Family Story: प्रिया ने औफिस पहुंचते ही बिना समय गंवाए फाइल में लगी चिट्ठियों को पढ़ कर उन्हें छांटने का काम शुरू कर दिया. उसे मालूम था संपादक आज स्तंभ की फाइलें मांगेंगे. मैगजीन की डैडलाइन आ चुकी है. काम शुरू हुए 10 मिनट ही हुए थे कि उसे लगा उस की कुरसी की बगल में कोई खड़ा है. बिना कुछ कहे देर से. संपादक ने फाइल के लिए चपरासी भेजा होगा, प्रिया ने यही समझ. लेकिन चेहरा घुमा कर देखा तो हड़बड़ा गई. बगल में धीर खड़ा था.
धीर प्रिया के औफिस में ही काम करता था. रिपोर्टर था, लेकिन धीर से उस का व्यक्तिगत तौर पर परिचय नहीं था. बातचीत कभी नहीं रही. आमनेसामने दिख गए तो बस एकदूसरे को विश कर दिया. धीर की 6 महीने पहले पौलिटिकल ब्यूरो में नियुक्ति हुई थी, इतना ही वह उस के बारे में जानती थी.
प्रिया काम में पूरी तरह लीन थी, इसलिए धीर संकोचवश जल्दी उसे बोल नहीं पाया. प्रिया कुरसी छोड़ कर उठ खड़ी हुई. नियुक्ति के आधार पर धीर भले ही जूनियर था, लेकिन उम्र में कम से कम उस से 2-3 साल बड़ा तो होगा ही.
‘‘जी कहिए,’’ प्रिया ने पूछा.
‘‘मैं धीर हूं. पौलिटिकल ब्यूरो में हूं.’’
‘‘मैं जानती हूं. मुझ से कोई काम है?’’ प्रिया ने उसे पूरा सम्मान देते हुए कहा.
‘‘जी.’’
‘‘कहिए?’’
‘‘बैठिएबैठिए. आप काम कीजिए. अभी नहीं. लंच के समय बात करेंगे. आप से अलग
से कुछ बात करनी है,’’ धीर ने कहने के साथ
ही प्रिया की बगल में बैठी लड़की की तरफ
नजर दौड़ाई.
लड़की का नाम ऋचा था. प्रिया से जूनियर थी. पत्रों और स्तंभ के लिए आई रचनाओं को अलग कर फाइल में लगाने का काम करती थी.
प्रिया ने कुछ नहीं कहा. वह खामोशी से धीर के चेहरे को देख रही रही. वह समझ गई जो भी बात है, धीर उस लड़की के सामने नहीं कहना चाहता. वह थोड़ा परेशान हुई. स्तंभ विभाग और पौलिटिकल ब्यूरो एकदम अलगअलग विभाग हैं. काम को ले कर भी इन दोनों विभाग के बीच किसी तरह का संबंध नहीं है, फिर औफिस की ऐसी क्या बात है जो धीर को अकेले में करनी है? प्रिया समझ नहीं पाई. उस के चेहरे से धीर ने समझ लिया कि वह परेशान है ‘‘मैं लंच करने के बाद लाइब्रेरी में आप का इंतजार करूंगा,’’ धीर ने प्रिया की हैरानी पर बिना ध्यान दिए कहा और उसे उसी तरह उलझन में छोड़ चला गया.
प्रिया ने कह तो दिया ठीक है, लेकिन उस के दिल में धुकधुकी मची थी.
‘देखा जाएगा,’’ अंत में प्रिया मन में उठ रहे तरहतरह के सवालों को झटक फिर से काम में जुट गई.
‘द पब्लिक फोरम’ मैगजीन में आए प्रिया को 1 साल हो गया था. यह उस की पहली नौकरी थी. शुरू में उसे भी ऋचा की तरह पाठकों के पत्रों, स्तंभ के लिए आई रचनाओं को छांटने का जिम्मा मिला था. 4 महीने बाद ही संपादक ने उस की मेहनत से खुश हो कर उक्वसे स्तंभ विभाग का इंचार्ज बना दिया था. 1 साल बीत जाने के बावजूद दफ्तर में उस की घनिष्ठता किसी से नहीं हो पाई थी.
शायद उसे यह पंसद ही नहीं था. लंच के समय साथ में बैठी कुछ महिला सहयोगियों से थोड़ी गपशप हो गई, औफिस में आतेजाते लोगों को विश कर दिया, नमस्ते का जवाब दे दिया, बस इतना ही.
6 महीने पहले धीर जब नयानया औफिस में आया था तो पहली नजर में ही वह प्रिया को अच्छा लगा था, लेकिन इस से ज्यादा कुछ नहीं. दुबलापतला, 6 फुट से थोड़ी कम लंबाई, गोराचिट्टा, उलटी मांग से बाल संवांरता, खुशमिजाज दिखा वह. प्रिया खुद सुंदर थी. रंग गोरा होने के साथसाथ उस के नैननक्श भी बहुत अच्छे थे, खासकर उस की काली गहरी बड़ी आंखें काफी आकर्षक थीं. दफ्तर में बहुत से लोग उस के आगेपीछे घूमते रहते. उसे इस का पूरा अंदाजा था. उस की जरा सी लगावट को कोई गंभीरता से न ले ले, यह हमेशा उस के दिमाग में बना रहता था. इसलिए भी वह शायद रिजर्व रहती थी. धीर वैसे खुद गंभीर स्वभाव का कभी नहीं था, लेकिन प्रिया की गंभीरता उसे अच्छी लगती थी.
‘द पब्लिक फोरम’ का औफिस 2 बड़े हालों में था. गेट से औफिस में घुसते ही एक
बड़ा हाल था. इस हाल में 40 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. हाल में एक किनारे पार्टीशन के जरीए 4 कैबिन बने थे जिन में एक कैबिन पौलिटकल ब्यूरो का था. कुल 3 लोग की मेजें इस में लगी थीं. धीर यही बैठता था. इस हाल के बाद एक बहुत बहुत बड़े कमरे की लाइब्रेरी में बदल दिया था. इस के बाद छोटा सा हाल, जिस में 20 लोगों के बैठने का इंतजाम था.
स्तंभ विभाग इसी छोटे हाल में था. यानी धीर और प्रिया के विभाग के बीच अच्छाखासा फासला था.
लंच ब्रेक में धीर लंच करने के बाद लाइब्रेरी में प्रिया का इंतजार कर रहा था. प्रिया वहां पहुंची तो अखबार में वह सिर गड़ाए मिला. प्रिया के पहुंचते ही उस ने तुरंत बगल की खाली कुरसी उसे औफर की.
इस के पहले कि प्रिया कुछ उस से पूछे, धीर ने जेब से एक कटिंग निकाली और बिना कुछ कहे उसे प्रिया की तरफ बढ़ा दिया. यह कटिंग अंगरेजी अखबार में छपे एक विज्ञापन की थी. प्रिया की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने अखबार की कटिंग हाथ में ले कर विज्ञापन को ध्यान से देखा. यह एक सार्वजनिक नोटिस था. उस ने उत्सुकता के साथ उसे पढ़ना शुरू किया-
‘मेरी पत्नी ईशा 15 जुलाई से आभूषण और नक्दी ले कर घर से लापता है. उस के किसी भी लेनदेन से मेरा और मेरे परिवार का कोई संबंध नहीं है-
सुदीप, शिकागो, अमेरिका.’
नोटिस में दिल्ली का एक पता दिया था.
ईशा, पिता रोमेश,
बीसी 23, कैलाश कालोनी, नई दिल्ली.
नोटिस अंगरेजी में था. इसे पढ़ते ही प्रिया के दिमाग में पहला सवाल यही आया कि यह शिकागो का मामला है, फिर नोटिस भारत से छपने वाले अखबार में क्यों दिया गया है? नोटिस से स्पष्ट था पत्नी ईशा अमेरिका से भागी है, लेकिन उस के पति और उस के परिवार को यह कैसे मालूम कि ईशा अमेरिका से भाग कर भारत ही आई है? वह अमेरिका के किसी दूसरे शहर में या किसी यूरोपीय देश में भी तो किसी के साथ भाग सकती है?
प्रिया ने धीर को कटिंग लौटाते हुए उसे सवालिया निगाह से देखा. दरअसल ये सारे सवाल पहले से उस के सामने खड़े थे. उन के जवाब धीर ही दे सकता था.
‘‘संपादकजी ने दी है इनवैस्टिगेट कर स्टोरी करने के लिए. कल दी थी. कहा है कि लड़की और लड़के वाले के घर वालों से बातचीत कर पता लगाओ, इस पर खबर करो,’’ धीर ने प्रिया की उत्सुकता शांत करने की
कोशिश की.
प्रिया के सामने खड़ेबड़े प्रश्न का यह पूरा जवाब नहीं था. वह अभी भी चुपचाप उसी सवालिया निगाह से धीर को देख रही थी.
धीर समझ गया. बोला, ‘‘असल में मेरी संपादक से जब बात हुई तो उन से मैं ने कहा कि इस मामले में लड़की से और उस के मांबाप से बात करनी पड़ सकती है. मेरे साथ संपादकजी का भी मानना है कि लड़की भारत में ही होगी, बहुत मुमकिन है मांबाप के घर में. ऐसे में लड़की, उस के मांबाप से बात करनी होगी, रिपोर्टर हूं और पुरुष भी, हो सकता है लड़की मुझ से बात न करे. कोई महिला रिपोर्टर बात करे तो यह मुमकिन हो सकता है. मैं ने यह भी उन से निवेदन की कि मैं ने सामाजिक या ह्यूमन इंटरैस्ट की खबर कभी नहीं की है, आप किसी महिला रिपोर्टर को ही यह मामला सौंप दीजिए तो ज्यादा अच्छा होगा.’’
‘‘फिर?’’ प्रिया की उत्सुकता जस की तस बनी थी. उस के मन में घुमड़ रहे प्रश्न का अभी तक जवाब नहीं मिला था. धीर अपनी बात को थोड़ा लंबा खींच रहा था. बोला, ‘‘वे कहने लगे औफिस में कोई ऐसी महिला रिपोर्टर है नहीं जो इस तरह की जांचपड़ताल कर सके. जो 2-3 हैं वे फैशन, प्रदर्शनी, सैलिब्रिटीज के इंटरव्यू तक ही सीमित रहती हैं. यह अलग तरह की खोजबीन वाली खबर है. फिर इस में लड़के का परिवार मुझ से परिचित है, इसलिए छपने से पहले यह बाते इधरउधर फैले, यह मैं नहीं चाहता. इसलिए तुम्हें यह मामला सौंपा है.’’
‘‘लेकिन इस में मैं कहां से आ गई?’’ प्रिया के लिए अब बरदाश्त करना मुश्किल हो गया.
‘‘लड़की और उस के मांबाप से बात करने वाला मुद्दा उन के सामने मैं ने फिर से उठाया और कहा कि औफिस से कोई महिला कलीग साथ रहे तो बेहतर होगा. वे तुरंत तैयार हो गए. उन्होंने मेरा सुझव मान लिया, कहा तुम देख लो कौन ठीक रहेगा. मैं कह दूंगा या तुम ही कह देना किसी को,’’ कह कर धीर कुछ देर के लिए चुप हो गया.
प्रिया सारी कहानी समझ गई.
‘‘मैं ने आप का नाम लिया उन से तो वे तैयार हो गए. मुझे लगा कि आप यह काम बेहतर कर सकती हैं,’’ धीर ने अपनी बात खत्म की.
‘‘लेकिन मैं ने कभी रिपोर्टिंग नहीं की है,’’ प्रिया ने कहा.
‘‘मैं ने आप को बताया न कि महिला रिपोर्टर कोई यहां होती तो वे मुझे यह खबर करने को नहीं कहते.’’
प्रिया अभी भी संतुष्ट नहीं थी. वह धीर से इस सवाल का जवाब बेताबी से चाहती थी कि उस के दिमाग में मेरा नाम ही क्यों आया? धीर से उस की इस से पहले कभी बात नहीं हुई थी, फिर उसे अचानक यह इलहाम कैसे हो गया कि मैं काबिल हूं, मैं कर सकती हूं यह काम? बहुत सी लड़कियां हैं ऐडिटोरियल में और दूसरे विभागों में, फिर मैं ही क्यों? लेकिन वह समझ गई कि ये सारे सवाल धीर के लिए समस्या खड़ी कर देंगे. न जाने क्यों वह यह नहीं चाहती थी. वैसे भी धीर का प्रस्ताव सामने आते ही उसे आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई थी. रिपोर्टिंग का मौका मिल रहा है. दिल ने तत्काल हां कह दी. कमबख्त दिमाग परेशान कर रहा था.
‘‘तो आप इस असाइनमैंट के लिए तैयार हैं?’’ अभी प्रिया यह सब सोच ही रही थी कि उसे धीर की आवाज सुनाई दी.
‘‘ठीक है, अगर संपादकजी का आदेश है
तो मैं कैसे मना कर सकती हूं,’’ प्रिया ने अपनी तरफ से सीधे हां या ना में जबाब नहीं दिया, अपनी कोई इच्छा जाहिर नहीं होने दी. संपादक की आड़ ली.
धीर इस की वजह समझ रहा था. पहला परिचय था. ऐसे में कोई भी लड़की इतनी सावधानी बरतती.
लंच अवकाश खत्म हो चुका था. 2-4 लोग लाइब्रेरी में आ गए थे. दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई. दोनों अपनेअपने विभाग में चले गए.
इनवैस्टिगेशन कहां से शुरू करनी है, किस तरह इस पर आगे बढ़ना है, यह योजना धीर को ही बनानी थी. धीर यह जानता था, लेकिन वह किसी भी योजना पर प्रिया की मुहर लगवा कर आगे बढ़ना चाहता था. प्रिया के ईगो को कहीं चोट न पहुंचे, यह भी देखना था उसे.
शाम को औफिस की छुट्टी होने पर प्रिया औफिस में थोड़ी देर के लिए रुक गई. बड़े हाल में अभी भी 15-20 लोग थे. इन में ज्यादातर दूसरी शिफ्ट वाले थे जिन की दोपहर 2 बजे से ड्यूटी शुरू होती है.
धीर के दोनों सहयोगी जा चुके थे. प्रिया अपना बैग ले कर धीर के कैबिन में आ गई. धीर के साथ अकेले उस के कैबिन में बैठने में प्रिया को संकोच तो था, लेकिन किसी तरह की घबराहट नहीं थी. जो काम हो रहा था वह संपादक के संज्ञान में था. उसे धीर की परिपक्वता और पेशेगत ईमानदारी पर भरोसा था. कैबिन की दीवारें शीशे की थीं, यह भी अच्छा था.
विज्ञापन के जरीए इस मामले की जो कुछ जानकारी मिली थी वह यही थी कि किसी ईशा की शादी शिकागो के सुदीप से हुई थी. वे दोनों संपन्न परिवारों से हैं. शादी के कुछ महीने बाद पत्नी ईशा अपने या ससुराल के दिए गहनों को ले कर बगैर ससुराल वालों को बताए गायब हो गई. उस के चले जाने के बाद उस के पति सुदीप ने उस के भागने और उस से संबंध खत्म करने के बारे में अखबार में नोटिस दिया है. उन दोनों मियांबीवी के बीच में कोई कानूनी मसला भी है या नहीं, इस की जानकारी दोनों के पास नहीं थी.
ईशा और सुदीप की शादी टूटी यह कोई बड़ी बात नहीं है, शादियां टूटती रहती हैं. बड़ा सवाल यह है कि ईशा आखिर भागी क्यों? शादी नहीं टिकी तो तलाक ले सकती थी. क्या वहां ससुराल में उसे प्रताडि़त किया जा रहा था? वहां घर से निकलने पर पाबंदी थी और मौका मिला तो भाग गई? फिर वहां से भागी तो गई कहां? दिल्ली अपने मायके या कहीं और गहनों के साथ भागने का संबंध कहीं धोखाधड़ी और ठगी से तो नहीं जुड़ा है? यानी गहने और पैसा लूटने के लिए ही उस ने शादी की और फिर मौका देख कर फरार हो गई. अगर यह धोखाधड़ी का मामला है तो क्या उस के घर वाले भी इस में शामिल हैं. ऐसी कई खबरें पहले भी आ चुकी हैं या फिर शिकागो में किसी और से चक्कर चला और ईशा उस के साथ भाग गई?
इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना आसान नहीं था. दोनों के सामने मुश्किल यह थी कि इन में से कोई भी संभावना सही हो सकती है. धीर समझ रहा था भावी तहकीकात इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने से ही संबंधित है.
‘‘गनीमत यह है प्रिया कि दिल्ली का एक पता हमारे पास है. इस के सहारे हम खोजबीन शुरू कर सकते हैं वरना शिकागो जाना पड़ता. शिकागो तो छोडि़ए, संपादकजी कैलाश कालोनी तक का टैक्सी का पैसा देने को तैयार न हों,’’ कहने के साथ धीर हंसा. प्रिया भी मुसकराई.
‘‘हालांकि मुझे आश्चर्य यह भी है कि पति ने अपनी पत्नी का नाम लिख कर उसे तो सार्वजनिक तौर पर बदनाम किया ही, उस के घर का पता दे कर उस के परिवार के इज्जत की भी बखिया उधेड़ दीं. मुझे लगता है कि ऐसा जानबूझ कर किया गया है. सवाल यह भी है आखिर इतनी नफरत क्यों है लड़के और उस के घर वालों को?’’ प्रिया ने कहा.
धीर को भी यह कुछ अजीब लगा. सच में इस तरह का काम तो कोई जलाभुना, बुरी तरह विक्षिप्त पति ही कर सकता है.
ईशा के घर का पता एक बड़ी लीड थी और दोनों ने यह तय किया कि पहले वे ईशा के यहां जाएंगे. खोजबीन की शुरुआत वहीं से हो सकती है.
दूसरे दिन सुबह 10 बजे धीर और प्रिया कैलाश कालोनी में खोजते हुए रोमेश की कोठी पहुंच गए. कैलाश कालोनी की एक चौड़ी सी लेन के आखिरी कोने पर रोमेश की कोठी थी. दरवाजे पर विशालकाए गेट. बाहर सड़क पर 3 गाडि़यां खड़ी थीं. सभी महंगी. ढाई मंजिल की इस कोठी की निचली मंजिल रोमेश ने किराए पर दे रखी थी. पहली मंजिल पर वे खुद परिवार के साथ रहते थे. सब से ऊपर बरसाती, 1 कमरा और 1 बाथरूम.
प्रिया थोड़ी सहमी थी. धीर ने उसे आश्वस्त किया. रोमेश के घर के दरवाजे पर पहुंच कर धीर ने दरवाजे पर लगी घंटी का बटन दबाया. थोड़ी देर में ही दरवाजा खुल गया, जिन्होंने दरवाजा खोला उन की 50-55 की उम्र रही होगी.
‘‘कहिए. किस से मिलना है?’’
‘‘जी रोमेशजी से,’’ धीर ने कहा.
‘‘मैं ही हूं रोमेश बताइए?’’
रोमेश इस तरह दरवाजे पर ही मिल जाएंगे, यह दोनों ने नहीं सोचा था.
‘‘जी हम दोनों ‘द पब्लिक फोरम’ मैगजीन से हैं. रिपोर्टर हैं. ‘टाइम्स औफ इंडिया’ में एक नोटिस छपा है कि आप की बेटी अमेरिका से आभूषण ले कर लापता है,उस सिलसिले में खोजबीन करने आए हैं,’’ झटके से उबरते ही धीर ने बगैर किसी संकोच के कहा.
रोमेश यह सुनते ही उत्तेजित हो गए, ‘‘पहली बात तो यह है कि मेरी बेटी घर में ही है. कहीं लापता नहीं है. दूसरे हम इस बारे में आप लोगों से कोई बात नहीं करना चाहते हैं. आप को खोजबीन के लिए किस ने कहा?’’
धीर यह जवाब सुनने के लिए पहले से तैयार था. उस ने थोड़ा कड़े शब्दों में कहा, ‘‘देखिए आप नहीं बात कीजिएगा तो हम शिकागो में सुदीप और उन के परिवार वालों से बात कर लेंगे. हम तो स्टोरी देंगे ही. आप का पक्ष नहीं जाएगा. लिख देंगे आप ने जानबूझ कर बात करने से मना कर दिया.’’
यह सुनते ही रोमेश के आत्मविश्वास को झटका लगा. चेहरे पर हलकी सी परेशानी नजर आई. थोड़ी देर दरवाजे पर खड़े सोचते रहे. फिर उन्होंने दरवाजा पूरा खोल दिया, ‘‘आइए…’’
भीतर ले जा कर उन्होंने प्रिया और धीर को ड्राइंगरूम में बैठाया. ड्राइंगरूम की सजावट और वहां रखे कीमती समान को देख कर दोनों समझ गए रोमेश पैसे वाले हैं. दोनों को बैठा कर वे भीतर गए. 5 मिनट बाद वापस आए. शायद वे इस नई मुसीबत के बारे में पत्नी और परिवार के दूसरे सदस्यों से सलाह करने गए थे.
‘‘क्या पूछना चाहते हैं आप लोग?’’
‘‘बस 1-2 सवाल. जैसे यह नोटिस अखबार में क्यों दिया गया है? आप की बेटी ईशा घर में है या नहीं है? अगर है तो वह शिकागो से बगैर किसी को बताए कैसे चली आई? क्या संदीप ने यह विज्ञापन गलत दिया है?’’
‘‘ईशा घर में ही है. वह कहीं नहीं गई थी. वह कभी गायब नहीं थी. विज्ञापन में जो कुछ है वह सरासर झठ है,’’ रोमेश ने उसी तरह सख्त स्वर में कहा.
दोनों को आश्चर्य हुआ लेकिन उन्होंने चेहरे से इसे जाहिर नहीं किया.
‘‘फिर सुदीप की तरफ से नोटिस क्यों छपवाया गया?’’
‘‘यह तो आप उन्हीं से पूछिए, हम नहीं जानते क्यों नोटिस दिया गया,’’ रोमेश का चेहरा निर्विकार था.
थोड़ी देर किसी ने कुछ नहीं कहा. वैसे धीर जानता था रोमेश बोलेंगे. उस का अंदाजा सही निकला.
‘‘ईशा को 10 मई को शिकागो जाना था. उन लोगों को हवाईजहाज के टिकट का इंतजाम करना था. शिकागो से यहां टिकट भेजना था. उन्होंने टिकट तो भेजा नहीं उलटे यह नोटिस छपवा दिया,’’ रोमेश ने कहा.
‘‘ऐसा कैसे कर सकते हैं वे?’’
‘‘यह भी आप उन्हीं लोगों से पूछिए. मैं क्या बता सकता हूं. मेरा इतना पैसा शादी में खर्च हुआ. मेरी बेटी की जिंदगी भी खराब हुई.’’
धीर समझ गया रोमेश पूरा सच नहीं बोल रहे हैं.
‘‘नोटिस में आरोप है कि ईशा उन लोगों के जेवरात के साथ गायब है?’’
‘‘सरासर झठ है यह. ईशा वही गहने ले कर आई है जो शादीशुदा लड़कियां हमेशा पहने रहती हैं जैसे दोनों हाथों के कंगन, गले का हार, कानों की बालियां. बाकी अपने सारे गहने वह शिकागो छोड़ कर आई है.’’
रोमेश की बातों ने मामले को और उलझ दिया था. यह मामला अब पेचीदा बन चुका था. धीर ने एकाध सवाल और किया, फिर दोनों ने रोमेश से विदा ली.
पूरी बातचीत में प्रिया चुप रही. रोमेश के यहां से बाहर निकलते ही प्रिया धीर से बोली, ‘‘एक बात समझ में नहीं आ रही है. लड़की घर में है. रोमेश की बात से लग रहा है कि वह राजीखुशी यहां आई है. फिर नोटिस में भागने की बात क्यों कही गई है? ईशा या उसके पति के बीच मान लीजिए अनबन हुई, ईशा को वापस आना पड़ा तो भागने व गहनों की चोरी की बात नोटिस में क्यों दी गई?’’
‘‘पेंच तो यही है. फिर रोमेश कह रहे हैं कि ईशा की ससुराल वालों ने ही शिकागो से उसे दिल्ली भेजा, 10 मई को शिकागो वापसी के लिए वे टिकट भेजने वाले भी थे. इन की बात से तो यही समझ जा सकता है कि ईशा शिकागो से भागी नहीं है. वैसे भी पहली बार अमेरिका पहुंची किसी लड़की के लिए वहां से भागना आसान नही है,’’ धीर कुछ सोचते हुए बोला.
‘‘लेकिन यह भी तो हो सकता है शादी के बाद गहनों और दूसरे सामान को हड़पने के लिए ईशा और उस के घर वालों ने यह खेल खेला हो,’’ प्रिया ने शंका जाहिर की.
‘‘मुझे नहीं लगता थोड़े से गहनों के लिए इतनी बदनामी कोई लड़की का बाप या उस के घर वाले लेंगे? जबकि रोमेश खुद काफी संपन्न दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में सुदीप धोखाधड़ी का केस नहीं करता, अपने नोटिस में इस केस का हवाला नहीं देता, नोटिस को सनसनीखेज नहीं बनाता. मामला कुछ और है.’’
‘‘रोमेश से सच तो मिलेगा नहीं. किसी तीसरे को ढूंढ़ना पड़ेगा,’’ प्रिया ने कहा.
‘‘जैसे?’’
‘‘जैसे संदीप का यहां कोई रिश्तेदार हो, रोमेश का निकट संबंधी या फिर दोनों परिवारों का कौमन दोस्त मिले तो सही जानकारी सामने आ सकती है.’’
धीर ने चौंक कर प्रिया की तरफ देखा. उस की आंखों में प्रिया को ले कर प्रशंसा के भाव थे.
बोला, ‘‘सही कह रही हो.’’
उधर प्रिया भी रोमेश के यहां जो कुछ हुआ उस से वह धीर से प्रभावित हुई थी. उसे लगा कि रोमेश के साथ हुए पूरे वार्त्तालाप में धीर ने अपनी पकड़ बनाए रखी थी. उन की धमकी से डरा नहीं. उन्हें बात करने पर मजबूर किया. उसे यह भी अच्छा लगा कि साथ बाहर निकलते ही धीर ‘आप’ की जगह ‘तुम’ पर आ गया.
सुदीप के घर वालों से बात करने के लिए शिकागो में बैठे उस के परिवार से कैसे संपर्क किया जाए, यह दोनों की समझ में नहीं आ रहा था. थोड़ी देर चुपचाप दोनों सड़क पर चलते रहे. धीर जिस तरह चिंतन में लगा था उस में प्रिया ने उसे टोकना उचित नहीं समझ.
अचानक धीर ठिठक कर रुक गया. प्रिया ने उस की आंखों में चमक देखी. समझ गई वह किसी नतीजे पर पहुंच गया है. धीर ने पिछली पौकेट में रखे अपने पर्स से टाइम्स का विज्ञापन निकाला. संभव है यह विज्ञापन दिल्ली में छपने के लिए अमेरिका से सुदीप ने नहीं भेजा हो. यदि ऐसा हुआ है तो दिल्ली में यह विज्ञापन जिस ने भी दिया होगा उस का पता मिलना मुश्किल नहीं है. विज्ञापन में पता होगा या फिर अखबार के विज्ञापन विभाग से विज्ञापनकर्ता का पता मिल जाएगा.
अखबार में छपवाए गए नोटिस को धीर ने एक बार फिर ध्यान से देखा. एक कोने में नीचे एक मोबाइल नंबर था. यह नंबर दिल्ली का ही लग रहा था. उसे लगा इस नंबर को मिलाया जाए. फिर और कोई चारा भी नहीं था. उस ने प्रिया को बताया. प्रिया उछल पड़ी. अंधेरे में हलकी रोशनी मिल गई.
धीर ने प्रिया को अपने मोबाइल से उस नंबर को मिलाने को कहा.
‘‘लोग लड़कियों से बात करने में थोड़ा लिहाज करते हैं. मना करना भी होगा तो दो टूक मना नहीं करेंगे,’’ धीर ने तर्क दे कर उस की हिम्मत बंधाई तो प्रिया तैयार हो गई.
प्रिया ने फोन मिलाया. थोड़ी देर तक घंटी बजने की आवाज सुनती रही. फिर किसी ने उधर से फोन उठा लिया. उस ने धीर की तरफ देखा. धीर ने अंगूठे के इशारे से बैकअप किया.
‘‘हैलो. कौन बोल रहा है?’’ उधर से आवाज आई, ‘‘जी मैं प्रिया बोल रही हूं, द पब्लिक फोरम मैगजीन से,’’ इस के बाद प्रिया ने जिस तरह फोन पर बात की धीर समझ गया तीर सही निशाने पर लग गया है.
प्रिया करीब 5 मिनट तक बात करती रही. बातचीत के बीच में उस ने पर्स से पेन निकाल हथेली पर कुछ नोट भी किया. उस के चेहरे पर खुशी थी. बातचीत में सफलता उसे मिल गई थी.
‘‘यह फोन नबंर सुदीप के फूफाजी का था. सुरेश थे ये,’’ फोन कटते ही प्रिया ने धीर को बताया, ‘‘इन्होंने इस शादी में मध्यस्थता की थी. इन का कहना है कि सुदीप के साथ धोखा हुआ है. यह भी कि रोमेश गलत कह रहे हैं कि ईशा को चूंकि टिकट नहीं भेजा गया इसलिए शिकागो नहीं गई. वे मिल कर बात करने को तैयार है. उन का ग्रीन पार्क में हौंडा मोटर साइकिल का शोरूम है. पता लिखवाया है. कल बुलाया है,’’ एक सुर में धड़ाधड़ प्रिया धीर को सबकुछ बताती रही. हथेली पर उस ने सुरेश के शोरूम का पता नोट किया था. प्रिया को इस रिपोर्टिंग में मजा आने लगा था. रूटीन से हट कर धीर के साथ एक नई दुनिया देखने को मिल रही थी, एक अलग अनुभव. उस का आत्मविश्वास बढ़ रहा था.
सुरेश से मिलना बेहद जरूरी है, दोनों यह समझ रहे थे. लेकिन दिन के 2 बज गए थे. सुबह उन्होंने औफिस में हाजिरी नहीं लगाई थी. इसलिए सुरेश की मुलाकात को धीर ने दूसरे दिन के लिए टाल दिया. उन्हें फिर से फोन कर प्रिया ने अगले दिन का समय ले लिया.
उस रोज सुबह से ही आसमान को काले बादलों ने ढक लिया था. अभी बारिश नहीं हुई थी, अंधेरा छा गया था, ठंडी हवाओं ने मौसम को काफी खुशनुमा बना दिया था. मौसम के बदले रुख को देख प्रिया और धीर ने औफिस 9 बजे ही छोड़ दिया. सुरेश ने उन्हें दोपहर 12 बजे का समय दिया था. लेकिन डर यह था कहीं बारिश न शुरू हो जाए. ग्रीन पार्क उन के औफिस से दूर था. जब वे ग्रीन पार्क पहुंचे तो उस समय उन के पास काफी समय था. थ्रीव्हीलर से उतर कर उन्होंने इधरउधर टहलना शुरू किया. मौसम अच्छा था. अच्छे मौसम में इस तरह की चहलकदमी ट्रैफिक के शोरशराबे के बावजूद अच्छी लग रही थी.
दोनों जब सुरेश के शोरूम पर पहुंचे उस समय हलकीहलकी बूंदें पड़ने लगी थीं. सुरेश शोरूम में मिल गए. उन दोनों का इंतजार कर रहे थे. दोनों ने अपना परिचय दिया. सुरेश ने गरमजोशी से दोनों का स्वागत किया, तुरंत चाय मंगाई.
धीर ने अभी 1-2 शुरुआती सवाल पूछे ही थे कि सुरेश अपनी तरफ से शुरू हो गए. वे पहले से भरे पड़े थे, किसी से मिल कर सबकुछ बताने के लिए बैचेन थे. उधर बाहर तेज बारिश शुरू हो गई थी.
‘‘सुदीप का मैं सगा फूफा हूं. लड़की के पिता रोमेश के परिवार से भी मेरा पुराना परिचय है. हालांकि दोनों परिवारों का परिचय शादी के विज्ञापन के जरीए हुआ था. फिर मुझे दोनों पार्टियों ने शादी में मध्यस्थ बना दिया. सच पूछिए तो पागल कुत्ते ने काट लिया था मुझे.’’
धीर और प्रिया ने ठहाका लगाया. माहौल कुछ हलका हुआ.
सुरेश ने एक नई जानकारी दोनों को दी, ‘‘प्रिया को 10 मई को न्यूयौर्क और फिर वहां से शिकागो जाना था. टिकटें रोमेश को भेज दिए गए थे. उन्हें टिकटे मिल गए थे. प्रिया को वहां कैसे और किस तरह पहुंचना है, यह सब जानकारी देने के लिए 2 दिन पहले 8 मई को सुदीप की मां ने शिकागो से रोमेश को फोन किया. फोन पर रोमेश घबराए हुए थे. सुदीप की मां ने जब उन से उन की घबराहट की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि ईशा घर से गायब है. वह घर पर नहीं है. इसलिए वह 11 मई को न्यूयार्क नहीं पहुंच रही है. सुदीप की मां ने उन से पूछा भी कि ईशाकहां गई है और कैसे गई है, लेकिन रोमेश इस का ठीक से जवाब नहीं दे पाए.’’
मामला दिलचस्प और रहस्यमय बनता जा रहा था. पर यह समझ में नहीं आ रहा था कि रोमेश ने कैसे अपनी बेटी के गायब होने की बात सीधे उस के ससुराल वालों को बता दी? कोई दूसरा बहाना बना सकते थे. शायद उस समय इतना घबरा रहे होंगे कि मुंह से सच निकल गया, धीर इस नतीजे पर पहुंचा.
ईशा के बारे में उस के पिता से यह सब सुनने के बाद सुदीप के घर वालों के होश उड़ गए. घबराई हुई सुदीप की मां ने दूसरे दिन मुझे फोन किया. सारी बात बताई और कहा कि रोमेश से मिल कर मैं बहू के बारे में पता लगाऊं. मैं रोमेश के यहां गया. 11 मई की यह बात है. रोमेश उदास थे. निहायत शालीनता से उन्होंने बात की. यह बताया कि ईशा तो 7 मई से घर में नहीं है. कहां गई है उन्हें नहीं पता. अपनी बेटी की इस करतूत पर उन्होंने शर्मिंदगी भी जाहिर की.
सुरेश ने थोड़ा गंभीर हो गए, ‘‘उन की बात सुनने के बाद मुझे 2 चीजें अजीब लगी.’’
पहली यह कि 4 दिन बीत जाने के बाद भी रोमेश ने अपनी लड़की के गायब होने की पुलिस में रिपार्ट नहीं लिखाई. दूसरी, ये सब जब बता रहे थे तो उन के चेहरे पर उदासी थी, वे लज्जित थे, लेकिन जवान बेटी के इस तरह से गायब हो जाने के बावजूद मुझे कहीं से कोई घबराहट नजर नहीं आई. ऐसा कैसे हो सकता है? जिस की बेटी गायब हो वह इतना संयत दिखे? मेरे दिमाग में बारबार यह सवाल चोट पहुंचा रहा था. इस के बाद मैं ईशा की खबर लेने उन के घर 2-3 बार गया तो उन का व्यवहार बदला नजर आया. काफी रुखे लहजे में बात करने लगे थे.’’
‘‘जबरन की गई शादी तो नहीं थी यह. यानी ईशा की मरजी के खिलाफ यह शादी की गई हो और यहां आने के बाद वह शिकागो वापस जाना नहीं चाहती हो?’’ धीर ने पूछा.
‘‘ऐसा तो कभी नहीं लगा. शादी और उस के पहले संगीत पार्टी वगैरह की जो भी रस्में हुई उन में वह हमेशा खुश दिखाई दी, हर रस्म उस ने खुशीखुशी की,’’ फिर जैसे सुरेश को कुछ याद आया,’’ शादी और विदाई का पूरा वीडियो मेरे ही पास है. शाम को मेरे घर आइएगा, मैं दिखाता हूं. आप लोगों को खुद पता चल जाएगा कि ईशा की शादी जोरजबरदस्ती हुई थी या उस की सहमति से.’’
धीर ने प्रिया को देखा. रात में जाने की समस्या उसे ही हो सकती थी.
‘‘ठीक है आप घर का पता दे दीजिए. हम लोग शाम को आ जाएंगे,’’ प्रिया ने तुरंत कहा.
शोरूम से बाहर निकलते ही प्रिया ने धीर की तरफ देखा. कई चीजें भीतर घुमड़ रही थीं. लेकिन वह पहले धीर की राय जानना चाहती थी.
‘‘यह तो साफ है कि रोमेश झठ बोल रहे थे. टिकट न भेजने वाली दलील बकवास है. अब सवाल यह है कि ईशा टिकट आने के बाद भी शिकागो वापस क्यों नहीं लौटी? दूसरे क्या वाकई अपने घर से गायब हुई थी और गायब हुई थी तो क्यों? घर से गई थी तो कहां गई थी?’’ धीर ने कहा.
प्रिया ने कुछ नहीं कहा. वह खुद भी कुछ हद तक इसी नतीजे पर पहुंची थी. वह यह भी समझ रही थी कि इन कडि़यों को सुलझना आसान नहीं है.
‘‘यार भूख लगी है. कुछ खाओगी?’’ धीर ने पूछा.
प्रिया ने ‘हां’ कहने में देर नहीं लगाई. दोनों ही ग्रीन पार्क में एक दक्षिण भारतीय रेस्तरां गए. ढोसा और लैमन राइस मंगाए. कोल्ड कौफी पी. तृप्त हो कर जब रेस्तरां के बाहर निकले तो दोनों के सामने समस्या अब यह थी कि सुरेश के यहां जाने स पहले शाम 6 बजे तक का समय वे कहां बिताएं. दफ्तर जाने का कोई मतलब नहीं था. सुबह हाजिरी लगा चुके थे.
‘‘आईपैक्स में फोटो प्रदर्शनी लगी है वहां चले?’’ धीर ने सुझव दिया.
प्रिया ने इसे भी तुरंत स्वीकार कर लिया. धीर का साथ उसे अच्छा लग रहा था. प्रदर्शनी में उन्होंने काफी समय बिताया. कुछ फोटो को ले कर बहस भी हुई. प्रिया अब धीर से पूरी तरह खुल चुकी थी. धीर हैरान था. क्या यह वही लड़की है जो औफिस में अपने में एकदम गुमसुम रहती थी?
शाम 6 बजे सुरेश के बताए पते पर जब वे पुरानी दिल्ली उन के घर पहुंचे तो दोनों ही भीतर से ताजगी महसूस कर रहे थे. सुरेश के पास दिल्ली में हुई शादी की वीडियो, तसवीरों के अलावा शिकागो में एक पांचसितारा होटल में लड़के वालों की तरफ से आयोजित शादी की रिशैप्शन की तसवीरें भी थीं. वीडियो में कई जगह ईशा पति, सासससुर, मेहमानों के साथ हंसती और ठहाके लगाते दिखाई दी. खुशीखुशी से बाकायादा पोज दे कर फोटो खिंचवाए थे उस ने. कहीं यह नहीं लग रहा कि वह उदास है या उस के साथ किसी तरह जोरजबरदस्ती हुई है.
जयमाला व शादी की अन्य रस्मों, हर जगह उस का मुसकराता चेहरा दिखा. सहेलियों,बहनों के साथ ठिठोली करती, ठहाके लगाती ईशा की अलबम में कई तसवीरें थीं.
‘‘मेरी कुछ दिन पहले ही शिकागो में सुदीप के मांबाप से बात हुई है. उन्होंने बताया कि शिकागो में ईशा 6 महीने रही. इस दौरान एकदम सामान्य थी, सुदीप के साथ कई पार्टियों में खुशीखुशी गई. भारत आने के पहले सुदीप के साथ जम कर शौपिंग की, अपने घर वालों के लिए कई चीजें खरीदीं,’’ सुरेश ने बताया.
इन तसवीरों को देख कर धीर के मन में एक नया शक पैदा हुआ. ईशा के शिकागो वापस न जाने की एक वजह सुदीप ही तो नहीं है, कहीं सुदीप में किसी तरह का दोष हो, कोई कमी हो जिसे शादी के बाद बिस्तर पर समझने और महसूस करने के बाद ईशा का मन उस से उचट गया हो. लेकिन अगर ऐसा कुछ रहा होता तो ईशा ने एक हफ्ते में ही वह कमी ढूंढ़ ली होगी, फिर शिकागो में इतने दिन सामान्य रहने और हंसीखुशी सुदीप के साथ पार्टियों में जाने का नाटक नहीं करती, न ही रोमेश को ये सब झठ बोलने की जरूरत थी.
दोनों जब सुरेश के घर से निकले तो शाम के 7 बज चुके थे. धीर ने रेस्तरां में चाय पीने के साथ सभी राय करने का प्रस्ताव रखा. प्रिया रुकना तो चाहती थी पर उस की अपनी मजबूरी थी. बोली, ‘‘दफ्तर के समय के बाद इतनी देर तक कभी बाहर नहीं रही. मां सख्त हैं और कई तरह के सवाल पूछने लगेंगी. लड़कियों की अलग मजबूरी होती है.’’
यह सुनने के बाद धीर ने फिर उसे रुकने के लिए नहीं कहा.
रात में बिस्तर पर लेटेलेटे धीर ने अभी तक जो कुछ जानकारी मिली, उस का विश्लेषण शुरू किया. इस जानकारी के बावजूद यह समझना मुश्किल था कि टिकट मिलने के बावजूद ईशा वापस क्यों नहीं गई? अपने साथ 2 परिवारों के सम्मान को क्यों दांव पर लगा दिया? फिर उस के पति ने इस तरह का घटिया सार्वजनिक विज्ञापन क्यों दिया?
धीर को लगा उसे रोमेश के घर एक बार फिर जाना चाहिए. वही एक मजबूत स्रोत है. उसे लग रहा था कुछ बातें उन्होंने अभी नहीं बताई हैं. स्टोरी फाइल करने से पहले ईशा से भी मिलना होगा. बात करने से सामने मना कर दे तो भी. बात करने को तैयार हो गई तब तो और भी अच्छा है. हालांकि दूसरी संभावना पर उसे शक था. -क्रमश:
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