Emotional Story In Hindi : अपनी मंजिल

Emotional Story In Hindi : “मां, मैं आप से बारबार कह चुकी हूं कि अभी शादी नहीं करूंगी. मुझे अभी आगे पढ़ाई करनी है,” सुदीपा ने मां के समीप जा कर बड़े प्यार से कहा.

“सुदीपा बेटा, क्या खराबी है लड़के में? इंजीनियर है, ऊंचे खानदान और रसूख वाला है. तेरे पापा के मित्र का लड़का है और अच्छी आमदनी है उस की. शुक्र मनाओ कि जिस शानदार और आरामदायक जिंदगी जीने के लिए अधिकतर लड़कियां केवल सपने देखती आई हैं, वे सारी खुशियां तुम्हें बिना मांगे ही मिल रहा है. 2 हजार गज में बनी शानदार कोठी है उन की…

“दसियों नौकरचाकर वहां एक आवाज पर हाथ बांधे खडे रहते हैं. इतने योग्य और गुणवान लड़के का रिश्ता खुद चल कर तुम्हारे पास आया है. सारे सुख व ऐश्वर्य हैं उस घर में. और क्या चाहिए तुम्हें…” मां ने नाराजगी जाहिर करते हुए सुदीपा के गाल पर हलकी सी चपत लगाई .

मां के गले से लिपटती सुदीपा बोली,”मेरी प्यारी मां, मुझे आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई करनी है अभी. मुझे अभी योग्य शिक्षिका बनना है, जिस से कि अपने भीतर समाए ज्ञान को अन्य को बांट सकूं,” सुदीपा मां को मनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही थी, क्योंकि मां के इनकार करने पर ही यह रिश्ता टल सकता था.

“सुदीपा, तुम एक बार उस लड़के से मिल कर देख तो लो,” सुदीपा को विचार में डूबा देख कर मां ने उस पर आखिरी बात छोड़ते हुए कहा.

एमए की हुई सुदीपा गोरीचिट्टी, लंबी, छरहरी काया वाली आकर्षक युवती थी. संगीत विशारद में विशेष योगदान हेतु गोल्ड मैडलिस्ट थी. उस के पड़ोसी, परिचित, नातेरिश्तेदार आदि सभी सुदीपा के सुंदर व्यक्तित्व एवं हंसमुख व्यवहार की प्रशंसा किए
बिना नहीं रहते थे. जैसे अधिकतर लोग रूपसौंदर्य और सुगढ़ता को देख कर अनायास ही कह उठते हैं कि कुदरत ने इसे बहुत फुरसत में गढ़ा होगा, ऐसे ही रूपवती सुदीपा जब गजगामिनी चाल की मंथर गति से चलती थी तब अनेक चाहने वाले उसे पाने की तमन्ना रखते थे.

मन ही मन उसे चाहने वाले आहें भरते थे और सुदीपा से मिलने के बहाने ढूंढ़ा करते थे. वह तो अपनेआप में खुश रहने वाली मस्त लड़की थी. सुदीपा की कमर तक लहराते बाल बिजलियां गिराती थीं. पतलीपतली और लंबी उंगलियां जब सितार पर राग छेड़तीं तो उसे देखनेसुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते.

मां का कहना मान कर एक दिन सुदीपा समीर नाम के उस लड़के से मिली. वह लड़का उसे सुंदर लगा. रूपरंग, व्यक्तित्व के अनुसार वह सुदर्शन नवयुवक था. 2-4 मुलाकातों के बाद सुदीपा को समीर पसंद आ गया था. संयोग से तभी सुदीपा को कालेज में अध्यापिका की नौकरी भी मिल गई थी.

सुदीपा के मम्मीपापा सगाई कर के ही उसे नौकरी पर जाने देने की जिद कर रहे थे. इसलिए मम्मीपापा का दिल रखने के लिए उस ने सगाई की हामी भर दी. नौकरी पर जाने से पहले ही दोनों की धूमधाम से सगाई हो गई थी.

कोमल कुआंरे मन में सुंदर जीवन के अनेक रंगीन सपने सजाए सुदीपा कालेज में पहुंच गई. वह दिल्ली शहर की एक सोसायटी फ्लैट में किराए पर रहने लगी. सगाई हो जाने के कारण समीर काम के सिलसिले में जब दिल्ली आता तो सुदीपा से मिलने चला आता था. दोनों तरफ से रिश्ते की डोर मजबूत हो जाए, एकदूसरे को अच्छी तरह से जानसमझ लें,
इस के लिए वे किसी रेस्तरां में कौफी पीने या कभी डिनर करने चले जाते थे. कभीकभी कोई अच्छी और नई मूवी साथ देखने के लिए मौल भी चले जाते थे.

ऐसे ही उन के बीच प्यार भरी मेलमुलाकातों का सिलसिला जारी था. अब सुदीपा और समीर के बीच घनिष्ठता भरे संबंध पनपने लगे थे. मगर इधर कुछ दिनों से सुदीपा ने एहसास किया था कि समीर में शिष्टाचार और विनम्रता जैसे संस्कारी गुण बहुत कम थे. उस ने कई बार समीर को फोन पर अपनी बात मनवाने के लिए सामने वाले को दबंग टाइप से हड़काते हुए भी सुना था.सुदीपा के साथ होने पर भी लापरवाह सा समीर फोन पर अकसर गालीगलौच कर दिया करता था. सुदीपा आधुनिक और खुले विचारों को दिल में जगह देने वाली संस्कारी और मृदुभाषी लडकी थी.

एक दिन सुदीपा कुछ खरीदारी कर के सोसायटी में प्रवेश कर रही थी. उस के दोनों हाथों में सामान था कि तभी अचानक हाई हील सैंडिल के कारण उस का संतुलन बिगड़ गया और वह डगमगा कर नीचे गिर पड़ी.तभी अचानक एक हाथ ने सहारा दे कर उसे उठाया,”अरे, आप को तो काफी चोटें लगी हैं. मैं आप का सामान समेट देता हूं…” अपने सामने गोरेचिट्टे, लंबे कद के सुंदर नाकनक्श वाले लड़के की आवाज सुन कर वह अचकचा गई.

उस की कुहनियां छिल गई थीं. पैर में मोच आ गई थी. उस लड़के ने अपने कंधे पर उस का हाथ पकड़ कर सहारा दिया,”आइए, मैं आप को कमरे तक छोड़ देता हूं,” वह चुपचाप लगंडाते हुए उस के साथ चल पड़ी.

टेबल पर सामान रख कर लड़के ने कहा,”मैं फस्ट ऐड बौक्स ला कर पट्टी बांध देता हूं,” अब वह लड़का ड्रैसिंग कर रहा था.

वह अब तक स्वयं को काफी संभाल चुकी थी. अकेले कमरे में अनजान लड़के के हाथ में अपना हाथ देख कर सुदीपा के मन को भारतीय संस्कार और परंपराएं घेरने लगीं. लेकिन वह लड़का बड़ी सहजता से उस के हाथ पर दवा लगा कर पट्टी बांध रहा था. उस लड़के के स्पर्श से सुदीपा असहज और रोमांचित हो रही थी,”अब तुम आराम करो मैं चाय बना लाता हूं,” थोड़ी देर में वह ट्रै में चाय और बिस्कुट ले आया.

वे दोनों कुछ देर एकदूसरे के परिवार के बारे में बात करते रहे. चलते समय उस ने एक गहरी नजर डाली और अपना फ्लैट नंबर बता कर बोला,”कोई भी जरूरत हो तो मुझे बता देना. संकोच मत करना…”

जब तक उस के पैर की मोच ठीक नहीं हो गई तब तक वह रोज उस के लिए कभी चाय बना कर लाता, तो कभी सैंडविच ले आता. बाहर से एकसाथ खाना भी और्डर कर देता फिर दोनों साथ ही खाना खाते.

सुदीपा के के मन में प्रेम का पहला एहसास फूटा था. एक अनजान कोमल स्पर्श दिल में तरंगित हो कर रमने लगा था. वह अपने घरसमाज की वर्जनाएं जानती थी. संस्कारित परंपराओं के बंधन में बंधने के बाद भी रूमानियत से भीगा एहसास बंजर मरूस्थल में हरा होने लगा था. समीर का साथ पा कर उस ने कभी ऐसा स्पर्श, स्नेह व अपनेपन का एहसास नहीं जाना था.

सुदीपा के मन की भीतरी परतों में शेखर के प्रति रोमांस का बीज पनपने लगा. शेखर बहुत अपनेपन से उस की देखभाल कर रहा था. उस का साथ मिलने के कारण उसे किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई थी .
अब वह ठीक हो कर कालेज जाने लगी थी.

रात के 8 बज रहे थे. गुलाबी रंग की कैप्री के साथ मैंचिग टौप में लंबी खुली केशराशि के बीच सुदीपा ऐसी लग रही थी जैसे श्यामल घटाओं के बीच दूधिया चांद खिला हो. उस ने मैंचिग ईयर टौप्स के साथ गले में छोटे मोतियों की माला पहनी थी. आज वह बहुत खुश थी. उस का गुलाब की तरह खिला खिला रूप सौंदर्य चित्ताकर्षक था. खुद को आईने में देख कर वह स्वयं ही लजा गई. वह रसोईघर में जा रही थी कि अचानक से बेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने समीर खडा था,”अरे, समीर तुम?” अकस्मात समीर को सामने देख कर वह अचकचा गई.

“हां मेरी जान, तुम्हारा समीर…” कहतेकहते समीर ने उसे बांहों में उठा कर 3-4 गोल चक्कर से घुमा दिया.

“आज तो तुम बेहद खूबसूरत और रूप की रानी लग रही हो. किस पर बिजली गिराओगी,” समीर ने रोमांटिक अंदाज में कहते हुए खींच कर उसे अपने सीने से लगाना चाहा.

तेज शराब के भभके से सुदीपा का तनमन जलने लगा. वह चिहुंक कर दूर जा खडी हुई. समीर ने आगे बढ़ कर उस की कलाई पकड़ ली. उस ने हाथ छुड़ा कर दूर जाने का प्रयत्न किया, लेकिन समीर की पकड़ से छूट नहीं सकी. समीर जोरजबरदस्ती करने लगा. यों अचानक ऐसे किसी हालात का सामना करना पड़ेगा, उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.सुदीपा का दिलदिमाग सुन्न हो गया. समीर की बांहों में कसमसा कर दरवाजा खोलते हुए बोली,”समीर, अभी तुम होश में नहीं हो, जाओ.अभी होटल चले जाओ और कल आना.”

“क्यों, कल क्यों मेरी जान, जो होना है आज ही होने दो न. अब तो हम दोनों की शादी भी होने वाली है. इसलिए तुम तो मेरी हो.”

शादी होने वाली है, हुई तो नहीं है न.
फिलहाल, मैं तुम से कोई बात नहीं करना चाहती. प्लीज, तुम यहां से चले जाओ,” सुदीपा ने संयत स्वर में उसे समझाने की कोशिश की.

मगर अपनी मनमरजी पर उतारू समीर ने उस की एक नहीं सुनी. पुरुषत्व के दर्प में चूर, शराब के नशे में मदहोश, समीर के भीतर का जानवर जनूनी हो गया. अपने मंसूबे पूरे न होते देख अब समीर बदतमीजी पर उतर आया. उस के हाथ में सुदीपा का टौप आ गया. जबरदस्ती खींचते हुए टौप चर्रचर्र… कर फटता चला गया.

“यू ब्लडीफूल, तेरी इतनी हिम्मत. तू मुझे मना करती है… अरे, तेरे जैसी पचासों लड़कियां मेरे आगेपीछे घूमती हैं. तू समझती क्या है अपनेआप को…मैं जिस चीज पर हाथ रख देता हूं, वह मेरी हो जाती है…” नशे में समीर की लड़खड़ाती जबान से अंगार बरसने लगे.

जैसे ही वह सुदीपा को पकड़ने के लिए बढ़ा नशे की झोंक में लहराते हुए पीछे को गिर पड़ा. अपनी अस्मिता पर प्रहार होता देख सुदीपा रणचंडी बन गई. उस में न जाने कहां से इतनी शक्ति आ गई कि त्वरित ताकत से मेज पर रखा चाकू हाथ में ले कर डगमगाते समीर को पूरी शक्ति से बाहर धकेल दिया और बिजली की फुरती से दरवाजा बंद कर लिया. समीर बहुत देर तक दरवाजे पर आवाजें देता रहा, लेकिन उस के कान जैसे बहरे हो चुके थे. वह दरवाजे से लगी फूटफूट कर रोने लगी.

वह स्वयं को संयत कर उठी और कटे पेड़ की भांति पलंग पर गिर पड़ी. बिस्तर पर लेटी तो लगा जैसे समीर की ओछी सोच में लिपटे हाथ लंबे हो कर उस की ओर बढ़ रहे हैं. उस ने घबरा कर आंखे बंद कीं तो समीर की लाल घूरती आंखें देख सूखे पत्तों सी कांपने लगी.

सूरज चढ़ आया था. पूरी रात आंखों में कट गई. वह उस दिन को कोस रही थी जब समीर के साथ उस की सगाई हुई थी. लगाव रूमानियत से भीगे मीठे एहसास का प्रेममयी भाव सोच कर शेखर का चेहरा उस की आंखों के समक्ष तैर उठा. उसे इन दोनों की जेहनी सोचसमझ में जमीनआसमान का फर्क नजर आ रहा था.

मोबाइल की घंटी बजने पर न चाहते हुए भी देखा तो मां का फोन था,”मां खुशी से चहकते हुए बता रही थीं,”बेटा, सुबह तुम्हारे पापा के पास समीर के पापा का फोन आया था. वह इसी महीने शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं. कहते हैं कि अगले माह समीर विदेश जा रहा है. वह जल्दी ही तुम दोनों को विवाह बंधन में बांधना चाहते हैं.”

“नहींनहीं… मां, मैं समीर से शादी नहीं करूंगी. मैं उस की शक्ल भी देखना नहीं चाहती. आप मुझे समीर के साथ विवाह की सूली पर मत टांगना. मैं जी नहीं सकूंगी,” कहतेकहते उस की रुलाई फूट पड़ी.

“क्या बात है बेटा? तुम बहुत परेशान लग रही हो,” मां के स्वर में चिंता झलकने लगी.

“हां मां, यहां बहुत कुछ घटा है,” और
उस ने मां को रात की सारी घटना बता दी,”मां, पत्नी का दिल जीतने के लिए पति के मन में भावनात्मक लगाव होता है. पर समीर केवल वासना का लिजलिजा कीडा़ निकला.उसे बस मेरा जिस्म चाहिए था, जिसे वह जबरदस्ती हासिल कर के अपनी मर्दानगी की मुहर लगाना चाहता था. उसे मेरी खुशियों से कोई सरोकार नहीं है…

“मेरी अपनी मंजिल समीर कभी नहीं हो सकता,” कह कर वह बच्चों की तरह बिलखने लगी.

सारी सचाई जान कर मां की आंखों से समीर के गुणी और लायक वर होने का परदा हट चुका था,”अच्छा सुदीपा… बेटा… तू रोना बंद कर और बिलकुल चिंता मत कर. अच्छा ही हुआ कि हमें उस की औकात शादी से पहले पता चल गई,”मां ने बेटी को धीरज बंधाया,” मैं और पापा आज तुम्हारे पास आ रहे हैं. मैं हूं न… तुम्हारी मां अब सब संभाल लेगी…”

सुदीपा ने इत्मीनान की सांस ले कर फोन रख दिया.

Women Health : पीरियड के ब्लड का रंग भी खोलता है आप की सेहत का राज

Women Health  : कहीं आप को भी ऐसा तो नहीं लगता कि पीरियड (Period)  ब्लड का रंग हमेशा लाल ही होता है. अगर ऐसा है तो आप गलत हैं. पीरियड का रंग हमेशा लाल नहीं होता है, इस के रंग में बदलाव होता है. हर महीने हार्मोन चेंज होने के कारण इस रक्त का टैक्सचर और कलर बदलता रहता है. सब से महत्त्वपूर्ण यह है कि महिलाओं की डाइट, लाइफस्टाइल, उम्र और ऐनवायरमैंट पर भी डिपेंड करता है.

हालांकि, इन्फैक्शन, प्रैगनेंसी और कुछ रेयर मामलों में सर्वाइकल कैंसर की वजह से रक्त के रंग में बदलाव और अनियमित ब्लीडिंग को देखा जा सकता है.

पीरियड्स साइकिल में कई ऐसे बदलाव आते हैं, जिन्‍हें देख कर महिलाएं नजरअंदाज कर देती हैं. इन बदलावों में पीरियड्स में ब्लड कलर का अलग होना, फ्लो ज्‍यादा होना, ऐंठन जैसे बदलाव इस बात का संकेत देते हैं कि कुछ प्रौब्लम ‍हो रही है.

अगर आप गौर करें तो आप को पता चलेगा कि पीरियड ब्लड का रंग गाढ़ा भूरा भी हो सकता है, कला भी हो सकता है और हलका गुलाबी भी. हर रंग का अपना अलग मतलब होता है जो बताता है आप की सेहत के बारे में. आइए, जानें पीरियड ब्लड के किस रंग का क्या मतलब है.

क्यों बदलता है खून का रंग

महिलाओं में अकसर हीमोग्लोबिन की मात्रा कम या ज्यादा होती है और कई बार हीमोग्लोबिन का कम और ज्यादा होना और सही मात्रा में नहीं होना भी ब्लड के रंग में बदलाव का कारण होता है. दरअसल, हीमोग्लोबिन खून में मौजूद एक आयरन से भरपूर घटक होता है और यही शरीर में ब्लड फ्लो के लिए भी जिम्मेदार माना जा सकता है. अब आयरन जैसे ही हवा और पानी के संपर्क में आता है उस में औक्सिडाइजेशन जैसा प्रोसेस होने लगता है. यही कारण है कि हवा और खासतौर पर औक्सीजन के संपर्क में आते ही ब्लड का रंग बदल जाता है.

इस के आलावा प्रैगनेंसी के पहले और बाद में भी ब्लड के रंग में बदलाव आता है. कई बार हम कुछ दवाएं भी खाते हैं जिस की वजह से ब्लड का रंग बदल जाता है.

मेनोपोज के समय में भी ब्लड का रंग बदल जाता है. और भी कई कारण होते हैं ब्लड का रंग बदलने के. इसलिए जरूरी है कि आप भी ध्यान दें कि पीरियड के दिनों में आप के ब्लड का रंग क्या है और अगर कुछ गड़बड़ लगे तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

पीरियड का रंग भी देता है कुछ संकेत

आमतौर पर आप को यही लगता होगा कि आप के पीरियड ब्लड का रंग लाल ही है, पर अगर आप कभी इस बात पर गौर करें तो आप को पता चलेगा कि पीरियड ब्लड का रंग गाढ़ा भूरा भी हो सकता है और हलका गुलाबी भी। आमतौर पर शुरुआती दिनों में खून का रंग गाढ़ा होता है और अंत के दिनों में हलका. कई बार यह काला भी हो सकता है.

गाढ़ा ब्लड फ्लो : विशेषज्ञों के अनुसार अगर किसी महिला को गाढ़े रंग का फ्लो होता है तो इस का मतलब है कि जननांग से ब्लड का फ्लो बहुत ही धीरे और हलका है. वहीं अगर यह रंग गाढ़ा भूरा हो तो इस का मतलब है कि फ्लो हो रहा खून पुराना है, जो काफी समय से गर्भाशय में संग्रहित हो रहा होगा और जिस का अब फ्लो हो रहा है। ज्यादातर ऐसा फ्लो सुबह के समय होता है.

काला रंग का ब्लड : अगर आप का ब्लड फ्लो काला है तो यह खतरे की निशानी है। काला रंग के ब्लड का मतलब है एक लंबी अवधि के बाद यूट्रस में से रक्त निकला है, इसलिए यह ज्यादा औक्सिडाइज्ड होता है. यह आमतौर पर ऐसी औरतों में देखा जाता है, जिन के पीरियड्स नियमित तौर पर नहीं आते. पीरियड्स मिस होने की वजह से उन के यूट्रस में खून इकट्ठा हो जाता है और जब वह बाहर आता है, तो वह ब्लैक कलर का दिखता है.

काला ब्लड का मतलब होता है कि आप के गर्भाशय में संक्रमण है या मिसकैरेज हुआ है.

अगर आप को पूरी साइकल के दौरान काला रंग का ब्लड फ्लो हुआ है तो आप को तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. हालांकि अगर काला रंग का पीरियड ब्लड चौथे दिन पर आए और उस में हलका लाल रंग भी मिक्स हो तो यह नौर्मल होता है.

डार्क रैड रंग का ब्लड : लाल और गाढ़ा लाल रंग खून हैल्दी पीरियड का संकेत देता है. अगर पीरियड के दौरान आ रहा खून डार्क रैड है तो इस का मतलब यह है कि वह बिलकुल ताजा है. ऐसे रंग का खून पीरियड के शुरुआती दिनों में या फिर आमतौर पर पीरियड के दूसरे दिन ऐसा फ्लो होता है, जब हैवी ब्लीडिंग होती है.

गहरे लाल थक्के : कई बार पीरियड्स में गहरे लाल रंग के थक्के आते हैं। पीरियड्स के दौरान यूट्रस के अंदर की परत निकल जाती है, तो सामान्य आकार के थक्के तो होते ही हैं लेकिन यदि यही थक्का काफी बड़े आकार में हो तो यह हार्मोन असंतुलन का कारण भी हो सकता है।

नारंगी रंग का ब्लड : जब खून गर्भाशय के ऊपरी हिस्से के तरल के साथ मिल कर फ्लो होता है तो इस का रंग नारंगी होता है। पर इसे हलके में लेना सही नहीं होगा। यह किसी संक्रमण का संकेत हो सकता है। दरअसल, पीरियड में इस रंग का खून तभी आता है जब किसी दूसरे स्राव के साथ खून का मिश्रण हो।

गुलाबी रंग का ब्लड : पीरियड के दौरान गुलाबी रंग का खून आ रहा है, तो इस का मतलब है कि आप पौष्टिक आहार नहीं ले रही हैं या फिर आप का ऐस्ट्रोजन लेवल कम है।

ब्राउन कलर का ब्लड : यह ब्लड अकसर पीरियड के खत्म होने वाले दिनों में आता है, जब आप का खून पुराना हो जाता है. यह एकदम नौर्मल है. इस में चिंता की कोई बात नहीं है. मगर एक बात का ध्यान जरूर रखें कि अगर इस खून के साथ आप को दर्द या ब्लड क्लौटिंग होता है तो यह इस बात की तरफ इशारा करता है कि शायद आप को इन्फैक्शन हो गया है। ऐसे में आप को डाक्टर को दिखना चाहिए.

औरेंज रंग का ब्लड : यदि आप अपने पीरियड्स के दौरान औरेंज रंग का ब्लड देखते हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि वेजाइना में इन्फैक्शन, सैक्सुअल ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन (एसटीआई) या किसी अन्य बैक्टीरिया के इन्फैक्शन के होने का। शायद इस रक्त में आप को कुछ अजीब सी महक भी आए। आप को ऐसा होने पर जरूर अपनी गाइनोकोलौजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए और उन के कहे अनुसार अपना ट्रीटमैंट करवाना चाहिए।

ग्रे ब्लड : ग्रे डिस्चार्ज आमतौर पर बैक्टीरियल वैजिनोसिस का संकेत है। यह प्राइवेट पार्ट में बैक्टीरिया के बीच असंतुलन के कारण होता है. बैक्टीरियल वैजिनोसिस के अन्य लक्षण इस तरह हैं- वेजाइना में और उस के आसपास खुजली, दुर्गंधयुक्त गंध, जलन या दर्द. अगर आप में भी ऐसे ही कुछ लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो डाक्टर से सलाह लें.

ब्राइट रैड : अगर आप के पीरियड का रंग चमकीला लाल है तो यह एक अच्छा संकेत है. इस से यह भी पता लगता है कि आप की प्रतिरक्षा प्रणाली और पाचनतंत्र मजबूत है.

डाक्टर को कब दिखाएं

अगर आप ने पीरियड्स के दौरान ब्लड फ्लो को लाल के अलावा किसी और रंग का देखा हो, तो भी समय आ गया है कि आप अपने डाक्टर से परामर्श करें। अपनी गाइनोकोलौजिस्ट से मिलें और बताएं कि आप के पीरियड ब्लड का कलर चैंज हो गया है. इस के बाद वह चैक करेगी और कुछ टेस्ट आदि करवा कर पता लगाएगी कि यह हमारी शरीर में पनप रही किसी बड़ी बीमारी का संकेत तो नहीं है.

Online Best Kahani : सुबह अभी हुई नहीं थी

Online Best Kahani : सूरज निकलने में अभी कुछ वक्त और था. रात के कालेपन और सुबह के उजालेपन के बीच जो धूसर होता है वह अपने चरम पर चमक रहा था. चारों तरफ एक सर्द खामोशी छाई हुई थी. इस मुरदा सी खामोशी का हनन तब हुआ जब मीनल एकाएक हड़बड़ा कर उठ बैठी. वह कुछ इस तरह कांप रही थी जैसे उस के शरीर के भीतर बिजली सी कौंधी हो. उस की सांसें लगभग दौड़ रही थीं.

अपने आसपास देख उसे कुछ राहत हुई और उस ने तसल्ली जैसी किसी चीज की ठंडी आह भरी. वह एक बुरा सपना था. उसे अपने सपने पर खीज हो आई. ज्यादा खीज शायद इस बाबत कि आज भी कोई बुरा सपना आने पर वह बच्चों सी सहम जाती है. उस ने घड़ी की और देखा तो एक नई निराशा ने उसे घेर लिया. वह घंटों का जोड़भाग करती कि उसे याद हो आया की कमरे में वह अकेली नहीं है. उसे हैरत हुई कि जो कुछ सामने हो उसे कितनी आसानी से भूला जा सकता है. वह धीमे कदमों से हौल की तरफ बढ़ी. उसे यह देख राहत हुई की उस की हलचल से रजत की नींद में कोई खलल नहीं पड़ा था.

वह अपना सपना भूल एकटक रजत को निहारने लगी. जिसे आप प्रेम करते हों उसे चैन से सोते हुए देखना भी अपनेआप में एक बहुत बड़ा सुख होता है. वह खड़ी हुई और धीमे कदमों से, पूरी सावधानी बरतते हुए ताकि कोई शोर न हो, कमरे में टहलने लगी. अनायास ही कांच की लंबी खिड़की के सामने आ कर उस के कदम ठिठक गए. उस की नजर कांच की लंबी खिड़की से बाहर पड़ी तो उस की आखों में जादू भर आया.

खूब घने पाइन और देवदार के पेड़. हर जगह बर्फ और धीमी पड़ती बर्फबारी. दूर शून्य में दिखती हुई पहाड़ों की एक धुंधली सी परछाई. उसे ऐसा लग रहा था जैसे यह लैंडस्केप वास्तविकता में न हो कर किसी महान चित्रकार की उस के सामने की गई कोई पेंटिंग हो. यह नायाब नजारा धीरेधीरे उस के भीतर उतरने लगा.

अब उस के और इस अद्भुत नजारे के बीच बस कांच का एक टुकड़ा था, जैसे वह अपनी पूरी ताकत लगा बाहर की दुनिया के खुलेपन को मीनल के भीतर के बंद से मैला होने से बचाने की जद्दोजेहद में हो. मीनल को लगा जैसे उस की अपनी इस दुनिया से केवल 2 कदम दूर कोई दूसरी, बहुत ही खूबसूरत दुनिया बसती है, जैसे पहली बार उस की अपनी दुनिया और वह जिस दुनिया में होना चाहती है उन के बीच एक ऐसा फासला है जिसे वह सचमुच तय कर सकती है. उस ने मन ही मन कुछ निश्चय किया और शायद वहीं कुछ एक चिट में लिख शीशे पर चिपका कर और ठंड के मुताबिक कपड़े पहन अपने कमरे से बाहर आ गई.

मीनल को इस वक्त कोई जल्दी नहीं थी. वह बर्फ की फिसलन से बचते हुए, धीमे और सधे कदमों से आगे बढ़ने लगी. उस का बस चलता तो वह वक्त की धार को रोक इसी पल में सिमट जाती. शायद वह खुद को पूरा सोख लेना चाहती थी.

चलतेचलते उसे लगा कि यह वही समय है जब सबकुछ बहुत दूर नजर आता है, हमारी पहुंच से बिलकुल बाहर. रह जाते हैं केवल हम और बच जाता है हमारा नितांत अकेलापन या मीठा एकांत. वही समय है जो हमें परत दर परत खोलते हुए खुद ही के सामने उधेड़ कर रख देता है. हम अपने भीतर झांकते हैं, साहस से या किसी मजबूरीवश और खुद को आरपार देखते हैं.

पहले घड़ी देखने के बाद जो घंटों का हिसाब करना रह गया था, वह अब सालों के हिसाब का रूप ले चुका था. शायद सच ही है, जो कुछ भी हम सोचते हैं, करते हैं वह हम तक वापस लौटता है और वह भी इसी जीवन में.

मीनल चलते हुए बहुत दूर जा पहुंची थी और अब आसपास कोई जगह देखने लगी थी. जिस जगह वह बैठी वहां से दूर की पहाड़ियां भी एकदम साफ दिख रही थीं. शायद इसलिए ही उस ने यह जगह चुनी. उसे पहाड़ों से एक लगाव हमेशा से रहा था.

दूर पहाड़ियों की चोटियों पर पड़ी बर्फ की सफेद चादर उसे इस कदर आकर्षित करने लगी कि उस ने वह बर्फ नजदीक से देखने की जगह अगले जन्म बर्फ की चादर हो जाने की कामना की. होने को तो जिस पगडंडी पर चल कर वह इस जगह तक आई थी ढेर सारा बर्फ वहां भी जमा था, लेकिन उस की सतह से वह साफ सफेद होने की जगह धूल से मटमैली हो दागदार सी प्रतीत होती थी. यही कारण रहा होगा जिस की वजह से इस बर्फ ने उसे इस कदर प्रभावित नहीं किया. न ही उस ने इस बर्फ से गोले बना हाथों से कुछ खेलने की कोशिश की और न ही इस की छुअन के ठंडेपन को महसूस तक किया. वह उस के होने को जैसे नकार कर बिना कोई दिलचस्पी दिखाए आगे बढ़ती गई थी.

शायद जब हम किसी चीज को दूर से देखते हैं तो उस अनजान के झुरमुट में भी कुछ सुखद होने की आशा ही हमें विस्मित करती है. जब तक हम उस अनजान को नहीं जानते और उस के पास नहीं पहुंच जाते हमारा यह भ्रम बना रहता है और जैसे ही हम उस अनजान के नजदीक पहुंचते हैं हमारा यह भ्रम कुछ यों बिखरता है मानों भीतर बहुत कुछ टूट गया हो, ऐसा टूट जो किसी की नजर में आने का मोहताज नहीं होता. जिस टूट को केवल हम देख सकते हैं, जिस की पीड़ा केवल और केवल हम खुद महसूस कर सकते हैं.

पहाड़ों के सौंदर्य और सुनहले पुराने दिनों के बीच जरूर कोई अदृश्य लेकिन घनिष्ठ रिश्ता होता है, एक ऐसा रिश्ता जिस में कभी गांठें नहीं पड़तीं. मीनल को भी पहाड़ों की गोद में बैठ बीते किस्से याद हो आए. जीवन भले ही गंदे पानी के तलाब की तरह ही क्यों न रहा हो, उस गंदे से गंदे कीचड़ के बीच भी कुछ हसीन यादें दिलकश कमल की तरह उग आती हैं और यादें भी वे जिन के गुजरते वक्त हम अनुमान भी नहीं लगा सकते कि ये हमारे जेहन का हिस्सा बन हमारे अंत तक साथ रहेंगी और जिन से लिपट कर हम अपना सारा जीवन गुजार देना चाहेंगे.

याद आए किस्से अमूमन किसी बीते हुए प्रेम के होने चाहिए थे, किसी प्रेमी के होने चाहिए थे. लेकिन बादलों में मीनल को जो आकृति दिखाई दी वह बड़की दीदी की थी. उस ने एक गहरी सांस अंदर खींची और कस कर आंखें भींच लीं लेकिन इस के बाद भी पलकों के घने अंधेरेपन में जब बड़की दीदी नजर आईं तो वह कुछ कांप गई. उस ने कुछ धीरे से आंखें खोलीं.
यों बड़की दीदी को याद करने की कोई खास वजह नहीं थी. और इस वक्त तो बिलकुल भी नहीं. पर शायद हमारी जिंदगी के कुछ चुनिंदा खास लोग हमें इसी तरह याद आते हैं, बेवजह और बेवक्त.

बड़की दीदी से उस की 1 अरसे से मुलाकात नहीं हुई है. उसे अचरज हुआ कि इतना समय बीत जाने पर भी उन की छोड़ी छाप अमिट थी. बीते हुए दिन और ज्यादा पुरजोर तरीके से उस के सामने तैरने लगे थे. अतीत और वर्तमान के बीच की रेखा मद्धिम होती हुई एकदम धुंधली पड़ चुकी थी. वह बड़की दीदी को घर की कोई बात बता रही थी. जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जिस के लिए मां ने उसे कहा होगा कि यह किसी को मत कहना. हर परिवार के अपने कुछ राज होते हैं. लेकिन बड़की दीदी भी तो उस परिवार में शामिल थीं. बड़की दीदी को वह बात कहते हुए उस की आवाज में कोई संकोच नहीं था और न ही कोई लागलपेट थी. वह बेधड़क हो धड़ल्ले से बोल रही थी.

बड़की दीदी एकमात्र इंसान थीं जिन के सामने वह अपनी हर बात रख सकती थी. जिन के सामने वह खुल कर रो सकती थी और जिंदगी में किसी ऐसे इंसान का होना जिस के सामने आप खुल कर रो सकें, किसी वरदान से कम नहीं हुआ करता.

एक बार उस ने बड़की दीदी से कहा था,”काश, इंसान ने कोई ऐसी वाशिंग मशीन भी बनाई होती जिस में मैले हुए रिश्तों को चमकाया जा सकता, उस के सारे दागधब्बे साफ किए जा सकते और सारी गिरहें खोली जा सकतीं…”

बड़की दीदी उस से सहमत नहीं थीं. उन्होंने कहा था,”बिना गिरहों का रिश्ता कभी मुकम्मल नहीं होता. जब तक 2 लोग उन गिरहों को खोलने का खुद तकल्लुफ न उठाएं या उन गिरहों के साथ भी अपने रिश्तों को न सहेज पाएं वह रिश्ता मुकम्मल कैसे होगा…”

कई बार मीनल ने सोचा था कि बड़की दीदी उन के रिश्ते की गिरहें खोलने का प्रयास क्यों नहीं करतीं? पर उन के रिश्ते में दूरियां किस दिन या किस बाबत आईं इस पर ठीकठीक उंगली रखना मुमकिन नहीं है. कई बार रिश्तों में किसी की कोई गलती नहीं होती, वह रिश्ता धीरेधीरे स्वयं खोखला हो जाता है या समय की बली चढ़ जाता है. क्या प्रयास कर एक मरे हुए रिश्ते को जिंदा किया जा सकता है…

मीनल ने खुद को झंझोरा,’बड़की दीदी कहां सोचती होंगी मेरे बारे में, कहां मुझे याद करती होंगी? इतने सालों में एक फोन नहीं, एक मैसेज नहीं. क्या उन्हें कभी मेरी कमी महसूस नहीं हुई? मैं कैसी हूं यह जानने की इच्छा नहीं हुई? इतनी खट्टीमीठी स्मृतियां, साथ बिताए साल क्या सबकुछ… ‘

सवाल खुद से था, तो जवाब भी खुद ही देना था,’लेकिन मैं ने भी कहां किया उन से संपर्क? शायद उन्होंने भी कई दफा सोचा हो पर न कर सकी हों. अकसर रोजमर्रा की जिम्मेदारियां पुराने रिश्तों पर हावी हो जाया करती हैं…’ उस ने खुद ही को समझाने की कोशिश की.

उस ने अपने फोन में वह मैसेज खोला, जो वह लिख कर कई बार पढ़ चुकी है. वह मैसेज जो उस ने बड़की दीदी को लिखा तो था लेकिन कभी भेज नहीं सकी. वह यह सब सोचते हुए बर्फ में ही लेट गई. फिर अचानक लगा कि वह कुछ निश्चय करती इतने मे उसे रजत की आवाज करीब आती सुनाई दी,”मीनल, यह क्या… तुम्हारी सफेद जैकेट तो धूल में सन गई है. चलो, अब जल्दी इसे बदल लो फिर घूमने भी जाना है…”

Resorts में जाना यूथ की खास पसंद, मुंबई के ये प्लेसेस हैं बैस्ट औप्शन

Resorts : अगर आप पहले कभी किसी रिजौर्ट में नहीं गए हैं, तो आप को अपनी अगली छुट्टी पर इसे आजमाना चाहिए. ऐसे कई कारण हैं, जिन की वजह से लोग दूसरे तरह के आवासों की तुलना में रिजौर्ट को प्राथमिकता देने लगे हैं और हाल के वर्षों में यहां परिवार के साथ जाना तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.

इस के अलावा रिजौर्ट में रहने का खर्च होटल में रहने के बराबर या उस से कम में भी हो सकता है, जो आप के लिए पौकेट फ्रैंडली होता है.

शहरों से निकल कर शांत वातावरण में प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेना ही रिजौर्ट्स की खूबी होती है. इसलिए आजकल अधिकतर यूथ छुट्टियों का आनंद लेने के लिए रिजौर्ट जाने का प्लान बनाते हैं, जो कई बार परिवार या दोस्तों के संग करते हैं.

किसी रिजौर्ट में ठहरने का सब से बड़ा लाभ वहां का एक अलग अनुभव प्राप्त करना होता है. किसी सामान्य होटल में ठहर कर ऐसा अनुभव आप प्राप्त नहीं कर सकते, जैसा रिजौर्ट में जाने से होता है.

रिजौर्ट का वातावरण और डिजाइन होटल से अलग, साफसुथरा और अलग होता है, जहां कई प्रकार के मनोरंजन के साधन होते हैं. हर रिजौर्ट की अपनी एक अलग खूबी होती है, मसलन पहाड़ियों में स्थित रिजौर्ट हो या समुद्रतट पर, हर स्थान का अनुभव शानदार और अनोखा होता है.

इस बारे में तपोला के ओंकार ऐग्रो टूरिज्म ऐंड रिजौर्ट के गणेश उतेनकर कहते हैं कि आजकल छुट्टियों में 2-3 दिनों के लिए रिजौर्ट में जाना एक ट्रैंड बन चुका है, जिस में यूथ और कोरपोरेट वालों की संख्या सब से अधिक होती है, क्योंकि मुंबई जैसे बड़े, भीड़भाड़ वाले शहर में काम करने वाले शहर से दूर लोग एकांत की तलाश करते हैं। ऐसे में उन के 2 से 3 दिन इन रिजौर्ट्स में रहना पसंद होता है.

यही वजह है कि मुंबई के आसपास कई रिजौर्ट्स हैं, जहां कुछ समय आराम से बिताया जा सकता है.

समय के साथ बदली है सोच

रिजौर्ट्स की पौपुलैरिटी के बारे में गणेश का कहना है कि सालों पहले लोग एकदूसरे के रिश्तेदार के पास जाते थे। समय के साथसाथ इस में बदलाव आया है, लोग अब किसी के घर पर जाना पसंद नहीं करते. इस की वजह से मोटेल और होटल प्रचलित हुआ, लेकिन अब बड़ेबड़े हाइवे बनने से रिजौर्ट्स का निर्माण होने लगा. रिजौर्ट में होटल के अनुभव के साथसाथ गांव के परिवेश को लोग पसंद करने लगे हैं. इन रिजौर्ट्स को बनाने में काफी जगह की जरूरत होती है, इसलिए ये मुंबई से दूर लोनावाला, सातारा, खंडाला आदि स्थानों पर अधिक है, जहां व्यक्ति सड़क परिवहन से जा सकता है.

सभी विकल्प एक स्थान पर

रिजौर्ट में आजकल एकसाथ सभी विकल्प को मुहैया करवाया जाता है, जिस में कई प्रकार के ऐडवैंचर्स के साथसाथ कई ऐक्टिविटीज का प्रचलन होने लगा है, मसलन एक अच्छा गार्डन, स्विमिंग पुल, खेल की कई सुविधाएं, लंच, डिनर की सुविधा, बच्चों के लिए आकर्षक स्पोर्ट्स, अच्छे रूम्स आदि होते हैं, जिस में व्यक्ति अपनी बजट के अनुसार रह सकता है.

आराम और सुविधा

रिजौर्ट्स आप के आराम और सुविधा के लिए सिंगलरूम, डबलरूम और फैमिलीरूम प्रदान करते हैं. इस के अलावा आप एक विला किराए पर ले सकते हैं, जिस में आकार के आधार पर 6 या उस से अधिक लोगों को समायोजित किया जा सकता है. कई बार इन जगहों पर रसोईघर भी शामिल होते हैं, जहां आप अपने पसंद का कुछ भी बना कर खा सकते हैं.

अच्छी वैलनैस और ऐडवैंचर फैसिलिटी

रिजौर्ट में रहने का एक और मजेदार लाभ यह भी है कि यहां कई तरह की ऐक्टिविटीज जो आम जनजीवन से अलग हो देखने को मिलता है, जिस में आप स्पा में आराम करते हुए दिन बिता सकते हैं. इस के अलावा किसी खूबसूरत झील में मछली पकड़ सकते हैं, वाटर स्पोर्ट्स में कायाकिंग कर सकते हैं या पहाड़ों पर ट्रैकिंग भी कर सकते हैं, जो आप की छुट्टियों को अधिक यादगार बना सकता है.

ऐग्रो बेस्ड फूड की है खास डिमांड

रिजौर्ट में खाने पर भी काफी फोकस देखा गया है, जिस में वे उस स्थान की ट्रैडिशनल और औथेंटिक फूड को खाना अधिक पसंद करते हैं, जो कैमिकल फ्री उगाया जाता है.

गणेश कहते हैं कि अधितर ऐग्रो बेस्ड रिजौर्ट में आसपास में उगाए गए फल और सब्जी का प्रयोग से व्यंजन बनाया जाता है, जो अधिकतर महराष्ट्रीयन व्यंजन होते हैं। इस से पर्यटकों को एक ओरिजिनल स्वाद के साथसाथ वहां की कल्चर का अनुभव होता है, जो उन्हें शहरी वातावरण से अच्छा फील कराता है.

बाहर जाने की जरूरत नहीं

वहां कोई टैक्सी, बस या सवारी की आवश्यकता नहीं पड़ती। जरूरत की सारी चीजें आप को रिजौर्ट में ही मिल जाती हैं, जिस से आप शांति से छुट्टियों को ऐंजौय कर सकते हैं.

सभी के लिए मनोरंजन

चूंकि ये रिजौर्ट्स परिवारों और कोरपोरेट सभी के लिए हैं, इसलिए यहां बच्चों, यूथ और वयस्कों आदि सभी के लिए कई तरह की ऐक्टिविटीज होती हैं. पूरी यात्रा के दौरान रिजौर्ट में रहते हुए व्यक्ति कभी बोर नहीं होता.

सुरक्षा और गोपनीयता

कुछ लोग अपनी छुट्टियां रिजौर्ट में बिताना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे जहां भी जाएंगे, सुरक्षित रहेंगे. सभी रिजौर्ट्स सभी प्रकार के आपराधिक व्यवहार को रोकने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं. छुट्टियां मनाने वालों को रिजौर्ट्स इसलिए पसंद आते हैं क्योंकि वे पर्याप्त एकांत प्रदान करते हैं.

देखभाल व सुविधाएं

कुछ रिजौर्ट्स के भीतर सभी उम्र के बच्चों के लिए विभिन्न गतिविधियों के साथ डे कैंप सेवाएं मौजूद होते हैं, जिस से उनके पेरैंट्स को आराम और तनावमुक्त होने का एक शानदार अवसर मिलता है.

रिजौर्ट में जाने से पहले जाने कुछ जरूरी बातें :

• जब भी आप किसी रिजौर्ट में जाएं, तो वहां की सारी जानकारी औनलाइन देख लें.

• उस की रिव्यूज को अच्छी तरह से पढ़ लें.

• अपनी डिटेल्स किसी अनजान व्यक्ति के साथ साझा न करें.

• रिजौर्ट स्टाफ की पहचान कर लें.

• अपने साथ आवश्यक चीजें जैसे मेडिसीन, फर्स्टएड किट और व्यक्तिगत स्वच्छता के सामान रख लें.

किसी भी तरह की परेशानी या समस्या होने पर तत्काल रिजौर्ट मैनेजमैंट से संपर्क करना न भूलें आदि.

इस प्रकार रिजौर्ट कल्चर आजकल काफी पौपुलर है, लेकिन वहां के परिवेश का आनंद आप तभी उठा सकते हैं, जब आप वहां पर खाने या रहने की कुछ कमियों को नजरअंदाज करें और अपने परिवार या दोस्तों के साथ उस अनमोल समय का आनंद उठाएं.

मुंबई के आसपास के कुछ खास रिजौर्ट्स :

* द रिजौर्ट मड आइलैंड
* पाल्म्स ऐवेन्यू रिजौर्ट, अलीबाग
रैड एप्पल रिट्रीट, पनवेल
* द फर्न, लोनावला
* किन्नी फौर्महाउस ऐंड रिजौर्ट्स, मनोरी
* शंग्रीला रिजौर्ट वाटर पार्क.

Monsoon 2025 : इस मौनसून पति के साथ काम बांटें, प्यार बढ़ाएं…

Monsoon 2025 :  हर मौसम के हिसाब से किचन में मसालों, दालसब्जियों को अपडेट करना, किचन की सफाई करना जैसे बहुत से काम हैं जिन को गिना नहीं जाता. ‘किचन का काम तो बस औरतों के लिए है और इन में वक्त ही कितना लगता है…’ सोच कर कोई भी उन की मदद के लिए आगे नहीं आता. अव्वल तो यह कि औरतें ही औरतों के कामों को नकार देती हैं.

लेकिन अब वक्त आ गया है कि महिलाएं घर के कामों में अपने पति को भी जिम्मेदारी दें. आखिर कब तक बिस्तर या सोफे पर पसरते हुए पति चायपकौड़ों का और्डर पास करते रहेंगे और आप अकेली झेलती रहेंगी?

मौनसून सिर पर है और उस के साथ ही आती है नमी, सीलन, फफूंदी, और किचन में बिन बुलाए मेहमान तिलचट्टे और कीड़ेमकोड़े.

दालें सीलन से खराब न हों, मसाले महकते रहें, सब्जियां सड़ें नहीं इन सब का इंतजाम करना कोई आसान काम नहीं.

अब जब पति को क्रिकेट के मौसम में चाय टाइम पर चाहिए, तो क्या उन्हें यह नहीं पता होना चाहिए कि चायपत्ती किस डब्बे में है और इलायची कहां है?

साथी हाथ बढ़ाना

पति के लिए काम की बातें :

● किचन की डीप क्लीनिंग, फर्श से ले कर अलमारी तक.

● पुराने मसाले, दालें बाहर निकालें और लिस्ट बनाएं नई खरीदारी की.

● एअरटाइट कंटेनर में भरें दाल और मसाले, ताकि नमी न रहे.

● सब्जियों की खरीदारी में साथ जाएं और साथ में बारिश का मजा पतिपत्नी साथ लें.

और हां, अगर पति महाशय कहें कि हमें नहीं आता यह सब, तो आप मुसकराते हुए कहिए,”तो सीखने की कोशिश करिए न… शादी सिर्फ साथ जीनेमरने का वादा नहीं, साथ मिल कर झाड़ूपोंछा करने का करार भी है और फिर यह घर अकेले औरत का तो नहीं. जो इस में रह रहे हैं, उन सब की जिम्मेदारी है कि सब मिल कर काम में हाथ बटाएं.

तो फिर तैयार हैं न आप मौनसून मिशन हसबैंड लौंच करने के लिए?

कॉलर ट्यून में Amitabh Bachchan की आवाज सुनकर परेशान हुए लोग, सोशल मीडिया पर बिग बी हुए ट्रोल

Amitabh Bachchan : सेलिब्रिटीज की सबसे बड़ी मुसीबत होती है जबकि उनको वह काम भी करने पड़ते हैं जो शायद वह करने के इच्छुक ना हो लेकिन देश और समाज के हित के नाम पर एक्टर्स को बहुत कुछ ऐसा करना पड़ता है जो कि समाज कल्याण के लिए होता है.

इसी के चलते दमदार आवाज के मालिक बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन को जन कल्याण के कार्यों के लिए अपनी आवाज देनी पड़ती है. जैसे कि काफी सालों से पोलियो की दो जिंदगी के लिए , पोलियो से बच्चों को बचाने के लिए जनहित में जारी मैसेज अमिताभ बच्चन अपनी आवाज में हमेशा से देते रहे हैं.

इसी तरह हाल ही में फोन के कॉलर ट्यून में फ्रॉड कॉल्स को लेकर सचेत करने के लिए अमिताभ बच्चन द्वारा बोली गई बातों को लेकर जो की जनता को सचेत करने के लिए बोली गई है, ताकि जनता किसी फ्रॉड के जाल में न फंसे . लेकिन अमित जी की आवाज में बोला गया यह कॉलर ट्यून इतना लंबा है कि लोग इस वजह से परेशान होने लगे हैं , मुसीबत तब हो जाती है, जबकि किसी को इमरजेंसी कॉल करना पड़ता है , ऐसे में लंबे कॉलर ट्यून मैसेज की वजह से लोग भड़कने लगे हैं.

अमिताभ बच्चन ट्विटर पर हमेशा अपने फैंस के संपर्क में रहते हैं और कुछ ना कुछ पोस्ट करते रहते हैं , इस दौरान ट्विटर पर कई हेटर्स ने अमिताभ बच्चन को भला बुरा कहना शुरू कर दिया, कुछ लोगों को तो अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर नजर अंदाज किया, लेकिन कुछ लोगों ने जब ट्विटर पर यह लिखना शुरू किया कि फोन पर बोलना बंद करो भाई, हम परेशान हो गए हैं, तो ऐसे हेटर को जवाब देते हुए अमित जी ने कहा सरकार से बोलो भाई , मैं उन्हीं के कहने पर यह काम कर रहा हूं, ज्यादातर तो अमित जी हेटर्स को जवाब नहीं देते , लेकिन बदतमीजी से बात करने वाले लोगों को अपने स्टाइल में कड़क जवाब देकर बोलती बंद करवाना भी जानते हैं.

क्योंकि कुछ लोग हर बात पर एक्टर्स को निशाना बनाते हैं ताकि लोग उन पर ध्यान दें फिर चाहे एक्टर अच्छा ट्वीट करें या बुरा ,हेटर्स उनको निशाना बनाना नहीं छोड़ते, फिर चाहे वह पहलगाम अटैक के दौरान अमित जी का ट्वीट ना करना हो, या किसी बात को लेकर अच्छा ट्वीट करना ही क्यों ना हो , आजकल सोशल मीडिया के माध्यम से 83 वर्षीय अमिताभ बच्चन के साथ भी ऐसे नकारात्मक लोग घटिया बातें करने से नहीं चूकते.

अमिताभ बच्चन तो ऐसे लोगों को भी जवाब देना जानते हैं, ऐसे बदतमीज और बेकार लोगों की वजह से कई कलाकार अपना ट्विटर अकाउंट बंद कर चुके हैं. क्योंकि आज के समय में लोग तारीफ कम गालियां ज्यादा देते हैं, फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन द्वारा किया गया जनहित में जारी काम ही क्यों ना हो.

वोटों की खातिर सिंदूर की बात

Women Empowerment : नीति आयोग की एक मीटिंग में प्रधानमंत्री ने बड़ी शान से कह तो दिया है कि नारी शक्ति का इस्तेमाल करने की पौलिसियां केंद्र व राज्य सरकारों को बनानी चाहिए पर उन की खुद की पार्टी रातदिन हिंदूहिंदू और पूजापूजा कर के औरतों को एक बार फिर मंदिरों में कलश ढोने, घंटों यूजलैस पूजा पर बैठने, दिनों और सप्ताहों तक चलने वाले धार्मिक प्रवचनों, कथाओं या व्रतों की ओर धकेल रही है.

हर नया मंदिर अगर बनता है तो नए ग्राहकों में औरतें ही ज्यादा होती हैं और वे ही मंदिर के पुजारी का घर भरती हैं, पुजारी को रेशमी कपड़े पहनाती हैं, चंदा देदे कर अपना घर खाली करती हैं और मंदिर की हुंडी भरती हैं.

भारत कहने को तो चौथी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है पर जिस देश में हर व्यक्ति की आय मात्र 2,500 डौलर हो, जो अमेरिकी आदमी से 30 गुना कम हो, जिस देश में 84 करोड़ में से आधी औरतें 5 किलोग्राम अनाज सरकार से मुफ्त पाती हों वहां कैसी नारी शक्ति होगी? जहां हर औरत को न केवल पति और बच्चों की देखभाल के लिए धकेल दिया जाता है, उसे मीलों पूजापाठ पर चलने को मजबूर किया जाता हो कि वह पूजा कर के घर की खुशी को भगवान से मांग कर लाए, वहां कैसा चौथा स्थान होगा?

औरतें आज ज्यादा दोहरा बोझ ढो रही हैं. कहीं से नजर नहीं आ रहा कि औरतें पिता या पति की गुलामी से निकली हैं, कहीं से नजर नहीं आ रहा कि वे तुलसीदास की तरह ढोल और पशु की तरह पीटी नहीं जा रहीं. कारखानों या दफ्तरों में काम करने वाली ज्यादातर औरतों की कमाई पति, पिता या भाई हथिया लेते हैं. कारखानों और दफ्तरों में काम करते हुए भी उन्हें घर का काम भी उसी तरह करना पड़ रहा है जैसा पहले कम पढ़ीलिखी औरतें कर रही थीं.

इस का सुबूत है कि आज भी लड़कियों के कमाऊ होते हुए भी भारी दहेज देना पड़ रहा है. तलाक के हर मामले में पत्नी यही कहती है कि उस के मांबाप ने भारी दहेज दिया था जो तलाक पर उसे लौटाया जाए.

लड़कियों को आज भी घर से निकलते समय डर लगता है कि लफंगे उन्हें छेड़ न दें. खुलेआम रेप करने की धमकियां दी जाती हैं. विदेश सचिव विक्रम मिस्री को भारतपाक युद्ध ने अचानक बिना लाहौर और कराची पर कब्जा किए बंद करने का दोषी ठहराया गया तो कट्टरपंथियों ने ही उन की बेटियों तक को रेप करने की धमकी दे डाली जबकि वे केवल सरकार की तरफ से बयान दे रहे थे, सूचनाएं दे रहे थे, नीति निर्धारक या डिसीजन मेकर नहीं थे. पुलिस ने औनलाइन धमकी देने वालों में से एक को भी नहीं पकड़ा.

आज भी सरकार वोटों की खातिर औरतों के मंगलसूत्र और सिंदूर की बात करती है और दोनों ही औरतों की गुलामी, पति की प्रौपर्टी होने की निशानियां हैं, कोई बड़े काम करने के मैडल नहीं.

आज सरकार कहीं भी अकेली लड़कियों के लिए सेफ रहने की जगह नहीं बनवा पा रही, उन से घर से बाहर निकलने पर सेफ रहने का वादा नहीं कर पा रही, उन के लिए घर से काम तक जाने के लिए सेफ व आरामदेह ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था नहीं कर पा रही. ऐसे में औरतें काम की जगह पर जाएंगी तो अपने मन से नहीं, अपनी पर्सनैलिटी सुधारने के लिए नहीं, अपनी हैसीयत सुदृढ़ करने के लिए नहीं, मजबूरी में सिर्फ क्योंकि मांबाप या पति कहते हैं कि तुम्हारी पढ़ाई पर खर्च किया है तो कमा कर लाओ, किसी तरह उस खर्च को पूरा करो.

सरकारें गाल बजाना तो खूब जानती हैं पर उन की असली इच्छा तो यही है कि वे औरतें ऋषियोंमुनियों की सेवा करती रहें जैसे उन पुराणों में लिखा है जिन को नरेंद्र मोदी समेत सभी सरकारी नेता रोज दोहराते हैं. इन पौराणिक ग्रंथों में औरतों को सिर्फ और सिर्फ गुलाम माना गया है और हम इन्हीं ग्रंथों को संविधान और कानूनों में बदलने की हर कोशिश कर रहे हैं.

Knee Pain Causes : मैं लंबे समय से घुटनों के पुराने दर्द से पीड़ित हूं, क्या करूं?

Knee Pain Causes : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

क्या आप बदलते मौसम में घुटनों को नुकसान से बचाने के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव का सुझाव दे सकते हैं? मैं एक 45 वर्षीय मरीज हूं. जो लंबे समय से घुटनों के पुराने दर्द से पीडि़त हूं?

तलेभुने पदार्थ न खाएं. धूम्रपान छोड़ दें. विटामिन डी सप्लिमैंट्स लें. घुटनों के इर्दगिर्द की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए टहलने, सैर करने के साथसाथ हलकेफुलके व्यायाम भी करने की जरूरत होगी. हलकेफुलके शारीरिक व्यायाम से घुटनों पर कम दबाव पड़ेगा. अगर चलने से आप के घुटनों में तकलीफ होती है तो आप पानी में रह कर किए जाने वाले व्यायाम जैसे वाटर ऐरोबिक्स, डीप वाटर रनिंग (गहरे पानी में जौगिंग) करने पर विचार कर सकते हैं. आप ऐक्सरसाइज करने वाली साइकिल का भी प्रयोग कर सकते हैं.

मैं 21 साल का बैडमिंटन खिलाड़ी हूं. पिछले साल मुझे बैडमिंटन कोर्ट में चोट लग गई थी. उसी के बाद से मेरे बाएं घुटने में पहले जैसी ताकत नहीं रह गई है.. क्या टीकेआर मेरे लिए विश्वसनीय समाधान होगा?

घुटनों के दर्द ने नौजवानों, युवाओं और बुजुर्गों सभी को समान रूप से जकड़ रखा है. आप के मामले में घुटनों को बदलने की सर्जरी का फैसला लेने से पहले डाक्टर से मिल कर सही जांच कराना ठीक होगा. अगर आप का डाक्टर आप को टीकेआर की सलाह देता है, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है. यह बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है. अब इस क्षेत्र में उपलब्ध नई तकनीकों से एक इंप्लांट की मदद से क्षतिग्रस्त घुटनों को बदला जा सकता है, जिस से कुछ ही हफ्तों में आप के घुटनों में पहले जैसी ताकत वापस आ जाएगी. इस के अतिरिक्त इस से अपना लाइफस्टाइल भी सुधारने में मदद मिलेगी. इंप्लांट कराने से तापमान का पारा गिरने या सर्दियों में आप के घुटनों को बेहतर तरीके से कामकाज करने में मदद मिलेगी.

जब से मेरा वजन बढ़ा है तब से घुटनों में दर्द बहुत बढ़ गया है. क्या वजन बढ़ने के कारण घुटनों में शरीर का वजन सहन करने की क्षमता प्रभावित होती है?

शरीर का वजन बढ़ना ही जोड़ों, खासकर घुटनों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. शरीर का बढ़ा 1 किलोग्राम वजन भी घुटनों पर 4 गुना ज्यादा दबाव डाल सकता है. इसलिए वजन को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है, क्योंकि इस से आप के घुटनों पर पड़ने वाला ज्यादा दबाव कम हो सकता है. शरीर का वजन कम रखने से आर्थ्राइटिस से जुड़ा दर्द कम हो सकता है और यह शुरुआती चरण से बाद की स्टेज में जाने से रुक सकता है.

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठा रहता हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिन से मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है. किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

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गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055

कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें.

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कहानी इन हिंदी : दिल हथेली पर

कहानी इन हिंदी : अमित और मेनका चुपचाप बैठे हुए कुछ सोच रहे थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए.

तभी कालबेल बजी. मेनका ने दरवाजा खोला. सामने नरेन को देख चेहरे पर मुसकराहट लाते हुए वह बोली, ‘‘अरे जीजाजी आप… आइए.’’

‘‘नमस्कार. मैं इधर से जा रहा था तो सोचा कि आज आप लोगों से मिलता चलूं,’’ नरेन ने कमरे में आते हुए कहा.

अमित ने कहा, ‘‘आओ नरेन, कैसे हो? अल्पना कैसी है?’’

नरेन ने उन दोनों के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम दोनों तो ठीक हैं, पर मैं देख रहा हूं कि आप किसी उलझन में हैं.’’

‘‘ठीक कहते हो तुम…’’ अमित बोला, ‘‘तुम तो जानते ही हो नरेन कि मेनका मां बनने वाली है. दिल्ली से बहन कुसुम को आना था, पर आज ही उस का फोन आया कि उस को पीलिया हो गया है. वह आ नहीं सकेगी. सोच रहे हैं कि किसी नर्स का इंतजाम कर लें.’’

‘‘नर्स क्यों? हमें भूल गए हो क्या? आप जब कहेंगे अल्पना अपनी दीदी की सेवा में आ जाएगी,’’ नरेन ने कहा.

‘‘यह ठीक रहेगा,’’ मेनका बोली.

अमित को अपनी शादी की एक घटना याद हो आई. 4 साल पहले किसी शादी में एक खूबसूरत लड़की उस से हंसहंस कर बहुत मजाक कर रही थी. वह सभी लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी.

अमित की नजर भी बारबार उस लड़की पर चली जाती थी. पता चला कि वह अल्पना है, मेनका की मौसेरी बहन.

अब अमित ने अल्पना के आने के बारे में सुना तो वह बहुत खुश हुआ.

मेनका को ठीक समय पर बच्चा हुआ. नर्सिंग होम में उस ने एक बेटे को जन्म दिया.

4 दिन बाद मेनका को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई.

शाम को नरेन घर आया तो परेशान व चिंतित सा था. उसे देखते ही अमित ने पूछा, ‘‘क्या बात है नरेन, कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

‘‘हां, मुझे मुंबई जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बौस ने हैड औफिस के कई सारे जरूरी काम बता दिए हैं.’’

‘‘वहां कितने दिन लग जाएंगे?’’

‘‘10 दिन. आज ही सीट रिजर्व करा कर आ रहा हूं. 2 दिन बाद जाना है. अब अल्पना यहीं अपनी दीदी की सेवा में रहेगी,’’ नरेन ने कहा.

मेनका बोल उठी, ‘‘अल्पना मेरी पूरी सेवा कर रही है. यह देखने में जितनी खूबसूरत है, इस के काम तो इस से भी ज्यादा खूबसूरत हैं.’’

‘‘बस दीदी, बस. इतनी तारीफ न करो कि खुशी के मारे मेरे हाथपैर ही फूल जाएं और मैं कुछ भी काम न कर सकूं,’’ कह कर अल्पना हंस दी.

2 दिन बाद नरेन मुंबई चला गया.

अगले दिन शाम को अमित दफ्तर से घर लौटा तो अल्पना सोफे पर बैठी कुछ सोच रही थी. मेनका दूसरे कमरे में थी.

अमित ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो अल्पना?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ अल्पना ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘नरेन के मुंबई जाने से तुम्हारा मन नहीं लग रहा?है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. वे जिस कंपनी में काम करते हैं, वहां बाहर जाना होता रहता है.’’

‘‘जैसे साली आधी घरवाली होती है वैसे ही जीजा भी आधा घरवाला होता है. मैं हूं न. मुझ से काम नहीं चलेगा क्या?’’ अमित ने अल्पना की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘अगर जीजाओं से काम चल जाता तो सालियां शादी ही क्यों करतीं?’’ कहते हुए अल्पना हंस दी. 5-6 दिन इसी तरह हंसीमजाक में बीत गए.

एक रात अमित बिस्तर पर बैठा हुआ अपने मोबाइल फोन पर टाइमपास कर रहा था. जब आंखें थकने लगीं तो वह बिस्तर पर लेट गया.

तभी अमित ने आंगन में अल्पना को बाथरूम की तरफ जाते देखा. वह मन ही मन बहुत खुश हुआ.

जब अल्पना लौटी तो अमित ने धीरे से पुकारा.

अल्पना ने कमरे में आते ही पूछा, ‘‘अभी तक आप सोए नहीं जीजाजी?’’

‘‘नींद ही नहीं आ रही है. मेनका सो गई है क्या?’’

‘‘और क्या वे भी आप की तरह करवटें बदलेंगी?’’

‘‘मुझे नींद क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मन में होगा कुछ.’’

‘‘बता दूं मन की बात?’’

‘‘बताओ या रहने दो, पर अभी आप को एक महीना और करवटें बदलनी पड़ेंगी.’’

‘‘बैठो न जरा,’’ कहते हुए अमित ने अल्पना की कलाई पकड़ ली.

‘‘छोडि़ए, दीदी जाग रही हैं.’’

अमित ने घबरा कर एकदम कलाई छोड़ दी.

‘‘डर गए न? डरपोक कहीं के,’’ मुसकराते हुए अल्पना चली गई.

सुबह दफ्तर जाने से पहले अमित मेनका के पास बैठा हुआ कुछ बातें कर रहा था. मुन्ना बराबर में सो रहा था.

तभी अल्पना कमरे में आई और अमित की ओर देखते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बहुत बेशर्म हैं.’’

यह सुनते ही अमित के चेहरे का रंग उड़ गया. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्यों?’’

‘‘आप ने अभी तक मुन्ने के आने की खुशी में दावत तो क्या, मुंह भी मीठा नहीं कराया.’’

अमित ने राहत की सांस ली. वह बोला, ‘‘सौरी, आज आप की यह शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’

शाम को अमित दफ्तर से लौटा तो उस के हाथ में मिठाई का डब्बा था. वह सीधा रसोई में पहुंचा. अल्पना सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी.

अमित ने डब्बा खोल कर अल्पना के सामने करते हुए कहा, ‘‘लो साली साहिबा, मुंह मीठा करो और अपनी शिकायत दूर करो.’’

मिठाई का एक टुकड़ा उठा कर खाते हुए अल्पना ने कहा, ‘‘मिठाई अच्छी है, लेकिन इस मिठाई से यह न समझ लेना कि साली की दावत हो गई है.’’

‘‘नहीं अल्पना, बिलकुल नहीं. दावत चाहे जैसी और कभी भी ले सकती हो. कहो तो आज ही चलें किसी होटल में. एक कमरा भी बुक करा लूंगा. दावत तो सारी रात चलेगी न.’’

‘‘दावत देना चाहते हो या वसूलना चाहते हो?’’ कह कर अल्पना हंस पड़ी.

अमित से कोई जवाब न बन पड़ा. वह चुपचाप देखता रह गया.

एक सुबह अमित देर तक सो रहा था. कमरे में घुसते ही अल्पना ने कहा, ‘‘उठिए साहब, 8 बज गए हैं. आज छुट्टी है क्या?’’

‘‘रात 2 बजे तक तो मुझे नींद ही नहीं आई.’’

‘‘दीदी को याद करते रहे थे क्या?’’

‘‘मेनका को नहीं तुम्हें. अल्पना, रातभर मैं तुम्हारे साथ सपने में पता नहीं कहांकहां घूमता रहा.’’

‘‘उठो… ये बातें फिर कभी कर लेना. फिर कहोगे दफ्तर जाने में देर हो रही है.’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि नरेन की वापसी कब तक है?’’

‘‘कह रहे थे कि काम बढ़ गया है. शायद 4-5 दिन और लग जाएं. अभी कुछ पक्का नहीं है. वे कह रहे थे कि हवाईजहाज से दिल्ली तक पहुंच जाऊंगा, उस के बाद टे्रन से यहां तक आ जाऊंगा.’’

‘‘अल्पना, तुम मुझे बहुत तड़पा रही हो. मेरे गले लग कर किसी रात को यह तड़प दूर कर दो न.’’

‘‘बसबस जीजाजी, रात की बातें रात को कर लेना. अब उठो और दफ्तर जाने की तैयारी करो. मैं नाश्ता तैयार कर रही हूं,’’ अल्पना ने कहा और रसोई की ओर चली गई.

एक शाम दफ्तर से लौटते समय अमित ने नींद की गोलियां खरीद लीं. आज की रात वह किसी बहाने से मेनका को 2 गोलियां खिला देगा. अल्पना को भी पता नहीं चलने देगा. जब मेनका गहरी नींद में सो जाएगी तो वह अल्पना को अपनी बना लेगा.

अमित खुश हो कर घर पहुंचा तो देखा कि अल्पना मेनका के पास बैठी हुई थी.

‘‘अभी नरेन का फोन आया है. वह ट्रेन से आ रहा है. ट्रेन एक घंटे बाद स्टेशन पर पहुंच जाएगी. उस का मोबाइल फोन दिल्ली स्टेशन पर कहीं गिर गया. उस ने किसी और के मोबाइल फोन से यह बताया है. तुम उसे लाने स्टेशन चले जाना. वह मेन गेट के बाहर मिलेगा,’’ मेनका ने कहा.

अमित को जरा भी अच्छा नहीं लगा कि नरेन आ रहा है. आज की रात तो वह अल्पना को अपनी बनाने जा रहा था. उसे लगा कि नरेन नहीं बल्कि उस के रास्ते का पत्थर आ रहा है.

अमित ने अल्पना की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ठीक?है, मैं नरेन को लेने स्टेशन चला जाऊंगा. वैसे, तुम्हारे मन में लड्डू फूट रहे होंगे कि इतने दिनों बाद साजन घर लौट रहे हैं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ अल्पना बोली.

‘‘पर, नरेन को कल फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘कह रहे थे कि अचानक पहुंच कर सरप्राइज देंगे,’’ अल्पना ने कहा.

अमित उदास मन से स्टेशन पहुंचा. नरेन को देख वह जबरदस्ती मुसकराया और मोटरसाइकिल पर बिठा कर चल दिया.

रास्ते में नरेन मुंबई की बातें बता रहा था, पर अमित केवल ‘हांहूं’ कर रहा था. उस का मूड खराब हो चुका था.

भीड़ भरे बाजार में एक शराबी बीच सड़क पर नाच रहा था. वह अमित की मोटरसाइकिल से टकराताटकराता बचा. अमित ने मोटरसाइकिल रोक दी और शराबी के साथ झगड़ने लगा.

शराबी ने अमित पर हाथ उठाना चाहा तो नरेन ने उसे एक थप्पड़ मार दिया. शराबी ने जेब से चाकू निकाला और नरेन पर वार किया. नरेन बच तो गया, पर चाकू से उस का हाथ थोड़ा जख्मी हो गया.

यह देख कर वह शराबी वहां से भाग निकला.

पास ही के एक नर्सिंग होम से मरहमपट्टी करा कर लौटते हुए अमित ने नरेन से कहा, ‘‘मेरी वजह से तुम्हें यह चोट लग गई है.’’

नरेन बोला, ‘‘कोई बात नहीं भाई साहब. मैं आप को अपना बड़ा भाई मानता हूं. मैं तो उन लोगों में से हूं जो किसी को अपना बना कर जान दे देते हैं. उन की पीठ में छुरा नहीं घोंपते.

‘‘शरीर के घाव तो भर जाते हैं भाई साहब, पर दिल के घाव हमेशा रिसते रहते हैं.’’

नरेन की यह बात सुन कर अमित सन्न रह गया. वह तो हवस की गहरी खाई में गिरने के लिए आंखें मूंदे चला जा रहा था. नरेन का हक छीनने जा रहा था. उस से धोखा करने जा रहा था. उस का मन पछतावे से भर उठा.

दोनों घर पहुंचे तो नरेन के हाथ में पट्टी देख कर मेनका व अल्पना दोनों घबरा गईं. अमित ने पूरी घटना बता दी.

कुछ देर बाद अमित रसोई में चला गया. अल्पना खाना बना रही थी.

नरेन मेनका के पास बैठा बात कर रहा था.

अमित को देखते ही अल्पना ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप तो बातोंबातों में फिसल ही गए. क्या सारे मर्द आप की तरह होते हैं?’’

‘‘क्या मतलब…?’’

‘‘लगता है दिल हथेली पर लिए घूमते हो कि कोई मिले तो उसे दे दिया जाए. आप को तो दफ्तर में कोई भी बेवकूफ बना सकती है. हो सकता है कि कोई बना भी रही हो.

‘‘आप ने तो मेरे हंसीमजाक को कुछ और ही समझ लिया. इस रिश्ते में तो मजाक चलता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि… अब आप यह बताइए कि मैं आप को जीजाजी कहूं या मजनूं?’’

‘‘अल्पना, तुम मेनका से कुछ मत कहना,’’ अमित ने कहा.

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी पर आप तो बहुत डरपोक हैं,’’ कह कर अल्पना मुसकरा उठी.

अमित चुपचाप रसोईघर से बाहर निकल गया.

Family Story Hindi : रिश्तों से परे

Family Story Hindi : जून का मौसम अपनी पूरी गरमाहट से  स्टे्रटफोर्ड के निवासियों का स्वागत करने आ गया था. उस ने यहां पर जिन पेड़ों को बिलकुल नग्न अवस्था में देखा था, वे अब विभिन्न आकार के पत्तों से सुसज्जित हो हवा में नृत्य करने लगे थे. चैरी के पेड़ों पर फूलों के गुच्छे आने वाले को अपनी ओर आकर्षित तो कर ही रहे थे, अपनी छाया में बिठा कर विश्राम भी दे रहे थे.

यह वही स्टे्रटफोर्ड है जहां महान साहित्यकार शेक्सपियर ने जन्म लिया था. अभीअभी वह शेक्सपियर के जन्मस्थान को देख कर आई थी. लकड़ी का साफसुथरा 3 मंजिल का घर, जहां आज भी शेक्सपियर पालने में झूल रहा था, आज भी वहां गुलाबी रंग की खूबसूरत शानदार मसहरी रखी हुई थी, आज भी साहित्यकार की मां का चूल्हा जल रहा था. जिस शेक्सपियर को उस ने पढ़ा था, उस को वह महसूस कर पा रही थी.

सोने में सुहागा यह कि वह उस समय वहां पहुंची थी जब शेक्सपियर का जन्मदिवस मनाया जा रहा था. नुमाइश देख कर वह उसी से संबंधित दुकान में गई. जैसे ही वह दुकाननुमा स्टोर से बाहर निकली, अपने सामने शेक्सपियर को खड़ा पाया. वही कदकाठी, वही काली डे्रस. एकदम भौचक रह गई. रूथ ने अंगरेजी में बताया था, ‘इस आदमी ने शेक्सपियर का डे्रसअप कर रखा है. जैसे आप के भारत में बहुरूपिए होते हैं…’

समझने के अंदाज में उस ने गरदन हिलाई और अन्य कई लोगों को जमीन पर पड़े हुए काले कपड़े पर पैसे डालते हुए देख कर उस ने 20 पैंस का एक सिक्का उस कपडे़ पर उछाल दिया.

भारत से इंगलैंड आए हुए उसे कुछ माह ही हुए थे. जिस स्कूल में उसे नौकरी मिली थी, उस के कुछ अध्यापक-अध्यापिकाओं के साथ वह स्टे्रटफोर्ड आई थी, शेक्सपियर की जन्मभूमि को महसूस करने, उस की मिट्टी की सुगंध को अपने भीतर उतार लेने. इस नौकरी को पाने के लिए उसे न जाने कितने पापड़ बेलने पडे़ थे. पूरे स्कूल में एक अकेली वही ‘एशियन’ थी, सो सभी की नजर उस पर अटक जाती थी. उसे औरों से अधिक परिश्रम करना था, स्वयं को सिद्ध करने के लिए दिनरात एक करने थे. रूथ उस की सहयोगी अध्यापिका थी, जो बहुत अच्छी महिला थी, उसी के बाध्य करने पर वह यहां आई थी और सब से मेलमिलाप बढ़ाने का प्रयास कर रही थी.

चैरी के घने पेड़ के नीचे एक ऊंची मुंडेर सी बनी हुई थी. वह सब के साथ उस पर बैठ गई और सोचने लगी कि क्या हमारे तुलसीदास और कालीदास इतने समर्थ साहित्यकार नहीं थे? स्टे्रटफोर्ड के चारों ओर शेक्सपियर को महसूस करते हुए भारतीय महान साहित्यकार उस के दिमाग में हलचल पैदा करने लगे. हम क्यों अपने साहित्यकारों को इतना सम्मान नहीं दे पाते…ऐसा जीवंत एहसास इन साहित्यकारों के जन्मस्थल पर जाने से क्यों नहीं हो पाता?

‘‘प्लीज हैव दिस…’’ इन शब्दों ने उसे चौंका दिया मगर नजर उठा कर देखा तो सामने रूथ अपने हाथों में 2 बड़ी आइस्क्रीम लिए खड़ी थी.

‘‘ओह…थैंक्स….’’

उस ने अपने चारों ओर नजर दौड़ाई तो सब लोग अपनेअपने तरीके से मस्त थे. गरमी के कारण अधनंगे गोरे शरीर लाल हो उठे थे और हाथों में ठंडे पेय के डब्बे या आइस्क्रीम के कोन ले कर गरमी को कम करने का प्रयास कर रहे थे. उन के साथ के लोग अपनीअपनी रुचि के अनुसार आनंद लेने में मग्न थे. यह केवल रूथ ही थी जो लगातार उसी के साथ बनी हुई थी.

स्कूल में नौकरी मिलने के बाद हर परेशानी में रूथ उस का सहारा बनती, उसे विद्यार्थियों के बारे में बताती, कोर्स के बारे में सिखाती और पढ़ाने की योजना तैयार करने में सहायता करती. कुछेक माह में ही उसे अपनी भूल का एहसास होने लगा था. बेहतर था कि वह कहीं और नौकरी करती, किसी स्टोर में या कहीं भी पर स्कूल में…जहां के वातावरण को सह पाना उस के भारतीय मनमस्तिष्क के लिए असहनीय हो रहा था.

सरकार के आदेशानुसार 10वीं तक की पढ़ाई आवश्यक थी. फीस माफ, कोई अन्य खर्चा नहीं…जब तक छठी, 7वीं तक बच्चे रहते सब सामान्य चलता पर उस के बाद उन्हें बस में करना तौबा….उस के पसीने छूटने लगे. स्कूल से घर आते ही प्रतिदिन तो वह रोती थी. आंखें लाल रहतीं. कोई न कोई ऐसी घटना अवश्य घट जाती जो उसे भीतर तक हिला कर रख देती और तब उसे अपने भारतीय होने पर अफसोस होने लगता.

चैरी के फूल झरझर कर उस के ऊपर पड़ रहे थे, खिलते हुए सफेद- गुलाबी से फूलों को उस ने अपने कुरते पर से समेट कर पर्स में डाल लिया. रूथ उसे देख कर मुसकराने लगी थी.

आज फिर स्कूल में वह पढ़ा नहीं सकी, क्योंकि जेड ठीक उस के सामने बैठ कर तरहतरह के मुंह बनाती रहती है. च्यूइंगम चबाती हुई जेड को देख कर उस का मन करता है कि एक झन्नाटेदार तमाचा उस के गाल पर रसीद कर दे पर मन मसोस कर रह जाती है. इंगलैंड में किसी छात्र को मारने की बात तो दूर जोर से बोलना भी सपने की बात है. वह मन मार कर रह जाती है. अनुशासन वाले इस समाज में विद्यार्थी इतने अनुशासनहीन… यह बात किस प्रकार गले उतर सकती है? पर सच यही है.

वैसे भी उस की कक्षा को जेड ने बिगाड़ रखा है. 9वीं कक्षा के ये विद्यार्थी अपनी नेता जेड के इशारे पर हर प्रकार की असभ्यता करते हैं. एकदूसरे की गोद में बैठ कर चूमाचाटी करना तो आम बात है ही, उस ने अपने पीछे से जेड की आवाज में ‘दिस इंडियन बिच’ न जाने कितनी बार सुना है और बहरों की भांति आगे बढ़ गई है. यह बात और है कि उस की आंखों में आंसुओं की बाढ़ उमड़ आई है. हर दिन सवेरे स्कूल के लिए तैयार होते हुए वह सोचती कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा?

फिलहाल तो अपने इस प्रश्न का कोई उत्तर उस के पास नहीं है. उस ने एक साल का बांड भरा है, उस से पहले तो वहां से छुटकारा पाना उस के लिए संभव ही नहीं. अपने पीछे ठहाकों की बेहूदी आवाजें सुनना उस की नियति हो गई है.

इस अमीर देश में वह बेहद गरीब है, जो अपने बच्चों की जूठन और फैलाव तो समेटती ही है जेड जैसी जाहिलोंके उस के कमरे में फैलाई हुई ‘गंद’ भी उसे ही समेटनी पड़ती है. भरीभरी आंखों से वह एक मशीन की भांति काम करती रहती है. अधिक संवेदनशील होने के कारण सूई सा दर्द भी उसे तलवार का घाव महसूस होता है. आसान नहीं है यहां पर ‘टीचिंग प्रोफेशन’ यह जानती तो वह पहले से ही थी पर इतना मानसिक क्लेश होता होगा, यह अनुभव से ही उसे पता चल सका.

एक साल बीता तो उस ने चैन की सांस ली. अब वह सलिल से कहेगी कि वह यह काम नहीं कर पाएगी. खाली तो रहेगी नहीं, कुछ न कुछ तो करना ही है. सलिल को ‘वारविकशायर विश्वविद्यालय’ में प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए आमंत्रित किया गया था. उन का पिछला रेकार्ड देख कर ही कई अंतर्राष्ट्रीय विश्व- विद्यालयों से उन्हें निमंत्रण मिलते रहे थे. कुछ साल पहले वह अमेरिका भी 2 वर्ष के लिए हो आए थे और समय पूर्ण होने पर भारत लौट गए थे.

यहां पर उन का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन से पूरे 4 वर्ष के बांड पर हस्ताक्षर करवा लिए गए. भारतीय दिमाग का तो वाकई कोई जवाब नहीं है. हर तरफ मलाई की कीमत है, केवल अपने यहां ही वह सम्मान नहीं प्राप्त होता जिस का आदमी हकदार है.

सलिल ने बड़ी प्रसन्नता से बांड पर हस्ताक्षर कर के कम से कम 4 वर्ष तो वहीं रुकने का इंतजाम कर लिया था. शिक्षा के क्षेत्र में होने के कारण उन की इच्छा थी कि उन की पत्नी विनीता यानी विनी भी शिक्षा में ही रहे. काम तो करना ही था फिर इधरउधर भटकते हुए स्टोर, मौल अथवा किसी और जगह क्यों…. क्यों नहीं शिक्षा के क्षेत्र में?

विनी ने न जाने कैसेकैसे स्कूल में एक साल पूरा किया…हरेक सांस में वह अपने स्वतंत्र होने की बात सोचती पर सलिल उस के निर्णय से बिलकुल खुश नहीं थे. वह कहते, ‘‘सीढ़ी पर चढ़ने के लिए पहला कदम ही मुश्किल होता है. जैसे एक साल गुजरा, 2-4 साल में तो आदी हो जाओगी इस वातावरण की.’’

विनी का दिल धड़क उठा. पति की नाराजगी उस से बहुत कुछ कह गई. वह कमजोर बन गई और चाहते हुए भी त्यागपत्र न दे सकी. छुट्टियों में भारत आ कर जब वह मां के गले मिली तो मानो उस की हिचकियों का बांध टूट कर मां के दिल में समा गया. मां भी क्या कर सकती थीं…

इंगलैंड लौटने पर सलिल ने उसे खुशखबरी दी.

‘‘डोरिथी मेरे काम से इतनी खुश है कि उस ने मुझे प्रमोट करने का प्रस्ताव रखा है और अब हम अपना घर खरीदने जा रहे हैं.’’

इतनी जल्दी घर? यह सवाल मन में कौंधा पर वह कुछ बोली नहीं. प्रसन्नता और सफलता में डूबे पति का चेहरा निहारती रही. उस की अपनी क्या कीमत है? उस ने सोचा, सभी फैसले सलिल के ही तो होेते हैं. वह तो बस, कठपुतली या मशीन की भांति वही सब करती है जो सलिल चाहते हैं.

बेमन से विनी बच्चों और सलिल के साथ घर देखने गई. डोरिथी ने ‘रिकमेंड’ किया था, वह बौस थी सलिल की और उसे अपने पास ही रखना चाहती थी. जल्दी ही वह पूरे परिवार सहित अपने घर में ‘शिफ्ट’ हो गई. घर सुंदर था, पूरे साजोसामान सहित बड़े ही कम ‘इंस्टालमेंट’ पर घर मिल गया था, जो सलिल की तनख्वाह से ही हर माह कटता रहेगा. अब तो उस के लिए अधिक कमाना और भी आवश्यक हो गया था.

घर में आने के अगले दिन जैसे ही विनी ने सो कर उठने के बाद बेडरू म की खिड़की का परदा उठाया, उसे चक्कर आ गया. घर के ठीक सामने जेड खड़ी थी, किसी लड़के से चिपट कर. 2 मिनट वह सुन्न सी खड़ी देखती रही फिर लड़के के साथ जब जेड सामने वाले घर के अंदर चली गई तब वह टूटे हुए पैरों से घिसट कर पलंग पर आ पड़ी.

शनिवार छुट्टी का दिन था व अगले दिन रविवार…2 दिन की छुट्टियों में वह आसपास घूमफिर कर देखना चाहती थी. कार्नर शौप, शौपिंग मौल्स, लाइबे्ररी, सब के बारे में पता करना चाहती थी पर उस के तो पैर ही मानो बर्फ के हो गए थे. उस ने एक नजर सलिल पर डाली, जो चैन की नींद, प्रसन्नवदन सो रहे थे. धीरे से उठ कर उस ने स्वयं को संभालने की चेष्टा की.

शीघ्र ही विनी को पता चला कि जेड उसी घर में रहती है, अपनी मां व अपनी 2 सौतेली छोटी बहनों के साथ. उस की मां का बौयफें्रड जब भी आता है, दोनों छोटी बहनों और उस की मां को अपने साथ बाहर ले जाता है. एक दिन विनी ने सुना, उस की मां का बौयफें्रड जेड को सब के साथ चलने के लिए कह रहा था और वह चिल्ला रही थी :

‘नहीं, तुम मेरे पिता नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती.’

कुछ देर बाद ही गाड़ी जेड के सिवा सब को ले कर फर्राटे से निकल गई और जेड का दोस्त उसे ले कर अपने से चिपटाते हुए घर में घुस गया.

विनी का धैर्य जवाब देने लगा. अपने बच्चों को कैसे इस वातावरण में रख सकेगी? अब तो जेड ने यहां पर भी बदतमीजी शुरू कर दी थी. वह उस की बेटी को चिल्लाचिल्ला कर ‘बिच’ बोलती, गालियां बकती, ‘गो बैक टू योर इंडिया…’ और न जाने क्याक्या.

विनी व सलिल बच्चों को समझाते रहते थे. भारत से सलिल के मातापिता भी बच्चों की देखभाल के लिए वहीं आ गए थे. 4 बेडरूम वाले इस घर में जगह ठीकठाक ही थी अत: इस जेड नामक अशांति के अलावा सब ठीक ही चल रहा था. अब कभीकभी जेड अपने बौयफें्रड के साथ निकल कर दरवाजे की घंटी दबा जाती, कभी उस के बेटे कुणाल को साइकिल चलाते हुए देख कर जूता मार देती, फिर दोनों खिलखिला कर मजाक करते, गालियां देते निकल जाते. अब तो यह रोज का कार्यक्रम बन गया था और अनमनी सी विनी बच्चों के लिए हर क्षण भयभीत बनी रहती.

जेड की बदतमीजी हद से अधिक बढ़ जाने से उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. अब स्कूल में शांति थी परंतु घर में तो वही अशांति बन कर उस के समक्ष रहती थी. वह कपड़ों की तरह लड़के बदलती और उन के साथ घूमती रहती.

विनी को उस की मां पर आश्चर्य होता, मानो कोई सरोकार ही नहीं. साल दर साल गुजरते रहे और सबकुछ उसी प्रकार चलता रहा. जेड और परिपक्व दिखाई देने लगी थी. हर साल छुट्टियों में विनी अपने पूरे परिवार सहित मुंबई आती. इस साल सलिल के मातापिता ने बच्चों को अपने साथ दिल्ली ले जाने और उन की बूआ के पास  कुछ दिन ठहरने का प्रस्ताव रखा. सलिल को भी उस की बहन बारबार बुलाती थीं, सो सलिल, बच्चे एवं उस के मातापिता दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे जबकि विनी को 2 दिन बाद की टिकट मिली थी. वह मुंबई हवाई अड्डे पर उतरी तो वहां जेड को देख कर आश्चर्य से उस का मुंह खुला रह गया.

हवाई जहाज से उतरते समय जेड का पैर न जाने कैसे फिसल गया था और वह किसी चीज से उलझ कर औंधेमुंह जा गिरी थी. खून से लथपथ उस को देखते ही विनी उस के पास जा पहुंची. अचानक ही ढेरों सवाल उस के जेहन में कुलबुलाने लगे. उस के साथ कोई नहीं था, कैसे और क्यों वह यहां अकेले आई थी?

भारत और भारतीयों के लिए मन मेें ढेरों कटुता भरे हुए वह यहां आखिर करने क्या आई थी? इस सवाल को मन में रख कर विनी ने हवाई अड्डे के प्रबंधकों से जेड के साथ स्वयं भी अस्पताल चलने का आग्रह किया. विनी के भाईभाभी उसे लेने पहुंचे हुए थे, वह भी विनी के साथ अस्पताल पहुंचे. जेड का काफी खून निकल गया और उसे खून की जरूरत थी. जब विनी को पता चला कि जेड का ब्लड ग्रुप ‘बी पौजिटिव’ है तो उस ने डाक्टरों से प्रार्थना की कि वे उस का खून ले लें क्योंकि उस का भी वही ग्रुप था.

देखते ही देखते विनी का खून जेड की नसों में दौड़ने लगा. जेड अब भी बेहोश थी. विनी ने अस्पताल में अपना टेलीफोन नंबर लिखवा कर प्रार्थना की कि कृपया घायल की स्थिति से उसे अवगत कराया जाए. अस्पताल में बहुत सी औप- चारिकताएं पूरी करनी थीं, सो विनी को बताना पड़ा कि वह उसे किस प्रकार जानती है और फार्म पर अपने हस्ताक्षर भी किए.

दूसरे दिन जब जेड को होश आया तब विनी उस के सामने ही थी. अब जेड के आश्चर्य का ठिकाना न था. उस के आंसुओं के आवेग को विनी ने बहुत मुश्किल से बंद कराया, फिर जो जेड ने बताया वह और भी चौंका देने वाला था.

जेड को अभी कुछ दिन पहले ही पता चला था कि वह एक भारतीय पिता की बेटी है और उस के पिता कहीं मुंबई में ही थे. उन का पता ले कर अपनी मां की सहायता से जेड भारत आई थी. पिता से मिलने की उत्सुकता ने मानो उस में पंख लगा दिए थे. अस्पताल के अधिकारी उस के पिता को सूचित कर चुके थे. जेड, विनी का हाथ पकड़े पश्चात्ताप के आंसुओं से अपना मुख भिगोती रही और विनी शब्दहीन रह कर उसे सांत्वना देती रही.

जेड के पिता बेटी से मिलने विनी की मौजूदगी में ही आए थे. साथ उन की पत्नी और 2 बच्चे भी थे. भावावेश में आ कर उन्होंने जेड को अपने सीने से चिपटा लिया पर जेड की तेज तर्रार आंखों ने उन की पत्नी की उदासीनता को भांप लिया.

‘‘आई जस्ट वांटेड टू सी यू डैड,’’ जेड हिचकियों के बीच बोली.

वह जानती थी कि उस परिवार में उस का मन से स्वागत नहीं किया जाएगा. पिता के जाने के बाद उस ने एक प्रश्नवाचक दृष्टि विनी पर डाली. विनी ने उस का हाथ थपथपा कर सांत्वना दी. अस्पताल से छुट्टी मिलने पर वह उसे अपने घर ले गई, जहां जेड के पिता उस से मिलने कई बार आए.

अतीत के गलियारों में भटकना छोड़ कर जेड अब विनी के बेहद करीब आ गई थी, इतनी कि विनी के गले से चिपट गई.

‘‘आई वांट टू बी लाइक यू…. मैम,’’ पश्चात्ताप के आंसुओं ने जेड के दिलोदिमाग में अविश्वसनीय परिवर्तन भर दिया था.

कंठ अवरुद्ध होने के कारण जेड ने घूम कर विनी की ओर अपनी पीठ कर ली और तेजी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ चली.

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