Mother’s Day 2025 : इस मदर्स डे पर वर्किंग मदर्स को दें फाइनेंसियल सिक्योरिटी का भरोसा

Mother’s Day 2025 :  दशकों से, फाइनेंसियल सिक्योरिटी को पारंपरिक नज़रिए से देखा जाता रहा है. महिलाओं को इंश्योरेंस कवरेज में शामिल किया गया हो या नहीं, लेकिन वे शायद ही इश्योरेंस से जुड़े फैसले लेती थी लेकिन अब यह तेज़ी से बदल रहा है,अधिकतर महिलाएं अब सिर्फ आय अर्जित करने के लिए ही बल्कि परिवार की फाइनेंसियल सिचुएशन से जुड़े फैसले लेने के लिए भी आगे आ रही है. टर्म इंश्योरेंस कंपनियां भी इसी बदलाव को समझते हुए ऐसे प्लान ला रही हैं जो महिलाओं, खासकर मदर्स को, खुद और अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित करने में मदद करते हैं.

फाइनेंसियल सिक्योरिटी

वरूण अग्रवाल, हेड-टर्म इंश्योरेंस, पौलिसीबाजार डौट कौम का कहना है कि एक मां जो कुछ भी हमारे लिए करती है! उसे सिर्फ एक दिन में नहीं बताया जा सकता है, लेकिन मदर्स डे निश्चित रूप से यह सोचने का एक अच्छा अवसर है कि उनकी फाइनेंसियल सिक्योरिटी और भलाई के लिए क्या किया जा सकता है. हम उन महिलाओं का सम्मान करते हैं जो हमारा पालनपोषण करती हैं और हमारा ख्याल रखती हैं.

लेकिन क्या हमने सोचा है कि उन्हें इमोशनल और साथ ही फाइनैंसियल रूप से सुरक्षित रखना कितना जरूरी है?  खासकर जब वर्किंग मदर्स की बात आती है, जो न केवल घर की देखभाल करती हैं, बल्कि घर की आय, परिवार से जुड़े फ़ैसलों और भविष्य की योजना बनाने में भी योगदान देती हैं, इससे उनकी फाइनैंसियल सिक्योरिटी का सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. फिर भी, उनकी बदली हुई जिम्मेदारियों के बावजूद, कई मदर्स के पास पर्याप्त इंश्योरेंस नहीं होता या फिर कोई इंश्योरेंस होता ही नहीं.

वर्किंग मदर्स और उनका फाइनेंसियल मैंनेजमेंट 

भारत में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं औपचारिक रुप से कामकाजी दुनिया का हिस्सा बन रही हैं, कार्यबल में शामिल हो रही हैं. उनमें से कई (salaried class) वेतनभोगी वर्ग से हैं, जबकि अन्य गिग इकौनमी का हिस्सा हो सकती हैं. वे EMI का भुगतान कर रही हैं, अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे जमा कर रही हैं और यहां तक कि अपने रिटायरमेंट की योजना भी बना रही हैं. लेकिन जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं होता है कभी भी कुछ भी हो सकता है और यहीं पर टर्म इंश्योरेंस अहम भूमिका निभाता है.

वर्किंग मदर्स के टर्म इंश्योरेंस प्लान

पहले इंश्योरेंस पौलिसी में महिलाओं को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी. उन्हें अक्सर सिर्फ योजना का हिस्सा बना दिया जाता था या बाद में सोचा जाता था. लेकिन, आज के टर्म इंश्योरेंस इंडस्ट्री ने यह स्वीकार करना शुरू कर दिया है कि वर्किंग मदर्स की फाइनैंसियल ज़रूरतें अलग हैं. अपनी मृत्यु की स्थिति में भुगतान के अलावा, उन्हें एक ऐसे समाधान की भी आवश्यकता होती है जो उनके स्वास्थ्य, उनके परिवार की भलाई और उनके लंबे समय के लक्ष्यों को ध्यान में रखता हो. और अच्छी खबर यह है कि टर्म इंश्योरेंस प्लान अब वर्किंग मदर्स को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं. सिर्फ़ एकमुश्त भुगतान के बजाय, अब प्लान में ऐसी सुविधाएं शामिल हैं जो खास तौर पर महिलाओं के लिए डिज़ाइन की गई हैं. ये योजनाएं महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली अलगअलग भूमिकाएं जैसे एक्सपर्ट, देखभाल करने वाली और निर्णयकर्ता के रूप में उनका समर्थन हैं.

वर्किंग महिलाओं के लिए डिजाइन की गई इंश्योरेंस पौलिसी-

हाल ही में बाज़ार में पेश की गई कुछ नई-पुरानी टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी महिलाओं की विशिष्ट ज़रूरतों पर केंद्रित हैं. उदाहरण के लिए, महिलाओं के लिए बनाई गई टर्म पॉलिसी 60 से ज़्यादा बीमारियों के लिए क्रिटिकल इलनेस कवरेज प्रदान करती है, जिसमें महिलाओं की विशेष स्थितियों जैसे ब्रेस्ट, सर्वाइकल और ओवेरियन कैंसर आदि के लिए कवरेज शामिल हैं. इन बीमारियों की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए, यह अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है.

औप्शनल चाइल्डकेयर बेनिफिट प्लान

कुछ योजनाएं वैकल्पिक चाइल्डकेयर बेनिफिट के साथ भी आती हैं जो मां की मृत्यु की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में बच्चे की शिक्षा के लिए एक स्थिर मासिक आय सुनिश्चित करती हैं. यह विशेष रूप से सिंगल मदर्स या ऐसे परिवारों के लिए फायदेमंद है जहां दोनों साथी काम करते हैं और एक साथ मिलकर फाइनेंसियल रिस्पांसिबिलिटीज भी निभाते हैं.

ऐसी योजनाओं की एक और खास बात यह है कि ये सिर्फ बीमा तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि कई तरह की मुफ्त हेल्थ सेवाएं भी देती हैं. इनमे एनुअल हेल्थ चेकअप से लेकर मेंटल हेल्थ से जुड़ी सलाह,प्रेगनेन्सी में मदद, ओपीडी कंसल्टेशन और यहां तक डाइट एक्सपर्ट से सलाह तक जैसी सुविधाएं शामिल हो सकती है. ये सुविधाएं इंश्योरेंस को सिर्फ पैसे तक सीमित नहीं रखतीं, बल्कि स्वास्थ्य को पहले से बेहतर बनाए रखने में मदद करती हैं और पूरे जीवन के भले के लिए काम करती हैं.

मदर्स डे पर,फाइनेंशियल प्लान को एक बार ज़रूर जांचें-

टर्म प्लान सिर्फ़ वर्किंग मदर्स के लिए ही नहीं है, इंश्योरेंस इंडस्ट्री आज की महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रोडक्ट तैयार कर रही है. ऐसे टर्म प्लान हैं जो पति या पत्नी पर किसी भी तरह की निर्भरता के बिना गृहणियों को भी पर्याप्त रूप से कवर करते हैं. वास्तव में, सेल्फ एम्पलौयड महिलाओं के लिए भी टर्म इंश्योरेंस उपलब्ध है. इसलिए, चाहे आप जीवन के किसी भी चरण में हो या किसी भी केटेगरी में आते हों, आपके लिए एक फाइनेंसियल सिक्योरिटी योजना है. इस मदर्स डे पर, अपने फाइनेंशियल प्लान को एक बार जरूर जांचें और और सुनिश्चित करें कि यह वास्तव में आपको और आपकी ज़िम्मेदारियों को कवर करता है.

Mother’s Day 2025 : बौलीवुड हीरोइनों की मांएं, जानिए कुछ अनकही कहानियां

Mother’s Day 2025 : जिंदगी में दोस्त बहुत मिलते हैं लेकिन अगर मां के रूप में सच्चा दोस्त मिल जाए तो किसी दोस्त की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि जो मां अपनी बेटी को 9 महीने पेट में रखती है और उस बेटी को पैदा करने के बाद हर रूप में उस के लिए ढाल बन कर खड़ी रहती है, अपनी प्यारी बेटी का चेहरा देख कर उस का दुख समझ जाती है. बेटी की खुशी में बेटी से ज्यादा मां खुश होती है. बेटी भी आपनी मां के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है क्योंकि अपनी इस प्यारी मां में उस की जान बसती है. यह मां उसकी राजदार होती है, उस की सब से करीबी सहेली होती है, जिस से वह हर तरह की बात शेयर कर सकती है.

ऐसी ही कुछ मांओं को नतमस्तक करती है बौलीवुड की वे हीरोइनें जो अपनी सफलता का क्रैडिट अपनी मां को देती हैं, अपनी मां को अपना आदर्श और अपना हमदर्द मानती हैं.

मदर्स डे के अवसर पर पेश हैं, अपनी मां के लिए बौलीवुड की मशहूर हीरोइनों की प्यारभरी भावनाएं, अपनी मां से संबंधित खास बातें, खास अंदाज में :

दीपिका पादुकोण : उज्ज्वला पादुकोण

मांबेटी का रिश्ता ही ऐसा रिश्ता होता है जिसे बिना तार का कनैक्शन कह सकते हैं क्योंकि वह चाहे कितना ही दूर हो, बेटी को तकलीफ होते ही मां की बेचैनी बढ़ जाती है और बिना कुछ कहेसुने मां कोसों दूर बैठ कर भी समझ जाती है कि मेरी बेटी मुसीबत में या टैंशन या फिर किसी दुख में है.

दीपिका बताती हैं कि इस बात का एहसास मुझे उसे दिन हुआ जब एक बार मैं डिप्रेशन से गुजर रही थी. घर में अकेली थी और रो रही थी, बहुत ज्यादा दुखी थी क्योंकि मुंबई जैसे शहर में मैं अकेली थी. डिप्रेशन की वजह से मुझे घबराहट हो रही थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. उसी वक्त मेरे घर की डोरबेल बजी. मैं ने दरवाजा खोला तो देखा कि मेरी मां सामने खड़ी है.

मां को सामने देखते ही मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं अपनी मां से लिपट कर रोने लगी. मेरी समझदार मां बिना कुछ कहेसुने समझ गई कि मैं मानसिक तौर पर परेशान हूं. उन्होंने उसी वक्त डाक्टर को कौल किया और इलाज के लिए घर में बुलाया. मां को देखते ही जैसे मेरा सारा टैंशन और दुख खत्म हो गया और मैं अपनेआप को हलका महसूस करने लगी.

उसी दिन मुझे मां की ताकत का अंदाजा लगा. मेरी मां ज्यादा बात नहीं करती है लेकिन दिल की बात समझ जाती है. उस परेशानी के दौर में मां ने मुझे एक मिनट भी अकेला नहीं छोड़ा, जब तक कि मैं नौर्मल नहीं हो गई. आज मैं खुद एक बेटी की मां हूं, मां का प्यार और उस की चिंता को अच्छी तरह समझ सकती हूं. मेरी मां मेरी सपोर्ट सिस्टम है, उन के बिना मैं कुछ भी नहीं हूं.

खुशी कपूर : श्रीदेवी

जाह्नवी और मैं, हम दोनों बहनों के लिए हमारी मां श्रीदेवी बहुत ज्यादा प्रोटेक्टिव थीं. चाहे वे कितनी ही व्यस्त रहें लेकिन वे हमारे हर कदम पर नजर रखती थीं. वे पौपुलर थीं लेकिन उन के व्यवहार में शर्मिलापन और झिझक थी. मां को अपनी फिल्में हमें दिखाने में शर्म महसूस होती थी, लेकिन क्योंकि हमें अपनी मां का अभिनय बहुत पसंद था इसलिए हम छिपछिप कर उन की फिल्में देखा करते थे.

मुझे उन की फिल्मों में सब से अच्छी फिल्म ‘सदमा’ लगती थी. फिल्म ‘सदमा’ के अलावा ‘चांदनी’ और ‘लम्हे’ मेरी फेवरिट फिल्में हैं.

हम उन के साथ शूटिंग पर भी जाया करते थे और पूरे सैट पर दौड़ा करते थे, उधम मचाया करते थे. जब हम मां के साथ विदेश जाते थे शूटिंग के लिए, तब हम दोनों को वहां बहुत मजा आता था.

मां के साथ बिताया हर पल मेरे लिए यादगार है. जब भी मैं उन के बारे में सोचती हूं तो मेरी आंखें भर आती हैं. कई बार तो ऐसा लगता ही नहीं है कि वे हमारे बीच नहीं हैं. मैं उन को हर पल मिस करती हूं. कोई उन के बारे में बात करता है तो मुझे मां की इतनी याद आती है कि मैं बहुत दुखी हो जाती हूं. मां हमारी सब से अच्छी दोस्त थी. वह हमें अच्छे और बुरे की पहचान बताती थी. ‘अपने फायदे के लिए कभी किसी का दिल न दुखाना…’ ऐसा वे हमेशा कहा करती थीं.

कई बार लगता है कि काश, वे वापस हमारे पास आ जाएं क्योंकि उन के जाने के बाद जीवन में खालीपन आ गया है. मेरा मानना है कि जिस के साथ उस की मां है वह दुनिया का सब से खुशनसीब आदमी है.

सुष्मिता सेन : सुभ्रा सेन

मिस यूनिवर्स रहीं बौलीवुड ऐक्ट्रैस सुष्मिता की मां सुभ्रा सेन जिंदगी के हर संघर्ष में हमेशा उन के साथ थीं.

सुष्मिता के अनुसार, मेरी मां ने मुझे हमेशा सिरआंखों पर बैठा कर रखा. सीधीसादी शक्ल होने की वजह से कभी किसी से आलोचना सुनने के बाद अगर निराश और दुखी हो जाती थी, एक वक्त मैं दुबलीपतली थी, जिस की वजह से कई बार लोग जब मुझे ताने मारा करते थे, उस वक्त मेरा आत्मविश्वास बढ़ाने वाली, मुझे प्रोत्साहित करने वाली मेरी मां ही थी.

मां के अनुसार, अगर हम कुछ करने की ठान लें, तो कुछ भी मुश्किल नहीं है. बस, हमारे इरादे पक्के होने चाहिए. मां की यही बातें मेरे दिलोदिमाग पर असर करती थीं और मुझे कुछ अलग बनने के लिए प्रेरित भी करती थी.

जब मैं ने मौडलिंग और मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के लिए तैयारी शुरू की थी, उस वक्त हमलोगों के पास आम जरूरत से अधिक पैसा नहीं था. हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए डिजाइनर गाउन खरीद सकूं, लेकिन उस वक्त भी मुझ में आत्मविश्वास था. कुछ कर दिखाने का जनून था, जो मुझे अपनी मां से विरासत में मिला था.

मेरी मां को मुझ से बहुत उम्मीदें थीं और मैं ने अपनी मां की उम्मीदों और जज्बे को बिखरने नहीं दिया. मुझे आज भी याद है कि मिस यूनिवर्स के लिए देशविदेश से आई प्रतियोगी मौडलों ने महंगेमहंगे डिजाइनर गाउन पहने थे, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे. इसलिए मैं ने मोहल्ले के ही एक टेलर से जो मेरी मां को भी पहचानता था, उस से खासतौर पर एक खूबसूरत गाउन बनवाया.

मेरी मां मुझे हमेशा कहती थीं कि लोग किसी भी चीज की कीमत नहीं बल्कि प्रेजैंटेशन देखते हैं. तुम जो भी पहनो वह तुम पर सब से अच्छा और अलग दिखना चाहिए. मैं ने अपनी मां की बातों को ध्यान में रख कर वैसा ही किया. मजे की बात तो यह है कि उस दौरान मां के दिए गए आइडिया के अनुसार मैं ने हाथ में काले मोजे पहने थे, जो बाद में स्टाइल बन गया. किसी को नहीं पता था कि मैं ने अपने हाथों में मोजे पहने हुए हैं.

सच बात तो यह है कि अपनी मां के आत्मविश्वास और प्यार के चलते ही मैं मिस यूनिवर्स बन पाई क्योंकि आप भले ही कितने ही टेलैंटेड और आत्मविश्वासी हो, इतने बड़े इवेंट के दौरान नर्वस हो ही जाते हैं. लेकिन अगर आप के साथ आप की मां का सपोर्ट है तो आप में चांद को छूने की भी ताकत आ जाती है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था.

मैं आज जो भी कुछ हूं उस का पूरा श्रेय मेरी मां को ही जाता है क्योंकि अगर वह मेरे साथ नहीं होती, तो नाजुक मौकों पर जहां मैं इमोशनली फेल होने वाली थी, जहां मैं टूट जाती, वहां मां की वजह से हजारों तकलीफों और परेशानियों के बावजूद मैं विश्वास के साथ खड़ी हूं. ऐसे में कहना गलत न होगा कि मेरी मां ही मेरी ताकत है, मेरा आत्मविश्वास और मेरा सब से पहला प्यार है.

सारा अली खान : अमृता सिंह

सारा अली खान की मां और सैफ अली खान की तलाकशुदा पत्नी अमृता सिंह एक स्ट्रौंग वूमन हैं जिन्होंने बिना किसी शोरशराबे और बिना किसी दिखावे के अपने दोनों बच्चों सारा अली खान और इब्राहिम अली खान को बतौर सिंगल मदर बड़ा किया और अच्छी परवरिश दी.

सारा अली खान अपनी मां को स्ट्रौंग वूमन मानती हैं, जो अकेले दम पर अपने बच्चों की शानदार परवरिश कर सकती है.

सारा अली के अनुसार, मैं अपनी मां को सिर्फ प्यार ही नहीं करती बल्कि उन की इज्जत भी करती हूं क्योंकि वे एक स्वाभिमानी औरत हैं और बिना किसी का सहारा लिए अकेली अपने बच्चों को संभालने की ताकत रखती हैं.

मेरी मां और मांओं से थोङी अलग हैं क्योंकि न तो उन को खाना बनाने का शौक है और न ही उन को ड्राइविंग आती है. जब मैं स्कूल के दौरान बड़ी हो रही थी तो मुझे अपने दोस्तों की मां से अपनी मां बहुत अलग लगती थी. मैं ने अपनी मां से कहा कि मेरी फ्रैंड्स की मां को खाना बनाना आता है, ड्राइविंग आती है, आप को यह सब क्यों नहीं आता? तब मेरी मां ने जवाब दिया कि क्या तुम्हारे दोस्तों की मां को घुड़सवारी और ऐक्टिंग आती है?

उसी दिन मुझे एहसास हो गया कि मेरी मां सब से अलग और सब से स्पैशल है. उन्होंने हमें कभी भी अकेलापन महसूस होने नहीं दिया क्योंकि वे खुले विचारों की हैं इसलिए उन्होंने हमें भी उड़ने के लिए पंख दिए. हमारी सोच और लोगों से ज्यादा हमारी मां की वजह से काफी अलग है क्योंकि वे खुद भी बहुत स्ट्रौंग और प्रैक्टिकल हैं.

पिता से तलाक के बाद भी वे मजबूत रहीं, वैसा ही मजबूत और इरादों का पक्का उन्होंने हम बच्चों को भी बनाया है. वे मेरा इंस्पिरेशन हैं. एक मजबूत औरत के तौर पर जिस ने सम्मान के साथ अपनी पूरी जिंदगी जी है उन की मैं दिल से इज्जत और बहुत सारा प्यार करती हूं. मेरी मां वर्ल्ड की बैस्ट मां हैं.

एक व्यवसाय खड़ा करना और एक बच्चे की परवरिश करना एक जैसे ही लगते हैं : सलोनी आनंद, सह-संस्थापक, त्राया

कई मायनों में, एक व्यवसाय खड़ा करना और एक बच्चे की परवरिश करना एक जैसे ही लगते हैं. दोनों में बिना शर्त प्यार, अटूट निरंतरता और भविष्य पर गहरा विश्वास जरूरी होता है. जब मैं अपने पहले बच्चे के साथ गर्भवती थी, तब मैंने त्राया की नींव रखनी शुरू की थी, और कुछ महीने पहले ही मैंने अपने दूसरे बच्चे का स्वागत किया, जबकि त्राया भी लगातार विकसित और आगे बढ़ रहा है.

सच कहूं तो, ऐसा लगता है कि अल्ताफ और मैंने मिलकर तीन बच्चों की परवरिश की है। हर एक की अपनी अलग ज़रूरतें, चुनौतियां और खुशियां हैं.

Artificial Jewellery से स्किन पर दाने हो जाते हैं?

Artificial Jewellery : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 22 साल की हूं. मेरी परेशानी यह है कि मैं जब भी आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनती हूं, तो स्किन पर दाने हो जाते हैं. मुझे इन से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनने से पहले स्किन सेफ्टी क्रीम का प्रयोग करें. इस के अलावा ज्वैलरी उतारने के बाद जहांजहां ज्वैलरी का स्पर्श हुआ है उस जगह को डैटोल से धोएं.

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लाल चकत्ते व ईचिंग

स्किन एलर्जी
एलिना अपनी दोस्त तनविका की शादी के लिए बनठन कर तैयार हुई. ड्रैस के साथ मैचिंग करती, चमचमाती ज्वैलरी उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी. सचमुच एलिना गजब ढा रही थी. शादी में वह सब के आकर्षण का केंद्र रही. शादी की पार्टी खत्म होने के बाद जब एलिना घर पहुंची तो उस ने अपने  गले व कान के पास पड़े लाल निशान देखे तो परेशान हो गई. खैर रात को स्किन औयनमैंट लगा कर वह सो गई, लेकिन कुछ दिन बाद फिर एक पार्टी में एलिना ने आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनी, जिस की वजह से उसे खुद को स्किन स्पैशलिस्ट को दिखाना पड़ा.

दरअसल, एलिना को लाल चकत्ते व ईचिंग उस की मनपसंद चमचमाती आर्टिफिशियल ज्वैलरी से एलर्जी के कारण हुई. एलिना जैसी कई युवतियां एलर्जी से होने वाली परेशानियों को सहते हुए भी इस आर्टिफिशियल ज्वैलरी को पहनना नहीं छोड़तीं और हालात एलिना की तरह ही हो जाते हैं. ऐसे में उन्हें डाक्टरी परामर्श लेने की नौबत आ जाती है.

आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनने का चसका युवतियों को छोटे परदे से लग रहा है. आएदिन दिखाए जाने वाले सीरियलों में युवतियों द्वारा पहनी जा रही आर्टिफिशियल ज्वैलरी ने इस की ज्यादा डिमांड बढ़ा दी है.

आइए, जानें आर्टिफिशियल ज्वैलरी से एलर्जी होने के क्या कारण हैं और यह कितनी नुकसानदायक साबित हो सकती है:

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Latest Hindi Stories : वैधव्य से मुक्ति – खुश्बू ने क्या किया था

Latest Hindi Stories : ‘मां, ओ मां, कहां हो तुम? जल्दी यहां आओ. एक बहुत बड़ी खुशी की खबर है,’’ खुशबू के खुशी से डूबे हुए स्वर मेरे कानों से टकराए तो मैं बिस्तर छोड़ कर उठने लगी क्योंकि मैं यह अच्छी तरह से जानती थी कि अब अपनी खबर सुनाए बगैर वह मु़झे छोड़ेगी नहीं.

‘‘मां…मां… मैं बहुत खुश हूं. आप भी खबर सुन कर बहुत खुश होंगी,’’  खुशबू ने मेरी बांह पकड़ कर मुझे चक्करघिन्नी सा गोलगोल घुमा दिया.

‘‘अरे, पहले बता तो सही कि ऐसी क्या बात है जो तू यों खुशी से बावली हुई जा रही है,’’ मैं उसे रोकते हुए बोली.

‘‘मां, अभीअभी अंकल का फोन आया था कि अपनी निशा मां बनने वाली है और उस की गोदभराई की रस्म के लिए हमें बुलाया है. उन्होंने यह भी कहा कि सब से पहले आप ही निशा की गोद भरेंगी. मैं जाती हूं यह खबर निखिल को सुनाने,’’ कह कर खुशबू निखिल के कमरे की ओर दौड़ पड़ी जो रविवार होने की वजह से अब तक सो रहा था.

ओह, कितनी खुशी की खबर है पर  मुझ से ज्यादा खुश तो खुशबू है. आखिर निशा उस की ननद कम और सखी ज्यादा जो है. आज यह कहते हुए मुझे फख्र होता है कि खुशबू बहू होते हुए भी मेरे लिए निशा से कहीं अधिक प्यारी बेटी बन गई है. मैं डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठ जाती हूं. और न चाहते हुए भी मेरा मन अतीत की यादों में खोने लगा.

मेरे जीवन में खुशबू के आने से पहले मुझे क्याक्या नहीं सहना पड़ा था. जीना किसे कहते हैं, शायद मैं भूल चुकी थी और जिंदगी बिताने की रस्म भर अदा कर रही थी. यों तो विधवा के लिए समाज के बनाए नियमों को मैं ने सहज अंगीकार कर लिया था. बचपन से विधवाओं को ऐसी ही बेरंग जिंदगी जीते देखती आई थी सो मन की छोटीछोटी इच्छाओं का दमन करने में मुझे थोड़ी तकलीफ तो होती थी पर दुख नहीं. नियम और परंपरा के नाम पर मेरे ऊपर परिवार वालों का शिकंजा कसा हुआ था.

हालांकि मैं चाहती तो अपने बच्चों के साथ एक छोटा सा घर किराए पर ले कर अलग रह सकती थी पर एक कम उम्र की विधवा को 2 छोटे बच्चों के साथ अकेले रहने पर क्याक्या परेशानी हो सकती थी इस का अंदाजा मुझे अच्छी तरह से था. इसलिए समाज में खुले घूमने वाले भूखे भेडि़यों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए मुझे ससुराल वालों का ताना सुनना ज्यादा बेहतर और आसान लगा था.

देखते ही देखते पढ़ाई समाप्त कर निखिल एक मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्तहो गया. अब ससुराल वालों की नजरों में मेरी कुछ इज्जत बन गई थी. इधर मेरी ननद अपने पति और ससुराल वालों से झगड़ कर मायके रहने आ धमकी थी. ननद अपने साथ बहुत सारे जेवरात ले कर आई थी और शायद चंद्रहार के साथ सोने की तगड़ी भी जेठानी को देने का लालच दिया था. इसलिए दोनों की आपस में खूब छनती थी और ननद का मायके में डटे रहना जेठानी को बुरा नहीं लगता था.

निखिल की नौकरी लगने के बाद घर में पहला धमाका तब हुआ जब उस ने अपनी बिरादरी से अलग पंजाबी लड़की से विवाह करने का ऐलान किया. विवाह हो भी गया. प्रथा के अनुसार खुशबू पूरे परिवार के लिए कपड़ों के साथ कुछ न कुछ तोहफे भी लाई थी. खूबसूरत साडि़यों ने जेठानी और ननद की नाराजगी को बहुत हद तक कम कर दिया था.

सब से मिलने के बाद खुशबू की नजरें कुछ ढूंढ़ने लगीं. मैं यह सब अंदर कमरे में बैठी परदे की ओट से देख रही थी. चांद सी सुंदर बहू को देख कर मैं मुग्ध थी. मैं यह बिलकुल ही भूल चुकी थी कि अभी थोड़ी देर पहले घर वालों के बीच जा कर अपनी बहू को आशीर्वाद न दे पाने की वजह से मैं कितनी दुखी थी. क्या करती एक विधवा के लिए शुभ काम में शामिल होना वर्जित जो था. पर अपनी ममता को मैं मार न सकी. इसलिए दूल्हादुलहन के रूप में बेटेबहू को देखने की इच्छा मन में लिए परदे के पीछे छिप कर खड़ी हो गई.

तभी खुशबू के प्रश्न ने घर वालों को चौंका दिया, ‘निखिल, मां कहां हैं? क्या वह हमें आशीर्वाद नहीं देंगी?’ फिर वह कुछ ऊंची आवाज में बोली, ‘मां, कहां हो तुम? सब ने मुझे आशीर्वाद दिया, सिर्फ तुम्हीं ने नहीं. किसी कारण से मुझ से नाराज हो तो मैं वचन देती हूं कि तुम्हारी सारी नाराजगी दूर कर दूंगी.’

सभी सकते में आ गए क्योंकि एक तो उन्हें नई बहू के रूप में खुशबू का अपनी सास को ‘तुम’ कह कर संबोधित करना नागवार गुजरा. दूसरे, इस तरह के व्यवहार से खुशबू का दबंग स्वभाव उजागर हो चुका था जो शायद उस के हित में नहीं था लेकिन मैं तो यह संबोधन सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

बात यह नहीं थी कि मैं ने मां का संबोधन पहली बार सुना था. हां, खुशबू से ऐसे संबोधन की मैं ने कल्पना नहीं की थी. मैं सोचा करती थी कि मेरी बहू भी और बहुओं की तरह मुझे ‘मांजी’ पुकारा करेगी. शायद इसीलिए एक पराईजाई कन्या का सिर्फ ‘मां’ कहना और आप की जगह बेटी की तरह तुम कह कर संबोधित करना एक अनजाने सुख से मुझे सराबोर कर गया.

फिर भी अंधविश्वास के मकड़जाल को तोड़ कर मैं उस नववधू को आशीर्वाद देने के साथ आलिंगन में भर लेने का साहस न जुटा पाई थी. तभी ननद की बातों ने मेरा ध्यान भंग किया, ‘बेटी, तुम तो जानती ही हो कि मेरे भैया इस दुनिया में नहीं हैं. सो इस समय भाभी यहां आ कर तुम्हें आशीर्वाद नहीं दे सकतीं.’

मैं ने अच्छी तरह अनुभव किया कि ननद ने एक एस.पी. की बेटी से बात करने के लिए अपने स्वभाव के विपरीत बोलने में कितनी कठिनाई से अपने शब्दों को चाशनी में डुबोया था.

ननद की बातें सुन कर खुशबू ने हठी बच्चे की तरह अपना फैसला सुनाया था, ‘फिर ठीक है, मैं भी तब तक अन्न का एक दाना अपने मुंह में नहीं डालूंगी जब तक यहां आ कर मां मुझे आशीर्वाद नहीं दे देतीं.’

सभी बहू को समझासमझा कर थक गए पर 2 घंटे तक वह अपनी बात पर डटी रही. मैं ने भी अंदर परदे की ओट से उस की कितनी मिन्नतें कीं कि वह सब की बात मान ले. पर वह गजब की हठी निकली. इस बात के लिए सब मन ही मन खुशबू को कोस रहे थे कि वह एस.पी. की बेटी थी, ऐसी बित्ते भर की लड़की की क्या मजाल जो वह मेरी जेठानी और ननद जैसी वीरांगनाओं के सामने डटी रहती. चूंकि सब के मन में यह बात गहरे पैठी हुई थी कि नई दुलहन ससुराल में छींक भी दे तो अच्छीभली आफत खड़ी हो सकती है.

यही वजह थी कि मेरे घर वाले जल्द ही गिरगिट की तरह रंग बदल कर मेरे सामने हाजिर हो गए कि चल कर उसे आशीर्वाद दे दो, जब उसे ही अपनी चिंता नहीं है तो फिर भाड़ में जाए. मैं दुविधा की स्थिति में न चाहते हुए खुशबू के सामने जा खड़ी हुई. जब उस ने स्निग्ध मुसकान के साथ मेरे पैरों को हाथ लगा कर अपनी आंखों से लगाया तो मैं खुद पर काबू न रख सकी और उसे अपने कदमों से उठा कर सीने से लगा लिया.

हम दोनों की पलकें भीग उठीं. उफ, मैं बता नहीं सकती कि कैसी अजीब सी तृष्णा थी जो उसे हृदय से लगाने पर तृप्त होता मैं ने अनुभव किया. खुशबू तो बिन मां की बड़ी हुई थी सो उस के पास इतना भावुक होने की वजह थी पर मेरा मन क्यों भर आया, मैं आज तक न जान सकी.

विवाह की अगली सुबह साढ़े 5 बजे ही अपने कमरे के दरवाजे पर दस्तक सुन कर मैं ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने खुशबू नाइटी पहने खड़ी थी. ‘क्या बात है, बेटी, तू इस तरह इतनी सुबह यहां…’ मैं कुछ घबरा सी उठी.

जवाब में उस ने आंखें खोल कर भरपूर नजरों से मुझे देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘मां, मैं चाहती थी कि आप का स्नेहमयी और ममतामयी चेहरा देख कर ही मैं ससुराल में अपना दिन शुरू करूं.’

उस की बातें सुन कर मुझे अजीब सी अनुभूति हुई क्योंकि अब तक अपने लिए मैं यही सुनती आई थी कि सुबहसुबह विधवा का मुंह देख लिया, बड़ा अपशकुन हो गया.

अब जब रोज खुशबू का दिन मेरा चेहरा देख कर शुरू होने लगा तो धीरेधीरे मेरे मन से यह वहम निकल गया कि मेरा मुख देखने से किसी का अमंगल भी हो सकता है.

निखिल की शादी के करीब महीने भर बाद उस के एक अंतरंग  मित्र राजेश की शादी की पहली वर्षगांठ थी. इस मौके पर पूरे परिवार को न्योता दिया था. राजेश के घर जाने के लिए उस दिन सभी  लोग बनसंवर कर तैयार हो गए थे. मैं भी झटपट एक सफेद सूती साड़ी बांध कर तैयार हो गई. महेश के गुजरने के बाद से घर हो या बाहर यही मेरा पहनावा था.

हम सब घर से निकलने ही वाले थे कि खुशबू मुझे देख कर चौंक गई, ‘यह क्या मां? तुम पार्टी में इस तरह चलोगी?’

जवाब जेठानी ने दिया, ‘अरे, तो क्या एक विधवा सोलह शृंगार कर के जाएगी? तू नहीं जानती बहू, हमारे में एक विधवा को इसी रूप में रहना पड़ता है.’

खुशबू ने विनम्र किंतु दृढ़ स्वर में कहा, ‘आप सही कह रही हैं बड़ी मां, विधवा औरत का शृंगार करना कुछ जंचता नहीं पर शृंगार के बगैर फंक्शन में सुरुचिपूर्ण तरीके से तैयार हो कर हलके रंगों का परिधान तो पहना ही जा सकता है. आप लोग बस 5 मिनट ठहरिए, हम अभी आते हैं और वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींचती हुई ले गई.’

कमरे में आ कर मैं ने खुशबू को फिर समझाया, ‘मैं ऐसे कपड़े ही पहनती हूं और अब तो मुझे इस की आदत पड़ गई है.’

हमेशा की तरह उस ने मुझे अपने  प्रेम और न्यायअन्याय का तर्क दे कर परास्त कर दिया और मुझे ऐसे तैयार किया जैसे एक मां अपनी बच्ची को तैयार करती है.

तैयार करने के बाद जब उस ने मुझे अलमारी में लगे आदमकद आईने के सामने खड़ा किया तो मैं खुद को देख कर ठगी सी रह गई. मुझे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि मेरी उम्र 42 से  ऊपर हो चुकी है.

बैठक में घुसते ही परिवार वालों की नजरें मुझ से चिपक सी गईं. उन में से कुछ नजरों में मेरे लिए प्रशंसा और आदर के भाव थे तो कहीं ईर्ष्या और उलाहना भी शामिल था परंतु मेरी छवि को अशोभनीय कहने  लायक कोई बहाना खुशबू ने नहीं छोड़ा था. इसलिए चाहते हुए भी कोई कटाक्ष न कर पाया.

हलकी वसंती रंग की साड़ी के साथ मेल खाता चिकन का ब्लाउज, हाथों, गले और कानों में सोने के हलके आभूषण, माथे पर वसंती रंग की छोटी सी बिंदी के साथ ढंग से बांधे गए ढीले जूड़े ने मेरे पूरे व्यक्तित्व को ही बदल डाला था. होश संभालने के बाद से पहली बार मेरे बच्चे मुझे इस रूप में देख रहे थे. निशा तो खुशी से रो ही पड़ी थी.

उस दिन पार्टी में शायद ही कोई परिचित बचा हो जिस ने मेरी नई वेशभूषा की भूरिभूरि प्रशंसा न की हो. उन के तारीफ करने पर उन सभी को मैं यह बताना नहीं भूली कि इस का श्रेय सिर्फ खुशबू को जाता है. उस दिन मैं ने अपने खोए हुए औरतपन को फिर से महसूस किया और जिंदगी को नई नजरों से देखना शुरू किया.

इस के कुछ ही दिन बाद की बात है. खुशबू और निशा ने मिल कर ढेर सारे पकवानों के साथ चिकनबिरयानी भी बनाई थी. उस दिन भी मुझे ले कर जबरदस्त भूचाल आया. हमेशा की तरह जब मैं अपने लिए अलग से बनाए सादे भोजन को लेने रसोई की ओर चली तो खुशबू ने  मुझे टोक दिया, ‘मां, हमारे साथ ही खाओ न. अकेले खाना क्या अच्छा लगता है?’ तब मैं उसे टाल न सकी थी.

खाने की मेज पर जब उस ने सब के साथ मेरे लिए भी वही खाना परोसा तो मेरे साथ ही सब की आश्चर्य भरी नजरें मेरी थाली की ओर उठ गईं.

निशा ने कहा, ‘भाभी, लगता है तुम ने गलती से किसी और की थाली मां के सामने रख दी. तुम तो जानती ही हो कि मां यह सब नहीं खाती हैं.’

‘हां, बेटी, मेरा खाना रसोई में अलग रखा है. जा कर ले आओ,’ मैं ने अपनी पसंदीदा चिकनबिरयानी को परे सरकाते हुए कहा तो सब के चेहरों के तनाव कुछ कम हो गए.

‘मां, तुम्हारे लिए रखा गया भोजन मैं ने कामवाली को दे दिया है. क्योंकि आज उस ने कुछ खाया नहीं था,’ खुशबू ने लोगों के चेहरे की ओर देखते हुए कहा, ‘आज से तुम भी वही खाना खाओगी जो सब के लिए बनेगा. मैं इतना काम नहीं कर सकती कि एक बार तुम्हारे लिए खाना बनाऊं फिर दोबारा पूरे परिवार के लिए बनाऊं. अभी तो निशा मेरा हाथ बंटा देती है पर 2 महीने बाद जब वह ससुराल चली जाएगी तब क्या होगा?’

‘बेटी, तब मैं तुम्हारी मदद कर दिया करूंगी. पहले भी तो मैं रसोई का काम किया करती थी,’ मैं ने उसे समझाने की गरज से कहा.

‘न…बाबा…न. मेरे पापा को पता चलेगा तो मुझे बहुत डांट पड़ेगी कि मैं आप से काम करवाती हूं. फिर जब मैं आप से ही मदद नहीं ले सकती तो बूआजी और बड़ी मां से कैसे लूं? वे तो आप से भी बड़ी हैं. एक काम किया जा सकता है. सभी के लिए एक जैसा भोजन बनाया जा सकता है. इस से मुझे भी दिक्कत नहीं होगी और सभी लोग एक जैसे भोजन का आनंद ले सकेंगे.’

‘क्यों न कल से मां के लिए सभी के जैसा खाना बनाया जाए? क्योंकि सिर्फ मां को ही मांसाहारी भोजन से परहेज है, पर बाकी लोग तो खुशी से शाकाहारी भोजन खा सकते हैं,’ खुशबू ने कहा तो सब के चेहरों की मुसकान गायब हो गई.

करीबकरीब हर रोज मांसाहारी भोजन का स्वाद लेने वाली जेठानी और ननद की जबान यह सुन कर अकुला उठी. ननद ने कहा, ‘अरे, ऐसा कैसे हो सकता है. हम रोज घासफूस नहीं खा सकते.’

‘क्यों नहीं खा सकते?’ खुशबू ने जोर दे कर कहा, ‘जिस भोजन की कल्पना से आप लोग घबरा उठी हैं वही खाना मां इतने सालों से खाती आ रही हैं, यह विचार भी कभी आप लोगों के दिलों में आया है?’

खुशबू के इस तर्क पर जेठानी ने होशियारी दिखाते हुए बात संभालने की गरज से कहा, ‘तू ठीक कहती है, बहू, खानेपीने में क्या रखा है, यह तो लता ही कहती है कि तामसिक भोजन से मन में विकार उत्पन्न होता है. इसलिए विधवा को सात्विक भोजन करना चाहिए,’ फिर मेरी तरफ देखती हुई ठसक से बोलीं, ‘देख लता, अब तेरी यह जिद नहीं चलने वाली. तुझे भी वही खाना पड़ेगा जो हम सब खाते हैं. बहू ठीक ही तो कहती है.’

इस पर ननद ने भी अनिच्छा से समर्थन जताया क्योंकि उन की चटोरी जबान सागसब्जी खा कर तृप्त नहीं हो सकती थी. सालों बाद मैं ने अपना पसंदीदा भोजन किया. मेरा दिल खुशबू को लाखलाख दुआएं देता रहा था.

मेरे साथ प्रतिबंध और नियमकानून का आखिरी दौर निशा की शादी में खत्म हुआ. शादी से एक दिन पहले निशा जोरजोर से रोए जा रही थी. पहले तो सब ने यह समझा कि मायके से बिछुड़ने का गम उसे सता रहा है पर बात कुछ और थी. खुशबू के बहुत पूछने पर निशा ने बताया कि उसे इस बात का दुख है कि मां चाहते हुए भी उस की शादी नहीं देख पाएंगी. पिता तो थे नहीं, मां भी शादी के मंडप में मौजूद नहीं होंगी.

जब खुशबू ने घर में ऐलान किया कि निशा की शादी के मंडप में मां भी बैठेंगी तो घर में मौजूद स्त्रियां भड़क उठीं कि विधवा की मौजूदगी से शुभ काम में अमंगल होगा.

ननद ने कहा, ‘बहू, तुम्हारी हर उलटीसीधी बात मैं अब तक मानती रही हूं पर इस बार तुम चुप ही रहो तो अच्छा है क्योंकि तुम्हें इस घर के रीतिरिवाजों का पता नहीं है. अपनी मर्यादा में रहा करो और मुझे अपने एस.पी. पापा के ओहदे की धौंस मत दिखाओ. हद हो गई…’

बस, यह चिनगारी काफी थी. निशा को बैठा छोड़ खुशबू तन कर खड़ी हो गई और जो बोलना शुरू किया तो सभी को काठ मार गया. बोली, ‘आप ने सही कहा, बूआजी. आज तो सच में हद हो गई. यह सही है कि मैं ठीक से आप के रस्मोरिवाजों को नहीं जानती पर मैं खुद एक औरत हूं. इसलिए एक औरत की भावना को अच्छी तरह समझ सकती हूं.

‘छोटा मुंह बड़ी बात कह रही हूं. इसलिए माफ कीजिएगा. मैं यह कहे बिना नहीं रह सकती कि जो नियम और कायदेकानून मां पर लागू होते हैं वे सब आप पर भी लागू होते तो ज्यादा बेहतर होता. मां विधवा होने का जो कष्ट भोगती  आ रही हैं, उस में उन की कहीं कोई गलती नहीं है क्योंकि यह कुदरत का नियम है कि जो जन्मा है उसे मरना है. पर आप तो जीतेजी फूफाजी और अपने बच्चों को छोड़ आई हैं. आप न तो अच्छी मां साबित हुईं न ही एक अच्छी पत्नी. फिर भी आप के लिए संसार की हर सुखसुविधा, साजशृंगार, खानपान और आमोदप्रमोद वर्जित नहीं हैं, क्यों? सिर्फ इसलिए कि आप की मांग में सुहागन होने का लाइसेंस चमक रहा है.’

सभी जड़ हो कर खुशबू के तर्क को सुन रहे थे. यद्यपि मेरे हितों के लिए वह सब को चुनौती दे रही थी फिर भी मैं ने उसे चुप होने के लिए कहा, ‘खुशबू, बेटी, बस कर, तू भी…’

इशारे से मुझे खामोश करते हुए खुशबू बोली,  ‘मां, बस, आज भर मुझे कहने से मत रोको. आज के बाद मैं इन से कुछ नहीं कहूंगी. बड़ी मां और बड़े पापा, आप लोगों ने भी बूआजी को सही रास्ता न दिखा कर उलटे उन्हीं का पक्ष  लिया. दुख तो इस बात का है कि हम यह समझ ही नहीं पाते कि पति के गुजरने के बाद तो वैसे भी औरत जीतेजी मर जाती है. जो थोड़ाबहुत सुख उसे मिल सकता है उस से भी हम धर्म और परंपरा के नाम पर यह कह कर उसे वंचित कर देते हैं कि यह सब विधवाओं के लिए नहीं है.’

फिर ननद की ओर देखती हुई बोली, ‘बूआजी, मैं ने अपनी मर्यादा और हदों को कभी पार नहीं किया और न ही कभी करूंगी परंतु इस का उल्लंघन भी अपनी ससुराल को छोड़ कर आप ही ने किया है. मेरे लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि मेरे पापा एक नामी एस.पी. हैं पर न तो इस वजह से मैं ने किसी पर रौब गांठा है अगर मेरी कही बातें आप लोगों को गलत लगी हों तो मैं हाथ जोड़ कर आप सभी से माफी मांगती हूं.’

सहसा तालियों की आवाज से मैं वर्तमान में आ गई, मैं ने देखा कि समधीजी हमारे बीच खड़े हुए थे. उन्होंने आगे बढ़ कर खुशबू के सिर पर हाथ रखा, ‘‘बेटी, तू धन्य है. मुझे गर्व है कि ऐसे परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ गया है जहां इतने अच्छे विचारों वाली लड़की रहती है. मैं ने सब सुन लिया है और यह मेरा वादा है कि आज से तुम्हारी सास इस घर में होने वाले हर मांगलिक कार्य में सब से पहले भाग लेंगी और यथायोग्य आशीर्वाद भी देंगी.’’

इस तरह उस दिन के बाद से मैं विधवा तो थी पर वैधव्य के कष्ट से मुझे मुक्ति मिल गई. मेरी ननद पर खुशबू की बातों  का ऐसा असर हुआ कि वह अगले दिन ही पहली गाड़ी से अपनी ससुराल रवाना हो गईं.

Hindi Story : दिशा की दृष्टिभ्रम – क्या कभी खत्म हुई दिशा के सच्चे प्यार की तलाश

Hindi Story : खुशी से दिशा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फ्रैंड्स से बात करते हुए वह चिडि़यों की तरह चहक रही थी. उस की आवाज की खनक बता रही थी कि बहुत खुश है. यह स्वाभाविक भी था. मंगनी होना उस के लिए छोटी बात नहीं थी.

मंगनी की रस्म के लिए शहर के नामचीन होटल को चुना गया था. रात के 9 बज गए थे. सारे मेहमान भी आ चुके थे. फ्रैंड्स भी आ गई थीं. लेकिन मानस और उस के घर वाले अभी तक नहीं आए थे.

देर होते देख उस के पापा घबरा रहे थे. उन्होंने दिशा को मानस से पूछने के लिए कहा तो उस ने तुरंत उसे फोन लगाया. मानस ने बताया कि वे लोग ट्रैफिक में फंस गए हैं. 20-25 मिनट में पहुंच जाएंगे.

दिशा ने राहत की सांस ली. मानस के आने में देर होते देख न जाने क्यों उसे डर सा लगने लगा था. वह सोच रही थी कि कहीं उसे उस के बारे में कोई नई जानकारी तो नहीं मिल गई. लेकिन उस ने अपनी इस धारणा को यह सोच कर पीछे धकेल दिया कि वह आ तो रहा है. कोई बात होती तो टै्रफिक में फंसा होने की बात क्यों बताता.

अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने ‘हैलो’ कहा तो परिमल की आवाज आई, ‘‘2 दिन पहले ही जेल से रिहा हुआ हूं. तुम्हारा पता किया तो जानकारी मिली कि आज मानस से तुम्हारी मंगनी होने जा रही है. मैं एक बार तुम्हें देखना और तुम से बात करना चाहता हूं. होटल के बाहर खड़ा हूं. 5 मिनट के लिए आ जाओ, नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगा.’’

दिशा घबरा गई. जानती थी कि परिमल अंदर आ गया तो उस की फजीहत हो जाएगी. मानस को सच्चाई का पता चल गया तो वह उस से मंगनी नहीं करेगा.

उसे परिमल से मिल लेने में ही भलाई नजर आई. लोगों की नजर बचा कर वह होटल से बाहर चली गई.

गेट से थोड़ी दूर आगे परिमल खड़ा था. उस के पास जा कर दिशा गुस्से में बोली, ‘‘क्यों परेशान कर रहे हो? बता चुकी हूं कि मैं तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है, फिर भी मैं तुम्हें परेशान नहीं कर सकता. मैं तो तुम से सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि मेरी दुर्दशा करने के बाद तुम्हें कभी पछतावा हुआ या नहीं?’’

दिशा ने रूखे स्वर में जवाब दिया, ‘‘कैसा पछतावा? जो कुछ भी हुआ उस में सारा दोष तुम्हारा था. मैं ने तो पहले ही आगाह किया था कि मुझे बदनाम मत करो. आज के बाद अगर तुम ने मुझे फिर कभी बदनाम किया तो याद रखना पहली बार 3 साल के लिए जेल गए थे. अब उम्र भर के लिए जाओगे.’’

अपनी बात कह कर दिशा बिना परिमल का जवाब सुने होटल के अंदर आ गई. उस की फ्रैंडस उसे ढूंढ रही थीं. एक ने पूछ लिया, ‘‘कहां चली गई थी? तेरे पापा पूछ रहे थे.’’स्थिति संभालने के लिए दिशा ने बाथरूम जाने का बहाना कर दिया. पापा को भी बता दिया. फिर राहत की सांस ले कर सोफे पर बैठ गई.

उसे विश्वास था कि परिमल अब कभी परेशान नहीं करेगा और वह मानस के साथ आराम की जिंदगी गुजारेगी. परिमल से दिशा की पहली मुलाकात कालेज में उस समय हुई थी, जब वह बीटेक कर रही थी. परिमल भी उसी कालेज से बीटेक कर रहा था. वह उस की पर्सनैल्टी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकी थी. लंबी चौड़ी कद काठी, आकर्षक चेहरा, गोरा रंग, स्मार्ट और हैंडसम.

मन ही मन उस ने ठान लिया था कि एक न एक दिन उसे पा कर रहेगी, चाहे कालेज की कितनी भी लड़कियां उस के पीछे पड़ी हों. दरअसल, उसे पता चला था कि कई लड़कियां उस पर जान न्योछावर करती हैं. यह अलग बात थी कि उस ने किसी का भी प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था.

प्यार मोहब्बत के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई खराब नहीं करना चाहता था. पढ़ाई में वह शुरू से ही मेधावी था. एक ही कालेज में पढ़ने के कारण दिशा उस से पढ़ाईलिखाई की ही बात करती थी. कई बार वह कैंटीन में उस के साथ चाय भी पी चुकी थी.

एक दिन कैंटीन में परिमल के साथ चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘इन दिनों बहुत परेशान हूं. मेरी मदद करोगे तुम्हारा बड़ा अहसान होगा.’’

‘‘परेशानी क्या है?’’ परिमल ने पूछा. ‘‘कहते हुए शर्म आ रही है पर समाधान तुम्हें ही करना है. इसलिए परेशानी तो बतानी ही पडे़गी. बात यह है कि पिछले 4-5 दिनों से तुम रातों में मेरे सपनों में आते हो और सारी रात जगाए रहते हो.

‘‘दिन में भी मेरे दिलोंदिमाग में तुम ही रहते हो. शायद इसे ही प्यार कहते हैं. सच कहती हूं परिमल तुम मेरा प्यार स्वीकार नहीं करोगे तो मैं जिंदा लाश बन कर रह जाऊंगी.’’

परिमल ने तुरंत जवाब नहीं दिया. उस ने कुछ सोचा फिर कहा, ‘‘यह तो पता नहीं कि तुम मुझे कितना चाहती हो, पर यह सच है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

दिशा के चेहरे की मुसकान का सकारात्मक अर्थ निकालते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं. लेकिन मैं ने इस डर से कदम आगे नहीं बढ़ाए कि तुम अमीर घराने की हो. तुम्हारे पापा रिटायर जज हैं. भाई पुलिस में बड़े अधिकारी हैं. धनदौलत की कमी नहीं है.’’

दिशा उस की बातों को बडे़ मनोयोग से सुन रही थी. परिमल ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘मैं गरीब परिवार से हूं. पिता मामूली शिक्षक हैं. ऊपर से उन्हें 2 जवान बेटियों की शादी भी करनी है. यह  सच है कि तुम अप्सरा सी सुंदर हो. कोई भी अमीर युवक तुम से शादी कर के अपने आप को भाग्यशाली समझेगा. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा हाथ भला मेरे हाथ में क्यों देंगे?’’

दिशा तुरंत बोली, ‘‘इतनी सी बात के लिए डर रहे हो? मुझ पर भरोसा रखो. हमारा मिलन हो कर रहेगा. हमें एक होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. तुम केवल मेरा प्यार स्वीकार करो, बाकी सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

दिशा ने समझाया तो परिमल ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता कभी पार्क में, कभी मौल में तो कभी किसी रेस्तरां में जा कर घंटों प्यारमोहब्बत की बातें करते.

सारा खर्च दिशा की करती थी. परिमल खर्च करता भी तो कहां से? उसे सिर्फ 50 रुपए प्रतिदिन पौकेट मनी मिलती थी. उसी में घर से कालेज आनेजाने का किराया भी शामिल था.

2 महीने में ही दोनों का प्यार इतना अधिक गहरा हो गया कि एकदूसरे में समा जाने के लिए व्याकुल हो गए. अंतत: एक दिन दिशा परिमल को अपनी फ्रैंड के फ्लैट पर ले गई.

दिशा का प्यार पा कर परिमल उस का दीवाना हो गया. दिनरात लट्टू की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगा. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई से मन हट गया और उसे दिशा के साथ उस की फ्रैंड के फ्लैट पर जाना अच्छा लगने लगा.

सहेली के मम्मीपापा दिन में औफिस में रहते थे. इसलिए उन्हें परेशानी नहीं होती थी. फ्रैंड तो राजदार थी ही.

इस तरह दोनों एक साल तक मौजमस्ती करते रहे. फिर अचानक दिशा को लगा कि परिमल के साथ ज्यादा दिनों तक रिश्ता बनाए रखने में खतरा है. वजह यह कि वह उस से शादी की उम्मीद में था.

दिशा ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा. इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो.

मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं. दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया.

वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था.

वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरीचोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

मानस ने सोचने के लिए दिशा से कुछ दिन का समय मांगा, लेकिन उस ने समय नहीं दिया. उस पर दबाव बनाने के लिए दिशा ने अपने घर वालों को बताया कि मानस ने बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए हैं और अब गलत इलजाम लगा कर शादी से मना कर रहा है.

उस के पिता और भाई गुस्से में मानस के घर गए. उस के मातापिता के सामने ही उसे खूब लताड़ा और दिशा की बेहयाई का सबूत मांगा.

मानस के पास कोई सबूत नहीं था. मजबूर हो कर वह दिशा से मंगनी करने के लिए राजी हो गया. 15 दिन बाद की तारीख रखी गई. आखिर वह दिन आ ही गया. मानस उस से मंगनी करने आ रहा था.

एक सहेली ने दिशा की तंद्रा भंग की तो वह वर्तमान में लौट आई. सहेली कह रही थी, ‘‘देखो, मानस आ गया है.’’

दिशा ने खुशी से दरवाजे की तरफ देखा. मानस अकेला था. उस के घर वाले नहीं आए थे. उस के साथ एक ऐसा शख्स था जिसे देखते ही दिशा के होश उड़ गए. वह शख्स था डा. अमरेंदु.

मानस को अकेला देख दिशा के भाई और पापा भी चौंके. उस का स्वागत करने के बाद भाई ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर वाले नहीं आए?’’

‘‘कोई नहीं आएगा.’’ मानस ने कहा.

‘‘क्यों नहीं आएगा?’’

‘‘क्योंकि मैं दिशा से शादी नहीं करना चाहता. मुझे उस से अकेले में बात करनी है? वह सब कुछ समझ जाएगी. खुद ही मुझ से शादी करने से मना कर देगी.’’

भाई और पिता के साथ दिशा भी सकते में आ गई. उस की भाभी उस के पास ही थी. उस की बोलती भी बंद हो गई थी.

दिशा के पिता ने उसे अकेले में बात करने की इजाजत नहीं दी. कहा, ‘‘जो कहना है, सब के सामने कहो.’’

मजबूर हो कर मानस ने लोगों के सामने ही कहा, ‘‘दिशा दुश्चरित्र लड़की है. अब तक कई लड़कों से संबंध बना चुकी है. 2 बार एबौर्शन भी करा चुकी है. इसीलिए मैं उस से शादी नहीं करना चाहता.’’

भाई को गुस्सा आ गया. उस ने मानस को जोरदार थप्पड़ मारा और कहा, ‘‘मेरी बहन पर इल्जाम लगाने की आज तक कभी किसी ने हिम्मत नहीं की. अगर तुम प्रमाण नहीं दोगे तो जेल की हवा खिला दूंगा.’’

‘‘भाईसाहब, आप गुस्सा मत कीजिए अभी सबूत देता हूं. जब मेरे शुभचिंतक ने बताया कि दिशा का चरित्र ठीक नहीं है, तभी से मैं सच्चाई का पता लगाने में जुट गया था. अंतत: उस का सच जान भी लिया.’’

मानस ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ जो शख्स हैं, उन का नाम डा. अमरेंदु है. दिशा ने उन के क्लिनिक में 2 बार एबौर्शन कराया था. आप उन से पूछताछ कर सकते हैं.’’

डा. अमरेंदु ने मानस की बात की पुष्टि करते हुए कुछ कागजात दिशा के भाई और पिता को दिए. कागजात में दिशा ने एबौर्शन के समय दस्तखत किए थे.

दिशा की पोल खुल गई तो चेहरा निष्प्राण सा हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था  कि अब उसे क्या करना चाहिए. भाई और पापा का सिर शर्म से झुक गया था. फ्रैंड्स भी उसे हिकारत की नजरों से देखने लगी थीं.

दिशा अचानक मानस के पास जा कर बोली, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी. तुम्हें छोडूंगी नहीं. तुम्हारे जिंदगी भी बर्बाद कर के रख दूंगी. तुम नहीं जानते मैं क्या चीज हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह सब तुम्हारे लाइफस्टाइल की वजह से हो रहा है. इस में किसी का कोई दोष नहीं है. जब तक तुम अपने आप को नहीं सुधारोगी, ऐसे ही अपमानित होती रहोगी.’’

पलभर चुप रहने के बाद मानस ने फिर कहा, ‘‘आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो चुकी हो कि तुम से कोई भी शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा.’’

वह एक पल रुक कर बोला, ‘‘हां, एक ऐसा शख्स है जो तुम्हें बहुत प्यार करता है. तुम कहोगी तो खुशीखुशी शादी कर लेगा.’’

‘‘कौन?’’ दिशा ने पूछा.

‘‘परिमल…’’ मानस ने कहा, ‘‘गेट पर उस से मिल कर आने के बाद तुम उसे भूल गई थीं, पर वह तुम्हें नहीं भूला है. होटल के गेट पर अब तक इस उम्मीद से खड़ा है कि शायद तुम मुझ से शादी करने का अपना फैसला बदल दो. कहो तो उसे बुला दूं.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ दिशा ने पूछा.

मानस ने बताया कि वह परिमल को कब और कहां मिला था.

कार पार्क कर मानस डा. अमरेंदु के साथ होटल में आ रहा था तो गेट पर परिमल मिल गया था. न जाने वह उसे कैसे जानता था. उस ने पहले अपना परिचय दिया फिर दिशा और अपनी प्रेम कहानी बताई.

उस के बाद कहा, ‘‘तुम्हें दिशा की सच्चाई भविष्य में उस से सावधान रहने के लिए बताई है. अगर उस से सावधान नहीं रहोगे तो विवाह के बाद भी वह तुम्हें धोखा दे सकती है.’’

मानस ने परिमल को अंदर चलने के लिए कहा तो उस ने जाने से मना कर दिया. कहा, ‘‘मैं यहीं पर तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगा. बताना कि तुम से मंगनी कर वह खुश है या नहीं?’’

कुछ सोच कर मानस ने उस से पूछा, ‘‘मान लो दिशा तुम से शादी करने के लिए राजी हो जाए तो करोगे?’’

‘‘जो हो नहीं सकता, उस पर बात करने से क्या फायदा? जानता हूं कि वह कभी भी मुझ से शादी नहीं करेगी.’’ परिमल ने मायूसी से कहा.

मानस ने परिमल की आंखों में देखा तो पाया कि दिशा के प्रति उस की आंखों में प्यार ही प्यार था. उस ने चाह कर भी कुछ नहीं कहा और डा. अमरेंदु के साथ होटल में चला आया.

मानस ने दिशा को सच्चाई से दोचार करा दिया तो उसे भविष्य अंधकारमय लगा. परिमल के सिवाय उसे कोई नजर नहीं आया तो वह उस से बात करने के लिए व्याकुल हो गई.

उस का फोन नंबर उस के पास था ही, झट से फोन लगा दिया. परिमल ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘तुम से कुछ बात करना चाहती हूं. प्लीज होटल में आ जाओ.’’

कुछ देर बाद ही परिमल आ गया और दिशा ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, परिमल. मैं तुम्हारा प्यार समझ नहीं पाई थी, लेकिन अब समझ गई हूं. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. अभी मंगनी कर लो, बाद में जब कहोगे शादी कर लूंगी.’’

कुछ सोचने के बाद परिमल ने कहा, ‘‘यह सच है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. पर तुम आज भी मुझ से बेवफाई कर रही हो. सच नहीं बता रही हो. सच यह नहीं है कि मेरा प्यार तुम समझ गई हो, इसलिए मुझ से शादी करना चाहती हो. सच यह है कि आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो गई हो कि तुम से कोई भी शादी नहीं करना चाहता. मानस ने भी शादी से मना कर दिया है. इसीलिए अब तुम मुझ से शादी कर अपनी इज्जत बचाना चाहती हो.

‘‘तुम से शादी करूंगा तो प्यार की नहीं, समझौते की शादी होगी, जो अधिक दिनों तक नहीं टिकेगी. अत: मुझे माफ कर दो और किसी और को बलि का बकरा बना लो. मैं भी तुम्हें सदैव के लिए भूल कर किसी और से शादी कर लूंगा.’’

परिमल रुका नहीं. दिशा की पकड़ से हाथ छुड़ा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. वह देखती रह गई. किस अधिकार से रोकती?

कुछ देर बाद मानस और डा. अमरेंदु भी चले गए. दिशा के घर वाले भी चले गए. सहेलियां चली गईं. महफिल खाली हो गई, पर दिशा डबडबाई आंखों से बुत बनी रही.

लेखक- राम महेंद्र राय

Hindi Fiction Stories : ईवनिंग गाउन

Hindi Fiction Stories : ‘‘क्या यार आज संडे के दिन भी तुम सोने नहीं दे रही हो. मैं तो आज दिनभर लेटा रहने वाला हूं. न तो खुद चैन से रहती हो न ही मुझे रहने देती हो. मौल में जा कर क्या खरीदना है तुम्हें? बस बैठेबैठे यही सोचती रहती हो कि पैसा  कैसे खर्च करें. कभी बचत की भी सोचती हो?’’

‘‘मुझे क्या अपने लिए लेना है? आप के लिए टीशर्ट लेनी है और टुकटुक के लिए लोअर लेना है. वह छोटा हो गया है. उसे पहन कर नीचे खेलने जाता है तो सब बच्चे उसे बहुत चिढ़ाते हैं. रेयांश तो उस के पीछे ही पड़ जाता है. कई बार तो रोरो कर वह घर ही लौट आता है.’’

‘‘नौन स्टौप खर्च. मैं तो खर्चे से परेशान हो जाता हूं. कुछ पता है कल डी मार्ट से ग्रौसरी का सामान आया है उस का बिल साढे 6 हजार रुपए था. छोड़ो यार, अगले वीकैंड में देखेंगे,’’ निर्णय ने टालने के अंदाज में कहा और चादर से मुंह ढक कर लेट गया.

32 वर्षीय निशू एक स्कूल में टीचर है लेकिन चूंकि अस्थाई है इसलिए बहुत कम पैसे मिलते हैं. वह अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा कर कुछ आमदनी कर लेती है. पति निर्णय कंजूस स्वभाव का है, उस की तनख्वाह तो पूरी की पूरी झटक ही लेता है और ट्यूशन से मिलने वाले पैसे पर भी अपनी आंख गढ़ाए रहता है.

‘‘तुम्हारे पास तो पैसे होंगे, तुम पेपर वाले को दे देना. तुम दूध वाले को पेमैंट कर देना. मैं एटीएम से निकालूंगा तो तुम्हें दे दूंगा,’’ निर्णय कहता पर फिर वह दिन कभी न आता और यदि वह उसे अपने पैसे की याद दिलाती भी है वह कहता है कि मैं कहीं भागा जा रहा हूं और फिर बात आईगई हो जाती.

निशू साधारण परिवार से थी परंतु इस तरह से हरेक चीज के लिए पति से कहना और फिर उन की खिड़की उस के अहम को बहुत चोट पहुंचाती लेकिन शादी को निभाने के लिए वह ये सब चुपचाप बरदाश्त कर लेती. निर्णय की सैलरी कम नहीं है. वह बैंक में कैशियर है परंतु स्वभाव में कंजूसी हद दर्जे की भरी हुई है. वह अच्छी तरह सम?ाती है कि मुंबई जैसे शहर में खर्चे बहुत ज्यादा हैं लेकिन हर समय खर्चे का उलाहना, सुनसुन वह गुस्से से भर उठती है.

निशू का मूड खराब हो गया था. निर्णय ऐसा क्यों करता है. उस ने कितने प्लान बनाए थे. सेल में कितने अच्छे औफर होते हैं. उस के सूट भी घिस गए हैं. सोच रही थी कि 2-3 सूट जरूर खरीद लेगी. लेकिन उस की तो हमेशा की आदत है उस के हर काम में अडंगा लगाना.

निशू ने संडे स्पैशल में आज छोलेभठूरे और टुकटुक के लिए पाश्ता बना कर फिर से आवाज लगाई, ‘‘11 बज चुके हैं नींद पूरी हो गई हो तो उठ जाओ. गरमगरम छोलेभठूरे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

जब कोई जवाब नहीं मिला तो निशू गुस्से में किचन से निकल कर बैडरूम में गई और बैड पर जब वैसे ही फैली हुई चादर को देखा तो फिर से बड़बड़ाने लगी, ‘‘उफ, कितनी नींद आती है यार,’’ कहते हुए उस ने चादर खींच दी. उस के नीचे तकिया इस तरह से रखा था कि लगता रहे कि कोई सो रहा है. उस के चेहरे पर पति की इन छोटीछोटी शरारतों से मुसकान आ जाती थी.

निशू मैक्स की सेल की बात भूल कर अपने घर के कामों में लगी हुई थी तभी निर्णय ने पीछे से उसे अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘मुहतरमा, बंदा आप की सेवा में हाजिर है. आप हुक्म करें?’’

‘‘क्या हुआ बड़े बदलेबदले से नजर आ रहे हो?’’ उस ने ऊपर की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘आज सूरज पश्चिम से तो नहीं निकला?’’

‘‘अरे भई सरकार से डरता हूं. आप नाराज हो गईं तो रोटी के भी लाले पड़ जाएंगे. मैं बेचारा आफत का मारा बन जाऊंगा.’’

निर्णय की इन्हीं अदाओं पर री?ा कर निशू सबकुछ भूल जाती. वह किचन में गई और भठूरे तल कर ले आई.

‘‘वाह निशू, क्या छोले बनाए हैं. मजा आ गया. टुकटुक पाश्ता टेस्टी है कि नहीं?’’ निर्णय ने पूछा.

टुकटुक अपनी नन्ही उंगली उठा कर बोला, ‘‘वैरीवैरी टेस्टी.’’

नन्हे टुकटुक के जवाब पर वे दोनों जोर से हंस पड़े तो वह शरमा कर गुस्से की ऐक्टिंग करने लगा.

‘‘निशू, तुम्हें तो किसी फाइव स्टार में शैफ बन जाना चाहिए. लेकिन न बाबा न. बेटा निर्णय तेरा क्या होगा. निशू, अब आ जाओ मैं तुम्हारे लिए तल कर लाता हूं. तुम्हारी तरह परफैक्ट तो नहीं बना सकता.’’

‘‘अब बस भी करो चापलूसी करना. मौल चलने को कहा तो ऐसे ?िड़क दिया जैसे मैं अपने लिए ही केवल सबकुछ खरीदने जा रही हूं. तुम्हारी आदत है हर समय मूड खराब कर के रख देते हो. डेली तो स्कूल और ट्यूशन के कारण फुरसत ही नहीं रहती है संडे को तुम्हें सारा दिन सो कर गुजारना होता है या फिर अपने दोस्तों के साथ. मेरे लिए तुम्हारे पास कभी टाइम रहता है भला?’’

‘‘सारी रात तो तुम्हारी सेवा में रहता हूं जानू,’’ निर्णय मुसकराते हुए बोला.

‘‘हटिए आप को तो टुकटुक के सामने भी शर्म नहीं आती.’’

‘‘निशू, मैं तो बिलकुल रैडी हो कर आया था लेकिन तुम ने इतना हैवी नाश्ता खिला दिया. अब तो मैं और मेरा बिस्तर… खा कर तुम भी आ जाओ. हां, शाम का प्रोग्राम पक्का. वहीं कुछ खा भी लेंगे. अब खुश? अरे यार अब तो मुसकरा दो.’’

निशू उत्साहित हो कर मुसकरा उठी. फिर वह सोचने लगी कि शाम को मौल से क्याक्या खरीदना है, आज नोट कर के जाऊंगी नहीं तो ध्यान से उतर जाता है. घर के बाकी काम निबटातेनिबटाते वह थक कर चूर हो चुकी थी लेकिन उसे भला चैन कहां. दिमाग में स्कूल के पेपर बनाने की टैंशन और करैक्शन का भी काम घूम रहा था. वह मन ही मन तरहतरह की प्लानिंग करती रहती है लेकिन फिर भी 24 घंटे उसे अपने लिए कम लगते हैं. इतना सबकुछ करने के बाद भी अपनी खुशी के लिए 1 घंटे का समय भी नहीं निकाल पाती. इस से अच्छी जिंदगी तो शादी से पहले थी. कोई जिम्मेदारी नहीं. घर आती तो मम्मी के हाथ का गरमगरम खाना, नाश्ता, टिफिन सबकुछ देतीं और वह कैसे उन पर नाराज भी हो जाती थी कि क्या अम्मां रोज परांठे बना कर रख देती हो. मैं परांठे नहीं ले जाऊंगी कहती हुई पैर पटक कर अपना गुस्सा उन पर जाहिर करती थी.

अम्मां उसे मनातीं और फिर उस के बैग में चुपचाप से टिफिन रख दिया करती थीं. वह मां को याद कर मुसकरा उठी.

क्या मस्ती की जिंदगी थी. फ्रैंड्स के साथ पिक्चर, आउटिंग, कभी डोसा खाने जाना तो कभी आइसक्रीम.

शादी के नाम से निशू कितनी खुश थी. कितने सपने सजाए थे. वह तो फिल्मी जिंदगी के ख्वाबों में डूबी हुई हसीन जिंदगी में खोई हुई थी जहां शौपिंग, मूवी, डिनर, सी बीच पर रंगरलियां मनाने के सपने देखती हुई, जितनी उस की अपनी सेविंग थी, सब उस ने शादी की शौपिंग में उड़ा डाली.

निशू लगातार कोशिश कर रही थी कि ऐग्जाम के लिए पेपर सैट कर ले लेकिन उस का मन तो कभी मैक्स की सेल में, तो कभी शाम के डिनर की कल्पना में, तो कभी शादी के पहले की मस्तीभरी जिंदगी में उल?ा हुआ था. तभी उस का मोबाइल बजा. उधर उस की अम्मां थीं. बोली, ‘‘निशू, इतवार को तो फोन कर लिया करो. तुम्हारी आवाज सुनने को तरस जाती हूं. टुकटुक कैसा है?’’

‘‘सब ठीक है अम्मां. बस आप को फोन मिलाने ही वाली थी,’’ उस ने सफाई से झूठ बोल दिया. अपनी उलझनों में वह इतनी बिजी रहती है कि उस का मन ही नहीं होता कि वह किसी से बात करे.

क्या जिंदगी हो गई है. सुबह उठते ही टुकटुक को तैयार करो, टिफिन बनाओ, उसे बस तक छोड़ने जाओ, लौट कर आते ही भागभाग कर नाश्ता बनाओ, उलटेसीधे पेट में डालो. बीचबीच में निर्णय के उलटेसीधे टौंट वाले कमैंट्स सुनो. स्कूल भागो वहां मैडम की चार बातें और उन की टेढ़ी निगाहों का सामना. लौट कर घर पहुंच कर भी वह कमर सीधी भी नहीं कर पाती कि ट्यूशन वाले बच्चे हाजिर हो जाते हैं. फिर शुरू हो जाती है उन की चिखचिख और उन की मम्मियां तो सुभान अल्लाह, आफत कर के रख देती हैं. खुद तो कुछ करना नहीं चाहतीं बस ट्यूटर उन्हें घोल कर पिला दे.

निशू अपने खयालों में ही उल?ा रही. न तो पेपर बना पाई न ही करैक्शन कर पाई और न ही आराम.

‘‘मम्मा, मुझे तैयार करो. पापा ने मौल चलने को बोला था,’’ टुकटुक अपनी पसंदीदा ड्रैस हाथ में पकड़ कर निशू की पीठ पर झेल गया.

निशू वर्तमान में लौटी और आदतन बेटे पर झुंझला उठी और उसे अपने से परे हटा कर जोर से बोली, ‘‘ये कपड़े तुम ने क्यों निकाले?’’

नन्हा मासूम डर कर पीछे हट गया. फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘मम्मा, तैयार क्यों नहीं होतीं? मु?ो मौल के गेम सैक्शन में जा कर गेम खेलना है.’’

निशू जानबूझ कर जोर से बोली, ‘‘तुम्हारे पापा को जब सोने से फुरसत मिले तब न.’’

निशू जानती थी कि निर्णय टाइम पास के लिए मोबाइल पर गेम खेल रहे होंगे. कुछ देर में ही निर्णय आए. बोले, ‘‘1 कप चाय पिला दो यार. तुम अभी तक तैयार नहीं हुई?’’ निशू ने जल्दी से चाय बनाई और कपड़े बदल कर तैयार हो गई.

मौल पहुंच कर निशू सीधा मैन्स सैक्शन में चली गई और निर्णय के लिए 3-4 शर्ट लीं और फिर किड्स सैक्शन से टुकटुक के लिए लोअर और 2 टीशर्ट लीं.

अब निशू वूमंस सैक्शन में गई तो अपने लिए सूट पसंद करने लगी. निर्णय को हर सूट महंगा लग रहा था. कुछ देर तक वह नापसंद करता रहा फिर वे टुकटुक को ले कर गेम सैक्शन में चले गए. बोले, ‘‘जो तुम्हें ठीक लगे वह ले लो.’’

निशू ने अपने लिए 2 सूट पसंद कर लिए. वह वहां से चलने वाली थी तभी शो केस पर उस की निगाहें पड़ीं तो वह देखती रह गई. बहुत प्यारा सा नट का ईवनिंग गाउन जिस पर बीड्स का वर्क लगा था. उस का मन बच्चों की भांति मचल उठा. उस ने पास जा कर उस का प्राइज देखा क्व8 हजार. एक क्षण को वह सोच नहीं पाई कि वह निर्णय से कैसे कहे. फिर जब ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि 50% डिस्काउंट में है. वह बिना पूछे तो ले नहीं सकती थी लेकिन डिस्काउंट देख कर उस की हिम्मत बढ़ गई. क्व16 हजार का इतना सुंदर गाउन उसे आधे प्राइज में मिल रहा है, वह इसे ले कर रहेगी. उस ने निर्णय को फोन किया, ‘‘प्लीज आ जाओ मैं ट्रायलरूम के अंदर गाउन ट्राई कर रही हूं.’’

‘‘मैं बिल करवा रहा हूं. गाउन लेना नहीं तो क्यों ट्राई कर रही हो? सीथे बिलिंग काउंटर पर आओ, यहां लंबी क्यू है. मुझे भूख लग रही है. टुकटुक भी परेशान कर रहा है. जल्दी से आओ.’’

निशू गाउन पहन कर शीशे में अपने को देख कर आत्ममुग्ध हो रही थी. इस समय उसे निर्णय विलेन की तरह दिखाई पड़ रहे थे परंतु वह उन के गुस्से से वाकिफ थी खासकर जब वे भूखे हों. उस ने गाउन जल्दीजल्दी उतारा और वहां स्टाफ से पूछा कि इस की फिटिंग आप करवा देंगे?

‘‘जरूर… जरूर हमारा टेलर है. आप सुबह दीजिएगा, 1 दिन बाद फिटिंग और फिनिशिंग कर के आप को दे देंगे.’’

निशू गाउन के ख्वाबों में खोई हुई खुशी से चहचहा रही थी मानों गाउन उस ने खरीद लिया हो. उस ने अपने लिए जो सूट लिए थे वे निर्णय को बिलिंग के लिए दे दिए. हाथ में सूट पकड़ते ही उन्होंने पहले प्राइज पर नजर डाली फिर बोले, ‘‘औफर में हैं?’’

‘‘हांहां 50% डिस्काउंट है.’’

निर्णय ने बुरा सा मुंह बना लिया, ‘‘न जाने कैसे कलर पसंद करती हो.’’

‘‘आप तो इधर आ गए थे. मैं चारों तरफ आप को ढूंढ़ रही थीं.’’

मु?ो क्या, ‘‘तुम्हें पहनने हैं.’’

निशू मन ही मन में सोच रही थी कि आज तो इन का मूड अच्छा है. अपने लिए कितनी सारी शर्ट लीं. फिर वह उन के करीब जा कर बोली, ‘‘मुझे गाउन बहुत पसंद आया है, प्लीज दिला दो.’’

कुछ देर तक तो निर्णय चुप रहा फिर एकदम से फट पड़ा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है? जब तक जोर से न बोलो तुम्हें कुछ समझ नहीं आता.’’

‘‘आप चल कर देख लीजिए, आप को जरूर पसंद आएगा.’’

‘‘नहीं का मतलब नहीं. फालतू बात मत करो. पता है बिल कितने का हुआ है? तुम तो सम?ाती हो कि बस पेड़ हिलाया और नोट ऊपर से बरस पड़े. यहां तो चारों तरफ एक से एक चीज बिखरी पड़ी है. सब से पहले अपनी पौकेट देखनी पड़ती है. तुम औरतों को तो जरा सी छूट दे दो तो एकदम सिर पर चढ़ने लगती हैं.’’

उस का चेहरा उतर गया. वह पति की आदत से अच्छी तरह परिचित थी कि पैसा खर्च करने के बाद से ही बड़बड़ करते हैं. मन में तो आ रहा था कि कह दूं कि आप की शर्ट और टीशर्ट्स सब से ज्यादा हैं और महंगी भी हैं. मेरे सूट तो सस्ते वाले हैं लेकिन बोलना मतलब ?ागड़ा क्योंकि कोई भी इंसान सच नहीं सुनना चाहता. इसलिए वह चुपचाप चल रही थी.

‘‘यहां सैल्फ सर्विस की भीड़ में कौन घुसे. चलो ऊपर रैस्टोरैंट में खाते हैं.’’

निशू का मौन निर्णय को अखर गया. बोला, ‘‘न जाने कब समझेगी. चाहे जितना भी कर दो तुम्हारा मुंह बना ही रहेगा. गाउन दिलवा दो, गाउन दिलवा दो. कहीं भागा जा रहा है गाउन? तुम्हें खुद सोचना चाहिए कि घर खर्च कैसे चल रहा है. 4 पैसे जोड़ेंगे तभी तो मुंबई में अपना घरौंदा ले पाएंगे. तुम्हें रैस्टोरैंट में ले कर खाना खिलाने लाया हूं और तुम हो कि मुंह सुजाए हो.’’

‘‘मेरा टुकटुक क्या खाएगा?’’ कहते हुए निशू ने निर्णय के बराबर में बैठ कर जबरदस्ती अपने चेहरे पर मुसकराहट ओढ़ ली.

‘उफ, गाउन कहीं बिक न जाए,’ मन ही मन निशू अपने में खोई हुई जोड़घटाने में लगी थी कि क्व15 हजार रुपए तो उस ने कब से जोड़ कर रखे हुए हैं, वह डायमंड रिंग खरीदना चाहती थी लेकिन निर्णय नाराज होंगे, इसीलिए नहीं खरीद रही थी. उस का हाथ खाली हो जाएगा तो क्या पहली पर फिर से ट्यूशन के पैसे मिलेंगे. अब वह साफसाफ निर्णय से कह देगी कि यह सब नहीं चलने वाला घर खर्च के लिए उस के पास रुपए नहीं हैं और सब का पेमैंट खुद करो. ट्यूशन के पैसे उस के अपने हैं.

‘‘निशू, तुम्हारा मुंह अभी भी सूजा हुआ है,’’ निर्णय मेनू कार्ड उसे पकड़ा कर बोला, ‘‘आज अपनी पसंद से और्डर करो.’’

निशू को ऐसा महसूस हो रहा था कि निर्णय यहां खाना खिला कर उस पर एहसान कर रहे हैं. उस ने कार्ड देखते हुए कहा, ‘‘मलाईकोफ्ता कैसा रहेगा?’’

‘‘रेट की तरफ भी निगाह मार लिया करो.’’ निशू सिटपिटा उठी. जल्दी से बोल पड़ी, ‘‘रहने दीजिए. टुकटुक के लिए पावभाजी और्डर कर दीजिए.’’

‘‘तो बटरनान खाओगी? मैं तो मजदूर आदमी तंदूरी रोटी से पेट भर लूंगा.’’

एक बार फिर निर्णय के कटाक्ष से निशू का मन आहत हुआ लेकिन निर्णय ऐसा ही है. उस की आंखों के सामने से वह ईवनिंग गाउन हट ही नहीं रहा था. ट्रायलरूम में गाउन पहना हुआ अपना अक्स बारबार उस की आंखों के सामने ?िलमिला रहा था. वह सोचनी लगी कि गाउन तो वह तब पहन लेगी जब निर्णय उस के साथ नहीं जा रहा होगा. अंगूठी तो शायद ही खरीद पाएगी. न ही नौ मन तेल होगा और न ही राधा नाचेगी. वह कल स्कूल से हाफ डे ले कर गाउन ले आएगी और बौक्स में छिपा कर रख देगी. जब कभी निर्णय का मूड अच्छा होगा, तब उसे दिखा देगी. अपने प्लान से संतुष्ट हो कर उस का मन हलका हो गया.

स्कूल से 2 पीरियड पहले जरूरी काम है, कह कर वह मौल के उसी स्टोर पर पहुंच गई. उस की आंखें उसी डिजाइनर ईवनिंग गाउन को तलाश रही थीं लेकिन खरीदने से पहले उस ने दूसरे गाउन पर भी नजर डाली परंतु जो उसे पहली नजर में भा गया, वही उस ने खरीद लिया. आज अकेले इतना महंगा गाउन खरीद कर वह अपने को बहुत स्पैशल समझ रही थी. इस गाउन को खरीद कर उस का अपना अहम संतुष्ट हुआ था. फिटिंग के लिए गाउन दे कर वह मानो आकाश में उड़ रही थी कि कल वह ईवनिंग गाउन उस के पास होगा. बस वह दिन बीतने का इंतजार करने लगी.

शाम को गाउन ला कर बौक्स में छिपा दिया, जिस तक निर्णय की पहुंच न के बराबर थी.  एक दिन निशू गाउन को पहन कर शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने को सभी ऐंगल से भरपूर निहार रही थी कि अचानक निर्णय की आहट हुई तो उस ने जल्दीजल्दी अलमारी के अंदर छिपा दिया.

गाउन खरीद कर वह महसूस कर रही थी कि उस का अपना भी अस्तित्व है, वह भी अपने मन का कुछ कर सकती है. अब तो वह जबतब मौका मिलते ही गाउन पहन कर शीशे में स्वयं को देख कर खुश होती, सैल्फी खींचती और पति के डर से डिलीट भी कर देती.

लगभग 8 महीने बीत रहे थे. जब भी गाउन पहनने का अवसर आता तो निर्णय किसी न किसी बहाने से बिना किसी सूचना के आ कर खड़े हो जाते. तब निशू गाउन पहनने का आइडिया ड्रौप कर के मन मसोस कर रह जाती. ऐसे मौके बारबार आए जब उस ने गाउन पहनने का मन बनाया परंतु निर्णय की क्रोधाग्नि के डर से वह फिर उसी बौक्स में छिपा कर रख दिया करती.

कभी कालेज का ऐनुअल फंक्शन तो कभी पड़ोस की शादी तो कभी सोसायटी का न्यू ईयर का प्रोग्राम, वह ललचाई नजरों से गाउन को पहन कर देखा करती. यहां तक कि बारबार देखते रहने से गाउन आउट औफडेट भी लगने लगा था.

निशू सोचने लगी थी कि उस ने व्यर्थ में क्व8 हजार का गाउन खरीद कर रख लिया और निर्णय के गुस्से के बारे में सोच कर, वह कई बार अपनी बेवकूफी पर खीझ भी उठती. ऐसा क्या डरना. एक बार ही बकबक करेगा फिर वह पहन तो पाएगी.

आखिर वह अवसर आ ही गया. बूआ के लड़के श्रेयस की शादी का कार्ड देखते ही निशू खुश हो गई. निर्णय ने जाने से मना कर दिया. उन के बैंक में क्लोजिंग चल रही थी. निशू की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस ने मैचिंग नैकलैस और एयररिंग्स खरीद ली. यह पहला मौका होगा जब वह इतना महंगा गाउन पहन कर सब पर रौब जमाएगी. बूआ भी देख लें कि निशू भी किसी से कम नहीं है. वह भी कीमती गाउन खरीद कर पहन सकती है. वह उड़ कर उन लोगों के बीच पहुंच कर अपना गाउन पहन कर अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करने के लिए उतावली हो रही थी.

‘‘निर्णय, मैं ने शाम के लिए खाना बना कर रख दिया है. कल कुछ और्डर कर लेना या फिर औफिस की कैंटीन में खा लेना. कल संगीत संध्या होते ही मैं लौट आऊंगी. आप टुकटुक का ध्यान रखना. अपनी मस्ती में बेटे को मत भूल जाना.’’

आज निशू का आत्मविश्वास 7वें आसमान पर था. उसे बूआ की सास का पिछली बार का कमैंट दिल में शूल की तरह चुभ गया था कि निशू 1-2 गाउन खरीद लो, आजकल ये पुरानी साडि़यां कौन पहनता है.

आज जब निशू तैयार हो कर कमरे से बाहर आएगी तो सब लोग उसे देखते ही रह जाएंगे और बूआ तो आंहें ही भरती रह जाएंगी जो हमेशा उसे नीची नजरों से देखा करती हैं. उस ने मैचिंग ब्रेसलेट भी खरीदा था. आज उसे सब से सुंदर दिखना था. वह लगभग तैयार हो गई थी. अपने मेकअप पर टचअप कर रही थी. सभी कोणों से अपने को देख रही थी कि सब परफैक्ट तो है. तभी अम्मां ने दरवाजा खटखटाया, ‘‘निशू जल्दी कर. देख तो जमाई बाबू आए हैं.’’

एकबारगी निशू निर्णय के क्रोध की कल्पना कर के थरथर कांप उठी परंतु फिर उस के मन ने उसे धिक्कारा, क्यों डर रही हो? क्या तुम अपने मन से एक गाउन भी नहीं खरीद सकती? तुम शान से उस के सामने जाओ. यदि वह कुछ बोलता है तो देखा जाएगा.

‘‘निशू जल्दी करो. जमाईजी को भी तैयार होना है.’’

निशू को झटका सा लगा. आंखों में आंसू आ गए थे. बुझे मन से दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.

निर्णय अवाक हो कर उसे अपलक निहारते ही रह गए. उन का मुंह खुला का खुला रह गया. कुछ देर बाद बमुश्किल से बोल पाए, ‘‘यह गाउन किस का पहना है? तुम्हारे पास चाहे जितना कुछ हो तुम्हें दूसरों की चीज ही अच्छी लगती है. हर समय मेरी इज्जत खराब करने में लगी रहती हो. कुछ भी हो… बहुत सुंदर लग रही हो, यह गाउन किस का है? एकदम नया लग रहा है.’’

निशू को ऐसा लग रहा था कि अब बम फटा कि तब. वे जरूर कुछ उलटासीधा बोलने वाले हैं. अत: वह तेजी से चलती हुई महिलाओं की भीड़ में शामिल हो गई.

‘‘मेरे कपड़े तो निकाल दो.’’

उस की आवाज निर्णय के कानों में गूंज रही थी लेकिन उस ने आज उस आवाज को अनसुना कर दिया.

इस समय निर्णय को देख कर निशू को बहुत कोफ्त हो रही थी, वह अपना मूड नहीं खराब करना चाह रही थी, मना करने के बावजूद वह यहां क्यों आ गए. एक तरफ वह पति से प्रशंसा भी सुनना चाह रही थी परंतु मन ही मन उन के व्यंग्य और कटाक्षों से बचना भी चाह रही थी. वह स्वयं नहीं सम?ा पा रही थी कि वह निर्णय की नजरों से क्यों बचने का प्रयास कर रही है. वह घबराई हुई थी, आंखें बरसने को बेताब थीं. उस ने आंसुओं से भरी आंखों को सब की नजरें बचा कर पोंछ लिया.

तभी टुकटुक भागता हुआ आया, ‘‘मम्मा, पापा बुला रहे हैं.’’

अम्मां ने भी शायद उस के चेहरे को पढ़ लिया था, ‘‘निशू जमाई बाबू के लिए कपड़े निकाल कर दे दो.’’

‘‘वे निकाल लेंगे.’’

कुछ देर बाद निर्णय तैयार हो कर आ गए. तभी उस की निगाहें पति निर्णय की नजरों से मिल गईं. उन की आंखों में उस के प्रति मुग्धता और प्रशंसा का भाव दिखाई पड़ रहा था.

उसी समय बूआ की निगाह निशू पर पड़ी, ‘‘अरी निशू बड़ा खूबसूरत गाउन पहना है. यह तो बहुत महंगा होगा?’’

‘‘बूआ, ये औफिस के काम से पुणे गए थे, वहीं से ऐनिवर्सरी के लिए यह गाउन ले कर आए थे.’’

अब तो भाभी भला कैसे चुप रहतीं, ‘‘दीदी जीजू तुम्हें बहुत चाहते हैं, तुम्हारे लिए कितना सुंदर और महंगा वाला गाउन ले कर आए हैं. आप के भैया तो 20 साल में कभी एक ब्लाउज भी नहीं ले कर आए.’’

अब तो निशू अपने गाउन की वजह से सारी महिलाओं के बीच में चर्चा के साथ आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी. वह अपनी कुशलता और होशियारी पर मुसकरा तो रही थी परंतु निर्णय की अंटशंट बकवास से भी डर रही थी.

तभी निशू की निगाह पड़ी कि निर्णय एक कोने में खड़ेखड़े उसे देख कर मंदमंद मुसकरा रहे थे और नजरें मिलते ही उन्होंने इशारों ही इशारों में उस पर चुंबन की बरसात कर दी. अब उसे अपने पति निर्णय पर बहुत प्यार आ रहा था. वह अपने को नहीं रोक पाई और स्वयं ही उस के कदम पति की ओर बढ़ गए.

निशू ने निर्णय के पास पहुंच कर उन की हथेलियों को कस कर पकड़ लिया.

निर्णय ने उसे प्यार से अपनी बांहों में भर लिया, ‘‘इस ईवनिंग गाउन में एकदम परी लग रही हो.’’

निशू की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला उठे थे. सब की तालियों की आवाज से उन दोनों की तंद्रा भंग हुई तो निशू ने शर्म से अपना मुंह हथेलियों से ढक लिया.

Hindi Stories Online : आप तो ऐसे नहीं थे

Hindi Stories Online : नीरजा को आजकल वीरेन का स्वभाव समझ नहीं आ रहा था. हर समय शीशे के आगे खुद को निहारता रहता है. हर समय एक मुसकान चेहरे पर थिरकती रहती है. कोई देख कर कह नहीं सकता कि उस की बेटी टिम्सी 23 साल की है जिस की जल्द ही शादी होने वाली है.

तभी नीरजा ने देखा वीरेन बाहर बालकनी में खड़ा सैल्फी खींच रहा है. नीरजा एकदम से जा कर बोली, ‘‘अरे वीरेन तुम ने तो टिम्सी को भी मात दे रखी है.’’

एकदम से वीरेन आगबबूला हो उठा, ‘‘अगर तुम्हारे चेहरे पर हर समय मुर्दनी छाई रहती है तो इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं भी जीना छोड़ दूं?’’

नीरजा को ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी. इसलिए पनीली आंखें लिए अंदर चली गई.

पता नहीं वीरेन को क्या हो गया है. पहले वीरेन की पूरी दुनिया नीरजा के इर्दगिर्द घूमती थी. अब ऐसे लगता है कि वीरेन को नीरजा का साथ ही बोरिंग लगता है. अभी होली के आसपास टिम्सी के दफ्तर की छुट्टी थी तो सब लोग शौपिंग के लिए मौल चले गए. जब नीरजा वीरेन के लिए सफेद और ग्रे कपड़े देख रही थी तभी वीरेन ने लाल टीशर्ट और बैगनी रंग की शर्ट खरीदी. नीरजा ने सोचा शायद टिम्सी के मंगेतर उज्ज्वल के लिए ले रहा होगा.

मगर जब दूसरे दिन वीरेन उसी शर्ट को पहनने लगा तो नीरजा बोली, ‘‘यह तुम ने अपने लिए खरीदी थी?’’

वीरेन ने कहा, ‘‘क्यों मैं क्या ऐसे रंग नही पहन सकता हूं?’’

नीरजा असमंजस में देखती रही कि यह वही ही वीरेन है जो पहले ऐसे लोगों को गोविंदा बोलता था.

न जाने क्यों पिछले वर्ष से वीरेन के व्यवहार में अजीबोगरीब परिवर्तन आ रहे हैं. फोन से चिढ़ने वाला, ब्यूटी प्रोडक्ट्स का मजाक उड़ाने वाला अब एकाएक बदल गया है. पहले वह टिम्सी को कितना डांटता था कि खाने के समय मोबाइल से दूरी रखो और अब खुद ही मोबाइल से चिपका रहता है. इस वीरेन से तो नीरजा का परिचय नहीं था.

अगर नीरजा कुछ कहती तो वीरेन कहता, ‘‘पिछले 23 वर्षों तक मैं परिवार के लिए करता रहा हूं. अब बस खुद के लिए जीना चाहता हूं.’’

नीरजा ने कहा भी, ‘‘तुम्हें कब मैं ने किसी चीज के लिए मना किया है?’’

वीरेन बोला, ‘‘नीरजा, जिंदगी की जिम्मेदारियों ने सिर उठाने का मौका ही नही दिया कि मैं कुछ करूं.’’

टिम्सी हंसते हुए बोली, ‘‘पापा, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि आप 16 साल के लड़कों जैसे कपड़े पहनोगे.’’

‘‘टिम्सी तुम कब से ऐसी बात करने लगी हो?’’

‘‘पापा, आप को पता है आप के बदले व्यवहार से मम्मी कितनी आहत है? आप का हर समय फोन पर चिपके रहना, नएनए दोस्तों के साथ पार्टी करना, घर से पूरापूरा दिन गायब रहना सब मम्मी को परेशान करता है. अभी तो मैं हूं, जब मैं चली जाऊंगी तब कौन संभालेगा मम्मी को?’’

वीरेन ने बिना कोई जवाब दिए कार की चाबी उठाई और निकल गया.

तभी फोन की घंटी बजी और मोनिका नाम देखते ही वीरेन के चेहरे पर मुसकान आ गई.

वीरेन की मोनिका से करीब 2 वर्ष पहले मुलाकात हुई थी. दोनों एक ही रनिंग ग्रुप के सदस्य थे. दोनो का बचपन एक ही शहर अहमदनगर में बीता था. जब आप को अपने ही शहर का कोई मिलता है तो आप को उस से एक अलग ही अपनापन हो जाता है.

वीरेन की पत्नी नीरजा में जहां हर चीज के लिए नखरा था वहीं मोनिका बहुत लचीली थी. मोनिका के पति की आमदनी न के बराबर ही थी पर फिर भी मोनिका कभी किसी चीज के लिए शिकवा नहीं करती थी. इन छोटीछोटी चीजों के कारण वीरेन उस की तरफ खिंचता चला गया.

नीरजा के बाद मोनिका ही उस की जिंदगी में दूसरी औरत थी जिस से वह अपने दिल की बात कह सकता था. अफेयर जैसा कुछ नहीं था पर फिर भी वीरेन को मोनिका का साथ ताजगी और खुशी देता था.

आज मोनिका और वीरेन को एक मुशायरे में जाना था. जब वीरेन ने हाल में ऐंट्री की तो देखा मोनिका ने उस के लिए एक सीट रोक कर रखी हुई है और साथ में उस के पसंदीदा चने भी रखे हुए हैं.

मोनिका की यही बात उसे पसंद थी. उस का स्वभाव ही देने का था. वह वीरेन की छोटीछोटी बातों का इतना ध्यान रखती थी कि वीरेन का मन भीग जाता.

वीरेन की जब नीरजा से शादी हुई थी तो दोनों ही 24 साल के थे. 1 साल में टिम्सी उन के जीवन में आ गई. नीरजा जहां अमीर परिवार की बेटी थी वहीं वीरेन एक मध्यवर्गीय परिवार का मेहनती बेटा था.

नीरजा और वीरेन जब विवाह के बाद गोरखपुर आए तो नीरजा ने रोरो कर वीरेन का जीवन हलकान कर दिया.

वीरेन को नीरजा की मम्मी को बुलाना पड़ा. नीरज की मम्मी ने पूरी गृहस्थी सजाई और फिर वीरेन को ढेरों नसीहतें दे कर चली गईं. वीरेन को नीरजा से बेहद लगाव था. उस की शरबती आंखों में वह आंसू बरदाश्त नहीं कर सकता था. इसलिए नीरजा को हर ऐशोआराम देने के लिए वीरेन जीतोड़ मेहनत करने लगा.

नीरजा ने कभी वीरेन के मन की थाह लेने की कोशिश नहीं करी. जब टिम्सी 2 साल की थी तो वीरेन की नौकरी छूट गई. तब वीरेन ने नीरजा से कहा, ‘‘नीरू, मेरे दोस्त के स्कूल में टीचर की वैकैंसी है. अगर तुम नौकरी कर लोगी तो हमारे जरूरी खर्चे चल सकते हैं.’’

नीरजा गुस्से में बोली, ‘‘मुझसे नहीं होगी यह मेहनत.’’

वीरेन ने फिर दोस्तों से उधार ले कर कुछ माह तक घर का खर्च चलाया. उस के बाद वीरेन कामयाबी की सीढि़यां चढ़ता चला गया. घर बड़ा होता गया और दूरियां बढ़ती चली गईं.

वीरेन ने एक अच्छा पति और पिता बनने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पर इस सब में वीरेन बहुत पीछे छूट गया था और उसी वीरेन को पकड़ने के लिए वीरेन की जिंदगी में मोनिका आ गई थी. जब से मोनिका वीरेन की जिंदगी में आई, उस की जिंदगी 20 साल पीछे लौट गई.

शुरुआत में तो नीरजा ने महसूस नहीं किया क्योंकि उस के अधिकतर अपने दोस्तों के साथ तयशुदा प्रोग्राम होते थे पर धीरेधीरे जब वीरेन अधिकतर घर के बाहर समय बिताने लगा तो नीरजा का माथा ठनका.

एक दिन नीरजा की सहेली एकता ने रात के खाने पर बुलाया था. नीरजा जब तैयार होने लगी तो वीरेन बोला, ‘‘मुझे तो आज मुशायरे में जाना है.’’

नीरजा बोली, ‘‘कोई बिजनैस मीटिंग तो है नहीं. मना कर दो अपने दोस्तों को.’’

वीरेन बोला, ‘‘मैं तो हमेशा तुम्हारे हिसाब से चलता हूं, आज तुम मेरे साथ चलो.’’

नीरजा गुस्से में बोली, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें वीरेन? क्यों एक छोटे से मुशायरे के लिए ये सब कर रहे हो?’’

वीरेन ने बिना कुछ कहे कार की चाबी उठाई और निकल गया. फिर यह सिलसिला बन गया. दोनों में से कोई भी ?ाकने को तैयार नहीं था. दोनों की राहें जुदा हो गई थीं.

इस से पहले नीरजा और वीरेन कुछ समझ पाते, कोरोना के कारण लौक डाउन हो गया और वीरेन, टिम्सी और नीरजा घर मे फंस गए. वीरेन का हर समय फोन पर चिपके रहना, रंगबिरंगे कपड़े पहनना सब नीरजा के तनबदन में आग लगा देता.

नीरजा कुछ बोल देती तो वीरेन भी पलट कर जवाब दे देता जिस के कारण घर का माहौल खराब हो जाता.

एक  दिन टिम्सी ने पूछ भी लिया, ‘‘पापा, आप तो ऐसे न थे. मम्मी का बिलकुल ध्यान नहीं रखते हो.’’

वीरेन भी चिढ़े स्वर में बोला, ‘‘टिम्सी, तुम चीजों को बस अपनी मम्मी के नजरिए से ही देखती हो. तुम्हारी और तुम्हारी मम्मी की जिंदगी में मैं ने कभी दखलंदाजी नहीं करी तो तुम लोग मेरी में भी न करो.’’

टिम्सी गुस्से में बोली, ‘‘हम लोग ऐसा कुछ करते ही नहीं कि आप को कुछ कहना पढ़ें.’’

‘‘तो मैं ने क्या कर दिया है ऐसा? अब तक तुम लोगों के हिसाब से जिंदगी जी है, जहां कहा वहां घुमाने ले गया पर अब मेरा मन अगर कुछ अलग करने का करता है तो मैं क्या करूं? हां मैं ऐसा नहीं हूं जैसा था, अब मैं अपने लिए जीना चाहता हूं. अपनी सारी जिम्मेदारी पूरी कर ली है अब कुछ अपने लिए करना चाहता हूं.’’

नीरजा और टिम्सी वीरेन के बदले हुए रूप को स्वीकार नहीं कर पा रही थीं. बारबार ऐसा प्रतीत हो रहा था कि घर की दरोदीवार यही कह रही है, ‘‘आप तो ऐसे न थे.’’ मगर वह पक्षी शायद अब पिंजरा खोल कर स्वच्छंद उड़ान भर चुका है.

Skin Care Tips : सैंसिटिव स्किन के लिए होममेड मास्क के बारे में बताएं?

Skin Care Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी स्किन सैंसिटिव है. ऐसे में मुझे कौन सा घरेलू फेस मास्क लगाना चाहिए, जिस से स्किन का ग्लो बढ़ जाए?

जवाब-

अगर आप की त्वचा सैंसिटिव है, तो आप खुद ही अपना ऐलोवेरा फेस मास्क बना सकती हैं. ताजे ऐलोवेरा जैल में शहद मिला कर 20 मिनट तक चेहरे पर लगा कर रखें. फिर बर्फ के टुकड़े को महीन कपड़े में रख कर उस से चेहरे पर मसाज करें. 5 मिनट तक बर्फ से रगड़ने के बाद कुनकुने पानी से चेहरा धो लें. हफ्ते में 2-3 बार ऐसा करने से ही आप को फर्क नजर आने लगेगा.

-समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा. 

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क्या आप भी अपनी रूखी और बेजान त्वचा से परेशान हैं. कई उपाय करने के बावजूद भी किसा तरह का लाभ नहीं मिल रहा है. आपके पास फेशियल, ब्लीच आदि के लिए पार्लर जाने का समय नहीं है, तो अपनाइए ये टाप 10 फेस मास्क. इससे आपकी बेजान स्किन में चमक आ जाएगी और आपको मिलेगा इंस्टेंट ग्लो.

1. गुलाब की कुछ पंखुडियों में 2 टेबलस्पून गाडा दूध मिलाकर बारीक पीस लें. तैयार लेप को दस मिनट के लिए फ्रिज मे रख दें. बाहर निकालकर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद जब लेप सूख जाए तो ठंडे पानी से चेहरा धो लें. गुलाब क्री पंखुडियों से त्वचा की रंगत निखरती हैं.

2. पके हुए केले को छीलकर अराल लें मसल लें. इसमें 3 टेबलस्पून पका हुआ पपीता मसलकर मिलाएं. इसे दो मिनट चम्मच से फेंटें. फिर चेहरे पर अप्लाई करें. 20 – 25 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इससे स्किन टाइट होती है और नेचुरली ग्लो करती हैं.

3. मिक्सर यें 2 छोटे साइज के स्ट्राबेरी और 1 टेबलस्पून बटर (नमक वाला नहीं) डालकर पीस लें. तैयार पेस्ट चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट बाद कुनकुने पानी में भीगे हुए टावल से चेहरा पोंछ लें. स्ट्राबेरी से स्किन टोन निखरता है और बटर चेहरे को माइश्चाराज करता हैं.

4. 2 चम्मच बेसन में 1 चम्मच दूध और 1 चम्मच आलिव आयल मिलाएं. फिर चेहरे को गुलाब जल से धोएं और फेस पैक लगा लें. 20 मिनट बाद कुनकुने पानी से चेहरा धो लें. इससे स्किन ग्लो करेगी और ब्लैक हेड्स की शिकायत भी दूर हो जाएगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

44 की उम्र में रणबीर कपूर की बहन Riddhima Kapoor की बौलीवुड में एंट्री…

Riddhima Kapoor :  शोमैन राज कपूर का पूरा खानदान बल्कि तीन पीढ़ियां फिल्म इंडस्ट्री में ना सिर्फ प्रसिद्ध है, बल्कि कई सालों से टिकी भी हुई है. पृथ्वी राज कपूर, राज कपूर ,ऋषि कपूर, शशि कपूर रणधीर कपूर , रणबीर कपूर, कपूर खानदान के चश्म चिरागों ने खानदान का नाम रोशन किया है, कपूर खानदान के सिर्फ हीरो ही नहीं बल्कि हीरोइने भी बौलीवुड में कमाल दिखा रही है. जैसे नीतू कपूर , करिश्मा कपूर करीना कपूर आलिया भट्ट आदि.

सिर्फ कपूर खानदान की एक ही लड़की ऐसी थी जिसने कभी भी फिल्म इंडस्ट्री की तरफ रुख नहीं किया . लेकिन 44 साल में रिद्धिमा कपूर को भी एक्टिंग का शौक चढ़ गया है , जिसकी वजह है ओटीटी प्लेटफार्म पर उनका शो ,रणबीर कपूर की बहन रिद्धिमा साहनी ने २०२४ में ओटीटी पर डेब्यू किया है. ओटीटी पर रिलीज सीरीज फेबुलस लाइव्स बौलीवुड वाइब्स सीजन 3 में जहां पर उनको बहुत तारीफ मिली.

ओटीटी फिल्मों से काफी अलग है, लेकिन जब रिद्धिमा साहनी को ओटीटी पर तारीफ मिली तो उन्होंने फिल्मों में भी तकदीर आजमाने की सोची. वह एक अनाम फिल्म कर रही है जिसकी शूटिंग पहाड़ों में चल रही है. ऋदीमा के अनुसार उनका बौलीवुड फिल्मों में आने की कोई प्लानिंग नहीं की थी, जब उन्हें इस फिल्म की स्टोरी सुनाई गई तो रिद्धिमा को फिल्म और अपना किरदार बहुत पसंद है. जिस वजह से रिद्धिमा ने फिल्म करने के लिए हां कर दी क्योंकि रिद्धिमा कपूर फिल्म इंडस्ट्री में और बाकी सब में नई है. इसके लिए वह स्क्रिप्ट अपने परिवार को देती रहती है ताकि वो उनसे सलाह ले और बेहतर अभिनय करे.

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