जब हमारे साहबजादे क्रिकेट खेलने गए

हमारे साढ़े 6 वर्षीय बेटे को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है. यद्यपि इस खेल के संबंध में उन का ज्ञान इतना तो नहीं कि किसी खेल संबंधी प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता में भाग ले सकें, पर फिर भी उन्हें खिलाडि़यों की पहचान हम से अधिक है और क्रिकेट की फील्ड की रचना कैसे की जाती है, इस बारे में भी वह हम से ज्यादा ही जानते हैं.

जब कभी टेस्ट मैच या एकदिवसीय मैच होता है तो वह बराबर टीवी के सामने बैठे रहते हैं. यदि कभी हमारा बाहर जाने का कार्यक्रम बनता है तो वह तड़ से कह देते हैं, ‘‘मां, मैं क्रिकेट मैच नहीं देख पाऊंगा, इसलिए मैं घर पर ही रहूंगा.’’ इस खेल के प्रति उन की रुचि व लगन पढ़ाई से अधिक है.

उन को इस खेल के प्रति रुचि अचानक ही नहीं हुई बल्कि जब वह मात्र 3 साल के थे तब से ही स्केल और पिंगपांग बाल को वह क्रिकेट की गेंद व बल्ला समझ कर खेला करते थे. अपनी तीसरी वर्षगांठ पर उन्होंने हम से बल्ला व गेंद उपहारस्वरूप झड़वा लिया. इस खेल में विकेट और पैड भी जरूरी होते हैं. इस की जानकारी उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच हुए मैच के दौरान हुई, जिस का सीधा प्रसारण वह टीवी पर देखा करते थे.

उन्होंने खाना छोड़ा होगा, पीना छोड़ा होगा, दोपहर में पढ़ना और सोना भी छोड़ा होगा, पर मैच देखना कभी छोड़ा हो, ऐसा हमें याद नहीं. हमारे देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कौन है वह इस बात को भले ही न जानें, पर कपिलदेव, सुनील गावसकर, लायड, जहीर अब्बास को वह केवल जानते ही नहीं, उन के हर अंदाज से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं.

इस खेल के प्रति उन की रुचि तब और बढ़ गई, जब उन्होंने गावसकर को मारुति व रवि शास्त्री को आउडी कार मिलते देखी. उन्हें कार पाने का इस से सरल तरीका और कोई नहीं दिखा कि सफेद कमीज पहन लो, पैंट न हो तो नेकर पहन लो, ऊनी दस्ताने पहन लो तथा छोटीबड़ी कैसी भी कैप पहन लो और बस, चल दो बल्ला और गेंद उठा कर खेल के मैदान में.

कार के वह पैदाइशी शौकीन हैं. जब उन्होंने अपने जीवन के 4 महीने ही पूरे किए थे तब पहली बार कार का हार्न सुन कर बड़े खुश हुए थे. जब वह 8 महीने के थे तब घर के सदस्यों को पहचानने के बजाय उन्होंने सब से पहले तसवीरों में कार को पहचाना था.

तो जनाब, कार के प्रति उन के मोह ने उन्हें क्रिकेट की तरफ मोड़ दिया. फिर वह हमारे पीछे पड़ गए और बोले, ‘‘हम रोज घर पर खेलते हैं, आज हम स्टेडियम में खेलेंगे.’’

हम ने उन से कहा, ‘‘पहले आसपास के बच्चों के साथ घर के बाहर तो खेलो.’’ तो साहब, उन्होंने हमारी आज्ञा का पालन किया, अगले दिन शाम होते ही आ कर बोले, ‘‘आप लोग लान में खड़े हो कर देखिएगा, हम सड़क पर भैया लोगों के साथ खेलने जा रहे हैं.’’ हम मांबाप दोनों ही उन्हें दरवाजे पर इस तरह शुभकामनाओं के साथ छोड़ने गए जैसे वह विदेश जा रहे हों.

बहुत देर तक हम खेल शुरू होने का इंतजार करते रहे, क्योंकि करीबकरीब सभी बच्चे मय टूटी कुरसी के, जोकि उन की विकेट थी, सड़क पर पहुंच चुके थे. पर खेल शुरू होने के आसार न दिखने से हम अपना काम करने अंदर आ गए. करीब 20 मिनट बाद जब हम बाहर आए तो देखा, खिलाडि़यों में कुछ झगड़ा सा हो रहा है.

हम ने पतिदेव से, जोकि अपने बेटे के पहले छक्के को देखने की उम्मीद में बाहर खड़े थे, पूछा कि माजरा क्या है, अभी तक खेल क्यों नहीं शुरू हुआ तो उन्होंने कहा कि फिलहाल कपिल बनाम गावसकर यानी कप्तान कौन हो, का विवाद छिड़ा हुआ है.

4 बड़े लड़के कप्तान बनने की दलील दे रहे थे. एक कह रहा था, ‘‘विकेट (टूटी कुरसी) मैं लाया हूं, इसलिए कप्तान मैं हूं.’’ दूसरा कह रहा था, ‘‘अरे, वाह, बल्ला और गेंद तो मैं लाया हूं. मेरा असली बल्ला है, तुम्हारा तो टेनिस की गेंद से खेलने लायक है. अत: मैं बनूंगा कप्तान.’’ तीसरा जोकि अच्छी बल्लेबाजी करता था, बोला, ‘‘देखो, कप्तान मुझे ही बनाना चाहिए, क्योंकि सब से ज्यादा रन मैं ही बनाता हूं.’’

चौथा इस बात पर अड़ा हुआ था कि खेल क्योंकि उस के घर के सामने हो रहा था अत: बाल यदि चौकेछक्के में घर के अंदर चली गई तो उसे वापस वह ही ला सकता है, क्योंकि गेट पर उस की मां ने उस भयंकर कुत्ते को खुला छोड़ रखा था, जिस से वे सब डरते थे.

खैर, किसी तरह कप्तान की घोषणा हुई तो देखा बच्चे अब भी खेलने को तैयार नहीं, क्योंकि उन्हें उस की कप्तानी पसंद नहीं थी. यहां भी टीम का चयन करने में समस्या थी, क्योंकि जितने खिलाड़ी चाहिए थे, उस से 10 बच्चे अधिक थे. अब समस्या थी कि किसे खेल में शामिल किया जाए.

यहां कोई चयन समिति तो थी नहीं, जो इन की पहली कारगुजारी के आधार पर इन्हें चुनती. यहां तो हर कोई अपने को हरफनमौला बता रहा था.

खैर, साहब, जो बच्चे बल्ले नहीं लाए थे, उन्हें बजाय वापस घर भेजने के गली के नुक्कड़ पर खड़ा कर दिया गया ताकि अगर भूलेचूके गेंद वहां चली जाए तो वे उसे उठाने में मदद करें. जब टीम का चयन हो गया तो टास हुआ, 2 बार तो टास में अठन्नी पास की नाली में जा गिरी. तीसरी बार के टास से पता चला कि टीम ‘क’ पहले बल्लेबाजी करेगी तथा टीम ‘ख’ फील्डिंग.

हमारे सुपुत्र चूंकि हमें फील्ड में यानी सड़क पर कहीं नजर नहीं आए तो हम ने समझा शायद ‘क’ टीम में होंगे, पर शंका का समाधान थोड़ी देर में हो गया जब वह मुंह लटका कर द्वार में प्रविष्ट हुए.

हम ने उन से पूछा, ‘‘आप वापस कैसे आ गए?’’ इस पर वह बोले, ‘‘हम सब से छोटे हैं, फिर भी सब से पहले हम से बल्लेबाजी नहीं करवाई और बड़े भैया खुद खेले जा रहे हैं.’’

हम ने उन्हें हतोत्साहित नहीं होने दिया और कहा, ‘‘जल्दी ही आप की बारी आ जाएगी, आप वापस चले जाइए.’’

वह अंदर गए, लगे हाथ एक कोल्ड डिं्रक चढ़ाई और जब वह वापस आए तो उन के चेहरे के भाव उसी तरह थे, जैसे ड्रिंक इंटरवल के बाद खिलाडि़यों के चेहरों पर होते हैं. जब वह फील्ड पर पहुंचे तो पता लगा उन की बारी आ चुकी थी, पर वह मौके पर उपस्थित नहीं थे, अत: 12वें नंबर के खिलाड़ी को बल्लेबाजी करने भेज दिया गया यानी बल्लेबाजी तो वह कर ही नहीं पाए.

अब फील्डिंग की बारी थी. वहां भी शायद वह अपनी अच्छी छाप नहीं छोड़ सके, क्योंकि अगले दिन जब हम ने उन्हें शाम को तैयार कर के भेजना चाहा तो वह तैयार नहीं हो रहे थे. हम ने कहा, ‘‘अरे भई, आज हम बिलकुल कहीं नहीं जाएंगे, लान में खड़े हो कर आप का ही मैच देखेंगे.’’ पर वह टस से मस नहीं हुए. उलटे उन के हाथ में क्रिकेट के बल्ले की जगह बैडमिंटन रैकिट था. यानी उन्होंने क्रिकेट से तौबा कर ली थी.

खैर, किसी तरह हम ने उन्हें खेलने भेजा. हम अपनी सब्जी गैस पर बनने रख आए थे. उसे देखने अंदर आ गए. वह तो खैर जलभुन कर राख हो ही चुकी थी, ऊपर से इन्होंने बताया कि हमारे नवाबजादे टीम से निकाल दिए गए हैं, इसीलिए खेलने नहीं जा रहे थे.

हम ने उन से निकाले जाने का कारण पूछा तो पता चला कि फील्डिंग के समय उन्हें जो पोजीशन मिली थी, वह महत्त्व की थी और वहां पर चौकन्ना हो कर खड़े रहने की जरूरत थी. पर हमारे नवाबजादे जहां लपक कर कैच लेना था, वहां पर तो डाइव मार कर एक हाथ से कैच ले रहे थे. जैसा कभी उन्होंने गावसकर को आस्ट्रेलिया में लेते देखा था, और जहां पर डाइव लगानी थी, वहां सीधे हाथ आकाश में लिए खड़े थे. इस तरह वह 3-4 महत्त्वपूर्ण कैच छोड़ चुके थे, अत: कप्तान उन्हें गुस्से में घूरने लगा था.

जब 5वीं बार उन्हें एक खिलाड़ी को रन आउट करने का मौका मिला था तो उन्होंने गेंद बजाय खिलाड़ी को रन आउट करने के लिए विकेट पर मारने के अपने कप्तान के मुंह पर दे मारी, क्योंकि वह गुस्से में थे कि पारी की शुरुआत उन से क्यों नहीं करवाई गई. जब शाम से रात हुई और स्टंप उखाड़े गए, यानी कुरसी सरका ली गई तो उन्हें अगले दिन वहां आने से मना कर दिया गया.

हमारे लाड़ले का कहना था, ‘‘यह भी कोई क्रिकेट मैच है? पास में नाली बह रही है. इतने सारे मच्छर खाते हैं, न कोई ड्रिंक्स ट्राली आती है, न कोई फोटो खींचता है. हम तो विदेश जा कर ही खेलेंगे.’’

स्किन के लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं ?

सवाल-

मेरा उम्र 25 साल है और मैं जानना चाहती हूं कि फेशियल किस उम्र से शुरू करना चाहिए?

जवाब-

हर किसी के लिए त्वचा के अनुसार फेशियल कराने की उम्र अलगअलग हो सकती है. जैसे ही आप को अपने फेस पर पहला रिंकल दिखाई देना शुरू करे आप को फेशियल करवाना शुरू कर देना चाहिए. ऐसा 20 साल में भी हो सकता है, 25 में भी और 30 साल में भी.

वैसे यंग ऐज में कहीं बाहर जाते वक्त या शादीब्याह में कभीकभार स्किन को शाइनिंग देने के लिए वैजिटेबल पील या फू्रट पील करना अच्छा रहता है. शादी के समय गोल्ड फेशियल स्किन को गोल्ड जैसी चमक देता है इसलिए गोल्ड फेशियल करवाना चाहिए. लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है फेशियल आप की स्किन के ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है जिस से आप का खाना त्वचा तक पहुंचता है और रिलैक्सेशन के साथसाथ इन को शाइन भी देता है. इस से स्किन अपलिफ्ट भी होती है और कोलोजन बनना शुरू हो जाता है जिस से रिंकल्स कम पड़ती हैं.

सवाल-

आजकल कैमिकल पील के बारे में काफी सुना जा रहा है. क्या यह स्किन के लिए अच्छी होती है?

जवाब-

आजकल कई तरह की कैमिकल पील अवेलेबल हैं. किसी भी कैमिकल पील में से स्किन की एक लेयर एक ही बार में निकल जाती है. लाइट पील से एक लेयर को निकलने में 1 हफ्ता लग जाता है. मगर स्ट्रौंग पील से 2 दिन में ही त्वचा की एक लेयर ऐक्सफौलिएट हो जाती है जिस से अंदर से खूबसूरत त्वचा निकल के बाहर आ जाती है. मगर कैमिकल पील कराते समय बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है कि करने वाला ऐक्सपर्ट हो ताकि आप की स्किन को कोई नुकसान न पहुंचे. कैमिकल पील के लिए किसी ऐसे क्लीनिक में जाएं जहां लेजर की सुविधा उपलब्ध हो क्योंकि बारबार कैमिकल पील करने से स्किन पतली होनी शुरू हो जाती है. अगर कैमिकल पील के साथसाथ लेजर ट्रीटमैंट लेती रहें तो स्किन पतली नहीं होती और कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता.

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मैं जब किचन में काम करती हूं तो स्किन में जलन होती है, कोई उपाय बताएं

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं जब भी किचन से काम कर के निकलती हूं तो मुझे अपनी स्किन पर बहुत जलन महसूस होती है. उस वक्त मैं ऐसा क्या लगाऊं जिस से जलन कम हो जाए और मैं फ्रैश फील करूं?

जवाब

इस के लिए आप दूध में कुछ बूंदें शहद की डाल दें. कुछ रोज की पत्तियां ले लें. उन को छोटाछोटा काट लें और उस में मिला दें. थोड़ी सी खसखस भी मिला लें. इस पूरे मिश्रण को बर्फ की ट्रे में डाल दें. जमने के लिए फ्रीजर में रख दें. जब भी आप गरमी महसूस करें इस में से एक क्यूब ले कर अपने फेस पर मसाज करें. इस से आप को ठंडक महसूस होगी और साथ में स्किन के ऊपर एक तरह से स्क्रब भी हो जाएगा. आप की स्किन फ्रैश भी महसूस करेगी और रंग भी गोरा होगा.

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मैं वर्किंग वूमन हूं. बारिश में जाने से बाल गीले हो जाते हैं. समझ नहीं आता कि उन्हें रोज शैंपू करूं. डर लगता है कि रोजरोज शैंपू करने से बाल गिरना शुरू न हो जाएं?

जवाब

जब भी आप के बाल गीले हों उन्हें सिर्फ सुखाने से उन के गिरने के चांसेज रहते हैं. बैटर है कि आप शैंपू कर लें. रोजरोज शैंपू करने की जरूरत पड़ती है तो आप कोई  माइल्ड शैंपू इस्तेमाल करें क्योंकि धूलमिट्टी और औयल आप की स्कैल्प में पहले से रहता है. जैसे ही सिर में पानी पड़ता है तो धूलमिट्टी आप के सिर में जम जाती है और इन्फैक्शन या डैंड्रफ का खतरा रहता है. इसलिए बालों के गीले होने के बाद सुखाना नहीं बल्कि शैंपू करना जरूरी होता है.

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डिनर में बनाना चाहते हैं कुछ स्पेशल, तो ट्राई करें सोया कोफ्ते

फैस्टिव सीजन में मेहमानों के लिए डिनर में अगर रेसिपी की तलाश कर रही हैं तो सोया कोफ्ते की ये रेसिपी आपके लिए अच्छा औप्शन है.

सामग्री

1 बड़ा चम्मच बेसन

1/2 कप सोया ग्रैन्यूल्स

1 आलू उबला

1 छोटा चम्मच अदरक कसा

1 हरीमिर्च कटी तलने के लिए तेल

2 टमाटर कटे

1/4 कप दही

1 चुटकी हींग

1/4 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच गरममसाला

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

1 बड़ा चम्मच घी

1 छोटा चम्मच जीरा

नमक स्वादानुसार.

विधि

कड़ाही में घी गरम कर जीरा व हींग डालें. फिर हलदी, धनिया व मिर्च पाउडर डालें. टमाटरों को मिक्सी में पीस कर डालें और धीमी आंच पर भूनें. सोया ग्रैन्यूल्स को गरम पानी में 1-2 मिनट भिगोएं और फिर पानी निचोड़ लें. इस में नमक, आलू मैश कर, अदरक, हरीमिर्च व बेसन मिला कर छोटीछोटी बौल्स बनाएं और गरम तेल में तल लें. टमाटर भुनने पर दही डाल कर थोड़ी देर भूनें औरा इन बौल्स को टमाटर में मिलाएं. 1 कप पानी डाल कर 2-3 मिनट तक उबलने दें. धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

Festival Special: फैस्टिवल में सेहत का भी रखें ख्याल, बस फौलो करें ये हैल्दी टिप्स

दीवाली का त्योहार देश में बड़े त्योहरों में से एक है. इस त्योहार की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं. इस त्योहार के सीजन में सबसे ज्यादा ख्याल जिस चीज की रखने की जरूरत है, वो है अपनी सेहत.

रोशनी और उल्लास से भरा दिवाली का त्योहार भी नजदीक आ रहा है. एक ऐसा त्योहार जिसमें जिसमें मिठाईयों और नमकीन की भरमार होती है. जो कि सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकती है. लेकिन अगर आपने अपना और अपने परिवार का थोड़ा ध्यान रखा, तो ये रोशनी का त्योहार आपके लिए काफी खुशियां ला सकता है. जानिए इस रोशनी के त्योहार में कैसे रखें अपनी सेहत को ठीक.

कम मात्रा में ले चीना और वसा

इस सीजन में में सबसे ज्यादा मिठाईयां खाते है. जिसे मार्केट में खरीदने पर भरपूर मात्रा में वसा और चीनी का इस्तेमाल होता है. इसलिए कोशिश करें कि मिठाईयां घर पर ही बनाएं. इसके साथ ही कम मात्रा में घी, तेल का इस्तेमाल करें. आप चाहें तो शुगर फ्री भी उपयोग कर सकते हैं या शहद का प्रयोग कर सकते हैं. अगर मीठी डिश में मिठाइयों की जगह फ्रूट्स लें. कोल्ड ड्रिंक्स के जगह पर नींबू पानी, नारियल पानी या अन्य फ्रूट्स जूस आदि नेचुरल ड्रिंक्स लें.

कम से कम खाएं

त्योहारों के मौसम में हम खाने के मामले में सबसे आगे होते है. ये भी भूल जाते है कि इससे हमारी सेहत में बुरा प्रभाव पड़ता है. यहां तक कि हम अपनी डाइट चार्ट को यह कह कर भूल जाते हैं कि त्योहार एक-दो दिन का ही तो होता है. जिसके कारण हमारे शरीर में भरपूर मात्रा में कैलोरीज चली जाती हैं. दिवाली के मौके में हम भरपूर मात्रा में मिठाई, चॉकलेट और पकवान खाते हैं. जो कि वजन बढ़ने का एक कारण बन सकता है. इसलिए इस मौसम में खाना को नियंत्रित करके ही खाएं.

ज्यादा से ज्यादा लें प्रोटीन

इस मौसम में हम सबसे ज्यादा कैलोरी वाली चीजें खाते है. सभी डेयरी प्रोडक्ट में भरपूर मात्रा में कैलोरी होता है. इसलि इनकी जगह प्रोटीन वाली चीजें खाने की कोशिश करें. जैसे कि ड्राई फ्रूट्स में बादाम, अंजीर आदि. या फिर आप ब्राउन राइस, रागी, सूप के पैकेट आदि मिलाकर बना सकते है. यह आपकी सेहत के लिए एक गिफ्ट होगा.

यूरिया साफ करें

यूरिया शरीर के लिए विषाक्त होता है, तो शरीर में अतिरिक्त यूरिया होने से ऊर्जा का ह्रास होगा. और शरीर में ऊर्जा का निम्न स्तर, चीनी की लालसा को बढ़ाता है. तो इस त्यौहार के दौरान अधिक से अधिक पान पियें और अन्य पौष्टिक पेय जैसे, जूस नींबू पानी आदि पीते रहें.

अगर हो प्री-दिवाली पार्टी

अगर आपकी दिवाली की रात को बाहर पार्टी का प्लान है, तो थोड़ा सचेत रहें. घर से निकलने से पहले पौष्टिक सा आहार ले लें. इससे न सिर्फ आप अनावश्यक और हानिकारक खाद्य पदार्थ खाने से बचेंगे बल्कि, एल्कोहॉल के अतिरिक्त सेवन से भी बचेंगे.

न होने दें पानी की कमी

त्योहार के सीजन में काम अधिक होने जाने के कारण भागदौड़ करना पड़ता है. जिसके कारण हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाती है. जिससे शरीर में एनर्जी और थकान सी महसूस होने लगती है. इसलिए काम के साथ-साथ समय निकाल पानी पीतें रहें.

करें छोटी प्लेट का इस्तेमाल

कई बार होता है कि हम बड़ी प्लेट लेकर खाना लगते है. जिसके कारण हम अधिक खाना खा लेते है. इसलिए जहां तक संभव हो तो छोटे बर्तनों का इस्तेमाल करें. साथ ही दुबारा खाना खाने से बचें.

एक्सरसाइज

भाग-दौड़ में हम अपनी रूटीन को भूल ही जाते हैं. इसलिए साथ में एक्सरसाइज जरूर करते रहें. नहीं तो आपको थकावट और अन्य समस्याएं हो सकती हैं.

दरिंदे से बदला: क्या हुआ था राजेश सिंह के साथ

पड़ोसी राजेश सिंह के घर मन रहे जश्न का शोर सोनाली के कानों में पिघले सीसे की तरह उतर रहा था. सारे खिड़कीदरवाजे बंद कर कानों को कस कर दबाए वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कहकहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती.

पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’

सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था.

6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी.

एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’

‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था. 2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब

2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी.

हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी. बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे.

जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था.

शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं.

दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था.

राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी.

सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता. उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा.

एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई.

आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था. बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई.

सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे

ही अपने शरीर पर

बंधा तौलिया हटाया कि अचानक

2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया.

अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी.

सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था.

सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था.

इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों

से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया.

काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे.

इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था.

भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई.

राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था.

राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया. वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा.

‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया.

जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया.

सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए. दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए.

कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत

पड़ते गए.

सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं.

आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे.

राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था. रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी.

कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था.

दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था.

राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा. उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था.

सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू

में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा.

सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया.

सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई. वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया.

राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इस

से पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’

सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’

जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे.

भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया.

जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी.

डौक्टर को मेडिकल हिस्ट्री बताना क्यों है जरूरी

अकसर जब कोई रोगी  किसी बीमारी , खास कर क्रोनिक बीमारी या कैंसर और हार्ट आदि की बीमारी , के इलाज के लिए जाता  है तब डौक्टर उसके  मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानना चाहते हैं . मेडिकल हिस्ट्री सिर्फ आप का नहीं आपके परिवार के निकटतम संबंधियों बारे में भी पूछते  हैं , जैसे – मातापिता , भाईबहन , पतिपत्नी आदि. यह जानकारी आपके और डौक्टर दोनों के लिए जरूरी है . अमेरिका आदि किसी विकसित देश में जब आप किसी भी डौक्टर के यहां पहली बार  किसी भी बीमारी के इलाज के लिए जाते हैं तब आपसे मिलने के पहले उसके औफिस स्टाफ या सहायक एक फौर्म में विस्तार से आपका  मेडिकल हिस्ट्री ( जिसमें परिवार के सदस्यों का भी ) भरवा कर साइन कराता है. फौर्म में मेडिकल हिस्ट्री और कौनकौन सी दवाईयां आप ले रहे हैं उनका विवरण होता है. फिर इस  रिकॉर्ड  को अपने सिस्टम में ( कंप्यूटर) वह  में सेव कर लेता  है. आपके इलाज में आपका  मेडिकल हिस्ट्री मदद कर सकता है , आखिर क्यों, जानें ?

आपके मेडिकल हिस्ट्री को मेडिकल फैमिली ट्री भी कहते हैं.  आप सिर्फ  देखने में ही अपने अनुवांशिक गुणों का अनुकरण नहीं करते हैं- जैसे चेहरा, आंखों का रंग , बाल , लम्बाई आदि. इसके अतिरिक्त आपके जींस में कुछ आनुवंशिक बीमारियों  के लक्षण भी आते हैं जिनसे डौक्टर अनुमान लगा सकते हैं कि आपको भी उस बीमारी की सम्भवना है या रिस्क कम या ज्यादा है . इसके अलावा कुछ ऐसे हेल्थ पैटर्न का पता लगा सकते हैं जो आपके स्वास्थ्य से प्रासंगिक हो  .

मैडिकल हिस्ट्री का इस्तेमाल –

कुछ बीमारियों के होने का खतरा या सम्भवना का आकलन

आपके खानपान में बदलाव  कर संभावित वंशानुगत  खतरे को कम करना या दूर करना

उपयुक्त दवा और उपचार कर खतरे को कम करना या दूर करना

डायग्नोसिस के लिए कौन कौन से टेस्ट जरूरी हैं , जिनमें कोई खास जिनेटिक टेस्ट भी हो सकता  है

कितने अंतराल पर आपका स्क्रीनिंग टेस्ट होना चाहिए

आपके परिवार के अन्य सदस्य में बीमारी के खतरे के बारे में अवगत करना

आपके द्वारा कोई बीमारी आपके बच्चों में होने की संभावना का आकलन

फैमिली हिस्ट्री कैसे इकठ्ठा करें-  वैसे अपने मातापिता, भाईबहन का  मेडिकल हिस्ट्री बहुत हद तक पहले से ही पता होता है. इसके अलावा  जब किसी उत्स्व या पर्व त्यौहार के मौके  पर ज्यादा से ज्यादा फैमिली मेंबर्स मिलते हैं तब फैमिली मेडिकल ट्री बनाने का अवसर मिलता है  . बात बात में हल्के फुल्के हंसी मजाक के बीच आप स्वास्थ्य की जानकारी ले सकते हैं. आप इस जानकारी को कलमबद्ध कर लें या कंप्यूटर में सेव कर लें . अगर कोई बायोलौजिकल रिश्ता नहीं है जैसे- गोद लिया बच्चा, तब उसे  गोद लेने वाले माता पिता से ये जानकारी ले लेनी चाहिए . एडौप्शन एजेंसी के पास भी कुछ जानकारी मिल सकती है .

सम्भव है कुछ सदस्य निजी जानकारी देने में कम्फर्टेबल नहीं भी हों,  तब निम्न प्रयास करें –

जानकारी लेने का उद्देश्य बता कर उन्हें भरोसा दिलाएं कि यह सभी के हित में है  .

कोई सदस्य फेस टू  फेस नहीं बताये और  पत्र , फोन या ईमेल से बताना चाहे अपने प्रश्न छोटे और टू द पौइंट पूछें.

अच्छे श्रोता की तरह सुनें और व्यक्तिगत टिप्पणी न करें.

उनकी निजता का सम्मान करें.

अन्य श्रोतों से जानकारी लें – पहले से मौजूद फैमिली ट्री , पूजा पाठ  या पारिवारिक रस्म रिवाज , पुराने पत्र , जन्म या मृत्यु प्रमाण पत्र आदि.

मेडिकल हिस्ट्री में क्या जानकारी रखें – यथासम्भव आपको तीन पीढ़ियों के मेडिकल डिटेल का लिस्ट बना लेना चाहिए  जैसे –  दादा दादी , नाना नानी , माता पिता , चाचा चाची , मामा ममी , भाई बहन , कजन्स , ग्रैंड चिल्ड्रन  . इनके बारे में निम्न जानकारियां लें ( या इनमें ज्यादा से ज्यादा ) –

जन्म की तिथि या  कम से कम जन्म  का वर्ष  , लिंग , नस्ल जाति , मेंटल हेल्थ  , ड्रग या मदिरा सेवन की आदत , हार्ट , डॉयबिटीज , किडनी , स्ट्रोक , कैंसर , प्रेग्नेंसी संबंधित समस्या ( मिसकैरेज , स्टिल बर्थ , बांझपन या नपुंसकता , लाइफ स्टाइल , अगर किसी  सदस्य का निधन हुआ है तो उसकी उम्र और उसका कारण

मेडिकल जानकारी मिलने के बाद क्या करें – अगर आपके परिवार के किसी सदस्य  में कोई संक्रामक रोग टी बी  या अन्य रोग – ह्रदय रोग आदि  की समस्या हो तो आप सतर्क रह सकते हैं , उसके लिए जरूरी टेस्ट और टीका आदि समय रहते ले सकते हैं  . दिल की बीमारी में  लाइफ स्टाइल , खानपान में बदलाव कर खतरा टाल सकते हैं या कम कर सकते हैं .

जब डौक्टर आपसे मेडिकल हिस्ट्री के बारे में पूछें तो उन्हें जरूर  बताएं . अगर डौक्टर कुछ और स्पष्टीकरण मांगे तो उनका यथसम्भव सही उत्तर दें . आप आवश्यकतानुसार रिकौर्ड को अपडेट करते रहें. अपनी संतानों के भी मेडिकल रिकौर्ड बनाएं ताकि वे भी इसे आगे ले जा सकें. फैमिली हिस्ट्री तैयार करने में कुछ समय लगेगा और परिश्रम करना होगा पर यह आपके और आपकी आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है  .

मंगेतर शादी से पहले संबंध बनाना चाहता है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 वर्षीय युवती हूं. 2-3 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मंगेतर एक बड़ी कंपनी में अच्छे ओहदे पर कार्यरत है. मगर इस के बावजूद एक चिंता भी है. दरअसल, मंगेतर शादी से पहले संबंध बनाना चाहता है. इतना ही नहीं वह मोबाइल पर पोर्न वीडियो भी भेजता रहता है और जब भी बात करो तो सैक्स पर बातचीत अधिक करना चाहता है. वीडियो कौल के दौरान वह मुझे न्यूड होने के लिए भी बोलता है. कहीं मेरा मंगेतर किसी मानसिक विकृति का शिकार तो नहीं है? मुझे क्या करना चाहिए, कृपया सलाह दें?

जवाब-

शादी से पहले सैक्स संबंध बनाना कतई उचित नहीं है. अगर आप का मंगेतर आप पर इस के लिए दबाव डाल रहा है, तो उसे साफ मना कर दें. रही बात उस के किसी मानसिक विकृति से ग्रस्त होने की तो यह तभी जाना जा सकता है जब कोई उस के नजदीक रहे.

अगर आप का मंगेतर सिर्फ सैक्स की ही बात करता है, पोर्न फिल्में देखने का शौकीन है, तो जाहिर है यह एक विकृति ही है, जिसे सैक्स ऐडिक्शन कहते हैं.

सैक्स ऐडिक्शन यानी सैक्स की लत एक मानसिक रोग है, जो न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि कैरियर के साथसाथ रिश्तों को भी प्रभावित करता है.

शोधकर्ता मानते हैं कि इस से पीडि़त व्यक्ति सैक्स फैंटेसी में खोया रहता है और उसे सैक्स पर बातें करना, पोर्न मूवी देखना, सैक्स करना अच्छा लगता है.

शोधकर्ताओं का मानना है कि सैक्स के मामले में खुद पर काबू नहीं रखने वाले लोग अपने साथसाथ दूसरों की जिंदगी भी प्रभावित कर देते हैं. यदि ऐसा व्यक्ति खुद को परेशान या तनाव में महसूस करता है तो वह बारबार सैक्स करना चाहता है ताकि उस का तनाव यानी स्ट्रैस कम हो सके.

आप का मंगेतर सैक्स ऐडिक्शन से पीडि़त है, यह तभी जाना जा सकता है जब वह खुद बताए या उस का कोई नजदीकी.

आप जो भी करें सोचसमझ कर और सावधानीपूर्वक. शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं है. अगर आप को मंगेतर के व्यवहार से किसी विकृति का पता लग रहा हो तो आप यह खुद निर्णय लें कि आप को उस के साथ शादी करनी है अथवा नहीं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अंधेरे में घिरी एक और दीवाली

लेखक- शशि अरुण

सर्र… की आवाजें निरंतर गूंज रही थीं. हर ओर से आ रही पटाखों की आवाजों से लगता था जैसे कान के परदे फट जाएंगे. सुबह से सुंदर ने न तो कुछ खाया था और न ही उस का बिस्तर से उठने का ही मन हुआ था. हर पल वह एक अथाह समंदर में गहरे और गहरे पैठता ही गया. यादों का यह समंदर कितना गहरा है, कितनी लहरें उठती हैं इस में कोई थाह नहीं पा रहा था सुंदर.

मगर अब तो लेटे रहना भी असहनीय हो गया था. खिड़कियों से आसमानी गोलों की हरीलाल चमकभरी रोशनी जैसे बरबस ही आंखों में घुस जाना चाहती थी. सुंदर ने खीज कर आंखें बंद कर लीं. खूब कस कर पूरी शक्ति से आंखें बंद रखने की कोशिश करने लगा. मगर दूसरे ही क्षण तेज रोशनी की चमक से पलकें अपनेआप ही खुल जातीं. ठीक उसी तरह जैसे रजनी जबरदस्ती अपनी कोमल उंगलियों से उस की पलकें खोल देती थी.

उन दिनों खीज उठता था सुंदर लेकिन आज मन चाहता है चूम ले उन प्यारी सी कचनार की कलियों को. अनायास ही उस का अपना हाथ होंठों तक आ गया. होंठ एक खास अंदाज में सिकुड़े भी. लेकिन यह क्या. न वह गरमी और न वह सिहरन. घबरा कर सुंदर ने आंखें खोल दीं.

हां, यही तो होता था तब जब वह इस बंदायू में तैनात था. मकान उसे एक पुराना 3 कमेरे का मिला था. यह मकान शहर से बाहर था और थोड़ा हराभरा था. एक दिन सुबह जब वह सो कर उठा तो आदत के अनुसार बरामदे में पड़ी कुरसी पर आ कर बैठ गया. चाय बना कर सामने रखी और मोबाइल देखने लगा. सुंदर ने चाय का कप उठा कर अभी चुसकी ली ही थी कि चौंक गया. घर के लौन में बने पत्थर के फुहारे पर बहते पानी पर एक परी अपने गुलाबी पंख फड़फड़ा रही थी. सुंदर एकटक उसे देखता रह गया. वह हाथ का कप हाथ में ही पकड़े रहता कि तभी घर में सफाई करने आने वाली बाई की आवाज से चौंक गया.

‘‘यहां के पलंबर की भानजी है साहब, कल रात ही पौड़ी से आई है. बचपन से ही इस फुहारे पर नहाती है और अब इतनी बड़ी हो कर भी शरारत से बाज नहीं आती. इस का पिता ही इस फुहारे का पंप ठीक करता है.’’

बाई की आवाज से सिर्फ सुंदर ही नहीं वह परी भी चौंक गई. उस ने पैर हिलाना बंद कर दिया और इधर ही एकटक देखने लगी. सुंदर तो हक्काबक्का ही रह गया. कोई नारी

मूर्ति इतनी सुंदर भी हो सकती है, इस की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. चेहरा गुलाबी रंग की कमीज के गुलाबी रंग से और भी खिल उठा था. पानी से भीगा सारा बदन दिख रहा था. क्या पहाड़ी औरतें भी इतने तीखे नैननक्श वाली होती हैं.

वह अभी सोच ही रहा था कि बाई की आवाज पुन: गूंजी, ‘‘रजनी, अब तो तुम बड़ी हो गई हो. क्या अभी तक फव्वारे में नहाने का शौक नहीं गया,’’ और फिर बाई उस की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘आप चाय पीजिए. मैं इसे आज ही मना कर दूंगी कि फुहारे में न आया करे.’’

‘‘नहीं मालती इस लड़की से कुछ कहने की जरूरत नहीं है,’’ कहते हुए सुंदर ने चाय पीनी शुरू कर दी क्योंकि अब तक परी उड़ चुकी थी और फुहारे में लगता है अब पानी सूख गया वैसा ही सांवला रंग लिए खड़ा था. ‘कितना सुंदर है यह फुहारा जैसे सचमुच किसी पहाड़ का ?ारना हो,’ सुंदर मन ही मन बोला.

इस के बाद के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ने लगे. सुंदर ने मालती से पता लगा लिया कि रजनी की अभी कहीं शादी तय नहीं हुई है. रजनी थी तो शैड्यूल कास्ट पर हमेशा पढ़ने में तेज थी. उस के पिता ने पलंबर का काम सीख लिया था जिस से अच्छी कमाई हो जाती थी. रजनी ही ठेकों के हिसाबकिताब रखती थी. वह रजनी के मातापिता से मिला और उन के आगे रजनी से अपने विवाह का प्रस्ताव रखा.

सुंदर जैसे स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व वाले ऊंची जाति के डाक्टर को अपना दामाद बनाने में रजनी के मातापिता को भला क्या एतराज हो सकता था. सुंदर की मां भी रजनी की सुंदरता देख कर तुरंत उसे अपनी बहू बनाने को तैयार हो गईं. हालांकि उन को उस की जाति खल रही थी. पर सुंदर की मां जवानी में कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ी थीं और जीवनभर उन्होंने स्कूलों में पढ़ाया है जहां हर तरह की लड़कियां आती रही हैं.

कुछ दिन रुक कर पट ब्याह वाली बात हुई. सुंदर रजनी को ब्याह कर अपने घर में ले आया. उस को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई थी. वह रातदिन रजनी के प्यार में ही डूबा रहता. नशा इतना गहरा था कि कुछ सोचने का वक्त ही नहीं मिला. उस के दोस्तों ने उस से वास्ता रखना बंद कर दिया पर इस से उसे कुछ असर नहीं पड़ता था. उसे तो रजनी में ही जिंदगी दिख रही थी.

सुंदर की रविवार को दिन में सोने की आदत थी. अभी शादी को 1 साल भी पूरा नहीं हुआ था. एक दिन अचानक ही सोते समय किसी ने अपनी उंगलियों से सुंदर की पलकें खोल दीं. सुंदर ने हड़बड़ा कर देखा, पास ही रजनी खड़ी मुसकरा रही थी. अभी सुंदर खीजते हुए यह कहना ही चाहता था कि सोने क्यों नहीं देतीं कि रजनी बोल पड़ी, ‘‘मुबारक हो.’’

‘‘क्या कह रही हो. इतनी जल्दी यह कैसे हो गया? अभी तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ सुंदर का चेहरा बु?ा गया.

‘‘तो क्या हर चीज जनाब के सोचने से ही होगी? अरे, मैं तो सोच रही थी आप सुन कर खुशी से उछल पड़ेंगे. मगर आप तो ऐसे डर रहे हैं जैसे कोई बहुत गलत काम हो गया हो. आखिर इस में डरने की क्या बात है? कोई चोरी तो नहीं है. आखिर हम पतिपत्नी हैं.’’

‘‘नहीं रजनी, यह ठीक नहीं. हमें अभी इतनी जल्दी बच्चा नहीं चाहिए,’’ सुंदर ने दृढ़ स्वर में कहा और फिर इस के बाद सबकुछ समाप्त हो गया. रजनी का क्रोध, उस के आंसू कुछ काम न आए. सुंदर ने इंजैक्शन दिलवा कर रजनी को मां बनने से रोक दिया. रजनी खोईखोई सी रहने लगी.

मगर कुछ दिन बाद फिर से सबकुछ सामान्य हो गया. रजनी भी सबकुछ भूल कर पति के सुख में सुखी रहने की कोशिश करने लगी और फिर 3 साल जैसे पलक झपकते गुजर गए.

3 साल बाद जैसे फिर से विस्फोट हो गया.

एक दिन अचानक सुंदर पूछ बैठा, ‘‘क्यों, सबकुछ ठीक है?’’ उसी दिन रजनी 1 महीने बाद अपने मायके से लौटी थी.

रजनी स्वयं ही बताना चाहती थी लेकिन सोच रही थी कि रात को बताएगी. जब उस ने देखा कि सुंदर ने खुद ही पूछ लिया है तो वह एक रहस्यमयी मुसकराहट के साथ बोली, ‘‘हां, सबकुछ ठीक है. इस बार तो जल्दी नहीं है न? अब तो आप को बातें बनने में शर्म नहीं आएगी न?’’

‘‘क्या कह रही हो? क्या फिर गड़बड़ हो गई. इसीलिए मैं मना कर रहा था कि ज्यादा दिन के लिए मत जाओ. खैर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अभी तोे सिर्फ 7 सप्ताह ही हुए हैं. मु?ो तुम्हारी तारीख अच्छी तरह से याद है,’’ सुंदर आश्वस्त स्वर में बोला.

‘‘क्या कह रहे हैं आप? क्या फिर से…’’ रजनी अभी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुंदर बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘हां, अभी नहीं 5 साल से पहले हमें बच्चा नहीं चाहिए.’’

‘‘नहीं… नहीं. अब मैं यह नहीं कर सकूंगी,’’ रजनी डर से कांपने लगी. एक तो पहले ही की तकलीफ याद कर के उस के रोंगटे खड़े हो रहे थे दूसरे हर बार अपनी ममता का गला घोटा जाना वह सह नहीं पा रही थी.

‘‘अरे, तुम अभी बहुत छोटी हो. इतनी जल्दी बच्चे हो गए तो जानती हो क्या होगा? तुम्हारी सारी सुंदरता नष्ट हो जाएगी,’’ सुंदर समझते हुए बोला, ‘‘जिद मत करो. अपनी जाति के खोल से निकलो कि बच्चे पैदा करने में ही सुख है. देखा नहीं क्लीनिक में कितनी सुंदर लड़कियां 30 साल तक ऐनीमिया की शिकार हो जाती हैं.’’

मगर रजनी न मानी. उस ने सास को भी सारी बात बता दी. मां ने बेटे को बहुत

समझाया लेकिन बेटा टस से मस न हुआ और एक दिन अचानक लखनऊ मैडिकल कालेज में जा कर रजनी के गर्भाशय की सफाई करवा दी.

रजनी का मन रो उठा. वह बरदाश्त न कर सकी इस क्रूरता को. वह बिस्तर से लग गई और फिर ठीक होने में महीनों लग गए.

समय हर घाव को भर देता है. रजनी भी पिछला सबकुछ भूल कर पति के साथ सहयोग करने लगी. लेकिन अब उस में न पहले जैसा उत्साह रहा था, न अल्हड़ता और न सुंदरता ही. इधर सुंदर ने भी सरकारी अस्पताल की नौकरी छोड़ कर अपना निजी नर्सिंगहोम खोल लिया था. उस का नर्सिंगहोम जल्द ही खूब चलने लगा क्योंकि उस का असली काम तो अनचाही ममता का गला घोटना था. उस ने अपने यहां कई नर्सें और एक महिला डाक्टर भी रखी हुई थी.

सुंदर का अपने माली को सख्त आदेश था कि नर्सिंगहोम के बगीचे में कोई भी सूखा, मुर?ाया हुआ फूल न रहे. उसे हमेशा ताजे, खिले हुए फूल ही पसंद थे. हां, फूल चाहे जो हों बेला, गुलाब, चमेली, गेंदा बस ताजे होने चाहिए.

यही स्थिति उस के अपने नर्सिंगहोम की भी थी. कोई भी ऐसी नर्स या डाक्टर उसे पसंद नहीं थी जो उस की इच्छा के आगे सिर न ?ाका दे. अत: वह हमेशा ताजे फूल की तलाश में रहता और भयंकर बेकारी के कारण उसे एक से एक नायाब खुशबूदार फूल मिलता रहता.

रजनी को वह लगभग भूल ही चुका था. अपने पौरुष और संपत्ति के नशे में रजनी उसे एक मुर?ाया हुआ फूल ही दिखाई देती. लेकिन वह उसे तोड़ कर नहीं फेंक सकता था क्योंकि वह एक स्थायी बंधन, एक मजबूत जंजीर बन कर उस के गले में पड़ गई थी.

मगर शीघ्र ही इस बंधन से छुटकारा पाने का बहाना मिल गया. शादी को हुए 5 साल पूरे हो चुके थे. रजनी करीब 4 महीनों से अपने मायके में थी. सुंदर के बारबार कहने पर भी नहीं आ रही थी. सुंदर को कुछ खटका हुआ. वह स्वयं जा कर रजनी को लाना चाहता था लेकिन उसे वक्त ही नहीं मिल पा रहा था.

उस ने अपने नौकर को लाने भेजा तो रजनी ने कहलवा दिया कि वह अभी नहीं आ सकेगी. अब तो उस का संदेह विश्वास में बदलने लगा. उस ने फोन किया कि वह गंभीर रूप से बीमार है. यह सुनते ही रजनी के हाथपैर फूल गए. वह घबराई हुई फौरन लखनऊ के लिए चल दी.

रजनी ने आ कर देखा कि सुंदर तो पूरी तरह ठीक है. हां, रजनी को देख कर उस का पारा अवश्य चढ़ गया क्योंकि उसे समझते देर न लगी कि रजनी फिर से मां बनने वाली है. उस की तारीख तो वह हमेशा ही याद रखता था. अत: उसे पक्का विश्वास था कि 4 महीने का गर्भ होगा. इस बार उस ने रजनी से कुछ न पूछा. जब वह रात को सोई तो चुपचाप बेहोश कर के सब काम बड़ी तसल्ली से

पूरा कर के आराम से सो गया. सुबह जब रजनी की आंख खुली तो उस का गला बुरी तरह से सूख रहा था. सारे शरीर में जैसे जान ही नहीं थी. उस ने सिर उठाने की कोशिश की तो उसे लगा जैसे वह भारी बो?ा तले दबी हुई है. अभी वह कुछ सम?ा पाती कि किसी ने उस के मुंह में कोई गरमगरम चीज डाल दी. मुश्किल से निगल कर दोबारा आंख खोल कर देखने की कोशिश की तो एक धुंधला सा चेहरा दिखाई दिया लेकिन कुछ सम?ा न सकी. पता नहीं कितनी देर इसी हालत में पड़ी रही कि किसी ने एक इंजैक्शन लगा कर दोबारा मुंह में गरम चीज डाली. इस बार उसे आभास हुआ कि वह गरम चीज दूध है. हिम्मत कर के उस ने आंखें खोलीं. देखा पास ही नर्स और उस का पति सुंदर खड़ा है.

रजनी कांप गई. अनायास ही हाथ पेट पर गया. तीव्र पीड़ा हुई और वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…’’ इस के बाद फिर बेहोश हो गई.

सुंदर चौंक उठा. इस के बाद की सारी घटनाएं जैसे एक आंधी की तरह आईं. रजनी लगातार 1 महीने तक होश में आ कर चीखती और फिर डर कर बेहोश हो जाती. सुंदर परेशान हो गया. रजनी सूख कर हड्डियों का ढांचा मात्र रह गई थी. मजबूरन सुंदर ने रजनी के मांबाप और भाई को बुलवा लिया. मैडिकल कालेज के डाक्टरों ने एक राय से कहा कि रजनी को कोई भारी मानसिक आघात लगा है.

सुदंर ने सोचा भी नहीं था कि परिणाम इतना भयानक होगा. बड़ी मुशकिल से  रजनी 6 महीने में ठीक हो पाई. लेकिन अब उस ने सुंदर के साथ रहने से साफ मना कर दिया. वह अपने मांबाप के पास चली गई. कुछ दिन बाद सुंदर को अदालत का पत्र मिला कि रजनी तलाक चाहती है और जितनी जल्दी उन का विवाह हुआ था, उतनी ही जल्दी उन का तलाक भी हो गया क्योंकि दोनों ही पक्ष इस के लिए इच्छुक थे.

सुंदर ने रजनी से छुटकारा मिलने पर सांस ली. वह पहले ही इस सूखे, मुरझाए हुए फूल को तोड़ फेंकना चाहता था. अब वह मनमाने तरीके से रहने लगा. मां तो पहले ही मर चुकी थीं. अब पत्नी के भी न रहने से किसी तरह का बंधन नहीं रहा. नित नए स्वाद और नित नए शौक. वह शान से कहता, ‘‘अकेले की जिंदगी कितनी सुखदायी होती है. जब चाहा खाया, जब चाहा सोए, कोई रोकनेटोकने वाला नहीं.’’

जब भी कोई दोबारा शादी करने को कहता तो वह झिड़क देता, ‘‘अरे, छोड़ो भी. जब बाजार में तरहतरह के स्वादिष्ठ व्यंजन सहज ही मिल जाते हैं तो घर में सूखी रोटी खाने के लिए बीवी का ?ामेला करना बेवकूफी के सिवा और क्या है.’’

लोगों ने कुछ दिन तो कहा, फिर धीरेधीरे सब चुप हो गए. इसी तरह 15 वर्ष गुजर गए.

एक जगह रहतेरहते सुंदर का मन भी ऊब गया. अब उस की प्रैक्टिस भी पहले जैसी नहीं रही क्योंकि वह डाक्टर के रूप में काफी बदनाम हो चुका था. अत: तंग आ कर उस ने दिल्ली के एक नर्सिंगहोम में सर्विस कर ली. मकान भी उसे नर्सिंगहोम के पास मिल गया.

आने के दूसरे दिन ही वह कमरे में खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था कि  सामने के घर की बालकनी पर नजर पड़ते ही चौंक गया. सामने रजनी गुलाबी रंग की साड़ी में खड़ी बाल सुखा रही थी. रजनी पहले से कुछ मोटी हो गई थी. फिर भी उस के चेहरे की चमकदमक वैसे ही थी. सुंदर देखता ही रह गया.

अभी वह कुछ सोचता कि 2 प्यारेप्यारे बच्चे दौड़ते हुए आए और रजनी से लिपट गए. सुंदर का मन अजीब सा होने लगा. कितनी प्यारी गुडि़या सी लड़की जैसे नन्हीमुन्नी रजनी ही खड़ी हो और वह लड़का… उस की शक्ल उस लड़की से बिलकुल भिन्न थी. लड़की बिलकुल गोरी थी तो लड़का गेहुएं रंग का था. सुंदर का मन हुआ कि वह जा कर उन बच्चों के साथ खेलने लगे.

अभी वह उन्हें देख ही रहा था कि अंदर से एक लंबा हट्टाकट्टा खूबसूरत सा व्यक्ति स्टैथेस्कोप लिए निकला, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं,’’ कह कर उस ने रजनी को मुसकराते हुए भरपूर नजरों से देखा.

दोनोें बच्चे पिता से लिपट गए. जब पिता चलने को हुआ तो दोनों बच्चे जोरजोर से बोले, ‘‘पापा, जल्दी आना. आज इंडिया गेट चलेंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम सब तैयार रहना और ए मेम साहब, तुम बढि़या सा मेकअप कर के वह नई साड़ी पहनना जो मैं कल लाया था,’’

वह बोला.

‘‘अच्छा बाबा, वही पहनूंगी,’’ रजनी भी चहकती हुई बोली.

सुंदर के दिल पर जैसे आरा चल गया. कितनी खुश है रजनी. कितने प्यार हैं उस के बच्चे और वह कितना हंस रहा था. मैं तो कभी इतना खुल कर नहीं हंस सका. सुंदर कमरे में जा कर धम्म से बिस्तर पर गिर गया. कोई भी तो नहीं है जो उस से जल्दी आने का आग्रह करे. किस से साथ चलने को कहे, सुंदर. किस से बातें करे. उठ कर चलने को हुआ तो ड्रैसिंग टेबल के सामने बाल संवारने लगा.

आधे से ज्यादा बाल पक चुके थे. चेहरे पर भी ?ार्रियां पड़ गई थीं. आंखों के नीचे का भाग कितना ज्यादा फूल गया था. क्या उम्र है अभी. कुल 45 वर्ष ही तो. लेकिन देखने में तो 60 से कम नहीं लगता.

और रजनी वह भी 35 से ज्यादा की हो गई होगी. लेकिन देखने में तो मुश्किल से 25-26 की लगती है. वह तो सम?ाता था बच्चे होने से स्त्री जल्दी बूढ़ी हो जाती है लेकिन यहां तो ज्यादा ही दिखाई दे रहा है. कहां रोक पाया वह उम्र को आगे बढ़ने से बल्कि उस का अपना चेहरा हमेशा तनावग्रस्त ही दिखाई देता है.

सुंदर रोज छिपछिप कर रजनी और उस के परिवार को देखता रहा. उस दिन जब बेचैनी बहुत बढ़ गई तो खिड़की पर जा खड़़ा हुआ. रजनी, उस का पति और दोनों बच्चे फुलझड़ी और पटाखे चला रहे थे.

उन का घर मोमबत्तियों की रोशनी से जगमगा रहा था. पूरा महल्ला ही नहीं पूरा शहर भी रोशनी से नहा गया था. धरती पर चरखी और आसमान में रंगबिरंगे सितारे बिखरे पड़े थे. यदि कहीं सूनापन या अंधेरा था तो सुंदर के घर में. रजनी, उस का पति और बच्चे अंदर जा चुके थे.

अचानक खिलखिलाहट की आवाज से सुंदर चौंक गया. रजनी का पति अपने दोनों बच्चों के साथ उस के फ्लैट की सीढि़यों की ओर वाली बालकनी में मोमबत्तियां लगा रहा था. वह बाहर निकल आया तो वह हंस कर बोला, ‘‘मुझे डाक्टर राकेश कहते हैं. आप के घर में अंधेरा देखा तो सोचा शायद आप कहीं गए हैं या बीमार है. हमारा रिवाज है कि दीवाली पर पड़ोसी के घर में दीया जरूर जलाते हैं. इसीलिए चले आए. क्या वास्तव में आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, आप आए उस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद,’’ कह कर वह कमरे में घुसा ही था कि रजनी की बेटी ने उछल कर स्विच औन कर दिया, जिस से कमरा रोशनी से भर गया. वह खिलखिला कर बोली, ‘‘आप को अंधेरे में रहना अच्छा लगता है क्या? मां कहती

हैं आज के दिन घर में अंधेरा रहना ठीक नहीं होता है.’’

सुंदर कैसे कहता कि उस की जिंदगी का यह अंधेरा उस का अपना ही किया हुआ है. सिर्फ एक दीवाली से क्या होगा, उस का तो सारा जीवन ही अंधेरे में घिरा हुआ है.

ढाई अक्षर प्रेम के : धर्म के नशे में चूर तरन्नुम के साथ क्या हुआ

मुंबई की मल्टीकल्चरल कही जाने वाली किनारा हाउसिंग सोसाइटी आज अचानक कुछ दबंग टाइप लड़कों के चीखनेचिल्लाने से दहल उठी थी. आमतौर पर एकदूसरे की निजी जिंदगी में न झांकने वाले यहां के लोग आज अपनेअपने घर की बालकनियों से ?ांकने पर मजबूर हो गए थे.

लगभग 10-15 लड़कों की भीड़ एक युवक को जिस की उम्र शायद 25 साल रही होगी, को जबरदस्ती उस के कमरे से खींचते हुए बाहर ले आए थे. उस युवक के पीछेपीछे दौड़ती हुई एक लड़की जिस की उम्र भी शायद उस युवक की उम्र जितनी ही रही होगी, भीड़ से उस लड़के को छोड़ देने की याचना कर रही थी.

लड़के को भीड़ से छुड़ाने की गुहार लगाती हुई लड़की की तरफ इशारा करते हुए भीड़ में से एक लड़का जिस का नाम प्रताप था चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘यह लड़की तुम्हें मुसलमान बना देगी. अरे तुम्हारा खतना करवा देगी. हम यह नहीं होने देंगे. अरे इस लड़के की तो मति मारी गई है जो एक मुसलिम लड़की के बहकावे में आ कर अपना धर्म भ्रष्ट करने चला है.’’

‘‘बिल्कुल सही कह रहे हो. यह तो अच्छा हुआ कि हमें वक्त रहते मालूम हो गया और तुम लोगों को खबर कर दी वरना अनर्थ हो जाता,’’ पुनीत ने भी उन सबों की हां में हां मिलाई.

‘‘मैं किस के साथ रहता हूं. किस से शादी करता हूं, यह मेरी मरजी है, मेरी निजी जिंदगी है. धर्म के नाम पर तुम लोगों को दखल देने का हक किस ने दे दिया?’’ वह युवक जिस का नाम जीवन था, उन लड़कों की पकड़ से खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश करते हुए बोला.

‘‘कल को यह लड़की तुम्हें गाय का मांस खिलाएगी, तुम्हारा खतना कराएगी इस से क्या

हमें फर्क नहीं पड़ेगा? प्रताप ने एक जोरदार थप्पड़ जीवन के गाल पर लगाते हुए कहा, ‘‘इस से तो अच्छा है कि मैं तुम्हारी जीवनलीला ही खत्म कर दू,’’ कहते हुए प्रताप ने क्रोध में तलवार निकाल ली.

क्रोध ने इन लड़कों को पागल कर दिया था. क्रोध और आवेश में ये लड़के कुछ भी अनर्गल अपशब्द कहे जा रहे थे.

क्रोध और उन्माद में डूबी भीड़ से शांति की अपेक्षा करना व्यर्थ है. मगर क्रोध और उन्माद की यह अवस्था जब किसी धार्मिक अहंकार के वशीभूत हो तो व्यक्ति और भी विवेकहीन हो जाता है.

प्रताप के हाथ में तलवार देख कर तरन्नुम बुरी तरह से घबरा गई. वह जीवन की जिंदगी की भीख मांगते हुए उन के आगे विनती करने लगती है, ‘‘प्लीज. इसे छोड़ दो… अगर किसी की जान लेने से आप लोगों का सिर ऊंचा होता है तो इस की जगह मेरी जान ले लो, मु?ो मार दो लेकिन इसे छोड़ दो, प्लीज.’’

मगर धर्म के नशे में चूर उन्माद में डूबी भीड़ के पास हृदय कहां होता है जो तरन्नुम की इस करुण पुकार को सुन पाती.

‘‘ऐ लड़की, तुम बीच में मत आओ, मैं लड़कियों पर हाथ नहीं उठाता,’’ कहते हुए प्रताप ने उसे धक्का दे दिया. तरन्नुम कुछ दूर जा गिरी.

तरन्नुम को जमीन पर गिरता देख जीवन गुस्से से कांप उठा. वह भीड़ को धक्का देते हुए तरन्नुम की ओर जाने की कोशिश करता है. लेकिन जीवन को ऐसा करता देख प्रताप और भी गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपनी तलवार जीवन की ओर लक्ष्य कर देता है. तभी दौड़ती हुई तरन्नुम अचानक वहां पहुंच जाती है. वह भीड़ को चीरती हुई जीवन से जा कर लिपट जाती है. जीवन को लक्ष्य कर के उठी तलवार तरन्नुम को लग जाती है और वह जख्मी हो जाती है. बेहोश हो कर जमीन पर गिर जाती है.

उन्मादी लड़कों की भीड़ तरन्नुम को घायल देख कर घबरा जाती है और 1-1 कर के वे लड़के वहां से खिसकने लगते हैं.

‘‘यह क्या अनर्थ हो गया मुझसे? मैं तो सिर्फ…’’ प्रताप जैसे खुद से ही बातें कर रहा था.

‘‘तरन्नुम को घायल देख कर जीवन अपना आपा खो देता है. वह क्रोध में चिल्लाते हुए कहता है, ‘‘जो भी कहना चाहते हैं स्पष्ट कहिए.’’

‘‘अ… अ… मेरा मतलब है हम बस तुम लोगों को ड… डरा…’’ पुनीत हकलाने लगा.

‘‘तुम तो चुप ही रहो पुनीत… यह मु?ो मुसलमान बनाती या नहीं या मेरा खतना करवाती या नहीं लेकिन फिर भी मैं इंसान ही रहता, इंसान ही कहलाता. मगर तुम दोनों खुद को देखो धर्म ने तुम्हें किस तरह जानवर बना दिया है. धिक्कार है तुम लोगों पर, धर्म के नशे ने तुम लोगों को जानवर बना दिया है.’’

जीवन और तरन्नुम मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी मे करीब 2 साल से साथ काम कर रहे थे. साथसाथ काम करते हुए दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी लेकिन इस सामान्य सी दिखने वाली जानपहचान और दोस्ती की मखमली जमीन पर प्रेमरूपी बीज कब अंकुरित हो गया इस का एहसास उन्हें बहुत बाद में हुआ. प्रेम की इस निर्मल धारा में बहते हुए उन दोनों को एक पल के लिए भी कभी यह एहसास न हुआ कि वे दोनों 2 अलगअलग धर्मों के जत्थेबंदी के कैदी हैं. यह धार्मिक जत्थेबंदी अलगअलग धर्मों में शादी करने की इजाजत नहीं देती लेकिन एकदूसरे के लिए प्रेम तो जीवन और तरन्नुम के रोमरोम में समा चुका था और उन के अगाड़  प्रेम के इस प्रवाह के सामने इन धार्मिक गुटबंदियों के कोई माने नहीं थे. उन दोनों के लिए प्रेम ही उन का सब से बड़ा धर्म था.

दोनों अकसर औफिस से छुट्टी के बाद मरीन ड्राइव पर पहुंच जाते, एकदूसरे के बांहों में बांहें डाले हुए घंटों समुद्र की लहरों को निहारा करते, भविष्य के लिए सुनहरे सपने बुनते हुए उन्हें वक्त का भी अंदाजा न होता. तरन्नुम को मरीन ड्राइव के क्वीन नैकलैस कही जाने वाली उस रंगबिरंगी आकृति को देर तक निहारना काफी अच्छा लगता था. रात के अंधेरे में ?िलमिलाती आकृति रंगबिरंगे प्रकाश में छोटेछोटे रंगीन मोतियों सी प्रतीत होती, जिसे देख न जाने क्यों उस के मन को एक सुखद सी अनुभूति होती. जीवन का साथ पा कर उस की जिंदगी भी तो इन्हीं रंगबिरंगे मोतियों सी चमक उठी थी.

 

जब 2 साल पहले जीवन पुणे से मुंबई आया था तो उसे मुंबई जैसे शहर में अपने लिए

फ्लैट ढूंढ़ने में काफी मुश्किलें हुई थीं. पुणे में तो उस ने अपने चाचा के घर रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली थी. जौब लगने के बाद वह मुंबई आ गया था. लेकिन मुंबई जैसी जगह पर अपने रहने के लिए फ्लैट ढूंढ़ पाना उस के लिए टेड़ी खीर साबित हो रहा था. अत: कुछ दिनों तक तो वह होटल के कमरे में रहा. लेकिन होटल में रहना जब उस की जेब पर भारी पड़ने लगा तब उसी के औफिस में साथ काम करने वाली तरन्नुम ने जब उस की इस समस्या को जाना तो फौरन अपनी फूफी का फ्लैट उसे किराए पर दिलवा दिया. तरन्नुम द्वारा उस के लिए की गई यह निस्वार्थ सहायता उन दोनों की दोस्ती की आधारशिला बनी थी. माहिम में तरन्नुम की फूफी का वह फ्लैट खाली पड़ा था.

‘‘जानते हो जीवन मेरी फूफी जान मु?ो अपनी सगी औलाद से भी बढ़ कर मानती हैं. शादी के कुछ ही साल बाद जब अब्बू मेरी अम्मी को छोड़ कर सऊदी अरब चले गए थे तो वह मेरी फूफी जान ही थीं, जिस ने मु?ो और मेरी अम्मी को सहारा दिया था,’’ बातोंबातों में ही एक दिन तरन्नुम ने जीवन को यह बात बताई, ‘‘अब्बू के जाने के बाद से ही अम्मी काफी बीमार रहने लगी थीं. उन की बीमारी की खबर सुन कर भी अब्बू एक बार भी उन्हें देखने नहीं आए और फिर एक दिन अम्मी हमें हमेशा के लिए अलविदा कह गईं. उन के इंतकाल के बाद मेरी फूफी जान ने ही मेरी परवरिश की, उन की अपनी कोई औलाद नहीं है. फूफी को तो मरे हुए कितने साल हो गए,  मु?ो तो उन का चेहरा भी याद नहीं. मैं और मेरी फूफी जान, यही मेरा छोटा सा संसार और मेरा छोटे से संसार में जीवन आप का स्वागत है,’’ यह कह कर तरन्नुम खिलखिला पड़ी और अपनी हंसी के पीछे अपने बड़े गम को भी छिपा लिया.

तब जीवन चुपचाप तरन्नुम के चेहरे को देखता रह गया और उस के मस्तिष्क में न जाने क्यों किसी शायर की ये पंक्तियां गूंज उठीं, ‘‘गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां जिंदगी को उस मुकाम पर लाता चला गया. हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.’’

ऐसी ही है उस की तरन्नुम बिंदास, जिंदादिल, बड़े से बड़े गम को भी हंसी में उड़ा देने वाली. उस की आवाज में तो ऐसी जादूगरी कि किसी भी सुनने वाले को सम्मोहित कर दे. तरन्नुम के इसी बिंदास अंदाज और जिंदादिली ने जीवन को उस का दीवाना बना दिया था. धीरेधीरे जीवन उस के प्रेम में गिरफ्तार होता चला गया. वह रातदिन, उठतेबैठते, सोतेजागते, बस तरन्नुम के खयालों में ही खोया रहता.

 

ठीक यही हाल तरन्नुम का भी था. तरन्नुम के

लिए जीवन उस के सपनों के राजकुमार से भी कहीं ज्यादा बढ़ कर था. एक जीवनसाथी को ले कर उस ने अपने दिलोदिमाग में जो रेखाएं खींची थीं जीवन बिलकुल उन के अनुकूल था. जीवन की स्पष्टवादिता उस की ईमानदारी तरन्नुम को अपनी ओर खींचने के लिए काफी थी और एक दिन दोनों ने अपने दिल की बात एकदूसरे से कह दी. एकदूसरे के प्रति प्यार का इजहार किया, साथ जीनेमरने के वादे किए.

‘‘तरन्नुम, महीनाभर पहले हम ने शादी के लिए कोर्ट में जो अर्जी दी थी, कोर्ट ने हमारी शादी की डेट दे दी है. हमें इसी हफ्ते बुधवार को मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाना है,’’ तरन्नुम को यह खबर सुनाते हुए जीवन की खुशी का कोई ठिकाना न था.

‘‘हमारे सपने जो हम दोनों ने साथ मिल

कर देखे थे वे सच होने जा रहे हैं. सच में मैं

बहुत खुश हूं. हमारी अपनी छोटी सी दुनिया

होगी. ऐसी दुनिया जहां इस ?ाठमूठ के धर्म, जातपात, रीतिरिवाजों के लिए कोई जगह नहीं होगी. कोई दीवाली नहीं, कोई ईद नहीं, कोई जातधर्म का दिखावा नहीं, हम खुशियां मनाएंगे लेकिन अपनी तरह से,’’ तरन्नुम ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘हां सही कह रही हो हम ईददीवाली की जगह सिर्फ राष्ट्रीय त्योहार मनाएंगे और अपने बच्चों के नाम भी कुछ ऐसे रखेंगे जिन में उन के हिंदू या मुसलिम होने की पहचान न छिपी हो, उन के नाम के साथ किसी भी धर्म की पहचान न जुड़ी हो,’’ जीवन ने भी खुश होते हुए तरन्नुम के इन खयालातों का समर्थन किया.

आज वे दोनों आने वाली इस मुसीबत से बेखबर अपनी शादी के सपने को साकार करने की तैयारी में सुबह से ही जुटे हुए थे. कोर्ट ने उन्हें आज का ही दिन दिया था. वे दोनों मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस जाने के लिए उत्साहित थे. खुशी ने तो जैसे उन के रोमरोम को पुलकित कर दिया था.

तरन्नुम ने तो अपनी दोनों सहेलियां रवीना और फिजा को सुबह से न जाने कितनी बार कौल कर के उन्हें रजिस्ट्रार के औफिस वक्त पर पहुंच जाने की याद दिलाई थी.

जीवन काफी देर से किसी को कौल करने की कोशिश कर रहा था लेकिन जिसे वह फोन लगा रहा था उस का मोबाइल शायद स्विच्ड औफ आ रहा था, जिस के कारण वह थोड़ा चिंतित हो उठा था, ‘‘पुनीत का डाउट है, कब से फोन ट्राई कर रहा हूं, स्विच्ड औफ बता रहा है, न जाने कल से कहां गायब है,’’ जीवन ने अपनी चिंता व्यक्त की, ‘‘अगर वह नहीं पहुंच सका तो विटनेस के लिए तीसरा व्यक्ति इतनी जल्दी कहां से लाएंगे?’’

‘‘तुम परेशान मत हो मैं अपनी फूफी जान को कह दूंगी विटनैस के लिए वे आ जाएंगी.’’

‘‘मगर हां तुम उन्हें हमारे यहां से निकलने के 1 घंटा पहले बुला लेना, उन्हें इतना वक्त तो लग ही जाएगा यहां आने में.’’

‘‘चिंता मत करो अभी तो सुबह के सिर्फ 9 ही बजे हैं, हमारे पास काफी वक्त है,’’ तरन्नुम अपनी ड्रैस की मैचिंग ज्वैलरी सैट करने में व्यस्त हो गई.

‘‘इतनी तेजतेज डोरबैल कौन बजा रहा है?’’

‘‘मैं देखती हूं,’’ तरन्नुम दरवाजा खोलने चली.

‘‘नहीं तुम रहने दो, मैं देखता हूं, न जाने कौन है जिसे सब्र नहीं.’’

जीवन के दरवाजा खोलते ही लड़कों का एक ?ांड दनदनाता हुआ घर के अंदर घुस आया.

‘‘पुनीत, प्रताप भाई आप दोनों?’’ भीड़ के साथ खड़े उन दोनों लड़कों को देख कर जीवन चौंक उठा.

‘‘हां हम दोनों, तुम जो करने जा रहे हो उसे रोकने आए है. यह तो अच्छा हुआ कि पुनीत ने हमें वक्त पर आ कर सब कुछ बता दिया. अगर सीधेसीधे हम लोगों के साथ नहीं चलोगे तो जबरदस्ती यहां से उठा कर ले जाएंगे भले तुम्हारी टांगें ही क्यों न तोड़नी पड़ें,’’ प्रताप ने क्रोध में फुफकारते हुए कहा.

‘‘किसी से शादी करना अपराध है क्या जो आप इसे रोकने के लिए अपने दलबल के साथ आ गए. आप अपने बजरंग दल की धौंस कहीं और दिखाइए. मैं आप लोगों से डरने वाला नहीं.’’

‘‘लगता है ऐसे नहीं मानेगा, चलो आ

जाओ सब,’’ और तभी अचानक जय श्रीराम के नारे से पूरी सोसाइटी गूंजने और देखते ही देखते लड़कों का वह ?ांड जीवन को जबरदस्ती उस के घर से खींचता हुआ बाहर ले गया. उन के पीछेपीछे बदहवास सी भागती हुई तरन्नुम भी बाहर आ गई.

धर्म के नशे में चूर, जो लड़के कुछ देर पहले दहाड़ रहे थे, तरन्नुम को जख्मी और

बेहोश हो कर जमीन पर गिरता देख उन की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. सारे लड़के वहां से धीरेधीरे खिसक लिए, रह गए सिर्फ पुनीत और प्रताप जो अब अपने कृत्य पर पश्चाताप कर रहे थे.

प्रताप के मन में जीवन द्वारा कही गई ये बाते कि धर्म के नशे ने उसे जानवर बना दिया है, रहरह कर उस के मन को झकझोर रही थीं. आज अगर तरन्नुम बीच में नहीं आई होती तो उस के हाथों कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. तरन्नुम के बीच में आ जाने से उस के हाथों से तलवार की पकड़ ढीली पड़ गई. जख्म ज्यादा गहरा नहीं था, घबराहट के कारण तरन्नुम बेहोश हो गई थी. डाक्टर ने हलकी मरहमपट्टी करने के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया.

प्रताप और पुनीत अपने किए पर बेहद शर्मिंदा थे. दोनों बारबार हाथ जोड़ कर जीवन और तरन्नुम से माफी मांग रहे थे.

कुछ घंटों बाद जब जीवन और तरन्नुम मैरिज रजिस्ट्रार औफिस जाने के लिए निकले तो रवीना और फिजा के साथसाथ प्रताप और पुनीत भी विटनैस के लिए वहां पहुंच गए और वापस आ कर नए जोड़े के स्वागत के लिए पूरे घर की सजावट फूलों से इन्हीं दोनों ने की.

यह बात सच है प्रेम से बढ़ कर कुछ भी नहीं. संसार में जितने भी धर्म हैं उन सब का उद्देश्य किसी न किसी स्वार्थसिद्धि के लिए होता है किंतु प्रेम कभी किसी स्वार्थ की सिद्धि के लिए नहीं होता. मात्र प्रेम ही एक ऐसी चीज है जहां स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं. संसार में जब तक प्रेम कायम रहेगा, जब तक इस का विस्तार होता रहेगा और तब तक मानव का जीवन भी सुख और शांति से परिपूर्ण रहेगा.

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