इन स्पेशल कोट्स के जरिए अपने दोस्तों को कहें Happy Friendship Day

Happy Friendship Day 2024 Wishes: हर साल अगस्त के पहले संडे को फ्रैंडशिप डे मनाया जाता है. इस साल 4 अगस्त को मनाया जाएगा. यह दिन हर किसी के लिए खास होता है. वैसे तो दोस्त हर दिन के लिए होते हैं, लेकिन दोस्ती को सैलिब्रैट करने का एक दिन जरूर होता है, वो है फ्रैंडशिप डे. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है दोस्ती के महत्व को समझना. यह रिश्ता निस्वार्थ होता है, इसमें बिना किसी फायदे के दोस्त एकदूसरे के लिए खड़े रहते हैं. इस दिन को स्पेशल बनाने के लिए आप भी अपने फ्रैंड्स को ये स्पेशल मैसेजेज भेज सकते हैं.

1. आसमान में निगाहें हो तेरी,
मंजिले कदम चुमे तेरी,
आज दिन है दोस्ती का
तु सदा खुश रहे ये दुआ है मेरी।

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

Happy Friendship Day ai generated

2. एक प्यारा सा दिल जो कभी नफरत नहीं करता
एक प्यारी सी मुस्कान जो कभी फीकी नहीं पड़ती
एक अहसास जो कभी दुःख नहीं देता
और एक रिश्ता जो कभी खत्म नहीं होता

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

3. दोस्ती कोई खोज नहीं होती
दोस्ती किसी से हर रोज नहीं होती
अपनी जिंदगी में हमारी मौजूदगी को बेवजह न समझना
क्योंकि पलकें आखों पर कभी बोझ नहीं होतीं

Happy Friendship Day cute poster

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

4. दोस्ती अच्छी हो तो रंग लाती है
दोस्ती गहरी हो तो सबको भाती है
दोस्ती वही सच्ची होती है जो
जरूरत के वक्त काम आती है

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

5. दोस्ती एक गुलाब है, जो बेहद न्यारी है
दोस्ती नशा भी है, और नशे का इलाज भी
दोस्ती वो गीत है, जो सिर्फ हमारी है !

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

6. दोस्तों की दोस्ती में कभी कोई रूल नहीं होता है
और ये सिखाने के लिए, कोई स्कूल नहीं होता है !

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

7. दोस्ती कोई खोज नहीं होती
और यह हर रोज नहीं होती
अपनी जिंदगी में हमारी मौजूदगी को
बेवजह न समझना!

Beautiful card for friendship day with holding promise hand design

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

8. अच्छे दोस्त फूलों की तरह होते हैं
जिसे हम न तोड़ सकते हैं, न ही छोड़ सकते है

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

9. यह हर रोज नहीं होती,
अपनी जिंदगी में हमारी मौजूदगी
को बेवजह न समझना!

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

10. दोस्तों की दोस्ती में कभी कोई रूल नहीं होता है
और ये सिखाने के लिए, कोई स्कूल नहीं होता है!

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

हैलोवीन: गौरव ने कद्दू का कौनसा राज बताया

लेखक- अनीता सक्सेना

गौरव जब सुबह सो कर उठा तो देखा, बड़े पापा गांव जाने को तैयार हो चुके थे. वे गौरव को देखते ही बोले, ‘‘क्यों बरखुरदार, चलोगे गांव और खेत देखने? दीवाली इस बार वहीं मनाएंगे.’’

दादी बोलीं, ‘‘अरे, उस बेचारे को सुबहसुबह क्यों परेशान कर रहा है. थक जाएगा वहां तक आनेजाने में.’’

गौरव हंस कर बोला, ‘‘नहीं दादी, मैं जाऊंगा गांव. मैं तो यहां आया ही इसलिए हूं. मुझे अच्छा लगता है, वहां की हरियाली देखने में और आम के बगीचे घूमने में.’’

‘‘आम तो बेटा इस मौसम में नहीं होंगे, हां, खेतों में गेहूं की फसल लगी मिलेगी. दीवाली पर नई फसल आती है न.’’

‘‘तब फिर चाय पी कर और नाश्ता कर के जाना,’’ दादी बोलीं.

‘‘अच्छा गौरव, तुम्हारे यहां दीवाली कैसे मनाई जाती है?’’ बड़े पापा ने पूछा. ताईजी तब तक सब के लिए चाय ले आई थीं, वे भी वहीं बैठ गईं.

‘‘दीवाली तो हम सब क्लब में मनाते हैं, लेकिन बड़े पापा अमेरिका में एक त्योहार सब मिल कर मनाते हैं, वह है हैलोवीन डे.’’

‘‘अच्छा, हमें भी तो बताओ क्या है हैलोवीन?’’ सौरभ भी निकल कर बाहर आ गया. ताईजी ने उसे भी चाय दी.

गौरव बोला, ‘‘जिस तरह हमारे देश में दीवाली का त्योहार मनाया जाता है उसी तरह अमेरिका में 31 अक्तूबर की रात को हैलोवीन का त्योहार मनाया जाता है. इस को मनाने की तैयारी भी दीवाली की तरह कई दिन पहले से शुरू कर दी जाती है.’’

‘‘अच्छा, यह क्या अमेरिका में ही मनाया जाता है?’’ दादी ने पूछा.

‘‘नहीं दादी, हैलोवीन डे आयरलैंड गणराज्य, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया सहित समस्त पश्चिमी देशों में मनाया जाता है. कहा जाता है कि बुरी आत्माओं को घरों से दूर रखने के लिए इसे मनाया जाता है इसलिए लोग कई दिन पहले से ही घर के बाहर एक बड़ा सा कद्दू ला कर रख देते हैं साथ ही घर के बाहर चुड़ैल, भूत, झाड़ू, मकड़ी और मकड़ी के जाले आदि खिलौने रख देते हैं.’’

‘‘कद्दू? कद्दू तो सब्जी के काम आता है?’’ सौरभ ने कहा.

‘‘नहीं सौरभ, ये कद्दू खाने वाले कद्दू नहीं होते बल्कि बीज बनने को छोड़े हुए बड़ेबड़े कद्दू होते हैं जो पके व सूख चुके होते हैं. कद्दू के अंदर का सारा गूदा निकाल कर उसे खोल बना देते हैं फिर ऊपर से खूबसूरत तरीके से चाकू से काट कर उस की आंखें, मुंह इत्यादि बनाते हैं और इस के अंदर एक दीपक जला कर रख देते हैं. दूर से देखने में ऐसा लगता है मानो किसी का चेहरा हो, जिस में से आंखें चमक रही हैं. बाजार में इन कद्दुओं के अंदर छेद करने और आंख इत्यादि बनाने के लिए कई औजार भी मिलते हैं. बच्चों के लिए इन हैलोवीन कद्दुओं की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं.’’

‘‘पर जब भूतप्रेत होते ही नहीं, तो उन के लिए ये कद्दू क्यों?’’ दादी बोलीं.

‘‘नहीं दादी, दरअसल, हजारों साल पहले केल्ट जाति के लोग यहां आए थे. जो फसलों की खुशहाली के लिए प्रकृति की शक्तियों को पूजा करते थे. मूलत: यह त्योहार अंधेरे की पराजय और रोशनी की जीत का उत्सव है. नवंबर की पहली तारीख को केल्ट जाति का नया साल शुरू होता था. नए साल में कटी हुई फसल की खुशी मनाई जाती थी. उस के एक दिन पहले यानी 31 अक्तूबर को ये लोग ‘साओ इन’ नामक त्योहार मनाते थे. इन का मानना था कि इस दिन मरे हुए लोगों की आत्माएं धरती पर विचरने आती थीं और उन्हें खुश करने के लिए उन की पूजा होती थी. इस के लिए वे ‘द्रूइद्स’ नामक पहाड़ी पर जा कर आग जलाते थे. फिर इस आग का एकएक अंगारा लोग अपनेअपने घर ले जाते थे और नए साल की नई आग जलाते थे.’’

‘‘नए साल की आग का क्या मतलब हुआ?’’ बड़े पापा ने पूछा.

‘‘बड़े पापा, उस जमाने में माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था. घर में जली आग को लगातार बचा कर रखना पड़ता था. इस रोज पहाड़ी पर अलाव जलाया जाता था और उस में कटी फसल का भाग जलाया जाता था. इस अलाव की आग का अंगारा घर तक ले जाने के लिए तथा हवा बारिश में बुझने से बचाने के लिए उसे किसी फल में छेद कर के उस में सहेज कर ले जाया जाता था. आग को हाथ में देख कर बुरी आत्माएं वार नहीं करेंगी ऐसी मान्यता थी. इस के लिए कद्दू के खोल में जलता दीया रख कर ले जाया जाता था. रात के अंधेरे में कद्दू में आंखें और मुंह काट कर दीया रखने से एकदम राक्षस के सिर जैसा लगता था. कहीं पर इसे पेड़ पर टांग दिया जाता था और कहीं खिड़की पर रख दिया जाता था. आजकल घर के बाहर रख देते हैं.

‘‘जिस तरह से हमारे देश में बहुरूपिए बनते हैं ठीक उसी तरह से यहां लोग हैलोवीन पर बहुरूपिया बनते हैं. 31 अक्तूबर की रात को बच्चेबड़े सभी तरहतरह की ड्रैसेज पहनते हैं और चेहरे पर मुखौटे लगाते हैं. ये ड्रैसेज और मुखौटे काल्पनिक या भूतप्रेतों के होते हैं जो काफी डरावने दिखते हैं. ये ड्रैसेज व मुखौटे बाजारों में कई दिन पहले से बिकने शुरू हो जाते हैं, कई लोग मुखौटा पहनने की जगह चेहरे पर ही पेंट करा लेते हैं.

‘‘हैलोवीन के दिन बच्चे घरघर जाते हैं. हर बच्चा अपने साथ एक बैग या पीले रंग का कद्दू के आकार का डब्बा लिए रहता है. ये बच्चे घरों के अंदर नहीं जाते बल्कि लोग घरों के बाहर बहुत सारी चौकलेट्स एक बड़े से डब्बे में रख कर इन के आने का इंतजार करते हैं. हर बच्चा बाहर बैठे व्यक्ति के पास आता है और कहता है, ‘ट्रिक और ट्रीट’ उसे जवाब मिलता है ‘ट्रीट’ (ट्रिक यानी जादू और ट्रीट यानी पार्टी), बच्चे जोकि हैलोवीन बन कर आते हैं वे घर वालों को डरा कर पूछते हैं कि आप मुझे पार्टी दे रहे हो या नहीं? नहीं तो मैं आप के ऊपर जादू कर दूंगा.

‘‘घर वाले हंस कर ‘ट्रीट’ कहते हुए उन के आगे चौकलेट का डब्बा बढ़ा देते हैं. बच्चे खुश हो कर बाउल में से एकएक चौकलेट उठाते हैं और थैंक्स कह कर आगे बढ़ जाते हैं. देर रात तक बच्चों के बैग में बहुत सी चौकलेट्स इकट्ठी हो जाती हैं.’’

‘‘वाह गौरव, तुम ने तो आज बड़ी रोचक कहानी सुनाई और एक नए त्योहार के बारे में भी बताया, मजा आ गया,’’ दादी बोलीं तो सब ने उन की हां में हां मिलाई.

गौरव हंस पड़ा, सब चाय भी पी चुके थे. ताईजी लंबी सांस लेती हुई बोलीं, ‘‘बस, अब जल्दी से नाश्ता बनाती हूं, खा कर गांव जाना और सुनो, वहां से कद्दू मत ले आना,’’ उन्होंने कहा तो सब जोरजोर से हंसने लगे.

Bigg Boss OTT 3 में दिखाए गए दो सौतनों की तनातनी से लेकर गालीगलौज और थप्पड़ के नौनस्टौप सीन्स !

आखिर बिग बौस ओटीटी 3 के फिनाले का इंतजार खत्म हुआ. इस शो के विनर का ताज सना मकबूल के नाम हुआ. सना पेशे से एक्ट्रैस हैं, इस शो के होस्ट अनिल कपूर ने विनर का नाम घोषित किया. एक चमचमाती ट्रौफी और 25 लाख की प्राइज मनी के साथ सना इस सीजन की विनर बनी हैं, तो वहीं रैपर नेजी दूसरे नंबर पर और रणवीर शौरी ने तीसरी पोजिशन हासिल की.

सना के जीतने पर उनकी फैंस फौलोइंग, फैमिली, बौयफ्रैंड सोशल मीडिया पर लगातार बधाई दे रहे हैं. सना के बौयफ्रैंड के खुशी का ठिकाना नहीं है, उन्होंने सोशल मीडिया पर सना के लिए स्पेशल मैसेज भी शेयर किया, इतना ही नहीं सना और ट्रौफी के साथ उन्होंने पोज भी दिया.

अब बात करते हैं, यह शो लोगों के लिए कितना यूजफुल रहा. मूवीज, सीरिज, टीवी सीरियल या कोई रियलिटी शोज, एंटरटैनमेंट के लिए देखे जाते हैं, लोग खूब एंजौय भी करते हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या बिग बौस ओटीटी 3 भी लोगों को एंटरटैन करने में कामयाब रहा या इस शो में केवल बेमतलब की बातें दिखाई गई, जिससे यह शो सुर्खियों में छाया रहा. यहां हम कुछ केंटेस्टैंट के बारे में बात करेंगे, जो इस शो में काफी चर्चे में रहे और इस शो में कौनसी बेकार चीजें दिखाई गई…

अरमान मलिक और उनकी बीवियां

अरामन मलिक इस शो में अपनी दो पत्नियों के साथ दिखें, जिससे यह शो काफी चर्चित रहा. हर किसी के जुबां पर अरमान दो बीवियों के साथ रहता है, तीनों ने मिलकर इस शो को एक फैमिली शो की तरह दिखाने लगे. कोई दो शादियां करे या तीन शादियां, ये रियलिटी शो में दिखाने का क्या मतलब है. कहा जाता है ‘सिनेमा समाज का दर्पण होता है’ ऐसे में दर्शक इस शो को इतने चाव से देखते हैं, इस तरह के रियलिटी शोज में इन चीजों को दिखाया जाता है, फलां की दो बीवियां है, तो इससे समाज पर क्या असर पड़ेगा. ये बहुत ही बेबुनियाद चीजें हैं, आम लोग बहुत ही आसानी से सेलिब्रिटीज या टीवी पर दिखाए जाने वाले शोज से प्रभावित होते हैं, तो ये गलत चीजों को दिखाने से बेहतर है कि शोज में कुछ ऐसा कंटैंट दिखाया जाए जिससे लोगों का भला हो न कि उनका घर में लड़ाईझगड़े हो.

बिग बौस हाउस को लड़ाईझगड़े का घर कहा जाता है. हालांकि यह शो लड़ाईझगड़े के कारण ही चलता भी है, लेकिन स्क्रीन पर ऐसे कंटैंट ही क्यों दिखाना जिसका प्रभाव केवल बुरा ही हो.

अश्लील कंटैंट

इस शो में लड़ाईझगड़ा दिखाने के बाद अश्लील कंटैंट भी दिखाए जाते हैं, अरे भाई अगर ऐसे कंटैंट यहां भी दिखाए जाने लगे, तो बाकी पोर्न साइट का क्या काम? इस शो को एक पूरी फैमिली बैठकर देखती है, ऐसे में इस शो में अश्लील कंटैंट दिखाकर क्या साबित करना चाहते हैं? इससे शो की टीआरपी कम हो रही है न कि बढ़ रही है…

इस शो से जुड़ा एक वीडियो सामने आया था, जिसमें अरमान और कृतिका इंटिमेट हो रहे थे. हालांकि इस सीन पर लीगल एक्शन किए जाने की भी मांग की गई थी. लेकिन जियो सिनेमा ने औफिशियल स्टेटमेंट जारी किया है, जिसमें मेकर्स ने इस शो पर लगे आरोपों को गलत बताया.

थप्पड़ से लेकर गाली तक

बिग बौस ओटीटी 3 में कई झगड़े देखने को मिले. विशाल पांडे और अरमान मलिक के बीच बहुत बड़ा झगड़ा हुआ था. दरअसल, विशाल ने अरमान की दूसरी पत्नी कृतिका को कुछ ऐसी बातें कह दी थी उससे सुनने के बाद अरमान अपना आपा खो दिए थे और विशाल को थप्पड़ भी मारा था. तो वहीं एक टास्क के दौरान लव कटारिया और साई के बीच जमकर लड़ाई हुई. बहस के दौरान लव ने गाली दी जिससे साई उन्हें मारने भी पड़े थे. लव ने साई के मां को लेकर कुछ अपशब्द कहे थे. ऐसे में साई ने बहुत ही हंगामा किया था. उन्होंने घर की कुछ कुर्सियों को भीी तोड़ डाली थी.

क्या यही है इस शो का वजूद, जिसमें किसी को अपनी मांबहन के बारे में गाली सुननी पड़े…

कुल मिलाकर बिग बौस ओटीटी 3 के कंटैंट को बकवास और बेकार कहा जा सकता है, इस शो में सिर्फ और सिर्फ निगैटिव चीजें ही दिखाई गई. एंटैरटेमैंट के नाम पर वहीं घिसीपिटी चीजें फैमिली ड्रामा और तड़का लगाने के लिए गालीगलौज… इस शो से दर्शकों का सिर्फ समय बर्बाद हुआ..

भरमजाल : रानी के जाल में कैसे फंस गया रमेश

आज पार्क जा कर जौगिंग करने में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लगा. हालांकि, रमेश को छोड़ कर बाकी सभी दोस्त थे, मगर रमेश से मेरी कुछ ज्यादा ही पटती थी. 25 सालों से हम दोनों एकसाथ इस पार्क में जौगिंग करने आते रहे हैं. कुछ तो वैसे ही रमेश का न होना मुझे एक अधूरेपन का एहसास करा रहा था और कुछ दोस्तों ने जब उस के बारे में उलटीसीधी बात करनी शुरू की, तो मेरा मन और भी परेशान हो गया.

‘‘4 महीने बाद 60वां जन्मदिन होने वाला था रमेश का. उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा काम करते हुए उसे जरा भी शर्म नहीं आई. देखने में कितना धार्मिक लगता था और काम देखो कैसा किया. सारा समाज थूथू कर रहा है उस पर,’’ एक दोस्त ने कहा. दूसरे दोस्त ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तो भाभीजी पर तरस आ रहा है. अच्छा हुआ दोनों लड़कों ने घर से निकाल दिया ऐसे बाप को…’’

इस से ज्यादा सुनने की ताकत मुझ में नहीं थी. ‘‘कुछ काम है…’’ कह कर मैं वापस घर आ गया और रमेश के बारे में सोचने लगा. रमेश और मेरी कारोबार के सिलसिले में एकदूसरे से जानपहचान हुई थी. यह जानपहचान कब दोस्ती और फिर गहरी दोस्ती में बदल गई, पता ही नहीं चला.

रमेश बहुत ही साफदिल, अपने काम में ईमानदार और सामाजिक इनसान था. उस के इन्हीं गुणों के चलते हमारी दोस्ती इतनी बढ़ी कि 25 साल तक हम रोजाना एकसाथ जौगिंग करने जाते रहे. हम दोनों अपनी सारी बातें जौगिंग के दौरान ही कर लेते थे. कई बार तो दूसरे दोस्त हमें लैलामजनू कह कर चिढ़ाते थे.

इतने सालों में रमेश ने अपना कारोबार काफी बढ़ा लिया था. ट्रांसपोर्ट के कारोबार के साथ ही अब उस ने दिल्ली के पौश इलाके में पैट्रोल पंप भी खोल लिया था. एक तरफ लक्ष्मी उस पर पैसा बरसा रही थी, वहीं दूसरी तरफ उस की सुंदर सुशील पत्नी ने 2 बेटे उस की गोद में दे कर दुनिया का सब से अमीर इनसान बना दिया था.

जिंदगी ने अच्छी रफ्तार पकड़ ली थी, मगर सब से अमीर आदमी सुखी भी हो, ऐसा जरूरी नहीं होता. वह लालच के ऐसे दलदल में धंसता चला जाता है कि जब तक उसे एहसास होता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. 2 साल पहले बाजार में गिरावट आई, तो सभी के कारोबार ठप हो गए. रमेश किसी भी तरह कारोबार को चलाना चाहता था. उस ने अपने पैट्रोल पंप पर पैट्रोल भरने के लिए लड़कियां रख लीं और वाकई उस के पैट्रोल पंप की कमाई पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई.

ग्राहक वहां पैट्रोल लेने के बहाने लड़कियां देखने ज्यादा आने लगे. अब रमेश हर तीसरे महीने पहली लड़की को हटा कर किसी नई और खूबसूरत लड़की को काम पर रखता. मुझे उस की इस सोच से नफरत हुई. मैं ने उसे समझाने की कोशिश भी की, तो उस ने कहा ‘आल इज फेयर इन बिजनेस’.

मैं अपनी आंखों से देख रहा था कि पैसा कैसे एक सीधेसादे इनसान की अक्ल मार देता है. ज्यादातर उस के मैनेजर ही इन लड़कियों को काम पर रखते थे. पर वे लड़कियां काम कैसा कर रही हैं, यह देखने के लिए रमेश कभीकभार अपने पैट्रोल पंप पर ही पैट्रोल भरवाने चला जाया करता था.

उन्हीं दिनों एक लड़की रानी, उस के पैट्रोल पंप पर काम करने आई. एक शाम को मैं उसी की गाड़ी में काम के सिलसिले में उस के साथ गया था. उस दिन रमेश ने पहली बार रानी को देखा था. गठे हुए बदन की लंबीपतली थोड़ी सांवली सी थी वह, उम्र यही होगी कोई 23-24 साल यानी रमेश के बेटे से भी छोटी उम्र की थी.

रमेश ने मैनेजर को बुला कर पूछा, तो उस ने बताया कि यह नई लड़की है रानी, अपना काम भी बखूबी कर रही है. उस के बाद रमेश और मैं वापस आ गए. 3 महीने बाद मैनेजर का रमेश के पास फोन आया कि रानी आप से मिलना चाहती है. वह काम से हटने को तैयार नहीं है. उसे समझाने की बहुत कोशिश की, मगर कहती है कि एक बार मालिक से मिलवा दो, फिर चली जाऊंगी.

रमेश ने कहा, ‘‘उसे मेरे दफ्तर भेज देना.’’

दफ्तर आते ही रानी रमेश के पैरों में गिर गई और लगी जोरजोर से रोने, ‘‘मालिक, मुझे काम से मत निकालो. मेरे घर में कमाने वाली सिर्फ मैं ही हूं. बाप शराबी है. वह पैसे के लिए मुझे बेच देगा. 3 महीने से आधी तनख्वाह उस के हाथ में रख देती थी, तो शांत रहता था. बड़ी मुश्किल से अच्छी नौकरी और अच्छे लोग मिले थे. मैं आप के सब काम कर दिया करूंगी, ओवरटाइम भी करूंगी. उस के पैसे भी चाहे मत देना, पर मुझे काम से मत निकालो.’’ रमेश ने 1-2 बार उस से कहा भी कि उठो, ऐसे पैरों में मत गिरो, मगर वह पैरों को पकड़े रोती रही. आखिरकार रमेश को ही उसे उठाना पड़ा और मानना पड़ा कि वह उसे काम से नहीं निकालेगा.

ऐसा सुनते ही रानी ने रमेश का हाथ चूम लिया. 60 साल के बूढ़े रमेश के अंदर कमसिन रानी के चुंबन से एक सिहरन सी दौड़ गई. रानी के जाने के बाद भी रमेश उसी के बारे में सोचता रहा. वह खुद को उस की तरफ खिंचता हुआ महसूस कर रहा था. 1-2 बार उस ने अपने इन विचारों को झटका भी कि वह यह क्या सोच रहा है. मगर रानी का गठीला बदन और उस का चुंबन रहरह कर उसे उस से मिलने को बेचैन कर रहे थे.

उस दिन के बाद से रमेश अकसर अपने पैट्रोल पंप पर जाने लगा. पहले वह वहां बैठता नहीं था. अब उस ने वहां बैठना भी शुरू कर दिया था. रानी के दफ्तर आने वाली बात रमेश ने मुझे बताई थी और जब उस ने अपनी उस सोच के बारे में मुझे बताया, तभी मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम रानी से दूर ही रहो. फिसलने की कोई उम्र नहीं होती. कीचड़ में कितना धंस जाओगे, खुद तुम्हें भी पता नहीं चलेगा.’’

मेरे समझाने के बाद से रमेश ने मुझ से रानी के बारे में बातें करना बंद कर दिया, मगर मैं बरसों पुराना दोस्त था उस का, उस की बदलती हरकतों को बखूबी देख पा रहा था. अगले 3 महीने का समय भी इसी तरह निकल गया. अब रमेश ने रानी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, अब मुझे तुम्हें यहां से हटाना होगा, नहीं तो बाकी की लड़कियां भी यही मांग करेंगी कि हमें भी काम से मत हटाओ.’’

‘‘मगर, मैं कहां जाऊंगी मालिक?’’ ‘‘शहर से बाहर निकल कर हमारा एक फार्म हाउस है, वहां उस घर की देखभाल के लिए किसी की जरूरत है. मैं तुम्हें वहां नौकरी दे सकता हूं. चौबीस घंटे वहीं रहना होगा. खानापीना सब हम देंगे और तनख्वाह अलग.’’

रानी ने खुशीखुशी हां भर दी. अब रानी फार्म हाउस में काम करने लगी. कभीकभी रमेश अपने दोस्तों को वहां ले जाता, तो रानी खाना भी बना देती थी सब के लिए.

रानी हर काम में माहिर थी. फार्म हाउस पूरा चमका दिया था उस ने. रमेश को यह देख कर बहुत अच्छा लगा. एक बार कहीं बाहर से आते हुए रमेश फार्म हाउस पर चला गया. वहां जा कर पता चला कि चौकीदार छुट्टी पर है. तब रानी ही गेट खोलने आई. चायपानी, नाश्ता सब दे दिया और जाने लगी, तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम्हें यहां कोई दिक्कत तो नहीं है?’’

‘‘जितना चाहा था, उस से भी ज्यादा मिल गया मालिक. आप की वजह से ही मैं आज इज्जत की जिंदगी जी रही हूं, नहीं तो मेरा बाप कब का मुझे बेच देता,’’ कहतेकहते वह रोने लगी. रमेश ने उस के आंसू पोंछे, तो रानी ने रमेश का हाथ पकड़ लिया, ‘‘सर, आप बहुत ही अच्छे इनसान हैं. आजकल अपने कर्मचारियों के बारे में कौन सोचता है.’’ और फिर से उस का हाथ चूमने लगी और बोली, ‘‘आप तो मेरे लिए सबकुछ हैं.’’

उस चुंबन की सिहरन ने रमेश के हाथों वह काम करवा दिया, जो रानी उस से कराना चाहती थी. उस के बाद से तो रमेश का हर हफ्ते का यही काम हो गया. वह हर हफ्ते काम का बहाना बना कर फार्म हाउस आ जाता. रानी ने उसे अपनी बातों में इस कदर उलझा लिया था कि अब रमेश को अपने घर और बीवीबच्चों की भी चिंता नहीं थी. इस बीच रमेश ने मुझ से मिलनाजुलना बंद कर दिया था. फिर अचानक एक दिन भाभी (रमेश की पत्नी) का फोन आया कि रमेश ने दूसरी शादी कर ली है.

ये भी पढ़ें- Father’s day Special: अब तो जी लें

यह सुन कर मैं हक्काबक्का रह गया. मुझे यह तो अंदाजा था कि कुछ गलत हो रहा है, मगर इस हद तक होगा, यह नहीं सोचा था. शादी की उम्र तो उस के बेटों की थी, ऐसे में जब उन्हें अपने बाप की करतूत का पता चला, तो उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया.

रमेश ने पार्क आना बंद कर दिया. आता भी किस मुंह से. इतने सालों से कमाई इज्जत पल में मिट्टी में मिल गई. सारा समाज रमेश पर थूथू कर रहा था. शादी के 6 महीने बाद ही रानी ने एक बच्चे को जन्म दे दिया. रमेश रानी के साथ फार्म हाउस में ही रह रहा था. एक दिन अचानक रात में रमेश मुझ से मिलने आया. वह जानता था कि उस की हरकत से मैं भी बहुत नाराज हूं.

मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि तुम मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते, पर एक बार मेरी बात सुन लो. मैं यही चाहता हूं और कुछ नहीं. तुम्हारी माफी भी नहीं.’’ फिर रमेश ने शुरू से आखिर तक सारी बातें मुझे बताईं. रमेश ने यह भी बताया कि यह बच्चा उस का है ही नहीं. मगर रमेश ने रानी के साथ संबंध बनाए थे, उस का वीडियो रानी के आशिक ने चुपके से बना लिया था. रमेश पर शादी करने का दबाव डाला गया.

‘‘शादी के बाद ही उसे सारी सचाई का पता चल गया था. रानी ने सिर्फ पैसों के लिए उसे फंसाया था. यह उस की और उस के आशिक की सोचीसमझी चाल थी,’’ यह सब कह कर रमेश फूटफूट कर रोने लगा और मेरे घर से चला गया. मैं तो यह सुन कर सन्न सा बैठा रह गया. अपने दोस्त की जिंदगी अपनी आंखों के सामने बरबाद होते हुए देख रहा था. जिसे रमेश प्यार समझ रहा था, वह केवल एक भरमजाल था. उस ने अपनी इज्जत, परिवार, दोस्तों को तो खोया ही, साथ ही उस प्यार से भी इतना बड़ा धोखा खाया.

काश, वह पहले ही समझ जाता, तो इतने सालों से कमाई हुई उस की इज्जत पर इतना बड़ा कलंक तो नहीं लगता. वह इतना समझता कि 60 साल की उम्र प्यार करने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के लिए होती है.

ये भी पढ़ें- थोड़ा दूर थोड़ा पास : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

शौक : कोठे पर जाना क्यों पड़ा अखिलेश को महंगा

‘यह नया पंछी कहां से आया है?’’ जैम की शीशियां गत्ते के बड़े डब्बे में पैक करते हुए सुरेश ने सामने कुरसी पर बैठे अखिलेश की तरफ देखते हुए अपने साथी रमेश से पूछा.

‘‘उत्तर प्रदेश का है,’’ रमेश ने कहा.

‘‘शहर?’’ सुरेश ने फिर पूछा.

‘‘पता नहीं,’’ रमेश ने जवाब दिया.

‘‘शक्ल से तो मास्टरजी लगता है,’’ अखिलेश की आंखों पर चश्मे को देख हलकी हंसी हंसते हुए सुरेश ने कहा.

‘‘खाताबही बनाना मास्टरजी का ही काम होता है,’’ रमेश बोला.

फलों और सब्जियों को प्रोसैस कर के जूस, अचारमुरब्बा और जैम बनाने की इस फैक्टरी में दर्जनों मुलाजिम काम करते थे. सुरेश, रमेश और कई दूसरे पुराने लोग धीरेधीरे काम सीखतेसीखते अब ट्रेंड लेबर में गिने जाते थे. फैक्टरी में सामान्य शिफ्ट के साथ दोहरी शिफ्ट में भी काम होता था, जिस के लिए ओवर टाइम मिलता था. इस का लेखाजोखा अकाउंटैंट रखता था. अखिलेश एमए पास था. वह इस फैक्टरी में अकाउंटैंट और क्लर्क भरती हुआ था. मुलाजिमों के कामकाज के घंटे और दूसरे मामलों का हिसाबकिताब दर्ज करना और बिल पास करना इस के हाथ में था. अपने फायदे के लिए फैक्टरी के सभी मुलाजिम अकाउंटैंट से मेलजोल बना कर रखते थे.

‘‘पहले वाला बाबू कहां गया?’’ रामचरण ने पूछा.

‘‘उस का तबादला कंपनी की दूसरी ब्रांच में हो गया है.’’

‘‘ये सब बाबू लोग ऊपर से सीधेसादे होते हैं, पर अंदर से पूरे चसकेबाज होते हैं,’’ रमेश ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘इन का चसकेबाज होने में अपना फायदा है. सारे बिल फटाफट पास हो जाते हैं.’’ शाम को शिफ्ट खत्म हुई. दूसरे सब चले गए, पर सुरेश, रमेश और रामचरण एक तरफ खड़े हो गए.

अखिलेश उन को देख कर चौंका.

‘‘सलाम बाबूजी,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सलाम, क्या बात है?’’ अखिलेश ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, आप से दुआसलाम करनी थी. आप कहां से हो?’’

अखिलेश ने गांव के बारे में बताया.

‘‘साहब, एकएक कप चाय हो जाए?’’ रमेश ने जोर दिया.

अखिलेश उन के साथ फैक्टरी की कैंटीन में चला आया. चाय के दौरान हलकीफुलकी बातें हुईं. कुछ दिनों तक यह सिलसिला चला, फिर धीरेधीरे मेलजोल बढ़ता गया.

‘‘साहब, आज कुछ अलग हो जाए…’’ एक शाम सुरेश ने मुसकराते हुए अखिलेश से कहा.

‘‘अलग… मतलब?’’ अखिलेश ने हैरानी से पूछा.

सुरेश ने अंगूठा मोड़ कर मुंह की तरफ शराब पीने का इशारा किया.

‘‘नहीं भाई, मैं शराब नहीं पीता,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘साहब, थोड़ी चख कर तो देखो.’’

उस शाम सुरेश के कमरे में शराब का दौर चला. नया पंछी धीरेधीरे लाइन पर आ रहा था. कुछ दिनके बाद सुरेश ने अखिलेश से पूछा, ‘‘साहब, आप ने सवारी की है?’’

‘‘सवारी…?’’

‘‘मतलब, कभी सैक्स किया है?’’

‘‘नहीं भाई, अभी तो मैं कुंआरा हूं. मेरी पिछले महीने ही मंगनी हुई है,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘सुहागरात को अगर आप चुक गए, तो सारी उम्र आप की बीवी आप का रोब नहीं मानेगी,’’ रामचरण बोला. इस पर अखिलेश सोच में पड़ गया. वह 25 साल का था, लेकिन अभी तक किसी लड़की से सैक्स नहीं किया था.

‘‘साहब, आज आप को जन्नत की सैर कराते हैं,’’ सुरेश ने कहा.

इस सोच के साथ कि सुहागरात को वह ‘अनाड़ी’ या ‘नामर्द’ साबित न हो जाए, अखिलेश सहमत हो कर उन के साथ चल पड़ा. वे चारों एक सुनसान दिखती गली में पहुंचे. गली के मुहाने पर ही एक पान वाले की दुकान थी.

‘‘4 पलंगतोड़ पान बनाना,’’ एक सौ रुपए का नोट थमाते हुए सुरेश ने कहा.

पान बंधवा कर वे सब आगे चले.

‘‘यह पलंगतोड़ पान क्या होता है?’’ अखिलेश ने पूछा.

‘‘साहब, यह बदन में जोश भर देता है. औरत भी ‘हायहाय’ करने लगती है. अभी आप भी आजमाना,’’ रामशरण ने समझाते हुए कहा. एक दोमंजिला मकान के बाहर रुक कर सुरेश ने कालबैल बजाई. एक औरत ने खिड़की से बाहर झांका. अपने पक्के ग्राहकों को देख कर उस औरत ने राहत की सांस ली. दरवाजा खुला. सभी अंदर चले गए. एक बड़े से कमरे में 3-4 पलंग बिछे थे. कई छोटीबड़ी उम्र की लड़कियां, जिन में से कई नेपाली लगती थीं, मुंह पर पाउडर पोते, होंठों पर लिपस्टिक लगाए बैठी थीं.

‘‘सोफिया नजर नहीं आ रही?’’ अपनी पसंदीदा लड़की को न देख सुरेश कोठे की आंटी से पूछ बैठा.

‘‘बाहर गई है वह.’’

‘‘इस को सब से ज्यादा ‘मस्त’ वही नजर आती है,’’ रामचरण बोला.

‘‘नए साहब आए हैं. इन को खुश करो,’’ आंटी ने लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा.

सभी लड़कियां एक कतार में खड़ी हो गईं. कइयों ने अपनेअपने उभारों को यों तान दिया, जैसे फौज में आया जवान अपनी छाती फुला कर दिखाता है.

‘‘साहब, आप को कौन सी जंच रही है?’’ रामचरण ने अखिलेश से पूछा.

अखिलेश के लिए यह नया तजरबा था. सैक्स के लिए उस को एक लड़की छांटनी थी, जबकि उस को तो ठेले पर सब्जी छांटनी नहीं आती थी. आंटी तजरबेकार थी. वह समझ गई थी कि नया चश्माधारी बाबू अनाड़ी है. उस ने लड़कियों की कतार में खड़ी मीनाक्षी की तरफ इशारा किया. मीनाक्षी अखिलेश की कमर में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आओ, अंदर चलें.’’

इस के बाद वह अखिलेश को एक छोटे केबिननुमा कमरे में ले गई. बाकी तीनों भी अपनीअपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअलग केबिनों में चले गए. कमरे की सिटकिनी बंद कर लड़की ने अपने नए ग्राहक की तरफ देखा. अखिलेश ने भी उसे देखा. नेपाली मूल की उस लड़की का कद औसत से छोटा था. उस के मुंह पर ढेरों पाउडर पुता था. होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी. लड़की ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए, फिर अखिलेश के पास आ कर खड़ी हो गई. अखिलेश ने चश्मे में से ही उस की तरफ देखा. उस के उभार ब्लाउज उतर जाने के बाद ढीलेढाले से लटके थे. उभारों, बांहों, जांघों पर दांतों के काटने के निशान थे.

उसे देख कर अखिलेश को जोश की जगह तरस आने लगा था.

‘‘अरे बाबू, क्या हुआ? सैक्स नहीं करोगे?’’ उस लड़की ने पूछा.

‘‘नहीं, मुझे जोश नहीं आ रहा,’’ अखिलेश ने कहा.

‘‘कपड़े उतार दो, जोश अपनेआप आ जाएगा,’’ वह लड़की बोली.

‘‘मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘पनवाड़ी से पान तो लाए होगे?’’

‘‘हां है. तुम खा लो,’’ पान की पुडि़या उसे थमाते हुए अखिलेश ने कहा.

‘‘आप खा लो… गरमी आ जाएगी.’’

‘‘तुम खा लो.’’

लड़की ने पान चबाया. अखिलेश पछता रहा था कि वह यहां क्यों आया.

‘‘तुम्हें कितने पैसे मिलते हैं?’’

‘‘यह आंटी को पता है.’’

‘‘मुझ से क्या लोगी?’’

‘‘यह भी आंटी बताएगी. तुम कुछ करोगे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मैं कपड़े पहन लूं?’’

अखिलेश चुप रहा. लड़की ने कपड़े पहने और बाहर चली गई. अखिलेश भी बाहर चला आया. इतनी जल्दी ग्राहक निबट गया था. आंटी ने टेढ़ी नजरों से उस की तरफ देखा. मीनाक्षी ने भद्दा इशारा किया. पलंग पर बैठी सभी लड़कियां हंस पड़ीं. आधेपौने घंटे बाद बाकी तीनों भी बाहर आ गए. अखिलेश को बाहर आया देख वे सभी चौंके.

‘‘क्या बात है साहब?’’ सुरेश बोला.

‘‘मुझ से नहीं हुआ,’’ अखिलेश ने बताया.

‘‘पहली बार आए हो न साहब. धीरेधीरे सीख जाओगे.’’

आंटी को पैसे थमा कर वे सब बाहर चले आए. अगले कई दिनों तक उन तीनों ने अखिलेश को उकसाने की कोशिश की, मगर उस ने वहां जाने से मना कर दिया. एक शाम मौसम सुहावना था. शराब के 2 पैग पीने के बाद अखिलेश घूमने निकल पड़ा. अचानक ही अखिलेश के कदम उस गली की तरफ मुड़ गए. चश्माधारी बाबूजी को देख आंटी पहले चौंकी, फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आओ बाबूजी.’’

मीनाक्षी भी मुसकराई. वह उस को अपने केबिन में ले गई.

‘‘आप फिर आ गए?’’

‘‘मौसम ले आया.’’

‘‘अकेले?’’

‘‘हां.’’

‘‘मैं अपने कपड़े उतारूं?’’

अखिलेश खामोश रहा. लड़की ने कपड़े उतार दिए. पहले की तरह अखिलेश ने उस के बदन को देखा.

‘‘अब आप भी अपने कपड़े उतारो,’’ लड़की बोली.

अखिलेश ने भी अपने कपड़े उतारे और उस के करीब आया. उसे अपनी बांहों भरा और चूमा, फिर बिस्तर पर खींच लिया. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी अखिलेश में जोश नहीं आया. आखिरकार तंग आ कर मीनाक्षी ने  पूछा, ‘‘क्या तुम ने पहले कभी सैक्स किया है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘अगले महीने मेरी शादी है. वहां खिलाड़ी साबित करने के लिए मैं यहां आया हूं.’’

यह सुन कर मीनाक्षी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम से कुछ नहीं हो सकता. तुम चले जाओ.’’

कपड़े पहन कर अखिलेश बाहर जाने को हुआ, तभी मीनाक्षी बोली, ‘‘अपना पर्स, घड़ी और अंगूठी उतार कर मुझे दे दो,’’

‘‘क्यों?’’ अखिलेश ने पूछा.

तभी एक कद्दावर गुंडे ने वहां आ कर चाकू तान दिया. अखिलेश ने अपने पर्स की सारी नकदी, अंगूठी और घड़ी उतार कर पलंग पर रख दी और चुपचाप बाहर चला आया.

आते वक्त भी मौसम खुशगवार था, लौटते वक्त भी. मगर आते समय अखिलेश शराब के नशे में था, लौटते समय उस का नशा उतर चुका था.

नाम तो सही लिखिए

‘‘इस नाम से कोई खाता नहीं है.’’ बैंक मैनेजर ने भी वही दोहराया जो क्लर्क ने कहा था. हम समझ नहीं पा रहे थे कि कुछ महीने पहले तक हम इस खाते में चैक जमा कर रहे थे और हमें वह रकम मिल भी रही थी. अब अचानक ऐसा क्या हो गया जो हमारा खाता ही गायब हो गया. हम ने बैंक मैनेजर से बारबार कहा कि हम इसी खाते में नकद और चैक जमा करते आ रहे हैं और पैसा निकालते आ रहे हैं पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. ‘‘मुझे और भी काम हैं,’’ कह कर उस ने हमें सम्मानपूर्वक बाहर निकल जाने को कहा.

हर जगह जानपहचान होना कितना जरूरी है, यह हमें उस दिन पता चला. जब तक मैं अपने शहर में था और मेरा मित्र उस बैंक में था तब तक कोई दिक्कत नहीं आई थी. आज क्या हो गया. मैं ने बारबार चैक देखा. मेरा सरनेम गलत लिखा था. ‘गुप्ते’ की जगह ‘गुप्ता’ लिखा था. जब तक मेरा मित्र इस बैंक में था तब तक इस गलत सरनेम की समस्या नहीं आई थी. सोचा था कि इस नए शहर में भी कोई दिक्कत नहीं होगी.

आजकल तो किसी भी शहर में बैंक से पैसा निकाल सकते हैं और जमा कर सकते हैं. इसी भरोसे पर चैक जमा कर दिया. पेइनस्लिप पर जमा करने वाले का नाम और पता लिखा होता है, इसलिए वह चैक यहां के पते पर लौट आया. हम चैक ले कर बैंक पहुंचे. जांच करने पर हकीकत का पता चला. अब क्या हो? शहर अनजाना, ऐसे में पैसे की जरूरत आन पड़ी. रुपए निकालने गया तो पता चला कि अपना अस्तित्व ही खो गया. एक माह पहले लेखन पारिश्रमिक का चैक जमा करवाया था.

हम ने एक बार फिर मैनेजर को वस्तुस्थिति से परिचित करवाया. ‘‘हम कुछ नहीं कर सकते. यदि आज आप के खाते में चैक जमा कर देंगे तो कल को सचमुच का ही ‘गुप्ता’ सरनेम का ग्राहक आ गया तो हमारी नौकरी चली जाएगी. आप चैक वापस कर दीजिए,’’ उस ने कुछ नरम हो कर कहा.

देश के इस हिस्से में आ कर मैं ने पाया कि हम भारतवासी दूसरे प्रांत के लोगों से, उन की भाषा से, उन के नामों से कितने अपरिचित हैं. जो नाम अपनी जानकारी का होता है उसी को सही मानते हैं और उस से मिलताजुलता नाम हो सकता है, यह मानते ही नहीं. मेरे सरनेम को ही बारबार कहने के बावजूद लोग गलत लिखते हैं. जवाब मिलता है, ‘‘क्या फर्क पड़ता है? यह लिख दिया तो क्या गुनाह किया. आप तो वही हैं न?’’

मैं ने भी इस बात पर ज्यादा जोर नहीं दिया. वैसे भी जानपहचान का आदमी होने के कारण कभी आज जैसी समस्या नहीं आई थी. अब मैं इस शहर में आ गया. यहां के आदमी ने अपनी समझ से काम लिया और चैक खाते में जमा नहीं किया. गलती मेरी ही थी. मुझे पहले ही अपना सरनेम सही लिखने को कह देना चाहिए था. जब बिना कुछ किए काम हो रहा था तो बेकार में क्यों तकलीफ उठाई जाए, यही सोच कर चुप रहा.

आज पता चला कि घोड़े की नाल में सही समय पर कील न ठोंकने पर लड़ाई हार जाने की कहावत कितनी सही है. अगर मैं ने अब अपना सरनेम सही नहीं करवाया और लोगों को सही लिखनेबोलने पर जोर नहीं डाला तो कल गुप्ता सरनेम के किसी अपराधी की जगह पुलिस मुझे पकड़ कर ले जा सकती है. इस विचार से मैं गरमी के मौसम में पसीना पोंछतेपोंछते कांप भी गया.

सरनेम के गलत लिखे जाने का एकमात्र शिकार मैं ही नहीं हूं. मेरे एक परिचित कलैक्टर के दफ्तर के बाबू से हुई बिंदी की गलती के कारण मिलने वाली वैधानिक संपत्ति से हाथ धो बैठे. उन का सरनेम था ‘लोढ़ा’. पर बाबू ने ‘ढ’ के नीचे बिंदी न लगा कर उन्हें ‘लोढा’ लिखा. विपक्षी ने इसी का सहारा ले कर उन्हें झूठा साबित कर दिया. जरा सी बिंदी ने सही आदमी को गलत और गलत आदमी को सही साबित कर दिया.

यह आम धारणा है कि हिंदी अलग से सीखने की जरूरत नहीं है, वह तो राष्ट्रभाषा है. पर भाषा की शुद्धता भी तो आनी चाहिए. मराठी में भी एक कारकुन ने ‘कोरडे’ को ‘कोर्ड’ लिख कर उसे मराठी कायस्थ बना दिया. बेचारा सरनेम सही करवाने के लिए सरकारी दफ्तरों में रिश्वत खिलाता फिरा.

भाषा की लापरवाही से जाति का वैमनस्य बढ़ सकता है, क्योंकि महाराष्ट्र में जातिवाद सुशिक्षित लोगों में भी बहुत गहरा है. सिर्फ सवर्ण और पिछड़ी जातियां ही नहीं, ब्राह्मण और कायस्थ भी एकदूसरे को नापसंद करते हैं. सरनेम पता चलते ही शरीफ आदमी को भी किराए का मकान नहीं मिलता.

वह तो बाबू था. उस का लिखनेपढ़ने का एकमात्र उद्देश्य नौकरी पाना था. भाषाई शुद्धता से उसे कुछ नहीं करना था. लेकिन समाचारपत्र भी कम नहीं हैं, जहां पढ़ेलिखे और जागरूक लोग भरती किए जाते हैं. वे भी धड़ल्ले से नामों में गलती पर गलती किए जाते हैं. दुख की बात तो यह है कि उन्हें बारबार लिखने पर भी वे अपनी गलती नहीं स्वीकारते. इस के लिए दोष इंग्लिश के माथे मढ़ दिया जाता है. लेकिन उस से भी बड़ा दोष दूसरी भाषा की तरफ झांक कर न देखने वाले लोगों का है.

हिंदी और मराठी भाषाएं एक ही लिपि यानी देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं. मजाल है कि कोई हिंदी वाला मराठी अखबार उठा ले. अगर गलती से उठा भी लिया तो भाषा में फर्क नजर आते ही एकदम फेंक देगा मानो कोई गंदी चीज हाथ में आ गई हो. यही दुर्भावना मराठी लोगों में भी हिंदी के प्रति है. इसी कारण कई लोगों के नाम हास्यास्पद हो जाते हैं.

क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर का नाम तो दुनियाभर में जानापहचाना है. लेकिन दिल्ली के अखबार और टीवी वाले बेचारे को ‘तेंदुलकर’ लिखते हैं. वह तो एहसान मानिए कि आयकर विभाग में इंग्लिश में कामकाज किया जाता है. वरना होता यह कि बेचारा सचिन अपना आयकर भरता ‘तेंडुलकर’ सरनेम से और वसूली या कुर्की का नोटिस आता ‘तेंदुलकर’ सरनेम से.

अब क्रिकेट की बात आई ही है तो एक और उदाहरण दिया जा सकता है. गांगुली को हिंदी वाले और मराठी वाले ‘सौरव’ लिखते हैं क्योंकि इंग्लिश में वैसा ही लिखा आता है. जो लोग बांग्ला भाषा जानते हैं उन्हें मालूम है कि इस भाषा में ‘व’ शब्द नहीं है. इसीलिए तो ‘विमल’ को ‘बिमल’. ‘वरुण’ को ‘बरुण’ और ‘वर्तमान’ को ‘बर्तमान’ लिखापढ़ा जाता है. और तो और, जो लोग भाषा की जरा सी भी जानकारी रखते हैं वे इस नए शब्द ‘सौरव’ पर हैरान होंगे. शायद वे सोचते होंगे कि ‘कौरव’ की ही तरह ‘सौरव’ शब्द भी होगा. असल में सौरव नाम का कोई शब्द ही नहीं होता. सही शब्द है सौरभ. इसीलिए ‘सुमन सौरभ’ नाम की पत्रिका निकलती है, ‘सुमन सौरव’ नाम की नहीं.

बांग्ला में इंग्लिश के ‘वी’ का उच्चारण ‘भी’ होता है और उसे वैसा ही लिखा जाता है. इसीलिए बांग्लाभाषी ‘अमिताभ’ को इंग्लिश में ‘अमिताव’ और ‘शोभना नारायण’ को ‘शोवना नारायण’ लिखते हैं. अखबार वाले बिना मेहनत किए उसे इंग्लिश के हिसाब से ही लिखते हैं.

ऐसे में यदि वे इंग्लिश में लिखे ‘रामा’ को ‘रमा’ लिख कर बिना औपरेशन के लड़के को लड़की बना दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. क्रिकेटर अजीत आगरकर को हमेशा ‘अगरकर’ लिखा जाता है. वह इसलिए कि उस का मध्य प्रदेश के आगर या ताज महल वाले आगरा से कोई संबंध नहीं है.

भारत जैसे विशाल देश में एक नाम के एक से अधिक नगर हैं. दंगों के लिए ख्यात औरंगाबाद बिहार में भी है तो सूखे के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र में भी है. बेचारे अजीत को आगरा से या आगर से संबंधित न होने के कारण ‘अगरकर’ ही बना दिया गया.

हिंदी के अखबार तो इस बात पर भी एकमत नहीं हैं कि अभिनेत्री ऐश्वर्या राय का सही नाम ऐश्वर्य है या ऐश्वर्या. ‘ऐश्वर्य’ नाम तो लड़के का होता है. ठीक वैसे ही जैसे ‘दिव्य’ लड़के का होता है और ‘दिव्या’ लड़की का. ‘नक्षत्र’ लड़के का होता है और ‘नक्षत्रा’ लड़की का. ‘नयन’ लड़के का और ‘नयना’ लड़की का.

इसी तरह मद्रास के नए नाम पर भी विवाद है. यदि एक अखबार ‘चेन्नै’ लिखता है तो दूसरा ‘चेन्नई’. यही हाल मदुराई और ‘मदुरै’ का है. क्यों नहीं हम उन्हें तमिल उच्चारणों के हिसाब से लिखते?

अब पंजाब के एक रेलवे स्टेशन का नाम गुरुमुखी में लिखा है ‘बठिंडा’. लेकिन इस नाम से इसे देश में शायद ही कोई जानता हो. इसे ‘भटिंडा’ ही लिखा और बोला जाता है. ‘बठिंडा’ से ‘भटिंडा’ बनाने की तुक समझ में नहीं आती.

कुछ वर्षों पहले तक वडोदरा शहर के 4 नाम थे. हिंदी में बड़ौदा, इंग्लिश में बरोडा, मराठी में बडोदें और गुजराती में वडोदरा. अलगअलग भाषाओं में एक ही शहर के इतने नामों की तुक समझ नहीं आती. हिंदी अखबार ‘भांडारकर’ को हमेशा ‘भंडारकर’ लिख कर अपने ज्ञान के भंडार का प्रदर्शन करते हैं. ‘मालाड’ को ‘मलाड’ और ‘सातारा’ को ‘सतारा’ लिखने में इन्हें क्या मजा आता है, ये ही जानें.

दिल्ली के कई अखबार देव आनंद को ‘देवानंद’ लिख कर अपने संस्कृतबाज होने का सुबूत देते हैं जिस से स्वर संधि का उपयोग होता है. पता नहीं वे लक्ष्मी आनंद या सरस्वती आनंद को कैसे लिखते होंगे? शायद ‘लक्ष्म्यानंद’ या फिर ‘सरस्वत्यानंद’.

हिंदी के एक महान पत्रकार ने प्रभात फिल्म कंपनी की एक फिल्म ‘वहां’ का मजेदार अनुवाद किया. उस ने यह शब्द आंखें मूंद कर इंग्लिश से चुराया. इंग्लिश में लिखा था डब्ल्यूएएचएएन. उस ज्ञानी ने लगाया अपना दिमाग और उसे बना दिया ‘वहाण’ जिस का मराठी में अर्थ होता है ‘जूता’. अखबार के लेखक को भाषा के इस अति ज्ञान के बारे में बताया गया तो महाशय चुप्पी साध गए.

हिंदी में ‘गजानन’ को ‘गजानंद’ लिखने वाले भी कई मिल जाएंगे. खुद को ‘गजानंद’ लिखने वालों की भी कमी नहीं. वे इसे ‘विवेकानंद’ से जोड़ कर देखते हैं. किसी व्यक्ति के नाम को गलत लिखना लिखने वाले की नासमझी और उस व्यक्ति के प्रति असम्मान जताता है. अपनी भूल मंजूर करना और उसे फिर से न दोहराना न सिर्फ बड़े दिलदिमाग की निशानी है, बल्कि नई बात सीखने की चाह भी जाहिर करता है.

दुख की बात है कि ऐसा नहीं है.

‘‘हम जो लिखते हैं, वही सही है,’’ का दंभ रखने वालों के कारण बंगाली ‘दे’ सही सरनेम होने पर भी गलत लगने लगता है.

मराठी भी अजीब भाषा है. उस के अखबार इंग्लिश के बिना नहीं चलते. इसी कारण वे लोगों के नामों का कत्ल करते हैं. जिस तरह बच्चे नामों को बिगाड़ कर आनंद लेते हैं वही वृत्ति हिंदीमराठी में है. मराठी में मंसूर अली खां पटौदी को ‘पतौडी’ लिखते हैं. जानकार लोग जब ‘पतौडी’ पढ़तेसुनते हैं तो लगता है कि सिर पर हथौड़ी चल रही हो. उन के संवाददाता दिल्ली में बैठे हुए हैं पर उन्होंने कभी कुछ ही किलोमीटर दूर बसे गांव पटौदी की सुध नहीं ली जहां के मंसूर अली खां कभी नवाब थे.

इसी तरह भिंडरांवाले को सभी मराठी अखबार बेधड़क ‘भिन्द्रनवाले’ लिखते हैं. लाजपत राय को ‘लजपत’ लिखने में उन्हें आनंद आता है. चोपड़ा या कक्कड़ को वे कभी भी सही नहीं लिखते. वे बड़ी शान से लिखेंगे ‘चोप्रा’ या ‘कक्कर’. ‘गुड़गांव’ को वे आज तक ‘गुरगाव’ ही लिखते हैं. ऐसा नहीं कि मराठी में ‘ड़’ धवनि नहीं है. रवींद्रनाथ ठाकुर को वे बेधड़क ‘टागोर’ लिखतेबोलते हैं. जबकि मराठी में ‘ठाकूर’ सरनेम होता है.

एक अखबार ने तो पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री पर भरापूरा लेख लिखा पर हर जगह उन का नाम ‘बिधन चंद्र’ लिख कर उस लेख का महत्त्व मिट्टी में मिला दिया. इसी तरह विख्यात लेखक नीरद चौधुरी को ‘नीराद’ लिख कर उन की हंसी उड़वा दी.

पता नहीं किस झोंक में आ कर मराठी अखबारों ने सही नाम ‘ढाका’ लिखना शुरू कर दिया वरना कुछ वर्षो पहले तो वे इंग्लिश की लिपि को देवनागरी में बदल कर ‘डक्का’ लिखते थे. मराठी में आज भी ‘बरूआ’ को ‘बारूआ’ और ‘सान्याल’ को ‘सन्याल’ लिखा जाता है. कुछ समय पहले तो ‘गुवाहाटी’ को ‘गोहत्ती’ लिखा जाता था.

गुजराती लिपि में अहमदाबाद को ‘अमदाबाद’ लिखा जाता है. क्यों? इस का जवाब नहीं मालूम.

किसी जमाने में डिस्को किंग कहे जाने वाले संगीतकार बापी लाहिड़ी का नाम भी गलत लिखा जाता है. उन्हें ‘बप्पी’ या ‘बाप्पी’ लिखा करते हैं. ‘बापी’ बंगालियों में किसी का पुकारा जाने वाला नाम (डाक नाम) होता है. अंधविश्वास के कारण बापी ने अपनी स्पैलिंग में एक अतिरिक्त ‘पी’ जोड़ा है पर जनता ने इसे गलत तरीके से लिया है और वह ‘बप्पी’ या ‘बाप्पी’ लिखती है. ‘लाहिड़ी’ का ‘लहरी’ या ‘लाहिरी’ बन जाना तो इंग्लिश की मेहरबानी से हुआ है. इसे ठीक करना मुश्किल नहीं है, पर करे कौन?

माना कि हर भाषा का अनुशासन अलग होता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि नामों का मजाक उड़ाया जाए. इन विदू्रपीकरण से नफरत बढ़ती है. यह भी सही है कि यह जरूरी नहीं है कि हर आदमी सभी भाषाएं जाने. पर यह तो जरूरी है कि वह सही बोले या लिखे. यह जिम्मेदारी मीडिया पर है. और मीडिया इतना तो कर ही सकता है कि वह जनता को सही नाम बताए.

इंग्लिश का सहारा ले कर कब तक जीना चाहेंगे. इंग्लिश अखबारों तक ने ‘कानपुर’ की स्पैलिंग ‘सी’ के बजाय ‘के’ से लिखनी शुरू कर दी है. ‘गंगा’ को वे पहले की तरह ‘गैंजेस’ नहीं लिखते. ‘मथुरा’ को ‘मुथरा’ नहीं लिखा जाता. अगर इंग्लिश को ही दोष देना है तो उस में ‘मनोरंजन दास’ को ‘एंटरटेनमैंट स्लेव’ लिखना चाहिए. पर ‘रवि किरण’ को ‘सन रे’, ‘वीर सिंह’ को ‘ब्रेव लौयन’ नहीं लिखा जाता.

जब इंग्लिश मीडिया ने भारतीय नामों को स्वीकार कर लिया है तो हिंदीमराठी मीडिया को भी सही नाम लिखने में झिझक नहीं होनी चाहिए. इस के लिए मानक तय होने चाहिए ताकि उत्तर भारत के आदमी को दक्षिण भारत वाले जानवर न समझें और न ही दक्षिण भारत का कोई आदमी उत्तर भारत में अजूबे की तरह लिया जाए. लेकिन जो लोग ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना कर अपनी गरदन ऊंची कर सकते हैं उन से यह उम्मीद नहीं की जा सकती.

फंगल इन्फैक्शन से नाखून बढ़ते नहीं है, मैं क्या करूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल-

मु झे कुछ दिन पहले हाथों के नाखूनों में फंगल इन्फैक्शन हो गया था. उस के बाद मेरे नेल्स अच्छे से नहीं बढ़ते. हमेशा टूटते रहते हैं. देखने में भी शेप सुंदर नहीं आती. बताएं क्या करूं?

जवाब-

अगर फंगल इन्फैक्शन खत्म हो गया हो तब ही उस के ऊपर कुछ काम करने की जरूरत है. जब नेल्स की शेप सही नहीं आती तो हलके गरम औलिव औयल से उन की रोज मसाज करें. एक सुंदर शेप बनाएं और फाइल कर के रखें. आप चाहें तो नेल ऐक्सटैंशन के द्वारा एक बार लंबे नेल्स करने से वे खूबसूरत हो जाएंगे. उन पर चाहें तो परमानैंट नेलपौलिश भी लगा सकती हैं. जब भी नेल्स बढ़ें तो रिफिलिंग करा सकती हैं. इस से नेल्स हमेशा लंबे खूबसूरत दिखाई देंगे. कोई फंक्शन हो तो उन पर आप नेल आर्ट भी करा सकती हैं.

ये भी पढ़ें-

आजकल बड़े और लंबे नाखूनों का चलन है. ये रंग-बिरंगे, अलग-अलग आकार और विभिन्न सलीके से तराशे हुए नाखून, आपकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं. ये आपके हाथों की खूबसूरती बढ़ाने के साथ, आपके व्यक्तित्व में भी एक निखार लेकर आते हैं.

आपकी इस सुंदरता को बरकरार रखने के लिये ये जरूरी है कि आप अपने नाखूनों को अच्छे तरीके से काटें और उन्हें साफ रखें. कुछ युवतियों के नाखून जरुरत से ज्यादा मुलायम हो जाते हैं, इस कारण किसी भी तरह की चोट लग जाने से या जरा साभी मुड़ने पर भी वो टूट सकते हैं.

आज हम आपको कुछ उपायों को बताने जा रहे हैं. इन सारे उपायों को ध्यान में रखकर आप अपने  नाखूनों की सुंदरता को और निखार सकते हैं और ज्यादा आकर्षक बना सकते हैं..

 

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भी भेज सकते हैं, submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Friendship Day Special: जानें कौन अच्छे और कौन हैं सच्चे दोस्त

सही कहा है अच्छा दोस्त वह नहीं होता जो मुसीबत के समय उपदेश देने लगे वरन अच्छा दोस्त वह होता है, जो अपने दोस्त के दर्द को खुद महसूस करे और बड़े हलके तरीके से दोस्त के गम को कम करने का प्रयास करे. यह एहसास दिलाए जैसे यह गम तो कुछ है ही नहीं. लोग तो इस से ज्यादा गम हंसतेहंसते सह लेते हैं.

वैसे भी सही रास्ता दिखाने के लिए किताबें हैं, उपदेश देने के लिए घर के बड़े लोग हैं और उलाहने दे कर दर्द बढ़ाने के लिए नातेरिश्तेदार हैं. ये सब आप को आप की गलतियां बताएंगे, उपदेश देंगे पर जो दोस्त होता है वह गलतियां नहीं बताता, बल्कि जो गलती हुई है उसे कुछ समय को भुला कर दिमाग शांत करने का रास्ता बताता है. आप के सारे तनाव को बड़ी सहजता से दूर करता है.

तभी तो कहा जाता है कि पुराना दोस्त वह नहीं होता जिस से आप तमीज से बात करते हैं वरन पुराना दोस्त तो वह होता है, जिस के साथ आप बदतमीज हो सकें. दोस्ती का यही उसूल होता है कि अपने दोस्त के गमों को आधा कर दे और खुशियों को दोगुना. केवल पुराने दोस्त ही ऐसे होते हैं, जो हमें और हमारे एहसासों को गहराई से सम झने और महसूस करने में सक्षम होते हैं.

सच है कि दोस्ती का रिश्ता बहुत ही प्यारा और खूबसूरत होता है. सच्चे दोस्त आप को भीड़ में अकेला नहीं छोड़ते, बल्कि आप की दुनिया बन जाते हैं. वे हमेशा आप के साथ होते हैं भले ही परिस्थितियां आप को दूर कर दें. वे आप से जुड़े रहने का कोई न कोई तरीका खोज निकालते हैं. वे आप का हौसला बनते हैं. एक समय आ सकता है जब आप के घर वाले आप को छोड़ दें, एक समय वह भी आ सकता है जब आप का बौयफ्रैंड/गर्लफ्रैंड या आप का जीवनसाथी भी आप की सोच को गलत ठहराने लगे, आप से दूरी बढ़ा ले? पर आप के सच्चे दोस्त ऐसा कभी नहीं करते. अगर दोस्तों को आप अपने मन की उल झन बताते हैं तो वे उन्हें सम झते हैं क्योंकि वे आप को गहराई से सम झते हैं, वे आप के अंदर  झांक सकते हैं.

किसी ने कितने पते की बात कही है: बैठ के जिन के साथ हम अपना दर्द भूल जाते हैं, ऐसे दोस्त सिर्फ खुश नसीबों को ही मिल पाते हैं…

आज वयस्कों को दोस्तों की और ज्यादा जरूरत है, क्योंकि रिश्तेदार तो कई शहरों में बिखरे रहते हैं. मौके पर वे कभी चाह कर भी काम नहीं आ पाते तो कभी मदद करने की उन की मंशा ही नहीं होती. वे बहाने बनाने में देर नहीं लगाते. मगर सच्चे दोस्त किसी भी तरह आप की मदद करने पहुंच ही जाते हैं. इसीलिए तो कहा जाता है कि दोस्ती का धन अमूल्य होता है. यही नहीं बातचीत करने और दिल का हाल बता कर मन हलका करने के लिए भी एक साथी यानी दोस्त की जरूरत सब को होती है.

क्यों जरूरी हैं दोस्त

दोस्त कुछ नया सीखने का अवसर देते हैं. नई भाषा, नई सोच, नई कला और नई सम झ ले कर आते हैं. हमें कुछ नया करने और सीखने का मौका और हौसला देते हैं. हमारे डर को भगाते हैं और सोच का दायरा बढ़ाते हैं. मान लीजिए आप का दोस्त एक कलाकार या लेखक है तो उस के साथसाथ आप भी अपनी कला निखारने का प्रयास कर सकते हैं. कुछ आप उसे सिखाएंगे तो कुछ उस से सीखेंगे भी. दोस्त आप को कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं, सही सलाह देते हैं, आप की भावनाओं को सम झते हैं, अवसाद से बचाते हैं. दोस्तों के साथ आप घरपरिवार के साथसाथ कार्यालय की समस्याओं पर भी चर्चा कर सकते हैं.

दोस्त कहां और कैसे खोजें

आप उन स्थानों पर दोस्तों की तलाश करें जहां आप की रुचियां आप को ले जाती हैं. मसलन, प्रदर्शनी, फिटनैस क्लब, संग्रहालय, क्लब, साहित्यिक मंच या फिर कला से जुड़ी दूसरी संस्थाएं. आप डांस अकादमी या स्विमिंग सेंटर भी जा सकते हैं और वहां अच्छे दोस्त पा सकते हैं. ऐसी जगहों पर आप को अपने जैसी सोच वाले लोग मिलेंगे. आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लौग्स पर भी अपनी अभिरुचि से जुड़े दोस्तों की तलाश कर सकते हैं.

पड़ोसी हो सकते हैं अच्छे दोस्त

अकसर हम अपनी सोसाइटी या अपार्टमैंट के लोगों को भी नहीं पहचानते. आसपास रहने वाले लोगों के साथ भी हैलोहाय से ज्यादा संबंध नहीं रखेते. कभी गौर करें कि आप अपने पास रहने वाले लोगों के साथ कितनी बार संवाद करते हैं? क्या त्योहारों के मौकों पर उन्हें तोहफे देने, खुशियां बांटने या कुशलमंगल जानने जाते हैं? सच तो यह है कि हम उन्हें इग्नोर करते हैं पर वास्तव में एक पड़ोसी अच्छा दोस्त बन सकता है और आप इस दोस्त से रोजना मिल सकते हैं, साथ घूमने जा सकते हैं, बातें कर सकते हैं, कठिन समय में ये तुरंत आप की मदद को हाजिर हो सकते हैं.

औफिस में ढूंढें दोस्त

औफिस में हम अपनी जिंदगी का सब से लंबा वक्त बिताते हैं. यहां आप को समान सामाजिकमानसिक स्तर के लोगों की कमी नहीं होगी. बहुत से औप्शंस मिलेंगे. कई बार हम औफिस के लोगों से केवल काम से जुड़ी बातें ही करते हैं और औपचारिक रिश्ता ही रखते हैं पर जरा इस से आगे बढ़ कर देखें. कुछ ऐसे दोस्त ढूंढें जिन के साथ काम के सिलसिले में आप की प्रतिस्पर्धा नहीं या फिर जो आप के साथ चलना जानते हैं. ऐसे दोस्त न केवल आप के मनोबल को बढ़ाएंगे, बल्कि दिनभर के काम के बीच आप को थोड़ा रिलैक्स होने का मौका भी देंगे. यदि आप अपने औफिस के दोस्तों के प्रति ईमानदार रहते हैं और उन के सुखदुख में काम आते हैं, तो यकीन मानिए वे भी हमेशा आप का साथ देंगे.

इंटरनैट

इंटरनैट के माध्यम से आप अच्छे दोस्त ढूंढ़ सकते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन के साथ सालों की घनिष्ठ मित्रता के बंधन में बंधे रहना चाहते हैं या सिर्फ चैट कर मजे करना चाहते हैं खासकर विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ अकसर दोस्ती आकर्षणवश हो जाती है. लोग जिंदगी का मजा लेना चाहते हैं, पर इस सोच से अलग दोस्ती में घनिष्ठता और ईमानदारी रखना आप की जिम्मेदारी है.

अब सवाल उठता है कि औनलाइन दोस्त कैसे ढूंढें़? आज के समय में आप के पास इंटरनैट पर बहुत से औप्शंस हैं. आप स्काइप, फेसबुक, ट्विटर, डेटिंग साइट््स आदि पर दोस्त खोज सकते हैं. इस के लिए सोशल नैटवर्क पर अपने पेज को ठीक से डिजाइन करने की आवश्यकता है. इस के अलावा आप अपने कुछ विचार या मैसेज भी पोस्ट कर सकते हैं. सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों पर अपनी बात रख सकते हैं. दूसरों के पोस्ट पर अपने कमैंट्स दे कर समान सोच वाले लोगों से संपर्क बढ़ा सकते हैं.

पुराने दोस्त हैं कीमती

यदि आप बचपन में कुछ ऐसे दोस्त बनाने में कामयाब रहे जो अब भी आप के साथ हैं तो इस से अच्छा आप के लिए और कुछ नहीं हो सकता. यदि आप के अपने पूर्व सहपाठियों के साथ संबंध नहीं हैं तो उन्हें खोजने का प्रयास करें. आज सोशल नैटवर्क का उपयोग कर यह काम बड़ी आसानी से किया जा सकता है. कौन जानता है शायद आप भी आपसी विश्वास और स्नेह पर बने अपने पिछले दोस्ती के रिश्तों को पुनर्जीवित करने में सक्षम हो जाएं.

सब से विश्वसनीय दोस्त बचपन के दोस्त ही होते हैं. इन के साथ आप बिना किसी हिचकिचाहट अपने दुखदर्द, अपनी तकलीफें और सीक्रेट शेयर कर सकते हैं. लंगोटिया यार साधारणतया कभी धोखा नहीं देते, क्योंकि वे आप को सम झते हैं. वे परिस्थितियों को देख कर नहीं, बल्कि आप के दिल की सुन कर सलाह देते हैं.

दोस्त बनाने के लिए क्या है जरूरी

आप को अजनबियों के साथ भी एक आम भाषा में अपनी भावनाएं व्यक्त करना और दूसरों का ध्यान आकर्षित करना आना चाहिए. कुछ लोग जन्म से ही इस कला में निपुण होते हैं. सब से जरूरी है कि दूसरों में रुचि लीजिए. दूसरों के हक के लिए आवाज उठाएं. अपनी भावनाएं शेयर कीजिए तभी सामने वाला आप के आगे खुलेगा और आप को दोस्त बनाने के लिए उत्सुक होगा.

सलीकेदार कपड़े पहनें

अपने कपड़ों के प्रति सतर्क रहें. कपड़े ऐसे हों जो आप के आकर्षण को बढ़ाएं और व्यक्तित्व को उभारें. कपड़ों के साथ ही अपने अंदर से आ रही गंध के प्रति भी सचेत रहें. मुंह से बदबू या कपड़ों से पसीने की गंध न आ रही हो. हलकी खुशबू का इस्तेमाल करें. बालों को सही से संवारें. इंसान दोस्त उसे ही बनाना चाहता है जो साफसुथरा और सलीकेदार हो.

जानबू झ कर शेखी न बघारें

अकसर लोग शेखी बघारने के क्रम में  झूठ का ऐसा जाल बुनते हैं कि फिर खुद ही उस में उल झ कर रह जाते हैं. इसी तरह दूसरों की नजरों में आने के लिए कुछ ऐसा न बोल जाएं जो मूर्खतापूर्ण लगे.

झगड़ा जल्दी सुल झाएं

दोस्त के साथ आप का  झगड़ा हो गया है तो यह जानने की कोशिश में न उल झें कि आप में से कौन सही है और कौन दोषी है, बल्कि सुलह करने वाले पहले व्यक्ति बनें. दोस्ती को खत्म करना बहुत सरल है पर इसे बनाए रखना बहुत कठिन. लंबे और विश्वसनीय रिश्ते के लिए एक मजबूत नींव बनाना कठिन काम है, पर वह नींव आप को ही तैयार करनी है.

याद रखिए 2 लोग जिन के शौक और दृष्टिकोण विपरीत हैं कभी दोस्त नहीं बन सकते. इसलिए समान हित और सोच वालों को अपना दोस्त बनाएं और जीवन के एकाकीपन को दूर करें.

गहरी दोस्ती के राज

अपने दोस्त के लिए हमेशा खड़े रहें. यदि धन से उस की मदद नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, मन से उस का साथ दें. उस को मानसिक सपोर्ट दें. उस की परेशानियों को बांटें और समस्याओं को सुल झाने का प्रयास करें. जब भी उसे आप की सहायता की जरूरत पड़े तो तुरंत आगे आएं. हमेशा कोशिश करें कि सामने वाले ने आप के लिए जितना किया जरूरत पड़ने पर आप उस से बढ़ कर उस के लिए करें. इस से आप को भी संतुष्टि मिलेगी और उस के दिल में भी आप के लिए सम्मान और प्यार बढ़ेगा. तभी तो आप की दोस्ती ज्यादा गहरी और लंबी चल सकेगी.

पैसे के मामलों में थोड़ी तटस्थता रखें

पैसों के मामले में थोड़े तटस्थ रहें. जब भी आप साथ कहीं घूमने जाते हैं, कोई चीज खरीदते हैं या दोस्त आप के लिए कुछ ले कर आता है तो पैसों का हिसाबकिताब बराबर रखने का प्रयास करें. जब भी आप दोनों मिल कर कुछ खर्च कर रहे हों तो किसी एक पर अधिक भार न पड़ने दें. भले ही छोटेमोटे खर्च ही क्यों न हुए हों, कोशिश करें कि खर्च आधाआधा बांट लें. अगर आप 4-5 दोस्त हैं तो सब मिल कर रुपए खर्च करने की कोशिश करें.

जहां तक बात कुछ बड़ी परेशानियों के समय खर्च करने की आती है जैसे घर में बीमारीहारी हो जाए या आप का दोस्त किसी क्रिमिनल केस में फंस जाए और उसे आप की मदद की जरूरत हो जैसे बेल देनी हो या उस के लिए कोई काबिल वकील तलाश करना हो अथवा मैडिकल ट्रीटमैंट के लिए तुरंत पैसों की जरूरत हो तो इस तरह के मामलों में कभी भी रुपए खर्च करने में आनाकानी न करें. यानी जब बात जान पर आ जाए तो बिना कुछ सोचे दिल खोल कर खर्च करें, क्योंकि यह बात आप का दोस्त जिंदगीभर नहीं भूल सकेगा और समय आने पर आप के लिए वह भी जान की बाजी लगा देगा. इसलिए अपने दोस्त होने की जिम्मेदारी को ऐसे समय जरूर निभाएं.

घबराएं नहीं भरोसेमंद बनें

यदि आप दोनों की जीवनस्तर में काफी असमानताएं हैं यानी कोई अमीर है और दूसरा गरीब तो ऐसी स्थिति में भी आप की दोस्ती पर कोई फर्क न पड़े. दोस्ती के लिए सिर्फ एक भरोसा, एक विश्वास और एक अपनापन ही सब से अहम होता है. यदि आप सामने वाले के लिए भरोसेमंद साबित होते हैं, जरूरत के वक्त उस के साथ खड़े रहते हैं, उस के सीक्रेट्स किसी से शेयर नहीं करते और उसे भरपूर मानसिक सपोर्ट देते हैं तो यकीन मानिए आप दोनों की दोस्ती की नींव बहुत मजबूत और गहरी रहने वाली है. आर्थिक स्तर का कोई असर आप की दोस्ती पर नहीं पड़ेगा.

विवाहितों में दोस्ती

दोस्ती का एक खूबसूरत पहलू यह भी हो सकता है कि आप दोनों पतिपत्नी की दोस्ती किसी ऐसे कपल से हो जो बिलकुल आप के जैसे हों. ऐसी दोस्ती का अलग ही आनंद होता है. इस में ध्यान देने की बात यह है कि आप दोनों समान रूप से उस कपल के साथ जुड़े हों यानी आप की जीवनसाथी भी उस कपल के साथ दोस्ती ऐंजौय कर रही हो और किसी तरह की मिसअंडरस्टैंडिंग क्रिएट न हो रही हो. इस तरह 2 कपल्स की दोस्ती 2 परिवारों की दोस्ती जैसी हो जाती है. आप चारों मिल कर एक खूबसूरत परिवार जैसा रिश्ता बना लेते हैं. आप चारों मिलबैठ कर बातें करें. ऐसी दोस्ती महानगरों में बहुत उपयोगी है. इस से अकेलापन तो दूर होगा ही विश्वसनीय रिश्ते भी मिल जाते हैं.

इसी तरह पतिपत्नी आपस में भी एकदूसरे के दोस्त बने रहने चाहिए. जब तक जीवनसाथी को आप दोस्त नहीं मानते तब तक सही अर्थों में आप जीवन के सुखदुख में एकदूसरे का साथ नहीं दे पाएंगे. इसलिए हमेशा एकदूसरे को अपना दोस्त मानें. इस से रिश्ते में गहराई आती है.

रहस्य छिपा कर रखने की आदत डालें

दोस्ती का एक बहुत बड़ा उसूल होता है कि अपने दोस्त के राज कभी न खोलें. उन्हें किसी से शेयर न करें, क्योंकि सामने वाला आप को बहुत विश्वास के साथ अपना मान कर अपने सीक्रेट्स, फीलिंग्स या वीकनैस शेयर करता है. उन बातों को यदि आप किसी से कह देंगे तो फिर दोस्ती टूटने में एक पल का समय नहीं लगेगा. इसलिए सामने वाले को यह भरोसा दिलाएं कि आप किसी भी परिस्थिति में उस के राज किसी से नहीं कहेंगे. ऐसी दोस्ती में ही व्यक्ति दोस्त को अपना सबकुछ बता सकता है और अपना मन हलका कर सकता है.

जानें क्या है फ्यूजन मेकअप और इसे करने का तरीका

एक समय था जब काजल, लिपस्टिक लगा कर महिलाएं अपने हारशृंगार को पूर्ण समझती थीं. लेकिन वक्त के साथसाथ मेकअप के तौरतरीकों में बहुत सारे बदलाव हुए हैं.

रिफ्लैक्शन ब्यूटी क्लीनिक की ओनर एवं ब्यूटीशियन संगीता गुप्ता कहती हैं, ‘‘पहले के समय में मेकअप में वैराइटी की कमी थी, जिस के चलते महिलाएं हर अवसर में एक सी दिखती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस की एक बड़ी वजह है फैशन इंडस्ट्री में निरंतर हो रहा बदलाव.

अब महिलाओं के परिधानों में जितनी वैराइटीज उपलब्ध हैं, उतनी पहले नहीं थी. पारंपरिक परिधानों के साथ ही अब वैस्टर्न कल्चर से प्रभावित या यों कहिए फ्यूजन ड्रैस का ट्रैंड महिलाओं को लुभा रहा है. यही फ्यूजन फैशन अपने साथ फ्यूजन मेकअप को भी ट्रैंड में लाया है.’’

ब्यूटीशियंस की जबान में इसे इंडोवैस्टर्न मेकअप कहा जाता है. इस मेकअप की खास ट्रिक्स बताने के लिए हाल ही में गृहशोभा की फेब मीटिंग में ब्यूटीशियन संगीता गुप्ता ने शिरकत की और मीटिंग में हिस्सा लेने आईं ब्यूटीशियंस को इंडियन वैस्टर्न फ्यूजन मेकअप की खास बारीकियों के बारे में बताया.

कंसीलर क्यों है जरूरी

क्लीनिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग के बाद चेहरे पर प्राइमर लगा कर कई महिलाएं उसी पर बेस लगा लेती हैं. लेकिन संगीता कहती हैं, ‘‘प्राइमर के बाद मेकअप का तीसरा महत्त्वपूर्ण स्टैप होता है कंसीलिंग और जब बात इंडोवैस्टर्न मेकअप की हो, तो कंसीलर लगाना अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि कंसीलर 90% चेहरे को कवर कर लेता है. इस की सब से बड़ी खासीयत होती है कि यह चेहरे पर मुंहासों के दाग और गड्ढों को छिपा देता है. साथ ही आंखों के आसपास काले घेरों को भी कवर कर लेता है. कंसीलर लगाने के बाद चेहरे पर इस्तेमाल किए जाने वाले रंग उभरे दिखते हैं. खासतौर पर आईशेड्स का रंग बहुत अच्छा दिखता है.’’

बेस होना चाहिए परफैक्ट

कंसीलर के बाद चौथा स्टैप होता है मेकअप बेस बनाना. यह बेस पर ही निर्भर करता है कि मेकअप कैसा हुआ है और कब तक टिकेगा. कई बार लड़कियां कंसीलर पर ही सीधे कौंपेक्ट पाउडर लगा लेती हैं, लेकिन इस से उन का मेकअप ज्यादा देर नहीं टिक पाता.

संगीता कहती हैं, ‘‘जिस तरह किसी चीज को टिकाने के लिए आधार का होना जरूरी है उसी तरह मेकअप को अधिक समय तक टिकाने के लिए बेस का होना जरूरी है.’’

‘‘कई बार गोरा दिखने के चक्कर में लड़कियां अपनी स्किन टोन से फेयर दिखने वाला बेस लगा लेती हैं. मगर वह नैचुरल नहीं दिखता जबकि इंडोवैस्टर्न मेकअप का पहला नियम है, मेकअप हो भी और दिखे भी नहीं. इसलिए बेज कलर का बेस चुनें. यह इंडियन स्किन टोन के लिए ही होता है. इस के अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि कम से कम बेस चेहरे पर लगाएं और उसे कंसीलर के साथ अच्छी तरह मर्ज करें.

‘‘इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि यदि आप 90% चेहरे को पहले ही कंसीलर से कवर कर चुकी हैं तो केवल 10% हिस्सा ही बेस का होगा. इस के अतिरिक्त चेहरे पर बेस लगाते वक्त देख लें कि कहीं दाना तो नहीं है. यदि है तो उस पर बेस का इस्तेमाल न करें.

‘‘स्किन में 3 रंग होते हैं. लाल, नीला और पीला. इसलिए दाना हो तो उस पर हरे रंग का आईशैडो लगाएं, इस से लाल रंग का दाना छिप जाता है.’’

आई मेकअप का फंडा

आई मेकअप को ले कर लड़कियों, महिलाओं में अलगअलग भ्रांतियां होती हैं. कुछ लड़कियां हर ड्रैस के साथ एक जैसा आई मेकअप कर लेती हैं, जबकि आंखों पर सही मेकअप महिला को आकर्षक लुक दे सकता है.

संगीता के अनुसार, जब बात इंडोवैस्टर्न मेकअप की हो तो आंखों का सही मेकअप बहुत जरूरी हो जाता है. इंडोवैस्टर्न आई मेकअप को कोशिश कर के मैट लुक देना चाहिए और केवल आईबौल्स पर ही मेकअप होना चाहिए.

दरअसल, आजकल की लड़कियों की डिमांड होती है कि मेकअप दिखे भी नहीं और फोटो भी अच्छा आए. इस के लिए आई मेकअप अच्छा होना जरूरी है.

इंडोवैस्टर्न आई मेकअप में काजल का रोल बिलकुल नहीं होता लेकिन आईलाइनर की सही शेप बहुत माने रखती है. इस के साथ ही आईब्रोज डिफाइन करने के बाद ही आई मेकअप पूरा होता है.

लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि आईब्रोज नैचुरल लगें. उन्हें हमेशा ब्लैक के साथ ब्राउन कलर मिक्स कर के डिफाइन करना चाहिए. यह उन्हें नैचुरल लुक देता है. इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी  है कि आईलाइनर हमेशा आईज के आउट कौर्नर से लगाएं, क्योंकि इंडोवैस्टर्न लुक में आउटर पतला और इनर मोटा होता है.

सावधानी से करें लिप मेकअप

आजकल बाजार में लिप मेकअप के ढेरों विकल्प मौजूद हैं. लेकिन किस मकअप के साथ कैसा लिप मेकअप होना चाहिए, यह पता होना बहुत जरूरी है. संगीता के अनुसार जब इंडोवैस्टर्न मेकअप किया जाता है, तो न बहुत हलके रंग की और न बहुत डार्क शेड की लिपस्टिक लगानी चाहिए, बल्कि उस का चुनाव ऐसा होना चाहिए जो ड्रैस को कौंप्लिमैंट करे. लिपस्टिक हमेशा लिप कौर्नर से लगाई जानी चाहिए.

कौंपैक्ट लगाने का सही तरीका

बेस के ऊपर कौंपैक्ट पाउडर लगा कर चेहरे को भी बेहतर लुक दिया जाता है. संगीता कहती हैं, ‘‘बेस के बाद कौंपैक्ट लगाना मेकअप का एक अहम नियम है और इसे सभी जानती हैं. लेकिन इस नियम का सही से पालन कम महिलाएं करती हैं. बेस कितना भी अच्छा क्यों न हो, कौंपैक्ट सही तरीके से न लगाया जाए, तो सारा मेकअप बिगड़ जाता है. कई लड़कियां और महिलाएं कौंपैक्ट को ब्रश में ले कर डायरैक्ट चेहरे पर लगा लेती हैं, जिस से चेहरे पर कहीं कम तो कहीं ज्यादा पाउडर लग जाता है. यदि कौंपैक्ट को हाथ में ले कर ब्रश को उस पर घुमाएं और फिर लगाएं तो इस से पाउडर बेस के साथ अच्छी तरह मर्ज हो जाता है.’’

कंटूरिंग के बिना मेकअप अधूरा

कंटूरिंग यानी काटछांट. दरअसल, पहले के समय में फोटो खींचने के बाद कंप्यूटर पर उसे ऐडिट कर के सही किया जाता था, लेकिन जब से मेकअप में कंटूरिंग तकनीक जुड़ी है तब से मेकअप ऐसा किया जाता है कि चेहरा फोटोजेनिक लगे.

कंटूरिंग के बारे में जानकारी देते हुए संगीता कहती हैं, ‘‘मेकअप में कंटूरिंग का काम चेहरे की बोनस्ट्रक्चर को उभारना होता है. इंडियन ट्रैडिशनल मेकअप में इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन अब जब से इंडोवैस्टर्न मेकअप का चलन शुरू हुआ तब से बिना कंटूरिंग के मेकअप अधूरा लगता है.’’

संगीता के मुताबिक कंटूरिंग करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:

– कंटूरिंग चेहरे को 3डी लुक देता है. इसे 2 तरह से किया जाता है. पहली चीकबोन कंटूरिंग होती है और दूसरी डाउनचिक कंटूरिंग. चीकबोन कंटूरिंग गालों पर चढ़े फैट को कम करने के लिए की जाती है और डाउन चिन कंटूरिंग डबल चिन वाली महिलाओं के चेहरे पर की जाती है.

– चीकबोन कंटूरिंग में इयर टु चीक लाइन ड्रा की जाती है और जिन महिलाओं के गाल भारी होते हैं, उन के ऊपर की ओर ब्लैंडिंग होती है और जिन के चिन भारी होते हैं उन की कंटूरिंग अंदर की तरफ की जाती है.

– कंटूरिंग की लाइंस को छिपाने और कट्स को उभारने के लिए बेस का इस्तेमाल एक बार फिर किया जा सकता है.

– जिन की नाक की शेप अच्छी नहीं होती है उन के नोज कंटूरिंग की जाती है. नोज कंटूरिंग में इस बात का खयाल रखना जरूरी है कि यदि सही कंटूरिंग नहीं की गई तो चेहरा मैच्योर लगने लगेगा.

हर साल महिलाओं के शरीर में किस तरह के होते हैं बदलाव, जानें यहां

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमारे जीवन में बहुत सी चीजें बदलती हैं. हमारी सोच बदलती है और हम जब तक जिंदा होते हैं, ये सोच तब तक बदलती रहती है. इसके साथ-साथ हमारे शरीर में भी बदलाव होते रहते हैं. एक महिला का शरीर, प्यूबर्टी से मेनोपॉज के दौर से गुजरता है, कई बार यह धीरे-धीरे होता है और कई बार अचानक ही.

डॉ.मनीषा रंजन, सीनियर कंसल्टेंट, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा का कहना है कि-

कई बार ऐसा होता है जब एक महिला का शरीर लगातार बदल रहा होता है. एक महिला का शरीर बदलते और कम होते हॉर्मोन, गर्भावस्था, प्रसव और प्राकृतिक उम्र बढ़ने की प्रक्रिया का सामना करता है- और ये ऐसे बदलाव हैं जो केवल महिलाएं अनुभव करती हैं. यह प्यूबर्टी या यौवन से शुरू होता है और मेनोपॉज तक जारी रहता है, कुछ के लिये यह सूक्ष्म और कुछ के लिये यह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया होती है.

प्यूबर्टी

लड़कियां 8 से 13 साल की उम्र में प्यूबर्टी के दौर में पहुंच जाती हैं. विकसित होना शरीर के लिये एक पीड़ादायक प्रक्रिया हो सकती है. लड़कियों के बाल मोटे होने लगते हैं और ‘ब्रेस्ट बड’ विकसित होते हैं. इसके कुछ समय बाद ही उनकी माहवारी शुरू हो जाती है. यह ऐसा दौर होता है, जिसे हम एक्‍ने और हमारे पहले क्रश के रूप में याद कर सकते हैं. दरसअल, यह महिला बनने की दिशा में शुरू होने वाला एक खूबसूरत सफर होता है.

प्यूबर्टी कब खत्म होती है

प्यूबर्टी शुरू होने के बाद से चार साल तक स्तन पूर्ण रूप से बढ़ते हैं. कुछ लड़कियों में अपर लिप्स पर बालों का उगना सामान्य बात होती है. टीनएज का गुस्सा और सोचने का बदलता तरीका इस स्टेज को बखूबी बयां करता है.

प्रेग्‍नेंसी और मदरहुड

जब महिला का शरीर प्रेग्‍नेंसी के लिये तैयार होता है तो वह कई तरीकों से बदलता है. आपका शरीर यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे को बढ़ने और विकसित होने के लिये पर्याप्त भोजन, जगह और ऑक्सीजन मिल पाए. प्रेग्‍नेंसी कई तरह के बदलाव ला सकती है, जिसमें बालों की मोटाई का बढ़ना, हड्डियों का मुलायम होना और आपकी त्वचा तथा ऑक्सीजन लेवल में बदलाव होना शामिल है.

जन्म देने के बाद आपका शरीर एक और महत्वपूर्ण बदलाव से गुजरता है. जन्म देने के तुरंत बाद आपके एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर काफी बदल जाएगा. बॉन्डिंग हॉर्मोन, ऑक्सीटॉसिन भी शरीर द्वारा अधिक बार निर्मित होता है. इस स्टेज पर, कुछ महिलाएं सामान्य से अधिक चिंतित रहती हैं. मदरहुड के शुरूआती सालों में मानसिक सेहत को सबसे पहली प्राथमिकता देनी चाहिए.

प्रीमेनोपॉज

मेनोपॉज से चार से पांच साल पहले, प्रीमेनोपॉज चरण शुरू हो जाएगा. महिलाएं अपने 40 के दशक में इस चरण से गुजरती हैं और अक्सर उन्हें पता नहीं होता कि क्या हो रहा है. आपका प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन का स्तर महत्वपूर्ण रूप से बदल सकता है. मेनोपॉज के लक्षण जैसे रात को पसीना आना, हॉट फ्लैशेज, वजन बढ़ना और मूड स्विंग होना भी संभव है.

मेनोपॉज

आपके आखिरी माहवारी के एक साल के बाद, मेनोपॉज का चरण शुरू होगा. 50 की उम्र तक, महिलाएं इस स्तर पर पहुंच जाती हैं, जोकि दस साल तक चलती है. मूड स्विंग, हॉट फ्लैशेज, रात में पसीना आना, कम सोना, वजन का बढ़ना और चिड़चिड़ापन, मेनोपॉज के कुछेक लक्षण हैं. मेनोपॉज के सबसे बुरे और नकारात्मक प्रभाव वाले लक्षणों में हॉट फ्लैशेज होते हैं. हॉट फ्लैश अचानक ही होता है, इसमें बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होती है और पूरे शरीर में फैल जाती है. हॉट फ्लैशेज की वजह से रात में आने वाले पसीने से आपके नींद का समय भी काफी कम हो सकता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें