साइबर अरेस्ट का खेल शिकारी आएगा जाल बिछाएगा

आधुनिक समय में साइबर अरेस्ट की अनेक घटनाएं देश में घटित हो रही हैं, लोग फर्जी साइबर अरेस्ट के चक्कर में लाखों रुपए की ठगी का शिकार हो रहे हैं.

आइए, आज आप को बताते हैं इस तरह की घटनाओं और इस से बचाव के बारे में :

देश की राजधानी दिल्ली के सुभाष नगर में एक युवती को औनलाइन बंधक (डिजिटल अरेस्ट) कर ₹2 लाख की ठगी कर ली गई. आरोपियों ने पीड़ता को बताया कि उस ने जो पार्सल भेजा है, उस में मादक पदार्थ व दूसरी गैरकानूनी चीजें हैं और इस मामले में उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. इस धमकी से युवती घबरा गई। ठगों ने पीड़िता का बैंक खाता जांच करने के नाम पर ₹2 लाख ऐंठ लिए.

ठगी हो जाने के एहसास के बाद

पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर मामला दर्ज कर लिया है. पीड़िता अपने परिवार के साथ सुभाष नगर इलाके में परिवार के साथ रहती है. दरअसल, 28 जुलाई, 2024 को उस के मोबाइल पर अज्ञात नंबर से फोन आया,”मैडम, मैं मुंबई से फेडेक्स कूरियर कंपनी का प्रतिनिधि बोल रहा हूं। आप के नाम का एक पार्सल ताइवान जा रहा है. पार्सल में 8 विदेशी पासपोर्ट, 5 एसबीआई क्रैडिट कार्ड, 300 ग्राम मादक पदार्थ, एक लैपटौप और कपड़े हैं.”

इस के बाद ठगों ने कानूनी काररवाई की बात कह कर उसे डरा दिया. पीड़िता को डराने के लिए किसी को कुछ न बताने और कमरे में बंद रहने के लिए कहा. इस मामले में बचने के लिए ठगों ने उसे बैंक खाता वैरिफिकेशन करवाने के लिए कहा और बताय कि इस के लिए उसे ₹2 लाख अपने खाते से एक दूसरे खाते में भेजने होंगे. रिजर्व बैंक औफ इंडिया इस रकम को वैरीफाई करेगा और 15 मिनट में रकम वापस कर दिया जाएगा.

पीड़िता आरोपियों के झांसे में आ गई और उस ने रकम आरोपियों के खाते में भेज दी. पुलिस मामले की जांच कर रही है और आरोपियों की तलाश कर रही है.

क्या ऐसी घटनाओं से अवगत हैं

साइबर ठगी : एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक अज्ञात व्यक्ति ने संपर्क किया और उसे एक बड़ी रकम का लालच दे कर ठग लिया.

फ्रौड कौल : एक व्यक्ति को एक फ्रौड कौल आया, जिस में उसे बताया गया कि उस का बैंक खाता हैक हो गया है और उसे अपनी व्यक्तिगत जानकारी देनी होगी.

औनलाइन शौपिंग फ्रौड: एक व्यक्ति ने औनलाइन शौपिंग की और भुगतान किया, लेकिन सामान नहीं मिला.

जौब फ्रौड: एक व्यक्ति को नौकरी का लालच दे कर ठग लिया गया.

रोमांस स्कैम: एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक अज्ञात व्यक्ति ने संपर्क किया और उसे प्यार का लालच दे कर ठग लिया.

बैंक खाता हैक: एक व्यक्ति का बैंक खाता हैक हो गया और उस की रकम निकाल ली गई।

फेक वैबसाइट: एक व्यक्ति ने एक फेक वैबसाइट पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी दी और ठग लिया गया.

सोशल मीडिया फ्रौड: एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक अज्ञात व्यक्ति ने संपर्क किया और उसे ठग लिया.

इन घटनाओं से आपशको सावधान रहने की आवश्यकता है और साइबर सुरक्षा के बारे में जागरूक रहने की जरूरत है.

बिना जागरूकता के ठगे जाएंगे

औनलाइन अरेस्ट, जिसे डिजिटल अरेस्ट या साइबर अरेस्ट भी कहा जाता है, एक प्रकार की साइबर ठगी है जिसवमें आरोपी व्यक्ति को औनलाइन प्लेटफौर्म पर गिरफ्तार किया जाता है और उसे झूठे आरोपों में फंसाया जाता है.

दरअसल, औनलाइन अरेस्ट की कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह साइबर ठगी के तहत आता है जोकि एक दंडनीय अपराध है.

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत साइबर ठगी के मामलों में काररवाई की जा सकती है. जो व्यक्ति किसी व्यक्ति को धोखा दे कर या झूठे आरोपों में फंसा कर उस की संपत्ति या मूल्य की चीजें प्राप्त करता है, वह दंडनीय अपराध का दोषी होता है.

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत, जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग कर के या झूठे आरोपों में फंसा कर उस की संपत्ति या मूल्य की चीजें प्राप्त करता है, वह दंडनीय अपराध का दोषी होता है.

औनलाइन अरेस्ट के मामलों में पीड़ित व्यक्ति को तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज करानी चाहिए और साइबर सेल की मदद लेनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट और अन्य कोर्ट्स ने औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी के मामलों में टिप्पणी की है. यहां कुछ उदाहरण हैं :

सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा कि औनलाइन ठगी के मामलों में पुलिस को तुरंत काररवाई करनी चाहिए और पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक मामले में कहा कि साइबर ठगी के मामलों में आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस को सावधानी से जांच करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी व्यक्ति दोषी है.

कोर्ट्स औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी के मामलों में सख्ती से निबटने के लिए कह रहे हैं और पुलिस को सावधानी से जांच करने और पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए कह रहे हैं.

दिल्ली: दिल्ली में एक व्यक्ति को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹50 हजार की ठगी का शिकार बनाया गया. आरोपी ने व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के एक जिले में एक महिला को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹2 लाख की ठगी का शिकार बनाया गया. आरोपी ने महिला को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

महाराष्ट्र: महाराष्ट्र के एक शहर में एक व्यक्ति को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹1 लाख की ठगी का शिकार बनाया गया.आरोपी ने व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

राजस्थान: राजस्थान के एक जिले में एक व्यक्ति को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹30 हजार की ठगी का शिकार बनाया गया. आरोपी ने व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

इन घटनाओं से पता चलता है कि औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी के मामले पूरे देश में बढ़ रहे हैं और लोगों को सावधान रहने की आवश्यकता है.

विधि विद्वानों ने औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी से बचने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं :

औनलाइन लेनदेन करते समय सावधानी बरतें और अनजान लोगों से पैसे न मांगें। साइबर ठगी से बचने के लिए अपने पासवर्ड और सुरक्षा जानकारी को सुरक्षित रखें। औनलाइन अरेस्ट के मामलों में पुलिस को तुरंत सूचित करें और साइबर सेल की मदद लें. अपने बैंक खाते और क्रैडिट कार्ड की जानकारी को सुरक्षित रखें और अनजान लोगों से साझा न करें.

औनलाइन लेनदेन करते समय सुनिश्चित करें कि वैबसाइट सुरक्षित है और निर्धारित प्रोटोकौल का उपयोग करती है.

इन सुझावों को अपना कर हम औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी से बच सकते हैं और अपनी वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं.

स्नैक्स में दलिए से बनाएं नवाबी शेजवान रोल, नोट करें बनाने का ये आसान तरीका

स्नैक्स यानि ऐसा नाश्ता जिसे ब्रैकफास्ट अथवा लंच और डिनर के बीच खाया जा सके इस के अतिरिक्त घर में बर्थडे अथवा अन्य कोई छोटीमोटी पार्टी हो तो उस में भी स्नैक्स से ही भोजन की शुरुआत की जाती है.

चूंकि इसे लंच और डिनर के बीच में खाया जाता है इसलिए इसशका हैल्दी होना बेहद आवश्यक होता है ताकि शरीर को पर्याप्त पोषण तो मिले पर कैलोरी सीमित रहे.

गेहूं का दलिया आमतौर पर प्रत्येक घर में उपलब्ध होता है. इस में फाइबर, विटामिंस, ऐंटीऔक्सिडेंट, मिनरल्स, आयरन, कैल्सियम और अमीनो ऐसिड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इसे खाना सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

कितने लोगों के लिए : 8

बनने में लगने वाला समय : 20 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री (कवर के लिए)

पका दलिया : 1 कप
ब्रेड क्रंब्स : 1 कप
शेजवान सौस : 1 टीस्पून
नमक : ¼ टीस्पून
जीरा : ¼ टीस्पून
हलदी पाउडर : ¼ टीस्पून
तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में

सामग्री(फिलिंग के लिए)

उबले आलू : 2
उबली मटर : 1 कप
बारीक कटी गाजर : 1
बारीक कटी हरीमिर्च : 2
कटा प्याज : 1
कटा अदरक : 1 इंच
बारीक कटे काजू : 10
कटी किशमिश : 8-10
जीरा : ¼ टीस्पून
लालमिर्च पाउडर : ¼ टीस्पून
शेजवान चटनी : 1 टेबलस्पून
अमचूर पाउडर : ¼ टीस्पून
नमक स्वादानुसार
तेल : 1 टीस्पून
बारीक कटा हरा धनियापत्ती : 1टीस्पून

विधि

उबले दलिया में ब्रेड क्रंब्स, शेजवान सौस, नमक, जीरा और हलदी पाउडर अच्छी तरह मिला कर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें. फिलिंग बनाने के लिए गरम तेल में हरीमिर्च, अदरक और प्याज भून कर कटे काजू और किशमिश डाल कर चलाएं. अब गाजर और मटर डाल कर सभी मसाले, नमक और 1 टेबलस्पून पानी डाल कर ढक कर गाजर व मटर के गलने तक पकाएं. उबले आलू और शेजवान चटनी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. हरा धनिया डाल कर मिश्रण को ठंडा होने दें. जब यह ठंडा हो जाए तो 1 बड़ा चम्मच मिश्रण ले कर आधा इंच लंबे रोल्स बना लें.

दलिए के मिश्रण से रोटी के बराबर की लोई ले कर हथेली पर फैलाएं और बीच में आलू का रोल रख कर चारों तरफ से अच्छी तरह बंद कर दें. इसी तरह सारे रोल्स तैयार कर लें. इन रोल्स को गरम तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तल कर बटर पेपर पर निकालें और टोमैटो सौस के साथ सर्व करें.

नोट : यदि आप इन्हें किसी पार्टी के लिए बनाना चाहतीं हैं तो पहले से बना कर सिल्वर फौइल से कवर कर के फ्रिज में रखें और मेहमानों के आने पर सर्व करें.

आप डीप फ्राई करने के स्थान पर तेल से हलका सा ब्रश कर के एअर फ्रायर में भी 220 डिग्री पर 25 मिनट तक फ्रा भी कर सकती हैं.

इस फेस्टिव सीजन को बनाना चाहते हैं स्पैशल, तो बढ़ाएं दोस्ती का हाथ

फेस्टिव सीजन दस्तक देने को है. ऐसे में कहीं दिवाली पर घर में व्हाइट वाश कराने की चर्चा है, तो कहीं लोग डेकोरेशन के लिए DIY करने की तैयारी में हैं. कुछ को तोहफों की फिक्र सता रही है, वो क्या है कि पिछली बार रीता ने अपने सास और ननद को जो गिफ्ट दी वो उन्हें खास पसंद नहीं आई, अब सास को पसंद है बनारसी लेकिन रीता ने उन्हें गिफ्ट की कौटन साड़ी. ऐसे में सास का मूड खराब की उनकी पसंदनापसंद को अच्छे से जानते हुए रीता ने उन्हें ऐसा गिफ्ट क्यों दिया. दूसरी ओर रीता का भी मूड औफ हो गया, वो सोच रही है कि पूरा दिन घर में सजावट, तरहतरह के पकवान बनाने के बाद अगर गिफ्ट थोड़ा आम हो गया तो क्या ही बात है. लेकिन उसकी सास की सोच जरा उससे जुदा है. उन्होंने तो गिफ्ट पसंद न आने की नाराज़गी भी सब रिश्तेदारों के सामने ही बयां कर दी. ऐसे में रिश्तेदारों, दोस्तों से भरे घर का मौहोल थोड़ा भारी हो गया. और रही बात रीता की तो, इतनी मेहनत के बाद भी वो फेस्टिवल का मजा नहीं उठा पाई, सिर्फ किचन और डाइनिंग रूम के चक्कर ही काटती रह गयी कि कहीं मेहमानों की आवभगत में कोई कमी न रह जाए.

दोस्ती का हाथ बढ़ाएं

त्योहार हम सब के जीवन में कुछ अच्छा होने की उम्मीद लेकर आते हैं. जहां हमें अपने खास लोगों से मिलने और खुशियां बांटने का मौका मिलता है. हम एक दूसरे को ऐसा तोहफा देना चाहते हैं, जिसे देख उनका चेहरा दिवाली की लाइटों की तरह ही मुस्कुराहट से जगमगा जाए. लेकिन इस सब साजसज्जा, गिफ्ट्स, कपड़ों के चक्कर में हम भूल जाते हैं कि त्यौहार सिर्फ मैटेरियलिस्टिक चीजों से नहीं रिश्तों से खास बनते हैं. तो क्यों न इस बार हम रिश्तों को एक नया नज़रिया दें. सास को सास न समझ कर उन्हें अपनी दोस्त बनाएं. ननद को मेहमान न समझकर एक दोस्त की तरह पेश आएं. बहरहाल ताली एक हाथ से नहीं बजती इसलिए हर रिश्ते को अपनी ओर से दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा. सोचिए अगर घर में रिश्तों की बंदिश न हो और सब छोटे-बड़े एक दूसरे दोस्तों की तरह पेश आएं तो क्या ही नजारा होगा.

मूड लाइट करने के लिए सिंपल फन गेम्स खेलें

जब किटी पार्टी में जातें तो सभी फ्रेंड्स मिलकर नएनए गेम्स खेलते हैं. कोई मेजबान कोई मेहमान नहीं होता. पार्टी को सक्सेस करने के लिए सब एक बराबर मेहनत और एंजौय करते हैं. हाउस पार्टी में रंग भरने में सिंपल गेम्स आपकी मदद करते सकते हैं. जैसे, हुला हूप चैलेंज( इसमें जो सबसे ज्यादा देर तक हुला हूप को अपने कमर के इर्दगिर्द घुमाएगा वो विजता होगा), पिंग पोंग (टेबल के एक ओर प्लास्टिक के कप से पिरामिड बनाकर सबको 3 चांस मिलेंगे, जिसमें जो सबसे ज्यादा कप गिराएगा वो विजेता बनेगा), तंबोला जैसे गेम्स खेले जा सकते हैं. जिससे आपके घर आए मेहमान खूब मजे करे. हां, जीतने वाले का हौंसला बढ़ाने के लिए आप चौकलेट्स जैसे कोई गिफ्ट भी ज़रूर रखें. इन गेम्स में बच्चों से लेकर दादादादी सब हिस्सा करके एजौय कर सकते हैं.

गपशप करें

किसी पार्टी की जान ही उसमें होने वाली गपशप है. तो जैसे आप अपने दोस्तों से मिलकर अपने दिल की बात उनसे कहने का इंतजार करती हैं, ठीक वैसे ही अपने रिश्तों में भारीपन को हटाने की कोशिश करें. अपने मन की बात, अपनी पसंद, ना पसंद शेयर करें. फ्रैंडशिप में नो एक्सपेक्टेशन के नियम को रिश्तों में भी लागू करें. एक दूसरे से रिश्ते में महंगे गिफ्ट्स, मेहमान नवाज़ी या जबरदस्ती की इज्ज़त की अपेक्षा न करें. खुद पहल करें, दोस्ती का हाथ बढ़ाएं. एक दूसरे को बिना जजमेंट स्वीकार करें. जब आपस में मिलें तो नकचड़े रिश्तेदारों की तरह कमियां गिनाने पर नहीं, बल्कि दोस्तों की तरह खूबियां गिनाने और अच्छे काम पर तारीफ करना शुरु करें.

गिफ्ट हो थोड़ा हटके

ऐसा क्यों है कि आपको अपनी सास या नंद को साड़ी या शाल ही गिफ्ट करनी है. या फिर ससुर हैं तो उन्हें कुर्ता सेट ही गिफ्ट किया जाए. जब रिश्तों में दोस्ती की मिठास घोलनी है तों क्यों न गिफ्ट भी जरा हटके हों?. आप अपने सासससुर को अच्छे टीशर्ट और पेंट या जैकेट भी गिफ्ट कर सकते हैं. जब दोस्तों में गिफ्ट देना हो तो हम कुछ ऐसा तलाश करते हैं जिसे देखकर दोस्त को खुशी मिले, पर्सनलाइज मग पर भी हम उनकी सबसे खूबसूरत की बजाए सबसे फनी फोटो ही प्रिंट कराते हैं. तो क्यों न ऐसा ही परिवार में भी करें. पर्सनलाइज़ मग, फोटो कोलाज, पर्नलाइज़ की-चैन जैसे तमाम गिफ्ट औप्शन आपको किफायती दामों में मिल जाएगें. बस गूगल पर जाकर सर्च कीजिए ‘पर्सनाइज़ गिफ्ट औप्शन’ और आपको एक लंबी लिस्ट आ जाएगी, जहां से गिफ्ट लिया जा सकता है.

मेजबान को दें थोड़ा आराम

अकसर पार्टी में मेजबान मेहमानों के आने से पहले से तैयारियों में लगा होता है, पार्टी के दौरान और बाद के कामों के चलते, वो लंबे अर्से बाद हुए गेटटुगेदर का मज़ा नहीं ले पाते. ऐसे में मेज़बान को भी पार्टी का आनंद लेने दें, सेल्फ सर्व करें और दोस्तों की तरह जिम्मेदारियों को बाटें. अगर मेजबान ने खाने में एक डिश बनाई है तो पहले से उनसे चर्चा कर दूसरी डिश आप तैयार करके ले जाएं. इससे किसी एक पर बोझ नहीं पड़ता. फेस्टिवल सबके लिए एक जैसे होते हैं उसमें हमें तोहफों और मेहमान नवाजी करने और कराने की भावना को त्याग कर दोस्ती की ओर कदम बढ़ाना चाहिए. फिर देखिएगा कैसे आपके त्योहारों में रौनक आती है.

घर को दें मौडर्न टच, व्हाइट वाश से बदलें हर कोने की रंगत

त्योहारों का मौसम आते ही हमारे दिलों में उत्साह और उमंग की एक नई लहर दौड़ जाती है और घर की साफसफाई शुरू हो जाती है वैसे तो घर को सजाना-संवारना हमारी भारतीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसमे घर की सफेदी यानी व्हाइट वाश का एक विशेष स्थान है. सफेदी से घर न केवल साफ और नया दिखता है, बल्कि इसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है जिससे हमारे मन और शरीर को सुकून मिलता है .

त्यौहारों के समय घर में मेहमानों का आनाजाना भी लगा रहता है. ऐसे में घर की सफेदी और सजावट आपके घर की शोभा को और बढ़ा देती है. सफेदी के बाद घर का वातावरण इतना आकर्षक और सुंदर हो जाता है कि बस घर निहारते रहने का मन करता है. अगर आप भी अपने घर को क्लासी और फ्रेश लुक देना चाहते हैं तो इन पेंट ट्रेंड्स को चुनकर अपने घर की दीवारो को चमका दीजिए .

सस्टेनेबल पेंट्स

पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते, 2024 में बायोफ्रेंडली और लोवोक (Low VOC) पेंट्स का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है. यह पेंट्स स्वास्थ्य के लिए कम हानिकारक होते हैं और पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हैं.

नेचुरल कलर्स

2024 में प्राकृतिक रंगों का उपयोग बढ़ता जा रहा है. जैसे मिट्टी के रंग, हरा, नीला और हल्के भूरे रंगों का ज्यादा चलन हो रहा है. ये रंग घर में एक शांत और प्रकृति के करीब महसूस कराने वाला माहौल बनाते हैं.

बोल्ड एक्सेंट्स

हल्के रंगों के साथ बोल्ड और गहरे रंगों के एक्सेंट्स का उपयोग भी 2024 में ट्रेंड कर रहा है. जैसे दीवार के एक हिस्से को गहरे रंग में पेंट करना या फर्नीचर को चमकीले रंगों से सजाना.

मेटालिक फिनिश

मेटालिक पेंट्स का उपयोग घर को एक ग्लैमरस और मॉडर्न लुक देने के लिए किया जा रहा है. सोने, कांस्य और चांदी जैसे मेटालिक रंगों का उपयोग विशेष रूप से लिविंग रूम और डाइनिंग रूम में किया जा रहा है.

टैक्स्चर पेंट

दीवारों में टेक्स्चर देने के लिए टेक्स्चर पेंट्स का चलन भी बढ़ा है. यह घर की दीवारों को एक खास लुक देते हैं और एक साधारण कमरे को भी आकर्षक बना सकते हैं.

रंगों के साथ प्रयोग

2024 में लोग ज्यादा नए और अनूठे रंगों के साथ प्रयोग कर रहे हैं. जैसे, पीच, मिंट ग्रीन, और टेराकोटा जैसे रंगों का चलन बढ़ रहा है, जो घर को एक विशिष्ट और ताजगी भरा लुक देता है.

ग्रैडिएंट पेंटिंग

दीवारों पर एक ही रंग के विभिन्न शेड्स का प्रयोग भी 2024 में काफी लोकप्रिय हो रहा है. यह एक आधुनिक और स्टाइलिश लुक देता है और कमरे में गहराई लाने में मदद करता है.

टिप्स और ट्रिक्

फ़ेस्टिवल में हमारे घर में काम दोगुना होता है और वाइट वाश करने में काफी समय लगता है ऐसे मे अगर इस काम को जल्दी निपटाना चाहते हैं, तो वाइट वाश कांट्रेक्टर को खड़े होकर सिर्फ़ सलाह न दें बल्कि उसकी मदद भी करे.बाज़ार में मिलने वाली पीपीई किट या पुराने कपड़े पहनकर आप पेंट कर सकते हैं और छोटी छोटी मदद से पेंटर के काम को तेज़ी से आगे बढ़ा सकते हैं साथ ही ख़ाली समय का अच्छा उपयोग भी कर सकते है.

फर्नीचर हटाना

सफ़ेदी के दौरान कमरे के फर्नीचर को हटाने या ढकने में मदद कर सकते हैं ताकि पेंट के धब्बे उन पर न पड़ें.

सही सामग्री उपलब्ध कराना

पेंटर को सभी आवश्यक पेंट, ब्रश, रोलर, सीढ़ी, टेप आदि उपलब्ध कराना ताकि काम में कोई रुकावट न आए.

रोशनी का ध्यान रखना

पेंटिंग के लिए कमरे में पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था करना ताकि पेंटर को स्पष्ट रूप से काम करने में आसानी हो.

टूल्स की सफ़ाई में मदद करना

पेंट करने के बाद जो ब्रश और रोलर है उनकी सफ़ाई में मदद करे ये एक छोटा काम है जो आप आसानी से कर सकते है जिससे समय भी बचेगा.इस तरह आप पेंटर के काम को सुगम बना सकते हैं और काम जल्दी और अच्छे से पूरा करवा सकते है.

दिल धड़कने दो : क्या उनका रिश्ता शादी से पहले था ?

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा तो तन्वी उठ कर हमारे 10 साल के बेटे राहुल को स्कूल भेजने की तैयारी में व्यस्त हो गई. मैं भी साथ ही उठ गया. फ्रैश हो कर रोज की तरह 5वीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में राहुल के बैडरूम की खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया. कुछ दूर वाली बिल्डिंग की तीसरी मंजिल के फ्लैट में उस के बैडरूम की भी लाइट जल रही थी.

इस का मतलब वह भी आज जल्दी उठ गई है. कल तो उस के बैडरूम की खिड़की का परदा 7 बजे के बाद ही हटा था. उस की जलती लाइट देख कर मेरा दिल धड़का, अब वह किसी भी पल दिखाई दे जाएगी. मेरे फ्लैट की बस इसी खिड़की से उस के बैडरूम की खिड़की, उस की किचन का थोड़ा सा हिस्सा और उस के फ्लैट का वाशिंग ऐरिया दिखता है.

तभी वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई. अब वह अपने बाल ऊपर बांधेगी, कुछ पल खड़ी रहेगी और फिर तार से सूखे कपड़े उतारेगी. उस के बाद किचन में जलती लाइट से मुझे अंदाजा होता है कि वह किचन में है. 10 साल से मैं उसे ऐसे ही देख रहा हूं. इस सोसायटी में उस से पहले मैं ही आया था. वह शाम को गार्डन में नियमित रूप से जाती है. वहीं से मेरी उस से हायहैलो शुरू हुई थी. अब तो कहीं भी मिलती है, तो मुसकराहट और हायहैलो का आदानप्रदान जरूर होता है. मैं कोई 20-25 साल का नवयुवक तो हूं नहीं जो मुझे उस से प्यारव्यार का चक्कर हो. मेरा दिल तो बस यों ही उसे देख कर धड़क उठता है. अच्छी लगती है वह मुझे, बस. उस के 2 युवा बच्चे हैं. वह उम्र में मुझ से बड़ी ही होगी. मैं उस के पति और

बच्चों को अच्छी तरह पहचानने लगा हूं. मुझे उस का नाम भी नहीं पता और न उसे मेरा पता होगा. बस सालों से यही रूटीन चल रहा है.

अभी औफिस जाऊंगा तो वह खिड़की के पास खड़ी होगी. हमारी नजरें मिलेंगी और फिर हम दोनों मुसकरा देंगे.

औफिस से आने पर रात के सोने तक मैं इस खिड़की के चक्कर काटता रहता हूं. वह दिखती रहती है, तो अच्छा लगता है वरना जीवन तो एक ताल पर चल ही रहा है. कभी वह कहीं जाती है तो मुझे समझ आ जाता है वह घर पर नहीं है… सन्नाटा सा दिखता है उस फ्लैट में फिर. कई बार सोचता हूं किसी की पत्नी, किसी की मां को चोरीछिपे देखना, उस के हर क्रियाकलाप को निहारना गलत है. पर क्या करूं, अच्छा लगता है उसे देखना.

तन्वी मुझ से पहले औफिस निकलती है और मेरे बाद ही घर लौटती है. राहुल स्कूल से सीधे सोसायटी के डे केयर सैंटर में चला जाता है. मैं शाम को उसे लेते हुए घर आता हूं. कई बार जब वह मुझ से सोसायटी की मार्केट में या नीचे किसी काम से आतीजाती दिखती है तो सामान्य अभिवादन के साथ कुछ और भी होता है हमारी आंखों में अब. शायद अपने पति और बच्चों में व्यस्त रह कर भी उस के दिल में मेरे लिए भी कुछ तो है, क्योंकि रोज यह इत्तेफाक तो नहीं कि जब मैं औफिस के लिए निकलता हूं, वह खिड़की के पास खड़ी मुझे देख रही होती है.

वैसे कई बार सोचता हूं कि मुझे अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए. क्यों रोज मैं उसे सुबह देखने यहां खड़ा होता हूं  फिर सोचता हूं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं… उसे देख कर कुछ पल चैन मिलता है तो इस में क्या बुरा है  किसी का क्या नुकसान हो रहा है.

तभी वह सूखे कपड़े उतारने आ गई. उस ने ब्लैक गाउन पहना है. बहुत अच्छी लगती है वह इस में. मन करता है वह अचानक मेरी तरफ देख ले तो मैं हाथ हिला दूं पर उस ने कभी नहीं देखा. पता नहीं उसे पता भी है या नहीं… यह खिड़की मेरी है और मैं यहां खड़ा होता हूं. नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां आजकल मेरी इस खिड़की तक पहुंच गई हैं. उन्हीं के झुरमुट से उसे देखा करता हूं.

कई बार सोचता हूं हाथ बढ़ा कर टहनियां तोड़ दूं पर फिर मैं उसे शायद साफसाफ दिख जाऊंगा… सोचेगी… हर समय यहीं खड़ा रहता है… नहीं, इन्हें रहने ही देता हूं. वह कपड़े उतार कर किचन में चली गई तो मैं भी औफिस जाने की तैयारी करने लगा. बीचबीच में मैं उसे अपने पति और बच्चों को ‘बाय’ करने के लिए भी खड़ा देखता हूं. यह उस का रोज का नियम है. कुल मिला कर उस का सारा रूटीन देख कर मुझे अंदाजा होता है कि वह एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां है.

औफिस में भी कभीकभी उस का यों ही खयाल आ जाता है कि वह क्या कर रही होगी. दोपहर में सोई होगी… अब उठ गई होगी… अब उस सोफे पर बैठ कर चाय पी रही होगी, जो मेरी खिड़की से दिखता है.

औफिस से आ कर मैं फ्रैश हो कर सीधा खिड़की के पास पहुंचा. राहुल कार्टून देखने बैठ गया था. मेरा दिल जोर से धड़का. वह खिड़की में खड़ी थी. मन किया उसे हाथ हिला दूं… कई बार मन होता है उस से कुछ बातें करने का, कुछ कहने का, कुछसुनने का, पर जीवन में कई इच्छाओं को, एक मर्यादा में, एक सीमा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक दायित्व भी तो होते हैं… फिर सोचता हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

दो

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा. मैं ने तेजी से उठ कर फ्रैश हो कर अपने बैडरूम की लाइट जला दी. समीर भी साथ ही उठ गए थे.

वे सुबह की सैर पर जाते हैं. मैं ने बैडरूम की खिड़की का परदा हटाया. अपने बाल बांधे. जानती हूं वह सामने अपने फ्लैट की खिड़की में खड़ा होगा, आजकल नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां उस की खिड़की तक जा पहुंची हैं. कई बार सोचती हूं वह हाथ बढ़ा कर उन्हें तोड़ क्यों नहीं देता पर नहीं, यह ठीक नहीं होगा. फिर वह साफसाफ देख लेगा कि मैं उसे चोरीचोरी देखती रहती हूं. नहीं, ऐसे ही ठीक है. तार से कपड़े उतारते हुए मैं कई बार उसे देखती हूं, कपड़े तो मैं दिन में कभी भी उतार सकती हूं, कोई जल्दी नहीं होती इन की पर इस समय वह खड़ा होता है न, न चाहते हुए भी उसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती हूं.

मैं ने कपड़े उतारते हुए कनखियों से उसे देखा. हां, वह खड़ा था. मन हुआ हाथ हिला कर हैलो कर दूं पर नहीं, एक विवाहिता की कुछ अपनी मर्यादाएं होती हैं. मेरा दिल जोर से धड़कता है जब मैं महसूस करती हूं वह अपनी खिड़की में खड़ा हो कर मेरी तरफ देख रहा है. स्त्री हूं न, बहुत कुछ महसूस कर लेती हूं, बिना किसी के कुछ कहेसुने. मैं समीर और अपने बच्चों के नाश्ते और टिफिन की तैयारी मैं व्यस्त हो गई.

तीनों शाम तक ही वापस आते हैं. मेरी किचन के एक हिस्से से उस की खिड़की का थोड़ा सा हिस्सा दिखता है, जिस खिड़की के पास वह खड़ा होता है वह शायद बैडरूम की है. किचन में काम करतेकरते मैं उस पर नजर डालती रहती हूं. सब समझ आता रहता है, वह अब तैयार हो रहा है. मुझे अंदाजा है उस के कमरे की किस दीवार पर शीशा है. मैं ने उसे वहां कई बार बाल ठीक करते देखा है.

जानती हूं किसी के पति को, किसी के पिता को ऐसे देखना मर्यादासंगत नहीं है पर क्या करूं, कुछ है, जो दिल धड़कता है उस के सामने होने पर. 10 साल से कुछ है जो उसे कहीं देखने पर, नजरें मिलने पर, हायहैलो होने पर दिल धड़क उठता है. वह अपनी कामकाजी पत्नी की घर के काम में काफी मदद करता है, बेटे को ले कर आता है, घर का सामान लाता है, कभी अपनी पत्नी को छोड़ने और लेने भी जाता है… सब दिखता है मुझे अपने घर की खिड़की से. कुल मिला कर वह एक अच्छा पति और अच्छा पिता है. कई बार तो मैं ने उसे कपड़े सुखाते भी देखा है… न मुझे उस का नाम पता है न उसे मेरा पता होगा. बस, उसे देखना मुझे अच्छा लगता है. मैं कोई युवा लड़की तो हूं नहीं जो प्यारव्यार का चक्कर हो. बस, यों ही तो देख लेती हूं उसे. वैसे दिन में कई बार खयाल आ जाता है कि क्या काम करता है वह  कहां है उस का औफिस  वह औफिस से आते ही अपनी खिड़की खोल देता है. मुझे अंदाजा हो जाता है वह आ गया है, फिर वह कई बार खिड़की के पास आताजाता रहता है. वह कई बारछुट्टियों में बाहर चला जाता है तो बड़ा खालीखाली लगता है.

10 साल से यों ही देखते रहना एक आदत सी बन गई है. वह दिखता रहता है पेड़ की पत्तियों के बीच से. दिल करता है उस से कुछ बातें करूं, कुछ कहूं, कुछ सुनूं पर नहीं जीवन में कई इच्छाओं को एक मर्यादा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक उसूल भी तो हैं, फिर सोचती हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

अगर आप भी हैं कौस्मेटिक्स की दीवानी, तो जान लें ये जरूरी बातें

आजकल खूबसूरत, स्वस्थ और सुंदर त्वचा पाना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस आपके पास कौस्मेटिक्स होना चाहिए. कई लोग ऐसे होते हैं जो सुंदर दिखने के लिए रोज कौस्मेटिक्स का इस्तेमाल करते हैं. उनकी जिंदगी तो कौस्मेटिक पर ही आधारित हो जाती है. सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक उनके लिए कौस्मेटिक बेहद जरूरी हो जाता है.

अगर आप में भी ऐसी ही कोई आदत है तो हम आपको बताते हैं कि रोजमर्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले कौस्मेटिक किस तरह आपके लिए हानिकारक हैं.

1. मौश्चराइजर

नहाने के बाद हर कोई त्वचा की नमी बरकरार रखने के लिए मौश्चराइजर का इस्तेमाल करता है. कुछ लोग तो जितनी बार पानी के संपर्क में आते हैं उन्हें मॉश्चराइजर की जरूरत पड़ती है. अगर आपकी भी आदत कुछ ऐसी ही है तो इसे सुधारे क्योंकि बाजार में मिलने वाले ज्यादातर मॉश्चराइजर में डिटर्जेंट वाले केमिकल पाए जाते हैं जो आपकी त्वचा की नमी को छीन लेते हैं. इसलिए अगर संभव हो तो घर पर बने या प्राकृतिक मॉश्चराइजर का ही इस्तेमाल करें.

2. ब्लीच

बहुत सी लड़किया चेहरे की गंदगी साफ करने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल करती हैं. ब्लीच में मौजूद रसायन आपकी त्वचा की नमी छीन लेते है. जब त्वचा की गहराई से सारा ऑयल निकल जाता है तो त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है. इसकी वजह से कई बार त्वचा में झुर्रियां भी हो जाती हैं.

3. लिपस्टिक

कई लड़कियों के लिपस्टिक का बड़ा शौक होता है. उनके पास इसके शेड्स का बेहतर से बेहतर कलेक्शन होता लेकिन शायद उन्हें ये नहीं पता कि लिपस्टिक आपके होंठों की नमी को छीन लेता है. कुछ लिपस्टिक का रंग गाढ़ा करने के लिए उसमें अत्यधिक मात्रा में लेड का उपयोग किया जाता है. ये लेड आपके दिमाग को भी नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए लिपस्टिक की जगह लिप बाम का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है.

4. काजल

आंखों की सुंदरता बढ़ाने का सबसे आसान उपाय है, काजल. कुछ लड़कियां तो बिना काजल लगाए घर से बाहर ही नहीं निकलती हैं. इसमें भी कई ऐसे केमिकल पाए जाते हैं. जिसकी वजह से आपकी आंखों में कई तरह के संक्रमण, कंजेक्टिव आई, ग्लूकोमा और ड्राई आई जैसी समस्या हो जाती है. इसलिए कोशिश करें कि सूरमें और काजल का प्रयोग कम से कम से करें. या फिर आंखों पर किसी भी तरह का मेकअप करने से बचें.

5. नेलपौलिश

नेलपौलिश आपके नाखूनों को बेहद सुंदर बनाता है लेकिन इसमें मौजूद एक कठोर केमिकल आपके नाखूनों को कमजोर बना देता है. कई बार डार्क कलर की नेलपॉलिश आपके नाखूनों पर धब्बे छोड़ जाती है और उन्हें पीला और कमजोर बना देती है. इसलिए नाखूनों की जैतून के तेल से मसाज करें और जितना हो सके नेलपॉलिश के इस्तेमाल से बचें.

मैंने परिवार को बिना बताए शादी कर ली है, जिसके कारण मैं परेशान हूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक युवक से 1 साल 4 महीने से प्यार करती हूं. 2 महीने बात करने के बाद मैंने 6 अप्रैल, 2014 को उस से शादी कर ली. यह बात हम दोनों के परिवार वाले नहीं जानते. हम ने कोर्टमैरिज नहीं की. मैं अपना घर छोड़ कर 5 महीने से दिल्ली में जौब करके अकेली रहती हूं. वह युवक आर्मी में है और मुझ से बात करता रहता है. मैं अब 2 माह से गर्भवती हूं. मैं अकेली क्या करूं? वह अप्रैल में मेरे पास आया था. ऐसे में मैं अपने घर भी नहीं जा सकती.

जवाब

आप अपने परिवार वालों से बात करें. अपनी वास्तविकता से उन्हें अवगत करवाना जरूरी है. आप अपने पति से कहें कि वे अपने परिवार वालों से बात करें. आप दोनों की शादी हुई है, इस का आप के पास कानूनी सुबूत क्या है? आप जिस स्थिति में हैं इस में आप को भावनात्मक रूप से पति की, परिवार वालों की खास जरूरत है. आप अपने पति से खुल कर बात करें कि वे कब आएंगे? उन की अनुपस्थिति में आप स्थिति संभाल पाएं इस के लिए उन्हें विशेष प्रबंध करना होगा. ये सब आप जितनी जल्दी करें, उतना ही बेहतर होगा.

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जिंदगी के प्रति आप के नजरिए को बदल देती है प्रैगनैंसी

गर्भावस्था महिलाओं के लिए वह समय होता है जब वे शिशु की सुरक्षा के लिए अपने खानेपीने और स्वास्थ्य का हर संभव ध्यान रखती हैं. गर्भवती महिलाएं हमेशा खुश रहने और अपना ज्यादा से ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करती हैं.

कुछ महिलाओं के लिए गर्भावस्था तकलीफदेह हो सकती है जैसे उन्हें मौर्निंग सिकनैस, पैरों में सूजन, चक्कर और मितली आना आदि परेशानियां हो सकती हैं. मगर आमतौर पर गर्भावस्था हमेशा महिलाओं में सकारात्मक बदलाव ले कर आती है. इस से उन के शरीर और दिमाग दोनों में संपूर्ण रूप से सकारात्मक बदलाव आते हैं.

शरीर पर गर्भावस्था के सकारात्मक प्रभाव

– गर्भावस्था का अर्थ है कम मासिकस्राव, जिस से ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन का संपर्क सीमित हो जाता है. ये हारमोंस स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि ये कोशिकाओं की वृद्धि को प्रेरित करते हैं और महिलाओं के स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं. साथ ही गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान ब्रैस्ट सैल्स में जिस तरह के बदलाव होते हैं, वे उन्हें कैंसर कोशिकाओं में बदलने के प्रति अधिक प्रतिरोधक बना देते हैं.

– गर्भावस्था के दौरान पेल्विक क्षेत्र में रक्तसंचार बढ़ जाता है, प्रसव और डिलिवरी से गुजरने के बाद महिलाओं को खुद में एक नई ताकत महसूस होती है.

दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव

– बच्चा होने से औटोइम्यून डिसऔर्डस जैसे मल्टीपल स्केल्रोसिस के होने का खतरा कम हो जाता है.

– गर्भावस्था सकारात्मक व्यवहार ले कर आती है और महिला को मजबूत बनाती है. इस से जीवन में आने वाले बदलावों से लड़ने में आसानी हो जाती है, साथ ही नकारात्मक सोच व चिंता से भी बचाव होता है.

शिशु के जन्म के बाद सकारात्मक प्रभाव

– अधिकांश महिलाओं ने पाया है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद उन की मासिकस्राव से जुड़ी तकलीफें काफी कम हो गई हैं.

– प्रसव के बाद अधिकांश महिलाओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव आते हैं और वे शराब, धूम्रपान जैसी बुरी लतें छोड़ देती हैं.

– एक मां अपने आसपास खुशियों का खजाना देख कर खुशी और उत्साह से भर जाती है. जब भी मां अपने बच्चे को गोद में लेती या उसे स्तनपान कराती है तो औक्सीटोसिन हारमोन इस गहरे रिश्ते को जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है. यह बहुत ही ताकतवर होता है, जिस की वजह से कोई भी कुछ घंटों के लिए और कई बार कुछ दिनों के लिए भी चिंता को भूल सकता है.

– शिशु के जन्म के बाद त्वचा चमकदार और बाल चमकीले हो जाते हैं, साथ ही कीलमुंहासों की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है.

 

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जड़ें : आखिर क्यों रोई थी विनी

टेलीफोन की घंटी बहुत देर से बज रही थी. विनी बाथरूम में थी. वह बिना नहाए ही बाथरूम से निकली, रिसीवर को उठा कर जैसे ही उस ने कान पर ला कर ‘हैलो’ कहा, एक ऐसी आवाज उस के कानों में पड़ी जो बड़ी पहचानी सी थी परंतु फिर भी पहचान के घेरे में नहीं आ पा रही थी.

‘‘हैलो…कौन?’’ उस  ने बेसब्री से कहा.

‘‘विनी दीदी…नहीं पहचाना, नमस्ते…लगता है आप भूल गई हैं,’’ ये आवाज विनी को कई वर्ष पीछे धकेल कर ले गई.

‘‘अरे, राजू? कहां से बोल रहे हो भाई?’’ उस के मुख पर हर्षोल्लास पसर गया.

‘‘मैं अमेरिका से बोल रहा हूं…’’ आवाज खनक रही थी, ‘‘आप का आशीर्वाद है दीदी. इसीलिए यह सबकुछ हो सका. मैं ने यहां घर बना लिया है, दीदी. अपनेआप पर विश्वास नहीं होता. पता नहीं मैं यह सबकुछ कैसे कर पाया.’’

‘‘हम कहां कुछ करते हैं, राजू? हम तो माध्यम हैं न? हमें तो सिर्फ गुमान रहता है कि हम ने किया, हम करते हैं…’’ विनी आदत के अनुसार अपना फलसफा झाड़ना न भूली.

‘‘यही बातें सुनने को मेरा मन बेचैन रहता है, दीदी. यहां सबकुछ है, हर सुखसुविधा है पर वह बात नहीं जो वहां पर थी. और सब से बड़ी बात यहां विनी दीदी नहीं हैं…’’

‘‘अच्छा, अच्छा क्यों अपना बिल बढ़ा रहा है? मुंबई से तो कभी बात भी कर लेता था पर वहां जा कर तो भूल ही गया अपनी विनी दीदी को,’’ उस ने उलाहना दे कर बात बदलने का प्रयास किया.

‘‘नहीं, दीदी, भूलता तो आप को फोन कैसे करता. मेरी इच्छा थी कि पहले कुछ बन जाऊं तब आप को बताऊंगा कि मैं कुछ कर पाया. संस्कार तो आप से ही पाए हैं मैं ने. जड़ें मेरी वहां पर ही हैं, अपनी जड़ों से अलग हो कर कोई पेड़ पनप सकता है क्या? फिर मेरा बोधिवृक्ष तो आप हैं. मैं ने आप को पत्र लिखा है, दीदी.’’

‘‘पता नहीं क्याक्या बोल रहा है. चल, बच्चों को व बहू को मेरा प्यार देना, कभीकभी याद कर लिया करना अपनी विनी दीदी को…बाय…’’

विनी ने रिसीवर रख दिया. दरअसल, उस की भी आंखें भर आई थीं. वह धम्म से सोफे पर बैठ गई और अपने अतीत में विचरण करने लगी.

विनी जब विवाह कर के गुजरात आई थी तब राजू 8-10 वर्ष का था. धीरेधीरे राजू विनी के पास आने लगा. सामने नीचे वाले फ्लैट में ही वह रहता था. तनु को देखदेख कर बहुत खुश होता वह, कभी कहता कि कितना गोरा है, कितना सुंदर…वह उसे हर समय घुमाने के चक्कर में रहता. साल भर का होतेहोते तनु अपनी मां से अधिक राजू को पहचानने लगा था. विनी को भी बड़ी सुविधा होती.

राजू के परिवार में 4 भाई, 1 तलाकशुदा बहन व उस का बेटा और मातापिता थे. हर चीज उसे सब से कम व बची हुई ही मिलती. राजू के मन में एक ‘कांप्लेक्स’ आ गया था. एक बार राखी के दिन ऊपर आ गया. बोला, ‘दीदी, आप मुझे राखी बांधेंगी?’ विनी को उस का दीदी कहना बड़ा प्यारा लगता.

‘तुम्हारी तो बहन है न, राजू?’ विनी ने पूछा था.

‘हां, है न. पर मुझे राखी बंधवानी है. आप बांधेंगी न?’ वह राखी भी साथ ले कर आया था.

‘लाओ,’ विनी ने राखी उस के हाथ से ले कर उसे बांधी और टीका कर के उस के मुंह में मिठाई रख दी.

विनी उत्तर प्रदेश से गुजरात आई थी. वहां की प्रथा के अनुसार वह हर रक्षाबंधन को जवे, सेंवई बनाती. राजू ने दूध के जवे खाए तो उस का मन बागबाग हो गया. फिर वह हर वर्ष आ कर राखी बंधवाता और बड़ा सा कटोरा भर कर जवे खाता. विनी को न जाने क्यों उसे खाते देख कर एक अजीब तरह का सुख मिलता.

2-3 वर्ष बाद एक राखी के दिन राजू अचानक ही रोंआसा हो उठा था.

‘क्या बात है, राजू?’ विनी ने प्यार से पूछा.

‘कुछ नहीं, दीदी,’ आंसू आ कर उस की पलकों पर ठहर गए, ‘मैं आप को कुछ नहीं दे पाता हूं…’ कहतेकहते वह रो पड़ा.

‘बड़ा पागल है तू. क्या चाहिए मुझे. प्यार नहीं करता अपनी दीदी को?’

‘आप इतनी अच्छी क्यों हैं, दीदी? मुझे घर में चाय नहीं मिलती तो मैं आप के पास चला आता हूं, कुछ खाना

हो तो आप बना देती हैं, गरमगरम.

मेरी मां तो इतना कुछ नहीं करती

मेरे लिए.’

‘देख राजू, मां के पास कितना काम है करने के लिए. वह थक जाती हैं न. फिर तेरा मन जो कुछ खाने का होता है तू मेरे पास आता है, मैं बना देती हूं, क्या फर्क पड़ता है. मां तो बेटा मां ही होती है. तुम्हारी जड़ें उस में होती हैं. मां के लिए गलत कभी नहीं सोचना,’ कह कर विनी ने उस का माथा चूम लिया.

‘दीदी, मैं आप के लिए कुछ लाया हूं,’ एक दिन सहमते हुए उस ने रक्षाबंधन का तोहफा जेब से निकाल कर उस की हथेली पर रख दिया. यह एक छोटी सी सुंदर चांदी की डिबिया थी जिस पर एक सुंदर सी तसवीर बनी हुई थी.

‘ये कहां से लाया, राजू…’ विनी चौंकी, ‘मां की है न…बोल?’

‘हां.’

‘मां को पता है…?’

उस ने नहीं में सिर हिलाया.

‘गलत है न, बेटा. यह तो गलत काम हुआ. तू मुझे प्यार करता है न, वही तेरा गिफ्ट है. चल, मां की अलमारी में रख कर आ. रख देगा या मैं चलूं तेरे घर?’ विनी का माथा ठनकने लगा था.

‘नहीं दीदी, मैं रख दूंगा,’ उस ने धीरे से होंठ हिलाए.

‘पक्का?’

‘हां.’

राजू चला गया. पर उस के बाद जब भी वह आता विनी उसे अच्छीअच्छी बातें सिखाने का प्रयास करती.

उस ने पति से कह कर उन के व्यवसाय में उसे लगा दिया.

राजू ने काम के साथसाथ ही तकनीकी काम सीखना भी शुरू कर दिया था. उस के लिए आर्थिक सहायता भी विनी व उस के पति ने दी थी.

आज वह एक कुशल कारीगर बन अमेरिका पहुंच गया था. विनी को अच्छा लगना स्वाभाविक ही था. छोटे से छुईमुई के पौधे को मजबूत पेड़ के रूप में बढ़ते देख उसे बहुत खुशी हुई.

‘‘पोस्टमैन,’’ डाकिया ने डोरबेल का स्विच दबाते हुए जोर से कहा.

घंटी की आवाज से उस की तंद्रा भंग हुई और वह हड़बड़ाती हुई मेनगेट पर आई. डाकिए ने एक लिफाफा विनी को पकड़ाया और चलता बना.

आज 10-15 दिन बाद उसे राजू का पत्र मिला था. लिखा था :

स्नेहमयी, प्यारी दीदी,

चरण स्पर्श.

जीवन के जिस मोड़ पर आप से सहारा मिला उसे शब्दों में कैसे कहूं? आप लोगों की स्मृति सदा ही बनी रहती है. दीदी, यहां आ गया हूं क्योंकि इस संसार में जीने के लिए पूरे परिवार को धन की आवश्यकता होती है. आप से बहुत छोटा हूं परंतु अब तक जो भी अनुभव हुए उन के अनुसार लगा कि अगर ‘हैंड टू माउथ’ रहा तो कोई मुझे पूछेगा तक नहीं. नहीं जानता आप से किन जन्मों का संबंध है. पर दीदी, प्रार्थना करूंगा, आने वाले जन्मों में आप के पेट से जन्म लूं. आप मुझे अपना नाम दे सकें और दे सकें वे संस्कार जिन से मैं एक सही इनसान बन सकूं. यहां आ कर धन कमाना बहुत बड़ी सफलता नहीं है, दीदी, सफलता तब होगी जब मैं आप के दिए हुए नियम व संस्कारों को सहेज कर रख सकूंगा. आशीर्वाद दीजिए, दीदी. बच्चों को मेरा स्नेह व अंकल को सादर चरण स्पर्श…

आप का अपना, राजू.

विनी पत्र हाथ में पकड़े उस गुजराती बच्चे की भावनाओं को तोलती रह गई. उस की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी मानो अपने छोटे भाई पर आशीषों की बरखा कर रही हो. उस का मन संतुष्टि एवं प्रसन्नता से भर उठा था. बहुत गहरी, मजबूत जड़ें थीं रिश्तों की.

हवा के पंख: मुग्धा समिधा से नराज क्यों हो गई

जब से मुग्धा का परीक्षा परिणाम आया था तब से न केवल नीलकांत परिवार में, बल्कि पूरे गांव में आनंद की लहर थी. नीलकांतजी की तो ऐसी दशा थी मानों कोई मुंह में लड्डू भर दे और फिर उन का स्वाद पूछे.

नीलकांतजी के तीनों बेटों और दोनों बेटियों में मुग्धा सब से अधिक प्रतिभाशाली थी. तीनों बेटे गिरतेपड़ते स्नातक बन पाए थे. उन की बड़ी हवेली में सब ने अपनी अलगअलग गृहस्थी जमा ली थी. खेतीबाड़ी और छोटेमोटे व्यवसाय के साथ ही गांव की राजनीति में भी उन की खासी रुचि थी.

मुग्धा की बड़ी बहन समिधा की भी पढ़ाईलिखाई में खास रुचि नहीं थी. गांव में केवल इंटर तक ही विद्यालय था. पर इंटर की परीक्षा में असफल होते ही उस ने घोषणा कर दी थी कि पढ़ाईलिखाई उस के बस की बात नहीं है.

वह तो पहले मौडल बने, फिर फिल्मी तारिका.नीलकांतजी यह सुनते ही चकरा गए थे. नयानगर जैसे छोटे से कसबे में रहने वाली समिधा के मुख से यह बात सुन कर वे हक्केबक्के रह गए थे. आननफानन घर के बड़े सदस्यों ने निर्णय लिया था कि शीघ्र ही समिधा के हाथ पीले कर के अपने कर्तव्य से मुक्ति पा ली जाए. विवाह के बाद वह मौडल बने या तारिका उन की बला से.

नीलकांतजी का दृढ़विश्वास था कि विवाह समिधा की आशाओंआकांक्षाओं को नियंत्रित करने में सशक्त अस्त्र साबित होगा.ऐसे में परिवार की सब से छोटी कन्या मुग्धा के राज्य भर में प्रथम आने का समाचार आया तो पहले तो किसी को विश्वास हीनहीं हुआ.

धमाकेदार समाचारों की खोज में भटकते एक खोजी पत्रकार को इस घटना में उभरते भारत की नई छवि दिखाई दी और उन्होंने मुग्धा का पताठिकाना और फोन नंबर खोज निकाला.फोन नीलकांतजी ने ही उठाया था. ‘‘मैं संतोष कुमार बोल रहा हूं.

आरोहण नामक समाचार चैनल से. क्या मुग्धा चौधरी का घर यही है?’’‘‘हां यही है मुग्धा का घर, पर तुम्हारा साहस कैसे हुआ मेरी बेटी को फोन करने का?

तुम जानते नहीं तुम किस से बात कर रहे हो?’’ नीलकांतजी क्रोधित स्वर में बोले.‘‘मैं सचमुच नहीं जानता. आप जब तक परिचय नहीं देंगे जानूंगा कैसे?’’‘‘मैं नीलकांत मुग्धा का बाप. मेरी बेटी का नाम फिर से तेरी जबान पर आया तो जबानखींच लूंगा.’’‘

‘आप पहले मेरी बात तो सुनिए… व्यर्थ ही आगबबूला हुए जा रहे हैं… आप की बेटी पूरे प्रांत में 10वीं कक्षा में प्रथम आई है. मैं उस का साक्षात्कार लेना चाहता हूं. बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘यह इतनी सी बात नहीं है महोदय. हमारे परिवार की कन्या टीवी चैनल पर साक्षात्कार देती नहीं घूमती और जहां तक प्रांत में प्रथम आने का प्रश्न है तो आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है. हमारे परिवार के बच्चों के तो पास होने के लाले पड़े रहते हैं…

हमारे परिवार के किसी बच्चे की आज तक प्रथम श्रेणी नहीं आई, तो प्रांत में प्रथम आने की तो बहुत दूर की बात है. ठीक से पता लगाइए प्रांत में प्रथम आने वाली मुग्धा कोई और होगी,’’ नीलकांतजी ने फोन का रिसीवर रखते हुए कहा.‘‘न जाने कहां से चले आते हैं ऐसे मूर्ख,’’ वे बुदबुदाए थे.

फिर कुछ सोचते हुए उन्होंने मुग्धा को पुकारा, ‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’‘‘क्या है पापा?’’‘‘तुम्हारे पेपर कैसे हुए थे बेटी?’’‘‘अच्छे हुए थे. पर आप 2 माह बाद यह प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं?’’‘‘पास तो हो जाओगी न तुम?’’‘‘आप को मेरे पास होने में भी संशय है? पापा मेरी प्रथम श्रेणी आएगी,’’ मुग्धा आत्मविश्वास भरे स्वर में बोली थी.

‘कहीं सच में प्रांत में प्रथम तो नहीं आ गई यह लड़की? उन्होंने मन ही मन सोचा पर मुग्धा को बताने से पहले वे स्वयं इस समाचार की परख कर लेना चाहते थे.’ तैयार हो कर वे बाहर निकलते उस से पहले ही मुख्यद्वार पर शोर उभरा.

खिड़की से झांक कर देखा तो मुग्धा के विद्यालय के प्रधानाचार्य व अन्य अध्यापक मुग्धा के सहपाठियों के हुजूम के साथ खड़े थे.‘‘नीलकांत बाबू, कमाल हो गया… मुग्धा मेधावी छात्रा है. अच्छे नंबरों से पास होगी, इस की आशा तो हम सब को थी, पर प्रांत में प्रथम आएगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था,’’

प्रधानाचार्य कमलकांतजी नीलकांतजी को देखते ही उन के गले लगते हुए बोले.‘‘मुग्धा जैसी छात्रा का 11वीं कक्षा में हमारे ही विद्यालय में आना गौरव की बात होगी. पर हम इतने स्वार्थी नहीं हैं. इस छोटे से कसबे में उस की प्रतिभा दब कर रह जाएगी.

उस का दाखिला किसी बड़े शहर में किसी जानेमाने कालेज में करवाने से उस की प्रतिभा में और निखार आएगा. मेरी बात मानिए, मुग्धा असाधारण प्रतिभा की धनी है. सही वातावरण में ही उस की प्रतिभा फूलफल सकेगी.’’जातेजाते कमलकांतजी कुछ ऐसा कहगए, जिस ने नीलकांतजी को सोचने पर विवश कर दिया.

बधाई देने वालों का सिलसिला कुछ थमा तो मुग्धा के भविष्य पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाने लगा. किसी भी निर्णय से पहले भलीभांति विचार कर बहुमत से किसी उल  झन को सुल  झाना नीलकांत परिवार की परंपरा थी. पर घर की कन्या का घर छोड़ कर छात्रावास में रहना अनहोनी सी बात थी.

परिवार के कुछ सदस्य इस के समर्थन में थे तो कुछ विरोध में.‘‘प्रदेश में प्रथम आ कर कौन सा तीर मार लिया? आखिर तो चूल्हाचौका ही संभालना है… यह आवश्यक तो नहीं कि प्रधानाचार्य जैसाकहें हम वैसा ही करें,’’ मुग्धा के बडे़ भाई रमाकांत विशेष अंदाज में बोले तो उन से छोटे दोनों भाइयों ने भी उन के समर्थन में अपने हाथ उठा दिए.‘‘लो सुन लो इन की बात… इन मूर्खों को तो यह भी नहीं पता कि आजकल महिलाएं चूल्हेचौके के संग और भी बहुत कुछ संभाल रही हैं… वैसे यह चूल्हाचौका न संभाले तो भूखे मर जाएं तुम सब,’’ सोमा दादी ने अपने तीनों पोतों को फटकार लगाई.‘‘दादीजी, आप ने मुग्धा को सिर चढ़ा रखा है. तभी तो किसी की नहीं सुनती,’’ रमाकांत ने दादी को उकसाया.‘‘आज तो मुग्धा के 7 खून भी माफ हैं.

उस ने जो कर दिखाया है, वह आज तक गांव में भी कोई नहीं कर सका… मेरा सपना तो मेरी मुग्धा ही पूरा करेगी,’’ सोमा दादी एकाएक भावुक हो उठीं.‘‘आप का सपना?’’ समवेत स्वर में पूछा गया प्रश्न देर तक हवा के पंखों पर तैरता रहा.‘‘हां मेरा सपना. 8वीं कक्षा में अपने स्कूल में प्रथम आई थी मैं. पर सब ने घेरघार कर शादी कर दी मेरी…

पूरा जीवन गृहस्थी के कोल्हू को खींचने में बीत गया. मैं मुग्धा के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी,’’ सोमा दादी ने अपना दुखड़ा सुनाया तो सब एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सोमा दादी कभी 8वीं में पूरे स्कूल में प्रथम आई थीं, यह तो उन सब को पता ही न था.

‘‘मां, हम न तो मुग्धा की पढ़ाई छुड़वा रहे हैं, न ही उस की शादी कर रहे हैं. प्रश्न यह है कि आगे की पढ़ाई वह कहां करेगी. स्थानीय कालेज में या किसी बड़े शहर में? नीलकांतजी सोमा दादी को भूतकाल से वर्तमान में खींच ले आए.’’‘‘इस बात पर बहस करने से पहले मुग्धासे तो पूछ लो कि वह क्या चाहती है… हैकहां मुग्धा?’’‘‘अपने सहपाठियों के साथ चली गई है.

थोड़ी देर में आएगी,’’ मुग्धा की मां निर्मला बोलीं.दादी की बात सुन कर निर्मला देवी के घाव भी ताजा हो गए थे. अंतर केवल इतना था कि उन का इंटर करते ही विवाह कर दिया गया था. उन की भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा मन की मन में ही रह गई थी.

‘‘मुग्धा कुछ भी चाहे पर मैं तो अपने मन की बात कह देता हूं. मुग्धा का यहीं दाखिला करवा दो. लड़कियों को अधिक आजादी देना ठीक नहीं है,’’ रमाकांत ने साफ कहा.‘‘अभी तो मैं बैठा हूं… मुग्धा के लिए क्या भला है और क्या बुरा, इस का निर्णय मैं करूंगा,’’ नीलकांतजी ने घोषणा की.

‘‘हम तो पहले ही जानते थे… इस घर में हमारी सुनता ही कौन है,’’ रमाकांत ने बुरा सा मुंह बनाया.मगर मुग्धा की गैरमौजूदगी में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका.मुग्धा के राज्य में प्रथम आने का समाचार सुनते ही समिधा अपने परिवार सहित आ धमकी थी.

अब वह भी परिवार में चल रही बहस का हिस्सा बन गई थी.‘‘मेरा सपना तो अधूरा रह गया पर, मैं मुग्धा का सपना टूटने नहीं दूंगी,’’ समिधा ने घोषणा की.‘‘तेरा कौन सा सपना टूट गया?’’ सोमा दादी ने व्यंग्य किया.‘‘हांहां, आप को तो केवल मुग्धा की चिंता है. मेरे बारे में तो किसी ने कभी सोचा ही नहीं. मैं फिल्म तारिका बनना चाहती थी. मेरे जैसा सुंदर तो कोई पूरे कसबे में नहीं था.

‘‘मु  झे आप से यही आशा थी पापा. इस पुरुषप्रधान समाज में मेरे जैसी अबला अपनी आकांक्षाओं का गला घोटने के अतिरिक्त और कर भी क्या सकती है,’’ समिधा बोली.‘‘हम यहां मुग्धा के भविष्य का निर्णय करने के लिए बैठे हैं इसलिए नहीं कि सब अपना रोना ले कर बैठ जाएं,’’

सेमा दादी ने समिधा को डपटा.‘‘तो करिए न मुग्धा के भविष्य का निर्णय. मैं ने कब मना किया है. अपने कसबे से बाहर भेजना है तो छात्रावास में ही रखना पड़ेगा. पर पापा कहते हैं कि हमारा परिवार अपनी बेटियों को छात्रावास में नहीं भेजता. तो अब एक ही मार्ग शेष रह जाता है कि मुग्धा को मेरे पास भेज दीजिए. वहीं रह कर आगे की पढ़ाई कर लेगी मुग्धा…

आजकल जमाना बड़ा खराब है. छात्रावास में रह कर तो युवतियां हाथ से निकल जाती हैं. हमारे साथ रहेगी मुग्धा तो हम उस पर नजर रख सकेंगे. मुग्धा के जीजाजी की भी यही राय है.’’‘‘समिधा ठीक कहती है. मुग्धा बड़ी बहन के पास रह कर उस के नियंत्रण में रहेगी,’’ सोमा दादी ने भी समिधा के प्रस्ताव पर स्वीकृति की मुहर लगा दी.‘‘मुग्धा की पढ़ाई और खानेपीने, रहनेआदि का जो भी खर्च आएगा हम देंगे,’’ नीलकांतजी ने कहा.‘‘पापा, यह कह कर तो आप ने मु  झे बिलकुल ही पराया कर दिया.

मुग्धा क्या मेरी कुछ नहीं लगती? बस एक विनती है… मुग्धा को ठीक से सम  झाबु  झा दीजिएगा. उस का स्वभाव इतना कड़वा हो गया है कि मु  झ से तो वह सीधे मुंह बात ही नहीं करती. मेरे पास रहेगी तो मेरे नियंत्रण में रहना पड़ेगा.

मैं नहीं चाहती कि बाद में सब मु  झे दोषी ठहराएं,’’ समिधा ने बड़ी बहन होने का रोब गांठा.शायद यह वादविवाद और कुछ देर चलता, पर तभी मुग्धा को घर में घुसते देख सब का ध्यान उस पर ही केंद्रित हो गया.‘‘आओ मुग्धा, कहां चली गई थीं तुम? यहां हम तुम्हारे भविष्य के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे,’’ सोमा दादी बोलीं.‘‘मेरे भविष्य की चिंता आप लोग न ही करें तो अच्छा है.’’‘‘लो और सुनो, हम नहीं तो कौन तुम्हारी चिंता करेगा?’’ रमाकांत ने प्रश्न किया.‘‘आप सब को मेरे भविष्य की इतनी चिंता है, तो बताओ क्या निर्णय लिया आप सब ने?’’ मुग्धा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.‘‘हम सब ने एकमत से निर्णय लिया है कि आगे की पढ़ाई तुम अपनी बड़ी बहन समिधा के साथ रह कर करोगी.’’‘‘अच्छा, क्या मैं जान सकती हूं कि यह प्रस्ताव किस का था?’’ मुग्धा ने पूछा.‘‘तेरी बहन समिधा का.

पर हम सब ने विचारविमर्श कर के तुम्हें वहां भेजने का निर्णय किया है.’’‘‘क्यों दीदी, जब आप ने मु  झे अपने पास आ कर रहने का आमंत्रण दे ही दिया है तो वह बात भी कह ही डालो, जिसे किसी से न कहने का आप ने वादा लिया था,’’ मुग्धा के स्वर की कड़वाहट ने सभी को चौंका दिया.‘‘कौन सी बात? मैं भला तुम्हें किसी भी बात को गुप्त रखने के लिए तुम से वादा क्योंलेने लगी?’’‘‘तुम न सही, पूज्य जीजाजी तो बता ही सकते हैं… मां और पापा को भी तो पता लगे कि उन की बेटी ने क्या कुछ सहा है… वह तड़प, वह संताप, बिना किसी कारण अपनों द्वारा ही छले जाने का कलंक ढोते कितनी रातें मैं ने सिसकियां लेले कर गुजारी हैं,’’ हर शब्द के साथ मुग्धा के स्वर का तीखापन बढ़ता ही जा रहा था.

किसी के मुंह से कोई बोल नहीं फूटा. अंतत: समिधा के पति राजीव ने ही मौन तोड़ा, ‘‘सुन लिया? हो गई तसल्ली? तुम्हारी बहन तुम्हारे पति पर   झूठे आरोप लगाए जा रही है और सब तमाशा देख रहे हैं. अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकता. तुम्हें रुकना है तो रुको…’’‘‘रुको, मैं भी चलती हूं… जिस घर में मेरे पति का अपमान हुआ हो, उस घर का तो मैं एक घूंट पानी भी नहीं पी सकती,’’ समिधा भी पीछेपीछे चली गई.मुग्धा अब भी सिसक रही थी.

उस की मां निर्मला देवी उसे अंदर कमरे में ले गईं.3 वर्ष पहले छुट्टियों में मुग्धा समिधा के पास रहने गई थी. पर वहां से लौटी तो उस का हाल देख कर निर्मला चकित रह गई थीं. संशय के सर्प ने उन के मन में सिर उठाया था. पर लाख पूछने पर भी मुग्धा ने उन्हें कुछ नहीं बताया था. उन के हर प्रश्न के उत्तर में वह आंखों में हिंसक चमक लिए मूर्ति बनी बैठी रहती थी. पर आज मुग्धा का व्यवहार देख कर वे सिहर उठीं.‘‘मेरे लाख पूछने पर भी तुम ने कुछ नहीं बताया था. फिर आज सब के सामने ऐसा व्यवहार करते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’ एकांत पाते ही फुफकार उठीं थीं निर्मला.

‘‘आई थी मां, बहुत शर्म आई थी, स्वयं से घृणा हो गई थी मु  झे. आत्महत्या करने का मन होता था. रात भर रोती रही थी मैं.’’‘‘तुम मु  झे तो बता सकती थीं न?’’‘‘समिधा दीदी ने मु  झ से वचन ले रखा था. फिर भी मैं आप को सब बता देती यदि मु  झे आप से जरा सी भी सहानुभूति की आशा होती… आप को सब पता भी लगता तो क्या करतीं आप? अब भी आप को दुख इस बात का है कि मैं ने सब के सामने राजीव जीजाजी पर आक्षेप लगाया. मेरे घाव पर मरहम लगाने की नहीं सोची आप ने.’’‘‘अरी मूर्ख, तू तो इतना भी नहीं सम  झती कि अंतत: बदनामी तेरी ही होगी. राजीव तो साफ बच निकलेगा.

बेचारी समिधा तो अपना घर और तेरा मानसम्मान दोनों ही बचाना चाहती थी.’’‘‘मैं ने भी यही सोचा था. पर आज जब आप सब ने मेरे वहां जा कर रहने का निर्णय सुनाया तो मैं स्वयं को रोक नहीं सकी. स्वयं को किताबकापियों के हवाले करना ही एकमात्र रास्ता बचा था मेरे सामने.

उस का फल भी मिला मु  झे. मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि मेरी व्यथा गौण हो गई. तभी तो सब के सामने राजीव जीजाजी की करतूत का परदाफाश कर सकी मैं… दोष उन का है तो मैं सजा क्यों भुगतूं?’’ मुग्धा बिफर उठी थी.

‘‘मु झे तु झ पर गर्व है बेटी. केवल इसलिए नहीं कि तुम राज्य में प्रथम आई हो, बल्कि इसलिए कि तुम ने अन्याय के विरुद्ध लड़ने का साहस दिखाया है.’’तभी मांबेटी का वार्त्तालाप सुन रहे, पीछे खड़े नीलकांतजी ने मुग्धा के सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ रखते हुए उसे गले से लगा लिया.

‘‘हमारे परिवार में जो अब तक नहीं हुआ वह अब होगा… मुग्धा छात्रावास में रह कर अपनी आगे की पढ़ाई करेगी,’’ नीलकांतजी ने घोषणा की तो सोमा दादी और निर्मला देवी भाववभोर हो उठीं. उन्हें लगा कि वर्षों पहले का उन का सपना मुग्धा के रूप में साकार होने लगा है.

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री पर जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट औरतों को लेकर क्या कहती है

लंबी जद्दोजेहद के बाद 19 अगस्त को ‘मौलीवुड’ के नाम से मशहूर मलयालम सिनेमा उद्योग यानि मौलीवुड के अंदर महिलाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए बनाई गई 3 सदस्यीय जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट के जारी होते ही हंगामा मच गया.

गोदी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए प्रिंट मीडिया व तमाम यूट्यूबरों ने भी इस रिपोर्ट को ‘हिला देने वाली रपट’,‘आंखें खोल देने वाली रिपोर्ट’ ,‘चौंकाने वाली रपट’ जैसे विश्लेषणों के साथ इसे सनसनीखेज बना कर आम लोगों तक पंहुचाया जा रहा है. हर न्यूज चैनल को अपनी टीआरपी बढ़ाने की चिंता है, तो अखबार को अखबार की बिक्री की चिंता है. समाज सुधार या किसी फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त बुराई से उस का कोई सरोकार नही है. हर चैनल व अखबार सिर्फ ‘नारी यौन शोषण’ की ही चर्चा कर रहा है जबकि हेमा रिपोर्ट में 17 मुद्दे उठाए गए हैं, जिन में से यौन शोषण भी एक मुद्दा है.

दूसरी बात हेमा रिपोर्ट में ऐसी क्या अनूठी बात कही गई है जिस से हम सभी अपरिचित हैं? ‘मौलीवुड’ के नाम पर हेमा रिपोर्ट में दर्ज तथा कथित ‘आंखें खोल देनेे वाली’ बुराइयां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में हर क्षेत्र में व्याप्त है. फिर चाहे वह कारपोरेट जगत हो, शिक्षा जगत हो, न्यूज चैनल्स हों या इंटरटेनमैंट चैनल्स, ओटीटी प्लैटफार्म हो या राजनीतिक पार्टियां ही क्यों न हों, पर हमारी आदत है कि हम अपने घर के अंदर की सफाई करने की बनिस्बत दूसरों की बुराइयां गिनाने में आत्म आनंद की अनुभूति करते हैं.

‘हेमा रिपोर्ट’ के आने और उस पर गौर करने पर एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि यह सारा खेल राजनीतिक है और इस का असली मकसद औरतों को घर की चारदीवारी के अंदर कैद करने के साथ ही पूरे भारतीय सिनेमा को नष्ट करने का प्रयास मात्र है.

हेमा रिपोर्ट आने के बाद केरला जा कर जिस तरह से भाजपा अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री ने केरला सरकार पर निशाना साधा है और फिर केरला प्रदेश कांग्रेस की एक कार्यकर्ता ने जिस तरह से अपनी पार्टी के पदाधिकारी पर आरोप लगाया, उस के बाद उस का कांग्रेस दल से निष्कासन भी बहुत कुछ कहता है. यों बुराई हर जगह है और इस बुराई की मूल जड़ पितृसत्तात्मक सोच ही है. पर इसे मिटाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं बल्कि समाज को ही खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

2014 के बाद की केंद्र सरकार ने पुरुष मानसिकता को बदलने की बजाय सामाजिक स्ट्क्चर को बदलने पर ही अपना पूरा जोर लगा रखा है जबकि जरुरत है कि समाज के अंदर व्याप्त बुराइयों को खत्म करने की दिषा में कदम उठाए जाएं. देष के हर पुरुष व महिला की मानसिकता को बदलने के प्रयास किए जाएं, पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है.

तीसरी बात, सिनेमा का इतिहास 111 वर्ष पुराना है. मगर 2014 के बाद जिस तरह से भारतीय सिनेमाजगत की गतिविधियां रही हैं, वह भी अपनेआप ही काफी कुछ कह जाती है. हेमा कमेटी की रिपोर्ट पिछले 5 साल से दबा कर रखी गई थी, पर 2024 में उस वक्त ‘ओमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ यानी कि डब्ल्यूसीसी के दबाव व अदालत के हस्तक्षेप के बाद जारी की गई, वह भी कई सवाल उठाती है.

2024 में हिंदी, गुजराती, मराठी, तेलुगु, तमिल किसी भी भाषा की कोई फिल्म सफलता दर्ज नहीं करा पाई है जबकि मलयालम भाषा की ‘मंजुममेल ब्वौय’,‘अवेशम’ और ‘प्रेमालु’ इन 3 फिल्मों ने सफलता दर्ज कराने के साथ ही पूरे विश्व में हजार करोड़ से अधिक की कमाई भी की. इसी के चलते मई माह से ही बौलीवुड में एक खास राजनीतिक दल से जुड़ा वर्ग बौलीवुड को दक्षिण भारतीय सिनेमा नुकसान पहुंचा रहा है, यह बात जोरशोर से फैला रहा था.

हेमा कमेटी का गठन कब व क्यों हुआ था

केरल राज्य में मलयालम सिनेमा में महिलाएं शोषण व बुनियादी सुविधाओं के अभाव को ले कर दबे स्वर में आवाज उठाती रही हैं, पर शासनप्रशासन किसी के भी कानों में जूं नहीं रेंग रही थी. तो वहीं मलयालम फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन ‘एएएमएमए’ यानि कि ‘अम्मां’ अति शक्तिशाली संगठन है, इस में कोई दोराय नहीं। वहां की बाकी एसोसिएशन भी उस के खिलाफ जाने का साहस नहीं उठा पा रही थीं. 2017 में एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री को बीच सड़क रोक कर उसी की कार में उस के साथ रेप किया गया और उस का वीडियो भी बनाया गया. इस कांड में अभिनेता दिलीप सहित 10 लोग शामिल थे. दिलीप ‘आर्टिस्ट एसोसिएशन’ की कार्यकारिणी में थे. यह मामला अदालत पहुंचा, तो दिलीप ने एसोसिएशन से खुद को अलग कर लिया. इस बीच उस अभिनेत्री की मौत हो गई. 3 माह बाद अदालत से दिलीप को जमानत मिल गई. यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है पर अदालत से जमानत मिलते ही मलयालम फिल्म आर्टिस्ट एसोसिएशन, ‘अम्मां’ से जुड़ीं महिला कलाकारों के विरोध के बावजूद दिलीप को फिर से आर्टिस्ट एसोसिएशन की कार्यकारिणी से जोड़ लिया गया. इस से दिलीप की ताकत का एहसास किया जा सकता है.

एसोसिएशन की कार्यकारिणी में भी कुछ अभिनेत्रियां हैं, मगर सब पुरुष कलाकारों के निर्णय को ही सर्वमान्य करती रहती हैं. इस से नाराज हो कर अभिनेत्री पार्वती ने इस एसोसिएशन से अपनेआप को अलग कर लिया और पार्वती ने फिल्म ऐडिटर बीना पौल व अभिनेत्री रेवती आशा व अन्य महिलाओं के साथ मिल कर 2017 में ‘वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव’ (डब्ल्यूसीसी) का गठन किया, जहां कोई भी महिला निडर हो कर अपनी आपबीती सुना सकती थीं. फिर ‘वूमन इन सिनेमा कलैक्टिव ’ की तरफ से सरकार पर दबाव बनाया गया. तब सरकार ने जस्टिस हेमा के नेतृत्व में 3 सदस्यीय कमेटी का गठन कर उसे मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं की स्थिति पर रपट देने के लिए कहा गया था. जस्टिस के हेमा की कमेटी में अनुभवी दक्षिण भारतीय अभिनेत्री शारदा और पूर्व नौकरशाह केबी शामिल थे. इस के अलावा अभिनेत्री वत्सला कुमारी सलाहकार थीं.

अभिनेत्री पार्वती मलयालम सिनेमा के अलावा तमिल, कन्नड़ व ‘करीब करीब सिंगल’ व ‘कड़क सिंह’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी नजर आ चुकी हैं.

हेमा रिपोर्ट कब और कैसे सार्वजनिक की गई

जस्टिस हेमा की कमेटी ने 2017 से 2019 के बीच अपनी पहचान उजागर किए बिना ‘मौलीवुड’ में हर विभाग में कार्यरत पुरुषों और महिलाओं से औन कैमरा साक्षात्कार लिया था. सदस्यों ने महिलाओं की कामकाजी स्थितियों को देखने के लिए 2019 की फिल्म ‘लूसिफेर’ के सैट का भी दौरा किया. इस कमेटी ने भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में औस्कर के लिए नामित फिल्म ‘2018’ के हीरो तोविनो थौमस से भी बात की थी. फिर इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 2019 में सरकार को सौंप दी थी, जिसे सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल कर चुप्पी साध ली थी. लेकिन कुछ लोगों ने आरटीआई दाखिल कर सरकार पर ऐसा दबाव बनाया कि अंततः केरला सरकार ने जस्टिस हेमा कमेटी की 235 पन्नों की रपट 19 अगस्त, 2024 को जगजाहिर कर दी. पर बाद में इस में से 2 पन्ने हटा कर सिर्फ 233 पन्ने कर दिए गए जबकि हेमा कमेटी ने 315 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.

2024 में ‘डब्लू सीसी’ के अदालत जाने पर अदालत ने कुछ पन्ने हटा कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. पर सरकार ने उस से अधिक पन्ने हटा दिए.

दरअसल, यह नहीं भूलना चाहिए कि केरल सरकार व वहां के फिल्म कलाकारों के बीच गहरे संबंध हैं. कुछ कलाकार व निर्देशक शासक दल के एमएलए भी हैं.

क्या कहती है हेमा रिपोर्ट

आसमान रहस्यों से भरा है, टिमटिमाते सितारों और खूबसूरत चांद के साथ. लेकिन वैज्ञानिक जांच से पता चला कि तारे टिमटिमाते नहीं हैं, न ही चंद्रमा सुंदर दिखता है. हेमा रिपोर्ट की शुरुआत यहीं से होती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तुम जो देखते हो उस पर भरोसा मत करो। यहां तक कि नमक भी चीनी जैसा दिखता है.’

233 पन्नों की इस रपट में कई चौंकाने वाले तथ्य शामिल हैं. इस रपट में कहा गया है कि कई महिलाओं ने सिनेमा में जो अनुभव झेले हैं, वह वास्तव में चौंकाने वाले और इतने गंभीर हैं कि उन्होंने उन विवरणों का खुलासा परिवार के करीबी सदस्यों से भी नहीं किया. रिपोर्ट के अनुसार, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में 10-15 पुरुषों का एक अनाम संगठन है, जोकि पूरे फिल्म उद्योग को नियंत्रित करता है. यह बात भी सामने आई है कि इन पुरुषों के राजनेताओें से भी गहरे संबंध हैं. मजेदार बात यह है कि पुरुषों का यह समूह इतना ताकतवर है कि इसी के इशारे पर ‘केरला उच्च न्यायालय’ की एकल पीठ के समक्ष अभिनेत्री रंजिनी ने इस रिपोर्ट को जारी करने पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया और रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई.

रिपोर्ट में कहा गया है कि फिल्म का ‘प्रोडक्शन कंट्रोलर फिल्म की मुख्य भूमिका वाली अभिनेत्री/ सहायक अभिनेत्री को संकेत देते हैं कि उन्हें समायोजन (यौन संबंध बनाने) के लिए या मुख्य भूमिका में निर्देशक/ निर्माता/ अभिनेता को खुश करने के लिए तैयार रहना चाहिए.

नए लोगों की तो छोड़िए, मौलीवुड से जुड़े अनुभवी कलाकारों को भी इस शक्तिषाली पुरुष समूह का कोपभाजन बनना पड़ा. हेमा कमेटी की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एक अनुभवी प्रतिभाशाली कलाकार को ‘मौलीवुड’ के माफिया गैंग ने फिल्म तो छोड़िए, टीवी सीरियल में भी अभिनय नहीं करने दिया. यानि माफिया को चुनौती देने के कारण एक प्रतिभाशाली अनुभवी अभिनेता को मौलीवुड में समर्थन नहीं मिला. मौलीवुड से जुड़े सूत्र इस वाकेआ को दिवंगत थिलाकन से जोड़ कर देख रहे हैं, जिन्होंने 200 से अधिक मलयालम फिल्मों में काम किया था और अपने मैथड ऐक्टिंग के लिए मशहूर थे. 2012 में 77 वर्ष की आयु में उन का निधन हुआ था.

हेमा कमेटी की यह रिपोर्ट ‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री’ में जोंक की तरह औरतों का खून चूसने वाली ‘कास्टिंग काउच संस्कृति के अस्तित्व पर भी प्रकाश डालती है, जहां महिलाओं पर फिल्मों में भूमिका सुरक्षित करने के लिए अपने नैतिक चरित्र से समझौता करने का दबाव डाला जाता है. कुछ मामलों में यदि महिलाएं पुरुषप्रधान सत्ता संरचना की मांगों से सहमत होती हैं तो उन्हें सहयोगी कलाकार जैसे कोड नाम दिए जाते हैं. रिपोर्ट में उन महिलाओं की दुखद कहानियां शामिल हैं जिन का पुरुष सहकर्मियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था और वह प्रतिशोध के डर से घटनाओं की रिपोर्ट करने से बहुत डरती थीं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पीड़न शुरू से ही शुरू हो जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमिका की तलाश में फिल्म इंडस्ट्री में किसी के भी पास जाने वाली महिला को मौके के लिए ‘समायोजन’ और ‘समझौता’ करने के लिए कहा जाता है. कुछ लोगों की राय में मौलीवुड में सभी सफल महिलाएं इस तरह के समझौते कर चुकी हैं. यह धारणा किसी और ने नहीं बल्कि इंडस्ट्री के ही लोगों ने बनाई है, ताकि नए लोगों को सैक्स की मांग के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए राजी किया जा सके.

जस्टिस के हेमा की समिति ने जब महिलाओं के साक्षात्कार लिए तो यह बात सामने आई कि ‘मौलीवुड’ में अधिकांश पुरुषों के बीच यह आम धारणा है कि फिल्म के अंदर यानि कि सिनेमा के परदे पर अंतरंग दृश्यों में अभिनय करने की इच्छुक महिलाएं सैट के बाहर भी ऐसा करने को तैयार रहती हैं। समिति का कहना है कि सुबूतों (वीडियो क्लिप, औडियो संदेश, व्हाट्सऐप संदेश आदि सहित) के गहन विश्लेषण के बाद वह आश्वस्त है कि महिलाओं को उद्योग के भीतर ‘प्रसिद्ध’ लोगों से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

महिला पेशेवरों के उत्पीड़न के विभिन्न तरीकों को सूचीबद्ध करते हुए रिपोर्ट कहती है, “यदि माफिया किसी अभिनेत्री से नाखुश है, तो वह शूटिंग सैट पर अंतरंग दृश्यों के शौट्स को दोहरा कर उन्हें मानसिक रूप से परेशान करते हैं. शिकायत के बाद एक निर्देशक ने एक अभिनेत्री को 17 बार लिपलौक सीन दोहराने के लिए कहा. जब फिल्म रिलीज हुई थी, तो शौट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया था. यहां तक कि शूटिंग के बाद भी जब महिलाएं अपने होटल के कमरे में जाती हैं, तो कई लोग उन के दरवाजे खटखटाते हैं.”

साक्षात्कार के दौरान समिति से इन महिलाओं ने यह भी बताया कि आउटडोर में शूटिंग के दौरान ज्यादातर होटलों में जहां उन्हें ठहराया जाता है वहां पर सिनेमा में काम करने वाले पुरुषों द्वारा उन के दरवाजे लगातार खटखटाए जाते हैं। इन पुरुषों में से ज्यादातर नशे में होते हैं. कई मौकों पर महिलाओं को लगा कि दरवाजा गिर जाएगा और पुरुष बलपूर्वक कमरे में प्रवेश कर जाएंगे.

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अकसर 1-2 लोग महिलाओं को कपड़े बदलने में मदद करने के लिए कपड़ा पकड़ लेते हैं. महिला के मासिकधर्म के दौरान यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. समिति ने अपनी रिपोर्ट आगे लिखा है कि कई महिलाएं पानी पीने से बचती हैं और पेशाब रोकती हैं, जिस:के परिणामस्वरूप संक्रमण और असुविधा होती है. आउटडोर शूटिंग का जिक्र करते हुए आरोप लगाया गया है कि काम आधी रात को समाप्त होने के बावजूद जूनियर कलाकारों को रेलवे या बस स्टेशन तक सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाती है.

हेमा कमेटी का सुझाव

इस समिति ने एक न्यायाधिकरण के गठन की सिफारिश की है, जिस में एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, अधिमानतः एक महिला, किसी भी व्यक्ति को निरीक्षण, पूछताछ और किसी भी जांच से संबंधित तथ्य की रिपोर्ट करने के लिए नियुक्त करने के लिए अधिकृत हो. यदि ट्रिब्यूनल गठित होता है, तो वह इस पर विचार करेगा कि क्या विवाद या शिकायत को पहले समझौते, परामर्श या सुलह द्वारा हल किया जा सकता है या क्या यह स्थिति के अनुसार उचित समझी जाने वाली अन्य काररवाई की गारंटी देता है. इस समित ने ट्रिब्यूनल के समक्ष सभी काररवाई को ‘औन कैमरा’ करने की सिफारिश की है. इस के अलावा जांच का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति को निवारण के लिए किसी अन्य मंच पर जाने पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए. इस में कहा गया है कि न्यायाधिकरण को आपराधिक मुकदमा चलाने की शक्तियों के बिना, एक सिविल अदालत के रूप में माना जाए.

समित ने यह सिफारिश भी की है कि यदि कोई व्यक्ति महिलाओं को परेशान करता है, बुनियादी सुविधाओं से इनकार करता है, अभद्र टिप्पणियां करता है, शूटिंग के दौरान ड्रग्स या शराब का सेवन करता है या उद्योग से महिलाओं पर ‘प्रतिबंध’ लगाता है तो न्यायाधिकरण को उस पर जुरमाना लगाने या उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए.

हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद तेज हुई आरोपप्रत्यारोप के साथ राजनीतिक हलचलें

हेमा रिपोर्ट सार्वजनिक होेते ही ‘डब्लूसीसी’ के सदस्यों ने खुशी जाहिर की. उस के बाद 1992, 2006, 2009 और 2012 की पीड़िता महिलाओं ने फेसबुक पर कुछ कलाकारों व निर्देशकों पर प्रत्याड़ित करने के आरोप लगाया.

कोलकाता के एक पुरुष कलाकार ने भी एक मलयालम निर्देषक पर यौन शोषण का आरोप लगाया। जिन पर आरोप लगे उन्होंने जब कानूनी काररवाई करने की धमकी दी, तो अब कुछ पीड़िताओं ने पुलिस में जा कर एफआईआर भी करवा दी. परिणामतया अब केरला सरकार ने एक एसआई टी भी गठित कर दी. अब हर दिन नए नए खुलासे हो रहे हैं. अफसोस, यह आरोप अब सिर्फ वही लगा रही है जिन का कैरियर खत्म हो चुका है. बाकी की खामोशी अपनेआप बहुत कुछ संकेत देती है. इन पर यह आरोप भी लग रहे हैं कि ये लोग ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रही हैं.

हेमा रिपोर्ट आने के बाद मलयालम इंडस्ट्री में खामोशी छाई रही. ‘अम्मा’ के अध्यक्ष मोहनलाल भी चुप रहे. पर मामला बढ़ने पर उन्होंने म ‘अम्मा’ को भंग करते हुए कहा,‘‘जो कुछ हुआ, उस की जिम्मेदारी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर शख्स को लेनी पड़ेगी.’’

अभिनेता ममूटी ने कहा,‘‘ सिनेमा जिंदा रहना चाहिए. सिनेमा को खत्म करने का प्रयास नहीं होना चाहिए. मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में ‘नो पावर ग्रुप’.

उधर, हेमा कमेटी को इंटरव्यू देने वाले तथा औस्कर में भारतीय प्रतिनिधि वाली फिल्म ‘2018’ के नायक / अभिनेता टोविनो थौमस कहते हैं,‘‘मैं ने खुद हेमा कमेटी के सामने सारे तथ्य रखे थे, पर जिस तरह से यह बातें सामने आई हैं, वह पूरी तरह से मलयालम सिनेमा को बरबाद करने वाला कांड ही है.’’

मलयालम अभिनेता जयसूर्या और सिद्दिकी तथा निर्देशक रंजीत ने अपने उपर लगाए गए आरोपों पर कहा कि वे कानूनी काररवाई करेंगे.

जयसूर्या के समर्थन में उतरी नायला उषा

अपने कैरियर में कई सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा रहीं अभिनेत्री नायला उषा ने एक एक विदेशी अखबार संग बात करते हुए दावा किया कि उन्हें मलयालम सिनेमा में किसी बुरे अनुभव का सामना नहीं करना पड़ा. पर उन्होंने इस बात से इनकार नही किया कुछ लोगों को औडिशन के दौरान समायोजन करने के लिए कहा गया होगा. उन के अनुसार, जब अभिनेत्री मिल रही भूमिका से इतर भूमिका पाने का प्रयास करती है, तब शायद उस के सामने समझौता करने का प्रस्ताव आया होगा. उन के अनुसार, लोगों को हेमा समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षो से स्तब्ध नहीं होना चाहिए.

उन्होंने कहा,‘‘मैं ने तमाम विशेषाधिकारों का आनंद लिया है, लेकिन मैं उन लोगों के साथ खड़ी हूं जिन के पास यह विशेषाधिकार नहीं है. मेरे किसी भी सह कलाकार ने ऐसे अनुभवों का सामना करने के बारे में कभी शिकायत नहीं की।’’

नायला को अपनी पहली फिल्म रिलीज होने से पहले दूसरी फिल्म जयसूर्या स्टारर ‘पुण्यलन अगरबत्ती’ मिल गई.

नायला कहती हैं,‘‘जयसूर्या के साथ अभिनय करने का अनुभव अच्छा रहा. वह मेरे करीबी दोस्त हैं और कहा कि वे इतने करीब हैं कि वह किसी भी समय उसे फोन कर सकती है और उस से मदद मांग सकती है. उन के खिलाफ आरोप ने मुझे सचमुच झकझोर दिया. उस के बाद मैं ने उन से बात नहीं की. जब मैं कहती हूं कि मैं हैरान थी, तो इस का मतलब यह नहीं है कि मुझे उस महिला पर भरोसा नहीं है या मैं जयसूर्या का समर्थन करती हूं.’’

हेमा कमेटी में नया कुछ नहीं

अब सवाल उठता है कि जिस हेमा कमेटी को ले कर सनसनी फैलाने का काम हमारे न्यूज चैनल्स कर रहे हैं, ऐंकर यह बता सकते हैं कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट में ऐसा नया क्या है, जिस की भनक उन्हें नहीं थी या उन्हें यह एहसास नहीं है कि यह सब हर क्षेत्र में हो रहा है. सच यह है कि पूरे विश्व में हर क्षेत्र में यह सारी बुराइयां मौजूद हैं. कम से कम हौलीवुड सहित विश्व की हर फिल्म इंडस्ट्री कास्टिंग काउच का शिकार है और इस पर कोई रोक नहीं लगा पा रहा है. इस की मूल वजह यह है कि इस बुराई की मूल जड़ पुरुष मानसिकता और पितृसत्तात्मक सोच है.

इस बात की तस्दीक तो डौक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘मफ्राम द शैडोज’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक मरियम चंडी मीनाचेटी, जोकि मूलतया केरल की रहने वाली हैं, भी करती हेैं जोकि सिनेमा में महिलाओं की वर्किंग कंडीशन पर अपनी नई डौक्यूमेंट्री के लिए स्पेन, हौलीवुड व भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों से इंटरव्यू ले चुकी हैं और अभी कुछ और लोगाें से वह बात करने वाली हैं.

केरला की मलयालम महिलाओं की छवि

मगर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच के नाम पर इस कदर यह सब हो रहा है, उस से थोड़ा सा आश्चर्य जरूर है. कुछ समय पहले प्रदर्षित फिल्म ‘एनीमल’ में ‘अल्फा मेल’ की बात की गई है, पर हम बता दें कि केरला की मलयालम औरतों के बारे में माना जाता है कि वह ‘अल्फा वूमंस’, ‘उच्च शिक्षित, सषक्त, ताकतवर, हर चुनौती का जवाब देने में समर्थ होती हैं. ऐसे में तमाम लोग पुरुष सत्तात्मक स्पेस और फेमीनिज्म को जनरलाइज करने को उचित नहीं मानते.

क्या यह सिनेमा को खत्म करने की राजनीतिक साजिश है

कुछ लोग ‘हेमा रिपोर्ट’ को ले कर मचे हंगामे को ‘राजनीतिक कुचक्र’ भी मान रहे हैं. वास्तव में 2014 में केंद्र की सरकार बदलने के साथ ही इस सरकार का जो रवैया सिनेमा के प्रति रहा, वह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. सच यह है कि सिनेमा एक सशक्त माध्यम है. सिनेमा के माध्यम से जो विचार, जो बात कही जाती है, उस का असर आम जनता पर काफी तेजी से होता है.

2014 के बाद केंद्र सरकार ने इस माध्यम का उपयोग अपने ऐजेंडे को सफल बनाने के लिए करने की दिशा में कदम उठाए. प्रधानमंत्री 2-3 बार मुंबई आ कर किसी न किसी बहाने बौलीवुड के प्रतिनिधियों से मिले. 1-2 बौलीवुड के प्रतिनिधिमंडल को चार्टर प्लेन से दिल्ली बुला कर मिले. सेंसर बोर्ड में भी बदलाव किए गए. सिनेमा के विकास के लिए चली आ रही 5 संस्थाओं का एक में ही विलय कर कुछ पर कतरने का प्रयास किया गया. अंततः बौलीवुड व कुछ दूसरी फिल्म इंडस्ट्रीज में एक खास राजनैतिक दल को लाभ पहुंचाने वाले ऐजेंडे के साथ सिनेमा बनने लगा. कुछ फिल्मकारों ने इसे हिंदुत्व या राष्ट्रवादी सिनेमा की संज्ञा दी. कुछ फिल्मकारों ने अपने सिनेमा को प्रोपेगैंडा सिनेमा कहने वालों को थप्पड़ मारने की भी धमकी दी. पर अफसोस बौलीवुड में ऐजेंडे व प्रोपेगैंडा वाले सिनेमा को दर्शकों ने नकार दिया जबकि मलयालम सिनेमा अपने हिसाब से कम्यूनिस्ट विचारधारा के अनुकूल और न ही ऐजेंडेे के नाम पर फूहड़, घटिया या मनोरंजनहीन सिनेमा ही बन रहा था.

मलयालम सिनेमा बेहतर बनता रहा.परिणामतया 2024 में भी उस ने कमाल की सफलता दर्ज की. दूसरी बात सब से पहले ‘मीटू’ का मामला 2017 में ही बौलीवुड में उठा. कई लोग सामने आए और जम कर यौन शोषण के आरोप लगाए. फिर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री मे मामला उठा और ‘हेमा कमेटी’ का गठन हुआ.

2019 में तेलंगाना राज्य में भी यही मुद्दा उठा और तेलंगाना राज्य ने भी एक कमेटी गठित की. यह अलग बात है कि अब तक तेलंगाना सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है. तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा है कि तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में कुछ लोग भाजपा व आरएसएस के इशारे पर काम करते हैं. वहां चर्चा रही है कि राजामौली निर्देशित फिल्म ‘आरआरआर’ को एक आरआरएस नेता की सिफारिश पर दोबारा फिल्माया गया था और इस फिल्म का प्रचार करने के लिए निर्देशक एसएस राजामौली व अभिनेता प्रभास गुजरात, दिल्ली व वाराणसी गए थे तथा गंगा नदी में नाव की सवारी भी की थी.

ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस वक्त महाराष्ट, केरला और तेलंगाना में भाजपा की सरकारें नहीं थीं. वर्तमान समय में महाराष्ट्र में भाजपा समर्थित सरकार है, पर तेलंगाना और केरला में भाजपा विरोधी सरकारें हैं.

केरला में ‘डब्लू सीसी’ संगठन जुड़े लोगों पर भी सरकार विरोधी होने के आरोप लगे हैं. 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद डब्ल्यूसीसी हमलावर हो गई और अदालत तक पहुंच गई.आरटीआई दाखिल कर दी गई. परिणामतया केरला सरकार को ‘हेमा रिपोर्ट’ के कुछ पन्ने हटा कर जारी करना पड़ा.

उधर तेलुगू इंडस्ट्री से जुड़े लोग अब अभिनेत्री सामंथ रूथ प्रभू, नंदिनी रेड्डी व गायक चिन्मयी रेया तेलंगाना सरकार पर भी कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं जबकि महाराष्ट्र यानि कि बौलीवुड में ‘मीटू’ की बातें सरकार बदलने के साथ ही खत्म हो गई थीं और जिन पर ‘मीटू’ के तहत आरोप लगे थे, वे सब पुनः काम कर रहे हैं. पर आरोप लगाने वालों को काम नहीं मिल रहा है.

इस पूरे घटनाक्रम के आधार पर कहा जा रहा है कि यह सारा खेल राजनीतिक है.

क्या होना चाहिए

नारी शोषण किस जगह नहीं हो रहा है. पर इस का यह अर्थ नहीं है कि ‘मलयालम फिल्म इंडस्ट्री’ पर हेमा कमेटी की रिपोर्ट को नजरंदाज कर दिया जाए. जी नहीं, यौन शोषण या किसी भी रूप में देश की एक भी औरत को प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए. हर नारी को जीवन की हर सुविधाएं पाने का हक है. मगर जरूरत इस बात की है कि आरोपप्रत्यारोप लगाने की बजाय फिल्म इंडस्ट्री सहित हर क्षेत्र के कई लोगों को अपने घर के अंदर सफाई करने की जरूरत है.

पितृसत्तात्मक सोच को बदलने की जरुरत है. पुरुष मानसिकता को बदलने की जरूरत है.शतो वहीं नारी स्वतंत्रता व नारी उत्थान के नाम पर शराब व सिगरेट पीने वाली औरतों को भी सोचना होगा कि कहीं वे नशे की हालत में खुद पर काबू न रख कर कुछ गलत पुरुषों के बहकावे में आ कर शोषण का षिकार तो नहीं हो रही हैं.

हेमा रिपोर्ट आने के बाद जिस तरह से बातें की जा रही हैं, उसे सुन कर तो यही निष्कर्ष निकलता है कि देश की औरतों को घर की चारदीवारी में बंद कर दिया जाना चाहिए. कुछ समय पहले प्रदर्शित व 2024 की सफलतम हिंदी फिल्म ‘स्त्री 2’ में भी डर के आतंक के साए में औरतों को आधुनिकता से दूर रहने व उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रहने का ही संदेश दिया गया है. हमें यहां याद रखना चाहिए कि शासकदल के समर्थक दिनेश वीजन और उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनियों ने ही फिल्म ‘स्त्री 2’ का निर्माण किया है.

अब 6 सितंबर से ओटीटी प्लेटफौर्म ‘अमेजान प्राइम’ पर स्ट्रीम हो रही वैब सीरीज ‘काल मी बे’ में भी एक उद्योगपति,जोकि टेलीकौम इंडस्ट्रीज से जुड़ा है और राजनैतिक पहुंच रखता है, द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म अभिनेत्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए किस तरह ब्लैकमेल करता है, उसकी कहानी है.

तो जो लोग नारी को घर की चारदीवारी में कैद करने के मकसद से हर घटनाक्रम को प्रसारित कर रहे हैं, हम उनके खिलाफ हैं. हम चाहते हैं कि हर घर इस तरह के शोषण के खिलाफ घर के अंदर ही सफाई अभियान चलाए. देखिए, क्या हम सभी इस बात से सहमत नहीं हैं कि हमारे आसपास गरीब हो या मध्यवर्गीय हो या उच्च मध्यवर्गीय परिवार हो, हर दूसरे तीसरे दिन किसी न किसी महिला का यौन शोषण होता है और उस शोषित महिला के परिवार के सदस्य ही उसे हमेशा के लिए जबान बंद रखने का दबाव नहीं बनाते. क्योंकि सभी को अपनी सामाजिक मानमर्यादा भंग होने का का डर सताता है. सिर्फ आम इंसान ही नही बल्कि अति उच्च और ताकतवर परिवारों में भी यही होता है.

नोबल पुरस्कार विजेता कनाडियन लेखक की मजबूरी या…

कनाडा की मशहूर लेखिका ऐलिस मूनरो को 2013 में उन की लघु कहानियों के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला था. कनाडा बहुत बड़ा देश नहीं है. इसलिए वहां हर बात सभी को जल्द पता चल जाती है. पहले पति की मौत के बाद ऐलिस मुनरो ने गेराल्ड फ्रेमलिन के साथ दूसरी शादी की थी. गेराल्ड ने ऐलिस मुनरो के पहले पति की बेटी एंडरिया रौबिन स्कीनर का उस वक्त रेप किया था, जब वह सिर्फ 9 वर्ष की थी. अब वह 18 साल की है मगर ऐलिस ने अपनी बेटी का मुंह बंद करा दिया था.

युवा होने पर एक कहानी के माध्यम से बेटी ने इस सच को उजागर किया था पर उसे दबा दिया गया. जब ऐलिस मुनरो को नोबल पुरस्कार मिला, तब भी उन की बेटी ने यह आरोप लगाया था, पर तब इसे दबा दिया गया कि पुरस्कार मिलने से उसे जलन हुई.

13 मई, 2024 को ऐलिस मुनरो की मौत हो गई. तब एक बार फिर उन की बेटी ने यह आरोप लगाने के साथ ही मुकदमा भी कर दिया है. ऐलिस मुनरो खुद ताकतवर थीं. पूरे विश्व में उन का नाम था. फिर भी उन्होंने अपनी बेटी को यौन शोषण के खिलाफ जबान बंद रखने पर मजबूर किया.

ऐसे में यह उम्मीद करना कि फिल्म इंडस्ट्री में कैरियर बनाने की चाह रखने वाली लड़कियां व औरतें यौन शोषण या बुनियादी सुविधाओं से दूर रखे जाने पर चुप रहने को मजबूर न हुई हों, यह कहना गलत है. कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि 1992 या 2006 में यौन शोषित पीड़िताओं द्वारा अब आवाज उठाने पर सवाल उठाने वालों के पास क्या इस सवाल का जवाब है कि इन पीड़िताओं को तब या अब न्याय मिल पाएगा? जी नहीं, न्याय मिलना मुश्किल है. पर हम चाहते हैं कि इस की आड़ में किसी भी औरत को घर पर कैद रहने के लिए मजबूर न किया जाए. पर एक बात यह भी है कि हर नारी को भी अपनी कुछ सीमाएं तय करनी होंगी और खुद को इतना टैलेंटेड बनाना होगा कि कोई उन के सामने अवैध मांग रखने का साहस न कर सके.

एक अहम सवाल यह है कि सरकारें इस तरह के मामले में भी बहुत संजीदा नजर नहीं आती. 2019 में जब हैदराबाद मे तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री की अदाकारा रेड्डी ने जुबिली हिल्स में फिल्म चेंबर्स के सामने न्याय की मांग करते हुए अर्धनग्न हो कर धरना दिया था, तब वहां की सरकार ने एक कमेटी गठित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली थी. इस वजह से भी पुरुषों में निडरता बढ़ती है.

पश्चिम बंगाल से सबक लेने की जरूरत

हम बारबार यही कह रहे हैं कि हर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हर पुरुष की सोच व उन की मानसिकता को बदलने के साथ ही खुद ही अपने घर की सफाई करने पर ध्यान देना होगा. पश्चिम बंगाल की बंगला फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी महिलाओं ने इस तरह का कदम उठा रखा है. कान्स फिल्म फैस्टिवल में ‘पिर्रे अन्नीयाक्स अवार्ड’ से सम्मानित कैमरामैन मधुरा पालित के अलावा 50 औरतें, जिन में अभिनेत्री अपर्णा सेन, स्वास्तिका मुखर्जी, निर्देशक, लेखक व अन्य विभाग की 50 महिलाओं ने मिल कर ‘फोरम फार स्क्रीन ओमन’ का गठन कर रखा है जहां हर समस्या को सुन कर उस का निरकारण करने का प्रयास किया जाता है.

यह संगठन लंबे समय से केंद्र सरकार से ‘सेक्सुअल हरेसमैंट ऐक्ट 2013’ में बदलाव के साथ ही हर पीड़िता को चौबिसों घंटे हेल्पलाइन उपलब्ध कराने की भी मांग कर रखी है, जिस पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है.

इतना ही नही पश्चिम बंगाल के फिल्मकारों की मदद के लिए ‘बिट चित्र कलेक्टिव’ का गठन किया गया, जिस में फिलहाल 100 महिलाएं सदस्य हैं. यह संगठन फिल्म निर्माण से ले कर हर तरह की समस्या के वक्त मदद करता है.

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