जब बच्चे छिपाएं अफेयर की बात

प्रतिदिन अपनी पसंदीदा डिश की फरमाइश करने वाली पंखुड़ी आजकल जो बनता चुपचाप खा लेती. किसी रिश्तेदार के घर कोई फंक्शन हो या सहेलियों के साथ पार्टी, अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को हमेशा तैयार रहने वाली पंखुड़ी इन दिनों मां के कहने पर भी साथ चलने को मना कर देती. सहेलियों के फोन आते तो उठाती ही नहीं. मातापिता उस के बदले व्यवहार से चिंतित थे.

मां ने एक दिन दुलार से उस का सिर सहलाते हुए कारण जानना चाहा तो पंखुड़ी के आंसू बहने लगे. 8 महीने पहले अपने ही कालेज के एक सीनियर नमन से प्रेम का रिश्ता बन जाना और 15 दिन पहले उस के टूट जाने की बात मां को बता कर वह सुबकने लगी.

मां एकाएक यह सब सुन सकते में आ गईं, लेकिन पंखुड़ी की पीड़ा देख उन का मन भर आया. उस लड़के के बारे में पंखुड़ी ने जो भी बताया उस से पता लगा कि शुरू में पंखुड़ी की प्रशंसा करते हुए उस के आगेपीछे घूम कर उसे अपने वश में करने के बाद नमन उस पर हावी होने लगा था. पंखुड़ी पर अपने मित्रों और शुभचिंतकों से दूरी बनाने पर वह जोर डालने लगा था. पंखुड़ी से उम्मीद करता कि वह उस की हर बात माने साथ ही खूब तारीफ भी करे. पंखुड़ी कोई सलाह देती तो उसे अपनी बात का विरोध मान झगड़ने लगता.

इन बातों से जब पंखुड़ी का मूड उखड़ाउखड़ा रहने लगा तो नमन ने यह कह कर ब्रेकअप कर लिया कि वह अब पहले सी नहीं रही. ब्रेकअप का दर्द पंखुड़ी झेल नहीं पा रही थी. उस की 1-1 बात उस दिन मां ने धैर्य से सुनी और नमन के चरित्र को समझ कर पंखुड़ी को बताया कि वह लड़का नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऔर्डर से ग्रस्त लग रहा है. ऐसे लोगों का पार्टनर बन कर रिश्ता निभाना टेढ़ी खीर है. पंखुड़ी से उन्होंने यह भी कहा कि वह यदि पहले ही उस लड़के के बारे में मां से जिक्र करती तो रिश्ता शायद आगे न बढ़ता. भविष्य को ले कर सचेत हो चुकी पंखुड़ी स्वयं को तब बहुत हलका महसूस कर रही थी.

रिश्तों में उतारचढ़ाव

विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो कर या भावी जीवनसाथी की तलाश में रिलेशनशिप हो जाना सामान्य है. ऐसे रिश्तों में अनेक उतारचढ़ाव आना भी सामान्य है, लेकिन समस्या तब होती है जब रिश्तों का प्रतिकूल प्रभाव सुकून छीनने लगता है. जब तक बात आपसी मतभेद को ले कर हो, किसी तीसरे की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जब पार्टनर में भावी जीवनसाथी का रूप दिखना बंद हो जाए या ब्रेकअप हो जाए तो मामला गंभीर हो जाता है.

ऐसी परिस्थितियां कभीकभी किसी के जीवन को संकट में भी डाल देती हैं. पेरैंट्स को समयसमय पर रिलेशनशिप की जानकारी मिलती रहे तो संभव है कि ऐसे हालात का सामना ही न करना पड़े या इन से निबटना आसान रहे.

जब उस में लाइफ पार्टनर का रूप दिखना बंद हो जाए रिश्ता तब खोखला लगने लगता है और उस के आगे बढ़ने की गुंजाइश नहीं बचती. उन परिस्थितियों में पेरैंट्स की भूमिका क्या हो सकती है इस पर एक नजर डालते हैं:

एक हो गंभीर दूसरे के लिए रिश्ता टाइम पास: जब एक साथी रिलेशन को सीरियसली ले और दूसरा उसे शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति का साधन मात्र माने, जब एक के लिए पार्टनर ही दुनिया हो और दूसरे का कई लोगों से रिश्ता रखने पर भीजी न भरता हो तो ऐसे रिश्ते तनाव का कारण बनने के साथ ही जानलेवा भी साबित हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ की रहने वाली न्यूज एंकर सलमा सुल्तान की जिम संचालक मधुर साहू के हाथों हुई नृशंस हत्या कुछ ऐसे ही रिश्ते का परिणाम है. सलमा मधुर द्वारा दिए गए शादी के झांसे में आ कर उस के साथ रहने लगी थी.

जब सलमा ने मधुर के अन्य लड़कियों से संबंध पर ऐतराज जताया तो उसे जान से हाथ धोना पड़ा. इस हत्या का खुलासा लगभग 5 वर्ष बाद हुआ, कारण कि सलमा के परिवार वाले उस के और मधुर के रिश्ते का सच नहीं जानते थे. काम की व्यस्तता के बहाने सलमा मधुर के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी.

मातापिता को यदि कुछ अंदाज होता तो शायद सलमा की जान बच जाती. हिंसा करने वाला हो जब पार्टनर:

बातबात में मारनेपीटने पर उतारू हो जाने वाले बौयफ्रैंड को कोई लड़की तभी सहती है जब वह मानसिक रूप से उस पर निर्भर हो गई हो और रिश्ता टूटने का डर उसे अकेलेपन का पर्याय लगने लगे. मातापिता को अफेयर की जानकारी होगी तो कुछ संबल मिलेगा और हिंसा करने वाले पार्टनर से पीछा छुड़ाने में संकोच नहीं होगा.

मानसिक स्वास्थ्य दुरूस्त न होना: छोटीछोटी बातों पर चिल्लाना, पब्लिक में डांटनाडपटना, आत्महत्या की धमकियां देना या स्वयं को चोट पहुंचाना, शक करना आदि बातें रिलेशनशिप को नुकसान पहुंचाती हैं. मैंटल हैल्थ से जुड़ी समस्याएं रिश्ते में तनाव और अलगाव का कारण बनती चली जाती हैं जो एक दिन रिलेशनशिप की टूट के रूप में सामने आती हैं. मातापिता को सब बातें समयसमय पर बताते रहें तो वे अनुभवी होने के कारण पहले ही भांप कर आगाह कर देंगे.

प्रेम की आड़ में सौदा: चेतना की मित्रता यूएसए में रहने वाले हैरी से हुई फिर यह संबंध ‘लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप’ में बदल गया. चेतना को शुरू में सब ठीक लग रहा था, लेकिन धीरेधीरे हैरी का रवैया बदला सा लगने लगा. भावी जीवनसाथी तो क्या वह उस में एक प्रेमी की छवि भी नहीं देख पा रही थी. हैरी वीडियो कौल करते हुए उसे बहुत कम कपड़े पहनने को कहने लगा.

ऐसे ही कपड़ों में वह फोटो भेजने की मांग भी करता. चेतना ने अपनी मम्मी को हैरी से दोस्ती के विषय में बताया था. हैरी की अटपटी मांग से उल?ान में पड़ी चेतना ने उन को यह बात भी बता दी. तब मां ने समझाया कि ऐसी तसवीरें अकसर पोर्नसाइट पर डाल दी जाती हैं. इस प्रकार प्यार के नाम पर धोखे को चेतना ने समझ लिया.

ईशानी का लिवइन पार्टनर रोहित प्रेम के नाम पर अंतरंग पलों को वीडियो में कैंद कर लिया करता था. ईशानी को उस की मरजी के खिलाफ रोहित का उन पलों में वीडियो बनाना बहुत अखर रहा था, लेकिन क्या करती? पेरैंट्स से लड़झगड़ कर लिवइन में रह रही थी.

रिश्ता तोड़ने की बात सोचती तो लगता पता नहीं मातापिता कैसा व्यवहार करेंगे? क्या करे और क्या नहीं, इसी उधेड़बुन में ईशानी दिनरात घुलने लगी. उस के पैरों तले तब जमीन खिसक गई, जब उसे अपनी एक सहेली से पता लगा कि कुछ लड़कों का एक ग्रुप व्हाट्सऐप पर ऐसे वीडियो शेयर करता है, रोहित भी ऐसा ही कर रहा है. अंतत: उसे घर का रुख करना पड़ा लेकिन एक पश्चात्ताप के साथ.

छोटीछोटी बातें: कई बार पार्टनर की छोटीछोटी बातें अखरने लगती हैं और यह फैसला करना मुश्किल हो जाता है कि ये आदतें बदली जा सकती हैं या भविष्य के लिए खतरा हैं. पेरैंट्स को अफेयर की जानकारी होगी तो इन छोटीछोटी बातों को समझना आसान हो जाएगा और सही निर्णय लिया जा सकेगा. दिखने में छोटी लेकिन मनमुटाव पैदा करने वाली ये बातों हैं- कौल या मैसेज को इग्नोर करना, अन्य मित्रों व सोशल मीडिया में व्यस्त हो जाना, ऐक्स की बातें करना, ताने मारना, बातबात पर नाराज होना फिर रूठ कर जल्दी से न मानना जिस से लंबे समय तक बातचीत का बंद हो जाना, बेहद खर्चीला या कंजूस होना आदि. स्वार्थी पार्टनर भी जल्द ही नापसंद किया जाने लगता है.

अपनी पसंद की फिल्में, खुद की पसंद का खाना और घूमने के लिए अपनी पसंद की जगह चुन कर पार्टनर पर थोपना रिलेशनशिप को आगे बढ़ने से रोकता है. पेरैंट्स से बातचीत कर यह जानना सरल हो जाएगा कि कौन सी आदत समय के साथ बदल जाएगी और कौन सी रिश्ते को पनपने से रोक देगी.

जब हो जाए ब्रेकअप

सही पार्टनर न मिलने से, कैरियर के कारण, पार्टनर के बेरोजगार होने या अन्य किसी कारण से ब्रेकअप हो सकता है. उस समय कोशिश यह होनी चाहिए कि अपना ध्यान वहां से हटा लिया जाए. पेरैंट्स का साथ ऐसे में मददगार साबित हो सकता है. जानते हैं कैसे-

बीता वक्त शेयर करना जरूरी: ब्रेकअप होने पर किसी से बात करना बहुत जरूरी होता है. यह कदम सही था या नहीं, यह सवाल मन में बारबार उठता है. पेरैंट्स से मन की बातें शेयर करते हुए इस स्थिति से उबरा जा सकता है.

चाहिए व्यस्त रहना: ब्रेकअप के बाद अवसाद से घिर कर अपना खयाल न रखना बड़ी भूल है. किसी भी काम में बिजी हो जाने से तनाव कम होने लगता है. मातापिता समय पर भोजन करने, रिश्तेदारों से मिलनेजुलने व घर के किसी काम में लगाए रख कर व्यस्त रखने में मदद कर सकते हैं.

जब ऐक्स देने लगे धमकी: तान्या का पार्टनर दोस्ती के नाम की आड़ ले कर रिलेशनशिप को जारी रखना चाहता था जबकि तान्या उस से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती थी. तान्या पर दबाव बनाने के लिए वह निजी तसवीरों को सार्वजानिक करने की धमकी दे रहा था. तान्या ने अपने पिता को बताया तो उन्होंने पुलिस में शिकायत कर दी. उस के बाद धमकियां मिलनी बंद हो गईं.

मन में आ जाए हीनभावना: श्रेया अपने बौयफ्रैंड सारांश द्वारा ब्रेकअप किए जाने से हीनभावना से घिर गई. अपने को इस टूट का जिम्मेदार मान वह सारांश के पीछे लग कर वापस रिश्ता जोड़ने की विनती करने लगी. सारांश का दिल तो कहीं और ही लग गया था. श्रेया को वह हर बार ?िड़क देता था. श्रेया की हीनभावना दूर होने के स्थान पर बढ़ती चली गई. श्रेया के विपरीत मुग्धा ने खुल कर मातापिता को अपने पार्टनर द्वारा रिश्ता तोड़ने की बातें बताईं तो पेरैंट्स ने मुग्धा जैसी गुणी लड़की से रिश्ता न रख पाने के लिए पार्टनर को दोषी बताया और कहा कि मुग्धा को वह डिजर्व ही नहीं करता था. पुराने पार्टनर के पीछे लग कर वापस रिश्ता जोड़ने की भूल से मातापिता की मदद से बचा जा सकता है.

नशे का सहारा: कुछ लोग रिलेशनशिप खत्म होने के बाद सब भूलने के लिए नशे का सहारा ले लेते हैं, जो सही नहीं है. पेरैंट्स के संपर्क में रहा जाए तो दिल का गुबार निकल जाएगा और सब भूलने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी.

रिक्तता लगे तो: ब्रेकअप के बाद जीवन में एक खालीपन आने से जल्द ही किसी से रिश्ता बनाने की इच्छा जाग्रत होने लगती है. जल्दबाजी में उठने वाले ऐसे कदम पूर्व में बने कच्चे रिश्ते से भी कहीं घातक सिद्ध हो सकते हैं. मातापिता से बातचीत कर खालीपन को दूर किया जा सकता है. उन के साथ कहीं घूमने का कार्यक्रम बना कर भी इस स्थिति से बचा जा सकता है.

अफेयर की जानकारी समयसमय पर मातापिता को देते रहना सही कदम है. वे हाथ थाम कर प्रेम की राह में आने वाले गड्ढों में गिरने से बचा सकते हैं.

Summer Special: फैमिली के लिए बनाएं मटका कुल्फी

गरमी में अगर आप बाहर की मटका कुल्फी खाने की बजाय घर पर बनाना चाहती हैं तो ये रेसिपी आपके काम आएगी.

सामग्री

1/2 कप दूध,

1/2 कप कंडैंस्ड मिल्क,

1/4 मिल्क पाउडर,

1/2 छोटा चम्मच इचाइजी पाउडर. 

विधि

सारी सामग्री को मिला कर आंच पर उबलने रख दें. मिश्रण के गाढ़ा होने पर उसे आंच से उतार कर ठंडा होने दें. फिर इसे कुल्फी मोल्ड्स में भरें और रात भर फ्रिज में रखा रखें. सुबह कुल्फी को मोल्डस से अलग करने के लिए लकड़ी की सींक कुल्फी के बीच घुसाएं और फिर कुल्फी मोल्ड से निकाल कर ठंडीठंडी कुल्फी का मजा उठाएं.

काम के साथ परिवार का सामंजस्य कैसे करती है अभिनेत्री परिवा प्रणति, पढ़ें पूरी इंटरव्यू

परिवा प्रणति आज एक खूबसूरत और विनम्र अभिनेत्री के रूप में जानी जाती है. उन्होंने हिन्दी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है. धारावाहिक तुझको है सलाम जिंदगीं, हमारी बेटियों का विवाह, अरमानों का बलिदान, हल्ला बोल, हमारी बहन दीदी, लौट आओ त्रिशा, बड़ी दूर से आये हैं आदि कई है. परिवा का जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ है. उनके पिता एक वायु सेना अधिकारी हैं. पिता का जॉब में बार – बार स्थानांतरण होने की वजह से परिवा कई शहरों में रह चुकी है. उनकी पढ़ाई दिल्ली में पूरी हुई है. ऐक्टिंग के दौरान परिवा को, ऐक्टर और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर पुनीत सचदेवा से प्यार हुआ और शादी की. उन दोनों का एक बेटा रुशांक सिन्हा है. परिवा अपने खाली समय में पेंटिंग करना, लिखना और सूफी संगीत सुनना पसंद करती है, परिवा एक पशु प्रेमी है, उन्होंने कई बिल्लियां और कुत्ते पाल रखे है. इन दिनों परिवा सोनी सब पर चल रही शो वागले की दुनिया – नई पीढ़ी नए किस्से में वंदना वागले की भूमिका निभा रही है, जिसे सभी पसंद कर रहे है, रियल लाइफ परिवा एक बच्चे की माँ है, काम के साथ परिवार को कैसे सम्हालती है, आइए जानते है. 

मां की भावना को समझना हुआ आसान  

शो में परिवा माँ की भूमिका निभा रही है और रियल लाइफ में माँ होने की वजह से उन्हें एक माँ की भावना अच्छी तरह से समझ में आती है. वह कहती है कि बन्दना वागले की भूमिका मेरे लिए एक आकर्षक भूमिका है, इसमें मैँ दो बच्चे सखी और अपूर्वा की माँ हूँ, जिसमें बेटी समझदार है और बेटा थोड़ा शरारती है. देखा जाय, तो रियल लाइफ में भी बेटियाँ बेटों से थोड़ी अधिक समझदार होती है, वैसा ही शो में दिखाया गया है. रियल लाइफ में मेरा बेटा रुशांक सिन्हा 6 साल का है और बहुत शरारती भी है. असल में जब मैँ माँ बनी तो माँ की भावनाओं को समझ सकी, जिसका फायदा मुझे शो में मिल रहा है. मुझे याद आता है, जब मैँ काम कर रही थी, तो मेरी मा रोज मुझसे बात किये बिना नहीं सोती थी, लेकिन अब मैँ माँ की भावना को समझती हूँ. पेरेंट्स बनने के बाद मेरी हमेशा चिंता बच्चे की शारीरिक रूप से सुरक्षित रहने में होती है. 

काम के साथ करें प्लानिंग 

काम के साथ परिवार को सम्हालने के बारें में पूछने पर परिवा कहती है कि मैंने हमेशा कोशिश की है कि बच्चे को पता चले कि मेरा काम करना जरूरी है, साथ ही उसे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए मैँ उसे प्रेरित करती हूँ, ताकि वह छोटी उम्र से ही कुछ सीखता रहे और व्यस्त रहें. धीरे -धीरे मेरा बेटा अब काफी कुछ समझने लगा है कि मेरा काम पर जाना जरूरी है. इसके अलावा मेरे पति और एक हेल्पिंग हैन्ड है, जो उसका ख्याल रखते है. कई बार जरूरत पड़ने पर मेरे पेरेंट्स भी सहयोग करने आ जाते है. बच्चे को सम्हालने में पति का अधिक सहयोग रहता है, उनका मेरे बेटे के साथ एक अलग दोस्ती है. मेरे पति भी हमेशा बेटे को कुछ नया सीखने की कोशिश करता है, उसे अभी टेनिस खेलने ले जातें है, बेटे को कुछ खाने को मन हुआ तो वे उसे बनाकर दे देते है. हम दोनों आपस में मिलकर अपने समय के अनुसार बेटे की परवरिश कर रहे है. मेरे पति ऐक्टर के अलावा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफ़र भी है, इसलिए मैँ बेटे को कई बार जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क और ताडोबा नैशनल पार्क लेकर गए है, उसे भी ये सब पसंद है. 

जरूरत से अधिक प्रोटेक्शन देना ठीक नहीं 

अधिकतर बच्चे खाना खाने में पेरेंट्स को परेशान करते है, ऐसे में आप बच्चे को किस प्रकार से खाना खिलाती है? मैंने हमेशा घर का खाना खिलाने की कोशिश किया है, अगर वह सब्जियां नहीं खाता है, तो उसे पीसकर आटे में मिला देती हूँ, जिसे वह खा लेता है. अधिक समस्या करने पर नाना – नानी के पास भेज देती हूँ. मेरे पिता फौजी में थे, इसलिए अनुसाशन बहुत कड़ी रहती है, इसलिए वहाँ जाकर सब खाने लगता है. मैँ बेटे को लेकर अधिक प्रोटेक्टिव नहीं, क्योंकि मैँ उसे भोंदू बच्चा नहीं बनाना चाहती, लेकिन उसकी सुरक्षा पर ध्यान देती हूँ और एक आत्मनिर्भर बच्चा बनाना चाहती हूँ. हम दोनों उस पर अपनी इच्छाओं को थोपते नहीं, उसे निर्णय लेने की आजादी देते है. मैंने देखा है कि कई बार पेरेंट्स अपने बच्चे की गलती नहीं देखते, जो गलत होता है.  हमें अपने बच्चे की गलती भी पता होनी चाहिए. मैँ बचपन में बहुत समझदार बच्ची थी और सुरक्षित माहौल में बड़ी हुई हूँ. आजकल के बच्चे जरूरत से अधिक सेंसेटिव होते जा रहे है, जो पहले नहीं था. मुझे हमेशा कहा गया कि ‘नो’ सुनना भी हमें आना चाहिए. मेरे पेरेंट्स ने कभी किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला. जब मैंने उन्हे ऐक्टिंग की बात कही, तो उन्होंने मना नहीं किया, बल्कि सहयोग दिया.

एक्टिंग नहीं था इत्तफाक 

परिवा कहती है कि मुझे बचपन में बहुत कुछ बनना होता था, हर दो महीने में मेरी इच्छा बदलती थी, फिर पता चला कि एक ऐक्टर बहुत कुछ ऐक्टिंग के जरिए बन सकता है, फिर मैंने इस क्षेत्र में आने का मन बनाया. मैँ ऐक्टिंग को बहुत इन्जॉय करती हूँ.  

जर्नी से हूँ खुश 

परिवा कहती है कि मैँ अपनी जर्नी से बहुत खुश हूँ, जितना चाहा उससे कही अधिक मुझे मिला है. ऐक्टिंग के अलावा मैं कहानियां भी लिखती हूं, एक किताब लिखने की इच्छा है. 

गृहशोभा ‘इम्पावर मौम्स’ इवेंट

मदर्स डे के खास मौके पर महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हुए दिल्ली प्रैस गृहशोभा मैगजीन ने ‘इम्पावर मौम्स’  इवेंट का आयोजन किया. जिस के सह संचालक एपिस थे. एसोसिएट स्पौंसर जौनसंस एंड जौनसंस, स्किन केयर पार्टनर ग्रीनलीफ, ग्राफ्टिंग पार्टनर डेलब्रेटो, होम्योपैथिक पार्टनर एसबीएल और स्पैशल पार्टनर श्री एंड शाम थे. इस कार्यक्रम का पूरा फोकस विमन इम्पावर पर था. यह कार्यक्रम दिल्ली में 18 मई, 2024 को आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में महिलाओं, जिन में अधिकतर मांएं थी, ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

empower moms
महिलाओं ने बढ़चढ़ कर लिया हिस्सा

पीडियाट्रिशियन सैशन

सब से पहले पीडियाट्रिशियन डाक्टर श्रेया दुबे ने शिशु देखभाल से संबंधित बातें वहां मौजूद मदर्स से साझा कीं. उन्होंने बताया कि जन्म के पहले 6 महीने तक शिशु को कोई सौलिड फूड नहीं देना चाहिए. अगर यह पहले 6 महीने में दिया जाता है तो बच्चे को इफैंक्शन होने का खतरा रहता है. 6 महीने के बाद बच्चे को मैश किए हुए फ्रूट्र्स जैसे पपीता औैर सेब दिया जा सकता है. इस के अलावा सब्जियों को उबाल कर मैश करके जैसे मैश कददू, चुकंदर, गाढ़ी दाल और दलिया दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस बात का खास ख्याल रखें कि 9 महीने तक नमक और 12 महीने तक शुगर या शहद बच्चे को न दिया जाए. उन्होंने आगे कहा कि बच्चे को जबरदस्ती खाना नहीं खिलाना चाहिए. बस उन की प्लेट में खाना परोस देना चाहिए, लगभग 20 मिनट के लिए और उन पर छोड़ दें कि वे कब खाते हैं.

shreya dubey
पीडियाट्रिशियन डाक्टर श्रेया दुबे

इस के अलावा उन्होंने कहा कि लोगों को दूसरे के बच्चों को लेकर कोई नेगेटिव कमेंट नहीं करना चाहिए. इस से बच्चे और उन के पैरेंट्स के मन में नेगेटिविटी आ जाती है. अंत में उन्होंने महिलाओं को मदर्स डे विश करते हुए कहा कि डियर मौम्स आप अमेङ्क्षजग हैं, आप औसम हैं. आप अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं और अपने बच्चों का अच्छी तरह ख्याल रख रही हैं.

ब्यूटी ऐक्सपर्ट सैशन

सैलिब्रिटी ब्यूटी ऐक्सपर्ट डाक्टर भारती तनेजा, जो राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं और माधुरी दीक्षित और सुस्मिता सेन जैसी अभिनेत्रियों का लुक डिजाइन कर चुकी हैं, के आते ही महिलाओं में एक अलग ही उत्साह देखा गया. ऐसा लग रहा था मानो वे उन के ब्यूटी टिप्स सुनने के लिए बेताब बैठी हैं. महिलाओं को और ज्यादा इंतजार न करवाते हुए उन्होंने उन्हें कई स्किन केयर टिप्स दिए. उन्होंने कहा कि खूबसूरती बाहरी और भीतरी दोनों ही होती है और आप में ये दोनों ही होनी चाहिए. उन्होंने कहा आप की पौजिटिव सोच आप को खूबसूरत बनाती है.

bharti taneja
सैलिब्रिटी ब्यूटी ऐक्सपर्ट डाक्टर भारती तनेजा

उन्होंने आगे कहा कि घर और मां की जिम्मेदारी निभातेनिभाते आप अपना ख्याल नहीं रख पाती हैं. लेकिन आप अपने रुटीन में से थोड़ा सा वक्त निकालकर अपना स्किन केयर कर सकती हैं. इस के बाद उन्होंने एक स्किन केयर रुटीन बताया. जिस में उन्होंने घर में मौजूद दाल और चावल को पीसकर उस का स्क्रब बनाना सिखाया. उन्होंने महिलाओं को कई नई ब्यूटी ट्रीटमैंट्स के बारे में भी बताया. उन के द्वारा बताए गए ब्यूटी टिप्स और जानकारी को सभी ने खूब पसंद किया.

empower moms
ब्यूटी ऐक्सपर्ट डाक्टर भारती तनेजा को गिफ्ट देते हुए दिल्ली प्रेस के डायरेक्टर मिस्टर अनंत नाथ

फाइनैंस ऐक्सपर्ट सैशन

कहते हैं एक मां सबसे बड़ी योद्धा होती है. वह चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकती. वह अपने बच्चे का ख्याल भी रख सकती है और एक अच्छी निवेशकर्ता भी साबित हो सकती है. इसी बात एहसास उन्हें फाइनैंस ऐक्सपर्ट श्रुति देवड़ा ने कराया. श्रुति देवड़ा मुंबई की रहने वाली एक चार्टड अकाउंटेंट है. जो अपने ऐक्सपर्ट औपिनियन के लिए देशविदेश में जानी जाती हैं.

shruti devda
श्रुति देवड़ा, चार्टड अकाउंटेंट

उन्होंने इवेंट में मौजूद महिलाओं और मांओ को निवेश संबंधी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि छोटेछोटे निवेश से शुरुआत करके आप एक बड़ी बचत कर सकती हैं और इस के जरिए अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि निवेश में कितने समय के लिए निवेश किया जा रहा है यह सब से ज्यादा महत्वपूर्ण है. जितने ज्यादा समय के लिए निवेश किया जाएगा उतना ज्यादा ब्याज मिलेगा. इसलिए निवेश लंबे समय के लिए करें. अंत में फाइनैंस ऐक्सपर्ट श्रुति ने महिलाओं के निवेश संबंधी प्रश्नों के उत्तर दिए. जिन्हें सुनकर महिलाएं बेहद संतुष्ट नजर आईं.

 

empower moms
होस्ट गेम से जुड़े सवाल पूछते हुए

गेमिंग सैशन

ऐक्सपर्ट सैशन के बाद होस्ट अंकिता ने कुछ मजेदार गेम्स खिलवाए. जिस में सब से लंबे ईयररिंग गेम, वह मां जिस का बच्चा सब से छोटा है, ऐसी मां जिस के पास बेबी प्रौड्क्ट मौजूद है जैसे मजेदार गेम शामिल थे. वहां मौजूद महिलाओं से यह भी पूछा गया कि उन्होंने अपनी मां से क्या सीखा, जिस में उन्होंने अपने अपने ऐक्सपीरियंस सभी से साझा किए. इन प्रतियोगिताओं में विजयी महिलाओं को वनलीफ ब्रिहांस की तरफ से गिफ्ट्स हैम्पर दिए गए.

gaming session
गेम में हिस्सा लेती हुई महिलाएं
gaming session
गेमिंग सैशन

कार्यक्रम के अंत में सभी को गुडी बैग्स दिए गए. मदर्स डे के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया यह कार्यक्रम महिलाओं के बीच खासा हिट रहा.

empower moms
प्रतिभागी को मिले गिफ्ट

इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को कैसे कर सकते हैं सपोर्ट?

आज हर दस में से एक व्‍यक्ति प्रजनन संबंधी समस्‍या का सामना कर रहा है, और किसी भी कार्यस्‍थल पर यह एक बहुत संवेदनशील मामला हो गया है. इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे लोगों को काफी तनाव एवं चिंता का सामना करना पड़ता है. जब इसके साथ-साथ व्‍यक्ति फर्टिलिटी का उपचार कराने से होने वाले शारीरिक दबाव को भी झेलता है तो उसकी उत्‍पादकता, ऊर्जा, और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है.

डॉ डायना दिव्या क्रैस्टा,  मुख्य मनोवैज्ञानिक, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर की बता रही हैं ऎसे उपाय जो इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को सपोर्ट कर सके.

डायना दिव्या क्रैस्टा का कहना है कि -सांस्‍कृतिक रूप से, इनफर्टिलिटी और प्रेग्‍नेंसी लॉस को लेकर काफी वर्जनाएँ हैं. दुर्भाग्‍यवश, कपल्‍स जिस पीड़ा को सहते हैं, वह सामाजिक स्‍तर पर वास्‍तविक ‘लॉस’ के तौर पर वाकई प्रमाणित नहीं है. लेकिन यदि कोई आपके बेहद करीब है, जैसे कि आपका दोस्‍त या सहकर्मी जो कुछ इसी तरह के दौर से गुजर रहा है, तो हमें नीचे दी गई कुछ बातें ध्‍यान में रखनी चाहिए :

ध्यान दें और धैर्यपूर्वक सुनें-

सबसे पहले उनकी बात सुनें, उन्‍हें गले लगायें और उनके दिमाग में क्‍या चल रहा है, उसे आपके साथ शेयर करने का मौका दें.  खुली बातचीत सहयोगी एवं समावेशी कार्यस्‍थल की नींव है. अपने वर्कफोर्स को उन चिकित्‍सा स्थितियों को समझने पर जोर देने और सहयोग देने के लिए प्रोत्‍साहित करें जिनकी वजह से नियोक्‍ताओं को अधिक लचीलापन या अनुकूलन का अवसर प्रदान करने की जरूरत पड़ सकती है. कर्मचारियों पर ध्‍यान देने वाली संस्‍कृ‍ति का निर्माण करें जहाँ कर्मचारी प्रजनन संबंधी समस्‍याओं के बारे में खुलकर बातचीत और अपने दुख-दर्द आपस में साझा कर सकें.

संस्‍कृति में बदलाव शिक्षा पर निर्भर है-

सहयोग देने से पहले (या नीतियाँ बनाने से पहले), उन उपचारों के बारे में पूरी जानकारी पाना महत्‍वपूर्ण है जिन्‍हें कर्मचारी ले रहा है. इनफर्टिलिटी को किसी दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या से अलग नहीं करना चाहिए और न इससे डरना चाहिए. इसमें उपचार की जरूरत होती है और संस्‍थानों को इनफर्टिलिटी के सम्बन्ध में भी वैसे ही रिस्‍पॉन्‍स करना चाहिए जैसे वह दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों को लेकर करते हैं.

उपचार की अलग-अलग प्रतिक्रिया-

हम आमतौर पर ‘फर्टिलिटी ट्रीटमेंट’ को ‘आईवीएफ’ (इन विट्रो फर्टि‍लाइजेशन) से जोड़कर देखते हैं, लेकिन इसमें कुछ दूसरे प्रोटोकॉल भी होते हैं जैसेकि ‘ओवुलेशन इंडक्‍शन’ या ‘आइयूआइ’ या फिर ‘सरोगेसी’ जिनमें चीरफाड़ या और कभी-कभी जटिल हस्‍तक्षेप करने पड़ते हैं. प्रत्‍येक आइवीएफ साइकल हर दूसरे साइकल से एकदम अलग हो सकता है क्‍योंकि हर व्‍यक्ति उपचार को लेकर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है.

लचीले बने रहना ही कुंजी है-

कई लोग परिवार को बढ़ाने को एक सीधी प्रक्रिया के तौर पर नहीं देखते हैं. हो सकता है कि, कर्मचारी अपनी इनफर्टिलिटी जाँच का भले ही सीधे खुलासा नहीं करें,  उन्‍हें अपने खुद के (या पार्टनर के) इलाज के लिए काम करने के ज्‍यादा लचीले शेड्यूल या अस्‍थायी इंतजाम पर चर्चा करने की जरूरत भी महसूस हो सकती है. व्‍यक्ति के रूटीन में बदलावों (या टेलीकम्‍युटिंग) की अनुमति देनी चाहिए ताकि वह अपने समय को उपचार की जरूरतों तथा बार-बार फर्टिलिटी क्‍लीनिक जाने के अनुसार अस्‍थायी रूप से समायोजित कर सके. इससे कर्मचारी को काम और जिंदगीके बीच बेहतर संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है और उसे अपने संस्‍थान से लगाव का अहसास होता है तथा वह अपनी पेशागत भूमिकाओं एवं कर्तव्‍यों के लिए प्रशंसा मिलती है.

सपोर्ट ग्रुप्‍स का निर्माण करें-

फर्टिलिटी का इलाज करा रहे रोगियों का आमतौर पर यह मानना होता है कि उन्‍हें वही लोग समझ सकते हैं जो वाकई इस अनुभव से गुजर रहे हैं. चर्चा के लिए ग्रुप बनाने का सुझाव दें और निजी तौर पर सहयोग प्रदान करें या फिर रोगियों को सपोर्ट करने के लिए उनके मौजूदा ग्रुप में शामिल हों तथा गर्भधारण की कोशिश कर रहे कपल्‍स की भावनात्‍मक सेहत सुधारने की दिशा में काम करें. ग्रुप सभी कर्मचारियों के लिए खुला होना चाहिए, इनमें चिकित्‍सा संबंधी चुनौती का सामना कर रहे रोगी से लेकर, बच्‍चे को खोने का दर्द झेल रहे लोग और इनफर्टिलिटी का सामना कर रहे कपल्‍स शामिल हो सकते हैं. इस तरह के ग्रुप्‍स अलगाव के अहसास को दूर करने में मदद कर सकते हैं और लोगों को उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के नजरिये को बहाल करने में मददगार हो सकते हैं. ये ग्रुप्‍स कपल्‍स को आश्‍वासन दे सकते हैं कि जिंदगी के इस कठिन दौर में वे अकेले नहीं हैं.

सहयोग प्रदान करें

इनफर्टिलिटी के कारण महिला और पुरुष मैनेज करने योग्‍य तनाव से मैनेज नहीं किये जाने वाले तनाव की ओर बढ़ सकते हैं. या फिर उन्‍हें गंभीर मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं जैसे चिंता, उदासी और यहाँ तक कि वे सदमे का शिकार भी हो सकते हैं. अपने कर्मचारी पर नजर रखना बहुत महत्‍वपूर्ण है, और यह उन तक पहुँचने के योग्य बात है, जैसे कि एक कर्मचारी सहायता कार्यक्रम या परामर्शी सेवा उपयोगी हो सकती है.

हमें बातचीत के सभी मार्ग भी खुले रखने चाहिए  ताकि हर किसी को ऐसा लगे कि उसे पूरा सपोर्ट मिल रहा है. जैसे कि, कर्मचारी को हर सप्‍ताह एक ईमेल भेजकर उसकी जानकारी ले सकते हैं या फिर साप्‍ताहिक रूप से आमने-सामने बैठकर बात कर सकते हैं.

अगर आपके संगठन में कई कर्मचारियों का उपचार चल रहा है तो उनमें से उन सभी कर्मचारियों को खोजने की कोशिश करें जिन्‍हें नेटवर्क के जरिए एक-दूसरे के सपोर्ट की आवश्यकता है.

इडली के बेटर से बनाएं इडली पिज्जा और इडली कैरेमल नगेट्स

इडली मुख्यतया दक्षिण भारतीय व्यंजन है. इसे दाल चावल और उड़द की दाल को पीसकर फर्मेंट किये गए घोल से बनाया जाता है. भले ही यह दक्षिण भारतीय व्यंजन हो परन्तु वर्तमान में यह देश के सभी प्रान्तों के भोजन में अपना प्रमुख स्थान बना चुका है.  इसे मूंग, चना दाल और सूजी से भी बनाया जाने लगा है. आज हम आपको इडली के बेटर से पारम्परिक डिश के स्थान पर कुछ ट्विस्ट के साथ व्यंजन बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप सुगमता से घर की सामग्री से ही बना सकतीं है. इन्हें बनाने में आप अपनी इच्छानुसार इडली के पारंपरिक चावल और दाल के अथवा सूजी के बेटर का प्रयोग कर सकतीं हैं. तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-लावा इडली

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

तैयार इडली का घोल          3 कप

पानी पूरी                           6

तैयार सांभर                      6 टेबलस्पून

रिफाइंड तेल                     1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                   1/4 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया     1 टीस्पून

नमक                               स्वादानुसार

विधि

सभी पानी पूरी की ऊपरी सतह को थोड़ा सा तोड़ लें ताकि इसमें सांभर की फिलिंग की जा सके. पूरी के टूटे टुकड़े को भी सम्भाल कर रखें. अब इडली के घोल में चिली फ्लैक्स, नमक, तेल और हरी धनिया डालकर अच्छी तरह मिलाएं. अब मध्यम आकार की 6 कटोरियां लेकर तेल से ग्रीस करें. कटोरी में एक सर्विंग स्पून बेटर डालकर पानी पूरी रखें, अब पानी पूरी में सांभर डालकर ऊपर से पूरी का टूटा हुआ टुकड़ा लगाएं ताकि सांभर बाहर न निकले. अब इस पानी पूरी के ऊपर इस तरह से इडली का बेटर डालें कि सांभर भरी पूरी अच्छी तरह कवर हो जाये. इन कटोरियों को उबलते पानी के ऊपर चलनी के ऊपर रखकर ढक दें और 15 से 20 मिनट तक पकाएं. सर्विंग डिश में एक चम्मच सांभर डालकर तैयार इडली रखें और चम्मच से इडली को थोड़ा काटकर सर्व करें ताकि इडली के अंदर से सांभर का गर्म लावा निकलता हुआ दिखे.

-इडली पिज़्ज़ा

कितने लोगों के लिए            4

बनने में लगने वाला समय       20 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

इडली बेटर                      2 कप

बारीक कटा प्याज             1 टीस्पून

बारीक कटी शिमला मिर्च     1 टीस्पून

कॉर्न के दाने                      1 टीस्पून

कटे ऑलिव्स                   4-6

चीज क्यूब्स                     2

चिली फ्लैक्स                   1/4 टीस्पून

ओरेगेनो                           1/4 टीस्पून

टोमेटो सॉस                    1 टीस्पून

शेजवान चटनी                 1 टीस्पून

बटर                                 1 टीस्पून

विधि

4 कटोरियों  को चिकना करके आधा आधा कप इडली का बेटर डालकर उबलते पानी के ऊपर छलनी रखकर कटोरियों को रख दें और ढककर 20 मिनट तक पका लें.

ठंडा होने पर इन्हें बीच से दो स्लाइस में काट लें. शेजवान चटनी और टोमेटो सॉस को एक साथ मिक्स कर लें. इडली के स्लाइस पर बटर लगाकर तैयार सॉस फैलाएं, ऊपर से सभी कटी सब्जियां, ऑलिव्स, कॉर्न डालकर आधा चीज क्यूब ग्रेट कर दें. चीज के ऊपर ऑरिगेनो और चिली फ्लैक्स बुरकें.एक नॉनस्टिक तवे पर बटर लगाकर तैयार इडली स्लाइस को रख दें. ढककर धीमी आंच पर 5 से 7 मिनट अथवा चीज के मेल्ट होने तक पकाएं.

-इडली कैरेमल नगेट्स

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री 

तैयार इडली                 4

शकर                            2 टेबलस्पून

बटर                             1 टीस्पून

दालचीनी पाउडर             1/4 टीस्पून

नींबू का रस                     1/4 टीस्पून

बारीक कटे पिस्ता             1/2 टीस्पून

घी                                  1 टेबलस्पून

विधि

इडली को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. गर्म घी में धीमी आंच पर इन्हें सुनहरा होने तक रोस्ट करें. अब एक नॉनस्टिक पैन में बटर डालकर शकर, दालचीनी और नींबू का रस डाल दें. धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए शकर के पूरी तरह घुलकर हल्के बादामी रंग के होने तक पकाएं. जैसे ही शकर का रंग बदलने लगे तो इडली के रोस्टेड टुकड़े डाल दें. अच्छी तरह चलाकर गैस बंद कर दें. सभी टुकड़ों को चम्मच से अलग कर दें. बारीक कटे पिस्ता से सजाकर सर्व करें.

टौयलेट साफ रखने के लिए ये हैं कुछ जरूरी टिप्स

यदि घर का टौयलेट साफ नहीं हो तो घर सही मायने में साफ नहीं कहा जा सकता. बहुत से लोग घर के लिविंग रूम को तो साफसुथरा रखते हैं परंतु टौयलेट क्लीनिंग की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते. जबकि टौयलेट स्वच्छ रखना बहुत जरूरी होता है.

दरअसल, परिवार के सभी सदस्य इसे इस्तेमाल करते हैं, जिस से यह बारबार गंदा हो जाता है. ऐसे में यदि समय पर इसे अच्छी तरह साफ नहीं किया जाए, तो यह देखने में तो भद्दा लगता ही है, घातक बीमारियों को भी बुलावा देता है. यहां हम बताते हैं आपको टौयलेट साफ करने के कुछ टिप्स.

1. ब्रश को रखें कीटाणुनाशक में

जब आप एक बार ब्रश काम में लाते हैं तो पौट पर लगा मल ब्रश पर लग जाता है. आप पौट को देख लेते हैं कि साफ हो गया लेकिन ब्रश को नहीं देखते. यह ब्रश टौयलेट में बदबू भी करेगी और जब आप दुबारा साफ करेंगे तो गंदगी भी फैलाएगी. इसलिए ब्रश को एक बार काम में लेने के बाद पूरी रात कीटाणुनाशक या ब्लीच में डुबोकर रखें. इससे अगली बार जब आप काम में लेंगे तो आपकी ब्रश एकदम साफ रहेगी.

2. किनारों को पोछने के बजाय कीटाणुनाशक छिड़कें

किनारों पर सफाई थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में थोड़ा कीटाणुनाशक छिड़कें और इसे थोड़ी देर रहने दें. इसके बाद इसे पोछकर चमकाएं. चमक आने पर सूखा कपड़ा मार दें.

3. टौयलेट रिम को भी रखें साफ

टौयलेट रिम पर कीटाणुनाशक छिड़क दें क्योंकि इस पर भी गंदगी और बैक्टीरिया लगे रहते हैं. इसके अलावा ऐसी ब्रश लें जिससे यह ढंग से साफ हो सके. इसके लिए आप बेकार टूथ ब्रश काम में ला सकती हैं. सफाई करते समय हाथों में दस्तानें जरूर पहनें.

4. सफेद सिरके का इस्तेमाल

फ्लश टैंक में सफेद सिरका छिड़कने से यह ना केवल साफ और फ्रेश रहेगा बल्कि आपके सेनेटरी में जमे हार्ड-वाटर को भी यह निकाल देगा. इससे टौयलेट जाम नहीं होगा. सिरका एक कीटाणुनाशक, स्टेन रिमुवर है साथ ही यह 100% नौन-टोक्सिक है, इसलिए बिना संदेह के आप इसे इस्तेमाल ले सकती हैं. अच्छी खुशबू के लिए आप सिरके में सीट्रोनला या नीलगिरी का तेल भी मिला सकती हैं. फ्लश टैंक में रोजाना सिरका डालने से वीकएंड पर जब आप इसे साफ करेंगी तो आपको ज्यादा गंदगी नहीं मिलेगी.

5. सही तरह फ्लश करें

हर समझदार इंसान की निशानी है कि वह अपना काम करने के बाद टौयलेट को सही तरह फ्लश करे. ना केवल सही और पूरा फ्लश करे बल्कि चारों तरफ फ्लश करे. फ्लश करते समय यह भी ध्यान रखें कि गंदगी वापस ना आए. आपको पता होगा कि फ्लश करते समय टौयलेट गंदगी को पानी के प्रेशर से वापस फेंकता है.

6. बीमारियां व इन्फैक्शन

गंदा टौयलेट बहुत सी बीमारियां व इन्फैक्शन पैदा करना है. वहीं, यदि एक बार कोई इन्फैक्शन हो जाए तो स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है और शरीर का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है. गंदी टौयलेट सीट पर तेजी से बैक्टीरिया व जर्म्स फैलते हैं, जिस से डायरिया, कौलरा, टायफाइड, स्किन इन्फैक्शन के अलावा यूरिनरी इन्फैक्शन आदि भी हो सकते हैं. बच्चे इन से शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं.

7. स्वच्छता का रखें खयाल

टौयलेट की स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, वहीं ध्यान रखें कि सफाई ऐसी हो जो न सिर्फ टौयलेट को अच्छी तरह साफ करे बल्कि जर्मफ्री भी बनाए. दरअसल, टौयलेट सीट पर बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं. इन्हें जर्मफ्री बनाने के लिए अच्छी कंपनी के टौयलेट क्लीनरों का प्रयोग करें. मार्केट में कई तरह के टौयलेट क्लीनर्स उपलब्ध हैं, जिन में हार्पिक एक लोकप्रिय ब्रैंड है. इस का ऐडवांस फार्मूला अन्य क्लीनरों के मुकाबले 5 गुना बेहतर सफाई का दावा करता है व बदबू दूर कर फ्रैश सुगंध देता है. पूरे टौयलेट को क्लीन करना जरूरी है. फर्श को साफ रखें, टौयलेट सीट के अंदर व बाहर टौयलेट क्लीनर को अच्छी तरह प्रत्येक कोने में लगा कर लगभग 20-25 मिनट तक छोड़ दें.

कैसे जानें कि Menstrual Cup भर चुका है?

यदि हाल ही में आपने मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करना शुरू किया है या फिर ऐसा करने के बारे में सोच रही हैं तो आप एक बेहद ही आरामदायक और पर्यावरण के अनुकूल माहवारी की राह पर हैं. लेकिन मैं इस बात को समझ सकती हूं कि आपके दिमाग में कई सारे सवाल होंगे, हालांकि सबसे महत्वपूर्ण होगा लीकेज की चिंता या फिर कितने अंतराल पर कप को खाली करने की जरूरत होती है.

डॉ. तनवीर औजला, वरिष्ठ सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, मदरहुड अस्पताल, नोएडा की बता रही इसके इस्तेमाल के तरीके इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है और एक बार ठीक से इंसर्ट होने के बाद, आपके शरीर में कुछ अजीब होने का सवाल ही नहीं पैदा होता.

मेंस्ट्रुअल कप, सिलिकॉन या लेटेक्स रबर से बना एक छोटा, लचीला कप होता है, जिसे माहवारी के दौरान वजाइनल कैनाल में इंसर्ट किया जाता है. चूंकि, मेंस्ट्रुअल कप में माहवारी का रक्त पैड या टैम्पॉन की तरह अवशोषित होने की जगह जमा होता है तो आप इसे इस्तेमाल के बाद खाली कर सकती हैं. यह इस्तेमाल करने वाले की उम्र, सर्विक्स की स्थिति और रक्त के प्रवाह पर निर्भर करता है. ये कप तीन साइज में उपलब्ध हैं: स्मॉल, मीडियम और जाइंट.

कुछ चिंताओं के बावजूद, मेंस्ट्रुअल कप काफी लचीला होता है और इंसर्ट करने के बाद, यह वजाइनल कैनाल के अंदर फैलता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है और एक बार ठीक से इंसर्ट होने के बाद, आपके शरीर में कुछ अजीब होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. आप अपने टैम्पॉन के खिसकने या आपके अंडरवियर पर अपने पैड के गिरने की चिंता किए बिना अपना दिन बिता सकती हैं. कुछ लोग इसके बारे में दावा करते हैं कि रिसाव का कोई खतरा नहीं होता, यात्रा के दौरान इसका उपयोग करना बहुत आरामदायक होता है और यह पर्यावरण के लिये फायदेमंद है.

वहीं दूसरी तरफ, कुछ ऑनलाइन यूजर्स दावा करते हैं कि यह पता लगाना मुश्किल होता है कि कब कप भर गया. कोई भी अलार्म सिस्टम आपको अलर्ट नहीं करता है कि कप फुल हो चुका है और आपके मेंस्ट्रुअल कप इतना उन्नत नहीं है कि आपको एसएमएस कर दे कि कब रक्त का स्तर सही है.

जिस दिन रक्त का बहाव ज्यादा हो आपको हर 3 से 4 घंटे पर यह देखना चाहिए कि कितना रक्त इकट्ठा हो रहा है. मेंस्ट्रुअल कप के आकार और टैम्पॉन के सवाल के आधार पर एक मेंस्ट्रुअल कप आमतौर पर एक टैम्पॉन के मुकाबले दो से आठ गुना अधिक रक्त इकट्ठा करता है. जब भी संदेह हो, कप को हटा लें और कितना भरा है उसकी जांच कर लें. इसे भरने में कितना समय लगता है, यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी बार कप को हटाती हैं और उसे खाली करती हैं.

चूंकि, इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि यह कप कब भरेगा तो इस बात की जांच कर लें कि ज्यादा रक्तस्राव वाले दिन इसे भरने में कितना वक्त लगता है. कम रक्तस्राव वाले दिन आपको कप भरने की चिंता नहीं करनी है, क्योंकि जितनी देर आप कप को अंदर रखेंगी, वह धीरे-धीरे भरता रहेगा.

रक्तस्राव की तीव्रता के अलावा भी आमतौर पर आपको हर 10 से 12 घंटे में कप को निकालना है. कुछ कंपनियां सलाह देती हैं कि 8 घंटे के बाद कप को निकालना, साफ करना और फिर से इंसर्ट करना सबसे सही होता है. लेकिन अध्‍ययनों के मुताबिक कप को 12 घंटे तक लगातार छोड़ देना भी सुरक्षित ही है. इसके साथ ही कप का लीक होने लगना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह भर चुका है. लेकिन हममें से ज्यादातर इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहेंगे, क्या हम ऐसा करेंगे?

कुछ रिसर्च के मुताबिक, एक कप को 12 घंटे से ज्यादा समय तक रखना, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस) और अन्य वजाइनल संक्रमणों के खतरे को बढ़ा देता है. लंबे समय तक कप में ठहरा हुआ रक्त बैक्टीरिया के पनपने की जगह बन सकता है, यह बैक्‍टीरिया इन रोगों के होने का कारण बन सकते हैं.

हालांकि, कप के इस्‍तेमाल से जुड़े टीएसएस के केवल दो मामले ही सामने आए हैं. इसके अलावा,  पिछले हफ्‍ते उन महिलाओं में से किसी ने भी अपने कप नहीं हटाए. टीएसएस आमतौर पर टैम्पॉन के इस्‍तेमाल से जुड़ा होता है, लेकिन सामान्य नियम के मुताबिक किसी भी प्रकार के जोखिम को टालने के लिये अपने मेंस्ट्रुअल कप को 12 घंटे से ज्यादा समय के लिये अंदर ना छोड़ने की सलाह दी जाती है.

कप के पूरी तरह भर जाने से लीक होने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा होने के कुछ और भी कारण हो सकते हैं:

बड़े या छोटे साइज का कप लगाने से यदि आईयूडी मौजूद हो, उसका धागा कप के रिम और वजाइनल वॉल में फंस सकता है, जो रक्त के स्राव के लिये जरूरी सक्शन बनने से रोक सकता है.

आपके कप के बाहर स्थित सर्विक्स, जोकि कप के साथ सही तरीक से एक सीध में ना हो.

बाउल मूवमेंट की वजह से आपके कप की पॉजिशन बदल सकती है.

आपके पेल्विक मसल्स इतने मजबूत हों कि उसमें लगभग भरे हुए कप से सक्शन को हटाने की ताकत हो.

जब तब आपका कप भरने के लिये पूरी तरह खाली ना हो, तब तक इंतजार ना करें. यदि आपको 12 घंटे हो चुके हैं तो आप हर 3 से 4 घंटे में इसे फिर से इंसर्ट कर सकती हैं, यह आपके रक्त स्राव पर निर्भर करता है. भले ही आपका कप ना भरा हो, फिर भी आपको इसे हटाना है.

जैसा भी था, था तो: क्या हुआ था सुनंदा के साथ

एकएककर लगभग सभी मेहमान जा चुके थे. बस सुनंदा की रमा मामी रुकी थीं. वे भी कल सुबह चली ही जाएंगी. रमा मामी से उसे शुरू से विशेष स्नेह रहा है. मामा की मृत्यु के बाद भी रमा ने सब से वैसा ही स्नेह और सम्मानभरा रिश्ता रखा है जैसा मामा के सामने था. मामी अपने विवाहित बेटे के साथ सहारनपुर में रहती हैं. अब भी रमा मामी ने ही आलोक की मृत्यु के समाचार सुनने से ले कर आज सब मेहमानों के जाने तक सब संभाल रखा था.

आलोक के भाईबहन आधुनिक व्यस्त जीवन की आपाधापी में से समय निकाल कर जितनी देर भी आ पाए, सुनंदा को उन से कोई गिलाशिकवा है भी नहीं. आलोक का जाना तय था. यह तो 1 महीने से उस के हौस्पिटल में रहने से समझ तो आ ही रहा था पर जैसा कि इंसान मृत्यु को चुनौती देने के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देता है पर जीत थोड़े ही कभी पाता है, वैसे ही सुनंदा ने रातदिन आलोक के स्वस्थ होने की आशा में पलपल बिता दिया था.

अंतिम दिनों में ही पता चला था कि आलोक कैंसर की चपेट में है और लास्ट स्टेज है. उन के दोनों बच्चे शाश्वत और सिद्धि मां का मुंह ही देखते रहते थे. समझ गए थे कि मां ऐसे ही परेशान नहीं हैं, इस बार कुछ होने ही वाला है और हो भी तो गया था.

आलोक को गए 2 सप्ताह हो चुके हैं. सुनंदा ने बच्चों के कमरे में झांका. रात के 11 बज रहे थे. रमा ने दोनों बच्चों को खाना खिला कर सुला दिया था.

रमा ने कहा था, ‘‘बच्चो, कल से स्कूल जाना… पढ़ने में मन लगाना. मम्मी का ध्यान भी रखना और मेहनत करना. सुनंदा अपनी परेशानी जल्दी नहीं कहेगी पर तुम लोग अब उस का ध्यान जरूर रखना.’’

उन के स्कूल के सामान की व्यवस्था बच्चों के साथ मिल कर रमा ने देख ली थी.

रमा जब सुनंदा के कमरे में आई तो देखा, सुनंदा आरामकुरसी पर आंखें बंद किए लेटी सी थी. आहट पर सुनंदा ने आंखें खोलीं. रमा वहीं उस के पास बैठते हुए कहने लगी, ‘‘सुनंदा,

कल सुबह मैं चली जाऊंगी, तुम से कुछ बात करनी है.’’

‘‘हां, मामी, बोलो न.’’

‘‘तुम ने आलोक के रहते हुए भी क्याक्या झेला है, मुझ से कुछ भी छिपा नहीं है, सब जानती हूं. यह तो अच्छा रहा कि तुम अपने पैरों पर खड़ी थी. आज प्रिंसिपल हो, अपनी और बच्चों की, घर की जिम्मेदारी पहले भी तुम ही उठा रही थी, अब भी तुम ही उठाओगी, पर जैसा भी था, आदमी तो था,’’ कहतेकहते रमा की आवाज में नमी आ गई, गला भी रूंध सा गया.

सुनंदा ने बस गरदन हिलाई, हां में या न में, उसे खुद ही पता नहीं चला.

मामी ने उस के सिर पर हाथ फेर कहा, ‘‘चलो, अब सो जाओ. कल स्कूल जाओगी?’’

‘‘हां, आप के जाने के बाद चली

जाऊंगी, बहुत काम इकट्ठा हो गया होगा,

आप आती रहना.’’

‘‘हां, जरूर.’’

रमा के जाने के बाद सुनंदा उठ कर बैड पर लेट गई, ‘आदमी तो था’ भाभी के इन शब्दों पर अंदर से मन कहीं अटक गया. आंखें तो बंद थीं पर मन ही मन अतीत की परत दर परत खुलने लगी.

सुनंदा को अपने विवाह के पिछले 20 बरस आंखों के आगे इतना स्पष्ट दिखे कि उन्हें महसूस करते ही उस ने अपने माथे पर पसीना सा महसूस किया.

विवाह के कुछ दिनों बाद ही उस ने अनुभव कर लिया था कि मातापिता ने बेटी को बोझ मानते हुए जितना जल्दी यह बोझ कैसे भी उतर जाए की चाह में एक निहायत कामचोर व्यक्ति के पल्ले उसे बांध दिया है. सुनंदा ने गर्ल्स स्कूल में नौकरी अपनी योग्यता के दम पर हासिल की थी और आज वह प्रिंसिपल के पद तक पहुंच गई है. दोनों बच्चों के जन्म के बाद तो वही जैसे पुरुष थी घर के लिए. आलोक उस के समझाने पर अगर कोई काम शुरू भी करता तो जल्द ही काम में कमियां निकाल उसे छोड़ देता. उसे घर में रहना, सुनंदा की तनख्वाह की पाईपाई का हिसाब रखना ही आता था.

आलोक को गांव में रह रहे अपने मातापिता से न कोई लगाव था, न भाईबहन से, क्योंकि वे सब उसे कुछ काम कर मेहनत करने की सलाह देते थे और वह उन से दूर ही रहता था. सब उसे कामकाजी पत्नी के सुपुर्द कर जैसे निश्चिंत हो गए थे. कुछ साल पहले आलोक के मातापिता भी नहीं रहे थे. सुनंदा का भी अब कोई अपना नहीं था.

सुनंदा कई बार सोचती कि इस से अच्छा तो वह कहीं अविवाहित ही जी लेती पर जब बच्चों का मुंह देखती तो इस विचार को जल्द ही दिल से दूर कर देती.

आलोक ने कई बार सुनंदा की जमापूंजी से, लोन से कई बार काम शुरू भी किया जिस में हमेशा नुकसान ही हुआ और अब सुनंदा की रहीसही जमापूंजी भी आलोक के इलाज में खत्म हो चुकी थी. घर देखना है, बच्चों का कैरियर बनाना है, कल से स्कूल जा कर पैडिंग पड़ा काम देखना है. आलोक था तब भी सब काम वही देखती थी, अब भी उसे ही देखने हैं, नया क्या है? सोचतेसोचते उस की आंख लग ही गई. काफी लंबे समय से थका तनमन भी तो आराम मांग रहा था.

अगले दिन रमा चली गई. सुनंदा ने बच्चों को स्कूल भेजते हुए बहुत कुछ

समझाया. बच्चे समझदार थे. सुनंदा भी स्कूल के लिए तैयार होने लगी. शामली की इस कालोनी की दूरी स्कूल से पैदल 20 मिनट की ही थी. आलोक उसे स्कूटर पर छोड़ आता था. आज

घर की गैलरी में खड़े स्कूटर को देख कर सुनंदा के कदम तो ठिठके पर वह रुकी नहीं, पैदल ही बढ़ गई. रिकशा लेने का मन ही नहीं हुआ. सोचा, थोड़ा चलना हो जाएगा. इतने दिन घर में शोक प्रकट करने आनेजाने वालों के साथ बैठी ही रही थी. औफिस में भी जा कर बैठना ही है. आज देर भी होगी आने में. बच्चों के लिए रमा ने याद से घर की चाबियां भी अलग से बनवा दी थीं.

स्कूल पहुंच कर वह अपने औफिस में बैठी ही थी कि 1-1 कर के टीचर्स, बाकी सहयोगी उस से मिलने आते रहे. सब शोक प्रकट करने घर आ चुके थे पर आज भी सब उस के पास आते रहे. वह गंभीर ही थी, फिर कई काम देखे. परीक्षा आने वाली थी. वाइस प्रिंसिपल गीता को बुला कर उस से काफी विचारविमर्श करती रही.

मन बीचबीच में बच्चों की तरफ भाग रहा था. घर पहुंच गए होंगे? रखा हुआ खाना खा लिया होगा होगा? गरम किया होगा या नहीं? अंदर से दरवाजा तो बंद कर लिया होगा न? जमाना बहुत खराब है. बच्चों के पास अभी मोबाइल नहीं था. आलोक बच्चों के पास फोन होने का पक्षधर नहीं था. बच्चे भी जिद्दी नहीं थे. फिर उस ने लैंडलाइन पर फोन किया. बच्चे आ चुके थे. उन से बात कर के सुनंदा को तसल्ली हुई, फिर वह अपने ही काम में व्यस्त रही.

सुनंदा जब घर पहुंची, बच्चों की आंख लग गई थी. उस की आहट से बच्चे उठ बैठे और उस से लिपट गए. सुनंदा ने दोनों को बांहों में भर लिया, ‘‘तुम लोग ठीक हो न?’’

आलोक के जाने के बाद तीनों के स्कूल का पहला दिन था. शाश्वत ने उदासी से कहा, ‘‘ठीक हैं मम्मी, पर पापा के बिना अच्छा नहीं लग रहा कुछ.’’

सिद्धि भी सुबक उठी, ‘‘पापा की बहुत याद आ रही है मम्मी.’’

‘‘हां, बेटा,’’ कहते हुए सुनंदा ने बच्चों को बहुत प्यार किया. उन के साथ ही बैठ कर स्कूल की बातें करने लगी पर घूमफिर कर बच्चे इसी विषय पर आ रहे थे, ‘‘आज सब पूछ रहे थे पापा के बारे में.’’

‘‘टीचर्स भी पूछ रही थीं, मम्मी.’’

‘‘घर अच्छा नहीं लग रहा न, मम्मी?’’

हां में गरदन हिलाती रही सुनंदा. तीनों अपनेअपने रूटीन में धीरेधीरे व्यस्त होते चले गए. समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. आलोक के बारे में तीनों अकसर बातें करने बैठ जाते. किसी की भी आंख भरती तो विषय बदल कर उसे हंसाने की कोशिश शुरू हो जाती.

एक दिन सुनंदा औफिस में व्यस्त थी. सिद्धि का उस के मोबाइल पर फोन आया, ‘‘मम्मी, उमेश अंकल आए हैं.’’

सुनंदा का माथा ठनका, ‘‘क्यों आए हैं?’’

‘‘पता नहीं मम्मी, मैं ने तो उन्हें पानी पिलाया… वे बस मेरे साथ ही बातें किए जा रहे हैं…कुछ काम तो नहीं लग रहा है.’’

‘‘शाश्वत कहां है?’’

‘‘सो रहा है.’’

‘‘ओह, उठा दो उसे फौरन.’’

‘‘पर वह उठाने पर गुस्सा करेगा.’’

‘‘उठाओ और उसे कहो इस अंकल के पास वही बैठे और तुम अपने रूम में होमवर्क कर लो. इसे चायवाय पूछने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अच्छा, मम्मी.’’

उमेश के आने की बात सुन कर सुनंदा बहुत परेशान हो गई. आलोक उमेश को बिलकुल पसंद नहीं करता था. उमेश था तो आलोक का पुराना दोस्त पर बेहद चरित्रहीन. आलोक उसे हमेशा घर के बाहर ही रखता था.

उसने सुनंदा को उमेश की चरित्रहीनता के सारे किस्से सुनाए हुए थे. सिद्धि बड़ी हो रही है, अकेली है. सुनंदा को आज चैन नहीं आ रहा था. उमेश उस के घर में बैठा हुआ है. उमेश कई बच्चियों के साथ कुकर्म करते हुए पकड़ा गया था. उस की पत्नी उसे छोड़ कर जा चुकी थी.

सुनंदा गीता तो बुला कर बोली, ‘‘बहुत जरूरी काम है, जाना पड़ेगा, हो सकेगा तो लौट आऊंगी,’’ कह कर निकलने लगी तो गीता ने सम्मानपूर्वक कहा, ‘‘आप जाइए, मैम. मैं संभाल लूंगी. आप को दोबारा आने की परेशानी उठाने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘थैंक्यू गीता,’’ कहते हुए सुनंदा अपना पर्स उठा कर स्कूल से निकल गई, रिक्शा पकड़ घर पहुंची.

उमेश शाश्वत के साथ बैठा था. शाश्वत के माथे पर नींद से उठाए जाने पर झुंझलाहट थी. उमेश उसे देख कर चौंक गया, ‘‘अरे भाभी, आप इस समय कैसे आ गईं?’’

काफी कटु और गंभीर स्वर में सुनंदा ने कहा, ‘‘आप बताइए, आप इस समय यहां क्यों आए?’’

‘‘बस, ऐसे ही, सोचा आप लोगों के हालचाल ले लूं.’’

‘‘आगे से आप हालचाल के लिए परेशान न हों, हम ठीक हैं.’’

‘‘अरे भाभी, दोस्त था मेरा. मेरी भी कुछ जिम्मेदारी है. बच्चे वैसे काफी समझदार हैं.’’

‘‘भाईसाहब, आप आगे से तकलीफ न उठाएं.’’

‘‘नहीं भाभी, मैं तो आता रहूंगा, आप मुझे पराया न समझें.’’

सुनंदा के कड़े तेवर देख कर उमेश उस समय हाथ जोड़ कर बाहर निकल गया. सुनंदा सोफे पर ढह सी गई. सिद्धि भी मां की आवाज सुन कर अपने रूम से निकल कर आ गई थी. सुनंदा ने दोनों बच्चों को अपने पास बैठाया और कहने लगी, ‘‘बच्चो, जमाना बहुत खराब है. आगे से अगर मैं घर पर न होंऊ तो किसी के लिए भी दरवाजा न खोलना, इस आदमी के लिए तो बिलकुल नहीं.’’

‘‘ठीक है, मम्मी. हम ध्यान रखेंगे,’’ कह सिद्धि फिर सुनंदा के लिए चाय बनाने चली गई.

सुनंदा शाम को घर का सामान लेने मार्केट के लिए निकल गई. सारा सामान आलोक ही लाता था. छोटी जगह थी, कई लोग जानपहचान के मिलते चले गए. एक पड़ोसिन भी मिल गई. हालचाल पूछने के बाद कहने लगी, ‘‘आप ने तो हमेशा बाहर की लाइफ ही ऐंजौय की. अब तो आप पर घर के भी काम आ गए होंगे, आप को भी अब दालसब्जी का आइडिया हो जाएगा.’’

बात सुनंदा का दिल दुखा गई. वह लाइफ ऐंजौय कर रही थी अब तक? घरबाहर के कामों के लिए जीवनभर मशीन ही बनी रही. हम औरतें ही क्यों औरतों का दिल दुखाने में पीछे नहीं हटतीं?

पड़ोसी जगदीश भी सब्जी के ठेले पर मिल गए. सुनंदा को ऊपर से नीचे तक चमकती आंखों से देख मुसकराए, ‘‘बड़ी मैंटेंड हैं आप भाभीजी.’’

सुनंदा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी फिर जबरदस्ती उस के हाथ से थैला लेते हुए उस का हाथ छू लिया.

सुनंदा के तनमन में क्रोध की एक ज्वाला सी धधक उठी, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप?’’

‘‘आप की हैल्प कर रहा हूं, भाभीजी.’’

‘‘मैंने आप से हैल्प मांगी क्या?’’

‘‘मांगी नहीं तो क्या हुआ? पड़ोसी हूं, मेरा भी कुछ फर्ज है. चलिए, आप को घर तक छोड़ आता हूं.’’

‘‘नहीं, रहने दीजिए. यहां मुझे अभी और भी काम है,’’ कह कर सुनंदा ने अपना थैला वापस झपटा और बाकी का समान लेने इधरउधर हो गई.

मन अजीब से गुस्से से भर उठा था. घर आ कर सामान रख अपने बैडरूम में जा कर आंखें बंद कर लेट गई. दोनों बच्चे टीवी में कुछ देख रहे थे. सुनंदा का दिल मिश्रित भावों से भर उठा था. माथे पर हाथ रखे सुनंदा ने अपनी कनपटियों तक बहते आंसुओं की नमी को चुपचाप ही महसूस किया. धीरेधीरे इस नमी का वेग बढ़ता जा रहा था.

आज, अभी, आलोक की याद शिद्दत से आने लगी. जब तक आलोक था तीनों के इर्दगिर्द एक सुरक्षा का घेरा तो था. एक आलोक के जाते ही वह कितनी असुरक्षा से चिंतित रहने लगी थी. उस ने तो हमेशा यही महसूस किया था कि इस पति से उसे क्या मिला? कुछ नहीं. वही तो सालों से कमा कर घर चला रही थी.

आज लगा पैसे जरूर वह कमा रही थी पर जो आलोक के रहने पर जीवन में था, आज नहीं है. ‘जैसा भी था आदमी तो था’ रमा भाभी के ये शब्द याद आए तो पहली बार सुनंदा की आलोक की याद में इतनी तेज सिसकियों से कमरा गूंज उठा.

वनवास: क्या सिया को आसानी से तलाक मिल गया?

बाहर ड्राइंगरूम में नितिन की जोरजोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी, “मैं क्या पागल हूं, बेवकूफ हूं, जो पिछले 5 सालों से मुकदमे पर पैसा फूंक रहा हूं. और सिया पीछे से राघव
के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रही है.”

तभी नितिन की मम्मी बोली, “बेटा, पिछले 5 सालों से तो वनवास भुगत रही है तेरी बहन. जाने दे, अब अगर उसे जाना है…”

नितिन क्रोधित होते हुए बोला, “पहले किसने रोका था?”

सिया अंदर कमरे में बैठेबैठे घबरा रही थी. उस ने फैसला तो ले लिया था, पर क्या यह उस के लिए सही साबित होगा, उसे खुद पता नही था.

सिया 28 वर्ष की एक आम सी नवयुवती थी. 5 वर्ष पहले उस की शादी आईटी इंजीनियर राघव से हुई थी.

सिया के पिता की बहुत पहले ही मृत्यु हो गई थी. सिया के बड़े भाई नितिन और रौनक ने ही सिया के लिए राघव को चुना था. जब राघव सिया को देखने आया था, तो दुबलापतला राघव सिया को थोड़ा अटपटा लगा था. राघव और सिया के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी. सिया की बड़ीबड़ी आंखें और शर्मीली मुसकान राघव के दिल को दीवाना बना गई थी.

राघव ने रिश्ते के लिए हां कर दी थी. मम्मी सिया की किस्मत की तारीफ करते नहीं थक रही थी. एक सिंपल ग्रेजुएट को इतना पढ़ालिखा पति जो मिल गया था.

सिया को विवाह के समय भी लग रहा था कि उस का ससुराल पक्ष अधिक खुश नही है. सिया को लगा, शायद राघव के घर वालों को उन की आशा के अनुरूप उपहार नहीं मिले थे.

जब सिया जयमाला लिए राघव की तरफ जा रही थी, तभी उस के कानों में ताईजी की फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी, ‘अरे, लड़का तो बौना है और इतना पतला जैसे कोई बच्चा हो.’

राघव वास्तव में सिया के बराबर ही था और सिया भी कौन सी लंबी थी. 5 फीट की हाइट जहां सिया
का कद छोटा दर्शाता था, वहीं राघव का 5 फीट का कद उसे एकदम से बौना सा दिख रहा था.

जूते छुपाई की रस्म के समय चचेरी बहन पीहू बोली, “अरे, जीजाजी के जूतों में तो शायद हील होगी. बड़े ध्यान से देखना पड़ेगा.”

यह लतीफा जहां सिया को शर्मसार कर गया था, वहीं राघव का चेहरा अपमान से
लाल हो गया था.

जब सिया विदा हो कर राघव के घर आई, तो वहां का माहौल काफी तनावग्रस्त लग रहा था. उड़तीउड़ती बातें सिया के कानों में भी पहुंची थीं कि उस के दोनों बड़े भाइयों ने उन्हें धोखा दिया है. अच्छी शादी की बोल कर अपनी मामूली सी पढ़ीलिखी बहन उन के पल्ले बांध दी थी.

राघव की मम्मी अपनी देवरानी से कह रही थीं, ‘अरे राघव के तो बहुत अच्छेअच्छे पैसे वाले रिश्ते आ रहे थे. बस, थोड़ा कद ही तो छोटा है, नहीं तो लाखों में एक है मेरा बेटा.

‘अरे, मैं क्या अपने बेटे के लिए ऐसी लड़की ले कर आती, जो साधारण ग्रेजुएट हो.’

सिया अपने आंसू जज्ब करे बैठी थी. उसे नहीं पता था कि असलियत क्या है. क्या सच में उस के भाइयों ने
ऐसा किया होगा?

रात में राघव भी सिया से बड़ी रुखाई से पेश आया. उस ने सिया को आंख उठा कर देखा भी नहीं. दूध पीने के बाद राघव सिया से बोला, “जब मैं तुम्हें बौना या अजूबा लगता था, तो किसने कहा था मुझ से विवाह करने के लिए?”

सिया की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. वह हकलाते हुए बोली, “क्या लड़की की कभी राय पूछी जाती है?”

राघव व्यंग्य करते हुए बोला,”तो तुम हकलाती भी हो. जाहिर है, तभी तुम्हारा परिवार तुम्हारे लिए वर खोज नहीं रहा था, बल्कि खरीद रहा था. पर, दाम भी कहां चुकाया उन्होंने मेरा पूरा?”

सिया बोली, “आप अपना गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रहे हैं?”

राघव चिढ़ते हुए बोला, “महारानी, तो फिर मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की तुम ने? किसी लंबे लड़के को खरीद लेते.”

सिया को समझ नहीं आ रहा था कि क्यों राघव उस से ऐसी बात कर रहा है?
जब अधिक और कुछ समझ नहीं आया, तो वह रोने लगी और राघव तकिया उठा कर बराबर में चादर तान कर सो गया था.

सुबह सिया की बड़ी ननद पूजा मीठी मुसकान के साथ चाय की ट्रे ले कर आई और सिया की जवाफूल सी
लाल आंख देख कर सकपका गई.

बस सिया से पूजा इतना ही बोल पाई, “थोड़ा सब्र रखो सिया. सबकुछ ठीक हो जाएगा.”

मगर, सबकुछ ठीक कहां हो पाया था. पगफेरे के लिए जब सिया के भाई नितिन और रौनक आए, तो बात
बहुत बढ़ गई थी.

पूजा ने ही सिया को बताया कि राघव को इस बात का गुस्सा था कि उस के मातापिता ने ही उस से झूठ
बोला था कि सिया ग्रेजुएट जरूर है, मगर वह सिविल सर्विस की तैयारी कर रही है.

राघव को विवाह के दिन
ही पता चला था कि सिया एक घरेलू लड़की है और राघव के परिवार ने अच्छी शादी की एवज में सिया को
चुना था.

सिया की सास कल्पना सिया के परिवार वालों को धोखेबाज और भी ना जाने क्याक्या बोल रही थी. वहीं सिया का भाई नितिन बोला, “आप ने अच्छी शादी कही थी, तो हम ने बजट से बढ़ कर खर्च किया था. आप को अगर कैश चाहिए था, तो मुंह खोल कर बोल देते. हम जेवर, कपड़े पर कम खर्च करते.”

इस पर राघव बोला, “बहन के लिए दूल्हा खरीदने से अच्छा आप उसे ढंग से पढ़ालिखा देते. कम से कम ऐसे मोलतोल तो न करना पड़ता.”

बहरहाल, सिया अपने ससुराल से खोटे सिक्के की तरह वापस भेज दी गई थी.

दोनों भाभियों ने लैक्चर देने आरंभ कर दिए थे. पहले ही पढ़ाई में दिल लगाया होता तो ये नौबत नहीं आती.

सिया कोई अनपढ़ नहीं थी. मगर, उस के पास कोई ऐसी प्रोफेशनल डिगरी नहीं थी, जिस के बलबूते पर उसे
नौकरी मिल सके. ग्रेजुएशन के बाद सिया ने बेकरी, टैक्सटाइल डिजाइनिंग, बेसिक मेकअप जैसे कोर्स अवश्य किए थे. मगर उस के पास कोई ऐसा डिप्लोमा या डिगरी नहीं थी.

सिया को आए हुए 2 महीने बीत गए थे. वह चुपचाप अपने कमरे में घुसी रहती थी. नितिन और रौनक ने
सिया की नामर्जी के बावजूद राघव के ऊपर भरणपोषण, घरेलू हिंसा और तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था.

दोनो भाभियों ने भी अपने पति की हां में हां मिलाते हुए कहा, “ये तो राघव को करना ही पड़ेगा. सिया को उस रूखे और पत्थरदिल इनसान से कुछ नहीं चाहिए था, मगर वो मजबूर थी.”

सिया मन ही मन सोचती, ‘कम से कम एक बार राघव उस से बात तो कर लेता, मगर नहीं. उस ने तो अपनेआप ही उसे मुजरिम करार कर के फैसला सुना दिया था. वह भी उस अपराध के लिए, जो कभी उस ने किया ही नहीं था.’

कोर्ट में केस चल रहा था, हर तारीख के बाद अगली तारीख दे दी जाती थी. भाइयों का जोश और गुस्सा
दोनो ही कम हो गए थे. उधर भाभियों ने भी धीरेधीरे अपने काम सिया की तरफ खिसकाने शुरू कर दिए
थे.

सिया की मां की चिंता बढ़ती जा रही थी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन के बाद सिया का क्या होगा? वो बेटों पर इल्जाम लगाती कि उन्हें रिश्ते से पहले ही खुल कर बात करनी चाहिए थी. बेटे अपनी सफाई में कहते, “मां सबकुछ तो आप से पूछ कर ही किया था. अब आप हमें ही दोषी ठहरा रही हो.

सिया को लगता, मानो उस के कारण ही घर के वातावरण में तनाव रचबस गया है.

ऐसे ही एक दिन सिया के
कारण सिया की भाभी और मां में तूतूमैंमैं हो गई थी.
सिया ने ना जाने क्या सोचते हुए फेसबुक पर राघव को मैसेज कर दिया था, ‘मुझे आप से मिलना है. मैं केस के बारे में कुछ डिस्कस करना चाहती हूं.’

सिया ने एक घंटे बाद देखा कि राघव ने अब तक भी मैसेज नहीं पढ़ा था. उसे लगा शायद वो फेसबुक पर
अधिक आता नही है. तभी उधर से मैसेज आया कि ठीक है, संडे में मिल लेते हैं. टाइम तुम बता देना.

सिया ने मैसेज भेजा, दोपहर 12 बजे रंगोली रेस्तरां में मिलते हैं.’

राघव ने कहा, ‘ठीक है.

सिया ने मैसेज भेजा, ‘और ये मेरा नंबर सेव कर लेना. अगर ढूंढ़ने में दिक्कत हो, तो फोन कर लेना.’

सिया ने कह तो दिया था, मगर अब उसे डर लग रहा था. वह मन ही मन सोच रही थी कि अगर राघव अपने घर वालों के साथ आया, तो उस की अच्छी फजीहत हो जाएगी.

कभी सिया सोचती कि वह वहां जाएगी ही नही. कभी सिया को लगता, अगर राघव उस के मैसेज का स्क्रीन शाट उस के भाइयों को भेज दे, तो ना जाने क्या होगा.

शनिवार की पूरी रात सिया करवट बदलती रही. रविवार में उस ने घर वालों को कह दिया था कि वह एक सहेली
के घर जा रही है लंच पर.

जब सिया तैयार होने लगी, तो उसे समझ ना आया कि वो क्या पहने? पहले मेहरून रंग का पहना तो उसे बेहद तेज रंग लगा, फिर सफेद रंग पहना तो लगा कि कहीं राघव ऐसा न सोचे कि वो उसे खोने का शौक मना रही है. फिर बहुत सोचसमझ कर सिया ने हलके आसमानी रंग का कुरता पहना, साथ में चांदी की बालियां, काली छोटी सी बिंदी और हलका सा मेकअप जो सिया को सौम्यता प्रदान कर रहा था.

जब सिया रंगोली रेस्तरां पहुंची तो राघव पहले से ही बैठा था. सिया को देखते ही वह खड़ा हो गया.

सिया मुसकराते हुए उस के पास आई. दोनों 5 मिनट तक चुपचाप बैठे रहे. दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे आरंभ करें?

तभी वेटर ने आ कर मौन को तोड़ा और मेनू कार्ड दे दिया. राघव ने सिया से कहा कि तुम और्डर कर दो.

सिया ने वेजिटेबल इडली और कोल्ड कौफी और्डर कर दी थी.

राघव गला खंखारते हुए बोला, “आगे क्या सोचा है?”

सिया बोली, “पता नहीं. पहले बहुतकुछ सोचा करती थी, अब कुछ नहीं सोचती हूं.”

राघव बोला, “देखो, हम चाहे कागजों पर ही सही, अभी भी पतिपत्नी ही हैं. तुम्हारे भाइयों ने जो मुझ पर मुकदमे दर्ज किए हैं, सब झूठ हैं.

“क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि वे मुझे बेवजह परेशान कर रहे हैं. उन के कारण मेरी अच्छीखासी नौकरी चली गई है.”

सिया बोली, “राघव, मैं क्या करूं? मेरे भाई ही हैं, जो मेरे साथ खड़े हैं.”

राघव बोला, “तुम्हारे साथ नहीं, अपने अहंकार के साथ खड़े हैं.”

सिया बोली, “कोई तो सहारा चाहिए मुझे?”

राघव आक्रोश में बोला, क्यों? अपाहिज हो क्या? अच्छीखासी हो, दिखती भी ठीकठाक हो.”

सिया बोली, “पर, तुम्हारी तरह पढ़ीलिखी नहीं हूं कि कोई नौकरी कर सकूं.”

राघव बोला, “ग्रेजुएट हो. कुछ न कुछ तो कर सकती हो. मैं ने तो सुना था कि तुम बेहद प्रतिभाशाली हो.”

सिया ने कहा, “मैं ने बेकरी, मेकअप इत्यादि के कोर्स कर रखे हैं, पर इस से मुझे क्या नौकरी मिलेगी?”

राघव ने कहा, “सिया बचपन से मैं अपने छोटे कद के कारण इतना हीनभावना से भर गया था कि पढ़ाई के
अलावा अपने को आगे रखने का मुझे कोई और रास्ता नजर नहीं आया.

“मैं तो बस एक पढ़ीलिखी, प्यार करने वाली साथी चाहता था, मगर मेरे परिवार वालों ने और तुम्हारे परिवार वालों ने मेरी जिंदगी को बरबाद कर दिया है.”

सिया बोली, “तुम सही कह रहे हो, मेरी जिंदगी तो आबाद है.”

राघव बोला, “तुम्हारे साथ तुम्हारा परिवार तो है. मेरे साथ तो कोई भी नहीं है. बिलकुल अकेला पड़ गया हूं. दोस्तों के बीच मजाक बन कर रह गया हूं.

“सब को लगता है कि मेरे छोटे कद के कारण मेरी बीवी भी मुझे छोड़ कर चली गई है.”

सिया बोली, “ये बिलकुल झूठ है. मैं तो पूरे ड्रामा में कठपुतली हूं.”

राघव बोला, “क्यों? हां सिया, उठो और अपने लिए खड़ी होना सीखो.”

जब सिया के घर से फोन आया, तो दोनों को समय का अंदाजा हुआ.

उस मुलाकात के बाद सिया और राघव की अकसर बात होने लगी थी.

सिया को राघव में एक अच्छा दोस्त मिल गया था, वहीं राघव को लगा कि वो सिया के बारे में कितना गलत था.

सिया के पास भले ही इंजीनियरिंग की डिगरी नहीं थी, पर वो बेहद टैलेंटेड थी.

राघव की सलाह पर सिया ने घर से ही बेकिंग क्लासेस शुरू कर दी थी. इनकम कम थी, पर आत्मसम्मान
अधिक था. सिया को ये विश्वास हो गया था कि वो एक स्वतंत्र जीवन जी सकती है. परजीवी की तरह उसे किसी और के सहारे की आवश्यकता नहीं है.

सिया का मन राघव के प्रति झुका जा रहा था, मगर उसे अच्छे से पता था कि वो राघव के लायक नहीं है. उधर राघव जितना सिया से मिलता उतना ही उस की तरफ खिंचा जा रहा था.

राघव ने एक दिन सिया को मैसज किया और लंच के लिए बुलाया. लंच करते हुए राघव हंसते हुए बोला, “सिया, घर पर क्या बोल कर आती हो?”

सिया शर्माते हुए बोली, “सहेली के यहां जा रही हूं.”

राघव फिर थोड़ा रुक कर बोला, “क्या वापस इस रिश्ते को एक मौका देना चाहती हो, अगर तुम्हें ठीक लगे. मैं तुम्हारे बारे में गलत था. तुम बेहद जहीन और टैलेंटेड लड़की हो. क्या मेरी जिंदगी की साथी बनना पसंद करोगी?”

सिया बोली, “राघव, मगर, जो मेरे भाइयों ने केस कर रखा है?”

राघव बोला, “तुम अगर तैयार हो तो बाकी सब मैं संभाल लूंगा.”

सिया ने अपनी मम्मी को जब यह बात बताई, तो वे बोलीं, “तुझे विश्वास है कि राघव तेरा साथ देगा. अभी तो तेरे भाई तेरे साथ खड़े हैं. बाद में अगर कुछ ऊंचनीच हुई तो तू खुद जिम्मेदार है.”

सिया ने फैसला ले लिया था. पहले घर वालों ने बिना उस से पूछे राघव को उस के लिए चुना था. आज उस ने राघव को अपने लिए चुना था.

यह बात सुनते ही सिया के दोनों भाई भड़क उठे थे. मगर, सिया टस से मस नहीं हुई थी.

राघव का परिवार भी इस बात के लिए तैयार नहीं था.
मगर राघव ने किसी की परवाह नहीं की और सिया के घर पहुंच गया था.

दोनों भाइयों के आगे हाथ जोड़ते हुए राघव बोला, “मेरी गलती थी कि मैं ने सिया से बिना बात करे उसे घर भेज दिया था.

“हम दोनों पिछले 5 सालों से वनवास झेल रहे हैं. आज आप मेरी सिया को विदा कर दीजिए, ताकि हम वनवास से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर सकें.”

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें