आजवे फिर सामने थीं, चेहरे पर वही लावण्य, वही स्निगधता लिए मुसकरा कर बातें कर रही थीं. माथे पर बिलकुल छोटी सी बिंदी, करीने से पहनी हलके रंग की कौटन की साड़ी में वे सादगी की प्रतिमूर्ति नजर आ रही थीं. वे शहर की जानीमानी शख्सियत हैं, बड़ेबड़े अखबारों और पत्रपत्रिकाओं में स्त्रीपुरुष के संबंधों की जटिलता पर लेख लिखती हैं, काउंसलिंग भी करती हैं.

न जाने कितने ही संबंधों को टूटने से बचाया है उन्होंने- वर्तमान में मनोविज्ञान विशेषज्ञा के तौर पर विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दे रही हैं.

डा. रोली. यही छोटा सा नाम है उन का, लेकिन उन की शख्सियत किसी परिचय की मुहताज नहीं.

कुछ कार्यवश मुझे उन से मिलना था. फोन पर मैं ने अपना परिचय दिया तो कुछ क्षणों बाद ही वे मुझे पहचान गईं और अगले दिन दोपहर 1 बजे मिलने का समय दिया. मैं ठीक समय पर पहुंच गई. उन्हें काउंसलिंग में व्यस्त देख मैं चैंबर के बाहर ही रखी कुरसी पर बैठ गई.

उन से मेरा पहला परिचय तब हुआ था जब मैं महज 17-18 वर्ष की रही होऊंगी. एक करीबी रिश्तेदारी में विवाह था. दिसंबर की सर्दियों की अर्धरात्रि पश्चात फेरे चल रहे थे. मंडप के चारों ओर गद्देरजाइयों की व्यवस्था थी. हम सभी रजाई ओढ़े फेरे देख रहे थे. तभी एक महिला रिश्तेदार भीतर से आईं और मेरे साथ बैठी युवती से मुखातिब हुईं, तो उन की धीमी खुसफुसाहट ने मेरा ध्यान सहज आकर्षित कर लिया.

‘‘कैसी हो रोली, पूरा जनमासा छान आई, तुम यहां बैठी हो?’’

‘‘ठीक ही हूं भाभीजी, कट रही है, आइए बैठिए न,’’ उस ने धीरे से खिसक कर जगह बनाते हुए कहा.

‘‘तुम से कब से अकेले में बात करने की सोच रही थी, पर इस शादी की भीड़भाड़ में मौका ही नहीं मिला.’’

‘‘जी, कहिए, यहां तो लोग भी गिनेचुने

ही हैं. उन में से भी कुछ फेरे देखने में मगन हैं

तो कुछ ऊंघ रहे हैं,’’ कहते हुए उस ने चारों

ओर नजर दौड़ाई, तो मैं ने झट से मुंह रजाई से ढक लिया.

‘‘तुम्हारी शादी का क्या हुआ फिर, उन लोगों से कोई बात हुई? बहुत बुरा लगा सुन कर?’’ रिश्तेदार महिला ने कुरेदना शुरू किया.

‘‘क्या होना है भाभीजी, सब खत्म हो गया. तलाक मिल गया कुछ महीने पहले ही.’’

‘‘और इतना दहेज जो दिया था तुम्हारे पापा ने वह वापस लिया?

‘‘यहां जिंदगी खराब हो गई, आप दहेज की बात कर रही हैं, क्या करूंगी दहेज के सामान का? थाने में ही पड़ा है.’’

‘‘तुम खुल कर तो बताओ, ऐसे ऐबी तो न दिखता था लड़का.’’

युवती के मुंह से आह निकल गई, ‘‘ऐब भी होता तो मैं बरदाश्त कर लेती भाभीजी… क्या बताऊं समझ नहीं आता.’’

‘‘जब तक बताओगी नहीं, लोग कुछ न कुछ बोलते ही रहेंगे, सचाई तो पता चलनी ही चाहिए.’’

यह खुसफुसर मेरे कानों तक भी

स्पष्ट पहुंच रही थी. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान अनायास ही उन पर केंद्रित हो गया… वह युवती 23-24 साल की गेंहुए रंगत वाली, लंबी, आकर्षक देहयष्टि की स्वामिनी थी. घनी केशराशि को जूड़े में कैद कर रखा था. सलीके से पहनी गई सादी साड़ी में भी बेहद सुंदर लग रही थी. विवाह वाले घर में वह जब से आई थी, सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी.

उस के सलोने से चेहरे पर बड़ीबड़ी आंखों में काजल के बजाय गहन उदासी की स्याही थी.

‘‘भाभीजी, आप तो जानती हैं कितनी धूमधाम से शादी हुई थी मेरी, लाखों खर्च कर दिए मेरे पापा ने. सरकारी नौकरी वाला दामाद पा कर घर में सब इतने खुश थे कि किसी ने भी गहराई से तहकीकात करने की जरूरत नहीं समझ, वहां से भी चट मंगनी, पट ब्याह का दबाव था.’’

‘‘लड़के का कोई चक्कर?’’

‘‘नहींनहीं, चक्करवक्कर कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर? ऐसा क्या हुआ कि इधर शादी उधर तलाक की नौबत आ गई?’’

‘‘छोडि़ए न भाभीजी, क्या करेंगी जान कर, जो होना था हो गया.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी मुझ से कह रही थीं तुम्हारे लिए कोई अच्छा लड़का बताने को… अब देखो लोग तो तरहतरह की बातें करते हैं, इसलिए

सोचा तुम से ही पूछ लूं सचाई… क्या हुआ था… बता न?’’

‘‘कोई जरूरत नहीं कोई लड़कावड़का ढूंढ़ने की… मैं जिस हाल में हूं ठीक हूं.’’

‘‘चलो ठीक है, पर कारण तो बताओ… तुम्हारी मम्मी तो कह रही थीं बहुत घटिया निकले तुम्हारी ससुराल वाले, दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे लाखों का दहेज देने के बाद भी… रोज मारपीट तक…’’

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं था, मेरी ससुराल वाले मेरा बहुत खयाल रखते थे.’’

‘‘तो तुम्हीं बता दो, क्या वजह रही… पहले भी तो हर बात मुझे बताती थी न? अब क्या मैं इतनी पराई हो गई?’’

वह समझ गई कि इस प्रश्नोत्तरी से उस का पीछा तब तक नहीं छूटेगा जब तक वह

सबकुछ बता नहीं देगी. लिहाजा नजरें झकाए उस ने बोलना शुरू किया और फिर बोलती चली गई…

‘‘भाभीजी, मेरी ससुराल वाले बुरे नहीं थे, बस एक गलती हो गई उन से… बहुत धूमधाम से शादी हुई थी मेरी. शादी के बाद पहली रात हर लड़की की तरह मैं भी अनगिनत सपने सजाए अमित (पति) का इंतजार कर रही थी, पर ये नहीं आए. सुबह लज्जावश और किसी से तो पूछ नहीं सकी पर छोटी ननद से पूछा तो वह बोली कि भैया तो ऊपर कमरे में सो रहे हैं.

‘‘मुझे कुछ समझ नहीं आया, लगा मेहमानों की भीड़ की वजह से शरमोहया होगी, सब ठीक हो जाएगा पर भाभीजी, पूरे 7 दिन तक अमित मुझे नजर ही नहीं आए.’’

‘‘उफ, ऐसा क्यों? ऐसी भी क्या शर्म, ब्याह हुआ है आखिर घर वालों को तो देखना चाहिए था… तुम्हारी सास मूर्ख हैं क्या?’’

‘‘भाभीजी, अब क्या बताऊं, कैसे बताऊं? मैं यही समझ कहीं बहुत बिजी हैं, मेहमानों के जाने के बाद मैं खुद उन्हें ढूंढ़ते हुए उन के सामने जा खड़ी हो गई,

तो ये मुझ से नजरें चुराने लगे… फिर एहसास हुआ कि ये तो मुझ से भाग रहे हैं. लगा कुछ ज्यादा ही शरमीले हैं पर… पर भाभीजी, महीनों तक ये लुकाछिपी चलती रही. वे भूल से भी

कमरे में न आते. बहाने बना कर मुझे मायके

भी जाने नहीं दिया, न खुद मायके के किसी सदस्य से मिलने को तैयार थे, न ही मेरे सामने आते थे. मैं इन से बात करने का, इन की इस बेरुखी की वजह जानने का मौका ढूंढ़ती पर ये

तो गजब ही कर रहे थे. आखिर एक दिन मेरा सब्र चुक गया. एक शाम किचन में खाना बनाते वक्त जब मैं ने अमित को ननद से पानी लाने को कहते सुना तो मैं खुद पानी ले कर उन के सामने पहुंच गई.

‘‘मुझे देखा तो बोले, ‘तुम क्यों आई? पानी रख दो और जाओ.’ भाभीजी, उस समय मुझे जाने क्या हुआ, सारी लाजशर्मलिहाज उतार फेंक दी और ढीठ हो कर बोली कि क्यों जाऊं? बीवी हूं आप की और यह आप क्या मुझ से छिपते फिरते हो… शादी क्या सिर्फ घर के काम और घर वालों की सेवा कराने के लिए की थी? इस तरह मुंह क्यों चुराते हैं?

‘‘जवाब में एक सनसनाता थप्पड़ रसीद हुआ था गाल पर. उदास आंखों से गंगाजमना छलकीं, जिन्हें पल्लू से सफाई से पोंछ लिया.

‘‘उस दिन थप्पड़ खा कर भी मैं चुप नहीं रह पाई थी… मैं उन के पैरों में पड़ी अपनी गलती पूछ रही थी कि आखिर किस गलती की सजा दे रहे हैं वे, जो मैं शादी के बाद भी सिर्फ नाम की ब्याहता हूं.

‘‘अमित मुझे रोता छोड़ बाहर चले गए, अब तक घर वालों को भी पता चल चुका था कि हमारे बीच क्या हुआ. रात में मम्मीजी खाने के लिए मनुहार करने आईं तो मैं ने साफ कह दिया कि जब तक अमित मुझे इस व्यवहार की वजह नहीं बताते, मैं अन्नजल कुछ भी ग्रहण नहीं करूंगी, ऐसे ही प्राण त्याग दूंगी. अगले दिन मैं कमरे से बाहर ही नहीं निकली, न ही कुछ खायापीया. मेरे सासससुर ने मनाने की बहुत कोशिश की, पर मैं अड़ गई.

‘‘अगले दिन भी मैं कमरे में बैठी आंसू बहा रही थी. जब अमित आए तब पहली बार उन्होंने मुझ से खुल कर बात की और बात क्या की भाभीजी,वज्र प्रहार कर दिया उन्होंने मुझ पर.’’

‘‘क्या… क्या बोला वह?’’

‘‘उन्होंने अपनी मैडिकल रिपोर्ट मेरे सामने रख दी. मैं ने प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो उन्होंने नजरें झका लीं. वे… वे तो शादी निभाने के काबिल ही नहीं थे. उन्होंने बताया कि अपनी इस कमी का एहसास उन्हें उम्र की समझ आते ही हो गया था. उन के मांपापा को जब पता चला तो तमाम डाक्टरी जांचें हुईं पर डाक्टर के नकारात्मक जवाब के बाद वे इस सचाई को स्वीकार करने के बजाय झड़फूंक कराने जाने लगे…

‘‘कुछ ढोंगी बाबाओं, हकीमों ने सलाह दी कि शादी करा दो, सब ठीक हो जाएगा. यह बात सिर्फ अमित के मातापिता को ही पता थी, छोटी बहन और अन्य रिश्तेदार इस बात से सर्वथा अनजान थे. सरकारी नौकरी लगते ही अमित के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए. अमित शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे पर उन पर रिश्तेदारों का, समाज का दबाव बढ़ता जा रहा था. लोग सवाल पूछते, जिन के जवाब में वे तरहतरह के बहाने बनाते थक चुके थे. इस दबाव के चलते आखिर उन्होंने शादी के लिए हां कर दी, लेकिन शादी के बाद उन की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे मेरा सामना कर सकते या मुझे सचाई बता सकते, इसलिए मुझ से दूर भागते थे.

‘‘मगर जब उन्हें लगा कि अब मुझ से सच छिपाना नामुमकिन है तो बहुत हिम्मत जुटा कर वे मेरे सामने आए. उन्होंने माफी मांगी मुझ से अपने किए की… पर मैं भला क्या माफ करती?

‘‘वे मुझ से बोले, ‘जो कहो करने को तैयार हूं, जो चाहो सजा दे दो,’ इस पर मैं ने इतना ही कहा, ‘मायके भेज दीजिए मुझे.’

‘‘और इस घटना के एक दिन बाद ही मैं मायके आ गई. मायके में भी कुछ

दिन तक तो समझ ही नहीं आया कि क्या बताऊं सब को, पर भला मां और बड़ी बहन से कैसे छिपा पाती? मेरे चेहरे पर फैली उदासी उन से छिपी न रह सकी. बड़ी दीदी ने मेरा मन टटोला तो कई दिन की भरी मैं उन के सामने फूटफूट कर रो पड़ी. सबकुछ जान कर मेरे घर वालों पर तो जैसे गाज ही गिर पड़ी. मां अपना सिर पीट रही थीं. पापा और भैया को पता चला तो उन्होंने बहुत सुनाया मेरी ससुराल वालों को. मेरे ससुर अपराधी की भांति सिर झकाए सब सुनते रहे. हाथ जोड़ते रहे पर पापा का क्रोध चरम पर था. मेरे बहुत मना करने पर भी दहेज का झठा केस करवा दिया. सास, ससुर, अमित तीनों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. भाभीजी, मेरे साथ गलत तो हुआ था, पर अब जो हो रहा था वह और भी गलत था.

‘‘अमित को ऊपर से नोटिस आ गया था, नौकरी पर बन आई थी, छोटी ननद की मंगनी टूट गई थी… आखिरकार कुछ समय बाद आपसी सहमति से तलाक हो गया.’’

‘‘पर ऐसी शादी तो वैसे ही खारिज हो जाती.’’

‘‘हां, पर मैं कोर्ट में यह कैसे कह पाती कि अमित शादी के लायक नहीं थे… नहीं हो पाता मुझ से. मैं तो अपनी शादी के मामले को कोर्ट में घसीटना कभी चाहती ही नहीं थी, लेकिन पापा पर तो जैसे बदला लेने का जुनून सवार हो गया था. वे मेरी ससुराल वालों को कड़े से कड़ा सबक सिखाना चाहते थे, इसलिए मेरे मायके वालों ने मेरी चलने नहीं दी.

‘‘पहले अमित मुझ से नजरें चुराते थे, उस दिन तलाक के फैसले के बाद मैं उन से नजरें चुरा रही थी. मेरी वजह से वे और उन का परिवार समाज में उपहास का पात्र बन गया था.

‘‘अमित ने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए तो

मैं संयत नहीं रह पाई, घोर आत्मग्लानि से मैं

मर रही थी… उन का वह दयनीय चेहरा मैं भूल नहीं पाती.

‘‘कुल जमा 2 साल के इस समय में पहले शादीशुदा के ठप्पे के बाद अब तलाकशुदा का ठप्पा भी लग चुका है,’’ वह शून्य में निहार रही थी.

‘‘गम न करो, उदास न हो… सब ठीक होेगा, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… दोबारा खुशियां जरूर आएंगी.’’

यह दिलासा सुन कर उस के चेहरे पर विद्रूप हंसी उभरी और लुप्त हो गई. बोली, ‘‘क्या खुशियां आएंगी भाभीजी? मन ही मर गया है… अब कोई खुशी नहीं चाहिए.’’

‘‘ऐसा न कहो, वहां शादी का कोई मतलब भी तो नहीं था रोली… वहां रह कर तुम करती भी क्या, आगे जीवन बहुत लंबा है.’’

‘‘शादी का मतलब अगर शारीरिक संबंध और वंश बढ़ाना ही है तो हां, फिर इस शादी का कोई मतलब नहीं था… पर भाभीजी, मैं ने तो मन, वचन, कर्म से उन्हें अपना पति माना था. पूरी निष्ठा से 7 फेरे लिए थे.

‘‘आप लोग ही तो पहले बचपन से सिखाते हो कि भारतीय नारी सिर्फ एक बार, एक ही पुरुष को अपना पति स्वीकार करती है… और अब समझ रहे हो कि जीवन बहुत लंबा है, इसलिए किसी और का हाथ थाम लो… सालों से घुट्टी

की तरह पिलाया भारतीय नारी वाला सबक चुटकियों में भूल जाओ… और दूसरे रिश्ते में भी कोई और दिक्कत हुई तो? खुशियों की वहां गारंटी है भाभीजी?’’

‘‘तो क्या सारी उम्र जोगन बनी रहोगी?’’

‘‘जिस पल मैं ने अमित को कोर्ट के बाहर एक हारे शखस की तरह सिर

झकाए, हाथ जोड़ते देखा था न, तभी सोच लिया था… किसी के होंठों की मुसकराहट और जीवन का सुकून छीनने का जो अपराध मुझ से हुआ है, मुझे भी कोई हक नहीं मुसकराने का.’’

‘‘गलती तो उन लोगों की थी जो इतना बड़ा धोखा तुम्हें दिया, फिर भी वहीं की वकालत कर रही हो, आश्चर्य है.’’

‘‘वे तो गैर थे न, पर मेरे अपनों ने क्या किया? समाज, परिवार का दबाव क्या होता है यह मैं ने जान लिया. जब परिवार प्रश्नचिह्न लगाता है कि शादी क्यों नहीं कर रहे तो इस प्रश्न का जवाब अमित जैसे लोग कैसे दें? परिवार को जवाब दे भी दें तो समाज खड़ा हो जाता है… कितना मानसिक संताप यह समाज देता है, मैं आज समझ सकती हूं.

‘‘वे समाज से यह कह नहीं सकते थे कि वे शादी के काबिल ही नहीं है. यह समाज उन्हें चैन से जीने नहीं देता. उन्होंने समाज, परिवार के दबाव में आ कर शादी की और मैं ने अपने परिवार के दबाव में आ कर कोर्ट में अपने मायके वालों के झठे आरोपों पर हामी भरी.’’

‘‘हद है, उन्हीं का पक्ष लिए जा रही हो. खैर, अभी तुम्हारा घाव ताजा है… कुछ समय लगेगा भरने में.’’

‘‘कुछ घाव कभी नहीं भरते भाभीजी… मैं भरने देना चाहती भी नहीं.’’

‘‘और अपने मांपापा को तड़पता देखती रहोगी? तुम्हारी चिंता में वे घुले जा रहे हैं.’’

‘‘मैं आत्मनिर्भर बन रही हूं, नैट क्वालिफाई कर लिया है… नियुक्ति भी मिल जाएगी… और रही बात मेरी खुशियों की तो मेरे इस दुख और स्थिति के जिम्मेदार भी वही हैं. पहले पड़ताल न की… तुरतफुरत में ब्याह दिया, फिर उन लोगों पर झठा केस किया… भाभीजी, मैं नादान थी… मायके

आ कर दीदी को सब बता दिया… पर ये लोग

तो समझदार थे न, शादी की नींव सिर्फ

शारीरिक संबंध ही होते हैं क्या? यदि उस समय थोड़ा धैर्य रखा होता तो मैं और अमित आज भी साथ होते. मैं अमित के खंडित, दमित आत्मविश्वास को सहारा देती, पतिपत्नी की

तरह दैहिक संबंध भले न होता पर एकदूसरे

के सच्चे साथी तो हम बन ही सकते थे.

भविष्य में किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लेते तो उस का भी भविष्य संवरता, हमें भी एक उद्देश्य मिल जाता.’’

‘‘तुम पागल हो क्या रोली? ये काल्पनिक बातें हैं. तुम्हारी शादी कोई फिल्म नहीं थी. दांपत्य जीवन में दैहिक संबंध भी जरूरी होते हैं, यह भी एक महती आवश्यकता है. देखो, शादी एक स्त्री और पुरुष के बीच के संबंधों से ही फलीभूत होती है जबकि तुम्हारे केस में तो यह शादी शादी थी ही नहीं. ऐसे विवाह नहीं चलते.’’

तभी पंडितजी की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई… वे वरवधू से कह रहे थे, ‘‘फेरे संपन्न हुए, आप दोनों अपने कुलदेवता, कुटुंब, अपने समाज के सम्मुख मनवचनकर्म से एकदूसरे को पतिपत्नी स्वीकार कर चुके हैं. यह अटूट बंधन में अब जन्मोंजन्मों के लिए बंध चुके हैं. यह मात्र देह नहीं मन का संबंध है.  जाइए अपने स्वजनों का आशीर्वाद लीजिए.’’

वह गीली आंखें लिए मुसकराई फिर मुड़ कर बोली, ‘‘भाभीजी, मैं हो जाऊंगी तैयार दोबारा सो कौल्ड खुशियों के स्वागत के लिए… बस आप लोग एक काम और कर दीजिए.’’

‘‘हां,’’ बोलो.

‘‘मेरे मन का भी उन से तलाक करवा दीजिए,’’ कह वह उठ खड़ी हुई और वहां से चलती बनी.

और आज पूरे 20 वर्ष बाद वे फिर सामने थीं. एक तलाक के केस की काउंसलिंग में बिजी वे एक कन्या और उस के परिजनों को समझ

रही थीं.

‘‘जरा सी बात को तूल देना ठीक नहीं, अपनी लड़की से पूछा आपने, वह

तलाक चाहती भी है या नहीं?’’

फिर लड़की से मुखातिब हो कर बोलीं, ‘‘तुम बिना किसी के दबाव में आए स्पष्ट बताओ, तुम तलाक चाहती हो?’’

कुछ पलों की चुप्पी के बाद लड़की ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘संबंधों का तलाक करवा दोगे, मन का मन से तलाक कैसे करवा पाओगे? अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए बेटी को ढाल मत बनाओ, वह तलाक नहीं चाहती. उस के फैसले का स्वागत करो.’’

परिजन भी शायद संतुष्ट हो गए थे, लड़की अपने पति और परिजनों के साथ चली गई.

वे चेयर पर सिर पीछे टिका कर निढाल सी बैठ गई थीं.

‘‘तो फिर रुकवा दिया एक तलाक?’’ मैं मुसकरा कर बोली, ‘‘बधाई हो. अब क्या सोच रही हैं आप?’’

‘‘यही कि काश, 22 साल पहले कोई रोली मुझे भी मिल गई होती.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...