डिनर में बनाएं स्मोकी कॉर्न रायता और लौकी स्टफ्ड परांठा

मौसम चाहे कोई भी हो हमें हर दिन तीन टाइम का भोजन तो बनाना ही होता है. सर्दियों की अपेक्षा गर्मियों के दिनों में हमें ऐसे भोजन की आवश्यकता होती है जो हल्का और सुपाच्य तो हो ही साथ ही जल्दी बनने वाला भी हो ताकि अधिक समय तक गर्मी में न रहना पड़े. आज हम आपको ऐसी ही 2 रेसिपी बनाना बता रहे हैं जो सुपाच्य और पौष्टिक तो हैं ही साथ ही इन्हें बहुत आसानी से डिनर, लंच या नाश्ते में बड़ी आसानी से घर में उपलब्ध सामग्री से ही बनाया जा सकता है. तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-स्मोकी कॉर्न रायता
कितने लोगों के लिए              4
बनने में लगने वाला समय       20 मिनट
मील टाइप                            वेज
सामग्री (रायते के लिए)
फ्रोजन या ताजा भुट्टा                         1
ताजा दही                                250 ग्राम
काला नमक                            स्वादानुसार
भुना जीरा पाउडर                    1/4 टीस्पून
बारीक कटी हरी मिर्च                 2
बारीक कटा हरा धनिया                1 टीस्पून
सामग्री (तड़के के लिए)
सरसों का तेल                          1/2 टीस्पून
राई के दाने                             1/4 टीस्पून
साबुत लाल मिर्च(छोटे टुकड़ों में कटी) 1
कश्मीरी लाल मिर्च                   1/4 टीस्पून
विधि

भुट्टे को साफ पानी से धोकर गैस पर एकदम धीमी आंच पर उलटते पलटते हुए भूनें. ठंडा होने पर चाकू से काटकर इसके दाने अलग कर लें. दही को अच्छी तरह फेंटकर सभी मसाले, हरा धनिया और हरी मिर्च मिलाएं. एक तड़का पैन में सरसों का तेल गरम करके तड़के की समस्त सामग्री डालें और तैयार रायते में तड़का लगाएं. अब इसे फ्रिज में ठंडा होने रख दें.
-स्टफ्ड लौकी परांठा
कितने लोगों के लिए                4
बनने में लगने वाला समय         20 मिनट
मील टाइप                            वेज
सामग्री (परांठे के लिए)
गेहूं का आटा                        2 कप
नमक                                   1/4 टीस्पून
अजवाइन                             1/4 टीस्पून
तेल                                       1 टीस्पून
घी या तेल                          परांठा बनाने के लिए
सामग्री (स्टफिंग के लिए)
लौकी                                1 किलो
बारीक कटी हरी मिर्च             2
बारीक कटा प्याज                   1
बारीक कटा हरा धनिया           1 लच्छी
नमक                                 स्वादानुसार
अमचूर पाउडर                      1/4 टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर                   1/4 टीस्पून
गर्म मसाला                           1/4 टीस्पून
बारीक बेसन भुजिया              1 टेबलस्पून
विधि

आटे में समस्त सामग्री को मिलाकर गुनगुने पानी से नरम गूंथकर एक सूती कपड़े से ढककर 20 मिनट के लिए रख दें. लौकी को किसकर मलमल के कपड़े में बांधकर हाथों से दबाते हुए इसका पानी निकाल दें. अब लौकी को एक प्लेट में डालकर सभी मसाले, कटा प्याज, हरा धनिया, हरी मिर्च और सेव अच्छी तरह मिला दें. अब तैयार आटे से एक लोई लेकर हथेली पर फैलाएं और इसमें एक बड़ा चम्मच स्टफिंग भरकर चारों तरफ से अच्छी तरह बंद कर दें. इसे चकले पर हल्के हाथ से बेलकर चिकनाई लगे तवे पर घी लगाकर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें. गर्मागर्म परांठे को ठंडे ठंडे रायते के साथ सर्व करें.

स्किन को जवां रखने में मददगार है फेस सीरम   

हम सभी अपनी स्किन पर यूथफुल ग्लो बनाए रखने के लिए कभी मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल करते हैं तो कभी स्किन को यूवी किरणों से बचाए रखने के लिए , ताकि स्किन पर पिगमेंटेशन की समस्या न हो, सनस्क्रीन अप्लाई करते हैं. हमारी ब्यूटी किट में क्रीम्स हमेशा शामिल होती हैं. लेकिन हम जानकारी के आभाव में एक ऐसे प्रोडक्ट को फेस पर अप्लाई करने से कतराते हैं जो आपकी स्किन को एजिंग, पिगमेंटेशन , रोमछिद्रों को बड़ा होने से रोकने का काम  करती है. जी हां, यहां  हम बात कर रहे हैं फेस सीरम की,  जिससे आपकी स्किन पर नेचुरल मोइस्चर लौक रहने के साथसाथ स्किन ग्लो करती है.  और आप भी तो यही चाहती हैं.  तो फिर जानते हैं कि फेस सीरम है क्या और ये स्किन को किस तरह से फायदा पहुंचाता है.

क्या है फेस सीरम 

फेस सीरम एक तरह का स्किन केयर प्रोडक्ट होता है. इसमें छोटेछोटे मॉलिक्यूल्स होते हैं , जो स्किन के अंदर तक जाकर स्किन को जल्दी से जल्दी रिपेयर करने का काम करते हैं. जिससे स्किन फिर से प्रोब्लम फ्री होकर खिल उठती है. बता दें कि ये काफी लाइट वेट होता है. जिसे चेहरे पर लगाते ही ये स्किन में मिल जाता है. इसे हमेशा चेहरे को वाश करने के बाद व मॉइस्चराइजर लगाने से पहले अप्लाई किया जाता है, ताकि ये मोइस्चर को स्किन में लौक करके रख सके. इससे स्किन यंग व ग्लोइंग दिखती है. क्योंकि स्किन में कसाव जो आता है, जो स्किन पर उम्र के प्रभाव को कम करने का काम करता है.

क्यों है फायदेमंद 

जब तक हम किसी भी ब्यूटी प्रोडक्ट के फायदे को नहीं जान लेते , तब तक हमें उसे खरीदना गवारा नहीं होता. क्योंकि आखिर स्किन का सवाल जो होता  है. ऐसे में हम आपको सीरम के उन सभी फायदों से अवगत करवाते हैं , जो आपको बता देगा कि फेस सीरम को अपनी ब्यूटी किट में शामिल करना हमारी जरूरत है. जो जानते है उसके फायदों के बारे में-

– अधिकांश सीरम में रेटिनोल होता है. जो फाइन लाइन्स व रिंकल्स को कम करने में मदद करता है. क्योंकि रेटिनोल में कोलेजन के उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता जो होती है. साथ ही ये स्किन में न्यू ब्लड वेसल्स के उत्पादन को प्रेरित करके स्किन कलर को भी इम्प्रूव करने का काम करता है.

–  अच्छे सीरम में बहुत सारे एक्टिव इंग्रीडिएंट्स जैसे विटामिन सी , इ, रेटिनोल , फेरुलिक एसिड, ग्रीन टी , विटामिन बी 5 , एमिनो एसिड होते हैं, जो स्किन को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स देने के कारण उन्हें हैल्दी बनाए रखने का काम करते हैं. बता दें कि विटामिन सी कोलेजेन को बैलेंस में रखने, विटामिन इ सेल फंक्शन्स को सुचारू रखने,  फेरुलिक एसिड एक  एन्टिओक्सीडेंट होता है, जो स्किन को किसी भी तरह के डैमेज से बचाने का काम करता है. ग्रीन टी में पोलीफेनोल्स होने के कारण ये सीबम सेक्रीशन को कम कर स्किन को एक्ने से बचाने का काम करते हैं , तो वहीं एमिनो एसिड स्किन को रिपेयर करने का काम करता है. इससे स्किन फ्री रेडिकल्स से बची रहती है, जो स्किन को एजिंग से बचाए रखने का काम करता है.

– सीरम काफी लाइट वेट होने के कारण आपकी स्किन को काफी अच्छा व हलका फील देता है.

– बाकी ब्यूटी प्रोडक्ट्स के मुकाबले इसके रिजल्ट कुछ ही हफ्तों में आपकी स्किन पर नजर आने लगते हैं.

– फेस सीरम में ह्यलुरॉनिक एसिड जैसा पावरफुल एक्टिव इंग्रीडिएंट होने के कारण ये आपकी स्किन में मोइस्चर को लौक करने का काम करता है . अगर आपकी ड्राई स्किन है तो फिर आज ही इस ब्यूटी प्रोडक्ट को अपनी मेकअप किट में करें इन.

– ये सेंसिटिव स्किन पर भी काफी अच्छा वर्क करता है. क्योंकि इसमें शिया बटर, एलोवीरा , जिंक जैसे तत्व जो होते हैं. जो स्किन को बिना कोई इर्रिटेशन व जलन पैदा किए उसे ठंडक पहुंचाकर स्किन प्रोब्लम्स से छुटकारा दिलवाने  का काम करते हैं.

– फेस सीरम में विटामिन सी जैसे इंग्रीडिएंट्स  होते हैं, जिसमें एस्ट्रिंजेंट प्रोपर्टीज होने के कारण ये पोर्स को टाइट करने व छोटा करने का काम करते हैं. इसलिए अगर आपकी स्किन ऑयली होने के कारण उस पर बड़े पोर्स की प्रोब्लम हो गई है तो फेस सीरम से बेस्ट कुछ नहीं है.

– अगर आपकी स्किन पर दागधब्बे हैं तो फेस सीरम में मौजूद स्किन लाइटनिंग इंग्रीडिएंट्स उन्हें कम कर आपकी स्किन को फिर से खूबसूरत बना सकते हैं.

–  सीरम में होने वाले एन्टिओक्सीडैंट्स एजिंग इफेक्ट को स्लो करने का काम करते हैं , जिससे स्किन पर यंग ब्यूटी बनी रहती है.

बेस्ट फेस सीरम फॉर स्किन 

1 इरम विटामिन सी सीरम 

इसमें विटामिन सी है, जो नेचुरल एन्टिओक्सीडेंट का काम करके फ्री रेडिकल्स से सेल्स को बचाकर एजिंग को होने से रोकता है. साथ ही ये न्यू कोलेजन के उत्पादन को बढ़ावा देकर फाइन लाइन्स व एजिंग को होने से रोकता  है.  इसमें ह्य्द्रौलिक एसिड होने के  कारण ये स्किन के वोलुमन को बढ़ाकर स्किन को यंग लुक देता है. वहीं इसमें एलोवीरा व ग्रेप सीड एक्सट्रेक्ट के साथ फेरुलिक एसिड होने के कारण ये स्किन को कूल, मॉइस्चराइज़ व हील करने में मदद करते हैं. इसके 30 मिलीलीटर पैक की कीमत 349 रुपए है.

2 न्यूट्रोजेना सीरम 

ये स्किन को हाइड्रेट करने के साथसाथ स्किन को पूरे दिन सोफ्ट बनाए रखने का काम करता है. ये मेलानिन के उत्पादन को कम करता है, जो स्किन पर डार्कनेस का कारण बनता है. इससे  इवन स्किन टोन मिलने में मदद मिलती है.

3 लॉरिअल पेरिस ह्यालुरोनिक  एसिड सीरम 

ये सीरम काफी लाइट वेट होने के साथसाथ हर तरह की स्किन पर सूट करता है. ये डर्मेटोलॉजिस्ट टेस्टेड भी है. इसमें ह्यालुरोनिक एसिड होने के कारण ये स्किन के मोइस्चर लेवल को बढ़ाकर फाइन लाइन्स व रिंकल्स को कम करने का काम करता है. साथ ही स्किन ज्यादा ब्राइट भी नजर आने लगती है.

4. लक्मे अब्सोल्युट आर्गन आयल सीरम 

ये सीरम व आयल का मिश्रण होता है. अगर आप इसे फेस को क्लीन करने के बाद रात में   चेहरे पर अप्लाई करेंगे तो इसके रिजल्ट काफी बेहतर नजर आएंगे. बता दें कि इसमें ऑर्गन आयल की मौजूदगी स्किन को  तेजी से हील करने के साथसाथ एजिंग इफ़ेक्ट को काफी कम करती है. आप इसे स्टोर या ऑनलाइन दोनों जगह से आसानी से खरीद सकते हैं.

स्किन के अनुसार फेस सीरम का चुनाव 

– अगर आपकी स्किन ड्राई है तो आप  ह्यालुरोनिक एसिड युक्त सीरम का इस्तेमाल करें, क्योंकि ये एजिंग को रोकने के साथसाथ स्किन को हाइड्रेट भी रखने का काम करता है, जिससे स्किन ड्राई नहीं बल्कि उस पर नेचुरल मोइस्चर बना रहता है.

– अगर आपकी स्किन नाजुक है, जो आप नेचुरल इंग्रीडिएंट्स से बने सीरम का ही इस्तेमाल करें, क्योंकि ये स्किन को कूलिंग इफेक्ट देते हुए फायदा पहुंचाता है.

– अगर आपकी स्किन ज्यादा ऑयली है तो आप विटामिन ए , सी युक्त सीरम का  इस्तेमाल करें.

सीरम लगाने का सही तरीका 

जब भी आप सीरम को चेहरे पर अप्लाई करें तो देख लें कि वो डे सीरम  है या नाईट सीरम. कुछ सीरम ऐसे होते हैं, जो आपको मेकअप से पहले अप्लाई करने होते हैं , ताकि मेकअप सोफ्ट व लौंग लास्टिंग रहे. बता दें कि नाईट सीरम काफी बेस्ट माने जाते हैं , क्योंकि रात में स्किन काफी रिलैक्स मोड में होती है और जब आप चेहरे को धोने के बाद इसे अप्लाई करते हैं , तो ये आपकी स्किन में अंदर तक जाकर उसे हील करने का काम करता है. जब भी आप सीरम को चेहरे पर अप्लाई करें तो चेहरे को धो लें फिर हथेली में कुछ बूंदें सीरम की लेकर चेहरे पर डेबडेब करके लगाएं. इससे सीरम चेहरे पर अच्छे से अप्लाई होने के साथ बेहतर रिजल्ट देता है. तो फिर आज ही अपने  ब्यूटी रूटीन में सीरम को शामिल करें.

हम फिलहाल बच्चा नहीं चाहते, कोई उपाय बताएं?

सवाल-

मैं 24 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. मेरी शादी हाल ही में हुई है. हम फिलहाल बच्चा नहीं चाहते. गर्भनिरोध के लिए पति कंडोम का इस्तेमाल करते हैं. सैक्स को आनंददायक बनाने के लिए यों तो बाजार में कई प्रकारों व फ्लेवर्स में कंडोम्स उपलब्ध हैं पर मैं ने महिला कंडोम के बारे में भी सुना है. क्या यह सुरक्षित है और सैक्स को मजेदार बनाता है?

जवाब-

पुरुष कंडोम की तरह महिला कंडोम भी गर्भनिरोध का आसान व सस्ता विकल्प है. महिला कंडोम न सिर्फ प्रैगनैंसी को रोकने में सक्षम है बल्कि यह सैक्स के पलों को भी रोमांचक बनाता है.

महिला कंडोम ‘टी’ शेप में होता है, जिसे वैजाइना में इंसर्ट करना होता है. शुरूशुरू में यह प्रक्रिया जटिल जरूर लग सकती है पर इस का इस्तेमाल बेहद आसान है और यह सैक्स को आनंददायक बनाता है. यह पूरी तरह सुरक्षित भी है. इस की डबल कोटिंग मेल स्पर्म को आसानी से सोख लेती है.

वैजाइना में इंसर्ट के दौरान इस की आंतरिक रिंग थोड़ी लचीली हो जाती है और बाहरी रिंग वैजाइना से 1 इंच बाहर रहती है.

सैक्स के दौरान इस कंडोम की बाहरी रिंग वैजाइना की बाहरी त्वचा को गजब का उत्तेजित करती है और सैक्स के पलों को मजेदार बनाती है.

इसे सैक्स से कुछ घंटे पहले भी लगाया जा सकता है. सब से अच्छी बात यह है कि कंडोम लगाए हुए बाथरूम भी जाया जा सकता है.

अगर आपको भी मेनोपौज हो गया है तो धबराइए मत ये कोई बीमारी नहीं है

45 साल की सुधा को पिछले एक साल से पीरियड्स में गड़बड़ी हो रही थी, कभी 2 से 3 महीने बाद तो कभी महीने में दो बार भी हो रहा था. सुधा ने अपने जान-पहचान की महिलाओं से बात की और इस बारें में जानकारी लेनी चाही. सबने कहा कि यह मेनोपॉज का समय है इसलिए ऐसा हो रहा है. धीरे-धीरे बंद हो जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक साल बाद भी उन्हें महीने में दो बार पीरियड्स होने के साथ-साथ फ्लो भी बहुत रहने लगा, जिससे वह कमजोर होने लगी और हर बात पर गुस्सा करने लगी. इसके बाद  सुधा स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास गयी और डॉक्टर ने सारी जांच के बाद उसे दवाइयां दी, जिससे माहवारी बंद हो गयी, लेकिन दवा के छोड़ते ही फिर ऐसी समस्या होने लगी. डॉक्टर ने अब इसका इलाज ऑपरेशन बताया, जो सुधा को चिंतित कर रहा है.

मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति एक साधारण प्रक्रिया है, जो हर महिला के मासिक धर्म का चक्र समाप्त हो जाने पर होता है. इससे घबराना या परेशान होने की कोई वजह नहीं होती. इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के ऑब्‍सटेट्रिशियन एवं गाइनकोलॉजिस्‍ट डॉ. वैशाली जोशी कहती है कि रजोनिवृत्ति होने पर कई महिलाएं घबरा जाती है, उन्हें लगता है कि अब स्त्रीत्व उनमें ख़त्म हो गया है. जबकि यह एक प्राकृतिक नियम है, जो हर महिला को होता है. यह तब होता है, जब अंडाशय से अंडाणुओं की उत्‍पत्ति और हॉर्मोन्‍स का स्राव बंद हो जाता है. जब किसी औरत को एक साल तक पीरियड (मासिक धर्म) नहीं आता, तो ऐसा मान लिया जाता है कि वो मेनोपॉज की अवस्‍था में पहुंच चुकी है. मेनोपॉज की औसत आयु 50 वर्ष है, जबकि पश्चिमी देशों की महिलाओं के लिए 52 वर्ष हो सकता है. यह एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया होने के साथ-साथ अनिवार्य परिवर्तन भी है, जो महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ होता है. इसके 3 स्टेज निम्न है,

मेनोपॉज के स्टेज                   

  • पेरिमेनोपॉज़ यानि ‘रजोनिवृत्ति के करीब’ यह रजोनिवृत्ति का शुरूआती स्टेज है, जिसके बाद से पीरियड बंद होने की शुरुआत हो जाती है, यह मेनोपॉज के 5 से10 वर्ष पहले शुरू हो सकता है.
  • जब किसी महिला को 12 महीने तक पीरियड नहीं आता है, तो उसे मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति मान लिया जाता है.
  • पोस्ट-मेनोपॉज मासिक धर्म के एक साल बाद शुरू होता है.

मेनोपॉज आखिर है क्या 

  • प्राकृतिक रूप से उम्र ढलने पर अंडाशय से अंडाणुओं और हॉर्मोन्‍स के कम निकलने की वजह से होता है,
  • फोर्स्‍ड मेनोपॉज तब होता है, जब कीमो या रेडियो थिरेपी के इलाज से अंडाशय को सर्जिकली हटा दिया जाता है, क्योंकि इस थिरेपी से कई बार अंडाशय नष्ट हो जाता है, इसके अलावा मेनोपॉज के दौरान ब्लीडिंग बंद न कर पाने की स्थिति में भी अंडाशय को निकाल देना पड़ता है.

डॉ. वैशाली आगे कहती है कि प्री-मैच्‍योर मेनोपॉज में नार्मल लेवल पर हॉर्मोन स्रावित करने की अंडाशयों की क्षमता घट जाने की वजह से हो सकता है, यह जीन संबंधी विकार या ऑटोइम्‍यून बीमारियों के कारण हो सकता है,लेकिन यह केवल 1% महिलाओं में देखने को मिलता है.

मेनोपॉज के लक्षण 

  • हॉट फ्लैशेज
  • रात में पसीना आना
  • योनि का सूखापन
  • उदासी, चिंता और चिड़चिड़ापन
  • जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द
  • यौन संबंधों में रूचि का घटना
  • मासिक-धर्म में अनियमितता
  • वजन बढ़ना आदि.

हर महिला में रजोनिवृत्ति के अलग-अलग लक्षणों का अनुभव 4 से 5 साल पहले से होने लगता है और इससे निपटने के कई तरीके है. रजोनिवृत्ति के लक्षण कितने समय तक महिला को रहेगा, इसे बताना संभव नहीं. कई महिलाओं में ये लक्षण 3 वर्षों के भीतर समाप्‍त हो जाते है.

अपने अनुभव के बारें में डॉ. वैशाली कहती है कि मेनोपॉज को कभी हल्के में न ले, क्योंकि ये व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को प्रभावित कर सकती है. नीद की समस्या, ऑस्टियोपोरोसिस, चिडचिडापन, मनोदशा में बदलाव आदि होने पर डॉ. की सलाह तुरंत लेनी चाहिए. एक बार एक महिला अपनी 43 साल की बेटी और दामाद के साथ मेरे पास आई, क्योंकि मेनोपॉज  की वजह से उसकी मनोदशा में गंभीर परिवर्तन, गुस्‍सा, अनिद्रा आदि की शिकार हो चुकी थी, जिससे उसका पर्सनल रिलेशनशिप प्रभावित हो रहा था. मैंने उसकी एनीमिया और कार्य सम्बन्धी बातों पर ध्यान न देकर उसकी हार्मोनल इलाज किया,जिससे    बेटी के स्‍वभाव में पिछले 6 से 8 महीने में पूरी तरह से बदलाव आ गया. इसके अलावा पूरे परिवार की साइकोलॉजिकल काउंसलिंग की गयी. इससे उनका पूरा परिवार इकाई एक साथ रहने लगे और उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ.

क्या है इलाज 

रजोनिवृत्ति की इलाज के लिए साधारणत: हार्मोन परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती. यदि 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिला में मेनोपॉज के लक्षण दिखाई पड़ती है, तो लक्षण के आधार पर चिकित्सा की जाती है. कई बार मेनोपॉज की अवस्था में कई समस्याएं, मसलन, नींद की

रहे सावधान  

रजोनिवृत्ति की अवस्‍था में पहुंचने से पहले तक, गर्भधारण संभव है. इसलिए अनियोजित गर्भधारण से बचने और सुरक्षित यौन संबंध बनाने के लिए सेक्स के दौरान कंडोम जैसे गर्भनिरोधक का उपयोग करना आवश्यक है.

अंत में यही कहना सही होगा कि रजोनिवृत्ति को स्‍वीकार करें और इसे सहजता से लें. स्वस्थ जीवन शैली, वर्कआउट, मेडिटेशन आदि के द्वारा खुद को फिट रखा जा सकता है. व्यायाम से मेनोपॉज के शारीरिक और भावनात्मक लक्षणों से निपटने में सहायता मिलती है. इसके अलावा अपने परिवार, पति, करीबी दोस्तों और स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ लक्षणों के बारे में खुलकर चर्चा करें. याद रखें रजोनिवृत्ति की अवस्‍था हर महिला के जीवन में आती है और जीवन की यह अवस्‍था भी खूबसूरत होती है, जिसे सकारात्‍मक तरीके से बिताया जाना चाहिए.

शुरुआती दिनों में मुझे ऑडिशन में जबड़े की सर्जरी कराने के लिए कहा गया था: सान्या मल्होत्रा

फिल्म ‘दंगल’ से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा ने उर्फी जावेद के पॉडकास्ट शो में बताया कि शुरुआती दिनों में वो बिना मेकअप और हेयर के ऑडिशन देने चली जाती थी लेकिन इस दौरान एक कास्टिंग डायरेक्टर ने उन्हें जबड़े की सर्जरी कराने के लिए कह दिया था.

उन्होंने शो पर यह भी बताया कि उनकी मां नहीं चाहती थई कि वो एक्टिंग करें लेकिन उनके पिता जी उन्हें प्रोत्साहित करते थे. सान्या बताती हैं कि उनकी मां उन्हें तीन पंडितों के पास ले गईं और जिन्होंने कहा था कि मुझे एक्टिंग नहीं करनी चाहिए. ये लाइन मेरे लिए सही नहीं है. पंडितों ने कहा था कि मैं इकोनॉमिक्स करूंगी और बैंक में जाउंगी लेकिन मैने कहा कि यह संभव नहीं है. उन्होंने शो पर यह भी बताया कि उनकी ओवरीज में एक सिस्ट है.

 

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सान्या ने बताया कि उन्हें इस बात पर विश्वास थआ कि उन्हें उनके एक्टिंग टैलेंट के बेस पर सिलेक्ट कर लिया जाएगा. आगे सान्याने बताया कि स्कूल में उनकी मूंछें हुआ करती थीं. इसके लिए एक लड़के ने उनका मज़ाक भी उड़ाया. लेकिन सान्या ने बिना डरे उसे जबाव दिया था कि ‘ठीक है, तुम्हारे पास एक भी नहीं है’. सान्या कहती है कि बचपन में भी उन्हें इस बात पर विश्वास था कि वो एक्ट्रेस बनेंगी और इसके लिए उन्होंने लगातार प्रयास भी किए.

सान्या ने इस साल ब्लॉकबस्टर हिट जवान में काम किया. उन्होंने कटहल और सैम बहादुर में भी काम किया. इस साल उनकी चार फिल्में रिलीज होंगी इनमें ‘मिसिस’, ‘बेबी जॉन’, ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ और ‘ठग लाइफ’ रिलीज होंगी.

 

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आपकों बता दें कि जौ रिकंस्ट्रशन सर्जरी में जबड़े की जो हड्डियां होती हैं और दांतों को सही किया जाता है जिससे वो सही से काम कर सकें साथ ही इससे चेहरे की अपीयरेंस भी सही होती है.

जियो सिनेमा पर चैट शो ‘धवन करेंगे’ होस्ट करेंगे क्रिकेटर शिखर धवन

क्रिकेटर शिखर धवन जियो सिनेमा पर आनेवाले चैट शो धवन करेंगे को होस्ट करेंगे. शो का प्रोमो शिखर ने सोशल मीडिया प्लैटफौर्म इंस्टाग्राम पर शेयर किया है.

पोस्ट में शिखर धवन ने लिखा है, “आपका फेवरेट गब्बर आ रहा है एक नए अंदाज में. नया शो गपशप स्टोरिज और मस्ती से भरा होगा. तैयार हो जाइए किसी और के साथ नहीं शिखर के साथ शो देखने के लिए. शो में देश के बड़े सितारे आएंगे.

प्रोमों में एक्ट्रेस तापसी पन्नू, एक्टर अक्षय कुमार, पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह, कॉमेडियन और लेखक भुवन बाम, क्रिकेटर ऋषभ पंथ दिख रहे हैं शो 20 मई से जियो सिनेमा पर प्रसारित होगा. शो के कई सेगमेंट्स होंगे जिसमें चैटिंग होगी, म्यूजिक, मस्की और डांस के सेगमेंट्स होंगे.

 

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शिखर फिलहाल टीम में नहीं हैं. उन्होंने टी-20 इंटरनेशलन तीन साल पहले खेला था. इस सीजन धवन पंजाब किंग्स के कप्तान थे लेकिन चोट के कारण वो पांच मैच ही खेल सके हैं. शो के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा है कि शो में बहुत मजा आएगा और कई दिग्गज सितारों के साथ बातचीत की जाएगी.

 

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शो के प्रोमो में शिखर अक्षय कुमार के फेमस डायलॉग ‘डोंट एंग्री मी’ को रीक्रिएट करने की कोशिश कर रहे हैं  और इसके बाद दोनों ठहाकेदार हंस पड़ते हैं. दूसरे सेगमेंट में शिखर तापसी पन्नू के साथ ढोल बजने पर थिरकते हुए नजर आ रहे हैं. शो में शिखर का पहनावा भी बेहतरीन है वो कैजुअल लुक में नजर आ रहे हैं. प्रोमो में हरभजन सिंह भी डांस करते नजर आ रहे हैं.

क्या डायबिटीज से प्रैग्नेंसी पर कोई इफेक्ट पड़ता है?

सवाल-

मैं 33 साल की विवाहित स्त्री हूं. मुझे पिछले कुछ सालों से टाइप 2 डायबिटीज है. लेकिन मैं नियम से दवा लेती हूं इसलिए मेरी ब्लड शुगर कंट्रोल में बनी हुई है. मेरा और मेरे पति का मन है कि हम अपने परिवार को आगे बढ़ाएं, लेकिन डायबिटीज होने के कारण डर लगता है कि कहीं इस का मुझ पर या हमारे बच्चे पर कोई बुरा असर न हो जाए. हमें क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्रैगनैंट होने का मन बनाने से पहले आप अपने डाक्टर से खुल कर बातचीत कर लें. आप ने हमें यह नहीं लिखा है कि आप ब्लड शुगर कंट्रोल में रखने के लिए कौनकौन सी दवा ले रही हैं. अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि प्रैगनैंसी में इंसुलिन सब से सुरक्षित और उपयुक्त साबित होता है. यह कितनी मात्रा में और किस रूप में लिया जाए, यह निर्णय आप की व्यक्तिगत जरूरत को समझ कर ही किया जा सकता है.

यदि प्रैगनैंट होने से पहले ब्लड शुगर संतुलित कर ली जाए और प्रैगनैंसी के दौरान में उस पर नियंत्रण बना रहे, तो डायबिटिक मदर के बच्चे में जन्मजात विकार होने की संभावना काफी घट जाती है. मां का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.

डायबिटीज एक क्रोनिक रोग है जो हर उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. टाइप 1 डायबिटीज बच्चों और किशोरों में ज्यादा पाई जाती है, जबकि टाइप 2 डायबिटीज ज्यादातर युवा और वयस्कों को होती है. डायबिटीज से पीडि़त बच्चों की देखभाल करना मुश्किल हो सकता है खासतौर पर तब जब आप को पता हो कि आप के बच्चे को जीवनभर इसी के साथ जीना पड़ सकता है.

मातापिता की तरह डायबिटीज का असर बच्चों के मन पर भी पड़ता है. वे हमेशा अपनेआप को दूसरे बच्चों से अलग महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें कई चीजों के लिए रोका जाता है. ऐसे में इन बच्चों का आत्मविश्वास भी कम हो सकता है.

पेश हैं, इस संदर्भ में डा. मुदित सबरवाल (कंसलटैंट डायबेटोलौजिस्ट एवं हैड औफ मैडिकल अफेयर्स, बीटो) के कुछ सु झाव:

डायबिटीज से ग्रस्त बच्चे का जीवन

टाइप 1 डायबिटीज एक क्रोनिक रोग है. इस स्थिति में पैंक्रियाज में इंसुलिन नहीं बनता है या कम मात्रा में बनता है. इसलिए शरीर को बाहर से इंसुलिन देना पड़ता है.

टाइप 1 डायबिटीज से पीडि़त बच्चा तनाव और थकान महसूस करता है. वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो सकता है. ‘डायबिटीज बर्नआउट’ एक ऐसी स्थिति है जिस में व्यक्ति अपनी डायबिटीज को नियंत्रित करतेकरते थक जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चे अपने ब्लड ग्लूकोस लैवल को मौनिटर करना, इसे रिकौर्ड करना या इंसुलिन लेना नहीं चाहते.

ऐसे में मातापिता होने के नाते आप को अपने बच्चे के डायबिटीज मैनेजमैंट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है. बच्चे को खुद अपनी स्थिति पर नियंत्रण रखने दें. इस बीच उसे पूरा सहयोग दें और मार्गदर्शन करें.

कैसे करें बढ़ते बच्चों की परवरिश

‘‘जब फोन पर पिज्जा, बर्गर और्डर करना होता है तब आप के मुंह से न नहीं निकलता, गेम्स और मूवीज की डीवीडी खरीदते वक्त मना नहीं करते, दिनरात टीवी से चिपके रहते हो, मौल में पापा के 2-3 हजार फालतू चीजों पर खर्च करवा देते हो, दोस्तों के साथ खेलने जाने में कभी लेट नहीं होते, लेकिन पढ़ाई के वक्त यह फुरती कहां गायब हो जाती है? जरा सा काम करने को कहा नहीं कि मुंह फूल जाता है. आप जाओ मेरे सामने से वरना थप्पड़ जड़ दूंगा,’’ ऐसे संवाद हर उस घर में सुने जा सकते हैं, जिस में 10 या उस से ज्यादा की उम्र का बच्चा हो. डांट के इस संशोधित संस्करण का मूल स्वरूप शायद बड़ेबूढ़ों को याद हो, लेकिन अभी जो पीढ़ी यह जिम्मेदारी उठा रही है, उस ने बहुत ज्यादा बदलाव डांट की भाषा में नहीं किए हैं. तूतड़ाक की शैली खत्म हो गई है. बच्चों को अब सम्मानजनक तरीके से झाड़ लगाई जाती है. यह जरूर यथासंभव ध्यान रखा जाता है कि गुस्से को काबू रखते हुए बच्चों को मारा न जाए, क्योंकि परवरिश का यह वाकई असभ्य तरीका है.

सभ्य और आधुनिक तरीका यह है कि बच्चा इस बात को समझे और जाने कि अभिभावक उस के दुश्मन नहीं, बल्कि हितैषी हैं. यह दीगर बात है कि 40-50 साल पहले के अभिभावक भी यही चाहते थे बस फर्क इतना सा था कि डांट खाने वाले बच्चों की तादाद 3-4 या फिर इस से भी ज्यादा होती थी. जब गुस्सा बरदाश्त नहीं होता था तो बच्चों की पिटाई भी कर दी जाती थी  देखा जाए तो भावनात्मक तौर पर बदला कुछ खास नहीं है. अभिभावकों का बच्चों को कुछ बनाने का जज्बा और ख्वाहिश ज्यों की त्यों है और दूसरी तरफ बच्चों की जिद भी बरकरार है. बदलाव घरों में आए हैं. वे अब आलीशान हो गए हैं. उन में कूलर, फ्रिज, एसी लगे हैं, ज्यादातर घरों के बाहर छोटी या बड़ी कार खड़ी होती है. आज के बच्चे पहले के बच्चों की तरह स्कूल पैदल दोस्तों के साथ कूदतेफांदते मस्ती करते नहीं जाते, बल्कि बस या वैन में जाते हैं. आज के बच्चे सुबह उठ कर मम्मीपापा को गुडमौर्निंग कहते हैं. पहले के बच्चों की तरह उन के पांव नहीं छूते. आज जो मातापिता खड़ेखड़े 3-4 हजार बच्चों की जरूरत पर खर्च कर देते हैं उन्हें कभीकभार याद आता है कि उन्हें चवन्नी की जलेबियां या चाट खाने के लिए भी कितनी चापलूसी और घर के काम करने पड़ते थे. लेकिन उन का सोचना है कि उन्होंने जो सहा वह अपने बच्चों को नहीं सहने देंगे, उन्हें तकलीफें नहीं उठाने देंगे. यह मानसिकता हर दशक में बलवती होती रही है और यही वह वजह है जिस ने परवरिश को लगातार सुधारा है. दूसरे शब्दों में कहें तो पेरैंटिंग को स्मार्ट और गुणवत्ता वाला बनाया है.

पेरैंटिंग का बदलता दौर

गुजरे दौर से बगैर तुलना किए आज की पेरैंटिंग को नहीं समझा जा सकता और न ही यह कि क्यों हमेशा समझदार होता बच्चा ही इस के दायरे में ज्यादा आता है. दरअसल, आज भी बढ़ता बच्चा अभिभावकों की अधूरी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने वाला पात्र होता है. पहले अभिभावकों के पास विकल्प होते थे. अगर 3 बेटे हैं, तो एक का कलैक्टर, दूसरे का डाक्टर और तीसरे का इंजीनियर बनना तय रहता था. यह और बात है कि ज्यादातर क्लर्क बन कर रह जाते थे. अब इच्छाएं और सपने थोपे नहीं जाते. बड़ा होता बच्चा खुद तय कर लेता है कि उसे क्या बनना है. अच्छी बात यह है कि इस पर अभिभावकों को कोई ऐतराज भी नहीं होता, क्योंकि वे जानतेमानते हैं कि अब बच्चे उम्र से पहले बड़े और सयाने हो चले हैं. इलैक्ट्रौनिक्स क्रांति ने पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है. लिहाजा, उन की समझ और फैसले पर शक या एतराज करना बेमानी है. बस इतना भर करना है कि बच्चा पढ़े, अनुशासित जिंदगी जीए, खूब खाएपीए और स्वस्थ रहे. शरारतें, शैतानी भी करे, लेकिन हद में रह कर. एक बड़ा बदलाव यह भी आया है कि अब पारिवारिक व सामाजिक प्रतिस्पर्धा खत्म सी हो चली है. तमाम सर्वे बताते हैं कि अब 2 बच्चे भी 50 फीसदी से कम दंपती ही पैदा कर रहे हैं. बढ़ती उम्र बड़ी संवेदनशील, नाजुक और खतरनाक होती है. बच्चा समझदार होते ही वजूद की लड़ाई लड़ना शुरू कर देता है. पर जिस तरह का अभिभावकों का साथ वह चाहता है वैसा नहीं मिलता. नतीजतन, वह जिद्दी, अंतर्मुखी चिड़चिड़ा और गुस्सैल होता जाता है. आर्थिक रूप से मातापिता पर निर्भरता उसे बागी नहीं होने देती. बौंडिंग की वजह भावनात्मक कम आर्थिक ज्यादा हो चली है जिस में हैरानी की बात यह है कि बच्चा मातापिता से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से समझता है.

बनें स्मार्ट पेरैंट

जमाना स्मार्ट और क्वालिटी पेरैंटिंग का है. अगर आप वाकई बच्चों को कुछ बनते देखना चाहते हैं, तो उन की परवरिश भी आप को निम्न स्मार्ट तरीकों से ही करनी होगी.

समझें बच्चों की दुनिया

सरकार और अदालत की मंशा के मुताबिक पहले यह स्वीकार लें कि 9-10 साल का बच्चा अब दरअसल में टीनऐजर है और काल्पनिक दुनिया धीरेधीरे छोड़ रहा है. इसी वक्त उसे अभिभावक की सब से ज्यादा जरूरत होती है. इस उम्र में जिज्ञासाएं और प्राथमिकताएं तेजी से बदलती हैं. बच्चा यह नहीं पूछता कि दुनिया किस ने बनाई. वह यह पूछने लगता है कि दुनिया ऐसी क्यों है? ऐसे कई सवालों के जवाब देने जरूरी हैं. आप खुद को अपडेट रखें. मां या पिता की भूमिका से बाहर निकलें और बच्चों के दोस्त बनें. स्कूल और खेल के मैदान में उस के हमउम्र दोस्त कोई निष्कर्ष नहीं देते. वे चर्चा भर करते हैं यानी घरों में जो उन्हें बतायासिखाया जाता है उसे ऐक्सचेंज करते हैं. यह न मान लें कि यही उम्र कैरियर बनाने की है, बल्कि यह समझ लें कि यह वह उम्र है, जो उसे आत्मविश्वासी बनाती है. इसलिए उस पर अपनी इच्छाए न थोपें. उसे कैरियर को ले कर डराएं नहीं, उलटे मौजमस्ती करने दें और खेलनेकूदने दें. इस उम्र में शारीरिक और मानसिक विकास व बदलाव एकसाथ होते हैं. ये कुदरती होते हैं. इन में अड़ंगा न बनें. ज्यादातर अभिभावक यह समझने की गलती कर बैठते हैं कि बच्चा उन की बात नहीं मान कर गलती कर रहा है. ज्यादा सख्ती करेंगे तो वह आप की बात मान तो लेगा, लेकिन उस में जो असुरक्षा की भावना आएगी उसे शायद ही आप कभी दूर कर पाएं.

उसे वक्त दें

बच्चों के बजाय अभिभावक अपनी दिनचर्या देखें तो पाएंगे कि टीवी, इंटरनैट, स्मार्ट फोन और दूसरे फालतू के कामों में वे बच्चों से ज्यादा व्यस्त रहते हैं. आजकल दफ्तर या व्यवसाय में 15-16 घंटे लगना आम बात है. इस वक्त के बाद आप बच्चों को मुश्किल से 2 घंटे भी नहीं देते और देते भी हैं तो ज्यादातर वक्त उसे समझाते रहते हैं, नसीहतें देते रहते हैं. इस से आप को झूठी तसल्ली जिम्मेदारी निभाने की होती है पर बच्चों को कुछ हासिल नहीं होता. बच्चों को जितना ज्यादा हो सके समय दें. उन के साथ खेलें, घूमेंफिरें. खुद भी बच्चा बन जाएं. भूल जाएं कि आप उस के पेरैंट हैं. यही याद रखें कि आप उस के दोस्त हैं. 12 वर्षीय उद्भव का कहना है कि उस के मम्मीपापा उसे हमेशा डांटते रहते हैं कि फालतू के काम करते रहते हो, जबकि खुद मम्मी टीवी सीरियलों में आंखें गड़ाए रहती हैं और पापा शाम को दोस्तों के साथ निकलते हैं, तो देर रात लौटते हैं. तब तक अकसर मैं सो चुका होता हूं. यह केवल उद्भव की नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी की शिकायत है जो असहज हो कर पेरैंट्स को फ्रैंड नहीं, बल्कि फाइनैंसर समझ बैठी है. 9 साल बाद की उम्र के  बाद बच्चा पहले के मुकाबले आप के ज्यादा करीब आना चाहता है पर दिक्कत यह है कि आप खुद दूर हो जाते हैं और यह मानने की गलती कर बैठते हैं कि अब वह बड़ा हो गया है, अपने काम खुद करने लगा है. अब सारा फोकस स्टडी पर करना है जिस के लिए अच्छे महंगे स्कूल के अलावा कोचिंग और ट्यूटर का इंतजाम काफी है. इस तरह कुछ ज्यादा पैसे खर्च कर आप दरअसल अपना वक्त बचा रहे होते हैं जिस पर अधिकार बच्चों का है, इसलिए उसे वक्त दें और होमवर्क खुद कराएं.

उस के साथ खेलें भी

 11 साल का नमन कहता है कि जब मम्मीपापा कालोनी में उस के साथ बैडमिंटन खेलते हैं या सोने से पहले कैरम खेलते हैं, तो उसे बहुत अच्छा लगता है. यह पढ़ाई और घर की दूसरी जिम्मेदारियों से इतर एक अलग किस्म की शेयरिंग है, जिस से बच्चों का मनोरंजन भी होता है और विकास भी. इस से वे पेरैंट्स को वाकई अपने पास पाते हैं.

प्रलोभन में हरज नहीं

स्मार्ट पेरैटिंग का एक अच्छा फंडा यह है कि बच्चों को कहें कि अगर इस पूरे महीने उस ने वक्त पर होमवर्क किया तो आउटिंग के लिए ले जाएंगे बजाय इस के कि उस से यह कहें कि शैतानी न करो तो इस के ऐवज में चौकलेट या आइसक्रीम दिलाएंगे. गलत लालच दे कर आप उसे गलती करने को प्रोत्साहित करने की गलती न करें यानी भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल न हो. 12 वर्षीय अनुष्का को जब भी चौकलेट चाहिए होती है तो वह शैतानी शुरू कर देती है. जब डांटफटकार से नहीं मानती तो मम्मीपापा थकहार कर चौकलेट दिला देते हैं. यह तरीका गलत है. बच्चों को अच्छे काम के लिए प्रलोभन दें.

प्यार करें

याद करें कि कब आखिरी बार आप ने अपने बच्चों को उसी तरह सीने से लगा कर प्यार किया था जैसा 4-5 साल की उम्र में करते थे. ध्यान न आए तो हरज की बात नहीं, लेकिन उस के बालों में हाथ फिराएं, पीठ सहलाएं, गाल थपथपाएं, उसे गले से लगाएं. ऐसा करने पर आप उस में जो बदलाव पाएंगे वे सख्ती करने पर नहीं पा सकते थे.

निगरानी भी करें

भोपाल के एनआईटी के प्रोफैसर राजेश पटेरिया कहते हैं कि इस उम्र में बच्चों की निगरानी बहुत जरूरी है. बच्चा खेलने कहांकहां जाता है और किन व कैसे बच्चों के साथ खेलता है, उस की घर के बाहर की गतिविधियां कैसी हैं, बाहर से जो सीख कर आता है उसे घर में भी दोहराता है, इन हरकतों पर ध्यान रखें. नौकरों व ट्यूटर पर भी नजर रखनी जरूरी है कि कहीं वे बच्चे को गलत बातें तो नहीं सिखा रहे. अगर वह गलत संगत में है, तो फौरन संभल जाएं. इस उम्र में आजादी की चाह कुदरती होती  है और अकसर छूट मिलने पर बच्चा इस का बेजा इस्तेमाल कर खुद को बड़ा समझने की नादानी करता है. उस पर अंकुश बेहद जरूरी है. अगर उस का खर्च बढ़ रहा है तो इस की छानबीन करें व यह भी मालूम करते रहें कि पौकेट मनी वह कहां और कैसे खर्च करता है.

पढ़नेलिखने को प्रेरित करें

बढ़ती उम्र के बच्चे टीवी और कंप्यूटर की लत के शिकार होते हैं और समझाने पर समझने को तैयार नहीं होते कि उपकरण उन्हें कैसेकैसे नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह लत छुड़ाने का तरीका बदलें. उन्हें बारबार समझाएं या डांटे नहीं, बल्कि उन का ध्यान अच्छी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने में लगाने की कोशिश करें. उन्हें बताएं कि पढ़नेलिखने से उन की भाषा व व्याकरण सुधरेगा जो कैरियर में सहायक होगा. खाली वक्त में बच्चों को कोई मनपसंद दिलचस्प विषय दे कर लिखने के लिए प्रेरित करें. वे कैसा भी लिखें उन की तारीफ करें. उन्हें अच्छे साहित्य व लेखकों के बारे में बताएं. उन की गलतियां भी सुधारें.

अनुशासन व शिष्टाचार जरूरी है

स्मार्ट पेरैंटिंग की एक जरूरी शर्त बच्चे को अनुशासन सिखाना भी है. मसलन जब मेहमान आएं तो उन से उस का परिचय कराएं. आगंतुकों से कैसे पेश आना है यह शिष्टाचार उसे जरूर सिखाएं. इस से उस का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

उपहार दें

बढ़ती उम्र के बच्चे लेटैस्ट गैजेट्स चाहते हैं. उन्हें यह जरूरत व उपयोगिता के मुताबिक दें पर साथ ही उन की रुचियों पर भी ध्यान दें. इस से उन की गलत मांगें तो कम होंगी ही, साथ ही कलात्मक अभिरुचियां भी बढ़ेंगी. डांटने और फटकारने को ही पेरैंटिंग न समझें. इसे कम करें. नए दौर के बच्चे किसी भी तरह के दबाव से जल्दी टूटने लगते हैं. उन्हें हमेशा प्यार से समझाएं. खुद को बदलें बच्चे खुदबखुद बदलने लगेेंगे.

 

ऐसा भी होता है: लावारिस ब्रीफकेस में क्या था

‘‘भाई साहब, यह ब्रीफकेस आप का है क्या?’’ सनत कुमार समाचार- पत्र की खबरों में डूबे हुए थे कि यह प्रश्न सुन कर चौंक गए. ‘‘जी नहीं, मेरा नहीं है,’’ उन्होंने प्रश्नकर्त्ता के मुख पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली. उन से प्रश्न करने वाला 25-30 साल का एक सुदर्शन युवक था. ‘‘फिर किस का है यह ब्रीफकेस?’’ युवक पुन: चीखा था. इस बार उस के साथ कुछ और स्वर जुड़ गए थे.

‘‘किस का है, किस का है? यह पूछपूछ कर क्यों पूरी ट्रेन को सिर पर उठा रखा है. जिस का है वह खुद ले जाएगा,’’ सनत कुमार को यह व्यवधान अखर रहा था. ‘‘अजी, किसी को ले जाना होता तो इसे यहां छोड़ता ही क्यों? यह ब्रीफकेस सरलता से हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला. यह तो हम सब को ले कर जाएगा,’’ ऊपरी शायिका से घबराहटपूर्ण स्वर में बोल कर एक महिला नीचे कूदी थीं,

‘‘किस का है, चिल्लाने से कोई लाभ नहीं है. उठा कर इसे बाहर फेंको नहीं तो यह हम सब को ऊपर पहुंचा देगा,’’ बदहवास स्वर में बोल कर महिला ने सीट के नीचे से अपना सूटकेस खींचा और डब्बे के द्वार की ओर लपकी थीं. ‘‘कहां जा रही हैं आप? स्टेशन आने में तो अभी देर है,’’ सनत कुमार महिला के सूटकेस से अपना पैर बचाते हुए बोले थे. ‘‘मैं दूसरे डब्बे में जा रही हूं…इस लावारिस ब्रीफकेस से दूर,’’ महिला सूटकेस सहित वातानुकूलित डब्बे से बाहर निकल गई थीं. ‘

लावारिस ब्रीफकेस?’ यह बात एक हलकी सरसराहट के साथ सारे डब्बे में फैल गई थी. यात्रियों में हलचल सी मच गई. सभी उस डब्बे से निकलने का प्रयत्न करने लगे. ‘‘आप क्या समझती हैं? आप दूसरे डब्बे में जा कर सुरक्षित हो जाएंगी? यहां विस्फोट हुआ तो पूरी ट्रेन में आग लग जाएगी,’’ सनत कुमार एक और महिला को भागते देख बोले थे. ‘‘वही तो मैं कह रहा हूं, यहां से भागने से क्या होगा. इस ब्रीफकेस का कुछ करो. मुझे तो इस में से टकटक का स्वर भी सुनाई दे रहा है. पता नहीं क्या होने वाला है. यहां तो किसी भी क्षण विस्फोट हो सकता है,’’ एक अन्य शायिका पर अब तक गहरी नींद सो रहा व्यक्ति अचानक उठ खड़ा हुआ था.

‘‘करना क्या है. इस ब्रीफकेस को उठा कर बाहर फेंक दो,’’ कोई बोला था. ‘‘आप ही कर दीजिए न इस शुभ काम को,’’ सनत कुमार ने आग्रह किया था. ‘‘क्या कहने आप की चतुराई के. केवल आप को ही अपनी जान प्यारी है… आप स्वयं ही क्यों नहीं फेंक देते.’’ ‘‘आपस में लड़ने से क्या हाथ लगेगा? आप दोनों ठीक कह रहे हैं. इस लावारिस ब्रीफकेस को हाथ लगाना ठीक नहीं है. इसे हिलानेडुलाने से विस्फोट होने का खतरा है,’’ साथ की शायिका से विद्याभूषणजी चिल्लाए थे. ‘‘फिर क्या सुझाव है आप का?’’

सनत कुमार ने व्यंग्य किया था. ‘‘सरकार की तरह हम भी एक समिति का गठन कर लेते हैं. समिति जो भी सुझाव देगी उसी पर अमल कर लेंगे,’’ एक अन्य सुझाव आया था. ‘‘यह उपहास करने का समय है श्रीमान? समिति बनाई तो वह केवल हमारे लिए मुआवजे की घोषणा करेगी,’’ विद्याभूषण अचानक क्रोधित हो उठे थे. ‘‘कृपया शांति बनाए रखें. यदि यह उपहास करने का समय नहीं है तो क्रोध में होशहवास खो बैठने का भी नहीं है. आप ही कहिए न क्या करें,’’ सनत कुमार ने विद्या- भूषण को शांत करने का प्रयास किया था.

‘‘करना क्या है जंजीर खींच देते हैं. सब अपने सामान के साथ तैयार रहें. ट्रेन के रुकते ही नीचे कूद पड़ेंगे.’’ चुस्तदुरुस्त सुदर्शन नामक युवक लपक कर जंजीर तक पहुंचा और जंजीर पकड़ कर लटक गया था. ‘‘अरे, यह क्या? पूरी शक्ति लगाने पर भी जंजीर टस से मस नहीं हो रही. यह तो कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र लगता है. आतंकवादियों ने बम रखने से पहले जंजीर को नाकाम कर दिया है जिस से ट्रेन रोकी न जा सके,’’ सुदर्शन भेद भरे स्वर में बोला था. ‘‘अब क्या होगा?’’ कुछ कमजोर मन वाले यात्री रोने लगे थे.

उन्हें रोते देख कर अन्य यात्री भी रोनी सूरत बना कर बैठ गए. कुछ अन्य प्रार्थना में डूब गए थे. ‘‘कृपया शांति बनाए रखें, घबराने की आवश्यकता नहीं है. बड़ी सुपरफास्ट ट्रेन है यह. इस का हर डब्बा एकदूसरे से जुड़ा हुआ है. हमें बड़ी युक्ति से काम लेना होगा,’’ विद्याभूषण अपनी बर्थ पर लेटेलेटे निर्देश दे रहे थे. तभी किसी ने चुटकी ली, ‘‘बाबू, आप को जो कुछ कहना है, नीचे आ कर कहें, अब आप की बर्थ को कोई खतरा नहीं है.’’ ‘‘हम योजनाबद्ध तरीके से काम करेंगे,’’ नीचे उतर कर विद्याभूषण ने सुझाव दिया.

‘‘सभी पुरुष यात्री एक तरफ आ जाएं. हम 5 यात्रियों के समूह बनाएंगे. ‘‘मैं, सनत कुमार, सुदर्शन, 2 और आ जाइए, नाम बताइए…अच्छा, अमल और धु्रव, यह ठीक है. हम सब इंजन तक चालक को सूचित करने जाएंगे. दूसरा दल गार्ड के डब्बे तक जाएगा, गार्ड को सूचित करने, तीसरा दल लोगों को सामान के साथ तैयार रखेगा, जिस से कि ट्रेन के रुकते ही सब नीचे कूद जाएं. महिलाओं के 2 दल प्राथमिक चिकित्सा के लिए तैयार रहें,’’ विद्याभूषण अपनी बात समाप्त करते इस से पहले ही रेलवे पुलिस के 2 सिपाही, जिन के कंधों पर ट्रेन की रक्षा का भार था, वहां आ पहुंचे थे.

‘‘आप बिलकुल सही समय पर आए हैं. देखिए वह ब्रीफकेस,’’ विद्याभूषणजी ने पुलिस वालों को दूर से ही ब्रीफकेस दिखा दिया था. ‘‘क्या है यह?’’ एक सिपाही ने अपनी बंदूक से खटखट का स्वर निकालते हुए प्रश्न किया था. ‘‘यह भी आप को बताना पड़ेगा? यह ब्रीफकेस बम है. आप शीघ्र ही इसे नाकाम कर के हम सब के प्राणों की रक्षा कीजिए.’’ ‘‘बम? आप को कैसे पता कि इस में बम है?’’ एक पुलिसकर्मी ने प्रश्न किया था. ‘‘अजी कल रात से ब्रीफकेस लावारिस पड़ा है. उस में से टिकटिक की आवाज भी आ रही है और आप कहते हैं कि हमें कैसे पता? अब तो इसे नाकाम कर दीजिए,’’ सनत कुमार बोले थे.

‘‘अरे, तो जंजीर खींचिए…बम नाकाम करने का विशेष दल आ कर बम को नाकाम करेगा.’’ ‘‘जंजीर खींची थी हम ने पर ट्रेन नहीं रुकी.’’ ‘‘अच्छा, यह तो बहुत चिंता की बात है,’’ दोनों सिपाही समवेत स्वर में बोले थे. ‘‘अब आप ही हमारी सहायता कर सकते हैं. किसी भी तरह इस बम को नाकाम कर के हमारी जान बचाइए.’’ ‘‘काश, हम ऐसा कर सकते. हमें बम नाकाम करना नहीं आता, हमें सिखाया ही नहीं गया,’’ दोनों सिपाहियों ने तुरंत ही सभी यात्रियों का भ्रम तोड़ दिया था. कुछ महिला यात्री डबडबाई आंखों से शून्य में ताक रही थीं. कुछ अन्य बच्चों के साथ प्रार्थना में लीन हो गई थीं. ‘‘हमें जाना ही होगा,’’ विद्याभूषण बोले थे, ‘‘सभी दल अपना कार्य प्रारंभ कर दीजिए. हमारे पास समय बहुत कम है.’’

डरेसहमे से दोनों दल 2 विभिन्न दिशाओं में चल पड़े थे और जाते हुए हर डब्बे के सहयात्रियों को रहस्यमय ब्रीफकेस के बारे में सूचित करते गए थे. बम विस्फोट की आशंका से ट्रेन में भगदड़ मच गई थी. सभी यात्री कम से कम एक बार उस ब्रीफकेस के दर्शन कर अपने नयनों को तृप्त कर लेना चाहते थे. शेष अपना सामान बांध कर अवसर मिलते ही ट्रेन से कूद जाना चाहते थे. कुछ समझदार यात्री रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था को कोस रहे थे, जिस ने हर ट्रेन में बम निरोधक दल की व्यवस्था न करने की बड़ी भूल की थी. गार्ड के डब्बे की ओर जाने वाले दल को मार्ग में ही एक मोबाइल वाले सज्जन मिल गए थे. उन्होंने चटपट अपने जीवन पर मंडराते खतरे की सूचना अपने परिवार को दे दी थी और परिवार ने तुरंत ही अगले स्टेशन के स्टेशन मास्टर को सूचित कर दिया था.

फिर क्या था? केवल स्टेशन पर ही नहीं पूरे रेलवे विभाग में हड़कंप मच गया. ट्रेन जब तक वहां रुकी बम डिस्पोजल स्क्वैड, एंबुलैंस आदि सभी सुविधाएं उपस्थित थीं. ट्रेन रुकने से पहले ही लोगों ने अपना सामान बाहर फेंकना प्रारंभ कर दिया और अधिकतर यात्री ट्रेन से कूद कर अपने हाथपांव तुड़वा बैठे थे. गार्ड के डब्बे की ओर जाने वाले दस्ते का काम बीच में ही छोड़ कर सनत कुमारजी का दस्ता जब वापस लौटा तो उन की पत्नी रत्ना चैन से गहरी नींद में डूबी थीं. सनत कुमार ने घबराहट में उन्हें झिंझोड़ डाला था : ‘‘तुम ने तो कुंभकर्ण को भी मात कर दिया. किसी भी क्षण ट्रेन में बम विस्फोट हो सकता है,’’ चीखते हुए अपना सामान बाहर फेंक कर उन्होंने पत्नी रत्ना को डब्बे से बाहर धकेल दिया था.

‘‘हे ऊपर वाले, तेरा बहुतबहुत धन्यवाद, जान बच गई, चलो, अब अपना सामान संभाल लो,’’ सनत कुमार ने पत्नी को आदेश दे कर इधरउधर नजर दौड़ाई थी. घबराहट में ट्रेन से कूदे लोगों को भारी चोटें आई थीं. उन की मूर्खता पर सनत कुमार खुल कर हंसे थे. इधरउधर का जायजा ले कर सनत कुमार लौटे तो रत्ना परेशान सी ट्रेन की ओर जा रही थीं. ‘‘कहां जा रही हो? ट्रेन में कभी भी विस्फोट हो सकता है. वैसे भी ट्रेन में यात्रियों को जाने की इजाजत नहीं है. पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया है.’’ ‘‘सारा सामान है पर उस काले ब्रीफकेस का कहीं पता नहीं है.’’ ‘‘कौन सा काला ब्रीफकेस?’’ ‘‘वही जिस में मैं ने अपने जेवर रखे थे और आप ने कहा था कि उसे अपनी निगरानी में संभाल कर रखेंगे.’’ ‘‘तो क्या वह ब्रीफकेस हमारा था?’’ सनत कुमार सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘क्या होना है, तुम और तुम्हारी नींद, ट्रेन में इतना हंगामा मचा और तुम चैन की नींद सोती रहीं.’’ ‘‘मुझे क्या पता था कि आप अपने ही ब्रीफकेस को नहीं पहचान पाओगे. मेरी तो थकान से आंख लग गई थी ऊपर से आप ने नींद की गोली खिला दी थी. पर आप तो जागते हुए भी सो रहे थे,’’ रत्ना रोंआसी हो उठी थीं. ‘‘भूल जाओ सबकुछ, अब कुछ नहीं हो सकता,’’ सनत कुमार ने हथियार डाल दिए थे. ‘‘क्यों नहीं हो सकता? मैं अभी जा कर कहती हूं कि वह हमारा ब्रीफकेस है उस में मेरे 2 लाख के गहने हैं.’’

‘‘चुप रहो, एक शब्द भी मुंह से मत निकालना, अब कुछ कहा तो न जाने कौन सी मुसीबत गले पड़ेगी.’’ पर रत्ना दौड़ कर ट्रेन तक गई थीं. ‘‘भैया, वह ब्रीफकेस?’’ उन्होंने डब्बे के द्वार पर खड़े पुलिसकर्मी से पूछा था. ‘‘आप क्यों चिंता करती हैं? उस में रखे बम को नाकाम करने की जिम्मेदारी बम निरोधक दस्ते की है. वे बड़ी सावधानी से उसे ले गए हैं,’’ पुलिसकर्मी ने सूचित किया था.

रत्ना बोझिल कदमों से पति के पास लौट आई थीं. ट्रेन के सभी यात्रियों को उन के गंतव्य तक पहुंचाने का प्रबंध किया गया था. सनत कुमार और रत्ना पूरे रास्ते मुंह लटाए बैठे रहे थे. सभी यात्री आतंकियों को कोस रहे थे. पर वे दोनों मौन थे. विस्फोट हुआ अवश्य था पर ट्रेन में नहीं सनत कुमार और रत्ना के जीवन में.

हल: पति को सबक सिखाने के लिए क्या था इरा का प्लान

इराकल रात के नवीन के व्यवहार से बेहद गुस्से में थी. अब मुख्यमंत्री की प्रैस कौन्फ्रैंस हो और वह मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हो कर जल्दी कैसे घर आ सकती थी. पर नहीं. नवीन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. माना लौटने में रात के 11 बज गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री को बिदा करते ही वह घर आ गई थी. नवीन के मूड ने उसे वहां एक

भी निवाला गले से नीचे नहीं उतारने दिया. दिनभर की भागदौड़ से थकी जब वह रात को भूखी घर आई, तो मन में कहीं हुमक उठी कि अम्मां की तरह कोई उसे दुलारे कि नन्ही कैसे मुंह सूख रहा है तुम्हारा. चलो हम खाना परोस दें. लेकिन कहां वह कोमलता और ममत्व की कामना और कहां वास्तविकता में क्रोध से उबलता चहलकदमी करता नवीन. उसे देखते ही उबल पड़ा, ‘‘यह वक्त है घर आने का? 12 बज रहे हैं?’’

‘‘आप को पता तो था आज सीएम की प्रैस कौन्फ्रैंस थी. आप की नाराजगी के डर से मैं ने वहां खाना भी नहीं खाया और आप हैं कि…’’ इरा रोआंसी हो आई थी.

‘‘छोड़ो, आप का पेट तो लोगों की सराहना से ही भर गया होगा. खाने के लिए जगह ही कहां थी? हम ने भी बहुत सी प्रैस कौन्फ्रैंस अटैंड की हैं. सब जानते हैं महिलाओं की उपस्थिति वहां सिर्फ वातावरण को कुछ सजाए रखने से अधिक कुछ नहीं?’’

‘‘शर्म करो… जो कुछ भी मुंह में आ रहा है बोले चले जा रहे हो,’’ इरा साड़ी हैंगर में लगाते हुए बोली.’’

‘‘इस घर में रहना है, तो समय पर आनाजाना होगा… यह नहीं कि जब जी चाहा घर से चली गई जब भी चाहा चली आई. यह घर है कोई सराय नहीं.’’

‘‘क्या मैं तफरीह कर के आ रही हूं? तुम इतने बड़े व्यापारिक संस्थान में काम करते हो, तुम्हें नहीं पता, देरसबेर होना अपने हाथ की बात नहीं होती?’’ इरा को इस बेमतलब की बहस पर गुस्सा आ रहा था.

गुस्से से उस की भूख और थकान दोनों ही गायब हो गई. फिर कौफी बना कप में डाल कर बच्चों के कमरे में चली गई. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे.

इरा ने शांति की सांस ली. नवीन की टोकाटाकी उस के लिए असहनीय हो गई थी.

फोन किसी का भी हो, नवीन के रहते आएगा तो वही उठाएगा. फोन पर पूरी जिरह करेगा क्या काम है? क्या बात करनी है? कहां से बोल रहे हो?

लोग इरा का कितना मजाक उड़ाते हैं. नवीन को उस का जेलर कहते हैं. कुछ लोगों की नजरों में तो वह दया की पात्र बन गई है.

इरा सोच कर सिहर उठी कि अगर ये बातें बच्चे सुनते तो? तो क्या होती उस की छवि

बच्चों की नजरों में. वैसे जिस तरह के आसार हो रहे हैं जल्द ही बच्चे भी साक्षी हो जाएंगे ऐसे अवसरों के. इरा ने कौफी का घूंट पीते हुए

निर्णय लिया, बस और नहीं. उसे अब नवीन

के साथ रह कर और अपमान नहीं करवाना है. पुरुष है तो क्या हुआ? उसे हक मिल गया है

उस के सही और ईमानदार व्यवहार पर भी आएदिन प्रश्नचिन्ह लगाने का और नीचा दिखाने का…अब वह और देर नहीं करेगी. उसे जल्द

से जल्द निर्णय लेना होगा वरना उस की छवि बच्चों की नजरों में मलीन हो जाएगी. इसी ऊहापोह में कब वह वहीं सोफे पर सो गई पता ही नहीं चला.

अगले दिन बच्चों को स्कूल भेजा. नवीन ऐसा दिखा रहा था मानो कल की रात रोज गुजर जाने वाली सामान्य सी रात थी. लेकिन इरा का व्यवहार बहुत सीमित रहा.

इरा को 9 बजे तक घर में घूमते देख, नवीन बोला, ‘‘क्या आज औफिस नहीं जाना है? आज छुट्टी है? अभी तक तैयार नहीं हुई.’’

‘‘मैं ने छुट्टी ली है,’’ इरा ने कहा.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक लग रही है, फिर छुट्टी क्यों?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘कभीकभी मन भी बीमार हो जाता है इसीलिए,’’ इरा ने कसैले स्वर में कहा.

‘‘समझ गया,’’ नवीन बोला, ‘‘आज तुम्हारा मन क्या चाह रहा है. क्यों बेकार में अपनी छुट्टी खराब कर रही हो, जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘नहीं,’’ इरा बोली, ‘‘आज मैं किसी हाल में भी जाने वाली नहीं हूं,’’ इरा की आवाज में जिद थी. नवीन कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘ठीक है तुम्हारी मरजी.’’

बच्चों और पति को भेजने के बाद वह देर तक घर में इधरउधर चहलकदमी

करती रही. उस का मन स्थिर नहीं था. अगर नवीन की नोकझोंक से तंग आ कर नौकरी छोड़ भी दूं तो क्या भरोसा कि नवीन के व्यवहार में अंतर आएगा या फिर बात का बतंगड़ नहीं बनाएगा… लड़ने वाले को तो बहाने की भी जरूरत नहीं होती. नवीन के पिता के इसी कड़वे स्वभाव के कारण ही उस की मां हमेशा घुटघुट कर जी रही थीं. पैसेपैसे के लिए उन्हें तरसा कर रखा था नवीन के पिता ने.

अपनी मरजी से हजारों उड़ा देंगे. नवीन की नजरों में उस के पिता ही उस के आदर्श पुरुष थे और मां का पिता से दब कर रहना ही नवीन के लिए मां की सेवा और बलिदान था.

इरा जितना सोचती उतना ही उलझती

जाती, उसे लग रहा था अगर वह इसी तरह मानसिक तनाव और उलझन में रही तो पागल हो जाएगी. हर जगह सम्मानित होने वाली इरा अपने ही घर में यों प्रताडि़त होगी उस ने सोचा भी न था. असहाय से आंसू उस की आंखों में उतर आए. अचानक उस की नजर घड़ी पर पड़ी. अरे, डेढ़ बज गया… फटाफट उठ कर नहाने के लिए गई. वह बच्चों को अपनी पीड़ा और अपमान का आभास नहीं होने देना चाहती थी. नहा कर सूती साड़ी पहन हलका सा मेकअप किया. फिर बच्चों के लिए सलाद काटा, जलजीरा बनाया, खाने की मेज लगाई.

दोनों बेटे मां को देख कर खिल उठे. बिना छुट्टी के मां का घर होना उन के लिए कोई पर्व सा बन जाता है. तीनों ने मिल कर खाना खाया. फिर बच्चे होमवर्क करने लग गए. 5 बजे के लगभग इरा को याद आया कि उस की सहेली मानसी पाकिस्तानी नाटक का वीडियो दे कर गई थी. बच्चे होमवर्क कर चुके थे. इरा ने उन्हें नाटक देखने के लिए आवाज लगाई. दोनों बेटे उस की गोदी में सिर रख कर नाटक देख रहे थे. अजीब इत्तफाक था. नाटक में भी नायिका अपने पति की ज्यादतियों से तंग आ कर अपने अजन्मे बच्चे के संग घर छोड़ कर चली जाती है हमेशा के लिए. इरा की तरफ देख कर अपूर्व बोला, ‘‘मां, आप ये रोनेधोने वाली फिल्में मत देखा करो. मन उदास हो जाता है.’’

‘‘मन उदास हो जाता है इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’ इरा ने सवाल किया.

‘‘बेकार का आईडिया है एकदम,’’ अपूर्व खीज कर बोला, ‘‘इसीलिए नहीं देखनी चाहिए?’’

‘‘अपूर्व,’’ इरा ने कहा, ‘‘समझो इसी औरत की तरह अगर हम भी घर छोड़ना चाहें तो तुम किस के साथ रहोगे?’’

‘‘कैसी बेकार की बातें करती हैं आप भी मां,’’ अपूर्व नाराजगी के साथ बोला, ‘‘आप ऐसा क्यों करेंगी?’’

‘‘यों समझो कि हम भी तुम्हारे पापा के साथ इस घर में नहीं रह सकते तो तुम किस के साथ रहोगे?’’ इरा ने पूछा.

‘‘जरूरी नहीं है कि आप के हर सवाल का जवाब दिया जाए,’’ 13 वर्ष का अपूर्व अपनी आयु से अधिक समझदार था.

‘‘अच्छा अनूप तुम बताओ कि तुम क्या करोगे?’’ इरा ने छोटे बेटे का मन टटोला.

अनूप को बड़े भाई पर बड़प्पन दिखाने का अवसर मिल गया. बोला, ‘‘वैसे तो हम चाहते हैं कि आप दोनों साथ रहें? लेकिन अगर आप जा रही हैं तो हम आप के साथ चलेंगे. हम आप को बहुत प्यार करते हैं,’’ अनूप बोला, ‘‘चल झूठे…’’ अपूर्र्व बोला, ‘‘मां, अगर पापा आप की जगह होते तो यह उन्हीं को भी यही जवाब देता.’’

‘‘नहीं मां, भैया झूठ बोल रहा है. यही पापा के साथ जाता. पापा हमें डांटते हैं. हमें नहीं रहना उन के साथ. आप हमें प्यार करती हैं. हम आप के साथ रहेंगे,’’ अनूप प्यार से इरा के गले में बांहें डालते हुए बोला.

‘‘डांटते तो हम भी है,’’ इरा ने पूछा, ‘‘क्या तब तुम हमारे साथ नहीं रहोगे?’’

‘‘आप डांटती हैं तो क्या हुआ, प्यार भी तो करती हैं, फिर आप को खाना बनाना भी आता है. पापा क्या करेंगे?’’ अगर नौकर नहीं होगा तो? अनूप ने कहा.

‘‘अच्छा अपूर्व तुम जवाब दो,’’ इरा ने अपूर्व के सिर पर हाथ रख कर उस का मन फिर से टटोलना चाहा.

इरा का हाथ सिर से हटा कर अपूर्र्व एक ही झटके में उठ बैठा. बोला, ‘‘आप उत्तर चाहती हैं तो सुन लीजिए, हम आप दोनों के साथ ही रहेंगे.’’

इरा हैरत से अपूर्व को देखने लगी. फिर पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों?’’

‘‘जब आप और पापा 15 साल एकदूसरे के साथ रह कर भी एकदूसरे के साथ नहीं रह सकते, अलग होना चाहते हैं तब हम तो आप के साथ 12 साल से रह रहे हैं. हमें आप कैसे जानेंगे? आप और पापा अगर अलग हो रहे हैं तो हमें होस्टल भेज देना, हम आप दोनों से ही नहीं मिलेंगे,’’ अपूर्व तिलमिला उठा था.

‘‘पागल है क्या तू?’’ इरा हैरान थी, ‘‘नहीं बिलकुल नहीं. इतने वर्षों साथ रह कर भी आप को एकदूसरे का आदर करना, एकदूसरे को अपनाना नहीं आया, तो आप हमें कैसे अपनाएंगे.

‘‘पापा आप का सम्मान नहीं करते तभी आप को घर छोड़ कर जाने देंगे. आप पापा को और घर को इतने सालों में भी समझा नहीं पाईं तभी घर छोड़ कर जाने की बात कर सकती हैं. इसलिए हम आप दोनों का ही आदर नहीं कर सकेंगे और हम मिलना भी नहीं चाहेंगे आप दोनों से,’’ अपूर्व के चेहरे पर उत्तेजना और आक्रोश झलक रहा था.

इरा ने अपूर्व के कंधे को कस कर पकड़ लिया. उस का बेटा इतना समझदार होगा उस ने सोचा भी नहीं था. नवीन से अलग हो कर उस ने सोचा भी नहीं था कि अपने बेटे की नजरों में वह इतनी गिर जाएगी. अगर नवीन उसे सम्मान नहीं दे रहा, तो वह भी अलग हो रही है नवीन का तिरस्कार कर के. इस से वह नवीन को भी तो अपमानित कर रही है. परिवार टूट रहा है, बच्चे असंतुलित हो रहे हैं. वह विवाहविच्छेद नहीं करेगी. उस के आशियाने के तिनके उस के आत्मसम्मान की आंधी में नहीं उड़ेंगे. उसे नवीन के साथ अब किसी अलग ही धरातल पर बात करनी होगी.

अकसर ही नवीन झगड़े के बाद 2-4 दिन देर से घर आता है. औफिस में अधिक काम का बहाना कर के देर रात तक बैठा रहता. उस की इस मानसिकता को अच्छी तरह समझती है.

इरा ने औफिस से 10 दिनों का अवकाश लिया. नवीन 2-4 दिन तटस्थता से इरा का रवैया देखता रहा. फिर एक दिन बोला, ‘‘ये बेमतलब की छुट्टियां क्यों ली जा रही हैं?’’ छुट्टियां खत्म हो जाएंगी तो हाफ पे ले लूंगी, जब औफिस जाना ही नहीं है तो पिछले काम की छुट्टियों का हिसाब पूरा कर लूं,’’ इरा ने स्थिर स्वर में कहा. ‘‘किस ने कहा तुम औफिस छोड़ रही हो?’’ नवीन ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैडम, आजकल नौकरी मिलती कहां है जो तुम यों आराम से लगीलगाई नौकरी को लात मार रही हो?’’ ‘‘और क्या करूं?’’ इरा ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘जिन शर्तों पर नौकरी करनी है वह मेरे बस के बाहर की बात है.’’

‘‘कौन सी शर्तें?’’ ‘‘नवीन ने अनजान बनते हुए पूछा.’’

‘‘देरसबेर होना, जनसंपर्क के काम में सभी से मिलनाजुलना होता है, वह भी तुम्हें पसंद

नहीं. कैरियर या होम केयर में से एक का चुनाव करना था. सो मैं ने कर लिया. मैं ने नौकरी

छोड़ने का निर्णय कर लिया है,’’ इरा ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘क्या बच्चों जैसी जिद करती हो,’’ नवीन झल्लाई आवाज में बोला, ‘‘एक जने की सैलरी में घरखर्च और बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी?’’

‘‘पर नौकरी छोड़ कर तुम सारा दिन करोगी क्या?’’ नवीन को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह इरा का निर्णय बदले.

‘‘जैसे घर पर रहने वाली औरतें खुशी से दिन बिताती हैं. टीवी, वीडियो, ताश, बागबानी, कुकिंग, किटी पार्टी हजार तरह के शौक हैं. मेरा भी टाइम बीत जाएगा. टाइम काटना कोई समस्या नहीं है,’’ इरा आराम से दलीलें दे रही थी.

‘‘तुम्हारा कितना सम्मान है, तुम्हारे और मेरे सर्किल में लोग तुम्हें कितना मानते हैं. कितने लोगों के लिए तुम प्रेरणा हो, सार्थक काम कर रही हो,’’ नवीन ने इरा को बहलाना चाहा.

‘‘तो क्या इस के लिए मैं घर में रोजरोज कलहकलेश सहूं, नीचा देखूं, हर बात पर मुजरिम की तरह कठघरे में खड़ी कर दी जाऊं बिना किसी गुनाह के?

‘‘क्यों सहूं मैं इतना अपमान इस नौकरी के लिए? इस के बिना भी मैं खुश रह सकती हूं. आराम से जी सकती हूं,’’ इरा ने बिना किसी तनाव के अपना निर्णय सुनाया.

‘‘इरा आई एम वैरी सौरी, मेरा मतलब तुम्हें अपमानित करने का नहीं था. जब भी तुम्हें आने में देर होती है मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाता है. उसी तनाव में तुम्हें बहुत कुछ उलटासीधा बोल दिया होगा. मुझे माफ कर दो. मेरा इरादा तुम्हें पीड़ा पहुंचाने या अपमानित करने का नहीं था,’’ नवीन के चेहरे पर पीड़ा और विवशता दोनों झलक रही थीं.

‘‘ठीक है कल से काम पर चली जाऊंगी. पर उस के लिए आप को भी वचन देना होगा कि इस स्थिति को तूल नहीं देंगे. मैं नौकरी करती हूं. मेरे लिए भी समय के बंधन होते हैं. मुझे भी आप की तरह समय और शक्ति काम के प्रति लगानी पड़ती है. आप के काम में भी देरसबेर होती ही है पर मैं यों शक कर के क्लेश नहीं करती,’’ कहतेकहते इरा रोआंसी हो उठी.

‘‘यार कह दिया न आगे से ऐसा नहीं करूंगा. अब बारबार बोल कर क्यों नीचा दिखाती हो,’’ इरा का हाथ अपने दोनों हाथों में थाम कर नवीन ने कहा.

इरा सोच रही थी कि रिश्ता तोड़ कर अलग हो जाना कितना सरल हल लग रहा था.

लेकिन कितना पीड़ा दायक.

परिवार के टूटने का त्रास सहन करना क्या आसान बात थी. मन ही मन वह अपने बेटे की ऋणी थी, जिस की जरा सी परिपक्वता ने यह हल निकाल दिया था, उस की समस्या का.

 

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