Family Kahani: शर्वरी- बेटी की ननद को क्यों अपने घर ले आई महिमा

Family Kahani: ‘‘ओशर्वरी, इधर तो आ. इस तरह कतरा कर क्यों भाग रही है,’’ महिमा ने कांजीवरम साड़ी में सजीसंवरी शर्वरी को दरवाजे की तरफ दबे कदमों से खिसकते देख कर कहा था. ‘‘जी,’’ कहती, शरमातीसकुचाती शर्वरी उन के पास आ कर खड़ी हो गई.

‘‘क्या बात है? इस तरह सजधज कर कहां जा रही है?’’ महिमा ने पूछा. ‘‘आज डा. निपुण का विदाई समारोह है न, मांजी, कालेज में सभी अच्छे कपड़े पहन कर आएंगे. मैं ऐसे ही, सादे कपड़ों में जाऊं तो कुछ अजीब सा लगेगा,’’ शर्वरी सहमे स्वर में बोली. ‘‘तो इस में बुरा क्या है, बेटी. तेरी गरदन तो ऐसी झुकी जा रही है मानो कोई अपराध कर दिया हो. इस साड़ी में कितनी सुंदर लग रही है, हमें भी देख कर अच्छा लगता है. रुक जरा, मैं अभी आई,’’ कह कर महिमा ने अपनी अलमारी में से सोने के कंगन और एक सुंदर सा हार निकाल कर उसे दिया. ‘‘मांजी…’’ उन से कंगन और हार लेते हुए शर्वरी की आंखें डबडबा आई थीं. ‘‘यह क्या पागलपन है. सारा मुंह गंदा हो जाएगा,’’ मांजी ने कहा. ‘‘जानती हूं, पर लाख चाहने पर भी ये आंसू नहीं रुकते कभीकभी,’’ शर्वरी ने खुद पर संयम रखने का प्रयास करते हुए कहा. शर्वरी ने भावुक हो कर हाथों में कंगन और गले में हार डाल लिया.

‘‘कैसी लग रही हूं?’’ अचानक उस के मुंह से निकल पड़ा. ‘‘बिलकुल चांद का टुकड़ा, कहीं मेरी नजर ही न लग जाए तुझे,’’ वह प्यार से बोलीं. ‘‘पता नहीं, मांजी, मेरी अपनी मां कैसी थी. बस, एक धुंधली सी याद शेष है, पर मैं यह कभी नहीं भूलूंगी कि आप के जैसी मां मुझे मिलीं,’’ शर्वरी भावुक हो कर बोली. ‘‘बहुत हो गई यह मक्खनबाजी. अब जा और निपुण से कहना, मुझ से मिले बिना न चला जाए,’’ उन्होंने आंखें तरेर कर कहा. ‘‘जी, डा. निपुण तो खुद ही आप से मिलने आने वाले हैं. उन की माताजी आई हैं. वह आप से मिलना चाहती हैं,’’ कहती हुई शर्वरी पर्स उठा कर बाहर निकल गई थी.

इधर महिमा समय के दर्पण पर जमी अतीत की धूल को झाड़ने लगी थीं. वह अपनी बेटी नूपुर के बेटा होने के मौके पर उस के घर गई थीं. वह जा कर खड़ी ही हुई थी कि शर्वरी ने आ कर थोड़ी देर उन्हें निहार कर अचानक ही पूछ लिया था, ‘आप लोग अभी नहाएंगे या पहले चाय पिएंगे?’ वह कोई जवाब दे पातीं उस से पहले ही नूपुर, शर्वरी पर बरस पड़ी थीं, ‘यह भी कोई पूछने की बात है? इतने लंबे सफर से आए हैं तो क्या आते ही स्नानध्यान में लग जाएंगे? चाय तक नहीं पिएंगे?’ ‘ठीक है, अभी बना लाती हूं,’ कहती हुई शर्वरी रसोईघर की तरफ चल दी. ‘और सुन, सारा सामान ले जा कर गैस्टरूम में रख दे. अंकुश का रिकशे वाला आता होगा. उसे तैयार कर देना. नाश्ते की तैयारी भी कर लेना…’

‘बस कर नुपूर. इतने काम तो उसे याद भी नहीं रहेंगे,’ महिमा ने मुसकराते हुए कहा. ‘मां, आप नहीं जानती हैं इसे. यह एक नंबर की कामचोर है. एक बात कहूं मां, पिताजी ने कुछ भी नहीं देखा मेरे लिए. पतिपत्नी कैसे सुखचैन से रहते हैं, मैं ने तो जाना ही नहीं, जब से इस घर में पैर रखा है मैं तो देवरननद की सेवा में जुटी हूं,’ अब नूपुर पिताजी की शिकायत करने लगी. ‘ऐसे नहीं कहते, अंगूठी में हीरे जैसा पति है तेरा. इतना अच्छा पुश्तैनी मकान है. मातापिता कम उम्र में चल बसे तो भाईबहन की जिम्मेदारी तो बड़े भाईभाभी पर ही आती है,’ महिमा ने समझाते हुए कहा. ‘वही तो कह रही हूं. यह सब तो देखना चाहिए था न आप को. भाई की पढ़ाई का खर्च, फिर बहन की पढ़ाई. ऊपर से उस की शादी के लिए कहां से लाएंगे लाखों का दहेज,’ नूपुर चिड़चिड़े स्वर में बोली थी. ‘ठीक है, यदि मैं सबकुछ देख कर विवाह करता और बाद में सासससुर चल बसते तो क्या करतीं तुम?’ अभिजीत भी नाराज हो उठे थे.

महिमा ने उन्हें शांत करना चाहा. बेटी और पति के स्वभाव से वह अच्छी तरह परिचित थीं और उन के भड़कते गुस्से को काबू में रखने के लिए उन्हें हमेशा ठंडे पानी का कार्य करना पड़ता था. तभी चाय की ट्रे थामे शर्वरी आई थी. साथ ही नूपुर के पति अभिषेक ने वहां आ कर उस गरमागरम बहस में बाधा डाल दी थी. चाय पीते हुए भी महिमा की आंखें शर्वरी का पीछा करती रहीं. उस ने फटाफट अंकुश को तैयार किया,उस का टिफिन लगाया, अभिषेक को नाश्ता दिया और महिमा और उन के पति के लिए नहाने का पानी भी गरम कर के दिया. महिमा नहा कर निकलीं तो उन्होंने देखा कि शर्वरी सब्जी काट रही थी. वह बोलीं, ‘अरे, अभी से खाने की क्या जल्दी है, बेटी. आराम से हो जाएगा.’

‘मांजी, मैं सोच रही थी, आज कालेज चली जाती तो अच्छा रहता. छमाही परीक्षाएं सिर पर हैं. कालेज न जाने से बहुत नुकसान होता है,’ शर्वरी जल्दीजल्दी सब्जी काटते हुए बोली. ‘तुम जाओ न कालेज. मैं आ गई हूं, सब संभाल लूंगी. इस तरह परेशान होने की क्या जरूरत है. मुझे पता है, इंटर की पढ़ाई में कितनी मेहनत करनी पड़ती है,’ महिमा ने कहा. उन की बात सुन कर शर्वरी के चेहरे पर आई चमक, उन्हें आज तक याद है. कुछ पल तक तो वह उन्हें एकटक निहारती रह गई थी, फिर कुछ इस तरह मुसकराई थी मानो बहुत प्यासे व्यक्ति के मुंह में किसी ने पानी डाल दिया हो. दोनों के बीच इशारों में बात हुई व शर्वरी लपक कर उठी और तैयार हो कर किताबों का बैग हाथ में ले कर बाहर आ गई थी. ‘तो मैं जाऊं, मांजी?’ उस ने पूछा. ‘कहां जा रही हैं, महारानीजी?’ तभी नूपुर ने वहां आ कर पूछा. ‘कालेज जा रही है, बेटी,’ शर्वरी कुछ कहती उस से पहले ही महिमा ने जवाब दे दिया. ‘मैं ने कहा था न, एक सप्ताह और मत जाना,’ नूपुर ने डांटने के अंदाज में कहा. ‘जाने दे न नूपुर, कह रही थी, पढ़ाई का नुकसान होता है,’

महिमा ने शर्वरी की वकालत करते हुए कहा. ‘ओह, तो आप से शिकायत कर रही थी. कौन सी पीएचडी कर रही है? इंटर में पढ़ रही है और वह भी रोपीट कर पास होगी,’ नूपुर ने व्यंग्य के लहजे में कहा. महिमा का मन हुआ कि वे नूपुर को बताएं कि जब वह स्कूल में पढ़ती थी तो उसे कैसे सबकुछ पढ़ने की टेबल पर ही चाहिए होता था और तब भी वह उसी के शब्दों में ‘रोपीट कर’ ही पास होती थी, या नहीं भी होती थी, पर स्थिति की नजाकत देख कर वे चुप रह गई थीं. अभिजीत तो 2 दिन बाद ही वापस चले गए थे पर उन्हें नूपुर के पूरी तरह स्वस्थ होने तक वहीं उस की देखभाल को छोड़ गए थे. शर्वरी दिनभर घर के कार्यों में हाथ बंटा कर अपनी पढ़ाई भी करती और नूपुर की जलीकटी भी सुनती, पर उस ने कभी भी कुछ न कहा. अभिषेक अपने काम में व्यस्त रहता या व्यस्त रहने का दिखावा करता.

छोटे भाई रोहित ने, शायद नूपुर के स्वभाव से ही तंग आ कर छात्रावास में रह कर पढ़ने का फैसला किया था. वह मातापिता की चलअचल संपत्ति पर अपना हक जताता तो नूपुर सहम जाती थी, पर अब सारा गुस्सा शर्वरी पर ही उतरता था. कभीकभी महिमा को लगता कि सारा दोष उन का ही है. वे उसे दूसरों से शालीन व्यवहार की सीख तक नहीं दे पाई थीं. बचपन से भी वह अपने तीनों भाईबहनों में सब से ज्यादा गुस्सैल स्वभाव की थी और बातबात पर जिद करना और आपे से बाहर हो जाना उस के स्वभाव का खास हिस्सा बन गए थे. कुछ दिन और नूपुर के परिवार के साथ रह कर महिमा जब घर लौटीं तो उन के मन में एक कसक सी थी. वे चाह कर भी नूपुर से कुछ नहीं कह सकी थीं. 2 महीने तक साथ रह कर शर्वरी से उन का अनाम और अबूझ सा संबंध बन गया था. कहते हैं, ‘मन को मन से राह होती है,’

पहली बार उन्होंने इस कथन की सचाई को जीवन में अनुभव किया था, पर संसार में हर व्यक्ति को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है और वे चाह कर भी शर्वरी के लिए कुछ न कर पाई थीं. पर अचानक ही कुछ नाटकीय घटना घट गई थी. अभिषेक को 2 साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से जरमनी जाना था. शर्वरी को वह कहां छोड़े, यह समस्या उस के सामने मुंहबाए खड़ी थी. दोनों ने पहले उसे छात्रावास में रखने की बात भी सोची पर जब महिमा ने शर्वरी को अपने पास रखने का प्रस्ताव रखा तो दोनों की बांछें खिल गई थीं. ‘अंधा क्या चाहे दो आंखें,’ फिर भी अभिषेक ने पूछ ही लिया, ‘आप को कोई तकलीफ तो नहीं होगी, मांजी?’ ‘अरे, नहीं बेटे, कैसी बातें करते हो. शर्वरी तो मेरी बेटी जैसी है. फिर तीनों बच्चे अपने घरसंसार में व्यवस्थित हैं. हम दोनों तो बिलकुल अकेले हैं. बल्कि मुझे तो बड़ा सहारा हो जाएगा,’ महिमा ने कहा. ‘सहारे की बात मत कहो, मां. बहुत स्वार्थी किस्म की लड़की है यह सहारे की बात तो सोचो भी मत,’ नूपुर ने अपनी स्वाभाविक बुद्धि का परिचय देते हुए कहा था.

महिमा की नजर सामने दरवाजे पर खड़ी शर्वरी पर पड़ी थी तो उस की आंखों की हिंसक चमक देख कर वे भी एक क्षण को तो सहम गई थीं. ‘हां, तो पापा, आप क्या कहते हैं?’ उन्हें चुप देख कर नूपुर ने अभिजीत से पूछा था. ‘तुम्हारी मां तैयार हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. वैसे मुझे भी नहीं लगता कि कोई समस्या आएगी. शर्वरी अच्छी लड़की है और तुम्हारी मां को तो यों भी कभी किसी से तालमेल बैठाने में कोई परेशानी नहीं हुई है,’ अभिजीत ने नूपुर के सवाल का जवाब देते हुए कहा. इस तरह शर्वरी महिमा के जीवन का हिस्सा बन गई थी और जल्दी ही उस ने उन दोनों पतिपत्नी के जीवन में अपनी खास जगह बना ली थी. एक दिन शर्वरी कालेज से लौटी तो महिमा अपने बैडरूम में बेसुध पड़ी थीं. यह देख कर शर्वरी पड़ोसियों की मदद से उन्हें अस्पताल ले गई. बीमारी की हालत में शर्वरी ने उन की ऐसी सेवा की कि सब आश्चर्यचकित रह गए थे. ‘शर्वरी,’ महिमा ने हाथ में साबूदाने की कटोरी थामे खड़ी शर्वरी से कहा था. ‘जी.’ ‘तुम जरूर पिछले जन्म में मेरी मां रही होगी,’ महिमा ने मुसकरा कर कहा था. ‘आप पुनर्जन्म में विश्वास करती हैं क्या?’ शर्वरी ने पूछा. ‘हां, पर क्यों पूछ रही हो तुम?’

‘यों ही, पर मुझे यह जरूर लगता है कि कभी किसी जन्म में कुछ भले काम जरूर किए होंगे मैं ने जो आप लोगों से इतना प्यार मिला, नहीं तो मुझ अभागी के लिए यह सब कहां,’ कहते हुए शर्वरी की आंखें डबडबा गई थीं. ‘आज कहा सो कहा, आगे से कभी खुद को अभागी न कहना. कभी बैठ कर शांतमन से सोचो कि जीवन ने तुम्हें क्याक्या दिया है,’ महिमा ने शर्वरी को समझाते हुए कहा था. अभिजीत और महिमा के साथ रह कर शर्वरी कुछ इस कदर निखरी कि सभी आश्चर्यचकित रह गए थे. उस स्नेहिल वातावरण में शर्वरी ने पढ़ाई में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. जब कठिनाई से पास होने वाली शर्वरी पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम आई थी तो खुद महिमा को भी उस पर विश्वास नहीं हुआ था. उसे स्वर्ण पदक मिला था. स्वर्ण पदक ला कर उस ने महिमा को सौंपते हुए कहा था,

‘इस का श्रेय केवल आप को जाता है, मांजी. पता नहीं इस का ऋण मैं कैसे चुका पाऊंगी.’ ‘पगली है, शर्वरी तू तो, मां भी कहती है और ऋण की बात भी करती है. फिर भी मैं बताती हूं, मेरा ऋण कैसे उतरेगा,’ महिमा ने उसे समझाते हुए कहा, ‘तेन त्यक्तेन भुंजीषा.’ ‘क्या?’ शर्वरी ने चौंकते हुए कहा, ‘यह क्या है? सीधीसादी भाषा में कहिए न, मेरे पल्ले तो कुछ नहीं पड़ा,’ कह कर शर्वरी हंस पड़ी. यह मजाक की बात नहीं है, बेटी. जीवन का भोग, त्याग के साथ करो और इस त्याग के लिए सबकुछ छोड़ कर संन्यास लेने की जरूरत नहीं है. परिवार और समाज में छोटी सी लगने वाली बातों से दूसरों का जीवन बदल सकता है. तुम समझ रही हो, शर्वरी?’ महिमा ने शर्वरी को समझाते हुए कहा था.

‘जी, प्रयास कर रही हूं,’ शर्वरी ने जवाब दिया. ‘देखो, नूपुर मेरी बेटी है, पर उस के तुम्हारे प्रति व्यवहार ने मेरा सिर शर्म से झुका दिया है. तुम ऐसा करने से बचना, बचोगी न?’ महिमा ने पूछा. ‘जी, प्रयत्न करूंगी कि आप को कभी निराश न करूं,’ शर्वरी गंभीर स्वर में बोली थी. शीघ्र ही शर्वरी की अपने ही कालेज में व्याख्याता के पद पर नियुक्ति हो गई और अब तो उस का आत्मविश्वास देखते ही बनता था. उस की कायापलट की बात सोचते हुए उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान तैर गई थी. ‘‘कहां खोई हो?’’ तभी अभिजीत ने आ कर महिमा की तंद्रा भंग करते हुए पूछा. ‘‘कहीं नहीं, यों ही,’’ महिमा ने चौंक कर कहा. ‘‘तुम्हारी तो जागते हुए भी आंखें बंद रहती हैं. आज लाइब्रेरी से निकला तो देखा शर्वरी डा. निपुण के साथ हाथ में हाथ डाले जा रही थी,’’ अभिजीत ने कहा. ‘‘जानती हूं,’’ महिमा ने उन की बात का जवाब दिया. ‘‘क्या?’’ अभिजीत ने पूछा. ‘‘यही कि दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते हैं,’

’ उन्होंने बताया. ‘‘क्या कह रही हो, पराई लड़की है, कुछ ऊंचनीच हो गई तो हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे,’’ अभिजीत ने सकपकाते हुए कहा. ‘‘घबराओ नहीं, मुझे शर्वरी पर पूरा भरोसा है. उस ने तो अभिषेक को सब लिख भी दिया है,’’ महिमा बोलीं. ‘‘ओह, तो दुनिया को पता है. बस, हम से ही परदा है,’’ अभिजीत ने मुसकरा कर कहा था. थोड़ी ही देर में शर्वरी दरवाजे पर दस्तक देती हुई घर में घुसी. ‘‘मां, आज शाम को निपुण अपनी मां के साथ आप से मिलने आएंगे,’’ उस ने शरमाते हुए महिमा के कान में कहा. ‘‘क्या बात है? हमें भी तो कुछ पता चले,’’ अभिजीत ने पूछा. ‘‘खुशखबरी है, निपुण अपनी मां के साथ शर्वरी का हाथ मांगने आ रहे हैं.

चलो, बाजार चलें, बहुत सी खरीदारी करनी है,’’ महिमा ने कहा तो शर्वरी शरमा कर अंदर चली गई. ‘‘सच कहूं महिमा, आज मुझे जितनी खुशी हो रही है उतनी तो अपनी बेटियों के संबंध करते समय भी नहीं हुई थी,’’ अभिजीत गद्गद स्वर में बोले. ‘‘अपनों के लिए तो सभी करते हैं पर सच्चा सुख तो उन के लिए कुछ करने में है जिन्हें हमारी जरूरत है,’’ संतोष की मुसकान लिए महिमा बोलीं.

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Fictional Story: हल है न- शुचि ने कैसे की दीप्ति की मदद?

Fictional Story: दीप्ति ने भरे मन से फोन उठाया. उधर से चहकती आवाज आई, ‘‘हाय दीप्ति… मेरी जान… मेरी बीरबल… सौरी यार डेढ़ साल बाद तुझ से कौंटैक्ट करने के लिए.’’

‘‘शुचि कैसी है तू? अब तक कहां थी?’’ प्रश्न तो और भी कई थे पर दीप्ति की आवाज में उत्साह नहीं था.

शुचि यह ताड़ गई. बोली, ‘‘क्या हुआ दीप्ति? इतना लो साउंड क्यों कर रही है? सौरी तो बोल दिया यार… माना कि मेरी गलती है… इतने दिनों बाद जो तुझे फोन कर रही हूं पर क्या बताऊं… पता है मैं ने हर पल तुझे याद किया… तू ने मेरे प्यार से मुझे जो मिलाया. तेरी ही वजह से मेरी मलय से शादी हो सकी. तेरे हल की वजह से मांपापा राजी हुए जो तू ने मोहसिन को मलय बनवाया. इस बार भी तू ने हल ढूंढ़ ही निकाला. यार मलय से शादी के बाद तुरंत उस के साथ विदेश जाना पड़ा. डेढ़ साल का कौंट्रैक्ट था. आननफानन में भागादौड़ी कर वीजा, पासपोर्ट सारे पेपर्स की तैयारी की और चली गई वरना मलय को अकेले जाना पड़ता तो सोच दोनों का क्या हाल होता.

‘‘हड़बड़ी में मेरा मोबाइल भी कहीं स्लिप हो गया. तुझ से आ कर मिलने का टाइम भी नहीं था. कल ही आई हूं. सब से पहले तेरा ही नंबर ढूंढ़ कर निकाला है. सौरी यार. अब माफ भी कर दे… अब तो लौट ही आई हूं. किसी भी दिन आ धमकूंगी. चल बता, घर में सब कैसे हैं? आंटीअंकल, नवल भैया और उज्ज्वल?’’ एक सांस में सब बोलने के बाद दीप्ति ने कोई प्रतिक्रिया न दी तो वह फिर बोली, ‘‘अरे, मैं ही तब से बोले जा रही हूं, तू कुछ नहीं कह रही… क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’ शुचि की आवाज में थोड़ी हैरानीपरेशानी थी.

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‘‘बहुत कुछ बदल गया है. शुचि इन डेढ़ सालों में… पापा चल बसे, मां को पैरालिसिस, नवल भैया को दिनरात शराब पीने की लत लग गई. उन से परेशान हो भाभी नन्ही पारिजात को ले कर मायके चली गईं…’’

‘‘और उज्ज्वल?’’

‘‘हां, बस उज्ज्वल ही ठीक है. 8वीं कक्षा में पहुंच गया है. पर आगे न जाने उस का भी क्या हो,’’ आखिर दीप्ति के आंसुओं का बांध टूट ही गया.

‘‘अरे, तू रो मत दीप्ति… बी ब्रेव दीप्ति… कालेज में बीरबल पुकारी जाने वाली, सब की समस्याओं का हल निकालने वाली, दीप्ति के पास अपनी समस्या का कोई हल नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता… कम औन यार. यह तेरी ही लाइन हुआ करती थी कभी अब मैं बोलती हूं कि हल है न. चल, मैं अगले हफ्ते आती हूं. तू बिलकुल चिंता न कर सब ठीक हो जाएगा,’’ और फोन कट गया.

डोर बैल बजी थी. दीप्ति ने दुपट्टे से आंसू पोंछे और दरवाजा खोला. रोज का वही चिरपरिचित शराब और परफ्यूम का मिलाजुला भभका उस की नाकनथुनों में घुसने के साथ ही पूरे कमरे में फैल गया. नशे में धुत्त नवल को लादफांद कर उस के 4 दोस्त उसे पहुंचाने आए थे. कुछ कम तो कुछ ज्यादा नशे में डगमगाते हुए अजीब निगाहों से दीप्ति को निहार रहे थे. नवल को सहारा देती दीप्ति उन्हें अनदेखा करते हुए अपनी निगाहें झुकाए उसे ऐसे थामने की कोशिश करती कि कहीं उन से छू न जाए. पर वे कभी जानबूझ कर उस के हाथ पर हाथ रख देते तो किसी की गरम सांसें उसे अपनी गरदन पर महसूस होतीं. कोई उस का कंधा या कमर पकड़ने की कोशिश करता. पर उस के नवल भैया को तो होश ही नहीं रहता, प्रतिरोध कहां से करते. घुट कर रह जाती वह.

पिता के मरने के बाद पिता का सारा बिजनैस, पैसा संभालना नवल के हाथों में आ गया. अपनी बैंक की नौकरी छोड़ वह बिजनैस में ही लग गया. बिजनैस बढ़ता गया. पैसों की बरसात में वह हवा में उड़ने लगा. महंगी गाडि़यां, महंगे शौक, विदेशी शराब के दौर यारदोस्तों के साथ रोज चलने लगे. मां जयंती पति के निधन से टूट चुकी थी. नवल की लगभग तय शादी भी इसी कारण रोक दी गई थी. लड़की लतिका के पिता वागीश्वर बाबू भी बेटी के लिए चिंतित थे. सब ने जयंती को खूब समझाया कि कब तक अपने पति नरेंद्रबिहारी का शोक मनाती रहेंगी. अब नवल की शादी कर दो. घर का माहौल बदलेगा तो नवल भी धीरेधीरे सुधर जाएगा. उसे संभालने वाली आ जाएगी.

सोचसमझ कर निर्णय ले लिया गया. पर शादी के दिन नवल ने खूब तमाशा किया. अचानक हुई बारिश से लड़की वालों को खुले से हटा कर सारी व्यवस्था दोबारा दूसरी जगह करनी पड़ी, जिस से थोड़ा अफरातफरी हो गई. नवल और उस के साथियों ने पी कर हंगामा शुरू कर दिया. नवल ने तो हद ही कर दी. शराब की बोतल तोड़ कर पौकेट में हथियार बना कर घुसेड़ ली और बदइंतजामी के लिए चिल्लाता गालियां निकालता जा रहा था, ‘‘बताता हूं सालों को अभी… वह तो बाबूजी ने वचन दे रखा था वरना तुम लोग तो हमारे स्टैंडर्ड के लायक ही नहीं थे.’’

मां जयंती शर्मिंदा हो कर कभी उसे चुप रहने को कहतीं तो कभी वागीश्वर बाबू से क्षमा मांगती जा रही थीं.

दुलहन बनी लतिका ने आ कर मां जयंती के जोड़े हाथ पकड़ लिए, ‘‘आंटी, आप यह क्या कर रही हैं? ऐसे आदमी के लिए आप क्यों माफी मांग रही हैं? इन का स्तर कुछ ज्यादा ही ऊंचा हो गया है. मैं ही शादी से इनकार करती हूं.’’

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बहुत समझाबुझा कर स्थिति संभाली गई और लतिका बहू बन कर घर आ गई. पर वह नवल की आदतें न सुधार सकी. बेटी हो गई. फिर भी कोई फर्क न पड़ा. 2 सालों में स्थिति और बिगड़ गई. शराब की वजह से रोजरोज हो रही किचकिच से तंग आ कर लतिका अपनी 1 साल की बेटी पारिजात उर्फ परी को ले कर मायके चली गई. इधर मां जयंती को पैरालिसिस का अटैक पड़ा और वे बिस्तर पर आंसू बहाने के सिवा कुछ न कर सकीं.

होश में रहता नवल तो अपनी गलती का उसे एहसास होता. वह मां, दीप्ति, उज्ज्वल सभी से माफी मांगता. पर शाम को न जाने उसे क्या हो जाता. वह दोस्तों के साथ पी कर ही घर लौटता.
‘‘उज्ज्वल के बारे में नहीं सोचता तू नवल. बड़ा भाई है, घर में जवान बहन दीप्ति है. उस की शादी नहीं करनी क्या? कैसेकैसे दोस्त हैं तेरे? किस हालत में घर आता है? छोड़ क्यों नहीं देता उन्हें?’’ जयंती कभी धीरेधीरे बोल पातीं.

‘‘हजार बार कहा उन्हें कुछ मत कहिए मां. उन्होंने बाबूजी का बिजनैस संभालने में बहुत मदद की है वरना मुझे आता ही क्या था. उन्हीं सब की वजह से बिजनैस में इतनी जल्दी इतनी तरक्की हुई है.’’

वह भड़क उठता, ‘‘वे सब ऐसेवैसे थोड़े ही हैं. अच्छे घरों के हैं. थोड़ा तो सभी पीते हैं. आजकल वे सब कंट्रोल में रहते हैं. मुझे ही जरा सी भी चढ़ जाती है. कल से नहीं पीऊंगा. वे सभी तो उज्ज्वल को अपना छोटा भाई और दीप्ति को छोटी बहन मानते हैं… और आप क्या बातें करती हैं मां कि…’’ वह आगबबूला होने लगता.

दीप्ति कुछ कहने को होती तो नवल उसे भी झिड़क देता. उज्ज्वल भी सहम जाता. घर का सारा दारोमदार नवल पर था. दीप्ति अपना बीएड का कोर्स पूरा कर रही थी और उज्ज्वल 8वीं की परीक्षा की तैयारी. दोनों नवल के कुछ देर बाद शांत हो जाने पर अपनेअपने काम में अपने को व्यस्त कर लेते.

मां की अनुभवी आंखें हर वक्त नवल के दोस्तों का सच ही बयां करती रहती हैं. पर भैया को दिखता ही नहीं. कितनी बार उस ने नवल के दोस्तों की गंदी नजरें, गंदी हरकतें झेली हैं. नवल को थमाने के बहाने वे कहांकहां उसे छूने की कोशिश नहीं करते… कैसे भैया को विश्वास दिलाए… वे अपने दोस्तों के खिलाफ कुछ भी मानने को तैयार नहीं होते. उलटा उसे झाड़ देते. दीप्ति की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आंसू निकलने लगते तो बाथरूम में बंद हो जी भर कर रो लेती.

शुचि अगले हफ्ते सच में आ धमकी. उस के गले लग कर दीप्ति खूब रोई और फिर अपना सारा दुख उसे बताया.

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शुचि ने नम आंखों से उसे धैर्य बंधाया, ‘‘दीप्ति सब सही हो जाएगा… हल है न. मैं तेरी ही जबान कह रही हूं… हार थोड़े ही मानते हैं ऐसे… चल, अब बहुत हो गया. आंसू पोंछ और हंस दे.

‘‘याद है जब मैं ने तुझे ‘गुटका खाए सैंया हमार’ वाली प्रौब्लम बताई थी तो तू ने जो मजाकमजाक में हल निकाला था तो वह बड़े काम का निकला था. मैं ने उस के अनुसार एक शादी में मलय की जेब में रखी गुटके की लड़ी को कंडोम की लड़ी में बदल दिया. फिर जब शादी में मलय ने जेब से गुटका निकाला तो पूरी कंडोम की लड़ी जेब से लटक गई. फिर

क्या था. यह देख लोग तो हंसहंस कर लोटपोट हो गए, मगर मलय बुरी तरह झेंप गए. उस दिन से उस ने जेब में गुटका रखना छोड़ दिया था. फिर तेरी ही सलाह पर हम उसे नशा मुक्ति केंद्र ले गए थे. धीरेधीरे मलय का गुटका खाने की लत छूट गई थी,’’ दीप्ति के आंसू रुके देख शुचि मुसकराई.

फ्रैश हो कर शुचि ने अपना बैग खोला और दीप्ति को दिखाते हुए बोली, ‘‘यह देख विदेश से तेरे लिए क्या लाई हूं. हैंडी वीडियो कैमरा.’’

‘‘इतना महंगा… क्या जरूरत थी इतना खर्च करने की?’’ दीप्ति ने प्यार से डांटा.

‘‘हूं, क्या जरूरत है,’’ कह शुचि ने उसे मुंह चिढ़ाया, ‘‘बकवास बंद कर और इस का फंक्शन देख क्या बढि़या वीडियो लेता है.’’

‘‘मेरी दीदी कितना बढि़या वीडियो कैमरा लाई हैं,’’ उज्ज्वल स्कूल से आ गया था.

‘‘हाय उज्ज्वल… कितना लंबा हो गया,’’ शुचि ने प्यार से उसे अपनी ओर खींचा.

‘‘मैं कपड़े चेंज कर के आता हूं दीदी. तब मेरा ब्रेक डांस करते हुए वीडियो बनाना,’’ कह वह चला गया.

‘‘मैं तो सोच रही हूं इस से तेरी समस्या का हल भी हो जाएगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘रात में भैया जब दोस्तों के साथ आएगा तो हम छिप कर सब शूट कर के सुबह टीवी से अटैच कर उन्हें पूरा वीडियो दिखा देंगे. तब वे अपने दोस्तों की ओछी हरकतों से वाकिफ हो जाएंगे. दोस्तों की असलियत जान कर वे उन्हें छोड़ेंगे नहीं.’’

रात के 10 बज रहे थे. शुचि और उज्ज्वल सीक्रेट ऐजेंटों की तरह परदे की आड़ में सही जगह पर कैमरा लिए तैयार खड़े थे. तभी घंटी बजी तो दीप्ति ने दम साधे दरवाजा खोला. रोज का सीन शुरू हो गया. शुचि ने डोरबेल बजते ही रिकौर्डर औन कर लिया था.

‘‘अरे, लो भई संभालो अपने भाई को सहीसलामत घर तक ले आए.’’

‘‘अरे हमें भी तो थाम लो भई,’’ उन में से एक बोला.

‘‘हम इतने भी बुरे नहीं चुन्नी तो संभालो अपनी,’’ कह एक चुन्नी ठीक करने लगा तो एक बहाने से उस की कमर में हाथ डालने लगा.

एक के हाथ उस के बाल और गाल सहलाने की कोशिश में थे, ‘‘ये तुम्हारे गालों पर क्या लग गया जानू,’’ वैसी ही बेहूदा हरकतें… सोफे पर एक ओर लेटे नवल को कोई होश न था कि उस के ये दोस्त उस की बहन के साथ क्या कर रहे हैं.

‘‘थोड़ी नीबू पानी हमें भी पिला दो दीपू… तुम्हें देख कर तो हमारा नशा भी गहरा हो रहा है.’’

दीप्ति उज्ज्वल के हाथ से पानी का गिलास ले कर नवल को पिलाने की कोशिश कर रही थी. उन में से एक दीप्ति से सट कर बैठ गया. दीप्ति ने उसे धक्का दे कर हटाने की कोशिश की.

‘‘डरती क्यों हो दीपू. हम तुम्हें खा थोड़े ही जाएंगे. जा बच्चे पानी बना ला हम सब के लिए,’’ कह वह दीप्ति के माथे पर झूल आई घुंघराली लट को फूंक मारने लगा.

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‘‘पहले आप दीदी के पास से उठो.’’ उज्ज्वल उसे खींचने लगा तो उस आदमी ने उसे परे धकेल दिया.

शुचि का मन किया कि कैमरा वहीं पटक जा कर तमाचे रसीद कर दे… कैसे रोजरोज बरदाश्त कर रही है दीप्ति ये सब… हद होती है किसी भी चीज की. ‘पुलिस को कौल करती हूं तो नवल भैया भी अंदर होता. क्या करें,’ शुचि सोच रही थी, फिर उस ने यह सोच कैमरा एक ओर रखा और हिम्मत कर के बाहर आ गई कि धमका तो सकती ही है उन्हें. प्रूफ भी ले लिया. फिर कड़कती आवाज में चीखते हुए बोली, ‘‘क्या बदतमीजी हो रही है? शर्म नहीं आती?
नवल भैया के दोस्त हो कर तुम सब छोटी बहन से ऐसी हरकतें कर रहे हो? आंटी बिस्तर से उठ नहीं सकतीं, उज्ज्वल छोटा है और भैया होश में नहीं… इस सब का फायदा उठा रहे हो… गैट आउट वरना अभी पुलिस को कौल करती हूं. यह रहा 100 नंबर,’’ मोबाइल स्क्रीन पर रिंग भी होने लगी. उस ने स्पीकर औन कर दिया.

रिंग सुनाई पड़ते ही सब नौ दो ग्याह हो लिए. तब उज्ज्वल ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. शुचि ने फोन काट दिया. अचानक फिर फोन बज उठा, ‘‘हैलो पुलिस स्टेशन.’’

‘‘सौरी… सौरी सर गलती से दब गया था. थैंक्यू.’’

‘‘ओके,’’ फोन फिर कट गया. उस के बाद तीनों नवल को उस के बिस्तर तक पहुंचाने की कोशिश में लग गए.

सुबह करीब सात बजे नवल जागा. सिर अभी भी भारी था. उस ने अपना माथा सहलाया, ‘‘कल रात कुछ ज्यादा ही हो गई थी. थैंक्स राजन, विक्की, सौरभ और राघव का जो उन्होंने मुझे फिर घर पहुंचा दिया सहीसलामत.’’

उन्हें थैंक्स कहने के लिए नवल मोबाइल उठाया ही था कि शुचि सामने आ गई.

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‘‘अरे शुचि, तू कब आई? अचानक कहां चली गई थी तू? मोहसिन क्या मिल गया हम सब को ही भूल गई,’’ वह दिमाग पर जोर दे कर मुसकराया.

‘‘नमस्ते भैया. मैं मोहसिन नहीं मलय के साथ विदेश चली गई थी. डेढ़ साल के लिए… पर आप तो यहां रह कर भी यहां नहीं रहते… अपने घरपरिवार को ही जैसे भूल गए हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘बहुत बुरा लगा सब बदलाबदला देख कर… अंकल नहीं रहे, आंटी बैड पर हो गईं, भाभी परी को ले कर मायके चली गईं और आप…’’

‘‘हां शुचि वक्त ऐसे ही बदलता है… एक मिनट मैं ब्रश कर के आता हूं तू बैठ.’’

दीप्ति वहीं चाय ले कर चली आई थी. बाथरूम से जब नवल आया तब तक शुचि कैमरा उस के टीवी से अटैच कर चुकी थी. उस ने रिमोट नवल के हाथों में थमाते हुए कहा, ‘‘आप औन कर के देखो भैया, इस कैमरे से बहुत अच्छी वीडियो बनाया है. यह कैमरा दीप्ति के लिए विदेश से लाई हूं… मैं अभी आई भैया आप तब तक देखो.’’ और दोनों अंदर चली गईं.

‘‘वैरी गुड,’’ कह कर नवल तकिए के सहारे बैठ गया. और टीवी औन कर के चाय का कप उठाने लगा.

वीडियो चल पड़ा था. उस की नजर स्क्रीन पर गई, ‘अरे यह तो मैं, मेरे दोस्त मेरा ही वीडियो… ड्राइंगरूम… वही कपड़े यानी कल… वह वीडियो देखता गया और गुस्से और शर्म से भरता चला गया. छि… मैं उन्हें अपना अच्छा दोस्त समझता था… वे मेरी बहन दीप्ति के साथ शिट… शिट…’ उसे दोस्तों से ज्यादा अपनेआप पर क्रोध आने लगा. वह दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक अपनी शर्म और गुस्सा छिपाने का प्रयास करने लगा.

तभी शुचि आ गई. वीडियो खत्म हो चुका था.

‘‘भैया… भैया,’’ कह कर उस ने नवल के चेहरे से उस के हाथ हटा दिए, ‘‘दीप्ति और आंटी के लाख कहने पर भी आप अपने दोस्तों की असलियत जाने बिना उन के खिलाफ कुछ नहीं सुनते थे, इसलिए मुझे यह करना पड़ा… सौरी भैया.’

‘‘अरे तू सौरी क्यों बोल रही है… गलती तो मेरी है ही और वह भी इतनी बड़ी… सही किया जो मेरी आंखें खोल दीं. कितना जलील किया है मैं ने दीप्ति को. उज्ज्वल पर भी क्या असर पड़ता होगा और मां को तो मैं इस हालत में भी मौत की ओर ही धकेले जा रहा होऊंगा. शराब ने मुझे इतना गिरा दिया कि अपनों को छोड़ मैं गैरों पर विश्वास करने लगा. उन्हीं के बहकावे में मैं ने लतिका को भी घर से जाने के लिए मजबूर कर दिया. वह मेरी नन्ही परी को ले कर चली गई. वह सिसक उठा. रोज सुबह सोचता हूं नहीं पीऊंगा अब से पर कमबख्त लत है कि छूटती नहीं… शाम होतेहोते मैं… उफ,’’ उस का चेहरा फिर उस की हथेलियों में था.

‘‘छूटेगी जरूर भैया, अगर आप मन में ठान लें… चलेंगे भैया?’’

पूछने के अंदाज में उस ने सिर उठाया, ‘‘कहां?’’

‘‘चलिए आज ही चलिए भैया जहां मैं अपने मियांजी को ले गई थी उन के गुटके की आदत को छुड़वाने के लिए. मेरे घर के पास ही तो है नशामुक्ति केंद्र. मेरे कुलीग के भाई अमन हवां के हैड बन गए हैं,’’ कह कर वह मुसकराई थी, ‘‘चलेंगे न भैया.’’

नवल ने हां में सिर हिलाया, तो पास खड़ी दीप्ति नवल से लिपट खुशी से रो पड़ी. नवल ने उस के सिर पर हाथ फेरा और सीने से लगा लिया. शुचि भी नम आंखों से मुसकरा उठी.

शुचि की शादी की वर्षगांठ पर दीप्ति उस के घर आई थी.

‘‘अब तो नवल भैया ठीक हो गए हैं… अब उदास क्यों है? तेरी भाभी को भी अब जल्दी लाना होगा. तभी तो मैं अपनी भाभी को ला पाऊंगी… पर तू हां तो कर पहले.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह तू अमन को पसंद है. मैं ने बहुत पहले अमन से तेरा गुटका बदलने वाला उपाय शेयर किया था तो वे खूब हंसे थे. और तभी से वे तुम से यानी बीरबल से मिलना चाहते थे. वे भी आए हैं मिलेगी उन से?’’

 

‘‘तू पागल है क्या?’’ दीप्ति के लाज और संकोच से कान लाल हो उठे.

तभी अमन को वहां से गुजरते देख शुचि बोली, ‘‘अमन, अभीअभी मैं आप को ही याद कर रही थी… आप मिलना चाहते थे न मेरी बीरबल दोस्त से… यही है वह मेरी प्यारी दोस्त दीप्ति…’’

दीप्ति नमस्ते कर नजरें झुकाए खड़ी थी. अमन से नजरें मिलाने का साहस उस में न था. उस ने महसूस किया, अमन मंदमंद मुसकरा रहा है. सच जानने के लिए उस की पलकें अपनेआप उठीं फिर झुक गईं. अमन कभी दीप्ति को देखता तो कभी शुचि को और फिर मंदमंद मुसकराए जा रहा था. दीप्ति की धड़कनें तेज होने लगी थीं.

‘‘अरे अमन अब कुछ बोलो भी.’’

शुचि दीप्ति से अमन की ओर इशारा करते हुए बोली, ‘‘अब बता बनेगी मेरी भाभी?’’

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अमन ने खुशी को छिपाते हुए बनावटी गुस्से से शुचि को आंख तरेरीं तो उधर दीप्ति ने भी शरमा कर आंखें झुका लीं. शुचि के मुंह से अमन की तारीफें सुन कर और अपने भैया को ठीक करने वाले अमन को साक्षात देख कर वह पहले ही प्रभावित थी.

‘‘वाह, अब जल्दी से आंटी को खुशी की यह खबर देनी होगी,’’ कह कर शुचि ने दीप्ति को बांहों में भर लिया.

Fictional Story

Long Story in Hindi: उजली परछाइयां- क्या अंबर-धरा एक हो पाए?

लेखिका- महिमा दीक्षित

Long Story in Hindi: बीकानेर के सैंट पौल स्कूल के सामने बैठी धरा बहुत नर्वस थी. उसे वहां आए करीब 1 घंटा हो रहा था. वह स्कूल की छुट्टी होने और किट्टू के बाहर आने का इंतजार कर रही थी. किट्टू से उस का अपना कोई रिश्ता नहीं था, फिर भी उस की जिंदगी के बीते हुए हर बरस में किट्टू के निशान थे. अंबर का 14 साल का बेटा, जो अंबर के अतीत और धरा के वर्तमान के 10 लंबे सालों की सब से अहम परछाईं था. उसी से मिलने वह आज यहां आई थीं. आज वह सोच कर आई थी कि उस की कहानी अधूरी ही सही, लेकिन बापबेटे का अधूरापन वह पूरा कर के रहेगी.

करीब 10 साल पहले धरा का देहरादून में कालेज का सैकंड ईयर था जब धरा मिली थी मिस आभा आहलूवालिया से, जो उस के और अंबर के बीच की कड़ी थी. उस से कोई 4-5 साल बड़ी आभा कालेज की सब से कूल फैकल्टी बन के आई थी. वहीं, धरा में शैतानी और बेबाकपन हद दर्जे तक भरा था. लेकिन धीरेधीरे आभा और धरा टीचरस्टूडैंट कम रह गई थीं, दोस्त ज्यादा बन गईं. लेकिन शायद इस लगाव का एक और कारण था, वह था अम्बर, आभा का बड़ा भाई, जिस की पूरी दुनिया उस के इर्दगिर्द बसी थी और उसे वह अकसर याद करती रहती थी.

आभा ने बताया था कि अंबर ने करीब 5 साल पहले लवमैरिज की थी, बीकानेर में अपनी पत्नी रोशनी व 4 साल के बेटे किट्टू के साथ रह रहा था और 3-4 महीने में अपने घर आता था. आभा अकसर धरा से कहती कि उस की आदतें बिलकुल उस के भाई जैसी हैं.

ग्रेजुएशन खत्म होतेहोते आभा और धरा एकदूसरे की टीचर और स्टूडैंट नहीं रही थीं, अब वे एक परिवार का हिस्सा थीं. इन बीते महीनों में धरा उस के घर भी हो आई थी, भाई अंबर और बड़ी बहन नीरा से फेसबुक पर कभीकभार बातें भी होने लगी थीं और छुट्टियां उस के मम्मीपापा के साथ बीतने लगी थीं.

एग्जाम हो गए थे लेकिन मास्टर्स का एंट्रैंस देना बाकी था, इसलिए धरा उस समय आभा के घर में ही रह रही थी. तब अंबर घर आया था. बाहर से शांत लेकिन अंदर से अपनी ही बर्बादी का तूफान समेटे, जिस की आंधियों ने उस की हंसतीखेलती जिंदगी, उस का प्यार, सबकुछ तबाह कर दिया था. आभा के साथ रहते धरा को यह मालूम था कि अंबर की शादी के 2 साल तक सब ठीक था, फिर अचानक उस की बीवी रोशनी अपने मम्मी के घर गई, तो आई ही नहीं.

इस बार जब अंबर आया तो उस के हमेशा मुसकराते रहने वाले चेहरे से पुरानी वाली मुसकान गायब थी. धरा के लिए वह सिर्फ आभा का भाई था, जो केवल उतना ही माने रखता था जितना बाकी घरवाले. लेकिन 1-2 दिन में ही न जाने क्यों अंबर की उदास आंखों और फीकी मुसकान ने उसे बेचैन कर दिया.

करीब एक सप्ताह बाद अंबर ने बताया कि वह अपनी जौब छोड़ कर आया है क्योंकि उस के ससुराल वालों और पत्नी को लगता है कि वह पैसे के चलते वहां रहता है. अब वह यहीं जौब करेगा और कुछ महीनों के बाद पत्नी और बेटा भी आ जाएंगे. यह सब के लिए खुश होने की बात थी. लेकिन फिर भी, कुछ था जो नौर्मल नहीं था.

अंबर ने नई जौब जौइन कर ली थी. कितने ही महीने निकल गए, पत्नी नहीं आई. हां, तलाक का नोटिस जरूर आया. रोशनी ने अंबर से फोन पर भी बात करनी बंद कर दी थी और बेटे से भी बात नहीं कराती थी. इन हालात ने सभी को तोड़ कर रख दिया था. अंबर के साथ बाकी घर वालों ने भी हंसना छोड़ दिया.  उन के एकलौते बेटे की जिंदगी बरबाद हो रही थी. वह अपने बच्चे से बात तक नहीं कर पाता था. परिवार वाले कुछ नहीं कर पा रहे थे.

धरा सब को खुश रखने की कोशिश करती. कभी सब की पसंद का खाना बनाती तो कभी अंबर को पूछ कर उस की पसंद का नाश्ता बनाती. उसे देख कर अंबर अकसर सोचता कि यह मेरी और मेरे घर की कितनी केयर करती है. धरा आज की मौडर्न लड़की थी. लेकिन घरपरिवार का महत्त्व वह अच्छी तरह समझती थी. घर के काम करना उसे अच्छा लगता था. मन साफ सच्चा हो तो सूरत को भी हसीन बना देता है. धरा के चेहरे की खूबसूरती में गजब का आकर्षण था. अभी 23 वर्ष की पिछले महीने ही तो हुई थी. दूसरी ओर धरा जबजब अंबर को देखती तो सोचती थी कि कितना प्यार करता है अपनी बीवी को. काश, मुझे भी ऐसा ही कोई मिले. तलाक की बात सुन कर पहली बार अंबर को रोते देखा था धरा ने और उस के शब्द कानों में अब तक गूंज रहे थे कि ‘मर जाऊंगा लेकिन तलाक नहीं दूंगा. मैं नहीं रह सकता उस के बिना.’

अंबर की गहरी भूरी आंखों में दर्द भरा रहता था. 30 की उम्र हो गई थी लेकिन पर्सनैलिटी उस की ऐसी थी कि देखने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. धरा समझ नहीं पाती थी कि रोशनी को अंबर में ऐसी क्या कमी नजर आई थी जो उसे छोड़ गई.

जुलाई में धरा की दीदी देहरादून घूमने आई थी और उस की खूब खातिर की गई. देहरादून का मौसम खुशगवार था. इसलिए घूमनेफिरने का अलग मजा था. अंबर भी उसे पूछ कर ही सारे प्रोग्राम बना रहा था. प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मसूरी, सहस्रधारा, चकराता, लाखामंडल तथा डाकपत्थर देखने का प्रोग्राम अंबर ने झटपट बना डाला. अंबर का किसी और को इंपौर्टेंस देते देख न जाने क्यों धरा के मन में जलन हुई और उसे पहली बार एहसास हुआ कि अनजाने में ही वह अंबर को चाहने लगी है. लेकिन क्यों, कब, कैसे, इस की वजह वह खुद नहीं जानती थी. इस की वजह शायद अंबर का इतना प्यारा इंसान होना था या फिर शायद इतनी गहराई से अपनी बीवी के लिए प्यार था कि धरा खुद उस के प्यार में पड़ गई थी.

धरा के दिल में अंबर ने अनजाने में जगह बना ली थी वहीं धरा जिस तरह सब का खयाल रखती और खुश रहती, वह अंबर के घर वालों को अपना बना रही थी. उस की ये आदतें सब के साथ अंबर को भी उस की तरफ खींच रही थीं. जब कोई चीज हमारे पास न हो तो उस की कमी ज्यादा ही लगती है, घर में भी सब को धरा को देख कर बहू की कमी कुछ ज्यादा ही अखरने लगी थी.

अंबर अकसर धरा को तंग करता रहता, कभी उलझे हुए बालों को खींचता तो कभी गालों पर हलकी चपत लगा देता. दोनों के दिलों में अनकही मोहब्बत जन्म ले चुकी थी जिस का एहसास उन्हें जल्दी ही हुआ. एक दिन धरा ने अंबर को छेड़ते हुए कहा, ‘मुझे तंग क्यों करते रहते हो, सब के लिए आप के दिल में प्यार है, फिर मुझ से ही क्या झगड़ा है?’ इस पर अंबर की मां ने जवाब दिया, ‘वह इसलिए गुस्सा करता है कि तू हमें पहले क्यों नहीं मिली.’ इन चंद शब्दों ने सब के दिलों का हाल बयां कर दिया था.

वह अचानक यह सुन कर बाहर भाग गई थी, बाहर बालकनी में रेलिंग पकड़ कर खड़ी थी. सांसें ऊपरनीचे हो रही थीं. अंबर ने पास आ कर कहा, ‘मैं ने और मेरे घर वालों ने तुम्हारी जैसी पत्नी और बहू का सपना देखा था.’ अंबर ने आगे कहा, ‘पता नहीं कब से, लेकिन मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. हां, मगर मैं तुम से शादी नहीं कर सकता क्योंकि अगर मैं ने ऐसा किया तो अपने बेटे को हमेशा के लिए खो सकता हूं.’

धरा का सुर्ख होता चेहरा सफेद पड़ गया था. उस ने नजरें उठा कर अंबर को देखा, तो अंबर की आंखों में आंसू थे, ‘मेरे पास जीने की वजह सिर्फ यह है कि कभी मेरा बेटा मुझे मिलेगा. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता लेकिन अपना बुढ़ापा जरूर सिर्फ तुहारे साथ बिताना चाहूंगा. सुबहसुबह तुम्हारे हाथ की चाय पिया करूंगा,’ उस वक्त दोनों की सांसें महसूस कर सकती थी धरा जब अंबर ने ये शब्द कहे थे जिन्होंने एक पल में ही उस को आसमान पर ले जा कर वापस नीचे धरातल पर पटक दिया था.

एक पल को धरा को लगा यह कैसा प्यार है और कैसी बेतुकी बात कही है अंबर ने, लेकिन दूसरे ही पल उसे भविष्य में अंबर में एक हारा और टूटा हुआ पिता नजर आया जिस का बेटा उसे कह रहा था कि तुम ने दूसरी शादी के लिए मुझे और मेरी मां को छोड़ा. शायद सही भी थी अंबर की बात. 4 साल का बच्चा जब मां के साथ रहता है तो वह उतना ही सच समझेगा जितना उसे बताया जाएगा.

जिस से प्यार करती है उसे अपनी वजह से ही टूटा हुआ कैसे देखती धरा. अगर अंबर बेटे के लिए उस का इंतजार कर सकता है तो धरा भी तो अंबर का इंतजार कर सकती है. फिर अंबर मान भी जाता लेकिन अपने ही घर वालों को मनाना भी तो धरा के लिए आसान नहीं था.

अंबर का हाथ पकड़ कर धरा बोली, ‘अगर सच में हमारे बीच प्यार है तो एक दिन हम जरूर मिलेंगे. मैं इंतजार करूंगी उस दिन का जब सबकुछ सही होगा और रही शादी की बात, तो राधाकृष्णा की भी शादी नहीं हुई थी लेकिन आज भी उन का नाम साथ ही लिया जाता है.’

लेकिन शर्तें तो दिमाग लगाता है, दिल नहीं और सब हालात को जानतेसमझते भी उन दोनों के तनमन भी दूर नहीं रह सके. शादी की बात तो दोबारा नहीं हुई, लेकिन दोनों के ही घर वालों को उन के बीच पनपे रिश्ते का अंदाजा हो गया था. ऐसे ही साथ रहते 2 साल निकल गए थे. अब भी अंबर अपने बेटे किट्टू से बात करने को तरसता था. सबकुछ वैसा ही चल रहा था.

धरा ने जौब जौइन कर ली और एक फ्रैंड की शादी में गई थी. वहां से आ कर एक बार फिर उस के दिल में अंबर से शादी करने की चाहत करवट लेने लगी. बहुत मुश्किल था उस का अंबर के इतने पास होते हुए भी दूर होना और इसीलिए उस का प्यार और उस की छुअन को अपने एहसासों में बसा कर धरा देहरादून छोड़ मुंबई आ गई थी. अब एक ही धुन थी उसे, टीवी इंडस्ट्री में नाम की और बहुत सारे पैसे कमाने की जिस से शादी न सही कम से कम सफल हो कर अपने घर वालों के प्रति कर्तव्य निभा सके.

उस के बाद के अब तक के साल कैसे बीते, यह धरा और अंबर दोनों ही जानते हैं. दूर रह कर भी न तो दूर रह सके, न साथ रह सके दोनों. वे महीनों के अंतराल में मिलते, किट्टू के बड़े होने और साथ जीने के सपने देखते और एकदूसरे की हिम्मत बढ़ाते. लेकिन कभी उन की नजदीकियां ही जब उन्हें कमजोर बनातीं तो दोनों खुद ही टूटने भी लगते और फिर संभलते. रिश्तेदारों, पड़ोस, महल्ले वालों सब से क्या कुछ नहीं सुनना और सहना पड़ा था दोनों को. लेकिन, उन्होंने हर पल हर कदम एकदूसरे को सपोर्ट किया था. बस, कभी शादी की बात नहीं की.

धरा के घर वाले कुछ सालों तक शादी के लिए बोलते रहे. लेकिन बाद में उस ने अपने घर वालों को समझा लिया था कि वे जिस इंडस्ट्री में हैं, वहां शादी इतना माने नहीं रखती है और उस के सपने अलग हैं.  इस बीच, उस ने न कभी अंबर और उस के घर वालों का साथ छोड़ा, न किसी और से रिश्ता जोड़ा. वह अंबर से ले कर उस के बेटे किट्टू तक के बारे में सब खबर रखती थी.

‘‘छुट्टी का टाइम हो गया, मैडमजी,’’ चपरासी की आवाज से धरा की तंद्रा टूटी.

कुछ मिनटों बाद किट्टू को आता देख धरा ने उसे पुकारा, तो किट्टू के चेहरे पर गुस्से और नफरत के भाव उभर आए. फेसबुक पर देखा है उस ने धरा को. यही है वह जिस से शादी करने के लिए पापा हमें छोड़ कर चले गए, ऐसा ही कुछ सुनता आया है वह इतने सालों से मां और नानी से और जब बड़ा हुआ तो उस की नफरत और गुस्सा भी उतना ही बढ़ता गया. अंबर से कभीकभार फोन पर बात होती, तो, बस, हांहूं करता रहता था.

आगे पढ़ें- किट्टू का कोल्डड्रिंक जैसा ठंडा स्वर उभरा….

कहानी- महिमा दीक्षित

‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ किट्टू गुस्से में घूरते हुए कहा.

‘‘जरूरी बात करनी है, तुम्हारे पापा से रिलेटेड है,’’ धरा ने शांत स्वर में कहा. 2 दिनों बाद तुम्हारे पापा का बर्थडे है, मैं चाहती हूं कि तुम उस दिन उन के पास रहो…’’

‘‘और मैं तुम्हारी बात क्यों सुनूं?’’ उस की बात पूरी होने से पहले ही किट्टू ने चिढ़ कर जवाब दिया.

‘‘क्योंकि वे भी इतने सालों से तुम्हें उतना ही मिस कर रहे हैं जितना कि तुम करते हो. यह उन की लाइफ का बैस्ट गिफ्ट होगा क्योंकि तुम उन के लिए सब से बढ़ कर हो,’’ धरा ने किट्टू से कहा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ कल देहरादून चलोगे?’’

किट्टू का कोल्डड्रिंक जैसा ठंडा स्वर उभरा, ‘‘इतना ही कीमती हूं तो मुझे वे छोड़ कर क्यों गए थे? मैं उन से नहीं मिलना चाहता. वे कभी मेरे बर्थडे पर नहीं आए…या…या फिर तुम्हारी वजह से नहीं आए. मुझे तुम से बात ही नहीं करनी. तुम गंदी औरत हो.’’ अपना बैग उठाते हुए लगभग सुबकने वाला था किट्टू.

‘‘तुम जाना चाहते हो तो चले जाना लेकिन, बस, एक बार ये देख लो,’’ कह कर धरा ने सारे पुराने मैसेज और चैट के प्रिंट किट्टू के सामने रख दिए जिन में घूमफिर कर एक ही तरह के शब्द थे अंबर के कि ‘किट्टू से बात करा दो,’ या ‘मैं मिलने आना चाहता हूं’ या ‘डाइवोर्स मत दो.’ और रोशनी के भी शब्द थे, ‘मैं तुम्हारे परिवार के साथ नहीं रह सकती,’ या ‘शादी जल्दबाजी में कर ली लेकिन तुम्हारे साथ और नहीं रहना चाहती,’ ‘किट्टू से तुम्हें नहीं मिलने दूंगी…’ ऐसा ही और भी बहुतकुछ था.

किट्टू की तरफ देखते हुए धरा ने कहा, ‘‘मेरे पास कौल रिकौर्डिंग्स भी हैं. अगर तुम सुनना चाहो तो. तुम्हारे पापा कभी नहीं चाहते कि तुम अपनी मां के बारे में थोड़ा सा भी बुरा सोचो या सच जान कर तुम्हारा दिल दुखे. इसलिए आज तक उन्होंने तुम्हें सच नहीं बताया. लेकिन मैं उन्हें इस तरह और घुटता हुआ नहीं देख सकती. और हां, हम एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम ने कभी शादी नहीं की. जानते हो क्यों? क्योंकि तुम्हारे पापा को लगता था कि शादी करने पर तुम उन्हें और भी गलत समझोगे.  क्या अब भी तुम मेरे साथ कल देहरादून नहीं चलोगे?’’ यह कह कर धरा ने हौले से किट्टू के सिर पर हाथ फेरा.

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‘‘चलो, चल कर मम्मी को बोलते हैं कि पैकिंग कर दें,’’ किट्टू को जैसे अपनी ही आवाज अजनबी लगी.

जब धरा के साथ किट्टू घर पहुंचा तो सभी की आंखें फैल गईं. नानी की तरफ देखते हुए किट्टू ने अपनी मां से कहा, ‘‘मैं पापा के बर्थडे पर धरा के साथ 2-3 दिनों के लिए देहरादून जा रहा हूं, मेरी पैकिंग कर दो.’’

रोशनी और बाकी सब समझ गए थे कि किट्टू अभी किसी की नहीं सुनेगा. सुबह उसे लेने आने का बोल धरा होटल के लिए निकल गई. पूरे रास्ते धरा सोचती रही कि आगे न जाने क्या होगा, किट्टू न जाने कैसे रिऐक्ट करेगा. वह अंबर से कैसे मिलेगा और अब क्या सबकुछ ठीक होगा? सुबह दोनों देहरादून की फ्लाइट में थे. किट्टू ने धरा से कोई बात नहीं की.

अगली सुबह का सूरज अंबर के लिए दुनियाजहान की खुशियां ले कर आया. किट्टू को सामने देख एकबारगी तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ और अगले ही पल अंबर ने अपने बेटे को गोद में उठा कर कुछ घुमाया. जैसे वह अभी भी 14 साल का नहीं, बल्कि उस का 4 साल का छोटा सा किट्टू हो. पूरे 9 साल बाद आज वह अपने बच्चे को अपने पास पा कर निहाल था और घर में सभी नम आंखों से बापबेटे के इस मिलन को देख रहे थे.

अंबर का इतने सालों का इंतजार आज पूरा हुआ था, अंबर के साथ आज धरा को भी अपना अधूरापन पूरा लग रहा था. शाम में किट्टू ने बर्थडे केक अपने हाथ से कटवाया था और सब से पहला टुकड़ा अंबर ने किट्टू के मुंह में रखा, तो एक बार फिर अंबर और किट्टू दोनों की आंखें नम हो गईं. तभी किट्टू ने अंबर की बगल में खड़ी धरा को अजीब नजरों से देखा तो वह वहां से जाने लगी. अचानक उसे किट्टू की आवाज सुनाई दी, ‘‘पापा, केक नहीं खिलाओगे धरा आंटी को?’’ और धरा भाग कर उन दोनों से लिपट गई.

अगली सुबह धरा जल्दी ही निकल गई थी. उस ने बताया था कि कोई जरूरी काम है बस जाते हुए 2 मिनट को किट्टू से मिलने आई थी. दोपहर में अंबर को धरा का मैसेज मिला, ‘तुम्हें तुम्हारा किट्टू मिल गया. मैं कल आखिरी बार तुम से उस जगह मिलना चाहती हूं जहां हम ने चांदनी रात में साथ जाने का सपना देखा था.’

अंबर जानता था धरा ने उसे जबलपुर में धुआंधार प्रपात के पास बुलाया है. उस ने पढ़ा था कि शरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में प्रकृति धुआंधार में अपना अलौकिक रूप दिखाती है. तब से उस का सपना था कि चांदनी रात में नर्मदा की सफेद दूधिया चट्टानों के बीच तारों की छांव में वह अंबर के साथ वहां हो. अगली शाम में जब अंबर भेड़ाघाट पहुंचा तो किट्टू भी साथ था. वहां उन्हें एक लोकल गाइड इंतजार करता मिला जिस ने बताया कि वह उन लोगों को धुआंधार तक छोड़ने के लिए आया है.

करीब 9 बजे जब अंबर वहां पहुंचा तो धरा दूर खड़ी दिखाई दी. चांद अपने पूरे रूप में खिल आया था और संगमरमर की चट्टानों के बीच धरा, यह प्रकृति,? सब उसे अद्भुत और सुरमई लग रहे थे. वह धरा के पास पहुंचा और उस का हाथ पकड़ कर बेचैनी से बोला, ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ, धरा. मैं नहीं रह सकता तुम्हरे बिना. अब तो सब ठीक हो चुका है. देखो, किट्टू भी तुम से मिलने आया है.’’

धरा ने धीरे से अपना हाथ अंबर के हाथ से छुड़ाया, तो अंबर के चेहरे पर हताशा फैल गई. किट्टू ने धरा की तरफ देखा और दोनों शरारत से मुसकराए. दूर क्षितिज में आसमान के तारे और शहर की लाइट्स एकसाथ झिलमिला रही थीं. तभी धरा ने एक गुलाब निकाला और घुटने पर बैठ कर कहा, ‘‘मुझे भी अपने परिवार का हिस्सा बना लो, अम्बर. क्या अब से रोज सुबह मेरे हाथ की चाय पीना चाहोगे?’’

खुशी और आंसुओं के बीच अंबर ने धरा को जोर से गले लगा लिया था और किट्टू अपने कैमरे से उन की फोटो खींच रहा था.

उन का इतने सालों का इंतजार आज खत्म हुआ था. अंबर के साथसाथ धरा का अधूरापन भी हमेशा के लिए पूरा हो गया था. आज उसे उस का वह क्षितिज मिल गया था जहां अतीत की गहरी परछाइयां वर्तमान का उजाला बन कर जगमगा रही थीं, वह क्षितिज जहां 10 साल के लंबे इंतजार के बाद अंबरधरा भी एक हो गए थे.

Long Story in Hindi

Hindi Social Story: छंटनी- क्या थी रीता की असलियत

Hindi Social Story: शादी से पहले सुधा के मन में हजार डर बैठे थे, सास का आतंक, ससुर का खौफ, ननदों का डर और देवर, जेठ से घबराहट, पर शादी के बाद लगा बेकार ही तो वह डरतीघबराती थी. ससुराल में सामंजस्य बनाना इतना मुश्किल तो नहीं.

वैसे सुधा बचपन से ही मेहनती थी, शादी हुई तो जैसे सब को खुश करने का उस में एक जुनून सा सवार हो गया. सब से पहले जागना और सब के बाद सोना. सासननदों के हिस्से के काम भी उस ने खुशीखुशी अपने सिर ले लिए थे. जब रोजमर्रा की जिंदगी में यह हाल था तो रीतानीता की शादी का क्या आलम होता. रातरात जाग कर उन की चुनरियां सजाने से मेहंदी रचाने तक का काम भी सुधा ने ही किया.

औरों के लिए रीतानीता की शादी 2-4 दिन की दौड़धूप भले ही हो पर सुधा के लिए महीनों की मेहनत थी. एकएक साड़ी का फाल टांकने से ले कर पेटीकोट और ब्लाउज तक उसी ने सिले. चादरें, तकिया, गिलाफ और मेजपोश जो उस ने भेंट में दिए उन को भी जोड़ लें तो सालों की मेहनत हो गई, पर सुधा को देखिए तो चेहरे पर कहीं शिकन नहीं. सहजता से अपनापन बांटना, सरलता से देना, सुंदरता से हर काम करना आदि सुधा के बिलकुल अपने मौलिक गुण थे.

रीता, सुधा की हमउम्र थी इसलिए उस से ज्यादा दोस्ती हो गई. सुधा की आड़ में रीता खूब मटरगश्ती करती. सहेलियों के साथ गप्पें लड़ाती फिल्में देखती और सुधा उसे डांट पड़ने से बचा लेती. सुधा जब मैले कपड़ों के ढेर से जूझ रही होती तो कभीकभी रीता उस के पास मचिया डाल कर बैठ जाती और उसे देखी हुई फिल्म की कहानी सुनाती. यह सुधा के मनोरंजन का एकमात्र साधन था.

रीता की शादी के समय सुधा के ससुर भी जीवित थे. पर इस शादी की लगभग सारी ही जिम्मेदारी सुधा और उस के पति अजीत के ऊपर रही. अजीत को फैक्टरी में नौकरी मिलते ही पिता अपनी दुकान से यों पीछा छुड़ाने लगे जैसे अब उन के ऊपर कोई जिम्मेदारी ही न हो. जब मन होता दुकान पर बैठते, जब मन होता ताला डाल कर घूमने निकल जाते. रिश्तेदारों के यहां आनाजाना भी वह बहुत रखते.

कभीकभी अजीत कहता भी,  ‘पिताजी, रिश्तेदारों के यहां ज्यादा नहीं जाना चाहिए,’ तो उन को डांट पड़ती कि तुम मुझ से ज्यादा दुनियादारी समझते हो क्या? और जाता हूं तो उन पर बोझ नहीं बनता, जितना खाता हूं उस से ज्यादा उन पर खर्च करता हूं, समझे.

अजीत को चुप होना पड़ता. पिता ने बाहर हाथ खोल कर खर्च किया और बेटी की शादी में पूजा, पंडितजी और अपने रिश्तेदारों की विदाई के खर्च के अलावा सारा खर्च अजीत पर डाल दिया. अजीत और सुधा ने मां से बात की तो उन्होंने तटस्थता दिखा दी, ‘‘मुझे कोई मतलब नहीं. अजीत जाने अजीत का बाप जाने. मैं कमाती तो हूं नहीं कि मुझ से पूछते हो,’’ कहतेकहते मां ने अपनी मोटी करधनी अजीत को सौंप दी.

करधनी से रीता के कुछ गहने तो बन गए पर उस का मुंह सूज गया. उस के चेहरे की सूजन तभी उतरी जब सुधा ने अपना इकलौता गले का हार उस के गले में पहना दिया. इस शादी में रीता की मांग पूरी करतेकरते ही अजीत की जमा पूंजी खत्म हो गई. बाकी सबकुछ कर्ज ले कर किया गया. कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी से बचतेबचते पिता तो दुनिया से ही चले गए और मां ने अपना मंगलसूत्र अजीत के हाथों में रख दिया. वह मंगलसूत्र सुधा ने नीता के गले में डाला, बेचा नहीं.

अजीत एक दक्ष तकनीशियन था.  आय अच्छी थी. कर्ज चुकाने में वह चूकता नहीं था लेकिन घर के लिए उसे बहुत सी कटौतियां करनी पड़तीं. गौरव व सौरभ के जन्म पर सुधा को ठीक से पोषण नहीं मिल पाया लेकिन उस ने कभी इस की कोई शिकायत नहीं की.

अजीत की मां जैसी तटस्थ थीं अंत तक वैसी ही बनी रहीं. नीता की शादी तय भी नहीं हुई थी और मां दुनिया से चली गईं. अब तो सुधा और अजीत को ही सब करना था. रीता की शादी का कर्ज चुका ही था कि नीता की शादी के लिए कर्ज लेना पड़ा और नीता को विदा कर के कमर सीधी भी न की थी कि फैक्टरी में कर्मचारियों की छंटनी होने लगी.

अजीत को भरोसा था अपने काम पर, अपनी मेहनत पर. उसे विश्वास था, छंटनी की सूची में उस का नाम कभी नहीं होगा. पर एक दिन वह भी आया जब अजीत को भी घर बैठना पड़ा. तमाम खींचतान और प्रयासों के बाद आखिर फैक्टरी बंद हो गई तो फिर कैसा ही कर्मचारी क्यों न हो उस की नौकरी बचती कैसे.

नौकरी जाने का सदमा अजीत के अंदर इस कदर बैठा कि उस ने बिस्तर पकड़ लिया. सुधा के तो मानो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. उस के सामने स्कूल जाते सौरभ, गौरव थे तो बिस्तर पर पड़े अजीत को भी उसे ही खड़ा करना था. रातदिन जुट कर उस ने अजीत को अवसाद के कुएं से निकालने के प्रयास किए. इसी बीच नीता को सरकारी नौकरी मिल गई थी. सुधा के लिए यह डूबते को तिनके का सहारा था.

कर्ज की एक किस्त और सौरभगौरव की फीस उस ने अपने कंगन बेच कर भरी थी. नीता मिलने आई तो सुधा ने उस के आगे सारी बातें रख दीं. नीता 4 दिन रही थी और जाते हुए बोली, ‘‘ठीक है, भाभी, तुम्हारी हालत सही नहीं है इसलिए विदाई की साड़ी और मिठाई मैं अपने पैसों से खरीद लूंगी और यह 100 रुपए भी रखो सौरभ, गौरव के लिए, मेरी ओर से कुछ ले लेना.’’

सुधा ने रुलाई रोकते हुए 100 का नोट ले लिया और आशा भरे स्वर में कहा, ‘‘नीता, इस बार के वेतन से हो सके तो कुछ भेज देना. तुम तो जानती हो हम कर्ज में डूबे हैं. तुम्हारे भैया संभलें तो ही कुछ कर सकेंगे ना.’’

‘‘देखूंगी भाभी,’’ नीता ने अनमनी सी हो कर कहा.

उस कठिन समय में सुधा ने अपनी अंगूठियां और झुमके भी बेचे और एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान से घर पर काम लाना भी शुरू कर दिया. फैक्टरी से बकाया पैसा मिलतेमिलते 6 महीने लग गए. इस बीच सुधा ने एक कमरा किराए पर उठा दिया और अपनी सारी गृहस्थी डेढ़ कमरों में ही समेट ली. इन सारे प्रयासों से जैसेतैसे दो समय पेट भर रहा था और बच्चे स्कूल से निकाले नहीं गए थे.

सत्र पूरा होते ही सुधा ने सौरभ, गौरव को पास के एक सस्ते स्कूल में डाल दिया. बच्चों के लिए यह एक बड़ा झटका था पर वे समझदार थे और अपने मातापिता के कष्ट को देखतेसमझते पैदल स्कूल आतेजाते और नए वातावरण में सामंजस्य बनाने की भरपूर कोशिश करते.

नौकरी छूटने के 6 महीने के बाद जो रकम फैक्टरी की ओर से अजीत को मिली वह नीता की शादी का कर्ज चुकाने में चली गई. नीता के पास अच्छा घरवर था. सरकारी नौकरी थी पर उस ने 100 रुपए खर्च करने के बाद 6 महीने में पीछे पलट कर भी नहीं देखा.

रीता सर्दियों में 2 दिन के लिए आई थी. सुधा को फटापुराना कार्डिगन पहना देख कर अपना एक कार्डिगन उस के लिए छोड़ गई थी और सौरभगौरव के लिए कुछ स्केच पेन और पेंसिलरबड़ खरीद कर दे गई थी.

रीता के पति पहले अकसर अपने व्यापार के सिलसिले में आते और कईकई दिनों तक अजीत, सुधा के घर में बेहिचक बिना एक पैसा खर्च किए डटे रहते थे. वह भी इन 6 महीनों में घर के दरवाजे पर पूछने नहीं आए. सुधा मन ही मन सोचती रहती, क्या रीता के पति इस बीच एक बार भी यहां नहीं आए होंगे? आए होंगे जरूर और 1-2 दिन होटल में रुक कर अपना काम जल्दीजल्दी पूरा कर के लौट गए होंगे. यहां आने पर हमारे कुछ मांग बैठने का खतरा जो था.

अजीत से छिपा कर सुधा ने हर उस रिश्तेदार को पत्र डाला जो किसी प्रभावशाली पद पर था या जिन के पास मदद करने लायक संपन्नता थी. ससुर अकसर बड़प्पन दिखाने के सिलसिले में जिन पर खूब पैसा लुटाया करते थे वे संबंधी न कभी पूछने आए और न ही उन्होंने पत्र का उत्तर देने का कष्ट उठाया.

सुधा को अपनी ठस्केदार चाची सास याद आईं जो नीता की शादी के बाद 2 महीने रुक कर गई थीं. सुधा से खूब सेवा ली, खूब पैर दबवाए उन्होंने और सौरभ, गौरव का परीक्षाफल देख कर बोली थीं, ‘‘मेरे होनहारो, बहुत बड़े आदमी बनोगे एक दिन पर इस दादी को भूल न जाना.’’

सुधा ने उन्हें भी पत्र लिखा था कि चाचीजी, अपने बड़े बेटे से कह कर सौरभ के पापा को अपनी आयुर्वेदिक दवाओं की फैक्टरी में ही फिलहाल कुछ काम दे दें. कुछ तो काम करेंगे, कुछ तो डूबने से हम बचेंगे. पर पत्र का उत्तर नहीं आया.

अजीत की बूआ तीसरेचौथे साल भतीजे के घर आतीं और कम से कम महीना भर रह कर जाती थीं. जाते समय अच्छीखासी विदाई की आशा भी रखतीं और फिर आदेश दे जातीं, ‘‘अब की जाड़ों में मेरे लिए अंगूर गुच्छा बुनाई के स्वेटर बुन कर भेज देना. इस बार सुधा, आंवले का अचार जरा बढ़ा कर डालना  और एक डब्बा मेरे लिए भिजवा देना.’’

इन बूआजी को सुधा ने पत्र भेजा कि अपने कंपनी सेक्रेटरी दामाद और आफीसर बेटे से हमारे लिए कुछ सिफारिश कर दें. इस समय हमें हर तरह से मदद की जरूरत है. बूआ का पोस्ट कार्ड आया था. अपनी कुशलता के अलावा बेटे और दामाद की व्यस्तता की बात थी पर न किसी का पता दिया था न फोन नंबर और न उन तक संदेश पहुंचाने का आश्वासन.

6 महीने में सब की परीक्षा हो गई. कितने खोखले निकले सारे रिश्ते. कितने स्वार्थी, कितने संवेदनहीन. सुधा सूरज निकलने तक घर के काम निबटा कर सिलाई मशीन की खड़खड़ में डूब जाती. जब घर पर वह अकेली होती तभी पत्र लिखती और चुपके से डाल आती.

कई महीने के बाद अजीत ने काम करना शुरू किया. मनोस्थिति और आर्थिक स्थिति के दबाव में उसे जो पहला विकल्प मिला उस ने स्वीकार कर लिया. घर आ कर जब उस ने सुधा को बताया कि वह रायल इंटर कालिज का गार्ड बन गया है तो सुधा को बड़ा धक्का लगा. चेहरे पर उस ने शिकन न आने दी लेकिन मन में इतनी बेचैनी थी कि वह रात भर सिलाई मशीन पर काम करती रही और सुबह निढाल हो कर सो गई.

नींद किसी अपरिचित स्वर को सुन कर खुली. कोठरी से निकल कर कमरे में आई तो कुरसी पर एक लड़के को बैठा देखा. तखत पर बैठे अजीत के चेहरे पर चिंता की रेखाएं गहराई हुई थीं.

‘‘सुधा, यह विशाल है. छोटी बूआ की ननद की देवरानी का बेटा. बी.ए. की प्राइवेट परीक्षा देगा यहीं से.’’

सुधा चौंकी, ‘‘यहीं से मतलब?’’

‘‘मतलब आप के घर से,’’ वह लड़का यानी विशाल बिना हिचकिचाहट के बोला.

सुधा पर रात की थकान हावी थी. उस पर सारे रिश्तेदारों द्वारा दिल खट्टा किया जाना वह भूली नहीं थी. उस का पति 2 हजार रुपए के लिए गार्ड बना सारे दिन खड़ा रहे और रिश्तेदारों के रिश्तेदार तक हमारे घर को मुफ्तखोरी का अड्डा बना लें. पहली बार उस ने महसूस किया कि खून खौलना किसे कहते हैं.

‘‘तुम्हारी परीक्षा में तो लंबा समय लगेगा, क्यों?’’ सुधा ने तीखी दृष्टि से विशाल की ओर देखा.

‘‘हां, 1 महीना रहूंगा.’’

‘‘तुम्हें हमारा पता किस ने दिया?’’

‘‘आप की बूआ सासजी ने,’’ लड़का रौब से बोला, ‘‘उन्होंने कहा कि मेरे मायके में आराम से रहना, पढ़ना, परीक्षा देना, तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.’’

‘‘उन्होंने हम से तो कुछ नहीं पूछा था. भला महीने भर कोई मेरे घर में रहेगा तो मुझे परेशानी कैसे न होगी? डेढ़ कमरे में हम 4 लोग रहते हैं और बूआजी ने तो तुम से यह भी नहीं कहा होगा कि मेरा भतीजा और उस का परिवार भूखों मरने की हालत में हैं. वह क्यों कहेंगी? उन के लिए भतीजे का घर एक आराम फरमाने की जगह है, बस.’’

लड़का अवाक् सा सुधा को देख रहा था. अजीत भी विस्मित था. उस ने सुधा का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था. वह सोच ही रहा था कि सुधा उठ कर अंदर चली गई. थोड़ी देर में सुधा चाय ले कर आई और विशाल के चाय खत्म करते ही बोली, ‘‘सुनो विशाल, हम खुद बहुत परेशानी में हैं. हम तुम्हें अपने साथ 1 महीने तो क्या 1 दिन भी नहीं रख सकते.’’

अजीत उठ कर अंदर चला गया. विशाल उलझन में भरा हुआ सुधा को देख रहा था. सुधा उसे इस तरह अपनी तरफ देखते थोड़ी पिघल उठी, ‘‘बेटा, तुम पढ़नेलिखने वाले बच्चे हो. अभी हमारी परेशानियों और कष्टों को क्या समझोगे, पर मैं हाथ जोड़ती हूं, तुम अपने रहनेखाने की व्यवस्था कहीं और कर लो.’’

विशाल को उठ कर जाना पड़ा. उस  के जाते ही अजीत सुधा के पास आ बैठा और बोला, ‘‘सुधा, मुझे तुम से यह उम्मीद न थी.’’

‘‘पर यह जरूरी था, अजीत. हम सौरभ, गौरव की रूखी रोटी में से क्या कटौती कर सकते हैं. क्या बूआ हमारी स्थिति नहीं जानतीं? मैं ने उन्हें पत्र लिखा था, उन्होंने उत्तर तक नहीं दिया. तुम्हें भी समझना चाहिए कि मौके पर सब कैसे बच रहे हैं. मदद को कोई नहीं आया, और न ही कोई आएगा. तुम नाराज क्यों होते हो?’’

‘‘नाराज नहीं हूं. मैं तो यह कह रहा हूं कि तुम ने कितनी सरलता से सुलझा दिया मामला. वरना हम पर नए सिरे से कर्ज चढ़ना शुरू हो गया होता.’’

‘‘नहीं, अजीत, अब ऐसा नहीं होगा  कि जो चाहे जब चाहे चला आए और पैर पसार कर पड़ा रहे.’’

‘‘अच्छा, अगर बूआ लड़ने आ गईं तो क्या करोगी?’’

‘‘जो मुझे करना चाहिए वही करूंगी. पहले प्यार से समझाने की कोशिश करूंगी, नहीं समझेंगी तो अपनी बात कहूंगी. अपने बच्चों की मां हूं, उन का भलाबुरा तो मैं ही देखूंगी. अजीत हमें छंटनी करनी होगी…अपनेपरायों की छंटनी. दूर के रिश्तेदार ही नहीं पास वालों को भी तो आजमा कर देखा. बूआ क्या दूर की रिश्तेदार होती है? या चाची या मामी? ऐसे लोगों से आगे अब मैं नहीं निभा पाऊंगी.’’

‘‘तुम ने जितनी कठिन परिस्थितियों में मेरा साथ निभाया है इस के बाद तो मैं यही कहूंगा कि तुम लाखों में एक हो, क्योंकि मेरे गार्ड बन जाने पर भी तुम ने कोई खराब प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की.’’

‘‘यह थोड़े दिन की बात है, अजीत. वहां गेट पर खड़ेखड़े ही तुम निराश न होना. सोचना क्याक्या संभव है. कहांकहां तुम्हारी योग्यता का उपयोग हो सकता है. उस के अनुसार प्रयास करना. देखना, एक दिन तुम जरूर सफल होगे और हमारी गाड़ी फिर से पटरी पर आ जाएगी.’’

अजीत गार्ड की ड्यूटी देने के बाद बचे समय में उपयुक्त नौकरी के लिए भागदौड़ भी करता रहता. सुधा और बच्चों का पूरा सहयोग उसे मिल रहा था. अजीत और सुधा की कमाई के साथ किराए का पैसा जोड़ कर फैक्टरी के वेतन का आधा भी मुश्किल से हो पाता पर बच्चों की दुर्दशा नहीं होगी, उन्हें इतना विश्वास हो गया था. तभी एक दिन घर के आगे एक चमचमाती कार दिखी और उस से लकदक रीता उतरी. सुधा ने लपक कर रीता को गले लगाया और पूछा, ‘‘कार कब खरीदी?’’

रीता का मुंह फूला हुआ था. अंदर जाते ही वह भैया पर बरस पड़ी, ‘‘तुम ने मेरी भी नाक कटा कर रख दी, अपनी तो खैर कटाई ही कटाई.’’

‘‘कैसे कट गई तुम्हारी नाक?’’ अजीत ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, क्या जरूरत थी तुम्हें उस स्कूल में गार्ड बनने की? जानते हो वहां मेरे चाचाससुर का पोता पढ़ता है. उस ने हमारी शादी के फोटोग्राफ देखते हुए तुम्हें पहचान लिया. सब के बीच में वह बोला, ‘यह तो अपने स्कूल का गार्ड है.’ तुम्हें गार्ड ही बनना था तो कहीं और बनते. स्कूलों की कमी है क्या?’’

‘‘तो तुम भी कह देतीं कि यह फोटो वाला भाई तो मर चुका है. वह गार्ड कैसे बन सकता है? उस का भूत गार्ड बन गया हो तो बन गया हो,’’ रीता का गुस्सा और तिरस्कार भरा चेहरा देख अजीत भी उबल पड़ा था.

‘‘बुरी बातें न बोलो, अजीत,’’ सुधा ने डांटा.

‘‘मेरा खून खौल रहा है, सुधा. मुझे बोलने दो. यही बहन है जिस की फरमाइशें पूरी करने में मैं ने अपनी सारी जमापूंजी लुटा दी. आज मेरा पैसा मेरे पास होता तो काम आता कि नहीं? पिताजी ने अपनी जिम्मेदारी मेरे सिर डाल दी और इसे भी शर्म नहीं आई. रीता, तुम बड़ी इज्जतदार हो तो अपने घर में रहो, मुझ गरीब के घर क्यों आती हो. अब जा कर कह देना अपने रिश्तेदारों से कि मेरा भाई मर गया.’’

रीता भाई को आंखें तरेर कर देख रही थी.

‘‘भाभी, समझा लो भैया को,’’ आंखें तरेर कर रीता बोली, ‘‘अब मुझे ज्यादा गुस्सा न दिलाएं.’’

‘‘अब भी तुम गुस्सा दिखाने की बेशर्मी करोगी, रीता,’’ सुधा ने आश्चर्य से कहा, ‘‘सब रिश्तेदार आजमाएपरखे मैं ने, कठिन समय में सब झूठे निकले. पर तुम से मेरा मन इतना अंधा मोह रखता था कि तुम्हारी सारी बेरुखी के बावजूद भी मैं तुम से कभी नाराज नहीं हो पाई. इतने लंबे संघर्ष और कष्ट के बावजूद तुम्हारे भैया ने कभी तुम्हें नहीं कोसा और तुम ही यह भाषा बोल रही हो. अभी तो तुम्हारे भैया ने ही कहा था, अब मैं भी कह रही हूं कि समझ लो हम मर गए तुम्हारे लिए, समझी? जितना तुम अपनी विदाई में फुंकवाओगी उतने में हम अपने बच्चों के लिए नए कपड़ेजूते खरीद लाएंगे. सारी कटौती मेरे बच्चों के लिए ही क्यों हो? अब बैठीबैठी मुंहबाए क्या देख रही हो. यहां से उठो और अपनी कार में बैठो. अपने घर जाओ और इज्जतदारों की तरह रहो. हम गरीबों को अपना रिश्तेदार समझो ही मत.’’

रीता पैर पटक बड़बड़ाती चली गई, ‘‘मेरी बला से, भाड़ में जाओ सब. भीख मांगो दरवाजेदरवाजे जा कर, यही बाकी रह गया है.’’

‘‘निश्ंिचत रहो, तुम्हारे दरवाजे पर मांगने नहीं आएंगे,’’ अजीत अंदर से चीखा.

‘‘शांत हो जाओ, अजीत. अच्छा हुआ कि हमारा अंधा मोह टूट गया. देख लिया अपनों को. अपनी प्रतिष्ठा के आगे उन्हें हमारे पेट का भी कोई महत्त्व नहीं दिखता. हम भूखे मर जाएं पर उन की इज्जत न घटे. अच्छा है कि अपनेपरायों की छंटनी हो रही है. उठो, तुम्हें आज इंटरव्यू देने जाना है. नहाधो कर तरोताजा हो जाओ. अगर यह नौकरी तुम्हें मिल गई तो साथ ही रूठी हुई बहन भी मिल जाएगी.’’

‘‘टूटे हुए रिश्तों की डोरियां अगर जुड़ती भी हैं तो उन में गांठ पड़ जाती है. तुम ने इतने लंबे समय तक मुझ में कुंठा की गांठ नहीं पड़ने दी, अब दूसरी गांठों की भी बात मत करो.’’

‘‘नहीं करूंगी, मेरे लिए तुम से बढ़ कर कोई नहीं है. तुम खुश रहो मेरे बच्चे सुखी रहें, मैं बस यही चाहती हूं, और मैं हमेशा इसी कोशिश में लगी रहूंगी.’’

‘‘तुम ने इस गार्ड का मन सुकून से भर दिया है और अब इस का मन बोलता है कि यह कल के दिन से फिर नई जगह पर नए सिरे से तकनीशियन होगा. अपने हुनर और मेहनत के बलबूते, आत्म- विश्वास और आत्मसम्मान से भरापूरा.’’

‘‘तथास्तु’’, सुधा ने वरद मुद्रा बनाई और अजीत मुसकराता हुआ इंटरव्यू के लिए तैयार होने लगा.

Hindi Social Story

Hindi Fictional Story: खरीदारी- क्यों हैरान रह गया चंद्रमोहन

Hindi Fictional Story: प्रात: के 9 बज रहे थे. नाश्ते आदि से निबट कर बिक्री कर अधिकारी चंद्रमोहन समाचारपत्र पढ़ने में व्यस्त था. निकट रखे विदेशी टेपरिकार्डर पर डिस्को संगीत चल रहा था, जिसे सुन कर उस की गरदन भी झूम रही थी.

तभी उस की पत्नी सुमन ने निकट बैठते हुए कहा, ‘‘आज शाम को समय पर घर आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कुछ खरीदारी करने जाना है.’’

‘‘कोशिश करूंगा. वैसे आज 1-2 जगह निरीक्षण पर जाना है.’’

‘‘निरीक्षण को छोड़ो. वह तो रोज ही चलता है. आज कुछ चीजें खरीदनी जरूरी हैं.’’

‘‘मैं ने अभी 3-4 दिन पहले ही तो खरीदारी की थी. पूरे एक हजार रुपए का सामान लिया था,’’ चंद्रमोहन ने कहा.

‘‘तो क्या और किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ती?’’ सुमन ने तुनक कर कहा.

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? देखो, सुमन, हमारे घर में किसी चीज की कमी नहीं है. ऐश्वर्य के सभी साधन हैं हमारे यहां, फ्रिज, रंगीन टेलीविजन, वीसीआर, स्कूटर तथा बहुत सी विदेशी चीजें. नकद पैसे की भी कमी नहीं है. दोनों बच्चे भी अंगरेजी स्कूल में पढ़ रहे हैं.’’

‘‘वह तो ठीक है. जब से चंदनगढ़ में बदली हुई है मजा आ गया है,’’ सुमन ने प्रसन्न हृदय से कहा.

‘‘हां, 2 साल में ही सब कुछ हो गया. जब हमलोग यहां आए थे तो हमारे पास कुछ भी नहीं था. बस, 2-3 पुरानी टूटी हुई कुरसियां, दहेज में मिला पुराना रेडियो, बड़ा पलंग तथा दूसरा सामान. यहां के लोग गाय की तरह बड़े सहनशील और डरपोक हैं. चाहे जैसे दुह लो, कभी कुछ नहीं कहते,’’ चंद्रमोहन बोला.

तभी दरवाजे पर लगी घंटी बजी.

सुमन ने दरवाजा खोला. सामने खड़े व्यक्ति ने अभिवादन कर पूछा, ‘‘साहब हैं?’’

‘‘हां, क्या बात है?’’

‘‘उन से मिलना है.’’

‘‘आप का नाम?’’

‘‘मुझे सोमप्रकाश कहते हैं.’’

कुछ क्षण बाद सुमन ने लौट कर कहा, ‘‘आइए, अंदर चले आइए.’’

चंद्रमोहन को बैठक में बैठा देख कर सोमप्रकाश ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और प्लास्टिक के कागज में लिपटा एक डब्बा मेज पर रख दिया.

सुमन दूसरे कमरे में जा चुकी थी.

‘‘कहिए?’’ चंद्रमोहन ने पूछा.

‘‘मैं सोम एंड कंपनी का मालिक हूं. अभी हाल ही में आप ने हमारी फर्म का निरीक्षण किया था लेकिन जितने माल की बिक्री नहीं हुई उस से कहीं अधिक की मान ली गई है. अगर आप की कृपादृष्टि न हुई तो मैं व्यर्थ में ही मारा जाऊंगा. आप से यही प्रार्थना करने आया हूं,’’ सोमप्रकाश ने दयनीय स्वर में कहा.

‘‘मैं तुम जैसे व्यापारियों को बहुत अच्छी तरह जानता हूं. जितना माल बेचते हो उस का चौथाई भी कागजात में नहीं दिखाते, और इस तरह दो नंबर का अंधाधुंध पैसा बना कर टैक्स की चोरी कर के सरकार को चूना लगाते हो. तुम लोगों की वजह से ही सरकार को हर साल बजट में घाटा दिखाना पड़ता है,’’ चंद्रमोहन ने बुरा सा मुंह बना कर कहा.

सोमप्रकाश अपमान का कड़वा घूंट पी कर रह गया. आखिर वह कर ही क्या सकता था. उस ने कमरे में दृष्टि डाली. हर ओर संपन्नता की झलक दिखाई दे रही थी. फर्श पर महंगा कालीन बिछा था. वह कहना तो बहुत कुछ चाहता था परंतु गले में मानो कुछ अटक सा गया था. बहुत प्रयत्न कर के स्वर में मिठास घोल कर बोला, ‘‘साहब, मैं आप की कुछ सेवा करना चाहता हूं. ये 2 हजार रुपए रख लीजिए. बच्चों की मिठाई के लिए हैं.’’

‘‘काम तो बहुत मुश्किल है, फिर भी जब तुम आए हो तो मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हारा काम बन जाए.’’

‘‘आप की बहुत कृपा होगी. जब आप निरीक्षण पर आए थे तो मैं वहां नहीं था. मुझे रात ही पता चला तो सुबह होते ही मैं आप के दर्शन करने चला आया,’’ सोमप्रकाश बोला और उठ कर बाहर चला गया.

चंद्रमोहन ने सुमन को बुला कर कहा, ‘‘लो, भई, ये रुपए रख लो, अभी एक असामी दे गया है.’’

सुमन रुपए उठा कर दूसरे कमरे में चली गई.

कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी फिर बज उठी.

चंद्रमोहन ने दरवाजा खोला. सामने एडवोकेट प्रेमलाल को खड़ा देख चेहरे पर मुसकान बिखेर कर बोला, ‘‘अरे, आप. आइए, पधारिए.’’

प्रेमलाल कमरे में आ कर सोफे पर बैठ गया.

‘‘सब से पहले यह बताइए कि क्या लेंगे. ठंडा या गरम?’’ चंद्रमोहन ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, मैं अभी नाश्ता कर के आ रहा हूं.’’

‘‘फिर भी, कुछ तो लेना ही होगा,’’ कहते हुए चंद्रमोहन ने सुमन को चाय लाने का संकेत किया.

प्रेमलाल की जरा ज्यादा ही धाक थी. बिक्री कर के वकीलों की संस्था में उस की बात कोई न टालता था. इस बार इस संस्था के अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हो रहा था. उस के निर्विरोध चुने जाने की पूरी संभावना थी.

चंद्रमोहन ने पूछा, ‘‘कहिए, कैसे कष्ट किया?’’

कल आप ने विनय एंड संस का निरीक्षण किया था. वहां से कुछ कागजात भी पकड़े गए. उस निरीक्षण की रिपोर्ट बदलवाने और आप ने जो कागजात पकड़े हैं उन्हें वापस लेने आया हूं.

‘‘आप के उन लोगों से कुछ निजी संबंध हैं क्या? उस फर्म में बहुत हेराफेरी होती है. वैसे भी ये व्यापारी टैक्स की बहुत चोरी करते हैं. यों समझिए कि खुली लूट मचाते हैं. यदि ये ईमानदारी…’’

‘‘ईमानदारी…’’ हंस दिया प्रेमलाल, ‘‘यह शब्द सुनने में जितना अच्छा लगता है, व्यवहार में उतना ही कटु है. ऐसा कौन व्यक्ति है जो सचमुच ईमानदारी से काम कर रहा हो? आखिर दुकानदार कैसे ईमानदार रह सकता है, जब सरकार उस पर तरहतरह के टैक्स लगा कर उसे स्वयं इन की चोरी करने के लिए प्रेरित करती है. अब आप अपने को ही लीजिए. आप का गिनाचुना वेतन है, फिर भी आप हर महीने हजारों रुपए खर्च करते हैं. क्या आप कह सकते हैं कि आप स्वयं ईमानदार हैं?’’

चंद्रमोहन खिसियाना सा हो कर रह गया.

‘‘हमाम में हम सब नंगे हैं. जिसे आप ने अभी बेईमानी कहा उस में हम सब का हिस्सा है. जब सरकार ने ही बिना सोचेसमझे व्यापारियों पर इतने टैक्स लाद रखे हैं तो वह बेचारा भी क्या करे?’’

तभी सुमन चाय ले कर आ गई.

चाय की चुसकी ले कर प्रेमलाल ने जेब से एक हजार रुपए निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘भई, यह काम आज शाम तक कर दीजिएगा. देखिए, कुछ इस ढंग से चलिए कि सभी का काम चलता रहे, अगर मुरगी ही न रही तो अंडा कैसे हासिल होगा? और हां, वे कागजात…’’

‘‘दे दूंगा,’’ मना करने का साहस चंद्रमोहन में नहीं था.

‘‘हां, एक बात और. कल मुझे एक दुकानदार ने एक शिकायत की थी.’’

‘‘कैसी शिकायत?’’

‘‘यह कि आप का चपरासी रामदीन दुकानदारों से यह कह कर सामान ले जाता है कि साहब ने मंगवाया है. कल आप ने कुछ सामान मंगवाया था क्या?’’

‘‘नहीं तो…’’

‘‘तो अपने चपरासी पर जरा ध्यान रखिए. कहीं ऐसा न हो कि मजे वह करता  रहे और मुसीबत में आप फंस जाएं.’’

‘‘ठीक है. मैं उस नालायक को ठीक कर दूंगा,’’ चंद्रमोहन ने रोष भरे स्वर में कहा.

शाम को चंद्रमोहन ने गांधी बाजार में एक दुकान के आगे अपना स्कूटर खड़ा किया और फिर सुमन व दोनों बच्चों के साथ उस दुकान की ओर बढ़ा.

काउंटर पर खड़े दुकानदार  ने चंद्रमोहन को देख कर क्षण भर के लिए बुरा सा मुंह बनाया, मानो उसे कोई बहुत कड़वी दवा निगलनी पड़ेगी. वह चंद्रमोहन की आदत से परिचित था. पहले भी

2-3 बार चंद्रमोहन सपरिवार उस की दुकान पर आ चुका था और उसे मजबूरन सैकड़ों का माल बिना दाम लिए चंद्रमोहन को देना पड़ा था.

यद्यपि चंद्रमोहन ने उस सामान के दाम पूछे थे, पर दुकानदार जानता था कि अगर उस ने दाम लेने की हिमाकत की तो चंद्रमोहन उस का बदला उस का बिक्री कर बढ़ा कर लेगा. इसलिए दूसरे ही क्षण उस ने चेहरे पर जबरदस्ती मुसकान बिखरते हुए कहा, ‘‘आइए, साहब…आइए.’’

‘‘सुनाइए, क्या हाल है?’’

‘‘आप की कृपा है, साहब. कहिए क्या लेंगे, ठंडा या गरम?’’ न चाहते हुए भी दुकानदार को पूछना पड़ा.

‘‘कुछ नहीं, रहने दीजिए.’’

‘‘नहीं साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? कुछ न कुछ तो लेना ही होगा.’’ दुकानदार ने नौकर को 4 शीतल पेय की बोतलें लाने को कहा.

सुमन बोली, ‘‘मुझे लिपस्टिक और शैंपू दिखाइए.’’

दुकानदार ने कई तरह की लिप-स्टिक दिखाए हैं. सुमन उन में से पसंद करने लगी.

शीतल पेय पी कर लिपस्टिक, शैंपू, सेंट, स्प्रे, टेलकम, ब्रा तथा अन्य सामान बंधवा लिया था.

‘‘कितना बिल हो गया?’’ चंद्रमोहन ने पूछा.

लगभग 300 रुपए का सामान हो गया था. फिर भी दुकानदार मुसकरा कर बोला, ‘‘कैसा बिल, साहब? यह तो आप ही की दुकान है. कोई और सेवा बताएं?’’

‘‘धन्यवाद,’’ कहता हुए चंद्रमोहन अपने परिवार के साथ दुकान से बाहर निकल आया.

कुछ दुकानें छोड़ कर चंद्रमोहन सिलेसिलाए कपड़ों की दुकान पर आ धमका. दुकानदार वहां नहीं था. उस का 15 वर्षीय लड़का दुकान पर खड़ा था, तथा 2 नौकर भी मौजूद थे.

‘‘इस दुकान के मालिक किधर हैं?’’ चंद्रमोहन ने पूछा.

‘‘किसी काम से गए हैं,’’ लड़के ने उत्तर दिया.

‘‘कब तक आएंगे?’’

‘‘पता नहीं, शायद अभी आ जाएं.’’

‘‘ठीक है, तुम इन दोनों बच्चों के कपड़े दिखाओ.’’

नौकर बच्चों के सूट दिखाने लगा. 2 सूट पसंद कर बंधवा लिए गए.

‘‘कितना बिल हुआ?’’ चंद्रमोहन ने पूछा.

‘‘230 रुपए.’’

‘‘तुम हमें पहचानते नहीं?’’

‘‘जी नहीं,’’ लड़के ने कहा.

‘‘खैर, हम यहां के बिक्री कर अधिकारी हैं. जब दुकान के मालिक आ जाएं तो उन्हें बता देना कि चंद्रमोहन साहब आए थे और ये दोनों सूट पसंद कर गए हैं. वह इन्हें घर पर ले कर आ जाएंगे. क्या समझे?’’

‘‘बहुत अच्छा, कह दूंगा,’’ लड़का बोला.

चंद्रमोहन दुकान से बाहर निकल आया और सुमन से बोला, ‘‘ये दोनों सूट तो घर पहुंच जाएंगे. लड़के का बाप होता तो ये अभी मिल जाते. अच्छा, अब और भी कुछ लेना है?’’

‘‘हां, कुछ क्राकरी भी तो लेनी है.’’

‘‘जरूर. हमें कौन से पैसे देने हैं,’’ कहता हुआ चंद्रमोहन क्राकरी की एक दुकान की तरफ बढ़ा.

देखते ही दुकानदार का माथा ठनका. वह चंद्रमोहन की आदत को अच्छी तरह जानता था. पहले भी कभी चंद्रमोहन, कभी उस की पत्नी और कभी उस का चपरासी बिना पैसे दिए सामान ले गया था. फिर भी दुकानदार को मधुर मुसकान के साथ उस का स्वागत करना पड़ा, ‘‘आइए, साहब, बड़े दिनों बाद दर्शन दिए.’’

‘‘कैसे हैं आप?’’

‘‘बस, जी रहे हैं, साहब, बहुत मंदा चल रहा है.’’

‘‘हां, मंदीतेजी तो चलती ही रहती है.’’

‘‘कल आप का चपरासी रामदीन आया था, साहब. आप ने कुछ मंगाया था न?’’

‘‘हम ने, क्या ले गया वह?’’

‘‘एक दरजन गिलास.’’

चंद्रमोहन चपरासी की इस हरकत पर परदा डालते हुए बोला, ‘‘अच्छा वे गिलास…वे कुछ बढि़या नहीं निकले. वापस भेज दूंगा. अब कोई बढि़या सा टी सेट और कुछ गिलास दिखाइए.’’

चंद्रमोहन व सुमन टी सेट पसंद करने लगे.

तभी अचानक जैसे कोई भयंकर तूफान सा आ गया. बाजार में भगदड़ मचने लगी. दुकानों के दरवाजे तेजी से बंद होने लगे. 2-3 व्यक्ति चिल्ला रहे थे, ‘‘दुकानें बंद कर दो. जल्दी से चौक में इकट्ठे हो जाओ.’’

दुकानदार ने चिल्लाने वाले एक आदमी को बुला कर पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘झगड़ा हो गया है.’’

‘‘झगड़ा? किस से?’’

‘‘एक बिक्री कर अधिकारी से.’’

‘‘क्या बात हुई?’’

‘‘बिक्री कर विभाग के छापामार दस्ते का एक अधिकारी गोविंदराम की दुकान पर पहुंचा. 500 सौ रुपए का सामान ले लिया. जब उस ने पैसे मांगे तो वह अधिकारी आंखें दिखा कर बोला, ‘हम को नहीं जानता.’ दुकानदार भी अकड़ गया. बात बढ़ गई. वह अधिकारी उसे बरबाद करने की धमकी दे गया है. इन बिक्री कर वालों ने तो लूट मचा रखी है. माल मुफ्त में दो, नहीं तो बरबाद होने के लिए तैयार रहो. मुफ्त में माल भी खाते हैं और ऊपर से गुर्राते भी हैं.’’

‘‘दुकानें क्यों बंद कर रहे हो?’’ दुकानदार ने पूछा.

उस ने कहा, ‘‘बाजार बंद कर के जिलाधिकारी के पास जाना है. आखिर कब तक इस तरह हम लोगों का शोषण होता रहेगा? एक न एक दिन तो हमें इकट्ठे हो कर इस स्थिति का सामना करना ही होगा.

‘‘इन अफसरों की भी तो जांचपड़ताल होनी चाहिए. ये जब नौकरी पर लगते हैं तब इन के पास क्या होता है? और फिर 2-4 साल के बाद ही इन की हालत कितनी बदल जाती है. अब तुम जल्दी दुकान बंद करो. सब दुकानदार चौक में इकट्ठे हो रहे हैं. अब इन मुफ्तखोर अधिकारियों की सूची दी जाएगी. अखबार वालों को भी इन अधिकारियों के नाम बताए जाएंगे,’’ कहता हुआ वह व्यक्ति चला गया.

चंद्रमोहन को लगा मानो यह जलूस छापामार दस्ते के उस अधिकारी के विरुद्ध नहीं, स्वयं उसी के विरुद्ध जाने वाला है. वह भी तो मुफ्तखोर है. आज नहीं तो कल उस का भी जलूस निकलेगा. समाचारपत्रों में उस के नाम की भी चर्चा होगी. उसे अपमानित हो कर इस नगर से निकलना पड़ेगा. नगर की जनता अब जागरूक हो रही है. उसे अपनी यह आदत बदलनी ही पड़ेगी.

दुकानदार ने उपेक्षित स्वर में पूछा, ‘‘हां, साहब, आप फरमाइए.’’

चंद्रमोहन की हालत पतली हो रही थी. उस ने शुष्क होंठों पर जीभ फेर कर कहा, ‘‘आज नहीं, फिर कभी देख लेंगे. आज तो आप भी जल्दी में हैं.’’

‘‘ठीक है.’’ दुकानदार ने गर्वित मुसकान से चंद्रमोहन की ओर देखा और दुकान बंद करने लगा.

चंद्रमोहन दुकान से बाहर निकल कर चल दिया. उसे ग्लानि हो रही थी कि आज वह बहुत गलत समय खरीदारी करने घर से निकला.

‘बच्चू, बंद कर के जाओगे कहां? किसी और दिन सही. आखिर हमारी ताकत तो बेपनाह है,’ मन ही मन बुदबुदाते हुए उस ने कहा.

Hindi Fictional Story

Shanaya Kapoor: शनाया कपूर की फेल्ड लौंचिंग

Shanaya Kapoor: बौलीवुड की युवा ब्रिगेड में अगर किसी गर्ल गैंग की दोस्ती सब से ज्यादा चर्चा में रहती है तो वो शनाया कपूर, सुहाना खान, नव्या नवेली नंदा और अनन्या पांडे की है. इन्हें अपकमिंग स्टार्स बताया जा रहा है. इन की दोस्ती से जुड़ी फोटोज आएदिन इंस्टाग्राम पर छाई रहती हैं. इन की फ्रैंडशिप कमाल की है. ये अकसर पार्टी, घूमनाफिरना, मौजमस्ती साथ में करती हैं. ये चारों फिल्मी घरानों से आती हैं. इन्हें अच्छाख़ासा प्रिविलेज है कि ये जब चाहें फिल्मों में कदम रख सकती हैं.

इन में से अगर अमिताभ बच्चन की नवासी नव्या नवेली नंदा को छोड़ दिया जाए तो बाक़ी तीनों ने बौलीवुड में अलगअलग समय पर अपना डैब्यू कर लिया है. हां, भले उन के काम को अभी सराहा न गया हो, काम पर खूब किरकिरी हुई हो पर मौकों की कमियां उन के पास अभी भी नहीं हैं.

इन तीनों में से शनाया कपूर ने हाल ही में आई फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ से डैब्यू किया है, जिस में उन के को-ऐक्टर विक्रांत मैसी रहे. शनाया एक समय अचानक मशहूर हुए ऐक्टर और अनिल कपूर के भाई संजय कपूर की बेटी है. भले संजय की झोली में ‘शक्ति’ और ‘दिलबर’ जैसी कुछेक अच्छी फिल्में आईं मगर वे फ्लौप ऐक्टर में ही गिने गए.

अब उन की बेटी शनाया फिल्मों में आई है. मगर उस के लिए पहली फिल्म का एक्सपीरियंस वैसा नहीं रहा जैसा नईनवेली जोड़ी अहान पांडे और अनीत पड्डा के लिए रहा. दोनों ने एक तरह से अपनी डैब्यू फिल्म ‘सैयारा’ में सिनेमा हौल पर हंगामा बरपा दिया. और करोड़ों रुपए डैब्यू फिल्म में ही कमा डाले. यही नहीं, खुद के नाम के आगे तमाम पीआर करवा कर इन्होंने जेनजी स्टार का टैग भी ले लिया.

हालांकि ऐसा करने वाले ये पहले डैब्यू सितारे नहीं रहे. इस से पहले कुमार गौरव, शाहनी आहूजा या इमरान खान जैसे ऐक्टर आए, हंगामा बरपाया मगर फिर फिल्म इंडस्ट्री से ही गायब हो गए.

जाहिर है, जिस तरह की शुरुआत अनीत पड्डा ने की, उसी तरह की शुरुआत हर नई ऐक्ट्रैस करना चाहती है, खासकर ऐसी ऐक्ट्रैस जिस पर नैपोकिड होने का ठप्पा लगा हो. उस के लिए दर्शकों के बीच अपनी इंडिपेंडैंट इमेज बनाना सब से ज्यादा जरूरी होता है. इस मामले में शनाया असफल साबित हुई. उस की पहली फिल्म न सिर्फ फ्लौप हुई बल्कि उस के हिस्से राशा थडानी जैसा ‘उई अम्मा…’ सरीखा आइटम सौंग भी नहीं आ पाया जिस से वह चर्चा में आ पाती.

शनाया की शुरुआत

वैसे तो अपनी फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ से बौलीवुड में डैब्यू करने से पहले शनाया कपूर ने ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ में बतौर असिस्टेंट डायरैक्टर काम किया था. मगर बतौर ऐक्ट्रैस, वह ‘आंखों की गुस्ताखियां’ में नजर आई.

शनाया की मां महीप कपूर ज्वेलरी डिजाइनर है. उस का एक छोटा भाई भी है जिस का नाम जहान कपूर है. 3 नवंबर साल 1999 में जन्मी शनाया ने अपनी स्कूली पढ़ाई मुंबई से की. उस ने इकोले मोंडिएल वर्ल्ड स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की है. इस स्कूल की केजी 1 की सालाना फीस 7 लाख रुपए बताई जाती है. यहां से एक और फिल्मी अभिनेत्री जाह्नवी कपूर ने भी अपनी पढ़ाई की है.

शनाया ने ग्रेजुएशन स्कूल औफ मैनेजमैंट स्टडीज औफ लंदन से किया है. रिपोर्ट्स की मानें तो उस ने ऐक्टिंग के साथ डांसिंग की ट्रेनिंग ली और बौलीवुड में बतौर असिस्टेंट डायरैक्टर काम करना शुरू कर दिया. इस के अलावा शनाया का रुमर्ड बौयफ्रैंड करण कोठारी को बताया जाता है जो मुंबई का बिसनैसमैन है.

अगर शनाया के नैटवर्थ की बात करें तो वह 8 करोड़ रुपए की संपत्ति की मालकिन है. इस में हैरानी नहीं कि यह उस की कमाईधमाई वाली संपत्ति नहीं बल्कि प्रिविलेज का हिस्सा है. इस प्रिविलेज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिना खुद को साबित किए उस के हिस्से पहली फ्लौप के बाद अपकमिंग प्रोजैक्ट्स में तेलुगू–मलयालयम फिल्म ‘वृषभ’ है जिस के 16 अक्टूबर को थिएटर्स में आने की चर्चा है. इस के अलावा ‘तू या मैं’ है, जो अगले साल रिलीज़ होगी. बताया जा रहा है कि कारन जौहर की फिल्म ‘बेधड़क’ में भी वह नजर आ सकती है.

दिखने में सुंदर मगर ऐक्टिंग में कच्ची

इस में कोई शक नहीं कि शनाया बेहद खूबसूरत ऐक्ट्रैस है और दोराय भी नहीं कि उसे यह खूबसूरती अपनी मां महीप कपूर से मिली है जो मात्र 42 साल की हैं. महीप कपूर आज भी शानदार दिखती हैं जिन्होंने 1994 में ‘निगोरी कैसी जवानी है’ में डैब्यू किया था और पहली फिल्म में बुरी तरह फ्लौप हो कर आगे फिल्मों का मोह छोड़ दिया था. जाहिर है, अपनी बेटी में अपना पुराना सपना जरूर देखा होगा.

शनाया कपूर की भी पहली फिल्म फ्लौप हुई. उस के को-एक्टर विक्रांत मैसी थे जो हाल में अपनी फिल्म ’12वीं फेल’ से काफी चर्चित हुए. मगर विक्रांत मैसी के अपोजिट फिल्म में होना यह भी दर्शाता है कि वह अपनी पहली फिल्म अपने अभिनय कौशल को दिखाने की जगह नैपोकिड के उस ठप्पे को मिटाने के लिए कर रही थी जो मीडिया या आम चलन में चर्चित हो गया है.

दरअसल, यह चलन देखा जा रहा है कि किसी स्टारकिड को लौंच करते हुए ध्यान रखा जाता है कि उस का को-एक्टर या ऐक्ट्रैस इंडस्ट्री से बाहर का हो, ताकि प्रिविलेज का तमगा हटाया जा सके या उस से बचा जा सके और लैवल ग्राउंड का नैरेटिव गढ़ा जा सके. यह सोचीसमझी मार्केटिंग स्ट्रेटजी का हिस्सा होता है क्योंकि यह तरीका भी होता है बौयकाट ट्रैंड को टैकल करने का.

बावजूद इस के, अपनी डैब्यू फिल्म में शनाया की ऐक्टिंग को ले कर कोई रिस्पौंस नहीं आया. अच्छी बात यह है कि ऐक्टिंग ख़राब हो, ऐसा नहीं दिखा मगर अच्छी हो, यह भी कहा नहीं जा सकता. हालांकि यह शनाया की पहली फिल्म है तो थोड़ा बेनिफेट औफ न्यू कमर के तौर पर मिलना चाहिए, मगर जिस तरह से बाकी स्टारकिड्स की तरह उस की लग्जरी लाइफ रही है तो वह बिना पीआर और मार्केटिंग के सफल हो, कहा नहीं जा सकता.

Shanaya Kapoor

Ambivalent Relationship में कहीं आप का रिश्ता भी तो नहीं बदल गया

Ambivalent Relationship: जिंदगी की भागदौड़ में कब हमारे रिश्तों में दरार आने लगती है हमें पता ही नहीं चलता. छोटीछोटी बातें राई का पहाड़ बनने लगती हैं. कभी पार्टनर एकदूसरे पर प्रेम और लगाव न्योछावर करते हैं तो कभी पलभर में ही अपने पार्टनर की शक्ल तक देखना नापसंद कर देते हैं.

ऐसे में रिश्ता खुशियों भरा कम व तनावपूर्ण ज्यादा होता जाता है, जोकि न सिर्फ शारारिक, बल्कि मानसिक रूप से भी पीड़ादायक सिद्ध होता है.

इस परिस्थिति का एक कारण रिश्ते में विश्वास की कमी होना भी है. ऐसा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही नहीं, बल्कि किसी के साथ भी हो सकता है फिर चाहे भाईबहन, मातापिता, दोस्त कोई भी हो.

बात यदि लाइफ पार्टनर की करें तो यह जीवनभर के लिए कड़वा अनुभव होता है क्योंकि यह एक दीर्घकालिक संबंध है. इस रिश्ते में 2 लोग एकदूसरे से गहराई से जुड़े होते हैं, जिन के बीच न सिर्फ प्रेम बल्कि टकराव, संघर्ष जैसी भावनाएं भी मौजूद होती हैं. लेकिन जब प्रेम कम और टकराव रिश्ते में घर करने लगें तो समझ लें कि रिश्ता ऐंबिवेलेंट रिलेशनशिप की तरफ जा रहा है, जिसे समय रहते समझ लिया जाए तो रिश्ता टूटने व टौक्सिक होने से बचाया जा सकता है.

ऐंबिवेलेंट रिलेशनशिप

यह एक ऐसा रिश्ता है जिस में व्यक्ति के मन में एक ही व्यक्ति के प्रति मिश्रित भावनाएं होती हैं. जैसे कि पलभर में ही प्रेम और घृणा का एकसाथ होना या कभी पार्टनर की और आकर्षित होना तो दूसरे ही पल उसे अस्वीकृत करना. ऐसी दोहरी भावनाएं व्यक्ति के मन में उलझन और तनाव पैदा करती हैं.

कारण को समझें

  • पार्टनर के बीच में संवाद की कमी का होना जिस कारण एकदूसरे की बातों को सही से समझ नहीं पाते.
  • दोनों की सोच और प्राथमिकताएं एकदूसरे से अलग होना.
  • पार्टनर से अत्यधिक अपेक्षा रखना.
  • बचपन की परवरिश में अस्थिर स्नेह या असुरक्षित परवरिश का प्रभाव का होना.

प्रभाव

  • अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रैशन जैसी स्थिति की संभावना बढ़ जाती हैं.
  • रिश्ते में विश्वास व भावनात्मक रूप से जुड़ाव कम होना.
  • रिश्ते से बाहर निकलने के बारे में सोचना लेकिन पार्टनर को खोने का डर भी साथ में बने रहना.

समाधान

  • गुस्सा शांत होने पर एकदूसरे से खुल कर बात करें.
  • अत्यधिक अपेक्षाओं को हावी न होने दें. रिश्ते में सामंजस्य लाने का प्रयास करें.
  • ममता और वातसल्य निरंतरता में बनाए रखें.
  • एकदूसरे की खामियों को नजरअंदाज करने की आदत डालें.
  • काउंसलिंग या थेरैपी की सहायता लें.
  • आत्मविश्वास में कमी न आने दें.
  • एकदूसरे के साथ क्‍वालिटी टाइम बिताएं.
  • एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखें.

Ambivalent Relationship

Credit Card EMI: क्रैडिट कार्ड की ईएमआई मायाजाल में न फंसे

Credit Card EMI: फैस्टिव सीजन आ चुका है और हर शौपिंग प्लेटफौर्म पर ईएमआई पर सामान लेने के औफरों की लाइन लग गई है. लेकिन जरा संभल कर कहीं ये औफर आप की पौकेट पर रितेश की तरह भारी न पड़ जाएं. रितेश 28 साल का एक आईटी प्रोफैशनल था. नई जौब लगी थी, सैलरी भी अच्छी थी और सपनों की लिस्ट भी लंबी. कुछ ही महीनों में उस ने एक ब्रैंडेड लैपटौप, आईफोन और स्मार्ट टीवी खरीद लिया. हर बार खरीदारी के बाद उस के मोबाइल पर मैसेज आता, कन्वर्ट दिस इन टू ईएमआई (Convert this into EMI) रितेश को लगता कि वाह, कितना आसान है…महंगे प्रोडक्ट्स भी बस ₹2-3 हजार महीना दे कर मिल जाते हैं.

धीरेधीरे उस के क्रेडिट कार्ड पर 5-6 ईएमआई चलने लगीं. महीने की सैलरी आते ही आधी रकम ईएमआई और क्रेडिट कार्ड बिल चुकाने में चली जाती. एक दिन अचानक कार खरीदने का मन हुआ, लेकिन बैंक ने लोन रिजैक्ट कर दिया क्योंकि उस का क्रेडिट यूटिलाइजेशन बहुत हाई था.

रितेश सोच में पड़ गया कि आखिर मैं ने ऐसी कौन सी गलती कर दी? मैं तो ईएमआई की सुविधा ले रहा था, फिर भी मेरी फाइनैंशियल स्थिति इतनी खराब क्यों हो गई?

यही सवाल असल में हम सब को सोचना चाहिए. आखिर क्रेडिट कार्ड कंपनियां बारबार ईएमआई का मैसेज क्यों भेजती हैं? क्यों ईएमआई को इतना सुविधाजनक बना कर दिखाया जाता है?

आज की लाइफस्टाइल में क्रेडिट कार्ड सिर्फ पेमैंट का साधन नहीं, बल्कि एक ऐसा टूल बन गया है जिस से बैंक और फाइनैंशियल कंपनियां सब से ज्यादा मुनाफा कमाती हैं. आप ने भी नोटिस किया होगा कि जैसे ही आप बड़ी खरीदारी करते हैं, तुरंत आप के फोन पर मैसेज आता है, ‘कन्वर्ट इन टू ईएमआई.’

नैट बैंकिंग में पौपअप खुलता है या कौल सैंटर से फोन आ जाता है. अब सवाल यह है कि कंपनियां बारबार ईएमआई पर इतना जोर क्यों देती हैं? असल वजह सिर्फ ग्राहक की सुविधा नहीं, बल्कि इस के पीछे छिपा है कंपनियों का बड़ा बिजनैस मौडल.

आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं :

ईएमआई कंपनियों का सब से बड़ा बिजनैस मौडल ईएमआई यानि सीधी भाषा में कहें तो बड़ी रकम को छोटेछोटे मासिक हिस्सों में चुकाने की सुविधा.

कंपनियां इसे एक सुविधा की तरह बेचती हैं, लेकिन असल में यह उन के लिए रैगुलर इनकम का जरीया है, जिस के साथ ब्याज और प्रोसेसिंग फीस जुड़ी होती है, जिस से कंपनियां मोटा मुनाफा कमाती हैं.

ग्राहक को ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित करना

  • मान लीजिए कि किसी के पास तुरंत ₹40,000 नहीं है, तो वह लैपटौप नहीं खरीदेगा. लेकिन अगर वही ईएमआई पर ₹3,500 महीने में मिल रहा है तो ग्राहक आसानी से खरीद लेगा.
  • मतलब ईएमआई ग्राहक को अपनी भविष्य की कमाई आज खर्च करने पर मजबूर करती है.
  • इस से ग्राहकों की खरीदारी बढ़ती है और कंपनी की ट्रांजैक्शन वैल्यू भी.

ब्याज और चार्जेस है असली कमाई

  • नो कौस्ट ईएमआई (No Cost EMI) सुन कर लगता है कि सब मुफ्त है. लेकिन असलियत यह है कि ब्याज को प्रोडक्ट की कीमत में ही जोड़ दिया जाता है.
  • साधारण ईएमआई पर 12% से 18% सालाना तक ब्याज लगता है. ऊपर से प्रोसेसिंग फीस, जीएसटी और लेट पेमैंट चार्ज अलग.
  • अगर कोई ग्राहक पेमैंट मिस करे तो पैनाल्टी से कंपनियों की कमाई और दोगुनी हो जाती है.

ग्राहक लंबे समय तक जुड़ा रहता है

  • ईएमआई के बाद ग्राहक 6, 9 या 12 महीनों तक कंपनी से बंधा रहता है.
  • जब तक किस्तें पूरी नहीं होतीं, ग्राहक कार्ड बंद नहीं कर सकता.
  • इस दौरान ग्राहक कार्ड का इस्तेमाल करता रहता है और कंपनी को लगातार फायदा मिलता है.

ईएमआई सस्ता दिखाने का मनोवैज्ञानिक खेल

  • मार्केटिंग में एक बड़ा ट्रिक है, बड़ी रकम को छोटे हिस्सों में तोड़ दो.
  • ₹50,000 देख कर ग्राहक घबरा जाता है, लेकिन ₹4,500/माह देख कर उसे आसान लगता है.
  • इसी सोच के कारण लोग ईएमआई चुनते हैं और धीरेधीरे कर्ज का बोझ बढ़ जाता है.

मर्चेंट और कंपनी की पार्टनरशिप

  • अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफौर्म ईएमआई औफर क्यों देते हैं? क्योंकि इस में मर्चेंट और कंपनी दोनों का फायदा होता है.
  • मर्चेंट को बिक्री मिलती है, कंपनी को ब्याज और फीस.
  • यह एक विनविन (win-win) मौडल है, जिस में ग्राहक ही ज्यादा बोझ उठाता है.

रिवौल्विंग क्रेडिट (Revolving Credit) की आदत डालना

  • क्रेडिट कार्ड ईएमआई का सब से खतरनाक पहलू यही है कि यह ग्राहकों को रिवौल्विंग क्रेडिट की आदत डाल देता है.
  • ग्राहक पूरा बकाया नहीं चुकाता, बस मिनिमम अकाउंट भरता है.
  • बाकी रकम कैरी फौरवर्ड (carry forward) हो जाती है और उस पर भारी ब्याज जुड़ता है.
  • ईएमआई इस हैबिट को और पक्का कर देती है.

कंपनियों का रिस्क कम करना

  • बड़ी रकम को किस्तों में बांटने से डिफौल्ट का रिस्क घट जाता है.
  • अगर ग्राहक बीच में चूक भी जाए तो लेट फीस, ब्याज और पैनाल्टी से कंपनियों की कमाई चलती रहती है.
  • यानि रिस्क भी कम, फायदा भी पक्का.

डेटा कलैक्शन और मार्केटिंग

  • जब आप ईएमआई लेते हैं, तो आप के खर्च का पूरा डेटा कंपनी के पास जाता है.
  • आप ने क्या खरीदा, कितने में खरीदा, समय पर पेमैंट किया या नहीं, सब रिकौर्ड होता है.
  • इसी डेटा से आप को नए औफर, लोन और प्रोडक्ट्स टारगेट किए जाते हैं.

लग्जरी लाइफस्टाइल की तरफ धकेलना

  • कंपनियां चाहती हैं कि ग्राहक अपनी आय से ज्यादा खर्च करे.
  • ईएमआई देख कर लोग लग्जरी प्रोडक्ट्स तुरंत खरीद लेते हैं.
  • पहले जो चीजें सालों की बचत से मिलती थीं, आज ईएमआई देख कर तुरंत ले ली जाती हैं.
  • यह मौडल लोगों को धीरेधीरे कर्ज की आदत डाल देता है.

ईएमआई क्यों जरूरी है, संक्षेप में जानिए

  • ब्याज और फीस से भारी मुनाफा.
  • ग्राहक की खर्च क्षमता बढ़ाना.
  • ग्राहक को लंबे समय तक जोड़े रखना.
  • मर्चेंट और कंपनी दोनों का फायदा.
  • रिवौल्विंग क्रेडिट की आदत.
  • डेटा और नई सेवाओं की बिक्री.

ग्राहक के लिए सीख

 

  • ईएमआई कई बार नुकसानदेह नहीं होती. अगर इमरजैंसी है या बहुत जरूरी खर्च है, तब ईएमआई काम आ सकती है. लेकिन इसे सोचसमझ कर इस्तेमाल करना चाहिए.

 

  • नो कौस्ट ईएमआई में भी छिपे चार्ज हो सकते हैं.

 

  • कई ईएमआई साथ चलने लगें तो पूरा बजट बिगड़ जाता है.

 

  • याद रखें, ईएमआई का मतलब है भविष्य की कमाई आज खर्च करना.

 

  • क्रेडिट कार्ड कंपनियां ईएमआई जोर देती हैं क्योंकि यह उन के लिए सब से बड़ा कमाई का जरीया है.

 

  • ईएमआई आप को आसान लगती है लेकिन असल में यह कंपनियों की ऐसी रणनीति है जिस में ब्याज, चार्जेस और लौयल्टी आदि सब कुछ एकसाथ हासिल होता है.

 

तो अगली बार जब आप के कार्ड पर ईएमआई का मैसेज आए, तो जरूर सोचिए कि यह सचमुच आप की सुविधा है या मुनाफे का खेल.

Credit Card EMI

Breakup At Night: ब्रेकअप रात को ही क्यों हैवी फील होता है?

Breakup At Night: आप ने कभी नोटिस किया है कि जब भी ब्रेकअप होता है, दिन में हम थोड़ाबहुत संभाल लेते हैं, लेकिन जैसे ही रात आती है, सब कुछ भारी क्यों लगने लगता है? ऐसा क्यों होता है? दिल यों बैठने क्यों लगता है और क्यों हम बारबार पुराने चैट्स खोलते हैं, पुराने पलों को याद करते हैं या फिर उस इंसान की प्रोफाइल तक जा पहुंचते हैं जिसे छोड़ने का या खोने का दर्द अभी तक गया नहीं? ऐसा होने के कई कारण हैं.

रात की शांति में मन की आवाज ज्यादा तेज सुनाई देती है

दिन में हमारे पास बहुतकुछ करने को होता है. कालेज जाना, औफिस का काम, दोस्तों से मिलना, बाहर जाना, ट्रैफिक, शोरशराबा. लेकिन जैसे ही रात होती है, सब शांत हो जाता है. और जब बाहर की आवाजें कम हो जाती हैं तब हमारे अंदर की आवाजें तेज हो जाती हैं.

यादें, बातें, लड़ाइयां सबकुछ फिर से जेहन में ताजा हो जाता है

अनुष्का का ब्रेकअप हुआ था 2 महीने पहले. दिन में वह अपने औफिस और जिम में बिजी रहती थी, लेकिन रात को जब वह अकेले अपने कमरे में होती तो रोके न रुकती. वह कहती है, दिन में सब ठीक लगता है, पर रात में ऐसा लगता है जैसे सबकुछ टूट गया हो.

थकावट से हैवी होते इमोशन

जब हम थके होते हैं तो हमारी मानसिक ताकत कम हो जाती है. हम उतने मजबूत नहीं रह पाते जितने दिन में रहते हैं. और अगर ब्रेकअप के बाद हमारी नींद भी डिस्टर्ब हो रही है तो दिमाग थक चुका होता है. ऐसे में इमोशन्स का बहाव और भी ज्यादा होता है.

नींद हमारे दिमाग को रीसैट करने का काम करती है. लेकिन जब हम रातरातभर जाग कर आंसू बहाते हैं, तो वह रीसैट नहीं हो पाता. उलटा, दिमाग और भी डिस्टर्ब हो जाता है.

रात का समय वह होता है जब हम उसे मैसेज करते थे, कौल करते थे, गुडनाइट कहते थे, प्यारी और रोमांटिक इमोजी भेजते थे. वह जो हमारा सब से पर्सनल टाइम था वही अब सबसे ज्यादा खाली लगने लगता है.

अंकुर और नताशा का ब्रेकअप 3 साल की रिलेशनशिप के बाद हुआ. अंकुर कहता है, “हम रोज रात 11 बजे कौल पर होते थे. अब वो टाइम आते ही मोबाइल देखता हूं, फिर रख देता हूं. नींद ही नहीं आती.”

दरअसल, सभी दिनभर काम में बिजी होते हैं तो ढंग से उन में बात नहीं हो पाती लेकिन रात में कोई जरूरी काम नहीं होते इसलिए उस वक्त दोनों ही फ्री हो कर एकदूसरे से बात करते हैं. ऐसे में ब्रेकअप के बाद यही समय सब से ज्यादा हर्ट होता है.

सोशल मीडिया पर सबकुछ दिखता है लेकिन कुछ भी मिलता नहीं

रात को जब हम खाली होते हैं तो हम सब से ज्यादा स्क्रौल करते हैं. और वहीं से फिर शुरू होती है एकदूसरे से कंपेयर करने की धुन. कोई कपल रील बना रहा है, कोई पहाड़ों में घूम रहा है, कोई पार्टनर की बात कर रहा है. ऐसे में अपना दर्द और ज्यादा गहरा लगने लगता है. ये सोचने लगते हैं कि हम ही क्यों अकेले रह गए.

सोशल मीडिया रात को इमोशनल ट्रैप बन जाता है- बाहर से ग्लैमरस, अंदर से दर्द बढ़ाने वाला.

दिल और दिमाग के बीच लड़ाई

दिन में हमारा दिमाग थोड़ा लौजिकल तरीके से सोचता है- ‘उस ने सही नहीं किया’, ‘यह रिश्ता अब सही नहीं था’ वगैरह. लेकिन रात को दिल हैवी हो जाता है — ‘वो कैसा होगा?’, ‘क्या मुझे मिस करता होगा?’, ‘क्या दोबारा बात करनी चाहिए?’ मुश्किल तब और ज्यादा बढ़ जाती है जब फिजिकल रिलेशन बन जाते हैं तो रात में वो पल ज्यादा याद आते हैं.

यह वही टाइम होता है जब हम पुरानी चैट्स पढ़ते हैं, पुराने फोटोज देखते हैं,  या फिर उस की प्रोफाइल स्टौक करते हैं.

रात अकेलेपन को ज्यादा बड़ा दिखाती है

जब दिनभर लोग हमारे आसपास होते हैं तो अकेलापन कम महसूस होता है. लेकिन जैसे ही अंधेरा होता है और कमरे में अकेले होते हैं, तो वह अकेलापन दसगुना बढ़ जाता है. और ब्रेकअप के बाद तो यह और भी बुरा फील होता है.

यादों का फ्लैशबैक ज्यादातर रात में चलता है

रात को अकसर हमारी आंखों के सामने वो सारी चीजें चलती हैं, जैसे पहली मुलाकात, पहली डेट, लड़ाइयां, आखिरी कौल, आखिरी मैसेज आदि. दिमाग जैसे औटो प्लेमोड में चला जाता है और हम उस दर्द में वापस चले जाते हैं जिस से बाहर आने की कोशिश कर रहे थे.

ब्रेकअप के बाद सिर्फ इंसान नहीं जाता, साथ में उस की मौजूदगी से जुड़ी आदतें भी चली जाती हैं. जैसे, रात को उस की आवाज सुन कर सोना, उस का गुडनाइट मैसेज या फोन पर चैट करते हुए सो जाना ये सब जब अचानक बंद हो जाता है तब वह खालीपन और भी ज्यादा चुभता है.

हम सब से ज्यादा खुद से बातें रात को करते हैं

रात को हम खुद से सवाल करते हैं, ‘क्या मेरी गलती थी?’, ‘क्या मैं ने सबकुछ किया?’, ‘क्या वह लौटेगा?’ और इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता. जवाब न मिलने की ही बेचैनी हमारे दुख को और गहरा कर देती है.

क्या किया जाए?

अब सवाल यह उठता है क्या हम रातों को यों ही भारी महसूस करते रहें या कुछ कर सकते हैं?

* रूटीन सैट करें : रात को सोने का एक फिक्स टाइम बनाएं. मोबाइल ले कर बेड पर न जाएं.

* मैसेज व प्रोफाइल चैक करना बंद करें : जितना ज्यादा आप उसे देखते रहेंगे, उतना ही भूल नहीं पाएंगे.

* कुछ पौजिटिव पढ़ें या सुनें : पौडकास्ट, बुक्स या रिलैक्सिंग म्यूजिक से रात को शांत बनाया जा सकता है.

* एक्सप्रैस करें : कुछ भी मन में आए तो लिखिए डायरी में या नोट्स ऐप में या किसी जिगरी दोस्त से शेयर करें.

रातों का भारीपन कोई नई बात नहीं है, यह बहुत नैचुरल है. जब प्यार छूटता है, तो दिल को वक्त लगता है संभलने में. और रात वो वक्त होता है जब हम अपने खुद के सब से करीब होते हैं, इसलिए ब्रेकअप की चुभन सब से ज्यादा तब ही महसूस होती है.

Breakup At Night

Genz New Trend: नौकरी के लिए लिंक्डइन नहीं, डेटिंग ऐप्स बना नया रास्ता

Genz New Trend: नौकरी की तलाश की बात करते हैं, तो दिमाग में सब से पहले आता है रिज्यूमे बनाना, एचआर को मेल भेजना या लिंक्डइन, इंडीड जैसी ऐप्स में जा कर प्रोफाइल अपडेट करना. लेकिन आजकल एक नया ट्रैंड सामने आ रहा है, जिसे जान कर कोई भी चौंक सकता है. नौकरी के लिए युवा अब लिंक्डइन छोड़ कर डेटिंग ऐप्स का सहारा ले रहे हैं.

जी हां, अब बंबल, टिंडर और हिंज जैसी ऐप्स सिर्फ डेटिंग तक सीमित नहीं रहीं. युवा प्रोफैशनल्स इन्हें नैटवर्किंग और कैरियर कनैक्शन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. यह बदलाव सोशल मीडिया के बदलते यूज पैटर्न, जेनरेशन जेड की सोच के नए तरीकों को साफ दिखाता है.

नैना, जो कि एक ग्राफिक डिजाइनर है, ने लौकडाउन के दौरान बंबल पर एक लड़के से बात शुरू की. बात करतेकरते उसे पता चला कि वह लड़का एक क्रिएटिव एजेंसी में काम करता है और उस की कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर की जरूरत है. नैना ने अपने काम के कुछ सैंपल भेजे और कुछ हफ्तों में उसे जौब मिल गया.

नैना कहती है, “बंबल पर मैं डेटिंग के लिए नहीं, लोगों से बात करने और टाइम पास करने के लिए थी. पर सोचा नहीं था कि वहां से नौकरी भी मिल सकती है.”

यह एक तरह से जानपहचान बनाने का जरिया है, जिस का फायदा कैरियर में भी हो रहा है. जैसे, पहले के समय में होता था जब लोग जानपहचान का सहारा ले कर कहीं काम पर लग जाया करते थे या अप्रोच करते थे.

 डेटिंग ऐप्स: अब सिर्फ डेटके लिए नहीं

अब डेटिंग ऐप्स सिर्फ रोमांटिक पार्टनर ढूंढ़ने की जगह नहीं रह गई हैं. यहां लोग दोस्त बना रहे हैं, प्रोफैशनल कनैक्शन खोज रहे हैं, उसी हिसाब से अपने मैच की प्रिफरैंस देखते हैं जो उन के कैरियर में मददगार हो सकता है और कई बार वहां लोग बिजनैस आइडियाज तक डिस्कस कर रहे होते हैं.

इस की खास वजहें हैं

कम फौर्मेलिटी : लिंक्डइन पर बात शुरू करना कई बार किसी इंटरव्यू जैसा लगता है. फौर्मल भाषा पर प्रोफैशनल टोन. कई बार डेटिंग ऐप्स पर लोग अधिक खुल कर बात करते हैं. आमतौर पर दोस्ती हो ही जाती है. खासकर, यंग लड़कियां इन ऐप्स को अपने फायदे के लिए भुना सकती हैं. ये ऐप्स न सिर्फ कौन्फिडैंस देती हैं बल्कि अपनी पहचान छिपा कर लड़कों के साथ घुलनेमिलने का मौका भी देती है.

बायो में बदलती सोच : अब लोग टिंडर या बंबल की बायो में ‘लुकिंग फौर क्रिएटिव कोलैब’ जैसे प्रोफैशनल हिंट डालने लगे हैं. ऐसा ही इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफौर्म पर होता है. यूथ अपनी प्रोफैशनल आइडैंटिटी को भी डालते हैं. इस से वे बताते हैं कि कैरियर पौइंट औफ व्यू से वे किस दिशा में बढ़ रहे हैं.

कम कंपीटिशन वाला माहौल : लिंक्डइन पर एक जौब पोस्ट पर सैकड़ों एप्लिकेशन होती हैं. डेटिंग ऐप्स पर कोई जब कहता है, ‘हे, आई एम रनअप अ स्टार्टअप’ तो उस से सीधे बातचीत का मौका बनता है, बिना किसी भीड़ के.

फटाफट कनैक्शन : डेटिंग ऐप्स का इंटरफेस सुपरफास्ट है. दो मिनट में स्वाइप कर के किसी से कनैक्ट हो जाओ. लिंक्डइन पर तो जौब ढूंढने में घंटों लग जाते हैं, वह भी तब जब कोई रिस्पौंस दे. हां, लिंक्डइन प्रोफैशनल है और जौब्स की अधिकतर पोस्ट वहीँ होती हैं. कंपनी के एचआर डायरैक्ट वहां से एप्लिकैंट को शौर्टलिस्ट करते हैं. मगर लिंक्डइन में अप्रोच नहीं चलता. लेकिन डेटिंग ऐप्स में ऐसी कंपनियों में काम करने वाले कईयों होते हैं. उन से जानपहचान बन जाती है.

आदित्य एक सौफ्टवेयर डैवलपर है, जो अपने स्टार्टअप आइडिया के लिए कोफाउंडर ढूंढ़ रहा था. उस ने हिंज पर अपनी प्रोफाइल में लिखा- “Coder by profession, looking to build something exciting. DM if you’re into tech & startups.”

हफ्तेभर में ही उसे एक लड़की का मैसेज आया जो प्रोडक्ट डिजाइनर थी और उसी तरह का आइडिया सोच रही थी. अब दोनों ने मिल कर एक ऐप लौंच कर दी है.

आदित्य हंसते हुए कहता है, “प्यार तो नहीं मिला, लेकिन पार्टनर जरूर मिल गया वह भी प्रोफैशनल वाला.”

 क्या यह ट्रैंड आगे बढ़ेगा

जेनजी और मिलेनियल्स उन प्लेटफौर्म्स पर जाना पसंद करते हैं जहां वे खुद को एक्सप्रैस कर सकें, बायो मजेदार रख सकें और बातचीत में कोई दबाव न हो. आज का यूथ प्रोफैशनली नहीं लिख सकता. अब ऐसा भी नहीं रहा कि उन के स्कूलों में प्रोफैशनल लैटर लिखना सिखाया जा रहा हो. वह अपने स्लैंग में लिखता है. प्रोफैशनल चीजों के लिए यूथ एआई भरोसे है. वह एआई को कमांड देता है और झटपट लैटर, मेल या ड्राफ्ट लिखवा लेता है.

डेटिंग ऐप्स धीरेधीरे इस ट्रैंड को समझ रही हैं. बंबल ने ‘बंबल बिज’ और ‘बंबल बीएफएफ’ जैसे सैक्शन लौंच किए हैं, जो खासतौर पर नैटवर्किंग और फ्रैंडशिप के लिए हैं.

 कुछ बातें जो ध्यान रखने वाली हैं

* आप डेटिंग ऐप पर सिर्फ प्रोफैशनल नैटवर्किंग चाहते हैं, तो अपने बायो में यह साफसाफ लिखें.

* सीमा बना कर रखें. ये प्लेटफौर्म डेटिंग के लिए बनाए गए हैं, इसलिए बातचीत में प्रोफैशनल और पर्सनल का फर्क समझना जरूरी है.

आज की जेनरेशन प्रोफैशनल कनैक्शन के लिए अलग रास्ते खोज रही है. वह सिर्फ ‘डिग्री और सीवी’ पर भरोसा नहीं करती, बल्कि ‘इंप्रैशन और बातचीत’ को भी उतना ही महत्त्व देती है.

जब वे लिंक्डइन पर भीड़ देख कर निराश होते हैं, तो ऐसे प्लेटफौर्म्स की ओर मुड़ जाते हैं जहां उन्हें इंसान के तौर पर जाना जाए, न कि सिर्फ एक प्रोफाइल या स्किल के रूप में.

और शायद यही वजह है कि डेटिंग ऐप्स, जो कभी सिर्फ ‘डेट खोजने’ के लिए बनाए गए थे, अब कैरियर बिल्डिंग का एक अनोखा रास्ता बनते जा रहे हैं खासकर उन के लिए जो क्रिएटिव फील्ड में कुछ करना चाहते हैं.

नौकरी पाने या नैटवर्किंग करने के लिए रास्ते अब सिर्फ औफिस या कौर्पोरेट मीटिंग तक सीमित नहीं हैं. जहां कभी प्यार के लिए राइट स्वाइप किया जाता था, आज वहां कैरियर के नए दरवाजे भी खुल रहे हैं.

इस बदलते ट्रैंड को देख कर कह सकते हैं– “Swipe right for opportunity”.

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