Maternity Wear खरीदते समय रखें इन बातों का ध्यान

Maternity Wear: प्रैगनैंसी एक ऐसा दौर होता है जिस से अधिकांश महिलाएं कभी न कभी गुजरती ही हैं. पहले महीने से ले कर 9वें महीने तक महिलाओं के शरीर में अनेक बदलाव होते हैं जिस से उन के सभी आउटफिट्स धीरेधीरे छोटे और तंग होने लगते हैं.

यों तो आजकल बाजार में भांतिभांति के मैटरनिटी वियर उपलब्ध हैं पर इन्हें खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है ताकि पूरे 9 महीने तक आप आराम से इन का उपयोग कर सकें.

आइए, जानते हैं कुछ टिप्स जो मैटरनिटी वियर खरीदते समय आप के लिए काफी मददगार साबित होंगे :

कंफर्ट और सपोर्ट है सब से जरूरी

चूंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर में अनेक बदलाव होते हैं, जिस के कारण शरीर का आकार भी थोड़ा बढ़ जाता है. मैटरनिटी वियर चूंकि एक पर्टिकुलर कैटेगरी को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं, इसलिए इन की कीमत काफी अधिक होती है. इसलिए इन्हें खरीदते समय किसी भी प्रकार का समझौता न करें.

ढीलेढाले कपड़े खरीदें ताकि एक तो पूरे 9 महीने आप इन्हें उपयोग कर सकें और जिन्हें पहन कर आप को कंफर्ट फील हो. इस अवस्था में बहुत मूड स्विंग्स होते हैं इसलिए प्योर कौटन के ऐसे कपड़े खरीदें जिन में आप को कंफर्ट फील हो.

मौसम के अनुकूल हो फैब्रिक

गरमियों में प्योर कौटन और लिनेन, सर्दियों में मुलायम ब्लैंडेड फैब्रिक से बने कपड़ों का चयन करें ताकि आप इन में खुद को कंफर्टेबल फील कर सकें. इस दौरान आप के ब्रैस्ट, कमर और पेट का आकार समय के साथसाथ बढ़ता है इसलिए स्ट्रेचेबल फैब्रिक से बने कपड़ों का चयन करें ताकि शरीर के हिसाब से वे स्ट्रेच हो सकें. सिंगल जर्सी, लायक्रा और स्पेंडैक्स फैब्रिक से बने कपड़े चुनें. ये काफी स्ट्रेचेबल होते हैं.

डिजाइन पर भी दें ध्यान

इस दौरान बहुत अधिक टाइट फिटिंग वाले कपड़े पहनने से बचें क्योंकि इन में बढ़े हुए पेट का उभार अलग से दिखने लगता है जो दिखने में बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता. दूसरे, अधिक कसे कपड़ों में आप को घबराहट भी हो सकती है. खुली बाजुओं वाली ए लाइन और अंपायर कट ड्रैसेज, ढीलेढाले टौप्स और फुललैंथ अनारकली ड्रैसेज आप पर खूब फबेंगी.

लेयरिंग से दिखें स्टाइलिश

इस दौरान आप लेयरिंग से खुद को स्टाइलिश दिखाएं. मसलन वन पीस ड्रैस के साथ एक लंबा श्रग, सूट के साथ जैकेट और किसी भी टौप के साथ फ्लाई सा श्रग आप की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देगा.

सपोर्टिव हों इनरवियर

आजकल बाजार में भांतिभांति के प्रैगनैंसी इनरवियर उपलब्ध हैं. आप अपनी पसंद और साइज के अनुसार इन का चयन कर सकती हैं. ये सामान्य इनरवियर की अपेक्षा काफी चौड़े, स्ट्रेचेबल तो होते ही हैं साथ ही ऐक्स्ट्रा सपोर्ट के लिए इन के स्ट्रेप भी काफी चौड़े होते हैं. इस से स्किन पर स्ट्रेप के निशान नहीं पड़ते, शरीर को सपोर्ट मिलता है और कमर आदि में दर्द नहीं होता.

ट्राई करें ये ड्रैसेज

सलवार कमीज और साड़ी की अपेक्षा ढीली फिटिंग वाले लोअर टीशर्ट या फुललैंथ गाउन पहनें. इस से शरीर को काफी आराम मिलेगा. यदि सलवार कमीज ही पहनना चाहती हैं तो रैडीमेड की अपेक्षा बाजार से फैब्रिक खरीद कर ढीलेढाले कुरते और इलास्टिक वाली सलवार बनवाएं ताकि आप की कमर और पेट को पर्याप्त आराम मिल सकें.

ब्रैस्ट फीडिंग का रखें ध्यान

डिलिवरी हो जाने के बाद आप को बच्चे को फीड कराना होता है, इसलिए आउटफिट खरीदते समय इस बात का भी ध्यान रखें. आप फ्रंट ओपन या कमर तक के ओपन आउटफिट चुन सकती हैं.

रखें इन बातों का ध्यान

  • मैटरनिटी वियर किसी अच्छी ब्रैंड के ही खरीदें ताकि इन की क्वालिटी अच्छी रहे और धुलने के बाद श्रिंक न हों और रंग भी न छोड़ें.
  • चूंकि इस दौरान शरीर का आकार धीरेधीरे बढ़ता है, इसलिए भले ही आप प्रैगनैंसी के शुरू में ही अपने लिए आउटफिट खरीदें पर साइज बड़ा ही खरीदें ताकि पूरी प्रैगनैंसी में आप इन का प्रयोग कर सकें.
  • एकदम बारीक और प्लेन फैब्रिक की अपेक्षा प्रिंटेड और होजरी जैसे मोटे फैब्रिक को चुनें क्योंकि पतले फैब्रिक की अपेक्षा मोटे फैब्रिक पेट के उभार को अच्छे से कवर कर लेते हैं.
  • फ्रंट पैनल वाले डिजाइन और स्ट्रेचेबल फैब्रिक के आउटफिट इस समय के लिए एकदम परफैक्ट रहते हैं क्योंकि ये पेट के उभार को कवर कर लेते हैं.
  • ये आउटफिट्स काफी महंगे होते हैं, इसलिए इन्हें हमेशा अपने बजट को ध्यान में रख कर ही खरीदें. साथ ही शौप पर ही ट्राई भी करें ताकि बाद में रिटर्न या ऐक्सचैंज का चक्कर न रहे.

Hindi Social Story: सहारा- कौन बना अर्चना के बुढ़ापे का सहारा

Hindi Social Story: ‘‘अर्चना,’’ उस ने पीछे से पुकारा.

‘‘अरे, रजनीश…तुम?’’ उस ने मुड़ कर देखा और मुसकरा कर बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं, कैसा अजब इत्तिफाक है कि तुम दिल्ली की और मैं मुंबई का रहने वाला और हम मिल रहे हैं बंगलौर की सड़क पर. वैसे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं आजकल यहीं रहती हूं. यहां घडि़यों की एक फैक्टरी में जनसंपर्क अधिकारी हूं. और तुम?’’

‘‘मैं यहां अपने व्यापार के सिलसिले में आया हुआ हूं. मेरी पत्नी भी साथ है. हम पास ही एक होटल में ठहरे हैं.’’

2-4 बातें कर के अर्चना बोली, ‘‘अच्छा…मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे रुको,’’ वह हड़बड़ाया, ‘‘इतने  सालों बाद हम मिले हैं, मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं. क्या हम दोबारा नहीं मिल सकते?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ कहते हुए अर्चना ने विजिटिंग कार्ड पर्स में से निकाला और उसे देती हुई बोली, ‘‘यह रहा मेरा पता व फोन नंबर. हो सके तो कल शाम की चाय मेरे साथ पीना और अपनी पत्नी को भी लाना.’’

अर्चना एक आटो-रिकशा में बैठ कर चली गई. रजनीश एक दुकान में घुसा जहां उस की पत्नी मोहिनी शापिंग कर तैयार बैठी थी.

‘‘मेरीखरीदारी हो गई. जरा देखो तो ये साडि़यां ज्यादा चटकीली तो नहीं हैं. पता नहीं ये रंग

मुझ पर खिलेंगे

या नहीं,’’ मोहिनी बोली.

रजनीश ने एक उचटती नजर मोहिनी पर डाली. उस का मन हुआ कि कह दे, अब उस के थुलथुल शरीर पर कोई कपड़ा फबने वाला नहीं है, पर वह चुप रह गया.

मोहिनी की जान गहने व कपड़ों में बसती है. वह सैकड़ों रुपए सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्चती है. घंटों बनती-संवरती है. केश काले करती है, मसाज कराती है. नाना तरह के उपायों व साधनों से समय को बांधे रखना चाहती है. इस के विपरीत रजनीश आगे बढ़ कर बुढ़ापे को गले लगाना चाहता है. बाल खिचड़ी, तोंद बढ़ी हुई, एक बेहद नीरस, उबाऊ जिंदगी जी रहा है वह. मन में कोई उत्साह नहीं. किसी चीज की चाह नहीं. बस, अनवरत पैसा कमाने में लगा रहता है.

कभीकभी वह सोचता है कि वह क्यों इतनी जीतोड़ मेहनत करता है. उस के बाद उस के ऐश्वर्य को भोगने वाला कौन है. न कोई आसऔलाद न कोई नामलेवा… और तो और इसी गम में घुलघुल कर उस की मां चल बसीं.

संतान की बेहद इच्छा ने उसे अर्चना को तलाक दे कर मोहिनी से ब्याह करने को प्रेरित किया था. पर उस की इच्छा कहां पूरी हो पाई थी.

होटल पहुंच कर रजनीश बालकनी में जा बैठा. सामने मेज पर डिं्रक का सामान सजा हुआ था. रजनीश ने एक पैग बनाया और घूंटघूंट कर के पीने लगा.

उस का मन बरबस अतीत में जा पहुंचा.

कालिज की पढ़ाई, मस्तमौला जीवन. अर्चना से एक दिन भेंट हुई. पहले हलकी नोकझोंक से शुरुआत हुई, फिर छेड़छाड़, दोस्ती और धीरेधीरे वे प्रेम की डोर में बंध गए थे.

एक रोज अर्चना उस के पास घबराई हुई आई और बोली, ‘रजनीश, ऐसे कब तक चलेगा?’

‘क्या मतलब?’

‘हम यों चोरी- छिपे कब तक मिलते रहेंगे?’

‘क्यों भई, इस में क्या अड़चन है? तुम लड़कियों के होस्टल में रहती हो, मैं अपने परिवार के साथ. हमें कोई बंदिश नहीं है.’

‘ओहो…तुम समझते नहीं, हम शादी कब कर रहे हैं?’

‘अभी से शादी की क्या जल्दी पड़ी है, पहले हमारी पढ़ाई तो पूरी हो जाए…उस के बाद मैं अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाऊंगा फिर जा कर शादी…’

‘इस में तो सालों लग जाएंगे,’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘तो लगने दो न…हम कौन से बूढ़े हुए जा रहे हैं.’

‘हमारे प्यार को शादी की मुहर लगनी जरूरी है.’

‘बोर मत करो यार,’ रजनीश ने उसे बांहों में समेटते हुए कहा, ‘तनमनधन से तो तुम्हारा हो ही चुका हूं, अब अग्नि के सामने सिर्फ चंद फेरे लेने में ही क्या रखा है.’

‘रजनीश,’ अर्चना उस की गिरफ्त से छूट कर घुटे हुए स्वर में बोली, ‘मैं…मैं प्रेग्नैंट हूं.’

‘क्या…’ रजनीश चौंका, ‘मगर हम ने तो पूरी सावधानी बरती थी…खैर, कोई बात नहीं. इस का इलाज है मेरे पास, अबार्शन.’

‘अबार्शन…’ अर्चना चौंक कर बोली, ‘नहीं, रजनीश, मुझे अबार्शन से बहुत डर लगता है.’

‘पागल न बनो. इस में डरने की क्या बात है? मेरा एक दोस्त मेडिकल कालिज में पढ़ता है. वह आएदिन ऐसे केस करता रहता है. कल उस के पास चले चलेंगे, शाम तक मामला निबट जाएगा. किसी को कानोंकान खबर भी न होगी.’

‘लेकिन जब हमें शादी करनी ही है तो यह सब करने की जरूरत?’

‘शादी करनी है सो तो ठीक है, लेकिन अभी से शादी के बंधन में बंधना सरासर बेवकूफी होगी. और जरा सोचो, अभी तक मेरे मांबाप को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं मालूम. अचानक उन के सामने फूला पेट ले कर जाओगी तो उन्हें बुरी तरह सदमा पहुंचेगा.

‘नहीं, अर्चना, मुझे उन्हें धीरेधीरे पटाना होगा. उन्हें राजी करना होगा. आखिर मैं उन की इकलौती संतान हूं. मैं उन की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता.’

‘प्यार का खेल खेलने से पहले ही यह सब सोचना था न?’ अर्चना कुढ़ कर बोली.

‘डार्ल्ंिग, नाराज न हो, मैं वादा करता हूं कि पढ़़ाई पूरी होते ही मैं धूमधड़ाके से तुम्हारे द्वार पर बरात ले कर आऊंगा और फिर अपने यहां बच्चों की लाइन लगा दूंगा…’

लेकिन शादी के 10-12 साल बाद भी बच्चे न हुए तो रजनीश व अर्चना ने डाक्टरों का दरवाजा खटखटाया था और हरेक डाक्टर का एक ही निदान था कि अर्चना के अबार्शन के समय नौसिखिए डाक्टर की असावधानी से उस के गर्भ में ऐसी खराबी हो गई है जिस से वह भविष्य में गर्भ धारण करने में असमर्थ है.

यह सुन कर अर्चना बहुत दुखी हुई थी. कई दिन रोतेकलपते बीते. जब जरा सामान्य हुई तो उस ने रजनीश को एक बच्चा गोद लेने को मना लिया.

अनाथाश्रम में नन्हे दीपू को देखते ही वह मुग्ध हो गई थी, ‘देखो तो रजनीश, कितना प्यारा बच्चा है. कैसा टुकुरटुकुर हमें ताक रहा है. मुझे लगता है यह हमारे लिए ही जन्मा है. बस, मैं ने तो तय कर लिया, मुझे यही बच्चा चाहिए.’

‘जरा धीरज धरो, अर्चना. इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. एक बार अम्मां व पिताजी से भी पूछ लेना ठीक रहेगा.’

‘क्योें? उन से क्यों पूछें? यह हमारा व्यक्तिगत मामला है, इस बच्चे को हम ही तो पालेंगेपोसेंगे.’

‘फिर भी, यह बच्चा उन के ही परिवार का अंग होगा न, उन्हीं का वंशज कहलाएगा न?’

यह सुन कर अर्चना बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘वह सब मैं नहीं जानती. तुम्हारे मातापिता से तुम्हीं निबटो. यह अच्छी रही, हर बात में अपने मांबाप की आड़ लेते हो. क्या तुम अपनी मरजी से एक भी कदम उठा नहीं सकते?’

रजनीश के मांबाप ने अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने के प्रस्ताव का जम कर विरोध किया इधर अर्चना भी अड़

गई कि वह दीपू को गोद ले कर ही रहेगी.

‘‘रजनीश…’’ मोहिनी ने आवाज दी, ‘‘खाना खाने नीचे, डाइनिंग रूम में चलोगे या यहीं पर कुछ मंगवा लें?’’

यह सुन कर रजनीश की तंद्रा टूटी. एक ही झटके में वह वर्तमान में लौट आया. बोला, ‘‘यहीं पर मंगवा लो.’’

खाना खाते वक्त रजनीश ने पूछा, ‘‘कल शाम को तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘सोच रही थी यहां की जौहरी की दुकानें देखूं. मेरी एक सहेली मुझे ले जाने वाली है.’’

‘‘ठीक है, मैं भी शायद व्यस्त रहूंगा.’’

रजनीश ने अर्चना को फोन किया, ‘‘अर्चना, हमारा कल का प्रोग्राम तय है न?’’

‘‘हां, अवश्य.’’

फोन का चोंगा रख कर अर्चना उत्तेजित सी टहलने लगी कि रजनीश अब क्यों उस से मिलने आ रहा है. उसे अब मुझ से क्या लेनादेना है?

तलाकनामे पर हुए हस्ताक्षर ने उन के बीच कड़ी को तोड़ दिया था. अब वे एकदूसरे के लिए अजनबी थे.

‘अर्चना, तू किसे छल रही है?’ उस के मन ने सवाल किया.

रजनीश से तलाक ले कर वह एक पल भी चैन से न रह पाई. पुरानी यादें मन को झकझोर देतीं. भूलेबिसरे दृश्य मन को टीस पहुंचाते. बहुत ही कठिनाई से उस ने अपनी बिखरी जिंदगी को समेटा था, अपने मन की किरिचों को सहेजा था.

उस का मन अनायास ही अतीत की गलियों में विचरने लगा.

उसे वह दिन याद आया जब नन्हे दीपू को ले कर घर में घमासान शुरू हो गया था.

उस ने रजनीश से कहा था कि वह दफ्तर से जरा जल्दी आ जाए ताकि वे दोनों अनाथाश्रम जा कर बच्चों में मिठाई बांट सकें. आश्रम वालों ने बताया है कि आज दीपू का जन्मदिन है.

यह सुन कर रजनीश के माथे पर बल पड़ गए थे. वह बोला, ‘यह सब न ही करो तो अच्छा है. पराए बालक से हमें क्या लेना.’

‘अरे वाह…पराया क्यों? हम जल्दी ही दीपू को गोद लेने वाले जो हैं न?’

‘इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं.’

‘तुम जल्दीबाजी की कहते हो, मेरा वश चले तो उसे आज ही घर ले आऊं. पता नहीं इस बच्चे से मुझे इतना मोह क्यों हो गया है. जरूर हमारा पिछले जन्म का रिश्ता रहा होगा,’ कहती हुई अर्चना की आंखें भर आई थीं.

यह देख कर रजनीश द्रवित हो कर बोला था, ‘ठीक है, मैं शाम को जरा जल्दी लौटूंगा. फिर चले चलेंगे.’

रजनीश को दरवाजे तक विदा कर के अर्चना अंदर आई तो सास ने पूछा, ‘कहां जाने की बात हो रही थी, बहू?’

‘अनाथाश्रम.’

यह सुन कर तो सास की भृकुटियां तन गईं. वह बोली, ‘तुम्हें भी बैठेबैठे पता नहीं क्या खुराफात सूझती रहती है. कितनी बार समझाया कि पराई ज्योति से घर में उजाला नहीं होता, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. अरे, गोद लिए बच्चे भी कभी अपने हुए हैं, खून के रिश्ते की बात ही और होती है,’ फिर वह भुनभुनाती हुई पति के पास जा कर बोली, ‘अजी सुनते हो?’

‘क्या है?’

‘आज बहूबेटा अनाथाश्रम जा रहे हैं.’

‘सो क्यों?’

‘अरे, उसी मुए बच्चे को गोद लेने की जुगत कर रहे हैं और क्या. मियांबीवी की मिलीभगत है. वैद्य, डाक्टरों को पैसा फूंक चुके, पीरफकीरों को माथा टेक चुके, जगहजगह मन्नत मान चुके, अब चले हैं अनाथाश्रम की खाक छानने.

‘न जाने किस की नाजायज संतान, जिस के कुलगोत्र का ठिकाना नहीं, जातिपांति का पता नहीं, ला कर हमारे सिर मढ़ने वाले हैं. मैं कहती हूं, यदि गोद लेना ही पड़ रहा है तो हमारे परिवार में बच्चों की कमी है क्या? हम से तो भई जानबूझ कर मक्खी निगली नहीं जाती. तुम जरा रजनीश से बात क्यों नहीं करते.’

‘ठीक है, मैं रजनीश से बात करूंगा.’

‘पता नहीं कब बात करोगे, जब पानी सिर से ऊपर हो जाएगा तब? जाने यह निगोड़ी बहू हम से किस जन्म का बदला ले रही है. पहले मेरे भोलेभाले बेटे पर डोरे डाले, अब बच्चा गोद लेने का तिकड़म कर रही है.’

रजनीश अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर निढाल पड़ गया. अर्चना उस के पास खिसक आई और उस के बालों में उंगलियां चलाती हुई बोली, ‘क्या बात है, बहुत थकेथके लग रहे हो.’

‘आज अम्मां व पिताजी के साथ जम कर बहस हुई. वे दीपू को गोद लेने के कतई पक्ष में नहीं हैं.’

‘तो फिर?’

‘तुम्हीं बताओ.’

‘मैं क्या बताऊं, एक जरा सी बात को इतना तूल दिया जा रहा है. क्या और निसंतान दंपती बच्चा गोद नहीं लेते? हम कौन सी अनहोनी बात करने जा रहे हैं.’

‘मैं उन से कह कर हार गया. वे टस से मस नहीं हुए. मैं तो चक्की के दो पाटों के बीच पिस रहा हूं. इधर तुम्हारी जिद उधर उन की…’

‘तो अब?’

‘उन्होंने एक और प्रस्ताव रखा है…’

‘वह क्या?’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘वे कहते हैं कि चूंकि तुम मां नहीं बन सकती हो. मैं तुम्हें तलाक दे कर दूसरी शादी कर लूं.’

‘क्या…’ अर्चना बुरी तरह चौंकी, ‘तुम मेरा त्याग करोगे?’

‘ओहो, पूरी बात तो सुन लो. दूसरी शादी महज एक बच्चे की खातिर की जाएगी. जैसे ही बच्चा हुआ, उसे तलाक दे कर मैं दोबारा तुम से ब्याह कर लूंगा.’

‘वाह…वाह,’ अर्चना ने तल्खी से कहा, ‘क्या कहने हैं तुम लोगों की सूझबूझ के. मेरे साथ तो नाइंसाफी कर ही रहे हो, उस दूसरी, निरपराध स्त्री को भी छलोगे. बिना प्यार के उस से शारीरिक संबंध स्थापित करोगे और अपना मतलब साध कर उसे चलता करोगे?’

‘और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘है क्यों नहीं. कह दो अपने मातापिता से कि यह सब संभव नहीं. तुम पुरुष हम स्त्रियों को अपने हाथ की कठपुतली नहीं बना सकते. क्या तुम से यह कहते नहीं बना कि मैं ने शादी से पहले गर्भ धारण किया था? यदि तुम ने अबार्शन न करा दिया होता तो…’ कहतेकहते अर्चना का गला भर आया था.

‘अर्चना डियर, तुम बेकार में भावुक हो रही हो. बीती बातों पर खाक डालो. मुझे तुम्हारी पीड़ा का एहसास है. दूसरी तरफ मेरे बूढ़े मांबाप के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है. वे मुझ से एक ही चीज मांग रहे थे, इस घर को एक वारिस, इस वंश को एक कुलदीपक.’

‘तो कर लो दूसरी शादी, ले आओ दूसरी पत्नी, पर इतना बताए देती हूं कि मैं इस घर में एक भी पल नहीं रुकूंगी,’ अर्चना भभक कर बोली.

‘अर्चना…’

‘मैं इतनी महान नहीं हूं कि तुम्हारी बांहों में दूसरी स्त्री को देख कर चुप रह जाऊं. मैं सौतिया डाह से जल मरूंगी. नहीं रजनीश, मैं तुम्हें किसी के साथ बांटने के लिए हरगिज तैयार नहीं.’

‘अर्चना, इतना तैश में न आओ. जरा ठंडे दिमाग से सोचो. यह दूसरा ब्याह महज एक समझौता होगा. यह सब बिना विवाह किए भी हो सकता है पर…’

‘नहीं, मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी. हर बात में तुम्हारी नहीं चलेगी. आज तक मैं तुम्हारे इशारों पर नाचती रही. तुम ने अबार्शन को कहा, सो मैं ने करा दिया. तुम ने यह बात अपने मातापिता से गुप्त रखी, मैं राजी हुई. तुम क्या जानो कि तुम्हारी वजह से मुझे कितने ताने सहने पड़ रहे हैं. बांझ…आदि विशेषणों से मुझे नवाजा जाता है. तुम्हारी मां ने तो एक दिन यह भी कह दिया कि सवेरेसवेरे बांझ का मुंह देखो तो पूरा दिन बुरा गुजरता है. नहीं रजनीश, मैं ने बहुत सहा, अब नहीं सहूंगी.’

‘अर्चना, मुझे समझने की कोशिश करो.’

‘समझ लिया, जितना समझना था. तुम लोगों की कूटनीति में मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जैसे गायगोरू के सूखने पर उस की उपयोगिता नहीं रहती उसी तरह मुझे बांझ करार दे कर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका जा रहा है. लेकिन मुझे भी तुम से एक सवाल करना है…’

‘क्या?’ रजनीश बीच में ही बोल पड़ा.

‘समझ लो तुम मेें कोई कमी होती और मैं भी यही कदम उठाती तो?’

‘अर्चना, यह कैसा बेहूदा सवाल है?’

‘देखा…कैसे तिलमिला गए. मेरी बात कैसी कड़वी लगी.’

रजनीश मुंह फेर कर सोने का उपक्रम करने लगा. उस रात दोनों के दिल में जो दरार पड़ी वह दिनोंदिन चौड़ी होती गई.

रजनीश ने दरवाजे की घंटी बजाई तो एक सजीले युवक ने द्वार खोला.

‘‘अर्चनाजी हैं?’’ रजनीश ने पूछा.

‘‘जी हां, हैं, आप…आइए, बैठिए, मैं उन्हें बुलाता हूं.’’

अर्चना ने कमरे में प्रवेश किया. उस के हाथ में ट्रे थी.

‘‘आओ रजनीश. मैं तुम्हारे लिए काफी बना रही थी. तुम्हें काफी बहुत प्रिय है न,’’ कह कर वह उसे प्याला थमा कर बोली, ‘‘और सुनाओ, क्या हाल हैं तुम्हारे? अम्मां व पिताजी कैसे हैं?’’

‘‘उन्हें गुजरे तो एक अरसा हो गया.’’

‘‘अरे,’’ अर्चना ने खेदपूर्वक कहा, ‘‘मुझे पता ही न चला.’’

‘‘हां, तलाक के बाद तुम ने बिलकुल नाता तोड़ लिया. खैर, तुम तो जानती ही हो कि मैं ने मोहिनी से शादी कर ली. और यह नियति की विडंबना देखो, हम आज भी निसंतान हैं.’’

‘‘ओह,’’ अर्चना के मुंह से निकला.

‘‘हां, अम्मां को तो इस बात से इतना सदमा पहुंचा कि उन्होंने खाट पकड़ ली. उन के निधन के बाद पिताजी भी चल बसे. लगता है हमें तुम्हारी हाय लग गई.’’

‘‘छि:, ऐसा न कहो रजनीश, जो होना होता है वह हो कर ही रहता है. और शादी आजकल जन्म भर का बंधन कहां होती है? जब तक निभती है निभाते हैं, बाद में अलग हो जाते हैं.’’

‘‘लेकिन हम दोनों एकदूसरे के कितने करीब थे. एक मन दो प्राण थे. कितना साहचर्य, सामंजस्य था हम में. कभी सपने में भी न सोचा था कि हम एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे. और आज मैं मोहिनी से बंध कर एक नीरस, बेमानी ज्ंिदगी बिता रहा हूं. हम दोनों में कोई तालमेल नहीं. अगर जीवनसाथी मनमुताबिक न हो तो जिंदगी जहर हो जाती है.

‘‘खैर छोड़ो, मैं भी कहां का रोना ले बैठा. तुम अपनी सुनाओ. यह बताओ, वह युवक कौन था जिस ने दरवाजा खोला?’’

यह सुन कर अर्चना मुसकरा कर बोली, ‘‘वह मेरा बेटा है.’’

‘‘ओह, तो तुम ने भी दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, मैं ने तो केवल उसे गोद लिया है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, रजनीश, यह वही बच्चा दीपू है, अनाथाश्रम वाला. तुम से तलाक ले कर मैं दिल्ली गई जहां मेरा परिवार रहता था. एक नौकरी कर ली ताकि उन पर बोझ न बनूं, पर तुम तो जानते हो कि एक अकेली औरत को यह समाज किस निगाह से देखता है.

‘‘पुरुषों की भूखी नजरें मुझ पर गड़ी रहतीं. स्त्रियों की शंकित नजरें मेरा पीछा करतीं. कई मर्दों ने करीब आने की कोशिश की. कई ने मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, पर मैं उन सब से बचती रही. 1-2 ने विवाह का प्रलोभन भी दिया, पर जहां मन न मिले वहां केवल सहारे की खातिर पुरुष की अंकशायिनी बनना मुझे मंजूर न था.

‘‘इस शहर में आ कर अपना अकेलापन मुझे सालने लगा. नियति की बात देखो, अनाथाश्रम में दीपू मानो मेरी ही प्रतीक्षा कर रहा था. इस ने मेरे हृदय के रिक्त स्थान को भर दिया. इस के लालनपालन में लग कर जीवन को एक गति मिली, एक ध्येय मिला. 15 साल हम ने एकदूसरे के सहारे काट दिए. इस आशा में हूं कि यह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यदि नहीं भी बना तो कोई गम नहीं, कोई गिला नहीं,’’ कहती हुई अर्चना हलके से मुसकरा दी.

लेखक- रमणी मोटाना

Hindi Social Story

Hindi Fictional Story: टेढ़ी दुम

Hindi Fictional Story: कालेज के दिनों में मैं ज्यादातर 2 सहेलियों के बीच बैठा मिलता था. रूपसी रिया मेरे एक तरफ और सिंपल संगीता दूसरी तरफ होती. संगीता मुझे प्यार भरी नजरों से देखती रहती और मैं रिया को. रही रूपसी रिया की बात तो वह हर वक्त यह नोट करती रहती कि कालेज का कौन सा लड़का उसे आंखें फाड़ कर ललचाई नजरों से देख रहा है. कालेज की सब से सुंदर लड़की को पटाना आसान काम नहीं था, पर उस से भी ज्यादा मुश्किल था उसे अपने प्रेमजाल में फंसाए रखना. बिलकुल तेज रफ्तार से कार चलाने जैसा मामला था. सावधानी हटी दुर्घटना घटी. मतलब यह कि आप ने जरा सी लापरवाही बरती नहीं कि कोई दूसरा आप की रूपसी को ले उड़ेगा.

मैं ने रिया के प्रेमी का दर्जा पाने के लिए बहुत पापड़ बेले थे. उसे खिलानेपिलाने, घुमाने और मौकेबेमौके उपहार देने का खर्चा उतना ही हो जाता था जितना एक आम आदमी महीनेभर में अपने परिवार पर खर्च करता होगा. ‘‘रिया, देखो न सामने शोकेस में कितना सुंदर टौप लगा है. तुम पर यह बहुत फबेगा,’’ रिया को ललचाने के लिए मैं ऐसी आ बैल मुझे मार टाइप बातें करता तो मेरी पौकेट मनी का पहले हफ्ते में ही सफाया हो जाता.

मगर यह अपना स्पैशल स्टाइल था रिया को इंप्रैस करने का. यह बात जुदा है कि बाद में पापा से सचझूठ बोल कर रुपए निकलवाने पड़ते. मां की चमचागिरी करनी पड़ती. दोस्तों से उधार लेना आम बात होती. अगर संगीता ने मेरे पीछे पड़पड़ कर मुझे पढ़ने को मजबूर न किया होता तो मैं हर साल फेल होता. मैं पढ़ने में आनाकानी करता तो वह झगड़ा करने पर उतर आती. मेरे पापा से मेरी शिकायत करने से भी नहीं चूकती थी.

‘‘तू अपने काम से काम क्यों नहीं रखती है?’’ मैं जब कभी नाराज हो उस पर चिल्ला उठता तो वह हंसने लगती थी. ‘‘अमित, तुम्हें फेल होने से

बचा कर मैं अपना ही फायदा कर रही हूं,’’ उस की आंखों में शरारत नाच उठती थी. ‘‘वह कैसे?’’

‘‘अरे, कौन लड़की चाहेगी कि उस का पति ग्रैजुएट भी न हो,’’ हम दोनों के आसपास कोई न होता तो वह ऐसा ही ऊलजलूल जवाब देती. ‘‘मुझे पाने के सपने मत देखा

कर,’’ मैं उसे डपट देता तो भी वह मुसकराने लगती. ‘‘मेरा यह सपना सच हो कर रहेगा,’’ अपने मन की इच्छा व्यक्त करते हुए उस की आंखों में मेरे लिए जो प्यार के भाव नजर आते, उन्हें देख कर मैं गुस्सा करना भूल जाता और उस के सामने से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझता.

कालेज की पढ़ाई पूरी हुई तो मैं ने रिया से शादी करने की इच्छा जाहिर कर दी.

उस ने मेरी हमसफर बनने के लिए तब अपनी शर्त मुझे बता दी, ‘‘अमित, मैं एक बिजनैसमैन की पत्नी बन कर खुश नहीं रह सकूंगी और तुम अब अपने पापा का बिजनैस में हाथ बंटाने जा रहे हो. मेरा हाथ चाहिए तो आईएएस या पुलिस औफिसर बनो. एमबीए कर के अच्छी जौब पा लोगे तो भी चलेगा.’’ उस की इन बातों को सुन कर मेरा मन एक बार को बैठ ही गया था.

मगर प्यार में इंसान को बदलने की ताकत होती है. मैं ने आईएएस की परीक्षा देने का हौसला अपने अंदर पैदा किया. कई सारी किताबें खरीद लाया. अच्छी कोचिंग कहां से मिलेगी, इस बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी. संगीता को जब यह जानकारी मिली तो हंसतेहंसते उस के पेट में बल पड़ गए. बोली, ‘‘अमित, क्यों बेकार के झंझट में पड़ रहा है… देख, जो इंसान जिंदगी भर दिल्ली में रहा हो,

क्या उसे ऐवरैस्ट की चोटी पर चढ़ने के सपने देखने चाहिए?’’ उस की ऐसी बातें सुन कर मैं उसे भलाबुरा कहने लगता तो वह खूब जोरजोर से हंसती.

वैसे संगीता ने मेरी काबिलीयत को सही पहचाना था. सिर्फ 2 हफ्ते किताबों में सिर खपाने के बाद जब मुझे चक्कर से आने लगे तो आईएएस बनने का भूत मेरे सिर से उतर गया. ‘‘ज्यादा पढ़नालिखना मेरे बस का नहीं है, रिया. बस, मेरी इस कमजोरी को नजरअंदाज कर के मेरी हो जाओ न,’’ रिया से ऐसी प्रार्थना करने से पहले मैं ने उसे महंगे गौगल्स गिफ्ट किए थे.

‘‘ठीक है, यू आर वैरी स्वीट, अमित,’’ नया चश्मा लगा कर उस ने इतराते हुए मेरी बनने का वादा मुझ से कर लिया. इस वादे के प्रति अपनी ईमानदारी उस ने महीने भर बाद अमेरिका में खूब डौलर कमा रहे एक सौफ्टवेयर इंजीरियर से चट मंगनी और पट शादी कर के दिखाई.

उस ने मेरा दिल बुरी तरह तोड़ा था. मैं ने दिल टूटे आशिक की छवि को ध्यान में रख फौरन दाढ़ी बढ़ा ली और लक्ष्यहीन सा इधरउधर घूम कर समय बरबाद करने लगा.

संगीता ने जब मुझे एक दिन यों हालबेहाल देखा तो वह जम कर हंसी और फिर मेरा एक नया कुरता फाड़ कर

मेरे हाथ में पकड़ा दिया और फिर बोली, ‘‘इसे पहन कर घूमोगे तो दूर से भी कोई पहचान लेगा कि यह कोई ऐसा सच्चा आशिक जा रहा है जिस का दिल किसी बेवफा ने तोड़ा है. तुम्हारे जैसे और 2 मजनू तुम्हें सड़कों पर घूमते नजर आएंगे. उन को भी रिया ने प्यार में धोखा दिया है. एक क्लब बना कर तुम तीनों सड़कों की धूल फांकते इकट्ठे घूमना शुरू क्यों नहीं कर देते हो?’’ संगीता के इस व्यंग्य पर मैं अंदर तक तिलमिला उठा. वह उस दिन सचमुच ही रिया के 2 अन्य आशिकों से मुझ को मिलवाने भी ले गई. उन में से एक रिया का पड़ोसी था और दूसरा उस के मौसेरे भाई का दोस्त. उस रूपसी ने जम कर हम तीनों को उल्लू बनाया, इस बात को समझते ही मैं ने दिल टूटने का मातम मनाना फौरन बंद किया और नया शिकार फांसने की तैयारी करने लगा.

अगले दिन बनसंवर कर जब मैं घर से बाहर निकलने वाला था तभी संगीता मुझ से मिलने मेरे घर आ पहुंची. बोली, ‘‘मुझ से अच्छी लड़की तुम्हें कभी नहीं और कहीं नहीं मिलेगी, हीरो. वैसे अभी तक सुंदर लड़कियों के हाथों बेवकूफ बनने से दिल न भरा हो तो फिर किसी लड़की पर लाइन मारना शुरू कर दो. मेरी तरफ से तुम्हें ऐसी मूर्खता करने की इजाजत है और सदा रहेगी,’’ संगीता ने कोई सवाल पूछे बिना मेरी नीयत को फौरन पढ़ लिया तो यह बात मुझे सचमुच हैरान कर गई. ‘‘मैं कल ही तेरे मम्मीपापा को समझाता हूं कि वे कोई सीधा और अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर दें,’’ और फिर उस से किसी तरह की बहस में उलझे बिना मैं बाहर घूमने निकल गया.

संगीता के मातापिता ने उस के लिए अच्छा लड़का फौरन ढूंढ़ लिया. उस लड़के को मेरे मम्मीपापा ने भी पास कर दिया तो महीने भर बाद ही मेरी उस के साथ सगाई हो गई और उस के अगले हफ्ते वह दुलहन बन कर हमारे घर

आ गई. मेरे दोस्तों ने मुझे इस रिश्ते के लिए मना करने को बहुत उकसाया था, पर मैं चाहते हुए भी इनकार नहीं कर सका.

‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ ही होगी,’’ संगीता प्यार भरे अपनेपन व आत्मविश्वास के साथ यह बात कहती थी और अंत में उस का कहा ही सच भी हुआ. इस में कोई शक नहीं कि वह मुझे बहुत प्यार करती है और मेरी सच्ची शुभचिंतक है. बहुत ध्यान रखती है वह मेरा. वह ज्यादा सुंदर तो नहीं है पर उस के पास सोने का दिल है. उस का सब से बड़ा गुण है मेरी किसी भी गलती पर नाराज होने के बजाय सदा हंसतेमुसकराते रहना. उस की हंसी में कुछ ऐसा है, जो मुझे उसी पल तनावमुक्त कर शांत और प्रसन्न कर जाता है. वह मुझे दिल से अपना पसंदीदा हीरो मानती है.

मगर मेरी दुम शादी के बाद भी टेढ़ी की टेढ़ी ही रही है. सुंदर लड़कियों पर लाइन मारने का कोई मौका मैं अब भी नहीं चूकता हूं पर संगीता की नजरों से अपनी इन हरकतों को बचा पाना मेरे लिए संभव नहीं. ‘‘फलांफलां युवती के साथ चक्कर चलाने की कोशिश कर रहे हो न?’’ वह मेरी हरकतों को पढ़ लेने के बाद जब भी मुसकराते हुए यह सवाल सीधासीधा मुझ से पूछती है तो मैं झूठ नहीं बोल पाता हूं.

‘‘ऐसे ही जरा हंसबोल कर टाइम पास कर रहा था,’’ चूंकि वह मेरी फ्लर्ट करने की आदत के कारण मुझ से कभी लड़तीझगड़ती नहीं है, इसलिए मैं उसे सच बात बता देता हूं. ‘‘अपनी हौबी को टाइम पास करना मत कहोजी. अब लगे हाथ यह भी बता दो कि किस चीज को गिफ्ट करने का लालच दे कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे थे, रोमियो के नए अवतारजी?’’

वह मेरी लड़की पटाने की तरकीबों को शुरू से ही पहचानती है. ‘‘उस का मनपसंद सैंट,’’ मैं झेंपी सी हंसी हंसते हुए सचाई बता देता.

‘‘उस पर क्यों रुपए बरबाद करते हो, स्वीटहार्ट. मैं मौजूद हूं न लड़कियों को गिफ्ट करने की तुम्हारे अंदर उठने वाली खुजली को मिटाने के लिए. कल चलते हैं मेरा मनपसंद

सैंट खरीदने.’’ ‘‘तुम्हारे पास पहले से ही सैंट की दर्जनों बोतलें हैं,’’ मैं हलका सा विरोध करता तो वह खिलखिला कर हंस पड़ती.

‘‘सैंट ही क्यों, तुम्हारी लड़कियों को दाना डालने की आदत के चलते मेरे पास कई सुंदर ड्रैसेज भी हैं, ज्वैलरी भी, 3 रिस्ट वाच, 2 जोड़े गौगल्स और न जाने कितनी महंगी चीजें इकट्ठी हो गई हैं, मेरे धन्ना सेठ. मैं तो अकसर कामना करती हूं कि लड़कियों से फ्लर्ट करने के मामले में वह तुम्हारी टेढ़ी दुम कभी सीधी

न हो.’’ ‘‘यार, अजीब औरत हो तुम जो अपने पति को दूसरी औरतों के साथ फ्लर्ट करता देख कर खुश होती है,’’ मैं चिढ़ उठता तो उस का ठहाका आसपास की दीवारों को हिला जाता.

शादी के बाद कभीकभी मैं संगीता से मन ही मन बहुत नाराज हो उठता था. मुझे लगता था कि स्वतंत्रता से जीने की राह में वह मेरे लिए बहुत बड़ी रुकावट बनी हुई है. फिर एक पार्टी में कुछ ऐसा घटा जिस ने मेरा यह नजरिया ही बदल दिया.

उस रात मैं पहले बैंक्वेट हौल में प्रवेश कर गया, क्योंकि संगीता अपनी किसी सहेली से बात करने को दरवाजे के पास रुक गई थी.

जब संगीता ने अंदर कदम रखा तब मेरे कानों में उस की प्रशंसा करता पुरुष स्वर पहुंचा, ‘‘क्या स्मार्ट लेडी है, यारो… यह कोई टीवी कलाकार या मौडल है क्या?’’

इन जनाब ने ये बातें अपने दोस्तों से कही थीं. उस रात मैं ने भी संगीता को जब ध्यान से देखा तो मुझे सचमुच उस का व्यक्तित्व बहुत स्मार्ट और प्रभावशाली लगा. उस के नैननक्श तो ज्यादा सुंदर कभी नहीं रहे थे, पर अपने लंबे कद, आकर्षक फिगर और अपने ऊपर खूब फबने वाली साड़ी पहनने के कारण वह बहुत जंच

रही थी. मैं ने आगे बढ़ कर बड़े गर्व के साथ संगीता का हाथ पकड़ा तो उन पुरुषों की आंखों में मैं ने ईर्ष्या के भाव पैदा होते साफ देखे.

‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो,’’ मैं ने दिल से संगीता की ऐसी तारीफ शायद पहली बार

करी थी. ‘‘ये सब तुम से मिले गिफ्ट्स का कमाल है. वैसे आज अपनी बीवी पर कैसे लाइन मार रहे हो, अमित?’’ उस का चेहरा फूल सा खिल

उठा था. ‘‘दुनिया तुम पर लाइन मारने को तैयार है, तो मैं ने सोचा कि मैं ही क्यों पीछे रहूं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो,’’ उस का एकदम से शरमाना मेरे मन को बहुत भाया. उस रात मुझे अपनी पत्नी के साथ फ्लर्ट करने का नया और अनोखा अनुभव मिला. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि किसी अन्य युवती से फ्लर्ट करने के मुकाबले यह ज्यादा सुखद और आनंददायक अनुभव रहा.

आजकल मेरी जिंदगी बहुत बढि़या कट रही है. पत्नी को प्रेमिका बना लेने से मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं. भरपूर मौजमस्ती के साथसाथ मन की शांति भी मिल रही है. मेरे साथ झगड़ने से परहेज कर के और मुझे प्यार की नाजुक डोर से बांध कर संगीता ने मेरी टेढ़ी दुम को सीधा करने में आखिर कामयाबी पा ही ली है.

Hindi Fictional Story

Pyaar Ki Kahani: दूरी हमें दूर न कर दे

Pyaar Ki Kahani: मोबाइल की घंटी बजी तो प्रकाश ने मोबाइल की ओर देखा. स्क्रीन पर ‘रेखा कालिंग’ फ्लैश हो रहा था. ‘‘हैलो रेखा,’’ प्रकाश ने काल रिसीव कर के कहा. ‘‘मेरी प्रमोशन हो गई है. मुझे नए औफिस दुबई में जौइन करना है,’’ रेखा ने चहकते हुए कहा. उस की आवाज से उस की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता था. ‘‘अरे वाह, आखिर तुम गर्लफ्रैड किस की हो? तुम्हारी प्रमोशन कोई कैसे रोक सकता था?’’ प्रकाश ने खुश हो कर कहा. ‘‘अच्छा शाम को मिलो, अभी कई लोगों की काल्स आ रही हैं. बधाइयों का तांता लग रहा है,’’ रेखा ने कहा और फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

प्रकाश को एकदम से ध्यान आया कि रेखा को दुबई जाना होगा प्रमोशन के बाद. रेखा ने पहले ही बताया था इस के बारे में. यह सोच कर वह थोड़ा उदास सा हो गया. वह पिछले डेढ़ वर्षों से रेखा के साथ था. दोनों एकदूसरे से बेहद प्यार करते थे. रेखा प्रकाश को बहुत ही बेहतर तरीके से समझती थी. प्रकाश आज तक ऐसी किसी लड़की के संपर्क में नहीं आया था जो उसे इतने बेहतर तरीके से समझ सके.

रेखा को प्रमोशन मिली थी और निश्चित रूप से यह खुशी की बात थी. उस ने बताया था कि प्रमोशन होने पर उस का पैकेज काफी बढ़ जाएगा और दुबई में सैलरी उसे दिरहम में मिलेगी. एक दिरहम का मूल्य 25 रुपए के बराबर होता है पर साथ ही यह भी बताया था कि कम से कम 2 वर्षों तक उसे दुबई में ही रहना होगा. दुविधा में पड़ गया प्रकाश.

\इतना अच्छा अवसर मिला है तो रेखा को तो उसे छोड़ने के लिए कैसे कह सकता है वह? पर वह इतनी दूर रहेगी तो क्या उन की रिलेशनशिप पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? क्या इतने लंबे समय तक दूर रहना उचित होगा? क्या इस दौरान उन के बीच वह रिलेशन रह पाएगा जो अभी है? शाम को मिलने के लिए कहा था रेखा ने. कहां मिलना है यह स्पष्ट था. जब भी रेखा खुश होती थी उसे अपने फ्लैट पर बुलाती थी. फिर वहां से दोनों पिंड बलूची जाते थे डिनर पर. रेखा का यह पसंदीदा रैस्टोरैंट था और उस के फ्लैट से मुश्किल से 2 सौ मीटर की दूरी पर था.

औफिस से फ्री हो कर प्रकाश रेखा के फ्लैट पर पहुंच गया. रेखा ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया. एकदम से गले लग गई उस के. ‘‘एक बार फिर से बधाई,’’ प्रकाश ने उसे अपनी बांहों में कसते हुए कहा. ‘‘थैंक्यू सो मच,’’ रेखा खुश हो कर इठलाती हुई बोली. ‘‘आज तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की मैंगो फ्लेवर आइसक्रीम लाई हूं,’’ कह रेखा ने फ्रिज से 2 आइसक्रीम ला कर एक प्रकाश को दी और एक खुद खोल कर खाने लगी. ‘‘अब आगे?’’ प्रकाश अपनी आइसक्रीम को अनपैक करते हुए बोला. ‘‘चलेंगे पिंड बलूची और करेंगे डिनर और क्या?’’ रेखा ने आइसक्रीम खाते हुए लापरवाही से कहा. ‘‘मैं इस की बात नहीं कर रहा,’’ प्रकाश ने आइसक्रीम की एक बाइट लेते हुए कहा. ‘‘तो फिर किस की बात कर रहे हो?’’ रेखा ने पूछा ‘‘भई दुबई वाली मैडम इस इंडियन को पूछेगी भला अब?’’ प्रकाश बोला.

रेखा ने उसे मुंह बनाते हुए देखा मानो वह कितनी वाहियात बात कर रहा हो. फिर बोली, ‘‘प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है. तुम्हें तो पता है ही. सीधी रेखा जहां भी रहेगी प्रकाश उसी ओर चलेगा,’’ रेखा ने उंगली से अपनी ओर इशारा करते हुए चुटकी ली. ‘‘दुबई यहां से 2 हजार किलोमीटर दूर है. प्रकाश वहां तक पहुंचतेपहुंचते क्षीण हो जाएगा,’’ प्रकाश ने कहा. ‘‘2 हजार किलोमीटर यानी ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे. आ जाना मिलने बीचबीच में और दुबई घूमना. कभीकभी मैं भी आ जाया करूंगी.

2 वर्ष कैसे बीत जाएंगे पता भी नहीं चलेगा,’’ रेखा ने कहा. ‘‘मजाक बहुत हो गया. अब थोड़ा गंभीर हो जाएं हम दोनों. क्या यह दूरी हमें एकदूसरे से दूर नहीं कर देगी?’’ प्रकाश गंभीर हो कर बोला. ‘‘दूरी हमें एकदूसरे से दूर नहीं कर देगी… क्या फिलौस्फिकल बात कही है तुम ने,’’ रेखा ने पहले तो उस की बातों का मजाक उड़ाया.

फिर बोली, ‘‘लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि कुछ ज्यादा ही फालतू बातें कर रहे हो?’’ रेखा ने परेशान हो कर कहा. ‘‘प्रैक्टिकल बात कर रहा हूं,’’ प्रकाश ने गंभीर होकर कहा. ‘‘एक ही घर में एक ही छत के नीचे रहने वालों के बीच अनबन होते हुए देखी है तुम ने?’’ रेखा बोली. ‘‘हां, देखी तो है,’’ प्रकाश ने कहा. ‘‘उन के बीच दूरी नहीं होती. फिर क्यों अनबन होती है?’’ रेखा ने सवाल किया? ‘‘विचार नहीं मिलने के कारण और क्या?’’ प्रकाश ने जवाब दिया. ‘‘यानी दूरी न भी हो पर विचार न मिलें तो प्रेम वैसा नहीं रहता. राइट?’’ रेखा ने फिर सवाल किया. ‘‘हां,’’ प्रकाश ने जवाब दिया. ‘‘इस का विलोम भी सत्य होना चाहिए यानी दूरी हो पर विचार मिलें तो संबंध बना रहता है,’’ रेखा ने तर्क दिया.

‘‘बात तुम्हारी सही है पर मुझे लगता है इतनी दूर रहने से हमारे बीच दूरी न बढ़ जाए,’’ प्रकाश ने फिर शंका व्यक्त की. ‘‘फिर मैं प्रमोशन छोड़ देती हूं,’’ रेखा ने कहा. ‘‘यह उचित नहीं होगा. तुम्हारी मेहनत और प्रतिभा के कारण तुम्हें प्रमोशन मिली है. बारबार यह मौका मिलने से रहा,’’ प्रकाश ने कहा. ‘‘फिर क्या किया जाए? तुम ही बताओ,’’ रेखा ने पूछा. प्रकाश को कोई जवाब नहीं सूझ. ‘‘पहले डिनर का जो प्रोग्राम बन गया है उसे निबटाते हैं, फिर आराम से बातें करेंगे.’’ रेखा ने कहा.

प्रकाश ने सिर हिला कर अपनी सहमति दी. उस के चेहरे पर अभी भी अनिश्चितता का भाव था. थोड़ी देर बाद दोनों डिनर के लिए गए पर एक अजीब सा खालीपन लग रहा था वातावरण में. थोड़ी देर पहले दोनों जितने खुश थे अब उतने खुश नहीं दिख रहे थे. डिनर से वापस आने के बाद रेखा बोली, ‘‘तुम मेरे दूर जाने से दुखी हो फिर भी मुझे रोक नहीं रहे हो क्योंकि यह मेरे कैरियर का मामला है. यही तो साबित करता है कि तुम मेरा कितना खयाल रखते हो. मैं तुम्हारे कहने पर प्रमोशन छोड़ने के लिए तैयार हूं.

यह साबित करता है कि मुझे कितना खयाल है तुम्हारा यानी हम दोनों एकदूसरे की खुशी चाहते हैं. 2 वर्ष कोई बहुत बड़ा समय नहीं है. इस के बाद मैं वापस आ जाऊंगी. यदि तुम्हें किसी बेहतर कंपनी में दुबई शिफ्ट होने का मौका मिले तो तुम भी वहां आ सकते हो. दूरी ऐसी समस्या भी नहीं है जितना तुम सोच रहे हो.’’ ‘‘तुम ठीक कह रही हो,’’ जब हम दोनों एकदूसरे का खयाल रखेंगे तो फिर दूरी का कोई मतलब नहीं रहेगा,’’ प्रकाश ने कहा. पर उस की आवाज में उदासी झलक ही रही थी.

कुछ महीनों के बाद रेखा दुबई चली गई. स्वाभाविक था कि शुरुआती कुछ महीनों में वहां के वातावरण में ढलने में समय लगा रेखा को. साथ ही वहां का समय भी डेढ़ घंटे पीछे था. कई बार ऐसा होता था कि प्रकाश रात में फोन करता तो रेखा रिसीव नहीं कर पाती थी. इस से प्रकाश को बहुत दुख होता था. पर जैसे ही रेखा को मौका मिलता था वह काल बैक जरूर करती थी. बाद में रेखा जब नए माहौल के अनुसार ढाल गई तो फिर दोनों के बीच हमेशा संपर्क बना रहा.

औफिस की ओर से मिलने वाले एलटीसी की सुविधा में प्रकाश दुबई और आसपास के इलाके घूम आया और रेखा का साथ मिला उसे. रेखा भी डेढ़ साल के बाद छुट्टी ले कर भारत आई तो प्रकाश के साथ उस ने खूब आनंद लिया. इस प्रकार डेढ़ वर्ष कब बीत गए पता ही नहीं चला. जब रेखा को वापस दुबई जाने के लिए एअरपोर्ट पर विदा करने प्रकाश पहुंचा तो उस ने कहा, ‘‘रेखा तुम ठीक कहती हो.’’ रेखा ने प्रकाश को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा मानो पूछ रही हो कहना क्या चाहते हो? प्रकाश बोला, ‘‘तुम ने कहा था न कि दूरी हो पर विचार मिलें तो संबंध बना रहता है.’’ रेखा ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘शुरू में मैं आशंकित था पर तुम्हारी बात सच निकली. कुछ महीनों के बाद तुम वापस आ जाओगी फिर हम दांपत्यजीवन में प्रवेश करेंगे.’’ जवाब में रेखा ने प्रकाश के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया और हाथ हिलाते हुए ट्रौली के साथ एअरपोर्ट के अंदर चली गई.

Pyaar Ki Kahani

Long Story in Hindi: संधि क्षण

Long Story in Hindi: गोल्डन कलर की झनी सी स्लीवलैस वन पीस में मालविका का मखमली गोरा लचीला बदन सुदेश की आंखों को फिसलने के लिए खुला आमंत्रण दे रहा था. सुदेश इस की उपेक्षा क्यों ही करता, वह काम के बीच मालविका का थाह भी लेता चल रहा था. मालविका उस की फिल्म की नई हीरोइन थी और वह इस फिल्म का डाइरैक्टर प्रौड्यूसर अपना हक मानता था. ‘‘सर शौट रैडी है,’’ शूटिंग स्टूडियो में सभी कर्मचारियों, अभिनेता और चरित्र भूमिका निभाने वालों की आपाधापी के बीच असिस्टैंट परवेज ने सुदेश के पास आकर कहा.

सुदेश ने मालविका को ताड़ते हुए परवेज से पूछा, ‘‘इस नई लड़की की उम्र कितनी है?’’ ‘‘शायद 25 की होगी सर.’’ ‘‘अब तक कहां थी? मतलब क्या करती थी?’’ ‘‘सर बाहर लखनऊ से है, ग्रैजुएट होने के बाद मुंबई आ गई थी, 3 साल से सीरियल और एड फिल्में कर रही थी.

‘‘इस के मातापिता?’’ ‘‘सर, लखनऊ में इस के पिता का टैक्स्टाइल का कारोबार है, भाई वही देखता है.’’ ‘‘ठीक है आज शाम मेरे होटल ले आना.’’ मुंबई के अंधेरी में मालविका एक कमरे का फ्लैट किराए पर ले कर रहती थी. 22 हजार किराया देती है, ग्लैमर की दुनिया में खुद को मैंटेन रखने के जो खर्चे हैं, मालविका उन्हीं में पस्त है, नई कार और अपना घर कैसे ले, जबकि खुद को विलासिता के शिखर पर ले जाने को मालविका प्रतिबद्ध है और यहां थोड़ेबहुत समझते के बूते अगर वह किसी पारस मणि को हाथ कर सके, जिस से वह जो छुए सोना हो जाय तो उस की तो दिन ही बदल जाएं. बस वह पारस मणि तो मिले. यहां तो सब बहती गंगा में हाथ धोकर चल देते हैं.

परवेज ने फोन कर के मालविका को रैडी रहने को कहा. यहां अलिखित भी बहुत कुछ होता है. यह जानी हुई बात है कि कोई अगर किसी की फिल्म में नईनई हीरोइन बनी हो और आगे उसे और भी काम पाना है तो जाहिर है उस की हर बात वह मानेगा. कार में सुदेश के बारे में मालविका को कई बातें पता चली. सुदेश के कई बिजनैस और बंगले हैं. कई होटल भी हैं, लेकिन अभी जहां मालविका जा रही है वह सुदेश का खास ठिकाना है. इस कई मंजिला होटल के ऊपरी हिस्से को सुदेश ने अपने लिए डिजाइन कराया है और जब भी किसी से खास तरीके से मिलना होता है वह यहीं बुलाता है.

‘‘सुदेशजी की वाइफ को पता होता है कि वे इस तरह यहां…’’ मालविका के इशारे को समझते हुए परवेज ने कहा, ‘‘मालविकाजी मैं बस काम से काम रखता हूं. इतना तो नहीं पता मुझे, लेकिन हां 25 साल सुदेशजी की शादी के हो गए, उन की पत्नी खुद बुटीक चलाती हैं, 2 बड़े बेटे विदेश में हैं तो पति को नहीं जानती होंगी, ऐसी बात होगी क्या? बाकी इतना बता दूं सुदेशजी को खुश रखने के लिए उन की किसी बात को काटिएगा नहीं और पूछपरख ज्यादा मत करिएगा. बाकी वे खुश हो गए तो आप के दिन फिर जाएंगे,’’ और फिर परवेज सुदेश की सूट के बाहर मालविका को छोड़ चला गया. सकुचाई सी मालविका ने सुदेश पर एक नजर डाली. उस के बारे में सुनसुन कर उसे जितना डर लगा था, अब उसे देखने के बाद वह डर तो खत्म हो ही गया, बल्कि वो मालविका को थोड़ा अच्छा भी लगा.

शूटिंग के दौरान उस ने ध्यान नहीं दिया था, पर अब दे रही थी. दरअसल, यह भी एक स्त्री मनोविज्ञान है कि जब पुरुष देखने में ठीक, कपड़ों में अच्छा, शारीरिक रूप से गठीला और स्टाइलिश लगे तो अपरिचित होने के बावजूद उस के पास स्त्रियां खुद को सहज महसूस करती हैं और उन के साथ बातचीत आगे बढ़ाने में उन्हें सुविधा होती है. इस पर उस के अंदरूनी स्वभाव को परखने की जहमत उठाने से पहले ही अगर वह पुरुष खुद को व्यवहार में और भी मजेदार और कोमल साबित कर दे तो कहना ही क्या.

सामान्य स्त्रियां अकसर पुरुषों पर भरोसा कर के सुरक्षित और खुशी महसूस करती हैं. मालविका ने देखा 5 फुट 10 इंच हाइट में सुदेश ऊपर कहे मुताबिक अच्छा ही दिख रहा था. जब इतनी अकूत संपति का मालिक और उम्र के 54 वर्ष में भी स्टाइल और जलवे थे तो और क्या चाहिए. मालविका अपने लैवेंडर कलर की शिफौन गाउन में जादू की परी दिख रही थी और सुदेश पर वह छा गई थी. सुदेश के अहम से तने चेहरे की मांसपेशियां धीरेधीरे मुसकान और नशे में बदल गईं.

बातचीत का दौर चलता रहा, पेय और खानेपीने की चीजें आईं, लेकिन मालविका को एक ही चिंता लगी थी कि यह तो शरीर के धरातल पर आएगा ही, लेकिन कब रात के 12 बज चुके थे और मालविका थक चुकी थी. यद्यपि निमंत्रण पा कर वह पूरी तैयारी के साथ ही आई थी ताकि एक गलती की वजह से उस के कैरियर और शरीर पर कोई आंच न आए. मगर कहां? सुदेश ने तो अब तक मालविका के हाथ पकड़ने और गालों को छूने के सिवा कुछ भी नहीं कहा. क्या यह पूरी रात रोकना चाहता है.

मालविका के दिल की बातें अब चेहरे पर शिकन बन झलकने लगी थीं. सुदेश मन पढ़ने में उस्ताद था. पूछा, ‘‘घर जाओगी मालविका? चलो छोड़ दूं तुम्हें.’’ मालविका को लगा कहीं सुदेश रोष में न आ गया हो, फिर तो फिल्म की हीरोइन का रोल उस के हाथ से गया. ‘‘नहींनहीं, आप जब तक चाहें मैं रुकूंगी,’’ मालविका ने परेशान होते हुए कहा. सुदेश ने उस के होंठों को अपने होंठों से जकड़ लिया और मालविका कुछ देर शांत बैठी रही. सुदेश ने उसे हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘चलो आज रात हो रही है, तुम्हें घर पहुंचा दूं, कल मिल रही हो न?’’ ‘‘जी.’’ ‘‘अरे, जी क्या लगा रखी है. हां सुदेश, कहो. एक दिन का रिश्ता थोड़े ही है जान. तुम मेरे दिल की मलिका बन गई हो. हम अब से साथ रहें तो तुम्हें कोई दिक्कत?’’ ‘‘नहीं,’’ मालविका को शायद पारस मणि मिल चुका था.

वह सुदेश के सीने से जा लगी. मालविका का पहला प्रोजैक्ट सुदेश के साथ पूरा हो चुका था और यह फिल्म इतनी हिट रही कि सुदेश ने मालविका को 2 कमरे वाला एक फ्लैट गिफ्ट कर दिया. इस फ्लैट के साथ ही मालविका की सुदेश के साथ लिव इन जर्नी भी शुरू हो गई. मालविका के घर वाले अपने जीवन और कैरियर में व्यस्त थे, मां को कभीकभार वीडियोकौल में अपना चेहरा दिखा देती मालविका तो सब शांत रहते. 2 साल से ऊपर गुजर गए थे, मालविका का सुदेश के साथ और सुदेश के अनुसार रहते हुए. लेकिन सुदेश अपनी तरह से अपनी जिंदगी जी रहा था और मालविका के साथ रहते हुए भी उस के जीने के अंदाज में खास फर्क नहीं था.

इधर मालविका में अब छटपटाहट भर रही थी. सुदेश उसे जिस तरह अपने कंट्रोल में रखता उस से उस की रचनात्मकता और प्रोफैशन दोनों बंद पड़ गए थे. वह हिम्मत करके सुदेश की गैरमौजूदगी में दूसरे लोगों के साथ अलग प्रोजैक्ट पर काम करने के लिए जाने लगी. उस दिन सुदेश रात बहुत देर से आया. मालविका को सुबह शूटिंग के लिए निकलना था. इधर सुदेश बिस्तर पर मालविका से लिपटा पड़ा था, उधर मालविका का बारबार फोन बज रहा था.

मालविका ने खुद को छुड़ाकर फोन रिसीव किया. सुदेश थोड़ा अलसाए से स्वर में पूछा, ‘‘कौन है?’’ ‘‘सुदेश मुझे निकलना पड़ेगा एक शूटिंग के लिए.’’ ‘‘मतलब? हफ्तेभर बाद मैं भागा हुआ आया और तुम इस तरह.. नहीं मालू. तुम नहीं जा रही हो कहीं. तुम्हें तो बता दिया है न कि मेरे सिवा और कहीं काम करना नहीं है तुम्हें?’’ ‘‘मुझे जाना है सुदेश. तुम्हारा जब प्रोजैक्ट शुरू होगा मैं तब तुम्हारे साथ ही करूंगी. अभी खाली हूं, उन के साथ डील हो चुकी है.’’ ‘‘किस के साथ काम कर रही हो?’’ सुदेश ने थोड़ा चिढ़ कर पूछा. ‘‘आलेखजी डाइरैक्टर, नवलकिशोर का प्रोडक्शन. बुरा मत मानो सुदेश. मैं जल्दी वापस…’’ ‘‘मना कर रहा हूं तो मत जाओ,’’ कह करवट ले कर सुदेश सो गया और मालविका निकल कर दौड़ीभागी शूटिंग स्पौट पहुंची. शूटिंग में सभी व्यस्त दिखे. तभी असिस्टैंट ने आ कर कहा, ‘‘मैडम, आप का शूट अभी नहीं है. डाइरैक्टर सर ने कहा है जब आप का रहेगा आप को बता देंगे. आज जा सकती हैं.’’ ‘‘मतलब. इतनी बार फोन कर के बुलाया गया और अभी कहते हैं शूटिंग नहीं है? आलेखजी से मिलवा दीजिए.’’ ‘‘मैडम वे आप से नहीं मिल पाएंगे. आप को आज लौट जाना चाहिए,’’ असिस्टेंट इतना बोल कर चला गया.

मालविका वापस लौटते हुए बहुत कुछ समझ चुकी थी. बेशक यह सुदेश का ही काम होगा, उस ने मालविका से नाम पूछ ही लिया था. जब वापस आई तो सुदेश जाने के लिए तैयार हो रहा था. मालविका खुद को रोक नहीं पाई और पूछा, ‘‘तुम ने उन्हें फोन कर के मुझे काम से निकालने को कहा?’’ ‘‘जब मैं ने तुम्हें कहा है कि मेरी अगले फिल्म में तुम ही हीरोइन हो, तो तुम्हे हर दरवाजे पर मुंह मारने की क्या जरूरत है?’’ ‘‘कब दोगे काम? 3 महीने से ऊपर खाली बैठी हूं. मैं एक प्रोफैशनल हूं. अकेले आप का ही काम क्यों करूं? कितनी बार आप से कहा शादी कर के घर बसा लो, फिर सिर्फ आप के ही प्रोडक्शन में करती. मगर आप को तो 10 के बिस्तर पर जाने से ही फुरसत नहीं. फिल्म कब बनाएंगे और शादी…’’

अभी मालविका अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुदेश ने कस कर उस के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया और उस के बाल पकड़ कर दीवार में धक्का दे दिया. मालविका चोट खा कर जमीन पर गिर पड़ी. ‘‘एक मौका और देता हूं या तो शांति से घर पर रहो या सड़क पर फेंके जाने के लिए तैयार रहो,’’ कड़कती आवाज में सुदेश कह कर दनदनाता निकल गया. मालविका धीरेधीरे उठ खड़ी हुई, लेकिन उस के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. उस ने उस असिस्टैंट को फोन लगाया. कहा, ‘‘क्या आप लोगों को सुदेश ने मना किया है मुझे काम देने से?’’ ‘‘मैडम, आप फोन मत करिए, हम आप से काम नहीं कराएंगे, हां कुछ ऐसा ही समझ लें, हमें झंझट नहीं चाहिए. नमस्ते.’’

मालविका के लिए अभिनय एक जनून था, अपना कैरियर खुद अपने दम पर बनाने के लिए उस ने कितना संघर्ष किया था और आज सुदेश की रखैल बन कर खुद को तमाम कर दे, यह नहीं हो सकता. शुक्र मनाया उस ने कि रात सुदेश वापस नहीं आया, शायद सुदेश को भरोसा था कि अकेला छोड़ देने पर मालविका घबरा कर और कहीं कोई आसरा न पा कर सुदेश के पास आत्मसमर्पण कर देगी. देर रात तक मालविका ने अपने सारे कौंटैक्ट्स खंगाल डाले. अचानक उसे राघवजी का नंबर मिला, जो उस ने किसी पार्टी में लिया था. सुबह 5 बजे वह तैयार हुई.

एक सी ग्रीन स्लीवलैस ब्लाउज और सफेद जौर्जेट की नैट वाली साड़ी, हलका सा टच अप फेस पर, कानों में डायमंड के 2 छोटे नग, स्टैप में गहरे लट वाले बाल खुले हुए. जब वह कैब से राघवजी के घर के सामने पहुंची, तब सुबह के 6 बज रहे थे और राघवजी मौर्निंग वाक से लौट कर दौड़तेहांफते अपने घर में घुस रहे थे. मालविका उन के सामने जा कर खड़ी हो गई. राघवजी की उम्र कोई 40 के आसपास थी. हाइट सामान्य, रंग गहरा, आंखों में चश्मा, क्लीन शेव और आत्मविश्वास से भरपूर चेहरा. मालविका को देख उन की आंखों में एक चमक भर गई परिचय और कारण जानने के बाद वे उसे अपने साथ घर के अंदर ले गए.

राघव काफी खुश थे. कहा, ‘‘देखो मालविका. मैं प्रोडक्शन और कैमरे का काम ज्यादा देखता हूं. मेरी हिंदी ज्यादा अच्छी नहीं. मेरा सब काम मेरा आदमी लोग देखता. तुम्हारे जैसा एक नया हीरोइन मांगता था मैं. तुम पक्का है. सुदेश का डर नहीं करने का. उस को मैं संभाल लेगा. तुम अपना इधर ही रहने का. शादी नई बनाया मै. इधर ही आराम से रहने का, ऊपर मंजिल में तुम्हारा कमरा तुम अभी देख लो और अपना सामान पैक कर के अभी आ जाओ.

शाम को शूटिंग के लिए मेरे साथ चलने का.’’ अभी मालविका को जो चाहिए था उस से अधिक ही मिल गया. सुदेश वापस आ गया था और कमरे में सो रहा था, लेकिन उस के कान दरवाजे पर लगे थे. मालविका के पास भी चाबी रहती थी, दूसरे कमरे से जब खटपट की आवाजें आईं, तो सुदेश सतर्क हो कर उठ बैठा. उस ने भांप लिया कि मालविका आई है.

अब मालविका अपने कमरे में आ कर कुछ सामान निकालने लगी और सूटकेस तैयार करने लगी तो सुदेश उस पर कंट्रोल जमाने के लिए उसे पीछे से आ कर जकड़ लिया, ‘‘अरे गुस्सा थूको जानेमन. नई फिल्म की कहानी सुनाने आज ही आ रहा है एक राइटर. तुम चली कहां फिल्म छोड़ कर?’’ मालविका सुदेश के पुरानी टैक्टिस जानती थी. सबकुछ झठ था उस का.

उस ने खुद को छुड़ा कर अपने दोनों सूटकेसों को पकड़ा और जातेजाते कहा, ‘‘बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं रही. रास्ते मैं ने अलग कर लिए हैं. तुम्हारी गुलाम अब नहीं रही.’’ दरवाजे से निकलते हुए उस के शब्द मालविका के कानों में पड़े, ‘‘देखता हूं.’’ राघव अपने काम से काम रखता और अपनी यूनिट के लोगों के साथ उस का व्यवहार दोस्ताना और प्रोफैशनल दोनों था. इस की फिल्मों में मालविका ने लगातार काम किया. फिल्में हिट हुईं, नाम, पैसा खूब कमाया. जिस मुकाम तक उसे पहुंचना था, लगातार पहुंचती रही, अपना बंगला और कार तक ले ली. राघव के आगे अब तक भले ही सुदेश की न चली लेकिन वह हार मानने वाला बंदा नहीं था.

एक बार एक पार्टी में एक हुस्न परी 19 साल की सुंबूल नाम की लड़की से राघव की मुलाकात हुई और उसे देखते ही राघव बुरी तरह उस का कायल हो गया. उस की एक बहुत पुरानी कहानी रखी थी, जिस की नायिका हुबहू इस सुंबूल की तरह थी. राघव ने तुरंत पता किया और उस लड़की के पिता से बात की. बेटी के पिता राघव की फिल्म में बेटी के काम करने को ले कर राजी हो गए. इस के बाद से राघव मालविका को भूलते चले गए. मालविका को पता चला नई हीरोइन और नई फिल्म के बारे में.

मालविका के लिए सुदेश के कारण दूसरे बैनर में काम पाना कठिन था और राघव भी कोई संपर्क न रखें, काम न पूछें तो स्वाभाविक ही था मालविका खबर लेती. मालविका अंदर की बात पता चली जो राघव को भी मालूम नहीं थी. दरअसल, सुदेश ने ही मालविका को हटाने के लिए इस नई लड़की सुंबूल को आगे कराया था. मालविका भले ही अभी 30 की हो रही थी लेकिन इतने में ही अगर वह घर बैठ जाए तो अपनी हाई प्रोफाइल लाइफ कैसे मैंटेन करेगी? उस ने अपनी फोन बुक पलटनी शुरू किया, कौंटैक्ट्स काम के मिले अगर तो काम बने.

एक वास्तुशास्त्र के ज्योतिष जो फिल्मी दुनिया में अपनी खूब पैठ रखते थे, उन का नंबर मिला. डूबते को तिनका ही काफी. सो घुमा दिया फोन. बी.एस. साहब का बहुत बड़ा रत्नों का भी व्यापार था और वास्तु ज्योतिष का भी व्यवसाय. पिछली किसी पार्टी में उन से मुलाकात के बाद मालविका ने उन का नंबर जुटा रखा था. बी.एस. साहब ने भी मालविका का नंबर सेव रखा था.

बातचीत से शुरू होते हुए मुलाकातों का सिलसिला फिर उन से होते हुए एक प्रतिष्ठित नामी धर्माचार्य से मालविका की जानपहचान गहरी होती गई. मालविका अब डरडर कर जीने से आजिज आ चुकी थी. संपर्क इन से बढ़े तो उस ने भी खुद को अब एक खेमे में शामिल पाया और इस से उस का अकेलापन दूर होने लगा. काफी मेलजोल के बाद इन लोगों ने मालविका को अपने दल का हिस्सा बना लिया. ये लोग छोटेबड़े शहरों में जा कर प्रवचन देते, वास्तु और ज्योतिष के नाम पर आम जनता का विशाल मजमा लगता, करोड़ों की कमाई का जरीया खुलता, रत्न और वास्तु का व्यापार भी जोरों पर चलता.

अब जब मालविका को फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया तो इन लोगों ने मालविका के साथ मिल कर एक प्लान बनाया. बनारस के एक विशाल हौल में ठसाठस भीड़ जुटी कुरसियां थी. सामने दरी पर महिलाओं की अत्यधिक भीड़. कुरसियां भर जाने के बाद लोग कतारों में खड़े. एक अति सुंदर स्त्री गेरुआ साड़ी और फुल स्लीव के गेरुआ ब्लाउज में ध्यानमग्न भीड़ के सामने सुसज्जित मंच पर अपने सिंहासन पर बैठी थी. उस स्त्री के सिर के बाल माथे के ऊपर रुद्राक्ष माला के साथ जूड़े में बंधे थे.

पास ही एक टेबल पर कमंडल में जल रखा था. एक मध्यम आकार के ताम्र पात्र में लाल धागों की भरमार थी और हरेक लाल धागे में एक ताबीज बंधा था. इस के अलावा कागज की चिट भी एक गेरुआ झले में रखी थीं. 2 चौबीसपच्चीस साल के लड़के उस स्त्री की दोनों ओर खड़े थे. वे एकएक कर नाम पुकार रहे थे और एक परिवार के लोग एक बार में मंच पर आ रहे थे. वह स्त्री मिलने वाले को लाल धागे वाला ताबीज देती, जल छिड़कती, जिस के लिए ऐंट्री के वक्त ही एक अच्छी रकम वसूली जा चुकी थी.

इस के अलावा अगर कोई ज्यादा रोना रोता तो उसे वह कागज की चिट थमा देती, जिस में वास्तु और ज्योतिष के फोन नंबर थे, साथ में हिदायत दे देती कि इन्हें फोन करते ही उन लोगों की बाकी समस्या तुरंत दूर हो जाएगी. यह सब पीछे खड़ा एक 30 साल का लड़का देख रहा था. अचानक वह भीड़ से उठ कर मंच के सामने आ कर खड़ा हो गया और जोर से पुकार कर कहा ‘‘मालविका मैं तनय. तुम से मिलना है. मालविका.’’ नाम सुनते ही उस स्त्री ने अचंभित हो अपनी आंखें खोल दीं.

अब तक 2 उन के ही लोग तनय को हाथ पकड़ कर खींचने लगे. मंच पर विराज स्त्री ने अपने पास खड़े एक युवक को पास बुला कर उस के कान में कुछ कहा. लड़का जल्दी तनय के पास आ कर उसे हाथ पकड़ कर किनारे से चलते हुए एक दरवाजे से बाहर ले गया और पास की एक दूसरी बिल्डिंग में ले जा कर एक अति आधुनिक सुसज्जित कमरे के सोफे पर बैठा कर कहा कि जब तक मां माहेश्वरी आएं वह यहीं इंतजार करे. लगभग 2 घंटे इंतजार के बाद वह स्त्री आई. उस ने एक बार तनय की ओर दृष्टि डाली और एक दरवाजे से अंदर चली गईं.

आधे घंटे बाद जब बाहर आई तो तनय उस के रूप यौवन और वेशभूषा देख अवाक रह गया. कौन कह सकता है कि यह मौडर्न स्टाइलिश स्त्री कुछ देर पहले तक एक संयासिनी के वेश में थी. पीले रंग की स्लीवलैस ढीली सी कुरती और ढीले से प्लाजो में हलके मेकअप के साथ वह गजब ढा रही थी. खुले लंबे बालों की कुछ घुंघराली लटें उस की मादकता और बढ़ा रही थीं. ‘‘कैसे इधर तनय? अचानक मैं कैसे याद आई?’’ स्त्री ने अनायास कहा. मालविका, तुम मां माहेश्वरी कब बन गईं. क्यों बनीं तुम तो फिल्मी दुनिया की नामचीन हीरोइन हो. ‘‘थी, थी तनय. अब मैं मां माहेश्वरी हूं.

कहानी लंबी है, तुम कहां रहते हो, यहां कैसे आए?’’ ‘‘मालविका मेरी एक अर्जी है, अगर रख लोगी तो मेरा आना सार्थक हो जाएगा. यहां से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक गांव है जहां से मैं मिलने आया हूं तुम से, तुम मेरे गांव चलो, बस एक बार चल कर देखो, फिर तुम से और कुछ नहीं मागूंगा.’’ ‘‘ठीक है तनय, जाना तो चाहती हूं मैं, लेकिन कुछ लोग हैं, जो मुझे छोड़ेंगे नहीं.’’ ‘‘क्यों तुम क्या उन की कैदी हो? उन के कब्जे में हो?’’ ‘‘पहले तो सोचा ऐसा नहीं था, लेकिन मैं उन से कहे बिना कुछ भी नहीं कर सकती.’’ ‘‘फिर तो तुम उन की गुलाम हो मालविका.

आओ चलो यहां से इन के चंगुल से मैं तुम्हे मुक्ति का स्वाद दूंगा.’’ मालविका तनय की ओर गहरी दृष्टि से देख रही थी. अचानक उस के चेहरे पर कुछ अलगअलग किस्म के भाव आए. बोली, ‘‘तनय, तुम हिम्मत कर पाओगे? अगर मैं तुम्हें उन के सामने ले जा कर कहूं कि तुम मेरे प्रेमी हो, मुझे यहां आया देख तुम बहुत उम्मीद ले कर आए हो और मुझे अपने साथ ले जाना चाहते हो, हम वयस्क हैं, अगर शादी करने का कहें तो वे मना नहीं कर पाएंगे, तुम आखिर तक उन के सामने खड़े रह पाओगे?’’ ‘‘रह पाऊंगा, मालविका. तुम अभी जो कर रही हो यह एक तरह से आम जनता के प्रति धोखा है.

मैं सच में नहीं चाहता तुम यह सब करो. चलो कहां चलना है. जिन से मिलना है उन से मिलने की सूरत निकालो.’’ उन की इतनी बड़ी कमाई की लुटिया डुबो कर मालविका चली जाए, वे स्वीकार तो नहीं पाते, लेकिन तनय ने अपने एक वकील दोस्त को भी साथ बात करने को बुला लिया था. मालविका थी तो जिद्दी, जो अड़ गई तो अड़ गई. आखिर वे दोनों तनय के गांव की ओर चल पड़े.

एक कैब में पीछे की सीट पर मालविका और तनय बैठे थे. मालविका ने तनय की ओर देखा. तनय दूर कहीं खोया सा ताक रहा था. ‘‘तनय? क्या से क्या हो गया. मैं माफी चाहती हूं तुम से, सुना था, तुम्हारी तो शादी हो गई थी 4 साल पहले? तुम बुरा मत मानना तनय. मैं ने बस वहां से निकलने के लिए यह बहाना बनाया, तुम्हारी बीवी को ये सब मत कहना, मैं उस की नजर में गिरना नहीं चाहती, उस से दोस्ती चाहती हूं बस.’’ ‘‘हूं,’’ तनय के इस संक्षिप्त उत्तर पर मालविका ने उस की ओर देखा.

वह अब भी कहीं खोया था. तनय गांव का ही हो कर रह गया था. इकौनोमिक्स और ऐग्रीकल्चर की पढ़ाई के बाद गांव में ही फार्म हाउस कैटल रियरिंग और खेतीबाड़ी. पूरी तरह रमा था वह, अपना खेत भी दिखाता चल रहा था, लहलहाती फसल, गांव के सुकून भरे तालाब, विचरते हंस और खिले जलपद्म. शाम होने को आ रही थी, सूरज आकाश से धीरेधीरे नीचे खिसक रहा था.

मालविका कुछ उदास सी लग रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि तनय की बीवी से कैसे क्या कहेगी. घर आ गया था, पुरातन घर को अब विशाल बंगले का रूप दिया गया था, सामने बहुत बड़ा बगीचा और खिले हुए फूलों के बीच बड़ा सा झला. घर में घुसते ही एक 3 साल की मासूम प्यारी बच्ची दौड़ती हुई आई और तनय से लिपट गई. तनय ने उसे गोद में उठा लिया और पूछा, ‘‘दादी कहां हैं?’’ मालविका गौर कर रही थी सबकुछ. तनय मालविका को अंदर एक हौल से होते हुए कमरे में ले गया.

वहां एक सुंदर स्त्री का फोटो टंगा था जिस में माला डाली गई थी. ‘‘तनय, कौन है?’’ मालविका मन ही मन सहम रही थी. तनय ने कहा, ‘‘सही सोच रही हो मालविका यह मेरी जीवनसंगिनी, मेरी इशू की मां. वह नहीं रही. मेरी मां यानी इशू की दादी ही इशू को संभालती हैं.’’ ‘‘तनय, मै शब्दों से यह अफसोस व्यक्त नहीं कर सकती,’’ कह मालविका ने इशू की ओर हाथ बढ़ाया, बच्चे मन की परख रखते हैं, वह तुरंत मालविका के गोद में चली गई. शाम की चाय बाहर बरामदे में रखी गई. इशू की दादी लगभग 60 की होंगी, लेकिन बातव्यवहार, कामकाज में उन की स्फूर्ति मालविका को अच्छी लगी.

उन्होंने मालविका को चाय बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मुझे उम्मीद है तुम मेरी बातों का बुरा नहीं मानोगी.’’ ‘‘नहीं. कहिए.’’ तनय और मालविका दोनों ही मन ही मन थोड़ा डरे, लेकिन जाहिर नहीं होने दिया. ‘‘बेटा देखो, वह जाता हुआ सूरज साक्षी है, यह पल एक संधि क्षण है जब पुराने के बाद नए के उदय का इंगित देता हुआ सूरज चला जा रहा है. एक बीता, दूसरा आने वाला है, इस संधि क्षण में तनय और तुम्हारे बीते कल के बाद एक नया कल आ सकता है, अगर तुम दोनों मुझे यह खुशी देना चाहो तो.

शाम का यह समय दिन के बाद रात और फिर नई सुबह का इशारा देता है. यह एक संधि क्षण है, एक योग क्षण, जो बहुत कुछ जोड़ सकता है. ‘‘अब दोनों एकसाथ हो जाओ बच्चो. क्या ऐसा मुमकिन है? मेरी इशू की सुरक्षा और उन्नति के लिए?’’ तनय ने मां को देखा और कहा, ‘‘मां, तुम यह क्यों बोल रही हो? मालविका मेरी अच्छी दोस्त है, एक दिन के लिए घूमने आई है.’’ मालविका ने तनय की ओर बिना देखे तनय की मां से कहा, ‘‘मां, मैं तनय को चाहती थी, लेकिन तनय ने कभी मेरी ओर ध्यान नहीं दिया और मैं उसे भुला कर अपने कैरियर के लिए मुंबई चली गई.

मेरी जिंदगी में बहुत तूफान आए, अगर तनय सुनना चाहे तो मैं बता दूंगी, लेकिन तनय को अपनी जिंदगी में पा कर मैं शायद अपने सारे दुख भुला दूं. साथ बोनस में आप और इशू मिलो तो मैं परिपूर्ण हो जाऊंगी. लेकिन तनय का मैं नहीं जानती मां.’’ तनय ने मालविका की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे सारे तूफान अपने सिर ले लूंगा, लेकिन साझ करने के लिए, कैफियत नहीं चाहिए मालविका.’’ इशू की दादी दौड़ कर अंदर से मिठाई ले आईं. कहा, ‘‘आज इतने दिनों बाद मेरे घर उत्सव है, जाऊं खाने की तैयारी करूं. कल से कितने काम हैं.’’

एक इस संधि क्षण में अब तनय और मालविका बगीचे के झले में साथ बैठे थे, इशू मालविका के गोद में थी. मालविका ने कहा, ‘‘इशू, मुझे मां कहना.’’ इशू ने कहा, ‘‘मां.’’ तनय ने मालविका के हाथ को कस कर अपनी हथेली में बंद कर लिया.

Long Story in Hindi

Family Story in Hindi: बायोलौजिकल फादर

Family Story in Hindi: ‘‘मम्मा पापा को कह दीजिए कि मेरे स्कूल न आया करें.’’ ‘‘मगर क्यों बेटी?’’ ‘‘कह दिया न न आया करें बस.’’ ‘‘अरे, तो कोई कारण तो होगा?’’ ‘‘मुझे पसंद नहीं उन का स्कूल आना. क्या यह कारण काफी नहीं?’’ ‘‘लेकिन रूसा तुम ही तो चाहती थीं कि पापा ही तुम्हारी पेरैंट्स मीटिंग में आएं. तुम्हारी खातिर वे हर बार दफ्तर से छुट्टी लेते थे.’’ ‘‘वह तब की बात थी,’’ रूसा उखड़े स्वर में बोली. ‘‘रूसा, मैं आजकल देख रही हूं तुम्हारा व्यवहार अपने पापा के प्रति बहुत रूढ़ होता जा रहा हो. यह ठीक बात नहीं बेटी.’’

लेकिन रूसा बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चली गई. मैं हैरान रह गई यह क्या हो गया है इस लड़की को… धीरज तो जान थे उस की, रातदिन, पापा… पापा… कहते हुए उन से ही लिपटी रहती थी. जब कभी दफ्तर से आने में देरी हो जाती तो रोने लगती, बारबार फोन करती, पापा कितनी देर हो गई आइए न.

खाने पर उन का इंतजार करती, बिना धीरज के कभी खाना नहीं खाती. पहला निवाला पापा खिलाएंगे तभी खाएगी. मेरा तो कोई वजूद ही नहीं धीरज के सामने. कहीं जाना है तो पापा चाहिए, स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग हो तो पापा चाहिए. धीरज भी तो दिल से चाहते हैं, कितनी परवाह करते हैं उस की लेकिन पिछले कई दिनों से मैं महसूस कर रही हूं कि रूसा बातबात पर धीरज को झिड़क देती है. पहले दोनों घंटों किसी बात को ले कर स्वस्थ चर्चा करते थे.

आजकल रूसा उन से चर्चा कम करती है, अपमानित अधिक करती है. एक धीरज ही हैं जो मुसकरा कर रह जाते हैं. मैं ने कई बार रूसा को उसके इस व्यवहार पर डांटा, ‘‘कैसे बात कर रही हो अपने पापा से… क्या यही सीखती हो स्कूल में अपने पापा से ऐसे बात की जाती है? तब धीरज ने ही हर बार मुझे रोक दिया, ‘‘जाने दो निकिता बच्ची है अभी वह.’’ ‘‘कैसे जाने दूं. अरे, संस्कार नाम की कोई चीज होती है,’’ मैं कहती. मुझे रूसा का यह व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. पिछले हफ्ते ही धीरज ने कहा, ‘‘रूसा ‘ऐनिमल’ लगी है मौल में.

इरादा हो तो औफिस से आते हुए टिकट ले आऊं?’’ पहले तो पिक्चर जाने की बात सुन खुशी से उछल पड़ती थी, लेकिन उस रोज उसने धीरज को टका सा जवाब दे दिया, ‘‘आप और मम्मा हो आइए, मैं अपने दोस्तों के साथ यह फिल्म देखना चाहती हूं.’’ महसूस तो धीरज भी कर रहे होंगे इस बदलाव को मगर जैसाकि उन का नाम है धीरज… बहुत धैर्य है उन में, शिकायत जैसी कोई चीज तो मानो उन की डिक्शनरी में ही नहीं है.

लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि वह कुछ भी कहे, हमेशा पापा के साथ जाने को ललकती रहती और अब कभी उसे अकेले जाते देख धीरज कहते चलो मैं साथ चलता हूं तो झट कह देती कि क्यों… क्या मैं अकेले नहीं जा सकती? मैं रातदिन इसी ऊहापोह में रहती कि क्या हो गया है इसे… कैसे इस समस्या से निबटारा पाऊं? कैसे उसे समझऊं? धीरज से कहती हूं तो हमेशा की तरह कह देते हैं, ‘‘निकिता, तुम बेकार में टैंशन ले रही हो… अकसर इस उम्र में बच्चों में यह बदलाव होता है, यह टीनऐज की प्रौब्लम है, समय के साथ ठीक हो जाएगी.’’

मगर यह सब धीरज के साथ ही क्यों? सरासर अन्याय है, ऐसा भी क्या बदलाव कि परिवार के सदस्यों को ही पराया कर दिया जाए. कोई समाधान नजर नहीं आ रहा था. रूसा घर पर नहीं थी. आजकल वह मुझे बता कर नहीं जाती… पूछो तो कह देगी, ‘‘जाते वक्त टोकना जरूरी है… चुप नहीं रह सकतीं.’’ तभी उस की फास्ट फ्रैंड नूरा घर आई. बोली, ‘‘आंटी, रूसा है?’’ ‘‘नहीं बेटी.’’ ‘‘कहां गई है आंटी और कितनी देर में आएगी?’’ ‘‘पता नहीं बच्चे कुछ कह कर नहीं गई,’’ फिर कुछ सोच कर मैं ने नूरा से कहा, ‘‘नूरा, बेटी मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’ ‘‘जी कहिए आंटी.’’ ‘‘आओ अंदर बैठते हैं,’’ कहते हुए मैं नूरा को अपने कमरे में ले आई. बहुत प्यार और निवेदनभरे शब्दों में मैं ने उस से पूछा, ‘‘बेटी, क्या तुम इन दिनों रूसा के व्यवहार में कोई अंतर देख रही हो?’’ कुछ देर नूरा खामोश रही, मुझे उस की खामोशी खल रही थी. मैं ने फिर कहा, ‘‘देखो बच्चे, तुम उस की खास दोस्त हो इसलिए मैं तुम से पूछ रही हूं.

समझ हैल्प मांग रही हूं तुम से. प्लीज… मेरे सवाल का जवाब दो यों खामोश न रहो नूरा,’’ मैं उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई. तब उस ने झट खड़े हो मेरे हाथ पकड़ लिए. बोली, ‘‘प्लीज आंटी, ऐसा मत करिए, देखिए मैं बहुत ज्यादा तो नहीं जानती, मगर हां कुछ दिनों से रूसा कुछ परेशान है.’’ ‘‘क्या उस ने तुम्हें अपनी परेशानी बताई?’’ नूरा फिर चुप हो गई.

न जाने क्यों उस के चेहरे से मुझे लग रहा था कि वह कुछ जानती है मगर कह नहीं पा रही. ‘‘तुम जानती हो नूरा… मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हें पता है. जो पता है बता दो मुझे बच्चे, इस से शायद हम मिल कर रूसा की कोई हैल्प कर पाएं… उस की परेशानी को समझ पाएं और कोई हल खोज पाएं.’’ ‘‘आंटी, कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा मगर आप इतना पूछ रही हैं तो बताती हूं कि रूसा आजकल अंकल को ले कर बहुत परेशान हैं.’’ ‘‘अंकल को ले कर? लेकिन धीरज से उसे क्या परेशानी हो सकती है? वह तो बहुत चाहती है अपने पापा को, मुझ से भी ज्यादा… क्या कुछ कह दिया धीरज ने उसे? कोई बात हुई उस की धीरज से?’’ ‘‘नहीं आंटी, मगर पता नहीं क्यों वह कहती है कि अंकल उस के पापा नहीं हैं, आप लोगों ने जबरदस्ती उसे उस के बायोलौजिकल फादर से दूर किया है और इन दिनों वह अपने बायोलौजिकल फादर को ले कर बहुत कांशियस है.’’ ‘‘क्या?’’ मैं सन्न रह गई, मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. ‘‘और क्या कहा रूसा ने?’’ दम तोड़ती आवाज से मैं ने कहा.

‘‘आंटी, मैं बस इतना ही जानती हूं कि अब उस के मन में अंकल के प्रति केवल नफरत है. क्यों? कैसे? यह मुझे नहीं पता.’’ ‘‘ठीक है बेटी, शुक्रिया तुम ने मुझे सहयोग किया. अगर मेरी एक बात और मानो तो रूसा को मत बताना कि हमारे बीच कोई बात हुई है.’’ ‘‘श्योर, बिलकुल नहीं बताऊंगी आंटी.’’ नूरा चली गई मगर छोड़ गई मुझे सवालों के भंवर में.

आखिर कौन हो सकता है जिस ने मेरे इस छोटे से सुखी संसार में आग लगा दी. 1-1 कर सारे परिजन के चेहरे मेरी आंखों के सामने क्रम से आते चले गए लेकिन मन उन सभी चेहरों पर रैड क्रास लगाता जा रहा था. मेरे तो सभी से अच्छे रिश्ते हैं. सभी मेरी हकीकत से परिचित हैं, फिर कौन हैं वह ? मैं अपने ही अतीत के गलियारों में अकेली भटक रही थी.

अतीत की वह घटना एक भंवर की तरह मेरे चारों ओर तेज गति से घूम रही थी और मैं उस में बिना अपनी मरजी के गोते लगा रही थी. क्या दोष है मेरा? फिर क्यों कुदरत मेरी इतनी परीक्षा ले रही है? बड़ी मुश्किल से खुशी मेरे हिस्से आई है, धीरज जैसा पति किसीकिसी को ही मिलता है. सच यह उन के प्यार का ही परिणाम है कि मैं अपने अतीत के दुष्चक्त्र से उभर पाई. मैं आत्मालाप ही कर रही थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी, देखा मेरी कजिन रितु थी.

‘‘हां रितु, बोल कैसे याद किया? आ रही है क्या घर?’’ ‘‘नहीं निक्कू घर तो नहीं आ रही हूं अभी, मगर तू बता तू कैसी है?’’ ‘‘ठीक हूं, मगर यह सवाल?’’ उस ने बिना मेरी बात का उत्तर दिए अगला सवाल कर दिया, ‘‘तू कहां है अभी?’’ ‘‘घर पर और कहां रहूंगी?’’ ‘‘और जीजू?’’ ‘‘जीजू औफिस में.’’ ‘‘रूसा?’’ ‘‘वह कहीं गई है लेकिन तू इतना क्यों पूछ रही है? कोई खास बात?’’ इस बार मैं ने उस के सवाल का उत्तर दिए बगैर सवाल किया. ‘‘निक्कू, दरअसल बात यह है कि आज मुझे मार्केट में चंदन मिला था.’’

चंदन नाम सुनते ही एक पल को लगा दिल की धड़कन ही थम गई… पूरी देह में किसी ने गरम लावा उड़ेल दिया हो. ‘‘निक्कू… निक्कू… तू ठीक तो है न?’’ मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया न पा कर रितु घबराते हुए बोली. ‘‘अ… हां… हां… रितु सुन रही हूं, क्या कह रहा था वह?’’ ‘‘कहेगा क्या वह, मांबाप ने नाम भले ही चंदन रखा है उस का मगर विष की चलतीफिरती दुकान है वह.

जरा भी नहीं बदला वह निक्कू, जाने क्यों मुझे उस के इरादे ठीक नहीं लग रहे.’’ बात कुछकुछ समझ आ रही थी मुझे, फिर भी मैं ने रितु से पूछा, ‘‘क्या कह रहा था रितु वह? मुझे पूरी बात बता.’’ ‘‘वह इसी शहर में तबादला करा कर आ गया है. उस ने शादी तो तभी कर ली थी मगर उसे अब तक कोई बच्चा नहीं हुआ और लगता है कोई उम्मीद भी नहीं. इसीलिए उस की नीयत अपनी रूसा पर है.

वह अपनी बेटी को वापस लेना चाहता है, शायद तबादला भी इसीलिए कराया है. तू रूसा का ध्यान रखना निक्कू. तू जानती है वह शातिर दिमाग है कुछ भी कर सकता है. बाकी मैं 1-2 दिन में आकर तुझे मिलती हूं.’’ कहते हुए रितु ने मोबाइल औफ कर दिया. मैं जड़ सी काफी देर सोफे पर बैठी रही. मन किया जोरजोर से चीख पड़ूं क्यों… मेरे साथ ये सब? आखिर क्या बिगाड़ा है मैं ने कुदरत का? मेरी परीक्षा लेने पर क्यों तुला हुआ है? कितनी मुश्किल से संभली है मेरी गृहस्थी.

एक बार उजाड़ कर मन नहीं भरा… फिर मुझे मानसिक संताप दे कर बीमारी के कठघरे में डालना चाहता है. मैं क्या करूं… किस से कहूं? धीरज से… नहीं… नहीं उन से कुछ नहीं कहूंगी, किस से मदद मांगू… कौन करेगा मदद? भारी संकट नजर आ रहा था मुझे. मैं काफी देर यों ही आंखें बंद किए बैठी रही. मुझे याद आया मेरे उन डिप्रैशन के दिनों में मेरी मैडिटेशन गुरु ने कहा था जब भी ऐसी स्थिति आए जिस में तुम्हें कोई हल नजर न आए तब कुछ देर आंखें बंद कर बैठे रहो. जिंदगी की किताब कोई अजूबी नहीं, इस के हर प्रश्न का उत्तर इसी किताब के किसी पन्न पर दर्ज होता है.

बस पूरी शक्ति केंद्रित कर उसे खोजना होता है. थोड़ी देर बाद मन से आवाज आई, मुझे एक बार सारी बातें रूसा को बता देनी चाहिए. अगर तब भी वह चंदन के साथ जाना चाहे तो वह उसे रोकेगी नहीं बल्कि भुला देगी उसे और अपने धीरज के साथ कहीं और जा कर बस जाएगी. थोड़ी देर बाद जब रूसा लौटी तो मैं ने घड़ी देखी, अभी धीरज को दफ्तर से आने में काफी वक्त है.

अत: आज ही इस बात का फैसला कर लूंगी. ‘‘आ गई बेटी… कहां गई थी? बता कर जाती तो अच्छा होता, मुझे फिक्र हो रही थी.’’ ‘‘अपने पर्सनल काम से गई थी,’’ उस ने छोटा सा उत्तर दिया. मन आहत हो गया जिस बच्ची का हम से अधिक कोई पर्सनल न था, आज उस के लिए हम पराए हो गए हैं. मैं समझ गई चंदन ने मेरी बच्ची की जिंदगी में जहर घोल दिया है. ‘‘यहां आओ रूसा, मुझे तुम से कुछ बात करनी है,’’ मैं ने दरवाजा लगाते हुए कहा. ‘‘क्या बात करनी है जल्दी से कीजिए, मुझे बहुत काम है.’’ मन रो उठा उस के इस कठोर व्यवहार से.

धीरज पिछले कई दिनों से इस व्यवहार को हंस कर कैसे झेल रहे हैं? न जाने कहां से लाते हैं इतनी हिम्मत? मुझे भी हिम्मत से काम लेना होगा. ‘‘बैठो यहां.’’ रूसा बेमन से सोफे पर धंस गई. मैं ने बिना उस की परवाह किए अपनी बात कहनी शुरू की, ‘‘मैं जो कुछ कह रही हूं उसे बहुत ध्यान से सुनना रूसा, फिर तुम्हें एक दिन का समय देती हूं उस पर अच्छे से विचार करना. उस के बाद तुम्हारा जो भी निर्णय होगा हमें वह मंजूर होगा.’’ मेरा इतना कहते ही वह मेरी ओर गौर से देखने लगी. ‘‘बात आज से 17 साल पुरानी है, मैं बीए फाइनल में थी, मेरे पापा को उन के किसी रिश्तेदार ने मेरे लिए एक रिश्ता बताया. लड़का पढ़ालिखा और सरकारी नौकरी में था, परिवार का इकलौता बेटा था और कोई औलाद नहीं थी.

मेरे पापा को लगा सरकारी नौकरी है इसलिए बेटी को आर्थिक रूप से कोई परेशानी नहीं होगी, ऊपर से एकलौता है इस से उन की बेटी को परिवार का भरपूर प्यार भी मिलेगा. फिर विश्वस्त रिश्तेदार ने यह रिश्ता सुझया है, इसलिए अधिक क्या सोचना. उस समय परिवार में बेटियों से रजामंदी लेने की कोई प्रथा नहीं थी. केवल उन्हें बताया जाता था कि तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया गया है.

इस तरह मैं चंदन के परिवार में बहू बन कर आ गई. शादी में जम कर दहेज की मांग रखी चंदन और उस की मां ने,…पापा ने मेरे भविष्य को देख वह भी स्वीकार कर ली. ‘‘कुछ दिन ठीक से गुजरे थे कि उस की मां ने बच्चे के लिए मुझ पर दबाव बनाना शुरू कर दिया, जबकि बच्चे को जन्म केवल स्त्री नहीं देती, तुम विज्ञान की छात्रा हो समझ सकती हो. खैर, समय रहते मुझे गर्भ ठहरा तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि उन्हें तो बेटा ही चाहिए, बेटी हुई तो गला दबा दूंगी उस का.

मैं उनकी बातों से एक पल को सहम गई …क्या वाकई अगर बेटी हो गई तो… तो फिर खुद को ही समझती, नहीं… नहीं उन्होंने गुस्से में कह दिया होगा, अपने बच्चे के साथ कोई ऐसा करता है… एक पत्नी की ताकत उस का पति होता है, जिस के सहारे वह जमाने से लड़ सकती है. मैं ने जब चंदन के सामने यह बात रखी तो उस ने दो टूक शब्दों में कहा, ‘‘क्या कहा…?’’ ‘‘यही कि मां सही कह रही है, अगर बेटी हुई तो समझ लेना जिंदा नहीं रहेगी.’’ ‘‘हैरान थी मैं कैसा व्यक्ति है? क्या पढ़ाई की है? नहीं जानता बेटा या बेटी पैदा करने में अकेले स्त्री के हाथ नहीं होता. सरकारी अस्पताल में साधारण प्रसव से बेटी हुई.

अस्पताल में मेरी बेटी बिलकुल स्वस्थ थी. 2 घंटे बाद ही चंदन की मां मुझे घर ले आईं. घर आने के घंटे बाद मैं नहा कर बिस्तर पर लेटी गई. उस बच्ची को चंदन की मां नहलाने ले गईं और थोड़ी देर बाद कपड़े पहना कर और एक कपड़े में लपेट कर मेरे पास सुला गई. बहुत देर तक वह रोई नहीं… मैं ने सोचा सो रही है. मेरी छाती में दूध भर आया तो मैं ने उसे दूध पीने के लिए उठाया. देखा तो वह अपनी सांसें खो चुकी थी. ठंडी और नीली पड़ चुकी थी मेरी बच्ची. नहलाने के बहाने चंदन की मां ने सच में उस का गला घोट दिया था.

सब को यही पता रहा कि बच्ची अचानक मर गई… लेकिन हकीकत मैं जानती थी मगर मुझे इतना आतंकित कर दिया गया था कि किसी को कह नहीं पा रही थी…यहां तक कि मांपिताजी को भी नहीं. ‘‘इस घटना के बाद भी मैं उस घर में रह रही थी, किंतु जैसे पिंजरे में मैना रहती है. अपनी सांसें समेटे… न मालूम किस पल मेरी गरदन भी दबा दी जाए.

अफसोस तो यह कि चंदन पर इस का कोई असर नहीं, समझ नहीं पा रही थी कि कैसा आदमी है. ‘‘इस घटना के बाद मैं हर पल डरीसहमी रहती. 4 महीने गुजरे कि फिर से वही चक्र चला. मुझ पर फिर से गर्भवती होने का दबाव बनाया गया. 6 माह बाद मैं फिर गर्भवती हुई. दूसरी बार भी वही बातें …मुझे धमकाया गया कि याद रखना बेटी हुई तो वही हश्र होगा. लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि इस बार यदि बेटी हुई तो मैं उसे खो दूं, इसलिए जैसेजैसे समय करीब आ रहा था मेरा भय बढ़ रहा था. मुझे अपने परिवार से भी ज्यादा मिलने नहीं दिया जाता. वे लोग घर आते तो बस 5-10 मिनट. जब मेरे प्रसव का समय करीब आया मैं ने एक कागज पर पिछली बार के हादसे का जिक्र करते हुए लोकल में रह रही अपनी चचेरी बहन रितु को बुला कर धीरे से वह कागज उसके हाथ में थमा दिया, साथ ही अनुरोध किया कि इस बार भी यदि बेटी हुई तो प्लीज रितु मेरी बच्ची को बचा लेना. ‘‘रितु ने मेरा साथ दिया.

उस ने एक एनजीओ की मदद ली और वही हुआ जिस का डर था, दूसरी बार तुम पैदा हुई एनजीओ की मदद से तुम सही समय पर उस अस्पताल से सकुशल निकाल कर अपनी नानी के घर पहुंचा दी गईं. लेकिन मैं अभी अस्पताल में ही थी, तुम्हारे इस तरह चले जाने से नाराज चंदन और उस की मां मुझे अस्पताल में यह कह कर छोड़ गए कि तुम्हारे लिए अब उस घर में कोई जगह नहीं है… मैं क्या करती एक स्त्री के लिए 2 ही घर होते हैं या तो मायका या ससुराल.’’ ‘‘लेकिन जब उन्होंने मुझे तुम से मांगा तो तुम ने मुझे उन्हें दिया क्यों नहीं? वे कर लेते मेरी परवरिश.’’ ‘‘हा… ऐसा तुम्हें लगता है या तुम्हारी आंखों पर झठ का चश्मा चढ़ा दिया गया है इसलिए तुम ऐसा कह रही हो.

वे तुम्हें मांगेंगे जिन के हाथ तुम्हारा गला घोटने के लिए बेताब थे. जानती हो जिन्होंने रिश्ता कराया था उन्हें भी बहुत अफसोस हुआ तो उन्होंने चंदन की मां को कहा कि बहू को नहीं रखना है न रखो मगर अपनी बच्ची को संभालो या उस का खाना खर्चा दो. सुनना चाहोगी क्या कहा तुम्हारे बायोलौजिकल फादर और उस की मां ने?’’ ‘‘क्या कहा?’’ ‘‘यह कि तुम उन का खून नहीं हो, हमें नहीं पता हमारी बहू का किसकिस से संबंध है. वे करते तुम्हारी परवरिश. मेरा स्वर में नफरत और क्रोध से कांप रहा था. ‘‘फिर क्या हुआ?’’ इस बार रूसा के स्वर में नर्मी थी. ‘‘जो आघात मुझे लगा उस से मैं अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी. मुझे ठीक होने में पूरे 2 साल लगे. यह बहाना मिला चंदन को मुझ से तलाक लेने का कि मैं शुरू से पागल थी.

जब संभली तब तक जिंदगी बहुत आगे निकल चुकी थी और मैं वहीं खड़ी रह गई. पता चला था चंदन ने मुझ से तलाक ले कर दूसरी शादी कर ली और अपना तबादला कहीं ओर करा लिया. कोई पत्नी का हक नहीं दिया मुझे. मेरे परिवार ने भी अपनी बेटी को पा कर उसे भुला दिया. साथ ही तुम्हारी नानी ने तुम्हें बहुत चाव से पाला,’’ बोलतेबोलते मेरा गला सूख गया तो रूसा उठ कर मेरे लिए पानी ले आई. लेकिन मैं बिना पानी पीए ही अपनी बात कह देना चाहती थी. ‘‘फिर…’’ ‘‘फिर आए धीरज हमारी जिंदगी में.

वे तुम्हारे मौसाजी के दोस्त थे. सबकुछ जान कर उन्होंने न केवल मुझे अपनाया बल्कि तुम्हें भी एक पिता का प्यार दिया. तुम्हारी नानी ने तो कहा भी था कि बच्ची को हम संभाल लेंगे लेकिन धीरज ने स्पष्ट कह दिया कि नहीं मैं मांबेटी को अलग नहीं देख सकता. एक चंदन था तुम्हारा बायोलौजिकल फादर जिस ने तुम्हें अपना लहू भी न माना, सीधेसीधे कहूं तो हराम की औलाद कह कर ठुकरा दिया.

दूसरी ओर धीरज जिन्होंने तुम्हें वही प्यार दिया जो एक सगा बाप अपनी संतान को देता है. बेचारे धीरज तो खुद पिता भी न बन पाए. न जाने कहां कमी रह गई. मगर उन्होंने कभी तुम्हें खुद से अलग नहीं माना, हमेशा यही कहते रहे कि क्या हुआ जो रूसा मेरा खून नहीं है, रिश्ते क्या केवल खून के होते हैं, रिश्ते तो प्यार से पनपते हैं. मैं अपनी बेटी को इतना प्यार दूंगा कि कोई नहीं कह पाएगा कि मैं उस का पापा नहीं हूं और उन्होंने वह कर दिखाया.

जहां हमें ऋणी होना चाहिए था उन का, पिछले कई दिनों से वे तुम्हारी नफरत और उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. मैं यह सब सह नहीं पाऊंगी. बता दे रही हूं. जब भी मैं तुम दोनों के बीच वह प्यार देखती थी तो लगता था सच खून से बढ़ कर होता है प्यार का रिश्ता. मगर नहीं मैं और धीरज गलत साबित हुए. तुम ने साबित कर दिया, आखिर लहू ही बोलता है. हम परवरिश से किसी के संस्कार नहीं बदल सकते. मैं आवेश में कहती जा रही थी. ‘‘खुद को अपराधी महसूस कर रही हूं किस बात की सजा मिल रही है धीरज को? उन की अच्छाई की? उन्होंने हमारे बारे में सोचा दूसरी ओर वह चंदन, शायद मेरी उस बच्ची जिसे मेरे आंचल का रसपान करने का एक मौका भी नहीं दिया उन दुष्टों ने उस का श्राप ही लगा कि उस का वंश नहीं चला. वह निर्वंशी रह गया.

अब अपना नाम चलाने की मजबूरी है तो तुम्हें हासिल करना चाहता है. उसे प्रेम नहीं है तुम से रूसा, तुम उस के पौरुष का प्रमाण हो केवल. इसलिए वह तुम्हें हम से छीन लेना चाहता है. वह आया ही शहर में तुम्हें हासिल करने के लिए. अब फैसला तुम पर छोड़ती हूं. एक दिन का समय देती हूं. तुम्हारा जो भी फैसला होगा हमें मंजूर होगा ही, साथ ही अपने उस फैसले के लिए भविष्य में तुम खुद जिम्मेदार रहोगी.

इस बात का ध्यान रखना कि फिर हम कभी कहीं नहीं होंगे तुम्हारे जीवन में. अब तुम जा सकती हो. बहुत काम है न तुम्हें? मैं ने उसी तैश में अपनी बात समाप्त की.’’ रूसा बुझे कदमों से उठी और अपने कमरे में चली गई. मैं उस के उसे फैसले के लिए खुद को तैयार कर रही थी, मन ही मन खुद को धीरज की गुनहगार महसूस कर रही थी.

सोच लिया था आज धीरज को आने पर सबकुछ बता कर माफी मांग लूंगी. आज की शाम अन्य दिनों से कुछ अधिक गहरी और लंबी लग रही थी. परिणाम पता नहीं क्या होगा. आशंका के कई काले बादल उमड़ रहे थे. कान डोरबैल की ओर ही लगे थे, 7 बज रहे थे. जैसे ही डोरबैल बजी दिल की धड़कन तेज हो गई, सहमते कदमों से दरवाजा खोलने बाहर आई तो देखा रूसा पहले ही दरवाजे पर पहुंच चुकी है, ‘‘वैलकम पापा.’’ ‘‘अरे वाह आज तो मेरा बच्चा बड़े अच्छे मूड में दिख रहा है.

कोई फरमाइश है क्या?’’ धीरज की सहजता देख मेरी आंखें छलक आईं कि किस मिट्टी के बने हो तुम धीरज. ‘‘हुं… पापा,’’ अचानक रूसा गंभीर हो गई और कान पकड़ते हुए बोली, ‘‘आई एम सौरी पापा,’’ और फिर धीरज के गले लग गई. ‘‘अरे किस बात की सौरी बच्चे…’’ ‘‘पापा, पिछले दिनों में थोड़ा भटक गई थी… मेरे कारण मेरे अच्छे पापा का बहुत दिल दुखा, मुझे माफ कर दीजिए पापा, माफ करेंगे न?’’ ‘‘मेरा अच्छा बच्चा,’’ कह कर धीरज ने रूसा को गले लगा लिया. मैं ने कुदरत का धन्यवाद अदा किया. लगा वह तूफानी भंवर अब मेरी गृहस्थी को कोई चोट नहीं पहुंचा पाएगा.

Family Story in Hindi

Hindi Love Story: तुम्हारा साथ

Hindi Love Story: हौजरी की फैक्टरी में कार्यरत किरण तेजी से कपड़ों की पैकिंग में व्यस्त थी. तभी उस की नजर दीक्षा पर पड़ी. दीक्षा को कंपनी में भरती हुए अभी 1 महीना ही हुआ था लेकिन उस की सूनी आंखें एक दर्द समेटे हुए नजर आती हैं. दीक्षा अकसर काम के बीच में रुक जाती और उस की आंखें शून्य में कुछ तलाशने लगती हैं.

किरण भी क्या करे? इस छोटी सी नौकरी के बदौलत किसी तरह अपनी सम्मानजनक जिंदगी को बना कर रखे हुए है. उस का दुख कम है क्या? 25 वर्ष की उम्र तक आते हुए वह इतनी सख्त और भावनाओं से रहित हो जाएगी यह उसे खुद पता नहीं था.

अपने सहकर्मी के संग वह जल्दी घुलतीमिलती नहीं है, यह सोच कर कि क्या बातें होंगी? वही लौट कर पुरानी, घरगृहस्थी और बच्चों की बातें. यही विषय उसे बातचीत करने से रोकते हैं. शादीशुदा औरतों का तो यही रोना रहता है कि मेरे पति को क्या पसंद है या वे मेरे लिए क्या उपहार लाया या मैं ने उस के लिए क्या पकाया, मेरा बच्चा सब से स्मार्ट और मेरा पति सब से भोला, इन्हीं सब बातों से उसे चिढ़ हो जाती थी. जैसे कल की ही बात हो.

वह छोटे से शहर सीतापुर में अपने मम्मीपापा और छोटे भाई के साथ रहती थी. उस का गांव सीतापुर से मात्र 15 किलोमीटर पर है. आम, अमरूद के बगीचे और सब्जी की खेती से प्राप्त आय के अतिरिक्त उस के पिताजी ने टैक्टर की ऐजेंसी भी ले रखी है साधनसंपन्न घर में उस की बहुत लाड़प्यार से परवरिश हुई. 12वीं कक्षा पास करते ही किरण ने आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ जाने की जिद लगा दी.

पिताजी ने भी लखनऊ एक फ्लैट में उस के रहने का इंतजाम कर दिया जिस में उस के साथ 2 अन्य लड़कियां भी रहती थीं. शुरू के 2 वर्ष तो उसे लखनऊ की आबोहवा को समझाने में लग गए. जल्द ही वह भी स्कूटी में फर्राटा भरती लड़़कियों में शामिल हो गई. स्नातक के बाद उस का पढ़ाई से मन उचट गया तो उस के पिताजी उस पर वापस सीतापुर आने का दबाव बनाने लगे. उस के पास लखनऊ में रुकने का कोई कारण भी नहीं बचा था तो उस ने एक बीमा कंपनी में ऐजेंट का काम संभाल लिया.

यह तरकीब उसे मोहित ने बताई जो खुद भी उसी कंपनी में ऐजेंट था. मोहित उस के साथ ही कालेज में भी पढ़ता था. 6 फुट लंबा मोहित दिखने में सुदर्शन और स्वभाव से हंसमुख युवक था. कालेज में उस की कई लड़कियों से दोस्ती थी. वह सब की सहायता को भी हमेशा तत्पर रहता था. जब उसे किरण की समस्या पता चली तो उस की सहायता कर उस की नजरों में भी उठ गया. 2-4 बार वह किरण के साथ सीतापुर भी गया और उस के रिश्तेदारों से मिल कर उन का भी जीवन बीमा कराया.

धीरेधीरे वह किरण के परिवार का अभिन्न अंग बनता चला गया. किरण साधारण नैननक्स की सांवली रंगत की युवती थी. आज तक किसी सहपाठी से ऐसी तवज्जो नहीं मिली थी. वह मोहित के प्रति आकर्षित हो मन ही मन अपने भावी जीवन के सुनहरे स्वप्न बुनने लगी. एक दिन अमीनाबाद में खरीदारी करते हुए उसे एक गुलाबी रंग की चिकनकारी से सजी चादर बहुत पसंद आई मगर उस की कीमत अधिक होने के कारण लेने में झिझक रही थी. ‘‘इसे पैक कर दो,’’ मोहित ने चादर दुकानदार की तरफ बढ़ाते हुए कहा. ‘‘अरे नहीं, आज बहुत शौपिंग कर ली है. इसे फिर कभी आ कर ले जाऊंगी,’’ किरण ने दुकानदार के हाथ से चादर वापस रखते हुए कहा. ‘‘अगले महीने तुम्हारा बर्थडे है, इसे मेरा तोहफा समझा. मुझे ढूंढ़ना पड़ता मगर यह तुम्हारी पसंद का हैं,’’ कह कर मोहित ने उसे तुरंत पैक कर किरण को गिफ्ट कर दिया. उस दिन अमीनाबाद की कुल्फी उसे इतनी स्वाद लगी जैसे जिंदगी में पहली बार कुल्फी खा रही हो.

घर पहुंच कर भी वह यही सोचती रही कि मोहित को मेरा जन्मदिन याद है. इस का मतलब वह भी मेरे प्रति गंभीरता से सोचता है. उस के आगेपीछे न जाने कितनी लड़कियां घूमती रहती हैं मगर उसे मैं पसंद आई. किरण के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. न जाने कितने ख्वाब उस की आंखों में सज गए. अब किरण अपने कपड़ों और मेकअप के प्रति सजग हो उठी. उधर घर वाले उस के लिए रिश्ता तलाशने में जुट गए थे.

मगर किरण की किसी रिश्ते में कोई रुचि नहीं थी. अपने जन्मदिन पर किरण ने अपने बैड पर वही चादर बिछाई. उस से लिपट कर कितने प्रेमप्रस्ताव उस ने मन ही मन मोहित से कह दिए. उस के फ्लैट की अन्य 2 युवतियां रीता और संगीता भी मोहित के आने की खबर से उत्साहित हो उठीं. तीनों ने मिल कर प्लान बनाया कि आज घर में ही केक काट कर डिनर के लिए बाहर चलेंगे. गुलाबी रिबन और गुब्बारे से घर को सजा कर तीनों भी तैयार हो गईं.

नियत समय पर मोहित अपने एक मित्र के साथ फ्लैट में हाजिर हो गया. काली जींस और सफेद टीशर्ट में सजा मोहित कहर ढा रहा था. जल्द ही मोहित और उस का मित्र सौरभ सब से ऐसे घुलमिल गए जैसे पुराने मित्र हों. मोहित ने रीता और संगीता को भी जीवन बीमा पौलिसी लेने को राजी कर लिया. उन्हें मोहित से पौलिसी लेते देख कर किरण ने दोनों की टोक दिया, ‘‘अरे मैं कितने महीनों से तुम्हें इस के लाभ समझा रही हूं मगर तुम्हें समझा नहीं आया और मोहित की बात सुन कर 5 मिनट में फार्म भरने बैठ गईं.’’ ‘‘तुम्हारी बातों में तर्क नहीं था इस ने हमें सरल तरीके से इस के लाभ समझा दिए.’’ रीता ने लापरवाही से कहा. ‘‘क्यों परेशान हो मैं जल्द ही सेल्स मैनेजर बनने वाला हूं फिर तुम्हें ही पौलिसी दिलाया करूंगा,’’

मोहित ने उसे प्यार से समझाया. किरण भी उस की सम्मोहक आंखों में डूब कर रह गई. मोहित और किरण की नजदीकियां बढ़ने लगीं, औफिस से निकल कर जब वे फील्ड वर्क पर होते तो एक बार फ्लैट में जरूर आते. दिन में उस की रूममेट अपने औफिस में रहती थी. उन्हें पता ही नहीं चला कि किरण और मोहित फ्लैट को अपनी कामनाओं की पूर्ति करने का साधन बना चुके हैं.

किरण मोहित की हर बात में आंख मूद कर विश्वास करती. मोहित अब सेल्स मैनेजर बन चुका था और वह उस की चहेती सेल्स ऐजेंट. 2 साल बीत गए. घर वालों ने जब शादी का दबाव डालना शुरू किया तो किरण ने मोहित से ही सीधे बात करना उचित समझा. फ्लैट का दरवाजा लगाते हुए किरण ने मोहित से कहा, ‘‘सुनो, आजकल पिताजी शादी करने के लिए बहुत दबाव बना रहे हैं.’’ मोहित ने किरण को गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटाते हुए कहा, ‘‘कुछ महीनों के लिए किसी तरह से टाल दो बस.’’

‘‘फिर कुछ महीनों के बाद क्या होगा?’’ किरण ने अपने मुख पर झाक आए मोहित के घुंघराले बालों को हाथों से पीछे की तरफ समेट कर एक चुंबन लेते हुए पूछा. ‘‘2 महीने में ट्रांसफर लिस्ट निकलने वाली है, मुझे बनारस या कानपुर मिलने वाला है,’’ मोहित उस के शरीर को अपनी बांहों में जकड़ते हुए बोला. ‘‘फिर उस के बाद?’’ किरण रोमांटिक हो उस से सर्प की तरह लिपट कर बोली. ‘‘उस के बाद तुम अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते,’’ कह कर मोहित ने उस के शरीर के साथ ही दिलोदिमाग को भी मसल कर रख दिया. शब्द पिघले शीशे की तरह कानों से उतर कर कलेजे को चीरते हुए चले गए.

मोहित शारीरिक सुख भोग कर तृप्त हो कर सो गया और किरण अपनी बेबसी पर आंसू बहाती रह गई. पिछले 4 साल का घटनाक्रम उस की आंखों में घूम गया… मोहित ने कभी कहा ही नहीं कि वह किरण से प्यार करता हैं. उस से ही शादी करेगा. दोनों के बीच औफिस के विभिन्न विषयों पर घंटों बात हो जाती थी मगर प्यार के कसमेवादे तो कभी नहीं हुए. किरण ने एकतरफा प्यार किया और अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, जिसे मोहित ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

मोहित की जगह कोई भी होता तो शायद यही करता. अब किरण के पास घुटघुट कर रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा था. उस दिन भी दीक्षा को देर तक शून्य में निहारते देख कर किरण कों तरस आ गया. उस ने दीक्षा के पास आ कर उस की पीठ को प्यार से सहला दिया. दीक्षा वर्तमान में लौट आई. सामने किरण की नजरों में उभरी सहानुभूति को देख कर उस की आंखों में कैद दुख का बांध टूट गया. आंसुओं की लहर उमड़ पड़ी, जिसे रोकने के लिए वह उठ कर वाशरूम की तरफ दौड़ पड़ी.

जी भर कर रोने के बाद उस ने अपने मुंह को धो कर संयत किया. वापस अपनी जगह आ कर पूर्ववत कार्य करने लगी. सुमन और किरण में धीरेधीरे मित्रता बढ़ने लगी लेकिन दोनों ही अपने अतीत के विषय में बात करने से कतराती थीं. एक दिन दीक्षा ने किरण को बताया, ‘‘आज मुझे जल्दी निकलना है, मेरे मकानमालिक के बेटे की शादी होने वाली है इसलिए मुझे अपना कमरा खाली करना होगा. अब फिर से नई जगह तलाश करना कितना मुश्किल है.’’ ‘‘कितने समय से यहां रह रही हो?’’ किरण ने पूछा. ‘‘2 साल से, मगर मुझे सिर्फ 2 महीने का ही समय दिया हैं,’’ दीक्षा ने रोनी सूरत बना कर कहा. किरण को उस की काली कजरारी आंखों में याचना दिखी. बोली, ‘‘मैं अपनी सोसायटी में पता करती हूं, तुम भी तलाश जारी रखो.’’

किरण को दीक्षा से हमदर्दी हो उठी. दीक्षा मात्र 20 वर्ष की ही थी. उस के आगे 25 वर्षीय किरण अपनेआप को बहुत सयानी समझाती. किरण मोहित से धोखा खाने के बाद और मोहित की ट्रांसफर के बाद बीमा कंपनी में कार्य करने में खुद को असहज महसूस करती. कंपनी में मोहित की जगह एक नया सेल्स मैनेजर अजय आ गया. अजय उसी के गृहनगर सीतापुर का था. अजय साधारण कदकाठी का मिलनसार युवक था.

कंपनी में उस के आने के बाद स्टाफ में एक नया जोश और उत्साह पैदा हो गया. कंपनी की छमाई रिपोर्ट में उन की ब्रांच का बिजनैस टौप पर था. इसी खुशी में एक होटल में सभी कर्मचारियों के लिए पार्टी रखी गई. किरण आधेअधूरे मन से उस में शामिल हुई. अजय ने उस दिन पार्टी में सभी सदस्यों के आपसी तालमेल को इस का श्रेय दिया लेकिन किरण की कार्यशैली की विशेष प्रशंसा हुई. सभी ने उस का फूलों के गुलदस्ते के साथ जोरदार तालियों से स्वागत किया. किरण पिछला सबकुछ भूल कर काम में डूबती चली गई. उस दिन उसे तेज बुखार था उस ने औफिस से छुट्टी ले ली.

फ्लैट में दवा ले कर अकेले पड़ी थी. ऐसे में उसे अपने भविष्य को ले कर एक अनिश्चिंतता दिखाई दी. उस ने विचार किया कि अपने अभिभावकों के बताए रिश्तों में से एक रिश्ते को वह चुन लेगी. दिनभर बदन दर्द से करवटें बदलते हुए उसे शाम को गहरी नीद आ गई. फ्लैट की डोरबैल से उस की नीद खुली. शाम के 6 बज रहे थे. दरवाजे खोलते ही सामने अजय को देख कर हैरान रह गई. ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? क्या मैं तुम्हारा हालचाल नहीं पूछ सकता?’’ अजय ने कहा. ‘‘यह बात नहीं है.

आप को यों अचानक देख कर हैरानी हुई,’’ कह कर उस ने अजय को अंदर आने को कहा. अजय सेब, संतरे के थैलों को उसे पकड़ाते हुए एक कुरसी पर बैठ गया. ‘‘कुछ दिनों के लिए घर जाने की सोच रही हूं,’’ किरण ने कहा. ‘‘जब चलना हो बता देना, मैं भी अपने परिवार से मिलने चल पड़ूंगा,’’ अजय ने लापरवाही से कहा. ‘‘परिवार में कौनकौन हैं,’’ किरण ने औपचारिकता से पूछा. ‘‘मम्मीपापा और छोटा भाई है,’’ अजय ने लापरवाही से जवाब दिया. ‘‘सीतापुर में कब से रहते हो?’’ ‘‘अभी 2 साल पहले ही घर बनवाया है, इस से पहले पूरा परिवार गांव में ही था.’’ ‘‘हमारा भी पुश्तैनी घर गांव में ही है.

सीतापुर का घर, पापा ने 20 साल पहले बनवाया था.’’ उस दिन औफिस में जब किरण अजय के कैबिन में बीमा भुगतान संबंधी फाइल ले कर पहुंची अजय अपनी कुरसी पर मौजूद नहीं था. उस का फोन सामने ही रखा था जिसे देख कर वह समझा गई कि आसपास में ही कहीं गया है. अजय की प्रतीक्षा में वह वही कुरसी पर बैठ गई.

कुछ शादी के कार्ड के नमूने भी रखे हुए थे. उसे याद आया कि अजय ने उसे बताया था कि कार्ड की डिजाइन उस की पसंद की ही रखेगा. किरण ने कार्ड उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि तभी अजय का फोन बज उठा. उस में मम्मा शब्द डिस्प्ले हो रहा था. उस ने फोन उठा लिया, ‘‘सुनो मैं अपने मायके जा रही हूं. अब तुम्हारी मारपीट बरदाश्त से बाहर है. अपने दोनों बच्चे भी ले जाऊंगी. तुम्हें उस लड़की के साथ गुलछर्रे उड़ाने है तो उड़ाओ.

मुझे अपनी नौकरानी मत समझाना. अब दोबारा इस विषय में बात भी मत करना.’’ ‘‘रौंग नंबर मिला दिया है आप ने, यह अजय का नंबर है,’’ किरण ने कहा. ‘‘ओह तो तुम्हीं हो वह चुड़ैल. मेरे लिए ही नहीं तुम्हारे लिए भी वह रौंग नंबर है.’’ किरण स्तब्ध रह गई. अजय भी उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया. किरण की कुछ समझा में नहीं आ रहा था. अजय अपनी नाकाम शादी के सच्चे, झाठे किस्से सुनाता जा रहा था और वह न जाने क्याक्या अनर्गल बके जा रही थी. कैबिन के बाहर लोग इकट्ठा हो चुके थे. उस दिन के बाद उस औफिस में काम करना उस के लिए मुश्किल होता गया.

उसे अपनी पीठ पर सहकर्मियों की हंसी और सहानुभूति चुभती सी महसूस होती. किरण दिल्ली अपनी मौसी के पास चली आई. कुछ समय बाद, फरीदाबाद की इस फैक्टरी में काम करने लगी और यहीं शिफ्ट हो गई. दीक्षा के लिए इतनी जल्दी अच्छी और सुरक्षित जगह तलाश करना आसान नहीं था इसलिए किरण ने उसे अपने साथ ही फ्लैट में रहने का प्रस्ताव दे दिया.

दीक्षा कम बोलने वाली लड़की है लेकिन घर की साफसफाई और भोजन बनाने में कुशल है जबकि किरण घरबाहर के सारे काम, स्कूटी दौड़ाते हुए मिनटों में निबटा देती. दोनों साथ ही स्कूटी से फैक्टरी जातीं और साथ ही बाजार, सिनेमा का भी आनंद लेतीं. उन की मित्रता घनिष्ठता में बदलने लगी. एक बीमार पड़ती तो दूसरी जीजान से सेवा करती. ‘‘किरण उठो न,’’ दीक्षा ने ट्रे में चाय संग पकौड़ों को बैड की साइड टेबल में रखते हुए कहा. ‘‘सुबहसुबह पकौड़े?’’ ‘‘10 बज गए हैं, कितना सोओगी?’’ दीक्षा ने अपने गीले बालों से टपकते पानी को तौलिए में लपेटते हुए कहा.

‘‘ओह तुम कितनी सुंदर हो दीक्षा. काश, मैं लड़का होती,’’ किरण ने आह भर कर कहा. ‘‘लड़कों का नाम न लेना मुझे नफरत हो चुकी है.’’ ‘‘सही कहा, मुझे भी सख्त नफरत है, मैं ने कभी पूछा नहीं तुम से लेकिन अगर तुम अपना मन हलका करना चाहती हो तो खुल कर कह सकती हो,’’ किरण ने दीक्षा का हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बैड पर बैठाते हुए कहा. ‘‘कहूंगी नहीं तो शायद अंदर ही अंदर घुट कर रह जाऊंगी,’’ दीक्षा ने कहा.

दीक्षा कानपुर के कपड़ा व्यवसाई परिवार की सब से बड़ी बेटी थी. उस से छोटी 2 बहनें जुड़वां होने के कारण आपस में ही खेलकूद करती रहतीं. दीक्षा उन से उम्र में 8 वर्ष बड़ी थी. जब वे 10 वर्ष की हुईं, दीक्षा 18 वर्ष की हो गई. वह घर से बाहर अपने मित्रों के संग अधिक समय बिताने लगी. उस का घर में मन कम ही लगता था. उन्हीं दिनों पड़ोसी मकान में हमउम्र 4 नवयुवक किराए पर रहने के लिए आए.

दीक्षा अपनी बालकनी से उन की गतिविधियां देखती रहती थी. कुछ समय पश्चात इशारों में ही हायहैलो होने लगी. फिर फोन नंबर की अदलाबदली भी हो गई. अब वह वीडियोकौल से सभी से जुड़ती चली गई. दीक्षा की मां को जब यह बात पता चली तो उस दिन उस की बहुत पिटाई हुई. दीक्षा ने बहुत समझाया कि वे सिर्फ दोस्त ही तो हैं. मगर उस की मां इन सब बातों के सख्त खिलाफ थीं.

दीक्षा की मां सौतेली हैं, यह तो उसे मालूम था मगर आज उसे एहसास भी हो गया कि अगर ये मेरी सगी मां होतीं तो ऐसा नहीं करतीं. दीक्षा मन ही मन प्रतिशोध की आग में जल उठी. इस आग को उन लड़कों ने भी हवा दी और फिर एक दिन दीक्षा घर से भाग गई. दीक्षा इस घटना के करीब साल बाद ही घर छोड़ कर निकली थी. सालभर वो अपने मातापिता की हर सलाह को नकारात्मक ढंग से लेती और अपनी नानी से घंटों बुराई करती.

नानी भी उसे समझाने के बजाय उस की मां के सौतेले रिश्ते को ही दोष देतीं. उस ने उन लड़कों को बताया था कि वह बनारस अपनी नानी के घर चली जाएगी, उन्होंने उसे ऐसा कदम उठाने से मना किया था. वे कहां जानते थे कि दीक्षा सचमुच घर से बिना बताए निकल जाएगी. पुलिस ने चारों लड़कों को सब से पहले पूछताछ के लिए उठाया तो उन्होंने बताया कि वह हम से सिर्फ फोन पर हंसीमजाक ही किया करती थी. पुलिस ने उन के खिलाफ कोई सुबूत न मिलने पर उन्हें चेतावनी दे कर छोड़ दिया. दीक्षा गुस्से में घर से निकल कर नानी के पास बनारस जाने के लिए बस स्टैंड पर आ गई. वहां उसे लखनऊ की बस अड्डे से निकलती दिखाई दी तो उसी में चढ़ गई.

वह सोच रही थी कि कानपुर शहर से जितना जल्दी निकल सके, उतना अपने मातापिता की पहुंच से दूर हो जाएगी. लखनऊ का टिकट ले कर किरण बस की खिड़की से सिर टिका कर बैठ गई. पीछे छूटते नजारों के साथ ही वह भविष्य के सपने बुनने लगी… कुछ समय बाद बस एक जलपानगृह में रुकी. किरण बस से नहीं उतरी. उसे ध्यान आया कि वह अपना फोन भी जल्दबाजी में घर ही छोड़ कर आ गई है.

उस का क्रोध अब तक शांत हो चुका था. उस ने अपने परिवार को सूचना देने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति का फोन प्रयोग में लाने के लिए इधरउधर देखा. उस के पीछे की सीट पर एक महिला अपने छोटे से बच्चे को गोद में लेकर बैठी थी. 1-2 सवारियां बस में इधरउधर छितरी हुई बैठीं अपने झाले से जलपान निकाल कर बैठी हुई थीं. बाकी सवारियां नीचे उतर चुकी थीं. ‘‘मुझे एक काल करनी है क्या आप अपना फोन इस्तेमाल करने के लिए देंगी ?’’ दीक्षा ने कहा. ‘‘हां ले लो,’’ महिला ने उसे तुरंत फोन थमा दिया. दीक्षा को न तो नानी का फोन नंबर याद था न ही घर के किसी सदस्य का, उसे सिर्फ अपना फोन नंबर याद था जिसे वह घर भूल कर आई थी.

उस ने उसी पर काल किया. लगातार 4 बार काल करने पर उस की छोटी बहनों ने उस का फोन थाम लिया. ‘‘हैलो दीदी, तुम्हारा फोन घर पर रह गया है.’’ ‘‘मुझे मालूम है सुनो मैं नानी के घर बनारस जा रही हूं, पापा को बता देना चिंता न करें.’’ ‘‘तुम कब घर आओगी?’’ ‘‘अब से मैं बनारस में ही रहूंगी, वहीं पढ़ाई करूंगी, मम्मी को बता देना,’’ कह कर दीक्षा ने फोन काट दिया. दोनों बहनें अपने खेल में व्यस्त हो गईं.

जब शाम 8 बजे तक दीक्षा घर नहीं पहुंची तो उस की मां ने उस की खोजखबर लेनी चाही तो उसे दीक्षा के बनारस जाने की खबर मिली. सुबह 8 बजे से कालेज के लिए निकली दीक्षा बनारस भी नहीं पहुंची थी. पुलिस में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी गई. बनारस नानी के घर से भी लोग बसअड्डे और रेलवे स्टेशन की खाक छानते रहे, दीक्षा का पता नहीं चला.

जलपानगृह से बस के चलते ही दीक्षा की बगल में एक नवयुवक आ कर बैठ गया. जल्द ही दोनों घुलमिल कर बातें करने लगे. उस ने दीक्षा को विश्वास में ले लिया कि वह उसे विश्वनाथ बाबा की गली के पास स्थित उस की नानी के घर सुरक्षित पहुंचा देगा. वह भी लखनऊ अमीनाबाद से कुछ सामान लेगा, फिर शाम की ट्रेन से बनारस निकल जाएगा. उस ने अपने मोबाइल से उस के लिए भी ट्रेन का टिकट बुक कर दिया.

सुबह के 10 बजे थे और ट्रेन शाम की थी तो दीक्षा उस के साथ अमीनाबाद घूमने निकल पड़ी. दोनों ने एक रेस्तरां में खाना खाया और फिर दीक्षा को कुछ याद नहीं रहा. लगातार 3 महीनों तक यौन शोषण का शिकार होती रही. एक देह व्यापार के अड्डे से बिकती हुई वह दूसरे अड्डे में पहुंच कर शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना झेलते हुए मानसिक रूप से अस्वस्थ होती चली गई.

एक दिन एक गैस्ट हाउस में किसी मुखबिर की सूचना से छापा पड़ा और उस में नाबालिग लड़कियों के साथ दीक्षा भी बरामद हुई. दीक्षा की विक्षिप्त हालत को देखते हुए उसे मानसिक रोग चिकित्सालय भेज दिया गया. उस के परिवार वालों ने उसे अपनाने से मना कर दिया. दीक्षा नारी सुधार गृह का हिस्सा बन कर रह गई.

जब उस की मानसिक स्थिति में सुधार हुआ तो उस की इस फैक्टरी में नौकरी लगा दी गई. अब वह अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने के लिए आजाद थी. मगर उस की जिंदगी में कोई रंग, उमंग बची ही नहीं थी. दीक्षा अपनी आपबीती सुना कर सिसकने लगी. किरण ने उसे गले से कस कर अपने से लगा लिया. दोनों को एकदूसरे की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी.

दीक्षा अभी भी सिसक रही थी. किरण ने भावावेश में भर कर उस के चेहरे पर चुंबनों की बरसात करते हुए कहा, ‘‘रो मत पगली, हमारी जिंदगी में अब कोई तीसरा नहीं आएगा, हम दोनों ही एकदूसरे के पूरक बन कर रहेंगे.’’ समय कब किसी के लिए रुका है दोनों ने स्टांप पेपर में हस्ताक्षर कर एकदूसरे को अपना साथी बनाते हुए, अपनी चलअचल संपत्ति का वारिस घोषित कर दिया. अब लोग उन्हें पीठ पीछे क्या कहते हैं इस की उन्हें कोई परवाह नहीं होती. वे एकदूसरे के पूरक बन चुके हैं यही उन का अंतिम सत्य है बाकी दुनिया मिथ्य बन चुकी है.

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Monsoon Homecare: मौनसून में फंगस फ्री घर के लिए टिप्स ऐंड ट्रिक्स

Monsoon Homecare: रीना 1 सप्ताह के लिए अपने मायके चली गई थी. वापस लौटी तो घर की हालत देख सिर चकरा गया. घर के सारे कोनों में फंगस और फफूंद लग गए थे. अलमारी में रखे कपड़े, फर्नीचर, आलू, प्याज पर भी फंगस की परत आ गई थी. सारे घर में सिलन की बदबू फैल गई थी. मायके में किया हफ्तेभर का आराम घर आते ही किरकिरा हो गया. लेकिन अपनी सूझबूझ से उस ने 1 ही दिन में घर को पहले जैसा करने में कोई कसर न छोड़ी.

चलिए, जानते हैं ऐसे टिप्स ऐंड ट्रिक्स जिन से बरसात के मौसम में हम अपने घर को फंगस फ्री बना सकते हैं.

मौनसून के मौसम में वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिस से घर में फंगस और फफूंदी पनपने लगते हैं. इस से न केवल स्वास्थ्य प्रभावित होता है बल्कि घर का सामान भी खराब हो सकता है.

फफूंदी से बचाने के लिए अपनाएं टिप्स

बंद घर में मौनसून के कारण फंगस लगने की समस्या अधिक होती है क्योंकि घर के अंदर बाहर की सूर्य की किरण नहीं आ पाती और न ही हवा जिन से सिलन आई जगह सूख नहीं पाती जिस कारण यह समस्या अधिक होती है. इसलिए धूप के समय घर की खिड़कियां खुली रखें, जिस से ताजा हवा और धूप घर के अंदर आए.

धूप फंगस और बैक्टीरिया को पनपने से रोकती है. फर्नीचर और बुक शेल्फ को दीवारों से थोड़ा दूर रखें, ताकि हवा का प्रवाह बना रहे.
किचन और बाथरूम में एग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें. नहाने के बाद बाथरूम के दरवाजे खुले रखें ताकि नमी जल्दी सूख सके. शौवर कर्टन और भारी मैट का प्रयोग मौनसून में टालें.

फफूंदी हटाने के लिए अपनाएं ट्रिक्स

* फफूंदी हटाने के लिए विनेगर एक बेहतरीन उपाय है. इसे स्प्रे कर 20 मिनट छोड़ें और फिर स्क्रब कर के गरम पानी से साफ करें. बेकिंग सोडा भी प्रभावी है.इसे पानी में मिला कर स्प्रे करें और 1 घंटा बाद साफ करें.

* अंधेरी जगहों पर कपूर और लौंग का इस्तेमाल करें. इन्हें कपड़े में बांध कर अलमारी या शूरैक में रखें. नीबू का रस भी फंगस हटाने में कारगर है. इसे प्रभावित जगह पर रगड़ें और फिर स्क्रब करें.

* नीम के सूखे पत्तों को कपड़े में बांध कर घर की नमी वाली जगहों पर रखें. यह ऐंटी फंगल होने के साथसाथ वस्त्रों को नम होने से भी बचाता है. इन घरेलू उपायों से आप मौनसून में अपने घर को फंगस मुक्त रख सकते हैं.

Monsoon Homecare

मौनसून में Fungal Infection से बचने के लिए ऐक्सपर्ट से जानें खास सुझाव

Fungal Infection: मौनसून का आना चुभतीजलती गरमी से हमें राहत तो देता है, साथ ही हमारी स्किन के लिए कई चुनौतियां भी ले कर आता है. इस में बढ़ी हुई ह्यूमिडिटी हमारी स्किन को ऐक्ने, फंगल इन्फैक्शन और डल कौंप्लेक्स का शिकार बना सकती है. इसलिए ऐसे मौसम में अपनी स्किन को सही रखने के लिए बैस्ट केयर की जरूरत होती है.

मौनसून में स्किन केयर

मौनसून के मौसम में भी स्किन को हैल्दी और शाइन बनाए रखने के लिए स्किन को क्लीन और ड्राई रखना बहुत जरूरी है. इस के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखें :

  • नियमित रूप से अपनी स्किन को सौम्य क्लींजर से साफ करें.
  • टी ट्री औयल बेस क्लींजिंग का इस्तेमाल करें. इस में ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टी हैं जो औयल के ब्लौकेज से बचाती हैं.
  • मौनसून में त्वचा बहुत रूखी हो जाती है, इसलिए सोने से पहले हमेशा क्लींजिंग मिल्क से त्वचा को साफ करें और धो लें.
  • पौष्टिक खाना खाएं और तैलीय चीजों से बचें.

इस के अलावा इन उपायों को अपनाएं :

मोइस्चराइजर का उपयोग करें : मौनसून में भी अपनी त्वचा को हाइड्रेटेड रखना जरूरी है. एक हलका, औयल फ्री, जैल बेस्ड मोइस्चराइजर का उपयोग करें.

नैचुरल ऐलिमैंट्स : कुछ प्राकृतिक तत्त्व हैं जो मौनसून में त्वचा की देखभाल के लिए उपयोगी हो सकते हैं. जैसे- खीरा त्वचा को ठंडा और शांत करता है और सूजन को कम करने में मदद करता है. ऐलोवेरा जैल स्किन को मोइस्चर प्रदान करता है और जलन को शांत करता है. आप इसे फेस पैक के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

मौनसून में फिटकरी का उपयोग कर त्वचा को साफ किया जा सकता है, जो फंगल संक्रमण और त्वचा की समस्याओं को कम करने में मदद करता है.

नैचुरल और और्गेनिक चीजों का प्रयोग करें. जैसे :

  • एलोवेरा स्किन को मोइस्चर प्रदान करता है और जलन को शांत करता है.
  • रोजवाटर स्किन को कूल रखता है और टोन करता है.
  • चंदन पाउडर स्किन को कुलिंग पहुंचाता है और दागधब्बों को कम करने में मदद करता है.
  • हलदी चंदन फेस पैक स्किन को ग्लोइंग बनाने और इन्फैक्शन से बचाने में मदद करता है.
  • बेसन और हलदी का मिश्रण स्किन को ऐक्सफोलिएट करता है और रंगत में सुधार करता है.

ऐंटीफंगल उत्पादों का उपयोग करें

अगर आप को फंगस की समस्या है, तो ऐंटीफंगल उत्पादों का उपयोग करें. आप प्रभावित क्षेत्रों पर ऐंटीफंगल क्रीम या पाउडर का उपयोग कर सकते हैं.

पैरों को ड्राई रखें

पैरों को ड्राई रखना बहुत जरूरी है, खासकर पैरों के बीच में. अपने पैरों को अच्छी तरह से सुखाने के लिए तौलिए का उपयोग करें, विशेषकर पंजों के बीच ड्राइनैस का ध्यान रखें.

सांस लेने योग्य कपड़े पहनें

सूती कपड़े पहनें जो हवा को पास करे. टाइट फिटिंग कपड़ों से बचें जो नमी को फंसा सकते हैं.

हाइड्रेटेड रहें

पानी पीते रहें ताकि आप की स्किन में पानी की कमी न हो और स्किन हैल्दी रहे.

व्यक्तिगत वस्तुओं को साझा करने से बचें

व्यक्तिगत वस्तुओं जैसे तौलिए, मोजे और जूतों को शेयर न करें.

ऐंटीफंगल साबुन का प्रयोग करें

ऐंटीफंगल साबुन का उपयोग करें जो फंगस से बचाता है और आप की स्किन को क्लीन रखता है

पैरों की अतिरिक्त देखभाल

पैरों की देखभाल : पैरों की देखभाल करने के लिए नियमित रूप से अपने पैर के नेल्स को काटें और डेड स्किन सैल्स को हटाने के लिए झांवें का उपयोग करें.

हाथों की देखभाल : हाथों की देखभाल करने के लिए नियमित रूप से अपने हाथ धोएं और उन्हें हाइड्रेटेड रखने के लिए मोइस्चराइजर लगाएं.

बारिश में हाई हील्स पहनने के लिए सुझाव

ड्राई पैर : बारिश के मौसम में पैर गीले होने की संभावना अधिक होती है, जिस से फंगल इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सुनिश्चित करें कि आप के पैर हर समय ड्राई रहें.

खुले जूते : जहां तक ​​संभव हो खुले जूते या सैंडल पहनें ताकि आप के पैरों को हवा मिलती रहे और पसीना कम हो.

नमी शोषक मोजे : अगर आप को हील्स पहनने की जरूरत है, तो ऐसे मोजे चुनें जो नमी को सोखते हों और उन्हें बारबार बदलें, खासकर यदि वे नम हो जाएं.

ऐंटीफंगल पाउडर : आप ऐंटीफंगल पाउडर का उपयोग कर सकते हैं ताकि आप के पैरों को ड्राई फंगल इन्फैक्शन से बचाया जा सके.

पैरों की सफाई : बारिश में बाहर से आने के बाद अपने पैरों को अच्छी तरह से धो लें और ड्राई कर अच्छी तरह से लोशन लगा लें.

जूतों का ध्यान : अपने हील्स वाले जीतों को साफ रखें और उन्हें नियमित रूप से बदलें.

पेडीक्योर : इस मौसम में पेडीक्योर करवा कर ऐक्स्ट्रा ध्यान रखें. आप चाहें तो घर पर भी यह कर सकते हैं. इस के लिए सब से पहले गुनगुने पानी में थोड़ा शैंपू और नमक डाल कर पैरों को 10-15 मिनट के लिए भिगोएं. फिर पैरों को स्क्रब करें और प्यूमिस स्टोन से एड़ियों को साफ करें. इस के बाद नाखूनों को काटें और फाइल करें और फिर मोइस्चराइजर लगाएं. अंत में अपनी पसंद का नेल पेंट लगाएं.

पौष्टिक आहार और हाइड्रेशन

कम मसाले वाला खाना खाएं और खूब पानी पिएं. फ्रूट्स का सेवन करें.

हील्स का चुनाव

कुछ हाई हील्स सिंथेटिक सामग्री से बनी होती है, जो नमी को सोख नहीं पाती है, जिस से फंगल इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

हाइड्रेटिंग मोइस्चराइजर

पैरों की स्किन को हैल्दी बनाने के लिए हाइड्रेटिंग मोइस्चराइजर अच्छी तरह से लगाएं. हील्स पहनने से पहले और बाद में भी.

विटामिन सी का सेवन

रोजाना लंच के बाद विटामिन सी का सेवन करें (1 गिलास पानी में विटामिन सी मिक्स कर के पी लें).

रैनबो डाइट फौलो करें

अलगअलग कलर की सब्जी और फल खाएं, साथ में नीबू रस मिला लें.

अगर आप भी मौनसून के मौसम में ऐक्सपर्ट की इन बातों का खयाल रखेंगे तो बारिश में में आप के पैर फंगल फ्री और खूबसूरत दिखेंगे और हील्स पहनने में भी प्रौब्लम नहीं होगी.

Fungal Infection

Bhumi Pednekar: वैलनेस का मतलब सिर्फ शारीरिक तंदुरुस्ती नहीं…

Bhumi Pednekar: फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ से बौलीवुड में डैब्यू करने वाली भूमि पेडनेकर आजकल अपने लुक और फिटनैस कि वजह से चर्चा में हैं.

हाल ही मे भूमि ने दिल्ली में नए स्पोर्ट्स स्टोर का उद्घाटन किया. इसलिए इस अवसर पर वे बहुत ही फिट और स्टाइलिश नजर आईं.

ट्रैडमिल पर दौड़ पूरी की

इस आयोजन में फिटनैस उत्साही भूमि पेडनेकर ने स्पोर्ट्स ब्रा, ब्लैक स्किनी जौगिंग के साथ ब्लू और व्हाइट जैकेट ओपन कर के पहनी हुई थी और फिर पार्टिसिपेट्स के साथ मिल कर एक सामूहिक लक्ष्य के तहत ट्रैडमिल पर कुल 1,000 किलोमीटर की दौड़ पूरी की, जिस का उद्देश्य सामुदायिक भावना को बढ़ावा देना और लोगों को फिटनैस के प्रति प्रेरित करना है.

वैलनेस का मतलब सिर्फ शारीरिक तंदुरुस्ती नहीं

इवेंट के दौरान भूमि पेडनेकर ने कहा, “यह मेरे लिए बहुत खास अनुभव था कि मैं एक ऐसे आयोजन का हिस्सा बनी जो फिटनैस को एक सामाजिक उद्देश्य से जोड़ता है. मेरे लिए वैलनेस का मतलब सिर्फ शारीरिक तंदुरुस्ती नहीं, बल्कि समुदाय को सशक्त बनाना भी है. नई दिल्ली के लोगों के साथ यह जुड़ाव मेरे लिए एक अच्छी बात रही. इस तरह के मंच हमें साझा जनून और प्रयासों के माध्यम से सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एकसाथ आने का अवसर देते हैं.”

भूमि की फिटनैस का राज

भूमि ने जिस समय बौलीवुड में डैब्यू किया था, उस वक्त उन का वजन 90 किलोग्राम था. उन्होंने फिल्म के लिए 30 किलोग्राम वजन बढ़ाया था और उस के बाद उन्होंने उतनी ही तेजी से 35 किलोग्राम वजन कम किया था और अब उन के फिगर को देख हर कोई हैरान है. उन्होंने बिना किसी डाइटिशियन से टिप्स लिए मां के संग मिल कर डाइट प्लान बनाया, घर का खाना खा कर और वर्कआवट कर के वेट लौस किया और अब वे इतनी फिट हो चुकी हैं लगता ही नहीं कि वे कभी इतनी फैटी हुआ करती थीं.

बैलेंस्ड डाइट और ऐक्सरसाइज

भूमि खाने में बहुत बैलेंस्ड डाइट लेती हैं. वर्कआउट में रनिंग करती हैं. इस के साथ ही वे पिलाटेस, रनिंग, स्ट्रैंथ और वेट ट्रेनिंग जैसे वर्कआउट्स करती हैं. इस से उन का वेट कंट्रोल में रहता है. अब भूमि अपनी फिटनैस से मिसाल पेश कर रही हैं.

अपनी बौडी के लिए टाइम निकालो

भूमि का कहना है कि रोज अपनी बौडी के लिए टाइम निकालो, दिन में एक बार ऐक्सरसाइज जरूर करो. जैसे हम 2 बार खाना खाते हैं वैसे ही ऐक्सरसाइज का ध्यान रखो. बस आप जिम पहुंच जाओ चाहे ऐक्सरसाइज 15 मिनट करो 30 मिनट करो, आधे घंटे सैर करने चले जाओ.

Bhumi Pednekar

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