खादी कौटन व लिनन साड़ियां: स्टाइल भी फैशन भी

गरमियों के दिनों अगर आप कौटन या लिनन साड़ियां पहनती हैं तो न सिर्फ ये आप को कूल रखती हैं बल्कि आप को प्रोफैशनल लुक के साथसाथ एक नया स्टाइल देने में भी सहायक हैं. ये साड़ियां गरमी के लिए बैस्ट औप्शन हैं. तो फिर जानिए, कौटन और लिनन डिजाइन की साड़ियों में किस प्रिंट का है अधिक चलन :

कौटन व लिनन साड़ी 

ये साड़ियां वजन में बेहद हलकी व शरीर के लिए आरामदायक मानी जाती हैं. ये न तो चुभती हैं और खास बात यह कि गरमी में पसीने से भी राहत दिलाती हैं. इन साङियों के प्रिंट व रंग बहुत ही खूबसूरत होते हैं. आजकल वर्ली आर्ट, खादी कलमकारी, जरी खादी जैसे प्रिंट महिलाओं को खूब भा रहे हैं.

 

वर्ली आर्ट खादी कौटन साड़ी

वर्ली आर्ट प्रिंट बेहद खूबसूरत लगता है. कौटन व लिनन साड़ी दोनों में ही बहुत जंचता है. इस प्रिंट में लड़कालड़की ढोलबाजे के साथ नाचते हुए दिखाई पड़ते हैं. इस साड़ी को आप सिंपल ब्लाउज के साथ वियर कर सकती हैं, साथ में औक्सीडाइज्ड झुमके लुक को  क्लासी बनाएंगे.

स्ट्रिप्स डिजाइन

इस तरह की साड़ी आप फंक्शन, पार्टियों आदि में भी कैरी कर सकती हैं. साथ ही औफिस लुक के लिए भी बहुत शानदार कलैक्शन है. यदि आप इस के साथ मैटालिक लाइट ज्वैलरी कैरी करती हैं तो आप का ओवरऔल लुक बहुत ही क्लासी रहेगा.

खादी कलमकारी साड़ी

कलमकारी साडी में हैंडवर्क डिजाइन होता है, जिस में पतला बौर्डर साड़ी के लुक को बहुत ही सुंदर बनाता है. शादीशुदा महिलाओं पर इस तरह की साड़ियां खूब जंचती हैं. इन साड़ियों को प्लेन कौंट्रेस्ट ब्लाउज के साथ भी कैरी किया जा सकता है.

जरी खादी साड़ी

जरी खादी साड़ी में ट्राइऐंगल प्रिंट बहुत फबता है. आप चाहें तो इसे डबल शैड में ले कर प्लेन ब्लाउज के साथ स्टाइल कर सकती हैं. इस लुक को और अच्छा दिखाने के लिए आप साथ में बड़े ईयरिंग्स या औक्सीडाइज्ड ज्वैलरी को वियर कर सकती हैं.  कौटन साड़ी खरीदते समय उस के कपड़े की परख जरूर रखें, क्योंकि अगर फैब्रिक मिक्स में होगा तो उस से आप को रैशेज भी हो सकते हैं.

 

ऐवलांचिंग: प्यार का नया ट्रैंड

एक समय था जब प्यार सिर्फ प्यार ही होता था. लेकिन आज के समय में रिश्तों में प्यार के अलावा सब है. ऐवलांचिंग डेटिंग भी इसी का आधुनिक रूप है. प्यार, पार्टनरशिप, अपनापन, लगाव, समर्पण, त्याग जैसे शब्द अधिकांश रिश्तों में अब सिर्फ नाम के रह गए हैं. इन सभी प्यारे शब्दों की जगह अब मतलब, पहुंच, स्वार्थ, दिखावे जैसे शब्द लेते जा रहे हैं. यही कारण है कि कभी जनमजनम तक चलने वाली साझेदारी अब कुछ सालों तक भी नहीं चल पाती है. साथी के होते हुए भी दूसरे लोगों की तरफ आकर्षित होना, हमेशा बेहतर की तलाश में जुटे रहना, एकसाथ 2-3 रिश्तों में रहना जैसी बातें अब बहुत ही आम होती जा रही हैं.

रिश्तों के इसी भंवर में अब नया शब्द उभरा है ऐवलांचिंग डेटिंग.

क्या है ऐवलांचिंग डेटिंग

इस फैंसी शब्द के पीछे का उद्देश्य धोखे और स्वार्थ में डूबा हुआ है. इस में शख्स साथी की तलाश में लगातार डेटिंग ऐप्स खंगालने में जुटा रहता है. वह दूसरों को लगातार प्यारभरे संदेश भेजता है और उस के इस कदर पीछे पड़ जाता है कि ‘हां’ कहना सामने वाले की मजबूरी बन जाता है.

हालांकि सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि वह शख्स ऐसा किसी का प्यार पाने के लिए नहीं करता, बल्कि इसलिए करता है जिस से वह उस साथी के साथ किसी पार्टी, सैलिब्रेशन आदि में दिखावा कर सके. वह दुनिया को यह बता सके कि वह अकेला नहीं है, उस के पास भी एक अच्छा साथी है.  वैलेंटाइन डे, न्यू ईयर, क्रिसमस जैसे समय तो ऐसे लोगों की बाढ़ सी आ जाती है.

नुकसान का सौदा है

पिछले कुछ सालों में भारत में औनलाइन डेटिंग ऐप्स का चलन काफी ज्यादा बढ़ गया है. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 5 सालों में औनलाइन डेटिंग ऐप्स के उपयोग में 293% तक की वृद्धि हुई है.

साल 2023 में यह संख्या 82.4 लाख के पार पहुंच गई. इस बड़े प्लेटफौर्म के कारण ऐवलांचिंग डेटिंग करना काफी आसान हो गया है. हालांकि शुरुआत में लोगों को शानदार लगने वाला यह तरीका उन के लिए बड़ी परेशानी भी बन सकता है.

दरअसल, पार्टनर ढूंढ़ने की जल्दबाजी में अकसर लोग सामने वाले की पूरी पड़ताल करना ही भूल जाते हैं. वे न तो उन की उम्र देखते हैं और न ही परिदृश्य. ऐसेे में यह रिश्ता सिर्फ एक समझौता बन कर रह जाता है. उद्देश्य पूरा होने के बाद साथी एकदूसरे के प्रति उदासीन हो जाते हैं. यही कारण है कि ऐसे रिश्ते लंबे समय तक नहीं चल पाते.

व्यक्तित्व का आईना है ऐवलांचिंग डेटिंग

आप जो भी काम करते हैं, वह कहीं न कहीं आप के व्यक्तित्व का आईना होता है. ऐवलांचिंग डेटिंग के साथ भी कुछ ऐसा ही है. आमतौर पर ऐसी डेटिंग करने वाले लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है. वे हमेशा इसी बात को सोचते रहते हैं कि लोग क्या कहेंगे और इन्हीं के चक्कर में वे जल्दबाजी में पार्टनर की खोज में जुट जाते हैं.

ऐसे लोग हमेशा अपनी खुशियों के लिए दूसरों पर ही निर्भर रहते हैं. वे खुद से प्यार करना नहीं जानते हैं. वे हमेशा चिंताग्रस्त रहते हैं.

क्यों न अपनाएं सही रास्ता

ऐवलांचिंग डेटिंग करने वाला शख्स हमेशा से इस बात को जानता है कि वह यह सब जल्दबाजी में कर रहा है. ऐसे में सब से जरूरी है कि आप अपनी प्राथमिकता को बदलें. सब से पहले खुद से प्यार करें और फिर शांति से प्यार की तलाश में जुटें.​

किसी को अपना साथी सिर्फ इसलिए नहीं बनाएं कि साथी दिखना जरूरी है बल्कि इसलिए बनाएं कि साथी को आप सच में जिंदगी चाहते हैं. अगर आप के दोस्त और अन्य लोग आप को पार्टनर बनाने के लिए बाध्य कर रहे हैं तो उस के पीछे उन की मंशा को पहचानना भी जरूरी है.

 

नाबालिग को वाहन देना पड़ सकता है भारी

नशे में गाड़ी चलाना न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि इस से जानमाल का खतरा भी बढ़ जाता है. देश में आए दिन बेलगाम वाहनों से लोगों की जानें जाती रहती हैं और आश्चर्य की बात यह कि ऐसे हादसों में नाबालिगों का लिप्त होना चिंताजनक है.

देश में किसी नाबालिग का अपराधिक घटना में लिप्त होने के बाद भी कोई कङा कानून नहीं है और शायद यही वजह है कि वे बेखौफ जुर्म करते जाते हैं.

पुणे में क्या हुआ हाल ही में ऐसा ही एक मामला पुणे में आया, जिस में 17 वर्षीय एक किशोर ने अपने पिता की पोर्शे कार से नशे में धुत्त होने के बाद 2 इंजीनियर को इतनी जोरदार टक्कर मारी कि दोनों की ही मौके पर मौत हो गई.

किशोर का पिता रियल ऐस्टेट ऐजेंट है, जिस ने जानकारी मिलने के बाद भाग निकलने की तैयारी कर ली थी लेकिन पुलिस ने आरोपी के पिता को पकड़ लिया.

पुणे पुलिस ने नाबालिग के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 और मोटर व्हीकल ऐक्ट की अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज की है. इस के साथ ही पुलिस ने नाबालिग के पिता के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 और 77 के तहत रिपोर्ट दर्ज की है.*

क्या कहता है कानून

नाबालिग के गाड़ी चलाने को ले कर आरटीओ द्वारा बनाए गए नए ड्राइविंग नियमों के तहत नाबालिग के पिता पर न सिर्फ ₹25 हजार तक का चालान किया जा सकता है, अगर ऐसे केस में किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होती है तो फिर पिता को जेल भी हो सकती है.*

दुखद पहलू

मगर इस केस का दुखद पहलू यह है कि आरोपी को जो सजा मिली इस से लोगों में आक्रोश बढ़ गया. किशोर को 15 घंटे के बाद ही जमानत मिल गई और सजा के तौर पर 15 दिनों के लिए ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने को कहा गया और पूरे हादसे पर 300 शब्दों का निबंध लिखने को कहा गया.

आरोपी को एक ऐसे डाक्टर से इलाज कराने का निर्देश दिया गया, जो उसे शराब छोड़ने में मदद कर सके और इस के अलावा उसे मनोचिकित्सक से सलाह ले कर उस की रिपोर्ट अदालत में जमा करने का निर्देश दिया गया.

सोचने वाली बात

सोचने की बात यह है कि यदि किशोरों को इस तरह की सजा मिली तो वे धड़ल्ले से अपराध करते रहेंगे.लोगों में सजा के तौर पर मजाक का यह नजरिया आक्रोश में बदल गया, जिस के बाद दोबारा केस दर्ज किया.

आश्चर्य तो यह भी है कि जिस गाड़ी से घटना हुई वह विदेश से मंगवाई गई थी और अभी उस का पंजीकरण भी नहीं किया गया था. पिता का रसूखदार होने के कारण ही किशोर को आसान शर्तों पर रिहा कर दिया गया था जिस से लोगों में गुस्सा फूटा तो पुलिस ऐक्शन में आई और किशोर के पिता को गिरफ्तार कर लिया गया. नाबालिग को शराब परोसने वाले बार के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है.

सख्त कानून जरूरी

यह कोई पहली घटना नहीं है. आए दिन रईस घरानों के बच्चे इस तरह की घटना करते रहते हैं और जल्द ही बिना किसी कड़ी कार्रवाई के छूट भी जाते हैं लेकिन यदि इन की यही मनमानी चलती रही तो लोगों का घर से बाहर निकलना दुश्वार हो जाएगा.

इसलिए यह जरूरी है कि इन के खिलाफ सख्त कानून बनें, चाहे आरोपी नाबालिग हो या बालिग. साथ ही ऐसे मातापिता के खिलाफ भी सख्त कररवाई होनी चाहिए. ऐसे लोगों का गैरजिम्मेदार रवैया आम जनता की जान पर भारी पड़ता है.

 

 

लौट जाओ अमला: क्यों संध्या से अलग थी वह

सुपर फास्ट नीलांचल ऐक्सप्रैस से मैं दिल्ली आ रहा था. लखनऊ एक सरकारी काम से आया था. वैसे तो मैं उत्तर प्रदेश सरकार का नौकर हूं लेकिन रहता दिल्ली में हूं. दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश राज्य अतिथिगृह में विशेष कार्याधिकारी के पद पर कार्यरत हूं.

इस यात्रा के दौरान मेरे साथ कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुईं जिन्हें अप्रत्याशित कहा जा सकता है. मसलन, लखनऊ में मुझेजिन अधिकारी से मिलना था उन की पत्नी को जानलेवा दिल का दौरा पड़ गया. बेचारी पूरे 3 दिन तक जीवन और मृत्यु के बीच हिचकोले खाती हुई किसी तरह जीवित परिवार वालों के बीच लौट सकी थीं. वे अधिकारी भद्र पुरुष थे. पत्नी की बीमारी से फारिग होते ही उन्होंने पूरे 10 घंटे लगातार परिश्रम कर के मेरी उस योजना को अंतिम रूप प्रदान कर दिया जिस के लिए मैं लखनऊ आया था.

वापसी हेतु ऐन दशहरे के दिन ही मैं ट्रेन पकड़ सका. गाड़ी अपने निर्धारित समय पर लखनऊ से छूटी, लेकिन उन्नाव से पहले सोनिक स्टेशन पर वह अंगद के पांव की तरह अड़ गई. पता चला कि कंप्यूटर द्वारा संचालित सिग्नल व्यवस्था फेल हो गई है.

प्रथम श्रेणी के कूपे में मैं नितांत अकेला था. कानपुर पहुंचने से पहले ही मैं ने अपने थर्मस को नीबूपानी से भर दिया था. लगता था कि आज के दिन मुझेकोई सहयात्री नहीं मिलेगा. एक बार अच्छी तरह पढ़ी हुई पत्रिका को फिर पढ़ते हुए दिल्ली तक की यात्रा पूरी करनी पड़ेगी. वैसे मुझेपूरी उम्मीद थी कि मेरा बेटा कार ले कर मुझेलेने स्टेशन आएगा. मैं ने लखनऊ से ही उसे फोन कर दिया था कि मैं नीलांचल ऐक्सप्रैस से दिल्ली पहुंच रहा हूं.

खैर, सिग्नल पर हरी बत्ती जल चुकी थी और टे्रन ने बहुत हौले से रेंगना प्रारंभ किया ही था कि एक यात्री मेरे कूपे का दरवाजा खटखटाने लगा. मैं ने उठ कर शटर खोला. सामने एक छोटी सी अटैची थामे एक लड़की खड़ी हुई थी. गेहुआं रंग, लंबे, छरहरे बदन तथा सामान्य से कुछ अच्छे नैननक्श वाली इस लड़की को देख कर मुझेबड़ी निराशा हुई. सोचा, कोई आदमी होता तो उस के साथ बतियाते हुए दिल्ली तक का सफर आराम से कट सकता था.

लड़की ने सामने 2 नंबर की बर्थ पर अटैची रखते हुए मुझ से पूछा, ‘‘चाचाजी, अगर इजाजत हो तो मैं कूपे का दरवाजा बंद कर दूं?’’

अब चौंकने की बारी मेरी थी. टे्रन अब तक प्लेटफौर्म छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी थी. मुझ में और इस लड़की की आयु में अच्छाखासा अंतर था. लगभग इसी आयु की मेरी बेटी संध्या का विवाह हो चुका था. फिर भी आदमी आदमी ही होता है और औरत औरत. उन के आदिम और मूल रिश्तों पर बिरलों का ही बस चलता है. इस रिश्ते के बाद के अन्य सभी रिश्ते आदमी ने बनाए हैं, लेकिन वह भी…

‘‘यदि आप असुरक्षा न महसूस करें तो कूपे का दरवाजा बंद कर सकती हैं,’’ मैं ने उत्तर दिया.

लड़की धीरे से बुदबुदाई, ‘सुरक्षा, असुरक्षा वगैरह मैं बहुत पीछे अपने घर छोड़ आई हूं,’ फिर उस ने कूपे का दरवाजा बंद कर दिया तथा अपनी सीट से लगी खिड़की के बाहर झंकने लगी. लड़की मुझेकुछ परेशान, घबराई हुई सी लग रही थी. इस मौसम में कोई पसीना आने जैसी बात न थी, फिर भी वह रूमाल से माथे पर बारबार उभर रही पसीने की बूंदों को पोंछ रही थी.

गोविंदपुरी और पनकी स्टेशन निकल गए. लड़की ने अपना मुख मेरी ओर घुमाया. अब तक उस का पसीना काफी कुछ सूख चुका था.

‘‘चाचाजी, क्या मैं आप के थर्मस से थोड़ा सा पानी ले सकती हूं?’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘उस में पानी नहीं है.’’

‘‘प्यास के मारे मेरा गला सूख रहा है.’’

‘‘बेटी, इस में सिर्फ नीबूपानी है.’’

‘‘अच्छा, थोड़ा सा दे दीजिए.’’

वह नीबूपानी का एक गिलास गटागट पी गई. 10 मिनट के बाद उस ने फिर थर्मस की ओर देखा. मैं ने उसे 1 गिलास भर कर और दिया, जिसे वह धीरेधीरे पीती रही. अब वह अपेक्षाकृत सामान्य दिखाई देने लगी थी.

‘‘दिल्ली में किस जगह पर जाना है तुम्हें?’’ मैं ने बात करने की गरज से पूछा.

‘‘आप ने कैसे जाना कि मैं दिल्ली जा रही हूं?’’

‘‘बड़ी आसानी से,’’ मैं ने सहजता के साथ उत्तर दिया, ‘‘यह टे्रन कानपुर से चल कर दिल्ली ही रुकती है.’’

‘‘ओह…’’

‘‘लेकिन तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया, बेटी?’’

अब उस की ?िझक मिटने लगी थी. उस ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं मालूम कि मुझेकहां, किस जगह जाना है.’’

‘‘और तुम अकेली सफर कर रही हो.’’

‘‘हां, दिल्ली मैं अपने जीवन में पहली बार जा रही हूं.’’

मुझेलगा कि कहीं कोई न कोई गड़बड़ जरूर है. यह लड़की शायद अपनेआप को किसी बड़े संकट में डालने जा रही है.

‘‘बेटी,’’ मैं ने स्पष्टवादिता से काम लेते हुए पूछा, ‘‘पहले बात को ठीक तरह से सम?ो, फिर जवाब दो. मैं कह रहा था कि यह टे्रन रात को करीब डेढ़ बजे दिल्ली पहुंचेगी और तुम्हें यह तक पता नहीं कि कहां जाओगी, किस के साथ रहोगी.’’

‘‘नई दिल्ली स्टेशन पर राकेश मुझेलेने आएगा.’’

‘‘कौन राकेश?’’

‘‘राकेश मेरा प्रेम, मेरी जिंदगी, मेरा सबकुछ है.’’

‘‘तो तुम अपने घर से भाग कर आ रही हो?’’

फिल्मी संवाद की शैली में उस ने उत्तर दिया, ‘‘आप जो भी, जैसा भी चाहें निष्कर्ष निकाल सकते हैं. लेकिन मैं भाग कर नहीं जा रही हूं. मैं एक नया घर बनाने, एक नई जिंदगी शुरू करने जा रही हूं.’’

‘‘दिल्ली में नया घर, नई जिंदगी?’’ कुछ रुक कर मैं ने अगला सवाल किया, ‘‘तुम्हारी उम्र क्या है?’’

‘‘18 वर्ष और कुछ दिन. हाईस्कूल का प्रमाणपत्र है मेरे पास.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम कानूनी कीलकांटे से पूरी तरह से लैस हो कर अपने घर से निकली हो. फिलहाल इस बात को जाने दो. यह बताओ, तुम पढ़ी कहां तक हो?’’

‘‘इंटरमीडिएट, प्रथम श्रेणी, मु?ो

3 विषयों में विशेष योग्यता मिली है.’’

‘‘अरे, तुम्हारे सामने चिकनी सड़क जैसा उज्ज्वल भविष्य फैला हुआ है. फिर तुम यह सब क्या करने जा रही हो?’’

‘‘चाचाजी, मुझेकोई प्यार नहीं करता, न पिताजी और न ही मां. दोनों की अपनी अलग दुनिया है…किटी, पपलू, ब्रिज, क्लब, देर रात तक चलने वाली कौकटेल पार्टियां. मेरे अलावा दोनों को सबकुछ अच्छा लगता है. उन दोनों की एकएक बात मैं अच्छी तरह से जानतीसमझती हूं. लेकिन घटिया बातें अपने मुंह से आप के सामने कहना क्या आसान होगा.

‘‘चाचाजी, घर के नौकरों के साथ मैं ने अपना बचपन बिताया है. मेरे मातापिता या तो घर में होते ही नहीं हैं और यदि होते भी हैं तो अपनेअपने शयनकक्ष में सोए पड़े होते हैं. अब मैं कैसे कहूं कि मुझेबचपन में ही खराब, बहुत खराब हो जाना चाहिए था. यह करिश्मा ही है कि मैं आज तक ठीकठाक हूं.’’

अकस्मात मुझेलगा कि चारों तरफ फैलती जा रही शून्यता के बीच मेरी प्यारी बेटी संध्या मुझ से बातें कर रही है.

‘‘बेटी, तुम्हारा नाम जान सकता हूं?’’

‘‘अमला नाम है मेरा.’’

‘‘राकेश को कैसे जानती हो?’’

‘‘मेरे महल्ले का लड़का है. कालेज में मुझ से आगे था. एम ए कर चुका है.’’

‘‘वह करता क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर दिल्ली में तुम दोनों खाओगे क्या, रहोगे कहां? मैं तो समझ था कि राकेश दिल्ली में कोई नौकरी करता होगा. उस के पास रहने का अपना कोई ठिकाना होगा.’’

‘‘दिल्ली में हम सिलेसिलाए कपड़ों का व्यवसाय करेंगे. सुना है कि दिल्ली में यदि अच्छे संपर्कसूत्र बन जाएं तो विदेशों में तैयार वस्त्र निर्यात कर के लाखों के वारेन्यारे किए जा सकते हैं.’’

‘‘ठीक सुना है तुम ने बेटी,’’ मेरा मन भीग चला था, ‘‘जरूर लाखों के वारेन्यारे किए जा सकते हैं यदि संपर्कसूत्र अच्छा हो जाए तो. लेकिन संपर्कसूत्र का अर्थ जानती हो तुम?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. संपर्कसूत्र बढ़ने का अर्थ है, लोगों से जानपहचान हो जाना.’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने कठोरता से कहा, ‘‘कभीकभी इस शब्द के अर्थ बदल भी जाते हैं यानी शून्य अर्जित करने के लिए अपनेआप को अकारण मिटा डालना. एक ऐसी नदी बन जाना जिस का उद्गम तो होता है किंतु कोई सम्मानजनक अंत नहीं होता.’’

गाजियाबाद स्टेशन निकल चुका था. हम दिल्ली के निकट पहुंच रहे थे. मैं बहुत असमंजस की स्थिति में था. मैं अमला से कुछ कहना चाहता था, लेकिन क्या कहना चाहता था, क्यों कहना चाहता था, इस की कोई साफ तसवीर उभर कर मेरे मस्तिष्क में नहीं आ रही थी.

‘‘लेकिन बेटी, व्यापार के लिए धन चाहिए. कितना रुपया होगा तुम लोगों के पास?’’

‘‘राकेश के पास क्या है, एक तरह से कुछ भी नहीं,’’ अमला ने उत्तर दिया, ‘‘वह कह रहा था कि मैं अपनी मां के कुछ जेवर तथा पिताजी की सेफ से व्यापार लायक कुछ रुपए ले चलूं. आखिर बाद में वह सबकुछ मेरा और बड़े भैया का ही तो होगा. कल मिलने वाली चीज को आज ले लेने में क्या हर्ज है.’’

मुझेकुछ और पूछने का अवसर दिए बगैर वह कहती गई, ‘‘लेकिन मैं उन सब से घृणा करती हूं. उन का रुपया, पैसा, जेवर आदि मैं अपने भावी जीवन में कोई भी ऐसी चीज रखना नहीं चाहती जिस में मातापिता की स्मृति जुड़ती हो. मैं अपने साथ जेबखर्च से बचाए हुए 100 रुपयों के अलावा और कुछ ले कर नहीं आई. मैं ने राकेश से साफसाफ कह दिया था कि हम अपना आने वाला जीवन अपने हाथों अपने साधनों से बनाएंगे.’’

‘‘तुम्हारी यह बात क्या राकेश को अच्छी लगी थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘शायद नहीं,’’ उस ने कुछ सोचा, थोड़ा ?िझकी, फिर बोली, ‘‘बल्कि वह जेवर तथा रुपया न लाने की बात पर काफी नाराज भी हुआ था.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या, वह दोनों आंखें मूंदे सोचता रहा. फिर मुझ से बोला, ‘अमला, जब तुम साथ हो तो सब कुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा.’’’

‘‘कैसे ठीक हो जाएगा, तुम ने उस से साफसाफ पूछा नहीं. कहानी, उपन्यास तथा फिल्मों में सबकुछ अपनेआप ठीक हो जाता है, लेकिन वास्तविक जीवन में आदमी को अपने विवेक व अपने श्रम से सबकुछ ठीक करना पड़ता है.’’

‘‘आप समझते क्यों नहीं,’’ फिर कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘मुझेउस पर पूरा विश्वास है.’’

‘‘फिर भी बेटी, मैं ने आज तक अविश्वासघात होते नहीं देखा. जब भी घात हुआ विश्वास के साथ ही हुआ है. और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ कुछ ऐसा हो.’’

टे्रन यमुना के पुल से गुजर रही थी. हमारे पास समय बहुत कम बचा था. रात के 1 बज कर 35 मिनट हो चुके थे.

मैं ने हिम्मत बटोर कर अमला से पूछा, ‘‘बेटी, मुझ पर भरोसा रख कर क्या मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘हांहां, कहिए?’’

‘‘आज रात तुम मेरे घर चलो. तुम्हारे राकेश को भी हम अपने साथ ले चलेंगे.’’

‘‘मगर?’’

‘‘अगरमगर मत करो, हां कह दो. आगे बढ़ कर हम लौट नहीं सकते परंतु तुम जहां हो, वहीं रुक जाओ. वहां तुम अपनी चाची के साथ सोना…’’

न जाने किस प्रेरणा से अमला मेरी बेटी संध्या की तरह मेरे प्रति आज्ञाकारिणी हो गई. बोली, ‘‘ठीक है, जब आप इतनी जिद कर रहे हैं तो आप की बात मान ही लेती हूं.’’

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के निकासद्वार पर राकेश अपने दोस्तों के साथ खड़ा था. लंबेतगड़े, छोटीछोटी खसखसी दाढ़ी तथा बारीक तराशे बालों वाले राकेश के दोस्त मुझेअजीब लगे. राकेश ने मुझेअनदेखा करते हुए कहा, ‘‘अमला, चलो टैक्सी में बैठो. हम होटल चलते हैं. पहले ही काफी देर हो चुकी है.’’

राकेश को अपना परिचयपत्र थमाते हुए मैं ने कहा, ‘‘अमला मेरे साथ जा रही है. कल तुम मेरे घर आना. बाकी की बातें वहीं करेंगे.’’

तीनों दाढ़ी वाले सफेदपोश मेरा रास्ता रोक कर लाललाल आंखों से मुझेघूर रहे थे. इसी बीच मेरा बेटा आ पहुंचा था. उन तीनों में से एक मुझ से बोला, ‘‘यह लड़की लखनऊ से दिल्ली आप के मकान में सोने के लिए नहीं आई है.’’

उन तीनों को देख कर अमला के होश उड़ते दिखाई दे रहे थे. वह दृढ़तापूर्वक बोली, ‘‘राकेश, मैं चाचाजी के घर ही रहूंगी. तुम कल मुझ से इन के यहां ही मिलना.’’

मुझेलगा कि कुछ दंगाफसाद होने वाला है और मेरा बेटा इस सब के लिए अपनेआप को तैयार कर रहा है. इसी बीच भागते हुए 2 सिपाही हमारे पास आए. मुझेकुछ कहने का अवसर दिए बिना अमला ने उन सिपाहियों से कहा, ‘‘कृपया हमें हमारे घर पहुंचने में मदद कीजिए. मैं नहीं जानती कि ये लोग कौन हैं और क्यों मेरा रास्ता रोक रहे हैं.’’

मैं ने भी उन्हें अपना परिचय दिया. वे हमें हमारी कार तक पहुंचा गए. न जाने क्यों राकेश इस दौरान मौन रहा.

अगले दिन राकेश के दोस्तों के धमकीभरे फोन आने के बाद अमला को पूरी तरह एहसास हुआ कि वह अजगरों के मुंह में जाने से बालबाल बची है.

बाकी का काम मेरी पत्नी ने किया. उस ने अमला से कहा, ‘‘मेरी मुन्नी, आदमी का दुख दीपक की तरह होता है. वह खुद अपनेआप को पलपल जला कर दूसरों को प्रकाश देता रहता है. लौट जाओ अपने घर. स्वयं जल कर अपने घर को अपनी ज्योति से आलोकित कर दो.’’

‘‘लेकिन चाचीजी, मैं कैसे, किस मुंह से वापस जाऊं.’’

‘‘तुम्हारी वापसी, यानी कि पूरे मानसम्मान के साथ वापसी, हमारा काम है. जैसे भी हो, इसे हम करेंगे,’’ मेरी पत्नी उस की पीठ सहलाते हुए बोली, ‘‘जीना, जीते रहना जिंदगी की शर्त है. जब साथ चलने वाला कोई न मिले तो वीरानगी को अपना हमसफर बना लो. मेरी बेटी, तुम मंजिल तक जरूर पहुंच जाओगी.’’

अमला को मैं 4 दिनों बाद उस के घर वापस पहुंचा आया. उस के मातापिता को मैं ने टैलीफोन से पहले ही सबकुछ समझ दिया था.

पिछले 5 साल से उस के पत्र मेरे तथा मेरी पत्नी के नाम आते रहते हैं. अभी कल ही उस का पत्र मेरी पत्नी के पास आया है, ‘चाचीजी, मैं केंद्रीय सचिवालय की सेवाओं हेतु चुन ली गई हूं. जब तक कोई दूसरी व्यवस्था नहीं हो जाती, मैं आप लोगों के साथ ही रहूंगी.’

मेरी पत्नी मुसकरा कर मुझ से कहती है, ‘‘अब तक एक थी, अब हुक्म बजाने वाली एक और ?हो गई. चलूं, कमरा ठीक करूं. आखिर हुक्म तो हुक्म ही है.’’

लौकी से बनाएं ये मीठी नमकीन डिशेज

इन दिनों लौकी बाजार में भरपूर मात्रा में आ रही है. काफी लोग इसे बीमारों की सब्जी मानकर इसे खाने से परहेज करते हैं परन्तु लौकी में प्रचुर मात्रा में पोटैशियम, प्रोटीन, आयरन, और विटामिन सी पाया जाता है इसलिए इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है. लौकी में चूंकि 80 से 90 प्रतिशत तक पानी होता है इसलिए गर्मियों में इसके सेवन से शरीर हाइड्रेट रहता है और शरीर में पानी की कमी नहीं होने पाती. आमतौर लौकी का सेवन ज्यूस, और सब्जी के रूप में किया जाता है परन्तु आज हम आपको लौकी से बनने वाली 2 रेसिपी बता रहे हैं जिनके द्वारा आप लौकी को बड़ी आसानी से अपने भोजन में शामिल कर पाएंगे तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है

पेरी पेरी लौकी बॉल्स

कितने लोगों के लिए   –    8

बनने में लगने वाला समय   –  30

मील टाईप  –   वेज

सामग्री

  1.    2 कप कसी लौकी   
  2. डेढ़ कप ब्रेड क्रम्बस                     
  3. 2 उबले मैश किये आलू               
  4. 4 कटी हरी मिर्च                         
  5. 1 कटा प्याज                             
  6. 1 टीस्पून कटा हरा धनिया                 
  7. 1 इंच किसा अदरक                       
  8. नमक  स्वादानुसार
  9. 1 टीस्पून पेरी पेरी मसाला                   
  10. 1/2 टीस्पून अमचूर पाउडर                   
  11.  1/2 टीस्पून गरम मसाला पाउडर             
  12. 1/4 टीस्पून जीरा                                 
  13. 2चीज क्यूब्स                       
  14. 1 टीस्पून कॉर्नफ्लोर   
  15. तलने के लिए तेल                                                                                                                                       

 विधि-

तेल, कॉर्नफ्लोर और चीज क्यूब्स को छोडकर एक बाउल में लौकी, आलू, और 1 कप ब्रेड क्रम्बस के साथ सभी सामग्री को एक साथ मिला लें. कॉर्नफ्लोर को 2 टीस्पून पानी के साथ एक कटोरी में घोल लें. अब एक चीज क्यूब को 4 बराबर भागों में चाकू से काट लें, इस प्रकार 2 चीज क्यूब से 8 भाग तैयार हो जायेगें तैयार लौकी के मिश्रण में से 1 टेबलस्पून मिश्रण लेकर हथेली पर फैलाएं और बीच में चीज क्यूब का टुकड़ा रखकर अच्छी तरह पैक कर दें.  इसे चपटा करके बॉल्स बना लें. आधे कप ब्रेड क्रम्बस को एक प्लेट पर फैला लें. अब तैयार बॉल्स को कॉर्नफ्लोर के घोल में डुबोकर कांटे की सहायता से निकालें और ब्रेड क्रम्बस में अच्छी तरह लपेट लें. अब इन्हें गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें.  टोमेटो सौस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

2 लौकी कैरमल पुडिंग 

सामग्री

  1. कसा लौक 1 कटोरी
  2. 100 ग्राम पनीर
  3. 1 फुल क्रीम दूध लीटर                        
  4. शकर 2 टेबलस्पून
  5. 2 टेबलस्पून बारीक कटी मेवा
  6. 1 कटोरी मिल्क पाउडर
  7. 5 केसर के धागे
  8. 1 चुटकी इलायची पाउडर 
  9. 1 टीस्पून घी

विधि-

दूध को केसर के धागे डालकर उबलने गैस पर रख दें. दूसरे चूल्हे पर एक पैन में घी डालकर लौकी को हल्का सा भूनकर गैस बंद कर दें.  दूध में मिल्क पाउडर, लौकी, इलायची पाउडर और पनीर डाल दें, इसे गाढ़ा होने तक धीमी आंच पर पकाएं. एक पैन में घी गरम करके मेवा को रोस्ट करके प्लेट पर निकाल दें. इसी पैन में शकर डालकर धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक कि वह मेल्ट होकर सुनहरी न हो जाये. इस केरेमल शकर को पुडिंग में डालकर चलायें.

तलाक: ज़ाहिरा को शादाब ने क्यों छोड़ दिया?

आजवे फिर सामने थीं, चेहरे पर वही लावण्य, वही स्निगधता लिए मुसकरा कर बातें कर रही थीं. माथे पर बिलकुल छोटी सी बिंदी, करीने से पहनी हलके रंग की कौटन की साड़ी में वे सादगी की प्रतिमूर्ति नजर आ रही थीं. वे शहर की जानीमानी शख्सियत हैं, बड़ेबड़े अखबारों और पत्रपत्रिकाओं में स्त्रीपुरुष के संबंधों की जटिलता पर लेख लिखती हैं, काउंसलिंग भी करती हैं.

न जाने कितने ही संबंधों को टूटने से बचाया है उन्होंने- वर्तमान में मनोविज्ञान विशेषज्ञा के तौर पर विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दे रही हैं.

डा. रोली. यही छोटा सा नाम है उन का, लेकिन उन की शख्सियत किसी परिचय की मुहताज नहीं.

कुछ कार्यवश मुझे उन से मिलना था. फोन पर मैं ने अपना परिचय दिया तो कुछ क्षणों बाद ही वे मुझे पहचान गईं और अगले दिन दोपहर 1 बजे मिलने का समय दिया. मैं ठीक समय पर पहुंच गई. उन्हें काउंसलिंग में व्यस्त देख मैं चैंबर के बाहर ही रखी कुरसी पर बैठ गई.

उन से मेरा पहला परिचय तब हुआ था जब मैं महज 17-18 वर्ष की रही होऊंगी. एक करीबी रिश्तेदारी में विवाह था. दिसंबर की सर्दियों की अर्धरात्रि पश्चात फेरे चल रहे थे. मंडप के चारों ओर गद्देरजाइयों की व्यवस्था थी. हम सभी रजाई ओढ़े फेरे देख रहे थे. तभी एक महिला रिश्तेदार भीतर से आईं और मेरे साथ बैठी युवती से मुखातिब हुईं, तो उन की धीमी खुसफुसाहट ने मेरा ध्यान सहज आकर्षित कर लिया.

‘‘कैसी हो रोली, पूरा जनमासा छान आई, तुम यहां बैठी हो?’’

‘‘ठीक ही हूं भाभीजी, कट रही है, आइए बैठिए न,’’ उस ने धीरे से खिसक कर जगह बनाते हुए कहा.

‘‘तुम से कब से अकेले में बात करने की सोच रही थी, पर इस शादी की भीड़भाड़ में मौका ही नहीं मिला.’’

‘‘जी, कहिए, यहां तो लोग भी गिनेचुने

ही हैं. उन में से भी कुछ फेरे देखने में मगन हैं

तो कुछ ऊंघ रहे हैं,’’ कहते हुए उस ने चारों

ओर नजर दौड़ाई, तो मैं ने झट से मुंह रजाई से ढक लिया.

‘‘तुम्हारी शादी का क्या हुआ फिर, उन लोगों से कोई बात हुई? बहुत बुरा लगा सुन कर?’’ रिश्तेदार महिला ने कुरेदना शुरू किया.

‘‘क्या होना है भाभीजी, सब खत्म हो गया. तलाक मिल गया कुछ महीने पहले ही.’’

‘‘और इतना दहेज जो दिया था तुम्हारे पापा ने वह वापस लिया?

‘‘यहां जिंदगी खराब हो गई, आप दहेज की बात कर रही हैं, क्या करूंगी दहेज के सामान का? थाने में ही पड़ा है.’’

‘‘तुम खुल कर तो बताओ, ऐसे ऐबी तो न दिखता था लड़का.’’

युवती के मुंह से आह निकल गई, ‘‘ऐब भी होता तो मैं बरदाश्त कर लेती भाभीजी… क्या बताऊं समझ नहीं आता.’’

‘‘जब तक बताओगी नहीं, लोग कुछ न कुछ बोलते ही रहेंगे, सचाई तो पता चलनी ही चाहिए.’’

यह खुसफुसर मेरे कानों तक भी

स्पष्ट पहुंच रही थी. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान अनायास ही उन पर केंद्रित हो गया… वह युवती 23-24 साल की गेंहुए रंगत वाली, लंबी, आकर्षक देहयष्टि की स्वामिनी थी. घनी केशराशि को जूड़े में कैद कर रखा था. सलीके से पहनी गई सादी साड़ी में भी बेहद सुंदर लग रही थी. विवाह वाले घर में वह जब से आई थी, सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी.

उस के सलोने से चेहरे पर बड़ीबड़ी आंखों में काजल के बजाय गहन उदासी की स्याही थी.

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं कितनी धूमधाम से शादी हुई थी मेरी, लाखों खर्च कर दिए मेरे पापा ने. सरकारी नौकरी वाला दामाद पा कर घर में सब इतने खुश थे कि किसी ने भी गहराई से तहकीकात करने की जरूरत नहीं समझ, वहां से भी चट मंगनी, पट ब्याह का दबाव था.’’

‘‘लड़के का कोई चक्कर?’’

‘‘नहींनहीं, चक्करवक्कर कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर? ऐसा क्या हुआ कि इधर शादी उधर तलाक की नौबत आ गई?’’

‘‘छोडि़ए न भाभीजी, क्या करेंगी जान कर, जो होना था हो गया.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी मुझ से कह रही थीं तुम्हारे लिए कोई अच्छा लड़का बताने को… अब देखो लोग तो तरहतरह की बातें करते हैं, इसलिए

सोचा तुम से ही पूछ लूं सचाई… क्या हुआ था… बता न?’’

‘‘कोई जरूरत नहीं कोई लड़कावड़का ढूंढ़ने की… मैं जिस हाल में हूं ठीक हूं.’’

‘‘चलो ठीक है, पर कारण तो बताओ… तुम्हारी मम्मी तो कह रही थीं बहुत घटिया निकले तुम्हारी ससुराल वाले, दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे लाखों का दहेज देने के बाद भी… रोज मारपीट तक…’’

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं था, मेरी ससुराल वाले मेरा बहुत खयाल रखते थे.’’

‘‘तो तुम्हीं बता दो, क्या वजह रही… पहले भी तो हर बात मुझे बताती थी न? अब क्या मैं इतनी पराई हो गई?’’

वह समझ गई कि इस प्रश्नोत्तरी से उस का पीछा तब तक नहीं छूटेगा जब तक वह

सबकुछ बता नहीं देगी. लिहाजा नजरें झकाए उस ने बोलना शुरू किया और फिर बोलती चली गई…

‘‘भाभीजी, मेरी ससुराल वाले बुरे नहीं थे, बस एक गलती हो गई उन से… बहुत धूमधाम से शादी हुई थी मेरी. शादी के बाद पहली रात हर लड़की की तरह मैं भी अनगिनत सपने सजाए अमित (पति) का इंतजार कर रही थी, पर ये नहीं आए. सुबह लज्जावश और किसी से तो पूछ नहीं सकी पर छोटी ननद से पूछा तो वह बोली कि भैया तो ऊपर कमरे में सो रहे हैं.

‘‘मुझे कुछ समझ नहीं आया, लगा मेहमानों की भीड़ की वजह से शरमोहया होगी, सब ठीक हो जाएगा पर भाभीजी, पूरे 7 दिन तक अमित मुझे नजर ही नहीं आए.’’

‘‘उफ, ऐसा क्यों? ऐसी भी क्या शर्म, ब्याह हुआ है आखिर घर वालों को तो देखना चाहिए था… तुम्हारी सास मूर्ख हैं क्या?’’

‘‘भाभीजी, अब क्या बताऊं, कैसे बताऊं? मैं यही समझ कहीं बहुत बिजी हैं, मेहमानों के जाने के बाद मैं खुद उन्हें ढूंढ़ते हुए उन के सामने जा खड़ी हो गई,

तो ये मुझ से नजरें चुराने लगे… फिर एहसास हुआ कि ये तो मुझ से भाग रहे हैं. लगा कुछ ज्यादा ही शरमीले हैं पर… पर भाभीजी, महीनों तक ये लुकाछिपी चलती रही. वे भूल से भी

कमरे में न आते. बहाने बना कर मुझे मायके

भी जाने नहीं दिया, न खुद मायके के किसी सदस्य से मिलने को तैयार थे, न ही मेरे सामने आते थे. मैं इन से बात करने का, इन की इस बेरुखी की वजह जानने का मौका ढूंढ़ती पर ये

तो गजब ही कर रहे थे. आखिर एक दिन मेरा सब्र चुक गया. एक शाम किचन में खाना बनाते वक्त जब मैं ने अमित को ननद से पानी लाने को कहते सुना तो मैं खुद पानी ले कर उन के सामने पहुंच गई.

‘‘मुझे देखा तो बोले, ‘तुम क्यों आई? पानी रख दो और जाओ.’ भाभीजी, उस समय मुझे जाने क्या हुआ, सारी लाजशर्मलिहाज उतार फेंक दी और ढीठ हो कर बोली कि क्यों जाऊं? बीवी हूं आप की और यह आप क्या मुझ से छिपते फिरते हो… शादी क्या सिर्फ घर के काम और घर वालों की सेवा कराने के लिए की थी? इस तरह मुंह क्यों चुराते हैं?

‘‘जवाब में एक सनसनाता थप्पड़ रसीद हुआ था गाल पर. उदास आंखों से गंगाजमना छलकीं, जिन्हें पल्लू से सफाई से पोंछ लिया.

‘‘उस दिन थप्पड़ खा कर भी मैं चुप नहीं रह पाई थी… मैं उन के पैरों में पड़ी अपनी गलती पूछ रही थी कि आखिर किस गलती की सजा दे रहे हैं वे, जो मैं शादी के बाद भी सिर्फ नाम की ब्याहता हूं.

‘‘अमित मुझे रोता छोड़ बाहर चले गए, अब तक घर वालों को भी पता चल चुका था कि हमारे बीच क्या हुआ. रात में मम्मीजी खाने के लिए मनुहार करने आईं तो मैं ने साफ कह दिया कि जब तक अमित मुझे इस व्यवहार की वजह नहीं बताते, मैं अन्नजल कुछ भी ग्रहण नहीं करूंगी, ऐसे ही प्राण त्याग दूंगी. अगले दिन मैं कमरे से बाहर ही नहीं निकली, न ही कुछ खायापीया. मेरे सासससुर ने मनाने की बहुत कोशिश की, पर मैं अड़ गई.

‘‘अगले दिन भी मैं कमरे में बैठी आंसू बहा रही थी. जब अमित आए तब पहली बार उन्होंने मुझ से खुल कर बात की और बात क्या की भाभीजी,वज्र प्रहार कर दिया उन्होंने मुझ पर.’’

‘‘क्या… क्या बोला वह?’’

‘‘उन्होंने अपनी मैडिकल रिपोर्ट मेरे सामने रख दी. मैं ने प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो उन्होंने नजरें झका लीं. वे… वे तो शादी निभाने के काबिल ही नहीं थे. उन्होंने बताया कि अपनी इस कमी का एहसास उन्हें उम्र की समझ आते ही हो गया था. उन के मांपापा को जब पता चला तो तमाम डाक्टरी जांचें हुईं पर डाक्टर के नकारात्मक जवाब के बाद वे इस सचाई को स्वीकार करने के बजाय झड़फूंक कराने जाने लगे…

‘‘कुछ ढोंगी बाबाओं, हकीमों ने सलाह दी कि शादी करा दो, सब ठीक हो जाएगा. यह बात सिर्फ अमित के मातापिता को ही पता थी, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार इस बात से सर्वथा अनजान थे. सरकारी नौकरी लगते ही अमित के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए. अमित शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे पर उन पर रिश्तेदारों का, समाज का दबाव बढ़ता जा रहा था. लोग सवाल पूछते, जिन के जवाब में वे तरहतरह के बहाने बनाते थक चुके थे. इस दबाव के चलते आखिर उन्होंने शादी के लिए हां कर दी, लेकिन शादी के बाद उन की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे मेरा सामना कर सकते या मुझे सचाई बता सकते, इसलिए मुझ से दूर भागते थे.

‘‘मगर जब उन्हें लगा कि अब मुझ से सच छिपाना नामुमकिन है तो बहुत हिम्मत जुटा कर वे मेरे सामने आए. उन्होंने माफी मांगी मुझ से अपने किए की… पर मैं भला क्या माफ करती?

‘‘वे मुझ से बोले, ‘जो कहो करने को तैयार हूं, जो चाहो सजा दे दो,’ इस पर मैं ने इतना ही कहा, ‘मायके भेज दीजिए मुझे.’

‘‘और इस घटना के एक दिन बाद ही मैं मायके आ गई. मायके में भी कुछ

दिन तक तो समझ ही नहीं आया कि क्या बताऊं सब को, पर भला मां और बड़ी बहन से कैसे छिपा पाती? मेरे चेहरे पर फैली उदासी उन से छिपी न रह सकी. बड़ी दीदी ने मेरा मन टटोला तो कई दिन की भरी मैं उन के सामने फूटफूट कर रो पड़ी. सबकुछ जान कर मेरे घर वालों पर तो जैसे गाज ही गिर पड़ी. मां अपना सिर पीट रही थीं. पापा और भैया को पता चला तो उन्होंने बहुत सुनाया मेरी ससुराल वालों को. मेरे ससुर अपराधी की भांति सिर झकाए सब सुनते रहे. हाथ जोड़ते रहे पर पापा का क्रोध चरम पर था. मेरे बहुत मना करने पर भी दहेज का झठा केस करवा दिया. सास, ससुर, अमित तीनों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. भाभीजी, मेरे साथ गलत तो हुआ था, पर अब जो हो रहा था वह और भी गलत था.

‘‘अमित को ऊपर से नोटिस आ गया था, नौकरी पर बन आई थी, छोटी ननद की मंगनी टूट गई थी… आखिरकार कुछ समय बाद आपसी सहमति से तलाक हो गया.’’

‘‘पर ऐसी शादी तो वैसे ही खारिज हो जाती.’’

‘‘हां, पर मैं कोर्ट में यह कैसे कह पाती कि अमित शादी के लायक नहीं थे… नहीं हो पाता मुझ से. मैं तो अपनी शादी के मामले को कोर्ट में घसीटना कभी चाहती ही नहीं थी, लेकिन पापा पर तो जैसे बदला लेने का जुनून सवार हो गया था. वे मेरी ससुराल वालों को कड़े से कड़ा सबक सिखाना चाहते थे, इसलिए मेरे मायके वालों ने मेरी चलने नहीं दी.

‘‘पहले अमित मुझ से नजरें चुराते थे, उस दिन तलाक के फैसले के बाद मैं उन से नजरें चुरा रही थी. मेरी वजह से वे और उन का परिवार समाज में उपहास का पात्र बन गया था.

‘‘अमित ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए तो

मैं संयत नहीं रह पाई, घोर आत्मग्लानि से मैं

मर रही थी… उन का वह दयनीय चेहरा मैं भूल नहीं पाती.

‘‘कुल जमा 2 साल के इस समय में पहले शादीशुदा के ठप्पे के बाद अब तलाकशुदा का ठप्पा भी लग चुका है,’’ वह शून्य में निहार रही थी.

‘‘गम न करो, उदास न हो… सब ठीक होेगा, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… दोबारा खुशियां जरूर आएंगी.’’

यह दिलासा सुन कर उस के चेहरे पर विद्रूप हंसी उभरी और लुप्त हो गई. बोली, ‘‘क्या खुशियां आएंगी भाभीजी? मन ही मर गया है… अब कोई खुशी नहीं चाहिए.’’

‘‘ऐसा न कहो, वहां शादी का कोई मतलब भी तो नहीं था रोली… वहां रह कर तुम करती भी क्या, आगे जीवन बहुत लंबा है.’’

‘‘शादी का मतलब अगर शारीरिक संबंध और वंश बढ़ाना ही है तो हां, फिर इस शादी का कोई मतलब नहीं था… पर भाभीजी, मैं ने तो मन, वचन, कर्म से उन्हें अपना पति माना था. पूरी निष्ठा से 7 फेरे लिए थे.

‘‘आप लोग ही तो पहले बचपन से सिखाते हो कि भारतीय नारी सिर्फ एक बार, एक ही पुरुष को अपना पति स्वीकार करती है… और अब समझ रहे हो कि जीवन बहुत लंबा है, इसलिए किसी और का हाथ थाम लो… सालों से घुट्टी

की तरह पिलाया भारतीय नारी वाला सबक चुटकियों में भूल जाओ… और दूसरे रिश्ते में भी कोई और दिक्कत हुई तो? खुशियों की वहां गारंटी है भाभीजी?’’

‘‘तो क्या सारी उम्र जोगन बनी रहोगी?’’

‘‘जिस पल मैं ने अमित को कोर्ट के बाहर एक हारे शखस की तरह सिर

झकाए, हाथ जोड़ते देखा था न, तभी सोच लिया था… किसी के होंठों की मुसकराहट और जीवन का सुकून छीनने का जो अपराध मुझ से हुआ है, मुझे भी कोई हक नहीं मुसकराने का.’’

‘‘गलती तो उन लोगों की थी जो इतना बड़ा धोखा तुम्हें दिया, फिर भी वहीं की वकालत कर रही हो, आश्चर्य है.’’

‘‘वे तो गैर थे न, पर मेरे अपनों ने क्या किया? समाज, परिवार का दबाव क्या होता है यह मैं ने जान लिया. जब परिवार प्रश्नचिह्न लगाता है कि शादी क्यों नहीं कर रहे तो इस प्रश्न का जवाब अमित जैसे लोग कैसे दें? परिवार को जवाब दे भी दें तो समाज खड़ा हो जाता है… कितना मानसिक संताप यह समाज देता है, मैं आज समझ सकती हूं.

‘‘वे समाज से यह कह नहीं सकते थे कि वे शादी के काबिल ही नहीं है. यह समाज उन्हें चैन से जीने नहीं देता. उन्होंने समाज, परिवार के दबाव में आ कर शादी की और मैं ने अपने परिवार के दबाव में आ कर कोर्ट में अपने मायके वालों के झठे आरोपों पर हामी भरी.’’

‘‘हद है, उन्हीं का पक्ष लिए जा रही हो. खैर, अभी तुम्हारा घाव ताजा है… कुछ समय लगेगा भरने में.’’

‘‘कुछ घाव कभी नहीं भरते भाभीजी… मैं भरने देना चाहती भी नहीं.’’

‘‘और अपने मांपापा को तड़पता देखती रहोगी? तुम्हारी चिंता में वे घुले जा रहे हैं.’’

‘‘मैं आत्मनिर्भर बन रही हूं, नैट क्वालिफाई कर लिया है… नियुक्ति भी मिल जाएगी… और रही बात मेरी खुशियों की तो मेरे इस दुख और स्थिति के जिम्मेदार भी वही हैं. पहले पड़ताल न की… तुरतफुरत में ब्याह दिया, फिर उन लोगों पर झठा केस किया… भाभीजी, मैं नादान थी… मायके

आ कर दीदी को सब बता दिया… पर ये लोग

तो समझदार थे न, शादी की नींव सिर्फ

शारीरिक संबंध ही होते हैं क्या? यदि उस समय थोड़ा धैर्य रखा होता तो मैं और अमित आज भी साथ होते. मैं अमित के खंडित, दमित आत्मविश्वास को सहारा देती, पतिपत्नी की

तरह दैहिक संबंध भले न होता पर एकदूसरे

के सच्चे साथी तो हम बन ही सकते थे.

भविष्य में किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेते तो उस का भी भविष्य संवरता, हमें भी एक उद्देश्य मिल जाता.’’

‘‘तुम पागल हो क्या रोली? ये काल्पनिक बातें हैं. तुम्हारी शादी कोई फिल्म नहीं थी. दांपत्य जीवन में दैहिक संबंध भी जरूरी होते हैं, यह भी एक महती आवश्यकता है. देखो, शादी एक स्त्री और पुरुष के बीच के संबंधों से ही फलीभूत होती है जबकि तुम्हारे केस में तो यह शादी शादी थी ही नहीं. ऐसे विवाह नहीं चलते.’’

तभी पंडितजी की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई… वे वरवधू से कह रहे थे, ‘‘फेरे संपन्न हुए, आप दोनों अपने कुलदेवता, कुटुंब, अपने समाज के सम्मुख मनवचनकर्म से एकदूसरे को पतिपत्नी स्वीकार कर चुके हैं. यह अटूट बंधन में अब जन्मोंजन्मों के लिए बंध चुके हैं. यह मात्र देह नहीं मन का संबंध है.  जाइए अपने स्वजनों का आशीर्वाद लीजिए.’’

वह गीली आंखें लिए मुसकराई फिर मुड़ कर बोली, ‘‘भाभीजी, मैं हो जाऊंगी तैयार दोबारा सो कौल्ड खुशियों के स्वागत के लिए… बस आप लोग एक काम और कर दीजिए.’’

‘‘हां,’’ बोलो.

‘‘मेरे मन का भी उन से तलाक करवा दीजिए,’’ कह वह उठ खड़ी हुई और वहां से चलती बनी.

और आज पूरे 20 वर्ष बाद वे फिर सामने थीं. एक तलाक के केस की काउंसलिंग में बिजी वे एक कन्या और उस के परिजनों को समझ

रही थीं.

‘‘जरा सी बात को तूल देना ठीक नहीं, अपनी लड़की से पूछा आपने, वह

तलाक चाहती भी है या नहीं?’’

फिर लड़की से मुखातिब हो कर बोलीं, ‘‘तुम बिना किसी के दबाव में आए स्पष्ट बताओ, तुम तलाक चाहती हो?’’

कुछ पलों की चुप्पी के बाद लड़की ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘संबंधों का तलाक करवा दोगे, मन का मन से तलाक कैसे करवा पाओगे? अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए बेटी को ढाल मत बनाओ, वह तलाक नहीं चाहती. उस के फैसले का स्वागत करो.’’

परिजन भी शायद संतुष्ट हो गए थे, लड़की अपने पति और परिजनों के साथ चली गई.

वे चेयर पर सिर पीछे टिका कर निढाल सी बैठ गई थीं.

‘‘तो फिर रुकवा दिया एक तलाक?’’ मैं मुसकरा कर बोली, ‘‘बधाई हो. अब क्या सोच रही हैं आप?’’

‘‘यही कि काश, 22 साल पहले कोई रोली मुझे भी मिल गई होती.’’

Summer Special: चेहरे की सुंदरता बढ़ाएंगे आलू के ये 4 फेसपैक

चेहरे के दाग-धब्बे हटाने और आंखों के डार्क सर्कल कम करने के लिए आलू का इस्तेमाल काफी समय से किया जाता रहा है. आलू का रस आंखों के आसपास लगाने से यह आंखों की सूजन को कम करता है.

आइए जानें, चेहरे का ग्लो बढ़ाने और त्वचा में कसाव लाने के लिए घर पर कैसे तैयार करें आलू के फेसपैक…

1. आलू-अंडे फेसपैक

आलू और अंडे के फेसपैक को लगाने से चेहरे के पोर्स टाइट होते हैं. आधे आलू के रस में एक अंडे का सफेद हिस्सा मिलाकर अच्छी तरह मिक्स कर लें. इसे चेहरे और गर्दन पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें. बाद में सादे पानी से चेहरा धो लें. आपको तुरंत फर्क नजर आएगा.

2. आलू-हल्दी का फेसपैक

आलू और हल्‍दी के फेसपैक के नियमित उपयोग से त्‍वचा का रंग साफ होने लगता है. आधे आलू को कद्दूकस करके इसमें एक चुटकी हल्‍दी मिलाकर चेहरे पर लगाकर आधे घंटे के लिए छोड़ दें. बाद में चेहरा पानी से साफ कर लें. इस फेसपैक को हफ्ते में एक बार जरूर लगाएं.

3. आलू-मुल्तानी मिट्टी फेसपैक

यह फेसपैक आपकी त्‍वचा में निखार लाने के साथ ही मुंहासे वाली त्‍वचा की सूजन को कम करने में भी मददगार है. इस फेसपैक को बनाने के लिए बिना छीले आधे आलू का पेस्‍ट बना लें और उसमें 3 से 4 चम्‍मच मुल्‍तानी मिट्टी और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिलाकर पेस्ट तैयार करें.

अब इस पेस्‍ट को अपने चेहरे और गर्दन पर लगाकर 30 मिनट के लिए छोड़ दें. यह पैक आपकी स्किन को चमकदार बनाता है.

4. आलू-दूध से बना फेसपैक

आधे आलू को छिलकर उसका रस निकाल लें और इसमें दो चम्‍मच कच्‍चा दूध मिलाकर अच्‍छी तरह मिक्‍स करके कॉटन की मदद चेहरे और गर्दन पर लगाएं. फिर 20 मिनट के बाद इसे धो लें. सप्‍ताह में तीन बार इसे लगाने से चेहरे पर फर्क साफ नजर आने लगेगा.

मेहंदी से दूर करें बालों की हर प्रौब्लम

बालों से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं के लिए हम मेहंदी पर ही भरोसा करते हैं. सफेद बालों के लिए, रूखे बालों के लिए और यहां तक की दोमुंहें बालों की समस्या को दूर करने के लिए भी मेहंदी का इस्तेमाल किया जाता है. बालों की खूबसूरती बरकरार रखने और उन्हें स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी मेहंदी सबसे भरोसेमंद मानी जाती है.

मेहंदी एक नेचुरल उत्पाद है जो बालों को पोषित करने का काम करता है साथ ही इसके नियमित इस्तेमाल से बाल घने-मुलायम और लंबे होते हैं. इसके पैक लगाने से बालों में एक कुदरती चमक आती है. यूं तो बाजार में कई तरह के हेयर कलर मौजूद हैं लेकिन ये एक नेचुरल हेयर कलर है. ये स्कैल्प का पीएच लेवल संतुलित बनाए रखने का काम करता है. यानी यह न बालों को तैलीय होने देती है और न उनको रूखा व बेजान. इसके साथ ही अगर आपके बालों में रूसी की समस्या है तो इसे भी हटाने के लिए मेहंदी लगाना एक कारगर उपाय है. गर्मियों में मेहंदी का इस्तेमाल करना और भी अधिक फायदेमंद होता है क्योंकि इसके इस्तेमाल से सिर को ठंडक भी मिलती है.

आप मेहंदी का इस्तेमाल किस तरह से करना पसंद करते हैं, ये पूरी तरह आप पर निर्भर करता है. लेकिन अगर आप रूसी की समस्या से जूझ रहे हैं तो मेहंदी के इन उपायों को अपना सकते हैं:

1. अंडा, जैतून का तेल और मेहंदी पाउडर

अंडे के सफेद भाग, जैतून के तेल और मेहंदी पाउडर के इस्तेमाल से रूसी की समस्या बहुत जल्दी समाप्त हो जाती है. इन तीनों चीजों को आपस में अच्छी तरह मिला लें. इस पेस्ट को स्कैल्प पर अच्छी तरह से लगा लें. 30 मिनट तक इस पेस्ट को यूं ही लगा रहने दें और उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से बालों को साफ का लें.

2. मेहंदी, दही और नींबू

अगर आपको रूसी दूर करने के साथ ही बालों में चमक भी चाहिए तो ये हेयर-पैक आपके लिए सबसे अच्छा होगा. नींबू के रस में मेहंदी पाउडर को अच्छी तरह से फेंटकर एक पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में दही भी मिला लीजिए. कुछ देर के लिए इस पेस्ट को स्कैल्प पर लगाकर छोड़ दें, उसके बाद हल्के गुनगुने पानी से बालों को साफ कर लें.

3. सरसों के तेल के साथ मेहंदी पाउडर का इस्तेमाल

बालों में रूसी हो जाने पर सरसों के तेल का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है. जब इसे मेहंदी के साथ मिलाया जाता है तो यह एक बेहतरीन कंडीशनर बन जाता है. इसके इस्तेमाल से बाल मजबूत और स्वस्थ बनते हैं. अगर आप मेहंदी पाउडर की जगह मेहंदी की पत्त‍ियों का इस्तेमाल करें तो और भी बेहतर होगा. आप चाहें तो मेहंदी की पत्तियों को सरसों के तेल में पकाकर उस तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं.

फेस शेप के हिसाब से ऐसे चुनें बैस्ट ज्वैलरी

आभूषणों के बिना महिलाओं का शृंगार अधूरा माना जाता है. यही वजह है कि बदलते युग में भी ज्वैलरी का प्रयोग नए तरीकों से किया जाता है. ट्रैडिशनल पोशाक पसंद करने वाली अभिनेत्री विद्या बालन ने झुमकों के क्रेज के बारे में बताया कि उन्हें झुमके इतने पसंद हैं कि वे इन्हें खरीदने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं. उन्होंने ट्रेन में बिकने वाले 5 रुपए के सस्ते झुमके भी खरीद कर पहने हैं. विद्या को पारंपरिक गहनों की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं.

सोनम कपूर अकसर अपने स्टाइल के साथ ऐक्सपैरिमैंट करती हैं और उन का यह लुक सभी को पसंद भी है. उन्हें भी गहनों का खास शौक है, गहने चाहे महंगे हों या कम दाम के, ड्रैस से मैच करते गहने पहनती हैं. वे कहती हैं कि ट्रैडिशनल ड्रैस हो या वैस्टर्न गहनों की हर पहनावे पर पहनने की जरूरत होती है. अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को बहुत ही ट्रैंडी गहने पहनना पसंद है. उन्हें अधिकतर लंबे और लटकते इयररिंग्स पहने देखा जा सकता है क्योंकि उन का चेहरा लंबा है.

इस बारे में कृष्णा ज्वैलरी ऐक्सपर्ट हरि कृष्णा कहते हैं कि चेहरा व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होता है. सही आभूषण सुंदरता को और बढ़ाते हैं, इसलिए भारीभरकम गहनों से अधिक ऐलिगैंट लुक वाले गहने आज के यूथ की पसंद होते हैं और यही ट्रैंड है. इसलिए जब भी कोई महिला मेरे पास आती है तो उसे मैं चेहरे के अनुरूप ही गहने खरीदने की सलाह देता हूं. यही नहीं कई बार ऐसा देखा जाता है कि गहनों का चयन चेहरे के अनुसार नहीं किए जाने पर पूरा चेहरा ही बदल जाता है, ऐसे में कैसे जाने चेहरे के अनुसार कैसी ज्वैलरी पहनी जानी चाहिए ताकि सब की नजरें आप पर ठहर जाए, आइए जाने:

ओवल फेस

ओवल फेस की सब से अच्छी बात यह है कि इस चेहरे वाली महिलाएं किसी भी लंबाई और स्टाइल के नेकलैस पहन सकती हैं. इसी तरह ओवल या टियरड्रौप डिजाइन वाले राउंड नैकलैस जोकि आप के चेहरे के आकार की नकल करते हैं, बेहतरीन विकल्प माने जाते हैं. वहीं जियोमैट्रिकल पैंडैंट के साथ शौर्ट नैकलैस मिनिमलिस्टिक लुक के लिए काफी शानदार होते हैं. लुक को परफैक्ट बनाने के लिए वाइड इयररिंग्स की मैचिंग काफी अच्छा लुक देती है.

लौंग फेस

लौंग फेस में माथे से चिन तक की लंबाई अधिक होती है, जोकि उन्हें ओवल फेस से काफी अलग बनाती है. इस तरह के चेहरों के लिए एक सरल तरकीब यह है कि चेहरे की लंबाई को कम करती हुई ज्वैलरी चुनना, जो चेहरे की चौड़ाई पर अधिक बल देती हो. चौड़े चेहरे पर इंप्रैशन देने के लिए गरदन पर ऊंचे चंकियर नेक पीस का चुनाव एक सही विकल्प है. ऐसे चेहरे के लिए फुल चोकर सैट भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है. इस के अलावा शैंडेलियर इयररिंग्स लुक को कंप्लीट करने के लिए सब से बैस्ट हैं. फ्लोरल डिजाइनें भी इस प्रकार के चेहरे के लिए सब से बेहतरीन होती हैं.

हार्ट शेप फेसेस

यह चेहरे अकसर शौर्टर, पौइंटेड चिन वाला होता और चेहरे का ऊपरी आधा भाग चौड़ा होता है. इस तरह के चेहरे के लिए किसी भी प्रकार की ज्वैलरी को चुनने का सब से सही तरीका है, माथे की चौड़ाई को कम करने और वाइडर जौलाइन का इंप्रैशन पैदा करने वाले नैक पीस और उसी के अनुसार इयररिंग्स. इस में लौंग, वी शेप नैकलैस चिन को हाईलाइट करते हैं, इसलिए लौंग नैकलैस के बजाय शौर्ट नैकलैस, कर्व और राउंड गरदन के चारों ओर कंप्लीट लुक देते हैं और माथे की चौड़ाई को संतुलित करने में भी मदद करते हैं. लेयर्ड नैकलैस भी एक बेहतरीन पीस है और यदि पैंडैंट के लिए उत्सुक हैं, तो एक अडजस्टेबल चेन के साथ इसे चुनें ताकि इसे गले में जितना संभव हो उतना छोटा रख सकें. इस के अलावा टियरड्रौप इयररिंग्स भी निश्चित रूप से लुक को और अधिक निखार देती हैं.

राउंड फेस

राउंड फेस ओवल फेस की तुलना में एक खास अनुपात में होता है. राउंड फोरहैड और जौलाइन चेहरे की खूबसूरती को अधिक बढ़ाती है. शार्प स्टोन ज्वैलरी का चयन लुक में कुछ शार्पनैस लाने में मदद कर सकता है. लंबे पैंडैंट और नैकलैस जो कौलरबोन के नीचे वी शेप बनाते हैं, राउंड चेहरे पर सुंदर लगते हैं.

राउंड फेस वालों को चंकियर और चोकर नैकलैस पहनने से बचना चाहिए. चेहरे के अनुसार उन्हें कंट्रास्ट के लिए चौकोर एवं आयताकार वाले नैकलैस का चुनाव करना बेहतर रहता है.

स्क्वेयर फेस

इस चेहरे वालों के माथा, गाल और जौलाइन समान चौड़ाई की होती है, माथे से ले कर चिन तक की ऊंचाई भी चेहरे की चौड़ाई के समान ही होती है. स्क्वेयर फेस के लिए स्टोंस की ज्वैलरी चुनना सुरक्षित माना जाता है. इस के लिए शार्प जिओमैट्रिक डिजाइनों से बचना सब से बेहतर होता है. टैसल जैसे आकर्षक कंपोनैंट के साथ लौंग वर्टिकल नैकलैस, स्क्वेर फेस के लिए सब से बेहतरीन विकल्प हैं. लौंग नैकलैस चुनने से चेहरा लंबा दिखता है और चेहरे की सौफ्टनैस भी झलकती है.

वृक्ष मित्र: क्यों पति से ज्यादा उसे पेड़ से था प्यार

ससुराल में पति, सास और ससुरजी के बाद मुझेचौथे सब से प्रिय अपनी छत पर दाना चुगने आने वाले मुक्त मेहमान तोते और गौरैया थे. उस के बाद 5वें नंबर पर यह नीम का पौधा था. यह मेरा इकलौता पुरुष मित्र है.

इस पौधे को मैं ने नीम के बीज से अपने गमले में तैयार किया था. मैं प्रतिदिन इसे अपना स्पर्श और पानी देती हूं, इस की सुखसुविधा का खयाल रखती हूं.

6 माह पहले हमारी शादी हुई थी. यह समय हम ने रूठनेमनाने में बरबाद कर दिया. कोरोना महामारी के कारण पिछले 1 माह से अपने डाक्टर पति योगेश से एक क्षण के लिए नहीं मिली थी. कोरोना के मरीजों की देखभाल में व्यस्त थे.

आज मुझेअपना अकेलापन बहुत बुरा लग रहा था. मैं अपनी विरहपीढ़ा सह नहीं पा रही थी. अपने अकेलेपन से ऊब कर ही मैं ने नीम के इस पौधे से दोस्ती की थी.

यह पौधा मुझेप्रतिदिन ताजा, मुलायम,

हरी पत्तियां देता है. उन्हें चबा कर मैं अपने

शरीर से जहरीले पदार्थों को निकाल कर

तरोताजा महसूस करती हूं. नीम एक अच्छा ऐंटीऔक्सीडैंट है. अब यह बड़ा हो रहा था. कुछ दिनों में यह गमला और घर उस के लिए छोटा पड़ने लगेगा.

शादी के तुरंत बाद पहले भी  मैं ने एक नीम का एक पौधा तैयार किया था. मेरे पति ने उसे मुझ से मांग कर मैडिकल कालेज में अपने औफिस के प्रांगण में लगा दिया था. कुछ दिनों तक उस के हालचाल मुझेदेते रहे, पर अब उस नीम के पौधे से मेरा कोई संपर्क नहीं है.

इस बार अपने वृक्ष मित्र को अपने से

अलग नहीं होने दूंगी. पुरुष अपनी पत्नी के

पुरुष मित्रों के प्रति कुछ ज्यादा ही शंकालू होते

हैं. मेरे इकलौते पुरुष मित्र को मुझ से अलग

करने के कारण मुझेअपने पति योगेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था. यदि वे अभी मेरे निकट होते तो मुझेउन को अभी के अभी कमरे में ले जा कर बिस्तर पर पटक देना था और फिर उन से बदला लेना था. आगे की घटना के बारे में कल्पना करते हुए मेरा चेहरा रोमांच से लाल पड़ गया.

अगली सुबह अपने वृक्ष मित्र नीम के

पौधे की अतिरिक्त टहनियों को मैं ने काट दिया और उस को बोनसाई बनाना शुरू कर दिया. इस बार मैं नीम के पौधे को बड़ा होने से रोकूंगी. अपनी हैसियत और आकार के बराबर रहने दूंगी दोस्ती के लिए समानता बहुत आवश्यक है.

मेरे पति योगेश झंसी मैडिकल कालेज के कोरोना वार्ड के इंचार्ज थे. ड्यूटी खत्म होने पर भी उन्हें होटल के कमरे में क्वारंटीन रहना पड़ता था. मैं बेसब्री से उन की ड्यूटी खत्म होने का इंतजार कर रही थी. जैसे ही वे होटल के कमरे में आते थे, हमारी वीडियो चैट शुरू हो जाती. मेरी कोशिश होती थी कि उन्हें जल्द से जल्द सैक्सुअली रिलीज कर दूं. मुझेडर था कि कहीं मेरी अनुपस्थिति के कारण वे किसी खूबसूरत नर्स के प्रेमजाल में न पड़ जाएं.

मेरी एक सहेली ने लंबे समय के लिए पति से दूर अपने मायके आते समय पति को व्यस्त रखने के लिए ‘फ्लैश लाइट बाइब्रेटर’ गिफ्ट दिया था. मैं ने भी और्डर कर दिया था, लेकिन आने में अभी देर लग रही थी.

आज सुबह मुझेनीम की पत्तियों को मुंह में रखते ही थूक देना पड़ा. आज नीम की पत्तियों का स्वाद कुछ ज्यादा कड़वा प्रतीत हो रहा था. जब मैं ने यह बात योगेश को बताई तो उन्होंने इसे मेरा वहम बताया. उन का कहना था कि एक पौधा कैसे इतनी जल्दी पत्तियों का स्वाद परिवर्तित कर सकता है?

हमारे शहर में भयावह तरीके से कोरोना फैला हुआ था. किसी न किसी कारण योगेश

की रोज अखबार में फोटो के साथ तारीफ

छपती थी. ससुरजी तुरंत उस अखबार को मेरे पास भेज देते. शाम होने पर उन की तसवीर को काट कर मैं 2 बार चूमती हूं, फिर उसे अपने ब्लाउज में रख लेती.

आज योगेश को कोरोना वार्ड में इलाज करते हुए 50 दिन हो चुके थे. पूरा स्टाफ 15 दिन काम कर के बदल हो जाता था, पर योगेश ने छुट्टी लेने से साफ इनकार कर दिया था. सिद्धांतवादी जो ठहरे मानो इन के बिना कोरोना के मरीजों का ठीक से इलाज नहीं हो पाएगा.

हमारे जिले की कोरोना प्रभावितों की मृत्यु दर पूरे प्रदेश में सब से कम थी, इस बात से खुश हो कर मुख्यमंत्री महोदय ने उन की प्रशंसा की थी. अखबार में उन का फोटो छपा था. उन्होंने वही नेवी ब्लू शर्ट पहनी थी जो मैं ने हनीमून पर उन्हें नैनीताल के माल रोड पर अपनी विदाई के पैसों से खरीद कर दी थी. मैं खुशी से फूली न समा रही थी.

नहाते हुए मुझेअपने हनीमून के मजे याद आ गए. मेरी मां कहा करती हैं कि हमें पूर्णत: नग्न हो कर स्नान नहीं करना चाहिए, जल देवता का अपमान होता है. शादी से पहले मैं गाउन पहन कर ही नहाती थी, लेकिन शादी के बाद हनीमून पर योगेश ने मेरी यह प्रतिज्ञा तुड़वा दी. कड़कड़ाती सर्दी में हम लोग बहुत ही बेशर्मी से 1 घंटा बाथटब में नहाए थे.

साबुन की धार वक्ष पर गोलगोल घूम कर नीचे बढ़ते हुए नाभि को भरने लगी. 10 सैकंड तक नाभि को भरने के पश्चात जांघों की ओर बहने लगी. योगेशजी कहते हैं कि मेरी बैलीबटन मेरे शरीर का सब से आकर्षक हिस्सा है.

बाहर मुख्य दरवाजे पर ससुरजी राहुल से बात कर रहे थे. ससुरजी कालेज में कैमिस्ट्री के प्रोफैसर पद से रिटायर्ड हुए थे. उन का एक पुराना छात्र राहुल इन दिनों हमारी जरूरत का सामान बाजार से खरीद कर हमें दे जाता था. राहुल और उस के दोस्त लोगों की सहायता के लिए यह काम स्वेच्छा से कर रहे थे. आज राहुल ससुरजी से किसी परिचित के लिए मैडिकल कालेज में वैंटिलेटर के लिए सिफारिश करने के लिए कह रहा था.

ससुरजी ने उसे प्यार से समझया, ‘‘लोगों को जरूरत के हिसाब से उन की स्थिति और बचने की उम्मीद को देख कर वैंटिलेटर दिया जा रहा है, फिर भी तुम्हारी बात मैं योगेश तक पहुंचा दूंगा.’’

ससुरजी और मुझेराहुल की यह सिफारिश के लिए कहना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. योगेश तो सोर्ससिफारिश की बात सुनते ही उसी प्रकार भड़क जाते हैं जैसे सांड़ लाल कपड़े को देख भड़कता है. सांड़ की बात से ध्यान आया कि योगेश भी कई दिनों बाद मिलें तो सांड की तरह हो जाते थे. यह सोचते हुए मेरे गाल शर्म से लाल पड़ गए.

आज मैं ने नीम के पत्तियों के और अधिक कड़वा हो जाने की बात अपनी सासूमां को बताई. मां मुझेयोगेश की तुलना में ज्यादा अच्छे से जानती हैं. योगेश के साथ ज्यादा वक्त मैं या तो सिर्फ सोई थी या रोमांटिक बातें होती थीं. हम एकदूसरे के लिए चांदसितारे तोड़ लाने के झठे वादे करने में समय बरबाद करते थे.

वे सासूमां थीं जिन के साथ लोकाचार या व्यावहारिक बातें होती थीं. लौकडाउन ने सासूमां को मेरा और अच्छा दोस्त बना दिया था. हम एकदूसरे को भलीभांति जानने लगे थे. मां जानती थीं कि न तो मैं झठ बोलती हूं और न ही मेरे अवलोकन गलत होते हैं. वे हमेशा मेरे पक्ष में बोलती थीं. यहां तक कि उस के लिए वे अपने डाक्टर बेटे को भी डांट देती थीं.

योगेश का ध्यान आते ही एक बार फिर

मेरे जिस्म में करंट फैल गया. बुरा सा मुंह बना कर मैं मन ही मन बड़बड़ाई कि अपनी पत्नी की फिक्र नहीं हैं उन्हें… आने दो अच्छा मजा चखाऊंगी. यह योजना बनाते हुए मुझेगुदगुदी

होने लगी.

एक बार मां ने कह दिया, ‘‘यह नीम का पौधा तुझ से नाराज है. तुझेउसे गमले या अपने छोटे से घर में कैद रखने की योजना नहीं बनानी चाहिए.’’

उन का कहना था कि नीम को भी अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने देना चाहिए.

उन्होंने आदेश दिया, ‘‘दूर से दोस्ती रखो इस विशाल वृक्ष से. इस की सुंदरता इस की विशालता में है.’’

आज 65वां दिन था, भोजन के अतिरिक्त टीवी देखने के लिए मैं बैठक में सासससुर के पास कुछ वक्त गुजारती थी. ससुरजी आज के समाचार को ले कर पत्रकार के साथसाथ योगेश पर भी बहुत नाराज थे कि ऐसी समाजसेवा किस काम की?

किसी पत्रकार ने योगेश पर आरोप लगाया था कि रेमडेसिविर, प्लाज्मा, फेवी

फ्लू और वैंटिलेटर में गोलमाल हो रहा है, औक्सीजन खरीदने में घपला हो रहा है.

आज ससुरजी ने बहुत ही गंभीर हो कर मुझ से कहा, ‘‘पूर्णिमा, तुम योगेश से छुट्टी लेने को क्यों नहीं कहती?’’

ससुरजी ने बताया, ‘‘तुम्हारी सासूमां शादी के बाद मुझेविश्वविद्यालय के 30 दिन के ओरिएंटेशन कार्यक्रम और 15 दिन के रिफ्रैश कार्यक्रम भी अटैंड नहीं करने देती थीं और एक तुम हो योगेश 70 दिनों से बाहर है, फिर भी तुम वापस नहीं बुला पाई.’’

मैं ने बहुत ही धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं

मां की तरह खूबसूरत नहीं हूं… वे मेरे बस में

नहीं हैं.’’

मेरे जबाब पर सभी हंसने लगे. हम सभी जानते हैं कि इस का कारण मेरे रूपयौवन की कमी नहीं है.

योगेश को पकड़ कर घर खींच लाने की पापाजी की बात ने मुझेबहुत ही रोमांचित कर दिया था. मैं स्वयं को इंग्लिश मूवी की लड़कियों की तरह अनुभव करने लगी जो काले चमड़े की चोली और हाफ पैंट में एक हंटर लिए रहती हैं, गोल टोपी पहनती हैं, उन के पुरुषों के गले में गुलामी का पट्टा होता है. वे पुरुष उन के सैक्स स्लैव (काम नौकर) होते हैं. उन पुरुषों का कार्य सिर्फ अपनी मालकिन को खुश रखना है.

आजकल में योगेश आ जाएंगे, यह सोच कर आज मैं ने बैक्सिंग का प्लान बनाया था. दोपहर का भोजन जल्दी निबटा कर शक्कर, शहद, नीबू के रस और रोजिन को धीमी आंच में पका कर मैं कमरे में आ गई. हाथपैरों के बाल मैं वैक्सिंग से हटाती हूं और कांख तथा अन्य कोमल जगहों के बाल रेजर से हटा देती हूं. यदि योगेश  होते तो वे अपने ट्रिमर से पहले उन्हें कम कर देते. ट्रिमर का कंपन मुझेउत्तेजित कर देता और हम बैक्सिंग छोड़ प्यार करने लगते. ऐसा दसियों बार हो चुका होगा.

सासूमां नीम के पौधे को बोनसाई बनाने की मेरी योजना के सख्त खिलाफ थीं. शाम को सासूमां के बालों में नारियल के तेल की मालिश करते समय उन्होंने मुझेफिर से समझया कि विशाल वृक्ष के विकास को बाधित करने से मुझेप्रकृति का श्राप मिलेगा. उन की बात से मैं जरा भी सहमत नहीं थी. मैं ने उपेक्षा में सिर हिलाया तो मां होने के नाते तुरंत उन्होंने इस बात को समझ लिया होगा.

रात को बेलबूटे लगी हुई बेहद वल्गर नाइटी में मैं ने योगेश से वीडियो कौल चालू की. मैं योगेश को अपने चमकदार नितंब, रेजर फेरी हुई घाटी और फीते से बंधे हुए उभारों के दर्शन करा रही थी कि मां अचानक से कमरे में आ गईं. मैं ने बड़ी मुश्किल से तौलिए से अपने को ढकते हुए काल बंद कर दी.

मां ने बहुत ही प्यार से मुझेसहलाते हुए कहा, ‘‘रागिनी, एक तरफ तुम छत पर पक्षियों को दानापानी रख कर इतना नेक काम करती हो तो दूसरी ओर एक विशाल वृक्ष को अपना गुलाम बना कर क्यों रखना चाहती हो?’’

जातेजाते मुसकराते हुए उन्होंने मुझेडांटा, ‘‘योगेश से बात करते वक्त दरवाजा बंद रखा करो. पतिपत्नी की बातें चारदीवारी से बाहर नहीं निकलनी चाहिए.’’

लौकडाउन को आज 3 महीने हो चुके थे. मेरे जिस्म का 1-1 हिस्सा योगेश के स्पर्श को तरस रहा था. अपनी उंगलियों और कृत्रिम उपकरणों के झठे स्पर्श में अब मन नहीं लगता था. शादी के बाद हम ने अब तक गर्भनिरोधक उपाय किया था. सुहागरात के दिन योगेश भूखेप्यासे की तरह मुझ पर टूट पड़े थे. आज के आधुनिक युग में लड़केलड़कियां स्कूल छोड़ने तक अपने कौमार्य को सुरक्षित नहीं रख पाते, लेकिन हम दोनों अपवाद थे. हम अपना कौमार्य अपने जीवनसाथी के लिए बचा कर रखे थे और अब अपनी सारी आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते थे.

आज मुझेहमारी परिवार नियोजन योजना का पछतावा हो रहा था. कोरोना का

इलाज करते हुए योगेश को यदि कुछ हो गया तो क्या होगा?  इस लौकडाउन से पहले काश मैं ने गर्भधारण कर लिया होता. इन बातों को सोचते हुए मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे.

उस शाम योगेश ने मेरे संशय को भांप कर  मुझेआश्वासन दिया, ‘‘मैं अपने शुक्राणुओं को कल ही सीमन बैंक में सुरक्षित करवा दूंगा. मम्मीपापा के आशीर्वाद के कारण मुझेकुछ नहीं हो सकता. तुम निश्चिंत रहो. तुम्हारा प्यार मुझेयमराज के दरबार से वापस खींच लाएगा. हम पूरी सावधानी रखते हैं. पूरा समय पीपीई किट पहने होते हैं. समयसमय पर सैनिटाइज करते हैं, भाप लेते हैं.’’

आज के समाचार के अनुसार, ‘‘मैडिकल कालेज के कोरोना वार्ड के इंचार्ज डा. योगेश ने समस्त मैडिकल स्टाफ के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करते हुए 15 दिन का ब्रेक लेने से लगातार इनकार करते रहे हैं. लगातार इलाज करते हुए आज उन का 100वां दिन है.’’

मुझेयोगेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था, ‘‘इन जनाब को हीरो बनने का चसका लगा हुआ है.’’

मुझेसमझ नहीं आ रहा था कि अपने इन हीरो के लिए अपनी जान दूं या इन की जान ले लूं. योगेश यदि मेरे पास होते तो मैं उन के गालों को प्यार से ही सही पर काट लेती.

आज मैं ने अपने बाल धोए थे. सासससुर को पनीर के पकौड़े और चाय बनाने

के बाद नाइटगाउन में छत पर टहल रही थी. माटी की महक के साथ ठंडी हवा चल रही थी. लगता था आसपास कहीं मौनसूनपूर्व बारिश हुई है.

हवा का झंका गाउन को उड़ाता हुआ एक तरफ ले गया. हवा के तेज झंके मेरे कांख, वक्ष, कलाई, पेट, कूल्हों, कटि प्रदेश, जांघों और पिंडलियों को इस प्रकार सहला रहे थे जैसे योगेशजी की हथेली मुझेस्पर्श कर रही हो.

हवा के एक बेहद तेज झंके ने मुझेअनावृत कर दिया. मैं लगभग अर्द्धनग्न हो घूमतेघूमते मैं अपने पुरुष मित्र नीम के पौधे के पास आ गई. आज मुझेयह मुसकराता हुआ महसूस हो रहा था. मुझेलगता है कि इसे साथ रखने की मेरी योजना के चलते अब यह मुझ से खुश है. अफसोस कि लौकडाउन खुलते ही इस नीम के पौधे को भी मुझेयोगेश के साथ भेज देना होगा. हमारे घर में मां के आदेश का आंख बंद कर पालन जो किया जाता है.

मैं ने निश्चय किया कि योगेश के वापस आने के बाद एक बार फिर मां को समझने की कोशिश करूंगी कि पत्तियों की यह बढ़ी हुई कड़वाहट उस की खुशी का प्रतीक है. नीम की पहचान उस की कड़वाहट ही है न कि मिठास. यह नीम के पौधे के द्वारा अधिक लीमोनौयड  बनाने के कारण हुआ होगा. नीम अपने लीमोनौयड रसायन के कारण ही इतना उपयोगी है. नीम, लीमोनौयड के कारण ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करता है, जिस से यह हानिकारक पदार्थों से मानवशरीर को मुक्त करता है. मेरी इन तर्कपूर्ण बातों को जान कर शायद सासूमां नीम का पौधा घर पर रखने को मान जाएं. यह सोचते हुए मैं ने अपने शयनकक्ष में प्रवेश किया और कलैंडर पर 105वें दिन को चिह्नित कर दिया.

108वां दिन, आज कूरियर से मेरा खिलौना, जीस्पौट, रेविट बाईब्रेटिंग डेल्डो आया था. पैकेट से निकाल कर बेसब्री से योगेश की वीडियो कौल का इंतजार करने लगी.

आज 111वां दिन, हमारे घर उत्सव जैसा माहौल था. मैं, मां और पापाजी घर के कोनेकोने को साफ कर रहे थे. शहर में कोरोना के गंभीर मरीज अब कम होने लगे थे. आईसीयू की वेटिंग खत्म हो गई थी. दोपहर में फोन आया था कि योगेशजी 2-4 दिनों में लौट रहे हैं.

मैं ने मन ही मन संकल्प किया कि योगेश के घर लौटने के बाद 1 हफ्ते तक मैं उन्हें अपना शरीर छूने नहीं दूंगी. हालांकि उन का पूरा खयाल रखूंगी, उन के पैर दबाऊंगी, उन के सिर की मालिश करूंगी, उन की हर फरमाइश पूरी करूंगी, लेकिन सैक्स नहीं करने दूंगी.

जब वे अपनी गलती 10 बार मानेंगे, 10 बार मुझेमनाएंगे तो ही उन्हें अपने कपड़े उतारने दूंगी.

शाम को फोन आया कि योगेशजी घर आने के बाद 5 दिनों तक घर के पीछे नौकर के लिए बने हुए कमरे में रहेंगे. उन से शारीरिक दूरी बना कर रखनी होगी, 5 दिन कोई भी उन के पास नहीं जाएगा. उन्होंने बताया कि शहर में कोरोना भले कम हुआ है, लेकिन कोरोना के खिलाफ जंग अभी खत्म नहीं हुई है.

125वें दिन योगेश से मेरा मिलन ठीक उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार मैं ने चाहा था. नीम का पेड़ थोड़ा जैलसी में मुरझ सा गया लग रहा था. कोविड में जो बीमार हुए उन्होंने तो बहुत सहा पर जिन्होंने अस्पतालों में उन की देखभाल की उन के बारे में उन की मेरी जैसी युवा नईनवेली पत्नियां ही जानती हैं.

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