Hindi Short Story: अनकहा रिश्ता- क्या अनकहा ही रहा ?

Hindi Short Story: महेश कुमारजी को अपनी पत्नी के देहांत के बाद अपने बेटे बासु के साथ शहर आना पड़ा, क्योंकि पत्नी के जाने के बाद वे एकदम अकेले हो गए थे.

अब बेटा ही था, जिस के साथ वो रह सकते थे, और उन की इस उम्र में सही से देखभाल हो सकती थी. उन के बेटे ने शहर आ कर महेशजी को उन का कमरा और बालकनी दिखाई और कहा, “पापा, आप कुछ समय यहां बालकनी में सुकून के साथ बैठ सकते हैं, अखबार पढ़ सकते हैं, आप का मन लगा रहेगा. और देखो पापा, मन तो आप को लगाना ही पड़ेगा.”

महेशजी भी अपना मन लगाने की पूरी कोशिश करते, लेकिन बुढ़ापे का एकाकीपन उन्हें खाए जाता था. आसपास कोई बोलने वाला भी नहीं था. बेटा और बहू अपने काम में लगे रहते, कभीकभार पोते के साथ मन बहला लिया करते,
लेकिन वह भी अकसर स्कूल की पढ़ाई में लगा रहता था.

महेशजी की बालकनी के सामने वाले फ्लैट में भी शायद कोई नहीं रहता था, क्योंकि अकसर वो बंद ही रहती.

कुछ समय बाद उन के सामने वाली बालकनी में कोई रहने आ गया. उस में एक सभ्य व संभ्रांत महिला दिखाई दी, जो लगभग उन्हीं की उम्र की थी.

उन संभ्रांत महिला ने अपनी कामवाली को कुछ समझाया, कुछ पौधे लगवाए, कपड़ों के सुखाने के लिए रस्सी बधंवाई और एक आरामकुरसी और एक छोटा सी मेज लगवा दी. इस तरह वो वीरान सी दिखने वाली बालकनी अब सजीव हो उठी. किसी के होने का एहसास देने लगी.

महेशजी और उन संभ्रांत महिला का आपस में गरदन के इशारे से अभिवादन हुआ, क्योंकि दोनों बालकनी में दूरी ज्यादा थी, इसलिए इशारे से ही बातें हो सकती थीं, और यों भी तेज बोल कर बातें यहां शहरों में कहां हो पाती हैं. यहां तो हर इनसान अपनेआप में मगन है, आसपास की किसी को कोई खबर ही नहीं है.

अब तो महेशजी को अपनी बालकनी अच्छी लगने लगी. वे अब आराम से बैठ कर अखबार पढ़ते.

सामने वाली बालकनी में छाई हुई वीरानी अब वसंत का रूप ले चुकी थी, तुलसी का पौधा उन की आस्था को दर्शाता तो मनी प्लांट की बेल व छोटे फूलों के पौधे जिंदगी की सजीवता को दिखाते.

वैसे भी स्त्रियों को वरदान मिला है कि वे चाहे जहां घर बसा सकती हैं, उसे स्वर्ग का द्वार बना सकती हैं, वसंत ला सकती हैं, वीरानियां को बदल कर बगिया खिला सकती हैं. स्त्रियां घर के आसपास एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करती हैं.

बस इस तरह उन दोनों का रोज आंखों से व गरदन के इशारे से आपस में अभिवादन होने लगा. संवाद कभी न होता. महेशजी अब फिर से जिंदगी को जीने लगे थे.

वे उन महिला को कभी वहां सब्जी साफ करते देखते, कभी पौधों में पानी देते हुए देखते, कभी अचार सुखाते, तो कभी स्वेटर बुनते, दोनों का आपस में कभी संवाद नहीं होता. बस एक एहसास होता है कि उन के आसपास भी कोई है…

उन महिला की एक प्यारी सी पोती भी थी, जिस से वो कभीकभी इशारों में ही महेशजी को नमस्ते करवाती, जिस से उन्हें और अपनापन महसूस होता.

बस इस तरह दोनों में एक प्यारा सा “अनकहा रिश्ता” बन गया.

यों ही कई महीने गुजर गए. एक दिन महेशजी ने देखा कि उन महिला ने न ही उस दिन दीप जलाया और न ही पौधौ को पानी दिया. बस, आ कर आरामकुरसी पर ऐसे ही बैठ गईं. महेशजी को लगा कि शायद तबीयत खराब है. उन्होंने इशारों से पूछा, “क्या हुआ…?”

उन्होंने भी इशारे से जवाब दिया, “सब ठीक है”, लेकिन दोचार दिन में उन महिला का बालकनी में आना भी कम होता गया.

कुछ दिन पश्चात, अब कई दिनों से वे महिला महेशजी को दिखाई नहीं दे रही थी, उन्हें लगा कि शायद कहीं बाहर गई होंगी, लेकिन जब कई दिन हुए वे नहीं दिखाई दी और उन के लगाए पौधे सूखने लगे, उन की लगाई मनीप्लांट की बेल सूखने लगी, तो वे चिंतित हो उठे, उन का मन बेचैन हो उठा.

लेकिन पूछें तो किस से पूछें? महेशजी को बहुत चिंता हुई, उन का अब मन किसी भी काम में नहीं लगता.

फिर एक दिन वही कामवाली बालकनी में दिखाई दी, जो पहले दिन उन महिला के साथ आई थी. वह आई और बालकनी की सफाई करने लगी. महेशजी से रहा नहीं गया, तो उन्होंने इशारे से पूछा कि, “वे कहां हैं?”

उस ने भी इशारों से हाथ ऊपर कर के जवाब दिया कि, “वे अब नहीं रहीं.”

महेशजी का दिल धक से रह गया. उन्होंने उस अकेली पड़ी आरामकुरसी की तरफ देखा और फिर एक बार वो अपनेआप को अकेला महसूस करने लगे.
उन का वो प्यारा सा “अनकहा रिश्ता” अनकहा ही रह गया…

Hindi Short Story

लघु कहानी: बाबाजी का ठुल्लू

लघु कहानी: बाहर गली में लाउडस्पीकर बज रहा था. धूलमिट्टी उड़ाते औटो पर रखे लाउडस्पीकर से आवाज आ रही थी, ‘‘आप सभी को बाबाजी के समागम में आमंत्रित किया जाता है. जहां विशेष कृपा के तौर पर बाबाजी का ठुल्लू दिया जाएगा.

ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंच कर बाबाजी की कृपा का लाभ उठाएं.’’ठुल्लू शब्द उल्लू ज्यादा सुनाई पड़ रहा था पर फिर भी मैसेज जा चुका था कि कोई विशेष कार्यक्रम ही होगा तभी इतनी जोरशोर से प्रचार हो रहा है.

जो ‘कौमेडी नाइट विद कपिल’ देखते हैं वे तो समझ गए पर जो नहीं देखते थे वे कार्यक्रम का हिस्सा बन गए.भव्य पंडाल सजा था. आसपास श्रद्धा की दुकानें सजी थीं, जिन में धूप, मालाएं, धार्मिक ग्रंथ, हवन सामग्री आदि मिल रही थी और साथ ही सजी थीं खानेपीने की दुकानें.

बाहर से तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई शादीब्याह का आयोजन हो. एक बार को लगा कहीं गलत जगह तो नहीं आ गए पर पता तो यही था. बाबाजी का आने का समय 4 बजे का था. 7 बज रहे थे पर उन का अभी तक कोई अतापता न था. भीड़ बढ़ती जा रही थी.

8 बजे 4 गाडि़यां धूलमिट्टी उड़ाती मैदान में पहुंचीं. उन में एक औडी थी, जिस में गेरुआ चोला पहने बाबाजी अपनी धोती संभालते उतरे. उम्र यही कोई 50-55 वर्ष. बाल मिलेजुले सफेदकाले. चेहरे की चमक किसी महंगे ब्यूटीपार्लर का इश्तिहार लग रही थी जैसे अभी वहां से फेशियल करवा कर आए हों.‘‘बाबाजी की जय हो,’’ समर्थकों ने जोरजोर से नारे लगाने शुरू कर दिए.

लोग उत्सुकतावश बाबाजी की ओर ऐसे देख रहे थे जैसे वे कोई अजूबा हों.बाबाजी हाथ उठा कर बहुत आत्मविश्वास के साथ बोले, ‘‘मैं कुछ नहीं करता, भगवान मुझ से करवाता है. जब तक उस का हुक्म न हो तब तक मैं यहां आ ही नहीं सकता.’’पूरी बात जनता के पल्ले नहीं पड़ी. पर जोरदार तालियों से आभास हो गया शायद कोई बहुत बड़ी बात कही है.

‘‘बाबाजी आज आप सब को एक विशेष कृपा प्रदान करेंगे. ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंच कर आप ने जो विश्वास बाबाजी पर जताया है वह काबिलेतारिफ है.’’समर्थक 1-1 कर के बाबाजी की प्रशंसा के पुल बांधते हुए अपनी बात आगे रखने लगे.तभी एक तरफ खुसुरफुसुर शुरू हो गई.‘‘कृपया शांत बैठें…जो कुछ कहना चाहते हैं कृपया माइक पर कहें.’’कुछ श्रोता आपस में लड़ रहे थे, ‘‘मैं बोलूंगा, मैं बोलूंगा.’’‘‘सभी को मौका दिया जाएगा,’’ ऐसा कह कर एक समर्थक ने माइक एक स्मार्ट, पढ़ेलिखे दिखने वाले सज्जन को पकड़ा दिया.‘‘गुरुदेव आप की सेवा में मेरा कोटिकोटि प्रणाम स्वीकार हो.

मुझे कई सालों से शुगर और ब्लडप्रैशर की बीमारी थी, जो आप की विशेष कृपा से ठीक हो गई.’’शुगर और ब्लडप्रैशर वाले मरीज खुश थे कि हम यहां आ गए तो हमारी भी बीमारी ठीक हो जाएगी.इस के साथ ही समर्थक फिर ‘बाबाजी की जय हो’ दोहराने लगे.‘‘मुझ में ऐसा कुछ नहीं है. परमात्मा परम ज्ञानी हैं,’’ बाबाजी का इतना बोलना था कि लोग फिर जोरजोर से तालियां बजाने लगे.कई लोग जो पहली बार आए थे, थोड़े कनफ्यूज दिखे कि ऐसा कैसे हो गया? यह तो शुरुआत थी.

फिर एक महिला ने माइक पकड़ा और कहा, ‘‘बाबाजी, गृहस्थी चलानी बहुत मुश्किल हो गई है…इतनी महंगाई है कि प्याज तो अब सपने की बात हो गई है और टमाटर तो कीमत से और लाल हुए पड़े हैं,’’ बाबाजी हाथ उठाते हुए बोले, ‘‘प्याज खाना कोई फायदे की बात नहीं है. इसे छीलो तो आंसू निकलते हैं और काटो तो जेब कटती है. मुझे देखो मैं ने इस की तरफ कभी आंख उठा कर भी नहीं देखा.’’समर्थक बोले, ‘‘बाबाजी के नक्शेकदम पर चलो, आंखें भी खुश रहेंगी और जेब भी.’’इस के साथ ही वही तालियां, वही नारा और वही समर्थकों का जोश.

माइक वाली महिला कुछ समझ कुछ नहीं और फिर बगले झंकते हुए बैठ गई. तालियों से शायद उसे अंदाजा हो गया था कि बाबाजी बहुत पहुंचे हुए हैं.तभी माइक एक बच्चे को दिया गया. बोला, ‘‘बाबाजी, मैं पेपरों से पहले बीमार पड़ गया था और यह आप की कृपा ही होगी कि मैं ने 20 नंबर का प्रश्नपत्र हल कर लिया और मेरे 40 नंबर आ गए.’’जनता फिर उल्लू की तरह कभी इधर देखती तो कभी उधर, पर उसे समझ नहीं आया कि यह कैसे हो गया.

जो इन सब बातों की सचाई जानना चाहते थे उन्हें कोई माइक नहीं दे रहा था.रात का 1 बज गया. बाबाजी को नींद आने लगी, तो समागम के समापन की घोषणा हो गई और लाउडस्पीकर पर ‘बजरंगी हमारी सुध लेना भुला नहीं देना, विनय तोहे बारबार है…’ भजन चलाया गया और समर्थक स्टेज पर हाथ उठाउठा कर नाचने लगे.

सब अपने आसपास के लोगों की देखादेखी नाचने लगे. उन के बजरंगी जा चुके थे अपने नए अवतार में, जिस में उन्होंने एक पैर जमीन पर रखा हुआ है और एक लोगों के दिल पर. और अपने बलशाली हाथों पर लोगों का दिमाग रख कर अपनी औडी में उड़ गए.

जिन्होंने माइक पर बोला था स्टेज के पीछे उन्हें पैसे बांटे जा रहे थे. पंडाल वाला भी खुश था कि अगली बार ज्यादा कमाई हो जाएगी. बड़ा पंडाल जो लगाना है.खाने के खोमचे वालों की चांदी हो गई. बाबा के इंतजार में लोगों ने खा कर ही टाइमपास किया.अंत में एक समर्थक ने माइक पर घोषणा की कि अगला कार्यक्रम 15 दिन बाद होगा. अपने साथ अपने पूरे परिवार को लाएं और बाबाजी के उल्लू उफ, सौरी ठुल्लू का सीक्वल पाएं.

लघु कहानी

Best Hindi Story: उन की फेसबुकिया फ्रैंड्स

Best Hindi Story: जब हमारे मित्र हो सकते हैं तो उन की सहेलियां होना भी वाजिब है. मगर यह शब्द उस समय गले नहीं उतरता जब सारा दिन औफिस में मरखप कर आने के बाद हमें एक प्याली चाय के साथ साफसुथरे बिस्तर पर थोड़ा आराम करने की सख्त आवश्यकता होती है और बैठक में घुसते ही हमें ऐसा लगता है जैसे वहां अभीअभी संसद की काररवाई समाप्त हुई हो या हमारी बैठक से बजरंग दल की यात्रा गुजरी हो जो रास्ते में जो मिला नाटक करती जाती है.

चारों तरफ बिखरे कप और प्लेटें, सोफों पर गिरी चाय, फर्श पर बिखरी पानी की बोतलें और गिलास देख कर ऐसा लगता है मानो उन की सहेलियों की सभ्यता के सारे के सारे प्रतीकात्मक चिह्न वहां मौजूद हों.फिर उस वक्त तो बड़ी ही कोफ्त होती है जब औफिस से लौटते हुए ट्रैफिक जामों से जूझते हुए सारे रास्ते चिलचिलाती धूप से गला सूख जाता है और घर पर फ्रिज से पानी की सारी बोतलें तथा बर्फ की सारी ट्रे नदारद मिलती हैं.
फिर हमें झक मार कर टैंक के नल से आ रहे गरम पानी को पी कर ही अपने दिल को सांत्वना देनी पड़ती है.इन सारी बातों को हम सरकारी जीएसटी की तरह बरदाश्त कर जाते हैं और बड़ी शालीनता के साथ अपनी उन से यानी श्रीमतीजी से एक प्याला चाय की फरमाइश करते हैं क्योंकि हमें गरमी में भी चाय पीने की आदत है और एक वे हैं कि हमारी फरमाइश को नजरअंदाज करते हुए गुसलखाने में घुस जाती हैं.

5-6 बार याद दिलाने मेरा मतलब है कि आवाजें लगाने पर करीब 1 घंटे बाद हमारी वे तौलिए से हाथ पोंछती हुई आ कर कहती हैं, ‘‘क्या है… घर में घुसे नहीं कि चिल्लाना शुरूकर दिया.’’फिर हम उन्हें मनाने की गरज से अपने मतलब की बात न कह कर यह कहते हैं,‘‘क्या कर रही थीं. बहुत थकी हुई दिखाई पड़ रही हो.’’‘‘कुछ नहीं, जरा साड़ी धो रही थी.सुशीला की बच्ची ने गंदी कर दी थी. मैं नेसोचा, धो कर अभी डाल दूं वरना नई साड़ी खराब हो जाएगी.’’‘‘तो क्या वह साड़ी… मेरा मतलब है, कल जो क्व8 हजार की नई साड़ी लाया था वह खराब हो गई?’’ हम अपना सिर थाम लेते हैं.

हमारी समझ में नहीं आता कि उसे घर में पहनने की क्या जरूरत थी.‘‘अब छोडि़ए भी. कुछ सहेलियां आ गई थीं. सो पहन ली. फिर वह तो नासमझ बच्ची थी. अगर उस की जगह अपनी बच्ची होती तो?’’उन का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है क्योंकि फैमिली प्लानिंग के चक्कर में हमारे एक भी बच्चा नहीं है. अभी मैडम को नौकरी नहीं मिली है पर ढूंढ़ रही हैं और एक बच्चे की खातिर अपनी एमए बीएड की पढ़ाई को बरबाद नहीं करना चाहतीं.

फिर हम उन्हें कंधे से पकड़ कर बड़े प्यार से याद दिलाते हैं कि दफ्तर से आए लगभग डेढ़ घंटे से भी अधिक हो चुका है. 2 कप कौफी बनाए 1 घंटा हो गया. आप की कौफी को 2 बार गरम कर चुका हूं.इस से ज्यादा और कुछ कहने की हमारी हिम्मत नहीं होती क्योंकि आजकल देश में गवर्नमैंट तो पौराणिक है, पर घरों में स्त्री राज चलने लगा है.

क्या पता कब हमारा कोर्ट मार्शल हो जाए यानी वे हमें छोड़ कर मायके चली जाएं या अपना घर ले लें. पिछली बार जब वे गई थीं तो पूरे महीने में अपने सारे दोस्तों, आसपास के लोगों को, नानीपरनानी को ही नहीं, अपनी ननिहाल में होने वाली पहली नानी तक को याद करता रहा था.वे हमें बैठक की सफाई के लिए कहकर रसोईघर की ओर बढ़ जाती हैं.

मरता क्या नहीं करेगा. बैठक में प्याले समेटते समय हम सोचते हैं कि आज के जमाने में अच्छा घरहोना, सुखसुविधा के साधन होना भी सिरदर्द है और कम से कम जो सिरदर्द हमें है वह तोइस पंखे, एसी, फ्रिज और टैलीविजन और सबसे बड़ा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम की ही देन है और इस सिरदर्द में सब से बड़ा योगदान हैहमारी उन की रोज नई बनने वाली फेसबुक सहेलियों का.एक दिन की बात है.

हम सिर में दर्दहोने के कारण दफ्तर से छुट्टी ले कर घर आगए थे. उस दिन पहली बार हम ने अपनी मैडम के सहेली मंडल के दर्शन अपने कमरे में लगे दरवाजे के चाबी वाले सूराख में से किए थे.इन लोगों का विचार था कि हम सो रहे हैं.

भला आप ही बताइए जब ऐसी महान हस्तियां, जिन्होंने हमारा रात और दिन का चैन हराम कर रखा हो, घर में मौजूद हों तो हम कैसे सोसकते हैं.वार्त्तालाप अपनी चरम सीमा पर था, ‘‘फलाना ऐसा है… फलाना वैसा है… इस बार ऊंटी में रिजौर्ट खुला है, ग्रेटर कैलाश में एक डिस्को चालू हुआ है वगैरहवगैरह.’’हम चुपचाप अपने पलंग पर लेट गए थे. वार्त्तालाप के दौरान भावावेश में ऊंचे स्वर में बोले गए शब्द तथा हर 5 मिनट बाद जोरदार ठहाके हमारे कानों में पड़ रहे थे.

उस दिन उन की सहेलियों के वार्त्तालाप का नमूना सुन कर हम ने यह अंदाजा लगाया कि उन की सहेलियों के मध्य होने वाले घंटों वार्त्तालाप में न कोई मतलब की बात होती है और न ही उन का आपस में कोई संबंध होता है. बस वही घिसीपिटी बातें, ‘‘उस की शक्ल कितनी अच्छी है, शक्ल न सूरत, उस पर ऐसा भयंकर मेकअप तोबा आदि.’’हां, एक बात जरूर उस दिन हमारी सम?ा में आ गई थी कि ये औरतें एक कुशल आलोचक होती हैं.

क्या मजाल जो वहां बैठी औरतों को छोड़ महल्ले की कोई भी औरत उन की आलोचना का शिकार हुए बगैर रह जाए और यही नहीं, गेहूं के साथ घुन यानी उन औरतों के साथ उन के पतियों का भी क्रियाकर्म ये लगे हाथों कर डालती हैं.

आखिर उस दिन की कृपादृष्टि हम परभी हो ही गई. बैठक समाप्त होने के बाद हमारी श्रीमतीजी धड़धड़ाती हुई अंदर आईं और बगैर कहीं कौमा या विराम लगाए लगातार बोलती्रही चली गईं, ‘‘क्यों जी, आजकल, दफ्तर की स्टैनो के साथ क्या गुलछर्रे उड़ाए जा रहे हैं.मैं भी कहूं रोज दफ्तर से लौटने में देर क्यों हो जाती है.

कान खोल कर सुन लो, अगर फिर उस कलमुंही के साथ कहीं इधरउधर गए तो ठीक नहीं होगा.’’रमा बता रही थी कि उस ने हमाराऔफिस पार्टी का एक फोटो फेसबुक पर देखा था जिस में हम मैंसी के साथ चिपके खड़ेखड़े देख रहे थे. शायद उन की किसी सहेली ने उन सेकह दिया था कि हम एक दिन अपने दफ्तर की स्टैनो के साथ काफी हाउस में बैठे थे जबकि हम कभी स्टैनो के साथ वहां गए ही नहीं थे.

हम ने बहुतेरा समझने की कोशिश की, पर सब बेकार. हम जितना खंडन करते उन का पारा उतना ही और चढ़ता जाता और फिर तो उन्होंने पुलिस में डोमैस्टिक वायलैंस की शिकायत की धमकी दे डाली. महीनेभर तक अपने हाथों की जलीभूनी रोटियां खिला कर उन की सहेलियों को कोसते रहे और उन की सेवा करते रहे.

पर हम पतियों की सब से बड़ी कमजोरी यही होती है कि शाम को 2 घंटे पत्नियों का लंबाचौड़ा भाषण सुनने के बाद जब हमें उन के हाथों की बनी गरमगरम मुलायम रोटियां मिल जाती हैं तो हमारा सारा ताब उसी तरह गायब हो जाता है जैसे आजकल राशन की दुकान से शक्कर.

अब जब हम ने उन्हें राजस्थान के जोधपुर में घुमा लाने का वादा किया तो वे मानीं और हमारी जान में जान आई और हम बाज आए. आइए, उन की सहेलियों के बारे में कुछ कहने या नैन्सी से हंसीमजाक करने से.

Best Hindi Story

Drama Story in Hindi: चालू बहू के सासू मंत्र

Drama Story in Hindi: इस दुनिया में सास से इतना डरने की क्या जरूरत है? आखिरकार वे भी तो कभी बहू थीं और बहू को भी देरसवेर सास तो बनना ही है. लेकिन ससुराल में अपना वर्चस्व कायम करना है तो सास को पटाना जरूरी है. इस के लिए घर की इस लाइफलाइन को सही ढंग से पकड़ना है, उस के हर उतारचढ़ाव पर नजर रखनी है और उस पर कितना दबाव डालना है इस का भी सहीसही अनुमान लगाना है. पेश हैं सास को पटाने के लिए आजमाए हुए कुछ नुसखे, जो एक बहू की जिंदगी को खुशियों से भर देंगे.

नुसखा नं. 1: आप सही कहती हैं सासू मौम. इस अद्वितीय मंत्र का जाप आप दिन में 10-15 बार करो. वे अगर दिन को रात कहें तो रात कहो. पर ध्यान रखो कि सास भी कभी बहू थी.

नुसखा नं. 2: चाणक्य नीति. सास का

मूड देख कर बात करो. अगर उन का मूड अच्छा है तो माने जाने की संभावना से अपने मन की बात कही जा सकती है. अगर वे मना कर दें तो तुरंत पलट जाओ, हां मम्मीजी, मैं भी यही सोच रही थी.

नुसखा नं. 3: भोली सूरत चालाक मूरत. सब से पहले इस में आप को करना यह है कि अपनेआप को ऐसा दिखाना है कि जैसे आप को कुछ आता ही नहीं है. सहीगलत की समझ ही नहीं है. एकदम भोंदू हैं आप. ऐसे लोगों को सिखाने में सिखाने वालों को बड़ा मजा आता है. यह तो सीखने वाला ही जानता है कि उस ने कितने घाट का पानी पिया है. सास अगर घर की प्रधानमंत्री हैं तो रहने दो. आप बस प्रैसिडैंट वाली कुरसी पर नजर रखो. इस बात को एक उदाहरण से समझे:

द्य सुबह जल्दी उठने के बजाय अपने टाइम पर उठो और जल्दीजल्दी पल्लू संभालते हुए सासू मौम के पास जा कर ऐसे दिखाओ कि आप तो जल्दी उठना चाहती थीं पर… आप का दिल आप का साथ नहीं देता, बस दगा ही देता है.

‘देखो मां अलार्म ही नहीं बजा, मोबाइल की बैटरी भी आज ही डाउन होनी थी,’ इस वाक्य को अच्छे से कंठस्थ कर लो, क्योंकि यह बहुत काम आएगा. सास को भला आजकल का स्मार्ट फोन चलाना कहां आता है. एक हफ्ता ऐसे ही बहाने बना लो और जरूरत पड़े तो नैट पर बहाने सर्च कर लो. एक हफ्ते बाद देखना सास टोकना बंद कर देंगी. फिर बहू का मोबाइल चार्जिंग के लिए लगाना शुरू कर देंगी.

नुसखा नं. 4: बारीक निरीक्षण. इस में आप को देखना है कि किस कैटेगरी की सास आप को मिली हैं, धार्मिक या मौडर्न.

धार्मिक हैं तो थोड़ी मुस्तैदी दिखा कर 2-4 भजन याद कर लो. गूगल है न आप की मदद के लिए. आप को कोई संगीत अवार्ड थोड़े ही जीतना है. आप को तो बस अपनी सास के दिल में जगह बनानी है. फिर क्या? उन की कीर्तन मंडली में थोड़ी नानुकर कर के अपनी आवाज का जादू बिखेरो. फिर देखो लोग कैसे आप की वाहवाही करते हैं. बहू के ऐसा करने पर सास का सीना तो गर्व से फूल जाता है. वे वारीवारी जाती हैं अपनी बहू पर. पर आप को इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है. हाथ जोड़ कर ‘कहां मैं, कहां सासूमां’ वाली चाणक्य नीति अपनाए रखनी है.

नुसखा नं. 5: तारीफ पर तारीफ. बस यही एक अच्छी बहू की निशानी है. उसे सास की दबी इच्छाओं को नए सिरे से उभारना है. वे जो भी बनाएं जैसा भी बनाएं उन की पाक कला पर उंगली उठाने की कोशिश नहीं करनी है. वरना बतौर इनाम आप को ही रसोई में पिसना पड़ेगा.

नुसखा नं. 6: अपनी तारीफ को कभी सीरियसली न लें. आप के बनाए खाने की चाहे कितनी भी तारीफ हो उसे नजरअंदाज ही करें. वरना घर को एक परमानैंट कुक मिल जाएगा और घर के सभी सदस्य उस की तारीफ कर के उस शैफ बहू को रसोई में अपनी फरमाइशों में ही उल?ाए रखेंगे.

आप को जबतब ‘मम्मीजी आप के खाने का जवाब नहीं. काश, मैं ऐसा खाना बना पाती,’ सिर्फ कहना है करना नहीं है. ‘आप तो मेरी मम्मी से भी ज्यादा अच्छा खाना बनाती हैं,’ आप के यह कहने पर तो आप की सास फूल कर कुप्पा हो जाएंगी और आप को रसोई से छुट्टी मिल जाएगी. ऐसा होने पर अकसर होता यही है कि सास का बस चले तो बहू को खिलाखिला कर ही मार डाले.

नुसखा नं. 7: स्मार्ट बनें. इस में आप को अपने ज्ञान को कदमकदम पर इस्तेमाल करना है. सारे ब्यूटी ट्रीटमैंट सास पर आजमाने हैं. कहीं जाने से पहले उन का फेशियल कर दें. उन्हें अच्छे से तैयार कर दें. सुंदर सा जूड़ा बना दें. इन सब कामों में तो हर बहू परफैक्ट होती ही है.

नुसखा नं. 8: खर्चा करें. सास को बहू का उन पर खर्चा करना अच्छा लगता है. इसलिए मौकों पर अगर बहू सास को उपहार दे तो सास तो बहू पर वारीवारी जाएगी.

नुसखा नं. 9: वाचाल बनो. वक्त देख कर सही बात करने का हुनर विकसित करो. औफिस में काम करती हो तो आराम से दोस्तों के साथ तफरीह कर के आओ और घर में घुसते ही ऐसे दिखाओ जैसे औफिस से घर पहुंच कर पता नहीं कितनी बड़ी जंग जीत ली या कोई किला फतह कर लिया.

रोनी सूरत और भोली मूरत दर्शाते हुए, इस से पहले कि कोई आप पर चढ़े आप शुरू हो जाएं, ‘‘हाय राम आज फिर देर हो गई. सौरी मम्मीजी ये ट्रैफिक भी न… कोई साइड ही नहीं देता. अगर वह गाड़ी वाला थोड़ा रुक जाता तो क्या हो जाता उस का… आदिआदि.’’

नुसखा नं. 10: गुरुघंटाल बनो. यानी बातें ज्यादा काम कम. एक बात को बारबार दोहराओगे तो वह भी सही लगने लगेगी. कुछ भी पकाओ तो पहले ही बोलना शुरू कर दो, ‘‘मुझे पता है कि आज खाना स्वादिष्ठ नहीं बना है. मम्मीजी (सास) तो बहुत टेस्टी खाना बनाती हैं. मैं जाने कब सीख पाऊंगी? शायद इस जनम में तो नहीं.’’

चेहरे पर ऐसे भाव लाओ कि सब की दयादृष्टि आप की झोली में ही गिरे. सास तो अपनी तारीफ सुन कर फूल कर कुप्पा हो जाएंगी और कहेंगी, ‘‘बेटा, मैं तुझे सिखाऊंगी.’’

बस यह मौका हाथ से नहीं जाने देना है. खुशीखुशी उन की विद्यार्थी बन जाओ. रसोई में जा कर बस थोड़ा हाथ हिला दो और तारीफ खूब बटोर लो. अगर पति खाने में कोई कमी निकालें तो साफ मुकर जाओ यह बोल कर कि मम्मी ने बनाया है. अब बेचारे पति अपनी मां से थोड़े ही कुछ कहेंगे.

आप में से कई लोग सोचेंगे कि क्या ये नुसखे काम आएंगे? जी हां शतप्रतिशत काम आएंगे. यह बात और है कि सब बहुओं की किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती कि उन्हें गाइड करने वाला मिल जाए.

अंत में गुरु मंत्र: विपक्षी पार्टी को कमजोर समझने की भूल नहीं करनी है. अगर आप की चालाकी पकड़ी जाए तो दांत दिखा कर हंसते

हुए कहना है, ‘‘मम्मीजी मैं तो मजाक कर रही थी. मेरा वह मतलब नहीं था, जो आप सम?ा रही हैं. पर देखो आप ने मेरी चोरी पकड़ ली. आप महान हैं. आप ने तो सीआईडी वालों को भी पीछे छोड़ दिया आदिआदि. बस तारीफ पर तारीफ.’’

डरने की क्या बात है सास से? ये नुसखे जान कर कोई बहू नहीं डरती अपनी सास से. बस इतनी सी गुजारिश है बहुओं आप से कि इन्हें अपनी सासों से छिपा कर रखना वरना… वरना कुछ भी हो सकता है.

Drama Story in Hindi

Family Story in Hindi: घर में चोर- क्या पकड़ा गया चोर?

Family Story in Hindi: एकबार यों हुआ कि हमारे पासपड़ोस में धड़ाधड़ चोरियां होने लगीं. चोरियां किसी योजनाबद्ध ढंग से होतीं तो किसी को ताज्जुबन होता. किंतु चोर इतने बौखलाए हुए थे कि एक दिन जिस घर में चोरी कर जाते तीसरे दिन फिर उसी घर में सेंध लगाने पहुंच जाते. परिणामस्वरूप वहां उन्हें उसी माल से साबिका पड़ता जिसे 2 दिन पहले वे रद्दी सम?ा कर छोड़ गए थे. उदाहरण के लिए दीवाने गालिब, गीतांजलि आदि.

अत: हमारे महल्ले के एक महानुभाव ने एहतियात के तौर पर अपने मकान के बाहर गत्ते पर यह लिख कर लटका दिया, ‘इस घर

में एक बार पहले चोरी हो चुकी है. कृपया अब कोई और घर देखें. सितारों से आगे जहान और भी है.’

मैं ने उन महानुभाव से पूछा, ‘‘आप ने हिंदी और अंगरेजी में लिखा, उर्दू में क्यों नहीं लिखा?’’

वे बोले, ‘‘अजी, वह शेरोशायरी की भाषा है, चोरों के पल्ले क्या खाक पड़ती? जो

भी हो, चोरों ने चोरी की भी डैमोके्रसी समझो कर जब उस का बिना खटके प्रयोग शुरू कर दिया तो मेरी एकमात्र अद्वितीय बीवी ने माथे पर दोहत्थड़ मार कर कहा, ‘‘हाय, इस घर में आ कर तो मेरे भाग्य फूट गए.’’

मैं ने कहा, ‘‘जनाब, यह तो बीवियों का शताब्दियों पुराना वाक्य है. नई कविता के लहजे में ताकि उसे बिना समझे दाद दी जा सके और सम?ाने का कार्य आने वाली शताब्दियों पर छोड़ा जा सके.’’

वह बोली, ‘‘मैं ने आप से शादी की है और आप मुझो से मजाक कर रहे हैं.

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘मजाक बिलकुल आगे नहीं. शादी तो मजाक की कब्र है. अब फरमाइए?’’

‘‘फरमाऊं क्या खाक? हर घर चोरियां हो रही हैं. मगर हमारे भाग्य निगोड़ा एक चोर भी नहीं.’’

मेरे जी में आया कह दूं, ‘डार्लिंग, तुम जो इस घर में हो, फिर चोर की क्या जरूरत है?’ सूचनार्थ निवेदन है कि मेरी जेब की रेजगारी प्राय: मेरी बीवी के खाते में चली जाती है, क्योंकि शादी के समय पवित्र अग्नि के फेरे लेते हुए हम दोनों ने शपथ ली थी कि हम एकदूसरे के सुखदुख में हिस्सा बंटाते रहेंगे.

इस शपथ का हम दोनों बराबर निर्वाह कर रहे हैं. फर्क इतना है कि वह दुख देती रहती है और सुख देने की ड्यूटी मेरे जिम्मे लगा रखी है.

मगर मैं घर के इस चोर साथी की बात जबान पर नहीं ला सका, क्योंकि अनुभव से सीखा था कि गृहस्थ जीवन एक शतरंज है. एक ऐसी शतरंज जिस में मात हमेशा पति की होती है. अत: मैं ने बीवी से कहा, ‘‘प्रिय, चोर का प्रबंध करना मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है. मैं समाज का बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति हूं. अभी पुलिस थाने में टैलीफोन कर दूं तो आधा घंटे में एक छोड़ दर्जन चोर पहुंच जाएंगे. वहां चोरों का बहुत बड़ा स्टौक रहता है.

मेरी यह वीरतापूर्ण घोषणा सुन कर मेरी बीवी 25 वर्ष बाद फिर मुझ पर फिदा हो गई. उस का एक बोसा मु?ा पर अंगड़ाई सी लेता हुआ मालूम हुआ. मगर मैं ने यह कह कर उसे टाल दिया कि पहले चोर आ जाए, बोसा उस के बाद सही और वैसे भी उस के बाद हमारे पास बोसे के सिवा और कौन सी चीज बाकी रह जाएगी.

फिर मैं ने सोचा कि थाने को फोन करने के बाद अगर चोर सचमुच आ गया तो हमारे घर में है ही क्या जो ले जाएगा. पिछले दिनों एक शायर के घर में चोर घुस आया था. उसे वहां से न तसवीरे बुतां मिली, न हसीनों के खुतूत, जिन की बिना पर वह शायर को ब्लैकमेल कर सकता. सुबह खाली हाथ लौटने पर उस ने मुंह से ?ाग वगैरह बहाए और उस की शायरी पर कठोर आलोचना लिख कर चला गया. आश्चर्य है कि उचित सीमा से अधिक पढ़ेलिखे लोग चोर क्यों बन जाते हैं? आलोचक क्यों नहीं बनते?

सहसा याद आया कि पड़ोस में हिंदी के एक कवि के घर चोरी हुई थी. चोर को भ्रम यह था कि आजकल हिंदी में प्रशंसा कम और पैसे अधिक मिलते हैं. उर्दू शायर की तरह नहीं जो गजल सुनाने के बाद जब पैसों की मांग करता है तो संयोजक कहते हैं, ‘‘मुकर्रर, मुकर्रर’’

शायर कहता है, ‘‘पैसे, पैसे.’’

जवाब मिलता है, ‘‘मुकर्रर, मुकर्रर.’’

मतलब यह कि उर्दू शायर को पैसा नहीं मिलता, मुकर्रर मिलता है और चोर इतिहास की सचाई से अच्छी तरह परिचित थे. किसी चोर ने मेरे घर का रुख नहीं किया, क्योंकि मैं भी एक जमाने में शायरी करता था. छोड़ इसलिए दी थी कि वह किसी की समझ में नहीं आती थी. यहां तक कि धीरेधीरे मेरी सम?ा में भी आनी बंद हो गई थी.

अत: मैं ने थाने में टैलीफोन करने से पहले उस हिंदी कवि को टैलीफोन किया और पूछा, ‘‘प्रशांतजी, सुना है आप के निवासस्थान पर चोर पधारा था.’’

वह गर्व से बोले, ‘‘हां, पधारा तो था.’’

मैं ने कहा, ‘‘बड़े खुशकिस्मत हो, यार. इधर हम हैं कि आंखें बिछाए बैठे हैं, लेकिन उन की नजर में चढ़ते ही नहीं. उर्दू में लिखते हैं न. हम पर न समाज की कृपा है न चोर की. मेरी बीवी तो इस गम में सुहाग की चूडि़यां तक तोड़ने पर उतारू है. आप के यहां जो चोर आया था, वह कैसा था?’’

वे बोले, ‘‘बहुत बढि़या. एकदम शानदार.’’

‘‘उस का अतापता बता सकते हो?’’ प्रशांतजी ने बताया, ‘‘मेरी तो उस से नमस्तेवमस्ते भी नहीं हुई, क्योंकि मैं कवि सम्मेलन में गया हुआ था और मेरी बीवी भी वहां वाहवाह करने के लिए पहुंची हुई थी. बच्चे स्कूल गए हुए थे.’’

मैं ने पूछा, ‘‘स्कूल, क्या चोर अब आधुनिक हो गए हैं. रात को सेंध नहीं लगाते, दिनदहाड़े आते हैं. मूल्यवान सूट पहन कर आते हैं. ताला तोड़ते नहीं, बाकायदा चाबी लगा कर खोलते

हैं. इस से चोर मालूम ही नहीं होते, रिश्तेदार मालूम होते हैं और फिर सामान उठा कर यों ले जाते हैं, जैसे चोरी न कर के मकान बदल कर जा रहे हों.’’

फिर मैं ने पूछा, ‘‘तो आप का कौन सा सामान शिफ्ट कर के ले गए?’’

‘‘मेरे सभी नए कपड़े ले गए. फटेपुराने कपड़े छोड़ गए.’’

‘‘कपड़ों के अतिरिक्त और कौन सी फटीपुरानी चीज छोड़ गए?’’

‘‘मेरी बीवी.’’

यह कह कर हिंदी कवि तो हंस दिए, मैं रो दिया. अगर चोरों ने मेरे घर आ कर भी

यही तरीका अपनाया तो… मगर फिर यह सोच कर कुछ आशा बंधी कि हिंदी कवि की बीवी तो दाद देने चली गई थी, मगर मेरी बीवी तो हमेशा घर में रहती है. इसीलिए एहतियात के तौर पर मैं ने चोरों की इस नीति का जिक्र बीवी से नहीं किया और तुरंत पुलिस चौकी का फोन नंबर मिलाने लगा. फोन एगेज निकला. चोरों की ज्यादा मांग और ज्यादा सप्लाई के कारण थाने का टैलीफोन प्राय: ऐंगेज रहने लगा है. इतने में अचानक तड़ाक से एक आवाज आई. आवाज में दहशत थी. फिर क्या देखता हूं कि एक साहब मेरे ड्राइंगरूम के रोशनदान से कूद कर फर्श पर प्रकट हुए और कड़क कर बोले, ‘‘हाथ ऊपर उठाओ.’’

मैं ने पूछा, ‘‘श्रीमान का शुभ नाम?’’

वह बोला, ‘‘मैं चोर हूं.’’

मैं ने चैन की सांस ली और कहा, ‘‘चोर हो? बड़ी देर की मेहरबां आतेआते… मेरी बीवी तो आप को बहुत याद कर रही थी.’’

वह कमीना जैसे राल टपकाते हुए

बोला, ‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘निवेदन यह है कि पड़ोसी के घर में फ्रिज आ जाए तो बीवियां ईर्ष्या के

मारे जल उठती हैं. इसी तरह पासपड़ोस में चोर आने लगे तो भी जल उठती हैं कि हमारे भाग्य में एक चोर भी नहीं. अत: श्रीमान, आप हमारे लिए चोर नहीं फ्रिज हैं.’’

वह जलभुन कर बोला, ‘‘चुप रहो और दोनों हाथ ऊपर उठाओ.’’

मैं उस से कुछ कहना चाहता था लेकिन इस डर से कि कहीं बुरा न मान जाए मैं खामोश रहा. बड़ी मुश्किल से तो एक चोर घर आया था उसे भी नाराज कर दूं. मैं ने तुरंत ही एक मनोरंजक बात छेड़ दी. ‘‘जनाब चोर, आप रोशनदान तोड़ कर अंदर क्यों दाखिल हुए? सामने दरवाजे से पधारते तो अपने संबंधी लगते?’’

वह गरदन फुला कर बोला, ‘‘हम चोर हैं. सीधे रास्ते से आना अपना अपमान सम?ाते हैं.’’

मैं ने प्रशंसा में ताली बजाई, ‘मुकर्रर’ तक मुंह से निकल गया. बीवी को, जो चोर के आते ही मेरी पीठ में शरण ले चुकी थी, मैं ने बधाई दी, ‘‘तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई. थानेदार का एहसान भी नहीं उठाना पड़ा. चोर खुद पधार गया है. इसे नमस्कार करो.’’

मगर बीवी कांप रही थी. चोर दहाड़ा, ‘‘यह क्या तुम ने ताली और मुकर्रर मुकर्रर लगा रखी है? और यह औरत कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘यह एक शरणार्थी है.’’

वह गरजा, ‘‘मजाक बंद करो. मैं पूछता हूं, तुम इस के कौन हो?’’

‘‘मैं शरणार्थी शिविर का रखवाला हूं.’’

चोर में सैंस औफ ह्यूमर होती तो मेरे वाक्य की प्रशंसा करता मगर वह आलोचकोंकी सी आंखें निकाल कर बोला, ‘‘मेरा समय नष्ट मत करो. मुझो अभी 3 और घरों में चोरियां करनी हैं. अलमारी की चाबियां निकालो.’’

‘‘मैं आप के साथ चलूंगा और मार्गदर्शन करूंगा.’’

बीवी ने मेरे कान में कहा, ‘‘आप क्यों इस के साथ जा कर अपनी जान खतरे में डालते हैं? इसे अथार्टी लैटर दे दीजिए, खुद चला जाएगा.’’

मु?ो जीवन में पहली बार मालूम हुआ कि बीवी मुझो अलमारी से ज्यादा कीमती समझाती है.

मगर चोर को जैसे शक होने लगा कि हम इधरउधर की बातें कर के उसे टरका रहे हैं. अत: इस बार उस ने चाकू की नोक मेरी बीवी की गरदन पर रख दी और बोला, ‘‘अपना यह सोने का हार अपनेआप उतार कर मेरे हवाले करती हो या मैं खुद ही छीन लूं?’’

भारतीय नारियां गैर मर्दों से सीधे बात करना सभ्यता के विरुद्ध समझती हैं. अत: बीवी मुझो संबोधित करते हुए बोली, ‘‘इसे कह दीजिए कि यह नकली हार है, असली हार तो 7 दिन पहले सड़क पर एक ने छीन लिया था.’’

मगर मालूम होता था कि सभ्यता के विषय में चोर का ज्ञान मेरी बीवी से अधिक विस्तृत था. बोला, ‘‘तुम्हारा सोने के गहनों का डब्बा तो होगा. वह कहां रखा है?’’

चोर जानता था कि हर भारतीय नारी के पास गहनों का डब्बा अवश्य होता है. भारतीय संस्कृति का विद्वान होने के नाते चोर ने चाकू की नोक बीवी की गरदन पर अधिक जोर से दबाई तो पूरी भारतीय संस्कृति बाहर आ गई. बीवी कहने लगी, ‘‘डब्बा बैंक लौकर में है और यह है बैंक की रसीद और चाबी.’’

अब चोर कुछ अधिक तिलमिला उठा. उस ने हम दोनों को जबरदस्त धक्का दे कर फर्श पर गिरा दिया, कुछ इस कोण से कि हम दोनों जैसे गलबहियां से हो गए. गलबहियों का यह आनंद हमें सिर्फ हनीमून में आया था. चोर अब घर की वस्तुएं उलटपलट करने में व्यस्त हो गया. उसे बीवी के पर्स से दोढाई रुपए की रेजगारी मिली, जो मेरी पतलून से पर्स में और पर्स से चोर की मुट्ठी में जा पहुंची थी. कुछ फटेपुराने मैले वस्त्र मिले, जो हम ने बाढ़ पीडि़त लोगों को भेजने के लिए रख छोड़े थे. भेज इसलिए नहीं सके थे क्योंकि इस बीच कपड़ा बेचने वालों ने कपड़ों के मूल्य ढाई गुना बढ़ा दिए थे और हम नहीं चाहते थे कि एक पीडि़त परिवार दूसरे पीडि़त परिवार की सहायता करे. चोर ने मेरी अलमारी की कुछ पुस्तकें फर्श पर बिखेर दी थीं. उठा कर इसलिए नहीं ले गया, क्योंकि मार्केट में साहित्यिक रद्दी का भाव काफी गिर गया था और इस साहित्यिक धरोहर से एक खरबूजा तक नहीं खरीदा जा सकता था.

जब उसे काम की कोई भी वस्तु नहीं मिली तो वापस जाते हुए उस ने गुस्से में दरवाजा इस तरह जोर से बंद किया कि दरवाजे का एक छोटा शीशा टूट गया. बीवी कानाफूसी करते हुए बोली, ‘‘कमबख्त ख्वाहमख्वाह हमारा शीशा भी तोड़ गया. अब नया शीशा लगवाने के लिए पैसे कहां से लाएंगे?’’

चोर ने शायद सुन लिया और दरवाजे से झांक कर वही ढाई रुपए की रेजगारी मेरी बीवी के मुंह पर दे मारी और बोली, ‘‘भूखेनंगो, यह लो मेरी तरफ से नया शीश लगवा लेना.’’

Family Story in Hindi

Dish Washing Hacks: ऐसे चमकाएं घर के बर्तन

Dish Washing Hacks: घर सजाने से लेकर घर को चमकाए रखना बड़ा काम है, जिसमें सबसे जरूरी हिस्सा किचन का होता है. किचन में खाना बनाने से लेकर बर्तनों की सफाई तक सभी बेहद जरूरी होता है. वही अगर बात बर्तन चमकाने की की जाए तो बर्तन चमकाना बड़ा मुश्क‍िल काम है. उस पर अगर बर्तन जल जाए तो और मुसीबत हो जाती है. अगर आपके बर्तन भी जल गए हैं और अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही पुराने लगने लगे हैं तो आज हम आपको कुछ तरीके  बताएंगे, जिनका इस्तेमाल करके आप अपने बर्तनों को बिना किसी परेशानी के साफ कर सकते हैं. साथ ही उन्हें नए जैसी चमक दे सकती हैं.

1. कांच के बर्तन और कप की सफाई के लिए रीठे के पानी का इस्तेमाल करें. इससे आपके कटलरी नई जैसी लगेगी.

2. पीतल के बर्तन साफ करने के लिए नींबू को आधा काट लें व इस पर नमक छिड़ककर बर्तनों पर रगड़ने से आपके बर्तन चमकने लगेंगे. साथ ही आपके किचन खूबसूरत भी लगेगा.f

3. बर्तनों पर जमे मैल को साफ करने के लिए पानी में थोड़ा-सा सिरका व नींबू का रस डालकर उबाल लें. इससे आपके बर्तन हाइजीन फ्री और क्लीन हो जाएंगे.

4. जले हुए बर्तनों को साफ करने के लिए उसमें एक प्याज डालकर अच्छी तरह उबाल लें. फिर बर्तन साबुन से साफ करें. आपके जले हुए बर्तन दोबारा नए जैसे लगने लगेंगे.

5. एल्यूमीनियम के बर्तनों को चमकाने के लिए बर्तन धोने वाले पाउडर में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बर्तनों को साफ करें. ये आपके बर्तनों को बिना नुकसान पहुंचाए क्लीन करेगा.

6. प्याज का रस और सिरका बराबर मात्रा में लेकर स्टील के बर्तनों पर रगड़ने से बर्तन चमकने लगते हैं.

7. प्रेशर कुकर में लगे दाग-धब्बों को साफ करने के लिए कुकर में पानी, 1 चम्मच वौशिंग पाउडर व आधा नींबू डालकर उबाल लें. बाद में बर्तन साफ करने वाले स्क्रबर से हल्का रगड़कर साफ कर लें.

8. चिकनाई वाले बर्तनों को साफ करने के लिए सिरका कपड़े में लेकर रगड़ें, फिर साबुन से अच्छी तरह धोएं.

Dish Washing Hacks

Hindi Kahaniya: दूसरी चोट-नेहा को क्यों लगता था कि बौस उससे शादी करेंगे

Hindi Kahaniya: इस मल्टीनैशनल कंपनी पर यह दूसरी चोट है. इस से पहले भी एक बार यह कंपनी बिखर सी चुकी है. उस समय कंपनी की एक खूबसूरत कामगार स्नेहा ने अपने बौस पर आरोप लगाया था कि वे कई सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं. उस के साथ सोने के लिए जबरदस्ती करते आ रहे हैं और यह सब बिना शादी की बात किए.

ऐसा नहीं था कि स्नेहा केवल खूबसूरत ही थी, काबिल नहीं. उस ने बीटैक के बाद एमटैक कर रखा था और वह अपने काम में भी माहिर थी. वह बहुत ही शोख, खुशमिजाज और बेबाक थी. उस ने अपनी कड़ी मेहनत से कंपनी को केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी कामयाबी दिलवाई थी.

इस तरह स्नेहा खुद भी तरक्की करती गई थी. उस का पैकेज भी दिनोंदिन मोटा होता जा रहा था. वह बहुत खुश थी. चिडि़या की तरह हरदम चहचहाती रहती थी. उस के आगे अच्छेअच्छे टिक नहीं पाते थे.

पर अचानक स्नेहा बहुत उदास रहने लगी थी. इतनी उदास कि उस से अब छोटेछोटे टारगेट भी पूरे नहीं होते थे.

इसी डिप्रैशन में स्नेहा ने यह कदम उठाया था. वह शायद यह कदम उठाती नहीं, पर एक लड़की सबकुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन अपने प्यार में साझेदारी कभी नहीं.

जी हां, स्नेहा की कंपनी में वैसे तो तमाम खूबसूरत लड़कियां थीं, पर हाल ही में एक नई भरती हुई थी. वह अच्छी पढ़ीलिखी और ट्रेंड लड़की थी. साथ ही, वह बहुत खूबसूरत भी थी. उस ने खूबसूरती और आकर्षण में स्नेहा को बहुत पीछे छोड़ दिया था.

इसी के चलते वह लड़की बौस की खास हो गई थी. बौस दिनरात उसे आगेपीछे लगाए रहते थे. स्नेहा यह सब देख कर कुढ़ रही थी. पलपल उस का खून जल रहा था.

आखिरकार स्नेहा ने एतराज किया, ‘‘सर, यह सब ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या… क्या ठीक नहीं है?’’ बौस ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘आप अपना वादा भूल बैठे हैं.’’

‘‘कौन सा वादा?’’

‘‘मुझ से शादी करने का…’’

‘‘पागल हो गई हो तुम… मैं ने तुम से ऐसा वादा कब किया…? आजकल तुम बहुत बहकीबहकी बातें कर रही हो.’’

‘‘मैं बहक गई हूं या आप? दिनरात उस के साथ रंगरलियां मनाते रहते…’’

बौस ने अपना तेवर बदला, ‘‘देखो स्नेहा, मैं तुम से आज भी उतनी ही मुहब्बत करता

हूं जितनी कल करता था… इतनी छोटीछोटी बातों पर ध्यान

मत दो… तुम कहां से कहां पहुंच

गई हो. अच्छा पैकेज मिल रहा है तुम्हें.’’

‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, अपनी मेहनत से हूं.’’

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं… स्नेहा, तुम समझने की कोशिश करो… मैं किस से मिल रहा हूं… क्या कर रहा हूं, क्या नहीं, इस पर ध्यान मत दो… मैं जोकुछ भी करता हूं वह सब कंपनी की भलाई के लिए करता हूं… तुम्हारी तरक्की में कोई बाधा आए तो मुझ से शिकायत करो… खुद भी जिंदगी का मजा लो और दूसरों को भी लेने दो.’’

पर स्नेहा नहीं मानी. उस ने साफतौर पर बौस से कह दिया, ‘‘मुझे कुछ नहीं पता… मैं बस यही चाहती हूं कि आप वर्षा को अपने करीब न आने दें.’’

‘‘स्नेहा, तुम्हारी समझ पर मुझे अफसोस हो रहा है. तुम एक मौडर्न लड़की हो, अपने पैरों पर खड़ी हो. तुम्हें इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

‘‘आप मुझे 3 बार हिदायत दे चुके हैं कि मैं इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दूं… मेरे लिए यह छोटी बात नहीं है… आप उस वर्षा को इतनी अहमियत न दें, नहीं तो…

‘‘नहीं तो क्या…?’’

‘‘नहीं तो मैं चीखचीख कर कहूंगी कि आप पिछले कई सालों से मेरी बोटीबोटी नोचते रहे हो…’’

बौस अपना सब्र खो बैठे, ‘‘जाओ, जो करना चाहती हो करो… चीखोचिल्लाओ, मीडिया को बुलाओ.’’

स्नेहा ने ऐसा ही किया. सुबह अखबार के पन्ने स्नेहा के बौस की करतूतों से रंगे पड़े थे. टैलीविजन चैनल मसाला लगालगा कर कवरेज को परोस रहे थे.

यह मामला बहुत आगे तक गया. कोर्टकचहरी से होता हुआ नारी संगठनों तक. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी सकते में आ गए. वह यह कि वर्षा का खून हो गया. वर्षा का खून क्यों हुआ? किस ने कराया? यह राज, राज ही रहा. हां, कानाफूसी होती रही कि वर्षा पेट से थी और यह बच्चा बौस का नहीं, कंपनी के बड़े मालिक का था.

इस सारे मामले से उबरने में कंपनी को एड़ीचोटी एक करनी पड़ी. किसी तरह स्नेहा शांत हुई. हां, स्नेहा के बौस की बरखास्तगी पहले ही हो चुकी थी.

कंपनी ने राहत की सांस ली. उसने एक नोटीफिकेशन जारी किया कि कंपनी में काम कर रही सारी लड़कियां और औरतें जींसटौप जैसे मौडर्न कपड़े न पहन कर आएं.

कंपनी के नोटीफिकेशन में मर्दों के लिए भी हिदायतें थीं. उन्हें भी मौडर्न कपड़े पहनने से गुरेज करने को कहा गया. जींसपैंट और टाइट टीशर्ट पहनने की मनाही की गई.

इन निर्देशों का पालन भी हुआ, फिर भी मर्दऔरतों के बीच पनप रहे प्यार के किस्सों की भनक ऊपर तक पहुंच गई.

एक बार फिर एक अजीबोगरीब फैसला लिया गया. वह यह कि धीरेधीरे कंपनी से लेडीज स्टाफ को हटाया जाने लगा. गुपचुप तरीके से 1-2 कर के जबतब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसीकिसी को कहीं और शिफ्ट किया जाने लगा.

दूसरी तरफ लड़कियों की जगह कंपनी में लड़कों की बहाली की जाने लगी. इस का एक अच्छा नतीजा यह रहा कि इस कंपनी में तमाम बेरोजगार लड़कों की बहाली हो गई.

इस कंपनी की देखादेखी दूसरी मल्टीनैशनल कंपनियों ने भी यही कदम उठाया. इस तरह देखते ही देखते नौजवान बेरोजगारों की तादाद कम होने लगी. उन्हें अच्छा इनसैंटिव मिलने लगा. बेरोजगारों के बेरौनक चेहरों पर रौनक आने लगी.

पहले इस कंपनी की किसी ब्रांच में जाते तो रिसैप्शन पर मुसकराती हुई, लुभाती हुई, आप का स्वागत करती हुई लड़कियां ही मिलती थीं. उन के जनाना सैंट और मेकअप से रोमरोम में सिहरन पैदा हो जाती थी. नजर दौड़ाते तो चारों तरफ लेडीज चेहरे ही नजर आते. कुछ कंप्यूटर और लैपटौप से चिपके, कुछ इधरउधर आतेजाते.

पर अब मामला उलटा था. अब रिसैप्शन पर मुसकराते हुए नौजवानों से सामना होता. ऐसेऐसे नौजवान जिन्हें देख कर लोग दंग रह जाते. कुछ तगड़े, कुछ सींक से पतले. कुछ के लंबेलंबे बाल बिलकुल लड़कियों जैसे और कुछ के बहुत ही छोटेछोटे, बेतरतीब बिखरे हुए.

इन नौजवानों की कड़ी मेहनत और हुनर से अब यह कंपनी अपने पिछले गम भुला कर धीरेधीरे तरक्की के रास्ते पर थी. नौजवानों ने दिनरात एक कर के, सुबह

10 बजे से ले कर रात 10 बजे तक कंप्यूटर में घुसघुस कर योजनाएं बनाबना कर और हवाईजहाज से उड़ानें भरभर कर एक बार फिर कंपनी में जान डाल दी थी.

इसी बीच एक बार फिर कंपनी को दूसरी चोट लगी. कंपनी के एक नौजवान ने अपने बौस पर आरोप लगाया कि वे पिछले 2 सालों से उस का यौन शोषण करते आ रहे हैं.

उस नौजवान के बौस भी खुल कर सामने आ गए. वे कहने लगे, ‘‘हां, हम दोनों के बीच ऐसा होता रहा है… पर यह सब हमारी रजामंदी से होता रहा?है.’’

बौस ने उस नौजवान को बुला कर समझाया भी, ‘‘यह कैसी नादानी है?’’

‘‘नादानी… नादानी तो आप कर रहे हैं सर.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, और कौन? आप अपना वादा भूल रहे हैं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘मेरे साथ जीनेमरने का… मुझ से शादी करने का.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या?’’

‘‘दिमाग तो आप का खराब हो गया है, जो आप मुझ से नहीं, एक लड़की से शादी करने जा रहे हैं.’’

Hindi Kahaniya

Emotional Story: एक डाली के तीन फूल

Emotional Story: भाई साहब की चिट्ठी मेरे सामने मेज पर पड़ी थी. मैं उसे 3 बार पढ़ चुका था. वैसे जब औफिस संबंधी डाक के साथ भाई साहब की चिट्ठी भी मिली तो मैं चौंक गया, क्योंकि एक लंबे अरसे से हमारे  बीच एकदूसरे को पत्र लिखने का सिलसिला लगभग खत्म हो गया था. जब कभी भूलेभटके एकदूसरे का हाल पूछना होता तो या तो हम टेलीफोन पर बात कर लिया करते या फिर कंप्यूटर पर 2 पंक्तियों की इलेक्ट्रौनिक मेल भेज देते.

दूसरी तरफ  से तत्काल कंप्यूटर की स्क्रीन पर 2 पंक्तियों का जवाब हाजिर हो जाता, ‘‘रिसीव्ड योर मैसेज. थैंक्स. वी आर फाइन हियर. होप यू…’’ कंप्यूटर की स्क्रीन पर इस संक्षिप्त इलेक्ट्रौनिक चिट्ठी को पढ़ते हुए ऐसा लगता जैसे कि 2 पदाधिकारी अपनी राजकीय भाषा में एकदूसरे को पत्र लिख रहे हों. भाइयों के रिश्तों की गरमाहट तनिक भी महसूस नहीं होती.

हालांकि भाई साहब का यह पत्र भी एकदम संक्षिप्त व बिलकुल प्रासंगिक था, मगर पत्र के एकएक शब्द हृदय को छूने वाले थे. इस छोटे से कागज के टुकड़े पर कलम व स्याही से भाई साहब की उंगलियों ने जो चंद पंक्तियां लिखी थीं वे इतनी प्रभावशाली थीं कि तमाम टेलीफोन कौल व हजार इलेक्ट्रौनिक मेल इन का स्थान कभी भी नहीं ले सकती थीं. मेरे हाथ चिट्ठी की ओर बारबार बढ़ जाते और मैं हाथों में भाई साहब की चिट्ठी थाम कर पढ़ने लग जाता.

प्रिय श्याम,

कई साल बीत गए. शायद मां के गुजरने के बाद हम तीनों भाइयों ने कभी एकसाथ दीवाली नहीं मनाई. तुम्हें याद है जब तक मां जीवित थीं हम तीनों भाई देश के चाहे किसी भी कोने में हों, दीवाली पर इकट्ठे होते थे. क्यों न हम तीनों भाई अपनेअपने परिवारों सहित एक छत के नीचे इकट्ठा हो कर इस बार दीवाली को धूमधाम से मनाएं व अपने रिश्तों को मधुरता दें. आशा है तुम कोई असमर्थता व्यक्त नहीं करोगे और दीवाली से कम से कम एक दिन पूर्व देहरादून, मेरे निवास पर अवश्य पहुंच जाओगे. मैं गोपाल को भी पत्र लिख रहा हूं.

तुम्हारा भाई,

मनमोहन.

दरअसल, मां के गुजरने के बाद, यानी पिछले 25 सालों से हम तीनों भाइयों ने कभी दीवाली एकसाथ नहीं मनाई. जब तक मां जीवित थीं हम तीनों भाई हर साल दीवाली एकसाथ मनाते थे. मां हम तीनों को ही दीवाली पर गांव, अपने घर आने को बाध्य कर देती थीं. और हम चाहे किसी भी शहर में पढ़ाई या नौकरी कर रहे हों दीवाली के मौके पर अवश्य एकसाथ हो जाते थे.

हम तीनों मां के साथ लग कर गांव के अपने उस छोटे से घर को दीयों व मोमबत्तियों से सजाया करते. मां घर के भीतर मिट्टी के बने फर्श पर बैठी दीवाली की तैयारियां कर रही होतीं और हम तीनों भाई बाहर धूमधड़ाका कर रहे होते. मां मिठाई से भरी थाली ले कर बाहर चौक पर आतीं, जमीन पर घूमती चक्कर घिन्नियों व फूटते बम की चिनगारियों में अपने नंगे पैरों को बचाती हुई हमारे पास आतीं व मिठाई एकएक कर के हमारे मुंह में ठूंस दिया करतीं.

फिर वह चौक से रसोईघर में जाती सीढि़यों पर बैठ जाया करतीं और मंत्रमुग्ध हो कर हम तीनों भाइयों को मस्ती करते हुए निहारा करतीं. उस समय मां के चेहरे पर आत्मसंतुष्टि के जो भाव रहते थे, उन से ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि दुनिया जहान की खुशियां उन के घर के आंगन में थिरक रही हैं.

हम केवल अपनी मां को ही जानते थे. पिता की हमें धुंधली सी ही याद थी. हमें मां ने ही बताया था कि पूरा गांव जब हैजे की चपेट में आया था तो हमारे पिता भी उस महामारी में चल बसे थे. छोटा यानी गोपाल उस समय डेढ़, मैं साढ़े 3 व भाई साहब 8 वर्ष के थे. मां के परिश्रमों, कुर्बानियों का कायल पूरा गांव रहता था. वस्तुत: हम तीनों भाइयों के शहरों में जा कर उच्च शिक्षा हासिल करने, उस के बाद अच्छे पदों पर आसीन होने में मां के जीवन के घोर संघर्ष व कई बलिदान निहित थे.

मां हम से कहा करतीं, तुम एक डाली के 3 फूल हो. तुम तीनों अलगअलग शहरों में नौकरी करते हो. एक छत के नीचे एकसाथ रहना तुम्हारे लिए संभव नहीं, लेकिन यह प्रण करो कि एकदूसरे के सुखदुख में तुम हमेशा साथ रहोगे और दीवाली हमेशा साथ मनाओगे.’

हम तीनों भाई एक स्वर में हां कर देते, लेकिन मां संतुष्ट न होतीं और फिर बोलतीं, ‘ऐसे नहीं, मेरे सिर पर हाथ रख कर प्रतिज्ञा करो.’

हम तीनों भाई आगे बढ़ कर मां के सिर पर हाथ रख कर प्रतिज्ञा करते, मां आत्मविभोर हो उठतीं. उन की आंखों से खुशी के आंसू छलक जाते.

मां के मरने के बाद गांव छूटा. दीवाली पर इकट्ठा होना छूटा. और फिर धीरेधीरे बहुतकुछ छूटने लगा. आपसी निकटता, रिश्तों की गरमी, त्योहारों का उत्साह सभीकुछ लुप्त हो गया.

कहा जाता है कि खून के रिश्ते इतने गहरे, इतने स्थायी होते हैं कि कभी मिटते नहीं हैं, मगर दूरी हर रिश्ते को मिटा देती है. रिश्ता चाहे दिल का हो, जज्बात का हो या खून का, अगर जीवंत रखना है तो सब से पहले आपस की दूरी को पाट कर एकदूसरे के नजदीक आना होगा.

हम तीनों भाई एकदूसरे से दूर होते गए. हम एक डाली के 3 फूल नहीं रह गए थे. हमारी अपनी टहनियां, अपने स्तंभ व अपनी अलग जड़ बन गई थीं. भाई साहब देहरादून में मकान बना कर बस गए थे. मैं मुंबई में फ्लैट खरीद कर व्यवस्थित हो गया था. गोपाल ने बेंगलुरु में अपना मकान बना लिया था. तीनों के ही अपनेअपने मकान, अपनेअपने व्यवसाय व अपनेअपने परिवार थे.

मैं विचारों में डूबा ही था कि मेरी बेटी कनक ने कमरे में प्रवेश किया. मु झे इस तरह विचारमग्न देख कर वह ठिठक गई. चिहुंक कर बोली, ‘‘आप इतने सीरियस क्यों बैठे हैं, पापा? कोई सनसनीखेज खबर?’’ उस की नजर मेज पर पड़ी चिट्ठी पर गई. चिट्ठी उठा कर वह पढ़ने लगी.

‘‘तुम्हारे ताऊजी की है,’’ मैं ने कहा.

‘‘ओह, मतलब आप के बिग ब्रदर की,’’ कहते हुए उस ने चिट्ठी को बिना पढ़े ही छोड़ दिया. चिट्ठी मेज पर गिरने के बजाय नीचे फर्श पर गिर कर फड़फड़ाने लगी.

भाई साहब के पत्र की यों तौहीन होते देख मैं आगबबूला हो गया. मैं ने लपक कर पत्र को फर्श से उठाया व अपनी शर्ट की जेब में रखा, और फिर जोर से कनक पर चिल्ला पड़ा, ‘‘तमीज से बात करो. वह तुम्हारे ताऊजी हैं. तुम्हारे पापा के बड़े भाई.’’

‘‘मैं ने उन्हें आप का बड़ा भाई ही कहा है. बिग ब्रदर, मतलब बड़ा भाई,’’ मेरी 18 वर्षीय बेटी मु झे ऐसे सम झाने लगी जैसे मैं ने अंगरेजी की वर्णमाला तक नहीं पड़ी हुई है.

‘‘क्या बात है? जब देखो आप बच्चों से उल झ पड़ते हो,’’ मेरी पत्नी मीना कमरे में घुसते हुए बोली.

‘‘ममा, देखो मैं ने पापा के बड़े भाई को बिग ब्रदर कह दिया तो पापा मु झे लैक्चर देने लगे कि तुम्हें कोई तमीज नहीं, तुम्हें उन्हें तावजी पुकारना चाहिए.’’

‘‘तावजी नहीं, ताऊजी,’’ मैं कनक पर फिर से चिल्लाया.

‘‘हांहां, जो कुछ भी कहते हों. तावजी या ताऊजी, लेकिन मतलब इस का यही है न कि आप के बिग ब्रदर.’’

‘‘पर तुम्हारे पापा के बिग ब्रदर… मतलब तुम्हारे ताऊजी का जिक्र कैसे आ गया?’’ मीना ने शब्दों को तुरंत बदलते हुए कनक से पूछा.

‘‘पता नहीं, ममा, उस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा है जिसे पढ़ने के बाद पापा के दिल में अपने बिग ब्रदर के लिए एकदम से इतने आदरभाव जाग गए, नहीं तो पापा पहले कभी उन का नाम तक नहीं लेते थे.’’

‘‘चिट्ठी…कहां है चिट्ठी?’’ मीना ने अचरज से पूछा.

मैं ने चिट्ठी चुपचाप जेब से निकाल कर मीना की ओर बढ़ा दी.

चिट्ठी पढ़ कर मीना एकदम से बोली, ‘‘आप के भाई साहब को अचानक अपने छोटे भाइयों पर इतना प्यार क्यों उमड़ने लगा? कहीं इस का कारण यह तो नहीं कि रिटायर होने की उम्र उन की करीब आ रही है तो रिश्तों की अहमियत उन्हें सम झ में आने लगी हो?’’

‘‘3 साल बाद भाई साहब रिटायर होंगे तो उस के 5 साल बाद मैं हो जाऊंगा. एक न एक दिन तो हर किसी को रिटायर होना है. हर किसी को बूढ़ा होना है. बस, अंतर इतना है कि किसी को थोड़ा आगे तो किसी को थोड़ा पीछे,’’ एक क्षण रुक कर मैं बोला, ‘‘मीना, कभी तो कुछ अच्छा सोच लिया करो. हर समय हर बात में किसी का स्वार्थ, फरेब मत खोजा करो.’’

मीना ने ऐलान कर दिया कि वह दीवाली मनाने देहरादून भाईर् साहब के घर नहीं जाएगी. न जाने के लिए वह कभी कुछ दलीलें देती तो कभी कुछ, ‘‘आप की अपनी कुछ इज्जत नहीं. आप के भाई ने पत्र में एक लाइन लिख कर आप को बुलाया और आप चलने के लिए तैयार हो गए एकदम से देहरादून एक्सप्रैस में, जैसे कि 24 साल के नौजवान हों. अगले साल 50 के हो जाएंगे आप.’’

‘‘मीना, पहली बात तो यह कि अगर एक भाई अपने दूसरे भाई को अपने आंगन में दीवाली के दीये जलाने के लिए बुलाए तो इस में आत्मसम्मान की बात कहां से आ जाती है? दूसरी बात यह कि यदि इतना अहंकार रख कर हम जीने लग जाएं तो जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘मुझे दीवाली के दिन अपने घर को अंधेरे में रख कर आप के भाई साहब का घर रोशन नहीं करना. लोग कहते हैं कि दीवाली अपने ही में मनानी चाहिए,’’ मीना  झट से दूसरी तरफ की दलीलें देने लग जाती.

‘‘मीना, जिस तरीके से हम दीवाली मनाते हैं उसे दीवाली मनाना नहीं कहते. सब में हम अपने इन रीतिरिवाजों के मामले में इतने संकीर्ण होते जा रहे हैं कि दीवाली जैसे जगमगाते, हर्षोल्लास के त्योहार को भी एकदम बो िझल बना दिया है. न पहले की तरह घरों में पकवानों की तैयारियां होती हैं, न घर की साजसज्जा और न ही नातेरिश्तेदारों से कोई मेलमिलाप. दीवाली से एक दिन पहले तुम थके स्वर में कहती हो, ‘कल दीवाली है, जाओ, मिठाई ले आओ.’ मैं यंत्रवत हलवाई की दुकान से आधा किलो मिठाई ले आता हूं. दीवाली के रोज हम घर के बाहर बिजली के कुछ बल्ब लटका देते हैं. बच्चे हैं कि दीवाली के दिन भी टेलीविजन व इंटरनैट के आगे से हटना पसंद नहीं करते हैं.’’

थोड़ी देर रुक कर मैं ने मीना से कहा, ‘‘वैसे तो कभी हम भाइयों को एकसाथ रहने का मौका मिलता नहीं, त्योहार के बहाने ही सही, हम कुछ दिन एक साथ एक छत के नीचे तो रहेंगे.’’ मेरा स्वर एकदम से आग्रहपूर्ण हो गया, ‘‘मीना, इस बार भाई साहब के पास चलो दीवाली मनाने. देखना, सब इकट्ठे होंगे तो दीवाली का आनंद चौगुना हो जाएगा.’’

मीना भाई साहब के यहां दीवाली मनाने के लिए तैयार हो गई. मैं, मीना, कनक व कुशाग्र धनतेरस वाले दिन देहरादून भाईर् साहब के बंगले पर पहुंच गए. हम सुबह पहुंचे. शाम को गोपाल पहुंच गया अपने परिवार के साथ.

मुझे व गोपाल को अपनेअपने परिवारों सहित देख भाई साहब गद्गद हो गए. गर्वित होते हुए पत्नी से बोले, ‘‘देखो, मेरे दोनों भाई आ गए. तुम मुंह बनाते हुए कहती थीं न कि मैं इन्हें बेकार ही आमंत्रित कर रहा हूं, ये नहीं आएंगे.’’

‘‘तो क्या गलत कहती थी. इस से पहले क्या कभी आए हमारे पास कोई उत्सव, त्योहार मनाने,’’ भाभीजी तुनक कर बोलीं.

‘‘भाभीजी, आप ने इस से पहले कभी बुलाया ही नहीं,’’ गोपाल ने  झट से कहा. सब खिलखिला पड़े.

25 साल के बाद तीनों भाई अपने परिवार सहित एक छत के नीचे दीवाली मनाने इकट्ठे हुए थे. एक सुखद अनुभूति थी. सिर्फ हंसीठिठोली थी. वातावरण में कहकहों व ठहाकों की गूंज थी. भाभीजी, मीना व गोपाल की पत्नी के बीच बातों का वह लंबा सिलसिला शुरू हो गया था, जिस में विराम का कोई भी चिह्न नहीं था. बच्चों के उम्र के अनुरूप अपने अलग गुट बन गए थे. कुशाग्र अपनी पौकेट डायरी में सभी बच्चों से पूछपूछ कर उन के नाम, पते, टैलीफोन नंबर व उन की जन्मतिथि लिख रहा था.

सब से अधिक हैरत मु झे कनक को देख कर हो रही थी. जिस कनक को मु झे मुंबई में अपने पापा के बड़े भाई को इज्जत देने की सीख देनी पड़ रही थी, वह यहां भाई साहब को एक मिनट भी नहीं छोड़ रही थी. उन की पूरी सेवाटहल कर रही थी. कभी वह भाईर् साहब को चाय बना कर पिला रही थी तो कभी उन्हें फल काट कर खिला रही थी. कभी वह भाई साहब की बांह थाम कर खड़ी हो जाती तो कभी उन के कंधों से  झूल जाया करती. भाई साहब मु झ से बोले, ‘‘श्याम, कनक को तो तू मेरे पास ही छोड़ दे. लड़कियां बड़ी स्नेही होती हैं.’’

भाई साहब के इस कथन से मु झे पहली बार ध्यान आया कि भाई साहब की कोई लड़की नहीं है. केवल 2 लड़के ही हैं. मैं खामोश रहा, लेकिन भीतर ही भीतर मैं स्वयं से बोलने लगा, ‘यदि हमारे बच्चे अपने रिश्तों को नहीं पहचानते तो इस में उन से अधिक हम बड़ों का दोष है. कनक वास्तव में नहीं जानती थी कि पापा के बिग ब्रदर को ताऊजी कहा जाता है. जानती भी कैसे, इस से पहले सिर्फ 1-2 बार दूर से उस ने अपने ताऊजी को देखा भर ही था. ताऊजी के स्नेह का हाथ कभी उस के सिर पर नहीं पड़ा था. ये रिश्ते बताए नहीं जाते हैं, एहसास करवाए जाते हैं.’’

दीवाली की संध्या आ गई. भाभीजी, मीना व गोपाल की पत्नी ने विशेष पकवान व विविध व्यंजन बनाए. मैं ने, भाई साहब व गोपाल के घर को सजाने की जिम्मेदारी ली. हम ने छत की मुंडेरों, आंगन की दीवारों, कमरों की सीढि़यों व चौखटों को चिरागों से सजा दिया. बच्चे किस्मकिस्म के पटाखे फोड़ने लगे. फुल झड़ी, अनार, चक्कर घिन्नियों की चिनगारियां उधरउधर तेजी से बिखरने लगीं. बिखरती चिनगारियों से अपने नंगे पैरों को बचाते हुए भाभीजी मिठाई का थाल पकड़े मेरे पास आईं और एक पेड़ा मेरे मुंह में डाल दिया. इस दृश्य को देख भाई साहब व गोपाल मुसकरा पड़े. मीना व गोपाल की पत्नी ताली पीटने लगीं, बच्चे खुश हो कर तरहतरह की आवाजें निकालने लगे.

कुशाग्र मीना से कहने लगा, ‘‘मम्मी, मुंबई में हम अकेले दीवाली मनाते थे तो हमें इस का पता नहीं चलता था. यहां आ कर पता चला कि इस में तो बहुत मजा है.’’

‘‘मजा आ रहा है न दीवाली मनाने में. अगले साल सब हमारे घर मुंबई आएंगे दीवाली मनाने,’’ मीना ने चहकते हुए कहा.

‘‘और उस के अगले साल बेंगलुरु, हमारे यहां,’’ गोपाल की पत्नी तुरंत बोली.

‘‘हां, श्याम और गोपाल, अब से हम बारीबारी से हर एक के घर दीवाली साथ मनाएंगे. तुम्हें याद है, मां ने भी हमें यही प्रतिज्ञा करवाई थी,’’ भाई साहब हमारे करीब आ कर हम दोनों के कंधों पर हाथ रख कर बोले.

हम दोनों ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई. इतने में मेरी नजर छत की ओर जाती सीढि़यों पर बैठी भाभीजी पर पड़ी, जो मिठाइयों से भरा थाल हाथ में थामे मंत्रमुग्ध हम सभी को देख रही थीं. सहसा मु झे भाभीजी की आकृति में मां की छवि नजर आने लगी, जो हम से कह रही थी, ‘तुम एक डाली के 3 फूल हो.’

Emotional Story

Drama Story: सबसे बड़ा गिफ्ट- क्या था नेहा का राहुल के लिए एक तोहफा?

Drama Story: राहुल रविवार के दिन सुबह जब नींद से जागा तो टैलीफोन की घंटी लगातार बज रही थी. अकसर ऐसी स्थिति में नेहा टैलीफोन अटैंड कर लेती थी. रोज जो बैड टी, बैड के पास के टेबल पर रख कर उसे जगाया जाता था, आज वह भी मिसिंग थी.

नेहा को आवाज लगाई तो भी कोई उत्तर न पा राहुल खुद बिस्तर से उठ कर टैलीफोन तक गया.

‘‘हैलो, मैं नेहा बोल रही हूं,’’ दूसरी तरफ से नेहा की ही आवाज थी.

‘‘कहां से बोल रही हो?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘मैं ने एक अपार्टमैंट किराए पर ले लिया है. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती.’’

‘‘देखो, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं,’’ राहुल ने कहा.

‘‘मैं वैसा ही करूंगी जैसा मैं सोच चुकी हूं,’’ नेहा ने बड़े इतमीनान से कहा, ‘‘तुम चाहते हो कि तुम कोई काम न करो, मैं कमा कर लाऊं और घर मेरी कमाई से ही चले, ऐसा कब तक चलेगा? मैं तुम से तलाक नहीं लूंगी. बस तब तक अकेली रहूंगी, जब तक तुम कोई काम नहीं ढूंढ़ लोगे. मैं तुम्हें जीजान से चाहती हूं, मगर तुम्हें इस स्थिति में नहीं देखना चाहती कि तुम मेरे रहमोकरम पर ही रहो. मैं तुम्हारे नाम के साथ तभी जुड़ूंगी, जब तुम कुछ कर दिखाओगे.’’

‘‘तुम अपने मांबाप के घर भी तो रह सकती हो. वे बहुत अमीर हैं. वहां आराम से और सब सुखसुविधाओं के बीच रहोगी,’’ राहुल ने सलाह दी तो बगैर तैश में आए नेहा का उत्तर था, ‘‘मैं उन के पास तो बिलकुल नहीं जाऊंगी. मेरे आत्मसम्मान को यह मंजूर नहीं है. हां, मैं संपर्क सब के साथ रखूंगी, लेकिन तुम्हारे साथ रहना मुझे तभी मंजूर होगा जब तुम जिंदगी में किसी काबिल बन जाओगे.’’

क्षण भर के लिए राहुल किंकर्तव्यविमूढ हो  गया. उस ने ऐसा कभी सोचा भी न था कि नेहा इस तरह उसे अचानक छोड़ कर अकेले जीवन बिताने का कदम उठा लेगी. उस ने नेहा से कहा, ‘‘यदि तुम ने अलग रहने का फैसला कर ही लिया है तो अपने पापा को इस विषय में सूचना दे दो.’’

नेहा ने राहुल की सलाह मान ली. उस के पापा ने जब उसे मायके आने के लिए कहा तो नेहा ने कहा, ‘‘पापा, आप ने पढ़ालिखा कर मुझे इस काबिल बनाया है कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. मैं राहुल को तलाक नहीं दे रही हूं. आप को पता है कि मैं राहुल को बहुत चाहती हूं. आप के और ममा के विरोध के बावजूद मैं ने राहुल से विवाह किया. मैं तो बस इतना चाहती हूं कि राहुल को उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दूं, जहां वह कुछ बन कर दिखाए.’’

नेहा की बात उस के पापा की समझ में आ गई. उन्होंने कहा, ‘‘नेहा, इस रचनात्मक कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूं. फिर भी यदि कभी सहायता की जरूरत हो तो संकोच न करना, मुझे बता देना.’’

राहुल को इस तरह नेहा का अचानक उसे छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसे इस बात से बहुत राहत मिली कि नेहा ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि स्थिति बदली और राहुल ने या तो कोई व्यवसाय कर लिया या अपनी काबिलीयत के आधार पर कोई अच्छी नौकरी कर ली, तो वह उस की जिंदगी में फिर वापस आएगी. नेहा ने राहुल को यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसे सारा ध्यान अपने बेहतर भविष्य और कैरियर पर लगाना चाहिए.

वह उस से मिलने की भी कोशिश न करे, न ही मोबाइल पर लंबीचौड़ी बातें करे. राहुल को तब बहुत बुरा लगा जब उस ने अपना पता तो बता दिया, लेकिन साथ में यह भी कह दिया कि वह उस के घर पर न आए. वह तब ही आ कर उस से मिल सकता है, जब आय के अच्छे साधन जुटा ले और जिंदगी में उस की उपलब्धियां बताने लायक हों.

नेहा को इस बात का बहुत संतोष था कि अब तक उस की कोई औलाद नहीं थी और वह स्वतंत्रतापूर्वक दफ्तर के कार्य पर पूरा ध्यान और समय दे सकती थी. नेहा के बौस उम्रदराज और इंसानियत में यकीन रखने वाले सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए नेहा को दफ्तर के वातावरण में पूरी सुरक्षा और सम्मान हासिल था. एक योग्य, स्मार्ट और आधुनिक महिला के रूप में उस की छवि बहुत अच्छी थी, दफ्तर के सहकर्मी उस का आदर करते थे.

कालेज की कैंटीन में राहुल ने नेहा को पहली बार देखा था. वह अपनी बहन सीमा का दाखिला बी.ए. में करवाने के लिए वहां गया था. पहली नजर में नेहा उसे बहुत सुंदर लगी. वह अपनी सहेलियों के साथ कैंटीन में थी. बाद में उसे देखने के लिए वह सीमा को कालेज छोड़ने के बहाने से जाने लगा. नेहा को भी बारबार दिखने पर राहुल का व्यक्तित्व, चालढाल, तौरतरीका आकर्षक लगा.

फिर सीमा से कह कर उस ने नेहा से परिचय कर ही लिया. बाद में जब उन्होंने शादी की तब राहुल पोस्ट ग्रैजुएट था लेकिन कोई नौकरी नहीं कर रहा था और नेहा एम.बी.ए. करने के बाद नौकरी करने लगी थी.

राहुल से अलग रहने में नेहा ने कोई कष्ट अनुभव नहीं किया, क्योंकि यह उस का अपना सोचासमझा फैसला था. दृढ़ निश्चय और स्पष्ट सोच के कारण अपने बौस की पर्सनल सैक्रेटरी का काम वह बखूबी कर रही थी. धीरेधीरे औफिस में बौस के साथ उस की नजदीकियां बढ़ रही थीं.

ऐसे में उन्हें कोई गलतफहमी न हो जाए, इस के लिए उस ने अपने संबंध के विषय में स्पष्ट करते हुए एक दिन उन से कहा, ‘‘सर, मैं अपने पति से अलग भले ही रह रही हूं किंतु मेरा पति के पास वापस जाना निश्चित है. फ्लर्टिंग में मैं यकीन नहीं रखती हूं. हां, महीने में 1-2 बार डिनर या लंच पर मैं आप के साथ किसी अच्छे रेस्तरां में जाना पसंद करूंगी.

वह भी इस खयाल से कि अगर इस बात की खबर राहुल को पहुंची या कभी आप के साथ आतेजाते उस ने देख लिया तो या तो उसे आप से ईर्ष्या होगी या इस बात का टैस्ट हो जाएगा कि वह मुझ पर कितना विश्वास करता है. दूर रहने पर संदेह पैदा होने में देर नहीं लगती.’’

उधर अपनी योग्यता के बल पर और कई इंटरव्यू दे कर राहुल एक अच्छी नौकरी पा चुका था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उसे पब्लिक रिलेशन औफिसर के पद पर काम करने का अवसर मिल चुका था.

नौकरी शुरू करने के 2 महीने बाद राहुल ने नेहा को फोन पर इस विषय में सूचना दी, ‘‘नेहा, मैं पिछले 2 महीने से नौकरी कर रहा हूं.’’

‘‘बधाई हो राहुल, मुझे पता था कि तुम्हारी अच्छाइयां एक दिन जरूर रंग लाएंगी.’’

राहुल को बहुत समय बाद नेहा से बात करने का मौका मिला था. उस की खुशी फोन पर बात करते समय नेहा को महसूस हो रही थी. वह भी बहुत खुश थी. राहुल ने कहा, ‘‘अभी फोन मत काटना, कुछ और भी कहना चाहता हूं. बातें और करनी हैं. नेहा, वापस मेरे पास आने के बारे में जल्दी फैसला करना…’’

राहुल अपने विषय में बहुत कुछ बताना चाहता था लेकिन नेहा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मेरे बौस अपने चैंबर में मेरा इंतजार कर रहे हैं. एक मीटिंग के लिए मुझे पेपर्स तैयार करने हैं. जो बातें तुम पूछ रहे हो, उस विषय में मैं बाद में बात करूंगी.’’

जिस तरह सोना आग में तपतप कर कुंदन बनता है, ठीक वैसे ही राहुल ने जीजान से मेहनत की. उसे कंपनी ने विदेशों में प्रशिक्षण के लिए भेजा और 1 वर्ष के भीतर ही पदोन्नति दी. राहुल, जिस में शुरुआत में आत्मविश्वास व इच्छाशक्ति की कमी थी, अब एक सफल अधिकारी बन चुका था. उस के पास आने की बात का नेहा से कोई उत्तर न मिलने पर उस में क्रोध जैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह नेहा को उस के प्रति छिपे प्यार को पहचान रहा था.

मन से नेहा उस के पास आने को आतुर थी, मगर इस बात के लिए न तो वह पहल करना चाहती थी, न ही जल्दबाजी में कोई निर्णय लेना चाहती थी.

नेहा के पापा और ममा ने कभी ऐसी भूमिका नहीं अदा की कि वे नेहा और राहुल के आत्मसम्मान के खिलाफ कोई काम करें. नेहा को पता भी नहीं चला कि उस के पापा राहुल को फोन कर के उस का हालचाल जानते रहते हैं और अपनी तरफ से उसे उस के अच्छे कैरियर के लिए मार्गदर्शन देते रहते हैं. राहुल के पिता का देहांत उस के बचपन में ही हो चुका था. राहुल के घर पर उस की मां और बहन के अलावा और कोई नहीं था. बहुत छोटी फैमिली थी उस की.

नेहा के बौस ने एक दिन नेहा को बताया कि उसे उन के साथ एक मीटिंग में दिल्ली चलना है. लैपटौप पर कुछ रिपोर्ट्स बना कर साथ ले जानी हैं और कुछ काम दिल्ली के कार्यालय में भी करना होगा. वहां जाने पर कामकाज की बेहद व्यस्तता होने पर भी वे समय निकाल कर नेहा को डिनर के लिए कनाट प्लेस के एक अच्छे रेस्तरां में ले गए. डिनर तो एक बहाना था. दरअसल, वे संक्षेप में अपने जीवन के बारे में कुछ बातें नेहा के साथ शेयर करना चाहते थे.

‘‘नेहा, तुम ने एक दिन मुझ से स्पष्ट बात की थी कि तुम फ्लर्ट करने में विश्वास नहीं करती हो. लेकिन किसी को पसंद करना फ्लर्ट करना नहीं होता. मैं तुम्हारे निर्मल स्वभाव और अच्छे कामकाज की वजह से तुम्हें पसंद करता हूं. तुम स्मार्ट हो, हर काम लगन से समय पर करती हो, दफ्तर में सब सहकर्मी भी तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं.’’ बौस के ऐसा कहने पर नेहा ने बहुत आदर के साथ अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए, ‘‘सर, जो बातें आप बता रहे हैं उन्हें मैं महसूस करती हूं. आप को ले कर मुझे औफिस में कोई असुरक्षा की भावना नहीं है. आप ने मेरा पूरा खयाल रखा है.’’

वे आगे बोले, ‘‘मैं अपनी पर्सनल लाइफ किसी के साथ शेयर नहीं करता. लेकिन न जाने क्यों दिल में यह बात उठी कि तुम से अपने मन की बात कहूं. तुम में मुझे अपनापन महसूस होता है. अगर मेरा विवाह हुआ होता तो शायद तुम्हारी जैसी मेरी एक बेटी होती. बचपन में ही मांबाप का साया सिर से उठ गया था. तब से अब तक मैं बिलकुल अकेला हूं. घर पर जाता हूं तो घर काटने को दौड़ता है.

दोस्त हैं लेकिन कहने को. सब स्वार्थ से जुड़े हैं. कोई रिश्तेदार शहर में नहीं है. शायद तुम्हें मेरे हावभाव या व्यवहार से ऐसा लगा हो कि मेरी तरफ से फ्लर्ट करने जैसी कोई कोशिश जानेअनजाने में हो गई है. लेकिन ऐसा नहीं है. मैं ने मांबाप को खोने के बाद मन में कभी यह बात आने नहीं दी कि मैं विवाह करूंगा. मेरी जिंदगी में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है.’’

नेहा भी थोड़ी भावुक हो गई. उसे लगा कि जिंदगी में सच्चे मित्र की आवश्यकता सभी को होती है. उस ने अपने पति में भी एक सच्चे दोस्त की ही तलाश की थी.

मीटिंग के बाद नेहा अपने बौस के साथ चंडीगढ़ लौट आई. अपने बौस जैसे इंसान को करीब से देखने, परखने का यह अवसर उसे जीवन के अच्छे मूल्यों और अच्छाइयों के प्रति आश्वस्त करा गया. उन्होंने नेहा से यह भी कहा कि जहां तक संभव होगा वे उसे राहुल के जीवन में वापस पहुंचाने में पूरी मदद करेंगे. नेहा मन ही मन बहुत खुश थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे बौस के रूप में उसे एक सच्चा दोस्त मिल गया हो.

वे दिल्ली में मैनेजिंग डायरैक्टर से विचारविमर्श कर के नेहा को पदोन्नति देने के विषय में निर्णय ले चुके थे. लेकिन यह बात उन्होंने गुप्त ही रखी थी. सोचा था किसी अच्छे मौके पर वह प्रमोशन लैटर नेहा को दे देंगे.

कंपनी की ऐनुअल जनरल मीटिंग की तिथि निश्चित हो चुकी थी, जो सभी कर्मचारियों और शेयर होल्डर्स द्वारा अटैंड की जानी थी. भव्य प्रोग्राम के दौरान उन्होंने प्रमोटेड कर्मचारियों के नामों की घोषणा की, जिस में नेहा का नाम भी था. नेहा ने देखा कि उस का पति राहुल भी हौल में बैठा था.

नेहा की खुशी का ठिकाना न था. नेहा ने बौस से इस विषय में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि राहुल को मैं ने आमंत्रित किया है. वैसे इस कंपनी के कुछ शेयर्स भी इस ने खरीदे हैं. आज का दिन तुम्हारे लिए आश्चर्य भरा है. जरा इंतजार करो. मैं वास्तव में तुम्हारे गार्जियन की तरह कुछ करने वाला हूं. नेहा कुछ समझ नहीं पाई. उस ने चुप रहना बेहतर समझा.

घोषणाओं का सिलसिला चलता रहा. फिर नेहा के बौस ने घोषणा की, ‘‘फ्रैंड्स, आप को जान कर खुशी होगी कि यहां आए राहुल की योग्यता और अनुभव के आधार पर उस का चयन हमारी कंपनी में असिस्टैंट जनरल मैनेजर पद के लिए हो चुका है. राहुल और उस की पत्नी नेहा को बधाई हो.’’

नेहा की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली. सब आमंत्रित लोगों के जाने के बाद, राहुल और नेहा दोनों उन के पास गए और उन को धन्यवाद प्रकट किया. खुशनुमा माहौल था.

‘‘कैन आई हग यू?’’ उन्होंने नेहा से पूछा.

‘‘ओ श्योर, वाई नौट’’ कहते हुए नेहा उन से ऐसे लिपट गई, जैसे वह अपने पापा से लाड़प्यार में लिपट जाया करती थी. उन की आंखें भर आई थीं. उन्हें लगा जैसे एक पौधा जो मुरझा रहा था, उन्होंने उस की जड़ें सींच दी हैं.

आंसुओं के बीच उन्होंने नेहा से कहा, ‘‘आज की शाम का सब से बड़ा गिफ्ट मैं तुम्हें दे रहा हूं. राहुल के साथ आज ही अपने घर लौट जाओ. अब तुम दोनों की काबिलीयत प्रूव हो चुकी है.’’

Drama Story

Best Love Story: प्यार न माने सरहद- समीर और एमी क्या कर पाए शादी?

Best Love Story: समीर को सीएटल आए 3 महीने हो गए थे. वह बहुत खुश था. डाक्टर मातापिता का छोटा बेटा. बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि था. आईआईटी दिल्ली का टौपर था. मास्टर्स करते ही माइक्रोसौफ्ट में जौब मिल गई. स्कूल के दिनों से ही वह अमेरिकन सीरियल और फिल्में देखता, मशहूर सीरियल फ्रैंड्स उसे रट गया था. भारत से अधिक वह अमेरिका के विषय में जानता था. वह अपने सपनों के देश पहुंच गया.

सीएटल की सुंदरता देख कर वह मुग्ध हो गया. चारों ओर हरियाली ही हरियाली, नीला साफ आसमान, बड़ीबड़ी झीलें और समुद्र, सब कुछ इतना मनोरम कि बस देखते रहो. मन भरता ही नहीं.

समीर सप्ताह भर काम करता और वीकैंड में घूमने निकल जाता. कभी ग्रीन लेक पार्क, कभी लेक वाशिंगटन, कभी लेक, कभी माउंट बेकर, कभी कसकेडीएन रेंज, तो कभी स्नोक्वाल्मी फाल्स.

खाना खाने के ढेरों स्थान, दुनिया के सभी स्थानों का खाना यहां मिलता. वह नईनई जगह खाना खाने जाता. अब तक वह चीज फैक्ट्री, औलिव गार्डन, कबाब पैलेस, सिजलर्स एन स्पाइस कनिष्क, शालीमार ग्लोरी का खाना चख चुका था.

औफिस उस का रैडमंड में था सीएटल के पास. माइक्रोसौफ्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी यहां रहते हैं. मिक्स आबादी है- गोरे, अफ्रीकन, अमेरिकन और एशियाई देशों के लोग यहां रहते हैं. यहां भारतीय और पाकिस्तानी भी अच्छी संख्या में हैं. देशी खाने के कई रेस्तरां हैं. इसीलिए समीर ने यहां एक बैडरूम का अपार्टमैंट लिया.

औफिस में बहुत से भारतीय थे. अधिकतर दक्षिण भारत से थे. कुछ उत्तर भारतीय भी थे. सभी इंग्लिश में ही बात करते. हायहैलो हो जाती. देख कर सभी मुसकराते. यह यहां अच्छा था, जानपहचान हो न हो मुसकरा कर अभिवादन करा जाता.

समीर की ट्रेनिंग पूरी हो गई तो उसे प्रोजैक्ट मिला. 5 लोगों की टीम बनी. एक दक्षिण भारतीय, 2 गोरे और 1 लड़की एमन. समीर एमन से बहुत प्रभावित हुआ. बहुत सुंदर, लंबी, पतली, गोरी, भूरे बाल, नीली आंखें. पहनावा भी बहुत अच्छा फौर्मल औफिस ड्रैस. बातचीत में शालीन. अमेरिकन ऐक्सैंट में बातें करती और देखने में भी अमेरिकन लगती थी. मूलतया एमन कहां की थी, इस विषय में कभी बात नहीं हुई. उसे सब एमी कहते थे.

एमी काम में बहुत होशियार थी. सब के साथ फ्रैंडली. समीर भी बुद्घिमान, काम में बहुत अच्छा था. देखने में भी हैंडसम और मदद करने वाला. अत: टीम में सब की अच्छी दोस्ती हो गई.

एक दोपहर समीर ने एमी से साथ में लंच करने को कहा. वह मान गई. दोनों ने लंच साथ किया. समीर ने बर्गर और एमी ने सलाद लिया. वह हलका लंच करती थी.

समीर ने पूछा, ‘‘यहां अच्छा खाना कहां मिलता है?’’

‘‘आई लाइक कबाब पैलेस,’’ एमी ने जवाब दिया.

समीर को आश्चर्य हुआ कि अमेरिकन हो कर भी यह भारतीय देशी खाना पसंद करती है.

समीर ने जब एमी से पूछा कि क्या तुम्हें इंडियन खाना पसंद है, तो उस ने बताया कि हां इंडियन और पाकिस्तानी एकजैसा ही होता है. फिर जब समीर ने पूछा कि क्या तुम अमेरिकन हो तो एमी ने बताया कि हां वह अमेरिकन है, मगर दादा पाकिस्तान से 1960 में अमेरिका आ गए थे.

समीर सोचता रहा कि एमी को देख कर उस के पहनावे से, बोलचाल से कोई नहीं कह सकता कि वह पाकिस्तानी मूल की है. दोनों एकदूसरे में काफी रुचि लेने लगे. अब तो वीकैंड भी साथ गुजरता. एमी ने समीर को सीएटल और आसपास की जगहें दिखाने का जिम्मा ले लिया था. पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने जाते, माउंट रेनियर गए. सीएटल की स्पेस नीडल 184 मीटर ऊंचाई पर घूमते हुए स्काई सिटी रेस्तरां में खाना खाया. यहां से शहर देखना एक सपने जैसा लगा.

सीएटली ग्रेट व्हील में वह डरतेडरते बैठा. 53 मीटर की ऊंचाई, परंतु एमी को डर नहीं लगा. भारत में वह मेले में जब भी बैठता था तो बहुत डरता था. यहां आरपार दिखने वाले कैबिन में बैठ कर मध्यम गति से चलने वाला झूला आनंद देता है डराता नहीं.

फेरी से समुद्र से व्हिदबी टापू पर जाना, वहां का इतालियन खाना खाना उसे बहुत रोमांचित करता था. भारत में भी समुद्रतट पर पर जाता था पर पानी एवं वातावरण इतना साफ नहीं होता था. पहाड़ी रास्ते 4 लेन चौड़े, 5 हजार फुट की ऊंचाई पर जाना पता भी नहीं चलता. अपने यहां तो पहाड़ी रास्ते इतने संकरे कि 2 गाडि़यों का एकसाथ निकलना मुश्किल.

साथसाथ घूमतेफिरते दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान गए थे. जैसे एमी के दादा का परिवार 1947 में लखनऊ, भारत से कराची चला गया था. दादी भी लखनऊ से विवाह कर के आई थीं. उन के रिश्तेदार अभी भी लखनऊ में हैं. 1960 में अमेरिका में न्यूयौर्क आए थे. उस के पिता और ताया दोनों छोटेछोटे थे, जब वे अमेरिका आए.

दादादादी ने अपनी संस्कृति के अनुसार बच्चों को पाला था. यहां का खुला माहौल उन्हें बिगाड़ न दे, इस का पूरा खयाल रखा था. ताया पर अधिक सख्ती की गई. वे मुल्ला बन गए. अभी भी न्यूयौर्क में ही रहते हैं और उन का एक बेटा है, जो एबीसीडी है अर्थात अमेरिकन बोर्न कन्फ्यूज्ड देशी.

ताया को अधिक धार्मिक होते देख दादा ने एमी के पिता पर अधिक अनुशासन नहीं लगाया और वे इकोनौमिक्स के प्रोफैसर बन गए. एमी की मां नैंसी अमेरिकन थीं और पिता की सहपाठी. वे अब नरगिस हैं. उन्होंने इसलाम कुबूल कर लिया और दादादादी की देखरेख में नमाजी और उर्दू बोलने वाली बहू बन गईं. दादा तो अब नहीं रहे, दादी साथ रहती थीं, हिंदी फिल्मों की दीवानी. एक सुखी परिवार है.

एमी की परवरिश में देशी और अमेरिकी संस्कृति का समावेश था. अत: वह सभ्य, अनुशासित, समय की पाबंद थी. सुंदर थी, साथ ही अपनी सुंदरता को संवार कर और संभाल कर रखने वाली भी थी. अमेरिकियों की तरह सुबह जल्दी उठना, व्यायाम करना, रात में जल्दी सोना और वीकैंड पर घूमना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस के घर में उर्दू भाषा ही बोली जाती. वह उर्दू जानती थी पर बोलती इंग्लिश में थी. एमी के विषय में जान कर समीर को अच्छा लगा. समीर को एमी से प्यार हो गया. वह हर कीमत पर उसे पाना चाहता था. परंतु पाकिस्तानी मूल का होना… कैसे बात बनेगी?

दोनों 6 महीनों से साथ थे. एकदूसरे में रुचि अब एकदूसरे को पाने की चाह में बदल गई थी.

एमी ने समीर को अपने घर वालों से मिलने के लिए बुलाया. घर वालों से यह कह कर मिलाया कि यह औफिस का मित्र है समीर. एमी की दादी को देख कर समीर को अपनी दादी याद आ गई. सलवारसूट में वैसी ही लग रही थीं. प्रोफैसर साहब बहुत हंसमुख थे. तुरंत घुलमिल गए. फुटबौल के दीवाने थे. सीएटल टीम के फैन. समीर को यहां का फुटबौल अजीब लगता था. हाथपैर दोनों से खेला जाता. अधिकतर बौल हाथ में ले कर भागते हैं.

एमी की मां सभ्यशालीन महिला थीं. एमी बिलकुल अपनी मां जैसी थी. एमी की मां ने बिलकुल देशी खाना बनाया था. समीर लखनऊ से है, यह सुन कर दादी तो गदगद हो गईं. अपने बचपन के मायके के किस्से सुनाने लगीं. एक लंबे समय बाद वह इतनी देर हिंदी में बोला. उसे अच्छा लगा. यहां तो वह जब से आया है मुंह टेढ़ा कर के ऐक्सैंट में बोलने की कोशिश करता रहा है.

समीर ने ध्यान दिया दादी, प्रोफैसर, नरगिस सभी उर्दू में बात करते हैं. पर एमी इंग्लिश में जवाब देती. कभीकभी हिंदी में भी. उर्दूहिंदी एकजैसी भाषाएं हैं, जिन्हें वह अपने यहां भी सुनताबोलता था. बस इन के उर्दू में कुछ शब्द गाढ़े उर्दू के हैं पर बात समझ में आ जाती है. उसे यहां अपनापन लगा. एमी के घर वालों को भी समीर अच्छा लगा और उसे बराबर आते रहने का न्योता दिया.

एमी ने समीर के जाने के बाद जब घर वालों से पूछा कि समीर उन्हें कैसा लगा तो वे लोग बोले कि अच्छा है. तब उस ने बताया कि समीर और वह शादी करना चाहते हैं.

यह सुन उस की दादी तो खुश हो गईं क्योंकि वह उन के मायके से जो था और उन्हें समीर नाम से मुसलमान लगा था. प्रोफैसर ने आपत्ति की कि वह पाकिस्तानी नहीं भारतीय है. एमी की मां ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि कहीं ग्रीन कार्ड के लालच में शादी तो नहीं करना चाहता है. लड़के को अमेरिकन सिटीजन होना चाहिए.

एमी ने धीरेधीरे समीर के बारे में 1-1 बात बताई कि वह भारतीय भी है और हिंदू भी. उस का परिवार भारत में है. अत: कभी भी वापस जा सकता है.

दादी, प्रोफैसर और नरगिस सब ने एकसाथ आपत्ति की कि हिंदू से शादी नहीं हो सकती.

एमी बोली, ‘‘अब तक वह आप सब को बहुत पसंद था पर उस के हिंदू और भारतीय होने से वह बुरा कैसे हो गया?’’

जब कोई प्यार में होता है तो उसे धर्म, भाषा, नागरिकता कुछ दिखाई नहीं देता. दिखता है तो केवल प्यार से भरा मन और वह व्यक्ति जो उस के साथ जीवन बिताना चाहता है. वहीं दूसरे लोगों को व्यक्ति और उस का मन, उस के गुण नहीं दिखते, केवल धर्म दिखता है.

‘‘डैडी आप और ममा ने भी तो दूसरे धर्म में शादी की थी, फिर आप लोग कैसे कह रहे हैं?’’

‘‘बेटी, तुम्हारी मां को हम अपने घर लाए थे. वह हम में रचबस गई. उस ने इसलाम कुबूल कर लिया. तुम्हें दूसरे घर जाना है. यह अंतर है. कल को वह लड़का तुम्हें हिंदू बना ले तो तुम्हारी तो आखरत (मरने के बाद की जिंदगी) गई.’’

एमी ने समीर को सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘हम दोनों को जब कोई प्रौब्लम नहीं तो उन्हें क्यों है? हम जब चाहें शादी कर सकते हैं. हमें कोई रोक नहीं सकता पर मैं चाहती हूं कि मेरी फैमिली मेरे साथ हो,’’ यह एमी की देशी परवरिश की सोच थी.

समीर ने कहा, ‘‘तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मरते दम तक.’’

‘‘तो ठीक है अपने घर वालों से मेरी मीटिंग करवाओ.’’

रविवार को समीर एमी के घर वालों से मिलने गया. शाहरुख खान की मूवी की डीवीडी दादी के लिए ले गया. दादी शाहरुख खान की दीवानी थीं सो खुश हो गईं. प्रोफैसर कुछ ठंडे थे. समीर ने उन से सीएटल टीम फुटबौल की बातें छेड़ दीं. वे भी सामान्य हो गए. नरगिस के लिए कबाब ले गया था. वे भी कुछ नौर्मल हो गईं.

फिर समीर ने अपनी मंशा बताई, ‘‘मैं और एमी एकदूसरे से प्यार करते हैं…जीवन भर साथ रहना चाहते हैं…शादी करना चाहते हैं. मगर आप सब की मरजी से…’’ मैं नेशनैलिटी के लिए शादी नहीं कर रहा हूं. मेरी कंपनी ने मेरा ग्रीन कार्ड अप्लाई कर दिया है. हां, मैं इंडियन हूं और मैं भारत आताजाता रहूंगा, मेरे परिवार को जब भी मेरी आवश्यकता होगी मैं उन के पास जाऊंगा… इसी प्रकार जब आप लोगों को भी मेरी जरूरत होगी तो मैं आप का भी साथ दूंगा. रहा धर्म तो यदि मैं आप को दिखाने के लिए मुसलिम बन जाऊं और मन से हिंदू रहूं तो आप क्या कर सकते हैं? धर्म में हम उसे ही याद करते हैं जिसे न आप ने देखा न मैं ने. उसे किस नाम से पुकारें इस पर लड़ाई है, किस प्रकार याद करें इस पर सहमति नहीं. इंसान जिन्हें एकदूसरे से प्यार है वे इसलिए शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वे ऊपर वाले को अलगअलग नामों से पुकारते हैं, अलगअलग तरह से याद करते हैं.’’

उस ने मीर को कुछ पढ़ रखा था और एक शेर जो उसे याद था कहा, ‘‘ ‘मत इन नमाजियों को खानसाज-ए-दीं जानो, कि एक ईंट की खातिर ये ढोते होंगे कितने मसीत’ दादी ये धर्म के चोंचले अमेरिका में आ कर तो हम छोड़ दें.’’

सब चुप रहे. जानते थे कि यह ठीक कह रहा.

प्रोफैसर को मुसलिम समाज और सब से बढ़ कर भाईजान का डर था. अमेरिका में भी हम ने अपना पाकिस्तानहिंदुस्तान बना लिया है, अपनी मान्यताएं अपने रीतिरिवाज… यहां वैसे तो इंडियनपाकिस्तानी मिल कर रहते हैं पर शादीविवाह अपने धर्म में ही पसंद करते हैं.

हां, साथसाथ स्कूल, कालेज, औफिस की दोस्ती में अकसर अलगअलग जगह के लोगों में शादियां हो जाती हैं, परंतु मंदिरमसजिद में मिलने वाले साथी पसंद नहीं करते. प्रोफैसर को उन का तो डर नहीं था पर भाईजान…

दादी भी जानतीं थी कि पाकिस्तानियों में तलाक अधिक होते हैं और भारत वाले साथ निभाते हैं. फिर भी हिंदू से…

एमी के घर वाले समीर के बराबर आनेजाने से धीरेधीरे उस से घुलमिल गए. बात टल सी गई पर समीर बराबर जाता रहता. दादी से हिंदी मूवीज पर बातें करता, प्रोफैसर के साथ फुटबौल मैच टीवी पर देखता, उन के लैपटौप में नएनए गेम्स लोड करता, लौन की घास काटने में प्रोफैसर की मदद करता, काटना तो मशीन से होता है पर मेहनत का काम है. नरगिस की किचन में हैल्प करता. यहां सारे काम खुद ही करने होते हैं.

प्रोफैसर कहते, ‘‘मैं तो 3 औरतों में अकेला पड़ गया था… तुम से अच्छी कंपनी मिलती है.’’

समीर एमी से कहता, ‘‘यार एमी, मैं तो तुम्हारे घर का छोटू बन गया पर दामाद बनने के चांस नहीं दिखते. तुम मुझे डिच दे कर किसी पाकी के साथ निकल गईं तो?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘यू नैवर नो.’’

प्रोफैसर सोचते समीर अच्छा है, बोलचाल, विचार हमारे जैसे हैं. एमी के साथ जोड़ी अच्छी है, दोनों एकदूसरे के साथ खुश रहेंगे, फिर क्या हुआ अगर वह अल्लाह को ईश्वर कहता है? पूजा करना उस का मामला है… एमी को तो पूजा करने को नहीं कह रहा…

हिम्मत कर के न्यूयौर्क में भाईजान से बात की. बताया कि एमी ने लड़का पसंद कर लिया है हिंदुस्तानी है.

भाईजान बोले, ‘‘क्या पाकिस्तानी लड़कों का अकाल पड़ गया जो हिंदुस्तानी लड़का देखा?’’

‘‘एमी को पसंद है.’’

‘‘हां, अमेरिकन मां की बेटी जो है.’’

‘‘लड़का बहुत अच्छा है. बस वह हिंदू है.’’

भाईजान पर तो जैसे बम फटा, ‘‘क्या कह रहे हो? काफिर को दामाद बनाओगे?’’

प्रोफैसर मिनमिनाए, ‘‘भाईजान, आप तो जानते हैं यहां तो बच्चे भी नहीं सुनते जरा तंबीह करो तो 911 कौल कर पुलिस बुला लेते हैं और बड़े हो कर तो और भी आजाद हो जाते हैं. ये हम से इजाजत मांग रहे हैं, यह क्या कम है? हम हां कर दें तो हमारा बड़प्पन रह जाएगा.’’

भाईजान को लगा कि प्रोफैसर ठीक कह रहे हैं. अत: बोले, ‘‘ठीक है वह मुसलमान हो जाए तो हो सकता है.’’

‘‘नहीं वह इस पर राजी नहीं. वह एमी से भी धर्म परिवर्तन के लिए नहीं कह रहा.’’

भाईजान चिल्लाए, ‘‘काफिर से निकाह नहीं हो सकता. अगर तुम ने शादी की तो मुझ से कोई रिश्ता न रखना… मुल्लाजी को भी तो अपने समाज में सिर उठा कर चलना है वरना उन की कौन सुनेगा.’’

प्रोफैसर को भाई की बातों से बहुत दुख हुआ. हार्ट के मरीज तो थे ही सो हार्ट अटैक आ गया. नरगिस और दादी थीं घर पर. नरगिस ने ऐंबुलैंस कौल की. ऐंबुलैंस डाक्टर व नर्स के साथ आ गई. अस्पताल में भरती किया गया. एमी, नरगिस, दादी और समीर रोज देखने जाते. यहां अस्पताल में भरती करने के बाद डाक्टर व नर्स पूरी देखभाल करते हैं. अस्पताल का रूम फाइवस्टार सुविधा वाला होता है. प्रोफैसर को यहां का खाना पसंद नहीं, तो नरगिस उन का खाना घर से लाती थीं. यहां मरीज की देखभाल अच्छी की जाती है. बिल इंश्योरैंस से जाता है. कुछ 10-15% देना पड़ता है.

कुछ दिन बाद प्रोफै सर घर आ गए. अभी भी देखभाल की आवश्यकता थी. परहेजी खाना ही चल रहा था. इस दौरान समीर उन की देखभाल बराबर करता एक बेटे की तरह और औफिस में भी एमी के काम में मदद करता ताकि एमी प्रोफैसर साहब को अधिक समय दे सके.

प्रोफैसर के दोस्त, मिलने वाले मसजिद के साथी सब दोएक बार आए. भाईजान ने केवल फोन पर खैरियत ली.

बीमारी में कोई देखने आए तो अच्छा लगता है. अमेरिका में किसी के पास समय नहीं है. समीर प्रतिदिन आता. प्रोफैसर को भी अच्छा लगता. प्रोफैसर को लगता अगर उन का अपना बेटा भी होता तो शायद वह भी इतना ध्यान नहीं रखता.

आखिर प्रोफैसर ठीक हो गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुम ने घर वालों से शादी की बात की?’’

समीर ने बताया, ‘‘हां मैं ने घर वालों को मना लिया है… पहले तो सब नाराज थे पर एमी से बात कर के सब खुश हो गए. मेरे मातापिता धर्मजाति नहीं मानते पर एमी पाकिस्तानी मूल की होने पर चौंके थे. मगर मेरी पसंद के आगे उन्हें सब छोटा लगने लगा. अत: सब राजी हो गए.’’

प्रोफैसर ने अपने ठीक होने की पार्टी में अपने सभी मिलने वालों, दोस्तों को बुलाया और फिर समीर और एमी की मंगनी की घोषणा कर दी. वे जानते थे शादी में बहुत लोग नहीं आएंगे. दोनों परिवारों की मौजूदगी में शादी सादगी से कोर्ट में हो गई और फिर रिसैप्शन पार्टी होटल में की, जिस में दोनों के औफिस के साथी, नरगिस और प्रोफैसर के दोस्त, पड़ोसी, मिलने वाले शामिल हुए. भाईजान और उन की जैसी सोच वाले नहीं आए. 2 प्रेमी पतिपत्नी बन गए. सच ही तो है, प्रेम नहीं मानता कोई सरहद, भाषा या धर्म.

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