बच्चा न होना बदनसीबी नहीं

मातृत्व एक ऐसा सुख है जिस की चाह हर औरत को होती है? शादी के बाद से ही औरत इस ख्वाब को देखने लगती है. लेकिन कहते हैं न कि ख्वाब अकसर टूट जाते हैं. हां कई बार कुछ कारणों से या किसी समस्या की वजह से अगर कोई औरत मां बनाने के सुख से वंचित रह जाती है तो उस से बड़ा सदमा और दुख उस के जीवन में कुछ और नहीं होता. दुनिया मानो जैसे उस के लिए खत्म सी हो जाती है.

उस पर अगर उसे बांझ, अपशकुनी, मनहूस और न जाने कैसेकैसे ताने सुनाने को मिलें तो उस के लिए कोई रास्ता नहीं बचता. ताने देने वालों में बहार वाले ही नहीं बल्कि उस के अपने ही घर के लोग शामिल होते हैं.

जैसे ही एक नवयुवती को विवाह के कुछ साल बाद पता चलता है कि वह मां नहीं बन सकती तो आधी तो वह वैसे ही मर जाती है बाकी रोजरोज के अपनों के ताने मार देते हैं. टीवी पर दिखाए गए एक सीरियल ‘गोदभराई’ में घर की बहू खुद बांझ न होने के बावजूद अपने पति की कमी की वजह से मां नहीं बन पाती. इसी कारण उसे पासपड़ोसियों के ताने सुनने पड़ते हैं जिस वजह से वह दुखी होती है. उस के अपने ही उसे नीचा दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते. गलती किसी की भी हो ताने हमेशा उसे ही सुनने पड़ते हैं.

औरतों के खिलाफ प्रचार

टीवी पर दिखाए जाने वाले सोप ओपेरा तो उन औरतों के खिलाफ प्रचार करते हैं जो मां नहीं बन पातीं और लोग इसे बड़े चाव से देखते हैं. यह मनोरंजन के लिए कहानी ही नहीं है बल्कि इस में कहीं न कहीं समाज की सचाई छिपी हुई है. वह दर्द है जिसे बहुत सारी महिलाओं को सहना पड़ता है.

अब सुनीता का ही उदाहरण ले लीजिए. इन की शादी को 4 साल हो गए और शादी के 6 महीने बाद से ही सास को अपने पोतेपोतियों को खिलने की इच्छा होने लगी और फिर देखते ही देखते 4 साल बीत गए. बीच में सुनीता ने कई टैस्ट भी करवाए जिन का नतीजा सिर्फ यह बयां करता है कि वह मां नहीं बन सकती और बस फिर शुरू हो गया आईवीएफ सैंटरों के चक्कर लगाने का. उस के गर्भाशय में ही कमजोरी है जिस से वह मां नहीं बन सकती. तानों इस सिलसिले में सिर्फ सास ही नहीं बल्कि सुनीता की ननद, देवरानी और पति भी इस में शामिल हैं.

असल में दोस्तों और सहेलियों के बीच भी ऐसी औरतें कटीकटी सी रहती हैं, क्योंकि उन की बातें तो बच्चों के बारे में ही होती हैं. परिवार और दूसरों के ताने तो फिर भी वे सह लेतीं पर पति के भी साथ न देने पर जैसे उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो.

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मां न बन पाने का गम तो उन्हें पहले ही था पर पति की बेरुखी ने और तोड़ कर रख दिया. बुरे समय में आखिर दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं पर किसी एक के बुरे समय में दूसरे का साथ न होना तोड़ कर रख देता है.

अनचाहा दर्द

सुनीता अपना दर्द बयां करते हुए कहती हैं कि शुरुआत में तो वे अपनी ससुराल वालों के तानों से परेशान हो कर कई ओझओं और तांत्रिकों के पास गईं जिन्होंने उन्हें कई पूजापाठ और दान करने को कहा. उन्होंने सब किया पर फिर भी उस का कोई नतीजा नहीं निकला इन सब के नाम पर उन ओझओं और तांत्रिकों ने उन के परिवार वालों से हजारों रुपए वसूले पर उस का फायदा कुछ नहीं हुआ.

फिर उन लोगों ने उन्हें श्रापित बताया और कहा कि भगवान ही नहीं चाहते कि उन्हें कोई औलाद हो. आईवीएफ सैंटरों में जो पैसा खर्च हुआ वह अलग.

फिर क्या था इन सब के बाद तो परिवार वाले उन्हें और ज्यादा ताने देने लगे और नफरत करने लगे. सास तो पति की दूसरी शादी तक करवाना चाहती थीं पर उन्हें जब पता चला कि तलाक आसान नहीं है और कहीं वे पुलिस में चली गईं तो चुप हो कर रह गईं. सब लोग उन से दूरी बनाने लगे और हर शुभ काम से भी दूरी रखी जाने लगी. फिर धीरेधीरे वे भी खुद को ही दोष देने लगीं. उन्हें लगने लगा कि वे मनहूस हैं. कई बार मन में खयाल आने लगा कि कहीं जा कर आत्महत्या कर लें.

मगर एक दिन सुनीता की मुलाकात अपनी सहेली से हुई जिस के समझने पर सुनीता का खोया आत्मविश्वास लौटने लगा. सुनीता की सहेली ने समझया कि वह खुद को मनहूस न मान कर हालात का सामना करे. अगर वह खुद को ही मनहूस समझने लगेगी तो बाहर वाले तो उसे ताने देंगे ही.

उस की सहेली ने समझया कि खुद को मनहूस समझने से कुछ नहीं होगा उलटा खुद का आत्मविश्वास कम होगा. बच्चे होने और न होने से कोई मनहूस नहीं हो जाता. तांत्रिकों को यह कैसे पता हो सकता है कि तुम श्रापित हो.

अंधविश्वास भरी बातें

बस फिर क्या था सुनीता को इस बात का एहसास हुआ की वाकई में इस में उन की कोई गलती नहीं है और न ही वे मनहूस है और न ही अपशकुनी. पहले सुनीता को इस बात का एहसास हुआ और फिर उन्होंने सोचा कि अब इस बात का एहसास वे अब अपने पति को भी करवाएंगी और फिर अपने ससुराल वालों को.

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सुनीता को तो इस का मौका मिला और उन्हें उन की सहेली का सहारा भी जो उन की जिंदगी में एक उम्मीद की किरण ले कर आया वरना शायद उन्होंने खुदकुशी कर ली होती या पूरी जिंदगी खुद को कोसतेकोसते बितातीं लेकिन आज भी कई महिलाएं ऐसी हैं जो पूरे परिवार के ताने सुनसुन कर जी रही हैं. न ससुराल और समाज में उन्हें इज्जत मिलती है और न ही पति का प्यार. फिर भी वे अपने रिश्ते निभाती हैं और उफ तक नहीं करतीं.

जरा सोचिए क्या खुद को मनहूस समझना या खुद को दोष देना वह भी उस बात के लिए जिस में आप का कोई कुसूर नहीं है और न ही कोई दोष ठीक है? तांत्रिक लोग सिर्फ आप की भावनाओं का फायदा उठा कर पैसा ऐंठने के लिए श्राप या पाप जैसी अंधविश्वास भरी बातें आप के दिमाग में डालते हैं. विडंबना तो यह है कि पढ़ेलिखे लोग भी आजकल इन सब बातों में यकीन रखते हैं और घर की बहुओं को ताने देते हैं, जबकि आजकल विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हर चीज का इलाज संभव है. तांत्रिकों और बाबाओं की बातों में आने के बाद के बजाय महिलाओं को अकेला बिना बच्चों के जीना सीखना होगा. फिर यह न भूलें कि वृद्धावस्था में बच्चों का भी भरोसा नहीं रहता कि वे साथ रहेंगे.

कामकाजी पति-पत्नी : आमदनी ही नहीं खुशियां भी बढ़ाएं

एक समय था जब महिलाओं का कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी तक सीमित था. पुरुष घर से बाहर कमाने जाते थे और महिलाएं गृहस्थी संभालती थीं. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. महिलाएं गृहस्थी तो अब भी संभालती हैं, साथ ही नौकरी भी करती हैं. मगर दोनों के नौकरीपेशा होने से परिवार की आमदनी भले ही बढ़ जाती हो, लेकिन दंपती के पास एकदूसरे के लिए समय नहीं बचता.

कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें एकदूसरे से बतियाने तक का समय नहीं मिल पाता है.

ऐसे में कामकाजी महिला के पास पति और बच्चों के लिए ही समय नहीं होता है, तो किट्टी पार्टी, क्लब जाने या सखीसहेलियों से गप्पें लड़ाने का तो सवाल ही नहीं उठता है.

पत्नी पर निर्भर पति

भारतीय समाज में पुरुष भले ही घर का मुखिया हो, पर वह हर बात के लिए पत्नी पर निर्भर रहता है. यहां तक कि अपनी निजी जरूरतों के लिए भी उसे पत्नी की जरूरत होती है. पत्नी बेचारी कितना ध्यान रखे? पति को हुक्म चलाते देर नहीं लगती, लेकिन पत्नी को तत्काल पति की खिदमत में हाजिर होना पड़ता है अन्यथा ताने सुनने पड़ते हैं कि उसे तो पति की परवाह ही नहीं है. अब जब वह काम के बोझ तले इतनी दबी हुई है कि स्वयं खुश नहीं रह पाती है, तो भला पति को कैसे खुश रखे? जरा सी कोताही होने पर पति के तेवर 7वें आसमान पर पहुंच जाते हैं.

कैसी विडंबना है कि पत्नी अपने पति की सारी जरूरतों का ध्यान रखती है, फिर भी प्रताडि़त होती है और पति क्या वह अपनी पत्नी की इच्छाओं, भावनाओं और जरूरतों का ध्यान रख पाता है? क्या पति ही थकता है, पत्नी नहीं?

कामकाजी पतिपत्नी को एकदूसरे की पसंदनापसंद, व्यस्तता और मजबूरी को समझना होगा. तभी वे सुखी रह सकते हैं.

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कामकाजी दंपती कहीं जाने का कार्यक्रम बनाते हैं. लेकिन यदि उन में से किसी एक को छुट्टी नहीं मिलती है, तो ऐसे में यात्रा स्थगित करनी पड़ जाती है. इसे सहज रूप में लेना चाहिए. इसी तरह शाम को कहीं होटल, पार्टी में जाने का प्रोग्राम बना हो, लेकिन किसी एक को दफ्तर में काम की अधिकता की वजह से आने में देर हो जाए, तो उस की यह विवशता समझनी चाहिए.

कामकाजी दंपतियों में औफिस का तनाव भी रहता है. हो सकता है उन में से किसी एक का बौस खड़ूस हो, तो ऐसे में उस की प्रताड़ना झेल कर जब पति या पत्नी घर आते हैं, तो वे अपनी खीज साथी या फिर बच्चों पर उतारते हैं. उन्हें ऐसा न कर एकदूसरे की समस्याओं और तनाव पर चर्चा करनी चाहिए. यदि वे एकदूसरे को दोस्त मानते हुए अपना तनाव व्यक्त करते हैं, तो वह काफी हद तक दूर हो सकता है.

थोपा गया निर्णय गलत

कई बार किसी बात या काम के लिए एक का मूड होता है और दूसरे का नहीं. बात चाहे मूवी देखने या शौपिंग करने की हो, होटल में खाना खाने की हो या कहीं जाने की. यदि दोनों में से एक की इच्छा नहीं है, तो दूसरे को उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए या फिर एक को दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हुए इस के लिए खुद को तैयार करना चाहिए. लेकिन जो भी निर्णय हो वह थोपा गया या शर्तों पर आधारित न हो.

कामकाजी पतिपत्नी को एकदूसरे से उतनी ही अपेक्षा रखनी चाहिए, जिसे सामने वाला या वाली बिना किसी परेशानी में पड़े पूरा कर सके.

कामकाजी दंपतियों को जितना भी वक्त साथ गुजारने के लिए मिलता है उसे हंसीखुशी बिताएं न कि लड़ाईझगड़े या तनातनी में. इस कीमती समय को नष्ट न करें. घर और बाहर की कुछ जिम्मेदारियों को आपस में बांट लें.

जिस के लिए जो सुविधाजनक हो वह जिम्मेदारी अपने जिम्मे ले ले. इस से किसी एक पर ही भार नहीं पड़ेगा.

माना कि कामकाजी दंपती की व्यस्तताएं बहुत अधिक होती हैं, लेकिन उन्हें दांपत्य का निर्वाह भी करना है. यदि दोनों के पास ही एकदूसरे के लिए समय नहीं है, तो ऐसी कमाई का क्या फायदा? कुछ समय तो उन्हें एकदूसरे के लिए निकालना ही चाहिए. इसी में उन के दांपत्य की खुशियां निहित हैं.

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जी का जंजाल बनते बेमेल रिश्ते

बेमेल रिश्ते वे होते हैं, जिन की जोड़ी नहीं जमती. जोड़ी में यह असमानता शारीरिक भी हो सकती है और मानसिक भी. यह जानते हुए कि यह एक बेमेल रिश्ता होगा, आप इस रिश्ते में बंधते हैं या परिजन दबाव बना कर शादी कर देते हैं तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होता. वे ज्यादा दिनों तक साथ नहीं निभा पाते. उन के संबंधों में दरार आ जाती है और बात तलाक पर जा कर खत्म होती है. काश, शुरू से ही इस बात का ध्यान रखा होता, तो उन के गले में फंदा पड़ने की नौबत न आती.

यदि लड़का असाधारण रूप से मोटा है यानी 150-200 किलोग्राम वजन वाला और उस का रिश्ता ऐसी लड़की से करा दिया जाता है, जो 50 किलोग्राम की भी नहीं है, तो क्या वह ऐसे मोटे व्यक्ति को अपने पति के रूप में स्वीकार कर पाएगी? इसी प्रकार यदि कोई लड़की 125-150 किलोग्राम वजन की है और लड़का मात्र 50-60 किलोग्राम वजन का, तो ऐसी जोड़ी भी बेमेल ही होगी. कोई भी लड़का इतनी मोटी लड़की की ख्वाइश नहीं रखता. फिर भी जबरदस्ती या दबाव बना कर रिश्ते में बांध दिया जाता है तो वह उस के गले का फंदा बन जाता है.

यदि 6 या 7 फुट लंबे लड़के की शादी 4 फुट लंबी लड़की से कर दी जाए तो ऐसी जोड़ी देख लोग उन का मजाक ही उड़ाएंगे. इसी प्रकार यदि लड़की का कद 7 फुट है और उस की शादी किसी बौने से कर दी जाए तो यह बेमेल रिश्ता ही होगा. ऐसे रिश्ते ताउम्र निभा पाना दोनों के लिए बड़ा मुश्किल होता है.

किसी ऊंची डिगरी प्राप्त लड़के का अनपढ़ या 5वीं कक्षा तक पढ़ी लड़की से रिश्ता करना क्या उचित होगा? एमकौम, एमबीए डिगरीधारी युवक की 8वीं फेल लड़की से शादी रचाना क्या बेमेल रिश्ता नहीं है? इसी प्रकार, एमए, पीएचडी वाली लड़की की शादी अंगूठाछाप लड़के से करना भी बेमेल रिश्ता ही होगा. जब दोनों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि में इतना अंतर हो तो उन में वैचारिक समानताएं कैसे आ पाएंगी? दोनों एकदूसरे को समझ ही नहीं सकेंगे. ऐसे रिश्तों का हश्र बहुत बुरा होता है. तलाक की नौबत आते देर नहीं लगती.

काली लड़की और गोरा लड़का या गोरी लड़की और काले लड़के की क्या जोड़ी जमती है? नहीं न, लेकिन ऐसे जोड़े भी हैं जो रंग में एकदम उलट हैं. ऐसे में उन्हें अपने रंग को ले कर या तो हीनभावना रहती है या उच्चभावना. दोनों ही स्थितियां दांपत्य के लिए ठीक नहीं.

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लखपति परिवार के लड़के का संबंध किसी कंगाल परिवार की बेटी से महज इसलिए करना कि वह सुंदर है या किसी अमीर की बेटी का रिश्ता किसी ऐसे गरीब परिवार में करना जहां खाने के लाले पड़ते हों, क्या बेमेल रिश्ता नहीं है? दोनों ही स्थितियों में वे एकदूसरे से तालमेल नहीं बैठा पाएंगे. या तो लड़की, लड़के की गरीबी को कोसेगी या फिर लड़का लड़की के मायके की गरीबी की वजह से उस की 7 पीढि़यों को कोसेगा. गरीबीअमीरी की खाई पाटना आसान बात नहीं है. ऐसे बेमेल रिश्ते दीर्घायु नहीं होते.

विवाहेतर संबंध बनने की आशंका

जरा सोचिए, अपने से 20 साल बड़ी या 20 साल छोटी लड़की अथवा 20 साल बड़े या 20 साल छोटे लड़के से शादी करना क्या बेमेल रिश्ता नहीं है? जब एक की जवानी ढलनी शुरू होगी तब दूसरे की उफान भरेगी. फिर इतने वर्षों का अंतर होने से उन के विचारों में भी अंतर होगा. वे मेल नहीं खाएंगे. जब पति बूढ़ा होने लगेगा और पत्नी की जवानी खिलने लगेगी, तो उसे अपनी पत्नी के चरित्र पर शंका होगी. इस के विपरीत यदि पत्नी बूढ़ी होने लगे तब पति की जवानी जागे तो भी जगहंसाई होगी. हालांकि ऐसे बेमेल रिश्ते बहुत हैं जो किसी न किसी दबाव का परिणाम होते हैं. ऐसे रिश्तों में विवाहेतर संबंध बनने की आशंका सदैव बनी रहती है.

यदि लड़का कुरूप है और उस का रिश्ता किसी खूबसूरत लड़की से हो जाता है, तो लोग यही कहेंगे कि ‘कौए की चोंच में अनारकली.’ इस के विपरीत किसी खूबसूरत, हैंडसम लड़के के साथ ऐसी लड़की का रिश्ता तय कर दिया जाता है, जो हैंडसम न हो तो लोग कहेंगे पैसा देख कर शादी कर ली होगी.

आखिर क्यों बनते हैं बेमेल रिश्ते? फिल्मों या टीवी धारावाहिकों में बेमेल रिश्ते भले ही सफल बताए जाते हों, लेकिन जमीनी हकीकत इस के उलट है. शादी बच्चों का खेल नहीं है, अपितु यह एक अटूट बंधन है, इसलिए जोड़ी मिलना बहुत जरूरी है. इस के लिए उन की जन्मकुंडली मिलाना जरूरी नहीं, अपितु ऊपर जो मानदंड बताए गए हैं, उस हिसाब से उन की जोड़ी सही हो तभी दांपत्य सफल होता है.

आखिर वजह क्या है

आखिर क्यों होते हैं ये बेमेल रिश्ते? क्या इन्हें रोका नहीं जा सकता? दरअसल, ऐसा दबाव की वजह से होता है. पहले बात करते हैं लड़कों की. वे क्यों इस के लिए तैयार हो जाते हैं? सब से बड़ी बात तो पैसे वाली लड़की होने की है. मांबाप को धन चाहिए और अंतत: वे लड़के को इस के लिए तैयार कर ही लेते हैं कि लड़की चाहे कालीगोरी, दुबलीमोटी, लंबीठिगनी, कम पढ़ी या अधिक पढ़ीलिखी हो, पैसे वाली तो है. यदि वह दुबली है, तो लड़के से कहा जाएगा कि शादी के बाद मोटी हो जाएगी. यदि मोटी है तो कहा जाएगा कि घर का कामकाज करेगी तो दुबली हो जाएगी. यदि ठिगनी है तो अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी का उदाहरण पेश कर दिया जाएगा.

यदि लड़की काली है, तो लड़के को यह कह कर राजी कर लिया जाएगा कि काली है तो क्या हुआ उस के फीचर्स तो अच्छे हैं. यदि अत्यधिक गोरी या भूरी है तो कहा जाएगा कि पूरी तरह से विदेशी मेम लग रही है. यदि लड़की लड़के से काफी बड़ी है तो कहा जाएगा कि तुझ से बड़ी है तो क्या हुआ, तू उस का पति होगा. उस पर तेरा ही हुक्म चलेगा. यदि लड़के से बहुत छोटी उम्र की है तो कहा जाएगा कि अच्छा है तुझे कमसिन लड़की मिल रही है.

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यदि लड़की गरीब परिवार की है, तो लड़के को यह दबाव बना कर शादी के लिए विवश किया जाता है कि पैसा तो अपने पास बहुत है. आजकल लड़कियां मिल कहां रही हैं. सुदर है, हां कर दे. इस के विपरीत, यदि लड़की लड़के से बहुत अमीर है तो उसे यह पट्टी पढ़ाई जाएगी कि पैसे वाली ससुराल है. इकलौती लड़की है. ब्याह के बाद सब कुछ बेटी का यानी तेरा होगा.

यदि लड़की बदसूरत है, तो लड़के से कहा जाएगा कि खूबसूरती तन की नहीं मन की देखनी चाहिए. यदि वह लड़के से बहुत ज्यादा सुंदर है, तो कहा जाएगा जल्दी से हां कह दे.

यदि लड़की बहुत अधिक पढ़ीलिखी है तो लड़के को रिश्ते के लिए दबाव बनाया जाएगा, अच्छा है पढ़ीलिखी है, बच्चों में अच्छे संस्कार डालेगी और चाहो तो उस से नौकरी करा लेना और यदि अनपढ़ है, किंतु पैसे वाली है तो लड़के से कहा जाएगा कि पढ़ीलिखी नहीं है तो क्या हुआ, बाप के पास पैसा तो है. फिर तुझे कौन सी उस से नौकरी करानी है?

अब यह देखिए कि लड़की पर परिजन किस तरह बेमेल रिश्ते के लिए दबाव बनाते हैं. यदि लड़का गरीब परिवार का है तो लड़की से कहा जाएगा कि गरीब है तो क्या हुआ संस्कारवान है और रही बात उस की हैसियत की, तो तुझे इतना दहेज देंगे कि वह मालामाल हो जाएगा. यदि लड़का अमीर खानदान का हो तो लड़की से कहा जाएगा कि तेरी तो लौटरी लग गई, जो इतना अमीर घर का रिश्ता आया है.

यदि लड़का कम पढ़ालिखा है तो लड़की पर दबाव बनाने के लिए कहा जाएगा कि पढ़ालिखा नहीं है तो क्या हुआ खानदानी, पैसे वाला तो है. उसे नौकरी करने की जरूरत ही क्या? इतना पुश्तैनी पैसा है कि 7 पीढि़यां बैठेबैठे खा सकें. यदि लड़की से बहुत ज्यादा पढ़ालिखा या डिगरीधारी लड़का हो तो लड़की से कहा जाएगा कि यह समझ ले कि किसी आईएएस लड़के से शादी हो रही है. शादी के बाद तू भी आगे पढ़ लेना.

ऐसे रिश्ते से क्या लाभ

यदि लड़का काला है, तो कहा जाएगा कि लड़के का रंग नहीं कमाई देखनी चाहिए. यदि वह अत्यधिक गोरा है तो लड़की से कहा जाएगा कि तुझे कोई अंगरेज मिला है. कितना हैंडसम है लड़का.

यदि लड़का अत्यधिक मोटा है, तो लड़की पर यह कह कर दबाव बनाया जाएगा कि खातेपीते घर का है. यह तो उस की संपन्नता की निशानी है.

यदि वह बेहद दुबला है तो लड़की से कहा जाएगा कि तू जा कर मोटा कर लेना या फिर आजकल तो स्लिमट्रिम का ही जमाना है.

यदि लड़का बहुत लंबा है तो लड़की से कहा जाएगा कि देखने में अमिताभ जैसा लगता है और बौना हो तो कहा जाएगा बौना है तो क्या हुआ उस की सोच तो बौनी नहीं है.

यदि बेमेल रिश्ते में बंधे दंपती तलाक न भी लें, तो भी उन की साथ रहने की चाह नहीं होती. दोनों ही मानसिक दबाव में रहते हैं गोया उन के गले में फंदा पड़ गया हो. जब रिश्ते में प्यार ही न हो तो ऐसे रिश्ते से क्या लाभ?

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ऐसे बनें अच्छे हसबैंड-वाइफ

आज की जीवनशैली में घर और औफिस की बढ़ती जिम्मेदारियों को निभाना यों तो आसान लगता है किंतु वास्तव में आसान है नहीं. स्वस्थ मानसिकता के अभाव में इस रिश्ते को निभाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आइए, उन बातों का अध्ययन करें जो कमजोर पड़ते रिश्तों को और अधिक कमजोर बनाती हैं.

विवाह के बाद के पहले 5 वर्ष पति पत्नी के लिए पहले 5 वर्ष बहुत अहमियत रखते हैं. शुरू के 5 वर्षों में जो गलतियां करते हैं वे हैं:

– खुद को बदलने की जगह पार्टनर से बदलने की चाह रखना.

– लाइफपार्टनर से जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं रखना.

– छोटीछोटी बातों को मुद्दा बना कर लड़ाईझगड़ा करना. न खुद चैन से रहना, न दूसरे को चैन से रहने देना.

– एकदूसरे के दोषों को ढूंढ़ढूंढ़ कर आलोचना और ताने मारने की प्रवृत्ति रखना.

इन कारणों से पतिपत्नी में दूरी बढ़ती जाती है और वक्त रहते अगर सूझबूझ से अपनी समस्याओं का समाधान पतिपत्नी नहीं कर पाते हैं तो अलगाव होना और फिर तलाक की संभावना बढ़ जाती है. अत: दोनों को इस बात का आभास होना चाहिए कि रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं. इन्हें अथक प्रयास द्वारा, स्वस्थ मानसिकता के साथ संभालना बहुत जरूरी होता है.

गलतियों को मानें

सब से विचित्र बात यह है कि पतिपत्नी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं कर पाते जबकि जीवन से संबंधित ये गलतियां जीवन को अधिक सीमा तक प्रभावित करती हैं. इन्हें छोटी गलतियां मानना ही मूलरूप से गलत है. रिश्ते को हर हाल में टूटने से बचाने की जिम्मेदारी पति और पत्नी दोनों की होती है. मुश्किलें पतिपत्नी की हैं, तो समाधान भी उन के द्वारा ही ढूंढ़ा जाना चाहिए.

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दिल खोल कर प्रशंसा करें

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट मानते हैं कि एकदूसरे के प्रति तारीफ के शब्द न केवल पार्टनर्स को एकदूसरे के नजदीक लाते हैं, बल्कि टूटने के कगार पर आ गए रिश्तों में ताजगी भरने की भी संभावना रखते हैं. वैवाहिक जीवन की कामयाबी बहुत सीमा तक इस बात पर निर्भर करती है कि पतिपत्नी एकदूसरे की प्रशंसा कर के जीवन को आनंदपूर्ण बनाए रखें.

रिलेशनशिप टिप्स

ऐक्सपर्ट स्टीव कपूर ने अपनी पुस्तक में हैल्दी रिलेशनशिप के निम्न टिप्स दिए हैं:

– पतिपत्नी को सैंस औफ ह्यूमर रखना चाहिए. चीजों और समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए, जब यह स्थिति और समस्या की मांग हो.

– पतिपत्नी को एकदूसरे की ड्रैस सैंस की तारीफ करनी चाहिए. अच्छी बातों के लिए तारीफ करने में कंजूसी बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

– एकदूसरे को कौंप्लिमैंट दें. विश्वास के आधार पर रिश्ते में मिठास भरें.

– यदि पतिपत्नी में से कोई एकदूसरे की बात मानने को तैयार नहीं है तो इस के कारण को जानने की कोशिश करें न कि उस के साथ विवाद कर उसे परेशान करें और खुद भी परेशान हों.

– दूसरे की भावनाओं से खिलवाड़ ठीक नहीं होता है. एकदूसरे को ब्लैकमेल करने से या उस की कमजोरी पर फोकस करने की आदत आत्मघाती होती है. भावनात्मक स्तर पर एकदूसरे के साथ जुड़ाव के लिए वक्त निकाल कर घूमने अवश्य जाएं. भूल कर भी अपने प्यार का प्रदर्शन लोगों के सामने न करें.

– बहसबाजी अच्छी आदत नहीं है. जब भी ऐसा अवसर आए अपने संवाद को कट शौर्ट कर के सुखद मोड़ देते हुए अपने रिश्ते को बचाएं और संवारें.

रिलेशनशिप की समस्याओं की पृष्ठभूमि

आइए, रिलेशनशिप की समस्याओं को नीतिपूर्वक तरीके से निबटने के बारे में जानें:

– आप अपने पार्टनर को बेहद प्यार करते हैं, लेकिन जब बात आती है इगो को बैलेंस करने की तो चुपचाप सहन करते हुए कभी खुल कर एकदूसरे के सामने नहीं आ पाते हैं. चुप रहना एक बहुत बड़ी कमजोरी बन जाती है. बेहतर होगा कि अपनी तरफ से आप स्पष्ट रूप से पार्टनर का सहयोग कर विवाहित जीवन को बेहतर बनाने के बारे में सोचें.

– रिलेशनशिप का सारा दारोमदार क्रिया और प्रतिक्रिया का है. अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने में जल्दबाजी न करें. सोचसमझ कर व सूझबूझ के साथ सही प्रतिक्रिया दें. एक सिंगल वार्तालाप से हमेशा समस्या सुलझ जाने की आशा न करें.

– अपनी रिलेशनशिप को बेहतर बनाए रखने के लिए एकदूसरे से सुझाव मांगें और अध्ययन करने के बाद उन सुझावों को अमल में लाएं जो रिलेशनशिप के लिए कारगर और उपयोगी हैं. यह काम धैर्यपूर्वक समस्या को खुले दिल से स्वीकार करने के बाद ही हो सकता है.

– बेकार का वादविवाद न करें और न ही दूसरे लोगों को उस का हिस्सा बनाएं. कम से कम शब्दों में समस्या को परिभाषित करें. एकदूसरे को उचित समय दें. ऐसा माहौल बनाएं जिस में आप खुले दिल और दिमाग से समस्या का निवारण करने की जिम्मेदारी पूरी लगन और सचाई के साथ कर सकें.

– हर समस्या के समाधान पर एकदूसरे को पार्टी, लंच, डिनर दे कर यह एहसास कराएं कि जो कुछ हुआ बहुत अच्छा हुआ.

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ऐसे निकालें समस्याओं के हल

पतिपत्नी का रिश्ता जब विवाह के बाद प्रारंभिक चरण में होता है तो सब रिश्तेदारों की अपेक्षाएं वास्तविक आधार पर नहीं होतीं. संबंधी नई बहू से आशा करते हैं कि वह हर रिश्ते को दिल से सम्मान दे. अपनी सुविधा को नजरअंदाज कर वह रिश्ते का निर्वाह इस तरह करे जैसे वह उन्हें बरसों से जानती है. अधिकतर पत्नियां जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ पर यह उम्मीद रखती हैं कि पति उपहार में डायमंड या गोल्ड के आभूषण, डिजाइनर वस्त्र आदि उसे गिफ्ट करे. दोनों पार्टनर जीवन के लिए प्रैक्टिकल अप्रोच अपनाएं तो वे जीवन को क्रोध, तानों और दोषारोपण की मौजूदगी में भी उत्तम तरीके से बिता सकते हैं.

मनोवैज्ञानिक जौन गोटमैन का सुझाव है कि पतिपत्नी का महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि वे एकदूसरे पर कीचड़ न उछालें. एकदूसरे के प्रशंसक बनें. एकदूसरे के लिए चिंता तो करें, लेकिन रचनात्मक सोच के साथ. उन का हर फैसला सहयोग के आधार पर होना चाहिए.

हर विवाह की स्थिति ऐसी होती है कि अगर आप खूबियां ढूंढ़ेंगे तो आप को सब कुछ अच्छा नजर आएगा. अगर एकदूसरे की कमियों पर फोकस करना चाहेंगे तो बहुत कमियां नजर आएंगी. इसलिए बेहतर होगा कि अच्छाई पर फोकस रखें व पौजिटिव नजरिया अपनाएं. आप में वे सब गुण और काबिलीयत हैं, जो आप को ‘विन विन’ स्थिति में रख कर विजयी घोषित कर सकते हैं. प्यार मांगने से नहीं मिलता है. प्यार के लिए डिजर्व करना पड़ता है. जीवन का हर लमहा आनंद से सराबोर होना चाहिए. यह पतिपत्नी का जन्मसिद्ध अधिकार है.

शादी से पहले, शादी के बाद

इनसान की जो कामना पूरी हो जाती है उस के प्रति वह कुछ समय बाद उदासीन सा हो जाता है और दूसरी कामनाओं के पीछे भागने लगता है. आजकल विवाहित जोड़े, विवाह की बात तय होने के बाद एकदूसरे के लिए बहुत ही उतावले रहने लगते हैं, एकसाथ घूमतेफिरते हैं, खातेपीते हैं, भावी जीवन को ले कर बातें करते हैं, एकदूसरे के घर होने वाले आयोजनों में, उत्सवों में साथसाथ नजर आते रहते हैं, एकदूसरे के घर भी रह आते हैं, एकदूसरे का परिचय भी बड़े गर्व से लोगों से करवाते हैं. उस दौरान उन का एकदूसरे के प्रति समर्पण आसमान छू रहा होता है. दोनों को अपनी भावी ससुराल की हर चीज बहुत अच्छी लगती है. अगर कुछ बुरा भी लगता है तो उसे चुनौती समझ कर स्वीकार करते हैं. लेकिन यही कपल विवाह के साल 2 साल बाद एकदूसरे से उदासीन से हो जाते हैं, उकता से जाते हैं. यानी उन के प्रेम का रंग फीका पड़ने लगता है. एकदूसरे की अच्छाइयां बुराइयों में बदलने लगती हैं. जो बातें चैलेंज के रूप में ली थीं, वे जी का जंजाल बन जाती हैं. विवाह के पहले एकदूसरे का जो पहननाओढ़ना मन को बहुत भाता था, विवाह के कुछ समय बाद वही पहनावा फूहड़पन और भद्देपन में बदलने लगता है. एकदूसरे की कमियां गिनातेगिनाते रातें बीत जाती हैं. देखते ही देखते दोनों एकदूसरे से बेजार से हो जाते हैं. अलगअलग शौक पाल कर रास्ते अलगअलग करने लगते हैं. अगर दोनों जौब में होते हैं तो अधिक व्यस्तता का बहाना बना कर एकदूसरे से दूरियां बनाने लगते हैं.

बौलीवुड के सितारे इन की प्रेरणा बन जाते हैं. 10 में से 5 कलाकारों की यही कहानी होती है. रणधीर कपूरबबीता, अमृतासिंहसैफ, आमिर खान, संजय दत्त, रितिक रोशन आदि इसी राह पर चले हैं.

विवाह बाद दूरियां क्यों

दरअसल, हमारा जीवन एक गाड़ी की तरह है. पतिपत्नी उस गाड़ी के 2 पहिए हैं. यदि उन का संतुलन बिगड़े तो परिवार बिखरने तक की नौबत आ जाती है.

3-4 दशक पहले तलाक के मामले बहुत कम थे. उस के पीछे भी कुछ अहम कारण थे. उस समय युवकयुवतियों को सगाई के बाद भी मिलनेजुलने की इतनी छूट नहीं होती थी. एक सीमा रेखा होती थी. फोन पर बात होती थी. किसी पारिवारिक आयोजन में मुलाकात हो जाती थी. उन का जीवन एक ऐसी किताब की तरह होता था, जिस का 1-1 अध्याय पढ़ने को मिलता था. अगला अध्याय पढ़ने की उत्सुकता बनी रहती थी. इस प्रकार एकदूसरे के जीवन का 1-1 नया अध्याय पढ़ने में उम्र में, स्वभाव में परिपक्वता आ जाती थी. एकदूसरे के घरपरिवार, शिक्षा, कालेज, शौक, पुराने मित्रों के बारे में पता करते, सोचतेसमझते विवाह की नींव इतनी मजबूत हो जाती थी कि टूटने का सवाल ही नहीं उठता था.

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मगर आजकल अति आधुनिकता के पीछे भागते युवकयुवतियां अपने जीवन की किताब विवाह तय होते ही एकदूसरे को सौंप देते हैं. विवाह होने से पहले ही वे एकदूसरे की जीवन की किताब पढ़ चुकते हैं. इस कारण एकदूसरे के प्रति उत्सुकता, बेचैनी, जानने की ललक समाप्त हो जाती है.

नीरस बन जाती है जिंदगी

मृणाल का ही उदाहरण लें. वह बहुत ही मेधावी छात्रा थी. बंगाली परिवार से थी. कालेज में यूनियन के प्रैसिडैंट सुमीर, जो एक कट्टर ब्राह्मण परिवार से था, को दिल दे बैठी. दोनों एकदूसरे के आकर्षण में ऐसे डूबे कि सब कुछ भुला बैठे. मृणाल हर समय सुमीर की बातें करती. अब वह पढ़ने में पिछड़ने लगी. कईकई बार रात को भी गायब रहने लगी. परीक्षा परिणाम आया तो कई विषयों में अनुत्तीर्ण रही.

दोनों परिवारों के घोर विरोध के बावजूद दोनों का विवाह हो गया. पर कुछ ही सालों में मृणाल, जिस की सुंदरता खिलते गुलाब जैसी थी, पूर्णतया मुरझा गई. शुष्क काले घेरे शृंगार के नाम पर एक छोटी सी बिंदी बस. पीहर की बड़ी हवेली में रहने वाली ससुराल के छोटे से घर में रहती. दालचावल बीनती दिखती रही थी.

एक दिन मृणाल को उस की एक सहेली मिल गई तो मृणाल ने उसे बताया कि वह पहले खुल कर जीती थी पर उस के कट्टर ब्राह्मण ससुराल वालों ने दिल से नहीं स्वीकारा. बस बेटे की जिद के आगे घुटने टेक दिए थे. मुझे रसोईघर में खाना बनाने की अनुमति नहीं थी. रोज अपना खाना रसोईघर से बाहर बनाती. सास बहुत छुआछूत करती. सुमीर बिलकुल बदल चुका है. कहता है यहां रहना है तो उस की मां के अनुसार चलना होगा. किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो गया है. सारासारा दिन घर से बाहर रहता है. खानेपीने का कोई समय तय नहीं. उस की भी शिक्षा अधूरी है वरना कोई नौकरी ही कर लेती.

उस का यह हाल सुन सहेली की आंखें भर आईं. भरे मन से वह वहां से घर वापस आ गई. कुछ महीनों बाद सुमीर से तलाक ले कर मृणाल मायके लौट गई. यह सुन कर सहेली का मन बहुत उदास हो उठा कि विवाह से पहले प्रेम का, साथसाथ घूमनेफिरने, एकदूसरे को समझने का तलाक के रूप में अंत?

बढ़ती दूरियां

अर्थशास्त्री की नजर में किसी भी वस्तु का बाजार में भाव उस की भाग और पूर्ति के सिद्घांत पर टिका रहता है. जैसे बाजार में फल, सब्जी, दालें या अन्य किसी वस्तु की पूर्ति पर्याप्त मात्रा में है और मांग कम है तो बाजार भाव गिर जाता है. इस के विपरीत पूर्ति कम और मांग ज्यादा है, तो उस वस्तु के भाव एकदम बढ़ जाते हैं.

अर्थशास्त्र की मांग और पूर्ति का यही सिद्घांत वैवाहिक जीवन पर भी लागू होता है. यदि विवाह से पहले एकदूसरे की पूर्ति बहुत ज्यादा होती है अर्थात बहुत अधिक मिलनाजुलना रहता है तो विवाह के बाद मांग कम हो जाती है. दोनों आपस में छोटीबड़ी सभी बातें शेयर करते हैं. किसी बात पर कोई परदा नहीं है तो विवाह के बाद एकदूसरे के प्रति उत्सुकता समाप्त हो जाती है. जीवन में नीरसता सी आ जाती है. दूरियां बढ़ती हैं और फिर धीरेधीरे अलग होने के कगार पर आ खड़े होते हैं.

दूसरी ओर एक संतुलित तरीके से मिलनेजुलने पर आकर्षण बना रहता है. विवाह के बाद एकदूसरे को अच्छी तरह जानने की उत्सुकता बनी रहती है. विवाह के बाद दोनों एकदूसरे से अपनी बातें शेयर करते हैं तो जीवन में सरसता बनी रहती है. एकदूसरे को अधिक से अधिक जानने की कोशिश में आपस में बंधे रहते हैं.

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समय की मांग

समय की यह मांग है कि विवाह से पहले लड़का और लड़की एकदूसरे को अच्छी तरह समझपरख लें ताकि विवाह के बाद जीवन सही ढंग से गुजरे. पर कभीकभी युवा इस सुविधा का अनुचित फायदा उठाने लगते हैं. एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा प्र्रभावित करने के लिए अपनी आमदनी, परिवार, धनदौलत की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ करते हैं. दोनों में से कोई एक या फिर दोनों ही एकदूसरे को सब्जबाग दिखाते हैं, जो भविष्य में जा कर घातक ही सिद्घ होता है.

गलतफहमी में न रहें

हमारे एक नजदीकी रिश्तेदारी में विवाह तय होने के बाद लड़कालड़की दोनों एकदूसरे का स्वभाव, आदतें समझने के बजाय एकदूसरे को प्रभावित करने के लिए झूठी शान बघारने लगे कि हमारे पास इतना धन है, इतना सोना है. खूब हवाई किले बनाने लगे. मगर जब विवाह हुआ तो पता चला कि दोनों ही साधारण परिवार से हैं. लड़की ने ससुराल में जा कर पाया कि लड़के द्वारा बघारी गई शेखियों में कुछ भी सच नहीं है. वह एक अति साधारण परिवार की बहू बन कर रह गई. असलियत खुलने पर बहुत झगड़ा हुआ. अपनी सारी उम्मीदों पर पानी फिरता देख 4 महीने में ही लड़की मायके लौट गई.

विवाह से पहले लड़केलड़कियों का आपस में मेलजोल सही है. इस दौरान दोनों को अपने स्वभाव, आदतें, जीवन स्तर की सही तसवीर पेश करनी चाहिए. अपने जीवन की पूरी किताब एकदूसरे को न सौंप दें. कुछ पाठ विवाहोपरांत पढ़ने में ही आनंद आता है.

अपने होने वाले जीवनसाथी को किसी गलतफहमी में न रहने दें. इसी में दोनों का फायदा है, क्योंकि झूठे हवामहल बनाने से विवाह की नींव कमजोर रहती है और विवाह का महल भरभरा कर गिर जाता है.

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पति-पत्नी के रिश्ते में नयापन बनाए रखें ऐसे

शादी के बाद पतिपत्नी प्यार से अपने जीवन का घोंसला तैयार करते हैं. कैरियर बनाने के लिए बच्चे जब घर छोड़ कर बाहर जाते हैं तो यह घोंसला खाली हो जाता है. खाली घोंसले में अकेले रह गए पतिपत्नी जीवन के कठिन दौर में पहुंच जाते हैं. तनाव, चिंता और तमाम तरह की बीमारियां अकेलेपन को और भी कठिन बना देती हैं. ऐसे में वह एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम का शिकार हो जाते हैं.  आज के दौर में ऐसे उदाहरण बढ़ते जा रहे हैं. अगर पतिपत्नी खुद का खयाल रखें तो यह समय भी खुशहाल हो सकता है, जीवन बोझ सा महसूस नहीं होगा. जिंदगी के हर पड़ाव को यह सोच कर जिएं कि यह दोबारा मिलने वाला नहीं.

राखी और राजेश ने जीवनभर अपने परिवार को खुशहाल रखने के लिए सारे इंतजाम किए. परिवार का बोझ कम हो, बच्चे की सही देखभाल हो सके, इस के लिए एक बेटा होने के बाद उन्होंने फैमिली प्लानिंग का रास्ता अपना लिया. बच्चे नितिन को अच्छे स्कूल में पढ़ाया. बच्चा पढ़ाई में होनहार था. मैडिकल की पढ़ाई करने के लिए वह विदेश गया. वहां उस की जौब भी लग गई. राखी और राजेश ने नितिन की शादी नेहा के साथ करा दी. नेहा खुद भी विदेश में डाक्टर थी. बेटाबहू विदेश में ही रहने लगे. राखी और राजेश का अपना समय अकेले कटने लगा. घर का सूनापन अब उन को परेशान करने लगा था.

राखी ने एक दिन कहा, ‘‘अगर  बेटाबहू साथ होते तो कितना अच्छा होता. हम भी बुढ़ापे में आराम से रह रहे होते.’’

‘‘राखी जब नितिन छोटा था तो हम दोनों यही सोचते थे कि कब यह पढ़ेलिखे और अच्छी सी नौकरी करे. समाज कह सके कि देखो, हमारा बेटा कितना होनहार है,’’ राजेश ने पत्नी को समझाते हुए कहा.

‘‘तब हमें यह नहीं मालूम था कि हम इस तरह से अकेलेपन का शिकार हो जाएंगे,’’ राखी ने कहा.

राजेश ने समझाते हुए कहा, ‘‘हम ने कितनी मेहतन से उसे पढ़ाया. अपने शौक नहीं देखे. हम खुद पंखे की हवा खाते रहे पर बेटे को हर सुखसुविधा दी. अब जब वह सफल हो गया तो अपने अकेलेपन से घबरा कर उस को वापस तो नहीं बुला सकते. उस के सपनों का क्या होगा.’’

‘‘बात तो आप की भी सही है. हमें खुद ही अपने अकेलेपन से बाहर निकलना होगा. हम अकेले तो ऐसे नहीं हैं. बहुत सारे लोग ऐसे ही जी रहे हैं,’’ राखी ने कहा.

राखी और राजेश ने इस के बाद फिर कभी इस मुद्दे पर बात नहीं की. उन्होंने अपने को बदलना शुरू किया. सोशल ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेना शुरू किया. खुद क ो अच्छी डाइट और ऐक्सरसाइज से फिट किया. साल में 2 बार वे अपने बहूबेटे के पास विदेश जाने लगे. वहां वे 20-25 दिनों तक रहते थे.  साल में 1-2 बार बेटाबहू भी उन के पास छुट्टियों में आने लगे. कभी महसूस ही नहीं हुआ कि वे अकेले हैं. सोशल मीडिया के जरिए वे आपस में जुडे़ रहते थे. अपने बारे में राजेश और राखी बहूबेटे को बताते तो कभी बहूबेटा उन को बताते रहते. फैस्टिवल पर कभीकभी एकसाथ मिल लेते थे.

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राखी ने डांस सीखना शुरू किया. लोग शुरूशुरू में हंसने लगे कि यह कैसा शौक है. राखी ने कभी इस बात का बुरा नहीं माना. डांस सीखने के बाद राखी ने अपने को व्यस्त रखने के लिए शहर में आयोजित होने वाले डांस कंपीटिशन में हिस्सा लेना शुरू किया. राखी की डांस में एनर्जीदेख कर सभी उस की प्रशंसा करने लगे. पत्नी को खुश देख कर राजेश भी बहुत खुश था. मातापिता को खुश देख कर बेटाबहू भी खुश थे. जीवन का जो घोंसला सूनेपन से भर गया था, वापस खुशहाल हो रहा था.

राखी और राजेश एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम के शिकार अकेले कपल नहीं हैं. समाज में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आज के समय में हर परिवार में 1 या 2 ही बच्चे हैं. ऐसे हालात हर जगह बन रहे हैं. अब पतिपत्नी खुद को बदल कर आपस में नयापन बनाए रख कर हालात से बाहर निकल रहे हैं.

बनाएं नई पहचान

संतोष और सुमन की एक बेटी थी. वे दोनों सोचते थे कि ऐसे लड़के से शादी करेंगे जो उन के साथ रह सके. बेटी ने विदेश में जौब कर ली. उस की शादी वहीं रहने वाले एक बिजनैसमैन से हो गई. संतोष ने अपनी पत्नी सुमन को खुद को सजनेसंवरने के लिए  कहा. सुमन को यह पहले भी पसंद  था. ऐसे में उस का शौक अब और निखरने लगा.  कुछ ही तैयारी के बाद एक समय ऐसा आया कि सुमन शहर की हर पार्टी में शामिल होने लगी. वह पहले से अधिक निखर चुकी थी. संतोष खुद बिजनैसमैन था इसलिए पत्नी को कम समय दे पाता था पर जहां तक हो सकता था पत्नी का पूरा साथ देता था.

एक दिन सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. सुमन ने उस में हिस्सा लिया और विवाहित महिलाओं की यह सौंदर्य प्रतियोगिता जीत ली. वह अब खुद  ही ऐसे आयोजनों के साथ जुड़ कर  नए सिरे से अपने को स्थापित कर  चुकी है.

अब केवल पति को ही नहीं, उस के बच्चों को भी मां के टैलेंट पर गर्व होता है. सुमन ने मौडलिंग भी शुरू कर दी. वह कहती है हम ने शादी के बाद जिन शौकों को पूरा करने का सपना देखा था, वे अब पूरे हो रहे हैं. ऐसे में मेरा मानना है कि शादी के बाद देखे गए सपने अगर पूरे नहीं हो रहे हैं तो उन को पूरा करने का समय यही है. सपने भी पूरे होंगे और अकेलापन भी दूर होगा.

अपने शौक को पूरा करे

अर्चना को स्कूल के दिनों से ही पेंटिंग बनाने का शौक था. जल्दी शादी, फिर बच्चे होने के बाद यह शौक दरकिनार हो गया था. अर्चना की परेशानी थोड़ी अलग थी. वह सिंगल मदर थी. उस ने खुद ही बेटे आलोक को अपने दम पर पढ़ालिखा कर विदेश भेजा. अब खुद अकेली रह गई. कई बार आलोक अपनी मां को भी अपने साथ ले जाता था. पर अर्चना वहां रहने के लिए तैयार नहीं थी. कुछ दिन बेटे के पास विदेश रह कर वापस चली आती थी. वापस आ कर उसे अकेलापन परेशान करता था.  अकेलेपन से बचने के लिए अर्चना ने अपने पेंटिंग के शौक को पूरा करना शुरू किया. खुद सीख कर अब वह बच्चों को भी पेंटिंग सिखाने लगी. इस से उसे कुछ पैसे भी मिलते थे. इन पैसों से अर्चना ने पेंटिंग कंपीटिशन का आयोजन कराया. अब अर्चना को कहीं भी अकेलापन नहीं लग रहा था. अर्चना ने अपने को फिट रखा. आज वह खुश है और अब वह पहले से अधिक सुंदर लगती है. मां को खुश देख कर बेटा भी पूरी मेहनत से अपना काम कर रहा है.

कई बार पेरैंट्स बच्चों के कैरियर को बनाने के लिए अपने शौक को पूरा नहीं करते. उन को दरकिनार कर देते हैं. जब बच्चे बाहर सैटल हो जाएं तो पेरैंट्स अपने शौक को पूरा कर सकते हैं. इस से 2 तरह के लाभ होते हैं. एक तो पुराने शौक पूरे हो जाते हैं. दूसरे, खुद इतना व्यस्त हो जाते हैं कि खालीपन का एहसास नहीं होता.

अपने शौक के पूरा होने का एहसास दिल को खुशी देता है. कई लोग हैं जो खाली समय में बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं. कुछ लोग पर्यावरण के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं. इस से समाज के लोग उन के साथ खडे़ होते हैं और समाज में उन को नया मुकाम भी हासिल होता है.

पत्नी को प्रोत्सहित करें. उस के लिए पैसे और समय दोनों उपलब्ध कराएं. साथ में, उस के आत्मविश्वास को जगाएं कि वह अभी भी अपने हुनर का कमाल दिखा सकती है.

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नयापन बनाए रखने के टिप्स

एनर्जी से भरपूर दवाएं खाना भी जरूरी होता है. आमतौर पर ऐसे समय में सैक्स के महत्त्व को दरकिनार किया जाता है. हालांकि सैक्स भी इस उम्र में जरूरी होता है. यह केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक हैल्थ के लिए जरूरी होता है. इस से खुद में एक बदलाव का अनुभव होता है.

शुरूआत में पति खुद ही पत्नी का हौसला बढ़ाएं. फैशन, फिटनैस और ब्यूटीफुल ड्रैस आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं.

खालीपन को दूर करने के लिए क्याक्या किया जा सकता है जिस से पहचान भी बने, यह पत्नी की योग्यता को देख कर फैसला करें.

सोशल सर्किल बनाते समय यह ध्यान रखें कि एकजैसी सोच के लोग हों. कई बार नैगेटिव सोच के लोग आगे बढ़ने के बजायपीछे ढकेल देते हैं.

जब पति तोड़े भरोसा

आयशा अपने पति से तलाक चाहती है. वजह है उस के पति के किसी और महिला से संबंध. आयशा ने 2 साल पहले ही आयुश से शादी की थी. शादी के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, मगर एक दिन आयशा को पता चला कि उस के पति औफिस से निकल कर किसी और महिला के पास जाते हैं. आयशा अभी मां नहीं बनी है. आयुश से अलग होने में उसे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जो सब कुछ जानते हुए भी अपने परिवार और बच्चों की खातिर तलाक नहीं ले पातीं.

यह सच है कि बेवफा साथी कभी सच्चा साथी नहीं हो सकता. एक बार भरोसा टूट जाने के बाद रिश्तों में हमेशा के लिए कड़वाहट आ जाती है. एक बात और ध्यान देने वाली है कि पति की बेवफाई झेलने वाली औरत सिर्फ पत्नी नहीं होती, मां भी होती है, इसलिए पति से संबंध बिगड़ने का बच्चों की देखरेख पर भी बुरा असर पड़ता है. बेवफाई हर औरत को अखरती है भले ही उस की उम्र कुछ भी हो. बेवफा साथी के साथ कैसे पेश आएं, इस का फैसला बहुत सोचविचार कर और समझदारी से करना चाहिए.

सही निर्णय लें

जब आप को एहसास होता है कि आप के साथ धोखा हो रहा है तो एक मां होने के नाते कभीकभी आप को कठिन फैसला लेना पड़ता है. आप अविश्वास भरे माहौल में रहने के बजाय अलग रहना पसंद करेंगी और रिश्ता तोड़ना चाहेंगी. मगर आप अपने बच्चों के सामने अपने असफल रिश्ते का उदाहरण भी नहीं रखना चाहतीं. परिवार के लोग भी नहीं चाहते कि आप अपना रिश्ता खत्म करें. आप घुटन व अवसाद में जी रही हैं और आप की जिंदगी बदतर हो गई है तो समझ लीजिए अब फैसले की घड़ी है. अब या तो आप पति से वादा लीजिए कि भविष्य में वे कभी आप के साथ धोखा नहीं करेंगे या फिर उन से अलग होने का फैसला. आप का सही फैसला आप की जिंदगी पुन: पटरी पर ला सकता है.

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बच्चों को आश्वस्त करें

अगर आप अपने पति के बरताव और उन की बेवफाई से तंग आ कर उन से अलग होने का फैसला कर रही हैं तो आप का यह निर्णय आपसी सहमति पर होना चाहिए. अपने बच्चों को भरोसा दिलाएं कि आप के तलाक के फैसले का उन की जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें पहले से बेहतर जिंदगी देने का आश्वासन दें. उन्हें बताएं कि अगलअलग घर में रह कर भी वे उन्हें पहले जैसे ही भरपूर प्यार करेंगे. याद रखिए, आप का रिश्ता टूटने पर जितनी तकलीफ आप को होगी उस से कहीं अधिक आप के बच्चों को होगी. एक तो अपनी मां का तलाक होने का दर्द और दूसरा अपने पिता से दूर होने का, यदि बच्चे मां के पास हैं तो.

बच्चों के सवालों के लिए रहें तैयार

याद रखें बच्चे इस बात को पहले सोचते हैं कि उन के मातापिता के अलग हो जाने पर उन की जिंदगी कैसी होने वाली है. इसलिए उन के सवालों के जवाब देने के लिए पहले से ही तैयार हो जाएं. जैसे घर छोड़ कर कौन जाएगा? हमारी छुट्टियां कैसे बीतेंगी? पापा के हिस्से का काम कौन करेगा? आदिआदि.

क्या आप माफ कर सकती हैं

अगर आप के पति को अपने किए पर पछतावा है और वे आप को बारबार लगातार सौरी बोल रहे हैं, तो एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देखें कि क्या आप उन्हें माफ कर सकती हैं? क्या आप भविष्य में उन पर भरोसा कर सकती हैं? क्या आप बीती बातों को भुला सकती हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन के उत्तर आप को देने हैं और अपनी भावनाओं के प्रति ईमानदार रह कर फैसला करना है. याद रखें सब कुछ भुला कर रिलेशनशिप में बने रहने का फैसला लेने के बाद आप अपने पति को उन के किए की सजा नहीं दे पाएंगी.

रिश्ता बचाने की कोशिश करें

अगर आप के पति ने सिर्फ एक बार गलती की है और वे इस के लिए खेद जता रहे हैं तो तलाक जैसा कठिन फैसला आप की जिंदगी के लिए बैस्ट नहीं हो सकता. यह भले ही आप को सुनने में अच्छा न लगे, लेकिन सच यही है. कुछ लोगों का कहना होता है कि जिस ने एक बार धोखा किया है वह हमेशा देगा. मगर ऐसा सोचना गलत है. आप अपना रिश्ता बचा कर अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी में बहुत कुछ बचा सकती हैं.

बच्चों को न बताएं

अपने बच्चों से यह कतई न कहें कि आप उन के पापा के किसी और से अफेयर के कारण अलग होना चाहती हैं. हो सकता है कि वे आप के लिए एक अच्छे पति न बन पाए हों, मगर अपने बच्चों के लिए वे एक अच्छे पापा हों. इसलिए अगर आप उन से उन के पापा के अफेयर के बारे में बताएंगी तो उन के बालमन को आघात लगेगा और इस से निकलने में उन्हें बहुत समय लग सकता है.

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बच्चों को जरीया न बनाएं

ऐसी परिस्थितियों में आप अपने पति को हर्ट करने के लिए अपने बच्चों का इस्तेमाल कर सकती हैं, जो ठीक नहीं है. ऐसा कर के आप बच्चों का उन के पापा के साथ संबंध भी बिगाड़ रही हैं. बच्चों को खुद फैसला करने दें कि उन का अपने पापा के प्रति क्या विचार है. थोड़ा बड़ा होने पर वे ऐसा कर सकते हैं. आज शहरों में तलाक के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. इस में 80 फीसदी कारण पार्टनर की बेवफाई होती है. आज महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. रिश्तों में ऐसी कड़वाहट के साथ जीना उन्हें हरगिज गवारा नहीं है. यह सच है कि बेवफा साथी के साथ रहने का फैसला करना बहुत कठिन है, लेकिन एक रिश्ते की चिता पर कई रिश्तों की अर्थी न चढ़ जाए, यह सोच कर अगर संभव हो तो रिश्ता बचाने की एक कोशिश जरूर करनी चाहिए. पति से अलग होने के फैसले के साथ पति का पूरा परिवार भी अकसर अलग हो जाता है. बच्चों से उन का पिता छिनने के साथ ही उन के दादादादी, बूआ, चाचा यानी पूरा परिवार छिन जाता है. तलाक के कठिन फैसले से सिर्फ आप ही अकेली नहीं होतीं, कई जिंदगियां छिन्नभिन्न हो जाती हैं. इसलिए रिश्ते को बचाने की कोशिश किए बिना तलाक के लिए आवेदन करना ठीक नहीं है. यकीन मानिए, जो खुशी सब के साथ जीने में है, वह अकेले में कतई नहीं.

उम्र भर रहें जवान

कुछ दिनों से आलोक कुछ बदलेबदले से नजर आ रहे हैं. वे पहले से ज्यादा खुश रहने लगे हैं. आजकल उन की सक्रियता देख कर युवक दंग रह जाते हैं. असल में उन के घर में एक नन्ही सी खुशी आई है. वे पिता बन गए हैं. 52 साल की उम्र में एक बार फिर पिता बनने का एहसास उन को हर पल रोमांचित किए रखता है. इस खुशी को चारचांद लगाती हैं उन की 38 वर्षीय पत्नी सुदर्शना. सुदर्शना की हालांकि यह पहली संतान है लेकिन आलोक की यह तीसरी है.

दरअसल, आलोक की पहली पत्नी को गुजरे 5 साल बीत चुके हैं. उन के बच्चे जवान हो चुके हैं और अपनीअपनी गृहस्थी बखूबी संभाल रहे हैं. कुछ दशक पहले की बात होती तो इन हालात में आलोक के दिल और दिमाग में बच्चों के सही से सैटलमैंट के आगे कोई बात नहीं आती. इस उम्र में अपनी खुशी के लिए फिर से शादी की ख्वाहिश भले ही उन के दिल में होती लेकिन समाज के दबाव के चलते इस खुशी को वे अमलीजामा न पहना पाते. अब जमाना बदल चुका है. लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं, एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम से बाहर निकल रहे हैं. और अपनी खुशियों को ले कर भी वे ज्यादा स्पष्ट और मुखर हैं. अब लोग 70 साल तक स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं.

जब आलोक ने देखा कि उन के बच्चों का उन के प्रति दिनप्रतिदिन व्यवहार बिगड़ता जा रहा है. अपने कैरियर व भावी जिंदगी को बेहतर बनाने की आपाधापी में बच्चों के पास उन की खुशियों को जानने व महसूस करने की फुरसत नहीं है तो आलोक ने न केवल उन से अलग रहने का निर्णय लिया बल्कि एक बार फिर से अपनी जिंदगी को व्यवस्थित करने का मन बनाया.

एक दिन इंटरनैट के जरिए उन की मुलाकात सुदर्शना से हुई जो उन्हीं की तरह अच्छी जौब में थी. आर्थिक नजरिए से सैटल थी, लेकिन कैरियर के चक्कर में सही उम्र में शादी न हो सकी थी. वह 37 साल की हो चुकी थी. उस ने एक खूबसूरत नौजवान का जो ख्वाब देखा था, उसे अब भूल चुकी थी. उसे अब एक व्यावहारिक दोस्त चाहिए था.  सुदर्शना को आलोक में व्यावहारिक जीवनसाथी के सभी गुण नजर आए. दोनों ने झटपट कानूनी तरीके से शादी कर ली. कोकशास्त्र में कहा गया है कि पुरुषों की सैक्स क्षमता पूरी तरह से उन के अपने हाथों में होती है. दरअसल, जवानी में जो अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं उन के लिए अधेड़ावस्था जैसी कोई चीज ही नहीं होती. सच बात तो यह है कि इस युग में अधेड़ उम्र के माने वे नहीं रहे जो आधी सदी पहले तक हुआ करते थे. महिलाएं जरूर अभी तक रजोनिवृत्ति के चलते कुदरत के सामने अपने मातृत्व को लंबे समय तक कायम रखने को ले कर विवश हैं लेकिन स्त्रीत्व का आकर्षण उन में भी उम्र का मुहताज नहीं रहा.

सैक्स का सुख लें

आज पुरुष चाहे 50 का हो या 55 का या फिर 60 वर्ष का, स्वस्थ रहने की सजगता ने उसे इस उम्र में भी फिट बनाए रखा है, हालांकि इस में उसे कुदरत का भी साथ मिला है. वास्तव में उम्र ढलने के साथसाथ उस के परफौर्मैंस में कुछ गिरावट तो आती है, लेकिन उस की यह क्षमता बिलकुल खत्म नहीं होती.

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यहां कनफ्यूज न हों, पहले भी यह सब सहजता से होता रहा है. मगर इस तरह की क्षमताएं आमतौर पर राजाओं, महाराजाओं और अमीरउमरावों तक ही सीमित होती थीं क्योंकि वही आमतौर पर स्वस्थ होते थे और स्वास्थ्य के प्रति सजग होते थे. आम आदमी के लिए पहले न तो इतनी सहजता से स्वस्थ रहने के साधन उपलब्ध थे, न ही इस का ज्ञान था, इसलिए उन में बुढ़ापा जल्दी आ जाता था.

वैसे लंबे समय तक सैक्स में सक्षम और सक्रिय बने रहने का एक आसान उपाय है हस्तमैथुन. हस्तमैथुन एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में किसी दूसरे की जरूरत नहीं होती. शरीर विज्ञान की सीख कहती है कि शरीर के जिस अंग को आप सक्रिय बनाए रखेंगे उस की उम्र उतनी ही लंबी होगी और वह उतनी ही देर तक सक्षम रहेगा. वास्तव में यह बात सैक्स के मामले में भी सही है. असल में जो व्यक्ति जितना ज्यादा सैक्स करता है वह उतनी ही देर तक सैक्स कर सकता है.

मशहूर विशेषज्ञ डा. जौनसन का भी कहना था और आज के सैक्सोलौजिस्ट भी इस बात को मानते हैं कि लंबे समय तक सैक्स क्षमता बरकरार रखने के लिए युवावस्था में सैक्स सक्रियता जरूरी है. अगर यह सक्रियता रहती है तो 50 वर्ष की उम्र के बाद भी पुरुष को नपुंसक होने का डर नहीं रहता. यही नहीं, वह 70 साल तक पिता बनने का सुख भी प्राप्त कर सकता है.

सैक्सोलौजिस्ट हस्तमैथुन को विशेष महत्त्व देते हैं. असल में जो पुरुष अपने लिंग को जितना सक्रिय रखता है, उस की उतनी ही सैक्स की चाहत बढ़ती है क्योंकि इस प्रक्रिया में लिंग की अच्छीखासी ऐक्सरसाइज होती है.

कई बार पुरुष इसलिए भी अपनी पत्नियों को संतुष्ट नहीं कर पाते क्योंकि वे सैक्स के मामले में लगातार सक्रिय नहीं रहते. इस से उन के अंग विशेष की ऐक्सरसाइज भी नहीं हो पाती और ऐन मौके पर शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. कहने का मतलब यह है कि इस मामले में निष्क्रियता सैक्ससुख से वंचित कर देती है.

सैक्सोलौजिस्टों की मानें तो हस्तमैथुन सैक्स क्षमता बनाए रखने का एक कारगर तरीका है. यह न सिर्फ पुरुषों को स्वस्थ रखता है बल्कि अच्छीखासी प्रैक्टिस भी कराता है. इतना ही नहीं, उम्र ढलने के साथ सैक्स की चाहत को बढ़ाने में मदद करता है.

खानपान व जीवनशैली सुधारें

इन तमाम बातों के साथसाथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि अपने खानपान व मोटापे को भी नजरअंदाज न करें. सैक्स जीवन पर सब से ज्यादा कुप्रभाव मोटापा ही डालता है. मोटापे का अतिरिक्त वजन विटामिन बी-1 के लिए जिगर और थायराइड से प्रतिस्पर्धा करता है और इन दोनों ही अंगों को खराब कर देता है, जबकि सैक्स क्षमता के लिए दोनों ही अंग महत्त्वपूर्ण हैं. मोटा व्यक्ति पतले व्यक्ति की तुलना में सैक्स की कम इच्छा करता है. जब वह इच्छा करेगा भी, न तो वह पार्टनर को संतुष्ट कर पाता है और न खुद ही संतुष्ट हो पाता है. इस में दोराय नहीं है कि सैक्स सब के जीवन का अभिन्न हिस्सा है. ऐसे में न सिर्फ खानपान, जीवनशैली आदि का खयाल रखना होता है बल्कि कुछ सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो नशीले पदार्थों के आदी होते हैं.

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लब्बोलुआब यह है कि भविष्य को आनंदमय बनाना है तो युवावस्था से ही इस का ध्यान रखना होगा. इतना ही नहीं, अपने भावनात्मक रिश्तों को भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है. आज के दौर में बच्चे अपने कैरियर के लिए घर से दूर चले जाते हैं. ऐसे में मातापिता घर में अकेले रह जाते हैं. ऐसे पतिपत्नी के लिए सैक्स जीवन को ऊर्जावान बनाए रखता है. कहने की बात नहीं है कि सैक्स शारीरिक क्रिया के अलावा मानसिक संतुष्टि भी है. इसलिए चैन और सुकून से जीने के लिए अपने लाइफस्टाइल को बदल डालें और 60 वर्ष की उम्र के बाद भी गुनगुनाएं, अभी तो मैं जवान हूं…

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सवाल

मैं विवाहित युवक हूं. अपनी बीवी की एक असंगत समस्या से परेशान हूं. जब भी रात को हम सहवास करने के लिए बिस्तर पर जाते हैं, तो पत्नी पूछती है कि करोगे क्या? उठो करो. इस से मैं खीज जाता हूं कि न कोई फोरप्ले, न कोई उत्साह. कृपया बताएं कि क्या करूं कि बीवी अपना व्यवहार बदले और हम दोनों सहवास का पूरापूरा आनंद उठा सकें?

जवाब 

आप अपनी पत्नी को समझाएं कि सहवास अन्य दैनिक कार्यों से अलग क्रिया है. यह वह कार्य नहीं है जिसे झटपट निबटा लिया जाए. इस में तन के साथ साथ मन से भी सक्रिय होना होता है, इसलिए हड़बड़ी न मचाए. सहवास में प्रवृत्त होने से पहले स्पर्श, आलिंगन, चुंबन आदि रतिक्रीड़ाएं करनी चाहिए. इस से मजा दोगुना हो जाता है. यदि आप पत्नी को प्यार से समझाएंगे तो वह आप की बात पर जरूर गौर करेगी. उस के बाद सहवास दोनों के लिए रुचिकर हो जाएगा.

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सैक्स से पहले छेड़छाड़ है बेहद जरूरी

प्रिया का कहना है कि उस का पति जिस्मानी रिश्ता बनाते समय बिलकुल भी छेड़छाड़ नहीं करता और न ही प्यार भरी बातें करता है. उसे तो बस अपनी तसल्ली से मतलब होता है. जब तन की आग बुझ जाती है, तो निढाल हो कर चुपचाप सो जाता है. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पती ही रह जाती है.

कुछ इसी तरह राजेंद्र का कहना है, ‘‘जिस्मानी रिश्ता कायम करते वक्त मेरी पत्नी बिलकुल सुस्त पड़ जाती है. वह न तो इनकार करती है और न ही प्यार में पूरी तरह हिस्सेदार बनती है. न ही छेड़छाड़ होती है और न ही रूठनामनाना. नतीजतन, सैक्स में कोई मजा ही नहीं आता.’’

इसी तरह सरिता की भी शिकायत है कि उस का पति उस के कहने पर जिस्मानी रिश्ता तो कायम करता है, पर वह सुख नहीं दे पाता, जो चरम सीमा पर पहुंचाता हो. हालांकि वह अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है, फिर भी सरिता को ऐसा लगता है, मानो वह अपनी मंजिल पर पहुंच कर भी नहीं पहुंची. सैक्स के दौरान वह इतनी जल्दबाजी करता है, मानो कोई ट्रेन पकड़नी हो. उसे यह भी खयाल नहीं रहता कि सोते समय और भी कई राहों से गुजरना पड़ता है. मसलन छेड़छाड़, चुंबन, सहलाना वगैरह. नतीजतन, सरिता सुख भोग कर भी प्यासी ही रह जाती है.

मनोज की हालत तो सब से अलग  है. उस का कहना है, ‘‘मेरी पत्नी इतनी शरमीली है कि जिस्मानी रिश्ता ही नहीं बनाने देती. अगर मैं उस के संग जबरदस्ती करता हूं, तो वह नाराज हो जाती है. छेड़छाड़ करता हूं, तो तुनक जाती?है, मानो मैं कोई पराया मर्द हूं. समझाने पर वह कहती है कि अभी नहीं, इस के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी हुई है.’’

इसी तरह और भी अनगिनत पतिपत्नी हैं, जो एकदूसरे की दिली चाहत को बिलकुल नहीं समझते और न ही समझने की कोशिश करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि शादीशुदा जिंदगी कच्चे धागे की तरह होती है. इस में जरा सी खरोंच लग जाए, तो वह पलभर में टूट सकती है.

पतिपत्नी में छेड़छाड़ तो बहुत जरूरी है, इस के बिना तो जिंदगी में कोई रस ही नहीं, इसलिए यह जरूरी है कि पति की छेड़छाड़ का जवाब पत्नी पूरे जोश से दे और पत्नी की छेड़छाड़ का जवाब पति भी दोगुने मजे से दे. इस से जिंदगी में हमेशा नएपन का एहसास होता है.

अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने के दौरान या किसी दूसरे समय पर भी पति अपनी पत्नी को सहलाए और उस के जवाब में पत्नी पूरे जोश के साथ प्यार से पति के गालों को चूमते हुए अपने दांत गड़ा दे, तो उस मजे की कोई सीमा नहीं होती. पति तुरंत सैक्स सुख के सागर में डूबनेउतराने लगता है.

इसी तरह पत्नी भी अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने से पहले या उस दौरान पति से छेड़छाड़ करते हुए उस के अंगों को सहला दे, तो कुदरती बात है कि पति जोश से भर उठेगा और उस के जोश की सीमा भी बढ़ जाएगी.

कभीकभी यह सवाल भी उठता है कि क्या जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए कायम किया जाता है? क्या दिमागी सुकून से उस का कोई लेनादेना नहीं होता? क्या जिस्मानी रिश्ते के दौरान छेड़छाड़ करना जरूरी है? क्या छेड़छाड़ सैक्स सुख में बढ़ोतरी करती है? क्या छेड़छाड़ से पतिपत्नी को सच्चा सुख मिलता है?

इसी तरह और भी कई सवाल हैं, जो पतिपत्नी को बेचैन किए रहते हैं. जवाब यह है कि जिस्मानी रिश्तों के दौरान छेड़छाड़ व कुछ रोमांटिक बातें बहुत जरूरी हैं. इस के बिना तो सैक्स सुख का मजा बिलकुल अधूरा है. जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए ही नहीं, बल्कि दिमागी सुकून के लिए भी किया जाता है.

कुछ पति ऐसे होते हैं, जो पत्नी की मरजी की बिलकुल भी परवाह नहीं करते, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. पत्नी की चाहत का भी पूरा खयाल रखना चाहिए, नहीं तो आप की पत्नी जिंदगीभर तड़पती ही रह जाएगी.

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कुछ औरतें बिलकुल ही सुस्त होती हैं. वे पति को अपना जिस्म सौंप कर फर्ज अदायगी कर लेती हैं. उन्हें यह भी एहसास नहीं होता कि इस तरह वे अपने पति को अपने से दूर कर रही हैं.

कुछ पति जिस्मानी रिश्ता तो कायम करते हैं और जल्दबाजी में अपनी मंजिल पर पहुंच भी जाते हैं, परंतु उन्हें इतना भी पता नहीं होता कि इस के पहले भी और कई काम होते हैं, जो उन के मजे को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

कुछ औरतें शरमीली होती हैं. वे जिस्मानी रिश्तों से दूर तो होती ही हैं, छेड़छाड़ को भी बुरा मानती हैं.

अब आप ही बताइए कि ऐसे हालात में क्या पत्नी पति से और पति पत्नी से खुश रह सकता है?

नहीं न… तो फिर ऐसे हालात ही क्यों पैदा किए जाएं, जिन से पतिपत्नी एकदूसरे से नाखुश रहें?

इसलिए प्यार के सुनहरे पलों को छेड़छाड़, हंसीखुशी व रोमांटिक बातों में बिताइए, ताकि आने वाला कल आप के लिए और ज्यादा मजेदार बन जाए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

घरेलू जिम्मेदारियां : पुरुष कितने सजग

वसुधा ने औफिस से आते ही पति रमेश से पूछा कि अतुल अब कैसा है? फिर वह अतुल के कमरे में चली गई. सिर पर हाथ रखा तो महसूस हुआ कि वह बुखार से तप रहा है.

वह घबरा कर चिल्लाई, ‘‘रमेश, इसे तो बहुत तेज बुखार है. डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा.’’

जब तक रमेश कमरे में आते तब तक वसुधा की निगाह अतुल के बिस्तर की बगल में रखी उस दवा पर पड़ गई जो दोपहर में उसे खानी थी.

बुखार तेज होने का कारण वसुधा की समझ में आ गया था. उस ने रमेश से पूछा, ‘‘तुम ने अतुल को समय पर दवा तो खिला दी थी न?’’

‘‘मैं समय पर दवा ले कर तो आया था पर यह सो रहा था. मैं ने 1-2 आवाजें लगाईं. जब नहीं सुना तो दवा रख कर चला गया कि जब उठेगा खुद खा लेगा. मुझे क्या पता कि उस ने दवा नहीं खाई होगी.’’

परेशान वसुधा ने गुस्से से कहा, ‘‘रमेश, दवा लेने और दवा खिलाने में फर्क होता है. तुम क्या समझोगे इस बात को. कभी बच्चे की देखभाल की हो तब न,’’ और फिर उस ने अतुल को जल्दी से 2-3 बिस्कुट खिला कर दवा दी और सिर पर ठंडी पट्टी रखने लगी. आधे घंटे बाद बुखार थोड़ा कम हो गया, जिस से डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ी.

असल में वसुधा के 10 साल के बेटे अतुल को बुखार था. उस की छुट्टियां समाप्त हो गई थीं, इसलिए रमेश को बेटे की देखभाल के लिए छुट्टी लेनी पड़ी. औफिस निकलने से पहले वसुधा ने रमेश को कई बार समझाया था कि अतुल को समय से दवा खिला देना, पर जिस बात का डर था, वही हो गया.

75 वर्षीय विमला गुप्ता हंसते हुए कहती हैं, ‘‘यह कहानी तो घरघर की है. पिछले सप्ताह मैं अपनी बहू के साथ शौपिंग करने गई थी. 2 साल की पोती को संभालने की जिम्मेदारी उस के दादाजी की थी. पोती को संभालने के चक्कर में दादाजी ने न तो समय देखा न जरूरी बात याद रखी, घर में ताला लगा पोती को साथ ले कर निकल पड़े पार्क की तरफ. इसी बीच नौकरानी आ कर लौट गई. घर आते ही देखा, ढेर सारे बरतनों के साथ किचन हमारा इंतजार कर रही है. एक काम किया पर दूसरा बिगाड़ कर रख दिया.’’

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इन बातों को पढ़ते हुए कहीं आप यह तो नहीं सोच रहीं कि अरे यहां तो अपना ही दर्द बयां किया जा रहा है. जी हां, अधिकांश महिलाओं को यह शिकायत रहती है कि पति या घर के किसी पुरुष सदस्य को कोई काम कहो तो तो वह करता तो है पर या तो अनमने ढंग से या ऐसे कि कहने वाले की परेशानी बढ़ जाती है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि पुरुषों द्वारा किए जाने वाले घरेलू कार्य ज्यादातर स्त्रियों को पसंद नहीं आते? उन के काम में सुघड़ता की कमी रहती है अथवा वे जानबूझ कर तो आधेअधूरे काम तो नहीं करते हैं?

पुरुषों की प्रकृति एवं प्रवृत्ति में भिन्नता

इस संबंध में अनुभवी विमला गुप्ता का कहना है कि असल में स्त्रीपुरुषों के काम करने की प्रवृत्ति और प्रकृति में फर्क होता है. ज्यादातर पुरुषों को बचपन से ही घर के कामों से अलग रखा जाता है, जबकि लड़कियों को घर के कार्य सिखाने पर जोर दिया जाता है. ऐसे में पुरुषों के पास इन कार्यों के लिए धैर्य की कमी होती है और वे औफिस की तरह ही हर जगह अपना काम निबटाना चाहते हैं. खासकर घरगृहस्थी के कामों में, जो कहा जाता है उसे वे ड्यूटी समझ कर पूरा करने की कोशिश करते हैं, उन्हें उन कामों से कोई विशेष लगाव या जुड़ाव महसूस नहीं होता.

इस के विपरीत स्त्रियां स्वभाव से ही काम करने के मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा ईमानदार होती हैं. वे सिर्फ काम ही नहीं करतीं, बल्कि उस काम विशेष के अलावा उस से संबंधित अन्य कई बातों को ले कर भी ज्यादा संजीदा रहती हैं.

बेफिक्र एवं आलसी

दूध चूल्हे पर चढ़ा कर भूल जाना, दरवाजा खुला छोड़ देना, टीवी देखतेदखते सो जाना, पानी पी कर फ्रिज में खाली बोतल रख देना, सामान इधरउधर फैला कर रखना और भी न जाने कितनी ऐसी छोटीबड़ी बातें हैं, जिन्हें देख कर यह माना जाता है कि पुरुष स्वभाव से ही बेफिक्र, स्वतंत्र और लापरवाह होते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है कि वे घरेलू काम सही ढंग से नहीं कर सकते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार वास्तविकता यह है कि ज्यादातर उन के किए बिना ही सब कुछ मैनेज हो जाता है तो वे आलसी बन जाते हैं और घरेलू काम करने से कतराने लगते हैं. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कुछ पुरुष घरेलू कामों को करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. वे घंटों बैठ कर टीवी के बेमतलब कार्यक्रम देख सकते हैं पर घरेलू काम नहीं कर सकते.

दोहरी जिम्मेदारी निभाना टेढ़ी खीर

इस बात को कई पुरुष भी स्वीकार कर चुके हैं कि घर और औफिस दोनों मैनेज करना अपने वश की बात नहीं है. पर महिला चाहे कामकाजी हो या हाउसवाइफ, आज के जमाने में उस का एक पैर रसोई में तो दूसरा घर के बाहर रहता है. घरेलू महिला को भी घर के कामों के अलावा बैंक, स्कूल, बिजलीपानी के बिल जमा करना, शौपिंग जैसे बाहरी काम खुद करने पड़ते हैं जबकि इस की तुलना में पति शायद ही घर के कामों में उतनी मदद करता हो. अगर महिला कामकाजी हो तो कार्य का भार कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है. उसे अपने औफिस के काम के साथसाथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाना पड़ता है. महिलाएं अपनी घरेलू जिम्मेदारियों से कभी मुक्त नहीं हो पातीं. दोहरी जिम्मेदारी को निभाते रहने के कारण कामकाजी होते हुए भी वे सदा घरगृहस्थी के कामों से भी जुड़ी होती हैं. अत. उन में काम निबटाने की सजगता और निपुणता स्वत: ही आ जाती है.

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अनुभव एवं परिपक्वता

मीनल एक उच्च अधिकारी हैं, जिन का खुद का रूटीन बहुत व्यस्त रहता है, फिर भी वे कहती हैं, ‘‘सुबह का समय तो पूछो मत कैसे भागता है. आप कितने भी ऊंचे ओहदे पर हों, घर के सदस्य आप से बेटी, पत्नी, बहू, मां के रूप में अपेक्षाएं तो रखते ही हैं, जबकि पुरुषों से ऐसी अपेक्षाएं कम ही रखी जाती हैं. ऐसे में चाहे मजबूरी हो या जरूरत, महिलाओं को मल्टीटास्कर बनना ही पड़ता है अर्थात एकसाथ कई काम करना जैसे एक तरफ दूध उबला जा रहा है, तो दूसरी तरफ वाशिंग मशीन में कपड़े धोए जा रहे हैं, बच्चे का होमवर्क कराया जा रहा है तो उसी समय पति की चाय की फरमाइश पूरी की जा रही है. इन कामों को करतेकरते स्त्रियां पुरुष की अपेक्षा घरेलू कामों में अधिक कार्यकुशल, अनुभवी और परिपक्व हो जाती हैं.’’

एक शोध के मुताबिक स्त्रियों का मस्तिष्क पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय रहता है जिस के कारण वे एकसाथ कई कामों को अंजाम दे पाती हैं.

जार्जिया और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक स्टडी रिपोर्ट के अनुसार महिलाएं ज्यादा अलर्ट, फ्लैक्सिबल और और्गेनाइज्ड होती हैं. वे अच्छी लर्नर होती हैं, इस तरह की कई दलीलें दे कर इस बात को साबित किया जा सकता है कि पुरुषों में घरेलू जिम्मेदारियां निभाने की क्षमता स्त्रियों की अपेक्षा कम होती है.

अब सोचने वाली बात यह है कि आधुनिक जमाने में जब पत्नी कामकाजी हो कर पति के बराबर आर्थिक सहयोग कर रही है तो पुरुष का भी दायित्व बनता है कि वह भी घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने में खुद को स्त्री के बराबर ही सजग और निपुण साबित करे.

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