Nepal Genz: सबक लेना है जरूरी

Nepal Genz: किसी भी देश के लिए उसकी युवा पीढ़ी उसका भविष्य होती है, खासकर भारत जैसे देश में, जहां युवाओं की संख्या सर्वाधिक है. ऐसे में लोकतंत्र को केवल चुनाव और सत्ता परिवर्तन तक सीमित समझना किसी भी देश के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि जहां सत्ता केवल लालच बन जाती है, वहां देशहित की भावना नहीं पनप पाती.

देश के भीतर बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याएं जरा-सी चिंगारी पाकर सब कुछ ध्वस्त कर सकती हैं, और इसका सीधा असर युवाओं पर पड़ता है. जब यही युवा एकजुट होते हैं, तब नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों की तरह हालात बिगड़ना तय हो जाता है.

नेपाल का उदाहरण भारत के लिए एक चेतावनी है. वहां लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र को कमजोर किया है. नेताओं की आपसी खींचतान, सत्ता का लालच और जनता की आकांक्षाओं की अनदेखी ने युवाओं में गहरा असंतोष पैदा किया है. रोजगार और अवसरों के अभाव में निराशा इतनी बढ़ गई कि आंदोलन और हिंसा तक हुए.

नेपाल के अनुभव से भारत को सबक लेना चाहिए. यदि भारत के नेता युवाओं की समस्याओं को नजरअंदाज करेंगे, तो यहाँ भी वही स्थिति उत्पन्न हो सकती है. भारत में तेजी से बढ़ती बेरोजगारी और युवाओं की बेचैनी को समय रहते गंभीरता से समझना होगा.

भारत के लिए आवश्यक है कि वह ऐसा लोकतांत्रिक मॉडल बनाए, जिसमें शिक्षा, रोजगार और अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित हो. युवाओं को यह महसूस होना चाहिए कि उनके सपनों और संघर्षों का सम्मान होता है.

देश की सरकार उनके उज्ज्वल भविष्य के प्रति जागरूक दिखे और योजनाएं केवल सरकारी दफ्तरों की फाइलों तक सीमित न रहें. युवाओं तक सरल तरीकों से इन योजनाओं का लाभ पहुंचे. जहां युवाओं को अवसर मिलेगा, वहां देश तरक्की की राह पर आगे बढ़ेगा.

अंततः संदेश यह है कि नेपाल की राजनीतिक असफलताएं भारत के लिए आईना हैं. यदि युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा न दी गई, तो लोकतंत्र कमजोर पड़ सकता है. मजबूत लोकतंत्र वही है, जो नागरिकों, विशेषकर युवाओं, को आशा और अवसर प्रदान करें.

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Beauty Tips: औयली स्किन के लिए कौन सा फेशियल होगा सही?

Beauty Tips:

मेरी उम्र 28 वर्ष है. मेरी त्वचा तैलीय है और मेरे चेहरे पर मुंहासे बहुत जल्दी आ जाते हैं. मुझे कौन सा फेशियल कराना चाहिए. और्गेनिक फेशियल क्या होता है? क्या इसे कराने से मेरे मुंहासे दूर हो जाएंगे, मौसम बदलते ही ये भयानक रूप ले लेते हैं. मुझे डर है कि कहीं मेरे चेहरे पर काले गड्ढे न बन जाएं. कृपया कोई घरेलू फेस पैक बताएं?

मुंहासों की समस्या हारमोनल प्रौब्लम के कारण हो सकती है. आप किसी अच्छे ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट से संपर्क करें और अपना पूरा इलाज करवाएं. और्गेनिकल फेशियल में नैचुरल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन मुंहासे होने पर फेशियल न करवाएं क्योंकि फेशियल के दौरान स्क्रब किया जाता और मुंहासे होने पर स्क्रब करने से बचना चाहिए. फेस से ऐक्स्ट्रा औयल को रिमूव दिन में 2-3 बार एस्ट्रिंजैंट से अपना फेस क्लीन करें. घरेलू पैक के लिए 1 चम्मच मुलतानी मिट्टी में क्रश नीम की पत्तियों व गुलाबजल मिक्स कर के चेहरे पर लगाएं.

  मेरे चेहरे पर साइन औफ एजिंग दिखने लगे हैं. इन से बचने के लिए मुझे कौन सा फेशियल करवाना चाहिए? क्या ब्यूटी क्लीनिक में इन्हें दूर करने के लिए ट्रीटमैंट है?

आप किसी भी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से माह में एक बार ट्रिपल आर फेशियल करवा लें. इन तीन आर का मकसद स्किन को रिहाइड्रेट, रिजनरेट और रिजुविनेट करना होता है. इस फेशियल में शामिल प्रोडक्ट्स से त्वचा में कोलाजन बनने का प्रोसैस बढ़ जाता है जो त्वचा को साइन औफ एजिंग से प्रोटैक्ट करता है जिस से त्वचा में नवीनीकरण दिखाई देता है. इस ट्रीटमैंट में माइक्रो मसाजर या फिर अपलिफ्टिंग मशीन द्वारा फेस को लिफ्ट किया जाता है जिस से सैगी स्किन अपलिफ्ट हो जाती है और उस में कसाव आ जाता है. इस के अलावा घर पर बादाम को रातभर पानी में भिगो दें. सुबह उन्हें पीस लें और फिर उस में थोड़ा कैलामाइन पाउडर, पका हुआ केला व गुलाबजल डाल कर पेस्ट बनाएं और अपने चेहरे पर स्क्रब करें. इस स्क्रब से स्किन को कंप्लीट पोषण मिलेगा और त्वचा चमक उठेगी.

मेरी स्किन रूखी है और रंग दबा हुआ है. रूखापन कम करने और रंग को निखारने के लिए मैं ने पार्लर में बहुत बार फेशियल भी करवाए लेकिन कोई फायदा नहीं मिला. कृपया इस के लिए कोई उपाय बताएं?

आप एक बार अपना पार्लर बदल कर देखें. कई बार सही तरीके से स्टैप्स न फौलो करने के कारण फेशियल का फायदा चेहरे पर दिखाई नहीं देता. इसलिए इस बार आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से एएचए फेशियल करवाएं. एएचए यानी अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड फलों से निकाले गए ऐसिड होते हैं जो स्किन को रिजनरेट कर के फेयरनैस देता है साथ ही त्वचा को हाइड्रेट कर के उस की ड्राईनैस को दूर करता है. घरेलू उपाय के तौर पर औलिव औयल और आमंड औयल में कुछ बूंदें औरेंज औयल की मिक्स कर के फेस पर मसाज करें. ऐसा रोजाना करने से रूखापन कम होगा और रंग भी निखरेगा.

मेरी उम्र 48 साल है. मेरी स्किन ढीली होने लगी है साथ ही आंखों के चारों ओर डार्क सर्कल्स भी बन गए हैं. मैं ऐसा क्या उपाय करूं जिस से मेरी स्किन में कसाव आ जाएं?

त्वचा के कसाव को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि आप का खानपान उचित हो क्योंकि हमारी त्वचा सौफ्ट प्रोटीन से बनती है. ऐसे में इस की पूर्ति के लिए दाल, अंकुरित अनाज व हो सके तो अंडा, मछली जरूर खाएं. त्वचा की इलास्टिसिटी और फ्लैक्सिबिलिटी को बढ़ाने के लिए ओमेगा फैटी ऐसिड युक्त आहार जैसे अखरोट, फ्लैकसीड व सालमन फिश लेना आरंभ कर दें. इन के साथ ही अंडे की सफेदी को फेंट कर उस में 1/2 चम्मच कियोलिन पाउडर और शहद डाल कर चेहरे पर लगाएं. सूखने पर ठंडे पानी से धो दें. इस पैक को लगाने से त्वचा में कसाव आएगा. काले घेरों के लिए घर पर 1/2 चम्मच आमंड औयल में 2 बूंद औरेंज औयल की मिक्स कर के आंखों के नीचे रोजाना हलकी मालिश कीजिए. ऐसा नियमित करने से काले घेरे हलके हो जाएंगे. रात में सोने से पहले फेस साफ कर के एएचए क्रीम से अपनी मसाज कीजिए और सुबह फेस पर लाइट स्क्रब करने के बाद कोलाजन सीरम लगाएं. जल्दी व इफेक्टिव रिजल्ट के लिए इन सब के साथसाथ किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से माह में एक बार एएचए फेशियल करवाएं. साथ ही कोलाजन मास्क भी जरूर लगवाएं.

  मेरा ऊपर वाला होंठ तो गुलाबी है, परंतु निचला गेहुआं है. कृपया इन्हें ठीक करने का कोई घरेलू रेमेडी सुझाएं. साथ ही मेरे अंडरआर्म्स काफी काले हैं, उन्हें हलका करने का उपाय बताएं?

आप होंठों के रंग को हलका करने के लिए मलाई, गुलाब की पत्तियों व शहद मिला कर अपने होंठों पर रोजाना लगाएं. ऐसा कुछ दिन तक लगातार करने से लिप्स गुलाबी नजर आएंगे. अंडरआर्म्स के रंग को हलका करने के लिए ब्लीच करवा सकती हैं और घर पर कच्चे पपीते की फांक रगड़ सकती हैं. क्लीनिकल ट्रीटमैंट के तौर पर पील भी करवा सकती हैं.

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Short Story in hindi: दो बूंद आंसू- सुनीता ने अंजान की मदद क्यों की

Short Story in hindi: ‘कुमारी सुनीता, आप की पूरी फीस जमा है. आप को फीस जमा करने की आवश्यकता नहीं है,’’ बुकिंग क्लर्क अपना रेकौर्ड चैक कर के बोला.‘‘मगर मेरी फीस किस ने जमा कराई है. वह भी पूरे 50 हजार रुपए,’’ सुनीता हैरानी से पूछ रही थी.

‘‘मैडम, आप की फीस औनलाइन जमा की गई है,’’ क्लर्क का संक्षिप्त सा उत्तर था.वह हैरानपरेशान कालेज से वापस लौट आई. उस की मां बेटी का परेशान चेहरा देख कर पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है बेटी?’’

‘‘मां, किसी व्यक्ति ने मेरी पूरी फीस जमा करा दी है,’’ वह हैरानी से बोली.‘‘किस ने और क्यों जमा कराई?’’ सुनीता की मां भी परेशान हो उठी. ‘‘पता नहीं मां, कौन है और बदले में हम से क्या चाहता है?’’ बेटी की परेशानी इन शब्दों में टपक रही थी.

उस की मां सोच में पड़ गई. आजकल मांगने के बाद भी मुश्किल से 5-10 हजार रुपए कोई देता है वह भी लाख एहसान जताने के बाद. इधर ऐसा कौन है जिस ने बिना मांगे 50 हजार रुपए जमा करा दिए. आखिर, बदले में उस की शर्त क्या है?‘‘खैर, जाने दो जो भी होगा दोचार दिनों में खुद सामने आ जाएगा,’’ मां ने बात को समाप्त करते कहा.दोनों मांबेटी खाना खा कर लेट गईं.

सुनीता की मां एक प्राइवेट हौस्पिटल में 4 हजार रुपए मासिक पर दाई की नौकरी करती है. आज से 15 साल पहले एक रेल ऐक्सिडैंट में वह पति को खो चुकी थीं. तब सुनीता मुश्किल से 5-6 साल की रही होगी. तब से आज तक दोनों एकदूसरे का सहारा बन जी रही हैं.

सुनीता को पढ़ाना उस का एक फर्ज है. बेटी बीए कर रही थी.सुनीता ने अपने पिता को इतनी कम उम्र में देखा था कि उसे उन का चेहरा तक ठीक से याद नहीं है. कोई नातेरिश्तेदार इन से मिलने नहीं आता था. ऐसे में यह कौन है जो उस की फीस भर गया?दोनों मांबेटी की आंखों में यह प्रश्न तैर रहा था.

पिता के नाम के स्थान पर दिवंगत रामनारायण मिश्रा लिखा था मगर वे कौन थे और कैसे थे, इस की चर्चा घर में कभी नहीं होती थी.

मगर आज…सुनीता के चाचा, मामा, मौसा या किसी दूसरे रिश्तेदार ने आज तक कभी एक रुपए की मदद नहीं की, ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी रकम की मदद किस ने की.

बहरहाल, सुनीता उत्साह के साथ पढ़ाई में जुट गई. दोचार वर्षों में वह बैंक, रेलवे या कहीं भी नौकरी कर के घर की गरीबी दूर कर देगी. वह मां को इस तरह खटने  नहीं  देगी. मां ने विधवा की जिंदगी में काफी कष्ट झेला है.

सुनीता उस दिन अचकचा गई जब उस के प्राचार्य  ने उसे एक खत दिया. और कहा, ‘‘बेटी, आप के नाम यह पत्र एक सज्जन छोड़ गए हैं, आप चाहें तो इस पते पर उन से संपर्क कर सकती हैं या फोन पर बात कर सकती हैं.’’‘‘जी, धन्यवाद सर,’’ कह कर वह उन के कैबिन से बाहर आ गई और सीधा घर जा कर खत पढ़ा. उस में लिखा था, ‘‘बेटी, आप की फीस मैं ने भरी है, बदले में मुझे तुम से कुछ भी नहीं चाहिए, न ही तुम्हें यह पैसा लौटाना है.’’

नीचे उन के हस्ताक्षर और मोबाइल नंबर था.सुनीता की मां ने जब वह नंबर डायल किया तो तुरंत जवाब मिला, ‘‘जी, आप सुनीता या उस की मां?’’‘‘मैं उस की मां बोल रही हूं. आप ने मेरी बेटी की फीस क्यों भरी?’’‘‘जी, इसलिए कि मुझे इन के पिता का कर्ज चुकाना था.’’ वह संक्षिप्त उत्तर दे कर चुप हो गया.‘‘ऐसा कीजिए आप मेरे घर आ जाइए.‘‘‘‘ठीक है, रविवार को दोपहर 1 बजे मैं आप के घर आऊंगा,’’ कह कर उस व्यक्ति ने फोन काट दिया.

रविवार को वह समय पर हाजिर हो गया. करीब 28-30 वर्ष का वह नौजवान आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था. वह बाइक से आया और सुनीता की मां को मिठाई का डब्बा दे कर नमस्कार किया.सुनीता ने भी उसे नमस्कार किया और पास में बैठते हुए अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘मैं ने फोन पर बताया तो था कि आप का ऋण चुकता किया है,’’ वह सरल स्वर में बोला था.‘‘कैसा ऋण? दोनों मांबेटी चौंकी थीं.‘‘ऐसा है कि रामनारायणजी ने मेरे पिताजी की 3 हजार रुपए की मदद की थी. उस के बाद मेरे पिताजी जब तक वह पैसा लौटाते तब तक रामनारायणजी गुजर चुके थे.

परिवार का कोई ठिकाना नहीं था. मेरे पिताजी ने आप लोगों को बहुत ढूंढ़ा पर खोज नहीं पाए,’’ वह स्पष्ट स्वर में जवाब दे रहा था, मैं पढ़लिख कर नौकरी में आ गया और स्टेट बैंक की उसी शाखा में आ गया जहां आप लोगों का खाता है.

साथ ही, वहीं सुनीता के कालेज का भी खाता है. मुझे यहीं आप का परिचय और आप की माली हालत का पता चला. मैं ने आप की मदद का निश्चय किया और फीस भर दी.’’‘‘मगर आप अपनेआप को छिपा कर क्यों रखना चाहते थे,’’ यह सुनीता का प्रश्न था.‘‘वह इसलिए कि मुझे बदले में कुछ भी नहीं चाहिए था और जमाने को देखते हुए मुझे चलना था.’’

‘‘फिर सामने क्यों आए?’’ यह सुनीता की मां का प्रश्न था.‘‘जब आप लोगों को परेशान देखा, खास कर आप का यह डर की पता नहीं इस आदमी की छिपी शर्त क्या है? मैं ने आप का ऋण चुकाया था, डराना मेरा पेशा नहीं है. सो, सामने आ गया.’’

अब उस के इस जवाब से वे दोनों मांबेटी, आश्चर्य से भर उठीं.‘‘मैं अब निकलना चाहूंगा. आप लोग चिंता न करें. मैं ने अपने पिताजी का ऋण चुकाया है,’’ वह उठते ही बोला.‘‘ऐसे कैसे? वह भी 3 हजार के 50 हजार रुपए?’’ अभी भी सुनीता की मां समझ नहीं पा रही थी.‘‘3 हजार रुपए नहीं, उन 3 हजार रुपए से मेरे पिता ने मेरी जान बचाई, मेरा इलाज कराया.

मैं जीवित हूं, तभी आज बैंक में काम कर रहा हूं. गरीबी की हालत में मेरे पिताजी की रामनारायणजी ने मदद की थी. आज मेरे पास सबकुछ है, बस, पिताजी नहीं हैं,’’ वह भावुक हो कर बोल रहा था.‘‘फिर तुम यह पैसा वापस क्यों नहीं लेना चाहते?’’ यह सुनीता की मां का प्रश्न था.‘‘उपकार के बदले प्रत्युपकार हो गया. सो कैसा पैसा?’’ वह स्पष्ट बोला.‘‘फिर भी…’’ सुनीता की मां समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे?‘‘कुछ नहीं आंटीजी, आप ज्यादा न सोचें. अब मुझे इजाजत दें,’’ इतना कह कर वह चल दिया.

दोनों मांबेटी उसे जाता देख रही थीं. इन की आंखों से खुशी के आंसू झर रहे थे.‘‘मां, आज भी ऐसे लोग हैं,’’ सुनीता बोली.‘‘हां, तभी तो वह हमारी मदद कर गया.’’‘‘मैं नौकरी कर के उन का पैसा वापस कर दूंगी,’’ वह भावुक हो कर बोली.‘‘बेटी, ऐसे लोग बस देना जानते हैं, लेना नहीं. सो, फीस की बात भूल जाओ. हां, बैंक में मेरा परिचय हो गया है, काम जल्दी हो जाएगा,’’ मां के बोल दुनियादारी भरे थे.

दोनों मांबेटी की आंखों में आंसू थे जो एक ही वक्त में 2 अलग सोच पैदा कर रहे थे. मां जहां पति को याद कर रो रही थी जिन के दम पर आज 50 हजार रुपए की मदद मिली, वहीं बेटी को यह व्यक्ति फरिश्ता नजर आ रहा था. काश, वह भी किसी की मदद कर पाती. 50 हजार रुपए कम नहीं होते.अब बस, दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे.

Short Story in hindi

Short Story: चपत- क्या शिखा अपने मकसाद में कामयाब हो पाई

Short Story: औफिस  से निकल कर रितु आकाश रेस्तरां में पहुंची. वहां एक कोने में बैठी शिखा को उस ने फौरन पहचान लिया, क्योंकि समीर ने उसे उस का फोटो दिखा रखा था.

रितु जानबूझ कर उस की तरफ बढ़नेके बजाय किसी को खोजने वाले अंदाज में इधरउधर देखने लगी. वह नहीं चाहती थी कि शिखा को यह मालूम पड़े कि वह उसे पहले से पहचानती थी.‘‘रितु,’’ शिखा ने जब उसे पुकारा तभी वह उस की तरफ बढ़ी.

शिखा के सामने वाली कुरसी पर बैठते ही रितु ने उस से आक्रामक लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने मुझे फोन कर के यहां क्यों बुलाया है?’’शिखा ने गहरी सांस लेने के बाद रितु के हाथ पर अपना हाथ रखा और फिर सहानुभूति भरी आवाज में पूछा, ‘‘क्या तुम समीर से शादी कर के खुश हो?’’‘‘तुम मुझ से यह सवाल क्यों पूछ रही हो?’’ रितु के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘तुम मुझे अपनी शुभचिंतक समझे.’’‘‘तुम मेरा कुछ भला करने जा रही हो?’’‘‘हां.’’‘‘क्या?’’‘‘इन्हें देखो,’’ कह शिखा ने अपने पर्स से कुछ पोस्टकार्ड साइज की तसवीरें निकाल कर रितु को पकड़ा दीं.रितु उन तसवीरों को देख कर हक्कीबक्की रह गई. उफ, मुंह से सिर्फ इतना निकला और फिर सिर झुका लिया.

शिखा ने उत्तेजित लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘यों मायूस होने के बजाय तुम मेरी बात ध्यान से सुनो. ये तसवीरें साफ बता रही हैं कि तुम से शादी करने से पहले समीर ने मेरे साथ प्यार का नाटक खेला था. शादी का वादा करने के बाद मुझे धोखा दिया… मेरी जिंदगी बरबाद कर दी… देख लेना एक दिन वह तुम्हें भीधोखा देगा.’’‘‘ऐसा न बोलो,’’ रितु रोंआसीहो उठी.

‘‘वह भरोसे के काबिल है ही नहीं, रितु. उस ने मुझे छोड़ा, क्योंकि तुम एक अमीर बाप की बेटी थीं. अब किसी और कली का प्रेमी बन कर उसे धोखा देगा, क्योंकि वहलालची होने के साथसाथ स्वाद बदलने का भी आदी है.’’‘‘अगर उस ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया, तो मैं उस की जान ले लूंगी,’’ रितु अचानक गुस्से से फट पड़ी.‘‘उसे सीधी राह पर रखने का यही तरीका है कि वह तुम से डरे, रितु.

तुम समीर पर कभी भरोसा न करना. उस की मीठी बातों में न आना. किसी भी औरत का दिल जीतने की कला मेंवह कितना निपुण है, इस का अंदाजा तो अबतक तुम्हें भी हो गया होगा. रितु, अगर तुम ने कभी उसे किसी भी सुंदर स्त्री के साथ घुलनेमिलने का मौका दिया, तो बुरी तरह पछताओगी.’’‘‘धन्यवाद शिखा. तुम ने मुझे वक्त से चेता दिया.

अब मैं पूरी तरह होशियार रहूंगी,’’ रितु ने फौरन उस का आभार प्रकट किया.‘‘मेरी शुभकामनाएं सदा तुम्हारे साथ हैं.’’‘‘मैं तुम से मिलती रहना चाहूंगी.’’‘‘मैं अपना फोन नंबर तुम्हें देती हूं.’’‘‘और अपना पता भी दे दो.’’‘‘ठीक है.’’‘‘इन तसवीरों को मैं रख लूं?’’‘‘क्या करोगी इन का?’’‘‘इन्हीं के बल पर तो मैं समीर की नाक में नकेल डाल पाऊंगी.’’‘‘तो रख लो.’’‘‘धन्यवाद. अब कुछ ठंडा या गरम पी लिया जाए?’’

रितु ने वार्त्तालाप का विषय बदला और फिर दोनों सहेलियों की तरह गपशप करने लगीं. रितु शाम 7 बजे के करीब घर पहुंची.समीर ने मुसकरा कर स्वागत किया. वह उसे अपने पास बैठाना चाहता था, पर रितु ने अपने पर्स से तसवीरें निकाल कर उसे पकड़ाईं और बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई.

रितु ने अभी पूरे कपड़े भी नहीं बदले थेकि समीर कमरे में आ गया, ‘‘तो मेरी पुरानी सहेली आज तुम से मिलने पहुंच ही गई,’’और फिर रितु को बांहों में भर कर अपनी गरमगरम सांसें उस के कान में छोड़नी शुरूकर दीं.‘‘तुम मुझ से दूर रहो,’’ रितु उस की बांहों की कैद से निकलने की कोशिश करने लगी.‘‘मैं ने तुम से दूर रहने के लिए शादी नहीं की है, जानेमन.’’‘‘शिखा ने मुझे आगाह कर दिया है.’’‘‘किस बारे में?’’‘‘यही कि तुम औरतों का दिल जीतने की कला में बहुत ऐक्सपर्ट हो, पर अब से तुम मुझे उत्तेजित कर के बुद्धू नहीं बना सकोगे.’’‘‘कोशिश करने में क्या हरज है, स्वीटहार्ट,’’ समीर ने उस के गालों को चूमना शुरू कर दिया.‘‘तुम एक दिन किसी दूसरी औरत के चक्कर में जरूर फंस जाओगे.’’‘‘ऐसा शिखा ने कहा?’’‘‘हां.’’‘‘नैवर… बंदा तुम्हें जिंदगी भर सिर्फ तुम्हारा दीवाना बना रहने का वचन दे सकता है.’’‘‘उस ने कहा है कि तुम उस की मीठी बातों पर कभी विश्वास न करना.’’‘‘मेरी बातों पर नहीं, बल्कि मेरे ऐक्शन पर विश्वास करो, मेरी जान,’’ समीर ने उसे झटके से अपनी बांहों में उठा लिया और फिर गुसलखाने की तरफ चल दिया.‘‘अरे, गुसलखाने में क्यों जा रहे हो?’’ रितु घबरा उठी.‘‘आज साथसाथ नहाने का मूड है.’’‘‘मेरे कपड़े भीग जाएंगे.’’‘‘मेरे भी भीगेंगे, पर मैं तो शोर नहीं मचा रहा हूं.’’

रितु के रोके समीर रुका नहीं. जब फुहारे का ठंडा पानी दोनों पर पड़ने लगा, तो रितुमस्त हो अपनी आंखें मूंद समीर के बदन से लिपट गई.‘‘मेरा हनीमून जिंदगी भर चले,’’ ऐसी कामना करने के बाद उस ने अपने तनमन को समीर के स्पर्श से मिल रही उत्तेजक गुदगुदी के हवाले कर दिया.3 दिन बाद रितु ने लंच अवकाश में शिखा से फोन पर बात की.‘‘मैं अपनी अटैची ले कर आज सुबह मायके रहने आ गई हूं,’’ रितु ने उसे गंभीर स्वर में जानकारी दी.‘‘क्या झगड़ा हुआ समीर से?’’ शिखा की आवाज में फौरन उत्सुकता के भाव पैदा हुए.‘‘हां.’’‘‘किस बात पर?’’

‘‘बात लंबी है और मुझे तुम्हारी सलाह भी चाहिए. क्या शाम को मैं तुम से मिलने तुम्हारे घर आ जाऊं?’’‘‘हां, आ जाओ पर कुछ तो बताओ कि हुआ क्या है?’’‘‘अभी नहीं, आसपास कई लोग हैं.’’‘‘कितने बजे तक पहुंचोगी?’’‘‘7 तक.’’‘‘मैं इंतजार करूंगी.’’फोन बंद कर रितु रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा रही थी. शाम को घंटी बजाने पर दरवाजा शिखा नेही खोला.

वह अपनी मां के साथ फ्लैट में रहती थी. दोनों ड्राइंगरूम में बैठीं तो उस की मां वहां से उठ कर अपने कमरे में टीवी देखने चली गईं. ‘‘क्या बहुत झगड़ा हुआ तुम दोनों के बीच?’’ शिखा से सब्र नहीं हुआ और उस ने बैठते ही वार्त्तालाप शुरू कर दिया.‘‘समीर का असली चेहरा बेनकाब करवाने में मेरी सहायता करने के लिए तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद, शिखा,’’ रितु भावुक हो उठी.‘‘हुआ क्या है, यह तो बताओ?’’‘‘उस ने मेरी बहुत बेइज्जती की.’’‘‘क्या किया उस ने?’’‘‘मैं ने तो उस से तलाक लेने का मन बना लिया है.’’‘‘क्यों, तुम उस पर इतना गुस्सा हो रही हो?’’‘‘मेरा बस चले तो मैं उस की जान हीले लूं.’’‘‘रितु,’’ शिखा चिढ़ उठी, ‘‘तुम पहले मुझे वह सब क्यों नहीं बता रही हो, जो तुम दोनों के बीच घटा है?’’‘‘उस की बातों को याद कर के मेरा दिल करता है कि उसे कच्चा चबा…’’‘‘रितु,’’ शिखा चिल्ला पड़ी.

रितु ने उसे अजीब नजरों से देखने के बाद चिढ़े लहजे में कहा, ‘‘उस ने मुझ से साफसाफ कह दिया कि कोई न कोई प्रेमिका उस की जिंदगी में हमेशा रहेगी.’’‘‘क्या?’’‘‘और यह भी कहा कि मैं अकेली उसे कभी संतुष्ट नहींकर पाऊंगी.’’‘‘तुम्हारा ऐसा अपमान करने की उस की हिम्मत कैसे हुई?’’‘‘उस ने मुझे मोटी भैंसभी कहा.’’‘‘तुम ने उस के सिर पर कुछ फेंक कर क्यों नहीं मारा?’’‘‘मुझे बदसूरत भी कहा और यह भी ताना मारा कि न मुझे ढंग के कपड़े पहनने की तमीज है और न ही मेरे पास ढंग के कपड़े हैं.’’‘‘तुम ने अच्छा किया जो मायके चली आईं… अब जब तक वह तुम से हाथ जोड़ कर माफी न मांगे, तुम वापस मत जाना.’’‘‘मैं अपनी मरजी से मायके नहीं आई हूं, शिखा.’’‘‘तो?’’‘‘उस ने मुझे जबरदस्ती भेजा.’’‘‘क्यों?’’‘‘उस ने चेतावनी दी है कि जब तक मेरी पर्सनैलिटी में निखार न आ जाए.

तब तक वापस न आना.’’‘‘वह खुद शर्मिंदा होनेके बजाय उलटा तुम्हें धमकी देरहा है?’’‘‘हां, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अब मैं क्या करूं?’’‘‘तुम उस से न डरो और न उस के सामने झुको, रितु. इस बार तुम अगर कमजोर पड़ गईं, तो उसे दूसरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाने की खुली छूट मिल जाएगी.’’‘‘अगर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही, तो मेरा घर उजड़सकता है.’’‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा.’’रितु इस का कोई जवाब दे पाती, उस से पहले ही किसी ने घंटी बजा दी तो शिखा दरवाजा खोलने चली गई.

ड्राइंगरूम में जब गुस्से से आगबबूला हो रहे समीर ने शिखा के आगेआगे कदम रखा तो रितु चौंक कर खड़ीहो गई.‘‘मुझे पता था कि तुम यहीं मिलोगी,’’ समीर की आवाज गुस्से के मारे कांप रही थी, ‘‘इस चालाक औरत की बातों में आ कर तुम क्यों अपना घर बरबाद कर रही हो?’’‘‘इन्हें तुम्हारा असली चेहरा क्या है, यह मालूम पड़ना ही चाहिए,’’ शिखा ने रितु की तरफदारी की.‘‘क्या ये तुम्हारा असली चेहरा पहचानती हैं?’’ समीर ने अपनी भूतपूर्व प्रेमिका को गुस्सेसे घूरा.‘‘ये जानती हैं कि मैं इन की शुभचिंतक…’’‘‘नहीं,’’ समीर ने उसे टोक दिया, ‘‘तुम्हारा इरादा तो हमारे विवाहित जीवन की खुशियों को बरबाद करने का है.

क्या तुम ने इसे यह बताया है कि हमारा रिश्ता क्यों टूटा था?’’‘‘तुम्हारे गंदे दिमाग में जो बेबुनियाद शक…’’‘‘मेरा शक बेबुनियाद होता, तो उस शाम तुम मेरे हाथों चुपचाप मार न खातीं.’’ समीर ने फिर रितु को संबोधित किया, ‘‘इस की बदचलनी का ब्योरा मैं तुम्हें सुनाता हूं. मैं वायरल बुखार की चपेट में आ कर करीब 10 दिनों तक बिस्तर पर पड़ा रहा था.

इस धोखेबाज ने इसी घर के अंदर अपने एक सहयोगी के साथ मुंह काला किया. मैं ने इन्हें रंगे हाथों पकड़ा था. उस शाम मैं बड़ी कठिनाई से इसे सरप्राइज देने आया था, पर जो सरप्राइज मु?ो मिला उस का जख्म आज भी टीसता है तो मैं ढंग से सो नहीं पाता हूं, रितु.’’‘‘यह झूठ बोल रहा है,’’ शिखा चिल्लाई.‘‘कौन सच्चा है और कौन झूठा, इस की गवाही के लिए तुम्हारे पड़ोसियों को बुलाऊं?’’‘‘तुम जैसे घटिया आदमी से मैं सारे संबंध पहले ही तोड़ चुकी हूं.

तुम इसी वक्त यहां से चले जाओ.’’‘‘अगर सारे संबंध तोड़ चुकी थीं, तो फिर मेरी पत्नी को मेरे खिलाफ भड़ाकने की कोशिश क्यों की?’’‘‘मैं ने ऐसी कोई कोशिश नहीं…’’‘‘चुप,’’ उसे डांट कर चुप कराने के बाद समीर ने रितु की तरफ घूम कर उसे धमकी दी, ‘‘इस के कहे में आ कर मेरा दिमाग खराब करने की सजा तुम्हें भी मिलेगी. जब तक तुम मेरे मनमुताबिक चलने और दिखने लायक न हो जाओ, तब तक अपने मायके में ही सड़ो,’’ पत्नी को धमकी दे कर समीर गुस्से से पैर पटकता दरवाजे की तरफ चल पड़ा.

कुछ कदम चल कर वह अचानक पलटा और क्रूर मुसकान होंठों पर सजा कर शिखा से बोला, ‘‘तुम ने जो फोटो मेरे घर में आग लगाने के लिए रितु को दिए थे, अब वही फोटो तुम्हारी ऐसी की तैसी करेंगे. मैं देखता हूं कि तुम्हारी शादी अब नीरज से कैसे होती है.’’ समीर को शिखा ने रोकने की कोशिश जरूर की, पर उस के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाया.

उस का चेहरा पीला पड़ गया था. बेहद चिंतित नजर आते हुए वह थकीहारी सी सोफे पर बैठ गई.रितु के कई बार पूछने पर शिखा ने उसे रोंआसी आवाज में बताया, ‘‘नीरज से मेरा रिश्ता पक्का होने जा रहा है.’’‘‘तब तो समीर उन फोटोज के बलपर तुम्हारे लिए गंभीर समस्या खड़ी करसकता है,’’ रितु भी चिंतित नजर आने लगी.‘‘वे फोटो मैं ने तुम्हारी हैल्प करने के लिए तुम्हें दिए थे.

प्लीज, अब उन को तुम ही वापस ला कर दो, रितु,’’ शिखा बहुत घबराई सी नजर आ रही थी.‘‘वे फोटो मैं तुम्हें जरूर लौटाऊंगी… तुम फिक्र न करो, लेकिन…’’‘‘लेकिन क्या?’’‘‘मैं तो वापस घर नहीं जा सकती. अभी तुम ने समीर की धमकी सुनी थी न.’’‘‘मेरी खातिर वापस चली जाओ, प्लीज,’’ शिखा ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए.‘‘नहीं,’’ रितु ने सख्ती से इनकार कर दिया.‘‘प्लीज.’’‘‘तुम समझ नहीं रही हो… मैं ने पक्का इरादा कर लिया है कि अपनी फिगर ठीक करने के लिए पहले जिम जाना शुरू करूंगी… कुछ नई ड्रैसेज खरीदूंगी… ब्यूटीपार्लर से ब्राइडल पैकेज लूंगी, जो मुझे दुलहन सा आकर्षक बना दे.

मैं अगर इन सब कदमों को उठाए बिना लौट गई, तो मेरी कितनी किरकिरी होगी, जरा सोचो तो,’’ रितु परेशान नजर आने लगी.‘‘मेरे सुखद भविष्य की खातिर उन फोटोज का वापस मिलना क्या जरूरी नहीं है?’’‘‘यह भी ठीक है, पर मैं नहीं चाहतीकि समीर मुझे दुत्कार कर फिर से मायकेभेज दे.’’‘‘तो कल ही तुम इन सब सोचे हुए कामों को कर डालो.

फिर फौरन लौट कर उस से फोटो ले कर मुझे लौटा दो.’’‘‘मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती हूं, शिखा,’’ रितु ने गहरी सांस छोड़ी.‘‘क्यों?’’‘‘मैं अपनी सारी पगार समीर को दे देती हूं. मेरे अकाउंट में मुश्किल से क्व2 हजार होंगे. अपने मम्मीपापा से मैं ने आर्थिक सहायता न लेने का प्रण कर रखा है, क्योंकि वे रुपए देते हुए मुझे बहुत शर्मिंदा करते हैं.’’‘‘तब सारा खर्चा कैसे करोगी?’’‘‘अगले महीने से अपनी पगार मैं अपने पास रखूंगी.’’‘‘पर तब तक तो समीर न जाने क्याकर बैठेगा.’’‘‘शायद कुछ न करे,’’ रितु ने उसे तसल्ली देने की कोशिश की, पर शिखा की चिंता कम नहीं हुई.

शिखा बहुत देर तक भुनभुनाते हुए कभी समीर को तो कभी रितु को भलाबुरा कहतीरही. उस की सारी बातें को रितु ने खामोश रह कर सुना.कुछ वक्त तो लगा, पर अपना बहुत सारा खून फूंकने के बाद आखिर में शिखा को यहबात समझ आ ही गई कि अगर फोटो लानेके लिए उसे रितु को फौरन लौटने के लिएराजी करना है, तो उसे अपनी ही जेब हलकी करनी पड़ेगी. अगले दिन शिखा ने क्व5 हजार दे कररितु की 3 महीने की जिम कीफीस भरी.

फिर बाजार से कपड़ों की खरीदारीमें क्व8 हजार खर्च किए. बाद में ब्यूटीपार्लर में क्व10 हजार ऐडवांस जमा कराते हुए शिखा रोंआसी हो उठी थी.‘‘धन्यवाद शिखा. मैं अभी यहीं से अपने घर लौट जाती हूं. कल तक वे फोटो तुम्हें कूरियर से मिल जाएंगे, यह मेरा वादा रहा,’’ कह रितु बहुत खुश नजर आ रही थी.‘‘मेरा काम जरूर कर देना, प्लीज,’’ परेशान नजर आ रही शिखा उसे मन ही मन खूब गालियां दे रही थी.‘‘चिंता न करो… मुझे भी तुम अपना शुभचिंतक समझे,’’ रितु ने उसे जबरदस्ती गले लगाया और फिर अपने घर चल दी.

रितु को पलपल दूर होता देख रही शिखा उस घड़ी को कोस रही थी जब उस ने समीर की विवाहित जिंदगी में अशांति पैदा करने के लिए रितु को रेस्तरां में बुलाया था. उसे क्व23 हजार की चपत तो लगी ही थी, पर जो बात उसे बहुत ज्यादा चुभ रही थी, वह यह एहसास था कि समीर और रितु ने मिल कर बड़ी चतुराई से उसे बुद्धू बनाया.

Short Story

Family Story: फायदे का नुकसान- घर में हुई चोरी

Family Story: रात के 2 बज रहे थे. शेखर के घर के आगे कुछ लोग इकट्ठा थे. पुलिस की 2 जीपें भी खड़ी थीं. 6-7 पुलिस वाले शेखर व उस की पत्नी स्मिता से घर के अंदर बातचीत कर रहे थे.

करीब 1 घंटा पहले उन की रसोई की दीवार तोड़ कर चोर घर में घुस आया था. स्टडीरूम से शेखर का मोबाइल, पर्स व घड़ी उठाने के बाद वह बैडरूम में आया जहां स्मिता अकेली सो रही थी. चोर ने जैसे ही उस के गले से सोने की चेन खींची वह जाग गई और जोरजोर से चिल्लाने लगी.

स्मिता का शोर सुन कर शेखर, जो उस रात मैच देखतेदेखते ड्राइंगरूम में ही सो गया था, बदहवास सा दौड़ादौड़ा आया और फिर तुरंत बैडरूम की लाइट जलाई. देखा, स्मिता डर के मारे कांप रही थी.

‘‘क्या हुआ?’’ शेखर ने पूछा तो उस के स्वर में घबराहट थी.

‘‘हम…हम… हमारे घर में कोई घुस आया है,’’ बड़ी मुश्किल से स्मिता के मुंह से निकला.

‘‘मतलब चोर?’’ शेखर घबराते हुए बोला.

‘‘हां शायद,’’ कह स्मिता ने अपने गले पर हाथ फेरा.

‘‘हाय, मेरी चेन ले गया चोर,’’ कह कर स्मिता रोने लगी.

‘‘बिस्तर झड़ कर देखो,’’ शेखर बोला.

‘‘यहां कहीं नहीं है,’’ स्मिता ने बिस्तर झड़ते हुए कहा.

‘‘मैं जा कर अशोकजी को जगाऊं क्या?’’ शेखर ने सकुचाते हुए पूछा.

‘‘हांहां, जल्दी जाओ,’’ कह कर स्मिता भी बाहर आ गई.

शेखर सामने अशोकजी को जगाने गया तो स्मिता भी बराबर वाले राजेंद्र अंकल को बुलाने दौड़ी.

दोनों घरों की लाइटें जलीं और सारे सदस्य बाहर आ गए. फिर सब

लोग स्मिता के घर पहुंचे व सारी घटना को सुना.

‘‘चलो, किचन की तरफ चलते हैं, वहीं से तो आया था चोर,’’ राजेंद्र अंकल बोले तो सभी उन के पीछे हो लिए

संयोग से स्मिता की चेन रसोई में ही पड़ी मिल गई. शायद जल्दबाजी में चोर के हाथ से छूट गई होगी.

‘‘अरे भाभीजी, शायद चोर को आप की चेन पसंद नहीं आई,’’ अशोकजी के बेटे निखिल ने चेन उठाते हुए कहा.

चेन पा कर स्मिता की जान में जान आई

‘‘कमबख्त ने कितना बड़ा छेद कर डाला है. दीवार में,’’ राजेंद्र अंकल की पत्नी ने चोर

को कोसा.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ कह कर राजेंद्र

अंकल ने पौकेट से चश्मा निकाल कर पहना. चश्मा पहनते ही वे चौंक कर बोले, ‘‘अरे, यह

तो चाकू है?’’

‘‘स्मिता, तुम्हारे पास चोर चाकू ले कर आया था. गनीमत सम?ो जो बच गईं,’’ कह कर राजेंद्र अंकल की पत्नी ने और डरा दिया.

‘‘निखिल, पुलिस को फोन करो,’’ अशोकजी परेशान से बोले.

आधे घंटे में पुलिस भी वहां पहुंच गई.

इसी बीच राजेंद्र अंकल ने शेखर के दोनों बड़े भाइयों के टैलीफोन नंबर पूछ कर उन्हें भी

सूचित कर दिया. वे भी आधी रात को वहां

आ पहुंचे.

मझले भैया के साथ उन का 5 वर्षीय बेटा मोंटू भी आया था.

‘‘चाची, मुझे वह वाला बिस्कुट दोगी?’’ उस ने अलमारी में रखे डब्बे की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘हां, जितने चाहे ले लो,’’ स्मिता ने डब्बा ही मोंटू के हाथ में थमा दिया.

अब तक बड़े भैया भी अपने बेटे मनीष के साथ आ पहुंचे थे. सभी एक ही शहर में थोड़ीथोड़ी दूरी पर रहते थे. शेखर से लड़ाई कर के घर से अलग हो जाने के कारण सभी ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था. रिश्ता निभाने की जहमत कभी शेखर ने नहीं उठाई थी. इसलिए तो पहले वाला किराए का मकान छोड़ कर जब वे लोग इस नई कालोनी में आए तो यहां भी शेखर ने किसी से ज्यादा जानपहचान नहीं बढ़ाई.

स्मिता के मिलनसार स्वभाव के कारण राजेंद्रजी व अशोकजी दोनों के परिवार उस से हिलमिल गए थे.

राजेंद्रजी बड़ी बहू वसंती भाभी, जो स्मिता के ठीक पीछे वाले मकान में अलग रह रही थीं को पुलिस के जाने के बाद करीब 3 बजे चोरी का पता चला.

‘‘यह कैसे हो गया स्मिता?’’ पहली बार उन के घर आई वसंती भाभी ने दुख प्रकट किया.

‘‘क्या कहूं भाभी, जब समय खराब होता है तो ऐसी घटनाएं होती रहती हैं,’’ और फिर स्मिता ने उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया.

सभी ने रात 3 बजे चाय पीते हुए एकसाथ सहानुभूति जताई. मोंटू अब तक बिस्कुट के

2 पैकेट खाली कर चुका था.

रोशनी और नेहा कहां हैं?’’ बड़े भैया ने स्मिता से पूछा.

‘‘3 दिनों से नानी के पास हैं. छुट्टियां चल रही हैं न,’’ स्मिता ने कहा.

‘‘पर तुम दोनों अलगअलग कमरे में सोए ही क्यों? एकसाथ सोते तो शायद चोर स्मिता के पास आने की हिम्मत नहीं करता,’’ काफी देर से उधेड़बुन में लगीं वसंती भाभी ने आखिर पूछ ही लिया.

‘‘चुप रहो,’’ पास बैठे उन के पति ने गुस्से में उन का हाथ दबाया.

बाकी लोगों के चेहरों पर उस तनाव के माहौल में भी मुसकान देख वसंती भाभी ने अपने शब्दों पर गौर किया तो वे भी झोप गईं और स्मिता भी.

‘‘चाची टौयलेट जाना है,’’ मोंटू दोनों पैरों को आपस में जोड़े हुए बोला तो स्मिता उसे ले कर कमरे से बाहर आ गई.

अब तक 4 बज चुके थे. अशोक अंकल का परिवार

विदा ले चुका था. थोड़ी देर बाद

राजेंद्रजी का परिवार भी सुबह मिलते हैं कह कर चला गया.

‘‘पुलिस वालों को कुछ खिलानापिलाना पड़ेगा तभी वे कोशिश करेंगे,’’ सब के जाने के बाद बड़े भैया स्मिता से बोले.

म?ाले भैया ने भी इस में अपनी सहमति जताई. शेखर वहीं बैठा सब कुछ चुपचाप सुन रहा था. उसे बातचीत शुरू करने में थोड़ी ?ोंप महसूस हो रही थी. आखिर 2 साल बाद पहली बार दोनों बड़े भाई उन के घर आए थे. और वे भी इस तरह आधी रात को.

मुझे भैया भी अपने नए मकान में कुछ समय पहले ही मां की अनुमति से अलग रहने गए थे. मां बड़े भैया के साथ थीं.

लगभग 4.30 बजे तक वे भी चले गए.

शेखर को रसोई में ही चटाई बिछा कर सोना पड़ा, क्योंकि दीवार में बना छेद उन के अंदर डर पैदा कर गया था.

स्मिता कमरे में सोने चली गई. सुबह करीब 7 बजे कालबैल की आवाज से दोनों चौंक कर उठे. शेखर ने देखा कि दीवार के छेद से वसंती भाभी का 4 साल का बेटा दीपू अंदर आने की कोशिश कर रहा था.

‘‘कौन है वहां?’’ आंखें मलते हुए रसोई के दूसरे कोने में लेटे शेखर ने पूछा.

‘‘अंकल मैं हूं. मम्मी काफी देर से चाय लिए आप के दरवाजे की घंटी बजा रही हैं. उन्होंने ही मु?ो इस चोर वाले छेद से अंदर आ कर आप लोगों को जगाने को कहा,’’ दीपू मासूमियत से बोला.

यह सब सुन कर शेखर मुसकरा दिया. तब तक वसंती भाभी भी चाय की केतली ले कर स्मिता के संग रसोई में आ गईं.

‘‘लो भाई साहब चाय पी

लो. मैं ने सोचा आप दोनों काफी थके हुए होंगे, इसलिए मैं ही चाय बना लाई.’’

मौर्निंग वाक पर आ जा रहे कालोनी के दूसरे लोगों को चोरी की जानकारी देने का जिम्मा दीपू को सौंप कर वसंती भाभी फिर से उन के दुख में शामिल हो गई.

थोड़ी ही देर में बहुत से अनजान चेहरे उन के ड्राइंगरूम में मेहमान बने बैठे थे. सभी पहले उस दीवार में बने छेद को देखते, फिर ड्राइंगरूम में आ कर अपने दुख और विचारों का आदानप्रदान करते.

‘‘बताओ चोर काफी देर से दीवार तोड़ता रहा और आप लोगों को पता भी न चला,’’ कालोनी के सैके्रटरी नीरज ने आश्चर्यचकित हो कर कहा.

‘‘पुलिस वाले क्या कर लेंगे. सब उन की सहमति से ही तो होता है,’’ प्रोफैसर जानकीदास ने अपना गुस्सा पुलिस पर निकाला.

इसी बीच वसंती भाभी,

जो अकेले ही स्मिता की रसोई संभाल रही थीं सभी के लिए चाय बना लाईं.

सुबह की चाय थी अत:

सभी ने चाय का आनंद उठाते हुए चोर को और कोसा व शेखर को धीरज बंधाया.

शेखर व स्मिता इन 6-7 महीनों में इनलोगों से पहली बार मिल रहे थे. शेखर के एकांतप्रिय स्वभाव ने स्मिता की मिलनसारिता पर भी बंदिशें लगा दी थीं.चाय की चुसकियों के बीच ही सभी का परिचय हुआ. ‘‘मुझे चिंता इस बात की है कि पर्स में मेरा एटीएम कार्ड व ड्राइविंग लाइसैंस भी था,’’

थोड़ी देर बाद शेखर ने चिंतित स्वर में कहा.

‘‘कोई बात नहीं, दोबारा लाइसैंस तो मैं तुम्हारा बनवा दूंगा,’’ राजेशजी मेज पर चाय का कप रखते हुए बोले.

यह सुन नीता भला कैसे चुप रहतीं. वे तुरंत बोलीं, ‘‘शेखर, मैं

9 बजे तक बैंक के लिए निकलूंगी. तुम चाहो तो मेरे साथ बैंक चल पड़ना. मैं तुम्हारा पुराना एटीएम कार्ड कैंसिल करवा कर नया बनाने का इंतजाम कर दूंगी.’’

‘‘जी शुक्रिया, मैं सोमवार को ही बैंक जाऊंगा,’’ शेखर बोला.

भीड़ छंटने का नाम ही नहीं ले रही थी. औफिस जाने वाले सज्जन जल्दी अपनी हाजिरी लगा रहे थे इस वादे के साथ कि शाम को मिलेंगे.

स्कूलों की छुट्टी थी, इसलिए दीपू भी एक अच्छे पड़ोसी का फर्ज निभाते हुए सभी को चोरी की खबर सुना रहा था.

इसी बीच वसंती भाभी की नेक सलाह पर शेखर और स्मिता मौका मिलने पर नहाधो लिए.

करीब 9 बजे उस लाइन के आखिरी मकान में रहने वाली सुधा टीचर दोनों के लिए नाश्ता ले आईं.

‘‘सुबह से लोगों का आनाजाना लगा है. ऐसे में कहां समय है नाश्ता बनाने का. इसलिए मैं ही कचौरियां ले आई. सोचा तुम लोगों से परिचय भी हो जाएगा,’’ प्लेट में कचौरियां व चटनी सजाते हुए सुधा बोले जा रही थीं. उन्होंने सारांश में अपने जीवन के एकाकीपन का वर्णन करते हुए स्मिता को 2-3 व्यंजन बनाने की विधियां भी बता डालीं.

बहती गंगा में हाथ धोने में निपुण वसंती भाभी ने न जाने कब 4 कचौरियां पीछे की दीवार से पति को पार्सल कर दीं व दीपू को भी वहीं नाश्ता करा दिया. बेचारा आखिर सुबह से गेट पर खड़ा अपना फर्ज जो निभा रहा था.

‘‘अरे निखिल बुरा न मानो तो 6 पैकेट दूध ले आओ? शायद और चाय बनानी पड़ जाए,’’ सकुचाते हुए शेखर ने निखिल से कहा तो निखिल ने मुसकरा कर सिर हां में हिला दिया.

10.30 बजे तक 2 कारों में शेखर की रूठी मां, दोनों भाई, भाभियां व उन के बच्चे पहुंच गए. शेखर उस समय बाहर ही खड़ा था.

अब गेट पर ही खड़ा रखेगा या अंदर भी बुलाएगा?’’ मां ने जोर से कहा तो शेखर जैसे नींद से जागा. सभी को एकसाथ देख कर वह हक्काबक्का रह गया था.

‘‘अरे मां, शीतल भाभी, उमा भाभी अंदर आइए न,’’ आवाज सुन स्मिता अंदर से निकल कर गेट की ओर भागी.

ड्राइंगरूम में जगह नहीं थी, इसलिए

स्मिता ने पड़ोसियों से परिचय कराने के बाद उन सभी को बैडरूम में ले आई.

शेखर मां के पास ही बैठा था. आखिर 2 साल बाद मांबेटे का मिलन हो रहा था. मां से रहा न गया, तो वे बेटे से लिपट कर रो पड़ीं. भाभियों की आंखें भी नम हो गई थीं.

अब दीपू का साथ देने मोंटू भी पहुंच गया. एक से भले दो. दोनों नमकमिर्च लगा कर खबर फैला रहे थे.

थोड़ी देर में वसंती भाभी सब के लिए चाय ले आईं.

‘‘मम्मीजी, आप लोगों ने नाश्ता किया?’’ स्मिता ने उन के पास बैठते हुए पूछा.

‘‘हम सब ने कर लिया, तुम दोनों के लिए भी लाए हैं. शेखर की पसंद के आलू के परांठे व

नीबू का अचार,’’ शीतल भाभी ने डब्बा खोल कर शेखर को पकड़ाते हुए कहा.

शेखर ने भी फटाफट 2 परांठे खा लिए. गेट तक पहुंची अचार की महक ने दीपू व मोंटू को थोड़ी देर के लिए अपने फर्ज से मुंह मोड़ने पर मजबूर कर दिया.

करीब 11 बजे तक उस कालोनी की वाचाल महिला मंडली भी अपने सारे काम निबटा कर वहां शोक व्यक्त करने पहुंच गई.

फिर से चायनाश्ते का दौर शुरू हुआ. इस बार वसंती भाभी का साथ देने उमा भाभी भी पहुंच गईं.

महिलाएं कुछ ज्यादा ही उत्साह में थीं. राखी ने तो मौका देख कर रीना की बेटी के लिए 2-3 रिश्ते भी बता डाले. सुधा टीचर का विमला के साथ 4 दिन बाद दांतों के डाक्टर के पास जाना फिक्स हो गया. कई व्यंजनों की रैसिपीज का आदानप्रदान हुआ. कई सीरियलों की नायिकाएं दया की पात्र बनीं.

दरअसल, काफी समय बाद सभी इतनी फुरसत से एक जगह मिले थे, इसलिए सभी समय का पूरापूरा लाभ उठाना चाह रहे थे.

बीचबीच में शेखर व स्मिता उन के बीच बैठ कर उन्हें यह याद दिलाते कि वे सभी यहां चोरी का दुख प्रकट करने आए हैं. पर सब व्यर्थ था.

करीब 1 बजे तक दोनों भाई भी सब कुछ भूल कर शेखर से पहले की तरह

घुलमिल गए. यह नजारा स्मिता को अंदर तक खुशी दे गया. उस ने तो हमेशा से सभी का साथ चाहा था, परंतु पति के अक्खड़ स्वभाव के आगे उस की एक न चलती.

महिला मंडली को विदा कर सभी ने खाना खाया. राजेंद्रजी की पत्नी लौकी के कोफ्ते दे गईं तो अशोकजी की पत्नी भरवां भिंडी बना लाईं. सभी ने एकसाथ खाना खाया. पूरा घर किसी शादी के माहौल से कम नहीं लग रहा था.

हां, इस में वसंती भाभी व दीपू का पूरापूरा योगदान रहा. दोपहर को औफिस से लंच करने आए अपने पति को भी वसंती भाभी ने वहीं बुला लिया.

शाम 4 बजे तक दूसरे शहर से स्मिता के मम्मीपापा भी आ पहुंचे. रोशनी व नेहा दादी, ताऊजी, ताईजी व बच्चों को देख कर बहुत खुश हुईं.

बड़ेबुजुर्ग जहां एक ओर राजनीति व खेल पर चर्चा कर रहे थे वहीं बच्चे चोर द्वारा किए छेद के आरपार खेल कर मजा ले रहे थे.

औफिस से लौटने के बाद फिर से लोगों का आनाजाना शुरू हो गया. अब तक शेखर व स्मिता भी ये भूल गए थे कि कल रात उन के घर चोरी हुई थी. दोनों लोगों की आवभगत में बिजी हो गए थे.

शाम को फोन की घंटी की आवाज सुन

बड़े भैया ने रिसीवर उठाया. थाने से इंस्पैक्टर का फोन था थोड़ी देर बातचीत हुई. फिर भैया बैडरूम में आए. जहां वसंती भाभी व घर के सारे सदस्य बैठे थे.

शेखर से बोले, ‘‘थाने से इंस्पैक्टर साहब कह रहे हैं कि तुम व स्मिता थाने जा कर एफआईआर दर्ज कराओ. तभी वे आगे कुछ

कर पाएंगे.’’

‘‘हमें कोई एफआईआर दर्ज नहीं करानी है, भैया. आप ही उन से फोन पर कह दीजिए,’’ स्मिता के चेहरे पर मुसकान थी.

सभी उसे आश्चर्यचकित नजरों से घूरने लगे.

‘‘आप सभी मुझे यों न देखें. वह चोर यहां से 2-3 चीजें ही तो चुरा कर भागा है न… किसी को शारीरिक रूप से कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया. परंतु उस महान व्यक्ति के कारण

2 सालों से बिछड़ी मेरी ससुराल मुझे वापस मिल गई. यहां 6-7 महीनों से अजनबियों की तरह रह रहे कालोनी वालों का स्नेह और अपनापन मिल गया. मेरे खयाल से चोरी एक फायदे का सौदा रहा. वह चोर जहां भी रहे सलामत रहे,’’ स्मिता ने कहा तो सभी को मिलीजुली मुसकान ने वातावरण को हलका कर दिया.

Family Story

Hindi Drama Story: छलिया कौन- क्या हुआ था सुमेधा के साथ

Hindi Drama Story: सब कहते हैं और हम ने भी सुना है कि जिंदगी एक अबूझ पहेली है. वैसे तो जिंदगी के कई रंग हैं, मगर सब से गहरा रंग है प्यार का… और यह रंग गहरा होने के बाद भी अलगअलग तरह से चढ़ता है और कईकई बार चढ़ता है. अब प्यार है ही ऐसी बला कि कोई बच नहीं पाता. ‘प्यार किया नहीं जाता हो जाता है…’ और हर बार कोई छली जाती है… यह भी सुनते आए थे.

आज भी ‘छलिया कौन’ यह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह बन कर मुंहबाए खड़ा है. प्यार को छल मानने को दिल तैयार नहीं और प्यार में सबकुछ जायज है, तो प्यार करने वाले को भी कैसे छलिया कह दें? प्यार करने वाले सिर्फ प्रेमीप्रेमिका नहीं होते, प्यार तो जिंदगी का दूसरा नाम है और जिंदगी में बहुतेरे रिश्ते होते हैं. मसलन, मातापिता, भाईबहन, मित्र और इन से जुड़े अनेक रिश्ते…

ममत्व, स्नेह, लाड़दुलार और फटकार ये सभी प्यार के ही तो स्वरूप हैं. इन सब के साथ जहां स्वार्थ हो वहां चुपके से छल भी आ जाता है.

वैसे, जयवंत और वनीला की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. कथानायक तो जयवंत ही है, मगर नायिका अकेली वनीला नहीं है. वनीला तो जयवंत और उस की पत्नी सुमेधा की जिंदगी में आई वह दूसरी औरत है जिस की वजह से सुमेधा अपनी बेटी मीनू के साथ अकेली रहने के लिए विवश है. सुमेधा सरकारी स्कूल में शिक्षिका है और जयवंत सरकारी कालेज में स्पोर्ट्स टीचर है. दोनों की शादी परिवारजनों ने तय की थी.

सुमेधा सुंदर और सुशील है और जयवंत के परिजनों को दिल से अपना मान कर सब के साथ सामंजस्य बैठा कर कुशलतापूर्वक घर चला रही है. शादी के 10 सालों बाद सरकारी काम से जयवंत को दूसरे शहर में ठौर तलाशना पड़ा. काफी प्रयासों के बाद भी सुमेधा का ट्रांसफर नहीं हुआ. जयवंत हर शनिवार शाम को आता और पत्नी व बेटी के साथ 2 दिन बिता कर सोमवार को लौट जाता. मीनू भी प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रही थी तो सुमेधा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया. सुमेधा सप्ताहभर घर की जिम्मेदारी अकेली उठाती रहती और सप्ताहांत में घर आए पति के लिए भी समय निकालती.

जयवंत के कालेज में एक प्राध्यापिका थी वनीला, जो अधिक उम्र की होने के बाद भी अविवाहित थी. वह सुंदर, सुशील और संपन्न थी. मनोनुकूल वैवाहिक रिश्ता न मिलने से सब को नकारती रही. उम्र के इस सोपान पर तो समझौता करना ही था, जो उस के स्वभाव में नहीं था, इसलिए आजीवन अविवाहित रहने का मन बना चुकी थी. अक्ल और शक्ल दोनों कुदरत ने जी खोल कर दी थी तो अकड़ भी स्वाभाविक. कालेज में सब को अपने से कमतर ही समझती थी.

जयवंत और वनीला ने जब पहली दफा एकदूसरे को देखा तो दोनों का दिल कुछ जोर से धड़का. जयवंत तो था ही स्पोर्ट्समैन तो उस का गठीला शरीर था. उसे देख कर वनीला को अपना संकल्प कमजोर पड़ता जान पड़ा. उसे लगा कि कुदरत ने उस के लिए योग्य जीवनसाथी बनाया तो सही, मगर मिला देर से. दोनों देर तक स्टाफरूम में बैठे रहते, जबरदस्ती का कुछ काम ले कर.

दोनों को पहली बार पता चला कि वे कितने कर्मठ हैं. एकदूसरे की उपस्थिति मात्र से वे उत्साह से लबरेज हो तेजी से काम निबटा देते. अधिकांश कार्यकारिणी समितियों में दोनों का नाम साथ में लिखा जाने लगा, क्योंकि इस से समिति के अन्य सदस्य निश्चिंत हो जाते थे. दोनों को किसी अन्य की उपस्थिति पसंद भी नहीं थी.

स्पोर्ट्स समिति की कर्मठ सदस्य और अधिकांश गतिविधियों की संयोजक अब वनीला मैडम होती थीं. यह अलग बात है कि उन की बातचीत अभी भी शासकीय कार्यों तक ही सीमित थी. व्यक्तिगत रूप से दोनों एकदूसरे से अनजान ही थे.

बास्केटबौल के टूर्नामैंट्स होने थे, जिस की टीम में वनीला दल की अभिभावक के तौर पर जबकि जयवंत कोच के रूप में छात्राओं के दल के साथ गए थे. वहां अप्रत्याशित अनहोनी हुई कि एक छात्रा की तबियत काफी खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. शहर के दूसरे कालेज के दल के साथ ही अपनी टीम को रवाना कर वे दोनों छात्रा के पेरैंट्स के आने तक वहीं रुके.

हौस्पिटल में गुजरी वह एक रात उन की जिंदगी में बहुत बड़ा परिवर्तन ले आई. रातभर बेंचनुमा कुरसियों पर बैठेबैठे ही काटनी पड़ी और चूंकि काम तो कुछ था नहीं, सो उस दिन खूब व्यक्तिगत बातें हुईं.

जयवंत ने वनीला से अभी तक शादी न करने की वजह पूछी तो उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, “तुम्हारे जैसा कोई मिला ही नहीं…”

उस की बात का इशारा समझ कर जयवंत भी बोल उठा, “जब मैं ही मिल सकता हूं तो मेरे जैसे की जरूरत ही क्या है?”

वनीला की आंखें आश्चर्यमिश्रित खुशी से फैल गईं,”क्या आप ने भी अभी तक शादी नहीं की?”

अब जयवंत मगरमच्छी आंसुओं के साथ बोला,”मेरी दादी मरते वक्त मुझे उन के एक दूर के रिश्तेदार की बेटी का हाथ जबरन थमा गईं… वह दिमाग से पैदल है, तभी तो यहां ले कर नहीं आया… अब मैं उसे तलाक दे दूंगा… यदि तुम चाहोगी तो हम शादी कर लेंगे, वीनू.”

“ओह जय, कितना गलत हुआ तुम्हारे साथ… हम पहले क्यों नहीं मिले? अब तुम्हारी पत्नी है तो हम कैसे शादी कर सकते हैं?”

“क्यों नहीं कर सकते वीनू… आई लव यू…और मुझे पता है कि तुम भी मुझे प्यार करती हो… बोलो, सच है न यह? हमारी जिंदगी है… हम एकदूसरे के साथ बिताना चाहें तो इस में गलत क्या है?” कहते हुए उस ने भावातिरेक में वनीला का हाथ कस कर पकड़ लिया.

उम्र की परतों में वनीला ने जो भावनाओं की बर्फ छिपा रखी थी वह जयवंत के सहारे की गरमी से पिघलने लगी… जवाब में उस ने भी बोल ही दिया, “आई लव यू टू जय… आई वांट टू स्पैंड माई लाइफ विद यू.”

इधर इजहार ए इश्क हुआ और उधर छात्रा की तबियत थोड़ी सुधरने लगी. वीनू सोच रही थी कि जय की पत्नी के साथ मैं छल कर रही हूं तो गलत नहीं है, क्योंकि उस के परिवार वालों ने भी तो जय के साथ छल किया है. जय सोच रहा था कि घर की जिम्मेदारी भी उठाऊंगा, पत्नी और बेटी तो वैसे ही अकेले रहने की आदी हो गई हैं… यहां पर मैं वीनू को उस के हिस्से का प्यार दे कर उस पर उपकार कर रहा हूं… कोई छल नहीं कर रहा, वह भी तो मुझे पाना चाहती है. बेटी को पढालिखा कर शादी कर दूंगा… कितने ही पुरुषों ने 2 शादियां की हैं… यह कहीं से भी गलत नहीं है और सुमेधा तो इस सब से अनजान ही थी.

जय और वीनू अब कालेज के बाद भी साथ में समय गुजारने लगे थे. उम्र का तकाजा था तो शाम के बाद कभी कोई रात भी साथ में गुजर जाती. जय अपने रूम पर कम और वीनू के घर पर अधिक समय गुजारने लगा. दोनों ने चोरीछिपे शादी भी कर ली, मगर उसे गुप्त रखा.

जय का रविवार अभी भी सुमेधा और मीनू के साथ गुजरता था. यह बात भी सोलह आने सच है कि पत्नियों की आंखें उन्हें अपने पतियों की नजरों में परिवर्तन का एहसास करा ही देती हैं. सुम्मी भी जय में आए परिवर्तन को महसूस कर रही थी. रहीसही कसर स्टाफ मैंबर्स ने पूरी कर दी.

एक गुमनाम पत्र पहुंचा था सुम्मी के पास जिस में जयवंत और वनीला के संबंधों का जिक्र करते हुए उसे सावधान किया गया था.

अगले रविवार जब जयवंत घर पहुंचा तो वहां अपने मातापिता और सासससुर को आया देख कर हैरान रह गया. हंगामा होना था… हुआ भी… जयवंत लौट आया इस समझौते के साथ कि तलाक के बाद भी मीनू की पढ़ाई और शादी की सारी जिम्मेदारी वही वहन करेगा. अब वीनू से शादी की बात राज नहीं रह गई थी.

काफी लंबे अरसे बाद किसी वजह से हमारा सुमेधा के शहर में जाना हुआ. जयवंत ने सुम्मी और मीनू से मिल कर आने को कहा. हमें भला क्यों आपत्ति होती… जयवंत और वनीला निस्संतान थे, इसलिए इस की तड़प तो थी ही.

इतने सालों बाद बेटी से मिलने की तड़प तो पिता को होनी स्वाभाविक भी थी. प्यार का खुमार हमेशा एकजैसा नहीं रहता है और जयवंत की पोस्टिंग भी दूसरे शहर में हो चुकी थी. अब उसे अकेले में अपराधबोध सालता होगा. जयवंत के मातापिता ने वीनू को कोसने में कोई कसर नहीं रखी. उन के अनुसार उस बांझ स्त्री ने उन के बेटेबहू का घर तोड़ कर उन का जीवन नारकीय बना दिया है. उस ने पत्नी का सुख तो दिया मगर पिता का सुख नहीं दे पाई. उसी की वजह से जय और मीनू इतने सालों तक एकदूसरे से दूर रहे.

अब मीनू पीजी की पढ़ाई पिता के साथ रह कर उन के कालेज से करना चाहती थी. जयवंत और वनीला की पोस्टिंग अलगअलग शहर में होने से शायद उन्हें फिर उम्मीद की किरण दिख रही थी. सुमेधा का कहना था कि मुझे कोई अपेक्षा नहीं है मगर मीनू को उस का अधिकार मिलना चाहिए.

वनीला के विरोध के बावजूद भी मीनू अपने पिता के घर रहने आ गई थी. वीनू अब वीकैंड में आती थी. जब कभी कुछ विवाद होता तो उन का फोन आने पर हमें ही जाना पड़ता था, क्योंकि न चाहते हुए भी इस कलह की अप्रत्यक्ष वजह तो हम बन ही चुके थे. न हम सुम्मी से मिलने जाते और न ही यह टूटा तार फिर से जुड़ता.

आज भी अचानक फोन आया और वीनू ने कहा, “आपलोग तुरंत आइए, अब इस घर में या तो मैं रहूंगी या मीनू.”

कुछ देर तक तो हम समझ ही नहीं पाए… सौतन का आपसी झगड़ा तो सुना था, मगर सौतेली मां और बेटी का इस तरह से झगड़ना…?

आश्चर्य की एक वजह और थी कि वनीला और मीनू दोनों ही काफी समझदार थीं. अलगअलग दोनों से बात करने पर हम इतना समझ पाए थे कि दोनों अपनी सीमाएं जानती थीं और एकदूसरे के क्षेत्राधिकार में दखल भी नहीं देती थीं. कभीकभी जय संतुलन नहीं कर पाते, तभी विवाद होता था.

जय का कहना था कि मीनू ही मेरी इकलौती संतान है तो वीनू को भी इसे स्वीकार लेना चाहिए. आखिर वह उस की भी बेटी है. सुमेधा ने तो वनीला को अपनी जगह दे दी तो क्या यह उस की बेटी को हमारी जिंदगी में थोड़ी भी जगह नहीं दे सकती? उस का अधिकार तो यह नहीं छीन रही है. 2-3 साल बाद तो ससुराल चली जाएगी, तब तक भी इसे आंख की किरकिरी नहीं मान कर सूरमे की तरह सजा ले… हमारी जिंदगी में रोशनी ही तो कर रही है…

हम भी जय की बातों से सहमत थे. जिंदगी का यही दस्तूर है… दूसरी औरत ही हमेशा गलत ठहराई जाती है. मैं भी एक औरत हूं तो सुम्मी का दर्द महसूस कर रही थी और मीनू से सहानुभूति होते हुए भी वीनू को गलत नहीं मान पा रही थी. मेरे पति वीनू को गलत ठहरा रहे थे और मैं जय को… एक पल को लगा कि उन का झगड़ा सुलझाने में हम न झगड़ पड़ें.

वीनू ने चुप्पी तोड़ी,”हम इतने सालों से अकेले रहे, मीनू कोई छोटी बच्ची नहीं है, उसे समझना चाहिए कि मैं वीकैंड पर आती हूं, उस के आने के बाद जय तो आते नहीं उसे अकेला छोड़ कर, यदि कुछ गलत दिखे तो मुझे मीनू को डांटने का अधिकार है या नहीं? यदि कुछ ऊंचनीच हो गई तो दोष तो मुझे देंगे सब… पड़ोस में रहने वाले लड़के से इस का नैनमटक्का चल रहा है, मैं ने खुद देखा… पूछा तो साफ मुकर गई और जय मुझे ही गलत कह रहे हैं. यह उतनी भी सीधी नहीं है, जितनी दिखती है…” उस का प्रलाप चलता ही रहता यदि हमें मीनू की सिसकियां न सुनाई देतीं.

“मेरी कोई गलती नहीं हैं… आंटी मुझे क्यों ऐसा बोल रही हैं, वे खुद जैसी हैं, वैसा ही मुझे समझ रही हैं… मैं उन की सगी बेटी नहीं हूं तो मेरी तकलीफ क्यों समझेंगी?” सुबकते हुए भी मीनू इतनी बड़ी बात बोल गई. एक पल को सन्नाटा छा गया.

“मुझे भी आज मीनू को देख कर अपना अजन्मा बच्चा याद आता है…” सन्नाटे को चीरते हुए वनीला ने रहस्योद्घाटन किया. अब चौंकने की बारी हमारी थी.

“वीनू, चुप रहो प्लीज… मीनू बेटी के सामने इस तरह बात मत करो…” जयवंत गिड़गिड़ाते हुए बोले. मीनू भी सहम सी गई.

वीनू के सब्र का बांध जो टूटा तो आंसुओं की बाढ़ सी आ गई, “बताओ मेरी क्या गलती है… जब जय आखिरी बार सुम्मी के घर से लौटे थे, तब मैं ने इन्हें खुशखबरी दी थी… जीवन बगिया में नया फूल खिलने वाला था… मगर…”

जय ने बीच में ही बात काट दी, “वीनू प्लीज… मेरी गलती है, मुझे माफ कर दो. मगर प्लीज अब चुप हो जाओ…”

लेकिन वीनू ने भी आज ठान ही लिया था. वह बोलती रही और परत दर परत जयवंत के छल की कलई खोलती गई.

“उस समय इन्होंने मुझे कहा कि अभी कोर्ट में केस चल रहा है. इस समय सुम्मी के वकील को हमारी शादी का सुबूत मिल गया तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे… सरकारी नौकरी भी जा सकती है… तुम अभी बच्चे को एबोर्ट करवा दो.… एक बार कोर्ट की कार्यवाही निबट जाएं फिर हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करेंगे और बच्चा तो भविष्य में फिर हो ही जाएगा…”

“तो मैं ने गलत नहीं कहा था… उस समय यही उचित था…”

“उचितअनुचित मैं नहीं जानती. मुझ पर तो बांझ होने का कलंक लग गया, क्योंकि मीनू तुम्हारी बेटी है, यह सब जानते हैं.”

हम पसोपेश में बैठे थे. स्थिति इतनी बिगड़ने की उम्मीद नहीं थी. मैं सोच रही थी कि प्यार क्याक्या बदलाव ला देता है, सही और गलत की विवेचना के परे… सुम्मी ने मातृत्व को जिया मगर परित्यक्त हो कर अधूरी रही.… वीनू ने प्रेयसी बन प्यार पाया मगर मातृत्व की चाह में अधूरी रही… जयवंत ने सुम्मी और वीनू के साथ अधूरी जिंदगी जी, बेटी होने के बाद भी मीनू को दुलार न सका… क्या यही प्यार है या मात्र छलावा है?

“आप ने मेरे पापा को छीना, अपने अजन्मे बच्चे की हत्या की थी, इसलिए आप मां नहीं बन सकीं… कुदरत ने आप को सजा दी,” मीनू भी आज उम्र से बड़ी बातें कर वीनू को कटघरे में खींच रही थी.

“देखो, जो हुआ उसे हम बदल नहीं सकते. मीनू सही कह रही है, हमारी गलती का प्रायश्चित करने के लिए ही कुदरत ने मीनू को हमारे पास भेज दिया है, वही हमारी बेटी है, तुम बांझ नहीं हो… प्लीज अब बात को यहीं खत्म करो…”

“बात तो अब शुरू हुई है. कुदरत ने सजा नहीं दी, यह तो… ” बोलते हुए वीनू उठी और पर्स में से एक कागज निकाल कर मेरे सामने रख दिया, “यह देखो… सजा मुझे मिली है, यह सही है, मैं ने प्यार किया मगर जय ने मेरे साथ कितना बड़ा छल किया… यह अचानक मिला है मुझे, देखो…”

“क्या नाटक है यह? कौन सा कागज है?” जय अब गुस्से से चिल्लाया.

मैं ने देखा… वह मैडिकल सर्टिफिकेट था, जय की नसबंदी का…”आप ने वीनू को बताए बिना ही औपेरशन…”

मैं ने बात अधूरी छोड़ दी. अब जरूरी भी नहीं था कुछ बोलना. अब परछाई पानी में नहीं थी. आईने में सब स्पष्ट दिख रहा था और हम सोच रहे थे कि प्यार में छल हम किस से करते हैं, अपने रिश्तों से या खुद से, खुद की जिंदगी से?

प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है…

Hindi Drama Story

Hindi Fictional Story: बरसी मन गई- कैसे मनाई शीला ने बरसी

Hindi Fictional Story: इधर कई दिनों से मैं बड़ी उलझन में थी. मेरे ससुर की बरसी आने वाली थी. मन में जब सोचती तो इसी नतीजे पर पहुंचती कि बरसी के नाम पर पंडितों को बुला कर ठूंसठूंस कर खिलाना, सैकड़ों रुपयों की वस्तुएं दान करना, उन का फिर से बाजार में बिकना, न केवल गलत बल्कि अनुचित कार्य है. इस से तो कहीं अच्छा यह है कि मृत व्यक्ति के नाम से किसी गरीब विद्यार्थी को छात्रवृत्ति दे दी जाए या किसी अस्पताल को दान दे दिया जाए.

यों तो बचपन से ही मैं अपने दादादादी का श्राद्ध करने का पाखंड देखती आई थी. मैं भी उस में मजबूरन भाग लेती थी. खाना भी बनाती थी. पिताजी तो श्राद्ध का तर्पण कर छुट्टी पा जाते थे. पर पंडित व पंडितानी को दौड़दौड़ कर मैं ही खाना खिलाती थी. जब से थोड़ा सा होश संभाला था तब से तो श्राद्ध के दिन पंडितजी को खिलाए बिना मैं कुछ खाती तक नहीं थी. पर जब बड़ी हुई तो हर वस्तु को तर्क की कसौटी पर कसने की आदत सी पड़ गई. तब मन में कई बार यह प्रश्न उठ खड़ा होता, ‘क्या पंडितों को खिलाना, दानदक्षिणा देना ही पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है?’

हमारे यहां दादाजी के श्राद्ध के दिन पंडितजी आया करते थे. दादीजी के श्राद्ध के दिन अपनी पंडितानी को भी साथ ले आते थे. देखने में दोनों की उम्र में काफी फर्क लगता था. एक  दिन महरी ने बताया कि  यह तो पंडितजी की बहू है. बड़ी पंडितानी मर चुकी है. कुछ समय बाद पंडितजी का लड़का भी चल बसा और पंडितजी ने बहू को ही पत्नी बना कर घर में रख लिया.

मन एक वितृष्णा से भर उठा था. तब लगा विधवा विवाह समाज की सचमुच एक बहुत बड़ी आवश्यकता है. पंडितजी को चाहिए था कि बहू के योग्य कोई व्यक्ति ढूंढ़ कर उस का विवाह कर देते और तब वे सचमुच एक आदर्श व्यक्ति माने जाते. पर उन्होंने जो कुछ किया, वह अनैतिक ही नहीं, अनुचित भी था. बाद में सुना, उन की बहू किसी और के साथ भाग गई.

मन में विचारों का एक अजीब सा बवंडर उठ खड़ा होता. जिस व्यक्ति के प्रति मन में मानसम्मान न हो, उसे अपने पूर्वज बना कर सम्मानित करना कहां की बुद्धिमानी है. वैसे बुढ़ापे में पंडितजी दया के पात्र तो थे. कमर भी झुक गई थी, देखभाल करने वाला कोई न था. कभीकभी चौराहे की पुलिया पर सिर झुकाए घंटों बैठे रहते थे. उन की इस हालत पर तरस खा कर उन की कुछ सहायता कर देना भिन्न बात थी, पर उन की पूजा करना किसी भी प्रकार मेरे गले न उतरता था.

अपने विद्यार्थी जीवन में तो इन बातों की बहुत परवा न थी, पर अब मेरा मन एक तीव्र संघर्ष में जकड़ा हुआ था. इधर जब से मैं ने एक महिला रिश्तेदार की बरसी पर दी गई वस्तुओं के लिए पंडितानियों को लड़तेझगड़ते देखा तो मेरा मन और भी खट्टा हो गया था. पर क्या करूं ससुरजी की मृत्यु के बाद से हर महीने उसी तिथि पर एक ब्राह्मण को तो खाना खिलाया ही जा रहा था.

मैं ने एक बार दबी जबान से इस का विरोध करते हुए अपनी सास से कहा कि बाबूजी के नाम पर कहीं और पैसा दिया जा सकता है पर उन्होंने यह कह कर मेरा मुंह बंद कर दिया कि सभी करते हैं. हम कैसे अपने रीतिरिवाज छोड़ दें.

मेरी सास वैसे ही बहुत दुखी थीं. जब से ससुरजी की मृत्यु हुई थी, वे बहुत उदास रहती थीं, अकसर रोने लगती थीं. कहीं आनाजाना भी उन्होंने छोड़ दिया था. सो, उन्हें अपनी बातों से और दुखी करने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. पर दूसरी ओर मन अपनी इसी बात पर डटा हुआ था कि जब हम चली आ रही परंपराओं की निस्सारता समझते हैं और फिर भी आंखें मूंद कर उन का पालन किए जाते हैं तो हमारे यह कहने का अर्थ ही क्या रह जाता है कि हम जो कुछ भी करते हैं, सोचसमझ कर और गुणदोष पर विचार कर के करते हैं.

मैं ने अपने पति से कहा कि वे अम्माजी से बात करें और उन्हें समझाने का प्रयत्न करें. पर उन की तरफ से टका सा जवाब मिल गया, ‘‘भई, यह सब तुम्हारा काम है.’’

वास्तव में मेरे पति इस विषय में उदासीन थे. उन्हें बरसी मनाने या न मनाने में कोई एतराज न था. अब तो सबकुछ मुझे ही करना था. मेरे मन में संघर्ष होता रहा. अंत में मुझे लगा कि अपनी सास से इस विषय में और बात करना, उन से किसी प्रकार की जिद कर के उन के दुखी मन को और दुखी करना मेरे वश की बात नहीं. सो, मैं ने अपनेआप को जैसेतैसे बरसी मनाने के लिए तैयार कर लिया.

हम लोग आदर्शों की, सुधार की कितनी बड़ीबड़ी बातें करते हैं. दुनियाभर को भाषण देते फिरते हैं. लेकिन जब अपनी बारी आती है तो विवश हो वही करने लगते हैं जो दूसरे करते हैं और जिसे हम हृदय से गलत मानते हैं. मेरे स्कूल में वादविवाद प्रतियोगिता हो रही थी. उस में 5वीं कक्षा से ले कर 10वीं कक्षा तक की छात्राएं भाग ले रही थीं. प्रश्न उठा कि मुख्य अतिथि के रूप में किसे आमंत्रित किया जाए. मैं ने प्रधानाध्यापिका के सामने अपनी सास को बुलाने का प्रस्ताव रखा, वे सहर्ष तैयार हो गईं.

पर मैं ने अम्माजी को नहीं बताया. ठीक कार्यक्रम से एक दिन पहले ही बताया. अगर पहले बताती तो वे चलने को बिलकुल राजी न होतीं. अब अंतिम दिन तो समय न रह जाने की बात कह कर मैं जोर भी डाल सकती थी.

अम्माजी रामचरितमानस पढ़ रही थीं. मैं ने उन के पास जा कर कहा, ‘‘अम्माजी, कल आप को मेरे स्कूल चलना है, मुख्य अतिथि बन कर.’’

‘‘मुझे?’’ अम्माजी बुरी तरह चौंक पड़ीं, ‘‘मैं कैसे जाऊंगी? मैं नहीं जा सकती.’’

‘‘क्यों नहीं जा सकतीं?’’

‘‘नहीं बहू, नहीं? अभी तुम्हारे बाबूजी की बरसी भी नहीं हुई है. उस के बाद ही मैं कहीं जाने की सोच सकती हूं. उस से पहले तो बिलकुल नहीं.’’

‘‘अम्माजी, मैं आप को कहीं विवाहमुंडन आदि में तो नहीं ले जा रही. छोटीछोटी बच्चियां मंच पर आ कर कुछ बोलेंगी. जब आप उन की मधुर आवाज सुनेंगी तो आप को अच्छा लगेगा.’’

‘‘यह तो ठीक है. पर मेरी हालत तो देख. कहीं अच्छी लगूंगी ऐसे जाती हुई?’’

‘‘हालत को क्या हुआ है आप की? बिलकुल ठीक है. बच्चों के कार्यक्रम में किसी बुजुर्ग के आ जाने से कार्यक्रम की रौनक और बढ़ जाती है.’’

‘‘मुझे तो तू रहने ही दे तो अच्छा है. किसी और को बुला ले.’’

‘‘नहीं, अम्माजी, नहीं. आप को चलना ही होगा,’’ मैं ने बच्चों की तरह मचलते हुए कहा, ‘‘अब तो मैं प्रधानाध्यापिका से भी कह चुकी हूं. वे क्या सोचेंगी मेरे बारे में?’’

‘‘तुझे पहले मुझ से पूछ तो लेना चाहिए था.’’

‘‘मुझे मालूम था. मेरी अच्छी अम्माजी मेरी बात को नहीं टालेंगी. बस, इसीलिए नहीं पूछा था.’’

‘‘अच्छा बाबा, तू मानने वाली थोड़े ही है. खैर, चली चलूंगी. अब तो खुश है न?’’

‘‘हां अम्माजी, बहुत खुश हूं,’’ और आवेश में आ कर अम्माजी से लिपट गई. दूसरे दिन मैं तो सुबह ही स्कूल आ गई थी. अम्माजी को बाद में ये नियत समय पर स्कूल छोड़ गए थे. एकदम श्वेत साड़ी से लिपटी अम्माजी बड़ी अच्छी लग रही थीं.

ठीक समय पर हमारा कार्यक्रम शुरू हो गया. प्रधानाध्यापिका ने मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आज मुझे श्रीमती कस्तूरी देवी का मुख्य अतिथि के रूप में स्वागत करते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है. उन्होंनेअपने दिवंगत पति की स्मृति में स्कूल को

2 ट्रौफियां व 10 हजार रुपए प्रदान किए हैं. ट्रौफियां 15 वर्षों तक चलेंगी और वादविवाद व कविता प्रतियोगिता में सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को दी भी जाएंगी. 10 हजार रुपयों से 25-25 सौ रुपए 4 वषोें तक हिंदी में सब से अधिक अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं को दिए जाएंगे. मैं अपनी व स्कूल की ओर से आग्रह करती हूं कि श्रीमती कस्तूरीजी अपना आसन ग्रहण करें.’’

तालियों की गड़गड़ाहट से हौल गूंज उठा. मैं कनखियों से देख रही थी कि सारी बातें सुन कर अम्माजी चौंक पड़ी थीं. उन्होंने मेरी ओर देखा और चुपचाप मुख्य अतिथि के आसन पर जा बैठी थीं. मैं ने देखा, उन की आंखें छलछला आई हैं, जिन्हें धीरे से उन्होंने पोंछ लिया.

सारा कार्यक्रम बड़ा अच्छा रहा. छात्राओं ने बड़े उत्साह से भाग लिया. अंत में विजयी छात्राओं को अम्माजी के हाथों पुरस्कार बांटे गए. मैं ने देखा, पुरस्कार बांटते समय उन की आंखें फिर छलछला आई थीं. उन के चेहरे से एक अद्भुत सौम्यता टपक रही थी. मुझे उन के चेहरे से ही लग रहा था कि उन्हें यह कार्यक्रम अच्छा लगा.

अब तक तो मैं स्कूल में बहुत व्यस्त थी. लेकिन कार्यक्रम समाप्त हो जाने पर मुझे फिर से बरसी की याद आ गई.

दूसरे दिन मैं ने अम्माजी से कहा, ‘‘अम्माजी, बाबूजी की बरसी को 15 दिन रह गए हैं. मुझे बता दीजिए, क्याक्या सामान आएगा. जिस से मैं सब सामान समय रहते ही ले आऊं.’’

‘‘बहू, बरसी तो मना ली गई है.’’

‘‘बरसी मना ली गई है,’’ मैं एकदम चौंक पड़ी, ‘‘अम्माजी, आप यह क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, शीला, कल तुम्हारे स्कूल में ही तो मनाईर् गई थी. कल से मैं बराबर इस बारे में सोच रही हूं. मेरे मन में बहुत संघर्ष होता रहा है. मेरी आंखों के सामने रहरह कर 2 चित्र उभरे हैं. एक पंडितों को ठूंसठूंस कर खाते हुए, ढेर सारी चीजें ले जाते हुए. फिर भी बुराई देते हुए, झगड़ते हुए. मैं ने बहुत ढूंढ़ा पर उन में तुम्हारे बाबूजी कहीं भी न दिखे.’’

‘‘दूसरा चित्र है   उन नन्हींनन्हीं चहकती बच्चियों का, जिन के चेहरों से अमित संतोष, भोलापन टपक रहा है, जो तुम्हारे बाबूजी के नाम से दिए गए पुरस्कार पा कर और भी खिल उठी हैं, जिन के बीच जा कर तुम्हारे बाबूजी का नाम अमर हो गया है.’’

मैं ने देखा अम्माजी बहुत भावुक हो उठी हैं.

‘‘शीला, तू ने कितने रुपए खर्च किए?’’

‘‘अम्माजी, 11 हजार रुपए. 5-5 सौ रुपए की ट्रौफी और 10 हजार रुपए नकद.’’

‘‘तू ने ठीक समय पर इतने सुंदर व अर्थपूर्ण ढंग से उन की बरसी मना कर मेरी आंखें खोल दीं.’’

‘‘ओह, अम्माजी.’’ मैं हर्षातिरेक में उन से लिपट गई. तभी ये आ गए, बोले, ‘‘अच्छा, आज तो सासबहू में बड़ा प्रेमप्रदर्शन हो रहा है.’’

‘‘अच्छाजी, जैसे हम लड़ते ही रहते हैं,’’ मैं उठते हुए बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली.

ये धीरे से मेरे कान में बोले, ‘‘लगता है तुम्हें अपने मन का करने में सफलता मिल गई है.’’

‘‘हां.’’

‘‘जिद्दी तो तुम हमेशा से हो,’’ ये मुसकरा पड़े, ‘‘ऐसे ही जिद कर के तुम ने मुझे भी फंसा लिया था.’’

‘‘धत्,’’ मैं ने कहा और मेरी आंखें एक बार फिर अम्माजी के चमकते चेहरे की ओर उठ गईं.

Hindi Fictional Story

Best Hindi Story: इस्तीफा- क्या सफलता के लिए सलोनी औफर स्वीकार करेगी

Best Hindi Story: सलोनी की रिस्ट वाच पर जैसे ही नजर पड़ी, ‘उफ… मुझे आज फिर से देर हो गई. कार्यालय में कल नए बौस का आगमन हो रहा है. अत: सारे पैंडिंग काम कल जल्दी औफिस पहुंच कर अपडेट कर लूंगी. अब मुझे जल्दी घर पहुंचना चाहिए. बिटिया गुड्डी और नन्हे अवि के साथ मां परेशान हो रही होंगी. नीरज तो पता नहीं अभी घर लौटे भी हैं या नहीं,’ मन ही मन में सोचविचार करती सलोनी ने अपनी मेज पर रखा कंप्यूटर औफ किया और तेजी से कार्यालय से बाहर निकल आई. लंबेलंबे डग भरते हुए 5 मिनट में बसस्टौप पर आ पहुंची.

चूंकि लोकल ट्रेन अभी आई नहीं थी. अत: वह भी सामने प्रतीक्षारत लगी लाइन में सब से पीछे जा खड़ी हो गई. अचानक उस की नजर अपने से आगे खड़े नवयुवक पर पड़ी. वह गोरे वर्ण का लंबा, गठीला बदन, सुंदर, सुदर्शन, देखने में हंसमुख सजीला नवयुवक, अपनी गरदन घुमा कर उसे ही पहचानने का प्रयास कर रहा था. उस से नजरें मिलते ही सलोनी को भी वह सूरत कुछकुछ जानीपहचानी सी लगी.  सलोनी उस नवयुवक को देख कर पहचानने के उद्देश्य से सोचविचार में गुम थी. कि अचानक दोनों की नजरें आपस में टकराईं तो उस की ओर देख कर वह हौले से मुसकराया. युवक की मुसकान भरी प्रतिक्रिया देख कर उस ने सकपका कर नजरें दूसरी ओर घुमा लीं.

‘‘माफ कीजिए अगर मैं गलत नहीं हूं तो आप का नाम सलोनी है न?’’ युवक ने पहचानने का उपक्रम करते हुए नम्रता के साथ सलोनी से पूछ लिया.

युवक की बात सुन कर सलोनी चौंकते हुए बोली, ‘‘हां मेरा नाम सलोनी है. लेकिन आप मु   झे कैसे जानते हैं? मैं तो आप को नहीं जानती?’’

सलोनी के चेहरे पर अनजान चेहरे को पहचानने के कई रंगभाव उभरे और जल्दी ही विलुप्त हो गए.

‘‘दरअसल, हमारी मुलाकात करीब 19-20 बर्षों बाद हो रही है इसलिए आप मु   झे पहचान नहीं रही हैं.’’

‘‘अच्छा.. लेकिन वह कैसे? कौन हैं आप?’’ सलोनी ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए पूछ लिया.

‘‘लगता है कि आप ने अभी तक इस नाचीज को पहचाना नहीं. हम भूलेबिसरे गीतों

में छिपी कहानी कहीं…’’ युवक ने शायराना अंदाज में मुसकराते हुए यह बात ऐसे कही कि

न चाहते हुए भी सलोनी के चेहरे पर मुसकान खेल गई.

‘‘शायद आप को याद होगा कि कानपुर के संत विवेकानंद माध्यमिक विद्यालय में 9वीं क्लास में एक लड़का कमल आप की कक्षा में साथ में पढ़ता था. लेकिन उस के पिताजी का ट्रांसफर हो गया था, जिस के कारण उसे कानपुर शहर छोड़ कर दूसरे शहर जाना पड़ा था.’’

‘‘अरे हां… वह पढ़ाकू प्रजाति का कविकुल कमल… क्या खूबसूरत कविताएं लिखता था वह… आज भी जेहन में उस की कुछ कविताओं की यादें ताजा हैं,’’ अब जानपहचान पर अभिमत की मुहर लगाते हुए खुले अंदाज में सलोनी खिलखिला कर बोली, ‘‘उस के खूबसूरत पढ़ने वाले अंदाज को सुनने की खातिर कविता लिखवाने को कितनी लड़कियां उस के आगेपीछे चक्कर लगाती रहती थीं पर वह… पढ़ाकू… आसानी से किसी को घास नहीं डालता था.’’

‘‘हूं… बहुत खूब… सही पहचाना आप ने. हां तो मैडम सलोनीजी मैं गुलेगुलजार, खिलता आफताब, खुशमिजाज, दिले बेताब आप का वही नाचीज कमल हूं,’’ कमल ने शब्दों को शायराना अंदाज में ढाल कर अलग अंदाज में अपने परिचय से रूबरू करवाया.

किशोर वय में सलोनी पर दिलोजान से मरमिटने वाले कमल से उस का इस तरह से परिचय होगा ऐसा सलोनी ने कभी नहीं सोचा था. अत: उस के शरीर में करंट मिश्रित मीठी    झुर   झुरी सी दौड़ गई. फिलहाल तो घर पहुंचने में देरी हो जाने की चिंता में घुलते हुए फिर जल्द ही मिलने का वादा करते हुए दोनों ने अपनेअपने घर की राह पकड़ी. अचानक हुए मिलन की इस बेतकल्लुफ आपाधापी में वे दोनों ही एकदूसरे का फोन नंबर लेना भूल गए.

अगले दिन सलोनी कार्यालय पहुंच कर कंप्यूटर औन कर के कार्य सूची को

अपडेट कर रही थी कि तभी चपरासी ने बताया कि बौस कैबिन में आप को बुला रहे हैं.

सलोनी ने फाइल हाथ में पकड़े हुए बौस के कैबिन के पास जा कर पूछा, ‘‘मे आई कम इन सर?’’

‘‘यस कम इन.’’

सलोनी को आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. लेकिन बौस की कुरसी की पीठ उस की ओर होने के कारण वह बौस का चेहरा नहीं देख सकी. तभी यकायक बिजली की तेजी से बौस ने अपनी कुरसी उस के चेहरे की ओर घुमाई तो अपने सामने मुसकराते हुए खूबसूरत कमल का सुदर्शन चेहरा देख कर वह खुशी से चहक उठी. अचानक तेजी से बदलते घटनाक्रम के कारण खुशी और सरप्राइज दोनों का एहसास उसे एकसाथ हुआ. अत: हकलाहट में उस के मुख से बोल नहीं निकल सके, ‘‘अरे… कमल… सर… आप… बौस…’’

‘‘जी… सलोनीजी… तो कैसा लगा मेरा सरप्राइज डियर…’’ कहते हुए कमल के सुंदर

मुख पर करीने से तराशी हुई बारीक मूंछों की पंक्ति के नीचे पतले सुर्ख होंठों पर प्यारी सी मुसकान खेलने लगी.सलोनी के मुखड़े पर चमकती धूप सी स्वर्णिम मुसकान खिली और जल्दी ही विलीन हो गई. फिलहाल दोनों ने

काम करने को तवज्जो देते हुए कार्य की बारीकियों पर विचारों का आदानप्रदान किया, साथ ही रविवार को दोपहर में लंच साथ करने और मिलने की प्लानिंग भी कर ली.

घर और कार्यालय दोनों स्थानों पर काम के बोझ तले दबी सलोनी के चिड़चिड़ाते मुखड़े पर अब चमकती मुसकान खेलने लगी थी. इसी कारण घर का वातावरण बहुत खुशनुमा रहने लगा था. सलोनी की सासूमां और नीरज ने भी घर का वातावरण खुशनुमा देख कर सलोनी को थोड़ीबहुत देरसवेर से घर पहुंचने पर टोकाटाकी करना या कुछ कहनासुनना छोड़ दिया.

कमल और सलोनी की मुलाकातें खूब रंग ला रही थीं. खूबसूरत लावण्यमयी सलोनी जब हैंडसम कमल के साथ होती तो उत्साह, उमंग से लबरेज उस की आंखों से खुशियों की फुल   झडि़यां छूटने लगतीं. दोपहर का भोजन अकसर वे साथ ही करते. मस्तीमजाक के बीच रूठना, मनाना और मनपसंद उपहारों का आदानप्रदान भी होने लगा था. देखतेदेखते सालभर बादलों की मानिंद पंख लगा कर उड़ गया.

औफिस में सहकर्मी साथियों के बीच दोनों के नाम की चर्चा अब जोर पकड़ने लगी थी. सलोनी को साथी सहकर्मी घटिया मानसिकता की महिला समझने लगे. 2 बच्चों की मां सलोनी अपने सुखी विवाहित जीवन में खुद आग लगा रही थी. महिला साथी सहकर्मी कनखियों से उसे आता हुआ देख कर एक व्यंग्य भरी मुसकराहट जब उस की ओर फेंकतीं तो सलोनी मन ही मन जलभुन जाती.

साथी सहकर्मियों के द्विअर्थी संवादों से लिपटे जुमले उस के कानों में पिघले शीशे की मानिंद गूंजने लगते. ये सब सहकर्मी साथी बौस के नाराज हो जाने के भय से सलोनी से कुछ नहीं कहते थे. लेकिन उन लोगों की घटिया सोच की दबीदबी मुसकराहट और बातों को ध्यान से सुन कर सलोनी बहुत कुछ सोचनेसमझने लगी थी.

अत: कभीकभी उस का मन नीरज और कमल के बीच डांवांडोल हो जाता. उस की

आंखों के सामने उन दोनों के चेहरे आपस में गड्डमड्ड हो जाते. अंतर्द्वंद्व से बाहर निकलने के प्रयास में जब वे उन दोनों के मध्य तुलना करती तो उसे नीरज गृहस्थी का बोझ उठाता एक सांवले रंग का सामान्य कदकाठी का पुरुष नजर आता जो पति के दंभ से भरा हुआ, उबाऊ और अंहकारी पुरुष लगता जिस ने मर्दानगी के रोब में उस के मन की गहराइयों के भीतर धड़कते हुए दिल की खुशियों की कभी परवाह नहीं की. उसे अपने काम और बस काम से प्यार था. उसे स्त्री के मन से अधिक तन के साथ शगल करने की जरूरत थी.

वहीं कमल उस के मन में दबीछिपी अनेक सतहों को पार करता हुआ अब उस के दिल का करार बन गया था. स्वच्छंद प्रकृति का भंवरे सरीखा कमल गुनगुन करता उस के आसपास मंडराता रहता. वह गुलाब के फूल सरीखा हमेशा तरोताजा और खिलाखिला लगता था. अपनी सुंदरता की सारी महक उस की एक मुसकान की खातिर लुटाना चाहता था. उस की मनमोहक बातें सुन कर उस का मन छलकने लगता. उस के रूपसौंदर्य में गढ़ कर ऐसी शायरी सुनाता कि सलोनी का मन निहाल हो कर निसार हो उठता.

वह भी उस के सीने से लिपट कर हंसनारोना चाहती थी. कमल उस की शादीशुदा जिंदगी के बारे में सब जानता था. अत: उस ने दोनों के बीच की मर्यादा रेखा को पार करने के बारे में कभी कोई चर्चा नहीं की थी. वह तो सलोनी के जीवन के सुखदुख भरे पलों की उल   झनों को सुल   झाते हुए अपनी मनमोहक, लच्छेदार बातों से उसे कुछ पलों के लिए हर्ष और उल्लास से भर, परी लोक जैसे सुखद कल्पना लोक में पहुंचा देता था.

सलोनी को पूरी तरह अपने प्रेम के जाल में फंसा कर अब कमल उस से शारीरिक नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास करने लगा. आज उस ने सलोनी के साथ शहर से दूर 3 दिन का टूर का प्रस्ताव रखा था. कमल के टूर के पीछे छिपी शारीरिक सुख प्रस्ताव की भावना जान कर सलोनी जैसे सोते से जागी. आज कमल के दोहरे व्यक्तित्व से उस का सामना हुआ. कमल के सुखद मुसकान भरे सुंदर चेहरे के पीछे छिपी कुत्सित मानसिकता से आज वह बहुत असहज हो उठी थी.

तो क्या कमल की सोच भी अन्य मर्दों जैसी है? कमल को भी उस के साथ से उत्पन्न मानसिक सुख नहीं चाहिए वरन उसे भी उस के शारीरिक संबंध का इस्तेमाल चाहिए? इस

दुनिया में औरत और मर्द का रिश्ता केवल शरीर तक ही सीमित क्यों होता है? एक अच्छा साथी पुरुष महिला मित्र के लिए शरीर की जरूरतों से ऊपर उठ कर, मन की भावनाओं के अनुरूप सामंजस्य क्यों नहीं रख सकता? मन और आत्मा से निसार जब एक स्त्री सच्चे आत्मिक रिश्ते निभाने के लिए समर्पित होती है तो खुदगर्ज मर्द शरीर की भाषा से ऊपर उठ कर आत्मिक भाषा क्यों नहीं सम   झते?

सोचतेसोचते उस का दिमाग सुन्न सा होने लगा. अब इस रिश्ते को बरकरार रखने और आगे बढ़ने से अन्य नजदीकी परिस्थितियों को भी स्वीकार करना पडेगा और शायद तब तक मेरे लिए बहुत देर हो चुकी होगी.

घर पहुंच कर काम निबटाते हुए आज सलोनी का दिलदिमाग अपने नन्हेमुन्ने प्यारे बच्चों के साथ लाड़मनुहार कर के खाना खिलाने से अधिक कमल के हावभाव की सोचों में गुम था. यदि नीरज को सब पता चल गया तो… 2 नावों पर सवारी करने वाले व्यक्ति कभी तैर कर पार नहीं होते वरन डूबना ही उन की नियति होती है. सलोनी तू भी तो 2 नावों पर सवार है. आखिर सचाई से वह कब तक मुंह छिपा सकती है?

मन में निरंतर चलते विचारक्रम से व्यथित बेकल हो कर वह पसीनापसीना हो गई और बाहर बालकनी में निकल कर गहरी लंबी सांसें लेने लगी. तब भी उसे भीतर दिल के पास घुटन महसूस हो रही थी.

कहीं न कहीं उस के संस्कार, उस की सोच फिसलन भरी डगर पर बढ़ते कदमों को फिसलने से रोक रहे थे. अब वैवाहिक जीवन की खंडित मर्यादा के भय से उस का अंतर्मन उसे धिक्कारने लगा था. गृहस्थी की सुखी और शांत नींव का आधार नारी का मर्यादित आचरण माना जाता है. जरा सी ठेस लगते ही बेशकीमती हीरा फिर शोकेस में सजाने के काबिल नहीं रहता. गृहस्थी में नारी या पुरुष दोनों की जीवनचर्या सीमा रेखा के इर्दगिर्द घूमती है. जिम्मेदारियों की अनदेखी कर के, राह से भटकने पर, सीमा रेखा पार करने वालों की जिंदगी में आने वाले भूचाल को फिर कोई नहीं रोक सकता. अत: जो कुछ करना है अभी करना है.

पूरी रात सलोनी का मन उसे रहरह कर कचोटता रहा. सलोनी को अनमनी देख कर नीरज ने उस से परेशान होने का कारण जानना चाहा तो वह फीकी सी हंसी हंस कर बात टाल गई और सोने का उपक्रम करने लगी. लेकिन नींद तो आंखों से कोसों दूर थी. जीवन के उतारचढ़ाव सोचनेविचारने के लिए मजबूर सलोनी खुद से सवालजबाव करने लगी कि…

यह जिंदगी भी हमारे साथ कितना अन्याय करती है- हम हाड़मांस के मानवीय पुतलों के साथ कैसेकैसे भावनात्मक अनोखे खेल खेलती है. काश कमल अब से 10 साल पहले मु   झे मिला होता तो आज नीरज के स्थान पर कमल मेरी जिंदगी में पति के रूप में होता और अब तक जब वह नहीं मिला था तो मैं अपनी जिंदगी सुख से जी रही थी न, फिर इस मोड़ पर अब मु   झे कमल से क्यों मिलाया?

गहरी सोच में गुम होने पर उस के भीतर से आवाजें आने लगतीं कि सलोनी तू कितनी खुदगर्ज है. अपने क्षणिक सुख  के लिए तू कितनी सारी सुखी जिंदगियां दांव पर लगा रही है. मातापिता के नाम पर दाग लगा कर सलोनी क्या तू सुख से रह सकेगी?

कमल के साथ चले जाने के बाद यदि नीरज ने तु   झे अवि और गुड्डी से मिलने का अधिकार नहीं दिया तो क्या तू ममता का गला घोंट कर जी सकेगी? नौकरी पर चले जाने के बाद सासूमां कितने प्यारदुलार से अवि और गुड्डी का पालनपोषण अपनी देखरेख में करती हैं. क्या तू उन की अच्छाइयों को झुठला सकेगी?

अब… बस कर… यही रुक जा सलोनी, चल आज रोक ले अपने बढ़ते कदमों को.

अपने सुखीशांत वैवाहिक जीवन को खुद अपने हाथों से तबाह मत कर. नीरज के बाहरी व्यक्तित्व और काम के बो   झ तले दबे जिम्मेदार पिता के व्यवहार को नकारने के बजाय उस के साथ बिताए गए 10 सालों की अच्छाइयों को याद रख. अपने बच्चों का भविष्य सुखद बनाने के लिए ही तो तुम दोनों दिनरात दोहरी मेहनत करते हो. मानसिक तनाव दूर करने के लिए नीरज को अपनी पत्नी का साथ चाहिए तो इस में भला उस की क्या गलती है? इस से पहले तो तुम ने कभी ऐसा नहीं सोचा था. कमल के बजाय नीरज की जिम्मेदारियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से सामने रख कर देख.  तब सारी तसवीर तेरे सामने स्पष्ट होगी और तू सही निर्णय लेने में स्वयं सक्षम होगी. धीरेधीरे आंखों के सामने बीते समय के चित्र उभरने लगे…

जब तू बुखार में बेसुध पड़ी थी तब नीरज ने कैसे रातरात भर जागते रह कर तेरे माथे पर ठंडी पट्टी रख कर तुझे सुखसुकून पहुंचाया था. नीरज ने कितनी बार अपने औफिस से छुट्टी ले कर तेरे ठीक हो जाने तक सारे घर के कामकाज कितनी सुगमता से संभाले. देर हो जाने के कारण कितनी बार तेरे साथ मिल कर रसोईघर में बरतन धुलवाए.

ठंडे दिमाग से एक तरफा निर्णय लेने वाले सोचविचार करने पर कमल के मोहजाल में फंसी सलोनी की आंखों के सामने अब नीरज की सकारात्मक तसवीर स्पष्ट होने लगी थी. मन ही

मन जीवन में आने वाले पलों का निर्णय ले कर आज उस का मन असीम शांति का अनुभव कर रहा था. सुबहसवेरे सुखद भोर का एहसास करते हुए सलोनी मीठी सी अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई. शीघ्रता से नहा धो कर उस ने बच्चों और पति का मनपसंद नाश्ता तैयार किया. दोनों बच्चों को उठा कर लाड़दुलार से दूध पिलाया. नन्हा अवि मां के आंचल की गरमाहट पा कर जल्द ही उनींदा हो गया. उस ने उसे मांजी के पास लिटाया और तत्पश्चात मांजी और नीरज को नाश्ता दे कर 2-4 सामान्य बातें करने के बाद वह औफिस के लिए निकल पड़ी.

औफिस में पहुंच कर सलोनी कई दिनों से पैंडिंग पड़ा काम निबटाने लगी. समय के पाबंद कमल के कैबिन में पहुंच जाने के बाद, हाथों में फाइल थामे दमसाधे वह उस के पीछेपीछे बौस के कैबिन में पहुंच गई.

सलोनी को सामने खड़े देख कर कमल ने मुसकराते हुए उस से कल के प्रस्ताव पर विचारविमर्श करने के विषय में पूछा. तुरंत ही फाइल खोल कर सलोनी ने करीने से रखा एक लिफाफा कमल के सामने रखते हुए कहा, ‘‘कमल यह मेरा इस्तीफा है… प्लीज इसे स्वीकार करो… और मु   झे यह नौकरी छोड़ने की इजाजत दे दो.’’

‘‘सलोनी… क्या है ये सब?’’ हैरत से कमल ने पूछा. अचानक अप्रत्याशित स्थिति का सामना करते हुए, हकबकाए कमल का मुंह खुला का खुला रह गया.

ठंडे ठहरे हुए लफ्जों में सलोनी आगे बोली, ‘‘क्या… कुछ नहीं… कमल… यह मेरा इस्तीफा है. मैं इस नौकरी से रिजाइन कर रही हूं…’’

‘‘अगर तुम्हें मेरा प्रस्ताव इतना ही बुरा लग रहा था तो कल ही साफ इंकार कर देती न… मैं ने तुम से जबरदस्ती तो नहीं की थी,’’ कमल के मन की नाराजगी जबां से जाहिर होने लगी. अब कमल का मूड उखड़ने लगा था, ‘‘इस तरह से नौकरी से रिजाइन करने के बारे में तुम सोच भी कैसे सकती हो? अपने घर की आर्थिक स्थिति तुम अच्छी तरह से सम   झती हो.’’

‘‘हां… अब तक तो नहीं सम   झी थी, लेकिन अब बहुत अच्छी तरह से सम   झने लगी हूं और वैसे भी कमल… जिस रास्ते मु   झे जाना ही नहीं तो उस का पता पूछने से हासिल भी क्या होगा. अब यह पक्का तय है कि हम दोनों के रास्ते अलगअलग हैं. हम लोग अब आगे साथ काम नहीं कर सकते.’’

सलोनी का बदला रुख देख कर कमल बात बदलते हुए बोला, ‘‘यार सलोनी, तुम जानती हो न कि मैं तुम्हारी पदोन्नति कर के तुम्हें मैनेजिंग डाइरैक्टर की सीट पर बैठा सकता हूं… सलोनी… थोड़ा सा दिमाग पर जोर डालो और सम   झो कि मैं तुम्हें साथ में क्या

औफर कर रहा हूं… जिंदगी में इस तरह कोरी भावुकता से तरक्की नहीं मिला करती… यहां

हम सभी को कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है… इसलिए यदि सुखद भविष्य के लिए तरक्की करनी है, तो कुछ सम   झौते भी करने पड़ेंगे न…’’

‘‘कमल मुझे ऐसी तरक्की नहीं चाहिए जिस की आड़ में मैं खुद की नजरों में गिर जाऊं. ऐसे लिजलिजे समझौते मुझे कदापि स्वीकार नहीं,’’ कहते हुए सलोनी दृढ़ निश्चय के साथ कमल के कैबिन से बाहर निकल आई और मेज से अपना बैग उठा कर सुरक्षित अपने सुखद नीड़ की ओर चल पड़ी.

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Diwali 2025: कोई गम है, तो त्यौहार क्यों न मनाएं?

Diwali 2025: दिवाली या कोई भी त्यौहार खुशियां लाता है. लेकिन कई बार जिनके यहां कोई डेथ हो गई हैं, कोई बीमार है या अन्य कोई भी मिस हैपनिंग हो, तो लोग सबसे पहले त्यौहार मानाने से खुद को रोक देते हैं और अपने घर को बेवजह ही एक अनजाने से सूनेपन से भर देते हैं. जहां त्यौहार पर हर घर में  ख़ुशी का माहौल होता है वहीँ कुछ लोग अपने घर लाइट नहीं नहीं जलाते। वे बच्चो को भी बाहर नहीं जाने देते . खुद भी एन्जॉय नहीं करते और घर के बाकि मेंबर को भी एन्जॉय नहीं करने देते.

ये सही नहीं है. माना आप दुःख में हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप अपनी और बाकि सभी लोगों की ज़िंदगी रोक दें. अगर कोई गम हो गया हो तो उसका सामना करें लेकिन आती हुए खुशियों को रोक कर नहीं बल्कि ज़िंदगी की तरफ आगे बढ़कर.

कोई अपना जेल में हैं, तो कैसे मनाये दिवाली?

अगर त्यौहार के समय परिवार में कोई कोई गिरफ्तार हो गया हो, उसे सच्चे या झूठे किसी भी केस में पुलिस पकड़ कर ले गए हैं तो ऐसे में आप इन्तजार करने के आलावा कुछ नहीं कर सकतें। अगर आपकी भाभी अच्छी नहीं है उसने आपके भाई को झगडे में अरेस्ट करा दिया तो इसकी सजा आप अपने पुरे ससुराल को क्यूँ दे रही हैं. माना आपको दुःख हैं ये सही है. लेकिन आप इसके लिए बाकि लोगों की ज़िंदगी नहीं रोक सकती. ससुराल में सब दिवाली मानना चाहते हैं पर आपका रोना धोना देखकर उनकी हिम्मत नहीं हो रही कुछ करने की.

ये गलत है. अगर आपका पूरा परिवार आपके दुःख में आपके साथ खड़ा है तो आपका भी फर्ज है आप उनकी खुशियों में कुछ समय के लिए अपना गम भूलकर शामिल हों. इससे आप भी रिलैक्स होंगी और आगे क्या कैसे करना है? कौन सा वकील करना है? कैसे सब संभालना है ? ये सब अच्छे से सोच पाएंगी. ख़ुशी मना लेने के बाद सब लोग आपका साथ जरूर देंगे वार्ना उन्हें लगेगा बेकार की किसी की मुसीबत आप लटकाये बैठी हैं. इसी तरह अगर आपके पति या देवर भी गिरफ्तार हो गए हैं तो सभी को समझाएं कि शांत मन से अपनी कोशिशों के साथ त्यौहार भी मानते हैं तो क्या पता शांत मन से कोई रास्ता ही सूझ जाएँ। इससे घर का माहौल भी सही होगा.

बच्चा बीमार है ऐसे में हम क्या करे?

अगर दिवाली से ठीक पहले या किसी भी त्योहार पर बच्चा बीमार हो जाये तो किसी भी माँ बाप की जान निकल जाती है. वो चाहकर  भी त्यौहार की ख़ुशी नहीं मन पाते. घर में मौजूद दूसरा बच्चा पटाखे लाने की जिद करता है तो आप भाई के बीमार होने का एक्सक्यूज़ उसे देते हैं जिसे उसका बाल मन स्वीकार नहीं कर पता.

इस तरह एक बच्चे के चलते दूसरे के साथ भी आप नाइंसाफी कर जाते हैं. माना एक बच्चा बीमार है तो दूसरे को ख़ुशी मानाने से क्यूँ रोकना? क्या इस तरह बीमारी का मातम मानाने से बच्चा ठीक हो जायेगा? नहीं ना, तो फिर उसे डॉक्टर को देखायें बीमारी गंभीर है तो भी उसे ठीक होने में टाइम लगेगा. डॉक्टर के इलाज को फॉलो करें. लेकिन इसके चलते पुरे घर की ज़िंदगी ना रोक दें.

हो सकता है आपके देवर या ननद का कोई प्रोग्राम हो त्यौहार को लेकर. ऐसे में उन्हें जाने से ना रोके. उनको भी बीमारी का दुःख है दिल से हैं और इसके लिए उन्हें त्यौहार ना मानाने का प्रूफ देने की भी जरुरत नहीं है.

इसके विपरीत अच्छे से हर साल की तरह त्यौहार मनाये. डॉक्टर भी बोलते हैं बीमार के आसपास का माहौल खुशियों भरा हो तो वो आधी बीमारी से जंग तो वैसे ही जीत लेता है. उसके आसपास सब खुशियों का माहौल होगा तो वह भी बेहतर महसूस करेगा. इसलिए बेवजह घर में मातम का माहौल न बनाकर उसमे खुशियों की पाजिटिविटी भरें।

बेटी का तलाक हुआ है क्या अच्छा लगेगा त्यौहार मानना?

अगर बेटी ससुराल में दुखी थी और आप उसे वापस ले आएं और तलाक दिलवा दिया तो यह तो अच्छी बात है. आपने बेटी को मरने के लिए वहां नहीं छोड़ दिया? उसके आत्महत्या करने का इंतज़ार नहीं किया? दहेज़ के लिए उसे जला दिया जाये ये इन्तजार नहीं किया? ये बात भी थी अगर उसकी अपने पति से नहीं बन रही थी रोज रोज के झगडे थे तो भी उसे पहले ही ऐसे बेमानी रिश्ते से छुटकारा दिला दिया ये तो अच्छी बात है. आप तारीफ़ के काबिल हैं. लेकिन अब घर में मग छिपकर क्यूँ बैठना.

आपने कुछ गलत नहीं किया है तो फिर समाज के लोग आपके त्यौहार मानाने को बुरा समझेंगे या अच्छा इसकी चिंता क्यूँ करनी? लोगों का काम है कहना कुछ तो लोग कहेंगे. इस थियोरी को समझें और अपने घर से मतलब रखें। इतना सब कुछ बोल्डली किया है तो बेटी को अब आगे बढ़ने में मदद करें. उसे बताएं खुशिया उसका इंतज़ार कर रही हैं. पहले की तरह हंसी ख़ुशी उसके साथ त्यौहार मनाये। उसे अहसास दिलाएं कि अब भी कुछ नहीं बदला है ये उसका घर था है और रहेगा. इसके लिए त्यौहार से अच्छा और क्या मौका होगा.

अगर कोई हॉस्पिटल में है, तो हम कैसे मनाएं दिवाली ?

रत्न जी ने अपनी प्रॉब्लम शेयर करते हुए बताया कि पिछले साल मेरे पति हॉस्पिटल में एडमिट थे और कैंसर से जंग लड़ रहें थे. अब भला ऐसे में हम कैसे त्यौहार मानते. हमने आने घर में एक दिया भी नहीं जलाया. हालाँकि अब मेरे पति ठीक हैं और इस साल हम दिवाली मनाएंगे.

इस तरह की समस्या से कई लोग जूझते हैं. इस बार भी किसी न किसी घर में कोई न कोई बीमार होगा. लेकिन आप त्यौहार पर अपना घर सूना कर दें ये सही नहीं है. अगर कोई दुःख है भी, कोई बीमार भी है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि बाकि सब भी बीमार है. एक ही बीमार है न, हॉस्लिटल में icu में है तो भी क्या हो गया. बाकि सब जिंदगी वैसे ही जिए जैसे की नार्मल जीते हैं.

दिवाली है तो पटाखें भी जलाएं, दिए जलाएं, खाना खाएं और उसके बाद हॉस्पिटल जाएँ। वैसे भी हॉस्पिटल में एक ही जाने की जरुरत है 18 आदमी तो वहां नहीं जा सकते, बाहर मेला लगाएं ये जरुरी तो नहीं है. मरीज आपको त्यौहार पर खुश देखकर वैसे ही ठीक होने की सोचने लगेगा. उसमे पाजिटिविटी आएगी. आपको निराश देखेगा तो सोचेगा अब मैं नहीं बचने वाला क्यूँ इन सब पर बोझ बन रहा हूँ मैं.

अभी 1 महीना पहले ही ससुर की डेथ हुई पड़ौसी भी क्या कहेंगे?

अगर परिवार में कोई भी मिसहैपनिंग हो गई है जैसे अभी कुछ ही समय पहले घर में किसी की डेथ हो गए हैं तो पुरे साल कोई त्यौहार नहीं मनाएंगी ये पंडितों का दिया हुआ बेकार का ज्ञान हैं. मरने वाले के साथ मारा नहीं जा सकता और वैसे भी ये बाते अब बहुत पुरानी  हो चुकी हैं. ज़िंदगी किसी के लिए नहीं रूकती. आपने अपने काम पर जाना नहीं छोड़ा, घर के काम नहीं छोड़ें, बच्चों का स्कूल भी ऐसी ही चल रहा है फिर खुशियों पर ही रोक क्यूँ लगाना?

बस इस वजह से कि पहले से ये रीत चली आ रही है कि साल भर कोई त्यौहार नहीं मनाएंगे. ताकि इन त्योहारों की आन खोलने के लिए पंडितों को बुलाया जाएँ और मोटी  रकम दक्षिणा के रूप में दी जाये. ऐसा करके बस पंडितों को फायदा है आपको नहीं. इसलिए उनके हाथों की कठपुतली ना बने. मरने वाले के साथ मारा तो नहीं जाता है न. ये गम भी अपने मन का होता है जिसे दिल में रखकर आगे बढ़ा ही जाता है, तो फिर त्यौहार मानाने पर ही रोक क्यूँ लगाना? लोग क्या कहेंगी ये सोचना छोड़कर अपने मन की करें लोग सिर्फ तब तक कहेंगे जब तक आप उनकी सुन रहें हैं.

आप ज्यादा सोचते हैं आजकल किसी के पास इतना टाइम नहीं हैं कि आपकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है इस पर धयान दें और अगर धयान दे भी रहा है और आपको बाते सुनाएगा तो वो आपका वेलविशर बिलकुल नहीं हो सकता फिर ऐसे में उसकी बातों से क्या डरना. आप वही करें जो आपके और आपके परिवार को खुशियां दें उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें.

Diwali 2025

Festival Decoration: कैन्डल लाइट की सजावट से घर को बनाएं कुछ खास

Festival Decoration: त्योहारों में कैन्डल लाइट की सजावट एक क्लासिक लुक देती है, लेकिन इसके लिए कई रचनात्मक तरीके को अपनाना पड़ता हैं, ताकि आपका घर बाकी किसी से भी अलग और अनोखा दिखे. त्योहारों में पारंपरिक दीयों के साथ घर को सजाना आम बात रही है, लेकिन आज के यूथ इसमें अपनी कलात्मक छवि को बखूबी डालना पसंद कर रहे है और कई प्रकार के कलाकृति से घर को सुंदर बनाते है.

इसके लिए आजकल बाजारों और औनलाइन में बहुरंगी मोमबत्तियाँ मिलती है, इन मोमबत्तियों को कलात्मकता के साथ एक सुंदर रूप दिया जा सकता हैं, जो सबके लिए आकर्षक होता है. इन मोमबत्तियों को लालटेन या कांच के जार में सजाया जा सकता है, जिसमें आप मोमबत्तियों को रंगीन कागज, सेक्विन, या मोतियों से सजा सकते हैं, या फिर उन्हें फूलों की पंखुड़ियों या रंगोली के साथ मिलाकर एक आकर्षक सजावट बना सकते हैं.

इसके अलावा त्योहारों में कैंडल लाइट सजावट के लिए, आप विभिन्न प्रकार की मोमबत्तियों, मोमबत्ती के स्टैन्डस, अन्य सजावटी तत्वों का उपयोग कर सकते हैं. मोमबत्तियाँ भी कई प्रकार की बाजार में आज उपलब्ध है, मसलन साधारण मोमबत्तियाँ, रंगीन मोमबत्तियां, सुगंधित मोमबत्तियां, फ्लोटिंग मोमबत्तियां आदि कई है. इसके अतिरिक्त आप मोमबत्ती होल्डर्स, लालटेन, और अन्य सजावटी तत्वों का उपयोग करके अपनी सजावट को और भी आकर्षक बना सकते हैं.

आइए जाने मोमबतियाँ और उनके प्रकार

बोटानिकल कैन्डल्स

ये कैन्डल्स फ्रेश फूलों की सुगंध का एहसास कराती है, इन्हे लग्जरी कैन्डल्स भी कह सकते है, फेस्टिव सीजन में इन मोमबत्तियों को लगाने से स्प्रिंग सीजन का एहसास होता है, जिसे लोग काफी पसंद करते है.

कप केक कैन्डल्स

ये किसी भी त्योहार में डाइनिंग स्पेस या एंट्री वाले स्थान पर लगाना उचित होता है, क्योंकि इसकी मीठी खुशबू पूरे माहौल को तरोताजा बनाती है. वेनीला कप केक कैन्डल्स को आजकल अधिकतर लोग पसंद करने लगे है.

एसेंस वाले कैन्डल्स

फेस्टिव मूड को देखते हुए इसे हर साल नए – नए लुभावने आकार और सुगंध में बनाया जाता है, जिनमें वेनिला, लैवेंडर, साइट्रस, वुडी (जैसे देवदार या चंदन) और पुष्प (जैसे गुलाब या चमेली) शामिल होता है. कुछ लोग मिश्रणों को भी पसंद करते हैं, जैसे वेनिला और लैवेंडर या पुदीना और नीलगिरी. इसके सुंदर डिजाइन और मंद – मंद रोशनी, फेस्टिव स्पिरिट को काफी हद तक बढ़ा देती है. इसलिए इसकी डिमान्ड मार्केट में अधिक है.

मोनोग्राम कैन्डल्स

मोनोग्राम कैन्डल्स में पर्सनल टच शामिल होता है, क्योंकि इसपर व्यक्ति विशेष के नाम का पहला अक्षर लिखा होता है, इसे किसी को स्पेशल फ़ील करवाने के लिए लगाया जाता है. इसकी एलिगेनट डिजाइन और वॉर्म ग्लो सबको आकर्षित करती है.

फ्रूट कैन्डल्स

फ्रूट के सेन्ट से भरे हुए ये कलरफुल कैन्डल्स किसी भी त्योहार में खास अनुभव कराती है. ये कैन्डल्स फेस्टिवल के आनंद को रिफ्लेक्ट करती है. डाइनिंग टेबल और किचन एरिया में इसे सजाने पर प्रोसपीरिटी, सेलिब्रेशन और  ग्रैटिट्यूड का एहसास कराती है. एपल और पाइन एपल मेटल फ्रूट कैन्डल इन दिनों यूथ में काफी पोपुलर है.

ये कैन्डल्स किसी भी माहौल को सुगंधित बनाकर उस स्थान के परिवेश को बदल सकते है, लेकिन उसकी सजावट सही तरीके से करना आवश्यक होता है, जिससे उसकी खूबसूरती चारों ओर फैले. यहाँ हम आपको कैन्डल लाइट से सजावट के कई तरीके बता रहे है, जिससे आपका घर सबसे अलग और आकर्षक लगे.

पारंपरिक दीयों के साथ

दीयों और मोमबत्तियों को मिलाकर एक पारंपरिक और आकर्षक सजावट बनाई जा सकती है, इसमें दीयों को खिड़कियों के किनारे, छत पर या घर के प्रवेश द्वार पर सजाया जा सकता है.

लालटेन या कांच के जार में

मोमबत्तियों को लालटेन या कांच के जार में रखकर एक सुंदर और आकर्षक सजावट बनाई जा सकती है. इन लालटेन या जार को बालकनी या बाहरी जगहों पर भी सजा सकते हैं.

सजावटी मोमबत्तियाँ

रंगीन मोमबत्तियों, सुगंधित मोमबत्तियों, या विशेष आकार की मोमबत्तियों का उपयोग करके भी अपनी सजावट को आकर्षक बनाया जा सकता है.

मोमबत्तियों को सजाना

मोमबत्तियों को रंगीन कागज, सेक्विन, मोतियों या रत्नों से सजाया जा सकता है, जो दिखने में आकर्षक लगता है, ये मोमबत्तियाँ बाजार में आसानी से मिल जाती है.

फूलों और रंगोली के साथ

मोमबत्तियों को फूलों की पंखुड़ियों या रंगोली के साथ मिलाकर एक आकर्षक सजावट बनाई जा सकती है.

खुद बना सकते है मोमबत्ती होल्डर

अगर आपके पास थोड़ा समय है, तो मोमबत्ती होल्डर बनाकर भी अपनी सजावट को व्यक्तिगत बना सकते हैं.

कैंडल लाइट डिनर

त्योहारों में मोमबत्तियों का उपयोग करके एक रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर का आयोजन भी किया जा सकता है.

ध्यान रखने योग्य बातें,

मोमबत्तियों की सजावट जितनी आकर्षक होती है, उतना ही उसे सजाते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है, ताकि किसी प्रकार की दुर्घटना से आप बच सकें, मसलन

  • मोमबत्तियों को ज्वलनशील पदार्थों से दूर रखें,
  • बच्चों और पालतू जानवरों से मोमबत्तियों को दूर रखें,
  • कभी भी जलती हुई मोमबत्ती को अकेला न छोड़ें
  • कमरों को सजाने से पहले आसपास के पर्दे और कपड़ों पर ध्यान दें, ताकि वे मोमबत्ती की लौ से दूर रहें.

इस प्रकार कैन्डल्स का प्रयोग आजकल सजावट में काफी होने लगा है, क्योंकि इसके आकर्षक डिजाइन, रंग और मनमोहक सुगंध हर किसी को खरीदने और सजाने के लिए प्रेरित करता है और ये सही है कि त्योहारों में आज किसी के पास घंटों बैठकर दीयों को तैयार करना संभव नहीं होता, ऐसे में इन कैन्डल्स का प्रयोग कर अपने घरों को सुंदर तरीके से सजाया जा सकता है.

Festival Decoration

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