Love Story: ब्रेकअप- जब रागिनी ने मदन को छोड़ कुंदन को चुना

Love Story: ‘‘ब्रेकअप,’’अमेरिका से फोन पर रागिनी के यह शब्द सुन कर मदन को लगा जैसे उस के कानों में पिघलता शीशा डाल दिया गया हो. उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

उस की भाभी उमा ने जब पूछा कि क्या हुआ मुन्नू? तेरी आंखों में आंसू क्यों? तो वह रोने लगा और बोला, ‘‘अब सब कुछ खत्म है भाभी… 5 सालों तक मुझ से प्यार करने के बाद रागिनी ने दूसरा जीवनसाथी चुन लिया है.’’

भाभी ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू रागिनी को अब भूल जा. वह तेरे लायक थी ही नहीं.’’

उमा मदन की भाभी हैं, जो उम्र में उस से 10 साल बड़ी हैं. वे मदन को प्यार से मुन्नू बुलाती हैं. मदन महाराष्ट्र का रहने वाला है. मुंबई के उपनगरीय छोटे शहर में उस के पिताजी राज्य सरकार में नौकरी करते थे. उन का अपना एक छोटा सा घर था. मदन की मां गृहिणी थीं. मदन के एक बड़े भाई महेश उस से 12 साल बड़े थे. मदन के मातापिता और बड़ा भाई किसी जरूरी कार्य से मुंबई गए थे. 26 नवंबर की शाम को वे लोग लौटने वाले थे. मगर उसी शाम को छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर आतंकी हमले में तीनों मारे गए थे. उस समय मदन 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था. आगे उस की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की इच्छा थी. पढ़ने में वह काफी होशियार था. पर उस के सिर से मातापिता और भैया तीनों का साया अचानक उठ जाने से उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा था.

मदन के अभिभावक के नाम पर एकमात्र उस की भाभी उमा ही बची थीं. उमा का 5 साल का एक लड़का राजेश भी था. पर उमा ने मदन को कभी भी अपने बेटे से कम प्यार नहीं किया. उमा को राज्य सरकार में अनुकंपा की नौकरी भी मिल गई थी और सरकार की ओर से कुछ मुआवजा भी. अब उमा ही मदन की मां, पिता और भाई सब कुछ थीं. मदन भी उमा को मां जैसा प्यार और सम्मान देता था. मदन ने

पढ़ाई जारी रखी. उसे भाभी ने विश्वास दिला रखा था कि वे उसे हर कीमत पर इंजीनियर बना कर रहेंगी.

मदन का महाराष्ट्र के अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में मैरिट पर दाखिला हो गया. इस कालेज में बिहार के भी काफी विद्यार्थी थे, जो भारीभरकम डोनेशन दे कर आए थे. इन्हीं में एक लड़की रागिनी भी थी, जो मदन के बैच में ही पढ़ती थी. वह पढ़ाईलिखाई में अति साधारण थी. इसीलिए उस के पिता ने डोनेशन दे कर उस का भी ऐडमिशन करा दिया था. उस के पिता केंद्र सरकार के एक उपक्रम में थे जहां ऊपरी आमदनी अच्छी थी. रागिनी को पिता से उस के बैंक अकाउंट में काफी पैसे आते थे और उस का अपना एटीएम कार्ड था. वह दिल खोल कर पैसे खर्च करती थी. अपने दोस्तों को बीचबीच में होटल में खिलाती थी और कभीकभी मूवी भी दिखाती थी. इसलिए उस के चमचों की कमी नहीं थी. सैकंड ईयर के अंत तक उस की दोस्ती मदन से हुई. मदन वैसे तो अपना ध्यान पढ़ाई में ही रखता था, पर दोनों एक ही ग्रुप में थे, इसलिए वह रागिनी की पढ़ाई में पूरी सहायता करता था. रागिनी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. थर्ड ईयर जातेजाते दोनों में दोस्ती हो गई, जो धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी.

रागिनी और मदन अब अकसर शनिवार और रविवार को कौफी हाउस में कौफी पर तो कभी किसी होटल में खाने पर मिलते थे पर पहल रागिनी की होती थी. दोनों ने अमेरिका में एमएस करने का निश्चय किया और इस के लिए जरूरी परीक्षा भी दी थी.

मदन अपनी भाभी से कुछ भी छिपाता नहीं था. रागिनी के बारे में भी बता रखा था. दोनों सोच रहे थे कि स्कौलरशिप मिल जाती, तो रास्ता आसान हो जाता.

अमेरिका में पढ़ाई के लिए लाखों रुपए चाहिए थे. हालांकि रागिनी को कोई चिंता न थी. उस के पिता के पास पैसों की कमी नहीं थी. रागिनी की बड़ी बहन का डोनेशन दे कर मैडिकल कालेज में दाखिला करा दिया था. खैर, रागिनी और मदन दोनों की इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो पूरी हो गई पर स्कौलरशिप दोनों में से किसी को भी नहीं मिल सकी थी.

स्टूडैंट वीजा एफ 1 के लिए पढ़ाई और रहने व खानेपीने पर आने वाली राशि की उपलब्धता बैंक अकाउंट में दिखानी होती है. रागिनी के पिता ने तो प्रबंध कर दिया पर मदन बहुत चिंतित था. उस की भाभी उमा सब समझ रही थीं.

उन्होंने मदन को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू जाने की तैयारी कर. मैं हूं न. तेरा सपना जरूर पूरा होगा.’’

और उमा ने गांव की कुछ जमीन बेच कर और कुछ जमा पैसे निकाल कर मदन के अमेरिका में पढ़ाई के लिए पैसे बैंक में जमा करा दिए. रागिनी और मदन दोनों को वीजा मिल गया और दोनों अमेरिका चले गए. पर दोनों का ऐडमिशन अलगअलग यूनिवर्सिटी में हुआ था.

खैरियत थी कि दोनों के कालेज मात्र 1 घंटे की ड्राइव की दूरी पर थे. रागिनी को कैलिफोर्निया की सांता क्लारा यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन मिला था जबकि मदन को उसी प्रांत की विश्वस्तरीय बर्कले यूनिवर्सिटी में. रागिनी अमीर बाप की बेटी थी. उस ने अमेरिका में एक कार ले रखी थी. दोनों वीकेंड (शुक्रवार से रविवार) में अकसर मिलते. साथ खानापीना और रहना भी हो जाता था. ज्यादातर रागिनी ही मदन के पास जाती थी. कभी मदन रागिनी के यहां बस से चला जाता तो रविवार रात को वह मदन को कार से छोड़ देती थी. दोनों एकदूसरे को जन्मदिन और वैलेंटाइन डे पर गिफ्ट जरूर देते थे. यह बात और थी कि रागिनी के गिफ्ट कीमती होते थे.

मदन ने भाभी को सब बातें बता रखी थीं. उधर रागिनी ने भी मातापिता को अपनी लव स्टोरी बता दी थी. उमा भाभी को कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने मदन से बस इतना ही कहा था कि कोई गलत कदम नहीं उठाना और किसी लड़की को धोखा नहीं देना. मदन ने भी भरोसा दिलाया था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा.

रागिनी के पिता को मदन के महाराष्ट्रियन होने पर तो आपत्ति नहीं थी, पर उस की पारिवारिक स्थिति और विशेष कर आर्थिक स्थिति पसंद नहीं थी और उन्होंने बेटी से साफ कहा था कि कोई अच्छा पैसे वाला लड़का ही उस के लिए ठीक रहेगा. शुरू में रागिनी ने कुछ खास तवज्जो इस बात को नहीं दी थी और उन का मिलनाजुलना वैसे ही जारी रहा था. दोनों ने शादी कर आजीवन साथ निभाने का वादा किया था.

मदन लगभग 2 साल बाद अपनी मास्टर डिगरी पूरी कर भारत आ गया था. उधर

रागिनी भी उसी के साथ अमेरिका से मुंबई तक आई थी.

वह 2 दिन तक मदन के ही घर रुकी थी.

उमा भाभी ने उस से पूछा भी था, ‘‘अब तुम दोनों का आगे का क्या प्रोग्राम है?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘भाभी, अभी मास्टर्स करने के बाद 1 साल तक हम दोनों को पीटी (प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) करने की छूट है. इस दौरान हम किसी कंपनी में 1 साल तक काम कर सकते हैं और हम दोनों को नौकरी भी मिल चुकी है. इस 1 साल के पीटी के बाद हम दोनों शादी कर लेंगे. आप को मदन ने कुछ बताया नहीं?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. मदन ने सब कुछ बताया है. पर शादी के बाद क्या करना है, मेरा मतलब नौकरी यहां करोगी या अमेरिका में?’’ भाभी ने पूछा.

रागिनी ने कहा, ‘‘मैं ने सब मदन पर छोड़ दिया है. जैसा वह ठीक समझे वैसा ही होगा, भाभी. अब आप निश्चिंत रहिए.’’

2 दिन मुंबई रुक कर रागिनी बिहार अपने मातापिता के घर चली गई. रागिनी की बात सुन कर उमा को भी तसल्ली हो गई थी. उन की तबीयत इन दिनों ठीक नहीं रहती थी. उन्हें अपनी चिंता तो नहीं थी पर उन का बेटा राजेश तो अभी हाईस्कूल में ही था. मदन ने भी उन्हें भरोसा दिलाया था कि वे इस की चिंता छोड़ दें. अब भाभी और भतीजा राजेश दोनों उस की जिम्मेदारी थे. बेटे समान देवर पर तो उन्हें अपने से ज्यादा भरोसा था, चिंता थी तो दूसरे घर से आने वाली देवरानी की, जो न जाने कैसी हो, पर रागिनी से बात कर उमा थोड़ा निश्चिंत हुईं.

उधर रागिनी ने जब अपने घर पहुंच कर मदन के बारे में बताया तो पिता ने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है. पर सोचसमझ कर ही फैसला लेना. मदन में तो मुझे कोई खराबी नहीं लगती है… क्या तुम्हें विश्वास है कि मदन के परिवार में तुम ऐडजस्ट कर पाओगी?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘मदन के परिवार से फिलहाल तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं दिखती.’’

‘‘पर मैं एक बार उन से मिलना चाहूंगा,’’ पिता ने कहा.

रागिनी बोली, ‘‘ठीक है, आप जब कहें उसे बुला लेती हूं.’’

पिता ने कहा, ‘‘नहीं, अभी नहीं. मैं खुद जा कर उस से मिलूंगा.’’

लगभग 2 सप्ताह के बाद रागिनी और मदन दोनों अमेरिका लौट गए. दोनों ने वहां नौकरी शुरू की. परंतु दोनों की कंपनियां अमेरिका के 2 छोरों पर थीं. एक की पूर्वी छोर अटलांटिक तट पर तो दूसरे की पश्चिमी छोर प्रशांत तट पर कैलिफोर्निया में. दोनों के बीच हवाईयात्रा में भी 6 घंटे तक लगते थे. इसलिए अब मिलनाजुलना न के बराबर रहा. अब बस इंटरनैट से वीडियो चैटिंग होती थी. इस बीच रागिनी की कंपनी में एक बड़े सेठ के लड़के कुंदन ने नौकरी जौइन की. उसके पिता की मुंबई में ज्वैलरी की दुकान थी. कुंदन बड़े ठाटबाट से अकेले 2 बैड के फ्लैट में रहता था और शानदार एसयूवी का मालिक था. रागिनी की भी अपनी एक छोटी कार थी. रागिनी उस से काफी इंप्रैस्ड थी. एक वीकेंड में कुंदन की गाड़ी में औरलैंडो गई थी. वहां बीच पर एक होटल में एक रात उसी के साथ रुकी थी. फिर उस के साथ एक दिन डिजनी वर्ल्ड की सैर भी की थी. मदन से उस की चैटिंग भी कम हो गई थी. कुंदन के बारे में भी उस ने मदन को बताया था, पर घनिष्ठता के बारे में नहीं.

उधर मदन कैलिफोर्निया में एक स्टूडियो अपार्टमैंट में रहता था. अधिकतर खुद ही खाना बनाता था, क्योंकि उसे फास्ट फूड पसंद न था. एक टू सीटर कार थी. एक दिन अचानक रागिनी ने फोन कर बताया कि वह पापा के साथ शनिवार को मिलने आ रही है और सोमवार सुबह की फ्लाइट से लौट जाएगी.

मदन ने 3 दिन के लिए एक रैंटल कार बुक कर ली थी और बगल वाले स्टूडियो अपार्टमैंट, जो एक मित्र का था, की चाबी ले ली थी, उन लोगों को ठहराने के लिए. शनिवार को मदन एअरपोर्ट से उन्हें रिसीव कर ले आया था. उस दिन का मदन का बनाया लंच तो सब ने घर पर ही खाया पर बाकी खाना होटल में होगा, तय हुआ. खाने का पूरा बिल मदन ही पे करता था.

रागिनी के पिता ने मदन से उस के आगे का प्रोग्राम पूछा तो उस ने कहा, ‘‘अंकल, 1 साल पीटी के बाद हो सकता है मुझे इंडिया लौटना पड़े… अब भाभी की तबीयत कैसी रहती है, उस पर निर्भर करता है. वैसे मेरी कंपनी का मुंबई में भी औफिस है. ये लोग मुझे वहां पोस्ट करने को तैयार हैं.’’

रागिनी के पिता ने जवाब में सिर्फ ‘हूं’ भर कहा था. इस के बाद रागिनी पिता के साथ लौट गई थी.

अब रागिनी कुंदन के साथ अकसर वीकेंड में घूमने निकल जाती. मदन के साथ वीडियो चैटिंग बंद हो गई थी. सप्ताह के बीच में ही छोटीमोटी चैटिंग हो जाती थी. इस बीच रागिनी का बर्थडे आया.

मदन ने एक लेडीज पर्स गिफ्ट भेजा था तो दूसरी तरफ कुंदन ने सोने के इयररिंग्स भेजे थे. दरअसल, यहां न्यू जर्सी में भी उस के रिश्तेदार की दुकान थी. वहीं से भिजवा दिए थे. रागिनी के पिता भी अभी तक वहीं थे. उन्होंने कुंदन के बारे में पूछा तो रागिनी जितना जानती थी उतना बता दिया.

इत्तफाक से इस शनिवार को कुंदन गाड़ी ले कर पहुंच गया था. रागिनी  ने पापा से परिचय कराया. उस ने कहा, ‘‘अंकल, क्यों न हम लोग फ्लोरिडा चलें. कल वहां से रौकेट लौंच हो रहा है. हम लोग रौकेट लौंचिंग भी देख लेंगे.’’

वे तीनों फ्लोरिडा के लिए चल पड़े. कुंदन ही ड्राइव कर रहा था और पापा आगे बैठे थे. रास्ते में बातोंबातों में उन्होंने कुंदन से अमेरिका में आगे के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘अंकल, मैं तो यहीं नौकरी कर सैटल होऊंगा. हो सकता है साथ में ज्वैलरी का बिजनैस भी शुरू करूं.’’

कुंदन ने एक चारसितारा होटल बुक कर रखा था. तीनों एक ही कमरे में रुके थे. अगली सुबह रौकेट लौंचिंग देख कर फ्लोरिडा से लौट चले. रागिनी के पापा जब तक वहां रहे कुंदन रोज शाम को होटल से डिनर पैक करा कर घर ले आता था.

एक बार रागिनी से पापा ने पूछा था, ‘‘मुझे तो कुंदन मदन से बेहतर लड़का लगता है. तुम्हारा क्या खयाल है?’’

वह बोली, ‘‘कुंदन अच्छा तो जरूर है पर अभी हम दोस्त भर हैं. अभी उस के मन में क्या है, कह नहीं सकती हूं.’’

पापा ने कहा, ‘‘थोड़ा आगे बढ़ कर उस के मन को भांपो. आखिर इतनी रुचि तुम में वह क्यों ले रहा है… और तुम तो समझ सकती हो कि तुम दोनों बहनों की पढ़ाई पर लाखों रुपए खर्च किए हैं मैं ने सिर्फ इसलिए कि तुम दोनों को कोई कमी न महसूस हो… और मदन अपनी भाभी और भतीजे के साथ मुंबई में ही रहने वाला है.’’

रागिनी बस चुप रही थी. कुंदन रागिनी के पिता के इंडिया लौटते समय उन्हें एअरपोर्ट छोड़ने आया था और रागिनी के मातापिता दोनों के लिए गिफ्ट लाया था.

मदन से उस का संपर्क बहुत कम रह गया था. सप्ताह में 1-2 बार फोन या चैटिंग हो जाती थी. पापा के जाने के बाद रागिनी समझ नहीं पा रही थी कि कुंदन और मदन में से किसे चुने जबकि उस के पापा बारबार कुंदन की तरफदारी कर रहे थे. जो भी हो रागिनी का कुंदन से मेलजोल बढ़ने लगा था और मदन से उस का संपर्क कम हो रहा था.

इसी बीच कुंदन ने एक दिन उसे प्रपोज करते हुए कहा, ‘‘रागिनी, क्या तुम मुझ से शादी करोगी? सोच लो ठीक से, क्योंकि मैं ने अमेरिका में ही सैटल होने का निश्चय किया है.’’

रागिनी को अमेरिकन जीवनशैली और वातावरण तो पसंद थे, फिर भी कुंदन से उस ने थोड़ा वक्त मांगा था.

उधर उमा भाभी को दिल का दौरा पड़ा था. 4 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी. उमा के भैयाभाभी ने सब संभाल लिया था.

मदन को भी फोन आया था, खुद उमा ने अस्पताल से बात की थी और कहा था, ‘‘मुन्नू, तू मेरी चिंता मत कर. यहां सब ठीक है.’’

इस के 1 महीने के अंदर ही मदन भारत लौट आया था. मुंबई में ही उस की अमेरिकन कंपनी में पोस्टिंग हुई. आने से पहले उस ने रागिनी से पूरी बात बता कर कहा था, ‘‘मैं तो अब इंडिया लौट रहा हूं और मुझे वहीं सैटल होना है. तुम्हारी भी तो पीटी अब खत्म हो रही है. तुम इंडिया कब आओगी या अभी वहीं नौकरी करनी है?’’

रागिनी असमंजस में थी. कहा, ‘‘अभी तुरंत इंडिया लौटने का प्लान नहीं है. मुझे एच 1 वर्क वीजा भी मिल गया है. अब यहां नौकरी कर सकती हूं. कुछ दिन यहां नौकरी कर देखती हूं. तुम को कुंदन के बारे में बताया था, वह भी इंडिया नहीं जा रहा है. उस को भी एच 1 वीजा मिल गया है.’’

इधर मदन अपनी भाभी और भतीजे के साथ मुंबई में था. भाभी को कोई भारीभरकम काम करना मना था. मदन और भतीजा राजेश दोनों उमा को काम नहीं करने देते थे.

उधर रागिनी के मातापिता उसे कुंदन की ओर प्रेरित कर रहे थे. धीरेधीरे रागिनी भी कुंदन को ही चाहने लगी. कुंदन ने तो अमेरिका में एक बड़ा सा घर भी लीज पर ले लिया था.

एक बार मदन ने फोन पर पूछा, ‘‘रागिनी, आखिर तुम ने इंडिया आने और हमारी शादी के बारे में क्या सोचा है? फैसला जल्दी लेना. मैं तो यहीं रहूंगा.’’

रागिनी बोली, ‘‘मैं तो इंडिया नहीं आ सकती. तुम अगर अमेरिका शिफ्ट कर सकते हो तो फिर शादी के बारे में सोचेंगे. अब फैसला तुम्हें करना है.’’

मदन बोला, ‘‘मैं तो मां जैसी भाभी को यहां छोड़ कर नहीं आ सकता हूं. तो तुम बोलो क्या चाहती हो?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘तो फिर बहस क्या करनी है. समझ लो ब्रेकअप,’’ और फोन कट गया.

मदन ने समझ लिया कि रागिनी की जिंदगी में अब कुंदन आ गया है. उस ने भाभी को भी कुंदन के बारे में बता दिया.

भाभी ने उसे रोते देख कहा, ‘‘मुन्नू, रागिनी को फोन लगा. जरा मैं भी बात कर के देखती हूं.’’

मदन ने फोन लगा कर भाभी को दिया. उमा ने रागिनी से पूछा कि उस का इरादा क्या है तो रागिनी ने कहा, ‘‘मैं वहां नहीं आ सकती और मदन यहां नहीं. मैं ने तो अपना जीवनसाथी यहां चुन भी लिया है. मदन को भी बोलिए वह भी ऐसा ही करे.’’

उमा ने फिर कहा, ‘‘रागिनी, तेरे लिए यहां मदन आंसू बहा रहा है. कह रहा है 5 सालों की दोस्ती और प्यार भरे रिश्ते को रागिनी ने आसानी से कैसे तोड़ दिया? तुम एक बार फिर सोच कर बताओ.’’

रागिनी बोली, ‘‘अब और समय गंवाना बेवकूफी है. मदन से बोलिए समझदारी से काम ले और अपना नया साथी ढूंढ़ ले.’’

थोड़ी देर फोन पर दोनों ओर से खामोशी रही फिर उमा ने ही पूछा, ‘‘तो फिर मैं मदन को क्या बोलूं? क्या तुम कुंदन को…’’

रागिनी ने बीच में उमा की बात काट दी और झल्ला कर तीखी आवाज में बोली, ‘‘ब्रेकअप… ब्रेकअप… ब्रेकअप. फुल ऐंड फाइनल,’’ और फोन काट दिया.

इस बार उमा ने मदन से कहा, ‘‘मुन्नू, तू भी रागिनी को भूल जा, उसे कुंदन चाहिए. उसे कुंदन का ढेर सारा ‘कुंदन’ भी चाहिए. कुंदन का मतलब जानता है न मुन्नू? सोना गोल्ड चाहिए उसे. तुझे उस से अच्छी जीवनसंगिनी मिलेगी. देखने में भले रागिनी नाटी है, पर है बड़ी तेज. जाने दे उसे.’’

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Emotional Story: हाय हाय बिदाई कैसे आए रुलाई

Emotional Story: आज बन कर आ ही गया मेरी शादी का वीडियो. सारे फंक्शन, 1-1 रीतिरिवाज सच कितना मजा आ रहा है देखने में… सब से आखिर में बिदाई की रस्म. ‘उफ, कितनी रोई हूं मैं…’ सोचतेसोचते मेरा बावला मन शादी के मंडप के नीचे जा खड़ा हुआ…

‘‘देख, अभी से समझा देती हूं कि बिदाई के वक्त तेरा रोना बहुत जरूरी है वरना हमारी बड़ी बदनामी होगी. लोग कहेंगे कि बेटी को कभी प्यार न दिया होगा तभी तो जाते वक्त बिलकुल न रोई. अच्छी तरह समझ ले वरना पता चला उस वक्त भी खीखी कर के हंस रही है,’’ मंडप के नीचे किसी बात पर मेरे जोर से हंसने पर मां का प्रवचन शुरू  था.

‘‘पर क्यों मां, अकेला लड़का वह भी मेरी पसंद का… अच्छी जौब और पैसे वाला. सासससुर इतने सीधे कि अगर मैं रोई तो वे भी मेरे साथ रोने लगेंगे. फिर क्यों न हंसतेहंसते बिदा हो जाऊं.’’

‘‘अरी नाक कटवाएगी क्या? शुक्ला खानदान की लड़कियां बिदाई के समय पूरा महल्ला सिर पर उठा लेती हैं. देखा नहीं था कुछ साल पहले अपनी शादी में तेरी बूआ कितनी रोई थीं?’’

‘‘मां, बूआ तो इसलिए रोई थीं कि तुम लोगों ने उन की शादी उन की पसंद से न करा कर दुहाजू बूढ़े खड़ूस से करवा दी थी… बेचारी बुक्का फाड़ कर न रोतीं तो क्या करतीं?’’

‘‘अपनी मां की सीख गांठ बांध ले लड़की… हमारे खानदान में बिदाई में न रोने को अपशकुन मानते हैं,’’ दादी ने भी मां की बात का समर्थन करते हुए आंखें तरेरीं.

मरती क्या न करती. बिदाई का तो मालूम नहीं पर फिलहाल मुझे यह सोच कर ही रोना आ रहा था कि बिदाई पर कैसे रोऊंगी.

‘‘बता न रिंकू, क्या करूं जिस से मुझे रोना आ जाए?’’ मैं ने अपनी सहेली को झंझोड़ा.

‘‘अरे यह भला मैं कैसे बता सकती हूं… थोड़ी सी प्रैक्टिस कर शायद काम बन जाए.’’

‘‘क्या बताऊं, कई बार आईने में देख कर रोने की प्रैक्टिस कर चुकी हूं, मगर हर बार नाकाम रही. क्या करूं यार, नहीं रोई तो बड़ा बवाल मच जाएगा. दादी, बूआ, चाची यहां तक कि मम्मी ने भी खास हिदायतें दी हैं कि स्टेज पर बैठी खाली खीसें न निपोरती रहूं, बल्कि बिदाई पर कायदे से रोऊं भी.’’

‘‘यह कायदे से रोना क्या होता है? रोना तो रोना होता है और फिर मैं ने रोने के विषय पर कोई पीएचडी थोड़े ही कर रखी है, जो तुझे टिप्स दूं,’’ रिंकू चिढ़ गई.

‘‘कुछ तो कर यार, अगर बिदाई में न रोई तो बड़ी जगहंसाई होगी. मेरे यहां जब तक महल्ले के आखिरी घर तक रोने की चीखें न पहुंच जाएं तब तक बिदाई की रस्म पूरी नहीं मानी जाती. मेरी मामी की लड़की तो गए साल इतना रोई

ी कि सुबह की बरात दोपहर तक बिदा हो पाई थी. हां, यह बात अलग है कि उस का लफड़ा कहीं और चल रहा था और शादी कहीं और हो रही थी. पर मैं क्या करूं, मेरी तो शादी भी मेरी पसंद से हो रही है. कहीं कोईर् रुकावट नहीं, कोई जबरदस्ती नहीं. तो आखिर रोऊं कैसे मैं?’’ मैं ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए उस से विनती की. ‘‘ठीक है देखती हूं कि क्या किया जा सकता है,’’ रिंकू ने सीरियस होते हुए कहा.

2 दिन बाद ही रिंकू ने चहकते हुए घर में प्रवेश किया, ‘‘खुशखबरी है तेरे लिए. मिल गई रोने की जादुई चाबी. चल मेरे साथ. वैसे तो 7 दिन की ट्रेनिंग है, पर मैं ने बात की है कि हमें थोड़ी जल्दी है. लिहाजा, डबल चार्ज पर वे हमारा रजिस्ट्रेशन कर लेंगी.’’ ‘‘क्या बात कर रही है ट्रेनिंग और वह भी रोने की?’’ मेरा मुंह हैरानी से खुला का खुला रह गया.

‘‘हां मेरी जान,’’ हंसी से रिंकू दोहरी हुई जा रही थी, ‘‘बिदाई में सही से रोने की यह समस्या अब सिर्फ तुम्हारी नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय समस्या बन गई है… आजकल दुलहनों को अपनी पसंद के दूल्हे जो मिलने लगे हैं. अब उन्हें रुलाई आए भी तो कैसे? इसी समस्या से छुटकारा दिलाता यह ट्रेनिंग सैंटर. यह दुलहन के साथसाथ उस की सखियों को भी सिखाता है कि बिदाई पर कैसे रोना है.’’

‘‘इस का मतलब अब मैं सही से रो सकूंगी,’’ मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था. कुछ ही देर में हम शहर के मशहूर मौल के अंदर खुले उस ट्रेनिंग सैंटर में थे.

‘‘देखिए, सब से पहले इस चार्ट को अच्छी तरह स्टडी कीजिए. इस में रोने के कई तरीकों का उल्लेख है. हर रुलाई का अलगअलग चार्ज है,’’ रिसैप्शन पर बैठी मैडम ने मुसकराते हुए हमें एक चार्ट पकड़ाया.

रोने के तरीकों को देख कर हमारी आंखें चौड़ी होती चली गईं: सिंपल रुलाई यानी शालीनता से धीरेधीरे रोना. चार्ज 5000. मगरमच्छी रुलाई यानी बिना एक भी आंसू टपकाए सिर्फ रोने की आवाज निकालना. चार्ज 4000. सैलाबी रुलाई यानी इतने जोर से रोना मानो सैलाब आ गया हो. चार्ज 3500. दहाड़ेंमार रुलाई यानी रुकरुक कर दहाड़ें मारना जैसे कहीं बम के धमाके हो रहे हों. चार्ज क्व3000.

सिसकी रुलाई यानी सिसकते हुए रोना. चार्र्ज 2500. मिलीजुली रुलाई यानी सभी सखियों सहित एकसाथ रोना. चार्ज 2000. बहुत देर विमर्श करने के बाद मैं ने मगरमच्छी रुलाई का चुनाव किया, क्योंकि मेरा तो लक्ष्य ही आवाज कर के रोने

का था. अपने कीमती आंसू तो मैं एक भी नष्ट नहीं करना चाहती थी. अत: डबल चार्ज यानी क्व8000 जमा कर मैं ने रोने का अभ्यास शुरू कर दिया.

एक बड़े हौल में शीशे के पार्टीशन थे. बनने वाली दुलहनें उन में अपनेअपने तरीके से रोने में लगी थीं. एक बात तो पक्की थी कि बहुतों की फूहड़ रुलाई देख सामने वाली की हंसी छूटना तय था. खैर, मुझे इस से क्या…

आखिर बिदाई का वह शुभ दिन आ गया. लेकिन शादी की सभी रस्में निभाने और रातभर जागते रहने के कारण मेरी हालत पहले ही इतनी खराब हो गई थी कि रोना आने लगा. अगर उसी वक्त बिदाई का समय तय होता तो कसम से मैं बेपनाह रोती, लेकिन बिदाई के मुहूर्त में अभी कुछ समय शेष था.

एहतियातन मैं ने तय कर रखा था कि बिदाई के वक्त मेरा घूंघट खूब लंबा रहेगा ताकि मैं आराम से रोने की आवाजें निकाल सकूं.

ऐन बिदाई के वक्त मां रोती हुईं मुझ से लिपट कर मुझे भी रोने के लिए उकसाने लगीं. मैं ने भी अचानक भरपूर आवाज में रोना शुरू कर दिया पर वौल्यूम कुछ अधिक होने से लोगों के साथसाथ मुझे भी अपनी आवाज थोड़ी अजीब लगी. अत: 1-2 लोगों से मिल कर थोड़ी देर बाद मैं चुप हो गई.

तभी 8-10 साल के एक शैतान बच्चे ने कमैंट किया, ‘‘अभी तो आप इतनी जोर से रो रही थीं… अब क्यों नहीं रो रहीं?’’

शायद मेरे रोने पर उसे मजा आ रहा था. गुस्सा तो उस के ऊपर इतना आया कि एक तो इतनी मुश्किल से रो रही और उस का भी यह मजाक उड़ा रहा सब के सामने. पर वक्त की नजाकत देख मैं ने कोई प्रतिक्रिया न दी.

तभी अचानक चाची ने खींच कर मुझे अपने सीने से चिपटा लिया और आ… आ… आ… की आवाजों के साथ मैं चीख पड़ी.

‘‘इतना न रो मेरी लाडो, हम तुझे जल्द ही बुलवा लेंगे,’’ कहते हुए चाची ने देर तक मुझे अपने से लिपटाए रखा बिना यह जाने कि उन की साड़ी में लगी सेफ्टीपिन इतनी तेजी से मुझे चुभे जा रही है… जैसेतैसे उन से जान छूटी और मैं पलटी तो देखा वही शैतान बच्चा मेरे घूंघट के अंदर झांक रहा है. मैं ने उसे घूर कर भगाने की कोशिश की कि कहीं फिर से कुछ उलटासीधा न बक दे, पर वह मुझ से डरने के बजाय उलटा मुझे घूर कर देखता रहा.

आखिरकार मैं वहां से चल दी. तभी उस ने टंगड़ी फंसा कर मुझे मुंह के बल गिरा दिया. अब मेरी बहुत भद्द उड़ चुकी थी. मुझे गिराने के बाद वह जोरजोर से हंस रहा था.

उसे हंसता देख मुझे अपनी हार का दर्दनाक एहसास हुआ और चोट भी काफी लग चुकी थी. अत: अब मुझे असली रोना आने लगा और मैं बुक्का फाड़ कर रोने लगी. लोग आते गए और गले लगा कर मुझे चुप कराते गए, पर मुझे न चुप होना था और न हुई.

सब से ज्यादा आश्चर्य मेरी सखी रिंकू को हो रहा था कि सब के रोने पर ठहाका लगा कर हंसने वाली मैं आखिर अपनी बिदाई पर इतना रियल कैसे रो पाई. लेकिन उस वक्त जो भी हुआ भला हो उस बच्चे का कि मेरी बिदाई को उस ने यादगार बना दिया और फिर हमारा वीडियो भी क्या खूब बना.

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Relationship Advice: ब्रेकअप टू लुकअप

Relationship Advice: उफ, उस का ब्रेकअप हो गया.’’ अब इस ब्रेकअप पर लोगों की बातें तो बनेंगी ही. कोई आप को स्पा जा कर रिलैक्स होने को कहेंगा, कोई हेअरकट कराने को, कोई ट्रैवल करने को, तो कोई नया बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड बनाने को. सब की राय एक जगह है और आप का दर्द एक जगह.

2 वयस्कों का प्रेम संबंध एक शादी अर्थात लव मैरिज से कम नहीं होता. दोनों अपनी मरजी से एकदूसरे को जानतेसमझते एक रिश्ते में आते हैं और इसी वजह से लव रिलेशनशिप एक लव मैरिज जैसी ही फील होती है और उस से मिलने वाला ब्रेकअप एक तलाक.

मगर यहां इस रिश्ते के टूटने पर वे दूसरों को दोष नहीं दे सकते. जैसाकि आमतौर पर अरेंज्ड मैरिज में होता है. आप को अपने रिश्ते के टूटने का भार और जिम्मेदारी स्वयं ही उठानी होती हैं और इसी बोझ के नीचे लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

जैसे खुद को दोष देना. ब्रेकअप के बाद अकसर लोग खुद को दोषी बना लेते हैं. उन्हें लगता या कहें कि वे खुद को इस बात के लिए समझा लेते है कि सारा दोष उन का ही है. उन में ही कोई कमी या खामी होगी जिस की वजह से उन का साथी उन से अलग हो गया. लेकिन सिर्फ खुद को दोषी मान लेने तक यह कहानी खत्म नहीं होती. अकसर लोग हर वक्त खुद में दोष ढूंढ़ढूंढ़ कर स्वयं को दूसरों के सामने भी तिरस्कृत करते रहते हैं.

खालीपन एक शून्य सा जीवन

किसी का जाना अपने में ही एक कमी ले आता है. लेकिन जब कोई खास आप से दूर होता है तो जीवन में एक खालीपन आ जाता है. यह खालीपन आप को यह आभास दिलाता है जैसे आप का जीवन और कुछ नहीं एक शून्य है. न आप में कोई उमंग न जीवन में कोई तरंग.

वैसे भी आज की रिलेशनशिप में एक कपल आपस में इतना इन्वौल्व होता है कि वह एक तरह की शादी ही है. आप ने एक लंबा समय बिताया होता है. एकदूसरे की पसंदनापसंद ही नही बल्कि चौबीसों घंटों की दिनचर्या, उठनाबैठना, सोनाखाना हर चीज पर एकदूसरे की नजर और ध्यान रहता है. आप ने अपने पार्टनर के साथ भविष्य की कई प्लानिंग की होती हैं. यहां इमोशन से ले कर कपड़े तक आपस में शेयर किए होते हैं. यह पूरा वैवाहिक रिश्ता सा ही है, जिस पर कोई कानूनी मुहर नहीं.

इमोशनली, मैंटली और फिजिकली हर वक्त किसी के लिए अवेलेबल और डिवोटेड रहने के बाद का अलगाव बहुत पीड़ा देता है. इसलिए इस रिश्ते के टूटने पर जीवन नीरस और बेजान सा हो जाता है और इस तरह आप शादीशुदा हुए बिना ही एक तलाकशुदा जीवन जीने लगते हैं.

दरअसल, ब्रेकअप व तलाक में भावनात्मक तौर पर ज्यादा अंतर नहीं. तलाक में रिश्ते टूटने का ऐलान कानूनी प्रणामपत्र से होता है और ब्रेकअप में बिना किसी कानूनी काररवाई के.

ब्रेकअप और तलाक में अंतर

मगर क्या ब्रेकअप को तलाक समझना सही है? नहीं. माना ब्रेकअप और तलाक में कई तरह की समानता है जैसे एक साथी का अलगाव, मानसिक पीड़ा, अकेलापन, भावनाओं का आहत होना. लेकिन फिर भी ब्रेकअप कई और तर्कों और वास्तविकता में तलाक से अलगअगल है. ब्रेकअप कानूनी दावपेंच, उस की जटिलता, कोर्ट के चक्करों, वित्तीय तनाव, वकीलों की फीस से मुक्त है, साथ ही बच्चों के दूर होने के डर से भी मुक्त है.

ब्रेकअप में दोनों के परिवारों के हस्तक्षेप का असर भी बहुत कम रहता है. वहीं तलाक में अलगाव अगर दोनों पक्षों की सहमति से हो या न हो तो भी दोनों पक्षों में कोर्ट में और उस के बाहर भी तानाकसी होगी और साथ ही परिवारों को भी घसीटा जाता है.

तलाक के बाद का जीवन कहीं अधिक पेचीदा है. लोग आप के करैक्टर, आप की सोच और आप की जीवनशैली को संगिग्ध नजरों से देखते हैं. इसलिए जीवन में आगे बढ़ पाने में कई कठिनाइयां आती हैं.

तलाक हमेशा से ही आर्थिक, शारीरिक और मानसिक कष्ट लिए होता है. मगर ब्रेकअप में सामान्यतया मानसिक कष्ट है. ब्रेकअप में अलगाव आमतौर पर दोनों की सहमति से होता है और केवल एक की मरजी से होता है तो भी यह आप को वे उलझनें नहीं देगा जो एक तलाक से मिलती हैं.

ब्रेकअप की पीड़ा इतनी लंबी नहीं होती जितनी कि तलाक की होती है. फिर इस बात पर भी गौर कीजिए कि आज अगर आप का रिश्ता शादी तक पहुंचने से पहले ही टूट गया तो समझ लीजिए कि शादी के बाद उस के टिकने की शर्त बहुत कम थी.

हां, किसी रिश्ते के टूटने का दर्द काफी समय रहता है लेकिन उतना लंबा नहीं खिंचता जितना तलाक का रहता है क्योंकि ब्रेकअप हाथों में रची एक मेहंदी के रंग की तरह है जो धीरेधीरे फीकी पड़ती जाती है. लेकिन तलाक शरीर पर बने एक टैटू की तरह है जो हमेशा के लिए अपने निशान बनाए रखता है.

तो अब ब्रेकअप को तलाक न समझें और राहत रखिए कि आप एक अनचाहे परमानैंट टैंटू से बच गए और शायद इसीलिए कहा जाता है कि ब्रेकअप इज बैटर दैन डाइवोर्स.

खुद पर फोकस करें

ब्रेकअप हुआ तो समझिए कि आप को एक और मौका मिल रहा है खुद पर ध्यान देने का.  खुद पर फोकस करें. अब इस समय पर आप को सिर्फ अपने ऊपर ध्यान देना चाहिए. अपनी स्किल्स, अपनी प्रतिभा को निखारें. यह न सोचें कि आप के आसपास के लोग क्या कह रहे हैं, क्या समझ रहे हैं. आप लोगों को किनारे कर सिर्फ अपने बारे में सोचें.

मन को इधरउधर भरमाने से अच्छा है खुद को बिजी रखें. किसी न किसी ऐक्टिविटी में इन्वौल्व रहें. चाहे कुछ नया सीखें. बहुत लोग अपने ब्रेकअप के फेज में बहुत स्किल्स लर्न करते हैं. जैसे कि कोई डांस स्टाइल, कोई लैंग्वेज, हाइकिंग या जो भी आप का दिल करे और वह इसलिए कि एक तो यह आप को बिजी रखेगा और दूसरा जब हम कुछ नया सीखते हैं तो उस पर अधिक ध्यान और टाइम देते हैं. हमारा डैडीकेसन हमें व्यर्थ के कामों और उलझनों से निकाल देता है.

ब्रेकअप के बाद जो 2 बड़ी गलतियां कोई करता है वे हैं एक खुद को कैद कर लेना और दूसरा बिना विलंब किए नए रिश्ते में आना.

खुद को आइसोलेट न करें. ब्रेकअप के बाद बहुत से लोग खुद को सब से दूर कर लेते हैं. एक कोना पकड़ दिनरात रोते रहते हैं. अपनी सेहत, अपने हालात पर ध्यान नहीं देते. हर वक्त उन के दिमाग में कई तरह की उधेड़बुन चलती रहती है. यह ओवर थिंकिंग उन्हें इस तरह मैंटली डिस्टर्ब कर देती है कि वे डिप्रैशन, ऐंग्जाइटी का शिकार बन जाते हैं.

इसलिए बहुत जरूरी है ऐसे नाजुक वक्त पर अकेले न रहें. अपने परिवार, दोस्तों व हितैषियों के साथ रहें. उन से अपना दर्द, परेशानियां बिना संकोच बांटें. माना इस तरह आप का दर्द एकदम से खत्म नहीं हो जाएगा लेकिन कुछ राहत तो मिलेगी. उन की बातें, सलाह और साथ पा कर आप अपनी पीड़ा में बिना सोचेसमझे कोई गलत कदम उठाने या और किसी मुसीबत में पड़ जाने से बच जाएंगे.

हताशा और अकेलापन

ब्रेकअप के बाद बिना वक्त गंवाए या बिना विचार किए नया रिश्ता बना लेना एक बहुत बड़ी भूल है. अकसर आप को बहुत लोग मिलेंगे जो कहेंगे कि एक गया तो क्या. नया पार्टनर बना लो. लेकिन यह सोच और यह राय दोनों ही उस समय पर गलत हैं.

अपनी हताशा और अकेलेपन को दूर करने के लिए एक नए रिश्ते में बंधने की जरूरत नहीं बल्कि सैल्फ हील की है.

आप को इस वक्त किसी नए पार्टनर की नहीं बल्कि खुद की जरूरत है. इस वक्त किसी नए रिश्ते में जाना आप के लिए और उस नए पार्टनर दोनों के लिए बहुत गलत होगा क्योंकि आप तो उसे पुराने वाले को भूलने के लिए अपने जीवन में लाए होंगे जो कि सिर्फ किसी का इस्तेमाल है न कि प्यार. तो इस तरह का प्यार भी ज्यादा दिन नहीं चलेगा और अंत में दोनों को पीड़ा ही देगा.

यह समय सिर्फ खुद को और स्ट्रौंग और कौन्फिडैंट बनाने का है. आप को इस समय अपने आंसू खुद पोंछ खुद को खड़ा करना है न कि दूसरा कंधा ढूंढ़ रोने का.

इन दोनों भूलों से बड़ी भूल है आगे न बढ़ने की. बहुत से लोग दिल टूटने के बाद हमेशा के लिए खुद को अकेला कर लेते हैं. उन्हें लगता है कि अब उन्हें किसी और साथी की आवश्यकता ही नहीं.

वे खुद को या तो दोबारा चोटिल होने के डर से किसी रिश्ते में नहीं बांधते या फिर पुराने साथी की याद में खुद को पूर्णतय समर्पित रहने को या इस धारणा में कि सारी दुनिया ही झूठी और नकारा है जो उन का प्रेम समझ नहीं पाएगी. वजह इन में से कोई भी हो पर वाजिब नहीं. जीवन में एक समय आएगा जब आप को आगे बढ़ना चाहिए अकेले नहीं किसी साथी के साथ.

हिम्मत और समझदारी

आप ब्रेकअप के बाद समय लें, खुद को और काबिल बनाएं. ज्यादा इमोशनल न हो कर मैच्योर नजरिया अपनाए और आगे बढ़ें. याद रखें कि एक नाकामयाब रिश्ता मिलने का मतलब यह नहीं कि अब आप के जीवन में कोई रिश्ता टिकेगा ही नहीं. समझिए कि न देवदास का जीवन कोई जीवन है और न ही दिलजले का. इसलिए हिम्मत और समझ के साथ जीवन एक साथी के साथ गुजारें.

यह दर्द गंभीर है और निर्दयी भी. लेकिन यह दर्द कम भी किया जा सकता और दूर भी. बस जरूरत है उसे वक्त दे आगे बढ़ते रहने की. अब यहां वक्त देने से मतलब उस पर काम करने से है. काम अर्थात ब्रेकअप से डील करने में जो भी सलाह या सहायता आप को चाहिए आप को उस में संकोच नहीं करना चाहिए.

सलाह या मदद लेना गलत नहीं यह शर्म की बात नहीं. अकसर लोग ब्रेकअप में पीडि़त लोगों के दर्द को देख उन का मजाक बनाते हैं. उन्हें कमजोर और निर्बल पुकारते हैं जोकि एक पीडि़त के लिए बड़ी समस्या बन जाता है. वह लोगों के मजाक से इतना भय खाता है कि अपना दर्द दिखाता नहीं और अंदर ही अंदर घुटता है. इसलिए समझिए अगर आप को ब्रेकअप से डील करने में अधिक प्रौब्लम हो रही है.

आप किसी तरह के डर या ऐंग्जाइटी से जूझ रहे हैं तो ऐक्सपर्ट हैल्प या काउंसलिंग लेना बुरा या शर्मनाक नहीं बल्कि एक सही और महत्त्वपूर्ण निर्णय है. याद रखिए आप का शरीर, आप का मन सिर्फ आप का है और उस की बेहतरी के लिए आप को किसी भी दूसरे इंसान की हंसी या बात पर ध्यान नहीं देना.
Relationship Advice

Festive Vibes: फैस्टिवल परफैक्शन से जरूरी हैप्पीनैस

Festive Vibes; त्योहार खुशियों की ऐसा सौगात हैं जहां हर ओर उमंग और उल्लास होता है और परिवार के हर सदस्य में जोश और उत्साह होता है. सभी इन दिनों खूब ऐंजौय करते हैं. ये त्योहार पूरे परिवार को एकसाथ इकट्ठा कर देते हैं. तभी घर में रौनक दिखाई देती है.

त्योहार के समय घर का माहौल ऐसा खुशनुमा रखना चाहिए जिस से हरकोई आप के घर में आना पसंद करे और आप की कंपनी को पसंद करे. लेकिन इस के विपरीत कुछ परिवारों में ऐसा नहीं होता. वहां लोग फैस्टिवल ऐंजौय नहीं कर पाते हैं क्योंकि वहां लोगों को हर चीज परफैक्ट चाहिए. अगर किसी भी चीज में कोई कमी रह जाए जैसेकि पूजा में कोई कमी रह गई, खाने में कोई कमी रह गई, किसी दूसरी चीज में कमी रह गई तो इस की वजह से मियाबीवी में झगड़ा हो जाता है.

घर का पूरा माहौल खराब हो जाता है. बच्चों का मूड भी खराब हो जाता है. ऐसा क्यों करना. त्योहार आप को खुश करने के लिए आते हैं आप की परफैक्शन का टैस्ट लेने नहीं आते जिस में आप को पास होना जरूरी हो. अगर कोई कमी रह गई और आप फेल भी हो गए तो क्या हुआ. कुछ कमी के साथ ही फैस्टिवल ऐंजौय कर लें. आखिर त्योहार का मकसद तो पूरे परिवार के साथ ऐंजौय करना है.

जब पति या पत्नी की कोई सहेली या दोस्त आ जाए तो मुंह न फुलाएं

जब पति या पत्नी की कोई सहेली या दोस्त आ जाए और वह ज्यादा हावी होने लगे तो ऐसे में बीवी को जो गुस्सा आने लगता है वह बेकार का है क्योंकि आप तो अपने घर की रोज ही मालकिन हैं. अगर एक दिन किसी आने वाले ने कोई सलाह दे दी या फिर अपनी बात मनवा ली तो क्या हुआ. कल का दिन तो आप का है. आप अपने हिसाब से करेंगी इसलिए एक दिन आप ही एडजस्ट कर लें.

ऐसा भो हो सकता है पति ने अपने भाईभाभी या बहनजीजा को बुला लिया. अब वह पत्नी पर कम ध्यान दे रहा है और जीजा और बहन का ध्यान रख रहा है. ऐसे में पत्नी का मुंह फूल गया. यह गलत है. अगर पति की उस जीजा से बहुत पटती थी और वे बैंगलुरु शिफ्ट हो गए और अब बहुत सालों बाद मिलना हुआ तो ऐसे में पति उन्हें घुमा रहा है. बीवी को कम तवज्जो दे रहा है तो बीवी चिढ़ कर कहती है मेरे मायके में मेरी बहन के यहां चलो. बिना बात का झगड़ा कर लेती है. यह गलत है. अगर त्योहार पर कोई मेहमान आया हो फिर चाहे वह आप के मायके से हो या ससुराल से उसे पूरी तवज्जो और प्यार दें. पति को भी ऐसा करने से न रोकें. वे आप के साथ खुशीखुशी त्योहार मानाने के लिए आए हैं आप का फूला हुआ मुंह देखने के लिए नहीं आए हैं.

त्योहार पर शौपिंग नहीं कराई तो इस पर हंगामा न करें

कई बार पतिपत्नी में इस बात पर भी झगड़ा हो जाता है कि मेरी सब फ्रैंड्स इतना कुछ ले कर आए हैं. वे सभी नए कपड़े लाए हैं तो मैं ही पुराने क्यों पहनूं. त्योहार पर सभी का शौपिंग करने का मन करता है. लेकिन अपनी सहेलियों से तुलना करना भी सही नहीं है. सब की परिस्थितियां अलगअलग होती हैं. हो सकता है इस बार घर में पेंट आदि कराने में पति का ज्यादा खर्चा हो गया हो या फिर औफिस में बोनस न मिला हो अथवा वे सेविंग करना चाह रहे हों तो यह इतनी बड़ी बात नहीं है कि आप पूरा त्योहार लड़लड़ कर खराब कर दें.

आप चाहें तो अपने पुराने कपड़ों को भी मिक्स मैच कर के नया बना सकती हैं. 2 साडि़यों को मिक्स कर के लहंगा स्टाइल में पहन सकती हैं. वह बिलकुल नई जैसी ही लगेगी. अगर आप चाहें तो थोड़ा सोच कर इस समस्या का हल निकाल सकती हैं वरना तो लड़ कर सब का त्योहार खराब करना तो सब से आसान हल है ही.

दूसरा, झगड़ा इस बात पर भी होता है तुम ने मुझे अच्छे कपड़े नहीं दिलाएं, आप ने मुझे सुबह से शाम तक किचन में धकेल दिया, जबकि मैं कह रही थी कि बाहर से खाना मांगा लें. कैटरिंग करा लें, मैं पूरा टाइम किचन में लगी रहूं और लास्ट में कपडे़ बदल कर मग धो कर आऊं यह तो कोई बात नहीं है न. मैं भी दिनभर की थकी हुई हूं.

पूजापाठ में कमी रह गई तो जिंदगी थोड़े ही न रुक जाएगी. अलबत्ता पंडितों की किचन में माल भरना जरूर कम रह जाएगा, उन को दानदक्षिणा कुछ कम मिलेगी, उन की झोली कम भरेगी पर इस से आप की सेहत पर क्या असर पड़ता है आप लड़लड़ कर क्यों हलकान हुए जा रहे हैं.

पूजा करने में देर हो गई और मुहूर्त निकल गया तो सो व्हाट

अगर त्योहार मनाते समय पूजा करने में देर हो गई और मुहूर्त निकल गया तो कौन सी मुसीबत आ गई? आप की खुशियों का मुहूर्त तो नहीं निकला न? वह तो आप पर ही डिपैंड करता है न कि आप को खुशियां ज्यादा प्यारी हैं या मुहूर्त. यह पूजा भी तो आप के परिवार की खुशियों के लिए ही है न और अगर इस पूजा को ढंग से न कर पाने की वजह से परिवार में तनाव होता है या आप एकदूसरे से लड़ने लगते हैं तो ऐसी पूजा की जरूरत ही क्या है? यह पूजा तो आप में लड़ाई करा रही है इसलिए पूजा के लिए भोग बनाना भूल गए या पंडितजी के कपडे लाना भूल गए या फिर पूजा पूरे विधिविधान से नहीं की तो कोई फर्क नहीं पड़ता. ये नियमकायदे तभी तक अच्छे हैं जब तक आप खुश हैं लेकिन अगर ये घर की शांति भंग कर रहे हैं तो इन का कोई मतलब नहीं है.

खाने में पकवान नहीं बने तो नाराज न हों

अगर इस बार बीवी या मां ने घर में मिठाई नहीं बनाई तो क्या हुआ? यह इतनी बड़ी बात तो नहीं है. हो सकता है उन की तबीयत ठीक न हो या फिर उन्हें बाकी काम करते रहने की वजह से समय न मिला हो अथवा यह भी हो सकता है उन का बनाने का मन ही न हो. अगर ऐसा है भी तो क्या हुआ. इस बार आप मिठाई ही क्यों सब लोग डिनर भी साथ में बाहर ही कर आएं और एक दिन अपने साथी को भी घर की किचन से मुक्ति. वह भी बिना थकन के पूरे मन से फैस्टिवल ऐंजौय कर सके.

आखिर त्योहार उन के भी ऐंजौय करने के लिए है. यह त्योहार घर की महिलाओं को केवल किचन में लगाने और थकाने के लिए ही तो नहीं है. इसलिए एक दिन उन्हें भी किचन से छुट्टी दें या फिर वे जो वे बना रही हैं, उसे खुशीखुशी खा लें. मीनमेख न निकालें.

फैस्टिवल ऐंजौय करने के लिए आप की परफैक्शन का टैस्ट लेने के लिए नहीं

कई लोगों की आदत होती है कि उन्हें हर चीज परफैक्ट चाहिए. घर में साफसफाई करतेकरते भी कोई चीज छूट जाए तो वे इतना सुनाते हैं कि पूरे किएकराए पर पानी फेर देते हैं. हर चीज को ऐसे बारीकी से देखते हैं जैसे उन्हें स्पैशल इंस्पैक्शन औफिसर बना कर भेजा गया हो. इस बात पर जरा गौर फरमाएं कि आप की इस सनक की वजह से पूरे परिवार का मूड औफ हो जाता है और त्योहार का उत्साह भी खत्म हो जाता है. इसलिए प्लीज अपना यह परफैक्शन का कीड़ा त्योहार के लिए दबा दीजिए और जो जैसा है वैसे ही साथ मिल कर खूब ऐंजौय करें और खुशियां मनाएं.

Festive Vibes

Diwali Shopping: बजट में कैसे करें दीवाली शौपिंग

Diwali Shopping: पूनम हर साल दीवाली पर घर में नया सामान लाती है, जिस में बरतन, गैजेट या इलेक्ट्रौनिक आइटम्स आदि जो भी चीज घर की जरूरत होती है और मार्केट में नई आई हो, उसे खरीदना पसंद करती हैं. ऐसा वे सालों से करती आ रही हैं. इस बार उन्होंने एक एअर फ्रायर खरीदने का मन बनाया है.

बजट के अनुसार खरीदें सामान  

त्योहारों के दौरान जहां लोग घर की साफसफाई अधिक करते हैं, साथ ही पुरानी चीजों को बदलने की कोशिश करते हैं, वहीं कुछ नया जो मार्केट में आया हो, जो घर में काम में आने वाला हो, उसे खरीदना भी पसंद करते हैं. बड़े शहर हों या छोटे हरकोई अपने बजट के अनुसार खरीदारी करता है. यही वजह है कि कंपनियां भी इस समय कई प्रकार के लुभावने डिस्काउंट देती रहती हैं. कुछ लोग तो पूरा साल इस दिन का इंतजार करते हैं.

बनाएं सामान की लिस्ट

दीवाली के त्योहार को लोग हर साल काफी धूमधाम से मनाते हैं, जिस की तैयारी पहले से शुरू हो जाती है. खूब सारी शौपिंग इस दौरान की जाती है, हालांकि दीवाली वाले दिन तक लोग बाजारों के चक्कर लगाते रहते हैं. इन दिनों बाजार में कई तरह का घरेलू सामान लौंच होता है, जिस में एलईडी लाइट्स, स्मार्ट उपकरण, घर की सजावट का सामान और नई डिजाइन के बरतनों के साथसाथ बिजली की खपत वाली कुशल इलैक्ट्रौनिक्स आइटम्स शामिल हैं जैसेकि वाशिंग मशीन, फ्रिज और एअर कंडीशनर भी नई सुविधाओं के साथ आते हैं.

इन चीजों को खरीदने से पहले घर के सामान की सूची तैयार कर लें, इस से आप जरूरत का सारा सामान आसानी से खरीद सकती हैं. ये सामान मार्केट में जाकर या औनलाइन शौपिंग कर मंगा सकती हैं.

घर की सजावट का सामान

एलईडी स्ट्रिंग लाइट्स

हर साल नए पैटर्न और डिजाइन वाली एलईडी लाइट्स उपलब्ध होती हैं, जो घर को जगमगा देती हैं. इस में इन दिनों गोल्ड मैडल दी एलईडी स्ट्रिंग लाइट की कीमत केवल 1,149 रुपए है और यह औनलाइन मिल रही है. इस से घर, बाहर और बालकनी को आसानी से सजाया जा सकता है. इन वार्म एलईडी लाइटस में 6 बड़े और 6 छोटे दीए के आकार की लाइटस होती हैं. ये सुरक्षित होने के अलावा ऐनर्जी भी सेवा करती हैं.

रंगोली डिजाइन और सामग्री

कुछ लोग जिन्हें रंगोली पसंद है लेकिन बनानी नहीं आती, त्योहारों में नई और आकर्षक डिजाइन वाली रंगोली बनाने की सामग्री बाजार और औनलाइन उपलब्ध होती है, जिसे आप आसानी से खरीद सकती हैं, साथ ही घर के मुख्यद्वार पर लगाने के लिए तोरण भी उपलब्ध होते हैं. आजकल रंगोली बनाने की किट उपलब्ध होती है, जिस में 8 रंगों के पैकेट, 4 रंगोली बनाने वाले एमडीएफ बोर्ड, 1 रंगोली बनाने की कोन के लिए वेबलकार्ट तैयार मिलता है, जिस पर आप मनपसंद रंगोली बना सकती हैं, ये 400 से 500 रुपए में मिल जाते हैं.

खुशबूदार मोमबत्तियां और डिफ्यूजर

नए फ्लेवर और डिजाइन वाली मोमबत्तियां और खुशबूदार डिफ्यूजर घर में एक खास माहौल बनाते हैं. फ्लोरल डैकोर की सुगंधित मोमबत्तियां, जिन में 6 मोमबत्तियां अलगअलग साइज और रंग में उपलब्ध हैं की कीमत 900 रुपए से शुरू होती है. इस के अलावा अलगअलग रंग और सुगंध में डिफ्यूजर भी उपलब्ध होते हैं, जिन में खासकर फेब इंडिया की लैवेंडर, गुलमोहर, वुडन अरोमा अधिक पसंद किए जाते हैं. इन की खुशबू आजकल माइल्ड रखी गई है ताकि कोई भी इन का प्रयोग कर सके.

हाउस होल्ड उपकरण

आज की महिलाएं खाना बनाने में अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहतीं. ऐसे में स्मार्ट ऐप्लायंसिस जो हैल्दी हों की खोज उन्हें हमेशा रहती है. कुछ नए उपकरण इस प्रकार हैं:

स्मार्ट रसोई उपकरण

बाजार में कई नए स्मार्ट रसोई उपकरण लौंच होते रहते हैं, जैसे इंडक्शन कुकटौप, औटोमैटिक मिक्सर और ग्राइंडर. इस के अलावा आज लोग सेहत को ध्यान में रखते हुए एअर फ्रायर का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं, जिस में टीटीके प्रैस्टीज की एअर फ्लिप टू इन वन एअर फ्रायर और ग्रिल, जो आज की मौडर्न और हैल्दीयर कुकिंग के लिए अच्छा औप्शन है और 85त्न कम औयल में किसी भी चीज को फ्राई करती है, क्रिस्पी फ्राइस, समोसा, नगेट्स, पकौड़े आदि सभी फ्राई किए जा सकते हैं. फ्राई करने के अलावा इस में ग्रिल भी कर सकती हैं.

1 साल की वारंटी के साथ इस की कीमत 12,595 रुपए है. यह औनलाइन या मार्केट हर जगह उपलब्ध है.

इस के अलावा रोटी मेकर मशीन है, जो स्वचालित रूप से आटे की लोई से रोटी बनाने का काम करती है. यह मशीन नौनस्टिक प्लेटों के साथ आती है जो कम तेल में फूली हुई रोटियां बनाती है. विभिन्न प्रकार की रोटियां बनाने के लिए इलैक्ट्रिक और गैस से चलने वाली दोनों तरह की मशीनें उपलब्ध हैं और ये अधिक मात्रा में रोटियां बनाने में मदद करती हैं. इस से समय और मेहनत दोनों बचते हैं. घरेलू रोटी मेकिंग मशीन की कीमत 3,000 रुपए से शुरू होती है.

आधुनिक बरतनों के सैट

दीवाली पर अकसर लोग बरतन खरीदते हैं और बाजार में नई डिजाइन के बरतनों के सैट उपलब्ध होते हैं, जिन्हें घर के प्रयोग के अलावा गिफ्ट में भी दिया जा सकता है. इन में स्टेनलैस स्टील 24 गेज क्लासिक डिनर सैट, सौलिड 50 पीस सैट जो 4 से 6 लोग के लिए सैट होता है. इस में सिल्वर और डिशवाशर सेफ बरतनों के सैट भी पाए जाते हैं.

इलैक्ट्रौनिक्स और अन्य घरेलू उपकरण

हर साल ऊर्जा की खपत कम करने वाले नए फ्रिज, वाशिंग मशीन, एअर कंडीशनर, डिशवाशर आदि बाजार में आते हैं, जिन्हें लोग दीवाली पर काफी डिस्काउंट के साथ खरीदते हैं.

वोल्टास, फैबर, वर्लफूल, एलजी और बौश के सब से बैस्ट कई डिशवाशर मशीनें हैं, जिन की कीमत कम है. हाई परफौर्मैंस और एडवांस फीचर्स वाले इन डिशवाशर के यूज से बिजली की ज्यादा खपत नहीं होती है और पानी की बचत के लिए भी स्पैशल फीचर मिलते हैं, जिस की वजह से इस बैस्ट कंपनी के डिशवाशर काफी ज्यादा खरीदे जाते हैं. इन की कीमत 20 हजार रुपए से शुरू होती है. ये चिकने बरतनों को आसानी से साफ कर जर्म फ्री बना देते हैं. इन के अलावा नए फीचर्स के साथ स्मार्ट टीवी, स्पीकर और अन्य इलैक्ट्रानिक्स उत्पाद और चांदी की वस्तुएं भी इस समय खरीदी जाती हैं.

Diwali Shopping

Fictional Story: हुस्न और इश्क- शिखा से आखिर सब क्यों जलते थे

Fictional Story: सौरभ के साथ शादी होने से पहले मेरा रूपयौवन हमेशा मेरे लिए परेशानी का कारण बनता रहा. अपनी खूबसूरत बेटी को समाज में मौजूद भेडि़यों से बचाने की चिंता में मेरे मम्मीपापा मेरे ऊपर कड़ी निगाह रखते थे. उन की जबरदस्त सख्ती के चलते भेडि़ए ही नहीं, बल्कि मेमने भी मेरे नजदीक आने का मौका नहीं पा सके. ‘‘सारा दिन शीशे के सामने खड़ी न रहा कर… बाजार जाने के लिए इतना क्यों सजधज रही है… लड़कों के साथ ज्यादा हंसेगीबोलेगी तो बदनाम हो जाएगी. पढ़ाई में ध्यान लगा पढ़ाई में…’’ मेरे मम्मीपापा मुझे देखते ही ऐसा भाषण देना शुरू कर देते थे.

मेरी बड़ी बहन भी सुंदर है, पर मुझ से बहुत कम. ऐसा 2 बार हुआ कि उसे देखने लड़के वाले आए पर पसंद मुझे कर गए. इन दोनों घटनाओं के बाद मैं उस की नजरों में खलनायिका बन गई. बहन का बहन पर से ऐसा विश्वास उठा कि राकेश जीजाजी के साथ अब भी अगर वह मुझे अकेले में बातें करते देख ले तो सब काम छोड़ कर हमारे बीच आ जमती है. मैं किसी तरह का गलत व्यवहार करने की कुसूरवार नहीं हूं, पर उस बेचारी का शायद विश्वास डगमगा गया है. मुझे लड़कियों के कालेज में दाखिला दिलाया ही जाना था, पर मेरे मम्मीपापा का यह कदम भी मेरी परेशानियों को कम नहीं कर सका. वहां मुझे अपनी सहेलियों की जलन का सामना करना पड़ा.

पहले तो मुझे सहेलियों के खराब बरताव पर गुस्सा आता था पर फिर बाद में सहानुभूति होने लगी. वे बेचारियां महंगी ड्रैस में भी उतनी सुंदर व आकर्षक नहीं लगती थीं जितनी कि मैं साधारण से कपड़ों में लगती. मैं साथ होती तो उन के बौयफ्रैंड उन पर कम ध्यान देते और मेरी तरफ देख कर ज्यादा लार टपकाते. मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं बन सका. मेरे मम्मीपापा ने मेरी 2-3 सहेलियों को अपना जासूस बना रखा था. कभीकभी तो मुझे बाद में पता लगता था कि कोई लड़का मुझ में दिलचस्पी लेने लगा है, पर उन के जासूस उन तक यह खबर पहले पहुंचा देते.

बाद में मेरी जान को जो मुसीबत खड़ी होती थी उस से बचने को मैं ने लड़कों के साथ फ्लर्ट करने का मजा कभी नहीं लिया. अपना सारा इतराना, सारी अदाएं, सारी रोमांटिक छेड़छाड़ सब कुछ मैं ने अपने भावी जीवनसाथी के लिए मन में सुरक्षित रख छोड़ा था.

भला हो सौरभ की मम्मी का जिन्होंने अपने काबिल व स्मार्ट बेटे के लिए तगड़ा दहेज लेने के बजाय चांद सी सुंदर बहू लाने की जिद पकड़ रखी थी. सौरभ से शादी हो जाना

मेरी जिंदगी की सब से बड़ी लौटरी के निकलने जैसा था. हम दोनों ने मनाली में हनीमून का जो पूरा

1 सप्ताह गुजारा वे दिन मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत और मौजमस्ती से भरे दिन गिने जाएंगे. मेरी सुंदरता ने उन के दिलोदिमाग पर जादू सा कर दिया था. मुझे अपनी मजबूत बांहों में कैद कर के जब वे मेरे रूप की तारीफ करना शुरू करते तो पूरे कवि नजर आते… ‘‘लोगों की आंखों में हमारी जोड़ी को देख कर जो तारीफ के भाव पैदा होते हैं वे मेरे दिल को गुदगुदा जाते हैं शिखा. तुम तो जमीन पर उतर आई परी हो… स्वर्ग से आई अप्सरा हो… रुपहले परदे से मेरी जिंदगी में उतर आई बौलीवुड की सब से सुंदर हीरोइन से भी ज्यादा सुंदर मेरे दिल की रानी हो,’’ वे मेरी यों तारीफ करते तो मैं खुद पर इतना उठती थी.

हनीमून से लौटने के बाद मेरे सासससुर और ननद ने मुझे सिरआंखों पर बैठा कर रखा. रिश्तेदार और पड़ोसी जब घर में आ कर मेरी सुंदरता की तारीफ करते तो मेरे ससुराल वालों के सिर गर्व से ऊंचे हो जाते. घर में आने वाले हर इंसान की मेरे रंगरूप की यों दिल खोल कर तारीफ करना महीने भर तक तो मेरी ससुराल वालों को अच्छी तरह  हजम हुआ पर इस के बाद बदहजमी का सबब बन गया. ‘‘सूरत के साथ सीरत अच्छी न हो तो लड़कियों को ससुराल में बहुत नाम सुनने को मिलते हैं, बहूरानी. जरा काम करते हुए हाथ जल्दीजल्दी चलाया करो,’’ मेरी सास ने जिस दिन रसोई में मेरी ऐसी आलोचना करने की शुरुआत करी, मैं समझ गई कि अब इस घर में सुखशांति व आराम से जीने का समय समाप्त होने की तरफ चल पड़ा है.

घरगृहस्थी के काम करने में मैं उतनी ही कुशल हूं जितनी मेरी ननद नेहा, पर मेरी सास को सिर्फ मेरे ही काम में नुक्स निकालने होते हैं. वे अपने द्वारा कुशलता से किए गए काम का उदाहरण सामने रख कर मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका मुश्किल से ही हाथ से निकलने देती हैं. ‘‘मैं आप से सारा काम सीखने को तैयार हूं मम्मी. आप मुझे डांटा कम और सिखाया ज्यादा करो न,’’ मैं ने बड़े लाड़ से एक शाम अपनी यह इच्छा सासुमां के सामने जाहिर करी पर उन्होंने इसी बात को पकड़ कर घर में हंगामा खड़ा कर दिया था.

‘‘जो काम सीखना चाहता हो उसे अपनी जबान को काबू में और आंखों व कानों को खुला रखना चाहिए बहूरानी. मैं क्या पागल हूं, जो बिना बात तुझे डांटती हूं? अपने घर से सब

काम सीख कर आती तो मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती. मुझे इन से प्यार और इज्जत करानी हो तो घर के कामों में कुशल बनो,’’ मुझे ऐसी ढेर सारी बातें सुनाने के बाद सासुमां ने मुंह फुला कर घर में घूमना शुरू कर दिया तो कुछ ही देर में इस घटना की जानकारी हर किसी को हो गई. उस रात पति ने भी मेरे दिल को जख्मी करने की शुरुआत कर दी, ‘‘शिखा, अब सारा दिन सिर्फ सजधज कर घूमने से काम नहीं चलेगा. मां को घर में बहू के आने का सुख मिलना चाहिए… तुम उन से बहस करने के बजाय सही ढंग से काम करना सीखो. घर

की सुखशांति तुम्हारे कारण बिलकुल नहीं बिगड़नी चाहिए,’’ यों भाषण देते हुए सौरभ मुझे मेरे प्यार में पागल प्रेमी नहीं, बल्कि जबरदस्ती नुक्स निकालने वाले आलोचक नजर आ रहे थे.

सौरभ के अचानक बदले व्यवहार ने मेरे दिल को तो चोट पहुंचाई कि मेरी आंखों से आंसू बह चले. तब उन्होंने फौरन मुझे छाती से लगा कर प्यार करना शुरू कर दिया. उन का छूना मुझे हमेशा मदहोश सा कर देता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. मेरे जेहन में रहरह कर उन की आंखों में उभरे अजीब से संतोष के भाव व्यक्त करता उन का चेहरा उभर रहा था. ये भाव उन की आंखों में तब उभरे थे जब मैं ने उन का भाषण सुन कर आंसू बहाने शुरू किए थे.

इस तरह के भाव मैं जब से होश संभाला है तब से बहुतों की आंखों में देखती आई हूं.

मुझे डांट कर रुला देने में अगर मेरे मम्मीपापा सफल हो जाते थे तो ऐसा ही संतोष उन की आंखों में झलकता था. मेरा कोई काम बिगाड़ कर या मुझे नीचा दिखाने के बाद मेरी बहन की आंखें ऐसे ही भाव दिखाती थीं. मेरी कालेज

की सहेलियां अपने खराब व्यवहार से मुझे अकेलेपन व उदासी का शिकार बना देने के बाद इसी तरह से संतोषी भाव से मुसकराती नजर आती थीं. ‘मेरे जीवनसाथी के दिल में भी मेरी

सुंदरता ने जलन के भाव पैदा कर दिए हैं’ यह विचार अचानक मेरे मन में कौंधा तो मैं उन के कंधे से लग फूटफूट कर रोने लगी. जिस जीवनसाथी के साथ मैं ने अपनी सारी खुशियां और मन की सुखशांति जोड़ रखी थी, वह भी मेरी सुंदरता के कारण हीनभावना का शिकार बन बैठेगा, यह एहसास मुझे अंदर तक झकझोर गया. सौरभ का व्यवहार मेरे प्रति बदलने लगा था.

मैं ने ध्यान से सोचा तो सौरभ के व्यवहार में पिछले दिनों धीरेधीरे आए अंतर को पकड़ लिया. जब भी उन का कोई दोस्त मेरी तारीफ करता या मेरे साथ हंसीमजाक करने लगता तो उन्हें मैं ने कई बार संजीदा हो कर खिंचाखिंचा सा व्यवहार करते देखा था. अपने पुराने अनुभवों के आधार पर मैं बखूबी जानती थी कि आगे क्या होने वाला है. धीरेधीरे सौरभ की टोकाटाकी बढ़ती और फिर वे मुझे नीचा दिखाने की कोशिश शुरू कर देते. पहले अकेले में और फिर अन्य लोगों के सामने.

आगे चल कर हमारे मधुर संबंध बिगड़ जाएंगे, इस सोच ने मुझे रात भर जगाया और ढेर सारे खामोश आंसू मेरी आंखों से गिरवा दिए. अपनी सास के कटु व्यवहार को सहन करने की ताकत मुझे में थी पर सौरभ के प्यार में रत्तीभर भी कमी आए, यह मुझे स्वीकार नहीं था. ‘मुझे कुछ करना ही होगा. अपनी शादीशुदा जिंदगी को मैं उन के मन में पैदा हो रही जलन की कड़वाहट से कभी खराब नहीं होने दूंगी,’

मन ही मन ऐसा सोच कर मैं ने अगली सुबह बिस्तर छोड़ा. अपने विवाहित जीवन की खुशियां तय करने का एक सूत्र मेरी पकड़ में जरूर आया. मनाली में भी बहुत से लोगों ने मेरी सुंदरता की तारीफ करी थी और सौरभ कभी किसी से रत्तीभर नाराज नहीं हुए थे उलटा मेरी तारीफ सुन कर उन की छाती गर्व से फूल जाती थी.

यहां उन के रिश्तेदार, परिचित और दोस्त मेरी तारीफ करते हैं, तो वे जलन का शिकार बन रहे हैं. उन की प्रतिक्रिया में ऐसा अंतर क्यों पैदा हो रहा है? इस सवाल का जवाब शायद मैं ने ढूंढ़ भी लिया था. मनाली में मेरी तारीफ करने वाले लोग

हम दोनों के लिए अजनबी थे. वे हमारी जिंदगी का हिस्सा नहीं थे. उन के द्वारा करी गई मेरी तारीफ सौरभ को अपनी उपेक्षा नहीं लगती थी. वे उन लोगों की बातों को ऐसे नहीं लेते थे जैसे हम दोनों के व्यक्तित्वों के बीच तुलना की जा रही हो.

अब मेरी तारीफ उन के अंदर नकारात्मक भावनाएं पैदा करवा रही थी. इस गलत प्रतिक्रिया की जड़ों को मुझे किसी भी कीमत पर मजबूत नहीं होने देना था. अपनी विवाहित जिंदगी में से मैं प्यार व रोमांस की गरमाहट कभी नहीं खोना चाहती थी. उन के एक पक्के दोस्त मयंक ने अगले दिन अपनी शादी की सालगिरह के उपलक्ष्य में हमें अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया. वहां जाने के लिए जब पूरी तरह से तैयार हो कर मैं सौरभ के सामने आई तो मारे हैरानी के उन का मुंह खुला का खुला रह गया.

अपने को तैयार करने में मै ने सचमुच बहुत मेहनत करी थी और मैं बला की खूबसूरत लग भी रही थी. पार्टी में इन के करीबी दोस्त और मयंक के घरवाले ही मौजूद थे. सभी एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित थे, इसलिए ड्राइंगहौल में खूब हल्लागुल्ला हो रहा था.

‘‘शिखा के आते ही कमरे में रोशनी की मात्रा कितनी ज्यादा बढ़ गई है न?’’ इन के दोस्त नीरज के इस मजाक पर सभी लोग ठहाके मार कर हंस पड़े. ‘‘अपने सौरभ का तो बिजली का खर्चा बचने लगा है, यारो. अब तो शिखा के कारण अपने कमरे में ट्यूबलाइट जलाने की कोई जरूरत ही नहीं रही इसे,’’ राजीव के इस मजाक पर एक बार फिर ठहाकों की आवाज से कमरा गूंज उठा. ‘‘दोस्तो, रोशनी के कारण सोने में दिक्कत तो जरूर आती होगी अपने यार को.’’

‘‘अरे, रात भर सोता ही कौन है,’’ इस बार मिलेजुले ठहाकों की ऊंची आवाज आसपास के घरों तक जरूर पहुंच गई होगी. मैं ने साफ महसूस किया कि सौरभ अब जबरदस्ती मुसकरा रहे थे. उन्हें मेरा सब के हंसीमजाक का केंद्र बन जाना अच्छा नहीं लगा था. अपने दोस्तों की आंखों में मेरे रूपरंग के लिए तारीफ के भाव देख कर वे तनाव से भरे नजर आने लगे थे.

मैं ने अपनी गरदन घुमा कर उन्हें अपनी नजरों का केंद्र बना लिया. उन के कान के पास अपने होंठ ले जा कर मैं ने पहले चुंबन की हलकी सी आवाज निकाली और फिर प्यार से उन की आंखों में झांकते हुए दिलकश अंदाज में मुसकराने लगी. हमारे चारों तरफ लोग दिल खोल कर हंसबोल रहे थे, पर मेरा ध्यान पूरी तरह से अपने जीवनसाथी के चेहरे पर केंद्रित था मानो इस पल पूरे कमरे में मेरे लिए सौरभ के अलावा कोई और मौजूद ही न हो.

उन का पूरा ध्यान केंद्रित कर मैं ने उन के सभी दोस्तों को अजनबियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया था. वे तो इधरउधर देख भी रहे थे, पर जब भी उन्होंने मेरी तरफ देखा तो हर बार मुझे अपने चेहरे को प्यार भरे अंदाज में ताकते हुए पाया. मानो वे मेरे प्यार में खो जाना चाहते हों.

वे अचानक खुशी भरे अंदाज में मुसकराने लगे तो मेरा चेहरा फूल सा खिल उठा. ‘‘आई लव यू,’’ मैं ने बहुत धीमी आवाज में कहा और फिर शरमा कर नजरें झुका लीं.

अपने जीवनसाथी को जलन की भावना से आजाद करने का तरीका मैं ने ढूंढ़ लिया था. उस रात कोई भी मेरी जरा सी तारीफ करता तो मैं फौरन मुसकराते हुए सौरभ की तरफ यों प्यार से देखने लगती मानो कह रही हूं कि वह मेरी नहीं आप की पत्नी की तारीफ हो रही है, जनाब. आप संभालिए अपने इस दोस्त को व्यक्तिगत तौर पर. इन के मुंह से अपनी तारीफ सुनने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. मुझे लगता है कि मैं ने अपने विवाहित जीवन की रोमांस भरी मौजमस्ती को सदा तरोताजा रखने का तरीका ढूंढ़ लिया है. मेरी खूबसूरती अब उन के मन में मायूसी व जलन पैदा करने का कारण कभी नहीं बनेगी. जरा सी समझदारी दिखा कर मैं ने हुस्न और इश्क की उम्र को बढ़ा दिया है.

Fictional Story

Sad Story in Hindi: सूना आसमान- अमिता का कुंआरी रहने का फैसला

Sad Story in Hindi: अमिता जब छोटी थी तो मेरे साथ खेलती थी. मुझे पता नहीं अमिता के पिता क्या काम करते थे, लेकिन उस की मां एक घरेलू महिला थीं और मेरी मां के पास लगभग रोज ही आ कर बैठती थीं. जब दोनों बातों में मशगूल होती थीं तो हम दोनों छोटे बच्चे कभी आंगन में धमाचौकड़ी मचाते तो कभी चुपचाप गुड्डेगुडि़या के खेल में लग जाते थे.

धीरेधीरे परिस्थितियां बदलने लगीं. मेरे पापा ने मुझे शहर के एक बहुत अच्छे पब्लिक स्कूल में डाल दिया और मैं स्कूल जाने लगा. उधर अमिता भी अपने परिवार की हैसियत के मुताबिक स्कूल में जाने लगी थी. रोज स्कूल जाना, स्कूल से आना और फिर होमवर्क में जुट जाना. बस, इतवार को वह अपनी मां के साथ नियमित रूप से मेरे घर आती, तब हम दोनों सारा दिन खेलते और मस्ती करते.

हाईस्कूल के बाद जीवन पूरी तरह से बदल गया. कालेज में मेरे नए दोस्त बन गए, उन में लड़कियां भी थीं. अमिता मेरे जीवन से एक तरह से निकल ही गई थी. बाहर से आने पर जब मैं अमिता को अपनी मां के पास बैठा हुआ देखता तो बस, एक बार मुसकरा कर उसे देख लेता. वह हाथ जोड़ कर नमस्ते करती, तो मुझे वह किसी पौराणिक कथा के पात्र सी लगती. इस युग में अमिता जैसी सलवारकमीज में ढकीछिपी लड़कियों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता था. अमिता खूबसूरत थी, लेकिन उस की खूबसूरती के प्रति मन में श्रद्धाभाव होते थे, न कि उस के साथ चुहलबाजी और मौजमस्ती करने का मन होता था.

वह जब भी मुझे देखती तो शरमा कर अपना मुंह घुमा लेती और फिर कनखियों से चुपकेचुपके मुसकराते हुए देखती. दिन इसी तरह बीत रहे थे.

फिर मैं ने नोएडा के एक कालेज में बीटैक में दाखिला ले लिया और होस्टल में रहने लगा. केवल लंबी छुट्टियों में ही घर जाना हो पाता था. जब हम घर पर होते थे, तब अमिता कभीकभी हमारे यहां आती थी और दूर से ही शरमा कर नमस्ते कर देती थी, लेकिन उस के साथ बातचीत करने का मुझे कोई मौका नहीं मिलता था. उस से बात करने का मेरे पास कोई कारण भी नहीं था. ज्यादा से ज्यादा, ‘कैसी हो, क्या कर रही हो आजकल?’ पूछ लेता. पता चला कि वह किसी कालेज से बीए कर रही थी. बीए करने के बावजूद वह अभी तक सलवारकमीज में लिपटी हुई एक खूबसूरत गुडि़या की तरह लगती थी. लेकिन मुझे तो जींसटौप में कसे बदन और दिलकश उभारों वाली लड़कियां पसंद थीं. उस की तमाम खूबसूरती के बावजूद, संस्कारों और शालीन चरित्र से मुझे वह प्राचीनकाल की लड़की लगती थी.

गरमी की एक उमसभरी दोपहर थी. मैं अपने कमरे में एसी की ठंडी हवा लेता हुआ एक उपन्यास पढ़ने में व्यस्त था, तभी दरवाजे पर एक हलकी थाप पड़ी. मैं चौंक गया और लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘कौन?’’

‘‘मैं, एक मीठी आवाज कानों में पड़ी. मैं पहचान गया, अमिता की आवाज थी, मैं ने कहा, आ जाओ, दरवाजे की सिटकिनी नहीं लगी है.’’

‘‘हां,’’ उस का सिर झुका हुआ था, आंखें उठा कर उस ने एक बार मेरी तरफ देखा. उस की आंखों में एक अनोखी कशिश थी, जो सामने वाले को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी. उस का चेहरा भी दमक रहा था. वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. उस के नैनन बहुत सुंदर थे. मैं एक पल के लिए देखता ही रह गया और मेरे हृदय में एक कसक सी उठतेउठते रह गई.

‘‘तुम…अचानक…इतनी दोपहर को? कोईर् काम है?’’ मैं उस के सौंदर्य से अभिभूत होता हुआ बिस्तर पर बैठ गया. पहली बार वह मुझे इतनी सुंदर और आकर्षक लगी थी.

वह शरमातीसकुचाती सी थोड़ा आगे बढ़ी और अपने हाथों को आगे बढ़ाती हुई बोली, ‘‘मिठाई लीजिए.’’

‘‘मिठाई?’’

‘‘हां, आज मेरा जन्मदिन है. मां ने मिठाई भिजवाई है,’’ उस ने सिर झुकाए हुए ही कहा.

‘‘अच्छा, बधाई हो,’’ मैं ने उस के हाथों से मिठाई ले ली.

मैं उस वक्त कमरे में अकेला था और एक जवान लड़की मेरे साथ थी. कोई देखता तो क्या समझता. मेरा ध्यान भी उपन्यास में लगा हुआ था. कहानी एक रोचक मोड़ पर पहुंच चुकी थी. ऐसे में अमिता ने आ कर अनावश्यक व्यवधान पैदा कर दिया था. अत: मैं चाहता था कि वह जल्दी से जल्दी मेरे कमरे से चली जाए. लेकिन वह खड़ी ही रही. मैं ने प्रश्नवाचक भाव से उसे देखा.

‘‘क्या मैं बैठ जाऊं?’’ उस ने एक कुरसी की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘हां…’’ मेरी हैरानी बढ़ती जा रही थी. मेरे दिल में धुकधुकी पैदा हो गई. क्या अमिता किसी खास मकसद से मेरे कमरे में आई थी? उस की आंखें याचक की भांति मेरी आंखों से टकरा गईं और मैं द्रवित हो उठा. पता नहीं, उस की आंखों में क्या था कि डरने के बावजूद मैं ने उस से कह दिया, ‘‘हांहां, बैठो,’’ मेरी आवाज में अजीब सी बेचैनी थी.

कुरसी पर बैठते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या आप को डर लग रहा है?’’

‘‘नहीं, क्या तुम डर रही हो?’’ मैं ने अपने को काबू में करते हुए कहा.

‘‘मैं क्यों डरूंगी? आप से क्या डरना?’’ उस ने आत्मविश्वास से कहा.

‘‘डरने की बात नहीं है? चारों तरफ सन्नाटा है. दूरदूर तक किसी की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही. भरी दोपहर में लोग अपनेअपने घरों में बंद हैं. ऐसे में एक सूने कमरे में एक जवान लड़की किसी लड़के के साथ अकेली हो तो क्या उसे डर नहीं लगेगा?’’

वह हंसते हुए बोली, ‘‘इस में डरने की क्या बात है? मैं आप को अच्छी तरह जानती हूं. आप भी तो कालेज में लड़कियों के साथ उठतेबैठते हैं, उन के साथ घूमतेफिरते हो. रेस्तरां और पार्क में जाते हो, तो क्या वे लड़कियां आप से डरती हैं?’’

मैं अमिता के इस रहस्योद्घाटन पर हैरान रह गया. कितनी साफगोई से वह यह बात कह रही थी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि हम लोग लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं और मौजमस्ती करते हैं?’’

‘‘अब मैं इतनी भोली भी नहीं हूं. मैं भी कालेज में पढ़ती हूं. क्या मुझे नहीं पता कि किस प्रकार युवकयुवतियां एकदूसरे के साथ घूमते हैं और आपस में किस प्रकार का व्यवहार करते हैं?’’

‘‘लेकिन वे युवतियां हमारी दोस्त होती हैं और तुम…’’ मैं अचानक चुप हो गया. कहीं अमिता को बुरा न लग जाए. अफसोस हुआ कि मैं ने इस तरह की बात कही. आखिर अमिता मेरे लिए अनजान नहीं थी. बचपन से हम एकदूसरे को जानते हैं. जवानी में भले ही आत्मीयता या निकटता न रही हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि वह मुझ से मिल नहीं सकती थी.

अमिता को शायद मेरी बात बुरी लगी. वह झटके से उठती हुई बोली, ‘‘अब मैं चलूंगी वरना मां चिंतित होंगी,’’ उस की आवाज भीगी सी लगी. उस ने दुपट्टा अपने मुंह में लगा लिया और तेजी से कमरे से बाहर भाग गई. मैं ने स्वयं से कहा, ‘‘मूर्ख, तुझे इतना भी नहीं पता कि लड़कियों से किस तरह पेश आना चाहिए. वे फूल की तरह कोमल होती हैं. कोई भी कठिन बात बरदाश्त नहीं कर सकतीं.’’

फिर मैं ने झटक कर अपने मन से यह बात निकाल दी, ‘‘हुंह, मुझे अमिता से क्या लेनादेना? बुरा मानती है तो मान जाए. मुझे कौन सा उस के साथ रिश्ता जोड़ना है. न वह मेरी प्रेमिका है, न दोस्त.’’

उन दिनों घर में बड़ी बहन की शादी की बातें चल रही थीं. वह बीए करने के बाद एक औफिस में स्टैनो हो गई थी. दूसरी बहन बीए करने के बाद प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी और सिविल सर्विसेज में जाने की इच्छुक थी. एक कोचिंग क्लास भी जौइन कर रखी थी. सब के साथ शाम की चाय पीने तक मैं अमिता के बारे में बिलकुल भूल चुका था. चाय पीने के बाद मैं ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और यारदोस्तों से मिलने के लिए निकल पड़ा.

मैं दोस्तों के साथ एक रेस्तरां में बैठ कर लस्सी पीने का मजा ले रहा था कि तभी मेरे मोबाइल पर निधि का फोन आया. वह मेरे साथ इंटरमीडिएट में पढ़ती थी और हम दोनों में अच्छी जानपहचान ही नहीं आत्मीयता भी थी. मेरे दोस्तों का कहना था कि वह मुझ पर मरती है, लेकिन मैं इस बात को हंसी में उड़ा देता था. वह हमारी गंभीर प्रेम करने की उमर नहीं थी और मैं इस तरह का कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था. मेरे मम्मीपापा की मुझ से कुछ अपेक्षाएं थीं और मैं उन अपेक्षाओं का खून नहीं कर सकता था. अत: निधि के साथ मेरा परिचय दोस्ती तक ही कायम रहा. उस ने कभी अपने पे्रम का इजहार भी नहीं किया और न मैं ने ही इसे गंभीरता से लिया.

इंटर के बाद मैं नोएडा चला गया, तो उस ने भी मेरे नक्शेकदम पर चलते हुए गाजियाबाद के एक प्रतिष्ठान में बीसीए में दाखिला ले लिया. उस ने एक दिन मिलने पर कहा था, ‘‘मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

‘‘अच्छा, कहां तक?’’ मैं ने हंसते हुए कहा था.

‘‘जहां तक तुम मेरा साथ दोगे.’’

‘‘अगर मैं तुम्हारा साथ अभी छोड़ दूं तो?’’

‘‘नहीं छोड़ पाओगे. 3 साल से तो हम आसपास ही हैं. न चाहते हुए भी मैं तुम से मिलने आऊंगी और तुम मना नहीं कर पाओगे. यहां से जाने के बाद क्या होगा, न तुम जानते हो, न मैं. मैं तो बस इतना जानती हूं, अगर तुम मेरा साथ दोगे, तो हम जीवनभर साथ रह सकते हैं.’’

मैं बात को और ज्यादा गंभीर नहीं करना चाहता था. बीटैक का वह मेरा पहला ही साल था. वह भी बीसीए के पहले साल में थी. प्रेम करने के लिए हम स्वतंत्र थे. हम उस उम्र से भी गुजर रहे थे, जब मन विपरीत सैक्स के प्रति दौड़ने लगता है और हम न चाहते हुए भी किसी न किसी के प्यार में गिरफ्तार हो जाते हैं. हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे.

वह मुझे अच्छी लगती थी, उस का साथ अच्छा लगता था. वह नए जमाने के अनुसार कपड़े भी पहनती थी. उस का शारीरिक गठन आकर्षक था. उस के शरीर का प्रत्येक अंग थिरकता सा लगता. वह ऐसी लड़की थी, जिस का प्यार पाने के लिए कोई भी लड़का कुछ भी उत्सर्ग कर सकता था, लेकिन मैं अभी पे्रम के मामले में गंभीर नहीं था, अत: बात आईगई हो गई. लेकिन हम दोनों अकसर ही महीने में एकाध बार मिल लिया करते थे और दिल्ली जा कर किसी रेस्तरां में बैठ कर चायनाश्ता करते थे, सिनेमा देखते थे और पार्क में बैठ कर अपने मन को हलका करते थे.

तब से अब तक 2 साल बीत चुके थे. अगले साल हम दोनों के ही डिग्री कोर्स समाप्त हो जाएंगे, फिर हमें जौब की तलाश करनी होगी. हमारा जौब हमें कहां ले जाएगा, हमें पता नहीं था.

मैं ने फोन औन कर के कहा, ‘‘हां, निधि, बोलो.’’

‘‘क्या बोलूं, तुम से मिलने का मन कर रहा है. तुम तो कभी फोन करोगे नहीं कि मेरा हालचाल पूछ लो. मैं ही तुम्हारे पीछे पड़ी रहती हूं. क्या कर रहे हो?’’ उधर से निधि ने जैसे शिकायत करते हुए कहा. उस की आवाज में बेबसी थी और मुझ से मिलने की उत्कंठा… लगता था, वह मेरे प्रति गंभीर होती जा रही थी.

मैं ने सहजता से कहा, ‘‘बस, दोस्तों के साथ गपें लड़ा रहा हूं.’’

‘‘क्या बेवजह समय बरबाद करते फिरते हो.’’

‘‘तो तुम्हीं बताओ, क्या करूं?’’

‘‘मैं तुम से मिलने आ रही हूं, कहां मिलोगे?’’

मैं दोस्तों के साथ था. थोड़ा असहज हो कर बोला, ‘‘मेरे दोस्त साथ हैं. क्या बाद में नहीं मिल सकते?’’

‘‘नहीं, मैं अभी मिलना चाहती हूं. उन से कोई बहाना बना कर खिसक आओ. मैं अभी निकलती हूं. रामलीला मैदान के पास आ कर मिलो,’’ वह जिद पर अड़ी हुई थी.

दोस्त मुझे फोन पर बातें करते देख कर मुसकरा रहे थे. वे सब समझ रहे थे. मैं ने उन से माफी मांगी, तो उन्होंने उलाहना दिया कि प्रेमिका के लिए दोस्तों को छोड़ रहा है. मैं खिसियानी हंसी हंसा, ‘‘नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ फिर बिना कोई जवाब दिए चला आया. रामलीला मैदान पहुंचने के 10 मिनट बाद निधि वहां पहुंची. वह रिकशे से आई थी. मैं ने उपेक्षित भाव से कहा, ‘‘ऐसी क्या बात थी कि आज ही मिलना जरूरी था. दोस्त मेरा मजाक उड़ा रहे थे.’’

उस ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘सौरी अनुज, लेकिन मैं अपने मन को काबू में नहीं रख सकी. आज पता नहीं दिल क्यों इतना बेचैन था. सुबह से ही तुम्हारी बहुत याद आ रही थी.’’

‘‘अच्छा, लगता है, तुम मेरे बारे में कुछ अधिक ही सोचने लगी हो.’’

हम दोनों मोटरसाइकिल के पास ही खड़े थे. उस ने सिर नीचा करते हुए कहा, ‘‘शायद यही सच है. लेकिन अपने मन की बात मैं ही समझ सकती हूं. अब तो पढ़ने में भी मेरा मन नहीं लगता, बस हर समय तुम्हारे ही खयाल मन में घुमड़ते रहते हैं.’’

मैं सोच में पड़ गया. ये अच्छे लक्षण नहीं थे. मेरी उस के साथ दोस्ती थी, लेकिन उस को प्यार करने और उस के साथ शादी कर के घर बसाने के बारे में मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.

‘‘निधि, यह गलत है. अभी हमें पढ़ाई समाप्त कर के अपना कैरियर बनाना है. तुम अपने मन को काबू में रखो,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं अपने मन को काबू में नहीं रख सकती. यह तुम्हारी तरफ भागता है. अब सबकुछ तुम्हारे हाथ में है. मैं सच कहती हूं, मैं तुम्हें प्यार करने लगी हूं.’’

मैं चुप रहा. उस ने उदासी से मेरी तरफ देखा. मैं ने नजरें चुरा लीं. वह तड़प उठी, ‘‘तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?’’

मैं हड़बड़ा गया. मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए मैं ने कहा, ‘‘चलो, पीछे बैठो,’’ वह चुपचाप पीछे बैठ गई. मैं ने फर्राटे से गाड़ी आगे बढ़ाई. मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि ऐसे मौके पर कैसे रिऐक्ट करूं? निधि ने बड़े आराम से बीच सड़क पर अपने प्यार का इजहार कर दिया था. न उस ने वसंत का इंतजार किया, न फूलों के खिलने का और न चांदनी रात का… न उस ने मेरे हाथों में अपना हाथ डाला, न चांद की तरफ इशारा किया और न शरमा कर अपने सिर को मेरे कंधे पर रखा.

बड़ी शालीनता से उस ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. मुझे बड़ा अजीब सा लगा कि यह कैसा प्यार था, जिस में प्रेमी के दिल में प्रेमिका के लिए कोई प्यार की धुन नहीं बजी.

एक अच्छे से रेस्तरां के एक कोने में बैठ कर मैं ने बिना उस की ओर देखे कहा, ‘‘प्यार तो मैं कर सकता हूं, पर इस का अंत क्या होगा?’’ मेरी आवाज से ऐसा लग रहा था, जैसे मैं उस के साथ कोई समझौता करने जा रहा था.

‘‘प्यार के परिणाम के बारे में सोच कर प्यार नहीं किया जाता. तुम मुझे अच्छे लगते हो, तुम्हारे बारे में सोचते हुए मेरा दिल धड़कने लगता है, तुम्हारी आवाज मेरे कानों में मधुर संगीत घोलती है, तुम से मिलने के लिए मेरा मन बेचैन रहता है. बस, मैं समझती हूं, यही प्यार है,’’ उस ने अपना दायां हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और बाएं हाथ से मेरा सीना सहलाने लगी.

मैं सिकुड़ता हुआ बोला, ‘‘हां, प्यार तो यही है, लेकिन मैं अभी इस मामले में गंभीर नहीं हूं.’’

‘‘कोईर् बात नहीं, जब रोजरोज मुझ से मिलोगे तो एक दिन तुम को भी मुझ से प्यार हो जाएगा. मैं जानती हूं, तुम मुझे नापसंद नहीं करते,’’ वह मेरे साथ जबरदस्ती कर रही थी.

क्या पता, शायद एक दिन मुझे भी निधि से प्यार हो जाए. निधि को अपने ऊपर विश्वास था, लेकिन मुझे अपने ऊपर नहीं… फिर भी समय बलवान होता है. एकदो साल में क्या होगा, कौन क्या कह सकता है?

इसी तरह एक साल बीत गया. निधि से हर सप्ताह मुलाकात होती. उस के प्यार की शिद्दत से मैं भी पिघलने लगा था और दोनों चुंबक की तरह एकदूसरे को अपनी तरफ खींच रहे थे. इस में कोई शक नहीं कि निधि के प्यार में तड़प और कसमसाहट थी. मेरे मन में चोर था और मैं दुविधा में था कि मैं इस संबंध को लंबे अरसे तक खींच पाऊंगा या नहीं, क्योंकि भविष्य के प्रति मैं आश्वस्त नहीं था.

एक साल बाद हमारे डिग्री कोर्स समाप्त हो गए. परीक्षा के बाद फिर से गरमी की छुट्टियां. मैं अपने शहर आ गया. छुट्टियों में निधि से रोज मिलना होता, लेकिन इस बार अपने घर आ कर मैं कुछ बेचैन सा रहने लगा था. पता नहीं, वह क्या चीज थी, मैं समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसा लगता था, जैसे मेरे जीवन में किसी चीज का अभाव था. वह क्या चीज थी, लाख सोचने के बावजूद मैं समझ नहीं पा रहा था. निधि से मिलता तो कुछ पल के लिए मेरी बेचैनी दूर हो जाती, लेकिन घर आते ही लगता मैं किसी भयानक वीराने में आ फंसा हूं और वहां से निकलने का कोई रास्ता मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा.

अचानक एक दिन मुझे अपनी बेचैनी का कारण समझ में आ गया. उस दिन मैं जल्दी घर लौटा था. मां आंगन में अमिता की मां के साथ बैठी बातें कर रही थीं. अमिता की मां को देखते ही मेरा दिल अनायास ही धड़क उठा, जैसे मैं ने बरसों पूर्व बिछड़े अपने किसी आत्मीय को देख लिया हो. मुझे तुरंत अमिता की याद आई, उस का भोला मुखड़ा याद आया. उस के चेहरे की स्निग्धता, मधुर सौंदर्य, बड़ीबड़ी मुसकराती आंखें और होंठों को दबा कर मुसकराना सभी कुछ याद आया. मेरा दिल और तेजी से धड़क उठा. मेरे पैर जैसे वहीं जकड़ कर रह गए. मैं ने कातर भाव से अमिता की मां को देखा और उन्हें नमस्कार करते हुए कहा, ‘‘चाची, आजकल आप दिखाई नहीं पड़ती हैं?’’ वास्तव में मैं पूछना चाहता था कि आजकल अमिता दिखाई नहीं पड़ती.

मुझे अपनी बेचैनी का कारण पता चल गया था, लेकिन मैं उस का निवारण नहीं कर सकता था. अमिता की मां ने कहा, ‘‘अरे, बेटा, मैं तो लगभग रोज ही आती हूं. तुम ही घर पर नहीं रहते.’’

मैं शर्मिंदा हो गया और झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगा. मेरी मां मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘लगता है, यह तुम्हारे बहाने अमिता के बारे में पूछ रहा है. उस से इस बार मिला कहां है?’’ मां मेरे दिल की बात समझ गई थीं.

अमिता की मां भी हंस पड़ीं, ‘‘तो सीधा बोलो न बेटा, मैं तो उस से रोज कहती हूं, लेकिन पता नहीं उसे क्या हो गया है कि कहीं जाने का नाम ही नहीं लेती. पिछले एक साल से बस पढ़ाई, सोना और कालेज… कहती है, अंतिम वर्ष है, ठीक से पढ़ाई करेगी तभी तो अच्छे नंबरों से पास होगी.’’

‘‘लेकिन अब तो परीक्षा समाप्त हो गई है,’’ मेरी मां कह रही थीं. मैं धीरेधीरे अपने कमरे की तफ बढ़ रहा था, लेकिन उन की बातें मुझे पीछे की तरफ खींच रही थीं. दिल चाहता था कि रुक कर उन की बातें सुनूं और अमिता के बारे में जानूं, पर संकोच और लाजवश मैं आगे बढ़ता जा रहा था. कोई क्या कहेगा कि मैं अमिता के प्रति दीवाना था…

‘‘हां, परंतु अब भी वह किताबों में ही खोई रहती है,’’ अमिता की मां बता रही थीं.

आगे की बातें मैं नहीं सुन सका. मेरे मन में तड़ाक से कुछ टूट गया. मैं जानता था कि अमिता मेरे घर क्यों नहीं आ रही थी. उस दिन की मेरी बात, जब वह मेरे कमरे में मिठाई देने के बहाने आई थी, उस के दिल में उतर गई थी और आज तक उसे गांठ बांध कर रखा था. मुझे नहीं पता था कि वह इतनी जिद्दी और स्वाभिमानी लड़की है. बचपन में तो वह ऐसी नहीं थी.

अब मैं फोन पर निधि से बात करता तो खयालों में अमिता रहती, उस का मासूम और सुंदर चेहरा मेरे आगे नाचता रहता और मुझे लगता मैं निधि से नहीं अमिता से बातें कर रहा हूं. मुझे उस का इंतजार रहने लगा, लेकिन मैं जानता था कि अब अमिता मेरे घर कभी नहीं आएगी. एक साल हो गया था, आज तक वह नहीं आई तो अब क्या आएगी? उसे क्या पता कि मैं अब उस का इंतजार करने लगा था. मेरी बेबसी और बेचैनी का उसे कभी पता नहीं चल सकता था. मुझे ही कुछ  करना पड़ेगा वरना एक अनवरत जलने वाली आग में मैं जल कर मिट जाऊंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा.

मैं अमिता के घर कभी नहीं गया था, लेकिन बहुत सोचविचार कर एक दिन मैं उस के घर पहुंच ही गया. दरवाजे की कुंडी खटखटाते ही मेरे मन को एक अनजाने भय ने घेर लिया. इस के बावजूद मैं वहां से नहीं हटा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अमिता की मां सामने खड़ी थीं. वे मुझे देख कर हैरान रह गईं. अचानक उन के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. मैं ने अपने दिल की धड़कन को संभालते हुए उन्हें नमस्ते किया और कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’

‘‘आं… हांहां,’’ जैसे उन्हें होश आया हो, ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ,’’ अंदर घुस कर मैं ने चारों तरफ नजर डाली. साधारण घर था, जैसा कि आम मध्यवर्गीय परिवार का होता है. आंगन के बीच खड़े हो कर मैं ने अमिता के घर को देखा, बड़ा खालीखाली और वीरान सा लग रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ली और प्रश्नवाचक भाव से अमिता की मां को देखा, ‘‘सब लोग कहीं गए हुए हैं क्या,’’ मैं ने पूछा.

अमिता की मां की समझ में अभी तक नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें. मेरा प्रश्न सुन कर वे बोलीं, ‘‘हां, बस अमिता है, अपने कमरे में. अच्छा, तुम बैठो. मैं उसे बुलाती हूं,’’ उन्होंने हड़बड़ी में बरामदे में रखे तख्त की तरफ इशारा किया. तख्त पर पुराना गद्दा बिछा हुआ था, शायद रात को उस पर कोई सोता होगा. मैं ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. मैं उस के कमरे में ही जा कर मिल लेता हूं. कौन सा कमरा है?’’

अब तक शायद हमारी बातचीत की आवाज अमिता के कानों तक पहुंच चुकी थी. वह उलझी हुई सी अपने कमरे से बाहर निकली और फटीफटी आंखों से मुझे देखने लगी. वह इतनी हैरान थी कि नमस्कार करना तक भूल गई. मांबेटी की हैरानगी से मेरे दिल को थोड़ा सुकून पहुंचा और अब तक मैं ने अपने धड़कते दिल को संभाल लिया था. मैं मुसकराने लगा, तो अमिता ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया, बोली कुछ नहीं. मैं ने देखा, उस के बाल उलझे हुए थे, सलवारकुरते में सिलवटें पड़ी हुई थीं. आंखें उनींदी सी थीं, जैसे उसे कई रातों से नींद न आई हो. वह अपने प्रति लापरवाह सी दिख रही थी.

‘‘बैठो, बेटा. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? तुम पहली बार मेरे घर आए हो,’’ अमिता की मां ऐसे कह रही थीं, जैसे कोई बड़ा आदमी उन के घर पर पधारा हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मुसकराता रहा. अमिता ने एक बार फिर अपनी नजरें उठा कर गहरी निगाह से मुझे देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न डोल रहा था. मैं तुरंत उस का जवाब नहीं दे सकता था. उस की मां के सामने खुल कर बात भी नहीं कर सकता था. मैं चुप रहा तो शायद वह मेरे मन की बात समझ गई और धीरे से बोली, ‘‘आओ, मेरे कमरे में चलते हैं. मां, आप तब तक चाय बना लो,’’ अंतिम वाक्य उस ने अपनी मां से कुछ जोर से कहा था.

हम दोनों उस के कमरे में आ गए. उस ने मुझे अपने बिस्तर पर बैठा दिया, पर खुद खड़ी रही. मैं ने उस से बैठने के लिए कहा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूं,’’ मैं ने उस के कमरे में एक नजर डाली. पढ़ने की मेजकुरसी के अलावा एक साधारण बिस्तर था, एक पुरानी स्टील की अलमारी और एक तरफ हैंगर में उस के कपड़े टंगे थे. कमरा साफसुथरा था और मेज पर किताबों का ढेर लगा हुआ था, जैसे अभी भी वह किसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. छत पर एक पंखा हूम्हूम् करता हुआ हमारे विचारों की तरह घूम रहा था.

मैं ने एक गहरी सांस ली और अमिता को लगभग घूर कर देखता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’ मैं बहुत तेजी से बोल रहा था. मेरे पास समय कम था, क्योंकि किसी भी क्षण उस की मां कमरे में आ सकती थीं और मुझे काफी सारे सवालों के जवाब अमिता से चाहिए थे.

वह कुछ नहीं बोली, बस सिर नीचा किए खड़ी रही. मैं ने महसूस किया, उस के होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने के लिए बेताब हों, लेकिन भावातिरेक में शब्द मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. मैं ने उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, अमिता, मेरे पास समय कम है और तुम्हारे पास भी… मां घर पर हैं और हम खुल कर बात भी नहीं कर सकते, जो मैं पूछ रहा हूं, जल्दी से उस का जवाब दो, वरना बाद में हम दोनों ही पछताते रह जाएंगे. बताओ, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं, उस ने कहा, लेकिन उस की आवाज रोती हुई सी लगी.’’

‘‘तो, तुम मुझे प्यार करती हो? मैं ने स्पष्ट करना चाहा. कहते हुए मेरी आवाज लरज गई और दिल जोरों से धड़कने लग गया. लेकिन अमिता ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उस के पास शब्द नहीं थे. बस, उस का बदन कांप कर रह गया. मैं समझ गया.’’

‘‘तो फिर तुम ने हठ क्यों किया? अपना मान तोड़ कर एक बार मेरे पास आ जाती, मैं कोई अमानुष तो नहीं हूं. तुम थोड़ा झुकती, तो क्या मैं पिघल नहीं जाता?’’

वह फिर एक बार कांप कर रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी तरफ नहीं देखोगी?’’ उस ने तड़प कर अपना चेहरा उठाया. उस की आंखें भीगी हुई थीं और उन में एक विवशता झलक रही थी. यह कैसी विवशता थी, जो वह बयान नहीं कर सकती थी? मुझे उस के ऊपर दया आई और सोचा कि उठ कर उसे अपने अंक में समेट लूं, लेकिन संकोचवश बैठा रहा.

उस की मां एक गिलास में पानी ले कर आ गई थीं. मुझे पानी नहीं पीना था, फिर भी औपचारिकतावश मैं ने गिलास हाथ में ले लिया और एक घूंट भर कर गिलास फिर से ट्रे में रख दिया. मां भी वहीं सामने बैठ गईं और इधरउधर की बातें करने लगीं. मुझे उन की बातों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उन के सामने मैं अमिता से कुछ पूछ भी नहीं सकता था.

उस की मां वहां से नहीं हटीं और मैं अमिता से आगे कुछ नहीं पूछ सका. मैं कितनी देर तक वहां बैठ सकता था, आखिर मजबूरन उठना पड़ा, ‘‘अच्छा चाची, अब मैं चलता हूं.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ वे अभी तक नहीं समझ पाई थीं कि मैं उन के घर क्यों आया था. उन्होंने भी नहीं पूछा. इंतजार करूंगा, कह कर मैं ने एक गहरी मुसकान उस के चेहरे पर डाली. उस की आंखों में विश्वास और अविश्वास की मिलीजुली तसवीर उभर कर मिट गई. क्या उसे मेरी बात पर यकीन होगा? अगर हां, तो वह मुझ से मिलने अवश्य आएगी.

पर वह मेरे घर फिर भी नहीं आई. मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची. क्या मैं ने अमिता के दिल को इतनी गहरी चोट पहुंचाई थी कि वह उसे अभी तक भुला नहीं पाई थी. वह मुझ से मिलती तो मैं माफी मांग लेता, उसे अपने अंक में समेट लेता और अपने सच्चे प्यार का उसे एहसास कराता. लेकिन वह नहीं आई, तो मेरा दिल भी टूट गया. वह अगर स्वाभिमानी है, तो क्या मैं अपने आत्मसम्मान का त्याग कर देता?

हम दोनों ही अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. समय बिना किसी अवरोध के अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मेरी नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में लग गई और मैं अमिता को मिले बिना चंडीगढ़ चला गया. निधि को भी जौब मिल  गया, अब वह नोएडा में नौकरी कर रही थी.

इस दौरान मेरी दोनों बहनों का भी ब्याह हो गया और वे अपनीअपनी ससुराल चली गईं. जौब मिल जाने के बाद मेरे लिए भी रिश्ते आने लगे थे, लेकिन मम्मी और पापा ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया था.

निधि की मेरे प्रति दीवानगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मैं उस के प्रति समर्पित नहीं था और न उस से मिलनेजुलने के लिए इच्छुक, लेकिन निधि मकड़ी की तरह मुझे अपने जाल में फंसाती जा रही थी. वह छुट्टियों में अपने घर न जा कर मेरे पास चंडीगढ़ आ जाती और हम दोनों साथसाथ कई दिन गुजारते.

मैं निधि के चेहरे में अमिता की छवि को देखते हुए उसे प्यार करता रहा, पर मैं इतना हठी निकला कि एक बार भी मैं ने अमिता की खबर नहीं ली. पुरुष का अहम मेरे आड़े आ गया. जब अमिता को ही मेरे बारे में पता करने की फुरसत नहीं है, तो मैं उस के पीछे क्यों भागता फिरूं?

अंतत: निधि की दीवानगी ने मुझे जीत लिया. उधर मम्मीपापा भी शादी के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए जौब मिलने के सालभर बाद हम दोनों ने शादी कर ली.

निधि के साथ मैं दक्षिण भारत के शहरों में हनीमून मनाने चला गया. लगभग 15 दिन बिता कर हम दोनों अपने घर लौटे. हमारी छुट्टी अभी 15 दिन बाकी थी, अत: हम दोनों रोज बाहर घूमनेफिरने जाते, शाम को किसी होटल में खाना खाते और देर रात गए घर लौटते. कभीकभी निधि के मायके चले जाते. इसी तरह मस्ती में दिन बीत रहे थे कि एक दिन मुझे तगड़ा झटका लगा.

अमिता की मां मेरे घर आईं और रोतेरोते बता रही थीं कि अमिता के पापा ने उस के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ा था. बहुत अच्छा लड़का था, सरकारी नौकरी में था और घरपरिवार भी अच्छा था. सभी को यह रिश्ता बहुत पसंद था, लेकिन अमिता ने शादी करने से इनकार कर दिया था. घर वाले बहुत परेशान और दुखी थे, अमिता किसी भी तरह शादी के लिए मान नहीं रही थी.

‘‘शादी से इनकार करने का कोई कारण बताया उस ने,’’ मेरी मां अमिता की मम्मी से पूछ रही थीं.

‘‘नहीं, बस इतना कहती है कि शादी नहीं करेगी और पहाड़ों पर जा कर किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेगी.’’

‘‘इतनी छोटी उम्र में उसे ऐसा क्या वैराग्य हो गया,’’ मेरी मां की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. पर मैं जानता था कि अमिता ने यह कदम क्यों उठाया था? उसे मेरा इंतजार था, लेकिन मैं ने हठ में आ कर निधि से शादी कर ली थी. मैं दोबारा अमिता के पास जा कर उस से माफी मांग लेता, तो संभवत: वह मान जाती और मेरा प्यार स्वीकार कर लेती. हम दोनों ही अपनी जिद्द और अहंकार के कारण एकदूसरे से दूर हो गए थे. मुझे लगा, अमिता ने किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ अपना रिश्ता तोड़ा है.

मेरी शादी हो गई थी और मुझे अब अमिता से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए था, पर मेरा दिल उस के लिए बेचैन था. मैं उस से मिलना चाहता था, अत: मैं ने अपना हठ तोड़ा और एक बार फिर अमिता से मिलने उस के घर पहुंच गया. मैं ने उस की मां से निसंकोच कहा कि मैं उस से एकांत में बात करना चाहता हूं और इस बीच वे कमरे में न आएं.

मैं बैठा था और वह मेरे सामने खड़ी थी. उस का सुंदर मुखड़ा मुरझा कर सूखी, सफेद जमीन सा हो गया था. उस की आंखें सिकुड़ गई थीं और चेहरे की कांति को ग्रहण लग गया था. उस की सुंदर केशराशि उलझी हुई ऊन की तरह हो गई थी. मैं ने सीधे उस से कहा, ‘‘क्यों अपने को दुख दे रही हो?’’

‘‘मैं खुश हूं,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘शादी के लिए क्यों मना कर दिया?’’

‘‘यही मेरा प्रारब्ध है,’’ उस ने बिना कुछ सोचे तुरंत जवाब दिया.

‘‘यह तुम्हारा प्रारब्ध नहीं था. मेरी बात को इतना गहरे अपने दिल में क्यों उतार लिया? मैं तो तुम्हारे पास आया था, फिर तुम मेरे पास क्यों नहीं आई? आ जाती तो आज तुम मेरी पत्नी होती.’’

‘‘शायद आ जाती,’’ उस ने निसंकोच भाव से कहा, ‘‘लेकिन रात को मैं ने इस बात पर विचार किया कि आप मेरे पास क्यों आए थे. कारण मेरी समझ में आ गया था. आप मुझ से प्यार नहीं करते थे, बस तरस खा कर मेरे पास आए थे और मेरे घावों पर मरहम लगाना चाहते थे.

‘‘मैं आप का सच्चा प्यार चाहती थी, तरस भरा प्यार नहीं. मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि किसी के सामने प्यार के लिए आंचल फैला कर भीख मांगती. उस प्यार की क्या कीमत, जिस की आग किसी के सीने में न जले.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा अहंकार नहीं है?’’ उस की बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

‘‘हो सकता है, पर मुझे इसी अहंकार के साथ जीने दीजिए. मैं अब भी आप को प्यार करती हूं और जीवनभर करती रहूंगी. मैं अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए ही उस दिन आप के पास मिठाई देने के बहाने गई थी, लेकिन आप ने बिना कुछ सोचेसमझे मुझे ठुकरा दिया. मैं जानती थी कि आप दूसरी लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं, शायद उन में से किसी को प्यार भी करते हों. इस के बावजूद मैं आप को मन ही मन प्यार करने लगी थी. सोचती थी, एक दिन मैं आप को अपना बना ही लूंगी. मैं ने आप का प्यार चाहा था, लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई. फिर भी अगर आप का प्यार मेरा नहीं है तो क्या हुआ, मैं ने जिस को चाहा, उसे प्यार किया और करती रहूंगी. मेरे प्यार में कोई खोट नहीं है,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी थी.

‘‘अगर अपने हठ में आ कर मैं ने तुम्हारा प्यार कबूल नहीं किया, तो क्या दुनिया इतनी छोटी है कि तुम्हें कोई दूसरा प्यार करने वाला युवक न मिलता. मुझ से बदला लेने के लिए तुम किसी अन्य युवक से शादी कर सकती थी,’’ मैं ने उसे समझाने का प्रयास किया.

वह हंसी. बड़ी विचित्र हंसी थी उस की, जैसे किसी बावले की… जो दुनिया की नासमझी पर व्यंग्य से हंस रहा हो. वह बोली, ‘‘मैं इतनी गिरी हुई भी नहीं हूं कि अपने प्यार का बदला लेने के लिए किसी और का जीवन बरबाद करती. दुनिया में प्यार के अलावा और भी बहुत अच्छे कार्य हैं. मदर टेरेसा ने शादी नहीं की थी, फिर भी वह अनाथ बच्चों से प्यार कर के महान हो गईं. मैं भी कुंआरी रह कर किसी कौन्वैंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाऊंगी और उन के हंसतेखिलखिलाते चेहरों के बीच अपना जीवन गुजार दूंगी. मुझे कोई पछतावा नहीं है.

‘‘आप अपनी पत्नी के साथ खुश रहें, मेरी यही कामना है. मैं जहां रहूंगी, खुश रहूंगी… अकेली ही. इतना मैं जानती हूं कि बसंत में हर पेड़ पर बहार नहीं आती. अब आप के अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस की आंखों में अनोखी चमक थी और उस के शब्द तीर बन कर मेरे दिल में चुभ गए.

मुझे लगा मैं अमिता को बिलकुल भी नहीं समझ पाया था. वह मेरे बचपन की साथी अवश्य थी, पर उस के मन और स्वभाव को मैं आज तक नहीं समझ पाया था. मैं ने उसे केवल बचपन में ही जाना था. अब जवानी में जब उसे जानने का मौका मिला, तब तक सबकुछ लुट चुका था.

वह हठी ही नहीं, स्वाभिमानी भी थी. उस को उस के निर्णय से डिगा पाना इतना आसान नहीं था. मैं ने अमिता को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी. काश, मैं उस के दिल को समझ पाता, तो उस की भावनाओं को इतनी चोट न पहुंचती.

अपनी नासमझी में मैं ने उस के दिल को ठेस पहुंचाई थी, लेकिन उस ने अपने स्वाभिमान से मेरे दिल पर इतना गहरा घाव कर दिया था, जो ताउम्र भरने वाला नहीं था.

सबकुछ मेरे हाथों से छिन गया था और मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह अमिता के घर से चला आया.

Best Story in Hindi: फोम का गद्दा

Best Story in Hindi: वाणी बहुत उत्साहित थी. विवाह के 2 महीने बाद ही उस का यह पहला जन्मदिन था. अनुज से प्रेमविवाह के बाद वह जीवन में हर तरह से सुखी व संतुष्ट थी जबकि वाणी उत्तर भारतीय ब्राह्मण परिवार से थी जबकि अनुज मारवाड़ी परिवार से था. दोनों एक कौमन फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में मिले थे. सालभर की दोस्ती के बाद दोनों परिवारों की सहर्ष सहमति के बाद दोनों 2 महीने पहले ही विवाहबंधन में बंध गए थे. अनुज मुंबई में विवाह से पहले फ्रैंड्स के साथ फ्लैट शेयर करता था. विवाह के बाद अब मुलुंड में उस ने फ्लैट ले लिया था.

आज वाणी अपने बर्थडे के बारे में ही सोच रही थी कि अच्छा है, परसों बर्थडे का दिन इतवार है, पूरा दिन खूब ऐंजौय करेंगे. उसे विवाह से पहले का अपना पिछला बर्थडे भी याद आ गया. पिछले बर्थडे पर जब वाणी ने अनुज को डिनर करवाया तो वह मन ही मन अच्छे गिफ्ट की उम्मीद कर रही थी. आखिरकार अनुज की नईनई गर्लफ्रैंड थी. पर अनुज ने जब उसे जेब से एक फूल निकाल कर दिया तो उस का मन बुझ गया था. मन में आया था, कंजूस, मारवाड़ी.

वाणी का उतरा चेहरा देख अनुज ने पूछा था, ‘क्या हुआ? तुम्हें फूल पसंद नहीं है?’ वाणी ने मन में कुछ नहीं रखा था, साफसाफ बोली थी, ‘बस, फूल. मुझे लग रहा था तुम मेरे लिए कुछ स्पैशल लाओगे, हमारी नईनई दोस्ती है.’

‘अरे, तभी तो. अभी दोस्ती ही तो है. मैं ने सोचा अभी तुम्हारे लिए कुछ स्पैशल ले लूं और थोड़े दिनों बाद किसी भी कारण से यह दोस्ती न रहे, तो?’

वाणी चौंकी थी, ‘मतलब तुम्हारा गिफ्ट बेकार चला जाएगा, फिर?’

‘हां, भई, मारवाड़ी हूं. ऐसे ही फ्यूचर पक्का हुए बिना गिफ्ट में पैसे थोड़े ही लुटाऊंगा. मैं ने तो आज तक किसी लड़की को गिफ्ट नहीं दिया.’

‘ओह, मेरा मारवाड़ी बौयफ्रैंड, दिल का कितना साफ है,’ उस समय तो यही सोचा था वाणी ने और आज वह उस की पत्नी है. अब देखना है क्या गिफ्ट देगा वह बर्थडे पर. वाणी को इतवार का इंतजार था.

इतवार की सुबह वाणी को बांहों में भर किस करते हुए अनुज ने उसे बर्थडे विश किया. वाणी बहुत अच्छे मूड में थी. वह अनुज की बांहों में सिमटती हुई बोली, ‘‘अनुज, मैं बहुत खुश हूं, विवाह के बाद मेरा पहला बर्थडे है.’’

‘‘हां, डियर, मैं भी बहुत खुश हूं. रुको, तुम्हारा गिफ्ट लाया,’’ अनुज अलमारी की तरफ बढ़ते हुए बोला, ‘‘आंखें बंद रखना, जब कहूंगा तभी खोलना.’’

आंखें बंद कर मन ही मन वाणी कल्पनाओं में खो गई. काश, डायमंड रिंग हो, गोल्ड चेन, स्टाइलिश ब्रेसलैट, कोई मौडर्न ड्रैस या लेटैस्ट घड़ी या मोबाइल? यही सब अपनी पसंद तो है, वह अनुज को बताती रहती है. मन ही मन खूबसूरत कल्पनाओं में डूबी वाणी को हाथ पर किसी पेपर का एहसास हुआ. अनुज ने कहा, ‘‘खोलो आंखें, तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट.’’

वाणी जैसे आसमान से जमीन पर गिरी. एक पेपर उलटापुलटा देखा. अनुज ने गर्वित स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे नाम से एफडी करवा दी है, डार्लिंग. यही गिफ्ट है तुम्हारा.’’

वाणी के तनबदन में आग लग गई, ‘‘यह मेरा बर्थडे गिफ्ट है, रियली?’’

‘‘हां, डार्लिंग, पर मेरा रिटर्न गिफ्ट?’’ कहता हुआ शरारत से अनुज मुसकराया, तो वाणी ने कहा, ‘‘अभी नहीं, पर सच में यही गिफ्ट है मेरा?’’

‘‘हां, चलो, अब तैयार हो जाओ, नाश्ता बाहर ही करेंगे, मूवी देख कर लौटेंगे,’’ कहता हुआ अनुज एक बार और वाणी के गाल पर किस करता हुआ फ्रैश होने चला गया.

गुस्से के मारे वाणी के आंसू बह चले. पेपर फेंक दिया. बाथरूम में शावर की बौछार में आंसू बहते रहे, इतना कंजूस. क्या करूंगी इस के साथ. मुझे तो हर चीज का शौक है. अब लाइफ कैसे ऐंजौय करूंगी. यह तो एफडी और शेयर के अलावा कुछ सोच ही नहीं सकता. सिर्फ इस के प्यार में कब तक हर खुशी ढूंढ़ती रहूंगी. अरे, कौन पति बर्थडे गिफ्ट में एफडी पकड़ाता है. पर हां, उस के बर्थडे पर खुश तो हो रहा है. पर ऐसे तो नहीं चलेगा न. प्यार तो बहुत करता है और गिफ्ट की बात पर गुस्सा दिखाऊंगी तो लालची, छोटी सोच की लगूंगी, नहीं. इस मारवाड़ी लोहे को सिर्फ प्यार से ही फोम का गद्दा बनाना पड़ेगा. शावर की बौछार से रोतेरोते हंस पड़ी वाणी. थोड़ी देर पहले की सारी चिढ़, गुस्सा हवा हो चुका था.

वह स्वभाव से बहुत शांत और खुशमिजाज थी. मन ही मन बहुत कुछ सोच चुकी थी. गिफ्ट जैसी चीज पर थोड़ी ही मन में कटुता रखेगी. पर हां, इस का इलाज उस ने सोच लिया था, इसलिए अब वह खुश थी.

दोनों ने बाहर जा कर रैस्टोरैंट में साउथ इंडियन नाश्ता किया. वाणी को यहां आना अच्छा लगता था. अनुज को याद था, यह देख कर वाणी खुश हुई. वाणी के मायके और ससुराल से सब ने बर्थडे विश किया था. सब के गिफ्ट के बारे में पूछने पर उस का दिल बुझ गया था. पर्सनल कह कर बात हंसी में टाल दी थी. फिर दोनों ने मूवी देखी. थोड़ा घूमफिर कर दोनों वापस आ गए.

दिन बहुत अच्छा रहा था, पर कोई भी गिफ्ट न पाने की कसक थी वाणी के मन में. फिर समय के साथसाथ वाणी ने स्पष्टतया महसूस कर लिया था कि अनुज के प्यार में कमी नहीं है, पर जहां पैसे की बात आती है, वह बहुत सोचता है. एक भी पैसा कहीं फालतू खर्च हो जाता तो सारा दिन कलपता और कहीं दो पैसे बच जाते तो बच्चों की तरह खुश हो जाता है.

उस की हर बात में नफानुकसान की बात होती. कई बार वाणी मन ही मन बुरी तरह चिढ़ जाती, पर वह अपने बर्थडे पर सोच ही चुकी थी कि कैसे अनुज के साथ घरगृहस्थी चलानी है कि झगड़े भी न हों और उस का मन भी दुखी न हो.

अपने बर्थडे के दिन से ही उस के मन में एक डायमंड रिंग लेने की इच्छा थी. आसपास की नई बनी सहेलियों से अंदाजा ले कर पास ही स्थित मौल के एक ज्वैलरी शोरूम में गई और एक नाजुक सी, सुंदर रिंग खरीद कर खुद ही खुश हो गई. उस के पास क्रैडिट कार्ड था ही.

क्रैडिट कार्ड का मैसेज सीधा अनुज के पास पहुंचा तो कार्ड पर्स में डालने से पहले ही अनुज का फोन आ गया, ‘अरे, क्या खरीदा?’ वह इस बात से बहुत चिढ़ती थी कि अनुज ने सब जगह अपना ही नंबर दिया हुआ था. वह जब भी कहीं शौपिंग करती, पेमैंट करते ही अनुज का फोन आ जाता कि क्या ले लिया? अब भी अनुज ने पूछा, ‘‘अरे, ज्वैलरी शौप पर क्या कर रही हो?’’

‘‘वही डियर, जो सब करते हैं.’’

‘‘अरे, जल्दी बताओ, क्या ले लिया?’’

‘‘डायमंड रिंग.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘घर आओ तो बताऊंगी.’’

शाम को अनुज ने घर में घुसते ही पहला सवाल किया, ‘‘अरे, रिंग कैसे खरीद ली? मुझे बताया भी नहीं?’’

‘‘सांस तो ले लो, डियर, खरीदनी तो बर्थडे पर ही थी पर तुम ने एफडी ले ली,’’ अनुज के गले में बांहें डाल दी वाणी ने, ‘‘सब सहेलियां बारबार पूछ रही थीं कि क्या लिया, क्या लिया, तुम्हारी इज्जत भी तो रखनी थी.’’

वाणी की नईनई सहेलियों या किसी और परिचित के सामने अपनी अच्छी इमेज बनाने का बहुत शौक था अनुज को. उस की कोई तारीफ करता था तो वह और उत्साहित हो जाता था. यह जानती थी वाणी, इसलिए उस ने दांव आजमाया था. ठंडा पड़ गया अनुज, ‘‘हां, ठीक है ले ली. अच्छा, अब दिखाओ तो.’’ उंगली में पहनी हुई अंगूठी सामने दिखाती हुई वाणी का चमकता चेहरा देख अनुज भी मुसकरा कर बोला, ‘‘बहुत सुंदर है.’’

वाणी हंसी, ‘‘यह भी अच्छा इन्वैस्टमैंट है, डियर, खुशी का, प्यार का.’’ अनुज भी हंस पड़ा तो वाणी ने चैन की सांस ली.

वाणी को अनुज से कोई और शिकायत नहीं थी सिवा इस के कि रुपएपैसे के मामले में वह बड़ा हिसाबकिताब रखता था. अब वाणी को भी अच्छी तरह से समझ आ गया था कि ऐसे जीवनसाथी के साथ कैसे खुश रहना है. वह कई तरीके आजमाती, सब में लगभग सफल ही रहती. अनुज को प्यारभरे पलों में अपने दिल की बातें भी कहती रहती, ‘‘अनुज, मुझे वह चीज अच्छी लगती है जो मुझे आज खुशी देती है. 50 साल बाद मुझे कोई बचत खुशी देगी, उस इंतजार में मैं अपनी यह उम्र, ये शौक, ये खुशियों के दिन तो खराब नहीं करूंगी न.’’

वाणी अब यह उम्मीद नहीं करती थी कि अनुज सरप्राइज में उसे कोई गिफ्ट या कुछ भी और ला देगा. उस जैसे कंजूस पति के साथ कैसे निभाना है, यह वह जान ही चुकी थी.

एक बार दोनों में अकारण ही बहस हो गई. अनुज गुस्से में जोरजोर से  बोलने लगा, वाणी को भी गुस्सा आया था पर वह चिल्लाई नहीं. गुस्से में चुपचाप बैठी रही. अनुज गुस्से में ही औफिस का बैग उठा कर निकलने लगा तो वाणी ने संयत स्वर में कहा, ‘‘घर की दूसरी चाबी ले कर जाना.’’

चलता हुआ ठिठक गया अनुज, गुर्राया, ‘‘क्यों?’’

‘‘मुझे बाहर जाना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘मैं ने सोच लिया है जबजब तुम बेवजह, गुस्सा कर ऐसे जाओगे उसी दिन जी भर कर शौपिंग कर के आऊंगी. अपना मूड मैं शौपिंग कर के ठीक करूंगी.’’ अनुज के गुस्से की तो सारी हवा निकल गई. बैग टेबल पर रखा और वाणी के कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया, मुसकरा दिया, ‘‘ठीक है, अच्छा, सौरी.’’

वाणी भी जोर से हंस पड़ी. मन में सोचा, चलो, यह पैंतरा भी काम आया. मतलब अब हमारा झगड़ा कभी नहीं होगा. वह बोली, ‘‘सचमुच, जब भी तुम गुस्सा होंगे, मैं शौपिंग पर चली जाऊंगी.’’

‘‘ऐसा जुल्म मत करना, मेरी जान, खर्च करने में बंदा बहुत कमजोर दिल का है, जानती हो न.’’

‘‘जानती हूं, तभी तो कहा है.’’ उस के बाद हंसतेमुसकराते अनुज औफिस चल दिया. वाणी अकेले में भी बहुत हंसी, यह तो अच्छा इलाज है इस का. पैसे खर्च करने के नाम से तो इस का सारा गुस्सा हवा हो जाता है.

एक दिन फिर बातोंबातों में वाणी ने कहा, ‘‘अनुज, पता है पत्नियों के रहनसहन, उन की लाइफस्टाइल से उन के पतियों का स्टैंडर्ड पता चलता है?’’

‘‘हां, यह तो है.’’

‘‘इसलिए मैं अच्छा पहनती, खातीपीती हूं, मेरे पति का इतना अच्छा काम है, मैं क्यों मन मार कर रहूं. मैं अच्छी तरह रहूंगी तो आसपास पड़ोसियों और मेरी सहेलियों को भी तुम्हारे पद, आय का अंदाजा मिलेगा. वैसे, मुझे दिखावा पसंद नहीं है, फिर भी तुम्हारी इज्जत रखना, तुम्हारी तारीफ सुनना अच्छा लगता है मुझे,’’ कहतेकहते वाणी अनुज की प्रेममयी बातें, उस का खुशमिजाज स्वभाव, पूरी तरह से अनुज प्रभावित था वाणी से. वाणी के स्वभाव की सरलता उसे अच्छी लगती.

वाणी भी खुश थी पर अनुज को बदलना भी इतना आसान नहीं था. उसे अपने ऊपर बहुत संयम रखना पड़ता. एक शर्ट लेने के लिए भी, एक जगह पसंद आने पर भी अनुज कई ब्रैंडेड शोरूम में भटकता कि सेल, डिस्काउंट कहां ज्यादा है. मौल में उस के पीछे इधरउधर भटकती हुई वाणी चिढ़ जाती, पर चुप रहती. उस की एक शर्ट की शौपिंग में भी वह थकहार जाती. वह अनुज के साथ होने पर अपनी शौपिंग बहुत ही कम करती. बाद में अकेली या किसी फ्रैंड के साथ आती. जो मन होता, खरीदती और अनुज की कंजूसी से भरे सवालों के जवाब प्यारभरी होशियारी से बखूबी देती.

अनुज कुछ कह न पाता. अनुज का बर्थडे आया, तो अपने जोड़े हुए पैसों से वह अनुज के लिए एक शर्ट और परफ्यूम ले आई. अनुज को परफ्यूम्स बहुत पसंद थे. पर अच्छे परफ्यूम्स बहुत महंगे होते हैं, इसलिए अपने लिए खरीदता ही नहीं था. कभी एक लिया था तो उसे भी बहुत कंजूसी से खास मौके पर ही लगाता था. वाणी को इस बात पर बहुत हंसी आती थी.

एक बार अनुज को चिढ़ाया भी था, ‘अपने इस परफ्यूम को बैंक के लौकर में क्यों नहीं रखते?’ अनुज इस मजाक पर बहुत हंसा था. अनुज वाणी के लिए गिफ्ट्स देख कर बहुत खुश हुआ. वाणी को अच्छे डिनर के लिए ले गया.

नया विवाह, रोमांस, उत्साह, प्यारभरी तकरार का एक साल हुआ तो मैरिज एनिवर्सिरी का पहला सैलिबे्रशन भी वाणी ने खूब उत्साह से प्लान किया. अब वह कुछ चीजों में अनुज से सलाह भी नहीं लेती थी. अपने लिए एक सुंदर साड़ी और अनुज के लिए एक घड़ी ले कर आई जिसे देख कर वह बहुत खुश हुआ. कीमत सुन कर मुंह तो उतरा क्योंकि सरप्राइज के लिए वाणी कार्ड का इस्तेमाल नहीं करती थी, नकद दे कर खरीदती थी. इसलिए अनुज को पहले से कोई अंदाजा नहीं हो पाता था, पर औफिस से आते ही वाणी को बांहों में भर लिया, ‘‘वाणी, पता है सब को घड़ी इतनी पसंद आई कि पूछो मत.’’

वाणी मुसकराई, ‘‘गिफ्ट्स अच्छे लगते हैं न, डियर?’’

‘‘हां,’’ कहता हुआ अनुज हंस दिया.

फिर आया विवाह के बाद वाणी का दूसरा बर्थडे. इस बार कोई उम्मीद, कल्पना नहीं थी वाणी के मन में, हमेशा की तरह उस ने सोच रखा था कि वह खुद ही कुछ ले लेगी अपने लिए. इस बार भी उसे सैल्फ सर्विस करनी पड़ेगी. वह मन ही मन इस बात पर हंसती रहती थी कि कंजूस पति के साथ उसे ‘सैल्फ सर्विस’ ही करनी पड़ती है. बर्थडे वाले दिन वाणी सुबह सो कर उठी तो अनुज ने उसे विश किया. फिर आंखें बंद करने के लिए कहा. वाणी ने इस बार फिर आंखें बंद कीं. इस बार कल्पना में एफडी, शेयर मार्केट का इन्वैस्टमैंट या कोई हैल्थ पौलिसी या कोई इंश्योरैंस लगता है.

‘‘अब आंखें खोलो,’’ अनुज के कहने पर वाणी ने आंखें खोली तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ, सामने बैड पर एक खूबसूरत साड़ी और एक ब्रेसलैट रखा था. वह ‘थैंक्यू, यह तुम ही हो न,’ कह कर हंसती हुई अनुज से लिपट गई, उसे जोर से बांहों में भर लिया.

‘‘चलो, अब मेरा रिटर्न गिफ्ट?’’ शरारत से अनुज ने उसे देखा तो उस की बातों का मतलब समझती हुई वाणी का चेहरा गुलाबी हो गया. वह उस के सीने में छिपती चली गई. वह हैरान थी.

मारवाड़ी लोहा प्यार से एक साल में ही फोम का गद्दा जो बन चुका था.

Best Story in Hindi

Crime Story: मोहब्बत में ठगी- हुस्न के जाल में फंसते लड़के

लेखक- प्रदीप कुमार शर्मा

Crime Story: घर के बगीचे में बैठा मैं अपने मोबाइल फोन के बटनों पर उंगलियां फेर रहा था. चलचित्र की तरह एकएक कर नंबरों समेत नाम आते और ऊपर की ओर सरकते जाते. उन में से एक नाम पर मेरी उंगली ठहर गई. वह नंबर परेश का था. मेरा पुराना जिगरी दोस्त. आज से तकरीबन 10 साल पहले आदर्श कालोनी में परेश अपने मातापिता व भाईबहनों के साथ किराए के मकान में रहता था. ठीक उस से सटा हुआ मेरा घर था. हम लोग एकसाथ परिवार की तरह रहते थे. फिर मेरी शादी हो गई. अचानक पिता की मौत के बाद मैं अपने आदर्श नगर वाला मकान छोड़ कर पिताजी द्वारा दूसरी जगह खरीदे हुए मकान में रहने चला गया.

कुछ दिनों के बाद मैं एक दिन परेश से मिला था, तो मेरे घर वालों का हालचाल जानने के बाद उस ने बताया था कि वे लोग भी आदर्श नगर वाला किराए का मकान छोड़ कर किसी दूसरी जगह रहने लगे हैं.काम ज्यादा होने के चलते फिर हम लोगों की मुलाकातें बंद हो गईं. हमें मिले कई साल गुजर गए. बचपन की वे पुरानी बातें याद आने लगीं. हालचाल पूछने के लिए सोचा कि फोन लगाता हूं. फोन का बटन उस नंबर पर दबते ही घंटी बजनी शुरू हो गई.मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि चलो, फोन तो लग गया, क्योंकि इन दिनों क्या बूढ़े, क्या जवान, सभी में एक फैशन सा हो गया है सिम कार्ड बदल देने का. आज कुछ नंबर रहता है, तो कल कुछ.

थड़ी देर बाद ही उधर से किसी औरत की आवाज सुनाई दी, ‘हैलो… कौन बोल रहा है? देखिए, यहां लाउडस्पीकर बज रहा है. कुछ भी ठीक से सुनाई नहीं पड़ रहा है.’ मैं ने अंदाजा लगाया, शायद परेश की भी शादी हो गई है. हो न हो, यह उसी की पत्नी है. मैं फोन पर जरा ऊंची आवाज में बोला, ‘‘हैलो, मैं मयंक बोल रहा हूं… हैलो… सुनाई दे रहा है न… परेश ने मुझे यह नंबर दिया था. यह उसी का ही नंबर है न… मुझे उसी से बात करनी है. वह मेरे बचपन का दोस्त है. आदर्श नगर में हम लोग एकसाथ रहते थे.’’ उधर से फिर आवाज आई, ‘देखिए, कुछ सुनाई नहीं दे रहा है, आप…’ मैं ने फोन काट दिया. मैं हैरान सा था. पक्का करने के लिए दोबारा फोन लगाया कि सही में वह औरत परेश की पत्नी ही है या कोई और, मगर साफ आवाज न मिल पाने के चलते दिक्कत हो रही थी. वैसे, यह नंबर खुद परेश ने मुझे एक बार दिया था. जब वह बाजार में मिला था. यह औरत यकीनन उस की पत्नी ही होगी. आवाज से ऐसा लग रहा था, जैसे वह मेरा परिचय जानने की कोशिश कर रही थी.

रात के 8 बजे मैं खापी कर कुछ लिखनेपढ़ने के खयाल से बैठ ही रहा था कि मेरे मोबाइल फोन पर एक फोन आया. किसी मर्द की आवाज थी, जिसे मैं पहचान नहीं पा रहा था. फोन पर उस ने मेरा नाम पूछा. मैं ने जैसे ही अपना नाम बताया, तो वह तपाक से बोल पड़ा, ‘हैलो, मयंक भैया. आप का फोन था? सवेरे आप ने ही फोन किया था?’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

उधर से फिर आवाज आई, ‘अरे भैया, मैं परेश बोल रहा हूं. देखिए न, मैं जैसे ही घर आया, तो मेरी पत्नी ने बताया कि किसी मयंक का फोन आया था. मैं ने सोचा कि कौन हो सकता है? यही सोचतेसोचते फोन लगा दिया. ‘और भैया, कैसे हैं? आप तो आते ही नहीं हैं. आइए, घर पर और अपनी भाभी से भी मिल लीजिएगा. बहुत मजा आएगा मिल कर.’

‘‘सचमुच…’’

‘एक बार आ कर तो देखिए.’

मैं ने कहा कि जरूर आऊंगा और फोन कट गया. बहुत दिनों से छूटी दोस्ती अचानक उफान मारने लगी. बहुत सारी बातें थीं, जो फोन पर नहीं हो सकती थीं. बचपन के वे दिन जब हम परेश के भाईबहनों के साथ उस के घर में बैठ कर खेलते थे. उस की मां मुझे बहुत मानती थीं. मैं उन्हें ‘काकी’ कहता था. एक बार वे बहुत बीमार पड़ गई थीं. मैं अपने मामा की शादी में गांव चला गया था. वहां से महीनों बाद आया, तो पता चला कि काकी अस्पताल में भरती थीं. उन्हें आईसीयू में रखा गया था. वे किसी को पहचान नहीं पा रही थीं. आईसीयू से निकलते वक्त मैं उन के सामने खड़ा था. जब सिस्टर ने पूछा कि आप इन्हें पहचानते हैं, तो उन्होंने तपाक से मेरा नाम बता दिया था. उन के परिवार में खुशियां छा गई थीं. बचपन के वे दिन चलचित्र की तरह याद आ रहे थे. मैं परेश और उस के परिवार से मिलना चाहता था, खासकर परेश की पत्नी से. वह दिखने में कैसी होगी? मिलने पर खूब बातें करेंगे.

एक दिन सचमुच मैं ने उस के घर जाने का मन बना लिया. घर के पास पहुंच कर मैं ने फोन लगाया. फोन उस की पत्नी ने उठाया था. इस बार आवाज दोनों तरफ से साफ आ रही थी. उस की आवाज मेरे कानों में पड़ते ही मेरी सांसें जोरजोर से चलने लगीं. शरीर हलका होने लगा. आवाज कांपने और हकलाने लगी. पानी गटकने की जरूरत महसूस होने लगी. मैं ने फोन पर अपनेआप को ठीक करते हुए कहा, ‘‘हैलो, मैं मयंक…’’

उधर से परेश की पत्नी की आवाज आई, ‘अरे आप, हांहां पहचान गई, कहिए, कैसे हैं?’ मेरे मुंह से आवाज निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी. किसी तरह गले को थूक से थोड़ा गीला किया और कहा, ‘‘हां, मैं मयंक. इधर ही आया था एक दोस्त के घर. सोचा, आया हूं तो मिलता चलूं. आप को भी देखना है कि कैसी लगती हैं?’’ मैं ने एक ही सांस में अपनी इच्छा जाहिर कर दी. उस ने तुरंत कहा, ‘हांहां, आप ठीक जगह पर हैं. मैदान के बगल में सड़क है, जो नदी तक जाती है. उसी पर आगे बढि़एगा. सामने एक मकान दिखेगा, उस में एक नारियल का पेड़ है. याद रखिएगा. आइए.’ ऐसा लग रहा था, जैसे मैं हवा में उड़ता जा रहा हूं और उड़ते हुए उस का घर खोज रहा हूं, जिस में एक नारियल का पेड़ है. जल्द ही घर मिल गया.

मैं ने घर के सामने पहुंच कर दरवाजा खटखटाया. एक खूबसूरत औरत बाहर निकली. मेरा स्वागत करते हुए वह मुझे घर के अंदर ले गई. थोड़ी औपचारिकता के बाद मैं ने इधरउधर गरदन हिलाई और पूछा, ‘‘परेश कहीं दिख नहीं रहा है… और काकी?’’

‘‘परेश आता ही होगा, काकी गांव गई हैं,’’ यह कहते हुए वह मेरे बगल में ही थोड़ा सट कर बैठ गई. इतना करीब कि हम दोनों की जांघें उस के जरा से हिलने से सटने लगी थीं.

मैं रोमांचित होने लगा. यहां आने से थोड़ी देर पहले मैं उसे ले कर जो सोच रहा था, वह सब हकीकत लगने लगा था. मैं उस से हंसहंस कर बातें कर रहा था कि इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं जलभुन गया कि अचानक यह कबाब में हड्डी बनने कहां से आ गया. दरवाजा खुलते ही सामने एक अजनबी आदमी दिखा. चेहरे से दिखने में खुरदरा, उस के तेवर अच्छे नहीं लग रहे थे. मैं ने परेश की पत्नी की तरफ देखते हुए उस आदमी के बारे में पूछा, तो उस ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘यही तो है परेश,’’ और उस की एक कुटिल हंसी हवा में तैर गई.

मैं सकपका गया. यह परेश तो नहीं है. क्या मैं किसी अजनबी औरत के पास…

अभी मन ही मन सोच ही रहा था कि वह आदमी मेरे सामने आ गया और कमर से एक देशी कट्टा निकाल कर उस से खेलने लगा. फिर मुझे धमकाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी हर हरकत मेरे मोबाइल फोन में कैद हो गई है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि बदनामी से पिंड छुड़ाना चाहते हो, तो तुम्हें 50 हजार रुपए देने होंगे. ‘‘तुम्हें कल तक के लिए मुहलत दी जाती है, वरना परसों ये तसवीरें तुम्हारे घर के आसपास बांट दी जाएंगी.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘मगर, यह तो परेश का घर है और यह उस की पत्नी है.’’ वे दोनों एकसाथ हंस पड़े. उस आदमी ने कहा, ‘‘गलत नंबर पर पड़ गए बरखुरदार. होगा तुम्हारे किसी दोस्त का नंबर, लेकिन अब यह नंबर मेरे पास है. यह मेरी पार्टनर लीना है और हम दोनों का यही धंधा है.’’ वह औरत जो अब तक मुझ से सट कर बैठी थी, मुझ से छिटक कर उस के बगल में जा खड़ी हुई. वह मुझे धमकाते हुए बोली, ‘‘किसी से कहना नहीं, चल फटाफट निकल यहां से और जल्दी से पैसों का इंतजाम कर.’’ मैं सहमा सा उस खूबसूरत ठगनी का मुंह देखता रह गया.

Crime Story

Long Story in Hindi: खाली हाथ- क्या सही था कविता का फैसला

Long Story in Hindi: राम सिंह ने कुछ दिनों से बीमार चल रहे बाघ को उस दिन मांस खाते देखा, तो राहत की सांस ली. यह अच्छी खबर नीरज साहब को बताने के लिए वह चिडि़याघर के औफिस की तरफ चल पड़ा.

तभी उस की बगल से एक युवक तेज चाल से चलता हुआ गुजरा. उस युवक के गुस्से से लाल हो रहे चेहरे को देख रामसिंह चौंक पड़ा.

वह युवक एक लड़की और लड़के की तरफ बढ़ रहा था. रामसिंह ने इन तीनों को साथसाथ पहले कई बार चिडि़याघर में देखा था. तीनों उसे कालेज के विद्यार्थी लगते थे.

गुस्से से भरे युवक ने अपने साथी युवक को पीछे से उस के कौलर से पकड़ा और रामसिंह के देखते ही देखते उन दोनों के बीच मारपीट शुरू

हो गई.

‘‘अरे, लड़ो मत,’’ रामसिंह जोर से चिल्लाया और फिर उन की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया.

फिर उस ने उन युवकों को एकदूसरे से अलग किया. काफी चोट खा चुके थे. उन के साथ आई लड़की भय से कांप रही थी.

उन दोनों युवकों को फिर से लड़ने के लिए तैयार देख रामसिंह ने उन्हें सख्त लहजे में चेतावनी दी, ‘‘अगर तुम दोनों ने फिर से मारपीट शुरू की, तो पुलिस के हवाले कर देंगे. शांति से बताओ कि किस बात पर लड़ रहे थे?’’

उन दोनों ने एकदूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए. रामसिंह की समझ में बस उतना ही आया कि लड़ाई लड़की को ले कर हुई थी.

जिस युवक ने लड़ाई शुरू की थी उस का नाम विवेक था. दूसरा युवक संजय था और लड़की का नाम कविता था.

दरअसल, संजय करीब आधा घंटा पहले कविता को साथ ले कर कहीं गायब हो गया था. इस बात को ले कर विवेक बहुत खफा था.

रामसिंह को थरथर कांप रही कविता पर दया आई. उस ने उन दोनों को डपट कर पहले चुप कराया और फिर कहा, ‘‘तुम दोनों मेरे साथ औफिस तक चलो. सारी बातें वहीं होंगी और अगर रास्ते में झगड़े, तो खैर नहीं तुम दोनों की. तब पुलिस वालों के डंडे ही तुम्हें सीधा करेंगे.’’

रामसिंह की इस धमकी ने असर दिखाया और औफिस की इमारत तक पहुंचने के दौरान वे दोनों एक शब्द भी नहीं बोले.

नीरज चिडि़याघर में रिसर्च असिस्टैंट था. उस ने उन चारों को इमारत की तरफ आते खिड़की में से देखा तो उत्सुकतावश कमरे से बाहर आ कर बरामदे में खड़ा हो गया.

रामसिंह ने पास आ कर उसे रिपोर्ट दी, ‘‘साहब, ये दोनों लड़के बाघ के बाड़े के पास जानवरों की तरह लड़ रहे थे. लड़की साथ में है, इस बात का भी कोई शर्मलिहाज इन दोनों ने नहीं किया. ये तीनों यहां अकसर आते रहते हैं. अगर आप के समझने से न समझें, तो दोनों को पुलिस के हवाले कर देना सही होगा.’’

‘‘नहीं, पुलिस को मत बुलाना प्लीज,’’ कहते हुए कविता की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘पहले इन दोनों का हुलिया ठीक कराओ, रामसिंह. फिर इन्हें औफिस में ले कर आना,’’ नीरज ने रामसिंह से कहा. फिर कविता से कहा, ‘‘तुम मेरे साथ आओ,’’ और अंदर औफिस में चला गया.

उस के व्यक्तित्व ने संजय और विवेक को ऐसा प्रभावित किया कि वे दोनों बिना कुछ बोले रामसिंह के साथ चले गए. कविता पल भर को ?िझकी फिर हिम्मत कर के नीरज के पीछे औफिस में चली गई.

नीरज ने उसे पहले पानी पिलाया. फिर उस के कालेज व घर वालों के बारे में

हलकीफुलकी बातचीत कर उसे सहज बनाने की कोशिश की. फिर, ‘‘अब बताओ कि क्या मामला है? क्यों लड़े तुम्हारे ये सहपाठी आपस में?’’ कह कर नीरज ने हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए कविता से जानकारी मांगी.

‘‘सर, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है,’’ कविता ने धीमी आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘हम तीनों अच्छे दोस्त हैं, पर आज विवेक ने झगड़ा शुरू कर के मेरे दिल को चोट पहुंचाई है. वे दोनों ही आज अजीब सी बातें कर रहे थे.’’

‘‘कैसी अजीब सी बातें?’’

‘‘मैं कैसे बताऊं, सर… हमारे बीच हमेशा ही हंसीमजाक चलता रहता था. हलकेफुलके अंदाज में. दोनों फ्लर्ट भी कर लेते थे मेरे साथ… मुझ से प्रेम करने का दावा भी दोनों करते रहे हैं, पर मजाकमजाक में… लेकिन आज…आज…’’

‘‘आज क्या नया हुआ है?’’

‘‘सर, आज मुझे एहसास हुआ कि वे मजाक नहीं करते थे. दोनों मुझे अपनी प्रेमिका समझ रहे थे, जबकि मेरे दिल में किसी के भी लिए वैसी भावनाएं नहीं हैं. मैं तो उन्हें बस अच्छा दोस्त समझती रही हूं.’’

‘‘तुम्हें उन दोनों में कौन ज्यादा पसंद है?’’

‘‘ज्यादाकम पसंद वाली बात नहीं है. मेरे मन में, सर. वे दोनों ही मेरी नजरों में बराबर हैं.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि किस का व्यक्तित्व बेहतर है? क्या कमियां या अच्छाइयां हैं दोनों की?’’

कुछ पल खामोश रहने के बाद कविता ने कहा, ‘‘सर, विवेक अमीर घर का बेटा है. वह पढ़ने में तेज है और तहजीब से व्यवहार करता है.

‘‘संजय उस के जितना स्मार्ट तो नहीं है,

पर दिल का ज्यादा अच्छा है. क्रिकेट और फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी है. उसे गुस्सा कम आता है, लेकिन आज उसे गुस्से में देख कर मैं डर गई थी.’’

‘‘झगड़ा तुम्हारे कारण हुआ है, यह तो तुम समझ रही हो न?’’

‘‘जी, लेकिन मैं ने उन दोनों को कभी गलत ढंग से बढ़ावा नहीं दिया है, सर. मैं करैक्टरलैस लड़की नहीं हूं.’’

‘‘अब क्या करोगी? मेरी समझ से कि ये दोनों आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे. तुम दोनों में से किसी से भी प्रेम नहीं करती हो, तुम्हारा ऐसा कहना इन दोनों को तुम से दूर नहीं कर पाएगा.’’

‘‘अगर ये नहीं समझेंगे, तो मैं इन से

दोस्ती खत्म कर लूंगी,’’ कविता ने गुस्से से

जवाब दिया.

‘‘मेरी बातों का बुरा मत मानना, कविता. मैं जो कुछ तुम्हें समझ रहा हूं, वह तुम्हारे भले के लिए ही है. देखो, कोई लड़का प्रेम को ले कर गलतफहमी का शिकार न बने, इस की जिम्मेदारी लड़की को अपनी ही माननी चाहिए. आज के समय में हर इंसान तनाव से भरा जीवन जी रहा है. ऊपर से उस के मन में पुलिस, कानून आदि का खास भय भी नहीं है.

‘‘किसी गुमराह प्रेमी ने लड़की के मुंह पर तेजाब फेंका या उसे जान से मार डाला जैसी खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि तुम भविष्य में ज्यादा समझदारी दिखाओगी. लेकिन अभी तुम चुप रहना, मैं तुम्हारे दोस्तों को प्यार से समझने की और कुछ डर दिखा कर सही व्यवहार करने की समझ देने की कोशिश करता हूं.’’

नीरज की इन बातों को सुन कर कुछ शर्मिंदा सी नजर आ रही कविता ने अपनी नजरें फर्श की तरफ झका लीं.

रामसिंह के साथ जब विवेक और संजय ने औफिस में कदम रखा, तो दोनों ही कुछ तनावग्रस्त और सहमे से नजर आ रहे थे. उन के कुरसी पर बैठ जाने के बाद नीरज ने उन के साथ बात शुरू की.

‘‘क्या तुम दोनों अपनेअपने घटिया व्यवहार के लिए शर्मिंदा हो?’’ नीरज ने दोनों को घूरते हुए सख्त स्वर में सवाल पूछा.

‘‘जी हां, हमें लड़ना नहीं चाहिए था,’’ विवेक ने धीमे, दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारा क्या जवाब है?’’ उस ने संजय से पूछा.

‘‘यह मुझ पर हाथ न छोड़ता, तो लड़ाई क्यों होती?’’ संजय की आंखों में गुस्सा भड़क उठा.

‘‘क्यों छोड़ा इस ने तुम पर हाथ?’’

‘‘यह गलतफहमी का शिकार था, सर. कविता और मैं जानबूझ कर इस से अलग नहीं हुए थे.’’

‘‘मुझे लगता है कि तुम दोनों ही कविता को ले कर जबरदस्त गलतफहमी के शिकार बने हुए हो. क्या इस ने तुम में से किसी को कभी अपना प्रेमी माना है?’’

वे दोनों जवाब में खामोश रहे तो नीरज ने कुछ शांत लहजे में उन्हें समझना शुरू किया,

‘‘हम इंसानों को प्यारमुहब्बत के मामले में जानवरों से ज्यादा समझदारी दिखानी चाहिए. पर तुम दोनों ने बड़ा घटिया व्यवहार दिखाया है. दोस्तों के बीच जो आपसी भरोसा होता है, उसे तोड़ा है तुम दोनों ने.

‘‘मैं यहां जानवरों के व्यवहार और आदतों पर रिसर्च कर रहा हूं. ये जानवर प्रेम में जोरजबरदस्ती नहीं करते. बहुत कुछ सीख

सकता है आज का मनुष्य इन जानवरों से.

‘‘भारीभरकम गैंडा बहुत सहनशक्ति

दिखाता है मादा का दिल जीतने के लिए.

15-20 दिनों तक इंतजार करता है मादा की रजामंदी का. मादा नर को खदेड़ती रहती है.

पर वह गुस्सा नहीं होता… हिंसा का रास्ता

नहीं अपनाता.

‘‘बाघों में मादा की रुचि सर्वोपरि होती है. वही पहल कर अपनी दिलचस्पी नर में दर्शाती है. हम इंसानों को भी लड़की की इच्छा व पसंद को महत्त्व देना चाहिए या नहीं?

‘‘भेडि़यों के बारे में जानना चाहोगे? सरदार भेडि़या आजीवन 1 मादा के साथ जुड़ा रहता है. वफादारी सीख सकते हैं हम इन भेडि़यों से. हंसीमजाक में फ्लर्ट करना प्रेम नहीं है, मित्रो. यों एकदूसरे को लहूलुहान कर प्रेम का प्रदर्शन न करो. ऐसा करना तो उस पवित्र भावना का मजाक उड़ाना होगा.

‘‘कविता तुम्हारे साथ पढ़ती है… तुम दोनों की दोस्त है. उसे अपने गलत व्यवहार से मानसिक कष्ट पहुंचा कर उस का दिल तो तुम दोनों क्या जीतोगे, उलटे उस की दोस्ती से भी हाथ धो बैठोगे. मेरी बात समझ रहे हो न तुम दोनों?’’

‘‘जी,’’ विवेक और संजय दोनों के मुंह से एकसाथ यह शब्द निकला.

‘‘गुड. चलो अब तुम दोनों हाथ मिलाओ.’’

संजय और विवेक ने उठ कर हाथ मिलाया और फिर गले भी लग गए. कविता ने मुसकरा कर

नीरज को आंखों से धन्यवाद दिया और फिर जाने को उठ खड़ी हुई.

नीरज के आदेश पर रामसिंह उन तीनों  को छोड़ने के लिए बाहर तक गया. कुछ दूर जा कर उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि उस के साहब बरामदे में खड़े उन की तरफ ही देख रहे थे.

तभी कविता ने भी पीछे मुड़ कर देखा और नीरज को अपनी तरफ देखता पा कर उस ने हाथ हवा में उठा कर हिलाया. नीरज ने उस के अभिवादन में दूर से अपना हाथ बड़े जोशीले अंदाज में हिलाया.

इस घटना के लगभग 3 महीने बाद विवेक और संजय की चिडि़याघर में औफिस के

सामने रामसिंह से अगली मुलाकात हुई.

उन दोनों ने रामसिंह को अभिवादन कर हाथ मिलाए. फिर संजय बोला, ‘‘रामसिंह, कविता ने हम से 12 बजे यहां मिलने का प्रोग्राम फोन पर तय किया था. वह आई नहीं है क्या अभी तक?’’

‘‘वह आई तो थी लेकिन अब यहां नहीं है. पर मिठाई का डब्बा तो है. मैं अभी मुंह मीठा कराता हूं तुम दोनों का,’’ रामसिंह बहुत खुश नजर आ रहा था.

‘‘किस बात के लिए मुंह मीठा कराओगे, रामसिंह?’’ संजय उलझन का शिकार बन गया.

‘‘कविता कहां चली गई है?’’ विवेक ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘अरे, तुम दोनों को खबर नहीं है क्या?’’ रामसिंह चौंक पड़ा.

‘‘कैसी खबर?’’ विवेक और ज्यादा परेशान हो उठा.

‘‘भाई तुम लोग कब से कविता मैडम से नहीं मिले हो?’’

‘‘पिछले दिनों परीक्षाएं चल रही थीं, इसलिए परीक्षा के दिन ही मिल पाते थे. जो खबर है, उसे तो बताओ.’’

‘‘तुम दोनों को सचमुच कोई अंदाजा नहीं है कि मैं क्या खबर सुनाऊंगा… क्यों मुंह मीठा कराने की बात कर रहा हूं?’’

‘‘रामसिंह, अगर आप पहेलियां नहीं बुझओगे, तो मेहरबानी होगी,’’ विवेक

अचानक चिढ़ गया और उस की आवाज तीखी हो गई.

रामसिंह रहस्यमय अंदाज में कुछ देर

तक मुसकराने के बाद उन से बोला, ‘‘लगता

है कि मुझे सारी बातें शुरू से ही तुम्हें बतानी पड़ेंगी, नहीं तो तुम दोनों की समझ में कुछ

नहीं आएगा.’’

‘‘अब बताना शुरू भी कीजिए प्लीज.’’

‘‘तो सुनो. जब तुम दोनों यहां आपस में झगड़े थे, तो उस दिन मैं तुम सब को बाहर तक छोड़ने गया था. तुम दोनों बस से गए थे जबकि कविता मैडम को मैं ने औटो से भेजा था. उन के पास पैसे नहीं थे इसलिए मैं ने उन्हें क्व100 का नोट किराए के लिए दिया था. ये सब याद है न तुम दोनों को?’’

वे दोनों खामोश रहे, तो रामसिंह ने

आगे बोलना शुरू किया, ‘‘वही 100 रुपए

लौटाने के लिए कविता मैडम 3 दिन बाद

अकेली यहां आई थीं. तुम दोनों की आंखों में हैरानी के भाव देख कर मैं इस वक्त यह अंदाजा लगा रहा हूं कि उन्होंने यहां आने की बात तुम दोनों को कभी नहीं बताई. क्या मैं गलत कह

रहा हूं?’’

‘‘नहीं, पर उसे… खैर, आगे बोलो, रामसिंह,’’ विवेक अपने दोस्त संजय की तरह ही तनाव का शिकार बना हुआ था.

‘‘मेरी बातें सुन कर अपना दिल न

दुखाना तुम दोनों. देखो, जो भी होना होता है,

वह होता है. उस दिन कविता मैडम ने लंच

यहीं हमारे नीरज साहब के साथ किया था.

वह 4-5 दिन बाद फिर आई तो हमारे साहब

के लिए गोभी के परांठे अपने घर से बना कर लाई थी.

‘‘साहब ने जीवविज्ञान में पीएच.डी. कर रखी है और तुम सब इसी विषय में बी.एससी. कर रहे हो. आगे यह हुआ कि कविता मैडम सप्ताह में 2 बार साहब से पढ़ने के लिए आने लगीं.

‘‘उन दोनों के बीच इन बढ़ती मुलाकातों का नतीजा क्या निकला, वह बात वैसे तो खुशी की है, पर मुझे लग रहा है कि तुम दोनों का उसे सुन कर दिल बैठ जाएगा.

‘‘लेकिन सच तो मालूम पड़ना ही चाहिए. कल हमारे साहब और कविता मैडम की सगाई हो गई है. उसी खुशी में यहां सब मिठाई खा रहे हैं. कविता मैडम कुछ देर पहले साहब के साथ घूमने निकल गई है. शायद दिमाग से उतर गया होगा कि तुम दोनों पुराने दोस्तों को मिलने के लिए उन्होंने यहां बुलाया हुआ है. खैर मुंह मीठा कराने को मैं मिठाई…’’

‘‘वह लड़की तो…,’’ विवेक ने अचानक कविता को कुछ कहना चाहा तो रामसिंह को भी गुस्सा आ गया.

‘‘अब आगे जबान संभाल कर बोलना. कविता मैडम के लिए कोई गलत बात मैं नहीं सुनूंगा,’’ रामसिंह ने कठोर लहजे में विवेक को चेतावनी दी.

‘‘कविता ने हम दोनों को अंधकार में रख कर अच्छा नहीं किया है, रामसिंह. वह प्यार का अभिनय हमारे साथ भी करती थी. उस दिन हम आपस में यों ही नहीं लड़े थे. वह उतनी सीधी है नहीं जितनी दिखती है,’’ संजय ने मायूस से लहजे में पहले अपने दिल की पीड़ा जाहिर की और फिर विवेक के कंधे दबा कर उसे शांत रहने को समझने लगा.

‘‘मुझे तुम दोनों से गहरी सहानुभूति है,’’ रामसिंह का गुस्सा ठंडा पड़ने लगा, ‘‘उस दिन तुम आपस में न लड़ते, तो कविता मैडम तुम दोनों के ही साथ होतीं क्योंकि हमारे साहब से उन की मुलाकात ही न हुई होती.

‘‘हमारे साहब तुम दोनों से ज्यादा समझदार व होशियार निकले. न खून बहाया, न रुपए लुटाए लेकिन कविता मैडम को पा लिया.

‘‘तुम दोनों तो आपसी झगड़ों में ताकत खर्च करते रहे और कमजोर पड़ गए. साहब ने उन का दिल जीता और उन्हें पा लिया. आदमी की असली ताकत अब उस की बुद्धि है, न कि मजबूत मांसपेशियां. तुम दोनों खाली हाथ

मलते रह गए. इस का मुझे अफसोस है… पर आगे तुम जरा समझदारी से काम लेना. हमारे साहब की तरह कोई अच्छी लड़की कल को तुम्हारे साथ भी जरूर होगी. अब मैं मिठाई का डब्बा लाता हूं.’’

रामसिंह औफिस में से डब्बा ले कर बाहर आया तो विवेक और संजय वापस जा चुके थे.

‘‘बेचारे,’’ उस ने इस शब्द से उन दोनों के प्रति सहानुभूति दर्शायी और फिर उन्हें भुला कर काजू की 2 बरफियां इकट्ठी मुंह में रख कर बड़े स्वाद से खाने लगा.

Long Story in Hindi

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