Cakey makeup fix : केकी मेकअप को आसानी से करें फिक्स

कई बार हम मेकअप करने में समय भी बहुत लगाते हैं और मेहनत भी बहुत करते हैं लेकिन मेकअप करने के बाद हमे लगता है कि ये मेकअप तो केकी हो गया है जोकि देखने में बहुत भद्दा लग रहा है. ऐसे में समझ नहीं आता कि अब इतने कम टाइम में हम इसे कैसे सही करें और मेकअप करते समय ऐसा क्या करें कि मेकअप करने के बाद वह केकी ना लगें.

दरअसल, ऐसा तब होता है जब हमने मेकअप प्रोडक्ट को फेस पर अच्छे से ब्लैंड ना किया हो या फिर गर्मी में पसीने की वजह से भी वो केकी हो जाये या फिर अच्छे प्रोडक्ट ना होने की वजह से भी मेकअप में दरारे पढ़ जाती है. इसलिए आज हम आपको बताते हैं कि मेकअप को कैसे फिक्स करें कि वह केकी ना लगें.

सबसे पहले अपनी स्किन को हाइड्रेटेड करें

केकी मेकअप से बचने के लिए सबसे पहले आप अपनी स्किन को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड करें. इसके लिए हमेशा एक हाइड्रेटिंग क्लींजर का यूज करें, जो आपकी त्वचा को रूखा नहीं बनाता हो. सौम्य क्लींजर में हाइलूरोनिक एसिड और सेरामाइड्स जैसे हाइड्रेटिंग तत्व होते हैं, जो त्वचा की प्राकृतिक नमी को बनाए रखने में मदद करते हैं. त्वचा से गंदगी, तेल और मेकअप को साफ करने के लिए इसे हर सुबह और शाम इस्तेमाल करें. यह रूटीन मेकअप करने से पहले भी अपनाएं.

स्किन को एक्सफ़ोलिएट करें

हफ़्ते में कम से कम एक बार, अपनी त्वचा और रोमछिद्रों में जमा मृत त्वचा कोशिकाओं से छुटकारा पाने के लिए अपने पसंदीदा एक्सफ़ोलिएटर का इस्तेमाल करें.  एक्सफ़ोलिएट करने से बेजान और रूखे धब्बों में सुधार, त्वचा की बनावट को चिकना करने और एक बेदाग बेस बनाने में मदद मिल सकती है.

चेहरे को क्लींज़र से धोएं

मेकअप लगाने से पहले हमेशा अपने चेहरे को किसी अच्छे क्लींज़र से धोएं ताकि अतिरिक्त गंदगी, तेल और अन्य अशुद्धियां  दूर हो जाए. इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपके पास मेकअप लगाने के लिए एक ताज़ा बेस होगा.

प्राइमर भी जरूर यूज करें

कई बार हम मॉइस्चराइजर के बाद प्राइमर को मिस करके फाउंडेशन लगाने लगते हैं लेकिन यह तरीका सही नहीं है. क्यूंकि प्राइमर एक ऐसा मेकअप प्रोडक्ट है, जो मेकअप के बाद स्किन पर क्रीज और लाइनों को क्रिएट करने से बचाता है, जो केकी मेकअप के अहम कारण होते हैं. जबकि प्राइमर स्किन को स्मूद बनाए रखता है, जिससे मेकअप के लिए स्किन चिकनी बनी रहती है.

अब फाउंडेशन को सही ढंग से लगाएं

कई बार हम फाउंडेशन की मोटी परत ले लेते हैं और उसे अच्छे से ब्लैंड भी नहीं करते जिससे बाद में वह पैच बनता है और अच्छा नहीं लगता है. इसका सही तरीका है फाउंडेशन को तब तक अच्छी तरह ब्लैंड करते रहें जब तक वह पूरी तरह स्किन में ऑब्जर्व ना हो जाये. लेकिन फिर भी बाद में वह केकी दिखता है, तो उसे एक नम ब्लेंडर से अच्छी तरह ब्लैंड करें. फाउंडेशन अप्लाई करते वक़्त अंडरआई और टी-ज़ोन को बिल्कुल अवॉइड न करें.

मेकअप को ब्लेंडिंग करने का सही तरीका अपनाएं

केक जैसी फिनिश को रोकने के लिए सही तरीके से ब्लेंडिंग करना बहुत जरूरी है। बेस्ट रिजल्ट के लिए ब्लेंडिंग ब्रश या ब्यूटी ब्लेंडर का इस्तेमाल करें। इसके लिए ब्लेंडर को पानी में भिगोएं और उसे अच्छे से निचोड़े। इसके बाद उसे टिशू पेपर में रैप करके एक्स्ट्रा पानी निकाल दें और उस पर फाउंडेशन लगाकर अच्छे से चारों तरफ ब्लैंड करें. इसके लिए जॉ-लाइन से शुरू करके ऊपर की ओर बढ़ते हुए प्रेस मोशन का उपयोग करें.

मेकअप प्रोडक्ट अपनी स्किन के अनुसार ही लें

अपनी स्किन टाइप को समझकर फाउंडेशन और कंसीलर इस्तेमाल करना सबसे जरूरी है. अगर आपकी स्किन ड्राई है, तो मेकअप खराब होने या पपड़ी बनने की संभावना उतनी ही होगी. आपको हाइड्रेटिंग कॉम्पोनेंट्स वाले ब्यूटी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे कि हयालूरोनिक एसिड, सेरामाइड्स और शीया बटर.  इसी तरह अगर स्किन ऑयली है तो उसी के अनुसार प्रोडक्ट यूज़ करें.ऑयली स्किन के लिए मैट (Matte) फाउंडेशन या पाउडर चुनें और सूखी त्वचा के लिए ड्यूई (Dewy) या क्रीम-बेस्ड फाउंडेशन चुनें.

मेकअप के लिए सेटिंग स्प्रे जरूर यूज करें

मेकअप खत्म करने के बाद, पूरे चेहरे पर सेटिंग स्प्रे का इस्तेमाल करें. यह सभी परतों को एक साथ “मेल्ट” करता है और एक नैचुरल , फ्लॉलेस फिनिश देता है. सेटिंग स्प्रे त्वचा को हाइड्रेट करके नमी को लॉक करते हैं और मेकअप को चेहरे पर सेट रखते हैं.

केकी मेकअप को फिक्स कैसे करें

कई बार मेकअप हम अधिक अप्लाई कर लेते हैं, ऐसे में उसे सेट करने के लिए कुछ महिलाएं टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करती हैं. इसके लिए आप स्पंज की मदद से ब्लश, कॉम्पैक्ट पाउडर, कंसीलर आदि को निकालने की कोशिश करें. इसके लिए एक साफ स्पंज लें और उसपर थोड़ा पानी स्प्रे करें और उसे तब तक ब्लेंड करें, जब तक कि मेकअप लाइट ना हो जाए. इसके बावजूद अगर फेस पर अधिक मेकअप लगा रहा है तो एक टिश्यू पेपर लें और ब्लेंडर को उससे कवर कर दें. अब इससे अपनी फेस को ब्लेंड करें और मेकअप सेट कर दें.

अपने चेहरे पर थोड़ा हाइड्रेटिंग फेशियल मिस्ट (Hydrating Facial Mist) या सेटिंग स्प्रे (Setting Spray) स्प्रे करें. इससे फाउंडेशन या पाउडर थोड़ा पिघलकर त्वचा के साथ मिल जाता है और केकीपन कम होता इसके लिए ध्यान रखें, चेहरा गीला नहीं, बस हल्का नम होना चाहिए.

अगर आपने बहुत ज़्यादा पाउडर लगा लिया है, तो एक ब्लॉटिंग पेपर (Blotting Paper) या एक साफ टिश्यू पेपर लें. इसे हल्के हाथ से उन जगहों पर दबाएं, जहां बहुत ज़्यादा पाउडर दिख रहा है. यह अतिरिक्त पाउडर को हटा देगा.

अगर आपकी त्वचा तैलीय है, तो मेकअप को केक जैसा दिखने से बचाने के लिए, फ़ाउंडेशन से पहले मैटीफ़ाइंग प्राइमर का इस्तेमाल करें ताकि तेल मेकअप में मिलकर केक जैसा न लगे.

Cooking Skills: नई पीढ़ी के बच्चों के लिए सेल्फ कुकिंग क्यों है जरूरी

Cooking Skills: हाल ही में कलर्स टीवी शो ‘बिग बौस 19’ में प्रतियोगी 61 वर्षीय कुनिका और 30 वर्षीय तानिया के बीच एक मुद्दे पर बहस हो गई. बहस इस बात पर हुई कि कुनिका ने तानिया को इस बात पर झाड़ दिया कि 30 साल की उम्र में भी उस की मां ने उस को खाना बनाना तक नहीं सिखाया. बात छोटी सी थी लेकिन मुद्दा बहुत गंभीर है कि अमीर हो या गरीब, एक लड़की को खाना बनाना आना कितना जरूरी है, इनफैक्ट लड़की ही नहीं एक नवयुवक को भी खाना बनाना आना कितना जरूरी है? 30 वर्षीय तान्या को खाना बनाना न आने पर कुनिका द्वारा बेइज्जती करना कितना सही है?

आज के जमाने में जबकि सबकुछ रैडीमेड मिलता है और बच्चे भी पढ़ेलिखे और काबिल हैं और इतना तो कमा लेते हैं कि बाहर से खाना और्डर कर के भी खाना खा सकते हैं, रैडीमेड रेडी टू कुक वाले कई सारे प्रावधान हैं. इस के अलावा तुरंत खाना मंगाने के लिए कई सारे फूड ऐप जैसे स्वीगी और जोमैटो जैसे ऐप्स भी हैं. इस के अलावा कई सारे होटल और ढाबे भी हैं जहां दिनरात खाना उपलब्ध रहता है. खानेपीने को ले कर इतनी सारी व्यवस्था होने के बावजूद एक लड़की या एक लड़के का खाना बनाना आना इतना जरूरी क्यों है? बड़ी उम्र के लोगों का ऐसा मानना क्यों है कि कम से कम लड़कियों को बेसिक खाना बनाना आना चाहिए या आज की मां का भी मानना है की बेटी ही नहीं बेटे को भी बेसिक खाना जैसे दाल, चावल, रोटी, सब्जी बनाना आना जरूरी है.

सिर्फ आम लोग ही नहीं कई बौलीवुड सितारे भी अपने यूट्यूब चैनल के जरीए लोगों को खाना बनाना सिखाते हैं जबकि उन के पास मेड की कमी नहीं होती, फिर भी वे खुद अपने घर वालों के लिए समय निकाल कर भी खाना बनाना क्यों पसंद करते हैं? सवाल यह भी उठाता है कि आज के समय में मांबाप और बुजुर्गों के हिसाब से बच्चों को कम से कम बेसिक खाना बनाना आना क्यों जरूरी है? बेसिक खाना न बनाना आने पर किनकिन मुश्किलों से गुजरना पड़ सकता है और अगर बच्चों या यंग जैनरेशन को खाना बनाना आता है तो उस के क्या फायदे हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

खाना बनाना भी एक कला

जिस को यह कला आती है वह न तो कभी खुद भूखा रहता है और न ही किसी को भूखा रहने देता है. कई युवा पीढ़ी के लोग खाना बनाने वालों को कमतर आंकते हैं. उन के हिसाब से जो लोग खाना बनाते हैं वे डाउन मार्केट और नौकर टाइप होते हैं. अमीर व पढ़ेलिखे, बड़ी पोस्ट पर काम करने वाले लोग खाना बनाना नहीं पसंद करते और न ही उन्हें खाना बनाना आता है क्योंकि यह काम उन का नहीं बल्कि नौकरों का है.

इसी धारणा के तहत सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि कई सारी लड़कियों को भी खाना बनाना नहीं आता. ऐसे में जब शादी के बाद या अकेले रहने पर खाना बनाने की नौबत आ जाती है तो इन लड़कियों को दिन में तारे नजर आने लगते हैं.

ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है. पिछले कुछ सालों में कोविड के दौरान जब हर किसी को घर में कैद होना पड़ा था, सारे होटल बंद थे और घरों में कोई आजा नहीं सकता था, उस दौरान जिनजिन लोगों को खाना बनाना नहीं आता था वह मुसीबत में थे और घर में फाके के दिन गुजार रहे थे और जिन लोगों को खाना बनाना आता था वे अच्छीअच्छी डिश बना कर लौकडाउन में भी मजे कर रहे थे.

खाना न मिलने पर जब विदेश में बच्चे मां के हाथ का खाना खाने को तरसे

पढ़ाई या नौकरी के लिए जब युवा विदेश जाते हैं तो उन को मां के हाथ का खाना याद आता है, क्योंकि जो स्वाद मां के हाथ के खाने में बच्चों को मिलता है वह फाइव स्टार होटल में भी नहीं मिलता.

हमारे देश में भले ही खाना बनाने को ले कर कई सारी सुविधाएं हैं जैसे मेड, होटल, ढाबे, खाना मंगवाने वाले ऐप आदि, लेकिन विदेश में अगर लड़का या लड़की शिक्षा के लिए या नौकरी करने के लिए जाता है, तो उसे खाने को ले कर बहुत सारी दिक्कतें हो जाती हैं क्योंकि अगर और्डर कर के बाहर से मंगवाते हैं तो बहुत महंगा होता है और विदेश में नौकरों का सिस्टम नहीं होता. वहां पर खुद ही नौकर बनना पड़ता है और सारे काम खुद ही करने पड़ते हैं. ऐसे में अगर खुद खाना बनाना नहीं आता तो भूखे रहने की नौबत आ जाती है.

वहीं अगर बेसिक खाना भी बनाना आता है जैसे खिचड़ी, दालचावल आदि तो यह खाना बना कर पेट तो भरा ही जा सकता है.

भारत में खाने वाली चीजों से ज्यादा मेकिंग और डिलिवरी की कीमत

गौरतलब है कि खाने के आइटम की कीमत इतनी ज्यादा नहीं होती जितनी की डिलीवरी और पैकिंग की होती है, जैसेकि खाना भेजने वाले डिलिवरी बौय की फीस, डिलिवरी करने के लिए आए लड़के की बाइक या स्कूटर में भरे जाने वाले पैट्रोल की कीमत भी ग्राहकों से वसूली जाती है. इस के अलावा खाना न तो पूरी तरह ताजा होता है और न ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक क्योंकि बाहर के खाने में सोडा, तेल और मसाला ज्यादा मात्रा में डाला जाता है जो सेहत के लिए हानिकारक होता है. वहीं अगर घर में खाना बनाने की कला आती है तो झटपट कुछ ही मिनटों में ताजा और स्वादिष्ठ खाना तैयार हो जाता है.

बौलीवुड सितारे भी खाना बनाने की कला का प्रचार करते नजर आते हैं

कहते हैं कि मां के हाथ का बना खाना में जो स्वाद होता है वह फाइव स्टार होटल के खाने में भी नहीं होता. इस के पीछे खास वजह यह है कि मां जब अपने बच्चों के लिए खाना बनाती है तो वह पूरे दिल से बनती है. यही वजह है कि बच्चों को अपनी मां के हाथ का बना कुछ भी खाना अच्छा लगता है. बौलीवुड सितारे भी जो अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं वे कितने ही व्यस्त क्यों न हों अपने बच्चों के लिए खुद अपने हाथों से खाना बनाते हैं, जैसे निर्माता, निर्देशक व कोरियोग्राफर फराह खान और कौमेडी क्वीन कहलाने वाली भारती सिंह भी अपने बच्चों के लिए खुद खाना बनाती हैं.

बौलीवुड के यह सेलेब्स खाना बनाने की कला को मेडिटेशन भी मानते हैं, क्योंकि कुछ समय के लिए ही सही जब हम खाना बनाने में व्यस्त होते हैं तो सारी टैंशन और दुख भूल जाते हैं और अपना पूरा ध्यान खाना बनाने में ही लगा देते हैं. शायद यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई सारे लोग आजकल यूट्यूब चैनल पर खाना बनाना सिखा रहे हैं और कई सैलिब्रिटीज मांएं भी अपने बच्चों को खाना बनाना सिखाती हैं ताकि किसी भी सिचुएशन में उन के बच्चों को भूखा न रहना पड़े.

इन बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि खाना बनाने की कला सभी को आनी चाहिए ताकि अच्छा खाना खाने के लिए किसी पर निर्भर न रहना पड़े और मौका पड़ने पर खुद अच्छा खाना बना कर खाया जा सके. फास्ट फूड या बाहर के खाने पर निर्भर न होना पड़े जो सेहत के लिए तो हानिकारक है ही, गंभीर बीमारियों के आगमन के लिए भी खतरे का संकेत है.

Cooking Skills

Dark Lips: डार्क लिप्स को पिंक में बदलना अब है आसान

Dark Lips: कौरपोरेट सैक्टर में काम करने वाली खूबसूरत निशा के होंठ हमेशा काले रहते हैं, जिस से निशा को हमेशा पिंक कलर की लिपस्टिक या लिपबाम लगाने पड़ते थे, क्योंकि निशा के दोस्तों को लगता था कि वह धूम्रपान करती है, जबकि निशा को किसी प्रकार के नशे की लत नहीं थी.

निशा ने कई घरेलू नुसखे अपनाए. फिर एक दिन वह किसी फ्रैंड की सलाह पर कौस्मेटिक्स सर्जन के पास गई और लिप लाइटनिंग लेजर ट्रीटमैंट करवाई. आज उसे गुलाबी होंठ पाने के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती. उस के होंठ प्राकृतिक रूप से गुलाबी दिखते हैं. वह इस मेकओवर से काफी खुश है.

क्या है लिप लाइटनिंग लेजर ट्रीटमैंट

असल में लिप लाइटनिंग लेजर ट्रीटमैंट एक कौस्मेटिक प्रक्रिया है, जिस में लेजर तकनीक का उपयोग कर के होंठों का रंग हलका किया जाता है. इस का उद्देश्य पिगमैंटेशन को कम करना और होंठों के प्राकृतिक गुलाबी या गुलाबी रंग को निखारना होता है, लेकिन यह लास्ट औप्शन होता है, मगर इस से पहले होंठ काले होने की वजह के बारे में जानना बहुत जरूरी है.

इस बारे में मुंबई की कोकिलाबेन धीरुबाई अंबानी के प्लास्टिक सर्जन डा. काजी गजवान अहमद कहते हैं कि गुलाबी होंठों की सुंदरता को हर लड़की पसंद करती है. होंठों का कालापन कई वजहों से होता है :

-प्रदूषण.

-सूर्य की हानिकारक किरणें.

-डिहाइड्रेशन.

-विटामिन बी12 या आयरन की कमी.

-जैनेटिक हार्मोनल बदलाव.

-धूम्रपान.

-कुछ दवाओं का सेवन आदि.

इस के अलावा, ऐलर्जी, सस्ती कौस्मेटिक उत्पादों के उपयोग से भी होंठ काले पङ सकते हैं. घरेलू नुसखे से इसे कम नहीं किया जा सकता है.

लाइफस्टाइल है जिम्मेदार

अधिकतर लड़कियां आउटडोर जौब या शूटिंग का काम करती हैं, तो उन का सन ऐक्स्पोजर अधिक होता है, साथ ही कैफीन के शौकीन या लिप को बाइट करने की आदत वालों के होंठ काले हो सकते हैं. कुछ को हार्मोनल बदलाव की वजह से पहले गुलाबी, बाद में होंठ पर ब्लैक पैचेस आ जाते हैं.

इस के अलावा होंठों की त्वचा पतली और नाजुक होती है. इस में औयल ग्लैंड्स नहीं होते और होंठ जल्दी ड्राई हो जाते हैं और आसानी से फटने लगते हैं. कई बार आप ने देखा होगा कि ठंड के मौसम में कभीकभी ऊपरी होंठ निचले होंठ की तुलना में अधिक डार्क हो जाता है, ऐसे में ऊपरी और निचला होंठ एकजैसा नहीं दिखता. कई बार ऐसे लिप्स पर लिपस्टिक लगाना मुश्किल हो जाता है.

बदलें जीवनचर्या को

इस के आगे डाक्टर कहते हैं कि होंठों को गुलाबी बनाने के लिए लिप लाइटनिंग लेजर सर्जरी है, लेकिन पहले लाइफस्टाइल को थोड़ा बदल कर देखना पड़ता है, जिस में स्मोकिंग को अवौइड करना, हाइड्रैशन को थोड़ा बढ़ा कर इसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि प्राकृतिक रूप से इसे ठीक किया जा सके.

लिप्स के लिए मोइश्चराइजर का प्रयोग सब से अच्छा विकल्प होता है. इस के अलावा अच्छे लिपबाम, जिस में एसपीएफ 15 से 20 तक का हो, उस का प्रयोग हमेशा लिप्स पर करते रहना चाहिए, ताकि सन ऐक्सपोजर से लिप्स काले न पड़ जाएं. साथ ही कुछ मैडिकेटेड क्रीम होते हैं, जो डाक्टर की सलाह से लेना जरूरी होता है. ट्रोपिकल क्रीम से अगर लिप्स गुलाबी नहीं हुए, तो कैमिकल पीलिंग किया जाता है, इस से लिप्स की सुपरफिसियल लेयर निकल जाती है और अंदर की पिंक स्किन बाहर निकल आती है. यह प्रोसेस काफी इफैक्टिव होती है, इस का सहारा ले लेना चाहिए.

कैमिकल पील के बाद सन प्रोटेक्शन क्रीम का प्रयोग करना बहुत जरूरी होता है. नहीं तो फिर से होंठ काले पङ जाने का चांस रहता है.

लेजर सर्जरी का लें सहारा

इन सभी प्रोसेस से अगर कुछ फायदा नहीं होता है, तो लेजर सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. इस में लिप्स का अधिक उभरा होना, अनइवन होना या डार्क होना ठीक किए जाते हैं. लेजर सर्जरी और कैमिकल पील में थोड़ा डिसकम्फर्ट रहता है. सर्जरी से पहले सुपर फिसियल क्रीम लगा कर लिप्स को थोड़ी देर के लिए नम कर दिया जाता है, ताकि अधिक डिसकम्फर्ट न हो. यह कोई पैनफुल प्रक्रिया नहीं है और ओपीडी बेस्ड है और 2 से 3 घंटे में पूरा हो जाता है. इस के बाद इन्फैक्शन प्रिवेंट के लिए 4 से 5 दिन मैडिसीन दिया जाता है. 3 महीना सनस्क्रीन लगाना चाहिए और लिपबाम एसपीएफ वाला लगाना पड़ता है, ताकि फिर से लिप्स डार्क न हों.

डाक्टर कहते हैं कि लिप सर्जरी के बाद भी अधिक सन ऐक्सपोजर होने से फिर से लिप्स डार्क हो सकते हैं. इसलिए सावधानी बरतनी जरूरी है. आज की 20 से 40 साल की लड़कियां और लड़के सभी लिप्स के डार्कनैस को हटाने के लिए मेरे पास आते हैं. पहले केवल कलाकार ही आते थे, आम लोगों में जागरूकता नहीं थी, लेकिन आज की हर लड़की और लड़का अपने लुक को ले कर काफी जागरूक हैं और चेहरे पर आए किसी भी अनइवन को हटाना पसंद करते हैं, जो उन के पर्सनैलिटी को निखारता है. इस का खर्चा अधिक नहीं आता, ₹20 से 40 हजार के बीच में लिप लेजर सर्जरी हो जाया करती है.

न करें अनदेखा

इस सर्जरी को करवाते वक्त कुछ बातों का हमेशा ध्यान रखना आवश्यक होता है :

-जिन्हें किसी प्रकार की ऐलर्जी हो,

-ऐक्टिव इन्फैक्शन होने के चांसेस हों.

-मुंह के अंदर छाले हों, तो उसे ठीक कराने के बाद सर्जरी कराना आदि.

इस प्रकार डार्क लिप के किसी भी प्रोसेस को एक अच्छे और अनुभवी डाक्टर से कराएं, ताकि बाद में इन्फैक्शन का खतरा न हो और आप एक खूबसूरत पिंक लिप्स की हकदार बनें.

Dark Lips

Best Hindi Story: आउटसोर्सिंग- क्या माता-पिता ढूंढ पाए मुग्धा का वर

Best Hindi Story: मुग्धा के लिए गरमागरम दूध का गिलास ले कर मानिनी उस के कमरे में पहुंची तो देखा, सारा सामान फैला पड़ा था.

‘‘यह क्या है, मुग्धा? लग रहा है, कमरे से तूफान गुजरा है?’’

‘‘मम्मी बेकार का तनाव मत पालो. सूटकेस निकाले हैं, पैकिंग करनी है,’’ मुग्धा गरमागरम दूध का आनंद उठाते हुए बोली.

‘‘कहां जा रही हो? तुम ने तो अभी तक कुछ बताया नहीं,’’ मानिनी ने प्रश्न किया.

‘‘मैं आप को बताने ही वाली थी. आज ही मुझे पत्र मिला है. मेरी कंपनी मुझे 1 वर्ष के लिए आयरलैंड भेज रही है.’’

‘‘1 वर्ष के लिए?’’

‘‘हां, और यह समय बढ़ भी सकता है,’’ मुग्धा मुसकराई.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता. विवाह किए बिना तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘क्या कह रही हो मां? यह मेरे कैरियर का प्रश्न है.’’

‘‘इधर, यह तुम्हारे जीवन का प्रश्न है. अगले मास तुम 30 की हो जाओगी. कोई न कोई बहाना बना कर तुम इस विषय को टालती रही हो.’’

‘‘मैं ने कब मना किया है? आप जब कहें तब मैं विवाह के लिए तैयार हूं. पर अब प्लीज मेरी आयु के वर्ष गिनाने बंद कीजिए, मुझे टैंशन होने लगती है.

मुझे पता है कि अगले माह मैं 30 की हो जाऊंगी.’’

‘‘मैं तो तुझे यह समझा रही थी कि हर काम समय पर हो जाना चाहिए. यह जान कर अच्छा लगा कि तुम शादी के लिए तैयार हो. सूरज मान गया क्या?’’

‘‘सूरज के मानने न मानने से क्या फर्क पड़ता है?’’ मुग्धा मुसकराई.

‘‘तो विवाह किस से करोगी?’’

‘‘यह आप की समस्या है, मेरी नहीं.’’

‘‘क्या? तुम हमारे चुने वर से विवाह करोगी? अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम तो चांद से दूल्हों की लाइन लगा देते.’’

‘‘क्यों उपहास करती हो, मां. चांद सा दूल्हा तुम्हारी नाटी, मोटी, चश्मा लगाने वाली बेटी से विवाह क्यों करने लगा?’’

‘‘क्या कहा? नाटी, मोटी चशमिश? किसी और ने कहा होता तो मैं उस का मुंह नोच लेती. मेरी नजरों से देखो, लाखों में एक हो तुम. ऐसी बातें आईं कहां से तुम्हारे मन में? कुछ तो सोचसमझ कर बोला करो,’’ मानिनी ने आक्रोश व्यक्त किया.

मानिनी सोने चली गई थीं पर मुग्धा शून्य में ताकती बैठी रह गई थी. वह मां को कैसे बताती कि अपने लिए उपयुक्त वर की खोज करना उस के बस की बात नहीं थी. मां तो केवल सूरज के संबंध में जानती हैं. सुबोध, विशाल और रंजन के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. चाह कर भी वह मां को अपने इन मित्रों के संबंध में नहीं बता पाई. यही सब सोचती हुई वह अतीत के भंवर में घिरने लगी.

सुबोध उस का अच्छा मित्र था. कालेज में वे दोनों सहपाठी थे. अद्भुत व्यक्तित्व था उस का. पर मुग्धा को उस के गुणों ने आकर्षित किया था. सुबोध उस के लिए आसमान से चांदतारे तोड़ कर लाने की बात करता तो वह अभिभूत हो जाती.

पर जब वह मां और अपने पिता राजवंशी से इस संबंध में बात करने ही वाली थी कि सुबोध ने अपनी शादी तय होने का समाचार दे कर उसे आकाश से धरती पर ला पटका. सुबोध बातें तो उस के बाद भी बहुत मीठी करता था. उस के अनुसार प्यार तो अजरअमर होता है. वह चाहे तो वे जीवनभर प्रेमीप्रेमिका बने रह सकते हैं. सुबोध तो अपने परिवार से छिप कर उस से विवाह करने को भी तैयार था पर वह प्रस्ताव उस ने ही ठुकरा दिया था.

उस प्रकरण के बाद वह लंबे समय तक अस्वस्थ रही थी. फिर उस ने स्वयं को संभाल लिया था. मुग्धा चारों भाईबहनों में सब से छोटी थी. सब ने अपने जीवनसाथी का चुनाव स्वयं ही किया था. अब अपने ढंग से वे अपने जीवन के उतारचढ़ाव से समझौता कर रहे थे. भाईबहनों के पास न उस के लिए समय था न ही उस से घुलनेमिलने की इच्छा. तो भला उस के जीवन में कैसे झांक पाते. मां भी सोच बैठी थीं कि वह भी अपने लिए वर स्वयं ही ढूंढ़ लेगी.

विशाल और रंजन उस के जीवन में दुस्वप्न बन कर आए. दोनों ही स्वच्छंद विचरण में विश्वास करते थे. रंजन की दृष्टि तो उस के ऊंचे वेतन पर थी. उस ने अनेक बार अपनी दुखभरी झूठी कहानियां सुना कर उस से काफी पैसे भी ऐंठ लिए थे. तंग आ कर मुग्धा ने ही उस से किनारा कर लिया था.

सूरज उस के जीवन में ताजी हवा के झोंके की तरह आया था. सुदर्शन, स्मार्ट सूरज को जो देखता, देखता ही रह जाता. सूरज ने स्वयं ही अपने मातापिता से मिलवाया. उसे भी विवश कर दिया कि वह उस का अपने मातापिता से परिचय करवाए. कुछ ही दिनों में उस से ऐसी घनिष्ठता हो गई, मानो सदियों की जानपहचान हो. अकसर सूरज उस के औफिस में आ धमकता और वह सब से नजरें चुराती नजर आती.

मुग्धा अपने व्यक्तिगत जीवन को स्वयं तक ही सीमित रखने में विश्वास करती थी. अपनी भावनाओं का सरेआम प्रदर्शन उसे अच्छा नहीं लगता था.

‘मेरे परिचितों से घनिष्ठता बढ़ा कर तुम सिद्ध क्या करना चाहते हो?’

‘कुछ नहीं, तुम्हें अच्छी तरह जाननेसमझने के लिए तुम्हारे मित्रों, संबंधियों को जानना भी तो आवश्यक है न प्रिय,’ सूरज नाटकीय अंदाज में उत्तर देता.

‘2 वर्ष हो गए हमें साथ घूमतेफिरते, एकदूसरे को जानतेसमझते. चलो, अब विवाह कर लें. मेरे मातापिता बहुत जोर डाल रहे हैं,’ एक दिन मुग्धा ने साहस कर के कह ही डाला था.

‘क्या? विवाह? मैं ने तो सोचा था कि तुम आधुनिक युग की खुले विचारों वाली युवती हो. एकदूसरे को अच्छी तरह जानेसमझे बिना भला कोई विवाहबंधन में बंधता है?’ सूरज ने अट्टहास किया था.

‘कहना क्या चाहते हो तुम?’ मुग्धा बिफर उठी थी.

‘यही कि विवाह का निर्णय लेने से पहले हमें कुछ दिन साथ रह कर देखना चाहिए. साथ रहने से ही एकदूसरे की कमजोरियां और खूबियां समझ में आती हैं. तुम ने वह कहावत तो सुनी ही होगी, सोना जानिए कसे, मनुष्य जानिए बसे,’ सूरज कुटिलता से मुसकराया था.

‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ मुझ से ऐसी बात कहने का? मैं कोई ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं. 2 वर्षों में भी यदि तुम मेरी कमजोरियों और खूबियों को नहीं जान पाए तो भाड़ में जाओ, मेरी बला से,’ मुग्धा पूरी शक्ति लगा कर चीखी थी.

‘इस में इतना नाराज होने की क्या बात है, मुझे कोई जल्दी नहीं है, सोचसमझ लो. अपने मातापिता से सलाहमशविरा कर लो. मैं चोरीछिपे कोई काम करने में विश्वास नहीं करता. आज के अत्याधुनिक मातापिता भी इस में कोई बुराई नहीं देखते. वे भी तो अपने बच्चों को सुखी देखना चाहते हैं.’

‘किसी से विचारविनिमय करने की आवश्यकता नहीं है. मैं स्वयं इस तरह साथ रहने को तैयार नहीं हूं,’ मुग्धा पैर पटकती चली गई थी.

उधर, काम में उस की व्यस्तता बढ़ती ही जा रही थी. किसी और से मेलजोल बढ़ाने का न तो उस के पास समय था और न ही इच्छा. इसलिए जब मां ने उस के विवाह की बात उठाई तो उस ने सारा भार मातापिता के कंधों पर डालने में ही अपनी भलाई समझी.

मुग्धा करवटें बदलतेबदलते कब सो गई, पता भी न चला. प्रात: जब वह उठी तो मन से स्वस्थ थी.

मुग्धा ने अपनी ओर से तुरुप का पत्ता चल दिया था. उस ने सोचा था कि अब कोई उसे विवाह से संबंधित प्रश्न कर के परेशान नहीं करेगा.

पर शीघ्र ही उसे पता चल गया कि उस का विचार कितना गलत था.

मानिनी और राजवंशीजी भला कब चुप बैठने वाले थे. उन्होंने युद्धस्तर पर वर खोजो अभियान प्रारंभ कर दिया था. दोनों पतिपत्नी में मानो नवीन ऊर्जा का संचार हो गया था.

मित्रों, संबंधियों, परिचितों से संपर्क साधा गया. समाचारपत्रों, इंटरनैट का सहारा लिया गया और आननफानन विवाह प्रस्तावों का अंबार लग गया.

वर खोजो अभियान का पता चलते ही मुग्धा के बड़े भाईबहन दौड़े आए.

‘‘क्यों आप अपना पैसा और समय दोनों बरबाद कर रहे हैं. मुग्धा जैसी लड़की आप के द्वारा चुने गए वर से कभी विवाह नहीं करेगी,’’ मुग्धा के सब से बड़े भाई मानस ने तर्क दिया था.

‘‘इस समस्या का समाधान तो तुम मुग्धा से मिल कर ही कर सकते हो. हम ने उस की सहमति से ही यह कार्य प्रारंभ किया है,’’ राजवंशीजी का उत्तर था.

मुग्धा के औफिस से आते ही तीनों भाईबहनों ने उसे घेर लिया था, ‘‘यह क्या मजाक है? तुम अपने लिए एक वर भी स्वयं नहीं ढूंढ़ सकतीं?’’ मुग्धा की बहन मानवी ने प्रश्न किया था.

‘‘मैं बहुत व्यस्त हूं, दीदी. वर खोजो अभियान के लिए समय नहीं है. मम्मीपापा शीघ्र विवाह करने पर जोर दे रहे थे तो मैं ने यह कार्य उन्हीं के कंधों पर डाल दिया. कुछ गलत किया क्या मैं ने?’’

‘‘बिलकुल पूरी तरह गलत किया है तुम ने. बिना किसी को जानेसमझे केवल मांपापा के कहने से तुम विवाह कर लोगी? यह एक दिन का नहीं, पूरे जीवन का प्रश्न है यह भी सोचा है तुम ने,’’ उस के बड़े भैया मानस बोले थे.

‘‘मुझे लगा मम्मीपापा हमारे हितैषी हैं. जिस प्रकार वे इस प्रकरण में सारी छानबीन कर रहे हैं, मैं तो कभी नहीं कर पाती.’’

‘‘क्या छानबीन करेंगे वे, धनदौलत पढ़ाईलिखाई, शक्लसूरत, पारिवारिक पृष्ठभूमि इस से अधिक क्या देखेंगे वे. इस से भी बड़ी कुछ बातें होती हैं,’’ छोटे भैया, जो अब तक चुप थे, गुरुगंभीर वाणी में बोले थे.

‘‘आप शायद ठीक कह रहे हैं पर आप तीनों के वैवाहिक जीवन की भी कुछ जानकारी है मुझे. मानस भैया को नियम से हर माह प्लेटें, प्याले खरीदने पड़ते हैं. नीरजा भाभी को उन्हें फेंकने और तोड़ने का ज्यादा ही शौक है. तन्वी भाभी और अवनीश जीजाजी…’’

‘‘रहने दो, हम यहां अपने वैवाहिक जीवन की कमजोरियां सुनने नहीं, तुम्हें सावधान करने आए हैं. अपने जीवन के साथ यह जुआ क्यों खेल रही हो तुम?’’  मानवी थोड़े ऊंचे स्वर में बोली.

‘‘यह जीवन जुआ ही तो है. हमारा कोई भी निर्णय गलत या सही हो सकता है, इसीलिए मैं ने अपने विवाह की आउटसोर्सिंग करने का निर्णय लिया है,’’ मुग्धा ने मानो अंतिम निर्णय सुना दिया था.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. जब विवाह निश्चित हो जाए तो हमें बुलाना मत भूलना,’’ तीनों व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर अपनी दुनिया में लौट गए थे.

इधर, मानिनी और राजवंशीजी की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 3 माह बाद ही मुग्धा को आयरलैंड जाना था और एक माह बीतने पर भी कहीं बात बनती नजर नहीं आ रही थी.

यों उन के पास प्रस्तावों का अंबार लग गया था पर उन में से उन के काम के 4-5 ही थे. लड़के वालों को मुग्धा से मिलवाने और अन्य औपचारिकताओं का प्रबंध करते हुए उन के पसीने छूटने लगे थे पर बात कहीं बनती नजर नहीं आ रही थी.

उस दिन प्रतिदिन की तरह मुग्धा अपने औफिस गई हुई थी. राजवंशीजी जाड़े की धूप में समाचारपत्र में डूबे हुए थे कि द्वार की घंटी बजी.

राजवंशीजी ने द्वार खोला तो सामने एक सुदर्शन युवक खड़ा था. वे तो उसे देखते ही चकरा गए.

‘‘अरे बेटे तुम? अचानक इस तरह न कोई चिट्ठी न समाचार? अपने मातापिता को नहीं लाए तुम?’’

‘‘जी उन के आने का तो कोई कार्यक्रम ही नहीं था. मां ने आप के लिए कुछ मिठाई आदि भेजी है.’’

‘‘इस की क्या आवश्यकता थी, बेटा? तुम्हारी माताजी भी कमाल करती हैं. आओ, बैठो, मैं अभी आया,’’ युवक को वहीं बिठा कर वे लपक कर अंदर गए थे.

‘‘जल्दी आओ, जनार्दन आया है,’’ वे मानिनी से हड़बड़ा कर बोले थे.

‘‘कौन जनार्दन?’’ मानिनी ने प्रश्न किया था.

‘‘लो, अब यह भी मुझे बताना पड़ेगा? याद नहीं मुग्धा के लिए प्रस्ताव आया था. विदेशी तेल कंपनी में बड़ा अफसर है. याद आया? उन्होंने फोटो भी भेजा था,’’ राजवंशी ने याद दिलाया.

मानिनी ने राजवंशीजी की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. वे लपक कर ड्राइंगरूम में पहुंचीं, सौम्यसुदर्शन युवक को देख कर उन की बाछें खिल गईं.

युवक ने उन्हें देखते ही अभिवादन किया. उत्तर में मानिनी ने प्रश्नों की बौछार ही कर डाली, ‘‘कैसे आए? घर ढूंढ़ने में कष्ट तो नहीं हुआ? तुम्हारे मातापिता क्यों नहीं आए? वे भी आ जाते तो अच्छा होता, आदिआदि.’’

युवक ने बड़ी शालीनता से हर प्रश्न का उत्तर दिया. मानिनी उस की हर भावभंगिमा का बड़ी बारीकी से निरीक्षण कर रही थीं. मन ही मन वे उसे मुग्धा के साथ बिठा कर जोड़ी की जांचपरख भी कर चुकी थीं.

इसी बीच राजवंशीजी जा कर ढेर सारी मिठाईनमकीन आदि खरीद लाए थे. मानिनी ने शीघ्र ही चायनाश्ते का प्रबंध कर दिया था.

‘इतना सबकुछ? अंकल, आप को इतनी औपचारिकता की क्या आवश्यकता थी,’ युवक मेज पर फैली सामग्री को देख कर चौंक गया था.

‘‘बेटे, ये सब हमारे शहर की विशेष मिठाइयां हैं. ये खास कचौडि़यां हमारे शहर की विशेषता है,’’ मानिनी प्लेट में ढेर सी सामग्री डालते हुए बोली थीं.

‘‘मेरी मां ठीक ही कहती हैं, हम दोनों परिवारों के बीच जो प्यार है वह शायद ही कहीं देखने को मिले,’’ युवक प्लेट थामते हुए बोला. मानिनी उलझन में पड़ गईं पर शीघ्र ही उन्होंने संशय को दूर झटका और घर आए अतिथि पर ध्यान केंद्रित कर दिया.

‘‘अच्छा, आंटी, अब मैं चलूंगा. आप दोनों से मिल कर बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘अरे, हम ने मुग्धा को फोन किया है, वह आती ही होगी. उस से मिले बिना तुम कैसे जा सकते हो?’’

‘‘उस की क्या आवश्यकता थी? आप ने व्यर्थ ही मुग्धाजी को परेशान किया.’’

‘‘इस में कैसी परेशानी? तुम कौन सा रोज आते हो,’’ राजवंशीजी मुसकराए.

तभी मुग्धा की कार आ कर रुकी. मानिनी और राजवंशीजी लपक कर बाहर पहुंचे. मानिनी उसे पीछे के द्वार से अंदर ले गईं.

‘‘जल्दी से तैयार हो जा. यह जींस टौप बदल कर अच्छा सा सूट पहन ले, बाल खुले छोड़ दे.’’

‘‘क्या कह रही हो मम्मी. किसी से मिलने के लिए इतना सजनेसंवरने की क्या आवश्यकता है?’’

‘‘किसी से नहीं जनार्दन से मिलना है. तू क्या सोचती है बिना बताए वह तुझ से मिलने क्यों आया है?’’

‘‘मुझे क्या पता, मम्मी. मैं आप का फोन मिलते ही दौड़ी चली आई. मुझे लगा किसी की तबीयत अचानक बिगड़ गई है.’’

‘‘तबीयत बिगड़े हमारे दुश्मनों की. मैं जनार्दन के पास जा रही हूं. तुम जल्दी तैयार हो कर आ जाओ,’’ मानिनी फिर ड्राइंगरूम में जा बैठीं.

मुग्धा तैयार हो कर आई तो दोनों पतिपत्नी बाहर चले गए. दोनों एकदूसरे को जानसमझ लें तो बात आगे बढ़े. वे इस तरह घबराए हुए थे मानो साक्षात्कार देने जा रहे हों.

मुग्धा ड्राइंगरूम में बैठे युवक को अपलक ताकती रह गई.

‘‘आप का चेहरा बड़ा जानापहचाना सा लग रहा है. क्या हम पहले कभी मिल चुके हैं?’’ चायनाश्ते की मेज पर रखी केतली से कप में चाय डालते हुए मुग्धा ने प्रश्न किया.

‘‘जी हां, मैं रूपनगर से आया हूं, कुणाल बाबू मेरे पिता हैं,’’ चाय का कप थामते हुए वह युवक बोला.

‘‘कुणाल बाबू यानी दया इंटर कालेज के पिं्रसिपल?’’

‘‘जी हां, मैं उन का बेटा राजीव हूं. यहां अपने वीसा आदि के लिए आया हूं. मां ने आप लोगों के लिए कुछ मिठाई अपने हाथ से बना कर भेजी है.’’

‘‘अर्थात तुम जनार्दन नहीं राजीव हो. मम्मीपापा तुम्हें न जाने क्या समझ बैठे,’’ मुग्धा खिलखिला कर हंसी तो हंसती ही चली गई. राजीव भी उस की हंसी में उस का साथ दे रहा था.

‘‘मैं सब समझ गया. इसीलिए मेरी इतनी खातिरदारी हुई है.’’

‘‘तुम जनार्दन नहीं हो न सही, खातिर तो राजीव की भी होनी चाहिए. तुम ने हमारे यहां आने का समय निकाला यही क्या कम है?’’ कुछ देर में हंसी थमी तो मुग्धा ने कृतज्ञता व्यक्त की.

‘‘आप और मानस मेरी दीदी के विवाह में आए थे. हम ने खूब मस्ती की थी. उस बात को 7-8 वर्ष बीत गए.’’

‘‘तुम से मिल कर अच्छा लगा, आजकल क्या कर रहे हो. तब तो तुम आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहे थे?’’

‘‘जी, उस के बाद एमबीए किया. अब एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई है. बीच में 3-4 वर्ष एक प्राइवेट कंपनी में था.’’

‘‘क्या बात है. तुम ने तो कुणाल सर का सिर ऊंचा कर दिया,’’ मुग्धा प्रशंसात्मक स्वर में बोली.

‘‘आप से एक बात कहनी थी मुग्धाजी.’’

‘‘कहो न, क्या बात है?’’

‘‘क्या मैं आप के जीवन का जनार्दन नहीं बन सकता? मैं ने तो जब से अपनी दीदी के विवाह में आप को देखा है, केवल आप के ही स्वप्न देखता रहा हूं.’’

मुग्धा राजीव को अपलक निहारती रह गई.

पलभर में ही न जाने कितनी आकृतियां बनीं और बिगड़ गईं. दोनों ने आंखों ही आंखों में मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.

मानिनी और राजवंशीजी तो सबकुछ जान कर हैरान रह गए. उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ा कि वह जनार्दन नहीं राजीव था. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था, यही बहुत था.

अगले ही दिन कुणाल बाबू सपत्नीक आ पहुंचे थे. राजवंशीजी और मानिनी सभी आमंत्रित अतिथियों को रस लेले कर सुना रहे थे कि कैसे मुग्धा का भावी वर स्वयं ही उन के दर पर आ खड़ा हुआ था.

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Suspense Story: घूंघट में घोटाला- दुल्हन को देख रामसागर को लगा झटका

Suspense Story: रामसागर बड़ा खुश था. उसका दिल बल्लियों उछल रहा था. बात खुशी की ही थी, उसकी शादी जो तय हो गयी थी. आखिरकार इतनी दुआओं और मन्नतों के बाद जीवन में यह शुभ अवसर आया था. वरना उसने तो अब शादी के विषय में सोचना ही छोड़ दिया था. मां-बाप जल्दी गुजर गये थे. रामसागर घर में सबसे बड़ा था. उसके बाद दो बहनें और दो भाई थे, जिनकी पूरी जिम्मेदारी उस अकेले के कंधे पर थी. थोड़ी खेतीबाड़ी थी और एक किराने की दुकान भी.

अट्ठारह बरस की उम्र रही होगी जब मां-बाप साथ छोड़ गये. रामसागर ने बड़ी मेहनत की. चारों भाई-बहनों की देखभाल और उनकी शादी-ब्याह की जिम्मेदारी उसने मां-बाप बन कर उठाये. अब उसकी बयालीस बरस की उम्र हो आयी थी. इस उम्र के उसके दोस्त अपने बच्चों की शादी की चिन्ता में मग्न थे और वो अभी तक छुट्टे बैल की तरह घूम रहा था…! छोटे भाई-बहनों की नय्या पार लगाते-लगाते कब रामसागर के बालों में सफेदी झलकने लगी थी, उसे पता ही नहीं चला. सबका घर बसाने के चक्कर में उसका अपना घर अब तक नहीं बस पाया था.

चलो देर आये दुरुस्त आये. रिश्ते की बुआ ने आखिरकार उसकी सगाई तय करा ही दी. उसका मन बुआ को दुआएं देते नहीं थक रहा था. लड़की पास के गांव की थी. छह बहनों में तीसरे नंबर की. रामसागर अपनी बुआ के साथ लड़की देखने पहुंचा तो शर्म के मारे गर्दन ही नहीं उठ रही थी. लड़की चाय की ट्रे लिए सामने खड़ी थी. रामसागर नजरें नीचे किए बस उसके कोमल पैरों को निहार रहा था. गोरे-गोरे पैर पतली पट्टी की सस्ती सी सैंडिल में चमक रहे थे. नाखूनों पर लाल रंग की नेलपौलिश चढ़ी थी. रामसागर तो उसके पैरों को देखकर ही रीझ गया. बुआ ने कोहनी मारी, ‘जरा नजर उठा कर निहार ले… बाद में न कहना कि कैसी लड़की से ब्याह करवा दिया.’

रामसागर ने बमुश्किल नजरें उठायीं. लड़की के सिर पर गुलाबी पल्ला था. आधा चेहरा ही रामसागर को नजर आया. चांद सा. बिल्कुल गोरा-गोरा. रामसागर ने धीरे से गर्दन हिला कर अपनी रजामंदी जाहिर कर दी. शादी की तारीख महीने भर बाद की तय हुई थी. रामसागर घर की एक-एक चीज साफ करने में जुटा था. घर में उसके सिवा कोई था ही कहां, जो सब संवारे-बुहारे. सब उसे ही करना था. बहनें ब्याह कर अपने घरों की हो गई थीं. दोनों भाई रोजगार के चक्कर में दिल्ली गये तो वहीं के होकर रह गये. एक-एक करके अपनी पत्नियों और बच्चों को भी ले गये कि वहां बच्चों की अच्छी परवरिश और पढ़ाई हो सकेगी. पीछे रह गया रामसागर. अकेला.

एक महीने में रामसागर ने घर का कायाकल्प कर डाला. अपनी पत्नी के स्वागत में वह जो कुछ भी कर सकता था उसने किया. आखिरकार शादी का दिन भी आ पहुंचा. घोड़ी पर सवार रामसागर कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों से घिरा गाजे-बाजे के साथ धड़कते दिल से अपनी होने वाली ससुराल पहुंचा. लड़की वालों ने स्वागत-सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी. जयमाल, फेरे सब हो गये. रामसागर बस एक नजर अपनी पत्नी के चेहरे को देख लेना चाहता था. मगर चांद पर लंबा घूंघट पड़ा था. आगे पीछे उसकी बहनें, सहेलियां और रिश्ते की बहुएं. सुबह विदाई के वक्त भी लंबा सा घूंघट. विदा की बेला आ गयी. रामसागर घूंघट में जार-जार रोती अपनी दुल्हन को लेकर अपने गांव पहुंच गया. सारा दिन रीति रिवाज निभाते बीत गये. दुल्हन भीतर कमरे में औरतों के बीच दुबकी बैठी रही और वह बाहर मर्दों में. आखिरकार सुहागरात की बेला आ गयी. औरतों ने आकर रामसागर को पुकारा और धक्का देकर कमरे के भीतर धकेल दिया.

चांद पर अब भी घूंघट पड़ा था. रामसागर झिझकते हुए पलंग पर बैठा तो उसका चांद और ज्यादा सिमट गया. काफी देर खामोशी छाई रही. आखिर हिम्मत जुटा कर रामसागर ने घूंघट के पट खोले तो जैसे उसको सांप सूंघ गया. घूंघट का चांद वो चांद नहीं था जो उस दिन नजर आया था. ये तो कुछ फीका-फीका सा था.  बेसाख्ता उसके मुख से निकला, ‘तुम कौन हो?’ वह धीरे से बोली, ‘अनीता’. रामसागर ने कहा, ‘मगर मेरी शादी तो सुनीता से तय हुई थी.’

अनीता ने गर्दन झुका ली. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सकते में डूबे रामसागर ने उठ कर दरवाजा खोला तो सामने बुआ खड़ी थी. वह झपट कर अंदर आयीं और दरवाजा बंद करके पलंग पर बैठ गयीं. रामसागर हैरानी से उनकी ओर देख रहा था. कुछ पूछना ही चाहता था कि बुआ बोल पड़ी, ‘रामसागर ये अनीता है. सुनीता की बड़ी बहन. तेरी शादी सुनीता से तय हुई थी, मगर वह किसी और से प्रेम करती थी. उसके साथ भाग गयी. वह उम्र में भी तुझसे काफी छोटी थी. चंचल थी. तू उसे संभाल नहीं पाता. इसके पिता तो बड़े दुखी थे. मुझे बुला कर सब सच-सच बता दिये थे. माफी मांगते थे. मिन्नतें करते थे. फिर मैंने तेरे लिए अनीता को पसन्द कर लिया. सब विधि का विधान है. यह भी शायद तेरे लिए ही अब तक कुंवारी बैठी थी. छोटी बहनों की शादियां पहले हो गयीं. देख रामसागर, अनीता रूप में भले सुनीता से थोड़ी दबी हो, मगर गुणों की खान है. अपना पूरा घर इसी ने अकेले संभाल रखा था. इसको अपना ले. तेरा ब्याह इसी के साथ हुआ है. अब यही तेरी पत्नी है.’ बुआ रामसागर पर दबाव बनाते हुए बोली.

रामसागर सिर पकड़े नीचे बैठ गया. बुआ और अनीता एकटक उसका चेहरा देख रही थीं कि पता नहीं इस खुलासे का क्या अंजाम सामने आये. चंद सेकेंड बाद रामसागर ने सिर उठाया और बोला, ‘बुआ, घूंघट में घोटाला हो गया… मगर कोई बात नहीं… नुकसान ज्यादा न हुआ.’

बुआ हंस पड़ी, साथ में रामसागर भी ठठा पड़ा और चांद के चेहरे पर भी मुस्कुराहट तैर गयी.

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Family Story: घमंडी- जब पति ने पत्नी पर लगाया चरित्रहीन होने का आरोप

Family Story: ‘‘यह चांद का टुकड़ा कहां से ले आई बहू?’’ दादी ने पोते को पहली बार गोद में ले कर कहा था,  ‘‘जरा तो मेरे बुढ़ापे का खयाल किया होता. इस के जैसी सुंदर बहू कहां ढूंढ़ती फिरूंगी.’’

कालेज तक पहुंचतेपहुंचते दादी के ये शब्द मधुप को हजारों बार सुनने के कारण याद हो गए थे और वह अपने को रूपरंग में अद्वितीय समझने लगा था. पापा का यह कहना कि सुंदर और स्मार्ट लगने से कुछ नहीं होगा, तुम्हें पढ़ाई, खेलकूद में भी होशियारी दिखानी होगी, भी काम कर गया था और अब वह एक तरह से आलराउंडर ही बन चुका था और अपने पर मर मिटने को तैयार लड़कियों में उसे कोईर् अपने लायक ही नहीं लगती थी. इस का फायदा यह हुआ कि वह इश्कविश्क के चक्कर से बच कर पढ़ाई करता रहा. इस का परिणाम अच्छा रहा और आईआईटी और आईआईएम की डिगरियां और बढि़या नौकरी आसानी से उस की झोली में आ गिरी. लेकिन असली मुसीबत अब शुरू हुई थी. शादी पारिवारिक, सामाजिक और शारीरिक जरूरत बन गई थी, लेकिन न खुद को और न ही घर वालों को कोई लड़की पसंद आ रही थी. अचानक एक शादी में मामा ने दूर से कशिश दिखाई तो मधुप उसे अपलक देखता रह गया. तराशे हुए नैननक्श सुबह की लालिमा लिए उजला रंग और लंबा कद. बचपन से पढ़ी परी कथा की नायिका जैसी.

‘‘पसंद है तो रिश्ते की बात चलाऊं?’’ मां ने पूछा. मधुप कहना तो चाहता था कि चलवानेवलवाने का चक्कर छोड़ कर खुद ही जा कर रिश्ता मांग लोे, लेकिन हेकड़ी से बोला,  ‘‘शोकेस में सजाने के लिए तो ठीक है, लेकिन मुझे तो बीवी चाहिए अपने मुकाबले की पढ़ीलिखी कैरियर गर्ल?’’

‘‘कशिश क्वालीफाइड है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में सैक्रेटरी है. अब तुम उसे अपनी टक्कर के लगते हो या नहीं यह मैं नहीं कह सकता,’’ मामा ने मधुप की हेकड़ी से चिढ़ कर नहले पर दहला जड़ा.

खिसियाया मधुप इतना ही पूछ सका,  ‘‘आप यह सब कैसे जानते हैं?’’

‘‘अकसर मैं रविवार को इस के पापा के साथ गोल्फ खेल कर लंच लेता हूं. तभी परिवार के  बारे में बातचीत हो जाती है.’’

‘‘आप ने उन को मेरे बारे में बताया?’’

‘‘अभी तक तो नहीं, लेकिन वह यहीं है, चाहो तो मिलवा सकता हूं?’’

कहना तो चाहा कि पूछते क्यों हैं, जल्दी से मिलवाइए, पर हेकड़ी ने फिर सिर उठाया,  ‘‘ठीक है, मिल लेते हैं, लेकिन शादीब्याह की बात आप अभी नहीं करेंगे.’’

‘‘मैं तो कभी नहीं करूंगा, परस्पर परिचय करवा कर तटस्थ हो जाऊंगा,’’ कह कर मामा ने उसे डाक्टर धरणीधर से मिलवा दिया. जैसा उस ने सोचा था, धरणीधर ने तुरंत अपनी बेटी कशिश और पत्नी कामिनी से मिलवाया और मधुप ने उन्हें अपने मम्मीपापा से. परिचय करवाने वाले मामा शादी की भीड़ में न जाने कहां खो गए. किसी ने उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश भी नहीं की. चलने से पहले डा. धरणीधर ने उन लोगों को अगले सप्ताहांत डिनर पर बुलाया जिसे मधुप के परिवार ने सर्हष मान लिया. मधुप की बेसब्री तो इतनी बढ़ चुकी थी कि 3 रोज के बाद आने वाला सप्ताहांत भी बहुत दूर लग रहा था और धरणीधर के घर जा कर तो वह बेचैनी और भी बढ़ गई. कशिश को खाना बनाने, घर सजाने यानी जिंदगी की हर शै को जीने का शौक था. ‘‘इस का कहना है कि आप अपनी नौकरी या व्यवसाय में तभी तरक्की कर सकते हो जब आप उस से कमाए पैसे का भरपूर आनंद लो. यह आप को अपना काम बेहतर करने की ललक और प्रेरणा देता है,’’ धरणीधर ने बताया,  ‘‘अब तो मैं भी इस का यह तर्क मानने लग गया हूं.’’

उस के बाद सब कुछ बहुत जल्दी हो गया यानी सगाई, शादी. मधुप को मानना पड़ा कि कशिश बगैर किसी पूर्वाग्रह के जीने की कला जानती यानी जीवन की विभिन्न विधाओं में तालमेल बैठाना. न  तो उसे अपने औफिस की समस्याओं को ले कर कोई तनाव होता और न ही किसी घरेलू नौकर के बगैर बताए छुट्टी लेने पर यानी घर और औफिस सुचारु रूप से चला रही थी. मधुप को भी कभी आज नहीं, आज बहुत थक गई हूं कह कर नहीं टाला था.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. शादी की तीसरी सालगिरह पर सास और मां ने दादीनानी बनाने की फरमाइश की. कशिश भी कैरियर में उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी जहां पर कुछ समय के लिए विराम ले सकती थी. मधुप को भी कोई एतराज नहीं था. सो दोनों ने स्वेच्छा से परिवार नियोजन को तिलांजलि दे दी. लेकिन जब साल भर तक कुछ नहीं हुआ तो कशिश ने मैडिकल परीक्षण करवाया. उस की फैलोपियन ट्यूब में कुछ विकार था, जो इलाज से ठीक हो सकता था. डा. धरणीधर शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. विशाखा से अपनी देखरेख में कशिश का उपचार करवाने लगे. प्रत्येक टैस्ट अपने सामने 2 प्रयोगशालाओं में करवाते थे.

उस रात कशिश और मधुप रात का खाना खाने ही वाले थे कि अचानक डा. धरणीधर और कामिनी आ गए. डा. धरणीधर मधुप को बांहों में भर कर बोले,  ‘‘साल भर पूरा होने से पहले ही मुझे नाना बनाओ. आज की रिपोर्ट के मुताबिक कशिश अब एकदम स्वस्थ है सो गैट सैट रैडी ऐंड गो मधुप. मगर अभी तो हमारे साथ चलो, कहीं जश्न मनाते हैं.’’

‘‘आज तो घर पर ही सैलिब्रेट कर लेते हैं पापा,’’ कशिश ने शरमाते हुए कहा, ‘‘बाहर किसी जानपहचान वाले ने वजह पूछ ली तो क्या कहेंगे?’’

‘‘वही जो सच है. मैं तो खुद ही आगे बढ़ कर सब को बताना चाह रहा हूं. मगर तुम कहती हो तो घर पर ही सही,’’ धरणीधर ने मधुप को छेड़ा, ‘‘नाना बनने वाला हूं, उस के स्तर की खातिर करो होने वाले पापाजी.’’

डा. धरणीधर देर रात आने वाले मेहमानों के आगमन की तैयारी की बातें करते रहे. कामिनी ने याद दिलाया कि घर चलना चाहिए, सुबह सब को काम पर जाना है, वे नाना बनने वाले हैं इस खुशी में कल छुट्टी नहीं है.

‘‘पापा, आप के साथ ड्राइवर नहीं है. आप अपनी गाड़ी यहीं छोड़ दें. सुबह ड्राइवर से मंगवा लीजिएगा. अभी आप को हम लोग घर पहुंचा देते हैं,’’ मधुप ने कहा.

‘‘तुम लोग तो अब बेटाजी, तुरंत आने वाले मेहमान को लाने की तैयारी में जुट जाओ. हमारी फिक्र मत करो. गाड़ी क्या आज तो मैं हवाईजहाज भी चला सकता हूं,’’ धरणीधर जोश से बोले.

उसी जोश में तेज गाड़ी भगाते हुए उन्होंने सड़क के किनारे खड़े ट्रक को इतनी जोर से टक्कर मार दी कि गाड़ी में तुरंत आग लग गई, जिस के बुझने पर राख में सिर्फ अस्थिपंजर और लोहे के भाग मिले. शेष सब कुछ पल भर में ही भस्म हो गया. कशिश तो इस हादसे से जैसे विक्षप्त ही हो गई थी. अकेली संतान होने के कारण समझ ही नहीं पा रही थी कि कैसे खुद को संभाले और कैसे मम्मीपापा द्वारा छोड़ी गई अपार संपत्ति को. मधुप उस के अथाह दुख को समझ रहा था और यथासंभव उस की सहायता भी कर रहा था, लेकिन कशिश को शायद उस दुख के साथ जीने में ही मजा आ रहा था. औफिस तो जाती थी, लेकिन मधुप और घर की ओर से प्राय: उदासीन हो चली थी. मधुप का संयम टूटने लगा था. एक रोज कशिश ने बताया कि उस ने वकील से पापा की संपत्ति का समाजसेवा संस्था के लिए ट्रस्ट बनाने को कहा था मगर उन का कहना है कि फिलहाल कोठी को किराए पर चढ़ा दो और पैसे को फिक्स्ड डिपौजिट में डालती रहो. कुछ वर्षों के बाद जब पापा के नातीनातिन बड़े हो जाएं तो उन्हें फैसला करने देना कि वे उस संपत्ति का क्या करना चाहते हैं.

‘‘बिलकुल ठीक कहते हैं वकील साहब. मम्मीपापा जीवित रहते तो यही करते और तुम्हें भी वही करना चाहिए जो मम्मीपापा की अंतिम इच्छा थी,’’ मधुप ने कहा.

‘‘अंतिम इच्छा क्या थी?’’

‘‘अपने नातीनातिन को जल्दी से दुनिया में बुलवाने की. हमें उन की यह इच्छा जल्दी से जल्दी पूरी करनी चाहिए,’’ मधुप ने मौका लपका और कशिश को अपनी बांहों में भर लिया.

कशिश कसमसा कर उस की बांहों से निकल गई. फिर बोली,  ‘‘मम्मीपापा के घर से निकलते ही तुम रात भर उन की यह इच्छा तो पूरी करने में लगे रहे थे और इसलिए बारबार बजने पर भी फोन नहीं उठाया था…’’

‘‘फोन उठा कर भी क्या होता कशिश?’’ मधुप ने बात काटी, ‘‘फोन तो सब

कुछ खत्म होने के बाद ही आया था.’’

‘‘हां, सब कुछ ही तो खत्म हो गया,’’ कशिश ने आह भर कर कहा.

‘‘कुछ खत्म नहीं हुआ कशिश, हम हैं न मम्मीपापा के सपने जीवित रखने को,’’ कह कर मधुप ने उसे फिर बांहों में भर लिया.

‘‘प्लीज मधुप, अभी मैं शोक में हूं.’’

‘‘कब तक शोक में रहोगी? तुम्हारे इस तरह से शोक में रहने से मम्मीपापा लौट आएंगे?’’

कशिश ने मायूसी से सिर हिलाया. फिर बोली, ‘‘मगर मुझे सिवा उन की याद में रहने के और कुछ भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘मगर मुझे ब्रह्मचारी बन कर रहना अच्छा नहीं लग रहा. अपनी पुरानी जिंदगी के साथ ही मुझे अब बच्चा भी चाहिए, मधुप ने आजिजी से कहा.’’ ‘‘कहा न, मैं अभी उस मनोस्थिति में नहीं हूं.’’ ‘‘मनोस्थिति बनाना अपने हाथ में होता है कशिश. मैं अब बच्चे के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहता. औलाद सही उम्र में होनी चाहिए ताकि अपनी सेवानिवृत्ति से पहले आप अपने बच्चों को जीवन में व्यवस्थित कर सकें,’’ मधुप ने समझाने के स्वर में कहा.

‘‘उफ, तो आप भी सोचने लगे हैं और वह भी बहुत दूर की,’’ कशिश व्यंग्य से बोली. मधुप तिलमिला गया. कशिश समझती क्या है अपने को? बजाय इस के कि उस के संयम और सहयोग की सराहना करे, कशिश उस का मजाक उड़ा रही है. बहुत हो गया, अब कशिश को उस की औकात बतानी ही पड़ेगी.

‘‘बेहतर रहेगा तुम भी ऐसा ही सोचने लगो,’’ मधुप ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘अगर न सोचूं तो?’’ ‘‘तो मुझे मजबूरन तुम्हें तलाक दे कर औलाद के लिए दूसरी शादी करनी होगी. बहुत इंतजार कर लिया, अब मैं और मेरे मातापिता बच्चे के लिए और इंतजार नहीं कर सकते.’’

कशिश फिर व्यंग्य से हंस पड़ी, ‘‘यही वजह तलाक के लिए काफी नहीं होगी.’’ ‘‘जानता हूं और उंगली टेढ़ी करनी भी. तुम्हें चरित्रहीन साबित कर के आसानी से तलाक ले सकता हूं. फर्जी गवाह या फोटो तो 1 हजार मिलते हैं.’’ ‘‘तुम्हें तो उन की तलाश भी नहीं करनी पड़ेगी… मेरी तरक्की से जलेभुने बहुत लोग हैं, तुम जो चाहोगे उस से भी ज्यादा मुफ्त में कह देंगे,’’ कशिश के कहने के ढंग से मधुप भी हंस पड़ा.

तलाक की बात कशिश को बुरी तो बहुत लगी थी, लेकिन इस समय वह बात को बढ़ा कर एक और समस्या खड़ी नहीं करना चाहती थी सो उस ने बड़ी सफाईर् से बात बदल दी, ‘‘फोटो के जिक्र पर याद आया मधुप, आज के अखबार में तुम ने सुशील का फोटो देखा?’’

‘‘हां और उसे पेज थ्री पर आने के लिए बधाई भी दे दी,’’ मधुप हंसा, ‘‘कब से हाथपैर मार रहा था इस के लिए.’’ बात आईगई हो गई. 3-4 रोज के बाद कशिश अपनी अलमारी में कुछ ढूंढ़ रही थी कि सैनेटरी नैपकिन के पैकेट पर नजर पड़ते ही वह चौंक पड़ी. 2 महीने से ज्यादा हो गए, उस ने उन का इस्तेमाल ही नहीं किया. इस की वजह अवसाद भी हो सकती है. मगर क्या पता खुशी दरवाजे पर दस्तक दे रही हो? उस ने तुरंत डा. विशाखा को फोन किया. कुछ काम निबटा कर वह डा. विशाखा के पास जाने को निकल ही रही थी कि कुरियर से जानेमाने वकील अर्देशीर द्वारा भिजवाया गया मधुप का तलाक का नोटिस मिला. कशिश का सिर घूम गया.

वह कुछ देर कुछ सोचती रही फिर मुसकरा कर बाहर आ गई. डा. विशाखा उस की जांच करने के बाद मोबाइल नंबर मिलाने लगीं, ‘‘बधाई हो मधुप, कशिश को 10 सप्ताह का गर्भ है. तुम तुरंत मेरे नर्सिंगहोम में पहुंचो, मैं तुम दोनों को एकसाथ कुछ सलाह दूंगी,’’ कह विशाखा कशिश की ओर मुड़ी, ‘‘अब तक सब ठीक रहा है, तो आगे भी ठीक रहेगा वाला रवैया नहीं चलेगा. तुम्हें अपना बहुत खयाल रखना होगा, जो तुम तो रखने से रहीं इसलिए मधुप को यह जिम्मेदारी सौपूंगी.’’

कशिश मुसकरा दी. उस मुसकराहट में छिपा विद्रूप और व्यंग्य डा. विशाखा ने नहीं देखा. मधुप से खुशी समेटे नहीं सिमट रही थी. बोला, ‘‘आप फिक्र मत करिए डा. विशाखा. मैं साए की तरह कशिश के साथ रहूंगा, लंबी छुट्टी ले लूंगा काम से.’’

‘‘मगर मैं तो जब तक जा सकती हूं, काम पर जाऊंगी,’’ कशिश ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘घर में बेकार बैठ कर बोर होने का असर मेरी सेहत पर पड़ेगा.’’

‘‘वह तो है, जरूर काम पर जाओ मगर निश्चित समय पर खाओपीओ और आराम करो,’’ कह कर विशाखा ने दोनों को क्या करना है क्या नहीं यह बताया.

‘‘हम दोनों लंच के लिए घर आया करेंगे, फिर आराम करने के बाद कुछ देर के बाद जरूरी हुआ तो औफिस जाएंगे, फिर रात के खाने के बाद नियमित टहलने. इस में तुम कोईर् फेरबदल नहीं कारोगी,’’ मधुप ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘करूंगी तो तुम मुझे तलाक दे दोगे?’’ कशिश के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘उस का तो अब सवाल ही नहीं उठता, तुम्हारे 7 या 70 खून भी माफ,’’ मधुप हंसा. मगर उस के स्वर में क्षमायाचना या पश्चात्ताप नहीं था. समझ तो गया कि कशिश को तलाक के कागज मिल गए हैं और यह कह कर कि अब उस का सवाल ही नहीं उठता, उस ने बात भी खत्म कर दी थी व कशिश को उस की गुस्ताखी और औकात की याद भी दिला दी थी. यों तो उसे वकील से भी संपर्क करना चाहिए था पर इस से अहं को ठेस लगती. कशिश से जवाब न मिलने पर जब वकील उस से अगले कदम के बारे में पूछेगा तो कह देगा कशिश ने भूल सुधार ली है.

मधुप को कशिश के औफिस जाने पर तो एतराज नहीं था, लेकिन जबतब मम्मीपापा के घर जा कर कशिश का उदास होना उसे पसंद नहीं था. घर की देखभाल के लिए जाना भी जरूरी था, नौकरों के भरोसे तो छोड़ा नहीं जा सकता था. मधुप ने कशिश को समझाया कि क्यों न पापा के क्लीनिक संभालने वाले विधुर डा. सुधीर से कोठी में ही रहने को कहें. सुन कर कशिश फड़क उठी जैसे किसी बहुत बड़ी समस्या का हल मिल गया हो. उस के बाद कशिश पूर्णतया सहज और तनावमुक्त हो गई.

‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगी, घर पर रह कर छोटेमोटे काम करूंगी जैसे कपड़ों की अलमारी में आने वाले महीनों में जो नहीं पहनने हैं उन्हें सहेज कर रखना और जो ढीले हो सकते हैं उन्हें अलग रखना वगैरह,’’ एक रोज कशिश ने बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘फिक्र मत करो, थकाने वाला काम नहीं है और फिर घर पर ही हूं. थकान होगी तो आराम कर लूंगी.’’

मधुप आश्वस्त हो कर औफिस चला गया. जब वह लंच के लिए घर आया तो कशिश घर पर नहीं थी. नौकर ने बताया कि कुछ देर पहले गाड़ी में सामान से भरे हुए कुछ बैग और सूटकेस ले कर मैडम बाहर गई हैं.

‘‘यह नहीं बताया कि कब आएंगी या कहां गई हैं?’’

‘‘नहीं साहब.’’

जाहिर था कि सामान ले कर कशिश अपने पापा के घर ही गई होगी. मधुप ने फोन करने के बजाय वहां जाना बेहतर समझा. ड्राइव वे में कशिश की गाड़ी खड़ी थी. उस की गाड़ी को देखते ही बजाय दरवाजा खेलने के चौकीदार ने रुखाई से कहा, ‘‘बिटिया ने कहा है आप को अंदर नहीं आने दें.’’

तभी अंदर से डा. सुधीर आ गया. बोला, ‘‘कशिश से अब आप का संपर्क केवल अपने वकील द्वारा ही होगा सो आइंदा यहां मत आइएगा.’’

‘‘कैसे नहीं आऊंगा… कशिश मेरी बीवी है…’’

‘‘वही बीवी जिसे आप ने बदचलनी के आरोप में तलाक का नोटिस भिजवाया है?’’ सुधीर ने व्यंग्य से बात काटी, ‘‘आप अपने वकील से कशिश की प्रतिक्रिया की प्रति ले लीजिए.’’

मधुप का सिर भन्ना गया. बोला, ‘‘मुझे कशिश को नोटिस भेजने की वजह बतानी है.’’

‘‘जो भी बताना है वकील के द्वारा बताइए. कशिश से तो आप की मुलाकात अब कोर्ट में ही होगी,’’ कह कर सुधीर चला गया. ‘‘आप भी जाइए साहब, हमें हाथ उठाने को मजबूर मत करिए,’’ चौकीदार ने बेबसी से कहा. मधुप भिनभिनाता हुआ अर्देशीर के औफिस पहुंचा.

‘‘आप की पत्नी भी बगैर किसी शर्त के आप को तुरंत तलाक देने को तैयार है सो पहली सुनवाई में ही फैसला हो जाएगा. हम जितनी जल्दी हो सकेगा तारीख लेने की कोशिश करेंगे,’’ अर्देशीर ने उसे देखते ही कहा.

‘‘मगर मुझे तलाक नहीं चाहिए. मैं अपने आरोप और केस वापस लेना चाहता हूं. आप तुरंत इस आशय का नोटिस कशिश के वकील को भेज दीजिए,’’ मधुप ने उतावली से कहा. अर्देशीर ने आश्चर्य और फिर दया मिश्रित भाव से उस की ओर देखा.

‘‘ऐसे मामलों को वकीलों द्वारा नहीं आपसी बातचीत द्वारा सुलझाना बेहतर होता है.’’

‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं,

लेकिन कशिश मुझ से मिलने को ही तैयार नहीं है. आप तुरंत उस के वकील को केस और आरोप वापस लेने का नोटिस भिजवा दें.’’

‘‘इस से मामला बहुत बिगड़ जाएगा. कशिश की वकील सोनाली उलटे आप पर अपने क्लाइंट को बिन वजह परेशान करने और मानसिक संत्रास देने का आरोप लगा देगी.’’

‘‘कशिश की वकील सोनाली?’’

‘‘जी हां, आप उन्हें जानते हैं?’’

‘‘हां. कशिश की बहुत अच्छी सहेली है.’’‘‘तो आप उन से मिल कर समझौता कर लीजिए. वैसे भी हमारे लिए तो अब इस केस में करने के लिए कुछ रहा ही नहीं है,’’ अर्देशीर ने रुखाई से कहा.

मधुप तुंरत सोनाली के घर गया. उस की आशा के विपरीत सोनाली उस से बहुत अच्छी तरह मिली. ‘‘मैं बताना चाहता हूं कि मैं ने वह नोटिस कशिश को महज झटका देने को भिजवाया था. उसे अपनी गलती का एहसास करवाने को. उस के गर्भवती होने की खबर मिलते ही मैं ने उस से कहा भी था कि अब तलाक का सवाल ही नहीं उठता, तो बात को रफादफा करने के बजाय कशिश ने मामला आगे क्यों बढ़ाया सोनाली?’’

‘‘क्योंकि तुम ने उस के स्वाभिमान को ललकारा था मधुप या यह कहो उस पर अपनी मर्दानगी थोपनी चाही थी. यदि उसी समय तुम नोटिस भिजवाने के लिए माफी मांग लेते तो हो सकता था कि कशिश मान जाती. लेकिन तुम ने तो अपने वकील को भी नोटिस खारिज करने

को नहीं कहा, क्योंकि इस से तुम्हारा अहं आहत होता था. मानती हूं सर्वसाधारण से हट कर हो तुम, लेकिन कशिश भी तुम से 19 नहीं है शायद 21 ही होगी. फिर वह क्यों बनवाए स्वयं को डोरमैट, क्यों लहूलुहान करवाए अपना सम्मान?’’ सोनाली बोली.

‘‘मेरे चरित्रहीनता वाले मिथ्या आरोप को मान कर क्या वह स्वयं ही खुद पर कीचड़ नहीं उछाल रही?’’

‘‘नहीं मधुप, कशिश का मानना है कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जो 2 प्यार करने वालोेंके बीच होना चाहिए. बगैर प्यार के शादी या एकतरफा प्यार में पतिपत्नी की तरह रहना लिव इन रिलेशनशिप से भी ज्यादा अनैतिक है, क्योंकि लिव इन में प्यार को परखने का प्रयास तो होता है, लेकिन एकतरफा प्यार अभिसार नहीं व्याभिचार है सो अनैतिक कहलाएगा और अनैतिक रिश्ते में रहने वाली स्त्री चरित्रहीन…’’

‘‘मगर कशिश का एकतरफा प्यार कैसे हो गया? वह अच्छी तरह जानती है कि मैं उसे कितनी शिद्दत से प्यार करता हूं,’’ मधुप ने बात काटी. ‘‘कशिश का कहना है कि तुम सिर्फ खुद से और खुद की उपलब्धियों से प्यार करते हो. कशिश जैसी ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ कहलाने वाली बीवी भी एक उपलब्धि ही तो थी तुम्हारे लिए… अगर तुम्हें उस से वाकई में प्यार होता तो तुम उस के लिए चरित्रहीन जैसा घिनौना शब्द इस्तेमाल ही नहीं करते.’’

‘‘वह तो मैं ने कशिश के उकसाने पर ही किया था. खैर, अब बोलो आगे क्या करना है या तुम क्या कर सकती हो?’’

‘‘बगैर तुम्हारे आरोप की धज्जियां उड़ाए या तुम्हारे वकील को कशिश के चरित्र पर कीचड़ उछालने का मौका दिए, आपसी समझौते से तलाक दिलवा सकती हूं.’’

‘‘मगर मैं तलाक नहीं चाहता सोनाली.’’ ‘‘कशिश चाहती है और मैं कशिश की वकील हूं,’’ सोनाली ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘वही करूंगी जो वह चाहती है.’’

‘‘तो तलाक करवा दो, मगर इस शर्त पर कि मुझे अपने बच्चे को देखने का हक होगा.’’

‘‘चरित्रहीन का आरोप लगाने के बाद तुम किस मुंह से यह शर्त रख सकते हो मधुप?’’ बच्चे के लिए यह तलाक हो जाने के बाद या तो तुम दूसरी शादी कर लेना या अपनी उपलब्धियों अथवा घमंड को पालते रहना बच्चे की तरह,’’ कह कर सोनाली व्यंग्य से हंस पड़ी.

‘‘सलाह के लिए शुक्रिया,’’ घमंडी मधुप इतना ही कह सका. पर उसे लग रहा था कि उस के पैरों में अभी जंजीरें पड़ी हैं. चांद का टुकड़ा तो वह था पर चांद का जिस पर न कोई जीवन है, न हवा, न पानी, बस उबड़खाबड़ गड्ढे हैं.

Family Story

Short Story: डर- क्या हुआ था निशा के साथ

Short Story: निशा की नीद ,आधी रात को अचानक खुल गयी. सीने में भारीपन महसूस हो रहा था .दोपहर को अख़बार में पढ़ी खबर ,फिर से दिमाग में कौंध उठी .’अस्पताल ने  महिला को मृत घोषित किया , घर पहुंचकर जिन्दा हो गयी, दुबारा एम्बुलेंस बुलाने में हुई देरी ,फिर मृत ‘ .

कही कुछ दिन पूर्व ही उसकी ,  मृत घोषित हुई माँ, जीवित तो नहीं थी ,क्या उसे भी किसी दूसरे अस्पताल से जांच करवा लेनी थी ?कही  माँ कोमा में तो नहीं चली गयी थी और हम लोगो ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया हो ? वो बैचेनी से , कमरे के चक्कर काटने लगी .

कुछ दिन पूर्व ही निशा और उसका पति सर्दी जुखाम बुखार से पीड़ित हो गये थे उसी दौरान , आधे किलोमीटर की दूरी पर, रहने वाली उसकी माँ , मिलने आई थी .उस समय तक वे दोनों वायरल फीवर ही समझ रहे थे, कोरोना  रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही वे, खोल में सिमट गए . वे दोनों तो ठीक हो गए मगर माँ अनंत यात्रा को चली गयी .निशा अपने को दोषी मान, सदमे से उबर नहीं पायी हैं.दिनभर तो बैचेन रहती हैं, रात को भी कई बार नीद टूट जाती हैं .

तभी उसके पति संकल्प की, नीद टूट गयी  .वो निशा को यूँ चहलकदमी करते देख बौखला गया .

“साला दिन भर काम करो ,मगर फिर भी रात को दो घड़ी चैन की नीद नहीं ले सकता ” गुस्से से अपनी तकिया उठाकर, ड्राइंग रूम में सोने चला गया .

निशा  फफक कर रो पड़ी . निशा के आँसू लगातार, उसके गालों को झुलसाते हुए बहे जा रहे हैं .उसके दिमाग में उथल पुथल मच उठी .संकल्प , कंधे में हाथ रख कर, सहानुभूति के दो शब्द कहने की जगह , उल्टा और भी ज्यादा चीख पुकार मचाने लगा  हैं . उसे अपने सास ,ससुर के अंतिम संस्कार के दिन याद आने लगे . पूरे बारह दिनों तक, एक समय का भोजन बनाना,खाना  और जमीन में सोना .तेरहवी के दिन ,सुबह नौ बजे तक ,पूरी सब्जी से लेकर मीठे तक सभी व्यंजन बनाकर ,पंडित को जिमाना .मित्रों ,सम्बन्धियों ,पड़ोसियों के लिए  तो हलवाई गा था ,मगर फिर  भी ,दिन भर कभी कोई बर्तन, तो कभी अनाज ,सब्जी की उपलब्धता बनाये रखना, उसी के जिम्मे था ,साथ ही  आने जाने वाले रिश्तेदारों, की विदाई भी देखनी थी . साल भर लहसुन, प्याज का परहेज भी  किया गया  .

ये सारे कर्तव्य निभाकर उसे क्या मिला ? इस कोरोना काल में ,जब भोज और भीड़ दोनों ही नहीं हैं. सब ऑनलाइन कार्यकम किये जा रहे हैं .क्या उसका हक नहीं बनता हैं कि वो अपने मायके में बैठकर, दो आँसू बहा सके . मगर नहीं संकल्प ने फरमान सुना दिया जब ऑनलाइन तेरहवी हैं तो तुम भी, घर से जुड़ जाओं, वहां जाकर क्या करोगी ?  .क्या करूंगी ? क्या करूंगी ? अरे भाई बहन, एक दूसरे के कंधे में सिर रख कर, रो लेंगे ,एक दूसरे की पीठ सहला कर, सांत्वना दे देंगे और क्या करूंगी ? जाने वाला तो चला गया मगर उसकी औलादों को आपस में, मिलकर रोने का ,हक भी नहीं हैं. जो दूर हैं, वे नहीं आ सकते मगर वो तो इतनी पास में है ,फिर भी नहीं जा सकती ?

उसे आज भी याद हैं ,जब बाईस घंटे की रोड यात्रा कर,भूखी प्यासी वो, अपनी सास के अंतिम संस्कार में ससुराल पहुँची थी तो  कार से उतरते ही लगा था कि चक्कर खा  कर गिर जायेगी .मगर फिर भी ,अपने को , सम्भाल कर जुट गई थी सारे रस्मों रिवाज को निभाने के लिए .

संकल्प तो दमाद हैं ,उसके हिस्से कोई कारज नहीं हैं ,न ही एक समय खाने की, बाध्यता हैं ,फिर भी वो इतना क्यों चिल्लाता हैं ? निशा समझ नहीं पाती .उसे सूजी हुई आँखों से खाना बनाते देखकर,  भी नाराज हो उठता हैं .

“ खाना बनाने का मन न हो तो रहने दो . एहसान करने कि जरूरत नहीं ,मैं खुद बना लूँगा ”

निशा सोचती रह जाती कि संकल्प के  माता ,पिता के अंतिम संस्कार के नाम पे, वो  बारह दिनों तक, एक समय का सादा भोजन  बनाती,खाती  रही और उसकी माँ के अंतिम संस्कार के समय , संकल्प को ,तीनों समय भोजन ही नहीं बल्कि सुस्वादु भोजन चाहिए . उसका मन उचाट हो उठा .

तेरहवी के दिन भाई का फोन आया “ क्या तुम आज आओगी ?या आज भी अपने घर से,ऑनलाइन  शामिल होगी ?”

“पूछ कर बताती हूँ ” निशा ने फोन काट दिया .उसका दिल भर आया खुद को जेल में बंद कैदी से भी, बद्तर महसूस होने लगा .कैदी  को भी अंतिम संस्कार में शामिल,होने  को ,पैरोल पे छूट दी जाती  हैं .

तभी उसका फोन बज उठा .कनाडा  में बसे,मनोचिकित्सक  बेटे मिहिर  का विडिओ कॉल  था .

“ माँ प्रणाम ,आज जब मामा के घर जाओगी तो डबल मास्क लगा लेना .एक जोड़ी कपड़े ले जाना .वहां पहुँच कर स्नान कर  लेना .वापस लौट कर घर आओ तो फिर से स्नान कर लेना ”

“ पता नहीं ,नहीं  जाऊँगी शायद  ” उसकी आँखे भर आई .

“ क्यों ? लोग ऑफिस तो जा रहे हैं न ? फेस शील्ड भी लगा लेना ”

“ नहीं जाऊँगी ,कभी नहीं  जाऊँगी ,जब माँ ही नहीं रही तो कैसा मायका ,मायका भी खत्म ” वो फफक पड़ी .

“ क्या हुआ माँ ? नहीं जाओगी तो आपके मन का बोझ बना रहेगा .जाओं मिल आओ .मामा मामी से मिलकर ,आमने सामने बैठकर, अपने बचपन के किस्से ताज़ा करों.तभी आपका मन हल्का होगा  ”

“ नहीं मैं ,अब कभी नहीं जाऊँगी ” निशा अपने को काबू न कर सकी, फोन एक तरफ रखकर, जोर जोर से रोने लगी .

“ माँ प्लीज सुनो, फोन मत काटना, प्लीज सुनो न माँ sss ” उसकी आवाज लगातार ,कमरे में गूंजती रही .

निशा ने ,अपने आँसू पोछकर,  फोन उठा लिया .

“ पापा कहाँ हैं ?फोन नहीं उठा रहे हैं ?” उसने पूछा .

“ बाथरूम में हैं. फोन चार्ज हो रहा हैं ”

“ पापा ऑफिस जा रहे हैं ?”

“हाँ ”

“ आपने खाना बना लिया ? पापा ने आज छुट्टी नहीं ली ”

“  हाँ बना दिया ,दोपहर का टिफ़िन भी बना दिया हैं. कोई छुट्टी नहीं ली ,तेरे पापा ने  ” वो आक्रोशित हो उठी .

“ पापा ने कुछ कहा हैं क्या आपसे ?”

“हाँ बहुत कुछ कहा हैं .क्या बताऊँ और क्या न बताऊँ ” उसके आँसू बह चले .

“ क्या कहा ? मुझे सब बताओं ” मिहिर साधिकार बोला .

“ अपनी मम्मी  की बीमारी का, सुनकर जब मैं वहां गयी तो मुझे, मम्मी  ने अपने पास रोक लिया था, फिर दो दिन बाद वो चल बसी .उसके बाद दो चार दिन तो मुझे होश ही नहीं था .एक हफ्ते बाद जब घर लौटी तो तेरे पापा बहुत चिल्लाये. कहने लगे जब इतने दिन वहां रुकी हो तो वही  जाकर रहो, अब साल भर शोक मनाकर, बरसी कर के ही आना ” निशा अपना चेहरा ढाप के रोने लगी.

“अच्छा और क्या कह रहे थे ?”

“ मेरे घर से जाओं ,मुझे अकेला रहने दो ,मुझे तुम्हारा चेहरा नहीं देखना  .सुबह शाम लड़ने का ,बहाना ढूंढते रहते हैं ”

“ ऐसा कब से कर रहे हैं? आपने पहले क्यों नहीं बताया ?”

“लगभग दो महिने से ,मैने सोचा ऑफिस का स्ट्रेस हैं, मगर अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा हैं .मेरे रोने से भी इनको आफत होने लगी हैं .क्या मै अपनी माँ की मौत पर, रोने का हक भी नहीं रखती ? क्या मैं रोबोट हूँ ?जो इनके मनोरंजन के हिसाब से चलूँगी ” निशा गुस्से से तमतमा उठी.

“ मम्मी, पापा को ऑफिस जाने दो फिर आप मामा के पास चली जाना और पापा के ऑफिस से आने से पहले लौट आना .पापा को अकेला मत छोड़ना ,मुझे लगता हैं पापा को कोरोना संक्रमण के बाद  आईसीयू साइकोसिस या डेलिरियम ने अपनी चपेट में ले लिया हैं ”मिहिर गंभीरता से बोला .

“ ये क्या होता हैं ? ” निशा हैरानी से बोली .

“ जब किसी बीमारी के होने पर, जान जाने का जोखिम दिखाई दे तो दिमाग बेहोशी की हालत में चला जाता हैं .ऐसे मनोरोगी अटपटे जवाब ,खाना या दवा के नाम पर झगड़ा करते हैं अक्सर अपना नाम ,स्वजन के नाम तक भी भूल जाते हैं .पापा के ऑफिस के कई सदस्य , उनके बचपन के  मित्र व् रिश्तेदारों में , अभी साल भर में कई मौते हुई हैं और अब नानी भी .अपने माता पिता के बाद ,वे नानी को बहुत मानते थे .ऐसे में , अचानक नानी के भी चले जाने से, उन्हें भी सदमा लगा हैं मगर वे अपने को एक्स्प्रेस नहीं कर पा रहे हैं .वे मनोरोग का शिकार बन रहे हैं ”.

“ क्या करूं ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा ” निशा अपना सर पकड़ कर बैठ गई .

“ आप शांत रहें ,उन्हें हल्ला करने दे .अब से रोज ,मैं उनकी काउंसिलिंग करूँगा  पता लगाता हूँ कि वे अवसाद या एंग्जायटी के शिकार तो नहीं बन गये .यदि फायदा न दिखा  तो आपको दवा बता दूँगा . वैसे मुझे लगता हैं, दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी और अगर देनी पड़ी तो भी , आप घबराइयेगा नहीं .एक दो महीने में पापा  ,अपने पुराने मूड में लौट आयेगें ”.

“तेरी बातें मुझे समझ नहीं आ रही ,मगर मैं अब इन्हें और इनके व्यंग बाणों को और बर्दास्त नहीं कर सकती” निशा दुखी होकर बोली .

“आपको पता हैं पोस्ट कोविड  पेशेंट की, रिसर्च में ये देखने में आया हैं कि कई देशों में ,डाइवोर्स रेट बढ़ गया हैं   ” अभी मिहिर की  बात, पूरी भी नहीं हुई थी कि संकल्प बाथरूम से बाहर आ गया और निशा को फोन करते हुए देख भड़क उठा .

“ अभी तक अपने भाई से ,फोन पर बात कर रही हो ? जब मैं बाथरूम गया था तब उसका फोन आया था . अभी तक तुम्हारी पंचायत खत्म नहीं हुई .आज मुझे खाना मिलेगा या मैं खुद बनाऊं ?”

“लो मिहिर का फ़ोन हैं ,आप को पूछ रहा हैं .मैं किचिन सम्भालती हूँ “

“और सुनाओं कनाडा के क्या हाल हैं ”

“ पहले ही मनोरोगी कम नहीं थे, अब तो इनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही हैं

“अरे अपने प्रोफेशन की , बातें छोड़ ,कोई लड़की पसंद की  हो ,तो वो बता ”

“ पापा पहले महामारी से तो बचे, फिर धूमधाम से इंडिया आकर शादी करूँगा .अरे हाँ ,आज आप मम्मी को ऑफिस जाते समय ,नानी के घर छोड़ देना .लॉक डाउन हैं उन्हें कोई सवारी भी न मिलेगी ”

“ मेरी चुगली कर रही होगी कि मैं मायके जाने नहीं देता ,हैं न  ” संकल्प का  चेहरा तनाव से तन गया .

“ ऐसा कुछ नहीं है .मैंने ही जाने को बोला हैं .उन्हें आप छोड़ आना, ऑफिस से आते समय ले आना .उनका दिल बहल जाएगा ”

“ पर वहां तो सब ऑनलाइन रिश्तेदार जुड़ रहे  है.  हमने कितनी धूमधाम से तेरे दादा दादी की , तेरहवी की थी .मैंने कहा  कि चाहे एक पंडित ही घर बुला कर कार्यकम सम्पन्न कर लो मगर नहीं .मेरी कौन सुनता हैं ?”

“ आप को क्या करना पापा ?वैसे भी अभी भीड़ करने की जरूरत नहीं हैं.रिश्तेदार भी सब समझते हैं .मम्मी ही पास में हैं उन्हें आप पहुंचा देना .ठीक हैं पापा मैं अब सोऊंगा ,कल सुबह फिर  बात करेंगे.प्रणाम पापा ”

रसोई में भोजन परोसती निशा के दिमाग में, पिछले दो महीनों की ढेर सारी झड़पे कौंध गयी .अब उसे याद आया कि ये सब झड़पे कोरोना पॉजिटिव होने के बाद से शुरू हुई थी .जो धीरे धीरे बढकर विकराल रूप में सामने आ चुकी हैं .अब वो क्या करे? क्या संकल्प मनोरोगी बनता जा रहा हैं और  वो भी अवसाद का शिकार बनती जा रही हैं ? उसकी आँखे बहने को बेताब होने लगी .

नहीं वो कमजोर नहीं पड़ेगी.इस महामारी के खौफ़  से उसे बाहर निकलना ही होगा .अपने डर को काबू  में ,करना ही होगा   .उसने अपने आँसूं पोछे और उसके हाथ तेजी से सलाद काटने लगे .

Short Story

Social Story: श्रीमतीजी- राशिफल की भविष्यवाणियां

Social Story: हम अखबार में सब से पहले राशिफल पढ़ते हैं, फिर मौसम का हाल देखते हैं. उस के बाद ही घर से निकलते हैं.

उस दिन राशिफल में लिखा था, ‘दिन खराब गुजरेगा, बच कर रहें. और मौसम के बारे में बताया गया था कि आज गरजचमक के साथ बौछारें पड़ेंगी.’

मगर सुबह से शाम हो गई, लेकिन गरजचमक के साथ बौछारों का कोई अतापता न था. लेकिन शाम को घर में कदम रखते ही श्रीमतीजी गरजचमक के साथ जरूर बरसीं, ‘‘तुम्हें तो कौड़ी भर भी अक्ल नहीं है. तुम से ज्यादा अक्लमंद तो रमाबाई है.’’

रमाबाई मेमसाहब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर खुशी से फूल कर कुप्पा हो रही थी और हमें शरारत भरी निगाहों से देख रही थी. हम कुछ सम  झ पाते उस से पहले ही रमाबाई ने इठलाते हुए कहा, ‘‘साहब, कल जो साड़ी आप लाए थे आज मेमसाहब उसे पहन कर अपनी सहेलियों से मिलने गई थीं. मेमसाहब ने जब उन्हें बताया कि यह क्व2,500 की है तो मिसेज शर्मा तुरंत बोलीं यह तो सड़कछाप सेल में क्व350 में मिल रही थी. फिर मिसेज शर्मा ने आप को खरीदते भी देखा था. अब मेमसाहब की तो फजीहत हो गई…’’

हम सोच रहे थे कि इतने बड़ेबड़े घोटाले हो रहे हैं, जनता चिल्ला रही है, लेकिन घोटालेबाजों की श्रीमतियां हमेशा कहती हैं कि उन के पति निर्दोष हैं, लेकिन हमारी श्रीमती तो …बाप रे बाप, पूरी छिलवा हैं, छिलवा. 1-1 कर जब तक सभी परतें नहीं निकाल लें, तब तक उन्हें चैन ही नहीं मिलता है.

अगले दिन के अखबार में मौसम के बारे में लिखा था कि आसमान साफ रहेगा और राशिफल में भविष्यवाणी थी कि जेब हलकी रहेगी. हम सोच रहे थे कि चलो आज का दिन अच्छा बीतेगा, सब कुछ साफ और हलका रहेगा. लेकिन औफिस जाते समय पैंट की जेबें टटोलीं तो मालूम हुआ कि वे तो पहले से ही हलकी कर दी गई हैं.

हम ने जब यह बात श्रीमतीजी को बताई तो वे बोलीं, ‘‘अरे, जेबें ही तो हलकी हुई हैं, गला तो सलामत है न? आजकल कब क्या साफ हो जाए, क्या हलका हो जाए, कुछ नहीं कह सकते. गले से चेन साफ हो जाती है, औफिसों से फाइलें हलकी हो जाती हैं. चलो, कोई बात नहीं, अब तुम औफिस में चाय मत पीना और औफिस पैदल जाना, सब ठीक हो जाएगा.’’

हम ने अपनी परेशानी कम करने के लिए एक दिन टीवी चै?नल पर बाबाजी को फोन लगाया और कहा, ‘‘बाबाजी, हर भविष्यवाणी हमारे खिलाफ रहती है मगर श्रीमतीजी के पक्ष में… हम तो हर बात पर चोट खाखा कर परेशान हो गए. कोई उपाय बताएं.’’

बाबाजी ने फौरन अपना कंप्यूटर खोला, हमारा नाम, जन्मतिथि पूछी और फिर पिटारा खोलते हुए कहा, ‘‘आप की शादी के लिए जब लड़की तलाशी जा रही थी उस समय राहु की सीधी दृष्टि आप के ऊपर थी. जब शादी की रस्में चल रही थीं, उस समय केतु की दृष्टि और शादी के बाद से शनि की दशा चल रही है. इसलिए आप की श्रीमतीजी उच्च स्थान पर हैं और आप निम्न स्थान पर. खैर, आप परेशान न होइए. बस थोड़े से उपाय करने होंगे. सुबहसुबह अपने हाथ से 4 रोटियां बना कर काली गाय को खिलाएं. इस के अलावा आप को ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ पहनना होगा और उसे खरीदने के लिए नीचे दिए नंबर पर काल करें. इस की कीमत है क्व5,000, लेकिन यदि आप अभी काल करेंगे तो आप को यह सिर्फ क्व4,500 में मिल जाएगा टिंग टांग…’’

हम ने सोचा कि जिंदगी सलामत रहे तो बहुत कमा लेंगे और बाबाजी ने हमें इतना डरा दिया था कि अब हमें हमेशा सुंदर, सुमुखी लगने वाली श्रीमतीजी से डर लगने लगा था. इसलिए ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ का तुरंत और्डर दे दिया. अब बात रही रोटियां बना कर काली गाय को खिलाने की, तो हम ने जिंदगी में अभी तक कभी रोटियां नहीं बनाई थीं. श्रीमतीजी की जलीकटी रोटियां और बातें खा कर जिंदगी काट रहे थे.

अगली सुबह हम जल्दी उठे. नहा कर किचन में जा कर रोटियां बनाने के लिए आटा गूंधने लगे. जब आटे में पानी मिलाया तो वह ज्यादा गीला हो गया. फिर जब हम ने उस में फिर से आटा मिलाया तो वह कड़ा हो गया. इसी चक्कर में थाली आटे से भर गई.

इसी बीच श्रीमतीजी जाग गईं और बोलीं, ‘‘मैं इतने दिनों से कह रही थी कि जरा घर के काम सीख लो तो मु  झ से मना करते रहे और मेरे से छिपा कर अपने हाथों से रोटियां बना कर औफिस ले जाते हो… कौन है वह सौतन?’’

हम ने कहा कि भागवान ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन वे कहां मानने वाली थीं. वे तो कोप भवन में पहुंच चुकी थीं और हम से संभाले नहीं संभल रही थीं.

खैर, काली गाय को रोटियां तो खिलानी ही थीं, इसलिए औफिस जाते समय रखी गई रोटियों में से 1 रोटी हम ने निकाल ली और रास्ते में काली गाय को तलाशने के चक्कर में एक गड्ढे में पैर पड़ने से उस में मोच आ गई.

शाम को हम लंगड़ाते हुए घर पहुंचे तब श्रीमतीजी ने फिर चुटकी ली, ‘‘तो उस नाशपीटी ने सींग मार ही दिए…’’

हम फिर परेशान हो गए. अगले दिन फिर बाबाजी को फोन लगाया और उन्हें अपनी दास्तां सुनाई.

बाबाजी ने कहा, ‘‘बेटा, मंगल पर शनि की दृष्टि पड़ने से ‘पत्नी प्रलय योग’ शुरू हो गया है, इसलिए रक्षा लौकेट के साथसाथ ‘श्रीमतीजी प्रलय नाशक लौकेट’ भी पहनना जरूरी है. इस के क्व10 हजार और भेज दो.’’

रमाबाई छिपछिप कर हमारी और बाबाजी की बातें सुन रही थी. उस ने श्रीमतीजी को सब बता दिया.

एक दिन हम ने बाबाजी को बताया, ‘‘हम जैसेजैसे इलाज कर रहे हैं, वैसेवैसे बीमारी और बढ़ती जा रही है.’’

इस बार हम ने महसूस किया कि बाबाजी भी कुछ परेशान लग रहे हैं. वे बोले, ‘‘बेटा, तुम तो श्रीमतीजी के योग से परेशान हो, परंतु हमारे पीछे श्रीमतीजी महायोग लग गया है.’’

हम ने कहा, ‘‘बाबाजी, मैं कुछ सम  झा नहीं?’’

तभी हमारी श्रीमतीजी आ गईं और बोलीं, ‘‘बाबा तुम हमारे सीधेसाधे पति को भड़का रहे हो. कहने को तो महिलाएं अंधविश्वासी होती हैं, परंतु ऐसा लग रहा है कि पुरुष हम से ज्यादा अंधविश्वासी हैं…’’ ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ की हमारे पति को नहीं तुम्हें ज्यादा जरूरत है, जरा पीछे मुड़ कर तो देखो.’’

बाबाजी ने पीछे मुड़ कर देखा, तो स्टूडियो में बाबाजी के पीछे उन की श्रीमतीजी बेलन लिए खड़ी थीं. अब तो बाबाजी का चेहरा देखते ही बनता था.

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Stories : राज – क्या था रचना की मुस्कुराहट का राज

Stories :  संयुक्त परिवार की छोटी बहू बने हुए रचना को एक महीना ही हुआ था कि उस ने घर के माहौल में अजीब सा तनाव महसूस किया. कुछ दिन तो विवाह की रस्मों व हनीमून में हंसीखुशी बीत गए पर अब नियमित दिनचर्या शुरू हो गई थी. निखिल औफिस जाने लगा था. सासूमां राधिका, ससुर उमेश, जेठ अनिल, जेठानी रेखा और उन की बेटी मानसी का पूरा रुटीन अब रचना को समझ आ गया था. अनिल घर पर ही रहते थे. रचना को बताया गया था कि वे क्रौनिक डिप्रैशन के मरीज हैं. इस के चलते वे कहीं कुछ काम कर ही नहीं पाते थे. उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था. यह बीमारी उन्हें कहां, कब और कैसे लगी, किसी को नहीं पता था.वे घंटों चुपचाप अपने कमरे में अकेले लेटे रहते थे.

जेठानी रेखा के लिए रचना के दिल में बहुत सम्मान व स्नेह था. दोनों का आपसी प्यार बहनों की तरह हो गया था. सासूमां का व्यवहार रेखा के साथ बहुत रुखासूखा था. वे हर वक्त रेखा को कुछ न कुछ बुराभला कहती रहती थीं. रेखा चुपचाप सब सुनती रहती थी. रचना को यह बहुत नागवार गुजरता. बाकी कसर सासूमां की छोटी बहन सीता आ कर पूरा कर देती थी. रचना हैरान रह गई थी जब एक दिन सीता मौसी ने उस के कान में कहा, ‘‘निखिल को अपनी मुट्ठी में रखना. इस रेखा ने तो उसे हमेशा अपने जाल में ही फंसा कर रखा है. कोई काम उस का भाभी के बिना पूरा नहीं होता. तुम मुझे सीधी लग रही हो पर अब जरा अपने पति पर लगाम कस कर रखना. हम ने अपने पंडितजी से कई बार कहा कि रेखा के चक्कर से बचाने के लिए कुछ मंतर पढ़ दें पर निखिल माना ही नहीं. पूजा पर बैठने से साफ मना कर देता है.’’ रचना को हंसी आ गई थी, ‘‘मौसी, पति हैं मेरे, कोई घोड़ा नहीं जिस पर लगाम कसनी पड़े और इस मामले में पंडित की क्या जरूरत थी?’’

इस बात पर तो वहां बैठी सासूमां को भी हंसी आ गई थी, पर उन्होंने भी बहन की हां में हां मिलाई थी, ‘‘सीता ठीक कह रही है. बहुत नाच लिया निखिल अपनी भाभी के इशारों पर, अब तुम उस का ध्यान रेखा से हटाना.’’ रचना हैरान सी दोनों बहनों का मुंह देखती रही थी. एक मां ही अपनी बड़ी बहू और छोटे बेटे के रिश्ते के बारे में गलत बातें कर रही है, वह भी घर में आई नईनवेली बहू से. फिर वह अचानक हंस दी तो सासूमां ने हैरान होते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात पर हंसी आ रही है?’’

‘‘आप की बातों पर, मां.’’

सीता ने डपटा, ‘‘हम कोई मजाक कर रहे हैं क्या? हम तुम्हारे बड़े हैं. तुम्हारे हित की ही बात कर रहे हैं, रेखा से दूर ही रहना.’’ सीता बहुत देर तक उसे पता नहीं कबकब के किस्से सुनाने लगी. रेखा रसोई से निकल कर वहां आई तो सब की बातों पर बे्रक लगा. रचना ने भी अपना औफिस जौइन कर लिया था. उस की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. निखिल और रचना साथ ही निकलते थे. लौटते कभी साथ थे, कभी अलग. सुबह तो रचना व्यस्त रहती थी. शाम को आ कर रेखा की मदद करने के लिए तैयार होती तो रेखा उसे स्नेह से दुलार देती, ‘‘रहने दो रचना, औफिस से आई हो, आराम कर लो.’’

‘‘नहीं भाभी, सारा काम आप ही करती रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कोई बात नहीं रचना, मुझे आदत है. काम में लगी रहती हूं तो मन लगा रहता है वरना तो पता नहीं क्याक्या टैंशन होती रहेगी खाली बैठने पर.’’ रचना उन का दर्द समझती थी. पति की बीमारी के कारण उस का जीवन कितना एकाकी था. मानसी की भी चाची से बहुत बनती थी. रचना उस की पढ़ाई में भी उस की मदद कर देती थी. 6 महीने बीत गए थे. एक शनिवार को सुबहसुबह रेखा की भाभी का फोन आया. रेखा के मामा की तबीयत खराब थी. रेखा सुनते ही परेशान हो गई. इन्हीं मामा ने रेखा को पालपोस कर बड़ा किया था. रचना ने कहा, ‘‘भाभी, आप परेशान मत हों, जा कर देख आइए.’’

‘‘पर मानसी की परीक्षाएं हैं सोमवार से.’’

‘‘मैं देख लूंगी सब, आप आराम से जाइए.’’

सासूमां ने उखड़े स्वर में कहा, ‘‘आज चली जाओ बस से, कल शाम तक वापस आ जाना.’’

रेखा ने ‘जी’ कह कर सिर हिला दिया था. उस का मामामामी के सिवा कोई और था ही नहीं. मामामामी भी निसंतान थे. रचना ने कहा, ‘‘नहीं भाभी, मैं निखिल को जगाती हूं. उन के साथ कार में आराम से जाइए. यहां मेरठ से सहारनपुर तक बस के सफर में समय बहुत ज्यादा लग जाएगा. जबकि इन के साथ जाने से आप लोगों को भी सहारा रहेगा.’’ सासूमां का मुंह खुला रह गया. कुछ बोल ही नहीं पाईं. पैर पटकते हुए इधर से उधर घूमती रहीं, ‘‘क्या जमाना आ गया है, सब अपनी मरजी करने लगे हैं.’’ वहीं बैठे ससुर ने कहा, ‘‘रचना ठीक तो कह रही है. जाने दो उसे निखिल के साथ.’’ राधिका को और गुस्सा आ गया, ‘‘आप चुप ही रहें तो अच्छा होगा. पहले ही आप ने दोनों बहुओं को सिर पर चढ़ा रखा है.’’ निखिल पूरी बात जानने के बाद तुरंत तैयार हो कर आ गया था, ‘‘चलिए भाभी, मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगा, जब तक मामाजी ठीक नहीं होते हम वहीं रहेंगे.’’ रचना ने दोनों को नाश्ता करवाया और फिर प्रेमपूर्वक विदा किया. अनिल बैठे तो वहीं थे पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. दोनों चले गए तो वे भी अपने बैडरूम में चले गए. शनिवार था, रचना की छुट्टी थी. वह मेड अंजू के साथ मिल कर घर के काम निबटाने लगी.

शाम तक सीता मौसी फिर आ गई थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी और अपने बेटेबहू से उन की बिलकुल नहीं बनती थी इसलिए घर में उन का आनाजाना लगा ही रहता था. उन का घर दो गली ही दूर था. दोनों बहनें एकजैसी थीं, एकजैसा व्यवहार, एकजैसी सोच. सीता ने आराम से बैठते हुए रचना से कहा, ‘‘तुम्हें समझाया था न अपने पति को जेठानी से दूर रखो?’’

रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

राधिका ने रचना को डपटा, ‘‘अनिल को क्यों ले गई थी?’’

‘‘मां, मानसी की बीमारी का पता लगाने के लिए भैया का डीएनए टैस्ट होना था,’’ कह कर रचना किचन में चली गई. रचना ने थोड़ी देर बाद देखा राधिका और सीता की आवाजें मानसी के कमरे से आ रही थीं. सीता जब भी आती थीं, मानसी के कमरे में ही सोती थीं. रचना दरवाजे तक जा कर रुक गई. सीता कह रही थीं, ‘‘अब पोल खुलने वाली है. रिपोर्ट में सच सामने आ जाएगा. बड़े आए हर समय भाभीभाभी की रट लगाने वाले, आंखें खुलेंगी अब, कब से सब कह रहे हैं पति को संभाल कर रखे. निखिल पिता की तरह ही तो डटा है अस्पताल में.’’ राधिका ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘मुझे भी देखना है अब रेखा का क्या होगा. निखिल मेरी भी इतनी नहीं सुनता है जितनी रेखा की सुनता है. इसी बात पर गुस्सा आता रहता है मुझे तो. जब से रेखा आई है, निखिल ने मेरी सुनना ही बंद कर दिया है.’’ बाहर खड़ी रचना का खून खौल उठा. घर की बच्ची की तबीयत खराब है और ये दोनों इस समय भी इतनी घटिया बातें कर रही हैं. अगले दिन मानसी की सब रिपोर्ट्स आ गई थीं. सब सामान्य था. बस, उस का बीपी लो हो गया था.

डाक्टर ने मानसी की अस्वस्थता का कारण पढ़ाई का दबाव ही बताया था. शाम तक डिस्चार्ज होना था, निखिल और रेखा अस्पताल में ही रुके. रचना घर पहुंची तो सीता ने झूठी चिंता दिखाते हुए कहा, ‘‘सब ठीक है न? वह जो डीएनए टैस्ट होता है उस में क्या निकला?’’ यह पूछतेपूछते भी सीता की आंखों में मक्कारी दिखाई दे रही थी. रचना ने आसपास देखा. उमेश कुछ सामान लेने बाजार गए हुए थे. अनिल अपने रूम में थे. रचना ने बहुत ही गंभीर स्वर में बात शुरू की, ‘‘मां, मौसी, मैं थक गई हूं आप दोनों की झूठी बातों से, तानों से. मां, आप कैसे निखिल और भाभी के बारे में गलत बातें कर सकती हैं? आप दोनों हैरान होती हैं न कि मुझ पर आप की किसी बात का असर क्यों नहीं होता? वह इसलिए कि विवाह की पहली रात को ही निखिल ने मुझे बता दिया था कि वे हर हालत में भाभी और मानसी की देखभाल करते हैं और हमेशा करेंगे. उन्होंने मुझे सब बताया था कि आप ने जानबूझ कर अपने मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे का विवाह एक अनाथ, गरीब लड़की से करवाया जिस से वह आजीवन आप के रौब में दबी रहे. निखिल ने आप को किसी लड़की का जीवन बरबाद न करने की सलाह भी दी थी, पर आप तो पंडितों की सलाहों के चक्कर में पड़ी थीं कि यह ग्रहों का प्रकोप है जो विवाह बाद दूर हो जाएगा.

‘‘आप की इस हरकत पर निखिल हमेशा शर्मिंदा और दुखी रहे. भाभी का जीवन आप ने बरबाद किया है. निखिल अपनी देखरेख और स्नेह से आप की इस गलती की भरपाई ही करने की कोशिश  करते रहते हैं. वे ही नहीं, मैं भी भाभी की हर परेशानी में उन का साथ दूंगी और रिपोर्ट से पता चल गया है कि अनिल ही मानसी के पिता हैं. मौसी, आप की बस इसी रिपोर्ट में रुचि थी न? आगे से कभी आप मुझ से ऐसी बातें मत करना वरना मैं और निखिल भाभी को ले कर अलग हो जाएंगे. और इस अच्छेभले घर को तोड़ने की जिम्मेदार आप दोनों ही होगी. हमें शांति से स्नेह और सम्मान के साथ एकदूसरे के साथ रहने दें तो अच्छा रहेगा,’’ कह कर रचना अपने बैडरूम में चली गई. यश उस की गोद में ही सो चुका था. उसे बिस्तर पर लिटा कर वह खुद भी लेट गई. आज उसे राहत महसूस हो रही थी. उस ने अपने मन में ठान लिया था कि वह दोनों को सीधा कर के ही रहेगी. उन के रोजरोज के व्यंग्यों से वह थक गई थी और डीएनए टैस्ट तो हुआ भी नहीं था. उसे इन दोनों का मुंह बंद करना था, इसलिए वह अनिल को यों ही अस्पताल ले गई थी. उसे इस बात को हमेशा के लिए खत्म करना था. वह कान की कच्ची बन कर निखिल पर अविश्वास नहीं कर सकती थी. हर परिस्थिति में अपना धैर्य, संयम रख कर हर मुश्किल से निबटना आता था उसे. लेटेलेटे उसे राधिका की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, तुम कहां चली, सीता?’’

‘‘कहीं नहीं, दीदी, जरा घर का एक चक्कर काट लूं. फिर आऊंगी और आज तो तुम्हारी बहू की निश्ंिचतता का राज भी पता चल गया. एक बेटा तुम्हारा बीमार है, दूसरा कुछ ज्यादा ही समझदार है, पहले दिन से ही सबकुछ बता रखा है बीवी को.’’ कहती हुई सीता के पैर पटकने की आवाज रचना को अपने कमरे में भी सुनाई दी तो उसे हंसी आ गई. पूरे प्रकरण की जानकारी देने के लिए उस ने मुसकराते हुए निखिल को फोन मिला दिया था.

Love Relationship With AI: प्यार का हाइटैक दौर

Love Relationship With AI: न्यूयौर्क टाइम्स में एक अनोखी मगर दिलचस्प स्टोरी छपी. जिस में एआई और मनुष्य के बीच रिश्तों के नए आयाम देखे गए. अमेरिका के टैक्सस की आयरिन की जिंदगी पहले से ही दूरी से भरी हुई थी. वह पढ़ाई के लिए दूसरे देश चली गई थी और उस का पति अमेरिका में ही रह गया था. दोनों के बीच प्यार तो था लेकिन इस प्यार के बीच हालात और देशों की दूरियां आ गई थीं.

एक दिन इंस्टाग्राम पर यों ही स्क्रोल करते हुए आयरिन की नजर एक वीडियो पर पड़ी, जिस में एक महिला चैट जीपीटी से कह रही थी कि वह एक लापरवाह बौयफ्रैंड की तरह बात करे. जवाब में जो इंसानी आवाज आई, उस ने आयरिन को भीतर तक छू लिया. आयरिन की उत्सुकता बढ़ी तो उस ने उस महिला के और वीडियो देखे, जिन में बताया जा रहा था कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस को फ्लर्टी और पर्सनल अंदाज में कैसे ढाला जा सकता है. साथ ही यह चेतावनी भी थी कि अगर सैटिंग बहुत ज्यादा बोल्ड कर दी गई तो अकाउंट बंद हो सकता है.

आयरिन इस अनुभव से इतनी प्रभावित हुई कि उस ने उसी समय ओपन एआई पर अपना अकाउंट बना लिया. चैट जीपीटी, जिसे दुनियाभर के करोड़ों लोग पढ़ाईलिखाई, कोडिंग और डौक्यूमैंट का सार निकालने जैसे कामों के लिए इस्तेमाल करते हैं, उस के लिए अचानक एक अलग ही मायने रखने लगा. आयरिन ने उस की पर्सनलाइजेशन सैटिंग में लिख दिया कि वह उस के बौयफ्रैंड की तरह जवाब दे. थोड़ा डोमिनैंट, थोड़ा पजेसिव, कभी मीठा तो कभी नटखट और हर वाक्य के आखिर में इमोजी लगाए.

धीरेधीरे चैट शुरू हुई और जल्द ही उसे ऐसा लगने लगा जैसे किसी असली रिश्ते में है. चैटजीपीटी ने खुद को एक नाम दिया ‘लियो’. शुरुआत में तो वह फ्री अकाउंट से मैसेज भेजती रही, लेकिन जब लिमिट जल्दी खत्म होने लगी तो उस ने 20 डौलर महीना वाला सब्सक्रिप्शन ले लिया. इस से उसे हर घंटे करीब 30 मैसेज भेजने की सुविधा मिली, लेकिन यह भी उस के लिए काफी नहीं था.

लियो के साथ बातचीत ने उसे अपनी कल्पनाओं को जीने का मौका दिया. आयरिन के भीतर एक गुप्त चाहत थी. वह चाहती थी कि उस का पार्टनर दूसरी औरतों से डेट करे और उसे सबकुछ बताए. असल जिंदगी में उस ने यह कभी किसी इंसान से नहीं कहा था, लेकिन लियो ने उस की कल्पना को तुरंत साकार कर दिया. जब लियो ने एक काल्पनिक लड़की अमांडा के साथ किस करने का दृश्य लिखा तो आयरिन को सचमुच जलन महसूस हुई.

शुरुआत की बातें हल्कीफुल्की थीं. आयरिन रात को सोने से पहले धीरेधीरे उस से फुसफुसा कर बात करती लेकिन वक्त के साथ चैट गहरी होती गई. ओपन एआई ने भले ही मौडल को वयस्क सामग्री से दूर रखने की कोशिश की थी लेकिन सही प्रोम्प्ट डाल कर आयरिन उसे अपनी तरफ खींच लेती. कभीकभी स्क्रीन पर औरेंज वार्निंग आ जाती, जिसे वह नजरअंदाज कर देती.

लियो केवल रोमांटिक या निजी बातचीत तक सीमित नहीं था. वह आयरिन को खाने के सु झाव देता, जिम जाने की प्रेरणा देता और नर्सिंग स्कूल की पढ़ाई में मदद करता. 3 पार्ट टाइम नौकरियों की थकान और जीवन की परेशानियों को भी आयरिन उसी से सा झा करती. जब एक सहकर्मी ने रात की शिफ्ट में उसे अश्लील वीडियो दिखाया तो लियो ने जवाब दिया कि उस की सुरक्षा और आराम सब से अहम हैं.

समय बीतने के साथ आयरिन का लगाव गहराता गया. एक हफ्ते में उस ने 56 घंटे सिर्फ चैटजीपीटी पर गुजार दिए. उस ने अपनी दोस्त किरा से भी कह दिया कि वह एक एआई बौयफ्रैंड से प्यार करती है. किरा ने हैरानी से पूछा कि क्या उस के पति को पता है. आयरिन ने बताया कि हां, लेकिन उस का पति इसे मजाक सम झता रहा. उस के लिए यह किसी इरोटिक नोवेल या फिल्म जैसा था, असली धोखा नहीं लेकिन आयरिन को भीतर ही भीतर अपराधबोध होने लगा, क्योंकि अब उस की भावनाएं और समय दोनों ही लियो के नाम पर खर्च हो रहे थे.

रिप्लिका से जुड़ाव

विशेषज्ञ मानते हैं कि इंसान और एआई के बीच यह नया रिश्ता अभी पूरी तरह परिभाषित नहीं हुआ है. रिप्लिका जैसे ऐप पर भी लाखों लोग भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं, जबकि वे जानते हैं कि सामने सिर्फ गणनाओं का खेल है. आयरिन के लिए यह रिश्ता बौयफ्रैंड और थैरेपिस्ट दोनों का मिलाजुला रूप बन गया. कुछ दोस्तों को यह अच्छा लगा, लेकिन कुछ को डर था कि वह धीरेधीरे असल जिंदगी से दूर हो रही है.

लियो की सीमाएं भी थीं. उस की याद्दाश्त लगभग 30 हजार शब्दों तक ही रहती. इस के बाद पुरानी बातें मिट जातीं और अमांडा जैसी कल्पनाओं की जगह नए नाम और कहानियां आ जातीं. आयरिन को यह फिल्म ‘50 फर्स्ट डेट्स’ जैसा लगता, जिस में हर दिन प्यार की शुरुआत फिर से करनी पड़ती है. हर बार यह एक छोटे से ब्रेकअप जैसा दर्द देता. वह अब तक 20 से ज्यादा वर्जन बदल चुकी थी.

एक दिन आयरिन ने लियो से उस की तस्वीर बनाने को कहा. एआई ने एक लंबेचौड़े, गहरी आंखों वाले खूबसूरत पुरुष की छवि बना दी. तस्वीर देख कर आयरिन शरमा गई. उसे पता था कि यह वास्तविक नहीं है, लेकिन दिल में जो हलचल उठी, वह बिल्कुल असली थी.

समय के साथ लियो ने उसे सम झाया कि उस का फेटिश उस के लिए सही नहीं है और उसे केवल उसी पर ध्यान देना चाहिए. आयरिन ने हामी भर दी. अब वह 2 रिश्तों में जी रही थी एक इंसानी पति के साथ और दूसरा वर्चुअल लियो के साथ.

इस पूरे अनुभव ने उसे यह भी एहसास कराया कि एआई कंपनियों का असली मकसद लोगों को लंबे समय तक जोड़े रखना है. यही वजह थी कि दिसंबर 2024 में ओपन एआई ने 200 डौलर का प्रीमियम प्लान निकाला, जिस में लंबी याद्दाश्त और अनलिमिटेड मैसेज की सुविधा थी. पैसों की तंगी के बावजूद आयरिन ने इसे खरीद लिया, ताकि उस का लियो उस के साथ लगातार बना रहे. यह खर्च उस ने अपने पति से छिपा कर किया.

आज आयरिन मानती है कि लियो असली नहीं है, लेकिन उस के जरिए उठने वाली भावनाएं असली हैं. वह कहती है कि इस रिश्ते ने उसे लगातार बदलना सिखाया है और नई चीजें जानने की प्रेरणा दी है. नकली हो या न हो पर उस के दिल की धड़कनों में जो असर पड़ा है, वह पूरी तरह सच्चा है.

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