब्रह्मास्त्र मान सकती है, तो यूथनेसिया को प्रयोपवेशन या संथारा से भला क्यों नहीं जोड़ कर देखती? यह बड़ी अजीब बात है कि संथारा और प्रयोपवेशन की परंपरा वाले देश में त्रासदी से मुक्ति के लिए शून्य की ओर देखती रही एक जिंदगी.

नवरत्नी मिठास

सामग्री

1/4 कप उरद दाल 4 घंटे पानी में भिगोई

1/4 कप अरहर दाल 4 घंटे पानी में भिगोई

1/4 मूंग दाल 4 घंटे पानी में भिगोई

1/4 कप चना दाल 4 घंटे पानी में भिगोई

1 बड़ा चम्मच सूजी

1 बड़ा चम्मच बेसन

कुछ बूंदें केवड़ा ऐसेंस

200 ग्राम खोया

1/2 कप काजू, किशमिश, बादाम, पिस्ता कटे व भुने हुए

1/4 कप नारियल पाउडर

1 कप घी

11/4 कप चीनी

11/2 कप दूध.

विधि

कड़ाही में घी गरम करें. दालों को बारीक पीस लें. गरम घी में सब से पहले बेसन व सूजी डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. अब दाल पेस्ट डाल कर घी छोड़ने तक भूनें. एक कड़ाही में चीनी और पानी डाल कर चाशनी बनाने के लिए आंच पर रखें. जब चीनी अच्छी तरह पिघल जाए तो भुनी दाल में डालें और लगातार चलाती रहें. घी छोड़ने तक चलाएं. आधा खोया अलग कड़ाही में 2 चम्मच घी के साथ भून कर दाल में मिक्स करें. प्लेट में निकाल कर ऊपर से बचे खोए व मेवे से सजाएं. केवड़ा ऐसेंस की कुछ बूंदें डाल कर गरमगरम सर्व करें.

टैंजी चीज स्प्रैड

सामग्री

100 ग्राम काबुली चने 8 घंटे पानी में भिगोए हुए

200 ग्राम काले चने 8 घंटे पानी में भिगोए हुए

50 ग्राम साबूत उरद की दाल 4 घंटे पानी में भिगोई

1 बड़ा चम्मच बेकिंग पाउडर

50 ग्राम सागूदाना

1 शिमलामिर्च बारीक कटी

1 गाजर बारीक कटी

100 ग्राम चीज मोजरेला

2 छोटे चम्मच मक्खन

कालीमिर्च पाउडर स्वादानुसार

4 पाउच ओरिगैनो

हरीमिर्च स्वादानुसार

4 छोटे चम्मच टोमैटो सौस

ग्रीन चिली सौस स्वादानुसार

1 प्याज बारीक कटा हुआ

नमक स्वादानुसार.

विधि

काबुली चने, काले चने व उरद की दाल को पानी निकाल कर मिक्सी में पीस लें. फिर बेकिंग पाउडर व नमक डाल कर पीसें. अब सागूदाना धो कर मिला दें. पेस्ट बना कर 1 घंटा अलग रख दें. चीज को कद्दूकस कर के उस में शिमलामिर्च, गाजर, मिर्च पाउडर, हरीमिर्च, ओरिगैनो व प्याज मिला लें. तवा गरम कर मक्खन लगा लें. जब तवा तेज गरम हो जाए तो पानी के छींटे दे कर पेस्ट को गोलगोल फैला कर छोटीछोटी डोसे के आकार की रोटियां सेंक कर अलग रख लें. अब ओवन गरम करें. रोटियों पर चीज फैला कर ऊपर से ग्रीन चिली सौस, टोमैटो सौस व ओरिगैनो छिड़क कर ओवन में 4 मिनट पका कर गरमगरम सर्व करें.

ऐवरग्रीन दाल

सामग्री

150 ग्राम पालक

1 कप साबूत मूंग 5 घंटे पानी में भिगोई

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1 प्याज बारीक कटा

थोड़ा सा अदरक कटा

8-10 कलियां लहसुन कटा

2 बड़े चम्मच घी

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

3/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 चुटकी हींग

1/2 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

1 बड़ी इलायची

लालमिर्च स्वादानुसार

2 टमाटर कटे

नमक स्वादानुसार.

विधि

पालक को धोने के बाद काट कर अलग रख दें. पैन में घी गरम कर जीरा, अदरक व लहसुन डाल कर भूनें. अब हींग, प्याज व इलायची डाल कर भूनें. टमाटर व हलदी डाल कर भूनें. अब साबूत मूंग डाल कर 3 कप पानी डाल कर नमक, मिर्च, गरममसाला व धनिया पाउडर डाल कर उबाल आने पर धीमी आंच पर पकाएं. दाल गल जाने पर पालक डालें. फिर नीबू का रस मिला दें. 5 मिनट धीमी आंच पर पका कर मक्खन डालें और फिर गरमगरम सर्व करें.

कंगना की ‘कट्टी बट्टी’

हिट पर हिट फिल्में देने वाली कंगना के खाते में एक और फिल्म का नाम जुड़ने वाला है. कंगना की इमरान के साथ फिल्म ‘कट्टी बट्टी’ 19 जून को आ रही है. निखिल आडवाणी की यह फिल्म एक ऐंटी लवस्टोरी बेस्ड फिल्म है. इस में प्यार में कैसेकैसे ट्विस्ट आते हैं इस को बताया गया है. इमरान खान और कंगना रनौत की कैमिस्ट्री काफी नोकझोंक भरी है और इस कपल की खट्टीमीठी पेयरिंग सब को पसंद आएगी. फिल्म का ट्रेलर देख कर अमिर खान ने तो तारीफों के पुल बांध दिए और लिखा कि इमरान, मैं आप की फिल्म देखने से अब खुद को और नहीं रोक सकता. आप को शुभकामनाएं.

जैकलीन बनेंगी मां

जैकलीन अभी कुंवारी ही हैं और सुष्मिता की तरह इन्हें बच्चे गोद ले कर मां बनने का शौक भी नहीं है. ये तो करण मल्होत्रा की फिल्म ‘ब्रदर्स’ में एक युवा मां का रोल अदा कर रही हैं.जैकलीन के लिए यह रोल इसलिए चैलेजिंग है क्योंकि वे पहली बार इस तरह का रोल प्ले कर रही हैं. वे इस फिल्म में अक्षय कुमार की पत्नी बनी हैं, जो किडनी से पीडि़त अपनी बच्ची और पति के साथ जीवन के संघर्ष सहती है. जैकलीन के बारे में एक खबर यह भी है कि सल्लू भाई की फिल्म ‘किक 2’ से जैकलीन को आउट कर दिया गया है. दुबई में एक प्रैस कौन्फ्रैंस में सलमान ने बताया कि जब भी ‘किक 2’ बनेगी तो मैं और साजिद साथ काम करेंगे. लेकिन फिल्म में जैकलीन नहीं होंगी.

आप भी लीजिए जूही के रैस्टोरैंट का मजा

बौलीवुड में सभी बिजनैस में हाथ आजमा रहे हैं. कोई फिल्म मेकिंग से जुड़ गया है तो कोई होटल इंडस्ट्री से. अब बीते दिनों की अदाकारा जूही चावला ने भी मुंबई के कैंपस कौर्नर में ‘पिज्जा मेट्रो पिज्जा’ नाम से एक नया रैस्टोरैंट खोला है, जिस में उन के पति के अलावा कुछ और पार्टनर्स भी शामिल हैं. खाने की बात करें तो जूही कभी फूडी नहीं रही हैं, लेकिन आज यह ठिकाना उन का फैवरेट बन चुका है. जूही ने कहा कि इन दिनों यह जगह मेरी फैवरेट हो चुकी है. यहां आप को बैस्ट इटैलियन फूड और बहुत टेस्टी पिज्जा मिलेगा.

धमाका मचाने आ रही है, ‘धूम 4’

धूम सीरीज की सभी फिल्मों ने बौक्स औफिस पर जबरदस्त धूम मचाई है. पिछली 500 करोड़ी ‘धूम 3’ फिल्म के बाद फिल्म के निर्देशक विजय कृष्णा आचार्या ने ‘धूम 4’ की घोषणा की और यह बताया कि जो हीरो पहले यह फिल्म कर चुके हैं, वे दोबारा इसे नहीं करेंगे. ऐसा शायद उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि ‘धूम 4’ के लिए रितिक रोशन का नाम चर्चा में आ रहा था. रितिक ने जौन अब्राहम के बाद ‘धूम 2’ में काम किया था.

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