Revlon Lipstick: रेवलॉन की नई कलरस्टे स्वेड इंक

Revlon Lipstick: रेवलॉन की नई कलरस्टे स्वेड इंक लिपस्टिक एक कोट में 8 घंटे तक टिकी रहती है. चटक मैट रंग, नो ट्रांसफर फौर्मूला, बिल्टइन प्राइमर के साथ ऐंटीऔक्सीडैंट और विटामिन ई से भरपूर है. यह होंठों को पोषण देने के साथसाथ उन्हें कंडीशन कर सुरक्षा प्रदान करने में मदद करता है.

इस में पैराबेन, मिनरल औयल या सल्फेट्स न होने के कारण इस के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं. रेवलॉन की यह लिपस्टिक बिलकुल भी रूखी नहीं होती. इस में विटामिन ई है जो लगाते समय आप के होंठों को पोषण देने के साथ ऐसा एहसास कराती है जैसे आप के होंठों पर कुछ भी लगा ही नहीं. ये 12 हाई पिगमेंटेड शेड्स में उपलब्ध सभी प्रकार के होंठों के लिए उपयुक्त है यहां तक कि संवेदनशील होंठों के लिए भी. ये बिल्टइन प्राइमर रेवलॉन के कलरस्टे स्वेड इंक लिपस्टिक पूरी कवरेज और अपारदर्शी रंग प्रदान करते हैं. ये आप को एक ही स्वाइप में गहरा रंग देते हैं.

इस का नो ट्रांसफर और वाटरपू्रफ फौर्मूला आप को सार्वजनिक स्थानों पर भी खानेपीने की आजादी देता है क्योंकि यह न तो फैलता है, न ही धब्बा पड़ता है और न ही ट्रांसफर होता है. यह अपनी जगह पर पूरी तरह से टिका रहता है.

अगर आप को लंबे समय तक टिकने वाला और टोटल कंफर्ट वाला लिप कलर चाहिए जो सभी प्रकार के होंठों के लिए उपयुक्त हो, यहां तक कि संवेदनशील होंठों के लिए भी तो नई रेवलॉन कलरस्टे सुएड इंक लिपस्टिक खरीदिए. 12 चटक मैट रंगों में या लिपिस्टिक www.revlon.co.in और अमेजन, फ्लिपकार्ट, नयका जैसे अन्य आनलाइन पोर्टल्स के साथसाथ भारत भर में रेवलॉन के एक्सक्लूसिव ब्रैंड आउटलेट्स, प्रमुख डिपार्टमैंटल स्टोर और जनरल ट्रेड आउटलेट्स पर उपलब्ध हैं.

Revlon Lipstick

Hindware Appliances: आधुनिक रसोई के लिए स्मार्ट ऐप्लायंसिस

Hindware Appliances: जैसेजैसे भारतीय परिवार अधिक सुविधाजनक और आधुनिक जीवनशैली अपनाते जा रहे हैं वैसेवैसे किचन भी आराम और सुविधा का केंद्र बन रही है. लेटैस्ट टैक्नोलौजी से युक्त और रोजमर्रा के कामों को आसान बनाने वाले विभिन्न प्रकार के किचन ऐप्लायंसिस के जरीए हिंदवेयर इस बदलाव में बड़ी भूमिका निभा रहा है. ऐप, जेस्चर और वौइस कमांड से संचालित चिमनी से ले कर सब से सुरक्षित, सुविधाजनक और आकर्षक हौप्स व ओवन जैसे ये उपकरण खाना पकाने का अनुभव देते हैं. इन मौडर्न ऐप्लायंसिस का सीधा अनुभव कंज्यूमर देशभर में स्थित हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस के स्टोर्स पर पा सकते हैं.

चिमनियां: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस किचन की वैंटिलेशन व्यवस्था को अपनी अत्याधुनिक चिमनियों के माध्यम से नए सिरे से परिभाषित कर रहा है. इन के प्रमुख मौडलों में optimus iPro BLDC शामिल हैं, जो 1900 m3/hr की शक्तिशाली सक्शन क्षमता और ऐप से कनैक्टिविटी के साथ धुएं, गंध और तेल के कणों को तेजी और कुशलता से हटाता है. इस का  Imelda BLDC मौडल ऊर्जा दक्षता को स्टाइलिश डिजाइन और मोशन सैंसिंग तकनीक के साथ जोड़ता है, जिस से किचन का अनुभव और भी आरामदायक हो जाता है.

डिजाइन और सौंदर्य की दृष्टि से ब्रैंड विभिन्न स्टाइल में आइलैंड, वौल माउंटेड, इनक्लाइंड, स्ट्रेट लाइन और क्लासिक टी शेप जैसी चिमनियां पेश करता है जो हर तरह की रसोई में फिट बैठती हैं.

मजबूत डिजाइन फाउंडेशन पर तैयार यह चिमनी रेंज अत्याधुनिक तकनीक से रोजमर्रा की रसोई को और भी सुविधाजनक बनाती है. MaxX साइलैंस टैक्नोलौजी और उच्च दक्षता वाली BLDC मोटर्स जैसी सुविधाओं से लैस ये चिमनियां 1200 m3/hr से 2000m3/hr तक की शक्तिशाली सक्शन क्षमता प्रदान करती हैं, वह भी पारंपरिक मौडलों की तुलना में लगभग 32त्न कम शोर के. साथ ही जेस्चर और मोशन कंट्रोल से संचालन भी संभव है. इस के अलावा, IoT इंटीग्रेशन के साथ इन चिमनियों को मोबाइल ऐप या वौयस कमांड के माध्यम से भी नियंत्रित किया जा सकता है.

बिल्ट इन हौब्स: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस परफौरमैंस, सेफ्टी और मौडर्न डिजाइन के मेल पर आधारित कई तरह के बिल्ट इन हौब्स प्रस्तुत करता है. ये हौब्स 3 से 5 बर्नर विकल्पों में और 60 सैंटीमीटर से ले कर 100 सैंटीमीटर तक के आकार में उपलब्ध हैं. इन का टफेंड ग्लास टौप, ग्लौसी और मैट दोनों फिनिश में आता है जो रसोई के सौंदर्य को और निखारता है. MaxX Safe Technology और इन बिल्ट फ्लेम फेल्योर डिवाइस जैसी उन्नत सुविधाओं से सुसज्जित ये हौब्स, बर्नर पर तरलपदार्थ गिरने की स्थिति में औटोमैटिक तरीके से गैस सप्लाई को बंद कर देते हैं, जिस से किचन में सेफ्टी बनी रहती है.

Ivana Pro सोने की झलक वाली नोब्स और एज बीडिंग से रसोई को लग्जरी टच देते हैं जबकि Graphite Hob अपने ग्रे रंग के मैट ग्लास टौप और पूर्ण पीतल बर्नर्स से मजबूती और स्टाइल का बेहतरीन मेल प्रस्तुत करता है.

कुकटौप्स: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस ले कर आया है एक ऐसी रेंज जो मजबूती, आधुनिक डिजाइन और रोजमर्रा की उपयोगिता को बेहतर करती है. ये कुकटौप्स 3 और 4 बर्नर विकल्पों में उपलब्ध हैं और टफेंड ग्लास टौप व स्टेनलैस स्टील बौडी में आते हैं. इन कुकटौप्स में उच्च दक्षता वाले फोर्ज्ड ब्रास बर्नर, 8 मिमी टफेंड ग्लास सतहें, स्पिल पू्रफ ट्रे, एर्गोनौमिक नोब्स और मजबूत पैन सपोर्ट जैसे फीचर्स शामिल हैं.

प्रमुख मौडलों में, Rosia Plus सीरीज अपनी स्टाइलिश डिजाइन, स्पिल पू्रफ छिपे हुए बर्नर और औटो इग्निशन सुविधा के साथ मौजूद है. Coral Black Cooktop में फ्लेम गार्ड पैन सपोर्ट, आकर्षक मेटैलिक नोब्स और प्रीमियम ब्लैक फिनिश के साथ स्टेनलैस स्टील ड्रिप ट्रे दी गई है.

बिल्ट इन ओवन और माइक्रोवेव: बिल्ट इन ओवन और माइक्रोवेव ऐसे बहुआयामी उपकरणों में विकसित हो गए हैं जो केवल भोजन गरम करने से कहीं अधिक काम करते हैं. Ottavio 80L बिल्ट इन ओवन में उन्नत एअर फ्राइंग और स्टीम असिस्ट तकनीक शामिल है, जो कम तेल में अधिक कुरकुरे और हैल्दी व्यंजन बनाने में मदद करती है. इस में ग्रिल, रोटिसरी और पिज्जा जैसे 14 अलगअलग कुकिंग फंक्शन उपलब्ध हैं.

आकर्षक और उपयोगी डिजाइन वाला Savio मिरर माइक्रोवेव ओवन 27 लिटर की क्षमता के साथ आता है और माइक्रोवेव, ग्रिल, कंवैक्शन और कौंबिनेशन जैसे कई कुकिंग मोड प्रदान करता है. इस में 6 औटो कुक मेन्यू और आसान टच कंट्रोल्स हैं जो काम को और भी सुविधाजनक बनाते हैं.

सिंक: हिंदवेयर की सिंक रेंज हाइजीन, फंक्शन और टिकाऊपन का शानदार मेल, आधुनिक और स्टाइलिश डिजाइन के साथ पेश करती है. प्रीमियम स्टेनलैस स्टील से बनी ये सिंक खरोंच, दागधब्बों और बैक्टीरिया के विकास को रोकती हैं. इन का गहरा बाउल डिजाइन बड़े बरतन और कुकवेयर को आसानी से एडजस्ट करती है जबकि ऐंटीकंडेंसैशन कोटिंग और साउंड डैंपनिंग पैड्स रसोई में शांति और आराम सुनिश्चित करते हैं.

Platina Plus और Aurora सीरीज के सिंक पौप अप ड्रेन सिस्टम से लैस हैं और मोशन सैंसर फौसेट्स के साथ संगत हैं, जिस से पूरी तरह से टच फ्री वाशिंग का अनुभव मिलता है.

स्मार्ट किचन का प्रत्यक्ष अनुभव लें: हिंदवेयर स्मार्ट ऐप्लायंसिस द्वारा स्वयं-साफ होने वाली चिमनियों से ले कर रिमोट से फ्लेम मौनिटर करने की सुविधा वाले हौब्स और वौइस कमांड पर काम करने वाले माइक्रोवेव तक हर प्रोडक्ट आज की जीवनशैली को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है. चाहे आप अपनी रसोई को रैनोवेट कर रहे हों या नए घर को सजा रहे हों, निकटतम हिंदवेयर ऐक्सक्लूसिव ब्रैंड स्टोर पर या Flipkart और Amazon जैसे ई कौमर्स प्लेटफौर्म पर पूरी रेंज डिस्कवर करें.

Hindware Appliances

Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi: 25 साल बाद फिर वापस आ गई तुलसी

Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi: याद कीजिए 25 साल पहले स्टार प्लस के एक धारावाहिक ने किस कदर घरघर में अपनी पैठ बनाई थी. उस सीरियल को देखे बिना लगता था जैसे दिन अधूरा रह गया हो.

जी हां, हम बात कर रहे हैं आइकोनिक सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की. अब इस शो का रिबूट आ गया है और इस के साथ ही तुलसी के किरदार में स्मृति ईरानी ने आप के घरों में फिर से दस्तक दी है.

2000 में वह भी जुलाई का ही महीना था जब स्मृति ईरानी ने हिंदी टीवी दर्शकों को पहली बार अपने अलग अंदाज में ‘क्योंकि’ के वीरानी परिवार से मिलाया था. यह भारतीय टीवी पर पहला शो था जिस ने 1000 ऐपिसोड्स का लैंडमार्क पार किया था. बड़े बजट में बने ग्रैंड सैट्स, एक ही हवेलीनुमा घर में घटती कहानी, अचानक मरते और मर कर जिंदा हो जाते किरदारों के ट्विस्ट और पारिवारिक मूल्यों के साथ अपने आत्मसम्मान को बैलेंस करती फीमेल लीड यह टैंपलेट भारतीय टीवी को ‘क्योंकि’ ने ही दिया था. स्मृति ईरानी के अभिनय और इस शो की कहानी ने इसे भारतीय टैलीविजन के स्वर्ण युग का प्रतीक बना दिया. 2008 में जब यह शो खत्म हुआ तो टीवी दर्शकों के दिलों में एक खालीपन सा घर कर गया.

अब अपने डेब्यू के 25 साल बाद ‘क्योंकि’ टीवी पर दूसरी पारी शुरू कर चुका है. स्मृति ईरानी फिर से तुलसी वीरानी बन कर स्क्रीन पर आ गई हैं.

इस शो के किरदार खासकर स्मृति ईरानी के लीडिंग किरदार, तुलसी वीरानी की पौपुलैरिटी इतनी जबरदस्त थी कि वे एक समय किसी भी फिल्म स्टार की पौपुलैरिटी को टक्कर देती थीं. अब जब ‘क्योंकि’ फिर से लौट चुका है तो बहुत से लोगों के लिए यह उस बीते दौर को एक बार फिर से जीने का मौका ले कर आया है. तुलसी वीरानी के किरदार ने स्मृति ईरानी को घरघर में वह पहचान दिलाई थी जो उन के राजनीतिक कैरियर में भी काम आई. अब स्मृति 15 साल बाद टीवी पर वापस लौटी हैं.

टीवी के फैमिली ड्रामा शोज को पसंद करते हैं औडियंस

BARC india  की 2018 की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि 98त्न भारतीय घरों में एक ही टीवी है यानी अधिकतर घरों में टीवी साथ बैठ कर देखा जाता है और इसे कोव्यूइंग कहा जाता है. इसी रिपोर्ट में एक डाटा यह भी था कि कोव्यूइंग में 52त्न हिस्सा जनरल ऐंटरटेनमैंट चैनलों का था. पिछले कुछ सालों में टीवी पर ऐसे फैमिली शोज की कमी हुई है जो पूरे परिवार को एकसाथ बैठा सकें. ऐसे में ‘क्योंकि’ की वापसी इस कमी को दूर करेगी.

क्योंकि सास भी कभी बहू थी- रिबूट

सीरियल ‘क्योंकि’ ने अपने दूसरे दौर के साथ वापसी की है. 29 जुलाई से शुरू हुआ नए सीजन में स्मृति ईरानी और अमर उपाध्याय तुलसी और मिहिर विरानी के रूप में अपनी प्रतिष्ठित भूमिकाओं को फिर से निभाते नजर आएंगे.

इस सीरियल का निर्माण एकता कपूर ने बालाजी टैलीफिल्म्स के तहत किया था. यह 3 जुलाई, 2000 से 6 नवंबर, 2008 तक प्रसारित हुआ था, जिस के 1,800 से ज्यादा एपिसोड आए थे.

भारतीय टैलीविजन के इतिहास में ‘क्योंकि’ एक ऐसा धारावाहिक है जिस ने न केवल दर्शकों के दिलों पर राज किया बल्कि भारतीय टैलीविजन को एक नई पहचान भी दी. यह सीरियल पारंपरिक भारतीय परिवारों में भावनाओं और रिश्तों की अहमियत को दर्शाता था.

इस सीरियल का सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

‘क्योंकि’ एक गेम चेंजर सीरियल था जिस ने इंडियन टैलीविजन को नई परिभाषा दी और पारिवारिक नाटक शैली की नींव रखी. इस सीरियल ने बताया कि हमारे परिवारों की बुनियाद आज भी परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत पर टिकी हुई है और कैसे टीवी अपने सीरियलों के जरीए इस बुनियाद को मजबूत कर सकता है. इस सीरियल में इमोशन भी था, रोजमर्रा की जिंदगी की परेशानियां भी थीं और उन से निबटते किरदार भी थे.

इस शो में मैरिटल राइट्स, लिटरेसी और वूमन ऐंपावरमैंट से जुड़ी बातें थीं तो वहीं समाज, संस्कार और परिवार की महत्ता भी दिखाई गई. तभी तो लोग रोज रात खाने के समय पूरे परिवार के साथ इस सीरियल को देखा करते थे. इस शो के कुछ सीन और उस से जुड़ा परिचय गीत आज भी लोगों के मन में इमोशंस को जगाता है. यह दर्शाता है कि इस शो का एक पूरी पीढ़ी पर कितना प्रभाव पड़ा है.

महिलाओं का प्रतिनिधित्व और महिला सशक्तीकरण

तुलसी एक किरदार से कहीं ज्यादा शक्ति, त्याग और यूनिटी का सिंबल बनी. इस में तुलसी के अलावा बा और सविता के किरदारों में भी महिलाओं की स्ट्रैंथ दिखी थी. यह पहला ऐसा लार्ज स्केल इंडियन टीवी शो था जिसे वूमन प्रोड्यूसर द्वारा बनाया गया और जिस की मुख्य किरदार भी महिला ही थी.

नई कहानी

तुलसी एक आधुनिक समय की लीडिंग लेडी के रूप में लौटती है जो परंपराओं को मानती है लेकिन आज की जटिल दुनिया में आगे बढ़ना और सबकुछ हैंडल करना बखूबी जानती है. यह नया सीजन 2025 के परिवार के मूल्यों और पहचान के अर्थ की पड़ताल करता है. यह शो पीढि़यों के बीच की खाई को पाटने का लक्ष्य रखता है जो जैनरेशन ऐक्स, मिलेनियल्स और पुराने दर्शकों के साथ समान रूप से जुड़ता है. यह परिवारों को फिर से एकसाथ लाने की आकांक्षा रखता है ठीक वैसे ही जैसे पहले हुआ करता था. नया शो सीमित ऐपिसोड वाला है जो एक प्रभावशाली कहानी पर केंद्रित है ताकि मनोरंजन के साथ प्रेरणा भी दे.

वापसी और आज इस की प्रासंगिकता

स्मृति ईरानी और अमर उपाध्याय की वापसी एक ऐतिहासिक टीवी क्षण है जिस ने विभिन्न पीढि़यों के बीच उत्साह जगाया है. यह शो 29 जुलाई, 2025 से हर रात 10:30 बजे स्टार प्लस और साथ ही जियो हौटस्टार पर स्ट्रीम हो रहा है.

Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi

Jakarta Trip: जीवन से गुलजार जकार्ता

Jakarta Trip: दुनिया के सब से व्यस्त शहरों में जकार्ता संस्कृतियों का एक मिश्रण और विरोधाभासों का शहर है. अपनी जीवंत नाइट लाइफ, विशाल शौपिंग मौल और ऐतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाने वाला जकार्ता आधुनिकता और परंपरा का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है.

कब जाएं?

यदि आप द्वीपों, मंदिरों, भव्य मौल्स और ज्वालामुखी देखने के शौकीन है तो किसी भी मौसम में जकार्ता जा सकते हैं. फिर भी जून से अगस्त का मौसम जकार्ता घूमने का सर्वोत्तम सीजन होता है. हालांकि इन दिनों आवास दरें काफी अधिक होती हैं लेकिन मौसम अपेक्षाकृत शुष्क होता है और तापमान भी 24 से 31 डिग्री सैल्सियस के बीच रहता है.

सितंबर और अक्तूबर मध्यम सीजन है. फिर भी अपनी थकाऊ दिनचर्या से राहत पाने के लिए आप जकार्ता भ्रमण कर सकते हैं. इस समय आवास दरें थोड़ी कम होती हैं.

नवंबर से मार्च काफी बारिश होती है और तापमान भी 24 से 30 डिग्री सैल्सियस होता है. आवास दरें बहुत कम होती हैं.

परिवहन: घूमने के लिए आप विस्तृत जकार्ता परिवहन गाइड ले सकते हैं. यहां से आप को सार्वजनिक भुगतान विधि से ले कर बस और टैक्सी के बारे में जरूरी जानकारी मिल जाएगी.

आप की जानकारी के लिए शहर में कई बस टर्मिनल हैं जहां से बसें, शहर की सीमा के भीतर और पड़ोस को जोड़ने के साथ ही जकार्ता के अन्य क्षेत्रों और जावा के द्वीप के कई शहरों तक जाती हैं.

लंबी दूरी के लिए रेलवे और स्थानीय ट्राम और हाई स्पीड रेल सेवाएं भी उपलब्ध हैं. यहां सब से सम्मानित और विश्वसनीय टैक्सी सर्विस ब्लू बर्ड ग्रुप द्वारा प्रदान की जाती है. इन के पास एक सिल्वरबर्ड टैक्सी भी है जो आमतौर पर एक काले रंग की लग्ज़री गाड़ी है.

जकार्ता के लिए उड़ान बुक करने से पहले

फ्लाइट की कीमतों की तुलना करें: ऐसे प्रमोशन और सौदे देखें जो आप को जकार्ता के लिए बेहतर डील की ओर ले जा सकते हैं.

बैगेज अलाउंस पर विचार करें: इस से आप अप्रत्याशित शुल्क देने से बच जाएंगे.

पहले से ही आवास बुक करें: एक बार जब आप की उड़ान बुक हो जाए तो जकार्ता में अपने आवास को पहले से ही बुक करवा लें. यहां सस्ते/महंगे सभी प्रकार के (बजट अनुसार) होटल उपलब्ध हैं.

स्वास्थ्य और सुरक्षा: जकार्ता के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा सलाह पर अपडेट रहें, जिस में यात्रियों के लिए टीकाकरण या स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां भी शामिल हैं. बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा किट हमेशा साथ रखें.

भाषा: यहां आमतौर पर अंगरेजी भाषा नहीं बोली जाती. अधिकांश होटल और एअरलाइंस कर्मचारी, बुनियादीतौर पर मध्यम स्तर पर अंगरेजी में संवाद कर लेते हैं.

वायु प्रदूषण: जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में वायु प्रदूषण में वृद्धि जकार्ता में जीवन की एक नियमित विशेषता है.

कहां घूमें: जकार्ता में आप इतिहास, संस्कृति और मजेदार गतिविधियों का बेहतरीन अनुभव ले सकते हैं.

समुद्र तट: अगर आप के पास ज्यादा समय है और आप सोच रहे हैं कि 4 दिनों के लिए जकार्ता में क्या करें तो आप पुलाऊ सेरिबू नामक हजारों द्वीपों की एक दिन की यात्रा कर सकते हैं जहां आप को देखने के लिए अंतहीन समुद्र तट, इनलेट और कोव मिलेंगे.

नाइट लाइफ: जकार्ता की नाइट लाइफ में करने के लिए बहुत सी चीजें हैं क्योंकि यहां हर दिन कई नाइट क्लब और कार्यक्रम होते हैं. रात में स्काई लाइन को बहुत सी लाइटों से जगमगाया जाता है. युवा पर्यटक निश्चित रूप से सुबह के शुरुआती घंटों में संगीत और नृत्य का आनंद ले सकते हैं. लोकप्रिय नाइट क्लब ड्रैगन फ्लाई, कोलेसियम, जेंजा और फेबल हैं.

मर्डेका स्क्वायर: 132 मीटर ऊंचा, मर्डेका स्क्वायर सुंदर बगीचों से घिरा. इंडोनेशिया की स्वतंत्रता का प्रतीक यह स्मारक ‘मोनास’ के नाम से जाना जाता है. इस राजसी टावर से आप शहर की विशालता और शहरी परिदृश्य का अवलोकन कर सकते हैं.

अवलोकन डैस्क: मंगलवार से रविवार तक 8 से 15:00 से 22:00 तक खुला रहता है.

पुराना शहर (कोटा दुआ): इस ओल्ड टाउन में पंच कर आप डच औपनिवेशिक वास्तुकला, चहलपहल वाली स्ट्रीट मार्केट का भ्रमण करते हुए फतहिल्ला संग्रहालय पहुंच जाएंगे. यहां आप पुराने नक्शों और तसवीरों के माध्यम से जकार्ता के इतिहास का एक व्यापक अवलोकन कर सकते हैं.

इस्तिकलाल मसजिद: वास्तुकला और उत्कृष्ट क्रति की दृष्टि से यह दुनिया की सब से बड़ी मसजिदों में से एक है. मसजिद की डिजाइन में आधुनिक और पारंपरिक तत्त्वों का मिश्रण है. इस मसजिद में एक ऊंचा गुंबद और ऊंची मीनारें हैं जो क्षितिज पर छाई हुई हैं. शाम के समय इस्तिकमाल मसजिद में जाने से आप रोशनी की कोमल चमक के नीचे इस की भव्यता की सराहना कर सकते हैं.

तमन मिनी इंडोनेशिया इंदाह: यदि आप इंडोनेशियाई संस्कृति का एक शानदार टुकड़ा अपने घर ले जाना चाहते हैं या इंडोनेशिया की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का एक ही स्थान पर स्वाद लेना चाहते हैं तो प्रांतों की विविधता को प्रदर्शित करने वाले तमन मिनी इंडोनेशिया इंडाह की सैर जरूर करें. यहां आप स्मृतिचिह्न, वस्त्र, आभूषण और अन्य हस्तनिर्मित वस्तुएं खरीद सकते हैं.

हजार द्वीप (केपुलाउन सेरीबू): शहर की चहलपहल से दूर आप रंगीन समुद्री जीवन से भरे पानी के नीचे गोते लगाने के शौकीन हैं, या रेतीले तटों पर आराम करने के शौकीन हैं जावा सागर में स्थित आप थाउजैंडआइस लैंड्स की नाव से यात्रा कर  सकते हैं. यह द्वीप समूह प्राचीन समुद्र तट, क्रिस्टल साफ पानी और कई तरह की जलक्रीड़ा प्रदान करता है.

रागुनान चिडि़या घर: दुर्लभ इंडोनेशियाई प्रजातियों सहित जानवरों की 3,600 से अधिक प्रजातियों के साथ यह चिडि़याघर वन्यजीवों से व्यक्तिगत रूप से करीब से मिलने का अवसर प्रदान करता है. पूरे चिडि़याघर में आप को जानवरों, उन के आवासों और उन के संरक्षण की स्थिति के बारे में जानकारीपूर्ण प्रदर्शनियां देखने को मिलेंगी.

इंडोनेशिया की राष्ट्रीय गैलरी: राष्ट्रीय गैलरी भवन का अग्रभाग अपनेआप में वास्तुकला की एक उत्कृति है. अंदर से यह प्रभावशाली गैलरी पारंपरिक और समकालीन इंडोनेशियाई कला का एक विशाल संग्रह प्रदर्शित कर के देश की कलात्मक विरासत के बारे में जानकारी प्रदान करती है.

एंकोल ड्रीमलैंड: इस मनोरंजन परिसर में मनोरंजन पार्क, रोमांचकारी सवारी, एक वाटर पार्क और एक समुद्री दुनिया है जो इसे सभी उम्र के लोगों के लिए एक आदर्श गंतव्य बनाती है.

शौपिंग कहां करें: जकार्ता में अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंडों की श्रृंखला के बीच एक शानदार शौपिंग का अनुभव चाहते हों या स्थानीय खजानों के लिए शहर की छिपी हुई गलियों में उतरना चाहते हों तो जकार्ता में हर किसी के लिए कुछ न कुछ उपलब्ध है.

प्रस्तुत है शौपिंग के विषय में कुछ जानकारी जो आपको शुरुआत करने में काफी मदद करेगी:

ए. जालन सुरबाया पिस्सू मार्केट (फ्ली मार्केट)

अपनी प्राचीन वस्तुओं और आभूषणों के लिए यहां की 184 दुकानें इंडोनेशिया के समृद्ध इतिहास के हर दौर से (डच सिक्के, चांदी के बरतन, झूमर और चीनीमिट्टी के बरतन, बाटिक के अतिरिक्त समुद्र से बरामद की गई कई वस्तुएं बेचती हैं.

बी. पासर बारू

जकार्ता में खरीदारी के लिए सब से पुराने बाजारों में ‘लिटल इंडिया’ के रूप में भी जाना जाने वाला पासर बारू कपड़ों, जूतों, सौंदर्य उत्पादों और निश्चित रूप से भारतीय स्नैक्स और मसालों के लिए वन स्टौप शौपिंग केंद्र है.

तनाह अभंग मार्केट: लकड़ी की इस खूबसूरत फर्नीचर मार्केट में आप नए, उत्कृष्ट डिजाइनों में महोगनी वुड का फर्नीचर खरीद सकते हैं.

इस के अतिरिक्त आप सिकनी गोल्ड सैंटर, सरीनाह, अंकोल आर्ट मार्केट में भी अपनी पसंद के मुताबिक शौपिंग कर सकते हैं.

मौल: ग्रैंड इंडोनेशियन मौल, प्लाजा इंडोनेशिया, सैंट्रल पार्क मौल, थामरिन ट्रेड मौल, सैन्यन मौल जकार्ता के मुख्य शौपिंग मौल हैं.

Jakarta Trip

Beauty Tips: लिपस्टिक लगाना पसंद है, पर होंठ काले पड़ने लगे तो क्या करें?

Beauty Tips: मैं 22 साल की युवती हूं. मुझे लिपस्टिक लगाना बहुत पसंद है. लेकिन मेरे होंठ अब काले होने लगे हैं. क्या यह लिपस्टिक की वजह से है?

लिपस्टिक लगाने से होंठ काले जरूर होते हैं, लेकिन यह तब होता है जब आप की लिपस्टिक में कोई कमी हो. इस के लिए बेहतर यही होगा कि आप अच्छी गुणवत्ता यानी अच्छी क्वालिटी की लिपस्टिक का इस्तेमाल करें. यदि आप चाहती हैं कि होंठ काले न हों तो रोज रात को सोने से पहले होंठों से लिपस्टिक साफ कर लें और बादाम या नारियल का तेल होंठों पर लगा कर सोएं. होंठों का कालापन दूर करने के लिए आप एलोवेरा जैल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

और भी पढ़ें:

मेरी बेटी 17 वर्ष की है. क्या मैं उस की त्वचा पर ब्लीच का इस्तेमाल कर सकती हूं?

बिगड़ती रंगत को सुधारने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल सब से बेहतर विकल्प है. लेकिन ब्लीच में कैमिकल्स होते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आप की बेटी की त्वचा कोमल और सैंसिटिव होगी. अगर आप ब्लीच का इस्तेमाल करेंगी तो उस की त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है.

मैं 20 वर्ष की हूं. मेरी गरदन मेरी त्वचा से ज्यादा काली है. क्या यह ठीक हो सकती है?

ऐसी समस्या ज्यादातर लोगों में देखने को मिलती है. इस के लिए आप कुछ घरेलू नुसखे अपना सकती हैं. नीबू और शहद को मिला कर आप इस पेस्ट को अपनी गरदन पर लगा लें. इस पेस्ट को 20 से 25 मिनट के लिए अपनी गरदन पर लगा रहने दें. ऐसा करने से गरदन के कालेपन से छुटकारा पा सकती हैं. 1 चम्मच दही में बेकिंग सोडा मिला कर पेस्ट तैयार कर लें. इस पेस्ट को अपनी गरदन के प्रभावित हिस्से पर लगा कर उस की मसाज करें. इस से आप की गरदन कुछ ही दिनों में साफ हो जाएगी. आप चाहें तो इस पेस्ट में थोड़ा सा नीबू का रस भी मिला सकती हैं. गरदन को साफ करने के लिए आप चारकोल या ब्लीच का भी उपयोग कर सकती हैं.

Beauty Tips

Side Dishes: चटपटा खाने का है मन तो इन रैसिपीज से बेहतर भला और क्या!

Side Dishes: चटपटी पावभाजी

सामग्री

– 250 ग्राम लौकी छिली व कटी

– 2 गाजरें

– 150 ग्राम फूलगोभी

– 6 फ्रैंचबींस

– 1/4 कप मटर के हरे दाने

– 250 ग्राम टमाटर कद्दूकस किया

– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 1/2 कप प्याज बारीक कटा

– 2 बड़े चम्मच पावभाजी मसाला

– 2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप

– लालमिर्च स्वादानुसार

– 2 छोटे चम्मच औलिव औयल

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए

– थोड़ा सा पनीर कटा सजावट के लिए

– 6 पाव

– 1 छोटा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

गाजरों को छील कर मोटे टुकड़ों में व फूलगोभी को भी मोटे टुकड़ों में काट लें. फ्रैंचबींस को भी 1/2 इंच टुकड़ों में काट लें. अब सभी सब्जियों को 1/2 कप पानी और 1/2 चम्मच नमक के साथ प्रैशरकुकर में पकाएं. 1 सीटी आने के बाद लगभग 7 मिनट धीमी आंच पर और पकाएं. एक नौनस्टिक कड़ाही में औलिव औयल गरम कर प्याज सौते करें. फिर अदरकलहसुन पेस्ट डालें.

2 मिनट बाद टमाटर और पावभाजी मसाला डाल कर भूनें. जब मसाला भुन जाए तब इस में उबली सब्जियां डालें व मैशर से मैश करें. अच्छी तरह पकाएं. इस में टोमैटो कैचअप भी मिला दें. भाजी तैयार हो जाए तो सर्विंग बाउल में निकालें. पनीर के टुकड़ों और धनियापत्ती से सजाएं. एक नौनस्टिक तवे को मक्खन से चिकना कर उस पर पावभाजी मसाला बुरक तुरंत पाव को बीच से काट कर तवे पर डालें. अच्छी तरह सेंक लें. भाजी के साथ सर्व करें.

‘स्वीट कौर्न को कोन में इस तरह सर्व करें और गेस्ट की तारीफ पाएं.’

कौर्न कोन

सामग्री कोन की

– 1/2 कप मैदा – 1 छोटा चम्मच घी – 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन – कोन तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल – कोन बनाने का सांचा – नमक स्वादानुसार.

सामग्री कौर्न की

– 1/2 कप मक्की के दाने उबले

– 2 बड़े चम्मच हरे मटर उबले

– 1 बड़ा चम्मच टमाटर बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच मक्खन पिघला

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़े से सलादपत्ते

– चाटमसाला, लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदे में घी, अजवाइन और नमक डाल कर पानी से पूरी लायक आटा गूंध लें. 15 मिनट ढक कर रखें फिर मोटीमोटी 2 लोइयां बनाएं और खूब बड़ी बेल लें. कांटे से गोद दें व 4 टुकड़े कर लें. प्रत्येक टुकड़े को कोन पर लपेटें और किनारों को पानी की सहायता से सील कर दें. धीमी आंच पर सारे कोन तल लें. मक्की के दानों में सारी सामग्री मिला लें. सलादपत्तों के छोटे टुकड़े कर लें. प्रत्येक कोन में थोड़ा सा सलादपत्ता लगाएं. फिर मक्की के दाने वाला मिश्रण भरें. स्पाइसी कौर्न इन कोन तैयार है. तुरंत सर्व करें.

‘लौकी के ये कटलेट बच्चों को भी पसंद आएंगे.’

 लौकी के कटलेट

सामग्री

– 1 कप लौकी कद्दूकस की

– 1/2 कप भुने चने का पाउडर

– 1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

– 2 बड़े चम्मच चावल का आटा

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– मिर्च, चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

– 100 ग्राम पनीर कद्दूकस किया

– 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

– 8 किशमिश छोटे टुकड़ों में कटी

– 2 छोटे चम्मच पुदीनापत्ती कटी

– शैलो फ्राई करने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

कद्दूकस की लौकी को दोनों हाथों से कस कर निचोड़ें ताकि सारा पानी निकल जाए. फिर इस में सारी सामग्री मिला लें. इसी तरह पनीर में भी सारी सामग्री मिला लें. लौकी वाले मिश्रण से बड़े नीबू के बराबर मिश्रण ले कर बीच में पनीर वाला मिश्रण भर कर बंद करें. इच्छानुसार आकार दें और नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा तेल डाल कर कटलेट को सुनहरा होने तक तल लें. सौस या चटनी के साथ सर्व करें.

Side Dishes

Suspense Story: गुड़िया- सुंबुल ने कौन सा राज छुपा रखा था?

Suspense Story: ‘‘सरबिरयानी तो बहुत जबरदस्त है. भाभीजी के हाथों में तो जादू है. इतनी लजीज बिरयानी मैं ने आज तक नहीं खाई,’’ बिलाल ने बिरयानी खाते हुए फरहान से कहा.

‘‘यह तो सच है तुम्हारी भाभी के हाथों में जादू है, लेकिन आज यह जादू भाभी का नहीं तुम्हारे भाई के हाथों का है,’’ फरहान ने हंसते हुए कहा.

‘‘मैं कुछ सम?ा नहीं? क्या यह बिरयानी भाभीजी ने नहीं बनाई?’’ बिलाल ने हैरत से पूछा.

‘‘नहीं मैं ने बनाई है. क्या है कि कल तुम्हारी भाभी के औफिस में एक जरूरी मीटिंग थी और वे आतेआते लेट हो गई थीं तो मैं ने सोचा चलो आज मैं भी अपना जादू दिखाऊं,’’ फरहान ने खाना खत्म करते हुए कहा.

‘‘अरे वाह सर आप भी इतना अच्छा खाना बनाते हैं. वैसे भाभी जौब करती हैं तो घर के काम कौन करता है? आप लोगों को तो बड़ी दिक्कत होती होगी? यहां दुबई में कोई मेड मिलना भी तो आसान नहीं है,’’ बिलाल ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां मेड मिलना तो बहुत मुश्किल है, लेकिन हम दोनों मिल कर मैनेज कर ही लेते हैं. थोड़ेबहुत काम मैं भी कर लेता हूं,’’ फरहान ने मुसकराते हुए कहा.

‘इतने बड़े मैनेजर हो कर घर के काम खुद करते हैं और बीवी औफिस जाती है,’ बिलाल मन ही मन हंसा, पर कुछ कह नहीं पाया, आखिर फरहान उस का सीनियर जो था.

8 महीने पहले ही बिलाल लखनऊ से दुबई आया था. एक बड़े बैंक में उसे अच्छी जौब मिल गई थी. उस का सीनियर फरहान दिल्ली से था और बहुत ही हंसमुख व मिलनसार. दोनों में खासी दोस्ती हो गई थी. अकसर लंच दोनों साथ करते थे. फरहान के लंच में हमेशा ही लजीज खाने होते थे तो बिलाल ने सोचा शायद उस की बीवी घर पर ही रहती होगी. उसे यह जान कर बड़ी हैरानी हुई कि वे भी कहीं जौब करती हैं. वैसे बिलाल की खुद की बीवी उज्मा भी खाना अच्छा ही बना लेती थी, लेकिन इतना अच्छा नहीं जितना फरहान के घर से आता था.

 

कुछ दिनों बाद बातों ही बातों में फरहान ने बताया कि उस की बीवी सुंबुल कुछ

दिनों के लिए भारत गई हुई हैं. ऐसे में बिलाल ने एक दिन फरहान को अपने घर खाने की दावत दे डाली.  फरहान ने उज्मा के बनाए खाने की बहुत तारीफ की और सुंबुल के वापस आने पर दोनों को अपने घर बुलाने की दावत भी दे डाली.

कुछ दिनों बाद सुंबुल भारत से वापस आ गई तो एक दिन फरहान ने बिलाल को घर पर दावत दे दी. छुट्टी के दिन बिलाल और उज्मा फरहान के घर पहुंच गए.

‘‘आइएआइए भाभीजी,’’ फरहान ने दोनों का स्वागत करते हुए कहा.

‘‘सुनिए मेहमान लोग आ गए हैं,’’ फरहान ने दोनों को ड्राइंगरूम में बैठाया और किचन में काम कर रही अपनी बीवी को आवाज दी.

ड्राइंगरूम काफी करीने से सजा था.  बिलाल और उज्मा दोनों ही प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.

जैसे ही सुंबुल किचन से बाहर आई, बिलाल को एक जोर का ?ाटका लगा. उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उस के सामने सुंबुल खड़ी है, उस की पुरानी मंगेतर. बिलाल को देख कर सुंबुल भी एक पल के लिए ठिठक गई, लेकिन फिर जल्दी ही सामान्य हो गई.

सुंबुल और उज्मा जल्द ही घुलमिल गईं और उज्मा भी सुंबुल की मदद करने के लिए किचन में चली गई. टीवी पर आईपीएल का मैच चल रहा था और फरहान विराट कोहली की बैटिंग की तारीफ कर रहा था, लेकिन बिलाल का दिमाग तो जैसे एकदम ही शून्य हो गया था. उसे उम्मीद नहीं थी कि एक दिन सुंबुल इस तरह उस के सामने आ जाएगी.

खाने की टेबल पर उज्मा सुंबुल के बनाये खाने की खूब तारीफें कर रही थी.

‘‘अरे बिलाल तुम्हें पता है हमारी ससुराल भी तुम्हारे पड़ोस में ही है. तुम लखनऊ से हो और सुंबुल कानपुर से,’’ बातों ही बातों में लखनऊ का जिक्र आया तो फरहान ने बिलाल से कहा.

‘‘अच्छा. अगली बार कानपुर आएंगे तो लखनऊ भी तशरीफ लाइएगा,’’ बिलाल बस इतना ही कह पाया. सुंबुल के सामने ज्यादा बोलने में वह बहुत ?ि?ाक रहा था.

घर वापस पहुंच कर उज्मा तो जल्दी सो गई, लेकिन बिलाल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. गुजरा हुआ कल एक फिल्म की तरह उस के जेहन में चलने लगा…

बिलाल के पिताजी और सुंबुल के पिताजी की आपस में जानपहचान थी. 1-2 बार बिलाल के पिताजी जब कानपुर गए तो उन्होंने वहां सुंबुल को देखा और उस को बिलाल के लिए पसंद कर लिया. लड़का पढ़ालिखा और अच्छा था और फिर घरबार भी देखाभाला हुआ तो सुंबुल के पिताजी को भी इस रिश्ते में कोई हरज नहीं दिखाई दिया. फिर कुछ दिनों बाद दोनों की मंगनी हो गई और शादी लगभग 1 साल बाद होनी तय की गई. फिर अकसर दोनों एकदूसरे से बातें करने लगे.

मगर शादी से कुछ ही दिन पहले एक दिन अचानक बिलाल के पिताजी ने सुंबुल के पिताजी को फोन कर के शादी के लिए मना कर दिया.  वजह पूछने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि उन्हें लगता है कि सुंबुल उन के घर में एडजस्ट नहीं हो पाएगी.

थोड़ी देर बाद ही सुंबुल ने बिलाल से मैसेज कर के इस फैसले की वजह जाननी चाही.

‘‘आई एम सौरी सुंबुल, लेकिन मु?ो और घर वालों को लगता है कि तुम हमारे घर के माहौल में एडजस्ट नहीं हो पाओगी. बाद में मुश्किलें हों इस से अच्छा है कि हम अभी अपने रास्ते अलग कर लें,’’ बिलाल ने जवाब दिया. वैसे दिल ही दिल में उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था.  इतने दिनों तक मंगनी होने और सुंबुल से बातें करने के बाद वह भी मन ही मन उसे चाहने लगा था.

‘‘मगर अचानक ऐसा क्या हो गया जिस से आप को लगा मैं वहां एडजस्ट नहीं हो पाऊंगी?’’ सुंबुल ने फिर सवाल किया. उस की सम?ा नहीं आ रहा था कि आखिर उस ने ऐसा क्या कर दिया जिस से बिलाल और उस के घर वाले उस से रिश्ता खत्म करने पर आमादा हो गए. अभी 2 दिन पहले ही तो बिलाल के पिताजी किसी काम से कानपुर आए थे और उन के घर भी आए. उसे याद नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया जिस से बात यहां तक पहुंची.

‘‘अभी 2 दिन पहले अब्बू आप के घर गए थे. उन्होंने आ कर बताया कि जब तक वे आप के घर में रहे आप ने किसी काम को हाथ नहीं लगाया. खाना बनाना या घर के बाकी काम सिर्फ आप की अम्मी ही करती रहीं और आप बस अपने लैपटौप पर बैठी रहीं या नेलपौलिश लगाती रहीं. अब्बू का मानना है कि हमें अपने घर के लिए एक सजावटी गुडि़या नहीं चाहिए बल्कि ऐसी लड़की चाहिए जो घर संभाल सके और जो तेरी अम्मी को आराम दे सके,’’ बिलाल ने एक लंबाचौड़ा मैसेज भेजा.

‘‘आप को एक बार मुझ से बात तो कर लेनी चाहिए थी.  बिना पूरी बात जाने आप लोग इतना बड़ा फैसला कैसे कर सकते हैं?’’ काफी देर बाद सुंबुल ने जवाब दिया.

‘‘बात करने लायक कुछ है ही नहीं.  वैसे भी अब हमें एहसास हो गया है कि जौब करने वाली लड़की घर नहीं चला सकती. अगर आप नौकरी छोड़ कर घर की सारी जिम्मेदारियां संभालने के लिए तैयार हैं तो मैं अब्बू से एक बार बात कर सकता हूं.  वैसे जहां तक मु?ो लगता है आप अपनी जौब छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं होंगी, इसलिए बेहतर यही रहेगा कि हम अपनी राहें अलग कर लें,’’ बिलाल ने बात खत्म करने की नीयत से लिखा.

और फिर सुंबुल का कोई जवाब नहीं आया. जल्द ही उस की शादी उज्मा से हो गई.  कुछ दिनों बाद ही उज्मा पर घर की सारी

जिम्मेदारियां आ गईं. शुरूशुरू में तो सब ठीक रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद ही घर में कलह होने लगी. बिलाल के 3 और छोटे भाईबहन थे और सब के लिए खाना बनाना और दूसरे काम करना उज्मा को पसंद नहीं था. बिलाल की अम्मी भी बहू के आने के बाद घर के कामों से बिलकुल बेफिक्र हो गई थीं और घर के सारे काम उज्मा को अकेले ही करने पड़ते थे.

फिर तो रोजरोज घर में कलह होने लगी.  बिलाल औफिस से आता तो अम्मी उस के सामने उज्मा की शिकायतें ले कर बैठ जातीं. उज्मा के पास जाता तो वह सब की शिकायतें ले कर बैठ जाती.  तंग आ कर बिलाल ने दुबई के एक बैंक में नौकरी के लिए अर्जी दे दी और दुबई आ गया.  रोजरोज की चिकचिक से तो उस को आजादी मिल गई लेकिन दुबई आ कर भी उज्मा खुश नहीं थी. उसे लगता था कि बिलाल घर के कामों में उस की जरा भी मदद नहीं करता. वहीं बिलाल घर के काम करने को अपनी शान के खिलाफ सम?ाता था. बचपन से ले कर आज तक उस ने घर के किसी काम को हाथ तक नहीं लगाया था. उस का मानना था कि घर के काम सिर्फ औरतों को ही करने चाहिए और मर्दों को सिर्फ कमाने के लिए काम करना चाहिए.

सुंबुल और उज्मा अकसर मिलने लगीं.  दोनों परिवार छुट्टी के दिन एकदूसरे के घर चले जाते या दुबई के खूबसूरत समुद्र तट पर साथसाथ घूमते. हालांकि बिलाल हमेशा सुंबुल के सामने असहज सा रहता था.

उस दिन उज्मा कुछ उदास सी थी तो सुंबुल ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी.

‘‘मेरी बहन की मंगनी टूट गई. लड़का किसी और से शादी करना चाहता है, जबकि घर वाले जबरदस्ती उस की शादी मेरी बहन से कर रहे थे.  कल उन दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली,’’ उज्मा ने बड़ी उदासी के साथ कहा.

फरहान और सुंबुल को सुन कर बड़ा दुख हुआ.

‘‘जल्द ही शादी होने वाली थी. अब कितनी दिक्कत आएगी मेरी बहन की शादी में, कितनी बदनामी होगी उस की,’’ उज्मा ने ठंडी सांस लेते हुए कहा.

‘‘इस में उस का क्या कुसूर है, रिश्ता तो लड़के ने खत्म किया है, तो बदनामी आप की बहन की क्यों होगी?’’ फरहान ने उज्मा को दिलासा देते हुए कहा.

‘‘भाई साहब, लड़के का कुसूर कौन मानता है. सभी लड़की पर ही उंगली उठाते हैं,’’ उज्मा की आंखें नम हो उठी थीं.

‘‘जमाना बदल गया है. आप की बहन की कोई गलती नहीं है इसलिए आप फिक्र मत कीजिए. हो सकता है उस के लिए इस से कुछ अच्छा ही लिखा हो,’’ फरहान ने कहा.

‘‘वैसे आप को पता है, सुंबुल की भी मंगनी एक बार टूट चुकी थी. फिर देखिए न कितनी अच्छी लड़की मु?ो मिल गई,’’ कह कुछ देर की खामोशी के बाद फरहान ने प्यार भरी नजरों से सुंबुल को देखा.

‘‘भला इस जैसी इतनी प्यारी लड़की से कौन शादी नहीं करना चाहेगा,’’ उज्मा ने सुंबुल की तरफ देख कर कहा.

सुंबुल थोड़ी असहज हो गई थी खासतौर पर जब तब बिलाल भी वहां मौजूद था. उधर बिलाल भी एकदम चुप बैठा था.

‘‘क्या वह लड़का भी किसी और को चाहता था?’’ उज्मा सुंबुल की कहानी जानने के लिए उतावली हो उठी.

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं थी. असल में उन के घर वालों को लगा कि मैं जौब करती हूं तो घर के काम नहीं करूंगी. उन को अपने घर के लिए कोई सजावटी गुडि़या नहीं चाहिए थी,’’ थोड़ी देर चुप रहने के बाद सुंबुल ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘अरे आप तो जौब के साथसाथ अपने घर का भी कितना खयाल रखती हैं. इतना अच्छा खाना भी बनाती हैं, घर भी इतना अच्छा रखती हैं, क्या उन लोगों ने कभी आप का घर नहीं देखा था?’’ उज्मा को यकीन नहीं हो रहा था कि सुंबुल जैसी खूबसूरत और इतने सलीके वाली लड़की को कोई कैसे छोड़ सकता है.

‘‘असल में एक बार उन के अब्बू हमारे घर आए थे. उस दिन संडे था. आमतौर पर अपने घर पर सारा काम मैं और अम्मी मिल कर ही करते थे. शादी में कुछ ही दिन रह गए थे तो अम्मी ने मु?ो जबरदस्ती घर के काम करने से मना कर रखा था. फिर मैं भी जौब छोड़ने वाली थी तो अपना काम हैंडओवर कर रही थी और इसलिए लैपटौप पर काम कर रही थी. लेकिन उन के अब्बू को लगा कि शायद मैं कभी घर के काम नहीं करती और इसलिए उन लोगों ने यह रिश्ता तोड़ दिया,’’ सुंबुल ने पूरी बात बताई.

‘‘और उस लड़के ने भी कुछ नहीं कहा?’’ उज्मा ने हैरत से पूछा.

‘‘नहीं, उस ने भी बिना मेरी बात सुने अपने घर वालों की बात मान ली. मु?ो अपनी सफाई देने का मौका ही नहीं मिल,’’ सुंबुल ने एक उदास मुसकान के साथ कहा और फिर उस ने एक उचटती हुई नजर बिलाल पर डाली तो वह शर्म से पानीपानी हो गया.

‘‘वैसे देखा जाए तो अच्छा ही हुआ. ये सब नहीं होता तो मु?ो इतने अच्छे पति कहां मिलते,’’ सुंबुल ने मुहब्बत भरी नजरों से फरहान की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘यह तो कुदरत का कमाल है,’’ फरहान ने अदब से सिर ?ाकाते हुए कहा तो सुंबुल और उज्मा दोनों ही हंस पड़ीं.

‘‘वैसे भी अब जमाना बदल गया है. आज लड़कियां जौब के साथसाथ घर भी अच्छी तरह संभाल रही हैं और अगर ऐसे में हम हस्बैंड लोग घर के कामों में थोड़ी मदद कर दें तो इस में बुराई ही क्या है? आखिर घर भी तो दोनों का ही होता है,’’ फरहान ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा.

‘‘भाभी आप बेफिक्र रहें. आप की बहन के लिए अच्छा लड़का हम भी ढूंढे़ंगे,’’ फरहान ने उज्मा को दिलासा दिया.

थोड़ी देर बाद फरहान सब के लिए आइसक्रीम लेने चला गया और उज्मा वाशरूम चली गई.

‘‘आई एम सौरी सुंबुलजी… आज मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं. मैं ने बिना सच जाने आप को इतनी तकलीफ पहुंचाई. मु?ो माफ कर दीजिएगा,’’ सुंबुल को अकेला देख कर बिलाल उस के पास आया सिर ?ाका सुंबुल से माफी मांगने लगा.

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मु?ो आप से कोई शिकायत नहीं है. शायद हमारे हिस्से में यही लिखा था,’’ सुंबुल को उस के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे. उस के दिल में बिलाल के लिए कोई मलाल नहीं था.

‘‘आप का बहुत बहुत शुक्रिया,’’ बिलाल के मन से बड़ा बो?ा उतर गया था.

शाम को बिलाल और उज्मा जब घर लौटे तो उज्मा के सिर में दर्द हो रहा था. वह आंखें बंद कर थोड़ी देर के लिए लेट गई.

‘‘तुम बहुत थक गई होंगी. तुम आराम करो आज कौफी मैं बनाता हूं,’’ घर पहुंच कर बिलाल ने उज्मा से कहा तो उज्मा की हैरत की इंतहा न रही, ‘‘अरे आज आप को यह क्या हो गया. आप तो घर के काम करने को बिलकुल अच्छा नहीं मानते,’’ उज्मा को बिलाल का यह रूप देख कर हैरानी भी हो रही थी और खुशी भी.

‘‘फरहान भाई सही कहते हैं.  घर तो शौहर और बीवी दोनों का ही होता है तो क्यों न घर के काम भी दोनों मिलजुल कर करें?’’ बिलाल ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे यह कैसी कौफी बनी है,’’ बिलाल ने कौफी का पहला घूंट लेते ही बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘हां चीनी थोड़ी ज्यादा है, दूध थोड़ा कम है और कौफी भी थोड़ी ज्यादा है, लेकिन यह दुनिया की सब से अच्छी कौफी है,’’ उज्मा ने बिलाल की तरफ प्यारभरी नजरों से देखते हुए कहा तो बिलाल को भी चारों तरफ रंगबिरंगे फूल दिखाई देने लगे. दोनों के रिश्ते का एक नया अध्याय शुरू हो चुका था.

Suspense Story

Hindi Social Story: सजा

Hindi Social Story: वेटर को कौफी लाने का और्डर देने के बाद सुमित ने अंकिता से अचानक पूछा, ‘‘मेरे साथ 3-4 दिन के लिए मनाली घूमने चलोगी?’’

‘‘तुम पहले कभी मनाली गए हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो उस खूबसूरत जगह पहली बार अपनी पत्नी के साथ जाना.’’

‘‘तब तो तुम ही मेरी पत्नी बनने को राजी हो जाओ, क्योंकि मैं वहां तुम्हारे साथ ही जाना चाहता हूं.’’

‘‘यार, एकदम से जज्बाती हो कर शादी करने का फैसला किसी को नहीं करना चाहिए.’’

सुमित उस का हाथ पकड़ कर उत्साहित लहजे में बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा साथ मुझे इतनी खुशी देता है कि वक्त के गुजरने का पता ही नहीं चलता. यह गारंटी मेरी रही कि हम शादी कर के बहुत खुश रहेेंगे.’’

उस के उत्साह से प्रभावित हुए बिना अंकिता संजीदा लहजे में बोली, ‘‘शादी के लिए ‘हां’ या ‘न’ करने से पहले मैं तुम्हें आज अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें बताना चाहती हूं, सुमित.’’

सुमित आत्मविश्वास से भरी आवाज में बोला, ‘‘तुम जो बताओगी, उस से मेरे फैसले पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है.’’

‘‘फिर भी तुम मेरी बात सुनो. जब मैं 15 साल की थी, तब मेरे मम्मीपापा के बीच तलाक हो गया था. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर होने के कारण उन के बीच रातदिन झगड़े होते थे.

‘‘तलाक के 2 साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. ढेर सारी दौलत कमाने की इच्छुक मेरी मां ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया. आज वे इतनी अमीर हो गई हैं कि समाज की परवा किए बिना हर 2-3 साल बाद अपना प्रेमी बदल लेती हैं. हमारे जानकार लोग उन दोनों को इज्जत की नजरों से नहीं देखते हैं.’’

अंकिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए रुकी हुई है, यह देख कर सुमित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मैं मानता हूं कि हर इंसान को अपने हिसाब से अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार होना ही चाहिए. तलाक लेने के बजाय रातदिन लड़ कर अपनीअपनी जिंदगी बरबाद करने का भी तो उन दोनों के लिए कोई औचित्य नहीं था. खुश रहने के लिए उन्होंने जो रास्ता चुना, वह सब को स्वीकार करना चाहिए.’’

‘‘क्या तुम सचमुच ऐसी सोच रखते हो या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोल रहे हो?’’

‘‘झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है, अंकिता.’’

‘‘गुड, तो फिर शादी की बात आगे बढ़ाते हुए कौफी पीने के बाद मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलाने ले चलती हूं.’’

‘‘मैं उन्हें इंटरव्यू देने के लिए बिलकुल तैयार हूं,’’ सुमित बोला तो उस की आंखों में उभरे प्रसन्नता के भाव पढ़ कर अंकिता खुद को मुसकराने से नहीं रोक पाई. आधे घंटे बाद अंकिता सुमित को ले कर अपनी मां सीमा के ब्यूटी पार्लर में पहुंच गई.

आकर्षक व्यक्तित्व वाली सीमा सुमित से गले लग कर मिली और पूछा, ‘‘क्या तुम इस बात से हैरान नजर आ रहे हो कि हम मांबेटी की शक्लें आपस में बहुत मिलती हैं?’’

‘‘आप ने मेरी हैरानी का बिलकुल ठीक कारण ढूंढ़ा है,’’ सुमित ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘हम दोनों की अक्ल भी एक ही ढंग से काम करती है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हम दोनों ही ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखती हैं. उन लोगों से संबंध रखना हमें बिलकुल पसंद नहीं जो हमारी जिंदगी में टैंशन पैदा करने की फिराक में रहते हों.’’

‘‘मम्मी, अब सुमित से भी इस के बारे में कुछ पूछ लो, क्योंकि यह मुझ से शादी करना चाहता है,’’ अंकिता ने अपनी बातूनी मां को टोकना उचित समझा था.

‘‘रियली, दिस इज गुड न्यूज,’’ सीमा ने एक बार फिर सुमित को गले से लगा कर खुश रहने का आशीर्वाद दिया और फिर अपनी बेटी से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सुमित को अपने पापा से मिलवाया है?’’

‘‘अभी नहीं.’’

सीमा मुड़ कर फौरन सुमित को समझाने लगी, ‘‘जब तुम इस के पापा से मिलो, तो उन के बेढंगे सवालों का बुरा मत मानना. उन्हें करीबी लोगों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने की गंदी आदत है, क्योंकि वे समझते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई और हो ही नहीं सकता.’’

‘‘मौम, सुमित यहां आप की शिकायतें सुनने नहीं आया है. आप उस के बारे में कोई सवाल क्यों नहीं पूछ रही हैं?’’ अंकिता ने एक बार फिर अपनी मां को विषय परिवर्तन करने की सलाह दी.

‘‘ओकेओके माई डियर सुमित, मुझे तो तुम से एक ही सवाल पूछना है. क्या तुम अंकिता के लिए अच्छे और विश्वसनीय जीवनसाथी साबित होंगे?’’

‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि शादी के बाद हम बहुत खुश रहेंगे,’’ सुमित ने बेझिझक जवाब दिया.

‘‘मैं नहीं चाहती कि अंकिता मेरी तरह जीवनसाथी का चुनाव करने में गलती

करे. मेरी सलाह तो यही है कि तुम दोनों शादी करने का फैसला जल्दबाजी में मत करना. एकदूसरे को अच्छी तरह से समझने के बाद अगर तुम दोनों शादी करने का फैसला करते हो, तो सुखी विवाहित जीवन के लिए मेरा आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर  मिलेगा.’’

‘‘थैंक यू, आंटी. मैं तो बस, अंकिता की ‘हां’ का इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘गुड, प्लीज डोंट माइंड, पर इस वक्त मैं जरा जल्दी में हूं. मैं ने एक खास क्लाइंट को उस का ब्राइडल मेकअप करने के लिए अपौइंटमैंट दे रखा है. तुम दोनों से फुरसत से मिलने का कार्यक्रम मैं जल्दी बनाती हूं,’’ सीमा ने बारीबारी दोनों को प्यार से गले लगाया और फिर तेज चाल से चलती हुई पार्लर के अंदरूनी हिस्से में चली गई.

बाहर आ कर सुमित सीमा से हुई मुलाकात के बारे में चर्चा करना चाहता था, पर अंकिता ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘मैं लगे हाथ अपने पापा को भी तुम्हारे बारे में बताने जा रही हूं. मेरे फोन का स्पीकर औन है. हमारे बीच कैसे संबंध हैं, यह समझने के लिए तुम हमारी बातें ध्यान से सुनो, प्लीज.’’

अंकिता ने अपने पापा को सुमित का परिचय देने के बाद जब उस के साथ शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, तो उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम सुमित को कल शाम घर ले आओ.’’

‘‘जरा सोचसमझ कर हमें घर आने का न्योता दो, पापा. आप मेरी जिंदगी में दिलचस्पी ले रहे हैं, यह देख कर आप की दूसरी वाइफ नाराज तो नहीं होंगी न?’’

अंकिता के व्यंग्य से तिलमिलाए उस के पापा ने भी तीखे लहजे में कहा, ‘‘तुम बिलकुल अपनी मां जैसी बददिमाग हो गई हो और उसी के जैसे वाहियात लहजे में बातें भी करती हो. पिता होने के नाते मैं तुम से दूर नहीं हो सकता, वरना तुम्हारा बात करने का ढंग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘आप दूर जाने की बात मत करिए, क्योंकि आप की सैकंड वाइफ ने आप को मुझ से पहले ही बहुत दूर कर दिया है.’’

‘‘देखो, यह चेतावनी मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं कि कल शाम तुम उस के साथ तमीज से पेश…’’

‘‘मैं कल आप के घर नहीं आ रही हूं. सुमित को किसी और दिन आप के औफिस ले आऊंगी.’’

‘‘तुम बहुत ज्यादा जिद्दी और बददिमा होती जा रही हो.’’

‘‘थैंक यू एेंड बाय पापा,’’ चिढ़े अंदाज में ऐसा कह कर अंकिता ने फोन काट दिया था.

अपने मूड को ठीक करने के लिए अंकिता ने पहले कुछ गहरी सांसें लीं और फिर सुमित से पूछा, ‘‘अब बताओ कि तुम्हें मेरे मातापिता कैसे लगे? क्या राय बनाई है तुम ने उन दोनों के बारे में?’’

‘‘अंकिता, मुझे उन दोनों के बारे में कोई भी राय बनाने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है. तुम्हें उन से जुड़ कर रहना ही है और मैं उन के साथ हमेशा इज्जत से पेश आता रहूंगा,’’ सुमित ने उसे अपनी राय बता दी.

उस का जवाब सुन अंकिता खुश हो कर बोली, ‘‘तुम तो शायद दुनिया के सब से ज्यादा समझदार इंसान निकलोगे. मुझे विश्वास होने लगा है कि हम शादी कर के खुश रह सकेंगे, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘पर फिर भी मैं चाहूंगी कि तुम अपना फाइनल जवाब मुझे कल दो.’’

‘‘ओके, कल कब और कहां मिलोगी?’’

‘‘करने को बहुत सी बातें होंगी, इसलिए नेहरू पार्क में मिलते हैं.’’

‘‘ओके.’’

अगले दिन रविवार को दोनों नेहरू पार्क में मिले. सुमित की आंखों में तनाव के भाव पढ़ कर अंकिता ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘यार, इतनी ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो, अपना यह फैसला बताने से तुम घबराओ मत.’’

उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए सुमित गंभीर लहजे में बोला, ‘‘कल रात को किसी लड़की ने मुझे फोन कर राजीव के बारे में बताया है.’’

‘‘यह तो उस ने अच्छा काम किया, नहीं तो आज मैं खुद ही तुम्हें उस के बारे में बताने वाली थी,’’ अंकिता ने बिना विचलित हुए जवाब दिया.

‘‘क्या तुम उस के बहुत ज्यादा करीब थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम दोनों एकदूसरे से दूर क्यों हो गए?’’

‘‘उस का दिल मुझ से भर गया… उस के जीवन में दूसरी लड़की आ गई थी.’’

‘‘क्या तुम उस के साथ शिमला घूमने गई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या तुम वहां उस के साथ एक ही कमरे में रुकी थी’’

उस की आंखों में देखते हुए अंकिता ने दृढ़ लहजे में जवाब दिया, ‘‘रुके तो हम अलगअलग कमरों में थे, पर मैं ने 2 रातें उस के कमरे में ही गुजारी थीं.’’

उस का जवाब सुन कर सुमित को एकदम झटका लगा. अपने आंतरिक तनाव से परेशान हो वह दोनों हाथों से अपनी कनपटियां मसलने लगा.

‘‘मैं तुम से इस वक्त झूठ नहीं बोलूंगी सुमित, क्योंकि तुम से… अपने भावी जीवनसाथी से अपने अतीत को छिपा कर रखना बहुत गलत होगा.’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या कहूं. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम से शादी करना चाहता हूं, पर…पर…’’

‘‘मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूं कि तुम्हारे मन में इस वक्त क्या चल रहा है, सुमित. अच्छा यही रहेगा कि इस मामले में तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं खुद नहीं चाहती हूं कि तुम जल्दबाजी में मुझ से शादी करने का फैसला करो.’’ बहुत दुखी और परेशान नजर आ रहे सुमित ने अपना सारा ध्यान अंकिता पर केंद्रित कर दिया.

अंकिता ने उस की आंखों में देखते हुए गंभीर लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘राजीव मुझ से बहुत प्रेम करने का दम भरता था और मैं उस के ऊपर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. इसीलिए जब उस ने जोर डाला तो मैं न उस के साथ शिमला जाने से इनकार कर सकी और न ही कमरे में रात गुजारने से.

‘‘मैं ने फैसला कर रखा है कि उस धोखेबाज इंसान को न पहचान पाने की अपनी गलती के लिए घुटघुट कर जीने की सजा खुद को बिलकुल नहीं दूंगी. अब तुम ही बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?

‘‘क्या मैं आजीवन अपराधबोध का शिकार बन कर जीऊं? तुम्हारे प्रेम का जवाब प्रेम से न दूं? तुम से शादी हो जाए, तो हमेशा डरतीकांपती रहूं कि कहीं से राजीव और मेरे अतीत के नजदीकी रिश्तों के बारे में तुम्हें पता न लग जाए?

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम भावुक हो कर शादी के लिए ‘हां’ मत कहो. तुम्हें राजीव के बारे में पता है… मेरे मातापिता के तलाक, उन की जीवनशैली और उन के मेरे तनाव भरे रिश्तों की जानकारी अब तुम्हें है.

इन सब बातों को जान कर तुम्हारे मन में मेरी इज्जत कम हो गई हो या मेरी छवि बिगड़ गई हो, तो मेरे साथ सात फेरे लेने का फैसला बदल दो.’’

अंकिता की सारी बातें सुन कर सुमित जब खामोश बैठा रहा, तो अंकिता उठ कर खड़ी हो गई और बुझे स्वर में बोली, ‘‘तुम अपना फाइनल फैसला मुझे बाद में फोन कर के बता देना. अभी मैं चलती हूं.’’

पार्क के गेट की तरफ बढ़ रही अंकिता को जब सुमित ने पीछे से आवाज दे कर नहीं रोका, तो उस के तनमन में अजीब सी उदासी और मायूसी भरती चली गई थी.

आंखों से बह रही अविरल अश्रुधारा को रोकने की नाकामयाब कोशिश करते हुए जब वह आटोरिकशा में बैठने जा रही थी, तभी सुमित ने पीछे से आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस की फूली सांसें बता रही थीं कि वह दौड़ते हुए वहां पहुंचा था.

‘‘तुम्हें मैं इतनी आसानी से जिंदगी से दूर नहीं होने दूंगा, मैडम,’’ सुमित ने उस का हाथ थाम कर भावुक लहजे में अपने दिल की बात कही.

‘‘मेरे अतीत के कारण तुम हमारी शादी होने के बाद दुखी रहो, यह मेरे लिए असहनीय बात होगी. सुमित, अच्छा यही रहेगा कि हम दोस्त…’’

उस के मुंह पर हाथ रख कर सुमित ने उसे आगे बोलने से रोका और कहा, ‘‘जब तुम चलतेचलते मेरी नजरों से ओझल हो गई, तो मेरा मन एकाएक गहरी उदासी से भर गया था…वह मेरे लिए एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने की घड़ी थी…और मैं ने फैसला कर लिया है.

‘‘मेरा फैसला है कि मुझे अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे ही साथ गुजारनी है.’’

‘‘सुमित, भावुक हो कर जल्दबाजी में…’’

उस के कहे पर ध्यान दिए बिना बहुत खुश नजर आ रहा सुमित बोले जा रहा था, ‘‘मेरा यह अहम फैसला दिल से आया है, स्वीटहार्ट. अतीत में किसी और के साथ बने सैक्स संबंध को हमारे आज के प्यार से ज्यादा महत्त्व देने की मूढ़ता मैं नहीं दिखाऊंगा. विल यू मैरी मी?’’

‘‘पर…’’

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ और फटाफट ‘हां’ कर दो, माई लव,’’ सुमित ने अपनी बांहें फैला दीं.

‘‘हां, माई लव,’’ खुशी से कांप रही आवाज में अपनी रजामंदी प्रकट करने के बाद अंकिता सुमित की बांहों के मजबूत घेरे में कैद हो गई.

Hindi Social Story

Family Kahani: खट्टामीठा- काश वह स्वरूप की इच्छा पूरी कर पाती

Family Kahani: साढ़े 4 बजने में अभी पूरा आधा घंटा बाकी था पर रश्मि के लिए दफ्तर में बैठना दूभर हो रहा था. छटपटाता मन बारबार बेटे को याद कर रहा था. जाने क्या कर रहा होगा? स्कूल से आ कर दूध पिया या नहीं? खाना ठीक से खाया या नहीं? सास को ठीक से दिखाई नहीं देता. मोतियाबिंद के कारण कहीं बेटे स्वरूप की रोटियां जला न डाली हों? सवेरे रश्मि स्वयं बना कर आए तो रोटियां ठंडी हो जाती हैं. आखिर रहा नहीं गया तो रश्मि बैग कंधे पर डाल कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. आज का काम रश्मि खत्म कर चुकी है, जो बाकी है वह अभी शुरू करने पर भी पूरा न होगा. इस समय एक बस आती है, भीड़ भी नहीं होती.

‘‘प्रभा, साहब पूछें तो बोलना कि…’’

‘‘कि आप विधि या व्यवसाय विभाग में हैं, बस,’’ प्रभा ने रश्मि का वाक्य पूरा कर दिया, ‘‘पर देखो, रोजरोज इस तरह जल्दी भागना ठीक नहीं.’’

रश्मि संकुचित हो उठी, पर उस के पास समय नहीं था. अत: जवाब दिए बिना आगे बढ़ी. जाने कैसा पत्थर दिल है प्रभा का. उस के भी 2 छोटेछोटे बच्चे हैं. सास के ही पास छोड़ कर आती है, पर उसे घर जाने की जल्दी कभी नहीं होती. सुबह भी रोज समय से पहले आती है. छुट्टियां भी नहीं लेती. मोटीताजी है, बच्चों की कोई फिक्र नहीं करती. उस के हावभाव से लगता है घर से अधिक उसे दफ्तर ही पसंद है. बस, यहीं पर वह रश्मि से बाजी मार ले जाती है वरना रश्मि कामकाज में उस से बीस ही है. अपना काम कभी अधूरा नहीं रखती. छुट्टियां अधिक लेती है तो क्या, आवश्यकता होने पर दोपहर की छुट्टी में भी काम करती है. प्रभा जब स्वयं दफ्तर के समय में लंबे समय तक खरीदारी करती है तब कुछ नहीं होता. रश्मि के ऊपर कटाक्ष करती रहती है. मन तो करता है दोचार खरीखरी सुनाने को, पर वक्त बे वक्त इसी का एहसान लेना पड़ता है.

रश्मि मायूस हो उठी, पर बेटे का चेहरा उसे दौड़ाए लिए जा रहा था. साहब के कमरे के सामने से निकलते समय रश्मि का दिल जोर से धड़कने लगा. कहीं देख लिया तो क्या सोचेंगे, रोज ही जल्दी चली जाती है. 5-7 लोगों से घिरे हुए साहब कागजपत्र मेज पर फैलाए किसी जरूरी विचारविमर्श में डूबे थे. रश्मि की जान में जान आई. 1 घंटे से पहले यह विचार- विमर्श समाप्त नहीं होगा.

वह तेज कदमों से सीढि़यां उतरने लगी. बसस्टैंड भी तो पास नहीं, पूरे 15 मिनट चलना पड़ता है. प्रभा तो बीमारी में भी बच्चों को छोड़ कर दफ्तर चली आती है. कहती है, ‘बच्चों के लिए अधिक दिमागखपाई नहीं करनी चाहिए. बड़े हो कर कौन सी हमारी देखभाल करेंगे.’

बड़ा हो कर स्वरूप क्या करेगा यह तो तब पता चलेगा. फिलहाल वह अपना कर्तव्य अवश्य निभाएगी. कहीं वह अपने इकलौते पुत्र के लिए आवश्यकता से अधिक तो नहीं कर रही. यदि उस के भी 2 बच्चे होते तो क्या वह भी प्रभा के ढंग से सोचती? तभी तेज हार्न की आवाज सुन कर रश्मि ने चौंक कर उस ओर देखा, ‘अरे, यह तो विभाग की गाड़ी है,’ रश्मि गाड़ी की ओर लपकी.

‘‘विनोद, किस तरफ जा रहे हो?’’ उस ने ड्राइवर को पुकारा.

‘‘लाजपत नगर,’’ विनोद ने गरदन घुमा कर जवाब दिया.

‘‘ठहर, मैं भी आती हूं,’’ रश्मि लगभग छलांग लगा कर पिछला दरवाजा खोल कर गाड़ी में जा बैठी. अब तो पलक झपकते ही घर पहुंच जाएगी. तनाव भूल कर रश्मि प्रसन्न हो उठी.

‘‘और क्या हालचाल है, रश्मिजी?’’ होंठों के कोने पर बीड़ी दबा कर एक आंख कुछ छोटी कर पान से सने दांत निपोर कर विनोद ने रश्मि की ओर देखा.

वितृष्णा से रश्मि का मन भर गया पर इसी विनोद के सहारे जल्दी घर पहुंचना है. अत: मन मार कर हलकी हंसी लिए चुप बैठी रही.

घर में घुसने से पहले ही रश्मि को बेटे का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दादाजी, टीवी बंद करो. मुझ से गृहकार्य नहीं हो रहा है.’’

‘‘अरे, तू न देख,’’ रश्मि के ससुर लापरवाही से बोले.

‘‘न देखूं तो क्या कान में आवाज नहीं पड़ती?’’

रश्मि ने संतुष्टि अनुभव की. सब कहते हैं उस का अत्यधिक लाड़प्यार स्वरूप को बिगाड़ देगा. पर रश्मि ने ध्यान से परखा है, स्वरूप अभी से अपनी जिम्मेदारी समझता है. अपनी बात अगर सही है तो उस पर अड़ जाता है, साथ ही दूसरों के एहसासों की कद्र भी करता है. संभवत: रश्मि के आधे दिन की अनुपस्थिति के कारण ही आत्मनिर्भर होता जा रहा है.

‘‘मां, यह सवाल नहीं हो रहा है,’’ रश्मि को देखते ही स्वरूप कापी उठा कर दौड़ आया.

बेटे को सवाल समझा व चाय- पानी पी कर रश्मि इतमीनान से रसोईघर में घुसी. दफ्तर से जल्दी लौटी है, थकावट भी कम है. आज वह कढ़ीचावल और बैगन का भरता बनाएगी. स्वरूप को बहुत पसंद है.

खाना बनाने के बाद कपड़े बदल कर तैयार हो रश्मि बेटे को ले कर सैर करने निकली. फागुन की हवा ठंडी होते हुए भी आरामदेह लग रही थी. बच्चे चहलपहल करते हुए मैदान में खेल रहे थे. मां की उंगली पकड़े चलते हुए स्वरूप दुनिया भर की बकबक किए जा रहा था. रश्मि सोच रही थी जीवन सदा ही इतना मधुर क्यों नहीं लगता.

‘‘मां, क्या मुझे एक छोटी सी बहन नहीं मिल सकती. मैं उस के संग खेलूंगा. उसे गोद में ले कर घूमूंगा, उसे पढ़ाऊंगा. उस को…’’

रश्मि के मन का उल्लास एकाएक विषाद में बदल गया. स्वरूप के जीवन के इस पहलू की ओर रश्मि का ध्यान ही नहीं गया था. सरकार जो चाहे कहे. आधुनिकता, महंगाई और बढ़ते हुए दुनियादारी के तनावों का तकाजा कुछ भी हो, रश्मि मन से 2 बच्चे चाहती थी, मगर मनुष्य की कई चाहतें पूरी नहीं होतीं.

स्वरूप के बाद रश्मि 2 बार गर्भवती हुई थी पर दोनों ही बार गर्भपात हो गया. अब तो उस के लिए गर्भधारण करना भी खतरनाक है.

रश्मि ने समझौता कर लिया था. आखिर वह उन लोगों से तो बेहतर है जिन के संतान होती ही नहीं. यह सही है कपड़ेलत्ते, खिलौने, पुस्तकें, टौफी, चाकलेट स्वरूप की हर छोटीबड़ी मांग रश्मि जहां तक संभव होता है, पूरी करती है. पर जो वस्तु नहीं होती उस की कमी तो रहती ही है.

‘‘देख बेटा,’’ 7 वर्षीय पुत्र को रश्मि ने समझाना आरंभ कर दिया, ‘‘अगर छोटी बहन होगी तो तेरे साथ लड़ेगी. टौफी, चाकलेट, खिलौनों में हिस्सा मांगेगी और…’’

‘‘तो क्या मां,’’ स्वरूप ने मां की बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘मैं तो बड़ा हूं, छोटी बहन से थोड़े ही लड़ूंगा. टौफी, चाकलेट, खिलौने सब उस को दूंगा. मेरे पास तो बहुत हैं.’’

रश्मि की बोलती बंद हो गई. समय से पहले क्यों इतना समझदार हो गया स्वरूप? रात का भोजन देख कर नन्हे स्वरूप के मस्तिष्क से छोटी बहन वाला विषय निकल गया. पर रश्मि जानती है यह भूलना और याद आना चलता ही रहेगा. हो सकता है बड़ा होने पर रश्मि स्वरूप को बहन न होने का सही कारण बता भी दे लेकिन जब तक वह इसी तरह जीने का आदी नहीं हो जाता, रश्मि को इस प्रसंग का सामना करना ही होगा.

मनपसंद व्यंजन पा कर स्वरूप चटखारे लेले कर खा रहा था, ‘‘कितना अच्छा खाना है. सलाद भी बहुत अच्छा है. मां, आप रोज जल्दी घर आ जाया करो.’’

रश्मि का मन कमजोर पड़ने लगा. मन हुआ कल ही त्यागपत्र भेज दे, नहीं चाहिए यह दो कौड़ी की नौकरी, जिस के कारण उस के लाड़ले को मनपसंद खाना भी नसीब नहीं होता.

‘‘चलो मां, लूडो खेलते हैं,’’ स्वरूप हाथमुंह धो आया था.

‘‘थोड़ी देर तक पिता के संग खेलो, मैं चौका संभाल कर आती हूं,’’ रश्मि ने बरतन समेटते हुए कहा.

ऐसा नहीं कि केवल सतीश की तनख्वाह से गृहस्थी नहीं चलेगी लेकिन घर में स्वयं उस की तनख्वाह का महत्त्व भी कम नहीं. रोज तरहतरह का खाना, स्वरूप के लिए विभिन्न शौकिया खर्चे, उस के कानवैंट स्कूल का खर्चा आदि मिला कर कोई कम रुपयों की जरूरत नहीं पड़ती. अभी तो अपना मकान भी नहीं. फिर वास्तविकता यह है कि प्रतिदिन हर समय मां घर में दिखेगी तो मां के प्रति उस का आकर्षण कम हो जाएगा. इसी तरह रोज ही अच्छा भोजन मिलेगा तो उस भोजन का महत्त्व भी उस के लिए कम हो जाएगा. जैसेजैसे स्वरूप बड़ा होगा उस की अपनी दुनिया विकसित होती जाएगी. मां के आंचल से निकल कर पढ़ाई- लिखाई, खेलकूद और दोस्तों में व्यस्त हो जाएगा. उस समय रश्मि अकेली पड़ जाएगी. इस से यही बेहतर है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ेगा.

सब काम निबटा कर रश्मि की आंखें थकावट से बोझिल होने लगीं. निद्रित पुत्र के ऊपर चादर डाल कर वह सतीश की ओर मुड़ी.

‘‘कभी मेरा भी ध्यान कर लिया करो. हमेशा बेटे में ही रमी रहती हो,’’ सतीश ने रश्मि का हाथ थामा.

‘‘जरा याद करो तुम्हारी मां ने भी कभी तुम्हारा इतना ही ध्यान रखा था,’’ रश्मि ने शरारत से कहा.

‘‘वह उम्र तो गई, अब तो हमें तुम्हारा ध्यान चाहिए.’’

‘‘अच्छा, यह लो ध्यान,’’ रश्मि पति से लिपट गई.

सुबह उठ कर, सब को चाय दे कर रश्मि ने स्वरूप के स्कूल का टिफिन तैयार किया. फिर दूध गरम कर के उसे उठाने चली.

‘‘ऊं, ऊं, अभी नहीं,’’ स्वरूप ने चादर तान ली.

‘‘नहीं बेटा, और नहीं सोते. देखो, सुबह हो गई है.’’

‘‘नहीं, बस मुझे सोना है,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

आखिर 15 मिनट तक समझाने- बुझाने के बाद उस ने बेमन से बिस्तर छोड़ा. पर ब्रश करने, कपड़े पहनने व दूध पीने के बीच वह बारबार जा कर फिर से चादर ओढ़ कर लेट जाता और मनाने के बाद ही उठता. अंत में बैग कंधे पर डाले सतीश का हाथ पकड़े वह बस स्टाप की ओर रवाना हुआ तो रश्मि ने चैन की सांस ली. बिस्तर संवारना है, खाना बनाना, नाश्ता बनाना, नहाना फिर तैयार हो कर दफ्तर जाना है. रश्मि झटपट हाथ चलाने लगी. कपड़ों का ढेर बड़ा होता जा रहा है. 2 दिन से समय ही नहीं मिल रहा. आज शाम को आ कर अवश्य धोएगी.

‘‘कभी तो आंगन में झाड़ू लगा दिया कर रश्मि,’’ सब्जी छौंकते हुए रश्मि के कान में सास की आवाज पड़ी. कमरों के सामने अहाते के भीतर लंबाचौड़ा आंगन है, पक्के फर्श वाला. झाड़ू लगाने में 15-20 मिनट लग जाना मामूली बात है.

‘‘आप ही बताओ अम्मां, किस समय लगाऊं?’’

‘‘अब यह भी कोई समस्या है? जो दफ्तर जाती हैं क्या वे झाड़ू नहीं लगातीं?’’

रश्मि चुप हो गई. बहस में कुछ नहीं रखा. सब्जी में पानी डाल कर वह कपड़े निकालने लगी.

मांजी अब भी बोले जा रही थीं, ‘‘करने वाले बहुत कुछ करते हैं. स्वेटर बनाते हैं, पापड़बड़ी अचार, डालते हैं, कशीदाकारी करते हैं…’’

बदन पर पानी डालते हुए रश्मि सोच रही थी, ‘आज जा कर सब से पहले मार्च के महीने का ड्यूटी चार्ट नाना है.’

‘‘अम्मां, जमादार आए तो उसे 2 रुपए दे कर आंगन में झाड़ू लगवा लेना,’’ रश्मि ने सास को आवाज दी.

‘‘सुन, मेरे लिए एक जोड़ी चप्पल ले आना.’’

‘‘ठीक है, अम्मां,’’ कंघी कर के रश्मि ने लिपस्टिक लगाई.

‘‘वह सामने अंगूठे और पीछे पट्टी वाली चप्पल.’’

रश्मि ने भौंहें सिकोड़ीं, सास किसी खास डिजाइन के बारे में कह रही थीं.

‘‘अरे, वैसी ही जैसी स्वीटी की नानी ने पहनी थी, हलके पीले से रंग की.’’

‘‘अम्मां, मैं शाम को समझ लूंगी और कल चप्पल ला दूंगी.’’

रश्मि टिफिन पैक करने लगी. परांठा भी पैक कर लिया. नाश्ता करने का समय नहीं था.

‘‘मेरे ब्लाउज के जो बटन टूटे थे, लगा दिए हैं?’’

‘‘ओह,’’ रश्मि को याद आया, ‘‘शाम को लगा दूंगी.’’

अम्मां का चेहरा असंतुष्ट हो उठा. रश्मि किसी तरह पैरों में चप्पल डाल कर दफ्तर के लिए रवाना हुई. तेज चले तो 9 बजे वाली बस अब भी मिल सकती है.

आज शाम रश्मि जल्दी नहीं निकल सकी. 4 बजे साहब ने बुला कर जो टारक योजना समझानी शुरू की तो 5 बजने पर भी नहीं रुके.

‘‘मेरी बस निकल जाएगी, साहब,’’ उस ने झिझकते हुए कहा.

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया,’’ बौस ने चौंक कर घड़ी देखी.

‘‘जी, कोई बात नहीं,’’ रश्मि ने मुसकराने का प्रयास किया.

दफ्तर से निकलते ही टारक योजना दिमाग से निकल गई और रात को क्या भोजन बनाए इस की चिंता ने आ घेरा. जाते हुए सब्जी भी खरीदनी है. बस आने पर धक्कामुक्की कर के चढ़ी पर वह बीच रास्ते में खराब हो गई. रश्मि मन ही मन गालियां देने लगी. दूसरी बस ले कर घर पहुंचतेपहुंचते 7 बज गए. दूर से ही छत के ऊपर छज्जे पर खड़ा स्वरूप दिख गया. छुपनछुपाई खेल रहा था बच्चों के संग. बहुत ही खतरनाक स्थिति में खड़ा था. गलती से भी थोड़ा और खिसक आया तो सीधे नीचे आ गिरेगा. रश्मि का तो कलेजा मुंह को आ गया.

‘‘स्वरूप,’’ उस ने कठोर स्वर में आवाज दी, ‘‘जल्दी नीचे उतर आओ.’’

‘‘अभी आया, मां,’’ कह कर स्वरूप दीवार फांद कर छत के दूसरी ओर गायब हो गया. अभी तक स्कूल के कपड़े भी नहीं बदले थे. सफेद कमीज व निकर पर दिनभर की गर्द जमा हो गई थी. बाल अस्तव्यस्त और हाथपांव धूल में सने थे. रश्मि का खून खौलने लगा. अम्मां दिन भर क्या करती रहती हैं. लगता है सारा दिन धूप में खेलता रहा है. हजार बार कहा है उसे छत के ऊपर न जाने दिया करें.

‘‘अम्मां,’’ अभी रश्मि ने आवाज ही दी थी कि सास फूट पड़ीं, ‘‘तेरा बेटा मुझ से नहीं संभलता. कल ही किसी क्रेच में इस का बंदोबस्त कर दे. सारा दिन इस के पीछे दौड़दौड़ कर मेरे पैरों में दर्द हो गया. कोई कहना नहीं मानता. स्कूल से लौट कर न नहाया, न कपड़े बदले, न ही ठीक से खाना खाया. ऊधम मचाने में लगा है. तू अपनी आंखों से देख क्या हाल बनाया है. मैं ने छत पर जाने से रोका तो मुझे धक्का मार कर निकल गया.’’

‘‘है कहां वह? अभी तक आया नहीं नीचे,’’ क्रोध से आगबबूला होती रश्मि स्वयं ही छत पर चली.

‘‘क्या बात है? नीचे क्यों नहीं आए?’’ ऊपर पहुंच कर उस ने स्वरूप को झिंझोड़ा.

‘‘बस, अपनी पारी दे कर आ रहा था मां.’’

मां के क्रोध से बेखबर स्वरूप की मासूमियत रश्मि के क्रोध को पिघलाने लगी, ‘‘चलो नीचे. दादी का कहा क्यों नहीं माना?’’

‘‘मुझे अच्छा नहीं लगता,’’ स्वरूप ने मुंह फुलाया, ‘‘इधर मत कूदो, कागज मत फैलाओ. कमरे में बौल से मत खेलो, गंदे पांव ले कर सोफे पर मत चढ़ो.’’

रश्मि की समझ में न आया किस पर क्रोध करे. बच्चे को बचपना करने से कैसे रोका जा सकता है? सास की भी उम्र बढ़ रही है, ऐसे में सहनशीलता कम होना स्वाभाविक है.

‘‘दादी तुम से बड़ी हैं स्वरूप. तुम्हें बहुत प्यार करती हैं. उन का कहना मानना चाहिए.’’

‘‘फिर मुझे आइसक्रीम क्यों नहीं खाने देतीं?’’

रश्मि थकावट महसूस करने लगी. कब तक नासमझ रहेगा स्वरूप.

‘‘आ गए लाट साहब,’’ पोते को देखते ही दादी का गुस्सा भड़क उठा, ‘‘तुम ने अभी तक इसे कुछ भी नहीं कहा? अरे, मैं कहती हूं इतना सिर न चढ़ाओ,’’ अपने प्रति दोषारोपण होते देख रश्मि का शांत होता क्रोध फिर उबल पड़ा.

‘‘चलो, कपड़े बदल कर हाथमुंह धोओ.’’

‘‘मैं नहीं धोऊंगा,’’ स्वरूप ने अड़ कर कहा.

‘‘क्या?’’ रश्मि जोर से चिल्लाई.

‘‘बस, मैं न कहती थी तुम्हारा लाड़प्यार इसे जरूर बिगाड़ेगा. लो, अब भुगतो,’’ सास ने निसंदेह उसे उकसाने के लिए नहीं कहा था पर रश्मि ने तड़ाक से एक चांटा बेटे के कोमल गाल पर जड़ दिया.

स्वरूप जोर से रो पड़ा, ‘‘नहीं बदलूंगा कपड़े. जाओ, कभी नहीं बदलूंगा,’’ कह कर दूर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘हांहां, कपड़े क्यों बदलोगे, सारा दिन आवारा बच्चों के साथ मटरगश्ती के सिवा क्या करोगे? देख रश्मि, असली बात तो मैं भूल गई, जा कर देख बौल मार कर ड्रेसिंग टेबल का शीशा तोड़ डाला है.’’

रश्मि को अब अचानक सास के ऊपर क्रोध आने लगा. थकीमांदी लौटी हूं और घर में घुसते ही राग अलापना शुरू कर दिया. गुस्से में उस ने स्वरूप के गाल पर 2 चांटे और जड़ दिए.

रश्मि क्रोध से और भड़की. पुत्र को खींच कर खड़ा किया और तड़ातड़ पीटना शुरू कर दिया.

‘‘सारी उम्र मुझे तंग करने के लिए ही पैदा हुआ था? बाकी 2 तो मर गए, तू भी मर क्यों न गया?’’

‘‘क्या पागल हो गई है रश्मि. बच्चे ने शरारत की, 2 थप्पड़ लगा दिए बस. अब गाली क्यों दे रही है? क्या पीटपीट कर इसे मार डालेगी?’’

क्रोध, ग्लानि और अवसाद ने रश्मि को तोड़ कर रख दिया था. कमरे में आ कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. यह क्या किया उस ने. जान से भी प्रिय एकमात्र पुत्र के लिए ऐसी अशुभ बातें उस के मुंह से कैसे निकलीं?

‘‘जोश को समय पर लगाम दिया कर. जो मुंह में आता है वही बकने लगती है,’’ इकलौता पोता रश्मि की सास को भी कम प्रिय न था, ‘‘अरे, मैं सारा दिन सहती हूं इस की शरारतें और तू ने सुन कर ही पीटना शुरू कर दिया,’’ रश्मि की सास देर तक उसे कोसती रही. रश्मि के आंसू थम ही नहीं रहे थे. रहरह कर किसी अज्ञात आशंका से हृदय डूबता जा रहा था.

तभी एक कोमल स्पर्श पा कर रश्मि ने आंखें खोलीं. जाने स्वरूप कब आंगन से उठ आया था और यत्न से उस के आंसू पोंछ रहा था, ‘‘मत रोओ, मां. कोई मां की बद्दुआ लगती थोड़ी है.’’

रश्मि ने खींच कर पुत्र को हृदय से लगा लिया. कौन सिखाता है इसे इस तरह बोलना. समय से पहले ही संवेदनशील हो गया. फिर अभीअभी जो नासमझी कर रहा था वह क्या था?

जो हो, नासमझ, समझदार या परिपक्व, रश्मि के हृदय का टुकड़ा हर स्थिति में अतुलनीय है. पुत्र को बांहों में भींच कर रश्मि सुख का अनुभव कर रही थी.

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