हर घंटे एक औरत की बलि लेता दहेज

दहेज प्रथा भारत में प्रचलित कोई अनोखी प्रथा नहीं है. अलगअलग नाम और रूप से यह प्राचीन रोम, ग्रीस, यूनान, मिस्र जैसे दूसरे देशों में भी प्रचलित रही. यूरोप में प्रचलित दहेज प्रथा की झलक शेक्सपियर के नाटकों में मिलती है. एशियाई देशों में भी कमोबेश अंतर के साथ दहेज लेनादेना कायम रहा है.

दहेज का मूल उद्देश्य नवविवाहित दंपती को गृहस्थी जमाने में मदद करना होता है. कुछ लोग इसे उपहार का नाम भी देते हैं. यह प्रथा आज से नहीं, सदियों से चली आ रही है. उदाहरण के लिए रामायण काल का जिक्र किया जा सकता है. वाल्मीकि रामायण में साफ लिखा है कि विदेहराज ने सीता के विवाह में दहेज में बहुत सा धन और कई लाख गाएं दीं. इस के अतिरिक्त अच्छेअच्छे कंबल, रेशमी कपड़े, हाथीघोड़े, रथ, दासी के रूप में परम सुंदरी 100 कन्याएं काफी सेना, मूंगा आदि भेंट स्वरूपप्रदान किए.

आज भी समाज के पढ़ेलिखे वर्ग के लोग हों या मध्यवर्गीय, विवाह तय करते समय दहेज को चर्चा का आवश्यक हिस्सा बनाया जाता है. विवाह के समय दहेज की चीजों को सामाजिक हैसियत के रूप में प्रदर्शित किया जाता है. मुंहमांगा दहेज न मिलने पर लड़की की जिंदगी नरक बना दी जाती है. बात सिर्फ मारपीट तक ही सीमित नहीं रहती, वरन उसे जलाने या खुदकुशी के लिए मजबूर कर देने की घटनाएं भी आम हैं.

पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की ऐग्जिक्यूटिव डायरैक्टर, पूनम मुटरेजा कहती हैं, ‘‘भारत में दहेज प्रथा का ही परिणाम है कि औरतों को परिवार पर आर्थिक बोझ समझा जाता है. इस वजह से उन के साथ मारपीट जैसे अपराध किए जाते हैं. लिंग चयन और घरेलू हिंसा महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव का ही प्रदर्शन है.’’

क्या कहते हैं आंकड़े

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2012 में देश भर में कुल 8,233 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए. पुलिस थाने में पहुंची रिपोर्ट के अनुसार, तकरीबन हर घंटे एक औरत दहेज की बलि चढ़ा दी गई. वर्ष 2007 में यह संख्या 8,093 थी जो 2010 में 8,391 और 2011 में 8,618 हो गई.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी, 2001 से दिसंबर, 2012 तक दहेज हत्या के 91,202 मामले दर्ज कराए गए, जिन में से 84,013 पर कार्यवाही हुई. बाकी या तो तफतीश के दौरान छूट गए या उन की तफतीश की ही नहीं गई. 5,081 केसेज ऐसे भी थे, जो झूठे पाए गए थे.

रिट फाउंडेशन की प्रैसिडैंट, डा. चित्रा अवस्थी कहती हैं, ‘‘दहेज के मूल में पितृ सत्तात्मक पुरुषप्रधान समाज है. विवाह के बाद वधू वर के परिवार का हिस्सा बन जाती है और या तो उस के घर चली जाती है या उस के साथ नया घर बसाती है. पहले पत्नी स्वयं धनार्जन नहीं करती थी, इसलिए नए घर और गृहस्थी को बसाने में मदद के रूप में दहेज का रिवाज बना.

‘‘दहेज जीवन भर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को चुकाए जाने वाले कर्ज की किस्त के समान संतान के जन्म, परिवार में विवाह, मृत्यु, त्योहार आदि के अवसर पर चुकाया जाता है. पुत्र लोगों के लिए मुफ्त में मिलने वाले धन का स्रोत है और पुत्रियां ऐसा बोझ, जिन के जरीए मेहनत से कमाई भूमि या संपत्ति, दूसरों के हाथों में चली जाती है. कन्या भ्रूण हत्या जैसी सभी बुराइयों का जन्म इसी वजह से हुआ है.

‘‘1947 के बाद से कानून में ऐसे बहुत से सुधार किए गए हैं जिस से इस स्थिति में सुधार आए. 1950 में लाया गया स्त्रियों के संपत्ति अधिकार से संबंधित कानून एक मील का पत्थर साबित हुआ है. इस से पैतृक संपत्ति में भी स्त्रियों का अधिकार सुनिश्चित हुआ. 1961 में दहेज विरोधी कानून आया जिस से दहेज लेना और देना दोनों अपराध हो गए.’’

क्या कहता है कानून

भारतीय दंड संहिता की धारा 304(बी) तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध है. ऐसे अपराध की सजा में कम से कम 5 वर्ष की कैद या कम से कम क्व15 हजार का जुर्माना किया जाता है. दहेज की मांग करने पर 6 माह की कैद की सजा और क्व10 हजार तक का जुर्माना किया जाता है. साथ ही दहेज के नाम पर किसी भी प्रकार के मानसिक, शारीरिक, मौखिक तथा आर्थिक उत्पीड़न को अपराध के दायरे में रखा गया है.

दहेज हत्या से जुड़े कानूनी प्रावधान

भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (बी): यह सैक्शन उन महिलाओं के लिए है, जिन की मृत्यु दहेज से जुड़ी किसी वजह से होती है. शादी के 7 साल के अंदर कोई भी अप्राकृतिक मौत होती है, तो उस का स्पष्टीकरण ससुराल पक्ष को देना होता है. अगर ससुराल पक्ष का कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उसे 7 साल से ले कर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 302: अगर ससुराल वाले किसी औरत को दहेज के लिए मानसिक या भावनात्मक रूप से हिंसा का शिकार बनाते हैं और इस कारण वह आत्महत्या कर लेती है, तो वहां इस धारा के तहत उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के अपराध में जुर्माना व 10 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए: पति या रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लालच में महिला के साथ क्रूरता एवं हिंसा का व्यवहार करने पर इस धारा के तहत कठोर दंड का प्रावधान है. यहां क्रूरता के माने हैं औरत को आत्महत्या के लिए मजबूर करना, उस की जिंदगी के लिए खतरा पैदा करना, दहेज के लिए सताना व हिंसा. दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को 3 साल तक की सजा हो सकती है. इस धारा के तहत होने वाले अपराध गैरजमानती हैं.

दहेज प्रथा की खास वजहें

– दहेज प्रथा की सर्वप्रमुख वजह है बेटियों को बचपन से ही आर्थिक बोझ समझना और इसी सोच के साथ बड़ा करना. मांबाप सोचते हैं कि

– बेटी तो पराया धन है. इसे पति और ससुराल   वालों के आसरे रहना है. इस के विपरीत यदि मांबाप बेटी की पढ़ाईलिखाई पर ध्यान दें और उसे आत्मनिर्भर बनाएं तो समस्या का समाधान स्वत: ही हो जाएगा.

– परंपरा के वशीभूत बहुत से लोग सिर्फ इस वजह से दहेज देते हैं क्योंकि उन के पुरखों ने भी ऐसा ही किया था.

– दहेज एक तरह से अभिभावकों द्वारा प्रेम से बेटी को दिया जाने वाला उपहार है. कुछ लोग इसे संपत्ति में उस की हिस्सेदारी के रूप में भी देखते हैं. वे बेटी के भविष्य की सुरक्षा के लिहाज से भी दहेज देते हैं. उन की नजर में पैसों की इस दुनिया में बेटी को जितना ज्यादा दानदहेज दिया जाए, ससुराल में उस की उतनी ही पूछ होती है.

– दहेज की एक खास वजह बहुत से अभिभावकों की यह तमन्ना होना भी है कि उन की बेटी की शादी बहुत ऊंचे घराने में हो.

– हिंदुओं में अपनी जाति में शादी की परंपरा भी दहेज प्रथा का एक प्रमुख वजह है. इस में वर की तलाश का दायरा सीमित हो जाता है और अच्छी नौकरी वाले लड़के खास हो जाते हैं. उन के अभिभावक ज्यादा दहेज की मांग करते हैं, जिसे लड़की वालों को मानना पड़ता है, क्योंकि उन के पास ज्यादा औप्शन नहीं होते.

– लड़के को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना एक तरह का निवेश माना जाता है और इस आधार पर अभिभावक लड़की वालों से अच्छीखासी रकम की मांग करते हैं.

– लव मैरिज में सासससुर अपनी नाराजगी बहू पर उतारते हैं और इस में दहेज मुख्य मुद्दा होता है. पर यदि पतिपत्नी का रिश्ता मधुर है तो यह बात दब जाती है. पर अरेंज मैरिज में तो विवाह की बात शुरू ही होती है इस वाक्य से कि मेरा बेटा डाक्टर है और आजकल डाक्टरों को क्व15-20 लाख से कम दहेज नहीं मिल रहा. फलां के घर वाले तो 20 लाख रुपए लिए हमारे आगेपीछे घूम रहे हैं… वगैरहवगैरह.

दहेज समस्या का समाधान आसान नहीं है

क्योंकि लड़की के घर से मिले धन पर पति की ही नहीं खुद लड़की की आंखें भी लगी रहती हैं. समाज का खयाल रखना या नैतिकता का सवाल मुंह बिचका कर झटक दिया जाता है. कुछ प्रयास जो किए जा सकते हैं वे ये हैं:

पुरुषों के लिए

– पुरुषों को यह बताना होगा कि क्या उन्हें बाजार में बिक रही एक ऐसी वस्तु की तरह देखा जाना मंजूर है जिस की योग्यता व सामाजिक हैसियत के हिसाब से कीमत तय की जाए?

– पति यदि ऐसा पार्टनर चाहता है, जो उस की जिंदगी को प्यार से भर दे तो वह पैसे की बात न लाए. उस से प्यार करे, उस के द्वारा लाए पैसों से नहीं.

– वह यह समझे कि पत्नी पति की तमाम जरूरतें, भोजनपानी, घर की साजसंभाल, सैक्स, बच्चों का पालनपोषण, घर की सुरक्षा वगैरह की पूर्ति करती है, तो नौकरी कर कमाती भी है.

लड़की के अभिभावकों के लिए

– अभिभावकों को इस बात को ले कर परेशान होना छोड़ देना चाहिए कि कहीं उन की बेटी अविवाहित न रह जाए. लड़की का जन्म सिर्फ शादी या बच्चे पैदा करने के लिए नहीं होता.

– दहेज को ‘न’ कहें. कोई भी परिवार जो दहेज की मांग कर रहा है, वहां अपनी बेटी न दें.

– बेटी को पढ़ाने में रुपए खर्च करें न कि दहेज हेतु जमा करें.

– यदि बेटी प्रताडि़त हो कर घर आए तो उसे झिड़कें या वापस न भेजें. वहां बीभत्स मौत से बेहतर है यहां जीने का मौका दें.

– दहेज देने वालों को भी सजा मिलेगी तभी लोग दहेज न देने का कड़ा फैसला लेंगे. समाज को जल्द यह महसूस हो जाएगा कि दहेज के चक्कर में ताउम्र कुंआरा रहना पड़ सकता है.

– जरूरत से ज्यादा महंगी शादियों के आकर्षण में न फंसें.

–  शादी रजिस्टर्ड कराएं. कोर्ट में डाउरी प्रोहिबिशन औफिसर की मुहर के साथ जब ऐसी शादी में दूल्हादुलहन यह शपथ लेंगे कि दहेज का हस्तांतरण नहीं हुआ है, तो दहेज समस्या के केसेज कम होंगे.

जागरूकता है जरूरी

आज की पढ़ीलिखी लड़कियां दहेज व ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं. लोग भी थोड़े जागरूक हो रहे हैं. उदाहरण के लिए आगरा की यह घटना काफी दिलचस्प है. एक प्रौपर्टी डीलर की 20 साल की बेटी की शादी थी. दूल्हे के घर वालों ने क्व4 लाख की मांग रखी जिसे पूरा कर दिया गया. पर बरात वाले दिन दूल्हे ने फिर से क्व2 लाख की मांग रख दी. इस पर लड़की वालों ने असमर्थता जताई तो दूल्हे ने बरात लाने से साफ इनकार कर दिया. इस से लड़की के पिता की तबीयत बिगड़ गई. लड़की पक्ष ने दूल्हे से संपर्क कर उस के खिलाफ सख्त कदम उठाने की चेतावनी दे कर पुलिस से इस की शिकायत की. पुलिस ने जब कानूनी कार्यवाही का भय दिखाया और समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोग आगे आए तो दूल्हे का दिमाग ठिकाने आ गया और 24 घंटे बाद वह बरात ले कर लड़की के घर पहुंचा.

यही नहीं, आजकल लड़कियां दहेज की बात पर या दूसरी वजह से बरातें भी लौटा रही हैं. बहुत पिछड़ा माने जाने वाले बिहार राज्य में भी 100 से ज्यादा लड़कियों ने पिछले कुछ समय में घर के दरवाजे आ चुकी बरात को लौटने पर मजबूर कर दिया. वजह साफ था, दहेज लोभियों को न सिर्फ उस का औकात दिखाना, बल्कि यह भी कि आज की लड़कियां अब जागरूक हो चुकी हैं.

दूसरा पक्ष :

दहेज विरोधी कानूनों का दुरुपयोग

कई मामलों में दहेज विरोधी कानूनों का दुरुपयोग भी हो रहा है. इस से बेकुसूर पुरुषों को इस का शिकार बनना पड़ता है. कभीकभी इस कानून का इस्तेमाल सिर्फ निजी दुश्मनी निकालने के लिए भी किया जाता है, तो कुछ मामलों में क्षणिक गुस्से की वजह से इस कानून के इस्तेमाल से भविष्य में दोबारा रिश्ते जुड़ने की सभी संभावनाएं खत्म हो जाती हैं. ऐसे मामलों में देखा जाता है कि आरोपी पति और उस के परिवार के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और कुसूरवार न होने के बावजूद उन्हें समाज में बेइज्जती और अलगाव की स्थिति सहनी पड़ती है. आए दिन देखनेपढ़ने में आता है कि इस कानून का बेजा इस्तेमाल भी किया जाता है.

पत्नी न सिर्फ पति को इस मामले में अदालत तक घसीटती है, परिवार के अन्य बेकुसूर सदस्यों को भी अकारण मामलों में फंसा देती है.

हाल ही में अंसतुष्ट पत्नियों की ओर से अपने पति व ससुराल के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था की है कि ऐसे मामलों में पुलिस स्वत: ही आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती और उसे ऐसे कदम की वजह बतानी होगी जिन की न्यायिक समीक्षा की जाएगी.

अदालत ने साफ कहा कि जिन मामलों में 7 साल तक की सजा हो सकती है, उन में गिरफ्तारी सिर्फ इस कयास के आधार पर नहीं की जा सकती कि आरोपी ने अपराध किया होगा. गिरफ्तारी तभी की जाए, जब इस बात के पर्याप्त सुबूत हों कि आरोपी के आजाद रहने से मामले की जांच प्रभावित हो सकती है. वह कोई और अपराध कर सकता है या फरार हो सकता है.

दहेज लेना व देना एक जघन्य अपराध तो है ही पर अकारण क्षोभ, गुस्से व प्रतिशोध की भावना से औरतों द्वारा लगाए गए झूठे आरोप से इस कानून का बेजा इस्तेमाल चिंताजनक जरूर है.

खाली पेट क्या न कराए

न न, यह बिहार की रेल नहीं, दक्षिण अमेरिका की है. दक्षिण अमेरिका में बढ़ती बेकारी से बचने के लिए लाखों लोग अपना घर छोड़ कर गैरकानूनी ढंग से अमेरिका में घुसने की कोशिश हर रोज करते हैं और खाली जेब होने के कारण इसी तरह जानलेवा यात्रा करते हैं. गरीब सब जगह एक जैसे हैं.

कब रुकेगी मूर्ति पूजा

सोवियत स्टाइल देशों में एक बात सामान्य है और वह है बड़ीबड़ी मूर्तियां. क्यूबा में कास्त्रो की बनवाई क्रांति स्क्वायर की विशाल मूर्ति के नीचे तानाशाह ब्लादिमीर पुतीन को अपने रूस की याद आ रही है. लखनऊ में मायावती ने ऐसी कई मूर्तियां बनवाई हैं और अब नरेंद्र मोदी सरदार पटेल की बनवाने वाले हैं. मूर्ति पूजन समाप्त होने के अभी भी कोई लक्षण नहीं दिखते.

क्या धर्म यही कहता है

कट्टरपंथी न कानून की चिंता करते हैं न उन में रहम होता है. तभी इराक के बगदाद में एक घर में चल रहे वैश्यालय पर कट्टरपंथी इसलामियों ने हमला कर 25 औरतों को मार डाला. इन के ग्राहकों और दलालों को कुछ नहीं कहा गया क्योंकि वे आदमी थे. हर धर्म हर दोष के लिए औरत को गुनहगार मानता है न.

एकसाथ दो काम

यह हेयरडू बुरके का काम भी करेगा. कट्टरपंथी भी खुश और आप भी कि चमकदार सिल्की बाल पीछे नहीं आगे हैं. अब किसी बांके युवा से टक्कर का इंतजार है कि ‘सौरी’ और फिर कौफी का मौका मिले.

रेत के महल भी बनते हैं और सपने भी

यहां देखिए, सैंट पीटर्सबर्ग में बनाए गए कुछ नमूने. इन्हें देख कर आप चौपाटी की ओर न भागें क्योंकि यह कला बहुत मुश्किल है पर करने वाले बहुत हैं.

खेलखेल में गरमी भगाओ

गरमी से बचने का एक तरीका यह है कि दोस्तोंसहेलियों के साथ स्विमिंग पूल में उतरो, फ्लोटिंग टेबल लगाओ और कैरम, महाजोंग या ताश खेलो. फिर जब चाहो एक चक्कर पूल का लगा लो. चीन में जुलाई में भीषण गरमी पड़ी तो यही किया गया.

आ गए बुरे दिन

ऐसा लगता है कि मलयेशिया एअरलाइंस के बुरे दिन आ गए हैं. पहले उस का एक जहाज एमएच 370 इंडियन ओशियन में खो गया फिर एक एमएच 17 को यूक्रेन के ऊपर मार गिराया गया. अब उन के टिकटों की धड़ाधड़ कैंसिलेशनें हो रही हैं

रंग देखो कुछ और नहीं

मैं कपड़े पहनूं या रंग, आप का क्या जाता है? यह मांग अमेरिका में की गई और न्यूयार्क शहर में सैकड़ों आदमीऔरत सिर्फ रंगों को पहन कर ठाट से सड़कों पर निकले. अब यह न पूछें कि लोग रंग देख रहे थे या रंग के पीछे के कैनवासों को.

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