Hindi Fiction Stories : अब हमारी बारी है – भाइयों ने बनाया बहन को सफल

Hindi Fiction Stories  : उसदिन पहली बार नीरज उन के घर सब के साथ लंच लेने आ रहा था. अंजलि के दोनों छोटे भाई और उन की पत्नियां सुबह से ही उस की शानदार आवभगत करने की तैयारी में जुटे हुए थे. उस के दोनों भतीजे और भतीजी बढि़या कपड़ों से सजधज कर बड़ी आतुरता से नीरज के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.

अंजलि की ढंग से तैयार होने में उस की छोटी भाभी शिखा ने काफी सहायता की थी. और दिनों की तुलना में वह ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट नजर आ रही थी. लेकिन यह बात उस के मन की चिंता और बेचैनी को कम करने में असफल रही.

‘‘तुम सब 35 साल की उम्र में मु झ पर शादी करने का दबाव क्यों बना रहे हो? क्या मैं तुम सब पर बो झ बन गई हूं? मु झे जबरदस्ती धक्का क्यों देना चाहते हो?’’ ऐसी बातें कह कर अंजलि अपने भैयाभाभियों से पिछले हफ्ते में कई बार  झगड़ी पर उन्होंने उस के हर विरोध को हंसी में उड़ा दिया था.

कुछ देर बाद अंजलि से 2 साल छोटे उस के भाई अरुण ने कमरे में आ कर सूचना दी, ‘‘दीदी, नीरजजी आ गए हैं.’’

अंजलि ड्राइंगरूम में जाने को नहीं उठी, तो अरुण ने बड़े प्यार से बाजू पकड़ कर उसे खड़ा किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘दीदी, मन में कोई टैंशन मत रखो. आप की मरजी के खिलाफ हम कुछ नहीं करेंगे.’’

‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.

‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़

गए थे.

ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे.

नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर

मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.

अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.

अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.

‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ

में पकड़ाया.

‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.

‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.

अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.

वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.

नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.

अंजलि ने धीमी आवाज में नीरज से प्रश्न किया, ‘‘यह कब बनाई आप ने?’’

‘‘क्या तुम्हें अपनी तसवीर पसंद नहीं आई?’’ नीरज ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘तसवीर तो बहुत अच्छी है… पर आप ने बनाई कैसे?’’

‘‘शिखा ने तुम्हारा 1 पासपोर्ट साइज फोटो दिया था. कुछ उस की सहायता ली और बाकी काम मेरी कल्पनाशक्ति ने किया.’’

‘‘कलाकार को सत्य दर्शाना चाहिए, नीरजजी. मैं तो बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.’’

‘‘मैं ने इस कागज पर सत्य ही उतारा है… मु झे तुम इतनी ही सुंदर नजर आती हो.’’

नीरज की इस बात को सुन कर अंजलि ने कुछ घबरा और कुछ शरमा कर नजरें  झुका लीं.

सब लोग नीरज के पास आ कर अंजलि की तसवीर की प्रशंसा करने लगे. अंजलि ने कभी अपने रंगरूप की वैसी तारीफ नहीं सुनी थी, इसलिए असहज सी हो कर नीरज के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई.

नीरज से उस की पहली मुलाकात शिखा ने अपनी सहेली कविता के घर पर करीब

2 महीने पहले करवाई थी.

42 वर्षीय चित्रकार नीरज कविता के जेठ थे. उन्होंने शादी नहीं की थी. घर की तीसरी मंजिल पर 1 कमरे के सैट में रहते थे और वहीं उन का स्टूडियो भी था.

उस दिन नीरज के स्टूडियो में अपना पैंसिल से बनाया एक चित्र देख कर वह चौंकी थी. नीरज ने खुलासा करते हुए उन सब को जानकारी दी थी, ‘‘अंजलि पार्क में 3 छोटे बच्चों के साथ घूमने आई थीं. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और ये बैंच पर बैठीबैठी गहरे सोचविचार में खो गईं. मैं ने इन की जानकारी में आए बिना इस चित्र में इन के चेहरे के विशेष भावों को पकड़ने की कोशिश की थी.’’

‘‘2 दिन पहले अंजलि दीदी का यह चित्र यहां देख कर मैं चौंकी थी. मैं ने भाई साहब को दीदी के बारे में बताया, तो इन्होंने दीदी से मिलने की इच्छा जाहिर की. तभी मैं ने 2 दिन पहले तुम्हें फोन किया था, शिखा,’’ कविता के इस स्पष्टीकरण को सुन कर अंजलि को पूरी बात सम झ में आ गई थी.

कुछ दिनों बाद कविता उसे बाजार में मिली और अपने घर चाय पिलाने ले गई. अपने बेटे की चौथी सालगिरह की पार्टी में भी उस ने अंजलि को बुलाया. इन दोनों अवसरों पर उस की नीरज से खूब बातें हुईं.

इन 2 मुलाकातों के बाद नीरज उसे पार्क में कई बार मिला था. अंजलि वहां अपने भतीजों व भतीजी के साथ शाम को औफिस से आने के बाद अकसर जाती थी. वहीं नीरज ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. अब वे फोन पर भी बातें कर लेते थे.

फिर कविता और शिखा ने एक दिन उस के सामने नीरज के साथ शादी करने की

चर्चा छेड़ी, तो उस ने उन दोनों को डांट दिया, ‘‘मु झे शादी करनी होती तो 10 साल पहले कर लेती. इस  झं झट में अब फंसने का मेरा रत्ती भर इरादा नहीं है. मेरे सामने ऐसी चर्चा फिर कभी मत करना,’’ उन्हें यों डपटने के बाद वह अपने कमरे में चली आई थी.

उस दिन के बाद अंजलि ने नीरज के साथ मिलना और बातें करना बिलकुल कम कर दिया. उस ने पार्क में जाना भी छोड़ दिया. फोन पर भी व्यस्तता का  झूठा बहाना बना कर जल्दी फोन काट देती.

उस की अनिच्छा को नजरअंदाज करते हुए उस के दोनों छोटे भाई और भाभियां अकसर नीरज की चर्चा छेड़ देते. उस से हर कोई कविता के घर या पार्क में मिल चुका था. सभी उसे हंसमुख और सीधासादा इंसान मानते थे. उन के मुंह से निकले प्रशंसा के शब्द यह साफ दर्शाते कि उन सब को नीरज पसंद है.

अंजलि की कई बार की नाराजगी उन

की इस इच्छा को जड़ से समाप्त करने में असफल रही थी. किसी को यह बात नहीं जंची थी कि अंजलि ने नीरज से बातें करना कम कर दिया है.

उन के द्वारा रविवार को नीरज को लंच पर आमंत्रित करने के बाद ही इस बात की सूचना अंजलि को पिछली रात को मिली थी.

कुछ देर बाद जब अंजलि चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई, तो वहां बहुत शोर मचा था. नीरज ने तीनों बच्चों के पैंसिल स्कैच बड़े मनोरंजक ढंग से बनाए थे. नन्हे राहुल की उन्होंने बड़ीबड़ी मूंछें बना दी थीं. महक को पंखों वाली परी बना दिया था और मयंक के चेहरे के साथ शेर का धड़ जोड़ा था.

इन तीनों बच्चों ने बड़ी मुश्किल से नीरज को चाय पीने दी. वे उस के साथ अभी और खेलना चाहते थे.

‘‘बिलकुल मेरी पसंद की चाय बनाई है तुम ने, अंजलि. चायपत्ती तेज और चीनी व दूध कम. थैंक्यू,’’ पहला घूंट भरते ही नीरज ने अंजलि को

धन्यवाद दिया.

‘‘कविता ने एक बार दीदी को बताया था कि आप कैसी चाय पीते

हैं. दीदी ने उस के कहे को याद रखा और आप की मनपसंद चाय बना दी,’’ शिखा की इस बात को सुन कर अंजलि पहले शरमाई और फिर बेचैनी से भर उठी.

‘‘चाय मेरी कमजोरी है. एक वक्त था

जब मैं दिन भर में 10-12 कप चाय पी लेता था,’’ नीरज ने हलकेफुलके अंदाज में बात

आगे बढ़ाई.

‘‘आप जो भी तसवीर बनाते हैं, उस में चेहरे के भाव बड़ी खूबी से उभारते हैं,’’ शिखा ने उस की तारीफ की.

‘‘इतनी अच्छी तसवीरें भी नहीं बनाता हूं मैं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’

‘‘क्योंकि मेरी बनाई तसवीरें इतनी ही ज्यादा शानदार होतीं तो खूब बिकतीं. अपने चित्रों के बल पर मैं हर महीने कठिनाई से 5-7 हजार कमा पाता हूं. मेरा अपना गुजारा मुश्किल से चलता है. इसीलिए आज तक घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाया.’’

‘‘शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं अब आप?’’ अरुण ने सवाल उठाया तो नीरज सब की दिलचस्पी का केंद्र बन गया.

‘‘जीवनसाथी की जरूरत तो हर उम्र के इंसान को महसूस होती ही है, अरुण. अगर मु झ जैसे बेढंगे कलाकार के लिए कोई लड़की होगी, तो किसी दिन मेरी शादी भी हो जाएगी,’’ हंसी भरे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर नीरज ने खाली कप मेज पर रखा और फिर से बच्चों के साथ खेल में लग गया.

नीरज वहां से करीब 5 बजे शाम को गया. तीनों बच्चे उस के ऐसे प्रशंसक बन गए थे कि उसे जाने ही नहीं देना चाहते थे. बड़ों ने भी उसे बड़े प्रेम और आदरसम्मान से विदाई दी थी.

उस के जाते ही अंजलि बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने कमरे में चली आई. अचानक उस का मन रोने को करने लगा, पर आंसू थे कि पलकें भिगोने के लिए बाहर आ ही नहीं रहे थे.

करीब 15 मिनट बाद अंजलि के दोनों छोटे भाई और भाभियां उस से मिलने कमरे में आ गए. उन के गंभीर चेहरे देखते ही अंजलि उन के आने का मकसद सम झ गई और किसी के बोलने से पहले ही भड़क उठी, ‘‘मैं बिलकुल शादी नहीं करूंगी. इस टौपिक पर चर्चा छेड़ कर कोई मेरा दिमाग खराब करने की कतई कोशिश न करे.’’

अजय उस के सामने घुटने मोड़ कर फर्श पर बैठ गया और उस का दूसरा हाथ

प्यार से पकड़ कर भावुक स्वर में बोला, ‘‘दीदी, 12 साल पहले पापा के असमय गुजर जाने के बाद आप ही हमारा मजबूत सहारा बनी थीं. आप ने अपनी खुशियों और सुखसुविधाओं को नजरअंदाज कर हमें काबिल बनाया… हमारे घर बसाए. हम आप का वह कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे.’’

‘‘पागल, मेरे कर्तव्यों को कर्ज क्यों सम झ रहा है? आज तुम दोनों को खुश और सुखी देख कर मु झे बहुत गर्व होता है,’’  झुक कर अजय का सिर चूमते हुए अंजलि बोली.

अरुण ने भरे गले से बातचीत को आगे बढ़ाया, ‘‘दीदी, आप के आशीर्वाद से आज हम इतने समर्थ हो गए हैं कि आप की जिंदगी में

भी खुशियां और सुख भर सकें. अब हमारी

बारी है और आप प्लीज इस मौके को हम दोनों से मत छीनो.’’

‘‘भैया, मु झ पर शादी करने का दबाव न बनाओ. मेरे मन में अब शादी करने की इच्छा नहीं उठती. बिलकुल नए माहौल में एक नए इंसान के साथ नई जिंदगी शुरू करने का खयाल ही मन को डराता है,’’ अंजलि ने कांपती आवाज में अपना भय पहली बार सब को बता दिया.

‘‘लेकिन…’’

‘‘दीदी, नीरजजी बड़े सीधे, सच्चे और नेकदिल इंसान हैं. उन जैसा सम झदार जीवनसाथी आप को बहुत सुखी रखेगा… बहुत प्यार देगा,’’ अरुण ने अंजलि को शादी के विरोध में कुछ बोलने ही नहीं दिया.

‘‘मैं तो तुम सब के साथ ही बहुत सुखी हूं. मु झे शादी के  झं झट में नहीं पड़ना है,’’ अंजलि

रो पड़ी.

‘‘दीदी, हम आप की विवाहित जिंदगी में  झं झट पैदा ही नहीं होने देंगे,’’ उस की बड़ी भाभी मंजु ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘हमारे होते किसी तरह की कमी या अभाव आप दोनों को कभी महसूस नहीं होगा.’’

‘‘मैं जानता हूं कि नीरजजी अपने बलबूते पर अभी मकान नहीं बना सकते हैं. इसलिए हम ने फैसला किया है कि अपना नया फ्लैट हम तुम दोनों के नाम कर देंगे,’’ अरुण की इस घोषणा को सुन कर अंजलि चौंक पड़ी.

अजय ने अपने मन की बात बताई, ‘‘भैया से उपहार में मिले फ्लैट को सुखसुविधा की हर चीज से भरने की जिम्मेदारी मैं खुशखुशी उठाऊंगा. जो चीज घर में है, वह आप के फ्लैट में भी होगी, यह मेरा वादा है.’’

‘‘आप के लिए सारी ज्वैलरी मैं अपनी तरफ से तैयार कराऊंगी,’’ मंजु ने अपने मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘आप के नए कपड़े, परदे, फ्लैट का नया रंगरोगन और मोटरसाइकिल भी हम देंगे आप को उपहार में. आप बस हां कर दो दीदी,’’ आंसू बहा रही शिखा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की तो अंजलि ने खड़े हो कर उसे गले से लगा लिया.

‘‘दीदी ‘हां’ कह दो,’’ अंजलि जिस की तरफ भी देखती, वही हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना दोहरा देता.

‘‘ठीक है, लेकिन शादी में इतना कुछ मु झे नहीं चाहिए. तुम दोनों कोई करोड़पति नहीं हो, जो इतना कुछ मु झे देने की कोशिश करो,’’ अंतत: बड़ी धीमी आवाज में अंजलि ने अपनी स्वीकृति दे दी.

‘‘हुर्रा,’’ वे चारों छोटे बच्चों की तरह खुशी से उछल पड़े.

अंजलि के दिलोदिमाग पर बना तनाव का बो झ अचानक हट गया और उसे अपनी जिंदगी भरीभरी और खुशहाल प्रतीत होने लगी.उसदिन पहली बार नीरज उन के घर सब के साथ लंच लेने आ रहा था. अंजलि के दोनों छोटे भाई और उन की पत्नियां सुबह से ही उस की शानदार आवभगत करने की तैयारी में जुटे हुए थे. उस के दोनों भतीजे और भतीजी बढि़या कपड़ों से सजधज कर बड़ी आतुरता से नीरज के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.

अंजलि की ढंग से तैयार होने में उस की छोटी भाभी शिखा ने काफी सहायता की थी. और दिनों की तुलना में वह ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट नजर आ रही थी. लेकिन यह बात उस के मन की चिंता और बेचैनी को कम करने में असफल रही.

‘‘तुम सब 35 साल की उम्र में मु झ पर शादी करने का दबाव क्यों बना रहे हो? क्या मैं तुम सब पर बो झ बन गई हूं? मु झे जबरदस्ती धक्का क्यों देना चाहते हो?’’ ऐसी बातें कह कर अंजलि अपने भैयाभाभियों से पिछले हफ्ते में कई बार  झगड़ी पर उन्होंने उस के हर विरोध को हंसी में उड़ा दिया था.

कुछ देर बाद अंजलि से 2 साल छोटे उस के भाई अरुण ने कमरे में आ कर सूचना दी, ‘‘दीदी, नीरजजी आ गए हैं.’’

अंजलि ड्राइंगरूम में जाने को नहीं उठी, तो अरुण ने बड़े प्यार से बाजू पकड़ कर उसे खड़ा किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘दीदी, मन में कोई टैंशन मत रखो. आप की मरजी के खिलाफ हम कुछ नहीं करेंगे.’’

‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.

‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़

गए थे.

ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे.

नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर

मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.

अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.

अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.

‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ

में पकड़ाया.

‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.

‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.

अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.

वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.

नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.

अंजलि ने धीमी आवाज में नीरज से प्रश्न किया, ‘‘यह कब बनाई आप ने?’’

‘‘क्या तुम्हें अपनी तसवीर पसंद नहीं आई?’’ नीरज ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘तसवीर तो बहुत अच्छी है… पर आप ने बनाई कैसे?’’

‘‘शिखा ने तुम्हारा 1 पासपोर्ट साइज फोटो दिया था. कुछ उस की सहायता ली और बाकी काम मेरी कल्पनाशक्ति ने किया.’’

‘‘कलाकार को सत्य दर्शाना चाहिए, नीरजजी. मैं तो बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.’’

‘‘मैं ने इस कागज पर सत्य ही उतारा है… मु झे तुम इतनी ही सुंदर नजर आती हो.’’

नीरज की इस बात को सुन कर अंजलि ने कुछ घबरा और कुछ शरमा कर नजरें  झुका लीं.

सब लोग नीरज के पास आ कर अंजलि की तसवीर की प्रशंसा करने लगे. अंजलि ने कभी अपने रंगरूप की वैसी तारीफ नहीं सुनी थी, इसलिए असहज सी हो कर नीरज के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई.

नीरज से उस की पहली मुलाकात शिखा ने अपनी सहेली कविता के घर पर करीब

2 महीने पहले करवाई थी.

42 वर्षीय चित्रकार नीरज कविता के जेठ थे. उन्होंने शादी नहीं की थी. घर की तीसरी मंजिल पर 1 कमरे के सैट में रहते थे और वहीं उन का स्टूडियो भी था.

उस दिन नीरज के स्टूडियो में अपना पैंसिल से बनाया एक चित्र देख कर वह चौंकी थी. नीरज ने खुलासा करते हुए उन सब को जानकारी दी थी, ‘‘अंजलि पार्क में 3 छोटे बच्चों के साथ घूमने आई थीं. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और ये बैंच पर बैठीबैठी गहरे सोचविचार में खो गईं. मैं ने इन की जानकारी में आए बिना इस चित्र में इन के चेहरे के विशेष भावों को पकड़ने की कोशिश की थी.’’

‘‘2 दिन पहले अंजलि दीदी का यह चित्र यहां देख कर मैं चौंकी थी. मैं ने भाई साहब को दीदी के बारे में बताया, तो इन्होंने दीदी से मिलने की इच्छा जाहिर की. तभी मैं ने 2 दिन पहले तुम्हें फोन किया था, शिखा,’’ कविता के इस स्पष्टीकरण को सुन कर अंजलि को पूरी बात सम झ में आ गई थी.

कुछ दिनों बाद कविता उसे बाजार में मिली और अपने घर चाय पिलाने ले गई. अपने बेटे की चौथी सालगिरह की पार्टी में भी उस ने अंजलि को बुलाया. इन दोनों अवसरों पर उस की नीरज से खूब बातें हुईं.

इन 2 मुलाकातों के बाद नीरज उसे पार्क में कई बार मिला था. अंजलि वहां अपने भतीजों व भतीजी के साथ शाम को औफिस से आने के बाद अकसर जाती थी. वहीं नीरज ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. अब वे फोन पर भी बातें कर लेते थे.

फिर कविता और शिखा ने एक दिन उस के सामने नीरज के साथ शादी करने की

चर्चा छेड़ी, तो उस ने उन दोनों को डांट दिया, ‘‘मु झे शादी करनी होती तो 10 साल पहले कर लेती. इस  झं झट में अब फंसने का मेरा रत्ती भर इरादा नहीं है. मेरे सामने ऐसी चर्चा फिर कभी मत करना,’’ उन्हें यों डपटने के बाद वह अपने कमरे में चली आई थी.

उस दिन के बाद अंजलि ने नीरज के साथ मिलना और बातें करना बिलकुल कम कर दिया. उस ने पार्क में जाना भी छोड़ दिया. फोन पर भी व्यस्तता का  झूठा बहाना बना कर जल्दी फोन काट देती.

उस की अनिच्छा को नजरअंदाज करते हुए उस के दोनों छोटे भाई और भाभियां अकसर नीरज की चर्चा छेड़ देते. उस से हर कोई कविता के घर या पार्क में मिल चुका था. सभी उसे हंसमुख और सीधासादा इंसान मानते थे. उन के मुंह से निकले प्रशंसा के शब्द यह साफ दर्शाते कि उन सब को नीरज पसंद है.

अंजलि की कई बार की नाराजगी उन

की इस इच्छा को जड़ से समाप्त करने में असफल रही थी. किसी को यह बात नहीं जंची थी कि अंजलि ने नीरज से बातें करना कम कर दिया है.

उन के द्वारा रविवार को नीरज को लंच पर आमंत्रित करने के बाद ही इस बात की सूचना अंजलि को पिछली रात को मिली थी.

कुछ देर बाद जब अंजलि चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई, तो वहां बहुत शोर मचा था. नीरज ने तीनों बच्चों के पैंसिल स्कैच बड़े मनोरंजक ढंग से बनाए थे. नन्हे राहुल की उन्होंने बड़ीबड़ी मूंछें बना दी थीं. महक को पंखों वाली परी बना दिया था और मयंक के चेहरे के साथ शेर का धड़ जोड़ा था.

इन तीनों बच्चों ने बड़ी मुश्किल से नीरज को चाय पीने दी. वे उस के साथ अभी और खेलना चाहते थे.

‘‘बिलकुल मेरी पसंद की चाय बनाई है तुम ने, अंजलि. चायपत्ती तेज और चीनी व दूध कम. थैंक्यू,’’ पहला घूंट भरते ही नीरज ने अंजलि को

धन्यवाद दिया.

‘‘कविता ने एक बार दीदी को बताया था कि आप कैसी चाय पीते

हैं. दीदी ने उस के कहे को याद रखा और आप की मनपसंद चाय बना दी,’’ शिखा की इस बात को सुन कर अंजलि पहले शरमाई और फिर बेचैनी से भर उठी.

‘‘चाय मेरी कमजोरी है. एक वक्त था

जब मैं दिन भर में 10-12 कप चाय पी लेता था,’’ नीरज ने हलकेफुलके अंदाज में बात

आगे बढ़ाई.

‘‘आप जो भी तसवीर बनाते हैं, उस में चेहरे के भाव बड़ी खूबी से उभारते हैं,’’ शिखा ने उस की तारीफ की.

‘‘इतनी अच्छी तसवीरें भी नहीं बनाता हूं मैं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’

‘‘क्योंकि मेरी बनाई तसवीरें इतनी ही ज्यादा शानदार होतीं तो खूब बिकतीं. अपने चित्रों के बल पर मैं हर महीने कठिनाई से 5-7 हजार कमा पाता हूं. मेरा अपना गुजारा मुश्किल से चलता है. इसीलिए आज तक घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाया.’’

‘‘शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं अब आप?’’ अरुण ने सवाल उठाया तो नीरज सब की दिलचस्पी का केंद्र बन गया.

‘‘जीवनसाथी की जरूरत तो हर उम्र के इंसान को महसूस होती ही है, अरुण. अगर मु झ जैसे बेढंगे कलाकार के लिए कोई लड़की होगी, तो किसी दिन मेरी शादी भी हो जाएगी,’’ हंसी भरे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर नीरज ने खाली कप मेज पर रखा और फिर से बच्चों के साथ खेल में लग गया.

नीरज वहां से करीब 5 बजे शाम को गया. तीनों बच्चे उस के ऐसे प्रशंसक बन गए थे कि उसे जाने ही नहीं देना चाहते थे. बड़ों ने भी उसे बड़े प्रेम और आदरसम्मान से विदाई दी थी.

उस के जाते ही अंजलि बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने कमरे में चली आई. अचानक उस का मन रोने को करने लगा, पर आंसू थे कि पलकें भिगोने के लिए बाहर आ ही नहीं रहे थे.

करीब 15 मिनट बाद अंजलि के दोनों छोटे भाई और भाभियां उस से मिलने कमरे में आ गए. उन के गंभीर चेहरे देखते ही अंजलि उन के आने का मकसद सम झ गई और किसी के बोलने से पहले ही भड़क उठी, ‘‘मैं बिलकुल शादी नहीं करूंगी. इस टौपिक पर चर्चा छेड़ कर कोई मेरा दिमाग खराब करने की कतई कोशिश न करे.’’

अजय उस के सामने घुटने मोड़ कर फर्श पर बैठ गया और उस का दूसरा हाथ

प्यार से पकड़ कर भावुक स्वर में बोला, ‘‘दीदी, 12 साल पहले पापा के असमय गुजर जाने के बाद आप ही हमारा मजबूत सहारा बनी थीं. आप ने अपनी खुशियों और सुखसुविधाओं को नजरअंदाज कर हमें काबिल बनाया… हमारे घर बसाए. हम आप का वह कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे.’’

‘‘पागल, मेरे कर्तव्यों को कर्ज क्यों सम झ रहा है? आज तुम दोनों को खुश और सुखी देख कर मु झे बहुत गर्व होता है,’’  झुक कर अजय का सिर चूमते हुए अंजलि बोली.

अरुण ने भरे गले से बातचीत को आगे बढ़ाया, ‘‘दीदी, आप के आशीर्वाद से आज हम इतने समर्थ हो गए हैं कि आप की जिंदगी में

भी खुशियां और सुख भर सकें. अब हमारी

बारी है और आप प्लीज इस मौके को हम दोनों से मत छीनो.’’

‘‘भैया, मु झ पर शादी करने का दबाव न बनाओ. मेरे मन में अब शादी करने की इच्छा नहीं उठती. बिलकुल नए माहौल में एक नए इंसान के साथ नई जिंदगी शुरू करने का खयाल ही मन को डराता है,’’ अंजलि ने कांपती आवाज में अपना भय पहली बार सब को बता दिया.

‘‘लेकिन…’’

‘‘दीदी, नीरजजी बड़े सीधे, सच्चे और नेकदिल इंसान हैं. उन जैसा सम झदार जीवनसाथी आप को बहुत सुखी रखेगा… बहुत प्यार देगा,’’ अरुण ने अंजलि को शादी के विरोध में कुछ बोलने ही नहीं दिया.

‘‘मैं तो तुम सब के साथ ही बहुत सुखी हूं. मु झे शादी के  झं झट में नहीं पड़ना है,’’ अंजलि

रो पड़ी.

‘‘दीदी, हम आप की विवाहित जिंदगी में  झं झट पैदा ही नहीं होने देंगे,’’ उस की बड़ी भाभी मंजु ने उस का हौसला बढ़ाया, ‘‘हमारे होते किसी तरह की कमी या अभाव आप दोनों को कभी महसूस नहीं होगा.’’

‘‘मैं जानता हूं कि नीरजजी अपने बलबूते पर अभी मकान नहीं बना सकते हैं. इसलिए हम ने फैसला किया है कि अपना नया फ्लैट हम तुम दोनों के नाम कर देंगे,’’ अरुण की इस घोषणा को सुन कर अंजलि चौंक पड़ी.

अजय ने अपने मन की बात बताई, ‘‘भैया से उपहार में मिले फ्लैट को सुखसुविधा की हर चीज से भरने की जिम्मेदारी मैं खुशखुशी उठाऊंगा. जो चीज घर में है, वह आप के फ्लैट में भी होगी, यह मेरा वादा है.’’

‘‘आप के लिए सारी ज्वैलरी मैं अपनी तरफ से तैयार कराऊंगी,’’ मंजु ने अपने मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘आप के नए कपड़े, परदे, फ्लैट का नया रंगरोगन और मोटरसाइकिल भी हम देंगे आप को उपहार में. आप बस हां कर दो दीदी,’’ आंसू बहा रही शिखा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की तो अंजलि ने खड़े हो कर उसे गले से लगा लिया.

‘‘दीदी ‘हां’ कह दो,’’ अंजलि जिस की तरफ भी देखती, वही हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना दोहरा देता.

‘‘ठीक है, लेकिन शादी में इतना कुछ मु झे नहीं चाहिए. तुम दोनों कोई करोड़पति नहीं हो, जो इतना कुछ मु झे देने की कोशिश करो,’’ अंतत: बड़ी धीमी आवाज में अंजलि ने अपनी स्वीकृति दे दी.

‘‘हुर्रा,’’ वे चारों छोटे बच्चों की तरह खुशी से उछल पड़े.

अंजलि के दिलोदिमाग पर बना तनाव का बोझ अचानक हट गया और उसे अपनी जिंदगी भरीभरी और खुशहाल प्रतीत होने लगी.

Hindi Story Collection : हुनर – आरती को किसका साथ मिला था

Hindi Story Collection :  हाथों में ब्रश पकड़ आरती अपने हुनर को निखारने में लगी थी जबकि उस की बड़ीछोटी बहनें बिगाड़ने में. पर मां ही थीं, जो उसे समझतीं तो वह फिर से बनाती. शादी के बाद पति का साथ मिला तो उस को इसी हुनर से नई पहचान मिली. क्या वह बड़ीछोटी बहनों द्वारा की गई शरारतों को भूल पाई… आरती ने पलट कर अपनी बड़ीछोटी बहनों की ओर देखा. किसी बात पर दोनों खिलखिला उठी थीं. बेमौसम बरसात की तरह यों उन का ठहाका लगाना आरती को भीतर तक छेद गया. ‘सोच क्या रही है, तू भी सुन ले हमारी योजना और इस में शामिल हो जा,’ बड़ी फुसफुसाई. ‘कैसी योजना?’

‘है कुछ,’ छोटी फुसफुसाई. आरती की निगाहें बरबस ओसारे पर बिछी तख्त पर जा टिकीं. दुग्धधवल चादर बिछी हुई है. उसे भ्रम हुआ जैसे अम्मा उस पर बैठी उसे बुला रही हैं, ‘आ बिटिया, बैठ मेरे पास.’ ‘क्या है अम्मा?’ ‘तू इतनी गुमसुम क्यों रहती है री, देख तो तेरी बड़ीछोटी बहनें कैसे सारा दिन चहकती रहती हैं.’ आरती हौले से मुसकरा दी. फिर तो अम्मा ऊंचनीच समझतीं और वह ‘हां…हूं’ में जवाब देती जाती. बड़ी बहन बाबूजी की लाड़ली थी, तो छोटी अम्मा की. आरती का व्यक्तित्व उन दोनों बहनों की शोखी तले दब सा गया था. वह चाह कर भी बड़ीछोटी की तरह न तो इठला पाती थी, न अपनी उचितअनुचित फरमाइशों से घर वालों को परेशान कर सकती थी. वह अपने मनोभावों को चित्रों द्वारा प्रकट करने लगी. हाथों में तूलिका पकड़ वह अपने चित्रों के संसार में खो जाती जहां न अम्मा का लाड़, न बाबूजी का संरक्षण, न बहनों का बेतुका प्रदर्शन और न ही भाई की जल्दबाजी.

रंगोंलकीरों में उस का पूरा संसार सन्निहित था. जो मिल जाता, पहन लेती, चौके में जो पकता, खा लेती. न तो कभी ठेले के पास खड़े हो कर किसी ने उसे चाट खाते देखा और न वह कभी छिपछिप कर सहेलियों के संग सिनेमा देखने गई. बड़ीछोटी बेटियों की ऊंटपटांग हरकतों से अम्मा झल्ला पड़तीं, ‘आखिर आरती भी हमारी ही बेटी है. हमें जरा सा भी परेशान नहीं करती और तुम दोनों जब देखो, कोई न कोई उत्पात मचाती रहती हो.’ ‘भोंदू है आरती, सिर्फ लकीरें खींच कर कोई काबिल नहीं बनता,’ बड़ी अपमान से तिलमिला उठती. ‘अम्मा, तुम भी किस का उदाहरण दे कर हमें छोटा बताती हो, उस घरघुस्सी का,’ छोटी भला कब पीछे रहने वाली थी. ‘वह भोंदू, मूर्ख है और तुम लोग…’ अम्मा देर तक भुनभुनाती रहतीं, जिस का परिणाम आरती को भुगतना पड़ता.

पता नहीं, कब बड़ीछोटी आंखों से इशारा करतीं, एकदूसरे के कानों में कुछ फुसकतीं और दूसरे दिन आरती के चित्रों का सत्यानाश हो गया होता. फटे कागज के बिखरे टुकड़े, लुढ़का रंगों का प्याला… ब्रश की ऐसी हालत कर दी गई होती कि वह दोबारा किसी काम का न रहे. बिलखती आरती अम्मा से फरियाद करती, ‘अम्मा, अम्मा, देखो मेरी पेंटिंग की हालत… मैं ने कितनी मेहनत से बनाई थी.’ ‘फिर से बना लेना. हाथ का हुनर भला कौन छीन सकता है,’ अम्मा आरती को दिलासा दे कर अपनी बड़ीछोटी बेटियों पर बरस पड़तीं, ‘यह कौन सा बहादुरी का काम किया तुम लोगों ने आरती को दुख पहुंचा कर.’ अम्मा देर तक भुनभुनाती रहतीं और बड़ीछोटी बेहयाई से कंधे उचकाती आरती को परेशान करने के लिए नई खोज में डूब जातीं. वहीं, वे दोनों आज आरती को किस योजना में शामिल होने का न्योता दे रही हैं,

इसे आरती का निश्चल हृदय खूब समझता है. अम्मा की तेरहवीं हुए अभी 2 दिन भी नहीं बीते, नातेरिश्तेदार एकएक कर चले गए. सिर्फ बच गए हैं हम पांचों भाईबहन. ‘‘भाभी, मैं कल जाऊंगी,’’ आरती ने रोटी खाते हुए कहा. ‘‘दोचार दिन और रुक जातीं.’’ ‘‘नहीं भाभी, वहां बच्चे अकेले हैं. आनाजाना लगा ही रहेगा.’’ जिस घर में उस का जन्म हुआ, पलीबढ़ी, जवान हुई, सपनों ने उड़ान भरी, वहां से निकल जाना ही उचित है. पता नहीं, बहनें कौन से कुचक्र में भागीदार बनने पर मजबूर करें. वह थकीहारी अपने आशियाने लौटी, तो पति सुदर्शन और दोनों प्यारे बच्चे उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. ‘‘सब कुशलमंगल तो है न. नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. मैं ने डिनर तैयार कर लिया है.’’ पति का स्नेह, बच्चों का ‘मम्मा, मम्मा’ करते लिपटना…

वह सारी कड़वाहटें भूल गई. ‘‘यह तुम्हारे लिए…’’ ‘‘क्या है लिफाफे में…’’ ‘‘स्वतंत्रता दिवस पर बनाई गई तुम्हारी पेंटिंग, पोस्टर को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है. बुलाहट है दिल्ली के लालकिले पर पुरस्कार के लिए, उसी का निमंत्रणपत्र है.’’ ‘‘मम्मा, हम भी चलेंगे लालकिला देखने,’’ बच्चे मचल उठे. ‘‘अरे, हम सभी चलेंगे. चलने की तैयारी करो,’’ पति के उल्लासमय आह्वान पर आरती का दुखी हृदय खुशियों से भर उठा. जिस हुनर को मायके में हंसी का पात्र बनाया गया, वही पुरुषार्थी पति का सहयोग पा कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान बना रहा है. ‘मां, यह तुम्हारा प्यार है शायद जिस ने मु?ो कभी भी कमजोर पड़ने न दिया, अपने मार्ग से भटका न सका और जिस की वजह से मेरा जनून मेरी ताकत बना…’ मन ही मन सोचती आरती का भावुक होना स्वाभाविक था. आरती का मन पाखी पुरानी यादों में खो गया

… खामोश, काम से काम रखने वाली आरती को अपने सहकर्मी के विनम्र, सुल?ो हुए साहसी स्वभाव ने आकर्षित कर लिया. अनाथ यश का प्रस्ताव, ‘मुझ से विवाह करोगी?’ ‘मां से बात करनी पड़ेगी,’ कहती हुई आरती ने नजरें झका लीं. उस ने डरतेडरते मां से बात की, ‘मां, यश आप से मिलना चाहता है. मेरा सहकर्मी है.’ ‘किसलिए,’ अनुभवी मां की आंखें चौड़ी हो गईं. यश की सज्जनता को देख परिवार प्रभावित हुआ, किंतु विजातीय विवाह की अनुमति नहीं, ‘लोग क्या कहेंगे…’ बहनों ने घर सिर पर उठा लिया, ‘विवाह में खर्च कौन करेगा…’ इस बार आरती ने दिल से काम लिया. कोर्ट में विवाह कर दूल्हे के संग मां का आशीर्वाद लेने पहुंची. तब सब ने मुंह मोड़ लिया किंतु मां के मुख से निकला, ‘सदा सुहागन रहो.’ बचपन से ही आरती को पेंटिंग, कढ़ाईसिलाई के अलावा रचनात्मक कार्यों में अभिरुचि थी. पति का साथ पा कर उस ने अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू किया.

उस की खूबसूरत डिजाइन के परिधानों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया. मांग बढ़ने लगी. इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी. ससुराल में कोई था नहीं और मायके से कोई उम्मीद नहीं. इधर, बुटीक का काम चल निकला. नौकरी पहले ही छोड़ चुकी थी वह. अब पति ने भी अपना पूरा समय बुटीक को देना शुरू कर दिया. एक कमरे के व्यवसाय से प्रारंभ बुटीक का कारोबार आज शहर के बीच में है. आज उस की आमदनी हजारों में है. 4 कारीगर रखे हुए हैं. जब भी मां की याद आती, आरती उन से मिल आती, रुपएपैसे से उन की मदद करती. मां को अपने पास ला कर सेवासुश्रुषा करती.

मां के दिल से यही दुआ निकलती, ‘तुम्हें दुनियाजहान की सारी खुशियां मिलें.’ उसे भाईभाभी से कोई शिकायत नहीं थी किंतु बहनों को अपनी कामयाबी की भनक तक नहीं लगने दी. आरती को उन के खुराफाती दिमाग और कुटिल चालों की छाया तक अपने संसार पर गवारा नहीं थी. उसी धैर्य और हुनर का परिणाम है कि आज उसे पुरस्कृत किया जा रहा है… उस ने मन ही मन मृत मां को धन्यवाद दिया. सुखसंतोष से वह पुलकित हो उठी.

Ajay Devgn ने अपने 14 वर्षीय बेटे युग से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म कराटे किड लीजेंड्स के लिए करवाई डबिंग

Ajay Devgn: फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिजम का बोलबाला शुरू से ही है जिसके चलते ज्यादातर स्टार्स के बच्चे अभिनय क्षेत्र में या ग्लैमर वर्ल्ड से ही जुड़ते है. लेकिन अब शाहरुख खान ने एक नया ट्रेंड शुरू किया जिसे अजय देवगन ने भी फॉलो किया. हाल ही में अजय देवगन भी शाहरुख खान की तरह अपने बेटे युग को मीडिया के सामने लेकर आए और बेटे की एक खूबी से दर्शको और मीडिया को अवगत कराया.

हाल ही में देवगन फैमिली की तीसरी पीढ़ी की बौलीवुड में एंट्री हुई वह कोई और नहीं बल्कि अजय देवगन के 14 वर्षीय बेटे युग है. युग बतौर डबिंग आर्टिस्ट अंतरराष्ट्रीय फिल्म कराटे किड लीजेंड्स के हिंदी वर्जन में अपनी आवाज देने वाले हैं जिसका ट्रेलर हाल ही में चर्चा में आया. इस फिल्म में जहां जैकी चैन की आवाज अजय देवगन देने वाले हैं वही युग मेंली फाग बेन वांग की आवाज के रूप में अपना डेब्यू किया है.

क्योंकि यह अजय देवगन के 14 वर्षीय बेटे की बतौर डबिंग आर्टिस्ट यह पहली कोशिश है, इसलिए अजय देवगन ने इसे सेलिब्रेट करने के लिए स्पेशल प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी जहां पर दोनों बाप बेटे मुस्कुराते नजर आए. अजय देवगन जहां अपने बेटे को लेकर थोड़ा टेंशन में थे कि कही युग मीडिया के सामने कोई शैतानी ना कर दे, क्योंकि युग अक्सर काजोल के साथ धमाल मस्ती करते हुए सोशल मीडिया पर दिखाई देते रहते हैं. वही युग पहली बार मीडिया के सामने आने को लेकर बेहद खुश और शर्माते नजर आ रहे थे .
गौरतलब है शाहरुख खान के तीनों बच्चे भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ चुके हैं.

उनका बेटा आर्यन खान जहां बतौर डायरेक्टर स्टारडम वेब सीरीज बना रहा है तो बेटी सुहाना एक्टिंग क्षेत्र में अपनी तकदीर आजमा रही है . इन दोनों के अलावा छोटा बेटा अबराम भी बतौर डबिंग आर्टिस्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुका है. छोटे बेटे अब्राहम ने फिल्म मुफासा द लायन किंग के हिंदी वर्जन में युवा मुफ़ासा की आवाज की डबिंग की है . वही शाहरुख खान ने मुफांसा की और आर्यन खान ने सिंबा कैरेक्टर के लिए डबिंग की थी. जिस तरह शाहरुख खान और परिवार के लिए मुफ़सा द लायन किंग के लिए डबिंग करना एक खास प्रोजेक्ट था. ठीक उसी तरह अजय देवगन भी युग के कराटे किड लीजेंड्स में डबिंग करने को लेकर बेहद खुश है और गर्व महसूस कर रहे हैं. और खुद भी जैकी चेन के लिए अपनी आवाज में डबिंग करके नया रिकौर्ड बना रहे है.

ऋतिक रोशन एनटीआर के लिए War 2 के साथ ला रहे हैं धमाकेदार बर्थडे सरप्राइज

War 2  : शाहरुख सलमान से रणबीर कपूर ऋतिक रोशन तक बौलीवुड के ज्यादातर हीरोज साउथ इंडस्ट्री पर फिदा है. और अगर बात जूनियर एन टी आर की हो तो करीबन 300 फिल्मों में काम करके और हाल ही में राजामौली की फिल्म आरआर आर के गाने नाटू नाटू. गाने के लिए औस्कर अवार्ड जीत कर साउथ ही नहीं हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच भी अपनी अलग जगह बना ली है . फिलहाल जूनियर एन टी आर  ऋतिक रोशन के साथ फिल्म वार 2 कर रहे है.

इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ऋतिक और एन टी आर के बीच अच्छी खासी दोस्ती हो गई है जिसके चलते हाल ही में बौलीवुड सुपरस्टार ऋतिक रोशन ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है. उन्होंने खुलासा किया है कि वह एनटीआर के जन्मदिन (20 मई 2025) के मौके पर ‘वॉर 2’ के जरिए एक धमाकेदार सरप्राइज देने वाले हैं.

ऋतिक ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है ,”हे एनटीआर, लगता है तुम्हें पता है 20 मई को क्या होने वाला है? यकीन मानो, तुम्हें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं है कि क्या आने वाला है, तैयार हो?” इस पोस्ट ने इंटरनेट पर आग लगा दी! फैंस के बीच ‘वॉर 2’ से जुड़ी किसी बड़ी घोषणा की चर्चा शुरू हो गई है.

वॉर 2’ में ऋतिक रोशन फिर एक बार ‘कबीर’ के रूप में लौट रहे हैं और इस बार उनके साथ होंगे पैन इंडिया सुपरस्टार एनटीआर.इस हाई-ऑक्टेन फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं अयान मुखर्जी, जिन्हें युवा और प्रतिभाशाली निर्देशक के रूप में जाना जाता है.

फिल्म 14 अगस्त 2025 को हिंदी, तेलुगु और तमिल भाषाओं में रिलीज होगी. वाईआरएफ स्पाई यूनिवर्स आज भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी और सफल फ्रेंचाइजी है, जिसमें अब तक सिर्फ ब्लॉकबस्टर फिल्में ही आई हैं .जैसे ‘एक था टाइगर’, ‘टाइगर ज़िंदा है’, ‘वॉर’, ‘पठान’ और ‘टाइगर 3’. ‘वॉर 2’ इस यूनिवर्स की छठी फिल्म होगी.

अब सभी का ध्यान इस बात पर है कि 20 मई को क्या होगा. तैयार हो जाइए, क्योंकि ऋतिक और एनटीआर का एक साथ आना निश्चित रूप से कुछ अद्भु ही होने वाला है . वार 2 में इन दोनों की जोड़ी क्या कमाल दिखाने वाली है ,ये तो फिल्म रिलीज के बाद ही पता चलेगा.

Women Rights : समान जिंदगी जीने का देता है हक

Women Rights : हर शहर में एक बदनाम औरत होती है. अकसर वह पढ़ीलिखी प्रगल्भ तथा अपेक्षाकृत खुली हुई होती है,’’ ये पंक्तियां हिंदी के प्रसिद्ध कवि विष्णु खरे की कविता से ली गई हैं. ये बहुत ही सटीक तरीके से पढ़ीलिखी महिलाओं के प्रति हमारे समाज की मानसिकता को बयां करती हैं. यह समाज महिलाओं को अपनी सुविधा के अनुसार कितनी ही बातें सिखाता है. उन्हें बताया जाता है कि किचन में रहोगी, अच्छाअच्छा खाना सब के लिए बनाओगी सब तुम से खुश रहेंगे, तुम्हारी इज्जत करेंगे. काफी महिलाएं इस तरह अपना सारा जीवन परिवार के लिए जी कर निकाल देती हैं.

आजकल थोड़ा, बदलाव यह हुआ है कि मनोरंजन के लिए वे इंस्टा पर रील्स देख लेती हैं, नईनई रैसिपीज के लिए यूट्यूब देख कर खुश हो जाती हैं. किताबें उन के हाथ से छूट चुकी हैं, पढ़नेलिखने का महत्त्व उन के लिए उतना नहीं रहा तो वे अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को इग्नोर करने की कोशिश करती हैं और उन्हें अपने अधिकार पता ही नहीं हैं. सही तरह से पढ़नेलिखने के शौक, रुचि के बिना उन्हें अपने अधिकारों से कितनी चीजों से, वंचित रखा जाता है, यह उन्हें भी नहीं पता.

अधिकारों के प्रति सजग

यूनेस्को के अनुसार, लड़कियों में माध्यमिक शिक्षा को छोड़ने का बड़ा कारण उन की कम उम्र में शादी और उन का गर्भवती होना है. कम पढ़ालिखा होना उन की मैंटल हैल्थ पर भी बुरा असर डालता है. हमारे आसपास ऐसी कितनी लड़कियां हैं जिन की शादी उन के पेरैंट्स बहुत जल्दी करवा देते हैं. कारण पूछने पर जवाब मिलता है, जमाना बहुत खराब है. कुछ अनहोनी हो, उस से पहले यह काम हो जाए.
समाज में महिलाओं के खिलाफ जिस तरह अत्याचार बढ़ रहे हैं उन का इलाज पेरैंट्स को यही समझ आता है कि लड़की की शादी जल्दी कर के उस की आजादी को छीन कर अपनी जिम्मेदारी खत्म की जाए. उस से पूछा भी नहीं जाता कि तुम्हें आगे पढ़ कर अपने पैरों पर खड़े होना भी है या नहीं, जीवन जीने के लिए अपने अधिकार जानने भी हैं या नहीं.

रेनू मध्य प्रदेश के एक छोटे से कसबे से मुंबई आई थी. घरपरिवार में लड़कियों की शिक्षा का महत्त्व नहीं था तो वह अल्पशिक्षित ही थी. मुंबई आई तो देखा, घरों में काम करने वाली, साफसफाई, बरतन धोने वाली स्त्रियां भी अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं. वह एक अलग ही दुनिया देख रही थी. पढ़ने वाली लड़कियां, नौकरी करने वाली लड़कियां आत्मविश्वास के साथ सड़कों पर उत्साह से भागती दिखतीं.

उस ने गौर किया कि उसे दुनिया का पता ही नहीं है. पति से रिक्वैस्ट की. आगे पढ़ीलिखी, शिक्षा हासिल की. उस की हिंदी अच्छी थी ही, मुंबई में साउथ इंडियन बच्चों को हिंदी पढ़ने की परेशानी होती है. 1-1 कर के वह कई बच्चों को ट्यूशंस पढ़ाने लगी. अब उसे कितनी ही बातें समझ आई हैं, कितने ही अधिकारों की बातें वह आत्मविश्वास से करती है. परिवार भी उस पर गर्व करता है. अब वह अलग ही रेनू है.

महिलाओं के व्यक्तित्व के विकास में पढ़ाई, लिखाई बहुत महत्त्वपूर्ण है. महिलाओं के पढ़नेलिखने की बात है तो सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को भी याद कर लेना चाहिए. ये दोनों हमारे देश की पहली महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने लड़कियों को पढ़ाया और उन्हें प्रोत्साहित किया. इन्हें रोकने के लिए कितनी कोशिशें की गईं. अनेक तरह की दलीलें दी गईं. यह कहा जाने लगा कि यदि महिलाएं पढ़ने लगीं तो वे हर किसी को तरहतरह की चिट्ठियां लिखने लगेंगी. उन पर लोग गोबर और पत्थर फेंका करते थे.

अवधारणा को बदलें

यह बात 19वीं शताब्दी की है. थोड़ा आगे बढ़ कर देखें तो 2012 में 15 साल की मलाला नाम की एक लड़की के सिर पर गोली दाग दी जाती है क्योंकि उस ने पढ़लिख कर सवाल पढ़ने शुरू कर दिए, हकों की बात की. उस ने दूसरी लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया. हालात बदले हैं, पर ज्यादा नहीं. कई पेरैंट्स लड़कियों को इसलिए पढ़ा रहे हैं कि उन की अच्छे घर में शादी हो जाए, वे सैट हो जाएं.

इस सैट होने की अवधारणा को बदल कर लड़कियां इसलिए पढ़ें कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें, वे अपने हक के बारे में जागरूक रहें. वे सही और गलत का अंतर करना जानें. वे समझें कि कब उन्हें शादी करनी है, कब बच्चा पैदा करना है. पढ़ेंगी तो अपनी हैल्थ के बारे में जागरूक रहेंगी, एड्स जैसी बीमारियां उन्हें तकलीफ नहीं देंगी, वे उन से बच सकेंगी.

सैक्स के मुद्दे पर बात करना अपराध है, यह उन्हें बचपन में ही सिखा दिया जाता है. वे अपने अधिकारों के बारे में जान कर इस विषय पर खुल कर सोच सकेंगीं, बोल सकेंगी. जब महिलाएं पढ़तीलिखती हैं तो उन्हें यह पता चलता है कि उन के पास समानता का अधिकार है, उन्हें नौकरी में समान वेतन मिलना चाहिए और किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ वे कानूनी रूप से अपना पक्ष रख सकती हैं.

इसी तरह महिलाओं को घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर जागरूकता मिलती है और वे इन से निबटने के लिए कदम उठा सकती हैं. अब बात सामान्य व्यक्ति की- चाहे स्त्री हो या पुरुष, पढ़नालिखना केवल कोई डिगरी लेने का माध्यम नहीं है बल्कि यह समाज में हमारे अधिकारों को समझने और उन्हें सही तरीके से प्राप्त करने की दिशा में भी सहायक है. पढ़नेलिखने से मतलब सिर्फ किताबों से नहीं है बल्कि यह हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित कराता है. जब हम पढ़लिख रहे होते हैं तो हम न केवल अपने ज्ञान में वृद्धि कर रहे होते हैं बल्कि समाज में अपनी स्थिति और अधिकारों के प्रति भी जागरूक हो रहे होते हैं.

शिक्षा को बनाएं हथियार

पढ़नेलिखने से व्यक्ति को अपने अधिकारों के बारे में समझने का अवसर मिलता है जैसेकि संविधान में दिए गए अधिकारों, जैसेकि समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि. इन का ज्ञान होने से व्यक्ति अपनी स्थिति को बेहतर तरीके से समझ सकता है और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है. भारतीय संविधान में हर नागरिक को पढ़नेलिखने का अधिकार है (आरटीई- राइट टु ऐजुकेशन).

पढ़ने के माध्यम से व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों को जानता है. संविधान, न्यायपालिका और अन्य कानूनी तंत्र के बारे में जागरूकता होने से व्यक्ति को अपनी रक्षा करने और न्याय प्राप्त करने का अधिकार मिलता है. यदि कोई व्यक्ति अपने कानूनी अधिकारों के बारे में नहीं जानता तो वह उन का सही तरह से उपयोग नहीं कर सकता है.

पढ़लिख कर व्यक्ति को यह समझ आने लगता है कि समाज में उस के क्या अधिकार हैं. यह बात न केवल निजी आजादी के बारे में है बल्कि यह बात सामाजिक अधिकारों के बारे में भी है जैसेकि स्वास्थ्य सेवाएं, महिला अधिकार, बच्चों का अधिकार और अन्य सामाजिक न्याय के मुद्दे. जब व्यक्ति इन अधिकारों को जानता है तो वह अपने और दूसरों के अधिकारों की रक्षा कर सकता है.

पढ़लिख कर न केवल व्यक्तिगत विकास होता है बल्कि यह समाज को एक सशक्त नागरिक भी देता है. एक शिक्षित नागरिक अपने समाज और राष्ट्र के बारे में सोचता है और अपने कर्तव्यों को समझता है.
यदि एक बच्चा पढ़तालिखता है तो उसे यह समझ आता है कि बाल श्रम गलत है और उसे खेलने, पढ़ने और अपने बचपन का आनंद लेने का अधिकार है. इस के परिणामस्वरूप समाज में यह जागरूकता फैलती है और बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई को मजबूती मिलती है.

पढ़लिख कर लड़कियां यह जान पाती हैं कि उन्हें बाल विवाह से बचने का अधिकार है. यदि एक लड़की पढ़तीलिखती है तो उसे यह समझ आ जाता है कि उस की शादी के लिए उस की उम्र, उस की सहमति और उस की भलाई को महत्त्व दिया जाना चाहिए. यह अधिकार उसे अपने जीवन के फैसले लेने का आत्मविश्वास देता है.

शादी में म्यूजिकल फेरे का ट्रैंड

Musical Rounds : आजकल शादियों में बहुत कुछ नया और अनोखा देखने को मिल रहा है. चाहे वह थीम वैडिंग हो, डैस्टिनेशन वैन्यू हो या फिर खास ऐंट्री स्टाइल, हरकोई चाहता है कि उस की शादी सब से अलग और यादगार हो और हो भी क्यों न शादी हर किसी के जीवन का सब से खास और यादगार दिन होता है. हर कपल चाहता है कि उन की शादी कुछ हट कर और अनोखी हो, जिसे लोग लंबे समय तक याद रखें. आजकल ऐसी ही एक नई और खूबसूरत परंपरा तेजी से लोकप्रिय हो रही है और वह है म्यूजिकल फेरे.

क्या हैं म्यूजिकल फेरे

पारंपरिक फेरों में जहां पंडित मंत्रोच्चार करते हैं और दूल्हादुलहन 7 फेरे लेते हैं, वहीं म्यूजिकल फेरों में हर फेरे के साथ भावनात्मक और सुंदर संगीत जुड़ जाता है. इन फेरों में हर फेरे के अर्थ को म्यूजिक और वौइसओवर के जरीए सम?ाया जाता है और बैकग्राउंड में चल रहा सौफ्ट इंस्ट्रुमैंटल म्यूजिक माहौल को बेहद भावुक और दिल छू लेने वाला बना देता है.

क्यों हैं ये ट्रैंड में

इमोशनल कनैक्शन: म्यूजिकल फेरे दूल्हादुलहन और परिवार के सदस्यों को भावनात्मक रूप से उस पल से जोड़ देते हैं. हर वचन को जब खूबसूरत शब्दों और संगीत के साथ पेश किया जाता है तो वह क्षण हमेशा के लिए यादगार बन जाता है.

सोशल मीडिया फ्रैंडली: आज की जैनरेशन हर पल को कैमरे में कैद करना चाहती है. म्यूजिकल फेरों का वीडियो बेहद सिनेमैटिक और भावुक होता है, जिसे सोशल मीडिया पर शेयर करना लोगों को खास पसंद आता है.

पारंपरिकता में आधुनिकता: यह ट्रैंड परंपरा को तोड़ता नहीं बल्कि उसे एक नया रूप देता है. जहां रीतिरिवाज और आधुनिक प्रेजैंटेशन का सुंदर मेल होता है.

कैसे करें प्लानिंग

एक अच्छे वौइस आर्टिस्ट और साउंड डिजाइनर से संपर्क करें.

फेरे वाले मंडप में साउंड सिस्टम अच्छा होना चाहिए ताकि सभी को स्पष्ट रूप से सबकुछ सुनाई दे.

दूल्हादुलहन के लिए उस समय का अनुभव और भी खास बनाने के लिए हलका और भावनात्मक संगीत चुनें.

चाहें तो बीचबीच में दूल्हादुलहन की खुद की रिकौर्ड की गई कुछ लाइनें भी जोड़ी जा सकती हैं.

Travel Tips : ये गोल्डन टिप्स आपके ट्रिप को बनाएंगे मजेदार

Travel Tips : रितिक अपने परिवार के साथ साल में 2-3 बार ट्रिप पर जाता है. दिल खोल कर खर्च करता है, फिर भी न तो बच्चे खुश होते हैं और न ही वाइफ. सब की अपनीअपनी शिकायतें होती हैं. किसी को होटल पसंद नहीं आता तो किसी को खाना. किसी को डैस्टिनेशन का चुनाव गलत लगता.

रितिक की प्रौबल्म यह है कि वह खुद कुछ भी प्लान नहीं करता. जैसे ही घूमने का डिसीजन हुआ, अपने ट्रैवल एजेंट को फोन मिलाता पूछता कि कहां जाएं. एजेंट उस के बजट के हिसाब से 2-4 डैस्टिनेशन बताता. रितिक बच्चों और वाइफ से कहता है कि उन में से कोई एक चुन लें.

बहुत सारे किंतुपरंतु के साथ एक डैस्टिनेशन फाइनल होती है. एजेंट सब बुक कर देता है. न रितिक को, न बच्चों को और न ही वाइफ को पता होता है कि वहां उन्हें कैसा होटल मिलेगा, कैसा ब्रेकफास्ट मिलेगा और वे क्याक्या उम्मीद कर सकते हैं.

नतीजा यह होता है कि वहां जा कर उन्हें कई सरप्राइज मिलते हैं. जाहिर है वे नैगेटिव ही होते हैं, जिस वजह से सब निराश हो जाते हैं.

प्लानिंग करना है जरूरी

कहीं भी घूमने जाने से पहले पूरी प्लानिंग नहीं करेंगे तो रितिक की तरह परेशान रहेंगे. डैस्टिनेशन आप की पसंद की होनी चाहिए न कि जो एजेंट बताए. बहुत बार एजेंट अपने हिसाब से चीजें थोपने लगते हैं. उन की बातों में न आएं. एक बजट तय करें. उस के बाद परिवार के साथ मिल कर पूरी रिसर्च करें. डैस्टिनेशन के लिए सब की सहमति होनी जरूरी है. पूरी प्लानिंग में बच्चों को जरूर शामिल करें ताकि बाद में वे शिकायत न कर पाएं. वैसे भी आजकल के बच्चे टेक सैवी हैं तो उन्हें ऐसा करने में मजा भी आएगा.

वहां कैसे जाना है, होटल सस्ता पड़ेगा या गैस्टहाउस अथवा एअर बीएनबी, अच्छे से पता कर लें. गूगल पर सब मिल जाता है. वहां के यूट्यूब वीडियो देख सकते हैं. ट्रेन, बस या फ्लाइट के टिकट बुक कराने के बाद तुरंत होटल बुक करने का प्रोसीजर शुरू कर दें. सब के रेट और सुविधाओं को मैच करें. जो सब से अच्छा लगे उसी को बुक करें. वैसे शहर के सैंटर में रहना ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि वहां से घूमने की जगहें ज्यादा दूर नहीं होतीं, साथ ही ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी अच्छी होती है.

उस के बाद होटल के आसपास के रैस्टोरैंट देख लें, जहां पर आप डिनर करेंगे क्योंकि लंच तो वहीं होगा, जहां घूमने जाएंगे. एक बात और होटल में नाश्ता नहीं मिलेगा तो पहले ही पता करें कि नाश्ता कहां करेंगे. होटल के आसपास कोई जगह देख सकते हैं. उन से फोन कर के पूछ लें कि नाश्ता कितने बजे मिल जाएगा. आप को घूमने के लिए भी निकलना होगा. दूर की जगहों पर घूमने के लिए जल्दी निकलना होता है. इसलिए 7-8 बजे नाश्ता मिल जाना चाहिए. नाश्ते में क्याक्या मिलेगा, यह भी पता कर लें.

जहांजहां घूमने जाएंगे, वहां खाने के क्या औप्शन मिलेंगे, यह भी नोट कर लें. वैजिटेरियन हैं तो देख लें कि वहां आप के मतलब का कुछ मिलेगा भी कि नहीं खासकर विदेश जाते समय क्योंकि वहां वैजिटेरियंस को अकसर दिक्कत होती है. बेहतर है कि लोकल स्टोर से कुछ फ्रूट्स खरीद कर ले जाएं या घर से बिस्कुट, मठरी, लड्डू बना कर ले जा सकते हैं.

जो लोग नौनवैजिटेरियन हैं, विदेशों का नौनवेज उन की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता क्योंकि वहां अलग तरह का नौनवेज बनता है. इसलिए यह सोच कर खुश न हों कि हम तो नौनवैजिटेरियन हैं, कुछ भी खा लेंगे. आप को ढूंढना पड़ेगा कि कहां आप की चौइस का नौनवेज मिलेगा.

कब, कहां, क्या पहनना है

जहां जा रहे हैं, वहां के मुताबिक कपड़े चुनें. वहां का टैंपरेचर चैक कर लें कि आप की डेट्स पर वहां कैसा मौसम होगा. सफर लंबा हो या छोटा, जरूरी कपड़े ही रखें. वहां फैशन शो में तो जा नहीं रहे जो थोड़ीथोड़ी देर बाद कपड़े बदलेंगे. एक हफ्ते के सफर में 2 डैनिम के साथ आराम से घूम सकते हैं. टौप रोजाना बदला जा सकता है.

नितिका अपने हनीमून पर बाली गई तो उस ने ढेर सारे कपड़े रख लिए. वहां जा कर उसे बैक पेन शुरू हो गया. लिहाजा, सारे बैग उस के हस्बैंड को संभालने पड़े. रास्ते में ही दोनों की तकरार हो गई.

बेहतर है कि मिक्स और मैच कर के कपड़े रख लें.

कृतिका ने मनाली जाते समय यही किया. कभी शाल को स्वैटर की तरह पहन लिया, कभी शाल की तरह ओढ़ लिया. लेयर्स में कपड़े पहन लिए. इस से सामान ज्यादा नहीं हुआ और बिना टैंशन के मजेदार सफर गुजरा.

जूते, चप्पल पर भी ध्यान दें. हील की जगह आरामदायक जूते, जूतियां पहनें. स्पोर्ट्स शूज बेहतर रहते हैं. अच्छी कंपनी के स्पोर्ट्स शूज पहनेंगे तो पैरों में दर्द नहीं होगा.

नो मेकअप लुक

किसीकिसी जगह के लिए सुबह जल्दी निकलना होता है. ऐसे में मेकअप के लिए कम टाइम होता है. अगर शेयरिंग राइड से जा रहे हैं तो और भी जल्दी जाना पड़ता है क्योंकि बस, वैन या गाड़ी को कई होटलों से सब को इकट्ठा करना होता है. ढेर सारा मेकअप लगाना जरूरी नहीं है. हां, अगर आप को वीडियो बनाने हैं, वलौग बनाने हैं तो अलग बात है लेकिन उस में भी कभीकभार नैचुरल लुक अच्छा रहेगा.

खानेपीने का रखना होगा खयाल

लोकल क्चिजीन ट्राई करने से पहले अपने पेट की हालत का जायजा लें. आप को किस चीज से ऐलर्जी है, उस का भी खयाल कर लें वरना लेने के देने पड़ सकते हैं. बिना सोचेसम?ो लोकल चीजें ट्राई करने की गलती न करें. विदेश में तो ऐसा बिलकुल न करें. वहां इंडियन रैस्टोरैंट में भी जरूरी नहीं कि इंडियन शैफ ही हों. वहां जा कर आप निराश हो सकते हैं क्योंकि हो सकता है कि खाने में आप को वह स्वाद न मिले, जिस की तलाश में आप वहां पहुंचते हैं. रिसर्च कर के जाएंगे तो मुश्किल नहीं होगी.

यूट्यूब पर रैस्टोरैंट के वीडियो देखें. नौर्थ इंडियन खाने में रोटी, नान और दाल को करीब से देखें. वे सही हैं तो मतलब खाना इंडियन शैफ ने बनाया है.

होटल या गैस्टहाउस में ब्रेकफास्ट मिलेगा तो उसे भी देख लें. अपने देश में कोई खास दिक्कत नहीं होगी लेकिन विदेश जा रहे हैं तो होटल वालों को फोन या ईमेल कर के पूछ लें कि ब्रेकफास्ट में इंडियन औप्शन होंगे या नहीं.अगर नहीं हैं तो पहले से जान लें कि वहां आप को ब्रैड, फ्रूट्स, ड्राई फ्रूट्स, जूस, पेस्ट्री आदि पर ही गुजारा करना होगा. हां, अगर अंडा खाते हैं तो आप का काम बन जाएगा. एग स्टेशन पर जा कर अपनी पसंद का आमलेट बनवा सकते हैं.

वेज या नौनवेज भी पूछ लें. ज्यादातर देशों में वेज खाने को ‘नो मीट’ कहते हैं क्योंकि अंडा भी उन के लिए वेज होता है. तो आप कह सकते हैं कि आप को ‘नो मीट’ ऐंड ‘नो एग’ औप्शन चाहिए.

वहां से कोई चिप्स वगैरह खरीदें तो सावधान रहें क्योंकि चिप्स में भी नौनवेज होता है. ज्यादातर देशों में प्रोडक्ट की डिटेल इंग्लिश में न हो कर लोकल भाषा में होती है जिसे शायद आप पढ़ नहीं पाएंगे. जरूरी नहीं है कि नौनवेज वाले चिप्स पर लाल निशान दिया ही हो, जिस से आप सम?ा जाएं कि वह नौनवेज है. आप लोकल फू्रट्स ले सकते हैं. इस से आप के शरीर को पोषण भी मिलेगा. बेहतर है कि ऐसी चीजें इंडिया से ही ले कर जाएं.

सजग रहें

मीरा अपने परिवार के साथ मारीशस गई तो जिस दिन लौटना था, वहां तूफान आ गया. सभी फ्लाइट्स बंद हो गईं. वे होटल से चैक आउट कर चुके थे. पता किया तो होटल के सारे कमरे बुक थे. आननफानन में एक अपार्टमैंट बुक कराया. लेकिन खाने के लिए पास में कुछ नहीं था. पूरा मारीशस बंद हो चुका था. अपार्टमैंट की मालकिन के पास भी कुछ खास औप्शन नहीं थे. इसलिए उन्हें भूखे रहना पड़ा. वह ट्रिप उन के लिए एक बुरी याद बन कर रह गया. उस ने अपने साथ कुछ रखा होता, तो इस स्थिति से बच सकती थी.

शीना और वीरेन ने इस के बिलकुल उलट किया. अपने बच्चों के साथ सिंगापुर गए तो ढेर सारा खाने का सामान पैक कर लिया. रैडी टू ईट फूड की इतनी सारी वैरायटीज रख लीं लेकिन वहां कुछ नहीं खा पाए क्योंकि सिंगापुर में, ‘लिटल इंडिया’ नाम की जगह है, जहां हर तरह का इंडियन खाना बड़े आराम से और बजट में मिल जाता है. उन्हें चाहिए था कि बस थोड़ी सी चीजें इमरजैंसी के लिए रख लेते.

शौपिंग करना क्यों जरूरी

नीलेश और रिद्धिमा हनीमून पर घूमने दुबई गए. वहां से आते हुए उन के पास 5 सूटकेस थे. उन में से 3 तो शौपिंग के सामान से भरे थे. इस से उन का बजट कई गुणा बढ़ गया. एअरपोर्ट पर सामान के पैसे देने पड़े, सो अलग.

अकसर लोग अपने सगेसंबंधियों, दोस्तों के लिए खूब सारी शौपिंग कर के लाते हैं. इस से बजट तो बिगड़ता ही है, साथ ही सामान उठाने का झंझट अलग से. इस का नुकसान यह होता है कि वे कम बार घूमने जा पाते हैं क्योंकि बजट बहुत ज्यादा हो जाता है. एक बार किसी के लिए कुछ ले आए तो हर बार लाना पड़ता है.

अंजना और सागर हनीमून पर श्रीनगर गए तो उन्होंने अपनेअपने पेरैंट्स के लिए शाल और स्वैटर लिए. इस से उन के बजट पर भी असर नहीं पड़ा और उन्हें ज्यादा सामान भी नहीं उठाना पड़ा.

खुद के लिए भी शौपिंग करनी हो तो बहुत सोचसम?ा कर करें. रेट वगैरह चैक कर लें. घूमने आए हैं तो शौपिंग करना जरूरी है, यह किसी किताब में नहीं लिखा है. लिमिट में शौपिंग करेंगे या नहीं करेंगे तो घूमने का ज्यादा मजा ले पाएंगे.

मसाज कराना रहेगा फायदेमंद

आप कहीं भी घूमने जाते हैं तो पैरों में दर्द होना स्वाभाविक है. बड़ों के ही नहीं, बच्चों के पैरों में भी दर्द होता है. हर जगह आप को फुट मसाज वाले मिल जाएंगे, चाहे आप अपने देश में हों या कहीं विदेश में.

रात को होटल लौटते समय रास्ते में ही डिनर वगैरह निबटा कर मसाज जरूर करवाएं. इस से आप को नींद अच्छी आएगी और अगले दिन घूमने में परेशानी नहीं होगी.

मगर मसाज कराने से पहले मसाज करने वाले को अपनी फिजीकल कंडीशन बता दें. अगर कहीं दर्द है या डाक्टर ने कोई खास इंस्ट्रक्शन दी है तो जरूर बताएं वरना आप को फायदे की जगह नुकसान हो सकता है.

ये गोल्डन टिप्स आप के ट्रिप को मजेदार बना देंगे

घूमने की सभी जगहों की लिस्ट की 3 कौपीज साथ रखें. एक कौपी अपने हैंडबैग में, दूसरी कौपी सूटकेस में रखें क्योंकि अगर एक कौपी खो भी जाए तो दूसरी काम आ जाएगी. दूसरी के बाद तीसरी यूज कर सकते हैं. उस की 2-3 सौफ्ट कौपी भी अपने फोन, लैपटौप, ईमेल में जरूर रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आप उसे यूज कर पाएं.

बस, ट्रेन, फ्लाइट के टिकट एडवांस में बुक कराने पर कुछ डिस्काउंट मिल सकता है या कहें कि सस्ते टिकट मिल सकते हैं.

टिकट पर अपना नाम जरूर चैक कर लें खासकर फ्लाइट टिकट में. एक भी स्पैलिंग की गलती होगी तो आप नहीं जा पाएंगे.

अपने टिकट की भी 2-3 कौपी करवा लें. एक कौपी घर वालों को जरूर दे कर जाएं ताकि उन्हें पता हो कि आप कौन सी बस, ट्रेन या फ्लाइट से जा रहे हैं. टिकट की भी सौफ्ट कौपी अपने मोबाइल, व्हाट्सऐप, ईमेल में जरूर रखें.

औनलाइन होटल की बुकिंग करने के बाद तुरंत होटल वालों से फोन पर बात कर लें. उन से ईमेल पर भी कन्फर्मेशन मंगवा लें. ऐसा न हो कि वहां जा कर आप को सरप्राइज मिल जाए. होटल वाले कहें कि आप की बुकिंग है ही नहीं. कोई भी कारण हो सकता है. इंटरनैट की कोई गलती हो सकती है. किसी व्यक्ति की गलती हो सकती है. अगर एजेंट ने होटल बुक किया है तो भी यह जरूरी है.

होटल चैक इन का टाइम अकसर दोपहर

बाद ही होता है. अगर आप डैस्टिनेशन पर जल्दी पहुंचने वाले हैं तो होटल वालों से बात कर लें, शायद वे आप को जल्दी चैक इन दे दें. अगर उन के पास रूम होता है तो वे दोपहर से पहले भी चैकइन दे देते हैं. लेकिन आप को पहले उन्हें इन्फार्म करना होगा कि आप किस समय पहुंचने वाले हैं. फोन पर बात हो तो ईमेल पर भी कन्फर्मेशन जरूर मंगवा लें क्योंकि हो सकता है कि जिस से आप की

बात हुई है वह नोट करना भूल जाए और जब आप पहुंचे उस समय डैस्क पर न हो, आप के पास ईमेल होगा तो आप दूसरे व्यक्ति को दिखा पाएंगे.

यह भी देख लें कि बसस्टौप, रेलवे स्टेशन या एअरपोर्ट से होटल या गैस्टहाउस तक कैसे पहुंचना है. कुछ होटल अपनी शटल सेवा चलाते हैं. मतलब वे अपने गैस्ट को लेने के लिए अपनी वैन या गाड़ी, एअरपोर्ट भेजते हैं. अगर आप का होटल शटल देता है तो उस की टाइमिंग जरूर पूछ लें. यह भी पूछ लें कि कौन सी गाड़ी आप को लेने आएगी. कभीकभी पता नहीं होता और शटल पास से हो कर निकल जाती है. उस के बाद वाली शटल आधा घंटा या इस से भी बाद में आती है. गाड़ी का फोटो मंगवा लें तो बेहतर है. इस से आप को उसे पहचानने में परेशानी नहीं होगी.

लगेज जितना कम होगा, आप घूमने का उतना ही ज्यादा मजा ले पाएंगे. फ्लाइट से जा रहे हैं तो एअरपोर्ट पर आप को आसानी होगी. डैस्टिनेशन पर पहुंचेंगे तो वहां बैल्ट पर सामान लेने में मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. सूटकेस ज्यादा होते हैं तो वे बैल्ट पर अकसर एकसाथ नहीं आते. सामान लेने में ही आप को घंटों लग सकते हैं. बस या ट्रेन पर भी सामान चढ़ानेउतारने में आप को परेशानी होगी.

Relationship : मेरे बौयफ्रेंड की शादी हो चुकी है, लेकिन अब वह मुझसे दोबारा मिलना चाहता है

Relationship :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 33 साल की विवाहिता हूं. पति और 2 बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रही हूं. शादी से पहले मेरी जिंदगी में एक युवक आया थाजिस से मैं प्यार करती थीपर किन्हीं वजहों से हमारी शादी नहीं हो पाई थी. अब उस का भी अपना परिवारपत्नी व बच्चे हैं. इधर कुछ दिनों पहले फेसबुक पर हम दोनों मिले. मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ और अब हम घंटों बातचीतचैटिंग करते हैं. वह मु?ा से मिलना चाहता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

वह आप का अतीत था. अब आप दोनों के ही रास्ते अलग हैं. पतिपरिवारबच्चे व सुखद जीवन है. पुरानी यादों को ताजा कर आप दोनों की नजदीकियां दोनों ही परिवारों की खुशियों पर ग्रहण लगा सकती हैं. इसलिए बेहतर यही होगा कि इस रिश्ते को अब आगे न बढ़ाया जाए.

हांअगर वह एक दोस्त के नाते आप से मिलना चाहता हैतो इस में कोई बुराई नहीं. आप घर से बाहर किसी रेस्तरांपार्क आदि में उस से मिल सकती हैं. बुनियाद दोस्ती की हो तो मिलने में हरज नहींबशर्ते मुलाकात मर्यादित रहे. हद न पार की जाए.

सवाल

मैं 24 साल की युवती हूं. 3-4 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मैं ने अभी तक किसी के साथ सैक्स संबंध नहीं बनाए पर नियमित मास्टरबेशन करती हूं. मुझे लगता है कि इस से प्राइवेट पार्ट की स्किन ढीली हो गई है. इस वजह से बहुत तनाव में रह रही हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

जिस तरह सैक्स करने से प्राइवेट पार्ट की स्किन लूज नहीं होतीउसी तरह मास्टरबेशन से भी स्किन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वह ढीली भी नहीं होती है. यह आप का एक भ्रम है.

हकीकत तो यह है कि किसी अंग के कम उपयोग से ही उस में शिथिलता आती है न कि नियमित उपयोग से. आप अपनी शादी की तैयारियां जोरशोर से करें और मन में व्याप्त भय को पूरी तरह निकाल दें. आप की वैवाहिक जिंदगी पर इस का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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Hindi Moral Tales : एक साथी की तलाश – कैसी जिंदगी जी रही थी श्यामला

Hindi Moral Tales : शाम गहरा रही थी. सर्दी बढ़ रही थी. पर मधुप बाहर कुरसी पर बैठे  शून्य में टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रहे थे. सूरज डूबने को था. डूबते सूरज की रक्तिम रश्मियों की लालिमा में रंगे बादलों के छितरे हुए टुकड़े नीले आकाश में तैर रहे थे.

उन की स्मृति में भी अच्छीबुरी यादों के टुकड़े कुछ इसी प्रकार तैर रहे थे. 2 दिन पहले ही वे रिटायर हुए थे. 35 सालों की आपाधापी व भागदौड़ के बाद का आराम या विराम, पता नहीं, पर अब, अब क्या…’ विदाई समारोह के बाद घर आते हुए वे यही सोच रहे थे. जीवन की धारा अब रास्ता बदल कर जिस रास्ते पर बहने वाली थी, उस में वे अकेले कैसे तैरेंगे.

‘‘साहब, सर्दी बढ़ रही है, अंदर चलिए’’, बिरुवा कह रहा था.

‘‘हूं,’’ अपनेआप में खोए मधुप चौंक गए, ‘‘हां चलो.’’ और वे उठ खड़े हुए.

‘‘इस वर्ष सर्दी बहुत पड़ रही है साहब,’’ बिरुवा कुरसी उठा कर उन के साथ चलते हुए बोला, ‘‘ओस भी बहुत पड़ती है. सुबह सब भीगाभीगा रहता है, जैसे रातभर बारिश हुई हो,’’ बिरुवा बोलते जा रहा था.

मधुप अंदर आ गए. बिरुवा उन के अकेलेपन का साथी था. अकेलेपन का दुख उन्हें मिला था पर भुगता बिरुवा ने भी था. खाली घर में बिरुवा कई बार अकेला ही बातें करता रहता. उन की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत थी. उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर, बड़बड़ाता हुआ वह स्वयं ही खिसिया कर चुप हो जाता.

पर श्यामला खिसिया कर चुप न होती थी, बल्कि झल्ला जाती थी, ‘मैं क्या दीवारों से बातें कर रही हूं. हूं हां भी नहीं बोल पाते, चेहरे पर कोई भाव ही नहीं रहते, किस से बातें करूं,’ कह कर कभीकभी उस की आंखों में आंसू आ जाते.

उन की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत श्यामला के लिए इस कदर परेशानी का सबब बन गई थी कि वह दुखी हो जाती थी. उन की संवेदनहीनता, स्पंदनहीनता की ठंडक बर्फ की तरह उस के पूरे व्यक्तित्व को झुलसा रही थी. नाराजगी में तो मधुप और भी अभेद हो जाते थे. मधुप ने कमरे में आ कर टीवी चला दिया.

तभी बिरुवा गरम सूप ले कर आ गया, ‘‘साहब, सूप पी लीजिए.’’

बिरुवा के हाथ से ले कर वे सूप पीने लगे. बिरुवा वहीं जमीन पर बैठ गया. कुछ बोलने के लिए वह हिम्मत जुटा रहा था, फिर किसी तरह बोला, ‘‘साहब, घर वाले बहुत बुला रहे हैं, कहते हैं अब घर आ कर आराम करो, बहुत कर लिया कामधाम, दोनों बेटे कमाने लगे हैं. अब जरूरत नहीं है काम करने की.’’

मधुप कुछ बोल न पाए, छन्न से दिल के अंदर कुछ टूट कर बिखर गया. बिरुवा का भी कोई है जो उसे बुला रहा है. 2 बेटे हैं जो उसे आराम देना चाहते हैं. उस के बुढ़ापे की और अशक्त होती उम्र की फिक्रहै उन्हें. लेकिन सबकुछ होते हुए भी यह सुख उन के नसीब में नहीं है.

बिरुवा के बिना रहने की वे कल्पना भी नहीं कर पाते. अकेले में इस घर की दीवारों से भी उन्हें डर लगता है, जैसे कोनों से बहुत सारे साए निकल कर उन्हें निगल जाएंगे. उन्हें अपनी यादों से भी डर लगता है और अकेले में यादें बहुत सताती हैं.

‘सारा दिन आप व्यस्त रहते हैं, रात को भी देर से आते हैं, मैं सारा दिन अकेले घर में बोर हो जाती हूं,’ श्यामला कहती थी.

‘तो, और औरतें क्या करती हैं और क्या करती थीं, बोर होना तो एक बहाना भर होता है काम से भागने का. घर में सौ काम होते हैं करने को.’

‘पर घर के काम में कितना मन लगाऊं. घर के काम तो मैं कर ही लेती हूं. आप कहो तो बच्चों के स्कूल में एप्लीकेशन दे दूं नौकरी के लिए, कुछ ही घंटों की तो बात होती है, दोपहर में बच्चों के साथ घर आ जाया करूंगी,’ श्यामला ने अनुनय किया.

‘कोई जरूरत नहीं. कोई कमी है तुम्हें?’ अपना निर्णय सुना कर जो मधुप चुप हुए तो कुछ नहीं बोले. उन से कुछ बोलना या उन को मनाना टेढ़ी खीर था. हार कर श्यामला चुप हो गई, जबरदस्ती भी करे तो किस के साथ, और मनाए भी तो किस को.

‘नौवल्टी में अच्छी पिक्चर लगी है, चलिए न किसी दिन देख आएं, कहीं भी तो नहीं जाते हैं हम?’

‘मुझे टाइम नहीं, और वैसे भी, 3 घंटे हौल में मैं नहीं बैठ सकता.’

‘तो फिर आप कहें तो मैं किसी सहेली के साथ हो आऊं?’

‘कोई जरूरत नहीं भीड़ में जाने की, सीडी ला कर घर पर देख लो.’

‘सीडी में हौल जैसा मजा कहां

आता है?’

लेकिन अपना निर्णय सुना कर चुप्पी साधने की उन की आदत थी. श्यामला थोड़ी देर बोलती रही, फिर चुप हो गई. तब नहीं सोच पाते थे मधुप, कि पौधे को भी पल्लवित होने के लिए धूप, छांव, पानी व हवा सभी चीजों की जरूरत होती है. किसी एक चीज के भी न होने पर पौधा मर जाता है. फिर, श्यामला तो इंसान थी, उसे भी खुश रहने के लिए हर तरह के मानवीय भावों की जरूरत थी. वह उन का एक ही रूप देखती थी, आखिर कैसे खुश रह पाती वह.

‘थोड़े दिन पूना हो आऊं मां के

पास, भैयाभाभी भी आए हैं आजकल, मुलाकात हो जाएगी.’

‘कैसे जाओगी इस समय?’ मधुप आश्चर्य से बोले, ‘किस के साथ जाओगी?’

‘अरे, अकेले जाने में क्या हुआ, 2 बच्चों के साथ सभी जाते हैं.’

‘जो जाते हैं, उन्हें जाने दो, पर मैं तुम लोगों को अकेले नहीं भेज सकता.’

फिर श्यामला लाख तर्क करती, मिन्नतें करती. पर मधुप के मुंह पर जैसे टेप लग जाता. ऐसी अनेक बातों से शायद श्यामला का अंतर्मन विरोध करता रहा होगा. पहली बार विरोध की चिनगारी कब सुलगी और कब भड़की, याद नहीं पड़ता मधुप को.

‘‘साहब, खाना लगा दूं?’’ बिरुवा कह रहा था.

‘‘भूख नहीं है बिरुवा, अभी तो सूप पिया.’’

‘‘थोड़ा सा खा लीजिए साहब, आप रात का खाना अकसर छोड़ने लगे हैं.’’

‘‘ठीक है, थोड़ा सा यहीं ला दे,’’ मधुप बाथरूम से हाथ धो कर बैठ गए.

इस एकरस दिनचर्या से वे दो ही दिन में घबरा गए थे, तो श्यामला कैसे बिताती पूरी जिंदगी. वे बिलकुल भी शौकीन तबीयत के नहीं थे. न उन्हें संगीत का शौक था, न किताबें पढ़ने का, न पिक्चरों का, न घूमने का, न बातें करने का. श्यामला की जीवंतता, मधुप की निर्जीवता से अकसर घबरा जाती. कई बार चिढ़ कर कहती, ‘ठूंठ के साथ आखिर कैसे जिंदगी बिताई जा सकती है.’

उन्होंने चौंक कर श्यामला की तरफ देखा, एक हफ्ते बाद सीधेसीधे श्यामला का चेहरा देखा था उन्होंने. एक हफ्ते में जैसे उस की उम्र 7 साल बढ़ गई थी. रोतेरोते आंखें लाल, और चारों तरफ कालेस्याह घेरे.

यह क्या कर रही हो तुम श्यामला, छोटी सी बात को तूल दे रही हो?’ उस की ऐसी शक्ल देख कर वे थोड़े पसीज गए थे, ‘सब ठीक हो जाएगा.’ वे धीरे से उस को कंधों से पकड़ कर बोले.

‘क्या ठीक हो जाएगा’, उस ने हाथ झटक दिए थे, ‘मैं अब यहां नहीं रह सकती. घर में रखे सामान की तरह आप की बंदिशें किसी समय मेरी जान ले लेंगी. मेरे तन के साथसाथ मेरे मनमस्तिष्क पर भी बंदिशें लगा दी हैं आप ने. मैं आप से अलग कहीं जाना तो दूर की बात है, आप से अलग सोच तक भी नहीं सकती लेकिन अब मुझ से नहीं हो पाएगा यह सब.’

तो अब क्या करना चाहती हो,’ वे व्यंग्य से बोले.‘मैं यहां से जाना चाहती हूं आज ही,  अपना घर संभालो. आप जब औफिस से आओगे तो मैं नहीं मिलूंगी,’

‘तुम्हें जो करना है करो, जब सोच लिया तो मुझ से क्यों कह रही हो,’ कह कर मधुप दनदनाते हुए औफिस चले गए. वे हमेशा की तरह जानते थे कि श्यामला ऐसा कभी नहीं कर सकती, इतनी हिम्मत नहीं थी श्यामला के अंदर कि वह इतना बड़ा कदम उठा पाती.

लेकिन अपनी पत्नी को शायद वे पूरी तरह नहीं जानते थे. उस दिन उन की सोच गलत साबित हुई. बिना स्पंदन व जीवंतता के रिश्ते आखिर कब तक टिकते. जब वे औफिस से लौटे तो श्यामला जा चुकी थी. घर में सिर्फ बिरुवा था.

‘श्यामला कहां है?’ उन्होंने बिरुवा से पूछा.‘मालकिन तो चली गईं साहब, कह रही थीं, पुणे जा रही हूं हमेशा के लिए.’वे भौचक्के रह गए.

‘ऐसा क्या हुआ साहब, मालकिन क्यों चली गईं?’‘कुछ नहीं बिरुवा.’ क्या समझाते बिरुवा को वे.

थोड़े दिन उस के लौट आने का इंतजार किया. फिर फोन करने की कोशिश की. श्यामला ने फोन नहीं उठाया. मिलने की कोशिश की, श्यामला ने मिलने से इनकार कर दिया. धीरेधीरे उन दोनों के बीच की दरार बढ़तीबढ़ती खाई बन गई. दोनों 2 किनारों पर खड़े रह गए. मनाने की उन की आदत थी नहीं जो मना लाते. नौकरी की व्यस्तता में एक के बाद एक दिन व्यतीत होता रहा. एक दिन सब ठीक हो जाएगा, श्यामला लौट आएगी, यह उम्मीद धीरेधीरे धुंधली पड़ती गई. उस समय श्यामला की उम्र 41 साल थी और वे स्वयं 45 साल के थे. तब से एकाकी जीवन, नौकरी और बिरुवा के सहारे काट दिया उन्होंने. बच्चों के भविष्य की चिंता ने श्यामला को किसी तरह बांध रखा था उन से. उन के कैरियर का रास्ता पकड़ने के बाद वह रुक नहीं पाई. इतना मजबूत नहीं था शायद उन का और श्यामला का रिश्ता.

श्यामला को रोकने में उन का अहं आड़े आया था. लेकिन बिरुवा को उन्होंने घर से कभी जाने नहीं दिया. उस का गांव में परिवार था पर वह मुश्किल से ही गांव जा पाता था. उन के साथ बिरुवा ने भी अपनी जिंदगी तनहा बिता दी थी. बच्चों ने अपनी उम्र के अनुसार मां को बहुतकुछ समझाने की कोशिश भी की पर श्यामला पर बच्चों के कहने का भी कोई असर नहीं पड़ा. वे इतने बड़े भी नहीं थे कि कुछ ठोस कदम उठा पाते. थकहार कर वे चुप हो गए. कुछ छुट्टियां मां के पास, कुछ छुट्टियां पिता के पास बिता कर वापस चले जाते.

श्यामला के मातापिता ने भी शुरू में काफी समझाया उस को. लेकिन श्यामला तो जैसे पत्थर सी हो चुकी थी. कुछ भी सुनने को तैयार न थी. हार कर उन्होंने घर का एक कमराकिचन उसे रहने के लिए दे दिया. कुछ पैसा उस के नाम बैंक में जमा कर दिया. बच्चों का खर्चा तो बच्चों के पिता उठा ही रहे थे.

बेटों की इंजीनियरिंग पूरी हुई तो वे नौकरियों पर आ गए. आजकल एक बेटा मुंबई व एक जयपुर में कार्यरत था. बेटों की नौकरी लगने पर वे जबरदस्ती मां को अपने साथ ले गए. वे कई बार सोचते, श्यामला उन के साथ अकेलापन महसूस करती थी, तो क्या अब नहीं करती होगी. ऐसा तो नहीं था कि उन्हें श्यामला या बच्चों से प्यार नहीं था. पर चुप रहना या शौकविहीन होना उन का स्वभाव था. अपना प्यार वे शब्दों से या हावभाव से ज्यादा व्यक्त नहीं कर पाते थे. लेकिन वे संवेदनहीन तो नहीं थे. प्यार तो अपने परिवार से वे भी करते थे. उन के दुख से चोट तो उन को भी लगती थी. श्यामला के अलग चले जाने पर भी उस के सुखदुख की चिंता तो उन्हें तब भी सताती थी.

दोनों बेटों ने प्रेम विवाह किए. दोनों के विवाह एक ही दिन श्यामला के मायके में ही संपन्न हुए. हालांकि बच्चों ने उन के पास आ कर उन्हें सबकुछ बता कर उन की राय मान कर उन्हें पूरी इज्जत बख्शी पर उन के पास हां बोलने के सिवा चारा भी क्या था. बिना मां के वे अपने पास से बच्चों का विवाह करते भी कैसे. उन्होंने सहर्ष हामी भर दी. जो भी उन से आर्थिक मदद बन पड़ी, उन्होंने बच्चों की शादी में की. और 2 दिन के लिए जा कर शादी में परायों की तरह शरीक हो गए.

जब से श्यामला बच्चों के साथ रहने लगी थी, वे उस की तरफ से कुछ निश्ंिचत हो गए थे. बेटों ने उन्हें भी कई बार अपने पास बुलाया. पर पता नहीं उन के कदम कभी क्यों नहीं बढ़ पाए. उन्हें हमेशा लगा कि यदि उन्होंने बच्चों के पास जाना शुरू कर दिया तो कहीं श्यामला वहां से भी चली न जाए. वे उसे फिर से इस उम्र में घर से बेघर नहीं करना चाहते थे.

बच्चे शुरूशुरू में कभीकभार उन के पास आ जाते थे. फिर धीरेधीरे वे भी अपने परिवार में व्यस्त हो गए. वैसे भी मां ही तो सेतु होती है बच्चों को बांधने के लिए. वह तो उन्हीं के पास थी. मधुर सोचते उन के स्वभाव में यदि निर्जीवता थी तो श्यामला तो जैसे पत्थर हो गई थी. क्या कभी श्यामला को इतने सालों का साथ, उन का संसर्ग, स्पर्श नहीं याद आया होगा. ऐसी ही अनेक बातें सोचतेसोचते न जाने कब नींद ने उन्हें आ घेरा.

अतीत में भटकते मधुप को बहुत देर से नींद आई थी. सुबह उठे, तो सिर बहुत भारी था. नित्यकर्म से निबट कर मधुप बाहर बैठ गए. बिरुवा वहीं नाश्ता दे गया.

‘‘साहब,’’ बिरुवा झिझकता हुआ बोला, ‘‘एक बार मालकिन को मना लाने की कोशिश कीजिए, हम भी कब तक रहेंगे, अपने बालबच्चों, परिवार के पास जाना चाहते हैं. आप कैसे अकेले रहेंगे. अगर हो सके तो आप ही मालकिन के पास चले जाइए.’’

उन्होंने चौंक कर बिरुवा का चेहरा देखा. इस बार बिरुवा रुकने वाला नहीं है, वह जाने के लिए कटिबद्ध है. देरसवेर बिरुवा अब अवश्य चला जाएगा. कैसे और किस के सहारे काटेंगे वे अब बाकी की जिंदगी. एक विराट प्रश्नचिह्न उन के सामने जैसे सलीब पर टंगा था. सामने मरुस्थल की सी शून्यता थी, जिस में दूरदूर तक छांव का नामोनिशान नहीं था. आखिर ऐसी मरुस्थल सी जिंदगी में वे प्यासे कब तक और कहां तक भटकेंगे अकेले.

2 दिन इसी सोच में डूबे रहे. दिल कहता कि श्यामला को मना लाए. पर कदम थे कि उठने से पहले ही थम जाते थे. क्या करें और क्या न करें, इसी ऊहापोह में अगले कई दिन गुजर गए. सोचते रहते, क्या उन्हें श्यामला को मनाने जाना चाहिए, क्या एक बार फिर प्रयत्न करना चाहिए. अपने अहं को दरकिनार कर इतने वर्षों के बाद जाते भी हैं और अगर श्यामला न मानी तो… क्या मुंह ले कर वापस आएंगे.

किस से कहें वे अपने दिल की बात और किस से मांगें सलाह. बिरुवा उन के दिल में कौंधा. और किसी से तो उन का अधिक संपर्क रहा नहीं. वैसे भी और किसी से कहेंगे तो वह उन की बात पर हंसेगा कि अब याद आई. आखिर बिरुवा से पूछ ही बैठे एक दिन, ‘‘बिरुवा, क्या तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे एक बार उन्हें मना लाने की कोशिश करनी चाहिए?’’ उन के स्वर में काफी बेचारगी थी अपने स्वाभिमान के सिंहासन से नीचे उतरने की.

बिरुवा चौंक गया उन का इस कदर लाचार स्वर सुन कर. उन की कुरसी के पास बैठता हुआ बोला, ‘‘दोबारा मत सोचिए साहब, कुछ बातों में दिमाग की नहीं, दिल की सुननी पड़ती है. मालकिन आ जाएंगी तो यह घर फिर से खुशियों से भर जाएगा. माना कि कोशिश करने में आप ने बहुत देर कर दी पर आप के दिमाग पर यह बोझ तो नहीं रहेगा कि आप ने कोशिश नहीं की थी. बाकी सब नियति पर छोड़ दीजिए.’’

बिरुवा की बातों में दम था. वे सोचने लगे, आखिर एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है, जो भी होगा, देखा जाएगा, उन्होंने खुद को समझाया. खुद को तैयार किया. अपना छोटा सा बैग उठाया और जयपुर के लिए चल दिए. आजकल श्यामला जयपुर में थी.

बिरुवा बहुत खुश था. एक तो वह उन का भला चाहता था, दूसरा वह अपने परिवार के पास लौट जाना चाहता था. दिल्ली से जयपुर तक का सफर जैसे सात समुंदर पार का सफर महसूस हो रहा था उन्हें. जयपुर पहुंच कर अपना छोटा सा बैग उठा कर वे सीधे घर पर पहुंच गए. अपने आने की खबर भी उन्होंने इस डर से नहीं दी कि कहीं श्यामला घर से कहीं चली न जाए.

दिल में अजीब सी दुविधा थी. पैरों की शक्ति जैसे निचुड़ रही थी. वर्षों बाद अपने ही बेटे के घर में अपनी ही पत्नी से साक्षात्कार होते हुए उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अपनी जिंदगी की कितनी कठिन घडि़यों से गुजर रहे हों. धड़कते दिल से उन्होंने घंटी बजा दी. उन्हें पता था इस समय बेटा औफिस में होगा और बच्चे स्कूल. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुल गया. बहू ने उन को बहुत समय बाद देखा था, इसलिए एकाएक पहचान का चिह्न न उभरा उस के चेहरे पर. फिर पहचान कर चौंक गई, ‘‘पापा, आप? ऐसे अचानक…’’ वह पैर छूते हुए बोली, ‘‘आइए.’’ और उस ने दरवाजा पूरा खोल दिया.

वे अंदर आ कर बैठ गए, ‘‘अचानक कैसे आ गए पापा. आने की कोई खबर भी नहीं दी आप ने.’’ बहू का आश्चर्य अभी भी कम न हो रहा था. उन्हें एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा, ‘‘जरा पानी पिला दो और एक कप चाय.’’

‘‘जी पापा, अभी लाती हूं,’’ बहू चली गई. उन्हें लगा अंदर का परदा कुछ हिला. शायद श्यामला रही होगी. पर श्यामला बाहर नहीं आई. वे निरर्थक उम्मीद में उस दिशा में ताकते रहे. तब तक बहू चाय ले कर आ गई.

‘‘श्यामला कहां है?’’ चाय का घूंट भरते हुए वे धीरे से बोले.

‘‘अंदर हैं,’’ बहू भी उतने ही धीरे से बोल कर अंदर चली गई.

थोड़ी देर बाद बहू बाहर आई, ‘‘पापा, मैं जरा काम से जा रही हूं. फिर, बंटी को स्कूल से लेती हुई आऊंगी,’’ फिर अंदर की तरफ नजर डालती हुई बोली, ‘‘आप तब तक आराम कीजिए. लंच पर लक्ष्य भी घर आते हैं,’’ कह कर वह चली गई.

वे जानते थे बहू जानबूझ कर इस समय चली गई घर से. लेकिन अब वे क्या करें. श्यामला तो बाहर भी नहीं आ रही. बात भी करें तो कैसे. इतने वर्षों बाद अकेले घर में उन का दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था. थोड़ी देर वे वैसे ही बैठे रहे. अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयत्न करते रहे. फिर उठे और अंदर चले गए. अंदर एक कमरे में श्यामला चुपचाप खिड़की के सामने बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी.

‘‘श्यामला,’’ उसे ऐसे बैठे देख कर उन्होंने धीरे से पुकारा. सुन कर श्यामला ने पलट कर देखा. इतने वर्षों बाद मधुप को अपने सामने देख कर श्यामला जैसे जड़ हो गई. समय जैसे पलभर के लिए स्थिर हो गया. आंखों में प्रश्न सलीब की तरह टंगा हुआ था, क्या करने आए हो अब.

‘‘आप…’’ वह प्रत्यक्ष बोली.

‘‘हां श्यामला, मैं… इतने वर्षों बाद,’’ उसे देख कर वे एकाएक कातर हो गए थे, ‘‘तुम्हें लेने आया हूं,’’ वे बिना किसी भूमिका के बोले, ‘‘वापस चलो, मुझ से जो गलती हुई है उस के लिए मुझे क्षमा कर दो. मैं समझ नहीं पाया तुम्हें, तुम्हारी परेशानियों को, तुम्हारे अंतर्द्वंद्व को.’’

श्यामला अपलक उन्हें निहारती रह गई. शब्द मानो चुक गए थे. बहुतकुछ कहना चाहती थी. पर समझ नहीं पा रही थी कि कहां से शुरू करे. किसी तरह खुद को संयत किया. थोड़ी देर बाद बोली, ‘‘इतने वर्षों बाद गलती महसूस हुई आप को जब खुद को जरूरत हुई पत्नी की. लेकिन जब तक पत्नी को जरूरत थी? आखिर मैं सही थी न, कि आप ने हमेशा खुद से प्यार किया. लेकिन मेरे अंदर अब आप के लिए कुछ नहीं बचा, अब मेरे दिल को किसी साथी की तलाश नहीं है.

‘‘जिन भावनाओं को, जिन संवेदनाओं को जीने की इतनी जद्दोजेहद थी मेरे अंदर, वह सब तो कब की मर चुकी है. फिर अब क्यों आऊं आप के बाकी के जीवन जीने का साधन बन कर? मुझे अब आप की जरूरत नहीं है. मैं अब नहीं आऊंगी.’’

‘‘नहीं श्यामला,’’ मधुप ने आगे बढ़ कर श्यामला की दोनों हथेलियां अपने हाथों में थाम लीं, ‘‘ऐसा मत कहो, साथी की तलाश कभी खत्म नहीं होती. हर उम्र, हर मोड़ पर साथी के लिए तनमन तरसता है, पशुपक्षी भी अपने लिए साथी ढूंढ़ते हैं. यही प्रकृति का नियम है. मुझ से गलती हुई है. इस के लिए मैं तुम से तहेदिल से क्षमा मांग रहा हूं. इस बार तुम नहीं, मैं आऊंगा तुम्हारे पास. इस बार तुम मेरे सांचे में नहीं, बल्कि मैं तुम्हारे सांचे में ढलूंगा, संवेदनाएं और भावनाएं कभी मरती नहीं हैं श्यामला, बल्कि हमारी गलतियों व उपेक्षाओं से सुप्तावस्था में चली जाती हैं, उन्हें तो बस जगाने की जरूरत है. अपने हृदय से पूछो, क्या तुम सचमुच मेरा साथ नहीं चाहतीं, सचमुच चाहती हो कि मैं चला जाऊं…’’

श्यामला चुपचाप डबडबाई आंखों से उन्हें देखती रह गई. कितने बदल गए थे मधुप. समय ने, अकेलेपन ने उन्हें उन की गलतियों का एहसास करा दिया था. पतिपत्नी में से अगर एक अपनी मरजी से जीता है तो दूसरा दूसरे की मरजी से मरता है.

‘‘बोलो श्यामला,’’ मधुप ने श्यामला को कंधों से पकड़ कर धीरे से हिलाया, ‘‘मैं अब तुम्हारे पास आ गया हूं और अब लौट कर नहीं जाऊंगा,’’ मधुप पूरे विश्वास व अधिकार से बोले.

लेकिन श्यामला ने धीरे से उन के हाथ कंधों से अलग कर दिए. ‘‘अब मुझ से न आया जाएगा मधुप. मेरे जीवन की धारा अब एक अलग मोड़ मुड़ चुकी है, कितनी बार जीवन में टूटूं, बिखरूं और फिर जुड़ूं, मुझ में अब ताकत नहीं बची. मैं ने अपने जीवन को एक अलग सांचे

में ढाल लिया है जिस में अब आप के लिए कोई जगह नहीं. मैं अब नहीं आ पाऊंगी. मुझे माफ कर दो,’’ कह कर श्यामला दूसरे कमरे में चली गई. स्पष्ट संकेत था उन के लिए कि वे अब जा सकते हैं. मधुप भौचक्के खड़े, पलभर में हुए अपनी उम्मीदों के टुकड़ों को बिखरते महसूस करते रहे. फिर अपना बैग उठा कर बाहर निकल गए वापस जाने के लिए. बेटे के आने का भी इंतजार नहीं किया उन्होंने.

जयपुर से वापसी का सफर बेहद बोझिल था. सबकुछ तो उन्होंने पहले ही खो दिया था. एक उम्मीद बची थी, आज वे उसे भी खो कर आ गए थे. घर पहुंचे तो उन्हें अकेले व हताश देख कर बिरुवा सबकुछ समझ गया. कुछ न पूछा. चुपचाप से हाथ से बैग ले कर अंदर रख आया और किचन में चाय बनाने चला गया.

उधर श्यामला खिड़की के परदे के पीछे से थके कदमों से जाते मधुप को  देखती रही थी, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए थे. दिल कर रहा था दौड़ कर मधुप को रोक ले लेकिन कदम न बढ़ पा रहे थे. जो गुजर चुका था, वह सबकुछ याद आ रहा था.

मधुप चले गए, लेकिन श्यामला के दिल का नासूर फिर से बहने लगा. रात देर तक बिस्तर पर करवट बदलते हुए सोचती रही कि जिंदगी मधुप के साथ अगर बोझिलभरी थी तो उन के बिना भी क्या है. क्या एक दिन भी ऐसा गुजरा जब उस ने मधुप को याद न किया हो. उस के मधुप से अलग होने के निर्णय का दर्द बच्चों ने भी भुगता था. बच्चों ने भी तब कितना चाहा था कि वे दोनों साथ रहें. अपने विवाह के बाद ही बच्चे चुप हुए थे. पर पता नहीं कैसी जिद भर गई थी उस के खुद के अंदर. और मधुप ने भी कभी आगे बढ़ कर अपनी गलती मानने की कोशिश नहीं की. उन दोनों का सारा जीवन यों वीरान सा गुजर गया. जो मधुप आज महसूस कर रहे हैं, काश, यही बात तब समझ पाते तो उन की जिंदगी की कहानी कुछ और ही होती.

लेकिन अब जो तार टूट चुके हैं, क्या फिर से जुड़ सकते हैं और जुड़ कर क्या उतने मजबूत हो सकते हैं. एक कोशिश मधुप ने की, एक कदम उन्होंने बढ़ाया तो क्या एक कोशिश उसे भी करनी चाहिए, एक कदम उसे भी बढ़ाना चाहिए. कहीं आज निर्णय लेने में उस से कोई गलती तो नहीं हो गई. इसी ऊहापोह में करवटें बदलते सुबह हो गई.

पूरी रात वह सोचती रही थी, फिर अनायास ही अपना बैग तैयार करने लगी. उस को तैयारी करते देख बेटेबहू आश्चर्यचकित थे पर उन्होंने कुछ न पूछना ही उचित समझा. मन ही मन सब समझ रहे थे. खुशी का अनुभव कर रहे थे. श्यामला जब जाने को हुई तो बेटे ने साथ में जाने की पेशकश की. पर श्यामला ने मना कर दिया.

उधर, उस दिन जब दोपहर को सोए हुए मधुप की शाम को नींद खुली तो वह शाम और दूसरी शाम की तरह ही थी, पर पता नहीं मधुप आज अपने अंदर हलकी सी तरंग क्यों महसूस कर रहे थे. तभी बिरुवा चाय बना कर ले आया. उन्होंने चाय का पहला घूंट भरा ही था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘देखना बिरुवा, कौन आया है?’’

‘‘अखबार वाला होगा, पैसे लेने आया होगा. शाम को वही आता है,’’ कह कर बिरुवा बाहर चला गया. लेकिन पलभर में ही खुशी से उमंगता हाथ में बैग उठाए अंदर आ गया. मधुप आश्चर्य से उसे देखने लगे, ‘‘कौन है बिरुवा, कौन आया है और यह बैग किस का है?’’

‘‘बाहर जा कर देखिए साहब, समझ लीजिए पूरे संसार की खुशियां चल कर आ गई हैं आज दरवाजे पर,’’ कह कर बिरुवा घर में कहीं गुम हो गया. वे जल्दी से बाहर गए, देखा, दरवाजे पर श्यामला खड़ी थी. वे आश्चर्यचकित, किंकर्तव्यविमूढ़ से उसे देखते रह गए.

‘‘श्यामला तुम.’’ उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘हां मैं,’’ वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगे?’’

‘‘श्यामला,’’ खुशी के अतिरेक में उन्होंने आगे बढ़ कर श्यामला को गले लगा लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

‘‘बस, अब कुछ मत कहो. आप भी मुझे माफ कर दो. जो कुछ हुआ वह सब भूल कर आई हूं.’’

दोनों थोड़ी देर एकदूसरे को गले लगाए ऐसे ही खड़े रहे. तभी पीछे कुछ आवाज सुन कर दोनों अलग हुए, मुड़ कर देखा तो बिरुवा फूलों के हार लिए खड़ा था. मधुप और श्यामला दोनों हंस पड़े.

‘‘आज तो बहुत खुशी का दिन है, साहब.’’

‘‘हां बिरुवा, क्यों नहीं. आज मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा,’’ कह कर मधुप श्यामला की बगल में खड़े हो गए और बिरुवा ने उन दोनों को एकएक हार थमा दिया. दोनों आज खुशी का हर पल जीना चाहते थे. बहुत वक्त गंवा चुके थे, पर अब नहीं. बस अब और नहीं.

Latest Hindi Stories : हादसा – क्या समझ गई थी नीता देवी

Latest Hindi Stories : इधरउधर देख कर मालविका ने पार्टी में आए अन्य लोगों का जायजा लेने का यत्न किया था पर कोई परिचित चेहरा नजर नहीं आया था.

‘‘अरे मौली, तुम यहां?’’ तभी पीछे से किसी का परिचित स्वर सुन कर उस ने पलट कर देखा तो सामने नमन खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘यही प्रश्न मैं तुम से भी कर सकती हूं. तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मालविका मुसकरा दी थी.

‘‘बोर हो रहा हूं और क्या. सच कहूं तो इस तरह की पार्टियों में मेरी कोई रुचि नहीं है,’’ नमन ने उत्तर दिया था.

‘‘ऐसा है तो पार्टी में आए ही क्यों हो?’’

‘‘आया नहीं हूं, लाया गया हूं. सेठ रणबीर मेरे चाचाजी हैं. उन का निमंत्रण मिलने के बाद पार्टी में न आने से बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता,’’ नमन मुसकराया था.

‘‘वही हाल मेरा भी है. पर छोड़ो यह सब, बताओ, जीवन कैसा चल रहा है?’’

‘‘कुछ विशेष नहीं है बताने को. तुम्हारी ही तरह बैंक में अफसर हूं. पूरा दिन यों ही बीत जाता है. सप्ताहांत में थोड़ाबहुत रंगमंच पर अभिनय कर लेता हूं. हम कुछ मित्रों ने मिल कर नाट्य क्लब बना लिया है.’’

‘‘यह तो शुभ समाचार है कि तुम कालेज के दिनों के कार्यकलापों के लिए अब भी समय निकाल लेते हो. कभी हमें भी बुलाओ अपने नाटक दिखाने के लिए.’’

‘‘क्यों नहीं, हमारा एक नाटक शीघ्र ही मंचित होने वाला है. आमंत्रण मिले तो आना अवश्य. आजकल मेरे अधिकतर मित्र फिल्म या डिस्को में रुचि लेते हैं, नाटकों से वे दूर ही भागते हैं, पर तुम उन सब से अलग हो.’’

तभी नमन का कोई परिचित उसे पकड़ कर ले गया था और उतनी ही तेजी से हाथ में बीयर का गिलास थामे रोमी उस की ओर आया था.

‘‘कौन था वह?’’ रोमी ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.

‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’

‘‘वही जिस से बहुत घुलमिल कर बात कर रही थीं तुम.’’

‘‘अच्छा वह, वह नमन है. कालेज में मेरा सहपाठी था और अब मेरी ही तरह बैंक की एक अन्य शाखा में कार्यरत है. मेरा अच्छा मित्र है,’’ मालविका ने उत्तर दिया था.

‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि इन टुटपुंजियों को मुंह मत लगाया करो. तुम अब केवल एक मध्यवर्गीय परिवार की युवती नहीं बल्कि मेरे जैसे जानेमाने उद्योगपति की महिलामित्र हो. मैं नहीं चाहता कि तुम अब अपने पुराने मित्रों से कोई भी संबंध रखो,’’ रोमी गुर्राया था. उस का तीखा स्वर सुन कर मालविका स्तब्ध रह गई थी.

वह चित्रलिखित सी पार्टी में भाग लेती रही थी पर मन ही मन सहमी हुई थी. यह सच था कि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंधित थी. जबकि रोमी एक जानेमाने उद्योगपति परिवार से था. मर्सिडीज, बीएमडब्लू जैसी गाडि़यों में घूमने वाले और पांचसितारा होटलों में उसे ले जाने वाले रोमी से मालविका बेहद प्रभावित थी. और कोई उस की नजरों में ठहरता ही नहीं था.

मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.

पार्टी समाप्त हुई तो रोमी पूर्णतया सुरूर में था.

‘‘कैसी रही पार्टी?’’ उस ने कार को मुख्य सड़क पर मोड़ते हुए पूछा था.

‘‘बेहद उबाऊ और बकवास पार्टी थी. मेरा तो दम घुट रहा था वहां,’’ मौली बोली थी.

‘‘मैं जानता था तुम यही कहोगी. कभी गई हो ऐसी शानदार पार्टियों में? मैं तो यह सोच कर तुम्हें ऐसी पार्टियों में ले जाता हूं कि तुम सभ्य समाज के कुछ तौरतरीके सीख लोगी. पर तुम तो हर जगह अपने पुराने मित्र ढूंढ़ निकालती हो. कभी अपनी तुलना की है ऊंची सोसाइटी की अन्य युवतियों से? माना, कुदरत ने सौंदर्य दिया है पर ढंग से सजनासंवरना तो सीखना ही पड़ता है. अपनी पोशाक पर कभी दृष्टि डाली है तुम ने? महेंद्र बाबू की बेटी सुहानी पूछ बैठी कि तुम किस डिजाइनर की बनी पोशाक पहने हुए हो तो मैं तो शर्म से पानीपानी हो गया,’’ रोमी धाराप्रवाह बोले जा रहा था.

‘‘बस या और कुछ?’’ रोमी के चुप होते ही मौली चीखी थी, ‘‘तुम और तुम्हारा पांचसितारा कल्चर, मेरा दम घुटता है वहां. भूल मेरी थी जो मैं तुम्हारे साथ पार्टी में चली आई. मुझे नहीं चाहिए यह चमकदमक और तुम्हारे साथ इन बड़ी गाडि़यों में घूमना.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने, तुम्हारी औकात ही नहीं है ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने की या मेरे साथ महंगी कारों में घूमने की. चलो उतरो, इसी समय,’’ रोमी ने झटके से कार रोक दी थी.

मौली को काटो तो खून नहीं. उस के घर से 15 किलोमीटर दूर, निर्जन सड़क और रात के 12 बजे का समय, कहां जाएगी वह.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं आधी रात को अकेली कहां जाऊंगी? मुझे मेरे घर तक छोड़ दो. मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगी,’’ मौली बिलख उठी थी.

‘‘ये भावुकता की बातें रहने दो. मैं तुम मिडिल क्लास लोगों को भली प्रकार पहचानता हूं. अपनी गरज के लिए गिड़गिड़ाने लगते हो, रोनेपीटने लगते हो. काम निकल जाने पर अपने आदर्शों की बड़ीबड़ी बातें करते हो. दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से,’’ रोमी ने घुड़क दिया था.

हार कर डरीसहमी सी मालविका कार से उतर गई थी. उसे आशा थी कि उस के उतरने के बाद रोमी का दिल पसीज जाएगा और वह उसे फिर कार में बैठने को कहेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. उस के उतरते ही रोमी की कार फर्राटे भरते उस की आंखों से ओझल हो गई थी.

मौली ने अपना पर्स खोल कर देखा. टैक्सी का बिल चुकाने लायक पैसे थे पर टैक्सी मिले तब न. उस की आंखें डबडबा आईं. घर में तो सब यही सोच रहे होंगे कि वह रोमी के साथ है. वे बेचारे क्या जानें कि वह आधी रात को दूर तक नागिन की तरह फैली सीधीसपाट सड़क पर अपने ही आंसुओं को पीती पैदल चली आ रही होगी.

मौली कुछ दूर ही चली होगी कि उस के पास एक कार आ कर रुकी, जिस में 5 मनचले युवक सवार थे. शराब के नशे में धुत वे तरहतरह की आवाजें निकाल रहे थे. मौली को अकेले चलते देख कर उन्होंने अभद्र इशारे करते हुए उस से कार में बैठने का आग्रह किया. उस ने पहले तो उन की बात अनसुनी कर दी पर जब वे उस के साथ कार चलाते हुए उलटीसीधी हरकतें करने लगे तो वह फट पड़ी.

‘‘मेरा घर पास ही है. मैं ने एक बार कह दिया कि मुझे सहायता नहीं चाहिए तो क्या सुनाई नहीं पड़ता,’’ मौली दम लगा कर चीखी थी. पर कार में से

2 युवक डरावने अंदाज में उस की ओर बढ़े थे. वह सहायता के लिए चीखी तो दूसरी दिशा से आती एक कार उस के पास आ कर रुकी थी.

‘‘क्या हो रहा है यह?’’ कारचालक ने प्रश्न किया था.

‘‘देखिए न, मैं शरीफ लड़की हूं, ये गुंडे मुझे तंग कर रहे हैं,’’ मौली बोली थी.

‘‘शरीफ…हुंह, शरीफ लड़कियां आधी रात को यों सड़कों पर नहीं घूमतीं,’’ कारचालक हिकारत से बोला था, ‘‘और तुम लोग जाते हो यहां से या बुलाऊं पुलिस को?’’ उस ने युवकों को धमकाया तो वे भाग खड़े हुए.

‘‘कृपया मुझे मेरे घर तक छोड़ दीजिए,’’ मौली ने कारचालक से विनती की थी.

‘‘क्षमा कीजिए, महोदया. मेरी बहन नर्सिंगहोम में है. मैं उसे देखने जा रहा हूं. वैसे भी मैं न तो अनजान लोगों को लिफ्ट देता हूं न उन से लिफ्ट लेता हूं,’’ कार- चालक भी उसे अकेला छोड़ कर चला गया था.

अब उस ने अपना फोन निकाला था. अब तक वह डर रही थी कि किसी को उस के इस अपमान का पता चल गया तो कितनी बदनामी होगी पर अब नहीं. पापा भी नाराज होंगे पर इस समय सहीसलामत घर पहुंचना अत्यंत आवश्यक था. उस ने फोन किया तो मां ने फोन उठाया था.

‘‘मौली, कहां हो तुम? 1 बजने जा रहा है. मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है. पार्टी क्या अभी तक चल रही है?’’ उस की मां नीता देवी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी. पर जब मौली ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो उन के पांवों तले से जमीन खिसक गई थी.

‘‘किसे भेजूं इस समय? तुम्हारे पापा तो 2 घंटे पहले ही नींद की गोलियां ले कर सो चुके हैं. किस पड़ोसी को जगाऊं, इस समय. तुम जहां हो, वहीं आड़ में छिप कर खड़ी हो जाओ. सड़क पर अकेले चलना खतरे से खाली नहीं है. मैं अश्विन को जगाती हूं. वह न नहीं करेगा,’’ नीता देवी बोली थीं.

‘‘अश्विन? रहने दो मां. उस के पास तो कार भी नहीं है. मैं पुलिस को फोन करूंगी.’’

‘‘भूल कर भी ऐसी गलती मत करना. मैं अश्विन से पूछूंगी. यदि कार चला सकता है तो हमारी कार ले जाएगा, नहीं तो अपने स्कूटर पर आ जाएगा. यह समय नखरे दिखाने का नहीं है,’’ नीता देवी ने डपट दिया था.

अश्विन की बात सुनते ही मौली को झुरझुरी हो आई. वह मौली के घर में ही किराएदार था और किसी कालेज में व्याख्याता था. आजकल अखिल भारतीय प्रतियोगिता की तैयारी में जुटा था. नीता देवी से उस की खूब पटती थी. पर मौली ने उसे कभी महत्त्व नहीं दिया. प्रारंभ में उस ने मौली से बातचीत करने का प्रयत्न किया था पर उस की बेरुखी देख कर उस ने भी उस से किनारा कर लिया था. इस समय आधी रात को उस से मदद मांगना मौली को अजीब सा लग रहा था. वह आने के लिए तैयार भी होगा या नहीं, कौन जाने.

मौली खंभे की आड़ में खड़ी यह सब सोच ही रही थी कि नीता देवी का फोन आया था.

‘‘अश्विन को कार चलानी नहीं आती. वह अपने स्कूटर पर ही आ रहा है. शास्त्री रोड पर वह अपना हौर्न बजाते हुए आएगा तभी तुम सड़क पर आना,’’ नीता देवी ने आदेश दिया था.

लगभग 15 मिनट में हौर्न बजाता हुआ अश्विन उस के पास आ पहुंचा था, पर मौली को लगा मानो सदियां बीत गई हों. वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई थी.

घर पहुंची तो मां से गले मिल कर देर तक रोती रही थी मालविका. मां ने ही अश्विन की भूरिभूरि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दिया था. उस के मुंह से तो बोल ही नहीं फूटे थे.

इस के 2 दिन बाद ही रोमी का फोन आया था. देर तक क्षमायाचना करता रहा था. नशे में उस से बड़ी भूल हो गई. मालविका जो सजा दे उसे मंजूर है.

मौली ने उस की किसी बात का उत्तर नहीं दिया. सबकुछ चुपचाप सुनती रही थी. दोचार बार के फोन वार्त्तालाप के बाद रोमी घर आया. आज फिर वह मालविका को किसी विशेष आयोजन में ले जाने आया था.

उस के पिता के मित्र प्रसिद्ध फिल्म निर्माता नलिन बाबू की नई फिल्म का मुहूर्त था और रोमी सोचता था कि ऐसे ग्लैमरस आयोजन के लिए मौली न नहीं कह पाएगी.

नीता देवी ने तो सुनते ही डपट दिया था, ‘‘उस का साहस कैसे हुआ यहां आने का? उस दिन जो कुछ हुआ उस के बाद तुम उस के साथ जाने की बात सोच भी कैसे सकती हो.’’

‘‘जाने दो, मां. उस दिन रोमी नशे में था. बारबार थोड़े ही ऐसा करेगा. मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ मालविका उठ कर अंदर गई थी.

कुछ ही क्षणों में बाहर से शोर उभरा था. किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ पर मालविका के घर के सामने खड़ी रोमी की मर्सिडीज कार धूधू कर जल उठी थी.

आसपास के घरों के लोग घबरा गए थे. कुछ ही क्षणों में अग्निशामक दस्ता आ पहुंचा था. लोगों ने आग बुझाने के लिए पानी डालने का प्रयत्न भी किया था.

कैसे लगी यह आग? जितने मुंह उतनी बातें. कोई भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा था. हैरानपरेशान रोमी अधजली कार ले कर जा चुका था. तभी नीता देवी की नजर मालविका पर पड़ी थी. उस के चेहरे पर अजीब संतुष्टि का भाव था. उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं. मानो, बिना कहे ही सब समझ गई हों.

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