जानें क्या हैं हैप्पी मैरिड लाइफ के 5 टिप्स

अरेंज्ड या लव, शादी कैसे भी हो, ससुराल में आपसी अनबन, विचारों में मतभेद जैसी शिकायतें घर-घर की कहानी है, क्योंकि हमारे समाज में शादी केवल 2 व्यक्तियों की नहीं, बल्कि 2 परिवारों की होती है, जहां लोग एकदूसरे के विचारों और स्वभाव से अनजान होते हैं.

आजकल लड़कालड़की शादी से पहले मिल कर एकदूसरे को समझ लेते हैं, लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों को समझने का मौका शादी के बाद ही मिलता है. जिस तरह से बहू असमंजस में रहती है कि ससुराल के लोग कैसे होंगे, उसी तरह ससुराल वाले भी बहू के व्यवहार से अनजान रहते हैं. ससुराल में पति के अलावा सासससुर, ननद, देवर, जेठजेठानी सहित कई महत्त्वपूर्ण रिश्ते होते हैं. एक छत के नीचे 4 लोग रहेंगे तो विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है.

आपसी मनमुटाव की वजहें

जैनरेशन गैप, विचारों को थोपना, अधिकार जमाने की मानसिकता, बढ़ती उम्मीदें, पूर्वाग्रह, फाइनैंशियल इशू, बहकावे में आना, प्यार में बंटवारे का डर इत्यादि रिश्तों में मनमुटाव की वजहें होती हैं. कभीकभी तो स्वयं पति भी सासबहू में मनमुटाव का कारण बन जाता है. इन सब के अलावा आजकल सासबहू के रिश्तों पर आधारित टीवी सीरियल भी आग में घी का काम कर रहे हैं. शादीशुदा अंजलि बताती है, ‘‘घर में पति और 2 बच्चों के अलावा सास, ननद, देवर, जेठजेठानी एवं उन के बच्चे हैं. घर में अकसर एकदूसरे के बीच झगड़े व मनमुटाव का माहौल बना रहता है, क्योेंकि सासननद को लगता है कि हम बहुएं केवल काम करने की मशीनें हैं. हमारा हंसनाबोलना उन को कांटे की तरह चुभता है.

स्थिति ऐसी है कि परिवार के सदस्य आपस में बात तक नहीं करते हैं.’’ मुंबई की सोनम कहती हैं, ‘‘मेरी शादी को 1 साल हो गया है. मैं ने देखा है कि मेरे पति या तो अपनी मां की बात सुनते हैं या फिर पूरी तरह से हमारे बीच के मतभेद को नजरअंदाज करते हैं, जोकि मुझे सही नहीं लगता. पति पत्नी और घर के अन्य सदस्यों के बीच एक कड़ी होता है, जो दोनों पक्षों को जोड़ती है. वह भले किसी एक पक्ष का साथ न दे, परंतु सहीगलत के बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए.’’

इसी तरह 50 वर्षीय निर्मला बताती हैं, ‘‘घर में बहू तो है लेकिन वह सिर्फ मेरे बेटे की पत्नी है. उसे अपने पति और बच्चों के अलावा घर में कोई और दिखाई ही नहीं देता है. उन लोगों में इतनी बिजी रहती है कि एकाध घंटा भी हमारे पास आ कर बैठती तक नहीं है, न ही हालचाल पूछती है. उस के व्यवहार या रहनसहन से कभी भी हम खुश नहीं होते, जिस का उस पर कोई असर नहीं होता. बेटियों का हवाला दे कर अकसर उलटा जवाब देती है. ऐसे में उस के होने न होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

नवी मुंबई की आशा कहती हैं, ‘‘मेरे पति हर साल करवाचौथ पर अपनी मां के लिए साड़ी लाते थे. इस साल किसी वजह से नहीं ला पाए तो ‘मैं ने उन्हें अपने वश में कर लिया है,’ कहते हुए सास ने पूरे घर में हंगामा मचा दिया. ससुराल वालों को लगता है कि मैं पैसे कमा कर मायके में देती हूं. शादी के बाद उन का बेटा कम पैसा देता है तो उस के लिए भी मुझे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है.’’ शादी के बाद रिश्तों में आई कुछ ऐसी ही कड़वाहट को कैसे दूर करें कि विवाह बाद भी सदैव खुशहाल रहें, पेश हैं कुछ सुझाव:relationship

कैसे मिटाएं दूरियां: मनोचिकित्सक डा. वृषाली तारे बताती हैं कि संयुक्त परिवार में आपस में मधुरता होनी बहुत जरूरी है. रिश्तों में मिठास बनाए रखने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्यों की होती है. इसलिए परिवार के हर सदस्य को एक समान प्रयास करना चाहिए.

विचारों में पारदर्शिता लाएं: डा. वृषाली के अनुसार, परिवार में एकदूसरे के बीच ज्यादा से ज्यादा कम्यूनिकेशन होना चाहिए, जो डिजिटल न हो कर आमनेसामने हो. दूसरी बात एकदूसरे के विचारों में पारदर्शिता हो, जो किसी भी मजबूत रिश्ते की बुनियाद होती है. उदाहरण के लिए, यदि आप शादी के बाद भी नौकरी करती हैं या कहीं बाहर जाती हैं, तो घर पहुंच कर जल्दी या देर से आने का कारण, औफिस में दिन कैसा रहा जैसी छोटीछोटी बातें घर वालों से शेयर करें. इस से घर का माहौल हलका होने के साथसाथ एकदूसरे पर विश्वास बढ़ेगा. जितना ज्यादा आप इन्फौर्म करेंगी, उतना ही ज्यादा खुद को स्वतंत्र महसूस कर पाएंगी. इस के लिए फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे डिजिटल साधनों का कम से कम इस्तेमाल करें ताकि रिश्तों में गलतफहमी न आए. ऐसा बहू को ही नहीं, बल्कि घर के बाकी सदस्यों को भी करना चाहिए.

मैंटल प्रोटैस्ट से बचें: आजकल सब से बड़ी समस्या यह है कि हम पहले से ही अपने दिमाग में एक धारणा बना चुके होते हैं कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, सास कभी मां नहीं बन सकतीं. ऐसी नकारात्मक सोच को मैंटल प्रोटैस्ट कहते हैं. अकसर देखा जाता है कि बहुओं की मानसिकता ऐसी होती है कि घर पर उस के हिस्से का काम पड़ा होगा. सास, ननद जरूर कुछ बोलेंगी. ऐसी सोच रिश्तों पर बुरा असर डालती है और इसी सोच के साथ लोग रिश्तों में सुधार की कोशिश भी नहीं करते हैं. इसलिए जरूरी है कि इस तरह की नकारात्मक सोच के घेरे से बाहर निकलें और एकदूसरे के बीच बढ़ती दूरियों को कम करें.relationship

काउंसलर की मदद लें: डा. वृषाली तारे कहती हैं कि संयुक्त परिवार में छोटीमोटी नोकझोंक, विचारों में मतभेद आम बात है, जिसे बातचीत, प्यार और धैर्य से सुलझाया जा सकता है और यह तभी संभव है जब आप का शरीर और मन स्वस्थ हो. लेकिन मामला गंभीर है तो घर के सभी लोगों को बिना संकोच काउंसलर की मदद लेनी चाहिए. ज्यादातर रिश्तों में कड़वाहट का कारण मानसिक अस्वस्थता होती है, जिसे लोग नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में जिस तरह से कोई बीमारी होने पर हम डाक्टर की मदद लेते हैं, उसी तरह रिश्तों में आई कड़वाहट और उलझनों को सुलझाने के लिए किसी ऐक्सपर्ट की सलाह लेने में शर्म या संकोच न करें, क्योंकि रिश्तों में स्थिरता और मधुरता लाने की जिम्मेदारी किसी एक सदस्य की नहीं होती है, बल्कि इस के लिए संयुक्त प्रयास होना चाहिए.

रूढि़वादी मानसिकता से बाहर निकलें: विज्ञान और आधुनिकता के समय में रूढि़वादी रीतिरिवाजों से बाहर निकलने की कोशिश करें. घर के सदस्यों के रहनसहन और जीवनशैली में हुए बदलाव को स्वीकार करें, क्योंकि एकदूसरे पर विचारों को थोपने से रिश्तों में कभी मिठास नहीं आ सकती है. सहनशीलता और मानसम्मान देना केवल कम उम्र के लोगों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि बड़े लोगों में भी यह भावना होनी चाहिए. अधिकार जमाने या विचार थोपने से हट कर रिश्तों से ज्यादा व्यक्ति को महत्त्व देंगे तो संबंध अपनेआप खूबसूरत बन जाएंगे. जाहिर सी बात है कि रिश्तों में खुलापन और अपनापन आने में वक्त लगता है, परंतु रिश्ते यों ही नहीं बनते हैं. इस के लिए संस्कार और परवरिश तो माने रखते ही है, कभीकभी सही वक्त पर सही सोच भी बहुत जरूरी होती है.

बड़ी लकीर छोटी लकीर

ढोलककी थाप रह-रह कर मेरे कानों में चुभ रही थी. कल ही तो खबर आई थी कि मैं ने शेयर बाजार में जो पैसा लगाया है वह सारा डूब गया. कहां तो मैं एक बड़ी लकीर खींच कर एक लकीर को छोटा करना चाहता था और कहां मेरी लकीर और छोटी हो गई.

तभी शिखा मुसकराती हुई आई और मेरे हाथ में गुलाबजामुन की प्लेट पकड़ा कर बोली, ‘‘खाओ और बताओ कैसे बने हैं?’’

मैं उसे और बोलने का मौका नहीं देना चाहता था, इसलिए बेमन से खा कर बोला, ‘‘बहुत अच्छे.’’

मगर उसी दिन पता चला कि किसी भी व्यंजन का स्वाद उस के स्वाद पर नहीं उसे किस नीयत से खिलाया जाता है उस पर निर्भर करता है.

शिखा बोली, ‘‘अनिल जीजा और नीतू

दीदी की मुंबई के होटल की डील फाइनल हो

गई है. उन्होंने ही सब के लिए ये गुलाबजामुन मंगाए हैं.’’

सुनते ही मुंह का स्वाद कड़वा हो गया. यह लकीरों का खेल बहुत पहले से शुरू हो गया था, शायद मेरे विवाह के समय से ही. मेरा नाम सुमित है, शादी के वक्त में 24 वर्षीय नौजवान था, जिंदगी और प्यार से भरपूर. मेरी पत्नी शिखा बहुत प्यारी सी लड़की थी. उसे अपनी जिंदगी में पा कर मैं बहुत खुश था. सच तो यह था कि मुझे यकीन ही नहीं था कि इतनी सुंदर और सुलझी हुई लड़की मेरी पत्नी बनेगी. पर विवाह के कुछ माह बाद शुरू हो गया एक खेल. पता नहीं वह खेल मैं ही खेल रहा था या दूसरी तरफ से भी हिस्सेदारी थी.

मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब मैं पहली बार ससुराल गया था. मेरी बड़ी साली के पति हैं अनिल. चारों तरफ उन का ही बोलबाला था.

‘‘अनिल अभी भी एकदम फिट है. इतना युवा लगता है कि घोड़ी पर बैठा दो,’’ यह शिखा की मौसी बोल रही थीं.

पता नहीं हरकोई क्यों बस बहू के बारे में ही कहानियां लिखता है. एक दामाद के दिल में भी धुकधुक रहती है कि कैसे वह अपने सासससुर और परिवार को यकीन दिलाए कि वह उन की राजकुमारी को खुश रखेगा और मेरे लिए तो यह और भी मुश्किल था, क्योंकि मुझे तो एक लकीर की माप में और बड़ी लकीर खींचनी थी. मेरा एक काबिल पति और दामाद बनने का मानदंड ही यह था कि मुझे अनिल से आगे नहीं तो कम से कम बराबरी पर आना है.

आप सोच रहे होंगे, कैसी पत्नी है मेरी या कैसी ससुराल है मेरी. नहीं दोस्तो कोई मुंह से कुछ नहीं बोलता पर आप को खुद ही यह महसूस होता है, जब आप हर समय बड़े दामाद यानी अनिल के यशगीत सुनते हो.

मैं पता नहीं क्यों इतनी कोशिशों के बाद भी वजन कम नहीं कर पा रहा था. उस दिन अनिल अपनी पत्नी के साथ हमारे घर आया था. मजाक करते हुए बोला, ‘‘सुमित, तुम थोड़ा कपड़ों पर ध्यान दो. यह वजन घटाना तुम्हारे बस की बात नहीं है.’’

उस की पत्नी नीतू भी मंदमंद मुसकरा रही थी और मेरी पत्नी शिखा को अपने हीरे के मोटेमोटे कड़े दिखा रही थी. मेरे अंदर उस रोज कहीं कुछ मर गया. शर्म आ रही थी मुझे. शिखा अपनी सब बहनों में सब से सुंदर और समझदार है पर मुझ से शादी कर के क्या सुख पाया. न मैं शक्ल में अच्छा हूं और न ही अक्ल में. फिर मैं ने लोन ले कर एक घर ले लिया. मेरी सास भी आईं पर जैसे मैं ने सोचा था उन्होंने वही किया.

शिखा के हाथों में उपहार देते हुए बोलीं, ‘‘सुमित, क्या अनिल से सलाह नहीं ले सकता था? कैसी सोसाइटी है और जगह भी कोई खास नहीं है.’’

शिखा के चेहरे पर वह उदासी देख कर अच्छा नहीं लगा. खुद को बहुत बौना महसूस कर रहा था. फिर शिखा की मम्मी पूरा दिन अनिल के बंगले का गुणगान करती रहीं. मुझे ऐसा लगा कि मैं तो शायद उस दौड़ में भाग लेने के भी काबिल नहीं हूं.

दिन बीतते गए और हफ्तों और महीनों में परिवर्तित होते गए. दोस्तो आप सोच रहे होंगे, गलती मेरी ही है, क्योंकि मैं इस तुलनात्मक खेल को खेल कर अपने और अपने परिवार को दुख दे रहा था. आप शायद सही बोल रहे होंगे पर तब कुछ समझ नहीं आ रहा था.

शिखा बहुत अच्छी पत्नी थी, कभी कुछ नहीं मांगती. मेरे परिवार के साथ घुलमिल कर रहती, पर उस का कोई भी शिकायत न करना मुझे अंदर ही अंदर तोड़ देता. ऐसा लगता मैं इस काबिल भी हूं…

आज मैं जब दफ्तर से आया तो शिखा बहुत खुश लग रही थी. आते ही उस ने मेरे हाथ में एक बच्चे की तसवीर पकड़ा दी. समझ आ गया, हम 2 से 3 होने वाले हैं. अनिल का फोन आया मेरे पास बधाई देने के लिए पर फोन रखते हुए मेरा मन कसैला हो उठा था. वह तमाम चीजें बता रहा था जो मेरी औकात के परे थीं. वह वास्तव में इतना भोला था या फिर हर बार मुझे नीचा दिखाता था, नहीं मालूम, मगर मैं जितनी भी अपनी लकीर को बड़ा करने की कोशिश करता वह उतनी ही छोटी रहती.

अनिल के पास शायद कोई पारस का पत्थर था. वह जो भी करता उस

में सफल ही होता और मैं चाह कर भी सफल नहीं हो पा रहा था.

जैसेजैसे शिखा का प्रसवकाल नजदीक आ रहा था मेरी भी घबराहट बढ़ती जा रही थी. मेरी मां तो हमारे साथ रहती ही थीं पर मैं ने खुद ही पहल कर के शिखा की मां को भी बुला लिया. मुझे लगा शिखा बिना झिझक के अपनी मां को सबकुछ बता सकेगी पर मुझे नहीं पता था यह उस के और मेरे रिश्ते के लिए ठीक नहीं है.

शिखा अपनी मां के आने से बहुत खुश थी. 1 हफ्ते बाद की डाक्टर ने डेट दी थी. शिखा की मां उस के साथ ही सोती थीं. पता नहीं वे रातभर मेरी शिखा से क्या बोलती रहती थीं कि सुबह शिखा का चेहरा लटका रहता. मैं गुस्से और हीनभावना का शिकार होता गया.

मुझे आज भी याद है अन्वी के जन्म से 2 रोज पहले शिखा बोली, ‘‘सुमित, हम भी एक नौकर रख लेंगे न बच्चे के लिए.’’

मैं ने हंस कर कहा, ‘‘क्यों शिखा, हमारे घर में तो इतने सारे लोग हैं.’’

शिखा मासूमियत से बोली, ‘‘अनिल जीजाजी ने भी रखा था, करिश्मा के जन्म के बाद.’’

खुद को नियंत्रित करते हुए मैं ने कहा, ‘‘शिखा वे अकेले रहते हैं पर हमारा पूरा परिवार है. तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

मगर अनिल का जिक्र मुझे बुरी तरह खल गया. शिखा कुछ और बोलती उस से पहले ही मैं बुरी तरह चिल्ला पड़ा. उस की मां दौड़ी चली आईं. शिखा की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. मैं उसे कैसे मनाता, क्योंकि उस की मां ने उसे पूरी तरह घेर लिया था. मुझे बस यह सुनाई पड़ रहा था, ‘‘हमारे अनिल ने आज तक नीतू से ऊंची आवाज में बात नहीं करी.’’

मैं बिना कुछ खाएपीए दफ्तर चला गया. पूरा दिन मन शिखा में ही अटका रहा. घर आ कर जब तक उस के चेहरे पर मुसकान नहीं देखी तब तक चैन नहीं आया.

10 मई को शिखा और मेरे यहां एक प्यारी सी बेटी अन्वी हुई. शिखा का इमरजैंसी में औपरेशन हुआ था, इसलिए मैं चिंतित था पर शिखा की मां ने शिखा के आगे कुछ ऐसा बोला जैसे मुझे बेटी होने का दुख हुआ हो. कौन उन्हें समझाए अन्वी तो बाद में है, पहले तो शिखा ही मेरे लिए बहुत जरूरी है.

मैं हौस्पिटल में कमरे के बाहर ही बैठा था. तभी मेरे कानों में गरम सीसा डालती हुई एक आवाज आई, ‘‘हमारे अनिल ने तो करिश्मा के होने पर पूरे हौस्पिटल में मिठाई बांटी थी.’’

मैं खिड़की से साफ देख रहा था. शिखा के चेहरे पर एक ऐसी ही हीनभावना थी जो मुझे घेरे रहती थी. शिखा घर आ गई पर अब ऐसा लगने लगा था कि वह मेरी बीवी नहीं है, बस एक बेटी है. रातदिन अनिल का बखान और गुणगान, मेरे साथसाथ मेरे घर वाले भी पक गए और उन को भी लगने लगा शायद मैं नकारा ही हूं. घर के लोन की किस्तें और घर के खर्च, मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. फिर मैं ने कुछ ऐसा किया जहां से शुरू हुई मेरे पतन की कहानी…

मैं ने इधरउधर से क्व1 लाख उधार लिए और बहुत बड़ा जश्न किया. शिखा के लिए भी एक बहुत प्यारी नारंगी रंग की रेशम के काम की साड़ी ली. उस में शिखा का गेहुआं रंग और निखर रहा था. उस की आंखों में सितारे चमक रहे थे और मुझे अपने पर गर्व हो रहा था.

फिर किसी और से उधार ले कर मैं ने पहले व्यक्ति का उधार चुकाया और फिर यह धीरेधीरे मेरी आदत में शुमार हो गया.

मेरी देनदारी कभी मेरी मां तो कभी भाई चुका देते. शिखा और अन्वी से सब प्यार करते थे, इसलिए उन तक बात नहीं पहुंचती थी.

ऐसा नहीं था कि मैं इस जाल से बाहर नहीं निकलना चाहता था पर जब सब खाक हो जाता है तब लगता है काश मैं पहले शर्म न करता या शिखा से पहले बोल पाता. मैं एक काम कर के अपनी लकीर को थोड़ा बढ़ाता पर अनिल फिर उस लकीर को बढ़ा देता.

यह खेल चलता रहा और फिर धीरेधीरे मेरे और शिखा के रिश्ते में खटास आने लगी.

शिखा को खुश करने की कोशिश में मैं कुछ भी करता पर उस के चेहरे पर हंसी न ला पाता. शिखा के मन में एक अनजाना डर बैठ गया था. उसे लगने लगा था मैं कभी कुछ भी ठीक नहीं कर सकता या मुझे ऐसा लगने लगा था कि शिखा मेरे बारे में ऐसा सोचती है.

अन्वी 2 साल की हुई और शिखा ने एक दफ्तर में नौकरी आरंभ कर दी. मुझे काफी मदद मिल गई. मैं ने नौकरी छोड़ कर व्यापार की तरफ कदम बढ़ाए. शिखा ने अपनी सारी बचत से और मेरी मां ने भी मेरी मदद करी.

2-3 माह में थोड़ाथोड़ा मुनाफा होने लगा. उस दौड़ में पहला स्थान प्राप्त करने के चक्कर में मैं शायद सहीगलत में फर्क को नजरअंदाज करने लगा. थोड़ा सा पैसा आते ही दिलखोल कर खर्च करने लगा. अचानक एक दिन साइबर सैल से पुलिस आई जांच के लिए. पता चला कि मेरी कंपनी के द्वारा कुछ ऐसे पैसे का लेनदेन हुआ है जो कानून के दायरे में नहीं आता है. एक बार फिर से मैं हाशिए पर आ खड़ा हो गया. जितना कामयाब होने की कोशिश करता उतनी ही नाकामयाबी मेरे पीछेपीछे चली आती.

शिखा ने कहा कि मैं कभी भी उस के या अन्वी के बारे में नहीं सोचता. हमेशा सपनों की दुनिया में जीता हूं.

शायद वह अपनी जगह ठीक थी पर उसे यह नहीं मालूम था कि मैं सबकुछ उसे और अन्वी को एक बेहतर जिंदगी देने के लिए करता हूं. पर क्या करूं मैं ऊपर उठने की जितनी भी कोशिश करता उतना ही नीचे चला जाता हूं. हमारे रिश्ते की खाई गहरी होती गई. हम पतिपत्नी का प्यार अब न जाने कहां खोने लगा.

यह सोचता हुआ मैं वर्तमान में लौट आया हूं.

कल शिखा की छोटी बहन की शादी है. सभी रिश्तेदार एकत्रित हुए हैं. न जाने क्या सोच कर मैं शिखा के लिए अंगूठी खरीद ले आया. सब लोग शिखा की अंगूठी की तारीफ कर रहे थे और मैं खुशी महसूस कर रहा था. वह अलग बात है, मैं इन पैसों से पूरे महीने का खर्च चला सकता था.

तभी देखा कि नीतू सब को अपना कुंदन का सैट दिखा रही है जो उस ने खासतौर पर इस शादी में पहनने के लिए खरीदा था. मुझे अंदर से आज बहुत खालीखाली महसूस हो रहा था. मैं इन लकीरों के खेल में उलझ कर आज खुद को बौना महसूस कर रहा हूं.

बरात आ गई थी. चारों तरफ गहमागहमी का माहौल था. तभी अचानक पीछे से किसी ने आवाज लगाई. मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया.

मेरे सामने भावना खड़ी थी. भावना और मैं कालेज के समय बहुत अच्छे मित्र थे या यों कह सकते वह और मैं एकदूसरे के पूरक थे. प्यार जैसा कुछ था या नहीं, नहीं मालूम पर उस के विवाह के बाद बहुत खालीपन महसूस हुआ. भावना जरा भी नहीं बदली थी या यों कहूं पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. वही बिंदासपन, बातबात पर खिलखिलाना.

मुझे देखते ही बोली, ‘‘सुमि, क्या हाल बना रखा है… तुम्हारी आंखों की चमक कहां गई?’’

मैं चुपचाप मंदमंद मुसकराते हुए उसे एकटक देख रहा था. मन में अचानक यह

खयाल आया कि काश मैं और वह मिल कर

हम बन जाते.

भावना चिल्लाई, ‘‘यह क्या मैं ही बोले जा रही हूं और तुम खोए हुए हो?’’

हम गुजरे जमाने में पहुंच गए. 3 घंटे 3 मिनट की तरह बीत गए. होश तब आया जब शिखा अन्वी को ले कर आई और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें सब वहां ढूंढ़ रहे हैं.’’

मैं ने उन दोनों का परिचय कराया और फिर शिखा के साथ चला गया. पर मन वहीं भावना के पास अटका रह गया. जयमाला के बाद फिर से भावना से टकरा गया.

भावना निश्छल मन से शिखा से बोली, ‘‘शिखा, आज की रात तुम्हारे पति को चुरा रही हूं… हम दोनों बरसों बाद मिले हैं… फिर पता नहीं मिल पाएं या नहीं.’’

ये सब सुन कर मुझे पता लग गया था कि मैं अब भावना का अतीत ही हूं और शायद उस ने कभी मुझे मित्र से अधिक अहमियत नहीं दी थी. यह तो मैं ही हूं जो कोई गलतफहमी पाले बैठा था.

फिर भावना कौफी के 2 कप ले आई. मुसकराते हुए बोली, ‘‘चलो हो जाए कौफी

विद भावना.’’

मैं भी मुसकरा उठा. मैं ने औपचारिकतावश उस से उस के घरपरिवार के बारे में पूछा. उस से बातचीत कर के मुझे आभास हो गया था कि मेरी सब से प्यारी मित्र अपनी जिंदगी में बहुत खुश है पर यह क्या मुझे सच में बहुत खुशी हो रही थी?

भावना ने मुझ से पूछा, ‘‘और सुमि तुम्हारी कैसी कट रही है? बीवी तो तुम्हारी बहुत प्यारी है.’’

उस के आगे मैं कभी झूठ न बोल पाया था तो आज कैसे बोल पाता. अत: मैं ने उसे अपना दिल खोल कर दिखा दिया. मैं ने उस से कहा, ‘‘भावना, मैं क्या करूं… मैं हार गया यार… जितनी कोशिश करता हूं उतना ही नीचे चला जाता हूं.’’

भावना बोली, ‘‘सुमित, कभी शिखा से ऐसे बात की जैसे तुम ने आज मुझ से करी है?’’

मैं ने न में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘फिर हर समय इन लकीरों के खेल में उलझे रहना… पति न जाने क्यों अपनी पत्नियों को बेइंतहा प्यार करने के बावजूद उन्हें अपने दर्द से रूबरू नहीं करा पाते हैं. तुम पहले इंसान नहीं हो जो ऐसा कर रहे हो और न ही तुम आखिरी हो, पर सुमित तुम खुद इस के जिम्मेदार हो… इन लकीरों के खेल में तुम खुद उलझे हो… अपना सब से प्यारा दोस्त समझ कर यह बता रही हूं कि अपनी तुलना अगर दूसरों से करोगे तो खुद को कमतर ही पाओगे. सुमि, बड़ी लकीर अवश्य खींचो पर अपनी ही अतीत की छोटी लकीर के अनुपात में… तुम्हें कभी निराशा नहीं होगी. जैसे मछली जमीन पर नहीं रह सकती वैसे ही पंछी भी पानी में नहीं रह पाते. सुमि, शायद तुम एक मछली हो जो उड़ने की कोशिश कर रहे हो.

‘‘फिर बोलो गलती किस की है, तुम्हारी, शिखा या अनिल की?

‘‘दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं…

‘‘शिखा की मां हो या तुम्हारी सब अपनेअपने ढंग से चीजों को देखेंगे पर यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम कैसे अपने रिश्ते निभाते हो.

‘‘जैसे एक बहू को शादी के बाद अपने नए परिवार में तालमेल बैठाना पड़ता है

वैसे ही एक पुरुष को भी शादी के बाद सब से तालमेल बैठाना पड़ता है पर इस बात को एक पति, दामाद अकसर नजरअंदाज कर देते हैं… अनिल से अपनी तुलना करने के बजाय उस से कुछ सीखो और मुझे यकीन है तुम्हारे अंदर भी ऐसे गुण होंगे जो अनिल ने तुम से सीखे होंगे. नकारात्मकता को अपने और शिखा के ऊपर हावी न होने दो. जैसे तुम खुद को देखोगे वैसे ही दूसरे लोग तुम्हें देखेंगे.

‘‘यह उम्मीद करती हूं कि अगली बार फिर कभी जीवन के किसी मोड़ पर टकरा गए तो फिर से अपने पुराने सुमि को देखना चाहूंगी,’’ कह भावना चली गई.

मैं चुपचाप उसे सुनता रहा और फिर मनन करने लगा कि शायद भावना सही बोल रही है. लकीरों के खेल में उलझ कर मैं खुद ही हीनभावना से ग्रस्त हो गया हूं. शायद अब समय आ गया है हमेशा के लिए इस खेल को खत्म करने का पर इस बार अपनी शिखा को साथ ले कर मैं अपनी जिंदगी की एक नई लकीर बनाऊंगा बिना किसी के साथ तुलना कर के और फिर कभी भावना से टकरा गया तो अपनी जिंदगी के नए सफर की कहानी सुनाऊंगा.

रोमांस के रंग, श्रीमतीजी के संग

फिल्मों में बरसात में झीने कपड़ों में भीगती, इठलाती, हीरो के साथ नाचतीगाती हीरोइन को देख कर हमारी श्रीमतीजी मचल उठती हैं और हमें भी मचलने को मजबूर कर देती हैं. यों तो हमारी श्रीमतीजी बहुत रंगीली हैं, लेकिन खासतौर पर जब मौसम हरियाला, बरसाती और रंगीला हो तब उन का रोमांटिक होना और भी बढ़ जाता है.

एक बार बरसात की रात को हमारी श्रीमतीजी मचल उठीं और हमें नींद से उठाते हुए बोलीं, ‘‘सुनो जी, मौसम में बहार है, मुझे तुम से प्यार है.’’

हम ने उनींदे स्वर में कहा, ‘‘तो?’’

श्रीमतीजी ने कहा, ‘‘ऐसे मौसम में भला किस को नींद आती है?’’

हम ने कहा, ‘‘कल औफिस जाना है, बहुत सारे काम निबटाने हैं.’’

श्रीमतीजी ने रोमांटिक होते हुए कहा, ‘‘कभी तो लिया करो, पिया प्यार का नाम.’’

हम ने थोड़ा परेशान होते हुए कहा, ‘‘प्यार से पेट तो भरता नहीं.’’

श्रीमतीजी ने इठलाते हुए कहा, ‘‘काम तो जिंदगी भर का है, पर ऐसा मौसम बारबार नहीं आता.’’

इस बार श्रीमतीजी की रोमांटिक अदा पर हम फिसल गए और श्रीमतीजी का हाथ पकड़ कर रात को 1 बजे बरसते पानी में घर की छत पर आ गए. चारों तरफ घोर अंधकार छाया हुआ था और पूरा शहर बरसात में नहाया हुआ था.

अब श्रीमतीजी गाना गाती जा रही थीं और हम से भी ऐक्टिंग करने को कह रही थीं. पहला गाना उन्होंने गाया :

आग लगी पानी में…

फिर

आज फिसल जाएं तो…

इस के बाद

जिंदगी भर नहीं भूलेगी ये बरसात

की रात…

हर गाने के बाद उन की आवाज तेज होती जा रही थी और वे फ्री ऐक्शन वाली होती जा रही थीं.

छत पर जब हम दोनों नाच रहे थे, तभी चौकीदार वहां से गुजरा. उसे लगा कि छत पर कोई चोर चढ़ा है, इसलिए उस ने छत पर टौर्च की रोशनी फेंकते हुए जोर से सीटी बजाई. हमें डर लगा कि कहीं कोई नया लफड़ा न हो जाए, इसलिए हम ने श्रीमतीजी से नीचे चलने के लिए कहा. लेकिन जब वे चलने को तैयार नहीं हुईं तब हम ने बरसते पानी में उन्हें नीचे बैठा लिया. थोड़ी देर बाद चौकीदार आगे निकल गया.

अब बरसात और तेज हो गई थी. श्रीमतीजी ने बैठेबैठे ही हमारे सीने पर अपना सिर रख दिया और बोलीं, ‘‘आज कुछ ऐसा हो कि यह वक्त यहीं ठहर जाए. पानी बरसता रहे और हम दोनों यों ही पानी में भीगते रहें,’’ इसी के साथ वे जोर से हंस दीं.

तभी पड़ोसी के घर की लाइट जली और उस ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘अरे, जो भी करना है चुपचाप करो, यह शरीफों का महल्ला है.’’

हम फिर सहम गए.

रात की झीनीझीनी रोशनी में झीनेझीने कपड़ों में भीगी श्रीमतीजी किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही थीं. सच में हम ने उन को इतना सुंदर पहले कभी नहीं देखा था.

तभी एक बिल्ली कहीं से आ कर छत पर कूद गई और श्रीमतीजी डर कर हम से चिपकने के लिए भागीं तो उन के पैर में मोच आ गई. वे दर्द से तिलमिला गईं. इसी के साथ उन्हें 2-3 छींकें आ गईं.

अब उन से चलते भी नहीं बन रहा था. इसलिए पूरा रोमांस उड़ गया था. हम ने कहा कि हमारे कंधे पर हाथ रख दो और सहारा ले कर नीचे चलो.

लेकिन वे बोलीं, ‘‘जरा सी तकलीफ हुई तो दूर भागने लगे. पूरी जिंदगी क्या खाक साथ निभाओगे. अरे गोद में उठा कर नहीं ले जा सकते क्या?’’

हमें लगा कि रोमांटिक मूड को खराब नहीं किया जाए, इसलिए उन्हें गोद में उठाया और नीचे कमरे में ले आए. तब तक उन्हें 4-5 छींकें और आ गईं.

अब श्रीमतीजी फिल्मी स्टाइल में बोलीं, ‘‘थोड़ी आगवाग जलाओ, चाय का इंतजाम करो.’’

हमारे घर आग जलाना मुमकिन था नहीं, इसलिए हीटर जला दिया. तब तक श्रीमतीजी का पैर सूज कर डबलरोटी हो गया था और बुखार भी आ गया था.

सुबह जब डाक्टर ने निमोनिया बताया और लंबाचौड़ा इलाज करने की बात कही. हमें औफिस से छुट्टी लेनी पड़ी.

तभी कामवाली रमिया आई और बोली, ‘‘साहबजी आप की छत पर रात को 2 चोर चढ़े थे. चौकीदार आ कर बोला, तो मैं भी टौर्च ले कर पड़ोसी की छत पर चढ़ गई…’’

श्रीमतीजी ने जिज्ञासा से कहा, ‘‘फिर क्या हुआ, चोर पकड़े गए क्या?’’

रमिया ने शरमाते हुए कहा, ‘‘पर आप को और मेमसाहब को देख कर वापस लौट आई.’’

मैं ने बनते हुए आश्चर्य से कहा, ‘‘पर हम लोगों को तो कुछ मालूम ही नहीं हुआ कि क्या हुआ.’’

इस पर रमिया ने इठलाते हुए कहा, ‘‘अरे साहब क्यों अनजान बनते हो. अरे, मेमसाहब के पैर में मोच, सर्दी, बुखार यह सब क्या कम है. आप लोगों के छत पर फिल्मी स्टाइल में मस्ती करने पर हमारे इलाके के तो 8-10 लोग डंडे ले कर इकट्ठे हो गए थे. तब मैं ने उन्हें समझाया.’’

जब हम अंदर के कमरे में श्रीमतीजी के लिए पानी लेने गए, तब पीछेपीछे रमिया बाई भी आ गई और बोली, ‘‘सच बताना साहब, कैसा लगा बरसते पानी में छत पर? अरे, हम लोगों की झुग्गी में छत तो होती नहीं और झुग्गी के बाहर निकलो तो कुत्ते दम नहीं लेने देते.’’

मैं कुछ कहता इस के पहले ही श्रीमतीजी लंगड़ाते हुए आईं और बोलीं, ‘‘अरी ओ जासूस, तू काम से काम रख समझी न.’’

रमिया बाई ने भी गुस्से से कहा, ‘‘ओ मेमसाहब, एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी. अरे मैं ने तुम्हें बचाया, नहीं तो अभी तक एक पुलिस थाने में होतीं. और ये आंखें किसी और को दिखाना. अब रमिया बाई इस घर में काम नहीं करेगी.’’

श्रीमतीजी ने भी कह दिया, ‘‘हांहां जा, वैसे भी अभी तेरी जरूरत नहीं है. साहब छुट्टी पर हैं. वे सब काम कर लेंगे. जब महीने 2 महीने में तेरा गुस्सा उतर जाए तब आ जाना.’’

हम सोच रहे थे, श्रीमतीजी की तो चित भी मेरी और पट भी मेरी और जो कुछ भुगतना है वह हम भुगतें. हम घबरा गए. यानी अब श्रीमतीजी की सेवा के साथसाथ घर के काम भी निबटाने होंगे. यह सोच कर हमें भी बुखार आने लगा.

रमिया बाई श्रीमतीजी को आंखें दिखाते हुए घर से बाहर हो गई. लेकिन श्रीमतीजी बरसात के मौसम का आनंद लेते हुए अब खटिया पर पड़ेपड़े ही गाना गुनगुनाने लगीं- रिमझिम बरसे पानी…

और हम बरसात का लुत्फ श्रीमतीजी के संग उन की सेवा और घर के काम करते हुए उठा रहे थे.

लौट आओ मौली: एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

‘‘फिरसे 104…’’ मलय का माथा छूते हुए बड़ी बहन हिमानी ने थर्मामीटर एक ओर रख दिया, भीगे कपड़े की पट्टियां फिर से रखनी शुरू कर दीं.

‘‘पता नहीं इस का फीवर क्यों बढ़ रहा है… उतरने का नाम ही नहीं ले रहा. मलय भी इतना जिद्दी है कि डाक्टर के पास नहीं जाता,’’ हिमानी बड़बड़ा रही थी.

‘‘ठीक हो जाएगा न, करना ही क्या है…’’ मलय ने बहन हिमानी को धीरे से बोल कर समझाया.

‘‘देखी नहीं जा रही तेरी हालत. धंसीधंसी आंखें, एकदम कमजोर शरीर… मालूम है मौली का जाना तुझे सहन नहीं हो रहा. खुद ही तो कांड किया है बिना किसी को पूछे, बिना बताए तलाक तक ले डाला. पूरे 7 साल तुम दोनों साथ रहे. क्या हुआ जो मातापिता नहीं बन पाए, 2 बार गर्भपात हुआ था उस का. किसी बच्चे को गोद न लेने का भी निर्णय तुम्हारा ही था. मांपापा थे तब तक सब ठीक था. थोड़ीबहुत नोकझोंक होती थी. पर उन के जाते ही जाने क्या हो गया घर को…

‘‘मैं समझती नहीं क्या कि उस के साथ बोलनेबतियाने वाला कोई नहीं रह गया… तू तो वैसे भी कम बोलता है. बेचारी ने ऊब से बचने के लिए टीचिंग करनी शुरू कर दी और घर पर ट्यूशन लेना भी शुरू कर दिया. तुझे दोनों ही रास नहीं आए. तुझे लगा वह पैसों के लिए नौकरी कर रही है. तेरे अहं को ठेस लगी कि मैं भरपूर कमा कर देता नहीं. मैं तेरे दकियानूसी विचारों को जानती नहीं क्या?… मांबाप तेरे ही नहीं गए, उस ने भी दोबारा मातापिता का साया खोया. बहुत प्यार था उसे उन से.

‘‘तेरा गुस्सा भी अच्छी तरह जानती हूं. उस पर चिल्लाता होगा. अकेली,

पढ़ीलिखी, सोशल, संयुक्त परिवार की लड़की करती भी क्या? किसी से उस का मिलनाजुलना तुझे पसंद नहीं आ रहा था, न ही किसी का आनाजाना. अब जब वह चली गई तब भी चैन नहीं आ रहा. बीमार हो गया. उस का भी जाने क्या हाल होगा.’’

‘‘बस करो, सिर बहुत दुख रहा है. ऐसा कुछ भी नहीं…मुझे क्या परेशानी, वह जहां चाहे जिस के साथ चाहे रहे मेरी बला से. मुझ से जान तो छूटी उस की. कहती थी कि मरोगे तो कोई पूछने वाला भी न होगा. वह यही चाहती थी. आप उस की तरफदारी कर रही हो… मर ही तो जाऊंगा इस से ज्यादा क्या होगा.’’

‘‘तेरी जरा सी तबियत खराब होने पर कैसे टपटप आंसू गिरने लगते थे उस के. तुझे जरा सी चोट लगने पर उस का चेहरा सफेद पड़ जाता था. मां के आपरेशन के समय भी कितना रोई थी. बेहोश भी हो गई थी. फिर तो उन के पास ही चिपकी बैठी रही. उन का वह सारा काम किया जो हम भी मुश्किल से कर पाते. उस ने बिना नाकभौं सिकोड़े अपनेपन से किया… ऐसे कैसे छोड़ कर, सारे रिश्ते तोड़ कर चली गई…

‘‘कोई तो नंबर दे ताकि उस से बात हो सके… ऐसे कैसे सब ने नंबर ब्लौक कर दिया… उस की पक्की सहेली स्वरा से तो तू भी बात करता था. उस का तो नंबर होगा… दे,’’ हिमानी खुद ही उस के मोबाइल में मौली नंबर ढूंढ़ने लगी.

‘‘अब कोई फायदा नहीं दी, उसी ने बताया कि शशांक से शादी कर वह कनाडा चली गई,’’ उस की आंखें ढपी जा रहीं थीं.

2 साल ही तो बड़ी थी हिमानी. उस की शादी के 5 साल बाद मलय की शादी हुई थी. मौली घर में रचबस गई. सब खुश थे. अचानक एक दिन मां को हार्ट अटैक हुआ, इतना तीव्र था कि वह चल ही बसीं, पहले मां गईं फिर पापा, शुगर के मरीज थे. हम दोनों का बचपन इसी घर में बीता. पुराने प्यार करने वाले सब लोग चले गए. मलय यादों के साथ अकेला रह गया. मौली और मलय का स्वभाव एकदूसरे के विपरीत था.

मलय धीरगंभीर और मौली चुलबुली. एकदूसरे को पूरा समझने में वक्त तो लगता ही है, पर अवसाद भरे मलय के मन ने उसे मौका न दिया.

जहां मलय अंतर्मुखी था, वहीं मौली मस्तमौला और सब से मिलनेजुलने वाली. मांपापा के निर्देश पर घर का सारा काम निबटा कर थोड़ी देर को बाहर चली जाती. कुछ बाहर के काम भी कर आती. उस ने आसपास के सभी लोगों से दोस्ती कर ली थी. कभी उन के घर चली जाती तो कभी उन को बुला लेती. रिटायर्ड मांपापा उसे बेटी जैसी ही मानते. उन का दिल भी लगा रहता. पर मांपापा के जाने के बाद वही सब अब मलय को शोर लगने लगा था. वह चिढ़ने लगा था. मौली उस के जैसी अचानक तो नहीं हो जाती. कभी मां के जैसे खाने के स्वाद के लिए खीजता तो कभी खाली समय में उस के गप्पें मारने से उसे गुरेज होता.

बचपन का साथी शशांक एक दिन मौली से अचानक टकरा गया. चौथी कक्षा से 12वीं कक्षा तक उन्होंने साथ ही पढ़ाई की थी. पढ़ाई में बस ठीकठाक ही था, सब से मदद ले लेता. मौली से तो अकसर ही, क्योंकि मौली का काम हमेशा पूरा रहता. पर वह था एक नंबर का हंसोड़, चुटकलेबाज. क्लास में टीचर के आने के पहले और जाने के बाद शुरू हो जाता. आज भी वह बिलकुल बदला नहीं था. चेहरे पर वही शरारत, वही डीलडौल… बस एक फुट लंबा अवश्य हो गया था. फ्रैंच कट दाढ़ी भी रख ली थी. मौली को पहचानने में एक सैकंड ही लगा होगा…

‘‘अरे शशांक तुम यहां… पहचाना…?’’

‘‘अरे… तुम… मौली,’’ वैवाहिक स्त्री के रूप में सजी मौली को ऊपर से नीचे देखता हुआ वह हंस पड़ा.

‘‘मुझे तो स्कर्टब्लाउज, 2 चोटी वाला, रूमाल से नाक पोंछता रूप ही याद आ रहा है. हा हा… तो शादी कर ली तुम ने हा हा…’’

‘‘और तुम ने?’’

‘‘अरे नहीं यार, अभी आजाद पंछी हूं मस्त. इतनी मुश्किल से पढ़ाई की फिर बमुश्किल इतनी बढि़या नौकरी पाई. यों ही हलाल थोड़े ही हो जाऊंगा. कुछ साल तो चैन की सांस लूं. हा हा…’’ वह उसी चिरपरिचित ठहाके वाली हंसी फिर हंसा था.

वह अपनी नई चमकती बाइक की बैग में अपना खरीदा सामान रख कर मुसकराता खड़ा हो गया, ‘‘कुछ लेना है तुम्हें या चलें किसी रेस्तरां में? वहीं बैठ कर बात करेंगे…’’

‘‘नहीं बस… घर में दिन भर हो जाता है तो शाम को हवा खाने निकल पड़ती हैं. कुछ जरूरी हो तो सामान भी ले आती हूं,’’ वह मुसकराई.

‘‘क्यों तुम्हारे मियां को ताजा हवा अखरती है?’’ शशांक के प्रश्न पर एक उदास मलिन सी रेखा मौली के चेहरे पर उभर आई, जिसे उस ने बनावटी मुसकान से तुरंत छिपा लिया.

‘‘अब यहीं खड़ेखड़े सब जान लोगे या कहीं बैठोगे भी?’’

‘‘अरे तो तुम बाइक पर बैठो तभी तो… या वहां तक पैदल घसीटता हुआ अपनी ब्रैंड न्यू बाइक की तौहीन करूं… हा हा…’’

‘‘कुछ ही देर में शशांक के जोक्स से हंसतेहंसते मौली के पेट में बल पड़ गए. बहुत दिनों बाद वह खुल कर हंसी थी.’’

‘‘अब बस शशांक…’’ उस ने पेट पकड़ते हुए कहा, ‘‘सो रैग्युलेटेड, हाऊ

बोरिंग… न साथ में घूमना, न मूवी, न बाहर खाना, न किसी पार्टीफंक्शन में जाना. हद है यार, शादी करने की जरूरत ही क्या थी… अच्छा उन के लिए समोसे ले चलते हैं, कैसे नहीं खाएंगे देखता हूं. तुम झट अदरकइलायची वाली चाय बनाना, कौफी नहीं…’’ वह बिना संकोच किए मौली को घर छोड़ने को क्या मलय के साथ चाय भी पीने को तैयार था. मौली कैसे मना करे उसे, पता नहीं मलय क्या सोचे इसी उलझन में थी.

‘‘सोच क्या रही हो, बैठो मेरे इस घोड़े पर… अब देर नहीं हो रही?’’ अपनी बाइक की ओर इशारा कर के वह समोसे का थैला रख मुसकराते हुए फटाफट बाइक पर सवार हो गया.

घबरातेसकुचाते मौली को मलय से शशांक को मिलाना ही पड़ा. शशांक के बहुत जिद करने पर मलय ने समोसे का एक टुकड़ा तोड़ लिया था. चाय का एक सिप ले कर एक ओर रख दिया तो मौली झट उस के लिए कौफी बना लाई. शशांक ने कितनी ही मजेदार घटनाएं, जोक्स सुनाए पर मलय के गंभीर चेहरे पर कोई असर न हुआ. उस के लिए सब बचकानी बातें थीं. उस के अनुसार तो एक उम्र के बाद आदमी को धीरगंभीर हो जाना चाहिए. बड़ों को बड़ों जैसे ही बर्ताव करना चाहिए… कितनी बार मौली को उस से झाड़ पड़ चुकी थी इस बात के लिए.

मलय उकता कर उठने को हुआ तो शशांक भी उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं चलता हूं. काफी बोर किया आप को, मगर जल्दी ही फिर आऊंगा, तैयार रहिएगा.’’

गेट तक आ कर मौली को धीरे से बोला, ‘‘जल्दी हार मानने वाला नहीं. इन्हें इंसान बना कर ही रहूंगा. कैसे आदमी से ब्याह कर लिया तुम ने. मिलता हूं कल शाम को… बाय.’’

इस से पहले मौली कुछ कहती वह किक मार फटाफट निकल गया.

दूसरे दिन 5 ही बजे शशांक मौली के घर उपस्थित था, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, खड़ूसजी कहां हैं? उन्हें भी कहो गैट रैडी फास्ट,’’ मौली को हैरानी से अपनी ओर देखते हुए देख उस ने हंसते हुए हवा में आसमानी रंग के मूवी टिकट लहराए, जैसे कोई जादू दिखा रहा हो.़

‘‘रोहित शेट्टी की नई फिल्म की 3 टिकटें हैं.’’

‘‘तुम्हें बताया था न, नहीं जाते हैं मूवीशूवी और ऐसी कौमेडी टाइप तो बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘अरे बुलाओ तो उन्हें, ब्लैक कौफी वहीं पिलवा दूंगा और रात का डिनर भी

मेरी तरफ से. उन के जैसा सादा शुद्ध भोजन. ऐसे मत देखो, मैं यहां नया हूं यार. मेरा यहां कोई रिश्तेदार भी नहीं. वह तो अच्छा हुआ जो तुम मिल गईं…. चलोचलो जल्दी करो. कैब बुक कर दी है 20 मिनट में पहुंच जाएगी,’’ शशांक बेचैन हो रहा था.

मलय मना ही करता रह गया पर शशांक की जिद के आगे उस की एक न चली. जबरदस्ती मूवी देखनी पड़ी थी उसे. लौट कर हत्थे से उखड़ गया, खूब बरसा था मौली पर.

‘‘अपने दोस्त को समझा लो वरना मैं ही कुछ उलटा बोल दूंगा तो रोती फिरोगी कि मेरे दोस्त को ऐसावैसा बोल दिया. तुम को जाना है तो जाओ, उस के बेवकूफी भरे जोक्स तुम ही ऐंजौय करो. बहुत टाइम है न तुम्हारे पास फालतू…’’

मांपापा के जाने का दुख मौली को भी था पर मलय जितना नहीं होगा यह भी सही है पर जिंदगी तो चलानी ही है. कब तक यों ही मुंह लटकाए रहा जा सकता है. मौली याद करती जब अपने पापा को खोया था तो उस की उम्र 20 साल की रही होगी… कुछ दिनों तक लगता था कि सब खत्म हो गया पर जल्द ही खुद को संभाल लिया. फिर पूरे घर का माहौल खुशनुमा बना दिया था. अपनी पढ़ाई भी पूरी की. टीचिंग शुरू कर मां की घर चलाने में मदद भी करने लगी थी.

यहां मलय को खुश करने की सारी कोशिश बेकार थी. 2 साल हो गए थे मगर हर समय मायूसी छाई रहती. टीवी में भी उस की कोई दिलचस्पी न थी. मौली के पसंद के शोज को वह बकवास, बच्चों वाले, मैंटल के खिताब भी दे डालता. हार कर मौली ने पास ही में स्कूल जौइन कर लिया कि कुछ तो दिल लगेगा, घर पर भी ट्यूशंस लेने लगी. अब कुछ अच्छा लगने लगा था उसे. समय कैसे गुजर जाता पता ही नहीं चलता. काम के साथसाथ सब से हंसनाबोलना भी हो जाता. पर शनिवार को मलय घर होता, बच्चों का शोरगुल उसे कतई रास न आता. भुनभुन करता ही रहता. मौली कोशिश करती कि शनिवार को बच्चों को न बुलाए पर परीक्षा हो तो बुलाना ही पड़ता.

उस के व्यस्त रहने और कुछ मलय की बेरुखी समझने के कारण शशांक का घर आना कम हो गया था. पर शनिवार को वे अवश्य मिल लेते. मौली पेट भर हंस लेती जैसे हफ्ते भर का कोटा पूरा कर रही हो. इधर स्कूल का भी काम बढ़ने लगा था. बच्चों की परीक्षाएं आ गई थीं, मौली को अधिक समय देना पड़ता.

मौली ने खाना बनाने के लिए कामवाली रख ली. लाख कोशिशों के बाद भी मौली सास के बने खाने जैसा स्वाद नहीं ला सकी थी… मलय को चिड़चिड़ तो करनी ही थी, हो सकता है कामवाली के हाथ का खाना पसंद आ जाए.

मौली हरदम खुद को संवार के रखती कि इसी बहाने कभी तो प्यार के 2 मीठे बोल बोले, कुछ प्यारी सी टिप्पणी कर दे, पर वह कभी कुछ न बोलता. बात वह पहले भी कहां करता था. हंसीठिठोली उसे पसंद नहीं थी, यह सब उसे बचकानी हरकतें लगतीं. उस के खट्टेमीठे अनुभव में उस की कोई दिलचस्पी न थी.

एक दिन काम से लौटा तो मौली बच्चों के साथ हैप्पी बर्थडे गीत गा कर क्लैपिंग करवा रही थी. किसी बच्चे का जन्मदिन था. चौकलेट ले कर बच्चे बस घर जा ही रहे थे. उन को गेट तक छोड़ कर वह अंदर आ गई.

मलय बरस पड़ा, ‘‘मालूम है न मुझे काम से लौट कर आने पर शांति चाहिए.

ये सब ड्रामे पसंद नहीं. कल से बच्चे मेरे घर में पढ़ने नहीं आएंगे. ज्यादा शौक है तो कहीं और किराए पर रूम ले कर पढ़ाओ, मेरी खुशियों से तो तुम्हें कोई मतलब नहीं, बस अपने में ही लगी रहो…’’ वह बच्चों के सामने झल्लाता हुए अपने रूम में चला गया. मौली के दिल में खंजर की तरह बात घुस गई, मोटेमोटे आंसू गाल पर ढुलकने लगे. सब्र का बांध जैसे टूट चला था.

‘‘मेरा घर… मेरी खुशी… मैं तो अपना घर समझ ब्याह कर आई थी. मुफ्त की ड्यूटी बजाने के लिए नहीं. न ही नौकर की तरह बस तुम्हारे हुक्म की तामील करने. अपनी खुशी की बात करते हो, कभी पत्नी की खुशी सोची तुम ने?

‘‘नाजों से पली बेटी, अपना ऐशोआराम सब कुछ छोड़ पराए घर को अपना लेती है, सब की सेवा में जीजान से लगी रहती है, अपनी आदतों को दूसरों की आदतों में खुशीखुशी ढालने में हर पल प्रयासरत रहती है, खानपान, पहनावा, व्यवहार, खुशी, गम, मजबूरी सब को ही अपना लेती है और एक सैकंड में तुम ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. ऐसी ही पत्नी चाहिए थी तो किसी गरीब, बेसहारा, अनपढ़ को ब्याह लाने की हिम्मत करते, जो तुम्हारी खैरात का एहसान मान कर हाथ जोड़े बैठी रहती. लेकिन नहीं. खानदानी और संस्कारी भी चाहिए और पढ़ीलिखी, रूपसी, इज्जतदार व अच्छे घर की भी…’’ गुस्से में कांपती मौली पहली बार एक सांस में इतना कुछ बोल गई, मलय भौंचक्का सा देखता रह गया.

मगर उस की मर्दानगी ललकार उठी, पलटवार से न चूका था.

‘‘तो तुम ने क्यों नहीं किसी भिखारी से शादी कर ली? इतनी काबिल थी तो किसी अमीर से शादी करती उस पर आराम से रोब झाड़ती और उस की मुफ्त में परवरिश भी कर देती. तुम्हें भी तो…

‘‘अपने टटपूंजिए दोस्त शशांक से क्यों नहीं कर ली थी शादी, जिस का सानिध्य पाने को आज तक लालायित फिरती हो. उस के पास पहले अच्छी जौब नहीं थी इसीलिए न?’’

‘‘अब एक लफ्ज भी मत बोलना मलय, तुम्हारी घटिया सोच पहले ही जाहिर हो चुकी है. ठीक है, मैं उसी के पास चली जाती हूं. तुम्हारे जैसी छोटी सोच का आदमी नहीं है वह. बहुत खुश रहूंगी,’’ उस ने गुस्से में शशांक को कौल मिला दी थी.

काम से लौटा तो शशांक मौली से किए प्रौमिस के अनुसार सीधा वहीं आया था. मौली को लाख समझाने की कोशिश की पर उस ने एक न सुनी. मलय से अनुनयविनय की पर वह भी टस से मस न हुआ.

‘‘अच्छा रुको, आंटी का नंबर दो उन से बात करता हूं, फिर उन के पास पहुंच जाना. प्रयाग की टिकट बुक करवा देता हूं. धीरज रखो,’’ शशांक ने समझाया.

‘‘नहीं, कुछ हो जाएगा उन्हें. सह नहीं पाएंगी,’’ मौली की आंखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.

‘‘कुछ नहीं होगा. मैं बोलूंगा कुछ दिन के लिए मन बदलने जा रही हो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. दोनों का गुस्सा भी शांत हो जाएगा,’’ उस ने त्योरियां चढ़ाए बैठे मलय की ओर देखा, तो वहां से उठ कर वह दूसरे कमरे में जा लेटा.

‘‘जाओ मौली, तुम भी आराम कर लो. अच्छे से सोच लो पहले. ठंडा पानी पीयो, मुझे भी पिलाओ. मैं वोल्वो बस की टिकट का इंतजाम कर के कल मिलता हूं तुम से.’’

‘‘ठीक है, प्रौमिस,’’ शशांक ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. मौली जानती

थी वह झूठा प्रौमिस कभी नहीं करता.

मौली को अच्छी तरह समझाबुझा कर शशांक निकला ही था कि रास्ते में तेज आती ट्रक से इतनी जबरदस्त टक्कर हुई कि वह उड़ता हुआ दूर जा गिरा. सिर पर गहरी चोट लगी थी, पैर में भी फ्रैक्चर महसूस हुआ, मोबाइल सड़क पर टुकड़ों में पड़ा था.

‘‘अच्छा हुआ एक पाप करने से बच गया,’’ पीड़ा में भी राहत की मुसकान उस के खून रिसे होंठों पर आ गई, फिर पूरे होश गुम हो गए. लोगों और पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया. तब तक वह कोमा में जा चुका था.

जब दूसरे दिन भी न शशांक आया न उस का फोन तो मलय ने मजाक बनाना शुरू कर दिया, ‘‘इसी दोस्त के प्रौमिस का गुणगान कर रही थी, भाग गया पतली गली से,’’ वह व्यंग्य से हंसा था.

‘‘वह करे या कोई और तुम को क्या? कहीं इसी डर से तो तलाक नहीं दे रहे, सारा किस्सा ही खत्म हो जाता.’’

‘‘कौन डरता है, कल चलो.’’

‘‘ठीक है… मुकर मत जाना,’’ मौली रोष में आश्वस्त होना चाहती थी.

और सच में बात कहां से कहां पहुंच गई. अदालत में अर्जी फिर तलाक के बाद मौली हिम्मत कर के मायके पहुंची तो मां सदमे में थीं, पर मौली ने उन्हें संभाल लिया. लेकिन खुद को न संभाल सकी. महीने में ही दोनों का तलाक हो गया था. पर शरीर क्षीण होता ही जा रहा था उस का. उधर मलय भी इगो में भर कर तलाक लेने के बाद अब पछता रहा था. हर वक्त उस का दिल कचोटता रहता. उसे सब याद आता कि कितने दिलोजान से मौली ने मेरे बूढ़े, बीमार मांबाप की तीमारदारी की थी. इतना तो वह भी नहीं कर सका था. सभी का बातों से दिल जीत लेती, सभी उस से पूछते क्यों चली गई मौली, पर उसे कोई जवाब देते न बनता.

सब ने आना कम कर दिया. सूना सा घर सांयसांय करता. वही मलय जो जरा से शोर पर चिल्ला उठता वही आज एक आवाज को तरसता. पछतावे में खाट पकड़ ली थी उस ने. दिल कोसता हर वक्त पर ‘अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत.’ अब तो कोई पानी पूछने वाला भी नहीं था. अगर हिमानी दी को किसी ने खबर न दी होती तो यों ही दम तोड़ देता.

स्वरा का नंबर तो मिला, पर वह अब प्रयाग में नहीं दिल्ली में थी. उस ने सीधे कहा, ‘‘अब क्या फायदा उन का डिवोर्स भी हो गया. उस समय तो कोई आया भी नहीं. मलय ने तो उस की जिंदगी ही तबाह कर दी थी. उस की मम्मी भी उस के गम से चल बसीं. अब तो अपने पति शशांक के साथ कनाडा में बहुत खुश है. आप लोग उस की फिक्र न करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता स्वरा.’’

‘‘डिवोर्स हो गया और क्या नहीं हो सकता?’’

‘‘वही तो, मैं हैरान हूं. मुझे मालूम है कि वह बहुत प्यार करती थी मलय से,

इस घर से, हम सब से. मेरी भाभी ही नहीं, वह मेरी सहेली भी थी. यकीन नहीं होता कि उस ने बिना कुछ बताए डिवोर्स भी ले लिया और दूसरी

शादी भी कर ली. दिल नहीं मानता. कह दो स्वरा यह झूठ है. मैं पति के साथ सालभर के लिए न्यूजीलैंड क्या गई इतना कुछ हो गया.तुम उस का नंबर तो दो, मैं उस से पूछूंगी

तभी विश्वास होगा. प्लीज स्वरा,’’ हिमानी ने रिक्वैस्ट की.

‘‘नहीं, उस ने किसी को भी नंबर देने के लिए मना किया है.

‘‘क्या करेंगी दी, मौली बस हड्डियों का ढांचा बन कर रह गई है. उस की हालत देखी नहीं जाती. उसी ने… कोई उस के बारे में पूछे तो यही सब कहने के लिए कहा था,’’ स्वरा फूटफूट कर रो पड़ी. हार कर दे ही दिया मौली का नया नंबर स्वरा ने.

‘‘यह तो इंडिया का ही है,’’ हिमानी आश्चर्यचकित थी.

‘‘दी, न वह कनाडा गई न ही शशांक से शादी हुई है उस की. शशांक तो मेरी बुआजी का ही लड़का है. 4 महीने कोमा में पड़ा था, भयानक दुर्घटना की चपेट में आ गया था, कुछ दिनों बाद पता चला था. बच ही गया. होश आने पर भी बहुत सारी प्रौब्लम थी उसे. दिल्ली ले कर आई थीं बुआ जी. एम्स में इलाज के बाद एक महीने पहले ही तो प्रयाग लौटा है. वही मौली का हालचाल देता रहता है.’’

हिमानी ने फटाफट नंबर डायल किया.

‘‘हैलो…’’ वही प्यारी पर आज बेजान सी आवाज मौली की ही थी.

‘‘मौली, मैं तुम्हारी हिमानी दी. एक पलमें पराया बना दिया… किसी को कुछ बताया क्यों नहीं? यह क्या कर डाला तुम दोनों ने, दोनों पागल हो?’’

‘‘उधर से बस सिसकी की आवाज आती रही.’’

‘‘मैं जानती हूं तुम दोनों को… जो हाल तुम्हारा है वही मलय का है. दोनों ने ही खाट पकड़ ली है. इतना प्यार पर इतना ईगो… उस ने गलत तो बहुत किया, सारे अपनों के चले जाने से वह बावला हो गया था. उसी बावलेपन में तुम्हें भी खो बैठा. अपने किए पर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा है. पश्चाताप में बस घुला ही जा रहा है. आज भी बहुत प्यार करता है तुम से. तुम्हें खोने के बाद उसे अपनी जिंदगी में तुम्हारे दर्जे का एहसास हुआ.’’

मौली की सिसकी फिर उभरी थी

‘‘ऐसे तो दोनों ही जीवित नहीं बचोगे.ऐसे डिवोर्स का क्या फायदा? तुम ने तो पूरी कोशिश की छिपाने की, पर स्वरा ने सब सच बता दिया.

‘‘लौट आओ मौली. मैं आ रही हूं. कान उमेठ कर लाऊंगी इसे. पहले माफी मांगेगा तुम से. अब कभी जो इस ने तुम्हारा दिल दुखाया, तुम्हें रुलाया तो मेरा मरा… पलंग से उठ कर जाने कैसे मलय ने हाथ से हिमानी को आगे बोलने से रोक लिया.

‘‘दी, ऐसा फिर कभी मत बोलना.’’

‘‘दोनों कान पकड़ अपने फिर,’’ हिमानी ने प्यार भरी फटकार लगाई.

‘‘एक लड़की जो सारे घर से सामंजस्य बैठा लेती है, सब को अपना बना लेती है

तू उस के साथ ऐडजस्ट नहीं कर पा रहा था. कुछ तेरी पसंद, आदतें हैं, संस्कार हैं माना, तो कुछ उस के भी होंगे… नहीं क्या? क्या ऐडजस्ट करने का सारा ठेका उसी ने ले रखा है? मैं ऐसी ही थी क्या पहले… कुछ बदली न खुद पति देवेन के लिए? देवेन ने भी मेरे लिए अपने को काफी चेंज किया, तभी हम आज अच्छे कपल हैं. तुझे भी तो कुछ त्याग करना पड़ेगा, बदलना पड़ेगा उस के लिए. अब करेगा? बदल सकेगा खुद को उस के लिए?’’

‘‘हां दी, आप जैसा कहोगी वैसा करूंगा,’’ हिमानी उस के चेहरे पर उभर आई आशा की किरण स्पष्ट देख पा रही थी.

‘‘ले बात कर, माफी मांग पहले उस से…’’ हिमानी जानबूझ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘किस मुंह से कहूं मौली मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया. शादी के बाद से ही तुम घर की जिम्मेदारियां

ही संभालती रहीं. हनीमून क्या कहीं और भी तो ले नहीं गया कभी घुमाने. अपनी ही इच्छाएं थोपता रहा तुम पर. अपने पिता का शोक तुम

ने कितने दिन मनाया था. हंसने ही तो लगी थी हमारे लिए और मैं अपने गम, अपने खुद के उसूलों में ही डूबा रहा. तुम्हारे साथ 2 कदम भी न चल सका.

‘‘बच्चा गोद लेना चाहती थी तुम, पर मैं ने सिरे से बात खारिज कर दी. तुम ने ट्यूशन पढ़ाना चाहा पर वह भी मुझे सख्त नागवार गुजरा. सख्ती से मना कर दिया. तुम्हारे दोस्त के लिए बुराभला कहा, तुम पर कीचड़ उछाला… कितना गिर गया था मैं. सब गलत किया, बहुत गलत किया मैं ने… तुम क्या कोई भी नहीं सहन करता… कुछ बोलोगी नहीं तुम, मैं जानता हूं मुझे माफ करना आसान न होगा…

‘‘बहुत ज्यादती की है तुम्हारे साथ. मुझे कस के झिड़को, डांटो न… कुछ बोलोगी नहीं, तो मैं आ जाऊंगा मौली.’’

पहले सिसकी उभरी फिर फूटफूट कर मौली के रुदन का स्वर मलय को अंदर तक झिंझोड़ गया.

‘‘मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास. मुझे जी भर के मार लेना पर मेरी जिंदगी तुम हो, उसे लौटा दो मौली. मैं दी को देता हूं फोन.’’

‘‘चुप हो जा मौली अब. बस बहुत रो चुके तुम दोनों. मैं दोनों की हालत समझ रही हूं. तुम आने की तैयारी करना, कुछ दिनों में तुम्हारे मलय को फिट कर के लाती हूं.’’

सिसकियां आनी बंद हो गई थीं. वह मुसकरा उठी.

‘‘कुछ बोलोगी नहीं मौली…?’’

‘‘जी…’’ महीन स्वर उभरा था.

‘‘जल्दी सेहत सुधार लो अपनी, हम आ रहे हैं. फिर से ब्याह कर के तुम्हें वापस लाने के लिए… तैयार रहना… इस बार दीवाली साथ में मनाएंगे… तुम्हारे देवेन जीजू पहले जैसे तैयार मिलेंगे… तुम लोगों का बचकाना कांड सुन कर बहुत मायूस थे. मैं अभी उन्हें खुशखबरी सुनाती हूं. एक बार अपनी इस हिमानी दी का विश्वास करो. तुम्हारा घर तुम्हारी ही प्रतिक्षा कर रहा है. बस अपने घर लौट जाओ मौली…’’

‘‘ठीक है दी, जैसी आप सब की मरजी…’’ मौली की आवाज में जैसे जान आ गई थी. हिमानी ने सही ही महसूस किया था.

‘‘जल्दी तबियत ठीक कर ले, फिर चलते हैं प्रयाग. एक नए संगम के लिए,’’ हिमानी ने मुसकरा कर मलय के गाल थपथपाए और उस के माथे की गीली पट्टी बदल दी.

मौली का फोन कटते ही हिमानी ने खुशीखुशी पति देवेन को सूचना देने के लिए नंबर डायल कर दिया.

‘‘मौली को अच्छी तरह समझाबुझा कर शशांक निकला ही था कि रास्ते में तेज आती ट्रक से इतनी जबरदस्त टक्कर हुई कि वह उड़ता हुआ दूर जा गिरा…’’

 

मुझे अपनी मां से नफरत होने लगी है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 15 वर्षीय छात्र हूं. आजकल बहुत तनाव में जी रहा हूं. दरअसल, मुझे अपनी मां की उच्छृंखलता देख कर उन से नफरत होने लगी है. हमारे एक अंकल जो मेरे पापा के अच्छे दोस्त हैं, उन से मेरी मां की नजदीकियां दिनोंदिन बढ़ रही हैं. वे अंकल अकसर मेरे पापा की गैरमौजूदगी में घर आते हैं और घंटों मां के साथ गप्पबाजी करते हैं. भद्देभद्दे मजाक सुन कर मेरा खून खौलने लगता है, जबकि मां खूब मजा लेती हैं. कई बार दोनों ऐसे चिपक कर बैठे होते हैं जैसे पति पत्नी हों. उन्हें लगता है कि मैं उन की हरकतों से अनजान हूं. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप अच्छे बुरे की समझ रखने वाले विवेकशील युवक हैं. आप को लगता है कि आप की मां और आप के तथाकथित अंकल का व्यवहार अमर्यादित है, तो आप अपनी मां से एतराज जता सकते हैं.

आप उन से साफ शब्दों में कहें कि आप को पिता की गैरमौजूदगी में उस तथाकथित अंकल का रोज आना और घंटों गप्पें लगाना नागवार गुजरता है. इतने से ही वे दोनों सतर्क हो जाएंगे. अगर न हों तो आप कह सकते हैं कि आप पिता से उन की शिकायत करेंगे. इस के बाद आप की समस्या स्वत: हल हो जाएगी.

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माया को देखते ही बाबा ने रोना शुरू कर दिया था और मां चिल्लाना शुरू हो गई थीं. मां बोलीं, ‘‘बाप ने बुला लिया और बेटी दौड़ी चली आई. अरे, हम मियांबीवी के बीच में पड़ने का हक किसी को भी नहीं है. आज हम झगड़ रहे हैं तो कल प्यार भी करेंगे. 55 साल हम ने साथ गुजारे हैं. मैं अपने बीच में किसी को भी नहीं आने दूंगी.’’

‘‘मैं इस के साथ नहीं रहूंगा. तुम मुझे अपने साथ ले चलो,’’ कहते हुए बाबा बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े.

‘‘मैं तुम को छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम जहां भी जाओगे मैं भी साथ चलूंगी,’’ मां बोलीं.

‘‘तुम दोनों आपस का झगड़ा बंद करो और मुझे बताओ क्या बात है?’’

‘‘यह मुझे नोचती है. नोचनोच कर पूछती है कि नीना के साथ मेरे क्या संबंध थे? जब मैं बताता हूं तो विश्वास नहीं करती और नोचना शुरू कर देती है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, दिखाओ तो कहां नोचा है? झूठ बोलते हो. नोचती हूं तो कहीं तो निशान होंगे.’’

‘‘बाबा, दिखाओ तो कहां नोचा है?’’

बाबा फिर रोने लगे. बोले, ‘‘तेरी मां पागल हो गई है. इसे डाक्टर के पास ले जाओ,’’ इतना कहते हुए उन्होंने अपना पाजामा उतारना शुरू किया.

मां तुरंत बोलीं, ‘‘अरे, पाजामा क्यों उतार रहे हो. अब बेटी के सामने भी नंगे हो जाओगे. तुम्हें तो नंगे होने की आदत है.’’

बाबा ने पाजामा नीचे कर के दिखाया. उन की जांघों और नितंबों पर कई जगह नील पड़े हुए थे. कई दाग तो जख्म में बदलने लगे थे. वह बोले, ‘‘देख, तेरी मां मुझे यहां नोचती है ताकि मैं किसी को दिखा भी न पाऊं. पीछे मुड़ कर दवा भी न लगा सकूं.’’

Summer Special: घर पर फैमिली के लिए बनाए हेल्दी और टेस्टी ढोकला

गुजरात की जितना अपने गाने और घूमने के लिए मशहूर है उतना ही वह अपने खाने के लिए भी फेमस है. आप चाहे देश के किसी भी हिस्से में रह रहें होंगे पर आपने ढोकले के बारे में तो सुना ही होगा. ढ़ोकला गुजरात की मेन डिशेज में से एक है. इसे आप आसानी से घर पर बना सकते हैं. ये हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी होता है.

    सामग्री

–  1 कप बेसन

–  2 बड़े चम्मच सूजी

–  1 छोटा चम्मच चीनी

–  1/2 शिमलामिर्च कटी

–  1 ईनो का पैकेट

–  नमक स्वादानुसार.

विधि ढोकला बैटर की

एक बाउल में बेसन और सूजी को मिलाएं. फिर एक अलग बाउल में 1 कप पानी में आधा 1/2 चम्मच नमक, 1 छोटा चम्मच चीनी और 1/2 नीबू का रस डाल कर तब तक मिलाएं जब तक सारी चीजें एकदूसरे में मिल न जाएं. फिर इसे पहले वाले बाउल में डाल कर बैटर तैयार करें. बैटर को अच्छी तरह चलाएं ताकि उस में गांठें न पड़ें. अब बैटर को 1 घंटे के लिए ढक कर एक तरफ रख दें. इस से ढोकला काफी अच्छा बनता है.

सामग्री

–  1 कप पानी

–  1 छोटा चम्मच वैजिटेबल औयल

–  3 छोटे चम्मच चीनी

–  2 बड़े चम्मच नीबू का रस

–  1 छोटा चम्मच सरसों

–  7-8 करीपत्ते

–  4-5 हरीमिर्चें बीच से कटी

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक पैन को मीडियम आंच पर रख कर उस में औयल डालें. फिर इस में सरसों और करीपत्ते डाल कर थोड़ा चलाएं. अब इस में कटी हरीमिर्चें डाल कर उन्हें भी फ्राई करें. जब फ्राई हो जाएं तो उन में 1 कप पानी के साथ नमक व चीनी डालें. लगातार चलाती रहें. जब चीनी अच्छी तरह घुल जाए तो आंच बंद कर दें.

ढोकला की विधि

ढोकला बैटर को अच्छी तरह मिलाते हुए उस में ईनो ऐड करें. फिर इस बैटर को तब तक चलाती रहें, जब तक उस में से बुलबुले न आने लगें. अब ऐल्यूमिनियम का मोल्ड ले कर उस में बैटर डालें. इस के बाद एक खुली कड़ाही में 3-4 कप पानी डाल कर उस में छोटा स्टैंड रखें, जिस पर आप ऐल्यूमीनियम मोल्ड को रख सकें. फिर आंच को बंद कर दें. अब बैटर अच्छी तरह से पका है, इसे देखने के लिए टूथपिक को बैटर में डालें. अगर टूथपिक बिलकुल साफ निकलती है तो इस का मतलब बैटर अच्छी तरह पक गया है वरना आप 5 मिनट उसे और पकाएं. जब बैटर पक जाए तो मोल्ड को कड़ाई से निकाल कर ठंडा होने के लिए रखें. अब ढोकले को मोल्ड से निकाल कर टुकड़ों में काट कर प्लेट में रखें और ऊपर से ढोकला सीरप डाल कर कुछ मिनटों के लिए रख दें ताकि चीनी ढोकले में अच्छी तरह चली जाए. अब फ्राइड चिली से गार्निश कर के सर्व करें.

 

शो ‘गुम है किसी के प्यार में’ लेगा लीप, शक्ति अरोड़ा होंगे बाहर

स्टार प्लस पर आने वाले शो गुम है किसी के प्यार में जल्द ही लीप लेने वाला है. शो में और अधिक ड्रामा होगा और नये ट्विस्ट और टर्न्स देखने को मिलेंगे.

शो में एक्टर करणवीर बोहरा ग्रैंड एंट्री लेंगे और एक साइको का रोल निभाएंगे. इश नए रोल के साथ दर्शकों को शो में नया मसाला मिलेगा. शो में बड़े बदलाव के चलते शक्ति अरोड़ा शो से बाहर हो रहे हैं. हालांकि एक्ट्रेस भविका शर्मा शो में रहेंगी. शो की रेटिंग्स को बढ़ाने के लिए शो में 10 साल का लीप लिया जा रहा है.

 

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शो में नए ट्विस्ट और टर्न्स के बाद भी टीआरपी नहीं बढ़ रही थी के इसलिए शो के मेकर्स ने शो में लीप लेने का निर्णय लिया है. कई कलाकारों का कॉन्ट्रैक्ट भी खत्म हो रहा है जो इस निर्णय के पीछे का एक बड़ा कारण है. हालांकि रीसेंट डेवेलेपमेंट्स को लेकर प्रोडक्शन हाउस और चैनल की ओर से ज्यादा कुछ नहीं कहा गया है.

इससे पहले एक इंटरव्यू के दौरान शो में लीप को लेकर एक्टर शक्ति अरोड़ा ने बताया था कि उन्हें शो में लीप के बारे में कुछ नहीं पता है हालांकि आर्टिकल्स में उन्होंने इसके बारे में पढ़ा है. उन्होंने कहा था कि उन्हें अभा क्लैरिटी नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि शो में नया कैरेक्टर जुड़ने वाला है.

इससे पहले भी शक्ति अरोड़ा ने कलर्स पर प्रसारित होने वाले एकता कपूर के शो मेरी आशिकी तुमसे ही में इशान का रोल किया था जिसे दर्शकों का खूब प्यार मिला था. जी टीवी पर आने वाले शो कुंडली भाग्य में 10 सालों का लीप लिया गया था जिसके कारण शक्ति ने शो छोड़ दिया था.

 

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आपको बता दें कि गुम है किसी के प्यार में के पहले सीजन में नील भट्ट, आयशा सिंह और एश्वर्या शर्मा ने मेन रोल्स किए थे और शो बहुत अच्छा चला था. लीप के बाद शो में शक्ति अरोड़ा, भविका शर्मा और सुमित सिंह की एंट्री हुई थी. यह लीप शो में दूसरा लीप है.

आपके हर काम में दखलअंदाजी करते हैं रिश्तेदार तो ऐसे करें इसका समाधान

रिश्तेदारों की दखलअंदाजी कई बार आपके लिए परेशानी बन जाती है. लेकिन आप रिश्ते खराब भी नहीं कर सकते. ऐसे में आपके लिए जरूरी है कि आप इन्हें सावधानी के साथ हैंडल करें.

“श्वेता तुम हमारे भाई का ध्यान नहीं रखती !देखो ना इतनी गर्मी में भी पौधों को पानी दे रहे हैं . यह काम तो तुम भी कर सकती हो सारे दिन घर में अकेली रहती हो काम ही क्या है.”

जैसे ही यह शब्द सीता की ननद ने उसे बोले उसको बहुत बुरा लगा. श्वेता ने कहा,”आप अपना घर देखिए, यह हमारी जिंदगी है हम अपने आप देख लेंगे. हम नहीं चाहते कि हमारे दोनों के बीच में कोई तीसरा फालतू की दखलअंदाजी करे. आप हमें हमारी जिंदगी जीने दे!”

श्वेता के इस जवाब के बाद उसकी ननद ने फिर कभी दखलअंदाजी करने की कोशिश नहीं की.

जिंदगी में रिश्ते और रिश्तेदार दोनों का ही अपना महत्व है। लेकिन लगभग हर परिवार में कुछ रिश्तेदार ऐसे जरूर होते हैं जो आपकी जिंदगी में हमेशा दखल देते रहते हैं.  इस दखलअंदाजी के कारण आपकी जिंदगी में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं. लेकिन आप रिश्ते भी नहीं बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में इन समस्याओं को आपको बहुत ही सावधानी के साथ सुलझाना चाहिए.

1. तय करें अपनी सीमाएं

साफ बोलो, सुखी रहो! यह बात हमेशा से ही हमारे बुजुर्ग बोलते हैं, जो काफी हद तक सही भी है. अपने रिश्तेदारों को यह स्पष्ट रूप से बताएं कि आप किस तरह का व्यवहार स्वीकार करते हैं और किस तरह का नहीं. अपनी सीमाओं को दृढ़ता से और स्पष्ट रूप से बताएं. यदि वे आपकी सीमाओं का सम्मान नहीं करते हैं तो उन्हें इसका साफ एहसास भी करवाएं. जैसे कि उनसे मिलना कम करना या उन्हें अपनी निजी जानकारी साझा करने से मना करना.

2. गुस्से से नहीं शांति से लें काम

जब रिश्तेदार आपकी जिंदगी में दखल दें तो गुस्से से नहीं शांति से काम लें. हालांकि गुस्सा या चिड़चिड़ा महसूस करना स्वाभाविक है लेकिन इससे स्थिति और खराब हो सकती है. गहरी सांस लें और शांत रहने का प्रयास करें. कोशिश करें अपना ध्यान भटका लें.

3. समझें उनका नजरिया

यह समझने की कोशिश करें कि आपके रिश्तेदार ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं. हो सकता है कि वे आपको लेकर चिंतित हों या मददगार बनने की कोशिश कर रहे हों. हालांकि ये हो सकता है कि वे गलत तरीके से ऐसा कर रहे हों. उनकी भावनाओं को स्वीकार करें, भले ही आप उनके कार्यों से सहमत न हों.

4. अपनी भावनाएं साफ बताएं

अगर आप लगातार रिश्तेदारों के दखल से परेशान हो रहे हैं तो उन्हें अपनी भावनाएं खुलकर बता दें. आप साफ बताएं कि उनकी राय भले ही कुछ भी हो, लेकिन आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं. आप उन्हें साफ बोलें कि जब आप मेरे फैसलों पर सवाल उठाते हैं तो मुझे निराशा महसूस होती है. इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि उनके शब्दों और कार्यों का आप पर क्या प्रभाव पड़ता है.

5. बातों को दिल पर न लें

जब आप जानते हैं कि आपके कुछ रिश्तेदारों का स्वभाव है हर बात या काम में दखल देना या अपनी राय देना तो ऐसे में आप बड़ा दिल रखें. यानी आप इन बातों को अपने दिल पर न लें. इन्हें एक कान से सुनें और दूसरे से तुरंत निकाल दें. साथ ही वहीं काम करें जो आप करना चाहते हैं. ऐसा करने पर सामने वाले को साफ पता चल जाएगा कि आप उनकी बातों को कोई महत्व ही नहीं देते.

लड़ाई के डर से इन बातों पर बहस करने से न डरें, जानें मजबूत रिलेशनशिप के राज

लड़ाई झगड़ा हर कपल में होता है, हालांकि कोई भी ऐसा जानकर नहीं करता. लेकिन कुछ बातों पर बहस करना आपकी जिंदगी को आसान बना सकता है.

“दीक्षा आजकल तुम दोनों पति-पत्नी में कुछ अनबन चल रही है क्या मैं काफी दिनों से देख रही हूं कि तुम लोग एक दूसरे से बात नहीं कर रहे?”

दीक्षा की सास के पूछते ही दीक्षा की आंखों में आंसुओं की झड़ी लग गई और उसने सुबकते हुए कहा,”हां छोटी सी बात थी लेकिन पता नहीं था कि इतना बड़ा तूल पकड़ लेगी. आपको याद है हम पिछले संडे रात को एक पार्टी में गए थे वहां पर अक्षय अपनी कलीग से बड़ा हंस-हंसकर बात कर रहे थे. मुझे थोड़ा अखरा और मैं ने बस अक्षय से बात करनी बंद कर दी. अक्षय ने पहले तो एक दो बार नराजगी की वजह जाननी चाही, पर बाद में उन्होंने भी बात करनी बंद कर दी.”

इतना बता कर दीक्षा रोने लगी. तब दीक्षा की सासू मां ने समझाया,” देख बेटा,जहां प्यार है, वहां तकरार भी होगी. ये बात तो हम सभी जानते हैं. हर रिश्ते पर यह बात लागू होती है. खासतौर पर कपल्स पर. जब दो लोग एक रिश्ते में होते तो दोनों के अपने-अपने विचार और तर्क होना स्वाभाविक है. लेकिन इन्हें सभ्य तरीके से सुलझाना आपके हाथ होना चाहिए. इससे रिश्ते बिगड़ते नहीं हैं. यही कदम दूरियों को नजदीकियों में बदल सकता है. तुम्हें बात करना नहीं छोड़ना चाहिए था.”

बात तो सही है, बहस के डर से कभी भी कुछ बातों पर ध्यान देना बिल्कुल न छोड़े। इनपर खुलकर अपना तर्क दें और अपना नजरिया भी बताएं। आइए जानते हैं विस्तार से –

1. खुलकर करें बात

क्या आपकी पत्नी को पसंद नहीं है कि आप अपनी कॉलेज या ऑफिस की महिला मित्रों से बात करते हैं. क्या आपके पति अक्सर आप पर शक करते हैं. इन दोनों ही स्थितियों में अपने पार्टनर से खुलकर, साफ बात करें. अगर आप समय पर इन शंकाओं और ईर्ष्या को दूर नहीं करेंगे तो यह बढ़कर एक बड़ी परेशानी बन सकते हैं. इसलिए इसपर भूलकर भी चुप्पी नहीं साधे.

2. पहल करने में न रहें पीछे

अगर आपकी अपने पार्टनर से लड़ाई हो गई है और आप दोनों ही एक दूसरे से गुस्सा हो तो ऐसे में अक्सर बातचीत का सिलसिला रुक जाता है. चाहते हुए भी कई बार साथी बात करने की पहल नहीं कर पाते. इससे एक दूसरे के मन की भावना समझ पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसा महसूस होने लगता है कि शायद सामने वाले की जिंदगी में आपकी कोई अहमियत ही नहीं. लेकिन इसकी बहुत संभावना है कि आपकी सोच गलत हो. हो सकता है कि आपका साथी आपकी पहल का इंतजार कर रहा हो. इसलिए गुस्से का पिटारा सिर से उतारकर आप शांत हो जाएं और अपने पार्टनर से खुलकर बात करें.

3. पसंद में बराबरी

‘मैंने सोचा है कि कल मेरे दोस्त के चलेंगे’,’मुझे तो संडे को सिर्फ सोना पसंद है, कहीं बाहर जाना मेरे बस की बात नहीं’, ये वो सामान्य बातें हैं, जो अक्सर आपने हर घर में सुनी होंगी. लेकिन रिश्ते में जब आप दो लोग हो तो इसमें ‘मैं’ की नहीं ‘हम’ की बात होनी चाहिए. अगर आपका साथी हमेशा अपनी पसंद आप पर थोपने की कोशिश करता रहता है और आपकी इच्छाओं के बारे में नहीं सोचता तो यह बहस का एक बड़ा मुद्दा है. हर किसी को ​एक ही जिंदगी मिलती है और रिश्ते उसे और भी खूबसूरत बनाने के लिए होते हैं, न कि बोझिल बनाने के लिए. अपने साथी को समझाएं कि जिंदगी का यह सफर आप दोनों को मिलकर तय करना है तो एक दूसरी की पसंद का ध्यान भी मिलकर ही रखना होगा.

4. मिलकर करें वित्त प्रबंधन

ऐसा तो लगभग हर कपल में आपने देखा होगा. एक साथी भविष्य के लिए बचत करने पर जोर देता है तो दूसरा आज को जीने में विश्वास रखता है. ऐसे में विचारों की यह भिन्नता अक्सर विवाद का कारण बन जाती है. हालांकि अपनी अपनी जगह पर दोनों ही सही हैं. इसलिए इस विषय पर शांति से बैठकर बात करें और बीच का कोई रास्ता निकालने की कोशिश करें. जब आप एक दूसरे को आराम से सुनेंगे तो पक्का कोई न कोई हल आप निकाल ही लेंगे.  इससे एक सफल रिश्ते की नींव मजबूत होगी.

Summer special: बच्चों के लिए घर पर बनाएं ठंडी-ठंडी टेस्टी फ्रूटी आइसक्रीम

गरमी हो या मौनसून आइस्क्रीम हर किसी की फेवरेट होती है. हर कोई बस आइस्क्रीम को दिवाना होता है. लेकिन बाहर से डेली आइस्क्रीम खरीदकर खाना हेल्थ के साथ खिलवाड़ करना होगा. आज हम आपको फ्रूटी आइस्क्रीम की रेसिपी बताएंगे, जिसे आप हेल्दी तरीके से अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को डेजर्ट में खिल सकते हैं.

हमें चाहिए

– 1 आम पका

– 2 कीवी

– 4 बड़े चम्मच अनार के दाने

– 1 सेब

– 1 केला

– 150 ग्राम वैनिला आइसक्रीम

– थोड़े से बारीक कटे बादाम.

बनाने का तरीका

सभी फलों को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. एक बाउल में वैनिला आइसक्रीम को अच्छी तरह फेंट कर उस में कटे फल मिला दें. सर्विंग बाउल में तैयार फ्रूटी आइसक्रीम डालें और बादाम से गार्निश कर सर्व करें.

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