पानीपत फिल्म समीक्षाः जानें क्या है फिल्म में खास

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः सुनीता गोवारीकर और रोहित शेलातकर

निर्देशकः आशुतोष गोवारीकर

संगीतकार: अजय अतुल

कलाकारः अर्जुन कपूर, संजय दत्त, कृति सैनन, मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, जीनत अमान और नवाब शाह

अवधिः दो घंटे 53 मिनट

फिल्मकार आशुतोश गोवारीकर पहली बार इतिहास पर केंद्रित फिल्म लेकर नही आए हैं. वह इससे पहले भी ‘जोधा अकबर’ और ‘मोहन जोदाड़ो’ जैसी फिल्में बना चुके हैं. पर इस बार वह 1761 की पानीपत की तीसरी लड़ाई पर फिल्म लेकर आए हैं, जिसके संबंध में हर किसी को पता है कि आततायी व लुटेरे अति क्रूर अफगानी शासक अहमद शाह अब्दाली से मराठा परास्त हुए थे. मगर निर्देशक आशुतोश गोवारीकर अपनी इस फिल्म में पानीपत के उस तीसरे युद्ध में मराठाओं के परास्त होने की वजहों के साथ शौर्य, जांबाजी, प्रेम, बलिदान की गाथा को पिरोया है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है सदाशिव राव भाऊ (अर्जुन कपूर) द्वारा उदगीर के निजाम को परास्त कर विजयी होकर लौटने और नाना साहेब पेशवा के दरबार में उनके सम्मान से. सदाशिव राव भाउ अपने चचेरे भाई नाना साहब पेशवा (मोहनीश बहल) की सेना का जांबाज पेशवा है. अपने सम्मान के दौरान सदाशिव दरबार मे ही उदयगीर की सेना स जुड़े इस इब्राहिम खान गार्डी (नवाब शाह) को कुछ विरोधों के बावजूद मराठा सेना का हिस्सा बनाने की घोषणा करता है.

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उदगीर के निजाम को परास्त करने के बाद दरबार में सदाशिव राव भाऊ के बढ़ते रसूख और ख्याति से पेशवा की पत्नी गोपिका बाई (पद्मिनी कोल्हापुरे) इस बात को लेकर असुरक्षित हो जाती हैं कि कहीं गद्दी का वारिश सदाशिव न बन जाए. वह अपने पुत्र विश्वास राव (अभिषेक निगम) को गद्दीन शीन देखना चाहती हैं. इसी के चलते सदाशिव के प्रभाव को कम करने के लिए उसे युद्ध से हटाकर धनमंत्री बना दिया जाता है.

उधर राज वैद्य की बेटी पार्वती बाई (कृति सेनन) सदाशिव से प्रेम करने लगी है, वह उनके शरीर पर लगी चोट पर दवा लगाते हुए अपने प्रेम का इजहार भी कर देती है. और जल्द ही वह विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. तभी दिल्ली की गद्दी को हथियाने के लिए नजीब उद्दौला (मंत्रा) अफगानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली (संजय दत्त) के साथ हाथ मिलाता है. ऐसे समय में दिल्ली की गद्दी और देश को बचाने के लिए मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ को सौंपा जाता है.

सदाषिव राव, शुजाउद्दौला (कुनाल कपूर) व अन्य राजाओं के साथ नजीब उद्दौल व अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं. पानीपत के मैदान में सदाशिव और अब्दाली की जंग के बीच वीरता और शौर्यता के साथ-साथ विश्वासघात की कहानी सामने आती है. पर इस युद्ध में विश्वास राव व सदाशिव के साथ तकरबीन डेढ़ लाख सैनिक मारे जाते हैं और अहमद शाह अब्दाली की जीत होती है.

निर्देशनः

फिल्मकार आशुतोष गोवारीकर ने इतिहास के उस जटिल अध्याय को चुना है, जहां सत्ता के लिए पीठ पर खंजर भोंकना आम बात थी. पेशवा शाही की अंदरूनी राजनीति के साथ-साथ दिल्ली की जर्जर होती स्थिति और अपने निजी स्वार्थों के लिए देश की सुरक्षा को दांव पर लगाने वाले राजाओं के साथ आशुतोश ने उन वीरों की शौर्यगाथा का भी चित्रण किया है, जो देश की आन-बान के लिए शहीद हो गए थे.

ऐतिहासिक विषयों पर फिल्म बनाते समय आषुतोश गोवारीकर का सारा ध्यान भव्य सेट और कास्ट्यूम पर ही रहता है. जिसके चलते वह इस बार काफी चूक गए हैं. एडीटर कई जगह मात खा गए. फिल्म बेवजह लंबी होने के साथ ही धीमी गति से आगे बढ़ती है. पानीपत पहुंचते पहुंचते इंटरवल हो जाता है.

इसके अलावा कास्ट्यूम पर ध्यान देते समय वीएफएक्स पर कम ध्यान दिया है, जिसके चलते अमहद शाह अब्दाली का दरबार सही ढंग से नहीं उभरा. वीएफएक्स काफी कमजोर है.अहमद शाह अब्दाली के चरित्र को भी फिल्मकार ठीक से रेखांकित नहीं कर पाए. वास्तव में फिल्मकार का सारा ध्यान राष्ट्वाद और मराठा वीरता तक ही रहा. सदाशिव राव और पार्वती बाई की प्रेम कहानी भी ठीक से उभर नहीं पायी. गोपिका बार्ठ के किरदार को भी सही ढंग से चित्रित नहीं किया गया.

फिल्म के कई संवाद मराठी भाषा मे हैं, जिसके चलते गैर मराठी भाषायों को दिक्कत होगी. युद्ध के दृष्य सही ढंग से नही बने हें. एक्शन दृष्य भी कमजोर हैं. अफगानी शासक अहमद शाह अब्दाली जिस तरह का खुंखार दरिंदा था, उस तरह से वह इस फिल्म में नहीं उभरता. सदाशिव राव और अहमद शाह अब्दाली के बीच युद्ध के एक भी दृष्य का न होना कई सवाल खड़े करता है. नितिन देसाई का आर्ट डायरेक्शन और नीता लुल्ला के कौस्ट्यूम ने इस एतिहासिक फिल्म को भव्य बनाने में मदद की हैं. कैमरामैन सी के मरलीधरन बधाई के पात्र हैं.

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अभिनयः

सदाशिव राव भाऊ के किरदार में अर्जुन कपूर ने काफी मेहनत की है, मगर एक मराठा योद्धा के रूप मे वह सटीक नही बैठते. पार्वती बाई के किरदार में कृति सैनन खूबसूरत लगी हैं और अपने किरदार के साथ उन्होनें न्याय भी किया है. अहमद शाह अब्दाली के किरदार में संजय दत्त ने जबरदस्त परफौर्मेंंस दी है. विश्वास राव के किरदार में अभिशेक निगम अपनी अभिनय प्रतिभा की छाप छोड़ जाते हैं. सहयोगी कलाकारों में पद्मिनी कोल्हापुरे, मोहनीश बहल, सुहासिनी मुले, नवाब शाह, अभिषेक निगम आदि ने अपनी भूमिकाओं को सही ढंग से निभाया है. जीनत अमान की प्रतिभा को जाया किया गया है.

इस फ्रेंडशिप-डे जानिए बौलीवुड सेलेब्स की अटूट दोस्ती के राज

जैसा कि आप सब जानते है कि अगस्त महीना शुरू होने से पहले ही हम सब के दिल मे एक अलग सी खुशी जाग उठती है और वो खुशी अगस्त महीना में आने वाला पहला रविवार होता है. हर साल अगस्त महीना के पहले रविवार को फ्रेंडशिप-डे मनाया जाता है. चाहे आम इंसान हो या बौलीवुड सेलैब्स, हर किसी का कोई न कोई ऐसा दोस्त जरूर होता है जिस पर वे बेइंतहा विश्वास और प्यार करता है, तो आज हम बात करेंगे कुछ ऐसे बौलीवुड सेलैब्स की जिनकी दोस्ती चाहे पौपुलर हो या ना हो पर उनके लिए काफी मायने रखती है.

1. बौलीवुड सितारों की दोस्ती मे पहला नाम है दीपिका पादुकोण और शहाना गोस्वामी का…

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दीपिका पादुकोण और शहाना गोस्वामी अपने करियर के शुरूआती दिनो से ही एक दूसरे के दोस्त है. वे दोनो जो भी करते है सब साथ ही करते है जैसे कि घूमना फिरना, स्कूबा डाइविंग करना और यहा तक की दोनो एक दूसरे को अपने सारे सीक्रेट्स भी बताते है. दीपिका और शहाना ने एक साथ फिल्म ‘ब्रेक के बाद’ मे भी काम किया था.

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2. बौलीवुड सितारों की दोस्ती मे दूसरा नाम है सलमान खान और संजय दत्त का…

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भाईजान और बाबा की दोस्ती काफी पौपुलर रही है. सलमान खान और संजय दत्त बौलीवुड इंडस्ट्री के उन दो नामों में से हैं, जिससे कोई पंगा नही लेना चाहेगा. सलमान और संजय की दोस्ती काफी गहरी रही हैं. दोनों ने साथ मे कई फिल्मों मे काम किया है जैसे कि, ‘चल मेरे भाई’, ‘साजन’, आदी और दोनो ने एक साथ बिग-बौस सीजन 5 भी होस्ट किया था.

3. बौलीवुड सितारों की दोस्ती मे तीसरा नाम है शाहरूख खान और जूही चावला का…

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किंग खान और जूही चावला बौलीवुड इंडस्ट्री के टेलेंटिड एक्टरों में से एक है. दोनों की दोस्ती बेहद निराली और मजबूत रही है. जूही के अनुसार उनकी गहरी दोस्ती की कारण है बिजनेस पार्टनर्स ना बनना. जब उनको लगा कि उनकी पार्टनरशिप का असर उनकी दोस्ती पर हो रहा है तब दोनो ने बिजनेस पार्टनरशिप खत्म कर दोस्ती को अहमीयत दी. जूही ने ये भी बताया कि जब उनकी मां का देहांत हुआ था तब शाहरूख ने उनकी बहुत मदद की थी.

4. बौलीवुड सितारों की दोस्ती मे चौथा नाम है रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर का…

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रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर बेहद पौपुलर और टेलेंटिड एक्टरों में से एक हैं. दोनों की दोस्ती भी काफी गहरी है. दोनो ने एक साथ फिल्म ‘गुंडे’ मे भी काम किया था और इन दोनों का ब्रो-मैंस ‘कौफी विद करन’ सीजन 4 मे भी देखा गया था.

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5. बौलीवुड सितारों की दोस्ती में पांचवा नाम है स्वरा भास्कर और सोनम कपूर का…

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फिल्म ‘रांझणा’ के चलते स्वरा भास्कर और सोनम कपूर की दोस्ती हुई थी, भले ही इस फिल्म मे दोनों एक दूसरे के दुश्मन दिखाई दिए पर फिल्म की शूटिंग के दौरान ही वे असल जिंदगी मे काफी अच्छे दोस्त बन गए. स्वरा सोनम कपूर की शादी के हर फंक्शन मे मौजूद रही और सोनम की शादी के कुछ दिन बाद ही दोनों की फिल्म ‘वीरे दी वैडिंग’ रिलीज हुई.

बता दें, इस साल फ्रेंडशिप-डे अगस्त महीना के पहले इतवार के अनुसार 4 अगस्त 2019 को होगा. मां-बाप, भाई-बहन, जैसे रिश्ते हमे जन्म से ही मिल जाते हैं पर दोस्ती एकमात्र एसा रिश्ता है जो बिना किसी शर्त या बिना किसी स्वार्थ के खुद से बनाया जाता है, शायद तभी दोस्ती के रिश्ते को दिल का रिश्ता कहते हैं. तो आप भी अपने करीबी दोस्तो के साथ फ्रेंडशिप-डे मनाइए और अपने दोस्तों का साथ कभी ना छोड़े क्योंकि दोस्त है तो जिंदगी मे खुशियां है.

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संजय दत्त की बेटी के बौयफ्रेंड का निधन, लिखा ये इमोशनल मैसेज

बौलीवुड एक्टर बाबा यानी संजय दत्त की बेटी त्रिशाला दत्त के बौयफ्रेंड की हाल ही में अचानक मौत से वह बहुत दुखी हैं. ये जानकारी त्रिशाला दत्त ने अपने इंस्टाग्राम पर इमोशनल पोस्ट के जरिए दी. आइए आपको दिखाते हैं त्रिशाला इमोशनल पोस्ट…

बौयफ्रेंड के लिया इमोशनल पोस्ट

त्रिशाला दत्त ने इंस्टाग्राम पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा, ‘मेरा दिल टूटा हुआ है. मुझे प्यार करने, मेरी रक्षा करने और मेरा ध्यान रखने के लिए शुक्रिया. तुमने मुझे मेरी जिंदगी में सबसे खुश इंसान बनाया है. मैं पूरी दुनिया की सबसे लकी लड़की हूं जिसे तुम मिले और तुम्हे पाकर मैं सबसे भाग्यशाली रही. तुम हमेशा मुझमें रहोगे. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं और हमेशा मिस करुंगी जब तक हम दोबारा नहीं मिल जाते. हमेशा तुम्हारी.’

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इंस्टाग्राम पर लिखा बौयफ्रेंड की मौत के बारे में बताया

 

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संजय दत्त की बेटी ने लिखा, ‘मैं तुम्हें आज कल से भी ज्यादा प्यार करती हूं लेकिन इतना नहीं जितना आने वाले कल में करुंगी.’ त्रिशाला ने बौयफ्रेंड की डेथ 2 जुलाई को हुई है की खबर भी दी. हालांकि अपने पोस्ट में बौयफ्रेंड की मौत की वजह नही बताई हैं.

बता दें, त्रिशाला दत्त एक मशहूर सेलिब्रिटी किड हैं. त्रिशाला खुद भी ग्लैमर वर्ल्ड में है और मौडलिंग और एक्टिंग फील्ड में काम करती हैं, लेकिन वह अपने नाना-नानी के साथ अमेरिका में ही रहती हैं. अभी कुछ महीनों पहले ही एक इंस्टाग्राम पर शेयर किए एक पोस्ट के जरिए त्रिशाला ने इस बात का खुलासा किया था कि वो एक इटेलियन लड़के को डेट कर रही हैं. जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई थी.

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रिव्यू: सच्चे प्यार और बदले की लंबी कहानी है ‘कलंक’

फिल्म रिव्यू- कलंक

एक्टर- आलिया भट्ट, वरुण धवन, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रौय कपूर, माधुरी दीक्षित, संजय दत्त

निर्देशक- अभिषेक वर्मन

रेटिंग- 3 स्टार

फिल्म ‘‘कलंक’’ की उलझी हुई प्रेम कहानी देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि में 1944 में लाहौर के पास स्थित हुसैनाबाद से शुरू होती है. फिल्म की कहानी के केंद्र में बहार बेगम (माधुरी दीक्षित), बलराज चैधरी (संजय दत्त), देव चैधरी (आदित्य रौय कपूर), सत्या चैधरी (सोनाक्षी सिन्हा) ,रूप (आलिया भट्ट) और जफर (वरूण धवन) हैं. कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे पता चलता है कि यह सभी एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं.

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कहानी…

फिल्म शुरू होती है अपनी दो छोटी बहनों के साथ रूप के पतंग उड़ाने से. रूप जब अपनी बहनों के साथ अपने घर पहुंचती है, तो अपने पिता के साथ सत्या चैधरी को बैठे देखकर गुस्सा होती है. डाक्टरों के अनुसार कैंसर की मरीज सत्या चैधरी की जिंदगी सिर्फ एक-दो साल की ही है. सत्या चाहती है कि रूप उनके घर में आकर रहे. सत्या चाहती है कि उसकी मौत के बाद उसके पति देव चौधरी, रूप से शादी कर लेंगे. रूप अपनी बहनों के भविष्य को देखते हुए सत्या के घर जाने के लिए मजबूर होती है, पर वह शर्त रखती है कि देव चैधरी उसके साथ शादी कर लें. देव और रूप की शादी हो जाती है. सुहागरात के वक्त देव, रूप से कहता है कि उसने सत्या के दबाव में यह शादी की है. वह सिर्फ सत्या से प्यार करते हैं, इसलिए कभी रूप से प्यार नही कर पाएंगे. मगर रूप को इज्जत मिलेगी. देव चैधरी के पिता बलराज चैधरी का पुश्तैनी अखबार ‘डेली टाइम्स’ है. लंदन में पढ़ाई कर वापस लौटे देव ने ‘डेली टाइम्स’ की बागडोर संभाल रखी है. वह देश के बंटवारे के खिलाफ अपने अखबार में लिखते रहते हैं. इससे मुस्लिम लीग के नवोदित नेता अब्दुल (कुणाल खेमू) नाराज रहता है. अब्दुल को हिंदुओं से नफरत है. अब्दुल की इस नफरत की आग को भड़काने में अहम योगदान हीरामंडी में ही पले बढ़े जफर का है जो एक लोहार है. जफर के अंदर गुस्सा और आग है. लोग उसे हरामी व नाजायज कहते हैं. एक दिन गाने की आवाज सुनकर रूप हवेली की नौकरानी सरोज से सवाल करती है, तो सरोज बताती है कि यह आवाज हीरामंडी स्थित हवेली से बहार बेगम की है, पर चौधरी परिवार के उसूलों के अनुसार रूप हीरामंडी नही जा सकती. रूप और देव को नजदीक लाने के लिए सत्या, रूप से कहती है कि उसे देव के साथ अखबार के संपादकीय विभाग में काम करना चाहिए. रूप शर्त रखती है कि ऐसा वह तभी करेगी, जब उसे बहार बेगम से संगीत सीखने को मिलेगा. मजबूरन सत्या, बलराज से आज्ञा ले लेती है. सरोज, रूप को लेकर बहार बेगम के पास जाती है. बहार बेगम, रूप की आवाज पर मोहित हो जाती है. वापसी में रूप की मुलाकात जफर से होती है. जफर लड़कियों का शौकीन है. लेकिन जफर को जल्द अहसास हो जाता है कि शादीशुदा रूप दूसरी लड़कियों की तरह नही है. फिर भी रूप और जफर की मुलाकातें होती रहती हैं. अपने अखबार ‘डेली टाइम्स’ के लिए हीरामंडी के लोगों पर कहानी लिखने के लिए रूप पहले अब्दुल (कुणाल खेमू) से मिलती है, पर अब्दुल मदद नही करता, क्योंकि अब्दुल को पता है कि वह देव चैधरी की दूसरी पत्नी है. तब जफर उसे कई कहानियां बताता है और हीरामंडी घुमाता है. धीरे-धीरे रूप को जफर से प्यार हो जाता है, मगर जफर तो चैधरी परिवार से इंतकाम लेने के लिए रूप का इस्तेमाल करता है. बहार बेगम, रूप को सावधान करती है. लेकिन बाद में पता चलता है कि जफर, बहार बेगम और बलराज चैधरी का नाजायज बेटा है. बहार बेगम को सत्रह साल की उम्र में शादीशुदा बलराज चैधरी से प्रेम हुआ था. बलराज को अपने करीब लाने के लिए ही उसने जफर को जन्म दिया था, पर बलराज ने उसे अपनी हवेली में जगह नही दी थी, तो वह जफर को सड़क पर छोड़ आयी थी, फिर भी बलराज ने उसे स्वीकार नहीं किया था. इसी बीच कुछ लोगों ने जफर को हीरामंडी में लाकर पाला. एक दिन बहार बेगम ने जफर को सच बता दिया था. तब से जफर के अंदर चौधरी परिवार से इंतकाम लेने की आग जल रही है. लेकिन जफर सचमुच रूप से प्यार करने लगता है जिसके बाद कहानी नया मोड़ लेती है.

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डायरेक्शन…

फिल्मकार अभिषेक वर्मन ने पूरी फिल्म में इसी बात को दिखाने की कोशिश की है कि सच्चा प्यार, समाज के बनाए नियमों, धर्म की बंदिशों और इंसान की बनाई गई सरहदों को नहीं मानता. इस बात को साबित करने में वो सफल रहे हैं. लेकिन फिल्म में कुछ कमियां भी हैं.

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कमियां…

फिल्म की लंबाई और पटकथा की कमजोरी के चलते फिल्म कई जगह बोर करती है, कहानी की पृष्ठभूमि 1940 का दशक है, मगर फिल्म के भव्य सेट उस काल को रेखाकिंत करने में असफल रहे हैं. एडीटिंग टेबल पर यदि इस फिल्म को कसा जाता, तो यह एक कल्ट/अति बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. फिल्म से एक दो गीत कम किए जा सकते थे. अब इसे पटकथा लेखक की कमी कहें या कहानीकार की कमी. पटकथा लेखक की कमजोरी के चलते बहार बेगम और रूप के बीच गुरू-शिष्य के अलावा जो दूसरा रिश्ता है, उसकी टीस भी ठीक से उभर नहीं पाती. कहानी के मामले में भी यह फिल्म कुछ पुरानी क्लासिक फिल्मों की याद दिलाती है.

फिल्म की खूबियां…

दमदार संवादों के चलते दर्शक फिल्म को झेल जाता है. संवाद लेखक की तारीफ जरुर की जानी चाहिए. अलावा इस फिल्म की सबसे बड़ी मजबूत कड़ी इसके कलाकार हैं. फिल्म के कैमरामैन बिनोद प्रधान जरुर तारीफ के हकदार हैं. जहां तक गीत संगीत का सवाल है तो ‘घर मोरे परदेसिया’ और ‘कलंक’के अलावा दूसरे गीत प्रभावित नहीं करते.

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एक्टिंग…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो रूप के अति जटिल किरदार को आलिया भट्ट ने अपने प्रभावशाली और शानदार अभिनय से जिंदा कर दिया है. मजबूर, गुस्सा, असहाय, दुखी हर भाव आलिया भट्ट के चेहरे पर सहज ही आते हैं. जफर के किरदार में वरूण धवन ने अपनी शारीरिक बनावट के साथ ही जफर के अंदर चल रहे हर भाव को बड़ी खूबी से परदे पर उकेरा है. माधुरी दीक्षित ने साबित कर दिखाया कि आज भी अभिनय और डांस में उनका कोई सानी नही है. आदित्य रौय कपूर व कुणाल खेमू भी प्रभावित करते हैं. सोनाक्षी सिन्हा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है. संजय दत्त के हिस्से कुछ खास करने को नहीं था.

Edited By- Nisha Rai

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