Latest Hindi Stories : हादसा – क्या समझ गई थी नीता देवी

Latest Hindi Stories : इधरउधर देख कर मालविका ने पार्टी में आए अन्य लोगों का जायजा लेने का यत्न किया था पर कोई परिचित चेहरा नजर नहीं आया था.

‘‘अरे मौली, तुम यहां?’’ तभी पीछे से किसी का परिचित स्वर सुन कर उस ने पलट कर देखा तो सामने नमन खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘यही प्रश्न मैं तुम से भी कर सकती हूं. तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मालविका मुसकरा दी थी.

‘‘बोर हो रहा हूं और क्या. सच कहूं तो इस तरह की पार्टियों में मेरी कोई रुचि नहीं है,’’ नमन ने उत्तर दिया था.

‘‘ऐसा है तो पार्टी में आए ही क्यों हो?’’

‘‘आया नहीं हूं, लाया गया हूं. सेठ रणबीर मेरे चाचाजी हैं. उन का निमंत्रण मिलने के बाद पार्टी में न आने से बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता,’’ नमन मुसकराया था.

‘‘वही हाल मेरा भी है. पर छोड़ो यह सब, बताओ, जीवन कैसा चल रहा है?’’

‘‘कुछ विशेष नहीं है बताने को. तुम्हारी ही तरह बैंक में अफसर हूं. पूरा दिन यों ही बीत जाता है. सप्ताहांत में थोड़ाबहुत रंगमंच पर अभिनय कर लेता हूं. हम कुछ मित्रों ने मिल कर नाट्य क्लब बना लिया है.’’

‘‘यह तो शुभ समाचार है कि तुम कालेज के दिनों के कार्यकलापों के लिए अब भी समय निकाल लेते हो. कभी हमें भी बुलाओ अपने नाटक दिखाने के लिए.’’

‘‘क्यों नहीं, हमारा एक नाटक शीघ्र ही मंचित होने वाला है. आमंत्रण मिले तो आना अवश्य. आजकल मेरे अधिकतर मित्र फिल्म या डिस्को में रुचि लेते हैं, नाटकों से वे दूर ही भागते हैं, पर तुम उन सब से अलग हो.’’

तभी नमन का कोई परिचित उसे पकड़ कर ले गया था और उतनी ही तेजी से हाथ में बीयर का गिलास थामे रोमी उस की ओर आया था.

‘‘कौन था वह?’’ रोमी ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.

‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’

‘‘वही जिस से बहुत घुलमिल कर बात कर रही थीं तुम.’’

‘‘अच्छा वह, वह नमन है. कालेज में मेरा सहपाठी था और अब मेरी ही तरह बैंक की एक अन्य शाखा में कार्यरत है. मेरा अच्छा मित्र है,’’ मालविका ने उत्तर दिया था.

‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि इन टुटपुंजियों को मुंह मत लगाया करो. तुम अब केवल एक मध्यवर्गीय परिवार की युवती नहीं बल्कि मेरे जैसे जानेमाने उद्योगपति की महिलामित्र हो. मैं नहीं चाहता कि तुम अब अपने पुराने मित्रों से कोई भी संबंध रखो,’’ रोमी गुर्राया था. उस का तीखा स्वर सुन कर मालविका स्तब्ध रह गई थी.

वह चित्रलिखित सी पार्टी में भाग लेती रही थी पर मन ही मन सहमी हुई थी. यह सच था कि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंधित थी. जबकि रोमी एक जानेमाने उद्योगपति परिवार से था. मर्सिडीज, बीएमडब्लू जैसी गाडि़यों में घूमने वाले और पांचसितारा होटलों में उसे ले जाने वाले रोमी से मालविका बेहद प्रभावित थी. और कोई उस की नजरों में ठहरता ही नहीं था.

मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.

पार्टी समाप्त हुई तो रोमी पूर्णतया सुरूर में था.

‘‘कैसी रही पार्टी?’’ उस ने कार को मुख्य सड़क पर मोड़ते हुए पूछा था.

‘‘बेहद उबाऊ और बकवास पार्टी थी. मेरा तो दम घुट रहा था वहां,’’ मौली बोली थी.

‘‘मैं जानता था तुम यही कहोगी. कभी गई हो ऐसी शानदार पार्टियों में? मैं तो यह सोच कर तुम्हें ऐसी पार्टियों में ले जाता हूं कि तुम सभ्य समाज के कुछ तौरतरीके सीख लोगी. पर तुम तो हर जगह अपने पुराने मित्र ढूंढ़ निकालती हो. कभी अपनी तुलना की है ऊंची सोसाइटी की अन्य युवतियों से? माना, कुदरत ने सौंदर्य दिया है पर ढंग से सजनासंवरना तो सीखना ही पड़ता है. अपनी पोशाक पर कभी दृष्टि डाली है तुम ने? महेंद्र बाबू की बेटी सुहानी पूछ बैठी कि तुम किस डिजाइनर की बनी पोशाक पहने हुए हो तो मैं तो शर्म से पानीपानी हो गया,’’ रोमी धाराप्रवाह बोले जा रहा था.

‘‘बस या और कुछ?’’ रोमी के चुप होते ही मौली चीखी थी, ‘‘तुम और तुम्हारा पांचसितारा कल्चर, मेरा दम घुटता है वहां. भूल मेरी थी जो मैं तुम्हारे साथ पार्टी में चली आई. मुझे नहीं चाहिए यह चमकदमक और तुम्हारे साथ इन बड़ी गाडि़यों में घूमना.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने, तुम्हारी औकात ही नहीं है ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने की या मेरे साथ महंगी कारों में घूमने की. चलो उतरो, इसी समय,’’ रोमी ने झटके से कार रोक दी थी.

मौली को काटो तो खून नहीं. उस के घर से 15 किलोमीटर दूर, निर्जन सड़क और रात के 12 बजे का समय, कहां जाएगी वह.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं आधी रात को अकेली कहां जाऊंगी? मुझे मेरे घर तक छोड़ दो. मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगी,’’ मौली बिलख उठी थी.

‘‘ये भावुकता की बातें रहने दो. मैं तुम मिडिल क्लास लोगों को भली प्रकार पहचानता हूं. अपनी गरज के लिए गिड़गिड़ाने लगते हो, रोनेपीटने लगते हो. काम निकल जाने पर अपने आदर्शों की बड़ीबड़ी बातें करते हो. दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से,’’ रोमी ने घुड़क दिया था.

हार कर डरीसहमी सी मालविका कार से उतर गई थी. उसे आशा थी कि उस के उतरने के बाद रोमी का दिल पसीज जाएगा और वह उसे फिर कार में बैठने को कहेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. उस के उतरते ही रोमी की कार फर्राटे भरते उस की आंखों से ओझल हो गई थी.

मौली ने अपना पर्स खोल कर देखा. टैक्सी का बिल चुकाने लायक पैसे थे पर टैक्सी मिले तब न. उस की आंखें डबडबा आईं. घर में तो सब यही सोच रहे होंगे कि वह रोमी के साथ है. वे बेचारे क्या जानें कि वह आधी रात को दूर तक नागिन की तरह फैली सीधीसपाट सड़क पर अपने ही आंसुओं को पीती पैदल चली आ रही होगी.

मौली कुछ दूर ही चली होगी कि उस के पास एक कार आ कर रुकी, जिस में 5 मनचले युवक सवार थे. शराब के नशे में धुत वे तरहतरह की आवाजें निकाल रहे थे. मौली को अकेले चलते देख कर उन्होंने अभद्र इशारे करते हुए उस से कार में बैठने का आग्रह किया. उस ने पहले तो उन की बात अनसुनी कर दी पर जब वे उस के साथ कार चलाते हुए उलटीसीधी हरकतें करने लगे तो वह फट पड़ी.

‘‘मेरा घर पास ही है. मैं ने एक बार कह दिया कि मुझे सहायता नहीं चाहिए तो क्या सुनाई नहीं पड़ता,’’ मौली दम लगा कर चीखी थी. पर कार में से

2 युवक डरावने अंदाज में उस की ओर बढ़े थे. वह सहायता के लिए चीखी तो दूसरी दिशा से आती एक कार उस के पास आ कर रुकी थी.

‘‘क्या हो रहा है यह?’’ कारचालक ने प्रश्न किया था.

‘‘देखिए न, मैं शरीफ लड़की हूं, ये गुंडे मुझे तंग कर रहे हैं,’’ मौली बोली थी.

‘‘शरीफ…हुंह, शरीफ लड़कियां आधी रात को यों सड़कों पर नहीं घूमतीं,’’ कारचालक हिकारत से बोला था, ‘‘और तुम लोग जाते हो यहां से या बुलाऊं पुलिस को?’’ उस ने युवकों को धमकाया तो वे भाग खड़े हुए.

‘‘कृपया मुझे मेरे घर तक छोड़ दीजिए,’’ मौली ने कारचालक से विनती की थी.

‘‘क्षमा कीजिए, महोदया. मेरी बहन नर्सिंगहोम में है. मैं उसे देखने जा रहा हूं. वैसे भी मैं न तो अनजान लोगों को लिफ्ट देता हूं न उन से लिफ्ट लेता हूं,’’ कार- चालक भी उसे अकेला छोड़ कर चला गया था.

अब उस ने अपना फोन निकाला था. अब तक वह डर रही थी कि किसी को उस के इस अपमान का पता चल गया तो कितनी बदनामी होगी पर अब नहीं. पापा भी नाराज होंगे पर इस समय सहीसलामत घर पहुंचना अत्यंत आवश्यक था. उस ने फोन किया तो मां ने फोन उठाया था.

‘‘मौली, कहां हो तुम? 1 बजने जा रहा है. मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है. पार्टी क्या अभी तक चल रही है?’’ उस की मां नीता देवी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी. पर जब मौली ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो उन के पांवों तले से जमीन खिसक गई थी.

‘‘किसे भेजूं इस समय? तुम्हारे पापा तो 2 घंटे पहले ही नींद की गोलियां ले कर सो चुके हैं. किस पड़ोसी को जगाऊं, इस समय. तुम जहां हो, वहीं आड़ में छिप कर खड़ी हो जाओ. सड़क पर अकेले चलना खतरे से खाली नहीं है. मैं अश्विन को जगाती हूं. वह न नहीं करेगा,’’ नीता देवी बोली थीं.

‘‘अश्विन? रहने दो मां. उस के पास तो कार भी नहीं है. मैं पुलिस को फोन करूंगी.’’

‘‘भूल कर भी ऐसी गलती मत करना. मैं अश्विन से पूछूंगी. यदि कार चला सकता है तो हमारी कार ले जाएगा, नहीं तो अपने स्कूटर पर आ जाएगा. यह समय नखरे दिखाने का नहीं है,’’ नीता देवी ने डपट दिया था.

अश्विन की बात सुनते ही मौली को झुरझुरी हो आई. वह मौली के घर में ही किराएदार था और किसी कालेज में व्याख्याता था. आजकल अखिल भारतीय प्रतियोगिता की तैयारी में जुटा था. नीता देवी से उस की खूब पटती थी. पर मौली ने उसे कभी महत्त्व नहीं दिया. प्रारंभ में उस ने मौली से बातचीत करने का प्रयत्न किया था पर उस की बेरुखी देख कर उस ने भी उस से किनारा कर लिया था. इस समय आधी रात को उस से मदद मांगना मौली को अजीब सा लग रहा था. वह आने के लिए तैयार भी होगा या नहीं, कौन जाने.

मौली खंभे की आड़ में खड़ी यह सब सोच ही रही थी कि नीता देवी का फोन आया था.

‘‘अश्विन को कार चलानी नहीं आती. वह अपने स्कूटर पर ही आ रहा है. शास्त्री रोड पर वह अपना हौर्न बजाते हुए आएगा तभी तुम सड़क पर आना,’’ नीता देवी ने आदेश दिया था.

लगभग 15 मिनट में हौर्न बजाता हुआ अश्विन उस के पास आ पहुंचा था, पर मौली को लगा मानो सदियां बीत गई हों. वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई थी.

घर पहुंची तो मां से गले मिल कर देर तक रोती रही थी मालविका. मां ने ही अश्विन की भूरिभूरि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दिया था. उस के मुंह से तो बोल ही नहीं फूटे थे.

इस के 2 दिन बाद ही रोमी का फोन आया था. देर तक क्षमायाचना करता रहा था. नशे में उस से बड़ी भूल हो गई. मालविका जो सजा दे उसे मंजूर है.

मौली ने उस की किसी बात का उत्तर नहीं दिया. सबकुछ चुपचाप सुनती रही थी. दोचार बार के फोन वार्त्तालाप के बाद रोमी घर आया. आज फिर वह मालविका को किसी विशेष आयोजन में ले जाने आया था.

उस के पिता के मित्र प्रसिद्ध फिल्म निर्माता नलिन बाबू की नई फिल्म का मुहूर्त था और रोमी सोचता था कि ऐसे ग्लैमरस आयोजन के लिए मौली न नहीं कह पाएगी.

नीता देवी ने तो सुनते ही डपट दिया था, ‘‘उस का साहस कैसे हुआ यहां आने का? उस दिन जो कुछ हुआ उस के बाद तुम उस के साथ जाने की बात सोच भी कैसे सकती हो.’’

‘‘जाने दो, मां. उस दिन रोमी नशे में था. बारबार थोड़े ही ऐसा करेगा. मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ मालविका उठ कर अंदर गई थी.

कुछ ही क्षणों में बाहर से शोर उभरा था. किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ पर मालविका के घर के सामने खड़ी रोमी की मर्सिडीज कार धूधू कर जल उठी थी.

आसपास के घरों के लोग घबरा गए थे. कुछ ही क्षणों में अग्निशामक दस्ता आ पहुंचा था. लोगों ने आग बुझाने के लिए पानी डालने का प्रयत्न भी किया था.

कैसे लगी यह आग? जितने मुंह उतनी बातें. कोई भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा था. हैरानपरेशान रोमी अधजली कार ले कर जा चुका था. तभी नीता देवी की नजर मालविका पर पड़ी थी. उस के चेहरे पर अजीब संतुष्टि का भाव था. उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं. मानो, बिना कहे ही सब समझ गई हों.

Famous Hindi Stories : भूल किसकी

Famous Hindi Stories : जैसेही चाय में उबाल आया सुचित्रा ने आंच धीमी कर दी. ‘चाय के उबाल को तो कम या बंद किया जा सकता है पर मन के उबाल पर कैसे काबू पाया जाए? चाय में तो शक्कर डाल कर मिठास बढ़ाई जा सकती है पर जबान की मिठास बढ़ाने की काश कोई शक्कर होती,’ सोचते हुए वे चाय ले कर लौन में शेखर के पास पहुंचीं.

दोनों की आधी चाय खत्म हो चुकी थी. बाहर अभी भी खामोशी पसरी थी, जबकि भीतर सवालों का द्वंद्व चल रहा था. चाय खत्म हो कर कप रखे जा चुके थे.

‘‘शेखर, हम से कहां और क्या गलती हुई.’’

‘‘सुचित्रा अपनेआप को दोष देना बंद करो. तुम से कहीं कोई गलती नहीं हुई.’’

‘‘शायद कुदरत की मरजी यही हो.’’

एक बार बाहर फिर खामोशी छा गई. जब हमें कुछ सम झ नहीं आता या हमारी सम झ के बाहर हो तो कुदरत पर ही डाल दिया जाता है. मानव स्वभाव ऐसा ही है.

शेखर और सुचित्रा की 2 बेटियां हैं- रीता और रीमा. रीता रीमा से डेढ़ साल बड़ी है. पर लगती दोनों जुड़वां. नैननक्श भी काफी मिलते हैं. बस रीमा का रंग रीता से साफ है. भारतीयों की अवधारणा है कि गोरा रंग सुंदरता का प्रतीक होता है. जिस का रंग जितना साफ होगा वह उतना ही सुंदर माना जाएगा, जबकि दोनों की परवरिश समान माहौल में हुई, फिर भी स्वभाव में दोनों एकदूसरे के विपरीत थीं. एक शांत तो दूसरी उतनी ही जिद्दी और उग्र स्वभाव की.

वैसे भी ज्यादातर देखा जाता है कि बड़ी संतान चाहे वह लड़का हो या लड़की शांत स्वभाव की होती है. उस की वजह शायद यही है तुम बड़े/बड़ी हो, उसे यह दे दो, तुम बड़े हो उसे मत मारो, तुम बड़े हो, सम झदार हो भले ही दोनों में अंतर बहुत कम हो और छोटा अपनी अनजाने में ही हर इच्छापूर्ति के कारण जिद्दी हो जाता है. यही रीता और रीमा के साथ हुआ. आर्थिक संपन्नता के कारण बचपन से ही रीमा की हर इच्छा पर होती रही. मगर उस का परिणाम यह होगा, किसी ने सोचा नहीं था.

रीता सम झदार थी. यदि उसे ठीक से सम झाया जाए तो वह सम झ जाती थी पर रीमा वही करती थी जो मन में ठान लेती थी. किसी के सम झाने का उस पर कोई असर नहीं होता था. शेखर यह कह कर सुचित्रा को दिलासा देते कि अभी छोटी है बड़ी होने पर सब सम झ जाएगी. अब तो वह बड़ी भी हो गई पर उस की आदत नहीं बदली, बल्कि पहले से ज्यादा जिद्दी हो गई.

रीता के लिए तुषार का रिश्ता आया है पर सुचित्रा इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उस घर में कोई भी महिला सदस्य नहीं है. केवल तुषार और उस के बीमार पिता हैं. हर मां को अपनी बच्ची हमेशा छोटी ही लगती है. वह परिवार की इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभा भी पाएगी इस में हमेशा संशय रहता.

शेखर के सम झाने और तुषार की अच्छी जौब के कारण अंत में सुचित्रा शादी के लिए मान गईं. रीता ने भी तुषार से मिल कर अपनी रजामंदी दे दी. शादी की तैयारियां जोरशोर से शुरू हुईं. रीमा भी खुश थी. तैयारियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. वह इस बात से ज्यादा खुश थी कि अब पूरे घर में उस का राज रहेगा और बातबात में मां द्वारा रीता से उस की तुलना भी नहीं होगी.

खैर, बिना किसी परेशानी के शादी हो गई. शेखर ने बहुत कोशिश की आंसुओं को रोकने की पर नाकाम रहे. बेटी की विदाई सभी की आंखें गीली करती है. अपने दिल का टुकड़ा किसी और को सौंपना वाकई कठिन होता है. पर तसल्ली थी कि रीता इसी शहर में है और 4 दिन बाद आ जाएगी. लड़की की विदाई के बाद घर का सूनापन असहज होता है. सुचित्रा तो बिखरे घर को समेटने में व्यस्त हो गईं.

ससुराल के नाम से ही हर लड़की के मन में डर समाया रहता है. रीता भी सहमी हुई ससुराल पहुंची. एक अनजाना सा भय था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे. पर उस का स्वागत जिस आत्मीयता और धूमधाम से हुआ उस से डर कुछ कम हो गया.

‘‘वाह, तुषार बहू तो छांट कर लाया है… कितनी सुंदर है,’’ चाची ने मुंहदिखाई देते हुए तारीफ की.

‘‘भाभी, आप की मेहंदी का रंग तो बड़ा गाढ़ा है.’’

‘‘भैया की प्यारी जो है,’’ सुनते ही उस का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

चुहल और हंसीखुशी के माहौल ने उस के डर को लगभग खत्म कर दिया. तुषार का साथ पा कर बहुत खुश थी. हनीमून पर जाने के लिए तुषार पहले ही मना कर चुका था. वह पापा को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था. अपने पिता के प्रति प्रेम और परवाह देख रीता को बहुत अच्छा लगा. 4 दिन पता ही नहीं चला कैसे बीत गए.

पापा उसे लेने आ गए थे. घर पहुंचने पर उस ने देखा उस की सभी चीजों पर रीमा ने अपना हक जमा लिया है.

उसे बहुत गुस्सा आया पर शांत रही. बोली, ‘‘रीमा ये सारी चीजें मेरी हैं.’’

‘‘पर अब यह घर तो तुम्हारा है नहीं, तो ये सब चीजें मेरी हुईं न? ’’

‘‘रीता उदास होते हुए बोली, मम्मा, क्या सचमुच अब इस घर से मेरा कोई नाता नहीं?’’

‘‘यह घर हमेशा तेरा है पर अब एक और घर तेरा हो गया है, जिस की जिम्मेदारी तु झे निभानी है,’’ मां ने कहा.

अभी आए 2 ही दिन हुए थे पर पता नहीं जिस घर में पलीबढ़ी थी वह अपना सा क्यों नहीं लग रहा… तुषार की कमी खल रही थी जबकि दिन में 2-3 बार फोन पर बातें होती रहती थीं.

मेहमानों के जाने के बाद घर खाली हो गया था. तुषार उसे लेने आ गया. घर पर छोड़ कर जल्दी आने की कह तुषार औफिस चला गया. उस ने चारों ओर नजर घुमाई. उसे घर कम कबाड़खाना ज्यादा लगा. पूरा घर अस्तव्यस्त. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि शुरुआत कहां से करे.

‘‘पारो.’’

‘‘जी, बहूरानी.’’

‘‘ झाड़ू कहां है? इस कमरे की सफाई करनी है. देखो कितना गंदा है… तुम ठीक से सफाई नहीं करती लगता.’’

‘‘अभी कर देती हूं.’’

दोनों ने मिल कर कमरा व्यवस्थित किया. बैडसीट बदली. तुषार की अलमारी में कपड़ों को व्यवस्थित किया. सारे सामान को यथास्थान रखा.

‘‘बहुरानी, इस कमरे की तो रंगत ही बदल गई. लग ही नहीं रहा कि यह वही कमरा है.’’

‘‘चलो अब पापाजी के कमरे की सफाई करते हैं.’’

‘‘पापाजी, आप ड्राइंगरूम में आराम कीजिए. हमें आप के कमरे की सफाई करनी है.’’

पापाजी ने अचरज से सिर उठा कर रीता की ओर देखा पर बोले कुछ नहीं, चुपचाप जा कर दीवान पर लेट गए.

कमरे में दवाइयों की खाली शीशियां, रैपर बिखरे पड़े थे. चादर, परदे भी कितने गंदे… पता नहीं कब से नहीं बदले गए. कमरे में सीलन की बदबू से रीता को खड़े रहना भी मुश्किल लग रहा था… इस बीमार कमरे में पापाजी कैसे स्वस्थ रह सकते हैं?

सब से पहले उस ने सारी खिड़कियां खोलीं. न जाने कब से बंद थीं. उन के खोलते ही लगा जैसे मृतप्राय कमरा सांस लेने लगा है.

खिड़कियों से आती हवा और धूप ने जैसे कमरे को नया जीवन दिया. सफाई होते ही कमरा जीवंत हो उठा. रीता ने एक लंबी सांस ली. बदबू अभी भी थी. उसे उस ने रूम फ्रैशनर से दूर करने की कोशिश की.

कमरे में आते ही पापाजी ने मुआयना किया. खुली खिड़कियों से आती हवा और रोशनी से जैसे उन के अंदर की भी खिड़की खुल गई. चेहरे पर एक मुसकराहट उभर आई. पलट कर रीता की ओर देखा और फिर धीरे से बोले, ‘‘थैंक्स.’’

पापाजी को कोई बीमारी नहीं थी. वे मम्मीजी के जाने के बाद चुपचाप से हो गए थे. खुद को एक कमरे तक सीमित कर लिया था.

तुषार भी दिनभर घर पर नहीं रहता था और नौकरों से ज्यादा बात नहीं करता था. उस के चेहरे पर अवसाद साफ दिखाई देता था. ये सब बातें तुषार उसे पहले ही बता चुका था.

कमरे की तो सफाई हो गई, अब एक काम जो बहुत जरूरी था या वह था पापाजी को अवसाद से बाहर निकालना. वह थक गई थी पर इस थकावट में भी आनंद की अनुभूति हो रही थी. भूख लगने लगी थी. फटाफट नहाधो कर लंच के लिए डाइनिंगटेबल पर पहुंची.

‘‘उफ, कितनी धूल है इस टेबल पर,’’ रीता खीज उठी.

‘‘बहूरानी इस टेबल पर कोई खाना नहीं खाता इसलिए…’’

‘‘अरे रुको पारो… यह थाली किस के लिए ले जा रही हो?’’

‘‘पापाजी के लिए… वे अपने कमरे में ही खाते हैं न… हम वहां खाना रख देते हैं जब उन की इच्छा होती है खा लेते हैं.’’

‘‘लेकिन तब तक तो खाना ठंडा हो जाता होगा? 2 रोटियां और थोड़े से चावल… इतना कम खाना?’’

‘‘पापाजी बस इतना ही खाते हैं.’’

रीता की सम झ में आ गया था कि कोई भी अकेले और ठंडा बेस्वाद खाना कैसे खा सकता है. इसलिए पापाजी की खुराक कम हो गई है. उन की कमजोरी की यह भी एक वजह हो सकती है.

‘‘तुम टेबल साफ करो, पापाजी आज से यहीं खाना खाएंगे.’’

‘‘बहुरानी, कमरे से बाहर नहीं जाएंगे.’’

‘‘आएंगे, मैं उन्हें ले कर आती हूं.’’

पापाजी बिस्तर पर लेटे छत की ओर एकटक देख रहे थे. रीता के आने का उन्हें पता ही नहीं चला.

पापाजी, ‘‘चलिए, खाना खाते हैं.’’

‘‘मेरा खाना यहीं भिजवा दो,’’ वे धीरे से बोले.

‘‘पापाजी मैं तो हमेशा मांपापा और रीमा के साथ खाना खाती थी. यहां अकेले मु झ से न खाया जाएगा,’’ रीता ने उन के पलंग के पास जा कर कहा.

पापाजी चुपचाप आ कर बैठ गए. सभी आश्चर्य से कभी रीता को तो कभी पापाजी को देख रहे थे.

खाने खाते हुए रीता बातें भी कर रही थी पर पापाजी हां और हूं में ही जवाब दे रहे थे. रीता देख रही थी खाना खाते हुए पापाजी के चेहरे पर तृप्ति का भाव था. पता नहीं कितने दिनों बाद गरम खाना खा रहे थे. खाना भी रोज के मुकाबले ज्यादा खाया.

फिर रीता ने थोड़ी देर आराम किया. शाम के 6 बजे थे. फटाफट तैयार हुई. कमरे के इस बदलाव पर तुषार की प्रतिक्रिया जो देखना चाहती थी. बारबार नजर घड़ी पर जा रही थी. तुषार का इंतजार करना उसे भारी लग रहा था.

डोरबैल बजते ही मुसकराते हुए दरवाजा खोला. तुषार का मन खिल उठा. कौन नहीं चाहता घर पर उस का स्वागत मुसकराहटों से हो.

‘‘सौरी, देर हो गई.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

कमरे में पैर रखते हुए चारों ओर नजर घुमाई और फिर एक कदम पीछे हट गया.

‘‘क्या हुआ?’’ रीता ने पूछा.

‘‘शायद मैं गलत घर में आ गया हूं.’’

रीता ने हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, ‘‘हां, आप मेरे घर में आ गए हो,’’ और फिर दोनों की सम्मिलित हंसी से कमरा भी मुसकरा उठा. रीता को अपने काम की प्रशंसा मिल चुकी थी.

पलंग पर बैठ कर तुषार जूते उतार कर हमेशा की तरह जैसे ही उन्हें पलंग के नीचे खिसकाने लगा रीता बोल पड़ी, ‘‘प्लीज, जूते रैक पर रखें.’’

‘‘सौरी, आगे से ध्यान रखूंगा,’’ कहते हुए उस ने जूते रैक पर रख दिए.

आदतें एकदम से नहीं बदलतीं. उन्हें समय तो लगता ही है. जैसे ही तुषार ने कपड़े उतार कर बिस्तर पर रखे रीता ने उठा कर हैंगर पर टांग दिए. बारबार टोकना व्यक्ति में खीज पैदा करता है, यह बात रीता बहुत अच्छी तरह सम झती थी. आदतन बाथरूम से निकल कर तौलिया फिर बिस्तर पर… जब मुसकराते हुए रीता उसे बाथरूम में टांगने गई तो तुषार को अपनी इस हरकत पर शर्म महसूस हुई. तभी उस ने तय कर लिया कि वह भी कोशिश करेगा चीजें व्यवस्थित रखने की.

‘‘अच्छा बताओ ससुराल में आज का दिन कैसे बिताया? मैं भी न… मु झे दिखाई दे रहा है दिनभर तुम ने बहुत मेहनत की.’’

‘‘पहली बात तो यह है यह ससुराल नहीं मेरा अपना घर है. इसे व्यवस्थित करना भी तो मेरा ही काम है.

फिर रीता ने पापाजी के कमरे की सफाई, पापाजी का डाइनिंग टेबल पर खाना खाना सारी बातें विस्तार से बताईं. तुषार को खुद पर नाज हो रहा था कि इतनी सुघड़ पत्नी मिली.

‘‘अरे, 9 बज गए. समय का पता ही नहीं चला. डिनर का भी समय हो गया. आप पहुंचिए मैं पापाजी को ले कर आती हूं.’’

फिर उन के कमरे में जा कर बोली, ‘‘पापाजी, चलिए खाना तैयार है.’’

इस बार पापाजी बिना कुछ कहे डाइनिंगटेबल पर आ गए.

‘‘पापाजी, मु झे अभी आप की और तुषार की पसंद नहीं मालूम, इसलिए आज अपनी पसंद से खाना बनवाया है.’’

‘‘तुम्हारी पसंद भी तुम्हारी तरह अच्छी ही होगी. क्यों पापाजी?’’

तुषार की इस बात का जवाब पापाजी ने मुसकराहट में दिया.

रीमा को घर के कामों से कोई मतलब नहीं था. रीता की शादी के बाद पापा को सारे काम अकेले ही करने पड़ते थे.

शादी को 1 साल होने वाला था. पापाजी अवसाद से बाहर आ गए थे. उन की दवाइयां भी बहुत कम हो गई थीं. अब वे कमरे में सिर्फ सोने जाते थे.

जैसे एक छोटा बच्चा दिनभर मां के आगेपीछे घूमता है वही हाल पापाजी का भी था. थोड़ी भी देर यदि रीता दिखाई न दे तो पूछने लग जाते. 1 साल में मुश्किल से 1-2 बार ही मायके गई थी. पापाजी जाने ही नहीं देते थे. वह स्वयं भी पापाजी को छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी. मायका लोकल होने के कारण मम्मीपापा खुद ही मिलने आ जाते थे.

पापाजी अस्वस्थ होने के कारण अपने बेटे की शादी ऐंजौय नहीं कर पाए थे, इसलिए वे शादी की पहली सालगिरह धूमधाम से मनाना चाहते थे. इस के लिए वे बहुत उत्साहित भी थे. सारे कार्यक्रम की रूपरेखा भी वही बना रहे थे. आखिर जिस दिन का इंतजार था वह भी आ गया.

सुबह से ही तुषार और रीता के मोबाइल सांस नहीं ले पा रहे थे. हाथ में ऐसे चिपके थे जैसे फैविकोल का जोड़ हो. एक के बाद एक बधाइयां जो आ रही थीं. घर में चहलपहल शुरू हो गई थी. मेहमानों का आना शुरू था. कुछ तो रात में ही आ गए थे.

पापाजी सभी मेहमानों का स्वागत उत्साहपूर्वक कर रहे थे. बीचबीच में शाम के प्रोग्राम की भी जानकारी ले रहे थे.

बहुत ही शानदार आयोजन था. लाइटें इतनी कि आंखें चौंधिया जाएं. कई व्यंजन, लजीज खाना… सभी तारीफ कर रहे थे.

तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था. कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है. रीमा को तो तुषार का साथ वैसे भी अच्छा लगता था और आज उस की नजरें तुषार के चेहरे से हट ही नहीं रही थीं.

पापाजी ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं ने सुना भर था कि बिन घरनी घर भूत का डेरा पर अब उस का अनुभव भी कर लिया. मेरा घर भूत के डेरे के समान ही था पर रीता ने आ कर उसे एक खूबसूरत और खुशहाल घर बना दिया. रीता ने घर ही नहीं घर में रहने वालों की भी काया पलट दी. मैं बहुत खुश हूं जो रीता जैसी बहू हमारे घर आई.’’

‘‘मेरे लिए भी घर एक सराय जैसा था जहां मैं रात गुजारने आता पर उस सराय को एक घर बनाने का श्रेय रीता को जाता है,’’ कहते हुए तुषार ने रीता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

सभी ने रीता की खूब तारीफ की. तभी अचानक रीता को चक्कर आ गया. वह गिरती उस के पहले ही तुषार ने संभाल लिया. सभी घबरा गए. डाक्टर को बुलाया गया. जितने लोग उतनी बातें. कोई बोला काम की अधिकता की वजह से चक्कर आया तो किसी ने कहा नींद पूरी नहीं हुई होगी, कोई कह रहा था ठीक से खाना नहीं खाया होगा. महिलाओं में एक अलग ही खुसरफुसर थी. सब से ज्यादा चिंता पापाजी और तुषार के चेहरे पर थी.

डाक्टर ने जैसे ही रीता के पैर भारी होने की सूचना दी मुर झाए चेहरे खिल उठे. पापाजी तो इतने खुश हुए जैसे खजाना हाथ लग गया हो. रीमा, रीता की खुशी में खुश नहीं थी वरन उसे इस बात की जलन हो रही थी कि तुषार जैसा जीवनसाथी उसे क्यों नहीं मिला. वह तुषार की ओर खिंचाव सा महसूस करने लगी थी. वह तुषार के करीब आने का कोई न कोई बहाने ढूंढ़ती रहती थी. रीता की तबीयत के बहाने उस घर में उस का आनाजाना बढ़ गया था. घर का माहौल पूरी तरह पलट गया था. अभी तक रीता तुषार और पापाजी का खयाल रखती थी. अब ये दोनों मिल कर रीता का खयाल रख रहे थे. कभीकभी मजाक में रीता पापाजी से बोल भी देती थी कि आप तो ससुर से सासूमां बन गए.

जैसेजैसे समय नजदीक आ रहा था पापाजी की चिंता बढ़ती जा रही थी. अब तो वे रीता की हर गतिविधि पर नजर रख रहे थे.

उस दिन सुबह से रीता अनमनी सी थी. बारबार लेट जाती थी. पापाजी ने तुषार को औफिस जाने से मना किया. ऐसा पहले भी हुआ जब पापाजी ने उसे औफिस जाने से मना किया और उस ने हर बार उन की बात मानी.

दोपहर होतेहोते रीता को दर्द शुरू हो गया. हालांकि डाक्टरों ने जो तारीख दी थी उस में अभी 7 दिन बाकी थे. मगर वे कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे, इसलिए तुरंत अस्पताल पहुंचे.

रीता डिलिवरीरूम में थी. बाहर पापाजी और तुषार चहलकदमी कर रहे थे.

नर्स ने कई बार टोका, ‘‘आप लोग आराम से बैठ जाएं डिलिवरी में अभी टाइम है.’’

वे 2 मिनट बैठते फिर चहलकदमी शुरू कर देते. जितनी बार नर्स बाहर आती उतनी ही बार पापाजी उस से पूछते कि रीता तो ठीक है न और वह हर बार मुसकरा कर जवाब देती, ‘‘सब ठीक है.’’

आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का उन्हें बेसब्री से इंतजार था. नर्स ने जैसे ही खबर दी पापाजी ने उस से पूछा, ‘‘रीता तो ठीक है न?’’

‘‘हां बिलकुल ठीक है पर आप ने यह नहीं पूछा कि बेटा हुआ या बेटी…’

‘‘उस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. बस दोनों स्वस्थ होने चाहिए.’’

नर्स ने उन्हें अचरज से देखा और फिर अंदर चली गई.

अब चहलकदमी बंद हो गई थी. थोड़ी ही देर में नर्स कपड़े में लिपटे नवजात को ले कर बाहर आई. फिर तुषार को देते हुए बोली, ‘‘बेटा हुआ है.’’

तुषार ने पापाजी की ओर इशारा कर कहा कि पहला हक इन का है.

जैसे ही पापाजी ने उसे हाथों में लिया एकटक देखते रहे. उन्होंने कोशिश तो बहुत की, पर आंसुओं को न रोक पाए.

‘‘पापाजी क्या हुआ?’’ तुषार परेशान हो उठा.

बच्चे को तुषार को सौंपते हुए बोले, ‘‘कुछ नहीं आंखों से कुछ नहीं छिपा सकते… ये आंसू खुशी के हैं. मैं इतना खुश तो तेरे पैदा होने पर भी नहीं हुआ था जितना आज हूं. कभीकभी डर भी लगता है कहीं इन खुशियों पर किसी की नजर न लग जाए.’’

‘‘मूल से ब्याज जो प्यारा होता है,’’ तुषार ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘अब बेबी मु झे दीजिए वैक्सिनेशन करना है.’’

‘‘सिस्टर, हम रीता से कब मिल सकते हैं?’’

‘‘थोड़ी देर बाद हम उसे रूम में शिफ्ट कर देंगे. तब मिल लेना.’’

‘‘8 नंबर रूम में जा कर आप लोग रीता से मिल सकते हैं,’’ थोड़ी देर बाद आ कर नर्स बोली.

पापाजी ने सम झदारी दिखाते हुए पहले तुषार को रीता से मिलने भेजा.

रीता का हाथ अपने हाथ में लेते तुषार ने कहा, ‘‘कैसी हो? थैंक्स मु झे इतना प्यारा गिफ्ट देने के लिए.’’

रीता ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘पापाजी कहां हैं?’’

‘‘बाहर हैं, अभी बुलाता हूं.’’

अंदर आते ही पापाजी ने रीता के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘ठीक तो हो न?’’

आज घर को फूलों से सजाया गया था. दरवाजे पर सुंदर सी रंगोली भी बनाई

गई थी. रीता अस्पताल से घर जो आने वाली थी. रीता और बच्चे का स्वागत पापाजी ने थाली बजा कर किया. पापाजी ने तो उस का नामकरण भी कर दिया ‘प्रिंस.’

रीता को देखभाल की जरूरत थी. सुचित्रा ने कुछ दिन यहीं रुकने का निश्चय किया तो रीमा की तो मन की मुराद ही पूरी हो गई. तुषार के साथ रहने का मौका जो मिल गया. ऐसा नहीं कि तुषार कुछ सम झता नहीं था. वह हमेशा कोशिश करता कि रीमा से दूर रहे. किसी से कुछ कह भी तो नहीं सकता था. वह जितना दूर होता रीमा उतना ही उस के करीब आने की कोशिश करती. उस की तो जिद थी कि तुषार को पाना है. पर तुषार तो रीता से खुश और संतुष्ट था. वह किसी भी कीमत पर उसे धोखा नहीं देना चाहता था.

प्रिंस के आने से पापाजी का बचपना लौट आया था. उन्हें तो मानो एक खिलौना मिल गया था, जिसे वे अपनी आंखों से एक पल के लिए भी ओ झल नहीं होना देना चाहते थे. नैपी बदलना, पौटी साफ करने जैसे कामों में भी कोई हिचक नहीं थी.

समय बीतते देर नहीं लगती. प्रिंस 1 साल का हो गया था. अब तो वह चलने भी लगा था. प्रिंस को खेलाने के बहाने रीमा का आना जारी था. दिनभर प्रिंस के पीछेपीछे पापाजी भागते रहते. रीता ने कई बार टोका भी कि पापाजी आप थक जाएंगे, आप के घुटनों का दर्द बढ़ जाएगा पर उन की दुनिया तो प्रिंस के इर्दगिर्द ही थी. वे पहले से ज्यादा खुश और स्वस्थ नजर आते थे.

आखिर जिस की उम्मीद नहीं थी वही हुआ. रीमा अपने मकसद में कामयाब हो गई. उस का छुट्टी के दिन आना और घंटों बतियाना, कभीकभी एक ही थाली में खाना खाना पापाजी की अनुभवी आंखों से छिप न सका. उन्हें आने वाले तूफान का आभास होने लगा था. उन्होंने इशारेइशारे में रीता को कई बार सम झाने की कोशिश की पर रीता को तो तुषार और रीमा पर इतना विश्वास था कि वह इसे पापाजी का वहम मानती.

आज फिर पापाजी ने रीता से बात की.

‘‘पापाजी, जीजासाली में तो मजाक चलता है. आप बेकार में परेशान होते हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है उन दोनों के बीच.’’

प्रिंस जैसेजैसे बड़ा हो रहा था पापाजी उतने ही छोटे बनते जा रहे थे. दिनभर उस के साथ खेलना, उस के जैसे ही तुतला कर उस से बात करना. आज रीता की किट्टी पार्टी थी. प्रिंस को खाना खिला कर पापाजी के पास सुला कर वह किट्टी में जाने के लिए तैयार होने लगी. वैसे भी प्रिंस ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ बिताता था, इसलिए उसे छोड़ कर जाने में रीता को कोई परेशानी नहीं थी.

जिस के यहां किट्टी थी उस के कुटुंब में किसी की गमी हो जाने की वजह से किट्टी कैंसिल हो गई और वह जल्दी घर लौट आई. बाहर तुषार की गाड़ी देख आश्चर्य हुआ. आज औफिस से इतनी जल्दी कैसे आना हुआ… अगले ही पल आशंकित होते हुए कि कहीं तबीयत तो खराब नहीं है, जल्दीजल्दी बैडरूम की ओर बढ़. दरवाजे पर पहुंचते ही ठिठक गई.

अंदर से रीमा की आवाजें जो आ रही थीं. रीमा को तो इस समय कालेज में होना चाहिए. यहां कैसे? कहीं पापाजी की बात सही तो नहीं है? गुस्से में जोर से दरवाजा खोला. अंदर का नजारा देखते ही उस के होश उड़ गए. तुषार तो रीता को देखते ही सकपका गया पर रीमा के चेहरे पर शर्मिंदगी का नामोनिशान नहीं था.

गुस्से से रीता का चेहरा तमतमा उठा. आंखों से अंगारे बरसने लगे. पूरी ताकत से रीमा को इसी समय कमरे से और घर से जाने को कहा. तुषार तो सिर  झुकाए खड़ा रहा पर रीमा ने कमरे से बाहर जाने से साफ इनकार कर दिया. रीता ने बहुत बुराभला कहा पर रीमा पर उस का कुछ भी असर नहीं हुआ.

हार कर रीता को ही कमरे से बाहर आना पड़ा. उस की रुलाई थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और फिर हिम्मत कर तुषार से बात करने कमरे में गई और बोली ‘‘तुषार इस घर में या तो रीमा रहेगी या मैं,’’ उसे लगा यह सुन कर तुषार रीमा को जाने के लिए कह देगा.

मगर वह बोला, ‘‘रीमा तो यहीं रहेगी, तुम्हें यदि नहीं पसंद तो तुम जा सकती हो.’’

तुषार से इस जवाब की उम्मीद तो रीता को बिलकुल नहीं थी. अब उस के पास कहने को कुछ नहीं था.

सुचित्रा और शेखर ने भी रीमा को सम झाने की बहुत कोशिश की, पर अपनी जिद पर अड़ी रीमा किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. अभी तक जो काम चोरीछिपे होता था अब वह खुल्लमखुल्ला होने लगा. रीता को तो अपने बैडरूम से भी बेदखल होना पड़ा. जिस घर में हंसी गूंजती थी अब वीरानी सी छाई थी. आखिर कोई कब तक सहे. इन सब का असर रीता की सेहत पर भी होने लगा. सुचित्रा और शेखर ने तय किया कि रीता उन के पास आ कर रहेगी वरना वहां रह कर तो घुटती रहेगी.’’

तुषार को प्रमोशन मिली थी. आज उस ने प्रमोशन की खुशी में पार्टी रखी थी. रीता जाना ही नहीं चाहती थी, लोगों की नजरों और सवालों से बचना जो चाहती थी. पार्टी में वह रीमा को ले कर गया.

पापाजी बहुत परेशान थे. उन्हें सम झ ही नहीं आ रहा था इस मामले को कैसे सुल झाया जाए. वे किसी भी कीमत पर रीता और प्रिंस को इस घर से जाने नहीं देना चाहते थे. उन के जाने के बाद वे कैसे जीएंगे. पर रोकें भी तो कैसे? इसी उधेड़बुन में लगे थे कि अचानक उन्होंने एक ठोस निर्णय ले ही लिया.

रीता का कमरा साफ करते हुए सुचित्रा ने शेखर से कहा, ‘‘पता नहीं मु झ से रीमा की परवरिश में कहां चूक हो गई.’’

‘‘कितनी बार तुम से कहा अपनेआप को दोष मत दिया करो सुचित्रा.’’

‘‘नहीं शेखर, यदि बचपन में ही उस की जिद न मानी होती तो शायद यह दिन न देखना पड़ता. जब भी उस ने रीता की किसी चीज पर हक जमाया हम ने हमेशा यह कह कर रीता को सम झाया कि छोटी बहन है दे दो, पर इस बार उस ने जो चीज लेनी चाही है वह कैसे दी जा सकती है?

‘‘सपने में भी नहीं सोचा था. रीमा रीता का घर ही उजाड़ देगी, काश मैं ने रीमा पर नजर रखी होती, उसे इतनी छूट न दी होती. ये सब मेरी भूल की वजह से हुआ.’’

रीता बैग में कपड़े रखते हुए सोच रही थी कि उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह दिन भी देखना पड़ेगा. तुषार भी बदल जाएगा. काश मैं ने पापाजी की बात को सीरियसली लिया होता. उन्होंने तो मु झे बहुत बार आगाह किया पर मैं सम झ ही नहीं पाई. जो कुछ हुआ उस में मेरी ही गलती है.

पापाजी के मन में उथलपुथल मची थी. वे रीता के पास जा कर बोले, ‘‘कपड़े वापस अलमारी में रखो. तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘पर पापाजी मैं यहां रह कर क्या करूंगी जब तुषार ही नहीं चाहता?’’

‘‘क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं? इस घर को घर तो तुम ने ही बनाया है. तुम चली जाओगी तो वीराना हो जाएगा. मैं कैसे जीऊंगा तुम्हारे और प्रिंस के बिना. अब तुम अपने बैडरूम में जाओ. यह घर तुम्हारा है.’’

‘‘जी पापाजी,’’ कह वह प्रिंस को ले कर सोने चली गई.

रात के 2 बज रहे थे. तुषार और रीमा अभी तक नहीं आए थे. पापाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. वे सोच रहे थे कि मैं तो बड़ा और अनुभवी था जब मु झे आभास हो गया था तो चुप क्यों बैठा रहा. सारी मेरी गलती है.

हरकोई इस भूल के लिए अपनेआप को दोषी ठहरा रहा था, जबकि जो दोषी था वह तो अपनेआप को दोषी मान ही नहीं रहा था. घड़ी ने 12 बजा दिए. पापाजी ने अंदर से दरवाजा लौक किया और आंखें बंद कर दीवान पर लेट गए. मन में विचारों का घुमड़ना जारी था. गेट खुलने की आवाज आते ही पापाजी ने खिड़की से देखा, तुषार गाड़ी पार्क कर रहा था. दोनों हाथों में हाथ डाले लड़खड़ाते हुए दरवाजे की ओर बढ़ रहे थे.

तुषार ने इंटर लौक खोला पर दरवाजा नहीं खुला, ‘‘यह दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा?’’

‘‘हटो, मैं खोलती हूं.’’

पर रीमा से भी नहीं खुला.

‘‘लगता है किसी ने अंदर से बंद कर दिया है.’’

‘‘अरे, ये बैग कैसे रखे यहां?’’

‘‘रीता के होंगे. वह आज मम्मी के घर जा रही थी न.’’

तुषार ने दरवाजा कई बार खटखटाया पर कोई उत्तर न आने पर रीता को आवाज लगाई. पर तब भी कोई जवाब नहीं.

‘‘लगता है रीता गहरी नींद में है, पापाजी को आवाज लगाता हूं.’’

‘‘यह दरवाजा नहीं खुलेगा,’’ अंदर से ही पापाजी ने जवाब दिया.

‘‘देखो, दरवाजे पर ही एक तुम्हारा और एक रीमा का बैग रखा है.’’

‘‘यह घर मेरा है मु झे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘बरखुरदार, तुम भूल रहे हो मैं ने अभी यह घर तुम्हारे नाम नहीं किया है.’’

‘‘पापाजी मैं इस समय कहां जाऊंगी?’’

‘‘यह फैसला भी तुम्हें ही करना है… इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं. जब तुम्हें पूरी तरह सम झ आ जाए कि तुम क्या कर रहे हो और कुछ ऐसा कि इस दरवाजे की एक और चाबी तुम्हें मिले, तब तक यह दरवाजा बंद सम झो.’’

दोनों का नशा काफूर हो चुका था. थोड़ी देर इंतजार किया कि शायद पापाजी दरवाजा खोल दें. मगर जब दरवाजा नहीं खुला तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘रीमा, चलो गाड़ी में बैठो.’’

रीमा ने कहा, ‘‘तुषार, मु झे घर पर उतार दो. तुम्हें तो रात को शायद होटल में रहना पड़ेगा,’’ रीमा को मन में खुशी भी थी कि बहन का घर तोड़ दिया पर यह डर भी था कि तुषार जैसा वेबकूफ पार्टनर कहीं हाथ से न निकल जाए.

‘‘तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था.

कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है…’’

Hindi Satire : तनाव के मजे

Hindi Satire : ‘तनाव’ तो टैंशन देता है और टैंशन भारत में फैलफैल कर, ले ले कर, झेलझेल कर हिंदी का शब्द बन गया है. कौमन मैन भी टैंशन शब्द का प्रयोग प्यार से करता है. यह रोजमर्रा का ऐसा कार्य बन गया है जैसे ‘दातुन करना.’ हमें एक दिन एक ऐडवोकेट मिले, बोले, ‘‘हम बचपन से इतने टैंशन में रहे हैं, खेले हैं, झेले हैं कि अब यदि हम 15 मिनट खुल कर हंस लें तो शायद बीमार हो जाएं या हार्ट का झटका पड़ जाए.’’

उन्हें यदि प्रतिदिन टैंशन न हो तो वे बेचैन हो जाते हैं.

दरअसल, टैंशन एक मजा है, सजा नहीं. जाने कितने लोग इसी से जीवन चला रहे हैं, जी रहे हैं, दूसरों को जिला रहे हैं. यह तनाव मानवजीवन का वैसा ही अभिन्न अंग है या विशिष्ट गुण है, जैसा ‘हंसी’ या ‘सोचना’. इस के मजे के बिना जीवन ही दूभर हो जाए. इसलिए इसे प्रात: स्मरणीय मान कर स्वागत करना चाहिए, नमन करना चाहिए, मुंह नहीं सिकोड़ना चाहिए. यह अलग बात है कि किसी ने पूछा, ‘‘क्यों बिजूके जैसा मुंह बनाए हो?’’ तो जवाब मिला, ‘‘हमारा चेहरा ही ऐसा है.’’

हर कोई टैंशन, दया, प्रेम, करुणा जैसे भाव ग्रहण करता, कराता घूम रहा है.

टैंशन की आदत घरघर में, घर के हर कमरे के बच्चे, बूढ़े, जवान, प्रौढ सभी नरनारी में पूर्णरूप से विकसित हो चुकी है. यदि यह कहें कि यह काल टैंशन का स्वर्णिम काल है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आप मजाक में ले रहे हों तो खुल कर वार्त्ता करते हैं. घर के बूढ़े सुबहसुबह घर के लोगों के देर से सो कर उठने पर टोक कर, चिल्ला कर टैंशन का मजा लेते हैं या बच्चों ने ब्रश नहीं किया तो तनाव ले लेते हैं. बहू ने चायनाश्ते में देर लगाई तो तनाव ले लिया. वे घड़ी, जूतेचप्पल या तांबे के लोटे में पानी न मिलने पर तनाव ले लेते हैं. वे तनाव का स्वयं ही मजा नहीं लेते, बल्कि दूसरों को भी प्रसादस्वरूप बांट देते हैं. अब सामने वाले

उसे प्रसाद मानें या अवसाद, यह उन पर

निर्भर है.

वृद्ध माताएं, सासें, नानियां भी दिन की शुरुआत टैंशन से करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती हैं. खाने का ढक्कन खुला छोड़ने पर, सब्जी न होने पर, नहाने का पानी गरम न होने पर, शरीर में कोई तकलीफ होने पर खीज या चिल्लपों मचा कर वे इस का भरपूर मजा लेती हैं. बूढ़े तो इस का मजा सुबह से रात तक भरपूर लेते हैं, क्योंकि उन्हें दूसरे कोई काम नहीं होते. वे टैंशन देने की शिक्षा बच्चों, नातीपोतों, पोतियों को अविराम रूप से देते रहते हैं. इस तरह टैंशन पैतृक गुण में विकसित हो कर ही पल्लवितपुष्पित हो रही है.

तनाव का अत्यधिक मजा लेने वाले कुछ

ऐसे भी होते हैं, जो महल्लों में या कालोनियों में हमेशा पाए जाते हैं. ये लोग कचरे के टुकड़े, सब्जी के छिलके, अखबार की कतरनें अपने घर की 4 दिशाओं में से किसी भी दिशा में दिख जाएं तो महल्ला सिर पर उठा लेते हैं और पड़ोसियों में थोक में तनाव फैला देते हैं. मजा तब और भी आता है जब तनाव से तनाव का पेंच लड़ाने वाले सामने आ जाएं. तब महाटैंशन का मजा आधापौना घंटा और कभी तो घंटा भर तक सामूहिक रूप से लोग ले लेते हैं, बाद में टैंशन पर हंसते भी हैं. टैंशन भी हंसने की चीज है या सरल सहज है, पता चल जाता है.

अखबार 10-15 मिनट लेट लाने पर, दूध

वाले के दूध को पतला या पानी मिला कहने पर, नौकर के लेट आने पर, बरतन वाली के बरतन साफ न करने पर, कपड़े धोने में साबुन ज्यादा खर्च होने पर, हमआप रोज टैंशन ले कर अपना स्वास्थ्य ठीक रखते हैं. बटन टूटने पर, टैक्सी, बस लेट होने पर, सब्जी के भाव बढ़ने पर, अखबार की तनाव की खबरों को पढ़ कर रोज मजा लेते हैं. हम दरअसल, तनावपू्रफ हो चुके हैं. मन, जेहन, मस्तिष्क, तन सब में इसे बसा कर ही जीवित हैं. यदि तनाव न हो तो शायद पागल हो जाएं या साधु हो जाएं. यह स्वास्थ्यवर्धक टौनिक है. कृपया इसे कभी अपने से अलग न करें.

युवा खाली समय में फालतू की बहस कर के देश की राजनीति पर, सरकार पर, फिल्म या फिल्मी गानों पर, संगीत, फैशन पर चर्चा कर के तनाव निकालने का प्रयोग करते हैं. यही नहीं, गुटका न मिलने पर, सिगरेट न पाने पर, रात में जाम का इंतजाम न होने पर और कुछ नहीं तो किसी की शादी हो रही है या नहीं हो रही है, इस पर ही टैंशन पाल लेते हैं.

कुछ समाजसेवा करने के बहाने समाज में टैंशन बांट रहे हैं. उस की जींस की पैंट मेरी पैंट से महंगी क्यों है? यह तनाव का अच्छा तरीका है. तनाव जितना दिमाग में भरा रहेगा, दिमाग में शैतान का घर नहीं बन सकता. दूसरों के फटे में टांग फंसा कर भी टैंशन का मजा लेते रहना चाहिए. ‘मियां, दुबले क्यों हो,’ यह पुरानी मिसाल हमें टैंशन लेने के लिए सदा प्रेरित करती है.

बच्चों के टैंशन लेने के भी अलग रंगढंग हैं, स्कूल जाना या नहीं जाना, इस पर मचलना, टिफिन में यह रखो, वह रखो, दूध पीना या नहीं पीना, पढ़ना या खेलना, नए कपड़े पहनना या पसंद के पहनना, घूमने जाने के लिए कार हो या टूव्हीलर, फालतू में रो कर टैंशन का विस्तार करना, 1 रुपया चाहिए या 5 रुपए, छोटी साइकिल चाहिए या नया बस्ता, बैट चाहिए या बौल आदि किसी भी बात पर भरपूर तनाव का मजा लेते हैं और घर को तनाव से लबालब भर देते हैं. जब तनाव अपने चरम पर जा कर समाप्त होता है, तब लोग खुद को इतना हलका महसूस करते हैं जितना भजन या योगा के बाद भी महसूस नहीं होता.

लड़कियों के तनाव के अपने तौरतरीके हैं. काम करना है या नहीं करना है, इस पर मुंह फुला लिया, तनाव ले लिया. बाजार, कालेज, स्कूल, शादी या पार्टी में जाना है, कौन सी ड्रैस, कैसे जेवर जंचेंगे, इस पर तनाव ले लिया. खाने में निमंत्रण होने पर डोसा, आइसक्रीम, चुसकी या गोलगप्पे नहीं खा पाए, तनाव जारी है. उस सहेली ने उस से ऐसा क्यों कह दिया या हम ने ऐसा नहीं कहा, उस ने गलत समझ लिया, टैंशन चालू है. फलां का दूल्हा फलां से बेहतर है, तनाव पैदा कर लिया और उस का मजा झेला. फलां फिल्म में हीरोइन की ड्रैस ऐसी थी, तनाव का बढि़या स्रोत हो जाता है.

समाज इस का भरपूर मजा लेता है.

तनाव ओढ़ना/बिछावन हो गया है. किसी

का मकान बने तो तनाव लेना है, नाबदान

का पानी हमारे घर की ओर बह रहा है,

तनाव जारी है, शहर में हत्या या बड़ी घटना हो तो दिन भर चर्चा कर तनाव से तसल्ली करें. कुछ नहीं तो जिलाध्यक्ष खराब, एस.पी. अच्छा, कोतवाल भ्रष्ट, फलां नेता करोड़पति, फलां अफसर लखपति, सोचसोच कर दुबले हो कर तनाव का सुख ले रहे हैं. भूकंप कहीं आया, सामूहिक मौतें कहीं हुईं, विस्फोट कहीं हुआ, घोटाला देश के किसी कोने में हुआ, तनाव

का बीज बन जाता है व नेता को इसी बात का तनाव हो जाता है कि फलां घोटाला दूसरा क्यों कर गया, हम ने कर लिया होता तो कितना अच्छा होता. टीवी का लगभग हर सीरियल अपने अगले ऐपिसोड तक तनाव का बीज छोड़ कर अपने ऐपिसोड को समाप्त करता है. हर चैनल नया तनाव देने के लिए तैयार है.

टैंशन का टशन लंबा है. तनाव तनता ही

जाएगा, फालतू के तनाव भी होते हैं, फलां मोटरसाइकिल से इतनी दूर गया, एक्सीडैंट हो रहे हैं. पिछले 1 साल के एक्सीडैंट सोचसोच कर ही लोग तनाव ले रहे हैं. फलां के निमंत्रण में गया. वे दुश्मन के दोस्त हैं, कुछ भी कर सकते हैं, यथा जहर दे दें, गोली मार दें, सोचसोच कर शांति खो रहे हैं.

टैंशन शरीर, मन, मस्तिष्क के भरणपोषण की अच्छी खुराक एवं टौनिक बन गया है. हमें तो लगता है कि आने वाले समय में सरकारी, प्राइवेट टैंशन ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट या तनाव शौप खुलवानी पड़ेगी. लोगों का कार्य बिना तनाव के मजे के चलने वाला नहीं लगता. तनाव ने सुबह से रात तक और यहां तक कि सोने के वक्त में भी अपना स्थान बना लिया है. तनाव के संधिविच्छेद से ऐसा नहीं लगता कि तन जमा आव यानी तन पर आना या तन के आना या तन का आब या पानी सुखाना अर्थ हो.

स्वस्थ रहना है तो तनाव रत्न को तल्लीनता से तलाशिए, टटोलिए, ग्रहण कीजिए. कैसे तनाव लिया और दिया जाता है, यह पासपड़ोस, बड़ों, बुजुर्गों से सीखिए और मजे कीजिए. तनाव होगा तो भविष्य में नौजवान बेरोजगारोें को ‘तनाव रिलीज’ व्यापार के अवसर प्राप्त होंगे.

तनाव जीने की कला है, जीवन का मंत्र है. इसलिए अच्छेभले न रह कर तनाव लेते रहें, ओढ़ते रहें, भोगते रहें.

Hindi Stories Online : इल्जाम – किसने किए थे गायत्री के गहने चोरी

Hindi Stories Online : कामिनी जी के गहने नहीं मिल रहे थे. पूरे घर में हड़कंप मच गया. कम से कम 4 लाख के गहने अचानक चोरी कैसे हो सकते हैं.”कामिनी ध्यान से देखो. तुम ने ही कहीं रख दिए होंगे, ” उन के पति भवानी प्रसाद ने समझाया.

“मैं अभी इतनी भी बूढ़ी नहीं हुई हूं कि गहने कहां रखे यह याद न आए. जल्दीजल्दी में अपनी इसी अलमारी के ऊपर गहने रख कर दमयंती को विदा करने नीचे चली गई थी. मुश्किल से 5 मिनट लगे होंगे और इतनी ही देर में गहने गायब हो गए जैसे कोई ताक में बैठा हुआ हो,” भड़कते हुए कामिनी ने कहा.

“मम्मी जी कोई और पराया तो अब इस घर में बचा नहीं सिवा मेरे भाईबहन के. सीधा कहिए न कि आप उन पर गहने चोरी करने का इल्जाम लगा रही हैं,” कमरे के अंदर से आती समीक्षा ने सीधी बात की.

“बहू मैं किसी पर इल्जाम नहीं लगा रही मगर सच क्या है यह सामने आ ही गया. मैं ने नहीं कहा कि तेरे भाईबहन ने गहने चुराए हैं पर तू अपने मुंह से कह रही है. यदि ऐसा है तो फिर ठीक है. एक बार इन का सामान भी चेक कर लिया जाए तो गलत क्या है?”

“मम्मी यह कैसी बातें कर रही हो आप. समीक्षा के भाईबहन ऐसा कर ही नहीं सकते,” मयंक ने विरोध किया.

“ठीक है फिर मैं ने ही चुरा लिए होंगे अपने गहने या फिर इन पर इल्जाम लगाने के लिए जानबूझ कर छिपा दिए होंगे,” कामिनी जी ने गुस्से में कहा.

“मम्मी प्लीज इस तरह मत बोलो. चलो मैं आप के गहने ढूंढता हूं. हो सकता है अलमारी के पीछे गिर गए हों या हड़बड़ी में गलती से कहीं और रख दिए हों. मम्मी कई दफा इंसान दूसरे काम करतेकरते कोई चीज कहीं रख कर भूल भी जाता है. चलिए पहले आप का कमरा देख लेता हूं.”

पत्नी या सालेसाली को बुरा न लगे यह सोच कर मयंक ने पहले अपनी मां के कमरे में गहनों को अच्छी तरह ढूंढा. एकएक कोना देख लिया पर गहने कहीं नहीं मिले. फिर उस ने पूरे घर में गहनों को तलाश किया. कहीं भी गहने न मिलने पर कामिनी ने समीक्षा के भाईबहन के बैग खोलने का आदेश दे दिया. थक कर मयंक ने उन का बैग खोला और पूरी तरह से तलाशी ली मगर गहने वहां भी नहीं मिले.

कामिनी जी ने फिर भी आरोप वापस नहीं लिया उलटा तीखी बात यह कह दी कि उन्होंने गहने कहीं छिपा दिए होंगे. इधर समीक्षा के साथसाथ उस के भाईबहन अनुज और दिशा को भी इस तरह तलाशी ली जाने की घटना बहुत अखरी. दोनों नाराज होते हुए उसी दिन की ट्रेन ले कर अपने शहर को निकल गए.

जाते समय अनुज ने साफ़ शब्दों में अपनी बहन से कहा था ,” दीदी हम जानते हैं इस सब के पीछे जीजू या आप का कोई हाथ नहीं. हम चाहते हैं आप अपने ससुराल में खुशहाल जीवन जियें पर हम दोनों भाईबहन अब इस घर में कभी भी कदम नहीं रखेंगे.”

भाई की बात सुन कर समीक्षा की आंखों से आंसू बह निकले थे. मयंक ने उसे गले से लगा लिया था. समीक्षा का गुस्सा सातवें आसमान पर था. मयंक भी खुद को दोषी मान कर बुझाबुझा सा समीक्षा के आगेपीछे घूम रहा था. कामिनी जी अभी भी चिढ़ी हुई अपने कमरे में बैठी थी और मयंक समीक्षा को शांत करने के प्रयास में लगा था.

समीक्षा की शादी सहजता से नहीं हुई थी. उसे मयंक को जीवनसाथी बनाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे. दोनों को कॉलेज टाइम में ही एकदूसरे से प्यार हो गया था. पहली नजर के प्यार को दोनों ही उम्र भर के बंधन में बांधना चाहते थे. मगर दोनों के ही घरवाले इस के लिए तैयार नहीं थे. काफी मान मनौवल और इमोशनल ड्रामे के बाद किसी तरह समीक्षा के घरवालों ने तो अपनी सहमति दे दी मगर मयंक के घर वालों की सहमति अभी भी बाकी थी. मयंक की मां कामिनी देवी किसी भी हाल में गैर जाति की बहू को अपने घर में लाने को तैयार नहीं थी. उन का कहना था कि कल को मयंक के छोटे भाईबहन भी फिर इसी तरह का कदम उठाएंगे. इसलिए वह मयंक को लव मैरिज की इजाजत नहीं दे सकतीं.

मयंक के पिता इस मामले में थोड़े उदार विचारों के थे. उन के लिए बेटे की खुशी ज्यादा मायने रखती थी. उन का आदेश पा कर मयंक ने समीक्षा के साथ कोर्ट मैरिज का फैसला लिया. जब कामिनी जी को यह बात पता चली तो उन का मुंह फूल गया. उन्हें इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि पति ने उन की इच्छा के विपरीत बेटे को लव मैरिज के लिए हां क्यों बोल दिया. कामिनी जी को इस बात पर भी काफी रोष था कि वह बेटे की शादी का हिस्सा भी नहीं बन पाई. एक मां के लिए बेटे की शादी का मौका बहुत खास होता है.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. समीक्षा घर में बहू बन कर आ गई थी मगर न तो घर में शादी की रौनक हुई और न ही रिश्तेदारों को न्योता मिला. नई बहू का गृहप्रवेश भी हो गया और घर में हंसीखुशी का माहौल भी नहीं बन सका.

कामिनी अलग कमरे में बंद रही आती तो भवानी प्रसाद संकोच में बहू से ज्यादा बातें नहीं करते. मयंक पहले की तरह ऑफिस चला जाता और देवर यानी विक्रांत और ननद दीक्षा का अधिकांश समय कॉलेज में बीतता. समीक्षा समझ नहीं पाती कि वह घर के हालातों को नार्मल कैसे बनाए. उसे पता था कि सास उसे पसंद नहीं करती. फिर भी वह अपनी तरफ से सासससुर का पूरा ख़याल रखती और उन का दिल जीतने का पूरा प्रयास करती.

धीरेधीरे भवानी प्रसाद समीक्षा के बातव्यवहार से काफी प्रभावित रहने लगे. कामिनी जी की नाराजगी भी कम होने लगी थी. मगर उन का मुंह इस बात पर अब भी फूला हुआ था कि बेटे की शादी भी हो गई और घर में कोई रौनक भी नहीं हुई. सब कुछ सूनासूना सा रह गया.

इस का समाधान भी भवानी प्रसाद ने निकाल लिया, “कामिनी क्यों न हम अपने बेटे का रिसेप्शन धूमधाम से करें. उस में सारे रिश्तेदार भी आ जाएंगे और घर में रौनक भी हो जाएगी.”

कामिनी जी के गहने नहीं मिल रहे थे. पूरे घर में हड़कंप मच गया. कम से कम 4 लाख के गहने अचानक चोरी कैसे हो सकते हैं.”कामिनी ध्यान से देखो. तुम ने ही कहीं रख दिए होंगे, ” उन के पति भवानी प्रसाद ने समझाया.

“मैं अभी इतनी भी बूढ़ी नहीं हुई हूं कि गहने कहां रखे यह याद न आए. जल्दीजल्दी में अपनी इसी अलमारी के ऊपर गहने रख कर दमयंती को विदा करने नीचे चली गई थी. मुश्किल से 5 मिनट लगे होंगे और इतनी ही देर में गहने गायब हो गए जैसे कोई ताक में बैठा हुआ हो,” भड़कते हुए कामिनी ने कहा.

“मम्मी जी कोई और पराया तो अब इस घर में बचा नहीं सिवा मेरे भाईबहन के. सीधा कहिए न कि आप उन पर गहने चोरी करने का इल्जाम लगा रही हैं,” कमरे के अंदर से आती समीक्षा ने सीधी बात की.

“बहू मैं किसी पर इल्जाम नहीं लगा रही मगर सच क्या है यह सामने आ ही गया. मैं ने नहीं कहा कि तेरे भाईबहन ने गहने चुराए हैं पर तू अपने मुंह से कह रही है. यदि ऐसा है तो फिर ठीक है. एक बार इन का सामान भी चेक कर लिया जाए तो गलत क्या है?”

“मम्मी यह कैसी बातें कर रही हो आप. समीक्षा के भाईबहन ऐसा कर ही नहीं सकते,” मयंक ने विरोध किया.

“ठीक है फिर मैं ने ही चुरा लिए होंगे अपने गहने या फिर इन पर इल्जाम लगाने के लिए जानबूझ कर छिपा दिए होंगे,” कामिनी जी ने गुस्से में कहा.

“मम्मी प्लीज इस तरह मत बोलो. चलो मैं आप के गहने ढूंढता हूं. हो सकता है अलमारी के पीछे गिर गए हों या हड़बड़ी में गलती से कहीं और रख दिए हों. मम्मी कई दफा इंसान दूसरे काम करतेकरते कोई चीज कहीं रख कर भूल भी जाता है. चलिए पहले आप का कमरा देख लेता हूं.”

पत्नी या सालेसाली को बुरा न लगे यह सोच कर मयंक ने पहले अपनी मां के कमरे में गहनों को अच्छी तरह ढूंढा. एकएक कोना देख लिया पर गहने कहीं नहीं मिले. फिर उस ने पूरे घर में गहनों को तलाश किया. कहीं भी गहने न मिलने पर कामिनी ने समीक्षा के भाईबहन के बैग खोलने का आदेश दे दिया. थक कर मयंक ने उन का बैग खोला और पूरी तरह से तलाशी ली मगर गहने वहां भी नहीं मिले.

कामिनी जी ने फिर भी आरोप वापस नहीं लिया उलटा तीखी बात यह कह दी कि उन्होंने गहने कहीं छिपा दिए होंगे. इधर समीक्षा के साथसाथ उस के भाईबहन अनुज और दिशा को भी इस तरह तलाशी ली जाने की घटना बहुत अखरी. दोनों नाराज होते हुए उसी दिन की ट्रेन ले कर अपने शहर को निकल गए.

जाते समय अनुज ने साफ़ शब्दों में अपनी बहन से कहा था ,” दीदी हम जानते हैं इस सब के पीछे जीजू या आप का कोई हाथ नहीं. हम चाहते हैं आप अपने ससुराल में खुशहाल जीवन जियें पर हम दोनों भाईबहन अब इस घर में कभी भी कदम नहीं रखेंगे.”

भाई की बात सुन कर समीक्षा की आंखों से आंसू बह निकले थे. मयंक ने उसे गले से लगा लिया था. समीक्षा का गुस्सा सातवें आसमान पर था. मयंक भी खुद को दोषी मान कर बुझाबुझा सा समीक्षा के आगेपीछे घूम रहा था. कामिनी जी अभी भी चिढ़ी हुई अपने कमरे में बैठी थी और मयंक समीक्षा को शांत करने के प्रयास में लगा था.

समीक्षा की शादी सहजता से नहीं हुई थी. उसे मयंक को जीवनसाथी बनाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे. दोनों को कॉलेज टाइम में ही एकदूसरे से प्यार हो गया था. पहली नजर के प्यार को दोनों ही उम्र भर के बंधन में बांधना चाहते थे. मगर दोनों के ही घरवाले इस के लिए तैयार नहीं थे. काफी मान मनौवल और इमोशनल ड्रामे के बाद किसी तरह समीक्षा के घरवालों ने तो अपनी सहमति दे दी मगर मयंक के घर वालों की सहमति अभी भी बाकी थी. मयंक की मां कामिनी देवी किसी भी हाल में गैर जाति की बहू को अपने घर में लाने को तैयार नहीं थी. उन का कहना था कि कल को मयंक के छोटे भाईबहन भी फिर इसी तरह का कदम उठाएंगे. इसलिए वह मयंक को लव मैरिज की इजाजत नहीं दे सकतीं.

मयंक के पिता इस मामले में थोड़े उदार विचारों के थे. उन के लिए बेटे की खुशी ज्यादा मायने रखती थी. उन का आदेश पा कर मयंक ने समीक्षा के साथ कोर्ट मैरिज का फैसला लिया. जब कामिनी जी को यह बात पता चली तो उन का मुंह फूल गया. उन्हें इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि पति ने उन की इच्छा के विपरीत बेटे को लव मैरिज के लिए हां क्यों बोल दिया. कामिनी जी को इस बात पर भी काफी रोष था कि वह बेटे की शादी का हिस्सा भी नहीं बन पाई. एक मां के लिए बेटे की शादी का मौका बहुत खास होता है.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. समीक्षा घर में बहू बन कर आ गई थी मगर न तो घर में शादी की रौनक हुई और न ही रिश्तेदारों को न्योता मिला. नई बहू का गृहप्रवेश भी हो गया और घर में हंसीखुशी का माहौल भी नहीं बन सका.

कामिनी अलग कमरे में बंद रही आती तो भवानी प्रसाद संकोच में बहू से ज्यादा बातें नहीं करते. मयंक पहले की तरह ऑफिस चला जाता और देवर यानी विक्रांत और ननद दीक्षा का अधिकांश समय कॉलेज में बीतता. समीक्षा समझ नहीं पाती कि वह घर के हालातों को नार्मल कैसे बनाए. उसे पता था कि सास उसे पसंद नहीं करती. फिर भी वह अपनी तरफ से सासससुर का पूरा ख़याल रखती और उन का दिल जीतने का पूरा प्रयास करती.

धीरेधीरे भवानी प्रसाद समीक्षा के बातव्यवहार से काफी प्रभावित रहने लगे. कामिनी जी की नाराजगी भी कम होने लगी थी. मगर उन का मुंह इस बात पर अब भी फूला हुआ था कि बेटे की शादी भी हो गई और घर में कोई रौनक भी नहीं हुई. सब कुछ सूनासूना सा रह गया.

इस का समाधान भी भवानी प्रसाद ने निकाल लिया, “कामिनी क्यों न हम अपने बेटे का रिसेप्शन धूमधाम से करें. उस में सारे रिश्तेदार भी आ जाएंगे और घर में रौनक भी हो जाएगी.”

भवानी प्रसाद पत्नी को चुप कराने लगे फिर समीक्षा से बोले,” असल में इन की भाभी इन्हें देखने आना चाहती थीं पर इन्होने भाभी से मिलने से इंकार कर दिया. अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि जो भाभी इन के दिल के इतनी करीब रही हैं उन से ही यह मिलना क्यों नहीं चाहती. रो भी रही है और मिलना भी नहीं है.”

“पिताजी आप मम्मी जी से आराम से बात कर लो, मैं बाहर चली जाती हूं. शायद वह आप से रोने का कारण शेयर कर लें,” कह कर समीक्षा कमरे से बाहर निकल गई.

भवानी प्रसाद ने जब अकेले में पत्नी से वजह पूछी तो कामिनी रोती हुई बोली,”आज मुझे बहुत पछतावा हो रहा है. मैं ने समीक्षा और उस के निर्दोष भाईबहन के साथ जो किया वह माफी योग्य भी नहीं.”

“यानि तुम ने जानबूझ कर….. “”हां मैं ने जानबूझ कर उन पर इल्जाम लगाया था. पर यह सब मेरे दिमाग की उपज नहीं थी. सच मानो मैं ने वह सब अपनी भाभी के कहने पर किया था. उन्होंने ही मुझे सलाह दी थी कि यदि तुम समीक्षा को घर से निकलवाना चाहती हो तो उस के घरवालों पर इल्जाम लगाओ. उन्हें बेइज्जत करो….” कहतेकहते वह फिर से रोने लगीं.

भवानी प्रसाद आश्चर्य से उस का चेहरा देखते रह गए.”हां भाभी ने ही मुझे कहा था कि बहू को मयंक और अपने पति के मन से उतारने के लिए उस के घरवालों पर चोरी का इल्जाम लगा दो. बहू खुद ही शर्मसार हो कर घर छोड़ देगी. मयंक भी पत्नी से झगड़ा करेगा और समीक्षा के घर वाले भी फिर दोबारा इधर का रुख नहीं करेंगे. ”

“तुम ऐसा कैसे कर सकती हो कामिनी. भाभी के कहने पर तुम ने 2 निर्दोष बच्चों के ऊपर इल्जाम लगा दिया. तुम्हारी योजना पूरी भी हो गई. दोनों बच्चे दोबारा कभी भी हमारे घर नहीं आए. तुम समीक्षा को मयंक और मेरे मन से उतारना चाहती थी, पर क्यों कामिनी? अपने बेटे की खुशियों की दुश्मन क्यों बनना चाहती थी? माना भाभी ने तुम्हें सलाह दी पर खुद भी तो सोचना चाहिए था न,” भवानी प्रसाद ने गुस्से में कहा.

कामिनी फूटफूट कर रोती हुई खुद को कोसने लगी तो उस की खराब हालत देखते हुए भवानी प्रसाद ने जल्द बात खत्म की और उसे सीने से लगा कर कहा,” जो हो गया उसे भूल जाओ कामिनी. अब तुम्हारे आगे जो है उसे देखो. तुम्हारी बहू तुम्हारी दिनरात सेवा कर रही है. बस उसे जी भर कर आशीर्वाद दे लो. तुम ने जो गलत किया उस का पछतावा खत्म हो जाएगा.”

“पछतावा तो तब खत्म होगा जब दोनों बच्चे फिर से इस घर में आएं. प्लीज आप समीक्षा को समझाओ न. वह अपने भाईबहन को फिर से हमारे घर में बुलाए. मैं एक बार उन से माफी मांग लूं.””पहले तो तुम्हें समीक्षा से माफी मांगनी चाहिए कामिनी. मैं समीक्षा को बुला कर लाता हूं.”

भवानी प्रसाद ने समीक्षा को बुलाया तो वह दौड़ी आई,” क्या हुआ पापा जी तबियत तो ठीक है न मम्मी की?” कामिनी समीक्षा के दोनों हाथ पकड़ कर सिर से लगा कर रोती हुई बोलीं,” माफ कर दे बेटा, मैं ने तेरे साथ बहुत गलत किया था. पर तू इस बुढ़िया के लिए अपनी नौकरी, अपना घर, अपने पति और बच्चों को छोड़ कर यहां बैठी हुई है, सेवा में लगी है. अरी पगली इतनी सेवा तो बेटियां भी नहीं करती और तू अपनी कुटिल, दुष्ट सास के लिए इतना कर रही है. ऐसी सास जिस ने कभी भी तुझे दिल से नहीं स्वीकारा. तेरे घर वालों पर चोरी का इल्जाम लगा दिया. उस बुढ़िया के लिए तू इतना क्यों कर रही है मेरी बच्ची? इस बुढ़िया को माफ कर दे,”

“मम्मीजी आप यह क्या कह रही हैं? आप मेरी मां जैसी हैं न. आप की तकलीफ में आप के काम आ सकूं यह तो मेरे लिए खुशी की बात है. पर आप इस तरह रोओ नहीं मम्मी जी प्लीज आप की तबियत खराब हो जाएगी. माफी की कोई बात नहीं. आप मुझे बहू के रूप में देखना नहीं चाहती थीं इसी वजह से आप का यह रिएक्शन हुआ. पर मुझे पता है आप दिल की बहुत अच्छी हैं और पछतावा करने की कोई बात नहीं. मैं मानती हूं मेरे भाईबहन के साथ आप ने बहुत गलत किया था. आप को इल्जाम लगाना था तो मुझ पर लगातीं मगर मेरे भाईबहन ने तो किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा था, ” समीक्षा ने उन के हाथों को सहलाते हुए कहा.

“इसी बात का तो पछतावा है मुझे मेरी बच्ची. मैं ने तेरे साथ बहुत गलत किया. देख ले इसी बात की सजा मिल रही है मुझे. बिस्तर पर आ गिरी हूं. “”मम्मी जी ऐसा कुछ नहीं है. आप ठीक हो जाओगी.”

“बेटा अब मुझे इस पछतावे से मुक्ति तभी मिलेगी जब तेरे भाईबहन से हाथ जोड़ कर माफी मांग लूंगी.””मम्मी जी आप परेशान न हों. मैं उन से बात करती हूं. मेरी बहन तो अभी अहमदाबाद में है. वहीँ शादी हुई है उस की इसलिए शायद वह नहीं आ सकेगी. पर भाई को बुलाने की पूरी कोशिश करती हूं,” कह कर समीक्षा ने फ़ोन उठा लिया.

उस ने फोन पर भाई को घर बुलाया तो उस ने साफ इंकार कर दिया,” दीदी आप तो जानती हो उस इल्जाम को मैं कितनी मुश्किल से अपने जेहन से दूर कर पाया हूँ.  22 -23 साल की उम्र में चोरी का इल्जाम लग जाए और वह भी अपनी बहन के ससुराल में तो बस एक यही इच्छा होती है कि कहीं जा कर डूब मरो.”

“नहीं दिवेश ऐसा नहीं सोचते. माफ कर दे उन्हें. उन की तबियत सही नहीं बिट्टो, ” समीक्षा ने भाई को समझाने की कोशिश की.तब तक कामिनी जी ने समीक्षा के हाथ से फोन ले लिया और दिवेश के आगे खुद ही गिड़गिड़ाने लगीं,” बेटा प्लीज मान जा. इस बुढ़िया को माफ कर दे. मैं इस दुनिया से ही जाने वाली हूं बेटा, बस अंतिम इच्छा पूरी कर दे. मुझे माफ कर दे. एक बार मेरे पास आ, मैं तेरे पैर छू कर माफी मांगना चाहती हूं,” कहतेकहते कामिनी जी फुटफुट कर रो पड़ीं.

रूपेश का दिल पसीज गया,” अरे नहीं आंटी जी आप जैसा कहोगी वैसा ही करूंगा. प्लीज डोंट वरी मैं आ रहा हूं.”

दिवेश की बात सुन कर रोतेरोते भी कामिनी जी के चेहरे पर सुकून के भाव खिल उठे. उन्होंने आंसू पोंछे और समीक्षा से बोली,” समीक्षा बेटा, दिवेश आ रहा है. अंदर वाला कमरा साफ़ कर दे वहीँ ठहराऊंगी उसे और अपने हाथ से खाना बना कर खिलाऊंगी. उस ने मेरी बात मान ली.”

समीक्षा कामिनी जी की ओर देख कर मुस्कुरा उठी और सहारा दे कर उन्हें बेड पर लिटा दिया.आज  कामिनी जी के मन का एक भारी बोझ उतर गया था.

Latest Hindi Stories : क्षमादान – क्यों प्राची के प्यार के खिलाफ थी उसकी मां

Latest Hindi Stories :  टैक्सी से उतरते हुए प्राची के दिल की धड़कन तेज हो गई थी. पहली बार अपने ही घर के दरवाजे पर उस के पैर ठिठक गए थे. वह जड़वत खड़ी रह गई थी.

‘‘क्या हुआ?’’ क्षितिज ने उस के चेहरे पर अपनी गहरी दृष्टि डाली थी.

‘‘डर लग रहा है. चलो, लौट चलते हैं. मां को फोन पर खबर कर देंगे. जब उन का गुस्सा शांत हो जाएगा तब आ कर मिल लेंगे,’’ प्राची ने मुड़ने का उपक्रम किया था.

‘‘यह क्या कर रही हो. ऐसा करने से तो मां और भी नाराज होंगी…और अपने पापा की सोचो, उन पर क्या बीतेगी,’’ क्षितिज ने प्राची को आगे बढ़ने के लिए कहा था.

प्राची ने खुद को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था. उस ने क्षितिज की बात मानी ही क्यों. आधा जीवन तो कट ही गया था, शेष भी इसी तरह बीत जाता. अनवरत विचार शृंखला के बीच अनजाने में ही उस का हाथ कालबेल की ओर बढ़ गया था. घर के अंदर से दरवाजे तक आने वाली मां की पदचाप को वह बखूबी पहचानती थी. दरवाजा खुलते ही वह और क्षितिज मां के कदमों में झुक गए. पर मीरा देवी चौंक कर पीछे हट गईं.

‘‘यह क्या है, प्राची?’’ उन्होंने एक के बाद एक कर प्राची के जरीदार सूट, गले में पड़ी फूलमाला और मांग में लगे सिंदूर पर निगाह डाली थी.

‘‘मां, मैं ने क्षितिज से विवाह कर लिया है,’’ प्राची ने क्षितिज की ओर संकेत किया था.

‘‘मैं ने मना किया था न, पर जब तुम ने मेरी इच्छा के विरुद्ध विवाह कर ही लिया है तो यहां क्या लेने आई हो?’’ मीरा देवी फुफकार उठी थीं.

‘‘क्या कह रही हो, मां. वीणा, निधि और राजा ने भी तो अपनी इच्छा से विवाह किया था.’’

‘‘हां, पर तुम्हारी तरह विवाह कर के आशीर्वाद लेने द्वार पर नहीं आ खड़े हुए थे.’’

‘‘मां, प्रयत्न तो मैं ने भी किया था, पर आप ने मेरी एक नहीं सुनी.’’

‘‘इसीलिए तुम ने अपनी मनमानी कर ली? विवाह ही करना था तो मुझ से कहतीं, अपनी जाति में क्या लड़कों की कमी थी. अरे, इस ने तो तुम से तुम्हारे मोटे वेतन के लिए विवाह किया है. मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम ने मां का दिल दुखाया है, तुम कभी चैन से नहीं रहोगी,’’ और इस के बाद वह ऐसे बिलखने लगीं जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो.

‘‘मां,’’ बस, इतना बोल कर प्राची अविश्वास से उन की ओर ताकती रह गई. मां के प्रति उस के मन में बड़ा आदर था. अपना वैवाहिक जीवन वह उन के श्राप के साथ शुरू करेगी, ऐसा तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. अनजाने ही आंखों से अश्रुधारा बह चली थी.

‘‘ठीक है मां, एक बार पापा से मिल लें, फिर चले जाएंगे,’’ प्राची ने कदम आगे बढ़ाया ही था कि मीरा देवी फिर भड़क उठीं.

‘‘कोई जरूरत नहीं है यह दिखावा करने की. विवाह करते समय नहीं सोचा अपने अपाहिज पिता के बारे में, तो अब यह सब रहने ही दो. मैं उन की देखभाल करने में पूर्णतया सक्षम हूं. मुझे किसी की दया नहीं चाहिए,’’ मीरा देवी ने प्राची का रास्ता रोक दिया.

‘‘कौन है. मीरा?’’ अंदर से नीरज बाबू का स्वर उभरा था.

‘‘मैं उन्हें समझा दूंगी कि उन की प्यारी बेटी प्राची अपनी इच्छा से विवाह कर के घर छोड़ कर चली गई,’’ वह क्षितिज को लक्ष्य कर के कुछ बोलना ही नहीं चाहती थीं मानो वह वहां हो ही नहीं.

‘‘चलो, चलें,’’ आखिर मौन क्षितिज ने ही तोड़ा. वह सहारा दे कर प्राची को टैक्सी तक ले गया और प्राची टैक्सी में बैठी देर तक सुबकती रही. क्षितिज लगातार उसे चुप कराने की कोशिश करता रहा.

‘‘देखा तुम ने, क्षितिज, पापा को पक्षाघात होने पर मैं ने पढ़ाई छोड़ कर नौकरी की. आगे की पढ़ाई सांध्य विद्यालय में पढ़ कर पूरी की. निधि, राजा, प्रवीण, वीणा की पढ़ाई का भार, पापा के इलाज के साथसाथ घर के अन्य खर्चों को पूरा करने में मैं तो जैसे मशीन बन गई थी. मैं ने अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं. निधि, राजा और वीणा ने नौकरी करते ही अपनी इच्छा से विवाह कर लिया. तब तो मां ने दोस्तों, संबंधियों को बुला कर विधिविधान से विवाह कराया, दावत दीं. पर आज मुझे देख कर उन की आंखों में खून उतर आया. आशीर्वाद देने की जगह श्राप दे डाला,’’ आक्रोश से प्राची का गला रुंध गया और वह फिर से फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘शांत हो जाओ, प्राची. हमारे जीवन का सुखचैन किसी के श्राप या वरदान पर नहीं, हमारे अपने नजरिए पर निर्भर करता है,’’ क्षितिज ने समझाना चाहा था, पर सच तो यह था कि मां के व्यवहार से वह भी बुरी तरह आहत हुआ था. अपने फ्लैट के सामने पहुंचते ही क्षितिज ने फ्लैट की चाबी प्राची को थमा दी और बोला, ‘‘यही है अपना गरीबखाना.’’

प्राची ने चारों ओर निगाह डाली, घूम कर देखा और मुसकरा दी. डबल बेडरूम वाला छोटा सा फ्लैट बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था.

प्राची ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर पसर गई. मन का बोझ कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मन अजीब से अपराधबोध से पीडि़त था. पता नहीं क्षितिज से विवाह का उस का फैसला सही था या गलत? हर ओर से उठते सवालों की बौछार से भयभीत हो कर उस ने आंखें मूंद लीं तो पिछले कुछ समय की यादें उस के मन रूपी सागरतट से टकराने लगी थीं.

‘तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार,’ उस दिन प्राची ने अपने जन्मदिन का केक काट कर मोमबत्तियां बुझाई ही थीं कि पूरा कमरा इस गीत की धुन से गूंज उठा था. क्षितिज ने ऊपर लगा बड़ा सा गुब्बारा फोड़ दिया था. उस में से रंगबिरंगे कागज के फूल उस के ऊपर और पूरे कमरे में बिखर गए थे. उस के सभी सहकर्मियों ने करतल ध्वनि के साथ उसे बधाई दी थी और गीत गाने लगे थे.

जन्मदिन की चहलपहल, धूमधाम के बीच शाम कैसे बीत गई थी पता ही नहीं चला था. अपने सहकर्मियों को उस ने इसी बहाने आमंत्रित कर लिया था. उस की बहन वीणा और निधि तथा भाई राजा और प्रवीण में से कोई एक भी नहीं आया था. प्रवीण तो अपने कार्यालय के काम से सिंगापुर गया हुआ था पर अन्य सभी तो इसी शहर में थे.

सभी अतिथियों को विदा करने के बाद प्राची निढाल हो कर अपने कक्ष में पड़ी सोच रही थी कि चलो, इसी बहाने सहकर्मियों को घर बुलाने का अवसर तो मिला वरना तो इस आयु में किस का मन होता है जन्मदिन मनाने का. एक और वर्ष जुड़ गया उस की आयु के खाते में. आज पूरे 35 वसंत देख लिए उस ने.

अंधकार में आंखें खोल कर प्राची शून्य में ताक रही थी. अनेक तरह की आकृतियां अंधेरे में आकार ले रही थीं. वे आकृतियां, जिन का कोई अर्थ नहीं था, ठीक उस के जीवन की तरह.

‘प्राची, ओ प्राची,’ तभी मां का स्वर गूंजा था.

‘क्या है, मां?’

‘बेटी, सो गई क्या?’

‘नहीं तो, थक गई थी, सो आराम कर रही हूं. मां, राजा, निधि और वीणा में से कोई नहीं आया,’ प्राची ने शिकायत की थी.

‘अरे, हां, मैं तो तुझे बताना ही भूल गई. राजा का फोन आया था, बता रहा था कि अचानक ही उस के दफ्तर का कोई बड़ा अफसर आ गया इसलिए उसे रुकना पड़ गया है. वीणा और निधि को तो तुम जानती ही हो, अपनी गृहस्थी में कुछ इस प्रकार डूबी हैं कि उन्हें दीनदुनिया का होश तक नहीं है,’ मां ने उन सब की ओर से सफाई दी थी.

‘फिर भी थोड़ी देर के लिए तो आ ही सकती थीं.’

‘वीणा तो फोन पर यह कह कर हंस रही थी कि इस बुढ़ापे में दीदी को जन्मदिन मनाने की क्या सूझी?’ यह कह कर मां खिलखिला कर हंसी थीं.

मां की यह हंसी प्राची के कानों में सीसा घोल गई थी. वह रोंआसी हो कर बोली, ‘पहले कहना चाहिए था न मां कि तुम्हारी प्राची को वृद्धावस्था में जन्मदिन मनाने का साहस नहीं करना चाहिए.’

‘अरे, बेटी, मैं तो यों ही मजाक कर रही थी. तू तो बुरा मान गई. 35 वर्ष की आयु में तो आजकल लोग जीवन शुरू करते हैं,’ मां ने जैसे भूल सुधार की मुद्रा में कहा, ‘इस तरह अंधेरे में क्यों बैठी है. आ चल, उपहार खोलते हैं. देखेंगे किस ने क्या दिया है.’

मां की बच्चों जैसी उत्सुकता देख कर प्राची उठ कर दालान में चली आई. अब मां हर उपहार को खोलतीं, उस के दाम का अनुमान लगातीं और एक ओर सरका देतीं.

‘यह देखो, यह किस ने दिया है?’ उन्होंने बौलडांस करते जोड़े का शो पीस निकाला था और फिर व्यंग्य के लहजे में बोली थीं, ‘लोगों को उपहार देने की अक्ल भी नहीं होती. अकेली लड़की को जोड़े का उपहार. भला कोई बात हुई?’

‘मां, डब्बे पर देखो, नाम लिखा होगा,’ प्राची बोली थी.

‘मेरा चश्मा दूसरे कमरे में रखा है. ले, तू ही पढ़ ले,’ उन्होंने डब्बा और उस पर लिपटा कागज दोनों प्राची की ओर बढ़ा दिए थे.

‘क्षितिज गोखले,’ प्राची ने नाम पढ़ा और चुप रह गई थी. मां दूसरे उपहारों में व्यस्त थीं. नाम के बाद एक वाक्य और लिखा हुआ था, ‘प्यार के साथ, संसार की सब से सुंदर लड़की के लिए.’ अनजाने ही प्राची का चेहरा शर्म से लाल हो गया था.

‘यह देख, कितना सुंदर बुके है…पर सच कहूं, बुके का पैसा व्यर्थ जाता है. कल तक फूल मुरझा जाएंगे, फिर फेंकने के अलावा क्या होगा इन का?’

‘मां, फूलों की अपनी ही भाषा होती है. कुछ देर के लिए ही सही, अपने सौंदर्य और सुगंध से सब को चमत्कृत करने के साथ ही जीवन की क्षणभंगुरता का उपदेश भी दे ही जाते हैं,’ प्राची मुसकराई थी.

‘तुम्हारे दार्शनिक विचार मेरे पल्ले तो पड़ते नहीं हैं. चलो, आराम करो, मुझे भी बड़ी थकान लग रही है,’ कहती हुई मां उठ खड़ी हुई थीं.

सोने से पहले हर दिन की तरह उस दिन भी अपने पिता नीरज बाबू के लिए दूध ले कर गई थी प्राची.

‘बेटी, बड़ी अच्छी रही तेरे जन्मदिन की पार्टी. बड़ा आनंद आया. हर साल क्यों नहीं मनाती अपना जन्मदिन? इसी बहाने तेरे अपाहिज पिता को भी थोड़ी सी खुशी मिल जाएगी,’ नीरज बाबू भीगे स्वर में बोले थे.

प्राची पिता का हाथ थामे कुछ देर उन के पास बैठी रही थी.

‘कोई अच्छा सा युवक देख कर विवाह कर ले, प्राची. अब तो राजा, प्रवीण, वीणा और निधि सभी सुव्यवस्थित हो गए हैं. रहा हम दोनों का तो किसी तरह संभाल ही लेंगे.’

‘क्यों उपहास करते हैं पापा. मेरी क्या अब विवाह करने की उम्र है? वैसे भी अब किसी और के सांचे में ढलना मेरे लिए संभव नहीं होगा,’ वह हंस दी थी. नीरज बाबू को रजाई उढ़ा कर और पास की मेज पर पानी रख प्राची अपने कमरे में आई तो आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था.

शायद 5 वर्ष हुए होंगे, जब उस के सहपाठी सौरभ ने उस के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था. बाद में उस के मातापिता घर भी आए थे पर मां ने इस विवाह के प्रस्ताव को नहीं माना था.

‘बेटा समझ कर तुम्हें पाला है. अब तुम प्रेम के चक्कर में पड़ कर विवाह कर लोगी तो इन छोटे बहनभाइयों का क्या होगा?’ मां क्रोधित स्वर में बोली थीं.

सौरभ ने अपने लंबे प्रेमप्रकरण का हवाला दिया तो वह भी अड़ गई थी.

‘मां, मैं ने और सौरभ ने विवाह करने का निर्णय लिया है. आप चिंता न करें. मैं पहले की तरह ही परिवार की सहायता करती रहूंगी,’ प्राची ने दोटूक निर्णय सुनाया था.

‘कहने और करने में बहुत अंतर होता है. विवाह के बाद तो बेटे भी पराए हो जाते हैं, फिर बेटियां तो होती ही हैं पराया धन,’ और इस के बाद तो मां अनशन पर ही बैठ गई थीं. जब 3 दिन तक मां ने पानी की एक बूंद तक गले के नीचे नहीं उतारी तो वह घबरा गई और उस ने सौरभ से कह दिया था कि उन दोनों का विवाह संभव नहीं है.

उस के बाद वह सौरभ से कभी नहीं मिली. सुना है विदेश जा कर वहीं बस गया है वह. इन्हीं खयालों में खोई वह नींद की गोद में समा गई थी.

जन्मदिन के अगले ही दिन क्षितिज ने बड़े नाटकीय अंदाज में उस के सामने विवाह प्रस्ताव रख दिया था.

‘तुम होश में तो हो, क्षितिज? तुम मुझ से कम से कम 3 वर्ष छोटे हो. तुम्हारे मातापिता क्या सोचेंगे?’

‘मातापिता नहीं हैं, भैयाभाभी हैं और उन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूं. मैं मना लूंगा उन्हें. तुम अपनी बात कहो.’

‘मुझे तो लगता है कि हम मित्र ही बने रहें तो ठीक है.’

‘नहीं, यह ठीक नहीं है. पिछले 2 सालों में हर पल मुझे यही लगता रहा है कि तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है,’ क्षितिज ने स्पष्ट किया था.

प्राची ने अपनी मां और पिताजी को जब इस विवाह प्रस्ताव के बारे में बताया तो मां देर तक हंसती रही थीं. उन की ठहाकेदार हंसी देख कर प्राची भौचक रह गई थी.

‘इस में इतना हंसने की क्या बात है, मां?’ वह पूछ बैठी थी.

‘हंसने की नहीं तो क्या रोने की बात है? तुम्हें क्या लगता है, वह तुम से विवाह करेगा? तुम्हीं कह रही हो कि वह तुम से 3 साल छोटा है.’

‘क्षितिज इन सब बातों को नहीं मानता.’

‘हां, वह क्यों मानेगा. वह तो तुम्हारे मोटे वेतन के लिए विवाह कर ही लेगा पर यह विवाह चलेगा कितने दिन?’

‘क्या कह रही हो मां, क्षितिज की कमाई मुझ से कम नहीं है, और क्षितिज आयु के अंतर को खास महत्त्व नहीं देता.’

‘तो फिर देर किस बात की है. जाओ, जा कर शान से विवाह रचाओ, मातापिता की चिंता तो तुम्हें है नहीं.’

‘मुझे तो इस प्रस्ताव में कोई बुराई नजर नहीं आती,’ नीरज बाबू ने कहा.

‘तुम्हें दीनदुनिया की कुछ खबर भी है? लोग कितने स्वार्थी हो गए हैं?’ मां ने यह कह कर पापा को चुप करा दिया था.

क्षितिज नहीं माना. लगभग 6 माह तक दोनों के बीच तर्कवितर्क चलते रहे थे. आखिर दोनों ने विवाह करने का निर्णय लिया था, लेकिन विवाह कर प्राची के घर जाने पर दोनों का ऐसा स्वागत होगा, यह क्षितिज तो क्या प्राची ने भी नहीं सोचा था.

जाने अभी और कितनी देर तक प्राची अतीत के विचारों में खोई रहती अगर क्षितिज ने झकझोर कर उस की तंद्रा भंग न की होती.

‘‘क्या हुआ? सो गई थीं क्या? लीजिए, गरमागरम कौफी,’’ क्षितिज ने जिस नाटकीय अंदाज में कौफी का प्याला प्राची की ओर बढ़ाया उसे देख कर वह हंस पड़ी.

‘‘तुम कौफी बना रहे थे? मुझ से क्यों नहीं कहा. मैं भी अच्छी कौफी बना लेती हूं.’’

‘‘क्यों, मेरी कौफी अच्छी नहीं बनी क्या?’’

‘‘नहीं, कौफी तो अच्छी है, पर तुम्हारे घर पहली कौफी मुझे बनानी चाहिए थी,’’ प्राची शर्माते हुए बोली.

‘‘सुनो, हमारी बहस में तो यह कौफी ठंडी हो जाएगी. यह कौफी खत्म कर के जल्दी से तैयार हो जाओ. आज हम खाना बाहर खाएंगे. हां, लौट कर गांव जाने की तैयारी भी हमें करनी है. भैयाभाभी को मैं ने अपने विवाह की सूचना दी तो उन्होंने तुरंत गांव आने का आदेश दे दिया.’’

‘‘ठीक है, जो आज्ञा महाराज. कौफी समाप्त होते ही आप की आज्ञा का अक्षरश: पालन किया जाएगा,’’ प्राची भी उतने ही नाटकीय स्वर में बोली थी.

दूसरे ही क्षण दरवाजे की घंटी बजी और दरवाजा खोलते ही सामने प्राची और क्षितिज के सहयोगी खड़े थे.

‘बधाई हो’ के स्वर से सारा फ्लैट गूंज उठा था और फिर दूसरे ही क्षण उलाहनों का सिलसिला शुरू हो गया.

‘‘वह तो मनोहर और ऋचा ने तुम्हारे विवाह का राज खोल दिया वरना तुम तो इतनी बड़ी बात को हजम कर गए थे,’’ विशाल ने शिकायत की थी.

‘‘आज हम नहीं टलने वाले. आज तो हमें शानदार पार्टी चाहिए,’’ सभी समवेत स्वर में बोले थे.

‘‘पार्टी तो अवश्य मिलेगी पर आज नहीं, आज तो मुंह मीठा कीजिए,’’ प्राची और क्षितिज ने अनुनय की थी.

उन के विदा लेते ही दरवाजा बंद कर प्राची जैसे ही मुड़ी कि घंटी फिर बज उठी. इस बार दरवाजा खोला तो सामने राजा, प्रवीण, निधि और वीणा खड़े थे.

‘‘दीदी, जीवन के इतने महत्त्वपूर्ण क्षण में आप ने हमें कैसे भुला दिया?’’ प्रवीण साथ लाए कुछ उपहार प्राची को थमाते हुए बोला था. राजा, निधि और वीणा ने भी दोनों को बधाई दी थी.

‘‘हम सब आप दोनों को लेने आए हैं. पापा ने बुलावा भेजा है. आप तो जानती हैं, वह खुद यहां नहीं आ सकते,’’ राजा ने आग्रह किया था.

‘‘भैया, हम दोनों आशीर्वाद लेने घर गए थे, पर मां ने तो हमें श्राप ही दे डाला,’’ प्राची यह कहते रो पड़ी थी.

‘‘मां का श्राप भी कभी फलीभूत होता है, दीदी? शब्दों पर मत जाओ, उन के मन में तो आप के लिए लबालब प्यार भरा है.’’

प्राची और क्षितिज जब घर पहुंचे तो सारा घर बिजली की रोशनी में जगमगा रहा था. व्हील चेयर पर बैठे नीरज बाबू ने प्राची और क्षितिज को गले से लगा लिया था.

‘‘यह क्या, प्राची? घर आ कर पापा से मिले बिना चली गई. इस दिन को देखने के लिए तो मेरी आंखें तरस रही थीं.’’

प्राची कुछ कहती इस से पहले ही यह मिलन पारिवारिक बहस में बदल गया था. कोई फिर से विधि विधान के साथ विवाह के पक्ष में था तो कोई बड़ी सी दावत के. आखिर निर्णय मां पर छोड़ दिया गया.

‘‘सब से पहले तो क्षितिज बेटा, तुम अपने भैयाभाभी को आमंत्रित करो और उन की इच्छानुसार ही आगे का कार्यक्रम होगा,’’ मां ने यह कह कर अपना मौन तोड़ा. प्राची को आशीर्वाद देते हुए मां की आंखें भर आईं और स्वर रुंध गया था.

‘‘हो सके तो तुम दोनों मुझे क्षमा कर देना,’’

गर्मियों में बनाएं ये डिजर्ट्स, बहुत आसान है रेसिपी

मैंगो पुडिंग

सामग्री

150 एमएल दूध क्रीम वाला, 2 छोटे चम्मच चीनी, 2 बड़े चम्मच मैंगो जैम, 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर, 2 बड़े चम्मच क्रीम, 1/2 कप मैंगो प्यूरी,  1 पैकेट मैंगो जैली, 1 कप आम कटे.

विधि

दूध को उबाल कर उस में चीनी और जैम मिलाएं. थोड़े पानी में कौर्नफ्लोर मिला कर दूध में मिला कर गाढ़ा होने तक पकाएं. आंच से उतार कर क्रीम डाल कर अच्छी तरह फेंट लें. तैयार मैंगो क्रीमी को एक सर्विंग बाउल में डाल कर सैट होने के लिए फ्रिज में रखें. 1/2 पैकट मैंगो जैली से जैली तैयार कर लें. ठंडा होने पर कटे आम डाल कर व मिला कर सैट होने के लिए 20 मिनट फ्रिज में रखें. इसे मैंगो क्रीम के ऊपर डाल कर सैट होने के लिए फ्रिज में रखें. ठंडाठंडा सर्व करें.

‘जैम और स्ट्राबेरी का ऐसा संगम आप भी ट्राई जरूर करें.’

कूल पिंक

सामग्री

1/2 कप मिक्स फ्रूट जैम, 2 बड़े चम्मच क्रीम

1/2 कप पानी, 1/2 कप स्ट्राबैरी आइसक्रीम

सजाने के लिए स्ट्राबैरी चिप्स.

विधि

जैम, पानी और क्रीम को एकसाथ उबाल कर सौस तैयार कर लें और ठंडा होने के लिए रख दें. एक पुडिंग गिलास में थोड़ी सौस डालें. आइसक्रीम के ऊपर स्कूप लगाएं. दोबारा सौस डालें. फिर स्ट्राबैरी चिप्स से सजा कर परोसें.

‘बनाना और कस्टर्ड का फ्लेवर जब मिलेगा तो क्या स्वाद आएगा.’

बनाना शौट्स

सामग्री

2 केले कटे

1 कप तैयार वैनिला कस्टर्ड

150 एमएल फेंटी क्रीम

सजाने के लिए केले के चोको चिप्स.

विधि

केले के टुकड़ों को पुडिंग गिलास में डालें. ऊपर से वैनिला कस्टर्ड डालें. अब इस में एक लेयर फेंटी क्रीम की बनाएं. अब फिर केले के टुकड़े डालें और फेंटी क्रीम की लेयर लगाएं. केले का  चोको चिप्स डाल कर परोसें.

‘कभी चौकलेट का स्वाद कभी टूटी फ्रूटी का मजा, इस जायके की बात ही अलग है.’

लेयर्ड पुडिंग

सामग्री

1 कप चौकलेट केक क्रंब्स, 2 बड़े चम्मच टूटीफ्रूटी

150 एमएल दूध, 3-4 छोटे चम्मच चीनी, 2 बड़े चम्मच वैनिला

कस्टर्ड पाउडर, 2 बड़े चम्मच क्रीम, 2 बड़े चम्मच मैंगो जैम

1/2 पैकेट स्ट्राबैरी जैली, 1 कप चैरी कटी,  1/2 कप चोको चिप्स.

विधि

एक बाउल में केक क्रंब्स डालें. अब टूटीफ्रूटी बुरक कर फ्रीजर में 5-10 मिनट के लिए रख दें. चीनी को दूध में मिलाएं. वैनिला कस्टर्ड पाउडर को थोड़े पानी में मिला कर दूध में डाल कर दूध के गाढ़ा होने तक पकाएं. अब जैम को फेंट कर दूध में मिलाएं. जब जैम दूध में अच्छी तरह मिल जाए तो आंच से उतार कर क्रीम डालें. अब क्रीमी मिल्क को फेंट कर ठंडा कर लें. अब 1/2 पैकेट जैली को थोड़े पानी के साथ उबाल कर जैली तैयार कर ठंडा करें. केक के ऊपर क्रीम की एक लेयर डाल कर 20-25 मिनट के लिए फ्रिज में रखें. अब इस में जैली की लेयर डाल कर भी 10 मिनट फ्रिज में सैट करें. ऊपर से चैरी और चौकलेट मिला कर ठंडा कर सर्व करें.

‘चौकलेट की यह डिश बच्चे और बड़े दोनों को पसंद आएगी.’

चौकलेट फज

सामग्री

2 बड़े चम्मच मैल्ट की हुई चौकलेट, 2 बड़े चम्मच क्रीम, 3 बड़े चम्मच दूध, 3-4 बूंदें वैनिला ऐसेंस द्य सजाने के लिए चोको चिप्स और फेंटी क्रीम चौकलेट केक पर लेयर के लिए.

विधि

चौकलेट, क्रीम, दूध, वैनिला ऐसेंस को मिला कर गरम कर सौस बनाएं. अब इसे पुडिंग गिलास में भर दें. फिर चौकलेट केक की एक लेयर और डालें. फिर सौस डालें. अब इसे फेंटी क्रीम और चोको चिप्स से सजा कर परोसें.

Met Gala में गुलामी के खिलाफ मैसेज पर भारी ग्लैमर

Met Gala 2025 : हर साल मेट गाला इवेंट मई के पहले सोमवार से शुरू होता है, जहां दुनियाभर के सैलिब्रिटीज अनोखे और महंगे डिजाइनर कपड़ों को पहन कर मैट्रोपोलिटन म्यूजियम के ग्रैंड स्टेयर्स पर रैंप वाक करते हैं. इस बार की थीम 17वीं दशक के ब्लैक्स आउटफिट को ले कर है जो बाद में गुलामी के खिलाफ विद्रोहों की पहचान भी बनी. जानिए क्यों खास थी यह थीम.

शाहरुख़ खान सोशल मीडिया पर हालफिलहाल तब ट्रेंड करने लगे जब अचानक इंटरनेट पर उन की एक स्टाइलिश फोटो की बम्बाडिंग शुरू हो गई. मौका मेट गाला इवेंट का था जहां वे पहली बार शिरकत कर रहे थे. इस फोटो में उन्होंने ब्लैक आउटफिट पहना हुआ था. जिस में सुपरफाइन तस्मानियन ऊन का यूज किया गया था. ब्लैक सिल्क शर्ट, टेलर्ड ट्राउजर, लोंग कोट और कमरबंद पहने शाहरुख़ खान अलग से लग रहे थे. उन के इस लुक में चार चांद तब लग गए जब वे लेयर्ड चैन पहने दिखाई दिए जिस पर ‘के’ यानी किंग लिखा हुआ था, और उन्होंने एक सोने की छड़ी हाथ में पकड़ी हुई थी.

सोशल मीडिया यूजर्स थोड़े संभल पाते कि एक दूसरी फोटो वायरल होने लगी. इस बार बारी सिंगर दिलजीत दोसांझ की थी. शाहरूख खान के अलावा भारत में इस समय किसी इंडियन सैलिब्रिटी को ग्लोबली रिकग्नाइज किया जाता है तो वह दिलजीत ही हैं. दिलजीत ने ट्रेडिशनल पंजाबी आउटफिट पहना हुआ था. बताया जा रहा है कि उन का आउटफिट पटियाला रियासत के महाराजा रहे भूपिंदर सिंह से प्रेरित था. हालांकि भूपिंदर सिंह विलासी और आजादी के समाया अंगरेज समर्थक राजाओं में रहे.

अपने लुक को रौयल बनाने के लिए दिलजीत ने सिर पर पगड़ी पहनी हुई थी. जिस में वर्णमाला में गुरुवाणी लिखी हुई थी. जहां शाहरूख खान के आउटफिट को सव्यसाची ने डिजाईन किया था वहीँ दिलजीत के आउटफिट को प्रबल गुरंग ने डिजाईन किया था. इस इवेंट में एक इंडियन सेलिब्रिटी और पहुंची थी मगर उन की चर्चा इन दोनों ग्लोबर स्टार्स के आगे कहीं खो सी गई. बात किआरा आडवाणी की.

किआरा ने ब्रेवहर्ट्स नाम की ड्रैस पहनी थी जो एक तरह का गाउन था. इस गाउन में सोने की गोल्डप्लेट लगी हुई थीं जिसे घुंघरू और क्रिस्टल से सजाया गया था. कियारा बला की खूबसूरत लग रही थीं. हालांकि कियारा ने जो ड्रैस पहनी थी उसे एश्वर्या राय के 77वें कांस इवेंट में पहने हुए ड्रैस से कम्पेयर किया जा रहा था पर दोनों में ख़ासा अंतर था.

यह पहला मौका था जब मेट गाला को इंडियन सोशल मीडिया पर इतना सेलिब्रेट किया गया, मगर समस्या यह कि यह इवेंट भारीभरकम सेलिब्रिटी के डिजाइनर सूट के नीचे से दब कर रह गया. शाहरूख खान ने जो जूटसूट पहना था उस की चर्चा बस अनोखे कपड़ों तक सिमट कर रह गया. मगर इस के पीछे क्या एतिहासिक पहलु छिपा था वह कहीं खो गया.

ठीक यही बाकी सैलिब्रिटीज के साथ हुआ. सिंगर रिहाना ने जहां ब्लैक पिंस्ट्रिप्ड गाउन पहना था, तो एक्ट्रैस जेंडाया ने वाइट बर्मिंग सूट पहना था. कोई किसी ने संत लयूरेंट का कास्ट्यूम पहना तो किसी ने थोम ब्राउन का. दुखद यह कि सोशल मीडिया पर मेट गाला में सैलिब्रिटी वायरल हुए मगर यह थीम और इस थीम के पीछे की वजह वायरल नहीं हुई, जो ज्यादा जरूरी थी.

क्या ख़ास बात थी थीम में

इस बार मेट गाला की थीम ब्लैक कम्युनिटी के बीच फैशन डेवलपमेंट पर है. यह थीम ब्लैक्स को ले कर बने स्टीरियोटाइप्स को तोड़ने के लिए रखी गई. इस थीम का नाम ‘सुपरफाइन: टेलरिंग ब्लैक स्टाइल’ है. यह थीम ब्लैक कम्युनिटी के फैशन ट्रेडिशन और उन के कल्चरल इफेक्ट पर केंद्रित है. इस की इंस्पिरेशन मोनिका एल. मिलर की किताब ‘स्लेव्स टू फैशन: ब्लैक डैंडीज्म एंड द स्टाइलिंग औफ ब्लैक डायस्पोरिक आइडेंटिटी’ से ली गई. दिलचस्प यह कि इस एग्जिबिशन में 18वीं सदी के यूरोपीय फैशन से ले कर आज के आधुनिक दौर तक ब्लैक डैंडी स्टाइल के विकास को दिखाने की बात है.

‘ब्लैक डैंडीज्म’ 19वीं सदी में मौजूद था, लेकिन यह एक कल्चरल रेवोल्यूशन के रूप में 20वीं सदी की शुरुआत में उभरा. यह “डैंडी” से प्रेरित था, यानी स्टाइल. 18वीं सदी की वह शैली जहां लोग बेहद स्टाइलिश और टिपटौप कपड़े पहन कर अपनी अलग पहचान बनाते थे. यह मूवमेंट खासतौर पर अमेरिका में गुलामी की समाप्ति और हार्लेम रेनेसां के दौरान फलाफूला, जब ब्लैक्स “यूरोपियन स्टाइल” के कपड़े (जैसे डांस हौल में पहने जाने वाले ज़ूट सूट) पहन कर नस्लीय भेदभाव और सामाजिक पाबंदियों के खिलाफ अपनी बात रखते थे. इसी में म्यूजिक, लिटरेचर और आर्ट के माध्यम से ब्लैक्स अपनी आइडेंटिटी भी गढ़ रहे थे.

साल 1917 में, “साइलेंट प्रोटेस्ट पैरेड” में काले डैंडीवाद का जबरदस्त नज़ारा देखने को मिला था. न्यूयौर्क के मैनहट्टन में फिफ्थ एवेन्यू पर 10 हजार से ज्यादा काले लोगों ने फौर्मल कपड़े पहन कर जिम क्रो एरा के भेदभाव के खिलाफ मार्च किया. जिम क्रो एरा वह समय था जब नस्लीय अलगाव को लागू करने के लिए दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका में ऐसे कानून बनाए गए थे, जो अफ्रीकी अमेरिकियों को सार्वजनिक सुविधाओं, शिक्षा और रोजगार जैसे कई क्षेत्रों से दूर रखते थे.

कई सालों बाद 1943 में, “जूट सूट दंगों” के दौरान अमेरिकी पुलिस और सैनिकों ने काले, लैटिनो और एशियाई युवाओं को उन के जूट सूट्स की वजह से टारगेट करना शुरू किया, क्योंकि यह स्टाइल अब उन के बीच ख़ासा लोकप्रिय हो गया था.

इस के बाद, ब्लैक डैंडीवाद ने “ब्लैक पावर मूवमेंट” में भी अपनी जगह बनाई. म्यूजिशियन डिजी गिलेस्पी, राइटर लैंगस्टन ह्यूज व जेम्स बाल्डविन, आर्टिस्ट सैमी डेविस जूनियर जैसे लोगों ने इसे अपनाया. हाल के दिनों में, डायर, बालमैन, मार्टिन रोज़ और थोम ब्राउन जैसे डिजाइनरों ने अपने फैशन शोज में इस स्टाइल को दोबारा पेश किया. चैडविक बोस्मैन, काई-इशाया जमाल, जैनेल मोनाए और डोएची जैसी हस्तियां भी इस स्टाइल को फिर से ट्रेंड में लाए.

इस साल का मेट गाला का थीम सिर्फ़ “ग्लैम” के लिए नहीं है. इस की जड़ें 300+ साल के इतिहास, पहचान और बगावत में हैं. इस साल के गाला का औफिसियल थीम ही इसी स्टाइल पर है जिसे शाहरुख़ खान जैसे सुपरस्टार ने कैरी किया.

क्या है मेट गाला

मेट गाला की शुरुआत 1948 में फैशन पब्लिसिस्ट एलेनोर लैम्बर्ट ने न्यूयौर्क के कौस्ट्यूम इंस्टीट्यूट के लिए पैसा जुटाने के उद्देश्य से की थी. यह इवेंट हर साल संग्रहालय के नए प्रदर्शनी के उद्घाटन पर आयोजित किया जाता था. पहले गाला में सिर्फ एक डिनर होता था और टिकट की कीमत 50 डौललर (करीब 4,000 रुपये) थी. शुरुआती दशकों में यह न्यूयौर्क के दूसरे चैरिटी इवेंट्स की तरह ही था, जहां शहर के हाई सोसाइटी के लोग और फैशन इंडस्ट्री से जुड़े लोग ही शामिल होते थे. 1948 से 1971 तक यह इवेंट मैनहट्टन के अलगअलग जगहों पर हुआ, जैसे वाल्डोर्फ एस्टोरिया, सेंट्रल पार्क और रेनबो रूम.

1972 में जब डायना व्रीलैंड कौस्ट्यूम इंस्टीट्यूट की सलाहकार बनीं, तो मेट गाला ने एक ग्लैमरस और अंतर्राष्ट्रीय इवेंट का रूप लेना शुरू किया, हालांकि अभी भी इस की पहुंच न्यूयौर्क के अमीरों तक ही सीमित थी. इस दौरान एलिजाबेथ टेलर, एंडी वारहोल, बियांका जैगर, डायना रौस, एल्टन जौन, लाइजा मिनेली, मैडोना, बार्बरा स्ट्राइसैंड और चेर जैसी मशहूर हस्तियां भी इस में शामिल होने लगीं. उस दौरान भारतीय सैलिब्रिटी दूरदूर तक कहीं नहीं थीं. व्रीलैंड के समय में ही पहली बार मेट गाला द मेट्रोपोलिटन म्यूज़ियम औफ आर्ट में हुआ और थीम-बेस्ड ड्रैस कोड की शुरुआत भी हुई.

आज मेट गाला दुनिया का सब से चर्चित और एक्सक्लूसिव सोशल इवेंट माना जाता है. यह न्यूयौर्क के सब से बड़े फंडरेज़र्स में से एक भी है. 2022 में इस ने 17.4 मिलियन डौलर (करीब 145 करोड़ रुपए) जुटाए. 1995 से इस इवेंट की चेयरपर्सन ऐना विंटर हैं, जो वौग पत्रिका की चीफ एडिटर भी हैं, जिन्होंने गाला की गेस्ट लिस्ट को फैशन, मनोरंजन, बिजनेस, स्पोर्ट्स और राजनीति की दुनिया की बड़ी हस्तियों तक पहुंचाया. कारण यही कि मेट गाला वर्ल्ड वाइड चर्चा में रहता है.

शब्बीर अहलूवालिया ने अपकमिंग शो के लिए किया 14 किलो वेट लौस, जानें ट्रांसफार्मेशन का सीक्रेट

Shabbir Ahluwalia : कुमकुम भाग्य से फेमस हुए एक्टर शब्बीर अहलूवालिया अपने नए शो के साथ एकदम तैयार हैं. वह सोनी सब के अपकमिंग रोमांटिक, फैमिली, ड्रामा, कौमेडी शो ‘उफ्फ… ये लव है मुश्किल’ में अपनी फिटनेस और रोल से अलग ही अंदाज में नजर आने वाले हैं.

दमदार वापसी

ये शो अपनी न्यू स्टोरी, स्ट्रांग करेक्टर्स और अनएक्सपेक्टेड ट्विस्टस के लिए पहले से ही सुर्खियां में है. इसके अलावा इस शो के मेन लीड में एक्टर शब्बीर अहलूवालिया हैं, जो युग के रूप में एक बिल्कुल नए अवतार, और गजब के ट्रांसफार्मेशन के साथ टेलीविजन पर दमदार वापसी कर रहे हैं. शों मेन वह एक तेजतर्रार, भावनात्मक रूप से सतर्क वकील बने है. जो प्यार और परिवार की उथलपुथल से जूझ रहा है.

रिमार्कबल फिजिकल ट्रांसफार्मेशन्स

अपनी पावरफुल स्क्रीन प्रेजेंस और नेचुरल अट्रैक्शन के लिए जाने जाने वाले टीवी एक्टर शब्बीर अहलूवालिया ने एक रिमार्कबल फिजिकल ट्रांसफार्मेशन्स करके अपने डेडिकेशन को नेक्स्ट लेवल पर पहुंचा दिया है. शब्बीर ने तीन महीनों में 14 किलो वेट लौस किया है. क्रैश डाइट या एक्स्ट्राम रूटीन (extreme routine) के माध्यम से नहीं, बल्कि स्टाबिलिटी और जॉय पर आधारित एक स्मार्ट, बैलेंसड एप्रोच के साथ.

हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन

ट्रांसफार्मेशन के बारे में बात करते हुए शब्बीर ने कहा, “मैंने कठोर उपायों (drastic measures) का सहारा लेने के बजाय एक हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन करके ऐसा किया. मैं क्रैश डाइट में विश्वास नहीं करता था. इसके बजाय, मैंने बस अपने खाने का सेवन कम कर दिया और अपने वर्कआउट को कुछ ऐसा बना दिया जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार रहता था.

पसंद की चीजों से किया एंजौय

मैंने फुटबौल, क्रिकेट, टेनिस जैसी चीजें जिन्हें मैं वास्तव में पसंद करता हूं, इसके साथ-साथ कुछ वेट ट्रेनिंग और योग को भी शामिल किया. मेरा विचार से एक्टिव रहना और इसे करते समय एंजोए करना था. तीन महीनों के दौरान, मैंने लगभग 13 से 14 किलो वजन कम किया. लेकिन यह वास्तव में उस युग बनने के बारे में था. जिसकी मैंने कल्पना की थी.

अपनी नींद का शेड्यूल भी तय किया

शब्बीर ने नींद को भी अपनी फिटनेस यात्रा का अहम हिस्सा बनाया, जिसे इंडस्ट्री में कई लोग अक्सर अनदेखा कर देते हैं. उन्होंने कहा, “मैंने अपनी नींद का शेड्यूल भी तय किया, जिससे बहुत फर्क पड़ा.” “मेरे पास इस बात का क्लियर विजन था कि मैं युग को कैसा दिखना और महसूस करना चाहता हूं. वह शार्प, कैलकुलेटिंग, इमोशनली रूप से सिक्योर है. ऐसा व्यक्ति जो नियंत्रण को स्ट्रेंथ और शील्ड दोनों के रूप में इस्तेमाल करता है. मैं चाहता था कि संयम (Restraint) और आंतरिक अनुशासन (Inner discipline) उसकी फिजिकल अपीरेंस में भी दिखे. यह बदलाव सिर्फ़ अलग दिखने के बारे में नहीं था. यह हर फ्रेम में युग की मानसिकता और मौजूदगी को दर्शाने के बारे में था। मैं वहां पहुंचने की उस यात्रा का आनंद लेना चाहता था.”

अभिनय सफर की शुरुआत-

शब्बीर अहलुवालिया ने अपने अभिनय सफर की शुरुआत 1999 में हिप हिप हुर्रे से की थी, पर इन्हें पहचान 2003 में कहीं तो होगा धारावाहिक से मिली. इसके बाद  ज़ी टीवी के कुमकुम भाग्य धारावाहिक में एक रोकस्टार, अभिषेक प्रेम मेहरा का मुख्य किरदार निभाया था. जो दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया गया था. इसके अलावा शब्बीर ने मिशन इस्तांबुल’ और ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ जैसी फ़िल्मों में भी काम किया है.

Personality : फर्स्ट इंप्रैशन को ऐसे बनाएं खास

Personality : पार्टी में शोभा का परिचय अपने पति से कराते हुए आकृति ने कहा, ‘‘इन से मिलिए, ये शोभा हैं, सोशल मीडिया की क्वीन… छाई रहती हैं पोस्ट और फोटो से.’’

शोभा को यह सुन कर अजीब लगा. वह बिना कहे रह नहीं पाई कि आकृति तुम मेरा परिचय मेरे पति के नाम से दो या फिर मेरे प्रोफैशन से. यह क्या बात हुई, मेरे प्रोफैशन के अनुसार मु?ो सोशल मीडिया भी अपडेट करना होता है पर मैं सारा समय वहीं नहीं देती.’’

‘‘अरे चिल्ड यार, मजाक कर रही हूं,’’ आकृति समझ गई थी कि उस से गलती हो गई है. इस बात ने दोनों के बीच एक दूरी पैदा कर दी थी.

अकसर लोग किसी का परिचय कराते समय इस स्थिति की गंभीरता को कायम नहीं रख पाते हैं और यह बात उन को महत्त्वपूर्ण भी नहीं लगती जबकि किसी व्यक्ति के सामने किसी का परिचय देना उस के ‘फर्स्ट इंप्रैशन’ की तरह होता है. पहले परिचय का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है.

जब किसी का परिचय कराते हैं तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि दिया गया परिचय न केवल उस व्यक्ति की सकारात्मक छवि पेश करे बल्कि वह सुनने वालों और उस व्यक्ति के लिए सम्मानजनक भी हो. अकसर सामाजिक या पेशेवर माहौल में हम दूसरों का परिचय कराते समय लापरवाही या मजाक कर जाते हैं जो सामने वाले को असहज कर सकता है. इस का परिणाम यह हो सकता है कि व्यक्ति न केवल अपमानित महसूस करे बल्कि दोनों के संबंधों में दूरी भी आ जाए. इसलिए यह सम?ाना आवश्यक है कि एक प्रभावी और सम्मानजनक परिचय कैसे दिया जाए.

नकारात्मक शब्दों से बचें

परिचय देते समय हमेशा सकारात्मक आरंभ करें. ऐसे शब्दों से बचें जो किसी भी प्रकार की आलोचना या नकारात्मकता को दर्शाते हों. कभीकभी मजाक में भी नकारात्मक बातें बुरी लग सकती हैं, इसलिए हर बात का चुनाव सावधानी से करें.

उदाहरण के लिए:

गलत: ‘‘ये सुमन हैं. इन की खासीयत है कि ये सब की टांग खींचने में माहिर हैं.’’

सही: ‘‘ये सुमन हैं. इन की हाजिरजवाबी और मजाकिया स्वभाव से हर माहौल खुशनुमा हो जाता है.

नकारात्मक टिप्पणियां चाहे मजाक में ही क्यों न हों, सामने वाले के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकती हैं.

अतिशयोक्ति से बचें

कई लोगों की आदत होती है कि वे किसी व्यक्ति की तारीफ बढ़ाचढ़ा कर करने लगते हैं. यह सही नहीं होता क्योंकि इस से श्रोता और वह व्यक्ति दोनों ही असहज हो सकते हैं. किसी की प्रशंसा करना अच्छी बात है लेकिन यह अतिशयोक्ति के बिना होनी चाहिए. तथ्यात्मक और वास्तविक बातें कहना न केवल व्यक्ति को प्रेरित करता है बल्कि सुनने वालों को भी प्रभावित करता है.

उदाहरण के तौर पर:

गलत तरीका: ‘‘ये रमेश हैं. ये कंपनी के सब से मेहनती और सब से सफल कर्मचारी हैं.’’

सही तरीका: ‘‘ये रमेश हैं. ये हमारी टीम में विश्लेषण का काम करते हैं और अपने डैडिकेशन के लिए जाने जाते हैं.’’

इस तरह का सटीक और सम्मानजनक परिचय न केवल श्रोताओं को विश्वास दिलाता है बल्कि रमेश को भी प्रेरित करता है.

विवादित विषयों से दूरी रखें

कभी ऐसा भी होता है कि किसी व्यक्ति के साथ कुछ विवाद जुड़ जाते हैं जिसे अधिकांश लोग जानते हैं लेकिन उसे परिचय का हिस्सा न बनाएं. हमेशा ऐसे विषयों पर बात करें जो उन की सकारात्मक पहचान को उभारें और जो उन के आत्मसम्मान को बढ़ाएं.

उपलब्धियों और गुणों से कराएं परिचय

व्यक्ति की उपलब्धियों, गुणों और कौशल का सम्मानपूर्वक उल्लेख करें, बिना किसी प्रकार की तुलना या टीकाटिप्पणी के जैसे इन्होंने अपने क्षेत्र में अपनी मेहनत से पहचान बनाई है. इस प्रकार का परिचय न केवल व्यक्ति को गर्वित करता है, बल्कि उस की छवि को भी उभारता है.

तुलना न करें

परिचय देते समय किसी भी प्रकार की तुलना करना सही नहीं है क्योंकि इस से व्यक्ति को नीचा महसूस हो सकता है या उन के बारे में श्रोताओं की राय बदल सकती है. हर व्यक्ति का स्वभाव, कार्यशैली अलग होती है. खासतौर पर बच्चों का परिचय कराते हुए इस का विशेष ध्यान रखना चाहिए. उदाहरण के लिए:

गलत तरीका: ‘‘यह मेरा बेटा है. इस की तुलना में मेरा बड़ा बेटा ज्यादा समझदार है.’’

सही तरीका: ‘‘यह मेरा बेटा है. बहुत रचनात्मक और तकनीकी चीजों में रुचि रखता है. अभी एक प्रोजैक्ट पर काम कर रहा है, जो बहुत सराहनीय है.’’

स्वाभाविक तरीके से बात करें

बनावटीपन अविश्वसनीय होता है. इसलिए भाषा में सहजता रखते हुए, सरल भाषा में किसी का परिचय देते हैं तो सुनने वालों और उस व्यक्ति सब के लिए अधिक प्रभावी और सहज होता है. अत: कोई दिखावा न करें और सीधे एवं ईमानदारी से परिचय दें.

परिवार और दोस्तों के बीच परिचय का महत्त्व

कई बार पारिवारिक और सामाजिक समारोहों में परिचय देते समय लापरवाही हो जाती है.

गलत: ‘‘यह मेरी बहन है. इसे सिर्फ शौपिंग करना आती है.’’

सही: ‘‘यह मेरी बहन है. इसे फैशन और डिजाइनिंग का शौक है. यह बहुत क्रिएटिव है.’’

पारिवारिक संबंधों में दिया गया परिचय न केवल उस व्यक्ति को गर्व महसूस कराता है बल्कि रिश्तों को भी गहराई देता है.

किसी का परिचय कराना एक महत्त्वपूर्ण क्षण होता है. यह परिचय कराने वाले व्यक्ति के व्यक्तिव को भी दर्शाता है, उस की छवि निर्धारित करता है और साथ ही भविष्य में संबंधों की मजबूती को भी प्रभावित कर सकता है. परिचय के दौरान व्यक्ति की छवि का खयाल रखना, उस के आत्मसम्मान को बढ़ावा देना और उस के प्रति सम्मान का भाव रखना आवश्यक है. ऐसा परिचय न केवल श्रोताओं को प्रभावित करेगा बल्कि परिचय कराए जा रहे व्यक्ति को भी संतुष्टि देगा और एक सकारात्मक संदेश छोड़ेगा. ध्यान रखें, एक अच्छा परिचय रिश्तों की नींव है, इसे मजबूत बनाने का मौका न चूकें.

Social Media : शब्द या इमोजी कैसे बताएं इमोशंस

Social Media : एक वह दौर था जब प्रेम पत्रों पर स्याही से लिखा एक पूर्णविराम आप की कहानी कह देता था, किसी की कविता हाल ए दिल बयां कर जाती थी. कभी चिट्ठी का इंतजार किसी की धड़कनों से जुड़ा होता था फिर दौर बदला, तरीके बदले.

आज जब हम भावनाओं को जाहिर करने की सोचते हैं तो हमारे फोन के कीबोर्ड में शब्दों और इमोजी का विकल्प होता है. आज के इस डिजिटल समाज में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि मैसेजिंग ऐप्स ने पत्रों की जगह ले ली और इमोजी के आने से लोगों के अंदर शब्दों में भावनाओं को पिरोने की रचनात्मकता खत्म सी हो गई.

शब्दों की तुलना में इमोजी

बुलेट ट्रेन की स्पीड से झटपट दौड़ते समाज ने भावनाओं से भी सम?ाता करना सीख लिया है. क्या बूढ़े क्या नौजवान सब जिंदगी से रेस लगा रहे है. इस बीच समय के साथ भागती दुनिया में इंसान हर काम कम समय में करने की चाहत रखता है, फिर चाहे वह भावनाओं को जाहिर करने की बात ही क्यों न हो. इसी का एक उदहारण है इमोजी. इमोजी कम समय में ज्यादा बातें कह जाने का एक माध्यम बन चुका है.

जब शब्दों में भाव व्यक्त करना लोगों को समय की बरबादी लगती है तब एक इमोजी उन की बात को एक हद तक स्पष्ट करने की ताकत रखती है. किंतु यह इमोजी आप की बात की गंभीरता को दर्शाने में कितना कामयाब होती है यह तो सामने वाले के विवेक पर निर्भर करता है.

वहीं अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो कर जाहिर करना इंसान की रचनात्मकता के साथसाथ उस की स्थिति को भी स्पष्ट करता है. शब्दों के जरीए हम भावनाओं को अपनी बात की गंभीरता और मनोस्थिति को भी जाहिर कर सकते हैं जैसे खुशी में छिपी हुई चिंता या हंसी के पीछे का दर्द.

इमोजी एक माने अनेक

अगर आप किसी को ‘थैंक यू’ कहना चाहते हैं तो आप किस इमोजी का इस्तेमाल करते हैं? शायद आप भी जुड़े हुए हाथ वाली इमोजी का इस्तेमाल करते होंगे पर क्या वह इमोजी ‘थैंक यू’ के लिए उपयुक्त है? शायद नहीं क्योंकि इस इमोजी का इस्तेमाल प्रार्थना, सम्मान या फिर नमस्कार के लिए किया जाना चाहिए न कि किसी को धन्यवाद कहने के लिए.

अलगअलग माने

ऐसी कई बातें हैं जिन के लिए उपयुक्त इमोजी उपलब्ध नहीं हैं या कहें इंसान के हर भाव, विचार और मनोस्थिति को दर्शाने के लिए अभी तक जितनी इमोजी हैं वे पर्याप्त नहीं हैं.

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