भारती सिंह करती थी पार्टीड्रिंक, 7 हफ्ते तक अपनी प्रैग्नेंसी से थी बेखबर

कौमेडियन भारती आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. वो देशभर में अपनी प्रतिभा की बदौलत प्रसिद्ध हैं. किसी रोते हुए को भी कैसे हंसाना है, ये टैलेंट कोई भारती से सिखे. कौमेडी करने के अलावा जब वो किसी रियलिटी शो को होस्ट भी करती हैं, तो मेजबानी करने का भी अंदाज काफी अलग होता है और उस कार्यक्रम में बैठे लोग ठहाके लगाने लगते हैं.

 

मोटापा को करियर के बीच नहीं आने दिया

हालांकि भारती सिंह को बौडी शेमिंग का भी सामना करना पड़ा है. उनकी वजन के कारण कई बार ट्रोलिंग का सामना किया है, लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को निराश नहीं होने दिया और एंटेरटैनमेंट की दुनिया में अपनी छवि बनाने के लिए बहुत मेहनत की. लोग उनके मोटापे को लेकर भददे कमैंट्स करते थे. वो अपनी टैलेंट के जरिए लोगों को हंसाती थी और लोग उनका मजाक बनाते थे. खैर भारती सिंह ने इन सभी बातों को अपने करियर के बीच नहीं आने दिया.

शादी के बाद भारती हुई ट्रोल

एक इंटरव्यू के अनुसार, जब उन्होंने हर्ष लिंबाचिया से साल 2017 में शादी की, तो लोगों ने कई बुरे कमेंट्स किए थे. हर्ष और भारती एकदूसरे से प्यार करते थे और जब शादी करने का फैसला किया तो लोग उन्हें ट्रोल करने लगे थे और कई घटिया कमेंट्स भी किए थे. लोगों ने हर्ष के चश्मे को लेकर कहा गया कि भारती इसे तोड़ देगी. भारती का कहना है कि भले वो और उनके पति लोगों के कमेंट्स पर ध्यान न दें, लेकिन इस तरह की बातें उन्हें तकलीफ देती हैं.

क्या मोटी लड़की की जिंदगी नहीं होती ?

भारती ने कहा कि लोगों की यह धारणा है कि मोटी लड़की को शादी के लिए मोटा लड़का ही मिलना चाहिए. कौमेडियन ने ये भी कहा था कि मैं मोटी हूं, लेकिन मेरी जिंदगी है, मैं किसी से भी शादी करूं. हालांकि कई बार भारती सिंह इस बात को एक्सैप्ट भी करती है कि वो मोटी हैं, यह बात वो जानती हैं, लेकिन लोग फिर भी उनका मजाक उड़ाना बंद नहीं करते.

मोटी, गेंडी, हाथी जैसे शब्द सुनने को मिले

कौमेडियन भारती सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें मोटी, गेंडी, हाथी जैसे कई भद्दे शब्द सुनने को मिले हैं. भारती ने इस बारे में कहा था कि मैं तो हलवाई की बेटी नहीं हूं, यहां तक कि मैं मिडिल क्लास भी नहीं हूं, मैं एक गरिब परिवार की बेटी हूं, जैसा खाना मिला है, खाकर मोटी हो गई हूं, तो क्या करूं?

7 हफ्ते तक भारती नहीं जानती थी अपनी प्रैग्नेंसी

हाल ही में भारती सिंह का एक इंटरव्यू सामने आया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कौमेडियन को 7 हफ्ते तक नहीं पता था कि वह मां बनने वाली हैं. कौमेडियन ने कहा कि जब हम पार्टी कर रहे थे औ मैंने देखा कि वहां एक प्रैग्नेंसी स्ट्रिप पड़ी हुई थी. मैंने चेक करने के बारे में सोचा, मैंने सुबह टेस्ट किया और फिर सो गई. कुछ समय बाद उस पर दो पिंक लाइन देखी और अपने पति को दिखाई. उसे यकीन नहीं हुआ.

फिर भारती ने आगे बताया कि मैं डौक्टर के पास गई और ब्लड टेस्ट करवाया. मुझे पता चला कि मैं 7 हफ्ते की प्रैग्नेंट हूं. मैंने कहा कि मैं ड्रिंक कर रही हूं, तो डौक्टर ने कहा कि सबकुछ बंद करना पड़ेगा.

प्रैग्नेंसी के नौ महीनों तक किया काम

भारती सिंह कई बार खुलासा कर चुकी हैं कि हर्ष यानी उनके पति ने उन 9 महीनों के दौरान काम करने के लिए इंस्पायर किया. भारती ने कहा, अगर प्रेग्नेंसी के दौरान आपका पति यह कहता है कि अगर बच्चे को कुछ हुआ तो यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी होगी, तो एक महिला अपना सारा काम छोड़कर घर पर बैठ जाती है, लेकिन अगर वह कहता है, चिंता मत करो कुछ नहीं होगा तुम काम पर जाओ, तो आपको पौजिटिव एनर्जी मिलती है. लाइफ में अच्छा पार्टनर और अच्छा दोस्त मिलना बहुत जरूरी है.

चालबाज शुभी: बेटियों के लिए क्या जायदाद हासिल कर पाई शुभी

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“अब जाने दो मुझे… रातभर प्यार करने के बाद भी तुम्हारा मन नहीं भरा क्या?” शुभी ने नखरे दिखाते हुए कहा, तो विजय अरोड़ा ने उस का हाथ पकड़ कर फिर से उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उस के ऊपर लेट कर पतले और रसीले अधरों का रसपान करने लगा.

“देखो… मैं तो मांस का शौकीन हूं… फिर चाहे वह मेरी खाने की प्लेट में हो या मेरे बिस्तर पर,” विजय अरोड़ा शुभी के सीने के बीच अपने चेहरे को रगड़ने लगा, दोनों ही एकसाथ शारीरिक सुख पाने की चाह में होड़ लगाने लगे और कुछ देर बाद एकदूसरे से हांफते हुए अलग हो गए.

विजय और शुभी की 18 और 20 साल की 2 बेटियां थीं, तो दूसरी तरफ विजय के बड़े भाई अजय अरोड़ा के एक बेटा था, जिस की उम्र 22 साल की थी.

अरोड़ा बंधुओं के पिता रामचंद अरोड़ा चाहते थे कि जो बिजनैस उन्होंने इतनी मेहनत से खड़ा किया है, उस का बंटवारा न करना पड़े, इसलिए वे हमेशा दोनों भाइयों को एकसाथ रहने और काम करने की सलाह देते थे, पर छोटी बहू शुभी को हमेशा लगता रहता था कि पिताजी के दिल में बड़े भाई और भाभी के लिए अधिक स्नेह है, क्योंकि उन के एक बेटा है और उस के सिर्फ बेटियां.

शुभी को यही लगता था कि वे निश्चित रूप से अपनी वसीयत में दौलत का एक बड़ा हिस्सा उस के जेठ के नाम कर जाएंगे.

‘‘भाई साहब देखिए… विजय तो कामधंधे में कोई सक्रियता नहीं दिखाते हैं, पर मुझे अपनी बेटियों को तो आगे बढ़ाना ही है, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप मेरी बेटियों को भी अपने बिजनैस में हिस्सा दें और काम के गुर सिखाते रहें,‘‘ शुभी ने अपने जेठ अजय अरोड़ा से कहा.

इस पर अजय ने कहा, ‘‘पर शुभी, बेटियों को तो शादी कर के दूसरे घर जाना होता है… ऐसे में उन्हें अपने बिजनैस के बारे में बताने से क्या फायदा… आखिर इस पूरे बिजनैस को तो मेरे बेटे नरेश को ही संभालना है… हां, तुम्हें अपनी बेटियों को पढ़ानेलिखाने के लिए जितने पैसे की जरूरत हो, उतने पैसे ले सकती हो.”

शुभी को तो अपने जेठ की नीयत पर पहले से ही शक था और आज उन से बात कर के वह यह जान चुकी थी कि इस पूरी दौलत पर उस के जेठ अजय अरोड़ा और उन के बेटे नरेश का ही वर्चस्व रहने वाला है और इस अरोड़ा ग्रुप का मालिक नरेश को ही बनाया जाना तय है.

शुभी दिनरात इसी उधेड़बुन में रहती कि किस तरह से पूरी दौलत और बिजनैस में बराबरी का हिस्सा लिया जाए, पर ये सब इतना आसान नहीं होने वाला था, बस एक तरीका था कि किसी तरह से नरेश को रास्ते से हटा दिया जाए तभी कुछ हो सकता है, पर एक औरत के लिए किसी को अपने रास्ते से हटा पाना बिलकुल भी आसान नहीं था.

‘मुझे अपनी लड़कियों के भविष्य के लिए कुछ भी करना पड़े मैं करूंगी, चाहे मुझे किसी भी हद तक जाना पड़े,‘ कुछ सोचते हुए शुभी बुदबुदा उठी.

शुभी की जेठानी निम्मी किचन में थी और अपनी नौकरानी को सही काम करने की ताकीद कर रही थी.

“क्या दीदी… सारा दिन आप ही काम करती रहती हो… कभी आराम भी किया करो… ये लो, मैं ने आप के लिए बादाम का शरबत बनाया है. इसे पीने से आप के बदन को ताकत मिल जाएगी,” शुभी ने अपनी जेठानी को बादाम का शरबत पिला दिया. शरबत पीने के कुछ देर बाद ही निम्मी को कुछ उलझन सी होने लगी.

“सुन शुभी… मेरी तबीयत कुछ ठीक सी नहीं लग रही है. जरा तू किचन संभाल ले,” ये कह कर निम्मी आराम करने चली गई.

उस रात अजय अरोड़ा जब अपने बेटे नरेश के साथ काम से लौटे और निम्मी के बारे में पूछा, तो शुभी ने बताया कि उन की तबीयत खराब है, इसलिए वे आराम कर रही हैं. ऐसा कह कर शुभी ने ही उन लोगों को खाना परोसा, जिसे खा कर वे दोनों अपनेअपने कमरों में चले गए.

निम्मी और उस का बेटा अलगअलग कमरे में सोते थे, जबकि अजय अरोड़ा दूसरे कमरे में, क्योंकि उन को देर रात तक काम करने की आदत थी.

कुछ देर बाद शुभी दूध का गिलास ले कर अपने जेठ अजय अरोड़ा के कमरे में गई और उन के हाथ में गिलास देते समय उस ने बड़ी चतुराई से अपनी साड़ी का पल्लू कुछ इस अंदाज में गिरा दिया कि उस के सीने की गोरीगोरी गोलाइयां ब्लाउज से बाहर आने को बेताब हो उठीं. सहसा ही अजय अरोड़ा की नजरें उस के सीने के अंदर ही घुसती चली गईं.

जेठ अजय अरोड़ा को अपनी ओर इस तरह घूरते देख जल्दी से शुभी अपने पल्लू को सही करने लगी और मुसकराते हुए कमरे से बाहर चली आई.

अजय अरोड़ा ने पूछा, तो प्रतिउत्तर में शुभी जोरों से रोने लगी.

“मैं तो आप को एक नेक इनसान समझती थी, पर मुझे क्या पता था कि आप भी और मर्दों की तरह ही निकलेंगे,” शुभी ने सुबकते हुए कहा.

“आखिर बात क्या है? कुछ तो बताओ,” परेशान हो उठे थे अजय अरोड़ा.

इस के जवाब में शुभी ने अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला, बल्कि अपने मोबाइल की स्क्रीन को औन कर के अजय अरोड़ा की तरफ बढ़ा दिया.

अजय ने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा, तो मोबाइल पर कुछ तसवीरें थीं, जिस में शुभी के जिस्म का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से नग्न था और अजय अरोड़ा उस के ऊपर लेटे हुए थे. एक नहीं, बल्कि कई तसवीरें थीं इन दोनों की, जो ये बताने के लिए काफी थीं कि कल रात उन दोनों के बीच जिस्मानी संबंध बने थे.

“पर, ये सब मैं ने नहीं किया…” अजय अरोड़ा ने कहा.

“आप सारे मर्दों का यही तरीका रहता है… कल जब मैं दूध का गिलास ले कर आई, तो आप नशे में लग रहे थे और आप ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे साथ गलत काम किया… गलती मेरी ही है, आखिर मैं ने आप की आंखों में वासना के कीड़ों को क्यों नहीं पहचान लिया?” रोते हुए शुभी ने कहा.

“पर, भला ये तसवीरें तुम ने क्या सोच कर खींचीं?” माथा ठनक उठा था अजय अरोड़ा का.

“अगर, मैं ये तसवीरें नहीं लेती, तो भला आप क्यों मानते कि आप ने मेरे साथ गलत किया है,” शुभी का सवाल अचूक था और सारे सुबूत सामने थे, इसलिए अजय अरोड़ा का मन भी इन सब बातों को मानने के लिए मजबूर था, क्योंकि बचपन में उन्हें नींद में चलने की बीमारी थी, जो कि काफी समय बीतने के बाद ही सही हो सकी थी.

“चलो, अब जो भी हुआ, उसे भूल जाओ… मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं…पर, ये बात किसी से न कहना… मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं,” अजय अरोड़ा ने कहा.

अजय अरोड़ा रात में 2 बजे तक काम किया करते थे, पर आज पता नहीं क्या हुआ कि उन की पलकें भारी होने लगीं और उन्हें जल्दी नींद आ गई. वे अपना लैपटौप सिरहाने रख कर सो गए.

अगली सुबह जब अजय अरोड़ा की आंखें खुलीं, तो उन्होंने अपने पास बैठी हुई शुभी को देखा. उसे अपने बिस्तर पर बैठा देख अजय अरोड़ा चौंक पड़े और पूछ बैठे, “क्या बात है शुभी, तुम इतनी सुबहसुबह मेरे कमरे में… और वो भी मेरे बिस्तर पर क्या कर रही हो?”

“नहीं, आप मुझ से बड़े हैं. मेरे सामने हाथ मत जोड़िए… हां, अगर मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हैं, तो मेरी बेटियों को अपने बेटे नरेश के साथ जायदाद में बराबर की हिस्सेदारी दिलवा दीजिए,” शुभी ने कहा.

शुभी की बात सुन कर अजय अरोड़ा को ये समझते देर नहीं लगी कि वो बुरी तरह से उस के बिछाए जाल में फंस गए हैं, पर अब उन के पास उस की बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था, इसलिए वे शुभी की बात मानने पर राजी हो गए और उन्होंने जायदाद और अरोड़ा ग्रुप के वित्तीय मामलों मे नरेश के साथसाथ शुभी की बड़ी बेटी को भी शामिल कर लिया.

“देखो… मैं अभी सिर्फ तुम्हारी बड़ी बेटी को ही कंपनी में शामिल कर सकता हूं, क्योंकि कंपनी के और भी शेयरहोल्डर हैं, उन्हें भी मुझे जवाब देना है…

‘‘अगर चाहो तो मैं तुम्हारी छोटी बेटी को अपने दूसरे प्रोजैक्ट का इंचार्ज बना सकता हूं… पर, उस के लिए उसे कोलकाता जाना होगा,” अजय अरोड़ा ने कहा.

“बिलकुल जाएगी… कोलकाता तो क्या वह भारत के किसी भी हिस्से में जाएगी… बस, मुझे पैसा और पावर चाहिए… मैं आज ही उसे तैयारी करने को कहती हूं.”

अपनी इस कूटनीतिक जीत पर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी शुभी और इसी जीत को सेलिब्रेट करने के लिए ‘बरिस्ता‘ कौफीहाउस में जा पहुंची, जहां उस के सामने वाली कुरसी पर बैठा हुआ शख्स उसे ऊपर से नीचे तक निहारे जा रहा था.

“अब तो तुम बहुत खुश होगी… आखिर अरोड़ा ग्रुप में बराबरी का हिस्सा मिल ही गया तुम्हें,” वो घनी दाढ़ी वाले शख्स ने कहा, जिस का नाम रौबिन था,

“मिला नहीं है, बल्कि छीना है मैं ने… पर, असली खुशी तो मुझे उस दिन मिलेगी, जब मैं उस नरेश के बच्चे को एमडी की कुरसी से हटवा दूंगी,” नफरत भरे लहजे में शुभी बोल रही थी.

“और उस के लिए अगर तुम्हें मेरी कोई भी जरूरत पड़े तो बंदा हाजिर है… पर, उस की कीमत देनी होगी,‘‘ रौबिन ने शरारती लहजे में कहा.

“बोलो, क्या कीमत लोगे?”

“बस, जिस तरह की तसवीरों में तुम अजय अरोड़ा के साथ नजर आ रही हो, वैसी ही जिस्मानी हालत में मेरे साथ एक रात गुजार लो.”

“बस… इतनी सी बात… अरे, तुम्हारे लिए मैं ने मना ही कब किया है,” शुभी की बातें सुन कर रौबिन अपने हाथ से शुभी के हाथ को सहलाने लगा.

रौबिन और शुभी की जानपहचान कालेज के समय से थी और इतना ही नहीं, दोनों एकदूसरे से प्यार भी करते थे और शुभी की शादी हो जाने के बाद भी दोनों ने इस रिश्ते को बनाए रखा.

शुभी और रौबिन के प्यार का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता था कि आज भी अपनी खुशी को बांटने के लिए शुभी अपने पति के पास न हो कर रौबिन के पास ही आई थी.

कभी रौबिन से इश्क करने वाली शुभी को आज भी इस बात से कतई परहेज नहीं था कि आज रौबिन एक छोटामोटा ड्रग पेडलर बन चुका था, जो कि पैसा कमाने के लिए अफीम और अन्य नशीले पदार्थों की खरीदफरोख्त किया करता था और कई बार हवालात की हवा भी खा चुका था.

भले ही शुभी की लड़कियों को बिजनैस में शामिल कर लिया गया था और वे दोनों बिजनैस की बारीकियां सीख रही थीं, पर शुभी को हमेशा ही ये डर खाए जाता था कि हो न हो, नरेश को ही इस जायदाद का असली वारिस घोषित किया जाएगा और वो तो ऐसा बिलकुल नहीं चाहती थी, पर उस के पास अभी कोई और चारा नहीं था, इसलिए शुभी अपने अगले वार के लिए सही वक्त का इंतजार कर रही थी.

और वो सही वक्त कुछ महीनों बाद आ ही गया, जब नरेश की शादी तय करा दी गई और बड़ी धूमधाम से उस की शादी हो गई, विजय और अजय अरोड़ा के साथ में कितना नाची थी शुभी? उस की खुशी देख कर जान पड़ता था कि जैसे उस के सगे बेटे की शादी हो, पूरे शहर में नरेश की शादी की भव्यता की चर्चा कई दिन तक होती रही.

घर के मेहमान भी जा चुके थे और आज नरेश और उस की पत्नी बबिता अपना हनीमून मनाने के लिए स्विट्जरलैंड के लिए जाने वाले थे. सुबह से ही शुभी सारी तैयारियां करवा रही थी. मन में खुशियों का सागर हिलोरे ले रहा था नरेश और बबिता के, इसलिए फ्लाइट के समय से पहले ही नरेश एयरपोर्ट पहुंच जाना चाहता था. उस ने अपना सारा सामान एक जगह इकट्ठा कर लिया और अपनी पत्नी बबिता की प्रतीक्षा करने लगा. शुभी के साथ नरेश को अपनी पत्नी आती दिखाई दी तो नरेश ने राहत की सांस ली.

“ये लो… इसे समयसमय पर खाते रहना… तुम्हें अभी ताकत की बहुत जरूरत पड़ेगी,” शुभी ने नरेश के हाथ में एक थैली पकड़ाते हुए कहा, “पर, चाची इस में है क्या?”

“अरे, इसे खोल कर यहां मत देखो… ये तुम्हारे लिए ताकत वाले लड्डू हैं… हनीमून के लिए खास बनाए हैं,” शुभी रहस्मयी ढंग से मुसकराते हुए बोली, तो फिर उस की बात को मन ही मन भांप कर उस के आगे नरेश कुछ बोल नहीं सका और चुपचाप अपने बैग में वह थैली रख ली.

नवयुगल एयरपोर्ट पर पहुंच चुका था. दोनों ने एकदूसरे का हाथ पकड़े हुए एयरपोर्ट में एंट्री ली. नरेश ने नजरें उठाईं, तो सामने ही एक कस्टम विभाग का बड़ा अधिकारी अपनी सजीली सी विभागीय यूनीफौर्म पहने हुए खड़ा था, जो कि इन दोनों की तरफ देखते हुए मुसकराते हुए आगे आया, “नमस्ते भाभीजी… आप दोनों की यात्रा शुभ हो.”

“अरे, इन से मिलो ये मेरा दोस्त है रचित. और रचित, ये हैं बबिता मेरी पत्नी,” हंसते हुए नरेश ने कहा.

नरेश और बबिता के साथ में एक बड़े कस्टम अधिकारी के होने के कारण उन दोनों को फ्लाइट तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई और कुछ ही देर बाद उन की फ्लाइट टेक औफ कर चुकी थी.

तकरीबन 8-9 घंटे की उड़ान के बाद वे दोनों स्विट्जरलैंड के हवाईअड्डे पर थे, जहां यात्रियों का सामान चैक किया जा रहा था. नरेश और बबिता भी शांत भाव और प्रसन्न मुद्रा में सारी कार्यवाही देख रहे थे और अपने एयरपोर्ट से निकलने का इंतजार कर रहे थे, ताकि अपने हनीमून की खुशियों का मजा ले सकें.“आप दोनों को हमारे साथ चलना होगा,” नरेश से एक कस्टम के अधिकारी ने आ कर अंगरेजी में कहा.

“क्या हुआ… क्या बात है?” नरेश ने भी अंगरेजी में ही पूछा.

“जी, दरअसल बात यह है कि हमें आप के ब्रीफकेस में ड्रग्स मिली है. बहुत अफसोस है कि हमें आप को पुलिस के हवाले करना पड़ेगा,” कस्टम अफसर ने वह थैली दिखाते हुए कहा, जिस में शुभी ने ताकत वाले लड्डू रखे थे.

नरेश और बबिता को अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ, जो उन्होंने अभीअभी सुना था.

“पर, इस में तो मेरी चाची ने ताकत के लड्डू रखे  थे, जरूर आप को कोई गलतफहमी हुई है,” नरेश कह रहा था.

“यहां पर आ कर पकड़े जाने के बाद सभी यही कहते हैं मिस्टर नरेश, पर हमारे यहां कानून है कि आप अपनी गिरफ्तारी की खबर अपने घर पर इस फोन के द्वारा दे सकतें हैं… ये लीजिए अपना कंट्री कोड डायल कर के अपने घर फोन मिला लीजिए.”

इस के बाद नरेश ने फोन मिला कर अपने साथ हुए हादसे के बारे में अपने मांबाप को बताया कि किस तरह से उस थैली में ड्रग्स भेजा गया था और नरेश ने उन्हें यह भी बताया कि यहां पर ड्रग्स संबंधी कानून बहुत कड़े हैं, इसलिए उन्हें कम से कम 10-12 साल जेल में ही रहना होगा.

पुलिस ने नरेश और बबिता के हाथों में हथकड़ी पहना दी थी. उन लोगों को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे और क्यों हुआ है? पर भारत में बैठी हुई शुभी को बखूबी समझ में आ रहा था, क्योंकि ये पूरी चाल उस ने ही तो रौबिन के साथ मिल कर रची थी, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

एक ही झटके में शुभी ने नरेश और उस की पत्नी बबिता को जेल भिजवा दिया था. एकलौते बेटे की गिरफ्तारी और शुभी की नीचता की बात जान कर अजय अरोड़ा चीख पड़े थे, “मुझे तुझ से ऐसी उम्मीद नहीं थी… मैं ने तेरी हर बात मानी, फिर भी तेरी पैसे की हवस पूरी नहीं हुई… आखिरकार तू ने मेरे बेटेबहू को मुझ से छीन ही लिया.”

“जो हुआ उस में मेरी कोई गलती नहीं है… नरेश के पास से ड्रग्स निकली है, इस का साफ सा मतलब है कि वह ड्रग्स लेता था और अब बचने के लिए वह मुझ पर इलजाम लगा रहा है,” शुभी बड़े आराम से जवाब दे रही थी.

शुभी से अभी जब अजय अरोड़ा की बहस हो ही रही थी कि उन के सीने में तेज दर्द उठा. वे अपना सीना पकड़ कर वहीं बैठ गए और फिर कभी उठ न सके. उन का देहांत हो चुका था.

अब कंपनी की एमडी शुभी की बेटी थी और पूरे बिजनैस पर उन का एकाधिकार था, पर अपनी मां के द्वारा किए गए इस काम से वह जरा भी खुश नहीं थी, इसलिए वह अपने दादी और बाबा के साथ सबकुछ छोड़ कर कहीं चली गई और शुभी के नाम एक पत्र छोड़ गई, जिस में लिखा था:

“मां… आप पैसे और सत्ता के लालच में इतना गिर जाओगी, ऐसा मैं ने कभी नहीं सोचा था… आप को पैसा चाहिए था, जो आज आप को मिल गया है… कंपनी के कागज और चेकबुक्स दराज में रखी हैं. आप अपने पैसों के साथ खुश रहो… मुझे और मेरे दादीबाबा को ढूंढ़ने की कोशिश मत करना.”

पैसे और सत्ता के लालच में अंधी हो कर शुभी ने नरेश के खिलाफ इतनी कठोर साजिश को अंजाम दिया, जिस से उस के जीवन की सारी खुशियां तहसनहस हो गई थीं.

नरेश और बबिता इस घटना से स्तब्ध थे. उन्हें ये बात ही नहीं समझ में आ रही थी कि अगर ये काम चाची ने जानबूझ कर किया है, तो क्यों किया है. वजह चाहे जो भी रही हो, पर वे दोनों जेल में थे.

नरेश और बबिता को हनीमून तो छोड़ो, पर अब साथ रहना भी नसीब नहीं हो रहा था. सलाखों के पीछे बारबार नरेश यही बुदबुदा रहा था… ये कैसा हनीमून???

एक मुलाकात: क्या नेहा की बात समझ पाया अनुराग

लेखक- निर्मला सिंह

नेहा ने होटल की बालकनी में कुरसी पर बैठ अभी चाय का पहला घूंट भरा ही था कि उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. बगल वाले कमरे की बालकनी में एक पुरुष रेलिंग पकडे़ हुए खड़ा था जो पीछे से देखने में बिलकुल अनुराग जैसा लग रहा था. वही 5 फुट 8 इंच लंबाई, छरहरा गठा बदन.

नेहा सोचने लगी, ‘अनुराग कैसे हो सकता है. उस का यहां क्या काम होगा?’ विचारों के इस झंझावात को झटक कर नेहा शांत सड़क के उस पार झील में तैरती नावों को देखने लगी. दूसरे पल नेहा ने देखा कि झील की ओर देखना बंद कर वह व्यक्ति पलटा और कमरे में जाने के लिए जैसे ही मुड़ा कि नेहा को देख कर ठिठक गया और अब गौर से उसे देखने लगा.

‘‘अरे, अनुराग, तुम यहां कैसे?’’ नेहा के मुंह से अचानक ही बोल फूट पड़े और आंखें अनुराग पर जमी रहीं. अनुराग भी भौचक था, उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की नेहा इतने सालों बाद उसे इस तरह मिलेगी. वह भी उस शहर में जहां उन के जीवन में प्रथम पे्रम का अंकुर फूटा था.

दोनों अपनीअपनी बालकनी में खड़े अपलक एकदूसरे को देखते रहे. आंखों में आश्चर्य, दिल में अचानक मिलने का आनंद और खुशी, उस पर नैनीताल की ठंडी और मस्त हवा दोनों को ही अजीब सी चेतनता व स्फूर्ति से सराबोर कर रही थी.

अनुराग ने नेहा के प्रश्न का उत्तर मुसकराते हुए दिया, ‘‘अरे, यही बात तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि तुम 30 साल बाद अचानक नैनीताल में कैसे दिख रही हो?’’

उस समय दोनों एकदूसरे से मिल कर 30 साल के लंबे अंतराल को कुछ पल में ही पाट लेना चाहते थे. अत: अनुराग अपने कमरे के पीछे से ही नेहा के कमरे में चले आए. अनुराग को इस तरह अपने पास आता देख नेहा के दिल में खुशी की लहरें उठने लगीं. लंबेलंबे कदमों से चलते हुए नेहा अनुराग को बड़े सम्मान के साथ अपनी बालकनी में ले आई.

‘‘नेहा, इतने सालों बाद भी तुम वैसी ही सुंदर लग रही हो,’’ अनुराग उस के चेहरे को गौर से देखते हुए बोले, ‘‘सच, तुम बिलकुल भी नहीं बदली हो. हां, चेहरे पर थोड़ी परिपक्वता जरूर आ गई है और कुछ बाल सफेद हो गए हैं, बस.’’

‘‘अनुराग, मेरे पति आकाश भी यही कहते हैं. सुनो, तुम भी तो वैसे ही स्मार्ट और डायनैमिक लग रहे हो. लगता है, कोई बड़े अफसर बन गए हो.’’

‘‘नेहा, तुम ने ठीक ही पहचाना. मैं लखनऊ  में डी.आई.जी. के पद पर कार्यरत हूं. हलद्वानी किसी काम से आया था तो सोचा नैनीताल घूम लूं, पर यह बताओ कि तुम्हारा नैनीताल कैसे आना हुआ?’’

‘‘मैं यहां एक डिगरी कालिज में प्रैक्टिकल परीक्षा लेने आई हूं. वैसे मैं बरेली में हूं और वहां के एक डिगरी कालिज में रसायन शास्त्र की प्रोफेसर हूं. पति साथ नहीं आए तो मुझे अकेले आना पड़ा. अभी तक तो मेरा रुकने का इरादा नहीं था पर अब तुम मिले हो तो अपना कार्यक्रम तो बदलना ही पडे़गा. वैसे अनुराग, तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

अनुराग ने हंसते हुए कहा, ‘‘नेहा, जिंदगी में सब कार्यक्रम धरे के धरे रह जाते हैं, वक्त जो चाहता है वही होता है. हम दोनों ने उस समय अपने जीवन के कितने कार्र्यक्रम बनाए थे पर आज देखो, एक भी हकीकत में नहीं बदल सका… नेहा, मैं आज तक यह समझ नहीं सका कि तुम्हारे पापा अचानक तुम्हारी पढ़ाई बीच में ही छुड़वा कर बरेली क्यों ले गए? तुम ने बी.एससी. फाइनल भी यहां से नहीं किया?’’

नेहा कुछ गंभीर हो कर बोली, ‘‘अनुराग, मेरे पापा उस उम्र में  ही मुझ से जीवन का लक्ष्य निर्धारित करवाना चाहते थे. वह नहीं चाहते थे कि पढ़ाई की उम्र में मैं प्रेम के चक्कर में पड़ूं और शादी कर के बच्चे पालने की मशीन बन जाऊं. बस, इसी कारण पापा मुझे बरेली ले गए और एम.एससी. करवाया, पीएच.डी. करवाई फिर शादी की. मेरे पति बरेली कालिज में ही गणित के विभागाध्यक्ष हैं.’’

‘‘नेहा, कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

‘‘2 बेटे हैं. बड़ा बेटा इंगलैंड में डाक्टर है और वहीं अपने परिवार के साथ रहता है. दूसरा अमेरिका में इंजीनियर है. अब तो हम दोनों पतिपत्नी अकेले ही रहते हैं, पढ़ते हैं, पढ़ाते है.’’

‘‘अनुराग, अब तक मैं अपने बारे में ही बताए जा रही हूं, तुम भी अपने बारे में कुछ बताओ.’’

‘‘नेहा, तुम्हारी तरह ही मेरा भी पारिवारिक जीवन है. मेरे भी 2 बच्चे हैं. एक लड़का आई.ए.एस. अधिकारी है और दूसरा दिल्ली में एम्स में डाक्टर है. अब तो मैं और मेरी पत्नी अंशिका ही घर में रहते हैं.’’

इतना कह कर अनुराग गौर से नेहा को देखने लगा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो अनुराग?’’ नेहा बोली, ‘‘अब सबकुछ समय की धारा के साथ बह गया है. जो प्रेम सत्य था, वही मन की कोठरी में संजो कर रखा है और उस पर ताला लगा लिया है.’’

‘‘नेहा…सच, तुम से अलग हो कर वर्षों तक मेरे अंतर्मन में उथलपुथल होती रही थी लेकिन धीरेधीरे मैं ने प्रेम को समझा जो ज्ञान है, निरपेक्ष है और स्वयं में निर्भर नहीं है.’’

‘‘अनुराग, तुम ठीक कह रहे हो,’’ नेहा बोली, ‘‘कभी भी सच्चे प्रेम में कोई लोभ, मोह और प्रतिदान नहीं होता है. यही कारण है कि हमारा सच्चा प्रेम मरा नहीं. आज भी हम एकदूसरे को चाहते हैं लेकिन देह के आकर्षण से मुक्त हो कर.’’

अनुराग कमरे में घुसते बादलों को पहले तो देखता रहा फिर उन्हें अपनी मुट्ठी में बंद करने लगा. यह देख नेहा हंस पड़ी और बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो बच्चों की तरह?’’

‘‘नेहा, तुम्हारी हंसी में आज भी वह खनक बरकरार है जो मुझे कभी जीने की पे्ररणा देती थी और जिस के बलबूते पर मैं आज तक हर मुश्किल जीतता रहा हूं.’’

नेहा थोड़ी देर तक शांत रही, फिर बेबाकी से बोल पड़ी, ‘‘अनुराग, इतनी तारीफ ठीक नहीं और वह भी पराई स्त्री की. चलो, कुछ और बात करो.’’

‘‘नेहा, एक कप चाय और पियोगी.’’

‘‘हां, चल जाएगी.’’

अनुराग ने कमरे से फोन किया तो कुछ ही देर में चाय आ गई. चाय के साथ खाने के लिए नेहा ने अपने साथ लाई हुई मठरियां निकालीं और दोनों खाने लगे. कुछ देर बाद बातों का सिलसिला बंद करते हुए अनुराग बोले, ‘‘अच्छा, चलो अब फ्लैट पर चलें.’’

नेहा तैयार हो कर जैसे ही बाहर निकली, कमरे में ताला लगाते हुए अनुराग उस की ओर अपलक देखने लगा. नेहा ने टोका, ‘‘अनुराग, गलत बात…मुझे घूर कर देखने की जरूरत नहीं है, फटाफट ताला लगाइए और चलिए.’’

उस ने ताला लगाया और फ्लैट की ओर चल दिया.

बातें करतेकरते दोनों तल्लीताल पार कर फ्लैट पर आ गए और उस ओर बढ़ गए जिधर झील के किनारे रेलिंग बनी हुई थी. दोनों रेलिंग के पास खड़े हो कर झील को देखते रहे.

कतार में तैर रही बतखों की ओर इशारा करते हुए अनुराग ने कहा, ‘‘देखो…देखो, नेहा, तुम ने भी कभी इसी तरह तैरते हुए बतखों को दाना डाला था जैसे ये लड़कियां डाल रही हैं और तब ठीक ऐसे ही तुम्हारे पास भी बतखें आ रही थीं, लेकिन तुम ने शायद उन को पकड़ने की कोशिश की थी…’’

‘‘हां अनुराग, ज्यों ही मैं बतख पकड़ने के लिए झुकी थी कि अचानक झील में गिर गई और तुम ने अपनी जान की परवा न कर मुझे बचा लिया था. तुम बहुत बहादुर हो अनुराग. तुम ने मुझे नया जीवन दिया और मैं तुम्हें बिना बताए ही नैनीताल छोड़ कर चली गई, इस का मुझे आज तक दुख है.’’

‘‘चलो, तुम्हें सबकुछ याद तो है,’’ अनुराग बोला, ‘‘इतने वर्षों से मैं तो यही सोच रहा था कि तुम ने जीवन की किताब से मेरा पन्ना ही फाड़ दिया है.’’

‘‘अनुराग, मेरे जीवन की हर सांस में तुम्हारी खुशबू है. कैसे भूल सकती हूं तुम्हें? हां, कर्तव्य कर्म के घेरे में जीवन इतना बंध जाता है कि चाहते हुए भी अतीत को किसी खिड़की से नहीं झांका जा सकता,’’  एक लंबी सांस लेते हुए नेहा बोली.

‘‘खैर, छोड़ो पुरानी बातों को, जख्म कुरेदने से रिसते ही रहते हैं और मैं ने  जख्मों पर वक्त का मरहम लगा लिया है,’’ अनुराग की गंभीर बातें सुन कर नेहा भी गंभीर हो गई.

‘यह अनुराग कुछ भी भूला नहीं है,’ नेहा मन में सोचने लगी, पुरुष हो कर भी इतना भावुक है. मुझे इसे समझाना पड़ेगा, इस के मन में बंधी गांठों को खोलना पडे़गा.’

नेहा पत्थर की बैंच पर बैठी कुछ समय के लिए शांत, मौन, बुत सी हो गई तो अनुराग ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी बातें बुरी लगीं? तुम तो बेहद गंभीर हो गईं. मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था नेहा. सौरी.’’

‘‘अनुराग, यौवनावस्था एक चंचल, तेज गति से बहने वाली नदी की तरह होती है. इस दौर में लड़केलड़कियों में गलतसही की परख कम होती है. अत: प्रेम के पागलपन में अंधे हो कर कई बार दोनों ऐसे गलत कदम उठा लेते हैं जिन्हें हमारा समाज अनुचित मानता है. और यह तो तुम जानते ही हो कि हम भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर

हर शनिवाररविवार खूब घूमतेफिरते थे. नैनीताल का वह कौन सा स्थान है जहां हम नहीं घूमे थे. यही नहीं जिस उद्देश्य के लिए हम मातापिता से दूर थे, वह भी भूल गए थे. यदि हम अलग न हुए होते तो यह सच है कि न तुम कुछ बन पाते और न मैं कुछ बन पाती,’’ कहते हुए नेहा के चेहरे पर अनुभवों के चिह्न अंकित हो गए.

‘‘हां, नेहा तुम बिलकुल ठीक कह रही हो. यदि कच्ची उम्र में हम ने शादी कर ली होती तो तुम बच्चे पालती रहतीं और मैं कहीं क्लर्क बन गया होता,’’ कह कर अनुराग उठ खड़ा हुआ.

नेहा भी उठ गई और दोनों फ्लैट से सड़क की ओर आ गए जो तल्लीताल की ओर जाती है. चारों ओर पहाडि़यां ही पहाडि़यां और बीच में झील किसी सजी हुई थाल सी लग रही थी.

नेहा और अनुराग के बीच कुछ पल के लिए बातों का सिलसिला थम गया था. दोनों चुपचाप चलते रहे. खामोशी को तोड़ते हुए अनुराग बोला, ‘‘अरे, नेहा, मैं तो यह पूछना भूल ही गया कि खाना तुम किस होटल में खाओगी?’’

‘‘भूल गए, मैं हमेशा एंबेसी होटल में ही खाती थी,’’ नेहा बोली.

अपनेअपने परिवार की बातें करते हुए दोनों चल रहे थे. जब दोनों होटल के सामने पहुंचे तो अनुराग नेहा का हाथ पकड़ कर सीढि़यां चढ़ने लगा.

‘‘यह क्या कर रहे हो, अनुराग. मैं स्वयं ही सीढि़यां चढ़ जाऊंगी. प्लीज, मेरा हाथ छोड़ दो, यह सब अब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘सौरी,’’ कह कर अनुराग ने हाथ छोड़ दिया.

दोनों एक मेज पर आमनेसामने बैठ गए तो बैरा पानी के गिलास और मीनू रख गया.

खाने का आर्डर अनुराग ने ही दिया. खाना देख कर नेहा मुसकरा पड़ी और बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो याद है कि मैं क्या पसंद करती हूं, वही सब मंगाया है जो हम 25 साल पहले इसी तरह इसी होटल में बैठ कर खाते थे,’’ हंसती हुई नेहा बोली, ‘‘और इसी होटल में हमारा प्रेम पकड़ा गया था. खाना खाते समय ही पापा ने हमें देख लिया था. हो सकता है आज भी न जाने किस विद्यार्थी की आंखें हम लोगों को देख रही हों. तभी तो तुम्हारा हाथ पकड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा. देखो, मैं एक प्रोफेसर हूं, मुझे अपना एक आदर्श रूप विद्यार्थियों के सामने पेश करना पड़ता है क्योंकि बातें अफवाहों का रूप ले लेती हैं और जीवन भर की सचरित्रता की तसवीर भद्दी हो जाती है.’’

मुसकरा कर अनुराग बोला, ‘‘तुम ठीक कहती हो नेहा, छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना जरूरी है.’’

‘‘हां, अनुराग, हम जीवन में सुख तभी प्राप्त कर सकते हैं जब सच्चे प्यार, त्याग और विश्वास को आंचल में समेटे रखें, छोटीछोटी बातों पर सावधानी बरतें. अब देखो न, मेरे पति मुझे अपने से भी ज्यादा प्यार करते हैं क्योंकि मेरा अतीत और वर्तमान दोनों उन के सामने खुली किताब है. मैं ने शाम को ही आकाश को फोन पर सबकुछ बता दिया और वह निश्ंिचत हो गए वरना बहुत घबरा रहे थे.’’

बातों के साथसाथ खाने का सिलसिला खत्म हुआ तो अनुराग बैरे को बिल दे कर बाहर आ गए.

अनुराग और नेहा चुपचाप होटल की ओर चल रहे थे, लेकिन नेहा के दिमाग में उस समय भी कई सुंदर विचार फुदक रहे थे.  वह चौंकी तब जब अनुराग ने कहा, ‘‘अरे, होटल आ गया नेहा, तुम आगे कहां जा रही हो?’’

‘‘ओह, वैरी सौरी. मैं तो आगे ही बढ़ गई थी.’’

‘‘कुछ न कुछ सोच रही होगी शायद…’’

‘‘हां, एक नई कहानी का प्लाट दिमाग में घूम रहा था. दूसरे, नैनीताल की रात कितनी सुंदर होती है यह भी सोच रही थी.’’

‘‘अच्छा है, तुम अपने को व्यस्त रखती हो. साहित्य सृजन रचनात्मक क्रिया है, इस में सार्थकता और उद्देश्य के साथसाथ लक्ष्य भी होता है…’’ होटल की सीढि़यां चढ़ते हुए अनुराग बोला. बात को बीच में ही काटते हुए नेहा बोली, ‘‘यह सब लिखने की प्रेरणा आकाश देते हैं.’’

नेहा अपने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर जाने लगी तो अनुराग ने पूछा, ‘‘क्या अभी से सो जाओगी? अभी तो 11 बजे हैं?’’

‘‘नहीं अनुराग, कल के लिए कुछ पढ़ना है. वैसे भी आज बातें बहुत कर लीं. अच्छी रही हम लोगों की मुलाकात, ओ. के. गुड नाइट, अनुराग.’’

और एक मीठी मुलाकात की महक बसाए दोनों अपनेअपने कमरों में चले गए.

नेहा अपने कमरे में पढ़ने में लीन हो गई लेकिन अनुराग एक बेचैनी सी महसूस कर रहा था कि वह जिस नेहा को एक असहाय, कमजोर नारी समझ रहा था वह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की जीतीजागती प्रतिरूप है. एक वह है जो अपनी पत्नी में हमेशा नेहा का रूप देखने का प्रयास करता रहा. सदैव उद्वेलित, अव्यवस्थित रहा. काश, वह भी समझ लेता कि परिस्थितियों के साथ समझौते का नाम ही जीवन है. नेहा ने ठीक ही कहा था, ‘अनुराग, हमें किसी भी भावना का, किसी भी विचार का दमन नहीं करना चाहिए, वरन कुछ परिस्थितियों को अपने अनुकूल और कुछ स्वयं को उन के अनुकूल करना चाहिए तभी हमारे साथ रहने वाले सभी सुखी रहते हैं.’

एड़ियां फटने के क्या हैं कारण, इन तरीकों से रखें ख्याल

लेखिका-सोनिया राणा

बदलते मौसम में हम अपने चेहरे और हाथों की स्किन का तो खूब खयाल रखते हैं, लेकिन अकसर यह भूल जाते हैं कि हमारी पर्सनैलिटी में जितनी इंपौर्टैंस चेहरे और हाथों की खूबसूरती की है उतने ही अहम हमारे पैर भी हैं, जिन पर मौसम की मार सब से पहले पड़ती है, लेकिन हम उन्हीं को अपनी टेक केयर लिस्ट में सब से आखिर में रखते हैं. नतीजा यह होता है कि हमारी एडि़यां फट जाती हैं, पैर बेजान नजर आने लगते हैं.

 

आप अपने पैरों का खयाल कैसे रख सकती हैं और ऐसी कौन सी चीजें हैं, जो आप के पैरों में फिर से जान डाल देंगी, यही बताने के लिए हम यह लेख आप के लिए ले कर आए हैं.

एडि़या फटने के कारण

एडि़या फटने की सब से आम वजह है मौसम का बदलना, साथ ही मौसम के अनुरूप पैरों को सही तरीके से मौइस्चराइज न करना और जब मौसम शुष्क हो जाता है तो यह परेशानी और बढ़ जाती है.

देखा जाए तो अधिकतर महिलाएं फटी एडि़यों से परेशान होती हैं, क्योंकि काम करते समय अकसर उन के पैर धूलमिट्टी का ज्यादा सामना करते हैं इस के साथ ही इन कारणों की वजह से भी एडि़यां फटती हैं:

– लंबे समय तक खड़े रहना

– नंगे पैर चलना

– खुली एडि़यों वाले सैंडल पहनना

– गरम पानी में देर तक नहाना

– कैमिकल बेस्ड साबुन का  इस्तेमाल करना – सही नाप के जूते न पहनना.

बदलते मौसम के कारण वातावरण में नमी कम होना फटी एडि़यों की आम वजह है. साथ ही बढ़ती उम्र में भी एडि़यों का फटना आम बात है. ऐसे में कई बार एडि़यां दरारों के साथ रूखी हो जाती हैं. कई मामलों में उन दरारों से खून भी रिसना शुरू हो जाता है, जो काफी दर्दनाक होता है.

कैसे रखें पैरों का खयाल

अपने पैरों की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि जैसे आप अपने चेहरे पर डैड स्किन हटा कर उसे मौइस्चराइज रखती हैं

ठीक वैसे ही अपने पैरों को भी प्लूमिक स्टोन से रगड़ कर एडि़यों से डैड स्किन को हटाना चाहिए.

उस के बाद पैरों को अच्छी तरह थिक क्रीम बेस्ड फौर्मूला, बाम या नारियल के तेल से अच्छी तरह मौइस्चराइज करना चाहिए.

इस तरीके से आप अपनी एडि़यों को फटने से बचा सकती हैं, लेकिन अगर आप की एडि़यों में दरारें आ चुकी हों और उन में दर्द या खून रिसने लगा हो तो आप को उस के लिए डाक्टर से सलाह ले कर उस का उपचार कराना चाहिए, क्योंकि डायबिटीज, हाइपोथायराइडिज्म, एटौपिक डर्मैटाइटिस समेत ऐसी कई बीमारियां हैं, जिन के कारण एडि़यां फट जाती हैं.

पैट्रोलियम जैली, ग्लिसरीन और लेनोलिन युक्त क्रीम से मिलेगी राहत. अगर आप फटी एडि़यों से परेशान हैं तो ऐसी फुट क्रीम का इस्तेमाल करें, जिस में पैट्रोलियम जैली, ग्लिसरीन और लेनोलिन, कैलेंडुला, चमेली के फूल और कोकम बटर के इस्तेमाल किया गया हो. इस से आप को फटी एडि़यों से राहत मिलेगी और इस के नियमित इस्तेमाल से आप भविष्य में भी इस परेशानी से बची रहेंगी.

कहीं मेरा बौयफ्रेंड मुझे धोखा तो नहीं दे रहा, कैसे पता करूं ?

सवाल-

मैं एक समस्या को ले कर काफी तनावग्रस्त हूं. मैं 4 वर्षों से एक लड़के से प्यार करती हूं. हम दोनों इस रिश्ते को ले कर काफी गंभीर थे. पर 2 महीनों से वह किसी और लड़की से बात करता है. मेरे सामने उस का फोन आने पर फोन काट देता है. मैं ने जब उस से इस बाबत पूछा तो उस ने यह कह कर टाल दिया कि बस सामान्य सी दोस्ती है और कुछ नहीं. मेरा शक इसलिए गहरा रहा है, क्योंकि रात 2-2 बजे तक उस का फोन बिजी जाता है. कृपया बताएं कि कैसे सचाई का पता लगाऊं कि उस के दिल में क्या है?

जवाब-

यदि आप के प्रेमी का व्यवहार आप के साथ सामान्य है अर्थात उस में कोई बदलाव नहीं आया है और वह आप को भरपूर समय देता है, आप की परवाह करता है तो आप को अपने प्रेमी की बात का यकीन करना चाहिए कि उक्त लड़की से उस की दोस्ती भर है. पर यदि आप को उस के व्यवहार में कुछ अंतर दिखता है, वह आप से कन्नी काटने लगा है तो आप को उस से खुल कर बात कर लेनी चाहिए.

उस की मंशा जान कर ही आप कोई निर्णय कर पाएंगी कि दोस्ती बनाए रखनी है या इस रिश्ते को यहीं विराम लगाना है. जो भी निर्णय करें सोचसमझ कर करें. जल्दबाजी न करें.

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 अगर आप का साथी लगातार फोन पर है, कभी कोने में, कभी दूसरे कमरे में जा कर चैटिंग करने लगता है, भले आप को उस पर कितना ही विश्वास हो, आप को उस की कुछ हरकतें तो खटक ही जाती हैं, आप को अलर्ट हो भी जाना चाहिए अगर इन में से कुछ बातों पर आप का ध्यान जाए.

वह अपने फोन से कौल्स और मैसेज डिलीट तो नहीं करता रहता? उस का फोन नए जैसा तो नहीं, न कोई मैसेज, न कौल की डिटेल्स, ये सब डिलीट करना चीटिंग का पावरफुल साइन है.

1. अकसर चीटिंग करने वाले पुरुष अपने अफेयर्स के नाम या नंबर को अलग तरह से रखते हैं.

2. क्या आप का साथी फोन पर बात करते हुए या चैटिंग करते हुए आप से एक दूरी तो नहीं रख रहा होता, आप उस की पार्टनर हैं, फैमिली या काम, किसी की भी बात आप से छिपाने की उसे जरूरत नहीं होने चाहिए.

3. आप से छिपाने का एक अच्छा रीजन भी हो सकता है, हो सकता है आप का साथी आप के लिए ही कोई सरप्राइज प्लान कर रहा हो, उस पर शक करने से पहले यह जरूर सुनिश्चित कर लें कि सच में क्या चल रहा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दबी हुई परतें : क्यों दीदी से मिलकर हैरान रह गई वह

हमारे संयुक्त परिवार में संजना दी सब से बड़ी थीं. बड़ी होने के साथ लीडरशिप की भावना उन में कूटकूट कर भरी थी. इसीलिए हम सब भाईबहन उन के आगेपीछे घूमते रहते थे और वे निर्देश देतीं कि अब क्या करना है. वे जो कह दें, वही हम सब के लिए एक आदर्श वाक्य होता था. सब से पहले उन्होंने साइकिल चलानी सीखी, फिर हम सब को एकएक कर के सिखाया. वैसे भी, चाहे खेल का मैदान हो या पढ़ाईलिखाई या स्कूल की अन्य गतिविधियां, दीदी सब में अव्वल ही रहती थीं. इसी वजह से हमेशा अपनी कक्षा की मौनीटर भी वही रहीं.

हां, घरेलू कामकाज जैसे खाना बनाना या सिलाईबुनाई में दीदी को जरा भी दिलचस्पी नहीं थी, इसीलिए उन की मां यानी मेरी ताईजी की डांट उन पर अकसर पड़ती रहती थी. पर इस डांटडपट का कोई असर उन पर होता नहीं था.

मुझ से तो 8-10 साल बड़ी थीं वे, इसीलिए मैं तो एक प्रकार से उन की चमची ही थी. मुझ से वे लाड़ भी बहुत करती थीं. कभीकभी तो मेरा होमवर्क तक कर देती थीं, कहतीं, ‘चल तू थक गई होगी रितु, तेरा क्लासवर्क मैं कर देती हूं, फिर तू भी खेलने चलना.’

बस, मैं तो निहाल हो जाती. इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि स्कूल में टीचर, दीदी की हैंडराइटिंग देख कर मुझे डांटेगीं. पर उस उम्र में इतनी समझ भी कहां थी.

हंसतेखेलते हम भाईबहन बड़े हो रहे थे. दीदी तब कालेज में बीए कर रही थीं कि ताऊजी को उन के विवाह की फिक्र होने लगी. ताऊजी व दादाजी की इच्छा थी कि सही उम्र में विवाह हो जाना चाहिए. लड़कियों को अधिक पढ़ाने से क्या फायदा, फिर अभी इस उम्र में तो सब लड़कियां अच्छी लगती ही हैं, इसलिए लड़का भी आसानी से मिल जाएगा. वैसे, दीदी थी तो स्मार्ट पर रंग थोड़ा दबा होने की वजह से 2 जगहों से रिश्ते वापस हो चुके थे.

दीदी का मन अभी आगे पढ़ने का था. पर बड़ों के आगे उन की एक न चली. एक अच्छा वर देख कर दादाजी ने उन का संबंध तय कर ही दिया. सुनील जीजाजी अच्छी सरकारी नौकरी में थे. संपन्न परिवार था. बस, ताऊजी और दादाजी को और क्या चाहिए था.

दीदी बीए का इम्तिहान भी नहीं दे पाई थीं कि उन का विवाह हो गया. घर में पहली शादी थी तो खूब धूमधाम रही. गानाबजाना, दावतें सब चलीं और आखिरकार दीदी विदा हो गईं.

सब से अधिक दुख दीदी से बिछुड़ने का मुझे था. मैं जैसे एकदम अकेली हो गई थी. फिर कुछ दिनों बाद चाचा के बेटे रोहित को विदेश में स्कौलरशिप मिली थी बाहर जा कर पढ़ाई करने की, तो घर में एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया. दीदी को भी ससुराल से लाने के लिए भैया को भेजा गया पर ससुराल वालों ने कह दिया कि ऐसे छोटेमोटे समारोह के लिए बहू को नहीं भेजेंगे और अभीअभी तो आई ही है.

हम लोग मायूस तो थे ही, ऊपर से भैया ने जो उन की ससुराल का वर्णन किया उस से और भी दुखी हो गए. अरे, हमारी संजना दी को ताऊजी ने पता नहीं कैसे घर में ब्याह दिया. हमारी दी जो फर्राटे से शहरभर में स्कूटर पर घूम आती थीं, वो वहां घूंघट में कैद हैं. इतना बड़ा घर, ढेर सारे लोग, मैं तो खुल कर दीदी से बात भी नहीं कर पाया.

अच्छा तो क्या सभी ससुरालें ऐसी ही होती हैं? मेरे सपनों को जैसे एक आघात लगा था. मैं तो सोच रही थी कि वहां ताईजी, मां जैसे डांटने वाले या टोकने वाले लोग तो होंगे नहीं, आराम से जीजाजी के साथ घूमतीफिरती होंगी. खूब मजे होंगे. मन हुआ कि जल्दी ही दीदी से मिलूं और पूछूं कि आप तो परदे, घूंघट सब के इतने खिलाफ थीं, इतने लैक्चर देती रहती थीं, अब क्या हुआ?

फिर कुछ ही दिनों बाद जीजाजी को किसी ट्रेनिंग के सिलसिले में महीनेभर के लिए बेंगलुरु जाना था तो दीदी जिद कर के मायके आ गई थीं.  मैं तो उन्हें देखते ही चौंक गई थी, इतनी दुबली और काली लगने लगी थीं.

मां ने तो कह भी दिया था, ‘अरे संजना बेटा, लड़कियां तो ससुराल जा कर अच्छी सेहत बना कर आती हैं. पर तुझे क्या हुआ?’ पर धीरेधीरे पता चला कि ससुराल वाले उन से खुश नहीं हैं. सास तो अकसर ताना देती रहती हैं कि पता नहीं कैसे मांबाप हैं इस के कि घर के कामकाज तक नहीं सिखाए, 4 लोगों का खाना तक नहीं बना सकती ये बहू, अब इस की पढ़ाई को क्या हम चाटें.

‘मां, मैं अब ससुराल नहीं जाऊंगी, मेरा वहां दम घुटता है. सास के साथ ये भी हरदम डांटते रहते हैं और मेरी कमियां निकालते हैं.’ एक दिन रोते हुए वे ताईजी से कह रही थीं तो मैं ने भी सुन लिया. पर ताईजी ने उलटा उन्हें ही डांटा. ‘पागल हो गई है क्या? ससुराल छोड़ कर यहां रहेगी, समाज में हमारी थूथू कराने आई है. अरे, हमें अभी अपनी और लड़कियां भी ब्याहनी है, कौन ब्याहेगा फिर रंजना और वंदना को, बता?’

इधर मां ने भी दीदी को समझाया, ‘देख बेटा, हम तो पहले ही कहते थे कि घर के कामकाज सीख ले. ससुराल में सब से पहले यही देखा जाता है. पर कोई बात नहीं, अभी कौन सी उम्र निकल गई है. अब सिखाए देते हैं. अच्छा खाना बनाएगी, सलीके से घर रखेगी तो सास भी खुश होगी और हमारे जमाईजी भी.’

दीदी के नानुकुर करने पर भी मां उन्हें जबरन चौके में ले जातीं और तरहतरह के व्यंजन, अचार आदि बनाने की शिक्षा देतीं. हम लोग सोचते ही रह जाते कि कब दीदी को समय मिलेगा और हम लोगों के साथ हंसेगी, खेलेंगी, बोलेंगी.

एक महीना कब निकल गया, मालूम ही नहीं पड़ा था. जीजाजी आ कर दीदी को विदा करा के ले गए. मैं फिर सोचती, पता नहीं हमारी दीदी के साथ ससुराल में कैसा सुलूक होता होगा. फिर पढ़ाई का बोझ दिनोंदिन बढ़ता गया और दीदी की यादें कुछ कम हो गईं.

2 वर्षों बाद भैया की शादी में दीदी और जीजाजी भी आए थे. पर अब दीदी का हुलिया ही बदल हुआ लगा. वैसे, सेहत पहले से बेहतर हो गई थी पर वे हर समय साड़ी में सिर ढके रहतीं?

‘‘दीदी, ये तुम्हारी ससुराल थोड़े ही है, जो चाहे, वह पहनो,’’ मुझ से रहा नहीं गया और कह दिया.

‘‘देख रितु, तेरे जीजाजी को जो पसंद है वही तो करना चाहिए न मुझे. अब अगर इन्हें पसंद है कि मैं साड़ी पहनूं, सिर ढक कर रहूं, तो वही सही.’’

‘‘अच्छा, इतनी आज्ञाकारिणी कब से हो गई हो?’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘होना पड़ता है बहना, घर की सुखशांति बनाए रखने के लिए अपनेआप को बदलना भी पड़ता है. ये सब बातें तुम तब समझोगी, जब तेरी शादी हो जाएगी,’’ कह कर दीदी ने बात बदल दी.

पर मैं देख रही थी कि दीदी हर समय जीजाजी के ही कामों में लगी रहतीं. उन के लिए अलग से चाय खुद बनातीं. खाना बनता तो गरम रोटी सिंकते ही पहले जीजाजी की थाली खुद ही लगा कर ले जातीं. कभी उन के लिए गरम नाश्ता बना रही होतीं तो कभी उन के कपड़े निकाल रही होतीं.

एक प्रकार से जैसे वे पति के प्रति पूर्ण समर्पित हो गई थीं. जीजाजी भी हर काम के लिए उन्हें ही आवाज देते.

‘‘संजू, मेरी फलां चीज कहां हैं, ये कहां है, वो कहां है.’’

मां, ताईजी तो बहुत खुश थीं कि हमारी संजना ने आखिरकार ससुराल में अपना स्थान बना ही लिया.

मैं अब अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी. 2 वर्षों के लिए जिद कर के होस्टल में रहने चली गई थी. बीच में दीदी मायके आई होंगी पर मेरा उन से मिलना हो नहीं पाया.

एक बार फिर छुट्टियों में मैं उन की ससुराल जा कर ही उन से मिली थी. अब तो दीदी के दोनों जेठों ने अलग घर बना लिए थे. सास बड़े जेठ के पास रहती थीं. इतने बड़े घर में दीदी, जीजाजी और उन के दोनों बच्चे ही थे.

‘‘दीदी, अब तो आप आराम से अपने हिसाब से जी सकती हो और अपने शौक भी पूरे कर सकती हो,’’ मैं ने उन्हें इस बार भी हरदम सिर ढके देख कर कह ही दिया.

‘‘देख रितु, मैं अब अच्छी तरह समझ गई हूं कि अगर मुझे इस घर में शांति बनाए रखनी है तो मुझे तेरे जीजाजी के हिसाब से ही अपनेआप को ढालना होगा. तभी ये मुझे से खुश रह सकते हैं. ये एक परंपरागत परिवार से जुडे़ रहे हैं तो जाहिर है कि सोच भी उसी प्रकार की है.’’

यह सच भी था कि दीदी ने अपनेआप को जीजाजी की रुचि के अनुसार ढाल लिया था. वैसे, घर में काफी नौकरचाकर थे पर चूंकि जीजाजी किसी के हाथ का बना खाना खाते नहीं थे इसलिए दीदी स्वयं ही दोनों समय का खाना यहां तक कि नाश्ता तक  स्वयं बनातीं. और तो और, पूरा घर भी जीजाजी की रुचि के अनुसार ही सजा हुआ था. घर में ढेरों पुस्तकें, कई महापुरुषों के फोटो हर कमरे में थे. अब तो आसपास के लोग भी इस जोड़े को आदर्श जोड़े का नाम देने लगे थे.

शादी के बाद मैं पति के साथ अमेरिका चली गई. देश की धरती से दूर. साल 2 साल में कभी कुछ दिनों के लिए भारत आती तो भी दीदी से कभी 2-4 दिनों के लिए ही मिलना हुआ और कभी नहीं.

हां, यह अवश्य था कि अगर मैं कभी अपने पति सुभाष की कोई शिकायत मां से करती तो वे फौरन कहतीं, ‘अपनी संजना दीदी को देख, कैसे बदला है उस ने अपनेआप को. कैसे सुनीलजी लट्टू हैं उन पर. अरे, तुझे तो सारी सुविधाएं मिली हुई हैं, आजादी के माहौल में रह रही है, फिर भी शिकायतें.’

मैं सोचती कि भले ही मैं अमेरिका में हूं पर पुरुष मानसिकता जो भारत में है वही इन की अमेरिका में भी है. अब मैं कहां तक अपनेआप को बदलूं. आखिर इन्हें भी तो कुछ बदलना चाहिए.

बस, ऐसे ही खट्टीमीठी यादों के साथ जिंदगी चल रही थी. फिर अचानक ही दुखद समाचार मिला सुनील जीजाजी के निधन का. मैं तो हतप्रभ रह गई. दीदी की शक्ल जैसे मेरी आंखों के सामने से हट ही नहीं पा रही थी. कैसे संभाला होगा उन्होंने अपनेआप को. वे तो पूरी तरह से पति की अनुगामिनी बन चुकी थीं. भारत में होती तो अभी उन के पास पहुंच जाती. फिर किसी प्रकार 6 महीने बाद आने का प्रोग्राम बना. सोचा कि पहले कोलकाता जाऊंगी दीदी के पास. बाद में भोपाल अपनी ससुराल और फिर ग्वालियर अपने मायके.

दीदी को फोन पर मैं ने अपने आने की सूचना भी दे दी और कह भी दिया था कि आप चिंता न करें, मैं टैक्सी ले कर घर पहुंच जाऊंगी. अब अकेले आनेजाने का अच्छा अभ्यास है मुझे.

‘ठीक है रितु,’ दीदी ने कहा था.

पर रास्तेभर मैं यही सोचती रही कि दीदी का सामना कैसे करूंगी. सांत्वना के तो शब्द ही नहीं मिल रहे थे मुझे. वे तो इतनी अधिक पति के प्रति समर्पित रही हैं कि क्या उन के बिना जी पाएंगी. जितना मैं सोचती उतना ही मन बेचैन होता रहा था.

पर कोलकाता एयरपोर्ट पर पहुंच कर तो मैं चौंक ही गई. दीदी खड़ी थीं. सामने ड्राइवर हेमराज के साथ और उन का रूप इतना बदला हुआ था. कहां मैं कल्पना कर रही थी कि वे साड़ी से सिर ढके उदास सी मिलेंगी पर यहां तो आकर्षक सलवार सूट में थीं. बाल करीने से पीछे बंधे हुए थे. माथे पर छोटी सी बिंदी भी थी. उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं.

‘‘दीदी, आप? आप क्यों आईं, मैं पहुंच जाती.’’

मैं कह ही रही थी कि हेमराज ने टोक दिया, ‘‘अरे, ये तो अकेली आ रही थीं, कार चलाना जो सीख लिया है. मैं तो जिद कर के साथ आया कि लंबा रास्ता है और रात का टाइम है.’’

‘‘अच्छा.’’

मुझे तो लग रहा था कि जैसे मैं दीदी से पिछड़ गई हूं. इतने साल अमेरिका में रह कर भी मुझे अभी तक गाड़ी चलाने में झिझक होती है और दीदी हैं…लग भी कितनी स्मार्ट रही हैं. रास्तेभर वे हंसतीबोलती रहीं, यहां तक कि जीजाजी के बारे में कोई खास बात नहीं की उन्होंने. मैं ने ही 2-4 बार जिक्र किया तो टाल गई थीं.

घर पहुंच कर मैं ने देखा कि अब तो पूरा घर दीदी की रुचि के अनुसार ही सजा हुआ है. उन की पसंद की पुस्तकें सामने शीशे की अलमारी में नजर आ रही थीं. कई संस्थाओं के फोटो भी लगे हुए थे. पता चला कि अब चूंकि पर्याप्त समय था उन के पास, इसलिए अब कई सामाजिक संस्थाओं से भी वे जुड़ गई थीं और अपनी पसंद के कार्य कर रही थीं.

अब तो खाना बनाने के लिए भी एक अलग नौकर सूरज था उन के पास. सुबह ब्रैकफास्ट में भी पूरी टेबल सजी रहती. फलजूस और कोई गरम नाश्ता. लंच में भी पूरी डाइट रहती थी. भले ही उन का अकेले का खाना बना हो पर वे पूरी रुचि और सुघड़ता से ही सब कार्य करवाती थीं. ड्राइवर रोज शाम को आ जाता. अगर कहीं मिलने नहीं भी जाना हो, तो वे खुद ड्राइविंग करतीं लेकिन ड्राइवर साथ रहता.

तात्पर्य यह कि वे अपने सभी शौक पूरे कर रही थीं. फिर भी अकेलापन तो था ही, इसीलिए मैं ने कह ही दिया, ‘‘दीदी, यहां इतने बड़े मकान में, इस महानगर में अकेली रह रही हो, बेटे के पास जमशेदपुर…’’

‘‘नहीं रितु, अब कुछ साल मरजी से, अपनी खुशी के लिए. अभी तक तो सब के हिसाब से जीती रही, अब

कुछ साल तो जिऊं अपने लिए, सिर्फ अपने लिए.’’

मैं अवाक हो कर उन का मुंह ताक रही थी.

मौडल लव लैटर्स : एक ‘फ्लैपर’ जो मिसाल बनी जेल्डा फिट्जगेराल्ड

नारीवादी जेल्डा उन तमाम बंधनों को तोड़ती चली गई जो महिलाओं को अभिव्यक्त करने से रोकते थे. उन की जिंदगी की तरह एफ स्कौट के साथ उन का प्यार खूब चर्चित रहा, जिसे उन्होंने पत्र के माध्यम से व्यक्त भी किया.

अमेरिका जैसे अत्याधुनिक देश में एक समय था जब ‘फ्लैपर’ उन औरतों को कहा जाता था जो खुले छोटे बाल, घुटने तक स्कर्ट, मेकअप करने व जैज सुनने वाली, शराबसिगरेट पीने, सैक्स का जिक्र सामान्य रूप से करने वाली होती थीं. ‘फ्लैपर’ यानी बदचलन या वेश्या. यह एक तरह से उन महिलाओं के लिए स्लैंग था जो उन्मुक्त सोच रखती थीं.

ऐसी ही ‘फ्लैपर’ शब्द से नवाजी गई लेखिका व पेंटर थीं जेल्डा फिट्जगेराल्ड. कंधे तक छोटे बाल, होंठों पर लिपस्टिक, घुटने से ऊपर तक स्कर्ट और तेज चाल की मालकिन. जेल्डा का जन्म साल 1900 में अलबामा के मोंटगोमरी में खातेपीते परिवार में हुआ था पर उन के विचार सोशलिस्ट थे. वे अपने 6 भाईबहनों में सब से छोटी थीं. दिलचस्प यह कि उन का नाम उन की मां ने 1866 में पब्लिश हुई नौवेल ‘जेल्डा : अ टेल औफ द मैसाचुसेट्स कालोनी’ में एक जिप्सी कैरेक्टर ‘जेल्डा’ के नाम पर रखा था.

अपनी जवानी में जेल्डा ने उन सारे टैबू को तोड़ने की कोशिश की जो महिलाओं के लिए ‘सभ्य’ के टैग से बंधे हुए थे. जेल्डा की जिंदगी में बदलाव आया जब 1918 में उन का एफ स्कौट फिट्जगेराल्ड से मिलना हुआ. स्कौट भावी उपन्यासकार थे और आगे जा कर वे प्रेम में मिली निराशा से फेमस उपन्यास ‘दिस साइड औफ पैराडाइज’ लिखने जा रहे थे. इस के अलावा उन के हिस्से दुनिया की सफलतम जेज ऐज का उपन्यास ‘द ग्रेट गेट्स बी’ भी आने वाला था. ये उपन्यास जेल्डा के जीवन से इंस्पायर्ड कहे जाते हैं.

जेल्डा और स्कौट का रिश्ता जितना उन्मुक्त था उतना ही कंट्रोवर्शियल भी. प्रेम, अलगाव और फिर लगाव उन की जिंदगी में चलता रहा. उन की शादी हुई पर जीवन में नाटकीयता कम नहीं हुई. बहुत से लोग जेल्डा के शारीरिक साहस के बारे में बात करते हैं जैसे फौआरों में कूदना, मेजों पर नाचना, चट्टानों से कूदना. लेकिन कम ही लोग उन के उस भावनात्मक पहलू के बारे में जानते हैं जो पत्रों के माध्यम से देखने को मिलता है.

आज के इंटरनैट युग में युवा खासकर लड़कियां उन्मुक्त जिंदगी तो चाह रही हैं जिन्हें वे अपने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इंस्टाग्राम, फेसबुक में जाहिर करती हैं पर वे उन भावनात्मक पहलुओं को नजरअंदाज कर देती हैं जो जेल्डा के स्कौट को लिखे पत्रों से सीखे जा सकते हैं कि आप के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द होने चाहिए, शब्द जो सटीक हों, जिन्हें रील्स में किसी और के गाए गानों, या फिल्मी डायलौग से नहीं बल्कि खुद से, अपने दिल से कहे जाएं.   द्य

बसंत 1919,

एएल, 8 पृष्ठ. प्रिंसटन विश्वविद्यालय

मोंटगोमरी, अलबामा

स्कौट, मेरे प्यारे प्रेमी, सबकुछ इतना शांत और सुकूनभरा लगता है, जैसे यह पीली सां झ. यह जान कर कि मैं हमेशा तुम्हारी रहूंगी और तुम सच में मु झे अपना मानते हो और कोई भी हमें अलग नहीं कर सकता. पिछले महीने के तनाव और घबराहट के बाद यह एक बड़ी राहत है. मैं बहुत खुश हूं कि तुम आए जैसे गरमी का मौसम, ठीक उसी समय जब मु झे तुम्हारी सब से ज्यादा जरूरत थी और तुम मु झे अपने साथ ले गए. अब इंतजार करना इतना मुश्किल नहीं लगता. वह अस्पष्ट निराशा अब चली गई है. मैं तुम से प्यार करती हूं, स्वीटहार्ट.

मैं चाहती थी कि बस तुम्हें उस मिठास से प्यार हो जो मेरे होंठों ने तुम्हें दी, सांस लेते हुए यह जानना कि तुम्हें उस की खुशबू पसंद है. मु झे लगता है कि मु झे सां झ के बगीचे और पतंगे अच्छी तसवीरों या अच्छी किताबों से ज्यादा पसंद हैं. यह इंद्रियों में सब से अधिक संवेदनशील लगता है. मेरा मन कुछेक धुंधली, सपनों जैसी खुशबू से  झन झना जाता है. एक ऐसी खुशबू, जो मरते हुए चांद और परछाइयों की याद दिलाती है.

मैं ने आज का दिन कब्रिस्तान में बिताया. वैसे यह सच में कब्रिस्तान नहीं है, तुम जानते हो. मैं ने एक पुराने जंग लगे लोहे के ताले को खोलने की कोशिश की, जो पहाड़ी के किनारे पर बना हुआ था. यह सब धुला हुआ है और उदास, पानीभरे नीले फूलों से ढका हुआ है, जो शायद मरी हुई आंखों से उग आए हों. यह छूने में चिपचिपा और बदबूदार है. लड़के मेरे साहस की परीक्षा लेने के लिए अंदर जाना चाहते थे.

आज रात मैं ‘विलियम व्रैफर्ड, 1864’ को महसूस करना चाहती थी. कब्रें लोगों को व्यर्थ महसूस क्यों कराती हैं? मैं ने यह बहुत सुना है, और ग्रे (त्रह्म्द्ग4) इसे बहुत प्रभावी ढंग से कहता है. मु झे जीवन जीने में कुछ भी निराशाजनक नहीं लगता. सभी टूटे हुए स्तंभ, जुड़े हुए हाथ, कबूतर और फरिश्ते प्रेमकथाएं हैं और 100 साल बाद मु झे अच्छा लगेगा कि युवा लोग इस पर अटकलें लगाएं कि मेरी आंखें भूरी थीं या नीली. बेशक, वे दोनों में से कोई नहीं थीं.

मैं चाहती हूं कि मेरी कब्र में सैकड़ों साल पहले का एहसास हो. यह कितना अजीब है कि कौन्फेडरेट सैनिकों की एक पंक्ति में से दो या तीन ही तुम्हें मृत प्रेमियों और मृत प्रेमों की याद दिलाते हैं जबकि वे सभी बिलकुल एकजैसे होते हैं. हम एकसाथ मरेंगे, मु झे पता है.

-तुम्हारी जेल्डा

ट्रांस जर्नलिस्ट आदित्य राणा : ‘अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है’

अकसर गले में हार, हाथों में चूड़ी और माथे पर लगी बिंदी को महिला के साथ जोड़ कर देखा जाता है. गैटअप जरूर किसी जैंडर की आइडैंटिटी को दर्शाता हो लेकिन काम नहीं. इसी बात को साबित किया है एक ऐसे शख्स ने जो बौलीवुड के गलियारे का सब से यंग और चहेता ट्रांस जर्नलिस्ट है. जी हां, हम बात कर रहे हैं आदित्य राणा की, जोकि एक ट्रांसजैंडर जर्नलिस्ट है.

हाल ही में बिग बौस ओटीटी 3 में मीडिया राउंड के दौरान रैपर नैजी और एक जर्नलिस्ट के बीच मामला गरम होता देखा गया. यह मामला सोशल मीडिया में खूब गरमाया. देखने को मिला कि नैजी एक जर्नलिस्ट पर भड़क रहा था. जिस जर्नलिस्ट पर नैजी भड़का वह आदित्य राणा था.

आदित्य ने बहुत कम समय में अपनी खुद की एक अलग पहचान बना ली है, जो कि एक ट्रांसजैंडर जर्नलिस्ट है. अकसर वह गले में बड़ेबड़े औक्साइड हार, हाथों में बैंगल्स और नाक में लौंग डाले नजर आता है. वह अपने इसी लुक में अपने सारे इंटरव्यूज लेता है. उस के बात करने का स्टाइल लड़कियों जैसा ही है और यही उसे बाकियों से खास बनाता है.

कैरियर की शुरुआत

आदित्य ने अपने कैरियर की शुरुआत एक लोकल न्यूजपेपर में रिपोर्टर के रूप में की थी. वह उस में क्राइम रिपोर्टर था. इस के बाद उस ने चंडीगढ़ में मौर्निंग का रेडियो शो किया. 2 साल से भी कम समय में मायानगरी मुंबई में आदित्य ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. वह बौलीवुड गलियारे का सब से फेमस जर्नलिस्ट बन गया है, वह भी बहुत कम समय में. इंस्टाग्राम पर उस का अकाउंट ‘आदित्य राणा उर्फ ए से आदि’ नाम से है जिस पर करीब 24 हजार फौलोअर्स हैं.

नामीगिरामी शख्सियत के लिए इंटरव्यू

बात करें अगर आदित्य के कैरियर की तो आदित्य ने अपने छोटे से कैरियर में कई नामीगिरामी शख्सियतों के इंटरव्यू लिए हैं. उन में सुष्मिता सेन, मनीषा कोइराला, विद्या बालन, अमीषा पटेल, आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर, राजकुमार राव, सोनम कपूर जैसे बड़ेबड़े स्टार्स शामिल हैं. वह फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और बिग बौस ओटीटी 2 के विनर एल्विश यादव का भी इंटरव्यू कर चुका है.

इस के अलावा उस ने पूर्व कपड़ा मंत्री तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का भी इंटरव्यू किया है, जिस में उस ने स्मृति से राजनीति और ट्रांसजैंडर से जुड़े सवालजवाब किए. आदित्य ने ट्रांजैंडर कम्युनिटी से जुड़े लोग जैसे गौरी सावंत, जोकि एक फेमस ट्रांसजैंडर एक्टिविस्ट हैं, ऋतुपर्णा बोरा, जो ट्रांसजैंडर अधिकारों की एक प्रमुख आवाज है, के भी इंटरव्यू किए हैं और उन से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की. आदित्य एक ट्रांसजैंडर टीचर मानवी बंधोपाध्याय से भी बातचीत कर चुका है.

फिल्मी ज्ञान से जुड़े

आदित्य ‘फिल्मी ज्ञान’ का एडिटर और होस्ट दोनों है. वह अपने यूनीक स्टाइल के लिए भी जाना जाता है. आदित्य जर्नलिस्ट होने के साथसाथ एक कत्थक डांसर भी है. उसे सैलेब्स सब से ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि वह पत्रकारिता  और काम करने का अपना अलग अंदाज रखता है.

आदित्य ने अपने मंच और काबिलीयत का इस्तेमाल एलजीबीटीक्यू समुदाय को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करने के लिए किया. भेदभाव और रूढि़वादी सोच का सामना करने के बावजूद वह डटा रहा, सोशल मीडिया पर मिलने वाली ट्रोलिंग इस बात की गवाह है. उस की इस भावना ने ही उसे अपने लक्ष्य से डगमागाने नहीं दिया.

समाज कम्युनिटी को करता है अनदेखा

भारतीय समाज में ट्रांसजैंडर को एक अलग ही हीनभावना से देखा जाता है. हालांकि यह भावना अब थोड़ीथोड़ी बदल रही है लेकिन फिर भी इन के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार की अनदेखी नहीं की जा सकती. होता यह कि ट्रांसजैंडर खुले दिमाग या कहें ओपन माइंडेड होते हैं. ये वही करते हैं जो इन्हें सही लगता है. ये धर्मकर्म से अलग हो कर सोचते हैं. वहीं साधारण लोगों के जीवन में धर्म तय करता है कि क्या करना है और क्या नहीं. जबकि ट्रांसजैंडर में ऐसा कुछ नहीं है, वे अपनी मरजी के खुद मालिक होते हैं और इसलिए ही रूढि़वादी समाज उन का बहिष्कार करता है.

यह समाज एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के साथ हमेशा ही भेदभाव करता आया है. उन्हें समाज के बाकी लोगों की तरह न देख कर एक कलंक के रूप में देखा जाता है. इस कम्युनिटी के लोगों के साथ समाज के रूढि़वादी और छोटी सोच वाले दकियानूसी लोगों ने जीवन के हर पड़ाव पर दुर्व्यवहार किया है.

इस का एक उदाहरण हाल ही में प्रियांशु यादव की खुदकुशी है. ट्रोलर्स ने प्रियांशु को इतना ट्रोल किया कि उस ने अपनी जिंदगी को ही खत्म कर लिया.

आदित्य ने भी एक इंटरव्यू में अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, ‘‘मेरे स्कूल की 12वीं क्लास में पढ़ने वाले एक लड़के ने मुझे वाशरूम में लौक कर दिया था. मैं वहां कई घंटों तक बंद रहा था.’’ वह कहता है कि आप को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है.

बनना होगा बैस्ट

आदित्य ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि जर्नलिस्ट बनना कोई आसान काम नहीं है, खासकर, आप जब एक ट्रांसजैंडर हैं. आप को गैस्ट के इंटरव्यू के लिए कई घंटों तक इंतजार करना पड़ता है. आदित्य ने अपना एक एक्स्पीरियंस बताते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ एक बार ऐसा भी हुआ है कि एक इंटरव्यू लेने के लिए मुझे 9 घंटे का लंबा इंतजार करना पड़ा. करीब 2 घंटे तो वाशरूम में ही बैठा रहा. 9 घंटे का समय काटना बिलकुल भी आसान नहीं था. उस समय मैं बहुत इरिटेट हो चुका था. लेकिन जब इंटरव्यू अच्छा हो गया तो मैं सब भूल गया. मुझे लगा कि मेरा इंतजार करना सफल रहा.’’

आदित्य अपने अनुभव के आधार पर कहता है कि अगर आप को लोगों के सवालों से बचना है तो आप को अपने काम में औसत नहीं रहना होगा बल्कि आप को अपने काम में बैस्ट बनना होगा. आप को अपने काम में एक्स्ट्रा देना होगा. तभी आप को पहचान मिलेगी, तभी आप लोगों को मुंहतोड़ जवाब  दे पाएंगे.

नए दौर की मौडर्न मौम्स और इनकी चुनौतियां

नए दौर की मां को मौडर्न मौम कह सकते हैं क्योंकि मौडर्न होने का अर्थ है बदलते वक्त के साथ सही तालमेल बैठाते हुए आगे बढ़ना. आज की मां भी कुछ ऐसा ही कर रही है इसलिए वह मां नहीं बल्कि मौडर्न मौम कही जा रही है. आज के बदलते समय में वह सिर्फ घर के प्रति अपने सारे दायित्व ही नहीं निभा रही बल्कि बाहर जा कर नौकरी भी कर रही या अपना व्यवसाय भी संभाल रही है.

मौडर्न मौम की इस दोहरी भूमिका ने साबित कर दिया है कि वह मौडर्न या स्मार्ट जमाने की मौडर्न या स्मार्ट मौम है. एक मौडर्न या स्मार्ट मौम को कम समय में बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाना हैं जैसे बच्चों को अच्छे संस्कार देना, उन के हर सवाल का जवाब भी देना, संतुष्ट भी करना है, नई तकनीक भी सीखनी है एवं उस का सही इस्तेमाल भी सिखाना है.

बच्चों के साथसाथ खुद को एवं परिवार को भी स्वस्थ रखना है, हार से सीखना भी है एवं प्रतियोगिता के इस दौर में उन के आत्मविश्वास को भी बढ़ाना है. एक मौडर्न मौम इन नई चुनौतियों के साथ आगे बढ़ रही है और अपने सारे दायत्व, कर्तव्य बखूबी निभा रही है.

मौडर्न मौम्स की चुनौतियां

आजकल की अधिकतर मौम्स वर्किंग हैं जिस के कारण उन के पास समय का अभाव बना रहता है इसलिए उन को बच्चों के लिए अलग से समय निकलना कई बार किसी चुनौती से कम नहीं होता जिस के चलते उन के पास बच्चों के साथ अच्छा समय गुजारने, साथ में हंसनेखेलने का वक्त नहीं मिलता. इस कारण बच्चे मां से धीरेधीरे इमोशनली डिटैच होने लगते हैं. फैमिली बौंडिंग का अभाव, बातचीत की कमी से आपसी सहानुभूति, प्यार और पारिवारिक मूल्यों का अभाव देखने को मिलता है.

साथ ही यह समस्या तब और भी गहरी हो जाती है जब वे किसी समस्या या उलझन में होते हैं तो इस वक्त को अकेले झेलने की वजह से बच्चों के मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगता है इसलिए जरूरी है कि बच्चों की परवरिश में मातापिता केवल पोषण और खर्च को ही प्राथमिकता न दें बल्कि उन्हें अपने साथ हमेशा होने का एहसास कराते रहें ताकि वे इमोशनली अटैच रहें, साथ ही वे बच्चों के साथ जो समय बिताएं वे क्वालिटी समय हो.

डिजिटल दुनिया से दूर रखना

पहले के समय बच्चे केवल टीवी देखते थे और वह भी एक निश्चित समय के लिए लेकिन आजकल इस डिजिटल इंटरनैट की दुनिया में बच्चों के हाथ में हर वक्त मोबाइल रहता है जिस के कारण उन के पास वेब पर सभी प्रकार की सामग्री असीमित और अप्रतिबंधित पहुंचती है इसलिए बच्चों को मोबाइल से दूर रखना किसी चुनौती से कम नहीं. ऐसे में आज की मौडर्न मौम बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना है, साथ ही उन्हें यह भी बताना है कि डिजिटल इंटरनैट की दुनिया में क्या देखना है और क्या नहीं क्योंकि उन को नहीं पता होता है कि उन्हें क्या कंटैंट देखना और क्या नहीं. उन की एक गलती भारी पड़ सकती है.

कई बार बच्चे जानकारी के आभाव में कुछ गलत फोटो, वीडियो और जानकारी शेयर कर देते हैं और कमैंट्स भी कर देते हैं. उन पर नजर बनाए रखने के लिए आज की मां ने हाईटैक तकनीकों का इस्तेमाल करना सीखा है ताकि बच्चे संस्कारों से दूर न हों और किसी गलत आदत का शिकार न बन जाएं इस से बचने के लिए उन्हें इस का सही इस्तेमाल करना सिखाएं.

बच्चों को स्वस्थ रखना एवं जागरूक करना

बच्चों के लालनपालन व परिवार की सेहत का खयाल रखना प्राय: मां की ही जिम्मेदारी कही जाती है. आज जिस तेजी से समय व परिस्थितियां बदल रही हैं, उसी तेजी के साथ बच्चों की खानपान संबंधी आदतें भी बदल रही हैं.

आज वे रोटी और परांठे की जगह बर्गर, सैंडविच और पिज्जा को बढ़ावा दे रहे हैं. जंक फूड कुछ ज्यादा ही खाना पसंद कर रहे हैं. इस का सीधा असर उन की सेहत पर पड़ रहा है. वे मोटापे के शिकार हो रहे हैं इसलिए आज की मौडर्न मौम ने भी समय के अनुरूप खुद को ढालते हुए भोजन के साथ नएनए ऐक्सपैंरिमैंट कर नए तरीकों से बच्चों और परिवार वालों की पौष्टिक जरूरतें पूरी करना शुरू कर दिया है साथ ही बच्चों को बचपन से ही पौष्टिक आहार के बारे में जानकारी देना शुरू कर रही है, कौन सा आहार उन के लिए अच्छा है और उसे खाने से क्या फायदा हो सकता है इस के लिए उन्हें फलों और सब्जियों में मौजूद पौष्टिक तत्त्वों के बारे में बता रही है.

इस के लिए मातापिता भी अच्छे पौष्टिक आहार का सेवन कर रहे हैं ताकि बच्चे आप को देख कर उन्हें खाने की आदत डाल सकें और स्वस्थ खाने को अपनाएं. बच्चों, सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें बैलेंस डाइट देना बहुत जरूरी है क्योंकि बच्चों के साथसाथ पूरे परिवार व खुद को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी भी मां के कंधों पर ही होती है.

आउट डोर ऐक्टिविटीज को बढ़ाना

आजकल बच्चों की आउट डोर ऐक्टिविटी बहुत कम हो गई हैं उन का अधिकतर फ्री समय मोबाइल स्क्रीन के सामने गुजरता है. वे गेम्स खेलने के लिए घर के बाहर जाने के बजाय मोबाइल पर खेलना पसंद कर रहे हैं जिस के कारण उन का सही तरीके से शारीरिक विकास होना रुक गया है. इस का प्रभाव उन के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है और वे कम उम्र में ही मोटापा, तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं इसलिए एक मौडर्न मौम बच्चों को आउटडोर गेम्स के फायदे बता कर एवं उन के साथ खेल कर उन्हें बढ़ावा दे रही है.

उन की पसंदनापसंद की गेम्स की पहचान कर उन में उन की रुचि बनाए रखने के लिए उन का उचित मार्गदर्शन भी कर रही है.

बच्चे को संतुष्ट करना

मातृत्व की परिभाषा आज के बच्चों के लिए बहुत अलग हो गई है. बच्चे इन दिनों एक डिजिटल बचपन जी रहे हैं और एक डिजिटल वातावरण में बड़े हो रहे हैं. वे फोन चलाना पहले सीख रहे हैं और बोलना बाद में. आज के बच्चे किसी भी चीज के बारे में अस्पष्ट या जानकारी के आभाव में नहीं हैं. हजारों प्रश्न पूछ रहे हैं. उन को संतुष्ट करना मां के लिए व्यस्त जीवन में बहुत कठिन होता जा रहा है क्योंकि आजकल के बच्चों को बहलानाफुसलाना बहुत ही मुश्किल हैं. उन के सवालों की संख्या बढ़ती जा रही हैं.

मां रोजाना अपने बच्चे के साथ ज्यादा समय बिताने की कोशिश करती है इसलिए उन्हें सिखाने और अनुशासन देने का उसे ज्यादा मौका मिलता है.

परित्याग: क्या पहली पत्नी को छोड़ पाया रितेश

रितेश अपने औफिस में काम में व्यस्त था. पेशे से वह एक बहुत बड़ी आर्किटेक्ट फर्म में काम करता था. सारा समय वह काम में डूबा रहता था. उम्र उस की मात्र 32 वर्ष की ही थी, लेकिन उस के दिमाग के घोड़े जब दौड़ते थे, तब अनुभवी आर्किटेक्ट भी चारों खाने चित हो जाते थे.

हमेशा शांत रहने वाला रितेश एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था. घर से औफिस और औफिस से घर तक ही रितेश का जीवन सीमित था. रितेश का व्यक्तित्व साधारण था, गेहुंआ रंग और मध्यम कदकाठी. उस का शरीर किसी को आकर्षित नहीं करता था, लेकिन उस का काम और काम के प्रति समर्पण हर किसी को आकर्षित करता था.

औफिस के नजदीक ही उस ने रहने के लिए एक कमरा किराए पर लिया था. वह औफिस पैदल आया जाया करता था. उस के पास कोई कार, स्कूटर, बाइक वगैरह कुछ भी नहीं था. कमरे में एक बिस्तर, कुछ कपड़े, कुछ किताबें के अतिरिक्त कुछ बरतन, जिन में वह अपना खाना बनाया करता था. दाल, रोटी, चावल बनाना वह सीख गया था और इन्हीं में अपना गुजारा करता था. कभी रोटी नहीं भी बनाता था, फलाहार से काम चल जाता था.

औफिस में रिया नई आई थी. वह भी काम के प्रति समर्पित थी. सुबहसवेरे रिया को औफिस में रितेश नहीं दिखा. वह एक प्रोजैक्ट पर रितेश के साथ काम कर रही थी. उस ने फोन किया, लेकिन रितेश ने फोन नहीं उठाया. रितेश को रात में तेज बुखार हो गया था, जिस कारण वह करवटें बदलता रहा और सुबह नींद आई. तेज नींद के झौंके में फोन की घंटी उसे सुनाई नहीं दी.

औफिस में रितेश के बौस कमलनाथ को आश्चर्य हुआ कि बिना बताए रितेश कहां चला गया. उस ने कोई संदेश भी नहीं छोड़ा. रितेश औफिस के समीप ही रहता था, इसलिए लंच समय में टहलते हुए कमलनाथ रितेश के घर की ओर रिया के संग चल दिए.

रितेश एक मकान की तीसरी मंजिल पर बने एक कमरे में रहता था. जब कमलनाथ और रिया रितेश के कमरे में पहुंचे, तब डाक्टर रितेश का चेकअप कर रहा था. डाक्टर ने दवाई का परचा लिख दिया.

‘‘परचा तो आप ने लिख दिया, लेकिन बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही है,’’ रितेश ने डाक्टर को अपनी लाचारी बताई.

डाक्टर ने अपने बैग से दवा निकाल कर रितेश को दी और कहा, ‘‘यह दवा अभी ले लो. पानी किधर है.’’

पानी की बोतल बिस्तर के पास एक स्टूल पर रखी हुई थी. रितेश ने दवा ली. कमलनाथ ने डाक्टर से रितेश की तबीयत का हालचाल पूछा.

‘‘मैं कुछ टैस्ट लिख देता हूं. लैब का टैक्निशियन खून और पेशाब के सैंपल जांच के लिए यहीं से ले जाएगा. रितेश को तीन दिन से बुखार आ रह था. मुझे टाइफाइड लग रहा है.’’

डाक्टर के जाने के बाद कमलनाथ ने रितेश से दवा का परचा लिया और रिया को कैमिस्ट शौप से दवा लाने को कहा.

‘‘कमरे को देख कर ऐसा लगता है कि तुम अकेले रहते हो?’’ कमलनाथ ने रितेश से पूछा. रितेश ने गरदन हिला कर हां बोल दिया.

‘‘रितेश तुम आराम करो, मैं यहां औफिस बौय को भेज देता हूं. वह तुम्हारी मदद कर देगा. तुम कुछ दिन आराम करो, काम हम देख लेंगे,’’ रिया ने रितेश को दवा दी और कमलनाथ के संग वापस औफिस चली गई.

रितेश को बारबार उतरतेचढ़ते बुखार से कमजोरी हो गई. शाम को औफिस बौय रितेश के लिए बाजार से कुछ फल ले आया और दालचावल बना दिए. अगले दिन जांच रिपोर्ट आने पर टाइफाइड की पुष्टि हो गई.

रितेश औफिस जाने की स्थिति में नहीं था. टाइफाइटड ने उस का बदन निचोड़ लिया, जिस कारण वह औफिस नहीं जा सका.

3 दिन बाद कमलनाथ ने रितेश से उस की तबीयत पूछी और उस के औफिस आने की असमर्थता जताने पर जरूरी काम निबटाने के लिए रिया को उस के घर जा कर काम करने को कहा.

कमजोरी के कारण रितेश ने शेव भी नहीं बनाई थी. स्नान करने के पश्चात उस ने कपड़े बदले थे और चाय बना कर ब्रेड को चाय में डुबो कर खा रहा था.

फाइल और लैपटौप के साथ रिया रितेश के कमरे में पहुंची. पिछली शाम कमलनाथ से बातचीत के बाद रिया के उस के पास आ कर काम करने का कार्यक्रम बन गया था.

रितेश ने कमरा व्यवस्थित कर लिया था. बिस्तर पर नई बेडशीट बिछा दी थी और झाड़ू लगा कर कमरा साफ कर दिया था. 2 कुरसी के साथ एक गोल मेज थी.

सुबह का अखबार पढ़ते हुए रितेश चाय पी रहा था. ब्रेड को चाय में डुबा कर खाते देख रिया अपनी मुसकराहट रोक नहीं सकी. उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब वह भी चाय में बिसकुट और ब्रेड डुबो कर खाती थी.

‘‘मुसकराहट के पीछे का राज भी बता दो?’’ रितेश ने आखिर पूछ ही लिया.

रिया लैपटौप और फाइल गोल मेज पर रख कर एक कुरसी पर बैठ गई. रितेश ने रिया को चाय देते हुए कहा, ‘‘अभी बनाई है, गरम है. पहले चाय पी लो, फिर काम करते हैं. बिसकुट मीठे भी हैं और नमकीन भी हैं,’’ कह कर रितेश ने बिसकुट के डब्बे रिया के सामने रखे.

चाय पीने के पश्चात दोनों ने काम आरंभ किया. एक घंटा काम करने के पश्चात रितेश ने आंखें बंद कर लीं.
‘‘सर, आप को थकान हो रही है. कुछ देर के लिए काम रोक लेते हैं, बाद में कर लेते हैं.’’

‘‘टाइफाइड ने बदन निचोड़ लिया है, एकमुश्त काम नहीं होता है. थोड़ा आराम करता हूं, 10-15 मिनट बाद काम करते हैं.’’

‘‘जी सर, आप आराम कीजिए.’’

रितेश ने एफएम रेडियो लगाया. रेडियो पर गीत आ रहा था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रितेश ने एफएम स्टेशन बदल दिया, वहां नए गीत आ रहे थे.

‘‘अच्छा गाना था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रिया ने रितेश से कहा.

‘‘पुराना गीत है और साथ में थोड़ा उदासी वाला. शायद, आप को पसंद न आए, इसीलिए बदल लिया.’’

‘‘सर, मुझे नएपुराने सभी गीत पसंद हैं,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और काम फिर से शुरू कर दिया.

धीमे स्वर में एफएम रेडियो बजता रहा और हर आधे घंटे बाद रितेश काम बंद कर 10 मिनट आराम करता. दोपहर के एक बजे रिया ने रितेश से खाने के बारे में पूछा.

‘‘अभी गरम कर देता हूं. मूंग छिलके वाली दाल के साथ चावल बनाए हैं. आप भी लीजिए,’’ रितेश ने कहा.

‘‘मैं अपना टिफिन लाई हूं. आप आराम कीजिए, मैं खाना गरम कर देती हूं.’’

खाना खाते समय रिया ने रितेश से पारिवारिक प्रश्न पूछ ही लिया, ‘‘सर, आप की तबीयत ठीक नहीं है, अपने घर से किसी को बुला दीजिए.’’

‘‘बूढ़े मातापिता को मैं तकलीफ नहीं देना चाहता हूं. दोचार दिन में ठीक हो जाऊंगा. बहनभाई अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में रहते हैं. अब बुखार तो उतर ही गया है.’’

‘‘आप के मातापिता कहां रहते हैं?’’

‘‘बड़े भाई के साथ रहते हैं.’’

‘‘आप विवाह कर लीजिए, एक से दो भले,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और खाना खाने के बाद बोला, ‘‘विवाह के कारण ही यहां अकेला रह रहा हूं.’’

‘‘आप की पत्नी अलग रहती है?’’

‘‘मेरा पत्नी से तलाक हो गया है. 4 साल पहले मेरा रीमा से विवाह हुआ था. मैं भी आर्किटेक्ट और रीमा भी आर्किटेक्ट. हम दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.

“उस समय हम कोलकाता में काम करते थे. विवाह के एक महीने बाद ही रीमा अपने मायके गुवाहाटी गई और लौट कर नहीं आई.

“मैं ने उसे बुलाया, गुवाहाटी भी कर्ई बार लेने गया, पर वह मेरे साथ रहने को तैयार नहीं हुई. 6 महीने के प्रयास के बाद मैं ने थक कर बिना किसी कारण के रीमा का परित्याग करने पर हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक ले लिया. पिछले वर्ष कोर्ट ने तलाक पर मुहर लगा दी और मैं कोलकाता छोड़ कर दिल्ली आ गया.’’

‘‘कोई कारण तो अवश्य होगा?’’

‘‘उस ने कोर्ट में भी कोई कारण नहीं बताया और तलाक हो गया. विवाह के बाद हम मुश्किल से एक महीना साथ रहे. मुझे आज तक उस का बिना कारण छोड़ कर चले जाने का रहस्य समझ नहीं आया.

“जब उसे रहना ही नहीं था, तब विवाह क्यों किया? खैर, अब एक वर्ष से अकेला रह रहा हूं. अपने गुजारे के लिए खाना बना लेता हूं…

“आप जो गीत सुन रही थीं, वह मेरे हाल पर सही बैठता है. रीमा को भूलना चाहता हूं और वो याद आ जाती है.’’

‘‘वो तो मैं देख रही हूं,’’

रिया पूरे दिन रितेश के साथ रही, मिलजुल कर काम करते रहे और शाम को अपने बौस कमलनाथ को कार्य प्रगति की सूचना दी.

कमलनाथ ने रितेश को आराम करने को कहा कि औफिस आने की जल्दी न करे और रिया को अगले 3-4 दिन रितेश के घर से काम करने को कहा.

‘‘रिया, हमारे बौस भी महान हैं. मुझे आराम करने को कह रहे हैं और तुम्हें मेरे साथ काम करने को कह रहे हैं. जब काम करूंगा, तब आराम कैसे करूंगा.’’

‘‘मैं आप को परेशान नहीं करूंगी. आप अधिक आराम कीजिए और सिर्फ मुझे काम बता दीजिए. काम मैं कर लूंगी, क्योंकि मैं ने ऐसे प्रोजैक्ट पर काम नहीं किया है, इसलिए आप को अधिक नहीं थोड़ा सा परेशान करूंगी.’’

‘‘रिया, मैं तो मजाक कर रहा था, क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मैं एक मिनट भी खाली नहीं बैठ सकता हूं.’’

‘‘आप आराम कीजिए, अपना खाना मत बनाना. मैं आप के लिए खाना ले आऊंगी.’’

‘‘शाम को तो बनाना ही होगा.’’

‘‘शाम को जाते समय मैं बना दूंगी.’’

एक सप्ताह तक रिया रितेश के घर आ कर काम करती रही. शनिवार और रविवार की छुट्टी वाले दिन भी रिया रितेश के घर आई. काम करने के साथ दोनों पारिवारिक और औफिस की बातों पर चर्चा करते.

रिया भी तलाकशुदा थी, जिस का अभी 6 महीने पहले ही आपसी रजामंदी से तलाक हुआ था.

रिया अपने टिफिन में रितेश का भी खाना लाती और रात का खाना बना कर जाती. एक सप्ताह में रितेश और रिया ने अपने जीवन को साझा किया और छोटे से समय में कुछ नजदीक होते हुए.

रितेश स्वस्थ होने के बाद औफिस आने लगा. रिया रितेश के लिए खाना यथापूर्वक लाती रही. धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं और 5 महीने बाद दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे से लगने लगे.

एक दिन उन के बौस कमलनाथ ने उन्हें नया जीवन आरंभ करने की सलाह दी.

रितेश और रिया विवाह के बंधन में बंध गए. दिन गुजरते गए और दोनों दो से तीन हो गए. एक पुत्री के आने से दोनों का जीवन पूर्ण हो गया. रितेश कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता गया.

आर्किटेक्ट एसोसिएशन के अधिवेशन में रितेश का कोलकाता जाना हुआ. वहां रीमा ने उसे देख लिया. रितेश अपना कार्य संपन्न करने के बाद दिल्ली वापस आ गया. थोड़े दिन बाद उसे कोर्ट से नोटिस मिला.

नोटिस रीमा ने दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) के सैक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता देने के लिए था.

नोटिस मिलने पर उदास रितेश से रिया ने कारण पूछा.

‘‘रिया, जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता के लिए कोई आदेश जारी हुआ था?’’

‘‘रितेश, मेरा तलाक आपसी सहमति से हुआ था. हमारा लिखित अनुबंध हुआ था, जिस के तहत मुझे एकमुश्त रकम मिली थी. लेकिन तुम यह क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘रीमा ने गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट में केस किया है,’’ रितेश ने कोर्ट के नोटिस को रिया के आगे किया.

‘‘जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता नहीं मांगा था?’’

‘‘रिया, यह नोटिस मुझे इसलिए हैरान कर रहा है कि तलाक के केस के दौरान रीमा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया था. शादी के एक महीने के बाद बिना कारण वह मुझे छोड़ गई थी. इसी कारण पर तलाक हो गया था और उस ने गुजारा भत्ता के लिए कोई जिक्र ही नहीं किया था.’’

‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘कोर्ट का नोटिस है, वकील से बात करनी होगी. कोलकाता कोर्ट में तलाक हुआ था, वहीं कोर्ट में केस किया है. अब सारी कार्यवाही कोलकाता में होगी. दिल्ली में रहने वाला कोलकाता कोर्ट के चक्कर काटेगा. मुसीबत ही मुसीबत है. काम का हर्ज भी होगा, कोलकाता आनेजाने का खर्चा, वकील की फीस के साथ दिमाग चौबीस घंटे खराब और परेशान रहेगा,’’ कह कर रितेश गहरी सोच में डूब गया.

‘‘तुम चिंता मत करो. अब जो मुसीबत आ गई है, उस का मुकाबला मिल कर करेंगे. आप वकील से बात करो, अधिक चिंता मत करो,’’ रिया को अपने साथ कंधे से कंधे मिला कर खड़ा देख रितेश में हिम्मत आ गई और कोलकाता में उस वकील से बात की, जिस ने उस का तलाक का केस लड़ा था.

वकील बनर्जी बाबू ने रितेश को कोलकाता आ कर एक बार मिलने को कहा, ताकि केस की पैरवी की जा सके.

रितेश के साथ रिया भी कोलकाता में वकील बनर्जी से मिली. वकील बनर्जी तलाक की पुरानी फाइल देख कर कहता है कि आप का तलाक परित्याग के कारण हुआ था. रीमा ने बिना कारण आप का परित्याग किया है. गुजारा भत्ता क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सैक्शन 125 के अंदर मिलता है. उस ने देरी से केस फाइल किया है, जिस का हम विरोध करेंगे और दूसरी आपत्ति हमारी सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत करेंगे कि रीमा ने बिना किसी कारण आप का परित्याग किया और आप के साथ रहने से इनकार किया था. इन्हीं वजहों से तलाक मिला था और आप का गुजारा भत्ता देना नहीं बनता है. आप केस जीतेंगे, आप बेफिक्र रहें.’’

रिया ने अपने तलाक का जिक्र किया, तब वकील बनर्जी ने समझाया कि सैक्शन 125 के तहत आपसी रजामंदी से हुए तलाक में समझौते के अंतर्गत गुजारा भत्ता नहीं बनता है, क्योंकि ऐसे केस में एकमुश्त राशि पर समझौता होता है.

रितेश कोर्ट की तारीख पर कोलकाता आया. रीमा से आमनासामना हुआ. रितेश ने कहा, ‘‘रीमा, तुम ने बिना किसी कारण के मेरा परित्याग किया था, जिस कारण हमारा तलाक हुआ और अब तुम गुजारा भत्ता मांग रही हो, जो तुम्हारा हक भी नहीं है और मिलेगा भी नहीं.’’

‘‘रितेश, यह तो मेरा हक है. पहले नहीं मांगा, अब मांग लिया. यह तो देना ही होगा तुम्हें.’’

‘‘जब शादी से भाग गई, तब हक नहीं बनता है.’’

‘‘कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है, तुम मेरा हक नहीं छीन सकते हो.’’

‘‘अपने मन से पूछो, जब वैवाहिक जीवन का कोई दायित्व नहीं निभाया. तुम भाग खड़ी हुई. इस को भगोड़ा कहते हैं. कोर्ट भगोड़ों से कोई सहानुभूति नहीं रखती है. तुम अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘मैं ने केस वापस लेने के लिए नहीं किया है, गुजारा भत्ता लेने के लिए किया है.’’

‘‘क्या तुम ने शादी गुजारा भत्ता लेने की लिए की थी?’’

‘‘बिलकुल यही समझो.’’

‘‘तुम भारतीय स्त्री के नाम पर एक कलंक हो. विवाह जनमजनम का रिश्ता होता है. पति और पत्नी अपना संपूर्ण जीवन एकदूसरे पर न्यौछावर करते हैं. सुख और दुख में बराबर के भागीदार होते हैं. तुम ने क्या किया? विवाह से भाग खड़ी हुई, सिर्फ गुजारा भत्ता लेने के लिए?’’

‘‘अब जो भी बात होगी, कोर्ट में होगी. मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है,’’ कह कर रीमा चली गई.

कोर्ट में हर दूसरे महीने तारीख पड़ जाती. रितेश को औफिस से छुट्टी ले कर कोलकाता जाना पड़ता. वकील से बात कर के पेशी के दौरान की रणनीति बनानी पड़ती. कभी जज महोदय छुट्टी पर होते, तो कभी रीमा का वकील तारीख ले लेता कि वह दूसरी कोर्ट में व्यस्त है, कभी उस का वकील तारीख लेता और कभी वकीलों की हड़ताल के कारण तारीख मिल जाती. एक बार जज का तबादला हो गया और नए जज ने तारीख दे दी. तारीख पर तारीख के बीच कभीकभार दोचार मिनट की सुनवाई हो जाती.

रितेश कोर्ट के पचड़ों से परेशान था, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा था. आखिर तीन वर्ष बाद कोर्ट का फैसला आया.

रीमा की ओर से तर्क दिया गया कि सैक्शन 125 के अंतर्गत तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता का हक है, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह नहीं किया. जबकि रितेश की ओर से तर्क दिया गया, क्योंकि रीमा स्वयं विवाह के एक महीने बाद भाग गई थी और कई प्रयासों के बावजूद रितेश के संग नहीं रही और रीमा ने रितेश का परित्याग कर दिया और इसी कारण हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत तलाक हुआ और सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत रीमा जानबूझ कर रितेश के साथ नहीं रही, इसलिए वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है.

कोर्ट ने रितेश के पक्ष में फैसला दिया. रितेश प्रसन्न हो गया, लेकिन रीमा ने कोर्ट से बाहर आते ही रितेश को हाईकोर्ट में मिलने की चेतावनी दे दी.

रीमा ने हाईकोर्ट में अपील दायर की. अगले 3 वर्ष कोलकाता हाईकोर्ट के चक्कर काटने में लग गए. हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला सुनाया.

हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला इस आधार पर दिया कि रीमा का रितेश के साथ तलाक हो गया है. उस ने दोबारा विवाह नहीं किया. सैक्शन 125 के तहत रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है.

हाईकोर्ट के फैसले से रितेश मायूस हो गया कि उसे किस जुर्म की सजा मिल रही है. जुर्म उस का इतना कि उस ने अपने साथ औफिस में काम करने वाली सहकर्मी से विवाह किया, जो एक महीने बाद उसे त्याग कर भाग गई. गलती पत्नी की और गुजारा भत्ता दे पति, यह कहां का इंसाफ है.

रिया ने रितेश का हौसला बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी.

‘‘रिया, आज 6 वर्ष हो गए हैं मुकदमा लड़ते हुए. हिम्मत टूट गई है अब. बिना कुसूर के सजा काट रहा हूं मैं.’’

‘‘रितेश, हमारे देश और समाज की यह बहुत बड़ी विडंबना है कि बेकुसूर सजा भुगतता है और कुसूरवार मजे करते हैं. सैक्शन 125 एक भले काम के लिए बनाया गया है, लेकिन इस का दुरुपयोग रीमा जैसी औरतें करती हैं, जो भले पुरुषों से विवाह कर के छोड़ देती हैं और पुरुषों को जीवनभर बिना किसी कारण के दंड भुगतना पड़ता है.’’

रितेश ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला तीन वर्ष बाद आया.

सुप्रीम कोर्ट ने रितेश की दलील को अस्वीकार कर दिया कि रीमा ने दूसरी शादी नहीं की, इसलिए रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है. विवाह के बाद रीमा ने रितेश का परित्याग किया, जिस कारण हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक हो गया. सैक्शन 125 में तलाक के बाद गुजारा भत्ता है.

तलाक के बाद रीमा और रितेश स्वाभाविक रूप से अलग रहेंगे. यह अलग रहना ही गुजारा भत्ता दिलाता है.

रितेश की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया कि यह किस का परित्याग है. रीमा ने जानबूझ कर बिना कारण के रितेश का परित्याग किया और इस परित्याग के कारण रीमा को गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए.

रीमा पढ़ीलिखी आर्किटेक्ट है. वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है, लेकिन रीमा ने स्वयं को बेरोजगार बताया. रीमा ने दोबारा विवाह नहीं किया और बेरोजगार की बात मानते हुए रीमा के हक में फैसला किया.

10 वर्ष की लंबी कानूनी लड़ाई में चंद सिक्कों की जीत से रीमा को क्या मिला, यह रितेश और रिया नहीं समझ सके. ऐसी स्त्रियों को गुजारा भत्ता का कानून भी बेसिरपैर का लगा, लेकिन उन के हाथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधे हुए थे. आखिर कानून को अंधा क्यों बनाया हुआ है. अबला नारी को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन अबला पुरुष को सबला नारी से भी बचाना चाहिए. कानून को किताब से निकाल कर व्यावहारिक निर्णय लेने चाहिए. रितेश और रिया जवाब ढूंढ़ने में नाकामयाब हैं. उन के हाथ 10 वर्ष की लंबी लड़ाई के बाद सिर्फ निराशा ही मिली. सचझूठ के आवरण में छिप कर अपना स्वरूप खो बैठा.

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