लेखक- शशि अरुण
सर्र… की आवाजें निरंतर गूंज रही थीं. हर ओर से आ रही पटाखों की आवाजों से लगता था जैसे कान के परदे फट जाएंगे. सुबह से सुंदर ने न तो कुछ खाया था और न ही उस का बिस्तर से उठने का ही मन हुआ था. हर पल वह एक अथाह समंदर में गहरे और गहरे पैठता ही गया. यादों का यह समंदर कितना गहरा है, कितनी लहरें उठती हैं इस में कोई थाह नहीं पा रहा था सुंदर.
मगर अब तो लेटे रहना भी असहनीय हो गया था. खिड़कियों से आसमानी गोलों की हरीलाल चमकभरी रोशनी जैसे बरबस ही आंखों में घुस जाना चाहती थी. सुंदर ने खीज कर आंखें बंद कर लीं. खूब कस कर पूरी शक्ति से आंखें बंद रखने की कोशिश करने लगा. मगर दूसरे ही क्षण तेज रोशनी की चमक से पलकें अपनेआप ही खुल जातीं. ठीक उसी तरह जैसे रजनी जबरदस्ती अपनी कोमल उंगलियों से उस की पलकें खोल देती थी.
उन दिनों खीज उठता था सुंदर लेकिन आज मन चाहता है चूम ले उन प्यारी सी कचनार की कलियों को. अनायास ही उस का अपना हाथ होंठों तक आ गया. होंठ एक खास अंदाज में सिकुड़े भी. लेकिन यह क्या. न वह गरमी और न वह सिहरन. घबरा कर सुंदर ने आंखें खोल दीं.
हां, यही तो होता था तब जब वह इस बंदायू में तैनात था. मकान उसे एक पुराना 3 कमेरे का मिला था. यह मकान शहर से बाहर था और थोड़ा हराभरा था. एक दिन सुबह जब वह सो कर उठा तो आदत के अनुसार बरामदे में पड़ी कुरसी पर आ कर बैठ गया. चाय बना कर सामने रखी और मोबाइल देखने लगा. सुंदर ने चाय का कप उठा कर अभी चुसकी ली ही थी कि चौंक गया. घर के लौन में बने पत्थर के फुहारे पर बहते पानी पर एक परी अपने गुलाबी पंख फड़फड़ा रही थी. सुंदर एकटक उसे देखता रह गया. वह हाथ का कप हाथ में ही पकड़े रहता कि तभी घर में सफाई करने आने वाली बाई की आवाज से चौंक गया.
‘‘यहां के पलंबर की भानजी है साहब, कल रात ही पौड़ी से आई है. बचपन से ही इस फुहारे पर नहाती है और अब इतनी बड़ी हो कर भी शरारत से बाज नहीं आती. इस का पिता ही इस फुहारे का पंप ठीक करता है.’’
बाई की आवाज से सिर्फ सुंदर ही नहीं वह परी भी चौंक गई. उस ने पैर हिलाना बंद कर दिया और इधर ही एकटक देखने लगी. सुंदर तो हक्काबक्का ही रह गया. कोई नारी
मूर्ति इतनी सुंदर भी हो सकती है, इस की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. चेहरा गुलाबी रंग की कमीज के गुलाबी रंग से और भी खिल उठा था. पानी से भीगा सारा बदन दिख रहा था. क्या पहाड़ी औरतें भी इतने तीखे नैननक्श वाली होती हैं.
वह अभी सोच ही रहा था कि बाई की आवाज पुन: गूंजी, ‘‘रजनी, अब तो तुम बड़ी हो गई हो. क्या अभी तक फव्वारे में नहाने का शौक नहीं गया,’’ और फिर बाई उस की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘आप चाय पीजिए. मैं इसे आज ही मना कर दूंगी कि फुहारे में न आया करे.’’
‘‘नहीं मालती इस लड़की से कुछ कहने की जरूरत नहीं है,’’ कहते हुए सुंदर ने चाय पीनी शुरू कर दी क्योंकि अब तक परी उड़ चुकी थी और फुहारे में लगता है अब पानी सूख गया वैसा ही सांवला रंग लिए खड़ा था. ‘कितना सुंदर है यह फुहारा जैसे सचमुच किसी पहाड़ का ?ारना हो,’ सुंदर मन ही मन बोला.
इस के बाद के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ने लगे. सुंदर ने मालती से पता लगा लिया कि रजनी की अभी कहीं शादी तय नहीं हुई है. रजनी थी तो शैड्यूल कास्ट पर हमेशा पढ़ने में तेज थी. उस के पिता ने पलंबर का काम सीख लिया था जिस से अच्छी कमाई हो जाती थी. रजनी ही ठेकों के हिसाबकिताब रखती थी. वह रजनी के मातापिता से मिला और उन के आगे रजनी से अपने विवाह का प्रस्ताव रखा.
सुंदर जैसे स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व वाले ऊंची जाति के डाक्टर को अपना दामाद बनाने में रजनी के मातापिता को भला क्या एतराज हो सकता था. सुंदर की मां भी रजनी की सुंदरता देख कर तुरंत उसे अपनी बहू बनाने को तैयार हो गईं. हालांकि उन को उस की जाति खल रही थी. पर सुंदर की मां जवानी में कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ी थीं और जीवनभर उन्होंने स्कूलों में पढ़ाया है जहां हर तरह की लड़कियां आती रही हैं.
कुछ दिन रुक कर पट ब्याह वाली बात हुई. सुंदर रजनी को ब्याह कर अपने घर में ले आया. उस को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई थी. वह रातदिन रजनी के प्यार में ही डूबा रहता. नशा इतना गहरा था कि कुछ सोचने का वक्त ही नहीं मिला. उस के दोस्तों ने उस से वास्ता रखना बंद कर दिया पर इस से उसे कुछ असर नहीं पड़ता था. उसे तो रजनी में ही जिंदगी दिख रही थी.
सुंदर की रविवार को दिन में सोने की आदत थी. अभी शादी को 1 साल भी पूरा नहीं हुआ था. एक दिन अचानक ही सोते समय किसी ने अपनी उंगलियों से सुंदर की पलकें खोल दीं. सुंदर ने हड़बड़ा कर देखा, पास ही रजनी खड़ी मुसकरा रही थी. अभी सुंदर खीजते हुए यह कहना ही चाहता था कि सोने क्यों नहीं देतीं कि रजनी बोल पड़ी, ‘‘मुबारक हो.’’
‘‘क्या कह रही हो. इतनी जल्दी यह कैसे हो गया? अभी तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ सुंदर का चेहरा बु?ा गया.
‘‘तो क्या हर चीज जनाब के सोचने से ही होगी? अरे, मैं तो सोच रही थी आप सुन कर खुशी से उछल पड़ेंगे. मगर आप तो ऐसे डर रहे हैं जैसे कोई बहुत गलत काम हो गया हो. आखिर इस में डरने की क्या बात है? कोई चोरी तो नहीं है. आखिर हम पतिपत्नी हैं.’’
‘‘नहीं रजनी, यह ठीक नहीं. हमें अभी इतनी जल्दी बच्चा नहीं चाहिए,’’ सुंदर ने दृढ़ स्वर में कहा और फिर इस के बाद सबकुछ समाप्त हो गया. रजनी का क्रोध, उस के आंसू कुछ काम न आए. सुंदर ने इंजैक्शन दिलवा कर रजनी को मां बनने से रोक दिया. रजनी खोईखोई सी रहने लगी.
मगर कुछ दिन बाद फिर से सबकुछ सामान्य हो गया. रजनी भी सबकुछ भूल कर पति के सुख में सुखी रहने की कोशिश करने लगी और फिर 3 साल जैसे पलक झपकते गुजर गए.
3 साल बाद जैसे फिर से विस्फोट हो गया.
एक दिन अचानक सुंदर पूछ बैठा, ‘‘क्यों, सबकुछ ठीक है?’’ उसी दिन रजनी 1 महीने बाद अपने मायके से लौटी थी.
रजनी स्वयं ही बताना चाहती थी लेकिन सोच रही थी कि रात को बताएगी. जब उस ने देखा कि सुंदर ने खुद ही पूछ लिया है तो वह एक रहस्यमयी मुसकराहट के साथ बोली, ‘‘हां, सबकुछ ठीक है. इस बार तो जल्दी नहीं है न? अब तो आप को बातें बनने में शर्म नहीं आएगी न?’’
‘‘क्या कह रही हो? क्या फिर गड़बड़ हो गई. इसीलिए मैं मना कर रहा था कि ज्यादा दिन के लिए मत जाओ. खैर, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अभी तोे सिर्फ 7 सप्ताह ही हुए हैं. मु?ो तुम्हारी तारीख अच्छी तरह से याद है,’’ सुंदर आश्वस्त स्वर में बोला.
‘‘क्या कह रहे हैं आप? क्या फिर से…’’ रजनी अभी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुंदर बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘हां, अभी नहीं 5 साल से पहले हमें बच्चा नहीं चाहिए.’’
‘‘नहीं… नहीं. अब मैं यह नहीं कर सकूंगी,’’ रजनी डर से कांपने लगी. एक तो पहले ही की तकलीफ याद कर के उस के रोंगटे खड़े हो रहे थे दूसरे हर बार अपनी ममता का गला घोटा जाना वह सह नहीं पा रही थी.
‘‘अरे, तुम अभी बहुत छोटी हो. इतनी जल्दी बच्चे हो गए तो जानती हो क्या होगा? तुम्हारी सारी सुंदरता नष्ट हो जाएगी,’’ सुंदर समझते हुए बोला, ‘‘जिद मत करो. अपनी जाति के खोल से निकलो कि बच्चे पैदा करने में ही सुख है. देखा नहीं क्लीनिक में कितनी सुंदर लड़कियां 30 साल तक ऐनीमिया की शिकार हो जाती हैं.’’
मगर रजनी न मानी. उस ने सास को भी सारी बात बता दी. मां ने बेटे को बहुत
समझाया लेकिन बेटा टस से मस न हुआ और एक दिन अचानक लखनऊ मैडिकल कालेज में जा कर रजनी के गर्भाशय की सफाई करवा दी.
रजनी का मन रो उठा. वह बरदाश्त न कर सकी इस क्रूरता को. वह बिस्तर से लग गई और फिर ठीक होने में महीनों लग गए.
समय हर घाव को भर देता है. रजनी भी पिछला सबकुछ भूल कर पति के साथ सहयोग करने लगी. लेकिन अब उस में न पहले जैसा उत्साह रहा था, न अल्हड़ता और न सुंदरता ही. इधर सुंदर ने भी सरकारी अस्पताल की नौकरी छोड़ कर अपना निजी नर्सिंगहोम खोल लिया था. उस का नर्सिंगहोम जल्द ही खूब चलने लगा क्योंकि उस का असली काम तो अनचाही ममता का गला घोटना था. उस ने अपने यहां कई नर्सें और एक महिला डाक्टर भी रखी हुई थी.
सुंदर का अपने माली को सख्त आदेश था कि नर्सिंगहोम के बगीचे में कोई भी सूखा, मुर?ाया हुआ फूल न रहे. उसे हमेशा ताजे, खिले हुए फूल ही पसंद थे. हां, फूल चाहे जो हों बेला, गुलाब, चमेली, गेंदा बस ताजे होने चाहिए.
यही स्थिति उस के अपने नर्सिंगहोम की भी थी. कोई भी ऐसी नर्स या डाक्टर उसे पसंद नहीं थी जो उस की इच्छा के आगे सिर न ?ाका दे. अत: वह हमेशा ताजे फूल की तलाश में रहता और भयंकर बेकारी के कारण उसे एक से एक नायाब खुशबूदार फूल मिलता रहता.
रजनी को वह लगभग भूल ही चुका था. अपने पौरुष और संपत्ति के नशे में रजनी उसे एक मुर?ाया हुआ फूल ही दिखाई देती. लेकिन वह उसे तोड़ कर नहीं फेंक सकता था क्योंकि वह एक स्थायी बंधन, एक मजबूत जंजीर बन कर उस के गले में पड़ गई थी.
मगर शीघ्र ही इस बंधन से छुटकारा पाने का बहाना मिल गया. शादी को हुए 5 साल पूरे हो चुके थे. रजनी करीब 4 महीनों से अपने मायके में थी. सुंदर के बारबार कहने पर भी नहीं आ रही थी. सुंदर को कुछ खटका हुआ. वह स्वयं जा कर रजनी को लाना चाहता था लेकिन उसे वक्त ही नहीं मिल पा रहा था.
उस ने अपने नौकर को लाने भेजा तो रजनी ने कहलवा दिया कि वह अभी नहीं आ सकेगी. अब तो उस का संदेह विश्वास में बदलने लगा. उस ने फोन किया कि वह गंभीर रूप से बीमार है. यह सुनते ही रजनी के हाथपैर फूल गए. वह घबराई हुई फौरन लखनऊ के लिए चल दी.
रजनी ने आ कर देखा कि सुंदर तो पूरी तरह ठीक है. हां, रजनी को देख कर उस का पारा अवश्य चढ़ गया क्योंकि उसे समझते देर न लगी कि रजनी फिर से मां बनने वाली है. उस की तारीख तो वह हमेशा ही याद रखता था. अत: उसे पक्का विश्वास था कि 4 महीने का गर्भ होगा. इस बार उस ने रजनी से कुछ न पूछा. जब वह रात को सोई तो चुपचाप बेहोश कर के सब काम बड़ी तसल्ली से
पूरा कर के आराम से सो गया. सुबह जब रजनी की आंख खुली तो उस का गला बुरी तरह से सूख रहा था. सारे शरीर में जैसे जान ही नहीं थी. उस ने सिर उठाने की कोशिश की तो उसे लगा जैसे वह भारी बो?ा तले दबी हुई है. अभी वह कुछ सम?ा पाती कि किसी ने उस के मुंह में कोई गरमगरम चीज डाल दी. मुश्किल से निगल कर दोबारा आंख खोल कर देखने की कोशिश की तो एक धुंधला सा चेहरा दिखाई दिया लेकिन कुछ सम?ा न सकी. पता नहीं कितनी देर इसी हालत में पड़ी रही कि किसी ने एक इंजैक्शन लगा कर दोबारा मुंह में गरम चीज डाली. इस बार उसे आभास हुआ कि वह गरम चीज दूध है. हिम्मत कर के उस ने आंखें खोलीं. देखा पास ही नर्स और उस का पति सुंदर खड़ा है.
रजनी कांप गई. अनायास ही हाथ पेट पर गया. तीव्र पीड़ा हुई और वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…’’ इस के बाद फिर बेहोश हो गई.
सुंदर चौंक उठा. इस के बाद की सारी घटनाएं जैसे एक आंधी की तरह आईं. रजनी लगातार 1 महीने तक होश में आ कर चीखती और फिर डर कर बेहोश हो जाती. सुंदर परेशान हो गया. रजनी सूख कर हड्डियों का ढांचा मात्र रह गई थी. मजबूरन सुंदर ने रजनी के मांबाप और भाई को बुलवा लिया. मैडिकल कालेज के डाक्टरों ने एक राय से कहा कि रजनी को कोई भारी मानसिक आघात लगा है.
सुदंर ने सोचा भी नहीं था कि परिणाम इतना भयानक होगा. बड़ी मुशकिल से रजनी 6 महीने में ठीक हो पाई. लेकिन अब उस ने सुंदर के साथ रहने से साफ मना कर दिया. वह अपने मांबाप के पास चली गई. कुछ दिन बाद सुंदर को अदालत का पत्र मिला कि रजनी तलाक चाहती है और जितनी जल्दी उन का विवाह हुआ था, उतनी ही जल्दी उन का तलाक भी हो गया क्योंकि दोनों ही पक्ष इस के लिए इच्छुक थे.
सुंदर ने रजनी से छुटकारा मिलने पर सांस ली. वह पहले ही इस सूखे, मुरझाए हुए फूल को तोड़ फेंकना चाहता था. अब वह मनमाने तरीके से रहने लगा. मां तो पहले ही मर चुकी थीं. अब पत्नी के भी न रहने से किसी तरह का बंधन नहीं रहा. नित नए स्वाद और नित नए शौक. वह शान से कहता, ‘‘अकेले की जिंदगी कितनी सुखदायी होती है. जब चाहा खाया, जब चाहा सोए, कोई रोकनेटोकने वाला नहीं.’’
जब भी कोई दोबारा शादी करने को कहता तो वह झिड़क देता, ‘‘अरे, छोड़ो भी. जब बाजार में तरहतरह के स्वादिष्ठ व्यंजन सहज ही मिल जाते हैं तो घर में सूखी रोटी खाने के लिए बीवी का ?ामेला करना बेवकूफी के सिवा और क्या है.’’
लोगों ने कुछ दिन तो कहा, फिर धीरेधीरे सब चुप हो गए. इसी तरह 15 वर्ष गुजर गए.
एक जगह रहतेरहते सुंदर का मन भी ऊब गया. अब उस की प्रैक्टिस भी पहले जैसी नहीं रही क्योंकि वह डाक्टर के रूप में काफी बदनाम हो चुका था. अत: तंग आ कर उस ने दिल्ली के एक नर्सिंगहोम में सर्विस कर ली. मकान भी उसे नर्सिंगहोम के पास मिल गया.
आने के दूसरे दिन ही वह कमरे में खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था कि सामने के घर की बालकनी पर नजर पड़ते ही चौंक गया. सामने रजनी गुलाबी रंग की साड़ी में खड़ी बाल सुखा रही थी. रजनी पहले से कुछ मोटी हो गई थी. फिर भी उस के चेहरे की चमकदमक वैसे ही थी. सुंदर देखता ही रह गया.
अभी वह कुछ सोचता कि 2 प्यारेप्यारे बच्चे दौड़ते हुए आए और रजनी से लिपट गए. सुंदर का मन अजीब सा होने लगा. कितनी प्यारी गुडि़या सी लड़की जैसे नन्हीमुन्नी रजनी ही खड़ी हो और वह लड़का… उस की शक्ल उस लड़की से बिलकुल भिन्न थी. लड़की बिलकुल गोरी थी तो लड़का गेहुएं रंग का था. सुंदर का मन हुआ कि वह जा कर उन बच्चों के साथ खेलने लगे.
अभी वह उन्हें देख ही रहा था कि अंदर से एक लंबा हट्टाकट्टा खूबसूरत सा व्यक्ति स्टैथेस्कोप लिए निकला, ‘‘अच्छा, मैं चलता हूं,’’ कह कर उस ने रजनी को मुसकराते हुए भरपूर नजरों से देखा.
दोनोें बच्चे पिता से लिपट गए. जब पिता चलने को हुआ तो दोनों बच्चे जोरजोर से बोले, ‘‘पापा, जल्दी आना. आज इंडिया गेट चलेंगे.’’
‘‘ठीक है, तुम सब तैयार रहना और ए मेम साहब, तुम बढि़या सा मेकअप कर के वह नई साड़ी पहनना जो मैं कल लाया था,’’
वह बोला.
‘‘अच्छा बाबा, वही पहनूंगी,’’ रजनी भी चहकती हुई बोली.
सुंदर के दिल पर जैसे आरा चल गया. कितनी खुश है रजनी. कितने प्यार हैं उस के बच्चे और वह कितना हंस रहा था. मैं तो कभी इतना खुल कर नहीं हंस सका. सुंदर कमरे में जा कर धम्म से बिस्तर पर गिर गया. कोई भी तो नहीं है जो उस से जल्दी आने का आग्रह करे. किस से साथ चलने को कहे, सुंदर. किस से बातें करे. उठ कर चलने को हुआ तो ड्रैसिंग टेबल के सामने बाल संवारने लगा.
आधे से ज्यादा बाल पक चुके थे. चेहरे पर भी ?ार्रियां पड़ गई थीं. आंखों के नीचे का भाग कितना ज्यादा फूल गया था. क्या उम्र है अभी. कुल 45 वर्ष ही तो. लेकिन देखने में तो 60 से कम नहीं लगता.
और रजनी वह भी 35 से ज्यादा की हो गई होगी. लेकिन देखने में तो मुश्किल से 25-26 की लगती है. वह तो सम?ाता था बच्चे होने से स्त्री जल्दी बूढ़ी हो जाती है लेकिन यहां तो ज्यादा ही दिखाई दे रहा है. कहां रोक पाया वह उम्र को आगे बढ़ने से बल्कि उस का अपना चेहरा हमेशा तनावग्रस्त ही दिखाई देता है.
सुंदर रोज छिपछिप कर रजनी और उस के परिवार को देखता रहा. उस दिन जब बेचैनी बहुत बढ़ गई तो खिड़की पर जा खड़़ा हुआ. रजनी, उस का पति और दोनों बच्चे फुलझड़ी और पटाखे चला रहे थे.
उन का घर मोमबत्तियों की रोशनी से जगमगा रहा था. पूरा महल्ला ही नहीं पूरा शहर भी रोशनी से नहा गया था. धरती पर चरखी और आसमान में रंगबिरंगे सितारे बिखरे पड़े थे. यदि कहीं सूनापन या अंधेरा था तो सुंदर के घर में. रजनी, उस का पति और बच्चे अंदर जा चुके थे.
अचानक खिलखिलाहट की आवाज से सुंदर चौंक गया. रजनी का पति अपने दोनों बच्चों के साथ उस के फ्लैट की सीढि़यों की ओर वाली बालकनी में मोमबत्तियां लगा रहा था. वह बाहर निकल आया तो वह हंस कर बोला, ‘‘मुझे डाक्टर राकेश कहते हैं. आप के घर में अंधेरा देखा तो सोचा शायद आप कहीं गए हैं या बीमार है. हमारा रिवाज है कि दीवाली पर पड़ोसी के घर में दीया जरूर जलाते हैं. इसीलिए चले आए. क्या वास्तव में आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’
‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, आप आए उस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद,’’ कह कर वह कमरे में घुसा ही था कि रजनी की बेटी ने उछल कर स्विच औन कर दिया, जिस से कमरा रोशनी से भर गया. वह खिलखिला कर बोली, ‘‘आप को अंधेरे में रहना अच्छा लगता है क्या? मां कहती
हैं आज के दिन घर में अंधेरा रहना ठीक नहीं होता है.’’
सुंदर कैसे कहता कि उस की जिंदगी का यह अंधेरा उस का अपना ही किया हुआ है. सिर्फ एक दीवाली से क्या होगा, उस का तो सारा जीवन ही अंधेरे में घिरा हुआ है.