Dharmendra Fitness: 89 वर्ष की उम्र में कैसे रहते हैं धर्मेंद्र फिट एंड फाइन

Dharmendra Fitness: बॉलीवुड के सबसे हैंडसम हीरो कहलाने वाले धर्मेंद्र अपने जमाने में अपनी खूबसूरती और हैंडसम लुक के लिए उतने ही प्रसिद्ध थे , जितनी की उस जमाने की हीरोइने अपनी खूबसूरती को लेकर चर्चा में हुआ करती थी. उस दौरान धर्मेंद्र वर्जिश करते थे, घंटों एक्सरसाइज करते थे ,अच्छा खाते पीते थे , डाइटिंग वगैरह तो बिल्कुल नहीं करते थे फिर भी फिट एंड फाइन रहते थे ,
लेकिन आज भी 89 वर्ष की उम्र में भी धर्मेंद्र ना सिर्फ पूरी तरह स्वस्थ है , बल्कि इस उम्र में धरम जी स्विमिंग करते हैं , और अपने फार्म हाउस में बागबानी भी करते हैं . भले ही आज उम्र मे वह 89 हो गए है लेकिन दिल से आज भी वो जवान है . . हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी फिटनेस पर बात करते हुए कहा लोग मुझे बूढ़ा समझते हैं ,लेकिन आज भी मैं पूरी तरह फिट हूं , और अपना सारा काम खुद कर सकता हूं. धरम जी के अनुसार इस उम्र में भी वह पूरी तरह अनुशासित है . वह अपना ज्यादा समय फार्म हाउस में गुजारते हैं, वहां पर वह नियमित तौर पर योग करते हैं . उनके अनुसार योग से शारीरिक तौर पर ही नहीं मानसिक तौर पर भी फिट रहता हूं , धरम जी के अनुसार नियमित तौर पर योगा करने की वजह से वह कई सारी बीमारियों से बचे हुए हैं , उनके अनुसार क्योंकि मैं पंजाबी आदमी हूं इसलिए खाने पीने में ज्यादा परहेज नहीं कर सकता लेकिन योग के जरिए मैं अपने आप को फिट रख लेता हूं. मेरा तो मानना है अगर आपको लंबे समय तक स्वस्थ जीवन गुजारना है तो योगासन को नियमित रूप से अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहिए. जो कि कई बीमारियों का इलाज है, कई तकलीफों को खत्म करता है , अगर आपकी सेहत अच्छी रही तो आप ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा पाएंगे और अच्छी जिंदगी जी पाएंगे स्वस्थ रहने के लिए योग जरूर अपनाए,
अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो धर्म जी आज भी फिल्मों में काम कर रहे हैं उनकी फिल्मे तेरी बातों में उलझा जिया, रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में धरम जी के परफॉर्मेंस की सराहना हुई . वही आने वाले समय में उनकी फिलम इक्कीस रिलीज होने वाली है. Dharmendra Fitness

Hindi Family Story: क्यों हो रही थी तनुज की दूसरी शादी

Hindi Family Story: खुशियों से भरे दिन थे वे. उत्साह से भरे दिन. सजसंवर कर  रहने के दिन. प्रियजनों से मिलनेमिलाने के दिन. मुझ से 4 बरस छोटे मेरे भाई तनुज का विवाह था उस सप्ताह.

यों तो यह उस का दूसरा विवाह था पर उस के पहले विवाह को याद ही कौन कर रहा था. कुछ वर्ष पूर्व जब तनुज एक कोर्स करने के लिए इंगलैंड गया तो वहीं अपनी एक सहपाठिन से विवाह भी कर लिया. मम्मीपापा को यह विवाह मन मार कर स्वीकार करना पड़ा क्योंकि और कोई विकल्प ही नहीं था परंतु अपने एकमात्र बेटे का धूमधाम से विवाह करने की उन की तमन्ना अधूरी रह गई.

मात्र 1 वर्ष ही चला वह विवाह. कोर्स पूरा कर लौटते समय उस युवती ने भारत आ कर बसने के लिए एकदम इनकार कर दिया जबकि तनुज के अनुसार, उस ने विवाह से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि उसे भारत लौटना है. शायद उस लड़की को यह विश्वास था कि वह किसी तरह तनुज को वहीं बस जाने के लिए मना लेगी. तनुज को वहीं पर नौकरी मिल रही थी और फिर अनेक भारतीयों को उस ने ऐसा करते देखा भी था. या फिर कौन जाने तनुज ने यह बात पहले स्पष्ट की भी थी या नहीं.

बहरहाल, विवाह और तलाक की बात बता देने के बावजूद उस के लिए वधू ढूंढ़ने में जरा भी दिक्कत नहीं आई. मां ने इस बार अपने सब अरमान पूरे कर डाले. सगाई, मेहंदी, विवाह, रिसैप्शन सबकुछ. सप्ताहभर चलते रहे कार्यक्रम. मैं भी अपने अति व्यस्त जीवन से 10 दिन की छुट्टी ले कर आ गई थी. पति अनमोल को 4 दिन की छुट्टी मिल पाई तो हम उसी में खुश थे. बच्चों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. मौजमस्ती के अलावा उन्हें दिनभर के लिए मम्मीपापा का साथ भी मिल रहा था.

इंदौर में बीते खुशहाल बचपन की ढेर सारी यादें मेरे साथ जुड़ी हैं. बहुत धनवैभव न होने पर भी हमारा घर सब सुविधाओं से परिपूर्ण था. आज के मानदंड के अनुसार, चाहे मां बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं परंतु अत्यंत जागरूक और समय के अनुसार चलने वालों में से थीं. उन की इच्छा थी कि हम दोनों बहनभाई खूब पढ़लिख जाएं और इस के लिए वे हमें खूब प्रेरित करतीं.

स्नेह और पैसे की कमी नहीं रही हमें. शिक्षा, संस्कार सबकुछ पाया. घर का अधिकांश कार्यभार सरस्वती अम्मा संभालती थीं. पीछे से वे अच्छे घर की थीं. विपदा आन पड़ने पर काम करने को मजबूर हो गई थीं. अपाहिज हो गया पति कमा कर तो क्या लाता, पत्नी पर ही बोझ बन गया था.

सरस्वती अम्मा घरों में खाना बनाने का काम करने लगीं. हमारा गैराज खाली पड़ा था. मां के कहने पर उसी में सरस्वती अम्मा ने अपनी गृहस्थी बसा ली. एक किनारे पति चारपाई पर पड़ा रहता. अम्मा बीचबीच में जा कर उस की देखरेख कर आतीं. शेष समय हमारे घर का कामकाज देखतीं. अच्छे परिवार से थीं, साफसुथरी और समझदार. खाना मन लगा कर बनातीं. प्यार से बनाए भोजन का स्वाद ही अलग होता है. मां ने उन के दोनों बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी ले ली थी. स्कूल से लौटने पर वे उन्हें पास बिठा होमवर्क भी करा देतीं. बेटा 12वीं पास कर डाकिया बन गया. बिटिया राधा का 15 वर्ष की आयु में ही विवाह कर दिया. मां ने नाबालिग लड़की का विवाह करने से बहुत रोका किंतु परंपराओं में जकड़ी सरस्वती अम्मा के लिए ऐसा करना संभव नहीं था. उन के अनुसार अभी राधा का विवाह न करने पर वह जीवनभर कुंआरी रह जाएगी. लेकिन 1 वर्ष बाद ही कारखाने में हुई एक दुर्घटना में राधा के पति की मृत्यु हो गई. उसे मुआवजा तो मिला पर सब से बड़ी पूंजी खो दी उस ने. मां ने उस के पुनर्विवाह के लिए कहा. परंतु सरस्वती अम्मा के हिसाब से उन की बिरादरी में यह कतई संभव नहीं था.

इसी बीच मेरा भी विवाह हो गया. मैं ने कौर्पोरेट ला की पढ़ाई की थी और अपना कैरियर बनाना मेरे जीवन का सपना था. विदेशी कंपनी में एक अच्छी नौकरी मिली हुई थी मुझे. विवाह के बाद 2 वर्ष तक तो सब ठीक चलता रहा पर जब मां बनने की संभावना नजर आई तो चिंता होने लगी. कैरियर बनाने के चक्कर में पहले ही उम्र बढ़ चुकी थी एवं मातृत्व को और टाला नहीं जा सकता था.

शिशु जन्म के समय मां के पास इंदौर गई थी. अस्पताल से जब मैं नन्हे शिव को ले कर घर आई तो सरस्वती अम्मा ने एक सुझाव रखा, ‘क्यों न मैं राधा को अपने साथ ले जाऊं.’ उसे एक विश्वसनीय घर में रख कर वे निश्ंिचत हो जाएंगी. मेरी तो एक बड़ी समस्या हल हो गई, मन की मुराद पूरी हो गई. राधा को मैं बचपन से ही जानती आई थी. छोटी लड़कियों के अनेक खेल हम ने मिल कर खेले थे. वह मुझे बड़ी बहन का सा ही सम्मान देती थी. उस ने पहले शिव और 2 ही वर्ष बाद आई रिया की बहुत अच्छी तरह से देखभाल की और बच्चे भी उसे प्यार से मौसी कह कर बुलाते थे.

अनमोल जब घर पर होते तो यथासंभव हर काम में सहायता करते किंतु वे घर पर रहते ही बहुत कम थे. उन्हें दफ्तर के काम से अकसर इधरउधर जाना पड़ता और जब विदेश जाते तो महीनों बाद ही लौटते. यों अपने कैरियर के साथसाथ बच्चों को पालने और घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर ही थी. राधा की सहायता के बिना मेरा एक दिन भी नहीं चल सकता था. बच्चों के बड़े हो जाने के बाद भी मुझे उस की जरूरत रहने वाली थी.

मैं उस की सुविधा का पूरा खयाल रखती थी. घर के एक सदस्य की तरह ही थी वह. यों वह रात को बच्चों के कमरे में ही सोती किंतु घर के पिछवाड़े उस का अपना एक अलग कमरा भी था.

तनुज के ब्याह के लिए मैं ने अपने परिवार वालों के साथसाथ राधा के लिए भी नए कपड़े बनवाए थे. पर ऐन वक्त उस ने इंदौर जाने से इनकार कर दिया जोकि मेरे लिए बहुत आश्चर्य की बात थी. अभी कुछ दिन पहले तक तो वह विवाह में गाए जाने वाले गीतों का जोरशोर से अभ्यास कर रही थी. वह जिंदादिल और मौजमस्ती पसंद लड़की थी. किसी भी तीजत्योहार पर उस का जोश देखते ही बनता था. अपने मातापिता से मिलने के लिए वह अकसर अवसर का इंतजार किया करती थी. पर इस बार न तो मांबाप से मिलने का मोह और न ही ब्याह की मौजमस्ती ही उसे लुभा पाई.

तनुज का विवाह बहुत धूमधाम से हो गया. हम ने भी 10 दिन खूब मस्ती की. लौट कर भी कुछ दिन उसी माहौल में खोए रहे, वहीं की बातें दोहराते रहे. राधा ने ही घर संभाले रखा. 2-3 दिन बाद जब मेरी थकान कुछ उतरी और राधा की ओर ध्यान गया तो मुझे लगा कि वह आजकल बहुत उदास रहती है. काम तो पूरे निबटा रही है किंतु उस का ध्यान कहीं और होता है. बात सुन कर भी नहीं सुनती. मांबाप की खोजखबर लेने को उत्सुक नहीं. विवाह की बातें सुनने को उत्साहित नहीं. पर बहुत पूछने पर भी उस ने कोई कारण नहीं बताया.

मैं ने काम पर जाना शुरू कर दिया था. यह चिंता नहीं थी कि मेरी अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं होगी पर उस के मन में कुछ उदासी जरूर थी जो मैं महसूस कर सकती थी परंतु हल कैसे खोजती जब मैं कारण ही नहीं जानती थी.

इतवार के दिन मेरी पड़ोसिन ने मुझे अपने घर पर बुला कर बताया कि हमारी अनुपस्थिति में एक युवक दिनरात राधा के संग उस की कोठरी में रहा था.

मैं ने मां को फोन कर के पूरी बात बताई.

मां ने शांतिपूर्वक पूरी बात सुनी और फिर उतनी ही शांति से पूछा, ‘‘पर तुम उस पर इतनी क्रोधित क्यों हो रही हो? ऐसा कौन सा कुसूर कर दिया है उस ने?’’

‘‘एक परपुरुष से संबंध बनाना अनैतिक नहीं है क्या? हमें तो आप कड़े अनुशासन में रखती थीं?’’

‘‘तो इस में दोष किस का है? राधा के पति की असमय मृत्यु हो गई, यह उस का दोष तो नहीं? फिर इस बात की सजा इस लड़की को क्यों दी जा रही है? 16 वर्ष की आयु में उसे मन मार कर जीवन जीने को बाध्य कर दिया. उस के जीवन के सब रंग छीन लिए…’’

‘‘पर मां, वह विधवा हो गई, इस में हम क्या कर सकते हैं?’’

‘‘क्यों? उसे जीने का हक नहीं दिला सकते क्या? तनुज का दोबारा विवाह हुआ है न? तुम्हारे भाई के तलाक में कुछ गलती तो उस की भी रही ही होगी पर राधा के विधवा होने के लिए उसे क्यों दंडित किया जा रहा है? उस ने तो नहीं मारा न अपने पति को? यह तय कर दिया गया कि वह दूसरा विवाह नहीं करेगी. उस की जिंदगी का इतना अहम फैसला लेने से पहले क्या किसी ने उस से एक बार भी पूछा कि वह क्या चाहती है? हो सकता है उस में ताउम्र अकेली रहने की हिम्मत न हो और वह फिर से विवाह करने की इच्छुक हो. जिस पुरुष के साथ वह 1 वर्ष ही रह पाई वह भी तमाम बंदिशों के बीच, उस के साथ उस का लगाव कितना हो पाया होगा? और अब तो उस की मृत्यु को भी इतने वर्ष बीत चुके हैं.’’

‘‘मां, मुझे उस पर दया आती है पर उन लोगों के जो नियम हैं, हम उन्हें तो नहीं बदल सकते न.’’

‘‘पर ये कानून बनाए किस ने हैं? समाज द्वारा स्थापित नियमकायदे समाज नहीं बदलेगा तो कौन बदलेगा? और हम भी इसी का ही हिस्सा हैं.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी सुखी गृहस्थी देख कर उस की कभी इच्छा नहीं होती होगी कि उस का भी कोई साथी हो, जिस से वह मन की बात कह सके, अपने दुखसुख बांट सके. अपने बच्चे हों. यदि वह तुम्हारे बच्चे से इतना स्नेह करती है तो उसे अपने बच्चों की कितनी साध होगी, कभी सोचा तुम ने?

‘‘अपने भविष्य पर निगाह डालने पर क्या देखती होगी वह? एक अनंत रेगिस्तान. बिना एक भी वृक्ष की छाया के. मांबाप आज हैं, कल नहीं रहेंगे. भाई अपनी गृहस्थी में रमा है. सरस्वती की बिरादरी वाले जो राधा के पुनर्विवाह के विरुद्ध हैं, एक पुरुष के विधुर होने पर चट से उस का दूसरा विवाह कर देते हैं. तब वे कहते हैं कि बेचारे के बच्चे कौन पालेगा? स्त्री के विधवा होने पर उन की यह दयामाया कहां चली जाती है? यों हम कहते हैं कि स्त्री अबला है. सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से उसे पुरुष पर आश्रित बना कर रखते हैं किंतु विधवा होते ही उस से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अकेली ही इस जहान से लड़े. एक ऐसे समाज में जिस के हर वर्ग में भेडि़ए उसे नोच डालने को खुलेआम घूम रहे हैं.’’

दिनभर तो काम में व्यस्त रही पर दफ्तर जाते और लौटते हुए मां की बातें मस्तिष्क में घूमती रहीं. मैं ने सिर्फ किताबी ज्ञान ही अर्जित किया था. मां ने खुली आंखों से दुनिया को जिया था, देखा और समझा था. मैं अपने ही घर में रहती राधा का दर्द नहीं समझ पाई. कहने को मैं उसे घर का सदस्य समान ही समझती थी. उस से भरपूर प्यार करती थी. मैं ने उस पर थोपे निर्णय को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया था. जबकि मां उस के प्रति हुए अन्याय के प्रति पूर्ण जागरूक थीं.

मुझे मां की बातों में सचाई नजर आने लगी. सांझ ढलने तक मैं ने मन ही मन निर्णय ले लिया था और यही बताने के लिए दिनभर का काम समेट रात को मैं ने मां को फोन किया.

‘‘तुम उस लड़के से बात करो. उस की नौकरी, चरित्र इत्यादि के बारे में पूरी पड़ताल करो और यदि तुम्हें लगे कि लड़का सिर्फ मौजमस्ती के लिए राधा का इस्तेमाल नहीं कर रहा और इस रिश्ते को ले कर गंभीर है तो सरस्वती को मनवाने का जिम्मा मेरा,’’ मां के स्वर में आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट थी.

मैं ने जब राधा के सामने बात छेड़ी तो उस ने रोना शुरू कर दिया. बहुत देर के बाद उस ने मन की बात मुझ से कही.

रौशन हमारे घर से थोड़ी दूर किसी का ड्राइवर था. उसे राधा के विधवा होने के बारे में मालूम था फिर भी वह उस से विवाह करने को तैयार था. पर राधा को डर था कि उस की मां इस विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगी. एक तो वे अपनी बिरादरी से बहुत डरती थीं, दूसरे, रौशन उन से भिन्न जाति का था. राधा की परेशानी यह थी कि यदि उस ने मांबाप की इच्छा के विरुद्ध शादी कर ली तो वह सदैव के लिए उन से कट जाएगी. एक तरफ उस की तमाम जीवन की खुशियां थीं तो दूसरी तरफ मांबाप का प्यार. इसी बात को ले कर वह उदास थी. उस ने अब तक अपने मन की बात मुझ से कहने की हिम्मत नहीं की थी तो इस में मेरा ही कुछ दोष रहा होगा.

मैं ने रौशन के पिता को बात करने के लिए बुलाया. रौशन ने पहले से ही उन्हें राजी कर रखा था. सारी पड़ताल करने के बाद मैं ने मां के आगे एक सुझाव रखा, ‘‘सरस्वती अम्मा यदि विवाह के लिए राजी हो जाती हैं तो आप उन्हें ले कर यहां आ जाइए और राधा का विवाह चुपचाप यहीं करवा देते हैं. उस की बिरादरी वालों को पता ही नहीं चलेगा.’’

मेरी कम पढ़ीलिखी मां की सोच बहुत आगे तक की थी. उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘नहीं, शादी यहीं से होगी और खुलेआम होगी ताकि उस जैसी अन्य राधाओं के आगे एक उदाहरण रखा जा सके. हम कुछ गलत नहीं कर रहे कि छिपा कर करें. मुझे इस युवक से मिल कर खुशी होगी जो यह जानते हुए भी कि राधा विधवा है, उस से विवाह करने को कटिबद्ध है. रौशन के जो भी परिजन विवाह में शामिल होना चाहें, उन का स्वागत है.’’

‘‘सरस्वती अम्मा को तो तुम मना लोगी मां, पर यदि उस की जातिबिरादरी वालों ने कोई बखेड़ा खड़ा कर दिया तो?’’ मैं अब भी हिम्मत नहीं कर पा रही थी शायद.

‘‘सेना जब युद्ध के मैदान में आगे बढ़ती है तो उस की पहली पांत को ही सर्वाधिक गोलियों का सामना करना पड़ता है. पर इस का अर्थ यह तो नहीं कि कोई आगे बढ़ने से इनकार कर देता हो. इसी तरह स्थापित किंतु अन्यायपूर्ण परंपराओं के विरुद्ध जो सब से पहले आवाज उठाता है उसे ही कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है. फिर धीरेधीरे वही रीति स्वीकार्य हो जाती है. पर किसी को तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी न.

‘‘पहली पांत ही यदि साहस नहीं करेगी तो समाज आगे बढ़ेगा कैसे? हमारे समय में पढ़ेलिखे घरों में भी विधवा विवाह नहीं होता था. बहुत सरल, चाहे अब भी न हो किंतु वर्जित भी नहीं रहा. विडंबना यह है कि अभी भी हमारे समाज के कई वर्ग ऐसे हैं जहां विधवा की दोबारा शादी नहीं हो पाती. शायद अकेली सरस्वती यह कदम उठाने की हिम्मत न जुटा पाए परंतु यदि हम उस का साथ देते हैं तो उस की शक्ति दोगुनी हो जाएगी.’’

मैं इंदौर जा रही हूं. इस बार राधा को संग ले कर. जा कर इस के विवाह की तैयारी भी करनी है. आज से ठीक 5वें दिन रौशन आएगा इसे ब्याहने, पूरे विधिविधान के साथ. Hindi Family Story

Monsoon Special: बारिश में पैरों की देखभाल

Monsoon Special: पैर शरीर का अभिन्न अंग हैं. इन की देखभाल बेहद जरूरी है. मगर बारिश के मौसम में इन की देखभाल की अधिक जरूरत होती है, क्योंकि इस मौसम में पैर अधिक समय तक गीले रहते हैं, जिस से कई प्रकार की बीमारियों के होने का डर रहता है.

इस बारे में डर्मैटोलौजिस्ट डा. सोमा सरकार बताती हैं कि अधिक समय तक पैर गीले रहने और समय पर सफाई न करने से उन में फंगस लग जाता है, जिस के कारण इन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. फिर उचित देखभाल के न होने से पैर बदसूरत भी लग सकते हैं.

पेश हैं, पैरों की देखभाल से संबंधित

कुछ सुझाव:

– पैरों की नियमित सफाई जरूरी है. बाहर से जब घर लौटें तो मैडिकेटेड साबुन से पैरों को धो कर सुखा लें. ऐंटीफंगल पाउडर का प्रयोग रोज करें.

– मौनसून में पैरों में कैंडीडायोसिस नामक बीमारी का अधिक होना देखा गया है. इस की वजह नमीयुक्त वातावरण, बारबार पैरों का गीला होना, जूतों में पानी रुकना आदि है. ऐसा होने पर तुरंत डाक्टर की सलाह लेना आवश्यक है.

– नियमित पैडीक्योर करवाने से पैर मुलायम और नमीयुक्त रहते हैं. इस में पैरों की उंगलियों की सफाई के साथसाथ टूल्स के द्वारा पैरों का व्यायाम भी करवाया जाता है.

– पैरों के नाखूनों को समयसमय पर कर्व शेप में काटें ताकि उन में गंदगी न रहे. नाखून काटते समय क्यूटिकल न काटें, क्योंकि यह नाखून के कठोर भाग को मुलायम बनाता है, जिस से संक्रमण की आशंका कम रहती है.

– हमेशा अच्छा फुटवियर पहनें, जो हवादार हो ताकि पैर सूखे रहें.

– आजकल बंद फुटवियर भी बारिश को ध्यान में रख कर बनाया जाता है, जो थोड़ा स्टाइलिश भी होता है. इस में गम बूट, स्ट्रैपर, बैलेरिनास, रबड़ के जूते आदि लोकप्रिय हैं.

– जूते हमेशा छोटी हील वाले पहनें ताकि फिसलने का डर न रहे.

त्वचारोग विशेषज्ञा डा. सरोज सेलार बताती हैं कि अगर आप वर्किंग हैं, तो औफिस जा कर अपने गीले पैरों को कपड़े से सुखा लें. जूतों को भी सुखा कर फिर पहनें. घर पहुंच कर सब से पहले हलके गरम पानी में 1 चम्मच सिरका मिला कर आधे घंटे तक पैरों को उस में डुबोए रखें. उस के बाद पैरों को साफ तौलिए से पोंछ कर उन पर क्रीम लगा लें.

फंगस से छुटकारा पाने के लिए बेकिंग सोडा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह पीएच बैलेंस करने में मदद करता है. इस का पेस्ट बना कर लगाया जा सकता है या फिर जूतों में भी बुरका जा सकता है.

– किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन से बचने के लिए एक टब में 2 बडे़ चम्मच नमक डाल कर करीब 15 मिनट तक पैरों को उस में डुबोए रखें. ऐसा रोज करने से संक्रमण नहीं होगा. यह सब से अच्छा ऐंटीसैप्टिक है.

– पानी में थोड़ी हलदी मिला कर इन्फैक्शन वाली जगह लगाने से राहत मिलती है.

– नारियल या नीम का तेल लगाने से भी फंगस कम होता है, साथ ही उस से होने वाले दर्द से भी राहत मिलती है.

– अगर आप डायबिटीज की मरीज हैं, तो पैरों का और अधिक ध्यान रखना आवश्यक है. नायलौन के मौजों की जगह कौटन के मौजे पहनें. गीले मौजों को बदलने में देरी न करें. हमेशा 1 जोड़ी सूखे मौजे साथ रखें. इस मौसम में नंगे पांव बिलकुल न चलें. Monsoon Special

Family Story: भाग 1- क्या बिगड़े बेटे को सुधार पाई मां

Family Story: शाम की क्लासेज और शाम भी जाड़े की. बर्फ नहीं पड़ रही थी वरना और मुसीबत होती. अमेरिका के विस्कौन्सिन एवेन्यू और ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का चौराहा पार करते ही दिल में धुकधुकी इतनी तेज हो जाती है कि ड्राइविंग पर ध्यान बनाए रखना दूभर हो जाता है. ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट का इलाका रैड लाइट एरिया कहलाया जाने लगा है. रैड लाइट एरिया का खौफ सुमि के मन में बालपन से ही बैठा हुआ है. सुमि के पापा के दूर के कुछ रिश्तेदार पुरानी दिल्ली में दशकों पुराने जमेजमाए कारोबार के चलते वहीं हवेलियों में रहते रहे हैं. मां बताती थीं कि वहां के बड़े चावड़ी बाजार के पास एक इलाका वेश्याओं और गुंडों की वजह से बदनाम ‘रैड लाइट’ एरिया हुआ करता था जिस के आसपास महल्लों में पलक झपकते लड़कियां गायब किए जाने की वारदातें सुनने में आया करती थीं. इस कारण वहां रहने वाले परिवारों की औरतें अपने घरों से बहुत कम निकलती थीं. मजबूरी में जब भी उन्हें बड़े चावड़ी बाजार के पास से गुजरना पड़ता तो उस ओर देखे बिना झट कन्नी काट कर बच्चों, विशेषकर बच्चियों को अपनी लंबी चादर के भीतर दबोचे ऐसे लंबे डग भरतीं मानो कोई चोरउचक्का पीछे पड़ा हो.

अमेरिका के शहर मिडवैस्टर के बीचोंबीच डाउनटाउन इलाके में देश की प्रख्यात और महंगी यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म के तेज रफ्तार रिफ्रैशर इवनिंग कोर्स के लिए फुल स्कौलरशिप का मौका विरलों को मिलता है. सुमि इसे हर हाल में पूरा करने को कटिबद्ध है. रैग्युलर कोर्स की गुंजाइश  नहीं, दिन की नौकरी छोड़े तो गुजारा कैसे हो?

जितनी प्रख्यात यूनिवर्सिटी है डाउनटाउन का यह इलाका उतना ही बदनाम होता जा रहा है. वहां की समृद्ध फार्मर्स (किसान) पीढ़ी वृद्ध हो चुकी है और उन की संतानों को सीधा उत्तराधिकार प्राप्त नहीं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उन के वृहद् फार्म्स खरीद कर डैवलपर्स वहां आलीशान घर, मौल और आधुनिक सुविधाओं से लैस उपनगर बनाते जा रहे हैं. नतीजतन, शहरी आबादी वहीं उमड़ी जा रही है. बीच शहर में बंद दुकानें, खाली घर ड्रग डीलर्स और बदनाम पेशों के अड्डे हो गए हैं जिस के चलते महंगी यूनिवर्सिटी में प्रवेशातुर रईस परिवारों की संतानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है. 5 मील के घेरे के भीतर रहने वाले सभी छात्रों के लिए सुबह 7 बजे से रात के 12 बजे तक निशुल्क वैन सर्विस है. इस के अलावा, यूनिवर्सिटी ने पूरे इलाके के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है और इस के पुनर्वास के लिए नियत फैडरल सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है. जरूरतमंदों के लिए उदार छात्रवृत्तियां, डैंटिस्ट्री और नर्सिंग डिपार्टमैंट्स की ओर से फ्री क्लीनिक्स, लौ डिमार्टमैंट की ओर से मुफ्त कानूनी सलाह के सैशंस की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कोर्स के एक असाइनमैंट के लिए अन्य सहपाठियों ने सामयिक घटनाओं को चुना जिन के लिए तथ्य रेडियो, टीवी और पत्रपत्रिकाओं से जुटाना सहज होता है. भारत की प्रमुख पत्रिकाओं, पत्रों में प्रकाशित सुमि का शौकिया लेखन मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण भोगा हुआ यथार्थ ही रहा था. ऐसी 2 प्रविष्टियों और प्रमाणित पूर्व प्रकाशनों के बल पर ही इस तेज रफ्तार कोर्स में उसे प्रवेश मिला जिस के पूर्ण होने पर स्थानीय अखबार के फीचर सैक्शन में उस की सह संपादक की नियुक्ति की संभावना बन सकती थी.

ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट के खस्ताहाल इलाके पर सुमि के ह्यूमन इंटै्रस्ट स्टोरी के चयन पर प्रोफैसर को आश्चर्य था पर मौन अनुमोदन दे दिया शायद इसलिए कि यह यूनिवर्सिटी की वर्तमान नीति के अनुरूप हो. बहरहाल, इलाके के गली, महल्ले छानने और इंटरव्यूज कर के तथ्य बटोरने के लिए वहां वीकेंड पर दिन का समय ही सुरक्षित होगा. यह उन्होंने पहले ही बता दिया. सिटी गजट अखबार की पुरानी प्रतियों में डाउनटाउन के इतिहास में ऐतिहासिक घरों, इमारतों का प्रचुर विवरण है. हैरत की बात यह कि ऐसे कुछ घर ठीक ट्वैंटी फोर्थ स्ट्रीट पर हैं. हिस्टौरिकल सोसाइटी से संपर्क कर के सुमि ने गृहस्वामियों के नामपते लिए और फोन कर के इंटरव्यू का समय तय किया. नियत समयानुसार मिस्टर गौर्डन रैल्फ के पते पर ठिठक कर अपनी लिस्ट फिर पढ़नी पढ़ती है. गलीचे से लौन के आगे संतरी सरीखे खड़े ऊंचे दरख्तों और तराशी हुई झाडि़यों से घिरे छोटे मगर शानदार मैन्शन का इस इलाके में क्या काम? ईंटपत्थर के मकान पुराने स्थापत्य शिल्प के नामलेवा भर रह गए हैं. रैल्फ मैन्शन का एकएक पत्थर जैसे समय के बहाव को रोके अविचल खड़ा. सामने की दीवार पर खूबसूरत स्टैंड ग्लास की बड़ी गोल खिड़की जैसे उन्नत भाल पर टीका हो. हस्तनिर्मित ऐसी नायाब कृतियां तो यूरोप के पुरातन गिरजाघरों में ही मिलें.

पूर्वनियत इंटरव्यू की औपचारिकता परे रख गृहस्वामी गौर्डन चाव से सुमि को घर दिखाते हैं, अपने बारे में बताते हैं. पत्नी का देहांत हो चुका है, बेटेबेटियां सुदूर प्रांतों और देशों में हैं. दशकों पूर्व जरमनी से अमेरिका आए उद्यमियों को लेक मिशिगन के तट पर बसा शहर बियर उद्योग की स्थापना के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा था. बे्रवरीज लगाई गईं, रिहाइश के लिए घर बनाए गए. शहरी इलाकों में भी तब सड़कें कच्ची हुआ करती थीं जिन पर घोड़े और बग्घियां चलती थीं. गैराज के बजाय घरों के आगे घोड़े या छोटीबड़ी बग्घी के लिए शेड होते थे.

जरमन बियर और इंजीनियरिंग का दुनिया में आज भी मुकाबला नहीं. उन  के घरों की पुख्ता नींवें बहुत गहरी हैं और सारी प्लंबिंग तांबे की. समयोपरांत ब्रेवरीज के रईस मालिक लेकड्राइव का रुख करते गए और बीच शहर में उन के घर ब्रेवरीज के इंजीनियर और ब्रियूमास्टर्ज खरीदते गए. मिशिगन लेक को छूती एकड़ों जमीन पर आज भी खड़े कुछ आलीशान मैन्शंज और उन के अपने गैस्टहाउस, केयरटेकर्ज कौटेजेज, ग्रीनहाउस, अस्तबल, बग्घीखाने उस युग के प्रतीक हैं. आज के युग में ऐसी इमारतों का रखरखाव लगभग असंभव है. जिन मैन्शंज के मालिक या वारिस नहीं रहे और जो नींवों में लेक का पानी रिसने से खंडहर हो चले, उन्हें डैवलपर्ज ने ढहा कर आधुनिक बंगले, बहुमंजिले मकान जिन्हें यहां कौन्डोज कहा जाता, बना डाले. गौर्डन के परनाना ब्रियूमास्टर थे और शहर के भीतर पुराने घर का विस्तार कर के उसे छोटे मैन्शन का रूप दिया था. उन्नत भाल पर टीके सी खूबसूरत खिड़की का अलग ही एक किस्सा सुनाते हैं.

गौर्डन के नाना इकलौती संतान थे और मैन्शन के उत्तराधिकारी. मैन्शन का विस्तार किया लेकिन उन के पुत्र यानी गौर्डन के मामा ने पादरी बनने का निर्णय ले लिया. मैन्शन पुत्री को मिला और उन के बाद नाती गौर्डन को. ईंटपत्थर की दोहरी दीवारों के बीच एअर स्पेस, लकड़ी के फर्श, मजबूत लकड़ी के डबल फ्रेम वाली खिड़कियां, दरवाजे और हर कमरे में फायर प्लेस व रेडिएटर हीटर्ज भीषण जाड़े में भी घर को आरामदेह रखते हैं. खुले, हवादार घर में एअरकंडीशनिंग की जरूरत भी नहीं पड़ती लेकिन बैठक की एक दीवार गरमी में बेहद गरम हो जाती थी. अधिक आराम के लिए गौर्डन ने एअरकंडीशनर भी लगाए. दीवार फिर भी गरम रहती. एअरकंडीशनर को कई बार जांचने पर भी कारण समझ नहीं आया तो प्लास्टर तोड़ा गया. नीचे दीवार में जड़ी मिली स्टैंडग्लास ही हस्तनिर्मित नायाब गोल खिड़की जिस से तेज धूप अंदर आती रही थी इसीलिए वहां पर प्लास्टर मढ़ दिया गया होगा. गौर्डन ने शीशे की वह खूबसूरत खिड़की निकाल कर घर में ऊपर के बैडरूम को जाती सीढि़यों में लैंडिंग की उस दीवार में फिर जड़वा दी जिस तरफ धूप का रुख नहीं रहता.

वही खिड़की खूबसूरती और ऐंटीक वैल्यू की वजह से उन के घर की पहचान बन गई. रैल्फ मैन्शन यदि लेक के निकट और इलाके में होता तो हैरिटेज होम्ज में शुमार किया जाता जिन की सालाना नुमाइश यानी परैड औफ होम्ज की महंगी टिकटें समाज कल्याण के कई कार्यों के लिए हजारों डौलर जुटाती हैं. अपनी स्टोरी में लगाने के लिए सुमि रैल्फ मैन्शन और खिड़की की फोटो लेती है. खूबसूरती से तराशी झाडि़यों से घिरे लौन में टहलते हुए गौर्डन अगलबगल के  घरों की खस्ता हालत के बारे में पूछने पर बताते हैं कि उन के वृद्ध मालिक या तो नर्सिंग होम में हैं या कब्रगाह में. जो वारिस नौकरियों के सिलसिले में अन्य शहरों में हैं वे घरों को किराए पर चढ़ा गए. मैन्यूफैक्चरिंग का सारा काम चीन क्या गया कि डाउनटाउन का खुशहाल इलाका अब खस्ताहाल है. बढ़ती गुंडागर्दी के कारण किराएदार घर छोड़ कर जाने लगे हैं. खाली घर खुराफात के अड्डे बन रहे हैं. कितने घर तो सरकार ने तालाबंद करवा दिए हैं. नोट्स लेने के साथसाथ सुमि उन की भी फोटोज लेती चलती है. Family Story

Hindi Crime Story: प्यार की पहली किस्त- सायरा का क्या था असली चेहरा

Hindi Crime Story: बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा

नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है

कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा

के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं.

तुम्हारी मजबूरी सुलतान.

सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर. Hindi Crime Story

Crime Hindi Story: पूंजी- क्या था दुलारी का फैसला

Crime Hindi Story: महामारी तो पिछले साल से ही कहर बरपा रही है, लेकिन तब के घोषित लौकडाउन और इस साल के अघोषित लौकडाउन में बहुत फर्क है. पिछले साल सरकार और दूसरी स्वयंसेवी संस्थाएं जरूरतमंदों की मदद के लिए खूब आगे आ रही थीं. मालिक भी अपने मुलाजिमों के काम पर न आने के बावजूद उन्हें तनख्वाह दे रहे थे. चाहे वह सामाजिक दबाव के चलते ही रहा होगा, लेकिन भूख से मरने की नौबत तो कम से कम नहीं आई थी. पर इस साल तो जान बचाना ही भारी लग रहा है.

क्या किया जाए? न अंटी में पैसा, न गांठ में धेला. रोज कमानेखाने वालों के पास जमापूंजी भी कहां होती है. सरकार जनधन जैसी योजनाओं की कामयाबी के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत से तो भुक्तभोगी ही वाकिफ होगा न. बैंक में खाता खोल देनेभर से रुपया जमा नहीं हो जाता.

रोज सुबह एकएक अंगुल खाली होते जा रहे आटे के कनस्तर को देखती दुलारी मन ही मन अंदाजा लगाती जा रही थी कि कितने दिन और वह अपनी जद्दोजेहद को जारी रख सकती है. जिस दिन कनस्तर का पेंदा बोल जाएगा, उस दिन उसे भी सब सोचविचार छोड़ कर वही रास्ता अपनाना पड़ेगा, जिस पर वह अभी तक विचार करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई है.

दुलारी के होश संभालते ही मां ने मन की जमीन पर संस्कारों के बीज डालने शुरू कर दिए थे, जो उम्र के साथसाथ अब पेड़ की माफिक अपनी पक्की जड़ें जमा चुके हैं. पेड़ों को जड़ से उखाड़ना आसान है क्या?

‘हम गरीबों के पास यही एक पूंजी है छोरी और वह है हमारी इज्जत. आंखों का पानी खत्म तो सम झ सब खत्म…’ मां के दिए ऐसे संस्कार दुलारी का पीछा ही नहीं छोड़ते. लेकिन बेचारी मां को क्या पता था कि इस तरह की कोई महामारी भी आ सकती है, जिस की आंधी में उस के लगाए संस्कारों के पेड़ सूखे पत्ते से उड़ जाएंगे.

एक तरफ सरकार कहती है कि लौकडाउन लगाना सही नहीं है, वहीं दूसरी तरफ लोगों से गुजारिश भी करती है कि घर में रहो, बाहरी लोगों से कम से कम मेलजोल रखो. यह दोहरी नीति ही तो जान पर भारी पड़ रही है.

पिछली दफा किसी तरह मरतेबचते गांव वापस गए थे, लेकिन वहां भी क्या मिला? वैसे, कुसूर गांवों का भी नहीं. वहां अगर मजदूरी होती तो लोग शहरों की तरफ भागते ही क्यों? शहर कम से कम भूखा तो नहीं सुलाता था.

जल्दी ही गांव का चश्मा दुलारी की आंखों से उतर गया था. उधर वापस जब सब सामान्य होने लगा, तो सब से पहले उसी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा था. कितनी मुश्किल से लोगों को भरोसा दिलाया था कि वह ठीक है. अभी कुछ घरों में नियमित काम मिला ही था कि फिर से वही डर के साए.

जब से साहब लोगों के घरों में फिर से लौकडाउन लगने की सुगबुगाहट सुनी है, तब से दुलारी का जी उठाउठा का जा रहा है. काम करते समय हाथ यहां रसोई में और कान वहां टैलीविजन की खबरों पर लगे हुए हैं.

टैलीविजन पर कैसे लोग चिल्लाचिल्ला कर बहस करते हैं. उस के लिए तो अब ये बातें बिलकुल बेमानी हैं कि इन हालात में आने के लिए कौन जिम्मेदार है. किस की कहां चूक थी या किन लापरवाहियों के चलते हालात इतने बिगड़े हैं. अब वह बड़ी सरकार तो है नहीं कि सरकार के फैसले को चुनौती दे. वह तो भेड़ है, जिसे मालिक की हांक के इशारे पर ही चलना पड़ेगा.

शाम को दुलारी घर आई तो मां की आंखों में भी खौफ दिखा. उन्हें भी शायद किसी ने टैलीविजन की खबरों के बारे में बता दिया होगा. मां ने आंखों में सवाल भर कर उस की तरफ देखा तो वह आंखें बचाती हुई रसोई की तरफ मुड़ गई.

अनजाने डर से घिरी दुलारी ने घर के सारे कोने तलाश कर लिए. बामुश्किल 500 रुपए ही निकले. इतने से क्या होगा. कितने दिन प्राणों को शरीर में रोक पाएगी. और फिर वह अकेली कहां है… उस के साथ 2 प्राणी और भी तो जुड़े हैं. एक बूढ़ी मां और दूसरा अपाहिज छोटा भाई.

रातभर दुलारी के मन में उमड़घुमड़ चलती रही, ‘काश, मेरे पास भी कुछ पूंजी होती तो आज यों परेशानी में जागरण नहीं कर रही होती.’

दुलारी ने करवट बदलते हुए ठंडी सांस भरी. तभी पूंजी के नाम से मां की बात याद आ गई, ‘गरीब के पास यही तो एक पूंजी होती है छोरी…’

अपनी पूंजी का खयाल आते ही दुलारी पसीने से भीग गई. कपूर साहब की आंखें उसे अपने शरीर से चिपकी हुई महसूस होने लगीं. उस ने अपना दुपट्टा कस कर अपने चारों तरफ लपेट लिया.

‘ऐसी ही किसी आपदाविपदा के लिए तो पूंजी बचाई जाती है. किसी के पास रुपयापैसा, किसी के पास जमीनजायदाद, तो किसी के पास गहनाअंगूठी. तेरे पास तो यही पूंजी है,’ मन में छिपे कुमन ने दुलारी को उकसाया.

दुलारी कसमसाई और अपने कुमन को पीछे धकेल दिया. उस की धकेल में शायद ज्यादा ताकत नहीं थी. कुमन बेशर्मी से दांत फाड़े फिर से उठ खड़ा हुआ.

‘अरी, इस में गलत क्या है? मुसीबत में काम न आए वह कैसी पूंजी? तेरे पास कोई दूसरा रास्ता है तो वह कर ले, लेकिन अपनी और अपने परिवार की जान बचाना तेरा फर्ज है कि नहीं? जब जान ही न बचेगी तो मान बचा कर क्या करेगी,’ कुमन ने दुलारी को हकीकत दिखाने की कोशिश की.

‘ठीक ही तो कहता है बैरी. मैं खुदकुशी कर भी लूं, लेकिन इन दोनों की हत्या का पाप कैसे अपने सिर ले सकती हूं…’ मन पर कुमन हावी होने लगा और आखिरकार उस की जीत हुई.

दुलारी ने कपूर साहब के पास अपनी पूंजी गिरवी रखने का फैसला कर लिया. मन किसी फैसले पर पहुंचा तो नींद भी आ गई.

आज सुबह वही हुआ, जिस का डर था. सालभर पहले जहां से चले थे, वापस वहीं आ गए. सरकार ने प्रदेशभर में सख्त कर्फ्यू लगाने के आदेश जारी कर दिए थे. दुलारी के आंखकान फोन पर लगे थे. अभी मेमसाहब लोग के काम पर न आने के फोन आने शुरू हो जाएंगे. वह अनमनी सी अपने दैनिक काम निबटा रही थी.

‘फोन नहीं बजा. कहीं बंद तो नहीं पड़ा…’ दुलारी ने फोन उठा कर देखा. फोन चालू था. समय देखा तो 8 बजने वाले थे. एक भीतरी खुशी हुई कि शायद अपनी पूंजी गिरवी न रखनी पड़े.

‘8 बजे वर्मा साहब के घर पहुंचना होता है…’ सोचते हुए दुलारी ने रात की रखी ठंडी रोटी चाय के साथ निगली और मास्क लगा, दुपट्टे से अपना चेहरा ढकते हुए दरवाजे की तरफ लपकी, पर दरवाजे से निकल कर मेन सड़क तक आतेआते मोबाइल की घंटी बज गई.

‘सुनो, अभी कुछ दिन तुम रहने दो. थोड़ा नौर्मल हो जाएगा, तब मैं खुद तुम्हें फोन करूंगी…’ फोन उठाने के साथ ही मिसेज वर्मा ने कहा और बिना दुलारी की नमस्ते का जवाब दिए ही खट से फोन काट दिया, मानो कोरोना का वायरस मोबाइल फोन से फैल रहा हो.

दुलारी एक फीकी सी हंसी हंस कर वापस मुड़ गई. एक बार फिर से अपनी पूंजी को गिरवी रखने की सलाह कुमन देने लगा था.

‘‘ले, अखबार पढ़ ले. लोग तो अखबार से ऐसे डर रहे हैं मानो उन के घर में साक्षात मौत आ रही हो…’’ अखबार बेचने वाला राजू अपनी साइकिल पर बिना बिके अखबारों का बंडल लटकाए भारी कदमों से धीरेधीरे पैडल मारता दुलारी के पास से निकला, तो 2-3 प्रतियां उस के हाथ में थमा गया.

कर्फ्यू में क्या खुला क्या बंद रहेगा की सूची अखबार के पहले पन्ने पर ही लिखी थी… आखिरी लाइन पर आतेआते उस की नजर ठिठक गई. लिखा था, ‘मजदूरों के पलायन को रोकने की खातिर सरकार ने निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला किया है…’

यह पढ़ते ही दुलारी की आंखों की बु झती रोशनी फिर से टिमटिमाने लगी.

‘‘नहीं करना घरघर जा कर कपड़ेबरतन. जब तक शरीर में जान है, ईंटगारा ढो लूंगी. दोनों टाइम सब्जीदाल न सही, 3 प्राणियों को चायरोटी का टोटा तो नहीं पड़ने दूंगी,’’ खुद से कह कर दुलारी ने अखबार समेटा और काख में दबाते हुए मुसकरा दी. आज अचानक ही उसे अपने कंधे बहुत मजबूत महसूस होने लगे थे. Crime Hindi Story

Age is Just a Number: लड़कियां क्यों ढूंढती हैं खुद से छोटा पति?

Age is Just a Number: एक समय था जब पति की उम्र पत्नी से ज्यादा होती थी कई बार बहुत ज्यादा भी होती थी. फिर भी उनकी शादी न सिर्फ हो जाती थी बल्कि टिक अर्थात निभ भी जाती थी. इसके पीछे की सबसे बड़ी खास वजह यह थी , पति पैसा कमाने वाला और घर चलाने वाला इकलौता सदस्य होता था, और पत्नी का काम घर में रहकर पूरे परिवार की सेवा करना और बच्चों का पालन पोषण करना होता था. क्योंकि पति अपनी पत्नी और परिवार का हर तरह से ख्याल रखता था तो बीवी को घर से बाहर जाकर पैसा नहीं कमाना पड़ता था.

इसलिए पत्नी पति की हर बात मानती थी  और उम्र और बाकी चीजों का ख्याल ना करके अपनी पूरी जिंदगी परिवार और पति के लिए गुजार देती थी , क्योंकि पहले के मां-बाप भी अपनी बेटियों को ससुराल में एडजस्ट करने की शिक्षा देते थे यह कहकर कि पिता के घर से बेटी की डोली उठती है और पति के घर से अर्थी … अर्थात मरते दम तक पति का साथ मत छोड़ना, इसी धारणा के साथ जीते हुए चाहे कितने ही तकलीफों में पत्नी को रहना पड़े वह अपनी पूरी जिंदगी घर परिवार की सेवा में निकाल देती थी. लेकिन जैसे-जैसे समय बदला लोगों के विचार भी बदले मां बाप बेटियों को ससुराल में जबरदस्ती एडजस्ट करने के बजाय पढ़ा लिखा कर स्वावलंबी बनाने के लिए ज्यादा ध्यान देने लगे ताकि लड़कियां पढ़ लिखकर इतना पैसा कमा ले जिसमें उनका समाज में ही नहीं ससुराल में भी मान सम्मान हो, आज के समय में माता-पिता बेटी को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत देखना चाहते हैं जिसके चलते दिमागी तौर पर मजबूत  और टैलेंटेड लड़कियां इतनी ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई कि वह लड़कों से भी ज्यादा कमाने लगी .

ऑटो रिक्शा चलाने से लेकर हवाई जहाज चलाने तक, औरतें हर क्षेत्र में आगे हैं , आज के समय में हालात यह है की लड़कियां अपने पूरे घर का खर्च अकेले चलाने की ताकत रखती है. और मां-बाप भी अपनी बेटी पर गर्व करते हैं. ऐसी लड़कियों के लिए शादी सिर्फ एक समझौता या रिवाज नहीं है बल्कि वह शादी में सुरक्षा और संतुष्टि की भी कामना करती हैं जिसके चलते कई लड़कियां जो पूरी तरह आत्मनिर्भर है वह ऐसे लड़कों से शादी करना चाहती हैं जो उनसे प्यार करने वाला हो उनका सम्मान करने वाला हो और पति से ज्यादा एक अच्छा दोस्त हो यह सारी खूबियां जब लड़कियों को अपनी से छोटी उम्र के लड़के में भी दिखती हैं तो वह उनसे शादी करने में जरा भी हिचकिचाती नहीं है,  बल्कि उम्र में बड़ी और सफल लड़कियां ऐसे लड़कों को अपना जीवन साथी बनाना ज्यादा पसंद करती हैं जो उनको प्यार और सम्मान देता हो दोस्त की तरह सलाह भी देता हो, कई बार ऐसे लड़के जो उम्र में कम है लेकिन पूरी तरह से सेटल नहीं है जिंदगी में कामयाब होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ऐसे कम उम्र के पति को बड़ी उम्र की लड़कियां बतौर पत्नी या प्रेमिका के रूप में फुल सपोर्ट देती है.

आज के समय में जबकि शादी कम तलाक ज्यादा हो रहे हैं इसलिए शादी को लेकर लड़कियां और भी ज्यादा अलर्ट है , क्योंकि कई बार करियर बनाते-बनाते शादी की उम्र निकल जाती है  इसलिए उन्हें जब कोई अच्छा लड़का मिलता है तो वह शादी करने से पीछे नहीं हटती फिर चाहे वह लड़का लड़की से कम उम्र का ही क्यों ना हो, क्योंकि प्यार और शादी में मन अच्छा होना जरूरी है उम्र धर्म जाति कोई मायने नहीं रखती, खास तौर पर आज के समय में ज्यादातर बड़ी उम्र की लड़कियां छोटी उम्र के लड़कों से शादी कर रही हैं और वह शादियां सफल भी हैं , जैसे कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की बीवी सचिन से 7 साल बड़ी है, कैटरीना कैफ विकी कौशल से उम्र में बड़ी है, ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है क्या ऐसी वजह है की बड़ी उम्र की लड़कियां कम उम्र के लड़कों के साथ शादी कर रही हैं ?

ऐसी शादियों में सेक्स लाइफ कितनी सहज होती है? लड़कियां कम उम्र के लड़कों से शादी करने के क्या फायदे पाती है? छोटी उम्र के लड़के बड़ी उम्र की बीवियों के साथ कितना कंफर्टेबल रह पाते हैं? इस तरह का रिश्ता किस आधार पर टिका होता है ? पेश है इसी पर एक नजर…..

बड़ी उम्र की लड़कियों की पहली पसंद क्यों है छोटी उम्र के पति

सीधी सी बात है जहां पहले पति परमेश्वर कहलाता था, पति को भगवान का दर्जा दिया जाता था , पति के अत्याचार के बावजूद औरते पति की सेवा में जुटी रहती थी , सब कुछ सहने के बावजूद उनके खिलाफ नहीं जाती थी , अब वैसा नहीं है , आज पति पत्नी का रिश्ता बराबर का है क्योंकि कोई किसी से कम नहीं है , ऐसा रिश्ता सिर्फ और सिर्फ प्यार समझदारी और अंडरस्टैंडिंग पर टिका होता है.

उम्र कोई मायने नहीं रखती, ऐसा नहीं है कि ऐसे कपल में झगड़ा नहीं होता , या तू तू मैं मैं तकरार नहीं होती, सब कुछ वैसा ही होता है जैसा कि आम पति-पत्नी के बीच शादी के बाद देखा जाता है, लेकिन बड़ी उम्र की पत्नी ज्यादा समझदारी के चलते अपने पति को अपने बस में कर लेती है , कभी उस पति की बात मानकर या पति से बात मनवा कर, क्योंकि कम उम्र के पति पत्नी द्वारा मिले मान सम्मान और कही ना कही पैसों की वजह से  पहले से ही पत्नी के प्यार में लट्टू होते हैं इसलिए झगड़ा या तकरार भी प्यार में बदल जाती है, जैसा कि कहते हैं मियां  बीबी राजी तो क्या करेगा काजी , लिहाजा ऐसे रिश्तों में समाज भले ही कितना भला बुरा कहे , लेकिन प्यार करने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता , उम्र चाहे जो भी हो दिखावा या बड़प्पन की इस रिश्ते में कोई जगह नहीं होती उम्र में बड़ी होने की वजह से पत्नी हर सिचुएशन को हैंडल कर लेती है , पति को पत्नी की रक्षा करने की जरूरत नहीं पड़ती , बल्कि बड़ी उम्र की पत्नी के साथ पति अपने आप को सुरक्षित समझता है और टेंशन फ्री रहता है, क्योंकि उसकी समझदार बीवी सब कुछ अच्छे से हैंडल कर लेती है

छोटे उम्र के पति के साथ सेक्स के दौरान बिस्तर पर भी सहज रहती है बड़ी उम्र की बीवी

कहा जाता है ज्यादातर रिश्ते बिस्तर पर ही टूटते हैं, क्योंकि पति या पत्नी में से अगर कोई भी सेक्स के दौरान असहाय या असहज महसूस करता है, तो ऐसे रिश्तों के बाद पति पत्नी के रिश्ते में दरार आने लगती है , प्यार के नाम पर सेक्स के दौरान क्रूरता या जबरदस्ती शादीशुदा रिश्ते को तलाक तक ले जाती है, ऐसे में बहुत जरूरी होता है के संभोग के दौरान पति-पत्नी एक दूसरे पर हावी ना हो , सेक्स में प्यार की तड़प नजर आए ना कि सेक्स की भूख , पत्नी की उम्र बड़ी और पति छोटे उम्र का होता है तो पत्नी से जवान होने की वजह से छोटे उम्र का पति अपनी पत्नी को संतुष्ट करने में माहिर होता है , इस दौरान पत्नी अगर शर्म के मारे कुछ नहीं बोल पाती तो ऐसे समय में भी कम उम्र का पति पत्नी की जरूरत को समझते हुए संबंध बनाने के दौरान भी उसका पूरा साथ देता है.

इसके विपरीत अगर पति बड़ी उम्र का और पावरफुल इंसान है तो संभोग के दौरान पत्नी की मर्जी के बजाय अपनी मर्जी के हिसाब से संभोग करता है जो कई बार पत्नी के लिए तिरस्कार से भरा और दुखदाई भी होता है. ऐसे में पत्नी अपनी बड़ी उम्र के पति के साथ खुशी खुशी नहीं बल्कि मजबूरी में सेक्स करती है. लेकिन बड़ी उम्र की लड़की अगर छोटे उम्र के आदमी से शादी करती है तो वह शादी से पहले ही अच्छे दोस्त भी होते हैं और एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझते हैं जिस वजह से उम्र का फर्क होने के बावजूद प्यार का रिश्ता गहरा हो जाता है, और जिस रिश्ते में दिखावा नहीं होता सिर्फ प्यार सम्मान और समझदारी होती है वही रिश्ता लंबे समय तक टिकता है.

बॉलीवुड के वो शादीशुदा जोड़े जिनमे पत्नियां पति से उम्र में बड़ी है

फिल्म इंडस्ट्री ऐसी जगह है जहां पर शादी के लिए सिर्फ प्यार और अंडरस्टैंडिंग ही सबसे ज्यादा मायने रखता है जिसके चलते फिल्म इंडस्ट्री के शादीशुदा जोड़े धर्म जाति और उम्र के दिखावे से कोसो दूर है , जैसे कि काफी सालों पहले सुनील दत्त की शादी नरगिस से हुई थी जो कि सुनील दत्त से उम्र में काफी बड़ी थी इतना ही नहीं जिस फिल्म मदर इंडिया में नरगिस और सुनील दत्त का प्यार परवान चढ़ा था, उस फिल्म में नरगिस सुनील दत्त की मां के रोल में थी , और एक सीन के दौरान सुनील दत्त ने नरगिस को आग में जलने से बचाया था,  उसके बाद ही सुनील दत्त और नरगिस में प्यार और शादी हुई थी.

इसी तरह फिल्म इंडस्ट्री में कोई और ऐसे जोड़े हैं जिन में हीरोइने अपने पति से उम्र में बड़ी है, जैसे ऐश्वर्या राय अभिषेक बच्चन से 3 साल  उम्र में बड़ी है , कैटरीना कैफ विकी कौशल से 5 साल उम्र में बड़ी है , बिपाशा बसु करण सिंह ग्रोवर से 6 साल बड़ी है. प्रियंका चोपड़ा निक जोनस से 10 साल बड़ी है, नेहा धूपिया अपने पति अंगद बेदी से 2 साल बड़ी है, उर्मिला मातोंडकर अपने पति से मोहसिन अख्तर से 10 साल बड़ी है. कोरियोग्राफर फराह खान अपने पति शिरीष कुंदर  से 8 साल बड़ी है. गौरतलब है बड़ी उम्र की हीरोइन की छोटी उम्र के हीरो से शादी सफल और बरकरार है. Age is Just a Number

Golden Hour Glamour : 5 एक्ट्रैसेस जिन्होंने गोल्ड में बिखेरा जलवा…

Golden Hour Glamour : बौलीवुड की 5 खूबसूरत हीरोइन जो बौलीवुड की दीवा के रूप में जानी जाती हैं . ये दीवा अपनी खूबसूरती के लाइव जलवे बिखेरते हुए जब रेड कार्पेट पर चाहिए हो ड्रामा और रॉयल्टी, तब एक रंग हमेशा छा जाता है और वो है गोल्ड रंग, शाही, बोल्ड और पूरी तरह से अटेंशन-ग्रैबर. शाइनी सीक्विन्स से लेकर लिक्विड मेटैलिक तक, इन पांच दीवाज ने गोल्डन अंदाज में स्टाइल का नया स्टैंडर्ड सेट किया. आइए देखते हैं इस ग्लैमरस गैलरी में वो लम्हे, जहां इन हसीनाओं ने अपने तरीके से रच दी स्टाइल की नई परिभाषा…

1. जान्हवी कपूर: गोल्डन स्कल्प्टेड गॉडेस

जान्हवी का गोल्डन लुक था रॉयल एलिगेंस की मिसाल. फिगर-हगिंग, स्कल्प्टेड गोल्डन गाउन में वो किसी क्लासिक हौलीवुड दिवा से कम नहीं लगीं. सौफ्ट ड्रेप्स, शाइनी फिनिश और मिनिमल ज्वेलरी ने उनके लुक को बना दिया टाइमलेस, ग्रेसफुल और पावरफुल.

2. नुसरत भरुचा: ड्रामा और डैजल का परफेक्ट मेल

नुसरत हमेशा की तरह इस बार भी ड्रामेटिक और ग्लैमरस अंदाज़ में नजर आईं. शिमरी गोल्डन गाउन के साथ उनका फेदर केप उन्हें एक आसमानी परी जैसा लुक दे रहा था.स्लीक बन और कॉन्फिडेंट पोश्चर के साथ उन्होंने पूरी शाम को अपने नाम कर लिया.

3. निकिता दत्ता: द गोल्डन सायरन

निकिता दत्ता इस एसिमेट्रिकल गोल्डन गाउन में किसी ड्रीम सीक्वेंस से उतरी लग रही थीं. वन-शोल्डर कट और गोल्ड सीक्विन्स की चमक ने उन्हें रेड कार्पेट की रॉयल्टी बना दिया.सॉफ्ट वेव्स और मेटैलिक हील्स ने उनके ग्लैम को और निखार दिया.

4. करीना कपूर खान: लग्जरी का न्यू एज ट्विस्ट

करीना ने चुना एक स्ट्रैपलेस मोल्टन गोल्ड गाउन जो चुपचाप चमक बिखेर रहा था. क्रश्ड टेक्सचर ने इसे मौडर्न फील दिया, और क्लासिक कट ने उनके नैचुरल ग्लो को उभार दिया. एक बार फिर उन्होंने साबित किया- बेबो ट्रेंड फौलो नहीं करती, ट्रेंड बनाती हैं.

5. प्रियंका चोपड़ा: फियरलेस, फेरस और फैब्युलस

प्रियंका ने रेड कार्पेट पर फुल ऑन फायर लुक दिया अपने हाई-स्लिट, शीयर गोल्डन गाउन में. इंट्रिकेट एम्ब्रॉयडरी और बोल्ड मेटैलिक बेल्ट ने इस लुक को डिफाइन किया. डीप नेकलाइन और स्लीक स्टाइलिंग के साथ उन्होंने फिर से साबित कर दिया कि वो ग्लोबल स्टाइल क्वीन क्यों हैं.

Parenting : क्यों एडल्ट्स की भावनाओं से ज्यादा बच्चों की फीलिंग्स का हो रहा है जिक्र?

Parenting : 90वीं सदी में जब हर घर में अमूमन 3 से 4 बच्चे होते थे या उससे पहले 80वीं सदी में हर घर में 10-12 बच्चे होना आम बात थी. तब बच्चों की परवरिश उतना ही ध्यान दिया जाता था जितना उनको जरूरत हो, जिसका नतीजा ये होता था कि हर बच्चा 2 साल की उम्र तक इंडिपेंडेट बन जाता था. उनको भूख लगी है या खाना खिलाना है या उनको खेलने के लिए मंहगे खिलौनों की जरुरत है जिससे उनका कौग्निटिव विकास हो सके. ये सब चौंचले बाजी पहले वक्त में नहीं थी. बच्चे पुराने पड़े टायर से अपने लिए खुद खिलौने गाड़ियां बनाते थे. कागज के पन्नों पर चोर-सिपाही खेलते थे. भागते-दौड़ते अपने लिए खुद खेल बनाते थे. ऐसा नहीं है कि वो बच्चे करियर या जीवन में सफल नहीं हुए.

1 या दो बच्चों के कल्चर ने इन दिनों पेरेंट्स को इतना कौंशियस कर दिया है कि वो चाहते हैं उनका बच्चा किसी दूसरे से किसी मामले में कम न हो. सोशल मीडिया का इसमें बहुत बड़ा हाथ है. अगर पड़ोस का बच्चा डांस, स्वीमिंग और फुटबौल खेल रहा है तो हम अपने बच्चे को इनके साथ पेंटिग और म्यूजिक की क्लास भी कराते हैं. सोशल मीडिया पर रोज बच्चों के टिफिन में क्या नया दें इसके दर्जन भर पेज पेरेंट्स फौलो करके रखते हैं और फिर पेरेंट्स ही कौम्पीटिशन में लग जाते हैं बेहतर टिफिन देने के. हालात ये हैं कि घर में क्या खाना बनेगा, दिवारों पर कलर होगा, ये भी छोटे से 5 साल के बच्चे से पूछा जाता है कि कौन सा कलर कराएं और कौन सा नहीं. अब आप जरा खुले दिमाग से सोच कर बताइए इसमें क्या समझदारी की बात है. हमारा बच्चा तो घीया, तोरई नहीं खाता या मार्केट जाते ही इसको कुछ नया खिलौना चाहिए, इस बात इतरा कर बड़े ही प्राउड के साथ पेरेंट्स एक दूसरे को बताते हैं.

दूसरे बच्चे के बाद पहले की चिंता और सोशल मीडिया की गाइडलाइन

आजकल सोशल मीडिया पर बकायदा गाइड होती है कि दूसरे बच्चे के बाद भी पहले को कैसे ‘फील स्पेशल’ कराया जाए. पूरे परिवार की अटेंशन में पला पहला बच्चा, दूसरे बच्चे के बाद कम होती अटेंशन से मेंटल स्ट्रैस में न आ जाए. अब ऐसे में आपको समझना होगा कि जो बच्चा 2 महीने का है वो अपनी हर जरुरत के लिए आपके ऊपर निर्भर है, वो अपनी जरुरत को लेकर बता भी नहीं सकता है. जबकि बड़े बच्चे ऐसा कर सकते हैं. तो जरुरी है उन्हें समय रहते सेल्फ डिपेंडेंट होने दें. अब 5 से 6 साल के बच्चे को भी आप हर बार वॉशरूम लेकर जाएं तो ये बचकाना लगता है. या उसे अपने हाथों से खाना खिला रहे हैं, या फिर मार्केट में जाने के बाद जबरन उसके लिए कुछ न कुछ खरीद कर ला रहे हैं भले ही उसके बाद खिलौनों का अंबार लगा हो जिसे उसने छुआ भी नहीं.

प्यार में पेंपरिंग की लिमिट तय करें

आपने अगर फैसला किया है कि आप 2 बच्चों या 1 बच्चे के पेरेंट बनेंगे तो पहले खुद मैच्योर होना जरूरी है. उतना ही बच्चे को पेंपर करें जितनी जरूरत है. प्यार और बेवकूफी में फर्क है ये पेरेंट्स को समझना होगा. कई घरों में बच्चे पेरेंट्स पर हाथ उठाते हैं चिखते चिल्लाते हैं, या फिर मार्केट या रेस्टोरेंट में ले जाने पर उनकी पसंद का खिलौना न खरीदने पर या मंहगी आइसक्रीम न खरीदने पर टेंट्रम थ्रो करते हैं. सोशल दबाव में आकर पेरेंट्स उनकी जिद पूरी भी कर देते हैं कि बाकी लोग क्या कहेंगे. अब हमें समझना होगा कि ये बाकी लोग कोई नहीं है. मौल में खूम रही ग्रीन ड्रैस की औरत आपके बारे में क्या सोच रही है यो जो अंकल आपको देख रहे हैं वो आपके बारे में क्या सोचेंगे ये सोचना आप बंद करें. अगर घुमाने बच्चों को बाहर ले जा रहे हैं तो पहले से बाउंड्री तय करके जाएं, बच्चे को भी समझाएं भले जो हो नाजायज जिद पूरी नहीं की जाएगी. आपके एक बार झुकने पर बच्चा हर बार वही रोने-धोने चिल्लाने की ट्रिक अपनाएगा और उसी को आदत बना लेगा, जोकि लॉंग टर्म में आपके लिए बेहद नुकसानदायक साबित होगी.

बजट और जरूरत के अनुसार खिलौने दें, ट्रेंड के नहीं

आप इन दिनों किसी 1 साल के बच्चे के घर जाइए. आपको ऐसे-ऐसे खिलौने देखने को मिलेंगे जिनसे बच्चे तो नहीं खेलते बस कमरे में भीड़ जरुर हुई रहती है. अब आप ही बताइए एक साल के बच्चे को क्या रिमोट कंट्रोल कार से खेलना आएगा? नहीं न. अरे उस बच्चे को तो आप एक चम्मच और कटोरी देदें वो उसी से खेल कर पूरा दिन निकाल देगा. अगर यकीन न हो आजमा कर देखें. कई घरों में तो स्पेशल टॉय रूम बना दिए जाते हैं जिसमें 99 प्रतिशत ऐसे मंहगे खिलौने होंगे जिनसे खेलना बच्चे को आता ही नहीं. अगर आपका बजट आपको परमिशन देता है तो जरुर आप खुले दिल से खर्च करें, लेकिन फलां के घर में बच्चों के इतने खिलौने है कि रेस में शामिल होने के लिए अगर आप ऐसा कर रही हैं तो इस आदत को तुरंत त्याग दें.

बेफिजूल जिद को करें इग्नोर

मार्वल कैरेट्स का क्रेज बच्चों में खूब देखने को मिलता है. नतीजा ये है कि हर दुकान पर मार्वल कैरेक्टर देखने को मिल जाएंगे. मैक्सिमम घरों में ये देखने को मिलता है कि अगर बच्चे को लेकर आप मार्केट जाएंगे तो वो जरुर एक नया खिलौनों का सेट खरीद कर लाएगा भले घऱ में उसके पास सेम खिलौने हों. अब आप ही बताइए ये फिजुल खर्च नहीं तो क्या है. ऐसी जिद आपको इग्नोर करनी आनी चाहिए भले ही आपका बच्चा सड़क पर क्यों न लेट जाए. आप ही बताइए 500 के खिलौने जिसको घर आते ही कोई वेल्यू नहीं मिलनी क्योंकि वेसा सेट घर में मौजूद है. उसके लिए आपका बच्चा बाजार में रोए तो क्या आप उसे दिला देंगी. आपको बच्चे से पहले खुद स्ट्रोंग होना होगा. और न कहना सीखना होगा. बच्चे का टेंट्रम 5-10 मिनट का होगा. और जिद पूरी करने में आपको अपनी पूरे दिन मेहनत का पैसा लुटाना होगा. To be true it’s not worth it.

मार्वल हो या मिनियन, हर बार नया खिलौना खरीदना बच्चे के लिए नहीं, आपके पैसे और पेरेंटिंग की हार है, “ना” कहना सीखें, और बच्चे को भी सिखाइए कि हर मांग पूरी नहीं होगी.

बच्चे के लिए रोल मॉडल बनें, आया नहीं

जब से पेरेंट्स के हाथ में फोन आया है तो उनपर बेहतरीन पेरेंटिंग का दबाव और बढ़ गया है. कैसे बच्चों के इमोशन का ध्यान रखें, #Gentle Parenting, बच्चों का बेहतरीन विकास, 2 साल के बच्चों को पढ़ना कैसे सिखाएं और बच्चों को बचपने से कैसे सुपरस्टार बनाएं, इनकी रीलें देखकर पेरेंट्स इन दिनों खुद ही गिल्ट में जा रहे हैं. उन्हें लग रहा है जैसे ये सब ट्रैंड फोलो नहीं किया तो वो अच्छे पेरेंट नहीं बन पाएंगे. कई सोशल मीडिया प्लेटफौर्म तो ऐसे हैं तो मां-बाप को बच्चों की जिद के सामने कैसे झुकें और कैसे अपने दिन का हरएक मिनट बच्चे के लिए एक्टिविटी प्लान करने में गुजारें, उसकी बकायदा पैसे लेकर ट्रैनिंग भी देते हैं. अब के मिलेनियम पैरेंट्स को समझना होगा कि बच्चों को नेचर ने स्ट्रौंग बनाया है, वो देखकर सीखते हैं. तो उनको सीखाने के लिए ज्यादा एफर्ट्स मत लगाएं. जो आपकी दिनचर्या है उसके हिसाब से जीवन बिताएं, न कि बच्चे के हिसाब से खुद को ढालें. कुछ वक्त में बच्चा अपने एनवार्यमेंट को समझ कर खुद आपके हिसाब से एडजस्ट हो जाएगा, जिसके लिए आपको ज्यादा मेहनत करने की जरुरत नहीं है. इसलिए जरुरी है कि आपने पर्सनैलिटी, दिनचर्या, रूटीन और लाइफस्टाइल पर ज्यादा फोकस करके, बच्चे के लिए रोल मौडल बनें, आया नहीं.

बच्चे को एडल्ट की तरह ट्रीट करें- प्यार दें, पर सीमाएं भी तय करें

बच्चों को बचपन से ही एडल्ट की तरह ट्रीट करना जरूरी है. लेकिन ऐसा एडल्ट जिसे प्यार भरपूर मिलेगा लेकिन प्यार के नाम पर उनकी नाजायाज जिद नहीं पूरी की जाएंगी. बच्चों से पूछना कौन से कलर की साइकिल, दीवारों पर कौन सा कलर, डिनर में क्या बनाएं, घूमने कहां जाएं. ये सब बंद करें. बच्चों को समझाएं कि उनकी बात सुनी जाएगी लेकिन किया वही जाएगा जो सही, व्यहारिक और उनकी पौकेट के हिसाब से सही होगा. उनके फैसले तभी मायने रखेंगें जब वो फैसले लेने के लायक होगें. Yes, Opinion matters, की बात को समझा जाएगा. उनकी बात सुनी जरुर जाएगी लेकिन उसपर अमल ये जरुरी नहीं.

गिरेंगे नहीं तो संभलना कैसे सिखेंगे?

यहां पेरेंट्स की भी गलती है. वो ये बच्चों को लेकर कुछ ज्यादा ही परेशान रहते हैं. पार्क भी जाएंगे तो बच्चे को खुला छोड़ने की बजाए उसके पीछे-पीछे चलेंगें की कहीं गिर न जाए, कोई बच्चा ही उसपर हाथ न उठा दे. अब बताइए विदआउट रिस्क क्या कभी कुछ हुआ है. बच्चे गिरेंगें नहीं तो संभलना कैसे सिखेंगे. इसलिए अपने शेयर की गलतियां बच्चों को खुद करने दें. स्लाइड से गिर जाओगे मत चढ़ो, यहां मत जाओ गिर जाओगे, अक्सर यही आपको पार्क में सुनने को मिलेगा. अरे उन्हें खुला छोड़ दें. गिरेंगे तभी सो संभलेंगे. ऐसा तो नहीं कि आपका जीवन परफेक्ट हो और आपने कोई गलती नहीं की. तो बच्चों को भी खुद सीखने-खेलने दें और खुद भी चैन की सांस लें.

माता-पिता को समझना होगा कि जीवन इतना आसान नहीं है जितना उन्होंने अपने बच्चे लिए चार दिवार के अंदर बना दिया है. बाहर बेहद संघर्ष है और उसके लिए बच्चे को स्ट्रोंग घर से ही बनना होगा. अगर घर पर आप बच्चे की हर पसंद-नापसंद पर ध्यान देंगे, तो क्या बाहर भी उसे ऐसा ही मौहोल मिलेगा. नहीं न. इसलिए बच्चे को बचपने से एडजस्ट करने और न सुनने की आदत होने चाहिए. बचपन से बच्चों में अपने काम करने की स्किल्स डेवलप होनी चाहिए. इसके लिए आपको बच्चे को आजादी देनी होगी न कि एक्सट्रा पेम्परिंग. उसे सिखाएं खुद बाथरूम कैसे जाएं. कैसे खाने के बाद न सिर्फ अपने बरतन सिंक में ऱखें बल्कि उन्हें धोंए, हो सकता हो वो शुरु में प्लेट में गंदगी छोड़ दें, लेकिन आपकी ड्यूटी है कि उन्हें अपने काम करने के लिए खुद इनकरेज करें.

तो पेरेंट्स स्टेप बैक एंड रिलैक्स. बच्चों को उनकी जरूरतों के हिसाब से पालिए, ना कि सोशल मीडिया के ट्रेंड्स के मुताबिक.

Hair Care Tips : बालों की देखभाल के दौरान ध्यान रखें ये खास बातें

Hair Care Tips :  खूबसूरत, घने और सेहतमंद बालों में छिपा होता है आकर्षक व्यक्तित्व का राज. तभी तो स्त्रियों के साथसाथ पुरुष भी अपने बालों की केयर करने में कोई कमी नहीं रखते. बालों को हेल्दी और स्टाइलिश लुक देने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है :

  1. केयर
  • बालों को माइल्ड शैंपू से धोएं.
  • बेड पर जाने से पहले बालों में कंघी करना न भूलें.
  • दोमुंहे बालों की समस्या से नजात पाने के लिए 6-7 सप्ताह बाद ट्रिमिंग जरूर करा लें.
  • पानी खूब पीएं.
  • रिलैक्स रहें. स्टे्रस की वजह से हेयर लौस की प्रौब्लम हो सकती है.

2, सावधानी

  • बालों में रबरबैंड न लगाएं. यह खिंचाव पैदा कर इन्हें नुकसान पहुंचाता है.
  • बालों को कवर किए बगैर धूप में न निकलें.
  • बालों में कभी कड़े हाथों से कंघी न करें.
  • बालों को बहुत ठंडे या गरम पानी से न धोएं.
  • बाल सुखाने के लिए हेयरड्रायर का प्रयोग करने से बचें. इस से बाल रूखे और कमजोर होते हैं.
  • हेयरडाई का प्रयोग कम से कम करें. इस के बजाय मेहंदी लगाना बालों की सेहत के लिए बेहतर है. मेहंदी कलरिंग के साथ नैचुरल कंडीशनिंग भी करती है.

3. आयल मसाज

  • रात में सोने से पहले किसी अच्छे हर्बल आयल से बालों की जड़ों में मसाज करें.
  • नैचुरल हेयर प्रोटीन और विटामिन ई युक्त तेल से बालों की मालिश स्कैल्प सर्कुलेशन को बढ़ाती है और बालों में सेहत भरी चमक देती है. बाल सौफ्ट और सिल्की बनते हैं.
  • हर्बल आयल का प्रयोग बालों के टूटने, झड़ने और डैंड्रफ की प्रौब्लम को दूर करता है.

4. डाइट

  • अपनी डाइट में विटामिन बी, सी और ई युक्त पोषक पदार्थों को शामिल करें.
  • पपीता, गाजर, तरबूज, सेब, आड़ू, कद्दू वगैरह में बालों को हेल्दी बनाने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं. इसलिए खूब फलसब्जियां खाएं.
  • बाल आयली हैं तो फ्राइड फूड और फैट कम मात्रा में लें.
  • बहुत ज्यादा चौकलेट, स्वीट्स, केक और कुकीज न लें, क्योंकि जो भी आप खाती हैं उस का सीधा असर त्वचा व बालों पर पड़ता है.
  • कैल्सियम सप्लीमेंट या 2 गिलास दूध जरूर लें.

5. नुसखे

  • तेल में नीबू का रस मिला कर लगाने से डैंड्रफ की समस्या से राहत मिलती है.
  • केले में शहद मिला कर इसे 30-40 मिनट के लिए बालों में लगा कर छोड़ दें, फिर धोएं और देखें कि बालों में कैसी चमक आती है.
  • धनिया के पत्तों का जूस बालों को हेल्दी बनाता है.
  • बालों में चमक लाने के लिए वाश करने के बाद नीबू के पानी का प्रयोग लाभकारी है.
  • यदि आप को डैंड्रफ की प्रौब्लम है तो बेड पर जाने से पहले विनेगर और पानी का मिक्सचर बालों की जड़ों में लगाएं. सुबह उठ कर विनेगर वाटर से बाल धो लें.
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