Best Story in Hindi: अनावश्यक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं

Best Story in Hindi: ‘‘सुगंधा,  क्या तुम मु झ से शादी करोगी प्लीज?’’ प्रदीप के व्यवहार से ऐसा लगता मानो वह ऐसा कहना चाहता है. यदि वह ऐसा कह दे तो क्या उसे हां कर देनी चाहिए? यह प्रश्न अकसर सुगंधा के दिमाग में तैरता रहता था. इस में कोई दो मत नहीं कि प्रदीप एक बहुत ही अच्छा व्यक्ति था. वह पिछले 6 वर्षों से सुगंधा के साथ था. उन के बीच बहुत अच्छी कैमिस्ट्री थी. उन के प्यार की कोई सीमा नहीं थी. पर एक बात सुगंधा के मन में हमेशा कौंधती रहती कि कहीं उसे बाद में यह पछतावा न हो कि उस ने किसी और के साथ डेटिंग क्यों नहीं की. तो क्या उसे कुछ और लोगों के साथ डेटिंग पर जा कर देखना चाहिए?

सुगंधा को खुद पता नहीं था कि वह क्या चाह रही है. उसे खुद ही पता नहीं था कि क्यों अन्य लोगों के साथ डेटिंग पर जाने का विचार उस के मन में आ रहा है और अगर वह किसी और के साथ डेटिंग पर जाए तो क्या उस का उद्देश्य पूरा हो जाएगा? यदि प्रदीप उस के निर्णय से अवगत होगा तो फिर उस की क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या वह भी अन्य किसी लड़की के साथ डेटिंग पर जाने की नहीं सोचेगा यह देखने के लिए कि कोई सुगंधा से बेहतर उसे मिलता है या नहीं और यदि वह ऐसा करेगा तो वह कैसा महसूस करेगी? क्या इस से दोनों को नुकसान नहीं होगा? दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं तो क्या इस तरह के प्रयोग करना सही होगा?

सुगंधा अपनी दोहरी मानसिकता से परेशान हो रही थी. किसी से इस बारे में सलाह लेने के लिए बहुत ही बेचैन थी. तभी उस का ध्यान श्वेता पर गया. वह उस की बहुत ही अच्छी दोस्त थी और बहुत ही तर्कपूर्ण तरीके से बात करती थी. उस से मु झे सही सलाह मिलेगी, उस ने सोचा और फिर श्वेता को फोन लगाया.

‘‘हैलो सुगंधा. कैसे याद किया?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘श्वेता, तुम्हारा समय चाहिए था. कुछ बातें करनी थी,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘अरे मेरी बैस्ट फ्रैंड, तुम्हारे लिए समय ही समय है. कभी भी आ जाओ,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘कुछ जरूरी बातें करनी हैं और तुम्हारे साथ क्वालिटी टाइम भी बिताना है. इसलिए कभी भी नहीं, जब तुम्हारे पास समय हो तब आऊंगी,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तो फिर शनिवार को आ जाओ. हम लोग ट्राइटन मौल में ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ फिल्म देखेंगे. डिनर लेंगे और मस्ती करेंगे,’’ श्वेता ने कुछ सोच कर कहा.

‘‘शनिवार को तो प्रदीप ने जवाहर कला केंद्र जाने का कार्यक्रम बना लिया है, ‘समाज’ देखने के लिए. यदि तुम रविवार को फ्री हो तो आऊं?’’ सुगंधा ने अपना प्रस्ताव रखा.

‘‘अरे रानी तुम्हारे लिए हमेशा फ्री हूं. आ जाओ रविवार को,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘फिर ठीक है. 5 बजे मैं पहुंच जाऊंगी,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘डन, इंतजार करूंगी रविवार को. बाय,’’ श्वेता ने कहा और फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रविवार को सुगंधा श्वेता के फ्लैट पर ठीक 5 बजे पहुंच गई. उस ने डोरबैल बजाई. श्वेता ने दरवाजा खोला. सुगंधा को देख कर खुश हो गई. उस ने सुगंधा को कस कर गले लगा लिया. दोनों अंदर आईं और बैठ कर गप्पें लड़ाने लगीं. श्वेता ने ट्रे में 2 कप चाय और एक प्लेट में बिस्कुट ला कर रख दिए. दोनों चाय सिप करने लगीं.

‘‘मैं ने 2 टिकट ले लिए हैं इवनिंग शो के. शो साढ़े 6 बजे शुरू होने वाला है. हमारे पास आधा घंटा है. क्या इतना काफी है तुम्हारी जरूरी बात के लिए?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘अरे, तुम्हें देखते ही मैं उस बात को भूल ही गई. आधा घंटा काफी है तुम्हारे जैसी फ्रैंड, फिलौस्फर और गाइड के लिए मेरी जरूरी बात पर सलाह के लिए,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तो शुरू करो अंत्याक्षरी,’’ श्वेता ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जैसाकि तुम जानती हो प्रदीप और मैं एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं लेकिन मैं अपने जीवन में सिर्फ प्रदीप से ही मिली हूं. किसी और के साथ डेटिंग नहीं की है. क्या मु झे कुछ और लोगों के साथ डेटिंग करनी चाहिए यह जानने के लिए कि प्रदीप ही मेरे लिए सब से अच्छा है या कोई और अच्छा मु झे मिल सकता है,’’ सुगंधा ने अपनी बात रखी.

‘‘हूं,’’ श्वेता ने एक ठंडी सांस ली. कुछ देर सोचती रही. सुगंधा उसे सोचते हुए देखती रही. कुछ देर के बाद पूछा, ‘‘क्या हुआ? कुछ गलत सवाल कर दिया मैं ने? मु झे यह डर है कि कहीं बाद में मु झे पछताना न पड़े,’’ सुगंधा चिंतित हो कर बोली.

‘‘जहां तक मैं तुम दोनों के रिश्ते को जानती हूं, मु झे लगता है कि तुम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो, दोनों एकदूसरे का खयाल रखते हो और कोई भी बड़ा विवाद नहीं है तुम दोनों के बीच,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘बात तुम्हारी सही है. मु झे तो लगता है हम दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं,’’ सुगंधा ने मोहक मुसकान के साथ कहा.

‘‘क्या तुम ने इस बात पर विचार किया है कि अगर यही काम प्रदीप करना चाहे तो तुम्हें कैसा लगेगा या फिर यदि तुम अपना विचार प्रदीप से बताओ तो उसे कैसा लगेगा?’’ श्वेता ने पूछा. सुगंधा चुप रह गई.

‘‘यदि तुम दोनों एकदूसरे से इतना प्यार करते हो, यदि तुम दोनों बैस्ट फ्रैंड हो तो तुम दोनों ने वह पा लिया है जो कई लोग जिंदगीभर तलाश करने के बाद भी नहीं पाते. मैं खुद 3 लोगों के साथ डेट पर गई हूं. किसी को मैं ने ऐसा नहीं पाया जिस के साथ मैं रिलेशन बना सकूं. अभी तुम दोनों 24-25 वर्ष की उम्र में हो. तुम दोनों के ऊपर कोई दबाव भी नहीं है जल्दी शादी करने का. तुम्हारे परिवार को भी कोई जल्दी नहीं है. प्रदीप के परिवार के बारे में मु झे जानकारी नहीं है,’’ बोल कर श्वेता चुप हो गई.

‘‘उस के ऊपर भी जल्दी शादी करने के लिए परिवार का कोई दबाव नहीं है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तुम दोनों जब तक भावनात्मक रूप से, वित्तीय रूप से, हर रूप से तैयार न हो जाओ तब तक एकदूसरे को किसी प्रकार का वचन मत दो. अभी समय लो और देखो कि तुम्हारा संबंध कैसा रहता है. जहां कोई समस्या नहीं है वहां समस्या खड़ी मत करो. अकारण किसी के साथ डेटिंग की इच्छा मत रखो. हां, यदि प्रदीप के व्यवहार के कारण तुम किसी और के साथ डेटिंग करना चाहो तो अलग बात है,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘मेरे मन में यों ही यह खयाल आ रहा था. प्रदीप के साथ किसी प्रकार की परेशानी नहीं है.हम तो एकदूसरे के साथ बहुत ही मित्रतापूर्वक रहते हैं,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘फिर मेरे खयाल से कोई अनावश्यक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. तुमने मेरी परेशानी दूर कर दी, अनिश्चितता के दलदल से बाहर निकाल दिया. थैंकयू वेरी मच फार आ नाइस सजेशन.’’ सुगंधा ने कहा. फिर बोली, ‘‘पर क्यों न थोड़ा प्रदीप का मन टटोल कर देखा जाए?’’

‘‘वह कैसे?’’ श्वेता ने पूछा.

‘‘यह तो तुम बताओ न. तुम्हारे पास आई हूं सलाह के लिए.’’

‘‘मैं ने तो बिलकुल ईमानदारीपूर्वक सलाह दे दी तुम्हें. अब तुम्हारे सिर पर प्रदीप का मन टटोलने का भूत सवार हो गया है तो इस का उपाय तुम्हीं सोचो.’’

कुछ देर सुगंधा सोचती रही. फिर बोली, ‘‘एक फेक प्रोफाइल बना कर उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजती हूं. फिर देखती हूं उस के दिल का हाल.’’

‘‘मैं तो ऐसा करने की सलाह नहीं दूंगी.’’

‘‘तुम सलाह भले ही मत दो पर मैं ऐसा करूंगी. थोड़ा रोमांच भी होना चाहिए न जीवन में?’’ सुगंधा ने कहा.

श्वेता ने अपने कंधों को उचकाया. संदेश साफ था कि वह इस मामले में पड़ना नहीं चाहती है.

‘‘और किस नाम से फेक प्रोफाइल बनाऊंगी जानती हो?’’ सुगंधा ने शरारतपूर्वक पूछा.

श्वेता की भौंहें सिकुड़ गईं.

‘‘श्वेता. यही नाम रखूंगी नकली प्रोफाइल में,’’ सुगंधा ने हंसते हुए कहा.

श्वेता ने आंखें तरेरी.

‘‘पर फोटो तुम्हारा नहीं लगाऊंगी,’’ सुगंधा ने ऐसे कहा मानो उस पर एहसान कर रही हो.

श्वेता ने अपने हाथ से अपना माथा ठोक कर कहा, ‘‘लगता है तुम पर कोई भूत सवार हो गया है. जब यही करना था तो फिर मु झ से सलाह लेने की क्या आवश्यकता थी?’’

‘‘तुम मेरी बैस्ट फ्रैंड हो तो सलाह किस से लूं?’’ सुगंधा ने शोखी से कहा.

‘‘पर इस में मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं, बैस्ट फ्रैंड होने के बाद भी,’’ श्वेता ने भी उसी शोखी से कहा.

फिर दोनों चले गए फिल्म देखने और अपनेअपने निवास पर वापस आ गए.

सुगंधा ने सचमुच एक प्रोफाइल बनाया श्वेता ने नाम से. फोटो किसी मौडल का लगाया और उसे कुछ ऐसे अवतार में परिवर्तित कर लिया कि स्पष्ट पहचान न हो. फिर उस ने प्रदीप को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. कुछ दिनों तक रिक्वैस्ट यों ही पड़ी रही. पर 3-4 दिनों के बाद उस के फ्रैंड रिक्वैस्ट को स्वीकार कर लिया. श्वेता ने उस के साथ फ्लर्ट करना शुरू कर दिया. और जवाब में उसे दोगुना फ्लर्ट मिला.

चिंता में पड़ गई सुगंधा. प्रदीप ऐसा होगा उस ने सोचा भी न था. कई दिनों तक इसी प्रकार बातें होती रहीं. प्रदीप बड़ी ही तत्परता से सोशल मीडिया पर जवाब देता था. बहुत ही प्यारीप्यारी बातें करता था. जब उस ने उस से पूछा कि क्या वह किसी के साथ रिलेशनशिप में है तो उस ने साफ मना कर दिया. जब सुगंधा फोन पर या व्यक्तिगत रूप से उस से बात करती तो वह इस बात का जिक्र नहीं करता था.

एक दिन सुगंधा ने पूछा भी कि लगता है तुम किसी और के साथ रिलेशनशिप में रहने का मन बना रहे हो तो प्रदीप ने साफसाफ मना कर दिया. सुगंधा का मन उदास हो गया. उसे लगा वह कितना बड़ा धोखेबाज है.

एक दिन वह प्रदीप से मिलने गई. मिलने के लिए एक ट्राइटन मौल के एक फूड कोर्ट को निर्धारित किया गया. उस का चेहरा कुछ उदासी लिए हुए था. पहले वह प्रदीप से मिलती थी तो बहुत ही उत्साहित रहती थी पर आज उस के मन में जरा भी उत्साह नहीं था.

‘‘तुम कुछ उदास लग रही हो?’’ प्रदीप ने सुगंधा से पूछा.

‘‘हां. जमाने में ऐसीऐसी बातें देखने में आती हैं तो मन थोड़ा उदास हो जाता है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तुम तो फिलौस्फर की तरह बातें करने लगी. हुआ क्या यह तो बताओ?’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘आज किसी अखबार में पढ़ा कि एक लड़के ने अपनी 5 साल की रिलेशनशिप को तोड़ कर दूसरी लड़की से रिलेशनशिप बना ली,’’ सुगंधा ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा.

‘‘अखबार और तुम? कब से पढ़ने लगी अखबार तुम? मैं तो

तुम्हें इतनी अच्छी तरह से जानता हूं जितना कि तुम खुद को भी नहीं जानती,’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘अरे कोई पढ़ रहा था. बस हैडिंग देखा था,’’ सुगंधा ने बात को टाल दिया.

‘‘पर तुम क्यों परेशान हो रही हो?’’ प्रदीप ने शांत स्वर में पूछा.

‘‘यह समाचार परेशान करने वाला नहीं है?’’ सुगंधा ने पूछा. उस की आवाज में नाराजगी और उदासी का मिश्रण था.

‘‘ऐसी भी क्या परेशान करने वाली बात है? 5 साल में रिलेशनशिप उतनी पक्की थोड़े ही हो पाती है. हमारी रिलेशनशिप को देखो. 6 वर्ष की है. मु झे कोई लड़की रिलेशनशिप में रहने के लिए बोल कर देखे. ठोकर मार दूंगा,’’ प्रदीप ने कहा.

सुगंधा ने प्रदीप को संदेहभरी नजरों से देखा.

‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ प्रदीप ने पूछा. फिर बोला, ‘‘अच्छा तुम बताओ तुम्हें कोई लड़का प्रस्ताव देगा कि मेरी जगह पर तुम उस के साथ रिलेशनशिप बनाओ तो तुम तैयार हो जाओगी?’’

‘‘देखना होगा. यदि वह तुम्हारी अपेक्षा अधिक वफादार होगा तो स्वीकार करने में हरज क्या है?’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘कैसी बातें कर रही हो?’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘मैं कैसी बातें कर रही हूं. तुम श्वेता नाम की लड़की के साथ रिलेशनशिप बनाने के सपने देख रहे हो और मु झ से कह रहे हो कि मैं कैसी बातें कर रही हूं?’’ सुगंधा एकदम से क्रोधित हो कर बोली. आसपास के लोग उन की ओर देखने लगे.

‘‘सभी इधर देख रहे हैं. थोड़ा धीरे बोलो,’’ प्रदीप ने कहा. फिर बोला, ‘‘पर श्वेता तो फेक प्रोफाइल है. उस नाम की कोई लड़की है ही नहीं और फोटो भी फेक है उस प्रोफाइल में तो फिर हरज क्या है फ्लर्ट करने में?’’ प्रदीप ने कहा.

अब चौंकने की बारी सुगंधा की थी, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ वह आश्चर्यचकित हो कर बोली.

‘‘तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड श्वेता ने बताया. मैं तो सोशल मीडिया पर बहुत कम रहता हूं. मु झे तो पता भी नहीं था कि मेरे पास कोई फ्रैंड रिक्वैस्ट आई है. श्वेता ने बताया तब मैं ने उस रिक्वैस्ट को ऐक्सैप्ट किया,’’ प्रदीप ने मामला स्पष्ट किया.

‘‘ठीक है मैं पूछती हूं श्वेता से आज शाम को ही मिल कर,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘शाम को क्यों अभी मिल कर पूछा लो न? वह वहां बैठी कौफी का आनंद ले

रही है,’’ प्रदीप ने एक टेबल की ओर इशारा किया.

सुगंधा ने देखा श्वेता उस की ओर देख कर हाथ हिला रही है. फिर वह कौफी का कप लिए उन की टेबल पर आ गई.

‘‘ऐसा क्यों किया तुम ने?’’ सुगंधा ने बनावटी तैश के साथ कहा.

‘‘क्योंकि मैं तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड हूं. कहा था न मैं ने, अनावश्यक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है. सिर्फ प्रयोग करने में तुम्हारी यह हालत हो गई. अगर सचमुच में कुछ हो जाता तो?’’ श्वेता बोली.

‘‘बाई द वे, थैंक्यू,’’ सुगंधा ने कहा और फिर तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

लेखक- निधि माथुर

Best Story in Hindi

Interfaith Marriage : सोहा को सुनना पड़ा ‘लव जिहाद’, ‘घर वापसी’, जरूरी है 10 बातें 

Interfaith Marriage :  एक इंटरव्यू में एक्ट्रेस सोहा अली खान ने बताया कि उनकी और कुणाल खेमू की शादी के दौरान ‘घर वापसी’ जैसी बातें उठायी गयी थीं.  उनकी हिंदू मां शर्मिला टैगोर और मुस्लिम पिता मंसूर अली खान की शादी हुई, तो भी उन्हें इसी तरह की चीजें सुननी पड़ी.  दशकों बाद जब उनके भाई सैफ अली और करीना कपूर की शादी हुई, तो रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोगों को इससे काफी तकलीफ हुई.
नयनदीप रक्षित के साथ एक इंटरव्यू के दौरान सोहा ने इंटरफेथ शादियों पर बात करते हुए कहा कि मुझे लगता है कि जब तक मेरा परिवार, मुझे प्यार करने वाले,  मेरे साथ हैं तो सब ठीक है. सोहा ने कहा कि कुणाल और उनकी शादी में, सैफ और करीना की शादी में लव जिहाद और घर वापसी शब्दों का इस्तेमाल हेडलाइंस में लिया गया. तुमने हमारी एक ली है, अब हम तुम्हारी एक लेंगे जैसी बातें चर्चा में रही.

एक्टर, पॉलिटिशियन और कलाजगत में मिलते हैं ऐसे उदाहरण
बॉलीवुड में ऐसी कई शादियां हुई है जिसमें कपल अलगअलग धर्मों से ताल्लुक रखते हैं. इतना ही नहीं इसमें से कई शादियों की उम्र भी लंबी रही है. शाहरुख खान और गौरी खान की शादी, जायद खान और नताशा की शादी, अतुल अग्निहोत्री और सलमान खान की बहन का रिश्ता , रितेश देशमुख और जेनेलिया डिसूजा, कबीर खान और मिनी माथुर.  केवल बॉलीवुड ही क्यों, बहुत सारे ऐसे पॉलिटिशयन्स और म्यूजिशियन्स हैं जिन्होंने दूसरे धर्मों में विवाह किया और आज खुशहाल मैरिड लाइफ को एंजॉय कर रहे हैं.
पॉलिटिशयन शहनवाज हुसैन और रेणु हुसैन, सरोद वादक अमजद अली खान और
भरतनाट्यम नृत्यांगना सुबलक्ष्मी बरूआ शामिल है. इसका मतलब यह है कि टिकाऊ शादी के लिए कपल का अलग अलग धर्म से ताल्लुक होना, जरूरी नहीं है. इसके बावजूद इस तरह की शादियों का विरोध डिजिटल युग में भी क्यों किया जाता है, यह विचारनीय है. बल्कि दुखद यह है कि डिजिटल माध्यमों का प्रयोग कर धर्म विरोधी भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया जाता है.

अगर कर रहे हैं इंटरफेथ शादी
आज का युवा इस तरह की शादियां करना चाहते हैं तो बेफ्रिक होकर करें. अपनी शादी को मजबूत बनाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान रखें 

  • एकदूसरे को उसी तरह अपनाएं जैसा आप शादी से पहले थे. मतलब यह है कि एकदूजे को बदलने की कोशिश न करें.
  • परिवार के दबाव में आकर अपने विचारों को दूसरे पर मत थोपें.
  • पहनावे, खानपान को लेकर रोकटोक करने से बचें क्योंकि लंबे समय तक ऐसी टोकाटोकी रिश्ते के नींव को हिला सकती है.
  • रिश्ते की बुनियाद का आधार विश्वास को बनाएं खासकर शादी के शुरुआती दिनों में यह और भी जरूरी है.
  • किसी भी तरह की बातचीत को अवॉइड नहीं करें. विवादित विषयों को टालने की बजाय खुल कर बातें करें. 
  • न्यूली मैरिड कपल का साथ होना उतना ही जरूरी है जितना जरूरी है एकदूसरे को स्पेस देना.
  • जब बड़े साथ हों, तो कपल विवादित विषय पर चर्चा नहीं करें क्योंकि आप सभी के विचारों को नहीं बदल सकते हैं.
  • हर सिचुएशन में अपने बेटर हाफ के लिए शील्ड बन कर खड़े रहें. 
  • ऐसी शादी करने के पहले इसके हर पहलू पर साथ मिलकर बात कर ले
  • एक अहम बाद शादी का रिश्ते में केवल दो लोग ही होते हैं इसलिए धर्म हो या किसी और को इस रिश्ते में तीसरा बनने नहीं दें.

Beauty Tips: नेल्स की ग्रोथ नहीं होती है, इन की ग्रोथ के लिए क्या करूं?

Beauty Tips

मेरी उम्र 33 साल है. नेल्स की ग्रोथ नहीं होती है. कृपया बताएं कि इन की ग्रोथ के लिए क्या करूं?

आप के लिए नेल ऐक्सटैंशन बहुत ही अच्छा औप्शन है. इस प्रोसैस से नेल्स को खूबसूरत लुक दिया जाता है. नेल ऐक्सटैंशन करने के कुछ तरीके हैं, जिन में से एक है ऐक्रिलिक पौलिमर पाउडर को मोनोमर लिक्विड के साथ मिला कर नेल ऐक्सटैंशन किया जाता है. फिर नेल को एलईडी लैंप के नीचे 60 सैकंड्स के लिए रखा जाता है. इसी तरीके से फ्रैंच नेल भी बनाए जाते हैं. इस के ऊपर आप नेल आर्ट करवा कर अपने नाखूनों को हमेशा सुंदर बनाए रख सकती हैं.

 

मेरी उम्र 26 साल है. मेरा फोरहैड मेरे फेस कौंप्लैक्शन से ज्यादा डार्क है. कृपया बताएं कि मुझे अपने फोरहैड के लिए क्या करना चाहिए?

आप रात को सोने से पहले अपने माथे की स्किन को साफ  कर कच्चा दूध लगाएं. दूध माथे की त्वचा को पोषण पहुंचाता है. इस के बाद मसूर की दाल को भिगो कर पीस कर इस में ऐलोवेरा जैल मिला कर इसे फ्रि ज में रख दें. फि र रोज 10 से 15 सैकंड्स तक अपने माथे को इस से स्क्रब करें. हफ्ते में 3 बार पैक लगाएं. इस के लिए 1 चम्मच कैलामाइन पाउडर, 1 चम्मच टमाटर का रस, 2-3 बूंदें नीबू का रस डाल कर पैक बनाएं और उसे माथे पर लगाएं. रोज रात को एएचए यानी एल्फ ा हाईड्रौक्सी ऐसिड क्रीम लगाएं. आप को इन उपायों से राहत मिलेगी.

मेरी उम्र 40 साल है. गरदन की रंगत बहुत काली है. निखार लाने के लिए क्या करूं?

गरदन के कालेपन को दूर करने के लिए कच्चे पपीते का इस्तेमाल किया जा सकता है. कच्चे पपीते में पैपीन नाम का ऐंजाइम होता है जो कालेपन को खत्म करना है. इस के लिए पहले गरदन को ब्लीच कर लें फि र कच्चे पपीते की एक फांक ले, कर गले पर धीरेधीरे रगडि़ए. इसे गरदन पर लगा कर आधे घंटे के लिए छोड़ दें. बाद में साफ  पानी से धो लें. कच्चे पपीते में विटामिन ए, सी और ई मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए यह स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है. इसी के साथ एएचए (एल्फा हाईड्रौक्सी एसिड) क्रीम रोज गरदन पर लगाएं. स्किन पर जहां भी इस्तेमाल किया जाता है वहां का रंग साफ  होना शुरू हो जाता है. इसलिए इस से गरदन की रंगत तो साफ  होगी ही, साथ ही वहां की स्किन बहुत तेजी के साथ रिजनरेट होनी भी शुरू हो जाएगी.

 

मेरी एक आईब्रो के कौर्नर पर चोट का निशान है. इस वजह से वहां पर आईब्रो हेयर नहीं हैं. इस से मेरी आईब्रो की शेप ठीक नहीं आती है. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं ताकि आईब्रो की शेप ठीक नजर आए?

आप इस के लिए परमानैंट मेकअप करवा सकती हैं. चोट के निशान, हलके बाल, आकार का सही न होना या फिर बीमारी के कारण आईब्रो के बाल झड़ जाने जैसी समस्याओं के समाधान के रूप में हम आईब्रो पैंसिल के इस्तेमाल से उस कमी को सुधार लेते हैं. लेकिन पैंसिल कुछ ही देर तक आप के सौंदर्य को बरकरार रख पाती है. इसलिए आईब्रो की खूबसूरती को हर पल बरकरार रखने के लिए परमानैंट मेकअप एक उचित समाधान है.

इस के अंतर्गत मशीन द्वारा एक बार आईब्रो को खूबसूरत शेप व मनचाहे रंग से बना दिया जाता है जो पसीने या नहाने से खराब नहीं होती और लगभग 15 साल तक टिकती है. इस में प्रयोग में आने वाले कलर बहुत ही अच्छी क्वालिटी के होते हैं. लेकिन आप को इस प्रोसैस को दक्ष प्रोफै शनल से ही करवाना चाहिए खासतौर पर कोविड-19 के इस दौर में किसी भी सर्जरी में इन्फै क्शन का खतरा हमेशा बना रहता है. ऐसे में हाइजीन, सही इंक, बेहतर मशीनों व विशेषज्ञ की देखरेख में यह प्रक्रिया करवाई जानी चाहिए.

 बहुत उम्र से आंखों की रोशनी कम हो जाने के कारण मैं ने कई सालों तक माइनस पावर का चश्मा लगाया है. औपरेशन के बाद चश्मा तो उतर गया, लेकिन पढ़नेलिखने के लिए लैंस का इस्तेमाल अभी भी करना पड़ता है, जिस कारण मुझे काजल लगाने में बड़ी तकलीफ  होती है और अगर काजल न लगाऊं  तो आंखें बड़ी, सफेद व सूनी सी लगती हैं. बताएं क्या करूं?

लैंस या चश्मे का इस्तेमाल करने वालों के लिए लाइनर व काजल लगाना दिक्कत का विषय हो जाता है. जहां लैंस लगा कर लाइनर व काजल लगाने से आंखों से पानी बह सकता है तो वहीं बाद में लैंस लगाने से इन के फै लने का डर रहता है. परमानैंट आईलाइनर और काजल से आप की हर समस्या सुलझ सकती है, इस में एक ही बार अच्छी क्वालिटी के कलर फि ल कर दिए जाते हैं और इस से आप हर पल अपनी आंखों को मृगनयनी व कजरारी दिखा सकती हैं.

लेकिन आप को इस प्रोसैस को दक्ष प्रोफै शनल से ही करवाना चाहिए. उसे समझ हो कि वह आप की आंखों की शेप के हिसाब से लाइनर और काजल लगाए. इस के लिए पहले लाइनर और काजल आंखों में लगवाएं. फिर पसंद के अनुसार परमानैंट लाइनर और काजल लगवाएं. यह परमानैंट लाइनर और काजल आराम से 15 साल तक टिक जाता है.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें :

गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055

कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

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Rani Mukerji: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ने साइबर सुरक्षा को लेकर उठाई आवाज

Rani Mukerji: हाल ही में रानी मुखर्जी को महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय में आयोजित ‘साइबर अवेयरनेस मंथ 2025’ के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित किया गया. भारत की एकमात्र हिट महिलाप्रधान फ्रेंचाइजी फिल्म ‘मर्दानी’ में जांबाज पुलिस अधिकारी का किरदार निभाने वाली रानी हमेशा से ही भारतीय पुलिस बल और समाज की सुरक्षा के लिए उन के योगदान की समर्थक रही हैं.

इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, पुलिस महानिदेशक (महाराष्ट्र राज्य) रश्मि शुक्ला और गृह विभाग, महाराष्ट्र शासन के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) इकबाल सिंह चहल (आईपीएस) सहित कई गणमान्य व्यक्तियों के साथ भाग लिया.

बढ़ाई जागरूकता

रानी ने इस मौके पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ते साइबर अपराधों पर जागरूकता बढ़ाई और महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल की सराहना की. वे अनसुने नायक, जो दिनरात एक बेहतर डिजिटल दुनिया बनाने में लगे हुए हैं, उन की भी सराहना की.

कार्यक्रम में बोलती हुईं रानी मुखर्जी ने कहा,“मैं साइबर अवेयरनेस मंथ के उद्घाटन का हिस्सा बन कर वास्तव में सम्मानित और गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. सालों से फिल्मों के माध्यम से मुझे ऐसे किरदार निभाने का मौका मिला है जो अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं और कमजोरों की रक्षा करते हैं. वास्तव में आज मैं ‘मर्दानी 3’ की शूटिंग से सीधे यहां पहुंची हूं, तो यह सब बहुत ही अलौकिक लगता है. महाराष्ट्र पुलिस की यह पहल प्रशंसनीय है.”

ताकि महिलाएं व बच्चे सेफ रहें

उन्होंने आगे कहा,“आज साइबर अपराध खासकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हमारे घरों के भीतर चुपचाप बढ़ रहे हैं. एक महिला और एक मां होने के नाते मैं समझती हूं कि जागरूकता कितनी महत्त्वपूर्ण है. जब परिवार जानते हैं कि सुरक्षित कैसे रहना है और मदद कहां लेनी है, तभी असली सुरक्षा शुरू होती है. मैं माननीय मुख्यमंत्री महोदय, माननीय एसीएस साहब और आदरणीय डीजीपी मैडम को धन्यवाद देना चाहूंगी, जिन्होंने साइबर सुरक्षा के इस महत्त्वपूर्ण मिशन को प्राथमिकता दी है.”

सरकार की हेल्पलाइन नंबरों की अहमियत पर जोर देते हुए रानी बोलीं,“डायल 1930 और डायल 1945 हेल्पलाइन सभी नागरिकों के लिए वरदान हैं. एक कलाकार के तौर पर मैं स्क्रीन पर कहानियों को जिंदा करती हूं, लेकिन एक महिला, मां और नागरिक के रूप में मुझे लगता है कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि कोई बच्चा चुपचाप न रोए, कोई महिला असुरक्षित महसूस न करे और कोई परिवार साइबर अपराध की वजह से अपनी शांति न खोए.”

संकल्प लें सुरक्षित रहें

उन्होंने अपने भाषण का समापन इन शब्दों से किया, “आइए आज हम संकल्प लें कि सतर्क रहेंगे, आवाज उठाएंगे और एक सुरक्षित डिजिटल दुनिया के लिए एकजुट हो कर खड़े होंगे.”

रानी मुखर्जी अब अपनी अगली फिल्म ‘मर्दानी 3’ में दिखाई देंगी, जो 27 फरवरी, 2026 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. फिल्म यश राज फिल्म्स के बैनर तले बन रही है और इस का निर्देशन अभिराज मीना वाला कर रहे हैं.

Rani Mukerji

Kantara: 3 आर्टिस्ट की मौत, क्या है इसकी सच्चाई, ऋषभ शेट्टी ने खुल कर बताया

Kantara: हाल ही में रिलीज फिल्म ‘कांतारा चैप्टर 1’ के ऐक्टर, डाइरैक्टर और लेखक ऋषभ शेट्टी ने 2022 में सिर्फ ₹14 करोड़ के बजट में ही फिल्म ‘कांतारा’ का निर्माण किया था जिस ने ₹400 करोड़ से ज्यादा का बिजनैस किया.

लिहाजा, 2025 में एक बार फिर ऋषभ शेट्टी ‘कांतारा चैप्टर 1’ ले कर आए हैं जो साउथ की पौराणिक कहानियों पर आधारित है. खबरों के अनुसार इसी फिल्म की शूटिंग पर 3 लोगों की मौत हो गई थी जिसे अंधविश्वास के तहत गलत माना जा रहा है. साथ ही ऋषभ शेट्टी पर अंधविश्वास बढ़ाने का इल्जाम भी लगा.

कोई अंधविश्वास नहीं

इन दोनों ही प्रकरणों पर अपनी बात रखते हुए ऋषभ शेट्टी ने कहा कि जो लोग इस बात को अंधविश्वास मानते हैं उन के अंधविश्वास कहने पर भी खुद उन का विश्वास टिका हुआ है. कहने का मतलब यह है कि जिस की जैसी सोच होती है वह उसी तरह से सोचता है. जैसेकि बचपन से हमारे मातापिता ने हम को यही सिखाया है, इसलिए हमारा इन बातों पर विश्वास है.

सब अफवाह

ऋषभ ने बताया कि जहां तक ‘कांतारा चैप्टर 1’ की शूटिंग के दौरान मौतें होने की खबर हैं, तो इस बारे में मैं आप को बताना चाहूंगा कि ‘कांतारा’ की शूटिंग के दौरान किसी की भी मौत नहीं हुई. इस फिल्म से जुड़े लोगों की जो भी मौतें हुई हैं वह शूटिंग स्थल के बाहर हुईं, जैसेकि एक क्रू मेंबर ऐसी जगह पर स्विमिंग करने गया था, जहां पर बोर्ड लगा हुआ था कि यहां स्विमिंग करना खतरनाक है, बावजूद इस के उस ने पानी में जंप कर दिया और पानी गहरा होने की वजह से उस की मौत हो गई. एक और ऐक्टर की मौत हुई जिस का नाम राकेश है. उस की मौत का मुझे बहुत अफसोस है क्योंकि वह सिर्फ एक अच्छा ऐक्टर ही नहीं, अच्छा इंसान भी था. जब वह सेट पर रहता था तो रौनक रहती थी. वह सब को हंसता रहता था.

असली वजह

ऋषभ कहते हैं,”वहीं ऐक्टर राकेश एक फंक्शन में गया था. वहां पर दिल का दौरा पड़ने से उस की मौत हो गई. यह एक नैचुरल मौत थी जिस से फिल्म की शूटिंग का कोई लेनादेना नहीं है.

“ऐसे में मैं यही कहना चाहूंगा कि इस तरह की खबरें न सिर्फ हमारा हौसला तोड़ती हैं, बल्कि फिल्म के ऊपर भी गलत असर डालती हैं.”

Kantara

आलिया भट्ट की तरह चीक बोंस हाइलाइट करना चाहती हैं, तो कैसे करें मेकअप

Cheek bones: आलिया के ग्‍लैमरल लुक में सब से ज्‍यादा नोटिस करने वाली चीज उन के गाल होते हैं. हाइलाइटर से आलिया के चीक बोंस को इनहैंस किया जाता है जिस से उन की खूबसूरती में चार चांद लग जाता है.

अगर आप भी आलिया भट्ट की तरह चीक बोंस हाइलाइट करना चाहती हैं तो आप को इस के लिए मेकअप के कुछ टिप्‍स को फौलो करना पड़ेगा. लेकिन अगर आप को टोंड फेस चाहिए और आप अपने चबी फेस की वजह से परेशान हैं, तो  फिर क्या करें, जानिए :

चिक बोंस को उभारने के लिए क्या कर सकते हैं

हाइलाइटर कहां लगाएं यह सीखें : मुसकराते समय गाल का जो हिस्सा उभरे उस का मेकअप करें. उसे ही चीकबोन कहते हैं. मेकअप करने के लिए कोई भी अच्छा ब्लश यूज करें. अब सी कर्व पर हाइलाइटर लगाएं यानि चिक बोन के सब से ऊंचे हिस्से पर जैसे कि भौंहों के ठीक नीचे हाइलाइटर लगाएं. इस से आप के चीकबोन हाइलाइट होंगे और उन में उभार आएगा.

इस के लिए सब से पहले तो 2 अलगअलग कलर के ब्लश खरीदें. लाइट कलर को चीकबोन के ऊपर लगाना है और डार्क कलर को उस के ठीक नीचे लगाना है. ऐसा करने पर लगता है कि आप का चीकबोन पूरी तरह उभरा हुआ है. इसे लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि किनारों पर कलर पूरी तरह एक दूसरे में ब्लैंड होने चाहिए. चीकबोन को बेहतरीन लुक देने के लिए आप लाइट पिंक कलर के ब्लश का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. गाल के गढ्ढे वाली जगह में न्यूट्रल पिंक टोन वाली ब्लश लगाएं और उसे अच्छी तरह मिलाएं.

कोंटूरिंग का उपयोग करें : इस के लिए मेकअप का बेस सही होना चाहिए. चेहरे पर कोंटूरिंग तब ही सही होती है जब मेकअप का बेस सही होता है. इस के लिए अपनी स्किन टोन के हिसाब से फाउंडेशन लगाएं. गाल को हाइलाइट करने के लिए ऐसे फाउंडेशन का इस्तेमाल करें जो आप के शेड से 2-3 शेड लाइट हो. फाउंडेशन लगाने के लिए आप ब्रुश का इस्तेमाल करें या फिर आप अपनी उंगलियों का इस्तेमाल भी कर सकती हैं और इसे चीकबोन के टौप से शुरू करें और नाक के सैंटर तक ले जाएं और उसे अच्‍छे से ब्‍लैंड करें. अगर फाउंडेशन ठीक न लगे तो बेस सही नहीं बनता और कोंटूरिंग ठीक से नहीं होती और स्किन पर पैचेस नजर आते हैं.

कोंटूरिंग कैसे करें : कंटूरिंग आप के लिए सब से महत्त्वपूर्ण है. एक मैट कंटूर पाउडर या क्रीम का उपयोग करें, जो आप की त्वचा की टोन से 2 शेड गहरा हो. इसे गालों के खोखले हिस्से में लगाएं यानि चीक बोंस के ठीक नीचे. इसे कान के पास से शुरू कर के होंठों के कोने की ओर धीरेधीरे ब्लैंड करें. इस से चीकबोन अलग से हाइलाइट होंगे.

ब्लैंड करें : ब्लश और कंटूर के किनारों को त्वचा के साथ अच्छी तरह से ब्लैंड करें ताकि कोई अलग से लाइन न दिखे. इस के लिए ब्लश को कंटूर के ऊपर और चीक बोंस के उभरे हुए हिस्से पर लगाएं. यह आप के चेहरे को भरा हुआ लुक देगा.

चिक बोंस के उभार को मेकअप से कैसे कम करें

फाउंडेशन हो थोड़ा डार्क : गोल चेहरे को थोड़ा ज्यादा अंडाकार दिखाने के लिए आप कोंटूरिंग के साथसाथ थोड़े डार्क शेड फाउंडेशन का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. स्किन टोन से 2 या 3 शेड डार्क फाउंडेशन भी इस के लिए इस्‍तेमाल किए जा सकते हैं.

कोंटूर लगाएं : कानों के ऊपरी हिस्से से आंखों के लेवल तक चीक बोन पर कोंटूरिंग लगाएं. इस से ज्यादा नीचे नहीं लगाएं वरना नैचुरल लुक नहीं आएगा. अब अपने चेहरे के टैंपल एरिया पर कोंटूरिंग लगाएं. ब्रश को सर्क्युलर मोशन में ही घुमाएं. डबल चिन हटाने के लिए कान के नीचे हिस्से से अपनी चिन तक यानी जो लाइन पर कोंटूरिंग पाउडर/पेंसिल लगाएं और अंत में नाक के दाएं और बाईं तरफ कोंटूर लगाएं और बीच में हाइलाइटर. इस से आप की नाक बिलकुल तीखी और पतली नजर आएगी, ठीक वैसी जैसी आप को चाहिए.

गाल और कनपटी : अपने चीक बोंस के ठीक नीचे, गालों के ऊपरी हिस्से से शुरू करते हुए कनपटी तक ब्रोंजर लगाएं.

माथा : माथे के किनारों पर लगाएं ताकि यह गोल न दिखें.

जोलाइन : जोलाइन के ठीक नीचे गहरा शेड लगाएं ताकि वह पतली दिखे.

हाइलाइटर लगाएं : अगर आप को अपना चेहरा थोड़ा पतला दिखाना है, खासतौर पर गाल तो अपने चीक बोन पर ब्लशर और हाइलाइटर का इस्तेमाल जरूर करें. ऐसा करने से आप के गालों का फैट छिपेगा और ध्यान चीक बोंस पर जाएगा जिस से आप के चेहरे पर शानदार ग्‍लो आएगा. हाइलाइटर से आप की त्वचा पर चमक आएगी. हाइलाइटिंग करने से आप का चेहरा स्लिम तो दिखेगा ही साथ ही आपकी चिक बोंस और जो लाइन काफी हद तक उभर कर सामने आएगी.

ब्लश को यूज करने का सही तरीका

चेहरे के बड़े भागों को छोटा दिखाने के लिए आप फैन ब्रश का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. आप चाहें तो आईशैडो फल्फ ब्रश का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. ब्लश को थोड़ी ऊंची या पतली लाइन में लगाएं ताकि चेहरा लंबा दिखे. हलका पीच या गुलाबी ब्लश चुनें और उसे अपने गालों पर हलका लगाएं, इस से चेहरा पतला लगेगा.

आंखों को फोकस करें

अगर आप चाहती हैं कि लोगों का ध्यान आप के चेहरे पर कम जाएं तो इस के लिए अपनी आंखों को अच्छी  तरह से हाइलाइट करें. कटी और स्मोकी आंखें बनाएं.

होंठों पर करें फोकस

जब हम फैट छिपाने की बात कर रहे हैं, तो यकीनन होंठों का ध्यान रखना भी जरूरी है. यहां सब से जरूरी है कौन सी लिपस्टिक आप लगाती हैं. यह ट्रिक आप की डबल चिन को छिपाने के काम आएगी. ज्यादा बोल्ड रंग इस्तेमाल करें. जैसे लाल, ब्राउन आदि. इस के साथ आप के लिए लिप लाइनर का इस्तेमाल बहुत जरूरी है. आप के लिए यह करना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो ध्यान आप के होंठों पर नहीं जाएगा. इस से होंठ ज्यादा भरे हुए और सुंदर लगते हैं.

Cheek bones

Hindi Kahaniya: भूल का अंत- बहन के कारण खतरे में पड़ी मीता की जिंदगी

Hindi Kahaniya: पूरे घर में हलचल मची हुई थी. कोई परदे बदल रहा था तो कोई नया गुलदस्ता सजा रहा था. अम्मा की आवाज रहरह कर पूरे घर में गूंज उठती, ‘‘किसी भी चीज पर धूल नहीं दिखनी चाहिए. बाजार से मिठाई आ गई या नहीं?’’

नित्या को यह हलचल, ये आवाजें बहुत भली लग रही थीं. फिर भी हृदय में विचित्र सी उथलपुथल थी. उस ने द्वार पर खड़े हो कर एक दृष्टि घर में हो रही सजावट पर डाली, और वह मीता को खोजने लगी. थोड़ी देर पहले तक तो उसी के साथ थी. उस की उंगलियों के नाखून सजाते हुए लगातार बोलती जा रही थी, ‘‘अब हाथ नहीं सजेंगे तो भला उन के सामने प्लेट बढ़ाती तुम्हारी उंगलियों पर ध्यान कैसे जाएगा जीजाजी का,’’ नित्या के दिमाग में पूरी घटना एकबारगी दौड़ गई.

मीता कैसे उसे चिढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या दहीबड़े बनाए हैं मैं ने. आने दो जरा, सजावट में इतनी लाल मिर्च डालूंगी कि ‘सीसी’ न कर उठें हमारे होने वाले जीजाजी तो कहना.’’

नित्या के मन में तो मीठीमीठी गुदगुदी हो रही थी पर ऊपर से क्रोध का दिखावा कर वह उसे डांटती भी जा रही थी, ‘‘चुप, मीतू, अभी वे कौन लगते हैं हम दोनों के?’’

‘‘हां भई, अभी कौन लगते हैं. अभी तो केवल देखनादिखाना हो रहा है.’’

फिर उस की हथेलियां छोड़ बोली, ‘‘तू भी दीदी, एकदम बोर है. वही पुराना जमाना लिए जी रही है. अपना तमाशा बनवाना,’’ यह कहने के साथ ही वह स्तब्ध सी हो उठी. नजरें झुकाए एकदम कमरे से बाहर निकल गई.

‘उफ, अब जाने कहां जा कर रो रही होगी, पगली,’ नित्या ने स्मृतियों को झटकते हुए सोचा तभी बड़ी ताई दनदनाती हुई उस के कमरे में आ गईं, ‘‘मीता कहां है?’’

‘‘पता नहीं,’’ उस ने कहा.

‘‘हूं…बता नहीं रहे तो ठीक है,’’ उन्होंने होंठ सिकोड़ कर कहा, ‘‘मैं ने तो सुबह ही छोटी को कह दिया था कि मीता को लड़के वालों के सामने न आने देना.’’

‘‘लेकिन ताई…’’ उस ने टोकना चाहा.

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. उस के कारण तू कब तक भुगतती रहेगी?’’

नित्या का मन अवसाद से भर उठा. पता नहीं ताई की बात में कितना सत्य है? मीता की एक छोटी सी भूल क्या उस के साथसाथ पूरे घर के लिए भी दुखों का पहाड़ बन गई है?

नित्या की आंखों में मीता की मस्तमौला छवि घूम गई. बचपन से ही अलमस्त सी हिरणी की तरह कुलांचें भरती. झूठे आडंबरों के विरुद्ध ऊंचीऊंची आवाज में बहस करती. जीवन के प्रति सदा अलग दृष्टिकोण अपनाकर चलने की धुन ने ही शायद उस से वह भूल हो जाने दी, जिस का पछतावा उस के जीवन से सारी उमंगें ही छीन ले गया.

कुछ देर को सब भूलभाल कर यदि वह खुश होती भी है तो ताई या मां सरीखी महिलाएं उसे पुरानी बातें याद दिला कर फिर से दुख के सागर में डूब जाने को विवश कर देती हैं.

नित्या को तैयार कराने की जिम्मेदारी ताई की बड़ी बहू पर थी. इस बीच नित्या ने कई बार मीता के बारे में जानना चाहा पर उसे टाल दिया गया. वह समझ गई कि मां ने मीता को एकांत में बैठने का आदेश दे दिया होगा ताकि लड़के वालों के सामने वह न पड़ने पाए.

लड़के वाले आ चुके थे और गहमागहमी बढ़ गई थी. सब के चेहरों पर नित्या के पसंद किए जाने की चिंता से अधिक संभवत: मीता का डर व्याप्त था. कहीं इन लोगों को भी भनक न लग गई हो कि लड़की की छोटी बहन अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई थी. हां, यही शब्द तो सब दोहराते हैं.

कितना भोंडा सा लगता है यह सब. क्या उस समय कोई भी मीता के हृदय में झांकना चाहता है? क्या बीतती होगी उस के मन पर. कैसी कोमल उमंगों के साथ सारे आडंबरों को अंगूठा दिखाती हुई वह अपने प्रेमी के साथ ब्याह रचाने गई थी.

वह भी इसलिए विवश हुई थी क्योंकि घर के सारे सदस्य एक विजातीय के साथ उस का विवाह करने को तैयार नहीं थे. कैसे उस ने अपने अरमानों का खयाली सेहरा उस व्यक्ति के सिर बांधा होगा और आर्य समाज मंदिर में चंद लोगों के समक्ष विवाह किया होगा.

इधर, हर तरफ उस की खोज के बाद पुलिस तक बात पहुंच गई थी. जब वह अपने पति के साथ स्कूटर पर घर वालों से मिलने आ रही थी, तभी पुलिस की जीप उन के पीछे लग गई.

मीता जल्दी से सीधे घर पहुंचना चाह रही थी कि तभी अचानक तेज रफ्तार के कारण घटी दुर्घटना में वह अपने सारे सपनों, सारे अरमानों से हाथ धो बैठी थी.

मीता अपने पति के शव पर ढंग से रो भी न पाई थी कि उसे घर वाले जबरदस्ती पकड़ कर ले आए थे.

मीता के ससुर ने एक पत्र द्वारा अपनी बहू को घर ले जाने का अनुरोध भी किया था पर उस के मातापिता ने उस विवाह को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया था.

कई माह तक मीता एकदम गुमसुम हो गई थी. तब चुपकेचुपके नित्या ही उसे समझाती थी. लेकिन घर के शेष सदस्य उसे इस सब से बाहर निकलने ही नहीं दे रहे थे. एक भूल की उसे इतनी कठोर सजा मिलेगी, यह तो उस ने सोचा भी नहीं था. वह अपने ही घर में एक कैदी बना दी गई थी.

पढ़ाई बंद हो गई. समाज की दृष्टि से छिपा कर उसे घर के कार्यों में लगा दिया गया. अभी उस की बड़ी बहन कुंआरी थी. यदि मीता पर कठोर अनुशासन न बैठाया जाता तो नित्या का जीवन भी अंधकारमय हो जाता. हालांकि तमाम सावधानियों के बाद भी नित्या के विवाह में निरंतर बाधाएं आ रही थीं. इसलिए अब लड़के वालों से मीता को छिपाया जाता था.

मेज पर कई प्रकार की मिठाइयां, नमकीन और मेवे सजाए जा रहे थे. ताई की बहू अतिथियों को शीतल पेय पेश कर रही थी.

ताई, मां व पिताजी लड़के वालों के सामने जम कर बैठ गए. मीता को रसोई में चाय बनाने में व्यस्त कर दिया गया था. थोड़ी ही देर में नित्या चाय की ट्रे ले कर भाभी के साथ बैठक में आई तो सब की दृष्टि उस की तरफ उठ गई. मां व पिताजी की आंखें अतिथियों की नजरों की टोह लेने में जुट गईं.

मेहमानों में लड़का, उस के मातापिता, विवाहित बहन व छोटा भाई भी था. सभी उत्सुकता से नित्या को देख रहे थे. मातापिता नित्या से उस की पढ़ाई आदि के बारे में प्रश्न कर रहे थे.

नित्या से अधिक उन के प्रश्नों का उत्तर ताई दे रही थीं. तभी अचानक जैसे धमाका हुआ. लड़के के पिता ने नित्या से कहा, ‘‘बेटी, हम ने सुना था कि तुम 2 बहनें हो. तुम्हारी छोटी बहन दिखाई नहीं दे रही.’’

नित्या ने घबरा कर मां व पिताजी को देखा. ताई सहित सभी के चेहरे का रंग उड़ गया.

पिताजी ने स्थिति को संभालने के लिए कहा, ‘‘जी हां, वह बहुत शरमीली है. रसोई में व्यस्त है.’’

‘‘वाह, बहुत अच्छी चाय बनी है,’’ लड़के के पिता ने कहा. शेष मेहमान मुसकरा कर उन का साथ दे रहे थे.

तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘बुलाइए न उसे भी, मिल तो लें.’’

पिताजी, मां तथा ताई आदि मन ही मन पिता को कोसने लगे कि आखिर वह घड़ी आ ही गई जिस का डर था. सब एकदूसरे का मुंह देख कर जैसे आंखों ही आंखों में पूछ रहे थे कि अब क्या करें.

‘‘जाओ बेटी, तुम बुला लाओ अपनी बहन को. आखिर अपने होने वाले जीजाजी से उसे भी तो मिलना चाहिए.’’

उन की इस बात पर घर वालों की आंखों में जहां यह संकेत पा कर चमक आ गई थी कि नित्या उन्हें पसंद आ गई है, वहीं आगे अब क्या होगा, यह सोच कर उन का सिर चकराने लगा.

ये लोग कुछ कहते, उस से पहले ही नित्या उठ कर अंदर चली गई. उस की आंखों में प्रसन्नता की लहर थी कि उसे पसंद कर लिया गया है. पीछे से ताई उठने लगीं तो लड़के की मां ने कहा, ‘‘आप बैठिए, वह ले आएगी.’’

ताई को मन मार कर बैठना पड़ा. नित्या ने मीता को पहले यह समाचार सुनाया कि उसे शायद पसंद कर लिया गया है. सुनते ही मीता की आंखों में प्रसन्नता के आंसू आ गए पर बाहर चलने के नाम पर उस के मन में भय की लहर दौड़ गई.

थोड़ी देर बाद लड़के की बहन जब भाभी के साथ वहीं आ गई तो मीता को बाहर जाना ही पड़ा.

मां और पिताजी के चेहरों का रंग बुरी तरह उड़ा हुआ था, जैसे सुख हाथ में आतेआते छीना जा रहा हो. मीता को उन लोगों ने अपने बीच में ही बैठा लिया.

लड़के की मां ने हंसते हुए कहा, ‘‘भई, छोटी बहनें तो सब से पहले बड़ी बहन के होने वाले पति को पसंद करने आती हैं. तुम तो अंदर ही छिपी बैठी थीं.’’

मीता ने मुसकरा कर गरदन झुका ली, लेकिन इस से पहले एक भयभीत दृष्टि मातापिता पर डाल ली.

वे लोग नित्या को छोड़ मीता से ही बातें करने लगे तो मां ने उन का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘आप लोग मेज तक चलें, नाश्ता ठंडा हो रहा है.’’

‘‘हांहां, वहां भी चलेंगे,’’ लड़के के पिता ने कहा, ‘‘लेकिन पहले अपने घर की सब से बड़ी बहू से कुछ बातें तो कर लें.’’

उन्होंने स्नेहपूर्वक मीता को देखा तो मां व पिताजी भय व आश्चर्य से एकदूसरे का मुख देखने लगे. सोचने लगे कि शायद इन लोगों ने नित्या की जगह मीता को पसंद कर लिया है.

तभी लड़के के पिता ने कहा, ‘‘आप लोग मेरी बात पर इतना परेशान न हों. हमें मालूम है कि आप की छोटी बेटी ने विवाह किया था. जिस घर की यह बहू है वह हमारे अभिन्न मित्र ही नहीं, सगे भाई से भी बढ़ कर हैं.’’

मीता की आंखों में सोया हुआ दर्द जाग उठा था. मातापिता की समझ में नहीं आ रहा था कि अब उन्हें क्या करना चाहिए.

तभी लड़के की मां ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि मीता ने कुछ जल्दबाजी की, पर एक भूल आप से भी हुई. अगर उस सत्य को आप स्वीकार कर लेते तो उस घर का इकलौता दीपक इस तरह बुझने से शायद बच जाता.’’

उन लोगों की आंखें नम थीं. लड़के के पिता बोले, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब हम अपनी बहू को पूरी मानमर्यादा से लेने आए हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अचानक नित्या के पिता ने चौंक कर कहा.

मीता के सिर पर हाथ फेरते हुए लड़के के पिता बोले, ‘‘बेटी, तुम्हारा खोया सुख तो वापस नहीं दे पाएंगे हम लेकिन दुख भी नहीं देंगे कभी. हमारा छोटा बेटा यदि तुम्हें पसंद हो तो हम दोनों बहनों को एक ही दिन विदा करवा कर ले जाएंगे.’’

मीता ने धीरेधीरे पलकें उठा कर उधर देखा. एक सलोना युवक मंदमंद मुसकरा रहा था. जैसे इतनी घुटन के बीच शीतल हवा का एक झोंका उस की राह में खुशियां बिखेरने को उत्सुक हो रहा हो.

मीता ने मातापिता की ओर देखा और दुख व संकोच से गरदन झुका ली. नहीं, अब कोई निर्णय वह स्वयं नहीं करेगी. मालूम नहीं, फिर कौन सी भूल कर बैठे.

लेकिन उस के मातापिता कदाचित अपनी सोच से बाहर निकल चुके थे. अनायास ही पिता ने उठ कर लड़के के पिता के दोनों हाथ थाम लिए, ‘‘हमें अपनी भूल का बहुत पछतावा है.’’

मां ने भी खुशी के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘हम अपनी दोनों बेटियों का रिश्ता आज ही करने को तैयार हैं.’’

घर में अचानक ही चारों ओर खुशियां बिखर गई थीं. शगुन की रस्म से पहले साडि़यां पहनते हुए नित्या ने अचानक मीता के कान में कहा, ‘‘मीतू, तेरे ‘उस’ की प्लेट में कितनी मिर्च डालूं कि जन्मभर ‘सीसी’ करता रहे…?’’

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Social Story: पिंजरे वाली मुनिया

Writer- Usha Rani

Social Story: मरा हुआ मन भी कभीकभी कुलबुलाने लगता है. आखिर मन ही तो है, सो पति के आने पर उन्होंने हिम्मत कर ही डाली.

‘‘आज चलिए ‘मन मंदिर’ में चल कर परिणीता देख आते हैं. नई ऐक्ट्रेस का लाजवाब काम है. अच्छी ‘रीमेक’ है. मैं ने टिकट मंगवा लिया है.’’

‘‘टिकट मंगवा लिया? यह तुम्हारा अच्छाखासा ठहरा हुआ दिमाग अचानक छलांगें क्यों लगाने लगता है? पता है न कि पिक्चर हाल की भीड़भाड़ में मेरा दम घुटता है. मंगा लो सीडी, देख लो. इतना बड़ा ‘प्लाज्मा स्क्रीन’ वाला टीवी किस लिए लिया है? हाल के परदे से कम है क्या? तुम भी न तरंग, अपने ‘मिडिल क्लास टेस्ट’ से ऊपर ही नहीं उठ पातीं.’’

वह चुप हो गईं. पति से बहस करना, उन की किसी बात को काटना तो उन्होंने सीखा ही नहीं है. बात चाहे कितनी भी कष्टकारी हो, वह चुप ही लगा जाती हैं. वैसे यह भी सही है कि जितनी सुखसुविधा, आराम का, मनोरंजन का हर साधन यहां उपलब्ध है, इस की तो वह कभी कल्पना कर ही नहीं सकती थीं.

वह स्वयं से कई बार पूछती हैं कि इतना सबकुछ पा कर भी वह प्रसन्न क्यों नहीं? तब उन का अंतर्मन चीत्कार कर उठता है.

‘तरंग, क्या जीवन जीने के लिए, खुश रहने के लिए शारीरिक सुख- सुविधाएं ही पर्याप्त हैं? क्या इनसान केवल एक शरीर है? तो फिर मनुष्य और पशुपक्षी में क्या अंतर हुआ? तुम तो स्वच्छंद विचरती चिडि़या से भी बदतर हो. पिंजरे वाली मुनिया में और तुम में अंतर क्या है? तुम भी तो अपना मुंह तभी खोलती हो जब कहा जाए. ठीक वही बोलती हो जो सिखाया गया हो, न एक शब्द कम, न एक शब्द अधिक.’

और अपने अंतर्मन की इस आवाज को सुन कर उन का मन हाहाकार कर उठा. लेकिन घर आने वाला हर मेहमान, रिश्तेदार उन की तारीफ करते नहीं थकता कि तरंग अपनी बातों में शहद घोल देती हैं, सब का मन मोह लेती हैं.’’

वह सोचने लगीं कि सब का मन वह मोह लेती है, तो कोई कभी उन का मन मोहने की कोशिश क्यों नहीं करता?

एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार की असाधारण लड़की. तीखे नाकनक्श, गोरा रंग, लंबा छरहरा शरीर. पढ़ने में जहीन, क्लास में हमेशा फर्स्ट. कभी पापा की सीमित आय में उसे सेंध नहीं लगानी पड़ी. फेलोशिप, स्कालरशिप, बुकग्रांट, बचपन से खुशमिजाज, हमेशा गुनगुनाती, लहराती, बलखाती लड़की को दादी कहतीं, ‘यह लड़की आखिर है क्या? कभी इसे रोते नहीं देखा, चोट लग जाए तो भी खिलखिला कर हंसना, दूसरों को हंसाना. इस का नाम तो तरंग होना चाहिए.’

और पापा ने सचमुच उन का नाम विजया से बदल कर तरंग कर दिया. वह ऐसी ही थीं. पूरी गंभीरता से पढ़ाई करते हुए गाने गुनगुनाना. चलतीं तो लगता दौड़ रही हैं, सीढि़यां उतरतीं तो लगता छलांगें लगा रही हैं. स्कूलकालिज में सब कहते, ‘तुम्हारा नाम बड़ा सोच कर रखा गया है. हमेशा तुम तरंग में ही रहती हो.’

और उस दिन उन की ननद कह रही थीं, ‘समझ में नहीं आता भाभी, आप का नाम आप के स्वभाव से एकदम उलटा क्यों रखा अंकलआंटी ने? आप इतनी शांत, दबीदबी और नाम तरंग.’

क्या कहतीं वह? कैसे कहतीं कि यहां, इस घर में आ कर तरंग ने हिलोरें लेना बंद कर दिया है.

बी.काम. के पहले साल में वह बहुत बीमार हो गई थीं. सब के मुंह यह सोच कर लटक गए थे कि तरंग का क्या हाल होगा, लेकिन वह सामान्य थीं बल्कि उन्होंने पापा को धीरज बंधाया, ‘पापा, क्या हो गया? यह सब तो चलता रहता है. मेरे पास 2 वर्ष हैं अभी तो, आप देखिएगा, गोल्ड मेडल मैं ही लूंगी.’

पापा आत्मविश्वास से ओतप्रोत उस नन्हे से चेहरे को निहारते ही रह गए थे. उन की बेटी थी ही अलग. उन्हें गर्व था उन पर. ड्रामा, डांस सब में आगे और पढ़ाई तो उन की मिल्कीयत, कालिज की शान थीं, प्रिंसिपल की जान थीं वह.

आई.आई.एम. कोलकाता के सालाना जलसे में स्टेज पर उर्वशी बनी तरंग सीधी सिद्धांत के दिल में उतर गईं. सारा अतापता ले कर सिद्धांत घर लौटे और रट लगा दी कि जीवनसंगिनी बनाएंगे तो उसी को.

मां ने समझाया, ‘देख बेटा, इतने साधारण परिवार की लड़की भला हमारे ऊंचे खानदान में कहां निभेगी? इन लोगों में ठहराव नहीं होता.’

जवाब जीभ पर था. ‘सब हो जाता है मां. आएगी तो हमारे तौरतरीकों में रम जाएगी. तेज लड़की है, बुद्धिमती है, सब सीख जाएगी.’

‘यह भी एक चिंता की ही बात है बेटा. इतनी पढ़ीलिखी, इतनी लायक है तो महत्त्वाकांक्षिणी भी होगी. आगे बढ़ने की, कुछ करने की ललक होगी. कहां टिक पाएगी हमारे घर में?’ पापा ने दबाव डालना चाहा.

‘पापा, आप भी…जब उसे घर बैठे सारा कुछ मिलेगा, हर सुखसुविधा उस के कदमों में होगी तो वह रानीमहारानी की गद्दी छोड़ कर भला चेरी बनने बाहर क्यों जाएगी?’

हर तर्क का जवाब हाजिर कर के सिद्धांत ने सब का मुंह ही बंद नहीं किया, उन्हें समझा भी दिया.

तरंग ब्याह कर आ गईं. तरंग के घर वालों की तो जैसे लाटरी खुल गई. भला कभी सपने में सोच सकते थे, बेटी के लिए ऐसा घर जुटाना तो दूर की बात थी. घर बैठे मांग कर ले गए लड़की.

तरंग भी बहुत खुश थी. सिद्धांत कद में उस के बराबर और जरा गोलमटोल हैं तो क्या हुआ. इतने बड़े ‘बिजनेस हाउस’ की वह अब मालकिन बन गई थीं.

मेहमानों के जाने, लोगों का आतिथ्य ग्रहण करने और मधुयामिनी से लौटते 2 महीने निकल गए. ऐसे खुशगवार दिन तो इसी तरह पंख लगा कर उड़ते हैं. माउंट टिटलस पर बर्फ के गोले एकदूसरे पर मारतेमरवाते स्विट्जरलैंड की सैर, तो कभी रोशनी से जगमगाते सुनहरे ‘एफिल टावर’ को निहारता पेरिस का कू्रज. वेनिस के जलपथ में अठखेलियां करते वे दोनों कब एकदूसरे के दिलों में ही नहीं शरीर में भी समा गए, पता ही नहीं चला. वे दो बदन एक जान बन चुके थे. ऐसे में कोई छोटीमोटी बात चुभी भी तो तरंग ने उसे गुलाब का कांटा समझ कर झटक दिया.

उस दिन पेरिस का मशहूर ‘लीडो शो’ देखने के लिए तरंग अपनी वह सुनहरी बेल वाली काली साड़ी ‘मैचिंग ज्वेलरी’ के साथ पहन कर इठलाती निकली तो सिद्धांत ने एकदम टोक दिया, ‘बदलो जा कर, यह क्या पहन लिया है? वह आसमानी रंग वाली शिफान पहनो, मोती वाले सेट के साथ.’

चुपचाप उन्होंने अपने वस्त्र बदल तो लिए थे पर कुछ समझ में नहीं आया कि इस में क्या बुराई थी. लेकिन उन सुनहरे पलों में वह कटुता नहीं लाना चाहती थीं. इसलिए चुप रहीं.

अब उस दिन कोकाकोलाके एम.डी. के यहां जाने के लिए उन्होंने बड़े शौक से मोतियोंके बारीक झालर वाली ड्रेस निकाल कर रखी थी, मोतियों के ही इटेलियन सेट के साथ. बाथरूम से बाहर निकलीं तो देखा सिद्धांत बड़े ध्यान से उस ड्रेस को देख रहे थे. खुश हो कर वह बोलीं, ‘अच्छी है न यह डे्रस?’

‘अच्छी है? मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि तुम हमेशा यह मनहूस रंग लादने को क्यों तैयार रहती हो?’ सिद्धांत की आवाज में बेहद खीज थी.

चुपचाप तरंग ने गुलाबी सिल्क पहन ली, लेकिन अपनी छलछलाई आंखों को छिपाने के लिए उन्हें दोबारा बाथरूम में घुसना पड़ा था. उस के बाद उन्होंने सभी काले कपड़े अपने वार्डरोब से निकाल ही दिए. कभीकभी उन्हें अपने होने का जैसे एहसास ही नहीं होता. जब उन की अपनी कोई इच्छा ही नहीं तो उन का तो पूरा का पूरा अस्तित्व ही निषेधात्मक हो गया न? कितने सपने थे आंखों में, कितनी योजनाएं थीं मन में. विवाह के बाद तो उन योजनाओं ने और भी वृहद् रूप धर लिया था. इतने बड़े व्यवसाय का स्वामित्व तो सारी की सारी पढ़ाई को सार्थक कर देगा. पर हुआ क्या?

मन में उमंग और तरंग लिए मुसकरा कर जब उन्होंने सिद्धांत से कहा था, ‘अब बहुत हो चुकी मौजमस्ती, आफिस में मेरा केबिन तैयार करवा दीजिए. कल से ही मैं शुरू करती हूं. महीना तो काम समझने में ही लग जाएगा.’

सिद्धांत अवाक् उन का मुंह देखने लगे.

‘क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहे हैं आप?’

‘तुम आफिस जाओगी? पागल हो गई हो क्या? हमारे खानदान की औरतें आफिस में?’

‘अरे, तो क्या इतनी मेहनत से अर्जित एम.बी.ए. की डिगरी बरबाद करूं घर बैठ कर? बोल क्या रहे हैं आप?’ वह सचमुच हैरान थीं.

‘हां, डिगरी ली, बहुत मेहनत की, ठीक है. पढ़ीलिखी हो, घर के बच्चों को पढ़ाओ, अखबार पढ़ो, पत्रिकाएं पढ़ो, टीवी देखो,’ इतना बोल कर सिद्धांत उठ कर चल दिए.

तरंग को काटो तो खून नहीं. मम्मीपापा की दी हुई सीख और पारिवारिक संस्कारों ने उन की जबान पर ताला जड़ दिया था. छटपटाहट में कई रातें आंखों में ही कट गईं. पर करें तो क्या करें? सोने का पिंजरा तोड़ने की तो हिम्मत है नहीं. और जैसा होता है, धीरेधीरे रमतेरमते वह उसी वातावरण की आदी हो गईं.

विद्रोह का सुर तो कभी नहीं उठा था पर अब भावना भी लुप्त हो गई. दिनमहीने इसी तरह बीतते गए. 4 साल में प्यारी सी पुलक और गुड्डा सा श्रीष तनमन को लहरा गए. अधूरे जीवन में संपूर्णता आ गई. पूरा दिन बच्चों में बीतने लगा. उन का पढ़नापढ़ाना और उसी में व्यस्त तरंग को देख सिद्धांत ने भी चैन की सांस ली. वरना तरंग का मूक विद्रोह और सूनी अपलक दृष्टि को झेलना कभीकभी सिद्धांत के लिए कठिन हो जाता.

वह कई बार संकल्प करती हैं कि जिस तरह उन के सपने चकनाचूर हुए, सारी कामनाएं राख हो गईं, ऐसा पुलक के साथ नहीं होने देंगी. पर विद्रोह की चिनगारी भड़कने से पहले ही राख हो जाती है. विदाई के समय दी गई मम्मी की नसीहत एकदम याद जो आ जाती है :

‘बेटी, तू हमेशा अपनी इच्छा की मालिक रही है. अपनी तरंग में कभी किसी को कुछ नहीं समझा तू ने. पर ससुराल में संभल कर रहना. हर बात को काटना, अपनी मरजी चलाना यह सब यहीं छोड़ जा. वैसे भी वे बड़े लोग हैं, उन का रखरखाव और तरह का है. तेरी किसी भी हरकत से उन की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने पाए. जैसा वे कहें वैसा ही करना, जो वे चाहें वही चाहना, जितना वे सोचें उतना ही सोचना.’

और तरंग मम्मी की बात मान कर पिंजरे वाली मुनिया बन गईं. कितनी विचित्र होती हैं न इन भारतीय संस्कारी परिवारों की कन्याएं. पिता के घर से विदा होते समय हाथ से पीछे की ओर धान उछालती हुई अपनी प्रकृति, आदतें, प्रवृत्तियां सबकुछ छोड़ आती हैं. इसीलिए उन्हें दुहिता कहते हैं शायद. लेकिन एक जगह दिक्कत आ गई कि वह अपनी भावनाओं को, अपनी सोच को, ससुराली सांचे में नहीं ढाल पाईं. करतींकहतीं उन के मन की पर सोचतींमहसूसतीं उन से अलग. इसी अंतराल ने उन्हें अकसर झिंझोड़ा है, निचोड़ा है.

दिनों को महीनों में और महीनों को सालों में बदलने में भला देर कब लगती है? पुलक ने 12वीं कर ली है. एकदम मां जैसी वह भी बहुत जहीन है. उस ने जे.ई.ई. की स्क्रीनिंग पार कर ली है. सिद्धांत तो उस के प्रतियोगिता में बैठने के ही पक्ष में नहीं थे, तरंग ने ही जैसेतैसे मना लिया था. अब बारी आई है ‘मेन्स’ में बैठने की. पुलक ने अपने स्तर से भरपूर तैयारी की है और तरंग ने पूरी जान लगा दी है. फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स को नए सिरे से रात भर जाग कर पढ़ा है तरंग ने. बेटी कहीं अटकी और समाधान ले कर मां तैयार. सिद्धांत सब देख रहे हैं और उन के पागलपन पर हंस रहे हैं.

घर के सभी लोगों ने कह दिया कि ‘मेन्स’ में बैठने की कोई जरूरत नहीं. जिस दर जाना नहीं वहां का पता क्या पूछना? लेकिन पुलक ने हार नहीं मानी. उस ने पापा से लाड़ लगाया, ‘पापा, मुझे सिर्फ जरा अपनी क्षमता मापने दीजिए. कौन सा मैं आ जाऊंगी? मैं ने तो कोचिंग वगैरह भी नहीं ली है, न ‘पोस्टल’ न ‘रेगुलर’. मेरी क्लास के बच्चों ने तो 2-2 कोचिंग ली हैं. दिल्ली जा कर टेस्ट दिए हैं, क्लासें की हैं. मैं जानती हूं पापा, आना मुश्किल ही नहीं, असंभव है. मैं तो बस, अपने आप को आजमाने के लिए बैठना चाहती हूं. प्लीज, पापा, प्लीज.’

और सिद्धांत पसीज गए. उन्होंने सोचा, आना तो है नहीं, करने दो पागलपन. बोले, ‘चल, कर ले शौक पूरा. तू भी क्या याद करेगी अपने पापा को.’

हंसती खिलखिलाती पुलक ‘मेन्स’ में बैठ गई. और यह क्या? शायद निषेध संघर्ष करने की क्षमता में एकदम वृद्धि कर देता है. व्यक्ति को अधिक गहनता से उत्साहित करता है. पुलक की तो रैंक भी 400 की आ गई है. आराम से दिल्ली में प्रवेश मिल जाएगा. ऐसा तो सचमुच न पुलक ने सोचा था और न ही तरंग ने. अब? मांबेटी दोनों ऐसी सकते में हैं जैसे कोई अपराध कर डाला हो. पुलक की इतनी बड़ी उपलब्धि इस परिवार के घिसेपिटे विचारों या पता नहीं झूठी मानमर्यादा के कारण एक पाप बन गई है. दूसरे परिवारों में तो बच्चे के 3-4 हजार रैंक लाने पर भी उस की पीठ ठोंकी जा रही होगी, जश्न मनाया जा रहा होगा. बेचारी पुलक का हफ्ता इसी उलझन में निकल गया कि बताए तो कैसे बताए?

तरंग भी हैरान हैं. वह मौके की तलाश में हैं कि यह खुशखबरी कैसे दें, कब दें. बात तो सचमुच हैरानी की है. दुनिया कहां से कहां छलांग लगा रही है. करनाल जैसे छोटे से शहर की कल्पना चावला ऐसी ऊंचाइयां छू सकती है तो उसी भारत के महानगर कोलकाता का यह परिवार इतना दकियानूसी? आज भी परिवार की मानमर्यादा के नाम पर पत्नी का, कन्या का ऐसा मानसिक शोषण? असल में पारिवारिक संस्कारों और परंपराओं का बरगद जब अपनी जड़ें फैला लेता है तो उसे उखाड़ फेंकना प्राय: असंभव हो जाता है. वही यहां भी हो रहा है.

‘काउंसलिंग’ की तारीख नजदीक आती जा रही है. घर में तूफान आया हुआ है, पुलक सब को मनाने की कोशिश में लगी हुई है लेकिन वे टस से मस होने को तैयार नहीं हैं. लड़की को इंजीनियर बनाने के लिए होस्टल भेज कर पढ़ाना कोई तुक नहीं है.

‘लड़की को इंजीनियर बना कर करना क्या है? नौकरी करानी है? साल 2 साल में शादी कर के अपना घर बसाएगी,’ दादाजी का तर्क है.

‘बेटा, इतनी ऊंची पढ़ाई करना, लड़के वाले सपने देखना कोई बुद्धिमानी नहीं. अब देख, तेरी मां ने भी तो आई.आई.एम. से एम.बी.ए. किया. क्या फायदा हुआ? एक सीट बरबाद हुई न? कोई लड़का आता, उस पर नौकरी करता तो सही इस्तेमाल होता उस सीट का. तू तो बी.एससी. कर के कालिज जाने का शौक पूरा कर ले,’ सिद्धांत ने बड़े प्यार से पुलक का सिर सहलाया.

तरंग ने सब सुना. उन्हें लगा, जैसे आरे से चीर कर रख दिया सिद्धांत के तर्क ने. खुद चोर ही लुटे हुए से प्रश्न कर रहा था. विवाह के 22 साल बीत चुके हैं. आज तक कभी उन्होंने सिद्धांत की कोई बात काटी नहीं है. तर्कवितर्क नहीं किया है. आज भी चुप लगा गईं. सहसा यादों की डोर थामे वह 24 साल पहले के अतीत में पहुंच गईं. आई.आई.एम. से तरंग के प्रवेश का कार्ड आने के बाद पापा परेशान थे.

‘क्या करूं कल्पना, कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. लड़की के रास्ते की रुकावट बनना नहीं चाहता और उस पर उसे चलाने का साधन जुटाने की राह नहीं दिख रही. शान से सिर ऊंचा हो रहा है और शर्म से डूब मरने को मन कर रहा है,’ पापा सचमुच परेशान थे.

‘अरे, तो सोच क्या रहे हैं? भेजिए उसे.’

‘हां, भेजूं तो. पर होस्टल का खर्च उठाने की औकात कहां है हमारी?’

‘ओह, यह समस्या है? वह प्रबंध मैं ने कर लिया है. शकुंतला चाची की लड़की सुहासिनी कोलकाता में है. पिछले साल ही अभिराम का तबादला हुआ है. मेरी बात हो गई है सुहास से.’

‘लेकिन इतना बड़ा एहसान… बात एकदो दिन की नहीं पूरे 2 साल की है.’

‘हां, वह भी बात हो गई है मेरी. बड़ी मुश्किल से मानी. 1 हजार रुपया महीना हम किट्टू के नाम जमा करते रहेंगे.’

‘किट्टू?’

‘अरे, भई, उस की छोटी बेटी. बस, बाकी तरंग समझदार है. मौसी पर बोझ नहीं, सहारा ही बनेगी.’

बहुत बड़ा बोझ उतरा था पापा के सिर से, वरना वह तो पी.एफ. पर लोन लेने की सोच रहे थे. बेटी के उज्ज्वल भविष्य को अंधकार में बदलने की तो वह सोच ही नहीं सकते थे. एक वह पिता थे और एक यह सिद्धांत हैं. बेचारी पुलक आज्ञाकारिणी है, उन की तरह जिद्दी नहीं है. वह अपने पापा की आंखों में आंखें डाल कर कभी बहस नहीं करेगी. बस, मम्मी का आंचल पकड़ कर रो सकती है या घायल हिरणी की तरह कातर दृष्टि उन पर टिका सकती है.

अचानक तरंग को लगा कि वह अपने और पुलक के पापा की तुलना कर रही है, तो दोनों की मम्मियों की क्यों नहीं? उस की अनपढ़ मम्मी ने उपाय निकाला था और वह स्वयं इतनी शिक्षित हो कर भी असहाय हैं, मूक हैं, क्यों? कहीं उन की अपनी कमजोरी ही तो बेटी की सजा नहीं बन रही. उन की बेजबानी ने बेटी को लाचार बना दिया है. कुछ निश्चय किया उन्होंने और रात में सिद्धांत से बात कर डाली.

‘सिद्धांत, आप ने पुलक को मेरा उदाहरण दिया. पर जमाना अब बदल गया है. आज लड़कियां लड़कों की तरह अलगअलग क्षेत्रों में सक्रिय हैं और फिर जरूरी तो नहीं कि सब के विचार आप लोगों की ही तरह हों. समय के साथ विचारों में भी परिवर्तन आता है. हो सकता है उस की डिगरी मेरी तरह बरबाद न हो और डिगरी तो एक पूंजी है, जो मौका पड़ने पर सहारा बन सकती है. आप क्यों अपनी बेटी के पंख कतरने पर तुले हैं?’

जलती आंखों से देखा सिद्धांत ने, कि इस मुंह में जबान कैसे आ गई? फिर तुरंत मुसकरा पड़े. तीखे स्वर में बोले, ‘आ गया आंधी का झोंका तुम पर भी. ‘वुमेन इमैन्सिपेशन’? बेटी है न? तो सुनो, तुम्हारे बाप ने तुम्हें इसलिए पढ़ा दिया, क्योंकि उन्हें अपनी हैसियत का पता था. पढ़लिख कर नौकरी करेगी, अफसर बनेगी. उन्हें पता था कि वह किसी ऊंचे घराने में बेटी ब्याहने की हैसियत नहीं रखते. पर मुझे पता है कि मेरी औकात है अपनी बेटी को ऐसे ऊंचे खानदान में देने की, जहां वह बिना दरदर की खाक छाने राज करेगी. यह तो तुम्हारी किस्मत ने जोर मारा और तुम मुझे पसंद आ गईं, वरना इतने नीचे गिर कर भला हम लड़की उठाते? अब इस विषय में कोई बात नहीं होगी. दिस चैप्टर इस क्लोज्ड. बारबार एक ही बात दोहराना मुझे बिलकुल पसंद नहीं,’ और वह करवट बदल कर सो गए. तरंग की वह रात आंखों में कटी.

तीसरे दिन जिम से लौटने पर सिद्धांत बाहर टैक्सी खड़ी देख हैरान रह गए. पूछने ही वाले थे कि कमरे से तरंग को निकलते देखा. काले रंग की बालूचरी साड़ी में लिपटी उन की कोमल काया थोड़ी कठोर लग रही थी. हैरान होने की आज उन की बारी थी.

‘कहां जा रही हो? सुनीता के यहां, लेकिन इतनी सुबह?’

तरंग अपनी बचपन की सहेली सुनीता के यहां कभीकभी चली जाती हैं. वह सीधी आगे बढ़ कर सिद्धांत से मुखातिब हुईं.

‘नहीं, सुनीता के यहां नहीं. साढ़े 9 वाली फ्लाइट से दिल्ली जा रही हूं. किस लिए, यह आप समझ ही गए होंगे. वहां मैं रमण अरोड़ा के घर रुकूंगी. यह रहा उन का पता.’

उन्होंने सिद्धांत के हाथ में कार्ड पकड़ा दिया. तब तक पुलक हाथ में अटैची पकड़े अपने कमरे से बाहर आ चुकी थी. सिद्धांत तो इस कदर अकबका गए कि बोल ही बंद हो गए.

मांजी बाहर ही खड़ी थीं, उन्होंने चुप्पी तोड़ी, ‘लेकिन जा ही रही हो तो मौसी के घर रुक जातीं. गैरों के घर इस तरह…’

‘नहीं मम्मीजी, मौसी के घर रुकने में परिवार की बदनामी होगी. अकेली जा रही हूं न बेटी के साथ. क्या बहाना बनाऊंगी? और फिर कौन गैर, कौन अपना…’

सब के मुंह पर ताले लग गए. तरंग ने मांबाबूजी के पैर छुए. एक हाथ में पोर्टफोलियो और दूसरे से पुलक का हाथ पकड़ सीधे निकल गईं. मुड़ कर देखा तक नहीं.

अपनी सारी महत्त्वाकांक्षाएं, अरमान, मानसम्मान के पंखों को कतर कर पिंजरे में सिमटी वह मुनिया अपनी नन्ही चुनमुन के नए उगते पंखों को फैलाने से पहले ही कटते नहीं देख सकी और चल दी.

Social Story

Inspirational Story: जीत: वह अपने मां-बाप के सपने को पूरा करना चाहता था

लेखक- प्रदीप गुप्ता

Inspirational Story: रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था. 25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं. रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा. रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है. रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी. रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी. निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा. शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’ पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए. शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया. शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए. सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था. बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके. थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की. थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे. मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा. थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था. अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा. अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी. थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी. अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछवे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’ आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए. इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था.

थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’ करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे. शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी. रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’ यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं. ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे. अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की. रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया. रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’ अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

Inspirational Story

Best Hindi Story: राजू बन गया जैंटलमैन

लेखक- राजीव कैलाशचंद

Best Hindi Story: माफ कीजिए, पहले मैं आप को अपने बारे में बता तो दूं. मैं देश की सब से मजबूत दीवारों में से एक हूं. यह किसी कंपनी का इश्तिहार नहीं है. मैं तिहाड़ जेल की दीवार हूं. हिंदी में कहावत है न कि दीवारों के भी कान होते हैं. मैं भी सुनती हूं, देखती हूं, महसूस करती हूं, पर बोल नहीं पाती, क्योंकि मैं गूंगी हूं.

एक बार जो मेरी दहलीज के बाहर कदम रख देता है, वह मेरे पास दोबारा न आने की कसम खाता है. न जाने कितनों ने मेरे सीने पर अपने आंसुओं से अपनी इबारत लिखी है.

कैदियों के आपसी झगड़ों की वजह से अनगिनत बार उन के खून के छींटे मेरे दामन पर भी लगे, फिर दोबारा रंगरोगन कर मुझे नया रूप दे दिया गया.

समय को पीछे घुमाते हुए मैं वह दिन याद करने लगी, जब राजू ने पहली बार मुझे लांघ कर अंदर कदम रखा था. चेहरे पर मासूमियत, आंखों में एक अनजाना डर और होंठों पर राज भरी खामोशी ने मेरा ध्यान उस की ओर खींचा था. मैं उस के बारे में जानने को बेताब हो गई थी.

‘‘नाम बोल…’’ एक अफसर ने डांटते हुए पूछा था.

‘‘जी… राजू,’’ उस ने मासूमियत से जवाब दिया था.

‘‘कौन से केस में आया है?’’

‘‘जी… धारा 420 में.’’

‘‘किस के साथ चार सौ बीसी कर दी तू ने?’’

‘‘जी, मेरे बिजनैस पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया है.’’

‘‘और बंद तुझे करा दिया. वाह रे हरिश्चंद्र की औलाद,’’ अफसर ने ताना मारा था.

अदालत ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में यहां मेरे पास भेज दिया था.

पुलिस वाले राजू को भद्दी गालियां देते हुए एक बैरक में छोड़ गए थे. बैरक में कदम रखते ही कई जोड़ी नजरें उसे घूरने लगी थीं. अंदर आते ही उस के आंसुओं के सैलाब ने पलकों के बांध को तोड़ दिया था. सिसकियों ने खामोश होंठों को आवाज की शक्ल दे दी थी.

मन में दर्द कम होने के बाद जैसे ही राजू ने अपना सिर ऊपर उठाया, उस ने अपने चारों ओर साथी कैदियों का जमावड़ा देखा था. कई हाथ उस के आंसुओं को पोंछने के लिए आगे बढ़े. कुछ ने उसे हिम्मत दी, ‘शांत हो जा… शुरूशुरू में सब रोते हैं. 2-3 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘घर की… बच्चों की याद आ रही है,’’ राजू ने सहमते हुए कहा था.

‘‘अब तो हम ही एकदूसरे के रिश्तेदार हैं,’’ एक कैदी ने जवाब दिया था.

‘‘चल, अब खाना खा ले,’’ दूसरे कैदी ने कहा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ राजू ने सिसकते हुए जवाब दिया था.

‘‘भाई मेरे, कितने दिन भूखा रहेगा? चल, सब के साथ बैठ.’’

एक कैदी उस के लिए खाना ले कर आ गया और बाकी सब उसे खाना खिलाने लगे थे.

राजू को उम्मीद थी कि उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मुलाकात करने जरूर आएंगे, लेकिन जल्दी ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. हर मुलाकात में उसे अपनी पत्नी के पीछे सिर्फ सन्नाटा नजर आता था. हर मुलाकात उस के हौसले को तोड़ रही थी.

राजू की हिरासत के दिन बढ़ने लगे थे. इस के साथ ही उस का खुद पर से भरोसा गिरने लगा था. उस के जिस्म में जिंदगी तो थी, लेकिन यह जिंदगी जैसे रूठ गई थी.

हां, साथी कैदियों के प्यार भरे बरताव ने उसे ऐसे उलट हालात में भी मुसकराना सिखा दिया था.

इंजीनियर होने की वजह से जेल में चल रहे स्कूल में राजू को पढ़ाने का काम मिल गया था. उस के अच्छे बरताव के चलते स्कूल में पढ़ने वाले कैदी

उस से बात कर अपना दुख हलका करने लगे थे.

यह देख कर एक अफसर ने राजू को समझाया था, ‘‘इन पर इतना यकीन मत किया करो. ये लोग हमदर्दी पाने के लिए बहुत झूठ बोलते हैं.’’

‘‘सर, ये लोग झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि ये सच से भागते हैं…’’ राजू ने उन से कहा, ‘‘सर, किसी का झूठ पकड़ने से पहले उस की नजरों से उस के हालात समझिए, आप को उस की मजबूरी पता चल जाएगी.’’

अपने इन्हीं विचारों की वजह से राजू कैदियों के साथसाथ जेल के अफसरों का भी मन जीतने लगा था.

एक दिन जमानत पाने वाले कैदियों की लिस्ट में अपना नाम देख कर वह फूला न समाया था. परिवार व रिश्तेदारों से मिलने की उम्मीद ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे.

वहां से जाते समय जेल के बड़े अफसर ने उसे नसीहत दी थी, ‘‘राजू, याद रखना कि बारिश के समय सभी पक्षी शरण तलाशते हैं, मगर बाज बादलों से भी ऊपर उड़ान भर कर बारिश से बचाव करता है. तुम्हें भी समाज में ऐसा ही बाज बनना है. मुश्किलों से घबराना नहीं, क्योंकि कामयाबी का मजा लेने के लिए यह जरूरी है.’’

‘‘सर, मैं आप की इन बातों को हमेशा याद रखूंगा,’’ कह कर राजू खुशीखुशी मुझ दीवार से दूर अपने घर की ओर चल दिया था.

राजू को आज दोबारा देख कर मेरी तरह सभी लोग हैरानी से भर उठे. वह सभी से गर्मजोशी से गले मिल कर अपनी दास्तान सुना रहा था. मैं ने भी अपने कान वहीं लगा दिए.

राजू ने बताया कि बाहर निकल कर दुनिया उस के लिए जैसे अजनबी बन गई थी. पत्नी के उलाहने व बड़े होते बच्चों की आंखों में तैरते कई सवाल उसे परिवार में अजनबी बना रहे थे. वह समझ गया था कि उस की गैरहाजिरी में उस के परिवार ने किन हालात का सामना किया है.

राजू के रिश्तेदार व दोस्त उस से मिलने तो जरूर आए, लेकिन उन की नजरों में दिखते मजाक उस के सीने को छलनी कर रहे थे. उस की इज्जत जमीन पर लहूलुहान पड़ी तड़प रही थी.

राजू के होंठों ने चुप्पी का गहना पहन लिया था. उस की चुनौतियां उसे आगे बढ़ने के लिए कह रही थीं, लेकिन मतलबी दोस्त उस की उम्मीद को खत्म कर रहे थे.

राजू इस बात से बहुत दुखी हो गया था. जेल से लौटने के बाद घरपरिवार और यारदोस्त ही तो उस के लिए सहारा बन सकते थे, पर बाहर आ कर उसे लगा कि वह एक खुली जेल में लौट आया है.

दुख की घनघोर बारिश में सुख की छतरी ले कर आई एक सुबह के अखबार में एक इश्तिहार आया. कुछ छात्रों को विज्ञान पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर की जरूरत थी.

राजू ने उन बच्चों के मातापिता से बात कर ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. अपनी जानकारी और दोस्ताना बरताव के चलते वह जल्दी ही छात्रों के बीच मशहूर हो गया. उस ने साबित कर दिया कि अगर कोशिश को मेहनत और लगन का साथ मिले, तो वह जरूर कामयाबी दिलाएगी.

छात्रों की बढ़ती गिनती के साथ उस का खुद पर भी भरोसा बढ़ने लगा. यह भरोसा ही उस का सच्चा दोस्त बन गया.

प्यार और भरोसा सुबह और शाम की तरह नहीं होते, जिन्हें एकसाथ देखा न जा सके. धीरेधीरे पत्नी का राजू के लिए प्यार व बच्चों का अपने पिता के लिए भरोसा उसे जिंदगी के रास्ते पर कामयाब बना रहा था.

यह देख कर राजू ने अपनी जिंदगी के उस अंधेरे पल में रोशनी की अहमियत को समझा और एक एनजीओ बनाया.

यह संस्था तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जागरूक करेगी.

अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए ही राजू ने मेरी दहलीज के अंदर दोबारा कदम रखा, लेकिन एक अलग इमेज के साथ.

मुझे राजू के अंदर चट्टान जैसे हौसले वाला वह बाज नजर आया, जो अपनी हिम्मत से दुख के बादलों के ऊपर उड़ रहा था.

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