Reader’s Problem : मेरी सगाई हो चुकी है, पर ससुराल वाले दहेज की मांग कर रहे हैं…

Reader’s Problem :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

मैं एक लड़के से 5 वर्षों से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. बीच में हम दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया था. अब वह कहता है कि वह मुझे नहीं किसी और को चाहता है. मैं उसे भुला नहीं सकती. दिनरात रोती हूं. कभीकभी वह कहता है कि लौट आओ. मुझे उस के व्यवहार को ले कर बहुत गुस्सा आता है, यह सोच कर कि उस ने मेरा मजाक बना रखा है. क्या मैं उस पर भरोसा करूं या नहीं?

एकदूसरे को समझने के लिए 5 साल का समय बहुत होता है. यदि आप का प्रेमी आप से साफसाफ कह चुका है कि वह आप को नहीं किसी और लड़की को चाहता है तो आप को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए और उस से किनारा कर लेना चाहिए. अपने पहले प्यार को भुलाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है पर नामुमकिन नहीं. समय बीतने के साथ आप के दिलोदिमाग से उस की यादें मिट जाएंगी.

मैं 2 साल से एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हमेशा मेरी इच्छाओं का सम्मान करता है. ऐसा कोई काम नहीं करता जो मुझे नागवार गुजरता हो. मगर अब कुछ दिनों से वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है पर साथ ही यह भी कहता है कि यदि तुम्हारी मरजी हो तो. मैं ने उस से कहा कि ऐसा करने से यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा? इस पर उस का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा. कृपया राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?

दोस्ती में एकदूसरे की इच्छाओं को तवज्जो देना जरूरी होता है. तभी दोस्ती कायम रहती है. इस के अलावा आप का बौयफ्रैंड अभी आप का विश्वास जीतने के लिए भी ऐसा कर रहा है. जहां तक शारीरिक संबंधों को ले कर आप की आशंका है तो वह पूरी तरह सही है. यदि आप संबंध बनाती हैं तो गर्भ ठहर सकता है, इसलिए शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से हर हाल में बचना चाहिए.

मैं विवाहित युवक हूं. अपनी बीवी की एक असंगत समस्या से परेशान हूं. जब भी रात को हम सहवास करने के लिए बिस्तर पर जाते हैं, तो पत्नी पूछती है कि करोगे क्या? उठो करो. इस से मैं खीज जाता हूं कि न कोई फोरप्ले, न कोई उत्साह. कृपया बताएं कि क्या करूं कि बीवी अपना व्यवहार बदले और हम दोनों सहवास का पूरापूरा आनंद उठा सकें?

आप अपनी पत्नी को समझाएं कि सहवास अन्य दैनिक कार्यों से अलग क्रिया है. यह वह कार्य नहीं है जिसे झटपट निबटा लिया जाए. इस में तन के साथसाथ मन से भी सक्रिय होना होता है, इसलिए हड़बड़ी न मचाए. सहवास में प्रवृत्त होने से पहले स्पर्श, आलिंगन, चुंबन आदि रतिक्रीड़ाएं करनी चाहिए. इस से मजा दोगुना हो जाता है. यदि आप पत्नी को प्यार से समझाएंगे तो वह आप की बात पर जरूर गौर करेगी. उस के बाद सहवास दोनों के लिए रुचिकर हो जाएगा.

मैं विवाहित युवती हूं. मेरे पति के 2 युवतियों से संबंध हैं. मैं बहुत परेशान हूं और मुझे गृहशोभा से बहुत उम्मीद है. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से अपने पति को उन युवतियों के चंगुल से बचा सकूं?

लगता है, आप अपनी घरगृहस्थी में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो पति के प्रति लापरवाह होती गईं. घर में अपेक्षित प्यार और तवज्जो न मिलने के कारण ही आप के पति ने बाहर दूसरी महिलाओं से संबंध बना लिए. उन्हें वापस पाने के लिए आप को अब थोड़े धीरज से काम लेना होगा.

पति जब भी घर आएं उन के साथ बिलकुल सामान्य व्यवहार करें. उन्हें तानेउलाहने न दें वरना वे घर आने से भी कतराने लगेंगे, जो आप के हित में नहीं होगा. पति जितनी देर घर रहें उन्हें भरपूर प्यार दें. धीरेधीरे उन का बाहर से वैसे भी मोहभंग हो जाएगा. विवाहित पुरुषों को युवतियां ज्यादा दिनों तक घास नहीं डालतीं, साथ ही अवैध संबंधों की मियाद भी ज्यादा लंबी नहीं होती. इसलिए चिंता छोड़ कर पति को वापस पाने के प्रयास में लग जाएं.

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. मेरी सगाई हुए 3 महीने हो चुके हैं. मेरे घर वालों ने सगाई में काफी पैसा लगाया था. शायद इसीलिए लड़के वाले बेशर्मी से मुंह खोल कर विवाह में लेनदेन की मांग कर रहे हैं. अपनी हैसियत से तो मेरे घर वाले करेंगे ही पर इस तरह से अनापशनाप मांगें सुन कर मेरा इस शादी से मन उठ गया है. मैं ने मां से साफसाफ कहा है कि वे इस रिश्ते को तोड़ दें पर उन का कहना है कि इस से बदनामी होगी और फिर मेरा भविष्य में कहीं रिश्ता नहीं होगा. मुझे क्या करना चाहिए?

आप को इस बारे में अपने मंगेतर से बात करनी चाहिए. हो सकता है कि लड़का घर वालों की इस मंशा से बेखबर हो. यदि लड़का भी इस सब में शामिल है तो आप को उस से शादी कतई नहीं करनी चाहिए. ऐसे लालची लोग ताउम्र आप को और आप के घर वालों को परेशान करते रहेंगे. सगाई तोड़ने के बाद आप की बदनामी होगी और फिर कहीं और रिश्ता नहीं होगा, यह बात सरासर गलत है. ऐसा कुछ नहीं होगा. हां, नया रिश्ता मिलने में थोड़ा समय लग सकता है. पर अभी आप की उम्र बहुत कम है, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है.

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Grihshobha Empower Moms : मां को थैंक्स कहने के लिए मदर्स डे पर आयोजित इवेंट

Grihshobha Empower Moms : दिल्ली में गत 10 मई को कासा रॉयल, पीरागढ़ी में सुबह 11 बजे से गृहशोभा एम्पावर मॉम्स इवेंट का आयोजन किया गया. यह इवेंट एकदम मदर्स डे से एक दिन पहले रखा गया क्यों कि हम सब जानते हैं घर हो या हमारी लाइफ, हमारी मां सब कुछ संभालती है। ऐसे में मां के नाम एक इवेंट तो बनता ही है। गृहशोभा एम्पावर हर का पहले भी मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद, लखनऊ, इंदौर, चंडीगढ़, लुधियाना और जयपुर में सफल आयोजन हो चुका है. अब सीजन 3 की शुरुआत दिल्ली से की गई। इस सीजन में हम 10 शहरों में इस का आयोजन करेंगे जिसमें नोएडा, पुणे, मुंबई समेत और भी कई शहर शामिल हैं। लेकिन स्पॉटलाइट में है दिल्ली की स्ट्रांग और स्टाइलिश लेडीज।

पहला सेशन : वुमन मेन्टल हेल्थ एंड वेलनेस सेशन  

सब से पहले वुमन मेन्टल हेल्थ एंड वेलनेस सेशन की शुरुआत हुई. इस के तहत ऐसे टॉपिक पर बात की गई की जो अक्सर अनस्पोकन रह जाता है. दरअसल एक स्वस्थ दिमाग उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि एक स्वस्थ शरीर। इस महत्वपूर्ण सेशन के लिए अनुभवी एक्सपर्ट शर्ली राज मंच पर आईं जो सिर्फ एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट ही नहीं बल्कि प्राइवेट क्लीनिकों में एक कंसलटेंट, एक ट्रेनर और यहां तक कि एमिटी विश्वविद्यालय में भी पढ़ा चुकी हैं. वह एमपावर – द सेंटर , लाजपत नगर में आउटरीच सहयोगी भी हैं. उन का फील्ड बचपन के विकास संबंधी विकार जैसे ऑटिज्म और एडीएचडी से ले कर एडल्ट्स में एंजाइटी प्रोब्लम्स जैसे जीएडी, ओसीडी, फोबिया, पैनिक अटैक आदि सब से जुड़ा है. उन्होंने थेरेपी के मल्टीपल फॉर्म्स में ट्रेनिंग लिया है – बिहेवियरल  थेरेपी से लेकर कॉग्निटिव और यहां तक कि ईएमडीआर थेरेपी तक.
शर्ली राज ने महिलाओं को समझाया कि उन्हें अपने हेल्थ का ख्याल क्यों रखना चाहिए और क्यों खुद को इग्नोर नहीं करना चाहिए। खासकर अपने मेंटल हेल्थ को. बहुत सी महिलाएं,  माँ बनने के बाद अपनी ज़रूरतों को सबसे आखिर में रखती हैं। सुबह से रात तक बच्चों, परिवार और घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर वे अपनी थकान, चिंता, और भावनाओं को अनदेखा करती रहती हैं। याद रखें आत्म-देखभाल कोई स्वार्थ नहीं, बल्कि एक ज़रूरत है। जब आप खुद के लिए थोड़ा समय निकालती हैं – चाहे वो 10 मिनट की चाय हो या बिना किसी काम के बैठकर साँस लेना – तो आपका मन शांत होता है और यही शांति पूरे घर के माहौल को सकारात्मक बना देती है। आपकी ख़ुशी आपके बच्चों, पति और पूरे परिवार पर असर डालती है.
इस के बाद सिल्क मार्क ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया के डिप्टी सेक्रेटरी टेक श्री दशरथी बेहरा ने सिल्क की शुद्धता और सिल्क मार्क लेबल की मदद से प्रामाणिक, शुद्ध सिल्क उत्पादों की पहचान करने और चुनने में मदद करने के बारे में बताया.

 दूसरा सेशन : एसआईपी सहेली फाइनेंस सेशन  

इस के बाद फाइनेंसियल एडुकेटर और म्यूचुअल फंड एक्सपर्ट सागरिका सिंह को आमंत्रित किया गया जो लोगों को गोल बेस्ड इन्वेस्टमेंट इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजीज के जरिए स्मार्ट इन्वेस्टमेंट डिसिशन लेने, फाइनेंसियल गोल्स निर्धारित करने और लॉन्ग टर्म वेल्थ बनाने में मदद करती है एचडीएफसी म्यूचुअल फंड द्वारा आयोजित इस सेशन में सागरिका सिन्हा ने महिलाओं को म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं और उन्हें इन्वेस्टमेंट की जरूरतों से अवगत कराया.

तीसरा सेशन : क्विक मेकअप और हेयर स्टाइलिंग डेमो सेशन
 
इस के बाद बारी थी सबसे ग्लैमरस सेशन की। इस के लिए मंच पर पहुंचीं खूबसूरत और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी एनी मुंजाल खरबंदा। एनी मुंजाल खरबंदा एक यंग एंटरप्रेन्योर हैं  जिन्होंने 19 साल की उम्र में वेडिंग प्लानिंग के साथ अपनी यात्रा शुरू की। व्यावहारिक अनुभव और क्लाइंट इंटरैक्शन के आधार पर उन्होंने अपने अक्वायर्ड स्किल को फैमिली बिजनेस,  स्टार अकादमी ( एक प्रसिद्ध मेकअप और हेयर ट्रेनिंग अकादमी ) में सहजता से इंटीग्रेट किया। एनी पर्सनल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स जैसे लैंडमार्क एजुकेशन, सद्गुरु और बीसीआई आदि के जरिए पावर ऑफ़ लौ ऑफ़ अट्रैक्शन और ग्रेटिटूड को आम जनता और युवाओं तक फैलाने के मिशन पर हैं।
एनी ने उन सभी बिजी मदर्स के लिए फ़टाफ़ट खूबसूरत दिखने और मेकअप करने के टिप्स दिए जो समय की कमी होने की अपना ख़याल नहीं रख पातीं। ज़रा सी मेहनत से मदर्स अपने लुक को निखार सकती हैं. ऐनी ने मेकअप का डेमो दे कर दिखाया कि कोई भी महिला कैसे ‘उफ़’ से ‘यस क्वीन’ तक कुछ ही मिनटों में पहुंच सकती है.  क्विक मेकअप हैक्स और आसान हेयरस्टाइल के साथ उन्होंने महिलों को समझाया कि कैसे आप अगर दूसरों से अच्छा व्यवहार चाहती हैं तो अपने लुक पर ध्यान जरूर दें. आप रानी बन कर रहेंगी तभी सब आप को रानी की तरह ट्रीट करेंगे. इस सेशन को सब ने बहुत एन्जॉय किया.

अगला सेगमेंट थोड़ा इंस्पिरेशनल, थोड़ा इमोशनल और काफी मोटिवेशनल था.  दो इन्फ्लुएंसर्स ने मंच पर आ कर अपनी जर्नी बताई और सन्देश दिए.  पहले जीनिया चड्ढा आई जो एंकर, रिपोर्टर और एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर है। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी मां ने हर कदम पर उनका साथ दिया। कैसे आज वह आत्मविश्वास से भरी महिला हैं। इस के बाद पूजा जांगड़ा जो पेशे से एक टीचर है उन्होंने भी बताया कि उसकी मां ने बहुत सपोर्ट किया तभी वह आज इस मुकाम पर है. पूजा ने अपनी जर्नी और काम के बारे में बता कर महिलाओं को इंस्पिरेशन दिया.  प्रोग्राम के बीच बीच में गेम्स और सवाल जवाब के दौर चलते रहे और जीतने वाली महिलाओं को विवेल की तरफ से गिफ्ट दिए गए. अंत में महिलाओं ने लंच किया और फिर गुडी बैग्स ले कर ख़ुशी ख़ुशी अपने घरों को गईं।

दिल्ली में हुए इस इवेंट के पार्टनर्स थे ; Silk Purity Partner : Silk Mark India, Financial Education Partner : Hdfc Mutual Fund,  Associate Sponsor : Haier, Beauty Partner: Green Leaf Aloevera Gel by Brihans Natural Products and Gift Partner : ITC Personal Care
जैसा कि आप जानते हैं भारत की नंबर 1 हिंदी महिला पत्रिका गृहशोभा 8 भाषाओं में प्रकाशित होती है। यह आप को हर तरह की नौलेज देती है. चाहे स्वास्थ्य हो, सौंदर्य हो या फिर खाना बनाना और फाइनेंशियल प्लानिंग – गृहशोभा हर विषय पर एक मॉडर्न और बैलेंस्ड नजरिया देती है ताकि हर महिला सशक्त बन सके. तभी तो धूप होने के बावजूद 11 बजते बजते पूरा बैंक्वेट हाल महिलाओं से भर गया.  हमेशा की तरह इवेंट की शुरुआत एंकर कृतिका शर्मा ने अपने चिर परिचित खुशनुमा अंदाज में किया.

Hindi Fiction Stories : आत्ममंथन – क्या शांता को हुआ गलती का एहसास

Hindi Fiction Stories :  रचित के विवाह को पूरे 2 साल हो  गए पर शांता हैदराबाद नहीं जा सकी. रचित उस का इकलौता बेटा है. उस की पत्नी स्नेहा कितनी ही बार निमंत्रण दे चुकी है पर कहां जा पाई है वह? कभी घर की व्यस्तता तो कभी राहुल की प्राइवेट कंपनी का टूर. एक बार प्रोग्राम बनाया भी तो उन दोनों के विदेश ट्रिप के कारण रद्द करना पड़ा, टिकट भी कैंसिल करना पड़ा. दोनों ही विदेशी कंपनी में साथ काम करते हैं, अकसर बाहर जाते ही रहते हैं.

शादी के बाद हनीमून मनाने में 1 महीना निकल गया. कहां ये दोनों बहू के पास रह पाए? सच में शांता को अपनी बहू से ठीक से परिचय भी नहीं हो पाया है. सिर्फ एकदो दिन ही साथ बिताए हैं. फोन पर बात कर लेना ही भला कोई परिचय हुआ. कुछ दिन उस के साथ रहें, तब कुछ बात बने. कुछ उस की सुनें और कुछ अपनी कहें.

खैर, चलो 2 साल बाद ही सही, अब तो राहुल ने पटना से हैदराबाद का रिजर्वेशन भी करा लिया है. रचित के विवाह की वर्षगांठ जो है. शांता शौपिंग में व्यस्त है. लड्डूमठरी और गुझिया बनाने में लगी है. ये सब रचित को बहुत पसंद हैं. अब स्नेहा को क्या पसंद है, यह रचित से पूछ कर बना लेगी. वह भी खुश हो जाएगी.

सभी सामान पैक हो गए हैं. थोड़ी देर में चलना है. मन खुशियों से भरा है. राहुल आएंगे तो आते ही जल्दी मचा देंगे. इसलिए सामान को बाहर निकालना शांता ने शुरू कर दिया.

स्टेशन आने पर पता चला कि गाड़ी समय पर पहुंच रही है, जान कर राहत मिली. टे्रन आने पर कुली ने सारा सामान सैट कर दिया. अटैंडैंट कंबल, चादर, तकिया आदि दे गया. शांता को अब थकावट महसूस हो रही थी. लेकिन रात के करीब 12 बजे तक लोगों का उतरनाचढ़ना लगा रहा. टीटीई भी टिकट चैक कर के चला गया. राहुल को तो लेटते ही नींद आ गई. शांता सोने की कोशिश करने लगी. गाड़ी तेज रफ्तार से चलने लगी थी. सभी यात्री सो चुके थे. ट्रेन में खामोशी छाई थी.

शांता की आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं पर मन में अतीत चलचित्र की भांति घूमने लगा.

जब उस की नईनई शादी हुई थी तब राहुल का छोटा सा परिवार था. राहुल के मातापिता और एक छोटी बहन. राहुल को मां और बहन से काफी लगाव था. सुहागरात को ही शांता को राहुल ने यह बता दिया था, ‘शांता, मां मेरी आदर्श हैं, मां के कारण ही हम इस मुकाम पर पहुंचे. बहन मुझे जान से प्यारी है. इस बात का विशेष खयाल रखना कि हम लोगों के किसी व्यवहार के कारण से मां के दिल को चोट न पहुंचे.’

‘आप चिंता न करें, मैं इस बात का हमेशा खयाल रखूंगी. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’ वह कह तो रही थी पर अंदर से जलभुन रही थी. जो आदमी अपनी मांबहन का इतना खयाल रख रहा है वह एक पति भी बन पाएगा. उसे इस बात की चिंता हो गई और वह तनावग्रस्त रहने लगी.

शादी के बाद छुट्टी समाप्त होने पर वे गया से पटना आ गए. यहीं राहुल नौकरी करते थे. बड़े अरमान से उस ने अपनी छोटी सी गृहस्थी सजाई.

‘देखो, मां को यह सामान यहां रखा हुआ पसंद नहीं आएगा. इस को उस जगह पर रखो, मां को जिस कलर की साड़ी पसंद है वही पहनना. सामान सजाने की कला मां से सीख लेना. हां, सलाद भी सजाना मां से सीख लेना.’ ये सब सुन कर शांता खीझ उठती. और जानबूझ कर वही करती जो राहुल मना करते.

पापा के देहांत के बाद मां अकसर इन लोगों के साथ ही पटना में रहने लगी. ये लोग भी घर कम ही जा पाते थे.

राहुल की टीकाटिप्पणी से शांता को सास का आना बोझ लगने लगा. उन का आना शांता को कभी अच्छा नहीं लगा और उन से चिढ़ सी होने लगी. मन में सोचती, ‘ये बारबार क्यों चली आती हैं? घर पर भी तो रह सकती हैं.’ शांता को उन की उपस्थिति बरदाश्त नहीं होती जबकि मां के आने से राहुल के उत्साह का अंत नहीं रहता. आने के हफ्तों पहले से तैयारी होती और रसोईघर मां की पसंद की चीजों से भर जाता.

शांता सोचती, उस का भी क्या दोष था. मां के जैसा खाना बनाना, उन के जैसा तरीका सीखना ये बातें सुनसुन कर वह कुढ़ जाती. उसे लगता जैसे वह कोई गंवार है. जैसे उस का कोई अस्तित्व ही नहीं है. मां के प्रति उस ने विद्रोह पाल लिया.

इस के विपरीत मां जब आतीं तो अपने साथ इन लोगों के लिए ढेरों खानेपीने का सामान बना कर लातीं, अभी भी आती हैं तो ले कर आती हैं पर शांता को उन चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं रहती. उस का तो यही प्रयास रहता है कि मां जल्दी से जल्दी उस के घर से चली जाएं. शांता राहुल को बहाना बना कर घर से बाहर ले जाती और बाहर ही खाना खा कर देर रात को लौटती. मां इंतजार ही करती रह जातीं. शांता को मां को प्रतीक्षा करते देख कर खुशी होती. फिर भी मां न कोई शिकायत करतीं और न उलाहना देतीं. न जाने कितनी सहनशील हैं.

उलटा वे एक दिन राहुल से कहने लगीं, ‘राहुल, बहू को कभी फिल्म दिखाने भी ले जाया कर. यही तो इस के घूमनेफिरने के दिन हैं.’ अभी भी वे उन्हें घूमने भेज देतीं और पीछे से घर के सारे काम कर लेतीं. एक भी काम शांता के लिए नहीं छोड़तीं. फिर भी उसे खुशी नहीं होती. शांता को ये सब नाटक लगता. वे जल्दी ही चली भी जातीं. जब तक भी रहतीं, शांत ही रहतीं.

समय बीतता गया. शादी के तीसरे साल रचित का जन्म हुआ. घर में उल्लास छाया हुआ था. खासकर मां की खुशी का तो ठिकाना नहीं था. फोन से अनेक प्रकार की हिदायतें दे रही थीं, ‘शांता, अपना ध्यान रखना. चैकअप कराती रहना. डाक्टर जैसा कहे उसी तरह रहना.’ राहुल को भी हिदायत देतीं, ‘बहू का खयाल रखना.’

उस के बाद तो रचित को देखने और खिलाने के लिए बारबार आने लगीं. अब शांता को शक होने लगा कि मां पति तो छीन ही चुकी हैं अब बेटे को भी अपने वश में करना चाहती हैं. शांता बहाने बना कर रचित को मां से दूर रखना चाहती थी, पर जिद कर के वह उन्हीं के पास चला जाता. दादी से पोते को अलग करना शांता को मुश्किल हो जाता. राहुल को इस सब का पता नहीं रहता क्योंकि मां शांता की शिकायत नहीं करतीं.

अब शांता ने मांबेटे के रिश्ते को भी खराब करना चाहा. राहुल पूछते ‘शांता, बाथरूम क्यों गंदा है?’ धीरे से बोल देती, ‘मां ने बाहर से आ कर पैर धोए हैं,’ ‘शांता, बिजली का बिल इतना ज्यादा क्यों आया?’ शांता सब मां के मत्थे मढ़ देती.

एक दिन राहुल गुस्सा हो कर बोले, ‘न जाने मां को क्या हो गया है, इतनी कठोर सास बन गई हैं?’ फिर शांता ही राहुल को शांत किया करती.

छोटी ननद शिखा शादी के बाद पहली बार अपने भतीजे को देखने और मां से मिलने उस के घर आई. वह शांता का मां के साथ बरताव देख कर मां को समझा रही थी, ‘भाभी का इतना खराब व्यवहार क्यों सह रही हो? विरोध में कुछ बोलती क्यों नहीं हो? भैया को बताती क्यों नहीं हो? तभी तो वे जानेंगे. वे तो तुम्हीं को दोषी मानते हैं.’

‘बेटी, राहुल से क्या कहूं? शांता घर की बहू है. मेरे कारण दोनों में कटुता आए, यह मैं नहीं चाहती. दोनों को साथ जीवन बिताना है. हां, राहुल के व्यवहार से क्षोभ होता है कि मेरा बेटा मुझे दोषी मानता है. मुझे सफाई देने का मौका भी तो दे कि ऐसे ही कठघरे में खड़ा कर देगा?’

उन की बातें सुन कर शांता की अंतरआत्मा धिक्कारने लगी. वह आत्ममंथन करने लगी और अपने को एक संस्कारहीन समझ कर उसे शिखा से आंख मिलाने में भी ग्लानि होने लगी. उस के बाद से मां पटना नहीं आईं.

ट्रेन अब हैदराबाद पंहुचने वाली थी कि शांता वर्तमान में लौट आई.

शांता को अब डर समा गया कि अगर स्नेहा भी ऐसा व्यवहार करेगी तो…अपनी मां जितना धैर्य क्या उस में है? यदि रचित ने भी स्नेहा को बताया होगा कि वह मां को बहुत चाहता है तो क्या स्नेहा भी शांता के साथ वैसा ही व्यवहार करेगी जैसा वह करती थी? ऐसे अनेक प्रश्न उस के मन में उठ रहे थे. पुरानी बातें सोचसोच कर घबरा रही थी. हैदराबाद स्टेशन पर शांता ने देखा स्नेहा और रचित लेने आए हुए थे. स्नेहा शांता का ही दिया हुआ सूट पहन कर आई थी. शांता को अपनी सासू मां की याद आ गई. उन्होंने एक साड़ी अपनी पसंद की ला कर दी थी जो शांता बहाने बना कर नहीं पहनती थी.

स्नेहा और रचित दोनों हफ्तेभर की छुट्टी ले चुके थे, ‘‘मुझे पूरा समय आप के साथ बिताना है,’’ कह कर स्नेहा शांता के गले से लिपट गई, ‘‘आप से बहुत कुछ सीखना है. रचित के पसंद का खाना बनाना और घर सजाना भी सीखना है. रचित आप की बहुत प्रशंसा करते हैं.’’

रचित अपने मातापिता को ले कर अपने घर की ओर चल दिए.

राहुल और रचित दोनों मुसकरा रहे थे, ‘‘पापा, चलिए अब आप लोग फ्रैश हो जाइए. स्नेहा ने आप लोगों की पसंद का नाश्ता सुबह जल्दी ही बना कर रख लिया था.’’

मेज विभिन्न प्रकार के नाश्ते से सजी हुई थी. सभी चीजें शांता और राहुल की पसंद की थीं. बहू का प्यार देख कर दोनों का मन गद्गद हो गया. शांता को मां के साथ किए दुर्व्यवहार पर अपने ऊपर घृणा हो रही थी, ‘कैसे ओछे और गिरे हुए संस्कार की है जो स्नेहमयी जैसी सास को इतना सताया.’ जा कर पहले उन से क्षमा मांगेगी तभी उसे शांति मिलेगी.

खैर, एक हफ्ता घूमनेफिरने ही में गुजर गया. शांता के मन का भय समाप्त हो गया. स्नेह अपने मातापिता से अच्छे संस्कार ले कर आई है. उस का अपना व्यक्तित्व है, खुले विचारों की आधुनिक लड़की है. सास को दोस्त के नजरिए से देखती है. प्रतिद्वंद्वी नहीं समझती है. काश, शांता भी ऐसी सोच की होती तो मांबेटे के संबंध में खटास तो पैदा न होती.

अपने प्रति स्नेहा की श्रद्धा और उस का विश्वास देख कर शांता की आंखें भर आईं. उस का सिर शर्म से झुक गया.

Famous Hindi Stories : अदृश्य मोहपाश

Famous Hindi Stories : परीक्षा के अंतिम दिन घर आने पर पुन्नी इतनी थकी हुई थी कि लेटते ही सो गई. उठी तो शाम होने को थी, खिड़की से देखा तो पोर्टिको में मम्मी की गाड़ी खड़ी थी यानी वे आ चुकी थीं. छोटू से मम्मी के कमरे में चाय लाने को कह कर उस ने धीरे से मम्मी के कमरे का परदा हटाया, मम्मी अलमारी के सामने खड़ी, एक तसवीर को हाथ में लिए सिसक रही थीं, ‘‘आज पुन्नी की आईएएस की लिखित परीक्षा पूरी हो गई है, सफलता पर उसे और उस के पापा को पूरा विश्वास है. लगता है बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना पूरा करने की मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो जाएगी.’’

पुन्नी ने चुपचाप वहां से हटना बेहतर सम झा. उस का सिर चकरा गया. मम्मी रोरो कर कह क्या रही हैं, ‘उस के पापा का विश्वास…बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना…? कैसी असंगत बातें कर रही हैं, डिगरी कालेज की प्रिंसिपल मालिनी वर्मा? और वह तसवीर किस की है?’

चाय की ट्रौली मम्मी के कमरे में ले जाते छोटू को उस ने लपक कर रोका, ‘‘उधर नहीं, बरामदे में चल.’’

‘‘आप को हो क्या गया है, दीदी? कहती कुछ हो और फिर करती कुछ हो. दोपहर को मु झे फिल्म की सीडी लगाने को बोल कर आप तो सो गईं, मु झे मांजी से डांट खानी पड़ी…’’

‘‘मम्मी दोपहर को ही आ गई थीं?’’ पुन्नी ने छोटू की बात काटी.

‘‘आई तो अभी हैं, मु झे डांट कर तुरंत अपने कमरे में चली गईं.’’

‘और कमरे में जा कर उस तसवीर से बातें कर रही हैं? मगर तसवीर है किस की?’ पुन्नी ने सोचा.

तभी मालिनी बाहर आ गईं. चेहरे पर से आंसुओं के निशान तो धो लिए थे लेकिन आंखों की नमी तो धुलती नहीं. इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं,

पापा चहकते हुए आ गए, ‘‘हैलो, डिप्लोमैट…’’

‘‘डिप्लोमैट? किस से बात कर रहे हो, अभय?’’

‘‘अपनी बेटी से, मालिनी, उस का आईएफएस में चयन यानी डिप्लोमैट बनना तो पक्का सम झो,’’ पापा की खुशी समेटे नहीं सिमट रही थी, ‘‘आज जो प्रश्न पूछे गए हैं उन सब के उत्तर तो इसे जबानी याद हैं.’’

‘‘लेकिन आप को इस का प्रश्नपत्र किस ने दिखा दिया?’’ मालिनी ने जिरह की.

‘‘नीलाभ ने. वह परीक्षा भवन से सीधा अपने पापा के पास आया था. उसी का कहना है कि जिस फर्राटे से पुन्नी सब सवालों के सही जवाब सब को बता रही थी, उस का नाम प्रथम

5 प्रत्याशियों में होगा. फिर मैं ने प्रश्नपत्र देखा तो वह सब तो वे प्रश्न थे जो हम ने कल रात रिवाइज कराए थे.’’

‘‘आज ही नहीं पापा, अकसर हर रोज कई सवाल वही होते थे जो आप रात को रिवाइज करवाते थे,’’ पुन्नी ने कहा.

‘‘और तू उन्हें कंठस्थ कर लेती थी, नीलाभ की बात से तो यही लगा. यह बता, दोपहर को क्या किया?’’

‘‘मु झ से फिल्म ‘ओह माई गौड’ की सीडी लगवा कर खुद सो गईं,’’ छोटू ने शिकायत की.

‘‘और तु झे फिल्म अकेले देखनी पड़ी, कैसी है?’’ अभय ने पूछा.

‘‘पूरी नहीं देखी, मांजी ने डांट कर टीवी बंद करवा दिया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब सब के साथ देख लेना, खाना बनाने की जरूरत नहीं है, बाहर से मंगवा लेंगे,’’ मालिनी ने सहृदयता से कहा.

फिल्म देखते हुए मालिनी भी सब के साथ सहज भाव से हंस रही थीं लेकिन पुन्नी को उन की सहजता ओढ़ी हुई लगी और हंसी जैसे दबी हुई सिसकी. अगली सुबह मालिनी का व्यवहार सब के साथ सामान्य था.

‘‘पुन्नी, तु झे कहीं जाना हो तो मैं गाड़ी तेरे लिए छोड़ जाती हूं, मैं तेरे पापा के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मु झे कहीं नहीं जाना, मम्मा, आज घर पर ही रहूंगी.’’

‘‘फिर भी अगर किसी के साथ कुछ प्रोग्राम बन जाए तो मु झे फोन कर देना, ड्राइवर से गाड़ी भिजवा दूंगी या अभय, तुम पुन्नी के साथ लंच करने घर आ जाओ न फिर…’’

‘‘ओह मम्मा, प्लीज, आप दोनों इतमीनान से घर आना,’’ पुन्नी ने बात काटी,

‘‘मेरा मूड या तो आज सोने का है या गानेवाने सुनने का. आप लोग मु झे फोन भी मत करना और छोटू, तू भी मेरे आगेपीछे मत घूमना. मैं जिस कमरे में चाहे बैठूंगी या सोऊंगी.’’

‘‘अब और कुछ मत कहना मालिनी, वरना समय पर आने पर भी पाबंदी लग जाएगी,’’ पापा ने कहा.

उन दोनों के जाते ही पुन्नी मालिनी की अलमारी के सामने जा खड़ी हुई. अलमारी में तो ताला नहीं था मगर उस का सेफ लौक्ड था. चाबी जरूर मां ने अपनी साडि़यों के नीचे रखी होगी, सोच कर पुन्नी ने सब साडि़यों को बाहर निकाल कर  झाड़ा, दूसरे कपड़े भी देख लिए, कुछ किताबें और पुरानी पत्रिकाएं भी थीं. उन का भी हरेक पन्ना इस आस से देख लिया कि कहीं कोई पुराना खत, तसवीर या किसी कविता की पंक्तियां ही मिल जाएं लेकिन एक सूखा फूल तक नहीं मिला. सेफ की चाबी मां अपने पर्स में ही रखती होंगी और उस में से चाबी निकालना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था क्योंकि मां के घर में रहते तो यह हो नहीं सकता था और घर के बाहर मां पर्स के बगैर निकलती नहीं थीं.

मां से पूछने का मतलब था उन्हें व्यथित के साथ ही लज्जित भी करना और पापा से पूछना एक तरह से मां की शिकायत करना. तो फिर करे क्या? किस से पूछे? मां की बचपन की सहेली चित्रा आंटी को सब पता होगा. उन से पुन्नी की खूब पटती थी, आसानी से तो नहीं लेकिन मनुहार करने पर जरूर बता देंगी. चित्रा अपने पति सेवानिवृत्त एअरमार्शल ओम प्रकाश के साथ शहर से दूर अपने फार्महाउस में रहती थीं. उस ने चित्रा आंटी को फोन किया कि वह उन के पास आना चाहती है.

‘‘आज ही आजा. तेरे अंकल कुछ सामान लाने शहर गए हुए हैं, उन्हें फोन कर देती हूं कि आते हुए तु झे ले आएं,’’ चित्रा ने चहक कर कहा, ‘‘तेरी मां को भी कह देती हूं कि मैं तु झे अगवा करवा रही हूं.’’

पुन्नी ने तुरंत पापा को फोन किया.

‘‘पापा, साक्षात्कार की तैयारी से पहले मैं पूरी तरह रिलैक्स करना चाहती हूं. नो मूवीज, नो टीवी, न्यूजपेपर या फोन कौल्ज. ये सब घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता, सो मैं चित्रा आंटी के फार्महाउस पर जा रही हूं. वहां योगा करूंगी, ध्यान लगाने की कोशिश भी…’’

‘‘क्याक्या करोगी यह वहां जा कर सोचना,’’ अभय ने बात काटी, ‘‘नीलाभ अपने पापा की गाड़ी लेने आया हुआ है, उस से कहता हूं कि मेरी गाड़ी ले जाए और तुम्हें ओमी के फार्महाउस पर छोड़ दे.’’

‘‘ओमी अंकल मु झे लेने आ रहे हैं, पापा, वहां से लाने के लिए आप आ जाना.’’

चित्रा से बात करने के लिए उसे कोई भूमिका नहीं बांधनी पड़ी क्योंकि अगले रोज सुबह के नाश्ते के बाद ओमी अंकल जब फार्म पर चले गए तो चित्रा ने पूछा, ‘‘तेरी मां कहती थी कि तेरे पेपर बड़े अच्छे हुए हैं और तू भी बड़े आत्मविश्वास से ओमी को बता रही थी कि यहां तरोताजा होने के बाद तू धमाकेदार साक्षात्कार की तैयारी करेगी लेकिन तेरी शक्ल से तो ऐसा नहीं लग रहा. बहुत परेशान लग रही है, जैसे किसी कशमकश में फंसी हुई हो. लगता है तू यहां रिलैक्स करने नहीं, किसी परेशानी का हल ढूंढ़ने आई है.’’

‘‘आप ने ठीक सम झा, आंटी और वह परेशानी सिर्फ आप सुल झा सकती हैं

क्योंकि ननिहाल वाले तो अमेरिका में हैं, सो उन से तो पूछने का सवाल ही नहीं उठता. एक आप ही हैं जो मम्मी को बचपन से जानती हैं और मेरी परेशानी उन के अतीत से जुड़ी हुई है,’’ पुन्नी ने चित्रा को सब बता दिया.

चित्रा हताशा से सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘कितना सम झाया था मालू को कि अतीत से जुड़ी कोई चीज अपने पास मत रखना और न ही अपने जेहन में लेकिन उस ने तो जैसे मेरी बात न सुनने की कसम खा रखी है. तू ने यह बात अपने पापा को तो नहीं बताई न?’’

पुन्नी को इनकार में सिर हिलाते देख कर चित्रा ने राहत की सांस ली.

‘‘बहुत अच्छा किया, नहीं तो बुरी तरह टूट जाता बेचारा. अच्छा सिला दे रही है मालिनी अभय के त्याग और प्यार का, एक नकारे और ठुकराए गए रिश्ते की सड़ीगली लाश को सहेज कर,’’ चित्रा के स्वर में तिरस्कार था या सहानुभूति, पुन्नी सम झ नहीं सकी.

‘‘प्लीज आंटी, अब पहेलियों में बात न कर के पूरी कहानी बताओ,’’ पुन्नी ने चिरौरी करी.

‘‘कह नहीं सकती कि सुनने के बाद तु झे धक्का लगेगा या इस दुविधा की स्थिति से उबरने का सुकून मिलेगा लेकिन जब इतना सम झ चुकी है कि मालिनी का अतीत है तो उस के बारे में सब जानने का तु झे पूरा हक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘मैं, मालिनी, पुनीत, ओमी और अभय स्कूल से ही सहपाठी और दोस्त थे. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंचते ही हम सब ने भविष्य में क्या करना है, सोच लिया था. ओमी ने एअरफोर्स चुनी थी, मैं ने और मालिनी ने अध्यापन, अभय और पुनीत आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे. स्कूल की दोस्ती रोमांस में बदल गई थी. मेरा और ओमी का तो खैर ठीक था क्योंकि हमारे परिवारों में मित्रता थी, किसी को हमारी शादी पर एतराज नहीं था लेकिन पुनीत का परिवार बहुत रूढि़वादी था और उस की मां बेहद बदमिजाज व तेजतर्रार थीं, उन की मरजी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था.

‘‘पुनीत दब्बू किस्म का ‘माताजी का लाड़ला’ था. मगर मालिनी तो हमेशा से दबंग, अपनी मरजी की मालिक थी. मैं ने उसे सम झाया कि उस के और पुनीत के प्यार का न तो कोई मेल है और न ही कोई भविष्य. पुनीत की रूढि़वादी मां उसे कदापि बहू बनाने को तैयार नहीं होंगी और वह स्वयं भी पुनीत के परिवार से तालमेल नहीं बैठा सकेगी.

‘‘‘अगर पुनीत अपनी मां का लाड़ला है तो मैं भी अपने पापा की लाड़ली हूं. वे मु झे इतना दहेज देंगे कि हिटलर माताजी मु झे  झोली पसार कर ले जाएंगी और रहा सवाल परिवार से तालमेल बैठाने का, तो शादी तय होते ही बड़े भैया हम दोनों को आगे पढ़ाई के लिए अमेरिका बुला लेंगे,’ मालिनी ने दर्प से कहा था.

‘‘मेरे इस तर्क को कि आईएएस की तैयारी करने वाला पुनीत अमेरिका क्यों जाएगा, मालिनी ने यह कह कर काट दिया कि पुनीत की तो आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास करने लायक योग्यता ही नहीं है, इसलिए अमेरिका जाने का मौका वह नहीं छोड़ेगा.

‘‘और हुआ भी वही. पुनीत दोबारा प्रवेश परीक्षा देना चाहता था लेकिन मालिनी के सम झाने पर कि दूसरी बार भी सफल हो और फिर मुख्य और मौखिक परीक्षा में सफलता की क्या गारंटी है, सो बेहतर है कि अमेरिका चल कर अपने प्रिय विषय अर्थशास्त्र में महारत हासिल करे. पुनीत मालिनी की बात मान गया. अपेक्षा से अधिक दहेज और अमेरिका में बेटे की पढ़ाई के लालच में उस की मां ने भी बगैर हीलहुज्जत के शादी के लिए सहमति दे दी.

‘‘मालिनी के भाई ने भी पुनीत और मालिनी को बुलाने की कार्यवाही शुरू कर दी. मालिनी के दोनों भाई अमेरिका में थे ही, सेवानिवृत्त पापा मालिनी की पढ़ाई और शादी की वजह से यहां रुके हुए थे, उस की शादी के तुरंत बाद मम्मीपापा यहां की गृहस्थी समेट कर, मालिनी की शादी में आए बेटों के साथ ही अमेरिका चले गए. पुनीत को भी पेनसिल्वानियां विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया लेकिन मालिनी को अंगरेजी साहित्य में अभी कहीं भी दाखिला नहीं मिल रहा था. इस बीच, वह गर्भवती भी हो गई थी और सास उस का बहुत खयाल रखने लगी थीं. भैया ने पुनीत का वीजा और टिकट वगैरह भेज दिया था. सो, उसे तो जाना ही था. मालिनी यह सोच कर कि कुछ ही दिनों की तो बात है, भैया जल्दी ही उस के भी आने की व्यवस्था कर देंगे, मालिनी अकेले ससुराल में रहना मान गई. और कोई चारा भी नहीं था. मम्मीपापा अमेरिका जा चुके थे, मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था सो मैं होस्टल में रह कर पीएचडी कर रही थी. मालिनी मु झ से अकसर होस्टल में मिलने आती थी, सास की भी तारीफ करती थी. लेकिन एक रोज वह बहुत ही व्यथित अवस्था में आई.

‘‘कल रुटीन चैकअप के दौरान सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि मेरे गर्भ में

लड़की है, बस, तब से मेरी सास ने विकराल रूप धारण कर लिया है कि मैं गर्भपात करवाऊं. मेरी बहुत मिन्नत और ससुरजी के सम झाने पर मानीं कि पुनीत से पूछ लें. मगर मेरे से पहले उन्होंने स्वयं पुनीत से बात की और माताजी के आज्ञाकारी बेटे ने तोते की तरह दोहरा दिया-जैसा मां कहती हैं, तुम वैसा ही करो. पुनीत ने कुछ रोज पहले ही फोन पर मु झ से कहा था कि अमेरिका में पैसा भले ही ज्यादा हो, मानसम्मान अपने देश में ही है, मैं तो नहीं बन सका लेकिन अपने बेटे को जरूर भारत में प्रशासनिक अधिकारी बना कर मानसम्मान दिलवाऊंगा. मैं ने चुहल की कि लड़की हुई तो? उस ने छूटते ही कहा था कि

तो क्या हुआ, उसे ही आईएएस अफसर बनाएंगे और वही पुनीत अब अम्मा के सुर में सुर मिला रहा है. लेकिन मेरी भी जिद है चाहे जो भी हो

मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी, डाक्टर और

अस्पताल के स्टाफ को साफ मना कर दूंगी. यह मेरी भ्रांति थी.

‘‘माताजी ने कहा कि वह घर पर ही

अपनी पहचान की एक मिडवाइफ को बुला

कर किस्सा खत्म करवा देंगी. मैं किसी तरह

जान बचा कर यहां आई हूं और अब वापस वहां नहीं जाऊंगी.’

‘‘मैं परेशान हो गई. न तो मालिनी को होस्टल में रख सकती थी न वापस जाने को कह सकती थी. तभी मु झे अभय का खयाल आया और मैं मालिनी को उस के घर ले गई.

‘‘अभय आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास कर के मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था. वर्षों पहले एक सड़क दुर्घटना में उस की मां का निधन हो गया था और वकील पिता अपाहिज हो गए थे. उस के घर में सिवा पिता और नौकर के कोई और न था.

‘‘उस के पिता ने कहा कि मालिनी जब तक चाहे उन के घर में सुरक्षित रह सकती है लेकिन उसे पुलिस में ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी होगी. मु झे तो समय से होस्टल पहुंचना था, सो अभय अकेला ही

मालिनी को ले कर थाने गया. फिर उस की अमेरिका में उस के घर वालों से बात करवाई. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे पुनीत से बात करेंगे. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं, ईमेल की सुविधा भी बहुत कम थी, सो रोज बात नहीं हो पाती थी.

‘‘खैर, अभय और उस के पिता ने मालिनी का बहुत साथ दिया, उस की देखभाल के लिए नौकरानी भी रख दी. लेकिन मालिनी के ससुराल वालों ने उस पर चोरी कर के घर से भागने

के आरोप में उसे गिरफ्तार करवा दिया. अभय

के पिता ने अपने संपर्क द्वारा उस की तुरंत जमानत तो करवा दी लेकिन इस से मालिनी का विदेश जाना खटाई में पड़ गया. पहले ही उसे कहीं दाखिला न मिलने के कारण वीजा नहीं

मिल रहा था. और जैसे यह काफी नहीं था,

पुनीत ने बदचलनी का आरोप लगा कर उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया. पुनीत को यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल चुका था और पार्टटाइम जौब भी, अब उसे मालिनी के

परिवार की मदद की जरूरत नहीं थी और वैसे भी, उस ने यह पूछ कर उन का मुंह बंद कर दिया था कि मालिनी किस रिश्ते से अभय के घर में रह रही है?

‘‘मालिनी के अमेरिका जाने का कोई बनाव नहीं बन रहा था. भाई वृद्ध मातापिता को वापस भेजना नहीं मान रहे थे क्योंकि वे भारत में सब समेट कर बेटों के पास गए थे, एक गर्भवती बेटी के सहारे दोबारा यहां व्यवस्थित होना आसान

नहीं था.

‘‘एक बार फिर अभय मालिनी का संबल बना, सहर्ष मालिनी को अपनाकर उस की बेटी को अपना नाम दिया और भरपूर प्यार भी, मांबाप के साथ हुए हादसे के कारण वह अब तक हार्ट फ्री था. मगर अब इन चक्करों में पड़ने के कारण अभय की पढ़ाई का बहुत हरजा हुआ और उस का चयन आईएएस के बजाय आयकर विभाग में हुआ. लेकिन उसे इस का कोई मलाल नहीं है, कर्मठता से तरक्की करते हुए बीवीबेटी के साथ बेहद खुश है…’’

‘‘लेकिन, मम्मी?’’ पुन्नी ने चित्रा की बात काटी, ‘‘मम्मी तो अभी भी उसी माताजी के दब्बू बेटे की तसवीर के आगे आंसू बहा रही हैं. शर्म आती है उन्हें मम्मी कहते हुए.’’

‘‘शर्म तो मु झे भी आती है उसे अपनी सहेली कहते हुए लेकिन पुन्नी, पहले

प्यार का नशा शायद कभी नहीं उतरता. इसे विडंबना ही कहेंगे कि अभय का पहला प्यार मालिनी है और मालिनी का पहला प्यार तो पुनीत अभी तक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘लेकिन मेरे लिए सब से बढ़ कर मेरे पापा हैं और आज से मैं वही करूंगी जो मेरे जन्मदाता का नहीं, मु झे अनमोल जीवन देने वाले पापा का सपना है,’’ पुन्नी ने दृढ़ता से कहा.

‘‘उस का सपना तो तेरी शादी नीलाभ से करने का है.’’

‘‘जो उन्होंने मेरी आंखों में देख कर

अपनी आंखों में बसाया है, पापा और मेरे बीच

में एक अदृश्य मोहपाश है जिसे मैं कभी टूटने नहीं दूंगी,’’ पुन्नी ने विह्वल मगर दृढ़ स्वर में कहा. चित्रा ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

Hindi Story : सैलिब्रेशन – क्या सही था रसिका का प्यार

Hindi Story : कुहराभरीशाम के 6 बजे ही अंधेरा गहरा गया था. रसिका औफिस से थकी हुई घर में घुसी ही थी कि उस की छोटीछोटी दोनों बेटियां भागती हुई मम्मा… मम्मा कहती उस से लिपट गईं. छोटी काव्या सुबक रही थी.

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मम्मा, यहां सब लोग मुझे बेचारी कहते हैं. आज नानी के पास एक आंटी आई थीं. वे मुझे प्यार करती जा रही थीं और रोरो कर कह रही थीं कि हायहाय बिन बाप की बेटियों का कौन अपने लड़के से ब्याह करेगा.

‘‘मम्मा, मेरे पापा तो हैं. वे ऐसे क्यों कह रही थीं?’’

8 साल की नन्ही काव्या के प्रश्न पर रसिका समझ नहीं पा रही थी कि इस मासूम को कैसे समझाए. फिर उसे प्यार से गले से लगाते हुए बोली, ‘‘इन बातों को मत सुना करो. तुम तो मेरी राजकुमारी हो,’’ और फिर पर्स से चौकलेट निकाल कर उस की हथेली पर रख दी. वह खुश हो कर उछलती हुई चली गईर्.

मान्या 10 साल की थी. वह कुछकुछ समझने लगी थी कि अब पापा से उन का रिश्ता खत्म हो गया है, इसलिए घर या बाहर कोई भी बेचारी या उस की मम्मा के लिए बुरा बोलता तो वह उस से लड़ने को तैयार हो जाती थी.

इस कारण सब उस की शिकायत करते, ‘‘रसिका, अपनी बेटी को कुछ अदबकायदा सिखाओ. सब से लड़ने पर आमादा हो जाती है.’’

रसिका अकसर मान्या को समझाती, ‘‘बेटी, इन लोगों से बेकार में क्यों बहस करती हो… तुम वहां से हट जाया करो.’’

मगर उस का रोज किसी न किसी से पंगा हो ही जाता. कभी घर में तो कभी स्कूल में.

रसिका जानती थी कि दोपहर में मां के पास महिलाओं का जमघट लगता है और वे दोनों बच्चियों को सुनासुना कर बातें करतीं, ‘‘हाय, बुढ़ापे में गायत्री बहनजी की मुसीबत आ गई है. रसिका तो सजधज कर औफिस चली जाती और इन बिटियों के लिए खाना बनाओ, टिफिन तैयार करो, कितना काम बढ़ गया है बहनजी के लिए.’’

‘‘चुप रहो मीरा. मान्या सुन लेगी तो आ कर लड़ने लगेगी,’’ गायत्रीजी ने कहा तो सब चुप हो गईं.

मीराजी को अपनी हेठी लगी तो वे उठ खड़ी हुईं. बोलीं, ‘‘गायत्री बहन,

?जरा सी लड़की से आप डरती क्यों हैं? हमारी नातिन ऐसा बोले तो मैं तो 2 थप्पड़ रसीद कर दूं.’’

फिर मान्या के घर में घुसते ही सब अपनेअपने घर चली गईं.

नानी के कराहने की आवाज सुन कर मान्या उन के पास आई, ‘‘नानी, आप रहते दो.मैं माइक्रोवेव में खाना गरम कर लूंगी. आप आराम करो.’’

‘‘रहने दे छोरी, अपनी अम्मां से कह देगी कि नानी ने खाना भी नहीं दिया.’’

मान्या का मूड खराब हो गया, लेकिन मम्मी की बात याद कर के चुपचाप खाने बैठ गई.

संडे का दिन था. रसिका अपने कपड़े धो रही थी. तभी रोती हुई काव्या घर में घुसी.

‘‘क्या हुआ? क्यों रो रही हो?’’

‘‘मम्मा, रिचा आंटी कह रही थीं कि तुम मेरे घर खेलने मत आया करो. तुम्हारी मम्मी तलाकशुदा हैं. तुम्हारे पापा से लड़ाई कर के आ गई हैं.’’

रसिका परेशान थी. सुबह मां से बहस हो चुकी थी. अत: गुस्से में बेटी को गाल पर थप्पड़ लगा चीख कर बोली, ‘‘क्यों जाती हो उन केघर खेलने?’’

‘‘मम्मा तलाकशुदा क्या होता है?’’

बेटी के मासूम प्रश्न पर रसिका की आंखें छलछला उठीं. आंसू नहीं रोक पाई. अपने कमरे में जा कर चुपचाप आंसू बहाती रही. मां की निगाहें भी अब बदल गई थीं. उन को भी शायद अब रसिका का यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा था. हर समय मुंह फुलाए रहती हैं. बच्चों से भी ढंग से बात नहीं करतीं.

रसिका के किचन में घुसते ही कहने लगती हैं, ‘‘मैं कर तो रही हूं. यह यहां क्यों रख दिया?’’

यदि रसिका कुछ बना देती तो खुद उसे छूती भी नहीं. उस में मीनमेख निकालतीं. रसिका को उलटासीधा बोलतीं. बच्चों को डांटतीं.

मान्या स्कूल से कोई फार्म लाईर् थी भरने के लिए. उस में पापा का नाम सुरेश चंद्र लिखवाते हुए रसिका को हलक में कुछ अटकता महसूस हुआ. पति का नाम लेते ही उस की आंखें क्रोध से लाल हो उठीं.

पति के अत्याचारों की याद आते ही मुंह कसैला हो उठा. सुरेश के साथ रसिका ने अपने जीवन के कीमती पल बिताए थे. वह उसे प्यार तो करता था, परंतु गुस्सैल स्वभाव का होने के कारण किस पल नाराज हो कर गालीगलौज और मारपीट पर उतर आए, पता नहीं. इसलिए रसिका हर समय डरीसहमी सी रहती थी.

जब काव्या की डिलिवरी के वक्त रसिका मायके में थी तो अकेलेपन में सुरेश इमली के गदराए बदन पर आसक्त हो गया और उस ने उस के दिल में जगह बना ली. उसी की संगत में उसे पीने का शौक लग गया. बस वह इंसान से जानवर बन बैठा.

जब एक दिन अबोध काव्या को ज्यादा रोने पर उसे उठा कर जमीन पर पटकने को तैयार हो गया, तब रसिका दुर्गा बन कर उस से बेटी को छुड़ा पाईर् थी. उसी क्षण उस ने उस नर्क से निकल भागने का निश्चय कर लिया.

अगले दिन जब सुरेश का नशा उतर गया तो उस के रोने, माफी मांगने का रसिका पर कोई असर नहीं हुआ. फिर 2-4 दिन के अंदर ही मौका देख कर वह वहां से निकल ली.

रसिका ने केवल पति के खूनी पंजों से मुक्ति चाही थी. पैसे की कोई चाहत नहीं की थी. इसलिए आपसी सहमति से जल्दी तलाक हो गया था. उस के शरीर के जख्मों को देख कर ससुराल वालों के पास भी कहने को कुछ नहीं था एवं अपने बेटे के गुस्से के कारण वे लोग स्वयं ही परेशान थे.

रसिका अपनी मां के पास रहने लगी थी. उन्होंने भी दिल खोल कर उस का साथ दिया था.

पिता की प्रतिष्ठा के कारण उसे औफिस में परीक्षा देने का अवसर मिल गया और पास हो जाने पर नौकरी भी मिल गई.

जीवननैया सुचारु रूप से चल पड़ी थी. वे बेटियों को मां को सौंप कर निश्चिंत हो गई थी. मां को पैसे दे कर या घर का सामान ला कर अपना काम पूरा हो गया समझती थी.

रसिका को न ही बच्चों के टिफिन की कभी फिकर हुई न ही अपने टिफिन की. उसे भी मां के हाथों का खाना और नाश्ता मिलता रहा. व्यवस्था चल निकली थी.

रसिका औफिस में अपनी खुशियां तलाश कर ठहाके लगाती. वैभव उस का बौस था. दोनों के बीच दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. वह औफिस से अकसर ओवरटाइम कह कर देर से आने लगी थी. छुट्टी वाले दिन भी वैभव के पास किसी न किसी बहाने पहुंच जाती.

समस्या तब खड़ी हो गई जब उस के और वैभव के अफेयर के चर्चे मां के कानों तक पहुंचे. फिर तो उन की निगाहें और बोलचाल सब बदल गया.

मान्या 24 साल की हो गई थी और काव्या 22 की. रसिका औफिस से वैभव की बाइक पर लौट रही थी. गली के नुक्कड़ पर मां और मान्या दोनों ने वैभव को रसिका को किस करते हुए देख लिया. फिर तो घर में हंगामा होना स्वाभाविक था. मां को अपनी बेइज्जती बरदाश्त नहीं हुई. कहासुनी में बात इतनी बढ़ गई कि अगले 2 दिनों के अंदर ही वैभव ने उन के लिए 2 कमरों का फ्लैट ढूंढ़ लिया.

वैभव की मदद से रसिका की नई गृहस्थी आसानी से जम गई. घरेलू कामों के लिए विमला को भी वैभव ने ही भेजा था. सबकुछ सुचारु रूप से व्यवस्थित हो गया था.

वैभव के सन्निध्य से रसिका के जीवन को पूर्णता मिल गई थी. उस का जीवन पूरी तरह उलटपुलट गया था. वैभव रसिका के साथ ही रहने लगा था.

वैभव का साथ मिलने से रसिका के जीवन में सुरक्षा, खुशी, प्यार और जीवन का जो अधूरापन था, वह सब दूर हो कर खुशियों का एहसास होता. लेकिन यह समाज किसी को जीने नहीं देना चाहता.

मान्या हो या काव्या दोनों की आंखों में प्रश्नचिह्न देख रसिका अपनी आंखें चुराने के लिए मजबूर हो जाती थी.

वैभव ने तो बता ही दिया था कि उस के 2 बेटे हैं और पत्नी गांव में रहती है. उन की जिम्मेदारी उसी की है.

रसिका वैभव को अपना सर्वस्व मान बैठी थी. कब ये सब हुआ, उसे स्वयं मालूम न था.

उस दिन रसिका के सिर में दर्द था, इसलिए औफिस से जल्दी आ गई थी.

काव्या को रोता देख उस ने रोने का कारण पूछा तो काव्या ने बताया, ‘‘मम्मी, मैं सोनी आंटी के घर खेल रही थी, तो उन की दादी बोलीं कि तुम मेरे घर में मत आया करो. तुम्हारी मम्मी पराए मर्द के साथ रहती हैं.’’

रसिका गुस्से से तमतमा उठी, ‘‘तुम क्यों जाती हो उन के घर?’’

बेटी को तो रसिका ने डांट दिया, लेकिन उस की स्वयं की आंखें छलछला उठी थीं.

‘‘मम्मी पराया मर्द क्या होता है?’’

इस मासूम को वह क्या उत्तर देती. वह चुपचाप बाथरूम में जा कर सिसक उठी.

मान्या चुपचुप रहती. पर वैभव अंकल का घर पर रहना उसे भी अच्छा नहीं लगता. इसलिए  न तो वह पार्क में खेलने जाती और न ही पड़ोस में किसी से बात करती.

मगर सुजाता आंटी अकसर आतेजाते उसे बुला कर फालतू पूछताछ करती रहती थीं.

‘‘इधर आओ मान्या,’’ एक बुजुर्ग आंटी ने उसे बुलाया, जिन्हें वह जानती नहीं थी.

‘‘ये तुम्हारे पापा नहीं हैं,’’ उसी आंटी ने कहा.

मान्या आंखों में आंसू भर कर अपने दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी. घर पहुंच कर वह सूने घर में फूटफूट कर रोती रही. तब छोटी काव्या ने उसे गिलास में पानी ला कर दिया और उस के आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘क्यों रो रही हो दीदी?’’

उस ने सिसकते हुए कहा, ‘‘तुम नहीं समझोगी काव्या.’’

‘‘दीदी, तुम रोया मत करो. समझ लिया करो मैं ने सुना ही नहीं.’’

मान्या को काव्या पर बहुत प्यार आया. फिर खाना निकाल कर दोनों ने साथ खाया.

काव्या बोली, ‘‘दीदी, वहां नानी अपने हाथों से कैसे प्यार से खाना खिलाती थीं. वहां सब लोग कितना प्यार भी करते थे… दीदी, चलो टीवी देखते हैं.’’

‘‘नहीं काव्या मुझे होमवर्क करना है नहीं तो मम्मी आ कर डांट लगाएंगी.’’

काव्या के बहुत कहने पर दोनों बहनें कार्टून फिल्म लगा कर बैठ गईं. फिर सब भूल गईं.

रसिका 6 बजे औफिस से घर लौट आई. आज उस का मूड खराब था. वैभव ने अपने बेटे पार्थ का कृष्णा कोचिंग में एडमिशन करवा दिया था, इसलिए अब 6 महीने वह यहीं उन के साथ ही रहेगा.

बेटियों को टीवी देखते देख उस का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘तुम लोगों को केवल टीवी देखना है… पढ़नेलिखने से कोई मतलब नहीं है?’’

डांट के डर से दोनों ने जल्दी से टीवी बंद कर दिया और अपनीअपनी किताबें खोल कर बैठ गईं.

स्कूल का सालाना फंक्शन था. सब बच्चों के मम्मीपापा अपने बच्चों का प्रोग्राम देखने आए थे. मान्या ने भी डांस में भाग लिया था. उस की आंखें भी दूरदूर तक मां को तलाश रही थीं. लेकिन मम्मी के लिए पार्क का टैस्ट ज्यादा महत्त्वपूर्ण था. वह मायूस हो गई.

दिन बीतते रहे. मौम की प्राथमिकता वैभव अंकल और पार्थ थे. मां के लिए उन दोनों को खुश रखना ज्यादा जरूरी था.

घर की बात स्कूल तक सहेलियों और कैब के ड्राइवर के माध्यम से पहुंच जाती थी. वह स्कूल में अपनी सहेलियों की निगाहों में ही ‘अछूत कन्या’ बन गई थी. उन के मार्मिक प्रश्न कई बार उस के दिल को दुखा देते थे.

‘‘क्यों मान्या, तुम्हें अपने पापा की शक्ल याद है कि नहीं?’’

‘‘ये अंकल तुम्हें मारते होंगे?’’

‘‘प्लीज, घर की बात यहां मत किया करो,’’ वह झुंझला उठी थी.

रसिका ने फ्लैट खरीदने के लिए फंड से रुपए निकाले. कुछ रुपए वैभव ने अपने भी लगाए थे, इसलिए स्वाभाविक था कि रजिस्ट्री में उस का नाम भी हो. अकाउंट भी साझा हो गया था.

मान्या कालेज में पहुंच गई थी. उस का स्वभाव बदलता जा रहा था. अब वह रसिका की एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. फैशनेबल कपड़े, स्कूटी, कोचिंग और ट्यूशन के बहाने घर से गायब रहती. यदि रसिका कुछ कहती तो तुरंत जवाब देती कि आप अपनी दुनिया में व्यस्त रहो. मेरी अपनी दुनिया है. आप बस अंकल और पार्थ का खयाल रखें.

मान्या ने बचपन में अपने आसपास पड़ोसियों के द्वारा इतना तिरस्कार और अपमान झेला था कि अब वह उस अपमान का बदला अपने पैसे और नित नए फैशन के बलबूते दूसरों को आकर्षित कर के अपना प्रभुत्व बढ़ा कर लेती थी.

मान्या औनलाइन तरहतरह की डिजाइनर ड्रैसें और्डर करती रहती. यदि कभी रसिका उसे टोक दे, तो तुरंत उस के मुंह पर जवाब दे देती, ‘‘आप से तो कम ही खर्च करती हूं… आप को औफिस जाना होता है, तो मुझे भी कालेज जाना होता है.’’

रसिका बेटी के सामने अपनेआप को मजबूर पा रही थी. उसे सुधारने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था.

मान्या ने अपने स्कूल के समय में बहुत अपमान झेला था. लड़कियां उस से दोस्ती नहीं करती थीं. उसे अपने गु्रप में शामिल नहीं करती थीं. उसे अजीब निगाहों से देखती थीं.

सब अपनेअपने पापा के प्यार की बातें करतीं, कोई पिक्चर जाती, कोई घूमने जाती. सब फेसबुक पर फोटो शेयर करतीं. ये सब देखसुन कर मान्या की आंखें छलछला उठतीं. वह दूसरी तरफ मुंह घुमा कर उन की बातें सुनती, क्योंकि यदि उन की तरफ नजरें घुमाती तो वे बोलतीं, ‘‘तुम क्या जानो… तुम्हारे पापा को तो तुम्हारी मम्मी छोड़ कर पराए मर्द के साथ रह रही हैं.’’

यह कड़वा सच था. इस वजह से उस का मन घायल हो उठता था. वह बमुश्किल अपने आंसू रोक पाती थी.

उस के पड़ोस में रहने वाली रेनू उस के घर की 3-3 बात स्कूल में पहुंचा देती और फिर उन लोगों को चटखारे ले कर बातें बनाने का मौका मिल जाता.

कालेज में आने के बाद मान्या की समझ में आ गया कि रोने से कुछ नहीं होगा. अब उसे बिंदास हो कर जीना होगा.

मान्या को कुकिंग का शौक हो गया था. एक दिन खाने के शौकीन वैभव अंकल के लिए यूट्यूब पर देख कर मलाईकोफ्ते बनाए. अंकल ने खुश हो कर उस की जरूरत को समझते हुए उसे स्कूटी दिलवा दी.

वैभव ने उसे अपना एटीएम कार्ड भी दे दिया. अब तो उस के पंख निकल आए थे. कालेज कैंटीन और लड़कों के साथ दोस्ती के कारण उस का तो लाइफस्टाइल ही बदल गया था. एटीएम कार्ड से औनलाइन शौपिंग, फैशनेबल ड्रैसेज, नएनए हेयर कट में उस की दुनिया बदल गई.

वैभव को खुश रखने में उस का फायदा था. इसलिए वह उस के लिए हर संडे

कुछ स्पैशल बनाती और वह प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर अपने पास बैठा लेता और फिर खुश हो कर खाता. लेकिन मां को यह पसंद नहीं आता.

वह उसे कोई काम बता कर वहां से उठा देती.

कालेज में ढेरों दोस्त बन गए थे. वह सब को कैफेटेरिया में अकसर ट्रीट देती. उस की कुंठा पैसों के रास्ते बह गई थी.

वंश की बड़ी सी गाड़ी और उस के आकर्षक व्यक्तित्व में वह खो गई. उस का फाइनल ईयर था.

उधर काव्या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बैंगलुरु चली गई थी.

अब मान्या वैभव का काम आगे बढ़ कर देती. फिर चाहे वह सुबह की बैड टी हो या ब्रेकफास्ट. वह प्यार से उसे अपनी बांहों में भर लेता. रसिका ये सब देख कर सुलग उठती. लेकिन वैभव के सामने कुछ बोल नहीं पाती. दोनों के बीच वैभव का काम करने के लिए कंपीटिशन सा रहता.

रसिका मान्या को घूर कर देखती और फिर बोलती, ‘‘क्यों, किचन में घुसी रहती है? अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. काम करने के लिए विमला है तो?’’

मान्या वैभव की प्लेट में प्यार से पिज्जा रखते हुए बोली, ‘‘अंकल खा कर बताइए कैसा बना है? मैं ने यूट्यूब से देख कर टौपिंग करी है.’’

पिज्जा का एक टुकड़ा खुद खाने से पहले वैभव ने मान्या को खिलाया. फिर रसिका की घूरती आंखों से डर कर उस के मुंह में भी रखा और फिर खुश हो कर बोला, ‘‘लाजवाब, वैरी टेस्टी. मान्या कमाल है.’’

जबकि रसिका को पिज्जा स्वादहीन लग रहा था.

कुछ दिनों से रसिका देख रही थी कि वैभव औफिस में रोशनी को अपने कैबिन में बारबार बुलाता था कई बार उस ने झांक कर भी देखा. दोनों ठहाके लगाते हुए कौफी की चुसकियां ले रहे होते.

रसिका ने महसूस किया कि वैभव उस के हाथ से फिसलता जा रहा है. एक क्षण को उस के हाथपैर ठंडे हो गए. अब वह हैरानपरेशान रहने लगी थी. डिप्रैशन होने लगता था… आत्मविश्वास कम होता जा रहा था.

उन की मेड विमला अपने गुरूजी की महिमा का दिनभर बखान करती थी.

रसिका पति से तलाक लेने के बाद उसे पूरी तरह भूल चुका थी, क्योंकि वैभव ने उस के जीवन में रंग भर दिए थे. उसे पति जैसा ही सहारा मिल गया था.

रसिका ने जीजान से वैभव को खुश करने के लिए, उस के बेटे को भी अपने पास रखा, उसे पढ़ायालिखाया, उस की सारी सुखसुविधाओं का खयाल रखा. बीमार पड़ने पर पूरी देखभाल की. फिर भी वैभव उस से निगाहें फेर कर कभी रोशनी, तो कभी पूर्वा को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए कौफी पीता, लौंग ड्राइव पर जाता है. रसिका के लिए ये सब जीतेजी मरने वाली बात हो गई थी, इसलिए वह गुरू की शरण में जाने के बारे में बारबार सोचती रहती.

विमला अपनी मालकिन से संवेदना रखती थी. वह उस की कशमकश को देखसमझ रही थी.

रोजरोज उस का महिमामंडन सुनतेसुनते वह विमला के साथ उस के

गुरू के पास जाने को तैयार हो गई.

विमला अपनी मालकिन को अपने गुरू के पास ले जाने से पहले ही उस की पूरी कहानी सुना चुकी थी.

गुरू ने विमला को आशीर्वाद दिया था कि इस साल यकीनन उस के बेटा पैदा होगा. वह खुशी से कल्पनालोक में बेटे को गोद में खिलाती हुई महसूस कर रही थी.

रसिका के पहुंचने की खबर मिलते ही गुरू ने आंखें बंद कर ध्यान में लीन होने का नाटक किया.

आधे घंटे के इंतजार के बाद रसिका को अंदर बुलाया गया. वह कुछ कहती, उस से पहले ही गुरू ने उस की जन्मपत्रिका पढ़ कर सुना डाली.

गुरूजी पर अंधभक्ति के लिए उस का एक नाटक ही काफी था. रसिका की आंखों से धाराप्रवाह अश्रु बह निकले थे और उस ने आगे बढ़ कर गुरू के चरणों पर झुकना चाहा.

‘‘नहीं… नहीं… बेटी मेरा ब्रह्मचर्य मत भंग करो. मैं तो बालब्रह्मचारी हूं. मैं तो इस दुनिया में लोगों को कष्ट और संकट दूर करने के लिए ही आया हूं.

‘‘मैं तो हिमालय की कंदरा में जाने कितने बरसों से तपस्या करता रहा हूं. न ही मेरा कोई नाम है, न ही मुझे अपने जन्म का पता है.’’

रसिका नतमस्तक थी. बोली, ‘‘गुरूजी, अब आप ही मुझे बचाइए… वैभव दूसरी स्त्री के चक्कर में न पड़े.’’

‘‘बच्चा, मैं ने दिव्य दृष्टि से देख लिया है. वह रोशनी तुम्हारी जिंदगी में अंधेरा करना चाहती है.

‘‘यह भभूत ले जाओ… वैभव को खिलाती रहना. वह रोशनी की ओर अपनी नजरें भी नहीं उठाएगा.’’

रसिका खुशीखुशी क्व4 हजार का नोट उस के चरणों में रख कर ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सारा जहां उस की मुट्ठी में आ गया हो.

फिर तो कभी कलावा, कभी ताबीज तो कभी हवनपूजा. धीरेधीरे उस का विश्वास गुरूजी पर बढ़ता गया क्योंकि रोशनी यह कंपनी छोड़ दूसरी में चली गई थी और वैभव फिर से उस के पास लौट आया था.

रसिका खुश हो कर गुरू की सेवा में अपनी तनख्वाह का 40वां भाग तो निश्चित रूप से देने लगी थी. उस के अतिरिक्त समयसमय पर अलग से चढ़ावा चढ़ाती.

रसिका अपना भविष्य सुधारने में व्यस्त थी. उधर बेटी मान्या और वंश की दोस्ती प्यार में बदल गई थी.

वंश रईस परिवार का इकलौता चिराग था. वह रंगबिरंगी तितलियों की खोज में रहता था. वह देखने में स्मार्ट था. उस के पिता का लंबाचौड़ा डायमंड का बिजनैस था. कनाट प्लेस में बड़ा शोरूम था. इसलिए उस के डिगरी का कोई खास माने नहीं था. कालेज तो लिए मौजमस्ती की जगह थी. वह फाइनल ईयर में थी और कैंपस भी हो गया था.

मान्या वंश के घर भी जाती रहती थी. उस की मां और पापा से मिल चुकी थी.

मां सोना और सत्येंद्र को मान्या पसंद थी, इसलिए उस के हौसले और भी बढ़ गए थे.

एक दिन मान्या वंश को ले कर घर आई और

रसिका से मिलवाया.

रसिका भी वंश के आकर्षक व्यक्तित्व और नामीगिरामी परिवार का चिराग है, जान कर खुशी से फूल कर कुप्पा हो गई. उस ने बेटी को शादी के लिए वंश पर जोर डालने की सलाह दी.

वंश उसे अपना भावी दामाद लगने लगा था, इसलिए मान्या को उस के संग घूमनेफिरने की पूरी आजादी थी. दोनों अंतरंग रिश्ते की डोर से बंध गए थे.

रसिका ने एक दिन वंश और उस के परिवार को अपने घर पर लंच के लिए बुलाया ताकि वे लोग उन के बारे में अच्छी तरह से जानकारी ले लें और उन का घर और रहनसहन भी देख लें. वैभव उस दिन गांव गया था.

वंश के पिता ने उसी समय उन दोनों के रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी. उन्हें मान्या पसंद थी.

एक बार में ही सबकुछ इतनी जल्दी तय हो जाएगा, रसिका ने सपने में भी नहीं सोचा था.

रसिका खुशी से गद्गद हो कर गुरू के चरणों में गिर गई, ‘‘आप की महिमा अपरंपार है. आप की वजह से ही इतने बड़े परिवार में मेरी बेटी का रिश्ता तय होने जा रहा है.’’

सगाई समारोह पांचसितारा होटल में संपन्न हुआ. मान्या के परिवार से तो कोई था नहीं, केवल औफिस की मित्रमंडली थी.

वंश के नातेरिश्तेदारों का पूरा हुजूम था. उसी दिन शादी की तारीख भी तय कर दी गई.

यद्यपि वंश की मां ने आ कर मान्या के दादीनानी वगैरह के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन रसिका ने गोलमोल जवाब दे कर बात संभालने का प्रयास किया था.

वंश की कोठी देख वह बेटी की खुशी के लिए पैसा पानी की तरह बहा रही थी. वह अपने फंड से पैसे निकाल कर दिनरात शौपिंग और बुकिंग में जुटी थी.

वैभव कुछ उखड़ाउखड़ा सा रहता. शादी की तैयारी में कोई रुचि नहीं ले रहा था.

मेहंदी और संगीत का फंक्शन था. कल शादी थी. रसिका लोगों की आवभगत में लगी थी. सभी लोग उसे बधाई दे रहे थे. उस की निगाहें वैभव को चारों ओर ढूंढ़ रही थी. लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उस का फोन भी बंद था. वैभव को तो उस ने शादी के कई कामों की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. वह इतना गैरजिम्मेदार तो कभी नहीं था.

इतना बड़ा फंक्शन. लोगों की भीड़भाड़ थी. वंश के परिवार वालों के आने का समय हो चुका था. वैभव का फोन बंद आ रहा था.

किसी अनिष्ट की आशंका से रसिका का तनमन सिहर उठा. उस का चेहरा विवर्ण हो उठा. तभी उस का मोबाइल बज उठा. वंश की मां सोना का फोन था.

उन्होंने उखड़े अंदाज में उन्हें अपने घर बुलाया था.

मां के चेहरे को देखते ही मान्या समझ गई कि कुछ अघटित घट चुका है. उस ने वंश को फोन लगाया तो उस का फोन बंद आया.

सब तरफ मौन पसर गया. अकेली रसिका अपनेआप को संभाल नहीं पाई. उस का चेहरा आंसुओं से भीग गया. क्षणभर में सब को सांप सूंघ गया. जितने लोग उतनी बातें. माहौल में मौन के साथसाथ फुसफुसाहट भी हो रही थी. सब अपनेअपने अनुसार कयास लगा रहे थे.

मानसिक व्यथा के उन कठिन क्षणों में अनेक झंझावातों को झेलते हुए अनेकानेक हां और नहीं के विचारमंथन के बाद रसिका ने साहस जुटा कर सब के चेहरों के प्रश्नचिह्न के समाधान के लिए वंश के मातापिता के साथ उन की गलतफहमी को दूर करने की बात कही.

सब के चेहरे उम्मीद की किरण की रोशनी से नहा उठे.

‘‘मम्मी, आप को उन के सामने रोनेगिड़गिड़ाने की कोई जरूरत नहीं है,’’ मान्या ने कहा.

रसिका बेटी को डांट कर चुप रहने को कह कर अकेली गाड़ी में बैठ कर वंश के घर की ओर चल दी.

कुछ पलों के लिए रसिका के यहां सन्नाटा पसर गया था. कुछ लोगों के चेहरों पर

आशा की किरण जगमगा रही थी कि रसिका अपनी वाक्पटुता से सारी गलतफहमी को दूर कर देगी. तो कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन के चेहरों पर कुटिल मुसकान दिखाई दे रही थी कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे? जैसा करा है वैसा भरो. किसी का घर तोड़ा है तो उस का फल तो यहीं मिलना है. अब बेटी की शादी टूटेगी तो पता लगेगा कि किसी के घर में आग लगाने का नतीजा क्या होता है.

रसिका वंश की कोठी में पहुंची तो वहां पर वैभव और उस की पत्नी राधिका को देखते ही सबकुछ शीशे की तरह साफ हो चुका था.

वह उन लोगों के सामने रोई, गिड़गिड़ाई, राधिका के सामने हाथ जोड़े, माफी मांगी. वैभव मूक बैठा रहा.

वंश की मां के सामने अपनी बेटी की खुशियों की भीख झोली फैला कर मांगती रही. लेकिन वह टस से मस न हुई. बोली, ‘‘मैं ऐसी मां की बेटी से अपने बेटे की शादी नहीं कर सकती, जिस ने अपने जीवन में रिश्ते निभाना नहीं सीखा.’’

वह रोतीबिलखती रही. काफी देर इंतजार करने के बाद दोनों बेटियां भी वहां पहुंच गईं, ‘‘उठो मां, वंश जैसे कायर लड़के के साथ मैं खुद शादी नहीं करूंगी.’’

काव्या बोली, ‘‘दीदी, तू तो बच गई ऐसे कायर, कमजोर जीवनसाथी से.’’

‘‘मां, आप समझो बच गईं, क्योंकि इन फरेबियों का असली चेहरा शादी से पहले ही सामने आ गया.’’

‘‘मां, एक बार जोर से मुसकराओ…हम सब इन धोखेबाजों के चंगुल से बच गए.यह सैलिब्रेशन का समय है. आंसू बहाने का नहीं.’’

रसिका अपनी बेटियों के चेहरे देखती रह गई. उस का तन और मन दोनों जैसे शून्य और शक्तिहीन हो चुके थे. उस के लिए यह आघात सहना कठिन हो रहा था.

रसिका की आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी. वह मन ही मन घुट रही थी कि इतनी बड़ी दुनिया में उस का अपना कोई नहीं है. उस ने रिश्ता भी जोड़ा तो स्वार्थी वैभव से, जिस ने बीच मंझधार में छोड़ दिया.

रसिका ने अपनी बेटियों को गहरी नजर से देखा और फिर बोली, ‘‘मेरी प्यारी बेटियो सच में यह समय तो सैलिब्रेशन का ही है.’’

रसिका का चेहरा उस के साहस की रोशनी से जगमगा उठा था.

‘‘मान्या आंखों में आंसू भर कर अपने दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी. घर पहुंच कर वह सूने घर में फूटफूट कर रोती रही…’’

‘‘सब तरफ मौन पसर गया. अकेली रसिका अपनेआप को संभाल नहीं पाई. उस का चेहरा आंसुओं से भीग गया. क्षणभर में सब को सांप सूंघ गया…’’

Interesting Hindi Stories : मेरा दुश्मन

Interesting Hindi Stories : शादी के 5 साल बाद नन्हा पैदा हुआ तो मुझे लगा कि प्रकृति का इस से बड़ा उपहार और क्या हो सकता है. मैं उस का चेहरा एकटक निहारती पर दिल तक उस की सूरत उतरती ही नहीं थी. उस का चेहरा बस आंखों में ही बस जाता था. मेरे पति मदन हंसते, ‘‘आभा, तुम इस के चेहरे को किताब की तरह एकटक क्यों देखती हो? कलंदरा सा है, न शक्ल न रंग. बस, बेटा पा कर धन्य हुई जा रही हो. जैसे आज तक हमारे यहां बच्चे पैदा ही नहीं हुए हों. बस, गोद ही लिए जाते रहे हों.’’

मदन की बात से मेरे सर्वांग में चिनगारियां उड़ने लगतीं, ‘‘ओहो, तुम तो बड़े गोरे हो जैसे. बेटा तुम्हारे पर गया है. तुम जलते हो. अभी तक घर के एकमात्र पुरुष होने का गौरव था, सो ओछेपन पर उतर आए.’’

‘‘पर मां कहती हैं कि मैं बचपन में बहुत गोरा था. इस की तरह नहीं था.’’

‘‘रहने दो,’’ मैं ने बात काटी, ‘‘यह बड़ा होगा, शेव वगैरह करेगा तो अपनेआप ही इस का रूप निखर आएगा.’’

मदन को भले ही दलील दी पर नन्हे को हलदी, बेसन के उबटन से नहलाती थी, ‘हाय, मेरा बेटा सांवला क्यों हो?’

नन्हा बैठने लगा तो मैं बलिहारी हो गई. नन्हे ने खड़े हो कर एक कदम उठाया तो मैं खुशी से नाच उठी. नन्हे ने अभी तुतला कर बोलना शुरू ही नहीं किया था पर उस से बोलने के लिए मैं ने तुतलाना शुरू कर दिया.

मदन के लिए नन्हा आम बच्चों सा बच्चा था. शायद मां के तन से नहीं मन से भी शिशु का सृजन होता होगा तभी तो मेरे दिलोदिमाग में हर पल बस नन्हा ही समाया रहता.

नन्हा बोलने लगा. शिशु कक्षा में जाने लगा. उस के लिए एक नई दुनिया के दरवाजे खुल गए. अब वह बदल रहा था स्वतंत्र रूप से. मुझ से दूर हो रहा था. उस की आंखों में इतने चेहरे समा रहे थे आएदिन कि मेरा चेहरा अब धूमिल पड़ने लगा था.

मैं पति से कहती, ‘‘देखो, यह नन्हा कितना बदल रहा है…’’

मदन बीच में ही बात काट कर कहते, ‘‘तुम क्या चाहती हो, वह हमेशा तुम्हारे आंचल में मुंह छिपाए लुकाछिपी ही खेलता रहे? अब वह शिशु नहीं रहा, बड़ा हो गया है. कल को किशोर होगा. और भी बहुत तरह के बदलाव आएंगे. तुम भी हद करती हो, आभा.’’

नन्हे को मुझे किसी भी बात के लिए टोकनारोकना नहीं पड़ा. स्कूल से आ कर कपड़े बदल कर खाना खाता और अपनेआप ही गृहकार्य करने बैठ जाता था. मेरी मदद की जरूरत उसे किसी चीज में नहीं थी. स्कूल के साथियों की बातें वह मुझ से नहीं, मदन से करता था. दूसरे बच्चों को नखरे, फरमाइशें करते देखती तो मुझे नन्हे का बरताव और भी खल जाता.

मैं मदन से कहती, ‘‘नन्हा और बच्चों की तरह क्यों नहीं है?’’

लापरवाही के अंदाज में वे कहते, ‘‘शुक्र करो कि वैसा नहीं है. मुझ से तो शैतान बच्चे बिलकुल सहन नहीं होते, बच्चों के लिए बाहर के बजाय अपने भीतर के अनुशासन में रहना ज्यादा अच्छा है. फिर तुम खुद ही उस के लिए पहले से ही सबकुछ तैयार कर के रखती हो तो वह मांगे क्या? तुम अपनी तरफ से मस्त हो जाओ, नन्हा बिलकुल ठीक है.’’

एक बार मुझे बहुत तेज बुखार हो गया. मदन ने छुट्टी ले ली. नन्हे को स्कूल भेजा. फिर डाक्टर को बुला कर मुझे दिखाया. दवा, फल आदि लाए फिर उन्होंने खिचड़ी बनाई. मुझे यों मदन का काम करना अच्छा नहीं लग रहा था. घर की नौकरानी भी छुट्टी पर चली गई. मैं दुखी हो कर बोली, ‘‘अब बरतन भी धोने होंगे.’’

मदन मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘बरतन भी साफ कर लेंगे. तुम निश्ंिचत हो कर आराम करो. फिर नन्हा भी तो अब मदद कर देता है.’’

छुट्टी का दिन था. कमजोरी की वजह से आंखें बंद कर के मैं निढाल सी पड़ी थी. पास ही नन्हा और मदन कालीन पर बैठे थे. अचानक नन्हा बोला, ‘‘पिताजी, घर में मां की क्या जरूरत है?’’

‘‘क्यों, तुम्हारी मां पूरा घर संभालती हैं, तुम्हें कितना प्यार करती हैं, खाना बनाती हैं. अब देखो, हम दोनों से ही घर नहीं संभल रहा.’’

‘‘क्यों, आप खाना बना सकते हैं. मैं सफाई कर सकता हूं, बरतन भी धो सकता हूं. वह काम वाली बाई आ जाएगी तो फिर हमें ज्यादा काम नहीं करना पड़ेगा. हमें मां की क्या जरूरत है फिर?’’

एक पल को मदन चुप रहे. मेरे भीतर हाहाकार सा मच रहा था. मदन ने पूछा, ‘‘नन्हे, तुम मां को प्यार नहीं करते?’’

‘‘मैं आप को ज्यादा प्यार करता हूं.’’

‘‘मां बीमार हैं, तुम्हें बुरा नहीं लगता? मां तुम्हारा कितना खयाल रखती हैं, तुम्हें कितना प्यार करती हैं.’’

‘‘मां मुझे छोटा बच्चा समझती हैं, लेकिन मैं छोटा नहीं हूं. अब मैं बड़ा हो गया हूं,’’ नन्हा लापरवाही से बोला.

मेरी बंद आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. अंदर ही अंदर कुछ पिघल रहा था.

‘‘तो तुम बड़े हो गए हो, देवाशीष. ये पैसे लो और नुक्कड़ वाली दुकान से डबलरोटी और मक्खन ले कर आओ. हिसाब कागज पर लिखवा कर लाना. बचे पैसे संभाल कर जेब में रखना,’’ मदन ने नन्हे को भेज कर मेरे सिराहने बैठ धीरे से पुकारा, ‘‘आभा, आभा.’’

पर मैं चुप पड़ी रही. मदन ने मेरे चेहरे पर हाथ फेरा, ‘‘अरे, तुम रो रही हो? क्या हुआ?’’

बस, उन के इतना पूछते ही मेरा आंसुओं का दबा सैलाब पूरी तरह बह निकला.

‘‘पगली हो, यों भी कोई रोता है,’’ मदन ने भावुक होते हुए कहा, ‘‘लो, ग्लूकोज का गिलास, एक सांस में खाली कर दो.’’

मैं प्रतिरोध करती रही पर मदन ने गिलास खाली होने पर ही मेरे मुंह से हटाया.

‘‘तुम ने सुना, वह क्या कह रहा था कि मेरी कोई जरूरत नहीं है इस घर में,’’ कहते हुए मेरी आंखें फिर छलकने लगीं.

‘‘तुम भी क्या उस की बात पकड़ कर बैठ गईं. ये उम्र के बदलाव होते हैं,’’ मदन ने सेब काट कर आगे बढ़ाया, ‘‘लो, खाओ और जल्दी से अच्छी हो कर हमें अच्छा सा खाना खिलाओ. यार, मैं तो खिचड़ी, दलिया और नहीं खा सकता, बीमार हो जाऊंगा, तुम खा नहीं रही हो, चाटमसाला छिड़क दूं, स्वाद बदल जाएगा.’’

मदन उठ कर चाटमसाला रसोई से लाए. तभी नन्हा भी अंदर आया. बिलकुल मदन के अंदाज में उस ने सामान मेज पर रखा और जेब से पैसे निकाल कर बिल के साथ मदन को दिए.

मदन ने बिल और पैसे मुझे दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो, तुम्हारा बेटा बड़ा हो गया है. बाजार से अकेले सामान ले कर आया है.’’

‘‘अरे वाह,’’ मेरा मन अंदर से उमड़ रहा था. मैं उस का सिर सहला कर ढेर सा प्यार करना चाहती थी पर मैं ने अपने को रोक लिया. बोली, ‘‘अब तो अच्छा हो गया, जब तुम घर पर नहीं रहोगे, नन्हा मेरा बाजार का काम कर देगा.’’

एक गर्वीली सी मुसकान नन्हे के चेहरे पर खिल उठी.

मदन ट्रे में दूध के 3 गिलास ले कर आए और बोले, ‘‘चलो नन्हे, जल्दी से अपना दूध खत्म करो. फिर हम दोनों मिल कर खाना बनाएंगे.’’नन्हे ने आज्ञाकारी बेटे की तरह गटागट दूध खत्म किया और फिर पिता के संग रसोई में चला गया. उसे जाते देख कर मैं सोच रही थी, ‘अभी पूरे 4 साल का भी नहीं हुआ है पर कितना जिम्मेदार है. आम बच्चों जैसा नहीं है तभी तो इतना अलग है.’

मैं स्वस्थ होते ही घर के कामकाज में पहले की तरह लग गई. इसी बीच नन्हे को फ्लू हो गया. 3-4 दिन में बुखार उतरा. हम दोनों आंगन में धूप सेंक रहे थे. पड़ोस की ज्योति और रमा बुनाई का डिजाइन सीखने आ गईं.

ज्योति अपने घर से बगीचे की मूलियां लेती आई थी. उस ने उन्हें छीला और टुकड़े कर के प्लेट में नमकमिर्च छिड़क कर ले आई. हम तीनों बहुत स्वाद से खा रही थीं. नन्हे का दिल भी खाने के लिए मचल गया. वह बोला, ‘‘मां, मिर्च हटा कर हमें भी दो.’’

मैं बोली, ‘‘नहीं, मुन्ना, अभी तो तुम्हारा बुखार ही उतरा है. कितनी खांसी है, अभी तुम्हें मूली नहीं खानी.’’

नन्हा ललचाया सा देखता रहा. फिर बोला, ‘‘मां, एक टुकड़ा दे दो.’’

‘‘नन्हीं, बेटा, खांसी और बढ़ जाएगी.’’

‘‘नहीं, मां, जरा सा, बस छोटा सा टुकड़ा दे दो,’’ नन्हा मिन्नतें करने पर उतर आया.

मुझे तरस आया. मैं ने पास रखी पानी की बोतल से मूली धो कर उसे दे दी. पर जैसा स्वाद उसे हमें मूली खाते देख कर महसूस हो रहा था शायद वैसा स्वाद उसे नहीं आया.

फिर भी मूली का टुकड़ा खत्म कर के अनमना सा खड़ा रहा, ‘‘आप ने हमें मूली खाने को क्यों दी?’’

ज्योति उस की नकल करती बोली, ‘‘हमें मूली खाने को क्यों दी? अभी गिड़गिड़ा कर मंगते से मांग रहे थे इसीलिए दी.’’

नन्हा नाराजगी से मुझे देखता हुआ बोला, ‘‘हम तो छोटे बच्चे हैं, आप तो बड़ी हैं. आप को पता है न, बच्चों की बात नहीं मानते. मैं पिताजी को बताऊंगा कि मुझे खांसी है फिर भी आप ने मुझे मूली खाने को दी.’’

‘‘क्या मैं ने अपनी मरजी से दी थी?’’ मैं हैरान सी नन्हे को देख रही थी, ‘‘तू किस तरह गिड़गिड़ा कर मांग रहा था.’’

‘‘मांगने से क्या होता है… आप देती नहीं तो मैं खाता कैसे? अब खांसी होगी तो मैं पिताजी को बता दूंगा, आप ने मुझे मूली दी थी इसी से खांसी बढ़ी,’’ वह अडि़यल घोड़े सा अड़ा था.

रमा ने उस का कान धीमे से पकड़ा, ‘‘तुम्हारे जैसे बच्चे की तो पिटाई होनी चाहिए, समझे? आने दो भैया को, मैं उन्हें बताऊंगी कि तुम भाभी को कितना तंग करते हो.’’

नन्हे ने अपना कान छुड़ाया और आंगन में उड़ आई तितली के पीछे भाग गया.

रमा मुझ से बोली, ‘‘सच भाभी, मैं ने ऐसा दूसरा बच्चा कहीं नहीं देखा. तुम्हें तो यह किसी गिनती में नहीं गिनता.’’

मैं मन ही मन सोच रही थी कि बेटा है तो क्या हुआ, है तो मेरा दुश्मन. नन्हा सा, प्यारा दुश्मन.

Hindi Moral Tales : पूर्णाहुति – जया का क्या था फैसला

Hindi Moral Tales : मैं बैठक में चाय ले कर पहुंची तो देखा, जया दीदी रो रही हैं और लता दीदी उन्हें चुप भी नहीं करा रहीं. कुछ क्षणों तक तो चुप्पी ही साधे रही, फिर पूछा, ‘‘जया दीदी को क्या हुआ, लता दीदी? क्या हुआ इन्हें?’’

आंसुओं को रूमाल से पोंछ, जबरदस्ती हंसने का प्रयास करते हुए जया दीदी बोलीं, ‘‘हुआ तो कुछ भी नहीं… लता ने प्यार से मन को छू दिया तो मैं रो दी, माफ करना. तेरे यहां के आत्मीय माहौल में ले चलने के लिए लता से मैं ने ही कहा था, पर कभीकभी ज्यादा प्यार भी रास नहीं आता. जैसे ही लता ने अभय का नाम लिया कि मैं…’’ वे फिर रोने लगी थीं.

‘अभय को क्या हुआ?’ मैं ने अब लता दीदी की तरफ देखते हुए आंखोंआंखों में ही पूछा. इस सब से बेखबर अपने को संयत करने की कोशिश में जया दीदी स्नानघर की तरफ बढ़ गई थीं. मुंहहाथ धो कर उन्होंने कोशिश तो अवश्य की थी कि वे सहज लगने लगें या हो भी जाएं, पर लगता था कि अभी फिर से रो पड़ेंगी.

‘‘मुझे समझ नहीं आता कि कहूं या न कहूं, पर छिपाऊं भी क्या? बात यह है कि अभय अपनी पत्नी सहित मुझ से अलग होना चाह रहा है,’’ भर्राई आवाज में उन्होंने कहा.

‘‘इस में रोने की क्या बात है, जया दीदी, यह तो एक दिन होना ही था,’’ मैं ने कहा.

‘‘यही तो मैं इसे समझा रही थी कि हम दोनों तो इस बात को बहुत दिनों से सूंघ रही थीं,’’ लता दीदी कह रही थीं.

‘‘वह कैसे? तुम लोगों से अचला और अभय बहुत आत्मीयता से मिलते हैं, मेरी सहेलियों में तुम दोनों का घर आना तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है,’’ जया दीदी ने कहा.

‘‘हमारा घर आना क्यों बुरा लगेगा उन्हें. समस्या तो आप हैं, हम नहीं. और फिर बाहर वालों के सामने तो अपनी भलमनसाहत का सिक्का जमाना ही होता है. वाहवाही जो मिलती है उन से. कितनी सुंदर, सुघड़, मेहमाननवाज, सलीकेदार है आप की बहू. भई, मुसीबत तो घर के लोग होते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जया, यह समय सम्मिलित कुटुंब का नहीं रहा है. चाहे परिवार के नाम पर एक मां ही क्यों न हो. और फिर तू घबराती क्यों है? एक प्राध्यापिका की आय कम नहीं होती. 5 साल बाद रिटायर होती भी है तो पैंशन तो मिलेगी ही. एक नौकरानी रख लेना,’’ लता दीदी उन्हें समझा रही थीं.

‘‘जया दीदी, 2-3 साल बाद जो होना है वह अगर अभी हो जाता है तो यह आप के हित में ही है. जब से अभय की शादी हुई है, मैं तो दिनबदिन आप को कमजोर होते ही देख रही हूं. मुझे लगता है, आप भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती हैं. आज की सासें बहुओं को कुछ कह तो सकती नहीं, अपनेआप में ही तनाव झेलती और घुलती रहती हैं. मैं तो सोचती हूं, उन का आप से अलग हो जाना आप के लिए अच्छा ही है,’’ मैं ने कहा.

‘‘फिर जया, अब वह जमाना नहीं है कि तुम बेटे से कहो कि बेटा, मैं ने तुम्हें इसलिए पालापोसा था कि बुढ़ापे में तुम मेरी लाठी बन सको. हम लोगों को बच्चों से किसी भी प्रकार की अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए…’’

‘‘कुछ अपेक्षा नहीं है मेरी,’’ लता की बात को बीच में काटती हुई जया दीदी बोलीं, ‘‘मैं तो केवल यह चाहती हूं कि वे मेरे सामने रहें. साथ रहने के लिए तो मैं ने आगरा विश्वविद्यालय से मिल रही  ‘रीडरशिप’ अस्वीकार कर दी थी.’’

‘‘जो हुआ सो हुआ, अब तुम अपने को उन से अलग हो कर अकेले जिंदगी जीने के लिए तैयार करो. आजकल की मांओं को बेटों के मोह से मुक्त हो कर अलग रहने के लिए तैयार रहना चाहिए. मैं जानती हूं, कहने और करने में बहुत अंतर होता है पर मानसिक तैयारी तो होनी ही चाहिए. अभ्यास से अकेलापन खलता नहीं, विशेषकर हम लोगों को, जिन को पढ़नेलिखने की आदत है. फिर तू तो एक तरह से अकेली ही रही है. अभय के साथ तेरे भीतर का अकेलापन कटा हो, यह तो मैं नहीं मान सकती. हां, दायित्व जरूर था वह तुझ पर.’’

‘‘दायित्व ही सही, व्यस्त तो रखा उस ने मुझे. एक भरीपूरी दिनचर्या तो रही, किसी को मेरी जरूरत है, यह एहसास तो रहा. नहीं लता, यह अकेलापन मुझ से बरदाश्त नहीं होगा.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, जया. चाय ठंडी न कर. रोने का मन है तो बेशक रो ले.’’ लता दीदी के ऐसा कहते ही जया हंसने लगीं, ‘‘इसीलिए तो यहां आई थी कि तुम लोगों में बैठ कर कुछ सही सोच पाऊंगी, अपने में कुछ विश्वास प्राप्त कर सकूंगी.’’

जया दीदी मन से उखड़ी हुई थीं, इसीलिए लता दीदी और मेरे प्रयासों के बावजूद अन्यमनस्क वे एकाएक खड़ी हो गईं और लता दीदी से कहने लगीं, ‘‘चल, अब और न बैठा जाएगा आज.’’

मुझे भी लगा, उन्हें अपने को समेटने के लिए बिलकुल अकेलेपन की जरूरत है, जिस का सामना करने से वे बच रही हैं. मैं ने कहा, ‘‘जया दीदी, मेरे पति तो आजकल बाहर हैं, इसलिए जब चाहे, आइए मेरे पास. मुझे आप का आना अच्छा ही लगेगा. इच्छा हो तो 2-4 दिन मेरे पास ही रह जाइए. मैं फिर दोहरा रही हूं, अभय और अचला के चले जाने पर आप अपने ढंग से रह सकेंगी. हमें भी आप के घर आने पर ज्यादा अपनापन लगेगा. अभी तो लेदे कर आप का शयनकक्ष ही अपना रह गया है.’’

जया दीदी लता दीदी के साथ चली गई थीं, पर मैं अभी भी उन्हीं में खोई हुई थी. अभय बड़ा हो गया है, यह उसी दिन महसूस हुआ. यों समझदार तो वह मुझे पहले से ही लगता था. उन दिनों हिंदी विषय पढ़ने के लिए वह अकसर मेरे पास आता था.

एक दिन वह बोला, ‘‘मौसी, ऐसा कुछ बताइए कि…’’

‘‘एक रात में ही तू पढ़ कर पास हो जाए…है न?’’ उस की बात पूरी करते हुए मैं ने कहा था, ‘‘पर बेटे, थोड़े दिन अपने पाठ्यक्रम को एक बार पूरी तरह से पढ़ तो ले.’’

उस की अभिव्यक्ति में कहीं कोई कमी नहीं थी. साहित्य पर उस की पूरी पकड़ थी. कठिनाई आती थी भाषा के संदर्भ में.

‘‘मौसी, इस बार पास नहीं हुआ तो, ‘औनर्स’ की डिगरी नहीं मिलेगी.’’

‘‘नहीं, मुझे पूरा भरोसा है कि तुम हिंदी पास ही नहीं करोगे, अच्छे अंक भी पाओगे.’’

‘‘ओह, धन्यवाद मौसी.’’

‘आषाढ़ का एक दिन’ नामक नाटक पढ़ने में उसे कठिनाई हो रही थी. मुझे याद है, इसलिए मैं ने उसे उन्हीं दिनों ‘संभव’ द्वारा हो रहे इसी नाटक को देखने के लिए भेजा था. परिणाम यह हुआ था कि ‘विलोम’ के चरित्र को उस ने परीक्षा में बड़े खूबसूरत ढंग से लिखा था. जीवन की उसे समझ थी.

‘मल्लिका’ की वेदना वह उस उम्र में भी महसूस कर सका था. फिर अपनी मां की वेदना को? क्या हुआ है अभय को? पर एकसाथ तनावग्रस्त रहने से तो अच्छे, मधुर संबंधों के साथ लगाव रखते हुए अलग रहना कहीं ज्यादा बेहतर है.

लंबी चुप्पी तो नहीं रही जया दीदी के साथ, पर मिलना भी नहीं हुआ. एक दिन फोन आया तो पूछ ही बैठी, ‘‘दीदी, अभय और अचला ने यह निर्णय क्यों लिया? कोई तात्कालिक कारण तो रहा ही होगा?’’

‘‘हां,’’ उन्होंने बताया, ‘‘तू जानती ही है कि नवरात्रों के अंतिम 2 दिन मेरा उपवास रहता है. अचला सुबह 9 बजे चली जाती थी. 10.50 पर मेरी भी कक्षा थी. सुबह मैं ने दोनों को चाय दे ही दी थी, अष्टमी की वजह से नाश्ते के लिए अंडा नहीं रखा था. बस, इसी पर चिल्ला पड़ी, ‘मैं सुबहसुबह पूरीहलवा नहीं खा सकती.’

‘‘मैं ने इतना कहा, ‘बेटे, आज अंडा, औमलेट या जो चाहिए, बाहर हीटर पर बना लो.’

‘‘पर वह तो पैर पटकती हुई चली गई. उसी शाम दफ्तर से वह मायके चली गई और अभय ने मुझे सूचित किया कि वह अलग घर का इंतजाम कर रहा है.

‘‘मेरे पूछने पर कि मेरा दोष क्या है? वह बोला, ‘मां, आप पर बहुत ज्यादा बोझ है. यहां रहते अचला कभी अपना दायित्व नहीं समझेगी और नासमझ ही रह जाएगी. व्यर्थ में आप को भी परेशानी होती है.’

‘‘नया मकान लेने के बाद अभय के साथ अचला भी आई थी. बहुत प्यार से मिली, ‘मां, हम क्या करें, हमें यहां अजीब तनाव सा लगता था. कभी देर रात तक अभय और हमारे मित्र आते तो लगता, आप परेशान हो रही हैं. आप कुछ कहती तो नहीं थीं, पर हमें अपराधबोध होता था. कुछ घुटाघुटा सा लगता था. यहां देखने में कुछ भी गलत न होने पर लगता था, जैसे सबकुछ ही गलत है.’

‘‘बस, ऐसे चले गए वे. अभय अभी हर शाम आता है, पर कब तक आएगा?’’ जया दीदी शायद रो रही थीं क्योंकि एकाएक चुप्पी के बाद ‘अच्छा’ कहा और रिसीवर रख दिया.

लगभग 15 वर्ष पहले कालेज में एक मेला लगा था. जया दीदी छुट्टी पर थीं. हम लोगों के जोर देने पर अभय को घुमाने के लिए मेले में ले आई थीं.

मां से पैसे ले कर वह कोई खेल खेलने चला गया. भोजन के बाद जया दीदी ने उसे वापस चलने के लिए कहा तो वह बोला, ‘अभी नहीं, अभी और खेलेंगे.’

खेलने के बाद मां को ढूंढ़ते हुए वह हमारे स्टाल पर आया तो हम चाय पी रहे थे. जया दीदी ने फिर कहा था, ‘अब तो चलो अभय, दूर जाना है, बस भी न जाने कितनी देर में मिले.’

तब वह गरदन ऊंची करते हुए बोला, ‘डरती क्यों हो मां. मैं हूं न साथ.’ लेकिन मेला उठने से पहले ही मां को बिना ठिकाने पर पहुंचाए उस ने अपना अलग ठिकाना कर लिया था.

मैं इसी में खोई हुई थी कि फोन की घंटी से तंद्रा भंग हुई, ‘‘अरे आप, सच, लंबी उम्र है आप की. आप ही को याद कर रही थी. कैसी हैं आप? क्या कहा, अभी आप के पास आना होगा? लता दीदी भी आ रही हैं? जैसा आदेश, आती हूं,’’ कहते हुए मैं ने फोन बंद कर दिया था.

जया दीदी का उल्लासयुक्त स्वर बहुत दिनों बाद सुना था. नया फ्लैट दिखाना चाह रही थीं. हमारे परामर्श के बाद ही लेंगी, ऐसा सोच रही थीं. फ्लैट बहुत अच्छा था. लेने का निर्णय भी उसी समय कर लिया था उन्होंने और ‘बयाना’ भी हमारे सामने ही दे दिया था.

बस, अब तो इंतजार था उन के गृहप्रवेश का. एक दिन शाम को उन का फोन आया कि वे हवन नहीं करवा रहीं. कुछ लोगों को सूचित करने के लिए उन्होंने कहा था. वह सब तो किया, पर लगा कि जया दीदी के पास जाना चाहिए.

लता दीदी को फोन कर के उन के फ्लैट पर पहुंची.

‘‘वाह, यहां तो जो आ जाए उस का जाने का मन ही न हो,’’ इस वाक्य से जया दीदी खुश होने के बदले आहत ही हुईं, ‘‘जाने की क्या बात, यहां तो कोई आना ही नहीं चाहता. अभय, अचला ने हवन पर आने से इनकार कर दिया है. सोचा, वही नहीं आ रहे तो फिर काहे का हवन. अब तो लगने लगा है, पूर्णाहुति की बेला में ही आएगा वह यहां. पर प्रश्न है, क्या उस समय मैं उसे देख पाऊंगी?’’

बैठक के द्वार पर मैं स्तब्ध सी खड़ी रह गई थी. क्या कहती, निराश, निढाल, थकी मां को.

Hindi Kahaniyan : नाराजगी – बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

Hindi Kahaniyan : सुमित पिछले 2 सालों से मुंबई के एक सैल्फ फाइनैंस कालेज में पढ़ा रहा था. पढ़नेलिखने में वह बचपन से ही अच्छा था. लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद वह नौकरी के लिए मुंबई जैसे बड़े शहर आ गया था. उस की मम्मी स्कूल टीचर थीं और वे लखनऊ में ही जौब कर रही थीं.

मम्मी के मना करने के बावजूद सुमित ने मुंबई का रुख कर लिया था.यहां के जानेमाने मैनेजमैंट कालेज में वह अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था. वहीं उसी विभाग में उस के साथ संध्या पढ़ाती थी. स्वभाव से अंतर्मुखी और मृदुभाषी संध्या बहुत कम बोलने वाली थी. सुमित को उस का सौम्य व्यवहार बहुत अच्छा लगा. सुमित की पहल पर संध्या उस से थोड़ीबहुत बातें करने लगी और जल्दी ही उन में अच्छी दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदलने लगा था. संध्या को इस बात का एहसास होने लगा था. सुमित जबतब यह बात उसे जता भी देता. संध्या अपनी ओर से उसे जरा भी बढ़ावा न देती. वह जानती थी कि वह एक विधवा है. उस के पति की 7 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी.

उस का 8 साल का एक बेटा भी था. सुमित को उस ने सबकुछ पहले ही बता दिया था. इतना सबकुछ जानते हुए भी उस ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया. एक दिन उस ने संध्या के सामने अपने दिल की बात कह दी.‘‘संध्या, मु झे तुम बहुत अच्छी लगती हो और तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम्हें मैं पसंद हूं?’’ उस की बात सुन कर संध्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. वह चेतनाशून्य सी हो गई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह सुमित से क्या कहे. किसी तरह से अपनेआप को संयत कर वह बोली, ‘‘आप ने अपनी और मेरी उम्र देखी है?’’ ‘‘हां, देखी है. उम्र से क्या होता है? बात तो दिल मिलने की होती है. दिल कभी उम्र नहीं देखता.’’ ‘‘यह सब आप ने किताबों में पढ़ा होगा.’’ ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा संध्या. मैं सच में तुम्हें अपना लाइफ पार्टनर बनाना चाहता हूं.’’ ‘‘प्लीज, फिर कभी ऐसी बात मत कहना. सबकुछ जान कर भी मु झ से यह सब कहने से पहले आप को अपने घरवालों की रजामंदी लेनी चाहिए थी.’’‘‘

उन से तो मैं बात कर ही लूंगा, पहले मैं तुम्हारे विचार जानना चाहता हूं.’’ ‘‘मैं इस बारे में क्या कहूं? आप ने तो मु झे कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा,’’ संध्या बोली. उस की बातों से सुमित इतना तो सम झ गया था कि संध्या भी उसे पसंद करती है लेकिन वह उस की मम्मी को आहत नहीं करना चाहती. उसे पता है, एक मां अपने बेटे के लिए कितनी सजग रहती है. सुमित के पापा की मौत तब हो गई थी जब वह मात्र 2 साल का था. उस के पिता भी टीचर थे और उस की मम्मी उस के पिता की जगह अब स्कूल में पढ़ा रही थीं.सुमित की मम्मी आशा की दुनिया केवल सुमित तक सीमित थी. वह खुद भी यह बात अच्छी तरह से जानता था कि मम्मी इस सदमे को आसानी से बरदाश्त नहीं कर पाएंगी, फिर भी वह संध्या को अपनाना चाहता था.

संध्या सोच रही थी कि वह भी तो अर्श की मां है और अपने बच्चे का भला सोचती है. भला कौन मां यह बात स्वीकार कर पाएगी कि उस का बेटा अपने से 7 साल बड़ी एक बच्चे की मां से शादी करे.यही सोच कर वह कुछ कह नहीं पा रही थी. दिल और दिमाग आपस में उल झे हुए थे. अगर वह दिल के हाथों मजबूर होती है तो एक मां का दिल टूटता है और अगर दिमाग से काम लेती है तो सुमित के प्यार को ठुकराना उस के बस में नहीं था. इसीलिए उस ने चुप्पी साध ली. सुमित उस की मनोदशा को अच्छी तरह से सम झ रहा था. संध्या की चुप्पी देख कर वह सम झ गया था कि वह भी उसे उतना उसे पसंद करती है जितना कि वह. 

संध्या के लिए इतनी बड़ी बात अपने तक सीमित रखना बहुत मुश्किल हो रहा था. घर आ कर उस ने अपनी मम्मी सीमा को यह बात बताई. सीमा बोली, ‘‘यह क्या कह रही हो संध्या? लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’मम्मी, मु झे दुनिया वालों की परवा नहीं. आखिर दुनिया ने मेरी कितनी परवा की है? मु झे तो केवल सुमित की मम्मी की चिंता है. वे इस रिश्ते को कैसे स्वीकार कर पाएंगी?‘‘संध्या, तुम्हें अब सम झदारी से काम लेना चाहिए.’’‘‘तभी मम्मी, मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. मैं चाहती हूं कि पहले वह अपनी मम्मी को मना ले.’’ ‘‘तुम ठीक कह रही हो. ऐसे मामले में बहुत सोचसम झ कर कदम आगे बढ़ाने चाहिए.’’

संध्या की मम्मी सीमा ने उसे  नसीहत दी.कुछ दिनों बाद सुमित ने फिर संध्या से वही प्रश्न दोहराया-‘‘तुम मु झ से कब शादी करोगी?’’ ‘प्लीज सुमित, आप यह बात मु झ से दूसरी बार पूछ रहे हो. यह कोई छोटी बात नहीं है.’’ ‘‘इतनी बड़ी भी तो नहीं है जितना तुम सोच रही हो. मैं इस पर जल्दी निर्णय लेना चाहता हूं.’’ ‘‘शादी के निर्णय जल्दबाजी में नहीं, अपनों के साथ सोचसम झ कर लिए जाते हैं. आप की मम्मी इस के लिए राजी हो जाती हैं तो मु झे कोई एतराज नहीं होगा.’’उस की बात सुन कर सुमित चुप हो गया. उस ने भी सोच लिया था अब वह इस बारे में मम्मी से खुल कर बात कर के ही रहेगा. सुमित ने अपनी और संध्या की दोस्ती के बारे में मम्मी को बहुत पहले बता दिया था.‘‘मम्मी, मु झे संध्या बहुत पसंद है.’’‘‘कौन संध्या?’’‘‘मेरे साथ कालेज में पढ़ाती है.’’‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. तुम्हें कोई लड़की पसंद तो आई.’’‘‘मम्मी. वह कुंआरी लड़की नहीं है. एक विधवा महिला है. मु झ से उम्र में बड़ी है.’’‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’‘‘मैं सच कह रहा हूं.’’‘‘और कोई सचाई रह गई हो तो वह भी बता दो.’’‘‘हां, उस का एक 8 साल का बेटा भी है.’

’ सुमित की बात सुन कर आशा का सिर घूम गया. उसे सम झ नहीं आ रहा था उस के बेटे को क्या हो गया जो अपने से उम्र में बड़ी और एक बच्चे की मां से शादी करने के लिए इतना उतावला हो रहा है. उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे संध्या ने सुमित  पर जादू कर दिया हो जो उस के प्यार में इस कदर पागल हो रहा है. उसे दुनिया की ऊंचनीच कुछ नहीं दिखाई दे रही थी.‘‘बेटा, इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हें वही विधवा पसंद आई.’’‘‘मम्मी, वह बहुत अच्छी है.’’‘‘तुम्हारे मुंह से यह सब तारीफें मु झे अच्छी नहीं लगतीं,’’ आशा बोलीं.वे इस रिश्ते के लिए बिलकुल राजी न थीं. उन्हें सुमित का संध्या से मेलजोल जरा सा पसंद नहीं था. इसी बात को ले कर कई बार मम्मी और बेटे में तकरार हो जाती थी.

दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे. संध्या का नाम सुनते ही आशा फोन काट देतीं.शाम को सुमित ने मम्मी को फोन मिलाया.‘‘हैलो मम्मी, क्या कर रही हो?’’‘‘कुछ नहीं. अब करने को रह ही क्या गया है बेटा?’’ आशा बु झी हुई आवाज में बोलीं.‘‘आप के मुंह से ऐसे निराशाजनक शब्द अच्छे नहीं लगते. आप ने जीवन में इतना संघर्ष किया है, आप हमेशा मेरी आदर्श रही हैं.’’‘‘तो तुम ही बताओ मैं क्या कहूं?’’‘‘आप मेरी बात क्यों नहीं सम झती हैं? शादी मु झे करनी है. मैं अपना भलाबुरा खुद सोच सकता हूं.’’‘‘तुम्हें भी तो मेरी बात सम झ में नहीं आती. मैं तो इतना जानती हूं कि संध्या तुम्हारे लायक नहीं है.’’‘‘आप उस से मिली ही कहां हो जो आप ने उस के बारे में ऐसी राय बना ली? एक बार मिल तो लीजिए. वह बहू के रूप में आप को कभी शिकायत का अवसर नहीं देगी.’’‘

‘जिस के कारण शादी से पहले मांबेटे में इतनी तकरार हो रही हो उस से मैं और क्या अपेक्षा कर सकती हूं. तुम्हें कुछ नहीं दिख रहा लेकिन मु झे सबकुछ दिखाई दे रहा है कि आगे चल कर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’‘‘प्लीज मम्मी, यह बात मु झ पर छोड़ दें. आप को अपने बेटे पर विश्वास होना चाहिए. मैं हमेशा से आप का बेटा था और रहूंगा. जिंदगी में पहली बार मैं ने अपनी पसंद आप के सामने व्यक्त की है.’’‘‘वह मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है. तुम इस बात को छोड़ क्यों नहीं  देते बेटे.’’‘‘नहीं मम्मी, मैं संध्या को ही अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. मु झे उस के साथ ही जिंदगी बितानी है. मैं जानता हूं मु झे इस से अच्छी और कोई नहीं मिल सकती.’’

आशा में अब और बात सुनने का सब्र नहीं था. उस ने फोन कट कर दिया. सुमित प्यार और ममता की 2 नावों पर सवार हो कर परेशान हो गया था. वह इस द्वंद्व से जल्दी छुटकारा पाना चाहता था. उस ने कुछ सोच कर कागजपेन उठाया और मम्मी के नाम चिट्ठी लिखने लगा.‘मम्मी, ‘आप मु झे नहीं सम झना चाहतीं, तो कोई बात नहीं पर यह पत्र जरूर पढ़ लीजिएगा. पता नहीं क्यों संध्या में मु झे आप की जवानी की छवि दिखाई देती है.‘आप ने जिस तरीके से जिंदगी बिताई है वह मु झे याद है. उस समय मैं बहुत छोटा था और यह बात नहीं सम झ सकता था लेकिन अब वे सब बातें मेरी सम झ में आ रही हैं. परिवार की बंदिशों के कारण आप की जिंदगी घर और मु झ तक सिमट कर रह गई थी.

आप का एकमात्र सहारा मैं ही तो था जिस के कारण आप को नौकरी करनी पड़ रही थी और लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. यह बात मु झे बहुत बाद में सम झ  में आई.‘जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो मु झे लगता मेरी मम्मी इतनी सुंदर हैं फिर भी वे इतनी साधारण बन कर क्यों रहती हैं? पता नहीं, उस समय आप ने अपनी भावनाओं को कैसे काबू में किया होगा और कैसे अपनी जवानी बिताई होगी? समाज का डर और मेरे कारण आप  ने अपनेआप को बहुत संकुचित कर  लिया था. संध्या बहुत अच्छी है. वह मु झे पसंद है. मैं उसे एक और आशा नहीं बनने देना चाहता.

मैं उस के जीवन में फिर से खुशी लाना चाहता हूं. जो कसर आप के जीवन में रह गई थी मैं उसे दूर करना चाहता हूं. हो सके आप मेरी बात पर जरूर ध्यान दें.‘आप का बेटा, सुमित.’पत्र लिखने के बाद सुमित ने उसे पढ़ा और फिर पोस्ट कर दिया. आशा ने वह पत्र पढ़ा तो उन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने तो कभी ऐसा सोचा तक न था जो कुछ सुमित के दिमाग में चल रहा था. उसे याद आ रहा था कि सुमित की दादी जरा सा किसी से बात करने पर उन्हें कितना जलील करती थीं. किसी तरह सुमित से लिपट कर वे अपना दर्द कम करने की कोशिश करती थीं.आज पत्र पढ़ कर रोरो कर उन की आंखें सूज गई थीं. उन्हें अच्छा लगा कि उन का बेटा आज भी उन के बारे में इतना सबकुछ सोचता है. बहुत सोच कर उन्होंने सुमित को फोन मिलाया.

‘‘हैलो बेटा.’’उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो मम्मी?’’मां की आंसुओं में डूबी आवाज सुन कर वह सम झ गया कि उस की चिट्ठी मम्मी को मिल गई है.‘‘बेटा. मैं मुंबई आ रही हूं तुम से मिलने…’’ इतना कहतेकहते उन  की आवाज भर्रा गई और उन्होंने फोन रख दिया. यह सुन कर सुमित की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने यह बात संध्या को बताई तो वह भी खुश हो गई. एक हफ्ते बाद वे मुंबई पहुंच गई. आशा ने संध्या से मुलाकात की. दोनों के चेहरे देख कर उस का मन अंदर से दुखी था. उम्र की रेखाएं संध्या के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं और उस के मुकाबले सुमित एकदम मासूम सा लग रहा था. दिल पर पत्थर रख कर आशा ने शादी की इजाजत दे दी.

यह जान कर संध्या के परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे. उस के बड़े भैया अशोक ने संध्या से पहले भी कहा था कि संध्या तू कब तक ऐसी जिंदगी काटेगी. कोई अच्छा सा लड़का देख कर शादी कर ले. अर्श की खातिर तब उस ने दूसरी शादी करने का खयाल भी अपने जेहन में नहीं आने दिया था. इधर सुमित की बातों और व्यवहार से वह बहुत प्रभावित हो गई थी. आशा की स्वीकृति मिलने पर उस ने शादी के लिए हां कर दी.संध्या की मम्मी सीमा ने जब यह बात सुनी तो उन्हें भी बड़ा संतोष हुआ, बोलीं, ‘‘संध्या, तुम ने समय रहते बहुत अच्छा निर्णय लिया है.’’‘‘मम्मी, मेरा दिल तो अभी भी घबरा रहा है.’’‘‘तुम खुश हो कर नए जीवन में प्रवेश करो बेटा. अभी कुछ समय अर्श को मेरे पास रहने दो.’’ ‘‘यह क्या कह रही हो मम्मी?’’‘‘मैं ठीक कह रही हूं बेटा. तुम्हारी दूसरी शादी है, सुमित की नहीं. उस के भी कुछ अरमान होंगे. पहले उन्हें पूरा कर लो, उस के बाद बेटे को अपने साथ ले जाना.’’ बहुत ही सादे तरीके से संध्या और सुमित की शादी संपन्न हो गई थी. आशा एक हफ्ते मुंबई में रह कर वापस लौट गई थीं.

अभी उन के रिटायरमैंट में 4 महीने का समय बाकी था. संध्या ने उन से अनुरोध किया था, ‘मम्मीजी, आप यहीं रुक जाइए.’ तो उन्होंने कहा था कि वे 4 महीने बाद आ जाएंगी जब तक वे लोग भी अच्छे से व्यवस्थित हो जाएंगे. वे अभी तक इस रिश्ते को मन से स्वीकार नहीं कर पाई थीं. इकलौते बेटे की खातिर उन्होंने उस की इच्छा का मान रख लिया था. 4 महीने यों ही बीत गए थे. सुमित बहुत खुश था और संध्या भी. वह शाम को रोज अर्श से मिलने चली जाती और देर तक अपनी मम्मी व बेटे से बातें करती. अर्श मम्मी को मिस करता था. सुमित के जोर देने पर वह कुछ दिनों के लिए मम्मी के पास आ गई थी ताकि अर्श को पूरा समय दे सके.रिटायरमैंट के बाद आशा के मुंबई आ जाने से संध्या की घर की जिम्मेदारियां कम हो गई थीं. उस ने अपना घर पूरी तरह से आशा पर छोड़ दिया था.

शाम को संध्या अपने हाथों से खाना बनाती. बाकी सारी व्यवस्था आशा ही देखतीं.आशा महसूस कर रही थीं कि संध्या का व्यवहार वाकई बहुत अच्छा है. भले ही वह सुमित से उम्र में बड़ी थी लेकिन हर जगह पर पति का पूरा मान और खयाल रखती थी. वह कभी उस से बेवजह उल झती न थी. कुछ ही दिनों में आशा के मन में उस के प्रति कड़वाहट कम होने लगी थी. वे सोचने लगीं दुनिया वालों का क्या है? कुछ दिन बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. आखिर जिंदगी तो उन दोनों को एकसाथ बितानी है. उन का आपस में सामंजस्य ठीक रहेगा, तो परिवार की खुशियां अपनेआप बनी रहेंगी.शाम के समय अकसर संध्या खिड़की से खड़े हो कर नीचे ग्राउंड में बच्चों को खेलते हुए देखती रहती.

एक मां होने के कारण आशा उस की भावनाओं से अनभिज्ञ न थी. उसे अपना बेटा अर्श बहुत याद आता था लेकिन उस ने कभी भी अपने मुंह से उसे साथ रखने के लिए नहीं कहा था. एक दिन आशा ने ही पूछ लिया.‘‘तुम्हारा बेटा कैसा है?’’‘‘मम्मीजी, आप का पोता ठीक है.’’‘‘तुम्हें उस की याद आती होगी?’’ आशा ने पूछा तो संध्या ने मुंह से कुछ नहीं बोला लेकिन उस की आंखें सजल हो गई थीं. आशा सम झ गईं कि वह कुछ बोल कर उन का दिल नहीं दुखाना चाहती, इसीलिए कोई उत्तर नहीं दे रही.‘‘तुम उसे यहीं ले आओ. इस से तुम्हारा मन उस के लिए परेशान नहीं होगा,’’ आशा ने यह कहा तो संध्या को अपने कानों पर विश्वास न हुआ. उस ने चौंक कर आशा को देखा.‘‘मैं ठीक कह रही हूं. मैं भी एक मां हूं और सोच सकती हूं तुम्हारे दिल पर क्या बीतती होगी?’’

संध्या ने आगे बढ़ कर उन के पैर छूने चाहे तो आशा ने उसे गले लगा लिया, ‘‘बीती बातें भूल जाओ और नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करो.’’सुमित ने सुना तो उसे भी बहुत अच्छा लगा. वह तो पहले भी उसे अपने साथ लाना चाहता था लेकिन संध्या ने उसे रोक लिया था.दूसरे दिन वे अर्श को साथ ले कर आ गए. अर्श ने अजनबी नजरों से आशा को देखा तो संध्या बोली, ‘‘बेटे, ये तुम्हारी दादी हैं, इन के पैर छुओ.’’ अर्श ने आगे बढ़ कर उन के पैर छुए. आशा ने पूछा, ‘‘कैसे हो अर्श?’’‘‘मैं अच्छा हूं, दादी.’’  उस के मुंह से दादी शब्द सुन कर आशा को बहुत अच्छा लगा. सीमा भी खुश थीं कि अर्श को अपनी मम्मी मिल गई थी. सुमित और आशा के बड़प्पन के आगे संध्या के मायके वाले सभी नतमस्तक थे. उन्होंने कभी सोचा भी न था कि एक बार संध्या की जिंदगी में इतना बड़ा हादसा हो जाने के बाद उस के जीवन में इस तरह से फिर से खुशियों की बहार आ सकती है.

आशा ने परिस्थितियों से सम झौता कर के सबकुछ स्वीकार कर लिया था. अपने दिल से उन्होंने संध्या के प्रति सारी शिकायतें दूर कर दी थीं. सुमित खुश था कि उस ने अपनी मम्मी की ममता के साथ अपने प्यार को भी पा लिया था.आशा अर्श का भी बहुत अच्छे से खयाल रखती थीं. वह भी उन के साथ घुलमिल गया था. उस के दिन में स्कूल से आने पर वे उसे प्यार से खाना खिलातीं और होमवर्क करा देतीं. शाम को वह बच्चों के साथ खेलने चला जाता. आशा पार्क में बैठ कर बच्चों को खेलते देखती रहती. सबकुछ सामान्य हो गया था. तभी एक दिन अचानक आशा के पेट में बहुत दर्द हुआ और उस के बाद उन्हें ब्लीडिंग होने लगी. यह देख कर संध्या और सुमित घबरा गए.

वे तुरंत उन्हें ले कर नर्सिंगहोम पहुंचे. आशा की हालत बिगड़ती जा रही थी, यह देख संध्या बहुत परेशान थी. उस ने तुरंत अपनी मम्मी को फोन मिलाया.कुछ ही देर में सीमा अपने बेटे अशोक के साथ वहां पहुंच गईं. संध्या की घबराहट देख कर उस की मम्मी सीमा बोलीं, ‘‘संध्या, धीरज रखो. सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘पता नहीं मम्मीजी को अचानक क्या हो गया? मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’ ‘‘हिम्मत से काम लो, डाक्टर उन की जांच कर रहे हैं. अभी कुछ देर में रिपोर्ट आ जाएगी. तब पता चल जाएगा कि उन्हें क्या हुआ है?’’ अशोक बोले.डाक्टर ने उन्हें भरती कर के तुरंत जांच की और बताया, ‘‘इन के गर्भाशय में रसौली है. उस का औपरेशन करना जरूरी है, वरना मरीज को खतरा हो सकता है.’’ ‘‘देर मत कीजिए डाक्टर साहब. मम्मी को कुछ नहीं होना चाहिए,’’ संध्या बोली. पूरा दिन इसी भागदौड़  में बीत गया था. संध्या ने अर्श को मम्मी के साथ घर भेज दिया था और वह खुद उन्हीं की देखरेख में लगी  हुई थी. शाम तक औपरेशन हो गया.

औपरेशन के बाद आशा को कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था. अभी उन्हें ठीक से होश नहीं आया था. सुमित बोला, ‘‘संध्या, तुम घर जाओ. मैं मम्मी की देखभाल कर लूंगा.’’ ‘‘नहीं, तुम घर जाओ. उन की देखभाल के लिए किसी औरत का होना जरूरी है. मैं यहां रुकूंगी.’’ संध्या के आगे सुमित की एक न चली और वह वहीं रुक गई. एक हफ्ते तक संध्या ने आशा की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह दोपहर में थोड़ी देर के लिए कालेज जाती. उस के बाद घर आ कर अपने हाथों से आशा के लिए खाना तैयार करती और फिर नर्सिंगहोम पहुंच जाती. शाम को सुमित मम्मी के साथ रहता. इतनी देर में संध्या घर आ कर खाना तैयार करती और उसे ले कर नर्सिंगहोम आ जाती. फिर दूसरे दिन सुबह घर लौटती.संध्या ने सास की सेवा में रातदिन एक कर दिया था. इस मुश्किल घड़ी में भी वह घर, औफिस और आशा का पूरा खयाल रख रही थी. सुमित यह सब देख कर हैरान था. आशा को अपने से ज्यादा संध्या की चिंता होने लगी थी. संध्या की मम्मी, भाई, भाभी और करीबी रिश्तेदार उन को देखने रोज नर्सिंगहोम पहुंच रहे थे.संध्या की देखभाल से हफ्तेभर में आशा की सेहत में सुधार हो गया था.

वे 8 दिनों बाद घर आ गईं. संध्या की सेवा से आशा बहुत खुश थीं. घर आते ही उन्होंने इधरउधर नजर दौड़ाई और पूछा, ‘‘अर्श कहां है?’’ ‘‘वह नानी के पास है.’’‘‘उसे यहां ले आती.’’‘‘अभी आप को आराम की जरूरत है. वह कुछ दिनों बाद यहां आ जाएगा,’’ संध्या बोली.संध्या के भैया, भाभी और मम्मी सभी ने अपनी ओर से उन की  सेवा और देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.संकट की यह घड़ी भी बीत गई थी, लेकिन अपने पीछे कई सुखद अनुभव छोड़ गई थी. आशा की बीमारी के कारण दोनों परिवार बहुत नजदीक आ गए थे. सीमा अशोक और उस की पत्नी रिया के साथ आशा को देखने उन के घर पहुंचे. वे अपने साथ ढेर सारे फल ले कर आए थे.‘‘इन सब की क्या जरूरत थी? आप अपने साथ हमारे लिए सब से कीमती दहेज तो लाए ही नहीं हैं,’’ आशा बोली तो वे सब चौंक गए.सीमा ने डरते हुए पूछा, ‘‘आप किस दहेज की बात कर रही हैं?’’‘‘हमारे लिए तो सब से कीमती दहेज हमारा पोता अर्श है. मैं उस की बात कर रही हूं,’’ आशा बीमारी की हालत में भी हंस कर बोलीं तो माहौल हलकाफुलका हो गया. आशा की सारी नाराजगी दूर हो गई थी.

Influencer Genia Chadha : बातों के जादू से बनाई हजारों के दिलों में जगह

Genia Chadha का सबसे शॉर्ट इंट्रोडक्शन है कि वह एक इंफ्लूएंसर है. लेकिन हर किसी को देखकर मुस्कान बिखेरने वाली इस गर्ल की ढेरों खूबियां है जैसे वह एक मॉडल हैं, इसके साथ ही एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट और व्लॉगर भी हैं.

हिमाचल के चंबा की खूबसूरत वादियों में जन्मी जीनिया की मीठी बातें लोगों को उनका दीवाना बनाती है और यही वजह है कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर इनके ढेरों फॉलोअर्स हैं. मास कम्युनिकेशन की स्टूडेंट रह चुकी जीनिया का कहना है कि उनकी लाइफ का टर्निंग पॉइंट वह मोमेंट था जब उन्होंने पहली बार कैमरे के सामने एंकरिंग की. उन्होंने कई बड़े मीडिया हाउसेज के लिए रिपोर्टिंग की और तो और एंटरटेनमेंट में खास दिलचस्पी होने की वजह से फिल्म स्टार्स के इंटरव्यू करती रहीं.

जीनिया का कहना है कि आज छोटे शहरों के ढेरों कलाकारों ने अपने जुनून की वजह से बड़े शहरों में अपना मुकाम बनाया जैसे कपिल शर्मा, पंकज त्रिपाठी. जीनिया भी इन सेलिब्रेटीज से प्रेरित होकर इस बड़ी दुनिया में अपनी एक खास पहचान बनाना चाहती हैं.

जीनिया का सपना है कि वह अपना पॉडकास्ट शुरू करें. एक ऐसा पॉडकास्ट जिसके सभी दीवाने बन जाए. वह चाहती हैं इस पॉडकास्ट में वह अपनी जर्नलिज्म स्किल्स का इस्तेमाल करें और एक उद्देश्य के रूप में इसे पॉपुलर बनाएं. 10 मई को मदर्स डे सेलिब्रेट करने के लिए आयोजित गृहशोभा इंस्पायर मॉम्स इवेंट में पहुंची जीनिया ने बताया कि किस तरह उनकी मां ने उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में मदद की.

क्या है Skin Cycling का ट्रैंड

Skin Cycling : आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हरकोई चाहता है कि एक ऐसा स्किनकेयर रूटीन जो काम भी करे और स्किन को थकाए नहीं. जहां एक तरफ बाजार में एक से बढ़ कर एक प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, वहीं दूसरी तरफ ओवरलोडिंग स्किन को नुकसान भी पहुंचा सकती है. ऐसे में स्किन साइक्लिंग एक ऐसा नया साइंटिफिक ट्रैंड बन कर सामने आया है, जो स्किन को ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स से फायदा दिलाता है और वह भी बिना साइड इफैक्ट्स के.

हैली बीबर, कर्टनी कार्डिशियन से ले कर कई ब्यूटी स्पैशलिस्ट स्किन साइक्लिंग को फौलो कर रहे हैं. इन का कहना है कि इस से स्किन ज्यादा क्लीयर, ब्राइट और कैमरा रैडी रहती है.

क्या है स्किन साइकलिंग

यह दरअसल एक रोटेशन बेस्ड स्किनकेयर रूटीन है जिस में 4 रातों का एक साइकिल फौलो किया जाता है. हर रात का एक अलग रूटीन होता है. पहले स्किन को ऐक्सफोलिएट किया जाता है, फिर उसे ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स दिए जाते हैं और फिर 2 दिनों तक उसे रैस्ट और रिपेयर के लिए छोड़ा जाता है.

इस रूटीन का पर्पज है स्किन को बैलेंस देना

जब हर रात एक ही ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट जैसे रैटिनौल या ऐसिड्स लगते हैं तो स्किन पर इरिटेशन, रैडनैस या ड्राईनैस हो सकती है. लेकिन जब इन ऐक्टिव्स को स्मार्टली रोटेट किया जाए तो स्किन को भरपूर फायदा भी मिलता है और रिकवरी का समय भी मिलता है.

4 रातों का साइक्लिंग रूटीन

पहली रात: पहली रात ऐक्सफोलिएशन नाइट है. इस दिन स्किन को कैमिकल ऐक्सफोलिएंट से साफ किया जाता है. इस में ग्लाइकोलिक ऐसिड 7त्न, लैक्टिक ऐसिड या सैलीसिलिक ऐसिड जैसे एएचए/बीएचए प्रोडक्ट्स त्वचा की डैड सैल्स हटाते हैं. इस से न सिर्फ स्किन स्मूद बनती है, बल्कि बाद में प्रयोग किए जाने वाले बाकी इनग्रीडिऐंट्स भी स्किन में अच्छी तरह घुलमिल जाते हैं.

दूसरी रात: यह रैटिनौइड नाइट है. दूसरे दिन रैटिनौल या रैटिनौइड 0.3त्न का इस्तेमाल होता है. यह इनग्रीडिऐंट स्किन सैल टर्नओवर को तेज करता है जिस से फाइनलाइंस, डलनैस, पिगमैंटेशन जैसी समस्याएं धीरेधीरे कम होती हैं.

तीसरी और चौथी रात: इन्हें रिकवरी नाइट्स कहते हैं. इन 2 रातों में स्किन को आराम दिया जाता है यानी कोई हार्श ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट स्किन पर नहीं लगाया जाता. बस, जैंटल मौइस्चराइजर, बैरियर रिपेयर क्रीम और हाइड्रेटिंग सीरम जैसे कि ह्यूलोरोनिक ऐसिड, नियासिनामाइड, सिरामिड मौइस्चराइजर, स्क्वैलें औयल या स्लीपिंग मास्क लगाए जाते हैं ताकि स्किन खुद को रिपेयर कर सके.

मिलती है स्मूद स्किन

स्किन साइक्लिंग को अपनाने के बाद कुछ ही हफ्तों में महसूस होता है कि स्किन पहले से ज्यादा स्मूद और ग्लोइंग हो गई है. रैडनैस और ड्राइनैस कम होने लगती है. स्किन की सैंसिटिविटी कम होने लगती है और स्किन बैरियर मजबूत हो जाता है. यह रूटीन खासतौर पर उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो पहले स्किनकेयर में बहुत सारे प्रोडक्ट्स एकसाथ यूज कर के नुकसान कर बैठते थे.

असल में स्किन साइक्लिंग एक साइंटिफिक अप्रोच है जो स्किन को रैस्ट और रिस्पौंस दोनों का समय देती है. यह खासकर उन लोगों के लिए अच्छा है जिन की स्किन सैंसिटिव है या जो ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स को टौलरेट नहीं कर पाते. यह लौंग टर्म में स्किन हैल्थ को बेहतर बनाता है.

यदि आप की स्किन में ऐक्ने की समस्या है तो पहले डर्मैटोलौजिस्ट से सलाह लें और अगर आप किसी मैडिकेशन (ओरल रैटिनौइड) पर हैं तो इस के साथ मिला कर ऐक्सपेरिमैंट न करें. पहली बार रेटिनौल या ऐसिड्स यूज कर रहे हैं तो ‘लो ऐंड स्लो’ रूल अपनाएं.

जब स्किन को वक्त और सम?ादारी के साथ ट्रीट किया जाए तभी वह सच में चमकती है. स्किन साइक्लिंग एक ऐसा ट्रैंड है जो ट्रैंड से बढ़ कर हैल्दी आदत बन सकता है. अगर आप भी स्किनकेयर को ले कर उलझन में हैं तो इस रूटीन  को अपनाएं और कुछ ही हफ्तों में आप की स्किन मानो बोल उठेगी, ‘थैंक यू.’

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