Multistorey Society Management में ऐक्टिव होने के फायदे व नुकसान

Multistorey Society Management: आजकल शहरों में मल्टीस्टोरी सोसाइटीज का चलन है. एकल परिवारों में जहां पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं या फिर बच्चों के सैटल हो जाने के बाद जब दंपत्ति अकेले रह जाते हैं तो फ्लैट में रहना ही आजकल सुरक्षित माना जाता है. यहां पर सुरक्षा के साथ दैनिक जीवन के लिए उपयोगी पानी, बिजली जैसी समस्यायों का समाधान भी बहुत आसानी से हो जाती है.

अधिकांश सोसाइटीज को शुरुआत में बिल्डर के द्वारा और जब बिल्डर का काम पूरा हो जाता है तब सोसाइटी निवासियों द्वारा चुनी गई सोसाइटी के द्वारा चलाया जाता है. यहां के निवासियों द्वारा चुनी गई इस सोसाइटी में अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव जैसे अनेक पदाधिकारियों समेत लगभग 15-20 सदस्य होते हैं. सोसाइटी का चुनाव लोकल प्रशासन द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों की निगरानी में बिलकुल उसी तरह कराया जाता है जिस तरह देश के विविध चुनाव होते हैं. कुल मतों की गणना के बाद रिजल्ट घोषित कर दिया जाता है. हालांकि यह सभी काम प्रशासनिक ढंग से किए जाते हैं पर सोसाइटी के सभी सदस्य सोसाइटी के हित में बिना कोई वेतन लिए कार्य करते हैं. यहां जो भी सदस्य इंगेज रहते हैं उन्हें कुछ लाभ भी होते हैं तो कुछ हानियां भी.

आइए, जानते हैं कि इन लोगों को क्या फायदे और नुकसान होते हैं :

फायदे

पावर और सम्मान : मैनेजमेंट में इंगेज रहने वाले लोगों को सोसाइटी में सम्मान की नजरों से देखा जाता है. रहवासी से ले कर सोसाइटी में काम करने वाले वर्कर्स भी इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, जिस से ये एक प्रकार से सोसाइटी में विशिष्ट प्राणी का दर्जा प्राप्त करते हैं.

आर्थिक लाभ : अधिकांश सोसाइटीज में मैनेजमेंट में इंगेज होने को ले कर झगड़ाफसाद होता रहता है. एक बार चुनी हुई सोसाइटी यदि दोबारा नहीं जीतती तो वह नई सोसाइटी पर आरोप लगाना शुरू कर देती है और फिर यह आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला पूरी सोसाइटी के वातावरण को खराब कर देता है. इस का कारण सोसाइटी से होने वाली असीमित आय होती है, जिस में हेरफेर कर के सोसाइटी के चुने सदस्य आर्थिक लाभ प्राप्त करते हैं. इस के अतिरिक्त सोसाइटी में करवाए जाने वाले विभिन्न कार्यों और खरीद में भी विभिन्न संस्थाओं से भी कमीशन ले कर आर्थिक लाभ लिया जाता है.

इनडाइरैक्ट पर्क्स

सोसाइटी के प्रत्येक कार्य के लिए रेट्स निर्धारित होते हैं ताकि सोसाइटी के रहवासी एक राशि दे कर अपना काम करवा सकें. पर मैनेजमेंट में ऐक्टिव सदस्य बालकनी व गार्डन की देखभाल से ले कर नल, बिजली ठीक करवाने जैसे अनेक छोटेछोटे कार्यों को सोसाइटी के वर्कर्स से बिना कोई राशि दिए करवाते हैं. इस प्रकार के अनेक अप्रत्यक्ष पर्क्स वे खुदबखुद प्राप्त कर लेते हैं.

प्रशासन से पहचान : सोसाइटी के कार्यों के चलते मैनेजमेंट के लोगों को नगर निगम और प्रशासन के विभिन अधिकारियों और महापौर जैसे राजनीतिक लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है, जिन से उन के संबंध काफी अच्छे हो जाते हैं, जो बाद में उन के व्यक्तिगत कार्यों को करवाने में भी मददगार साबित होते हैं.

फिटनैस में लाभ : एक मल्टीस्टोरी सोसाइटी के सचिव चुने जाने से पूर्व कुणाल अनेक शारीरिक समस्याओं से ग्रस्त रहते थे पर सचिव बनने के बाद वे पूरे दिन सोसाइटी की विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं जिस से अनेक लोगों से मिलनेजुलने के साथसाथ मूविंग भी होती है. इस तरह सचिव बनना उन के लिए काफी लाभदायक रहा है.

नुकसान

सोसाइटी में इंगेज होने के यदि फायदे हैं, तो नुकसान भी कुछ कम नहीं हैं :

समय का अभाव : विनय जब से अपनी सोसाइटी के अध्यक्ष चुने गए हैं उन के घर में अकसर कलह की स्थिति बन जाती है क्योंकि पहले जहां वे घर के अधिकांश कार्यों में अपनी पत्नी की मदद करते थे अब उन का ज्यादातर समय सोसाइटी के कार्यों में चला जाता है, जिस से वे अपने घर में जरा भी समय नहीं दे पाते. यही नहीं, पहले जहां वे अपने समय का सदुपयोग सिंगिंग कर के करते थे, अध्यक्ष बनने के बाद अब वे अपने इस शौक को भूल से गए हैं.

जिम्मेदारी का बोझ : रंजना पर अपनी सोसाइटी के कल्चरल गतिविधियों को संचालित कराने का दायित्व है. वे कहतीं हैं,”लगभग 500 परिवारों की सोसाइटी में प्रत्येक त्योहार पर प्रोग्राम को भलीभांति संपादित कराना बहुत कठिन कार्य होता है. भाग लेने वाले प्रतिभागियों से ले कर आयोजनकर्ता संस्थाओं से तालमेल बैठाना बहुत बड़ी चुनौती होती है, इसलिए जब तक यह संपन्न नहीं होती तब तक शांति नहीं मिलती.”

बुराई मिलना : एक कहावत है कि आप अच्छा करो या बुरा करो लोगों का काम है कहना… यह सोसाइटी के पदाधिकारियों पर एकदम सटीक बैठती है. एक चुनी गई सोसाइटी के सदस्य रमेश कहते हैं,”हम ने सोसाइटी में ऐक्युप्रेशर पार्क बनाना तय किया जिसे कुछ लोगों ने बहुत पसंद किया, तो वहीं कुछ लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया. अब सब को तो संतुष्ट नहीं किया जा सकता और यदि सब को संतुष्ट करने की कोशिश की तो विकास नहीं किया जा सकता. इसलिए हम अपनी खाल को थोड़ा मोटा कर के बुराईभलाई का चिंता किए बगैर केवल विकास पर जोर देते हैं.”

तनाव और दबाब : सोसाइटी में यदि आप ऐक्टिव हैं और किसी अच्छे पद पर हैं तो सोसाइटी के हित में कई बार कठोर ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं, जो आमतौर में लोगों को पसंद नहीं आते जिस से अकसर बहुत तनाव हो जाता है. यही नहीं, इस से कई बार कुछ लोग बीपी व शुगर आदि जैसी बीमारियों के शिकार भी हो जाते हैं.

निजी जीवन पर दुष्प्रभाव : सोसाइटी में इंगेज होने के बाद आप एक पब्लिक फिगर बन जाते हैं, जिस से आप का निजी जीवन प्रभावित होने लगता है.

इस बारे में एक मल्टीस्टोरी सोसाइटी के अध्यक्ष अजय कहते हैं,”कभी सफाई वाले नहीं आए, कभी किसी फ्लैट में आग लग गई, कभी किसी ने पानी नहीं चलाया या फिर कभी किसी फ्लैट में किराए पर रहने वाले स्टूडैंट आपस में लड़ाई कर ली जैसे अनेक इश्यूज के आने का कोई समय नहीं होता और इन्हें तुरंत ही सुलझाना पड़ता है. इस सब से निजी जिंदगी पर असर तो पड़ता ही है.”

कुल मिला कर यदि आप ऐक्टिव हैं, रचनात्मक प्रतिभा के धनी हैं, नेतृत्व क्षमता रखते हैं और समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो सोसाइटी के मैनेजमेंट में इंगेज हो सकते हैं.

Multistorey Society Management

Family Relationships: सासूमां- यह रिश्ता है अनमोल

Family Relationships: रोनित और नेहा 2 साल पहले शादी के पवित्र बंधन में बंधे थे. इस रिश्ते से न केवल वे दोनों खुश थे, बल्कि उन के परिवारजन भी प्रसन्न थे. कारण यह था कि वे एकदूसरे को तो पसंद करते ही थे, साथ ही दोनों परिवारों के अन्य सदस्य भी एकदूसरे का सम्मान करते थे. विशेषकर, अपनीअपनी सासूमां के साथ उन का अच्छा तालमेल था. आदर और सम्मान के साथसाथ उन में हंसीमजाक भी होता था.

दरअसल, जिस रिश्ते में अपनापन और दोस्ती का भाव होता है, वहां घर में प्रेम और सामंजस्य अपनेआप बढ़ जाता है. इन में सब से महत्त्वपूर्ण रिश्ता उभर कर सामने आता है, पत्नी और पति की मां का.

सास है, हिटलर नहीं

अकसर कुछ लड़कियां पति की मां का नाम सुनते ही माथा पकड़ लेती हैं, क्योंकि उन के मन में सास की छवि हिटलर जैसी बनी होती है. लेकिन यह उचित नहीं है. पति की मां को जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानना चाहिए. उन्हें सम्मान देना और उन की राय का आदर करना रिश्ते की नींव को मजबूत करता है. यह रिश्ता बहू को ससुराल में भी मायके जैसी सहजता का अनुभव कराता है. बातचीत में विनम्रता और अपनापन होगा तो यह रिश्ता गहरी दोस्ती जैसा बन जाएगा.

जरूरी है कि समयसमय पर उन की सेहत, पसंद और अनुभवों के बारे में उन से बात करें. इस से उन्हें महसूस होगा कि आप उन्हें दिल से मानते हैं. घर के छोटेछोटे कामों में उन की मदद करना या किसी नए कार्य में उन की राय लेना, त्योहारों और पारिवारिक अवसरों पर उन के साथ समय बिताना, ये सब रिश्ते में मिठास घोलते हैं.

ऐसे बनाएं दोस्त

यदि उन्हें किसी चीज (जैसे भोजन, संगीत या पार्टी) में विशेष रुचि है, तो उस में दिलचस्पी दिखाने से आप जल्दी जुड़ सकती हैं. कभीकभी उन के साथ शौपिंग पर जाना और इसे पर्सनल डेट का नाम देना भी रिश्ते को और गहरा बना देता है.

छोटेछोटे कदम रिश्ते को गहराई देते हैं. यह भी सच है कि हर रिश्ता हमेशा सहज और प्रेमपूर्ण नहीं रहता. कभीकभी टकराव भी आ सकता है. लेकिन विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और सम्मान बनाए रखना चाहिए. इस से रिश्ते में कड़वाहट नहीं आती और रिश्ता औपचारिकता से ऊपर उठ कर दोस्ती और परिवार का मजबूत बंधन बन जाता है.

अब यदि बात पत्नी की मां यानि अपनी सास की करें, तो उन्हें भी मां की तरह सम्मान और अपनापन देना चाहिए. भारतीय संस्कृति में दामाद को बेटे का दरजा दिया जाता है. अकसर परिवार के कार्यों में दामाद की राय ली जाती है, जिस से उसे घर का हिस्सा होने का अनुभव होता है. ऐसे में दामाद का भी कर्तव्य है कि वह बेटे की तरह जिम्मेदारी निभाए. उन से सलाह लेना, उन की बात ध्यान से सुनना और उन की पसंदनापसंद का खयाल रखना रिश्ते को मजबूत बनाता है. समयसमय पर उन की सेहत और आराम के बारे में पूछना, उन से बातचीत करना उन्हें अपनापन महसूस कराता है.

कभीकभी उन्हें सरप्राइज देना भी रिश्ते में मिठास घोलता है. उन के साथ बैठ कर हंसीमजाक करना, पुराने किस्से सुनना या किसी पारिवारिक यात्रा पर उन्हें साथ ले जाना, यह सब उन्हें यह एहसास कराता है कि वे केवल ससुराल का हिस्सा नहीं बल्कि बेटे के समान रिश्ते में हैं.

ध्यान रखने योग्य बातें

  • उन की उपेक्षा या बातों को नजरअंदाज न करें.
  • पति या अपनी मां से उन की तुलना न करें.
  • अपनी राय उन पर थोपने की कोशिश न करें.
  • विवाद की स्थिति में कठोर शब्दों का प्रयोग न करें. Family Relationships

Family Story: क्या हुआ जब सालों बाद विजय को मिला धोखेबाज प्यार?

Family Story: विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि जया ने उस के साथ ऐसा क्यों किया? इतना बड़ा धोखा, इतनी गलत सोच, इतना बड़ा विश्वासघात, कोई कैसे कर सकता है? क्या दुनिया से इंसानियत और विश्वास जैसी चीजें बिलकुल उठ चुकी हैं? वह जितना सोचता उतना ही उलझ कर रह जाता. जया से विजय की मुलाकात लगभग 2 वर्ष पूर्व हुई थी. एक व्यावसायिक सेमिनार में, जोकि स्थानीय व्यापार संघ द्वारा बुलाया गया था. जया अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रही थी, जबकि विजय खुद की कंपनी का, जिस का वह मालिक था और जिसे वह 5 वर्षों से चला रहा था.

विजय की कंपनी यद्यपि छोटी थी, लेकिन अपने परिश्रम से उस ने थोड़े समय में ही एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था और स्थानीय व्यापारी समुदाय में उस की अच्छी प्रतिष्ठा थी, जबकि जया एक प्रतिष्ठित कंपनी में सहायक मैनेजिंग डाइरैक्टर के पद पर थी. जया का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि विजय उस के प्रति आकर्षित होता चला गया. उस के बाद दोनों अकसर एकदूसरे से मिलने लगे.

इसे संयोग ही कहा जाए कि अभी तक दोनों अविवाहित थे और उन के जीवन में किसी और का पदार्पण नहीं हुआ था. जया के पिता का देहांत उस के बचपन में ही हो गया था और उस के बाद उस की मां ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया था और ऐसे संस्कार दिए जिन से बचपन से ही अपनी पढ़ाई के अतिरिक्त किसी अन्य चीज की ओर उस का ध्यान नहीं गया. उस ने देश के एक बड़े संस्थान से मैनेजमैंट की डिगरी हासिल की और उस के बाद एक अच्छी कंपनी में उसे जौब मिल गई. जया अपने परिश्रम, लगन और योग्यता के द्वारा वह उसी कंपनी में सहायक मैनेजिंग डाइरैक्टर के रूप में कार्यरत थी.

बढ़ती उम्र के साथ जया की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी थी,

परंतु जया ने इस दिशा में ज्यादा नहीं सोचा था या यों कहें कि कार्य की व्यस्तता में ज्यादा सोचने का अवसर ही नहीं मिला. अपने कार्य में इतना मशगूल थी कि उस ने कभी इस बात की चिंता नहीं की और शायद यही उस की सफलता का राज भी था. ऐसा नहीं था कि किसी ने उस से मिलने या निकट आने की कोशिश नहीं की हो, लेकिन जया ने किसी भी को एक सीमा से आगे नहीं बढ़ने दिया. वह एक आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी, उस से जो भी मिलता उस के निकट आने का प्रयास करता, परंतु जया हमेशा एक दूरी बना कर रखती.

दूसरी ओर विजय एक अच्छे और संपन्न परिवार से संबंध रखता था. उस के पिता एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे. एक ऐक्सीडैंट में उस ने अपने मातापिता दोनों को खो दिया था. एक छोटी बहन है जो अभी कालेज में पढ़ रही है. विजय एक हंसमुख स्वभाव का, लेकिन गंभीर युवक था. पिता के देहांत के बाद उस ने खुद की अपनी कंपनी बनाई जिस का वह खुद सर्वेसर्वा था. कई लड़कियों ने उस से निकटता स्थापित करने की कोशिश की, परंतु वह अपनी कंपनी के काम में इतना व्यस्त रहता था कि किसी को अवसर ही नहीं मिला. कोई दोस्त या रिश्तेदार उस से शादी की बात करना भी चाहता तो उस का छोटा सा उत्तर होता कि पहले बहन रमा की शादी, फिर अपने बारे में सोचूंगा.

विजय और जया पहली मुलाकात के बाद अकसर मिलने लगे थे और उन्हें अंदरहीअंदर यह एहसास होने लगा था कि वे एकदूसरे की दोस्ती को शादी के बंधन में बदल देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था. दोनों प्राय: एक ही रैस्टोरैंट में नियत समय पर मिलते थे.

लगभग 1 वर्ष पूर्व की बात है. एक दिन जब जया मिलने आई तो वह कुछ परेशान सी लग रही थी. दोनों की निकटता कुछ ऐसी थी कि विजय को समझते देर नहीं लगी. उस ने जानने का प्रयास किया, लेकिन जया ने कुछ बताया नहीं. विजय से जया की उदासी देखी नहीं जा रही थी. बहुत दबाव देने पर जया ने बताया कि वह नई कंपनी खोलने की सोच रही थी. कुछ रुपए उस के पास थे और लगभग 20 लाख रुपए कम पड़ रहे थे.

जया ने बताया कि उस ने बैंक से लोन लेने का प्रयास किया, परंतु बिना सिक्यूरिटी के बैंक ने लोन देने से मना कर दिया था. विजय ने उस की परेशानी जान कर यह सलाह दी कि जो रुपए कम पड़ रहे हैं, उन्हें वह विजय से ले ले, परंतु जया तैयार नहीं हो रही थी. विजय के बहुत समझाने और जोर देने पर कि वह उधार समझ कर ले ले और बाद में ब्याज सहित लौटा दे. इस बात पर जया मान गई और विजय ने उसे 20 लाख रुपए दे दिए.

वास्तविक परेशानी तो रुपए लेने के बाद शुरू हुई. रुपए लेने के बाद जया अपनी कंपनी के काम में लग गई. दोनों का मिलनाजुलना भी थोड़ा कम हो गया. कई दिन बाद भी जब जया मिलने नहीं आई तो विजय ने उसे फोन लगाया, परंतु उस का मोबाइल बंद था. विजय ने सोचा शायद वह अपने काम में ज्यादा व्यस्त होगी, क्योंकि नईर् कंपनी खोलना और उसे चलाना आसान काम नहीं था, विजय को इस चीज का अनुभव था. उस ने 2-3 दिन बाद पुन: जया को फोन करने का प्रयास किया, परंतु उस का फोन बंद ही मिला. उस ने जया की कंपनी में संपर्क किया तो पता चला कि वह कंपनी से त्यागपत्र दे कर वहां से जा चुकी है. कहां गई, यह किसी को नहीं पता.

विजय जब जया के घर गया तो पड़ोसियों ने बतया कि वह किसी और शहर में चली गई है, लेकिन कहां किसी को नहीं मालूम था. किराए का मकान था, अत: किसी ने ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया था.

विजय बहुत दुखी था. उसे रुपयों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी जया की. उसे जया से इस व्यवहार की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. जितना भी वह जया के विषय में सोचता, उतना ही बेचैन और दुखी हो जाता. दिन बीतते रहे और उस की बेचैनी बढ़ती गई. इसी बेचैनी में वह शराब भी पीने लगा था. व्यापार अलग से खराब हो रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह जया को कहां ढूंढ़े.

लेकिन विजय का व्यक्तित्व इतना कमजोर भी नहीं था कि वह टूट जाए. उस ने फिर से अपने व्यवसाय पर ध्यान देना शुरू किया और उसे पुन: वापस पटरी पर ले आया. परंतु शराब की लत उसे पड़ चुकी थी और वह रोज शाम को उसी रैस्टोरैंट में पहुंच जाता. जया को भूलना उस के लिए मुश्किल था. वह रोज शाम को शराब पीता और घर जाता. उस की छोटी बहन रमा उस से पूछती, परंतु वह कोई उचित जवाब नहीं दे पाता. रमा भी कई बार जया से मिल चुकी थी, बल्कि उस ने तो जया को मन ही मन अपनी होने वाली भाभी के रूप में स्वीकार भी कर लिया था.

रमा को जया स्वभाव से अच्छी लगी थी. उसे भी जया से ऐसे व्यवहार की कतई उम्मीद नहीं थी. उस ने कई बार भाई को समझाने की कोशिश भी की. उस ने कहा भी कि जया की जरूर कोई मजबूरी होगी, किंतु विजय पर कोई असर नहीं पड़ा.

इस बात को लगभग 1 वर्ष हो चुका था, परंतु विजय की दिनचर्या नहीं बदली. वह अभी भी रोज शाम को उस रैस्टोरैंट में जरूर जाता, जैसे उसे लगता कि आज जया कहीं से वहां आ जाएगी.

एक दिन वह जब अंदर बैठ कर रोज की भांति कुछ खापी रहा था, तो उसे ऐसा महसूस हुआ कि जया उस रैस्टोरैट के द्वार पर खड़ी हो. वह तुरंत उठा और बाहर निकला. उस ने इधरउधर देखा, परंतु जया उसे कहीं नहीं दिखी. परेशान हो कर वापस लौटा और बाहर खड़े गार्ड से पूछा, ‘‘क्या कोई मैडम यहां आई थी?’’

गार्ड ने बताया, ‘‘एक मैडम टैक्सी रुकवा कर अंदर आई और फिर तुरंत बाहर निकल कर उसी टैक्सी से चली गई.’’

विजय सोच में पड़ गया कि अगर वह जया थी तो क्या करने आई थी और क्यों उस से बिना मिले, बिना कुछ कहे चली गई? गार्ड ने यह भी बताया था कि मैडम उस के बारे में पूछ रही थी कि क्या साहब रोज शाम को यहां आते हैं? गार्ड की बात सुन कर विजय ने अनुमान लगा लिया था कि वह निश्चित रूप से जया ही थी.

उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि जया वहां क्या करने आई थी, शायद यह

देखने आई थी कि मैं जिंदा भी हूं या नहीं. उस का मन कड़वाहट से भर गया, उस के मुंह से निकला कि विश्वासघाती, धोखाबाज. यह सामान्य मानव स्वभाव है कि जब वह किसी के बारे में जैसा सोचता है, उस के संबंध में वैसी ही धारणा भी बन जाती है.

यही सब सोचते हुए वह घर पहुंच गया. प्राय: वह बाहर से शराब पी कर ही घर लौटता था, रमा उसे खाना दे कर चुपचाप अपने रूम में चली जाती थी. मगर आज रमा ने विजय को कुछ अधिक ही परेशान देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, आप इतने परेशान क्यों हो?’’

न चाहते हुए भी विजय ने गुस्से में जया को बुराभला कहते हुए सारी बात रमा को बता दी.

उस की बात और गुस्से को देख कर रमा सिर्फ इतना ही बोली, ‘‘भैया, जया भाभी ऐसी नहीं है… जरूर कोई मजबूरी होगी.’’

‘‘मत कहो उसे भाभी, उस के लिए मेरे मन में कोई जगह नहीं है,’’ विजय गुस्से से बोला. फिर कुछ सोच कर उस ने जया को फोन लगाया. उस का मोबाइल आज बंद नहीं था, परंतु जया ने फोन उठाया नहीं. विजय ने कई बार किया, परंतु उस ने फोन उठाया नहीं. विजय गहरी सोच में डूब गया.

अगले दिन पुन: अपनी रोज की तरह वह फिर उसी रैस्टोरैंट में जाने को तैयार था. आज तो वह अपने औफिस भी नहीं गया था, जब वह घर से निकलने लगा तो रमा भी साथ चलने की जिद करने लगी, परंतु उस ने मना कर दिया, भला वह उस के सामने कैसे शराब पी सकता था. पता नहीं रोज शाम को उस के कदम स्वत: ही उस रैस्टोरैंट की ओर उठ जाते और वह यंत्रचालित सा वहां पहुंच जाता.

रैस्टोरैंट पहुंच कर वह अपनी निर्धारित टेबल पर पहुंचा ही कि सुखद

आश्चर्य से भर उठा, क्योंकि वहां पहले से ही सामने वाली कुरसी पर जया विराजमान थी. खुशी, दुख, अवसाद, घृणा और आश्चर्य जैसी भावनाएं जब एकसाथ किसी मनुष्य के अंदर उत्पन्न होती हैं तो सहसा वह कुछ भी नहीं बोल पाता. बस वह जया को एकटक घूरे जा रहा था. उस ने महसूस किया कि जया पहले से थोड़ी कमजोर हो गई है, परंतु उस की सुंदरता, चेहरे के आकर्षण और व्यक्तित्व में कोई कमी नहीं आई थी.

जया ने ही पहल की, ‘‘कैसे हो विजय?’’

विजय कुछ नहीं बोल पाया. इस बीच वेटर रोज की तरह विजय का खानेपीने का सामान ला कर रख गया था, जिसे देख कर जया बोली, ‘‘सुनो, इसे हटाओ और 2 कोल्ड ड्रिंक ले कर आओ और सुनो आज से ये सब बंद.’’

वेटर चुपचाप सब उठा कर ले गया. विजय अभी भी भरीभरी आंखों से जया को घूरे जा रहा था.

जया ही फिर बोली, ‘‘कुछ तो बोलो विजय, कैसे हो.’’

विजय अब भी चुप ही था.

‘‘अच्छा पहले यह अपनी अमानत वापस ले लो, पूरे 20 लाख ही हैं,’’ और एक बैग विजय की ओर बढ़ा दिया.

‘‘रुपए किस ने मांग थे?’’ विजय भर्राए गले से बोला, ‘‘तुम इतने दिन कहां थीं, कैसी थीं?’’ वह इतना ही बोल पाया.

‘‘विजय,’’ जया एक गहरी सांस भर कर बोली. उस के चेहरे पर दर्द की वेदना साफ दिखाई पड़ रही थी,’’ सुनो विजय मैं तुम्हारी अपराधी अवश्य हूं, परंतु मैं ने आज तक किसी को कुछ नहीं बताया कि मैं कहां थी, क्यों थी?’’

जया थोड़ी देर के लिए रुकी, फिर बोलना शुरू किया, ‘‘वास्तव में मुझे तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था, लेकिन तुम से रुपए लेने के बाद मैं इस स्थिति में नहीं थी कि तुम से कुछ कहूं. तुम से पैसे लेने के बाद मैं ने अपनी कंपनी का काम शुरू किया, काम अभी प्रारंभिक अवस्था में ही था कि अचानक मां की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई. मैं कंपनी का काम भी ठीक से नहीं कर पा रही थी. अंत में मुझे कंपनी का काम बीच में ही छोड़ना पड़ा. मां के इलाज में तुम से लिए रुपए और मेरे खुद के रुपए खर्च हो गए, काफी रुपए नई कंपनी के प्रयास में पहले ही खर्च हो चुके थे, परंतु खुशी सिर्फ इस बात की है कि मैं ने मां को बचा लिया.’’

विजय बोला, ‘‘तुम इतनी परेशान थीं, तो तुम ने मुझे क्यों याद नहीं किया? क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती हो या तुम्हें मेरी याद ही नहीं आई? मांजी तो अब ठीक हैं न?’’

जया बोली, ‘‘हां अब ठीक हैं और रही तुम्हारी याद आने की बात, तो याद नहीं आती तो मैं आज यहां क्यों होती. रुपए खत्म हो रहे थे, परंतु जिंदगी तो चलानी ही थी. मैं ने यहां से दूर दूसरे बड़े शहर में नौकरी के लिए आवेदन किया. मेरे पुराने रिकौर्ड को देख कर मुझे नई कंपनी में सहायक डाइरैक्टर की जौब मिल गई. लगभग 1 वर्ष के कठिन परिश्रम के द्वारा ये रुपए एकत्र करने के बाद मैं तुम से मिलने का साहस जुटा पाई हूं. इन के बिना मेरा जमीर तुम से मिलने की इजाजत नहीं दे रहा था.’’

‘‘जया तुम ने इतना कुछ अकेले क्यों सहा? क्या तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं था या तुम मुझे अपना ही नहीं समझती हो?’’ विजय का गला भर्रा गया था और उस ने जया का हाथ थाम लिया था.

जया की आंखें भी भर आई थीं. बोली, ‘‘अपना न समझती तो यहां होती?’’

तभी विजय बोला, ‘‘अच्छा बताओ मांजी कहां हैं?’’

‘‘मैं यहीं एक होटल में मांजी के साथ रुकी हूं,’’ जया ने जवाब दिया, ‘‘थोड़ी कमजोर हैं, लेकिन अब स्वस्थ हैं.’’

‘‘बताओ घर होते हुए भी मांजी को होटल में रखा है. बताओ यह कहां का अपनापन है?’’ विजय उलाहना भरे स्वर में बोला.

‘‘कुछ सोच कर मैं ने तुम्हें नहीं बताया… मन में बहुत सारी उलझनें थीं,’’ जया मुसकरा कर बोली.

‘‘क्या उलझनें थीं? शायद तुम सोच रही थीं कि अगर मैं ने शादी कर ली होगी तो? अगर तुम नहीं मिलतीं तो मैं ने सोच लिया था कि मैं शादी ही नहीं करूंगा,’’ विजय बोला.

‘‘मुझे माफ कर दो विजय, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं, मैं ने तुम्हें बहुत कष्ट पहुंचाया है,’’ कह कर जया ने विजय के कंधे पर अपना सिर रख दिया.

विजय ने धीरे से उस का सिर सहलाया, दोनों की आंखें भर आई थीं. कुछ

देर मूर्तिवत खड़े रहे. फिर अचानक विजय ने जया को अलग किया, ‘‘अरे, यह तो बताओ कि मेरी अमानत तो वापस ले आई हो, परंतु उस का ब्याज कौन देगा?’’

‘‘अरे भैया ब्याज में तो भाभी खुद आ गई हैं,’’ अचानक रमा की आवाज सुन कर दोनों चौंक पड़े. पता नहीं कब वह भी वहां आ गई थी. दोनों एकदूसरे से बातचीत में इस कदर खोए हुए थे कि उन का ध्यान उधर गया ही नहीं.

जया ने आगे बढ़ कर रमा को गले लगा लिया.

‘‘अच्छा जया बहुत हुआ, अब तुम अपने घर चलो, अब तुम्हें नौकरी के लिए कहीं नहीं जाना. पहले हम लोग होटल चलेंगे… मांजी को साथ लाएंगे, फिर घर तुम्हारा, कंपनी तुम्हारी और यह परिवार हमारा,’’ विजय बोला.

विजय की बात सुन कर तीनों हंस पड़े और फिर रमा की खुशियों से परिपूर्ण आवाज गूंज उठी, ‘‘आज से विजय भैया और जया भाभी अलग नहीं रहेंगे, अब दोनों साथसाथ विजया बन कर रहेंगे, क्यों भाभी है न?’’

रमा की बात पर तीनों हंस पड़े.

Family Story

Hindi Story: सैयद साहब की हवेली

Hindi Story: गांव हालांकि छोटा था, लेकिन थोड़ीबहुत तरक्की कर रहा था. पहले 70-100 मकान थे, पर अब गांव के बाहर भी घर बनने लगे थे. सरकारी जमीन पर भी, जहां ढोरमवेशी चराए जाने के लिए जगह छोड़ी गई थी, निचली जाति के लोगों ने उस पर कब्जे कर लिए थे. झोंपड़ों के मकड़जाल की यह खबर हवेली तक भी पहुंच गई. हवेली में सैयद फैयाज मियां हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे और उन के पैरों को हज्जाम घासी मियां सहला रहे थे.

उन्होंने ही धीमी रफ्तार से पूरे गांव की सब खबरें सुनानी शुरू कर दी थीं. गांव में मुसलिमों के एक दर्जन से कम घर थे, लेकिन बड़ी हवेली सैयद साहब की ही थी. सब से ज्यादा जमीन, नौकरचाकर भी उन्हीं की हवेली में थे.

1-2 भिश्ती और पिंजारों के परिवार के लोग भी उन की खिदमत के लिए आ कर बस गए थे. पूरे गांव में उन की मालगुजारी होने से दबदबा भी बहुत था, लेकिन कोई उन के गांव में आ कर बस जाए और उन्हें खबर भी न करे या बस जाने की इजाजत लेने की जहमत भी न उठाए, यह कैसे हो सकता था. जब इतनी जमीन, इतनी बड़ी हवेली और इतने लोग थे, तो कुछ पहलवान भी थे, जो पहलवान कम गुंडे ज्यादा थे. उन का पलनारहना भी लाजिमी था. जैसे कोई भी बस्ती कहीं भी बस जाए बिना चाहे, बिना बुलाए दोचार कुत्ते आ ही जाते हैं, उसी तरह ये गुंडे भी हवेली के टुकड़ों पर पल रहे थे. कोई आता तो लट्ठ ले कर उसे अंदर लाते थे और कभीकभी कुटाई भी कर देते थे.

थाने से ले कर साहब लोगों तक सैयद साहब की खूब पकड़ थी. सैयद साहब का एक बाड़ा था, जहां उन के जन्नतनशीं हो चुके रिश्तेदार कयामत के इंतजार में कब्र में पड़े थे. उसी बाड़े से लगा एक और कब्रिस्तान था, जो 7-10 घरों के भिश्ती मेहतरों के लिए था.

जब हज्जाम मियां ने गांव में बस रहे झोंपड़ों की जानकारी दी, तो सैयद साहब के माथे पर बल पड़ गए थे. वे जानते थे कि ये छोटी जाति के लोग आने वाले वक्त में गांव के बाशिंदे बन कर वोट बैंक को बिगाड़ देंगे. आज की तारीख में तो सरपंच से ले कर विधायक तक हवेली में सलाम करने आते हैं, उस के बाद जीतहार तय होती है. तकरीबन 200-250 वोट एकतरफा पड़ते हैं, फिर आसपास के गांवों में उन के पाले हुए गुंडे सब संभाल लेते हैं. पूरा गांव ही नहीं, आसपास के गांव वाले भी जानते थे कि सैयद साहब से दुश्मनी लेना यानी हुक्कापानी बंद. फिर किसी दूसरे गांव में किसी ने पनाह दे भी दी, तो समझो कि उस बंदे की खैर नहीं. सैयद साहब की थोड़ी उम्र भी हो चली थी. दाढ़ी के बाल पकने लगे थे, लेकिन उमंगें आज भी जवान थीं. उन की 2 बेटियां, एक बेटा भी था, जो धीरेधीरे जवानी में कदम रख रहे थे.

बेटे में भी सारे गुण अपने अब्बा के ही थे. नौकरों से बदतमीजी से बात करना, स्कूल न जाना, दिनभर आवारागर्दी करना और तालाब पर मछली मारने के लिए घंटों बैठे रहना. पूरे गांव के लोग उसे सलाम करते थे. वह भी अपने साथ 3-4 लड़कों को रखता था, लेकिन उस ने कभी भी गांव की किसी लड़की की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा. इस का मतलब यह नहीं था कि उस की उमंगें कम थीं.

जोकुछ वह सोचता, खानदान की इज्जत की खातिर सपने में पूरी कर लेता था. इसी छोटी बस्ती में हसन कुम्हार ने आ कर झोंपड़ा तान लिया था. एक तो मुसलिम, ऊपर से बड़ी हवेली सैयद की. बस, इसी वजह से उस के आसपास के लोग उस से डर कर रहते थे. वह भी न जाने कौन सी जगह से आ कर बस गया था, लेकिन सलाम करने वह हवेली नहीं पहुंचा था.

हज्जाम मियां ने उस की शिकायत भी कर दी थी. सैयद साहब ने सोचा, ‘अपनी जाति वाले से शुरू करें, तो यकीनन दूसरे हिंदू तो डर ही जाएंगे.’ उन का पहलवान हसन मियां को बुला लाया. हसन मियां दुबलापतला चुंगी दाढ़ी वाला था, लेकिन साथ में जो उस का बेटा आया था, वह गबरू जवान था. सलाम कर के हसन मियां वहां बड़े ही अदब से खड़े हो गए. सैयद साहब दीवान पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे. 1-2 पहलवान लट्ठ लिए खड़े थे. हसन मियां इंतजार कर रहा था कि सैयद साहब कुछ सवाल करें, लेकिन सैयद साहब तो अपने में मगन हो कर कुछ गुनगुना रहे थे. थोड़ी देर बाद हसन मियां ने कहा, ‘‘हुजूर, इजाजत हो, तो मैं चला जाऊं?’’

सैयद साहब चौंके, फिर कह उठे, ‘‘अरे हां… क्यों रे, क्या नाम है तेरा?’’

‘‘हसन.’’

‘‘और… यह कौन है?’’

‘‘हुजूर, मेरा बेटा है.’’

‘‘काम क्या करते हो?’’

‘‘हुजूर, मिट्टी का काम है.’’

‘‘मतलब.’’

‘‘हुजूर, पहले जिस गांव में था, वहां कब्रें खोदता था, लेकिन कुछ कमाई कम थी, इस वजह से काम बदल लिया.’’

‘‘अब क्या करते हो’’

‘‘हुजूर, अब मिट्टी के बरतन बनाने का काम करता हूं.’’

‘‘और यह तेरा बेटा क्या करता है?’’

‘‘हुजूर, मदद करता है.’’

‘‘गूंगा है?’’

‘‘नहीं हुजूर… सैयद साहब के हाथ चूम कर आओ बेटा.’’ हसन मियां का बेटा आगे बढ़ा और बड़े अदब से हाथ को सिरमाथे लगा कर हाथ चूम कर खड़ा हो गया.

‘‘यहां बसने से पहले तुम इजाजत लेने क्यों नहीं आए?’’

‘‘हुजूर, सोचा था कि झोंपड़ा तन जाए, तब पूरे खानदान के साथ सलाम करने आते, लेकिन आप का बुलावा तो पहले ही आ गया,’’ बहुत ही नरमी से हसन मियां जवाब दे रहा था. वह जानता था कि एक बात भी जबान से कुछ फिसली तो सैयद साहब और उन के पले कुत्ते उन्हें छोड़ेंगे नहीं, फिर इस गांव को छोड़ कर कहीं और जगह ढूंढ़नी होगी.

‘‘क्यों रे, यहां कुछ काम करेगा?’’

‘‘कैसा काम?’’

‘‘यहां भी मुसलिम रहते हैं… कोई गमी हो गई, तो कब्र खोद देगा?’’

‘‘क्यों नहीं हुजूर.’’

‘‘कितने रुपए लेता है?’’

‘‘हुजूर, महंगाई है… सोचसमझ कर दिलवा देना.’’

‘‘चल, ठीक है, 2 सौ रुपए मिलेंगे… मंजूर है?’’

‘‘आप का दिया सिरआंखों पर.’’

‘‘तो खयाल रखना कि आज के बाद गांव में किसी के यहां गमी हुई, तो तुझे खबर मिल जाएगी. तू और तेरा यह लड़का कब्र खोदने का काम करेगा. कोई दिक्कत तो नहीं है?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ हसन मियां ने खुश होने का ढोंग किया. दरअसल, हसन की बीवी और उस के इस बेटे को कब्र खोदने का काम बिलकुल पसंद नहीं था. बीवी चाहती थी कि उन का बेटा आदिल पढ़लिख कर इस गंदे काम से पार हो जाए. आदिल भी जानता था कि उन के घर का दानापानी मरने वालों से ही चलता है. एकदो मर गए, तो 3-4 सौ रुपए मिल जाते थे, वरना एकएक हफ्ता निकल जाता था.

बड़ी अजीब सी दलदली, गंदी जिंदगी हो गई थी. उधर कब्र खोदने के काम को छोड़ने का मन बना कर इस गांव में आए और यहां भी सैयद साहब यह काम करवाने पर तुले हैं, लेकिन डर के मारे उस ने कुछ कहा नहीं. सैयद साहब ने जाने का इशारा किया, तो वे सलाम कर के लौट गए.

अगले कुछ दिनों में हवेली में छोटी जाति के तमाम लोगों का बुलावा हो गया. सब अपनी दुम टांगों में दबा कर आए और ‘जो आने वाले वक्त में मालिक कहेंगे’. इस बात पर सहमत हो गए. किसी की हिम्मत नहीं थी कि इतनी बड़ी हवेली के खिलाफ कुछ कहें या दिल में सोचें. अभी हसन मियां सो कर भी नहीं उठे थे कि हवेली से खबर आ गई कि कब्र खोदने के लिए बुलाया है. हसन मियां की तबीयत ठीक नहीं थी. उस ने आदिल से कहा, ‘‘इस काम को निबटा कर आ जाए.’’

आदिल बगैर इच्छा के कंधे पर गमछा रख कर चला गया. हवेली का पूरा माहौल गमगीन था. सैयद साहब की बेटी कमरे में रो रही थी. बेटा बहुत उदास बैठा था. सैयद साहब कमरे से बाहर आए और पहलवान को इशारा किया. वह आदिल को बाड़े से लगे कब्रिस्तान में ले गया, जहां दूसरी मुसलमान जाति के लोगों को दफन किया जाता था. एक जगह देख कर पहलवान ने कहा, ‘‘यहीं कब्र खोद लो. कम से कम 2 फुट चौड़ी और 5 फुट गहरी.’’

‘‘जनाब, कोई बच्चा खत्म हो गया क्या?’’ आदिल ने बहुत अदब से पूछा.

‘‘जितना कहा है, उतना सुन लो.’’

आदिल कब्र खोदने लगा. पूरी कब्र खोद कर उस ने माथे का पसीना पोंछा ही था कि तभी हज्जाम मियां आए और उसे बुला कर हवेली में ले गए और एक ओर पड़ी कुत्ते की लाश को बता कर कहा, ‘‘इसे उठा कर दफन कर आओ.’’

‘‘इस कुत्ते की लाश को?’’ हैरत से आदिल ने पूछा. उस को जवाब मिलता, उस के पहले  ही एक पहलवान ने आदिल की कमर पर एक लात रसीद कर दी.

‘‘सैयद साहब की औलाद थी वह और तू उसे जानवर कहता है.’’ आदिल झुका, उस जानवर तक हाथ बढ़ाया, फिर उस ने कहा, ‘‘लेकिन, यह काम हमारा नहीं है…’’ उस की बात खत्म भी नहीं हुई थी कि एक लात उस के पुट्ठे पर पड़ी और आदिल कुत्ते पर जा गिरा. ‘वह कुत्ता था. जानवर था, मर गया था. उसे कोई भी एहसास नहीं था, इसलिए वह धूप में पड़ा था. लेकिन मैं तो जिंदा हूं.

मुझे तो लातों का दर्द, बेइज्जती का एहसास हो रहा है. ‘‘अगर मैं जिंदा हूं, तो मुझे जिंदा होने का सुबूत देना होगा,’ यह सोच कर आदिल बेदिली से उठा. उस ने देखा कि कमरे के बाहर दीवान पर सैयद साहब बैठ गए थे. उस ने बड़े दरवाजे पर नजर डाली. वह खुला हुआ था. उस ने  हिम्मत बटोरी और एक पल में ही दौड़ कर बाहर भाग गया.

पहलवान और सैयद साहब भौंचक्के रह गए थे कि आखिर हो क्या गया?

आदिल अपने झोंपड़े में नहीं गया. वह जानता था कि उसे पकड़ लिया जाएगा. वह दूसरी दिशा में भाग खड़ा हुआ था. पहलवान हसन मियां के घर पहुंचे. आदिल तो मिला नहीं. वे हसन मियां को पकड़ लाए. उसे भी 2-3 लातें मारीं और उस ने मरे जानवर को उठा कर कब्र में दफन किया. तबीयत भी ठीक नहीं थी. घर आ कर बिस्तर पर लेट गया. आदिल जब घर लौटा, तो अब्बा की हालत उस से छिपी नहीं रही. आदिल ने मुट्ठी भींची और पुलिस थाने चला गया.

थाना शहर के पास था. आदिल अपनी चोटों के साथ, धूल सने कपड़ों के साथ थाने में पहुंचा. वहां रिपोर्ट लिखने वाला कोई सिपाही बैठा था. उसी की बगल में कोई न्यूज रिपोर्टर भी बैठ कर चाय पी रहा था. आदिल ने रोते हुए सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘मेरे अब्बा को मारा, उन से मरा जानवर उठवाया, दफन करवाया, एक रुपया भी मेहनताना नहीं दिया, बेइज्जती अलग से की.’’

न्यूज रिपोर्टर एक अच्छी स्टोरी के चक्कर में था. उस ने भी सैयद साहब की हवेली के बहुत से किस्से सुन रखे थे. उस ने रिपोर्ट लिखने वाले सिपाही से कहा, ‘‘यार, यह देश की नौजवान पीढ़ी है. इसे इंसाफ मिलना चाहिए.’’

‘‘यार, तुम संभाल लेना,’’ सिपाही झिझकते हुए बोला.

‘‘आप चिंता मत करो, लेकिन इस की रिपोर्ट लिख लो.’’

उस ने रजिस्टर उठाया, उस की बात को लिखा, फिर एफआईआर काटी और एक पुलिस वाले को भेज कर उस का मैडिकल करने भेज दिया. देखते ही देखते लोकल चैनल पर सैयद साहब की हवेली, मारपीट, उन की हिंसा के जोरदार किस्से टुकड़ोंटुकड़ों में बयां होने लगे. सैयद साहब को भी खबर लग गई. उन का पारा सातवें आसमान पर था. एक मजदूर की औलाद की इतनी हिम्मत? तुरंत हसन मियां को बुलाने पहलवान भेज दिए. हसन मियां को 2 पहलवान पकड़ कर ले आए. उसे भी उड़तीउड़ती खबर लग गई थी कि आदिल ने मामला गड़बड़ कर दिया है. जब हवेली में वह हाजिर हुआ, रात हो गई थी. सुबह की बेइज्जती का दर्द दिल पर से अभी पूरी तरह से हटा नहीं था.

‘‘हसन, तू जानता है कि तुझे क्यों बुलाया है?’’

‘‘हुजूर,’’ घबराते हुए इतना ही मुंह से निकला.

‘‘तेरी औलाद ने हमारी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है.’’

‘‘हुजूर…’’

‘‘उसे अभी बुला और अपनी रिपोर्ट वापस लेने को कह. समझा कि नहीं?’’ सैयद साहब ने चीख कर कहा. पूरी हवेली उन की आवाज से कांप गई थी. हसन मियां भी ठान कर आया था कि वह तो मजदूर है, कहीं भी कमाखा लेगा. उस ने कहा, ‘‘हुजूर, बेटा तो अभी तक लौटा नहीं है.’’

‘‘कहां है वह?’’

‘‘शहर में ही है.’’

‘‘जा कर ले आ, वरना इस गांव में रह नहीं पाएगा,’’ सैयद साहब ने गुस्से से कांपते हुए कहा.

हसन मियां ने कहा, ‘‘हुजूर, रातभर की बात है, सुबह हम गांव छोड़ देंगे.’’

‘‘मुंह चलाता है…’’ सैयद साहब चीखे. उसी के साथ 2-3 लातघूंसे हसन मियां के मुंह पर पड़ गए. वह गिर पड़ा. रोते हुए वह बाहर आया. वह अपने झोंपड़े की ओर बढ़ा, तो देखा कि सैयद साहब के गुंडे उस के झोंपड़े को आग लगा रहे थे. सैयद साहब एक ओर जीप में बैठे थे. आदिल की अम्मी झोंपड़े के बाहर खड़ी रो रही थी. तभी एक मोटरसाइकिल पर आदिल उस रिपोर्टर के साथ आया.

उस ने अपने कैमरे से सब शूट करना शुरू कर दिया. सैयद साहब भी उस शूट में दिखाई दे रहे थे. तुरंत वह न्यूज भी दिखाई जाने लगी. सुबह पुलिस आदिल की अम्मी, अब्बू को ले गई. रिपोर्ट लिखवाई और दोपहर होतेहोते हवेली में पुलिस अंदर घुस गई. पूरे गांव में हल्ला मच गया था. दोपहर में पुलिस पहलवानों और सैयद साहब को पकड़ कर ले गई. आदिल गांव में आया. अब्बा के साथ अपना झोंपड़ा दोबारा बनाया और मेहनतमजदूरी में जुट गया. बड़ेबड़े वकीलों ने सैयद साहब की जमानत कराई.

पूरे एक महीने तक जेल में रह कर वे वापस लौटे. सैयद साहब के चेहरे की रौनक चली गई थी. बापदादाओं की इज्जत पर पानी फिर गया था. हसन मियां को भी मालूम पड़ गया था कि सैयद साहब आ गए हैं. अब तो उन्हें बहुत होशियारी से रहना होगा. सैयद साहब को बेइज्जती का ऐसा धक्का लगा कि उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया और पूरा एक महीना भी नहीं गुजरा कि इस दुनिया से चले गए. जैसे ही हसन मियां को मालूम हुआ, वह आदिल के साथ ईमानदारी के साथ कब्र खोदने जा पहुंचा. कब्र खोदतेखोदते आदिल ने अपने अब्बा को देखा, तो अब्बा ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या बात हुई?’’

‘‘अब्बा, जो कुछ हुआ, उस पर किसी का जोर नहीं है, लेकिन एक बात तो है…’’

‘‘क्या?’’

‘‘कोई कितना भी बड़ा आदमी मरे, कब्र तो मजदूर ही खोदता है. देखो न, हम ने सैयद साहब की कब्र खोद दी.’’ हसन मियां फटी आंखों से आदिल का चेहरा देख रहा था.

Hindi Story

Emotional Story: उपहार- डिंपल ने पुष्पाजी को क्या दिया?

Emotional Story: कैलेंडर देख कर विशाल चौंक उठा. बोला, ‘‘अरे, मुझे तो याद ही नहीं था कि कल 20 फरवरी है. कल मां का जन्मदिन है. कल हम लोग अपनी मां का बर्थडे मनाएंगे,’’ पल भर में ही उस ने शोर मचा दिया.

पुष्पाजी झेंप गईं कि क्या वे बच्ची हैं, जो उन का जन्मदिन मनाया जाए. फिर इस से पहले कभी जन्मदिन मनाया भी तो नहीं था, जो वे खुश होतीं.

अगली सुबह भी और दिनों की तरह ही थी. कुमार साहब सुबह की सैर के लिए निकल गए. पुष्पाजी आंगन में आ कर महरी और दूध वाले के इंतजार में टहलने लगीं. तभी विशाल की पत्नी डिंपल ने पुकारा, ‘‘मां, चाय.’’

आज के भौतिकवादी युग में सुबहसवेरे कमरे में बहू चाय दे जाए, इस से बड़ा सुख और कौन सा होगा? पुष्पाजी, बहू का मुसकराता चेहरा निहारती रह गईं. सुबह इतमीनान से आंगन में बैठ कर चाय पीना उन का एकमात्र शौक था. पहले स्वयं बनानी पड़ती थी, लेकिन जब से डिंपल आई है, बनीबनाई चाय मिल जाती है. अपने पति विशाल के माध्यम से उस ने पुष्पाजी की पसंदनापसंद की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी.

बड़ी बहू अंजू सौफ्टवेयर इंजीनियर है. सुबह कपिल और अंजू दोनों एकसाथ दफ्तर के लिए निकलते हैं, इसलिए दोनों के लिए सुविधाएं जुटाना पुष्पाजी अपना कर्तव्य समझती थीं.

छोटे बेटे विशाल ने एम.बी.ए. कर लिया तो पुष्पाजी को पूरी उम्मीद थी कि उस ने भी कपिल की तरह अपने साथ पढ़ने वाली कोई लड़की पसंद कर ली होगी. इस जमाने का यही तो प्रचलन है. एकसाथ पढ़ने या काम करने वाले युवकयुवतियां प्रेमविवाह कर के अपने मातापिता को ‘मैच’ ढूंढ़ने की जिम्मेदारी से खुद ही मुक्त कर देते हैं.

लेकिन जब विशाल ने उन्हें वधू ढूंढ़ लाने के लिए कहा तो वे दंग रह गई थीं. कैसे कर पाएंगी यह सब? एक जमाना था जब मित्रगण या सगेसंबंधी मध्यस्थ की भूमिका निभा कर रिश्ता तय करवा देते थे. योग्य लड़का और प्रतिष्ठित घराना देख कर रिश्तों की लाइन लग जाती थी. अब तो कोई बीच में पड़ना ही नहीं चाहता. समाचारपत्र या इंटरनैट पर फोटो के साथ बायोडाटा डाल दिया जाता है. आजकल के बच्चों की विचारधारा भी तो पुरानी पीढ़ी की सोच से सर्वथा भिन्न है. कपिल, अंजू को देख कर पुष्पाजी मन ही मन खुश रहतीं कि दोनों की सोच तो आपस में मिलती ही है, उन्हें भी पूरापूरा मानसम्मान मिलता है.

अखबार में विज्ञापन के साथसाथ इंटरनैट पर भी विशाल का बायोडाटा डाल दिया था. कई प्रस्ताव आए. पुष्पाजी की नजर एक बायोडाटा को पढ़ते हुए उस पर ठहर गई. लड़की का जन्मस्थान उन्हें जानापहचाना सा लगा. शैक्षणिक योग्यता बी.ए. थी. कालेज का नाम बालिका विद्यालय, बिलासपुर देख कर वे चौंक उठी थीं. कई यादें जुड़ी हुई थीं उन की इस कालेज से. वे स्वयं भी तो इसी कालेज की छात्रा रह चुकी थीं.

उसी कालेज में जब वे सितारवादन का पुरस्कार पा रही थीं तब समारोह के बाद कुमारजी ने उन का हाथ मांगा, तो उन के मातापिता ने तुरंत हामी भर दी थी. स्वयं पुष्पाजी भी बेहद खुश थीं. ऐसे संगीतप्रेमी और कला पारखी कुमार साहब के साथ उन की संगीत कला परवान चढ़ेगी, इसी विश्वास के साथ उन्होंने अपनी ससुराल की चौखट पर कदम रखा था.

हर क्षेत्र में अव्वल रहने वाली पुष्पाजी के लिए घरगृहस्थी की बागडोर संभालना सहज नहीं था. जब शादी के 4-5 माह बाद उन्होंने अपना सितार और तबला घर से मंगवाया था तो कुमारजी के पापा देखते ही फट पड़े थे, ‘‘यह तुम्हारे नाचनेगाने की उम्र है क्या?’’

उन की निगाहें चुभ सी रही थीं. भय से पुष्पाजी का शरीर कांपने लगा था. लेकिन मामला ऐसा था कि वे अपनी बात रखने से खुद को रोक न सकी थीं, ‘‘पापा, आप की बातें सही हैं, लेकिन यह भी सच है कि संगीत मेरी पहली और आखिरी ख्वाहिश है.’’

‘‘देखो बहू, इस खानदान की परंपरा और प्रतिष्ठा के समक्ष व्यक्तिगत रुचियों और इच्छाओं का कोई महत्त्व नहीं है. तुम्हें स्वयं को बदलना ही होगा,’’ कह कर पापा चले गए थे.

पुष्पाजी घंटों बैठी रही थीं. सूझ नहीं रहा था कि क्या करें, क्या नहीं. शायद कुमारजी कुछ मदद करें, मन में जब यह खयाल आया तो कुछ तसल्ली हुई थी. उस दिन वे काफी देर से घर लौटे थे.

तनिक रूठी हुई भावमुद्रा में पुष्पाजी ने कहा, ‘‘जानते हैं, आज क्या हुआ?’’

‘‘हूं, पापा बता रहे थे.’’

‘‘तो उन्हें समझाइए न.’’

‘‘पुष्पा, यहां कहां सितार बजाओगी. बाबूजी न जाने क्या कहेंगे. जब कभी मेरा तबादला इस शहर से होगा, तब मैं तुम्हें सितार खरीद दूंगा. तब खूब बजाना,’’ कह कुमारजी तेजी से कमरे से बाहर निकल गए.

आखिर उन का तबादला भोपाल हो ही गया. कुमारजी को मनचाहा कार्य मिल गया. जब घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया और एक पटरी पर चलने लगा तो एक दिन पुष्पाजी ने दबी आवाज में सितार की बात छेड़ी.

कुमारजी हंस दिए, ‘‘अब तो तुम्हारे घर दूसरा ही सितार आने वाला है. पहले उसेपालोपोसो. उस का संगीत सुनो.’’

कपिल गोद में आया तो पुष्पाजी उस के संगीत में लीन हो गईं. जब वह स्कूल जाने लगा तब फिर सितार की याद आई उन्हें. पति से कहने की सोच ही रही थीं कि फिर उलटियां होने लगीं. विशाल के गोद में आ जाने के बाद तो वे और व्यस्त हो गईं. 2-2 बच्चों का काम. अवकाश के क्षण तो कभी मिलते ही नहीं थे. विशाल भी जब स्कूल जाने लगा, तो थोड़ी राहत मिली.

एक दिन रेडियो पर सितारवादन चल रहा था. पुष्पाजी तन्मय हो कर सुन रही थीं. पति चाय पी रहे थे. बोले, ‘‘अच्छा लगता है न सितारवादन?’’

‘‘हां.’’

‘‘ऐसा बजा सकती हो?’’

‘‘ऐसा कैसे बजा सकूंगी? अभ्यास ही नहीं है. अब तो थोड़ी फुरसत मिलने लगी है. सितार ला दोगे तो अभ्यास शुरू कर दूंगी. पिछला सीखा हुआ फिर से याद आ जाएगा.’’

‘‘अभी फालतू पैसे बरबाद नहीं करेंगे. मकान बनवाना है न.’’

मकान बनवाने में वर्षों लग गए. तब तक बच्चे भी सयाने हो गए. उन्हें पढ़ानेलिखाने में अच्छा समय बीत जाता था.

डिंपल का बायोडाटा और फोटो सामने आ गया तो उस ने फिर से उन्हें अपने अतीत की याद दिला दी थी.

लड़की की मां का नाम मीरा जानापहचाना सा था. डिंपल से मिलते ही उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी थी. सभी आश्चर्य में पड़ गए. विशाल जैसे होनहार एम.बी.ए. के लिए डिंपल जैसी मात्र बी.ए. पास लड़की?

पुष्पाजी ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. डिंपल अच्छी बहू सिद्ध हुई. घर का कामकाज निबटा कर वह उन के साथ बैठ कर कविता पाठ करती, साहित्य और संगीत से जुड़ी बारीकियों पर विचारविमर्श करती तो पुष्पाजी को अपने कालेज के दिन याद आ जाते.

आज भी पुष्पाजी रोज की तरह अपने काम में लग गईं. सभी तैयार हो कर अपनेअपने काम पर चले गए. किसी ने भी उन के जन्मदिन के विषय में कोई प्रसंग नहीं छेड़ा. पुष्पाजी के मन में आशंका जागी कि कहीं ये लोग उन का जन्मदिन मनाने की बात भूल तो नहीं गए? हो सकता है, सब ने यह बात हंसीमजाक में की हो और अब भूल गए हों. तभी तो किसी ने चर्चा तक नहीं की.

शाम ढलने को थी. डिंपल पास ही खड़ी थी, हाथ बंटाने के लिए. दहीबड़े, मटरपनीर, गाजर का हलवा और पूरीकचौड़ी बनाए गए. दाल छौंकने भर का काम उस ने पुष्पाजी पर छोड़ दिया था. पूरी तैयारी हो गई. हाथ धो कर थोड़ा निश्चिंत हुईं कि तभी कपिल और अंजू कमरे में मुसकराते हुए दाखिल हुए. पुष्पाजी ने अपने हाथ से पकाए स्वादिष्ठ व्यंजन डोंगे में पलटे, तो डिंपल ने मेज पोंछ दी. तभी शोर मचाता हुआ विशाल कमरे में घुसा. हाथ में बड़ा सा केक का डब्बा था. आते ही उस ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया और मां के गले में बांहें डाल कर बोला, ‘‘मां, जन्मदिन मुबारक.’’

पुष्पाजी का मन हर्ष से भर उठा कि इस का मतलब विशाल को याद था.

मेज पर केक सजा था. साथ में मोमबत्तियां भी जल रही थीं, कपिल और अंजू के हाथों में खूबसूरत गिफ्ट पैक थे. यही नहीं, एक फूलों का बुके भी था. पुष्पाजी अनमनी सी आ कर सब के बीच बैठ गईं. उन की पोती कृति ने कूदतेफांदते सारे पैकेट खोल डाले थे.

‘‘यह देखिए मां, मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं. यह नौनस्टिक कुकवेयर सैट है. इस में कम घीतेल में कुछ भी पका सकती हैं आप.’’

अंजू ने दूसरा पैकेट खोला, फिर बेहद विनम्र स्वर में बोली, ‘‘और यह है जूसर अटैचमैंट. मिक्सी तो हमारे पास है ही. इस अटैचमैंट से आप को बेहद सुविधा हो जाएगी.’’

कुमारजी बोले, ‘‘क्या बात है पुष्पा, बेटेबहू ने इतने महंगे उपहार दिए, तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’’

पति की बात सुन कर पुष्पाजी की आंखें नम हो गईं. ये उपहार एक गृहिणी के लिए हो सकते हैं, मां के लिए हो सकते हैं, पर पुष्पाजी के लिए नहीं हो सकते. आंसुओं को मुश्किल से रोक कर वे वहीं बैठी रहीं. मन की गहराइयों में स्तब्धता छाती जा रही थी. सामने रखे उपहार उन्हें अपने नहीं लग रहे थे. मन में आया कि चीख कर कहें कि अपने उपहार वापस ले जाओ. नहीं चाहिए मुझे ये सब.

रात होतेहोते पुष्पाजी को अपना सिर भारी लगने लगा. हलकाहलका सिरदर्द भी महसूस होने लगा था. कुमारजी रात का खाना खाने के बाद बाहर टहलने चले गए. बच्चे अपनेअपने कमरे में टीवी देख रहे थे. आसमान में धुंधला सा चांद निकल आया था. उस की रोशनी पुष्पाजी को हौले से स्पर्श कर गई. वे उठ कर अपने कमरे में आ कर आरामकुरसी पर बैठ गईं. आंखें बंद कर के अपनेआप को एकाग्र करने का प्रयत्न कर रही थीं, तभी किसी ने माथे पर हलके से स्पर्श किया और मीठे स्वर में पुकारा, ‘‘मां.’’

चौंक कर पुष्पाजी ने आंखें खोलीं तो सामने डिंपल को खड़ा पाया.

‘‘यहां अकेली क्यों बैठी हैं?’’

‘‘बस यों ही,’’ धीमे से पुष्पाजी ने उत्तर दिया.

डिंपल थोड़ा संकोच से बोली, ‘‘मैं आप के लिए कुछ लाई हूं मां. सभी ने आप को इतने सुंदरसुंदर उपहार दिए. आप मां हैं सब की, परंतु यह उपहार मैं मां के लिए नहीं, पुष्पाजी के लिए लाई हूं, जो कभी प्रसिद्ध सितारवादक रह चुकी हैं.’’

वे कुछ बोलीं नहीं. हैरान सी डिंपल का चेहरा निहारती रह गईं.

डिंपल ने साहस बटोर कर पूछा, ‘‘मां, पसंद आया मेरा यह छोटा सा उपहार?’’

चिहुंक उठी थीं पुष्पाजी. उन के इस धीरगंभीर, अंतर्मुखी रूप को देख कर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि कभी वे सितार भी बजाया करती थीं, सुंदर कविताएं और कहानियां लिखा करती थीं. उन की योग्यता का मानदंड तो रसोई में खाना पकाने, घरगृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने तक ही सीमित रह गया था. फिर डिंपल को इस विषय की जानकारी कहां से मिली? इस ने उन के मन में क्या उमड़घुमड़ रहा है, कैसे जान लिया?

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आप एक अच्छी सितारवादक हैं. लिखना, चित्रकारी करना आप का शौक है.’’

पुष्पाजी सोच में पड़ गई थीं कि जिस पुष्पाजी की बात डिंपल कर रही है, उस पुष्पा को तो वे खुद भी भूल चुकी हैं. अब तो खाना पकाना, घर को सुव्यवस्थित रखना, बच्चों के टिफिन तैयार करना, बस यही काम उन की दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए हैं. डिग्री धूल चाटने लगी है. फिर बोलीं, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम ये सब?’’

‘‘मालूम कैसे नहीं होगा, बचपन से ही तो सुनती आई हूं. मेरी मां, जो आप के साथ पढ़ती थीं कभी, बहुत प्रशंसा करती थीं आप की.’’

‘‘कौन मीरा?’’ पुष्पाजी ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया. यही नाम तो लिखा था बायोडाटा में. बचपन में दोनों एकसाथ पढ़ीं. एकसाथ ही ग्रेजुएशन भी किया. पुष्पाजी की शादी पहले हो गई थी, इसलिए मीरा के विवाह में नहीं जा पाई थीं. फिर घरगृहस्थी के दायित्वों के निर्वहन में ऐसी उलझीं कि उलझती ही चली गईं. धीरेधीरे बचपन की यादें धूमिल पड़ती चली गईं. डिंपल के बायोडाटा पर मीरा का नाम देख कर उन्होंने तो यही सोचा था कि होगी कोई दूसरी मीरा. कहां जानती थी कि डिंपल उन की घनिष्ठ मित्र मीरा की बेटी है. बरात में भी गई नहीं थीं. जातीं तो थोड़ीबहुत जानकारी जरूर मिल जाती उन्हें. बस, इतना जान पाई थीं कि पिछले माह, कैंसर रोग से मीरा की मृत्यु हो गई थी.

डिंपल अब भी कह रही थी, ‘‘ठीक ही तो कहती थीं मां कि हमारे साथ पुष्पा नाम की एक लड़की पढ़ती थी. वह जितनी सुंदर उतनी ही होनहार और प्रतिभाशाली भी थी. मैं चाहती हूं, तुम भी बिलकुल वैसी ही बनो. मेरी सहेली पुष्पा जैसी.’’

पुष्पाजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ऐसा लग रहा था, उन की नहीं, किसी दूसरी ही पुष्पा की प्रशंसा की जा रही है, लेकिन सच को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता. कानों में डिंपल के शब्द अब भी गूंज रहे थे. तो वह पुष्पा, अभी भी खोई नहीं है. कहीं न कहीं उस का वजूद अब भी है.

पुष्पाजी का मन भर आया. शायद उन का अचेतन मन यही उपहार चाहता था. फिर भी तसल्ली के लिए पूछ लिया था उन्होंने, ‘‘और क्या कहती थीं तुम्हारी मां?’’

‘‘यही कि तुझे गर्व होना चाहिए जो तुझे पुष्पा जैसी सास मिली. तुझे बहुत अच्छी ससुराल मिली है. तू बहुत खुश रहेगी. मां, सच कहूं तो मुझे विशाल से पहले आप से मिलने की उत्सुकता थी.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ डिंपल की आंखों में झांक कर पुष्पाजी ने हंस कर पूछा.

‘‘कैसे बताती? मैं तो आप के इस धीरगंभीर रूप में उस चंचल, हंसमुख पुष्पा को ही ढूंढ़ती रही इतने दिन.’’

‘‘वह पुष्पा कहां रही अब डिंपल. कब की पीछे छूट गई. सारा जीवन यों ही बीत गया, निरर्थक. न कोई चित्र बनाया, न ही कोई धुन बजाई. धुन बजाना तो दूर, सितार के तारों को छेड़ा तक नहीं मैं ने.’’

‘‘कौन कहता है आप का जीवन यों ही बीत गया मां?’’ डिंपल ने प्यार से पुष्पाजी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आप का यह सजीव घरसंसार, किसी भी धुन से ज्यादा सुंदर है, मुखर है, जीवंत है.’’

‘‘घरर तो सभी का होता है,’’ पुष्पाजी धीरे से बोलीं, ‘‘इस में मेरा क्या योगदान है?’’

‘‘आप का ही तो योगदान है, मां. इस परिवार की बुलंद इमारत आप ही के त्याग और बलिदान की नींव पर टिकी है.’’

अभिभूत हो गईं पुष्पाजी. मंत्रमुग्ध हो गईं कि कौन कहता है भावुकता में निर्णय नहीं लेना चाहिए? उन्हें तो उन की भावुकता ने ही

डिंपल जैसा दुर्लभ रत्न थमा दिया. यदि डिंपल न होती, तो क्या बरसों पहले छूट गई

पुष्पा को फिर से पा सकती थीं? उस के दिए सितार को उन्होंने ममता से सहलाया जैसे बचपन के किसी संगीसाथी को सहला रही हों. उन्हें लगा कि आज सही अर्थों में उन का जन्मदिन है. बड़े प्रेम से उन्होंने दोनों हाथों में सितार उठाया और सितार के तार एक बार

फिर बरसों बाद झंकार से भर उठे. लग रहा था जैसे पुष्पाजी की उंगलियां तो कभी सितार को भूली ही नहीं थीं.

Emotional Story

Thriller Story in Hindi: नई कालोनी- जब महरी को दिखा तेंदुआ

Thriller Story in Hindi: आधुनिक स्कूलों की जाती एसी बसों में भारी बस्ते लिए बच्चे चढ़ रहे थे. उन की मौडर्न मांएं कैपरीटीशर्ट के ऊपर लिए दुपट्टे को संभालती हुई बायबाय कर रही थीं. कारें दफ्तरों, कारोबारों की तरफ रवाना हो रही थीं. पिछली सीट पर अपने सैलफोन में व्यस्त साहब लोग गार्ड्स के सलाम ठोकने को आंख उठा कर नहीं देखते. 11, 13 और 15 बरस की महरियां काम पर आ रही थीं और कालोनी के सुरक्षा गार्ड्स उन्हें छेड़ रहे थे.

पौश कालोनी के सामने हाईवे सड़क की झडि़यों पर फूल सी कोमल धूप खिल ही रही थी. उस में आज फिर धूल के तेज गुबार आआ कर मिल उठ गए थे. उस पार कलोनाइजर की मशीनी फौज उधर के बचे जंगल को मैदान में बदल रही थी. हाईवे सड़क के आरपार 2 ऊंचे बोर्ड थे. निर्माणाधीन नील जंगल सिटी, नवनिर्मित नील झरना सिटी.

कालोनी द्वार के सजीले पाम वृक्षों की चिडि़यां न जाने क्यों अचानक चुप लगा गई थीं. बाकी सब ठीक चल रहा था. दूसरी कतार के तीसरे बंगले में रहने वाली गृहिणी अपने दोनों बच्चों को स्कूल बस में और पति को कार में विदा कर ऊपरी बैडरूम में कांच के सजीले जग में पानी रख चुकी थी. अब दोनों जरमन शेफर्ड कुत्तों को खाने में उबला मीट दे रही थी. वह चुप और उदास दिख रही थी. हिंदुस्तानियों को ऐसी स्त्रियां हमेशा ही बहुत पसंद रही हैं जो अलसुबह उठ कर सब के जाने की तैयारी, जाने के बाद उन के जूठे बरतन और बिस्तर पर छूटे गीले तौलिए, कपड़े समेटना, आने पर सब का सत्कार और गैरमौजूदगी में घर की सुव्यवस्था आदि करती हैं. परिचित पड़ोसी, नातेरिश्तेदार कौन नहीं जो इस गृहिणी की मिसाल अपनी स्त्रियों को न देता हो.

कवर्ड कैंपस कालोनी के बीचोंबीच के गार्डन पार्क, स्याह रेशम सड़कों के किनारों के फूलों वाले बौने पेड़ों और कुल जमा प्राकृतिक माहौल ने न जाने क्यों एकाएक दम साध लिया. बाकी सब अच्छा चल रहा है. पहली कतार के पहले ही बंगले में रहने वाले अतिवृद्ध दंपती अपनी बालकली में बैठे थे. वे नए प्राप्त स्मार्टफोन पर, इतनी ऊंची आवाज में, अपने बेटों से बतिया रहे थे जैसे बिना फोन के भी वे उन की बात सुन लेंगे आस्टे्रलिया या नौर्वे या फिर लंदन में.

तभी अचानक पर्षियन बिल्ली पता नहीं क्यों रो उठी है जबकि उस की बूढ़ी,

एकाकी, रिटायर्ड मालकिन उस के पास ही पार्क में फ्लाश के 2 पेड़ों तले जौगिंग कर रही थी, ये पेड़ अपने टेढ़मेढे़पन की कलात्मकता के कारण कभी बख्श दिए गए थे.

पूरा जीवन अपनी पसंद की सर्वोच्चता के साथ बिताने के बाद अब सफल स्त्री के पास बात करने को सिर्फ यह पर्षियन बिल्ली ही बची थी. अपने शरीर की अतिस्थूलता से थकती व्यायाम करने बैठी थी और सोच रही थी कि बिल्ली को आज डाक्टर के पास ले जाएगी.

एक डुपलैक्स के बाहर से हवा की तरह गुजर गए किसी को, किसी ने नहीं देखा. इस घर में बड़ी व्यस्तता है. परसों ब्याही गई दुलहन बेटी पगफेरे के लिए मायके लौटेगी आज. बेटी से ज्यादा दामाद के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. पिता अलसुबह ही निकल गए थे फूल लाने के लिए. मां कितने ही पकवान बनाते नहीं थक रही थीं और छोटा भाई पटाखों की पेटी लिए आ रहा था. उस ने दीदी से कभी नहीं कहा कि वह उन से मम्मी जितना ही प्यार करता है.

दूसरी कतार के दूसरे बंगले वाली कामकाजी युवा मां आज फिर लेट हो गई थी औफिस जाने को. आया को आने में देर हो गई आज भी. टिफिन, लैपटौप, फाइलें साधतीसमेटती वह दौड़ कर कार तक आई. अपनी अतिव्यस्तता में आज भी वह पलट कर बाय करना भूल गई आया की गोद में से उसे देख रही 10 माह की बेटी से. लिव इन रिश्ते से पैदा इस संतान की बेहतर परवरिश के लिए ही युवा मां ने कभी शादी न करने का निर्णय लिया था और उसे अपनेआप में लगता था कि यों इस संतान की अकेले परवरिश एक महान पथ है जिस पर वह चल पड़ी है.

जैसे कोई है, कोई जो इंसानी ताकतों से बेखौफ रहता है, कुछ घटित होने वाला है, ईको चुप हो कर चीख रहा है जैसे और तो सब, हर दिन की तरह बढि़या चल रहा है कालोनी में. अड़ोसीपड़ोसी दोनों लड़के वार्षिकोत्सव के बहाने स्कूली छुट्टी होने से, सेलफोन में डूब कर औनलाइन गेम खेल रहे हैं, नाश्ता ले कर, मां को भी उन्होंने कमरे के दरवाजे से ही लौटा दिया है… निजता का आग्रह इतना प्रबल है कि मातापिता भी मौका देख कर ही सलाह देते हैं.

यहां का जीवन अपनी तात्कालिकताओं में इतना खपा हुआ कि छठी इंद्री की प्राकृतिक शक्ति सुन्न हो चुकी थी. कुछ भांपा नहीं जा सका था. सुरक्षा के भ्रम में बेपरवाह लोग दैनिक कामों की बावत आवाजाही कर रहे थे. कालोनी के मुख्यद्वार पर एक जानेपहचाने से आगंतुक की लंबी कार की ओर सलाम करते गार्ड्स आज भी बंद होंठों में मुसकरा रहे हैं. हर दिन की तरह पौश कालोनी अपने ऐश्वर्य में व्यस्त दिखाई दे रही थी.

अब एक डुपलैक्स के सजीले ड्राइंगरूम में 11 साल की महरी वैक्यूमक्लीनर चला रही थी. सोफे के कोने में भूसा भरी हिरन देह सजी थी. ऐन उस के पीछे बैठे तेंदुए पर उस की नजर पड़ी. चलता वैक्यूमक्लीनर उस की ओर बढ़ाने से पहले एक पल को उस का मन उस से खेलने को हुआ मालिक दंपती के बेटों ने अब की जो सजावटी सामान डिलिवर करवाया था, नन्ही महरी का मन उस से खेलने को हुआ या पर मां ने सम?ाया कि किसी तरह के लालच में न आना काम वाले घर में.

‘‘अरे. यह तो एकदम सचमुच का लग रहा है,’’ वेक्यूमक्लीनर लिए वह उस की तरफ अभी बढ़ी ही थी कि उसे तेंदुआ और ज्यादा सचमुच का लगने लगा और देखते ही देखते उस खिलौने ने आक्रमण की मुद्रा बना ली. तब जा कर बच्ची महरी को पता लगा कि यह तो सचमुच का तेंदुआ है. फिर जान बचा कर बाहर को भागी.

‘‘तेंदुआतेंदुआ… कोई बचाओ. घर में तेंदुआ घुस आया है,’’ मां ने सिखाया था कि किसी मुसीबत में फंस जाओ तो भागने की कोशिश करना, चीखने की कोशिश करना.

बच्ची महरी की चीखों से एलीटमौन वाली कालोनी गूंज गई.

‘‘तेंदुआ है, अंदर तेंदुआ है, तेंदुआ है.’’

सुस्ताते लोग हड़बड़ा कर इधरउधर भागने लगे. हर हाथ में फोन था, पर सू?ा किसी को नहीं कि उस का इस्तेमाल करना है. वे सब उसी ओर भागे जिधर तेंदुए की खबर थी.

बच्ची महरी भाग खड़ी हुई. भीड़ डुपलैक्स के बाहर इकट्ठी हो रही थी और अति

वृद्ध दंपती ऊपरी मंजिल पर ही रह गए थे. निचली मंजिल में तेंदुआ होगा. दूर खड़े लोग मदद पर विचारविमर्श कर रहे थे.

‘‘कोई सौ नंबर डायल करो.’’

‘‘नहीं पुलिस नहीं, वन विभाग को फोन करो.’’

‘‘कोई इन के बच्चों को फोन करो.’’

‘‘लंदन?’’

‘‘नहीं, नौर्वे.’’

वृद्ध दंपती कांपते हाथों से नया फोन एकदूसरे को बारबार लेदे रहे हैं. उन्हें सम?ा नहीं आ रहा था कि अपने किस बेटे को फोन करें इस घड़ी में. 3 बहुत सफल पुत्रों के मातापिता से इसी घबराहट में फोन छूटा और बालकनी से नीचे गिर कर टूट गया.

ऊपरी बालकनी में अति वृद्ध दंपती और निचली मंजिल में मौजूद तेंदुआ ही इस समय का सच था.

8-10 मिनट हो चुके लोगों को आए पर तेंदुए को किसी ने देखा नहीं था. सो अब तक

वह सब के लिए कम यकीन की चीज होता जा रहा था. कोई तो बच्ची महरी के लिए यह भी कह रहा था कि ये गरीब लोग अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी की हत्या भी कर सकते हैं.

बहरहाल, गार्ड्स को आगे किया गया. तीनों ने हौसला कर दरवाजे से झंका. तेंदुआ कहीं दिखाई नहीं दिया.

‘‘हम अंदर नहीं जाएंगे.’’

‘‘तब तुम लोग हो किसलिए?’’

‘‘सलाम ठोकने, भिखारी रोकनेटोकने को बोला था बिल्डर साहब ने. तेंदुआ पकड़ने की नौकरी थोड़े है,’’ कह कर पिछले ही महीने शहर आया अप्रशिक्षित तरुण गार्ड पीछे हट गया.

‘‘तुम लोगों के नाम पर हम कितनी ज्यादा सोसायटी मैंटेनैंस देते हैं.’’

‘‘साहब, हमारी बंदूकें असली नहीं

एअरगनें हैं.’’

‘‘क्या?’’

लोग चौंके कि इन अप्रशिक्षित, चिडि़यामार बंदूकचियों के हाथों उन के जानमाल की हिफाजत रही है अब तक.

दुलहन के छोटे भाई ने पटाखों की एक सुलगती लड़ी उस ड्राइंगरूम में उछाल दी थी.

जब तेंदुआ भीतर से निकला लोगों में हड़कंप मच गया.

असल तेंदुए को अपने बीच पा कर लोगों के होश उड़ गए. वह भीतर से दौड़ कर भीड़ की तरफ उछला. चीखते खौफजदा लोग हड़बड़ाते हुए एकदूसरे पर गिरने लगे. एक आदमी के सिर पर पंजा रख तेंदुआ

निकला तो गंजे सिर पर पंजे से गहरी खरोचें बन गईं. तेंदुआ दूसरी तरफ दौड़ा तो उस से आगे दौड़ते अति स्थूलधारी को अस्थमा का दौरा पड़ गया.

कोई हड़बड़ाहट में भागती हुई तेंदुए से ही टकरा गई. इस से तेंदुआ और भी बदहवास हो उठा. किसी ने उठा कर एक गमला मारा तब तेंदुए के मुंह से उस की गरदन छूटी.

सब कामों के लिए बहुत व्यवस्थित लोगों ने मौत से साक्षात्कार के बारे में कभी सोचा ही नहीं था. बदहवास एकाकी मालकिन अपनी पर्शियन बिल्ली को खोज रही थी. बिल्ली दिखाई नहीं दे रही थी.

तेंदुआ बदहवास सा कभी इधर तो भी उधर दौड़ रहा था. फिर वह एक खुले डुपलैक्स में जा घुसा.

‘‘ बेबी अंदर है… बेबी अंदर है,’’ आया चीख रही थी. बाहर शोर सुन कर वह बिना दरवाजा बंद किए चली आई थी. 10 माह की बच्ची भीतर पालने में सो रही थी.

बेहद घबराई आया बारबार फोन लगा रही थी. सिंगलपेरैंट युवा मां अपनी कंपनी के बहुराष्ट्रीय क्लाइंट्स के सामने खड़ी प्रस्तुतीकरण दे रही थी, अपनी पूरी प्रतिभा और योग्यता ?ांक कर. पानी पीने के बहाने आधे पल को उसने फोन में देखा. घर के सीसीटीवी कैमरों में बेटी सुकून से सोई दिखाई दी. आया की कौल उस ने फिर से काट दी.

13 साल का लड़का दोस्त को अपना स्मार्टफोन दे कर, दौड़ता हुआ डुपलैक्स में घुस गया. सोशल मीडिया पर लाइव बहादुरी दिखा कर हीरो बन जाने का इस से अच्छा अवसर भला क्या होगा. 3 मिनट बाद बच्ची को गोद में उठाए वह बाहर आ गया. लोग तालियां बजाने लगे.

अब दोस्त उस से पूछ रहा था, ‘‘क्या वहां तुम्हारा सामना उस तेंदुए से हुआ?’’

‘‘क्या अंदर तेंदुआ था? मुझे तो लगा बच्ची आग में फंसी होगी,’’ और दोस्त ने लाइव वीडियो बंद कर दिया.

सब तेंदुए से इधर फूलों के छोटे गमलों के पीछे एकाकी मालकिन को अपनी पर्शियन बिल्ली मिल गई. मालकिन उसे सीने से चिपटाए वहीं बैठ गई.

किसी ने दौड़ कर डुपलैक्स का दरवाजा बंद कर दिया. कुछ देर बाद तेंदुआ ऊपरी बालकनी से पास की दूसरी बालकनी में कूद गया.

तेंदुआ एकदम फ्लैट में बैठे जोड़े के सामने जा पड़ा. एक पल को तो जोड़े की दशा ऐसी हो गई जैसे गृहिणी का पति सामने आ खड़ा हुआ हो. तेंदुए से ज्यादा फिक्र नीचे से आती सामूहिक आवाजों की थी, लोग शायद इधर ही को इकट्ठा हो चले थे.

कुछ समय पहले तक प्रेमिका जिस की बांहों में खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी, अब उस की उपस्थिति ही तेंदुए से अधिक असुरक्षित कर रही थी. अब न तो भागा जा सकता था और न ही कपड़े पहन पाने का समय था. इस से पहले कि तेंदुआ कुछ कर पाता गृहिणी ने इधरउधर देखा और फिर पानी से भरा कांच का जग उठा कर दे मारा.

तेंदुआ हड़बड़ा कर बालकनी से नीचे गिर गया बाउंड्री में खुले 2 जरमन शेफर्ड के बीच. तगड़े भेडि़ए सरीखे कुत्ते अब तक के अपने जीवन में किसी से न डरे थे. वे खतरनाक प्रशिक्षण पाए और केवल गोश्त पर पले हैं और सामने जंगल का तेंदुआ था.

दोनों शिकारी कुत्तों ने एकसाथ हमला बोला, जंगल के उस शानदार शिकारी पर जो इस समय अपने दुरुस्त हाल में नहीं था. एक ओर सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित जोड़ी है तो दूसरी तरफ जंगल में पली प्रतिभा. वह प्रतिभा जोकि मां द्वारा छोड़ दिए गए अबोधों में जंगल तराशती है किसी क्रूरतम पिता की तरह.

उन तीनों में खूनी संघर्ष शुरू हो चुका था. दूर खड़ी भीड़ में बहुतेरे ऐसे हैं जिन्होंने डब्ल्यूडब्ल्यूई और ऐनीमल चैनल्स से बाहर सच्ची हिंसा आज पहली बार देखी है. कुछेक अपनी चरम उत्तेजना में, फायर ब्रिगेड, पुलिस, वन विभाग, टीवी चैनल जिसे जो नंबर याद आ रहा था, कौल लगा रहे थे. लोग मदद को पुकार रहे थे. बच्चे जो चले आए थे उन्हें खींच कर वापस ले जाने को उन की मांएं दौड़ी चली आ रही थीं.

5वें डुपलैक्स वाली को आता देख बहुतों का ध्यान तेंदुए से हट गया. वह जो सब से ग्लैमरस चेहरा है इस कालोनी का और सब से फैशनेबल भी ओह, बिना साजशृंगार, घरेलू कपड़ों में वह कितनी साधारण दिख रही थी और कुछ उम्रदराज भी.

कुछ देर के भीषण संघर्ष के बाद खून से लथपथ तेंदुआ खड़ा हुआ किसी विश्व विजेता रैस्लर की तरह. दोनों शिकारी कुत्तों को मरणासन्न छोड़ कर कूदा और कवर्ड कैंपस के बीचोंबीच बौने फूलों के बीच से गुजरता गार्डन की अेमरिकन दूब पर जा बैठा.

लोग तेंदुआ पकड़ने के लिए आ रही रैस्क्यू टीम को फोन लगालगा कर हलकान हुए जा रहे थे.

यों हाईवे सड़क के धूलगुबारों से गुजर कर पाम वृक्षों की चिडि़यों को भयभीत करता, पर्षियन बिल्ली को अपनी मौजूदगी से आक्रांत करता, कुल प्राकृतिक माहौल को सजग करता, हवा की तरह दौड़ता और ईको में अपनी उपस्थिति महसूस करवाता वह जो यहां तक चला आया, वह तेंदुआ अब शांत बैठा था. उस की देह की खरोचों से रिस्ते खून को दूब तले की जमीन सोख रही थी.

यही जमीन जिस पर कभी एक तन्वी नदी ‘नील ?ारना’ बहती थी. उस वक्त की निशानी अब बस पलाश के ये 2 पेड़ बचे हैं और तेंदुए को लौटने की एकदम सही राह याद आ गई नदी में पानी पी कर इन पेड़ों तले से, जंगल लौट जाने की राह.

तेंदुआ कूदताफांदता, कालोनी, भव्यद्वार, हाईवे सड़क पार करता, नील जंगल के पेड़ों को मार डालती मशीनी फौज के बीच से गुजरता बचेखुचे जंगल में जा कर ओझल हो गया.

इधर कालोनी में एक कोलाहल उठ कर शांत हो गया और उधर जंगल में क्या हुआ किसे पता.

Thriller Story in Hindi

Hindi Fictional Story: नन्हा मेहमान- क्या मिल पाया वह डौगी

Hindi Fictional Story: ‘‘मम्मी… मम्मी,’’ चिल्लाता 10 वर्षीय ऋषभ तेजी से मकान की दूसरी मंजिल में पहुंच गया. उस के पीछेपीछे 8 वर्षीय छोटी बहन मान्या भी खुशीखुशी अपनी स्कर्ट को संभालती चली आ रही थी.

अल्मोड़ा शहर की ऊंचीनीची, घुमावदार सड़कों से बच्चे रोज ही लगभग 2 किलोमीटर पैदल चल कर अपने मित्रों के संग कौंवैंट

स्कूल आतेजाते हैं. सभी बच्चे हंसतेबोलते कब स्कूल से घर और घर से स्कूल पहुंच जाते, उन्हें इस का एहसास ही नहीं होता, जबकि पीठ में बस्ते का भार भी रहता. रितिका भी दोपहर तक बच्चों के घर पहुंचने के दौरान अपने सारे काम निबटा लेती. बच्चों को खिलापिला कर होमवर्क करने को बैठा देती. तभी दो घड़ी अपनी आंख   झपका पाती.

आज ऋ षभ की आवाज सुन कर कमरे से निकल बरामदे में आ गईं. मन में अनेक आशंकाओं ने इतनी देर में जन्म भी ले लिया. सड़क दुर्घटना, हादसा और भी तमाम खयालात दिमाग में दौड़ गए.

‘‘यह देखो मैं क्या लाया?’’ शरारती ऋ षभ ने अपने हाथों में थामे हुए लगभग 2 महीने के पिल्ले को   झुलाते हुए कहा.

मान्या अपनी मम्मी के मनोभावों को पढ़ने में लगी हुई थी. उसे मम्मी खुश दिखती तो वह अपना योगदान भी जाहिर करती, नहीं तो सारा ठीकरा ऋ षभ के सिर फोड़ देती.

‘‘सड़क से पिल्ला क्यों उठा कर लाए? अभी इस की मां आती होगी, जब तुम्हें काटेगी तभी तुम सुधरोगे,’’ रितिका गुस्से से बोली.

‘‘सड़क का नहीं है मम्मी, हमारे स्कूल में जो आया हैं, उन्होंने दिया है. ये स्कूल में पैदा हुए हैं. आयाजी ने कहा है जिन्हें पालने हैं वे ले जाएं. स्कूल में तो पहले ही 4 भोटिया डौग हैं,’’ ऋ षभ ने सफाई देते हुए उसे फर्श पर रख दिया. पिल्ला सहम कर कोने में बैठ गया और अपने भविष्य के फैसले का इंतजार करने लगा.

‘‘चलो हाथमुंह धोलो, खाना खाओ. इसे कल स्कूल वापस ले जाना. हम नहीं रखेंगे. तुम्हारे पापा को कुत्तेबिल्ले बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘पर पापा के घर में गाय तो है न, दादी गाय पालती हैं,’’ मान्या बीच में बोली.

‘‘गाय दूध देती है,’’ रितिका ने तर्क दिया.

‘‘कुत्ता भौंक कर चौकीदारी करता है,’’ मान्या का तर्क सुन कर ऋ षभ की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मु  झे इस पिल्ले पर कोई एतराज नहीं है, मगर तुम्हारे पापा डांटेंगे तो मेरे पास मत आना.’’

मम्मी की बात सुन कर दोनों के मुंह उतर गए.

रितिका पुराने प्लास्टिक के कटोरे में दूध में ब्रैड के टुकड़े डाल कर ले आई, जिसे देख कर पिल्ला लपक कर कटोरी के बगल में खड़ा हो गया. ऋ षभ और मान्या की तरफ ऐसे देखने लगा मानो उन से इजाजत ले रहा हो और अगले ही पल कटोरे पर टूट पड़ा. कटोरे को पूरा चाट कर खुशी से अपनी दुम हिलाने लगा.

‘‘आंटी, आंटी…’ की तेज आवाज नीचे आंगन से आ रही थी. रितिका ने ऊपर बरामदे से नीचे   झांका. नीचे आगन से ऋ षभ की उम्र की

2 लड़कियां स्कूल ड्रैस पहने खड़ी थी.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ रितिका ने उन दोनों को पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘आंटी ऋ षभ हमारा पिल्ला ले कर भाग आया,’’ उन दोनों में से एक ने कहा.

‘‘  झूठ… इसे आयाजी ने मु  झे दिया था,’’ ऋषभ ने सफाई दी.

‘‘मम्मी यह पिल्ला स्कूल से ही लाया गया है. रास्ते में हम चारों ने इसे बारीबारी गोद में पकड़ा था. जब घर पास आने लगा तो तृप्ति इसे अपने घर ले जाने लगी तो भैया इसे अपनी गोद में ले कर भागता हुआ घर आ गया,’’ मान्या ने स्पष्टीकरण दिया.

‘‘आंटी ऋ षभ ने पहले कहा था कि तुम चाहो तो अपने घर ले जा सकती हो, लेकिन वह बाद में भाग गया,’’ वह फिर बोली.

रितिका को कुछ सम  झ ही नहीं आया कि वह किसे क्या सम  झाए.

‘‘मैं तो अब इसे किसी को भी नहीं दूंगा. मैं ने इस पर बहुत खर्चा कर दिया है,’’ ऋ षभ ने फैसला सुनाया.

‘‘क्या खर्चा किया?’’ उस ने नीचे से पूछा.

‘‘एक कटोरा दूध और ब्रैड मैं इसे खिला चुका हूं. अब यह मेरा है,’’ ऋषभ ने जिद पकड़ ली.

‘‘सुनो बेटा, आज तुम इसे यही रहने दो. घर जा कर अपनी मम्मी से पूछ लेना कि वे पिल्ले को घर में रख लेंगी. वे अगर सहमत होंगी तो मैं यह पिल्ला तुम्हें दे दूंगी. यहां तो ऋषभ के पापा इसे नहीं रखने देंगे. कल तुम्हें लेना होगा तो बता देना वरना वापस स्कूल चला जाएगा,’’ रितिका ने सम  झाया तो दोनों लड़कियों ने सहमति में सिर हिला दिया और वापस चली गईं.

‘‘खबरदार यह पिल्ला घर के अंदर नहीं आना चाहिए. इसे यही बरामदे में गद्दी डाल कर रख दो. तुम दोनों अंदर आ जाओ.’’

रितिका की बात सुन कर ऋषभ ने उसे पतली डोरी से दरवाजे से बांध दिया. उस के पास गद्दी बिछा कर कटोरे में पानी भर दिया. भोजन के बाद दोनों अपना होमवर्क करने लगे. बाहर पिल्ला लगातार कूंकूं करने लगा. दोनों बच्चे अपनी मम्मी का मुंह ताकते कि शायद वे रहम खा कर उसे अंदर आने दें, मगर रितिका ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा. कुछ देर बाद पिल्ले ने कूंकूं करना बंद कर दिया.

होमवर्क खत्म होते ही दोनों लपक कर बरामदे में आ गए, ‘मम्मीमम्मी’ इस बार मान्या और ऋ षभ दोनों एकसाथ पुकार रहे थे.

रितिका को   झपकी सी आ गई थी. शोर सुन कर वह तुरंत बाहर को लपकी.

‘‘मम्मी हमारा पिल्ला खो गया,’’ दोनों रोआंसे स्वर में एकसाथ बोले. पिल्ले के गले से बंधी डोरी की गांठ खुली पड़ी थी. डोरी की गांठ ढीली थी, जो पिल्ले की जोरआजमाइश करने के कारण खुल गई थी.

‘‘यहीं कहीं होगा, मेजकुरसी के नीचे देखो.’’

‘‘सीढि़यों से नीचे तो नहीं गया?’’ ऋ षभ ने शंका जताई.

रितिका ने सीढि़यों की तरफ देखा. सीढि़यां नीचे सड़क को जाती हैं.

‘‘मम्मी कहीं वह किसी गाड़ी के नीचे न आ जाए,’’ मान्या को चिंता हुई.

‘‘मु  झे नहीं लगता कि वह सीढि़यां उतर पायेगा, लेकिन अगर बरामदे में नहीं है तो नीचे आंगन में देखो.

वह अखरोट और नारंगी के पौधे के नीचे जो   झाडि़यां हैं हो सकता है उन में छिपा हो.’’

रितिका के ऐसा कहते ही वे दोनों सीढि़यों से नीचे को दौड़ पड़े. उन के पीछे रितिका भी उतर कर आ गई.

उसे भी मन ही मन अफसोस हो रहा था कि काश वह उसे कमरे के अंदर अपनी आंखों के सामने ही रखती.

नीचे की मंजिल में रहने वाले किराएदार के बच्चे भी पिल्ला खोजो अभियान में  शामिल हो गए 2 घंटे बीत गए. सूर्य के ढलने के साथ ही अंधेरा छाने लगा तो रितिका बच्चों को ऊपर ले आई. बच्चों के चेहरे पर छाई उदासी से उस का मन दुखी हो गया. बच्चों को बहलाते हुए बोली, ‘‘अब तुम्हारे पापा के घर लौटने का समय हो गया है. पिल्ले की बात मत करना. अच्छा हुआ वह खुद चला गया.’’

दोनों बच्चे टीवी के आगे बैठ कर कार्टून देखने लगे. मन ही मन वे बेहद दुखी हो रहे थे.

पापा ने घर आने के कुछ देर बाद उन से पूछा, ‘‘होमवर्क कंप्लीट कर लिया?’’

‘‘हां पापा,’’ मान्या ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘आज क्या मिला होमवर्क में?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘पापा आज केवल मैथ्स और इंग्लिश में रिटेन होमवर्क मिला था. ओरल भी सब याद कर लिया है,’’ मान्या अपनी कौपी निकाल कर पापा को दिखाने लगी.

‘‘पापा इंग्लिश में ऐस्से लिखना था- माई पैट एनिमल’’ मान्या रोआंसी हो कर बोली.

‘‘तो क्या नहीं लिखा अभी तक?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘लिख लिया माई पैट डौग,’’ मान्या का गला रुंध गया. उसे पिल्ला याद आ गया.

‘‘पापा मेरा भी होमवक चैक कर लीजिए,’’ ऋ षभ भी अपनी कौपी उठा लाया. उस ने मान्या को वहां से चले जाने का इशारा किया. मान्या अपनी कौपी उठा कर रसोई में अपनी मम्मी के पास आ गई.

मम्मी रात के भोजन की तैयारी में व्यस्त थी. मान्या को देख कर बोली, ‘‘भूख लगी है मान्या? बस 5 मिनट रुको.’’

‘‘नहीं मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं है. वह पिल्ला अंधेरे में कितना डर रहा होगा न. मम्मी आज आप ने डौग के ऊपर निबंध लिखवाया. मु  झे पूरा याद भी हो गया पिल्ले की वजह से. उस की लैग्स, उस की टेल, उस की आईज.’’

रितिका ने पलट कर मान्या के बालों को प्यार से सहला दिया. रात को  सोते समय दोनों बच्चे रितिका के पास आ गए.

‘‘जाओ तुम दोनों अपनेअपने कमरे में,’’ रितिका ने कहा.

आज दोनों बच्चों को नींद नहीं आ रही थी. उन को उदास देख कर रितिका ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें एक सच्ची कहानी सुनाती हूं.’’

‘‘किस की कहानी है?’’ ऋ षभ ने पूछा.

‘‘कुत्ते और बिल्ली की,’’ रितिका ने कहा.

‘‘हां मैं सम  झ गया आप अपनी बिल्ली और मामाजी के कुत्ते की कहानी सुनाएंगी. मैं ने उन दोनों के साथ में बैठे हुए फोटो देखा है,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘हां मैं ने भी देखा है. दोनों एक ही पोज में कालीन पर बैठे हुए हैं,’’ मान्या बोली.

‘‘सुनो कुत्ते और बिल्ली के हमारे घर में आने की कहानी,’’ रितिका हंस कर बोली.

जुलाई का महीना था. बाहर बारिश हो रही थी. सड़कों के गड्ढे भी पानी से भर गए थे. तभी म्याऊंम्याऊं करती आवाज ने सब का ध्यान आकर्षित कर लिया. नन्हे से भीगे हुए बिल्ली के बच्चे को देख कर मैं अपने को रोक न सकी. उसे कपड़े से पकड़ कर अंदर ले आई. सब ने सोचा बारिश बंद हो जाएगी तो चला जाएगा. मगर वह नहीं गया. हमारे ही घर में रहने लगा. हां कभीकभी घर से घंटों गायब भी रहता, मगर शाम तक लौट आता.’’

‘‘मम्मी मामाजी के डौग शेरू से उस की लड़ाई नहीं हुई?’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं जब मेरी पूसी 1 साल की हो गई उन्हीं दिनों हम शेरू को रोड से उठा कर घर लाए थे. वह तो पूसी से डरता था. पूसी अपना अधिकार सम  झती थी. उस के ऊपर खूब गुर्राती. बाद में उस के साथ खेलने लगी. दोनों में दोस्ती हो गई. जब शेरू का आकार पूसी से बड़ा भी हो गया वह तब भी पूसी से डरता था. अब उस बेचारे को क्या मालूम कि वह कुत्ता है और बिल्ली को उस से डरना चाहिए. वह अपनी पूरी जिंदगी बिल्ली से डरता रहा,’’ रितिका बोली.

यह सुन कर दोनों बच्चे हंसने लगे.

‘‘चलो बच्चों देर हो गई जा कर सो जाओ,’’ पापा अपना लैपटौप बंद

कर बोले. बच्चे तुरंत उठ कर चले गए.

आधी रात को खटरपटर सुन कर प्रकाश की नींद खुल गई. उस ने कमरे की बत्ती जलाई और इधरउधर देखने लगा.

रितिका ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘मु  झे बहुत देर से कुछ आवाजें सुनाई दे रही हैं.’’

‘‘कैसी आवाजें? वह चोर के छिपे होने की आशंका से घबराई और उठ कर बैठ गई.’’

तभी बैड के नीचे से पिल्ला निकल कर  कूंकूं करने लगा. उसे देख कर प्रकाश को   झटका लगा.

‘‘यह पिल्ला कहां से अंदर आ गया?’’ वह आश्चर्य से चीख पड़ा.

बच्चे पापा की आवाज सुन कर भागते हुए आ गए. पिल्ले ने उन्हें देख कर दुम हिलानी शुरू कर दी.

‘‘पापा इसे हम स्कूल से ले कर आए थे. मगर यह हमें शाम को नहीं मिला. हम ने सोचा यह खो गया है,’’ ऋ षभ ने बताया.

‘‘पापा लगता है यह शैतान तो चुपके से अंदर आ गया और आप के बैड के नीचे सो गया मान्या ने कहा,’’ मान्या ने कहा.

‘‘हां बेचारा चिल्लाचिल्ला के थक गया होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘कल बच्चे इसे स्कूल छोड़ आएंगे,’’ रितिका ने सफाई दी.

‘‘पापा क्या हम इसे पाल नहीं सकते?’’ मान्या ने पूछा.

प्रकाश ने एक पल अपने बच्चों के आशंकित चेहरों को देखा फिर हामी भर दी.

‘‘थैंक्स पापा. मैं इस का नाम ब्रूनो रखूंगी,’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं इस का नाम शेरू होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

जो पिल्ले को घुमाने ले जाएगा, उस की पौटी साफ करेगा उसी को नाम रखने का अधिकार होगा,’

’ रितिका की बात सुन कर ऋषभ और मान्या एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

Hindi Fictional Story

Brave Indian Daughters: ब्रेव ऐंड डेयरिंग डौटर्स, हर बौर्डर तोड़ें

Brave Indian Daughters: 22 अप्रैल को जम्मूकश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस हमले में कई पर्यटक मारे गए. हमले के 15 दिन बाद भारत ने इस का करारा जवाब 7 मई की आधी रात को दिया. एक ऐसा जवाब जिस ने न सिर्फ आतंकियों के मंसूबे तोड़े बल्कि पाकिस्तान को भी सख्त संदेश दिया कि यह नया भारत है जो चुप नहीं बैठता.

भारत प्रशासित कश्मीर के संदर्भ में कहा जाए तो सदियों पुरानी फारसी पंक्ति का अनुवाद सटीक बैठता है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है. इस हकीकत को कोई झुठला नहीं सकता. ऊंचे हिमालय पर्वतों के बीच बसा यह छोटा सा शहर जिस के बीच से कलकल करती नदी बहती है. तभी तो इस को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है. यहां की घाटियां और घास के मैदान लंबे समय से बौलीवुड रोमांटिक सीन्स के लिए परफैक्ट प्लेस रहे हैं और भारत के दूसरे राज्यों की गरमी से बचने के लिए हजारों पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं. लेकिन 22 अप्रैल को यह शांत घाटी दुनियाभर के मीडिया की सुर्खियों में तब आ गई जब यहां का विशाल घास का मैदान कत्लेआम के मैदान में बदल गया.

शहर से लगभग 7 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत जगह बैसरन में उग्रवादियों ने 25 हिंदू पुरुष पर्यटकों को चुनचुन कर उन के परिवारों के सामने नृशंस हत्या कर दी. आतंकवादियों ने सभी लोगों को यानी मुसलिम को अलग और हिंदू को अलग होने का आदेश दिया और फिर सभी हिंदू पुरुषों को गोली मार दी. आतंकवादियों ने पुरुषों से 3 बार ‘कलमा’ पढ़ने को भी कहा. जो लोग इसे नहीं पढ़ पाए उन का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया.

पर्यटकों की मदद करने की कोशिश कर रहे एक स्थानीय मुसलिम टट्टू संचालक की भी गोली मार कर हत्या कर दी गई. इस घाटी में उस दिन कई नए जोड़े भी घूमने के लिए आए थे जिन की नईनई शादी हुई थी. एक महिला की तो कुछ दिनों पहले ही शादी हुई थी. इस महिला को अपने पति के शव के साथ बैठे रोते देख लोगों की आंखों में आंसू आ गए थे.

निंदनीय घटना

इस नरसंहार ने परमाणु सशस्त्र भारत और पाकिस्तान को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया. भारत ने इन हत्याओं के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया तो इस्लामाबाद ने इस आरोप का खंडन किया. दोनों देशों ने मई के महीने में 4 दिनों तक एकदूसरे पर मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया जिस के बाद एक नाजुक युद्ध विराम पर सहमति बनी.

यहां जो हुआ वह निंदनीय है. निर्दोष लोग मारे गए. उन के साथ कू्ररता की गई. नतीजा क्या हुआ? हमले के तुरंत बाद पर्यटक शहर छोड़ कर भाग गए तथा जो लोग आने की योजना बना रहे थे उन्होंने भी आना रद्द कर दिया. एक खूबसूरत शहर से कितने ही लोग जिंदगी का सब से बुरा अनुभव ले कर लौटे. भारतपाकिस्तान के बीच कड़वाहट और बढ़ गई.

आतंकियों ने भारतीय महिलाओं के सामने उन के पतियों के सिर में और सीने में गोलियां मारी थीं. ये बहुत गहरे जख्म थे जिन्हें वे महिलाएं कभी नहीं भुला पाएंगी जिन्होंने अपना जीवनसाथी इस हमले में खो दिया. बैसरन घाटी में आतंकी जब पुरुषों को गोली मार रहे थे तो उन के परिवार वालों से कह रहे थे कि जाओ अपनी सरकार को बता देना.

औपरेशन सिंदूर

ऐसे में जब भारत ने इन आतंकियों को जवाब दिया तो औपरेशन का नाम ‘औपरेशन सिंदूर’ रखा. ‘औपरेशन सिंदूर’ से बेहतर नाम शायद इस हमले के लिए हो ही नहीं सकता था. यह औपरेशन उस सिंदूर का बदला था जो बैसरन घाटी में सुहागिनों के माथे से पोंछ दिया गया और उन की मांग सूनी कर दी गई थी. भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से ले कर उस के दिल पंजाब के बहावलपुर तक 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया. भारतीय सेना ने पाकिस्तान पीओके में घुस कर आतंकियों के इन ठिकानों को बरबाद किया. भारत की एयर स्ट्राइक में 70 से ज्यादा लश्कर आतंकी मारे गए.

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में बैठे क्रूर आतंकवादियों को सजा देने के लिए भारत ने जब औपरेशन सिंदूर लौंच किया और उन्हें सबक सिखाया तो देश को इस के बारे में जानकारी देने के लिए भारतीय सेना ने 2 महिला चेहरों को आगे किया. इन में से एक इंडियन एअरफोर्स की विंग कमांडर व्योमिका सिंह और दूसरी कर्नल सोफिया कुरैशी थीं. ये दोनों महिलाएं ‘औपरेशन सिंदूर’ के लिए पब्लिक फेस बनीं. औरतों के सुहाग पर की गई कू्ररता का अंजाम दुश्मनों को किस तरह भुगतना पड़ा इसे हम भारतीयों को बताने का दायित्व 2 महिलाओं को सौंपा गया. उन से लोग कनैक्ट हुए. लोगों के दिलों को तसल्ली मिली. कलेजे में ठंडक पड़ी.

‘औपरेशन सिंदूर’ के बारे में आधिकारिक तौर पर दुनिया को जानकारी देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के बारे में आज हरकोई जानना चाहता है. कर्नल व्योमिका सिंह और सोफिया कुरैशी भारत की 2 बहादुर बेटियां हैं जो भारतीय सशस्त्र बलों में अपनेअपने पद पर देश की सेवा कर रही हैं. व्योमिका सिंह भारतीय वायु सेना में विंग कमांडर हैं और एक अनुभवी हैलिकौप्टर पायलट हैं. सोफिया कुरैशी भारतीय सेना में कर्नल के पद पर हैं और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में एक अखिल भारतीय पुरुष दल का नेतृत्व किया था.

इन दोनों महिला अफसरों ने न सिर्फ प्रैस ब्रीफिंग में जानकारी दी बल्कि अपने आत्मविश्वास से लबरेज अंदाज से सभी का ध्यान भी खींचा. सेना में महिलाओं की भागीदारी को ले कर जो लोग सवाल उठाते थे उन्हें भी इन दोनों बहादुर बेटियों ने करारा जवाब दिया.

कर्नल सोफिया कुरैशी

कर्नल सोफिया कुरैशी 1999 में भारतीय सेना में शामिल हुई थीं. अपनी सेवा के 26वें वर्ष यानी मई, 2025 में ‘औपरेशन सिंदूर’ के लिए राष्ट्रीय मीडिया ब्रीफिंग के दौरान भारतीय वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह और भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ उपस्थित रहीं. वर्तमान में वे सिग्नल कोर की एक विशिष्ट इकाई की कमान संभाल रही हैं. अपने लंबे और शानदार कैरियर में कर्नल कुरैशी ने जम्मू और कश्मीर, पूर्वोत्तर, नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) पर ऊंचाई वाले क्षेत्रों से ले कर रेगिस्तानी इलाकों तक आतंकवादरोधी और उग्रवादरोधी अभियानों में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाई हैं.

कर्नल कुरैशी दुनिया की सब से बड़ी फील्ड ट्रेनिंग ऐक्सरसाइज में भारतीय सेना की टुकड़ी की कमान संभालने वाली उन गिनीचुनी महिला अधिकारियों में से एक हैं जिन में अमेरिका, रूस और चीन सहित 22 देशों की सेनाओं ने भाग लिया था.

कर्नल कुरैशी बहुभाषी और कवयित्री भी हैं. वे अपना खाली समय अपने परिवार के साथ बिताना पसंद करती हैं. वे हौकी और बास्केटबौल खेलती हैं और वर्तमान में गोल्फ खेलना सीख रही हैं. वे एडब्ल्यूडब्ल्यूए (आर्मी महिला कल्याण संघ) से भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं.

सोफिया कुरैशी गुजरात के वड़ोदरा की रहने वाली हैं. उन्होंने 1999 में शौर्ट सर्विस कमीशन के जरीए सेना में कदम रखा था. उस समय देश कारगिल युद्ध के दौर से गुजर रहा था. बहुत कम उम्र में सेना में शामिल हो कर उन्होंने एक ऐसा सफर शुरू किया जो आज युवाओं के लिए मिसाल है. सोफिया सेना की सिगनल कोर में अधिकारी हैं. इस कोर का काम है सेना के बीच संचार बनाए रखना. 2016 में उन्होंने एक अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास में भारतीय सेना का नेतृत्व भी किया.

सोफिया सैन्य परिवेश में पलीबढ़ी हैं. कर्नल सोफिया कुरैशी की ननिहाल उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित घाटमपुर के लहुरीमऊ गांव में है. कर्नल सोफिया का बचपन घाटमपुर और मुरादाबाद में बीता. उन की मां हलीमा की शादी मध्य प्रदेश में स्थित छतरपुर जिले के नौगवां में हुई थी. उन के पिता का नाम ताज मोहम्मद है. वे भी सेना में थे. हलीमा की 2 बेटियां कर्नल सोफिया और सायना जुड़वा हैं. घर का माहौल शुरू से ही ऐसा था कि कर्नल सोफिया भी राष्ट्र सेवा की बातें करती रहती थीं. दूसरे बच्चे जिस समय खेलखिलौनों की बात करते थे सोफिया सीमा पर जा कर देश सेवा की बातें करती थीं.

अपने पिता और परदादाओं की निष्ठा और अटूट समर्पण को बचपन से देखा है. लोरियों की जगह वीर रस और साहस की कविताएं और गीत सुने है. बचपन से ही सेना की वरदी उन्हें आकर्षित करती रही है. उन का दिल जानता था कि उन्हें भारतीय सेना में शामिल होना है लेकिन उस समय महिलाओं के लिए प्रवेश वर्जित था. इसलिए उन्होंने डीआरडीवो (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) में एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल होने का फैसला किया. हालात बदले और उन्हें सेना में आवेदन करने का अवसर मिला.

1992 में भारतीय सेना ने गैरचिकित्सा बैचों में 25 महिला कैडेटों को शामिल किया. जब सोफिया 1999 में भारतीय सेना में शामिल हुईं तो सिग्नल कोर में शामिल होने वाले शुरुआती बैचों में से एक थी. 2004 में भारतीय महिलाओं ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में न केवल पर्यवेक्षकों के रूप में बल्कि कांगो, लेबनान और दक्षिण सूडान सहित दुनिया के कई क्षेत्रों में रसद अधिकारियों, स्टाफ अधिकारियों और सैन्य पर्यवेक्षकों के रूप में भी सेवा देनी शुरू की.

‘औपरेशन सिंदूर’ के दौरान राष्ट्रीय ब्रीफिंग में महिला अधिकारियों की उपस्थिति ने बहुत कुछ कहा और यह संदेश दिया कि उत्कृष्टता का कोई लिंग नहीं होता. सोफिया युवाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि भारत की युवा आबादी 37 करोड़ से ज्यादा है. यह हमारे भविष्य को आकार देने वाली है. खुद पर विश्वास रखें. आत्मविश्वास आत्मविश्वास बढ़ाता है. साहसी, मेहनती और गतिशील बनें. सपने देखने का साहस करें. अपनी मानसिकता पर नियंत्रण रखें. टाइम मैनेजमैंट करें. 8+8+8 के नियम का पालन करें यानी 8 घंटे अपना काम पूरी लगन से करें, अपने शौक को पूरा करने के लिए 8 घंटे का समय निकालें और बाकी 8 घंटे सोएं. एक उत्साही पाठक बनें, अच्छी आदतें विकसित करें.

व्योमिका सिंह

व्योमिका सिंह ने दिल्ली के सेंट एंथनी सीनियर सैकंडरी स्कूल से पढ़ाई की है. उन्होंने सेंट एंथनी कालेज से ग्रैजुएशन की और बाद में ‘दिल्ली कालेज औफ इंजीनियरिंग’ से एन्वायरन्मैंटल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. अपने स्कूल के आखिरी दिन व्योमिका सिंह स्कूल के स्टाफरूम के बाहर खड़ी थीं. उन के हाथ में एक औटोग्राफ बुक थी. औटोग्राफ बुक में टीचर्स की ओर से स्टूडैंट्स के लिए संदेश लिखे जाते हैं. व्योमिका सिंह के बारे में उन की हिंदी की टीचर नीलम वासन ने लिखा था, ‘‘व्योमिका यानी जो व्योम को छूने के लिए बनी हो यानी तुम आसमान छूने के लिए पैदा हुई हो.’’ इस संदेश को पढ़ कर और साथ ही अपने नाम के अर्थ को समझते हुए व्योमिका के दिल में वास्तव में आसमान छूने की अभिलाषा जगी. उन्होंने तय किया कि वे अपना नाम सार्थक करेंगी.

1991-92 में स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने ऐंप्लौयमैंट न्यूज देखी जहां एक विज्ञापन में लिखा था कि केवल अविवाहित पुरुष उम्मीदवार ही पायलट बन सकते हैं. लेकिन फिर इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के दौरान उन्हें पता चला कि महिलाएं पीएससी के माध्यम से शौर्ट सर्विस कमीशन के लिए एक प्रतियोगी परीक्षा दे कर वे पायलट बन सकती हैं. उन्होंने अकादमी में पायलट कोर्स पास किया और उन्हें विंग्स से सम्मानित किया गया. इस तरह वे एक हैलिकौप्टर पायलट बन गईं. उस के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. यह एक उतारचढ़ाव भरा अनुभव था खासकर एक हैलिकौप्टर पायलट होने के नाते वे कई तरह की भूमिकाएं निभाती थीं. उन्होंने समुद्र तल से ले कर 18 हजार फुट की ऊंचाई तक उड़ान भरी है.

विंग कमांडर व्योमिका सिंह का मायका लखनऊ में है. उन के पिता का नाम आरएस निम और मां का नाम करुणा सिंह है. एअरफोर्स की कुशल हैलिकौप्टर पायलट विंग कमांडर व्योमिका सिंह का विवाह हरियाणा के भिवानी में स्थित बापोड़ा गांव में हुआ है. उन के पति विंग कमांडर दिनेश सिंह सभ्रवाल हैं. उन के 2 भाईबहन हैं- भूमिका सिंह और निर्मलिका सिंह. उन की बड़ी बहन भूमिका सिंह ब्रिटेन में वैज्ञानिक हैं. उन के मातापिता सेवानिवृत्त शिक्षक हैं. व्योमिका कभी भी सामान्य बच्चों की तरह खेलखिलौनों में नहीं उलझती थीं. खेलकूद, वादविवाद से ले कर पढ़ाईलिखाई में अव्वल रहती थीं. जब व्योमिका ने सभी परीक्षाएं पास कर लीं और एअरफोर्स में चुन ली गईं तो यह खुशखबरी सब से पहले मां के साथ ही साझा की थी. तब मां को अचानक विश्वास नहीं हुआ था.

व्योमिका सिंह एक जानीमानी हैलिकौप्टर पायलट हैं. वे 18 दिसंबर, 2004 को भारतीय वायुसेना में शामिल हुईं और 2017 में विंग कमांडर बनीं. उन के पास चीता और चेतक जैसे लड़ाकू हैलिकौप्टर उड़ाने का शानदार अनुभव है. वे 21 वर्षों से वायुसेना में सेवा दे रही हैं और उन के पास 2500+ घंटों की फ्लाइंग का अनुभव है. उन का नाम ही उन की पहचान बन गया है.  उन्होंने जिस आत्मविश्वास से प्रैस कौन्फ्रैंस में बात की वह उन के अनुभव और जिम्मेदारी को दिखाता है.

व्योमिका सिंह ने जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और अरुणाचल प्रदेश जैसे कठिन और दुर्गम इलाकों में चेतक और चीता हैलिकौप्टर्स को सफलतापूर्वक उड़ाया है. नवंबर, 2020 में उन्होंने अरुणाचल में एक महत्त्वपूर्ण बचाव मिशन का नेतृत्व किया था. यह मिशन पहाड़ी और दुर्गम इलाकों के बीच रात में उड़ान भरते हुए सफलतापूर्वक संपन्न किया गया था. वे 2021 में 21,650 फुट की ऊंचाई पर माउंट मणिरंग पर आयोजित एक त्रिसेना महिला पर्वतारोहण अभियान का भी हिस्सा रही हैं.

‘औपरेशन सिंदूर’ भारतीय सैन्य इतिहास में वह नाम बन गया है जिस ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों को निशाना बना कर भारत की सैन्य ताकत का परिचय दुनिया को दिया. इस औपरेशन में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने न केवल हैलिकौप्टर स्क्वाड्रन को कमांड किया बल्कि जटिल परिस्थितियों में निर्णय ले कर मिशन को सफल भी बनाया. उन की तेज निर्णयक्षमता और नेतृत्व कौशल की पूरे देश में सराहना हो रही है. महिला अधिकारियों की सैन्य क्षमताओं को ले कर जो पूर्वाग्रह होते हैं व्योमिका ने उन्हें अपनी कर्तव्यपरायणता से तोड़ा है.

विंग कमांडर व्योमिका सिंह नई दिल्ली में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए एक उच्च प्रोफाइल ब्रीफिंग में आत्मविश्वास से खड़ी थीं. उन्होंने ‘औपरेशन सिंदूर’ के बारे में विस्तार से जानकारी दी जो भारत द्वारा पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई हवाई काररवाई थी. इस ब्रीफिंग में उन के साथ थे विदेश सचिव विक्रम मिस्री और कर्नल सोफिया कुरैशी.

कर्नल सोफिया और विंग कमांडर व्योमिका उन लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो आज किसी मंजिल को पाने का सपना देख रही हैं. इन्होंने यह साबित किया है कि अगर इरादा पक्का हो तो कोई भी मुकाम दूर नहीं.

‘‘औपरेशन सिंदूर के दौरान राष्ट्रीय ब्रीफिंग में महिला अधिकारियों की उपस्थिति ने बहुत कुछ कहा और यह संदेश दिया कि उत्कृष्टता का कोई लिंग नहीं होता. सोफिया युवाओं को संदेश देते हुए कहती हैं कि भारत की युवा आबादी 37 करोड़ से ज्यादा है. यह हमारे भविष्य को आकार देने वाली है. खुद पर विश्वास रखें. आत्मविश्वास आत्मविश्वास बढ़ाता है…’’

‘‘पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान में बैठे क्रूर आतंकवादियों को सजा देने के लिए भारत ने जब औपरेशन सिंदूर लौंच किया और उन्हें सबक सिखाया तो देश को इस के बारे में जानकारी देने के लिए भारतीय सेना ने 2 महिला चेहरों को आगे किया. इन में से एक इंडियन एअरफोर्स की विंग कमांडर व्योमिका सिंह और दूसरी कर्नल सोफिया कुरैशी थीं…’’

Brave Indian Daughters

Women Warriors: टैक्नोलौजी वार में भी आगे

Women Warriors: बेबाक, निडर, बहादुर लड़ाका. भारतीय बेटियों के शौर्य की गाथा हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं. चाहे वह कहानी कित्तूर की रानी चेनम्मा की हो या झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की, हमारा इतिहास वीरांगनाओं के साहस और बलिदान से गौरवान्वित रहा है.

हम ने इन की शूरवीरता तो बहुत सुनी लेकिन देखी नहीं. मगर आज उसी वीरता का लोहा दिखाते हमारे देश की बेटियां डिफैंस में झंडे गाड़ रही हैं. आर्मी हो या एअर फोर्स या नेवी हर सैन्य बल में महिलाएं अपना बल दिखा और जमा रही हैं. पहले जहां हमारी महिलाओं को गौ कहा जाता था आज उन्हीं महिलाओं को शेर कहा जाता है.

हमारी वूमन फोर्स निर्भय, निडर और सक्षम है. जहां हमारी वीरांगनाओं ने घोड़े पर सवार हाथ में तलवार थामे दुश्मनों को चने चबवा दिए थे, वहीं आज हमारी काबिल औफिसर्स जेट में बैठ दुश्मनों को खदेड़ रही हैं.

एक समय वह भी था जब महिलाओं का आर्म्ड फोर्सेज में जाना सिर्फ कल्पना मात्र था. परिवार, समाज और स्वयं महिलाएं आर्म्ड फोर्सेज में जाना अच्छा और सुरक्षित नहीं मानती थीं. फोर्सेज तो सदैव से बल का प्रतीक माना गया है और बल हमेशा पुरुष का. पहले अगर कोई महिला फोर्सेज जौइन करने की बात भी करती तो समाज और परिवार उस का पुरजोर विरोध करता था. इस विरोध के पीछे कई कारण थे एक यह कि सेनाबल पुरुषों के लिए है औरतों के लिए नहीं, दूसरा औरतों में उतनी क्षमता व साहस नहीं जो पुरुषों में होता है, तीसरा यदि कोई औरत एक सैनिक बन गई तो वह दकियानूसी समाज के लिए एक खतरा बन जाएगी, चौथा अगर कोई महिला सैनिक दुश्मनों के हाथ लग गई तो उस के साथ दुष्कर्म होगा.

‘‘आधुनिक युद्ध अब सरहदों पर कब्जे का नहीं बल्कि बिना सरहदों को छूए एक देश को हराने का है. अब कन्वैंशनल वार होने की ज्यादा संभावना नहीं दिखती. अब वार होगी साइबर स्पेस और इंटैलिजैंस की, जिस में एक देश का दूसरे देश की हर हरकत, हर खुफिया जानकारी, रणनीति और कमजोरियों को एकत्र करना और फिर उन पर रिसर्च कर अपनी रणनीति तैयार कर हमला करना ही एक आक्रामक पहल होगी…’’

परिवार का गौरव

जो डर पहले था वह आज भी मौजूद है लेकिन हमारी बेटियों ने अपने कौशल, साहस और विवेक से इन परिस्थितियों पर विजय पा अपने लिए सैन्यशक्ति में जगह बना, उस की ताकत और बढ़ाई है. आज जब घर की बेटियां सेना में शामिल होती हैं तो उन्हें परिवार का गौरव कहा जाता है.

जो लोग यह कहते थे कि ये लड़कियों के बस की बात नहीं. आज वही लोग उन्हें सिर झुका सलामी देते हैं. पहले अकसर कहा जाता था कि टैक्नोलौजी की बात औरतों से न करो. यह उन के सिर के ऊपर से चला जाएगा. आज उन्हीं लोगों के सिर के ऊपर से नई टैक्नोलौजी के विमान औरतें ही उड़ा ले जा रही हैं, जिस का बहुत बड़ा उदाहरण फ्लाइट लैफ्टिनैंट शिवांगी सिंह है.

लैफ्टिनैंट शिवांगी सिंह भारतीय वायुसेना के राफेल विमान को उड़ाने वाली पहली महिला फाइटर पायलट के साथ ही गोल्डन एरो स्क्वाड्रन का हिस्सा भी हैं.

तनुष्का सिंह नाम को आज सब जानते हैं. मात्र 24 साल की उम्र में उन्हें भारतीय वायुसेना के जगुआर फाइटर जेट स्क्वाड्रन का स्थाई पायलट घोषित किया गया है. यह पहली महिला हैं जिन्हें यह औदा मिला है.

सब लेफ्टिनेंट आस्था पूनिया भारतीय नौसेना की पहली महिला फाइटर पायलट बन गई हैं.

तो जो लोग यह कह हंसते नजर आते थे कि तकनीक और हथियार औरतों के बस की बात नहीं आज उन्हीं लोगों की रक्षा औरतें तकनीकी हथियारों से कर रही हैं. उन लेटैस्ट टैक्नोलौजिकल वैपंस को अपने बाएं और दाएं दोनों हाथों में थामे देश की रक्षा के लिए तैनात हैं.

पिछले दशकों में भारतीय सैन्य बल की तीनों शाखाओं भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में महिला अधिकारियों की संख्या करीब 3 हजार थी. मगर आज यह आंकड़ा 11 हजार को पार कर चुका है.

ये आंकड़े केवल यह नहीं दिखाते कि महिलाओं की भरती में इजाफा हुआ है बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि महिलाओं की भूमिका भारतीय सेना में किस तरह बढ़ी है. आज भारतीय सेना में 507 महिला अधिकारी स्थाई कमीशन की अधिकारी बनी हैं.

जांबाज महिलाएं

जहां पहले महिला की भरती व पोस्टिंग मैडिकल बेस, नर्सिंग, ट्रेनिंग कैंप सपोर्ट पर सेवाएं देने तक सीमित रखी गई थी आज वहीं भारतीय सेना की जांबाज महिलाएं लड़ाकू विमानों में सवार दुश्मनों के ठिकाने उड़ा रही हैं, गोलियों से उन का सीना दाग रही हैं.

मगर अभी भी यही कहासुना जाता है कि महिलाएं युद्ध की मार और तनाव को नहीं ?ोल सकतीं. कमजोर हो पीछे हट जाएंगी या हार मान लेंगी. इस संकुचित सोच को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए कप्तान याशिका हैं.

भारतीय महिला सोल्जर कप्तान याशिका त्यागी एक अद्भुत मिसाल और आदर्श हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई. कप्तान याशिका जो उस वक्त गर्भवती थीं, लेह लदाख जोकि हाई लैटिट्यूड क्षेत्र है, जहां जमा कर मारने वाली ठंड हमेशा मौजूद रहती है, जहां औक्सीजन की मात्रा भी इतनी कम होती है कि लोगों के फेफड़े सूख जाते हैं, वे मर जाते हैं, ऐसे में एक गर्भवती महिला का वहां होना भी एक भयावह स्थिति है.

ऐसा कठोर वातावरण शिशु के लिए जानलेवा होता है. उस विषम परिस्थिति में भी कप्तान याशिका ने अपनी पोस्ट, अपने दल, अपनी ड्यूटी संभाले रखी और लौजिस्टिक्स ऐंड सपोर्ट का सारा कार्यभार बखूबी निभाया ताकि सीमा में लड़ रहे हमारे सैनिकों को सारी मदद समय पर मिलती रहे.

मिलिटरी में महिलाओं का होना न केवल महिलावर्ग की प्रगति, उन्नति और शौर्य का प्रतीक है बल्कि देश की उन्नति का भी है. महिलाओं का मिलिटरी में होना यह दर्शाता है कि उस देश में महिलाओं को पुरषों की तरह अधिकार व मौके दिए जा रहे हैं, साथ ही यह लैंगिक समानता को भी दिखाता है कि इसी भी देश में लैंगिक समानता और समान अवसर उस देश की सोच, उस की शक्ति, उस की नीति को दुनिया के सामने रखता है.

‘‘मिलिटरी में महिलाओं का होना न केवल महिलावर्ग की प्रगति, उन्नति और शौर्य का प्रतीक है बल्कि देश की उन्नति का भी है. महिलाओं का मिलिटरी में होना यह दर्शाता है कि उस देश में महिलाओं को पुरषों की तरह अधिकार व मौके दिए जा रहे हैं, साथ ही यह लैंगिक समानता को भी दिखाता है कि इसी भी देश में लैंगिक समानता और समान अवसर उस देश की सोच, उस की शक्ति, उस की नीति को दुनिया के सामने रखता है…’’

देश की सुरक्षा का दायित्व

जहां पहले महिलाओं को रसोई तक सीमित किया गया था, फिर जब मौका दिया भी तो केवल आम नौकरी का, आज उसी सीमा को असीमित कर वे आसमान छू रही हैं, समुंद्र लांघ रही हैं और देश की रक्षा करते हुए दुश्मनों से दोदो हाथ कर रही हैं. जो महिलाएं घर में चिमटा और पूजा की थाल लिए होती थीं आज वही महिलाएं बौर्डर पर हाथ में राइफल और मिसाइल के बटन थामे हैं.

मिलिटरी ट्रेनिंग की जिन कठिनाइयों को सुनासुना कर महिलाओं को डराया जाता था आज उन्हीं मुश्किलों को पार कर वे कप्तान और कमांडर की पोस्ट पर हक जमा रही हैं.

भारतीय सेना में महिलाओं की भरती के लिए कई प्रवेश विकल्प रखे गए हैं जो विशिष्ट योजना के अंतर्गत महिलाओं को सेना में शामिल होने के अवसर प्रदान करते हैं.

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए): यह एक प्रतिष्ठित संस्थान है, जहां 3 वर्ष की ट्रेनिंग के बाद विशेष ट्रेनिंग के लिए निर्धारित अकादमी में भेजा जाता है.

संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस): सीडीएस की परीक्षा सेना में अधिकारी का औदा दिलाने में मदद करती है. इस परीक्षा में सफल कैंडिडेट को अधिकारी प्रशिक्षण के लिए अदाकमी (ओटीए) में ट्रेनिंग मिलती है.

अग्निपथ योजना- इस योजना में महिला और पुरुष दोनों को 4 साल की अवधि के लिए अग्निवीर बन सेना में शामिल होने की अनुमति है.

और भी बहुत से विकल्प हैं जिन से आप आर्मी का हिस्सा बन सकते हैं जैसे एनसीसी, एसएससी, एमएनएस, आर्मी कैडेट कालेज.

महिलाओं ने खुद को शारीरिक, मानसिक और बौधिक रूप से इतना मजबूत बना लिया है कि वे मिलिटरी ट्रेनिंग की मार को सह कर दुश्मनों को मार सके.

भारतीय सशस्त्र बल में महिलाओं का योगदान दिनबदिन बढ़ रहा है. अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ता से महिलाएं न केवल अपना परचम लहरा रही हैं बल्कि और महिलाओं के लिए एक मिसाल भी बन रही हैं. उन्हें भी सेना में शामिल होने को बढ़ावा दे रही हैं. शिवांगी, तनुष्का, आस्था जैसी बहादुर लड़कों को देख उन के भीतर का डर भी कम होता है. वे भी सेना में भरती होने के सपने को हकीकत का रूप देने से पीछे नहीं हटतीं, साथ ही महिलाओं का मिलिटरी में होना समाज को जकड़ी रूढि़वादि सोच और जंजीर को तोड़ने के लिए बहुत बड़ा औजार है.

जहां एक ओर महिलाओं का योगदान, उन की भूमिका आर्म्ड फोर्सेज में बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना की आर्टिलरी, फाइटिंग सिस्टम और वैपंस भी एडवांस्ड और स्ट्रौंग होते जा रहे हैं.

भारतीय सेनाबल अब सिर्फ गोलाबारूद तक सीमित नहीं है. वह अपना बल हर रूप से बढ़ा रही है. आज सेना एआई संचालित हथियार, लेजर बेस्ड सिआईडब्लूएस, हाइपरसोनिक मिसाइल्स से सशक्त हैं.

कुछ बहुत ही महत्त्वपूर्ण हथियार जैसे-

रोबोटिक म्यूल- भारतीय सेना में आज लेटैस्ट वैपंस की कमी नहीं. हाल ही में एआई टैक्नोलौजी का नया हथियार रोबो सोल्जर रोबोटिक म्यूल सैनिय शक्ति का हिस्सा बन चुका है. यह रोबो सैन्य एक जानवर की तरह

4 पैर लिए एक ऐसा रोबोटिक हथियार है, जिसे 10 किलोमीटर दूर से रिमोट द्वारा औपरेट किया जा सकता है. इस में एके 47, एलएमजी, स्नाइपर, टेवौर जैसे खतरनाक हथियारों को लेस किया जा सकता है.

इस की एक और बहुत बड़ी खासीयत है टैंपरेचर टौलरैंस, जिस से यह माइनस 40 से प्लस 55 डिग्री सैल्सियस के तापमान में भी काम कर सकता है. इस की यह खूबी हमारी थल सेना के लिए बहुत मददगार है. जो कड़कड़ाती ठंड, बफीले पर्वतों, तपते रेगिस्तानों के जानलेवा वातावरण में हमारी सरहदों की रक्षा के लिए 24 घंटों तैनात हैं. अब इन रोबोटिक सैनिकों को सरहदों की निगरानी के लिए सेना इस्तेमाल कर सकती है और दुश्मनों की हरकत दूर से भांप उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकती है.

स्वार्म ड्रोन्स: आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस (एआई) का एक और नायाब उदाहरण है स्वार्म ड्रोन्स. इस के जरीए ड्रोन्स एकदूसरे के साथ नियंत्रण केंद्र के भी संपर्क में रहते हैं. इस में एआई निर्धारित करता है कि कौन सा ड्रोन दुश्मन के कौन से हिस्से व भाग या हरकत को निशाना बनाएगा.

ड्रोन्स से हमले और बचाव का एक बहुत बड़ा नमूना हम ने औपरेशन सिंदूर में देखा है.

ब्रह्मोस मिसाइल: जो एक सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल है. यह अपनी गति और लक्ष्य को भेदने की शक्ति के लिए जानी जाती है.

नागस्त्र 1: यह बारूद का गोला ‘कामिकेड ड्रोन’ के नाम से भी जाना जाता है.

रफाले मरीन- वायु सेना के बाद अब नौ सेना की शक्ति ब़ताई जाएगी. भारतीय सेना फ्रांस के साथ किए एक गठबंधन के तेहत भारतीय नेवी के लिए भी 26 रफाले मरीन फाइटर जेट ला रही है. इस से भारतीय नेवी का ही दबदबा तो बढ़ेगा ही, साथ ही भारत के पास 2030 तक कुल 62 सर्विस में होंगे.

किसी देश की आर्मी के पास लेटैस्ट वैपंस का होना, सेना की प्रगति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है. जहां एक ओर हर देश अपनी इन्फ्रास्ट्रक्चर, मैडिकल और आर्थिक संरचना को मजबूत कर रहा है वहीं टैक्नोलौजिकल वार के लिए भी तैयार हो रहा है. जी हां टैक्नोलौजिकल वार या युद्ध.

मौडर्न वार सैन्य बल की नहीं इंटैलिजैंस की है. आधुनिक युद्ध अब सरहदों पर कब्जे का नहीं बल्कि बिना सरहदों को छूए एक देश को हराने का है. अब कन्वैंशनल वार होने की ज्यादा संभावना नहीं दिखती. अब वार होगी साइबर स्पेस और इंटैलिजैंस की, जिस में एक देश का दूसरे देश की हर हरकत, हर खुफिया जानकारी, रणनीति और कमजोरियों को एकत्र करना और फिर उन पर रिसर्च कर अपनी रणनीति तैयार कर हमला करना ही एक आक्रामक पहल होगी.

यह एक तरह की डिजिटल लड़ाई भी है. एक सीक्रेट वार, जहां कुछ विशेष मशीनें आप का सारा सीक्रेट डाटा चुरा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती है. एआई इस काम को बहुत बखूबी से कर भी रही है. जिस का एक उदाहरण युक्रेनरूस युद्ध है. जहां एआई ड्रोन द्वारा खुफिया जानकारी इकट्ठा कर हमले किए गए हैं.

किसी भी देश की खुफिया जानकारी सिर्फ हमले करने में मददगार नहीं है बल्कि उस देश की पूरी अर्थव्यवस्था, उस देश की गतिविधि, उस की प्रगति, उस की नींव हिलाने के लिए एक बहुत बड़ा हथियार है.

सोचिए अगर कोई देश दूसरे देश के हर राज, नीति और प्रणाली की जानकारी इकट्ठा कर ले तो क्या? उसे युद्ध करने की जरूरत पड़ेगी. नहीं, सामने वाला देश अपनेआप ही समर्पण कर देगा क्योंकि अपना बचाव करने के लिए उस देश के पास जो भी नीति या तैयारी होगी उस की जानकारी तो पहले से दुश्मन के पास मौजूद होगी. तो वह व्यर्थ का जोखिम क्यों लेगा. सामने वाला देश उस जानकारी मात्र से ही इतनी शक्ति रखता होगा कि अपने दुश्मन को आसानी से मात दे सके या अपने आगे झुका सके.

साइबर स्पेस और एआई गतिविधियों ने जितनी मदद की है उतना ही खतरा बढ़ा दिया है. जहां एक ओर यही टैक्नोलौजी दूर से दुश्मन को निशाना बना ढेर कर दे रही है, वहीं दूसरी ओर एक देश के सिक्यूरिटी सिस्टम को हैक कर उसे मजबूर और कमजोर. आधुनिक काल में किसी युद्ध का निर्णायक उस की सेना नहीं बल्कि उस की टैक्नोलौजी, साइबर इनफौर्मेशन और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस होगी.

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