तोषु और सागर के बीच होगी हाथापाई, Anupama की इस हरकत पर लोगों ने जाहिर किया गुस्सा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में कई नए एंगल दिखाए जा रहे हैं, जिससे दर्शकों का भरपूर एंटरटेनमैंट हो रहा है. यह सीरियल इतना पौपुलर है कि लगभग हर घर में इस शो के फैंस शामिल है. इस सीरियल के अपडेट को लेकर हर कोई एक्साइडेट रहता है कि आज के एपिसोड में क्या ट्विस्ट दिखाया जाएगा. तो देर किस बात की, आइए जानते हैं आज के एपिसोड के बारे में…

आशा भवन में तोषु करेगा चोरी

सीरियल में आप देख रहे हैं कि घर से बेघर होने के बाद शाह परिवार अनुपमा के साथ आशा भवन में रह रहे हैं. दूसरी तरफ तोषु और पाखी भी दोबारा आशा भवन में शरण लेने के लिए आ गए हैं. लेकिन बिगड़ैल तोषु एक बार फिर आशा भवन में ड्रामा खड़ा करेगा. सीरियल में आप देखेंगे कि जिस घर में तोषु ने पनाह लिया है, उसी घर में चोरी करेगा. इतना ही नहीं वह अपने चोरी का इल्जाम किसी और के सिर पर डालेगा.

अनुपमा के सामनो मीनू और सागर की खुलेगी पोलपट्टी

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जाएगा कि तोषु चुपचाप अनुपमा के कमरे में जाने की कोशिश करता है और वहां पर सारे पैसे और गहने निकालने लगता है. तभी मीनू और सागर भी इसी तरफ आते हैं फिर वो दोनों तोषु को अनुपमा के कमरे में चोरी करते देख लेते हैं.शो में आप आगे देखेंगे कि तोषु हल्ला मचाकर दोनों पर चोरी करने का आरोप लगा देता है. अनुपमा में आप ये भी देखेंगे कि तोषु अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा और वह सागर औ मीनू की प्रेम कहानी अनुपमा के सामने खोल देगा. वह अनुपमा को एक वीडियो दिखाता है, जो सागर और मीनू के लव लाइफ से जुड़ा है. इस सच को दिखाने में डिंपी और पाखी भी तोषु का साथ देते हैं. ये देखकर अनुपमा टूट जाती है.

अनुपमा से माफी मांगेगे सागर और मीनू

दूसरी तरफ शाह परिवार के लोग अनुपमा को खरी-खोटी सुनाने लगते हैं और दूसरी तरफ मीनू-सागर भी खुद अपना सच अनुपमा को बताते हैं. लेकिन अनुपमा को जब ये पता चलता है कि मीनू और सागर की सच्चाई अनुज और बाकी घरवालों को पता था, ये जानकर अनुपमा बहुत दुखी होती है. दूसरी तरफ सागर और मीनू अनुपमा के पैरों में गिरकर माफी मांगते हैं, लेकिन अनु अकेले रहना चाहती और अपने कमरे में चली जाती है.

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि तोषु सागर के बीच हाथापाई होने लगती है. फिर अनुज बीच में आकर सबको शांत करवाता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या सागर और मीनू का साथ अनुपमा देगी या वह भी उनके प्रेम कहानी में डौली की तरह विलेन बनेगी?

अनुपमा की इस हरकत पर भड़के लोग

हाल ही में रुपाली गांगुली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे देखने के बाद यूजर्स ऐक्ट्रैस की एक हरकत से काफी नाराज नजर आ रहे हैं.  यहां तक कि पुलिस से उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

दरअसल, इस वीडियो में देखा जा सकता है कि रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) स्कूटी पर बैठे नजर आ रही हैं. स्कूटी पर बैठी अनुपमा ने एक ट्रैफिक नियम का उल्लंघन किया है. वो काफी जल्दी में हैं और अपने मैनेजर के साथ स्कूटी पर बैठकर निकल जाती हैं.  स्कूटी चलाते वक्त उनके मैनेजर ने भी हेलमेट नहीं पहना और न ही रुपाली गांगुली ने पहना था. इस बात पर लोगों अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और अनुपमा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

स्वर्ण मृग : झूठ और फरेब के रास्ते पर चल पड़ी दीपा

लेखक-  आदर्श मलगूरिया

स्मिता और दीपा मौल में बने सिनेमाहौल से निकलीं तो अंधेरा छा चुका था. दोनों को पिक्चर खूब पसंद आई थी. साइंस फिक्शन की पिक्चर थी. हीरो के साथ दूरदराज के किसी ग्रह पर भटकते, स्पोर्स पर बने तिलिस्मी महल में खलनायक के मशीनी दैत्यों से जूझते और मौत के चंगुल से निकलते हीरो को 3डी में देख कर स्मिता जैसे अपने को हीरो की प्रेमिका मान बैठी थी. बत्तियां जलीं तो उस के पांव यथार्थ के ठोस धरातल पर आ टिके. स्वप्न संसार जैसे कपूर सा उड़ गया.

स्मिता और दीपा सोच रही थीं कि अब टैक्सी के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी या फिर डलहौजी स्क्वेयर या मैट्रो तक पैदल चलना पड़ेगा. वह भी दूर ही था. ऊपर से काले बादल गहराते जा रहे थे. यदि कहीं तेज बारिश हो गई तो ट्रैफिक जाम हो जाएगा और फिर सड़कों पर जमे पानी के दर्पण में कितनी

देर तक भवनों, बत्तियों के प्रतिबिंब झिलमिलाते रहेंगे.

रात को देर से घर पहुंचने पर मौमडैड को ही नहीं बल्कि बिल्डिंग के गार्ड्स की तेज आंखों को भी कैफियत देनी पड़ेगी. स्मिता के मन में यही विचार घुमड़ रहे थे. उस की बिल्डिंग क्या थी, एक अंगरेजों के जमाने का खंडहर था जिस में 20 परिवार रहते थे. एक गार्ड जरूर रखा गया था ताकि चंदा मांगने वाले या पार्टी के लोगों को आने से रोका जा सके.

दीपा निश्चिंत हो कर 2 पैकेट मिक्स खरीद चुकी थी. एक पैकेट स्मिता की ओर बढ़ाती हुई वह हंस दी, ‘‘लो, यही चबा जब तक कार नहीं आती.’’

‘‘तुझे तो कोई चिंता नहीं है न. यहां मेरे घर पर पहुंचने पर ही कितनी पूछताछ शुरू हो जाएगी. यह शो देखना जरूरी था क्या? कितनी बार कहा था कि इतवार को दिन के शो में चलेंगे पर तु?ा पर तो इस साइंस फिक्शन का भूत चढ़ा था,’’ स्मिता चिल्लाई.

‘‘अरे भई, शुक्रवार को यह पिक्चर बदल न जाती?’’ दीपा ने अपना तर्क पेश किया.

‘‘पर अब घर पहुंचना मुश्किल हो जाएगा. तुझे तो कोई चिंता नहीं है पर मुझे कितनी जगह कैफियत देनी पड़ती है,’’ स्मिता चिंतित हो उठी थी.

किंतु दीपा इस तरह की चिंताओं से दूर थी. वह अपने परिवार से अलग रहती थी इसलिए पूरी तरह स्वतंत्र थी. दीपा के मांबाप अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के एक कसबे में रहते थे. दीपा यहां कोलकाता में पहले एक महिला होस्टल में कई वर्षों तक  रहती रही. फिर एक पुरुष मित्र के साथ दोस्ती होने पर दोनों ने आपस में एक लिव इन में रहना तय कर लिया था. वे स्वेच्छा से इस संबंध को समाप्त भी कर सकते थे परंतु दीपा को विश्वास था कि उस का पार्टनर कभी उस के मोहपाश से नहीं निकल पाएगा.

दीपा अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट थी. वह नौकरी करते हुए अपने परिवार व छोटे भाईबहनों की पढ़ाई के लिए अपने वेतन का बड़ा भाग भेज देती थी. स्वयं भी मजे से रह रही थी. उस के पार्टनर ने उसे एक कमरे का सुंदर फ्लैट किराए पर ले कर दे रखा था. सप्ताह में लगभग 3 बार वह उस के साथ रहता था.

स्मिता ने इसी बात की ओर संकेत किया था. कभीकभी दीपा के उन्मुक्त तथा अंकुश रहित जीवन पर उसे बड़ी ईर्ष्या होती थी. दोनों की स्थितियों में कितना अंतर था. दीपा की स्थितियों में कितना अंतर था. दीपा को आर्थिक दृष्टि से कोई चिंता नहीं थी और वह एक समर्थ पुरुष की प्रेमिका और एक तरह से उस की पत्नी थी. इस तरह वह स्वतंत्र अस्तित्व की स्वामिनी थी. रोकटोक रहित जीवन व्यतीत करती हुई वह हर तरह से सुखी थी. दूसरी ओर स्मिता जैसे कुंआरी भावनाओं की उमंगों की लाश मात्र रह गई थी.

कारखाने की एक दुर्घटना में हाथ कटने पर स्मिता के पिताजी जैसे जीतेजी मृत से हो गए थे. अधूरी पढ़ाई छोड़ कर टाइपिंग तथा शौर्टहैंड सीख कर उस ने परिवार का जो जुआ कंधे पर उठाया था, वह छोटी बहन व भाई की शादी के बाद भी नहीं उतरा था. अब वह हांफते और मुंह से लार गिराते थके टूटे बैल की तरह हो रही थी, जिस पर रोज छोटे भाई गैरी के तानों, मां की ग्रौसरी की चिंता, छोटी भाभी की नए कपड़ों की मांगों व निरीह पिता को दवाइयों के लिए कांपते बढ़ते हाथों के कोड़े बरसते थे.

स्मिता इसी में संतुष्ट रहना चाहती थी परंतु कभीकभी दीपा व अन्य सहेलियों को देख कर सांसारित सुख के सागर से कुछ पीने के लिए ललचा उठती थी पर उसी शहर में अपने परिवार वालों की आंखों के आगे रहते यह संभव नहीं था.

अचानक किसी कार के हौर्न की तीखी आवाज से उस के खयालों को झटका लगा. परिचित नंबर वाली एक एसयूवी सामने आ कर रुकी. रमेश स्टियरिंग पर बैठा उन्हें कार में आने का इशारा कर रहा था. स्मिता पहले तो सकुचाई, फिर घिरते हुए अंधेरे, वर्षा की रिमझिम और दीपा की कड़ी दृष्टि के संकेत ने उसे लिफ्ट स्वीकार करने पर विवश कर दिया. वैसे भी डर क्या था? वह तो है ही घोंचू सी. दीपा की खिलखिलाहट ने  उसे इस बात का एहसास करवा दिया.

रमेश उसी की फैक्टरी का असिस्टैंट मैनेजर था. सुना जाता था कि गांव की जमीनजायदाद से भी उसे काफी आमदमी होती थी. हंसमुख, सहृदय व लोकप्रिय होना शायद उच्च पद व धनी होने से संबंध रखता है. तभी तो रमेश इतने खुले दिल का और खुशमिजाज था, नहीं तो स्मिता के तबके के लोग कैसे डरेडरे, दयनीय लगते थे.

दीपा का घर पहले पड़ता था. उसे उतार कर रमेश स्मिता से उस के घरपरिवार तथा इधरउधर की बातें करता रहा. उस के अपनत्व के कारण उस के संकोच की गांठें धीरेधीरे खुलती गईं. अपना घर करीब आने से पहले ही उस ने कार रुकवा ली.

रमेश हाथ हिलाता चला गया. घुटनेघुटने तक पानी में वह घर पहुंची. मां ने चायनाश्ता बन कर सामने रखा. भाभी दांतों तले होंठ दबा कर यह कहने से बाज नहीं आई. ‘‘बड़ी देर कर दी, स्मिता दी.’’

‘‘हां, बारिश में फंस गई थी.’’

स्मिता भला और क्या कहती? मगर आधे घंटे बाद जैरी, जिस का असली नाम जैमिनी रौय था ने आ कर पूछा, ‘‘गाड़ी मोड़ पर ही क्यों रुकवा दी, दीदी? घर तक क्यों नहीं ले आईं. पैदल आने की क्या जरूरत थी?’’

स्मिता के तनबदन में आगे लग गई. उसे क्या हर छोटेबड़े के आगे सफाइ देनी पड़ेगी? क्या यही सिला है इस घर के लोगों के लिए मरनेखटने का?

चाय छोड़ कर वह अपने कमरे में चली गई. पीछे से मां की आवाज आती रही. मां जैरी को डांट रही थी, ‘‘क्यों आते ही उस के पीछे पड़ गया? बड़ेछोटे का भी लिहाज नहीं है?’’

‘‘वह भी तो मुझे टोकती रहती है,’’ जैरी इस तरह उस से बदला ले रहा था.

‘‘मुझे क्या, जो मरजी हो करे,’’ स्मिता ने जैरी की बात सुन कर मन ही मन सोचा. उस का हृदय कड़वाहट से भर गया था. उस ने तय कर लिया कि वह आज के जमाने के साथ चलेगी.

धीरेधीरे स्मिता के व्यवहार में अंतर आने लगा, जिसे दफ्तर के लोगों ने भी लक्ष्य किया. अब वह पहले वाली संकोची स्मिता नहीं रह गई थी. अपने सहकर्मियों से वह खुल कर गपशप लगाती थी. बातबात पर हंसतीखिलखिलाती थी. सब को पता था कि वह परिवर्तन रमेश की बदौलत है.

अब स्मिता की शामें अकसर रमेश के साथ गुजरतीं. कभी रात का भोजन, कभी चाय, कभी पार्क स्ट्रीट के एक से एक महंगे रेस्तरां में प्रोग्राम रहता. उस ने घर वालों की परवाह करना ही छोड़ दिया था.

धीरेधीरे रमेश उसे अपने दुखी पारिवारिक जीवन की कहानियां सुनाने लगा, उस ने बताया कि उस की पत्नी बिलकुल अनपढ़, झगड़ालू तथा गंवार औरत है. घर में पैर रखते ही उस का सिर भन्ना जाता है क्योंकि वह दिनरात चखचख लगाए रखती है. फिर रमेश धीरे से उस का हाथ दवा कर कहता, ‘‘तुम से वर्षों पहले मुलाकात क्यों नहीं हो गई?’’

‘‘मुलाकात होने से भी क्या होगा? मैं तो तब भी अपनी सलीब ढो रही थी,’’ स्मिता फीकी हंसी हंस देती. वह बीते वर्षों के बारे में सोचती तो उसे सबकुछ गलत लगता. अब शायद भागते समय से मुट्ठीभर प्रसन्नता छीन कर जी सके.

आखिर एक दिन रमेश ने चाय पीते समय उस के सामने लिव इन करने का प्रस्ताव रख दिया. रमेश उसे शहर के आधुनिक इलाके में एक छोटा सा फ्लैट ले देगा. स्मिता की आंखों के सामने सुखी गृहस्थी, बच्चे और अपने घर के इंद्रधनुषी रंग छितराने लगे. वह अपनी पत्नी को छोड़ देगा पर थोड़े दिन बाद क्योंकि तलाक में टाइम लगता है.

उस के अपने परिवार वालों को उस की आवश्यकता नहीं रह गई थी. पीछा छूट जाने पर वे भी प्रसन्न ही होंगे. और वह अब कहीं जा कर स्वयं अपने ढंग से जीवन जी सकेगी. जीवन के इस मोड़ पर आ कर कौन उस की मांग भर कर विधिविधान से 7 फेरे ले कर उसे दुलहन बनाएगा? जो मिल रहा है, वही सही. उस की जानपहचान की कितनी ही लड़कियां इस तरह लिव इन में रह कर प्रसन्न थीं. अगर वह भी ऐस कर ले तो क्या हरज है?

रमेश जैसा भला आदमी उसे फिर कहां मिलेगा और फिर वह अपने परिवार के दुखों से भी छुटकारा पा लेगी. एक पल में स्मिता यह सब सोच गई.

रमेश ने उस की आंखों में आंखें डाल दीं, ‘‘देख लो, तुम्हारा गुलाम बन कर रहूंगा. बच्चों के कारण पत्नी से पीछा नहीं छुड़ा सकता, नहीं तो किसी तरह उसे तलाक दे कर आज ही तुम्हारे साथ विवाह कर लेता. उस गंवार से मुझे अशांति के सिवा और मिलता ही क्या है? सुख के लिए सिर्फ तुम्हारे आगे ही हाथ फैला सकता हूं.’’

सुख से उस का आशय मानसिक था या शारीरिक, स्मिता समझ नहीं पाई. उस समय वह उसे सम?ाना भी नहीं चाहती थी.

‘‘न्यू अलीपुर में मेरे एक दोस्त का फ्लैट खाली है. 1 वर्ष के लिए वह विदेश गया हुआ है. उस की चाबी मेरे पास ही है. फिलहाल तुम उसी में रह लेना. बाद में तुम्हारे लिए कोई अच्छा फ्लैट ले लूंगा.’’

रमेश ने बिल चुकाया और दोनों बाहर आ गए. उसे उस की गली के मोड़ पर छोड़ कर वह चला गया. लेकिन उस दिन घर पहुंचने पर जैरी के कटाक्ष करने पर भी उसे क्रोध नहीं आया. सोचा, बस थोड़े दिन और कह ले जो भी मन में आए, अब उसे क्या परवाह है?

शनिवार को छोटी बहन इमामी मौल में चल रही एक नई फिल्म के 2 टिकट ले आई. दोनों दोपहर का शो देखने चली गईं. शो शुरू होने में अभी कुछ देर थी. दोनों पास की दुकानों में कुछ खरीदारी करने निकल गईं.

‘‘क्यों दीदी, जो कुछ मैं ने सुना है वह ठीक है?’’ छोटी बहन पूछ बैठी.

स्मिता कुछ नहीं बोली. मुसकरा भर दी. उस ने सोचा कि अब धीरेधीरे इन लोगों को बता ही दे कि वह बेचारी स्मिता नहीं रह गई. तभी उस की दृष्टि सामने के कार पार्क पर जा पड़ी.

रमेश कार का शीशा बंद कर रहा था. पास ही आधुनिक वेशभूषा में सुसज्जित कोई महिला खड़ी थी. रमेश के साथ ही शायद उस के कोई मित्र दंपती थे. स्मिता ओट में हो गई. रमेश के मित्र हंस कर कह रहे थे, ‘‘आज आप कैसे पकड़ में आ गए?’’

‘‘भई, आशा ने टिकट बुक कर रखे थे

सो आना ही पड़ा. मुझ से अगर बुक कराने को कहती तो…’’

‘‘तो यह रमेश की पत्नी है? आधुनिकता के अभिमान से भरीपूरी. वह पति को उलाहना दे रही थी और मानसिक अशांति की दुहाई देने वाला स्मिता का अधेड़ प्रेमी खीसें निपोर रहा था.

‘उफ, इतना झूठ,’ सोच स्मिता ने माथा थाम लिया.

‘‘क्या हुआ, दी?’’  छोटी बहन घबरा गई.

‘‘कुछ नहीं, यों ही चक्कर सा आ गया था,’’ स्मिता ने अपनेआप को संभाला. फिर पिक्चर में क्या दिखाया गया है, उसे कुछ याद नहीं रहा. वह तो किसी और ही उधेड़बुन में पड़ी थी.

सोमवार को दफ्तर पहुंचने पर पता चला कि रमेश दौरे पर चला गया है. स्मिता को राहत मिली. वह अभी उस का सामना नहीं करना चाहती थी. साथ ही समाचार मिला कि दीपा नर्सिंगहोम में भरती है. दीपा पास के ही एक दफ्तर में काम करती थी. शाम को स्मिता रजनीगंधा के फूल खरीद कर उसे देखने पहुंची. दीपा का मुख एकदम पीला पड़ चुका था.

‘‘क्या हो गया अचानक?’’ स्मिता उसे देख कर घबरा गई.

‘‘कुछ नहीं, अपनी भूल का दंड भुगत रही हूं.’’

स्मिता का दिल जोरों से धड़कने लगा. दीपा के ‘मैत्री करार’ का क्या यही परिणाम था?

‘‘पहेलियां मत बुझा, साफसाफ बता?’’

कमरे में अब कोई और नहीं था. नर्स दवा दे कर चली गई थी. दीपा धीरेधीरे बताने लगी कि लिव इन की ओट में उस के साथ कितना भयानक खिलवाड़ किया गया. वह अपने पुरुष मित्र की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपना सर्वनाश कर बैठी. प्रारंभ में तो सब ठीकठाक चलता रहा. बचपन में खेले घरघर का सपना साकार हो गया. परंतु धीरेधीरे मन भर जाने पर उस के मित्र की उकताहट साफ जाहिर होने लगी. वह तो पैसों के बल पर महज एक खेल चल रहा था जो जल्द ही खत्म हो गया.

‘‘मुझे 3-4 महीने पुरुष संसर्ग का सुख मिला परंतु इस के लिए कितना भारी मूल्य चुकानी पड़ी. जब मैं प्रैगनैंट हो गई तो वह पल्ला झाड़ कर अलग हो गया.’’

‘‘परंतु यह लिव इन भी हो तो कानूनी हो जाता है. वह इस की जिम्मेदारी से कैसे इनकार कर सकता है?’’ स्मिता गुस्से में उबल पड़ी.

‘‘अब मैं कहां कचहरी के चक्कर लगाती फिरूं? इस में मेरी ही बदनामी होगी. वैसे ये कहने की बातें हैं. कानून की दृष्टि में हमारा लिव इन अरेंजमैंट टैंपरेरी है जिस की कोई अहमियत नहीं है. कोई कोर्ट रलीफ दे देता है, कोई खड़ूस जज भगा देता है. जब मुझे गर्भ ठहर गया तो वह मुझे इस से जान छुड़ाने को कहने लगा. माना हम कानूनी तौर पर पतिपत्नी नहीं थे, केवल मित्र थे पर मेरी तो यह पहली संतान थी. मैं कैसे राजी हो जाती परंतु वह कहने लगा कि अभी बच्चों का झंझट क्यों पालती हो? एक बार मैं अपने ?ामेले से निकल लूं, फिर तुम्हारे साथ बच्चे होंगे तो उन का जन्मदिन मनाएंगे.

‘‘ऐसे में तो तुम काम पर भी नहीं जा पाओगी और वेबी बीमार पड़ जाए तो डाक्टरों के यहां चक्कर कैसे काटेगी? फिर आजकल बच्चे को स्कूल में दाखिल कराना कितना उठिन है, सिंगल मदर के लिए तो और मुश्किल होता है. जानती हो न? नहीं, भई, मैं ये सब मुसीबतें फिर अपने सिर पर लेने को तैयार नहीं. तुम्हारे साथ खुशियां बटोरने के लिए हम ने तय किया था कि इस सब झमेले में नहीं पड़ेंगे.’’

‘‘उफ,’’ स्मिता दीपा की बात सुन कर इतना ही कह सकी.

‘‘अब मैं क्या करती? अपने मातृत्व का

मुझे गला घोंटना पड़ा. सिंगल पेंरैंट कैसे बन जाती? बच्चे को बाप का नाम कौन देता? दीपा तकिए में मुंह गड़ा कर सुबकने लगी थी. स्मिता उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. अचानक उसे लगा कि दीपा के स्थान पर वह स्वयं सुबक रही है. वह भी तो उसी की तरह बिना आगापीछा सोचे क्षणिक सुख के पीछे अंधी खाई में कूदने जा रही थी. 4 दिन की चांदनी रातें ढलने के बाद वह भी इसी तरह किसी नर्सिंगहोम में सिसकेगी, अधूरे मातृत्व के कारण तड़पेगी.

‘नहीं… नहीं, उसे मांगा या छीना हुआ

या भीख में मिला गृहस्थ सुख नहीं चाहिए.

यह तो कुएं से निकल कर खाई में कूदने वाली बात होगी. उस के घर और परिवार के लोग

जैसे भी हों, उस के अपने तो हैं,’ उस ने मन ही मन कहा.

जाने कैसे अपने पैरों को घसीट कर वह घर तक पहुंची. गली में बहुत भीड़ जमा थी. घर पहुंच कर उस ने देखा कि जैरी घबराया सा अंदर के कमरे में बैठा था. पता चला कि उस के दोस्तों ने मामूली गहने छीनने के लिए किसी भद्र महिला के घर में घुस कर आक्रमण कर दिया था. वह स्त्री शोर मचा कर लोगों को जमा करने में सफल हो गई थी नहीं तो शायद वह अपनी जान से भी हाथ धो बैठती.

वे लड़के जैरी को भी साथ ले जाना चाहते थे परंतु उस ने साफ इनकार कर दिया था. अब पुलिस उस के दोस्तों से पूछताछ कर रही थी. जैरी डर रहा था कि कहीं शक में वह भी न पकड़ लिया जाए. अब वह पहले वाला झगड़ालू और बातबात पर बड़ों का अपमान करने वाला जैरी नहीं रह गया था. वह डरा, सहमा सा एक छोटा बच्चा लग रहा था.

स्मिता ने धैर्य बंधाया, ‘‘तू क्यों बेकार डर रहा है? कह देना कि मुझे कुछ नहीं पता. बस.’’

दीदी की इस बात से जैरी कुछ संभला. आखिर वह था तो अभी किशोर ही. उस ने जैसे रोते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, दी. अब बुरी संगत में कभी नहीं बैठूंगा. रोज स्कूल जाऊंगा और मन लगा कर पढ़ूंगा.’’

स्मिता उसे प्यार से एक चपत लगा कर कपड़े बदलने चली गई. यही उस का अपना घर था, अपना संसार था. यहां जिम्मेदारियां थीं तो अपनत्व का सुख भी. स्वर्ण मृग के पीछे वह कहां पगली सी भाग रही थी. अच्छा हुआ जो जल्दी होश आ गया.

रिश्ते की धूल : आखिर खुले मिजाज की सीमा के साथ क्या हुआ ?

लेखक- डा. के.  रानी

प्रियांक  औफिस के लिए घर से बाहर निकल रहा था कि पीछे से सीमा ने आवाज लगाई, ‘‘प्रियांक, 1 मिनट रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं.’’

‘‘मुझे देर हो रही है सीमा.’’

‘‘प्लीज 1 मिनट की तो बात है.’’

‘‘तुम्हारे पास अपनी गाड़ी है तुम उस से चली जाना.’’

‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई. मेरी गाड़ी सर्विसिंग के लिए वर्कशौप गई है और मुझे 10 बजे किट्टी पार्टी में पहुंचना है. प्लीज, मुझे रिच होटल में ड्रौप कर देना. वहीं से तुम औफिस चले जाना. होटल तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही तो पड़ता है.’’

सीमा की बात पर प्रियांक झुंझला गए और बड़बड़ाया, ‘‘जब देखो इसे किट्टी पार्टी की ही पड़ी रहती है. इधर मैं औफिस निकला और उधर यह यह भी अपनी किट्टी पार्टी में गई.’’

प्रियांक बारबार घड़ी देख रहा था. तभी सीमा तैयार हो कर आ गई और बोली, ‘‘थैंक्यू प्रियांक मैं तो भूल गई थी कि मेरी गाड़ी वर्कशौप गई है.’’

प्रियांक ने सीमा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसे औफिस पहुंचने की जल्दी थी. आज उस की एक जरूरी मीटिंग थी. वह तेज गाड़ी चला रहा था ताकि समय से औफिस पहुंच जाए. उस ने जल्दी से सीमा को होटल के बाहर छोड़ा और औफिस के लिए आगे बढ़ गया.

सीमा समय से होटल पहुंच कर पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ मग्न हो गई थी. 12 बजे उसे याद आया कि उस के पास गाड़ी नहीं है. उस ने वर्कशौप फोन कर के अपनी गाड़ी होटल ही मंगवा ली. उस के बाद अपनी सहेलियों के साथ लंच कर के वह घर चली आई. यही उस की लगभग रोज की दिनचर्या थी.

सीमा एक पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाली महिला थी. उसे सजनेसंवरने और पार्टी वगैरह में शामिल होने का बहुत शौक था. उस ने कभी नौकरी करने के बारे में सोचा तक नहीं. वह एक बंधीबंधाई, घिसीपिटी जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. वह तो खुल कर जीना चाहती थी. उस के 2 बच्चे होस्टल में पढ़ते थे. सीमा ने अपनेआप को इतने अच्छे तरीके से रखा हुआ था कि उसे देख कर कोई भी उस की उम्र का पता नहीं लगा सकता था.

प्रियांक और सीमा अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. शाम को प्रियांक के औफिस से घर आने पर वे अकसर क्लब या किसी कपल पार्टी में चले जाते. आज भी वे दोनों शाम को क्लब के लिए निकले थे. उन की अपने अधिकांश दोस्तों से यहीं पर मुलाकात हो जाती.

आज बहुत दिनों बाद उन की मुलाकात सौरभ से हो गई सौरभ ने हाथ उठा कर

अभिवादन किया तो प्रियांक बोला, ‘‘हैलो सौरभ, यहां कब आए?’’

‘‘1 हफ्ता पहले आया था. मेरा ट्रांसफर इसी शहर में हो गया है.’’

‘‘सीमा यह है सौरभ. पहले यह और मैं

एक ही कंपनी में काम करते थे. मैं तो प्रमोट हो कर पहले यहां आ गया था. अब यह भी इसी शहर में आ गया है और हां सौरभ यह है मेरी पत्नी सीमा.’’

दोनों ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. उस के बाद प्रियांक और सौरभ आपस में बातें कर लगे.

तभी अचानक सौरभ ने पूछा, ‘‘आप बोर तो नहीं हो रहीं?’’

‘‘नहीं आप दोनों की बातें सुन रही हूं.’’

‘‘आप के सामने तारीफ कर रहा हूं कि आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं.’’

सौरभ ने उस की तारीफ की तो सीमा ने मुस्करा कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

‘‘कब तक खड़ेखड़े बातें करेंगे? बैठो आज हमारे साथ डिनर कर लो. खाने के साथ बातें करने का अच्छा मौका मिल जाएगा,’’ प्रियांक बोला तो सौरभ उन के साथ ही बैठ गया. वे खाते हुए बड़ी देर तक आपस में बातें करते रहे. बारबार सौरभ की नजर सीमा के आकर्षक व्यक्तित्व की ओर उठ रही थी. उसे यकीन नहीं हो पा रहा था इतनी सुंदर, स्मार्ट औरत के 10 और 8 साल के 2 बच्चे भी हो सकते हैं.

काफी रात बीत गई थी. वे जल्दी मिलने की बात कह कर अपनेअपने घर चले गए. लेकिन सौरभ के दिमाग में सीमा का सुंदर रूप और दिलकश अदाएं ही घूम रही थीं. उस दिन के बाद से वह प्रियांक से मिलने के बहाने तलाशने लगा. कभी उन के घर आ कर तो कभी उन के साथ क्लब में बैठ कर.

प्रियांक कम बोलने वाला सौम्य स्वभाव का व्यक्ति था. उस के मुकाबले सीमा खूब बोलनेचालने वाली थी. अकसर सौरभ उस के साथ बातें करता और प्रियांक उन की बातें सुनता रहता. सौरभ के मन में क्या चल रहा है सीमा इस से बिलकुल अनजान थी.

एक दिन दोपहर के समय सौरभ उन के घर पहुंच गया. सीमा तभी किट्टी पार्टी से घर लौटी थी. इस समय सौरभ को वहां देख कर सीमा चौंक गई, ‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘मैं पास के मौल में गया था. वहां काउंटर पर मेरा क्रैडिट कार्ड काम नहीं कर रहा था. मैं ने सोचा आप से मदद ले लूं. क्या मुझे 5 हजार रुपए उधार मिल सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं मैं अभी लाती हूं.’’

‘‘कोई जल्दबाजी नहीं है. आप के रुपए देने से पहले मैं आप के साथ 1 कप चाय तो पी ही सकता हूं,’’ सौरभ बोला तो सीमा झेंप गई.

‘‘सौरी मैं तो आप से पूछना भूल गई. मैं अभी ले कर आती हूं,’’ इतना कह कर सीमा

2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों साथ बैठकर बातें करने लगे.

‘‘आप को देख कर कोई नहीं कह सकता आप 2 बच्चों की मां हैं.’’

‘‘हरकोई मुझे देख कर ऐसा ही कहता है.’’

‘‘आप इतनी स्मार्ट हैं. आप को किसी अच्छी कंपनी में जौब करनी चाहिए.’’

‘‘जौब मेरे बस का नहीं है. मैं तो जीवन को खुल कर जीने में विश्वास रखती हूं. प्रियांक हैं न कमाने के लिए. इस से ज्यादा क्या चाहिए? हमारी सारी जरूरतें उस से पूरी हो जाती हैं,’’ सीमा हंस कर बोली.

‘‘आप का जिंदगी जीने का नजरिया औरों से एकदम हट कर है.’’

‘‘घिसीपिटी जिंदगी जीने से क्या फायदा? मुझे तो लोगों से मिलनाजुलना, बातें करना, सैरसपाटा करना बहुत अच्छा लगता है,’’ कह कर सीमा रुपए ले कर आ गई और बोली, ‘‘ये लीजिए. आप को औफिस को भी देर हो रही होगी.’’

‘‘आप ने ठीक कहा. मुझे औफिस जल्दी पहुंचना था. मैं चलता हूं,’’ सौरभ बोला. उस का मन अभी बातें कर के भरा नहीं था. वह वहां से जाना नहीं चाहता था लेकिन सीमा की बात को भी काट कर इस समय अपनी कद्र कम नहीं कर सकता था. वहां से उठ कर वह बाहर आ गया और सीधे औफिस की ओर बढ़ गया. उस ने सीमा के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए उस से झूठ बोला था कि वह मौल में खरीदारी करने आया था.

अगले दिन शाम को फिर सौरभ की मुलाकात प्रियांक और सीमा से क्लब में हो गई. हमेशा की तरह प्रियांक ने उसे अपने साथ डिनर करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘‘मेरी भी एक शर्त है कि आज के डिनर की पेमैंट मैं करूंगा.’’

‘‘हम दोनों ने भी तो डिनर करना है.’’

‘‘तो क्या हुआ आज का डिनर मेरी ओर

से रहेगा.’’

‘‘जैसे तुम्हारी मरजी,’’ प्रियांक बोला.

सीमा ने डिनर पहले ही और्डर कर दिया था. थोड़ी देर तक वे तीनों साथ बैठ कर डिनर के साथ बातें भी करते रहे. सौरभ महसूस कर रहा था कि सीमा को सभी विषयों की बड़ी अच्छी जानकारी थीं. वह हर विषय पर अपनी बेबाक राय दे रही थी. सौरभ को यह सब अच्छा लग रहा था. घर पहुंच कर भी उस के ऊपर सीमा का ही जादू छाया रहा. बहुत कोशिश कर के भी वह उस से अपने विचारों को हटा न सका. उस का मन हमेशा उस से बातें करने का करता. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अपनी भावनाएं सीमा के सामने कैसे व्यक्त करे? उसे इस के लिए एक उचित अवसर की तलाश थी.

एक दिन उस ने बातों ही बातों में सीमा से उस का हफ्ते भर का कार्यक्रम पूछ लिया. सौरभ को पता चल गया था कि वह हर बुधवार को खरीदारी के लिए स्टार मौल जाती है. वह उस दिन सुबह से सीमा की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था.

सीमा दोपहर में मौल पहुंची तो सौरभ

उस के पीछेपीछे वहां आ गया. उसे देखते ही अनजान बनते हुए बोला, ‘‘हाय सीमा इस समय तुम यहां?’’

‘‘यह बात तो मुझे पूछनी थी. इस समय आप औफिस के बजाय यहां क्या कर रहे हैं?’’

‘‘आप से मिलना था इसीलिए कुदरत ने मुझे इस समय यहां भेज दिया.’’

‘‘आप बातें बहुत अच्छी बनाते हैं.’’

‘‘मैं इंसान भी बहुत अच्छा हूं. एक बार मौका तो दीजिए.’’

उस की बात सुन कर सीमा झेंप गई.

सौरभ ने घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘दोपहर का समय है क्यों न हम साथ लंच करें?’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोई बहाना नहीं चलेगा. आप खरीदारी कर लीजिए. मैं भी अपना काम निबटा लेता हूं. उस के बाद इत्मीनान से सामने होटल में साथ बैठ कर लंच करेंगे,’’ सौरभ ने बहुत आग्रह किया तो सीमा इनकार न कर सकी.

सौरभ को यहां कोई खास काम तो था नहीं. वह लगातार सीमा को ही देख रहा था. कुछ देर में सीमा खरीदारी कर के आ गई. सौरभ ने उस के हाथ से पैकेट ले लिए और वे दोनों होटल में आ गए.

सौरभ बहुत खुश था. उसे अपने दिल की बात कहने का आखिरकार मौका मिल गया. वह बोला, ‘‘प्लीज आप अपनी पसंद का खाना और्डर कर लीजिए.’’

सीमा ने हलका खाना और्डर किया. उस के सर्व होने में अभी थोड़ा समय था. सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘आप बहुत स्मार्ट और बहुत खुले विचारों की हैं. मुझे ऐसी लेडीज बहुत अच्छी लगती हैं.’’

‘‘यह बात आप कई बार कह चुके हैं.’’

‘‘इस से आप को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं आप का कितना बड़ा फैन हूं.’’

‘‘थैंक्यू. सौरभ आप ने कभी अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया?’’ सीमा बात बदल कर बोली.

‘‘आप ने कभी पूछा ही नहीं. खैर, बता देता हूं. परिवार के नाम पर बस मम्मी और एक बहन है. उस की शादी हो गई है और वह अमेरिका में रहती है. मम्मी लखनऊ में हैं. कभीकभी उन से मिलने चला जाता हूं.’’

बातें चल ही रही थीं कि टेबल पर खाना आ गया और वे बातें करते हुए लंच करने लगे.

सौरभ अपने दिल की बात कहने के लिए उचित मौके की तलाश में था. लंच खत्म हुआ और सीमा ने आइसक्रीम और्डर कर दी. उस के सर्व होने से पहले सौरभ उस के हाथ पर बड़े प्यार से हाथ रख कर बोला, ‘‘आप मु?ो बहुत अच्छी लगती हैं. क्या आप भी मुझे उतना ही पसंद करती हैं जितना मैं आप को चाहता हूं?’’

मौके की नजाकत को देखते हुए सीमा ने धीमे से अपना हाथ खींच कर अलग किया और बोली, ‘‘यह कैसी बात पूछ रहे हैं? आप प्रियांक के दोस्त और सहकर्मी हैं इसी वजह से मैं आप की इज्जत करती हूं, आप से खुल कर बात करती हूं. इस का मतलब आप ने कुछ और समझ लिया.’’

‘‘मैं तो आप को पहले दिन से जब से आप को देखा तभी से पसंद करने लगा हूं. मैं दिल के हाथों मजबूर हो कर आज आप से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा हूं. मुझे लगता है आप भी मुझे पसंद करती हैं.’’

‘‘अपनी भावनाओं को काबू में रखिए अन्यथा आगे चल कर यह आप के लिए भी और मेरे परिवार के लिए भी मुसीबत खड़ी कर सकती हैं.’’

‘‘मैं आप से कुछ नहीं चाहता बस कुछ समय आप के साथ बिताना चाहता हूं,’’ सौरभ बोला.

तभी आइसक्रीम आ गई. सीमा बड़ी तलखी से बोली, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘प्लीज पहले इसे खत्म कर लो.’’

सीमा ने उस के आग्रह पर धीरेधीरे आइसक्रीम खानी शुरू की लेकिन अब उस की इस में कोई रुचि नहीं रह गई थी. किसी तरह से सौरभ से विदा ले कर वह घर चली आई. सौरभ की बातों से वह आज बहुत आहत हो गई थी. वह समझ गई  कि सौरभ ने उस के मौडर्न होने का गलत अर्थ समझ लिया .वह उसे एक रंगीन तितली समझने की भूल कर रहा जो सुंदर पंखों के साथ उड़ कर इधरउधर फूलों पर मंडराती रहती है.

सीमा इस समस्या का तोड़ ढूंढ़ रही थी जो अचानक उस के सामने आ खड़ी हुई थी और कभी भी उस के जीवन में तूफान खड़ा कर सकती है. वह जानती थी  इस बारे में प्रियांक से कुछ कहना बेकार है. अगर वह उसे कुछ बताएगी तो वह उलटा उसे ही दोष देने लगेगा, ‘‘जरूर तुम ने उसे बढ़ावा दिया होगा. तभी उस की इतना सब कहने की हिम्मत हुई है.’’

1-2 बार पहले भी जब किसी ने उस से कोई बेहूदा मजाक किया तो प्रियांक की यही प्रतिक्रिया रही थी. उसे सम?ा नहीं आ रहा था वह सौरभ की इन हरकतों को कैसे रोके? बहुत सोचसम?ा कर उस ने अपनी छोटी बहन रीमा को फोन मिलाया. वह भी सीमा की तरह पढ़ीलिखी और मौडर्न लड़की थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी पसंद का लड़का नहीं मिल पाया था. मम्मीपापा उस के लिए परेशान जरूर थे लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह शादी उसी से करेगी जो उसे पसंद होगा.

दोपहर में सीमा का फोन देख कर उसने पूछा, ‘‘दी, आज जल्दी फोन करने की फुरसत कैसे लग गई? कोई पार्टी नहीं थी

इस समय?’’

‘‘नहीं आज कोई पार्टी नहीं थी. मैं अभी मौल से आ रही हूं. तू बता तेरे कैसे हाल हैं कोई मिस्टर परफेक्ट मिला या नहीं?’’

‘‘अभी तक तो नहीं मिला.’’

‘‘मेरी नजर में ऐसा एक इंसान है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘प्रियांक के साथ कंपनी में काम करता है. तुम चाहो तो उसे परख सकती हो.’’

‘‘तुम्हें ठीक लगा तो हो सकता है मु?ो भी पसंद आ जाए.’’ रीमा हंस कर बोली.

‘‘ठीक है तुम 1-2 दिन में यहां आ जाओ. पहले अपने दिल में उस के लिए जगह तो बनाओ. बाकी बातें तो बाद में होती रहेंगी.’’

‘‘सही कहा दी. परखने में क्या जाता है. कुछ ही दिन में उस का मिजाज सम?ा में आ जाएगा कि वह मेरे लायक है कि नहीं.’’

सीमा अपनी बहन रीमा से काफी देर तक बातें करती रही. उस से बात कर के उस का मन बड़ा हलका हो गया था और काफी हद तक उस की समस्या भी कम हो गई थी. दूसरे दिन रीमा वहां पहुंच गई. प्रियांक ने उसे देखा तो चौंक गया, ‘‘रीमा, तुम अचानक यहां?’’

‘‘दी की याद आ रही थी. बस उस से मिलने चली आई. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’ रीमा बोली.

‘‘कैसी बात करती हो? तुम्हारे आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सौरभ सीमा की प्रतिक्रिया की परवाह किए बगैर अपने मन की बात कह कर आज अपने को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उसे सीमा के उत्तर का इंतजार था. 2 दिन हो गए थे. सीमा ने उस से फिर इस बारे में कोई बात नहीं की.

सौरभ से न रहा गया तो शाम के समय वह सीमा के घर पहुंच गया. ड्राइंगरूम में रीमा बैठी थी. उसी ने दरवाजा खोला. सामने सौरभ को देख कर वह सम?ा गई कि दी ने इसी के बारे में उस से बात की थी.

‘‘नमस्ते,’’ रीमा बोली तो सौरभ ने भी औपचारिकतावश हाथ उठा दिए. उसे इस घर में देख कर वह चौंक गया.

रीमा ने अजनबी नजरों से उस की ओर देखा. बोली, ‘‘अगर मेरा अनुमान सही है तो आप सौरभजी हैं.’’

‘‘आप को कैसा पता चला?’’

‘‘दी आप की बहुत तारीफ करती हैं. उन के बताए अनुसार मुझे लगा आप सौरभजी ही होंगे.’’

उस के मुंह से सीमा की कही बात सुन कर सौरभ को बड़ा अच्छा लगा.

‘‘बैठिए न आप खड़े क्यों हैं?’’

रीमा के आग्रह पर सौरभ वहीं सोफे पर

बैठ गया.

‘‘मैं प्रियांक से  मिलने आया था. इसी बहाने आप से भी मुलाकात हो गई.’’

‘‘मेरा नाम रीमा है. मैं सीमा दी की छोटी बहन हूं.’’

‘‘मेरा परिचय तो आप जान ही  गई हैं.’’

‘‘दी ने जितना बताया था आप तो उस से भी कहीं अधिक स्मार्ट हैं.’’

लगातार रीमा के मुंह से सीमा की उस के बारे में राय जान कर सौरभ का मनोबल ऊंचा हो गया. उस लगा कि सीमा भी उसे पसंद करती है लेकिन लोक लाज के कारण कुछ कह नहीं पा रही है.

‘‘आप की दी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘वे काम में व्यस्त हैं. उन्हें शायद आप के आने का पता नहीं चला. अभी बुलाती हूं,’’ कह कर रीमा दी को बुलाने चली गई.

कुछ देर में सीमा आ गई. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा तो सौरभ का दिल अंदर ही अंदर खुशी से उछल गया. उसे पक्का विश्वास हो गया था कि सीमा को भी वह पसंद है. उसे उस की बात का जवाब मिल गया था. उस ने पूछा, ‘‘प्रियांक अभी तक नहीं आया?’’

‘‘आते होंगे. आप दोनों बात कीजिए मैं चाय का इंतजाम करवा कर आती हूं,’’ कह कर सीमा वहां से हट गई.

‘‘कुछ समय पहले कभी दी से आप का जिक्र नहीं सुना. शायद आप को यहां आए ज्यादा समय नहीं हुआ है?’’

‘‘ मैं अभी कुछ दिन पहले ट्रांसफर हो कर यहां आया हूं.’’

‘‘आप की फैमिली?’’

‘‘मैं सिंगल हूं. मेरी अभी शादी नहीं हुई.’’

‘‘लगता है आप को भी अभी अपना मनपसंद साथी नहीं मिला.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं. कुछ को ही अच्छे साथी मिलते हैं.’’

‘‘आप अच्छेखासे हैंडसम और स्मार्ट हैं. आप को लड़कियों की क्या कमी है?’’

बातों का सिलसिला चल पड़ा और वे आपस में बातें करने लगे. रीमा सौरभ को

बहुत ध्यान से देख रही थी. सौरभ की आंखें लगातार सीमा को खोज रही थीं लेकिन वह

बहुत देर तक बाहर उन के बीच नहीं आई. रीमा भी शक्लसूरत व कदकाठी में अपनी बहन की तरह थी. बस उन के स्वभाव में थोड़ा अंतर लग रहा था.

कुछ देर बाद प्रियांक भी आ गया. सौरभ को देख कर चौंक गया और फिर उस के साथ बातों में शामिल हो गया. प्रियांक बोली, ‘‘आप हमारी सालीजी से मिल लिए होंगे. अभी तक इन को अपनी पसंद का कोई साथी नहीं मिला है.’’

‘‘मैं ने सोचा ये भी अपनी बहन की तरह होंगी जिन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे शादीशुदा हैं.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है. अभी खोज जारी है.’’

प्रियंका के आने पर सीमा थोड़ी देर के लिए सौरभ के सामने आई और फिर प्रियांक के पीछे कमरे में चली आई. वह रीमा और सौरभ को बात करने का अधिक से अधिक मौका देना चाहती थी. बातोंबातों में रीमा ने सौरभ से उस का फोन नंबर भी ले लिया था.सौरभ को लगा सीमा आज उस के सामने आने में ?ि?ाक रही है और उस के सामने अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पा रही है. कुछ देर वहां पर रहने के बाद सौरभ अपने घर लौट आया.

प्रियांक ने आग्रह किया था कि खाना खा कर जाए लेकिन आज सीमा की स्थिति को देखते हुए उस ने वहां पर रुकना ठीक नहीं सम?ा और वापस चला आया.

रीमा ने अगले दिन दोपहर में सौरभ को फोन किया, ‘‘आज आप शाम को क्या कर रहे हैं?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘शाम को घर आ जाइएगा. हम सब को अच्छा लगेगा.’’

‘‘क्या इस तरह किसी के घर रोज आना ठीक रहेगा?’’

‘‘दी चाहती थीं कि मैं आप को शाम को घर बुला लूं.’’

‘‘कहते हैं रोजरोज किसी के घर बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए. जब आप लोग चाहते हैं तो मैं जरूर आऊंगा,’’ सौरभ बोला. उसे लगा जैसे उस के अरमानों ने मूर्त रूप ले लिया है और उसे मन की मुराद मिल गई. वह औफिस के बाद सीधे सीमा के घर चला आया.

रीमा उस का इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही बोली, ‘‘थैंक्यू आप ने हमारी बात मान ली.’’

‘‘आप हमें बुलाएं और हम न आएं ऐसा कभी हो सकता है?’’

आज भी उस की आशा के विपरीत

उसे सीमा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. थोड़ी देर बाद वह 3 कप चाय और नाश्ता ले कर

आ गई.

‘‘आप को पता चल गया कि मैं आ रहा हूं?’’

‘‘रीमा ने बताया था इसलिए मैं ने चाय और स्नैक्स की तैयारी पहले ही कर ली थी,’’ सीमा मुसकरा कर बोली.

सौरभ सीमा के बदले हुए रूप से अंचभित था. कल तक उस के सामने मौडर्न दिखने और बेझिझक बोलने वाली सीमा उस की रोमांटिक बातें सुनने के बाद से एकदम छुईमुई सी हो गई थी. वह अब उस की हर बात में नजर का लेती थी. उस का इस तरह शरमाना सौरभ को बहुत अच्छा लग रहा था. वह समझ गया कि वह भी उसे उतना ही पसंद करती है लेकिन खुल कर स्वीकार करने में झिझक उन के बीच आ रही है.

अब सौरभ के सामने एक ही समस्या थी वह कि वह सीमा की झिझक को कैसे दूर करे? उसे तो वही खूब बोलने वाली मौडर्न सीमा पसंद थी. मुश्किल यह थी कि रीमा की उपस्थिति में उसे सीमा से मिल कर उस की झिझक दूर करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. वह चाहता था कि वह सीमा से ढेर सारी बातें करे पर वह उस के सामने ही बहुत कम आ रही थी.

सौरभ रीमा के साथ बहुत देर तक बातें करता रहा. तभी प्रियांक आ गया. उन दोनों को बातें करते देख कर वह बड़ा आश्वस्त लगा.

रात हो गई थी.सौरभ जैसे ही जाने लगे रीमा बोली, ‘‘डिनर तैयार हो रहा है. आज खाना खा कर ही जाइएगा.’’

‘‘आप बनाएंगी तो जरूर खाऊंगा.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं किसी दिन बना दूंगी. वैसे भी दी ने पहले से ही खाने की तैयारी कर ली होगी.’’

‘‘अगर आप दोनों बहनों का इरादा मुझे खाना खिलाने का है तो मैं मना कैसे कर सकता हूं?’’

रीमा वहां से उठ कर किचन में आ गई. प्रियांक सौरभ से बातें करने लगा. सीमा की मदद के लिए रीमा उस का हाथ बंटाने लगी. अब सौरभ को जाने की कोई जल्दी न थी. यहां पर सीमा की उपस्थिति का एहसास ही उस के लिए बहुत था. वैसे उसे अब रीमा की बातें भी अच्छी लगने लगी थीं. एकजैसे संस्कारों में पलीबढ़ी दोनों बहनों में काफी समानताएं थीं.

रीमा ने डाइनिंगटेबल पर खाना बड़े करीने से लगा दिया. सब खाना खाने लगे. सौरभ बीचबीच में चोर नजरों से सीमा को देख रहा था. वह  सिर झुकाए चुपचाप

खाना खा रही थी. गलती से कभी नजरें

टकरा जातीं तो सौरभ से निगाहें मिलते ही

वह झट से अपनी नजरें नीची कर लेती.

सौरभ को उस का यह अंदाज अंदर तक रोमांचित कर जाता.

रीमा को यहां आए हफ्ताभर हो गया

था. वह अब सौरभ से खुल कर बात करने लगी थी.

‘‘आज सुबहसुबह रीमा ने सौरभ को फोन किया, ‘‘आज शाम आप फ्री हो?’’

‘‘कोई खास काम था?’’

‘‘हम सब आज पिक्चर देखने का प्रोगाम बन रहे हैं. आप भी चलिए हमारे साथ.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ मैं जरूर आऊंगा.’’

‘‘तो ठीक है आप सीधे सिटी मौल में ठीक 5 बजे पहुंच जाइए. हम आप को वहीं मिल जाएंगे.’’

सौरभ की मानो मन की मुराद पूरी हो गई थी. वह समय से पहले ही मौल पहुंच

गया. तभी उस ने देखा कि रीमा अकेली ही

आ रही है.

‘‘ प्रियांक और सीमा कहां रह गए?’’

‘‘अचानक जीजू की तबीयत कुछ खराब हो गई. इसी वजह से वे दोनों नहीं आ रहे और मैं अकेले चली आई. मु?ो लगा प्रोग्राम कैंसिल करना ठीक नहीं.आप वहां पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘इस में क्या था? बता देतीं तो प्रोग्राम कैंसिल कर किसी दूसरे दिन पिक्चर देख लेते.’’

‘‘हम दोनों तो हैं. आज हम ही पिक्चर का मजा ले लेते हैं,’’ रीमा बोली.

सौरभ का मन थोड़ा उदास सा हो गया लेकिन वह रीमा को यह सब नहीं जताना चाहता था. वह ऊपर से खुशी दिखाते हुए बोला, ‘‘इस से अच्छा मौका हमें और कहां मिलेगा साथ वक्त बिताने का.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ कह कर वे सिनेमाहौल में आ गए. वहां सौरभ को सीमा की कमी खल रही थी लेकिन वह यह भी जानता था कि सीमा प्रियांक की पत्नी है. उस का फर्ज बनता है वह अपने पति की परेशानी में उस के साथ रहे. यही सोच कर उस से सब्र कर लिया और रीमा के साथ आराम से पिक्चर देखने लगा.

समय कैसे बीत गय पता ही नहीं चला. पिक्चर खत्म हो गई थी. सौरभ रीमा को

छोड़ने सीमा के घर आ गया. सामने प्रियांक दिखाई दे गया.

‘‘क्या बात है आप दोनों पिक्चर देखने

नहीं आए?’’

‘‘अचानक मेरे सिर मे बहुत दर्द हो गया था. अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. इसीलिए नहीं आ सके. फिर कभी चलेंगे. तुम बताओ कैसी रही मूवी?’’

‘‘बहुत अच्छी. आप लोग साथ में होते तो और अच्छा लगता,’’ सौरभ बोला. उस ने चारों और अपनी नजरें दौड़ाईं पर उसे सीमा कहीं दिखाई नहीं दी. वह रीमा को छोड़ कर वहीं से वापस हो गया.

अब तो यह रोज की बात हो गई थी. रीमा सौरभ के साथ देर तक फोन पर बातें करती रहती और जबतब उसे घर बुला लेती. वे कभीकभी घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते.

इतने दिनों में रीमा की सौरभ से अच्छी दोस्ती हो गई थी और सौरभ के सिर से भी सीमा का भूत उतरने लगा था.

एक दिन सीमा ने रीमा को कुरेदा, ‘‘तुम्हें सौरभ कैसा लगा रीमा?’’

‘‘इंसान तो अच्छा है.’’

‘‘तुम उस के बारे में सीरियस हो तो बात आगे बढ़ाई जाए?’’

‘‘दी अभी कुछ कह नहीं सकती. मुझे कुछ और समय चाहिए. मर्दों का कोई भरोसा नहीं होता. ऊपर से कुछ दिखते हैं और अंदर से कुछ और होते हैं.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रही है. तुम उसे अच्छे से जांचपरख लेना तब कोई कदम आगे बढ़ाना. जहां तुम ने इतने साल इंतजार कर लिया है वहां कुछ महीने और सही,’’ सीमा हंस कर बोली.

रीमा को दी की सलाह अच्छी लगी.

1 महीना बीत गया था. सौरभ और रीमा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब सीमा उस के दिमाग और दिल दोनों से उतरती चली जा रही थी और उस की जगह रीमा लेने लगी थी.

सीमा ने भी इस बीच सौरभ से कोई बात नहीं की और न ही वह उस के आसपास ज्यादा देर तक नजर आती. सौरभ को भी रीमा अच्छी लगने लगी. उस की बातें में बड़ी परिपक्वता थी और अदाओं में शोखी.

एक दिन उस ने रीमा के सामने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘रीमा तुम मुझे अच्छी लगती हो मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’

‘‘इंसान तो तुम भी भले हो लेकिन मर्दों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं करना चाहिए?’’

रीमा बोली तो सौरभ थोड़ा घबरा गया. उसे लगा कहीं सीमा ने तो उस के बारे में कुछ नहीं कह दिया.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझसे कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इतने लंबे समय तक तुम ने भी शादी नहीं की हैं. तुम भी आज तक अपनी होने वाली जीवनसाथी में कुछ खास बात ढूंढ़ रहे होंगे.’’

‘‘पता नहीं क्यों आज से पहले कभी कोई जंची ही नहीं. तुम्हारे साथ वक्त बिताने का मौका मिला तो लगा तुम ही वह औरत हो जिस के साथ मैं अपना जीवन खुशी से बिता सकता हूं. इसीलिए मैंने अपने दिल की बात कह दी.’’

सौरभ की बात सुन कर रीमा चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘इस के बारे में मुझे अपने दी और जीजू से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है. तुम चाहो जितना समय ले सकती हो,’’ सौरभ बोला.

थोड़ी देर बाद रीमा घर लौट आई. उस के चेहरे से खुशी साफ ?ालक रही थी. उसे देखते ही सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है आज बहुत खुश दिख रही हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आज मुझे सौरभ ने प्रपोज किया.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने कहा मुझे अभी थोड़ा समय दो. मैं मम्मीपापा, दीदीजीजू से बात कर के बताऊंगी.’’

उस की बात सुन कर सीमा को बहुत तसल्ली हुई. आज सौरभ ने एक नहीं 2 घर बरबाद होने से बचा लिए थे. उसे लगा भावनाओं में बह कर कभी इंसान से भूल हो जाती है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस की सजा वह जीवन भर भुगतता रहे.

रीमा जैसे ही अपने कमरे में आराम करने के लिए गयी सीमा ने पहली बार सौरभ को फोन मिलाया.

सीमा का फोन देख कर सौरभ चौंक गया. उस ने किसी तरह अपने को संयत

किया और बोला, ‘‘हैलो सीमा कैसी हो?’’

‘‘मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज रीमा को प्रपोज कर के मेरे दिल का बो?ा हलका कर दिया. सौरभ कभीकभी हम से अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो उस का समय रहते सुधार कर लेना चाहिए.’’

‘‘सच में मेरे दिल में भी डर था कि मैं ने रीमा को प्रपोज कर तो दिया लेकिन इस पर आप की प्रतिक्रिया क्या होगी?

‘‘मैं एक आधुनिक महिला हूं. मेरे विचार संकीर्ण नहीं हैं. मेरे व्यवहार के खुलेपन का आप ने गलत मतलब निकाल लिया था. आज तुम ने अपनी गलती सुधार कर 2 परिवारों की इज्जत रख ली.’’

‘‘आप ने भी मेरे दिल से बड़ा बोझ उतार दिया. यह सब आप की समझदारी के कारण ही संभव हो सका है. मैं तो पता नहीं भावनाओं में बह कर आप से क्या कुछ कह गया? मैं ने आप की चुप्पी के भी गलत माने निकाल लिए थे.’’

‘‘सौरभ इस बात का जिक्र कभी भी रीमा से न करना और इस मजाक को यहीं खत्म कर देना.’’

‘‘मजाक,’’ सौरभ ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां मजाक, अब आप मेरे बहनोई बनने वाले हो. इतने से मजाक का हक तो आप का भी बनता है,’’ सीमा बोली तो सौरभ जोर से हंस पड़ा. उस की हंसी में उन के बीच के रिश्ते पर पड़ी धूल भी छंट गई.

पार्किंग फीस बढ़ाओ, घरों को मुसीबत में डालो

दिल्ली जैसे शहरों के प्रदूषण से बचने के लिए राज्य सरकारें और म्यूनिसिपल बौडीज सिरफिरे उपाय ढूंढ़ती हैं. उन में डीजल सैटों को बंद करना, गाडि़यों को औडईवन चलाना, पार्किंग की जगह पर चार्ज हैवी करना, शहरों में वाहनों के घुसने पर टैक्स लेना शामिल हैं. ये सब उपाय वे हैं जो सरकारी बाबुओं द्वारा अपने सुरक्षित दफ्तरों की सुरक्षित सीटों पर बैठ कर सोचे जा सकते हैं.

शहरों में प्रदूषण बहुत सी वजह से होता है और कम से कम बदबू व टै्रफिक जाम सिर्फ और सिर्फ सरकारी बाबुओं के कारण है. हर शहर में सरकारी बाबू शहरों की गंदगी साफ करने पर लाखोंकरोड़ों के बजट पास करवाते हैं पर आधा उन की जेबों में जाता है. हर शहर, कसबा असल में सड़ता नजर आता है जिस की वजह से हवा का प्रदूषण बदबूदार भी हो जाता है.

डीजल जेनरेटरों से इतना धुआं नहीं निकलता जितना उन सरकारी वाहनों से निकलता है जो बेबात में घूमते हैं. हर जगह मुख्यमंत्री, मंत्री जाते हैं तो गाडि़यों का लंबा काफिला चलता है, सड़कें बंद कर दी जाती हैं. मुख्यमंत्री और मंत्री के काफिले प्रदूषण फैलाते हैं और सड़कें बंद करने से टै्रफिक जाम होता है जो प्रदूषण फैलाता है.

शहरों में पार्किंग फीस बढ़ाने से गाडि़यां कम हो जाएंगी यह भ्रम है. लोग और दूर जा कर वाहन खड़ा करेंगे. पैट्रोल, डीजल ज्यादा लगेगा. लोग अपनी गाडि़यां उन जगहों पर पार्क करना शुरू कर देंगे जहां फीस नहीं लगती और फिर घरों, दुकानदारों, दफ्तरों और पुलिस से रोज हाथापाई होने लगेगी.

शहरों के धुएं का प्रदूषण कम करना है तो पहली जरूरत है कि प्रौपर ट्रैफिक मैनेजमैंट हो पर उसे करवाने के लिए कोई तैयार नहीं है क्योंकि इस में काम सरकारी अफसरों और इंस्पैक्टरों को करना होगा जो ऊपरी कमाई में इंटरैस्टेड होते हैं, शहरों को चलाने में नहीं. अगर सड़कों पर दुकानें, खोमचे, फल वाले, खाना बेचने वाले न हों तो आधा ट्रैफिक अपनेआप ठीक हो जाएगा. ट्रैफिक जाम होने से जो बेकार का धुआं फैलता है वह जानलेवा है.

सरकारें, निकाय, पुलिस कहीं भी सफिशिऐंट नंबर में टैक्सियों, औटो, ई रिकशाओं को चलने नहीं देना चाहती क्योंकि कमी होगी तो ही मनमाने पैसे वसूले जा सकते हैं. वैसे भी इन सब के परमिट लेने में भारी घूस ली दी जाती है और यह भार जनता पर पड़ता है. पार्किंग फीस बढ़ाने से पहले अलटरनेटिव फैसिलिटी प्रोवाइड करने की सरकार सोच ही नहीं सकती.

मुंबई में पहले शेयर ए कैब का खास चलन था जो अब लगभग खत्म हो गया है. 2 सीटर, 3 सीटर औटो ने इन्हें खो दिया है जबकि शेयर कैब सब से सुलभ तरीका है गाडि़यों के रिप्लेस करने का. कौल ए शेयर कैब जैसी सुविधाएं बनाना भी मुश्किल नहीं है पर इस के लिए म्यूनिसिपल निकायों के अफसर माथापच्ची क्यों करें? वे पैसा उगाहना चाहते हैं, सेवा करना नहीं.

पार्किंग फीस बढ़ाने का मतलब है घरों के पैसों को चूसना. गाडि़यां कम करने का मतलब है औरतोंलड़कियों को समाज में फैले भेडि़यों के आगे परोसना. पब्लिक ट्रांसपोर्ट कहने में अच्छी हो पर औरतेंलड़कियां यहीं सब से ज्यादा परेशान की जाती हैं. पर सरकारी अमले को औरतों की, लड़कियों की सुविधाओं से क्या लेनादेना. वह तो ऐसी नीतियां बनाने में माहिर है जो जनता को परेशान करें खासतौर पर घरों को, लड़कियों को, औरतों को. पार्किंग फीस बढ़ाने का मतलब है शौपिंग या रेस्तरां में जाने पर एक अतिरिक्त बोझ डालना, बिना कोई ऐक्स्ट्रा फैसिलिटी दिए.

बदलते मौसम में मेरे बाल रफ और ड्राई हो जाते हैं, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

बचपन से ही मेरे बाल (Hair Care) बहुत ज्यादा कर्ली हैं. बदलते मौसम के कारण वे बहुत ज्यादा रफ और ड्राई हो गए हैं. बालों की केयर करने के लिए मुझे सही तरीका बताएं?

जवाब

कर्ली बाल मुड़े हुए रहते हैं जिस कारण स्ट्रेट बालों की तुलना में छोटे दिखाई देते हैं. आप बालों की रफनैस को दूर करने के लिए क्रीमी शैंपू व क्रीमी कंडीशनर का इस्तेमाल कीजिए. यदि फिर भी रफनैस न जाए तो लिवइन कंडीशनर की कुछ बूंदें भी बालों में लगा सकती हैं. आप एक केला लें और उस में 1/2 कप दूध, 1 चम्मच शहद डाल सब को मिक्सी में मिला कर पेस्ट बना लें और अपने बालों में लगाएं. आप के बालों के लिए बहुत अच्छा मौइस्चराइजर का काम करेगा. ऐसा हफ्ते में कम से कम 2 बार करने से बाल मुलायम होंगे.

सवाल

मेरी अंडरआर्म्स से बदबू आती है और यह बदबू कई बार सब के बीच में शर्मिंदा कर देती है? क्या इस बदबू का कारण जरूरत से ज्यादा पसीना है? क्या आप इस बदबू से छुटकारा पाने के लिए कोई नुसखे बता सकती हैं ?

जवाब

दरअसल अंडरआर्म्स बदबूदार भले ही एक आम समस्या हो लेकिन यह आप के आत्मविश्वास को कम कर देती है. भले ही डियोड्रैंट या रोलऔन गरमियों में बदबूदार अंडरआर्म्स के लिए एक त्वरित समाधान क्यों न हो लेकिन इस का असर खत्म होते ही यह समस्या फिर से होने लगती है. जब शरीर से पसीना निकलता है तो हमारी त्वचा की सतह पर रहने वाले बैक्टीरिया प्रोटीन को तोड़ देते हैं और कुछ खास ऐसिड यौगिक निकलते हैं जिस से शरीर के कुछ हिस्सों से तीखी गंध आने लगती है. यह एक ऐसी समस्या है जो आसानी से कुछ घरेलू नुसखों द्वारा दूर की जा सकती है. आप भले ही इस समस्या से कई सालों से परेशान हों लेकिन इन नुसखों से आप कुछ ही दिनों में अंडरआर्म्स से बदबू की समस्या को दूर कर सकती हैं. अंडरआर्म्स की बदबू से छुटकारा पाने के लिए बेकिंग सोडा प्रभावी रूप से काम करता है. इस के लिए 2 बड़े चम्मच बेकिंग सोडा लें और उस में 1 चम्मच नीबू का रस मिलाएं. दोनों को मिला कर पेस्ट तैयार करें. इस पेस्ट को अंडरआर्म्स पर 10 मिनट तक सर्कुलर मोशन में घुमाते हुए मसाज करें. इसे अंडरआर्म्स में थोड़ी देर के लिए लगाए रखें और हलका सूखने पर पानी से धो लें.

1 कप ऐप्पल साइडर विनेगर लें और उस में 1/2 कप पानी मिलाएं. इसे एक स्प्रे बोतल में भर कर रोज रात को सोने से पहले अपनी अंडरआर्म्स पर लगाएं. सुबह इसे कुनकुने पानी से धो लें. इस प्रक्रिया को 15 दिन तक नियमित रूप से दोहराएं. ऐसा करने से अंडरआर्म्स की बदबू पूरी तरह से दूर हो जाएगी.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Married Life को बनाना चाहते हैं खुशहाल, तो फौलो करें ये टिप्स

वैवाहिक जीवन (Married Life) को खुशहाल बनाने के लिए जरूरी है कि आप का रिलेशन विश्वास, अंडरस्टैंडिंग, केयरिंग की नींव पर टिका हो। फिर चाहे आप ने परिवार की सहमति से शादी की हो या अपनी पसंद के पार्टनर को अपना जीवनसाथी चुना हो.

हालांकि जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह शादीशुदा जीवन के भी दो पहलू होते हैं। कभी प्यार होता है तो कभी टकराव। जो रिश्ते को मजबूती भी देता है लेकिन लंबा चलने वाला टकराव रिश्ते में दरार डाल देता है तो भूल कर भी कलह को ज्यादा लंबा न चलने दें जिस से आप के रिश्ते का स्पार्क कम नहीं होगा.

इस के लिए जरूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखें :

अनदेखा करना

साथ होते हुए भी एकदूसरे को नजरंदाज करना, कौल मैसेज का रिप्लाई करने की जरूरत न समझना, किसी भी काम में एकदूसरे की सहमति लेने की कोशिश तक न करना इशारा करते हैं कि दोनों के बीच में दूरी गहरा गई है. इसलिए समय पर ही बात को समझें और दूरियों को नजदीकियों में बदलने की कोशिश करें.

भावनात्मक जुड़ाव न होना

किसी भी परेशानी या खुशी को एकदूसरे से साझा न करना, पता होने पर भी एकदूसरे के प्रति कोई रिएक्शन न दिखाना, बिना लड़ाईझगड़े के ऐसी बेरुखी इशारा करता है कि रिश्ते में दूरियां आ चुकी हैं.

फिजिकल इंटिमेसी से दूरी बनाना

एक घर में, एक कमरे में रहते हुए भी दोनों के बीच में फिजिकल इंटिमेसी की कमी होना रिश्ते को खत्म होने की कगार पर ले आता है क्योंकि दांपत्य जीवन में भावनात्मक व फिजिकल रिलेशन होना पहचान होता है एक स्वस्थ रिश्ते की क्योंकि किसी भी रिश्ते में हर तरह से एकदूसरे की जरूरत को समझना और उन उम्मीदों पर खरा उतरना आवश्यक होता है. जरूरतें फिजिकल भी हो सकती हैं और इमोशनल भी.

बड़े काम के टिप्स

  • किसी हैल्दी रिलेशनशिप के लिए कम्युनिकेशन बेहद जरूरी होता है। जरूरी है कि आप एकदूसरे के लिए एक गहरी समझ विकसित करें। जितना अधिक आप एकदूसरे को समझते हैं, आप उतने ही करीब होते जाते हैं.
  • किसी भी बात के लिए लंबे समय तक एकदूसरे से दूरी न बनाएं. रिश्ते में अहंकार को जगह बिलकुल न दें. यह न सोचें कि आप का पार्टनर ही पहल करेगा बल्कि उस का हाथ अपने हाथों में लें और अपने इमोशंस उन्हें जाहिर करें.
  • किसी भी रिश्ते में भरोसे का होना बेहद जरूरी होता है. इस के बिना किसी भी रिश्ते की नींव रख पाना संभव नहीं है.
  • किसी भी काम को करने से पहले एकदूसरे कि सलाह जरूर लें. इस से रिश्ते में मजबूती आती है.

अब महिलाएं भी कर रही हैं financially Planning, जानें क्या है ये योजना

आज के समय में कामकाजी महिलाएं टर्म इंश्योरैंस की खरीदारी में सब से आगे हैं, लेकिन हाउसवाइफ भी बाजार का एक बड़ा हिस्सा हैं. यह महिलाओं के बीच टर्म इंश्योरैंस को ले कर बढ़ती जागरूकता और इस के महत्त्व को दर्शाता है. खासकर जब यह ध्यान में रखा जाए कि हाउसवाइफ के लिए टर्म इंश्योरैंस की योजना सिर्फ 3 साल पहले शुरू की गई थी, तो यह देख कर लगता है कि वे महिलाएं, जिन के पास पहले पुरुषों या कामकाजी महिलाओं जैसी फाइनैंशियल फ्रीडम नहीं थी, वह भी अब इन योजनाओं को अपना रही हैं.

महिलाओं के लिए हैल्थ मैनेजमेंट सर्विस

पौलिसी बाजार में टर्म इंश्योरैंस के हेड ऋषभ गर्ग का कहना है, “यह देखना उत्साहजनक है कि महिलाएं टर्म इंश्योरैंस पौलिसी खरीद कर अपनी वित्तीय योजना की जिम्मेदारी खुद उठा रही हैं. हम यह भी सुझाव देते हैं कि उचित कवर राशि के साथ महिलाओं को क्रिटिकल इलनैस के लिए राइडर भी लेना चाहिए.

महिलाओं में कैंसर के बढ़ते मामलों को देखते हुए, इंश्योरैस कंपनियों ने अपने क्रिटिकल इलनैस राइडर में ब्रैस्ट कैंसर, ओवरी कैंसर और सर्वाइकल कैंसर को भी शामिल किया है. यह राइडर शुरुआती चरणों में या कैंसर की प्रारंभिक पहचान होने पर भी वित्तीय मदद प्रदान करता है.

इस के अलावा, कई इंश्योरैंस कंपनियां अब महिलाओं के लिए विशेषरूप से डिज़ाइन की गई हैल्थ मैनेजमेंट सर्विस भी प्रदान कर रही हैं. इन में सालाना ₹36,500 तक के लाभ शामिल हैं, जो टेलीओपीडी परामर्श और डायबिटीज, थायराइड, लिपिड प्रोफाइल, कैल्सियम सीरम और ब्लड टेस्ट जैसी सर्विस कवर करते हैं.”

पौलिसी की खरीदारी में महिलाओं का योगदान अधिक

चाहे कामकाजी महिलाएं हों, चाहे सैलेरीड हों या सेल्फ ऐंपलौइड, टर्म इंश्योरैंस पौलिसी की खरीदारी में इन का योगदान सब से अधिक है. 55-60% पौलिसियां उन के द्वारा खरीदी जा रही हैं. खरीदी गई पौलिसियों में गृहिणियों की हिस्सेदारी 40% है, जो टर्म इंश्योरैंस खरीद में उन की महत्त्वपूर्ण भागीदारी को दर्शाती है.

वहीं कामकाजी महिलाएं टर्म इंश्योरैंस लेने में न सिर्फ सब से आगे हैं, बल्कि वे अपने फाइनैशियल फ्यूचर के बारे में सोचसमझ कर बड़ी कवर राशि भी चुन रही हैं.

₹2 करोड़ या उस से ज्यादा की कवर राशि वाले टर्म प्लान लेने का रुझान 2022 के बाद से लगभग दोगुना हो गया है.

महिलाओं द्वारा सब से अधिक मात्रा में टर्म इंश्योरैंस खरीदने वाले टौप 5 शहर

महिलाओं द्वारा टर्म इंश्योरैंस की खरीद में दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बैंगलुरु जैसे प्रमुख मैट्रो शहर आगे हैं, वही गुंटूर की उपस्थिति छोटे शहरों में भी महिलाओं के बीच टर्म इंश्योरैंस की बढ़ती पहुंच को उजागर करती है.

आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली 8 से 10% है, हैदराबाद 6 से 7%, बैगलुरु 6 से 7%, मुंबई 4 से 5% और गुंटूर 4 से 5% है.

महिला टर्म इंश्योरैंस खरीदारों का उम्र के आधार पर विभाजन

टर्म इंश्योरैंस खरीदने वाली जौब वाली महिलाओं की औसत उम्र लगभग 31-32 साल है जबकि हाउसवाइफ की औसत उम्र इस से थोड़ी कम, करीब 30-31 साल है. जौब वाली महिलाएं और हाउसवाइफ, दोनों ही 25-34 साल की उम्र के बीच सब से ज्यादा टर्म इंश्योरैस खरीदती हैं. हालांकि, गृहिणियों में 25 साल से कम उम्र की महिलाओं का प्रतिशत थोड़ा ज्यादा है.

इस का मतलब है कि 20 से 30 साल की महिलाएं टर्म इंश्योरैंस खरीदने में सब से ज्यादा ऐक्टिव हैं. इस उम्र में वे अपने कैरियर और पारिवारिक जीवन की शुरुआत या स्थिरता की ओर बढ़ रही होती हैं, जिस से फाइनैंशियल प्लानिंग और सुरक्षा पर उन का ध्यान ज्यादा होता है.

Health Tips : क्या आपको भी दिन में आती है बहुत ज्यादा नींद, तो इसे भूलकर भी हल्के में न लें

क्‍या आपको रात की नींद पूरी करने के बाद सुबह थकान और नींद का अनुभव होता है? आपके शरीर में ऐसी कौन सी प्रौब्लम हो रही हैं, जिसके कारण ऐसा हो रहा है. और इसका सोल्युशन क्या है?

अगर आपने इस समस्‍या पर अभी ध्‍यान नहीं दिया तो आगे चल कर यह नींद और थकान कई अन्‍य समस्‍याएं पैदा कर सकता है जैसे, सिरदर्द, शारीरिक दर्द, किसी चीज़ में मन न लगना, काम या पढ़ाई पर ध्‍यान केन्‍द्रित ना कर पाना, पेट की खराबी, बोरियत और तनाव या डिप्रेशन आदि.

इसके कई कारण हो सकते हैं कि आपको पूरे दिन थकान या नींद लगती है. हो सकता है कि आपके अंदर शारीरिक बदलाव हो रहे हों या फिर दिमागी तनाव हो. अब आइये जानते हैं ऐसे कौन से कारण हैं जिसकी वजह से आप दिनभर थके थके रहते हैं और इसका समाधान क्‍या है.

1. सोने का अनुचित समय

रात की नींद ठीक तरह से पूरी करनी चाहिए. आपको 6 से 7 घंटे तक बिना डिस्‍टर्ब हुए सोना चाहिए. सोने के तीन या चार घंटे पहले चाय या कौफी नहीं पीनी चाहिए.

2. तनाव से दूर रहें

तनाव, अवसाद, क्रोध आदि जैसी चीजें नींद के पैटर्न पर बहुत प्रभाव डालती हैं. ये आपको थका देती हैं, जिससे रात को आप ठीक प्रकार से नहीं सो पाते.

3. हेवी डिनर न करें

कई लोग सोचते हैं कि यदि वे रात में पेट भर कर सोएंगे तो उन्‍हें अच्‍छी नींद आएगी मगर ऐसा होता नहीं है. रात को पेट थोड़ा खाली रख कर ही सोना चाहिए नहीं तो खाना ठीक से डाइजेस्ट नहीं हो पाएगा .

4. शारीरिक नकारात्मक फोर्स (तमस)

कई लोग शुरु से ही आलसी होते हैं और उनके जीवन का नजरिया हमेशा ही नकारात्‍मक होता है. ऐसे लोगों को अपने रूटीन में योगा, ध्‍यान मेडिटेशन को शामिल करना चाहिए जिससे उनके जीवन में सकारात्‍मकता आ सके

5. कोई छुपी हुई बीमारी

कुछ बीमारियां जैसे, मधुमेह आदि शरीर को अंदर से कमजोर बना देती हैं और जिससे दिनभर नींद आती है. अच्‍छा है कि आप अपना ठीक से ट्रीटमेंट करवाएं और स्‍वस्‍थ रहें.

दिनभर फ्रेश फील करने के लिये और रात को अच्छी नींद के टिप्‍स

अगर दिन में बहुत नींद आ रही है तो आधे घंटे की झपकी ले सकते हैं. अपच की वजह से आपको नींद और थकान महसूस हो सकती है. ऐसे में अपने आहार में अदरक और काली मिर्च को जगह दें. आप चाहें तो बिना दूध वाली अदरक की चाय पी सकते हैं. नियमित व्‍यायाम करें, जिससे शरीर में औक्‍सीजन की मात्रा बढे़ और आप फ्रेश फील करें.

  • अपने कमरे की खिड़कियां और दरवाजे हमेशा खुले रखें, जिससे फ्रेश हवा और रौशनी आए. इससे आप हमेशा ऊर्जा से भरे रहेंगे.
  • कुर्सी पर हमेशा सीधे और अलर्ट बैठें.
  • एक्सरसाइज करें, इससे आप एनर्जी से भर उठेंगे.
  • पोषण युक्‍त खाद्य पदार्थों का सेवन करें.
  • अपने डाइट में फलों को शामिल करें.

तेरे शहर में : बिंदास और हंसमुख कोमल क्यों उदास रहने लगी ?

बाबतपुर एअरपोर्ट से निकल कर मैं ने कैब बुक की. ‘विजय होटल’ में मैं ने अपना रूम बुक किया हुआ था. जब होटल बुक करने का समय आया था, मुझे नहीं पता क्यों मेरे हाथों ने ‘विजय होटल’ ही टाइप किया. मुझे नहीं पता क्यों ऐसा हुआ. ऐसा भी नहीं है कि मैं जानती नहीं कि मैं विजय होटल ही क्यों रुकी हूं. मैं ने यहां पिछली बार क्याक्या खाया था, मुझे तो यह भी याद है. किस के साथ खाया था, यह भी याद है. उस ने ब्लैक टीशर्ट पहनी हुई थी, यह भी याद है. मैं ने पिंक सूट पहना था, यह भी याद है. अरे, नहीं अभी आंखें नम नहीं होनी चाहिए, सालों हो गए. रोने की कोई बात नहीं है. मैं सब भूल चुकी हूं. मैं ने हमेशा की तरह दिल को समझया तो दिल हंस पड़ा कि चल, झूठी. रातदिन परेशान करती है, झूठ बोलती है कि सब भूल गई.

बनारस की 1-1 गली, महल्ला, दुकान, होटल सब तो देख रखा है. यहीं पैदा हुई हूं, पलीबढ़ी हूं, जीवन के 25 साल यहां बिता कर मुंबई पहुंची हूं. कैब से बाहर देखते हुए किसी मूवी की तरह यहां बीते पिछले साल नजरों के आगे किसी रील से भागे चले जा रहे हैं. 10 साल बाद बनारस आई हूं. मम्मीपापा रहे नहीं, अकेली संतान थी. उन के जाने के बाद क्या करने आती. उन का घर किराए पर एक अच्छे परिवार को दिया हुआ है. मेरे अकाउंट में टाइम से किराया आ जाता है. मैं ने अपनी जौब मुंबई जौइन की तो वहीं घर ले लिया. यह मुझे अब अपना शहर नहीं लग रहा है, यह उस का शहर है. मन हो रहा है कि यतिन को फोन करूं और उसे तंग करूं कि बताओ, तुम्हारे शहर में कौन आया है?

दुनिया में एक अकेली लड़की के लिए मातापिता के बिना जीना, खुद को संभालना, उस पर यह कम्बख्त इश्क. उफ… बहुत ही डैडली कौंबिनेशन है. वजूद की धज्जियां बिखर जाती हैं. पीछे बैठेबैठे भी पता रहता है कि कैब ड्राइवर बीचबीच में आप पर नजर डाल रहा है. मैं ने बड़ी होशियारी से अपनी आंखें साफ कीं. हम लड़कियां इस हुनर में कमाल हैं, हम न चाहें तो कोई भी हमारे दुख का अंदाजा नहीं लगा सकता. हर नारी में एक अभिनेत्री छिपी होती है. मैं अपने मन में आए इस विचार पर खुश हुई.

यतिन क्या कर रहा होगा? क्या शाम को शुभी की शादी में आएगा? आज शुभी की शादी है. सुनील की बहन शुभी जो हम सब से छोटी थी. सुनील के पेरैंट्स नहीं हैं. शुभी हम सब को अपने बच्चों जैसी प्रिय थी. सुनील के बुलावे पर सब दोस्त आज शुभी की शादी में आ रहे हैं. सब अपने परिवार के साथ होंगे, मैं ही अकेली आई हूं. मैं ने शादी नहीं की, अब तो 35 की हो रही हूं, कर नहीं पाई.

यतिन के बाद मन को कोई भाया ही नहीं. धोखेबाज यतिन, मतलबी यतिन, कायर यतिन. मैं ब्राह्मण, वह कायस्थ. पेरैंट्स ने घुड़की दी तो मेरे साथ किए इश्कमुहब्बत के सब वादे भूल गया. शादी कर के बच्चे पैदा कर के ऐश कर रहा है. कायर कहीं का. अड़ नहीं सकता था? डरपोक. मैं ने उसे हमेशा की तरह जीभर कर कोसा. फिर दिल से कहा अच्छा ही है, मुंबई में अकेली मस्त जी रही हूं पर दिल ने फिर तुरंत कहा कि चल ?ाठी.

पौन घंटे में मैं होटल पहुंच गई. काफी अच्छी सड़कें बन गई हैं. होटल पहुंच कर मैं ने सुनील को फोन किया. उस ने अपनेपन वाले गुस्से से कहा, ‘‘घर होते हुए होटल में रुकने की तेरी हिम्मत कैसे हुई कोमल? तू होटल से अभी निकल और सीधे घर आ.’’

‘‘सुनील, अब तो मैं थक गई हूं फ्रेश हो कर आराम करने भी लेट गई, शाम को मिलते हैं. थोड़ा सो लूं. असल में मैं कल भी औफिस से घर बहुत लेट आई थी. सौरी, शाम को आती हूं.’’

सुनील अब इतना ही बोला, ‘‘अच्छा, ठीक है, आराम कर ले. शाम को आ जाना विपिन और सुधा भी परिवार के साथ आए हैं. मैं ने तुम लोगों के रुकने का इंतजाम एकसाथ कर दिया था. सामने वाला फ्लैट खाली था, वहीं रुक रहे हैं खास दोस्त.’’

सुनील मेरा बहुत ही खास दोस्त रहा है. इतने सालों में मैं सब से ज्यादा उसी के संपर्क में हूं. वह अपनी पत्नी नीला और बेटे पार्थ के साथ मेरे पास मुंबई भी घूम गया है. न पूछूं तो भी यतिन के हालचाल दे ही देता है. उसे पता है मैं जीवन में कहां अटकी रह गई हूं.

फिर बोला, ‘‘ठीक है, अब आराम कर ले.’’

फोन रख कर मैं ने रूम का जायजा लिया, ठीक है, रूम का करना क्या है, कल वापस चली जाऊंगी. मैं ने कपड़े बदले, कोरोना टाइम ने आदत डाल दी है कि अब भी कहीं से आओ तो कपड़े बदल कर ही बैड पर लेटना है. मैं ने सुनील से झूठ बोला था कि मुझे सोना है. इस शहर में भला इश्क के मारों को नींद आ सकती है?

2 बज रहे थे. मैं ने अपना शोल्डर बैग उठाया, होटल से बाहर निकली और सीधे संजय नगर की तरफ चल पड़ी पैदल. मुंबई में इतने साल बिताने के बाद अब इतनी दूरी दूरी नहीं लगती. पैदल चलने की जगह मिले तो चलना अच्छा लगता है. पर दुनिया में इतनी भीड़ क्यों बढ़ती जा रही है. कौटन मिल एरिया में पहुंच कर मेरे कदम सुस्त हो गए, उदासी वाली सुस्ती थी. वह रहा पहली फ्लोर पर मेरा घर. सामने ही. अंदर नहीं जाऊंगी. मम्मीपापा याद आते हैं. दिल और उदास होगा. मैं थोड़ी देर आसपास देखती रही. सब नए चेहरे ही आतेजाते दिख रहे थे. चौराहे का गुलमोहर का पेड़ नहीं बदला था. मैं ने उस के पास जा कर उसे छुआ. एक दिन यतिन और मैं तेज बारिश में यहीं खड़े हुए थे. मैं ने फिर दूर की बिल्डिंग पर नजर डाली. हां, यहीं रहता है वह. इसी पेड़ के नीचे खड़े हो कर वह मेरे कालेज जाने का इंतजार करता था.

दिल अजीब सा घबराया, तो मैं तेज कदमों से वहां से निकल गई. पैदल चलतेचलते मैदागिन आई. काफी भीड़ थी. अक्तूबर का महीना था. मैं ने इधरउधर चलते हुए चारों तरफ नजर दौड़ाई. हां, यही है. राधा मिष्टान्न भंडार. हमारा हर तीसरे दिन खानेपीने का यही अड्डा था. अब तो बैठने की जगह साफसुथरी लग रही है. मैं चुपचाप एक चेयर पर बैठ गई. एक लड़का और्डर लेने आया कि क्या चाहिए, मैडम? मैं ने कहा कि 1 लस्सी.

1 कचौरी जलेबा. वह चला गया. मेरे अंदर जैसे आंसुओं का एक सैलाब सा उमड़ने को आया जिसे मैं ने रोक लिया. मैं कितनी अकेली हूं. यह मेरा शहर था. यतिन के कारण मेरा सबकुछ छूट गया. प्रेम कितना कष्ट, कितना अकेलापन दे देता है.

जल्द ही लड़का मेरा और्डर ले आया. कचौरी जलेबा यतिन की पसंद है. मैं लस्सी पीती थी. मु?ो भूख लगी थी. मैं धीरेधीरे खातीपीती रही. आसपास के लोगों की नजरों में वही शाश्वत भाव थे, अकेली लड़की. कैसे आराम से खा रही है. मुंबई की एक बात अच्छी है कि वहां लोग किसी भी अकेली लड़की को ऐसे बैठे देख कर हैरान नहीं होते. अब 3 बज रहे थे. मैं फिर चल पड़ी. गोदौलिया तक चलती रही, फिर काशी विश्वनाथ की गलियों में घूमती रही.

बनारस काफी बदल गया है, कुछ विकास तो दिख रहा है. सड़कें अच्छी बन गई हैं, शहर कुछ सुंदर तो लग रहा है. अपना भी लगता अगर मम्मीपापा होते या यतिन ही. यतिन, मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी. तुम ने मु?ो इस दुनिया में तनहा कर दिया है. मैं कैरियर में इतनी सफल. देशविदेश घूमती हूं पर तुम्हें भुला नहीं पाई और तुम यहां अपना संसार सजा कर बैठे हो. बेवफा इंसान.

मैं हर उस गली में घूमी जहां मैं यतिन के साथ घूमा करती थी. 6 बजे मैं दशाश्वमेध घाट जा कर नीचे जाने वाली सीढि़यों के एक कोने में बैठ गई. यतिन और मेरा कोना. मैं और यतिन कई बार यहां सुबह ही कालेज जाने से पहले आते थे, यहां बैठते थे. यतिन के मुंह से अख्तर शीरानी का यह शेर जरूर निकलता था:

‘‘हर एक को भाती है दिल से फिजा बनारस की,

वो घाट और वो ठंडी हवा बनारस की,

तमाम हिंद में मशहूर है यहां की सहर

कुछ इस कदर है सहर खुशनुमा बनारस की.’’

अपना बैग अपनी गोद में रख कर मैं ने दीवार से सिर लगाया और बस अब मेरा धैर्य चुक गया, हिम्मत टूट गई. मेरी आंखों से आंसू बह निकले, मेरी हिचकियां बंध गईं. इस समय मेरे औफिस का कोई भी कलीग मु?ो देखता तो यकीन न कर पाता कि यह मैं हूं.

औफिस में हरदम खिलखिलाती, कर्मठ, जोशीली, ऐक्टिव, एडवैंचरस लड़की घाट पर यों बैठ कर लुटीपिटी रो रही है. हां, अंदर से मैं ऐसी ही हूं, अकेली, दुखी, निराश. मन करता है पति हो, बच्चे हों, एक दुनिया हो पर यतिन का क्या करूं जो दूर रह कर भी मेरे साथ हरदम

रहता है. उस का प्रेम दिल में ऐसी धूनी रमा कर बैठा है कि हिलने को तैयार नहीं. कितना जिद्दी होता है प्रेम.

शादी में जाना है, टाइम हो रहा है, तैयार होना है, सोच कर मैं वहां से होटल आ गई.

दोस्तों के फोन पर फोन आने शुरू हो गए थे. मैं ने आ कर शौवर लिया. अब थकान थी, मन हुआ सब छोड़ कर थोड़ी देर सो जाऊं. शुभी की शादी न होती तो आती भी न. दिल भारी था पर तैयार होना ही था. यतिन की पसंद की गुलाबी रंग की प्लेन शिफौन साड़ी खरीद कर लाई थी. साथ में नाखुक सा डायमंड सैट पहना, खुद को शीशे में देखा तो अच्छा लगा, कुछ देर देखती रही, आंखें बंद कीं, कल्पना की जैसे यतिन ने पीछे से आ कर गरदन चूम ली हो. होंठों पर एक मुसकान आ गई तो आंखें खोलीं. कहीं कोई न था. हम सब दोस्त सोशल मीडिया पर भी एकदूसरे से जुड़े हैं,. बस मैं और यतिन नहीं जुड़े. सुना है वह सोशल मीडिया पर है ही नहीं. इसलिए मुझे नहीं पता कि अब वह कैसा दिखता होगा. मैं तैयार हो गई तो सुनील ने मेरे लिए अपनी कार भेज दी. थोड़ी दूर के एक होटल में ही शादी थी. दोस्तों को देख कर दिल भर आया. सब बहुत प्यार से मिले. सब बहुत अच्छे लग रहे थे. उम्र थोड़ा असर दिखा रही थी पर सभी अच्छे लग रहे थे. शुभी को तो मैं ने देर तक गले से लगाए रखा. हंसीमजाक का दौर शुरू हुआ तो माहौल खिल उठा. हम सब पासपास के सोफों पर बैठ गए. सुनील और नीला काफी व्यस्त थे.

मैं ने कहा, ‘‘तुम हम लोगों की चिंता मत करो. हम घर के ही लोग हैं, दूसरे मेहमानों को देखो.’’

दिल जिसे ढूंढ़ रहा था. उस का कहीं अतापता ही नहीं था. किसी से पूछा भी नहीं गया. दोस्त तो दोस्त हैं, समझ गए.

मीना ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो क्या?’’

मैं हंस पड़ी पर चुप रही. उस ने मुझे एक तरफ देखने का इशारा किया. देखा, यतिन मेरी पसंद की ब्लैक शर्ट, क्रीम ट्राउजर में चला आ रहा था. उस के साथ उस की पत्नी थी जिस ने साथ चल रहे बेटे का हाथ पकड़ रखा था. यतिन की गोद में एक छोटी गोलमटोल प्यारी सी बच्ची थी. परफैक्ट फैमिली पिक्चर चली आ रही थी. यतिन मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया. उस की गहरी आंखों में बेचैनी का एक समुंदर जैसे उमड़ा चला आ रहा था.

कहने लगा, ‘‘कैसी हो, कोमल? इन से मिलो, यह मीता, बेटा यश और बेटी समृद्धि.’’

मैं बुरी तरह चौंकी. मैं उस से हंसहंस कर कहा करती थी कि जब हमारी शादी हो जाएगी. हम अपने बच्चों का नाम यश और समृद्धि रखेंगें. भरापूरा घर लगा करेगा.

मीता ने मुसकराते हुए हायहेलो किया. मीता भी मुझे अच्छी लगी. फिर वह सब से मिला. वह सब से हंसबोल रहा था पर उस की नजरें मुझ पर टिकी थीं. मीता को भी यहां कई लोग जानते थे. मैं उस के बच्चों के नाम पर अटक गई थी. मैं ने उस की पसंद का, उस ने मेरी पसंद का रंग पहना था. वह कोशिश कर रहा था कि उस की बेटी उस की गोद से थोड़ी देर उतर जाए. मीता भी कोशिश कर रही थी कि उसे गोद में ले ले. फिर सब इस बात पर हंसने लगे.

यतिन बताने लगा, ‘‘यह मुझे छोड़ती ही नहीं है. जितनी देर घर पर रहता हूं मुझसे पूरी ड्यूटी करवाती है.’’

यतिन जितनी भी बातें कर रहा था, मुझे लग रहा था कि वह मुझे बताना चाहता है, मुझसे अपनी बातें करना चाहता है पर सीधे कर नहीं पा रहा है. फिर वह बच्ची को वहां घूम रहे वेटर्स से एक गिलास जूस ले कर पिलाने लगा. यश और बच्चों के साथ मस्त हो गया. मीता मुझसे 3 सोफे दूर ही बैठी हुई थी. स्नैक्स चलते रहे. अचानक यतिन उठ कर खानेपीने के स्टाल्स का एक चक्कर लगा कर आया और मु?ा से आ कर कहने लगा, ‘‘टमाटर चाट भी है, जाओ, खा लो.’’

मेरा दिल जैसे थमने को हुआ. उफ, यह आज भी नहीं भूला कि टमाटर चाट मुझे इतनी पसंद थी कि मैं रोज खा सकती थी. मैं ने उस की आंखों में देखा, जबां चुप भी रहे तो भी आंखें कितनी बातें कर सकती हैं, यह मैं ने इस पल जाना. और जो उस की नजरों ने कहा, मेरा बेचैन  दिल शांत होता चला गया. हां, वह भी मुझे भूल नहीं पाया था. उसे भी मैं याद आती हूं, मेरी 1-1 बात उसे आज भी याद है.

फिर बोला, ‘‘कल शाम को कितने बजे की फ्लाइट है?’’ मैंने कुछ नहीं कहा. थोड़ी हैरान थी कि उसे पता है कि मैं कल ही जा रही हूं. मेरी खबर रखता है.

‘‘आज दिनभर क्या किया?’’

‘‘सब पुरानी जगहों पर अकेले घूमी?’’

‘‘मुझे भी बुला लिया होता.’’

‘‘आदत है मुझे.’’

‘‘इसी बात का तो दुख है.’’

आज मैं उसे नए रूप में देख रही थी, अपनी पत्नी और बच्चों का ध्यान रखते हुए एक पुरुष के रूप में. अपनी प्रेमिका से बरसों बाद मिलने पर एक बेचैन से प्रेमी के रूप में. शादी के प्रोग्राम चलते रहे थे. पर हम दोनों लगातार एकदूसरे को जीभर कर देख रहे थे. चलते हुए मीता ने कहा, ‘‘आप अभी हैं तो घर हो कर जाना.’’

‘‘नहीं, मैं तो कल ही जा रही हूं,’’ कह मैं यतिन को परिवार के साथ जाते देख रही थी.

अचानक वह पत्नी को वहीं छोड़ कर जल्दीजल्दी चल कर वापस आया, पूछा, ‘‘अब कब आओगी?’’

मेरा मन हुआ मैं उस से लिपट कर रो पड़ूं सब भूल जाऊं. मगर मैं ने बस ‘न’ में गरदन हिला दी. वह सुस्त कदमों से लौट गया. कैसे कहूं यतिन तुम्हारे शहर में आना इतना आसान नहीं है. कदमकदम पर यादें बिखरी हैं जिन्हें समेटने में मेरा दिल लहूलुहान हुआ चला जा रहा है. इस बार मेरे दिल ने मुझे ‘चल झूठी’ नहीं कहा.

लियो: क्या जोया से दूर हुआ यश

राधा यश पर खूब बरसीं, धर्म, जाति, समाज की बड़ीबड़ी बातें कीं लेकिन जब यश भी उखड़ गया, तो रोने लगीं. ये कैसी मां हैं, क्या इन्हें अपने इकलौते व योग्य बेटे की खुशी पसंद नहीं? इंसानों ने अपनी खुशियों के बीच इतनी दीवारें क्यों खड़ी कर ली हैं? अपनों की खुशी इन दीवारों के आगे माने नहीं रखती क्या? राधा जोया को इतने अपशब्द क्यों कह रही हैं? आखिर, ऐसा क्या किया है उस ने?

अहा, जोया आ रही है. उस के परफ्यूम की खुशबू को मैं पहचानता हूं और वह मेरे लिए मटन ला रही है, मुझे यह भी पता चल गया है. अब आई, अब आई और यह बजी डोरबैल. यश लैपटौप पर कुछ काम कर रहा था, जिस फुरती से उस ने दरवाजा खोला, हंसी आई मुझे. प्यार करता है जोया से वह और जोया भी तो जान देती है उस पर. दोनों साथ में कितने अच्छे लगते हैं जैसे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

जैसे ही यश ने दरवाजा खोला, जोया अंदर आई. आते ही यश ने उस के गाल पर किस कर दिया. वह शरमा गई. मैं ने लपक कर अपनी पूंछ जोरजोर से हिला कर अपनी तरह से जोया का स्वागत किया. वह मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए नीचे ही बैठ गई. पूछा, ‘‘कैसे हो, लिओ? देखो, तुम्हारे लिए क्या लाई हूं.’’

मैं ने और तेजी से अपनी पूंछ हिलाई. फिर जोया ने आंगन की तरफ मेरे बरतनों के पास जाते हुए कहा, ‘‘आओ, लिओ.’’ मैं मटन पर टूट पड़ा, कितना अच्छा बनाती है जोया. उस के हाथ में कितना स्वाद है. राधारानी तो अपने मन का कुछ भी बनाखा कर अपनी खाली सहेलियों के साथ सत्संग, भजनों में मस्त रहती हैं. यश बेचारा सीधा है, मां जो भी बना देती है, चुपचाप खा लेता है. कभी कोई शिकायत नहीं करता. अच्छे बड़े पद पर काम करता है, पर घमंड नाम का भी नहीं. और जोया भी कितनी सलीकेदार, पढ़ीलिखी नरम दिल लड़की है. मैं तो इंतजार कर रहा हूं कि कब वह यश की पत्नी बन कर इस घर में आए.

यश के पापा शेखर भी बहुत अच्छे स्वभाव के हैं. घर में क्लेश न हो, यह सोच कर ज्यादातर चुप रहते हैं. राधा की जिदों पर उन्हें गुस्सा तो खूब आता है पर शांत रह जाते हैं. शायद इसी कारण से राधारानी जिद्दी और गुस्सैल होती चली गई हैं. यश का स्वभाव बिलकुल अपने पापा पर ही तो है. घर में मुझे प्यार तो सब करते हैं, राधारानी भी, पर मुझे उन का अपनी जाति पर घमंड करना अच्छा नहीं लगता. उन की बातें सुनता हूं तो बुरा लगता है. बोल नहीं पाता तो क्या हुआ, सुनतासमझता तो सब हूं.

मैं यश और जोया को बताना चाहता हूं कि राधारानी यश के लिए लड़कियां देख रही हैं, यह अभी यश को पता ही नहीं है. वह तो सुबह निकल कर रात तक ही आता है. वह घर आने से पहले जब भी जोया से मिल कर आता है, मैं समझ जाता हूं क्योंकि यश के पास से जोया के परफ्यूम की खुशबू आ जाती है मुझे. एक दिन जोया यश को बता रही थी कि उस का भाई समीर फ्रांस से यह परफ्यूम ‘जा दोर’ लाया था. जब घर में शेखर और राधा नहीं होते, यश जोया को घर में ही बुला लेता है. मैं खुश हो जाता हूं कि अब जोया आएगी, यश की फोन पर बात सुन लेता हूं न. जोया मुझे बहुत प्यार करती है, इसलिए हमेशा मेरे लिए कुछ जरूर लाती है.

यश जोया को अपने बैडरूम में ले गया तो मैं चुपचाप आंगन में आ कर बैठ गया. इतनी समझ है मुझ में. दोनों को बड़ी मुश्किल से यह तनहाई मिलती है. शेखर और राधा को, बस, इतना ही पता है कि दोनों अच्छे दोस्त हैं. दोनों एकदूसरे को बेइंतहा प्यार करते हैं, इस की भनक भी नहीं है उन्हें. मैं जानता हूं, जिस दिन राधारानी को इस बात का अंदाजा भी हो गया, जोया का इस घर में आना बंद हो जाएगा. एक विजातीय लड़की से बेटे की बाहर की दोस्ती तो ठीक है पर इस के आगे राधारानी कुछ सह न पाएंगी. धर्मजाति से बढ़ कर उन के जीवन में कुछ भी नहीं है, पति और बेटे की खुशी भी नहीं.

थोड़ी देर बाद जोया ने अपने और यश के लिए कौफी बनाई. फिर दोनों ड्राइंगरूम में ही बैठ कर बातें करने लगे. अब मैं उन दोनों के पास ही बैठा था.  कौफी पीतेपीते अपने पास बिठा कर मेरे  सिर पर हाथ फेरते रहने की यश की आदत है. मैं भी खुद ही कौफी का कप देख कर उस के पास आ कर बैठ जाता हूं. मुझे भी यही अच्छा लगता है. उस के स्पर्श में इतना स्नेह है कि मेरी आंखें बंद होने लगती हैं, ऊंघने भी लगता हूं. पर अचानक जोया के स्वर में उदासी महसूस हुई तो मेरे कान खड़े हुए.

जोया कह रही थी, ‘‘यश, अगर मैं ने अपने मम्मीपापा को मना भी लिया तो तुम्हारी मम्मी तो कभी राजी नहीं होंगी, सोचो न यश, कैसे होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो जो, अभी टाइम है, सब ठीक हो जाएगा.’’

जो, यश भी न. जोया के पहले से ही छोटे नाम को उस ने ‘जो’ में बदल दिया है, हंसी आती है मुझे. खैर, मैं यश को कैसे बताऊं कि अब टाइम नहीं है, राधारानी लड़कियां देख रही हैं. मैं ने अपने मुंह से कूंकूं तो किया पर समझाऊं कैसे. मुझे जोया के उतरे चेहरे को देख कर तरस आया तो मैं जोया की गोद में मुंह रख कर बैठ गया.

जोया की आंखें भर आई थीं, बोली, ‘‘यश, मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती.’’

‘‘ठीक है जो, मैं मम्मी से जल्दी ही बात करूंगा. तुम दुखी मत हो.’’

फिर यश अपने हंसीमजाक से जोया को हंसाने लगा. दोनों हंसते हुए कितने प्यारे लगते हैं. जोया की लंबी सी चोटी पकड़ कर यश ने उसे अपने पास खींच लिया था. वह हंस दी. मैं भी हंस रहा था. फिर जोया ने अपने फोन से हम तीनों की एक सैल्फी ली. वाह, ‘हैप्पी फैमिली’ जैसा फील हुआ मुझे. फिर जोया टाइम देखती हुई उठ खड़ी हुई, ‘‘अब आंटीअंकल के आने का टाइम हो रहा है, मैं चलती हूं.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ कहते हुए यश ने खड़े हो कर उसे बांहों में भर लिया, फिर उस के होंठों पर किस कर दिया. मैं जानबूझ कर इधरउधर देखने लगा था.

जोया के जाने के 20 मिनट बाद शेखर और राधा आ गए. मैं ने सोचा, अच्छा हुआ, जोया टाइम से चली गई. जोया के परफ्यूम की जो खुशबू पूरे घर में आती रहती है, उसे शेखर और राधा महसूस नहीं करते. घंटों तक रहती है यह खुशबू घर में. कितनी अच्छी खुशबू है यह. पर आज शायद घर में मटन और परफ्यूम की अलग ही खुशबू राधारानी को महसूस हो ही गई, पूछा, ‘‘यश, कैसी महक है?’’

‘‘क्या हुआ, मम्मी?’’

‘‘कोई आया था क्या?’’

‘‘हां मम्मी, मेरे कुछ फ्रैंड्स आए थे.’’

शक्की तो हैं ही राधारानी, ‘‘अच्छा? कौनकौन?’’

‘‘अमित, महेश, अंजलि और जोया. जोया ही लिओ के लिए मटन ले आई थी.’’

शेखर ने जोया के नाम पर जिस तरह यश को देखा, मजा आ गया मुझे. बापबेटे की नजरें मिलीं तो यश मुसकरा दिया, वाह. बापबेटे की आंखोंआंखों में जो बातें हुईं, उन से मुझे मजा आया. दोनों का बढि़या दोस्ताना रिश्ता है. शेखर गरदन हिला कर मुसकराए, यश मुंह छिपा कर हंसने लगा. अचानक राधा ने कहा, ‘‘यश, अगले वीकैंड का कुछ प्रोग्राम मत रखना. फ्री रहना.’’

‘‘क्यों, मम्मी?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए एक लड़की पसंद की है, ज्योति, उसे देखने चलेंगे.’’

‘‘नहीं मम्मी, मुझे नहीं देखना है किसी को.’’

‘‘क्यों?’’ राधारानी के माथे पर त्योरियां उभर आईं.

‘‘बस, नहीं जाना मुझे.’’

‘‘कारण बताओ.’’

यश ने पिता को देखा, शेखर ने सस्नेह पूछा, ‘‘तुम्हारी कोईर् पसंद है?’’

यश साफ बात करने वाला सच्चा इंसान है. उसे लागलपेट नहीं आती, बोला, ‘‘मम्मी, मुझे जोया पसंद है, मैं उसी से मैरिज करूंगा.’’

जोया के नाम पर जो तूफान आया, पूरा घर हिल गया. राधा यश पर खूब बरसीं, धर्म, जाति, समाज की बड़ीबड़ी बातें कीं. जब यश भी उखड़ गया, तो रोने पर आ गईं. वैसा ही दृश्य हो गया जैसा फिल्मों में होता है. यश जब घर में कोई मूवी देखता है, मैं भी देखता हूं उस के साथ बैठ कर, ऐसा दृश्य तो खूब घिसापिटा है पर अब तो मेरे यश से इस का संबंध था तो मैं बहुत दुखी हो रहा था. मुझे बारबार जोया की आज की ही आंसुओं से भरी आंखें याद आ रही थीं.

मैं चुपचाप शेखर के पास बैठ कर सारा तमाशा देख रहा था और सोच रहा था, ये कैसी मां हैं, क्या इन्हें अपने इकलौते व योग्य बेटे की खुशी अजीज नहीं?

इंसानों ने अपनी खुशियों के बीच इतनी दीवारें क्यों खड़ी कर ली हैं? अपनों की खुशी इन दीवारों के आगे माने नहीं रखती? राधा जोया को इतने अपशब्द क्यों कह रही हैं? ऐसा क्या किया उस ने?

यश अपने बैडरूम की तरफ बढ़ गया तो मैं झट उठ कर उस के पीछे चल दिया. वह बैड पर औंधेमुंह पड़ गया. मैं ने उस के पैर चाटे. अपना मुंह उस के पैरों पर रख कर उसे तसल्ली दी. वह मुझे अपनी गोद में उठा कर वापस अपने पास लिटा कर एक हाथ अपनी आंखों पर रख कर सिसक उठा तो मुझे भी रोना आ गया. यश को तो मैं ने आज तक रोते देखा ही नहीं था. ये कैसी मां हैं? इतने में शेखर यश के पास आ कर बैठ गए.

यश के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,  ‘‘बेटा, तुम्हारी मां जोया को किसी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगी.’’

‘‘और मैं उस के सिवा किसी और से विवाह नहीं करूंगा, पापा.’’

घर का माहौल अजीब हो गया था. अगले कई दिन घर का माहौल बेहद तनावपूर्ण रहा. राधा और यश दोनों अपनी बात पर अड़े थे. शेखर कभी राधा को समझा रहे थे, कभी यश को. यश कभी घर में खाता, कभी बाहर से खा कर आता और चुपचाप अपने कमरे में बंद हो जाता. वह जोया से तो बाहर मिलता ही था, मुझे तो जोया के परफ्यूम की खुशबू अकसर यश के पास से आ ही जाती थी.

मैं ने जोया को बहुत दिनों से नहीं देखा था. मुझे जोया की याद आती थी. यश का उदास चेहरा देख कर भी राधा का हठ कम नहीं हो रहा था और मेरा यश तो मुझे आजकल बिलकुल रूठारूठा फिल्मी हीरो लगता था.

एक दिन राधा यश के पास आईं, टेबल पर एक लिफाफा रखती हुई बोलीं, ‘‘यह रही ज्योति की फोटो. एक बार देख लो, खूब धनी व समृद्ध परिवार है.  ज्योति परिवार की इकलौती वारिस है. तुम्हारा जीवन बन जाएगा और एक बात कान खोल कर सुन लो, यह इश्क का भूत जल्दी उतार लो, वरना मैं अन्नजल त्याग दूंगी.’’

मैं ने मन ही मन कहा, झूठी. आप तो भूखी रह ही नहीं सकतीं. व्रत में भी आप का मुंह पूरा दिन चलता है. मेरे यश को झूठी धमकियां दे रही हैं राधारानी. झूठी बातें कर के यश को परेशान कर रही हैं, बेचारा फंस न जाए. अन्नजल त्यागने की धमकी से सचमुच यश का मुंह उतर गया.

अब मैं कैसे बताऊं कि यश, इस धमकी से डरना मत, तुम्हारी मां कभी भूखी नहीं रह सकतीं. जोया को न छोड़ना, तुम दोनों साथ बहुत खुश रहोगे. पिछली बार जो मेरे फेवरेट पौपकौर्न तुम मेरे लिए लाए थे, आधे तो राधारानी ने ही खा लिए थे. 4 अपने मुंह में डाल रही थीं तो एक मेरे लिए जमीन पर रख रही थीं. एक बार भी नहीं सोचा कि मेरे फेवरेट पौपकौर्न हैं और तुम मेरे लिए लाए थे. तुम ने जोया के साथ मूवी देखते हुए खरीदे थे और आ कर झूठ बोला था कि एक दोस्त के साथ मूवी देख कर आए हो. हां, ठीक है, ऐसी मां से झूठ बोलना ही पड़ जाता है. गपड़गपड़ सारे पौपकौर्न खा गई थीं राधारानी. ये कभी भूखी नहीं रहतीं, तुम डरना मत, यश.

फोटो पटक कर राधा शेखर के साथ कहीं बाहर चली गई थीं. यश सिर पकड़ कर बैठ गया था. मैं तुरंत उस के पैरों के पास जा कर बैठ गया. इतने दिनों से घर में तूफान आया हुआ था. यश के साथ मैं भी थक चुका था. मैं ने उसे कभी अपने मातापिता से ऊंची आवाज में बात करते हुए भी नहीं सुना था. उसे अपनी पसंद की जीवनसंगिनी की इच्छा का अधिकार क्यों नहीं है? इंसानों में यह भेदभाव करता कौन है और क्यों? क्यों एक इंसान दूसरे इंसान से इतनी नफरत करता है? मेरा मन हुआ, काश, मैं बोल सकता तो यश से कहता, ‘दोस्त, यह तुम्हारा जीवन है, बेकार की बहस छोड़ कर अपनी पसंद का विवाह तुम्हारा अधिकार है. राधारानी ज्यादा दिनों तक बेटे से नाराज थोड़े ही रहेंगी. तुम ले आओ जोया को अपनी दुलहन बना कर. जोया को जाननेसमझने के बाद वे तुम्हारी पसंद की प्रशंसा ही करेंगी.’ यश मुझे प्यार करने लगा तो मैं  भी उस से चिपट गया.

मैं बेचैन सा हुआ तो यश ने कहा, ‘‘लिओ, क्या करूं? प्लीज हैल्प मी. बताओ, दोस्त. मां की पसंद देखनी है? मुझे भी पता है तुम्हें भी जोया पसंद है, है न?’’

मैं ने खूब जोरजोर से अपनी पूंछ हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया. वह भी समझ गया. हम दोनों तो पक्के दोस्त हैं न. एकदूसरे की सारी बातें समझते हैं, फिर उसे पता नहीं क्या सूझा, बोला, ‘‘आओ, तुम्हें मां की पसंद दिखाता हूं.’’

यश ने मेरे आगे उस लड़की की फोटो की. मुझे धक्का लगा, मेरे हीरो जैसे हैंडसम दोस्त के लिए यह भीमकाय लड़की. पैसे व जाति के लिए राधारानी इसे बहू बना लेंगी. छिछि, लालची हैं ये. यश को भी झटका लगा था. वह चुपचाप अपनी हथेलियों में सिर रख कर बैठ गया. उस की आंखों की कोरों से नमी सी बह गई. मैं ने उस के घुटनों पर अपना सिर रख कर उसे प्यार किया. मुंह से कुछ आवाज भी निकाली. वह थके से स्वर में बोला.

‘‘लिओ, देखा? मां कितनी गलत जिद कर रही हैं. बताओ दोस्त, क्या करना चाहिए अब?’’

मेरा दोस्त, मेरा यार मुझ से पूछ रहा था तो मुझे बताना ही था. राधारानी को पता नहीं आजकल के घर के दमघोंटू माहौल में चैन आ रहा था, यह तो वही जानें. यश की उदासी मुझे जरा भी सहन नहीं हो रही थी. मेरा दोस्त अब मुझ से पूछ रहा था तो मुझे तो अपनी राय देनी ही थी. क्या करूं, क्या करूं, ऐसे समय न बोल पाना बहुत अखरता है. मैं ने झट न आव देखा न ताव, उस फोटो को मुंह में डाला और चबा कर जमीन पर रख दिया. यश को तो यह दृश्य देख हंसी का दौरा पड़ गया. मैं भी हंस दिया, खूब पूंछ हिलाई. दोनों पैरों पर खड़ा भी हो गया. यश तो हंसतेहंसते जमीन पर लेट गया था. मैं भी उस से चिपट गया. हम दोनों जमीन पर लेटेलेटे खूब मस्ती करने लगे थे.

अब यश की हंसी नहीं रूक रही थी. मैं भांप गया था, अब यश जोया से दूर नहीं होगा. वह फैसला ले चुका था और मैं इस फैसले से बहुत खुश था. मुझ पर अपना हाथ रखते हुए यश कह रहा था, ‘‘ओह लिओ, आई लव यू.’’

‘मी टू,’ मैं ने भी उस का हाथ चाट कर जवाब सा दिया था.

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