फिल्मों में इंटिमेट सीन्स का क्या है राज

आज की फिल्मों या वैबसीरीज में किसिंग सीन या इंटिमेट सीन्स का होना कोई बड़ी बात नहीं है. सभी स्टार्स प्यार को दर्शाने के लिए किसिंग सीन को नौर्मल मानते हैं और इसे करने में वे हिचकिचाते नहीं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस दृश्य के न होने पर फिल्म की कहानी अधूरी लगेगी.

एक इंटरव्यू में अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ने कहा है कि जब पहली बार उन्हें एक इंटिमेट बैड सीन करने के लिए कहा गया, तो उन्हें बहुत अजीब सी फीलिंग हुई थी और उस दृश्य को करने के लिए उन्होंने कुछ समय मांगा और बाद में किया, लेकिन उन की शर्त यह रही कि निर्देशक को एक बार में दृश्य को शूट करना है. वह रीटेक नहीं देगी.

दर्शक इन दृश्यों को पैसा वसूल मानते आए हैं. आज लगभग हर फिल्म में किसिंग सीन तो देखते ही होंगे और जब फिल्म इमरान हाशमी की हो, तो इस में बिना किस के फिल्म पूरी ही नहीं होती, लेकिन सवाल यह उठता है कि फिल्म में ये सीन कैसे शूट किए जाते हैं. डाइरैक्टर और क्रू मैंबर्स के सामने अभिनेत्रियां कैसे आसानी से किसिंग या बैड सीन दे देती हैं. आइए, जानते हैं:

डबल बौडी का प्रयोग

ऐसे अंतरंग दृश्यों के बारे में निर्देशक पहले से ही अभिनेत्री को बता देते हैं ताकि वह भी मानसिक रूप से तैयार रहे. अगर कोई ऐक्ट्रैस इसे करने से मना करती है तो डबल बौडी का प्रयोग किया जाता है, जिस की तैयारी निर्देशक पहले से ही कर लेते हैं ताकि शूटिंग में किसी प्रकार की बाधा न हो. इस के अलावा इंटिमेट सीन्स की शूटिंग के लिए निर्देशक इंटिमेसी स्पैशलिस्टों की सेवाएं लेने और वर्कशौप करने से ले कर शूटिंग के समय सुरक्षित शब्दों का इस्तेमाल करते हैं ताकि कलाकारों को किसी तरह की असहजता महसूस न हो.

कलाकारों में अच्छी कैमिस्ट्री

फिल्म निर्माता अलंकृता श्रीवास्तव और सिनेमाटोग्राफर जय ओ?ा ने फिल्म ‘मेड इन हैवेन’ की शूटिंग के दौरान कलाकारों के बीच विश्वास का भाव पैदा करने और बारबार रीटेक से बचने के बारे में विस्तार से कलाकारों से बातचीत की, उन के बीच में एक कैमिस्ट्री तैयार की ताकि सीन्स को फिल्माते वक्त वे असहज न हों. ‘मार्गरीटा विद ए स्ट्रा’ की शूटिंग से पहले निर्देशक शोनाली बोस ने तय कर लिया था कि उन के कलाकार खुद को सुरक्षित महसूस करें. इसलिए कल्कि और सयानी गुप्ता ने बोस के साथ इंटिमेसी वर्कशौप की. जिस दिन सयानी गुप्ता को अपनी शर्ट उतारनी थी, उस समय सैट पर कुछ महिलाएं ही थीं. बोस ने भी शर्ट उतार दी और कमर पर एक तौलिया बांधा. इस से दोनों के बीच में हिचकिचाहट में कमी आई और सीन शूट करना आसान हुआ.

नहीं होता आसान

अभिनेत्री अनुप्रिया गोयंका से इंटिमेट सीन्स की सहजता के बारे में पूछने पर बताया कि कोई भी इंटिनेट सीन को शूट करना आसान नहीं होता, उस में अंतरंगता की फीलिंग लानी पड़ती है, जिस के लिए इंटिमेसी स्पैशलिस्ट होते हैं, जो उस सीन की कोरियोग्राफी करते हैं, जिस से उस सीन को फिल्माना आसान होता है. इन सीन्स को फिल्माते वक्त अधिकतर एक छोटी टीम होती है ताकि कलाकार को असहजता महसूस न हो. केवल एक्ट्रैस ही नहीं ऐक्टर भी कई बार ऐसे सीन्स करने में सहम जाते हैं.

अभिनेत्री तापसी पन्नू की फिल्म ‘हसीन दिलरुबा’ में तापसी, विक्रांत मेसी और हर्षवर्धन के साथ इंटिमेट सीन्स करती हुई दिखी थीं, जिस में दोनों ऐक्टर सहमे हुए थे कि ये दृश्य वे कैसे शूट करेंगे, लेकिन तापसी ने उन्हें बातचीत कर सहज किया और दृश्य को फिल्माया गया.

रजामंदी जरूरी

हिंदी फिल्म निर्देशक अशोक मेहता कहते हैं कि फिल्म की कहानी को बताते हुए ऐक्ट्रैस को पहले से सीन के बारें में बताया जाता है. अगर उस ने उसे करने से मना किया तो डबल बौडी का प्रयोग होता है, जिस में एक लैटर लिख कर अभिनेत्री और डबल बौडी करने वाले के साइन कराए जाते हैं ताकि बाद में ऐक्ट्रैस आरोप न लगाए कि उस दृश्य के बारे में उसे पता नहीं था. अगर कोई ऐक्ट्रैस अधिक समस्या करती है तो उस सीन को हटा भी दिया जाता है. फिल्मों से अधिक यह समस्या ओटीटी पर होती है.

तकनीक का प्रयोग

तकनीक का प्रयोग भी ऐसे सीन्स के लिए किया जाता है, जिस में डबल बौडी के साथ उसे शूट कर उस में अभिनेत्री का फेस लगा दिया जाता है.

अशोक मेहता कहते हैं कि कई बार ऐक्ट्रैस पहले इंटिमेट सीन्स को शूट तो कर लेती है, लेकिन बाद में परिवार वालों या बौयफ्रैंड के पूछने पर साफ इनकार भी कर देती है कि उस ने ये सीन्स नहीं दिए हैं और निर्मातानिर्देशक पर आरोप लगाती है, जिस से समस्या आती है. बड़े प्रोडक्शन हाउस को इस से अधिक फर्क नहीं पड़ता, लेकिन छोटे निर्माता, निर्देशक को कोर्ट तक जाना पड़ता है, जिस का सैटलमैंट अधिक पैसे से करना पड़ता है या सीन को हटाना पड़ता है.

इंडस्ट्री में आई नई या 2-3 फिल्में कर चुकी ऐक्ट्रैस के साथ अधिकतर ऐसी समस्या है. कई बार कुछ इंटिमेट सीन्स की जरूरत खास कहानी के लिए होती है. मसलन, फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में ?ारने के पानी में मंदाकिनी का नहाना और बच्चे को स्तनपान कराने वाले दृश्य की वजह से फिल्म हिट हुई. लोग उसी को देखने हौल तक अधिक गए. तब जमाना अलग था. आज के समय में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री इंटिमेट सीन्स के मामले में वास्तविकता के बेहद करीब पहुंच गई है. ‘मेड इन हेवन,’ ‘फोर मोर शौट्स प्लीज’ और ‘सैक्रेड गेम्स’ आदि वैबसीरीज और ‘जिस्म,’ ‘मर्डर’ जैसी फिल्मों में यह देखा जा सकता है. फिल्म इंडस्ट्री में सभी इसे खुले दिल से स्वीकार कर रहे हैं और इसे हिट भी करवा रहे हैं.

इल्यूजन को करते हैं क्रिएट

आज अगर कोई अभिनेता या अभिनेत्री बोल्ड सीन्स करने से मना कर दे, तो कई बार टीम के क्रू को इल्यूजन क्रिएट करना पड़ता है यानी ब्यूटी शौट्स से काम चलाना पड़ता है. सिनेमैटोग्राफी की कुछ ऐसी तकनीक का प्रयोग करना पड़ता है, जिस से बिना कुछ हुए भी दर्शकों को लगता है कि बहुत कुछ हुआ है. ब्यूटी शौट्स यानी हग करना, किस करना, हाथों में हाथ डालना या फिर कैमरा ऐंगल ऐसे रखना, जिस के जरीए बौडी पार्ट्स को कवर किया जा सके. ये सभी सिनेमैटोग्राफी तकनीक होती हैं, जिसे वे रियल लुक देती हैं. बैड पर साटिन की बैडशीट्स यूज की जाती हैं और उन से ढक कर केवल इल्यूजन क्रिएट किया जाता है.

लेते हैं क्रोमा शौट्स

अगर कोई भी अभिनेता या अभिनेत्री ऐसे सीन्स करने में असहज फील करते हैं, तो निर्देशक क्रोमा शौट्स भी लेते हैं. क्रोमा यानी नीले या हरे रंग का कोई कवर जिसे बाद में गायब कर दिया जाता है जैसे ऐक्टर और ऐक्ट्रैस को किसिंग सीन से आपत्ति है तो उन के बीच सब्जी जैसे लौकी या कद्दू रख दिया जाता है. ग्रीन कलर होने के कारण लौकी क्रोमा का काम करती है. दोनों लौकी को किस करते हैं और पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उसे गायब कर दिया जाता है.

रखनी पड़ती है शारीरिक दूरी

इस के अलावा कोई भी बोल्ड या इंटिमेट सीन शूट करते वक्त इस बात का पूरा खयाल रखा जाता है कि मेल और फीमेल के प्राइवेट पार्ट्स आपस में टच न हों और न ही कुछ अधिक रिविल हो क्योंकि करोड़ों की लगत से बनी हर फिल्म को बनाते वक्त कलाकारों के स्टेटस को भी ध्यान में रखना जरूरी होता है. शूटिंग के समय असमंजस की स्थिति पैदा होने से बचने के लिए क्रिकेट खिलाडि़यों की तरह ऐक्टर के लिए लोगार्ड या कुशन या फिर एअर बैग का इस्तेमाल किया जाता है, जो दोनों के बीच गैप रखता है. वहीं ऐक्ट्रैस के लिए पुशअप पैड्स, पीछे से टौपलैस दिखाना हो, तो आगे पहनने वाले सिलिकौन पैड का यूज किया जाता है. किसी भी इंटिमेट सीन को शूट करने के लिए सब से जरूरी अभिनेता या अभिनेत्री की आपसी एडजस्टमैंट होना जरूरी होता है. शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए कई बार प्रौप का भी सहारा लेना पड़ता है, जो आर्टिस्ट की पसंद के आधार पर होता है. प्रौप में सौफ्ट पिलो, स्किन कलर ड्रैस, मोडेस्टी गारमैंट्स आदि कुछ चीजें शामिल होती हैं.

सर्दीजुकाम के दौरान मेरी नाक बंद हो जाती है, इसका कोई उपाय बताएं

सवाल

मेरी उम्र 30 साल है. सर्दीजुकाम के दौरान मेरी नाक बंद हो जाती है. 2 सालों से समस्या बहुत गंभीर हो गई है. कई बार मेरी नाक खुलती ही नहीं है, जिस के कारण मुझे घुटन होने लगती है. मुंह से सांस लेने पर भी आराम नहीं मिलता. बताएं क्या करूं?

जवाब

सर्दीजुकाम के दौरान नाक का बंद होना आम समस्या है. लेकिन कई बार नाक को खोलना बहुत मुश्किल हो जाता है, जिस के चलते मरीज को घुटन होने लगती है. आप की समस्या भी यही है. जब भी आप को यह समस्या हो तो गरम पानी में विक्स का कैप्सूल डाल कर उस पानी की अपने सिर को तौलिए से ढक कर भाप लें. भाप नाक खोलने का एक पुराना और प्रभावशाली तरीका है. कपूर भी नाक को खोलने में मदद करता है. कपूर को नारियल तेल के साथ मिला कर नथुनों में लगाएं. सिर्फ कपूर को सूंघने से भी फायदा मिलेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: खाने का स्वाद बढ़ा देगी अमरुद की खट्टी-मीठी चटनी, जानें इसकी रेसिपी

सर्दियों में अमरूद बेहद आसानी से मिल जाने वाला फल है. लोग घरों में भी इसका पेड़ लगाते हैं. पर बेहद सामान्य फल होने के कारण ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता है कि ये स्वास्थ्य के लिहाज से कितना फायदेमंद होता है..

विटामिन सी, लाइकोपिन और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है अमरूद. इसमें केले के बराबर मात्रा में पोटैशियम होता है, जो ब्लड प्रेशर को नॉर्मल रखने में मदद करता है. अमरूद में मौजूद विटामिन और खनिज शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाने में मददगार होते हैं. साथ ही ये इम्‍यून सिस्‍टम को भी मजबूत बनाता है. इसमें  कोलेस्ट्रॉल ना के बराबर होता है. शुगर की मात्रा कम होने की वजह से यह डायबिटीज के मरीज के लिए लाभदायक है.

फलों में अमरुद का स्वाद तो लाज़वाव होता ही है ,और आपने अमरुद को सिर्फ फल की तरह ही खाया होगा.पर आज मैं आपको सिखाऊंगी अमरुद की चटनी बनाना ताकि आप अमरुद का एक नया स्वाद चखें .इसको बनाना बहुत ही आसान है. चलिए बनाते है अमरुद की चटनी –

हमें चाहिए

1 अमरुद पका हुआ

1 छोटा कप हरा धनिया कटा हुआ

3-4 लहसुन की कली

½  टीस्पून जीरा

1-2 हरीमिर्च

1 छोटा नींबू

नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका

1-   सबसे पहले अमरुद को बीच से काट कर उसके बीज निकल ले .फिर उसको गैस पर हल्का सा भून ले .

2-   अब हरी मिर्च और हरे धनिया को अच्छे से धो कर काट लें

3 –अब एक मिक्सर  में भुना हुआ अमरुद, लहसुन की कली ,हरीमिर्च,हरा धनिया ,जीरा,नींबू का रस  और नमक डाल  कर उसमे हल्का सा पानी डालें और उसको पीस कर चटनी बना लें याद रखे की ज्यादा बारीख नहीं पीसना है.

4 –तैयार है अमरुद की खट्टी मीठी चटनी .

5-इसको आप परांठे या दाल चावल के साथ खा सकते है.

अगर आप भी डरती हैं ब्रैस्ट फीडिंग से, तो जान लें इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें

मांका दूध शिशु के स्वास्थ्य व ग्रोथ के लिए अति उत्तम होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस में सही मात्रा में फैट, शुगर, पानी और प्रोटीन होती है और दूध इस की तुलना में इतना पौष्टिक व शुद्ध हो ही नहीं सकता. यही नहीं, नियमित फीड कराते रहने पर मां की हर दिन 500 कैलोरी बर्न होती है. इसलिए यह धारणा कि ब्रैस्ट फीडिंग से मां के सौंदर्य में कमी आती है, निराधार है. अगर आप मां बनने जा रही हैं या नईनई बनी हैं, तो निम्न बातों पर जरूर गौर फरमाएं:

कम से कम 6 महीने तक अपना दूध शिशु को अवश्य पिलाएं. इस के बाद अपने दूध के साथसाथ बच्चे को पौष्टिक ठोस आहार देना भी शुरू कर दें.

गर्भावस्था के अंतिम दिनों में मां के स्तन में पीले रंग का गाढ़ा दूध बनता है, जो कोलोस्ट्रोम कहलाता है. यह कोलोस्ट्रोम नवजात शिशु के लिए उस के पूरे जीवन भर की शक्ति होता है, साथ ही यह संपूर्ण भोजन होता है. डाक्टरों के अनुसार, इस पीले गाढ़े दूध में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तत्त्व होते हैं, जो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होते हैं. अत: बच्चे के जन्म के 1 घंटे के अंदर ही स्तनपान कराने का प्रयत्न करें, दूध को ठीक तरह से आने में कुछ वक्त लग जाता है. दूध का तेजी से आना बच्चे के जन्म के तीसरे दिन से शुरू होता है. अत: शुरू में दूध कम आए, तो घबराएं नहीं.

शिशु को उस के खुद दूध पीना बंद करने तक फीड कराती रहें. इस प्रक्रिया मेें 15 से 20 मिनट तक लग सकते हैं. ध्यान रखें कि हर बार दोनों स्तनों से फीड कराएं. डा. राजलक्ष्मी कहती हैं कि एक ही स्तन से फीड कराते रहने से दूसरे स्तन में गांठें पड़ सकती हैं, जो तकलीफदेह होती हैं.

बच्चे की दूध की मांग को नकारें नहीं. वह जब चाहे, उसे फीड कराएं. यह मांग दिन में 10 से 12 बार हो सकती है, क्योंकि नवजात शिशु थोड़ाथोड़ा दूध पीता है. अगर आप को लगता है कि आप का बच्चा कुछ ज्यादा ही फीड चाहता है, तो भी बारबार फीड कराती रहें, क्योंकि हर बच्चे की मांग अलग होती है.

ब्रैस्ट फीडिंग से संबंधित कोई भी परेशानी हो तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

शिशु को 6 माह से पूर्व कोई भी ऊपरी खाद्यसामग्री, पेयपदार्थ न दें. यह संक्रमण का कारण बन सकता है, इसलिए 6 माह तक बच्चे को स्तनपान ही कराना चाहिए.

ब्रैस्ट फीडिंग से संबंधित कई भ्रांतियां ऐसी हैं जिन की सचाई कुछ और ही है, जैसे:

ब्रैस्ट फीडिंग के कारण बच्चा मां पर निर्भर हो जाता है, जबकि यह सच नहीं है. सच यह है कि इस से बच्चे और मां में ऐसा भावनात्मक जुड़ाव पनपता है, जो बच्चे की ग्रोथ के लिए सकारात्मक पहलू होता है. असल में जब बच्चा खुद ही दूध पीना कम करने लगता है या मां के दूध से उस का पेट नहीं भरता है, तब अन्य तरल पेय जैसे जूस, सूप, पानी, दूध आदि कप या चम्मच द्वारा दिए जाएं.

डिलीवरी के बाद ऐक्सरसाइज न करें. डा. रामचंद्रन इस भ्रांति को नकारते हुए कहते हैं कि डिलीवरी के बाद हलकी ऐक्सरसाइज जैसे वाकिंग, डांसिंग, जौगिंग करना ठीक रहता है. ऐसी ऐक्सरसाइज मां के दूध में लैक्टिक ऐसिड का स्तर नहीं बढ़ातीं. पर ध्यान रखें कि सीजेरियन डिलीवरी के बाद कोई भी ऐक्सरसाइज डाक्टर की सलाह पर ही करें.

बाजार में उपलब्ध बेबी मिल्क पाउडर उतना ही पौष्टिक होता है, जितना मां का दूध. ऐसा इसलिए क्योंकि बेबी मिल्क बनाने वाली कंपनियां दावा करती हैं कि यह मिल्क मदर मिल्क के समान पौष्टिक होता है. पर यह दावा सही नहीं है. सिर्फ मां के दूध में एंजाइम्स, न्यूट्रीएंट्स, पौष्टिक तत्त्व तथा बीमारियों से लड़ने की शक्ति देने वाले उतने तत्त्व होते हैं, जितने एक शिशु के लिए जरूरी होते हैं.

मां का दूध बारबार पीने से बच्चा बड़ा हो कर मोटा हो जाता है, जबकि एक सर्वे के अनुसार, बच्चा अपनी दूध पीने की क्षमता को अपने हिसाब से नियंत्रित करता है तथा अपने शरीर की आवश्यकतानुसार ही दूध लेता है. बारबार दूध पीने का मतलब दूध की मात्रा का अधिक लेना नहीं होता. बच्चे के मोटे होने के जिम्मेदार ठोस आहार ही होते हैं. 

रिश्तों की डोर: भाग 2- माता-पिता के खिलाफ क्या जतिन की पसंद सही थी

लेखिका- रेनू मंडल

मैं ने मम्मी के गले में बांहें डाल कर कहा, ‘‘ओह, मम्मी, इतनी निराश क्यों होती हो? तुम्हारा लड़का बहुत अक्लमंद है. इस ने स्वाति को ही पसंद कर रखा है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मम्मी चौंक उठीं.

‘‘मतलब यह मम्मी कि स्वाति, राहुल की बूआ की लड़की नहीं है. यह वही लड़की है जिसे जतिन ने पसंद कर रखा है,’’ मैं ने मम्मी को शुरू से अंत तक सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘आप ने और पापा ने तो बिना देखे ही लड़की रिजेक्ट कर दी थी. मेरे पास उसे

आप से मिलवाने का कोई और रास्ता न था.’’

अभी मैं ने अपनी बात पूरी की ही थी कि तभी पापा कमरे में आ गए.

‘‘सुना आप ने, नीलू कह रही है?’’ मम्मी अभी भी मेरी बात से अचंभित थीं.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है. इस बारे में हम अब कल बात करेंगे.’’

पापा को शायद सोचने के लिए समय चाहिए था.

अगले दिन तक मैं और जतिन पसोपेश की स्थिति में रहे, पापा के जवाब पर ही हमारी सारी उम्मीदें टिकी थीं. रात को डाइनिंग टेबल पर पापा बोले, ‘‘जतिन, तुम्हें स्वाति पसंद है तो हमें कोई एतराज नहीं है. उसे अपने घर की बहू बना कर हमें भी खुशी होगी, परंतु लड़की वालों से बात करने हम नहीं जाएंगे. उन्हें हमारे घर आना होगा.’’

‘‘यह कोई बड़ी बात नहीं है, पापा. वही लोग आप से बात करने आ जाएंगे.’’

जतिन फोन की तरफ लपका. अवश्य ही वह स्वाति को यह खबर सुनाना चाहता होगा.

रविवार शाम को स्वाति के मम्मीपापा हमारे घर आए. चाय पीते हुए पापा बोले, ‘‘भई, हमें आप की बेटी बहुत पसंद है. हम इस रिश्ते के लिए तैयार हैं. आप सगाई की तारीख निकलवा लें.’’

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‘‘देखिए भाई साहब, खुल कर बात करना अच्छा होता है. आप की कोई डिमांड तो नहीं है?’’ स्वाति की मम्मी ने पूछा.

‘‘डिमांड तो कोई नहीं है. हां, शादी बढि़या होनी चाहिए. यों भी आप लोगों में लड़की के विवाह में नकद रुपया तो चलता ही है.’’ स्वाति के पापा के चेहरे पर उलझन के भाव आए, ‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा.’’

‘‘मैं समझाता हूं. अगर जतिन और स्वाति एकदूसरे को प्रेम न करते तो आप लोग स्वाति के लिए अपनी ही बिरादरी में लड़का ढूंढ़ते. तब क्या आप को उस के विवाह में नकद रुपया नहीं देना पड़ता? जो रुपए आप तब देते, वही रुपए आप हमें अब दे दीजिए.’’

‘‘पापा, यह आप क्या कह रहे हैं?’’ जतिन हैरान सा हो उठा था. उसे पापा से यह उम्मीद नहीं थी. मम्मी ने उस की ओर आंखें तरेर कर देखा, ‘‘जतिन, बड़ों के बीच में तुम मत बोलो.’’

‘‘भाई साहब, आप स्पष्ट बता दें तो अच्छा रहेगा, कितना नकद रुपया आप चाहते हैं,’’ स्वाति के पापा ने पूछा.

‘‘अधिक नहीं, कम से कम 2 लाख तो आप को देना ही चाहिए,’’ पापा और मम्मी एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराए.

जतिन का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा था. वह उठ कर अंदर चला गया.

जतिन के जाने के बाद स्वाति के मम्मीपापा भी उठ कर खड़े हो गए, ‘‘भाई साहब, घर में सलाह कर के हम आप को जल्दी ही बताएंगे.’’

उन लोगों के जाने के बाद जतिन चिल्लाया, ‘‘पापा, मैं कभी सोच भी नहीं सकता था, आप लोग इतनी छोटी बात करेंगे.’’

‘‘देखो बेटा, हम ने तुम्हारी बात मान ली. तुम्हारी पसंद की लड़की से तुम्हारा विवाह कर रहे हैं. अब विवाह में क्या होगा और क्या नहीं होगा, यह देखना हमारा काम है, तुम्हारा नहीं.’’

‘‘नहीं पापा, यह ठीक नहीं है. मैं विवाह में दहेज नहीं लूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए.’’

‘‘ठीक है. फिर तुम भी कान खोल कर सुन लो, तुम्हारा स्वाति से विवाह भी नहीं होगा. हम इस रिश्ते से इनकार कर देंगे,’’ पापा भी अब आक्रोशित हो उठे थे.

‘‘विवाह भी होगा और दहेज भी नहीं लिया जाएगा, यह तय है. इस के लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े,’’ जतिन एकएक शब्द पर जोर दे कर बोला.

‘‘देखो बर- खुरदार, कान खोल कर सुन लो, यह मेरा घर है. अगर यहां रहना है तो मेरी बात माननी पड़ेगी.’’

‘‘अगर ऐसी बात है, पापा, तो मैं यह घर छोड़ दूंगा,’’ जतिन पैर पटकता हुआ अपने कमरे में चला गया. मैं हक्काबक्का सी यह सारा तमाशा देखती रह गई. कहां तो मैं समझ रही थी कि जतिन की विवाह की समस्या सुलझ गई और कहां गुत्थी और भी उलझ कर रह गई थी.

अगले दिन दोपहर में मम्मी से बात की तो वह नाराजगी जाहिर करते हुए बोलीं, ‘‘देख नीलू, तू जतिन की तरफदारी मत कर. तेरे पापा शादी के लिए राजी हो गए, क्या यह कम बड़ी बात है. विवाह में हम थोड़ाबहुत दहेज ले लेंगे तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा. हम कोई दुनिया के पहले मांबाप तो हैं नहीं, जो दहेज मांग रहे हैं.’’

‘‘मम्मी, जतिन भी कोई पहला लड़का नहीं है जो इस कुप्रथा का विरोध कर रहा है. सभी पढ़ेलिखे समझदार युवक अब दहेज के विरोध में आवाज उठाते हैं.’’

‘‘हां हां, सारे समाज को बदलने का ठेका तो तुम्हीं लोगों ने ले रखा है न,’’ मम्मी बड़बड़ाती हुई रसोई में चली गईं.

मम्मीपापा और जतिन के बीच तनाव बढ़ता ही गया. जब जतिन हर तरह से उन्हें समझासमझा कर थक गया और वे नहीं माने तो उस ने अपने लिए किराए पर फ्लैट ले लिया. अपना सामान ले कर घर से जाते हुए उस ने मम्मीपापा के पांव छुए. रुंधे कंठ से वह बोला, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप लोगों से इस तरह अलग होना पड़ेगा. हमारे सिद्धांत बेशक अलग हैं किंतु…’’

‘‘बसबस, रहने दे. ये आदर्शवादी बातें अपने पास ही रख और याद रख, मेरी जायदाद में से तुझे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी. यह मकान भी मैं नीलू के नाम कर दूंगा,’’ पापा क्रोध में चिल्लाए.

‘‘आप की जायदाद की मुझे कोई चाह नहीं, पापा. आप खुशी से सबकुछ दीदी के नाम कर दें,’’ कह कर जतिन चला गया. उस समय मम्मी की आंखें अवश्य भर आई थीं.

10 दिन बाद जतिन और स्वाति का मंदिर में विवाह हो गया. विवाह से पूर्व स्वाति के मांबाप ने जतिन को काफी समझाया कि उन्हें दहेज देने में कोई आपत्ति नहीं है किंतु जतिन टस से मस नहीं हुआ. इस के बाद बेटे और मांबाप के बीच उन्होंने भी ज्यादा बोलना उचित नहीं समझा. विवाह से एक दिन पहले जतिन मम्मीपापा को बुलाने घर पर आया था किंतु उन्होंने जाने से इनकार कर दिया.

हां, मुझे और मेरे पति राहुल के सम्मिलित होने पर उन्होंने कोई एतराज नहीं किया. 3-4 दिन तक जतिन के घर पर रह कर और स्वाति को उस की गृहस्थी में एडजस्ट करवा कर मैं वापस मम्मी के घर लौट आई और राहुल वापस दिल्ली चले गए.

मैं अब अपनी बी.एड. की पढ़ाई में व्यस्त रहने लगी थी. जतिन के विवाह को 4 माह बीतने को आए थे. इस बीच न तो जतिन घर पर आया और न ही मम्मीपापा अपने बेटेबहू से मिलने गए. किंतु कुछ दिनों से मैं एक बात महसूस कर रही थी. मम्मीपापा बहुत खामोश और उदास रहने लगे थे. न तो उन्हें दहेज मिला था और न ही बेटेबहू का साथ. इस बुढ़ापे में अकेले रह जाना अपनेआप में एक बहुत बड़ी त्रासदी थी.

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हमसफर: भाग 2- पूजा का राहुल से शादी करने का फैसला क्या सही था

शादी में बस चंद दिन ही बचे थे तब राहुल ने पूजा को बताया कि वह एच.आई.वी. पोजिटिव है. एड्स से ग्रसित वह धीरेधीरे मौत के करीब जा रहा है. 2 वर्ष पहले एक एक्सीडेंट के बाद इलाज के दौरान डाक्टरों की लापरवाही से उसे संक्रमित खून चढ़ा दिया गया था. पूजा राहुल को आश्वासन देती है कि वह सब असलियत जान कर भी शादी कर उस की हमसफर जरूर बनेगी और साथ ही राहुल से वचन लेती है कि अपनी बीमारी को घरवालों से राज रखेगा. राहुल के यह कहने पर कि बीमारी को लोगों से छिपाना आसान नहीं होगा, तो पूजा का जवाब था कि ‘शादी के बाद वह सब देखना मेरा काम होगा. लोगों को क्या जवाब देना है, यह भी मैं ही देखूंगी.’

एक सप्ताह बाद दोनों की शादी हो जाती है. इस शादी के पीछे का भयानक सच उन दोनों के अलावा शादी में शामिल कोई भी तीसरा नहीं जानता था. अग्नि के फेरे लेते हुए दोनों के मस्तिष्क में बहुत कुछ चल रहा था लेकिन वे चेहरे से एकदम सामान्य दिख रहे थे. अब आगे…

पूजा की डोली ससुराल आई.

ससुराल में आते ही पूजा औरतों

में घिर गई थी. शादी के बाद की रस्में जो पूरी की जानी थीं.

शादी के बाद राहुल और पूजा के पहले इम्तिहान की घड़ी सुहागरात थी.

रस्मों के पूरा होने के बाद हंसी- ठिठोली करती पूजा की ननद रेखा और उस की कुछ सहेलियों ने उन दोनों को सुहागरात वाले कमरे के अंदर धकेल दिया था.

अकेले पड़ते ही दोनों ने एकदूसरे को देखा.

सुहागरात का अर्थ दोनों ही समझते थे मगर उन दोनों को इस बात का भी एहसास था कि वह आम पतिपत्नियों जैसे नहीं थे.

सुहाग सेज पर गुलाब के फूलों की पंखडि़यां बिखरी हुई थीं. इन पंखडि़यों को सुबह तक वैसा ही रहना था, क्योंकि जिस उद्देश्य से उन को सेज पर बिखेरा गया था उस उद्देश्य की पूर्ति उन के लिए वर्जित थी.

‘‘तुम ने मेरे साथ शादी कर के अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है,’’ अपनी कशमकश के बीच खालीखाली उदास नजरों से पूजा को देखते हुए राहुल ने कहा.

‘‘लेकिन मुझ को अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं,’’ पूजा ने कहा.

‘‘क्या इस सुहागरात का हमारे लिए कोई मतलब है?’’

‘‘क्यों नहीं है? क्या एक दंपती के संपूर्ण जीवन का आधार केवल सेक्स ही है? क्या सेक्स के बगैर स्त्रीपुरुष के विवाहित संबंधों का कोई अर्थ नहीं रह जाता? मैं इस को नहीं मानती. सेक्स पतिपत्नी के रिश्ते का एक हिस्सा है. इस के बिना भी रिश्ते को निभाया जा सकता है, क्योंकि सेक्स से ही संपूर्ण रिश्ता नहीं बनता. जैसे शरीर के किसी एक अंग को अलग कर देने से इनसान मर नहीं जाता, उसी तरह पतिपत्नी के रिश्ते में से सेक्स को अलग करने से रिश्ते की मौत भी नहीं होती.

हम दोनों तो सच को जानते हुए ही इस रिश्ते में बंधे हैं. सेक्स संपर्क के बगैर भी हम इस रात को आनंदमय बनाएंगे. यह हम दोनों के लिए ही पहली परीक्षा है और हमें बिना किसी भय और निराशा के इस परीक्षा की अग्नि में से तप कर बाहर निकलना ही होगा.’’

यह कहते हुए शादी के लाल जोड़े में लिपटी हुई पूजा ने एड्स से पीडि़त अपने पति का सिर अपने सीने पर रख लिया. ऐसा करते हुए उस के चेहरे पर जरा सा भी डर और घबराहट न थी. मन को जिस आनंद की अनुभूति हो रही थी वह शरीर के आनंद से कम नहीं थी.

सुहागरात उन दोनों ने एकदूसरे से बहुत सी बातें करते हुए बिता दी. पतिपत्नी के बजाय एक दोस्त की तरह उन को एकदूसरे को अधिक जानने का मौका मिला.

पूजा राहुल के मस्तिष्क को मृत्युभय से मुक्त कर के उस के भीतर एक नया विश्वास जगाने में सफल रही.

सुबह की किरण फूटने से कुछ देर पहले ही दोनों की आंख लग गई.

पूजा की आंख खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. रोशनी काफी फैल चुकी थी. राहुल अभी भी सो रहा था.

पूजा दर्पण के सामने खड़ी हो खुद को निहारने लगी. उस का दुलहन वाला मेकअप वैसे का वैसा ही था. वस्त्रों पर सलवटें भी नहीं आई थीं. कलाइयों में पड़ी कांच की चूडि़यां भी वैसी की वैसी ही थीं.

कमरे के अंदर क्या हुआ था वह उन दोनों के बीच का राज था. मगर सब को ऐसा लगना तो चाहिए कि उन्होंने सुहागरात मनाई थी.

यह सोच कर पूजा ने पहले अपने बंधे हुए जूड़े को खोला और फिर उस को बेतरतीब से दोबारा बांधा. होंठों की लिपस्टिक की गाढ़ी लाल रंगत को फीका करने के लिए इस तरह से उस को साफ किया कि वह थोड़ी सी होंठों के इर्दगिर्द बिखर जाए. अपनी दोनों कलाइयों में पड़ी कांच की कुछ चूडि़यों को अपनी उंगलियों के दबाव से चटख कर तोड़ डाला. ऐसा करते वक्त एक चूड़ी का तीखा कांच उस की कलाई में चुभ भी गया.

पूजा ने टूटी कांच की चूडि़यों के टुकड़ों को बिस्तर पर बिखेर दिया, इतना ही नहीं, बिस्तर पर बिखरी फूलों की पत्तियों को भी उस ने हथेली से मसल डाला.

सब तरह से संतुष्ट होने के बाद पूजा कमरे का बंद दरवाजा खोल कर बाहर निकल आई.

कमरे से बाहर पूजा का सब से पहले सामना अपनी ननद रश्मि से हुआ. रश्मि की आंखों में अर्थभरी शरारत थी जोकि रिश्ते के हिसाब से स्वाभाविक थी.

‘‘गुडमार्निंग, भाभी,’’ रश्मि ने कहा, ‘‘आप की आंखें गुलाबी हो रही हैं, लगता है भैया ने काफी परेशान किया है रात को?’’

ननद रश्मि के ऐसा कहने पर पूजा ने पहले तो लजाने का नाटक किया फिर प्यार से उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाती हुई बोली, ‘‘चुप, बच्चे इस तरह के सवाल नहीं पूछते.’’

ननद रश्मि के साथ ही पूजा अपने सासससुर के कमरे में पहुंची और अपने सिर को साड़ी के पल्लू से ढकते हुए बारीबारी से उन दोनों के पांव छुए.

पांव छूने पर आशीर्वाद देती हुई पूजा की सास शकुंतला ने उस को अपने सीने से लगा लिया और बोलीं, ‘‘सुहागवती रहो, बहू. जल्दी ही तुम्हारी गोद भरे और मैं पोते की खुशी देखूं.’’

शादी के बाद दिन आगे को सरकने लगे. बीतने वाला हर लम्हा जैसे कीमती था.

राहुल के जीवन की डोर हर बीतते हुए लम्हे के साथ छोटी हो रही थी.

पूजा बीतते हर लम्हे को इतने सुख और खुशियों से भर देना चाहती थी कि आने वाली मौत की आहट राहुल को सुनाई न दे.

शारीरिक सुख के अलावा एक अच्छी पत्नी के रूप में जीवन के सारे सुख पूजा राहुल को देना चाहती थी. वह उस की इतनी सेवा करना चाहती थी कि बाद में किसी बात पर पछताना न पड़े.

पूजा की सेवा और समर्पण के भाव को राहुल खामोशी से देखता और कहता, ‘‘मेरी जिंदगी का सफर ज्यादा लंबा नहीं. इस में हमसफर बनते हुए गलती से भी मुझ से मोह मत कर बैठना, वरना बाद में बड़ी तकलीफ होगी.’’

‘‘मैं जानती हूं कि मैं क्या कर रही हूं और आगे क्या होने वाला है. किंतु इस तरह की बातें कर के मुझ को कमजोर मत बनाओ, राहुल.’’

इंतजार शौहर का: भाग 1- अरशद दुबई क्यों गया था

जब से हमारे शौहर रहीम मियां दुबई कमाने के लिए गए हैं तब से उन की बहुत सी पसंदीदा चीजें धूल खा रही हैं. मसलन, उन का सोनी कंपनी का सुनहरे रंग का हैडफोन जिसे उन्होंने कितने नाज से खरीदा था कि वे फुरसत के लमहों में जगजीत सिंह की उम्दा गजलों का लुत्फ उठाया करेंगे. ठीक इसी तरह कोने में रखी टेबल पर सजा हुआ टेबललैंप, जिसे जला कर देर तक पढ़ते रहते थे रहीम मियां.

इस टेबललैंप की खासीयत यह थी कि यह मुरादाबादी पीतल से बना हुआ था और इसे लखनऊ महोत्सव से खासे महंगे दाम में खरीदा था उन्होंने. हालांकि इसे खरीदते समय उन्हें भी महसूस हुआ था कि दुकानदार उन की पसंद को भांप चुका है और इसीलिए नाजायज दाम बता रहा है पर रहीम मियां भी ठहरे महंगी चीजों के शौकीन इसलिए वे इसे खरीद कर ही माने थे.

मगर ये तो छोटीमोटी चीजें थीं जो उन के बिना अपनेआप को बेजार सम?ा रही थीं, पर अब इस बड़ी सी चीज का क्या करूं जो रहीम मियां के बगैर गर्दिश में ही जी रही है. मैं जिक्र कर रही हूं गैराज के अंदर खड़ी 7 सीटर कार का. कितने नाजों और अरमानों से खरीदा था, जब एक रिश्तेदार की देखादेखी रहीम मियां को भी कार का नामुराद शौक लगा. फिर क्या था. रहीम मियां ने ‘‘कौन सी कार लें,’’ इस मौजूं पर यूट्यूब पर न जाने कितने वीडियोज देख डाले. बाकायदा तमाम गाडि़यों के प्लस माइनस खंगाले गए और गाडि़यों में यात्रियों की सुरक्षा के लिए कितने एअरबैग्स आदि लगे हुए हैं, इस बात की पुख्ता जानकारी लेने में कितनी संजीदगी दिखाई थी रहीम मियां ने. अपनी निजी जिंदगी में लापरवाही का सा रवैया रखने वाले रहीम मियां गाड़ी चुनने में इतने चूजी और फिक्रमंद निकलेंगे यह तो हम ने कभी सोचा भी न था.

गाड़ी लेने के नाम पर अब्बू का मशवरा था कि नई गाड़ी पर इतना पैसा खर्च
करना कोई सम?ादारी की बात थोड़े ही है. घर में पैसों का पेड़ तो है नहीं, क्यों न कोई सैकंड हैंड कार खरीद ली जाए पर रहीम मियां की सलामी तो 21 तोपों से ही दी जाती थी.

रहीम मियां नहीं माने. पैसों की दिक्कत हुई तो बैंक से लोन ले कर कार लेने की बात कह दी और फिर क्या था. कुछ पैसा घर से लिया, थोड़ाबहुत यारदोस्तों से और बाकी का बैंक से लोन ले लिया और चमचमाती नीले रंग की कार लेने के लिए शोरूम पहुच गए और वापसी में फूलों से सजवाना भी तो नहीं भूले थे. वे अपनी गाड़ी को दिनभर रहीम मियां गाड़ी में घूमतेघुमाते रहे और रात में मकान के ठीक सामने एक जगह को गैराजनुमा शक्ल दे दी थी सो कार को उस में पार्क कर दिया.अगले दिन से पूरे लखनऊ शहर में बेवजह घूमते रहे थे हम लोग और जिन रि

श्तेदारों के यहां कभी नहीं गए थे उन के यहां भी गए और उन की मिजाजपुर्सी करने के साथसाथ अपनी गाड़ी के बारे में बताना भी न भूले थे रहीम मियां.
अभी 8 महीने ही तो हुए थे गाड़ी लिए हुए कि दुबई से उन के दोस्त की कौल आ गई, ‘‘यहां आ जाओ, लाखों में खेलोगे.’’

मगर रहीम मियां को तो अपने वतन की मिट्टी से इश्क था ‘‘जीना यहां मरना यहां,’’ वाला. सो इन्होंने मना किया तो इन के दोस्त ने इन पर दबाव बनाते हुए कहा कि अपने वतन से मुहब्बत तो ठीक है पर अपने परिवार से भी मुहब्बत रखो और उस मुहब्बत को निभाने के लिए पैसों की जरूरत होती है. दुबई में तनख्वाह अच्छी है और वैसे भी काफी समय से रहीम मियां खाड़ी देश में कमाई करने जाना चाहते थे. हालांकि यहां पर भी कामधंधा ठीकठाक था पर रहीम मियां कुछ बड़ा करना चाहते थे इसलिए बाहर जाने की बात सोची थी पर कहीं न कहीं बात अटक जाती थी.

अब उन के दोस्त ने दबाव डाला तो यह बात रहीम मियां को जम गई और वे दुबई निकल गए. एक बार भी न तो हमारे बारे में सोचा, न अपनी बेटी गुलशन के बारे में और न ही अपनी चमचमाती गाड़ी के बारे में. अब उन के पीछे उन की गाड़ी सिर्फ धूल ही तो खा रही है. हम ने गाड़ी को देखा तो हमें उस बेचारी पर बहुत तरस आया जैसे कोई बेगम भरी जवानी में ही बेवा हो गई हो, पर हम कर ही क्या सकते थे क्योंकि कार चलाना तो हमें आता ही नहीं था. तो क्या हुआ? एक औरत जो चाहे वह कर सकती है. हमें टीवी वाले औरतों के सीरियल की एक लाइन हमारे जेहन में गूंज गई कि हां हम गाड़ी चलाना सीखेंगे, पर कैसे भला. अरे भई शहर में इतने तो मोटर ट्रैनिंग स्कूल हैं. बस उस में दाखिला ले कर गाड़ी चलाना सीख लेंगे हम.
उस पूरा दिन हम मोबाइल पर शहर के सारे मोटर सिखाने वाले स्कूलों में फीस आदि के बारे में बात करते रहे ताकि बाद में हमें कोई ठगे गए न कह सके और फिर एक स्कूल को हम ने चुन ही लिया ड्राइविंग सीखने के लिए.

मगर जैसे ही हमारे 25 साला भतीजे को हमारी कार ड्राइविंग सीखने के बारे में पता चला तो वह खुद हमारे पास आ कर कहने लगा कि भला उस के होते हुए हमें महंगे ड्राइविंग स्कूल में पैसे गलाने की जरूरत क्या है. उस की इस बात पर हम ने सवालिया नजरों से उसे देखा तो ?ाट से उस ने उस की जेब में रखा हुआ ड्राइविंग लाइसैंस दिखाया. अब साहब यह तो गाड़ी सीखने में पहली चीज थी जो चाहिए थी और हमें याद आया कि ये सरकारी कागज तो हमारे पास हैं ही नहीं.
अब यह समस्या हम ने भतीजे अरशद से डिस्कस करी तो उस ने बताया कि डीएल के बिना तो सड़क पर गाड़ी चलाना कानूनन गलत है इसलिए पहले ङीएल की जरूरत बड़ी शिद्दत से महसूस हुई और इस समस्या का हल भी अरशद ने फौरन ही बता दिया कि दलाल को 2 नंबर में पैसे देने से ङीएल आसानी से और जल्दी बन जाएगा.

विश्वासघात: सीमा के कारण कैसे टूटा प्रिया का घर

प्रिया ने पालने में सोई अपनी नवजात बच्ची को मुसकराते देखा तो वह भी मुसकरा दी. प्रिया उस में अपना और निर्मल का अक्स ढूंढ़ने की कोशिश करने लगी. निर्मल को एक बेटी की चाह थी जबकि वह बेटा चाहती थी, क्योंकि वह निर्मल के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थी. प्रिया एक छोटे शहर में पलीबढ़ी थी. इकलौती संतान होने के कारण मातापिता की दुलारी थी. निर्मल की बूआ उन के पड़ोस में रहती थीं. वे ही निर्मल का रिश्ता उस के लिए लाई थीं. निर्मल मुंबई में मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते थे. उन के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. उन के जाने के बाद बूआ ने ही उन की परवरिश की थी. प्रिया के मातापिता को निर्मल पसंद थे, इसलिए चट मंगनी और पट ब्याह कर दिया.

शादी के 1 हफ्ते बाद प्रिया निर्मल के साथ मुंबई आ गई. निर्मल एक अपार्टमैंट में 7वीं मंजिल पर 3 कमरों के फ्लैट में रहते थे. शादी के बाद दोनों ने फ्लैट को बड़े जतन से सजाया. निर्मल अपने नाम के अनुसार स्वभाव से बहुत ही निर्मल थे. उन में बिलकुल बनावटीपन नहीं था. कुछ ही समय बाद प्रिया ने निर्मल को 2 से 3 होने की खुशखबरी सुना दी. दोनों बहुत खुश थे. अब निर्मल उस का बहुत ध्यान रखने लगे थे. उसी दौरान निर्मल के प्रमोशन ने उन की खुशी को दोगुना कर दिया. परंतु काम की जिम्मेदारी बढ़ने की वजह से अब वे ज्यादा व्यस्त रहने लगे.

प्रिया दिन भर अकेले काम करते थक जाती थी, इसलिए दोनों ने एक बाई रखने का फैसला किया. महानगर मुंबई में लोग बहुत व्यस्त रहते हैं. किसी को किसी से कोई लेनादेना नहीं होता. अंतर्मुखी होने के कारण प्रिया भी ज्यादातर घर में ही रहती थी. इसीलिए उन्होंने बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड से बाई ढूंढ़ने के लिए मदद मांगी. कुछ ही दिन बाद उस ने एक बाई को भेजा. लगभग 30 साल की दुबलीपतली रमा बाई को उन्होंने मामूली पूछताछ के बाद काम पर रख लिया. रमा बाई ने बताया कि वह पास की बिल्डिंग में और 3 घरों में काम करती है. उसके 2 बच्चे हैं. पति स्कूल में चपरासी है. इस से अधिक जानने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी.

रमा बाई सुबह 8 बजे काम पर आती और करीब 10 बजे तक काम निबटा कर चली जाती. जब वह काम करने आती तब निर्मल के औफिस जाने का समय होता था, इसलिए प्रिया ज्यादातर निर्मल के लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करने में व्यस्त होती थी. धीरेधीरे रमा बाई घर की सदस्य जैसी बन गई. वह प्रिया के छोटेमोटे कामों जैसे बाजार से दूधसब्जी लाने में मदद करने लगी. अब अकसर प्रिया का मौर्निंग सिकनैस की वजह से जी मचलाने लगा और उस के लिए खाना बनाना मुश्किल होने लगा. यह देख कर एक दिन रमा बाई ने उस के आगे एक प्रस्ताव रखा. बोली, ‘‘मैडमजी, मेरी एक छोटी बहन है. बेचारी गूंगी है, शादी नहीं हो पाई, इसलिए हमारे साथ ही रहती है. अगर आप कहें तो जब तक आप की डिलिवरी नहीं हो जाती आप उसे खाना बनाने और दूसरे कामों के लिए रख लें. आप को जो ठीक लगे उसे दे देना. सुबह मैं साथ ले आया करूंगी और शाम को साथ ले जाया करूंगी.’’

प्रिया और निर्मल को उस की बात जंच  गई, इसलिए उन्होंने हां कह दिया. अगले ही दिन रमा बाई अपने साथ 22-23 वर्ष की लड़की को ले आई. उस ने उस का नाम सीमा बताया. सीमा देखने में बहुत सुंदर थी. प्रिया को उस के गूंगे होने पर बहुत तरस आया. सीमा उन के घर खाना बनाने का काम करने लगी. वह सभी काम बहुत अच्छे तरीके से व समय से पहले कर देती. वह प्रिया को समय से फल काट कर खिलाती, समय पर खाना खिलाती. पतिपत्नी दोनों सीमा के काम से बेहद खुश थे. कभीकभी निर्मल को औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता. तब प्रिया सीमा को रात को घर पर रोक लेती. सीमा निर्मल का कुछ विशेष ही ध्यान रखती थी, परंतु प्रिया को इस में कोई बुराई नजर नहीं आई, इसलिए उस ने उस पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. फिर उन दिनों अकसर तबीयत खराब रहने के कारण वह परेशान भी रहती थी.

हालांकि प्रिया को सीमा का निर्मल के बूट पौलिश करना और बाथरूम में कपड़े रखना शुरू से अखरता था, परंतु दूसरे ही क्षण वह इसे नारीसुलभ जलन समझ कर भूल जाती. कभीकभी तो उसे अपने इस विचार पर खुद पर शर्म महसूस होती कि एक गूंगी लड़की पर शक कर रही है. इस बीच प्रिया का चौथा महीना शुरू हो गया था. उस दिन निर्मल औफिस की फाइलें घर ले आए थे और आते ही ड्राइंगरूम में टेबल पर सभी फाइलें फैला कर काम करने बैठ गए. प्रिया की तबीयत सुबह से ही ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने सीमा को रात को घर पर रोक लिया. खाना खा कर वह बैडरूम में आराम करने लगी और निर्मल अपना काम निबटाने में व्यस्त हो गए.

करीब रात के 1 बजे कुछ आवाजों से उस की नींद टूट गई. निर्मल बिस्तर पर नहीं थे. उन के तेजतेज बोलने की आवाज आ रही थी. वह ड्राइंगरूम की ओर तेज कदमों से भागी. वहां का दृश्य देख कर अवाक रह गई. सीमा एक ओर खड़ी रो रही थी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त और कई जगह से फटे थे. प्रिया को देख कर निर्मल हकबका कर सफाई देने लगे, ‘‘प्रिया, मैं ने कुछ नहीं किया. यह अचानक आ कर मुझ से लिपट गई. जब मैं ने इसे पीछे धकेला तो इस ने अपने कपड़ों को फाड़ना शुरू कर दिया.’’

सीमा लगातार रोए जा रही थी. वह प्रिया के गले से लिपट गई. उस की हालत देख कर प्रिया का चेहरा तमतमा उठा. उस के अंदर की औरत जैसे जाग उठी. बोली, ‘‘मुझे आप से कतई यह उम्मीद नहीं थी कि आप इतना गिर जाएंगे.’’ ‘‘प्रिया, यह झूठी है… मैं सच कह रहा हूं… मैं ने कुछ नहीं किया,’’ निर्मल लगातार अपनी सफाई दे रहे थे. ‘‘सचाई सामने है और फिर भी आप…छि:,’’ कहते हुए वह सीमा को अपने बैडरूम में ले आई. प्रिया ने उसे पानी पिलाया और किसी तरह चुप करवाया.

‘‘सीमा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं…प्लीज मुझे माफ कर दो,’’ प्रिया ने सीमा के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा.

प्रिया मन ही मन खुद को उस का कुसूरवार मान रही थी, क्योंकि उसी के कहने पर उस पर विश्वास कर सीमा रात को रुकी थी. फिर उस ने उसे अपने साथ ही सुला लिया. अगले दिन रमा बाई के आते ही सीमा ने रोरो कर और इशारों से उसे सब कुछ बता दिया. वह बारबार निर्मल की ओर इशारा कर के रो रही थी. उस की हालत देख कर रमा बाई ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने उन के सामने ही पुलिस को फोन कर दिया. प्रिया और निर्मल ने उसे रोकने का भरसक प्रयत्न किया. ‘‘क्या मैडमजी, तुम भी अपने आदमी को बचाना चाहती हो? सीमा की जगह तुम्हारी बहन होती तब क्या करतीं?’’ रमा बाई गुस्से से बोली.

10 मिनट में पुलिस की वरदी में 1 आदमी उन के सामने खड़ा था. निर्मल उसे और रमा बाई को अपनी सफाई देते रहे, पर दोनों ने उन की एक न सुनी. प्रिया दोनों हाथों से सिर पकड़े वहीं सोफे पर चुपचाप बैठी रही. पुलिस वाले ने निर्मल को थाने चलने को कहा. निर्मल बहुत घबरा गए. वे मिन्नत करने लगे. आखिर उस पुलिस वाले ने 50 हजार पर रमा बाई और निर्मल में समझौता करवा दिया. अचानक बच्ची के रोने की आवाज से प्रिया की तंद्रा भंग हो गई. वह भूतकाल से वर्तमान में लौट आई. वह उठ कर बैठने का प्रयास करने लगी. तभी बाहर से निर्मल उस के मातापिता के साथ कमरे में दाखिल हुए और उन्होंने लपक कर बच्ची को गोद में उठा लिया. अपने मातापिता को देख कर प्रिया के पीले पड़े चेहरे पर खुशी फैल गई.

‘‘अरे हमारी गुडि़या अपने नानानानी के पास आने के लिए रो रही है,’’ प्रिया की मां ने निर्मल से बच्ची को अपनी गोद में लेते हुए कहा.

‘‘प्रिया, कैसी हो?’’ बाबूजी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बिलकुल ठीक हूं,’’ प्रिया ने मुसकरा कर उत्तर दिया.

‘‘तुम ने जूस नहीं लिया…यह लो जूस पी लो,’’ निर्मल ने जूस का गिलास उस के हाथ में थमा दिया.

प्रिया धीरेधीरे जूस पीने लगी. निर्मल के माथे पर बालों की एक लट झूलती बड़ी अच्छी लग रही थी. पिछले 2 दिनों से वे अकेले भाग दौड़ कर रहे थे. नर्स बता रही थी कि एक क्षण के लिए भी उन्होंने पलक नहीं झपकी. मां की गोद में गुडि़या सो गई थी. उसे पालने में लिटा कर मां ने उस के हाथ से जूस का खाली गिलास ले लिया.

‘‘नींद आ रही है…तू भी सो जा. मैं तेरे लिए नाश्ता बना कर लाती हूं,’’ फिर उस के बाबूजी से बोली, ‘‘आप भी नहा लीजिए. निर्मल बेटा, तुम किचन में सामान निकालने में मेरी मदद कर दो. मैं नाश्ता बनाती हूं. फिर सब साथ मिल कर बैठेंगे,’’ कहते हुए मां कमरे से बाहर निकल गईं. प्रिया को बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी. पिछले 5 महीने उस ने बड़े ही कष्ट से काटे थे. वह मानसिक और शारीरिक यातना से गुजरी थी. सीमा वाले हादसे के बाद वह निर्मल के साथ एक छत के नीचे रहना नहीं चाहती थी, परंतु आने वाले बच्चे के भविष्य और मांबाबूजी के खयाल से उस ने चुप्पी साध ली. आज भी वह यह सोच कर कांप जाती है कि अगर उस ने अलग होने का फैसला कर लिया होता और अपने मायके लौट जाती तब कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. वह तो गनीमत थी कि डाक्टर की सलाह मान कर उस ने रोज पार्क जाना शुरू कर दिया था. वहीं उस की मुलाकात तनु से हुई. तनु उस के साथ स्कूल में पढ़ती थी. एक दिन उस ने बताया कि उस ने घर के काम के लिए एक लड़की रख ली है जो गूंगी है, तो प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा.

‘‘क्या नाम है उस का?’’ कांपते होंठों से प्रिया ने पूछा.

‘‘सीमा, बेचारी बोल नहीं सकती. मेरी बाई को बहन है,’’ तनु ने जवाब दिया.

प्रिया का दिल अनजाने डर से कांप उठा. उसे लगा कि अगर तनु को पता चल गया तो क्या सोचेगी उस के पति के चरित्र को ले कर. प्रिया ने तनु से मेलजोल कम कर दिया. तनु का फोन भी वह नहीं उठाती. लगभग 2 महीने बीत गए.

फिर एक दिन कैमिस्ट की दुकान पर तनु उस से टकरा गई. उस का रंग पीला हो गया था. वह कुछ बुझीबुझी सी थी. उस ने पहले की तरह उस से बातचीत करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. औपचारिकता के नाते उस ने उस से बातचीत की. उस के होंठों से हंसी जैसे गुम ही हो गई थी. 2 ही दिन बाद तनु उसे फिर से पार्क में मिल गई. वह बहुत उदास और बीमार सी लगी. प्रिया इस का कारण पूछे बिना रह नहीं सकी. थोड़ी सी नानुकर के बाद तनु टूट गई. उस ने रोतेरोते अपना दुख बांटा जिसे सुन कर प्रिया सकते में आ गई.  तनु ने उसे जो कुछ बताया वह हूबहू उस की कहानी से मिलता था. तनु के मोबाइल में सीमा का फोटो था, इसलिए उस के प्रति उस का संदेह गहरा हो गया.

उस ने अपनी आपबीती तनु को सुनाई. तब दोनों ने तय किया कि वे सीमा के बारे में पता लगाएंगी और फिर एक दिन वे दोनों सीमा और रमा बाई के बारे में पूछतेपूछते उन के घर जा पहुंचीं. बाहर गली में ही उन्होंने भीड़ लगी देखी. पानी भरने के लिए औरतें आपस में लड़ रही थीं. ‘‘तुम दोनों बहनें अपने को समझती क्या हो?’’ पानी की बालटी पकड़े एक औरत बोली.

‘‘खबरदार, जो कोई आगे आया, काट कर फेंक दूंगी सब को,’’ दूसरी आवाज आई. तनु और प्रिया वहीं रुक उन की लड़ाई देखने लगीं. दोनों यह देख कर हैरान रह गईं कि सीमा फर्राटे से बोल रही थी.

‘‘सब से पहले हम दोनों पानी भरेंगी. तुम सब चुडै़लें सुबहसुबह हमारा दिमाग क्यों खराब कर रहीं,’’ सीमा चिल्ला रही थी.

तनु प्रिया का हाथ पकड़ उसे खींचते हुए गली से बाहर ले आई.

‘‘यह सीमा गूंगी नहीं है. देखा कैसे फर्राटे से बोल रही है,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘हां प्रिया, इस का मतलब इन दोनों ने जो हमारे साथ किया वह सोचीसमझी साजिश के तहत किया,’’ तनु ने गुस्से से कहा.

‘‘हमें इन्हें सबक सिखाना होगा, लेकिन कैसे, समझ नहीं आ रहा ,’’ प्रिया बोली.

‘‘चलो हम इन्हें पुलिस के हवाले करते हैं,’’ तनु ने प्रिया का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘लेकिन इस से पहले हमें इन के खिलाफ सुबूत इकट्ठे करने होंगे.’’ घर आ कर उन्होंने अपनेअपने पतियों को सारा माजरा समझाया. फिर सब ने मिल कर फैसला किया कि वे पुलिस के साथ मिल कर उस के सहयोग से इन्हें पकड़वाएंगे. फिर चारों थाने में गए और अपने साथ हुई ठगी की आपबीती सुनाई. पुलिस ने सब से पहले मालूम किया कि वे दोनों फिलहाल कहां काम कर रही हैं. उन्हें पता चला कि वे अभी किसी नवदंपती के घर पर ही काम कर रही हैं. तब पुलिस ने उस दंपती के साथ मिल कर उन का भांडा फोड़ने की योजना बनाई. संयोग से उन के घर में सीसीटीवी कैमरा लगा था. कुछ ही दिनों में रमा बाई और सीमा ने वहां भी ऐसा ही खेल खेला, परंतु कैमरे में उन की सारी हरकत कैद हो गई और जो आदमी पुलिस की वरदी में आया वह रमा बाई का शराबी पति था जो पहले दंपती को डराताधमकाता था और फिर पैसे ले कर समझौता करवाता था. उन तीनों को ठगी करने के जुर्म में जेल हो गई. प्रिया की मां उस के लिए नाश्ता ले आई थीं. उन्होंने प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो प्रिया मुसकरा दी.

प्यार और समाज: क्या विधवा लता और सुशील की शादी हो पाई

लेखक- शुभम पांडेय गगन

लता आज भी उस दर्दनाक हादसे को सोच कर रोने लगती है. उसे लगता है कि सारा मंजर उस के सामने किसी फ़िल्म की भांति चल रहा है. अभी मुश्किल से सालभर भी न हुआ जब उस के हाथों में राजन के नाम की मेहंदी सजी थी और उस की मांग में राजन द्वारा भरा सिंदूर चमक रहा था. अब उस की सूनी मांग हर किसी को रोने को मजबूर कर देती है.लता की उम्र अभी 24 साल है और वह बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी है.

उस की शादी 6 महीने पहले शहर के एक बड़े व्यापारी  के इकलौते पुत्र राजन से हुई. राजन सुंदर और सुशील लड़का था जो लता को बहुत प्यार भी करता था. उन के प्यार को शायद किसी की नज़र लग गई और राजन की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उस की मौत के बाद उस के घर वालों ने लता को बेसहारा कर के उस के मायके भेज दिया. तब से लता यहीं रहती है. उस के पिता शहर से बाहर रहते हैं. वह उन की अकेली बेटी है.

प्रकृति न जाने क्यों ऐसी तक़लीफ देती है जिस में मनुष्य न जी सकता, न मर सकता. लता के दुखों के पहाड़ ने उस की जिंदगी की सारी खुशियां को दबा दिया था. उस की यौवन से सजी बगिया आज वीरान हुई थी.  जिस उम्र में उस की सहेलियों ने अपने परिवार को बढ़ाने और पति के साथ अलगअलग जगहों पर घूमने के प्लान बना रहीं, उस उम्र में वह अकेली सिसकती है.

लता के घर की बगल में महेश का घर है. उन के घर में कई लोग किराए पर रहते हैं. उन में ही एक हैं सुशील, जो पेशे से एक अखबार में काम करते हैं. उन की उम्र 28 साल होगी. वे लंबे कद, सुंदर चेहरे व बढ़िया कदकाठी के मालिक हैं.

वे लता को उस की शादी के पहले से काफ़ी पसंद करते हैं. लेकिन कहने से डरते हैं. आज वे बालकनी में खड़े थे कि लता छत पर कपड़े डालने आई. उन्होंने उस को देखा. उस को देखते ही उन को अपने प्रेम की अनुभूति फिर से उमड़ पड़ी.

लता का सफेद बदन धूप में चमक रहा था. उस के लंबे कमर तक के बाल अपनी लटों में किसी को उलझाने के लिए पर्याप्त थे. उस का यौवन किसी भी को आकर्षित करने में महारथी था.

सुशील उस को देखता रहा. एक दिन उस को लता बाजार में मिली. उस ने कहा, “लता, मुझे तुम से कुछ बात करनी है.”

लता ने कहा, “बोलो सुशील.”

दोनों एकदूसरे को अच्छे से जानते थे. कोई पहली बार नहीं था कि वह उस से बात कर रही थी. एक दोस्त के नज़रिए से दोनों अकसर बात किया करते थे.

सुशील ने कहा, “कहीं बैठ कर बातें करें.”

दोनों बगल के पार्क में चले गए.

लता ने कहा, “बोलो सुशील.”

सुशील ने कहा, “लता, सच कहूं, मुझ से तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता. मैं शुरुआत के दिनों से ही तुम्हें बहुत पसंद करता हूं. मैं ने न जाने कितने सपनों में तुम्हें अपने पत्नी के रूप में स्वीकार किया. लेकिन मेरी इच्छा तुम्हें पाने की असफल रह गई.

“तुम अकेली  कब तक ऐसे दर्द को सहते रहोगी. तुम्हारी भी उम्र है और यह फासला बहुत बड़ा है जिसे अकेले काटना मुश्किल हो जाएगा. अगर तुम चाहो, मैं तुम्हारे साथ इस उम्र के सफर में चलना चाहता हूं.”

लता सारी बातें सुन कर चौंक गई, लेकिन अंदर ही अंदर उस के मन में कहीं न कहीं ये बातें बैठ भी गई थीं. उस के आंखों से अश्रु की धारा अनवरत गिरने लगी.

सुशील ने बड़े प्यार से उसे अपने रूमाल से पोंछा और कहा, “तुम सोचसमझ कर बताना, मैं इंतज़ार करूंगा तुम्हारे जवाब का.”

उस के बाद लता घर आई और उस ने इस विषय में काफ़ी सोचा. उस को उस की उम्र काटने की बातें घर कर गई थीं लेकिन उस के ह्रदय में अभी राजन का चेहरा बसा था.

लेकिन कहते हैं न, कि वक़्त बड़ा बलवान होता है जो दिल से लोगों को निकाल भी फेंकता और किसी अंजान को बसा भी देता है.

लता लगभग एक महीने न सुशील को दिखी न मिली. एक दिन उस के घर की घंटी बजी और जब उस ने दरवाजा खोला तो सामने सुशील खड़ा था.

उस ने कहा, “अंदर आने को नहीं कहोगी?”

लता ने उसे अंदर बुलाया और फिर चाय के लिए पूछा. लेकिन सुशील ने मना कर दिया.

सुशील ने उस को बैठाया और उस से फिर अपने सवाल का जवाब मांगा.

लता ने कहा, “सुशील, मुझे तुम्हारी बातों ने बहुत प्रभावित किया परंतु एक विधवा से शादी करना क्या तुम्हारे घर वाले स्वीकार करेंगे?”

सुशील ने कहा, “मानें या न मानें, मैं तुम से ही करूंगा.”

लता को न जाने क्यों उस पर विश्वास करने को दिल कर रहा था लेकिन वह यह भी जानती थी इस समाज में आज भी बहुत सी कुरीतियों और रूढ़िवादी सोचों का कब्जा है जो उस के मिलन में बाधा पैदा करेंगी.

लेकिन फिर भी उस ने सब से लड़ने का फैसला कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने को सोच लिया और सुशील के प्रस्ताव को मान लिया.

धीरेधीरे दोनों का साथ घूमना, मिलना, घर आनाजाना भी शुरू हो गया. लता के घर में सिर्फ उस के पिताजी थे जो अकसर शहर से बाहर रहते थे. उन को लता ने सब बता दिया और वे भी बहुत खुश थे कि उन की बेटी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती है. एक पिता के लिए इस से खूबसूरत खबर क्या हो सकती थी.

एक दिन लता सुशील के घर गई. दरवाजा खुला था, वह सीधे अंदर गई. तभी किसी ने उस की कमर को पकड़ कर अपनी बांहों में भींच लिया. उस ने पलट कर देखा तो वह सुशील था.

उस ने कहा, “क्या कर रहे हो सुशील, छोड़ो मुझे?”

सुशील ने उस के कंधे पर चूमते हुए कहा, “अपनी जान को प्यार कर रहा हूं. क्या कोई गुनाह कर रहा?”

लता ने कहा, “तुम्हारी ही हूं. कुछ दिन रुक जाओ, फिर शादी के बाद करना प्यार. अभी छोड़ो.”

लेकिन सुशील उसे बेतहाशा कंधे, गले सब जगह चूमता रहा और अपनी बांहों में समेट रखा था. फिर लता ने भी छुड़ाने के असफ़ल प्रयास करना छोड़ उस की बाजुओं में खुद को समेट लिया.

सुशील की सशक्त बाजुओं में वह खुद समर्पित हो कर यौवन के प्रवाह के अधीन हो गई और दोनों काम के यज्ञ में आहुति बन गए.

दोनों का रिश्ता अब जिस्मानी हो चुका था. लता ने अपनी सीमा लांघ कर प्रेम में खुद को अशक्त कर लिया. सुशील ने भी उस के यौवन पर अपनी छाप छोड़ दी.

कुछ दिनों बाद सुशील अपने घर गया. लता ने 2 दिनॉ तक उस का फ़ोन बारबार मिलाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा था.

न जाने क्यों उस के मन मे बुरेबुरे ही ख़याल आते रहे.  उस का मन अंदर ही अंदर किसी अनहोनी को ही सामने ला रहा था परंतु उसे यकीन था, समय हर बार ऐसे खेल नहीं खेल सकता.

3 दिनों बाद एक अलग नंबर से उस के फ़ोन पर घंटी बजी. उस ने तपाक से फ़ोन उठाया और बोली, “हेलो, कौन?”

उसे ज़रा भी देर नहीं लगी कि दूसरी तरफ सुशील था. लता ने धड़ाधड़ प्रश्नों की बौछार कर सुशील को बोलने के मौके का रास्ता अवरुद्ध कर दिया.

सुशील बोला, “लता, तुम सच में मुझ से प्यार करती हो.”

लता ने कहा, “पागल हो, अगर नहीं करती तो सारी सीमाएं तोड़ कर खुद को तुम में समर्पित न करती.”

सुशील ने कहा, ” लता, घर वाले मेरी कहीं और शादी करना चाहते हैं. वे तुम्हारे और मेरे रिश्ते के विरुद्ध हैं. हम दोनों चलो भाग कर शादी कर लें.”

लता स्तब्ध मौन थी. वह न हां बोल रही, न ही मना कर रही. उस को जिस बात का डर था आख़िर वही हो रहा था. उसे पता था कि यह समाज एक विधवा को अभी भी अछूत और कलंकित समझता है.

उस ने फ़ोन रख दिया और फूटफूट कर रोने लगी मानो सालों पहले बीता वही मंजर, जिसे वह भुला चुकी थी, फिर से आ गया हो.

अगले दिन सुबह उस के दरवाजे पर दस्तक हुई और उस ने दरवाजा खोला. सामने सुशील खड़ा था. उस के कंधे पर एक बैग लटक रहा था. उस ने तुरंत उस का हाथ पकड़ लिया और कहा, “लता, चलो, हम अभी शादी करते हैं.”

लता ने कहा, “अभी…ऐसे? क्या हुआ?”

सुशील ने कहा, “अगर तुम्हें मुझ से प्रेम है तो सवाल न करो और चुपचाप मेरे साथ चलो.”

लता ने उस के साथ जाना उचित समझा. दोनों सीधे कोर्ट गए और वहां कोर्ट मैरिज कर ली.

आज से लता फ़िर सुहागिन हो गई. उस के चेहरे पर अलग सुंदरता आ गई मानो चांद को ढके हुए बादलों का एक हिस्सा अलग हो गया.

समाज की कुरीतियों और रूढ़िवादी सोच को मात दे कर दो प्रेमियों ने अपनी प्रेमकहानी को मुक्कमल कर दिया. सुशील ने लता को नई जिंदगी दी. उसे अपना नाम दिया और जीवनभर चलने के वादे को पूरा किया.

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