Eye Makeup: आई मेकअप में हाइजीन का खयाल रखें

Eye Makeup: आंखें हमारे शरीर का सब से सैंसिटिव हिस्सा होती हैं. ऐसे में मेकअप करते समय उन्हें नुकसान न पहुंचे इस बात का खास खयाल रखना चाहिए. दरअसल, बाजार में तरहतरह के काजल, आइलाइनर, आई शैडो, मसकारा आदि मौजूद हैं, जिन्हें अपनी जरूरत के हिसाब से लड़कियां खरीदती हैं और प्रयोग में लाती हैं. इन में कुछ आई मेकअप प्रोडक्‍ट्स हैं जिन्हें ओकेजनल प्रयोग में लाया जाता है जबकि कुछ प्रोडक्‍ट का प्रयोग डेली यूज के लिए भी किया जाता है.

ऐसे में इन के प्रयोग से पहले कुछ जरूरी बातों को ध्‍यान में रखना बहुत ही जरूरी है. जैसेकि आंखों का मेकअप करते हुए जरूरी है कि अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करें. और हां, गलती से भी दूसरों का मेकअप  इस्तेमाल न करें. हो सकता है उन्हें किसी चीज की एलर्जी या इन्फैक्शन होगी, तो वह आप को भी हो सकती है.

अगर आप भी आई मेकअप करती हैं तो किनकिन बातों को ध्‍यान में रखें :

ऐक्सपायर हो चुके आई प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से बचें

पुराने व ऐक्सपायर हो चुके या किसी और के आई ड्रौप्स, आई मेकअप या कौन्टैक्ट लेंस इस्तेमाल करने से बैक्टीरिया फैल सकते हैं और संक्रमण हो सकता है. इसलिए आई ड्रौप्स, काजल, मसकारा या किसी भी आंखों से जुड़े उत्पाद की ऐक्सपायरी डेट हमेशा जांच लें.

आई मेकअप शेयर करने से बचें

अपने मेकअप या आंखों की देखभाल के सामान को दूसरों के साथ, यहां तक कि परिवार के सदस्यों के साथ भी शेयर करने से बचें. इस के कारण एक से दूसरे को इन्फैक्शन फैल सकता है.

नियमित रूप से उत्पाद बदलें

मसकारा और आईलाइनर जैसे क्रीमी या लिक्विड उत्पादों में बैक्टीरिया पनपते हैं. इन्हें हर 3-6 महीने में बदल दें.

बहुत गरम जगह पर ब्यूटी प्रोडक्ट न रखें

कई लोगों की आदत होती है अपने ब्यूटी प्रोडक्ट को वे किचन या फिर कहीं ऐसी जगह रख देते हैं जो बहुत गरम होती है. इस से उन में बैक्टीरिया पैदा हो सकता है. जैसे की आंखों की आईड्रौप को हमेशा फ्रीज में रखना चाहिए. इसी तरह आई लैंस को भी वहां न रखें जहां धूप आती हो. कुछ चीजों को आप जरूरत के अनुसार फ्रीज में भी रख सकते हैं. वैसे, मेकअप प्रोडक्ट को हमेशा ठंडी, सूखी जगह पर रखना चाहिए.

आई मेकअप अच्छे ब्रैंड का ही यूज करें

आजकल लोग बिना समझे किसी भी लोकल ब्रैंड का सामान मार्केट से कम दाम पर खरीद लेते हैं. इस के कारण कई बार हमारी आंखों को बहुत नुकसान पहुंचता है. लोकल और खराब ब्रैंड का समान यूज करने से बचें और सिर्फ अच्छे ब्रैंड का समान ही खरीदें. आंखों पर कुछ भी यूज करने से पहले पैच टेस्ट जरूर करें. इस से आप को पता चल जाएगा कि कहीं आप की स्किन और आंखों को किसी चीज से एलर्जी तो नहीं हो रही है

कौन्टैक्ट लेंस का यूज करते हुए ध्यान रखें

फेस को क्लीन करने के बाद कोई भी प्रोडक्ट अप्लाई करने से पहले आप को अपने लैंस लगाने हैं. बहुत सी महिलाएं सबसे लास्ट में लैंस लगाती हैं. ऐसा करना सही नहीं है. इस से कई बार आंखों में जलन और रैडनेस की समस्या आती है. वहीं, मेकअप जब उतारें तो इस बात का खयाल रखें कि सब से पहले आप को लैंस ही उतारने हैं. यह लैंस लगाने का बेसिक रूल है. इस के आलावा भी कुछ बातों का ध्यान दें :

-कौन्टैक्ट लेंस पहनने से पहले आंखों का पूरा मेकअप करें

-कौन्टैक्ट लेंस केस खोलने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह धोएं.

-अगर आप के नाखून लंबे हैं, तो कौन्टैक्ट लेंस पहनने से बचें क्योंकि वे आंखों में लग कर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं.

-मेकअप रिमूव करने से पहले ध्यान रखें कि सब से पहले कौन्टैक्ट लेंस हटा दें.

-आप चाहे कितने भी थके हुए क्यों न हों लेकिन रात को सोने से पहले लैंस को हटा कर ही सोएं.

मेकअप ब्रश का भी रखें खास खयाल

लिपस्टिक, आईलाइनर जैसे मेकअप प्रसाधनों को हमेशा ब्रश से ही लगाएं और यूज के बाद ब्रश को मेकअप क्लीनर से क्लीन जरूर करें. इस के अलावा आप चाहे तो वन टाइम यूज डिस्पोजेबल ब्रशेज का प्रयोग भी कर सकते हैं. आजकल हर ब्रैंड के मेकअप क्लीनर मार्केट में मिल रहें हैं. इन के प्रयोग से हर बार मेकअप ब्रशेज को यूज करने के बाद नियमित रूप से साफ जरूर करना चाहिए. इस से स्किन इन्फैक्शन होने का खतरा नहीं रहता है. लिप लाइनर, काजल तथा आईब्रो पेंसिल जैसे उत्पादों को हर यूज के बाद शार्पेन कर लें जिस से कि उन का उपयोग किया हुआ लेयर उतर जाए और वे फिर से नए हो जाएं.

सोने से पहले काजल और मेकअप जरूर हटाएं

रातभर काजल लगा कर सोने से या अधूरे काजल के साथ सोने से हो सकता है कि आप की आंखों में इन्फैक्शन हो जाए या सुबह उठने के बाद आप की आंखें सूजी हुई लगें.

लोकल फैशन का पीछा न करें

बाजार में समयसमय पर कई फैशन ट्रेंड्स आते रहते हैं, जो थोड़े दिन रहते हैं और फिर बदल जाते हैं. ऐसे में किसी की देखादेखी कोई भी फैशन ट्रेंड को फौलो न करें. अपने व्यक्तित्व और रुचि को ध्यान में रख कर ही इसे अपनाएं. विशेषरूप से आंखों का मेकअप करते हुए तो इस बात का खास खयाल रखें क्योंकि जरूरी नहीं कि जो आई मेकअप आप की फ्रैंड पर जंच रहा है, वह आप पर भी जंचे. इस के अलावा तरहतरह के प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से पहले उसे अपने स्किन पर परख लें. इस से आप किसी भी तरह की एलर्जी और इन्फैक्शन से तो बचेंगी ही, साथ ही आपको यह भी पता चल जाएगा कि अपनी आंखों की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए आप ने जिन प्रोडक्ट्स का चयन किया है, वह आप की स्किन के अनुरूप है या नहीं.

लंबे समय तक आई मेकअप रखना

मसकारा और आईलाइनर का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से पलक की जड़ों में रुकावट आ सकती है. इस से बाल झड़ने लगते हैं और सूजन (स्टाई) जैसी समस्या हो सकती है. इसी तरह, वाटरलाइन (आंखों की भीतरी लाइन) पर मेकअप लगाने से आंसू ग्रंथियों के छिद्र बंद हो सकते हैं, जिस से आंखों में सूखापन और जलन बढ़ सकती है.

इन बातों का भी रखें खयाल

मेकअप ब्रश और अप्लिकेटर को नियमित रूप से साफ करना भी बेहद जरूरी है. इन्हें गंदा छोड़ने से बैक्टीरिया बढ़ते हैं और यह सीधा आंखों तक पहुंच सकते हैं.

ध्यान दें

-हर 3 महीने में आंखों के मेकअप की नई पैकिंग बदलें.

-मेकअप लगाने से पहले अपना चेहरा अच्छी तरह धो लें.

-उस आंखों के मेकअप का उपयोग जारी न रखें जिस से आप की आंखों में जलन हो.

-बिस्तर पर जाने से पहले आंखों का मेकअप हटा लें.

-अपनी लैशलाइन से दूर आईलाइनर लगाएं.

-मेकअप ब्रश और ऐप्लीकेटर को रोजाना साफ करें.

आईलाइनर पेंसिल को नियमित रूप से तेज करें.

-जहां तक ​​संभव हो खुदरा दुकानों पर ट्रायल मेकअप किट का उपयोग करने से बचें.

-सौम्य मेकअप हटाने वाले उत्पादों का उपयोग करें.

Eye Makeup

Family Story: रिश्ता और समझौता- अरेंज मैरिज के लिए कैसे मानी मौर्डन सुमन?

Family Story: अमेरिका के जेएफके अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे में सारी औपचारिकताओं को पूरा कर के जब अपना सामान ले कर सुमन बाहर आई तो उस ने अपनी चचेरी बहन राधिका को हाथ लहराते देखा. सुमन बड़ी मुसकान के साथ उस की ओर बढ़ी और फिर दोनों एकदूसरे से गले मिलीं.

‘‘अमेरिका के न्यूयौर्क में आप का स्वागत है सुमन,’’ कह कर राधिका ने सुमन के गाल पर किस किया.

सुमन ने भी उसे गले लगाया और फिर दोनों निकास द्वार की ओर बढ़ने लगीं.

राधिका, सुमन की चाची की बेटी है. वे लगभग हमउम्र हैं. दोनों का बचपन इंदौर में अपने नानाजी के घर में एकसाथ गुजरा था. हर छुट्टी पर परिवार के सभी सदस्य अपने नाना के घर इंदौर में इकट्ठा होते थे और उन दिनों की खूबसूरत यादें सुमन के दिमाग में अभी भी ताजा हैं. अपने नानानानी की मृत्यु के बाद सुमन की मां ने अपनी बहनों से अपना संपर्क बनाए रखा और वे अकसर मुंबई आती थीं. राधिका ने खुद सुमन के घर में रह कर मुंबई में ही कैमिस्ट्री में पौस्टग्रैजुएशन किया था और उस समय सुमन भी कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही थी. राधिका नौकरी के सिलसिले में न्यूयौर्क चली गई और सुमन को मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई.

‘‘चाची और चाचा कैसे हैं,’’ गाड़ी को पार्किंग से बाहर निकालते हुए राधिका ने पूछा.

सुमन मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे ठीक हैं.’’

अब दोनों ओर से चुप्पी थी. अमेरिकी धरती पर उतरते ही सुमन से कोई भी निजी सवाल पूछ कर राधिका उसे उलझन में नहीं डालना चाहती थी. इसी बीच सुमन का फोन बजा. आशीष का था. सुमन को झिझक हुई तो राधिका ने कहा, ‘‘तुम कौल लेने में क्यों संकोच कर रही हो?’’

तब सुमन ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय स्वीट हार्ट,’’ दूसरी ओर से आशीष की आवाज थी,‘‘तम न्यूयौर्क पहुंच गई हो… यात्रा कैसी रहीं. कोई कठिनाई तो नहीं हुई?’’ उस की आवाज में चिंता बहुत स्पष्ट थी.

‘‘हां आशीष मैं बिना किसी दिक्कत के न्यूयौर्क पहुंच चुकी हूं… सफर अच्छा था… बस थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं.  मेरी बहन राधिका हवाईअड्डे मुझे लेने आ गई थीं. अब हम अपने घर जा रही हैं… मैं तुम्हें बाद में फोन करूंगी,’’ और फिर फोन काट दिया.

फिर घंटी बजी. सुमन की मां थीं. मां ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ठीक हो? क्या राधिका एअरपोर्ट आ गई थी? सुमन ने फोन राधिका को पकड़ा दिया. राधिका बोली, ‘‘मौसी मैं एअरपोर्ट कैसे नहीं आती… आप सुमन की चिंता न करो… वह यहां बिलकुल सुरक्षित है. हम घर पहुंच कर आप को फोन करते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सुमन की मां ने फोन काट दिया.

राधिका का तीसरी मंजिल पर

3 बैडरूम वाला अपार्टमैंट था.

जैसे ही राधिका और सुमन ने घर में प्रवेश किया एक फिरंगी लड़की एक बैडरूम से बाहर आई और सुमन को गले लगा कर मुसकराते हुए उस का अभिवादन करते हुए बोली, ‘‘यूएस में आप का स्वागत है और आशा है कि आप मेरे साथ रहना पसंद करेंगी.’’

सुमन सोच में पड़ गई कि राधिका अकेली रह रही है तो यह लड़की कौन?

राधिका उसे कौफी का कप पकड़ाते हुए बोली,

‘‘सुमन यह जेनिफर है. हम ने इस अपार्टमैंट को मिल कर किराए पर लिया है. वह एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती है और वे ही अपनी कंपनी में तुम्हें नौकरी दिलाने में मदद करने वाली है… न्यूयौर्क बहुत महंगा शहर है… हम इस तरह एक अपार्टमैंट अकेले किराए पर नहीं ले सकते. वह बहुत व्यस्त रहती है, इसलिए ज्यादातर खाना बाहर से मंगवाती है… हमारे बीच कोई समस्या नहीं. अब तुम भी आ गई तो हम तीनों अपार्टमैंट साझा कर सकती हैं,’’ राधिका ने कौफी पीते हुए कहा.

सुमन चुप रही. वैसे भी वह केवल 2 साल के लिए अमेरिका आई है और फिर भारत अपने प्रेमी आशीष के पास वापस चली जाएगी. इस बीच जब जेनिफर उन दोनों के पास आई तो वह औफिस जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी. उस ने एक ईमेल आईडी देते हुए सुमन से कहा,‘‘राधिका ने मुझे बताया था कि आप को सौफ्टवेयर सैक्शन में नौकरी की जरूरत है और मैं उसी फील्ड में काम करती हूं… वास्तव में मेरी खुद की टीम में एक शख्स की जरूरत है. आज ही अपना सीवी इस आईडी पर भेजें ताकि जल्दी आप की नियुक्ति हो जाए. बाय… शाम को मिलते हैं,’’ और फिर राधिका को गले लगा अपनी गाड़ी की चाबी ले कर दफ्तर के लिए निकल गई.

‘‘तो क्या चल रहा है? सुमन तुम मुझ से दिल खोल कर बात कर सकती हो, क्योंकि हम केवल चचेरी बहनें ही नहीं बचपन की दोस्त भी हैं. याद है तुम्हें हम उन छोटेछोटे रहस्यों को कैसे साझा करते थे… मैं ने आज छुट्टी ले ली है ताकि तुम्हारे साथ समय बिता सकूं और तुम्हारी चीजों को व्यवस्थित करने के लिए मदद कर सकूं,’’ राधिका ने कहा.

सुमन ने लंबी सांस ली. मुंबई में अच्छी सैलरी वाली नौकरी से इस्तीफा दे कर

अमेरिका क्यों आई है, राधिका को यह बताने के लिए सुमन ने खुद को तैयार किया.

कुछ दिन पहले ही सुमन ने मां को पिता की मौजूदगी में बताया था.

‘‘सुमन तुम यह क्या कह रही हो? तुम

ऐसे सोच भी कैसे सकती हो,’’ उस की मां चिल्लाई थीं.

‘‘क्या आप ने सुना है कि आप की बेटी एक ऐसे लड़के से प्यार करती है, जो हमारी बिरादरी का नहीं है और इस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि वह उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है ताकि वे एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें. फिर वे तय करेंगे कि शादी करनी है या नहीं,’’ यह कहते हुए सुमन की मां मुश्किल से सांस ले पा रही थीं.

सुमन की मां हर छोटी सी छोटी बात पर भी भावुक हो जाती है, उस के विपरीत उस के पिता एक संतुलित व्यक्ति हैं. उन्होंने ध्यान से अपनी बेटी की बात सुनी.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा, आशीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम शादी में जल्दबाजी नहीं करना चाहते. मेरे अपने दफ्तर में 4 मित्र जोड़ों ने जल्दबाजी में शादी कर ली और फिर 1 साल के भीतर ही उन की शादी टूट गई. ऐसा इसलिए क्योंकि वे एकदूसरे को ठीक से समझे बगैर शादी कर बैठे. हम यह गलती नहीं दोहराना चाहते हैं. इन दिनों मुंबई में लिव इन रिलेशनशिप में रहना आम बात है. मेरे अपने दोस्त ऐसे ही रहते हैं. ऐसे साथ रहने से हम अपने साथी की ताकत और कमजोरी को समझ सकते हैं और एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान सकते हैं. फिर तय कर सकते हैं कि एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं, हमारी शादी सफल हो सकती है या नहीं,’’ सुमन ने समझाया.

सुमन की मां बेशक सदमे की स्थिति में थीं, लेकिन उस के पिता हमेशा की तरह शांत थे. उन्होंने सुमन को अपनी बगल में बैठाया और फिर बोले, ‘‘तुम्हारे दोस्तों की शादियां टूट गईं और तुम्हें लगता कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को समझे बिना जल्दबाजी में शादी की. इस मामले में मेरा खयाल है कि तुम दोनों 1-2 साल के लिए अपनी दोस्ती बरकरार रख कर एकदूसरे को समझने की कोशिश करो और फिर शादी कर लो. यह लिव इन रिश्ता क्यों?’’ रामनाथ ने पूछा.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा यही समस्या है. दरअसल, जब हम दोस्त होते हैं तो हम हमेशा दूसरे व्यक्ति को केवल अपना बेहतर पक्ष दिखाते हैं. हम सभी का एक और पक्ष है, जिसे हम जानबूझ कर दूसरों से छिपाते हैं. विवाह में ऐसा नहीं है. आप को अपने पूरे जीवन में एक व्यक्ति के साथ मिलजुल कर रहना होगा और आप को छोटी सी छोटी चीजें जैसे खाने से ले कर पैसे तक बड़े मामलों पर दोनों के बीच सहमति की जरूरत होती है.

‘‘उदाहरण के लिए मेरी एक दोस्त ने अपने बौयफ्रैंड से 4 साल तक डेटिंग करने के बाद शादी की. लेकिन शादी के बाद ही उसे समझ में आ गया कि जिस से उस ने ब्याह किया वह एक पुरुषवादी व्यक्ति है. यद्यपि मेरी सहेली उस से अधिक कमा रही थी, फिर भी उस के पति ने उस के साथ बदसलूकी की और पुराने जमाने की पत्नियों की तरह अपने परिवार की सेवा करने के लिए उसे मजबूर किया. इस के अलावा मेरी सहेली से उस की कमाई का हिस्सा मांगा… दुख की बात तो यह है कि उस लड़के ने मेरी सहेली की अपने मातापिता को किसी भी रूप से सहायता करने से सख्त मनाकर दिया. जब हम दोस्त होते हैं तब हमें एक मर्द के इस पहलू को नहीं जान सकते, क्योंकि उस वक्त सभी इंसान अपना अच्छा पक्ष ही दिखाएगा,’’ सुमन ने बताया.

थोड़ी देर रुक वह आगे बोली, ‘‘पापा, आज भी बहुत से भारतीय पुरुष हैं जो सोचते हैं कि वे घर के बौस हैं. पत्नी को केवल उन की आज्ञा का पालन करना चाहिए. स्त्री को उचित अधिकार और सम्मान नहीं दिए जाने की वजह से ही इन दिनों कई भारतीय शादियां टूट रही हैं. मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ भी ऐसा हो. मैं ने सोचा कि जब हम एकसाथ रहते हैं तो हमारी सचाई एकदूसरे के सामने आती है तब हमें पता चलता है कि हम एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं.’’

रामनाथ ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम सही हो और मैं इस विषय में तुम से पूरी तरह सहमत हूं, लेकिन यह लिव इन रिलेशनशिप भी उतनी आसान नहीं जितना तुम समझ रही हो. यह भी बहुत सारी समस्याओं को जन्म देती है. तुम एक शिक्षित लड़की हो और मुझे तुम्हें बहुत समझाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम स्मार्ट और बुद्धिमान हो. शादी जैसे बंधन के बिना लड़का और लड़की पतिपत्नी की तरह रहने से भी समस्याएं हो सकती हैं. पहली बात यह है कि दोनों तरफ कोई प्रतिबद्धता नहीं है और यह किसी भी रिश्ते के लिए अच्छा नहीं है.

‘‘अगर इस तरह साथ रहने में जिन दिक्कतों का लड़का और लड़की को सामना करना पड़ता है, उन के बारे में मैं कहूं तो तुम समझोगी कि मैं पिछली पीढ़ी का बूढ़ा आदमी हूं और लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ कहता हूं. इसलिए मेरे पास एक सुझाव है. लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से आई है न? लेकिन अब वे महसूस कर रहे हैं कि शादी की हमारी परंपरा बेहतर है. हमारी राधिका न्यूयौर्क में है और तुम वहां जा कर काम करो और पश्चिमी लोगों के साथ काम करते दौरान उन के जीवन को करीब से देखो. तब तुम अपने लिए क्या सही है यह निर्णय करने की स्थिति में होगी और वह तुम्हारे लिए बेहतर होगा.’’

सुमन को भी लगा कि यह एक अच्छा विचार है.

‘‘तो मैं अब अमेरिका में हूं, जहां लिव इन रिलेशनशिप की संस्कृति को समझना है,’’ सुमन ने हंसते हुए कहा.

राधिका भी हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें पता है कि जेनिफर अगले हफ्ते वास्तव में अपने बौयफ्रैंड के साथ इसी बिल्डिंग में एक और फ्लैट में जाने की योजना बना रही है. एक नई लड़की क्लारा हमारी रूममेट होगी,’’ कह कर राधिका चाय के कप रखने चल दी और सुमन खिड़की से नीचे चल रही गाडि़यों की जलूस देखने लगी.

धीरेधीरे 3 साल बीत गए. हर हरिवार को सुमन के मातापिता उस से कम

से कम 2 घंटे तक इंटरनैट पर बात करते थे. इकलौती औलाद होने के नाते सुमन के मातापिता उस पर अपनी जान छिड़कते थे. खासकर सुमन की मां जो अपनी बेटी से अलग नहीं रह पा रही थी. उन्होंने अपने पति से कहा कि वे अमेरिका जाएं अपनी बेटी के पास.

रामनाथ ने उन्हें यह कहते हुए रोक दिया, ‘‘नहीं हम वहां नहीं जा रहे हैं. हम ने सुमन को वहां संस्कृति का निजी ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा है, जिस की भारतीय युवा पीढ़ी इतने उत्साह से पीछा कर रही हैं.’’

सुमन की मां के पास इसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

आशीष हर हफ्ते उस से इंटरनैट पर बात करता था, क्योंकि उसे भी सुमन से अलग रहना अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस ने भी यूएस आने का प्रस्ताव रखा तो सुमन ने तुरंत मना कर दिया और कहा, ‘‘मैं ने अपने पिताजी से वादा किया है कि मैं आप को यहां नहीं बुलाऊंगी… और मैं अपना वादा नहीं तोड़ूंगी.’’

आशीष मान गया.

नौकरी भी अच्छी चल रही थी. न्यूयौर्क एक तेजी से आगे बढ़ने वाला शहर है, जो उस के मुंबई से भी ज्यादा तेज है. सुमन को सुबह 8 बजे अपने दफ्तर में पहुंचना है और वह जिस फ्लैट में रह रही है, वहां से पहुंचने में समय लगता. लेकिन न्यूयौर्क में आवागमन करना कोई समस्या नहीं है.

सुमन हर सुबह अपने और राधिका के लिए भारतीय नाश्ता बनाती और लंच भी पैक कर के औफिस के लिए निकल जाती.

एक रिसर्च स्कौलर होने के कारण राधिका की नौकरी लैब में थी और उस के काम का निश्चित समय नहीं था. कभीकभी 3-3 दिन तक घर नहीं आती और इस की सूचना सुमन को पहले ही दे देती थी ताकि वह उस का इंतजार न करे.

अब तक सुमन और क्लारा अच्छे दोस्त बन गए थे. सुमन को लगा कि क्लारा एक अच्छी लड़की है. लेकिन उस के साथ एकमात्र समस्या यह थी कि वह हर रविवार को कुछ मांसाहारी भोजन बनाती थी. उस की गंध को बरदाश्त करना शाकाहारी सुमन के लिए बहुत मुश्किल था. लेकिन धीरेधीरे सुमन उस गंध की आदी हो गई.

सुमन को रविवार को भी जल्दी उठना पड़ता था, क्योंकि क्लारा के रसोई में आने से पहले ही सुमन अपना और राधिका का खाना बना सके.

एक रविवार सुमन टीवी देख रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जेनिफर थी, जो अब उस की सहकर्मी है. उस के पास एक बैग था और उस की आंखें सूजी थीं. उस का हुलिया देख कर सुमन हैरान हो गई.

जेनिफर अंदर आई और बेकाबू हो कर बिलखबिलख कर रोने लगी. सुमन समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिएक्ट करें. फिर उस ने खुद को संभाला और पूछा, ‘‘क्या हुआ जेनी तुम रो क्यों रही हो? कुछ तो बताओ… क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूं?’’ सुमन ने जेनिफर को गले लगाते हुए कहा.

‘‘सुमन मेरा बौयफ्रैंड अव्वल नंबर का धोखेबाज निकला. उस का किसी दूसरी लड़की के साथ अफेयर चल रहा है. उस ने मुझ से यह बात छिपाई और ऊपर से मेरे सारे पैसे उस लड़की पर खर्च कर दिए. अब मैं बिलकुल कंगाल हूं. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि हम दोनों अलग हो जाएंगे. हम कानूनी रूप से विवाहित तो नहीं जो मैं अदालत से मदद ले सकूं… गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम ले सकूं. अगर इस में एक व्यक्ति दगाबाज निकले तो दूसरा कुछ भी नहीं कर सकता और मैं उसी हालत में हूं. मेरी सारी बचत को उस ने लूट लिया.’’

सुमन उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी. जेनिफर ने पूछा, ‘‘क्या मैं आप लोगों के साथ तब तक रह सकती हूं जब तक कि मुझे एक और अपार्टमैंट और रूममेट नहीं मिलता है?’’

सुमन ने कहा, ‘‘बेशक

जेनी यह भी कोई पूछने वाली बात है क्या?’’

जेनिफर की हालत देख कर क्लारा को भी तरस आ गया और उसे अपने साथ रहने की इजाजत दे दी.

शाम को दफ्तर से आने पर राधिका ने पूरी कहानी सुनी. उसे अजीब सी बेचैनी हुई कि एक आदमी इतना मतलबी कैसे हो सकता है और उस के साथ ऐसा व्यवहार भी कर सकता है, जो उस से प्यार कर के उस के साथ रहने आई थी. वह सोच भी नहीं सकती कि एक इंसान इतनी ओछी हरकत कर सकता है. तीनों सहेलियां एकसाथ खाना खा कर इसी बारे में बात करती रहीं.

बातोंबातों में क्लारा ने अपनी समस्या बताई, ‘‘मैं भी ऐसी मुश्किल घड़ी से गुजर चुकी हूं. जब मैं अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप कर के बाहर आई थी तो पूरी तरह टूट चुकी थी और मेरा बैंक बैलेंस भी शून्य था. हमारे देश में यह एक मामूली समस्या बन चुकी है. ऐसा नहीं है कि केवल लड़के ही धोखा देते हैं. कभीकभी लड़कियां भी ऐसी गिरी हरकत करती हैं. इस तरह के रिश्ते की नींव आपसी विश्वास के अलावा कुछ भी नहीं है और अकेले ही इस स्थिति का सामना करना पड़ता है.

‘‘एक तरह से मुझे लगता है कि आप का देश अच्छा है सुमन. आप की शादियों में सभी बुजुर्ग और परिवार के अन्य सदस्य शामिल होते हैं और यह 2 व्यक्तियों का नहीं, बल्कि 2 परिवारों का मिलन बन जाता है. हमारे मामले में हम इस बड़ी दुनिया में अकेले हैं. 18 साल की उम्र में हम अपने परिवारों से बाहर आते हैं और हमें अकेले ही दुनिया का सामना करना पड़ता है. मेरे 3 ब्रेकअप हो चुके हैं और तुम जानती हो कि हर ब्रेकअप कितना दर्दनाक होता है… एक बार मैं एक गहरे मानसिक अवसाद में चली गई और अभी भी उस अवसाद के लिए गोलियां ले रही हूं… अब मैं अकेली हूं. वास्तव में मैं अब एक नए रिश्ते से डर रही हूं कि इस बार भी मुझे प्यार के बदले में छल ही मिलेगा,’’ और फिर क्लारा ने लंबी सांस भरी.

‘‘सुमन हर हफ्ते आप के मातापिता आप से बात करते हैं और यह एक अच्छा एहसास है कि इस दुनिया में कोई है, जो आप को बहुत प्यार देता है और आप की चिंता करता है. जब मैं 10 साल की थी तब मेरे मातापिता अलग हो गए थे और इस से मैं बहुत परेशान थी. मुझे अपनी मां के नए प्रेमी को स्वीकारने में बहुत समय लगा. मेरे पिताजी समय मिलने पर कभी फोन किया करते थे, लेकिन कभी भी मेरे साथ समय नहीं बिताया. मेरे 2 सौतेली बहनें और 2 सौतेले भाई हैं. मेरे पिता के अन्य महिलाओं के माध्यम से बच्चे हैं और मेरी मां के भी अन्य पुरुषों के साथ बच्चे हैं. मेरी मां कभी हम सब को मिलने के लिए बुलाती है. उस समय हम एकदूसरे से मिलते हैं… वह अवसर बहुत औपचारिक होता था,’’ क्लारा ने दुखी मन से बताया.

‘‘हमारे गुजाराभत्ता कानून महिलाओं के लिए बहुत सख्त और अनुकूल है और यही कारण है कि ज्यादातर अमीर पुरुष कानूनी शादी पसंद नहीं करते हैं. अगर हम शादीशुदा हैं और अलग हो गए हैं तो उन्हें हमारे द्वारा लिए गए पैसे वापस करने होंगे और गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम भी चुकानी होगी. अब इस प्रकार के संबंधों में कानून कोई भूमिका नहीं निभाता है. हमें इसे अकेले ही निबटना होगा.

‘‘हर बार जब रिश्ते में धोखा खाते हैं तो लड़कियां हमेशा के लिए टूट जाती हैं. मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के साथ संबंध पसंद हैं. सुमन जब मैं आप की मां को आप से बात करते हुए देखती हूं, हालांकि मुझे आप की भाषा नहीं पता, मगर उन की अभिव्यक्ति से पता चलता है कि वे आप से कितना प्यार करती हैं… आप की खातिर किसी भी तरह का दुख भोगने के लिए तैयार हैं… हमारे देश में ऐसा नहीं है. यहां हर किसी को एक अलग व्यक्ति माना जाता है,’’ क्लारा की इस बात पर जेनिफर ने भी हामी भर ली.

राधिका सुमन की तरफ देख कर मुसकराई. सुमन समझ सकती थी कि वह क्या कहना चाहती है. सुमन को लगा कि हर जगह समस्याएं हैं. लिव इन रिलेशनशिप भी इतना आसान नहीं है, जितना हरकोई कल्पना करता है. भारतीय परिस्थितियों और भारतीय पुरुषों के साथ तो यह और भी कठिन है.

सुमन सोच में पड़ गई. एक बात उस की समझ में आई कि यदि आप के पास कानूनी सुरक्षा है, तो आप एक तरह से सुरक्षित हैं कि आप से आप का पैसा नहीं छीना जाएगा और ब्रेकअप के बाद आदमी को मुआवजा देना होगा और फिर जब आप विवाहित होते हैं तो आप की सामाजिक स्वीकृति भी होती है.

उस रविवार को जब उस के मातापिता लाइन पर आए तो सुमन ने अपने पिताजी से

कहा, ‘‘मैं अब उलझन में नहीं हूं पापा… ऐसा लग रहा है कि ऐसा कोई भी तरीका नहीं है, जो बिलकुल सही या बिलकुल गलत है.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटा. कोई भी व्यवस्था हर माने में सही या गलत नहीं हो सकती… हमें ही समझदारी के साथ काम करना पड़ेगा.

‘‘बेटा कोई भी शादी या रिश्ता इस दुनिया में ऐसा नहीं चाहे वह न्यूयौर्क हो या मुंबई ऐसा नहीं जो सौ फीसदी परफैक्ट हो. कोई न कोई कमी तो होती ही है और उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ने में ही बेहतरी होती है. किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए हर किसी को कुछ देना पड़ता है. तुम ही एक उदाहरण हो. तुम शुद्ध शाकाहारी हो मगर क्लारा के साथ एक ही रसोई को साझा कर रही हो क्यों? क्योंकि तुम क्लारा को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती और उस से भी बढ़ कर तुम क्लारा से अपने रिश्ते का मूल्य समझती हो और उस की इज्जत करती हो, है न? जीवन भी इसी तरह है. अगर आप रिश्ते को बनाए रखना चाहते हैं तो मुकाम पर आप को हर हाल में समझौता करना होगा.’’

‘‘हर संस्कृति की अपनी ताकत और कमजोरी होती है. अमेरिकी संस्कृति की अपनी ताकत है कि यह हर व्यक्ति को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाती है और वह कम उम्र में ही दुनिया से अकेले लड़ने की सीख देती है. मगर उस के लिए उन लोगों को किनकिन कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है यह आप ने खुद देख लिया.

‘‘हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा परिवार की अवधारणा में विश्वास करती है और रिश्ते हमेशा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता रहे हैं. इस में कुछ ताकत और कमजोरी हो सकती है. समझौता हर रिश्ते का एक अभिन्न हिस्सा है, चाहे 2 लोग दोस्त हों या विवाहित.’’

अपने पिता से बात करने के बाद सुमन बहुत हलका महसूस कर रही थी. ‘जब वह एक रूममेट के लिए समझौता कर सकती है, वह भी एक विदेशी से तो फिर उस आदमी के लिए क्यों नहीं जो जीवनभर उस का साथी बनने वाला है, जो उस की सफलताओं और असफलताओं में उस के जीवन का हिस्सा बनने जा रहा है… वह है उस के जीवन का एक हिस्सा… यदि उस के लिए नहीं तो फिर वह किस के लिए समझौता करेगी,’ सुमन सोच रही थी.

अब सुमन ने फैसला कर लिया. वह आशीष से शादी करने के लिए तैयार थी और उस के साथ आने वाले समझौतों के लिए भी आशीष को वह मनाएगी ही क्योंकि 2 साल से वह भी उसी का इंतजार कर रहा है. आखिर समझौते के बिना जिंदगी ही क्या है.

Family Story

Long Story in Hindi: शीत युद्ध

Long Story in Hindi: दोनों का पारा 7वें आसमान को छू रहा था. व्यंग्य, आरोप, शिकायतों से भरे कूड़े के ढेर एकदूसरे पर फेंके जा रहे थे. भूत, वर्तमान के साथ भविष्य भी इस बहस में शामिल हो चुका था. इस तीखी नोक झोंक में एकदूसरे को अपने त्याग, अपनीअपनी महानता की मिसाल गिनाते हुए दोनों ही इस बात पर तुले थे कि वे एकदूसरे को उस की गलती आज मनवा कर ही मानेंगे. पहली बार कोई सुनता तो उसे यही लगता इन दोनों के बीच का  झगड़ा, मनभेद जिस मुकाम तक पहुंच चुका है, अब इस की अंतिम परिणति बस तलाक ही है.

‘‘आप को कभी भी यह महसूस हुआ कि कितना काम करती है यह औरत? कभी सोचते हैं कि दिनभर मैं घर में अकेले एक नौकरानी की तरह लगी रहती हूं?’’ श्वेता ने तिलमिला कर कहा.

‘‘क्या तुम दुनिया की अकेली औरत हो जो घर का काम करती है? फिर घर में ऐसा बड़ा काम है ही क्या? बस 2-4 लोगों का नाश्ताखाना बनाना, वाशिंग मशीन में कपड़े डालना, वह भी औटोमैटिक मशीन में. बाकी काम के लिए महरी तो आती ही है,’’ अभिषेक ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘एक दिन घर में काम कर के देखिए तो पता चल जाए दिनभर क्या काम करती हैं हम औरतें,’’ श्वेता ने चुनौती दी.

‘‘तुम भी एक दिन औफिस जा कर देखों तो आटादाल का भाव मालूम हो जाए. तुम को तो यही लगता है नकि औफिस में हम लोग मौज करते हैं, ऐयाशी करते हैं, जबकि औफिस में घंटों खटने के बाद भी बौस की फटकार सुनने को मिलती है, सुबह और शाम औफिस के रास्ते में 2 घंटे की ड्राइव, कई दफा लंबेलंबे जाम में फंसे रहना पड़ता है. इन सब के बाद घर लौटने के बाद भी चैन नहीं, 10 तरह की मांग, तुम्हारे उलाहने. बस यही है हम जैसों की जिंदगी,’’ अभिषेक ने कहा. उस की आवाज धीरे न पड़ जाए इसलिए सोफे पर बैठेबैठे उस ने रिमोट से टीवी की आवाज धीमी कर दी.

‘‘आप लोग घर के काम को आसान सम झते हैं? कपड़े मशीन में डालने से धुल कर तैयार नहीं हो जाते हैं, मशीन से निकाल कर उन्हें फैलाना, फिर उतारना, प्रैस करना भी होता है. सब का खाना बनाना, घर की सफाई, बच्चों को तैयार करना, उन का, आप का अलग से टिफिन तैयार करना…’’ श्वेता ने घर के काम गिनाने शुरू किए.

तभी अभिषेक बीच में बोल उठा, ‘‘कपड़े धोने, खाना बनाने जैसे काम के लिए ही

क्या मर्द शादी करता है? ये काम तो 3-4 हजार दे कर नौकरानी से भी कराए जा सकते हैं. शादी कर के फिर इतना ताम झाम क्यों पालना? दिनभर घरवालों के लिए मेहनत करने के बाद आदमी जब घर आता है तो उसे सुकून चाहिए. पर यहां सुकून की जगह उलाहने, ताने सुनने को मिलते हैं.’’

श्वेता नौकरानी की अपने से की गई इस तरह की तुलना पर हमेशा तिलमिला जाती थी. आज भी यही हुआ. बोली, ‘‘तो करा लीजिए न नौकरानी से सारा काम. मैं भी देखूं. हमेशा इस का रोब क्या देते हैं? वैसे भी मु झे घर की नौकरानी ही बना कर रख छोड़ा है आप ने?’’ श्वेता का गला भर्रा गया. पर उस ने अपने आंसू रोक लिए. आंसू बहा कर वह अपने को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी.

‘‘उन औरतों के बारे में कभी सोचा है जो दफ्तर जाती हैं, वे सुबह से वहां काम करती हैं,फिर शाम को दफ्तर से वापस आ कर घर सभांलती हैं. दोहरी ड्यूटी करती हैं वे, घर की और दफ्तर की.’’

अभिषेक ने बहस का रुख दूसरी तरफ मोड़ा. बहस के तरकश में रखे ब्रह्मास्त्रों में नौकरानी वाला अस्त्र वह चला चुका था. यह दूसरा था. निशाना सही लगा, असर भी पूरा पड़ा. कामकाजी महिलाओं से तुलना कर उस ने आग में घी डालने का काम किया.

श्वेता की आवाज और तेज हो गई, ‘‘उन के पति आप जैसे नहीं होते. वे घर के कामकाज में अपनी पत्नियों का हाथ बंटाते हैं, सोफे पर बैठे आप की तरह केवल हुक्म नहीं चलाते,’’ इस के साथ ही उस ने 2-3 कामकाजी महिलाओं के पतियों का उदाहरण दे डाला, ‘‘और ऐसा ही था तो खुद क्यों नहीं कर ली नौकरी वाली से शादी? आप तो चाहते ही नहीं थे कि आप की बीवी नौकरी करे, डीटीसी बसों और दफ्तर में धक्के खाए. 10 तरह की फिलौसफी  झाड़ी थी शादी के बाद, अब नौकरी वाली अच्छी लगने लगी…’’

यह सच है कि अभिषेक नहीं चाहता था श्वेता नौकरी करे, उसे इस फैसले को ले कर कभी अफसोस भी नहीं हुआ. उलाहना देना अलग बात है. उस ने शादी के बाद श्वेता से पूछा भी था कि नौकरी करोगी, लेकिन उस के जवाब के पहले ही खुद की सोच उस पर लाद दी, ‘‘मैं नहीं चाहता कि औफिस से घर आऊं तो मेरी बीवी भी उसी हालत में थकीमांदी घर में मिले, मेरे बच्चे स्कूल से आएं तो उन्हें घर पर मां की जगह मेड मिले.’’

श्वेता ने भी शादी के पहले और शादी के बाद एक घरेलू पत्नी की भूमिका ही पसंद

की. अपने व्यक्तिगत कैरियर की उसे कभी महत्त्वाकांक्षा नहीं रही. एक मध्यवर्ग की आम लड़कियों की तरह उस ने भी एक सामान्य गृहस्थ जीवन का सपना जरा सा बड़ा होते ही पाल लिया था. अपना घर हो जिसे वह अपने मुताबिक सजाएसंवारे. प्यार करने वाला पति हो जो मेहनत कर के शाम को घर आए तो उस से बातें करे, बाहर घुमाए, उस की पसंदनापसंद का खयाल रखे. बस 2 बच्चे हों, जिन के भविष्य के लिए दोनों मेहनत करें.

शादी के बाद 2-3 साल तक सबकुछ उसी तरह चला भी. 2 बच्चे भी जल्दीजल्दी हो गए, बड़ी बेटी, फिर उस के बाद बेटा. लेकिन उस के बाद न जाने क्या हुआ बेवजह उस के और अभिषेक के संबंधों की वह अमरबेल सूखने लगी जो उन्होंने साथ लगाई और उसे बढ़ाया था. उस की जगह कैक्टस के ढेर सारे चाहेअनचाहे पौधों ने पांव पसारने शुरू कर दिए.

श्वेता को लगने लगा यह वह अभिषेक नहीं है जिस से उस की शादी हुई थी. वह बदल गया है. अभिषेक को भी कुछ ऐसा ही महसूस होने लगा. कभीकभी उसे विश्वास नहीं होता यह वही श्वेता है जिस की आंखों में, देह में उसे हमेशा प्यार का दरिया उमड़ता नजर आता था, जिस से वह खुद बहुत प्यार करता था, खुद को दुनिया का सब से खुश पति मानता था. न जाने श्वेता एक कर्कशा, वाचाल पत्नी में कब और कैसे बदल गई, उसे पता ही नहीं चला. शायद बच्चों के परिवार में आने के बाद गृहस्थी के बढ़ते दायित्व, बो झ और शारीरिक श्रम के वे  झेल नहीं पाए या फिर प्यार की दुनिया और कशिश का गृहस्थ जीवन के यथार्थ धरातल का जब सामना हुआ तो वे उसे सम झ नहीं पाए और सबकुछ बिखर गया.

‘‘तुम केवल एमए पास थी, तुम्हें टीचिंग के अलावा नौकरी ही क्या मिलती. टीचिंग में भी बीएड चाहिए.’’

बहस में कामकाजी पत्नी बनाम घरेलू पत्नियों का मुद्दा आ चुका था. अभिषेक के लिए यह बड़ा मुद्दा था. वह इसे छोड़ना नहीं चाहता था.

‘‘फिर ऐसी महिलाओं के पति घर में सहयोग क्यों नहीं करेंगे? उन की पत्नियां घर में पैसा लाती हैं, घर के खर्चों में उन का सहयोग होता है. हमारी तरह उन के पति एक गधा नहीं होते जो पूरे घर के खर्च का बो झ अकेले अपनी पीठ पर लादे रहता है. दोहरा बो झ उठाती हैं वे बेचारी. पतियों की तरह दफ्तर में काम करती हैं, उन की तरह कमाती हैं, घर का भी ज्यादा से ज्यादा बो झ उन्हीं पर रहता है. वे भी बच्चों, पति के साथ अपने लिए भी टिफिन तैयार करती हैं. शाम को औफिस से आई नहीं कि खाना बनाने की तैयारी.’’

‘‘दूर के ढोल सुहावने. जरा उन के पतियों को देखिए वे पत्नियों के साथ कैसे रहते हैं,

जा कर हालत देखिए. पत्नी का वे पूरा ध्यान रखते हैं. सुबह वह टिफिन तैयार करती है तो उन के पति बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करते हैं. खाना बनाने में मदद करते हैं. ज्यादातर ने खाना बनाने के लिए मेड रखी हैं,’’ श्वेता का बोलना जारी रहा. वह जानती थी कि ऐसे मामले में अभिषेक दूसरों की पत्नियों की तुलना हमेशा जानबू झ कर करता है, बावजूद यह मामला आते ही वह तिलमिला जाती.

‘‘आप तो बच्चों के स्कूल जाने के बाद भी बिस्तर पर अपनी नींद पूरी कर के उठते हैं. फिर उन औरतों के पतियों को जो भी खाने को मिला खा लेते हैं. आप की तरह उन्हें फरमाइशी खाना नहीं चाहिए. आज गुस्साए क्यों आप? खाने को ले कर ही न?’’

‘‘दिनभर खट कर कमाता हूं, सब का ध्यान रखता हूं, सब की जरूरतें पूरी करता हूं, इस के बाद खाना भी अपने घर में ठीक से न मिले?’’ अभिषेक ने किसी तरह यह तर्क ढूंढ़ा.

वैसे श्वेता सही कह रही थी.  झगड़े की वजह मामूली थी, खाने को ले कर ही आज यह बवाल शुरू हुआ था.

‘‘किस की जरूरतें पूरी करते हैं? आप की कमाई से मु झे क्या फायदा हुआ? कौन से मेरे शौक पूरे हुए? मेरे हाथ में एक भी पैसा देते हैं? मेरा कुछ मन हुआ तो अपने मन से कुछ खरीद नहीं सकती. हर बात के लिए आप के सामने हाथ तो पसारूंगी नहीं. शादी के 15 साल हो गए, क्या दिया आप ने? मैं दिनभर खटती हूं. बदले में 2 टाइम का खाना ही तो खाती हूं,’’ श्वेता ने जवाब दिया.

‘‘घर से कभी बाहर निकल कर ध्यान से देखो देश की 60% औरतें कैसे रहती हैं. उन के पास क्या है, यह देखने के बाद तुम्हें पता चल जाएगा कि तुम्हें क्या मिला है, तुम को मैं ने क्या दिया है. यह जो मकान है, गाड़ी है, और भी जो सुविधाएं मैंने आप लोगों के लिए बनाई वे कुछ नहीं है? यह सब मैंने अपने लिए तो किया नहीं. यह सब अपनी मेहनत से किया है. दहेज में तो मिला नहीं?’’

‘‘सब करते हैं. आप ने कौन सा बड़ा तीर मार दिया? शादी कर के आई थी तो आप के पास था ही क्या? मेरे आने के बाद ही तो यह सब आया. शादी के पहले ही पंडित ने कहा था कि तुम्हारे आने से तुम्हारे पति की संपत्ति बढ़ेगी.’’

यह भी एक जहर बु झा बाण होता है जिसे अभिषेक  झेल नहीं पाता. उसे यह चुभ जाता है कि मेरी वर्षों की रातदिन की सारी मेहनत को यह औरत अपनी भाग्य कुडंली सामने ला कर 1 मिनट में खत्म कर देती है.

मां ने एक बार इस के सामने कह क्या दिया कि मर्द की तरक्की पत्नी और बच्चों के भाग्य से ही होती है, श्वेता ने उसे ब्रह्म सूत्र की तरह पकड़ लिया. हर  झगड़े में या किसी के सामने होने वाली बातचीत में मां की इस बात का वह गुगली की तरह इस्तमाल करती है,’’ जब मैं यहां आई तो इन के पास था ही क्या?’’

श्वेता किचन में काम करते हुए अभिषेक की बातों का जवाब दे रही थी. एक बार उस का मन हुआ कि अभिषेक बोलता रहे, वह अब उस का जवाब नहीं देगी. पर सही में यह व्यक्ति तो मुंह में हाथ डाल कर बुलवाता है. वह यह जानती थी कि अगर वह चुप हो भी गई तो अभिषेक सोफे से उठ कर किचन में आ जाएगा, उसे उकसाना शुरू कर देगा, ‘‘चुप क्यों हो गई? अब जवाब क्यों नहीं देती. सारे तर्क खत्म हो गए?’’

जिस मुद्दे को ले कर  झगड़ा शुरू हुआ, वह निहायत मामूली था. दोपहर में श्वेता ने औफिस फोन कर अभिषेक से यह पूछ लिया कि रात में खाने में वह क्या बनाए. अकसर वह यह पहले भी पूछती रही. अभिषेक इस के जवाब में ज्यादातर यही कहता जो मन हो बना लेना. कभीकभी काम के बीच में आए इस तरह के सवाल पर  झल्ला भी जाता था. लेकिन आज उस ने बेसन की सब्जी बनाने को कह दिया था. यह उस की पसंदीदा सब्जियों में से एक थी.

रात में खाने टेबुल पर बैठा तो पहले से बेसन की सब्जी का मूड बना हुआ था. लेकिन

बेसन की सब्जी की जगह उसे कटहल की सब्जी मिली. उस ने बेसन की सब्जी के बारे में पूछा. अभिषेक को गिनचुन कर जो 2-3 सब्जियां पसंद नहीं थीं उन में कटहल भी थी. वह  झल्ला गया. श्वेता ने बेसन की सब्जी न बनने की जो वजह बताई, वह उस के गले नहीं उतरी. इसे भी वह सह लेता होता, लेकिन विकल्प के रूप में उसे जो सब्जी दी गई थी उस से बदन में आग लग गई. उसे लगा यह बात श्वेता को भी पता है कि कटहल उसे नापसंद है, फिर भी यह विकल्प उसे दिया गया.

श्वेता ने वजह बताई चूंकि घर में बेसन कम था, सब के लिए सब्जी पूरी नहीं पड़ती, इसलिए कटहल बना दिया. बस यह सुनते ही बच्चों की तरह अभिषेक उखड़ गया. यह मामला केवल सब्जी का नहीं रह गया. यह मामला घर में अभिषेक के महत्त्व, उस के प्रति श्वेता की सोच, एक पत्नी द्वारा पति की परवाह जैसे गंभीर विषय से जुड़ गया.

अभिषेक बगैर खाना खाए गुस्से में डाइनिंगटेबल छोड़ कर सोफे

पर बैठ गया था. वहीं से वाकयुद्ध में अपना मोरचा संभाले था. श्वेता जवाबी हमले के साथ घर के बचे काम भी समेट रही थी. अभिषेक ने खाया नहीं था, उसे बाकी बचे खाने के साथ बरतन में डाला, फिर फ्रिज में रखा. बाकी बरतनों को हटा कर सिंक में डाला. इस के बाद वह किचन की सफाई में लग गई थी. चूल्हे को पोंछ रही थी ताकि सुबह किचन देख कर महरी का मूड खराब न हो. पर इस सारे काम के बावजूद बोलने और अभिषेक पर हमले की रफ्तार में किसी तरह की कमी नहीं होने दी. कुछ साल पहले ही उस ने ठान लिया था कि अभिषेक जो चाहे वह बोल कर अब नहीं निकल सकता, अपनी गैरवाजिब बातें मु झ पर नहीं थोप सकता है. इसलिए जवाब देने के लिए तर्क खत्म होने लगते तो वह अभिषेक के तर्कों का ही इस्तमोल उस के खिलाफ करने लगती.

जिस तरह श्वेता ने बचा खाना समेट कर फ्रिज में रखा, उस से अभिषेक सम झ गया कि अब वह भी खाना नहीं खाएगी. तमाम  झगड़े के बावजूद जब वह ऐसे में श्वेता को बिना खाए बिस्तर पर जाते देखता, उसे तकलीफ होती. गुस्सा उड़ जाता. लेकिन कष्ट महसूस करने पर भी वह श्वेता से कुछ कह नहीं सकता. वह यह जानता था कि वह तो क्या, श्वेता के पिता भी अब आ जाएं तो वे भी उसे नहीं खिला सकते. ऐसी परिस्थितियों में कई बार उसे लगता फैसले लेने, उन पर टिके रहने पर जिस तरह श्वेता दृढ़प्रतिज्ञ रहती है, अगर सकारात्मक दिशा में वह ऐसे ही फैसला लेती तो अपनी और उस की जिंदगी बन सकती है.

मगर संबंधों में इस तरह से सोचना और कल्पना करना फुजूल की बातें हैं. श्वेता, वह खुद, सभी पतिपत्नी इतने ही सकारात्मक होते, सही तरीके से सोचते तो ज्यादातर घर, परिवार, यह समाज ही नहीं, सारी दुनिया स्वर्ग हो जाए. सदियों से कहा जाता रहा है, दुनिया की खुशी घर से ही शुरू होती है. कई रिश्तों में, कई स्तर पर होने वाले  झगड़ों की वजह ढूंढ़ें तो वह मामूली होती है, फिर भी इन  झगड़ों को ले कर थानेकचहरी में अपार भीड़ लगी होती है.

बच्चे पहले ही खा कर अपने कमरे में चले गए थे. वे इस  झगड़े के बीच अपने कमरे से नहीं निकले. उन्हें मालूम था कि मम्मीपापा की यह लड़ाई कम से कम आधा घंटा चलेगी. ऐसे मौकों पर उन को गुडनाइट कहने की पंरपरा वे दरकिनार कर देते हैं. उन की बहस शुरू होते ही दीप्ति तुरंत अपने लैपटौप में उल झ गई थी, अनुज अपने मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने में व्यस्त हो गया.

अभिषेक और श्वेता के सारे तर्क खत्म हो चुके थे. बगैर तर्क या आरोप के इस अहिंसक लड़ाई को जबरन आगे खींचना दोनों के लिए मुश्किल था. अभिषेक बैडरूम में आ गया. कपड़े बदले और बिस्तर पर करवट बदल लेट गया. सब काम निबटाने के बाद श्वेता भी आई और बैड के दूसरे किनारे पर दूसरी तरफ करवट ले कर सो गई. बिस्तर पर आने के पहले श्वेता ने लाइट औफ कर दी. कमरे में अंधेरा हो गया. उन दोनों के दिल में भी कुछ नहीं बचा रह गया. कोई शिकवाशिकायत नहीं. जो थी उस की भड़ास बहस के जरीए निकल चुकी थी. उन की लड़ाई पहले चरण से निकल कर दूसरे चरण में पहुंच चुकी थी. इसे शीत युद्ध कह सकते है.

दूसरा चरण कम से कम 1 हफ्ते का होता है. खत्म करने का कोई बहाना नहीं मिला

तो ज्यादा भी खिंच जाता है. शीत युद्ध के दौरान दोनों के बीच बोलचाल बंद रहती है. दोनों का व्यवहार, कुछ जरूरी बात कहनी भी हुई तो लहजा बदल जाता है. अभिषेक को श्वेता से कुछ कहना रहता है तो ‘तुम’ की जगह अब ‘आप’ कह कर संबोधित करता है. यह बातचीत निहायत खास जरूरतों पर ही होती है. जैसे ‘आंधी आ रही है, बाहर कपड़े हैं उतार लीजिएगा,’ ‘रात में आप मेरा खाना मत बनाइएगा, बाहर डिनर है,’ ‘लाइट औफ कर दीजिए, सोना है.’

श्वेता का भी बात करने का सलीका बदल जाता. इस दौरान वह अभिषेक से यह नहीं पूछती कि आप का खाना निकालूं’ खाना परोस कर टेबल पर रख देती और अभिषेक को सूचना दे देती, ‘खाना टेबल पर लगा दिया हैं.’ इस अवधि में बगैर अभिषेक की तरफ देखे एक संदेश की तरह घर की जरूरतें बता देती.

‘महरी का वेतन देना है,’ ‘दीप्ति अपने स्कूल की पिकनिक पर जाना चाहती है,’ ‘कल के लिए घर में कोई सब्जी नहीं बची है.’

अपने  झगड़ों में, संदेशों के इस आदानप्रदान में वे बच्चों को भरसक इस से दूर रखने की कोशिश करते थे. ‘अपने पापा से कह दो’ या ‘अपनी मम्मी को बता दो’ जैसी परिपाटी से दोनों ने परहेज किया, बच्चों को कभी बीच में नहीं आने दिया.

आपसी कटुता तो जोरदार बहसवाजी कर के घंटे भर बाद ही खत्म हो जाती है लेकिन यह अहम, ईगो, स्वाभिमान, अभिमान जैसी जो चीजें होती हैं, इन की गिरफ्त से निकलना आसान नहीं होता. बहस में कटु से कटु बात से घायल करने की कोशिश की जाती है, कुछ समय के लिए ये कटु वचन दोनों को पकड़ भी लेते हैं लेकिन इन का असर जल्द ही चला जाता है. स्वाभिमान या ईगो का मामला जहां जुड़ता है, वह अपनी जल्दी पकड़ नहीं छोड़ता.

शीत युद्ध के लंबा खिंचने की एकमात्र वजह यही होती है. इसलिए इस शीत युद्ध की अवधि में आपस में बातचीत भले ही बंद हो, दोनों एकदूसरे का पूरा ध्यान रखते हैं.  झगड़े के 2 दिन बाद ही रविवार था. अभिषेक की छुट्टी थी. दोपहर का खाना खाने बैठा तो उस ने देखा बेसन की उस की मनपसंद सूखी सब्जी प्लेट में रखी है. रात में वह लैपटौप पर काम कर रहा था. बगैर उस के मांगे श्वेता ने कौफी का कप उस की मेज पर धीरे से रख कर बगैर उस की प्रतिक्रिया देखे वहां से चली गई.

श्वेता चौंक कर उठी. तब तक साइड टेबल पर चाय रख कर अभिषेक जा चुका था. उस ने भी चाय पीने के बाद अभिषेक को आवाज लगा कर ‘धन्यवाद’ कह कर आभार जताने की औपचारिकता से परहेज किया.

कई सालों से ठीक इसी तरह से होता आया है मानो इस  झगड़े की पटकथा पहले कभी

लिख दी गई थी. शादी के बाद उस पटकथा के आधार पर उन्हीं घिसेपिटे संवादों के साथ समयसमय पर दोनों रिहर्सल करते रहे हों.

मध्यवर्गीय परिवारों में पतिपत्नी के  झगड़े सामान्यतया इसी तरह के होते हैं. सभी को इन के कारण और नतीजे मालूम होते हैं, सभी एक नाटक के पात्र की तरह अपनी भूमिका उन्हीं संवादों को सालों दोहराते रहते हैं, पर कोई उस की पटकथा बदलने की कोशिश नहीं करता. दोनों में से एक की तरफ से कोशिश भी हुई तो दूसरा अपनी पुरानी भूमिका या चरित्र बदलने को तैयार नहीं.

इस वर्ग के दांपत्य जीवन में  झगड़ों के कई मुद्दे विवाह के बंधन में बंधने के कुछ समय बाद अपना सिर उठाना शुरू कर देते हैं. इन में आर्थिक अभावग्रस्तता भी एक मुद्दा होती है. अभाव रोजीरोटी को ले कर नहीं होता. मध्यवर्ग की जरूरतें, आकांक्षाएं, अपने से संपन्न लोगों से प्रतिस्पर्धा की भावनाएं, उन की खुद की आमदनी के मुकाबले सदैव बढ़ती रहती हैं. जितनी आय वह बढ़ाता है उतनी ही उस की इस अंधी दौड़ की सीमा बढ़ती जाती है. उस का छोर नहीं रहता और जब यह पूरी नहीं होती तो तनाव उत्पन्न करती है. कमी हमेशा बनी रहती. उन्हें लगता जिस चीज के वे हकदार हैं वह मिल नहीं पाई. किताबों और फिल्मों के किरदार की तरह अपनी जिंदगी में खुशी के जो पल ढूंढ़ते रहते हैं, वे भी नहीं मिलते. इस का असर पतिपत्नी के संबंधों पर भी पड़ता है.

इस के अलावा बच्चों का लालनपालन, उन की शिक्षा, रिश्तेनातेदारी, ससुरालमायके के संबंध, घरगृहस्थी से जुड़े कर्तव्य, दोनों इन सब में फंस जाते हैं. इन में एकदूसरे को संतुष्ट करना इन पतिपत्नियों के लिए आसान नहीं होता और फिर एकदूसरे पर दोषारोपण का दौर शुरू हो जाता है.

प्यार सभी को चाहिए लेकिन मिलेगा कैसे, इसे सम झने की कोशिश नहीं होती. एकतरफा

चाहत में उल झ कर रह जाते हैं. कभीकभी वे इस मरीचिका में भी फंस जाते हैं कि उस की पत्नी या पति के सिवा दुनिया में सभी स्त्रियां, सभी पुरुष से उन्हें प्यार मिल सकता है. ऐसी स्थिति में कभीकभार दोनों के बीच तीसरे का प्रवेश हो जाता है.

उच्चवर्ग की तरह मध्यवर्ग में दोनों ही मियांबीवी का अपना अलग स्वतंत्र दायरा, जिसे आजकल ‘स्पेस’ कहा जा रहा है, कतई नहीं होता. इस का अर्थ जब तक इन्हें नहीं मालूम था, तब तक कुछ गनीमत थी. जब से मध्यवर्गीय परिवारों की पत्नियां आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने लगी हैं, नौकरियां कर रही हैं, उच्चवर्ग की महिलाओं की नकल में इन्हें भी स्पेस की दरकार हो गई है, जबकि व्यावहारिक तौर पर इस वर्ग में इस स्पेस या स्वतंत्र दायरे का बनना संभव नहीं है क्योंकि शादी के कई सालों के बाद भी उच्चवर्ग की तरह इस वर्ग के पतिपत्नी एकदूसरे से भावनात्मक रूप से अपने को एकदम अलग नहीं कर पाते.

चाहत, प्यार, समर्पण की भावना उन के बीच तनाव और  झगड़ों के बीच भले ही दब जाए पर इन सब चीजों की उम्मीद उन में हमेशा बनी रहती है. उन के  झगड़ों के बावजूद यह ग्रंथि भी कहीं न कहीं काम कर रही होती है. उन का लालनपालन ऐसे माहौल में होता है, ऐसे परिवार से निकल कर वे आते हैं जहां इन सब की जरूरत उन्होंने देख रखी होती है, शादी के जरीए सामान्यत: एकदूसरे से वे इन उम्मीदों के साथ ही बंधते हैं. इसे ‘मध्यवर्गीय स्वप्न’ भी कह सकते हैं. विवाह के बाद गृहस्थी के तनाव में जब यह कहीं गुम होता रहता है तो इसे पाने की बेचैनी बढ़ती जाती है, अनचाहा क्रोध दिलोदिमाग पर हावी होने लगता और इस में परिस्थितियों के सच को सम झने की जगह दोनों एकदूसरे की गलतियों को ढूंढ़ने लगते हैं.

इस के विपरीत उच्चवर्गीय परिवारों में पतिपत्नी के बीच विवाह के बाद कुछ समय बिताने, हनीमून अवधि का उन्माद खत्म होने के उपरांत एक सीमा रेखा खिंच जाती है, एक दायरा बन जाता है. क्लब, किट्टी पार्टी, अपना सर्किल, दोनों ही अपने दायरे में मस्त, सुखी रहते हैं. इसे ही स्पेस कहा जाने लगा है. इन में से किसी ने एकदूसरे की सीमा में अनाधिकृत तौर पर प्रवेश करने की कोशिश की तो ऐसी परिस्थिति में हंगामा होना तय है.

निजी जीवन में एकदूसरे से एकदम अलग परिधि में जी रहे ये पतिपत्नी पार्टियों में जरूर एकदूसरे का हाथ पकड़ कर जाते हैं, एकदूसरे को चूमते हैं, साथ डांस करते हैं, सब के सामने खुद को सर्वोच्च जोड़ी साबित करने की पूरी कोशिश करते हैं.

वैसे भी उच्चवर्ग के पतिपत्नी के बीच घरेलू कामकाज, एकदूसरे के मिजाज को देखने, बच्चों को संभालने जैसी बेवकूफियों की वजह से आपसी रिश्तों में किसी तरह का मलाल कतई नहीं उत्पन्न होता. इन सब बेवकूफियों के लिए नौकरचाकर और कई तरह की व्यवस्थाएं बनी होती हैं. दोनों में से कोई एक मध्यवर्गीय परिवार और संस्कार के साथ अगर आया है, किसी एक में मध्यवर्गीय दंपतियों की तरह किसी पार्टनर में प्रेम, चाहत, एकदूसरे के प्रति समर्पण जैसी उम्मीदों ने अंगड़ाई लेनी शुरू की तो निश्चित तौर पर इस की अंतिम परिणति तलाक तक पहुंच जाती है.

श्वेता और अभिषेक के बीच चल रहे शीत युद्ध का 7वां दिन था. अकसर इस शीत युद्ध के बाद अभिषेक की पहल पर ही संवाद शुरू होता था. श्वेता ने शायद ही इस मामले में कभी पहल की हो. दरअसल, उसे विश्वास होता था कि ज्यादा दिन अभिषेक बगैर उस से बात किए नहीं रह पाएगा. इसलिए वह अपनी तरफ से शिकायत खत्म हो जाने के बाद भी पहल नहीं करती.

अभिषेक को भी यह मालूम था कि श्वेता इस मामले में उसे कमजोर सम झती है. पर वह यहां मजबूती दिखा कर कोई प्रतियोगिता जीतना नहीं चाहता था. इस मामले में उस का ईगो ज्यादा दिन नहीं काम करता. वह घर में श्वेता के साथ प्रेम से रहना चाहता है. वह सम झता है कि बच्चों पर इस का असर पड़ता है. लेकिन वह अपने गुस्से से मजबूर था. उस पर उस का काबू नहीं था. कभी भी नहीं रहा. जब श्वेता उस की बातों को हलके तरीके से लेती या उस के कहे की उपेक्षा करती तो वह सहन नहीं कर पाता है. 4 लोगों के सामने भी वह श्वेता पर भड़क जाता है,यह सोचे बिना कि इस का उस पर क्या असर पड़ेगा, जिन लोगों के सामने बिगड़ा है वे क्या सोचेंगे.

श्वेता को खुद लगता था कि वह काफी बदल चुकी है. 15 साल पहले

अभिषेक के साथ जब दिल्ली आई थी तो वह दूसरी श्वेता थी. उस श्वेता की भावनाएं दूसरी थीं. कुछ अरमान थे सीने में. ऐसे रहेंगे, घर सजाएंगे, गृहस्थी बसाएंगे, मस्ती करेंगे, लेकिन धीरेधीरे सब अरमान 1-1 कर कहीं दफ्न हो गए. कुछ तो घरगृहस्थी के दबाव में और कुछ अभिषेक के स्वभाव की वजह से. वह यह सम झती थी कि अभिषेक ने सबकुछ हमारे लिए किया, पूरा खयाल रखा, मु झे मानता भी है, पर उस ने यह कभी नहीं जानना चाहा कि मैं क्या चाहती हूं. हर जगह, हर मामले में अपनी मरजी को ऊपर रखा. मु झे क्या पहनना है, कैसे रहना है, घर कैसे रखा जाएगा, परदे कैसे रहेंगे, बैड किधर रहेगा, हर चीज पर इन्होंने अपनी मरजी थोपी. शादी के तुरंत ही बाद जिस तरह का उस का गुस्सा देखा, छोटी बातों पर बिगड़ते देखा, अपनी बात सामने रखने की जो इच्छा थी वह अपनेआप खत्म हो गई.

श्वेता को यह लगता था अभिषेक केवल अपना फैसला थोपना चाहता है. कहीं जाना है तो कौन सी साड़ी पहननी है, किस तरह का मेकअप चाहिए, बाल किस तरह बंधे होने चाहिए, सबकुछ अभिषेक ही तो देखता था. कहां जाना है, कहां नहीं सब में अभिषेक का ही फैसला चलता रहा. उसे याद आया शादी के 1 हफ्ते बाद ही अभिषेक के एक मित्र ने दोनों को डिनर पर बुलाया था. अभिषेक औफिस से आया तो वह साड़ी पहन कर तैयार बैठी थी ताकि देर न हो. अभिषेक उसे तैयार देख खुश हुआ. उस ने भी कपड़े बदले. थोड़ी देर बाद दोनों बसस्टौप पर आ गए. सड़क की स्ट्रीट लाइट की रोशनी में अभिषेक बारबार उसे देखे जा रहा था. अचानक उसने उस से धीरे से कहा कि घर चलो, साड़ी ठीक नहीं लग रही है. बदल लो. उस ने हलका सा ऐतराज भी किया क्योंकि साड़ी ही नहीं, ब्लाउजपेटीकोट सब बदलना पड़ता. उसे साड़ी अभी ठीक से पहनने आती भी नहीं थी. दूसरी साड़ी बदलने में काफी मेहनत करनी पड़ती. पर अभिषेक नहीं माना. घर ला कर श्वेता से उस ने साड़ी बदलवाई. इस के बाद वे डिनर पर पहुंचे. हालांकि इस सब में 1 घंटा की देर हुई.

मगर वह यह नहीं सम झ पाई कि अभिषेक ने अपने वर्चस्व बनाने के लिए ऐसा नहीं

किया. श्वेता सुंदर थी, अभिषेक चाहता था वह और सुंदर दिखे. उसे लगता था कि श्वेता छोटे शहर से आई है, दिल्ली के फैशन और रस्मोंरिवाज से अनजान है, बस वह अपने अनुसार उसे हर तरह से ढालने में लग गया. श्वेता ने उसे गलत सम झा. उस की इस भावना को नहीं सम झा. उसे लगा उस के पहननेसवंरने में भी अभिषेक अपनी मरजी थोपता है, बगैर श्वेता के स्वभाव, उस के मनोविज्ञान को जाने. उस ने श्वेता की भावनाओं को, उस के जिज्ञासाओं को, उस की अभिलाषाओं को कभी सम झने की कोशिश ही नीं की. अपने नजरिए से उसे गलतसही बताता रहा. जबकि श्वेता शादी के बाद एक तितली की तरह अपने पति के साथ कुछ समय तक आसमान में स्वच्छंद उड़ना चाहती थी, एक प्रेमिका की तरह अपने पति से अपनी जिद को मनवाना चाहती थी, अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती थी, घर के फैसलों में भागीदारी चाहती थी, रिश्ते में रोमांस चाहती थी लेकिन उस की इन गरम उमंगों पर अभिषेक के स्वभाव ने बर्फ की सिल्ली रखने का काम किया.

अभिषेक ने काफी समय बाद जब यह सब महसूस किया, निश्चित नतीजे पर पहुंचा तब तक देर हो चुकी थी. श्वेता का स्वभाव नामालूम एक उस मोड़ तक पहुंच गया था, जहां उस की भावनाएं एक चट्टान में बदल गई थीं. उस चट्टान को पिघलाना अब आसान नहीं था.

रात 8 बजे जब अभिषेक घर आया तो दरवाजे पर ही उसे घर के भीतर से कई लोगों की

आवाजें और हंसी की आवाज सुनाई दी. उस ने कालबैल बजाई. अंदर से श्वेता की आवाज आई, ‘‘लगता है वे आ गए?’’

भीतर पहुंचा तो उस ने देखा उस की देहरादून वाली बूआजी, फूफाजी, उन का बेटा, नई बहू, बेटी सभी बैठे हैं. टेबल पर नमकीन, मिठाई और पकौड़ों की प्लेट है, सभी चाय पी रहे थे. श्वेता ने उस की गैरमौजूदगी में शीत युद्ध के बावजूद उस के रिश्तेदारों की खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

‘‘आओ बेटा, समय पर आ गए, डेढ़ घंटे से हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे,’’ अभिषेक को देखते ही बूआ बोलीं.

बूआफूफाजी का पैर छू कर अभिषेक उन के साथ बैठा ही था कि बूआजी ने श्वेता की तारीफ के पुल बांधने शुरू कर दिए, ‘‘बहुत अच्छी बहू मिली है तुम्हें अभिषेक. इतनी देर तक तुम्हारी कमी महसूस ही नहीं होने दी. तुम्हारी शादी में भीड़भाड़ में ही इस से मिली थी, लेकिन इस ने तुरंत पहचान लिया…’’ बूआ आगे भी बोलती गईं.

मन्नो बूआ अभिषेक की सगी बूआ नहीं थीं पर शादी के पहले अकसर बनारस उस के घर आती रहती थीं. रक्षाबंधन में पिताजी को राखी भेजना कभी नहीं भूलीं. बाद में उन से उतनी नजदीकियां नहीं रह गईं. बूआजी का बेटा गुरुग्राम में रहता था, अभिषेक देखते ही सम झ गया कि नई बहू उसी की पत्नी है.

‘‘माफ कीजिएगा बूआ शादी में नहीं आ पाए. बहुत अच्छा हुआ कि आप सभी लोग आज यहां आ गए,’’ अभिषेक ने औपचारिकता निभाई, ‘‘अब खाना खा कर ही जाइए. सादा खाना, जल्दी से बन जाएगा.’’

‘‘नहींनहीं बेटा, खाना वहां मेड को बोल कर आए हैं. दूर है, इसलिए मालूम था देर तक नहीं रुक पाएंगे. श्वेता तो कई बार खाने के लिए पूछ चुकी है,’’ इस बार फूफाजी बोले.

उन लोगों के जाने से पहले श्वेता ने इशारे से अभिषेक को बुलाया. अभिषेक सम झ गया उसे क्यों बुलाया जा रहा है. पहले भी ऐसा होता रहा है. भीतर दूसरे कमरे में पहुंचते ही श्वेता ने याद दिलाया, ‘‘नई बहू है. पहली बार यहां आई है. शगुन देना पड़ेगा.’’ अभिषेक ने

5 सौ का नोट निकाल कर श्वेता से पूछा, ‘‘इतना ठीक है?’’

श्वेता ने 5 सौ रुपए और मांगे, साथ में आई बूआजी की बेटी को देने के लिए.

थाली में चावल, सिंदूर, गुड़, हलदी, 5 सौ के नोट के साथ श्वेता ने 1 रुपए का सिक्का रखा, बहू का मुंह पूरब की तरफ कर पहले टीका किया, सिंदूर लगाया और फिर उस के आंचल में चावल डाले. बूआजी का चेहरा इन सब के बीच खुशी से चमक रहा था. अभिषेक ने नोटिस किया कि वे श्वेता की पूरी तरह से प्रशंसक बन चुकी हैं.

मेहमानों को छोड़ने दोनों ही नीचे उन की गाड़ी तक गए. चेहरे पर ढेर सारी हंसी के साथ उन्हें विदा किया लेकिन जैसे ही उन लोगों की कार आगे बढ़ी, दोनों के चेहरों पर फिर वही गंभीरता आ गई. शीत युद्ध जो मेहमानों की वजह से कुछ देर के लिए स्थगित था, उन के जाने के बाद फिर से प्रभावी हो गया.

दोनों ही बगैर एकदूसरे से बात किए, चुपचाप लिफ्ट में फिर घर में आ गए. अगर

परिस्थितियां सामान्य होतीं तो दोनों इस समय जाने वाले मेहमानों के अचानक आने, उन के व्यवहार को लेकर विवेचना कर रहे होते. नई बहू के बारे में बातें हो रही होतीं, अभिषेक की तरफ से यह ऐतराज भी जताया गया होता कि श्वेता को बूआजी की बेटी को विदाई के पैसे देने की कोई जरूरत नहीं थी. हो सकता इस बयान में एक वाक्य वह यह भी जोड़ देता कि पता नहीं कब तुम्हें पैसे की कीमत और उस का सही उपयोग करने का पता चलेगा. यह भी हो सकता था श्वेता की तरफ से यह जवाब मिल जाता कि आप के रिश्तेदारों पर ही तो खर्च किया है, अपनों पर तो नहीं और नए सिरे से बहस शुरू हो जाती.

श्वेता ने जल्दीजल्दी खाना बनाया. डिनर करने और किचन का काम समेटने के बाद जब श्वेता बिस्तर पर पहुंची तो 11 बज चुके थे. उस ने लाइट बु झा दी. उसे लगा अभिषेक सो गया होगा. लेकिन थोड़ी देर बाद ही अंधेरे में उसे अभिषेक की आवाज सुनाई दी, ‘‘श्वेता.’’

श्वेता चुप रही. कुछ नहीं बोली, ‘‘इतने दिन हो गए हैं. इस तरह घर में चुपचाप रहना, एकदूसरे से बात न करना आप को अच्छा लगता है क्या?’’ अभिषेक ने धीरे से कहा.

श्वेता कुछ जवाब देना चाहती थी पर चुप रही. वह सोच रही थी कि न बोलो तो इन को शांति अच्छी नहीं लगती, बोलो तो लड़ाई होती है. हमारे साथ रहना भी ये नहीं चाहते, 50 शिकायतें हैं, हमारे बिना इन का मन भी नहीं लगता. उसे लगा लोग स्त्रियों के बारे में गलत कहते हैं. सच तो यह है कि पुरुषों के मन की थाह पाना आसान नहीं है.

‘‘हम लोग एकदूसरे को चाहते थे, चाहते हैं, फिर हम इतना लड़ते क्यों हैं?’’ अजीब सवाल था यह. श्वेता इस बार भी कुछ नहीं बोली.

‘‘साथ रहना है एक छत के नीचे. हमेशा एकदूसरे से बात बंद तो हो नहीं सकती. फिर हम लोग छोटीछोटी बातों पर बहस क्यों करते हैं? एकदूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश क्यों

करते हैं?’’

‘‘ताली दोनों हाथों से बजती है. आप की गलती नहीं रहती क्या?’’ इस बार श्वेता से चुप नहीं रहा गया.

‘‘मैं नहीं कहता कि मेरी गलती नहीं रहती पर मु झे काफी समय से लग रहा है कि तुम मेरी उपेक्षा करती हो, तुम्हारी उपेक्षा मु झे बरदाश्त नहीं होती. मैं तुम्हें अभी भी उतना ही चाहता हूं,’’ अभिषेक ने साइड में रखा टेबललैंप जला लिया. अंधेरे में बगैर श्वेता का चेहरा देखे उस से बात करने में उसे दिक्कत महसूस हो रही थी.

‘‘शादी से पहले मेरा और तुम्हारा एक अलग अस्तित्व था. शादी के बाद मेरा ‘मैं’ तुम्हारा ‘तुम’ मिल कर ‘हम’ बने. इस ‘हम’ का अस्तित्व कब और कैसे खत्म हो गया, मैं और तुम में फिर से कैसे बंट गया, कभी सोचते हो?’’

‘‘क्योंकि आप ‘हम’ में अपने मैं को कभी नहीं भुला सके. अपना मैं आप ने हमेशा कायम रखा. बस यही चाहा मैं अपना अस्तित्व आप के ‘मैं’ में समाहित कर लूं, अपना अस्तिव भूल जाऊं. शुरू में आप प्यार भले ही करते थे पर उस समय भी आप ने मेरा कभी खयाल नहीं रखा. यह कभी नहीं देखा कि मैं क्या चाहती हूं,’’ श्वेता ने गंभीरता से जवाब दिया.

‘‘कुछ हद तक सहीं होगा यह. पर यह पूरा सच नहीं है,’’ अचानक अभिषेक को लगा कि कहीं श्वेता ने इधरउधर का जवाब दे दिया तो फिर से बहस शुरू हो जाएगी. अत: उस ने बात को मोड़ने के लिए कहा, ‘‘दशहरी आम आप ने खाए? मैं कल ले कर जो आया था.’’

‘‘नहीं. आज के लिए सोचा था. पर बूआजी आ गईं.’’

‘‘मैं हर सीजन की शुरुआत में आम लाता हूं इसलिए कि तुम्हें पसंद हैं.’’

‘‘मैं जानती हूं. इतना मैं भी सम झती हूं. फिर आप गलती ही क्यों करते हैं, लड़ते क्यों हैं?’’ श्वेता ने बच्चों की तरह सवाल किया.

‘‘क्या यह नहीं हो सकता हम दोनों इस बात की पूरी कोशिश करें कि अपनी पुरानी गलतियों को न दोहराएं? गलती किसी की भी हो, दूसरा उसे तुरंत टोक दे इस बारे में. गलती करने वाला मान जाए. क्या हम दोनों एक बार फिर से पहले की तरह नहीं रह सकते?’’ अभिषेक ने आदर्श दांपत्य जीवन की शर्तों को सामने रख दिया.

‘‘क्या ऐसा हो सकता है?’’ श्वेता ने पूछ लिया, ‘‘आप अपनी गलती कभी मानेंगे?’’

‘‘मैं नहीं कह सकता. लेकिन कोशिश करूंगा अगर तुम भी उसी ईमानदारी से साथ दो. मेरे लिए मुश्किल रहा है दूसरों की बात सुनना या मानना, इस के पीछे मेरा मैं नहीं होता, ईगो नहीं होता. तुम इसे मानोगी नहीं मैं जानता हूं पर तुम्हारे लिए, परिवार के लिए, घर की शांति के लिए मु झे कोशिश तो करनी ही पड़ेगी.’’

श्वेता चुप हो गई. उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि अभिषेक जो कह रहा है उसे वह कर पाएगा. पर उसे यह महसूस हुआ कि इस समय जो वह कह रहा है वह पूरी ईमानदारी से कह रहा है. दिल से कह रहा है. वह चाहता है कि सबकुछ ठीक हो. उस के लिए वह अपने स्वभाव से सम झौता करने को तैयार है. सफल होता है या नहीं अलग बात है. सोच ने सकारात्मक रास्ता पकड़ लिया था, अभिषेक के स्वभाव में उस ने बनावटीपन कभी नहीं देखा, भले मैं  झगड़े में उस की बात न मानूं. वह केवल उसी के साथ नहीं बल्कि सब के साथ ऐसा ही रहा, अपने इस स्वभाव पर कभी अफसोस भी नहीं किया. पर मेरे लिए वह खुद को बदलने, कोशिश करने की बात इस समय ईमानदारी से कह रहा है, यह बड़ी बात है. दूसरों से अलग वह मु झे महत्त्व दे रहा है. मु झे दूसरों से अधिक मानता तो है ही.

मगर श्वेता कुछ बोली नहीं. अभिषेक को लगा, उस के पास अपनी भावनाओं को जताने

के लिए इस से ज्यादा शब्द अब नहीं बचे हैं. श्वेता का जवाब न पा कर उसे निराशा हुई. वह टेबललैंप का स्विच औफ कर सोने की कोशिश करने लगा.

2 मिनट के बाद ही श्वेता करवट बदल कर अभिषेक से चुपचाप सट गई. शादी के बाद ऐसा बहुत कम हुआ है जब श्वेता खुद अपना किनारा छोड़ अभिषेक के पास आई हो. शीत युद्ध के दौरान तो ऐसा होने का सवाल ही नहीं है.

अभिषेक के दिल की धड़कनें रुक सी गईं. उसे श्वेता के इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ. उस ने कोई हरकत नहीं की. श्वेता की गरम सांसों का मीठा स्पर्श वह अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था. बिना करवट बदले उस ने पीछे हाथ बढ़ा कर श्वेता के बाएं हाथ को पकड़, अपनी कमर पर लपेट लिया. श्वेता उस से और सट गई, अपना गाल अभिषेक की पीठ से सटा लिया.

लेखक-   प्रदीप श्रीवास्तव

Long Story in Hindi

Satire Story: श्वान प्रेमियो तुम्हारा कोटीकोटी नमन

Satire Story: ‘‘जो कुत्तों के भूंभूं से परेशान न हों वही सभ्य और सच्चे पड़ोसी,’’ नमन के घर के दरवाजे पर चिपका यह स्टिकर हर आनेजाने वाले का ध्यान खींचता है. दरअसल, नमनजी अपने कुत्तों को तो नियंत्रित नहीं कर सके, उलटा उन्होंने अपने पड़ोसियों के लिए यह उपदेश वाक्य स्टीकर पर लिख कर चिपका दिया.

गुरुग्राम के सब से पौश कहे जाने वाले इलाके की सब से ऊंची सोसाइटी (ऊंची सोसाइटी से तात्पर्य बहुमंजिला इमारत से नहीं बल्कि इस में रहने वाले लोगों की उच्च शिक्षा, उच्च जीवनशैली इत्यादि से भी है) सब से ऊंचे फ्लोर पर नमनजी अपने प्यारे, मासूम 3 अलगअलग विदेशी नस्ल के कुत्तों टौमी, जैकी एवं रौकी के साथ मस्त अकेली जिंदगी काट रहे थे.

एक दिन उन के सामने के खाली पड़े फ्लैट में अमनजी अपनी पूरी फैमिली के साथ रहने आ गए. मुश्किल से सालभर नहीं हुआ अमनजी की शिकायतों से नमन परेशान हो उठे. अमनजी को हमेशा कुत्तों के दिनरात भूंकने से शिकायत रहती और वे अकसर उन के दरवाजे की घंटी बजा कर उन्हें कुत्तों को शांत रखने की हिदायत देते. कभी अमन के बच्चों का ऐग्जाम होता तो कभी किसी की तबीयत खराब. ऐसे में पड़ोसी के घर से आ रही कुत्तों के भूंकने की आवाजों से उन की परेशानी और बढ़ जाती. लाख शिकायतों के बाद भी नमनजी के घर से आने वाली कुत्तों के भूंकने की आवाजें बदस्तूर जारी रहतीं. उन के घर में 3 अलगअलग विदेशी नस्लों के कुत्तों का आपस में एकदूसरे पर भूंकना, एकदूसरे पर गुर्राना पूरी बिल्डिंग में गुंजायमान रहता. उन का एकदूसरे पर भूंकना, गुर्राना, एकदूसरे पर  झपटना ठीक वैसे ही होता जैसे दुनिया के बड़ेबड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों की आपसी तूतूमैंमैं और  झगड़े इन दिनों हो रहे हैं.

तीनों कुत्ते अपनीअपनी नस्ल की श्रेष्ठता को साबित करने के लिए एकदूसरे से ठीक उसी प्रकार भिड़े रहते, जिस प्रकार इंसान आजकल अपनेअपने धर्म की श्रेष्ठता को साबित करने में लगे रहते हैं. एक छत के नीचे 3 अलगअलग नस्ल के कुत्तों से आपसी भाईचारा एवं शांति की उम्मीद भला कैसे रखी जा सकती है, जबकि अलगअलग धर्म, जाति के इंसानों से यह उम्मीद नहीं रखी जा सकती, जबकि कुत्ता तो आरंभ से ही इंसानों की संगति में ही विकसित हुआ है.

कहते हैं कुत्ते और मनुष्य का रिश्ता काफी पुराना है शायद इतना कि जितना एक

इंसान का इंसान से है. प्राचीनकाल में जब इंसान के पूर्वज और कुत्तों के बापदादा यानी ‘भेडि़या’ के बीच दोस्ती शुरू हुई तब इंसान के पूर्वज गुफाओं में रहते थे तथा कुत्तों के बापदादा यानी ‘भेडि़या’ खाने के टुकड़े के लिए इंसान के इर्दगिर्द मंडराता रहता था. ऐसे में इंसानों को लगा कि अरे यह तो बुरा नहीं है, रात को जंगली जानवर से बचाने के काम आएगा और उन्होंने उसे पालतू बना लिया.

एक आनुवंशिक शोध के अनुसार कुत्तों की उत्पत्ति 15 हजार से 40 हजार साल पहले यूरोप, मध्य पूर्व और पूर्वी एशिया में भेडि़यों की अलगअलग प्रजातियों से हुई. इंसान ने भेडि़यों को पालतू बनाया क्योंकि इन्हें शिकार और सुरक्षा में मदद चाहिए थी. बदले में भेडि़यों को खाना और आश्रय मिला. लेकिन आज जब लोग सोसाइटीज में रहते हैं जहां उन की सुरक्षा के लिए 24 घंटे सुरक्षा गार्ड होते हैं इंसानों को कुत्ते पालने की कोई खास आवश्यकता नजर नहीं आती. कुत्तों को भी खाना ढूंढ़ने के लिए इंसानों पर निर्भर रहने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है. फिर भी लोग कुत्ते पालते हैं जबकि इस की कोई अनिवार्यता नहीं. हालांकि लोग इसे कुत्ते के प्रति प्रेम के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि यह कई बार इंसानों के तथा कथित कुत्ता प्रेम से अधिक स्टेटस सिंबल की तरह दिखता है. यदि ऐसा नहीं है तो भारत जैसे देश में जहां पहले से देशी कुत्ते गलियों में भटकते हैं लोग जरमन शेफर्ड, लैब्राडोर और पग्ग जैसी महंगी विदेशी नस्लों के ही दीवाने क्यों हैं?

एक अनुमान के अनुसार, भारत में पालतू जानवरों का बाजार 2023 में 1,200 करोड़ रुपए का था, जिस की 2028 तक 2000 करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है. एक शुद्ध नस्ल के कुत्ते का पिल्ला खरीदने की लागत 20 हजार से ले कर 2 लाख रुपए तक होती है और यह कीमत नस्ल वंशावली और ब्रीड पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए लैब्राडोर की कीमत 15 हजार से 50 हजार की होती है, तो जरमन शेफर्ड 20 हजार से 80 हजार रुपए की कीमत में आता है, फ्रैंच बुलडौग तो 50 हजार से 2 लाख रुपए तक की कीमत में आता है. साफ जाहिर है कि इतने महंगे कुत्ते लोग सिर्फ स्टेटस सिंबल के लिए ही पालते होंगे न कि कुत्ते के प्रेम में. लोग सिर्फ इंस्टाग्राम पर रील्स डालने के लिए या बस ‘कूल’ दिखने के लिए भी कुत्ते पालते हैं.

इन खर्चों के अतिरिक्त पिल्ले को घर लाने से पहले टीकाकरण (5 हजार से 10 हजार रुपए) तक का खर्च आता है.

माइक्रोचिप, यह एक रेडियो फ्रीक्वैंसी आइडैंटिफिकेशन (एफआई डी) डिवाइस होता है जो चावल के दाने के आकार का होता है. इस में एक विशिष्ट पहचान संख्या संग्रहित होती है. यह चिप पशु चिकित्सक या कुत्ते के मालिक द्वारा एक आरएफआईडी स्कैनर से पढ़ी जा सकती है. चिप में एक अद्वितीय 15 अंकीय कोड होता है जो एक राष्ट्रीय डेटाबेस में मालिक के नामपते और फोन नंबर से जुड़ा होता है. इस चिप को पशु चिकित्सक या पेशेवर माइक्रोचिप के द्वारा कुत्ते की पीठ के ऊपरी हिस्से में या गरदन के पास इंजैक्शन की तरह लगाया जाता है, जिस का खर्च (2 हजार से 5 हजार रुपए) होता है.

कुत्तों के भोजन का खर्च भी विशेष ही होता है. यह खर्च प्रतिमाह 2 हजार से

5 हजार रुपए का खर्च होता है. वहीं कुछ मालिक अपने कुत्तों को घर का बना भोजन या विशेष डाइट जैसे बार्फ डाइट देते हैं, जिस की लागत और भी अधिक होती है.

अब यदि कुत्ते पाले हैं तो उन के स्वास्थ्य की देखभाल की भी आवश्यकता पड़ेगी ही. नियमित टीकाकरण डीवर्मिंग और पिस्सू टिक  उपचार के लिए सालाना 10 हजार से 20 रुपए खर्च होते हैं. अगर कुत्ते को  कोई गंभीर बीमारी निकली जैसे, हिप डिस्प्लेशिया तो सर्जरी और इलाज की लागत लाखों में जा सकती है.

कुत्तों के सौंदर्य और देखभाल की भी जरूरत पड़ती है. इन का ग्रूमिंग सत्र 500 से 2 हजार प्रति सत्र, नहलाने के लिए विशेष शैंपू और अन्य सामान जैसे कालर, पट्टा खिलौने भी खर्च में इजाफा करते हैं. कुछ मालिक अपने कुत्तों  के लिए डिजाइनर कपड़े और ऐक्सैसरीज भी खरीदते हैं. प्रशिक्षण और बोर्डिंग की भी जरूरत पड़ती है. कई मालिक अपने कुत्तों को आज्ञाकारिता प्रशिक्षण के लिए भेजते हैं जिस की लागत 10 हजार से 50 हजार हो सकती है. छुट्टियों के दौरान पैट बोर्डिंग की लागत प्रतिदिन 500 से 2 हजार रुपए तक होती है.

ये सारी तमाम बातें यही सिद्ध करती हैं कि कुत्ते पालने के पीछे कुत्ता प्रेम कम और स्टेटस सिंबल अत्यधिक बन गया है. सोशल मीडिया पर कुत्तों की तसवीर उन के लिए विशेष जन्मदिन पार्टियों और महंगे पैट स्पा का चलन भी बढ़ रहा है. यह एक प्रकार की सामाजिक प्रतिस्पर्धा बन गया है, जहां लोग अपने पालतू जानवरों पर अधिक खर्च कर के अपनी समृद्धि प्रदर्शित करते हैं. कुत्तों के जन्मदिन पर तो कई लोग विशेष तरह का केक जैसे 1000 से 5 हजार और थीम आधारित पार्टियां जिन का खर्च 10 हजार से 50 हजार रुपए पड़ता है आयोजित करते हैं.

कुत्ता प्रेम के दिखावे की इस होड़ में यह खर्च मध्यवर्ग के लिए कई बार बो झ सा बन जाता है. कई लोग बिना पूरी योजना के कुत्ते पाल लेते हैं जिस के बाद उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है. कुछ मामलों में लोग खर्च वहन न कर पाने के कारण कुत्तों को छोड़ देते हैं जिस से आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती है. ऐसे कुत्ते उन सोसाइटी में आवारा कुत्तों की तरह भटकते रहते हैं और लोगों को अपना शिकार बनाते रहते हैं.

एक ऐसी ही किसी हाईफाई सोसाइटी में कुछ इसी तरह के आवारा कुत्तों, जिन के मालिकों ने उन का खर्च वहन न कर पाने की सूरत में उन्हें सोसाइटी में ही छोड़ दिया था, ने काफी आतंक मचाना शुरू कर दिया. आए दिन लोगों को अपना शिकार बनाते. इन कुत्तों के आतंक से परेशान डरेसहमे से कुछ निवासियों ने सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में उन कुत्तों को सोसाइटी के गेट से बाहर कहीं दूर छोड़ आने की अपील की. इस पर उसी हाईफाई सोसाइटी के डौग लवर्स ने उन का जम कर विरोध किया. किसी ने व्हाट्सऐप ग्रुप में लिखा कि 1-2 जनों को काटने की घटना पहले भी होती रही है. इतनी सी बात के लिए हम प्यारे कुत्तों को बेघर तो नहीं कर सकते. तब उस अपीलकर्ता ने उस महिला की तसवीर व्हाट्सऐप ग्रुप में साझा की.

तसवीर में महिला के पैरों पर जगहजगह कुत्ते के नाखूनों की खरोंचें और कुत्ते के काटने के निशान थे. तब खुद को डौग लवर्स बताने वालों में से किसी ने तुरंत कमैंट किया कि ओ वाऊ, व्हाट एन आर्टवर्क और साथ में लाफिंग इमोजी भी चिपका दी. दूसरी महिला ने कमैंट किया कि बेचारा भूखा होगा, उसे मस्त चिकन सूप की जरूरत है. इन डौग लवर्स के तो क्या ही कहने. मानवीय संवेदना से विमुख इन का कुत्ता प्रेम और भक्ति सचमुच वंदनीय है. हे श्वान प्रेमियो, तुम्हें कोटिकोटि नमन है.

अकसर कुत्ता प्रेमी अपने कुत्तों के बेवजह भूंकने, दूसरों पर  झपटने की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेते. गुरुग्राम की ही एक अन्य सोसाइटी में एक मां अपने बच्ची के साथ लिफ्ट से जैसे ही बाहर निकली,  सामने खड़ा डौगी उस पर  झपट पड़ा. बच्ची बेचारी डौगी से बचने के लिए यहांवहां भागती रही. लेकिन. कुत्ते का मालिक खड़ा देखता मुसकराता रहा, जबकि बच्ची की मां और सोसाइटी में जो गार्ड वहां मौजूद था उस ने उस कुत्ते से बच्ची को बचाने की काफी कोशिश की. लेकिन वह डौगी पकड़ में नहीं आ रहा था. हालांकि  कुत्ते ने बच्ची को कुछ नुकसान तो नहीं पहुंचाया लेकिन डर के कारण बच्ची की तबीयत बिगड़ गई.

कुत्ता प्रेमी भी कई प्रकार के होते हैं- कुछ फैशन और स्टेटस  सिंबल के मारे होते हैं तो कुछ अंधविश्वास में जकड़े होते हैं.

कुछ कुत्ता प्रेमी काले कुत्ते इसलिए भी पाल लेते हैं क्योंकि उन्हें पंडितपुजारी, ज्योतिषाचार्य द्वारा बताया गया होता है कि इसे पालने से अथवा रोटी खिलाने से राहुकेतु और शनि के दोष दूर होते हैं. कुछ को यह सु झाव मिला होता है कि काला या कालासफेद कुत्ता पालने से साढ़ेसाती, पितृ दोष और नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है.

कुत्ते पालने वाले अकसर अपने पालतू कुत्तों को परिवार का सदस्य मानते हैं और उन की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन पड़ोसियों की शिकायतों के प्रति उन का रवैया अकसर उदासीन होता है. कुछ के जवाब इस तरह से होते हैं- मेरा कुत्ता तो घर की रखवाली कर रहा है, यह भूंकता नहीं बस अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहा है. जब पड़ोसी शिकायत करते हैं तो जवाब में धार्मिक तर्क दिए जाते हैं जैसे काले कुत्ते को रोटी खिलाने से शनि दोष की शांति हो रही है. लेकिन पड़ोसी के लिए यह तर्क उतना ही बेतुका है जितना सड़क पर कुत्ते की गंदगी. रोज घी में डूबी हुई रोटी खिला कर इन के शनि देव प्रसन्न होते हों या नहीं लेकिन घी पुती हुई रोटी खा कर कुत्ता सोसाइटी और महल्ले की गलियों को गंदा जरूर करता है. अंधविश्वास में डूबे इन कुत्ता प्रेमियों ने इस का भी जवाब ढूंढ़ रखा है. टोकने पर इन का बड़ा ही बेतुका सा जवाब कि कुत्ते की गंदगी से बुरी नजर दूर होती है.

कुछ तो ऐसे भी हैं जिंदगी अंधविश्वास में पड़ कर कुत्ते पाल लिए कि संतान की प्राप्ति होगी और जब संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो कुत्ते को ही संतान बना लिया.

श्रीमती आहूजा ने लिफ्ट का बटन दबाया और थोड़ी देर रुक कर लिफ्ट आने

का प्रतीक्षा करने लगी. सुबह का वक्त था. वह रोज इसी वक्तसोसाइटी में बने सैंट्रल पार्क में सैर करने जाया करती थीं. थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद लिफ्ट का दरवाजा जैसे ही खुला श्रीमती आहूजा की पड़ोसिन रीमा भी अपने पालतू कुत्ते जरमन शेफर्ड के साथ लिफ्ट के अंदर आ गईं. श्रीमती आहूजा को रीमा के कुत्ते के साथ लिफ्ट शेयर करते हुए डर लगा. उन्होंने हलके से इस का विरोध भी किया. लेकिन रीमा ने यह कहते हुए कि आंटी यह कुछ नहीं करेगा, आप को डरने की बिलकुल जरूरत नहीं. श्रीमती आहूजा के साथ ही लिफ्ट के अंदर बनी रही. रीमा अपने जरमन शेफर्ड को अपनी सगी औलाद की तरह प्यार करती हैं, यह बात मिसेज आहूजा जानती हैं. उन के अत्यधिक विरोध करने से रीमा कहीं बुरा न मान जाएं यह सोच कर वे चुप रह गईं.

दरअसल, रीमा को उस की शादी के 5 साल के बाद भी जब संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई तो रीमा ने किसी बाबा के इस परामर्श पर कि काला या सफेद कुत्ता पालने से संतान सुख के  सारे विघ्न मिट जाएंगे और संतान की प्राप्ति हो जाएगी, उस ने काले रंग के इस जरमन शेफर्ड को पाल लिया. लेकिन कुत्ता पालने के बाद भी रीमा को जब संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने इस जरमन शेफर्ड को ही अपनी औलाद मान लिया.

रीमा और मिसेज आहूजा को लिफ्ट के अंदर आए कुछ सैकंड भी नहीं हुए थे कि

अचानक लाइट के चले जाने से लिफ्ट रुक गई. रीमा के प्यारे कुत्ते ने आहूजा के ऊपर जोरजोर से भूंकना शुरू कर दिया. मिसेज आहूजा को जरमन शेफर्ड उस वक्त यमराज से कम नहीं लग रहा था. हालांकि इस कुत्ते ने मिसेज आहूजा को कुछ खास नुकसान तो नहीं पहुंचाया लेकिन फिर भी मिसेज आहूजा के मन के अंदर डर बैठ गया. अब वे लिफ्ट में अकेले आनेजाने से भी डरती है.

लोगों का अपने कुत्तों के प्रति प्यार अपने सगेसंबंधियों, पड़ोसियों से भी बढ़ कर देखा गया है. उन के पालतू कुत्ते उन के पड़ोसियों, उन के घर के सदस्यों तक को नुकसान पहुंचा देते हैं, फिर भी ये अपने पालतू कुत्तों  को अपने से अलग नहीं करते.

यूपी के कानपुर शहर में तो एक 80 वर्षीय बुजुर्ग पर उन के अपने ही पालतू कुत्ते ने हमला कर के मौत के घाट उतार दिया, तो वहीं लखनऊ में भी एक शख्स ने घर की सुरक्षा के लिए पिटबुल कुत्ता पाला था लेकिन इस पालतू कुत्ते ने अपने घर की मालकिन को ही नोच खाया और उन की दर्दनाक मौत हो गई.

पालतू कुत्तों  के द्वारा अपने परिवार के सदस्यों पर हमले के बाद भी लोगों ने अपने पालतू कुत्तों का त्याग नहीं किया. अकसर कुत्ते पालने को ले कर कई बार पड़ोसियों के बीच ही नहीं बल्कि पतिपत्नी के बीच भी विवाद हो जाता है. यहां तक कि उन का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है. एक खबर के अनुसार, आगरा में एक पतिपत्नी के बीच कुत्ते को ले कर इतना विवाद हुआ कि उन का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया. पत्नी को कुत्ता पसंद नहीं था जबकि पति को कुत्ते से बहुत प्यार था.

डौग लवर्स के लिए उन का पाला हुआ कुत्ता उन के अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों से भी

कहीं ज्यादा अजीज जान पड़ता है. इन कुत्ता प्रेमियों के कुत्ते के प्रति इस तरह के प्रेम को देख कर ऐसा लगता है कि उन्होंने महाभारत की उस कहानी को सच मान लिया है  कि उन का कुत्ता उन्हें स्वर्ग का मार्ग दिखाने में उन का एकमात्र साथी और सहयोगी बनेगा. उन्हें यह भ्रम तो नहीं कि उन का कुत्ता उन्हें स्वर्ग तक ले जाने में मार्गदर्शन करेगा, जिस प्रकार महाभारत में युधिष्ठिर के स्वर्ग जाने में युधिष्ठिर का मार्गदर्शन एक कुत्ते ने किया था.

कुछ लोगों का यहां तक मानना है कि कुत्ते को खाना खिलाने से भैरव प्रसन्न होते हैं और यमदूतों का डर दूर होता है. यमदूतों का तो पता नहीं बल्कि उन के पड़ोसी उन से जरूर दूर हो जाते हैं. कई बार तो उन के सगे रिश्तेदार भी उन के घर आने से बचते हैं.

कुछ लोग कुत्ता इसलिए भी पालते हैं क्योंकि उन के अंदर यह अंधविश्वास गहरे तक बैठा हुआ है कि कुत्ता पालने से घर की तरक्की दिन दूनी रात चौगुनी होगी. उन की तरक्की का तो पता नहीं उलटा कुत्ते पालने का खर्च उन की आमदनी से भी अधिक हो जाता है और उन्हें कर्ज में डुबो देता है. ऐसे कुत्ता प्रेमियों यानी श्वान प्रेमियों को मेरा कोटिकोटि नमन है.

Satire Story

Fictional Story: कमियां हुईं दूर

Fictional Story: ‘‘मैं एक बहुत बड़ी उलझन में हूं और चाहता हूं कि तुम इस उल झन से मुझे उबारो,’’ मनोज ने संगीता से कहा. उस के चेहरे पर गंभीरता और चिंता दोनों ने डेरा जमाया हुआ था.

संगीता कौफी के मग को अपने होंठों से लगातेलगाते रुक गई. उस ने उत्सुकता से मनोज की ओर देखा, ‘‘ऐसी कौन सी उल झन है और क्या मेरे लिए संभव है कि मैं तुम्हें उल झन से उबार सकूं?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘मामला मेरा और तुम्हारा है, मेरे और तुम्हारे परिवार का है. ऐसे में तुम से सलाह लेना जरूरी है,’’ मनोज ने कहा.

‘‘बताओ. क्या बात है?’’ संगीता ने कौफी का घूंट लेते हुए पूछा.

‘‘ऐसा है कि हम दोनों की मित्रता बहुत अच्छे से चल रही है. हम दोनों एक ही किश्ती के सवार हैं. हम दोनों सिंगल पेरैंट हैं. मेरे 2 बच्चे हैं और तुम्हारा 1 बच्चा है. उन के बारे में सोचना भी जरूरी है. क्या हम अपने इस रिश्ते को कुछ अलग रूप दे सकते हैं जिस से हमारे बच्चे भी हमारे इस जीवन में सहभागी हो सकें और बेहतर जीवन जी सकें?’’ मनोज ने पूछा. वह पहले ही कौफी समाप्त कर चुका था. उस की आदत थी बिलकुल गरम कौफी पीने की.

संगीता सोच में पड़ गई. कुछ देर सोचने के बाद कहा, ‘‘तुम्हारा प्रश्न वाजिब है पर इस के जवाब के लिए थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘थोड़ा क्यों? पूरा समय लो और बताओ कि क्या किया जा सकता है,’’ मनोज ने कहा.

‘‘ठीक है सोच कर बताती हूं. तुम भी अच्छे से विचार कर के बताना,’’ संगीता ने कहा.

‘‘मैं तो इस पर काफी विचार कर चुका

हूं. किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया हूं. पर

2-3 विकल्प नजर आ रहे हैं मु झे,’’ मनोज ने संगीता के चेहरे पर अपनी नजरें जमाते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ संगीता ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘पहला अभी तक की तरह इसे सिर्फ दोस्ती और सहारे के रूप में रहने दें जैसा अभी तक चल रहा है,’’ मनोज ने कहा.

‘‘दूसरा?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘हम साथसाथ रहने लगें,’’ मनोज ने कहा.

‘‘हूं. और कुछ सोचा है क्या?’’ संगीता

ने पूछा.

‘‘हां. एक और है. हम शादी कर लें और साथ रहने लगें. मेरे बच्चों को मां मिल जाएगी और तुम्हारे बच्चे को पिता,’’ मनोज ने कहा.

‘‘अच्छा…’’ संगीता बस इतना ही बोल पाई. शायद उस ने इन विकल्पों के बारे कल्पना भी नहीं की थी. इस कारण अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी.

‘‘पर एक बात का विशेष ध्यान रखना है.’’ मनोज बोला.

‘‘क्या?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘तुम्हारे या मेरे ऊपर किसी प्रकार का दबाव नहीं रहे. हम दोनों एकदूसरे के साथ बहुत अच्छा समय बिताते हैं. मैं इस रिश्ते को बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानता हूं. बस तुम शांत मन से सोचो कि तुम इस रिश्ते को भविष्य में कैसा देखना चाहती हैं. तुम बे िझ झक अपनी अपेक्षाएं, अपनी आशंकाएं बताना. मैं भी अपनी बताऊंगा,’’ मनोज ने कहा.

मनोज ने वेटर को बिल लाने का संकेत किया. वेटर बिल ले कर आया तो मनोज ने भुगतान कर दिया और दोनों रैस्टोरैंट से बाहर निकले.

‘‘ठीक है विचार करना और एक बार फिर से दोहरा दूं तुम्हारे ऊपर मेरी ओर से किसी प्रकार का दबाव नहीं है और साथ ही तुम्हारी ओर से मेरे ऊपर कोई दबाव न रहे. जो भी निर्णय लिया जाए दोनों की सहमति से लिया जाए, बाय,’’ मनोज ने कहा.

‘‘बाय,’’ संगीता ने यंत्रवत कहा. काफी हद तक अचंभित थी.

दोनों अपनेअपने निवास पर पहुंच गए.

निवास पर पहुंचते ही संगीता की बिटिया आरुषि ने उस का स्वागत किया,

‘‘मम्मा, आज शाम को मेरे साथ पार्क चलोगी न?’’

‘‘जरूर,’’ संगीता ने कहा.

‘‘आज मैं खूब देर तक  झूला  झुलूंगी. आज छुट्टी का दिन है. आप मु झे जल्दी आने के लिए मत कहना,’’ आरुषि ने कहा.

‘‘ठीक है बाबा बस आधे घंटे में चलूंगी,’’ संगीता ने कहा और अपने कपड़े बदलने के लिए अपने रूम में चली गई.

इस बीच मेड ने जाने की अनुमति ली और चली गई. कपड़े बदल कर संगीता वहीं आराम करने लगी. उस का ध्यान मनोज की बातों पर चला गया. मनोज उस के साथ कभी काम करता था. इसी क्रम में उस से उस की मित्रता हो गई थी. मित्रता धीरेधीरे घनिष्ठता में बदल गई थी. मनोज की पत्नी का एक दुर्घटना में देहांत हो गया था. उस के घर में उस की मां उस के दोनों बच्चों अनन्या और अद्वैत को संभालती थी. मनोज तो खुद ही 50 के लगभग का होगा. फिर उस की मां 70 से कम की क्या होंगी. परेशानी तो होती होगी बुजुर्ग महिला को.

पत्नी की मृत्यु के बाद मनोज काफी अकेला हो गया था. इस बीच उन की दोस्ती काफी बढ़ गई थी. दोनों एकदूसरे के साथ अपनी भावनाएं सा झा करते थे. न सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक तौर पर भी एकदूसरे से जुड़ गए थे. पति ने तलाक के बाद न तो संगीता से कोई संपर्क किया था न आरुषि से. आरुषि की देखभाल के लिए उस ने एक आया को रख लिया था.

मनोज के साथ अभी तक वह बहुत ही सुखपूर्वक मित्रता निभा रही थी. दोनों ही इस रिश्ते से काफी खुश थे. पर अब लगता है कि मनोज को भविष्य की चिंता सताने लगी है तभी वह कई विकल्पों की चर्चा कर रहा था. पर उन विकल्पों में वह किसे चुने सम झ नहीं पा रही थी. एकसाथ रहने पर आरुषि, अनन्या और अद्वैत किस प्रकार प्रतिक्रिया करेंगे? फिर मनोज की मां इसे किस रूप में लेगी? कई बातें उस के जेहन में चल रही थीं.

एकाएक संगीता के विचारों का सिलसिला रुक गया जब आरुषि ने अंदर आ कर कहा, ‘‘मां, आधा घंटा हो चुका. अब तो चलो पार्क में.’’

दोनों मांबेटी पार्क में पहुंच गए. पार्क सोसाइटी में ही था. सोसाइटी के चारों ओर ऊंचे टावर थे और बीच में अच्छा सा पार्क था जिस में क्रिकेट, बास्केटबौल, लौन टैनिस, बैडमिंटन खेलने के लिए व्यवस्था थी. एक ओर छोटे बच्चों के खेलने के लिए तरहतरह के  झूले थे. बेसमैंट में स्विमिंग पूल, जिम, छोटी सी लाइब्रेरी और क्लबहाउस था. पार्क में कई बच्चे  झूला  झूल रहे थे. आरुषि भी उन के साथ खेलने लगी. संगीता वहीं बैठ कर मनोज के प्रस्ताव पर विचार करने लगी. पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थी.

संगीता यह सोच रही थी कि आरुषि से कैसे इस बारे में विचार लिया जाए. वैसे वह छोटी थी और उस के निर्णय को टाल नहीं सकती थी पर उस का विचार जानना वह जरूरी सम झ रही थी. एक अनजान व्यक्ति को पिता के रूप में देखना, 2 अनजान लड़कों को भाई मानना और एक अनजान महिला को दादी के रूप में देखना क्या उसे अच्छा लगेगा? इस के पहले कभी वह उन से मिली भी नहीं थी.

काफी देर विचार करने के बाद संगीता के मन में एक खयाल आया. उस ने एक पुरानी फिल्म देखी थी ‘मासूम.’ पूरी तो नहीं कुछकुछ इस स्थिति से मिलतीजुलती कहानी थी उस फिल्म की. ‘पहले मैं यह फिल्म आरुषि को दिखाऊंगी फिर उस के आधार पर उस का विचार जानने की कोशिश करूंगी, उस ने सोचा.

शाम को खाना खाने के बाद संगीता ने आरुषि से पूछा, ‘‘एक फिल्म देखें क्या आज?’’

‘‘हां मां, मजा आ जाएगा,’’ आरुषि चहकते हुए बोली.

‘‘चलो फिर देखते हैं,’’ कह अपने स्मार्ट टीवी पर उस ने फिल्म लगा दी. आरुषि बहुत ध्यान से फिल्म देखने लगी. फिल्म के कई पात्र उसी की उम्र के थे और बच्चों के लिए ‘लकड़ी की काठी…’ गाना भी उसे बहुत ही अच्छा लगा.

‘‘कैसी लगी फिल्म?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘मम्मा बहुत ही अच्छी लगी. राहुल के लिए कितना अच्छा हो गया न? वह भी सब के साथ रहने लगा,’’ आरुषि ने जम्हाई लेते हुए कहा.

‘‘तुम्हें नींद आ रही है. चलो बिस्तर पर,’’ संगीता ने कहा.

दोनों बिस्तर पर आ गए.

‘‘अच्छा, तुम्हें भी अगर राहुल की तरह 2 बच्चों का साथ मिल जाए तो कैसा रहे?’’ संगीता ने पूछा.

‘‘बहुत अच्छा. पर आप मेरे साथ रहोगी तभी,’’ आरुषि ने कहा.

‘‘अरे मैं तो रहूंगी ही तुम्हारे साथ. अब तुम सो जाओ. नींद से तुम्हारी आंखें भारी हो रही हैं,’’ संगीता ने कहा और लाइट बंद कर दी. काफी देर तक वह इसी बारे में सोचती रही और फिर सो गई.

अगली बार जब संगीता मनोज से मिली तो आरुषि की प्रतिक्रिया उसे बताई.

‘‘तुम ने तो अच्छी तरकीब निकाली आरुषि के विचार जानने के लिए. मैं भी अनन्या और अद्वैत को यही फिल्म दिखाऊं क्या?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘दिखाने में हरज नहीं है. पर आरुषि अकेली है इसलिए उसे किसी के साथ रहना अच्छा लग सकता है. पर अनन्या और अद्वैत शायद अपने बीच किसी और को सहन न कर सकें,’’ संगीता ने कहा.

‘‘हूं. उन्हें तो फिर भी मनाना आसान रहेगा पर मां के लिए मैं सोच रहा हूं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘शादी के लिए तो शायद वे फिर भी तैयार हो जाएं. बिना शादी के हमारा साथ रहना उन्हें अनैतिक लगेगा. पर पहले तुम निश्चय कर लो कि तुम तैयार हो. फिर मां से बात करता हूं.’’

‘‘मु झे तो 2 ही बातें सही लग रही हैं या तो जैसे अभी हम मिलते हैं वैसे ही मिलते रहें या फिर शादी कर के एकसाथ रहें,’’ संगीता ने कहा.

‘‘दोनों में से ज्यादा सही क्या लग रहा है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘शादी कर के साथ रहना,’’ संगीता ने कहा.

‘‘ठीक है फिर अगले रविवार को आ जाओ मेरे घर. मैं मां से बात कर लूंगा. बच्चे तो मान ही जाएंगे,’’ मनोज ने कहा.

मनोज ने समय निकाल कर मां से अपनी बात डरतेडरते कह दी. उसे पूरा यकीन था कि मां विरोध करेंगी. पर उस की खुशी का ठिकाना न रहा जब मां ने कहा, ‘‘इस उम्र में बच्चों की देखभाल मु झ से ठीक से नहीं हो रही. यदि शादी कर लो तो ठीक ही रहेगा. रिश्तेदारों में कुछ दिनों तक कानाफूसी होगी कि तुम ने एक तलाकशुदा, एक बच्ची की मां से शादी की है. पर ये रिश्तेदार कभी मदद को तो आए नहीं. फिर इन की बातों से क्या फर्क पड़ना है.’’

संगीता आई तो उस ने हाथ जोड़ कर मां को प्रणाम किया. मां ने उसे आशीर्वाद दिया. बातों ही बातों में मां ने एक बात संगीता और मनोज से कही, ‘‘जब शादी करने का निर्णय ले लिया है तो एक बात पर विशेष ध्यान रखना होगा. तुम दोनों के अब 3 बच्चे हैं. तीनों को बाराबर प्यार देना होगा. बच्चे अभी छोटे हैं. उन का मन अभी कच्चा है. वे कुछ दिनों में घुलमिल जाएंगे. तुम दोनों के मन में कभी भी यह खयाल नहीं आना चाहिए कि उन में से कोई भी बच्चा तुम्हारा अपना नहीं है.’’

मनोज और संगीता ने इस बात के लिए हामी भरी. अद्वैत को तो कोई आपत्ति नहीं थी पर अनन्या शुरू में थोड़ी रुष्ट जरूर हुई. कुछ दिनों के बाद दोनों की सादे समारोह में शादी हो गई और सभी साथ रहने लगे. अनन्या कुछ दिनों तक आरुषि और संगीता से दूरी बनाती रही पर उस के बाद वह भी दोनों से घुलमिल गई. इस प्रकार 2 सिंगल पेरैंट, पेरैंट बन गए और दोनों परिवारों की कमियां दूर हो गईं.

Fictional Story

Love Story in Hindi: कुछ इस तरह

Love Story in Hindi: बोइंग  बी 787, लंदन की फ्लाइट की अनाउंसमैंट के साथ ही सिद्धार्थ और कैथरीन दोनों ने एकदूसरे को नजर भर कर देखा और उठ खड़े हुए.

‘‘आई विल मिस यू सिड.’’

‘‘मी टू.’’

एक हाथ से लगेज ट्रौली को खींचते हुए सिद्धार्थ ने दूसरे हाथ में कैथरीन का हाथ पकड़ा हुआ था. चैक इन गेट पर पहुंचते ही कैथ ने अपना हाथ छुड़ा कर सिद्धार्थ को गले से लगा लिया.

‘‘आई एम गोइंग टू मिस यू अ लौट. आई वांट टू स्पैंड माई लाइफ विद यू.’’

‘‘मी टू कैथ.’’

कैट के आंसुओं को सिड ने अपने कंधे पर महसूस किया. फिर उसे खुद से अलग करते हुए बोला, ‘‘यू आर स्टूपिड.’’

‘‘आई नो दैट,’’ हंसती हुई कैथ और भी प्यारी लग रही थी.

वहीं सिड भी बेहद गुड लुकिंग था लेकिन कम बोलने वाला और थोड़ा शर्मीला एअरक्राफ्ट इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और काफी शांत स्वभाव था उस का.

बस कुछ ही पलों में चैक इन की औपचारिकताओं के बाद कैथ कांच के उस पार थी और सिड इस तरफ. दोनों ने हाथ हिला कर एकदूसरे को अलविदा कहा और वापस अपनीअपनी दिशा में मुड़ गए.

एअरपोर्ट से निकल कर सिड के कदम तेजी से वापस अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गए. गाड़ी का गेट खोला चाबी घुमाई और चल पड़ा अपने रास्ते पर.

‘‘तुम्हें मैं भूल जाऊंगा ये बातें दिल में न लाना… मैं जब भी याद आऊं तो चले आना चले आना…’’

यह एफएम भी दिल की बात जान लेता है जैसे सिड ने महसूस किया क्योंकि म्यूजिक आन करते ही यही लाइंस कानों में पड़ीं और ड्राइव करते हुए उस का ध्यान कोई एक महीना पीछे पहुंच गया…

यह पिछला 1 महीना कितना यादगार बीता था उस का कैथ के साथ. उसे याद आ रहा था वह पल जब कैथ से पहली बार मिला था वह. खेत के पास वाली सड़क के किनारे बड़ी सी गाड़ी से टेक लगाए परेशान सी खड़ी थी वह और सिड को जाता देख उसने  झट से उसे आवाज दी थी, ‘‘हैलो. ऐक्सक्यूज मी.’’

सिड तो जैसे बच कर भागना चाहता था लेकिन वह एकदम उस के सामने आ कर

खड़ी हो गई, ‘‘प्लीज. आई डिस्परेटली नीड यार हैल्प.’’

गुलाबी रंगत, ब्राउन आंखे,लहराते बाल और ऊपर से यह खुशामदी अंदाज जैसे कैथ को देखता ही रह गया था वह.

उफ, अब तो कोई रास्ता ही नहीं बचा था सिड के पास, इसलिए उसे कहना पड़ा, ‘‘यस व्हाट डू यू वांट?’’

अब कैथ ने उसे अपनी फोन की सक्रीन पर एक ऐड्रैस दिखाया. तब जाके मालूम

पड़ा कि यहां पंजाब में उस के दादादादी का घर है और वह उन्हीं से मिलने यहां आई है लेकिन इस घर पर जब वह पहुंची थी तब कुछ लोगों ने उसे बाहर से ही लौटा दिया यह कह कर कि उस के दादादादी उस से मिलना नहीं चाहते.

‘‘आई जस्ट वांट टू मीट माई पैटरनल फैमिली, माई ग्रैंड पेरैंट्स ऐंड आई वांट टू एक्सप्लोर हिज प्लेस.’’

सिड को उस पर तरस आ गया. फिर भी उस को कैथ के यहां होने पर हैरानी हो रही थी.

‘‘मैडम यू आर अ ब्रिटिश सिटिजन. यू डौंट नीड टू बी हेअर लाइक दिस.’’

फिर कैथ ने बताया कि वह एक गाइड के साथ यहां गांव में आई है लेकिन वह अब वापस चलने को कह रहा है. यह गाइड गांव में रुकना नहीं चाहता और कैथ अपने परिवार से मिले बिना वापस नहीं जाना चाहती.

‘‘देखिए मैम अभी तो शाम हो गई है कुछ ही देर में रात हो जाएगी तो आज तो नहीं हो पाएगा. आप ऐसा कीजिए कल सुबह आइए फिर चल सकते हैं इस एड्रैस पर. अभी आप अपने होटल लौट जाइए.’’

‘‘ओके,’’ बड़ी खुशी से कैथ ने जवाब दिया. उसे भरोसा हो गया था सिड के वादे पर.

फिर कैथ ने एक और रिक्वैस्ट की थी कि सिड उन की गाड़ी के साथ उन्हें गांव के

बाहर मेन रोड तक छोड़ दे.

‘‘हां बिल्कुल और तो कोई काम ही नहीं है मु झे,’’ सिड कुछ  झुंझलाया सा राजी हो गया.

वह अपनी बाइक पर कैथ की गाड़ी के आगेआगे चल पड़ा. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.

कैथ की कार कच्ची सड़क की ढलान से निकलते हुए जैसे ही आगे बढ़ी तभी किसी चीज से जोरदार टक्कर हुई और गाड़ी का अगला टायर पंक्चर हो गया. साथ ही हैडलाइट चकनाचूर हो गई और इंजन गर्रर की आवाज के साथ  झटके लेने लगा.

‘‘यह देख सिड को उस ड्राइवर कम गाइड पर बहुत गुस्सा आया, यह आप का हाईवे नहीं है गाइड यानी ड्राइवर. गांव की कच्ची सड़क है. चलानी नहीं आती तो यहां क्यों ले आए गाड़ी को… लेकिन अब तो सुबह से पहले कुछ नहीं हो सकता.’’

और हार कर सिड कैथ को अपनी बाइक पर बैठा कर अपने घर के लिए चल पड़ा.

‘‘आई एम सो सौरी.’’

‘‘सौरीवौरी छोडि़ए मैडम. बात यह है कि मैं अपने घर पर क्या कहूंगा? यह किसे ले कर आया हूं? हिंदी तो सम झ आती है न आप को?’’ सिड इस समय बहुत गुस्से में था.

‘‘ओ यस आई अंडरस्टैंड इंडी.’’

‘‘हा… हा… इंडी. थैंक गौड.’’

‘‘ट्रस्ट मी. मेरे डैड ने मु झे इंडी सिखाया है.’’

‘‘इंडी?’’ सिड को हंसी आ गई.

शाम तेजी से रात में बदलने लगी थी. सिड ने पगडंडीनुमा रास्ते पर तेजी से बाइक दौड़ा दी और कुछ देर बाद वह कैथ के साथ अपने बड़े से हवेलीनुमा घर के गेट पर पहुंच गया.

खूंटी पर लटकती लालटेन की हलकी रोशनी कमरे में पसरी हुई थी. कडि़यों की छत वाले उस कमरे में 4 पलंग बिछे थे.

बड़ी वाली मसहरी पर गरम टोपा पहने और रजाई में खुद को लपेटे बैठे पापा उन दोनों को गौर से देख रहे थे. पास ही कुरसी पर शाल में लिपटी मां बैठी थीं और बेंत की कुरसियों पर सिड और कैथ सकुचाते हुए से बैठे थे.

‘‘हां तो अमनदीप की बेटी हो तुम?’’

कैथ ने नजर ऊपर उठाई और हां में सिर हिलाया.

‘‘तो अब क्यों मिलना चाहती हो अपने

पापा के मांबाप से? छोड़ो  वापस चली जाओ… अब भूल चुके हैं सब उस को.’’

‘‘यस औफकोर्स आई विल गो बैक अंकल. बट… ऐक्चुअली…’’

और सिड जो अभी तक चुप बैठा था ने कैथ का पक्ष रखा, ‘‘पापा दरअसल वह उन से इसलिए मिलना चाहती है ताकि उन को अपने पापा का सच बता सके. उन के लिए जो गलतफहमियां उन लोगों के दिल में हैं उन्हें दूर कर सके.’’

‘‘कैसी गलतफहमी बेटा?’’ अब मां ने पूछा और तब जा कर पता चला था कि कैथ के पिता को लंदन से एक अच्छी जौब का औफर आया था. वे अपने मांबाबा की इकलौती संतान थे शायद इसीलिए उन के पिताजी उन्हें बाहर जाने नहीं दे रहे थे लेकिन वे उन से छिप कर लंदन चले गए थे. लंदन में उन्हें अच्छी जौब तो मिल गई लेकिन उन से उन का परिवार हमेशा के लिए छूट गया. फिर वहीं उन्होंने क्रिस्टीन से शादी कर ली लेकिन कुछ साल बाद ही उन का तलाक हो गया. फिर उन्होंने कभी दोबारा शादी नहीं की. अकेले ही कैथ की परवरिश की.

हां लंदन जाने के बाद उन्होंने कई बार यहां आना चाहा ताकि एक बार अपने मांबाप से मिल सकें लेकिन कभी अपने बाबा के सामने आने की हिम्मत ही न कर सके.

वे हमेशा अपने परिवार को अच्छा रहनसहन देना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने उस हाई प्रोफाइल जौब के लिए अप्लाई किया था. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कैथ ने बताया कि

उस ने सारी जिंदगी अपने पापा को अपने देश और अपने मां बाबा के लिए तड़पते देखा है. वे हर पल उन्हें याद करते रहे और उन से बिछुड़ने के दुख से बेचैन रहे और इस दुनिया से ही चले गए.

कई साल तक वे दादाजी के जिस अकाउंट में पैसे भेजते रहे, बाद में पता चला कि वे

पैसे तो दादाजी को मिले ही नहीं बल्कि हर बार कोई और ही उन के अकाउंट से पैसे निकाल रहा था. ये सब सुन कर उन्हें बहुत दुख हुआ. वे यह सोच कर रोते ही रहे कि पता नहीं मांबाबा किस हाल में होंगे.

कैथ की दास्तान सुन कर सिड और मम्मीपापा सभी बहुत भावुक हो गए थे.

सिड के पापा ने कहा कि ठीक है कल ही उन लोगों के पास चलते हैं और हां वे किसी भी तरह की मदद करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे लोग हर साल 1 या 2 बार अपने गांव आते हैं. और इस बार सिड की भी छुट्टियां थीं तो उसे भी ले आए.

अगले ही दिन ये चारों लोग कैथ के बताए पते पर चल पड़े. किसी तरह लोगों से पूछते हुए वे लोग उस घर तक पहुंच ही गए. वे बड़ा सा पुराना घर अपनी उम्र की दास्तान खुद बयां कर रहा था. लकड़ी के पुराने से दरवाजे से वे लोग अंदर दाखिल हुए. कुछ छोटी बच्चियां हैंडपंप से पानी भरती दिखाई दीं. कुछ उस कच्चे आंगन में  झाड़ू लगातीं. अंदर बरामदे में एक बुजुर्ग एक पुरानी चारपाई की जोड़तोड़ कर रहे थे. इन लोगों को देखते ही वे चौंक गए थे और उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज लगाई थी, ‘‘देख तो तेरे मायके से कोई आया लगता है.’’

‘‘मेरे मायके में है ही कौन,’’ कहती हुई दादी रसोई से बाहर आ गई थीं.

और जब उन्हें पता चला कि ये उन के इकलौते बेटे की निशानी है तो दोनों फूटफूट कर रोए. दादी ने अपनी खुरदरी उंगलियां कैथ के चेहरे पर घुमाईं जैसे छूना चाहती हों अपने बिछड़े हुए बेटे को. दादा का भी सारा गुस्सा जैसे कभी का खत्म हो चुका था. अब तो बस जो बचा था वह था पछतावा. अपने बेटे को पहले जीते जी खोने का और बाद में इस दुनिया से जाने का. दादा से यह भी पता चला कि किस तरह फर्जी कागज बनवा कर उन के भाई की संतानों ने उन की सारी जमीन अपने नाम करा ली.

कैथ उन की बातें सुन कर बस लगातार रोए जा रही थी. उस ने कुछ दिन यहीं उन के साथ गुजारने का फैसला किया. सिड के मांपापा ने हर तरह की मदद का आश्वासन दिया और इन दोनों को दादादादी के पास छोड़कर लौट गए.

अब तो वह करना था जिस के लिए कैथ यहां आई थी यानी उन को जीने के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया कराना. यही तो चाहते थे उस के पापा भी. इन दोनों ने दादादादी को इस के लिए मना ही लिया.

बस फिर क्या था. अगले ही दिन से घर में जरूरी चीजों की खरीदारी शुरू हो गई.

सब से पहले पानी की मोटर और टंकी की व्यवस्था की गई. फिर गीजर, रूम हीटर और गरमियों के लिए एसी सबकुछ इंस्टाल कर दिया गया. साथ ही फर्नीचर, सुंदरसुंदर परदे और चादरें भी खरीदी गईं. दोनों यों साथसाथ गृहस्थी को सजाते जैसे यह उन का ही आशियाना हो और कभीकभी दोनों में किसी मामूली सी बात पर बहस हो जाती तो कभी सिड प्यार से कैथ को मना लेता. दोनों रातरात तक दादीदादा से बातें करते फिर न जाने कब सो जाते.

सिड ने उन दोनों के लिए 2 स्मार्टफोन ला कर दे दिए. अब तो कभी सब मिल कर मूवी देखते तो कभी फोटो खींचते. उन्होंने दोनों बुजुर्गों को वीडियो कौल करना सिखाया और इस की खूबखूब प्रैक्टिस भी करा दी.

कभी कैथ दादी के साथ बिस्तर पर बैठी सामने पलंग पर लेट दादा को वीडियो कौल लगा देती तो वीडियो में उन्हें देख कर दादा खूब हंसते. बदले में सिड भी दादा के फोन से दादी को

पुराने गाने का क्लिप भेज देता और दादी मुसकरा देतीं. कुछ ही दिनों में दादादादी के घर में खूब रौनक हो गई और सुखसुविधाएं भी नजर आने लगीं.

बुजुर्ग चाहे कितना ही मना करें लेकिन जब सुविधाएं मिलती हैं तो उन्हें अच्छा लगता है. यही कैथ के दादादादी के साथ भी हुआ. ये उन्हें अपनी जिंदगी के बेहतरीन दिन महसूस हो रहे थे. उम्र के इस पड़ाव में आ कर कोई उन्हें इतना खास महसूस कराएगा यह वे कभी नहीं सोच सकते थे.

कैथ जब दादी के सिर में मालिश करती तो दादी उसे ढेरों दुआएं देतीं. वहीं सीड को कैथ का यह घरेलू अंदाज बेहद प्यारा लगता. उसे अकसर कैथ में एक बिलकुल देशी लड़कियों वाली छवि दिखाई देती और वह मन ही मन उस मर मिटता.

उधर कैथ को भी सिड बहुत अच्छा लगने लगा था. लेकिन दोनों अपनी सीमाएं जानते थे इसीलिए दोनों ने किसी से कुछ नहीं कहा.

दादी कहतीं कि अब तू चली जाएगी तो हम नहीं रह पाएंगे. एक बार दादी ने कहा था कि बेटा किरीन वह उसे इसी नाम से बुलातीं, तू हमेशा के लिए अपने देश में रुक जा और कैथ ने एक नजर सिड पर डालते हुए कहा था कि हां दादी रुक भी सकती हूं.

फिर एक शाम छत पर बैठी कैथ डूबते सूरज को निहार रही थी कि तभी सिड भी छत पर आ गया. सफेद रेशमी सूट खुले बालों में कैथ बहुत खूबसूरत लग रही थी, ‘‘यहां क्या कर रही हो?’’ सिड ने पूछा.

कैथ ने पलट कर देखा. ब्लू शर्ट और औफ व्हाइट जींस में सिड भी बहुत स्मार्ट लग रहा था. दोनों एकदूसरे को देखते रह गए. डूबते सूरज की लालिमा में कैथ का गुलाबी चेहरा दमक रहा था.

‘‘सुनो सिड.’’

‘‘हां बोलो कैथ.’’

‘‘ऐक्चुअली…अ नथिंग…’’

‘‘हा… हा… तुम भी न कैथ,’’ और कैथ मुसकरा कर वापस सूरज को देखने लगी. तभी नीचे से दादी की आवाज आई और दोनों सीढि़यों की तरफ भागे.

सीढि़यों पर कैथ ने इतना ही कहा, ‘‘मेरा वीजा खत्म हो रहा है.’’

‘‘रियली? ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो तुम्हें यहां की सिटिजन सम झ रहा था,’’ कहते हुए सिड जोर से हंस पड़ा और कैथ गुस्से में पैर पटकती नीचे आ गई और आखिरकार कैथ के वापस जाने का दिन भी आ गया.

दादादादी ने कैथ से दोबारा जल्दी मिलने का वादा लिया. सिड के मां पापा भी कैथ को कार तक छोड़ने आए.

सिड ही कैथ को एअरपोर्ट पहुंचाने आया था और यह वह आखिरी लमहा था जिस में वे बिछड़ने वाले थे कि तभी इस लमहे में कैथ ने वह कह दिया जिस का इंतजार तो दोनों को था लेकिन कह नहीं पाए थे.

‘‘तेरे साथ तकदीरा लिखवाऊंगा, मैं तेरा बण जाऊंगा…’’ गाड़ी में एफएम अभी भी औन था. घर तक पहुंचते रात हो गई थी. गेट के सामने पहुंच

कर उस ने गाड़ी का हौर्न बजाया. गेट मां ने ही खोला.

अंदर आ कर अपने कमरे में पलंग पर औंधे मुंह गिर गया सिड. अपने दिल के गलियारे में बड़ा सूनापन महसूस हो रहा था उसे.

तभी पीछे से मां ने उस के कंधे पर थपथपाया. बेटे का हाल मां से छिपा नहीं था. मां ने उसे फोन पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अभी मैसेज कर उसे. प्लेन से बाहर आते ही वह तेरा मैसेज चेक करेगी.’’

‘‘क्या?’’ सिड अवाक सा बोला.

‘‘हां, अब हर बात वही कहेगी क्या?’’

‘‘और फिर फोन करना उसे. तू पसंद करता है न कैथ को?’’

‘‘हां मां. शायद.’’

‘‘शायद क्या. तेरी आंखों में सब नजर आ रहा है.’’ मां हंस पड़ीं.

‘‘मुझे और तेरे पापा को भी कैथ बहुत पसंद है. बात पक्की करते हैं उस के दादादादी से मिल कर.’’

‘‘वाह मां,’’ कहते हुए सिड ने मां को गले लगा लिया.

‘‘और कल ही पैकिंग कर हमें भी तो वापस घर जाना है. छुट्टियां खत्म हो रही हैं तेरी.’’

‘‘हां मां करता हूं.’’

सिड की खुशी का अब कोई ठिकाना न था. अब उसे अपना प्रेम प्रफुल्लित होता नजर आ रहा था.

लेखक- सबा नूरी

Love Story in Hindi

Best Story in Hindi: अनावश्यक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं

Best Story in Hindi: ‘‘सुगंधा,  क्या तुम मु झ से शादी करोगी प्लीज?’’ प्रदीप के व्यवहार से ऐसा लगता मानो वह ऐसा कहना चाहता है. यदि वह ऐसा कह दे तो क्या उसे हां कर देनी चाहिए? यह प्रश्न अकसर सुगंधा के दिमाग में तैरता रहता था. इस में कोई दो मत नहीं कि प्रदीप एक बहुत ही अच्छा व्यक्ति था. वह पिछले 6 वर्षों से सुगंधा के साथ था. उन के बीच बहुत अच्छी कैमिस्ट्री थी. उन के प्यार की कोई सीमा नहीं थी. पर एक बात सुगंधा के मन में हमेशा कौंधती रहती कि कहीं उसे बाद में यह पछतावा न हो कि उस ने किसी और के साथ डेटिंग क्यों नहीं की. तो क्या उसे कुछ और लोगों के साथ डेटिंग पर जा कर देखना चाहिए?

सुगंधा को खुद पता नहीं था कि वह क्या चाह रही है. उसे खुद ही पता नहीं था कि क्यों अन्य लोगों के साथ डेटिंग पर जाने का विचार उस के मन में आ रहा है और अगर वह किसी और के साथ डेटिंग पर जाए तो क्या उस का उद्देश्य पूरा हो जाएगा? यदि प्रदीप उस के निर्णय से अवगत होगा तो फिर उस की क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या वह भी अन्य किसी लड़की के साथ डेटिंग पर जाने की नहीं सोचेगा यह देखने के लिए कि कोई सुगंधा से बेहतर उसे मिलता है या नहीं और यदि वह ऐसा करेगा तो वह कैसा महसूस करेगी? क्या इस से दोनों को नुकसान नहीं होगा? दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं तो क्या इस तरह के प्रयोग करना सही होगा?

सुगंधा अपनी दोहरी मानसिकता से परेशान हो रही थी. किसी से इस बारे में सलाह लेने के लिए बहुत ही बेचैन थी. तभी उस का ध्यान श्वेता पर गया. वह उस की बहुत ही अच्छी दोस्त थी और बहुत ही तर्कपूर्ण तरीके से बात करती थी. उस से मु झे सही सलाह मिलेगी, उस ने सोचा और फिर श्वेता को फोन लगाया.

‘‘हैलो सुगंधा. कैसे याद किया?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘श्वेता, तुम्हारा समय चाहिए था. कुछ बातें करनी थी,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘अरे मेरी बैस्ट फ्रैंड, तुम्हारे लिए समय ही समय है. कभी भी आ जाओ,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘कुछ जरूरी बातें करनी हैं और तुम्हारे साथ क्वालिटी टाइम भी बिताना है. इसलिए कभी भी नहीं, जब तुम्हारे पास समय हो तब आऊंगी,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तो फिर शनिवार को आ जाओ. हम लोग ट्राइटन मौल में ‘मेरे हसबैंड की बीवी’ फिल्म देखेंगे. डिनर लेंगे और मस्ती करेंगे,’’ श्वेता ने कुछ सोच कर कहा.

‘‘शनिवार को तो प्रदीप ने जवाहर कला केंद्र जाने का कार्यक्रम बना लिया है, ‘समाज’ देखने के लिए. यदि तुम रविवार को फ्री हो तो आऊं?’’ सुगंधा ने अपना प्रस्ताव रखा.

‘‘अरे रानी तुम्हारे लिए हमेशा फ्री हूं. आ जाओ रविवार को,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘फिर ठीक है. 5 बजे मैं पहुंच जाऊंगी,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘डन, इंतजार करूंगी रविवार को. बाय,’’ श्वेता ने कहा और फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रविवार को सुगंधा श्वेता के फ्लैट पर ठीक 5 बजे पहुंच गई. उस ने डोरबैल बजाई. श्वेता ने दरवाजा खोला. सुगंधा को देख कर खुश हो गई. उस ने सुगंधा को कस कर गले लगा लिया. दोनों अंदर आईं और बैठ कर गप्पें लड़ाने लगीं. श्वेता ने ट्रे में 2 कप चाय और एक प्लेट में बिस्कुट ला कर रख दिए. दोनों चाय सिप करने लगीं.

‘‘मैं ने 2 टिकट ले लिए हैं इवनिंग शो के. शो साढ़े 6 बजे शुरू होने वाला है. हमारे पास आधा घंटा है. क्या इतना काफी है तुम्हारी जरूरी बात के लिए?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘अरे, तुम्हें देखते ही मैं उस बात को भूल ही गई. आधा घंटा काफी है तुम्हारे जैसी फ्रैंड, फिलौस्फर और गाइड के लिए मेरी जरूरी बात पर सलाह के लिए,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तो शुरू करो अंत्याक्षरी,’’ श्वेता ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जैसाकि तुम जानती हो प्रदीप और मैं एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं लेकिन मैं अपने जीवन में सिर्फ प्रदीप से ही मिली हूं. किसी और के साथ डेटिंग नहीं की है. क्या मु झे कुछ और लोगों के साथ डेटिंग करनी चाहिए यह जानने के लिए कि प्रदीप ही मेरे लिए सब से अच्छा है या कोई और अच्छा मु झे मिल सकता है,’’ सुगंधा ने अपनी बात रखी.

‘‘हूं,’’ श्वेता ने एक ठंडी सांस ली. कुछ देर सोचती रही. सुगंधा उसे सोचते हुए देखती रही. कुछ देर के बाद पूछा, ‘‘क्या हुआ? कुछ गलत सवाल कर दिया मैं ने? मु झे यह डर है कि कहीं बाद में मु झे पछताना न पड़े,’’ सुगंधा चिंतित हो कर बोली.

‘‘जहां तक मैं तुम दोनों के रिश्ते को जानती हूं, मु झे लगता है कि तुम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो, दोनों एकदूसरे का खयाल रखते हो और कोई भी बड़ा विवाद नहीं है तुम दोनों के बीच,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘बात तुम्हारी सही है. मु झे तो लगता है हम दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं,’’ सुगंधा ने मोहक मुसकान के साथ कहा.

‘‘क्या तुम ने इस बात पर विचार किया है कि अगर यही काम प्रदीप करना चाहे तो तुम्हें कैसा लगेगा या फिर यदि तुम अपना विचार प्रदीप से बताओ तो उसे कैसा लगेगा?’’ श्वेता ने पूछा. सुगंधा चुप रह गई.

‘‘यदि तुम दोनों एकदूसरे से इतना प्यार करते हो, यदि तुम दोनों बैस्ट फ्रैंड हो तो तुम दोनों ने वह पा लिया है जो कई लोग जिंदगीभर तलाश करने के बाद भी नहीं पाते. मैं खुद 3 लोगों के साथ डेट पर गई हूं. किसी को मैं ने ऐसा नहीं पाया जिस के साथ मैं रिलेशन बना सकूं. अभी तुम दोनों 24-25 वर्ष की उम्र में हो. तुम दोनों के ऊपर कोई दबाव भी नहीं है जल्दी शादी करने का. तुम्हारे परिवार को भी कोई जल्दी नहीं है. प्रदीप के परिवार के बारे में मु झे जानकारी नहीं है,’’ बोल कर श्वेता चुप हो गई.

‘‘उस के ऊपर भी जल्दी शादी करने के लिए परिवार का कोई दबाव नहीं है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तुम दोनों जब तक भावनात्मक रूप से, वित्तीय रूप से, हर रूप से तैयार न हो जाओ तब तक एकदूसरे को किसी प्रकार का वचन मत दो. अभी समय लो और देखो कि तुम्हारा संबंध कैसा रहता है. जहां कोई समस्या नहीं है वहां समस्या खड़ी मत करो. अकारण किसी के साथ डेटिंग की इच्छा मत रखो. हां, यदि प्रदीप के व्यवहार के कारण तुम किसी और के साथ डेटिंग करना चाहो तो अलग बात है,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘मेरे मन में यों ही यह खयाल आ रहा था. प्रदीप के साथ किसी प्रकार की परेशानी नहीं है.हम तो एकदूसरे के साथ बहुत ही मित्रतापूर्वक रहते हैं,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘फिर मेरे खयाल से कोई अनावश्यक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. तुमने मेरी परेशानी दूर कर दी, अनिश्चितता के दलदल से बाहर निकाल दिया. थैंकयू वेरी मच फार आ नाइस सजेशन.’’ सुगंधा ने कहा. फिर बोली, ‘‘पर क्यों न थोड़ा प्रदीप का मन टटोल कर देखा जाए?’’

‘‘वह कैसे?’’ श्वेता ने पूछा.

‘‘यह तो तुम बताओ न. तुम्हारे पास आई हूं सलाह के लिए.’’

‘‘मैं ने तो बिलकुल ईमानदारीपूर्वक सलाह दे दी तुम्हें. अब तुम्हारे सिर पर प्रदीप का मन टटोलने का भूत सवार हो गया है तो इस का उपाय तुम्हीं सोचो.’’

कुछ देर सुगंधा सोचती रही. फिर बोली, ‘‘एक फेक प्रोफाइल बना कर उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजती हूं. फिर देखती हूं उस के दिल का हाल.’’

‘‘मैं तो ऐसा करने की सलाह नहीं दूंगी.’’

‘‘तुम सलाह भले ही मत दो पर मैं ऐसा करूंगी. थोड़ा रोमांच भी होना चाहिए न जीवन में?’’ सुगंधा ने कहा.

श्वेता ने अपने कंधों को उचकाया. संदेश साफ था कि वह इस मामले में पड़ना नहीं चाहती है.

‘‘और किस नाम से फेक प्रोफाइल बनाऊंगी जानती हो?’’ सुगंधा ने शरारतपूर्वक पूछा.

श्वेता की भौंहें सिकुड़ गईं.

‘‘श्वेता. यही नाम रखूंगी नकली प्रोफाइल में,’’ सुगंधा ने हंसते हुए कहा.

श्वेता ने आंखें तरेरी.

‘‘पर फोटो तुम्हारा नहीं लगाऊंगी,’’ सुगंधा ने ऐसे कहा मानो उस पर एहसान कर रही हो.

श्वेता ने अपने हाथ से अपना माथा ठोक कर कहा, ‘‘लगता है तुम पर कोई भूत सवार हो गया है. जब यही करना था तो फिर मु झ से सलाह लेने की क्या आवश्यकता थी?’’

‘‘तुम मेरी बैस्ट फ्रैंड हो तो सलाह किस से लूं?’’ सुगंधा ने शोखी से कहा.

‘‘पर इस में मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं, बैस्ट फ्रैंड होने के बाद भी,’’ श्वेता ने भी उसी शोखी से कहा.

फिर दोनों चले गए फिल्म देखने और अपनेअपने निवास पर वापस आ गए.

सुगंधा ने सचमुच एक प्रोफाइल बनाया श्वेता ने नाम से. फोटो किसी मौडल का लगाया और उसे कुछ ऐसे अवतार में परिवर्तित कर लिया कि स्पष्ट पहचान न हो. फिर उस ने प्रदीप को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. कुछ दिनों तक रिक्वैस्ट यों ही पड़ी रही. पर 3-4 दिनों के बाद उस के फ्रैंड रिक्वैस्ट को स्वीकार कर लिया. श्वेता ने उस के साथ फ्लर्ट करना शुरू कर दिया. और जवाब में उसे दोगुना फ्लर्ट मिला.

चिंता में पड़ गई सुगंधा. प्रदीप ऐसा होगा उस ने सोचा भी न था. कई दिनों तक इसी प्रकार बातें होती रहीं. प्रदीप बड़ी ही तत्परता से सोशल मीडिया पर जवाब देता था. बहुत ही प्यारीप्यारी बातें करता था. जब उस ने उस से पूछा कि क्या वह किसी के साथ रिलेशनशिप में है तो उस ने साफ मना कर दिया. जब सुगंधा फोन पर या व्यक्तिगत रूप से उस से बात करती तो वह इस बात का जिक्र नहीं करता था.

एक दिन सुगंधा ने पूछा भी कि लगता है तुम किसी और के साथ रिलेशनशिप में रहने का मन बना रहे हो तो प्रदीप ने साफसाफ मना कर दिया. सुगंधा का मन उदास हो गया. उसे लगा वह कितना बड़ा धोखेबाज है.

एक दिन वह प्रदीप से मिलने गई. मिलने के लिए एक ट्राइटन मौल के एक फूड कोर्ट को निर्धारित किया गया. उस का चेहरा कुछ उदासी लिए हुए था. पहले वह प्रदीप से मिलती थी तो बहुत ही उत्साहित रहती थी पर आज उस के मन में जरा भी उत्साह नहीं था.

‘‘तुम कुछ उदास लग रही हो?’’ प्रदीप ने सुगंधा से पूछा.

‘‘हां. जमाने में ऐसीऐसी बातें देखने में आती हैं तो मन थोड़ा उदास हो जाता है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘तुम तो फिलौस्फर की तरह बातें करने लगी. हुआ क्या यह तो बताओ?’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘आज किसी अखबार में पढ़ा कि एक लड़के ने अपनी 5 साल की रिलेशनशिप को तोड़ कर दूसरी लड़की से रिलेशनशिप बना ली,’’ सुगंधा ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए कहा.

‘‘अखबार और तुम? कब से पढ़ने लगी अखबार तुम? मैं तो

तुम्हें इतनी अच्छी तरह से जानता हूं जितना कि तुम खुद को भी नहीं जानती,’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘अरे कोई पढ़ रहा था. बस हैडिंग देखा था,’’ सुगंधा ने बात को टाल दिया.

‘‘पर तुम क्यों परेशान हो रही हो?’’ प्रदीप ने शांत स्वर में पूछा.

‘‘यह समाचार परेशान करने वाला नहीं है?’’ सुगंधा ने पूछा. उस की आवाज में नाराजगी और उदासी का मिश्रण था.

‘‘ऐसी भी क्या परेशान करने वाली बात है? 5 साल में रिलेशनशिप उतनी पक्की थोड़े ही हो पाती है. हमारी रिलेशनशिप को देखो. 6 वर्ष की है. मु झे कोई लड़की रिलेशनशिप में रहने के लिए बोल कर देखे. ठोकर मार दूंगा,’’ प्रदीप ने कहा.

सुगंधा ने प्रदीप को संदेहभरी नजरों से देखा.

‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ प्रदीप ने पूछा. फिर बोला, ‘‘अच्छा तुम बताओ तुम्हें कोई लड़का प्रस्ताव देगा कि मेरी जगह पर तुम उस के साथ रिलेशनशिप बनाओ तो तुम तैयार हो जाओगी?’’

‘‘देखना होगा. यदि वह तुम्हारी अपेक्षा अधिक वफादार होगा तो स्वीकार करने में हरज क्या है?’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘कैसी बातें कर रही हो?’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘मैं कैसी बातें कर रही हूं. तुम श्वेता नाम की लड़की के साथ रिलेशनशिप बनाने के सपने देख रहे हो और मु झ से कह रहे हो कि मैं कैसी बातें कर रही हूं?’’ सुगंधा एकदम से क्रोधित हो कर बोली. आसपास के लोग उन की ओर देखने लगे.

‘‘सभी इधर देख रहे हैं. थोड़ा धीरे बोलो,’’ प्रदीप ने कहा. फिर बोला, ‘‘पर श्वेता तो फेक प्रोफाइल है. उस नाम की कोई लड़की है ही नहीं और फोटो भी फेक है उस प्रोफाइल में तो फिर हरज क्या है फ्लर्ट करने में?’’ प्रदीप ने कहा.

अब चौंकने की बारी सुगंधा की थी, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ वह आश्चर्यचकित हो कर बोली.

‘‘तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड श्वेता ने बताया. मैं तो सोशल मीडिया पर बहुत कम रहता हूं. मु झे तो पता भी नहीं था कि मेरे पास कोई फ्रैंड रिक्वैस्ट आई है. श्वेता ने बताया तब मैं ने उस रिक्वैस्ट को ऐक्सैप्ट किया,’’ प्रदीप ने मामला स्पष्ट किया.

‘‘ठीक है मैं पूछती हूं श्वेता से आज शाम को ही मिल कर,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘शाम को क्यों अभी मिल कर पूछा लो न? वह वहां बैठी कौफी का आनंद ले

रही है,’’ प्रदीप ने एक टेबल की ओर इशारा किया.

सुगंधा ने देखा श्वेता उस की ओर देख कर हाथ हिला रही है. फिर वह कौफी का कप लिए उन की टेबल पर आ गई.

‘‘ऐसा क्यों किया तुम ने?’’ सुगंधा ने बनावटी तैश के साथ कहा.

‘‘क्योंकि मैं तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड हूं. कहा था न मैं ने, अनावश्यक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है. सिर्फ प्रयोग करने में तुम्हारी यह हालत हो गई. अगर सचमुच में कुछ हो जाता तो?’’ श्वेता बोली.

‘‘बाई द वे, थैंक्यू,’’ सुगंधा ने कहा और फिर तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

लेखक- निधि माथुर

Best Story in Hindi

Interfaith Marriage : सोहा को सुनना पड़ा ‘लव जिहाद’, ‘घर वापसी’, जरूरी है 10 बातें 

Interfaith Marriage :  एक इंटरव्यू में एक्ट्रेस सोहा अली खान ने बताया कि उनकी और कुणाल खेमू की शादी के दौरान ‘घर वापसी’ जैसी बातें उठायी गयी थीं.  उनकी हिंदू मां शर्मिला टैगोर और मुस्लिम पिता मंसूर अली खान की शादी हुई, तो भी उन्हें इसी तरह की चीजें सुननी पड़ी.  दशकों बाद जब उनके भाई सैफ अली और करीना कपूर की शादी हुई, तो रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोगों को इससे काफी तकलीफ हुई.
नयनदीप रक्षित के साथ एक इंटरव्यू के दौरान सोहा ने इंटरफेथ शादियों पर बात करते हुए कहा कि मुझे लगता है कि जब तक मेरा परिवार, मुझे प्यार करने वाले,  मेरे साथ हैं तो सब ठीक है. सोहा ने कहा कि कुणाल और उनकी शादी में, सैफ और करीना की शादी में लव जिहाद और घर वापसी शब्दों का इस्तेमाल हेडलाइंस में लिया गया. तुमने हमारी एक ली है, अब हम तुम्हारी एक लेंगे जैसी बातें चर्चा में रही.

एक्टर, पॉलिटिशियन और कलाजगत में मिलते हैं ऐसे उदाहरण
बॉलीवुड में ऐसी कई शादियां हुई है जिसमें कपल अलगअलग धर्मों से ताल्लुक रखते हैं. इतना ही नहीं इसमें से कई शादियों की उम्र भी लंबी रही है. शाहरुख खान और गौरी खान की शादी, जायद खान और नताशा की शादी, अतुल अग्निहोत्री और सलमान खान की बहन का रिश्ता , रितेश देशमुख और जेनेलिया डिसूजा, कबीर खान और मिनी माथुर.  केवल बॉलीवुड ही क्यों, बहुत सारे ऐसे पॉलिटिशयन्स और म्यूजिशियन्स हैं जिन्होंने दूसरे धर्मों में विवाह किया और आज खुशहाल मैरिड लाइफ को एंजॉय कर रहे हैं.
पॉलिटिशयन शहनवाज हुसैन और रेणु हुसैन, सरोद वादक अमजद अली खान और
भरतनाट्यम नृत्यांगना सुबलक्ष्मी बरूआ शामिल है. इसका मतलब यह है कि टिकाऊ शादी के लिए कपल का अलग अलग धर्म से ताल्लुक होना, जरूरी नहीं है. इसके बावजूद इस तरह की शादियों का विरोध डिजिटल युग में भी क्यों किया जाता है, यह विचारनीय है. बल्कि दुखद यह है कि डिजिटल माध्यमों का प्रयोग कर धर्म विरोधी भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया जाता है.

अगर कर रहे हैं इंटरफेथ शादी
आज का युवा इस तरह की शादियां करना चाहते हैं तो बेफ्रिक होकर करें. अपनी शादी को मजबूत बनाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान रखें 

  • एकदूसरे को उसी तरह अपनाएं जैसा आप शादी से पहले थे. मतलब यह है कि एकदूजे को बदलने की कोशिश न करें.
  • परिवार के दबाव में आकर अपने विचारों को दूसरे पर मत थोपें.
  • पहनावे, खानपान को लेकर रोकटोक करने से बचें क्योंकि लंबे समय तक ऐसी टोकाटोकी रिश्ते के नींव को हिला सकती है.
  • रिश्ते की बुनियाद का आधार विश्वास को बनाएं खासकर शादी के शुरुआती दिनों में यह और भी जरूरी है.
  • किसी भी तरह की बातचीत को अवॉइड नहीं करें. विवादित विषयों को टालने की बजाय खुल कर बातें करें. 
  • न्यूली मैरिड कपल का साथ होना उतना ही जरूरी है जितना जरूरी है एकदूसरे को स्पेस देना.
  • जब बड़े साथ हों, तो कपल विवादित विषय पर चर्चा नहीं करें क्योंकि आप सभी के विचारों को नहीं बदल सकते हैं.
  • हर सिचुएशन में अपने बेटर हाफ के लिए शील्ड बन कर खड़े रहें. 
  • ऐसी शादी करने के पहले इसके हर पहलू पर साथ मिलकर बात कर ले
  • एक अहम बाद शादी का रिश्ते में केवल दो लोग ही होते हैं इसलिए धर्म हो या किसी और को इस रिश्ते में तीसरा बनने नहीं दें.

Beauty Tips: नेल्स की ग्रोथ नहीं होती है, इन की ग्रोथ के लिए क्या करूं?

Beauty Tips

मेरी उम्र 33 साल है. नेल्स की ग्रोथ नहीं होती है. कृपया बताएं कि इन की ग्रोथ के लिए क्या करूं?

आप के लिए नेल ऐक्सटैंशन बहुत ही अच्छा औप्शन है. इस प्रोसैस से नेल्स को खूबसूरत लुक दिया जाता है. नेल ऐक्सटैंशन करने के कुछ तरीके हैं, जिन में से एक है ऐक्रिलिक पौलिमर पाउडर को मोनोमर लिक्विड के साथ मिला कर नेल ऐक्सटैंशन किया जाता है. फिर नेल को एलईडी लैंप के नीचे 60 सैकंड्स के लिए रखा जाता है. इसी तरीके से फ्रैंच नेल भी बनाए जाते हैं. इस के ऊपर आप नेल आर्ट करवा कर अपने नाखूनों को हमेशा सुंदर बनाए रख सकती हैं.

 

मेरी उम्र 26 साल है. मेरा फोरहैड मेरे फेस कौंप्लैक्शन से ज्यादा डार्क है. कृपया बताएं कि मुझे अपने फोरहैड के लिए क्या करना चाहिए?

आप रात को सोने से पहले अपने माथे की स्किन को साफ  कर कच्चा दूध लगाएं. दूध माथे की त्वचा को पोषण पहुंचाता है. इस के बाद मसूर की दाल को भिगो कर पीस कर इस में ऐलोवेरा जैल मिला कर इसे फ्रि ज में रख दें. फि र रोज 10 से 15 सैकंड्स तक अपने माथे को इस से स्क्रब करें. हफ्ते में 3 बार पैक लगाएं. इस के लिए 1 चम्मच कैलामाइन पाउडर, 1 चम्मच टमाटर का रस, 2-3 बूंदें नीबू का रस डाल कर पैक बनाएं और उसे माथे पर लगाएं. रोज रात को एएचए यानी एल्फ ा हाईड्रौक्सी ऐसिड क्रीम लगाएं. आप को इन उपायों से राहत मिलेगी.

मेरी उम्र 40 साल है. गरदन की रंगत बहुत काली है. निखार लाने के लिए क्या करूं?

गरदन के कालेपन को दूर करने के लिए कच्चे पपीते का इस्तेमाल किया जा सकता है. कच्चे पपीते में पैपीन नाम का ऐंजाइम होता है जो कालेपन को खत्म करना है. इस के लिए पहले गरदन को ब्लीच कर लें फि र कच्चे पपीते की एक फांक ले, कर गले पर धीरेधीरे रगडि़ए. इसे गरदन पर लगा कर आधे घंटे के लिए छोड़ दें. बाद में साफ  पानी से धो लें. कच्चे पपीते में विटामिन ए, सी और ई मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए यह स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है. इसी के साथ एएचए (एल्फा हाईड्रौक्सी एसिड) क्रीम रोज गरदन पर लगाएं. स्किन पर जहां भी इस्तेमाल किया जाता है वहां का रंग साफ  होना शुरू हो जाता है. इसलिए इस से गरदन की रंगत तो साफ  होगी ही, साथ ही वहां की स्किन बहुत तेजी के साथ रिजनरेट होनी भी शुरू हो जाएगी.

 

मेरी एक आईब्रो के कौर्नर पर चोट का निशान है. इस वजह से वहां पर आईब्रो हेयर नहीं हैं. इस से मेरी आईब्रो की शेप ठीक नहीं आती है. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं ताकि आईब्रो की शेप ठीक नजर आए?

आप इस के लिए परमानैंट मेकअप करवा सकती हैं. चोट के निशान, हलके बाल, आकार का सही न होना या फिर बीमारी के कारण आईब्रो के बाल झड़ जाने जैसी समस्याओं के समाधान के रूप में हम आईब्रो पैंसिल के इस्तेमाल से उस कमी को सुधार लेते हैं. लेकिन पैंसिल कुछ ही देर तक आप के सौंदर्य को बरकरार रख पाती है. इसलिए आईब्रो की खूबसूरती को हर पल बरकरार रखने के लिए परमानैंट मेकअप एक उचित समाधान है.

इस के अंतर्गत मशीन द्वारा एक बार आईब्रो को खूबसूरत शेप व मनचाहे रंग से बना दिया जाता है जो पसीने या नहाने से खराब नहीं होती और लगभग 15 साल तक टिकती है. इस में प्रयोग में आने वाले कलर बहुत ही अच्छी क्वालिटी के होते हैं. लेकिन आप को इस प्रोसैस को दक्ष प्रोफै शनल से ही करवाना चाहिए खासतौर पर कोविड-19 के इस दौर में किसी भी सर्जरी में इन्फै क्शन का खतरा हमेशा बना रहता है. ऐसे में हाइजीन, सही इंक, बेहतर मशीनों व विशेषज्ञ की देखरेख में यह प्रक्रिया करवाई जानी चाहिए.

 बहुत उम्र से आंखों की रोशनी कम हो जाने के कारण मैं ने कई सालों तक माइनस पावर का चश्मा लगाया है. औपरेशन के बाद चश्मा तो उतर गया, लेकिन पढ़नेलिखने के लिए लैंस का इस्तेमाल अभी भी करना पड़ता है, जिस कारण मुझे काजल लगाने में बड़ी तकलीफ  होती है और अगर काजल न लगाऊं  तो आंखें बड़ी, सफेद व सूनी सी लगती हैं. बताएं क्या करूं?

लैंस या चश्मे का इस्तेमाल करने वालों के लिए लाइनर व काजल लगाना दिक्कत का विषय हो जाता है. जहां लैंस लगा कर लाइनर व काजल लगाने से आंखों से पानी बह सकता है तो वहीं बाद में लैंस लगाने से इन के फै लने का डर रहता है. परमानैंट आईलाइनर और काजल से आप की हर समस्या सुलझ सकती है, इस में एक ही बार अच्छी क्वालिटी के कलर फि ल कर दिए जाते हैं और इस से आप हर पल अपनी आंखों को मृगनयनी व कजरारी दिखा सकती हैं.

लेकिन आप को इस प्रोसैस को दक्ष प्रोफै शनल से ही करवाना चाहिए. उसे समझ हो कि वह आप की आंखों की शेप के हिसाब से लाइनर और काजल लगाए. इस के लिए पहले लाइनर और काजल आंखों में लगवाएं. फिर पसंद के अनुसार परमानैंट लाइनर और काजल लगवाएं. यह परमानैंट लाइनर और काजल आराम से 15 साल तक टिक जाता है.

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Rani Mukerji: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ने साइबर सुरक्षा को लेकर उठाई आवाज

Rani Mukerji: हाल ही में रानी मुखर्जी को महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय में आयोजित ‘साइबर अवेयरनेस मंथ 2025’ के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित किया गया. भारत की एकमात्र हिट महिलाप्रधान फ्रेंचाइजी फिल्म ‘मर्दानी’ में जांबाज पुलिस अधिकारी का किरदार निभाने वाली रानी हमेशा से ही भारतीय पुलिस बल और समाज की सुरक्षा के लिए उन के योगदान की समर्थक रही हैं.

इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, पुलिस महानिदेशक (महाराष्ट्र राज्य) रश्मि शुक्ला और गृह विभाग, महाराष्ट्र शासन के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) इकबाल सिंह चहल (आईपीएस) सहित कई गणमान्य व्यक्तियों के साथ भाग लिया.

बढ़ाई जागरूकता

रानी ने इस मौके पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ते साइबर अपराधों पर जागरूकता बढ़ाई और महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल की सराहना की. वे अनसुने नायक, जो दिनरात एक बेहतर डिजिटल दुनिया बनाने में लगे हुए हैं, उन की भी सराहना की.

कार्यक्रम में बोलती हुईं रानी मुखर्जी ने कहा,“मैं साइबर अवेयरनेस मंथ के उद्घाटन का हिस्सा बन कर वास्तव में सम्मानित और गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. सालों से फिल्मों के माध्यम से मुझे ऐसे किरदार निभाने का मौका मिला है जो अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं और कमजोरों की रक्षा करते हैं. वास्तव में आज मैं ‘मर्दानी 3’ की शूटिंग से सीधे यहां पहुंची हूं, तो यह सब बहुत ही अलौकिक लगता है. महाराष्ट्र पुलिस की यह पहल प्रशंसनीय है.”

ताकि महिलाएं व बच्चे सेफ रहें

उन्होंने आगे कहा,“आज साइबर अपराध खासकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हमारे घरों के भीतर चुपचाप बढ़ रहे हैं. एक महिला और एक मां होने के नाते मैं समझती हूं कि जागरूकता कितनी महत्त्वपूर्ण है. जब परिवार जानते हैं कि सुरक्षित कैसे रहना है और मदद कहां लेनी है, तभी असली सुरक्षा शुरू होती है. मैं माननीय मुख्यमंत्री महोदय, माननीय एसीएस साहब और आदरणीय डीजीपी मैडम को धन्यवाद देना चाहूंगी, जिन्होंने साइबर सुरक्षा के इस महत्त्वपूर्ण मिशन को प्राथमिकता दी है.”

सरकार की हेल्पलाइन नंबरों की अहमियत पर जोर देते हुए रानी बोलीं,“डायल 1930 और डायल 1945 हेल्पलाइन सभी नागरिकों के लिए वरदान हैं. एक कलाकार के तौर पर मैं स्क्रीन पर कहानियों को जिंदा करती हूं, लेकिन एक महिला, मां और नागरिक के रूप में मुझे लगता है कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि कोई बच्चा चुपचाप न रोए, कोई महिला असुरक्षित महसूस न करे और कोई परिवार साइबर अपराध की वजह से अपनी शांति न खोए.”

संकल्प लें सुरक्षित रहें

उन्होंने अपने भाषण का समापन इन शब्दों से किया, “आइए आज हम संकल्प लें कि सतर्क रहेंगे, आवाज उठाएंगे और एक सुरक्षित डिजिटल दुनिया के लिए एकजुट हो कर खड़े होंगे.”

रानी मुखर्जी अब अपनी अगली फिल्म ‘मर्दानी 3’ में दिखाई देंगी, जो 27 फरवरी, 2026 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. फिल्म यश राज फिल्म्स के बैनर तले बन रही है और इस का निर्देशन अभिराज मीना वाला कर रहे हैं.

Rani Mukerji

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