Writer- सबा नूरी
सोने और हीरों की चकाचौंध वाली लाइट्स, छत से ले कर दीवारों तक अनेक कैमरे और कांच जैसे फर्श वाला विशाल मंच. मंच के एक ओर अनेक वाद्ययंत्र संभाले हुए वादक मंडली. मंच के बिलकुल सामने विराजमान 4 जजेस और उन के पीछे मौजूद दर्शकों का हुजूम.
यह दृश्य था एक सिंगिंग शो के सैट का. नाम की उद्घोषणा के साथ ही प्रियांश ने एक मीठी मुसकान लिए मंच पर प्रवेश किया. एक कर्णप्रिय धुन के साथ उस ने माइक के सामने खड़े हो कर अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरना शुरू किया. उस की आवाज औडिटोरियम में खुशबू की तरह फैलने लगी थी. कुरसियों पर बैठे जज कानों में हैडफोन लगाए आंखे मूंदे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो उस के गायन को अपनी रूह में उतार लेना चाहते हों और दर्शक भी जैसे सांस रोक कर गीत को महसूस कर रहे थे.
गाना खत्म हुआ और हाल तालियों से गूंज उठा. ऐंकर्स ने दौड़ कर मंच संभाला और एक ने तो उसे कंधे पर उठा लिया. दर्शक ‘वंस मोर’ ‘वंस मोर’ के नारे लगाने लगे. जजेस ने स्कोर कार्ड से पूरेपूरे नंबर देने का इशारा किया. प्रियांश ने सभी का अभिवादन किया और फिर
अगले प्रतिभागी की बारी आई.
दरअसल, यहां ‘सिंगिंग स्टार’ की खोज कार्यक्रम में देशभर से चुनिंदा गायकों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए बुलाया गया था. अनेक युवकयुवतियां यहां मौजूद थीं.
प्रियांश भी अपने गांव से ‘सिंगिंग स्टार’ बनने का सपना लिए यहां मुंबई आया था. हां वह अलग बात थी कि कुछ समय पहले तक उस का लक्ष्य एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना ही था और उस की जीतोड़ मेहनत और उस के पिता की कोशिश से उसे ग्राम पंचायत में सहायक के तौर पर चयन होने का चयनपत्र मिल चुका था.
इसी बीच सिंगिंग स्टार वाले टेलैंट की खोज में गांव आए और उन्हें प्रियांश की आवाज इतनी भा गई कि उन्होंने उसे मुंबई बुला लिया और बचपन से गाने के शौकीन रहे प्रियांश को जैसे सपनो का जहान मिल गया. अब उसे सहायक पद की सरकारी नौकरी में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था.
प्रियांश एक मृदुभाषी, होनहार और आज्ञाकारी युवक था. लेकिन न जाने इस ग्लैमर की दुनिया में क्या आकर्षण था कि मातापिता के न चाहते हुए भी वह गायकी की दुनिया में नाम कमाने मुंबई आ गया.
फिल्मसिटी की चकाचौंध ने उसे आसमान में उड़ने के पंख दे दिए थे. अपने गांव में रहते हुए वह कभी इस ग्लैमरस दुनिया का हिस्सा नहीं बन सकता था. बड़ीबड़ी गाडि़यों से उतरती छोटेछोटे कपड़े पहने हाई हील्स पर चलती हसीनाएं. महंगे जूतोंकपड़ों में इठला कर चलते आदमी. सबकुछ इतने नजदीक से देख और महसूस कर पाना कोई मामूली बात न थी. उसे भी स्टेज पर गाना गाने का और टीवी पर आने का मौका मिलने वाला था. कुछ ही समय बाद ये ऐपिसोड्स टीवी पर आएंगे यह सोच कर ही वह रोमांचित हो उठता.
आयोजकों की ओर से सभी प्रतिभागियों को फाइवस्टार होटल में ठहरने का अच्छा प्रबंध किया गया था. सैपरेट कमरों में सभी को रहनेखाने की उच्च स्तरीय सुविधाएं दी गई थीं. ऐसी भव्य इमारतों में एक दिन भी रहने को मिल जाए तो लगता है कि कहीं स्वर्ग में आ गए हों. ऐसे में यह अनुभव तो दुनिया बदलने वाला था.
होटल से शूटिंग साइट पर प्रतिभागियों को लाने ले जाने के लिए शो की तरफ से गाडि़यां उपलब्ध थीं. इस के अलावा कहीं और आनेजाने की अनुमति इन लोगों को नहीं थी. बस सप्ताह में एक बार प्रबंधक से अनुमति ले कर ये प्रतिभागी कहीं बाहर जा सकते थे.
उस दिन प्रियांश ने अपने साथियों रेहान, कुणाल और अमन के साथ मुंबई घूमने की योजना बनाई. रेहान बीटैक प्रथम वर्ष का छात्र था, जोकि पुणे में रह कर पढ़ाई कर रहा था, वहीं कुणाल के पिता का रामपुर में कपड़े का व्यापार था. चौकलेटी लुक वाले कुणाल को उस का सिंगिंग का शौक यहां खींच लाया था तो अमन ने बीकौम अंतिम वर्ष की परीक्षा दी थी और अपने घर जयपुर से ही मैनेजमैंट के कोर्स की तैयारी करना चाह रहा था. संगीत के साथसाथ शौहरत, ग्लैमर और वाहवाही किसे नहीं अच्छी लगती. बस इसी आकर्षण ने इन सब को यहां पहुंचा दिया था.
मैनेजर से अनुमति ले कर ये लोग निकल पड़े. दिनभर घूमफिर कर शाम को डूबते सूरज को निहारने के इरादे से ये सब जुहू चौपाटी पहुंच गए. समुद्र की चंचल लहरों और ठंडी हवा के साथ शाम कब रात में तबदील हो गई पता ही न चला. रंगबिरंगी रोशनियों में जुहू बीच और सुंदर लग रहा था. थोड़ी भूख लग आई थी तो इन्होंने ने बीच पर ही स्थित एक रैस्टोरैंट का रुख किया. समुद्र के रेत पर आकर्षक रंगीन छतरियों के नीचे कुरसीमेज, हलका पार्श्व म्यूजिक इस स्पौट को और अधिक लुभावना बना रहा था.
‘‘क्या और्डर किया जाए?’’ प्रियांश ने पूछा.
‘‘कुछ हलका ही लेंगे डिनर तो होटल में ही करना है,’’ अमन ने उत्तर दिया तो रेहान ने भी हां में सिर हिला कर उस का साथ दिया.
‘‘ओके. 1-1 वड़ा पाव और चाय?’’
‘‘ठीक है,’’ प्रियांश के प्रस्ताव पर तीनों ने अंगूठे के इशारे से सहमति दी.
प्रियांश ने वहां इशारे से एक युवक को पास बुलाया और और्डर बता दिया. कुछ ही देर में वह युवक ट्रे में चाय और नाश्ता ले कर आता हुआ नजर आया और बहुत धीमेधीमे चाय और नाश्ते की प्लेटो को मेज पर रखने लगा. प्रियांश ने देखा कि उस युवकों के हाथ कांप रहे हैं. कांपते हाथों को देख कर उस ने उस युवक की ओर ध्यान दिया और बड़े गौर से उस के चेहरे की ओर देखा और फिर तो उछल ही पड़ा प्रियांश और उस युवक का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया. इस हरकत से युवक घबरा गया और हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा और प्रियांश उसे देखते हुए कहता जा रहा था कि तुम. तुम तो अभि हो. तुम तो अभि हो न…
इसी बीच किसी तरह अपना हाथ छुड़ा कर वह युवक तेजी से रैस्टोरैंट में अंदर की ओर भाग खड़ा हुआ. प्रियांश भी खुद को उस के पीछे भागने से रोक न पाया और अंदर काउंटर तक पहुंच गया.
‘‘क्या हुआ क्या चाहिए?’’ एक भारी आवाज सुन कर वह पलटा. सफेद मलमल का कुरता, सफेद पाजामा, वजनदार काया, बालों और दाढ़ी में बराबर की सफेदी और सिर पर टोपी रजा साहब उसे वहां देख कर पूछ रहे थे.
‘‘सर वह जो अभी अंदर गया है वह.’’
‘‘कोई नहीं है वह जाओ यहां से…
‘‘सर वह मेरे गांव का ही है और मैं…’’
‘‘अरे कहा न जाओ यहां से.’’
रैस्टोरैंट के मालिक रजा साहब बात के पक्के थे और बड़े भले आदमी थे. कैसे बता देते जब मना किया गया था तो. किसी का भरोसा तोड़ना उन की फितरत न थी.
प्रियांश भारी कदमों से वापस आ गया. इधर रेहान और कुणाल प्रियांश की इस हरकत पर हंस हंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे.
‘‘यार कोई आशिक भी लड़की के पीछे ऐसे नहीं भागता जैसे तू उस लड़के के पीछे भागा है,’’ कुणाल जोरों से हंस रहा था.
‘‘हंस मत यार तू नहीं जानता वह कौन है.’’
‘‘होगा तेरे गांव का कोई लड़का और तू बेचारे की पोलपट्टी खोल देगा गांव में इसीलिए छिप रहा है तु?ा से,’’ अब रेहान की बात पर कुणाल ने भी हामी भरी.
‘‘ऐसा नहीं है,’’ प्रियांश ने जोर दे कर कहा.
‘‘ऐसा है हम लेट हो गए हैं, टाइम पर वापस होटल पहुंचना है,’’ अमन अपनी कुसी से उठ खड़ा हुआ और इन सब ने वापसी की राह पकड़ी.
रात के 2 बज गए थे मगर प्रियांश को नींद नहीं आ रही थी. उसे रहरह कर अभिलाष
का चेहरा याद आ जाता. हां अभिलाष ही था वह. कितना स्मार्ट दिखता था पहले वह और अब तो दुबला, शरीर सांवली पड़ चुकी रंगत, आंखों में सूनापन. कैसे सब गांव में मिसाल दिया करते थे अभिलाष की. फिर कहां गया वह कुछ पता न चला. रातोंरात मिली शोहरत तो नजर आती है लेकिन बाद में उस मशहूर शख्स के साथ क्या हुआ यह नहीं पता चलता.
अगली ही सुबह प्रियांश ने प्रबंधक से बाहर जाने देने का अनुरोध किया पर उसे अगले सप्ताह ही जाने की अनुमति मिल पाई. किसी तरह एक सप्ताह बीता और वह सीधा रैस्टोरैंट मालिक रजा साहब के पास जा पहुंचा. उसे भरोसा था कि वही उस की मदद कर सकते हैं. प्रियांश ने उन्हें अपने बारे में सबकुछ बताया. रजा साहब को अपनी नेक नीयत का यकीन दिलाना आसान नहीं था. प्रियांश ने अपने घर पर फोन कर के अपने पिता से उन की बात कराई और बताया कि वह उस युवक का भला चाहता है. तब वे प्रियांश को अंदर कमरे में ले गए और एक ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘हां, चला गया वह यहां से,’’ और फिर जो कुछ उन्होंने बताया उस के बाद तो प्रियांश के पैरों तले जमीन खिसक गई.
उन्होंने बताया, ‘‘ऐसे न जाने कितने लोग आते हैं मुंबई, वह भी आया था. अपनी पहचान छिपाए यहां काम कर रहा था. अब दिक्कत यह है कि कहीं छोटामोटा काम मिल जाता है तो तुम जैसे लोग पहचान लेते हो. फिर वही लोगों के सवालजवाब पिछली बातों को याद दिला देते हैं. पिछले 1 महीने से यहां काम कर रहा था वह, किसी तरह अवसाद से निकलने की कोशिश में. रीहैब सैंटर में कई माह बिताने के बाद इस लायक हुआ था कि अपने पैरों पर खड़ा हो सके.’’
प्रयांश ने अपना सिर पकड़ लिया. रजा साहब ने उस के कंधे थपथपाए और पानी पिलाया. फिर एक कपड़े का बैग उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह कुछ सामान उस का यहीं रह गया है. तुम कभी गांव जाओ तो उस के घर पर दे देना.’’
प्रियांश दुखी मन से होटल के कमरे पर वापस आ गया. वह रहरह कर अपराधी सा महसूस कर रहा था. उस ने उस थैले को दोनों हाथों में उठाया और सीने से लगा कर रो पड़ा. कुछ शांत हुआ तो उसे उस थैले में कुछ कागज जैसे रखे मालूम हुए. उस ने बैग को खोला कुछ पुराने कपड़े, दवाइयों के अतिरिक्त उस में एक लिफाफा भी था. लिफाफा खोलने पर मिली एक चिट्ठी आज के जमाने में चिट्ठी और उस पर भी कोई पता नहीं लिखा था. उस ने उस चिट्ठी को पढ़ना शुरू किया:
‘‘मेरे प्यारे साथियो,
‘‘यह चिट्ठी मैं तब लिख रहा हूं जब मेरे सभी चाहने वाले मु?ो भूल चुके हैं. नाम भी बता दूं तब भी शायद ही किसी को याद आऊं क्योंकि ऐसे न जाने कितने नाम रोशन हुए और खो गए. किसकिस को याद रखा जाए.
‘‘एक वक्त था जब मेरा सितारा बुलंदियों पर था. मैं था
‘सिंगिंग स्टार औफ इंडिया.’ चारों ओर मेरे सिंगिंग टेलैंट की धूम मची हुई थी. मु?ो चैनल्स से इंटरव्यू के लिए कौल आ रहे थे. सोशल मीडिया पर मैं ही छाया हुआ था. मु?ो जैसे रातोंरात किसी ने आसमान पर बिठा दिया था.
‘‘दरअसल, मैं बिहार के छोटे से गांव माधोपुर का आम सा लड़का. मु?ो बचपन से ही गाने का शौक था और लोकगीत मंडलियों में मैं गाया करता था. मेरे गांव में आए ‘सिंगिंग स्टार’ की खोज वालों को मेरी आवाज भा गई और उन्होंने मु?ो शो के लिए मुंबई आने का औफर टिकट के साथ दे दिया.
‘‘बस फिर क्या था? मैं मुंबई पहुंच गया. एक सुपरहिट सिंगिंग शो में कंटैस्टैंट के तौर पर मेरी ऐंट्री हुई. हर ऐपिसोड में अन्य प्रतिभागियों के साथ मेरा कंपीटिशन होता और मैं एक के बाद एक लैवल पार करता गया.
‘‘वहां कुरसी पर बैठे जजेस मेरे गाने और आवाज की भरपूर तारीफें करते, मेरी हरेक परफौर्मैंस पर फिदा हो जाते, अदाएं दिखाते और नएनए तरीकों से मेरे टेलैंट का बखान करते.
‘‘तब वहां ऐपिसोड की शूटिंग के दौरान मु?ो एक नई चीज पता चली जिसे ‘टीआरपी’ कहते हैं. चैनल को और अधिक टीआरपी चाहिए थी.
‘‘फिर एक दिन उन्होंने मु?ा से कहा कि मैं अपनी मां और बहन को मुंबई बुला लूं. वे मु?ो यहां स्टेज पर देख कर बहुत खुश होंगी. बस फिर तो मेरी मां और मेरी नेत्रहीन बहन भी अब शो के हर ऐपिसोड का हिस्सा बनने लगी. मेरी मां की गरीबी और बहन की नेत्रहीनता ने चैनल की ‘टीआरपी’ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. मैं बहुत खुश था. खुश तो मां भी बहुत थी.
‘‘अब जैसे ही मेरा गाना पूरा होता तो वहां बैठे दर्शक मेरी कहानी पर आंसू बहाते. मेरी मां और बहन की बेबसी टीवी पर हाथोंहाथ बिक रही थी. एक अच्छी बात यह थी कि उन में से कई जजेस ने मु?ा से शो के दौरान वादा किया कि वे मु?ो अपने आने वाले म्यूजिक अलबम्स में काम देंगे और मेरी आर्थिक मदद करेंगे.
‘‘दर्शकों के प्यार और जजेस की भरपूर प्रशंसा ने जैसे मु?ो पंख लगा दिए थे. लगभग हर ऐपिसोड में मेरी गरीबी और लाचारी की चर्चा होती. उन्होंने मेरे गांव के घर का वीडियो भी बनाया था, जिस में घर के परदों पर लगे पैबंदों को बड़ी बारीकी से दिखाया गया था. मेरे दोस्तों, रिश्तेदारों से बात भी कराई थी. सब ने भरभर कर मेरी तारीफें की थीं. सबकुछ किसी सपने जैसा लग रहा था. मु?ा जैसे आम से व्यक्ति को आज इन बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए मैं इन शो वालों का बेहद एहसानमंद था.
‘‘और फिर वह दिन भी आया जब शो का फाइनल ऐपिसोड हुआ और ये वह खूबसूरत दिन था जब मैं ‘सिंगिंग स्टार औफ द इंडिया’ चुन लिया गया.
‘‘मु?ो शो जीतने के एवज में आयोजकों की ओर से एक अच्छी रकम का चैक दिया गया. खिताब जीतने के बाद तो मेरी दुनिया ही बदल गई.
‘‘सोशल मीडिया चैनल्स पर मेरे फोटो, वीडियो फ्लैश होते रहते. मेरी गरीबी और कामयाबी की कहानियां सुनाई जातीं. मु?ा से टीवी ऐंकर मेरी सुरीली आवाज के राज पूछते. लगभग रोज ही किसी न किसी शो में शामिल होने के लिए मेरे पास फोन आते रहते. इसी बीच मु?ो मेरे गांव की ओर से स्वागत निमंत्रण मिला.
‘‘गांव पहुंचने पर मेरा जोरदार स्वागत हुआ. फूलमालाओं से लाद कर मु?ो खुली जीप में घुमाया गया. अपने पीछे भीड़ चलती देख मैं खुशी से गदगद हो जाता.
‘‘मैं बहुत खुश था. अब हमने गांव में अपना पक्का मकान बना लिया और नए परदे भी लगा लिए थे. दोस्त, रिश्तेदार सभी बहुत इज्जत दे रहे थे. लेकिन अब काम के सिलसिले में मु?ो मुंबई में ही रहना था तो हम ने एक फर्नीश्ड फ्लैट किराए पर ले लिया. किराया काफी ज्यादा तो था लेकिन यह फ्लैट जरूरी था हमारे लिए. कई महीने हंसीखुशी में बीत गए. लेकिन वह कहते हैं न कि रातोंरात मिली कामयाबी ज्यादा देर तक नहीं टिकती, तो वही हुआ.
‘‘इनाम की धनराशि अब खत्म होने लगी थी. मु?ो चिंता होने लगी थी क्योंकि अभी तक मेरे पास कोई काम नहीं था. मुंबई जैसे बड़े शहर में रहनसहन के लिए अच्छी आमदनी का होना बहुत जरूरी था.
‘‘मैं ने 1-1 कर उन सभी म्यूजिक डाइरैक्टर्स को कौंटैक्ट किया जिन्होंने शो के दौरान मु?ो अपने फोन नंबर दिए थे और काम देने का वादा किया था. मगर फिर जो हुआ उस की मु?ो उम्मीद नहीं थी क्योंकि कोई भी मेरा फोन नहीं उठा रहा था.
‘‘किसी प्रोड्यूसर की पीए से बात हुई भी तो उस ने ‘सर बिजी हैं’ कह कर फोन काट दिया और बाद में तो वे सभी नंबर बंद ही आने लगे. मु?ो काम देने के जो कौंट्रैक्ट कैमरे के सामने साइन किए गए थे वे कागज मेरे सामने पड़े मुंह चिढ़ा रहे थे.
‘‘धीरेधीरे मेरी ख्याति कम होने लगी और साल खत्म होतेहोते मेरा
क्रेज बिलकुल खत्म हो गया. मैं बहुत परेशान रहने लगा. थक कर मैं अपने गांव वापस आ गया और फिर से अपनी मंडलियों का रुख किया. लेकिन वहां तो पहले ही बड़ा कंपीटिशन था. जो लोग गाने के लिए चयनित हो चुके थे वो किसी और को अपनी जगह नहीं दे रहे थे. कुल मिला कर मेरे पास कोई काम नहीं था. मेरी मां को वापस अपना सिलाई का काम शुरू करना पड़ा.
‘‘मैं अवसाद का शिकार हो चुका था. एक दिन मैं ने नींद की गोलियां खा कर अपनी जान देने की कोशिश की. मगर बचा लिया गया. मेरे कुछ साथियों ने मु?ो शहर ले जा कर मानसिक चिकित्सक को दिखाया. यहां से मु?ो रिहैबिलिटेशन सैंटर भेज दिया गया. कई महीने रिहैब में गुजारने के बाद मेरी स्थिति पहले से बेहतर तो हो गई, मगर पिछली जिंदगी में लौटने के भी सारे दरवाजे बंद हो चुके थे.लोग मु?ो पहचान जाते और हंसते मु?ा से तरहतरह के सवाल पूछते और आगे बढ़ जाते.
‘‘यह दुनिया सिर्फ उगते सूरज को सलाम करती है. मु?ो किसी से कोई शिकायत नहीं. अब मु?ो सम?ा आ चुका था कि यह कामयाबी यह शोर मेरा नहीं था. यह तो बस चैनल वालों का था. शो खत्म मैं भी खत्म. फिर किसी अगले शो के अगले सीजन में किसी मु?ा जैसे गरीब छोटे गायक को शिकार बनाया जाएगा. हां. मैं एक दिन इस अंधेरे से बाहर जरूर निकल आऊंगा. इंतजार में एक गुमनाम गायक ‘‘अभिलाष.’’
पत्र पढ़ कर प्रियांश की आंखों से आंसू बह निकले. जैसे अपना ही आने वाला कल उस की आंखों के सामने आ गया. साल दर साल कितने ही गायक ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेते हैं मगर कुछेक के अलावा बाकी सब न जाने कहां गुम हो जाते हैं. क्या वह खुद भी कल ऐसे ही… नहीं. ऐसा नहीं होगा. अपने मातापिता का चेहरा उस की नजरों के सामने घूम गया. तो फिर किया क्या जाए? क्या हाथ आए अवसर को ऐसे ही ठुकरा दे? उस के माथे पर पसीने को बूंदें उभर आईं.
तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. दरवाजा खोलने पर सामने अमन और रेहान तैयार खड़े थे, ‘‘क्या हुआ? रियाज करने नहीं चलना,’’ पूछते हुए अमन ने उस के हाथ से वह पत्र ?ाटक लिया और पढ़ने लगा. पत्र देख रेहान भी उस के साथ शामिल हो गया. तभी कुणाल भी वहीं आ गया और पत्र देख सारी बात सम?ाते उन्हें देर न लगी.
‘‘यार, तो उस दिन वह युवक अभिलाष था?’’ अमन ने पत्र रखते हुए अचरज से पूछा.
‘‘हां,’’ प्रियांश सोफे पर निढाल हो गया.
विशाल,कीर्ति, सिद्धार्थ… फिर तो कितने ही नाम याद आ गए जो किसी न किसी सीजन में विनर रहे थे मगर आज किसी को याद तक नहीं.
‘‘गाइज सब के साथ बुरा नहीं होता. आई एम श्योर वह और बाकी सब भी कहीं न कहीं सैटल हो ही गए होंगे लाइफ में,’’ अमन बोला.
‘‘औफकोर्स,’’ रेहान ने कहा.
‘‘लेकिन सवाल तो उन का है जो कहीं के नहीं रहे.’’
‘‘हां,’’ तीनों ने एक सुर में कहा, ‘‘और सवाल यह भी है कि हम क्या कर सकते हैं.’’
‘‘यार अभिलाष को अवसाद से निकालने की कोशिश तो हमें करनी चाहिए,’’ अमन ने कहा और फिर उन्होंने अगली शूटिंग के सैट पर आयोजकों से मिलने की योजना बनाई.
प्रोडक्शन टीम को लड़कों की कोशिश अच्छी लगी. इसीलिए उन्होंने
प्रोड्यूसर आदित्य सर के साथ मीटिंग कर के तय किया कि वे 2 ऐपिसोड्स इस शो के भूलेबिछड़े लेजैंड्स गायकों को केंद्र में रख कर प्लान कर लेंगे. लेकिन अभिलाष या उस जैसे और भी किसी लेजैंड को प्रोडक्शन टीम के पास लाने की जिम्मेदारी ये लोग लें तो. इन लड़कों ने इस के लिए हामी भर दी.
अगले ही दिन ये चारों रजा साहब के पास रैस्टोरैंट पहुंचे और पूरी बात बताई. उन्होंने यहां काम करने वाले सभी लड़कों को बुलाया और इन लोगों से मिलवाया उन में से एक ने उन्हें एक ‘एनजीओ’ का पता दिया. शहर के कोलाहल से कुछ दूर स्थित इस बिल्डिंग को खोजने में कोई खास दिक्कत न हुई. लेकिन असल दिक्कत तो अभी बाकी थी और वह थी और्गेनाइजेशन की निरीक्षक और डाक्टर माहिरा आलम जो किसी भी अपरिचित को अपने किसी पेशैंट से मिलने नहीं देती थीं. उन का कहना था कि अनजान लोग सिर्फ दिल्लगी के लिए ही इन अवसादग्रस्त लोगों के पास आते हैं और इन के जख्मों को छेड़ कर फिर से ताजा कर देते हैं.
कोई घंटे भर के इंतजार के बाद आखिरकार एक वार्ड बौय ने आ कर खबर दी कि डाक्टर अब फ्री हैं. अब वे उन से मिल सकते हैं. लंबे कद की उजली रंगत वाली डाक्टर माहिरा अपने सवालिया अंदाज में रूबरू थीं.
‘‘आज अचानक कैसे याद आ गई आप सब को? अभिलाष करीब 1 साल से यहां हैं और इतने अरसे में मैं ने आप में से किसी को नहीं देखा न ही आप के बारे में कुछ सुना. तो फिर अब कैसे? और जब वह अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने बाहर की दुनिया में गया भी तो कुछ लोगों की मेहरबानी से वापस यहीं आ गया.’’
‘‘वे लोग हम ही थे,’’ प्रियांश, रेहान, अमन और कुणाल की चोर नजरों ने जैसे एकदूसरे से यही कहा.
डाक्टर का सवाल जायज था. लेकिन अब कैसे वे इन्हें सम?ाएं कि अभिलाष में खुद को देख रहे थे वे. इस आम से लड़के को जब शोहरत की बुलंदियों पर देखा था उस दिन के बाद वे और न जाने कितने लड़के उस जैसा बनने के सपने देखने लगे थे, जिसे आज तक टीवी पर गाते देखासुना उस की ऐसी दुर्दशा की कल्पना भी करना मुश्किल था और ऐसे में जब वह सामने आया तो उस की यह हालत देख कर यों ही छोड़ दें. यह इन से हो न सका और फिर यह कुदरत का करिश्मा है जो लोगों को एकदूसरे से मिला देती है.
मगर डाक्टर को इस से क्या. उन्हें थोड़े ही इस तरह तसल्ली हो जानी थी. उन के अनुसार तो लोग सिर्फ स्टोरी के लिए ही यहां आते हैं.
मगर ‘जहां चाह वहां राह’ तो लड़कों ने भी ठान ली थी कि ऐसे हार नहीं मानेंगे. उन्होंने सीधा प्रोडक्शन हाउस के ओनर आदित्य सर से संपर्क किया और डाक्टर माहिरा से उन की बात करा दी. बस फिर क्या था डाक्टर के पास इन की बात पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा न था. इसीलिए कुछ जरूरी हिदायतें दे कर उन्होंने इन्हें मिलने की इजाजत दे दी.
थोड़ी औपचारिकताओं के बाद एक वार्ड बौय ने इन लोगों को एक हालनुमा कमरे पर पहुंचा दिया और वहां से चला गया. अंदर पहुंचने पर इन्होंने देखा कि वह दीवार की ओर मुंह किए बैठा था.
‘‘अभिलाष,’’ नाम पुकारने पर उस ने पलट कर देखा वही चेहरा, वही आंखें, वही अभिलाष.
‘‘हम तुम्हें लेने आए हैं. हमें पता है तुम इस अंधेरे से निकलना चाहते हो.’’
उस ने उन की बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया. शायद ऐसी बातों से भरोसा टूट चुका था उस का.
‘‘अभिलाष मैं, मैं प्रियांश, पहचाना? मैं भी माधोपुर से हूं. हम जानते हैं तुम ने बहुत दुख देखे हैं लेकिन अब मुश्किल समय बीत चुका है और एक नई दुनिया तुम्हारा इंतजार कर रही है. हमारा विश्वास करो. कहो तो ‘सिंगिंग स्टार की खोज’ के प्रोडक्शन हाउस से बात करा दें?’’ अमन ने अभिलाष का हाथ पकड़ कर कहा.
वह अपनी जगह से उठा और बाहर की ओर जाने लगा. तभी रेहान ने अपना फोन उस
की तरफ घुमा दिया. दूसरी तरफ मां और बहन को देख कर यह टूटा दिल भी अपने जज्बात काबू में न रख सका और बिखर गया.
‘‘‘बेटा, ये लोग कई दिनों से मेरे से संपर्क में हैं. इन्होंने तेरे लिए अच्छा सोचा है. तू कोशिश कर और आगे बढ़ आगे सब अच्छा होगा. मेरा अच्छा बेटा,’’ मां ने विश्वास दिलाया.
उस के साथियों ने अभिलाष को उस का पत्र मिलने से ले कर प्रोडक्शन टीम से बात कर लेने तक की सारी कहानी सुनाई. उन्होंने बताया कि वे और पूरी टीम उसे गुमनामी के अंधेरे से निकालना चाहती है. सच्ची बात सच्चे दिल तक पहुंच ही जाती है और जब कोई खुद ही अंधेरे से निकलने की कोशिश में हो तो मदद के लिए मिला हाथ ठुकराने की हिम्मत नहीं होती.
उन्होंने अभिलाष का विश्वास जीत लिया था. उन की बातों से उस की आंखों में चमक नजर आई. साथ ही उन्होंने अभिलाष को खुशखबरी सुनाई कि डाइरैक्टर आदित्य सर ने एक स्कूल में भी संगीत शिक्षक के तौर पर तुम्हें काम दिलाने के लिए आवेदन करवा दिया है.
‘‘और तुम्हारा क्या? कहीं कल तुम भी मेरी तरह…’’ अभिलाष ने प्रियांश से सीधा सवाल किया.
‘‘दरअसल, हम चारों को ही सम?ा आ
गया है कि चाहे यहां से जीत के जाएं या बीच
में ही शो से बाहर हो जाएं हम अपनी जड़ों
को नहीं छोड़ेंगे. मैं यहां से जा कर अपनी
सहायक की नौकरी जौइन करूंगा और यह अपनी पढ़ाई पूरी करेगा और ये दोनों अपने पापा का बिजनैस देखेंगे.’’
‘‘मतलब लौट के बुद्धू …’’
‘‘न… न… लौट के सम?ादार अनुभव ले कर आए,’’ अमन के मुंह से निकले अनोखे मुहावरे पर वे सब हंस पड़े. यहां अब उम्मीद की एक नई किरण का उदय हो चुका था.