महिलाएं मानसिक रूप से मजबूत बनने के लिए अपनाएं ये आदत

अधिकतर हम देखतें हैं की महिलाओं में सहनशीलता पुरुषों के मुकाबले बहुत अधिक होती है जो कुछ हद तक बहुत अच्छी बात है लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा आपके जीवन का हिस्सा बन जाए तो यह उतना ही घातक बन जाती है. क्योंकि तब उसे हर कोई अपने दबाव में रखना पसंद करता है जिससे वह अपना आत्मविश्वास खोने लगती है और कई बार यही परेशानी उसे मानसिक रूप से कमजोर बनाने का काम करती है इसलिए जरूरी है कि आपको पता हो कब,कौन आपका फायदा उठाने की कोशिश में है. जिसके लिए आपको वक़्त रहते मानसिक और भावनात्मक तौर पर कमजोर होने से बचना आना चाहिए चलिए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जो हर महिला को अपने जीवन में अपनाना आना चाहिए जिस से वो जीवन का हर आंनद लें सके.

आत्मविश्वास में कमी ना आने दें

अक्सर महिलाएं दुसरो पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेती हैं. जिसका कई बार लोग बहुत जल्दी फायदा उठाने से नहीं चूकते.आत्मविश्वास मेंटली स्ट्रांग होने की नीव है.इसलिए जरूरी है कि हर महिला को अपने ऊपर पूर्ण आत्मविश्वास हों. साथ ही किसी भी बात का निर्णय लेने से पहले जाँचने परखने का गुण आता हों.खुद को आत्मनिर्भर बनाएं.

डर के आगे जीत है

यदि हमारी कमजोरी किसी और को पता होगी तो वह बहुत जल्दी उसका फायदा उठाने की सोचगा. इसलिए जरूरी है कि अपनी कमजोरीयों पर काम करें और उसे अपनी खूबियों में तब्दील करने कि पूरी कोशिश करें.

खुद से प्यार करें

जीवन में हर रिश्ता महत्वपूर्ण है लेकिन ऐसे में हम खुद को भूल जाती हैं इसलिए खुद से प्यार करना ना भूले यदि आप अपनी नजरो में बेस्ट हैं तो हर किसी कि नजरों में आप बेस्ट ही रहंगी. अपने मन में सेल्फ डाउट को पनपने ना दें.

सकरात्मक रवैया रखें

साईकोलॉजिकली देखे तो हमारी आदत होती है कि हमारा ध्यान नकरात्मक बातों पर या चीज़ो पर बहुत जल्दी जाता है जिस कारण हम परेशानियों से घिर जाते है ऐसे में जरूरी है कि अपनी सोच को सकरात्मक बनाए. व ज्यादा सोच विचार यानि ओवर थिंकिंग से बचे . बार बार एक ही बात के बारे में सोचना हमारी मानसिक स्थिति को बिगड़ता है.

मन को खाली करें

अधिकतर महिलाएं अपनी परेशानियों को दूसरे से साझा करने में कतराती हैं जिस कारण वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं जिसका असर उनपर ना सिर्फ मानसिक बल्कि शरारिक रूप से भी पड़ता है ऐसे में किसी अपने से अपने मन की बात करने से कतराएं नहीं ऐसा करने से आपका मन हल्का और तनाव कम होगा.

जानें क्या है मेकअप उतारने का सही तरीका

सही तरीके से मेकअप नहीं उतारने पर त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में ये बहुत जरूरी है कि आप सही और सुरक्षित तरीके से मेकअप उतारें. मेकअप उतारने के लिए बादाम तेल का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा होता है. बादाम के तेल में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो त्वचा के लिए आवश्यक होते हैं.

बादाम तेल में ओमगा 3 फैटी एसिड और एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो यूवी किरणों के प्रभाव को कम करने और बढ़ती उम्र के लक्षणों को दूर करने में सहायक होते हैं. ऐसे में मेकअप उतारने के लिए बादाम तेल का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद रहेगा.

आखिर बादाम तेल ही क्यों?

मेकअप उतारने के लिए आप हमेशा कोई ऐसी चीज की ख्वाहिश करती होंगी जिससे मेकअप जल्दी से उतर जाए और चेहरा साफ हो जाए. आई-लाइनर और मसकारा साफ करने के लिए थोड़ा जयादा ध्यान रखना होता है. ऐसे में जरूरी है कि आप जिस भी क्रीम या लोशन का इस्तेमाल कर रही हैं वो सुरक्षित हो और सुरक्षा के लिहाज से बादाम तेल एक बेहतरीन विकल्प है.

बादाम तेल इस्तेमाल करने की सबसे बड़ी वजह ये है कि इसमें किसी भी प्रकार का रसायन नहीं होता है. जिससे त्वचा को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है.

बादाम तेल इस्तेमाल करने की दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है कि मेकअप के बाद चेहरे की नमी खो जाती है. ऐसे में बादाम का तेल चेहरे को पोषित करने का काम करता है.

इन दोनों कारणों के अलावा अगर आपको कील-मुंहासों और झांइयों की समस्या है तो भी ये आपके लिए फायदेमंद ही साबित होगा.

कैसे करें इस्तेमाल ?

बादाम तेल से मेकअप साफ करना बहुत ही आसान है. सबसे पहले अच्छी मात्रा में बादाम तेल हथेली में लें. उससे अचछी तरह अपने चेहरे की मसाज करें. अपनी आंखों और उसके आस-पास हल्के हाथों से मसाज करें. उसके बाद रूई के बड़े टुकड़े को गुलाब जल में डुबोकर, निचोड़ लें. इसके बाद पूरे चेहरे को अच्छी तरह पोंछ लें.

इन बातों का भी रखें विशेष ध्यान:

1. अगर आपने वाटरप्रूफ मसकारा लगाया था तो आंखों की मसाज के लिए कुछ अधि‍क मात्रा में तेल लेकर मसाज करें.

2. एक बार जब चेहरे से मेकअप हट जाए तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

इन्टौलरैंस: दृष्टि को क्यों पड़ा आवाज उठाना भारी

लेखिका- दिव्या शर्मा

‘‘कूड़ा…’’घर के बाहर कूड़े वाले ने जोर से आवाज लगाते हुए गेट पर हाथ मारा.‘‘यह कमीना भी उसी वक्त आता है जब इंसान जरूरी काम कर रहा होता है,’’ दृष्टि ने भुनभुनाते हुए फोन मेज पर रखा और फिर डस्टबिन उठा कर बाहर की ओर लपकी.

बाहर जा कर देखा तो कूड़े वाला 3 मकान छोड़ कर खड़ा था और सब के कूड़े में से कूड़ा छांट रहा था.

‘‘अब आ कर ले जा… कब तक हाथ में कूड़ा लिए खड़ी रहूंगी,’’ तमतमा कर वह चिल्लाई.

‘‘आ रहा हूं 2 मिनट रुकिए,’’ उस ने जवाब दिया और फिर से कूड़ा छांटने लगा.

‘‘अब इस का भी इंतजार करो… कुछ कह दो तो नखरे दिखाने लगेंगे. यह इन्टौलरैंस किसी को दिखाई नहीं देती,’’ बुदबुदाते हुए वह डस्टबिन पटक अंदर चली गई और फोन उठा कर बाहर आ गई तथा फेसबुक पर ‘इन्टौलरैंस का शिकार होती महिलाएं’ शीर्षक पर लिखे गए लेख पर चल रही बहस में शामिल हो गई.

‘सब से ज्यादा बरदाश्त कर रही हैं हम औरतें. हर जगह, हर संस्कृति में हमें दबाया जाता है,’ दृष्टि ने प्रतिउत्तर में एक टिप्पणी लिख दी थी.

‘कौन दबा रहा है मैडम? असल में औरतें बहुत होशियार होती हैं. फायदे के लिए खुद को बेचारी बनाए रखना चाहती हैं,’ किसी ने उस की टिप्पणी के उत्तर में लिख दिया.

‘औरतें कभी फायदा नहीं उठातीं, बल्कि तुम जैसे लोग अपनी मां का भी फायदा उठाते हो,’ उस की महिला मित्र ने जवाबी टिप्पणी लिख दी.

इस के बाद जैसे सब ने उस के विरुद्ध मोरचा ही खोल दिया.

किसी ने लिखा कि महावारी पर नौटंकी करतीं ये औरतें ?ाठा फैमिनिज्म का एजेंडा चला रही हैं. किसी ने उच्छृंखल कहा तो किसी ने लिखा कि इसे औरतों के साथ न जोड़ो. किसी ने लिखा कि यह तुम्हारा ?ाठा नारीवाद है और किसी ने वामपंथी कह कुछ गालियां लिख दीं.

दृष्टि सब को जवाब दे रही थी कि तभी उसे परेशान करने कूड़े वाला आ गया. वह अब तक वहीं खड़ा था. दृष्टि का गुस्सा बढ़ता जा

रहा था.

दृष्टि पोस्ट पर आए कमैंट्स को देखने लगी. तभी एक कमैंट ने उस के दिमाग के पारे को और बढ़ा दिया. किसी ने लिखा कि इस देश में सिर्फ मुसलमान और दलित ही असहिष्णुता के शिकार हो रहे हैं. इस से ध्यान भटकाने के लिए तुम जैसी महिलाएं ऐसे प्रपंच रचती हैं.

‘‘सामने होता तो इस की गरदन दबा देती… ओ आएगा कि नहीं तू?’’ कमैंटकर्ता को गाली देते हुए वह कूड़े वाले पर फिर चिल्लाई.

अगले पल वह उस के सामने था. उस ने दृष्टि के हाथ से डस्टबिन ली और अपनी गाड़ी में उलट दी.

वापस मुड़ती दृष्टि कुछ देख अचानक ठिठक गई. कूडे़ वाले की गाड़ी पर नजर डाल कर कुछ देखने लगी. वहां पड़े महल्ले भर के कूड़े को उस ने अपने हाथों से अलगअलग किया हुआ था, जिस में शामिल थे खून से सने सैनिटरी पैड्स डायपर्स और न जाने क्याक्या. यह देख वह खुद पर शर्म महसूस करने लगी और सोच में पड़ गई कि समाज में इन्टौलरैंस के असली शिकार कौन हैं?’’

दृष्टि की उंगली फोन पर एक बार और थिरक उठी. अब उस के कमैंट में मुद्दा कूड़े वाला था.

क्यों दूर चले गए

सामाजिक मान्यताएं, संस्कार और परंपराएं व्यक्ति को अपने मकड़जाल में उलझाए रखती हैं. ऐसे में या तो वह विद्रोह कर के सब का कोपभाजन बने या फिर परिस्थितियों से समझौता कर के खुद को नियति के हाल पर छोड़ दे. किंतु यह जरूरी नहीं कि वह सुखी रह सके.

मैं भी जीवन के एक ऐसे दोराहे पर उस मकड़जाल में फंस गया कि जिस से निकलना शायद मेरे लिए संभव नहीं था. कोई मेरी मजबूरी नहीं समझना चाहता था. बस, अपनाअपना स्वार्थ भरा आदेश और निर्णय वे थोपते रहे और मैं अपने ही दिल के हाथों मजबूरी का पर्याय बन चुका था.

मैं जानता हूं कि पिछले कई दिनों से खुशी मेरे फोन का इंतजार कर रही थी. उस ने कई बार मेरा फैसला सुनने के लिए फोन भी किया था मगर मेरे पास वह साहस नहीं था कि उस का फोन उठा सकूं. वैसे हमारे बीच कोई अनबन नहीं थी और न ही कोई मतभेद था फिर भी मैं उस का फोन सुनने का साहस नहीं जुटा सका.

मैं ने कई बार यह कोशिश की कि खुशी को फोन पर सबकुछ साफसाफ बता दूं पर मेरा फोन पर हाथ जातेजाते रुक जाता और दिल तेजी से धड़कने लगता. मैं घबरा कर फोन रख देता.

खुशी मेरी प्रेमिका थी, मेरी जान थी, मेरी मंजिल थी. थोडे़ में कहूं तो वह मेरी सबकुछ थी. पिछले 4 सालों में हमारे बीच संबंध इतने गहरे बनते चले गए कि हम ने एकदूसरे की जिंदगी में आने का फैसला कर लिया था और आज जो समाचार मैं उसे देने जा रहा था वह किसी भी तरह से मनोनुकूल नहीं था. न मेरे लिए, न उस के लिए. फिर भी उसे बताना तो था ही.

मैं आफिस में बैठा घड़ी की तरफ देख रहा था. जैसे ही 2 बजेंगे वह फिर फोन करेगी क्योंकि इसी समय हम दोनों बातें किया करते थे. मैं भी अपने काम से फ्री हो जाता और वह भी. बाकी आफिस के लोग लंच में व्यस्त हो जाते.

मैं ने हिम्मत जुटा कर फोन किया, ‘‘खुशी.’’

‘‘अरे, कहां हो तुम? इतने दिन हो गए, न कोई फोन न कोई एसएमएस. मैं ने तुम्हें कितने फोेन किए, क्या बात है सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, ठीक ही है. बस, तुम से मिलना चाहता हूं,’’ मैं ने बडे़ अनमने मन से कहा.

‘‘क्या बात है, तुम ऐसे क्यों बोल रहे हो? न डार्लिंग कहा, न जानू बोले. बस, सीधेसीधे औपचारिकता निभाने लग गए. घर पर कोई बात हुई है क्या?’’

‘‘हां, हुई तो थी पर फोन पर नहीं बता सकता. तुम मिलो तो सारी बात बताऊंगा.’’

‘‘देखो, कुछ ऐसीवैसी बात मत बताना. मैं सह नहीं पाऊंगी,’’ वह एकदम घबरा कर बोली, ‘‘डार्लिंग, आई लव यू. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगी.’’

‘‘आई लव यू टू, पर खुशी, लगता है हम इस जन्म में नहीं मिल पाएंगे.’’

‘‘यही खुशखबरी देने के लिए तुम मुझ से मिलना चाहते थे,’’ खुशी एकदम असंयत हो उठी, ‘‘तुम ने जरा भी नहीं सोचा कि मुझ पर क्या बीतेगी. क्या सोचेंगे वे लोग जो हमें हमेशा एकसाथ देखते थे. यही है तुम्हारा प्यार. तुम्हारे कहने पर ही मैं ने मम्मीपापा को अपने रिश्ते के बारे में बताया था. आज क्या कहूंगी कि सब झूठ है,’’ इतना कहतेकहते खुशी रो पड़ी और फोन काट दिया.

इस के बाद मैं ने कितनी ही बार उसे फोन किया पर हर बार वह काट देती और अंत में उस ने फोन ही बंद कर दिया.

मैं एकदम परेशान हो गया. कहता भी तो किस से.

खुशी का मुझ से गुस्सा होना स्वाभाविक था. मैं ने ही उस से झूठेसच्चे वादे किए थे. मैं ने उस को एक सुनहरे भविष्य का सपना दिखाया था. अपना सुखदुख उस से बांटा था. उस ने हर समय मुझे एक रास्ता दिखाया था. मेरे बीमार होने पर वह बुरी तरह परेशान हो जाती थी और बिना कहे कई दवाइयां सीधे मेरे आफिस भिजवा देती और मेरे चपरासी को फोन कर के ढेर सारी हिदायतें भी देती. वह जानती थी कि मैं अपने प्रति बेहद लापरवाह हूं. आज मैं ने उस के सारे सपने पल भर में ही तोड़ दिए.

शाम को उदास मन और भरे दिल से मैं घर पहुंचा. मुझे देखते ही भाभी ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, ठीक है,’’ कहते हुए मैं रोंआसा सा हो गया. मुझे लगा कि वहां कुछ देर और खड़ा रहा तो आंसू न आ जाएं, इसलिए खुद को संभालता हुआ चुपचाप अपने कमरे में चला गया. बिस्तर पर गिरते ही मेरा सारा अवसाद आंखों के रास्ते बह निकला. रोतेरोते आंसू तो सूख गए पर भीतर का मन शांत न हो सका. थोड़ी देर में भाभी ने खाने के लिए पूछा. मैं ने कह दिया कि खा कर आ रहा हूं, भूख नहीं है पर खाया कब था, मैं अपने विचारों से जितना बचना चाहता था वे मुझे उतना ही सताने लगे.

खुशी से मेरी मुलाकात 4 साल पहले आफिस के बाहर वाले बस स्टैंड पर हुई थी. उजला वर्ण, तीखी नाक, लंबा कद और सधी हुई देहयष्टि. ऊपर से कपडे़ पहनने का ढंग इतना निराला था कि मैं उसे देखे बिना नहीं रह सका और पहली ही नजर में वह आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. हमारी चार्टर्ड बस और आफिस के छूटने का लगभग एक ही समय था. मैं 5 मिनट पहले ही बस स्टैंड पर पहुंच जाता. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता था कि उस की आंखें निरंतर मुझे ही तलाशती रहती हैं. धीरेधीरे वह भी आतेजाते मुझे देख कर हंस देती. इस तरह हम एकदूसरे के करीब आ गए. उस के पिता नेवी में उच्च पद पर थे तथा मेरे पिता मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर थे.

बीतते दिनों के साथ खुशी से मेरा प्रेम भी परवान चढ़ता गया. हमारी मुलाकातों की संख्या और समय दोनों बढ़ते रहे. इस दौरान मुझे सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली एक बड़़ी कंपनी में बहुत अच्छा औफर मिला और मैं ने उसे स्वीकार कर लिया. अब दोनों के दफ्तरों में कई किलोमीटर का फासला हो गया था. इस के बावजूद भी हम कोई न कोई बहाना ढूंढ़ कर मिलते रहे. हम दोनों कभी फिल्में देखते तो कभी बिना मकसद बांहों में बांहें डाल कर इधरउधर घूमते.

एक दिन खुशी ने मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर कहा, ‘अब बहुत हो चुकी है चुहलमस्ती. सीधीसीधी बात बताओ, कब मिला रहे हो मुझे अपनी मम्मी से.’

‘अरे, तुम तो दिल के रास्ते सीधा घर पर कब्जा करने की सोच रही हो,’ मैं ने मजाक के लहजे में कहा.

‘मेरे पापा अब रिटायर होने वाले हैं. वह चाहते हैं कि मेरी जल्दी से शादी हो जाए ताकि नौकरी में रहते हुए वह अपनी तमाम सुविधाओं का उपयोग कर सकें. रिटायरमेंट के बाद तो हम सिविलियन हो जाएंगे. फिर कहां ये सुविधाएं मिलेंगी.’

‘तो कोर्ट मैरिज कर लेंगे,’ मैं ने चुटकी लेते हुए कहा और उस के माथे पर घिर आई लटों को पीछे करने के बहाने उसे अपने अंक में भींच लिया. उस ने बिना कोई प्रतिवाद किए अपना सिर मेरे कंधों पर टिका दिया.

‘सच कहूं तो मुझे इन मजबूत कंधों की बहुत जरूरत है. प्लीज, मेरी बात को सीरियसली लेना, नहीं तो तुम्हारी खुशी तुम्हारे हाथ से निकल जाएगी,’ कहतेकहते वह रोंआसी हो गई.

मैं ने उस की भर आई आंखों के कोरों से बहने वाले आंसू के कतरे को अपनी उंगलियों से पोंछा, ‘तुम तो बेहद संजीदा हो गई हो.’

‘हां, बात ही कुछ ऐसी है. इन दिनों मेरे रिश्ते की बातें चल रही हैं. तुम एक बार अपने घर पर बात कर लेते तो मैं भी कम से कम उन्हें बता देती.’

‘कौन सी बात? मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘क्या कहोगी मेरे बारे में?’

‘यही कि तुम बेवकूफ हो, बुद्धू हो, एकदम बेकार और गुस्से वाले हो, पर तुम मेरे हो,’ कह कर पुन: खुशी ने मेरी गोद में सिर रख दिया. देर तक हम यों ही भविष्य के सपने संजोते रहे. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में रखा और उसे जल्दी ही बात करने का आश्वासन दिया. हम दोनों ही वहां से विदा हो गए.

घर पर मैं अपनी बात को इस ढंग से पेश करना चाहता था कि इनकार की कोई गुंजाइश ही न रहे और इस के लिए उचित अवसर तलाशता रहा.

भैया की शादी को 2 वर्ष हो चुके थे और उन का 8 माह का एक बेटा भी था. हमारे घर का माहौल बेहद सौहार्दपूर्ण था पर घर के सभी लोग एकसाथ नहीं मिल पाते थे.

मैं सपनों में जीने लगा था. एक दिन मैं आफिस में बैठा कोई काम कर रहा था कि तभी मेरे मोबाइल पर पापा का फोन आया. पता चला कि भैया का एक्सीडेंट हो गया और उन्हें काफी गंभीर चोटें आई हैं. वह जीवन नर्सिंगहोम में हैं. इस से पहले कि मैं वहां पहुंचता, भैया की निर्जीव देह को लोग एंबुलेंस में डाल कर घर ले जा रहे थे.

घर पर मरघट का सा सन्नाटा पसरा था. सभी एकदम स्तब्ध रह गए थे. भाभी तो जैसे पत्थर ही बन गईं और मम्मीपापा का रोरो कर बुरा हाल था. 2-3 दिनों तक घर का माहौल बेहद गमगीन रहा.

समय अपनी गति से चलता रहा. घर का माहौल धीरेधीरे संभलने लगा. खुशी मेरी विवशता समझती थी और दिल का हाल भी. जितनी बार भी समय निकाल कर मैं ने उस से संपर्क किया, बेहद नरम आवाज में वह संवेदना व्यक्त करती और मेरे घर पर आने की जिद करती. वह चाहती थी कि मैं अपने और उस के बारे में घर पर सबकुछ बता दूं मगर मैं ऐसा कर नहीं पा रहा था.

मम्मी भाभी को ले कर बेहद चिंतित और दुखी थीं. एक तो उन का बड़ा बेटा गुजर गया था, दूसरा जवान बहू का गम. उन्हें इस बात की बेहद चिंता थी कि बहू बाकी की तमाम उम्र इस घर में कैसे बिताएगी.

एक दिन खुशी और मैं पार्क में बैठे थे. वह भरे स्वर

में कहने लगी, ‘देखो, अब तक मैं पापा को जैसेतैसे टालती रही हूं पर अब और उन्हें टाल नहीं पाऊंगी. आज भी उन्होंने मुझे कई लड़कों के फोटो दिखाए हैं. तुम ने यदि अब तक अपने घर पर बात की होती तो मैं कम से कम तुम्हारे बारे में कुछ तो कह सकती. उन का इस तरह रोजरोज बात करना तो रुक जाता. मम्मी अकेले में कई बार मुझ से मेरी पसंद की तरफ भी इशारा करती हैं.’

‘तो फिर इंतजार किस बात का है,’ मैं ने खुशी से कहा, ‘तुम मेरे बारे में सबकुछ बता दो और मेरी मजबूरी भी उन्हें बता दो कि जैसे ही मुझे मौका मिला, मैं उन से मिलने आऊंगा.’

‘सच,’ उस ने अविश्वास भरे स्वर में ऐसे पूछा जैसे उसे मुझ पर शक हो.

‘तुम ऐसे अविश्वास से मुझे क्यों देख रही हो. तुम तो जानती हो कि मैं घर पर बात करने जा ही रहा था कि ऐसा हादसा हो गया,’ मैं ने कहा.

‘ओह डार्लिंग, पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि तुम इस बात को संजीदगी से नहीं ले रहे हो.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना रह सकता हूं क्या?’ कह कर मैं ने उस के गालों पर एक प्यारा सा चुंबन जड़ दिया तो शर्म से खुशी ने अपनी पलकें झुका लीं और कस कर मुझ से लिपट गई.

एक दिन शाम को मैं घर आया. भाभी के मम्मीपापा आए हुए थे. मैं ने उन के चरण स्पर्श किए और बाथरूम में फ्रेश होने चला गया. मेरे आने पर भाभी चाय बना कर ले आईं. घर का माहौल बेहद गमगीन और घुटा हुआ था. खामोशी तोड़ने के लिए मम्मी ने पहल की थी.

‘बहनजी, अब तो मेरे बेटे को गुजरे हुए 3 महीने हो चुके हैं. किंतु बहू की ऐसी हालत मुझ से देखी नहीं जाती. मैं जब भी इसे देखती हूं कलेजा मुंह को आता है. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता. आप ही कुछ बताइए न.’

‘मैं क्या कहूं, मैं ने तो अपनी बेटी आप को दी है. आप जैसा उचित समझें, करें,’ वह बेहद भावुक हो कर बोलीं.

‘आप इसे कुछ दिनों के लिए अपने साथ ले जाइए. वहां थोड़ा इस का मन तो बहल जाएगा,’ मम्मी ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘नहीं, मम्मीजी, मैं इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस घर में बहू बन कर आई थी और यहीं से मेरी अंतिम विदाई भी होगी,’ भाभी धीरे से बोलीं.

‘तुम्हें यहां से कौन भेज रहा है बहू. मैं तो कह रही हूं कि कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ. वैसे तुम इस बात को भी ध्यान से सोचना कि तुम्हारे सामने सारी उम्र पड़ी है. तुम पहाड़ जैसा जीवन किस के सहारे काटोगी.’

‘मुन्ना है न, उसी में मैं उन का रूप देखती हूं,’ कहतेकहते भाभी की आंखें भर आईं.

‘बेटी, मुझे अपने बेटे के खोने से ज्यादा गम तुम्हारा है, क्योंकि मुझे तुम से हमदर्दी भी है और आत्मीयता भी. हम भला कब तक तुम्हारा साथ देंगे. एकल परिवारों की अपनी जन्मजात मुश्किलें हैं. कल अंकित की शादी होगी. उस की अपनी गृहस्थी बनेगी. हमारे जाने के बाद कौन कैसा व्यवहार करेगा…’

‘बहनजी, वैसे तो यह आप का पारिवारिक मामला है पर यदि अंकित की कहीं और बात नहीं चली हो तो संगीता भी तो…घर की बात घर में ही बन जाएगी और आप भी चिंतामुक्त हो जाएंगी. आप सोच लीजिए…’

उन के यह शब्द सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. मुझे लगा यदि मैं ने कोई कदम फौरन नहीं उठाया तो शायद किसी परेशानी में न फंस जाऊं.

‘आंटी, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अपनी ही भाभी से…’ मैं ने कहा.

‘बेटा, जब भाई ही नहीं रहा तो यह रिश्ता कैसा,’ मम्मी ने कहा. जैसे वह भी इस रिश्ते को स्वीकार कर के बैठी थीं.

‘लेकिन मम्मी…’ मैं ने चौंक कर कहा.

‘ठीक है, तो सोच कर बता देना,’ मम्मी बोलीं, ‘हम ने तो बिना झिझक एक बात कही है. बाकी तुम जैसा उचित समझो, बता देना.’

मेरे लिए अब वहां का माहौल बेहद बोझिल होता जा रहा था. मुझ से और देर तक वहां बैठा नहीं गया और मैं उठ कर चला गया.

मेरे लिए अब बेहद जरूरी हो गया था कि मैं घर पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूं, पर भाभी की उपस्थिति में मैं कोई बात नहीं करना चाहता था. इधर मुझ पर लगातार खुशी का दबाव बढ़ता जा रहा था.

एक दिन भाभी किसी काम से बाजार गई हुई थीं. मम्मीपापा बाहर बरामदे में बैठे थे. उचित अवसर देख कर मैं ने बिना कोई भूमिका बांधे कहा, ‘मम्मी, मैं एक लड़की को पसंद करता हूं. पिछले कई सालों से मेरा उस के साथ परिचय है और हम शादी करना चाहते हैं.’

‘ये प्रेमप्यार सब बेकार की बातें हैं. तुम जिसे प्रेम कहते हो वह महज कुछ ही दिनों का बुखार होता है,’ पापा ने एक तरह से मेरा प्रस्ताव ठुकरा दिया.

‘नहीं, यह बात नहीं है,’ मैं ने मजबूती से कहा.

‘बेटा, हम तुम्हारा कोई बुरा थोड़े ही चाहेंगे,’ मम्मी ने गरमाए माहौल की तीव्रता को कम करने की कोशिश की, ‘संगीता को इस घर में रहते हुए लगभग 2 साल हो चुके हैं. अब वह हम सब को अच्छी तरह जान चुकी है और हम उसे. नई लड़की इस घर में कैसे एडजेस्ट करेगी, यह कौन जानता है. इस हादसे के बाद तो वह इस घर में पूरी तरह समर्पित रहेगी. संगीता और तुम हमउम्र हो. तुम ने दुनियादारी को अभी ठीक से जाना नहीं है. आज जिसे तुम अपनी पत्नी बना कर लाना चाहते हो, क्या पता वह संगीता के साथ कैसा व्यवहार करे और तुम्हारा संगीता से मिलना उसे कितना उचित लगे. ऐसा नहीं है कि संगीता के मातापिता के कहने के बाद हम ने ऐसा निर्णय लिया है. सोच तो हम लोग पहले से रहे थे पर यह सब कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. अब अगर उस के घर वालों की भी ऐसी इच्छा है तो हमें कोई एतराज नहीं है.’

‘लेकिन मम्मी, मैं जिसे भाभी मानता आया हूं उसे पत्नी बनाने के बारे में कैसे सोच सकता हूं. यह शादी आप की नजरों में नैतिक हो सकती है पर युक्तिसंगत नहीं. मेरे भी अपने कुछ अरमान हैं, फिर मेरे उस लड़की के प्रति वादे और कसमें…’

‘अरे, बेटा, यह प्रेमप्यार कुछ दिनों का बुखार होता है. वह अपने घर में एडजेस्ट हो जाएगी और तुम अपने घर में,’ पापा ने अपनी बात फिर से दोहराई.

मैं ने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा.

मेरे पास अब 2 ही विकल्प बचे थे. मैं या तो संगीता भाभी से विवाह करूं या इस घर को छोड़ कर अपनी इच्छानुसार गृहस्थी बसा लूं. भैया की मौत के बाद अब मैं ही उन का सहारा था. मुझ से अब उन की सारी आशाएं बंधी थीं. हर हाल में वज्रपात मुझ पर ही होना था. यह तो सच था कि इस विवाह से न तो मैं सुखी रह सकता, न संगीता भाभी को खुश रख सकता और न ही खुशी ही सुखी रहती.

परिस्थितियां धीरेधीरे ऐसी बनती गईं कि मैं घर में तटस्थ होता चला गया और अंतर्मुखी भी.

हार कर इस घर की भलाई और मातापिता के फर्ज को निभाने के लिए मुझे ही अपनी कामनाओं के पंख समेटने पडे़. मुझे नहीं पता था कि नियति मेरे साथ ही ऐसा खेल क्यों खेल रही है. कहने को सब अपने थे पर अपनापन किसी में नहीं था.

मैं ने खुशी को कई बार फोन करने की कोशिश की मगर हर बार नाकामयाबी हाथ लगी. मैं उस की हालत भी अच्छी तरह जानता था. मैं ने उसे सचमुच कहीं का नहीं छोड़ा था. उस का गम मेरे गम से काफी गहरा था. आज मुझे उस की और उसे मेरी सख्त जरूरत थी पर वह मुझ से बहुत दूर जा चुकी थी. मैं ने भी समझ लिया कि मुझ पर अब जिंदगी कभी मेहरबान नहीं हो सकती. मेरे सारे सपने पलकों में ही लरज कर रह गए और सारी हसरतें सीने में ही दफन हो कर रह गईं.

अचानक घर से संगीता भाभी का फोन आया तो मैं चाैंक पड़ा. मैं सपनों की जिस दुनिया में घूम रहा था, उस से बाहर निकल कर मोबाइल को कान से लगा लिया.

‘‘सौरी, मैं ने तुम्हें इस समय फोन किया. क्या तुम अभी घर पर आ सकते हो?’’

मैं एकदम घबरा गया. मुझे लगा मेरे लिए एक और आघात प्रतीक्षा कर रहा है. मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है. सब ठीक तो है?’’

‘‘सब ठीक नहीं है. बस, तुम घर आ जाओ,’’ इस बार भाभी का निवेदन आदेश में बदल गया.

‘‘बात क्या है?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘‘सच बात तो यह है कि मैं ठीक से जानना चाहती हूं कि तुम इस विवाह से खुश हो या नहीं. मैं चाहती हूं कि तुम इसी समय घर पर आ जाओ. मम्मीपापा घर पर नहीं हैं. ऐसे में तसल्ली से बैठ कर बात हो सकेगी ताकि हम कोई निर्णय ले सकें.’’

मुझे लगा शायद यही ठीक होगा. जो औरत मेरी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती है उसे मैं सबकुछ बता दूंगा पर खुशी की बात को छिपा जाऊंगा ताकि उस के भविष्य में कोई बाधा न पहुंचे.

मैं ने जैसे ही घर में कदम रखा, सामने खुशी बैठी थी. मेरा तनबदन एकदम सिहर उठा. पता नहीं, खुशी क्या कह चुकी होगी.

‘‘इसे पहचानते हैं, इस का नाम खुशी है,’’ भाभी ने भेद भरी नजरों से मुझे देखा, ‘‘मैं ने ही इसे यहां बुलाया है. मुझे इतना कमजोर और स्वार्थी मत समझना. तुम्हारे हावभाव से मैं समझ चुकी थी कि तुम किसी को बहुत चाहते हो. मुझे लगा, ऐसे घुटघुट कर जीने से क्या फायदा. जिंदगी जीने और काटने में बड़ा फर्क होता है अंकित, और तुम्हारी जिंदगी तो खुशी है, फिर परिस्थितियों से डट कर मुकाबला क्यों नहीं कर सकते. जब किसी से कोई सच्चा प्यार करता है तो उस के दिल में हमेशा वही बसा रहता है, फिर तुम मुझे कैसे खुश रख सकोगे?

‘‘मैं ने बड़ी मुश्किल से इस का नंबर तुम्हारे मोबाइल से ढूंढ़ा था. अपनी इस गलती के लिए मैं तुम से माफी मांगती हूं. जब मैं ने तुम्हारी सारी स्थिति खुशी के सामने रखी तो इस ने फौरन मुझ से मिलने की इच्छा जाहिर की.’’

‘‘मम्मीपापा मानेंगे क्या?’’ मैं ने अपनी शंका रखी.

‘‘जानते हो, वे दोनों खुशी के घर ही गए हैं इस का हाथ मांगने और यह पूरी की पूरी तुम्हारे सामने खड़ी है,’’ कहतेकहते भाभी की आंखें भर आईं और वह भीतर चली गईं.

मैं ने खुशी को कस कर अंक में भींच लिया. खुशी मुझ से अलग होते हुए बोली, ‘‘तुम मेरा सबकुछ ले कर क्यों दूर चले गए थे.’’

हमकदम : अनन्या की तरक्की पर क्या था पति का साथ

अधिक खुशी से रहरह कर अनन्या की आंखें भीग जाती थीं. अब उस ने एक मुकाम पा लिया था. संभावनाओं का विशाल गगन उस की प्रतीक्षा कर रहा था. पत्रकारों के जाने के बाद अनन्या उठ कर अपने कमरे में आ गई. शरीर थकावट से चूर था पर उस की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. एक पत्रकार के प्रश्न पर पति द्वारा कहे गए शब्द कि इन की जीत का सारा श्रेय इन की मेहनत, लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति को जाता है, रहरह कर उस के जेहन में कौंध जाते.

कितनी आसानी से चंद्रशेखर ने अपनी जीत का सेहरा उस के सिर बांध दिया. अगर कदमकदम पर उसे उन का साथ और सहयोग नहीं मिला होता तो वह आज विधायक नहीं गांव के एक दकियानूसी जमींदार परिवार की दबीसहमी बहू ही होती.

इस मंजिल तक पहुंचने में दोनों पतिपत्नी ने कितनी मुश्किलों का सामना किया है यह वे ही जानते हैं. जीवन की कठिनाइयों से जूझ कर ही इनसान कुछ पाता है. अपने वजूद के लिए घोर संघर्ष करने वाली अनन्या सिंह इस महत्त्वपूर्ण बात की साक्षी थी.

उस का मन रहरह कर विगत की ओर जा रहा था. तकिए पर टेक लगा कर अधलेटी अनन्या मन को अतीत की उन गलियों में जाने से रोक नहीं पाई जहां कदमकदम पर मुश्किलों के कांटे बिछे पड़े थे.

बचपन से ही अनन्या का स्वभाव भावुक और संवेदनशील था. वह सब के आकर्षण का केंद्र बन कर रहना चाहती थी. दफ्तर से घर आने पर पिता अगर एक गिलास पानी के लिए कहीं उस के छोटे भाई या बहन को आवाज दे देते तो वह मुंह फुला कर बैठ जाती. पूछो तो होंठों पर बस, एक ही जुमला होता, ‘पापा मुझ से प्यार नहीं करते.’

बातबात पर उसे सब के प्यार का प्रमाण चाहिए था. कभीकभी मां बेटी की हठ देख कर चिंतित हो उठतीं. एक बार उन्होंने अनन्या के पिता से कहा भी था, ‘अनु का स्वभाव जरा अलग ढंग का है. अगर इसे आप इतना सिर पर चढ़ाएंगे तो कल ससुराल में कैसे निबाहेगी? न जाने कैसा घरपरिवार मिलेगा इसे.’

‘तुम चिंता क्यों करती हो, समय सबकुछ सिखा देता है. हम से जिद नहीं करेगी तो किस से करेगी?’ अनु के पिता ने पत्नी को समझाते हुए कहा था.

एक दिन अनन्या के मामा ने उस के लिए चंद्रशेखर का रिश्ता सुझाया तो उस के पिता सोच में पड़ गए.

‘अभी उस की उम्र ही क्या हुई है शिव बाबू, इंटर की परीक्षा ही तो दी है. इस साल आगे पढ़ने का उसे कितना चाव है.’

‘देखिए जीजाजी, इतना अच्छा रिश्ता हाथ से मत निकलने दीजिए, पुराना जमींदार घराना है. उन का वैभव देख कर भानजी के सुख की कामना से ही मैं यह रिश्ता लाया हूं. अनन्या के लिए इस से अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा,’ शिवप्रकाशजी ने समझाया तो अनन्या के पिता राजी हो गए.

पहली मुलाकात में ही चंद्रशेखर और उस का परिवार उन्हें अच्छा लगा था. उन्होंने बेटी को समझाते हुए कहा था, ‘चंद्रशेखर एक नेक लड़का है, तुम्हारी इच्छाओं का वह जरूर आदर करेगा.’

शादी के बाद अनन्या दुलहन बन कर ससुराल चली आई. गांव में बड़ा सा हवेलीनुमा घर, चौड़ा आंगन, लंबेलंबे बरामदे, भरापूरा परिवार, कुल मिला कर उस के मायके से ससुराल का परिवेश बिलकुल अलग था. मायके में कोई रोकटोक नहीं थी पर ससुराल में हर घड़ी लंबा घूंघट निकाले रहना पड़ता था. आएदिन बूढ़ी सास टोक दिया करतीं, ‘बहू, घड़ीघड़ी तुम्हारे सिर से आंचल क्यों सरक जाता है? ढंग से सिर ढंकना सीखो.’

चंद्रशेखर अंतर्मुखी प्रवृत्ति का इनसान था. प्रेम के एकांत पलों में भी वह मादक शब्दों के माध्यम से अपने दिल की बात कह नहीं पाता था और बचपन से ही बातबात पर प्रमाण चाहने वाली अनन्या उसे अपनी अवहेलना समझने लगी थी.

पुराना जमींदार घराना होने के कारण उस की ससुराल वाले बातबात पर खानदान की दुहाई दिया करते थे और उन के गर्व की चक्की में पिस जाती साधारण परिवार से आई अनन्या. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे.

एक दिन अनन्या ने दुखी हो कर पति से कहा, ‘आप के जाने के बाद मैं अकेली पड़ी बोर हो जाती हूं. गांव में कहीं आनेजाने और किसी के साथ खुल कर बातें करने का तो सवाल ही नहीं उठता. मैं समय का सदुपयोग करना चाहती हूं. आप तो जानते ही हैं कि मैं ने प्रथम श्रेणी में इंटर पास किया है. मैं और आगे पढ़ना चाहती हूं, पर मुझे नहीं लगता यह संभव हो पाएगा. बातबात पर खानदान की दुहाई देने वाली मांजी, दादी मां, बाबूजी क्या मुझे आगे पढ़ने देंगे?’

चंद्रशेखर ने पत्नी की ओर गहरी नजर से देखा. पत्नी के चेहरे पर आगे पढ़ने की तीव्र लालसा को महसूस कर उस ने मन ही मन परिवार वालों से इस बारे में सलाह लेने की सोच ली.

उधर पति को चुपचाप देख कर अनन्या सोच में पड़ गई. उस के अंतर्मन की मिट्टी से पहली बार शंका की कोंपल फूटी कि यह मुझ से प्यार नहीं करते तभी तो चुप रह गए. आखिर खानदान की इज्जत का सवाल है न.

अनन्या 2-3 दिनों तक मुंह फुलाए रही. चंद्रशेखर ने भी कुछ नहीं कहा. एक दिन आवश्यक काम से चंद्रशेखर को पटना जाना पड़ा. लौटा तो चेहरे पर एक अनजानी खुशी थी.

रात का खाना खाने के बाद चंद्रशेखर भी अपने बाबूजी के साथ टहलने चला गया. थोड़ी देर में बाबूजी का तेज स्वर गूंजा, ‘शेखर की मां, देखो, तुम्हारा लाड़ला क्या कह रहा है.’

‘क्या हुआ, क्यों आसमान सिर पर उठा रखा है?’ चंद्रशेखर की मां रसोई से बाहर आती हुई बोलीं.

‘यह कहता है कि बहू आगे पढ़ने कालिज जाएगी. विश्वविद्यालय जा कर एडमिशन फार्म ले भी आया है. कमाता है न, इसलिए मुझ से पूछने की जरूरत भी क्या है?’ ससुरजी फिर भड़क उठे थे.

‘लेकिन बाबूजी, इस में गलत क्या है?’ चंद्रशेखर ने पूछा तो मां बिदक कर बोलीं, ‘तेरा दिमाग चल गया है क्या? हमारे खानदान की बहू पढ़ने कालिज जाएगी. ऐसी कौन सी कमी है महारानी को इस घर में, जो पढ़लिख कर कमाने की सोच रही है?’

‘मां, तुम क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो? यह तुम से किस ने कहा कि यह पढ़लिख कर नौकरी करना चाहती है? इसे आगे पढ़ने का चाव है तो क्यों न हम इसे बी.ए. में दाखिला दिलवा दें,’ चंद्रशेखर ने कहा तो अपने कमरे में परदे के पीछे सहमी सी खड़ी अनन्या को जैसे एक सहारा मिल गया.

पास ही खड़ी बड़ी भाभी मुंह बना कर बोलीं, ‘देवरजी, हम भी तो रहते हैं इस घर में, बी.ए. करो या एम.ए., आखिरकार चूल्हाचौका ही संभालना है.’

‘छोड़ो बहू, यह नहीं मानने वाला, रोज कमानेखाने वाले परिवार की बेटी ब्याह कर लाया है. छोटे लोग, छोटी सोच,’ अनन्या की सास ने कहा और भीतर चली गईं.

दरवाजे के पास खड़ी अनन्या सन्न रह गई, छोटे लोग छोटी सोच? यह क्या कह गईं मांजी? क्या अपने भविष्य के बारे में चिंतन करना छोटी सोच है? बातबात पर खानदान की दुहाई देने वाली मांजी यह क्यों भूल जाती हैं कि अच्छे खानदान की जड़ में अच्छे संस्कार होते हैं और शिक्षित इनसान ही अच्छे संस्कारों को हमेशा जीवित रखने का प्रयास करते हैं.

रात बहुत बीत चुकी थी. अनन्या की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. चंद्रशेखर भी करवटें बदल रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, ‘अनन्या, तुम कल सुबह फार्म भर कर मुझे दे देना. मैं ने सोच लिया है कि तुम आगे जरूर पढ़ोगी.’

अनन्या को आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई, ‘सच?’

‘हां, मैं परसों पटना जा रहा हूं, तुम्हारा फार्म भी विश्वविद्यालय में जमा करता आऊंगा.’

एक दिन चंद्रेशेखर बैंक से लौटा तो बेहद खुश था. उस ने अनन्या से कहा, ‘आज पटना से मेरे दोस्त रमेश का फोन आया था. बता रहा था कि तुम्हारा नाम प्रवेश पाने वालों की सूची में है. प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 25 है. तुम कल से ही सामान बांधना शुरू कर दो. हमें परसों जाना है क्योंकि जल्दी पहुंच कर तुम्हारे लिए होस्टल में रहने की भी व्यवस्था करनी होगी.’

‘मैं होस्टल में रहूंगी?’ अनन्या ने पूछा, ‘घर से दूर…अकेली…क्या यहां कालिज नहीं है?’ उस ने अपने मन की बात कह ही डाली.

‘देखो, विश्वविद्यालय की बात ही अलग होती है. तुम ज्यादा सोचो मत. चलने की तैयारी करो. मैं बाबूजी को बता कर आता हूं,’ कहते हुए चंद्रशेखर बाबूजी के कमरे की ओर चला गया.

पटना आते समय अनन्या ने सासससुर के चरणस्पर्श किए तो सास ने उसे झिड़क कर कहा था, ‘जाओ बहू, बेहद कष्ट में थीं न तुम यहां…अब बाहर की दुनिया देखो और मौज करो.’

चंद्रशेखर के प्रयास से अनन्या को महिला छात्रावास में कमरा मिल गया. उसे वहां छोड़ कर आते वक्त उस ने कहा था, ‘तुम्हारे भीतर की लगन को महसूस कर के ही मैं ने अपने परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ यह कदम उठाया है. मैं जानता हूं कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी. किसी चीज की जरूरत हो तो फोन कर देना.’

अनन्या ने धीरे से सिर हिला दिया था. होस्टल के गेट पर खड़ी हो कर वह तब तक पति को देखती रही जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गए.

उस का मन यह सोच कर दुख से भर उठा था कि उन्होंने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. कितनी निष्ठुरता से छोड़ गए मुझे. इतना तो कह ही सकते थे न कि अनु, मुझे तुम्हारी कमी खलेगी, पर नहीं, सच में मुझ से प्यार हो तब न…

आंसू पोंछ कर वह अपने कमरे में चली आई. कुछ दिनों तक उस का मन खिन्न रहा पर धीरेधीरे सबकुछ भूल कर वह पढ़ाई में रम गई. तेज दिमाग अनन्या ने बी.ए. फाइनल की परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए.

एम.ए. में प्रवेश लेने के बाद वह कुछ दिन की छुट्टी में घर आई थी. एक दिन चंद्रशेखर ने उस से कहा, ‘एम.ए. में तुम्हें विश्वविद्यालय में पोजीशन लानी है. उस के लिए बहुत मेहनत की जरूरत है तुम्हें.’

अनु ने सोचा, छुट्टियों में घर आई हूं तब भी वही पढ़ाई की बातें, प्रेम की मीठीमीठी बातों का मधुरिम एहसास और वह दीवानापन न जाने क्यों चंद्रशेखर के मन में है ही नहीं. जब देखो पढ़ो, कैरियर बनाओ…उन्हें मुझ से जरा भी प्यार नहीं.

‘अनु, कहां खो गईं?’ चंद्रशेखर ने कहा, ‘देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं.’

चंद्रशेखर कहता जा रहा था और अनु जैसे जड़ हो गई थी. मन में विचारों का बवंडर चल रहा था, ‘क्या यही प्यार है? न रस पगे दो मीठे बोल, न मनुहार…ज्यादा खुश हुए तो गए और हिंदी साहित्य की किताब उठा कर ले आए. स्वार्थी कहीं के…’

‘अनु, मैं तुम्हें कुछ दिखा रहा हूं,’ चंद्रशेखर ने फिर कहा तो अनन्या बनावटी हंसी हंस कर बोली, ‘हां, अच्छी किताब है.’

अनन्या ने मन ही मन एक ग्रंथि पाल ली थी कि चंद्रशेखर मुझ से प्यार नहीं करते. तभी तो अपने से दूर मुझे होस्टल भेज कर भी खुश हैं. क्या प्रणय की वह स्वाभाविक आंच जो मुझे हर समय जलाती रहती है, उन्हें तनिक भी नहीं जलाती होगी? शायद नहीं, उन्हें मुझ से प्यार हो तब न…

इन्हीं दिनों अनन्या को पता चला कि वह मां बनने वाली है. पूरा परिवार खुश था. एक दिन चंद्रशेखर ने उस को समझाते हुए कहा, ‘तुम्हें बच्चे के जन्म के बाद परीक्षा देने जरूर जाना चाहिए. साल बरबाद मत करना, बीता समय फिर लौट कर नहीं आता.’

अनन्या पति के साथ कुछ दिनों के लिए मायके आई थी. एक शाम घूमने के क्रम में वह गोलगप्पे वाले खोमचे के सामने ठिठक गई तो चंद्रशेखर ने पूछ लिया, ‘क्या हुआ?’

‘मुझे गोलगप्पे खाने हैं.’

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं चल गया. अपना नहीं तो कम से कम बच्चे का तो खयाल करो,’ चंद्रशेखर ने गुस्से से कहा तो अनन्या पैर पटकती हुई घर चली आई.

‘आप ने एक छोटी सी बात पर मुझे इतनी बुरी तरह क्यों डांटा? एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते? अरमान ही रह गया कि आप कभी कोई उपहार देंगे या फिर कहीं घुमाने ले जाएंगे. मेरी खुशी से आप को क्या लेनादेना…मुझ से प्यार हो तब न. जब देखो, पढ़ो…कैरियर बनाओ, जैसे दुनिया में और कुछ है ही नहीं,’ रात में अनन्या मन की भड़ास निकालते हुए बोली.

चंद्रशेखर कुछ पलों तक अपलक पत्नी को निहारता रहा फिर संजीदा हो कर बोला, ‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुम से प्यार नहीं करता, पतिपत्नी का रिश्ता तो प्रेम और समर्पण की डोरी से बंधा होता है.’

‘अपनी सारी फिलासफी अपने तक ही रखिए. मैं अच्छी तरह जानती हूं कि आप मुझ से…’ ‘हांहां, मैं तुम से प्यार नहीं करता, मुझे प्रमाण देने की जरूरत नहीं है,’ चंद्रशेखर बीच में ही अनन्या की बात काट कर बोला.

एक दिन अनन्या गुडि़या जैसी बेटी की मां बन गई. जब बच्ची 3 महीने की हो गई तब चंद्रशेखर ने पत्नी से कहा कि उसे अब एम.ए. की परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए.

‘क्या मैं 6 महीने में परीक्षा की तैयारी कर पाऊंगी? सोचती हूं इस साल ड्राप कर दूं. अभी गुडि़या छोटी है.’

पत्नी की बातों को सुन कर उसे समझाते हुए चंद्रशेखर बोला, ‘देखो, अनन्या, पढ़ाईर् एक बार सिलसिला टूट जाने के बाद फिर ढंग से नहीं हो पाती. मैं गुडि़या के बारे में मां से बात करूंगा.’

अनन्या को लगा जैसे कोई मुट्ठी में ले कर उस का दिल भींच रहा हो. इतना बड़ा फैसला ऐसे सहज ढंग से सुना दिया जैसे छोटी सी बात हो. मेरी नन्ही सी बच्ची मेरे बिना कैसे रहेगी?

अनन्या की सास ने पोती को पास रखने से साफ मना कर दिया, ‘मुझे

तो माफ ही करो तुम लोग. कैसी मां है यह जो बेटी को छोड़ कर पढ़ने जाना चाहती है.’

अनन्या ने चीख कर कहना चाहा कि यह आप के बेटे की इच्छा है, मेरी नहीं पर कह नहीं पाई. एक दिन उस के पिता का फोन आया तो उस ने सारी बातें उन्हें बताते हुए पूछा, ‘अब आप ही बताइए, पापा, मैं क्या करूं?’

‘तुम गुडि़या को हमारे पास छोड़ कर होस्टल जा सकती हो बेटी, समय सब से बड़ी पूंजी है. इसे गंवाना नहीं चाहिए. मेरे खयाल से चंद्रशेखर बाबू ठीक कहते हैं,’ उस के पिता ने कहा.

अनन्या के सिर से एक बोझ सा हट गया. दूसरे ही दिन वह होस्टल जाने की तैयारी करने लगी. नन्ही सी बेटी को मायके छोड़ कर जाते समय अनन्या का दिल रोनेरोने को हो आया था पर मन को मजबूत कर वह रिकशे पर बैठ गई.

धीरेधीरे 6 माह बीत गए. अनन्या जब भी अपनी बेटी के बारे में सोचती उस का मन पढ़ाई से उचट जाता. वह इतनी भावुक हो जाती कि आंसुओं पर उस का बस नहीं रह जाता.

कभीकभी वह खुद को समझाती हुई सोचती कि जिंदगी में कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. इस तरह के सकारात्मक सोच उस के मन में नवीन उत्साह भर जाते. आखिरकार उत्साह की परिणति लगन में और लगन की परिणति कठोर परिश्रम में हो गई. नतीजा सुखदायक रहा. अनन्या ने विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी में दूसरा स्थान पाया.

चंद्रशेखर ने भी खुश हो कर कहा था, ‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी अनु.’

अनन्या ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से ‘नेट’ करने के बाद उस ने हिंदी साहित्य में पीएच.डी. की उपाधि भी हासिल की.

उच्च शिक्षा ने अनन्या की सोच को बहुत बदल डाला. सहीगलत की पहचान उसे होने लगी थी. कभीकभी वह सोचती कि आज उस के पास सबकुछ है. प्यारी सी बिटिया, स्नेही पति, उच्च शिक्षा, आगे की संभावनाएं. क्या यह बिना चंद्रशेखर के सहयोग के संभव था? उस की राह की सारी मुश्किलों को चंद्रशेखर ने अपने मजबूत कंधों पर उठा रखा था. वह जान गई थी कि प्रेम शब्दों का गुलाम नहीं होता. प्रेम तो एक अनुभूति है जिसे महसूस किया जा सकता है.

अनन्या को लेक्चरर पद के लिए इंटरव्यू देने जाना था. वह तैयार हो कर बैठक में आई तो एक सुखद एहसास से भीग उठी, जब उस ने यह देखा कि चंद्रशेखर उस की मार्कशीट और प्रमाणपत्रों को फाइल में सिलसिलेवार लगा रहे थे. उसे देखते ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘जल्दी करो, अनु, नहीं तो बस छूट जाएगी.’

असीम स्नेह से पति को निहारती हुई अनन्या ने धीरे से कहा, ‘मुझे आप से कुछ कहना है.’

‘बातें बाद में होंगी, अभी चलो.’.

‘नहीं, आप को आज मेरी बात सुननी ही होगी.’

‘तुम क्या कहोगी, मुझे पता है, वही रटारटाया वाक्य कि आप मुझ से प्यार नहीं करते,’ चंद्रशेखर व्यंग्य से हंस कर बोला तो अनन्या झेंप गई.

‘ठीक है, चलिए,’ उस ने कहा और तेजी से बाहर निकल गई. आज वह अपने पति से कहना चाहती थी कि वह अपने प्रति उन के प्यार को अब महसूस करने लगी है. पर मन की बात मन में ही रह गई.

साक्षात्कार दे कर आई अनन्या को नौकरी पाने का पूरा भरोसा था. पर उस समय वह जैसे आकाश से गिरी जब उस ने चयनित व्याख्याताओं की सूची में अपना नाम नहीं पाया. हृदय इस चोट को सहने के लिए तैयार नहीं था अत: वह फूटफूट कर रोने लगी.

पत्नी को रोता देख कर चंद्रशेखर भी संज्ञाशून्य सा खड़ा रह गया. जानता था, असफलता का आघात मौत के समान कष्ट से कम नहीं होता.

‘देखो, अनु,’ पत्नी को दिलासा देते हुए चंद्रशेखर बोला, ‘यह भ्रष्टाचार का युग है. पैरवी और पैसे के आगे आज के परिवेश में डिगरियों का कोई महत्त्व नहीं रहा. तुम दिल छोटा मत करो. एक न एक दिन तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी.’

एक दिन चंद्रशेखर ने अनन्या को समझाते हुए कहा था, ‘शिक्षा का अर्थ केवल धनोपार्जन नहीं है. हमारे समाज में आज भी शिक्षित महिलाओं की कमी है, तुम इस की अपवाद हो, यही कम है क्या?’

‘आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मैं केवल पैसों के लिए व्याख्याता बनने की इच्छुक नहीं थी. अपनी अस्मिता की तलाश…समाज में एक ऊंचा मुकाम पाने की अभिलाषा है मुझे. मैं आम नहीं खास बनना चाहती हूं. अपने वजूद को पूरे समाज की आंखों में पाना चाहती हूं मैं.’

चंद्रशेखर पत्नी की बदलती मनोदशा से अनजान नहीं था. समझता था, अनन्या अवसाद के उन घोर दुखदायी पलों से गुजर रही है जो इनसान को तोड़ कर रख देते हैं.

एक दिन चंद्रशेखर के दोस्त रमेश ने बातों ही बातों में उसे बताया कि 4-5 महीने में ग्राम पंचायत के चुनाव होने वाले हैं और उस की पत्नी निशा जिला परिषद की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने वाली है.

चंद्रशेखर ने कहा, ‘आज के माहौल में तो कदमकदम पर राजनीति के दांवपेच मिलते हैं. कई लोग चुनाव मैदान में उतर जाएंगे. कुछ गुंडे होंगे, कुछ जमेजमाए तथाकथित नेता. ऐसे में एक महिला का मैदान में उतरना क्या उचित है?’

‘ऐसी बात नहीं है. पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है. अगर सीट महिला के लिए आरक्षित हो तो प्रयास करने में क्या हर्ज है? देखना, कई पढ़ीलिखी महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आएंगी,’ रमेश ने समझाते हुए कहा.

चंद्रशेखर के मन में एक विचार कौंधा, अगर अनन्या भी कोशिश करे तो? उस ने इस बारे में पूरी जानकारी हासिल की तो पता चला कि उस के इलाके की जिला परिषद सीट भी महिला आरक्षित है. चंद्रशेखर के मन में एक नई सोच ने अंगड़ाई ले ली थी.

‘मैं चुनाव लडूं? क्या आप नहीं जानते कि आज की राजनीति कितनी दूषित हो गई है?’ अनन्या बोली.

‘इस में हर्ज ही क्या है. वैसे भी अच्छे विचार के लोग यदि राजनीति में आएंगे तो राजनीति दूषित नहीं रहेगी. तुम अपनेआप को चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लो.’

अनन्या के मन में 2-3 दिन तक तर्कवितर्क चलता रहा. आखिरकार उस ने हामी भर दी.

यह बात जब अनन्या के ससुर ने सुनी तो वह बुरी तरह बिगड़ उठे, ‘लगता है दोनों का दिमाग खराब हो गया है. जमींदार खानदान की बहू गांवगांव, घरघर वोट के लिए घूमती फिरे, यह क्या शोभा देता है? पुरखों की इज्जत क्यों मिट्टी में मिलाने पर तुले हो तुम लोग?’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा, बाबूजी, इसे एक कोशिश कर लेने दीजिए. जरा यह तो सोचिए कि अगर यह जीत जाती है तो क्या खानदान का नाम रोशन नहीं होगा?’ चंद्रशेखर ने भरपूर आत्मविश्वास के साथ कहा था.

चंद्रशेखर ने निश्चित तिथि के भीतर ही अनन्या का नामांकनपत्र दाखिल कर दिया. फिर शुरू हुई एक नई जंग.

अनन्या ने आम उम्मीदवारों से अलग हट कर अपना प्रचार अभियान शुरू किया. वह गांव की भोलीभाली अनपढ़ जनता को जिला परिषद और उस से जुड़ी जन कल्याण की तमाम बातों को विस्तार से समझाती थी. धीरेधीरे लोग उस से प्रभावित होने लगे. उन्हें महसूस होने लगा कि जमींदार की बहू में सामंतवादी विचारधारा लेशमात्र भी नहीं है. वह जितने स्नेह से एक उच्च जाति के व्यक्ति से मिलती है उतने ही स्नेह से अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों से भी मिलती है. और उस का व्यवहार भी आम नेताओं जैसा नहीं है.

धीरेधीरे उस की मेहनत रंग लाने लगी. 50 हजार की आबादी वाले पूरे इलाके में अनन्या की चर्चा जोरों पर थी.

मतगणना के दिन ब्लाक कार्यालय के बाहर हजारों की भीड़ जमा थी. आखिरकार 2 हजार वोटों से अनन्या की जीत हुई. उस की जीत ने पूरे समाज को दिखा दिया था कि आज भी जनता ऊंचनीच, जातिपांति, धर्म- समुदाय और अमीरीगरीबी से ऊपर उठ कर योग्य उम्मीदवार का चयन करती है. बड़ी जाति के लोगों की संख्या इलाके में कम होने पर भी हर जाति और धर्म के लोगों से मिले अपार समर्थन ने अनन्या को जीत का सेहरा पहना दिया था.

घर लौट कर अनन्या ने ससुर के चरणस्पर्श किए तो पहली बार उन्होंने कहा, ‘खुश रहो, बहू.’

अनन्या आंतरिक खुशी से अभिभूत हो उठी. उसे लगा, वास्तव में उस की जीत तो इसी पल दर्ज हुई है.

उस ने फिर कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा. हमकदम के रूप में चंद्रशेखर जो हर पल उस के साथ थे. 3 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी वह भारी बहुमत से विजयी हुई. उस का रोमरोम पति के सहयोग का आभारी था. अगर वह हर मोड़ पर उस का साथ न देते तो आज भी वह अवसाद के घने अंधेरे में डूबी जिंदगी को एक बोझ की तरह जी रही होती.

‘‘खट…’’ तभी कमरे का दरवाजा खुला और अनन्या की सोच पर विराम लग गया. चंद्रशेखर ने भीतर आते हुए पूछा, ‘‘तुम अभी तक सोई नहीं?’’

‘‘आप कहां रह गए थे?’’

‘‘कुछ लोग बाहर बैठे थे. उन्हीं से बातें कर रहा था. तुम से मिलना चाहते थे तो मैं ने कह दिया कि मैडम कल मिलेंगी,’’ चंद्रशेखर ने ‘मैडम’ शब्द पर जोर डाल कर हंसते हुए कहा.

भावुक हो कर अनन्या ने पूछा, ‘‘अगर आप का साथ नहीं मिलता तो क्या आज मैं इस मुकाम पर होती? फिर क्यों आप ने सारा श्रेय मेरी लगन और मेहनत को दे दिया?’’

‘‘तो मैं ने गलत क्या कहा? अगर हर इनसान में तुम्हारी तरह सच्ची लगन हो तो रास्ते खुद ही मंजिल बन जाते हैं. हां, एक बात और कि तुम इसे अपना मुकाम मत समझो. तुम्हारी मंजिल अभी दूर है. जिस दिन तुम सांसद बन कर संसद में जाओगी और इस घर के दरवाजे पर एक बड़ी सी नेमप्लेट लगेगी…डा. अनन्या सिंह, सांसद लोकसभा…उस दिन मेरा सपना सार्थक होगा,’’ चंद्रशेखर ने कहा तो अनन्या की आंखें खुशी से छलक पड़ीं.

‘‘हर औरत को आप की तरह प्यार करने वाला पति मिले.’’

‘‘अच्छा, इस का मतलब तो यह हुआ कि तुम अब मुझ पर यह आरोप नहीं लगाओगी कि मैं तुम से प्यार नहीं करता.’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ अनन्या पति के कंधे पर सिर टिका कर असीम स्नेह से बोली.

‘‘तो तुम अब यह पूरी तरह मान चुकी हो कि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं,’’ चंद्रशेखर ने मुसकरा कर कहा तो अनन्या भी हंस कर बोल पड़ी, ‘‘हां, मैं समझ चुकी हूं, प्यार की परिभाषा बहुत गूढ़ है. कई रूप होते हैं प्रेम के,

कई रंग होते हैं प्यार करने वालों के, पर सच्चे प्रेमी तो वही होते हैं जो जीवन साथी की तरक्की के रास्ते में अपने अहं का पत्थर नहीं आने देते, ठीक आप

की तरह.’’

एक स्वर्णिम भोर की प्रतीक्षा में रात ढलने को बेताब थी. कुछ क्षणों में पूर्व दिशा में सूर्य की किरणें अपना प्रकाश फैलाने को उदित हो उठीं.

मसाज करते समय न्यू मौम न करें ये 3 बड़ी गलतियां


ढेर सारा तेल चुपड़ कर बेबी की बौडी पर जोरजोर से हाथ को आगेपीछे घिसना सही मसाज नहीं है.  न्यू मौम को अक्सर इस बात का कंफ्यूजन रहता है कि मालिश करना जरूरी है या नहीं, मालिश किस तेल से की जाए, कितनी देर की जाए,  इस सब्जेक्ट को लेकर मन में जो भी कंफ्यूजन है, उसे दूर करना जरूरी है और इस काम में मदद कर रही हैं पीडियाट्रिशयन डॉ श्रेया दूबे.

अगर बेबी जोरजोर से रोने लगे – बच्चों की मालिश उसके जन्म के 10 से 12 दिन की उम्र से शुरू की जा सकती है.  इसे को 5 से 6साल की उम्र तक जारी रखा जा सकता है. बस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बेबी मालिश को एंजौय कर रहा है या नहीं. अगर मां को यह महसूस होता है कि वह मालिश को एंजौय नहीं कर रहा है,  बहुत रो रहा है, तो इसका बहुत फायदा नहीं होगा. उसे शांत करने के बाद ही मालिश करें, मालिश करते समय म्यूजिक लगा दें या खुद गुनगुनाएं.

मसल्स नहीं बनाना है –   कई बार यह देखा गया है कि मां बच्चे के शरीर पर हाथों से दबाव डालकर मालिश करती हैं जबकि पीडियाट्रिशियन डॉक्टर श्रेया दूबे का कहना है कि बच्चों की मालिश हल्के हाथों से की जानी चाहिए. हर मां के लिए यह जानना जरूरी है कि बच्चे की मालिश उसके शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए किया जाता है न कि उसके मसल्स बनाने के लिए, इसलिए हल्के हाथों से प्यार से मालिश की जानी चाहिए. मालिश का सिंपल फौर्मूला यह है कि ‘न बहुत ज्यादा तेजी से करें, न ही बहुत धीरे से’.

 

हाथ की गरमाहट – जिस कमरे में मालिश किया जा रहा हो, वह न ज्यादा गरम हो न ज्यादा ठंडा. मां के हाथ के टेम्परैचर के लिए भी यही रूल है, ‘हाथ न ज्यादा गरम हो, न ज्यादा ठंडा’.  न्यू मदर के लिए यह भी जानना जरूरी है कि जब बेबी को वैक्सीन लगाया गया हो, तो 24 घंटे तक मालिश नहीं  की जानी चाहिए. इसके अलावा उसे फीवर हो, तो भी मसाज करने की जरूरत नहीं.
जहां तक तेल का सवाल है, तो डॉक्टर श्रेया दूबे का मानना है कि यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी बौडी को कौन सा औइल सूट कर रहा है. वैसे हिंदुस्तान में नारियल की तेल से मालिश करने को तवज्जो देते हैं. 

आखिर सेलिब्रिटिज या आम महिलाएं भी लाल बनारसी साड़ी क्यों कर रही हैं पसंद

दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छाए हुए हैं. कपल ने रजिस्टर्ड मैरिज की, इसकी फोटो उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया. इसके बाद शिल्पा शेट्ठी के रेस्टोरेंट में रिसेप्शन पार्टी हुई, जिसमें बौलीवुड के तमाम सेलिब्रिटिजी इनवाइटेड थे. सोनाक्षी ने लाल रंग की बनारसी साड़ी में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी, मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया चार चांद लगा रही थी. नई नवेली दुल्हन अपनी खूबसूरती से सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी.

 

अक्सर नई नवेली दुल्हन को लाल बनारसी साड़ी में देखा जाता है, लेकिन कुछ सालों से यह ट्रेंड कम हो गया था. आलिया भट्ट, कैटरीना कैफ और कई एक्ट्रेसेस ने अपनी शादी औफ व्हाइट लहंगे में नजर आई थी, हालांकि सोनाक्षी सिन्हा भी मैरिज करते टाइम औफ व्हाइट साड़ी पहनी थी, लेकिन रिसेप्शन पार्टी में लाला बनारसी साड़ी में दिखाई दीं.

इनके अलावा और भी कई एक्ट्रेसेस ने अपनी शादी, फेस्टिवल और कई पार्टीज में लाल बनारसी साड़ी कैरी किया है. तो आइए जानते हैं उन एक्ट्रेसेस के बारे में जो पारंपरिक लाल बनारसी साड़ी में नजर आई.

सोनाक्षी के अलावा, इन एक्ट्रेसेस ने भी लाल बनारसी साड़ी लुक को किया है फ्लौन्ट

  • आपको अनुष्का शर्मा का शादी लुक जरूर ही याद होगा. लाल बनारसी साड़ी, लाल बिंदी, मांग में भरा लाल सिंदूर भला अनुष्का के इस लुक को कौन भूल सकता है, यह अब तक लाल बनारसी साड़ी में सबसे यादगार लुक में से एक है.
  • दीपिका पादुकोण ने भी कई खास मौके पर लाल बनारसी साड़ी में नजर आई हैं. उन्होंने अपनी वेडिंग एनिवर्सरी पर भी लाल साड़ी पहनी थी, इसके अलावा जब वो रणवीर सिंह के साथ तिरुपति मंदिर गई थी तो लाल बनारसी साड़ी में ही नजर आई थी.
  • दीया मिर्जा ने भी अपनी शादी में पारंपरिक लुक में दिखी थीं. एक्ट्रेस ने गोल्डन एक्सेंट वाली लाल बनारसी साड़ी पहनी थी, उन्होंने अपनी शादी की साड़ी में घूंघट भी ऐड किया.
  • टीवी एक्ट्रेस मौनी रॉय कई खास मौके पर लाल बनारसी साड़ी के साथ सिंपल स्लीवलेस ब्लाउज़ में नजर आई हैं. एक्सेसरीज़ के तौर पर एक्ट्रेस ने गोल्डन झुमके भी कैरी की हैं. इसके अलावा आई मेकअप, मांग में लाल सिंदूर और न्यूड लिपस्टिक उनके लुक कम्पलिट किया है.

माना जाता है कि लाल बनारसी साड़ी पहनने से चेहरे पर ग्लो आता है. चाहें डस्की कलर हो या फेयर लाल बनारसी साड़ी हर किसी पर जचता है, लेकिन लाल के अलावा भी और कई कलर्स हैं, जो महिलाओं की खूबसूरती निखारने में मदद करेंगे.

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गृहशोभा एंपॉवर हर इवेंट, बेंगलुरु

महिलाओं के व्यक्तित्व विकास और समृद्धि के लिए हाल ही में दिल्ली प्रेस की गृहशोभा पत्रिका द्वारा ‘एम्पावर हर’ इवेंट का भव्य आयोजन किया गया. कार्यक्रम के प्रमुख प्रायोजक बैंकिंग भागीदार केनरा बैंक, होम्योपैथी भागीदार एसबीएल सहयोगी प्रायोजक WOW और गिफ्टिंग पार्टनर सद्गुरु आयुर्वेद रहे.

इस कार्यक्रम का पूरा फोकस महिला सशक्तिकरण पर था. पिछले महीने 8 जून को यह कार्यक्रम होटल वेस्ट फोर्ट, मगदी रोड, राजाजीनगर, बेंगलुरु में आयोजित किया गया. सैकड़ों महिलाएं ने हेल्थ, ब्यूटी, न्यूट्रीशन और फाइनेंस के बारे में अपडेट होने के लिए कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

empower her
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स्किन केयर सेशन

डॉ जगदीश पी., एमबीबीएस, डीडीवीएल, एफआरजीयूएचएस (त्वचाविज्ञान) कटिकेयर सेंटर, बेंगलुरु के संस्थापक, निदेशक मुख्य सलाहकार त्वचा विशेषज्ञ हैं, जो महिलाओं को स्किन केयर सम्बंधित साइंटिफिक जानकारी प्रदान करते हैं. उन्होंने लड़कियों को त्वचा की देखभाल को कैसे महत्व देना चाहिए, उसकी देखभाल कैसे करनी चाहिए, स्वास्थ्य खराब न हो इसके लिए क्या कदम उठाने चाहिए, इन सभी के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने स्किन के 3 प्रकार यानी ड्राई, ऑयली और नॉर्मल का पता लगाने का तरीका  बताया और डॉक्टर की सलाह के अनुसार केमिकल मुक्त साबुन, फेस वॉश, स्क्रब आदि का उपयोग करने की सलाह दी. उन्होंने सांवली रंगत वालों को अपनी स्किन केयर का तरीका भी बताया और भ्रमित करने वाले विज्ञापनों से दूर रहने की सलाह दी.

डा जगदीश ने त्वचा की देखभाल के साथ-साथ बालों से संबंधित सभी समस्याओं जैसे बालों की देखभाल, गंजापन की समस्या, बालों के झड़ने से जुड़ी जानकारी भी प्रदान की. टोन्नू, विटिलिगो, ने इससे राहत की जानकारी दी. सामान्य तौर पर उन्होंने बताया कि लोगों को त्वचा में चमत्कारिक बदलाव लाने, गंजेपन की समस्या से छुटकारा पाने या सफेद दाग की समस्या के लिए रातोंरात त्वचा का रंग गोरा करने के किसी विज्ञापन पर विश्वास नहीं करना चाहिए, किसी कुशल विशेषज्ञ से इलाज कराना चाहिए, इसके लिए घर पर ही अच्छा पौष्टिक भोजन करना चाहिए. कार्यक्रम में आईं महिलाओं ने अपनी त्वचा की देखभाल और बालों की देखभाल से जुड़ी समस्याओं के बारे में अपनी शंकाओं का समाधान किया.

न्यूट्रीशन सेशन

आहार एवं पोषण विशेषज्ञ आशा कृष्णा, एम.एससी, एम, फिल, डीडीएचएन एक योग्य पोषण विशेषज्ञ हैं जो वर्तमान में अक्षा अस्पताल, बैंगलोर में सलाहकार आहार विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं. उनके पास इस क्षेत्र में 12 वर्षों का अनुभव है और वे मधुमेह शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं.

उन्होंने 40 से ज्यादा उम्र की महिलाओं को बताया कि वे अपने दैनिक आहार में पोषक तत्वों को कैसे शामिल करें. हमारे भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज, फाइबर आदि उचित मात्रा में होने चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया कि अपनी डाइट में कैलोरी की सही मात्रा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने उन खाद्य पदार्थों के बारे में विस्तार से बताया जिन का मधुमेह रोगियों को सेवन करना चाहिए.

पर्सनल हाइजीन सेशन

डॉ एच.पी. राम्या बीएमएचएस, एससीपीएच, पीजीडीआईपी (क्लासिक होम्योपैथी)  कुशल डाइटिशियन हैं और इस क्षेत्र में उन का 11 वर्षों का अच्छा अनुभव है. वह हीलिंग क्लाउड के संस्थापक हैं. इस के साथ ही पुणे, बैंगलोर में प्रेक्टिस करते हैं. इस सत्र में उन्होंने लड़कियों के मासिकधर्म की समस्याओं, कारणों और बचने के उपायों के बारे में सरल कन्नड़ भाषा में  बताया और पेट में ऐंठन, गंभीर दर्द, पीड़ा, थकान, चिड़चिड़ापन आदि के बारे में भी विस्तार से बताया. फाइब्रॉइड समस्या, संबंधित सर्जरी आदि के बारे में भी बताया गया. उन्होंने हर समय दर्दनिवारक दवाएं लेने के बजाय समय पर स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाने की बात कही.

उन्होंने उन युवा लड़कियों की समस्या के बारे में भी जानकारी दी जो फास्ट फूड और जंक फूड खाने के कारण 7-8 साल की उम्र में सेहत संबंधी समस्याओं से दोचार हो रही हैं. उन्होंने कहा कि कामकाजी महिलाओं को हमेशा अपने साथ बादाम और पिस्ता रखना चाहिए क्योंकि इस तरह वे थोड़ी भूख लगने पर न्यूट्रिशन वाला स्नैक्स भी खा सकती हैं और देर तक काम भी कर सकती हैं. इस के साथ साथ उन्होंने होम्योपैथी दवाओं के महिलाओं के लिए लाभ भी बताए.

फाइनेंस सेशन

अनुपमा शेनाई सीए, (बी.कॉम, एफसीएसीएस, डीआईएसए, एआईआईए) एएसजेसी में एक भागीदार और सीए हैं जो डीवीजी रोड, बैंगलोर में वित्तीय विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं.

उन्होंने बताया कि महिलाओं को कैसे बचत करनी चाहिए, कैसे वह बचत उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगी, कैसे वे बैंक खाता खोलकर बचत कर सकती हैं, जो आज के दौर में महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने के लिए बहुत जरूरी है. उन्होंने यह भी बताया कि जब हम एसबी, आरडी, एफडी आदि खाते खोलते हैं और अपनी आय का कम से कम 20% बचाते हैं, तो यह हमारी अगली पीढ़ी को उच्च शिक्षा, शादी, घर खरीदने के लिए आर्थिक नींव रखने का काम करता है.

उन्होंने स्टॉक, स्टॉक मार्केट, म्यूचुअल फंड में निवेश, सही समय पर शेयर खरीदना, बिक्री के बारे में आदि के बारे में विस्तार से बताया. म्यूचुअल फंड एसआईपी, जीवन बीमा, चिकित्सा बीमा, सरकारी योजनाएं, डाकघर राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र आदि का महत्व समझाया.

कार्यक्रम के समापन के बाद सभी महिलाओं को गुडी बैग्स दिए गए.

Bigg Boss Ott : पत्रकार दीपक चौरसिया के साथ क्या हुआ

बिग बौस ओटीटी 3 के कंटेस्टेंट की लिस्ट में 55 वर्षीय पत्रकार दीपक चौरसिया शामिल हो कर टैलीविजन की दुनिया में कदम रख चुके हैं. 21 जून से रात 9 बजे से जियो सिनेमा पर इस शो की शुरुआत हो चुकी है.

यस शो बौलीवुड के फेमस ऐक्टर अनिल कपूर द्वारा होस्ट किया जा रहा है. बिग बौस ओटीटी के पहले ही दिन दीपक चौरसिया ने बिग बौस के सामने कुछ ऐसा बोल दिया कि बिग बौस भी हो गए दीपक की बातों के कद्रदान और बिग बौस ने भी यह कहा कि हम करते हैं आप की दिल से इज्जत.

बिग बौस ओटीटी के पहले दिन जहां एक और प्रीमियर नाइट में दीपक चौरसिया ने लव कटारिया की बोलती बंद कर दी, यह बता डाला नई जनरैशन को कि इनफ्लुऐंसर का मतलब क्या होता है.

इनफ्लुऐंसर वह होना चाहिए जो सच में आप को इनफ्लुऐंस कर सके. लेकिन लव कटारिया जोकि साल 2024 में हुए चुनाव के ऊपर ही कुछ नहीं बोल पाया वह नई जनरैशन को इनफ्लुऐंस भला कैसे कर सकता है.

जहां अनिल कपूर भी दीपक चौरसिया के इस अंदाज को देख कर ताली बजाते हुए नजर आए, तो वहीं बिग बौस के घर के अंदर जाने के बाद दीपक चौरसिया ने जोकि अपनी पैर की चोट की वजह से काफी परेशान थे लेकिन जब बिग बौस ने बुलाया दीपक चौरसिया को कन्फैशन रूम के अंदर उस समय दीपक चौरसिया ने लव कटारिया और विशाल की मदद ली.

घर के सभी घर वाले दीपक चौरसिया को सर कर कह कर बुला रहे हैं और जब कन्फैशन रूम में दीपक गए तो दीपक ने यह कहा कि सर, मैं अपनेआप को डिपेंडैंट महसूस कर रहा हूं मुझे इस घर में बहुत गिल्ट फील हो रहा है क्योंकि सब मेरी बहुत ज्यादा मदद कर रहे हैं और मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं कहीं किसी पर बोझ न बन जाऊं, ऐसे में बिग बौस ने कहा कि आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं, तो दीपक ने कहा कि मैं किसी को भी परेशान करना पसंद नहीं करता हूं. यह मेरे व्यवहार में ही नहीं है.

यह सुन कर बिग बौस भी हैरान हुए और बिग बौस ने दीपक के लिए कहा कि हम आप की सोच की तारीफ करते हैं लेकिन इस घर के अंदर आप लोग एकदूसरे का सहारा बन कर ही इस घर में रहेंगे. यहां पर दीपक चौरसिया ने अपनी एक कहानी भी सुनाई. दीपक के पास हर मुद्दे पर कहानी मौजूद है और ऐसे में उन्होंने जो कहानी सुनाई वह थी सुनामी में अपने मांबाप को खो चुकी एक लड़की की जो दुनिया में बिलकुल अकेली हो चुकी थी लेकिन फिर भी उस ने जिंदगी को जीने की चाहत नहीं छोड़ी.

ऐसे में बिग बौस ने पूछा कि तुम्हारे अकौर्डिंग घर के अंदर बाहर वाला कौन है तो दीपक ने नेजी का नाम लेते हुए यह कहा कि मुझे लगता है वह बंदा चुप रह कर सब को औब्जर्व कर रहा है और बिलकुल शांत है और अगर मुझे यह मौका दिया जाता कि मुझे अपनी टीम में किसी ऐसे को रखना है जो बाहर वाला बन कर मुझे पूरी रिपोर्टिंग कर के दे तो मैं वह नेजी को चुनता. बिग बौस ने भी दीपक की इस सोच के ऊपर दीपक की तारीफ की और घर के अंदर दीपक चौरसिया फिलहाल अपनी जगह बनाने की पूरी कोशिश करते हुए नजर आ रहे हैं.

जानें क्या है पोर्टेबल एसी

जागृति और मयंक अवस्थी नई दिल्ली के वसंत विहार इलाके में एक फ्लैट में रहते हैं. वे दोनों लिव इन पार्टनर है. क्योंकि जागृति और मयंक ने फ्लैट रेंट पर लिया हुआ है. इसलिए वह घर में ज्यादा तोड़फोड़ नहीं कर सकते. लेकिन उन्हें इस भीषण गर्मी से भी बचना है. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें, कि तभी अचानक से मयंक ने पोर्टेबल एसी का विकल्प सुझाया. जागृति को यह विकल्प खासा पसंद आया.

अगर आप भी अपने घर में तोड़फोड़ करना नहीं चाहते और एक ऐसा एसी चाहते हैं जिसे आसानी से कई भी लाया और ले जाया सकता है तो आप पोर्टेबल एसी को अपना सकते हैं.

पोर्टेबल एसी को आसानी से एक कमरे से दूसरे कमरे में लाया और ले जाया जा सकता है. ये पोर्टेबल एसी विंडो और स्प्लिट एसी की तुलना में काफी सस्ते होते हैं. दूसरे शब्दों में कहे तो ये आप के लिए पौकेट फ्रेंडली होते हैं. साथ घर बदलने पर भी आप इन्हें आसानी से दूसरे घर में ले जा सकते है, क्योंकि इन्हें दीवार पर कील और स्टैंड के सहारे टांगा नहीं जाता है.

आइये अब मार्केट में आने वाले कुछ पोर्टेबल एसी के बारे में
जानते हैं.

ब्लू स्टार पोर्टेबल एसी

यह 1 टन ए सी नए फजी लोजिक की सुविधा के साथ आता है, जो कि आप को आरामदायक तरीके से सोने में हैल्प करता है. यह एसी की एंटी बैक्टिरियल सिल्वर कोटिंग, सेल्फ डायग्नोस्टिक, ऑटो मोड. रिमोट कंट्रोल जैसी मौडन सुविधाओं के साथ आता है. 1 टन की क्षमता वाला यह ब्लू स्टार पोर्टेबल एसी ई- कौमर्स साइट एमेजन पर सबसे ज्यादा रेटिंग वाला प्रोडक्ट है. इस की यूजर रेटिंग भी अच्छी है. इस की कीमत की बात करे तो मार्केट में यह लगभग 33,800 रुपये का है.

पेटसाइट पोर्टेबल एयर कंडीशनर

पेटसाइट पोर्टेबल एयर कंडीशनर 3 इन 1 प्रोडक्ट है, जो 230 वर्ग फुट तक की साइज वाले बड़े हाल को ठंडा रख सकता है. यह कमरे को ठंडा करने के अलावा अलगअलग जरूरतों को पूरा करने के लिए पंखे और डीह्यूमिडिफायर के रूप में भी काम कर सकता है. यह प्रति दिन नमी हटाने की क्षमता के साथ आप के कमरे को ठंडा और सूखा रख सकता है. मार्केट में इस की कीमत 65,795 रुपये हैं.

लौयड पोर्टेबल एयर कंडीशनर

1 टन की क्षमता वाला यह लौयड पोर्टेबल एयर कंडीशनर बैस्ट इंडियन पोर्टेबल एयर कंडीशन की लिस्ट में शामिल है. यह 90 वर्ग फुट वाले रूम को चिल्ड रखने की क्षमता रखता है. इस 1 एक टन एसी को ब्लू फिन कोइल्स के साथ पेश किया गया है, जो बेहतर कूलिंग का दावा करता है. इस एसी की खास बात यह कि इसे कम रखरखाव की आवश्यकता होती है. इसे एक टिकाऊ एसी कहना गलत नहीं होगा. इस की मार्केट में कीमत 32,000 रुपये से शुरू है.

लाओत्से रिचार्जेबल पोर्टेबल एयर कंडीशनर

लाओत्से रिचार्जेबल पोर्टेबल एयर कंडीशनर एसी उन लोगों के लिए एकदम सही है जो एक अट्रैक्टिव और मौडर्न डिजाइन के साथ एक मिनी एयर कंडीशनर चाहते हैं. यह एरिया को जल्दी से ठंडा करता है. यह 3 स्पीड और 7 रंग पर्सनलाइज्ड कूलिंग फीचर के साथ आता हैं. इस के अलावा, इस पोर्टेबल एयर कंडीशनर में अल्ट्रासोनिक कूल मिस्ट टेक्नोलोजी है. यह पोर्टेबल एयर कंडीशनर बिना तार वाला एयर कंडीशनर है, जो एलइडी लाइट, कम शोर और यूएसबी चार्जिंग और एनर्जी सेविंग जैसे फीचर्स के साथ आता है. एमेजन पर यह एसी 14000 रुपये में उपलब्ध है.

कैसे करता है काम

पोर्टेबल एसी विंडो या स्प्लिट एसी की तरह ही होता है, जिस में हवा को ठंडा करने के लिए इवेपोरेटर कोइल, कंडेनसर कोइल, कंप्रेसर और पंखे का यूज किया जाता है. हालांकि, पोर्टेबल एसी का फार्म फैक्टर अलग होता है, क्योंकि यह अपने आप चालू होता है और पूरी तरह से पोर्टेबल यूनिट है, विंडो एसी या स्प्लिट एसी के तरह इसे खिड़की या बाहर की ओर वाली दीवार पर लगाने की जरूरत नहीं होती है. इसे किसनी भी जगह आसानी से रखा जा सकता है.

जिस तरह से मार्केट में आने वाला नौर्मल एसी काम करता है, ठीक वैसे ही पोर्टेबल एसी भी काम करता है. जिस तरह से नौर्मल एसी में गर्म हवा को बाहर निकालने की जरूरत होती है, वैसे ही पोर्टेबल एसी में भी होता है. आप को पोर्टेबल एसी के पीछे होज पाइप जोड़ना होगा, जो कमरे से नमी और गर्मी को बाहर ले जाएगा.

पोर्टेबल एयर कंडीशनर के कई फायदें हैं-

पोर्टेबल एयर कंडीशनर पारंपरिक एयर कंडीशनर के मुकाबले इंस्टाल करने में आसान होते हैं और इन का मेंटनेंस भी काफी कम होता है. ये एसी किसी भी जगह पर आसानी से फीट हो जाते हैं. गर्मियों में ये कूलिंग की जरूरतों को पूरा करने के लिए बेस्ट माने जाते हैं. पोर्टेबल एयर कंडीशनर उन लोगों के लिए बढ़िया विकल्प हैं, जो पारंपरिक एयर कंडीशनिंग सिस्टम की परेशानी और खर्च के बिना अपने घरों को जल्दी से ठंडा करना चाहते हैं. इन कोम्पैक्ट और लाइटवेट यूनिट को कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है. इन की कम लागत और ऊर्जा कुशल डिजाइन इन्हें पुराने एयर कंडीशनर के मुकाबले किफायती बनाती हैं और इन के इस्तेमाल से आप अपने बिजली के बिल को भी बचा सकती है.

अगर आप भी कम बजट और बिना झंझट वाला एसी सर्च कर रहे हैं तो आप की ये तलाश हमारे इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद खत्म हो जाएगी.

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