कहीं मेरा बौयफ्रेंड मुझे धोखा तो नहीं दे रहा, कैसे पता करूं ?

सवाल-

मैं एक समस्या को ले कर काफी तनावग्रस्त हूं. मैं 4 वर्षों से एक लड़के से प्यार करती हूं. हम दोनों इस रिश्ते को ले कर काफी गंभीर थे. पर 2 महीनों से वह किसी और लड़की से बात करता है. मेरे सामने उस का फोन आने पर फोन काट देता है. मैं ने जब उस से इस बाबत पूछा तो उस ने यह कह कर टाल दिया कि बस सामान्य सी दोस्ती है और कुछ नहीं. मेरा शक इसलिए गहरा रहा है, क्योंकि रात 2-2 बजे तक उस का फोन बिजी जाता है. कृपया बताएं कि कैसे सचाई का पता लगाऊं कि उस के दिल में क्या है?

जवाब-

यदि आप के प्रेमी का व्यवहार आप के साथ सामान्य है अर्थात उस में कोई बदलाव नहीं आया है और वह आप को भरपूर समय देता है, आप की परवाह करता है तो आप को अपने प्रेमी की बात का यकीन करना चाहिए कि उक्त लड़की से उस की दोस्ती भर है. पर यदि आप को उस के व्यवहार में कुछ अंतर दिखता है, वह आप से कन्नी काटने लगा है तो आप को उस से खुल कर बात कर लेनी चाहिए.

उस की मंशा जान कर ही आप कोई निर्णय कर पाएंगी कि दोस्ती बनाए रखनी है या इस रिश्ते को यहीं विराम लगाना है. जो भी निर्णय करें सोचसमझ कर करें. जल्दबाजी न करें.

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 अगर आप का साथी लगातार फोन पर है, कभी कोने में, कभी दूसरे कमरे में जा कर चैटिंग करने लगता है, भले आप को उस पर कितना ही विश्वास हो, आप को उस की कुछ हरकतें तो खटक ही जाती हैं, आप को अलर्ट हो भी जाना चाहिए अगर इन में से कुछ बातों पर आप का ध्यान जाए.

वह अपने फोन से कौल्स और मैसेज डिलीट तो नहीं करता रहता? उस का फोन नए जैसा तो नहीं, न कोई मैसेज, न कौल की डिटेल्स, ये सब डिलीट करना चीटिंग का पावरफुल साइन है.

1. अकसर चीटिंग करने वाले पुरुष अपने अफेयर्स के नाम या नंबर को अलग तरह से रखते हैं.

2. क्या आप का साथी फोन पर बात करते हुए या चैटिंग करते हुए आप से एक दूरी तो नहीं रख रहा होता, आप उस की पार्टनर हैं, फैमिली या काम, किसी की भी बात आप से छिपाने की उसे जरूरत नहीं होने चाहिए.

3. आप से छिपाने का एक अच्छा रीजन भी हो सकता है, हो सकता है आप का साथी आप के लिए ही कोई सरप्राइज प्लान कर रहा हो, उस पर शक करने से पहले यह जरूर सुनिश्चित कर लें कि सच में क्या चल रहा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दबी हुई परतें : क्यों दीदी से मिलकर हैरान रह गई वह

हमारे संयुक्त परिवार में संजना दी सब से बड़ी थीं. बड़ी होने के साथ लीडरशिप की भावना उन में कूटकूट कर भरी थी. इसीलिए हम सब भाईबहन उन के आगेपीछे घूमते रहते थे और वे निर्देश देतीं कि अब क्या करना है. वे जो कह दें, वही हम सब के लिए एक आदर्श वाक्य होता था. सब से पहले उन्होंने साइकिल चलानी सीखी, फिर हम सब को एकएक कर के सिखाया. वैसे भी, चाहे खेल का मैदान हो या पढ़ाईलिखाई या स्कूल की अन्य गतिविधियां, दीदी सब में अव्वल ही रहती थीं. इसी वजह से हमेशा अपनी कक्षा की मौनीटर भी वही रहीं.

हां, घरेलू कामकाज जैसे खाना बनाना या सिलाईबुनाई में दीदी को जरा भी दिलचस्पी नहीं थी, इसीलिए उन की मां यानी मेरी ताईजी की डांट उन पर अकसर पड़ती रहती थी. पर इस डांटडपट का कोई असर उन पर होता नहीं था.

मुझ से तो 8-10 साल बड़ी थीं वे, इसीलिए मैं तो एक प्रकार से उन की चमची ही थी. मुझ से वे लाड़ भी बहुत करती थीं. कभीकभी तो मेरा होमवर्क तक कर देती थीं, कहतीं, ‘चल तू थक गई होगी रितु, तेरा क्लासवर्क मैं कर देती हूं, फिर तू भी खेलने चलना.’

बस, मैं तो निहाल हो जाती. इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि स्कूल में टीचर, दीदी की हैंडराइटिंग देख कर मुझे डांटेगीं. पर उस उम्र में इतनी समझ भी कहां थी.

हंसतेखेलते हम भाईबहन बड़े हो रहे थे. दीदी तब कालेज में बीए कर रही थीं कि ताऊजी को उन के विवाह की फिक्र होने लगी. ताऊजी व दादाजी की इच्छा थी कि सही उम्र में विवाह हो जाना चाहिए. लड़कियों को अधिक पढ़ाने से क्या फायदा, फिर अभी इस उम्र में तो सब लड़कियां अच्छी लगती ही हैं, इसलिए लड़का भी आसानी से मिल जाएगा. वैसे, दीदी थी तो स्मार्ट पर रंग थोड़ा दबा होने की वजह से 2 जगहों से रिश्ते वापस हो चुके थे.

दीदी का मन अभी आगे पढ़ने का था. पर बड़ों के आगे उन की एक न चली. एक अच्छा वर देख कर दादाजी ने उन का संबंध तय कर ही दिया. सुनील जीजाजी अच्छी सरकारी नौकरी में थे. संपन्न परिवार था. बस, ताऊजी और दादाजी को और क्या चाहिए था.

दीदी बीए का इम्तिहान भी नहीं दे पाई थीं कि उन का विवाह हो गया. घर में पहली शादी थी तो खूब धूमधाम रही. गानाबजाना, दावतें सब चलीं और आखिरकार दीदी विदा हो गईं.

सब से अधिक दुख दीदी से बिछुड़ने का मुझे था. मैं जैसे एकदम अकेली हो गई थी. फिर कुछ दिनों बाद चाचा के बेटे रोहित को विदेश में स्कौलरशिप मिली थी बाहर जा कर पढ़ाई करने की, तो घर में एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया. दीदी को भी ससुराल से लाने के लिए भैया को भेजा गया पर ससुराल वालों ने कह दिया कि ऐसे छोटेमोटे समारोह के लिए बहू को नहीं भेजेंगे और अभीअभी तो आई ही है.

हम लोग मायूस तो थे ही, ऊपर से भैया ने जो उन की ससुराल का वर्णन किया उस से और भी दुखी हो गए. अरे, हमारी संजना दी को ताऊजी ने पता नहीं कैसे घर में ब्याह दिया. हमारी दी जो फर्राटे से शहरभर में स्कूटर पर घूम आती थीं, वो वहां घूंघट में कैद हैं. इतना बड़ा घर, ढेर सारे लोग, मैं तो खुल कर दीदी से बात भी नहीं कर पाया.

अच्छा तो क्या सभी ससुरालें ऐसी ही होती हैं? मेरे सपनों को जैसे एक आघात लगा था. मैं तो सोच रही थी कि वहां ताईजी, मां जैसे डांटने वाले या टोकने वाले लोग तो होंगे नहीं, आराम से जीजाजी के साथ घूमतीफिरती होंगी. खूब मजे होंगे. मन हुआ कि जल्दी ही दीदी से मिलूं और पूछूं कि आप तो परदे, घूंघट सब के इतने खिलाफ थीं, इतने लैक्चर देती रहती थीं, अब क्या हुआ?

फिर कुछ ही दिनों बाद जीजाजी को किसी ट्रेनिंग के सिलसिले में महीनेभर के लिए बेंगलुरु जाना था तो दीदी जिद कर के मायके आ गई थीं.  मैं तो उन्हें देखते ही चौंक गई थी, इतनी दुबली और काली लगने लगी थीं.

मां ने तो कह भी दिया था, ‘अरे संजना बेटा, लड़कियां तो ससुराल जा कर अच्छी सेहत बना कर आती हैं. पर तुझे क्या हुआ?’ पर धीरेधीरे पता चला कि ससुराल वाले उन से खुश नहीं हैं. सास तो अकसर ताना देती रहती हैं कि पता नहीं कैसे मांबाप हैं इस के कि घर के कामकाज तक नहीं सिखाए, 4 लोगों का खाना तक नहीं बना सकती ये बहू, अब इस की पढ़ाई को क्या हम चाटें.

‘मां, मैं अब ससुराल नहीं जाऊंगी, मेरा वहां दम घुटता है. सास के साथ ये भी हरदम डांटते रहते हैं और मेरी कमियां निकालते हैं.’ एक दिन रोते हुए वे ताईजी से कह रही थीं तो मैं ने भी सुन लिया. पर ताईजी ने उलटा उन्हें ही डांटा. ‘पागल हो गई है क्या? ससुराल छोड़ कर यहां रहेगी, समाज में हमारी थूथू कराने आई है. अरे, हमें अभी अपनी और लड़कियां भी ब्याहनी है, कौन ब्याहेगा फिर रंजना और वंदना को, बता?’

इधर मां ने भी दीदी को समझाया, ‘देख बेटा, हम तो पहले ही कहते थे कि घर के कामकाज सीख ले. ससुराल में सब से पहले यही देखा जाता है. पर कोई बात नहीं, अभी कौन सी उम्र निकल गई है. अब सिखाए देते हैं. अच्छा खाना बनाएगी, सलीके से घर रखेगी तो सास भी खुश होगी और हमारे जमाईजी भी.’

दीदी के नानुकुर करने पर भी मां उन्हें जबरन चौके में ले जातीं और तरहतरह के व्यंजन, अचार आदि बनाने की शिक्षा देतीं. हम लोग सोचते ही रह जाते कि कब दीदी को समय मिलेगा और हम लोगों के साथ हंसेगी, खेलेंगी, बोलेंगी.

एक महीना कब निकल गया, मालूम ही नहीं पड़ा था. जीजाजी आ कर दीदी को विदा करा के ले गए. मैं फिर सोचती, पता नहीं हमारी दीदी के साथ ससुराल में कैसा सुलूक होता होगा. फिर पढ़ाई का बोझ दिनोंदिन बढ़ता गया और दीदी की यादें कुछ कम हो गईं.

2 वर्षों बाद भैया की शादी में दीदी और जीजाजी भी आए थे. पर अब दीदी का हुलिया ही बदल हुआ लगा. वैसे, सेहत पहले से बेहतर हो गई थी पर वे हर समय साड़ी में सिर ढके रहतीं?

‘‘दीदी, ये तुम्हारी ससुराल थोड़े ही है, जो चाहे, वह पहनो,’’ मुझ से रहा नहीं गया और कह दिया.

‘‘देख रितु, तेरे जीजाजी को जो पसंद है वही तो करना चाहिए न मुझे. अब अगर इन्हें पसंद है कि मैं साड़ी पहनूं, सिर ढक कर रहूं, तो वही सही.’’

‘‘अच्छा, इतनी आज्ञाकारिणी कब से हो गई हो?’’ मैं ने चिढ़ कर कहा.

‘‘होना पड़ता है बहना, घर की सुखशांति बनाए रखने के लिए अपनेआप को बदलना भी पड़ता है. ये सब बातें तुम तब समझोगी, जब तेरी शादी हो जाएगी,’’ कह कर दीदी ने बात बदल दी.

पर मैं देख रही थी कि दीदी हर समय जीजाजी के ही कामों में लगी रहतीं. उन के लिए अलग से चाय खुद बनातीं. खाना बनता तो गरम रोटी सिंकते ही पहले जीजाजी की थाली खुद ही लगा कर ले जातीं. कभी उन के लिए गरम नाश्ता बना रही होतीं तो कभी उन के कपड़े निकाल रही होतीं.

एक प्रकार से जैसे वे पति के प्रति पूर्ण समर्पित हो गई थीं. जीजाजी भी हर काम के लिए उन्हें ही आवाज देते.

‘‘संजू, मेरी फलां चीज कहां हैं, ये कहां है, वो कहां है.’’

मां, ताईजी तो बहुत खुश थीं कि हमारी संजना ने आखिरकार ससुराल में अपना स्थान बना ही लिया.

मैं अब अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी. 2 वर्षों के लिए जिद कर के होस्टल में रहने चली गई थी. बीच में दीदी मायके आई होंगी पर मेरा उन से मिलना हो नहीं पाया.

एक बार फिर छुट्टियों में मैं उन की ससुराल जा कर ही उन से मिली थी. अब तो दीदी के दोनों जेठों ने अलग घर बना लिए थे. सास बड़े जेठ के पास रहती थीं. इतने बड़े घर में दीदी, जीजाजी और उन के दोनों बच्चे ही थे.

‘‘दीदी, अब तो आप आराम से अपने हिसाब से जी सकती हो और अपने शौक भी पूरे कर सकती हो,’’ मैं ने उन्हें इस बार भी हरदम सिर ढके देख कर कह ही दिया.

‘‘देख रितु, मैं अब अच्छी तरह समझ गई हूं कि अगर मुझे इस घर में शांति बनाए रखनी है तो मुझे तेरे जीजाजी के हिसाब से ही अपनेआप को ढालना होगा. तभी ये मुझे से खुश रह सकते हैं. ये एक परंपरागत परिवार से जुडे़ रहे हैं तो जाहिर है कि सोच भी उसी प्रकार की है.’’

यह सच भी था कि दीदी ने अपनेआप को जीजाजी की रुचि के अनुसार ढाल लिया था. वैसे, घर में काफी नौकरचाकर थे पर चूंकि जीजाजी किसी के हाथ का बना खाना खाते नहीं थे इसलिए दीदी स्वयं ही दोनों समय का खाना यहां तक कि नाश्ता तक  स्वयं बनातीं. और तो और, पूरा घर भी जीजाजी की रुचि के अनुसार ही सजा हुआ था. घर में ढेरों पुस्तकें, कई महापुरुषों के फोटो हर कमरे में थे. अब तो आसपास के लोग भी इस जोड़े को आदर्श जोड़े का नाम देने लगे थे.

शादी के बाद मैं पति के साथ अमेरिका चली गई. देश की धरती से दूर. साल 2 साल में कभी कुछ दिनों के लिए भारत आती तो भी दीदी से कभी 2-4 दिनों के लिए ही मिलना हुआ और कभी नहीं.

हां, यह अवश्य था कि अगर मैं कभी अपने पति सुभाष की कोई शिकायत मां से करती तो वे फौरन कहतीं, ‘अपनी संजना दीदी को देख, कैसे बदला है उस ने अपनेआप को. कैसे सुनीलजी लट्टू हैं उन पर. अरे, तुझे तो सारी सुविधाएं मिली हुई हैं, आजादी के माहौल में रह रही है, फिर भी शिकायतें.’

मैं सोचती कि भले ही मैं अमेरिका में हूं पर पुरुष मानसिकता जो भारत में है वही इन की अमेरिका में भी है. अब मैं कहां तक अपनेआप को बदलूं. आखिर इन्हें भी तो कुछ बदलना चाहिए.

बस, ऐसे ही खट्टीमीठी यादों के साथ जिंदगी चल रही थी. फिर अचानक ही दुखद समाचार मिला सुनील जीजाजी के निधन का. मैं तो हतप्रभ रह गई. दीदी की शक्ल जैसे मेरी आंखों के सामने से हट ही नहीं पा रही थी. कैसे संभाला होगा उन्होंने अपनेआप को. वे तो पूरी तरह से पति की अनुगामिनी बन चुकी थीं. भारत में होती तो अभी उन के पास पहुंच जाती. फिर किसी प्रकार 6 महीने बाद आने का प्रोग्राम बना. सोचा कि पहले कोलकाता जाऊंगी दीदी के पास. बाद में भोपाल अपनी ससुराल और फिर ग्वालियर अपने मायके.

दीदी को फोन पर मैं ने अपने आने की सूचना भी दे दी और कह भी दिया था कि आप चिंता न करें, मैं टैक्सी ले कर घर पहुंच जाऊंगी. अब अकेले आनेजाने का अच्छा अभ्यास है मुझे.

‘ठीक है रितु,’ दीदी ने कहा था.

पर रास्तेभर मैं यही सोचती रही कि दीदी का सामना कैसे करूंगी. सांत्वना के तो शब्द ही नहीं मिल रहे थे मुझे. वे तो इतनी अधिक पति के प्रति समर्पित रही हैं कि क्या उन के बिना जी पाएंगी. जितना मैं सोचती उतना ही मन बेचैन होता रहा था.

पर कोलकाता एयरपोर्ट पर पहुंच कर तो मैं चौंक ही गई. दीदी खड़ी थीं. सामने ड्राइवर हेमराज के साथ और उन का रूप इतना बदला हुआ था. कहां मैं कल्पना कर रही थी कि वे साड़ी से सिर ढके उदास सी मिलेंगी पर यहां तो आकर्षक सलवार सूट में थीं. बाल करीने से पीछे बंधे हुए थे. माथे पर छोटी सी बिंदी भी थी. उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं.

‘‘दीदी, आप? आप क्यों आईं, मैं पहुंच जाती.’’

मैं कह ही रही थी कि हेमराज ने टोक दिया, ‘‘अरे, ये तो अकेली आ रही थीं, कार चलाना जो सीख लिया है. मैं तो जिद कर के साथ आया कि लंबा रास्ता है और रात का टाइम है.’’

‘‘अच्छा.’’

मुझे तो लग रहा था कि जैसे मैं दीदी से पिछड़ गई हूं. इतने साल अमेरिका में रह कर भी मुझे अभी तक गाड़ी चलाने में झिझक होती है और दीदी हैं…लग भी कितनी स्मार्ट रही हैं. रास्तेभर वे हंसतीबोलती रहीं, यहां तक कि जीजाजी के बारे में कोई खास बात नहीं की उन्होंने. मैं ने ही 2-4 बार जिक्र किया तो टाल गई थीं.

घर पहुंच कर मैं ने देखा कि अब तो पूरा घर दीदी की रुचि के अनुसार ही सजा हुआ है. उन की पसंद की पुस्तकें सामने शीशे की अलमारी में नजर आ रही थीं. कई संस्थाओं के फोटो भी लगे हुए थे. पता चला कि अब चूंकि पर्याप्त समय था उन के पास, इसलिए अब कई सामाजिक संस्थाओं से भी वे जुड़ गई थीं और अपनी पसंद के कार्य कर रही थीं.

अब तो खाना बनाने के लिए भी एक अलग नौकर सूरज था उन के पास. सुबह ब्रैकफास्ट में भी पूरी टेबल सजी रहती. फलजूस और कोई गरम नाश्ता. लंच में भी पूरी डाइट रहती थी. भले ही उन का अकेले का खाना बना हो पर वे पूरी रुचि और सुघड़ता से ही सब कार्य करवाती थीं. ड्राइवर रोज शाम को आ जाता. अगर कहीं मिलने नहीं भी जाना हो, तो वे खुद ड्राइविंग करतीं लेकिन ड्राइवर साथ रहता.

तात्पर्य यह कि वे अपने सभी शौक पूरे कर रही थीं. फिर भी अकेलापन तो था ही, इसीलिए मैं ने कह ही दिया, ‘‘दीदी, यहां इतने बड़े मकान में, इस महानगर में अकेली रह रही हो, बेटे के पास जमशेदपुर…’’

‘‘नहीं रितु, अब कुछ साल मरजी से, अपनी खुशी के लिए. अभी तक तो सब के हिसाब से जीती रही, अब

कुछ साल तो जिऊं अपने लिए, सिर्फ अपने लिए.’’

मैं अवाक हो कर उन का मुंह ताक रही थी.

मौडल लव लैटर्स : एक ‘फ्लैपर’ जो मिसाल बनी जेल्डा फिट्जगेराल्ड

नारीवादी जेल्डा उन तमाम बंधनों को तोड़ती चली गई जो महिलाओं को अभिव्यक्त करने से रोकते थे. उन की जिंदगी की तरह एफ स्कौट के साथ उन का प्यार खूब चर्चित रहा, जिसे उन्होंने पत्र के माध्यम से व्यक्त भी किया.

अमेरिका जैसे अत्याधुनिक देश में एक समय था जब ‘फ्लैपर’ उन औरतों को कहा जाता था जो खुले छोटे बाल, घुटने तक स्कर्ट, मेकअप करने व जैज सुनने वाली, शराबसिगरेट पीने, सैक्स का जिक्र सामान्य रूप से करने वाली होती थीं. ‘फ्लैपर’ यानी बदचलन या वेश्या. यह एक तरह से उन महिलाओं के लिए स्लैंग था जो उन्मुक्त सोच रखती थीं.

ऐसी ही ‘फ्लैपर’ शब्द से नवाजी गई लेखिका व पेंटर थीं जेल्डा फिट्जगेराल्ड. कंधे तक छोटे बाल, होंठों पर लिपस्टिक, घुटने से ऊपर तक स्कर्ट और तेज चाल की मालकिन. जेल्डा का जन्म साल 1900 में अलबामा के मोंटगोमरी में खातेपीते परिवार में हुआ था पर उन के विचार सोशलिस्ट थे. वे अपने 6 भाईबहनों में सब से छोटी थीं. दिलचस्प यह कि उन का नाम उन की मां ने 1866 में पब्लिश हुई नौवेल ‘जेल्डा : अ टेल औफ द मैसाचुसेट्स कालोनी’ में एक जिप्सी कैरेक्टर ‘जेल्डा’ के नाम पर रखा था.

अपनी जवानी में जेल्डा ने उन सारे टैबू को तोड़ने की कोशिश की जो महिलाओं के लिए ‘सभ्य’ के टैग से बंधे हुए थे. जेल्डा की जिंदगी में बदलाव आया जब 1918 में उन का एफ स्कौट फिट्जगेराल्ड से मिलना हुआ. स्कौट भावी उपन्यासकार थे और आगे जा कर वे प्रेम में मिली निराशा से फेमस उपन्यास ‘दिस साइड औफ पैराडाइज’ लिखने जा रहे थे. इस के अलावा उन के हिस्से दुनिया की सफलतम जेज ऐज का उपन्यास ‘द ग्रेट गेट्स बी’ भी आने वाला था. ये उपन्यास जेल्डा के जीवन से इंस्पायर्ड कहे जाते हैं.

जेल्डा और स्कौट का रिश्ता जितना उन्मुक्त था उतना ही कंट्रोवर्शियल भी. प्रेम, अलगाव और फिर लगाव उन की जिंदगी में चलता रहा. उन की शादी हुई पर जीवन में नाटकीयता कम नहीं हुई. बहुत से लोग जेल्डा के शारीरिक साहस के बारे में बात करते हैं जैसे फौआरों में कूदना, मेजों पर नाचना, चट्टानों से कूदना. लेकिन कम ही लोग उन के उस भावनात्मक पहलू के बारे में जानते हैं जो पत्रों के माध्यम से देखने को मिलता है.

आज के इंटरनैट युग में युवा खासकर लड़कियां उन्मुक्त जिंदगी तो चाह रही हैं जिन्हें वे अपने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इंस्टाग्राम, फेसबुक में जाहिर करती हैं पर वे उन भावनात्मक पहलुओं को नजरअंदाज कर देती हैं जो जेल्डा के स्कौट को लिखे पत्रों से सीखे जा सकते हैं कि आप के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द होने चाहिए, शब्द जो सटीक हों, जिन्हें रील्स में किसी और के गाए गानों, या फिल्मी डायलौग से नहीं बल्कि खुद से, अपने दिल से कहे जाएं.   द्य

बसंत 1919,

एएल, 8 पृष्ठ. प्रिंसटन विश्वविद्यालय

मोंटगोमरी, अलबामा

स्कौट, मेरे प्यारे प्रेमी, सबकुछ इतना शांत और सुकूनभरा लगता है, जैसे यह पीली सां झ. यह जान कर कि मैं हमेशा तुम्हारी रहूंगी और तुम सच में मु झे अपना मानते हो और कोई भी हमें अलग नहीं कर सकता. पिछले महीने के तनाव और घबराहट के बाद यह एक बड़ी राहत है. मैं बहुत खुश हूं कि तुम आए जैसे गरमी का मौसम, ठीक उसी समय जब मु झे तुम्हारी सब से ज्यादा जरूरत थी और तुम मु झे अपने साथ ले गए. अब इंतजार करना इतना मुश्किल नहीं लगता. वह अस्पष्ट निराशा अब चली गई है. मैं तुम से प्यार करती हूं, स्वीटहार्ट.

मैं चाहती थी कि बस तुम्हें उस मिठास से प्यार हो जो मेरे होंठों ने तुम्हें दी, सांस लेते हुए यह जानना कि तुम्हें उस की खुशबू पसंद है. मु झे लगता है कि मु झे सां झ के बगीचे और पतंगे अच्छी तसवीरों या अच्छी किताबों से ज्यादा पसंद हैं. यह इंद्रियों में सब से अधिक संवेदनशील लगता है. मेरा मन कुछेक धुंधली, सपनों जैसी खुशबू से  झन झना जाता है. एक ऐसी खुशबू, जो मरते हुए चांद और परछाइयों की याद दिलाती है.

मैं ने आज का दिन कब्रिस्तान में बिताया. वैसे यह सच में कब्रिस्तान नहीं है, तुम जानते हो. मैं ने एक पुराने जंग लगे लोहे के ताले को खोलने की कोशिश की, जो पहाड़ी के किनारे पर बना हुआ था. यह सब धुला हुआ है और उदास, पानीभरे नीले फूलों से ढका हुआ है, जो शायद मरी हुई आंखों से उग आए हों. यह छूने में चिपचिपा और बदबूदार है. लड़के मेरे साहस की परीक्षा लेने के लिए अंदर जाना चाहते थे.

आज रात मैं ‘विलियम व्रैफर्ड, 1864’ को महसूस करना चाहती थी. कब्रें लोगों को व्यर्थ महसूस क्यों कराती हैं? मैं ने यह बहुत सुना है, और ग्रे (त्रह्म्द्ग4) इसे बहुत प्रभावी ढंग से कहता है. मु झे जीवन जीने में कुछ भी निराशाजनक नहीं लगता. सभी टूटे हुए स्तंभ, जुड़े हुए हाथ, कबूतर और फरिश्ते प्रेमकथाएं हैं और 100 साल बाद मु झे अच्छा लगेगा कि युवा लोग इस पर अटकलें लगाएं कि मेरी आंखें भूरी थीं या नीली. बेशक, वे दोनों में से कोई नहीं थीं.

मैं चाहती हूं कि मेरी कब्र में सैकड़ों साल पहले का एहसास हो. यह कितना अजीब है कि कौन्फेडरेट सैनिकों की एक पंक्ति में से दो या तीन ही तुम्हें मृत प्रेमियों और मृत प्रेमों की याद दिलाते हैं जबकि वे सभी बिलकुल एकजैसे होते हैं. हम एकसाथ मरेंगे, मु झे पता है.

-तुम्हारी जेल्डा

ट्रांस जर्नलिस्ट आदित्य राणा : ‘अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है’

अकसर गले में हार, हाथों में चूड़ी और माथे पर लगी बिंदी को महिला के साथ जोड़ कर देखा जाता है. गैटअप जरूर किसी जैंडर की आइडैंटिटी को दर्शाता हो लेकिन काम नहीं. इसी बात को साबित किया है एक ऐसे शख्स ने जो बौलीवुड के गलियारे का सब से यंग और चहेता ट्रांस जर्नलिस्ट है. जी हां, हम बात कर रहे हैं आदित्य राणा की, जोकि एक ट्रांसजैंडर जर्नलिस्ट है.

हाल ही में बिग बौस ओटीटी 3 में मीडिया राउंड के दौरान रैपर नैजी और एक जर्नलिस्ट के बीच मामला गरम होता देखा गया. यह मामला सोशल मीडिया में खूब गरमाया. देखने को मिला कि नैजी एक जर्नलिस्ट पर भड़क रहा था. जिस जर्नलिस्ट पर नैजी भड़का वह आदित्य राणा था.

आदित्य ने बहुत कम समय में अपनी खुद की एक अलग पहचान बना ली है, जो कि एक ट्रांसजैंडर जर्नलिस्ट है. अकसर वह गले में बड़ेबड़े औक्साइड हार, हाथों में बैंगल्स और नाक में लौंग डाले नजर आता है. वह अपने इसी लुक में अपने सारे इंटरव्यूज लेता है. उस के बात करने का स्टाइल लड़कियों जैसा ही है और यही उसे बाकियों से खास बनाता है.

कैरियर की शुरुआत

आदित्य ने अपने कैरियर की शुरुआत एक लोकल न्यूजपेपर में रिपोर्टर के रूप में की थी. वह उस में क्राइम रिपोर्टर था. इस के बाद उस ने चंडीगढ़ में मौर्निंग का रेडियो शो किया. 2 साल से भी कम समय में मायानगरी मुंबई में आदित्य ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. वह बौलीवुड गलियारे का सब से फेमस जर्नलिस्ट बन गया है, वह भी बहुत कम समय में. इंस्टाग्राम पर उस का अकाउंट ‘आदित्य राणा उर्फ ए से आदि’ नाम से है जिस पर करीब 24 हजार फौलोअर्स हैं.

नामीगिरामी शख्सियत के लिए इंटरव्यू

बात करें अगर आदित्य के कैरियर की तो आदित्य ने अपने छोटे से कैरियर में कई नामीगिरामी शख्सियतों के इंटरव्यू लिए हैं. उन में सुष्मिता सेन, मनीषा कोइराला, विद्या बालन, अमीषा पटेल, आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर, राजकुमार राव, सोनम कपूर जैसे बड़ेबड़े स्टार्स शामिल हैं. वह फेमस सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और बिग बौस ओटीटी 2 के विनर एल्विश यादव का भी इंटरव्यू कर चुका है.

इस के अलावा उस ने पूर्व कपड़ा मंत्री तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का भी इंटरव्यू किया है, जिस में उस ने स्मृति से राजनीति और ट्रांसजैंडर से जुड़े सवालजवाब किए. आदित्य ने ट्रांजैंडर कम्युनिटी से जुड़े लोग जैसे गौरी सावंत, जोकि एक फेमस ट्रांसजैंडर एक्टिविस्ट हैं, ऋतुपर्णा बोरा, जो ट्रांसजैंडर अधिकारों की एक प्रमुख आवाज है, के भी इंटरव्यू किए हैं और उन से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की. आदित्य एक ट्रांसजैंडर टीचर मानवी बंधोपाध्याय से भी बातचीत कर चुका है.

फिल्मी ज्ञान से जुड़े

आदित्य ‘फिल्मी ज्ञान’ का एडिटर और होस्ट दोनों है. वह अपने यूनीक स्टाइल के लिए भी जाना जाता है. आदित्य जर्नलिस्ट होने के साथसाथ एक कत्थक डांसर भी है. उसे सैलेब्स सब से ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि वह पत्रकारिता  और काम करने का अपना अलग अंदाज रखता है.

आदित्य ने अपने मंच और काबिलीयत का इस्तेमाल एलजीबीटीक्यू समुदाय को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करने के लिए किया. भेदभाव और रूढि़वादी सोच का सामना करने के बावजूद वह डटा रहा, सोशल मीडिया पर मिलने वाली ट्रोलिंग इस बात की गवाह है. उस की इस भावना ने ही उसे अपने लक्ष्य से डगमागाने नहीं दिया.

समाज कम्युनिटी को करता है अनदेखा

भारतीय समाज में ट्रांसजैंडर को एक अलग ही हीनभावना से देखा जाता है. हालांकि यह भावना अब थोड़ीथोड़ी बदल रही है लेकिन फिर भी इन के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार की अनदेखी नहीं की जा सकती. होता यह कि ट्रांसजैंडर खुले दिमाग या कहें ओपन माइंडेड होते हैं. ये वही करते हैं जो इन्हें सही लगता है. ये धर्मकर्म से अलग हो कर सोचते हैं. वहीं साधारण लोगों के जीवन में धर्म तय करता है कि क्या करना है और क्या नहीं. जबकि ट्रांसजैंडर में ऐसा कुछ नहीं है, वे अपनी मरजी के खुद मालिक होते हैं और इसलिए ही रूढि़वादी समाज उन का बहिष्कार करता है.

यह समाज एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के साथ हमेशा ही भेदभाव करता आया है. उन्हें समाज के बाकी लोगों की तरह न देख कर एक कलंक के रूप में देखा जाता है. इस कम्युनिटी के लोगों के साथ समाज के रूढि़वादी और छोटी सोच वाले दकियानूसी लोगों ने जीवन के हर पड़ाव पर दुर्व्यवहार किया है.

इस का एक उदाहरण हाल ही में प्रियांशु यादव की खुदकुशी है. ट्रोलर्स ने प्रियांशु को इतना ट्रोल किया कि उस ने अपनी जिंदगी को ही खत्म कर लिया.

आदित्य ने भी एक इंटरव्यू में अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, ‘‘मेरे स्कूल की 12वीं क्लास में पढ़ने वाले एक लड़के ने मुझे वाशरूम में लौक कर दिया था. मैं वहां कई घंटों तक बंद रहा था.’’ वह कहता है कि आप को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है.

बनना होगा बैस्ट

आदित्य ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि जर्नलिस्ट बनना कोई आसान काम नहीं है, खासकर, आप जब एक ट्रांसजैंडर हैं. आप को गैस्ट के इंटरव्यू के लिए कई घंटों तक इंतजार करना पड़ता है. आदित्य ने अपना एक एक्स्पीरियंस बताते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ एक बार ऐसा भी हुआ है कि एक इंटरव्यू लेने के लिए मुझे 9 घंटे का लंबा इंतजार करना पड़ा. करीब 2 घंटे तो वाशरूम में ही बैठा रहा. 9 घंटे का समय काटना बिलकुल भी आसान नहीं था. उस समय मैं बहुत इरिटेट हो चुका था. लेकिन जब इंटरव्यू अच्छा हो गया तो मैं सब भूल गया. मुझे लगा कि मेरा इंतजार करना सफल रहा.’’

आदित्य अपने अनुभव के आधार पर कहता है कि अगर आप को लोगों के सवालों से बचना है तो आप को अपने काम में औसत नहीं रहना होगा बल्कि आप को अपने काम में बैस्ट बनना होगा. आप को अपने काम में एक्स्ट्रा देना होगा. तभी आप को पहचान मिलेगी, तभी आप लोगों को मुंहतोड़ जवाब  दे पाएंगे.

नए दौर की मौडर्न मौम्स और इनकी चुनौतियां

नए दौर की मां को मौडर्न मौम कह सकते हैं क्योंकि मौडर्न होने का अर्थ है बदलते वक्त के साथ सही तालमेल बैठाते हुए आगे बढ़ना. आज की मां भी कुछ ऐसा ही कर रही है इसलिए वह मां नहीं बल्कि मौडर्न मौम कही जा रही है. आज के बदलते समय में वह सिर्फ घर के प्रति अपने सारे दायित्व ही नहीं निभा रही बल्कि बाहर जा कर नौकरी भी कर रही या अपना व्यवसाय भी संभाल रही है.

मौडर्न मौम की इस दोहरी भूमिका ने साबित कर दिया है कि वह मौडर्न या स्मार्ट जमाने की मौडर्न या स्मार्ट मौम है. एक मौडर्न या स्मार्ट मौम को कम समय में बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाना हैं जैसे बच्चों को अच्छे संस्कार देना, उन के हर सवाल का जवाब भी देना, संतुष्ट भी करना है, नई तकनीक भी सीखनी है एवं उस का सही इस्तेमाल भी सिखाना है.

बच्चों के साथसाथ खुद को एवं परिवार को भी स्वस्थ रखना है, हार से सीखना भी है एवं प्रतियोगिता के इस दौर में उन के आत्मविश्वास को भी बढ़ाना है. एक मौडर्न मौम इन नई चुनौतियों के साथ आगे बढ़ रही है और अपने सारे दायत्व, कर्तव्य बखूबी निभा रही है.

मौडर्न मौम्स की चुनौतियां

आजकल की अधिकतर मौम्स वर्किंग हैं जिस के कारण उन के पास समय का अभाव बना रहता है इसलिए उन को बच्चों के लिए अलग से समय निकलना कई बार किसी चुनौती से कम नहीं होता जिस के चलते उन के पास बच्चों के साथ अच्छा समय गुजारने, साथ में हंसनेखेलने का वक्त नहीं मिलता. इस कारण बच्चे मां से धीरेधीरे इमोशनली डिटैच होने लगते हैं. फैमिली बौंडिंग का अभाव, बातचीत की कमी से आपसी सहानुभूति, प्यार और पारिवारिक मूल्यों का अभाव देखने को मिलता है.

साथ ही यह समस्या तब और भी गहरी हो जाती है जब वे किसी समस्या या उलझन में होते हैं तो इस वक्त को अकेले झेलने की वजह से बच्चों के मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगता है इसलिए जरूरी है कि बच्चों की परवरिश में मातापिता केवल पोषण और खर्च को ही प्राथमिकता न दें बल्कि उन्हें अपने साथ हमेशा होने का एहसास कराते रहें ताकि वे इमोशनली अटैच रहें, साथ ही वे बच्चों के साथ जो समय बिताएं वे क्वालिटी समय हो.

डिजिटल दुनिया से दूर रखना

पहले के समय बच्चे केवल टीवी देखते थे और वह भी एक निश्चित समय के लिए लेकिन आजकल इस डिजिटल इंटरनैट की दुनिया में बच्चों के हाथ में हर वक्त मोबाइल रहता है जिस के कारण उन के पास वेब पर सभी प्रकार की सामग्री असीमित और अप्रतिबंधित पहुंचती है इसलिए बच्चों को मोबाइल से दूर रखना किसी चुनौती से कम नहीं. ऐसे में आज की मौडर्न मौम बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना है, साथ ही उन्हें यह भी बताना है कि डिजिटल इंटरनैट की दुनिया में क्या देखना है और क्या नहीं क्योंकि उन को नहीं पता होता है कि उन्हें क्या कंटैंट देखना और क्या नहीं. उन की एक गलती भारी पड़ सकती है.

कई बार बच्चे जानकारी के आभाव में कुछ गलत फोटो, वीडियो और जानकारी शेयर कर देते हैं और कमैंट्स भी कर देते हैं. उन पर नजर बनाए रखने के लिए आज की मां ने हाईटैक तकनीकों का इस्तेमाल करना सीखा है ताकि बच्चे संस्कारों से दूर न हों और किसी गलत आदत का शिकार न बन जाएं इस से बचने के लिए उन्हें इस का सही इस्तेमाल करना सिखाएं.

बच्चों को स्वस्थ रखना एवं जागरूक करना

बच्चों के लालनपालन व परिवार की सेहत का खयाल रखना प्राय: मां की ही जिम्मेदारी कही जाती है. आज जिस तेजी से समय व परिस्थितियां बदल रही हैं, उसी तेजी के साथ बच्चों की खानपान संबंधी आदतें भी बदल रही हैं.

आज वे रोटी और परांठे की जगह बर्गर, सैंडविच और पिज्जा को बढ़ावा दे रहे हैं. जंक फूड कुछ ज्यादा ही खाना पसंद कर रहे हैं. इस का सीधा असर उन की सेहत पर पड़ रहा है. वे मोटापे के शिकार हो रहे हैं इसलिए आज की मौडर्न मौम ने भी समय के अनुरूप खुद को ढालते हुए भोजन के साथ नएनए ऐक्सपैंरिमैंट कर नए तरीकों से बच्चों और परिवार वालों की पौष्टिक जरूरतें पूरी करना शुरू कर दिया है साथ ही बच्चों को बचपन से ही पौष्टिक आहार के बारे में जानकारी देना शुरू कर रही है, कौन सा आहार उन के लिए अच्छा है और उसे खाने से क्या फायदा हो सकता है इस के लिए उन्हें फलों और सब्जियों में मौजूद पौष्टिक तत्त्वों के बारे में बता रही है.

इस के लिए मातापिता भी अच्छे पौष्टिक आहार का सेवन कर रहे हैं ताकि बच्चे आप को देख कर उन्हें खाने की आदत डाल सकें और स्वस्थ खाने को अपनाएं. बच्चों, सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें बैलेंस डाइट देना बहुत जरूरी है क्योंकि बच्चों के साथसाथ पूरे परिवार व खुद को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी भी मां के कंधों पर ही होती है.

आउट डोर ऐक्टिविटीज को बढ़ाना

आजकल बच्चों की आउट डोर ऐक्टिविटी बहुत कम हो गई हैं उन का अधिकतर फ्री समय मोबाइल स्क्रीन के सामने गुजरता है. वे गेम्स खेलने के लिए घर के बाहर जाने के बजाय मोबाइल पर खेलना पसंद कर रहे हैं जिस के कारण उन का सही तरीके से शारीरिक विकास होना रुक गया है. इस का प्रभाव उन के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है और वे कम उम्र में ही मोटापा, तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं इसलिए एक मौडर्न मौम बच्चों को आउटडोर गेम्स के फायदे बता कर एवं उन के साथ खेल कर उन्हें बढ़ावा दे रही है.

उन की पसंदनापसंद की गेम्स की पहचान कर उन में उन की रुचि बनाए रखने के लिए उन का उचित मार्गदर्शन भी कर रही है.

बच्चे को संतुष्ट करना

मातृत्व की परिभाषा आज के बच्चों के लिए बहुत अलग हो गई है. बच्चे इन दिनों एक डिजिटल बचपन जी रहे हैं और एक डिजिटल वातावरण में बड़े हो रहे हैं. वे फोन चलाना पहले सीख रहे हैं और बोलना बाद में. आज के बच्चे किसी भी चीज के बारे में अस्पष्ट या जानकारी के आभाव में नहीं हैं. हजारों प्रश्न पूछ रहे हैं. उन को संतुष्ट करना मां के लिए व्यस्त जीवन में बहुत कठिन होता जा रहा है क्योंकि आजकल के बच्चों को बहलानाफुसलाना बहुत ही मुश्किल हैं. उन के सवालों की संख्या बढ़ती जा रही हैं.

मां रोजाना अपने बच्चे के साथ ज्यादा समय बिताने की कोशिश करती है इसलिए उन्हें सिखाने और अनुशासन देने का उसे ज्यादा मौका मिलता है.

परित्याग: क्या पहली पत्नी को छोड़ पाया रितेश

रितेश अपने औफिस में काम में व्यस्त था. पेशे से वह एक बहुत बड़ी आर्किटेक्ट फर्म में काम करता था. सारा समय वह काम में डूबा रहता था. उम्र उस की मात्र 32 वर्ष की ही थी, लेकिन उस के दिमाग के घोड़े जब दौड़ते थे, तब अनुभवी आर्किटेक्ट भी चारों खाने चित हो जाते थे.

हमेशा शांत रहने वाला रितेश एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था. घर से औफिस और औफिस से घर तक ही रितेश का जीवन सीमित था. रितेश का व्यक्तित्व साधारण था, गेहुंआ रंग और मध्यम कदकाठी. उस का शरीर किसी को आकर्षित नहीं करता था, लेकिन उस का काम और काम के प्रति समर्पण हर किसी को आकर्षित करता था.

औफिस के नजदीक ही उस ने रहने के लिए एक कमरा किराए पर लिया था. वह औफिस पैदल आया जाया करता था. उस के पास कोई कार, स्कूटर, बाइक वगैरह कुछ भी नहीं था. कमरे में एक बिस्तर, कुछ कपड़े, कुछ किताबें के अतिरिक्त कुछ बरतन, जिन में वह अपना खाना बनाया करता था. दाल, रोटी, चावल बनाना वह सीख गया था और इन्हीं में अपना गुजारा करता था. कभी रोटी नहीं भी बनाता था, फलाहार से काम चल जाता था.

औफिस में रिया नई आई थी. वह भी काम के प्रति समर्पित थी. सुबहसवेरे रिया को औफिस में रितेश नहीं दिखा. वह एक प्रोजैक्ट पर रितेश के साथ काम कर रही थी. उस ने फोन किया, लेकिन रितेश ने फोन नहीं उठाया. रितेश को रात में तेज बुखार हो गया था, जिस कारण वह करवटें बदलता रहा और सुबह नींद आई. तेज नींद के झौंके में फोन की घंटी उसे सुनाई नहीं दी.

औफिस में रितेश के बौस कमलनाथ को आश्चर्य हुआ कि बिना बताए रितेश कहां चला गया. उस ने कोई संदेश भी नहीं छोड़ा. रितेश औफिस के समीप ही रहता था, इसलिए लंच समय में टहलते हुए कमलनाथ रितेश के घर की ओर रिया के संग चल दिए.

रितेश एक मकान की तीसरी मंजिल पर बने एक कमरे में रहता था. जब कमलनाथ और रिया रितेश के कमरे में पहुंचे, तब डाक्टर रितेश का चेकअप कर रहा था. डाक्टर ने दवाई का परचा लिख दिया.

‘‘परचा तो आप ने लिख दिया, लेकिन बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही है,’’ रितेश ने डाक्टर को अपनी लाचारी बताई.

डाक्टर ने अपने बैग से दवा निकाल कर रितेश को दी और कहा, ‘‘यह दवा अभी ले लो. पानी किधर है.’’

पानी की बोतल बिस्तर के पास एक स्टूल पर रखी हुई थी. रितेश ने दवा ली. कमलनाथ ने डाक्टर से रितेश की तबीयत का हालचाल पूछा.

‘‘मैं कुछ टैस्ट लिख देता हूं. लैब का टैक्निशियन खून और पेशाब के सैंपल जांच के लिए यहीं से ले जाएगा. रितेश को तीन दिन से बुखार आ रह था. मुझे टाइफाइड लग रहा है.’’

डाक्टर के जाने के बाद कमलनाथ ने रितेश से दवा का परचा लिया और रिया को कैमिस्ट शौप से दवा लाने को कहा.

‘‘कमरे को देख कर ऐसा लगता है कि तुम अकेले रहते हो?’’ कमलनाथ ने रितेश से पूछा. रितेश ने गरदन हिला कर हां बोल दिया.

‘‘रितेश तुम आराम करो, मैं यहां औफिस बौय को भेज देता हूं. वह तुम्हारी मदद कर देगा. तुम कुछ दिन आराम करो, काम हम देख लेंगे,’’ रिया ने रितेश को दवा दी और कमलनाथ के संग वापस औफिस चली गई.

रितेश को बारबार उतरतेचढ़ते बुखार से कमजोरी हो गई. शाम को औफिस बौय रितेश के लिए बाजार से कुछ फल ले आया और दालचावल बना दिए. अगले दिन जांच रिपोर्ट आने पर टाइफाइड की पुष्टि हो गई.

रितेश औफिस जाने की स्थिति में नहीं था. टाइफाइटड ने उस का बदन निचोड़ लिया, जिस कारण वह औफिस नहीं जा सका.

3 दिन बाद कमलनाथ ने रितेश से उस की तबीयत पूछी और उस के औफिस आने की असमर्थता जताने पर जरूरी काम निबटाने के लिए रिया को उस के घर जा कर काम करने को कहा.

कमजोरी के कारण रितेश ने शेव भी नहीं बनाई थी. स्नान करने के पश्चात उस ने कपड़े बदले थे और चाय बना कर ब्रेड को चाय में डुबो कर खा रहा था.

फाइल और लैपटौप के साथ रिया रितेश के कमरे में पहुंची. पिछली शाम कमलनाथ से बातचीत के बाद रिया के उस के पास आ कर काम करने का कार्यक्रम बन गया था.

रितेश ने कमरा व्यवस्थित कर लिया था. बिस्तर पर नई बेडशीट बिछा दी थी और झाड़ू लगा कर कमरा साफ कर दिया था. 2 कुरसी के साथ एक गोल मेज थी.

सुबह का अखबार पढ़ते हुए रितेश चाय पी रहा था. ब्रेड को चाय में डुबा कर खाते देख रिया अपनी मुसकराहट रोक नहीं सकी. उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब वह भी चाय में बिसकुट और ब्रेड डुबो कर खाती थी.

‘‘मुसकराहट के पीछे का राज भी बता दो?’’ रितेश ने आखिर पूछ ही लिया.

रिया लैपटौप और फाइल गोल मेज पर रख कर एक कुरसी पर बैठ गई. रितेश ने रिया को चाय देते हुए कहा, ‘‘अभी बनाई है, गरम है. पहले चाय पी लो, फिर काम करते हैं. बिसकुट मीठे भी हैं और नमकीन भी हैं,’’ कह कर रितेश ने बिसकुट के डब्बे रिया के सामने रखे.

चाय पीने के पश्चात दोनों ने काम आरंभ किया. एक घंटा काम करने के पश्चात रितेश ने आंखें बंद कर लीं.
‘‘सर, आप को थकान हो रही है. कुछ देर के लिए काम रोक लेते हैं, बाद में कर लेते हैं.’’

‘‘टाइफाइड ने बदन निचोड़ लिया है, एकमुश्त काम नहीं होता है. थोड़ा आराम करता हूं, 10-15 मिनट बाद काम करते हैं.’’

‘‘जी सर, आप आराम कीजिए.’’

रितेश ने एफएम रेडियो लगाया. रेडियो पर गीत आ रहा था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रितेश ने एफएम स्टेशन बदल दिया, वहां नए गीत आ रहे थे.

‘‘अच्छा गाना था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रिया ने रितेश से कहा.

‘‘पुराना गीत है और साथ में थोड़ा उदासी वाला. शायद, आप को पसंद न आए, इसीलिए बदल लिया.’’

‘‘सर, मुझे नएपुराने सभी गीत पसंद हैं,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और काम फिर से शुरू कर दिया.

धीमे स्वर में एफएम रेडियो बजता रहा और हर आधे घंटे बाद रितेश काम बंद कर 10 मिनट आराम करता. दोपहर के एक बजे रिया ने रितेश से खाने के बारे में पूछा.

‘‘अभी गरम कर देता हूं. मूंग छिलके वाली दाल के साथ चावल बनाए हैं. आप भी लीजिए,’’ रितेश ने कहा.

‘‘मैं अपना टिफिन लाई हूं. आप आराम कीजिए, मैं खाना गरम कर देती हूं.’’

खाना खाते समय रिया ने रितेश से पारिवारिक प्रश्न पूछ ही लिया, ‘‘सर, आप की तबीयत ठीक नहीं है, अपने घर से किसी को बुला दीजिए.’’

‘‘बूढ़े मातापिता को मैं तकलीफ नहीं देना चाहता हूं. दोचार दिन में ठीक हो जाऊंगा. बहनभाई अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में रहते हैं. अब बुखार तो उतर ही गया है.’’

‘‘आप के मातापिता कहां रहते हैं?’’

‘‘बड़े भाई के साथ रहते हैं.’’

‘‘आप विवाह कर लीजिए, एक से दो भले,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और खाना खाने के बाद बोला, ‘‘विवाह के कारण ही यहां अकेला रह रहा हूं.’’

‘‘आप की पत्नी अलग रहती है?’’

‘‘मेरा पत्नी से तलाक हो गया है. 4 साल पहले मेरा रीमा से विवाह हुआ था. मैं भी आर्किटेक्ट और रीमा भी आर्किटेक्ट. हम दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.

“उस समय हम कोलकाता में काम करते थे. विवाह के एक महीने बाद ही रीमा अपने मायके गुवाहाटी गई और लौट कर नहीं आई.

“मैं ने उसे बुलाया, गुवाहाटी भी कर्ई बार लेने गया, पर वह मेरे साथ रहने को तैयार नहीं हुई. 6 महीने के प्रयास के बाद मैं ने थक कर बिना किसी कारण के रीमा का परित्याग करने पर हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक ले लिया. पिछले वर्ष कोर्ट ने तलाक पर मुहर लगा दी और मैं कोलकाता छोड़ कर दिल्ली आ गया.’’

‘‘कोई कारण तो अवश्य होगा?’’

‘‘उस ने कोर्ट में भी कोई कारण नहीं बताया और तलाक हो गया. विवाह के बाद हम मुश्किल से एक महीना साथ रहे. मुझे आज तक उस का बिना कारण छोड़ कर चले जाने का रहस्य समझ नहीं आया.

“जब उसे रहना ही नहीं था, तब विवाह क्यों किया? खैर, अब एक वर्ष से अकेला रह रहा हूं. अपने गुजारे के लिए खाना बना लेता हूं…

“आप जो गीत सुन रही थीं, वह मेरे हाल पर सही बैठता है. रीमा को भूलना चाहता हूं और वो याद आ जाती है.’’

‘‘वो तो मैं देख रही हूं,’’

रिया पूरे दिन रितेश के साथ रही, मिलजुल कर काम करते रहे और शाम को अपने बौस कमलनाथ को कार्य प्रगति की सूचना दी.

कमलनाथ ने रितेश को आराम करने को कहा कि औफिस आने की जल्दी न करे और रिया को अगले 3-4 दिन रितेश के घर से काम करने को कहा.

‘‘रिया, हमारे बौस भी महान हैं. मुझे आराम करने को कह रहे हैं और तुम्हें मेरे साथ काम करने को कह रहे हैं. जब काम करूंगा, तब आराम कैसे करूंगा.’’

‘‘मैं आप को परेशान नहीं करूंगी. आप अधिक आराम कीजिए और सिर्फ मुझे काम बता दीजिए. काम मैं कर लूंगी, क्योंकि मैं ने ऐसे प्रोजैक्ट पर काम नहीं किया है, इसलिए आप को अधिक नहीं थोड़ा सा परेशान करूंगी.’’

‘‘रिया, मैं तो मजाक कर रहा था, क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मैं एक मिनट भी खाली नहीं बैठ सकता हूं.’’

‘‘आप आराम कीजिए, अपना खाना मत बनाना. मैं आप के लिए खाना ले आऊंगी.’’

‘‘शाम को तो बनाना ही होगा.’’

‘‘शाम को जाते समय मैं बना दूंगी.’’

एक सप्ताह तक रिया रितेश के घर आ कर काम करती रही. शनिवार और रविवार की छुट्टी वाले दिन भी रिया रितेश के घर आई. काम करने के साथ दोनों पारिवारिक और औफिस की बातों पर चर्चा करते.

रिया भी तलाकशुदा थी, जिस का अभी 6 महीने पहले ही आपसी रजामंदी से तलाक हुआ था.

रिया अपने टिफिन में रितेश का भी खाना लाती और रात का खाना बना कर जाती. एक सप्ताह में रितेश और रिया ने अपने जीवन को साझा किया और छोटे से समय में कुछ नजदीक होते हुए.

रितेश स्वस्थ होने के बाद औफिस आने लगा. रिया रितेश के लिए खाना यथापूर्वक लाती रही. धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं और 5 महीने बाद दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे से लगने लगे.

एक दिन उन के बौस कमलनाथ ने उन्हें नया जीवन आरंभ करने की सलाह दी.

रितेश और रिया विवाह के बंधन में बंध गए. दिन गुजरते गए और दोनों दो से तीन हो गए. एक पुत्री के आने से दोनों का जीवन पूर्ण हो गया. रितेश कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता गया.

आर्किटेक्ट एसोसिएशन के अधिवेशन में रितेश का कोलकाता जाना हुआ. वहां रीमा ने उसे देख लिया. रितेश अपना कार्य संपन्न करने के बाद दिल्ली वापस आ गया. थोड़े दिन बाद उसे कोर्ट से नोटिस मिला.

नोटिस रीमा ने दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) के सैक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता देने के लिए था.

नोटिस मिलने पर उदास रितेश से रिया ने कारण पूछा.

‘‘रिया, जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता के लिए कोई आदेश जारी हुआ था?’’

‘‘रितेश, मेरा तलाक आपसी सहमति से हुआ था. हमारा लिखित अनुबंध हुआ था, जिस के तहत मुझे एकमुश्त रकम मिली थी. लेकिन तुम यह क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘रीमा ने गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट में केस किया है,’’ रितेश ने कोर्ट के नोटिस को रिया के आगे किया.

‘‘जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता नहीं मांगा था?’’

‘‘रिया, यह नोटिस मुझे इसलिए हैरान कर रहा है कि तलाक के केस के दौरान रीमा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया था. शादी के एक महीने के बाद बिना कारण वह मुझे छोड़ गई थी. इसी कारण पर तलाक हो गया था और उस ने गुजारा भत्ता के लिए कोई जिक्र ही नहीं किया था.’’

‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘कोर्ट का नोटिस है, वकील से बात करनी होगी. कोलकाता कोर्ट में तलाक हुआ था, वहीं कोर्ट में केस किया है. अब सारी कार्यवाही कोलकाता में होगी. दिल्ली में रहने वाला कोलकाता कोर्ट के चक्कर काटेगा. मुसीबत ही मुसीबत है. काम का हर्ज भी होगा, कोलकाता आनेजाने का खर्चा, वकील की फीस के साथ दिमाग चौबीस घंटे खराब और परेशान रहेगा,’’ कह कर रितेश गहरी सोच में डूब गया.

‘‘तुम चिंता मत करो. अब जो मुसीबत आ गई है, उस का मुकाबला मिल कर करेंगे. आप वकील से बात करो, अधिक चिंता मत करो,’’ रिया को अपने साथ कंधे से कंधे मिला कर खड़ा देख रितेश में हिम्मत आ गई और कोलकाता में उस वकील से बात की, जिस ने उस का तलाक का केस लड़ा था.

वकील बनर्जी बाबू ने रितेश को कोलकाता आ कर एक बार मिलने को कहा, ताकि केस की पैरवी की जा सके.

रितेश के साथ रिया भी कोलकाता में वकील बनर्जी से मिली. वकील बनर्जी तलाक की पुरानी फाइल देख कर कहता है कि आप का तलाक परित्याग के कारण हुआ था. रीमा ने बिना कारण आप का परित्याग किया है. गुजारा भत्ता क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सैक्शन 125 के अंदर मिलता है. उस ने देरी से केस फाइल किया है, जिस का हम विरोध करेंगे और दूसरी आपत्ति हमारी सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत करेंगे कि रीमा ने बिना किसी कारण आप का परित्याग किया और आप के साथ रहने से इनकार किया था. इन्हीं वजहों से तलाक मिला था और आप का गुजारा भत्ता देना नहीं बनता है. आप केस जीतेंगे, आप बेफिक्र रहें.’’

रिया ने अपने तलाक का जिक्र किया, तब वकील बनर्जी ने समझाया कि सैक्शन 125 के तहत आपसी रजामंदी से हुए तलाक में समझौते के अंतर्गत गुजारा भत्ता नहीं बनता है, क्योंकि ऐसे केस में एकमुश्त राशि पर समझौता होता है.

रितेश कोर्ट की तारीख पर कोलकाता आया. रीमा से आमनासामना हुआ. रितेश ने कहा, ‘‘रीमा, तुम ने बिना किसी कारण के मेरा परित्याग किया था, जिस कारण हमारा तलाक हुआ और अब तुम गुजारा भत्ता मांग रही हो, जो तुम्हारा हक भी नहीं है और मिलेगा भी नहीं.’’

‘‘रितेश, यह तो मेरा हक है. पहले नहीं मांगा, अब मांग लिया. यह तो देना ही होगा तुम्हें.’’

‘‘जब शादी से भाग गई, तब हक नहीं बनता है.’’

‘‘कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है, तुम मेरा हक नहीं छीन सकते हो.’’

‘‘अपने मन से पूछो, जब वैवाहिक जीवन का कोई दायित्व नहीं निभाया. तुम भाग खड़ी हुई. इस को भगोड़ा कहते हैं. कोर्ट भगोड़ों से कोई सहानुभूति नहीं रखती है. तुम अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘मैं ने केस वापस लेने के लिए नहीं किया है, गुजारा भत्ता लेने के लिए किया है.’’

‘‘क्या तुम ने शादी गुजारा भत्ता लेने की लिए की थी?’’

‘‘बिलकुल यही समझो.’’

‘‘तुम भारतीय स्त्री के नाम पर एक कलंक हो. विवाह जनमजनम का रिश्ता होता है. पति और पत्नी अपना संपूर्ण जीवन एकदूसरे पर न्यौछावर करते हैं. सुख और दुख में बराबर के भागीदार होते हैं. तुम ने क्या किया? विवाह से भाग खड़ी हुई, सिर्फ गुजारा भत्ता लेने के लिए?’’

‘‘अब जो भी बात होगी, कोर्ट में होगी. मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है,’’ कह कर रीमा चली गई.

कोर्ट में हर दूसरे महीने तारीख पड़ जाती. रितेश को औफिस से छुट्टी ले कर कोलकाता जाना पड़ता. वकील से बात कर के पेशी के दौरान की रणनीति बनानी पड़ती. कभी जज महोदय छुट्टी पर होते, तो कभी रीमा का वकील तारीख ले लेता कि वह दूसरी कोर्ट में व्यस्त है, कभी उस का वकील तारीख लेता और कभी वकीलों की हड़ताल के कारण तारीख मिल जाती. एक बार जज का तबादला हो गया और नए जज ने तारीख दे दी. तारीख पर तारीख के बीच कभीकभार दोचार मिनट की सुनवाई हो जाती.

रितेश कोर्ट के पचड़ों से परेशान था, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा था. आखिर तीन वर्ष बाद कोर्ट का फैसला आया.

रीमा की ओर से तर्क दिया गया कि सैक्शन 125 के अंतर्गत तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता का हक है, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह नहीं किया. जबकि रितेश की ओर से तर्क दिया गया, क्योंकि रीमा स्वयं विवाह के एक महीने बाद भाग गई थी और कई प्रयासों के बावजूद रितेश के संग नहीं रही और रीमा ने रितेश का परित्याग कर दिया और इसी कारण हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत तलाक हुआ और सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत रीमा जानबूझ कर रितेश के साथ नहीं रही, इसलिए वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है.

कोर्ट ने रितेश के पक्ष में फैसला दिया. रितेश प्रसन्न हो गया, लेकिन रीमा ने कोर्ट से बाहर आते ही रितेश को हाईकोर्ट में मिलने की चेतावनी दे दी.

रीमा ने हाईकोर्ट में अपील दायर की. अगले 3 वर्ष कोलकाता हाईकोर्ट के चक्कर काटने में लग गए. हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला सुनाया.

हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला इस आधार पर दिया कि रीमा का रितेश के साथ तलाक हो गया है. उस ने दोबारा विवाह नहीं किया. सैक्शन 125 के तहत रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है.

हाईकोर्ट के फैसले से रितेश मायूस हो गया कि उसे किस जुर्म की सजा मिल रही है. जुर्म उस का इतना कि उस ने अपने साथ औफिस में काम करने वाली सहकर्मी से विवाह किया, जो एक महीने बाद उसे त्याग कर भाग गई. गलती पत्नी की और गुजारा भत्ता दे पति, यह कहां का इंसाफ है.

रिया ने रितेश का हौसला बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी.

‘‘रिया, आज 6 वर्ष हो गए हैं मुकदमा लड़ते हुए. हिम्मत टूट गई है अब. बिना कुसूर के सजा काट रहा हूं मैं.’’

‘‘रितेश, हमारे देश और समाज की यह बहुत बड़ी विडंबना है कि बेकुसूर सजा भुगतता है और कुसूरवार मजे करते हैं. सैक्शन 125 एक भले काम के लिए बनाया गया है, लेकिन इस का दुरुपयोग रीमा जैसी औरतें करती हैं, जो भले पुरुषों से विवाह कर के छोड़ देती हैं और पुरुषों को जीवनभर बिना किसी कारण के दंड भुगतना पड़ता है.’’

रितेश ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला तीन वर्ष बाद आया.

सुप्रीम कोर्ट ने रितेश की दलील को अस्वीकार कर दिया कि रीमा ने दूसरी शादी नहीं की, इसलिए रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है. विवाह के बाद रीमा ने रितेश का परित्याग किया, जिस कारण हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक हो गया. सैक्शन 125 में तलाक के बाद गुजारा भत्ता है.

तलाक के बाद रीमा और रितेश स्वाभाविक रूप से अलग रहेंगे. यह अलग रहना ही गुजारा भत्ता दिलाता है.

रितेश की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया कि यह किस का परित्याग है. रीमा ने जानबूझ कर बिना कारण के रितेश का परित्याग किया और इस परित्याग के कारण रीमा को गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए.

रीमा पढ़ीलिखी आर्किटेक्ट है. वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है, लेकिन रीमा ने स्वयं को बेरोजगार बताया. रीमा ने दोबारा विवाह नहीं किया और बेरोजगार की बात मानते हुए रीमा के हक में फैसला किया.

10 वर्ष की लंबी कानूनी लड़ाई में चंद सिक्कों की जीत से रीमा को क्या मिला, यह रितेश और रिया नहीं समझ सके. ऐसी स्त्रियों को गुजारा भत्ता का कानून भी बेसिरपैर का लगा, लेकिन उन के हाथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधे हुए थे. आखिर कानून को अंधा क्यों बनाया हुआ है. अबला नारी को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन अबला पुरुष को सबला नारी से भी बचाना चाहिए. कानून को किताब से निकाल कर व्यावहारिक निर्णय लेने चाहिए. रितेश और रिया जवाब ढूंढ़ने में नाकामयाब हैं. उन के हाथ 10 वर्ष की लंबी लड़ाई के बाद सिर्फ निराशा ही मिली. सचझूठ के आवरण में छिप कर अपना स्वरूप खो बैठा.

तलाक: कौनसी मुसीबत में फंस गई थी जाहिरा

रात का सारा काम निबटा कर जब जाहिरा बिस्तर पर जा कर सोने की कोशिश कर रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी शोर करने लगी.

जाहिरा बड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठी, ‘‘सारा दिन काम करते हुए बदन थक कर चूर हो जाता है. बेटा अलग परेशान करता है. ननद बैठीबैठी और्डर जमाती है… न दिन को चैन, न रात को आराम…’’ फिर वह मोबाइल फोन पर बोली, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘मैं शादाब, तुम्हारा शौहर,’ उधर से आवाज आई.

‘‘जी…’’ कहते हुए जाहिरा खुशी से उछल पड़ी,

‘‘जी, कैसे हैं आप?’’

‘मैं ठीक हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं. आज से मेरातुम्हारा मियांबीवी का रिश्ता खत्म. मैं यह बात अम्मी और खाला के सामने बोल रहा हूं. तुम आज से आजाद हो. मेरे घर में रहने का तुम्हें कोई हक नहीं है. बालिग होने पर मेरा बेटा मेरे पास आ जाएगा,’ कह कर शादाब ने मोबाइल फोन काट दिया.

‘‘सुनिए… सुनिए…’’ जाहिरा ने कई बार कहा, पर मोबाइल फोन बंद हो चुका था. जाहिरा ने नंबर मिला कर बात करनी चाही, पर शादाब का मोबाइल फोन बंद मिला. जाहिरा को अपने पैरों के नीचे की जमीन खिसकती नजर आई. आंसुओं की झड़ी लग गई. बिस्तर पर उस का एक साल का बेटा बेसुध सोया था. उसे देख कर जाहिदा के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

जाहिरा दौड़ीदौड़ी अपने ससुर हसन मियां के कमरे में पहुंची. उस की सास शादाब के पास दुबई में थीं. जाहिरा ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी, ‘‘अब्बू, दरवाजा खोलिए…’’

‘‘क्या बात है? क्यों चीख रही है?’’ शादाब के अब्बू हसन मियां ने कहा.

‘‘अब्बू…’’ लड़खड़ाते हुए जाहिरा ने कहा ‘‘शादाब ने मुझे फोन पर तलाक दे दिया है,’’ इतना कह कर वह रो पड़ी.

‘‘तो मैं क्या करूं…? यह तुम मियांबीवी के बीच का मामला है. तुम जानो और तुम्हारा शौहर…’’ कह कर हसन मियां ने दरवाजा बंद कर लिया.

जाहिरा रोतेरोते अपने कमरे मेंआ गई. रात यों ही बीत गई. सुबह जाहिरा ने उठ कर देखा कि रसोईघर के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. वह परेशान हो गई और पड़ोसियों को पूरी बात बताई. पर पड़ोसी हसन मियां के पक्ष में थे. वह मन मार कर लौट आई.

पड़ोस में रहने वाली विधवा चाची ने जाहिरा को समझाया, ‘‘बेटी, तू फिक्र न कर. मसजिद के हाफिज के पास जा. शायद, वहां इस मसले का कोई हल निकले.’’ उस इलाके की मसजिद के सारे खर्चे माली मदद से चलते थे. हसन मियां मसजिद के सदर थे.

हाफिज के पास जाहिरा की शिकायत बेकार साबित हुई. उन्होंने कहा कि शौहर ने तलाक दे दिया है, अब कुछ नहीं हो सकता. जाहिरा ने कहा, ‘‘हाफिज साहब, फोन पर दिया गया तलाक नाजायज है. मेरी कोई गलती नहीं है. न शौहर से कोई अनबन, अचानक मुझे तलाक…’’ कह कर वह रो पड़ी, ‘‘मेरी गोद में उन का ही बच्चा है. इस की परवरिश कैसे होगी? मेरा क्या कुसूर है?

‘‘शरीअत में ऐसा कुछ नहीं है. आप एक औरत पर जुल्म ढा रहे हैं. मर्द की हर बात अगर जायज है, तो औरत की भी जायज मानो.’’

जाहिरा मौलवी को खूब खरीखोटी सुना कर वापस आ गई और शौहर के खिलाफ कोर्ट में जाने का मन बना लिया.

घर आ कर जाहिरा ने देखा कि घर के बाहर दरवाजे पर ताला लटक रहा था. बिना कुछ कहे वह अपने बेटे को मायके ले कर आ गई. घर पर मांबाप को सारी बात बता कर उस ने तलाक के खिलाफ आवाज उठाने का मन बना लिया और फिर समाज के उन मुल्लाहाफिजों के खिलाफ मोरचा खोल दिया, जो शरीअत के नाम पर लोगों पर दबाव बनाते हैं.

‘‘देहात की गंवार औरत को तुम्हारे गले से बांध दिया था. कहां तुम पढ़ेलिखे खूबसूरत जवान, कहां वह देहातीगंवार… ज्वार के दाने में उड़द का बीज…’’ कह कर शादाब की खाला खिलखिला उठीं.

‘‘शादाब और रेहाना की जोड़ी लगती ठीक है. पढ़ीलिखी बीवी कम से कम अंगरेजी में बात तो कर सकेगी. क्यों आपा, ठीक कह रही हूं न मैं?’’

शादाब की खाला ने अपनी बेटी के कसीदे पढ़ने चालू किए. शादाब की मां ने भी उन की हां में हां मिलाई. शादाब की मां हमीदा बानो की छोटी बहन नूर अपनी बेटी रेहाना को ले कर पिछले 2 महीने से दुबई आई थीं. उन्हें 3 महीने का वीजा मिला था.

रेहाना एमए की छात्रा थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी, जिसे लाड़प्यार से पाला गया था चुलबुली, खूबसूरत रेहाना ने अपनी मां की शह पा कर शादाब पर डोरे डालने शुरू किए थे, यह जानते हुए भी कि वह शादीशुदा है.

‘‘पर अम्मी, शादाब तो एक बच्चे का बाप है. मैं उस से निकाह कैसे करूंगी?’’ रेहाना ने अपनी अम्मी से पूछा.

‘‘तू फिक्र मत कर. अगर शादाब तेरा शौहर बन गया, तो तू मजे करेगी. विदेश में रहेगी. तू हवाईजहाज से आनाजाना करेगी.

‘‘तू मालामाल हो जाएगी और हमारी गरीबी भी दूर हो जाएगी. बड़ी नौकरी है शादाब की. उस की जायदाद हमारी. तू किसी न किसी तरह उसे अपने वश में कर ले,’’ रेहाना की अम्मी ने समझाया. और फिर उन्होंने ऐसा जाल बिछाया कि उस में मांबेटा उलझ कर रह गए.

‘‘रेहाना, अम्मी कहां हैं?’’ एक दिन दफ्तर से लौट कर शादाब ने पूछा.

‘‘वे पड़ोस में गई हैं. देर रात तक लौटेंगी. वहां उन की दावत है. मेरी अम्मी भी साथ गई हैं.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गईं?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई.’’

रेहाना चाय ले कर शादाब के कमरे में पहुंची, जहां वह लेटा हुआ था. आज रेहाना ने ऐसा सिंगार कर रखा था कि शादाब उसे देख कर सुधबुध खो बैठा. चाय दे कर वह उस के करीब बैठ गई. इत्र की भीनीभीनी खुशबू से महकती रेहाना ने रोमांस भरी बातें करना शुरू किया.

शादाब भी उस की बातों का लुत्फ लेने लगा. उस ने रेहाना को अपने सीने से लगाना चाहा, तो बगैर किसी डर के वह शादाब की बांहों में सिमट गई. फिर वे दोनों हवस के गहरे समुद्र में डुबकी लगाने लगे. जब जी भर गया, तो एकदूसरे को देख कर शरमा गए.

जब तक रेहाना वहां रही, शादाब उसे महंगे से महंगा सामान दिलाने लगा. जवानी के जोश में वह सबकुछ भूल गया. अब उसे सिर्फ रेहाना दिखती थी. वह अपनी बीवी को तलाक दे कर रेहाना को बीवी बनाने के सपने देखने लगा था.

वक्त तेजी से गुजर रहा था. रेहाना के वीजा की मीआद खत्म होने वाली थी. शादाब ने रेहाना से जल्द निकाह करने का वादा किया. रेहाना अपनी अम्मी के साथ दुबई में रहने के सपने संजोए भारत वापस आ गई. शादाब ने खाला से 2 महीने के अंदर रेहाना से निकाह करने की अपनी मंशा जाहिर की, तो खाला ने भी खुशीखुशी अपनी रजामंदी जाहिर की.

कुछ वक्त बीत जाने पर जाहिरा ने शहर की बड़ी मसजिद में शादाब के द्वारा दिए गए तलाक के बारे में शिकायत पेश की, जिस की सुनवाई आज होनी थी.

जाहिरा ने कमेटी के सामने, जहां काजी, आलिम, हाफिज, बड़ेबड़े मौलाना सदस्य थे, अपनी बात रखी. उन्होंने बड़े गौर से जाहिरा की फरियाद सुनी. इस से पहले शादाब को मांबाप के साथ कमेटी के सामने हाजिर होने की इत्तिला भेजी गई थी, पर वे नहीं आए.

अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कमेटी पर दबाव डालना चाहा था. वे तकरीबन 6 महीने तक कमेटी को चकमा देते रहे थे, बारबार के बुलावे पर भी नहीं आए थे. इस बात को ध्यान में रख कर कमेटी ने कड़ा फैसला लिया और उन्हें जमात से बेदखल करने के साथ कानूनी कार्यवाही करने का फैसला लिया. आज मसजिद में काफी गहमागहमी थी. कावाही शुरू हुई. शादाब, उस के अब्बू व दूसरे रिश्तेदार हाजिर थे.

कमेटी के सदर ने शादाब से पूछा, ‘‘किस वजह से तुम ने अपनी बीवी जाहिरा को तलाक दिया है?’’ ‘‘इस के अंदर शहर में रहने की काबिलीयत नहीं है. यह पढ़ीलिखी भी नहीं है. अंगरेजी नहीं जानती है. इसे ढंग से खाना बनाना तक नहीं आता है.’’ ‘‘बेटी, तुम बताओ कि शादाब मियां जोकुछ कह रहे हैं, वह सही है या गलत?’’ सदर ने पूछा.

‘‘बिलकुल झूठ है. हमारी शादी को 3 साल हो गए हैं. मैं एक बच्चे की मां बन गई हूं. मैं इन की हर बात मानती हूं. मैं ने पूरी 7 जमात पढ़ी है. ‘‘इन के मांबाप व रिश्तेदार मुझे पसंद कर के लाए थे. हम ने भरपूर दहेज दिया था. अभी तक सब ठीकठाक चल रहा था, पर अचानक इन्होंने मुझे फोन पर तलाक दे दिया.’’

‘‘फोन पर तलाक…?’’ कमेटी के सभी सदस्य जाहिरा की यह बात सुन कर सकते में आ गए.

उन्होंने आपस में सोचविचार कर के फैसला दिया, ‘यह तलाक नाजायज है. न तलाक देने की ठोस वजह है, न ही तलाक आमनेसामने बैठ कर दिया गया है. एकतरफा तलाक जायज नहीं है.

‘शादाब मियां के तलाक को गैरकानूनी मान कर खारिज किया जाता है. जाहिरा आज भी उन की बीवी हैं. उन्हें अपनी बीवी को सारे हक देने पड़ेंगे. साथ में रखेंगे. कोई तकलीफ नहीं देंगे, वरना यह कमेटी इन पर तलाक के बहाने औरत पर जुल्म करने का मामला दायर करेगी…’ इतना फरमान सुना कर जमात उठ गई.

उम्र भर का रिश्ता : एक अनजान लड़की से कैसे जुड़ा एक अटूट बंधन

शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन तन्हा प्रकृति के बीच बिताने के ख्याल से मैं हर साल करीब 15 -20 दिनों के लिए मनाली, नैनीताल जैसे किसी हिल स्टेशन पर जाकर ठहरता हूं. मैं पापा के साथ फैमिली बिजनेस संभालता हूं इसलिए कुछ दिन बिजनेस उन के ऊपर छोड़ कर आसानी से निकल पाता हूं.

इस साल भी मार्च महीने की शुरुआत में ही मैं ने मनाली का रुख किया था  मैं यहां जिस रिसॉर्ट में ठहरा हुआ था उस में 40- 50 से ज्यादा कमरे हैं. मगर केवल 4-5 कमरे ही बुक थे. दरअसल ऑफ सीजन होने की वजह से भीड़ ज्यादा नहीं थी. वैसे भी कोरोना फैलने की वजह से लोग अपनेअपने शहरों की तरफ जाने लगे थे. मैं ने सोचा था कि 1 सप्ताह और ठहर कर निकल जाऊंगा मगर इसी दौरान अचानक लॉक डाउन हो गया. दोतीन फैमिली रात में ही निकल गए और यहां केवल में रह गया.

रिसॉर्ट के मालिक ने मुझे बुला कर कहा कि उसे रिसॉर्ट बंद करना पड़ेगा. पास के गांव से केवल एक लड़की आती रहेगी जो सफाई करने, पौधों को पानी देने, और फोन सुनने का काम करेगी. बाकी सब आप को खुद मैनेज करना होगा.

अब रिसॉर्ट में अकेला मैं ही था. हर तरफ सायं सायं करती आवाज मन को उद्वेलित कर रही थी. मैं बाहर लॉन में आ कर टहलने लगा.सामने एक लड़की दिखी जिस के हाथों में झाड़ू था. गोरा दमकता रंग, बंधे हुए लंबे सुनहरे से बाल, बड़ीबड़ी आंखें और होठों पर मुस्कान लिए वह लड़की लौन की सफाई कर रही थी. साथ ही एक मीठा सा पहाड़ी गीत भी गुनगुना रही थी. मैं उस के करीब पहुंचा. मुझे देखते ही वह ‘गुड मॉर्निंग सर’ कहती हुई सीधी खड़ी हो गई.

“तुम्हें इंग्लिश भी आती है ?”

“जी अधिक नहीं मगर जरूरत भर इंग्लिश आती है मुझे. मैं गेस्ट को वेलकम करने और उन की जरूरत की चीजें पहुंचाने का काम भी करती हूं.”

“क्या नाम है तुम्हारा?” मैं ने पूछा,”

“सपना. मेरा नाम सपना है सर .” उस ने खनकती हुई सी आवाज़ में जवाब दिया.

“नाम तो बहुत अच्छा है.”

“हां जी. मेरी मां ने रखा था.”

“अच्छा सपना का मतलब जानती हो?”

“हां जी. जानती क्यों नहीं?”

“तो बताओ क्या सपना देखती हो तुम? मुझे उस से बातें करना अच्छा लग रहा था.

उस ने आंखे नचाते हुए कहा,” मैं क्या सपना देखूंगी. बस यही देखती हूं कि मुझे एक अच्छा सा साथी मिल जाए.  मेरा ख्याल रखें और मुझ से बहुत प्यार करे. हमारा एक सुंदर सा संसार हो.” उस ने कहा.

“वाह सपना तो बहुत प्यारा देखा है तुम ने. पर यह बताओ कि अच्छा सा साथी से क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अच्छा सा यानी जिसे कोई गलत आदत नहीं हो. जो शराब, तंबाकू या जुआ जैसी लतों से दूर रहे. जो दिल का सच्चा हो बस और क्या .” उस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली,” वैसे मुझे लगता है आप को भी कोई बुरी लत नहीं.”

“ऐसा कैसे कह सकती हो?” मैं ने उस से पूछा.

“बस आप को देख कर समझ आ गया. भले लोगों के चेहरे पर लिखा होता है.”

“अच्छा तो चेहरा देख कर समझ जाती हो कि आदमी कैसा है.”

“जी मैं झूठ नहीं बोलूंगी. औरतें आदमियों की आंखें पढ़ कर समझ जाती हैं कि वह क्या सोच रहा है. अच्छा सर आप की बीवी तो बहुत खुश रहती होगी न.”

“बीवी …नहीं तो. शादी कहां हुई मेरी?”

“अच्छा आप की शादी नहीं हुई अब तक. तो आप कैसी लड़की ढूंढ ढूंढते हैं?”

उस ने उत्सुकता से पूछा.

“बस एक खूबसूरत लड़की जो दिल से भी सुंदर हो चेहरे से भी. जो मुझे समझ सके.”

“जरूर मिलेगी सर. चलिए अब मैं आप का कमरा भी साफ कर दूं.” वह मेरे कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

सपना मेरे आगेआगे चल रही थी. उस की चाल में खुद पर भरोसा और अल्हड़ पन छलक रहा था.

मैं ने ताला खोल दिया और दूर खड़ा हो गया. वह सफाई करती हुई बोली,” मुझे पता है. आप बड़े लोग हो और हम छोटी जाति के. फिर भी आप ने मेरे से इतने अच्छे से बातें कीं. वैसे आप यहां के नहीं हो न. आप का गांव कहां है ?”

“मैं दिल्ली में रहता हूं. वैसे हूं बिहार का ब्राम्हण .”

“अच्छा जी, आप नहा लो. मैं जाती हूं. कोई भी काम हो तो मुझे बता देना. मैं पूरे दिन इधर ही रहूंगी.”

“ठीक है. जरा यह बताओ कि आसपास कुछ खाने को मिलेगा?”

“ज्यादा कुछ तो नहीं सर. थोड़ी दूरी पर एक किराने की दुकान है. वहां कुछ मिल सकता है. ब्रेड, अंडा तो मिल ही जाएगा. मैगी भी होगी और वैसे समोसे भी रखता है. देखिए शायद समोसे भी मिल जाएं.”

“ओके थैंक्स.”

मैं नहाधो कर बाहर निकला. समोसे, ब्रेड अंडे और मैगी के कुछ पैकेटस ले कर आ गया. दूध भी मिल गया था. दोपहर तक का काम चल गया मगर अब कुछ अच्छी चीज खाने का दिल कर रहा था. इस तरह ब्रेड, दूध, अंडा खा कर पूरा दिन बिताना कठिन था.

मैं ने सपना को बुलाया,” सुनो तुम्हें कुछ बनाना आता है?”

“हां जी सर बनाना तो आता है. पर क्या आप मेरे हाथ का बना हुआ खाएंगे?”

“हां सपना खा लूंगा. मैं इतना ज्यादा कुछ ऊंचनीच नहीं मानता. जब कोई और रास्ता नहीं तो यही सही. तुम बना दो मेरे लिए खाना.”

मैं ने उसे ₹500 का नोट देते हुए कहा, “चावल, आटा, दाल, सब्जी जो भी मिल सके ले आओ और खाना तैयार कर दो.”

“जी सर” कह कर वह चली गई.

शाम में दोतीन डब्बों में खाना भर कर ले आई,” यह लीजिए, दाल, सब्जी और चपाती. अचार भी है और हां कल सुबह चावल दाल बना दूंगी.”

“थैंक्यू सपना. मैं ने डब्बे ले लिए. अब यह रोज का नियम बन गया. वह मेरे लिए रोज स्वादिष्ट खाना बना कर लाती. मैं जो भी फरमाइश करता वही तैयार कर के ले आती. अब मैं उस से और भी ज्यादा बातें करने लगा. उस से बातें करने से मन फ्रेश हो जाता. वह हर तरह की बातें कर लेती थी. उस की बातों में जीवन के प्रति ललक दिखती थी. वह हर मुश्किल का सामना हंस कर करना जानती थी. अपने बचपन के किस्से सुनाती रहती थी. उस के घर में मां, बाबूजी और छोटा भाई है. अभी वह अपने घर में अकेली थी. घरवाले शादी में पास के शहर में गए थे और वहीं फंस गए थे.

वह बातचीत में जितनी बिंदास थी उस की सोच और नजरिए में भी बेबाकी झलकती थी. किसी से डरना या अपनी परिस्थिति से हार मानना उस ने नहीं सीखा था. किसी भी काम को पूरा करने या कोई नया काम सीखने के लिए अपनी पूरी शक्ति और प्रयास लगाती. हार मानना जैसे उस ने कभी जाना ही नहीं था.

उस की बातों में बचपन की मासूमियत और युवावस्था की मस्ती दोनों होती थी. बातें बहुत करती थी मगर उस की बातें कभी बोरियत भरने वाली नहीं बल्कि इंटरेस्ट जगाने वाली होती थीं. मैं घंटों उस से बातें करता.

उस ने शहर की लड़कियों की तरह कभी कॉलेज में जा कर पढ़ाई नहीं की. गांव के छोटे से स्कूल से पढ़ाई कर के हाल ही में 12वीं की परीक्षा दी थी. पर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा हुआ था. दिमाग काफी तेज था. कोई भी बात तुरंत समझ जाती. हर बात की तह तक पहुंचती. मन में जो ठान लेती वह पूरा कर के ही छोड़ती.

शिक्षा और समझ में वह कहीं से भी कम नहीं थी. अपनी जाति के कारण ही उसे मांबाप का काम अपनाना पड़ा था.

उस की प्रकृति तो खूबसूरती थी ही दिखने में भी कम खूबसूरत नहीं थी. जितनी देर वह मेरे करीब बैठती मैं उस की खूबसूरती में खो जाया करता. वह हमेशा अपनी आंखों में काजल और माथे पर बिंदिया लगाती थी. उन कजरारी आंखों के कोनों से सुनहरे सपनों की उजास झलकती रहती. लंबी मैरून कलर की बिंदी हमेशा उस के माथे पर होती जो उस की रंगबिरंगी पोशाकों से मैच करती. कानों में बाली और गले में एक प्यारा सा हार होता जिस में एक सुनहरे रंग की पेंडेंट उभर कर दिखती.

“सपना तुम्हें कभी प्यार हुआ है ?” एक दिन यूं ही मैं ने पूछा.

मेरी बात सुन कर वह शरमा गई और फिर हंसती हुई बोली,” प्यार कब हो जाए कौन जानता है? प्यार बहुत बुरा रोग है. मैं तो कहती हूं यह कोरोना से भी बड़ा रोग है.”

उस के कहने का अंदाज ऐसा था कि मैं भी उस के साथ हंसने लगा. हम दोनों के बीच एक अलग तरह की बौंडिंग बनती जा रही थी. वह मेरी बहुत केयर करती. मैं भी जब उस के साथ होता तो पूरी दुनिया भूल जाता.

एक दिन शाम के समय मेरे गले में दर्द होने लगा. रात भर खांसी भी आती रही. अगले दिन भी मेरी तबीयत खराब ही रही. गले में खराश और खांसी के साथ सर दर्द हो रहा था. मेरी तबीयत को ले कर सपना परेशान हो उठी. वह मेरे खानपान का और भी ज्यादा ख्याल रखने लगी. मुझे गुनगुना पानी पीने को देती और दूध में हल्दी डाल कर पिलाती.

तीसरे दिन मुझे बुखार भी आ गया. सपना ने तुरंत मेरे घरवालों को खबर कर दी. साथ ही उस ने रिसोर्ट के डॉक्टर को भी फोन लगा लिया. डॉक्टर की सलाह के अनुसार उस ने मुझे बुखार की दवा दी. रिसोर्ट के ही इमरजेंसी सामानों से मेरी देखभाल करने लगी. उस ने मेरे लिए भाप लेने का इंतजाम किया. तुलसी, काली मिर्च, अदरक,सौंठ मिला कर हर्बल टी बनाई. एलोवेरा और गिलोय का जूस पिलाया. वह हर समय मेरे करीब बैठी रहती. बारबार गुनगुना कर के पानी पिलाती.

कोई और होता तो मेरे अंदर कोरोना के लक्षण का देख कर भाग निकलता. मगर वह बिल्कुल भी नहीं घबड़ाई. बिना किसी प्रोटेक्टिव गीयर के मेरी देखभाल करती रही. मेरे बहुत कहने पर उस ने दुपट्टे से अपनी नाक और मुंह ढकना शुरू किया.

इधर मेरे घर वाले बहुत परेशान थे. मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती थी मगर सपना ही वीडियो कॉल करकर के पूरे हालातों का विवरण देती रहती. मेरी बात करवाती. खानपान के जरिए जो भी उपाय कर रही होती उस की जानकारी उन्हें देती. मां भी उसे समझाती कि और क्या किया जा सकता है.

इधर पापा लगातार इस कोशिश में थे कि मेरे लिए अस्पताल के बेड और एंबुलेंस का इंतजाम हो जाए. इस के लिए दिन भर फोन घनघनाते रहते. मगर इस पहाड़ी इलाके में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी. आसपास कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं था. इन परिस्थितियों में मैं और मेरे घरवाले सपना की सेवा भावना और केयरिंग नेचर देख कर दंग थे. मम्मी तो उस की तारीफ करती नहीं थकतीं.

मैं भी सोचता कि वह नहीं होती तो मैं खुद को कैसे संभालता. इस बीच मेरा कोरोना टेस्ट हुआ और रिपोर्ट नेगेटिव आई.

सब की जान में जान आ गई. सपना की मेहनत रंग लाई और दोचार दिनों में मैं ठीक भी हो गया.

एकं दिन वह दोपहर तक नहीं आई. उस दिन मेरे लिए समय बिताना कठिन होने लगा. उस की बातें रहरह कर याद आ रही थीं. मुझे उस की आदत सी हो गई थी. शाम को वह आई मगर काफी बुझीबुझी सी थी.

“क्या हुआ सपना ? सब ठीक तो है ? मैं ने पूछा तो वह रोने लगी.

“जी मैं घर में अकेली हूं न. कल शाम दो गुंडे घर के आसपास घूम रहे थे. मुझे छेड़ने भी लगे. बड़ी मुश्किल से जान छुड़ा कर घर में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया. सुबह में भी वह आसपास ही घूमते नजर आए. तभी मैं घर से नहीं निकली.”

“यह तो बहुत गलत है. तुम ने आसपास वालों को नहीं बताया ?”

“जी हमारे घर दूरदूर बने हुए हैं. बगल वाले घर में काका रहते हैं पर अभी बीमार हैं. इसलिए मैं ने जानबूझ कर नहीं बताया. मुझे तो अब घर जाने में भी डर लग रहा है. वैसे भी गुंडों से कौन दुश्मनी मोल ले.”

“तुम घबराओ नहीं. अगर आज रात भी वे गुंडे तुम्हें परेशान करें तो कल सुबह अपने जरूरी सामान ले कर यहीं चली आना. अभी कोई है भी नहीं रिसॉर्ट में. तुम यहीं रह जाना. रिसॉर्ट के मालिक ने कुछ कहा तो मैं बात कर लूंगा उस से.”

“जी आप बहुत अच्छे हैं. उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे. अगले दिन सुबह ही वह कुछ सामानों के साथ रिसॉर्ट आ गई. वह काफी डरी हुई थी. आंखों से आंसू बह रहे थे.

“जी अब मैं घर में अकेली नहीं रहूंगी. कल भी गुंडे आ कर मुझे परेशान कर रहे थे. मैं सामान ले आई हूं.”

“यह तुम ने ठीक किया सपना. तुम यहीं रहो. यहां सुरक्षित रहोगी तुम.” मैं ने भरोसा दिलाते हुए अपना हाथ उस के हाथों पर रखा.

उस के हाथों के स्पर्श से मेरे अंदर एक सिहरन सी हुई. मैं ने जल्दी से हाथ हटा लिया. मेरी नजरों में शायद उस ने सब कुछ भांप लिया. उस के चेहरे पर शर्म की हल्की सी लाली बिखर गई.

उस दिन उस ने रिसॉर्ट के किचन में ही खाना बनाया.

मेरे लिए थाली सजा कर वह अलग खड़ी हो गई तो मैं ने सहज ही उस से कहा, “तुम भी खाओ न मेरे साथ.”

“जी अच्छा.”उस ने अपनी थाली भी लगा ली.

खाने के बाद भी बहुत देर तक हम बातें करते रहे. उस की सुलझी हुई और सरल बातें मेरे दिल को छू रही थीं. उस के अंदर कोई बनावटीपन नहीं था. मैं उसे बहुत पसंद करने लगा था.

मेरे जज्बात शायद उसे भी समझ आने लगे थे. एक दिन रात में बड़ी सहजता से उस ने मेरे आगे समर्पण कर दिया. मैं भी खुद को रोक नहीं सका. पल भर में वह मेरी जिंदगी का सब से जरूरी हिस्सा बन गई. धीरेधीरे सारी ऊंचनीच और भेदभाव की सीमा से परे हम दोनों दो जिस्म एक जान बन गए थे. लॉक डाउन के उन दिनों ने अनायास ही मुझे मेरे जीवनसाथी से मिला दिया था और अब मुझे यह स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं थी.

यह बात मैं ने अपने पैरंट्स के आगे रखी तो उन्होंने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया.

मम्मी ने बड़ी सहजता से कहा,” जब सोच लिया है तो शादी भी कर लो बेटा. पता नहीं लौकडाउन कब खुले. जब यहां आओगे तो तुम्हारा रिसेप्शन धूमधाम से करेंगे. मगर देखो शादी ऑनलाइन रह कर ही करना.”

सपना यह सब बातें सुन कर बहुत शरमा गई. अगले दिन ही हम ने शादी करने का फैसला कर लिया. सपना ने कहा कि वह अपने परिचित काका को ले कर आएगी जो गांव में शादियां कराते हैं. साथ ही अपने मुंहबोले भाई को भी लाएगी जो कुछ दूर रहता है. हम ने सारी प्लानिंग कर ली थी. वह अपनी मां की शादी के समय के गहने और कपड़े पहन कर आने वाली थी. मैं ने भी अपना सफारी सूट निकाल लिया. अगले दिन हमारी शादी थी. हम ने रिसॉर्ट में रखे सामानों का उपयोग शादी की सजावट के लिए कर लिया. रिजोर्ट का एक बड़ा हिस्सा सपना और मैं ने मिल कर सजा दिया था.

अगले दिन सपना अपने घर से सजसंवर कर काका और भाई साथ आई. वह जानबूझ कर घूंघट लगा कर खड़ी हो गई. मैं ने घूंघट हटाया तो देखता ही रह गया. सुंदर कपड़ों और गहनों में वह इतनी खूबसूरत लग रही थी जैसे कोई परी उतर आई हो.

हम ने मेरे मम्मीपापा और परिवार वालों की मौजूदगी में ऑनलाइन शादी कर ली. अब बारी आई शादी की तस्वीरें लेने की. सपना के भाई ने रिसॉर्ट के खास हिस्सों में बड़ी खूबसूरती से तस्वीरें ली. अलगअलग एंगल से ली गई इन तस्वीरों को देख कर एक शानदार शादी का अहसास हो रहा था. रिसॉर्ट किसी फाइव स्टार होटल का फील दे रहा था.

हम ने तस्वीरें घरवालों और रिश्तेदारों को फॉरवर्ड कीं तो सब पूछने लगे कि कौन से होटल में इतनी शानदार शादी रचाई और वह भी लौकडाउन में.

हमारी शादी को 3 महीने बीत चुके हैं. आज हमारा रिसेप्शन हो रहा है. सारे रिश्तेदार इकट्ठे हैं. रिसेप्शन पूरे धूमधाम के साथ संपन्न हो रहा है. खानेपीने का शानदार इंतजाम है. इस भीड़ और तामझाम के बीच मुझे अपनी शादी का दिन बहुत याद आ रहा है कि कैसे केवल 2 लोगों की उपस्थिति में हम ने उम्रभर का रिश्ता जोड़ लिया था.

इस बार तीज पर बनाएं टेस्टी स्पौंज रसगुल्ला, बढ़ जाएगा खाने का स्वाद

बंगाल के फेमस स्पौंज रसगुल्ले हर किसी को पसंद होते हैं, लेकिन मार्केट में मिलने वाले रसगुल्लों में वो स्वाद नही आता साथ ही ये हेल्दी भी नही होते. पर आज हम आपको स्पौंज रसगुल्ले की रेसिपी के बारे में बताएगें, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को हरियाली में खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

दूध – 1 लीटर (5 कप, फुल क्रीम मिल्क)

चीनी – 300 ग्राम (1. 5 कप)

नीबू – 2 (रस निकाल लीजिये)

बनाने का तरीका

– किसी बर्तन को थोड़ा पानी डालकर धो लीजिये और दूध डालकर गरम करने के लिये रखिये. दूध में उबाल आने पर दूध को आग से नीचे उतार लीजिये, और थोड़ा सा ठंडा कर लीजिये (दूध को 80 प्रतिशत तक गरम रहने दीजिये). नीबू के रस में जितना रस है, उतना ही पानी मिला दीजिये.

– दूध में थोड़ा थोड़ा 1 – 1 टेबल स्पून करके नीबू का रस डालिये और मिक्स कीजिये, दूध के अच्छी तरह फटने तक नीबू का रस डालिये, और मिक्स करते जाइये, जैसे ही दूध अच्छी तरह फट जाय नीबू का रस डालना बन्द कर दीजिये, और फटे हुये दूध को किसी सूती, साफ कपड़े में छान लीजिये. कपड़े को छलनी के ऊपर बिछाइये और नीचे कोई बर्तन रख दीजिये, फटे हुये दूध को कपड़े के ऊपर डालिये. फटे दूध से निकला पानी, नीचे रखे बर्तन में आ जायेगा और छैना कपड़े में रह जायेगा. छैना के ऊपर 1-2 कप ठंडा पानी डालिये, छैना ठंडा भी हो जायेगा और छैना से नीबू का खट्टा स्वाद भी खतम हो जायेगा. कपड़े को चारों ओर से उठाकर, हाथ से छैना को दबाते हुये छैना से सारा पानी निचोड़ दीजिये.  नरम नरम छैना बनकर तैयार है.

– छैना को किसी प्लेट में निकालिये, हाथ और उंगलियों से छैना को दबाते हुये, पलट पलट कर 4-5 मिनिट तक मल मल कर नरम और चिकना कीजिये. नरम किये हुये छैना को 10 – 12, भागों में बांट लीजिये. एक भाग उठाइये और हाथ से लड्डू की तरह दबाकर पहले उसे बाइन्ड कीजिये, और अब गोल आकार देकर चिकना कीजिये. तैयार गोले को किसी प्लेट में लगा कर रखिये. सारे गोले बनाकर तैयार कर लीजिये.

– रसगुल्ले कुकर में पका लीजिये, कुकर में रसगुल्ले बहुत जल्दी पक जाते हैं, क्योंकि खुले भगोने की अपेक्षा कुकर में तापमान अधिक हो जाता है, रसगुल्ले पकाने के लिये, ज्यादा तापमान की आवश्यकता होती है.

– कुकर में चीनी और 4 कप पानी डालिये, उबाल आने दीजिये, उबाल आने पर छैना के बने गोले कुकर में एक एक करके डालिये, और कुकर का ढक्कन बन्द कर दीजिये. कुकर में 1 सीटी आने के बाद, आग मीडियम कर दिजिये, और रसगुल्ले को 7-8 मिनिट तक और पकने दीजिये, आग बन्द कर दीजिये.

– किसी बर्तन में पानी ले लीजिये उसमें कुकर को रखकर, कुकर को ठंडा कीजिये या कुकर को नल के नीचे लगा दीजिये, ताकि वह जल्दी से ठंडा हो जाय और खुल जाय. सावधानी से ढक्कन खोलिये, कुकर से रसगुल्ले चाशनी के साथ निकाल कर किसी प्याले में रखिये और रसगुल्ले को ठंडे होने दीजिये, ताकि वह चाशनी का रस भी सोख ले और अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को डेजर्ट में खिलाएं.

मुझे डायबिटीज है, क्या इस के कारण गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 32 साल है. मेरी शादी को 3 साल हो गए लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है? मुझे डायबिटीज है. क्या इस के कारण गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है?

जवाब

कई अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि वे महिलाएं जिन्हें भी डायबिटीज है उन्हें उन महिलाओं की तुलना में गर्भधारण करने में समस्या आती है जिन्हें डायबिटीज नहीं है. डायबिटीज से पीडि़त महिलाओं में पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और डिसमैटाबोलिक सिंड्रोम एक्सैस दोनों की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है जो महिलाओं में बां?ापन के सब से बड़े कारण हैं. अगर आप का वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, अपने खानपान का ध्यान रखें, तनाव न पालें. डाक्टर द्वारा सु?ाई दवाएं ठीक समय पर लें. जितने बेहतर तरीके से डायबिटीज का प्रबंधन करेंगी आप के लिए गर्भधारण करना उतना आसान होगा.

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सवाल

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मुझे डायबिटीज है और मेरा वजन सामान्य से 20 किलोग्राम अधिक है. क्या वजन अधिक होने से डायबिटीज के प्रबंधन में परेशानी आती है?

जवाब

मोटापे के कारण इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है. मोटे लोगों के शरीर में इंसुलिन होता तो है, लेकिन काम नहीं कर पाता जिस से शुगर का स्तर बढ़ जाता है. वजन कम होने से इंसुलिन की कार्यक्षमता बढ़ती है. अपना स्वस्थ वजन बनाए रखें. अगर वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें. अगर रोजाना आप अपनी जरूरत से 100-150 कैलोरी का इनटैक कम करेंगी तो 1 साल में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपना वजन 7 से 10 किलोग्राम तक कम कर लेंगी. आप जिम जौइन कर सकती हैं या अपना मनपसंद कोई दूसरा वर्कआउट जैसे वाकिंग, रनिंग, स्विमिंग या साइक्लिंग भी कर सकती हैं ताकि आप का वजन तेजी से कम हो जाए.

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सवाल

मैं 42 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पिछले 4 साल से डायबिटीज है. सामान्य जीवन जीने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब

डायबिटीज के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे अपना ब्लड प्रैशर 130/80 से कम रखें और खाली पेट रक्त में शुगर की मात्रा 110 मिलीग्राम और खाना खाने के 2 घंटे बाद 150 मिलीग्राम से कम रखें. सब से जरूरी है महिलाएं अपनी कमर का घेरा 32 इंच से कम रखें. बुरे कोलैस्ट्रौल (एलडीएल) को 100 से कम और अच्छे कोलैस्ट्रौल (एचडीएल) 50 से अधिक रखें. ये सभी सावधानियां डायबिटीज के मरीजों को लंबा और सामान्य जीवन जीने में सहायक होती हैं.

डा. ए.के. झिंगन

चेयरमैन, डेल्ही डायबिटीज रिसर्च सैंटर,

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