आमार बांग्ला प्रेम

हिंदी फिल्मों को बायबाय कह चुकीं सुष्मिता अब एक बांग्ला फिल्म ‘निर्वाक’ कर रही हैं. यह सुष की पहली बांग्ला फिल्म है. इस से पहले वे तमिल फिल्मों में हाथ आजमा चुकी हैं. सुष कहती हैं कि वैसे तो मैं ने इस से पहले कभी बांग्ला फिल्म नहीं की, पर बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री के बारे में बराबर खोजखबर लेती रही हूं. इस फिल्म के डायरैक्टर सुनील मुखर्जी मेरे प्रिय डायरैक्टर हैं. अब आप यह पूछ सकते हैं कि बांग्ला फिल्म में काम करने में मैं ने इतनी देरी क्यों की? तो मेरा कहना यही है कि सच कहूं तो बांग्लाभाषी होने की वजह से मैं बांग्ला फिल्मों के प्रति एक अतिरिक्त जिम्मेदारी महसूस करती हूं, इसलिए मैं ने बांग्ला फिल्म करने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. मैं इस भाषा में एक ऐसी फिल्म से शुरुआत करना चाहती थी, जो दर्शकों के मन में एक गहरी छाप छोड़े. इस फिल्म में काम करने से मैं इस बात को ले कर निश्चिंत हूं.

मैचो मैन का जलवा

आशुतोष गोवरिकर की फिल्म ‘मोहनजोदड़ो’ में रितिक न्यूकमर पूजा हेगड़े के साथ नजर आएंगे. कबीर बेदी इस में खलनायक का किरदार निभा रहे हैं. अभी हाल ही में भुज (गुजरात) में इस फिल्म की शूटिंग शुरू भी हो गई है. पिछले दिनों मुंबई पुलिस के ‘उमंग 2015, शो में बापबेटे यानी रितिक और राकेश रोशन की अच्छी कैमिस्ट्री देखने को मिली. शो के दौरान ही रितिक ने अपने पिता राकेश रोशन का जन्मदिन मनाया, तो स्टेज पर ही केक काट कर दोनों ने साथ में ठुमके भी लगाए.

आभूषणों का जुड़ाव सौंदर्य से है परंपराओं से नहीं

प्राचीनकाल में पत्थरों, सीपियों, हाथीदांत, तांबे व अन्य धातुओं से बने भारीभरकम आभूषणों को महिलाएं पहनती थीं. लेकिन आज भी आभूषणों पर रूढिवादी परंपराओं और अंधविश्वासों की मुहर लगी है. आजकल ऐडवर्टाइजिंग, मौडलिंग, ऐक्टिंग जैसे कैरियर में शृंगार व आभूषणों को प्राथमिकता दी जाती है. वैसे भी आज की हर नारी खूबसूरत व स्मार्ट दिखना चाहती है. उसे और आकर्षक बनाने के लिए शृंगार व आभूषणों की खास जरूरत पड़ती है. उसे मांगटीका, नथ, झुमके, मंगलसूत्र, बाजूबंद, कमरबंद, चूडि़यां, कंगन, पायल यानी माथे से ले कर पैरों तक आभूषण इसलिए पहनाए जाते हैं ताकि वह और आकर्षक लगे.

आभूषणों को खासकर सुहागचिह्नों को निरर्थक अंधविश्वासों और झूठी मान्यताओं से जोड़ दिया गया है. यदि कोई स्त्री शृंगार करती है, आभूषण पहनती है, तो सिर्फ अपने रूपसौंदर्य को और आकर्षक बनाने के लिए. आभूषण नारी की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी के बीच प्यार के अटूट रिश्ते को मजबूत बनाने में आभूषण अहम भूमिका निभाते हैं. किसी महिला की आर्थिक स्थिति कमजोर हो, तीजत्योहारों पर रूढिवादी परंपराओं व कुरीतियों को निभाने के लिए उस के पास आभूषण न हों,? तो वह क्या करेगी? रूढिवादी परंपराओं को निभाने के लिए कहां से लाएगी आभूषण?

आभूषण सिर्फ और सिर्फ नारी के सौंदर्य का ही अटूट हिस्सा हैं. परंपराओं व झूठी मान्यताओं से इन का दूरदूर तक कोई सरोकार नहीं है. हम ने इस विषय में समाज की कुछ खास महिलाओं से मुलाकात कर उन के विचार जाने. शबाना सिद्दीकी डीएवी स्कूल में काउंसलर हैं और समाज सुधार के लिए प्रयासरत हैं. आइए, जानते हैं उन के विचार:

सवाल: भारतीय महिलाओं का शृंगार व आभूषण किन बातों से जुड़े हैं? उन के सौंदर्य से या पुरातनपंथी ढकोसलों से?

शबाना: कहीं न कहीं यहां दोनों ही बातें लागू होती हैं. जहां महिलाएं आभूषण पहन कर खूबसूरत दिखना चाहती हैं, आकर्षक दिखना चाहती हैं, वहीं कुछ पारंपरिक नियम व रीतिरिवाज भी उन के लिए अनिवार्य हो जाते हैं.

सवाल: आज भी कई परिवारों में बहुओं को मौकेबेमौके मजबूरन रूढिवादी परंपराओं का बोझ उठाना ही पड़ता है. इस से उन के दिलोदिमाग पर क्या असर पड़ता है?

शबाना: परिवार व समाज में 90% महिलाएं जागरूक होते हुए भी इन बुराइयों के खिलाफ आवाज नहीं उठा पातीं, लेकिन इन सब के प्रति दिमाग में थोड़ी तो खिलाफत हो ही जाती है. उदाहरण के तौर पर यदि परिवार की बहू शारीरिक रूप से कमजोर या बीमार है, तब भी वह रोजे रखेगी, सुहाग के लिए व्रत रखेगी. वैसे भी महिलाओं में सब कुछ सहने की क्षमता होती है.

सवाल: समाजसुधार के लिए महिलाओं के दिमाग से दकियानूसी विचारों, अंधविश्वासों को दूर करना जरूरी है?

शबाना: हां, बिलकुल. समाज में काफी बदलाव आए हैं, लेकिन परंपराओं को ले कर वह अभी भी काफी पिछड़ा हुआ है. इस के लिए महिलाओं के विचारों में भी यह बदलाव लाना बहुत जरूरी है कि आभूषण सिर्फ सौंदर्य से जुड़े हैं.

डा. शालिनी खत्री स्त्रीरोग विशेषज्ञा हैं. आभूषण को ले कर आज की जागरूक महिलाएं क्या सोचती हैं, इस बारे में जानिए डा. शालिनी के विचार:

सवाल: क्या भारतीय महिलाओं के आभूषण उन के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं?

शालिनी खत्री: आभूषणों से ही नहीं, बल्कि आज की महिलाओं का हर दृष्टिकोण से जागरूक होना व आकर्षक दिखना जरूरी है.

सवाल: अंधविश्वासों व रूढिवादी परंपराओं को ले कर आज की जागरूक महिलाओं की सोच में क्या परिवर्तन आया है?

शालिनी खत्री: महिलाओं की सोच बदल रही है, मगर पूरी तरह बदलाव लाने में अभी टाइम लगेगा, क्योंकि शिक्षित व जागरूक महिलाएं भी सामाजिक बुराइयों का खुल कर विरोध नहीं कर पातीं.

सवाल: महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का उन के सौंदर्य पर क्या असर पड़ता है?

शालिनी खत्री: जब किसी महिला का स्वास्थ्य ही ठीक नहीं रहेगा, वह अंदरूनी कष्ट से पीडि़त रहेगी तो उस की सजनेसंवरने, आभूषण पहनने में कोई दिलचस्पी नहीं रहेगी. हां, अपने शृंगार को पूरा करने के लिए थोड़ी ज्वैलरी जरूरी हो जाती है.

संदीप गुप्ता वाराणसी की मशहूर फर्म पन्नालाल सर्राफ के मालिक हैं. पेश हैं, उन से की गई बातचीत के खास अंश:

सवाल: आज महिलाएं पुराने जमाने के पारंपरिक आभूषण खरीदना पसंद करती हैं या फिर आधुनिक फैशन के हिसाब से लेती हैं?

संदीप गुप्ता: आभूषणों की पुरानी डिजाइनों का नवीनीकरण हो रहा है. नाम वही है, बस उन की डिजाइन व क्वालिटी में बदलाव हुआ है. अब महिलाएं पुराने आभूषणों को तुड़वा कर नई डिजाइनों में बनवाना ज्यादा पसंद कर रही हैं.

सवाल: यदि आप के परिवार में आप की पत्नी, आप की बहनें कुरीतियों को न मान कर आभूषणों को सिर्फ अपनी सुंदरता के लिए इस्तेमाल करती हैं, तो क्या आप को बुरा लगेगा?

संदीप गुप्ता: बिलकुल नहीं. यदि रीतिरिवाज गलत हैं, तनमन को कष्ट देने वाले हैं तो हम उन्हें नहीं मानेंगे.

रंगिता अपने परिवार की बड़ी बहू हैं. आभूषण को ले कर क्या कहती हैं रंगिता:

सवाल: आप किसी शादी अथवा पार्टी के अवसर पर जब मेकअप करती हैं, आभूषण पहनती हैं तो क्या सोच कर पहनती हैं? समाज, परिवार के डर से पहनती हैं या अपने रूपसौंदर्य को और आकर्षक बनाने के लिए?

रंगिता: महिलाएं आभूषण अपनी सुंदरता को बढ़ाने के साथसाथ सब की तारीफ पाने के लिए भी पहनती हैं.

सवाल: आप को हलकेफुलके आभूषण पसंद हैं या फिर भारीभरकम अच्छे लगते हैं?

रंगिता: मैं मौके और माहौल को देखते हुए ही आभूषणों का चुनाव करती हूं. वैसे हलके आभूषण ही पसंद करती हूं, जो मेरी सुंदरता भी बढ़ाते हैं और चुभते भी नहीं हैं.

सवाल: यदि मैं यह कहूं कि आभूषण हम महिलाओं के सौंदर्य को और आकर्षक बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं तो क्या आप मेरी बात का समर्थन करेंगी?

रंगिता: हां, मैं भी यही मानती हूं कि ये सुंदरता बढ़ाते हैं. आभूषणों के बिना नारी का शृंगार अधूरा है.

ब्रोकली ऐंड बेसन सब्जी

सामग्री

250 ग्राम ब्रोकली कटी हुई

2 बड़े चम्मच तेल

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1/8 छोटा चम्मच हींग

1 बड़ा चम्मच लहसुन कटा हुआ

स्वादानुसार हरीमिर्च कटी हुई

1/2 कप बेसन

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1/4 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

1/2 छोटा चम्मच सूखा अमचूर पाउडर

1/4 छोटा चम्मच गरममसाला

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर,

नमक व नीबू का रस स्वादानुसार.

विधि

एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल मध्यम आंच पर गरम करें. फिर इस में जीरा मिलाएं. जब जीरा चटकने लगे तब हींग, लहसुन और हरीमिर्च मिला कर 15 सैकंड भूनें. अब ब्रोकली डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे ढक कर 2-3 मिनट पकाएं. फिर अलग बरतन में बेसन, हलदी पाउडर, जीरा पाउडर, सूखा अमचूर पाउडर, गरममसाला, नमक, धनिया पाउडर और लालमिर्च पाउडर मिलाएं. अब 1 बड़ा चम्मच तेल इस में मिलाएं. फिर ब्रोकली पर बेसन मिश्रण ऊपर से डालें, लेकिन इसे मिक्स न करें. अब ढक कर 5 मिनट पकाएं. फिर आंच से हटा कर नीबू का रस मिलाएं और गरमा गरम चपाती और चावलदाल के साथ सर्व करें.

बेक्ड दूधी कोफ्ता करी

सामग्री

1 कप लौकी कद्दूकस की हुई

1/4 कप गेहूं का आटा

1/4 कप बेसन

1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

एक चुटकी सोडा

स्वादानुसार नमक.

गे्रवी के लिए

6 टमाटर

3 सूखी व साबूत लालमिर्च

2 छोटे चम्मच धनिया

2 छोटे चम्मच हरीमिर्च कटी हुई

2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

1/2 छोटा चम्मच चीनी

1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच कौर्नफ्लोर

2 बड़े चम्मच लो फैट दूध में घुला हुआ

3 छोटे चम्मच तेल

स्वादानुसार नमक.

सजाने के लिए: 2 बड़े चम्मच कटी धनियापत्ती.

विधि

दूधी कोफ्ता बनाने के लिए सभी सामग्री को एक बरतन में अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस मिश्रण को बराबर हिस्से में गोल आकार में बनाएं और माइक्रोवेव में हाई स्टीम में 15 मिनट स्टीम दे कर एक तरफ रख दें. ग्रेवी के लिए एक बरतन में पानी भर कर उस में टमाटर मिलाएं. फिर कुछ देर बाद टमाटर को छील कर मिक्सी में डाल कर स्मूद प्यूरी बना कर एक तरफ रख दें. फिर कश्मीरी सूखी मिर्च और धनिया को पीसें और एक तरफ रख दें.

अब एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम करें. इस में हरीमिर्च व अदरकलहसुन पेस्ट को 30 सैकंड धीमी आंच में भूनें. अब पहले से तैयार टमाटर प्यूरी, 3-4 कप पानी, चीनी और नमक को अच्छी तरह से मिलाएं और उबालें. फिर लालमिर्च पाउडर, धनिया पाउडर और कौर्नफ्लोर मिल्क के मिश्रण को डालें और कुछ मिनट उबालें. करी तैयार हो जाएगी. अब तैयार कोफ्तों को करी में मिला कर 5-10 मिनट पकाएं. फिर गरमगरम धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

नूडल्स फ्रिटर्स

सामग्री

1 कप बेसन

2 टेबल स्पून कौर्नफ्लोर

1 कप नूडल्स उबाले हुए

2 मशरूम छोटेछोटे कटे हुए

1/2 कप बंदगोभी पतलीपतली कटी हुई

1-2 हरीमिर्च बारीक कटी हुई

1 इंच अदरक लंबे पतले टुकड़ों में कटा

2 बड़े चम्मच बारीक कटी धनियापत्ती

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च

तेल पकौड़े तलने के लिए

नमक स्वादानुसार.

विधि

किसी प्याले में बेसन और कौर्नफ्लोर डालें और थोड़ाथोड़ा पानी डाल कर गुठलियां खत्म होने तक घोलें. फिर पानी डाल कर, पकौड़े का घोल बनाएं. घोल को 4-5 मिनट तक फेंट कर घोल को एकदम चिकना बना लें. अब घोल में नमक, लालमिर्च, हरीमिर्च, धनियापत्ती, अदरक, मशरूम, पत्तागोभी और नूडल्स डाल कर अच्छी तरह सारी चीजों को मिक्स करें. अब कड़ाही में तेल डाल कर गरम करें. उस में चम्मच या हाथ से थोड़ाथोड़ा मिश्रण उठा कर डालें और पकौड़ों को पलटपलट कर गोल्डन ब्राउन होने तक तलें. तले पकौड़े किसी प्लेट में बिछे नैपकिन पेपर पर निकाल कर रखें. फिर उन्हें टोमैटो सौस या हरी धनिया की तीखी चटनी के साथ सर्व करें.

सैक्स में नाकामी कब

सैक्स पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है, यह हम सभी जानते हैं. मगर सफल सैक्स के लिए स्वस्थ शरीर के साथसाथ मन का स्वस्थ होना भी बहुत जरूरी है. सैक्स में कबकब नाकामी मिलती है, इस पर चर्चा के दौरान सर गंगाराम अस्पताल के डा. अनिल अरोड़ा ने विस्तार से बताया :

शिथिलता : सैक्स की इच्छा होने पर पुरुष इंद्रिय की ओर रक्तसंचार का प्रभाव बढ़ता है, जिस से इंद्रिय में उत्थान और कठोरता आती है. यदि आप का पार्टनर भय, चिंता, तनाव से परेशान हो तो इंद्रिय की कठोरता समाप्त या फिर कम हो जाती है. ऐसे पतियों को मानसिक रूप से नपुंसक कहा जाता है.

मानसिक तनाव : सैक्स में नाकामी का एक कारण मानसिक भी है. इंद्रिय उत्थान नर्वस स्टिम्युलेशन पर आधारित होता है. जब संवेदना नहीं मिलती है तब उत्थान का अभाव होता है. सैक्स की प्रबल इच्छा होते हुए भी पति इंद्रिय शिथिलता के कारण सैक्स करने में असमर्थ होता है.

तीखे, गरम, खट्टे का अधिक सेवन : तीखी, खट्टीमीठी, गरम चीजों का अधिक सेवन करने से वीर्य विकृत हो जाता है. परिणामस्वरूप पतिपत्नी सैक्स का पूरी तरह से आनंद नहीं उठा पाते हैं.

प्रजनन अंग में रोग : प्रजनन अंग का रोग भी इंद्रिय उत्थान क्रिया में बाधा डालता है, जिस से पतिपत्नी दोनों ही सैक्स को ऐंजौय नहीं कर पाते हैं. कई बार पति के अंग में चोट लगने से भी उत्थान नहीं हो पाता है. इस के अलावा कई बार मन और शरीर दोनों का कामावेग से उत्तेजित होने पर सहवास क्रिया में प्रवृत्त होने पर पति अतिशीघ्र स्खलित हो जाता है.

पत्नी के सहयोग का अभाव : यदि पत्नी सहवास के दौरान पति को पूर्णरूप से सहयोग नहीं करती है या फिर अपने सजनेसंवरने अथवा शरीर की साफसफाई का ध्यान नहीं रखती है तो इस से भी पति के मन में सैक्स के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है.

गैरजरूरी नियम बनाना : कई बार संबंध बनाने के दौरान पत्नी कुछ गैरजरूरी नियम बना लेती है जैसे लाइट औफ न करना, नए तरीके आजमाने के लिए मना करना, जल्दी करो की रट लगाना आदि से भी संबंध बनाने में नाकामी का सामना करना पड़ता है.

कभी पहल न करना : परिणय संबंध के लिए पत्नी द्वारा हमेशा पति की ही बाट जोहना, खुद कभी पहल न करना भी पति को अच्छा नहीं लगता है. पति भी चाहता है कि पत्नी भी पहल करे.

उत्साह की कमी : सहवास के दौरान पतिपत्नी दोनों को उत्साह के साथ हंसतेबोलते, चुहलबाजी करते हुए सहयोग करना चाहिए. यदि पत्नी ऐसा नहीं करती, तो पति को लगता है कि पत्नी केवल औपचारिकता निभा रही है.

आर्गेज्म की परवाह न करना : जिस तरह पत्नी चाहती है कि वह सैक्स में पति को पूरी तरह संतुष्ट कर सके, ठीक उसी तरह पति भी चाहता है कि वह पत्नी को पूर्णरूप से संतुष्ट कर सके, मगर यह तभी संभव हो सकता है जब दोनों ही मानसिक व शारीरिक रूप से एकदूसरे से जुड़ कर सैक्स का आनंद लें.

इम्युनिटी बढ़ाता है : सैक्स पूरे शरीर को प्रभावित करता है. यह दिलदिमाग के साथसाथ रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है.

जकड़न से छुटकारा : यदि पति या पत्नी स्टिफनेस की समस्या से परेशान रहते हों तो सहवास क्रिया उन की मदद करेगी. दरअसल, यह एक ऐसी क्रिया है, जिस से शरीर की सभी मसल्स की एक्सरसाइज हो जाती है, स्टिफनेस जैसी तकलीफ से भी छुटकारा मिलता है. कोलेस्टेराल नियंत्रित रहता है, रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, सर्दीजुकाम की समस्या कम होती है.

पेनकिलर है : शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द हो तो सैक्स से परहेज न करें, क्योंकि सैक्स करने से दर्द से राहत मिलेगी. यह तनाव भी दूर करता है.

खूबसूरती : यदि पतिपत्नी दोनों ही खुल कर सैक्स सुख को अपनाते हैं, तो इस से उन की खूबसूरती ही नहीं बढ़ती, अपितु उम्र भी बढ़ती है.

डा. अनिल बताते हैं कि सैक्स की कमजोरी में टेस्टोस्टेरान का प्रयोग किया जाता है. यानी पुरुष हारमोन से इलाज किया जाता है. यह उन रोगियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध होता है, जिन के शरीर में सचमुच कामोत्तेजना की कमी होती है. इस तरह सैक्स की नाकामी को दूर कर के सुखद सैक्स जिंदगी जीना आज की भागमभाग वाली जिंदगी के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

मैं प्रशंसक के लिए काम नहीं करता : अमिताभ बच्चन

बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की फरवरी माह में फिल्म ‘शमिताभ’ रिलीज हुई, जिस में उन के साथ धनुष और अक्षरा हासन हैं. इस फिल्म के सहनिर्माता अभिषेक बच्चन हैं. पेश हैं, अमिताभ से हुई मुलाकात के कुछ खास अंश:

आर. बालकी जब आप के पास ‘शमिताभ’ की स्क्रिप्ट ले कर आए थे, उस वक्त आप को इस में ऐसी क्या बात नजर आई कि आप ने तय कर लिया कि इस का निर्माण भी किया जाए

हम लोग भी थोड़ा बहुत प्रोडक्शन करते रहते हैं. आर. बालकी के साथ हम पहले भी फिल्में बना चुके हैं. एक दिन अभिषेक ने मुझ से पूछा कि क्यों न हम इस फिल्म को मिल कर बनाएं? तब मैं ने उस से कहा कि ठीक है.

फिल्म ‘शमिताभ’ को ले कर क्या कहेंगे?

यह फिल्म सिनेमा की पृष्ठभूमि पर एक ऐसी रोचक कहानी है, जो अब तक किसी भी फिल्म का हिस्सा नहीं रही है. फिल्म में 2 इंसान हैं, जिन की उम्र में काफी अंतर है. मगर दोनों में कुछ कमियां और कुछ खूबियां हैं. दोनों एकदूसरे के साथ जुड़ कर सफलता के नए मानदंड स्थापित करते हैं. मगर एक मुकाम पर दोनों का ईगो आडे़ आ जाता है, फिर उन में विद्रोह हो जाता है. फिल्म में अक्षरा हासन एक कैटालिस्ट की तरह हैं. वे समझ जाती हैं कि इन दोनों की कमियां क्या हैं और कैसे दोनों एकदूसरे की कमियों को पूरा कर सकते हैं. वे इन दोनों को एकसाथ लाने का काम करती हैं.

70 व 80 के दशक में आप ने एक ऐंग्री यंग मैन के हीरोइज्म को पेश किया था. अब वह नहीं रहा. यह जो हीरोइज्म बदला है, उसे ले कर क्या कहना चाहेंगे?

सिनेमा का हीरो कैसा हो, यह हमें समय बताता है. 70 के दशक में लेखकों को लगा था कि हमारे देश में जो कुछ हो रहा है, वह सही नहीं है. उस वक्त देश की नौजवान पीढ़ी के अंदर विद्रोह था, आक्रोश था. इसी वजह से जो किरदार फिल्मों में निखर कर आते थे, उस से लोग आईडैंटिफाई करते थे. उस वक्त युवा पीढ़ी को लगता था कि फिल्म में यह जो किरदार निभाया गया है, वह हमारी बात कर रहा है. बाद में धीरेधीरे वह दौर खत्म हो गया. फिर रोमांस का दौर आया. उस दौर में जो हीरो चमके, वे सभी रोमांटिक हीरो बन गए. उस के बाद फिर नया हीरो आया. मुझे लगता है कि अब एक बार फिर यह दौर भी बदलेगा और फिल्मों में नया हीरोइज्म सामने आएगा.

क्या आप मानते हैं कि इन दिनों जिस तरह से फिल्मों में भारी मात्रा में ऐक्शन दिखाया जा रहा है, क्या वह हमारे समाज का हिस्सा है?

यह तो जनता से ही पता चलेगा. जब फिल्म सौ या 2 सौ करोड़ कमा ले, तो क्या कहेंगे? लोग तो यही कहेंगे कि यही सही है, तो इस में हमारा कुछ लेनादेना नहीं है.

मगर बौक्स औफिस के इन सौ या 2 सौ करोड़ के आंकड़ों को ले कर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं?

इस के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन इस प्रश्न का सही जवाब डिस्ट्रीब्यूटर या फाइनैंसर अथवा फिल्म के निर्माण में जो फंडिंग करते हैं, वही दे सकते हैं. मैं ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. मुझे पता नहीं है कि यह क्या होता है. मुझे तो यह भी नहीं पता कि फिल्म का व्यवसाय कैसे होता है. पर हम सुनते रहते हैं कि फलां फिल्म ने सौ करोड़ कमाए, फलां फिल्म ने 2 सौ करोड़ कमाए. अच्छी बात है यदि फिल्में कमा रही हैं. इस से फिल्म इंडस्ट्री को फायदा ही है.

फिल्म जगत में हर दिन नएनए बदलाव आ रहे हैं. भविष्य में क्या होगा, क्या इस का कोई एहसास आप कर पा रहे हैं?

इस का जवाब देना बड़ा मुश्किल है. 30 साल पहले हम ने कभी सोचा भी नहीं था कि टीवी हमारे सामने इतना बड़ा माध्यम बन कर उभरेगा अथवा सोशल मीडिया प्रबल होगा. भविष्य का कुछ पता नहीं चल सकता, क्योंकि आए दिन नए आविष्कार होते रहते हैं. मैं ने सुना है कि टीवी भी 85% फिल्म केंद्रित हो गया है. सोशल मीडिया हो या इंटरनैट, वहां भी ज्यादातर सामग्री फिल्मों की ही होती है, तो फिल्म मूलमंत्र रहेगा. आज की पीढ़ी के पास समय की कमी है. कम समय होने का मतलब यह नहीं है कि उस के पास समय नहीं है. समय होता है, पर उस में तीव्रता बहुत है. वह चाहती है कि बड़ी तेजी से काम हो जाए. पहले किसी बात को कहने के लिए 4-5 या 10 वाक्यों का सहारा लेना पड़ता था, पर अब ऐसा नहीं है. अब शब्दावली कम होती जा रही है. आज की पीढ़ी ‘कूल’, ‘रौकिंग’ जैसे शब्दों में ही सारी बात खत्म कर देती है.

धारावाहिक ‘युद्ध’ करने का अनुभव कैसा रहा?

इस धारावाहिक को जितनी टीआरपी मिलनी चाहिए थी उतनी नहीं मिली. दर्शकों ने इसे ज्यादा पसंद नहीं किया.

क्या वजह रही?

यही कि लोगों ने इसे नहीं देखा. लेकिन इस धारावाहिक में काम करने का मेरा अनुभव अच्छा रहा. मुझे वहां जा कर काम करना अच्छा लगता था. मुझे लगता है कि धीरेधीरे यह सारा माहौल बदलेगा. लोग चाहेंगे कि टीवी पर और ज्यादा बेहतरीन काम हो. मैं भी निरंतर टीवी पर कुछ न कुछ काम करता रहूंगा.

आप अभिनय जगत के साथसाथ सोशल मीडिया में भी सुपर स्टार बने हुए हैं. अब आगे क्या करने वाले हैं?

मैं ने कभी कोई काम यह सोच कर नहीं किया कि मुझे इस से इतने प्रशंसक मिलेंगे. सोशल मीडिया से मेरा जुड़ाव इत्तफाकन हुआ. किसी ने कहा कि आप की वैबसाइट होनी चाहिए, क्योंकि आप के नाम पर सौ से डेढ़ सौ वैबसाइट बनी हुई हैं और सभी में कोई न कोई गलत जानकारी दी गई है. लोग उसे सही मान रहे हैं. तब मैं ने उस से पूछा कि यह वैबसाइट क्या बला है? तब उस ने मुझे दिखाया, तो सारी बात मेरी समझ में आई.

मैं ने देखा कि मेरे बारे में कुछ गलत समाचार भी थे. मैं ने उस से पूछा कि यदि वैबसाइट बनाई जाए, तो कितना समय लगेगा? उस ने कहा कि 6-7 माह में बना देगा. उस ने मुझ से कहा कि आप अपने परिवार वालों से व अपने से संबंधित सारी जानकारी मुझे दे दीजिए. तब मैं ने उस से कहा कि 6-7 माह कौन इंतजार करेगा. कोई ऐसा रास्ता बताओ ताकि जल्दी हो जाए. तब उस ने मुझे ‘ब्लौग’ के बारे में बताया. उस ने कहा कि सुबह लिखिए, शाम तक छप जाएगा. मुझे लगा कि यही ठीक है. मैं ने कुछ लिखा फिर उसे टाइप कर ब्लौग पर पोस्ट कर दिया. अगले दिन एक रिस्पौंस आ गया. मुझे लगा कि यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं ने जो कुछ लिखा, उसे किसी ने तो पढ़ा. मैं ने उसे जवाब दे दिया. अगले दिन 3 रिस्पौंस आ गए. धीरेधीरे रिस्पौंस की संख्या बढ़ती चली गई. अब मेरा परिवार काफी बड़ा हो गया है. ब्लौग के साथ जुड़े लोगों को मैं ने ‘ऐक्सटैंडेड फैमिली’ का नाम दिया है. ये बड़े कमिटेड लोग हैं. ये हर दिन मेरे ब्लौग पढ़ते हैं और अपना रिस्पौंस देते हैं.

कभी कोई आलोचना करता है?

हां, लोग आलोचना भी करते हैं. प्रशंसा भी करते हैं और गालीगलौज भी करते हैं. सब कुछ करते हैं. हमें सब अच्छा लगता है. देखिए, कोई भी इंसान हर काम अच्छा नहीं कर सकता. उस की आलोचना तो होनी ही चाहिए. ये मेरे प्रशंसक ही हैं, जो मेरे काम की आलोचना करते हैं. यदि आप एक ऐसे माध्यम से जुड़े हैं, जो आप की बातों को संसार भर में फैलाता है और आप यह मान कर चलते हैं कि कोई आप की बुराई नहीं करेगा, तो यह अच्छी बात नहीं है. आप को इस माध्यम में बहुत संभल कर चलना होगा.

आप की आने वाली फिल्में?

अप्रैल माह में सुजीत सरकार द्वारा निर्देशित कौमेडी व ड्रामा फिल्म ‘पीकू’ रिलीज होगी. इस के अलावा बिजय नांबियार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘वजीर’ कर रहा हूं, जिस में मेरे साथ फरहान अख्तर भी हैं.

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