Drama Story: सिरफिरी

Drama Story: निहारिका मानसिक द्वंद्व से जूझती हुई अपने कमरे में निश्चेत सी पड़ी थी. अपना मोबाइल भी औफ कर रखा था. वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में डाक्टर विवेक का सामना नहीं करना चाहती थी. हालांकि वह यह भी बहुत अच्छी तरह जानती थी कि एक ही यूनिट में रहते हुए यह मुमकिन नहीं है, मगर वह ऐसी किसी भी स्थिति से बचना चाह रही थी, जिस में डाक्टर विवेक से उस का एकांत में सामना हो, क्योेंकि उस के किसी भी सवाल का जवाब उस के पास नहीं था.

तभी होस्टल के चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया, ‘‘मैडम, डाक्टर विवेक विजिटर रूम में आप का वेट कर रहे हैं.’’

‘‘उन से कहिए कि मैं रूम में नहीं हूं,’’ निहारिका ने आमनासामना होने की सिचुएशन को टालने की कोशिश की.

‘‘जी, मैडम,’’ कह कर चौकीदार चला गया.

निहारिका का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए, चीखेचिल्लाए, सब कुछ तोड़ दे… किस चक्रव्यूह में फंस गई वह जिस से निकलते ही नहीं बन रहा. एक वह अभिमन्यु था जो अपनों से घिरा था… वह भी तो घिरी है अपनेआप से… शायद उस की नियति भी अभिमन्यु जैसी ही होने वाली है… निहारिका कटे वृक्ष सी बिस्तर पर गिर गई.

2 साल पहले कितनी सुखी जिंदगी थी उस की. प्यार करने वाला पति देव, लाड़ करने वाली सासूमां और अपनी भोली मुसकान से दिन भर की थकान उतार देने वाली 4 साल की बिटिया पलक…

देव जोधपुर के आईआईटी इंस्टिट्यूट में प्रोफैसर था और वह खुद भी वहीं एक हौस्पिटल में डाक्टर थी. निहारिका अपने पेशे में और अधिक महारथ हासिल करने के लिए ऐनेस्थीसिया में पीजी करना चाहती थी. 2 साल के अथक प्रयासों के बाद आखिर उस का पोस्ट ग्रैजुएशन करने के लिए सलैक्शन हो ही गया. उसे बीकानेर के सरदार पटेल मैडिकल कालेज में सीट आवंटित हुई.

परिवार खासतौर पर पलक से दूर होने की कल्पना रहरह कर निहारिका की पलकों के कोर नम कर रही थी. मगर सासूमां पर उसे पूरा भरोसा था कि वे पलक की देखभाल उस से भी बेहतर करेंगी. फिर देव ने भी उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसे आश्वस्त किया था. मगर वही उन के भरोसे पर खरी नहीं उतर पाई… वही न जाने किस फिसलन भरी ढलान पर उतर गई थी. एक बार फिसली तो फिर फिसलती चली गई.

हालांकि मैडिकल की पढ़ाई के दौरान भी वह होस्टल में ही रही थी और उस पीरियड को खूब ऐंजौय भी किया था उस ने, मगर इस बार बात कुछ और थी. अकसर शाम को पलक और देव को याद कर के उदास हो जाती थी.

उसे मैडिकल कालेज से संबद्ध पीबीएम हौस्पिटल में रैजिडैंट डाक्टर की हैसियत से अपनी सेवाएं देनी पड़ती थीं. जब उस की ड्यूटी दिन या फिर शाम की होती थी तब तो इतने मरीज आते कि उसे सिर उठाने की भी फुरसत नहीं मिलती थी. मगर रात की ड्यूटी में जब सारे मरीज और उन के रिश्तेदार गहरी नींद में होते तब उस की आंखों से नींद कोसों दूर होती. वह देर तक देव से बात करती, मगर फिर भी उस का अकेलापन दूर नहीं होता था. उसे यों रात भर जागते देख साथी डाक्टर उसे उल्लू कह कर चिढ़ाया करते थे. वे उसे वार्ड की जिम्मेदारी सौंप रैस्ट भी कर लिया करते थे.

बीचबीच में निहारिका जोधपुर का चक्कर भी लगा लेती थी. 1-2 बार देव भी आया था पलक को ले कर बीकानेर. मगर दूरियां तो आखिर दूरियां ही होती हैं… इन्हें मोबाइल और चैटिंग से नहीं पाटा जा सकता.

इसी तरह देखते ही देखते 1 साल गुजर गया. हौस्पिटल में नए पीजी डाक्टर्स आ गए. उन्हीं में से एक था विवेक, जो उसी की फैकल्टी में पीजी करने एक छोटे कसबे से आया था. दिखने में बहुत ही सीधेसादे और मितभाषी विवेक का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था. चूंकि निहारिका उस की सीनियर थी, इस नाते वह उस की बहुत इज्जत करता था. उस की मासूमियत निहारिका के दिल में उतरने लगी. शुरुआती दिनों में विवेक बहुत शरमीला था. मगर धीरेधीरे निहारिका से खुलने लगा. घरपरिवार और कालेज के पुराने किस्से सुना कर उसे खूब हंसाता, उस का मन बहलाने की कोशिश करता. जब भी दोनों नाइट ड्यूटी में साथ होते, वह उस के लिए कौफी बना कर लाता. विवेक निहारिका से उम्र में छोटा था, मगर उस के साथ होते ही निहारिका खुद एक नटखट बच्ची बन जाती थी.

विवेक की आंखें उस के व्यक्तित्व का सबसे प्रभावशाली हिस्सा थीं. न जाने क्या था उन गहराइयों में कि निहारिका उन में डूबती चली गई. एक चुंबक था जैसे उन के भीतर… निहारिका जितना अवौइड करने की कोशिश करती उतनी ही खिंचती चली जाती उस की तरफ… जैसे धरती चाहे या न चाहे उसे सूर्य की परिक्रमा करनी पड़ती है. कुछ ऐसे ही गुरुत्त्वाकर्षण से बंधती जा रही थी निहारिका भी. विवेक उस के भीतर पसरे खालीपन को भरने लगा था. जब वह उस के साथ होती तो देव को फोन करना भी भूल जाती थी.

एक दिन नाइट ड्यूटी के बाद जब निहारिका होस्टल लौट रही थी, तो विवेक पीछे से अपनी बाइक ले कर आया. निहारिका को लिफ्ट देने की पेशकश की तो वह सम्मोहित सी पीछे बैठ गई. विवेक उसे चाय पिलाने अपने कमरे पर ले गया.

वह रसोई में जाने लगा तो निहारिका ने कहा, ‘‘तुम बैठो, मैं चाय बनाती हूं.’’

विवेक भी उस की मदद करने के लिए पीछेपीछे आ गया. छोटी सी किचन में विवेक का इतना पास होना निहारिका के शरीर में कंपन पैदा कर रहा था.

हौस्पिटल में तो कितने ही ऐसे मौके आते हैं जब हम बहुत पास होते हैं. यहां तक कि एकदूसरे को छू भी जाते हैं, मगर तब ऐसी फीलिंग क्यों नहीं आती, निहारिका सोच रही थी.

चाय के लिए कप लेने को मुड़ी निहारिका विवेक से टकरा गई. विवेक ने बांहों में थाम लिया तो निहारिका से कुछ भी कहते नहीं बना. बस सौरी कह कर रह गई.

अब अकसर ही जब दोनों नाइट ड्यूटी कर के जाते तो विवेक उसे कमरे पर ले जाता. दुनियाजहान से बेखबर दोनों देर तक साथ रहते, खूब मस्ती करते. निहारिका उस की बचकानी हरकतों पर पेट पकड़पकड़ कर हंसती. उस की मासूम अदाओं पर रीझ कर निहारिका ने उसे नाम दिया सिरफिरा. अब वह उसे इसी नाम से बुलाती थी. उस का दिल कहता था जैसे उसे बरसों से ऐसे ही साथी की तलाश थी. हालांकि देव भी उसे कम प्यार नहीं करता था. मगर न जाने क्यों विवेक को जी भर कर

प्यार करने की ललक उस के भीतर सिर उठाने लगी थी.

2 दिन बाद विवेक का जन्मदिन आने वाला था. निहारिका ने मन ही मन प्लान तैयार कर लिया. संयोग से विवेक के जन्मदिन वाले दिन दोनों ड्यूटी के बाद विवेक के कमरे पर चले गए. निहारिका ने अपना स्टेथ टेबल पर रखा और ऐप्रन कुरसी के पीछे टांग कर आराम से बैठ गई. विवेक किचन में चाय बनाने चला गया.

विवेक ने चाय के कप टेबल पर रख दिए.

निहारिका बोली, ‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है न?’’

‘‘हां. तो?’’

‘‘तो क्या गिफ्ट नहीं मांगोगे?’’

‘‘जब बिना मांगे ही इतना कुछ मिल गया है, तो और क्या मांगूं?’’

‘‘मगर हम तो फिर भी देंगे,’’ निहारिका ने इतराते हुए कहा.

‘‘तो लाइए.’’

‘‘ऐसे नहीं… आंखें बंद करो.’’

विवेक ने अपनी आंखें बंद कर लीं. निहारिका धीरे से उस के पास आई और उस के होंठों पर अपने होंठ रख कर एक गहरा चुंबन जड़ दिया.

विवेक ने तो इस सरप्राइज की कल्पना भी नहीं की थी. यंत्रचालित सी उस की बांहों ने निहारिका को घेर लिया. वह भी सब कुछ भूल कर उस में खोती चली गई. जब होश आया तो चाय ठंडी हो चुकी थी.

निहारिका ने अपने कपड़े ठीक करते हुए कहा, ‘‘तुम बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

मगर विवेक नहीं माना और किचन में चला गया.

निहारिका ने मजाक में कहा, ‘‘तुम चाय बहुत अच्छी बनाते हो… एक काम करो डाक्टरी छोड़ कर चाय की दुकान खोल लो. मैं तो तुम्हारी परमानैंट ग्राहक बन जाऊंगी.’’

‘‘मंजूर है, मगर वादा करो कि तुम रोज चाय पीने आओगी.’’

‘‘वादा,’’ निहारिका ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘जोधपुर तो नहीं चली जाओगी?’’ विवेक ने उस की आंखों में ?ांकते हुए पूछा.

निहारिका सकपका गई. कुछ जवाब देते नहीं बना तो चुपचाप चाय का कप ले कर कुरसी पर बैठ गई.

निहारिका तो शादीशुदा थी. उस के लिए अंतरंग संबंध नई बात नहीं थी. मगर अविवाहित विवेक ने जब से यह वर्जित फल चखा था, उस की हालत दीवानों सी हो गई. वह हर वक्त निहारिका के आगेपीछे घूमने लगा. क्लास हो, वार्ड हो या फिर औपरेशन थिएटर, हर जगह वह उसे छूने के अवसर तलाशता रहता. कभी ऐनेस्थीसिया देते वक्त हाथ पकड़ लेता तो कभी मरीज देखते समय टेबल के नीचे पांव पर पांव रख कर सहलाने लगता. रोज अकेले में मिलने की जिद करता. उस का दीवानापन निहारिका के लिए परेशानी का कारण बनने लगा.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते… होस्टल, मैडिकल कालेज,

हौस्पिटल हर जगह दोनों के अफेयर की चर्चा होने लगी. लोग दबी जबान निहारिका को ही दोषी ठहराते. पिछली बार जब देव आया था तो विवेक को उस का आना फूटी आंख नहीं सुहाया था. उस के जाने के बाद भी निहारिका से 2 दिन रूठारूठा रहा था.

‘‘देव मेरी सचाई है विवेक इस बात को तुम जितनी जल्दी सम?ा लो उतना ही हम दोनों के लिए बेहतर है,’’ निहारिका ने उसे सम?ाते हुए कहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ किसी और की कल्पना भी नहीं कर सकता अब… वे 2 रातें जो तुम ने उस के साथ बिताई हैं, मु?ा पर कैसी गुजरी हैं तुम क्या जानो,’’ विवेक ने जैसे न सम?ाने का प्रण कर रखा था.

‘‘तुम देव से तलाक ले लो,’’ विवेक ने निहारिका को कस कर बांहों में जकड़ते हुए कहा.

‘‘यह संभव नहीं है.’’

‘‘मेरे साथ इस रास्ते पर चलने से पहले क्यों नहीं सोचा कि इस की मंजिल क्या होगी?’’ विवेक आज आर या पार की बहस के मूड में था.

‘‘मु?ा से गलती हो गई. शायद देव से दूरियों ने मेरे मन को डिगा दिया… मु?ो माफ कर दो… मैं तुम्हारी गुनहगार हूं, तुम जो चाहे सजा दो. अब इस नाजायज रिश्ते की आंच मेरे घर को जलाने लगी है… मैं इस रास्ते पर आगे नहीं जा सकती,’’ कह निहारिका ने अपनी बात खत्म कर दी. मगर वह जानती थी कि दिलों के संबंध इतनी आसानी से नहीं टूटते.

निहारिका ने अपने एचओडी से रिक्वैस्ट कर के अपनी यूनिट चेंज करवा ली. अब उस की ड्यूटी विवेक के साथ नहीं लगेगी. विवेक ने शायद वह ड्यूटी चार्ट देख लिया है. इसीलिए वह उस से मिलने की जिद कर रहा है.

ड्यूटी पर तो जाना ही पड़ेगा, सोचते हुए निहारिका ने उठ कर मुंह धोया. अपनेआप को संयत करते हुए होस्टल से बाहर निकली. सामने पेड़ के नीचे खड़ा विवेक उसी की राह देख रहा था. निहारिका को उस पर दया उमड़ आई. वह अपनेआप को कोसने लगी कि क्यों उस ने

विवेक की शांत जिंदगी में प्यार फेंक कर हलचल मचा दी. वह अनजान बनने का नाटक करती हुई आगे बढ़ी तो विवेक ने सामने आ कर रास्ता रोक लिया.

‘‘?ाठ क्यों कहा कि तुम रूम में नहीं हो?’’ विवेक ने पूछा.

‘‘मैं ने किस से कहा?’’ निहारिका ने भी प्रतिप्रश्न किया.

‘‘वाचमैन ने तो कुछ देर पहले यही कहा था.’’

‘‘शायद मैं उस वक्त बाथरूम में थी,’’ निहारिका ने टालने की गरज से कहा.

‘‘क्या मु?ा से इतनी नफरत हो गई कि मेरे साथ ड्यूटी भी नहीं कर सकतीं?’’ विवेक ने शिकायत की.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. यह तो मैनेजमैंट का डिसीजन है.’’

‘‘मैं इतना नादान भी नहीं हूं, सब सम?ाता हूं.’’

‘‘तुम सम?ा ही तो नहीं रहे हो विवेक… यह हम दोनों के लिए बहुत जरूरी है. हमें इस मोड़ से लौटना ही होगा.’’

‘‘तुम बेशक लौट जाओ, मगर मैं यहीं इसी मोड़ पर खड़ा तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ विवेक ने आंखें नम करते हुए कहा.

विवेक के लिए तो वह पहला प्यार ही थी और पहले प्यार को खोना सब कुछ लुट जाने जैसा ही होता है.

मगर निहारिका ने अपने मन को कड़ा किया और विवेक से दूरियां बना लीं. वह उन सभी हालात से बचने की कोशिश करती जहां विवेक से सामना होने का अंदेशा होता.

निहारिका के कोर्स का अंतिम वर्ष था. वह सब कुछ भूल कर अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गई. उस ने अपनी स्टडी टेबल पर अपनी फैमिली की तसवीर रख ली ताकि अगर उस का मन बगावत पर उतर आए तो वह कंट्रोल कर सके. रोज रात को पलक के सोने से पहले उस से 10-15 मिनट बात जरूर करती और अपने परिवार के लगाव को भीतर तक महसूस करती. देव से भी पहले की तरह ही नियमित बात करती. कुछ दिन तो उसे ये सब करना अपनेआप को छलने जैसा ही लगा, मगर धीरेधीरे लगने लगा कि स्नेह की जो डोर कमजोर पड़ रही थी वह फिर से मजबूत हो रही है. उसे अब पहले की तरह ही घर की याद सताने लगी थी.

आज आखिरी परीक्षा थी. उसे रात की ट्रेन से जोधपुर जाना था. उस ने अपना जरूरी सामान पैक किया और विवेक के कमरे की तरफ चल दी.

निहारिका को यों अचानक आया देख विवेक आश्चर्य से भर गया.

निहारिका ने कहा, ‘‘मैं वापस जा रही हूं… मैं ने जो कुछ भी किया वह माफी के लायक तो नहीं है, मगर फिर भी मेरे लिए अपने मन में मैल मत रखना. प्यार सच्चा या ?ाठा नहीं होता, वह बस प्यार होता है. तुम्हारा प्यार भी मेरे दिल के एक कोने में सदा सुरक्षित रहेगा.’’

‘‘तुम ने मु?ो प्यार के एहसास से परिचित करवाया, उस के लिए शुक्रिया. अच्छे दोस्तों की तरह संपर्क बनाए रखना,’’ विवेक अब तक काफी सामान्य हो चुका था.

निहारिका ने जाने से पहले विवेक को प्यार से गले लगाया और फिर उस रास्ते की तरफ बढ़ गई जहां उस का परिवार उस के इंतजार में आंखें बिछाए खड़ा था.

Drama Story

Hindi Love Story: औरों से जुदा

Hindi Love Story: अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था.

Hindi Love Story

Relationship Advice: लाइफ पार्टनर को बनाएं बैस्ट फ्रैंड

Relationship Advice: आज के समय में शादी सिर्फ एक पतिपत्नी का रिश्ता नहीं है बल्कि शादी एक उम्रभर का साथ है जिसे 2 इंसान मिल कर निभाते हैं. जहां एक तरफ पहले के लोगों में पतिपत्नी का रिश्ता काफी फौर्मल रहता था और काफी कुछ ऐसा था जिस के बारे में पतिपत्नी भी आपस में बात करने में शरमाते थे वहीं आज के समय में पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त बन कर रहते हैं. कहा जाता है कि सब से मजबूत अगर कोई रिश्ता होता है तो वह रिश्ता होता है दोस्ती का.

आज भी कई ऐसे लोग हैं जो अपने पार्टनर से खुल कर बात नहीं करते और एकदूसरे के साथ रहते हुए उन्हें यह तक नहीं पता होता कि उन के पार्टनर को क्या पसंद है और क्या नहीं. ऐसे में यह रिश्ता सिर्फ एक ऐसा रिश्ता बन कर रह जाता है जिस में धीरेधीरे प्यार खत्म होने लगता है और सिर्फ जिम्मेदारी रह जाती है.

आज हम आप को बताएंगे कुछ ऐसे टिप्स जिन्हें फौलो कर आप अपने पार्टनर के साथ दोस्ती का रिश्ता कायम कर सकते हैं और अपने आने वाले फ्यूचर को और भी सुनहरा बना सकते हैं.

जानें एकदूसरे की पसंदनापसंद

सब से पहले तो पार्टनर्स को एकदूसरे की पसंदनापसंद के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए और हो सके तो ऐसा कुछ बिलकुल न करें जो आप के पार्टनर को नापसंद हो. ऐसा करने से आप का पार्टनर आप से और भी ज्यादा प्यार करने लगेगा.

खुल कर करें सारी बात      

हमें अपने पार्टनर से कभी कुछ नहीं छिपाना चाहिए. दोस्ती का तो पहला रूल ही यह होता है कि दोस्तों के बीच कुछ नहीं छिपता. ठीक इसी तरह हमें अपने पार्टनर से सारी बातें खुल कर करनी चाहिए चाहे वह किसी भी तरह की बात हो. आप को अपने पार्टनर की बात भी सुननी चाहिए बिना उसे जज करे जिस से कि आपस में अपनापन बना रहे.

क्वालिटी टाइम बिताना है जरूरी

अपने पार्टनर के साथ जितना हो सके उतना समय बिताएं. बीचबीच में जब मौका मिले अपने पार्टनर के साथ डेट पर जाएं या किसी ट्रिप पर जाएं जिस से कि दोनों एकदूसरे के करीब आ सकें और रिश्ते में हमेशा ताजगी बनी रहे.

रोमांस को करें इग्नोर

कई बार ऐसा देखा गया है कि बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ हम अपने पार्टनर के साथ रोमांस करना बिलकुल इग्नोर करने लगते हैं पर ऐसा नहीं होना चाहिए. पार्टनर्स को एकदूसरे में हमेशा इंटरैस्ट लेना चाहिए और रोमांस को कभी इग्नोर नहीं करना चाहिए. रोमांस करने से आप अपने पार्टनर के करीब आते हैं.

छेड़छाड़ और हंसीमजाक है जरूरी

पतिपत्नी के रिश्ते में जितना हंसीमजाक होगा उतना घर का माहौल खुशनुमा रहेगा. पार्टनर्स को एकदूसरे के साथ हंसीमजाक करते रहना चाहिए और बीचबीच में एकदूसरे को छेड़ते भी रहना चाहिए ताकि रिश्ते में रोमांच बना रहे.

Relationship Advice

Gender Discrimination: जैंडर के नाम पर भेदभाव

Gender Discrimination: हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में कोर्ट परिसर में एक महिला अधिवक्ता पर तेजाब फेंकने का मामला सामने आया. इस घटना में महिला बुरी तरह घायल हो गई. घायल महिला अधिवक्ता शशिबाला को तुरंत शहर के सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया. घटना उस वक्त हुई जब शशिबाला रोजाना की तरह कोर्ट जा रही थी. तभी अचानक पीछे से 2 युवक अपने कुछ साथियों के साथ आए और शशिबाला पर तेजाब फेंक दिया. तेजाब फेंकने के बाद सभी आरोपी मौके से फरार हो गए. महिला वकील पर यह हमला इसलिए किया गया क्योंकि वह पहले से ही आरोपियों के खिलाफ 2 मुकदमे लड़ रही थी जिन में दहेज उत्पीड़न और छेड़छाड़ का मामला शामिल है.

‘नेशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो’ के अनुसार, 2021 में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 450 से अधिक मामले दर्ज किए गए. कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल का नितांत अभाव है. महिलाओं को अकसर औफिस या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न या हरासमैंट का सामना करना पड़ता है. अवांछित स्पर्श, अश्लील टिप्पणियां, सैक्सुअल एडवांटेज, अश्लील चुटकुले सुनाना, शारीरिक उत्पीड़न जैसेकि धक्का देना, थप्पड़ मारना या तेजाब फेंकना जैसी कितनी ही स्थितियों का सामना करना पड़ता है. वे कुछ कहें तो बात आगे बढ़ जाती है. चुप रहें तो काम करना कठिन हो जाता है.

जरा सोचिए

महिलाओं के साथ इस तरह की घटनाएं क्यों होती हैं? लड़कियों या महिलाओं के साथ इस तरह की वारदात को अंजाम देने वाले लोग कौन होते हैं? क्या ये क्रिमिनल हैं जिन्हें शुरू से क्राइम करने की आदत है? क्या ये सब कर के इन्हें कोई सैक्स सुख मिलता है? क्या ये लंबी प्लानिंग के बाद ऐसा करते हैं? नहीं ये ऐसा करने के लिए कोई प्लानिंग नहीं करते. किसी स्त्री को देख कर वासनावश या किसी स्त्री के किसी काम से उत्पन्न गुस्सा या स्त्री को उस की औकात दिखाने की तमन्ना या फिर अपनी मर्दानगी को दिखाने का बहाना, इन घटनाओं के पीछे बस ये ही कुछ कारण होते हैं.

ऐसा करने वाले लोग लोग क्रिमिनल नहीं होते. पढ़ेलिखे नौर्मल घरों से आते हैं. धर्म और पूजापाठ में गहरा विश्वास भी करते हैं. इस काम में उन्हें कोई सैक्स सुख भी नहीं मिलता. ऐसे काम अचानक में हड़बड़ी में और छिप कर किए जाते हैं. कई लोग भीड़ में भी करते हैं ताकि सब को दिखा सकें कि स्त्री उन की मरजी के विरुद्ध कुछ करे या आगे बढ़े तो उस का अंजाम क्या हो सकता है. वस्तुत: वे स्त्री को उस की औकात दिखाते हैं.

मगर यह प्रवृत्ति आती क्यों है? क्या यह नैचुरल है? दरअसल यह पावर गेम है. यह सिखाया गया है. परिवार, धर्म, शिक्षा व्यवस्था, प्रशासन और समाज बचपन से जैंडर के प्रति एक खास तरह का नजरिया देते हैं. एक नेरेटिव बनाई जाती है. लड़के और लड़कियों के वजूद का अंतर स्थापित किया जाता है.

डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के बच्चों के दिमाग में 10 साल से भी कम उम्र में जैंडर स्टीरियोटाइप्स भर दिए जाते हैं. मतलब नन्ही सी उम्र में ही हम लड़कों को लड़का होना और लड़कियों को लड़कियां होना सिखा देते हैं. इस स्टडी का नाम ग्लोबल अर्ली एडोलिसेंट स्टडी था और उस में कहा गया कि हम अरबों रुपए टीनऐजर्स को लड़कालड़की की बराबरी का पाठ पढ़ाने में खर्च कर देते हैं जबकि यह भेद तो बच्चे 10 साल की उम्र से पहले से करना शुरू कर देते हैं.

भेदभाव की शुरुआत

इन की शुरुआत कौन करता है? बेशक खुद हमारा परिवार और हमारे पेरैंट्स. जब छोटे लड़के नेलपौलिश और बिंदी लगाते हैं तो परिवार के सदस्य उन का मजाक उड़ाते हैं और डांटतेडपटते हैं. लड़कियां बंदूक या कार चलाती हैं तो पेरैंट्स खुद उन के लिए गुडि़यां ले आते हैं. लड़कियों के पिंक कपड़े चुनते हैं, लड़कों के लिए नहीं. उन्हें ‘मैस्कुलिन’ रंग दिए जाते हैं. पिंक रंग लड़कियों से जोड़ते हैं तभी यौन आजादी और नो मतलब नो- यह सिखाने वाली फिल्म का नाम भी पिंक ही रख देते हैं. यह स्टीरियोटाइप हमारे खुद के बनाए हुए हैं.

जब किसी लड़के का बर्थडे हो तो परिवार के लोग कहेंगे कि लड़का है तो कार, रेसिंग कार, रोबोट, गन, वीडियो गेम गिफ्ट करेंगे. लड़की को बर्थडे गिफ्ट देना हो तो किचन सैट, गुडि़या, फ्रौक आदि दी जाती है. मौल में डौल्स पिंक कलर एरिया में मिलती हैं जबकि कार, बैट ब्लू एरिया में. लैंगिक भेदभाव हमारे जेहन में घुलामिला हुआ है. अब तो लड़कियों के टूथब्रश भी अलग दिखते हैं. टूथब्रश पर क्विन का हैड होगा या फिर पिंक कलर का होगा. दरअसल, बच्चे इस तरह के भेदभाव की सोच के साथ पैदा नहीं होते हैं. हम उन्हें जैंडर का भेदभाव बताते हैं.

आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि नन्ही लड़कियों के औनलाइन गेम्स के टिपिकल विजुअल्स और बैंकग्राउंड्स पिंक रंग से भरे पड़े हैं. लड़कियों के गेम्स भी ज्यादातर मेकअप, ड्रैसिंग और कुकिंग से जुड़े होते हैं. अगर आप 5 टौप औनलाइन गेम्स की साइट्स देखेंगे तो पाएंगे कि सभी के विषय औरतों की सदियों से चली आ रही भूमिकाओं पर ही आधारित हैं.

यही बात हमारी टैक्स्ट बुक्स भी सिखाती हैं. ऐक्शन एड की एक फैं्रच इंटर्न ने एनसीईआरटी की किताबों पर एक अध्ययन किया तो पाया कि हम कक्षा 2 से ही बच्चों को लड़केलड़की के कथित खांचों में बंद करने लगते हैं. अध्ययन में कक्षा 2 की ही किताबों में अधिकतर पुरुष हैड औफद फैमिली थे जबकि औरतें घरेलू काम करने वाली, बच्चों की देखभाल करने वाली. जौब करने वाली औरतों को भी नर्स, डाक्टर या टीचर के ही रोल में दिखाया गया है.

हम अगर अपने घरपरिवारों में गौर करें तो यही दिखेगा कि हमारे यहां बेटे को रोटी बनाने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया जाता क्योंकि परिवार में रोटी बनाने, कपड़े धोने, साफसफाई करने का काम मम्मी यानी स्त्री करती है, पापा नहीं. पापा यानी पुरुष तो घर में मिक्सी और टीवी ठीक करते हैं. अपनी कार, मोटरसाइकिल धोते हैं. टैक्स रिटर्न जमा करते हैं. इनवैस्टमैंट प्लान करते हैं.

व्यवस्था है विचारधारा नहीं

कई ऐसी महिलाएं हैं जो नौकरीपेशा हैं लेकिन जब पैसों के लेनदेन, बैंक या शेयर बाजार में निवेश की बात आती है तो महिला नहीं उस का पति यह काम करता है. कई नौकरीपेशा महिलाएं यह भी नहीं जानतीं कि उन्हें पैसे किस तरह विड्रौल करने हैं. इस का कारण यह नहीं है कि महिलाएं कर नहीं सकतीं बल्कि इसलिए क्योंकि उन का ब्रेनवाश किया गया है. उन के दिमाग में ठूंस दिया गया है कि वे डौक्यूमैंट्स समझने, कैलकुलेशन करने और मैथ्स में कमजोर हैं. बैंक की बातें उन्हें समझ में नहीं आएंगी. उन्हें कहा जाता है कि तुम रहने दो. बड़ी होती लड़कियों से यह नहीं कहा जाता है कि खुद से अपना बैंक खाता खोलो, डौक्यूमैंट्स देखो, निवेश के बारे में जानो.

हमारा समाज पितृसत्तात्मक है. पितृसत्ता एक व्यवस्था है एक विचारधारा नहीं. इसे तोड़ने के बारे में हम खुद नहीं सोचते. इसे समाज, विज्ञान, इतिहास, साहित्य, संस्कृति और सब से खास विज्ञान के जरीए पुष्ट किया गया है. लड़कियों और लड़कों के दिमाग में ऐसा कोई बायोलौजिकल फर्क नहीं होता जो समाज में उन की भूमिकाओं को तय करता है. दिमाग से लड़की भी नैचुरल हंटर हो सकती है और लड़का नैचुरल होममेकर.

लड़कों और लड़कियों में जैंडर स्टीरियोटाइप भर कर हम उन का नुकसान करते हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार इस से हम लड़कियों को कमजोर बनाते हैं. हम उन्हें सिखाते हैं कि शरीर तुम्हारा मुख्य एसेट है. उसे बचाना जरूरी है. इस तरह लड़कियां पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर होती हैं. उन के शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार होने की स्थितियां बनती हैं. उन के बाल विवाह, जल्दी मां बनने, एचआईवी और दूसरे यौन संक्रमणों का शिकार होने की आशंका होती है. हम लड़कों को भावुक नहीं बनाते. लड़कियों की इज्जत करना नहीं सिखाते. इस वजह से वे अकसर हिंसक बनते हैं और नशे का शिकार होते हैं.

झूठी मर्दानगी का मुखौटा पहनने के बावजूद कभीकभी उन का दिल इस कदर टूट कर बिखरता है या फिर निराशा हाथ लगती है कि वे भावनाओं को संभाल नहीं पाते. लड़कियों की तरह उन्हें रोना नहीं सिखाया जाता सो यह बेचारगी उन के अंदर घुटन भरती है और कई बार वे आत्महत्या करने को विवश होते हैं. कुल मिला कर समाज भी लड़कियों और लड़कों के बीच बचपन से भेदभाव कर के उन का ही नुकसान करता है.

पाबंदियों के बीच कुम्हलाता जीवन

लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि स्कूल से सीधे घर आना है. कभीकभार देर हो जाए तो बातें सुनाई जाती हैं, ताने दिए जाते हैं और कुछ लड़कियों की पिटाई भी होती थी. लेट होने पर पचासों सवाल पूछे जाते हैं कि कहां थी? किस के साथ थी? क्यों आने में देर हो गई? उम्र के साथसाथ जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो इस तरह के सवालों के साथसाथ इन परंपराओं की बेडि़यों का दायरा भी बड़ा होता जाता है.

जैसे अगर लड़कियां बाजार जाएंगी तो भाई या पिता को ले कर ही जाएंगी वरना नहीं जाएंगी. अगर कभी अकेले या अपने दोस्तों के साथ गई भी हों तो शाम होने से पहले घर में उन की उपस्थिति दर्ज हो जानी चाहिए नहीं तो घर वाले कुछ बोलें या न बोलें पड़ोस वाले बेशर्म, बदचलन जैसे अनगिनत टैग से नवाज देंगे. लड़कियों पर लगी समय की पाबंदी के पीछे सोच थी कि कहीं लड़की भाग गई या उस के साथ ऊंचनीच हो गई तो परिवार की क्या इज्जत बचेगी? पर सवाल उठता है कि आखिर इन परंपराओं और सवालों का बो?ा सिर्फ लड़कियों पर क्यों डाला गया?

आज लड़कियां खेलकूद में भाग तो ले रही हैं लेकिन लड़कों की तुलना में उन की भागीदारी आउटडोर गेम्स में कम ही दिखती है. वे पढ़ाई तो करती हैं मगर नौकरी से ज्यादा इस सोच के साथ कि पढ़ने से अच्छे घर में शादी होगी. अगर हम इस के पीछे की मानसिकता को सम?ाने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि घरेलू दबाव, समाज द्वारा थोपी गई परंपरा, सुंदर दिखने की होड़, पितृसत्तात्मक सोच आदि ही इस के लिए जिम्मेदार हैं. यह सोच धीरेधीरे लड़कियों के दिमाग में घर कर जाती है जिस के परिणामस्वरूप वे इसी तरह जीने की आदी हो जाती हैं.

स्कूलकालेज की पाबंदियां

लड़कियों के होस्टल में 10 बजे के बाद ऐंट्री पर बैन लगा दिया जाता है. सुरक्षा के नाम पर रात 10 बजे के बाद लड़कियों को होस्टल में कैद कर के उन की सुरक्षा का ड्रामा क्यों किया जाता है? क्या कालेज, यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर जैंडर के आधार पर समय की पाबंदी लड़कियों को सशक्त कर पाएगी? देखा जाए तो लड़कियों के साथ हिंसा या किसी तरह की घटना इसलिए नहीं होती कि वे देर रात तक बाहर होती हैं बल्कि इस हिंसा के पीछे पितृसत्तात्मक सोच है. लड़कियों को ही कैद करना किस प्रकार का सामाजिक न्याय है? यह नियम लड़कों पर लागू नहीं होता.

नौकरी और शादी के बाद लागू होती पाबंदियां

शहरों में लड़कियों की उम्र 20-25 होते ही समय पर शादी कर लेने की नसीहत दी जाती है. कुछ लड़कियां शादी की नसीहत को मान लेती हैं, कुछ के साथ जोरजबरदस्ती की जाती है और कुछ इस नसीहत का विरोध कर के अपने पैरों पर खड़ा होने की जिद पकड़ लेती हैं. इस जिद को पूरा करने के लिए एक नए मुकाम की तलाश में महानगरों की ओर जाती हैं. इन महानगरों में भी उन की मुसीबतें कम नहीं होती हैं. एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. फिर वे नौकरी कर के पैसा कमाना शुरू करती हैं लेकिन नौकरी करते हुए आजादी के ये चंद दिन ही होते हैं. 30-32 की उम्र के होते ही इन नौकरीपेशा लड़कियों पर शादी का दबाव आ जाता है.

जौब करने वाली लड़की की जब शादी हो जाती है तो उस की जिम्मेदारियां दोगुनी रफ्तार से बढ़ने लगती हैं. औफिस से छूटते ही घर पर जल्द से जल्द पहुंचने की बेचैनी रहती है क्योंकि देरी होने पर ससुराल वालों को जवाब देना पड़ता है. इस तरह पाबंदियों के साथ महिलाएं किसी तरह अपना जीवन ढोती हैं. बच्चों की परवरिश अच्छे से करने के लिए कई दफा अच्छी खासी नौकरी भी छोड़नी पड़ती है.

सोशल मीडिया पर मौजूद पितृसत्ता

आज के डिजिटल दौर में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मजाक में महिलाओं को कमजोर दिखाया जाना और होमोफोबिक बातों का खूब चलन है. कुछ समय पहले तक यह टैलीविजन और सिनेमा तक ही सीमित था. अब ऐसे संगीत, वीडियोज, रील्स और स्टैंड अप कौमेडी आदि के जरीए इंटरनैट पर परोसे जा रहे हैं. इन से आज की युवा महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा, रेप जोक्स और धमकियों को आम बात समझने लगे हैं. पुरुषों को सशक्त और आत्मनिर्भर दिखाया जाता है और महिलाओं को कमजोर, नाजुक और कामुक बताया गया. पुरुष वर्ग ने उस के शरीर को उपभोग की वस्तु की तरह सीमित कर दिया.

धर्म की देन

धर्म ने हमेशा स्त्री को दोयम दर्जा दिया है. स्त्री को पुरुष के पीछे चलने वाली अनुगामिनी का नाम दिया गया. ऐसे रीतिरिवाज बनाए गए जिन में पुरुषों की पूजा की जाए और स्त्रियां उन की दासी बन कर रहें. किसी भी धर्म की किसी भी कहानी में स्त्री को समान दर्जा नहीं दिया गया. धर्म ने हमेशा स्त्रियों के हाथ बांधे हैं और उन्हें कमतर दिखाया है. यही वजह है कि अधिक धार्मिक इंसान स्त्री के प्रति अधिक कठोर होता है. वह उसे अपने पांव की जूती सम?ाता है.

कैसे रोका जाए जैंडर के नाम पर भेदभाव

फ्रैंच लेखक सिमोन डि बिभोर अपनी पुस्तक ‘द सैकंड सैक्स’ में बताती हैं कि कोई भी औरत पैदाइशी औरत नहीं होती, वह बनाई जाती है. औरत होना क्या है यह बचपन से ही सिखाया जाता है. इसी तरह मर्द भी पैदाइशी मर्द नहीं होते उन्हें भी बनाया जाता है.

जैंडर सोशल कंस्ट्रक्ट है नैचुरल नहीं है. हम जिस समाज में रहते हैं वह सदियों से पितृसत्ता की मजबूत दीवारों पर खड़ा रहा है. ऐसी दीवारें जो पुरुषों को विशेषाधिकार देती हैं और महिलाओं को सीमाओं में बांध देती हैं. लैंगिक भेदभाव कोई एक दिन की समस्या नहीं बल्कि हमारी रोजमर्रा की सोच, व्यवहार और परवरिश में गहराई से बसी हुई एक परंपरागत सचाई है. अकसर इसे सिर्फ महिलाओं की समस्या सम?ा जाता है लेकिन असल में यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है.

इसे रोकने के लिए जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को बदला जाए. इस के लिए इतिहास से ले कर गणित, साहित्य से ले कर विज्ञान, सभी को बदलना होगा. बच्चों को शुरुआत से ही बताना होगा कि औरतों को किस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. उन के योगदान को लगातार नकारा जाता है. लड़कियों का सशक्तीकरण ऐसे करना होगा कि कुछ बड़ा करती हुई लड़कियां हमें चुभे नहीं.

बेटों को संवेदनशील बनाने की जरूरत

घरपरिवार में बड़ेबुजुर्ग ही बोलते हैं कि तुम्हें बड़ा बनना है, ज्यादा से ज्यादा कमाना है, तुम पर परिवार की जिम्मेदारी है. तुम्हीं से हमारा खानदान आगे बढ़ेगा. वही लड़का जब अच्छे नंबर नहीं ला पाता या बेरोजगार होता है या उसे संतान नहीं होती या वह रिलेशनशिप निभाने में फेल हो जाता है तो उसे लगता है कि चह अच्छा पुरुष साबित नहीं हो पाया. यह बात वह सह नहीं पाता और कई दफा खुद को खत्म कर लेता है. उसे यह नहीं बताया जाता कि अगर कुछ हासिल नहीं हो पाया तो क्या करना चाहिए. दरअसल, पुरुषों को संवेदनशील बनाना होगा. उन्हें भी खुल कर अपनी ऐंग्जाइटी, घबराहट, खामियां या कमजोरियां बताने की आदत डलवानी होगी. उन्हें भी अपनी गलतियां स्वीकार करने की हिम्मत देनी होगी. यहां पुरुषत्व आड़े नहीं आना चाहिए. उन्हें सम?ाना होगा कि यदि वे गलत रास्ते पर हैं तो कोई लड़की या महिला भी उन्हें गाइड कर सकती है, उन्हें गलत कह सकती है या फटकार लगा सकती है.

बेटों को सिखाना होगा कि सहमति क्या है

कंसैंट यानी सहमति का पाठ बेटे को बचपन से ही पढ़ाया जाना चाहिए. ‘न’ नाम की चीज उन के कानों में घोलनी होगी. जब वे न सुनने लगेंगे तो उन्हें सम?ा में आएगा कि केवल इच्छा कर लेने से दुनिया में हर चीज नहीं मिलती. कई घरों में इकलौते लड़के की हर बात मानी जाती है. जब पेरैंट्स न कहेंगे तो उस का नजरिया बदलेगा. उसे महसूस होगा कि मेरी ही तरह दूसरों की भी भावनाएं हैं. वह औरतों के प्रति सम्मान दिखाना शुरू कर देगा. सम्मान करने की बात सिखाई जाती है, सम?ाई जाती है यह अपनेआप नहीं होता.

बेटा घर में बरतन साफ कर दे तो मां ही मना कर देती है. यह हर घर की बात है. जब कभी लड़का बरतन मांजता है तो मां ही मना कर देती है कि लड़के भला बरतन मांजते हैं? यानी कदमकदम पर मां और परिवार के लोग ही बेटे को बताते हैं कि फलां काम पुरुष और फलां काम महिला करती है. ट्रेनिंग घर से ही शुरू होनी चाहिए. ऐसा करने से ही काफी हद तक असमानता कम हो जाएगी. इस से उन में सैक्सुअल फ्रीडम भी आएगी.

लड़की क्यों नहीं बन सकती रोल मौडल

क्या हम बेटे से कभी कहते हैं कि सानिया मिर्जा की लगन और समर्पण देखो. क्या हम कभी कहते हैं कि बेटा तुम्हारी रोल मौडल यह लेडी स्पोर्ट्स पर्सन है या पौलिटिक्स, बिजनैस, मीडिया की यह महिला हस्ती है? लड़कों को स्ट्रौंग फीमेल रोल मौडल की जरूरत है. उन से न सिर्फ लड़कों को सीखने को मिलेगा बल्कि महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान भी पैदा होगा. पेरैंट्स अपने बेटे को वैसी महिलाओं के बारे में बताएं जिन्होंने जीवन में उपलब्धि हासिल की है.

समय आ गया है कि हम अपने दिलोदिमाग से, अपने परिवार और समाज से इस भेदभाव की जड़ों को साफ कर दें और स्त्रीपुरुष के लिए एकसमान माहौल देने की व्यवस्था करें. तभी लड़कियों के साथसाथ लड़के भी एक बेहतर जिंदगी जी पाएंगे.

 ऊंचे ओहदों पर औरतों की कमी

यूएन वूमन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में 113 देशों में कभी भी कोई महिला राज्य या सरकार के प्रमुख के रूप में काम नहीं कर पाई है और आज भी केवल 26 देशों का नेतृत्व कोई महिला कर रही है. 1 जनवरी, 2024 तक केवल 23त्न मंत्री पद महिलाओं के पास थे और 141 देशों में महिलाएं कैबिनेट मंत्रियों के एकतिहाई से भी कम हैं. 7 देशों में तो कैबिनेट में कोई भी महिला प्रतिनिधित्व नहीं करती है. ऐसे में महिलाओं को हर नेतृत्व पदों और सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ये अधिकार देने जरूरी हैं.

जब महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तो उन का सशक्तीकरण होगा और धीरेधीरे समाज में भेदभाव भी कम होगा. इस से एक ऐसा समाज बनने की उम्मीद है जहां हर व्यक्ति को बराबरी और सम्मान के साथ जीने का अवसर मिलेगा.

भारत में लैंगिक असमानता दुनिया के कई देशों की तुलना में ज्यादा है. विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भारत 146 देशों की संख्या में 127 वें स्थान पर है. भारत के कामकाजी क्षेत्रों और नेतृत्व पदों पर लैंगिक असमानता का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि संसद में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 14.72 फीसद है.

हालांकि स्थानीय जगहों में यह भागीदारी 44.4 फीसद है. आर्थिक असमानता का सब से अधिक सामना महिलाएं कर रही हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम वेतन वाले रोजगार मिलते हैं. देश के अरबपतियों की सूची में मात्र 9 महिलाएं शामिल हैं. अगर विकास कार्यक्रमों से जुड़े कामों की बात करें तो इस में महिलाओं की भागीदारी 72 फीसद है. समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी है कि हम महिलाओं और सभी जैंडर के लोगों की समस्याओं और चुनौतियों को जानें और समझेंगे.

Gender Discrimination

Siblings Bond: सिबलिंग- टूटे रिश्तों को ऐसे सुधारें

Siblings Bond: यह एक बहुत कड़वा सच है कि पैसा, प्रौपर्टी, द्वेष और जलन के चलते खून के रिश्ते में बंधे भाईबहन भी कई बार एकदूसरे के लिए मेहमान और अनजान हो जाते हैं.

एकदूसरे का हाथ थामे बड़े होने पर भाईबहन शादी होने के बाद अपने खुद के परिवार के चलते कब एकदूसरे के लिए मेहमान हो जाते हैं पता ही नहीं चलता, बचपन में पूरे हक से अपने प्यारे भाई से रक्षाबंधन पर गिफ्ट लेने के लिए बहन जहां अपने भाई पर हक जताते हुए बिना किसी संकोच के राखी का नेग ले लेती है, वहीं बड़े होने के बाद अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त वही भाईबहन एकदूसरे के लिए इतने अजनबी हो जाते हैं कि आपस में 10 बार सोच कर बात करते हैं कि कहीं मुंह से कोई गलत बात न निकल जाए और रिश्ते में दरार न पड़ जाए.

बचपन के साथी भाईबहन जो एकदूसरे का हर राज सीक्रेट रखते थे और अपनी हर बात एकदूसरे से शेयर करते थे, बड़ा होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि वही भाईबहन एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाते हैं, पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर रक्षाबंधन को ध्यान में रख कर.

दिल से जुडे़ रिश्ते

भाईबहनों के रिश्ते में कड़वाहट तभी कदम रखती है जब उन के बीच प्यार के बजाय स्वार्थ, द्वेष, अमीरी और गरीबी का भेदभाव, बहन या भाई का महंगा शो औफ वाला लाइफस्टाइल सच्चे दिल से जुड़े रिश्तों के आड़े आ जाता है. ऐसे में बहुत ही कम भाईबहन होते हैं जो इन सब नकली बातों को साइड में रख कर भाईबहन का रिश्ता प्यार से निभाते हैं. ऐसे प्यार करने वाले भाई या बहन के लिए, जिन्हें पक्का यकीन होता है कि यह बंधन प्यार का बंधन है और कभी नहीं टूटेगा, वे किसी भी हाल में अपना रिश्ता निभाते हैं. लेकिन जो भाई या बहन स्वार्थ के चलते सिर्फ मतलब से रिश्ते निभाते हैं, उन का रिश्ता भी कुछ समय के बाद खत्म जैसा ही हो जाता है.

कई बार इस में गलती भाई या बहन की ही नहीं होती बल्कि मांबाप की भी होती है या भाई और बहन से जुड़े अन्य रिश्ते जैसे भाई की पत्नी और बहन के पति की दखलंदाजी भी भाईबहन के रिश्ते को खराब करने में अहम भूमिका निभाती है.

भाईबहन के रिश्ते में दरार डालने वाले रिश्तेदार

भाईबहन का साधारण सा रिश्ता जिस में ?ागड़े होते हैं लेकिन निबट जाते हैं, गुस्सा होते हैं लेकिन मना लिए जाते हैं, उस वक्त कौंप्लिकेटेड हो जाता है जब किसी तीसरे की ऐंट्री होती है जैसे शादी के बाद बहन उतनी पराई नहीं होती जितना कि भाई पराया हो जाता है. जो भाई शादी से पहले बहन को हर बात पर टोकने वाला, रोकटोक करने वाला दूसरे शब्दों में कहें तो प्रोटैक्ट करने वाला, घर में सब से ज्यादा बहन से प्यार करने वाला होता है, अचानक वह उस वक्त पराया हो जाता है, जब उस की जिंदगी में उस की पत्नी की ऐंट्री हो जाती है.

ऐसे में अगर उस भाई की पत्नी अर्थात भाभी ननद की इज्जत करती है, आवभगत करती है तो भाई भी बहन के साथ अच्छे से पेश आता है, लेकिन अगर कहीं भाभी और ननद में नहीं बनती, भाभी को ननद फूटी आंख नहीं भाती तो भाई भी बहन से कन्नी काटने लगता है. वहीं दूसरी तरफ अगर

जीजा और साले में नहीं जमती तो इस का भी बुरा असर भाईबहन के रिश्ते पर पड़ता है क्योंकि इस के बाद बहन को ससुराल से मायके आने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

कई बार इस रिश्ते में कड़वाहट की वजह खुद उन के मांबाप भी बन जाते हैं जो कई बार अनजाने में भाईबहन में भेदभाव करते हैं, भाई को ज्यादा प्यार और सम्मान, प्रौपर्टी में पूरा हक दे कर और बहन को गरीबी में ही मरने के लिए छोड़ देने के चलते बहन को भाई से प्रौब्लम शुरू हो जाती है और यह रिश्ता ज्यादा खराब हो जाता है.

जरूरी है समझदारी

इन्हीं वजहों से भाईबहन के पवित्र रिश्ते में कड़वाहट और दूरी आने लगती है. बाहरी रिश्ते खून के रिश्ते को कमजोर कर देते हैं. समझदारी के बजाय घमंड और स्वार्थ के चलते भाईबहन का रिश्ता इतना कमजोर हो जाता है कि रक्षाबंधन पर भी राखी के लिए ये भाईबहन मिलने नहीं आते.

ऐसे में बहुत जरूरी है कि समझदारी दिखाते हुए कड़वाहट को भूल कर अपने इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से बिना किसी लालच के निभाएं और रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहार को हंसीखुशी मिल कर पूरे दिल से सैलिब्रेट करें क्योंकि पैसा, पावर आनीजानी चीज है, लेकिन अच्छा रिश्ता हर समय आप की ताकत बन कर सामने आ जाता है, इसलिए भाई और बहन एकदूसरे को अकेला न छोड़ें बल्कि इस रिश्ते में मजबूती लाएं जो किसी के कहने से टूटे नहीं.

Siblings Bond

Women Empowerment: लड़की हूं पर कमजोर नहीं

Women Empowerment: हमारे समाज में हमेशा कुछ जुमले गूंजते रहते हैं: ‘मर्द को दर्द नहीं होता,’ ‘लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो,’ ‘मर्द बनो, रोना बंद करो.’

ये शब्द केवल मजाक नहीं हैं बल्कि एक ऐसी मानसिकता की नींव हैं जो लड़कों को भावनाओं से काट देती है और लड़कियों को कमजोर मानने लगती है. सदियों से यही सोच महिलाओं को भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक रूप से पीछे खींचती रही है.

क्या वाकई महिलाएं भावनात्मक रूप से कमजोर हैं? प्रकृति ने न तो मर्दों को पत्थर दिल बनाया है और न ही औरतों को कमजोर. ये समाज की बनाई हुई सीमाएं हैं, जो हर पीढ़ी को सिखाई जाती हैं जैसे कोई नियम या परंपरा हो. यह सिखाया जाता है कि-

लड़कियां रो सकती हैं क्योंकि वे नाजुक होती हैं, लड़कों को रोना नहीं चाहिए क्योंकि वे मजबूत होते हैं. जबकि सच यह है कि भावनाएं हर इंसान की जरूरत होती हैं. फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का.

भावनाएं: इंसानी गुण, न कि लिंग आधारित. आरव और साक्षी भाईबहन थे. एक दिन आरव बहुत परेशान था : उस का स्कूल बैग चोरी हो गया था. वह घर आ कर रो पड़ा.

पापा ने गुस्से में कहा, ‘‘क्या मर्द बनोगे ऐसे? लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो?’’

साक्षी ने धीरे से कहा, ‘‘पापा, दुखी होने पर कोई भी रो सकता है चाहे लड़का हो या लड़की.’’ पापा कुछ नहीं बोले, पर सोच में पड़ गए.

यह एक सामाजिक प्रोग्रामिंग है जो बचपन से ही सिखाई जाती है.

– लड़कों को गाड़ी, बंदूक मिलती है ताकतवर बनने के लिए.

– लड़कियों को गुडि़या ताकि वे मां बनना सीखें.

– समाज ने नहीं छोड़ा कोई भी मोरचा मीडिया, शिक्षा और धर्म.

समाज में लड़कियों को कमजोर और भावनात्मक दिखाने की सोच यों ही नहीं बनी. इस के पीछे सदियों से 3 सब से प्रभावशाली संस्थाओं का हाथ रहा है. मीडिया, शिक्षा और धर्म. इन तीनों ने अपनेअपने तरीकों से यह सोच गढ़ी, पोषित की और आगे बढ़ाई.

फिल्में और टीवी

आप ने ध्यान दिया होगा कि पुरानी फिल्मों में नायिका हमेशा कमजोर, रक्षिता होती थी. उसे नायक बचाता था. मीना कुमारी जैसी अभिनेत्रियों को हमेशा रोने वाले रोल मिलते थे.

आजकल शायद ऐसे टीयर जर्कर (रोने वाले) सीन कम दिखते हैं, लेकिन यह सोच अब भी बनी हुई है. टीवी धारावाहिकों में भी यह प्रवृत्ति बनी रही. सासबहू सीरियल्स में महिलाओं को भावनाओं में बहने वाली, ईर्ष्यालु या हर समय आंसू बहाती हुई दिखाया गया. लड़की को यह बारबार बताया गया कि वह तभी अच्छी है जब वह भावुक है, रोती है, त्याग करती है. ताकत, निर्णय और साहस जैसे गुण केवल पुरुषों के हिस्से रखे गए.

रोना क्यों आता है

रोना एक प्राकृतिक मानवीय प्रक्रिया है, जो कई कारणों से हो सकता है:

– भावनात्मक दर्द जैसे किसी की मृत्यु, धोखा, अकेलापन.

– शारीरिक दर्द चोट या बीमारी.

– तनाव और चिंता मानसिक दबाव या डर कौन सी ग्रंथियां जिम्मेदार होती हैं?

– लैक्रिमल ग्रंथि जो आंखों में आंसू बनाती है.

– नर्वस सिस्टम जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के जरीए रोने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है.

क्या जानवर भी रोते हैं हां, जानवर भी दर्द और दुख में रो सकते हैं. भले ही उन की रोने की प्रक्रिया इंसानों जैसी न हो. कुत्ते, हाथी जैसे कुछ जानवर भावनात्मक जुड़ाव में अपने साथी के खोने पर उदासी दिखाते हैं.

भावनात्मकता कमजोरी नहीं. यह एक गलत धारणा है. समाज ने भावुकता को कमजोरी का प्रतीक बना दिया खासकर महिलाओं के लिए., जबकि आज की दुनिया में इमोशनल इंटैलिजैंस (भावनात्मक बुद्धिमत्ता)को सब से जरूरी योग्यता माना जाता है. चाहे वह नेतृत्व हो, रिश्ते हों या कैरियर.

आत्मविश्वास की हत्या: जब एक लड़की को बचपन से सिखाया जाता है कि तू उतनी तेज नहीं है, लड़कों जैसे काम मत कर, तेरी सीमा घर तक है तो वह धीरेधीरे अपने सपनों से समझौता करने लगती है. वह सोचती है: अगर मैं विफल हो गई तो? क्या लोग मुझे स्वीकारेंगे? क्या मैं सच में कर पाऊंगी? यह डर उस का अपना नहीं है. यह डर समाज ने उस के दिमाग में बो दिया है.

क्या सोच बदली जा सकती है

बिलकुल बदली जा सकती है. लेकिन इस के लिए जरूरी है :

– बचपन से नई सोच की शुरुआत करें. लड़के को रोने से न रोकें. लड़की को चुप रहने को मजबूर न करें.

– शिक्षा में बदलाव लाएं. किताबों में ऐसे पात्र दिखें जो लिंग भेद से परे हों.

– मीडिया को जवाबदेह बनाएं. विज्ञापन, टीवी और फिल्मों को संवेदनशीलता और समानता का आईना बनाएं.

अब समय आ गया है कि हम कहें कि मर्द को भी दर्द होता है, लड़कियों की तरह रोना कोई गाली नहीं है. भावुक होना कमजोरी नहीं बल्कि इंसान होने की निशानी है.

Women Empowerment

Body Odor: पसीने की बदबू से परेशान हैं, अपनाएं ये टिप्स

Body Odor: कुछ लोग रोज नहाते हैं फिर भी उन के शरीर से कुछ समय के बाद ही बड़ी तेज दुर्गंध आने लगती है, जिस का आभास उन्हें तो नहीं होता, लेकिन उन की बगल में बैठे लोग उस से जरूर परेशान हो कर नाक सिकोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं और सोसाइटी नौर्म्स कि आप को कहीं बुरा न लग जाए, इस असमंजस के चलते उन्हें कुछ कह भी नहीं पाते.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करते हुए तो यह बैड बौडी ओडोर की समस्या उन्हें सभी की टेढ़ी नजरों का शिकार बना सकती है. शरीर से आती इस गंदी बदबू से पब्लिकली शर्मिंदा न होना पड़े, इस के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर उन का शरीर डस्टबिन के तरह क्यों महक रहा है. इस के पीछे कई कारण हो सकते हैं:

पसीने और बैक्टीरिया की जोड़ी

हमारे शरीर में अपोक्राइन ग्रंथियां होती हैं जो खासतौर पर बगल, गुप्तांग और छाती के पास होती हैं. ये ग्रंथियां पसीना तो छोड़ती हैं, लेकिन उस में मौजूद प्रोटीन और फैटी ऐसिड जब त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया से मिलते हैं, तब दुर्गंध पैदा होती है. ये अपोक्राइन ग्रंथिया हमारे शरीर के बालों वाले हिस्से अंडरआर्म, जांघों के बीच, सिर की स्कैल्प, गुप्तांग जैसी जगहों पर होती हैं, यह पसीना शरीर की भावनात्मक प्रतिक्रिया जैसे तनाव, डर, एक्साइटमैंट के समय भी निकलता है, न कि सिर्फ गरमी और उमस में.

हालांकि ये अपोक्राइन ग्रंथियां शरीर के लिए डिफेस लाइन बनाने का भी काम करती हैं. इस पसीने में मौजूद कुछ फैटी ऐसिड और प्रोटीन स्किन को मौइस्चराइज करते हैं और पीएच बैलेंस को मैंटेन करते हैं. यह पसीना बैरियर की तरह भी काम करता है, जिस से कुछ हानिकारक बैक्टीरिया से सुरक्षा मिलती है.

यह पसीना फेरोमोन सिग्नलिंग का भी काम करता है. अपोक्राइन ग्लैंड्स से निकले पसीने में कुछ ऐसे प्राकृतिक रसायन होते हैं जो बौडी सैंट बनाते हैं. हर इंसान का बौडी सैंट अलग होता है जो किसी को अच्छा तो किसी को बुरी लग सकता है. न्यूबौर्न बेबी का मां से अटैचमैंट, ऐनिमल्स का आप को आप की स्मैल से दूर से ही पहचान लेना या किसी की बौडी ओडोर के लिए किसी मेल या फीमेल का अट्रैक्ट होना कई मामलों में व्यक्ति के बौडी ओडोर पर निर्भर करता है.

अब चूंकि जिक्र बदबू का है तो जानते हैं शरीर पर बैक्टीरिया कहां से आते हैं जो बदबू बनाते हैं?

हमारी स्किन पर लाखों प्राकृतिक

माइक्रोब्स जैसे बैक्टीरिया, फंगी पहले से मौजूद होते हैं, जिसे स्किन माइक्रोबाइम कहते हैं. ये बैक्टीरिया और फंगी कई सारे कारणों से हमारी स्किन पर मौजूद होते हैं जैसे हमारी खुद की स्किन से जैसे मरती हुई स्किन कोशिकाएं, कपड़ों से गंदे या नम कपड़े बैक्टीरिया को पनपने का मौका देते हैं.

हाथों से बारबार छूने से क्योंकि हम अपने हाथों से बहुत से सर्फेस को टच करते हैं, उस के बाद उन्हें साबुन से अच्छे से धोए बिना हम अपने शरीर के बाकी हिस्सों को छू कर उन पर भी बाहरी बैक्टीरिया चिपका देते हैं.

गंदे टौवेल, रजाई, तकिए, फोन या टौयलेट सीट्स से पसीने से नमी बनी रहने पर.

पसीने में बदबू कैसे बनती है

जब अपोक्राइन ग्रंथियां पसीना छोड़ती हैं तो यह पसीना खुद में बदबूदार नहीं होता. लेकिन जब यह त्वचा के बैक्टीरिया से मिलता है तो बैक्टीरिया उस में मौजूद प्रोटीन और फैट को तोड़ते हैं. इस प्रक्रिया में कुछ वोलटाइल ओर्गैनिक कंपाउंड्स बनते हैं जो बौडी ओडोर पैदा करते हैं. थोड़ा और डीप में जानना चाहें तो कोरिनेबैक्टीरियम और स्टीफीलोकस होमिनिस. ये 2 मुख्य बैक्टीरिया हैं जो शरीर में बदबू पैदा करने में लीड रोल में रहते हैं.

स्वच्छता की कमी

जो लोग रोज नहीं नहाते या नहाने के बाद कपड़े न बदल कर उन्हीं पुराने गंदे कपड़ों को रिपीट करते हैं, टाइट कपड़े पहनना जिस से स्किन सांस न ले पाए इन सब कारणों से स्किन पर बैक्टीरिया बढ़ते हैं.

हारमोनल चेंजेस

टीनऐज, प्रैगनैंसी या मेनोपौज के समय हारमोन बदलते हैं, जिस से पसीने की मात्रा और उस की गंध बढ़ सकती है. इस से भी आप को बौडी ओडोर की परेशानी का सामना करना पड़ा सकता है.

डाइट

लहसुन, प्याज, मछली, शराब, मसालेदार भोजन आदि का नियमित सेवन से भी शरीर की गंध को प्रभावित करता है.

बीमारियां

डायबिटीज, लिवर या किडनी की समस्या या हाइपरहाइड्रोसिस यानी ऐक्सैसिव स्वैटिंग जैसी स्थिति में शरीर से आती बदबू सामान्य से अधिक हो सकती है.

तनाव या चिंता

जब हम तनाव में होते हैं तो शरीर में स्ट्रैस से जुड़ी ग्रंथियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं, जिस से ज्यादा बदबूदार पसीना निकलता है.

बदबू से कैसे बचें

डेली नहाएं

रोजाना नहाना मजबूरी नहीं बल्कि अच्छी आदत है इसे अपनाएं. गरमियों में दिन में 2 बार नहाएं. ऐंटीबैक्टीरियल साबुन जैसे डिटोल स्किन केयर पीएच बैलैंस्ड बौडी वाश, सीबम्ड लिक्विड फेस ऐंड बौडी वाश, द बौडी सोप टी ट्री बौडी वाश का इस्तेमाल किया जा सकता है. हम यहां किसी ब्रैंड का प्रचार नहीं कर रहे हैं बल्कि आप को औप्शन दे रहे हैं. आप चाहें तो अपने डाक्टर की सलाह पर भी कोई ऐंटीबैक्टीरियल साबुन चुन सकते हैं.

सिर्फ भीग लेना या 2 मिनट में नहा लेना साफसफाई नहीं कहलाता. शरीर की दुर्गंध और त्वचा संबंधी समस्याओं का एक बड़ा कारण यह भी है कि बहुत से लोग नहाने की सही प्रक्रिया और महत्त्व को नहीं सम?ाते.

आप को नहाने के लिए कुनकुने पानी का इस्तेमाल करना चाहिए, इस से पोर्स खुलते हैं और यह गंदगी हटाने में मदद करता है. शरीर को अच्छे से भिगोएं कम से कम 1 मिनट ताकि स्किन नर्म हो जाए. लूफा, बौडी ब्रश या हाथ से साबुन को स्किन में घुमाते हुए 1-2 मिनट तक रगड़ें. जहां बैक्टीरिया ज्यादा पनपते हैं जैसे उंगलियों के बीच, अंडरआर्म्स, गरदन, प्राइवेट पार्ट्स, कमर इन्हें अच्छे से रगड़ें. अगर बाल धोने हैं तो पहले बालों को अच्छे से शैंपू करें ताकि बालों का गंदा पानी बौडी पर न रहे. नहा कर पोंछें भी अच्छे से, कौटन टौवेल यूज करें. अगर ढंग से नहीं पोंछने के कारण नमी रह गई तो फंगल इंफैक्शन और बदबू आ सकती है.

डियोड्रैंट या ऐंटीपर्सपिरैंट लगाएं

डियोड्रैंट गंध को छिपाता है, जबकि ऐंटीपर्सपिरैंट पसीना कम करता है. बगल या पैरों पर लगाने से फायदा मिलता है.

कपड़े बदलें और धोएं

पसीने वाले कपड़े तुरंत बदलें. कौटन या लूज कपड़े पहनें ताकि स्किन सांस ले सके. जिम के कपड़ों को बिना धोए रिपीट करने की गलती न करें.

 समस्या का समाधान क्या हो सकता है

– मसाज के तुरंत बाद कुनकुने पानी और माइल्ड ऐंटीबैक्टीरियल बौडी वाश से नहाएं सिर्फ साबुन से नहीं. बौडी स्क्रब या लूफा से रगड़ कर स्किन को साफ करें. जल्दबाजी न करें, जिनता वक्त मसाज में दिया है उतना ही बौडी को क्लीन करने में भी दें.

– मसाज के लिए औयल भी सोचसमझ कर चूज करें. सिंथैटिक या हैवी सैंटेड तेलों की जगह नारियल, तिल या जोजोबा औयल जैसे लाइट औयल इस्तेमाल करें, हर्बल औयल चुनते वक्त देख लें कि वह कैमिकल फ्री हो.

– हफ्ते में 1 बार डीप क्लीन करें. स्किन पर जमी पुरानी गंदगी और तेल हटाने के लिए मुलतानी मिट्टी, बेसन, दही और नीबू का पैक इस्तेमाल कर सकते हैं.

– पसीने वाले एरिया पर खास ध्यान दें जैसे बगलों, गरदन, पीठ और जांघों की सफाई खासतौर पर करें क्योंकि यहीं से सब से ज्यादा गंध आती है.

– मसाज के बाद पहने गए कपड़े अगर तेल सोख लें तो वे भी बदबू छोड़ सकते हैं. इसलिए तुरंत बदलें और धो कर ही दोबारा यूज करें. ज्यादा पानी पीएं, हरी सब्जियां और फल खाएं ताकि बौडी अंदर से भी डिटौक्स हो.

Body Odor

Footwear Guide: चुनें सही फुटवियर

Footwear Guide: रवीना अपने लिए 6 हजार रुपए के वाकिंग शूज बड़े शौक से खरीद लाई परंतु घर आ कर जब उस ने सौक्स के साथ उन्हें पहना तो वे उसे टाइट लगने लगे. अब चूंकि वह एक दिन वाक कर के आ गई थी इसलिए उन्हें वापस भी नहीं किया जा सकता था.

शर्माजी को औफिस में पहनने के लिए जूते खरीदने थे. बड़ी मुश्किल से उन्हें एक शोरूम पर जूते पसंद आए, चल कर भी देखा पर जब वे औफिस पहन कर गए तो उन्हें जूते बहुत अनकंफर्टेबल लगे क्योंकि जूते उन के पैर के माप से कुछ ढीले थे.

जूते प्रत्येक इंसान की आवश्यकता होते हैं, पहले जहां बाजार में बहुत कम ब्रैंड होते थे और लोगों के पास भी एकाध जोड़ी ही जूते होते थे वहीं आजकल औनलाइन और औफलाइन जूतों के अनेक ब्रैंड उपलब्ध हैं. दूसरे वाकिंग, रनिंग, ट्रैकिंग, औफिस और पार्टी के लिए अलगअलग प्रकार के जूते उपलब्ध हैं, जिन में अवसर और उपयोगिता के अनुकूल कुशनिंग और सोल की बनावट निर्धारित की जाती है.

पैरों के लिए सही जूते होना बहुत आवश्यक होता है अन्यथा पैरों में दर्द, छाले और चुभन जैसी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. आजकल जूतों की कीमत भी हजारों में होती है. ऐसे में यदि आप ने जूते सावधानीपूर्वक नहीं खरीदे तो आप के हजारों रुपए बरबाद होने की संभावना रहती है.

आइए, जानते हैं कि जूते खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

नाप है सब से अहम

हालिया शोधों के अनुसार इंसान के बड़े हो जाने के बाद भी पैरों के नाप में मामूली सा अंतर आता रहता है इसलिए जूते या चप्पल खरीदने से पहले नाप अवश्य लें. नाप के लिए आप अपने पुराने जूतों का नंबर चैक कर के जाएं ताकि दुकानदार को नंबर बता सकें. यों तो आजकल दुकानदार के पास भी मेजरमैंट के लिए स्केल होता है परंतु कई बार उस पर भी नापने में नाप आप के असली नाप से भिन्न हो जाता है.

पंजों की चौड़ाई देखें

पैर चौड़े हैं तो तंग जूते पहनने से उंगलियों में दर्द और दबाव महसूस होगा और यदि पैर पतले हैं और चौड़ा जूता पहनेंगे तो पैरों को पर्याप्त सपोर्ट नहीं मिलेगी और पैरों में छाले पड़ने की संभावना रहेगी, इसलिए आप के पंजे यदि चौड़े हैं तो आगे से नुकीली बनावट वाले जूतों की जगह चौड़ी बनावट वाले जूतों का चयन करें.

सही समय चुनें

सुबह के समय पैर का नाप सब से सही होता है क्योंकि इस समय पैर अपने कंफर्ट लेबल में होते हैं. शाम तक कई बार एकजर्शन के कारण पैर में सूजन सी आ जाती है इसलिए जूते खरीदने शाम के समय थोड़ा आराम कर के जाएं ताकि पैरों का सही नाप मिल सके.

समझौता न करें

कुछ लोग, ‘थोड़ा से ही टाइट हैं, यूज करने के बाद लूज हो जाएंगे’ या ‘कुछ लूज हैं सौक्स के साथ सैट हो जाएंगे’ सोच कर जूता ले लेते हैं और फिर घर आ कर पछताते हैं इसलिए जूते खरीदते समय जरा भी समझौता न करें क्योंकि आप जूतों के लिए अच्छीखासी कीमत चुका रहे हैं फिर समझता क्यों करना.

उद्देश्य और बजट तय करें

आजकल चूंकि प्रत्येक गतिविधि के लिए अलगअलग जूते होते हैं इसलिए बाजार जाने से पहले यह सुनिश्चित अवश्य कर लें कि आप डेली वियर, वाकिंग, रनिंग या फिर ट्रैकिंग के लिए जूते खरीद रहे हैं. इस से दुकानदार को आप को जूते दिखाने में भी आसानी रहेगी और आप को भी चुनने में सुविधा रहेगी.

अवसर के अनुकूल खरीदें

हर अवसर के लिए अलगअलग जूते खरीदें. मसलन, रनिंग के लिए बनाए जाने वाले जूतों में अलग से कुशनिंग की जाती है ताकि किसी भी तरह के दुष्प्रभाव को रोका जा सके और उन के जोड़ भी सुरक्षित रह सकें, इसी तरह वाकिंग शूज रनिंग शूज से काफी लचीले होते हैं ताकि उन्हें पहन कर आराम से चला जा सके. ट्रैकिंग के लिए टिकाऊ, अच्छी पकड़ और टखनों को स्पोर्ट देने वाले जूते खरीद सकते हैं. वेटलिफ्टिंग के समय ऐसे जूते पहनें जिन के तले फ्लैट और सख्त हों ताकि आप के पैरों को स्पोर्ट मिल सके. खेलने के लिए ऐसे जूते पहनें जिन से एडि़यों और टखनों को स्पोर्ट मिल सके जैसेकि स्लिप औन स्नीकर्स के बजाय ऐंकल शूज चुनें.

सही ब्रैंड चुनें

सस्ता रोए बारबार, महंगा रोए एक बार की कहावत को ध्यान में रखते हुए अच्छे ब्रैंड के जूते खरीदें ताकि आप बारबार जूते खरीदने से बचे रहें क्योंकि अच्छे ब्रैंड के जूते सालोंसाल खराब नहीं होते वहीं लोकल क्वालिटी के जूते बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं.

No Needle Mesotherapy: अब खूबसूरती का रास्ता आसान

No Needle Mesotherapy: हर महिला चाहती है कि उस की त्वचा हमेशा चमकदार, मुलायम और जवान बनी रहे. लेकिन जिंदगी की भागदौड़, धूपधूल, बदलता मौसम और स्ट्रैस हमारी स्किन की रौनक चुरा लेता है. कभी पिगमैंटेशन, कभी झुर्रियां तो कभी ड्राइनैस हमें आईने में अपने ही चेहरे को देख कर सोचने पर मजबूर कर देती है.

कई बार महिलाएं स्किन ट्रीटमैंट कराने का सोचती हैं लेकिन सुई, दर्द और निशान के डर से कदम पीछे खींच लेती है. यही डर सब से बड़ा अवरोध था. लेकिन अब टैक्नोलौजी ने इस डर को खत्म कर दिया है और इस का सब से अच्छा उदाहरण है नो नीडल मेसोथेरैपी.

इस में किसी भी तरह की सूई का इस्तेमाल नहीं होता. एक खास मशीन हलकी इलैक्ट्रिक करंट और माइक्रो वेव्स की मदद से स्किन को इतना रिलैक्स कर देती है कि न्यूट्रिशन देने वाले सीरम और एक्टिव इनग्रीडिऐंट्स आसानी से अंदर पहुंच जाते हैं. न दर्द, न रैडनैस, न निशान और असर उतना ही गहरा जितना पहले वाली मैसोथेरैपी में होता था.

इस का सैशन बेहद आरामदायक होता है. मशीन का टच नर्म सा मसाज जैसा एहसास देता है. कोई चुभन नहीं, बस हलकी गरमाहट और रिलैक्सेशन. करीब 20-30 मिनट में सैशन पूरा हो जाता है और आप तुरंत अपनी दिनचर्या में लौट सकती हैं. इसी वजह से इसे ‘लंच टाइम ट्रीटमैंट’ भी कहते हैं लंच ब्रेक में कराया और चेहरे पर ताजगी ले कर लौट आएं.

सैशन के बाद ध्यान रखें कि पहले 24 घंटे चेहरा ज्यादा न रगड़ें, बहुत गरम पानी से न धोएं और धूप में निकलते समय हलका सनस्क्रीन जरूर लगाएं. हलके मौइस्चराइजर और भरपूर पानी का सेवन स्किन के ग्लो को लंबे समय तक बनाए रखता है.

नो नीडल मैसोथेरैपी का असर लंबे समय तक बनाए रखने के लिए घर पर कुछ नए और आसान नुसखे भी अपनाए जा सकते हैं.

ग्रीन टी आइस क्यूब्स मसाज

1 कप ग्रीन टी बना कर ठंडा कर लें और इसे आइस ट्रे में जमाएं. सुबह चेहरा धोने के बाद इन आइस क्यूब्स को हलकेहलके चेहरे और गरदन पर घुमाएं. इस से स्किन में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा, पोर्स टाइट होंगे और दिनभर ताजगी बनी रहेगी.

चिया सीड जैल मास्क

2 चम्मच चिया सीड्स को 1/2 कप पानी में 2-3 घंटे भिगो दें. जब यह जैल जैसा बन जाए तो इसे चेहरे पर लगा कर 15 मिनट छोड़ दें और फिर हलके पानी से धो लें. चिया सीड्स में ओमेगा 3 और ऐंटीऔक्सीडैंट होते हैं जो स्किन को डीप हाइड्रेशन और ग्लो देते हैं.

राइस वाटर और ऐलोवेरा टोनर

1/2 कप चावल धो कर उस का पानी अलग कर लें और उस में 2 चम्मच ऐलोवेरा जैल मिलाएं. इसे  एक स्प्रे बोतल में भर कर फ्रिज में रखें. रोज सुबहशाम चेहरा धोने के बाद इसे टोनर की तरह स्प्रे करें. यह स्किन को सौफ्ट, ब्राइट और हैल्दी बनाए रखता है.

No Needle Mesotherapy

Moral Story: बेटी का सुख- बेटा-बेटी में क्या फर्क समझ पाए माता पिता

Moral Story: मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

हमारे जूतेचप्पलों की खबर भी खूब रखती है. चलने में मां को तकलीफ होगी, सो डाक्टर सोल की चप्पल ले आती है. पापा के जौगिंग शूज घिस गए हैं, चलो, नए ले आते हैं. वे सफाई देते हैं, ‘अभी तो लाया था.’ ‘कहां पापा, 2 साल पुराना है, फिर आप रोज घूमने जाते हैं, आप को अच्छे ब्रैंड के जौगिंग शूज पहनने चाहिए.’ बाप के पैरों के प्रति बेटी की चिंता देख कर सोचती हूं, ‘बेटे इस से अधिक और क्या करते होंगे.’ जब हम बेटी के घर जाते हैं तब जिस क्षण हवाईजहाज के पहिए धरती को छूते हैं, उस का फोन आ जाता है, ‘जल्दी मत करना, आराम से उतरना, मैं बाहर ही खड़ी हूं.’ एअरपोर्ट के बाहर एक ड्राइवर की तरह गाड़ी बिलकुल पास लगा कर सूटकेस उठाने और कार की डिक्की में रखने में दोनों के बीच प्यारी, मीठी तकरार कानों में पड़ती रहती है, ‘पापा, आप नहीं उठाओ, मम्मी तुम बैठ जाओ, हटो पापा, आप की कमर में दर्द होगा…’

‘तेरे से तो मैं ज्यादा मजबूत हूं, अभी भी.’ उन दोनों की बातें कानों में चाशनी घोल देती हैं. घर के दरवाजे पर स्वागत करती वैलकम नानानानी की पेंटिंग हमारी तसवीरों के साथ चिपकाई होती है. घर का कोनाकोना चहक रहा होता है, शीशे सा साफसुथरा घर हमारे रहने की व्यवस्था, छोटीछोटी चीजों को हमारे लिए पहले से ला कर कमरे में, बाथरूम में रख दिया गया होता है. पापा के लिए उन की पसंद का नाश्ता, चायबिस्कुट मेज पर रखा होता है. उन की पसंद की सब्जियां जैसे करेले, लौकी, तुरई, विशेषरूप से इंडियन शौप से ला कर रखे गए होते हैं.

हमारी पसंद के पकवान ऐसे परोसे जाते मानो हम शाही मेहमान हों. कितने बजे पापा चाय पिएंगे, अपनी कामवाली को सौसौ हिदायतें, ट्रे में गिलास, जग और पानी का खयाल, बिजली का स्विच कहां है, लिफ्ट कौन से फ्लोर पर रुकती है, सुबह पापा घूमने निकलें, उस से पहले उन का फोन वहां के सिमकार्ड के साथ उन के साथ दे देना. दोपहर हो या रात या दिन, हमारे रुटीन का इतना ध्यान रखती है. तकिया ठीक है कि नहीं, एसी अधिक ठंडा तो नहीं है, रात में कमरे का चक्कर मार जाती है मानो हम कोई छोटे बच्चे हों.

‘बेटा, तू सो जा, इतनी चिंता क्यों करती है, तेरा इतना व्यस्त दिन जाता है, पूरा दिन चक्करघिन्नी सी घूमती है, दसदस बार गाड़ी चलाती है, सड़कें नापती है…’ पर वह सुनीअनसुनी कर देती है. बेटियां, बस, ऐसी ही होती हैं. नहीं जानती कि बेटे क्या करते हैं पर बेटी तो चेहरे के भाव पढ़ कर अंतर्मन तक उतर जाती है.

मुझे अपनी 65 वर्षीय मां की बरबस याद चली आई. उस दिन भी 11 बजे थे. लगभग 20-25 साल पहले हम दिल्ली में पोस्टेड थे. मायका पास था, करीब 2 घंटे दूर. सो महीनेपंद्रह दिनों में वृद्ध मातापिता से मिलने चली जाया करती थी. सुबह की बस पकड़ कर घर पहुंची. रिकशा से उतर कर अम्मा को ढूंढ़ा, देखा, घर के एक किनारे खामोश बैठी थीं. बहुत क्षीण लग रही थीं. चेहरा उतरा हुआ. आंखें विस्फारित, फटीफटी सी. पैनी कंटीली झाड़ी सी सूखी झुरियों को, देखते ही समझ गई कि उन्हें प्यास लगी है. भाग कर रसोई में गई. एक लोटा ठंडा नीबू पानी बनाया.

जब उन्होंने 2 गिलास पानी एक के बाद एक गले से नीचे उतार लिए तब अपनी धोती से गिलास पकड़ेपकड़े रुंधे गले से बोलीं, ‘आज मेरा व्रत है, सुबह से किसी ने नहीं पूछा कि तुम ने कुछ लिया कि नहीं.’ वे अपने पति, मेरे पिता के बड़े से घर में रहती थीं, जहां उन का बेटाबहू व 2 पोतियां, आधा दर्जन नौकरचाकर दिनरात काम करते थे. पुत्रवती खुशहाल अवश्य होती है, किंतु उस दिन पुत्रवती मां की गीली आंखें मेरे मानस पर शिलालेख की भांति अमिट छाप छोड़ गईं. ‘आज बड़ी ढीली लग रही हो?’ बेटी ने एक दिन मुझे देर तक सोते देखा तब पास आ कर माथे पर हाथ रखा और थर्मामीटर लगाया. लगभग 100 डिगरी बुखार था. उसी क्षण ब्लडप्रैशर, शुगर आदि सब चैक होने शुरू हो गए. सारे काम एक तरफ, मां की तबीयत पर सब का ध्यान केंद्रित हो गया, बारीबारी, सब हाल पूछने आते.

‘नानी, यू औलराइट?’ धेवता गले लगा कर के स्कूल जाता, धेवती ‘टेक केयर, नानी’ कह कर जाती. बेटी मेरी पसंद की किताबें लाइब्रेरी से ले आई थी. दामाद से ले कर कामवाली तक मात्र थोड़े से बुखार में ऐसी सेवा कर रहे थे मानो मैं अंतिम सांसें ले रही हूं. यह बात जब मैं ने कह दी तो बिटिया के झरझर आंसू टपकने लगे, ‘अच्छा बाबा, मैं अभी नहीं मर रही, पर तू ही बता, 70वें साल में चल रही हूं…’ उस का उदास चेहरा देख कर चुप हो गई. किंतु बोझिल यादों का पुलिंदा अपने बूढ़े मांबाप के बुढ़ापे की ओर एक बार फिर खुल गया. अपने बूढ़े मातापिता को उन के बेटे यानी मेरे भाई के घर में नितांत अकेले समय काटते देखा था. मैं यह नहीं कहती कि उन्होंने क्या किया, किंतु उन्होंने क्या नहीं किया, उस का दर्द टीस बन कर शिरायों में उमड़ताघुमड़ता अवश्य है.

एक प्रोफैसर पिता ने कभी अच्छे दिनों में जमीन खरीद कर एक साधारण सा घर बनाया था. बिना मार्बल, बिना ग्रेनाइट लगाए. उन के जाने के बाद घर, बंगला बन गया. उसे करोड़ों की संपत्ति का दरजा मिल गया. मातापिता की जबानी ख्वाहिश तथा लिखित वसीयत, पांचों बेटों को बराबर दी गई संपत्ति की धज्जियां उड़ा दी गईं. उन का आदेश, उन की इच्छा को झूठ, उन की लिखी वसीयत को बकवास कह कर पुत्र ने रद्दी में फेंक दिया. बेटियां पराई हो जाती हैं, फिर भी आप से जुड़ी रहती हैं. वे एक नहीं, 3 घरों में बंटी रहती हैं. बेटियां पलपल की खबर रखने वाली, मन की धड़कन सुनने वाली बेटियां होती हैं. बेटे क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम, किंतु बेटियां क्या करती हैं, अनुभव कर रही हूं. अपने रिटायर्ड पैंशनयाफ्ता पिता के बैंक बैलेंस की धड़कन पर पूरी नजर रखती हैं, उन के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे, चुपचाप उन के पर्स में डौलर सरका जाती हैं.

देखो, बावली कितने डौलर रख गई है मेरे पर्स में… जानती है उस के पापा को सब्जीफल खरीदने का शौक है, किंतु अपने रुपए से कितना सामान ला सकेंगे.

मेरे ही एक भाई ने मुझे प्रैक्टिकल होने का पाठ पढ़ाया था, जब मां बीमार थीं और मृत्यु से पहले कोमा में चली गई थीं. चेन्नई से आए भाई वापस जाना चाहते थे, उन्होंने अपनी पत्नी से फोन पर मेरे सामने ही बात की थी, ‘क्या करूं? वापस आ जाऊं, कुछ औफिस का काम है.’

उधर से, ‘नहीं, वहीं रुको, एक ही बार आना.’ (निधन के बाद, 2 बार का हवाई खर्च क्यों करना, मां आज नहीं तो 2-4 दिनों में निबट जाएंगी) अनकही हिदायत का अर्थ. और एक तरफ यूरोप से मात्र 15 दिनों के लिए बेटी अपनी बीमार मां से मिलने चली आई थी, जरा भी प्रैक्टिकल नहीं थी. बेटे क्या करते हैं, क्या नहीं, निष्कर्ष निकालना, निर्णय लेना उचित नहीं. बहुत से बेटों वाले उपरोक्त तर्क का जोरदार खंडन करेंगे. मैं तो सिर्फ आपबीती बता रही हूं क्योंकि मेरा कोई बेटा नहीं है. आपबीती ही नहीं, जगबीती का उदाहरण समक्ष आया जब डाक्टर रवि वर्मा ने अपना अनुभव शेयर किया.

उन के पिता ने वृद्धाश्रम बनाया था जिस में 30 कमरे थे और वे बिना शुल्क उन बुजुर्गों की सेवा कर रहे थे जिन को देखने वाला कोई नहीं था. वे बता रहे थे, ‘बुजुर्गों के रिश्तेदार आदि, अलबत्ता तो कोई नहीं आता है, आता है तो भी हम उन्हें उन के कमरे में नहीं जाने देते.’ वे आगे बताते हैं, ‘अकसर बेटे आते थे और अपने पिता को मारपीट कर उन की 8-10 हजार रुपए की पैंशन की रकम छीन कर ले जाते थे. अब हम ने नियम बना दिया है कि मिलने वाले हमारे सामने सिर्फ औफिस में मिल सकते हैं.’ और फिर उन्होंने जोड़ा, ‘बेटियां आती हैं तो अपने वृद्ध मातापिता के लिए कुछ फल, मिठाई, कपड़ालत्ता ले कर आती हैं, बेटे तो सिर्फ छीनने आते हैं.’ यह उन का अनुभव है, मेरा नहीं.

हमारे यहां 13 से ले कर 25 वर्ष की लड़कियां घरों में काम करने आती हैं. उन के भाई महंगे मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल, नए फैशन की जींस, और सारा दिन चौराहे पर जमघट लगाए धींगामस्ती करते हैं. 16 वर्षीय मेरी कामवाली रोज अपना मोबाइल याद करती है, ‘तीन बहनों में एक ही तो है, उस ने मांग लिया मैं कैसे न करती. हम अपने भाई को कभी न नहीं करते.’ जन्म से एक मानसिकता, बेटे को घीचुपड़ी, बेटी को बचीखुची. निश्चित रूप से बेटे भी बहुतकुछ करते होंगे, किंतु बेटियां क्या करती हैं, यह मैं दावे से कह सकती हूं. बेटियां मन से जुड़ी रहती हैं, वे कदम से कदम मिला कर अपना समय आप को देती हैं और यकीन मानिए, बुढ़ापे में समय बेशकीमती है, 5 बेटों के मेरे बाऊजी कितने अकेले थे, देखा है उन के चेहरे पर व्यथा के बादलों को.

5 में से 4 तो बाहर रहते थे. साल में एकाध बार मिलने आते थे. किंतु जो उन के साथ उन के घर में रहता था उस के बारे में बाऊजी एक दिन मुझ से बोले, ‘देख, तेरा छोटा भाई सामने के दरवाजे से अंदर आएगा और, परेड करता बाएं मुड़, सीधा अपने कमरे में चला जाएगा. मैं सामने बैठा उसे दिखाई नहीं देता.’ और ऐसा ही हुआ. 6 महीने बाद जब मिलने गई तो पता चला भाई ने अब सामने का दरवाजा छोड़, बरामदे से ही अलग प्रवेशद्वार प्रयोग करना शुरू कर दिया था. बूढ़ा व्यक्ति अपनी स्मृति के गलियारों में भटकता है. वह अपने गांव, अपने पुराने दिनों को किसी के साथ बांटना चाहता है. बस, यही बेटियां घंटों अपने बाप के साथ उन के देहात के मास्टरजी के रोचक किस्से सुनती हैं.

इसलिए, मैं शायद नहीं जानती, पूरी तरह वाकिफ नहीं हूं कि बेटे भी ये सब करत हैं, किंतु अपनी बेटी अपने पापा के साथ समय जैसे धन को खूब लुटाती है. समय बदल रहा है, आज का वृद्ध कह रहा है, हमें अपना स्पेस चाहिए, आधुनिक युग में फाइवस्टार ओल्डएज होम बन रहे हैं. वे ओल्डएज होम नहीं, कब्र कहलाते हैं. न बेटे की न बेटी की किसी की जरूरत नहीं. सभी सुविधाओं से लैस इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है जहां, खाना, रहना, अस्पताल, जिम, मनोरंजन के साधन, हरेभरे लौन, पार्क आदि घरजैसी बल्कि घर से बढ़ कर तमाम जरूरतों का ध्यान रखते हुए, प्रौपर्टी बन और बिक रही हैं.

दृष्टिकोण बदल रहा है. मांबाप कह रहे हैं, यदि बच्चों को पालापोसा तो क्या उन से हम बदला लें? हम ने उन्हें जन्म दे कर उन पर कोई एहसान नहीं किया. सो, उन्हें बुढ़ापे की लाठी की तरह इस्तेमाल करना बंद करो. इस प्रकार की अवधारणा तूल पकड़ रही है. तब तो बेटेबेटी का किस्सा ही खत्म. बेटे कैसे होते हैं? बेटियों से बेहतर, कि बदतर, टौपिक निरर्थक, चर्चा बेमानी और तर्क अर्थहीन. किंतु ऐसे पांचसितारा कब्र में रहने वाले कितने और कौन हैं, अपने देश की कितनी फीसदी जनता उस का उपभोग कर सकती है? मेरे देश का अधिकांश वयोवृद्ध आज भी बेटीबेटे की ओर आशातीत नजरों से निहारता है.

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