Hindi Fiction Stories : ‘‘क्या यार आज संडे के दिन भी तुम सोने नहीं दे रही हो. मैं तो आज दिनभर लेटा रहने वाला हूं. न तो खुद चैन से रहती हो न ही मुझे रहने देती हो. मौल में जा कर क्या खरीदना है तुम्हें? बस बैठेबैठे यही सोचती रहती हो कि पैसा कैसे खर्च करें. कभी बचत की भी सोचती हो?’’
‘‘मुझे क्या अपने लिए लेना है? आप के लिए टीशर्ट लेनी है और टुकटुक के लिए लोअर लेना है. वह छोटा हो गया है. उसे पहन कर नीचे खेलने जाता है तो सब बच्चे उसे बहुत चिढ़ाते हैं. रेयांश तो उस के पीछे ही पड़ जाता है. कई बार तो रोरो कर वह घर ही लौट आता है.’’
‘‘नौन स्टौप खर्च. मैं तो खर्चे से परेशान हो जाता हूं. कुछ पता है कल डी मार्ट से ग्रौसरी का सामान आया है उस का बिल साढे 6 हजार रुपए था. छोड़ो यार, अगले वीकैंड में देखेंगे,’’ निर्णय ने टालने के अंदाज में कहा और चादर से मुंह ढक कर लेट गया.
32 वर्षीय निशू एक स्कूल में टीचर है लेकिन चूंकि अस्थाई है इसलिए बहुत कम पैसे मिलते हैं. वह अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा कर कुछ आमदनी कर लेती है. पति निर्णय कंजूस स्वभाव का है, उस की तनख्वाह तो पूरी की पूरी झटक ही लेता है और ट्यूशन से मिलने वाले पैसे पर भी अपनी आंख गढ़ाए रहता है.
‘‘तुम्हारे पास तो पैसे होंगे, तुम पेपर वाले को दे देना. तुम दूध वाले को पेमैंट कर देना. मैं एटीएम से निकालूंगा तो तुम्हें दे दूंगा,’’ निर्णय कहता पर फिर वह दिन कभी न आता और यदि वह उसे अपने पैसे की याद दिलाती भी है वह कहता है कि मैं कहीं भागा जा रहा हूं और फिर बात आईगई हो जाती.
निशू साधारण परिवार से थी परंतु इस तरह से हरेक चीज के लिए पति से कहना और फिर उन की खिड़की उस के अहम को बहुत चोट पहुंचाती लेकिन शादी को निभाने के लिए वह ये सब चुपचाप बरदाश्त कर लेती. निर्णय की सैलरी कम नहीं है. वह बैंक में कैशियर है परंतु स्वभाव में कंजूसी हद दर्जे की भरी हुई है. वह अच्छी तरह सम?ाती है कि मुंबई जैसे शहर में खर्चे बहुत ज्यादा हैं लेकिन हर समय खर्चे का उलाहना, सुनसुन वह गुस्से से भर उठती है.
निशू का मूड खराब हो गया था. निर्णय ऐसा क्यों करता है. उस ने कितने प्लान बनाए थे. सेल में कितने अच्छे औफर होते हैं. उस के सूट भी घिस गए हैं. सोच रही थी कि 2-3 सूट जरूर खरीद लेगी. लेकिन उस की तो हमेशा की आदत है उस के हर काम में अडंगा लगाना.
निशू ने संडे स्पैशल में आज छोलेभठूरे और टुकटुक के लिए पाश्ता बना कर फिर से आवाज लगाई, ‘‘11 बज चुके हैं नींद पूरी हो गई हो तो उठ जाओ. गरमगरम छोलेभठूरे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’
जब कोई जवाब नहीं मिला तो निशू गुस्से में किचन से निकल कर बैडरूम में गई और बैड पर जब वैसे ही फैली हुई चादर को देखा तो फिर से बड़बड़ाने लगी, ‘‘उफ, कितनी नींद आती है यार,’’ कहते हुए उस ने चादर खींच दी. उस के नीचे तकिया इस तरह से रखा था कि लगता रहे कि कोई सो रहा है. उस के चेहरे पर पति की इन छोटीछोटी शरारतों से मुसकान आ जाती थी.
निशू मैक्स की सेल की बात भूल कर अपने घर के कामों में लगी हुई थी तभी निर्णय ने पीछे से उसे अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘मुहतरमा, बंदा आप की सेवा में हाजिर है. आप हुक्म करें?’’
‘‘क्या हुआ बड़े बदलेबदले से नजर आ रहे हो?’’ उस ने ऊपर की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘आज सूरज पश्चिम से तो नहीं निकला?’’
‘‘अरे भई सरकार से डरता हूं. आप नाराज हो गईं तो रोटी के भी लाले पड़ जाएंगे. मैं बेचारा आफत का मारा बन जाऊंगा.’’
निर्णय की इन्हीं अदाओं पर री?ा कर निशू सबकुछ भूल जाती. वह किचन में गई और भठूरे तल कर ले आई.
‘‘वाह निशू, क्या छोले बनाए हैं. मजा आ गया. टुकटुक पाश्ता टेस्टी है कि नहीं?’’ निर्णय ने पूछा.
टुकटुक अपनी नन्ही उंगली उठा कर बोला, ‘‘वैरीवैरी टेस्टी.’’
नन्हे टुकटुक के जवाब पर वे दोनों जोर से हंस पड़े तो वह शरमा कर गुस्से की ऐक्टिंग करने लगा.
‘‘निशू, तुम्हें तो किसी फाइव स्टार में शैफ बन जाना चाहिए. लेकिन न बाबा न. बेटा निर्णय तेरा क्या होगा. निशू, अब आ जाओ मैं तुम्हारे लिए तल कर लाता हूं. तुम्हारी तरह परफैक्ट तो नहीं बना सकता.’’
‘‘अब बस भी करो चापलूसी करना. मौल चलने को कहा तो ऐसे ?िड़क दिया जैसे मैं अपने लिए ही केवल सबकुछ खरीदने जा रही हूं. तुम्हारी आदत है हर समय मूड खराब कर के रख देते हो. डेली तो स्कूल और ट्यूशन के कारण फुरसत ही नहीं रहती है संडे को तुम्हें सारा दिन सो कर गुजारना होता है या फिर अपने दोस्तों के साथ. मेरे लिए तुम्हारे पास कभी टाइम रहता है भला?’’
‘‘सारी रात तो तुम्हारी सेवा में रहता हूं जानू,’’ निर्णय मुसकराते हुए बोला.
‘‘हटिए आप को तो टुकटुक के सामने भी शर्म नहीं आती.’’
‘‘निशू, मैं तो बिलकुल रैडी हो कर आया था लेकिन तुम ने इतना हैवी नाश्ता खिला दिया. अब तो मैं और मेरा बिस्तर… खा कर तुम भी आ जाओ. हां, शाम का प्रोग्राम पक्का. वहीं कुछ खा भी लेंगे. अब खुश? अरे यार अब तो मुसकरा दो.’’
निशू उत्साहित हो कर मुसकरा उठी. फिर वह सोचने लगी कि शाम को मौल से क्याक्या खरीदना है, आज नोट कर के जाऊंगी नहीं तो ध्यान से उतर जाता है. घर के बाकी काम निबटातेनिबटाते वह थक कर चूर हो चुकी थी लेकिन उसे भला चैन कहां. दिमाग में स्कूल के पेपर बनाने की टैंशन और करैक्शन का भी काम घूम रहा था. वह मन ही मन तरहतरह की प्लानिंग करती रहती है लेकिन फिर भी 24 घंटे उसे अपने लिए कम लगते हैं. इतना सबकुछ करने के बाद भी अपनी खुशी के लिए 1 घंटे का समय भी नहीं निकाल पाती. इस से अच्छी जिंदगी तो शादी से पहले थी. कोई जिम्मेदारी नहीं. घर आती तो मम्मी के हाथ का गरमगरम खाना, नाश्ता, टिफिन सबकुछ देतीं और वह कैसे उन पर नाराज भी हो जाती थी कि क्या अम्मां रोज परांठे बना कर रख देती हो. मैं परांठे नहीं ले जाऊंगी कहती हुई पैर पटक कर अपना गुस्सा उन पर जाहिर करती थी.
अम्मां उसे मनातीं और फिर उस के बैग में चुपचाप से टिफिन रख दिया करती थीं. वह मां को याद कर मुसकरा उठी.
क्या मस्ती की जिंदगी थी. फ्रैंड्स के साथ पिक्चर, आउटिंग, कभी डोसा खाने जाना तो कभी आइसक्रीम.
शादी के नाम से निशू कितनी खुश थी. कितने सपने सजाए थे. वह तो फिल्मी जिंदगी के ख्वाबों में डूबी हुई हसीन जिंदगी में खोई हुई थी जहां शौपिंग, मूवी, डिनर, सी बीच पर रंगरलियां मनाने के सपने देखती हुई, जितनी उस की अपनी सेविंग थी, सब उस ने शादी की शौपिंग में उड़ा डाली.
निशू लगातार कोशिश कर रही थी कि ऐग्जाम के लिए पेपर सैट कर ले लेकिन उस का मन तो कभी मैक्स की सेल में, तो कभी शाम के डिनर की कल्पना में, तो कभी शादी के पहले की मस्तीभरी जिंदगी में उल?ा हुआ था. तभी उस का मोबाइल बजा. उधर उस की अम्मां थीं. बोली, ‘‘निशू, इतवार को तो फोन कर लिया करो. तुम्हारी आवाज सुनने को तरस जाती हूं. टुकटुक कैसा है?’’
‘‘सब ठीक है अम्मां. बस आप को फोन मिलाने ही वाली थी,’’ उस ने सफाई से झूठ बोल दिया. अपनी उलझनों में वह इतनी बिजी रहती है कि उस का मन ही नहीं होता कि वह किसी से बात करे.
क्या जिंदगी हो गई है. सुबह उठते ही टुकटुक को तैयार करो, टिफिन बनाओ, उसे बस तक छोड़ने जाओ, लौट कर आते ही भागभाग कर नाश्ता बनाओ, उलटेसीधे पेट में डालो. बीचबीच में निर्णय के उलटेसीधे टौंट वाले कमैंट्स सुनो. स्कूल भागो वहां मैडम की चार बातें और उन की टेढ़ी निगाहों का सामना. लौट कर घर पहुंच कर भी वह कमर सीधी भी नहीं कर पाती कि ट्यूशन वाले बच्चे हाजिर हो जाते हैं. फिर शुरू हो जाती है उन की चिखचिख और उन की मम्मियां तो सुभान अल्लाह, आफत कर के रख देती हैं. खुद तो कुछ करना नहीं चाहतीं बस ट्यूटर उन्हें घोल कर पिला दे.
निशू अपने खयालों में ही उल?ा रही. न तो पेपर बना पाई न ही करैक्शन कर पाई और न ही आराम.
‘‘मम्मा, मुझे तैयार करो. पापा ने मौल चलने को बोला था,’’ टुकटुक अपनी पसंदीदा ड्रैस हाथ में पकड़ कर निशू की पीठ पर झेल गया.
निशू वर्तमान में लौटी और आदतन बेटे पर झुंझला उठी और उसे अपने से परे हटा कर जोर से बोली, ‘‘ये कपड़े तुम ने क्यों निकाले?’’
नन्हा मासूम डर कर पीछे हट गया. फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘मम्मा, तैयार क्यों नहीं होतीं? मु?ो मौल के गेम सैक्शन में जा कर गेम खेलना है.’’
निशू जानबूझ कर जोर से बोली, ‘‘तुम्हारे पापा को जब सोने से फुरसत मिले तब न.’’
निशू जानती थी कि निर्णय टाइम पास के लिए मोबाइल पर गेम खेल रहे होंगे. कुछ देर में ही निर्णय आए. बोले, ‘‘1 कप चाय पिला दो यार. तुम अभी तक तैयार नहीं हुई?’’ निशू ने जल्दी से चाय बनाई और कपड़े बदल कर तैयार हो गई.
मौल पहुंच कर निशू सीधा मैन्स सैक्शन में चली गई और निर्णय के लिए 3-4 शर्ट लीं और फिर किड्स सैक्शन से टुकटुक के लिए लोअर और 2 टीशर्ट लीं.
अब निशू वूमंस सैक्शन में गई तो अपने लिए सूट पसंद करने लगी. निर्णय को हर सूट महंगा लग रहा था. कुछ देर तक वह नापसंद करता रहा फिर वे टुकटुक को ले कर गेम सैक्शन में चले गए. बोले, ‘‘जो तुम्हें ठीक लगे वह ले लो.’’
निशू ने अपने लिए 2 सूट पसंद कर लिए. वह वहां से चलने वाली थी तभी शो केस पर उस की निगाहें पड़ीं तो वह देखती रह गई. बहुत प्यारा सा नट का ईवनिंग गाउन जिस पर बीड्स का वर्क लगा था. उस का मन बच्चों की भांति मचल उठा. उस ने पास जा कर उस का प्राइज देखा क्व8 हजार. एक क्षण को वह सोच नहीं पाई कि वह निर्णय से कैसे कहे. फिर जब ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि 50% डिस्काउंट में है. वह बिना पूछे तो ले नहीं सकती थी लेकिन डिस्काउंट देख कर उस की हिम्मत बढ़ गई. क्व16 हजार का इतना सुंदर गाउन उसे आधे प्राइज में मिल रहा है, वह इसे ले कर रहेगी. उस ने निर्णय को फोन किया, ‘‘प्लीज आ जाओ मैं ट्रायलरूम के अंदर गाउन ट्राई कर रही हूं.’’
‘‘मैं बिल करवा रहा हूं. गाउन लेना नहीं तो क्यों ट्राई कर रही हो? सीथे बिलिंग काउंटर पर आओ, यहां लंबी क्यू है. मुझे भूख लग रही है. टुकटुक भी परेशान कर रहा है. जल्दी से आओ.’’
निशू गाउन पहन कर शीशे में अपने को देख कर आत्ममुग्ध हो रही थी. इस समय उसे निर्णय विलेन की तरह दिखाई पड़ रहे थे परंतु वह उन के गुस्से से वाकिफ थी खासकर जब वे भूखे हों. उस ने गाउन जल्दीजल्दी उतारा और वहां स्टाफ से पूछा कि इस की फिटिंग आप करवा देंगे?
‘‘जरूर… जरूर हमारा टेलर है. आप सुबह दीजिएगा, 1 दिन बाद फिटिंग और फिनिशिंग कर के आप को दे देंगे.’’
निशू गाउन के ख्वाबों में खोई हुई खुशी से चहचहा रही थी मानों गाउन उस ने खरीद लिया हो. उस ने अपने लिए जो सूट लिए थे वे निर्णय को बिलिंग के लिए दे दिए. हाथ में सूट पकड़ते ही उन्होंने पहले प्राइज पर नजर डाली फिर बोले, ‘‘औफर में हैं?’’
‘‘हांहां 50% डिस्काउंट है.’’
निर्णय ने बुरा सा मुंह बना लिया, ‘‘न जाने कैसे कलर पसंद करती हो.’’
‘‘आप तो इधर आ गए थे. मैं चारों तरफ आप को ढूंढ़ रही थीं.’’
मु?ो क्या, ‘‘तुम्हें पहनने हैं.’’
निशू मन ही मन में सोच रही थी कि आज तो इन का मूड अच्छा है. अपने लिए कितनी सारी शर्ट लीं. फिर वह उन के करीब जा कर बोली, ‘‘मुझे गाउन बहुत पसंद आया है, प्लीज दिला दो.’’
कुछ देर तक तो निर्णय चुप रहा फिर एकदम से फट पड़ा, ‘‘दिमाग खराब हो गया है? जब तक जोर से न बोलो तुम्हें कुछ समझ नहीं आता.’’
‘‘आप चल कर देख लीजिए, आप को जरूर पसंद आएगा.’’
‘‘नहीं का मतलब नहीं. फालतू बात मत करो. पता है बिल कितने का हुआ है? तुम तो सम?ाती हो कि बस पेड़ हिलाया और नोट ऊपर से बरस पड़े. यहां तो चारों तरफ एक से एक चीज बिखरी पड़ी है. सब से पहले अपनी पौकेट देखनी पड़ती है. तुम औरतों को तो जरा सी छूट दे दो तो एकदम सिर पर चढ़ने लगती हैं.’’
उस का चेहरा उतर गया. वह पति की आदत से अच्छी तरह परिचित थी कि पैसा खर्च करने के बाद से ही बड़बड़ करते हैं. मन में तो आ रहा था कि कह दूं कि आप की शर्ट और टीशर्ट्स सब से ज्यादा हैं और महंगी भी हैं. मेरे सूट तो सस्ते वाले हैं लेकिन बोलना मतलब ?ागड़ा क्योंकि कोई भी इंसान सच नहीं सुनना चाहता. इसलिए वह चुपचाप चल रही थी.
‘‘यहां सैल्फ सर्विस की भीड़ में कौन घुसे. चलो ऊपर रैस्टोरैंट में खाते हैं.’’
निशू का मौन निर्णय को अखर गया. बोला, ‘‘न जाने कब समझेगी. चाहे जितना भी कर दो तुम्हारा मुंह बना ही रहेगा. गाउन दिलवा दो, गाउन दिलवा दो. कहीं भागा जा रहा है गाउन? तुम्हें खुद सोचना चाहिए कि घर खर्च कैसे चल रहा है. 4 पैसे जोड़ेंगे तभी तो मुंबई में अपना घरौंदा ले पाएंगे. तुम्हें रैस्टोरैंट में ले कर खाना खिलाने लाया हूं और तुम हो कि मुंह सुजाए हो.’’
‘‘मेरा टुकटुक क्या खाएगा?’’ कहते हुए निशू ने निर्णय के बराबर में बैठ कर जबरदस्ती अपने चेहरे पर मुसकराहट ओढ़ ली.
‘उफ, गाउन कहीं बिक न जाए,’ मन ही मन निशू अपने में खोई हुई जोड़घटाने में लगी थी कि क्व15 हजार रुपए तो उस ने कब से जोड़ कर रखे हुए हैं, वह डायमंड रिंग खरीदना चाहती थी लेकिन निर्णय नाराज होंगे, इसीलिए नहीं खरीद रही थी. उस का हाथ खाली हो जाएगा तो क्या पहली पर फिर से ट्यूशन के पैसे मिलेंगे. अब वह साफसाफ निर्णय से कह देगी कि यह सब नहीं चलने वाला घर खर्च के लिए उस के पास रुपए नहीं हैं और सब का पेमैंट खुद करो. ट्यूशन के पैसे उस के अपने हैं.
‘‘निशू, तुम्हारा मुंह अभी भी सूजा हुआ है,’’ निर्णय मेनू कार्ड उसे पकड़ा कर बोला, ‘‘आज अपनी पसंद से और्डर करो.’’
निशू को ऐसा महसूस हो रहा था कि निर्णय यहां खाना खिला कर उस पर एहसान कर रहे हैं. उस ने कार्ड देखते हुए कहा, ‘‘मलाईकोफ्ता कैसा रहेगा?’’
‘‘रेट की तरफ भी निगाह मार लिया करो.’’ निशू सिटपिटा उठी. जल्दी से बोल पड़ी, ‘‘रहने दीजिए. टुकटुक के लिए पावभाजी और्डर कर दीजिए.’’
‘‘तो बटरनान खाओगी? मैं तो मजदूर आदमी तंदूरी रोटी से पेट भर लूंगा.’’
एक बार फिर निर्णय के कटाक्ष से निशू का मन आहत हुआ लेकिन निर्णय ऐसा ही है. उस की आंखों के सामने से वह ईवनिंग गाउन हट ही नहीं रहा था. ट्रायलरूम में गाउन पहना हुआ अपना अक्स बारबार उस की आंखों के सामने ?िलमिला रहा था. वह सोचनी लगी कि गाउन तो वह तब पहन लेगी जब निर्णय उस के साथ नहीं जा रहा होगा. अंगूठी तो शायद ही खरीद पाएगी. न ही नौ मन तेल होगा और न ही राधा नाचेगी. वह कल स्कूल से हाफ डे ले कर गाउन ले आएगी और बौक्स में छिपा कर रख देगी. जब कभी निर्णय का मूड अच्छा होगा, तब उसे दिखा देगी. अपने प्लान से संतुष्ट हो कर उस का मन हलका हो गया.
स्कूल से 2 पीरियड पहले जरूरी काम है, कह कर वह मौल के उसी स्टोर पर पहुंच गई. उस की आंखें उसी डिजाइनर ईवनिंग गाउन को तलाश रही थीं लेकिन खरीदने से पहले उस ने दूसरे गाउन पर भी नजर डाली परंतु जो उसे पहली नजर में भा गया, वही उस ने खरीद लिया. आज अकेले इतना महंगा गाउन खरीद कर वह अपने को बहुत स्पैशल समझ रही थी. इस गाउन को खरीद कर उस का अपना अहम संतुष्ट हुआ था. फिटिंग के लिए गाउन दे कर वह मानो आकाश में उड़ रही थी कि कल वह ईवनिंग गाउन उस के पास होगा. बस वह दिन बीतने का इंतजार करने लगी.
शाम को गाउन ला कर बौक्स में छिपा दिया, जिस तक निर्णय की पहुंच न के बराबर थी. एक दिन निशू गाउन को पहन कर शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने को सभी ऐंगल से भरपूर निहार रही थी कि अचानक निर्णय की आहट हुई तो उस ने जल्दीजल्दी अलमारी के अंदर छिपा दिया.
गाउन खरीद कर वह महसूस कर रही थी कि उस का अपना भी अस्तित्व है, वह भी अपने मन का कुछ कर सकती है. अब तो वह जबतब मौका मिलते ही गाउन पहन कर शीशे में स्वयं को देख कर खुश होती, सैल्फी खींचती और पति के डर से डिलीट भी कर देती.
लगभग 8 महीने बीत रहे थे. जब भी गाउन पहनने का अवसर आता तो निर्णय किसी न किसी बहाने से बिना किसी सूचना के आ कर खड़े हो जाते. तब निशू गाउन पहनने का आइडिया ड्रौप कर के मन मसोस कर रह जाती. ऐसे मौके बारबार आए जब उस ने गाउन पहनने का मन बनाया परंतु निर्णय की क्रोधाग्नि के डर से वह फिर उसी बौक्स में छिपा कर रख दिया करती.
कभी कालेज का ऐनुअल फंक्शन तो कभी पड़ोस की शादी तो कभी सोसायटी का न्यू ईयर का प्रोग्राम, वह ललचाई नजरों से गाउन को पहन कर देखा करती. यहां तक कि बारबार देखते रहने से गाउन आउट औफडेट भी लगने लगा था.
निशू सोचने लगी थी कि उस ने व्यर्थ में क्व8 हजार का गाउन खरीद कर रख लिया और निर्णय के गुस्से के बारे में सोच कर, वह कई बार अपनी बेवकूफी पर खीझ भी उठती. ऐसा क्या डरना. एक बार ही बकबक करेगा फिर वह पहन तो पाएगी.
आखिर वह अवसर आ ही गया. बूआ के लड़के श्रेयस की शादी का कार्ड देखते ही निशू खुश हो गई. निर्णय ने जाने से मना कर दिया. उन के बैंक में क्लोजिंग चल रही थी. निशू की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस ने मैचिंग नैकलैस और एयररिंग्स खरीद ली. यह पहला मौका होगा जब वह इतना महंगा गाउन पहन कर सब पर रौब जमाएगी. बूआ भी देख लें कि निशू भी किसी से कम नहीं है. वह भी कीमती गाउन खरीद कर पहन सकती है. वह उड़ कर उन लोगों के बीच पहुंच कर अपना गाउन पहन कर अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करने के लिए उतावली हो रही थी.
‘‘निर्णय, मैं ने शाम के लिए खाना बना कर रख दिया है. कल कुछ और्डर कर लेना या फिर औफिस की कैंटीन में खा लेना. कल संगीत संध्या होते ही मैं लौट आऊंगी. आप टुकटुक का ध्यान रखना. अपनी मस्ती में बेटे को मत भूल जाना.’’
आज निशू का आत्मविश्वास 7वें आसमान पर था. उसे बूआ की सास का पिछली बार का कमैंट दिल में शूल की तरह चुभ गया था कि निशू 1-2 गाउन खरीद लो, आजकल ये पुरानी साडि़यां कौन पहनता है.
आज जब निशू तैयार हो कर कमरे से बाहर आएगी तो सब लोग उसे देखते ही रह जाएंगे और बूआ तो आंहें ही भरती रह जाएंगी जो हमेशा उसे नीची नजरों से देखा करती हैं. उस ने मैचिंग ब्रेसलेट भी खरीदा था. आज उसे सब से सुंदर दिखना था. वह लगभग तैयार हो गई थी. अपने मेकअप पर टचअप कर रही थी. सभी कोणों से अपने को देख रही थी कि सब परफैक्ट तो है. तभी अम्मां ने दरवाजा खटखटाया, ‘‘निशू जल्दी कर. देख तो जमाई बाबू आए हैं.’’
एकबारगी निशू निर्णय के क्रोध की कल्पना कर के थरथर कांप उठी परंतु फिर उस के मन ने उसे धिक्कारा, क्यों डर रही हो? क्या तुम अपने मन से एक गाउन भी नहीं खरीद सकती? तुम शान से उस के सामने जाओ. यदि वह कुछ बोलता है तो देखा जाएगा.
‘‘निशू जल्दी करो. जमाईजी को भी तैयार होना है.’’
निशू को झटका सा लगा. आंखों में आंसू आ गए थे. बुझे मन से दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.
निर्णय अवाक हो कर उसे अपलक निहारते ही रह गए. उन का मुंह खुला का खुला रह गया. कुछ देर बाद बमुश्किल से बोल पाए, ‘‘यह गाउन किस का पहना है? तुम्हारे पास चाहे जितना कुछ हो तुम्हें दूसरों की चीज ही अच्छी लगती है. हर समय मेरी इज्जत खराब करने में लगी रहती हो. कुछ भी हो… बहुत सुंदर लग रही हो, यह गाउन किस का है? एकदम नया लग रहा है.’’
निशू को ऐसा लग रहा था कि अब बम फटा कि तब. वे जरूर कुछ उलटासीधा बोलने वाले हैं. अत: वह तेजी से चलती हुई महिलाओं की भीड़ में शामिल हो गई.
‘‘मेरे कपड़े तो निकाल दो.’’
उस की आवाज निर्णय के कानों में गूंज रही थी लेकिन उस ने आज उस आवाज को अनसुना कर दिया.
इस समय निर्णय को देख कर निशू को बहुत कोफ्त हो रही थी, वह अपना मूड नहीं खराब करना चाह रही थी, मना करने के बावजूद वह यहां क्यों आ गए. एक तरफ वह पति से प्रशंसा भी सुनना चाह रही थी परंतु मन ही मन उन के व्यंग्य और कटाक्षों से बचना भी चाह रही थी. वह स्वयं नहीं सम?ा पा रही थी कि वह निर्णय की नजरों से क्यों बचने का प्रयास कर रही है. वह घबराई हुई थी, आंखें बरसने को बेताब थीं. उस ने आंसुओं से भरी आंखों को सब की नजरें बचा कर पोंछ लिया.
तभी टुकटुक भागता हुआ आया, ‘‘मम्मा, पापा बुला रहे हैं.’’
अम्मां ने भी शायद उस के चेहरे को पढ़ लिया था, ‘‘निशू जमाई बाबू के लिए कपड़े निकाल कर दे दो.’’
‘‘वे निकाल लेंगे.’’
कुछ देर बाद निर्णय तैयार हो कर आ गए. तभी उस की निगाहें पति निर्णय की नजरों से मिल गईं. उन की आंखों में उस के प्रति मुग्धता और प्रशंसा का भाव दिखाई पड़ रहा था.
उसी समय बूआ की निगाह निशू पर पड़ी, ‘‘अरी निशू बड़ा खूबसूरत गाउन पहना है. यह तो बहुत महंगा होगा?’’
‘‘बूआ, ये औफिस के काम से पुणे गए थे, वहीं से ऐनिवर्सरी के लिए यह गाउन ले कर आए थे.’’
अब तो भाभी भला कैसे चुप रहतीं, ‘‘दीदी जीजू तुम्हें बहुत चाहते हैं, तुम्हारे लिए कितना सुंदर और महंगा वाला गाउन ले कर आए हैं. आप के भैया तो 20 साल में कभी एक ब्लाउज भी नहीं ले कर आए.’’
अब तो निशू अपने गाउन की वजह से सारी महिलाओं के बीच में चर्चा के साथ आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी. वह अपनी कुशलता और होशियारी पर मुसकरा तो रही थी परंतु निर्णय की अंटशंट बकवास से भी डर रही थी.
तभी निशू की निगाह पड़ी कि निर्णय एक कोने में खड़ेखड़े उसे देख कर मंदमंद मुसकरा रहे थे और नजरें मिलते ही उन्होंने इशारों ही इशारों में उस पर चुंबन की बरसात कर दी. अब उसे अपने पति निर्णय पर बहुत प्यार आ रहा था. वह अपने को नहीं रोक पाई और स्वयं ही उस के कदम पति की ओर बढ़ गए.
निशू ने निर्णय के पास पहुंच कर उन की हथेलियों को कस कर पकड़ लिया.
निर्णय ने उसे प्यार से अपनी बांहों में भर लिया, ‘‘इस ईवनिंग गाउन में एकदम परी लग रही हो.’’
निशू की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला उठे थे. सब की तालियों की आवाज से उन दोनों की तंद्रा भंग हुई तो निशू ने शर्म से अपना मुंह हथेलियों से ढक लिया.