International Self Care Day 2024 : सेल्फ केयर से जुड़ी इन बातों को बनाएं अपने जीवन का हिस्सा

आजकल की बिजी लाइफ में खुद के प्रति अनदेखी आपके लिए नुकसानदायक हो सकती है इसलिए बहुत जरूरी है कि इंटरनेशनल सेल्फ केयर डे पर अपने को लाड़प्यार दें और अपनी वह देखभाल करें, जिसकी वह हकदार है.

अगर आप हर समय अपने बाहरी रूपरंग का ख्याल रख रहे हैं और अपनी बुरी आदतों और खराब मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज़ कर रहे हैं या सीमाएं तय कर रहे हैं लेकिन सो नहीं रहे हैं, तो आप वास्तव में सेल्फ केयर का अभ्यास नहीं कर रहे हैं. हम सभी फेस मास्क लगा सकते हैं और हर नेटफ्लिक्स मूवी नाइट की योजना बना सकते हैं, लेकिन दिन के अंत में, अगर हम अपनी भावनाओं की उपेक्षा कर रहे हैं, तो कुछ भी नहीं बदलेगा. सेल्फ केयर डे एक ऐसा कांसेप्ट है जो कुछ लोगों को अभी भी अननेसेसरी लग सकता है, लेकिन निस्संदेह (undoubtedly) यह आइडियल हेल्थी लाइफस्टाइल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसलिए इंटरनेशनल सेल्फ केयर डे से बेहतर इसे आजमाने का और क्या समय हो सकता है!

Medium shot woman in nature

सेल्फकेयर क्या है?

सेल्फकेयर का अर्थ है उन चीजों को करने के लिए समय निकालना जो अच्छी तरह से जीने के लिए फिजिकल एंड मेंटल हेल्थ दोनों को बेहतर बनाती हैं.

सेल्फकेयर की परिभाषा-

जब कई लोग सेल्फकेयर के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले उनके दिमाग में अपनी खूबसूरती को निखारने का ख्याल आता है. पर सच तो यह है कि एक आइडियल सेल्फ केयर रूटीन में कई तरह की वैरिटी और माइंड सेट शामिल होते हैं जो वास्तव में काम करते हैं और आपको लाभ पहुंचाते हैं. सेल्फ केयर रेंज में कई तरह की कैटेगरीज शामिल है – इसमें फिजिकल, सोशल, मेंटल, इमोशनल एंड स्पिरिचुअल हैल्थ शामिल है.

Portrait of an expressive woman in the studio

प्रकृति में खो जाएं

खुद को और अपने आस-पास की दुनिया को फिर से जानने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं हो सकता कि आप प्रकृति में कुछ समय बिताएं चाहे मौसम कैसा भी हो और नज़ारा कैसा भी हो, प्राकृतिक दुनिया में रहना और सबसे ताज़ी हवा और हमारी धरती पर मौजूद सबसे खूबसूरत वनस्पतियों और जीवों का अनुभव करना एक ऐसा उपाय है जो किसी और से अलग है.

लग्जरी ट्रीट्स

इंटरनेशनल सेल्फ केयर डे आखिरकार एक शानदार बहाना है कि आप कुछ बड़ा करें (लेकिन सोच-समझकर बजट बनाएं और सोचसमझकर खरीदें! हम आपको नए चमकदार गहनों पर हजारों डोौलर खर्च करने की सलाह नहीं देंगे, लेकिन अपने पसंदीदा ब्रांड के नए कपड़े खरीदने या उस नए रेस्टोरेंट में एक खास डिनर करने के लिए थोड़ा ज़्यादा पैसे खर्च करना, जिसे आप आजमाना चाहते हैं, इस दिन करें.

पैंपर योरसेल्फ

इंटरनेशनल सेल्फ केयर डे मनाने का सबसे क्लासिक तरीका है खुद से लाड़प्यार . एक लंबे बिजी शेड्यूल से जब आपने अपने लिए समय निकाला है तो इसका पूरा फायदा उठाएं. आप घर पर स्पा का आनंद लें या सैलून जाएं. वो सब ब्यूटी ट्रीटमेंट लें जिनको आप समय की कमी और ऑफिस वर्क के कारण लंबे समय से टाल रहें थे. मतलब इस दिन अपने को एक छोटे बच्चे की तरह पैंपर करें.

पतिपत्नी के बीच उम्र में कितना होना चाहिए गैप ?

कहा जाता है कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती, किसी भी उम्र में प्यार हो सकता है, वैसे ही शादी की कोई उम्र नहीं होती, किसी भी उम्र में शादी की जा सकती है और पति-पत्नी में अंतर कितना सही है, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि प्यार सबसे पहले होता है, जिसमे मानसिक और शारीरिक अट्रैक्शन शामिल होता है. इसमें आयु का अंतर किसी रिश्ते को कितना प्रभावित करता है, उसे समझ पाना काफी मुश्किल है, क्योंकि आयु के अंतर का असर सिर्फ सेक्स के समय होता है, अगर सेक्स जरुरी नहीं, तो शादी किसी भी आयु में कितने भी फर्क के साथ की जा सकती है और उसका असर रिश्ते की बोन्डिंग पर कभी नहीं पड़ता.

यही वजह है कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और अंजलि तेंदुलकर के बीच 6 साल का ऐज गैप है, जिसमे अंजलि 6 साल बड़ी है, प्रियंका चोपड़ा और निक जोनास के बीच 10 साल का एज गैप है, जिसमे प्रियंका निक से 10 साल बड़ी है. जबकि दिलीप कुमार और सायरा बानो के बीच 22 साल का एज गैप रहा और उनकी जोड़ी हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री की मिसाल रही. धर्मेन्द्र और हेमामालिनी के बीच 13 वर्ष, राजेश खन्ना और डिंपल के बीच 16 वर्ष, कबीर बेदी और प्रवीण दुसांज के बीच 29 वर्ष, मिलिंद सुमन और अंकिता कुंवर के बीच 25 साल का एज गैप आदि कई उदहारण है. उन सभी की जोड़ी अच्छी चल रही है. हालांकि लम्बे समय से भारत में उम्र के गैप को शादी के लिए जरुरी माना गया है, जिसमे पति का पत्नी से बड़ा होना जरुरी माना गया है, लेकिन समय के साथ इसमें आज परिवर्तन आ रहा है और उम्र के गैप को जरुरी अब नहीं समझा जाता.

अटलांटा की यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च के हिसाब से पति-पत्नी के बीच 5 साल का एज गैप सही माना गया है. रिसर्च के अनुसार जिन कपल्स के बीच ऐज गैप 5 साल होता है, उनमें तलाक की संभावना 18% होती है. वहीं, जिन कपल्स के बीच ऐज गैप 10 साल है, उनमें तलाक की संभावना 39% है और यदि एज गैप 20 साल है तो तलाक की संभावना 95% होती है.

विवाह में एज गैप की नहीं होती परिभाषा

इस बारें में हीलिंग सर्कल की मैरिज काउंसलर आरती गुप्ता कहती है कि मैरिज में एज गैप की कोई परिभाषा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि दो व्यक्ति के व्यक्तिगत भावनाएं अलग होती है, जिसमे उनके माहौल, शिक्षा, जॉब, रहन-सहन आदि कई बातें उससे जुडी हुई होती है. गैप की जरुरत भी क्यों चाहिए, पहले जमाने में लोग सोचते थे कि एक की अधिक उम्र होने पर वह अधिक परिपक्व रहेगा, सम्हालेगा, जिसमे लड़के को ही बड़ा होना जरुरी मानते थे. तब पुरुष डोमिनेट समाज की ये सोच थी. अब भी समाज पुरुष प्रधान रखना चाहती है, लेकिन वह अब नहीं है, क्योंकि ग्लोबलाईजेशन और वुमन एम्पावरमेंट की वजह से ये सब आज मायने नहीं रखती. अब दो लोगों का आपस में गठबंधन हो रहा है और उन दोनों का आपस में क्या कम्फर्ट लेवल है, उनकी परिपक्वता कितनी है, उनकी सोच क्या है, आदि, ये सब फ्लेक्सिबल चीजे है, जिसमे किसी को भी जज करने की जरुरत नहीं. अभी लडकियां कई जगहों पर लड़के से बड़ी होने पर भी शादियाँ हो रही है और उनकी जिंदगी अच्छी चल रही है. सभी मानते है कि लड़कियां लड़कों से अधिक मेच्योर होती है. पहले भी देखा गया है कि महिलाओं में जन्म से ये सारी बातें अंतर्निहित होती है, जिसमे घर, रिश्ते, बच्चे  सबको सम्हालते हुए पति के पैसे से परिवार चलाती थी. मेरे पास मेडिकली कोई प्रूव नहीं है कि लड़की की उम्र कम होने पर सेक्सुअली या रिप्रोडक्शन में वह बेहतर होती है. मैं उस बात से सहमत नहीं हूँ.

शिक्षित होना आवशयक  

भारत सरकार ने महिलाओं की शादी की न्‍यूनतम कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का विधेयक संसद में पेश किया था. महिलाओं की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव दिया था. जबकि पुरुषों के लिए उम्र 21 साल ही रहेगा, क्या इससे जनसंख्या कंट्रोल हो सकेगा? पूछने पर हंसती हुई अंजलि कहती है कि जनसँख्या कंट्रोल होगा या नहीं, ये कहना मुश्किल है, क्योंकि मैं अर्बन एरिया में रहती हूँ और ये भी सही है कि लड़कियों की शादी की उम्र बढाने पर जनसँख्या पर कुछ असर देखने को मिल सकता है, क्योंकि उनमे जागरूकता जनसँख्या को लेकर बढ़ सकती है. गांवों में बहुत कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है और बर्थ कंट्रोल की सुविधा नहीं है, ऐसे में कानून बनाकर और शिक्षित कर ही इस पर कंट्रोल किया जा सकता है. इसके साथ-साथ आकड़ों पर अधिक गौर करना होगा, जिससे जनसँख्या कंट्रोल के बारें में जानकारी मिल सकती है, लेकिन इन सबमे लड़कियां और लड़कों का शिक्षित होना सबसे अधिक जरुरी है.

हर उम्र में शादी की परिभाषा अलग  

अधिक उम्र में शादी करने वालों की संख्या आज बढ़ रही है, इसकी वजह के बारें में पूछने पर आरती कहती है कि आजकल लोग अधिक उम्र में भी शादियाँ कर रहे है, ये अच्छी बात है. इसमें वे सेक्स के लिए शादी नहीं कर रहे है. वे अपना एक साथी चाहते है, सेटल होना चाहते है, वे अपनी जिंदगी को किसी के साथ शेयर करना चाहते है और ये किसी भी रूप में गलत नहीं. उस रिलेशनशिप में शादी की परिभाषा अलग होती है. यंग एज में शादी करने का अर्थ है कि लड़के और लड़कियां मैच्योर हो चुके है, बच्चे पैदा करने की उम्र है और परिवार को आगे बढ़ाना है. इन सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए दो परिवार एकसाथ होते है और उनकी शादी होती है.

वजह डोमिनेशन  

इसके आगे काउंसलर कहती है कि आयु का अंतर सिर्फ डोमिनेशन के लिए होता है, जहाँ पुरुष खुद को महिला से बड़े होने की वजह से अकलमंद, अधिक पढ़ा-लिखा समझते है और अपनी बातें पत्नी को मनवाने की कोशिश करते है. लकिन यहाँ यह समझना जरुरी है कि अब वे दिन रहे नहीं. यहाँ मैं अर्बन परिवेश की बात कर रही हूँ, क्योंकि मैं बड़े शहर में रहती हूँ, जबकि गांवों और छोटे शहरों में आज भी लड़के का लड़की से बड़े होने को सही मानते है. उसमे भी बदलाव आ रहा है और पूरी तरह से बदलाव आने में समय लगेगा. जितनी जल्दी समाज और परिवार इसे समझ लें, सोच को बदल लें और बहाव में बहने के लिए तैयार हो, उतना ही पारिवारिक सुख-शांति बनी रहेगी. जितना उसका विरोध करेंगे, परिवार टूटता चला जायेगा और आज कई घर, विरोध की वजह से टूट चुके है.

मेंटल और इमोशनल कम्पेटिबिलिटी जरुरी

आरती कहती है कि कई लोग मुझसे एज गैप को लेकर अपनी समस्या का जिक्र करते है और मुझे उन्हें समझाना पड़ता है, कि हर उम्र की सोच और जरूरतें अलग होती है. आज जमाना समानता का होता जा रह है, दोनों में परिपक्वता खुद को ही लाना पड़ता है, एज गैप से अधिक मेंटल और इमोशनल कम्पेटिबिलिटी का होना बहुत जरुरी है. मेरे और मेरे पति के बीच काफी एज गैप है, लेकिन उन्होंने मुझे शादी के बाद सारी शिक्षा लेने के लिए सहयोग दिया. रिलेशनशिप को निखारना पड़ता है. मेरा सभी यूथ से कहना है कि एक्सेप्टिंग, एडजस्टमेंट, कोम्प्रोमाईज़, लव, गिविंग एंड रिसीविंग आदि सभी चीजे ह्यूमन रिलेशनशिप को बनाए रखने में सहायक होती है, इसे अपनाने की कोशिश करें, ताकि एक मजबूत रिश्ता बनी रहे.

कहीं, पति उम्र में बड़ा है, तो कहीं पत्नी लेकिन फिर भी शादी अच्छी चल रही है. ऐसे में यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि सफल शादी के लिए पति-पत्नी में एज गैप से ज्यादा एक दूसरे के लिए प्यार, इज्जत और समझ होना जरूरी है.

एक्सपर्ट से जाने स्किन एलर्जी से बचने के उपाय

मानसून की बारिश सभी को पसंद होता है, लेकिन लगातार बारिश के चलते हवा में ह्यूमिडिटी की मात्रा बढ़ने से कपडे, घरों और आसपास में नमी की मात्रा बढ़ जाती है. इससे कई प्रकार की त्वचा सम्बन्धी एलर्जी होने का खतरा रहता हैं. इस मौसम में स्किन का अधिक ख्याल रखना काफी जरूरी हैं.

इस बारें में मुंबई की द एस्थेटिक क्लीनिक की कंसल्टेंट डर्मेटोलॉजिस्ट, कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजिस्ट और डर्मेटो सर्जन, डॉ. रिंकी कपूर कहती है कि हवा में ह्यूमिडिटी होने की वजह से स्किन इन्फेक्शन्स और कई अन्य तरह की प्रॉब्लम्स हो सकती हैं. स्किन पर होने वाली इन  समस्याओं को समय रहते ठीक करना जरुरी है, नहीं तो ये बड़ी बीमारी का रूप ले सकती  हैं.

क्या होती है वजह

बारिश का पानी हवा में प्रदूषकों जैसे धूल के कण, रासायनिक धुएं आदि के साथ मिल जाता है, जिससे त्वचा की समस्याएं और खुजली होती है.

बारिश से फफूँदी भी बढ़ती है, और उस समय कीड़ों का प्रजनन होता है, जिससे त्वचा की समस्याएँ बढ़ जाती हैं. हवा में पराग और पालतू जानवरों की रोयें भी त्वचा की समस्याओं को बढ़ाती है.

मानसून में अधिक आर्द्रता की वजह से त्वचा चिपचिपी होती है, जिसके कारण त्वचा में खुजली होती हैं.

नमी युक्त मौसम में त्वचा की एलर्जी का समय रहते इलाज नही किया जाए तो समस्या बढ सकती हैं. वैसे तो एलर्जी कई प्रकार के होते है, लेकिन बारिश के कुछ ख़ास एलर्जी निम्न है,

1.फंगल इन्फेक्शन

मानसून में फंगल संक्रमण का खतरा अधिक रहता हैं, जिसमें त्वचा पर क्रेक्स, खुजली, त्वचा का लाल होना आदि होता हैं, क्योंकि इस मौसम में अधिक पसीना आता है.

2. गीले कपडे और जूतों से एलर्जी

गीले कपड़े, जूते और मोज़े शरीर पर घिसते हैं और विशेष रूप से त्वचा की परतों और कमर के क्षेत्रों में खुजली का कारण बनते हैं. जूतों में बॉन्डिंग एजेंट, ग्लू, चिपकने वाले, उपचार एजेंट आदि जैसे रसायन मौजूद होते हैं. इस वजह से पैरों को एलर्जी होने का खतरा रहता हैं. यहां तक कि सिंथेटिक कपड़ों में भी केमिकल होते हैं, जो गीले होने पर त्वचा की एलर्जी का कारण बनते हैं.

3. फफूंदों से एलर्जी

फफूंदी का त्वचा के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क में आने पर एलर्जिक राइनाइटिस और एलर्जिक अस्थमा का कारण बनती है.

4. स्किन एलर्जी का इलाज

फंगल इन्फेक्शन जब अनट्रीटेड होती है, तो दाद में प्रकट हो सकती है. दाद पसीने से हुई नमी में पनपते हैं और अक्सर संक्रामक होते हैं. वे तौलिये, मेकअप, बर्तनों, सार्वजनिक शौचालयों अदि के प्रयोग या कांटेक्ट से बढ़ते है.   इतना ही नहीं नाखूनों के माध्यम से भी फैल सकते हैं. इसलिए इस मौसम में गीले न रहे, बारिश में भीगने के बाद तुरंत साफ़ पानी से नहा लें, अपने तोलिये, कंघी और साबुन पर्सनल रखें,

नहाने के पानी में एंटीसेप्टिक सोल्यूशन या एंटीसेप्टिक साबुन का प्रयोग करें, एंटीसेप्टिक साबुन या सोल्यूशन न होने पर नीम की पत्तियों को उबालकर उसके पानी में नहायें,

अधिक तंग, गीले कपडे और गीले जूते न पहनें, कपड़ों को एक बार पहनने के बाद ही धो लें, नहाने के बाद एंटीफंगल पाउडर का प्रयोग करना अच्छा रहता है,

अधिक देर तक पानी में रहने पर पैरों पर खुजली और पपड़ीदार धब्बे बन सकते है. कई बार इसमें फफोले भी बन सकते है, इसलिए बारिश में कही बाहर से आकर पैरों को हलके गरम पानी और एंटीसेप्टिक साबुन से धोकर अच्छी तरह तौलिये से सुखा लें, इससे काफी आराम मिलता है,

एक्जिमा के कारण त्वचा पर चकत्ते और एलर्जी हो सकते है, ये डर्मेटाइटिस की सूजन के कारण भी होते हैं जो नमी, तापमान में उतार-चढ़ाव और मानसून और गर्मी के कारण पसीने से हो सकते है, इसके लिए खुद की हायजिन का ख्याल रखना जरुरी है,

त्वचा पर खुजली होना, त्वचा की एलर्जी हैं, जो पानी के माध्यम से फैलती हैं. यह त्वचा पर छोटे थक्कों के रूप में दिखती है. समय रहते इसका इलाज न करने पर इसकी समस्या बढ सकती हैं.

बचना है जरुरी

इसके आगे डॉ. रिंकी कहती है कि त्वचा की एलर्जी से कैंसे बचना जरुरी है. अधिक समय तक किसी भी एलर्जी को इग्नोर न करें, और जरुरत के अनुसार डॉक्टर की सलाह लें. कुछ सुझाव निम्न है,

  • त्वचा को नियमित साफ़ और सूखा रखना,
  • तंग कपड़े और रबड़ की वस्तुएँ पहनने से परहेज करना,
  • ज्यादा देर तक बारिश में नहीं भीगना,
  • बरसात के मौसम में अपने साथ रेनकोट और छाता रखना,
  • गंदे पानी या एलर्जी पैदा करने वाले एजेंटों जैसे जानवरों के फर, धूल, गंदगी और पराग से दूर रहना,
  • त्वचा की अच्छी देखभाल करना, जैसे त्वचा को खरोंचना नहीं. इससे एलर्जी हो सकती हैं,
  • त्वचा की परतों को सूखा और संक्रमण मुक्त रखने के लिए मेडिकेटेड साबुन, एंटीफंगल और जीवाणुरोधी पाउडर का प्रयोग करना,
  • बाहर निकलने से पहले रोजाना सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना,
  • घर में चादरें, तौलिये, कुशन आदि को साफ और सूखा रखना आदि है.

मरहम: क्या पूरा हुआ गुंजन का बदला

गुंजन जल्दी जल्दी काम निबटा रही थी. दाल और सब्जी बन चुकी थी बस फुलके बनाने बाकी थे. तभी अभिनव किचन में दाखिल हुआ और गुंजन के करीब रखे गिलास को उठाने लगा. उस ने जानबूझ कर गुंजन को हौले से स्पर्श करते हुए गिलास उठाया और पानी ले कर बाहर निकल गया.

गुंजन की धड़कनें बढ़ गईं. एक नशा सा उस के बदन को महकाने लगा. उस ने चाहत भरी नजरों से अभिनव की तरफ देखा जो उसे ही निहार रहा था. गुंजन की धड़कनें फिर से ठहर गईं. लगा जैसे पूरे जहान का प्यार लिए अभिनव ने उसे आगोश में ले लिया हो और वह दुनिया को भूल कर अभिनव में खो गई हो.

तभी अम्मांजी अखबार ढूंढ़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और गुंजन का सपना टूट गया. नजरें चुराती हुई गुंजन फिर से काम में लग गई.

गुंजन अभिनव के यहां खाना बनाने का काम करती है. अम्मांजी का बड़ा बेटा अनुज और बहू सारिका जौब पर जाते हैं. छोटा बेटा अभिनव भी

एक आईटी कंपनी में काम करता है. उस की

अभी शादी नहीं हुई है और वह गुंजन की तरफ आकर्षित है.

22 साल की गुंजन बेहद खूबसूरत है और वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. मातापिता ने उसे बहुत लाड़प्यार से पाला है. इंटर तक पढ़ाया भी है. मगर घर की माली हालत सही नहीं होने की वजह से उसे दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम शुरू करना पड़ा.

गुंजन जानती है कि अभिनव ऊंची जाति का पढ़ालिखा लड़का है और अभिनव के साथ उस का कोई मेल नहीं हो सकता. मगर कहते हैं न कि प्यार ऐसा नशा है जो अच्छेअच्छों की बुद्धि पर ताला लगा देता है. प्यार के एहसास में डूबा व्यक्ति सहीगलत, ऊंचनीच, अच्छाबुरा कुछ भी नहीं समझता. उसे तो बस किसी एक शख्स का खयाल ही हर पल रहने लगता है और यही हो रहा था गुंजन के साथ भी. उसे सोतेजागते हर समय अभिनव ही नजर आने लगा था.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. अभिनव की हिम्मत बढ़ती गई और गुंजन भी उस के आगे कमजोर पड़ती गई. एक दिन मौका देख कर अभिनव ने उसे बांहों में भर लिया.

गुंजन ने खुद को छुड़ाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘अभिनवजी, अम्मांजी ने देख लिया तो क्या सोचेंगी?’’

‘‘अम्मां सो रही हैं गुंजन. तुम उन की चिंता मत करो. बहुत मुश्किल से आज हमें ये पल मिले हैं. इन्हें यों ही बरबाद न करो.’’

‘‘मगर अभिनवजी, यह सही नहीं. आप का और मेरा कोई मेल नहीं,’’ गुंजन अब भी सहज नहीं थी.

‘‘ऐसी बात नहीं है गुंजन. मैं तुझ से प्यार करने लगा हूं. प्यार में कोई छोटाबड़ा नहीं होता. बस मु?ो इन जुल्फों में कैद हो जाने दे. गुलाब की पंखुड़ी जैसे इन लबों को एक दफा छू लेने दे.’’

अभिनव किसी भी तरह गुंजन को पाना चाहता था. गुंजन अंदर से डरी हुई थी, मगर अभिनव का प्यार उसे अपनी तरफ खींच रहा था. आखिर गुंजन ने भी हथियार डाल दिए. वह एक प्रेयसी की भांति अभिनव के सीने से लग गई. दोनों एकदूसरे के आलिंगन में बंधे प्यार की गहराई में डूबते रहे. जब होश आया तो गुंजन की आंखें छलछला आईं. वह बोली, ‘‘आप मेरा साथ तो दोगे न? जमाने की भीड़ में मु?ो अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल है क्या? प्यार करता हूं. छोड़ कैसे दूंगा?’’ कह कर उस ने फिर से गुंजन को चूम लिया.

गुंजन फिर से उस के सीने में दुबक गई. वक्त फिर से ठहर गया.

अब तो ऐसा अकसर होने लगा. अभिनव प्यार का दावा कर के गुंजन को करीब

ले आता. दोनों ने प्यार के रास्ते पर बढ़ते हुए मर्यादा की सीमारेखाएं तोड़ दी थीं. गुंजन प्यार के सुहाने सपनों के साथ एक सुंदर घरसंसार के सपने भी देखने लगी थी.

मगर एक दिन वह यह देख कर हैरान रह गई कि अभिनव के रिश्ते की बात करने के लिए एक परिवार आया हुआ है. मांबाप के साथ एक आधुनिक, आकर्षक और स्टाइलिश लड़की बैठी थी.

अम्मांजी ने गुंजन से कुछ खास बनाने की गुजारिश की तो गुंजन ने सीधा पूछ लिया, ‘‘ये कौन लोग हैं अम्मांजी?’’

‘‘ये अपने अभि को देखने आए हैं. इस लड़की से अभि की शादी की बात चल रही है. सुंदर है न लड़की?’’ अम्माजी ने पूछा तो गुंजन ने हां में सिर हिला दिया.

उस के दिलोदिमाग में तो एक भूचाल सा आ गया था. उस दिन घर जा कर भी गुंजन की आंखों के आगे उसी लड़की का चेहरा घूमता रहा. आंखों से नींद कोसों दूर थी.

अगले दिन जब वह अभिनव के घर खाना बनाने गई तो सब से पहले मौका देख कर उस ने अभिनव से बात की, ‘‘ये सब क्या है अभिनवजी? आप की शादी की बात चल रही है? आप ने अपने घर वालों को हमारे प्यार की बात क्यों नहीं बताई?’’

‘‘नहीं गुंजन अपने प्यार की बात मैं उन्हें नहीं बता सकता.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि हमारा प्यार समाज स्वीकार नहीं करेगा. मेरे मांबाप कभी नहीं मानेंगे कि मैं एक नीची जाति की लड़की से शादी करूं,’’ अभिनव ने बेशर्मी से कहा.

‘‘तो फिर प्यार क्यों किया था आप ने? शादी नहीं करनी थी तो मु?ो सपने क्यों दिखाए?’’ तड़प कर गुंजन बोली.

‘‘देखो गुंजन, समझने का प्रयास करो. प्यार हम दोनों ने किया है. प्यार के लिए केवल हम दोनों की रजामंदी चाहिए थी. मगर शादी एक सामाजिक रिश्ता है. शादी के लिए समाज की अनुमति भी चाहिए. शादी तो मु?ो घर वालों के कहे अनुसार ही करनी होगी.’’

‘‘यानी प्यार नहीं, आप ने प्यार का नाटक खेला है मेरे साथ. मैं नहीं केवल मेरा शरीर चाहिए था. क्यों कहा था मुझ से कि कभी अकेला नहीं छोड़ोगे?’’

‘‘मैं तुम्हें अकेला कहां छोड़ रहा हूं गुंजन? मैं तो अब भी तुम से प्यार करता हूं मेरी जान. यकीन करो हमारा यह प्यार हमेशा बना रहेगा. शादी भले ही उस से कर लूं, मगर हम दोनों पहले की तरह ही मिलते रहेंगे. हमारा रिश्ता वैसा ही चलता रहेगा. मैं हमेशा तुम्हारा बना रहूंगा,’’ अभि ने गुंजन को कस कर पकड़ते हुए कहा.

गुंजन को लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने उसे पकड़ रखा हो. वह खुद को अभिनव के बंधन से आजाद कर काम में लग गई. आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और दिल रो रहा था.

घर आ कर वह सारी रात सोचती रही. अभिनव की बेवफाई और अपनी मजबूरी उसे रहरह कर कचोट रही थी. अभिनव के लिए भले ही यह प्यार तन की भूख थी, मगर उस ने तो मन से चाहा था. तभी तो अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था. इतनी आसानी से वह अभिनव को माफ नहीं कर सकती थी. उस के किए की सजा तो देनी ही होगी. वह पूरी रात यही सोचती रही कि अभिनव को सबक कैसे सिखाया जाए.

आखिर उसे समझ आ गया कि वह अभिनव से बदला कैसे ले सकती है. अगले दिन से ही उस ने बदले की पटकथा लिखनी शुरू कर दी.

उस दिन वह ज्यादा ही बनसंवर कर अभि के घर खाना बनाने पहुंची. अभि शाम 4 बजे की शिफ्ट में औफिस जाता था. अम्मांजी हर दूसरे दिन 12 से 4 बजे तक के लिए मंदिर जाती थीं. पिताजी के पैर में तकलीफ थी, इसलिए वे बिस्तर पर ही रहते थे.

आज अम्मांजी का मंदिर जाने का दिन था. 12 बजे उन के जाने के बाद वह अभि के पास चली आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘अभिनव जी आप की शादी की बात सुन कर मैं दुखी हो गई थी. मगर अब मैं ने खुद को संभाल लिया है. शादी से पहले के इन दिनों को मैं भरपूर ऐंजौय करना चाहती हूं. आप की बांहों में खो जाना चाहती हूं.’’

अभिनव की तो मनमांगी मुराद पूरी हो रही थी. उस ने झट गुंजन को करीब खींच लिया. दोनों एकदूसरे के आगोश में खोते चले गए और दो जिस्म एक प्राण बन गए.

बैड पर अभि की बांहों में मचलती गुंजन ने सवाल किया, ‘‘कल आप सच कह रहे थे अभिनवजी? शादी के बाद भी आप मुझ से यह रिश्ता बनाए रखोगे न?’’

‘‘हां गुंजन इस में तुम्हें शक क्यों है? शादी एक चीज होती है और प्यार दूसरी चीज. हम दोनों का प्यार और शरीर का यह मिलन हमेशा कायम रहेगा. शादी के बाद भी यह रिश्ता ऐसे ही चलता रहेगा,’’ कह कर अभिनव फिर से गुंजन को बेतहाशा चूमने लगा.

शाम को गुंजन अपने घर लौट आई. उसे खुद से घिन आ रही थी. वह बाथरूम में गई

और नहा कर बाहर निकली. फिर मोबाइल ले

कर बैठ गई. आज के उन के शारीरिक मिलन का 1-1 पल इस मोबाइल में कैद था. उस ने बड़ी होशियारी से मोबाइल का कैमरा औन कर के ऐसी जगह रखा था जहां से दोनों की सारी हरकतें कैद हो गई थीं.

यह डेढ़ घंटे का लंबा अंतरंग वीडियो था. 10 दिन के अंदर उस ने ऐसे 3-4 वीडियो और शूट कर लिए. फिर वीडियो एडिट कर के बड़ी चतुराई से उस ने अपने चेहरे को छुपा दिया.

कुछ दिनों में अभिनव की शादी हो गई. 8-10 दिनों के अंदर ही उस ने अभिनव की पत्नी से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर ले लिया. अगले दिन उस ने अम्मांजी को कह दिया कि उसे मुंबई में जौब लग गई है और अब काम पर नहीं आ पाएगी. उस दिन वह अभिनव से  मिली भी नहीं और घर चली आई.

अगले दिन सुबहसुबह उस ने अपने और अभिनव के 2 अंतरंग वीडियो अभिनव की पत्नी को व्हाट्सऐप कर दिए. 2 घंटे बाद उस ने 2 और वीडियो व्हाट्सऐप किए और चैन से घर के काम निबटाने लगी.

शाम 4 बजे के करीब अभिनव का फोन आया. गुंजन को इस का अंदाजा पहले से था. उस ने मुसकराते हुए फोन उठाया तो सामने से अभिनव का रोता हुआ स्वर सुनाई दिया, ‘‘गुंजन, तुम ने यह क्या किया मेरे साथ? मेरी शादीशुदा जिंदगी की अभी ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई थी और तुम ने ये वीडियो भेज दिए. तुम्हें पता है माया सुबह से मुझ से लड़ रही है और अभीअभी सूटकेस ले कर हमेशा के लिए अपने घर चली गई. गुंजन तुम ने यह क्या कर दिया मेरे साथ अब मैं…’’

‘‘अब तुम न घर के न घाट के. गुड बाय अभिनव,’’ वाक्य पूरा कर गुंजन ने फोन काट दिया.

उस ने आज अभिनव से बदला ले लिया था. खुद को मिले हर आंसू का बदला. आज उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के जख्मों पर किसी ने मरहम लगा दिया हो.

गठबंधन : क्यों छिन गया कावेरी से ससुराल का प्यार

‘‘बसइस घर के सामने ही,’’ कावेरी के निर्देश पर ड्राइवर ने कैब रोक दी. टैक्सी से उतर कर बैग कंधे पर लटकाए लंबेलंबे डग भरती हुई वह गेट खोल कर दरवाजे के सामने जा खड़ी हुई, ‘कुछ दिन पापा के साथ बिता लूं, फिर सब दुखदर्द भूल जाने की नई सी उमंग ले कर ही वापस लौटूंगी,’ सोचते हुए कावेरी ने एक नकली मुसकान चेहरे पर चिपका डोरबैल बजा दी.

‘‘अरे वाह कावेरी, आओआओ,’’ अचानक बेटी को आया देख सुधांशु का चेहरा खिल उठा.

‘‘पापा, कैसा लगा मेरा सरप्राइज?’’ सुधांशु से मिलते ही कावेरी की कृत्रिम मुसकान खनकती हंसी में बदल गई. कमरे में पैर फैला कर सोफे पर पीठ टिका कर वह आराम से बैठ गई.

‘‘थक गई शायद? मैं अभी तुम्हारी पसंदीदा दालचीनी वाली चाय बना कर लाता हूं,’’ कह सुधांशु किचन में चले गए.

‘‘आप क्यों? निर्मला नहीं आई क्या आज काम पर?’’ कावेरी सुधांशु के पास जा कर खड़ी हो गई.

‘‘बेटा, एक जरूरी काम के सिलसिले में आज जयपुर के लिए निकलना था मु झे. निर्मला तो इसलिए जल्दी काम निबटा कर चली गई. वैसे मैं सोच रहा हूं कि फ्लाइट की टिकट कैंसिल करवा दूं अब.’’

‘‘पापा, आप चले जाइए. जल्दी वापस आ जाएंगे न? मैं तो अभी कुछ दिन यहीं रहूंगी,’’ कावेरी प्रसन्न दिखने का पूरा प्रयास कर रही थी.

‘‘मैं 2 दिन में लौट आऊंगा. इस बार उदित नाराज नहीं हुआ तुम्हारे कुछ दिन यहां बिताने पर? दिल्ली में हो तो भी बस सुबह आ कर शाम को चली जाती हो वापस. एक दिन भी कहां रहने देता है वह तुम्हें मायके में,’’ सुधांशु के मन में अपने दामाद के प्रति छिपी शिकायत शब्दों में छलक रही थी.

‘‘औफिस के काम से आज ही उदित सिडनी गए हैं, इसलिए आप के साथ कुछ दिन रहने का प्रोग्राम बना लिया मैं ने.’’

‘‘गुड,’’ सुधांशु के चेहरे पर एक लंबी रेखा खिंच गई.

कावेरी भी मुसकरा दी और फिर ड्राइंगरूम में रखे बैग को अपने कमरे में ले जा कर सामान निकाल अलमारी में लगाने लगी.

सुधांशु के साथ बातचीत कर कावेरी का मन हलका हो गया, लेकिन अपने पापा के जाते ही उसे उदासी ने घेर लिया. मस्तिष्क में विचारों की उल झन निराशा को और भी बढ़ा रही थी. शून्य में ताकती वह अपनेआप से ही बातें करने लगी, ‘कितना अपनापन है यहां. दीवारें भी जैसे अनुराग बसाए हैं अपने भीतर. घर के एकमात्र सदस्य पापा तो जैसे स्नेह का पर्याय ही हैं.

‘मम्मी के दुनिया छोड़ कर चले जाने के बाद सालों से मम्मी की भूमिका निभाते हुए अपनी ममता की छांव तले धूप सदृश्य चिंताओं से बचाते आए हैं वे. मैं अकेली संतान हूं तो क्या? सभी नाते मिल कर भी जितना प्रेम नहीं बरसा पाते, जितना पापा ने अकेले ही मु झ पर बरसा दिया. और वहां… कैसे कह दूं कि ससुराल ही अब घर है मेरा? सासूमां के रूप में खोई हुई मां मिल जाएंगी, यही आशा थी मेरी. ससुरजी से पापा जैसा स्नेह चाहा था. लेकिन चाहने मात्र से ही तो सब संभव नहीं होता, फिर और किसी को क्या दोष दूं जब जीवनसाथी ही अनमना सा रहता है मु झ से.

‘विवाह के 3 वर्ष बीत जाने पर भी प्यार और अपनेपन को तरस रही हूं मैं. आशा थी कि कोई नन्ही जान आएगी तो नए रंग भर देगी जीवन में. क्या मैं कम दुखी हूं मां न बन पाने पर कि सभी मु झे किसी अपराधी सा सिद्ध करने में लगे हैं.’

कावेरी एक बार फिर सब याद कर खिन्न हो उठी. विवाह होते ही उसे नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा था. सारा दिन अकेले घर के काम में पिसती हुई वह 2 बोल प्रेम के सुनने को तरस जाती थी. पति उदित अपनी ही दुनिया में खोया रहता. रात में कुछ हसीन लमहों की चाह में वह उदित के करीब जाती तो उस का रवैया ऐसा होता जैसे एहसान कर रहा हो उस पर.

कावेरी को किसी नन्ही आहट की प्रतीक्षा करते हुए 3 वर्ष बीत गए, लेकिन उस की गोद सूनी ही थी. उदित का मनुहार कर एक दिन उसे साथ ले कर वह क्लीनिक चली गईं. वहां डाक्टर ने कावेरी व उदित दोनों के लिए कुछ टैस्ट लिख दिए.

उस रात उदित औनलाइन हुई रिपोर्ट्स देख रहा था और वह बिस्तर पर लेटे हुए उदित की आतुरता से प्रतीक्षा कर रही थी. लैपटौप शटडाउन कर लटका हुआ चेहरा लिए वह आ कर बोला, ‘‘रिपोर्ट्स देख ली हैं. कहा था तुम्हें पहले ही, पर तुम ही जिद पकड़े बैठी थीं कि टैस्ट करवाना है. अब साफ हो चुका है कि तुम्हारे सिस्टम में कुछ कमी है, इसलिए मां नहीं बन पाओगी कभी.’’

कावेरी की रुलाई फूट पड़ी थी. अपने को संयत कर हिम्मत जुटा बोली, ‘‘आप कल प्रिंट निकलवा लेना रिपोर्ट का. ऐसी समस्याओं से कई औरतें 2-4 होती हैं. इलाज तो होता ही होगा कोई न कोई. हम कल ही डाक्टर के पास चलेंगे.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं तुम्हें अब अपनी इस कमी का तमाशा बनवाने की. कोई पूछेगा तो कह देंगे कि अभी नहीं चाहते परिवार बढ़ाना. आज के बाद इस बारे में कोई बात नहीं होगी’’ किसी तानाशाह सा आदेश दे उदित मुंह फेर कर लेट गया.

तिरस्कृत हो कावेरी बस आंसू बहा कर रह गई थी. उदित ने अगले दिन अपनी मां को रिपोर्ट के बारे बताया. बस फिर क्या था? आतेजाते ताने कसने देने शुरू कर दिए उन्होंने. ससुरजी उदित को बारबार याद दिलाना नहीं भूलते थे कि उन के रिश्ते के एक भाई ने अपनी बहू के मां न बन पाने की स्थिति में अपने इकलौते बेटे को तलाक दिलवा कर उस का दूसरा विवाह करवा दिया था.

उपेक्षा और प्रताड़ना के अंधेरे से घिरी एक तंग सी गली में स्वयं को पा कर कावेरी बिलकुल अकेली हो गई थी. उदित अकसर डपट देता कि मुंह फुला कर क्यों रहती हो हमेशा? कम से कम मेरे सामने तो मनहूस सा चेहरा लिए न आया करो.

पिछले दिन के अपमान का दंश भी अब तक मर्माहत कर रहा था कावेरी  को. मेरठ से उदित की बूआजी मिलने आई थीं. कावेरी ने हमेशा की तरह अभिवादन कर आदर व्यक्त किया.

उन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में कावेरी को गोद भर जाने का आशीर्वाद दिया तो पास खड़ी कावेरी की सासूमां तपाक से बोल उठीं, ‘‘सपने देखने बंद कर दो जीजी अब. यह सुख हमारे हिस्से में कहां? बस अब तो हमारा आंगन बच्चे की किलकारियों के लिए तरसता ही रहेगा सदा.’’

यह सुन बूआजी आंखें फाड़ मुंह बिचकाते हुए बोलीं, ‘‘अरेअरे, यह क्या कह रही हो? कावेरी की सूरत देख कर तो नहीं लगता कि इसे कोई अफसोस है अपने इस अधूरेपन पर. औरत का सारा बनावसिंगार बेकार है अगर एक संतान भी न दे सके परिवार को.’’

‘‘क्या करें अब? यह बां झ लिखी थी लड़के की हिस्से में. जी जलता रहेगा अब तो सदा यों ही हमारा.’’

जहर बु झे तीर से शब्दों का वार असहनीय हो गया और कावेरी चुपचाप वहां से चली गई. अपमान और दुख से विचलित हो रात में उस ने उदित को ये सब बताया तो उदित उलटा उस पर बरसने लगा, ‘‘किसकिस का मुंह बंद करोगी? कुछ गलत तो नहीं कहा मां या बूआजी ने. जानती हो न कि कल 8 बजे की फ्लाइट से मु झे सिडनी जाना है. सोचा था जाने से पहले तुम्हें खुश कर दूंगा, लेकिन सारा मूड औफ कर दिया तुम ने. लाइट बंद कर सो जाओ अब.’’

‘‘मैं भी कल पापा के पास जाना चाहती हूं. उन की तबीयत ठीक नहीं है, आज ही फोन पर बताया था उन्होंने,’’ पहली बार कावेरी ने उदित से  झूठ बोला था.

पापा के फोन का बहाना बना कर आज वह मायके आ गई थी. बचपन में जब कोई बात उसे विचलित करती थी तो पापा के थपकी दे कर सुलाते ही सारा तनाव छूमंतर हो जाता था. उसी थपकी की चाह में कुछ दिन पापा के साथ बिताने आई थी वह.

एअरपोर्ट पहुंच सुधांशु ने मैसेज भेजा तो नोटिफिकेशन टोन सुन  कावेरी की सोच पर विराम लग गया. मैसेज पढ़ने के बाद किचन में जा कर वह अपने लिए नूडल्स बना लाई और वापस कमरे में आ टीवी औन कर बैठ गई. किसी फिल्म में विवाह का दृश्य चल रहा था. गठबंधन की रीत दर्शाए जाने के उपक्रम में वर के कंधे पर लटके पटुका में सिक्का, दूर्वा, चावल, हलदी व फूल रख एक गांठ लगा कर उसे वधू के दुपट्टे से बांधा जा रहा था.

कावेरी के 7 फेरों से पहले भी सुखमय भविष्य और मन को बांधने के प्रतीक के रूप में गठबंधन की रस्म अदा की गई थी. लेकिन हुआ क्या? उदित के कंधे पर लटके दुपट्टे में बंधा गोल सिक्का कैसे तिरस्कार की टेढ़ीमेढ़ी आकृति में बदल गया, वह जान ही नहीं सकी.

दूर्वा उसे हराभरा खुशहाल जीवन कहां दे सकी? वह तो कंटीली  झाडि़यां ही चुभा रही है. हलदी का सुनहरा रंग जीवन में चढ़ने की आशा पूरी होती, उस से पहले ही विषाद ने अपने रंग बिखेर दिए थे उस पर. फूल सा उस का चेहरा जैसे खिलने से पहले ही मुर झाया सा लगने लगा था. अक्षत चावल के धवल दाने पति के अटूट प्रेम और सुखशांति देने के स्थान पर एक बो झ सा औपचारिक रिश्ता ही तो दे पाए थे उसे.

मानसिक शांति तो अब एक सपना सी लगने लगी है. गठबंधन ने दोनों के मन को तो नहीं बांधा. हां, कावेरी के पांवों में जंजीर जरूर बंध गई थी, जिसे न तो वह तोड़ पा रही थी और न ही अपने अस्तित्व को यों कैद में देख पा रही थी.

डोरबैल बजने से कावेरी सोच के दलदल से बाहर आ गई. दरवाजा खोला तो सामने नमन को देख मुर झाया मन खिल सा गया.

नमन उस के पड़ोस में ही रहता था. दोनों की दोस्ती पुरानी थी. वे एक ही स्कूल में पढ़े थे. बाद में उच्च शिक्षा के लिए नमन बैंगलुरु चला गया था. एमबीए करने के बाद नोएडा स्थित एक विदेशी कंपनी में बतौर मैनेजर वह कार्य कर रहा था. नमन का एक पैर पोलियो के कारण बेहद कमजोर था. उस पैर में वह कैलीपर पहन कर रखता था, तभी उस का चलनाफिरना संभव हो पाता था.

नमन के मन में कावेरी के लिए विशेष स्थान था, लेकिन इस का कारण कावेरी का अप्रतिम सौंदर्य या उस का पढ़ाई में अव्वल होना नहीं था. इस का कारण तो कावेरी का मन के प्रति सम्मान और स्नेही व्यवहार था, जो सहानुभूति से नहीं, मित्रता की सुगंध से सुवासित था.

विवाह के बाद कावेरी का मायके में आना कम होने लगा तो नमन से मिलनाजुलना बंद सा हो गया, लेकिन कावेरी की मित्रता जैसे ऊर्जा बनी हमेशा नमन का हाथ पकड़े साथसाथ चला करती थी.

नमन आया तो कावेरी पहले के रंग में रंग गई. बातों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. पुराने दोस्त, स्कूल व कालेज के टीचर्स और मौसम का मिजाज सबकुछ समा गया था उन की बातचीत के मध्य.

कावेरी अपना दर्द मन में ही रख नमन का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लेकिन वह भूल गई थी कि नमन जैसा अंतरंग मित्र उस की मुसकान देख कर ही अनुमान लगा लेगा कि वह दिल से निकली खुशनुमा मुसकराहट है या हंसी का जामा पहने हुए गहन पीड़ा.

कुछ देर की बातचीत के बाद नमन अचानक पूछ बैठा, ‘‘कावेरी, हम क्या अपने पुराने दिनों को ही याद करते रहेंगे या अपनी नई जिंदगी के किस्से भी शेयर करेंगे?’’

कावेरी को लगा जैसे चोरी पकड़ी गई हो. बोली, ‘‘मेरी जिंदगी तो वही, किसी भी शादीशुदा स्त्री की जिंदगी जैसी ही… सासससुर, पति, जिम्मेदारियां बस और क्या? तुम ही कुछ बताओ न,’’ कह कर उस ने पलकें  झुका लीं.

‘एक खूबसूरत जिंदादिल औरत पति से दूर बैठी हो और एक बात भी उस के बारे में न करे… अजीब लग रहा है मु झे. मैं गलत नहीं हूं तो तुम बहुत कुछ दबाए बैठी हो अपने अंदर. कावेरी, मन की गिरह खोल दो प्लीज.’

नमन की स्नेहभरी गुहार कावेरी के दिल से आंखों तक पहुंच आंसू बन कर  झर झर बहने लगी. अपनी सभी आहत अनुभूतियों को उस ने 1-1 कर नमन के समक्ष खोल कर रख दिया. नमन की सहानुभूति घावों पर मरहम का काम कर रही थी.

कावेरी की आपबीती सुन कुछ सोचता हुआ सा नमन बोला, ‘‘कावेरी, क्या तुम्हें पूरा विश्वास है कि उदित ने तुम दोनों की रिपोर्ट्स को ले कर सच बोला है तुम से?’’

‘‘मतलब? उदित ने औनलाइन देखी थीं रिपोर्ट्स. अपनी मरजी से थोड़े ही कहा था.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो नहीं देखीं, फिर प्रिंट्स भी नहीं निकलवाए उस ने. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम नहीं वह…’’

नमन की बात बीच में ही काट कर कावेरी बोल उठी, ‘‘विश्वास तो नहीं हो रहा कि उदित इतना बड़ा  झूठ बोल सकता है. वह गुस्सैल जरूर है, लेकिन धोखेबाज भी…?’’ बेचैन हो वह सोच में डूब गई.

उसे चिंतित देख नमन ने उस का ध्यान दूसरी ओर लगाने के उद्देश्य से चुटकुले सुनाने शुरू कर दिए. एक बार फिर हंसीमजाक का दौर चल पड़ा. इस बीच सुधांशु का जयपुर पहुंच कर फोन आ गया. नमन वहां आया हुआ है यह जान कर कावेरी के लिए चिंतित सुधांशु को राहत सी मिली. नमन से उन्होंने रात में कावेरी के पास ही रुकने का अनुरोध कर किया.

रात के 1 बजे दोनों की उनींदी आंखों ने बातचीत की गति पर थोड़ा विराम लगा  ही दिया. सोने से पहले नमन हौले से मुसकरा कर बोला, ‘‘कावेरी, एक बात कहना चाहता हूं. हम कितने वक्त बाद मिले हैं. इस के बाद न जाने कब मिल पाएं. तुम्हें कोई तकलीफ न हो तो 1-1 कौफी हो जाए. हां, लेकिन कौफी मैं बनाऊंगा. तुम रुको न यहीं, मैं बस यों गया और यों आया.’’

कावेरी मित्र के आग्रह को टाल नहीं सकी.  अपने पिता के कमरे में जा कर कावेरी नमन के सोने का प्रबंध करने लगी. नमन कौफी ले कर आया तो पहला घूंट भरते ही बोली, ‘‘कमाल की कौफी बनाते हो नमन, तुम्हारी होने वाली वाइफ से रश्क सा हो रहा है मु झे,’’ कहते हुए कावेरी खिलखिला कर हंस पड़ी और फिर वहीं बैड पर पैर फैला कर चैन से बैठ कौफी का आनंद लेने लगी.

नमन ने उसे अपने मोबाइल में उन लड़कियों के फोटो दिखाए, जहां उस के रिश्ते की बात चल रही थी. कावेरी से उस की पसंद की लड़की चुनने को कह कर वह वाशरूम चला गया.

थकी हुई कावेरी वहीं बैड पर लेटी तो पता ही नहीं चला कि कब आंख लग गई.

सुबह अलार्म बजने पर ही कावेरी की नींद खुली. हड़बड़ा कर बिस्तर से उठ वह कमरे से बाहर निकली. नमन बालकनी में खड़ा गुलाबी आसमान पर बिखरी छटा निहार रहा था. इस से पहले कि वह रात के विषय में कोई सवाल करती, नमन स्वयं ही बोल उठा, ‘‘रात को जब मैं चेंज कर अंकल के कमरे में वापस आया तो तुम गहरी नींद में थीं. तुम्हें उठाना मैं ने ठीक नहीं सम झा और तुम्हारे कमरे में जा कर सो गया.’’

चाय पी कर नमन वापस चला गया. जब तक सुधांशु लौटे नहीं नमन प्रतिदिन कावेरी से मिलने आता रहा. सुधांशु लौटे तो कावेरी जैसे नन्ही सी बच्ची बन गई. वह यह देख कर बहुत प्रसन्न थी कि इतने कम समय के लिए जयपुर जाने पर भी पापा यह नहीं भूले थे कि लाख की चूडि़यां कावेरी को बहुत पसंद हैं.

ंगबिरंगी चूडि़यों और कंगनों के साथ ही पापा गुलाबी और पीले रंग में रंगा, गोटापत्ती के काम वाला एक सुंदर लहंगा भी लाए थे. कितना खुश देखना चाहते थे वे कावेरी को, चाह कर भी कावेरी सुधांशु को अपना दुख नहीं बता पाई.

वह जानती थी कि उस के मां न बन पाने पर ससुराल वालों का उसे दोष देना पापा को बहुत कष्ट पहुंचाएगा. अपनी पीड़ा भीतर ही दबा पापा के स्नेह को पलपल महसूस करती कावेरी के 10 दिन बातें करते और हंसतेहंसाते कब बीत गए, पता ही नहीं चला उसे.

वापसी के दिन नाश्ता करने वह टेबल पर बैठी ही थी कि उबकाई आने  लगी. उबकाई के साथ ही चक्कर भी आ रहा था. सुधांशु उसे घर के पास ही डाक्टर सुजाता के क्लीनिक पर ले गए.

डाक्टर सुजाता ने जांच कर दवा के साथ कुछ टैस्ट भी लिख दिए. टैस्ट के लिए सैंपल्स दे कावेरी घर आ कर दवा खा आराम करने लेट गई. दोपहर को नमन कावेरी से मिलने आया तो साथ में उस की पसंद का ढोकला भी लाया.

कावेरी की पसंदीदा दुकान का ढोकला उस पर पापा और नमन का साथ, कावेरी भूल ही गई कि वह बीमार है. तीनों की बातों और ठहाकों से घर गूंज उठा.

शाम होतेहोते कावेरी की तबीयत बिलकुल ठीक हो गई. सुधांशु चाहते थे कि वह अगले दिन तक रुक जाए, लेकिन कावेरी ने जाना ही उचित सम झा, क्योंकि उदित सुबह ही सिडनी से अपने घर लौट चुका था.

डाक्टर सुजाता के क्लीनिक पर रिपोर्ट्स औनलाइन देखने की सुविधा नहीं थी और स्वास्थ्य में सुधार के कारण कावेरी को रिपोर्ट लेना आवश्यक भी नहीं लग रहा था, इसलिए वह कैब बुक करवाने लगी.

नमन और सुधांशु का मानना था कि रिपोर्ट एक बार देखनी जरूर चाहिए. कावेरी को लौटने में देर न हो जाए, इसलिए नमन ने कहा कि वह क्लीनिक से रिपोर्ट ले कर उस का फोटो खींच कावेरी को व्हाट्सऐप पर भेज देगा. कैब बुला कर पापा और नमन से विदा ले वह टैक्सी में बैठ कर चली गई.

 

कावेरी ससुराल पहुंचने ही वाली थी कि उसे नमन का भेजा हुआ रिपोर्ट का फोटो मिल गया. जब कावेरी ने फोटो डाउनलोड कर देखा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. रिपोर्ट बता रही थी कि वह गर्भवती है. कावेरी का मन बल्लियों उछलने लगा. वह जल्द ही उदित से मिल कर यह सुखद समाचार उसे सुनाना चाहती थी.

उत्साह से भरी कावेरी दौड़ती हुई उदित के पास जा पहुंची. उदित से आंखें बंद करने को कह कर उस ने पर्स से मोबाइल निकाला और रिपोर्ट का फोटो उदित के सामने कर दिया.

उदित ने आंखें खोलीं तो नजरें मोबाइल स्क्रीन पर ठहर गईं. रिपोर्ट में ‘प्रैगनैंसीपौजिटिव’ देखते ही उस के चेहरे का रंग उड़ गया. माथे पर त्योरियां चढ़ाते हुए बोला, ‘‘क्या मजाक है यह?’’

‘‘मजाक नहीं, यह सच है उदित,’’ कावेरी खुशी से चहक उठी.

‘‘लेकिन यह कैसे हो सकता है?’’ उदित आशंका से घिरा था.

‘‘हो गया बस, कैसे? यह तो मु झे भी नहीं पता,’’ अदा से कंधे उचकाती हुई कावेरी उदित से लिपट गई.

कावेरी को अपने से अलग कर उदित आक्रोशित हो लगभग चीख उठा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता… कभी नहीं. हुआ तो हुआ कैसे?’’

‘‘क्या हो गया है आप को?’’ इस बार कावेरी तुनक कर बोली, ‘‘यह क्या अनापशनाप बोले जा रहे हैं आप इतनी देर से? मैं ने तो सोचा था कि आप यह खुशखबरी सुन खुशी से  झूम उठेंगे. लेकिन…’’

‘‘कैसी खुशखबरी? कैसी खुशी? सुन लो तुम आज कि… मैं पिता नहीं बन सकता,’’ उत्तेजना और क्रोध में उदित के मुंह से सच निकल गया.

कावेरी सिर पकड़ कर बैठ गई. उसे लग रहा था कि वह चक्कर खा कर गिर जाएगी.

अपनी रोबीली आवाज में उदित फिर चिल्लाया, ‘‘क्या मैं जान सकता हूं कि यह बच्चा किस का है? शायद उस नमन का ही, जिस ने तुम्हें यह रिपोर्ट भेजी है.’’

कावेरी यह सहन न कर सकी. तैश में आ कर बोली, ‘‘अब सम झी कि आप ने मु झे हमारे टैस्ट की रिपोर्ट्स क्यों नहीं दिखाई थीं. क्यों नहीं जाना चाहते थे डाक्टर के पास. कितना बड़ा धोखा…’’

बौखलाया सा उदित कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था. बेचैन हो कर वह कमरे में इधरउधर चक्कर लगाने लगा. असमंजस में पड़ी कावेरी भी आंखों पर हाथ रख बैड पर लेट गई.

कुछ देर बाद कमरे की चुप्पी कावेरी का मोबाइल बजने से टूट गई. कौल नमन का था, ‘‘उखड़ी सी आवाज में हैलो बोल मोबाइल पर बात करते हुए वह कमरे से सटी बालकनी में जा खड़ी हुई.’’

नमन बोला, ‘‘उदित का सिडनी टूर कैसा रहा? तुम्हारी तबीयत कैसी है अब? वैसे मैं ने एक जरूरी बात बताने के लिए किया है फोन. अरे, मैं ने जिस रिपोर्ट का फोटो भेजा था वह तुम्हारी नहीं है. पहले किसी और कावेरी की रिपोर्ट दे दी थी मु झे उन लोगों ने. कुछ देर पहले क्लीनिक से फोन आया तो मैं दोबारा जा कर सही वाली रिपोर्ट लाया हूं. अभी व्हाट्सऐप पर तुम्हारी असली रिपोर्ट भेज रहा हूं. कोई बड़ी बीमारी नहीं बस थोड़ा इन्फैक्शन हो गया था.

‘‘ओह, मैं भी कुछ सम झ नहीं पा रही थी कि आखिर यह हुआ क्या? हां, लेकिन उस गलत रिपोर्ट ने उदित को बेनकाब कर दिया है,’’ कहते हुए कावेरी ने पूरी घटना संक्षेप में बता दी.

अब उदित को बता दो रिपोर्ट का सच, ‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ कह कर नमन ने फोन काट दिया और असली रिपोर्ट कावेरी को भेज दी.

फोन पर कावेरी की हताशा में डूबी आवाज सुनने के बाद नमन चिंतित था, लेकिन उसे इस बात की प्रसन्नता भी थी कि उदित को ले कर उस का अनुमान सही निकला और एक छोटी सी युक्ति लगा कर उस  झूठ से परदा उठाने में वह सफल भी हो गया.

हुआ यों कि शाम को जब नमन कावेरी की रिपोर्ट लेने पहुंचा तो जो रिपोर्ट उसे  मिली उस पर ‘प्रैगनैंसी पौजिटिव’ देख कर वह चौंक गया. फिर रिपोर्ट पर मोबाइल नंबर व घर का पता देखा तो वह कावेरी का नहीं था. नमन सम झ गया कि यह रिपोर्ट किसी और कावेरी की है.

इस से पहले कि वह काउंटर पर जा कर सही रिपोर्ट लेता, उस ने अपने मोबाइल से उस रिपोर्ट की एक फोटो इस तरह खींच कर रख लिया, जिस में एड्रैस और मोबाइल नंबर दिखाई न दे. इस के बाद नमन ने कावेरी की असली रिपोर्ट ले कर अपने पास रख ली. रिपोर्ट नौर्मल थी, इसलिए उसे कावेरी तक पहुंचाने की जल्दी भी महसूस नहीं हुई नमन को.

गलत रिपोर्ट वाला फोटो कावेरी को भेजने के कुछ देर बाद भेजी नमन ने असली रिपोर्ट ताकि कावेरी उदित को गलत रिपोर्ट दिखा सके और इस बारे में कावेरी और उदित की बातचीत भी हो पाए. गलत रिपोर्ट देखने के बाद उदित की प्रतिक्रिया द्वारा सच झूठ की तह तक पहुंचना चाहता था नमन.

सही रिपोर्ट भेजने के बाद नमन आशा कर रहा था कि उदित अब शर्मिंदा हो कर सच छिपाने के लिए कावेरी से क्षमा मांग लेगा और दोनों का वैवाहिक जीवन एक सुखद मोड़ ले लेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

उदित को जब कावेरी ने बताया कि प्रैगनैंसी वाली रिपोर्ट गलत थी तो निर्लज्जता और दोगुने वेग से वह कावेरी पर चिल्ला उठा, ‘‘तो अब अपने दोस्तों के साथ मिल कर मेरा मजाक भी उड़ाना शुरू कर दिया तुम ने. न जाने क्या सम झती हो अपनेआप को… सिडनी में ही खुश था मैं. सोच रहा हूं सब छोड़छाड़ कर वहीं चला जाऊं.’’

कावेरी का मन वितृष्णा से भर उठा. मन के चूरचूर होने की पीड़ा मुख पर साफ  झलक रही थी. मन किया कि जोर से चीख उठे. मुंह से जैसे बोल अपनेआप ही निकल पड़े, ‘‘अपने किए पर शर्मिंदा होने की जगह आप मु झे, मेरे दोस्तों पर कीचड़ उछाल रहे हैं? अब तक आप के व्यवहार को मैं आप का स्वभाव सम झ सहन करती आ रही थी, लेकिन आप तो पहले दिन से ही मु झे नीचा दिखाने के मौके तलाश रहे थे.

‘‘क्या हो गया अगर पतिपत्नी में से कोई भी संतान को जन्म देने में असमर्थ है? वह आप भी हो सकते थे या मैं भी. रिश्तों का घटाजोड़ नहीं जानती मैं, लेकिन इतना सम झती हूं कि प्यार दिमाग से नहीं दिल से होता है. पतिपत्नी का रिश्ता प्रेम पर टिका होता है… दिमाग का खेल नहीं चलता यहां. आप क्या छोड़ेंगे मु झे? मैं आज ही, अभी पतिपत्नी के नाम पर कलंक बन चुके इस रिश्ते से अपने को अलग करती हूं.’’

उदित हक्काबक्का सा देखता रह गया और बैग लिए कावेरी उलटे पांव मायके लौट आई.

सुधांशु भी क्या कहते सब जानने के बाद? कुछ दिनों की जद्दोजहद के बाद तलाक हो गया.

अपनी योग्यता के बल पर स्कूल में टीचर बन कावेरी पूरी हिम्मत से स्वयं को  संभाले थी, लेकिन मन में कहीं न कहीं एक रिक्तता निरंतर अनुभव कर रही थी. धीरेधीरे उस के वजूद पर छा रही वह उदासी उस की उमंगों और खुशियों को लील ही जाती यदि उस दिन नमन अपना दिल उस के सामने खोल न देता.

‘‘कावेरी, तुम्हें कभी कहने का साहस न जुटा सका. हमेशा एक जुड़ाव सा महसूस होता रहा है तुम संग. कुछ कहना भी चाहा कभी तो अपाहिज पांव ने जैसे मेरी सारी हिम्मत छीन ली. तुम्हारी शादी हुई तो सब्र कर लिया और हमेशा तुम्हें खुश देखना चाहा.

‘‘अब भी तुम्हें उदास देखता हूं तो लगता है कहीं से खुशियों की गठरी बांध लाऊं और सब तुम पर निछावर कर दूं,’’ नमन बोला.

‘‘अपाहिज? क्या कह रहे हो नमन? अपाहिज तो उदित था जिस की सोच ही पंगु थी. काश, तुम ने कुछ साल पहले ही बता दी होती मु झे अपने मन की बात,’’ कावेरी का गला रुंध गया.

‘‘तो अब भी क्या बिगड़ा है? कावेरी, क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बन कर खुश रह सकोगी?’’

कावेरी की आंखें ही नहीं मन भी भीग गया. लगा जैसे नमन ने चाहत के दुपट्टे में सम्मान का सिक्का, उमंग सी हलदी, दूर्वा जैसी खुशी, चावल के दानों सा विश्वास तथा आशा के पुष्प रख कस कर गांठ लगा दी हो और उसे कावेरी की कोमल भावनाओं की चूनर से बांध दिया हो.

‘‘गठबंधन तो आज हो गया हमारा,’’ कह कर कावेरी नमन के गले लग गई.

मौनसून में बालों को बनाना है हेल्दी, तो इन टिप्स को करें फौलो

मौनसून आ गया है. यह समय है जब हमें बारिश और नमी व बैक्टीरिया से अपने बालों की रक्षा करनी और अपने बालों को कमजोर होने से बचाने की खास जरुरत पड़ती है. वातावरण में बढ़ती नमी बालों के झड़ने का मुख्य कारण है. साथ ही इस मौसम में आप के बाल हाइड्रोजन को अवशोषित करते हैं जिस से ये रूखे और बेजान हो जाते हैं . लेकिन हमारे छोटे प्रयास हमारे बालों की सुरक्षा की ओर बड़ा अंतर ला सकते हैं . घर की छोटीछोटी रोजमर्रा की चीजो से आप अपने बालों का ख्याल रख सकती हैं. इस सन्दर्भ में डर्मेटोलौजी क्लिनिक की चेयरमैन व फाउंडर डाक्टर निवेदिता दादू के कुछ आसान उपायों को अपना कर आप अपने बालों को दे सकती हैं सेहत और आकर्षण भरी चमक…

1. डीप कंडीशनिंग करें

सूर्य से लंबे समय तक संपर्क अकसर हमारे बालों को रुखा और मुरझाया हुआ सा बनाता है. बालों को  फिर से जीवंत करने के लिए स्कैल्प तक डीप कंडीशनिंग महत्वपूर्ण है ताकि हमारे बाल और खोपड़ी को अतिरिक्त पोषण मिल सके.

2. अपने बालों को हीट से दूर रखें

मौनसून में नमी के कारण अपने गीले बालों पर हीट जनरेटिंग उत्पाद का ज्यादा प्रयोग करेंगे तो बाल पर इस का बुरा असर हो सकता है. इसीलिए, हमें ब्लोड्रायर, स्ट्रैटनर, कर्लिंग रॉड आदि जैसे सभी हीट जनरेटिंग उत्पादों से अपने बालों की दूरी बनाये रखनी चाहिए. यह हमारे बालों को बेजान बनाते हैं.

3. बालों की जड़ तक तेल पहुंचाए

इस मौसम में बालों पर तेल लगाना एक ज़रुरत बन जाता है . सप्ताह में कम से कम एक बार नारियल या जैतून का तेल की मालिश बहुत फायदेमंद और आरामदेह होती है .हलके हाथों से स्कैल्प पर तेल लगा  कर मालिश करें. लेकिन ध्यान रखें कि इस मौसम में आप के बाल पहले ही कमजोर हैं तो जितना हो सके बालों के साथ नरम रहें.

4. भरपूर आहार लें

अन्य सभी कारकों के अलावा एक चीज जो स्वस्थ बालों के लिए जरुरी है वह है आप की डाइट. अपनी डाइट में अंडे, मछली और स्प्राउट्स जैसे खाद्य पदार्थों को शामिल करना सुनिश्चित करें जो प्रोटीन और आयरन से भरपूर होते हैं. अखरोट भी आप के बालों को स्वस्थ रखने के लिए बहुत अच्छे हैं क्यों कि उस में ओमेगा-3, फैटी एसिड और विटामिन ई काफी मात्रा में होता है.

5. अपने बालों को ट्रिम करें

इस मौसम में अपने बालों को कटवाऐं और उन्हें एक स्टाइलिश लुक दें. रूखे या विभाजित सिरों के बालों से छुटकारा पाने के लिए बालों को ट्रिम करना तो बहुत ही महत्वपूर्ण है.

6. अपने बालों को कस कर बांधने से बचें

लूज बन्स, नॉट्स और मैसी ब्राइड्स बहुत ही फैशनेबल और ट्रेंडी दिखते हैं. मौनसून में वातावरण की अधिक नमी के कारण टाइट बाल बहुत असहज और परेशानदेह हो सकते हैं साथ ही हमारे बालों की जड़ों को भी कमज़ोर कर देते हैं जो बालों के झड़ने और टूटने का कारण बन सकता है. इसीलिए अपने बालों को लूज़ बांधकर ट्रेंडी बने और दिखें.

7. अपने बालों पर प्राकृतिक मास्क लगाएं

घर के बने हुए हेयर मास्क ट्राई करें क्यों कि प्राकृतिक रूप से तैयार मास्कबिना कोई नुक्सान पहुंचाए बालों को बहुत अच्छे ढंग से पोषण प्रदान करते है . घरेलू हेयर मास्क बनाना कुछ मुश्किल नहीं है. केवल एक केला, शहद और बादाम के तेल का मिश्रण, आधे घंटे तक छोड़ने पर स्कैल्प में अहम पोषक तत्वों का प्रवेश हो जाता है . इस को लगाने के बाद बालों पर थोड़ी देर के लिए गर्म तौलिये को लपेंटे और बाद में किसी अच्छे शैम्पू से बालों को धो लें और फिर कंडीशनर करें . आप अपने बालों में अंतर ज़रूर पाएंगे .

8. लिक्विड का सेवन अधिक करना शुरू करें

पानी, स्मूदीज, जूस, शेक्स, नींबू पानी और नारियल के पानी जैसे तरल पदार्थों का सेवन हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है. मौनसून में हाइड्रेटेड रहना हमारे शरीर के तापमान को बनाए रखता है, पेट को ठंडा रखता है साथ ही हमें हमेशा ताज़ा महसूस करवाता रहता है. इस से बालो  को भी पोषण और ताजगी मिलती  है.

9. छतरी रखें अपने पास

मौनसून में बहुत ज़रूरी है कि घर से बाहर निकलने से पहले आप छतरी अपने साथ ले कर निकलें. बारिश से उत्पन्न एसिडिक और धूल कण बालों को कमजोर कर सकते हैं जिस से कि आप के बाल बेजान और पतले हो जाते है.  ह्यूमिडिटी से बचने के लिए बारिश में गीला होने से ज़रूर बचें . अगर आप किसी तरह बारिश में भीग भी जातें है तो घर जा कर साफ पानी से अपने बालों को ज़रूर धोएं और फिर अच्छी तरह बालों को पोछ कर सूखा लें.

अभिषेक: मानस ने अपनी अम्मा से क्या सवाल किया

‘बमबम भोले…’ के जयजयकारे लग रहे थे. आगे से आवाज आई तो पीछे से भी जोर से सुर में सुर मिलाया गया.

‘हरहर महादेव…’ भीड़ के बीचोंबीच फंसी लगभग 80 साल की वृद्धा ने सम्मोहन की स्थिति में पुकार लगाई. ऐसा लगता था, वह इस अवस्था में काल पर विजय प्राप्त करने के लिए ही रातभर से भूखीप्यासी लाइन में लगी है.

मानस इस लाइन में 10वें नंबर पर खड़ा था. उसे स्वयं आश्चर्य हो रहा था कि वह यहां क्यों खड़ा है? दर्शन व अभिषेक कर वह ऐसा क्या प्राप्त कर लेगा जो उसे अभी तक नहीं मिल पाया? और जो नहीं भी मिला है, वह क्या आज के ही दिन दर्शन करने से मिलेगा, अन्य किसी दिन क्यों नहीं? ऐसी कई तार्किक बातें थीं जिन पर उस का विचारमंथन चल रहा था. वह था तो तार्किक पर अपनी पत्नी के अंधविश्वासी स्वभाव के सामने असहाय हो जाता था. इसलिए अनमने ही सही, वह भी एक हाथ में पानी से भरा तांबे का लोटा और दूसरे हाथ में बिल्व पत्र लिए रात 12 बजे से ही लाइन में धक्के खा रहा था. उसे स्वयं पर कोफ्त भी हो रही थी कि क्योंकर वह इस कुचक्र में फंस गया. उसे रहरह कर मां पर गुस्सा और पत्नी पर चिढ़ आती थी. उसे लगा कि उस के सारे तर्क मां व पत्नी की आस्था के सामने ढेर हो गए हैं.

लाइन में खड़ेखड़े मानस के पांव दुखने लगे, रहरह कर लगने वाले धक्के उस के विचारों के क्रम को तोड़ डालते थे. वह क्रम जोड़ता पर कुछ ही देर में वह फिर से टूट जाता था. इस टूटने व जुड़ने के क्रम के साथसाथ दर्शनार्थियों की लाइन भी इंच दर इंच आगे रेंग रही थी. मानस ने गति के साथ इस का तालमेल बिठाया तो पाया कि 1 घंटे में वह मात्र 2 फुट ही आगे बढ़ पाया है. उस दिन सोमवती अमावस्या थी. वैसे तो कई सोमवती अमावस्याओं पर उस ने रंगबिरंगे परिधानों से सजे ग्रामीण भक्तों की भीड़ देखी थी पर आज 27 वर्षों बाद बने दुर्लभ संयोग ने भीड़ को कई गुना बढ़ा दिया था. मानस 11 बजे रामघाट पहुंचा. तब घाट पर कीड़ेमकोड़ों की तरह भीड़ नजर आ रही थी जो सिर्फ इस बात का इंतजार कर रही थी कि जैसे ही 12 बजे अमावस लगे वैसे ही क्षिप्रा के पवित्र जल में डुबकी लगा ली जाए. लेकिन नहाने के विचार से ही मानस को उबकाई आने लगी. उसे लगा कि जरा से पानी में लाखों लोग हर डुबकी के साथ अपनी गंदगी पानी में धो लेंगे और उसी पानी में उसे नहाना होगा. वह अचकचा गया. वैसे भी, क्षिप्रा का पानी कब साफ रहता है. सारे शहर की गंदगी का नाला इस ‘पवित्र’ नदी में मिलता ही है, ऊपर से इतने लोगों का स्नान.

उस का जी वापस जाने को हुआ था. सोचा, ‘मां या पत्नी उसे देखने तो आ नहीं रहे हैं, कह दूंगा कि नहा लिया था.’

उस का मन फिरने ही लगा था कि वह एक बार फिर आस्था के आगे नतमस्तक हो गया.

एक जोर के धक्के ने उस की तंद्रा भंग की. वह जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘अरे भाई, धक्के मत मारो, बच्चे और बूढ़े भी लाइन में लगे हैं. ये भक्तों की लाइन है, कोई घासलेट, शक्कर की नहीं.’’

परंतु उस की आवाज संकरे गलियारे के मोड़ को भी पार न कर सकी. मानस ने पीछे गरदन घुमा कर देखा, कतार का कोई ओरछोर नजर नहीं आ रहा था. शायद पीछे वाले मोड़ के बाद खुले मैदान में भी चक्राकार कतार होगी. एकदूसरे को ठेल कर आगे बढ़ने का प्रयास करती भीड़ को पुलिस की लाठी ही संयमित कर सकती थी. फिर से मानस पर तक हावी हो गया. उस ने सोचा, क्या चाहती है यह भीड़? क्या ‘भगवान’ इतने सस्ते हैं कि एक बार चलतेचलते 2 बिल्व पत्रों और छटांकभर जल चढ़ाने से प्रसन्न हो जाएंगे? उस का मन किया कि इस भीड़ में फंसे लोगों में से किसी बनिए से पूछे कि ‘क्या वह आज के इस महादर्शन के बाद कभी डंडी नहीं मारेगा या किसी सूदखोर से पूछे कि क्या वह आज सूद न लेने का प्रण करेगा या फिर किसी वृद्धा से पूछे कि वह ऐसा प्रण कर सकती है कि आज के बाद वह अपनी बहू पर अत्याचार नहीं करेगी? पर अंधश्रद्धा से सराबोर इस भीड़ से इस तरह के प्रश्न करना मूर्खता ही होती, इसलिए वह चुप रहा.

मंदिर के एक ओर बना प्रवेशद्वार 5 मीटर चौड़े गलियारे में खुलता था. यह गलियारा, जिस में कि मानस खड़ा था, डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए इस द्वार को 2 मोड़ दिए गए थे. बीचबीच में छोटेछोटे मंदिरों के कारण गलियारा और भी संकरा हो गया था. गलियारा, जहां पर गर्भगृह के लिए खुलता था, वहां नीचे जाने के लिए सीढि़यां थीं. संगमरमर की होने से सीढि़यां धवल प्रकाश में जगमग चमकती थीं. सुबह 4 बजे का समय हो चला था. मानस अपनी जगह से मात्र 5 फुट ही आगे बढ़ पाया था. धक्कामुक्की में थकान के कारण कुछ शिथिलता आ गई थी. हलकीहलकी बारिश भी गरमी को कम नहीं कर पा रही थी. गलियारे में गरमी बढ़ती ही जा रही थी. लोगों के गले खुश्क और कपड़े तरबतर हो रहे थे. लाइन में लगे बच्चों की हिम्मत जवाब दे गई. 10 साल की एक बच्ची बेहाल हो कर गिर गई, शायद गरमी और प्यास के कारण ऐसा हुआ था. पर आगेपीछे खड़े किसी भी भक्त ने अभिषेक के लिए साथ में लिए लोटे से उसे पानी पिलाना उचित न समझा.

‘‘माताजी, इस बच्ची को पानी क्यों नहीं दे देतीं?’’ मानस बोला. माताजी कुछ सोचविचार में पड़ गईं, शायद धर्म का प्रश्न उन के मस्तिष्क में घूम रहा होगा. मानस ने देर न करते हुए अपने लोटे में से थोड़ा सा पानी उस लड़की को पिला दिया. चंद मिनटों बाद ही वह होश में आ गई. ‘‘दादी, दादी, भूख लगी है,’’ लड़की बोली.

अपनी धार्मिक भावना का बलपूर्वक पालन करवाने की गरज से दादी अपनी पोती को भी साथ लेती आई थी, अपने साथसाथ उस से भी उपवास करवाया लगता था. पर नन्ही बच्ची कब तक भूख सहती?

‘‘कहां से आई हो, अम्मा?’’ मानस ने समय गुजारने के लिए पूछा.

वृद्ध महिला कुछ संकोच में पड़ी हुई थी, बोली, ‘‘बेटा, औरंगाबाद से आई हूं.’’

‘‘कोई खास मन्नतवन्नत है क्या?’’ मानस ने बात बढ़ाई.

‘‘हां, इस ‘अभागी’ लड़की का भाई गूंगा है, उसी के लिए आई हूं,’’ वृद्धा ने थकी आवाज में कहा.

‘‘अम्मा, इस में लड़की कैसे अभागी हुई?’’ मानस की आवाज से हलका सा क्रोध झलक रहा था.

‘‘काहे नहीं, बहनों के ‘भाग’ से ही तो भाई का भाग होवे है,’’ वृद्धा ने जोर दे कर कहा.

मानस का जी तो किया कि इस बात पर वृद्धा को खरीखोटी सुना दे पर वह वक्त इस बात के लिए उसे ठीक न जान पड़ा. उस ने एक बार फिर उस समाज को मन ही मन कोसा जो सारे परिवार के दुख के कारण को नारी जाति से जोड़ देता है.

तभी जोर का एक धक्का आया और मानस ने अपनेआप को गलियारे के मोड़ पर खड़ा पाया, जहां से नीचे गर्भगृह में जाने की सीढि़यां शुरू होती हैं. पहले से ही संकरी जगह को बैरिकैड लगा कर और संकरा कर दिया गया था. 2 सालों के बाद ही मानस वहां गया था, उसे वहां की व्यवस्था पर आश्चर्य हो रहा था. इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए गलियारे में होमगार्ड के केवल 2 जवान थे, धक्कामुक्की पर नियंत्रण करना उन के वश में नहीं था. मानस के ठीक आगे औरंगाबाद वाली वृद्धा थी. मानस ने जानबूझ कर उस की पोती को बीच में खड़ा कर लिया था, उस के पीछे 3-4 वृद्ध और थे, जिन से वह बीचबीच में बतिया कर रातभर से उन की आस्था की थाह लेने का प्रयास कर रहा था. इसी बीच, जो लाइन धीरेधीरे रेंग रही थी, वह भी बंद हो गई. बताया जा रहा था कि भस्मारती शुरू हो गई है. भोले से रूबरू होने का समय 2 घंटे और आगे खिसक गया. संकरा मोड़ और ऊपर से उमस, उस पर शरीरों की आपसी रगड़, तपिश और जलन को मानस का पोरपोर महसूस कर रहा था. उस ने सोचा, जब उस की यह हालत है तो बच्चों और वृद्धों का क्या हाल होगा. लगता है, ये प्राणी आज ही भोले के दरबार में आवागमन चक्र से मुक्त हो जाएंगे.

भीड़ पर एकएक मिनट भारी था. व्याकुलता बढ़ती ही जाती थी. मुक्त होने पर वह और भीड़ कैसा महसूस करेगी, खुली हवा में कितनी शांति और शीतलता होगी, इस विचार ने कुछ क्षणों का कष्ट कम कर दिया. तभी बाहर दालान में तेजी से बूटों के चलने की आवाजें आईं, उसी के पीछे कई पैरों की पदचाप सुनाई पड़ी. मानस ने महज अंदाजा लगाया, कोई वीआईपी इस दुर्लभ अवसर के पुण्य को अपने खाते में डालने आया होगा. भीड़ की मुक्ति का समय कुछ और आगे बढ़ गया. आधे घंटे बाद फिर उन्हीं बूटों की आवाज गूंजी. ठीक उसी समय लोगों के लिए आगे का मार्ग खोल दिया गया. अकुलाई भीड़ ने बिना आगापीछा सोचे जोर का धक्का मारा. मानस ने आगे खड़ी लड़की का हाथ कस कर पकड़ लिया. बूढ़ी दादी को वह सहारा देता, लेकिन तब तक वह सीढि़यों पर लुढ़क गई थी. मानस ने स्वयं और लड़की को पूरा जोर लगा कर एक तरफ कर लिया. उस के बाद तो एक के बाद एक पके फल की तरह लोग गिरने लगे. मानस को कुछ सूझता, इस के पहले ही एक बड़ा रेला उन सब लोगों के ऊपर से गुजर गया.

वह पागलों की तरह चिल्ला रहा था, ‘‘अरे, आगे… मत बढ़ो. तुम्हारे भाईबंधु दब कर मर रहे हैं.’’

पर उस की कौन सुनता, सभी को भूतभावन के दरबार में जाने की जल्दी थी. जब तक भीड़ को होश आता, तब तक तो अनर्थ हो चुका था. जहां मंदिर में घंटियों का मधुर स्वर गूंजना चाहिए था वहां चारों ओर लोगों का करुणक्रंदन और चीत्कार गूंज रही थी. सभी हतप्रभ थे. मानस एक हाथ से उस लड़की को थामे था, उस के दूसरे हाथ में अभी भी जल से आधा भरा तांबे का लोटा था, जिस से शिवलिंग का अभिषेक करने का उस का मन था.

पर वह कैसे आगे बढ़ता, किस मन से करता अभिषेक? जबकि उस के इर्दगर्द व भीतर प्रलयंकारी तांडव हो रहा था. उस ने पास ही कराह रहे घायल के मुंह में अभिषेक करने की मुद्रा में जलधारा छोड़ दी. यही सच्चा अभिषेक था.

लेखक- हरिशंकर शर्मा26

तूफान: क्या हुआ था कुसुम के साथ

एक तूफान था जो जिंदगी में अचानक ही चला आया था. मन में कैसी बेचैनी, छटपटाहट और हैरानी थी. क्या करें कुसुमजी? ऐसा तो कभी नहीं हुआ, कभी नहीं सुना. संसार में आदमी की इज्जत ही तो हर चीज से बढ़ कर होती है. वह कैसे अपनी इज्जत जाने दे? कुसुमजी हैरान और दुखी हैं. इस के अलावा ऐसे में कोई कर भी क्या सकता है? बात शुरू से बताती हूं.

दरअसल, कुसुमजी एक संपन्न और सुखी घराने की बहू हैं. घर में सासससुर हैं. पति हैं. 3 प्यारेप्यारे बच्चे हैं. उन के घर में न रुपएपैसे का अभाव है न सुखशांति का. दूसरे घरों में आएदिन झगड़ेफसाद होते रहते हैं मगर कुसुमजी की छोटी सी गृहस्थी इस सब से बची हुई है. कुसुमजी के पति क्रोधी नहीं हैं. सास भी झगड़ालू नहीं हैं. सब प्रेमभाव से रहते हैं. घर में कोई मेहमान आ जाए तो भारी नहीं पड़ता. दो वक्त का भोजन उसे भी कराया जा सकता है. कोई नातेरिश्तेदार हो तो चलते समय छोटामोटा उपहार यानी कोई अच्छा कपड़ा या 11-21 रुपए देने में भी घर का बजट नहीं गड़बड़ होता. अतिथि बोझ न हो, सिर पर कर्ज न हो, घर में सुखशांति हो, इस से ज्यादा और क्या चाहिए? कुसुमजी छमछम करती अपने आंगन में घूमतीफिरती हैं और रसोई, दालान, बैठक आदि सब जगह की व्यवस्था स्वयं देखती रहती हैं. रसोई के लिए महाराजिन है और बरतन साफ करने के लिए महरी. बाजार का काम देखने को घर में कई नौकरचाकर भी हैं. सास सुशील, सुंदर बहू पा कर घर की जिम्मेदारी उसे सौंप चुकी हैं और आराम से जिंदगी के बाकी दिन गुजार रही हैं. ऐसे में क्या तूफान खड़ा हो सकता है?

क्या पति इधरउधर ताकझांक करता है? अजी नहीं, वह तो रहट का बैल है. बेचारा कंधे पर गृहस्थी का जुआ ले कर उसी धुरी के इर्दगिर्द घूमता रहता है. उस गरीब को तो घर की दालरोटी के अलावा कभी बाजार की चाटपकौड़ी की चाहत तक नहीं हुई. हुआ यह कि कुसुमजी के घर मेहमान आए. वह अकसर आते ही रहते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. वह ठाट से 2-3 दिन रहे. जिस काम से आए थे वह निबटाया और फिर शहर भी घूम आए. उस दिन वह सुबहसवेरे चलने को तैयार हुए. अटैची बंद की. बिस्तर बांधने लगे, आधा बिस्तर बिस्तरबंद में जमा चुके तो मालूम पड़ा कि उन का कंबल नहीं है. उन्होंने फिर से देखाजांचा. वह मेहमानों के जिस कमरे में टिके हुए थे उस में उन के अलावा और कोई नहीं ठहरा था. अपनी चारपाई देखी. नीचे झांक कर देखा कि शायद चारपाई के नीचे गिर गया हो, लेकिन कंबल वहां भी नहीं था. वह अपने सब कपड़े सहेज कर पहले ही अटैची में बंद कर चुके थे. कोई और जगह ऐसी नहीं थी जहां कंबल के पड़े होने की संभावना होती. मेहमान को घर के मालिक से कहने में संकोच हो आया.

क्या एक तुच्छ कंबल की बात इतने बड़े और इज्जत वाले आदमी से कहना उचित होगा? वैसे कंबल पुराना नहीं था. यात्रा के लिए ही खरीदा गया था. रुपए भी पूरे 300 खर्च हो गए थे. ऐसे में उस नए कंबल को संकोच के मारे छोड़ जाने के लिए भी दिल नहीं मानता था. मेहमान ने झिझकते हुए कुसुमजी के बच्चे शरद से पूछ लिया, ‘‘बेटा, यहां हमारा कंबल पड़ा था. अब मिल नहीं रहा है.’’ शरद ने इधरउधर नजर दौड़ाई. कंबल कहीं न पाया तो जा कर मां से कहा. उस वक्त कुसुमजी रसोई में महाराजिन को निर्देश दे रही थीं. शरद की बात सुन कर तुरंत मेहमान के पास दौड़ी आईं. उन्होंने देखा कंबल नहीं था. घर का कोई भी सदस्य मेहमान के कमरे में नहीं आता था. इसलिए किसी का वहां आ कर मेहमान का कंबल ले जाना समझ में नहीं आ रहा था. कुसुमजी ने यों ही दिल की तसल्ली के लिए घर के बिस्तर उलटपुलट डाले. हालांकि उन्हें यकीन तो पहले से ही था कि घर का कोई भी सदस्य कंबल नहीं उठा सकता, पर मेहमान और अपनी तसल्ली के लिए उसे ढूंढ़ना तो था ही. कुसुमजी मन ही मन बड़ी झेंप महसूस कर रही थीं.

मेहमान के सामने हेठी हो गई. क्या सोचेगा भला आदमी? कैसे लोग हैं? बिस्तर में से कंबल ही गायब कर दिया. कौन कर सकता है ऐसा गलत काम? सासससुर को ऐसी बातों से कोई मतलब नहीं. वह तो लाखों का व्यापार और घरबार सब बेटेबहू को सौंपे हुए बैठे हैं. भला वह कैसे मेहमान का एक कंबल ले लेंगे? ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता. और बच्चे? वे स्वयं अपना तो कोई काम करते नहीं, फिर मेहमान के कमरे में जा कर उस का बिस्तर क्यों ठीक करेंगे? और फिर जहां तक कंबल का सवाल है वे उस का क्या करेंगे? उन्हें किसी चीज की कमी है जो वे चोरी करेंगे? रही किसी के मजाक करने की बात तो उन के बड़ों से मजाक करने का सवाल ही नहीं उठता. कुसुमजी दिल ही दिल में सवाल करती रहीं. सारी संभावनाओं पर विचार करती रहीं पर उस से कुछ हासिल न हुआ. कंबल तो न मिलना था न मिला.

कुसुमजी का मन जैसे कोई भंवर बन गया था जिस में सबकुछ गोलगोल घूम रहा था. महाराजिन? वह तो चौके के अलावा कभी किसी के कमरे में भी नहीं जाती. उस के अलगथलग बने मेहमानों के कमरे में जाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था. महरी? वह बरतन मांज कर चौके से ही आंगन में हो कर पिछवाड़े के दरवाजे से निकल जाती है. गरीब आदमी के ईमान पर शक नहीं करना चाहिए. फिर कंबल गया तो गया कहां? अब मेहमान से भी क्या कहें? कुसुमजी की परेशानी सुलझने का नाम ही नहीं ले रही थी. तभी मेहमान ने अपना सामान ला कर आंगन में रख दिया. वह कुसुमजी को नमस्कार करने के लिए उद्यत हुआ. वह बिना कंबल के जा रहा है या कंबल मिल गया है यह जानने के लिए जैसे ही उन्होंने पूछा तो मेहमान ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नहीं, भाभीजी, मिला तो नहीं. पर छोडि़ए इस बात को.’’ ‘‘नहींनहीं, अभी और देख लेते हैं. आप रुकिए तो.’’ कुसुमजी ने पति को बुलवा लिया. इत्तला की कि मेहमान का कंबल नहीं मिल रहा है. वह भी सुन कर सन्न रह गए. इस का सीधा सा अर्थ था कि कंबल खो गया है.

उन के घर में ही किसी ने चुरा लिया है. कुसुमजी ने बड़े अनुनय से मेहमान को रोका, ‘‘अभी रुकिए आप. कंबल जाएगा कहां? ढूंढ़ते हैं सब मिल कर.’’ कुसुमजी, उन के पति, बच्चे, सासससुर सब मिल कर घर को उलटपलट करने लगे. सारी अलमारियां, घर के बिस्तर, ऊपर परछत्ती, टांड, कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी जहां कंबल को न ढूंढ़ा गया हो. कुसुमजी ने पहली बार गृहस्वामी को ऊंची आवाज में बोलते सुना, ‘‘घर की कैसी देखभाल करती हो? घर में मेहमान का कंबल खो गया, इस से बड़ी शर्म की क्या बात होगी?’’ कुसुमजी तो पहले ही हैरानपरेशान थीं, पति की डांट खा कर उन का जी और छोटा हो गया. उन की आंखों से आंसू टपटप टपकने लगे. साथ ही वह सब जगह कंबल की तलाश करती रहीं. ऐसा लगता था जैसे घर में कोई भूचाल आ गया हो. दालान में बैठा मेहमान मन में पछताने लगा कि अच्छा होता कंबल खोने की बात बताए बिना ही वह चला जाता. क्यों शांत घर में सुबहसवेरे तूफान खड़ा कर दिया. इस दौरान गृहस्वामी का उग्र स्वर भी टुकड़ोंटुकड़ों में सुनने को मिल रहा था.

मेहमान सोचने लगा, 300 रुपए अपने लिए तो बड़ी रकम है पर इन लोगों के लिए वह कौन सी बड़ी रकम है, जो इस कंबल के लिए जमीनआसमान एक किए हुए हैं. मेहमान ने उठ कर फिर गृहस्वामी को आवाज दी, ‘‘भाई साहब, आप कंबल के लिए परेशान न हों. अब मैं चलता हूं.’’ ‘‘नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? आप बस 10 मिनट और रुकिए,’’ मेहमान को जबरदस्ती रोक कर गृहस्वामी बाहरी दरवाजे की तरफ लपक लिए. वह आधे घंटे बाद लौटे, हाथ में एक बड़ा सा कागज का पैकेट लिए. उन्होंने मेहमान के सामान पर पैकेट ला कर रखा और बोले, ‘‘भाई साहब, इनकार न कीजिएगा. आप का कंबल हमारे यहां खोया है. इस की शर्मिंदगी ही हमारे लिए काफी है.’’ मेहमान भी कनखियों से देख कर जान चुके थे कि पैकेट में नया कंबल है, जिसे गृहस्वामी अभीअभी बाजार से खरीद कर लाए हैं. थोड़ीबहुत नानुकर करने के बाद मेहमान कंबल सहित विदा हो लिए. मेहमान तो चले गए, पर कुसुमजी के लिए वह अपने पीछे एक तूफान छोड़ गए. मुसीबत तो टल गई थी, लेकिन कंबल के खोने का सवाल अब भी ज्यों का त्यों मुंहबाए खड़ा था.

कोई आदमी ऐसा नहीं था जिस पर कुसुमजी शक कर सकें. फिर कंबल गया तो कहां गया? बिना सचाई जाने छोड़ भी कैसे दें? इसी उधेड़बुन में कुसुमजी उस रात सो नहीं सकीं. सुबह उठीं तो सिर भारी और आंखें लाल थीं. इतना दुख कंबल खरीद कर देने का नहीं था जितना इस बात का था कि चोर घर में था. चोरी घर में हुई थी. कुसुमजी यह समझती थीं कि घर में उन की मरजी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता, पर अचानक उन का यह विश्वास हिल गया था. किस से कहें कि ठीक उन की नाक के नीचे एक चोर भी मौजूद है जो आज कंबल चुरा सकता है तो कल घर की कोई भी चीज चुरा सकता है. घर में कुछ भी सुरक्षित नहीं है. कुसुमजी की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. इसी परेशानी के आलम में उन की सहेली सविता ने परामर्श दिया कि पास में ही एक पहुंचे हुए ज्योतिषी बाबा हैं. वह बड़े तांत्रिक और सिद्ध पुरुष हैं. कैसा भी राज हो, बाबा को सब मालूम हो जाता है.

कुसुमजी का कभी किसी ज्योतिषी या तांत्रिक से वास्ता नहीं पड़ा था, इसलिए उन के मन में उन के प्रति अविश्वास की कोई भावना नहीं थी. दरअसल, उन के जीवन में ऐसा कोई टेढ़ामेढ़ा मोड़ ही नहीं आया था जिस में से निकलने की कोई उम्मीद ले कर उन्हें किसी बाबा आदि की शरण में जाना पड़ता. सविता का परामर्श मान कर कुसुमजी तैयार हो गईं. उन्हें यह जानने की उत्सुकता अवश्य थी कि अगर सचमुच ज्योतिष नाम की कोई विद्या है तो बाबा से जा कर पूछा जाए कि उन के अपने घर में आखिर कौन चोर हो गया है. जाने कितने गलीकूचों से हो कर कुसुमजी बाबा के पास पहुंचीं. भगवा वस्त्र, माथे पर त्रिपुंड, गले में रुद्राक्ष की माला, बंद आंखें और तेजस्वी मूर्ति. सविता ने उन्हें अपने आने का प्रयोजन बताया और चोर का नाम जानने की इच्छा प्रकट करते हुए बाबा के सामने फलों की टोकरी भेंटस्वरूप रख दी. बाबा ने उस की ओर ध्यान भी नहीं दिया, किंतु उन के शिष्य ने टोकरी उठा कर अंदर पहुंचा दी. बाबा ध्यानावस्थित हुए. कुसुमजी ने बड़ी आशा से उन की ओर देखा, यह सोच कर कि वह पिछले दिनों जिस सवाल का उत्तर खोजतेखोजते थक गई हैं शायद उस का कोई उत्तर बाबा दे सकें.

बाबा की पलकें धीरेधीरे खुलीं, उन्होंने सर्वज्ञ की भांति कुसुमजी पर एक दृष्टि डाली और गंभीर स्वर में घोषणा की, ‘‘चोर घर में ही है.’’ चोर तो घर में ही था. बाहर का कोई आदमी घर में आया ही नहीं था. पर सवाल यह था कि उन के अपने ही घर में चोर था कौन. बाबा ने कहा, ‘‘यह तो घर में आ कर ही बता सकेंगे कि चोर कौन है. हम चोर के मस्तक की लिखावट पढ़ सकते हैं. वारदात के मौके पर होंगे तो चोर से कंबल भी वहीं बरामद करा देंगे.’’ कुसुमजी ने बाबा की बात मान ली. बाबा ने 2 दिन बाद आने का समय दिया. 2 दिन बाद बाबा को लेने के लिए कार भेजी गई. बाबा पधारे. उन के सामने घर के सब लोग चोर की तरह उपस्थित हुए. बड़े आडंबर और दलबल के संग आने वाले बाबा के स्वागतसत्कार के बाद चोर की पहचान का काम शुरू हुआ. बाबा ने घर के हर सदस्य को ‘मैटल डिटेक्टर’ की तरह पैनी निगाहों से देखा.

फिर सिर हिलाया, ‘‘इन में से कोई नहीं है. इन के अलावा घर में कोई नौकरचाकर नहीं है क्या?’’ ‘‘महाराजिन और महरी हैं.’’ ‘‘दोनों को बुलाओ.’’ उन्हें बुलाया गया. वे दोनों गरीब और ईमानदार औरतें थीं. घर में बरसों से काम कर रही थीं. आज तक कभी कोई ऐसीवैसी बात नहीं हुई थी. लेकिन आज उन की चोरों की तरह पेशी हो रही थी. अपमान के कारण उन के मुंह से कोई बात नहीं निकल रही थी. उन्हें डर लग रहा था कि बाबा का क्या, चाहे जो कह दें. बाबा को कौन पकड़ता फिरेगा? सब में अपनी किरकिरी होगी. कही बात और लुटी इज्जत किस काम की? बाबा ने दोनों नौकरानियों की ओर देखा. महरी की ओर उन की रौद्र दृष्टि पड़ी. उंगली से इंगित किया, ‘‘यही है.’’ बेचारी महरी के सिर पर मानो पहाड़ टूट पड़ा. जिस पर घर के मालिक तक भरोसा करते आए थे, उस पर एक बाबा के कहने पर बिना सुबूत चोर होने का इलजाम लगाया जा रहा था. उस ने बड़ी हसरत से मालिकों की ओर देखा.

यह सोच कर कि शायद वे अभी कहेंगे कि नहीं, यह चोर नहीं हो सकती. यह तो बड़े भरोसे की औरत है. गरीब की तो इज्जत ही सब कुछ होती है. लेकिन नहीं. न मालिक बोले, न कोई और ही कुछ बोला. कुसुमजी ने कहा कि पुलिस को बुला लो. बाबा के अधरों पर विजय की मंदमंद मुसकान नाच रही थी. मालिक ने अगले क्षण झपट कर महरी की चोटी पकड़ ली. हमेशा के मितभाषी, मृदुभाषी पति के मुंह से झड़ती फूहड़ गालियों की बौछार से कुसुमजी भी अवाक् रह गईं. उन को भी महरी से कोई सहानुभूति नहीं थी. जिस पर भरोसा किया, वही चोर निकली. जाने कितनी देर तक महरी पिटती रही. मालिक का हाथ चाहे जहां पड़ता रहा. भरेपूरे घर के आंगन में निरीह औरत की पिटाई होती रही.

बाबा की आवाज गूंजी, ‘‘कंबल निकाल.’’ महरी ने महसूस किया कि पीटने वाले का हाथ रुक गया है. कमजोर, थकाटूटा सिसकतासिहरता स्वर निकला, ‘‘कंबल तो नहीं है मेरे पास.’’ ‘‘कहां गया. कहां छिपा दिया?’’ महरी चुप. ‘‘बेच दिया?’’ ‘‘हां,’’ पिटाई से अधमरी हो चुकी महरी के मुंह से एकाएक निकला. घर के सभी लोग सुन कर हैरत से बाबा की तरफ देखने लगे. कैसे त्रिकाल- दर्शी हैं बाबा. जिसे घर में इतने वर्षों काम करते देख कर हम नहीं पहचान सके उस की असलियत इतनी दूर बसे अनजान बाबा की नजरों में कैसे आई? कुसुमजी को ध्यान है कि उस के बाद सब ने मिल कर फैसला किया था कि महरी कंबल के 300 रुपए दे दे. 300 रुपए नकद न होने की हालत में महरी के कान की सोने की बालियां उतरवा ली गई थीं. नौकरी से तो उस की छुट्टी हो ही गई थी. कुसुमजी के सीने से एक बोझ तो हट गया था. चलो, चोर तो पहचाना गया. घर में रहती तो न जाने और कितना नुकसान करती. पहले भी न जाने कितना नुकसान होता रहा है. वह तो विश्वास में मारी गई. खैर, जब जागे, तभी सवेरा. इस परेशानी से निकलने के लिए बाबा की सेवा और भेंट आदि में 500 रुपए खर्च होने का कुसुमजी को कोई अफसोस नहीं था. अफसोस अपने विश्वास के छले जाने का था. आश्चर्य था तो बाबा के सर्वज्ञ होने का, वह कैसे जान गए कि असल चोर कौन था? कंबल की चोरी से घर में उठा यह तूफान थम गया था. पर आज हाथ में पकड़े पोस्टकार्ड को ले कर कुसुमजी फिर उसी तूफान से घिरी हुई थीं. अभी कुछ देर पहले डाकिया जो डाक दे गया है उसी में यह पोस्टकार्ड भी था. उस में लिखा है : ‘‘घर पहुंचा तो मालूम हुआ कि कंबल तो मैं यहीं छोड़ गया था.

आप को जो परेशानी हुई उस के लिए हृदय से क्षमा चाहता हूं. आप का कंबल या तो किसी के हाथ भिजवा दूंगा और नहीं तो आने पर स्वयं लेता आऊंगा.’’ कुसुमजी की आंखों के सामने यह पोस्टकार्ड, कान की वे बालियां, बाबा का गंभीर चेहरा और महरी की कातर दृष्टि सब गड्डमड्ड हो रहे थे. मन- मस्तिष्क में एक तूफान आया जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. एक पाखंडी बाबा के चक्कर में पड़ कर उन के हाथों से कितना बड़ा अनर्थ हो गया था.

कोयले की लकीर: क्या हार मान गई विनी

प्रसन्नता की सीमा नहीं थी. एमए का रिजल्ट निकल आया था. 80 प्रतिशत मार्क्स आए थे. अपनी मम्मी सुगंधा के लिए उस ने उन की पसंद की मिठाई खरीदी और घर की तरफ उत्साह से कदम बढ़ा दिए. सुगंधा अपनी बेटी की सफलता से अभिभूत हो गईं.

खुशी से आंखें झिलमिला गईं. दोनों मांबेटी एकदूसरे के गले लग गईं. एकदूसरे का मुंह मीठा करवाया. घर में 2 ही तो लोग थे. विनी के पिता आलोक का देहांत हो गया था. सुगंधा सीधीसरल हाउसवाइफ थीं. पति की पैंशन और दुकानों के किराए से घर का खर्च चल जाता था. शाम को वे कुछ ट्यूशंस भी पढ़ाती थीं. विनी ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में एमए किया था. आलोक को आर्ट्स में विशेष रुचि थी. विनी की ड्राइंग में रुचि देख कर उन्होंने उसे भी इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया था.

विनी शाम को कुछ बच्चों को ड्राइंग सिखाया करती थी. पेंटिंग के सामान का खर्च वह इन्हीं ट्यूशंस से निकाल लेती थी. सुगंधा ने बेटी को गर्वभरी नजरों से देखते हुए उस से पूछा, ‘‘अब आगे क्या इरादा है?’’ फिर विनी के जवाब देने से पहले ही उसे छेड़ने लगी, ‘‘लड़का ढूंढ़ा जाए?’’ विनी ने आंखें तरेरीं, ‘‘नहीं, अभी नहीं, अभी मुझे बहुतकुछ करना है.’’ ‘‘क्या सोचा है?’’ ‘‘पीएचडी करनी है. सोच रही हूं आज ही शेखर सर से मिल आती हूं. उन्हें ही अपना गाइड बनाना चाहती हूं. मां, आप को पता है, उन में मुझे पापा की छवि दिखती है. बस, वे मुझे अपने अंडर में काम करने दें.’’ ‘‘मैं तुम्हारे भविष्य में कोई बाधा नहीं बनूंगी, खूब पढ़ाई करो, आगे बढ़ो.’’ विनी अपनी मां की बांहों में छोटी बच्ची की तरह समा गई. सुगंधा ने भी उसे खूब प्यार किया. सुगंधा को अपनी मेहनती, मेधावी बेटी पर नाज था.

रुड़की के आरपी कालेज में एमए करने के बाद वह अपने प्रोफैसर शेखर के अधीन ही पीएचडी करना चाहती थी. शेखर का बेटा रजत विनी का बहुत अच्छा दोस्त था. बचपन से दोनों साथ पढ़े थे. पर रजत को आर्ट्स में रुचि नहीं थी, वह इंजीनियरिंग कर अब जौब की तलाश में था. दोनों हर सुखदुख बांटते थे, एकदूसरे के घर भी आनाजाना लगा रहता था. इन दोनों की दोस्ती के कारण दोनों परिवारों में भी कभीकभी मुलाकात होती रहती थी. विनी ने रजत को फोन कर अपना रिजल्ट और आगे की इच्छा बताई. रजत बहुत खुश हुआ, ‘‘अरे, यह तो बहुत अच्छा रहेगा. पापा बिलकुल सही गाइड रहेंगे. किसी अंजान प्रोफैसर के साथ काम करने से अच्छा यही रहेगा कि तुम पापा के अंडर में ही काम करो. आज ही आ जाओ घर, पापा से बात कर लो.’’ शाम को ही विनी मिठाई ले कर रजत के घर गई. शेखर के पास कुछ स्टूडैंट्स बैठे थे. विनी का बचपन से ही घर में आनाजाना था. वह निसंकोच अंदर चली गई.

शेखर की पत्नी राधा विनी पर खूब स्नेह लुटाती थी. रजत और राधा के साथ बैठ कर विनी गप्पें मारने लगी. थोड़ी देर में शेखर भी उन के साथ शामिल हो गए. दोनों ने उस की सफलता पर शुभाशीष दिए. उस की पीएचडी की इच्छा जान कर शेखर ने कहा, ‘‘ठीक है, अभी कुछ दिन लाइब्रेरी में सभी बुक्स देखो. किसकिस टौपिक पर काम हो चुका है, किस टौपिक पर रिसर्च होनी चाहिए, पहले वह डिसाइड करेंगे. फिर उस पर काम करेंगे. अभी कालेज की लाइब्रेरी में काफी नई बुक्स आई हैं, उन पर एक नजर डाल लो. देखो, क्या आइडिया आता है तुम्हें.’’ विनी उत्साहपूर्वक बोली, ‘‘सर, कल से ही लाइब्रेरी जाऊंगी. शेखर कालेज में विनी का पीरियड लेते थे. विनी उन्हें सर कहने लगी थी. रजत ने हमेशा की तरह टोका, ‘‘अरे, घर में तो पापा को सर मत कहो, विनी, अंकल कहो.’’ विनी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, सर ही ठीक है, कहीं अंकल कहने की आदत हो गई और क्लास में मुंह से अंकल निकल गया तो क्या होगा, यह सोचो.

’’ सब विनी की इस बात पर हंस पड़े. विनी ने जातेजाते शेखर के रूम में नजर डाली. शेखर की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती रहती थी. वह शेखर का बहुत सम्मान करती थी. हर पेंटिंग में स्त्री के अलगअलग भाव मुखर हो उठे थे. कहीं शक्ति बनी स्त्री, कहीं मातृत्व में डूबी स्त्री आकृति, कहीं प्रेयसी का रूप धरे मनोहारी आकृति, कहीं आराध्य का रूप लिए ओजपूर्ण स्त्री आकृति. शेखर के काम की मन ही मन सराहना करती हुई विनी घर लौट आई और सुगंधा को शेखर की सलाह बताई. अगले दिन से ही विनी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने में बिजी रहने लगी. 15 दिनों की खोजबीन के बाद उसे एक विषय सूझा. वह उत्साहित सी शेखर के घर की तरफ बढ़ गई. उसे पता था, रजत अपने दोस्तों के साथ कहीं गया हुआ था.

राधा तो अकसर घर में ही रहती थी. पर शाम को जिस समय विनी शेखर के घर पहुंची, राधा किसी काम से कहीं गई हुई थीं. शेखर घर में अकेले थे. विनी ने उन्हें विश किया. उन के हालचाल पूछे. पूछा, ‘‘आंटी नहीं हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अभी आ जाएंगी.’’ ‘‘आज बाकी स्टूडैंट्स नहीं हैं?’’ ‘‘नहीं आजकल उन्हें कुछ काम दिया हुआ है, पूरा कर के आएंगे.’’ ‘‘सर, मैं ने लाइब्रेरी में काफीकुछ देखा, ‘भारतीय गुफाओं में भित्ति चित्रण’ इस पर कुछ काम कर सकते हैं?’’ ‘‘हां, शाबाश, कुछ विषय और देख लो, फिर फाइनल करेंगे,’’ शेखर आज उस के सामने बैठ कर जिस तरह उसे देख रहे थे, विनी कुछ असहज सी हुई. वह जाने के लिए उठती हुई बोली, ‘‘ठीक है, सर, मैं अभी और पढ़ कर आऊंगी.’’

सच है, गृहस्थ हो या संन्यासी, सभी पुरुषों के अंदर एक आदिम पाश्विक वृत्ति छिपी रहती है. किस रूप में, किस उम्र में वह पशु जाग कर अपना वीभत्स रूप दिखाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. ‘‘रुको जरा, विनी मेरे लिए एक कप चाय बना दो. कुछ सिरदर्द है,’’ विनी धर्मसंकट में फंस गई. उस का दिमाग कह रहा था, फौरन चली जा, पर पिता की सी छवि वाले गुरु की बात टालने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी. फिर अपने दिल को ही समझा लिया, नहीं, उस का वहम ही होगा. आजकल माहौल ही ऐसा है न, डर लगा ही रहता है. ‘जी, सर’ कहती हुई वह किचन की तरफ बढ़ गई.

उसे अपने पीछे दरवाजा बंद करने की आहट मिली तो वह चौंक गई. शेखर उस की तरफ आ रहे थे. चेहरे पर न पिता की सी छवि दिखी, न गुरु के से भाव, विनी को उन के चेहरे पर कुटिल मुसकान दिखी. उसे महसूस हुआ जैसे वह किसी खतरे में है. शेखर एकदम उस के पास आ कर खड़े हो गए. उस के कंधों पर हाथ रखा तो विनी पीछे हटने लगी. नारी हर उम्र में पुरुष के अनुचित स्पर्श को भांप लेती है. शेखर बोले, ‘‘घबराओ मत, यह तो अब चलता ही रहेगा. थोड़े और करीब आ जाएं हम दोनों, तो रिसर्च करने में तुम्हें आसानी होगी. तुम्हारी हर मदद करूंगा मैं.’’ नागिन सी फुंफकार उठी विनी, ‘‘शर्म नहीं आती आप को? आप की बेटी जैसी हूं मैं. आप में हमेशा पिता की छवि दिखी है मुझे.’’ ‘‘मैं ने तो तुम्हें कभी बेटी नहीं समझा. तुम अपने मन में मेरे बारे में क्या सोचती हो, उस से मुझे जरा भी मतलब नहीं. आओ मेरे साथ.’’ विनी ने पीछे हटते हुए कहा, ‘‘मैं आंटी, रजत सब को बताऊंगी, आप की यह गिरी हुई हरकत छिपी नहीं रहेगी.’’ ‘‘बाद में बताती रहना, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा,’’

कहते हुए उस का हाथ पकड़ कर बलिष्ठ शेखर उसे बैडरूम तक ले गए. विनी ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश में उन्हें काफी धक्के दिए. उन का हाथ दांतों से काट भी लिया. पर उन के सिर पर ऐसा शैतान सवार था कि विनी के रोके न रुका और दुर्घटना घट गई. सालों का आदर, विश्वास सब रेत की तरह ढहता चला गया. विनी ने रोरो कर चीखचीख कर शोर मचाया. तो शेखर ने कहा, ‘‘चुपचाप चली जाओ यहां से और जो हुआ उसे भूल जाओ. इसी में तुम्हारी भलाई है. किसी को बताओगी भी, तो जानती हो न, कितने सवालों के घेरे में फंस जाओगी. परिवार, समाज में मेरी इमेज का अंदाजा तो है ही तुम्हें.’’ ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी मैं,’’ विनी चिल्लाई, ‘‘आने दो आंटी को, उन्हें और रजत को आप की करतूत बताए बिना मैं कहीं नहीं जाने वाली,’’ शेखर को अब हैरानी हुई, ‘‘बेवकूफी मत करो बदनाम हो जाओगी, कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी, समाज रोज तुम पर ही नएनए ढंग से कीचड़ उछालेगा, पुरुष का कुछ बिगड़ा है कभी?’’ विनी नफरतभरे स्वर में गुर्राई, ‘‘आप ने मेरा रेप किया है,

आप मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’ शेखर ने तो सोचा था विनी रोधो कर चुपचाप चली जाएगी पर वह तो अभी वैसी की वैसी बैठी हुई उन्हें गालियां दिए जा रही थी. हिली भी नहीं थी. इस स्थिति की तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी. डोरबेल बजी तो उन के पसीने छूट गए, बोले, ‘‘भागो यहां से, जल्दी.’’ ‘‘मैं कहीं नहीं जा रही.’’ डोरबेल दोबारा बजी तो शेखर के हाथपैर फूल गए, दरवाजा खोला, राधा थीं. शेखर का उड़ा चेहरा देख चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’ शेखर इतना ही बोले, ‘‘सौरी, राधा.’’ ‘‘क्या हुआ, शेखर?’’ तभी बैडरूम से ‘आंटी’ कह कर विनी के तेजी से रोने की आवाज आई. राधा भागीं. बैड पर अर्धनग्न, बेहाल, रोने से फैले काजल की गालों पर सबकुछ स्पष्ट करती रेखा, बिखरे बाल, कराहतीरोती विनी राधा की बांहों में निढाल हो गईं. राधा जैसे पत्थर की बुत बन गई. विनी की हालत देख कर सबकुछ समझ गईं. फूटफूट कर रो पड़ीं. शेखर को धिक्कार उठीं, ‘‘यह क्या किया, हमारी बच्ची जैसी है यह. यह कुकर्म क्यों कर दिया? नफरत हो रही है तुम से.’’ राधा का रौद्र रूप देख कर शेखर सकपकाए. राधा ने उन की तरफ थूक दिया. तनमन में ऐसी आग लगी थी कि विनी को एक तरफ कर पास के कमरे में अगले हफ्ते होने वाली प्रदर्शनी के लिए रखी शेखर की तैयार 10-15 पेंटिंग्स पर वहीं रखे काले रंग से स्त्री के महान रूपों की तस्वीरों में कालिख भरती चली गईं. विनी को फिर अपने से चिपटा लिया. शेखर चुपचाप वहीं रखी एक चेयर पर बैठ गए थे. दोनों रोती रहीं, राधा और सुगंधा के अच्छे संबंध थे.

राधा ने सुगंधा को फोन किया और फौरन आने के लिए कहा. घर थोड़ी ही दूर था. सुगंधा और रजत लगभग साथसाथ ही घर में घुसे. सब स्थिति समझ कर सुगंधा तो विनी को, अपनी मृगछौने सी प्यारी बेटी को, गले से लगा कर बिलख उठी. रजत ने उन्हें संभाला. रजत ने रोते हुए विनी के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘बहुत शर्मिंदा हूं, विनी, अब इस आदमी से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ राधा भी दृढ़ स्वर में बोल उठीं, ‘‘और मेरा भी कोई संबंध नहीं. रजत, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रहूंगी,’’ रजत विनी की हालत देख कर फूटफूट कर रो रहा था. बचपन की प्यारी सी दोस्त का यह हाल. वह भी उस के पिता ने, घिन्न आ रही थी उसे. सुगंधा का विलाप भी थमने का नाम नहीं ले रहा था. राधा कभी सुगंधा से माफी मांगती, कभी विनी से. शेखर को छोड़ कर सब गहरे दुख में डूबे थे. वे सोच रहे थे, सब रोधो कर अभी शांत हो जाएंगे. राधा कह रही थी, ‘‘काश, मैं विधवा होती, ऐसे पशु पति का साथ तो न होता. अपरिचितों से तो ये परिचित अधिक खतरनाक होते हैं. ये कुछ भी करें, इन्हें पता है, कोई कुछ बोलेगा नहीं. पर ऐसा नहीं होगा.’’ विनी के मुंह से जैसे ही निकला, ‘‘मेरा जीवन तो बरबाद हो गया,’’ राधा ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारा क्यों बरबाद होगा, बेटी, तुम ने क्या किया है. तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है.

अपने दिल पर यह बोझ मत रखना. इस दुष्कर्म को याद ही नहीं रखना. दुखी नहीं रहना है तुम्हें. पाप कोई और करे, दुखी कोई और हो, यह कहां का न्याय है?’’ राधा के शब्दों से जैसे सुगंधा भी होश में आई. यह समय उस के रोने का कहां था. यह तो बेटी को मानसिक संबल देने की घड़ी थी. अपने आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘नहीं विनी, इस घृणित इंसान का दिया घाव जल्दी नहीं भरेगा, जानती हूं, पर भरेगा जरूर, यह भी भरोसा रखो. समझ लेना बेटा, सड़क पर चलते हुए किसी कुत्ते ने काट खाया है. इस दुष्कर्मी का कुकर्म मेरी बेटी के आत्मविश्वास की मजबूत चट्टान को भरभरा कर गिरा नहीं सकता.’’ विनी फिर रोने लगी, सिसकते हुए बोली, ‘‘मेरे सारे वजूद पर कालिख सी पोत दी गई है, कैसे जिऊंगी,’’ रजत उस के पास ही जमीन पर बैठते हुए बोला, ‘‘विनी, ताजमहल की सुंदरता ऐसे दुष्कर्मियों की खींची कोयले की लकीरों से खराब नहीं होती. इस लकीर पर पानी डालते हुए सिर ऊंचा रख कर आगे बढ़ना है तुम्हें. हम सब तुम्हारे साथ हैं. तुम्हारा जीवन यहां रुकेगा नहीं. बहुत आगे बढ़ेगा,’’

और फिर शेखर की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘और आप को तो मैं सजा दिलवा कर रहूंगा.’’ बात इस हद तक पहुंच जाएगी, इस की तो शेखर ने कल्पना भी नहीं की थी. अपने अधीन पीएचडी करने वाली अन्य छात्राओं का भी वे शारीरिक शोषण करते आए थे. किसी ने उन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की थी. उन्हें किसी का डर नहीं था. इस तरह के किसी भी आदमी को समाज, परिवार या कानून का डर नहीं होता क्योंकि उन के पास इज्जत, पद का ऐसा लबादा होता है जिस से नीचे की गंदगी कोई चाह कर भी नहीं देख सकता. वे कमजोर सी, आम परिवार की छात्राओं को अपना शिकार बनाया करते थे. विनी के बारे में भी यही सोचा था कि मांबेटी रोधो कर इज्जत के डर से चुप ही रह जाएंगी. पर उन की पत्नी और पुत्र ने स्थिति बदल दी थी. अब जो हो रहा था, वे हैरान थे. अकल्पनीय था. पत्नी और पुत्र के सामने शर्मिंदा होना पड़ गया था. राधा उठ कर खड़ी हो गई थी, ‘‘रजत, मैं इस घर में नहीं रहूंगी.’’ ‘‘हां, मां, मैं भी नहीं रह सकता.’’ शेखर ने उपहासपूर्वक पूछा, ‘‘कहां जाओगे दोनों? बड़ीबड़ी बातें तो कर रहे हो, कोई और ठिकाना है?’’ अपमान की पीड़ा से राधा तड़प उठी, ‘‘तुम्हारे जैसे बलात्कारी पुरुष के साथ रह कर सुविधाओं वाला जीवन नहीं चाहिए मुझे, मांबेटा कहीं भी रह लेंगे.

तुम से संबंध नहीं रखेंगे. तुम्हें सजा मिल कर रहेगी. ‘‘आज अपने बेटे के साथ मिल कर एक निर्दोष लड़की को एक साहस, एक सुरक्षा का एहसास सौंपना है. धरोहर के रूप में अपनी आने वाली पीढि़यों को भी यही सौंपना होगा.’’ राधा आगे बोली, ‘‘चलो रजत, मैं यह टूटन, यह शोषण स्वीकार नहीं करूंगी. अपने घर के अंदर अगर इस घिनौनी करतूत का विरोध नहीं किया तो बाहर भी औरत कैसे लड़ पाएगी और हमेशा रिश्तों की आड़ में शोषित ही होती रहेगी. परिवार की इज्जत, रिश्तेदारी और समाज के खयाल से मैं चुप नहीं रहूंगी.’’ सुगंधा भी विनी को संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर जाने के लिए खड़ी हो गईं. अचानक कुछ सोच कर बोली, ‘‘राधा, चाहो तो आज से तुम दोनों हमारे घर में रह सकते हो.’’ रजत उन के पैरों में झुक गया, ‘‘हां, आंटी, मैं भी आ रहा हूं आप के घर. चलो मां, अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है. साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा. और विनी, तुम एक दिन भी इस कुकर्मी के कुकर्म को याद कर दुखी नहीं होगी. तुम्हें बहुत काम है. नया गाइड ढूढ़ंना है. पीएचडी करनी है.

इस आदमी की रिपोर्ट करनी है. इसे कोर्ट में घसीटना है. सजा दिलवानी है. बहुत काम है. विनी, चलो,’’ चारों उन के ऊपर नफरतभरी नजर डाल कर निकल गए. अब शेखर को साफसाफ दिख रहा था कि अब उन के किए की सजा उन्हें मिल कर रहेगी. अगर विनी और सुगंधा अकेले होते तो कमजोर पड़ सकते थे. पर अब चारों साथ थे, तो उन की हार तय थी. कितनी ही छात्राओं के साथ किया बलात्कार उन की आंखों के आगे घूम गया. वे सिर पकड़ कर बैठे रह गए थे. वे चारों गंभीर, चुपचाप चले जा रहे थे. ऐसे समाज से निबटना था जो बलात्कार की शिकार लड़की को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर देता है. उस के साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे उस ने कोई गुनाह किया हो. शारीरिक और मानसिक रूप से पहले से ही आहत लड़की को और सताया जाता है. लेकिन, इन चारों के इरादे, हौसले मजबूत थे. समाज की चिंता नहीं थी. लड़ाई मुश्किल, लंबी थी पर चारों के दिलों में इस लड़ाई में जीत का एहसास अपनी जगह बना चुका था. हार का संशय भी नहीं था. जीत निश्चित थी.

ऐसा भी होता है मनोहरजी का बेटा अपनी मां को लेने गांव आया था. उन की बहू का बच्चा होने वाला था. इसलिए बेटा मां को मुंबई ले जा रहा था. वह मनोहरजी के लिए पैंटकमीज का कपड़ा मुंबई से लाया था. बेटे ने कपड़ा मनोहरजी को देते हुए कहा, ‘‘इसे सिलवा लीजिएगा, आप पर बहुत अच्छा लगेगा.’’ पिताजी ने कहा, ‘‘इस की क्या जरूरत थी, मुझे धोतीकुरते में ही आराम मिलता है.’’ मनोहरजी कपड़े पा कर बहुत प्रसन्न थे. उन्होंने दर्जी को दे कर अपनी नाप की पैंटशर्ट सिलवा ली. कपड़े उन्होंने पहन कर नापे, वे खुद को बहुत सुंदर महसूस कर रहे थे. एक महीने बाद खबर आई कि बहू ने एक बेटे को जन्म दिया है. बेटे के जन्मोत्सव के लिए बेटे ने उन्हें भी मुंबई बुलाया था. वे मुंबई जाने की तैयारी करने लगे. नियत समय पर वे मुंबई पहुंचे. बेटा उन्हें लेने के लिए आया हुआ था. जब वे बेटे के घर पहुंचे तो बहुत प्रसन्न थे कि उस का रहनसहन कितना ऊंचा है. उन का बेटा कितना बड़ा अफसर है, उस के कितने ठाटबाट हैं. बेटे के जन्मोत्सव की पार्टी रखी गई. घर में तैयारी चल रही थी.

शाम को सभी लोग पार्टी के लिए तैयार हो रहे थे. मनोहरजी अपनी वही पैंटशर्ट पहने तैयार हुए जो उन का बेटा उन्हें गांव में दे गया था. बेटे ने जब उन्हें उन कपड़ों में देखा, तो चीखते हुए बोला, ‘‘आप के पास यही कपड़े पहनने को हैं.’’ बहू भी दौड़ती हुई आई कि क्या हो गया. तब बहू पिताजी को ले कर कमरे में आई और पिताजी से बोली, ‘‘आप दूसरे कपड़े पहन लीजिए. ये कपड़े यहां के इंजीनियरों की यूनिफौर्म के हैं. इंजीनियर को साल में 2 जोड़ी कपड़े मिलते हैं. वे उन्हें स्वयं न सिलवा कर अपने रिश्तेदारों में बांट देते हैं या दान कर देते हैं. आप को इन कपड़ों में देख कर लोग क्या सोचेंगे.’’ मनोहरजी बहू की बात सुन कर सकते में आ गए. उन्हें बड़ा दुख हो रहा था कि बेटे ने उन्हें कपड़ा देने के पहले यह बात क्यों नहीं बता दी थी.

सेलेब्रिटीज का अतरंगी फैशन इंस्टाग्राम पर जम कर हो रहा ट्रोल, बन रहे है मीम्‍स

बौलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस इस बार अपने गुस्से की वजह से नही बल्कि पहली बार अपनी ड्रेसिंग सेंस की वजह से सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल हो रही है, जी हां मैं बात कर रही हूं एक्ट्रेस और राज्यसभा की संसद सदस्य जया बच्चन की, जो हाल ही में अनंत अंबानी और राध‍िका अंबानी की शादी में अपने पति अमिताभ बच्चन और बेटी-दामाद, नाती और नात‍िन के साथ नजर आई.

अतरंगी स्टाइल-

जब जया बच्चन ने जियो वर्ल्ड सेंटर में एंट्री की तो उन्होंने खूबसूरत साड़ी के साथ ही नैक में बड़ा सा लंबा हार पहन रखा था जो ज्वेलरी का शोरूम लग रहा था. इसकी वजह से सरकता पल्‍लू हर क‍िसी का ध्‍यान खींच रहा था. दूसरी तरफ जया बच्‍चन जब मीड‍िया के कैमरों के सामने आईं, तो बहुत देर तक उनकी साड़ी का पल्‍लू नीचे ग‍िरा रहा. उन्हें इतना भी ख्याल नही रहा कि उनकी साड़ी का पल्लू गिरा हुआ है. ऐसे में कई लोग सोशल मीड‍िया पर जया के इस ग‍िरे हुए पल्‍लू पर मीम्‍स बना रहे हैं. उनका ये अतरंगी स्टाइल देख कर लोगों को लगा कि ये साड़ी पहनने का कोई नया ट्रेंड होगा, लेकिन उन्हें इस रूप में देखते ही उनकी पोती नव्या ने उन्हें टोका तब जया ने अपना पल्लू जल्दी से ठीक किया.

ड्रेसिंग सेंस पर मीम्स-

आपको बता दे इस अतरंगी फैशन के लिए सिर्फ जया बच्‍चन को ही नहीं, बल्‍कि उनकी बेटी श्‍वेता बच्‍चन नंदा की भी सोशल मीड‍िया पर जमकर ट्रोल किया जा रहा है मां-बेटी की जोड़ी के ड्रेसिंग सेंस को देख कर लोग खूब कमेंट्स कर रहे है. दोनों को लेकर खूब मीम्‍स बन रहे है.

नेकलेस है या सुरक्षा कवच-

अमिताभ और जया बच्चन की बेटी श्‍वेता बच्‍चन इस शादी में गोल्‍डन कलर का लहंगा पहनकर पहुंचीं. इस लहंगे पर गोटा पट्टी का काम था. लहंगे के साथ उन्होंने हैवी नेकलेस पहना था जो किसी को पसंद नही आया नेकलेस के लिए उन्हें लोगों ने ट्रोल करना शुरू कर दिया श्‍वेता का ये हार ‘युद्ध में लड़ने वाले योद्धाओं के कवच’ जैसा लग रहा है.

इस नेकलेस पर कमेंट करते हुए ट्रोलर्स ने कहा कि, “कोई श्‍वेता को बताओ भाई, शादी में जाना था किसी जंग में नहीं. नेकलेस पहनना था भाई, ये सुरक्षा कवच वाली जाली क्यों पहन कर आई है.”

जया बच्चन ने फिल्मों में खूब नाम कमाया अब राजनीति में भी चर्चा में रहती है. वो जब भी कैमरे के सामने आती है तो अक्‍सर उनके गुस्‍से और नाराजगी की ही खबरें सामने आती हैं. खैर अब वो अपनी ड्रेसिंग सेंस और ज्वैलरी की वजह से ट्रोल हो रहीं हैं.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें