क्यों न महिलाएं किचन से हटकर साइंस की जानकारी लें…

साइंस हमारी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा है, और इसके बिना हम अपनी दैनिक जीवनशैली की कल्पना भी नहीं कर सकते. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में साइंस का प्रभाव हर कोने में दिखाई देता है, चाहे वह तकनीक हो, स्वास्थ्य हो, खाना पकाना हो या परिवहन. हमारे दिन की शुरुआत ही विज्ञान के चमत्कार से होती है. अलार्म घड़ी, मोबाइल फोन, या स्मार्टवाच – ये सभी तकनीक के आविष्कार हैं. सुबह के चाय-कौफी से लेकर किचन के उपकरणों तक, सबमें विज्ञान छिपा हुआ है. खाना बनाने में तापमान, दवाब और केमिकल रिएक्शन का योगदान होता है, जो विज्ञान की ही देन है. बिजली, पानी की सप्लाई, इंटरनेट, और परिवहन – ये सब हमारे जीवन को सरल बनाने वाले विज्ञान के चमत्कार हैं.

फिजिक्स, कैमेस्ट्री, बायोलौजी, कंप्यूटर साइंस और गणित, विद्यार्थी जीवन में ये विषय ऐसे लगते हैं मानों इनको चुनने के बाद आपको प्रसिद्ध इंजीनियर, डौक्टर जैसे करियर पथ को चुनना होगा, लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि हमारा आम रोजमर्रा का जीवन इन विषयों पर ही आधारित है. किस सब्जी में कौन से मसालों की कैमेस्ट्री से जान आएगी, या शर्ट पर लगे दाग को कैसे साफ करेंगे, दूध, सब्जी, ब्याज का हिसाब, जैसे काम तो औरतें करती आई हैं. लेकिन अब वक्त है अपनी क्षमताओं का विस्तार करने का. साइंस को सिर्फ इसलिए मत चुनिए कि आपको अंतरिक्ष में कदम जमाने हैं, इसलिए भी चुनिए कि आपको अपने जीवन में छोटीछोटी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े. बिजली का फ्यूज़ खराब हुआ है तो उसको बदलने के लिए आप घंटों मैकेनिक या अपने पति के दफ्तर से घर से पहुंचने का इंतजार क्यों करना है, फिर जब वो मैकेनिक कहे कि ये तो छोटा सा शोर्ट सर्किट है 5 मिनट में रिपेयर हो जाएगा, तो क्यों न औरतें किचन से हटकर ये जानकारी भी हासिल करें.

महिलाओं के लिए विज्ञान क्यों है महत्वपूर्ण?

पुराने समय से ही साइंस और औरत का मेल कम ही देखने को मिलता है. जब कभी ये मेल हुआ है तो दृश्य पूरी दुनिया को हैरान करने वाले रहे हैं. कितनी ही ऐसी महिला साइंटिस्ट रही हैं, जो भले आज दुनिया में नहीं हों लेकिन उनका लेख आज भी ज्ञान के जिज्ञासुओं की प्यास बुझा रहे हैं. आप ई.के. जानकी अम्माल की बात करें जो पद्मश्री अवोर्ड पा चुकी हैं, ये बोटनिस्ट और प्लांट की कोशिकीय विज्ञान पर काम करती थी. भारत की पहली महिला वैज्ञानिक ‘असीमा चटर्जी’ किसी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा डौक्टर औफ साइंस की उपाधि पाने वाली पहली महिला थीं. विज्ञान से जुड़ी मेरी क्यूरी, रोजलिंड फ्रैंकलिन, कल्पना चावला जैसे नाम आज भी प्रेरणा देते हैं. इंडियन अकेडमी औफ साइंस के वेबसाइट पर जाकर देखेंगे तो जाने ऐसी कितनी ही महिलाओं के उल्लेख आपके सामने होगें, जो साड़ी पहन, माथे पर बिंदी लगाए देश और दुनिया में अपने ज्ञान के बलबूते जानी जाती हैं. इतिहास गवाह है कि महिलाएं विज्ञान में बेहतरीन योगदान दे चुकी हैं. लेकिन समाज में आज भी महिलाओं की भागीदारी विज्ञान के क्षेत्र में सीमित दिखाई देती है. यह स्थिति बदलने की जरूरत है.

विज्ञान समझने से आत्मनिर्भरता: महिलाओं के लिए विज्ञान सीखना न सिर्फ करियर बनाने का एक साधन हो सकता है, बल्कि यह उन्हें आत्मनिर्भर बनने में भी मदद करता है. जब महिलाएं विज्ञान को सीखती हैं, तो वे अपने आस-पास की चीजों को गहराई से समझने लगती हैं. चाहे वह स्वास्थ्य से जुड़े फैसले हों, परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रबंधन हो या पर्यावरण की रक्षा हो, विज्ञान की जानकारी महिलाओं को बेहतर निर्णय लेने में सक्षम बनाती है.

महिलाओं के लिए विज्ञान को जीवन का आधार बनाना और इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. विज्ञान सिर्फ एक विषय नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है जो हमें तार्किक और प्रमाण आधारित सोच सिखाता है. यह जीवन में सही निर्णय लेने, समस्याओं का समाधान खोजने और समाज में व्याप्त भ्रांतियों से बचने में मदद करता है.

1. साइंस बेस्ड सोच

विज्ञान की पढ़ाई करने से महिलाएं किसी भी समस्या को तार्किक दृष्टिकोण से देख सकती हैं. चाहे वह स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा हो या वित्तीय निर्णय, विज्ञान आधारित दृष्टिकोण से सही और प्रभावी निर्णय लेने में मदद मिलती है.

2. फैक्टचेकिंग की आदत

आजकल गलत जानकारी और अफवाहें बहुत तेजी से फैलती हैं. ऐसे में विज्ञान का अध्ययन महिलाओं को फैक्टचेकिंग की आदत डालने में मदद करेगा. सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों पर फैली कोई भी जानकारी को बिना जांचे-परखे मानना खतरनाक हो सकता है. इसलिए, जानकारी को प्रमाणित स्रोतों से जांचना जरूरी है.

3. स्वास्थ्य और पोषण

विज्ञान के आधार पर महिलाएं अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य और पोषण का ध्यान बेहतर तरीके से रख सकती हैं. यह उन्हें सही खानपान, व्यायाम और स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने में मदद करता है.

4. बच्चों की शिक्षा

महिलाएं विज्ञान के जरिए अपने बच्चों को भी तार्किक और आलोचनात्मक सोच सिखा सकती हैं. जिससे वे सोचने और समझने की क्षमता बेहतर विकसित करते हैं.

5. सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति

विज्ञान की जानकारी महिलाओं को उन सामाजिक रूढ़ियों और अंधविश्वासों से मुक्त करती है जो सदियों से हमारे समाज में व्याप्त हैं. यह उन्हें आत्मनिर्भर बनने और अपने जीवन के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम बनाता है.

6. डेली लाइफ में साइंस का उपयोग

विज्ञान को सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं है. रोजमर्रा के जीवन में साइंस ही है, जैसे किचन में खाना बनाते समय, बिजली और पानी का सही इस्तेमाल करते समय, या सफाई के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते समय. विज्ञान महिलाओं को उनके जीवन में अधिक स्वतंत्रता, जागरूकता और जिम्मेदारी प्रदान कर सकता है.

महिलाओं को विज्ञान की ओर कैसे प्रोत्साहित करें?

महिलाओं को विज्ञान की ओर प्रोत्साहित करने के लिए परिवार, समाज और शिक्षा व्यवस्था को एकजुट होकर काम करना होगा. सबसे पहले, मातापिता को अपनी बेटियों को विज्ञान के प्रति जागरूक बनाना चाहिए और उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए. स्कूलों और कौलेजों में विज्ञान की शिक्षा को दिलचस्प और प्रेरक बनाना जरूरी है, ताकि लड़कियां इस क्षेत्र में रुचि लें. इसके साथ ही, सरकार और संगठनों को महिलाओं के लिए विशेष विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए. विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियानों की जरूरत है.

आजकल घर में रहकर घर को संभाल रही औरत को हाउसवाइफ नहीं होममेकर कहकर बुलाया जाता है. लोगों में ये समझ बढ़ रही है कि औरत सिर्फ किचन में खाना बनाने वाली नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा उसकी जिम्मेदारियां है. उसे बच्चों और अपने परिवार के साथ अपनी भी सेहत का ख्याल रखना है. किसी खाने में टेस्ट के साथ बच्चे और बड़ों की आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन की जरुरतें पूरी होगी ये भी औरत के ही जिम्मे है. चार दिवारी के मकान को घर बनाकर सजाकर, संवारकर रखना और सबके लिए सेफ प्लेस बनाने में औरत की भूमिका अहम है. लेकिन आप सोचिए ऐसे में अगर आप साइंस की बेसिक सी जानकारियों से महरुम रह जाएंगी तो कैसे ये सब हो पाएगा?. कैसे खाने के पोषक तत्वों, या दाग हटाने के फोर्मूले, लाइट बल्ब बदलना हो, या किसी बिजली के किसी जले हुए स्विच को बदलना हो, क्या इन सब के लिए आपको साइंस की जरुरत नहीं है.

हमारी डेली लाइफ में साइंस है, दूध से दही बनाने में और फिर उससे मक्खन, घी, चीज़, पनीर, छाछ बनाने में साइंस है. कूलर में हवा को ठंडी करने के लिए उसमें मिट्टी के मटके टुकड़े डालकर रखना साइंस है. रोजमर्रा के जीवन के ऐसे अनेकों आयाम हैं जहां हम जानेअनजाने साइंस का इस्तेमाल कर रहे हैं. तो क्यों न अब इस विचारधारा से भी निकलें की साइंस सिर्फ पढ़ाकू या चांद पर पहुंचने वाले लोगों के लिए जरुरी है. साइंस आम जीवन की जरुरत है. इसलिए खास कर औरतों के लिए जरूरी है कि वो पढ़ाई में बाकी विषयों के साथ साइंस को भी पूरी तवज्जो दे. साइंस हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा है, और महिलाओं को इसे सीखने में ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए. विज्ञान न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाता है बल्कि समाज और देश की उन्नति में भी उनका योगदान सुनिश्चित करता है. महिलाओं के लिए विज्ञान के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, और उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

Laughter Chefs के सेट पर हुआ हादसा, रीम शेख के बाद राहुल वैद्य तक पहुंची आग की लपटें

टीवी शो लाफ्टर शेफ्स (Laughter Chefs) अनलिमिटेड एंटरटेनमेंट के सेट पर एक के बाद एक हादसों ने छोटे पर्दे के कलाकारों के मन में डर भर दिया है. कुछ दिनों पहले सेट पर रीम शेख के साथ हादसा हुआ था. जिसमें उनका फेस जल गया था और अब सिंगर राहुल वैद्य के साथ भी ऐसा इंसीडेंट हो गया. हालांकि राहुल वैद्य का फेस जलने से बचा गया है, लेकिन इस एक्सीडैंट ने और कंटेस्टैंट्स को बहुत डरा दिया.

आपको बता दें टीवी शो ‘लाफ्टर शेफ अनलिमिटेड एंटरटैनमेंट’ लोगों को काफी एंटरटेन करता है. इस शो में टीवी के फेमस स्टार्स को एक साथ कुकिंग करते आप देख सकते हैं. इसमें स्टार्स को कुकिंग करते देख उनके फैंस काफी एक्साइटेड होते हैं. क्योंकि फैंस को लगता है कि ये स्टार्स कभी खाना नहीं बनाते होंगे और उन्हें किचन में काम करते देख वह सब एंजौय करते हैं.

खाना बनाने के दौरान हुआ हादसा

लाफ्टर शेफ के सेट पर कुकिंग करते समय राहुल वैद्य ने पैन में जैसे ही कुछ डाला, उनके डालते ही तेल तेजी से आग पकड़ लेता है और आग की लपटे सीधा राहुल के फेस तक जाती है. डर के मारे राहुल वैद्य चिल्लाने लगते हैं. उनके चिल्लाने से उनके पास खड़ी एक्ट्रेस निया शर्मा और जन्नत जुबैर बेहद डर जाती हैं. साथ ही राहुल के पार्टनर अली गोनी भी चीखने लगते हैं.

कुकिंग शो का नया प्रोमो शेयर

अब शो ‘लाफ्टर शेफ अनलिमिटेड एंटरटेनमेंट’ के मेकर्स ने कुकिंग शो का नया प्रोमो शेयर किया है. इस प्रोमो में दिखाया गया है कि राहुल वैध जैसे ही बर्तन में कुछ डालते हैं, तुरंत आग की लपटें उनके फेस तक पहुंच जाती है. सेट पर मौजूद हर कोई शख्स डर जाता है. लेकिन राहत की बात ये है कि राहुल सेफ हैं और उन्हें किसी भी तरह की कोई गंभीर चोट नहीं आई है.

रीम शेख के साथ भयंकर हादसा

पहले ऐक्ट्रैस रीम शेख के साथ कुकिंग सेट पर कुछ दिन पहले ऐसा ही हादसा हुआ था. खाना बनाने के दौरान उनका फेस काफी जल गया था. वो भी कुकिंग के दौरान तेल में कुछ डालती हैं, जिसके बाद तेल की छींटे एकदम से उनके फेस पर जाती हैं. जिससे उनका फेस काफी जल चुका है.

सोशल मीडिया पर शेयर किए जलने के निशान

इस हादसे के बाद रीम ने अपने शो ‘लाफ्टर शेफ अनलिमिटेड एंटरटेनमेंट’ की कई फोटोज इंस्टा पर शेयर की हैं. जिसमें उनके फेस पर जलने के निशान आप साफ देख सकते हैं. रीम ने अपने लेटेस्ट पोस्ट में शेयर किया है कि अब इस हादसे उबर रही हैं. हर एक्टर के लिए उसका फेस बहुत खास होता है. ऐसे में उनके फेस पर इतने सारे जलने के निशान पड़ना काफी पेनफुल रहा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी सभी के सपोर्ट से अब वह रिकवर कर रही हैं और उनके साथ फैंस की पूरी सहानुभूति है.

शो में नामी सितारें

इस शो में कई नामी सितारें जैसे- जन्नत जुबैर,रीम शेख, अंकिता लोखंडे, विक्की जैन, करण कुंद्रा, अर्जुन बिजलानी, अली गोनी, कृष्णा अभिषेक, राहुल वैद्य, निया शर्मा, कश्मीरा शाह और सुदेश लहरी कुकिंग करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसमें कौमेडियन भारती सिंह शो होस्ट के रूप में दिखाई दे रही हैं.

Happy Birthday Shalini Pandey : शालिनी पांडे के ग्लैमरस लुक आप भी देखें, जिनसे नजरें हटाना होगा मुश्किल

Happy Birthday Shalini Pandey : फिल्म अर्जुन रेड्डी से खास पहचान बनाने वाली ऐक्ट्रेस शालिनी पांडे इस साल अपना 31वां बर्थडे मनाएंगी. 23 सितंबर 1993 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में जन्मी शालिनी ने हाल ही में अपनी पार्टी स्टाइल से सबका दिल जीत लिया है! चाहे वह ट्रौपिकल बीच हो या ग्लैमरस नाइट आउट, शालिनी जानती हैं कि सबकी नजरें कैसे अपनी ओर खींचनी हैं. यहां उनके इंस्टाग्राम से 5 बेहतरीन लुक्स हैं जिन्हें आपको अपने अगले पार्टी लुक के लिए जरूर बुकमार्क करना चाहिए.

1. रेड हाई-नेक क्रौप टौप और धोती स्कर्ट-

शालिनी रेड हाई-नेक क्रौप टौप और धोती स्कर्ट में नजर आ रही हैं, जिसमें उनके एब्स पूरी तरह से दिख रहे है. स्लीक जेल किए हुए हेयर और मिनिमल एक्सेसरीज़ के साथ, उनका यह लुक पूरी तरह परफेक्ट था! चाहे दोस्तों के साथ नाइट आउट हो या किसी खास के साथ डेट नाइट, यह लुक हर मौके पर सही साबित होगा!

2. ग्रीन सीक्विन औफशोल्डर मिनी ड्रेस

यह लुक सबके दिलों पर छाया हुआ है! शालिनी ने एक औफ-शोल्डर ग्रीन सीक्विन मिनी ड्रेस पहनी, जिसमें प्लंजिंग नेकलाइन थी. उन्होंने इसे क्रिस्टल-एम्बेलिश्ड हील्स, होलोग्राफिक आई मेकअप, और व्हाइट नेल्स के साथ पेयर किया था, जो उनके लुक को पूरी तरह से कंप्लीट कर रहा था.

3.ब्लू प्रिंटेड को-आर्ड सेट

ऐक्ट्रेस शालिनी ने ब्लू प्रिंटेड को-आर्ड सेट पहना, जिसमें ड्रौस्ट्रिंग वाला ट्यूब टौप और मैचिंग पैंट्स शामिल थे. स्टेटमेंट गोल्डन इयररिंग्स और बीची कर्ल्स के साथ यह लुक बेहद ही स्टाइलिश और कैज़ुअल था. यह लुक हम ट्रौपिकल थीम पार्टी के लिए जरूर चुराने वाले हैं!

4. वायलेट सीक्विन क्रौप टौप और स्लिट स्कर्ट

 

सीक्विन हमेशा आपको पार्टी का स्टार बना सकता है, और शालिनी को यह बखूबी आता है. उन्होंने वायलेट सीक्विन क्रॉप्ड ब्लाउज़ और थाई-हाई स्लिट स्कर्ट में कहर ढाया. शिमरी आईलिड्स और स्लीक स्ट्रेट बालों के साथ, यह लुक पूरी तरह से ग्लिटर्स और ग्लैमर का था.

5. लेदर मिनी ड्रेस

शालिनी ने फैशन जगत का ध्यान अपनी फियर्स लेदर मिनी ड्रेस में खींचा. वेट कर्ल्स और बोल्ड स्मोकी आईज ने उनके लुक को परफेक्ट ‘इट गर्ल’ एनर्जी दी!

बौलीवुड में शालिनी पांडे ने 2022 में आई फिल्म जयसभाई जोरदार से डेब्यू किया था. लेकिन ये फिल्म फ्लौप रही. इसी साल शालिनी पांडे की फिल्म महाराज आई, जिसे नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया था. इसमें आमिर खान के बेटे जुनैद खान लीड रोल में थे. अब वह 2 और फिल्मों में नजर आएंगी.

मेरे Husband को लगता है कि औफिस में बौस के साथ मेरा चक्कर चल रहा है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 38 साल की शादीशुदा महिला हूं. मुझे बचपने से ही पढ़लिख कर जौब करने का बहुत शौक था. लेकिन जब ग्रेजुएशन पूरा किया, मेरी शादी हो गई फिर उसके बाद बच्चे हो गए, तो उनकी देखरेख में लग गई. अब बच्चे स्कूल जाने लगे हैं, तो मुझे भी टाइम मिल जाता है.

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इसलिए मैंने 1 साल से जौब करना शुरू किया है, मेरा प्रमोशन होने वाला है. जब मैंने ये बात अपने पति (Husband)  को बताई तो वो खुश नहीं हुए. उन्होंने रिएक्ट किया और कहा कि तुम्हें इतनी जल्दी प्रमोशन कैसे मिल रही है, मैं तो 5 सालों से जौब कर रहा हूं, मुझे आज तक प्रमोशन नहीं मिली. जरूर तुम्हारा चक्कर बौस के साथ चल रहा है, इसलिए वो तुम्हें प्रमोट कर रहा है.

पति की ये बात सुनकर मेरे होश उड़ गए. मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वो मेरी बात नहीं मान रहे हैं. उन्होंने साफसाफ मना कर दिया है कि जौब छोड़ दो पर मैं अपने सपनों को ऐसे नहीं तोड़ सकती. समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

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जवाब

अगर कोई महिला आगे बढ़ती है, तो पीठ पीछे कई तरह की बातें होती है. कुछ लोगों की ये सोच ही बन चुकी है कि किसी लेडी को प्रमोशन मिल रहा है, तो कई उसका चक्कर होगा. ऐसे लोगों की सोच को हम कंट्रोल नहीं कर सकते हैं, पर हां हम आपको यह सलाह देंगे कि आप अपने काम पर फोकस करें.
आपके पति आपके बारे में ऐसा सोचते हैं, तो उन्हें यकिन दिलाएं कि आपने मेहनत किया है, कंपनी को फायदा हुआ है, इसलिए वो आपको प्रमोट कर रहे हैं. आप उन्हें ये भी समझाएं कि जौब करने का मतलब ये नहीं होता है कि महिलाएं बाहर जाकर गलत संबंध बनाती है. अगर आप समझदारी से काम लेंगी, तो आप जौब पर भी फोकस करेंगी और पति भी आपके बात समझेंगे.

जैसा कि आपने बताया कि आपके बच्चे स्कूल जा रहे हैं, तो आपके खर्चे आने वाले दिनों में बढ़ने ही वाले है. आप अपने हसबैंड से ये भी कहें कि आज के टाइम में पतिपत्नी दोनों का वर्किंग होना जरूरी है. लाइफस्टाइल, पढ़ाई के खर्चे सब बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में आपदोनों एकदूसरे के सपोर्ट सिस्टम बनेंगे और फाइनेंशियली आपको कोई परेशानी भी नहीं होगी.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लाइफ एंज्वायमेंट: जब रिसेप्शनिस्ट मोनिका की आवाज में फंसे मिस्टर गंभीर

टेलीफोन की घंटी घनघनाई. मैं ने जैसे ही फोन उठाया, उधर से आई मधुर आवाज ने कानों में मिठास घोल दी.

‘‘क्या मिस्टर गंभीर लाइन पर हैं? क्या मैं उन से बात कर सकती हूं?’’

प्रत्युत्तर में मैं ने कहा, ‘‘बोल रहा हूं.’’ इस से पहले कि मैं कुछ कहूं, उधर से पुन: बातों का सिलसिला जारी हो गया, ‘‘सर, मैं पांचसितारा होटल से रिसेप्स्निष्ट बोल रही हूं. हम ने हाल ही में एक स्कीम लांच की है. हम चाहते हैं कि आप को उस का मेंबर बनाएं. सर, इस के कई बेनीफिट हैं. शहर के प्रतिष्ठित लोगों से कांटेक्ट कर के आप हाइसोसायटी में उठबैठ सकेंगे. क्रीम सोसायटी में उठनेबैठने से आप का स्टेटस बढ़ेगा और आप ऐश से लाइफ एंज्वाय करेंगे. इतने सारे लाभों के बावजूद सर, आप के कुल बिल पर हम 10 परसेंट डिस्काउंट भी देंगे. आप समझ सकते हैं सर कि यह स्कीम कितनी यूजफुल है, आप के लिए. सर, बताइए, मैं कब आ कर मेंबरशिप ले लूं?’’

मैं एकाग्रता से उस की बातें सुन रहा था क्योंकि उस के लगातार बोलने के कारण मुझे कुछ कहने का अवसर ही नहीं मिल सका. वह जब कुछ क्षण के लिए रुकी तो मैं ने तुरंत पूछ  लिया, ‘‘मैडम, आप पहले अपना नाम और परिचय दीजिए ताकि मैं आप की स्कीम के संबंध में कुछ सोच सकूं. बिना सोचेसमझे कैसे मेंबर बन पाऊंगा?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं रिसेप्शनिस्ट हूं. क्या परिचय के लिए इतना काफी नहीं है? आप तो सर मेंबरशिप में इंटरेस्ट लीजिए. जो आप के लिए बहुत यूजफुल है.’’

‘‘मैडम, आप का कहना सही है पर उस से पहले आप के बारे में जानना भी तो जरूरी है. बिना कुछ जानेपहचाने मेंबर बनना कैसे संभव है.’’ वह अपनी बात पर कायम रहते हुए फिर बोली, ‘‘सर, आप मेंबर बनने के लिए यस कीजिए. जब मैं पर्सनली आ कर आप से कांटेक्ट करूंगी तब आप मुझ से रूबरू भी हो लीजिएगा. बस, आप के यस कहने की ही देर है. आप जो चाहते हैं, वह सब डिटेल में जान जाएंगे. हमारे आनरेबल कस्टमर के रूप में, आप जब यहां आएंगे तो मुलाकातें होती रहेंगी. लोगों को आपस में मिला कर, लाइफ एंज्वाय कराने का चांस देना ही हमारी स्कीम का मेन मोटो है. सर, प्लीज हमें सेवा करने का एक चांस तो अवश्य दीजिए. मेरा नाम और परिचय जानने में आप क्यों टाइम वेस्ट कर रहे हैं?’’

यह तर्क सुनने के बाद भी मैं अपनी बात पर अटल रहा. मैं ने कहा, ‘‘मैडम, जब तक आप नाम और परिचय नहीं बताएंगी, तब तक आप के प्रस्ताव पर कैसे विचार करूं?’’

जब उस ने देखा कि मैं अपनी बात पर कायम हूं, तो हार कर उस ने कहा, ‘‘सर, जब आप को इसी में सैटिस्फैक्शन है कि पहले मैं अपना इंट्रोडक्शन दूं, तो मैं दिए देती हूं. पर सर, मेरी भी एक शर्त है. इस के बाद आप मेंबर अवश्य बनेंगे. आप इस का भी वादा कीजिए.’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘पहले कुछ बताइए तो सही.’’

उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम मोनिका है,’’ और यह बताने के साथ ही उस ने फिर अपनी बात दोहराई और बोली, ‘‘अब तो प्लीज मान जाइए, मैं कब आ जाऊं?’’

उस के बारबार के मनुहार पर कोई ध्यान न देते हुए मैं ने उस की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘मैडम, कितना सुंदर नाम है, मोनिका? जिसे बताने में आप ने इतनी देर लगा दी. जब नाम इतना शार्ट और स्वीट है, आप की आवाज इतनी मधुर है, आप बात इतने सलीके से कर रही हैं तो स्वाभाविक है, आप सुंदर भी बहुत होंगी? सच कहूं तो आप के दर्शन करने की अब इच्छा होने लगी है.’’

अपनी तारीफ सुन कर उस ने हंस कर कहा, ‘‘सर, अब आप मेन इश्यू को अवाइड कर रहे हैं. यह फेयर नहीं है. जो आप ने नाम पूछा वह मैं ने बता दिया. फिर आप मेरी तारीफ करने लगे और अब दर्शन की बात. आखिर इरादा क्या है आप का, सर? हम ने बहुत बातें कर लीं. अब आप काम की बात पर आइए. सर, बताइए कब आ कर दर्शन दे दूं.’’

वह बराबर सदस्यता लेने के लिए अनुनयविनय करती जा रही थी लेकिन मेरे मन में एक जिज्ञासा थी जिस का समाधान करना उपयुक्त समझा. मैं ने पूछा, ‘‘मोनिकाजी, इतने बड़े शहर में आप ने मुझे ही क्यों इस के लिए चुना? शहर में और लोग भी तो हैं?’’

उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘सर, वास्तव में स्कीम लांच होने पर हम शहर के स्टेटस वाले लोगों से फोन पर कांटेक्ट कर रहे हैं, जो हमारी मेंबरशिप अफोर्ड करने योग्य हैं. वैसे आप के नाम का प्रपोजल आप के मित्र सुदर्शनजी ने किया था. उन्होंने कहा था कि यदि मिस्टर गंभीर तैयार हो जाते हैं तो मैं भी मेंबर बन जाऊंगा. इसीलिए आप से इतनी रिक्वेस्ट कर रही हूं क्योंकि आप के यस कह देने पर हमें आप दोनों की मेंबरशिप मिल जाएगी. सर, अब तो सारी बातें क्लीयर हो गई हैं. इसलिए अब कोई और बहाना मत बनाइए. बताइए, मैं कब आऊं?’’

यह सुन कर मैं पसोपेश में पड़ गया क्योंकि कुछ कहने की कोई गुंजाइश नहीं थी. मुझे चुप देख कर उस ने घबराई आवाज में पूछा, ‘‘सर, अब क्या हो गया? किस गंभीर सोच में पड़ गए हैं? आप का नाम तो गंभीर है ही, क्या नेचर से भी गंभीर हैं? लाइफ में एंज्वाय करने का चांस, आप का वेट कर रहा है और आप इतनी देर से सोचने में टाइम वेस्ट कर रहे हैं. मैं ने कहा न, कम से कम मेरी बात मान कर आप एक चांस तो लीजिए, नो रिस्क नो गेन.’’

मैं ने कहा, ‘‘मोनिकाजी, मैं बहुत कनफ्यूज्ड हो गया हूं. आप को जान कर दुख होगा कि मैं अब 68 का हो गया हूं. जीवन के इस पड़ाव में आप के द्वारा दर्शित जिंदगी का उपभोग कैसे कर सकूंगा? एंज्वाय करने के दिन तो लद गए.’’

उस ने तुरंत मेरी बात को काटते हुए कहा, ‘‘गंभीरजी, यही उम्र तो होती है मौजमस्ती करने की. जब आदमी सभी रिस्पोंसिबिलिटीज से फ्री हो जाता है. फ्री माइंड हो एंज्वाय करने का मजा ही कुछ और होता है. आप मिसेज को साथ ले कर आइए और दोनों मिल कर लुफ्त उठाइए. आप अभी तक जो मजा नहीं उठा पाए  हैं, उसे कम से कम लेटर एज गु्रप में तो उठा लीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘यही तो परेशानी है. श्रीमतीजी एक घरेलू और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं. होटलों में आनाजाना उन्हें पसंद नहीं है. आज तक तो कभी गईं ही नहीं फिर अब कैसे जा पाएंगी? हमारे दौर में आज जैसा होटलों में जाने का चलन और संस्कृति नहीं थी. फिर इस उम्र में लोग क्या कहेंगे? आप ही बताइए, इन हालात में आप का प्रस्ताव कैसे स्वीकार करूं?’’

उस ने तपाक से कहा, ‘‘गंभीरजी, आप जैसे एज गु्रप वालों के साथ यही तो समस्या है कि सेल्फ डिसीजन लेने में हिचकिचाते हैं. लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर अपना इंटरेस्ट और फ्यूचर क्यों किल कर रहे हैं आप? यदि आप की मिसेज को होटल आने में दिक्कत है तो क्या हुआ? उस का समाधान भी मेरे पास है. मैं आप के लिए पार्टनर का प्रबंध कर दूंगी. हाइसोसायटी में तो यह कामन बात है.

‘‘हमारे यहां कई सिंगल फीमेल मेंबर्स हैं. वे भी यही सोच कर मेंबर बनी हैं कि यदि अदर सेक्स का कोई सिंगल मेंबर होगा तो वे उस के साथ पार्टनरशिप शेयर कर लेंगी. गंभीरजी, जरा सोचिए, अब उन्हें आप के साथ एडजेस्ट होने में कोई आब्जेक्शन नहीं है तो आप को क्या डिफीकल्टी है? बस, आप को करेज दिखाने की जरूरत है. बाकी बातें आप मुझ पर छोड़ दीजिए. आप कोई टेंशन न लें अपने ऊपर. मैं हूं न, सब मैनेज कर दूंगी. आप तो अपनी च्वाइस भर बता दीजिए. बस, अब कोई और बहाना मत बनाइए और हमारा आफर फाइनल करने भर का सोचिए.’’

मोनिका की खुली और बेबाक दलीलें सुन कर मैं सकते में आ गया. मन में अकुलाहट होने लगी. सोचने लगा कि कहीं मैं उस के शब्दजालों में घिरता तो नहीं जा रहा हूं? यद्यपि उस से चर्चा करते हुए मन को आनंद की अनुभूति हो रही थी. टेलीफोन के मीटर घूमते रहने की भी चिंता नहीं थी. इसलिए बात को आगे बढ़ाते हुए, मैं ने पूछ लिया, ‘‘मोनिकाजी, इस प्रकार की पार्टनरशिप में पैसे काफी खर्च हो सकते हैं. मैं एक रिटायर आदमी हूं. इस का खर्च सब कैसे और कहां से बरदाश्त कर सकूंगा?’’

उस ने कहा, ‘‘आप का यह सोचना सही है. हमारी एनुअल मेंबरशिप ही 5 हजार रुपए है. होटल विजिट की सिंगल सिटिंग में 700-800 का बिल आना साधारण बात है पर आप चिंता क्यों कर रहे हैं? इस बिल पर 10 परसेंट का डिस्काउंट भी तो मिल रहा है आप को. वैसे कभीकभी पार्टनर के बिल का पेमेंट भी आप को करना पड़ सकता है. कभी वह भी पेमेंट कर दिया करेंगी. मैं उन्हें समझा दूंगी. वह मुझ पर छोडि़ए.’’

वह एक पल रुक कर फिर बोली, गंभीरजी, एक बात कहूं, जब लाइफ एंज्वाय करना ही है तो फिर पैसों का क्या मुंह देखना? आखिर आदमी पैसा इसीलिए तो कमाता है. फिर बिना पार्टनरशिप के जिंदगी में एंज्वायमेंट कैसे होगा? सिर्फ रूखीसूखी दालरोटी खाना ही तो जिंदगी का नाम नहीं है. ‘‘गंभीरजी, एक बार इस लाइफ स्टाइल का टेस्ट कर के देखिए, सबकुछ भूल जाएंगे. शुरू में आप को कुछ अजीबअजीब जरूर लगेगा लेकिन एक बार के बाद आप का मन आप को बारबार यहां विजिट करने को मजबूर करेगा. इस का नशा सिर चढ़ कर बोलता है. यही तो रियल लाइफ का एंज्वायमेंट है.’’

‘‘मोनिकाजी, मैं 68 का हूं. क्या ऐसा करना मुझे अच्छा लगेगा?’’ मैं ने यह कहा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘गंभीरजी, आप एज का आलाप क्यों कर रहे हैं? अरे, हमारे यहां तो 80 तक के  मेंबर हैं. उन्होंने तो कभी लाइफ एंज्वायमेंट में एज फेक्टर को काउंट नहीं किया. जिंदादिली इसी को कहते हैं कि आदमी हर एज गु्रप में स्वयं को फुल आफ यूथ समझे. बस, जोश और होश से जीने की मन में तमन्ना होनी चाहिए. ‘साठा सो पाठा’ वाली कहावत तो आप ने सुनी ही होगी. आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता, जरूरत है सिर्फ आत्मशक्ति की.’’

मोनिकाजी द्वारा आधुनिक जीवन दर्शन का तर्क सुन कर मैं अचंभित हुए बिना नहीं रहा. मुझे ऐसा लगा कि मेरी प्रत्येक बात का, एक अकाट्य तथ्यात्मक उत्तर उस के पास है. वह मुझे प्रत्येक प्रश्न पर निरुत्तर करती जा रही है. अंदर ही अंदर भय भी व्याप्त होने लगा था. एकाएक मन में एक नवीन विचार प्रस्फुटित हुआ. उन से तुरंत पूछ बैठा कि आप की एज क्या है? यह सुन कर वह चौंक गई और कहने लगी, ‘‘अब मेरी एज बीच में कहां से आ गई?’’ पर जब इस के लिए मैं ने मजबूर किया तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप स्वयं समझ सकते हैं कि फाइव स्टार रिसेप्सनिस्ट की एज क्या हो सकती है? इतना तो श्योर है कि मैं आप के एज ग्रुप की नहीं हूं.’’

‘‘फिर भी बताइए तो सही, मैं विशेष कारण से पूछ रहा हूं.’’

‘‘25.’’

इस के बाद मैं ने फिर प्रश्न किया कि आप के मातापिता भी होंगे? उस ने सहजता से हां में उत्तर दिया. मैं ने फिर पूछा, ‘‘मोनिकाजी, क्या आप ने उन्हें भी सदस्य बना कर जीवन का आनंद उठाने का अवसर दिलाया है? वे तो शायद मुझ से भी कम उम्र के होंगे. जब आप अन्य लोगों को लाइफ एंज्वाय करने के लिए प्रोत्साहित और अवसर प्रदान कर रही हैं, तो उन्हें क्यों और कैसे भूल गईं? वे भी तो अन्य लोगों की तरह इनसान हैं. उन्हें भी जीवन में आनंद उठाने का अधिकार है. उन्हें भी मौका मिलना चाहिए. पूर्व में आप ही ने कहा कि यही उम्र तो एंज्वाय करने की होती है, इसलिए आप को स्मरण दिलाना मैं ने उचित समझा. ‘चैरिटी बिगिंस फ्राम होम’ वाली बात आप शायद भूल रही हैं.’’

मेरी बात सुन कर शायद उसे अच्छा नहीं लगा. खिन्न हो कर बोली, ‘‘आप मेरे मातापिता में कैसे इंटरेस्ट लेने लगे? मैं तो आप के बारे में चर्चा कर रही हूं.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ मैं ने कहा, ‘‘आप के मातापिता से मेरा इनसानियत का रिश्ता है. मुझे यही लगा कि जब आप सभी लोगों को जीवन में इतना सुनहरा अवसर प्रदान करने के लिए आमादा हो कर जोर दे रही हैं तो फिर इस में मेरा भी स्वार्थ है.’’

उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मेरे मातापिता से आप का क्या स्वार्थ सिद्ध हो रहा है?’’

तब मैं ने कहा, ‘‘कुछ खास नहीं, मुझे उन की कंपनी मिल जाएगी. आप मुझे पार्टनर दिलाने का जो टेंशन ले रही हैं, उस से मैं आप को मुक्त करना चाहता हूं. इसलिए मैं उन्हें भी मेंबर बनाने की नेक सलाह दे रहा हूं,’’ बिना अवरोध के अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मैं ने कहा, ‘‘मोनिकाजी, आप उन दोनों के मेंबर बन जाने का शुभ समाचार मुझे कब दे रही हैं, ताकि मैं खुद आप के पास आ कर सदस्यता ग्रहण कर सकूं?’’

मेरी इस बात का उत्तर शायद उस के पास नहीं था. अब उस की बारी थी निरुत्तर होने की. एकाएक खट की आवाज आई और फोन कट गया. मैं ने एक लंबी सास ली और फोन रख दिया.

विगत 15 मिनट से चल रही बातचीत के क्रम का इस प्रकार एकाएक पटाक्षेप हो गया. मेरी एकाग्रता भंग हो गई. मैं गंभीरता से बीते क्षणों मेें हुई बातचीत के बारे में सोचने लगा कि आज के इस आधुनिक युग में विज्ञापनों के माध्यम से उपभोक्ताओं को जीवन में आनंद और सुखशांति की परिभाषा जिस प्रकार युवाओं द्वारा परोसी तथा पेश की जा रही है, वह कितनी घिनौनी है. जिस का एकमात्र उद्देश्य उपभोक्ता को किसी भी प्रकार आकर्षित कर, उन्हें सिर्फ ‘ईट, ड्रिंक एंड बी मेरी’ के आधुनिक मायाजाल में लिप्त और डुबो दिया जाए. क्या यह सब बातें हमारी भारतीय संस्कृति, संस्कारों, आदर्शों और परंपराओं के अनुरूप और उपयुक्त हैं? क्या यह उन के साथ छल और कपट नहीं है? सोच कर मन कंपित हो उठता है.

आज के आधुनिक युग की दुहाई दे कर जिस प्रकार का घृणित प्रचारप्रसार, वह भी देश की युवा पीढ़ी के माध्यम से करवाया जा रहा है, क्या वह हमारी संस्कृति पर अतिक्रमण और कुठाराघात नहीं है? हम कब तक मूकदर्शक बने, इन सब क्रियाकलापों तथा आपदाओं के साक्षी हो कर, इन्हें सहन करते जाएंगे?

दूसरे दिन फिर उसी होटल से फोन आया. इस बार आवाज किसी पुरुष की थी. उस ने कहा, ‘‘सर, मैं पांचसितारा होटल से बोल रहा हूं. हम ने एक स्कीम लांच की है. हम उस का आप को मेंबर…’’ इतना सुनते ही मैं ने बात काटते हुए उस से प्रश्न किया, ‘‘आप के यहां मोनिकाजी रिसेप्शनिस्ट हैं क्या?’’

उस ने सकारात्मक उत्तर देते हुए प्रत्युत्तर में हां कहा. इतना कह कर मैं ने फोन काट दिया कि कल इस बारे में उन से विस्तृत चर्चा हो चुकी है. मेंबरशिप के बारे में आप उन से बात कर लीजिए.

तब से मैं उन के फोन की प्रतीक्षा कर रहा हूं. पर खेद है कि उन का फोन नहीं आया. इस प्रकार तब से मैं रियल माडर्न लाइफ एंज्वायमेंट करने के लिए प्रतीक्षारत हूं.

अवार्ड शो के दौरान Anupama को क्यों आया गुस्सा, क्या सीरियल में आएगा 15 साल का लीप?

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में इन दिनों कई ट्रैक दिखाए जा रहे हैं. जिससे दर्शकों को इस सीरियल में हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि अनुज-अनुपमा धीरे-धीरे करीब आ रहे हैं. दोनों पहले की तरह एकदूसरे में खोए नजर आ रहे हैं.

मौका देखकर अनुज अपनी अनु से अक्सर प्यार का इजहार कर देता है. तो वहीं दूसरी तरफ अनुपमा भी फुरसत के पल में अनुज को याद कर लेती है. दोनों का रोमांटिक सीन भी दिखाया जा रहा है. सीरियल में काफी दिनों से वनराज को गायब दिखाया जा रहा है.

आशा भवन में तोषु फिर चलेगा घटिया चाल

दूसरी तरफ आशा भवन में शाह परिवार के लोग सबके साथ रह रहे हैं. पाखी और तोषु भी लौटकर आ गए है. अनुपमा ने उन दोनों को फिर से रहने की अनुमति दे दी है. लेकिन वो दोनों भाई-बहन अपनी आदतों से बाज नहीं आएंगे. आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि तोषु आशा भवने में चोरी करेगा तभी मीनु और सागर देख लेंगे, लेकिन तोषु चाल चलेगा और उल्टा इल्जाम सागर और मीनु पर लगाएगा कि सागर चोरी कर रहा था ताकि वो मीनु को लेकर घर से भाग सके.

शो में आएगा 15 साल का लीप ?

सीरियल गौसिप के अनुसार, इस सीरियल के मेकर्स कहानी में नया ट्विस्ट लाने की तैयारी कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि सीरियल अनुपमा में एक बार फिर लीप लाने की प्लानिंग की जा रही है. यह लीप 15 साल बाद की होगी. जिससे शो की कहानी पूरी तरह पलट जाएगी. मेकर्स अनुपमा की कहानी में ढेर सारा ड्रामा लाने की तैयारी कर रहे है. एक रिपोर्ट की माने तो अनुपमा को लेकर एक बहुत बड़ा अपडेट सामने आया है. रिपोर्ट के अनुसार, शो में अब सीधा 15 साल का लीप दिखाया जाएगा, जिससे शो के बहुत से कलाकारों की छुट्टी होगी. सीरियल में सिर्फ अनुपमा और अनुज ही नजर आएंगे. मेकर्स इस शो में नए कलाकारों को लाने की तैयारी कर रहे हैं.

स्टार परिवार अवार्ड के दौरान रुपाली गांगुली गुस्से में निकली बाहर

‘अनुपमा’ फेम रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) बीती रात एक अवार्ड शो में नजर आईं. स्टार परिवार अवार्ड फंक्शन में ऐक्ट्रैस ने कई अवार्ड्स भी जीता और स्टेज पर अपनी खुशी भी जाहिर की. लेकिन इसी बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है. जिसमें अनुपमा गुस्से में इस अवार्ड फंक्शन से बाहर निकलती नजर आ रही है.

इस वायरल वीडियो में  अनुपमा गोल्डन कलर के आउटफिट में बहुत खूबसूरत लग रही है. वह बीच सड़क पर फोन पर किसी से बात करती नजर आ रही हैं और कह रही हैं कि ‘तेरा क्या चक्कर है, बता मैं निकलूं या फिर नहीं निकलूं. मैं कोई अवार्ड लेकर नहीं जा रही.’ इसके बाद रुपाली गांगुली स्कूटी के पीछे बैठती हैं और वहां से निकल जाती हैं. रुपाली गांगुली शहनाज गिल के मैनेजर कौशल जोशी के साथ स्कूटी पर इवेंट से निकलती नजर आ रही हैं. शो के दौरान अनुपमा क्यों क्यों भड़कीं, इस बात की कोई जानकारी नहीं सामने आई है.

नया सफर: ससुराल के पाखंड और अंधविश्वास के माहौल में क्या बस पाई मंजू

“पापा, मैं यह शादी नहीं करना चाहती. प्लीज, आप मेरी बात मान लो…”

“क्या कह रही हो तुम? आखिर क्या कमी है मुनेंद्र में? भरापूरा परिवार है. खेतखलिहान हैं उस के पास. दोमंजिले मकान का मालिक है. घर में कोई कमी नहीं. हमारी टक्कर के लोग हैं,” उस के पिता ने गुस्से में कहा.

“पर पापा, आप भी जानते हैं, मुनेंद्र 5वीं फेल है जबकि मैं ग्रैजुएट हूं. हमारा क्या मेल?” मंजू ने अपनी बात रखी.

“मंजू, याद रख पढ़नेलिखने का यह मतलब नहीं कि तू अपने बाप से जबान लड़ाए और फिर पढ़ाई में क्या रखा है? जब लड़का इतना कमाखा रहा है, वह दानधर्म करने वाले इतने ऊंचे खानदान से है फिर तुझे बीच में बोलने का हक किस ने दिया? देख बेटा, हम तेरे भले की ही बात करेंगे. हम तेरे मांबाप हैं कोई दुश्मन तो हैं नहीं,” मां ने सख्त आवाज में उसे समझाने की कोशिश की.

“पर मां आप जानते हो न मुझे पढ़नेलिखने का कितना शौक है. मैं आगे बीएड कर टीचर बनना चाहती हूं. बाहर निकल कर काम करना है, रूपए कमाने हैं मुझे,” मंजू गिड़गिड़ाई.

“बहुत हो गई पढ़ाई. जब से पैदा हुई है यह लड़की पढ़ाई के पीछे पड़ी है. देख, अब तू चेत जा. लड़की का जन्म घर संभालने के लिए होता है, रुपए कमाने के लिए नहीं. तेरे ससुराल में इतना पैसा है कि बिना कमाई किए आराम से जी सकती है. चल, ज्यादा नखरे मत कर और शादी के लिए तैयार हो जा. हम तेरे नखरे और नहीं सह सकते. अपने घर जा और हमें चैन से रहने दे,” उस के पिता ने अपना फैसला सुना दिया था.

हार कर मंजू को शादी की सहमति देनी पड़ी. मुनेंद्र के साथ सात फेरे ले कर वह उस के घर आ गई. मंजू का मायका बहुत पूजापाठ करने वाला था. उस के पिता गांव के बड़े किसान थे. अब उसे ससुराल भी वैसा ही मिला था. पूजापाठ और अंधविश्वास में ये लोग दो कदम आगे ही थे.

किस दिन कौन से रंग के कपड़े पहनने हैं, किस दिन बाल धोना है, किस दिन नाखून काटने हैं और किस दिन बहू के हाथ दानपुण्य कराना है यह सब पहले से निश्चित रहता था.

सप्ताह के 7 में से 4 दिन उस से अपेक्षा रखी जाती थी कि वह किसी न किसी देवता के नाम पर व्रत रखे. व्रत नहीं तो कम से कम नियम से चले. रीतिरिवाजों का पालन करे. मंजू को अपनी डिगरी के कागज उठा कर अलमारी में रख देने पड़े. इस डिगरी की इस घर में कोई अहमियत नहीं थी.

उस का काम केवल सासससुर की सेवा करना, पति को सैक्स सुख देना और घर भर को स्वादिष्ठ खाना बनाबना कर खिलाना मात्र था. उस की खुशी, उस की संतुष्टि और उस के सपनों की कोई अहमियत नहीं थी.

समय इसी तरह गुजरता जा रहा था. बहुत बुझे मन से मंजू अपनी शादीशुदा जिंदगी गुजार रही थी. शादी के 1 साल बीत जाने के बाद भी जब मंजू ने सास को कोई खुशखबरी नहीं सुनाई तो घर में नए शगूफे शुरू हो गए.

सास कभी उसे बाबा के पास ले जाती तो कभी टोटके करवाती, कभी भस्म खिलाती तो कभी पूजापाठ रखवाती. लंबे समय तक इसी तरह बच्चे के जन्म की आस में परिवार वाले उसे टौर्चर करते रहे. मंजू समझ नहीं पाती थी कि आखिर इस अनपढ़, जाहिल और अंधविश्वासी परिवार के साथ कैसे निभाए?

इस बीच खाली समय में बैठेबैठे उस ने फेसबुक पर एक लड़के अंकित से दोस्ती कर ली. अंकित पढ़ालिखा था और उसी की उम्र का भी था. दोनों बैचमेट थे. उस के साथ मंजू हर तरह की बातें करने लगी. अंकित मंजू की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता. उसे नईनई बातें बताता. दोनों के बीच थोड़ा बहुत अट्रैक्शन भी था मगर अंकित जानता था कि मंजू विवाहित है सो वह कभी अपनी सीमारेखा नहीं भूलता था.

एक दिन उस ने मंजू को बताया कि वह सिंगापुर अपनी आंटी के पास रहने जा रहा है. उसे वहां जौब भी मिल जाएगी. इस पर मंजू के मन में भी उम्मीद की एक किरण जागी. उसे लगा जैसे वह इन सारे झमेलों से दूर किसी और दुनिया में अपनी जिंदगी की शुरुआत कर सकती है.

उस ने अंकित से सवाल किया,” क्या मैं तुम्हारे साथ सिंगापुर चल सकती हूं?”

“पर तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हें जाने की अनुमति दे देंगे?” अंकित ने पूछा.

“मैं उन से अनुमति मांगने जाऊंगी भी नहीं. मुझे तो बस यहां से बहुत दूर निकल जाना है, ” मंजू ने बिंदास हो कर कहा.

“इतनी हिम्मत है तुम्हारे अंदर?” अंकित को विश्वास नहीं हो रहा था.

“हां, बहुत हिम्मत है. अपने सपनों को पूरा करने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.”

“तो ठीक है मगर सिंगापुर जाना इतना आसान नहीं है. पहले तुम्हें पासपोर्ट, वीजा वगैरह तैयार करवाना पड़ेगा. उस में काफी समय लग जाता है. वैसे मेरा एक फ्रैंड है जो यह काम जल्दी कराने में मेरी मदद कर सकता है. लेकिन तुम्हें इस के लिए सारे कागजात और पैसे ले कर आना पड़ेगा. कुछ औपचारिकता हैं उन्हें पूरी करनी होगी,” अंकित ने समझाया.

“ठीक है, मैं कोई बहाना बना कर वहां पहुंच जाऊंगी. मेरे पास कुछ गहने पड़े हैं उन्हें ले आऊंगी. तुम मुझे बता दो कब और कहां आना है.”

अगले ही दिन मंजू कालेज में सर्टिफिकेट जमा करने और सहेली के घर जाने के बहाने घर से निकली और अंकित के पास पहुंच गई. दोनों ने फटाफट सारे काम किए और मंजू वापस लौट आई. घर में किसी को कानोंकान खबर भी नहीं हुई कि वह क्या कदम उठाने जा रही है.

इस बीच मंजू चुपकेचुपके अपनी पैकिंग करती रही और फिर वह दिन भी आ गया जब उसे सब को अलविदा कह कर बहुत दूर निकल जाना था. अंकित ने उसे व्हाट्सऐप पर सारे डिटेल्स भेज दिए थे.

शाम के 7 बजे की फ्लाइट थी. उसे 2-3 घंटे पहले ही निकलना था. उस ने अंकित को फोन कर दिया था. अंकित ठीक 3 बजे गाड़ी ले कर उस के घर के पीछे की तरफ खड़ा हो गया. इस वक्त घर में सब सो रहे थे. मौका देख कर मंजू बैग और सूटकेस ले कर चुपके से निकली और अंकित के साथ गाड़ी में बैठ कर एअरपोर्ट की ओर चल पड़ी.

फ्लाइट में बैठ कर उसे एहसास हुआ जैसे आज उस के सपनों को पंख लग गए हैं. आज से उस की जिंदगी पर किसी और का नहीं बल्कि खुद उस का हक होगा. वह छूट रही इस दुनिया में कभी भी वापस लौटना नहीं चाहती थी.

रास्ते में अंकित जानबूझ कर माहौल को हलका बनाने की कोशिश कर रहा था. वह जानता था कि मंजू अंदर से काफी डरी हुई थी. अंकित ने अपनी जेब से कई सारे चुइंगम निकाल कर उसे देते हुए पूछा,”तुम्हें चुइंगम पसंद हैं?”

मंजू ने हंसते हुए कहा,”हां, बहुत पसंद हैं. बचपन में पिताजी से छिप कर ढेर सारी चुइंगम खरीद लाती थी.”

“पर अब भूल जाओ. सिंगापुर में चुइंगम नहीं खा पाओगी.”

“ऐसा क्यों?”

“क्योंकि वहां चुइंगम खाना बैन है. सफाई को ध्यान में रखते हुए सिंगापुर सरकार ने साल 1992 में चुइंगम बैन कर दिया था.”

अंकित के मुंह से यह बात सुन कर मंजू को हंसी आ गई. चेहरा बनाते हुए बोली,” हाय, यह वियोग मैं कैसे सहूंगी?”

“जैसे मैं सहता हूं,” कहते हुए अंकित भी हंस पड़ा.

“वैसे वहां की और क्या खासियतें हैं? मंजू ने उत्सुकता से पूछा.

“वहां की नाईटलाइफ बहुत खूबसूरत होती है. वहां की रातें लाखों टिमटिमाती डिगाइनर लेजर लाइटों से लैस होती हैं जैसे रौशनी में नहा रही हों.

“तुम्हें पता है, सिंगापुर हमारे देश के एक छोटे से शहर जितना ही बड़ा होगा. लेकिन वहां की साफसुथरी सड़कें, शांत, हराभरा वातावरण किसी का भी दिल जीतने के लिए काफी है. वहां संस्कृति के अनोखे और विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं. वहां की शानदार सड़कों और गगनचुंबी इमारतों में एक अलग ही आकर्षण है. सिंगापुर में सड़कों और अन्य स्थलों पर लगे पेड़ों की खास देखभाल की जाती है और उन्हें एक विशेष आकार दिया जाता है. यह बात इस जगह की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते हैं. ”

“ग्रेट, पर तुम्हें इतना सब कैसे पता? पहले आ चुके हो लगता है?”

“हां, आंटी के यहां कई बार आ चुका हूं।”

सिंगापुर पहुंच कर अंकित ने उसे अपनी आंटी से मिलवाया. 2-3 दिन दोनों आंटी के पास ही रुके.

आंटी ने मंजू को सिंगापुर की लाइफ और वर्क कल्चर के बारे में विस्तार से समझाते हुए कहा,” वैसे तो तेरी जितनी शिक्षा है वह कहीं भी गुजरबसर करने के लिए काफी है. पर याद रख, तू फिलहाल सिंगापुर में है और वह डिगरी भारत की है जिस का यहां ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाला.

“तेरे पास जो सब से अच्छा विकल्प है वह है हाउसहोल्ड वर्क का. सिंगापुर में घर संभालने के लिए काफी अच्छी सैलरी मिलती है. वैसे कपल्स जो दिन भर औफिस में रहते हैं उन्हें पीछे से बच्चों और बुजुर्गों को संभालने के लिए किसी की जरूरत पड़ती है. यह काम तू आसानी से कर सकेगी. बाद में काम करतेकरते कोई और अच्छी जौब भी ढूंढ़ सकती है.”

मंजू को यह आइडिया पसंद आया. उस ने आंटी की ही एक जानपहचान वाली के यहां बच्चे को संभालने का काम शुरू किया. दिनभर पतिपत्नी औफिस चले जाते थे. पीछे से वह बेबी को संभालने के साथ घर के काम करती. इस के लिए उसे भारतीय रुपयों में ₹20 हजार मिल रहे थे. खानापीना भी घर में ही था. ऐसे में वह सैलरी का ज्यादातर हिस्सा जमा करने लगी.

धीरेधीरे उस के पास काफी रुपए जमा हो गए. घर में सब उसे प्यार भी बहुत करते थे. बच्चों का खयाल रखतेरखते वह उन से गहराई से जुड़ती चली गई थी. अब उसे अपनी पुरानी जिंदगी और उस जिंदगी से जुड़े लोग बिलकुल भी याद नहीं आते थे. वह अपनी नई दुनिया में बहुत खुश थी. अंकित जैसे सच्चे दोस्त के साथसाथ उसे एक पूरा परिवार मिल गया था.

अपनी मालकिन सीमा की सलाह पर मंजू ने ऐडवांस कंप्यूटर कोर्स भी जौइन कर लिया ताकि उसे समय आने पर कोई अच्छी जौब का मौका भी मिल जाए. वह अब सिंगापुर और यहां के लोगों से भी काफी हद तक परिचित हो चुकी थी. यहां के लोगों की सोच और रहनसहन उसे पसंद आने लगी थी. यहां का साफसुथरा माहौल उसे बहुत अच्छा लगता. अंकित से भी उस की दोस्ती काफी खूबसूरत मोड़ पर थी. अंकित को जौब मिल चुकी थी और वह एक अलग कमरा ले कर रहता था.

हर रविवार जिद कर के वह मंजू को आसपास घुमाने भी ले जाता. वह मंजू की हर तरह से मदद करने को हमेशा तैयार रहता. कभीकभी मंजू को लगता जैसे वह अंकित से प्यार करने लगी है. अंकित की आंखों में भी उसे अपने लिए वही भाव नजर आते. मगर सामने से दोनों ने ही एकदूसरे से कुछ नहीं कहा था.

एक दिन शाम में अंकित उस से मिलने आया. उस ने घबराए हुए स्वर में मंजू को बताया,”मंजू, तुम्हारे पति को कहीं से खबर लग गई कि तुम मेरे साथ कहीं दूर आ गई हो. दरअसल, किसी ने तुम्हें मेरे साथ एअरपोर्ट के पास देख लिया था. यह सुन कर तुम्हारा पति मेरे भाई के घर पहुंचा और डराधमका कर सच उस से उगलवा लिया कि हम सिंगापुर में हैं.

“दोनों को यह लग रहा है कि तुम मेरे साथ भाग आई हो. हो सकता है कि तुम्हारा पीछा करतेकरते वे यहां भी पहुंच जाएं.”

“लेकिन उन के लिए सिंगापुर आना इतना आसान तो नहीं और यदि वे यहां आ भी जाते हैं तो उस से पहले ही मुझे यहां से निकलना पड़ेगा.”

“हां पर तुम जाओगी कहां?” चिंतित स्वर में अंकित ने पूछा.

“ऐसा करो मंजू तुम मलयेशिया निकल जाओ. वहां मेरी बहन रहती है. उस के घर में बूढ़े सासससुर और एक छोटा बेबी है. जीजू और दीदी जौब पर जाते हैं. पीछे से सास बेबी को संभालती हैं. मगर अब उन की भी उम्र काफी हो चुकी है. तुम कुछ दिनों के लिए उन के घर में फैमिली मैंबर की तरह रहो. मैं तुम्हारे बारे में उन्हें सब कुछ बता दूंगी. तुम बेबी संभालने का काम कर लेना. बाद में जब तुम्हारे पति और भाई यहां से चले जाएं तो वापस आ जाना. अंकित तुम्हें वहां भेजने का प्रबंध कर देगा,” सीमा ने समाधान सुझाया.

मंजू ने अंकित की तरफ देखा. अंकित ने हामी भरते हुए कहा,” डोंट वरी मंजू मैं तुम्हें सुरक्षित मलेशिया तक पहुंचाऊंगा मगर वीजा बनने में कुछ समय लगेगा. तब तक तुम्हें यहां छिप कर रहना होगा.”

“हां, अंकित मुझे अपनी पढ़ाई भी छोड़नी होगी. मैं नहीं चाहती कि मेरा पति या भाई मुझे पकड़ लें और फिर से उसी नरक में ले जाएं जहां से बच कर मैं आई हूं. आई विल बी ग्रेटफुल टू यू अंकित.”

“ओके, तुम डरो नहीं मैं इंतजाम करता हूं,” कह कर अंकित चला गया और मंजू उसे जाता देखती रही. फिर वह सीमा के गले लग गई. सीमा बड़ी बहन की तरह प्यार से उस का माथा सहलाने लगी.

इस बात को कई दिन बीत गए. एक दिन मंजू कंप्यूटर क्लास से निकलने वाली थी कि उसे अपने भाई की शक्ल वाला लड़का नजर आया. वह इस बात को मन का भ्रम मान कर आगे बढ़ने को हुई कि तभी उसे भाई के साथ अपना पति मुनेंद्र भी नजर आ गया. मंजू वहीं ठहर गई. वह नहीं चाहती थी कि उन दोनों को उस की झलक भी मिले. उस का पति और भाई इधरउधर देखते दूसरी सड़क पर आगे बढ़ गए तो वह दुपट्टे से चेहरा ढंक कर बाहर निकली और तेजी से अपने घर की तरफ चल दी. उसे बहुत डर लग रहा था. वह समझ गई थी कि उस का भाई और पति उस की तलाश में सिंगापुर पहुंच चुके हैं और अब यहां उस का बचना मुश्किल है.

घर आ कर उस ने सारी बात सीमा और अंकित को बताई. जाहिर था कि अब मंजू का सिंगापुर में रहना खतरे से खाली नहीं था. अब तक अंकित ने मंजू की वीजा का इंतजाम कर दिया था. अगले दिन ही उस के जाने का प्रबंध कर दिया गया. अपना सामान पैक करते समय मंजू सीमा के गले लग कर देर तक रोती रही. बच्चे भी मंजू को छोड़ने को तैयार नहीं थे.

छोटी परी ने तो उसे कस कर पकड़ लिया और कहने लगी,” नहीं दीदी, आप कहीं नहीं जाओगे हमें छोड़ कर.”

मंजू का दिल भर आया था. उस की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. अंकित के साथ एअरपोर्ट की तरफ जाते हुए भी वही सोच रही थी कि एक अनजान देश में अनजानों के बीच उसे अपने परिवार से कहीं ज्यादा प्यार मिला. यही नहीं, अंकित जैसा दोस्त मिला जो रिश्ते में कुछ न होते हुए भी उस के लिए इतनी भागदौड़ करता रहता है, उसे सुरक्षा देता है, उस की परवाह करता है. काश अंकित हमेशा के लिए उस का बन जाता. इसी तरह हमेशा उस के बढ़ते कदमों को हौंसला और संबल देता.

मंजू ने इन्हीं भावों के साथ अंकित की तरफ देखा. अंकित की नजरों में भी शायद यही भाव थे. एक अनकहा सा प्यार दोनों की आंखों में झलक रहा था पर दोनों ही कुछ कह नहीं पा रहे थे. अंकित ने उदास स्वर में कहा,”अपना ध्यान रखना मंजू।”

“देखो, तुम भी बच के रहना. कहीं वे तुम्हें देख न लें,” मंजू ने भी चिंतित हो कर कहा.

“नहींनहीं आजकल मेरी नाईटशिफ्ट चल रही है. मैं दिन में वैसे भी घर में ही रहता हूं सो पकड़ में नहीं आने वाला. अगर वे मुझे खोजते हुए घर तक आ भी गए तो मैं यही कहूंगा कि तुम मेरे साथ आई जरूर थी मगर अब कहां हो यह खबर नहीं है. तुम घबराओ नहीं आराम से रहना और अपना ध्यान रखना.”

मलयेशिया की फ्लाइट में बैठी हुई मंजू का दिल अभी भी अंकित को याद कर रहा था. शायद वह अंकित से दूर जाना नहीं चाहती थी. वह एक नए सफर की तरफ निकल तो चुकी थी पर इस बार पीछे जो छूट रहा था वह सब फिर से पा लेने की चाहत थी.

Printed SilK Saree : ट्रैंड में हैं प्रिंटेड सिल्क साड़ियां, फंक्शन में चाहिए स्टाइलिश लुक तो करें कैरी

Printed SilK Saree:  रेशम यानि सिल्क की साड़ियों को पारंपरिक और शानदार साड़ियों के रूप में माना जाता है, जो महिलाओं के लिए पारंपरिक शैली का एहसास कराती हैं. भारत में रेशम की साड़ियों के अलगअलग प्रकार हैं, जहां प्रत्येक अपने स्वयं के क्षेत्रीय और सांस्कृतिक महत्त्व को दिखते हुए बनाई जाती हैं. कुछ शहतूत रेशम जैसे बहुत महीन रेशम से बने होते हैं जबकि कुछ रेशम कपास से बने होते हैं, जिस से सूती रेशम साड़ियां बनती हैं. इस में बनारसी सिल्क साड़ियों से ले कर दक्षिण भारतीय सिल्क साड़ियों तक, प्रत्येक सिल्क साड़ी की अपनी विशिष्टता, सांस्कृतिक विरासत और शिल्प कौशल अपनेआप में अनूठी होती है.

सिल्क बनता कैसे है

यह एक खास तरह का कीड़ा होता है, जिस का वैज्ञानिक नाम बौंबेक्स मोरी है. यह कीड़ा सिर्फ 3-4 दिन ही जिंदा रहता है और सिर्फ 2-3 दिनों में ही कई अंडे दे देता है. इस के बाद ये कीड़ा अपने लार्वे से अपने चारों तरफ एक शेप बना लेता है यानि धागे का एक जाल सा बुन लेता है। ऐसा ही जाल मकड़ी भी बुनती है, लेकिन रेशम का कीड़ा अपने शरीर के चारों तरफ बुनता है.

इस के बाद यह लार्वा हवा के संपर्क में आ कर रेशम का धागा बन जाता है. फिर सिल्क अपने चारों तरफ जो धागा लिपटा है, उस से बाहर आने की कोशिश करता है. वैसे उस वक्त धागे के इस आवरण को ककून कहा जाता है. लेकिन अगर धागे के कोए से कीड़ा बाहर आ जाए, तो पूरा रेशम बिखर जाता है, इसलिए इस के निकलने से पहले ही इसे गरम पानी में डाल कर मार दिया जाता है. इस के साथ ही धागे को अलग कर दिया जाता है और धागे का पूरा रोल बना लिया जाता है. इस तरह सिल्क बनता है. फिर इसे जरूरत के अनुसार रंग दिया जाता है.

भारत में सिल्क उत्पादन पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू आदि जगहों पर होता है.

प्रिंटेड साड़ियों का मौडर्न क्रेज

यहां हम बात कर रहे हैं सिल्क की प्रिंटेड साड़ियों की, जिस में समय के साथसाथ परिवर्तन हुआ है. आमतौर पर देखा गया है कि सिल्क की साड़ी का नाम लेते ही महिलाओं के मन में खुशी की लहर दौड़ जाती है, क्योंकि पुराने जमाने से सिल्क साड़ियों को खास अवसरों पर पहनने का प्रचलन रहा है। ऐसी साड़ियों को पहन कर कहीं भी जाने पर सब की नजरें आप पर पड़ती हैं. यही वजह है कि किसी खास अवसर पर महिलाएं आज भी सिल्क की साड़ियां पहनना पसंद करती हैं. सिल्क की साड़ियां किसी भी रंग और रूप की महिला को सूट करती है.

फिल्म इंडस्ट्री ने भी इन सिल्क की प्रिंटेड साड़ियों को आगे लाने में मदद की है, क्योंकि सिल्क की साड़ियों का नाम आते ही रेखा और राखी गुलजार का नाम मन में सब से पहले आता है. राखी गुलजार ने वर्ष 1978 में आई फिल्म ‘कसमे वादे’ में अलगअलग प्रिंटेड सिल्क की साड़ियां पहन कर हर महिला के मन में इसे स्थापित कर दिया. उस के बाद से आज भी हर उम्र की महिलाएं इसे पहनती हैं.

प्रिंटेड साड़ी का इतिहास

प्रिंटेड सिल्क साड़ियों का इतिहास सालों से रिच और ऐलीगेंट दिखता रहा है, इन साड़ियों ने हर महिला के वार्डरोब को हर युग के हर जैनरेशन को प्रिंटिंग के द्वारा जीवित रखा है। पहले इन साड़ियों पर प्रिंट कारीगर हाथ से किया करते थे, जिस में काफी मात्रा में कुशलता और धीरज की जरूरत पड़ती थी, लेकिन समय के साथ इन में तकनीकी बदलाव आया और प्रिंटिंग एक अलग इंडस्ट्री बनी, जिस से एक बड़ी मात्रा में साड़ियों पर प्रिंट होने लगा. साथ ही महिलाओं के लिए बजट फ्रैंडली भी हुआ. इस में भी परंपरा की शैली को ध्यान में रखते हुए तकनीक को विकसित किया गया है.

आज की प्रिंटेड साड़ियां

आज की प्रिंटेड सिल्क साड़ियां परंपरा और कौंटेंपररी के फ्यूजन को ध्यान में रख कर बनाया जाने लगा है, क्योंकि आज इस की मांग बहुत अधिक है. साथ ही ये हर अवसर पर पहनी जाने वाली टाइमलेस साड़ियां हैं. ये महंगी भले ही हों, लेकिन हर महिला इसे खरीदती है. इन साड़ियों में ट्रैडिशन को ब्लैंड कर कौंटैंपररी लुक दिया जाता है, जो किसी महिला के व्यक्तित्व को निखारती है. ये कई प्रकार के प्रिंट्स में आती हैं.

फ्लोरल प्रिंट साड़ीज फ्लोरल प्रिंट सदाबहार मौसम का प्रतीक होता है, इसलिए ऐसी साड़ियां आजकल ट्रैंड में हैं. प्रकृति प्रेमी महिलाएं हर मौसम में इसे पहनना पसंद करती हैं. इन साड़ियों में फ्लोरल पैटर्न के साथ फैमिनिटी की सुंदरता को बारीकी से दिखाया जाता है, ऐसे में इन साड़ियों को चाहे गार्डन पार्टी हो या कैजुअल, हर अवसर पर पहना जा सकता है. ये आजकल सभी महिलाओं की खास पसंद है. इस में दिखाए जाने वाले प्रिंट में डैलीकेट फूलपत्तियों के साथ वाइब्रेंट कलर हर साड़ी को एक अलग और ऐलिगेंट लुक देते हैं.

ब्लौक प्रिंटेड साड़ीज

ब्लौक प्रिंटिंग एक परंपरिक प्रिंटिंग पद्यति है, जिस का प्रयोग सालों से होता आ रह है. सिल्क पर सुंदर डिजाइन को ब्लौक्स के द्वारा बनाया जाता है. ये साड़ियां महंगी होती हैं, क्योंकि इन की डिजाइन जटिल हने के साथसाथ महंगे फैब्रिक पर बनाई जाती हैं.

डिजिटल प्रिंट साड़ीज

इन दिनों सिल्क साड़ीज पर डिजिटल प्रिंट का भी क्रेज है, इस से किया गया प्रिंट हाई क्वालिटी का होता है, जिस में समय कम लगता है और काफी मात्रा में प्रोडक्ट बाजार तक आ जाता है. ऐसी साड़ियों की कास्ट भी बजट फ्रैंडली होती है. इस में व्यक्ति कंप्यूटर पर डिजाइन बना लेता है और सीधे सिल्क साड़ी पर वाटर बेस्ड रंगों के साथ प्रिंट कर सकता है.

मल्टी कलर्ड प्रिंट

मल्टी कलर्ड साड़ियों में कई रंगों के प्रयोग से ऐब्स्ट्रैक्ट प्रिंट किए जाते हैं, जिसे आज के यूथ बहुत पसंद करते है. इन साड़ियों में कलमकारी का भी प्रयोग होता है, जिस में कई डार्क रंगों के प्रयोग से प्रिंटिंग की जाती है. ये साड़ियां हर अवसर पर मिक्स ऐंड मैच करते हुए सिल्क की ब्लाउज के साथ कभी भी पहनी जा सकती हैं.

परफैक्ट प्रिंटेड सिल्क साड़ी चुनने के कुछ खास टिप्स

हमेशा अपना सिग्नेचर स्टाइल चुनने की कोशिश करें। जब भी आप प्रिंटेड सिल्क साड़ी खरीदने जाएं तो निम्न बातों का खास ध्यान रखें :

* प्रिंटेड साड़ियां हमेशा विभिन्न रंगों के कौंबिनेशन में आती हैं। अपने
स्किनटोन के हिसाब से साड़ी के रंग का चुनाव करना सही होता है, जिसे आप हर अवसर पर पहन सकती हैं.
* सही प्रिंट की डिजाइन को चुनना भी बहुत जरूरी होता है, फिर चाहे वह ट्रैडिशनल मोटिफ्स हो या कौंटेंपररी पैटर्न्स, खुद की पर्सनल चौइस का सहारा लें.

* किस अवसर पर इसे पहनना है, इस का ध्यान अवश्य रखें मसलन वैडिंग,कैजुअल, या फौर्मल इवेंट उस के अनुसार ही प्रिंट को चुनें.

* प्रिंटेड सिल्क साड़ियां कई प्रकार के होते हैं, लेकिन आप के बजट के
अनुसार सिल्क फैब्रिक को चुनें, ऐसे में आप को किस तरह की प्रिंटेड
सिल्क चाहिए उसे देख लें.

* ब्लाउज की डिजाइन को भी इग्नोर न करें, क्योंकि सही सिल्क की ब्लाउज पहनने पर ही आप को साड़ी सुंदर लगेगी.

इस प्रकार प्रिंटेड सिल्क साड़ियां टाइमलेस और ऐलीगेस होती हैं, इसलिए इन साड़ियों को किसी भी समय पहनना सही होता है. इन में अच्छी बात यह है कि समय के साथसाथ इन साड़ियों में मौडर्न फैशन टच और ट्रैडिशनल चार्म को भी ध्यान में रखा जाता है. इन साड़ियों को पहनना और कैरी करना भी आसान होता है, क्योंकि ये हलकी और फ्री फ्लोइंग होती हैं साथ ही फैशन ट्रैंड को समय के साथ बनाए रखने में सक्षम होती हैं.

Gold Buying Tips : महंगी गोल्ड ज्वैलरी खरीदने की कर रहे हैं प्लानिंग, तो इन बातों का रखें ध्यान

Gold Buying Tips : हमारे यहां शादीब्याह के मौके पर गोल्ड ज्वैलरी (Gold Jewellery) खरीदना एक रिवाज है और जब हम इस में अपनी पूंजी निवेश करते हैं तो यह हमारी एक कीमती संपत्ति बन जाती है इसलिए महंगी गोल्ड ज्वैलरी खरीदते समय सही जानकारी और सावधानी बहुत जरूरी है.

शुद्धता, वजन, मेकिंग चार्जेज और बायबैक पौलिसी जैसी बातों पर ध्यान दे कर आप एक अच्छा निर्णय ले सकते हैं. खरीदारी के पहले अच्छे से रिसर्च करें और केवल भरोसेमंद ज्वैलर से ही खरीदारी करें. सही कदम उठाने से आप का यह निवेश न केवल सुरक्षित रहेगा, बल्कि भविष्य में आप को अच्छा मुनाफा भी दे सकता है.

गोल्ड की शुद्धता

महंगी गोल्ड ज्वैलरी खरीदने से पहले उस की शुद्धता की जांच करना सब से जरूरी है. आमतौर पर गोल्ड की शुद्धता कैरेट में मापी जाती है. 24 कैरेट सोना सब से शुद्ध होता है, लेकिन यह ज्वैलरी के लिए बहुत नरम होता है. इसलिए, ज्यादातर ज्वैलरी 22 कैरेट या 18 कैरेट गोल्ड से बनाई जाती है.अगर आप डायमंड या अन्य कीमती पत्थरों के साथ ज्वैलरी ले रहे हैं, तो 18 कैरेट सोना एक अच्छा विकल्प हो सकता है, क्योंकि यह अधिक टिकाऊ और मजबूत होता है.

प्योरिटी के साथ डिजाइन भी टिकाऊ हो

हमें गोल्ड ज्वैलरी खरीदते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शुद्धता के साथ इस का डिजाइन भी मजबूत हो. कुछ डिजाइन में वजन का बड़ा हिस्सा केवल सजावटी होता है, जैसे पत्थरों या अतिरिक्त सजावटी चीजें उस में लगी रहती हैं. इसलिए, यदि आप केवल सोने में निवेश करना चाहते हैं, तो सादे और पारंपरिक डिजाइन चुनें, जिन में केवल सोने का उपयोग हुआ हो.
छोटीछोटी लटकन या रौना (छोटेछोटे घुंघरू) या फिर हुक वाले डिजाइनों को खरीदने से बचें क्योंकि शादी की ज्वैलरी सिर्फ एक दिन के लिए नहीं होती, इसे सालों तक इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए डिजाइन ऐसा हो जो मजबूत हो और टूटफूट से बचा रहे.

मेकिंग चार्जेस पर ध्यान दें

गोल्ड ज्वैलरी में सोने की कीमत के साथसाथ मेकिंग चार्जेज भी जोड़ दिए जाते हैं, जो ज्वैलरी बनाने की लागत होती है. आमतौर पर मेकिंग चार्जेज सोने की कुल कीमत का 8% से 25% तक हो सकते हैं.शकोशिश करें कि ऐसी दुकान से खरीदें जहां मेकिंग चार्जेज कम हों या पहले से तय हो. आप मेकिंग चार्जेज पर भी मोलभाव कर सकते हैं ताकि आप को सही कीमत में ज्वैलरी मिल सके.

बायबैक और रीसेल पौलिसी की जानकारी लें

कई दफा स्थिति ऐसी बन जाती है कि हमें अपना खरीदा हुआ गोल्ड वापस बेचना पड़ जाता है. ऐसे में ज्वैलरी खरीदने से पहले बायबैक पौलिसी के बारे में जानकारी अवश्य लें कि अगर आप ने ₹10 लाख की ज्वैलरी खरीदी है तो आप को ज्वैलरी वापसी पर अधिक से अधिक रकम मिलें. इस तरह की जानकारी पहले से लेना काफी बेहतर होता है ताकि आप अपने हिसाब से गोल्ड में निवेश करें.

ऐसे कई ज्वैलर हैं जो बाद में ज्वैलरी को वापस खरीदने का विकल्प देते हैं, लेकिन इस के लिए कुछ शर्तें होती हैं. कुछ ज्वैलर्स ऐक्सचेंज पौलिसी भी देते हैं, जिस में आप पुरानी ज्वैलरी को बदल कर नई ज्वैलरी खरीद सकते हैं.

यह जानना जरूरी है कि किस दर पर वे सोने को वापस खरीदते हैं या बदलते हैं. वैसे, बायबैक और रीसेल पौलिसी से आप को अच्छा मुनाफा मिल सकता है.

रसीद और शुद्धता प्रमाणपत्र जरूर लें

ज्वैलरी खरीदने के बाद रसीद और शुद्धता प्रमाणपत्र लेना न भूलें. रसीद में ज्वैलरी की शुद्धता, वजन, कैरेट और कुल मूल्य का विवरण होना चाहिए. यह प्रमाणपत्र आप को भविष्य में ज्वैलरी बेचने या बदलने में काम आएगा और यह प्रमाणित करेगा कि आप की ज्वैलरी असली है.

कीमतों की तुलना करें

अलगअलग ज्वैलर के यहां जा कर सोने के दाम और मेकिंग चार्जेस की तुलना करें. इस से आप को सही जगह से सही दाम पर ज्वैलरी खरीदने में मदद मिलेगी. कभीकभी औफर्स या डिस्काउंट्स भी मिलते हैं, जिस से आप कुछ पैसे बचा सकते हैं.

लाख लगी ज्वैलरी न लें

गोल्ड ज्वैलरी में लाख का उपयोग पुराने समय में सामान्य था, लेकिन आजकल इस के उपयोग से बचना चाहिए. लाख वाली ज्वैलरी कमजोर होती है अगर ज्वैलरी टूट जाए या उसे फिर से आकार देना हो, तो लाख को हटा कर नए सिरे से बनाना पड़ता है जिस वजह से इस की मरम्मत करना मुश्किल होता है. इस कारण से इस की रीसेल वैल्यू भी कम होती है.

कास्टिंग और जड़ाई का काम

जड़ाई या कास्टिंग में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों का कोई रीसेल वैल्यू नहीं होता. सोने की कीमत से इन्हें अलग कर के ही ज्वैलरी की रीसेल वैल्यू निकाली जाती है. इसलिए, यह सुनिश्चित करें कि आप जड़ाई वाली ज्वैलरी खरीद रहे हैं तो उस की असली कीमत का पता कर लें.

चुनिंदा और भरोसेमंद ज्वैलर से खरीदारी करें

महंगी गोल्ड ज्वैलरी खरीदते समय हमेशा प्रतिष्ठित और भरोसेमंद ज्वैलर से ही खरीदारी करें. नामी ज्वैलर्स शुद्धता और क्वालिटी की गारंटी देते हैं. साथ ही, वे सही वजन, शुद्धता और उचित बायबैक पौलिसी का भी पालन करते हैं.

रखरखाव पर भी ध्यान दें

शादी के बाद गोल्ड ज्वैलरी का सही रखरखाव बेहद जरूरी होता है. इसे समयसमय पर साफ करवाएं और किसी विश्वसनीय ज्वैलर के पास से इसशकी मरम्मत करवाएं ताकि इस की चमक और मजबूती बनी रहे.

इंश्यारैंस का विकल्प

महंगी ज्वैलरी खरीदते समय उसे सुरक्षित रखने के लिए बीमा कराने पर भी विचार करें. बीमा आप की ज्वैलरी को चोरी, नुकसान या अन्य अप्रत्याशित घटनाओं से बचाने का एक तरीका हो सकता है. कई बीमा कंपनियां गोल्ड ज्वैलरी के लिए विशेष योजनाएं पेश करती हैं, जिस से आप का निवेश सुरक्षित रहता है.

दर्शकों को ऐक्टर से अधिक निर्देशकों पर भरोसा रहता है : Devanshu Singh

Devanshu Singh : बिहार के मुंगेर से मुंबई तक के फिल्मी सफर में आई अड़चनों को पार कर देवांशु सिंह एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म डाइरैक्टर बने हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत निखिल आडवाणी और विक्रमादित्य मोटवानी की फीचर और विज्ञापन फिल्मों में सहायता कर के की थी.

देवांशु की पहली, लघु फिल्म ‘तमाश’ ने उन्हें 61वां सिल्वर लोटस राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया. इस के बाद उन्होंने फिल्म ’14 फेरे’ और ‘चिंटू का बर्थडे’ का निर्देशन किया, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. लीक से हट कर कहानी करना उन्हें पसंद है. यही वजह है कि आज वे एक मशहूर डाइरैक्टर बन चुके हैं और हर तरह की फिल्में बनाना पसंद करते हैं.

जियोसिनेमा पर उन की वैब सीरीज ‘खलबली रेकौर्ड्स’ रिलीज हो चुकी है, जो एक म्यूजिकल ड्रामा सीरीज है जिसे दर्शक पसंद कर रहे हैं. उन से बात हुई। पेश हैं, कुछ खास अंश :

अलग है कौंसेप्ट

इस सीरीज की कौंनसेप्ट को सोचने के बारे में पूछने पर देवांशु कहते हैं,”टीवी स्टूडियोज जब बन रहा था, तब 2 प्रतिभावान लेखक प्रतीक और शालिनी सेठी वहां मौजूद थे। उन दोनों ने इस कहानी को सोचा था। यह कहानी फिल्म ‘गली बौय’ बनाने से पहले सोची गई थी, लेकिन बन नहीं पाई, क्योंकि हिपहौप
गाने वाली सीरीज को जनता पसंद करेगी या नहीं, इस बात पर हम सभी की सोच अलगअलग थी. ‘गली बौय’ के रिलीज के बाद इस आइडिया पर काम किया गया। इस में काफी चीजों को मैं ने बदला अवश्य है, लेकिन बेसिक सोच उन दोनों लेखकों की ही रही. इस शो का कौंसेप्ट थोड़ा अलग है। यह एक ड्रामा बेस्ड शो है, जो संगीत को बीच में रख कर बनाई गई है. इस में मैं ने कई नएनए उभरते कलाकारों के जीवन को भी दर्शाया है ताकि आम लोग उस से खुद को जोड़ सकें, क्योंकि इस में परिवार, दोस्ती, प्यार, दुख आदि सब कुछ दिखाने की कोशिश की गई और लोगों को पसंद आ भी आई.”

मिली प्रेरणा

फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारे में पूछने पर देवांशु कहते हैं,”6 साल की उम्र से मुझे फिल्में देखने का शौक रहा। मेरे मातापिता भी फिल्म देखने के काफी शौकीन रहे. मेरे नाना उदय नारायण सिंह खुद में ही एक बड़े आर्टिस्ट रहे। खुद गाने लिखते और कंपोज करते थे. नाटकों का मंचन
करते थे, जिसे देखने दूरदूर से लोग आते थे. मेरी मां कहती थीं कि उन्हें जो पहचान नहीं मिली, वह मुझे मिला है. इसलिए मुझे मेहनत कर आगे बढ़ना है.”

सच्ची फिल्म बनाने की कोशिश

देवांशु हमेशा एक सच्ची फिल्म बनाने की कोशिश करते है, जिस में वे सफल रहे, लेकिन असफलता को भी वे सहजता से लेते हैं. किसी फिल्म की सफलता का श्रेय कलाकारों को मिलता है जबकि फ्लौप होने पर डाइरैक्टर को भलाबुरा सुनने को मिलता है। इस बारें में उन की राय पूछे जाने पर वे हंसते हुए कहते हैं,”एक बार फिल्म बना देने के बाद वह औडियंस की हो जाती है, मेरी नहीं होती। उस के बाद मुझे ताली मिले या गाली सबकुछ सह लेता हूं. मेरा विश्वास यह भी है कि ऐक्टर किसी फिल्म की फेस होते हैं, क्योंकि अधिकतर दर्शक उन्हें देखने ही हौल तक आते हैं, ऐसे में उन्हें तारीफ मिलती है, तो कोई
गलत नहीं, लेकिन कुछ फिल्में ऐसी हैं, जिसे लोग ऐक्टर से अधिक निर्देशक पर अपना विश्वास रखते हैं. फिल्म ‘लापता लेडीज’ ऐसी ही फिल्म है, जिस में किरन राव बड़े शहर की होने के बावजूद गांव की संजीदगी को परदे पर उतारा है, जिसे लोग पसंद कर रहे हैं और आज यह फिल्म 48वें टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित की गई. फिल्म की कहानी से दर्शकों को रिलेट कर पाना जरूरी होता है और दर्शक उसे पसंद भी करते हैं.”

बदला है दौर

आज की फिल्मों में हिंसा और मारधाड़ अधिक दिखाए जाने की वजह के बारे में देवांशु कहते है कि एक जमाना था, जब मूक फिल्में बनती थीं, इस के बाद गानों का दौर आया। अशोक कुमार, दिलीप कुमार की फिल्में चलने लगीं. फिर राजेश खन्ना के दौर में स्वीट रोमांटिक फिल्में आईं, फिर अमिताभ बच्चन के आने से ऐंग्री फिल्में बनने लगीं। हम वही कौपी करने लगते हैं, जिसे दर्शकों का
प्यार मिलता है और ऐसे ही इंडस्ट्री की हर दौर चलती है.

“एक समय था जब बिमल रौय हर साल एक अच्छी फिल्म बनाते थे। हर साल उन्हें अवार्ड भी मिलता था और फिल्म सफल भी होती थी. 1951 से ले कर 1956 तक सिर्फ 1 साल उन्होंने फिल्म नहीं बनाई। उन्होंने सफल फिल्में बनाई, हर फिल्म एकदूसरे से अलग होने के बावजूद सफल रही. आज भी एक अच्छी फिल्म बनाने पर लोग देख लेते हैं, लेकिन हम सब की कमजोरी है कि हम कुछ नया करने से घबराते हैं, क्योंकि यस एक व्यवसाय है और महंगा माध्यम है। कुछ गलत होने पर पैसे निकालना मुश्किल होता है. अगर कोई करोड़ों रुपए किसी फिल्म पर लगा रहा है तो उसे पैसे वापस मिलने चाहिए, ये हमारी जिम्मेदारी है। मैं खुद अपना हाथ नहीं झाड़ सकता। मैं इन सभी को बैलैंस करता हुआ चलता हूं.”

लेखकों की कमी नहीं

फिल्म लेखकों की कमी के बारें में देवांशु का कहना है कि लिखने वालों की कमी नहीं है। कहनियां बहुत सारी पड़ी हुई हैं, लेकिन बनाने वाले नहीं हैं, क्योंकि वैब सीरीज ‘मिर्जापुर 1,2,3’ बनी और दर्शकों ने पसंद भी किया. इस सीरीज को बनाने वाले थक चुके हैं और अब वे कुछ नया बना रहे हैं. सचाई यही है कि जो भी चीज एक बार चल जाए, लोग उसे ही कौपी करते जाते हैं, रिस्क लेना नहीं चाहते.”

आगे देवांशु को एक ऐक्शन, ट्रैजेडी, लव स्टोरी, वर्ष 1940-45 वाला पंजाब पर एक रोमांटिक फिल्म बनानी है. इस के अलावा उन्हें शिव कुमार बटालवी पर बायोपिक बनाने की भी इच्छा है.

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