टौयलेट साफ रखने के लिए ये हैं कुछ जरूरी टिप्स

यदि घर का टौयलेट साफ नहीं हो तो घर सही मायने में साफ नहीं कहा जा सकता. बहुत से लोग घर के लिविंग रूम को तो साफसुथरा रखते हैं परंतु टौयलेट क्लीनिंग की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते. जबकि टौयलेट स्वच्छ रखना बहुत जरूरी होता है.

दरअसल, परिवार के सभी सदस्य इसे इस्तेमाल करते हैं, जिस से यह बारबार गंदा हो जाता है. ऐसे में यदि समय पर इसे अच्छी तरह साफ नहीं किया जाए, तो यह देखने में तो भद्दा लगता ही है, घातक बीमारियों को भी बुलावा देता है. यहां हम बताते हैं आपको टौयलेट साफ करने के कुछ टिप्स.

1. ब्रश को रखें कीटाणुनाशक में

जब आप एक बार ब्रश काम में लाते हैं तो पौट पर लगा मल ब्रश पर लग जाता है. आप पौट को देख लेते हैं कि साफ हो गया लेकिन ब्रश को नहीं देखते. यह ब्रश टौयलेट में बदबू भी करेगी और जब आप दुबारा साफ करेंगे तो गंदगी भी फैलाएगी. इसलिए ब्रश को एक बार काम में लेने के बाद पूरी रात कीटाणुनाशक या ब्लीच में डुबोकर रखें. इससे अगली बार जब आप काम में लेंगे तो आपकी ब्रश एकदम साफ रहेगी.

2. किनारों को पोछने के बजाय कीटाणुनाशक छिड़कें

किनारों पर सफाई थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में थोड़ा कीटाणुनाशक छिड़कें और इसे थोड़ी देर रहने दें. इसके बाद इसे पोछकर चमकाएं. चमक आने पर सूखा कपड़ा मार दें.

3. टौयलेट रिम को भी रखें साफ

टौयलेट रिम पर कीटाणुनाशक छिड़क दें क्योंकि इस पर भी गंदगी और बैक्टीरिया लगे रहते हैं. इसके अलावा ऐसी ब्रश लें जिससे यह ढंग से साफ हो सके. इसके लिए आप बेकार टूथ ब्रश काम में ला सकती हैं. सफाई करते समय हाथों में दस्तानें जरूर पहनें.

4. सफेद सिरके का इस्तेमाल

फ्लश टैंक में सफेद सिरका छिड़कने से यह ना केवल साफ और फ्रेश रहेगा बल्कि आपके सेनेटरी में जमे हार्ड-वाटर को भी यह निकाल देगा. इससे टौयलेट जाम नहीं होगा. सिरका एक कीटाणुनाशक, स्टेन रिमुवर है साथ ही यह 100% नौन-टोक्सिक है, इसलिए बिना संदेह के आप इसे इस्तेमाल ले सकती हैं. अच्छी खुशबू के लिए आप सिरके में सीट्रोनला या नीलगिरी का तेल भी मिला सकती हैं. फ्लश टैंक में रोजाना सिरका डालने से वीकएंड पर जब आप इसे साफ करेंगी तो आपको ज्यादा गंदगी नहीं मिलेगी.

5. सही तरह फ्लश करें

हर समझदार इंसान की निशानी है कि वह अपना काम करने के बाद टौयलेट को सही तरह फ्लश करे. ना केवल सही और पूरा फ्लश करे बल्कि चारों तरफ फ्लश करे. फ्लश करते समय यह भी ध्यान रखें कि गंदगी वापस ना आए. आपको पता होगा कि फ्लश करते समय टौयलेट गंदगी को पानी के प्रेशर से वापस फेंकता है.

6. बीमारियां व इन्फैक्शन

गंदा टौयलेट बहुत सी बीमारियां व इन्फैक्शन पैदा करना है. वहीं, यदि एक बार कोई इन्फैक्शन हो जाए तो स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है और शरीर का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है. गंदी टौयलेट सीट पर तेजी से बैक्टीरिया व जर्म्स फैलते हैं, जिस से डायरिया, कौलरा, टायफाइड, स्किन इन्फैक्शन के अलावा यूरिनरी इन्फैक्शन आदि भी हो सकते हैं. बच्चे इन से शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं.

7. स्वच्छता का रखें खयाल

टौयलेट की स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, वहीं ध्यान रखें कि सफाई ऐसी हो जो न सिर्फ टौयलेट को अच्छी तरह साफ करे बल्कि जर्मफ्री भी बनाए. दरअसल, टौयलेट सीट पर बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं. इन्हें जर्मफ्री बनाने के लिए अच्छी कंपनी के टौयलेट क्लीनरों का प्रयोग करें. मार्केट में कई तरह के टौयलेट क्लीनर्स उपलब्ध हैं, जिन में हार्पिक एक लोकप्रिय ब्रैंड है. इस का ऐडवांस फार्मूला अन्य क्लीनरों के मुकाबले 5 गुना बेहतर सफाई का दावा करता है व बदबू दूर कर फ्रैश सुगंध देता है. पूरे टौयलेट को क्लीन करना जरूरी है. फर्श को साफ रखें, टौयलेट सीट के अंदर व बाहर टौयलेट क्लीनर को अच्छी तरह प्रत्येक कोने में लगा कर लगभग 20-25 मिनट तक छोड़ दें.

कैसे जानें कि Menstrual Cup भर चुका है?

यदि हाल ही में आपने मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करना शुरू किया है या फिर ऐसा करने के बारे में सोच रही हैं तो आप एक बेहद ही आरामदायक और पर्यावरण के अनुकूल माहवारी की राह पर हैं. लेकिन मैं इस बात को समझ सकती हूं कि आपके दिमाग में कई सारे सवाल होंगे, हालांकि सबसे महत्वपूर्ण होगा लीकेज की चिंता या फिर कितने अंतराल पर कप को खाली करने की जरूरत होती है.

डॉ. तनवीर औजला, वरिष्ठ सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, मदरहुड अस्पताल, नोएडा की बता रही इसके इस्तेमाल के तरीके इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है और एक बार ठीक से इंसर्ट होने के बाद, आपके शरीर में कुछ अजीब होने का सवाल ही नहीं पैदा होता.

मेंस्ट्रुअल कप, सिलिकॉन या लेटेक्स रबर से बना एक छोटा, लचीला कप होता है, जिसे माहवारी के दौरान वजाइनल कैनाल में इंसर्ट किया जाता है. चूंकि, मेंस्ट्रुअल कप में माहवारी का रक्त पैड या टैम्पॉन की तरह अवशोषित होने की जगह जमा होता है तो आप इसे इस्तेमाल के बाद खाली कर सकती हैं. यह इस्तेमाल करने वाले की उम्र, सर्विक्स की स्थिति और रक्त के प्रवाह पर निर्भर करता है. ये कप तीन साइज में उपलब्ध हैं: स्मॉल, मीडियम और जाइंट.

कुछ चिंताओं के बावजूद, मेंस्ट्रुअल कप काफी लचीला होता है और इंसर्ट करने के बाद, यह वजाइनल कैनाल के अंदर फैलता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इसका उपयोग करना पूरी तरह से सुरक्षित है और एक बार ठीक से इंसर्ट होने के बाद, आपके शरीर में कुछ अजीब होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. आप अपने टैम्पॉन के खिसकने या आपके अंडरवियर पर अपने पैड के गिरने की चिंता किए बिना अपना दिन बिता सकती हैं. कुछ लोग इसके बारे में दावा करते हैं कि रिसाव का कोई खतरा नहीं होता, यात्रा के दौरान इसका उपयोग करना बहुत आरामदायक होता है और यह पर्यावरण के लिये फायदेमंद है.

वहीं दूसरी तरफ, कुछ ऑनलाइन यूजर्स दावा करते हैं कि यह पता लगाना मुश्किल होता है कि कब कप भर गया. कोई भी अलार्म सिस्टम आपको अलर्ट नहीं करता है कि कप फुल हो चुका है और आपके मेंस्ट्रुअल कप इतना उन्नत नहीं है कि आपको एसएमएस कर दे कि कब रक्त का स्तर सही है.

जिस दिन रक्त का बहाव ज्यादा हो आपको हर 3 से 4 घंटे पर यह देखना चाहिए कि कितना रक्त इकट्ठा हो रहा है. मेंस्ट्रुअल कप के आकार और टैम्पॉन के सवाल के आधार पर एक मेंस्ट्रुअल कप आमतौर पर एक टैम्पॉन के मुकाबले दो से आठ गुना अधिक रक्त इकट्ठा करता है. जब भी संदेह हो, कप को हटा लें और कितना भरा है उसकी जांच कर लें. इसे भरने में कितना समय लगता है, यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी बार कप को हटाती हैं और उसे खाली करती हैं.

चूंकि, इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि यह कप कब भरेगा तो इस बात की जांच कर लें कि ज्यादा रक्तस्राव वाले दिन इसे भरने में कितना वक्त लगता है. कम रक्तस्राव वाले दिन आपको कप भरने की चिंता नहीं करनी है, क्योंकि जितनी देर आप कप को अंदर रखेंगी, वह धीरे-धीरे भरता रहेगा.

रक्तस्राव की तीव्रता के अलावा भी आमतौर पर आपको हर 10 से 12 घंटे में कप को निकालना है. कुछ कंपनियां सलाह देती हैं कि 8 घंटे के बाद कप को निकालना, साफ करना और फिर से इंसर्ट करना सबसे सही होता है. लेकिन अध्‍ययनों के मुताबिक कप को 12 घंटे तक लगातार छोड़ देना भी सुरक्षित ही है. इसके साथ ही कप का लीक होने लगना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह भर चुका है. लेकिन हममें से ज्यादातर इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहेंगे, क्या हम ऐसा करेंगे?

कुछ रिसर्च के मुताबिक, एक कप को 12 घंटे से ज्यादा समय तक रखना, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस) और अन्य वजाइनल संक्रमणों के खतरे को बढ़ा देता है. लंबे समय तक कप में ठहरा हुआ रक्त बैक्टीरिया के पनपने की जगह बन सकता है, यह बैक्‍टीरिया इन रोगों के होने का कारण बन सकते हैं.

हालांकि, कप के इस्‍तेमाल से जुड़े टीएसएस के केवल दो मामले ही सामने आए हैं. इसके अलावा,  पिछले हफ्‍ते उन महिलाओं में से किसी ने भी अपने कप नहीं हटाए. टीएसएस आमतौर पर टैम्पॉन के इस्‍तेमाल से जुड़ा होता है, लेकिन सामान्य नियम के मुताबिक किसी भी प्रकार के जोखिम को टालने के लिये अपने मेंस्ट्रुअल कप को 12 घंटे से ज्यादा समय के लिये अंदर ना छोड़ने की सलाह दी जाती है.

कप के पूरी तरह भर जाने से लीक होने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ऐसा होने के कुछ और भी कारण हो सकते हैं:

बड़े या छोटे साइज का कप लगाने से यदि आईयूडी मौजूद हो, उसका धागा कप के रिम और वजाइनल वॉल में फंस सकता है, जो रक्त के स्राव के लिये जरूरी सक्शन बनने से रोक सकता है.

आपके कप के बाहर स्थित सर्विक्स, जोकि कप के साथ सही तरीक से एक सीध में ना हो.

बाउल मूवमेंट की वजह से आपके कप की पॉजिशन बदल सकती है.

आपके पेल्विक मसल्स इतने मजबूत हों कि उसमें लगभग भरे हुए कप से सक्शन को हटाने की ताकत हो.

जब तब आपका कप भरने के लिये पूरी तरह खाली ना हो, तब तक इंतजार ना करें. यदि आपको 12 घंटे हो चुके हैं तो आप हर 3 से 4 घंटे में इसे फिर से इंसर्ट कर सकती हैं, यह आपके रक्त स्राव पर निर्भर करता है. भले ही आपका कप ना भरा हो, फिर भी आपको इसे हटाना है.

जैसा भी था, था तो: क्या हुआ था सुनंदा के साथ

एकएककर लगभग सभी मेहमान जा चुके थे. बस सुनंदा की रमा मामी रुकी थीं. वे भी कल सुबह चली ही जाएंगी. रमा मामी से उसे शुरू से विशेष स्नेह रहा है. मामा की मृत्यु के बाद भी रमा ने सब से वैसा ही स्नेह और सम्मानभरा रिश्ता रखा है जैसा मामा के सामने था. मामी अपने विवाहित बेटे के साथ सहारनपुर में रहती हैं. अब भी रमा मामी ने ही आलोक की मृत्यु के समाचार सुनने से ले कर आज सब मेहमानों के जाने तक सब संभाल रखा था.

आलोक के भाईबहन आधुनिक व्यस्त जीवन की आपाधापी में से समय निकाल कर जितनी देर भी आ पाए, सुनंदा को उन से कोई गिलाशिकवा है भी नहीं. आलोक का जाना तय था. यह तो 1 महीने से उस के हौस्पिटल में रहने से समझ तो आ ही रहा था पर जैसा कि इंसान मृत्यु को चुनौती देने के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देता है पर जीत थोड़े ही कभी पाता है, वैसे ही सुनंदा ने रातदिन आलोक के स्वस्थ होने की आशा में पलपल बिता दिया था.

अंतिम दिनों में ही पता चला था कि आलोक कैंसर की चपेट में है और लास्ट स्टेज है. उन के दोनों बच्चे शाश्वत और सिद्धि मां का मुंह ही देखते रहते थे. समझ गए थे कि मां ऐसे ही परेशान नहीं हैं, इस बार कुछ होने ही वाला है और हो भी तो गया था.

आलोक को गए 2 सप्ताह हो चुके हैं. सुनंदा ने बच्चों के कमरे में झांका. रात के 11 बज रहे थे. रमा ने दोनों बच्चों को खाना खिला कर सुला दिया था.

रमा ने कहा था, ‘‘बच्चो, कल से स्कूल जाना… पढ़ने में मन लगाना. मम्मी का ध्यान भी रखना और मेहनत करना. सुनंदा अपनी परेशानी जल्दी नहीं कहेगी पर तुम लोग अब उस का ध्यान जरूर रखना.’’

उन के स्कूल के सामान की व्यवस्था बच्चों के साथ मिल कर रमा ने देख ली थी.

रमा जब सुनंदा के कमरे में आई तो देखा, सुनंदा आरामकुरसी पर आंखें बंद किए लेटी सी थी. आहट पर सुनंदा ने आंखें खोलीं. रमा वहीं उस के पास बैठते हुए कहने लगी, ‘‘सुनंदा,

कल सुबह मैं चली जाऊंगी, तुम से कुछ बात करनी है.’’

‘‘हां, मामी, बोलो न.’’

‘‘तुम ने आलोक के रहते हुए भी क्याक्या झेला है, मुझ से कुछ भी छिपा नहीं है, सब जानती हूं. यह तो अच्छा रहा कि तुम अपने पैरों पर खड़ी थी. आज प्रिंसिपल हो, अपनी और बच्चों की, घर की जिम्मेदारी पहले भी तुम ही उठा रही थी, अब भी तुम ही उठाओगी, पर जैसा भी था, आदमी तो था,’’ कहतेकहते रमा की आवाज में नमी आ गई, गला भी रूंध सा गया.

सुनंदा ने बस गरदन हिलाई, हां में या न में, उसे खुद ही पता नहीं चला.

मामी ने उस के सिर पर हाथ फेर कहा, ‘‘चलो, अब सो जाओ. कल स्कूल जाओगी?’’

‘‘हां, आप के जाने के बाद चली

जाऊंगी, बहुत काम इकट्ठा हो गया होगा,

आप आती रहना.’’

‘‘हां, जरूर.’’

रमा के जाने के बाद सुनंदा उठ कर बैड पर लेट गई, ‘आदमी तो था’ भाभी के इन शब्दों पर अंदर से मन कहीं अटक गया. आंखें तो बंद थीं पर मन ही मन अतीत की परत दर परत खुलने लगी.

सुनंदा को अपने विवाह के पिछले 20 बरस आंखों के आगे इतना स्पष्ट दिखे कि उन्हें महसूस करते ही उस ने अपने माथे पर पसीना सा महसूस किया.

विवाह के कुछ दिनों बाद ही उस ने अनुभव कर लिया था कि मातापिता ने बेटी को बोझ मानते हुए जितना जल्दी यह बोझ कैसे भी उतर जाए की चाह में एक निहायत कामचोर व्यक्ति के पल्ले उसे बांध दिया है. सुनंदा ने गर्ल्स स्कूल में नौकरी अपनी योग्यता के दम पर हासिल की थी और आज वह प्रिंसिपल के पद तक पहुंच गई है. दोनों बच्चों के जन्म के बाद तो वही जैसे पुरुष थी घर के लिए. आलोक उस के समझाने पर अगर कोई काम शुरू भी करता तो जल्द ही काम में कमियां निकाल उसे छोड़ देता. उसे घर में रहना, सुनंदा की तनख्वाह की पाईपाई का हिसाब रखना ही आता था.

आलोक को गांव में रह रहे अपने मातापिता से न कोई लगाव था, न भाईबहन से, क्योंकि वे सब उसे कुछ काम कर मेहनत करने की सलाह देते थे और वह उन से दूर ही रहता था. सब उसे कामकाजी पत्नी के सुपुर्द कर जैसे निश्चिंत हो गए थे. कुछ साल पहले आलोक के मातापिता भी नहीं रहे थे. सुनंदा का भी अब कोई अपना नहीं था.

सुनंदा कई बार सोचती कि इस से अच्छा तो वह कहीं अविवाहित ही जी लेती पर जब बच्चों का मुंह देखती तो इस विचार को जल्द ही दिल से दूर कर देती.

आलोक ने कई बार सुनंदा की जमापूंजी से, लोन से कई बार काम शुरू भी किया जिस में हमेशा नुकसान ही हुआ और अब सुनंदा की रहीसही जमापूंजी भी आलोक के इलाज में खत्म हो चुकी थी. घर देखना है, बच्चों का कैरियर बनाना है, कल से स्कूल जा कर पैडिंग पड़ा काम देखना है. आलोक था तब भी सब काम वही देखती थी, अब भी उसे ही देखने हैं, नया क्या है? सोचतेसोचते उस की आंख लग ही गई. काफी लंबे समय से थका तनमन भी तो आराम मांग रहा था.

अगले दिन रमा चली गई. सुनंदा ने बच्चों को स्कूल भेजते हुए बहुत कुछ

समझाया. बच्चे समझदार थे. सुनंदा भी स्कूल के लिए तैयार होने लगी. शामली की इस कालोनी की दूरी स्कूल से पैदल 20 मिनट की ही थी. आलोक उसे स्कूटर पर छोड़ आता था. आज

घर की गैलरी में खड़े स्कूटर को देख कर सुनंदा के कदम तो ठिठके पर वह रुकी नहीं, पैदल ही बढ़ गई. रिकशा लेने का मन ही नहीं हुआ. सोचा, थोड़ा चलना हो जाएगा. इतने दिन घर में शोक प्रकट करने आनेजाने वालों के साथ बैठी ही रही थी. औफिस में भी जा कर बैठना ही है. आज देर भी होगी आने में. बच्चों के लिए रमा ने याद से घर की चाबियां भी अलग से बनवा दी थीं.

स्कूल पहुंच कर वह अपने औफिस में बैठी ही थी कि 1-1 कर के टीचर्स, बाकी सहयोगी उस से मिलने आते रहे. सब शोक प्रकट करने घर आ चुके थे पर आज भी सब उस के पास आते रहे. वह गंभीर ही थी, फिर कई काम देखे. परीक्षा आने वाली थी. वाइस प्रिंसिपल गीता को बुला कर उस से काफी विचारविमर्श करती रही.

मन बीचबीच में बच्चों की तरफ भाग रहा था. घर पहुंच गए होंगे? रखा हुआ खाना खा लिया होगा होगा? गरम किया होगा या नहीं? अंदर से दरवाजा तो बंद कर लिया होगा न? जमाना बहुत खराब है. बच्चों के पास अभी मोबाइल नहीं था. आलोक बच्चों के पास फोन होने का पक्षधर नहीं था. बच्चे भी जिद्दी नहीं थे. फिर उस ने लैंडलाइन पर फोन किया. बच्चे आ चुके थे. उन से बात कर के सुनंदा को तसल्ली हुई, फिर वह अपने ही काम में व्यस्त रही.

सुनंदा जब घर पहुंची, बच्चों की आंख लग गई थी. उस की आहट से बच्चे उठ बैठे और उस से लिपट गए. सुनंदा ने दोनों को बांहों में भर लिया, ‘‘तुम लोग ठीक हो न?’’

आलोक के जाने के बाद तीनों के स्कूल का पहला दिन था. शाश्वत ने उदासी से कहा, ‘‘ठीक हैं मम्मी, पर पापा के बिना अच्छा नहीं लग रहा कुछ.’’

सिद्धि भी सुबक उठी, ‘‘पापा की बहुत याद आ रही है मम्मी.’’

‘‘हां, बेटा,’’ कहते हुए सुनंदा ने बच्चों को बहुत प्यार किया. उन के साथ ही बैठ कर स्कूल की बातें करने लगी पर घूमफिर कर बच्चे इसी विषय पर आ रहे थे, ‘‘आज सब पूछ रहे थे पापा के बारे में.’’

‘‘टीचर्स भी पूछ रही थीं, मम्मी.’’

‘‘घर अच्छा नहीं लग रहा न, मम्मी?’’

हां में गरदन हिलाती रही सुनंदा. तीनों अपनेअपने रूटीन में धीरेधीरे व्यस्त होते चले गए. समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. आलोक के बारे में तीनों अकसर बातें करने बैठ जाते. किसी की भी आंख भरती तो विषय बदल कर उसे हंसाने की कोशिश शुरू हो जाती.

एक दिन सुनंदा औफिस में व्यस्त थी. सिद्धि का उस के मोबाइल पर फोन आया, ‘‘मम्मी, उमेश अंकल आए हैं.’’

सुनंदा का माथा ठनका, ‘‘क्यों आए हैं?’’

‘‘पता नहीं मम्मी, मैं ने तो उन्हें पानी पिलाया… वे बस मेरे साथ ही बातें किए जा रहे हैं…कुछ काम तो नहीं लग रहा है.’’

‘‘शाश्वत कहां है?’’

‘‘सो रहा है.’’

‘‘ओह, उठा दो उसे फौरन.’’

‘‘पर वह उठाने पर गुस्सा करेगा.’’

‘‘उठाओ और उसे कहो इस अंकल के पास वही बैठे और तुम अपने रूम में होमवर्क कर लो. इसे चायवाय पूछने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अच्छा, मम्मी.’’

उमेश के आने की बात सुन कर सुनंदा बहुत परेशान हो गई. आलोक उमेश को बिलकुल पसंद नहीं करता था. उमेश था तो आलोक का पुराना दोस्त पर बेहद चरित्रहीन. आलोक उसे हमेशा घर के बाहर ही रखता था.

उसने सुनंदा को उमेश की चरित्रहीनता के सारे किस्से सुनाए हुए थे. सिद्धि बड़ी हो रही है, अकेली है. सुनंदा को आज चैन नहीं आ रहा था. उमेश उस के घर में बैठा हुआ है. उमेश कई बच्चियों के साथ कुकर्म करते हुए पकड़ा गया था. उस की पत्नी उसे छोड़ कर जा चुकी थी.

सुनंदा गीता तो बुला कर बोली, ‘‘बहुत जरूरी काम है, जाना पड़ेगा, हो सकेगा तो लौट आऊंगी,’’ कह कर निकलने लगी तो गीता ने सम्मानपूर्वक कहा, ‘‘आप जाइए, मैम. मैं संभाल लूंगी. आप को दोबारा आने की परेशानी उठाने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘थैंक्यू गीता,’’ कहते हुए सुनंदा अपना पर्स उठा कर स्कूल से निकल गई, रिक्शा पकड़ घर पहुंची.

उमेश शाश्वत के साथ बैठा था. शाश्वत के माथे पर नींद से उठाए जाने पर झुंझलाहट थी. उमेश उसे देख कर चौंक गया, ‘‘अरे भाभी, आप इस समय कैसे आ गईं?’’

काफी कटु और गंभीर स्वर में सुनंदा ने कहा, ‘‘आप बताइए, आप इस समय यहां क्यों आए?’’

‘‘बस, ऐसे ही, सोचा आप लोगों के हालचाल ले लूं.’’

‘‘आगे से आप हालचाल के लिए परेशान न हों, हम ठीक हैं.’’

‘‘अरे भाभी, दोस्त था मेरा. मेरी भी कुछ जिम्मेदारी है. बच्चे वैसे काफी समझदार हैं.’’

‘‘भाईसाहब, आप आगे से तकलीफ न उठाएं.’’

‘‘नहीं भाभी, मैं तो आता रहूंगा, आप मुझे पराया न समझें.’’

सुनंदा के कड़े तेवर देख कर उमेश उस समय हाथ जोड़ कर बाहर निकल गया. सुनंदा सोफे पर ढह सी गई. सिद्धि भी मां की आवाज सुन कर अपने रूम से निकल कर आ गई थी. सुनंदा ने दोनों बच्चों को अपने पास बैठाया और कहने लगी, ‘‘बच्चो, जमाना बहुत खराब है. आगे से अगर मैं घर पर न होंऊ तो किसी के लिए भी दरवाजा न खोलना, इस आदमी के लिए तो बिलकुल नहीं.’’

‘‘ठीक है, मम्मी. हम ध्यान रखेंगे,’’ कह सिद्धि फिर सुनंदा के लिए चाय बनाने चली गई.

सुनंदा शाम को घर का सामान लेने मार्केट के लिए निकल गई. सारा सामान आलोक ही लाता था. छोटी जगह थी, कई लोग जानपहचान के मिलते चले गए. एक पड़ोसिन भी मिल गई. हालचाल पूछने के बाद कहने लगी, ‘‘आप ने तो हमेशा बाहर की लाइफ ही ऐंजौय की. अब तो आप पर घर के भी काम आ गए होंगे, आप को भी अब दालसब्जी का आइडिया हो जाएगा.’’

बात सुनंदा का दिल दुखा गई. वह लाइफ ऐंजौय कर रही थी अब तक? घरबाहर के कामों के लिए जीवनभर मशीन ही बनी रही. हम औरतें ही क्यों औरतों का दिल दुखाने में पीछे नहीं हटतीं?

पड़ोसी जगदीश भी सब्जी के ठेले पर मिल गए. सुनंदा को ऊपर से नीचे तक चमकती आंखों से देख मुसकराए, ‘‘बड़ी मैंटेंड हैं आप भाभीजी.’’

सुनंदा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी फिर जबरदस्ती उस के हाथ से थैला लेते हुए उस का हाथ छू लिया.

सुनंदा के तनमन में क्रोध की एक ज्वाला सी धधक उठी, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप?’’

‘‘आप की हैल्प कर रहा हूं, भाभीजी.’’

‘‘मैंने आप से हैल्प मांगी क्या?’’

‘‘मांगी नहीं तो क्या हुआ? पड़ोसी हूं, मेरा भी कुछ फर्ज है. चलिए, आप को घर तक छोड़ आता हूं.’’

‘‘नहीं, रहने दीजिए. यहां मुझे अभी और भी काम है,’’ कह कर सुनंदा ने अपना थैला वापस झपटा और बाकी का समान लेने इधरउधर हो गई.

मन अजीब से गुस्से से भर उठा था. घर आ कर सामान रख अपने बैडरूम में जा कर आंखें बंद कर लेट गई. दोनों बच्चे टीवी में कुछ देख रहे थे. सुनंदा का दिल मिश्रित भावों से भर उठा था. माथे पर हाथ रखे सुनंदा ने अपनी कनपटियों तक बहते आंसुओं की नमी को चुपचाप ही महसूस किया. धीरेधीरे इस नमी का वेग बढ़ता जा रहा था.

आज, अभी, आलोक की याद शिद्दत से आने लगी. जब तक आलोक था तीनों के इर्दगिर्द एक सुरक्षा का घेरा तो था. एक आलोक के जाते ही वह कितनी असुरक्षा से चिंतित रहने लगी थी. उस ने तो हमेशा यही महसूस किया था कि इस पति से उसे क्या मिला? कुछ नहीं. वही तो सालों से कमा कर घर चला रही थी.

आज लगा पैसे जरूर वह कमा रही थी पर जो आलोक के रहने पर जीवन में था, आज नहीं है. ‘जैसा भी था आदमी तो था’ रमा भाभी के ये शब्द याद आए तो पहली बार सुनंदा की आलोक की याद में इतनी तेज सिसकियों से कमरा गूंज उठा.

वनवास: क्या सिया को आसानी से तलाक मिल गया?

बाहर ड्राइंगरूम में नितिन की जोरजोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी, “मैं क्या पागल हूं, बेवकूफ हूं, जो पिछले 5 सालों से मुकदमे पर पैसा फूंक रहा हूं. और सिया पीछे से राघव
के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रही है.”

तभी नितिन की मम्मी बोली, “बेटा, पिछले 5 सालों से तो वनवास भुगत रही है तेरी बहन. जाने दे, अब अगर उसे जाना है…”

नितिन क्रोधित होते हुए बोला, “पहले किसने रोका था?”

सिया अंदर कमरे में बैठेबैठे घबरा रही थी. उस ने फैसला तो ले लिया था, पर क्या यह उस के लिए सही साबित होगा, उसे खुद पता नही था.

सिया 28 वर्ष की एक आम सी नवयुवती थी. 5 वर्ष पहले उस की शादी आईटी इंजीनियर राघव से हुई थी.

सिया के पिता की बहुत पहले ही मृत्यु हो गई थी. सिया के बड़े भाई नितिन और रौनक ने ही सिया के लिए राघव को चुना था. जब राघव सिया को देखने आया था, तो दुबलापतला राघव सिया को थोड़ा अटपटा लगा था. राघव और सिया के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी. सिया की बड़ीबड़ी आंखें और शर्मीली मुसकान राघव के दिल को दीवाना बना गई थी.

राघव ने रिश्ते के लिए हां कर दी थी. मम्मी सिया की किस्मत की तारीफ करते नहीं थक रही थी. एक सिंपल ग्रेजुएट को इतना पढ़ालिखा पति जो मिल गया था.

सिया को विवाह के समय भी लग रहा था कि उस का ससुराल पक्ष अधिक खुश नही है. सिया को लगा, शायद राघव के घर वालों को उन की आशा के अनुरूप उपहार नहीं मिले थे.

जब सिया जयमाला लिए राघव की तरफ जा रही थी, तभी उस के कानों में ताईजी की फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी, ‘अरे, लड़का तो बौना है और इतना पतला जैसे कोई बच्चा हो.’

राघव वास्तव में सिया के बराबर ही था और सिया भी कौन सी लंबी थी. 5 फीट की हाइट जहां सिया
का कद छोटा दर्शाता था, वहीं राघव का 5 फीट का कद उसे एकदम से बौना सा दिख रहा था.

जूते छुपाई की रस्म के समय चचेरी बहन पीहू बोली, “अरे, जीजाजी के जूतों में तो शायद हील होगी. बड़े ध्यान से देखना पड़ेगा.”

यह लतीफा जहां सिया को शर्मसार कर गया था, वहीं राघव का चेहरा अपमान से
लाल हो गया था.

जब सिया विदा हो कर राघव के घर आई, तो वहां का माहौल काफी तनावग्रस्त लग रहा था. उड़तीउड़ती बातें सिया के कानों में भी पहुंची थीं कि उस के दोनों बड़े भाइयों ने उन्हें धोखा दिया है. अच्छी शादी की बोल कर अपनी मामूली सी पढ़ीलिखी बहन उन के पल्ले बांध दी थी.

राघव की मम्मी अपनी देवरानी से कह रही थीं, ‘अरे राघव के तो बहुत अच्छेअच्छे पैसे वाले रिश्ते आ रहे थे. बस, थोड़ा कद ही तो छोटा है, नहीं तो लाखों में एक है मेरा बेटा.

‘अरे, मैं क्या अपने बेटे के लिए ऐसी लड़की ले कर आती, जो साधारण ग्रेजुएट हो.’

सिया अपने आंसू जज्ब करे बैठी थी. उसे नहीं पता था कि असलियत क्या है. क्या सच में उस के भाइयों ने
ऐसा किया होगा?

रात में राघव भी सिया से बड़ी रुखाई से पेश आया. उस ने सिया को आंख उठा कर देखा भी नहीं. दूध पीने के बाद राघव सिया से बोला, “जब मैं तुम्हें बौना या अजूबा लगता था, तो किसने कहा था मुझ से विवाह करने के लिए?”

सिया की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. वह हकलाते हुए बोली, “क्या लड़की की कभी राय पूछी जाती है?”

राघव व्यंग्य करते हुए बोला,”तो तुम हकलाती भी हो. जाहिर है, तभी तुम्हारा परिवार तुम्हारे लिए वर खोज नहीं रहा था, बल्कि खरीद रहा था. पर, दाम भी कहां चुकाया उन्होंने मेरा पूरा?”

सिया बोली, “आप अपना गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रहे हैं?”

राघव चिढ़ते हुए बोला, “महारानी, तो फिर मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की तुम ने? किसी लंबे लड़के को खरीद लेते.”

सिया को समझ नहीं आ रहा था कि क्यों राघव उस से ऐसी बात कर रहा है?
जब अधिक और कुछ समझ नहीं आया, तो वह रोने लगी और राघव तकिया उठा कर बराबर में चादर तान कर सो गया था.

सुबह सिया की बड़ी ननद पूजा मीठी मुसकान के साथ चाय की ट्रे ले कर आई और सिया की जवाफूल सी
लाल आंख देख कर सकपका गई.

बस सिया से पूजा इतना ही बोल पाई, “थोड़ा सब्र रखो सिया. सबकुछ ठीक हो जाएगा.”

मगर, सबकुछ ठीक कहां हो पाया था. पगफेरे के लिए जब सिया के भाई नितिन और रौनक आए, तो बात
बहुत बढ़ गई थी.

पूजा ने ही सिया को बताया कि राघव को इस बात का गुस्सा था कि उस के मातापिता ने ही उस से झूठ
बोला था कि सिया ग्रेजुएट जरूर है, मगर वह सिविल सर्विस की तैयारी कर रही है.

राघव को विवाह के दिन
ही पता चला था कि सिया एक घरेलू लड़की है और राघव के परिवार ने अच्छी शादी की एवज में सिया को
चुना था.

सिया की सास कल्पना सिया के परिवार वालों को धोखेबाज और भी ना जाने क्याक्या बोल रही थी. वहीं सिया का भाई नितिन बोला, “आप ने अच्छी शादी कही थी, तो हम ने बजट से बढ़ कर खर्च किया था. आप को अगर कैश चाहिए था, तो मुंह खोल कर बोल देते. हम जेवर, कपड़े पर कम खर्च करते.”

इस पर राघव बोला, “बहन के लिए दूल्हा खरीदने से अच्छा आप उसे ढंग से पढ़ालिखा देते. कम से कम ऐसे मोलतोल तो न करना पड़ता.”

बहरहाल, सिया अपने ससुराल से खोटे सिक्के की तरह वापस भेज दी गई थी.

दोनों भाभियों ने लैक्चर देने आरंभ कर दिए थे. पहले ही पढ़ाई में दिल लगाया होता तो ये नौबत नहीं आती.

सिया कोई अनपढ़ नहीं थी. मगर, उस के पास कोई ऐसी प्रोफेशनल डिगरी नहीं थी, जिस के बलबूते पर उसे
नौकरी मिल सके. ग्रेजुएशन के बाद सिया ने बेकरी, टैक्सटाइल डिजाइनिंग, बेसिक मेकअप जैसे कोर्स अवश्य किए थे. मगर उस के पास कोई ऐसा डिप्लोमा या डिगरी नहीं थी.

सिया को आए हुए 2 महीने बीत गए थे. वह चुपचाप अपने कमरे में घुसी रहती थी. नितिन और रौनक ने
सिया की नामर्जी के बावजूद राघव के ऊपर भरणपोषण, घरेलू हिंसा और तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था.

दोनो भाभियों ने भी अपने पति की हां में हां मिलाते हुए कहा, “ये तो राघव को करना ही पड़ेगा. सिया को उस रूखे और पत्थरदिल इनसान से कुछ नहीं चाहिए था, मगर वो मजबूर थी.”

सिया मन ही मन सोचती, ‘कम से कम एक बार राघव उस से बात तो कर लेता, मगर नहीं. उस ने तो अपनेआप ही उसे मुजरिम करार कर के फैसला सुना दिया था. वह भी उस अपराध के लिए, जो कभी उस ने किया ही नहीं था.’

कोर्ट में केस चल रहा था, हर तारीख के बाद अगली तारीख दे दी जाती थी. भाइयों का जोश और गुस्सा
दोनो ही कम हो गए थे. उधर भाभियों ने भी धीरेधीरे अपने काम सिया की तरफ खिसकाने शुरू कर दिए
थे.

सिया की मां की चिंता बढ़ती जा रही थी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन के बाद सिया का क्या होगा? वो बेटों पर इल्जाम लगाती कि उन्हें रिश्ते से पहले ही खुल कर बात करनी चाहिए थी. बेटे अपनी सफाई में कहते, “मां सबकुछ तो आप से पूछ कर ही किया था. अब आप हमें ही दोषी ठहरा रही हो.

सिया को लगता, मानो उस के कारण ही घर के वातावरण में तनाव रचबस गया है.

ऐसे ही एक दिन सिया के
कारण सिया की भाभी और मां में तूतूमैंमैं हो गई थी.
सिया ने ना जाने क्या सोचते हुए फेसबुक पर राघव को मैसेज कर दिया था, ‘मुझे आप से मिलना है. मैं केस के बारे में कुछ डिस्कस करना चाहती हूं.’

सिया ने एक घंटे बाद देखा कि राघव ने अब तक भी मैसेज नहीं पढ़ा था. उसे लगा शायद वो फेसबुक पर
अधिक आता नही है. तभी उधर से मैसेज आया कि ठीक है, संडे में मिल लेते हैं. टाइम तुम बता देना.

सिया ने मैसेज भेजा, दोपहर 12 बजे रंगोली रेस्तरां में मिलते हैं.’

राघव ने कहा, ‘ठीक है.

सिया ने मैसेज भेजा, ‘और ये मेरा नंबर सेव कर लेना. अगर ढूंढ़ने में दिक्कत हो, तो फोन कर लेना.’

सिया ने कह तो दिया था, मगर अब उसे डर लग रहा था. वह मन ही मन सोच रही थी कि अगर राघव अपने घर वालों के साथ आया, तो उस की अच्छी फजीहत हो जाएगी.

कभी सिया सोचती कि वह वहां जाएगी ही नही. कभी सिया को लगता, अगर राघव उस के मैसेज का स्क्रीन शाट उस के भाइयों को भेज दे, तो ना जाने क्या होगा.

शनिवार की पूरी रात सिया करवट बदलती रही. रविवार में उस ने घर वालों को कह दिया था कि वह एक सहेली
के घर जा रही है लंच पर.

जब सिया तैयार होने लगी, तो उसे समझ ना आया कि वो क्या पहने? पहले मेहरून रंग का पहना तो उसे बेहद तेज रंग लगा, फिर सफेद रंग पहना तो लगा कि कहीं राघव ऐसा न सोचे कि वो उसे खोने का शौक मना रही है. फिर बहुत सोचसमझ कर सिया ने हलके आसमानी रंग का कुरता पहना, साथ में चांदी की बालियां, काली छोटी सी बिंदी और हलका सा मेकअप जो सिया को सौम्यता प्रदान कर रहा था.

जब सिया रंगोली रेस्तरां पहुंची तो राघव पहले से ही बैठा था. सिया को देखते ही वह खड़ा हो गया.

सिया मुसकराते हुए उस के पास आई. दोनों 5 मिनट तक चुपचाप बैठे रहे. दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे आरंभ करें?

तभी वेटर ने आ कर मौन को तोड़ा और मेनू कार्ड दे दिया. राघव ने सिया से कहा कि तुम और्डर कर दो.

सिया ने वेजिटेबल इडली और कोल्ड कौफी और्डर कर दी थी.

राघव गला खंखारते हुए बोला, “आगे क्या सोचा है?”

सिया बोली, “पता नहीं. पहले बहुतकुछ सोचा करती थी, अब कुछ नहीं सोचती हूं.”

राघव बोला, “देखो, हम चाहे कागजों पर ही सही, अभी भी पतिपत्नी ही हैं. तुम्हारे भाइयों ने जो मुझ पर मुकदमे दर्ज किए हैं, सब झूठ हैं.

“क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि वे मुझे बेवजह परेशान कर रहे हैं. उन के कारण मेरी अच्छीखासी नौकरी चली गई है.”

सिया बोली, “राघव, मैं क्या करूं? मेरे भाई ही हैं, जो मेरे साथ खड़े हैं.”

राघव बोला, “तुम्हारे साथ नहीं, अपने अहंकार के साथ खड़े हैं.”

सिया बोली, “कोई तो सहारा चाहिए मुझे?”

राघव आक्रोश में बोला, क्यों? अपाहिज हो क्या? अच्छीखासी हो, दिखती भी ठीकठाक हो.”

सिया बोली, “पर, तुम्हारी तरह पढ़ीलिखी नहीं हूं कि कोई नौकरी कर सकूं.”

राघव बोला, “ग्रेजुएट हो. कुछ न कुछ तो कर सकती हो. मैं ने तो सुना था कि तुम बेहद प्रतिभाशाली हो.”

सिया ने कहा, “मैं ने बेकरी, मेकअप इत्यादि के कोर्स कर रखे हैं, पर इस से मुझे क्या नौकरी मिलेगी?”

राघव ने कहा, “सिया बचपन से मैं अपने छोटे कद के कारण इतना हीनभावना से भर गया था कि पढ़ाई के
अलावा अपने को आगे रखने का मुझे कोई और रास्ता नजर नहीं आया.

“मैं तो बस एक पढ़ीलिखी, प्यार करने वाली साथी चाहता था, मगर मेरे परिवार वालों ने और तुम्हारे परिवार वालों ने मेरी जिंदगी को बरबाद कर दिया है.”

सिया बोली, “तुम सही कह रहे हो, मेरी जिंदगी तो आबाद है.”

राघव बोला, “तुम्हारे साथ तुम्हारा परिवार तो है. मेरे साथ तो कोई भी नहीं है. बिलकुल अकेला पड़ गया हूं. दोस्तों के बीच मजाक बन कर रह गया हूं.

“सब को लगता है कि मेरे छोटे कद के कारण मेरी बीवी भी मुझे छोड़ कर चली गई है.”

सिया बोली, “ये बिलकुल झूठ है. मैं तो पूरे ड्रामा में कठपुतली हूं.”

राघव बोला, “क्यों? हां सिया, उठो और अपने लिए खड़ी होना सीखो.”

जब सिया के घर से फोन आया, तो दोनों को समय का अंदाजा हुआ.

उस मुलाकात के बाद सिया और राघव की अकसर बात होने लगी थी.

सिया को राघव में एक अच्छा दोस्त मिल गया था, वहीं राघव को लगा कि वो सिया के बारे में कितना गलत था.

सिया के पास भले ही इंजीनियरिंग की डिगरी नहीं थी, पर वो बेहद टैलेंटेड थी.

राघव की सलाह पर सिया ने घर से ही बेकिंग क्लासेस शुरू कर दी थी. इनकम कम थी, पर आत्मसम्मान
अधिक था. सिया को ये विश्वास हो गया था कि वो एक स्वतंत्र जीवन जी सकती है. परजीवी की तरह उसे किसी और के सहारे की आवश्यकता नहीं है.

सिया का मन राघव के प्रति झुका जा रहा था, मगर उसे अच्छे से पता था कि वो राघव के लायक नहीं है. उधर राघव जितना सिया से मिलता उतना ही उस की तरफ खिंचा जा रहा था.

राघव ने एक दिन सिया को मैसज किया और लंच के लिए बुलाया. लंच करते हुए राघव हंसते हुए बोला, “सिया, घर पर क्या बोल कर आती हो?”

सिया शर्माते हुए बोली, “सहेली के यहां जा रही हूं.”

राघव फिर थोड़ा रुक कर बोला, “क्या वापस इस रिश्ते को एक मौका देना चाहती हो, अगर तुम्हें ठीक लगे. मैं तुम्हारे बारे में गलत था. तुम बेहद जहीन और टैलेंटेड लड़की हो. क्या मेरी जिंदगी की साथी बनना पसंद करोगी?”

सिया बोली, “राघव, मगर, जो मेरे भाइयों ने केस कर रखा है?”

राघव बोला, “तुम अगर तैयार हो तो बाकी सब मैं संभाल लूंगा.”

सिया ने अपनी मम्मी को जब यह बात बताई, तो वे बोलीं, “तुझे विश्वास है कि राघव तेरा साथ देगा. अभी तो तेरे भाई तेरे साथ खड़े हैं. बाद में अगर कुछ ऊंचनीच हुई तो तू खुद जिम्मेदार है.”

सिया ने फैसला ले लिया था. पहले घर वालों ने बिना उस से पूछे राघव को उस के लिए चुना था. आज उस ने राघव को अपने लिए चुना था.

यह बात सुनते ही सिया के दोनों भाई भड़क उठे थे. मगर, सिया टस से मस नहीं हुई थी.

राघव का परिवार भी इस बात के लिए तैयार नहीं था.
मगर राघव ने किसी की परवाह नहीं की और सिया के घर पहुंच गया था.

दोनों भाइयों के आगे हाथ जोड़ते हुए राघव बोला, “मेरी गलती थी कि मैं ने सिया से बिना बात करे उसे घर भेज दिया था.

“हम दोनों पिछले 5 सालों से वनवास झेल रहे हैं. आज आप मेरी सिया को विदा कर दीजिए, ताकि हम वनवास से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर सकें.”

अभी नहीं तो कभी नहीं: क्या सुमेधा को गिरीश की मां ने स्वीकार किया

‘‘मुझे यह बात सम झ नहीं आती कि मैं ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? सच कहती हूं प्रीतो, अब मैं इस रिश्ते को और नहीं निभा सकती. दे दूंगी तलाक गिरीश को, फिर सारा  झं झट खत्म हो जाएगा मेरी जिंदगी से,’’ अपनी दोस्त प्रीतो के घर आते ही सुमेधा ने बोलना शुरू कर दिया.

‘‘हूं, लगता है तेरी सासुमां पधार चुकी है तुम्हारे घर?’’ गैसचूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाते हुए प्रीतो ने उसे कनखियों से देख कर मुसकराहट के साथ पूछा.

‘‘हां, अब तुम्हें तो सब पता ही है कि उन के यहां आते ही मैं अपने ही घर में बेगानी हो जाती हूं और दुख तो मु झे इस बात पर होता है कि गिरीश क्यों कुछ नहीं कहते? क्या उन्हें अपनी मां की गलती दिखाई नहीं देती. मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरी सास उन के कान भर चुकी होती है मेरे खिलाफ. लेकिन इंसान में अपनी अक्ल तो होनी चाहिए न, पर नहीं. अरे, शादी ही क्यों की जब उन्हें अपनी पत्नी पर विश्वास ही नहीं है तो. रहते अपनी मां के पल्लू में ही छिप कर.

‘‘जानती हो प्रीतो, मेरी सास हमेशा यह कह कर मु झे ताना मारती रहती है कि मुसलमान के घर तो वह अपना पैर भी नहीं धरना चाहती, पर बेटे के मोह से खिंची चली आती है और मैं ने उन के बेटे पर कोई काला जादू कर दिया है वगैरहवगैरह. गिरीश से कहा मैं ने कि सम झाओ अपनी मां को कि वह मु झे मुसलिम लड़की कह कर संबोधित न करे. लेकिन वह कहता है कि बोलने दो, जो उन की मरजी है. ऐसे कैसे बोलने दूं, बता तो? क्या मेरा दिल छलनी नहीं होता उन की ऐसीवैसी बातों से?’’ एक सांस में ही सुमेधा इतनाकुछ बोल गई.

‘‘वैसे, यह बता कि चाय कैसी बनी, चीनी तो सही से है न?’’ बात को बदलने और माहौल को हलका करने के खयाल से प्रीतो ने कहा.

‘‘देख, तुम भी वैसी ही हो. सच कहते हैं लोग, जो दुखदर्द से गुजरता है वही दूसरे के दुखों का अंदाजा सही से लगा पाता है. लेकिन तुम क्या जानो मेरे दुखों को, क्योंकि तेरी तो कोई सास है ही नहीं न. तुम्हें अपना सम झ कर मैं यहां तुम से अपने दिल की बात कहने आई हूं और तुम हो कि… चल जाने दे, मैं चलती हूं,’’ कह कर वह जाने को उठने ही लगी कि प्रीतो ने उस का हाथ खींच कर फिर से सोफे पर बैठा दिया और कहने लगी, ‘‘तू क्या सम झती हो, मैं तुम्हारी पीड़ा नहीं सम झती. सब सम झती हूं, पर तुम्हें यह सम झाने की कोशिश कर रही हूं कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, अगर तुम पतिपत्नी एक हो कर रहो तो फिर क्या मजाल जो कोई तुम्हारी जिंदगी में जहर घोल दे.

‘‘मैं कहती हूं कि क्यों तुम हमेशा गिरीश से उस को तलाक देने की बात करती रहती है? उस ने किया क्या है? क्या उसे बुरा नहीं लगता होगा जब उस की मां तुम्हारी इंसल्ट करती होगी. पर क्या करे बेचारा. लेकिन तुम सतर्क हो जाओ, क्योंकि तुम्हारी सास यही चाहती है कि किसी भी तरह तुम गिरीश को तलाक दे दो और फिर वह अपने बेटे की शादी अपनी पसंद की लड़की से और अपनी जात में करवा सके और इसलिए वह गिरीश की नजरों में तुम्हें नीचा व खुद को ऊंचा दिखाने की कोशिश करती रहती है. लेकिन तुम हो कि यह बात सम झती ही नहीं हो. अगर तुम्हारा यही रवैया रहा न, तो सच में गिरीश तुम्हें ही गलत सम झ कर तलाक की बात पर हामी भर देगा एक दिन, देखना तुम.

‘‘सच बताओ, क्या तुम दिल से चाहती हो कि तुम्हारा और गिरीश का तलाक हो जाए. नहीं न? तो फिर इग्नोर करो न अपनी सास की बातों को. जाने दो, वह जो करती है करने दो. अगर वह तुम्हारे हाथ का पानी तक नहीं पीना चाहती, तो न पिए, तुम्हें क्या. वह नहीं चाहती न कि उन के रहते तुम किचन में या पूजाघर में जाओ या उन का कोई भी काम करो? तो मत करो न.’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं प्रीतो, आखिर मैं भी तो इंसान हूं न. मु झे चिढ़ होती है. कितना, आखिर कितना बरदाश्त करूं मैं, बताओ? जब भी मेरी सास आती है गिरीश मु झ से दूरदूर रहने लगते हैं. कुछ कहतीपूछती हूं तो ठीक से जवाब नहीं देते. जाने क्या हो जाता है उन्हें अपनी मां के आने पर? लेकिन अपनी मां से तो प्यार से ही बातें करते हैं, फिर मु झ से ही उखड़ेउखड़े से क्यों रहते हैं?’’

‘‘हो सकता है वे अपनी मां के सामने तुम्हें वह प्यार न देना चाहते हों जो वे देते आए हैं. यह तो बताओ कि उन के जाने के बाद तो सब ठीक हो जाता है न? और फिर. तुम ने ही बताया था मु झे कि कितनी मुश्किल से तुम दोनों एक हो पाए हो. एक होने के लिए तुम दोनों ने अपने परिवार, यहां तक कि समाज की नाराजगी  झेली. क्या इसलिए कि छोटीछोटी बातों पर  झगड़ा करो, तलाक ले कर अलग हो जाओ? तुम्हारी सास का क्या है, वह तो आतीजाती रहती है. लेकिन जीवनभर साथ तो तुम्हीं दोनों को रहना है, तो फिर अनसुना कर दिया करो उन की बातों को. हो सके तो जीत लो अपनी सास के मन को, फिर देखना कैसे गिरीश को भी तुम ही सही लगने लगोगी,’’ प्रीतो ने जब सुमेधा को ये सब बातें सम झाईं तो उसे भी वही सही लगा और उस ने उस की कही बातें अपने मन में बैठा लीं.

सुमेधा एक सिंधी परिवार से है और गिरीश बिहार के ब्राह्मण परिवार का बेटा. दोनों के रहनसहन, खानपान बिलकुल भिन्न हैं. कोई समानता नहीं थी दोनों के बीच. लेकिन कहते हैं न, दिल लगे गधी से, तो फिर परी किस काम की. गिरीश के लिए उस की जाति ही से कितनी लड़कियों का रिश्ता आया पर उस का दिल तो सुमेधा से जा टकराया था. ऐसे में वह कैसे किसी और का बन सकता था.

एक दिन मैं ने सुमेधा से पूछा भी कि आखिर तुम दोनों कैसे मिले और कैसे प्यार पनपा तुम दोनो के बीच? तो वह बताने लगी कि कालेज के दौरान उस की मुलाकात गिरीश से हुई थी. वे यहां गुजरात के ही एक कालेज में प्रोफैसर की पोस्ट पर चयनित हुए थे और सुमेधा उसी कालेज में अंतिम वर्ष की छात्रा थी. अकसर सुमेधा पढ़ाई के सिलसिले में गिरीश से मिलती रहती थी. गिरीश भी सुमेधा को इसलिए पसंद करता था क्योंकि उसे पढ़ने और किसी चीज को जानने की बहुत जिज्ञासा रहती थी और यही बात गिरीश को अच्छी लगती थी.

फिर कैरियर और जिंदगी के शुरुआती दिनों में उस ने एक अच्छे दोस्त की तरह सुमेधा की काफी मदद भी की. वह गिरीश को ले कर बेकरार तो नहीं थी, पर एक सौफ्ट कौर्नर बनता जा रहा था उसे ले कर. शायद गिरीश भी सुमेधा की ओर आकर्षित होने लगा था, पर कहने में सकुचाता था. फिर एक दिन आगे बढ़ कर सुमेधा ने ही उसे प्रपोज कर दिया जिसे गिरीश ने तुरंत स्वीकार कर लिया. लेकिन जब दोनों के परिवारों को उन के प्यार की भनक लगी तो उन के घर में बवाल मच गया.

‘दिमाग खराब हो गया है इस लड़की का. अरे, तुम ने सोच भी कैसे लिया कि हम तुम्हारी शादी एक दूसरी जाति के लड़के से करने की इजाजत दे देंगे. समाज में हम कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे. निकाल देंगे लोग हमें सिंधी समाज से तो फिर हम कहां जाएंगे बताओ? गलती हो गई, गलती हो गई हम से जो हम ने तुम्हें इतनी छूट दे दी,’ कह कर सुमेधा के मातापिता ने उस का घर से निकलना बंद करवा दिया और उधर, गिरीश के मातापिता ने भी इस बात को सुन कर पूरा घर अपने सिर पर उठा लिया.

कहने लगे, ‘अरे, कौन सा पाप हो गया हम से जो तुम ऐसे दिन दिखा रहे हो? एक ब्राह्मण के घर मुसलिम लड़की. छीछीछी… सुनने से पहले मर क्यों नहीं गए, बहरे क्यों नहीं हो गए.’

‘पर मांपापा सुनो तो, वह लड़की मुसलिम नहीं है, सिंधी है. हां, उस के कुछ रिश्तेदारों ने मजबूरीवश ही मुसलिम धर्म अपना लिया पर उन के साथ तो अब इन का कोई संबंध ही नहीं रहा,’ गिरीश अपने मातापिता को सम झाते हुए बोला.

‘अब तुम मु झे सम झाओगे कि वह लड़की किस जात से है और अपने परिवार से संबंध रखती है या नहीं? हम ब्राह्मण हैं जो प्याजलहसुन भी हाथ नहीं लगाते और वह मांसमच्छी खाने वाली लड़की, छी… तुम ने सोच भी कैसे लिया कि हम उसे अपने घर की बहू बनाएंगे?’  िझड़कते हुए गिरीश के पिता बोले.

‘मां सम झाओ न पिताजी को कि वह लड़की शादी के बाद मांसमच्छी खाना छोड़ देगी और शादी के बाद तो वैसे भी वह हमारे कुल की बहू बन जाएगी न?’

‘नहीं बेटा, इस बार तुम्हारे बाबूजी सही हैं,’ कह कर गिरीश की मां ने भी अपना मुंह फेर लिया.

‘तो फिर ठीक है. अब मेरा भी फैसला सुन लीजिए आप दोनों, अगर मेरी शादी सुमेधा से नहीं हुई तो मैं किसी से भी शादी नहीं करूंगा और न ही कभी यहां आऊंगा,’ गुस्से से भर कर गिरीश ने भी अपना फैसला सुना दिया और उसी दिन ट्रेन पकड़ कर गुजरात आ गया. उधर सुमेधा की शादी के लिए लड़के देखे जाने लगे. सम झ नहीं आ रहा था उसे कि करे तो क्या करे? किसी तरह एक दिन मिलने पर दोनों ने विचार किया कि अभी नहीं तो कभी नहीं. ठान लिया उन्होंने कि चाहे परिवार की मरजी हो या न हो, वे एक हो कर ही रहेंगे. फिर क्या था, तय अनुसार उस रोज सुमेधा किसी जरूरी काम का बहाना बना कर घर से निकल गई और फिर दोनों ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली. लेकिन उन्हें अपने परिवार से यह बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उन्होंने कोर्ट में शादी कर ली, पर बताना तो था ही.

सुनते ही गिरीश के मातापिता आगबबूला हो गए और उधर सुमेधा के परिवार ने भी कह दिया कि अब उन्हें अपनी बेटी से कोई लेनादेना नहीं है. इधर सिंधी समाज भी इस शादी का विरोध करने लगा. समाज वाले कहने लगे कि या तो सुमेधा के मातापिता लिखित में अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ दें, या फिर सिंधी समाज से अलग हो जाएं. कोई भी मातापिता अपने बच्चे से गुस्सा तो हो सकते हैं पर उन से कभी रिश्ता तोड़ने की नहीं सोच सकते. सो कह दिया उन्होंने कि चाहे जो हो जाए, वे अपनी बेटी के साथ हैं और रहेंगे हमेशा.

भले ही पिता कितना भी सख्त हो जाए पर मां तो मां होती है न, गिरीश की मां ने भी सबकुछ भुला कर अपने बेटे को माफ कर दिया. लेकिन सुमेधा को नहीं, क्योंकि उसे लगता है कि उस ने ही बापबेटे के बीच खाई का काम किया है. आज तक उस ने सुमेधा को अपनी बहू के रूप में नहीं स्वीकारा है. लेकिन मैं जानती हूं कि सुमेधा भी एक ब्राह्मण परिवार से है, पर उस की सास यह मानने को कतई तैयार नहीं है.

सिंधियों का इतिहास पढ़ा है मैं ने, जानती हूं कि कैसे सिंधी से जबरन उन्हें मुसलमान बनाया गया. 700 ईस्वी में हिंदूब्राह्मण राजा दाहिर, सिंध के शासक थे. अरबी लुटेरों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए. इस के बाद सिंध में इसलाम की घुसपैठ शुरू हो गई. अधिसंख्यक सिंधी मुसलमान बन गए. ब्राह्मण दाहिर के पुत्र भी मुसलिम बन गए. भयांक्रांतता के चलते हिंदू इसलाम को मानने के लिए मजबूर हो गए. ब्राह्मणवाद, इसलामाबाद हो गया. अरबी बहुत दिनों तक सिंध में रहे और हिंदुओं को इसलाम में लाते रहे. सिंध से ले कर बलूचिस्तान तक जितने शोषित, पीडि़त और दलित वर्ग के लोग थे, अरबों ने उन्हें मुसलमान बना दिया.

हिंदुओं में फूट, आपसी कलह और भेदभाव के चलते आखिरकार वे मतांतरित हुए. धीरेधीरे सिंध में मुसलमान अधिसंख्यक हो गए और बचेखुचे हिंदू अल्पसंख्यक हो गए. अब जो अल्पसंख्यक हिंदू बचे, वे या तो इसलाम धर्म कुबूल कर लें या फिर यह देश छोड़ कर चले जाएं. यही 2 विकल्प बचे थे उन के पास और तभी शायद सुमेधा के पूर्वज सिंध प्रांत छोड़ कर 1947 के बाद यहां भारत के गुजरात में आ बसे.

आज भी देश में हिंदुओं में पारस्परिक एकता का अभाव है. देश में जातपांत का बोलबाला है. अनेक जातिवादी घटक हैं. दलगत नीतियों का वर्चस्व है. ऐसी ही स्थिति सिंध में थी और इन्हीं दुर्बलताओं का फायदा अरबी लुटेरों ने उठाया था. जाति का कहर सहती जनता ने इसलाम धर्म कुबूलना ही सही सम झा और कुछ वहां से हिंदू राजाओं की शरण में भाग आए.

उफ्फ. मैं भी न, कौन से इतिहास के पन्ने पलटने लग गई. प्रीतो खुद से ही कहने लगी, चलो जल्दी करो प्रीतो, बच्चे स्कूल से आते ही होंगे और अगर उन्हें खाना नहीं मिला तो फिर तेरी खैर नहीं. और वह किचन में चली गई.

वैसे तो सुमेधा अकसर प्रीतो के घर आतीजाती रहती थी और वह भी, लेकिन अभी उस की सास आई हुई है, इस कारण प्रीतो उस के घर नहीं जाती थी. पर सुमेधा क्यों नहीं आ रही थी उस के घर, इस बात की उसे चिंता होने लगी. ‘कहीं उस दिन सुमेधा को मेरी बात बुरी तो नहीं लग गई होगी और इसी कारण वह…’ उस ने अपनेआप से कहा.

इतने दिन बाद सुमेधा को अपने घर आए देख प्रीतो बहुत खुश हो गई. कहने लगी, ‘‘अरे, सुमेधा, आआ, वैसे भी कहां थी इतने दिनों से? बड़ी मुसकरा रही है, लगता है तेरी सास चली गई.’’

‘‘नहीं प्रीतो, मेरी सास यहीं है और एक बात बताऊं, उन्होंने मु झे अपना लिया.’’

‘‘अच्छा, पर यह सब हुआ कैसे?’’ आश्चर्य से प्रीतो ने पूछा तो वह कहने लगी कि उस ने सास की फुजूल की बातों को दिल से लगाना छोड़ दिया. वह जो कहती, सुन लेती, उस की बातों पर कोई प्रतिक्रिया न देती. तो उस ने बोलना कम कर दिया और इस कारण घर में कलह होना बंद हो गया. कोई कारण ही नहीं होता उन्हें अपने बेटे से सुमेधा की शिकायत करने का. फिर एक रात उस की तबीयत बहुत खराब हो गई. सुबह जब डाक्टर से दिखाया तो डाक्टर ने बताया कि उस की सास को डेंगू हो गया और प्लेटलेट्स भी बहुत कम हो गए हैं. यह सुन कर गिरीश बहुत घबरा गए.

लेकिन सुमेधा ने उसे ढाढ़स बंधाते हुए कहा कि सब ठीक हो जाएगा. इस दौरान उस ने अपनी सास की बहुत सेवा की. 4-5 दिनों तक उस के साथ अस्पताल में ही रही और सुमेधा की सेवासुश्रूषा से उस की सास जल्द ही ठीक हो कर घर आ गई. अपनी आंखों में आंसू लिए वह कहने लगी कि उस ने अपनी बहू को पहचानने में गलती कर दी थी और अब उसे उस से कोई शिकायत नहीं है.

‘‘चलो, अच्छा हुआ. अंत भला सो सब भला, लेकिन अब तो तू गिरीश से तलाक नहीं लेगी न?’’

सुमेधा को छेड़ते हुए प्रीतो ने कहा तो वह भी हंस पड़ी,  ‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

काश, आप ने ऐसा न किया होता: कैसे थे बड़े भैया

‘‘भैया, वह आप के साथ इतनी बदतमीजी से बात कर रहा था…क्या आप को बुरा नहीं लगा? आप इतना सब सह कैसे जाते हैं. औकात क्या है उस की? न पढ़ाईलिखाई न हाथ में कोई काम करने का हुनर. मांबाप की बिगड़ी औलाद…और क्या है वह?’’

‘‘तुम मानते हो न कि वह कुछ नहीं है.’’

भैया के प्रश्न पर चुप हो गया मैं. भैया उस की गाड़ी के नीचे आतेआते बड़ी मुश्किल से बचे थे. क्षमा मांगना तो दूर की बात बाहर निकल कर इतनी बकवास कर गया था. न उस ने भैया की उम्र का खयाल किया था और न ही यह सोचा था कि उस की वजह से भैया को कोई चोट आ जाती.

‘‘ऐसा इनसान जो किसी लायक ही नहीं है वह जो पहले से ही बेचारा है. अपने परिवार के अनुचित लाड़प्यार का मारा, ओछे और गंदे संस्कारों का मारा, जिस का भविष्य अंधे कुएं के सिवा कुछ नहीं, उस बदनसीब पर मैं क्यों अपना गुस्सा अपनी कीमती ऊर्जा जाया करूं? अपने व्यवहार से उस ने अपने चरित्र का ही प्रदर्शन किया है, जाने दो न उसे.’’

अपनी किताबें संभालतेसंभालते सहसा रुक गए भैया, ‘‘लगता है ऐनक टूट गई है. आज इसे भी ठीक कराना पड़ेगा.’’

‘‘चलो, अच्छा हुआ, सस्ते में छूट गया मैं,’’ सोम भैया बोले, ‘‘मेरी ही टांग टूट जाती तो 3 हफ्ते बिस्तर पर लेटना पड़ता. मुझ पर आई मुसीबत मेरी ऐनक ने अपने सिर पर ले ली.’’

‘‘मैं जा कर उस के पिता से बात करूंगा.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं किसी से कुछ भी बात करने की. बौबी की जो चाल है वही उस की सब से बड़ी सजा बन जाने वाली है. जो लोग जीवन में बहुत तेज चलना चाहते हैं वे हर जगह जल्दी ही पहुंचते हैं…उस पार भी.’’

कैसे विचित्र हैं सोम भैया. जबजब इन से मिलता हूं, लगता है किसी नए ही इनसान से मिल रहा हूं. सोचने का कोई और तरीका भी हो सकता है यह सोच मैं हैरान हो जाता हूं.

‘‘अपना मानसम्मान क्या कोई माने नहीं रखता, भैया?’’

‘‘रखता है, क्यों नहीं रखता लेकिन सोचना यह है कि अपने मानसम्मान को हम इतना सस्ता भी क्यों मान लें कि वह हर आम आदमी के पैर की जूती के नीचे आने लगे. मैं उस की गाड़ी के नीचे आ जाता, आया तो नहीं न. जो नहीं हुआ उस का उपकार मान क्या हम प्रकृति का धन्यवाद न करें?’’

‘‘बौबी की बदतमीजी क्या इतनी बलवान है कि हमारा स्वाभिमान उस के सामने चूरचूर हो जाए. हमारा स्वाभिमान बहुत अमूल्य है जिसे हम बस कभीकभी ही आढ़े लाएं तो उस का मूल्य है. जराजरा सी बात को अपने स्वाभिमान की बलि मानना शुरू कर देंगे तो जी चुके हम. स्वाभिमान हमारी ताकत होना चाहिए न कि हमारी कमजोर नस, जिस पर हर कोई आताजाता अपना हाथ धरता फिरे.’’

अजीब लगता है मुझे कभीकभी भैया का व्यवहार, उन का चरित्र. भैया बंगलौर में रहते हैं. एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं. मैं एम.बी.ए. कर रहा हूं और मेरी परीक्षाएं चल रही हैं. सो मुझे पढ़ाने को चले आए हैं.

‘‘इनसान अगर दुखी होता है तो काफी सीमा तक उस की वजह उस की अपनी ही जीवनशैली होती है,’’ भैया मुझे देख कर बोले, ‘‘अगर मैं ही बच कर चलता तो शायद मेरा चश्मा भी न टूटता. हमें ही अपने को बचा कर रखना चाहिए.’’

‘‘तुम्हें अच्छे नंबरों से एम.बी.ए. पास करना है और देश की सब से अच्छी कुरसी पर बैठना है. उस कुरसी पर बैठ कर तुम्हें बौबी जैसे लोग बेकार और कीड़े नजर आएंगे जिन के लिए सोचना तुम्हें सिर्फ समय की बरबादी जैसा लगेगा. इसलिए तुम बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो.’’

मैं ने वैसा ही किया जैसा भैया ने समझाया. शांत रखा अपना मन और वास्तव में मन की उथलपुथल कहीं खो सी गई. मेरी परीक्षाएं हो गईं. भैया वापस बंगलौर चले गए. घर पर रह गए पापा, मां और मैं. पापा अकसर भैया को साधुसंत कह कर भी पुकारा करते हैं. कभीकभी मां को भी चिढ़ा देते हैं.

‘‘जब यह सोमू पैदा होने वाला था तुम क्या खाया करती थीं…किस पर गया है यह लड़का?’’

‘‘वही खाती थी जो आप को भी खिलाती थी. दाल, चावल और चपाती.’’

‘‘पता नहीं किस पर गया है मेरा यह साधु महात्मा बेटा, सोम.’’

इतना बोल कर पापा मेरी तरफ देखने लगते. मानो उन्हें अब मुझ से कोई उम्मीद है क्योंकि भैया तो शादी करने को मानते ही नहीं, 35 के आसपास भैया की उम्र है. शादी का नाम भी लेने नहीं देते.

‘‘यह लड़का शादी कर लेता तो मुझे भी लगता मेरी जिम्मेदारी समाप्त हो गई. हर पल इस के खानेपीने की चिंता रहती है. कोई आ जाती इसे भी संभालने वाली तो लगता अब कोई डर नहीं.’’

‘‘डर काहे का भई, मैं जानता हूं कि तुम अपने जाने का रास्ता साफ करना चाहती हो मगर यह मत भूलो, हम दोनों अभी भी तुम्हारी जिम्मेदारी हैं. विजय के बालबच्चों की चिंता है कि नहीं तुम्हें…और बुढ़ापे में मुझे कौन संभालेगा. आखिर उस पार जाने की इतनी जल्दी क्यों रहती है तुम्हें कि जब देखो बोरियाबिस्तर बांधे तैयार नजर आती हो.’’

मां और पापा का वार्त्तालाप मेरे कानों में पड़ा, आजकल पापा इस बात पर बहुत जल्दी चिढ़ने लगे हैं कि मां हर पल मृत्यु की बात क्यों करने लगी हैं.

‘‘मैं टीवी का केबल कनेक्शन कटवाने वाला हूं,’’ पापा बोले, ‘‘सुबह से शाम तक बाबाओं के प्रवचन सुनती रहती हो,’’ और अखबार फेंक कर पापा बाहर आ कर बैठ गए…बड़ाबड़ा रहे थे. बड़बड़ाते हुए मुझे भी देख रहे थे.

‘‘क्या जरूरत है इस की? क्या मेरे सोचने से ही मैं उस पार चली जाऊंगी. संसार क्या मेरे चलाने से चलता है? आप इस बात पर चिढ़ते क्यों हैं,’’ शायद मां भी पापा के साथसाथ बाहर चली आई थीं. बचपन से देख रहा हूं, पापा मां को ले कर बहुत असुरक्षित हैं. मां क्षण भर को नजर न आईं तो पापा इस सीमा तक घबरा जाते हैं कि अवश्य कुछ हो गया है उन्हें. इस के पीछे भी एक कारण है.

हमारी दादी का जब देहांत हुआ था तब पापा की उम्र बहुत छोटी थी. दादी घर से बाहर गईं और एक हादसे में उन की मौत हो गई. पापा के कच्चे मन पर अपनी मां की मौत का क्या प्रभाव पड़ा होगा वह मैं सहज महसूस कर सकता हूं. दादी के बिना पता नहीं किस तरह पापा पले थे. शायद अपनी शादी के बाद ही वह जरा से संभल पाए होंगे तभी तो उन के मन में मां उन की कमजोर नस बन चुकी हैं जिस पर कोई हाथ नहीं रख सकता.

‘‘मैं ने कहा न तुम मेरे सामने फालतू बकबक न किया करो.’’

‘‘मेरी बकबक फालतू नहीं है. आप अपना मन पक्का क्यों नहीं करते? मेरी उम्र 55 साल है और आप की 60. एक आदमी की औसत उम्र भी तो यही है. क्या अब हमें धीरेधीरे घरगृहस्थी से अपना हाथ नहीं खींच लेना चाहिए? बड़ा बेटा अच्छा कमा रहा है…हमारा मोहताज तो नहीं. विजय भी एम.बी.ए. के बाद अपनी रोटी कमाने लगेगा. हमारा गुजारा पेंशन में हो रहा है. अपना घर है न हमारे पास. अब क्या उस पार जाने का समय नहीं आ गया?’’

पापा गरदन झुकाए बैठे सुन रहे थे.

‘‘मैं जानता हूं अब हमें उस पार जाना है पर मुझे अपनी परवा नहीं है. मुझे तुम्हारी चिंता है. तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा.’’

‘‘इसीलिए तो कह रही थी कि सोम की शादी हो जाती तो बहू आप सब को संभाल लेती. कोई डर न होता.’’

बात घूम कर वहीं आ गई थी. हंस पड़ी थीं मां. माहौल जरा सा बदला. पापा अनमने से ही रहे. फिर धीरे से बोले, ‘‘पता चल गया मुझे सोमू किस पर गया है. अपनी मां पर ही गया है वह.’’

‘‘इतने साल साथ गुजार कर आप को अब पता चला कि मैं कैसी हूं?’’

‘‘नौकरी की आपाधापी में तुम्हारे चरित्र का यह पहलू तो मैं देख ही नहीं पाया. अब रिटायर हो गया हूं न, ज्यादा समय तुम्हें देख पाता हूं.’’

सच कह रहे हैं पापा. भैया बड़े हैं. लगता है मां का सारा का सारा चरित्र उन्हें ही मिल गया. जो जरा सा बच गया उस में कुछ पापा का मिला कर मुझे मिल गया. मैं इतना क्षमावादी नहीं हूं जितने भैया और मां हैं. हो सकता है जरा सा बड़ा हो जाऊं तो मैं भी वैसा ही बन जाऊं.

भैया मुझ से 10 साल बड़े हैं. हम दोनों भाइयों में 10 साल का अंतर क्यों है? मैं अकसर मां से पूछता हूं.

कम से कम मेरा भाई मेरा भाई तो लगता. वह तो सदा मुझे अपना बच्चा समझ कर बात करते हैं.

‘‘यह प्रकृति का खेल है, बेटा, इस में हमारा क्या दोष है. जो हमें मिला वह हमारा हिस्सा था, जब मिलना था तभी मिला.’’

अकसर मां समझाती रहती हैं, कर्म करना, ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाना हमारा कर्तव्य है. उस के बाद हमें कब कितना मिले उस पर हमारा कोई बस नहीं. जमीन से हमारा रिश्ता कभी टूटना नहीं चाहिए. पेड़ जितना मरजी ऊंचा हो जाए, आसमान तक उस की शाखाएं फैल जाएं लेकिन वह तभी तक हराभरा रह सकता है जब तक जड़ से उस का नाता है. यह जड़ हैं हमारे संस्कार, हमारी अपने आप को जवाबदेही.

समय आने पर मेरी नियुक्ति भी बंगलौर में हो गई. अब दोनों भाई एक ही शहर में हो गए और मांपापा दिल्ली में ही रहे. भैया और मैं मिल गए तो हमारा एक घर बन गया. मेरी वजह से भैया ने एक रसोइया रख लिया और सब समय पर खानेपीने लगे. बहुत गौर से मैं भैया के चरित्र को देखता, कितने सौम्य हैं न भैया. जैसे उन्हें कभी क्रोध आता ही नहीं.

‘‘भैया, आप को कभी क्रोध नहीं आता?’’

एक दिन मेरे इस सवाल पर वह कहने लगे, ‘‘आता है, आता क्यों नहीं, लेकिन मैं सामने वाले को क्षमा कर देता हूं. क्षमादान बहुत ऊंचा दान है. इस दान से आप का अपना मन शांत हो जाता है और एक शांत इनसान अपने आसपास काम करने वाले हर इनसान को प्रभावित करता है. मेरे नीचे हजारों लोग काम करते हैं. मैं ही शांत न रहा तो उन सब को शांति का दान कैसे दे पाऊंगा, जरा सोचो.’’

एक दोपहर लंच के समय एक महिला सहयोगी से बातचीत होने लगी. मैं कहां से हूं. घर में कौनकौन हैं आदि.

‘‘मेरे बड़े भाई हैं यहां और मैं उन के साथ रहता हूं.’’

भैया और उन की कंपनी का नाम- पता बताया तो वह महिला चौंक सी गई. उसी पल से उस का मेरे साथ बात करने का लहजा बदल गया. वह मुझे सिर से पैर तक ऐसे देखने लगी मानो मैं अजूबा हूं.

‘‘नाम क्या है आप का?’’

‘‘जी विजय सहगल, आप जानती हैं क्या भैया को?’’

‘‘हां, अकसर उन की कंपनी से भी हमारा लेनदेन रहता है. सोम सहगल अच्छे इनसान हैं.’’

मेरी दोस्ती उस महिला के साथ बढ़ने लगी. अकसर वह मुझ से परिवार की बातें करती. अपने पति के बारे में, अपने बच्चों के बारे में भी. कभी घर आने को कहती, मेरे खानेपीने पर भी नजर रखती. एक दिन नाश्ता करते हुए उस महिला का जिक्र मैं ने भैया के सामने भी कर दिया.

‘‘नाम क्या है उस का?’’

अवाक् रह गए भैया उस का नाम सुन कर. हाथ का कौर भैया के हाथ से छूट गया. बड़े गौर से मेरा चेहरा देखने लगे.

‘‘क्या बात है भैया? आप का नाम सुन कर वह भी इसी तरह चौंक गई थी.’’

‘‘तो वह जानती है कि तुम मेरे छोटे भाई हो…पता है उसे मेरा?’’

‘‘हां पता है. आप की बहुत तारीफ करती है. कहती है आप की कंपनी के साथ उस की कंपनी का भी अच्छा लेनदेन है. मेरा बहुत खयाल रखती है.’’

‘‘अच्छा, कैसे तुम्हारा खयाल रखती है?’’

‘‘जी,’’ अचकचा सा गया मैं. भैया के बदले तेवर पहली बार देख रहा था मैं.

‘‘तुम्हारे लिए खाना बना कर लाती है या रोटी का कौर तुम्हारे मुंह में डालती है? पहली बार घर से बाहर निकले हो तो किसी के भी साथ दोस्ती करने से पहले हजार बार सोचो. तुम्हारी दोस्ती और तुम्हारी भावनाएं तुम्हारी सब से अमूल्य पूंजी हैं जिन का खर्च तुम्हें बहुत सोच- समझ कर करना है. हर इनसान दोस्ती करने लायक नहीं होता. हाथ सब से मिला कर चलो क्योंकि हम समाज में रहते हैं, दिल किसीकिसी से मिलाओ…सिर्फ उस से जो वास्तव में तुम्हारे लायक हो. तुम समझदार हो, आशा है मेरा इशारा समझ गए होगे.’’

‘‘क्या वह औरत दोस्ती के लायक नहीं है?’’

‘‘नहीं, तुम उसी से पूछना, वह मुझे कब से और कैसे जानती है. ईमानदार होगी तो सब सचसच बता देगी. न बताया तो समझ लेना वह आज भी किसी की दोस्ती के लायक नहीं है.’’

भैया मेरा कंधा थपक कर चले गए और पीछे छोड़ गए ढेर सारा धुआं जिस में मेरा दम घुटने लगा. एक तरह से सच ही तो कह रहे हैं भैया. आखिर मुझ में ही इतनी दिलचस्पी लेने का क्या कारण हो सकता है.

दोपहर लंच में वह सदा की तरह चहचहाती हुई ही मुझे मिली. बड़े स्नेह, बड़े अपनत्व से.

‘‘आप भैया से पहली बार कब मिली थीं? सिर्फ सहयोगी ही थे आप या कंपनी का ही माध्यम था?’’

मुसकान लुप्त हो गई थी उस की.

‘‘नहीं, हम सहयोगी कभी नहीं रहे. बस, कंपनी के काम की ही वजह से मिलनाजुलना होता था. क्यों? तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘नहीं, आप मेरा इतना खयाल जो रखती हैं और फिर भैया का नाम सुनते ही आप की दिलचस्पी मुझ में बढ़ गई. इसीलिए मैं ने सोचा शायद भैया से आप की गहरी जानपहचान हो. भैया के पास समय ही नहीं होता वरना उन से ही पूछ लेता.’’

‘‘अपनी भाभी को ले कर कभी आओ न हमारे घर. बहुत अच्छा लगेगा मुझे. तुम्हारी भाभी कैसी हैं? क्या वह भी काम करती हैं?’’

तनिक चौंका मैं. भैया से ज्यादा गहरा रिश्ता भी नहीं है और उन की पत्नी में भी दिलचस्पी. क्या वह यह नहीं जानतीं, भैया ने तो शादी ही नहीं की अब तक.

‘‘भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी मां जैसी हैं. बहुत प्यार करती हैं मुझ से.’’

‘‘खूबसूरत हैं, तुम्हारे भैया तो बहुत खूबसूरत हैं,’’ मुसकराने लगी वह.

‘‘आप के घर आने के लिए मैं भाभी से बात करूंगा. आप अपना पता दे दीजिए.’’

उस ने अपना कार्ड मुझे थमा दिया. रात वही कार्ड मैं ने भैया के सामने रख दिया. सारी बातें जो सच नहीं थीं और मैं ने उस महिला से कहीं वह भी बता दीं.

‘‘कहां है तुम्हारी भाभी जिस के साथ उस के घर जाने वाले हो?’’

भाभी के नाम पर पहली बार मैं भैया के होंठों पर वह पीड़ा देख पाया जो उस से पहले कभी नहीं देखी थी.

‘‘वह आप में इतनी दिलचस्पी क्यों लेती है भैया? उस ने तो नहीं बताया, आप ही बताइए.’’

‘‘तो चलो, कल मैं ही चलता हूं तुम्हारे साथ…सबकुछ उसी के मुंह से सुन लेना. पता चल जाएगा सब.’’

अगले दिन हम दोनों उस पते पर जा पहुंचे जहां का श्रीमती गोयल ने पता दिया था. भैया को सामने देख उस का सफेद पड़ता चेहरा मुझे साफसाफ समझा गया कि जरूर कहीं कुछ गहरा था बीते हुए कल में.

‘‘कैसी हो शोभा? गिरीश कैसा है? बालबच्चे कैसे हैं?’’

पहली बार उन का नाम जान पाया था. आफिस में तो सब श्रीमती गोयल ही पुकारते हैं. पानी सजा लाई वह टे्र में जिसे पीने से भैया ने मना कर दिया.

‘‘क्या तुम पर मुझे इतना विश्वास करना चाहिए कि तुम्हारे हाथ का लाया पानी पी सकूं?

‘‘अब क्या मेरे भाई पर भी नजर डाल कुछ और प्रमाणित करना चाहती हो. मेरा खून है यह. अगर मैं ने किसी का बुरा नहीं किया तो मेरा भी बुरा कभी नहीं हो सकता. बस मैं यही पूछने आया हूं कि इस बार मेरे भाई को सलाखों के पीछे पहुंचा कर किसे मदद करने वाली हो?’’

श्रीमती गोयल चुप थीं और मुझ में काटो तो खून न था. क्या भैया कभी सलाखों के पीछे भी रहे थे? हमें क्या पता था यहां बंगलौर में भैया के साथ इतना कुछ घट चुका है.

‘‘औरत भी बलात्कार कर सकती है,’’ भैया भनक कर बोले, ‘‘इस का पता मुझे तब चला जब तुम ने भीड़ जमा कर के सब के सामने यह कह दिया था कि मैं ने तुम्हें रेप करने की कोशिश की है, वह भी आफिस के केबिन में. हम में अच्छी दोस्ती थी, मुझे कुछ करना ही होता तो क्या जगह की कमी थी मेरे पास? हर शाम हम साथ ही होते थे. रेप करने के लिए मुझे आफिस का केबिन ही मिलता. तुम ने गिरीश की प्रमोशन के लिए मुझे सब की नजरों में गिराना चाहा…साफसाफ कह देतीं मैं ही हट जाता. इतना बड़ा धोखा क्यों किया मेरे साथ? अब इस से क्या चाहती हो, बताओ मुझे. इसे अकेला लावारिस मत समझना.’’

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं चाहती सिर्फ माफी चाहती हूं. तुम्हारे साथ मैं ने जो किया उस का फल मुझे मिला है. अब गिरीश मेरे साथ नहीं रहता. मेरा बेटा भी अपने साथ ले गया…सोम, जब से मैं ने तुम्हें बदनाम करना चाहा है एक पल भी चैन नहीं मिला मुझे. तुम अच्छे इनसान थे, सारी की सारी कंपनी तुम्हें बचाने को सामने चली आई. तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा…मैं ही कहीं की नहीं रही.’’

‘‘मेरा क्या नहीं बिगड़ा…जरा बताओ मुझे. मेरे काम पर तो कोई आंच नहीं आई मगर आज किसी भी औरत पर विश्वास कर पाने की मेरी हिम्मत ही नहीं रही. अपनी मां के बाद तुम पहली औरत थीं जिसे मैं ने अपना माना था और उसी ने अपना ऐसा रूप दिखाया कि मैं कहीं का नहीं रहा और अब मेरे भाई को अपने जाल में फंसा कर…’’

‘‘मत कहो सोम ऐसा, विजय मेरे भाई जैसा है. अपने घर बुला कर मैं तुम्हारी पत्नी से और विजय से अपने किए की माफी मांगनी चाहती थी. मेरी सांस बहुत घुटती है सोम. तुम मुझे क्षमा कर दो. मैं चैन से जीना चाहती हूं.’’

‘‘चैन तो अपने कर्मों से मिलता है. मैं ने तो उसी दिन तुम्हारी और गिरीश की कंपनी छोड़ दी थी. तुम्हें सजा ही देना चाहता तो तुम पर मानहानि का मुकदमा कर के सालों अदालत में घसीटता. लेकिन उस से होता क्या. दोस्ती पर मेरा विश्वास तो कभी वापस नहीं लौटता. आज भी मैं किसी पर भरोसा नहीं कर पाता. तुम्हारी सजा पर मैं क्या कह सकता हूं. बस, इतना ही कह सकता हूं कि तुम्हें सहने की क्षमता मिले.’’

अवाक् था मैं. भैया का अकेलापन आज समझ पाया था. श्रीमती गोयल चीखचीख कर रो रही थीं.

‘‘एक बार कह दो मुझे माफ कर दिया सोम.’’

‘‘तुम्हें माफ तो मैं ने उसी पल कर दिया था. तब भी गिरीश और तुम पर तरस आया था और आज भी तुम्हारी हालत पर अफसोस हो रहा है. चलो, विजय.’’

श्रीमती गोयल रोती रहीं और हम दोनों भाई वापस गाड़ी में आ कर बैठ गए. मैं तो सकते में था ही भैया को भी काफी समय लग गया स्वयं को संभालने में. शायद भैया शोभा से प्यार करते होंगे और शोभा गिरीश को चाहती होगी, उस का प्रमोशन हो जाए इसलिए भैया से प्रेम का खेल खेला होगा, फिर बदनाम करना चाहा होगा. जरा सी तरक्की के लिए कैसा अनर्थ कर दिया शोभा ने. भैया की भावनाओं पर ऐसा प्रहार सिर्फ तरक्की के लिए. भैया की तरक्की तो नहीं रुकी. शोभा ने सदा के लिए भैया को अकेला जरूर कर दिया. कब वह दिन आएगा जब भैया किसी औरत पर फिर से विश्वास कर पाएंगे. यह क्या किया था श्रीमती गोयल आप ने मेरे भाई के साथ? काश, आप ने ऐसा न किया होता.

उस रात पहली बार मुझे ऐसा लगा, मैं बड़ा हूं और भैया मुझ से 10 साल छोटे. रो पड़े थे भैया. खाना भी खा नहीं पा रहे थे हम.

‘‘आप देख लेना भैया, एक प्यारी सी, सुंदर सी औरत जो मेरी भाभी होगी एक दिन जरूर आएगी…आप कहते हैं न कि हर कीमती राह तरसने के बाद ही मिलती है और किसी भी काम का एक निश्चित समय होता है. जो आप की थी ही नहीं वह आप की हो कैसे सकती थी. जो मेरे भाई के लायक होगी कुदरत उसे ही हमारी झोली में डालेगी. अच्छे इनसान को सदा अच्छी ही जीवनसंगिनी मिलनी चाहिए.’’

डबडबाई आंखों में ढेर सारा प्यार और अनुराग लिए भैया ने मुझे गले लगा लिया. कुछ देर हम दोनों भाई एकदूसरे के गले लगे रहे. तनिक संभले भैया और बोले, ‘‘बहुत तेज चलने वालों का यही हाल होता है. जो इनसान किसी दूसरे के सिर पर पैर रख कर आगे जाना चाहता है प्रकृति उस के पैरों के नीचे की जमीन इसी तरह खींच लेती है. मैं तुम्हें बताना ही भूल गया. कल पापा से बात हुई थी. बौबी का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ है. उस ने 2 बच्चों को कुचल कर मार दिया. खुद टूटाफूटा अस्पताल में पड़ा है और मांबाप पुलिस से घर और घर से पुलिस तक के चक्कर लगा रहे हैं. जिन के बच्चे मरे हैं वे शहर के नामी लोग हैं. फांसी से कम सजा वे होने नहीं देंगे. अब तुम्हीं बताओ, तेज चलने का क्या नतीजा निकला?’’

वास्तव में निरुत्तर हो गया मैं. भैया ने सच ही कहा था बौबी के बारे में. उस का आचरण ही उस की सब से बड़ी सजा बन जाने वाला है. मनुष्य काफी हद तक अपनी पीड़ा के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होता है.

दूसरे दिन कंपनी के काम से जब मुझे श्रीमती गोयल के पास जाना पड़ा तब उन का झुका चेहरा और तरल आंखें पुन: सारी कहानी दोहराने लगीं. उन की हंसी कहीं खो गई थी. शायद उन्हें मुझ से यह भी डर लग रहा होगा कि कहीं पुरानी घटना सब को सुना कर मैं उन के लिए और भी अपमान का कारण न बन जाऊं.

पहली बार लगा मैं भी भैया जैसा बन गया हूं. क्षमा कर दिया मैं ने भी श्रीमती गोयल को. बस मन में एक ही प्रश्न उभरा :

आप ने ऐसा क्यों किया श्रीमती गोयल जो आज आप को अपनी नजरें शर्म से झुकानी पड़ रही हैं. हम आज वह अनिष्ट ही क्यों करें जो कब दुख का तूफान बन कर हमारे मानसम्मान को ही निगल जाए. इनसान जब कोई अन्याय करता है तब वह यह क्यों भूल जाता है कि भविष्य में उसे इसी का हिसाब चुकाना पड़ सकता है.

काश, आप ने ऐसा न किया  होता.

 

कांस फैस्टिवल: बार्बी बन छाईं कियारा

पहली बार कांस फिल्म फैस्टिवल में डैब्यू करने वालीं कियारा आडवानी चर्चा में क्यों हैं, आप भी जानिए…
बौलीवुड ऐक्ट्रैस कियारा आडवानी अदाकारी के साथसाथ फैशन स्टेटमैंट में भी अकसर चर्चा में रहती हैं। इस बार कांस फिल्म फैस्टिवल में भी उन्होंने हुस्न और फैशन का खूब जलवा दिखाया और प्रशंसकों की जम कर तारीफ बटोरी।
पहना ₹30 करोड़ का हार
कांस में ‘वूमन इन सिनेमा गाला डिनर पार्टी’ जब उन्होंने तकरीबन ₹30 करोड़ का नैकलेस पहना तो देखने वाले देखते ही रह गए. मालूम हो कि इसी साल उन्होंने कांस में डैब्यू किया है.
ड्रैस की बात करें तो कियारा ने गुलाबी और काले रंग का औफ शोल्डर गाउन पहन रखा था. गाउन के साथ उन्होंने काले रंग के ग्लव्स भी पहन रखे थे और हेयरस्टाइल में ऊंचा जूड़ा बनाया हुआ था.
सम्मान पाकर खुश हूं
रैड सी फाउंडेशन के द्वारा सम्मानित किए जाने पर कियारा ने मीडिया से बातचीत में कहा,” यह सम्मान पा कर बहुत खुशी हो रही है और अब सिनेमा में भी जल्द ही 10 साल पूरे होने वाले हैं.”
अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो कियारा ऐक्टर ऋतिक रोशन के साथ फिल्म ‘वार-2’ में नजर आएंगी. इस के अलावा वे फिल्म ‘गेम चेंजर’ में भी रामचरण के साथ काम करती नजर आएंगी.
ऐश्वर्या राय और जैकलीन भी पहुंचीं
कियारा के अलावा इस साल ऐश्वर्या राय और जैकलीन फर्नांडिस भी कांस पहुंची थीं. जैकलीन ने सुंदर सा गोल्डन शिमर गाउन पहन रखा था जबकि ऐश्वर्या राय ने इस बार काले रंग का गाउन पहना था. उन के हाथ में चोट लगे होने के कारण बेटी अराध्या ने उन का साथ दिया.
इस के अलावा शार्क टैंक इंडिया में आने वाली जज नमिता थापर, जो ऐमक्योर फार्मा की ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर हैं, कांस में हिस्सा लिया. नमिता ने रैड कार्पेट पर ग्रीन लेड स्लिट गाउन पहना हुआ था जबकि दूसरे दिन वायलेट रंग का लौंग गाउन पहना हुआ था.
कांस का 77वां ऐडिशन
इन्फल्यूऐंजर नैंसी त्यागी ने भी कांस फैस्टिवल में भाग लिया. उन्होंने इस प्रोग्राम में पर्पल रंग की साड़ी पहनी थी. ऐक्ट्रैस सोनम कपूर ने उन की तारीफ करते हुए कहा,”यह कांस फैस्टिवल का बैस्ट आउटफिट है.”
बता दें कि सोनम अपने खुद के फैशन स्टैटमेंट के लिए फेमस हैं. यह कांस का 77वां ऐडिशन है

इन नेचुरल टिप्स से पाएं गर्दन के फैट से छुटकारा

जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे हमारी गर्दन का भार भी बढ़ने लगता है और एक समय ऐसा आता है जब हमारी गर्दन हमारे चेहरे से अधिक बड़ी या मोटी लगती है. ऐसी स्थिति में आपके चेहरे की सारी शेप ही बिगड़ जाती है और वह थोड़ा भद्दा दिखने लगता है. अगर आपके साथ भी यह दिक्कत है तो आप एक्सरसाइज के द्वारा और डाइट के द्वारा अपनी गर्दन का फैट प्राकृतिक रूप से कम कर सकते हैं. आज हम केवल डाइट के कारण आप कैसे अपनी गर्दन के फैट को कम कर सकते हैं, इस विषय पर चर्चा करेंगे. लेकिन उससे पहले यह जान लेते हैं कि गर्दन फैट के बढ़ने के क्या क्या मुख्य कारण होते हैं.

गर्दन फैट जमा होने के कारण

मोटापा : जो लोग ओवर वेट होते हैं उनकी गर्दन का फैट बढ़ने के चांस अधिक होते हैं इसलिए उनके शरीर के साथ साथ उनकी गर्दन भी मोटी होती है.

कुछ मेडिकल स्थितियां : हार्मोन्स के अनियमित होने के कारण या थायराइड जैसी समस्याओं के कारण मोटापा बढ़ सकता है और इस कारण से गर्दन का फैट भी बढ़ सकता है.

हृदय संबंधी समस्या : जिन लोगों को हृदय संबंधी समस्या हैं उन्हें गर्दन का फैट अधिक होने की समस्या हो सकती है.

उम्र : जिन लोगों की उम्र अधिक हो जाती है उन्हें जवान लोगों के मुकाबले मोटी गर्दन की अधिक समस्या झेलनी पड़ती है.

गर्दन का फैट कम करने की कुछ डाइट टिप्स

ग्रीन टी : ग्रीन टी में कुछ ऐसे पोली फेनोल्स होते हैं जिनमें एंटी ऑक्सिडेंट होते है. यह वजन कम करने में और गर्दन के फैट को कम करने में लाभदायक माने जाते हैं. आप ग्रीन टी बैग्स को पानी के साथ उबाल कर उसे छान कर उसमें शहद एड करके पी सकते हैं.

नारियल का तेल : इसमें कुछ फैटी एसिड्स होते हैं जो मेटाबॉलिज्म को बढ़ाते हैं. इससे आपको बिना चाहा फैट कम करने में मदद मिलती है. आप हर रोज सुबह एक चम्मच एक्स्ट्रा वर्जिन कोकोनट ऑयल पी सकते हैं और अगर चाहें तो इससे अपनी गर्दन पर मसाज भी कर सकते हैं.

खरबूजा : खरबूजे में कैलोरीज़ और फैट की मात्रा बहुत कम होती है. इसमें बहुत से मिनरल और विटामिन होते हैं. यह आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगने देते हैं और आपकी वजन कम करने में भी मदद करते है. इसलिए दिन में ताजे ताजे खरबूज की स्लाइस खाते रहें.

नींबू का रस : नींबू के रस में बहुत सी एंटी ऑक्सिडेंट प्रॉपर्टीज होती हैं. यह एंटी ऑक्सिडेंट बॉडी के मेटाबॉलिज्म को इंप्रूव करते हैं और आपका वजन कम करने में भी मदद करता है. इसके लिए आप सुबह सुबह खाली पेट एक गिलास पानी में नींबू निचोड़ कर उसमें शहद एड करके पी सकते हैं.

अलसी : अलसी में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स होते हैं जो वजन कम करने में मदद करते हैं. इसके लिए या तो आप अलसी के बीज खा लें या फिर उसके पाउडर को पानी में मिला कर के पी सकते हैं.

मूली : मूली विटामिन ए और फाइबर का एक अच्छा स्रोत होती हैं. इनकी पचाने में अधिक समय लगता है इसलिए यह आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगने देती हैं. इसलिए मूली आपका वजन कम करने में मदद कर सकती है. आप इसे सलाद को तरह खा सकते हैं.

एलो वेरा : एलो वेरा बॉडी फैट और वजन को कम करने में बहुत लाभदायक माना जाता है. इससे नेक फैट कम होने में भी सहायता मिल सकती है. आप रोजाना सुबह उठ कर ताजा एलो जूस पी सकते हैं.

उपरलिखित सभी तरीके गर्दन का वजन कम करने में लाभदायक हैं. इनके अलावा आप अधिक से अधिक पानी पिए, ज्यादा कैलोरीज़ वाला खाना न खाएं और हर रोज थोड़ी बहुत एक्सरसाइज भी करते रहें. अगर आपके सारे शरीर का थोड़ा बहुत वर्कआउट होगा तो आपके सभी अंगों का वजन कम होने में मदद मिलेगी. आप सूरज मुखी के बीजों का और लाल शिमला मिर्च का प्रयोग भी कर सकते है.

जानें क्या हैं हैप्पी मैरिड लाइफ के 5 टिप्स

अरेंज्ड या लव, शादी कैसे भी हो, ससुराल में आपसी अनबन, विचारों में मतभेद जैसी शिकायतें घर-घर की कहानी है, क्योंकि हमारे समाज में शादी केवल 2 व्यक्तियों की नहीं, बल्कि 2 परिवारों की होती है, जहां लोग एकदूसरे के विचारों और स्वभाव से अनजान होते हैं.

आजकल लड़कालड़की शादी से पहले मिल कर एकदूसरे को समझ लेते हैं, लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों को समझने का मौका शादी के बाद ही मिलता है. जिस तरह से बहू असमंजस में रहती है कि ससुराल के लोग कैसे होंगे, उसी तरह ससुराल वाले भी बहू के व्यवहार से अनजान रहते हैं. ससुराल में पति के अलावा सासससुर, ननद, देवर, जेठजेठानी सहित कई महत्त्वपूर्ण रिश्ते होते हैं. एक छत के नीचे 4 लोग रहेंगे तो विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है.

आपसी मनमुटाव की वजहें

जैनरेशन गैप, विचारों को थोपना, अधिकार जमाने की मानसिकता, बढ़ती उम्मीदें, पूर्वाग्रह, फाइनैंशियल इशू, बहकावे में आना, प्यार में बंटवारे का डर इत्यादि रिश्तों में मनमुटाव की वजहें होती हैं. कभीकभी तो स्वयं पति भी सासबहू में मनमुटाव का कारण बन जाता है. इन सब के अलावा आजकल सासबहू के रिश्तों पर आधारित टीवी सीरियल भी आग में घी का काम कर रहे हैं. शादीशुदा अंजलि बताती है, ‘‘घर में पति और 2 बच्चों के अलावा सास, ननद, देवर, जेठजेठानी एवं उन के बच्चे हैं. घर में अकसर एकदूसरे के बीच झगड़े व मनमुटाव का माहौल बना रहता है, क्योेंकि सासननद को लगता है कि हम बहुएं केवल काम करने की मशीनें हैं. हमारा हंसनाबोलना उन को कांटे की तरह चुभता है.

स्थिति ऐसी है कि परिवार के सदस्य आपस में बात तक नहीं करते हैं.’’ मुंबई की सोनम कहती हैं, ‘‘मेरी शादी को 1 साल हो गया है. मैं ने देखा है कि मेरे पति या तो अपनी मां की बात सुनते हैं या फिर पूरी तरह से हमारे बीच के मतभेद को नजरअंदाज करते हैं, जोकि मुझे सही नहीं लगता. पति पत्नी और घर के अन्य सदस्यों के बीच एक कड़ी होता है, जो दोनों पक्षों को जोड़ती है. वह भले किसी एक पक्ष का साथ न दे, परंतु सहीगलत के बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए.’’

इसी तरह 50 वर्षीय निर्मला बताती हैं, ‘‘घर में बहू तो है लेकिन वह सिर्फ मेरे बेटे की पत्नी है. उसे अपने पति और बच्चों के अलावा घर में कोई और दिखाई ही नहीं देता है. उन लोगों में इतनी बिजी रहती है कि एकाध घंटा भी हमारे पास आ कर बैठती तक नहीं है, न ही हालचाल पूछती है. उस के व्यवहार या रहनसहन से कभी भी हम खुश नहीं होते, जिस का उस पर कोई असर नहीं होता. बेटियों का हवाला दे कर अकसर उलटा जवाब देती है. ऐसे में उस के होने न होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

नवी मुंबई की आशा कहती हैं, ‘‘मेरे पति हर साल करवाचौथ पर अपनी मां के लिए साड़ी लाते थे. इस साल किसी वजह से नहीं ला पाए तो ‘मैं ने उन्हें अपने वश में कर लिया है,’ कहते हुए सास ने पूरे घर में हंगामा मचा दिया. ससुराल वालों को लगता है कि मैं पैसे कमा कर मायके में देती हूं. शादी के बाद उन का बेटा कम पैसा देता है तो उस के लिए भी मुझे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है.’’ शादी के बाद रिश्तों में आई कुछ ऐसी ही कड़वाहट को कैसे दूर करें कि विवाह बाद भी सदैव खुशहाल रहें, पेश हैं कुछ सुझाव:relationship

कैसे मिटाएं दूरियां: मनोचिकित्सक डा. वृषाली तारे बताती हैं कि संयुक्त परिवार में आपस में मधुरता होनी बहुत जरूरी है. रिश्तों में मिठास बनाए रखने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्यों की होती है. इसलिए परिवार के हर सदस्य को एक समान प्रयास करना चाहिए.

विचारों में पारदर्शिता लाएं: डा. वृषाली के अनुसार, परिवार में एकदूसरे के बीच ज्यादा से ज्यादा कम्यूनिकेशन होना चाहिए, जो डिजिटल न हो कर आमनेसामने हो. दूसरी बात एकदूसरे के विचारों में पारदर्शिता हो, जो किसी भी मजबूत रिश्ते की बुनियाद होती है. उदाहरण के लिए, यदि आप शादी के बाद भी नौकरी करती हैं या कहीं बाहर जाती हैं, तो घर पहुंच कर जल्दी या देर से आने का कारण, औफिस में दिन कैसा रहा जैसी छोटीछोटी बातें घर वालों से शेयर करें. इस से घर का माहौल हलका होने के साथसाथ एकदूसरे पर विश्वास बढ़ेगा. जितना ज्यादा आप इन्फौर्म करेंगी, उतना ही ज्यादा खुद को स्वतंत्र महसूस कर पाएंगी. इस के लिए फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे डिजिटल साधनों का कम से कम इस्तेमाल करें ताकि रिश्तों में गलतफहमी न आए. ऐसा बहू को ही नहीं, बल्कि घर के बाकी सदस्यों को भी करना चाहिए.

मैंटल प्रोटैस्ट से बचें: आजकल सब से बड़ी समस्या यह है कि हम पहले से ही अपने दिमाग में एक धारणा बना चुके होते हैं कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती, सास कभी मां नहीं बन सकतीं. ऐसी नकारात्मक सोच को मैंटल प्रोटैस्ट कहते हैं. अकसर देखा जाता है कि बहुओं की मानसिकता ऐसी होती है कि घर पर उस के हिस्से का काम पड़ा होगा. सास, ननद जरूर कुछ बोलेंगी. ऐसी सोच रिश्तों पर बुरा असर डालती है और इसी सोच के साथ लोग रिश्तों में सुधार की कोशिश भी नहीं करते हैं. इसलिए जरूरी है कि इस तरह की नकारात्मक सोच के घेरे से बाहर निकलें और एकदूसरे के बीच बढ़ती दूरियों को कम करें.relationship

काउंसलर की मदद लें: डा. वृषाली तारे कहती हैं कि संयुक्त परिवार में छोटीमोटी नोकझोंक, विचारों में मतभेद आम बात है, जिसे बातचीत, प्यार और धैर्य से सुलझाया जा सकता है और यह तभी संभव है जब आप का शरीर और मन स्वस्थ हो. लेकिन मामला गंभीर है तो घर के सभी लोगों को बिना संकोच काउंसलर की मदद लेनी चाहिए. ज्यादातर रिश्तों में कड़वाहट का कारण मानसिक अस्वस्थता होती है, जिसे लोग नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में जिस तरह से कोई बीमारी होने पर हम डाक्टर की मदद लेते हैं, उसी तरह रिश्तों में आई कड़वाहट और उलझनों को सुलझाने के लिए किसी ऐक्सपर्ट की सलाह लेने में शर्म या संकोच न करें, क्योंकि रिश्तों में स्थिरता और मधुरता लाने की जिम्मेदारी किसी एक सदस्य की नहीं होती है, बल्कि इस के लिए संयुक्त प्रयास होना चाहिए.

रूढि़वादी मानसिकता से बाहर निकलें: विज्ञान और आधुनिकता के समय में रूढि़वादी रीतिरिवाजों से बाहर निकलने की कोशिश करें. घर के सदस्यों के रहनसहन और जीवनशैली में हुए बदलाव को स्वीकार करें, क्योंकि एकदूसरे पर विचारों को थोपने से रिश्तों में कभी मिठास नहीं आ सकती है. सहनशीलता और मानसम्मान देना केवल कम उम्र के लोगों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि बड़े लोगों में भी यह भावना होनी चाहिए. अधिकार जमाने या विचार थोपने से हट कर रिश्तों से ज्यादा व्यक्ति को महत्त्व देंगे तो संबंध अपनेआप खूबसूरत बन जाएंगे. जाहिर सी बात है कि रिश्तों में खुलापन और अपनापन आने में वक्त लगता है, परंतु रिश्ते यों ही नहीं बनते हैं. इस के लिए संस्कार और परवरिश तो माने रखते ही है, कभीकभी सही वक्त पर सही सोच भी बहुत जरूरी होती है.

बड़ी लकीर छोटी लकीर

ढोलककी थाप रह-रह कर मेरे कानों में चुभ रही थी. कल ही तो खबर आई थी कि मैं ने शेयर बाजार में जो पैसा लगाया है वह सारा डूब गया. कहां तो मैं एक बड़ी लकीर खींच कर एक लकीर को छोटा करना चाहता था और कहां मेरी लकीर और छोटी हो गई.

तभी शिखा मुसकराती हुई आई और मेरे हाथ में गुलाबजामुन की प्लेट पकड़ा कर बोली, ‘‘खाओ और बताओ कैसे बने हैं?’’

मैं उसे और बोलने का मौका नहीं देना चाहता था, इसलिए बेमन से खा कर बोला, ‘‘बहुत अच्छे.’’

मगर उसी दिन पता चला कि किसी भी व्यंजन का स्वाद उस के स्वाद पर नहीं उसे किस नीयत से खिलाया जाता है उस पर निर्भर करता है.

शिखा बोली, ‘‘अनिल जीजा और नीतू

दीदी की मुंबई के होटल की डील फाइनल हो

गई है. उन्होंने ही सब के लिए ये गुलाबजामुन मंगाए हैं.’’

सुनते ही मुंह का स्वाद कड़वा हो गया. यह लकीरों का खेल बहुत पहले से शुरू हो गया था, शायद मेरे विवाह के समय से ही. मेरा नाम सुमित है, शादी के वक्त में 24 वर्षीय नौजवान था, जिंदगी और प्यार से भरपूर. मेरी पत्नी शिखा बहुत प्यारी सी लड़की थी. उसे अपनी जिंदगी में पा कर मैं बहुत खुश था. सच तो यह था कि मुझे यकीन ही नहीं था कि इतनी सुंदर और सुलझी हुई लड़की मेरी पत्नी बनेगी. पर विवाह के कुछ माह बाद शुरू हो गया एक खेल. पता नहीं वह खेल मैं ही खेल रहा था या दूसरी तरफ से भी हिस्सेदारी थी.

मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब मैं पहली बार ससुराल गया था. मेरी बड़ी साली के पति हैं अनिल. चारों तरफ उन का ही बोलबाला था.

‘‘अनिल अभी भी एकदम फिट है. इतना युवा लगता है कि घोड़ी पर बैठा दो,’’ यह शिखा की मौसी बोल रही थीं.

पता नहीं हरकोई क्यों बस बहू के बारे में ही कहानियां लिखता है. एक दामाद के दिल में भी धुकधुक रहती है कि कैसे वह अपने सासससुर और परिवार को यकीन दिलाए कि वह उन की राजकुमारी को खुश रखेगा और मेरे लिए तो यह और भी मुश्किल था, क्योंकि मुझे तो एक लकीर की माप में और बड़ी लकीर खींचनी थी. मेरा एक काबिल पति और दामाद बनने का मानदंड ही यह था कि मुझे अनिल से आगे नहीं तो कम से कम बराबरी पर आना है.

आप सोच रहे होंगे, कैसी पत्नी है मेरी या कैसी ससुराल है मेरी. नहीं दोस्तो कोई मुंह से कुछ नहीं बोलता पर आप को खुद ही यह महसूस होता है, जब आप हर समय बड़े दामाद यानी अनिल के यशगीत सुनते हो.

मैं पता नहीं क्यों इतनी कोशिशों के बाद भी वजन कम नहीं कर पा रहा था. उस दिन अनिल अपनी पत्नी के साथ हमारे घर आया था. मजाक करते हुए बोला, ‘‘सुमित, तुम थोड़ा कपड़ों पर ध्यान दो. यह वजन घटाना तुम्हारे बस की बात नहीं है.’’

उस की पत्नी नीतू भी मंदमंद मुसकरा रही थी और मेरी पत्नी शिखा को अपने हीरे के मोटेमोटे कड़े दिखा रही थी. मेरे अंदर उस रोज कहीं कुछ मर गया. शर्म आ रही थी मुझे. शिखा अपनी सब बहनों में सब से सुंदर और समझदार है पर मुझ से शादी कर के क्या सुख पाया. न मैं शक्ल में अच्छा हूं और न ही अक्ल में. फिर मैं ने लोन ले कर एक घर ले लिया. मेरी सास भी आईं पर जैसे मैं ने सोचा था उन्होंने वही किया.

शिखा के हाथों में उपहार देते हुए बोलीं, ‘‘सुमित, क्या अनिल से सलाह नहीं ले सकता था? कैसी सोसाइटी है और जगह भी कोई खास नहीं है.’’

शिखा के चेहरे पर वह उदासी देख कर अच्छा नहीं लगा. खुद को बहुत बौना महसूस कर रहा था. फिर शिखा की मम्मी पूरा दिन अनिल के बंगले का गुणगान करती रहीं. मुझे ऐसा लगा कि मैं तो शायद उस दौड़ में भाग लेने के भी काबिल नहीं हूं.

दिन बीतते गए और हफ्तों और महीनों में परिवर्तित होते गए. दोस्तो आप सोच रहे होंगे, गलती मेरी ही है, क्योंकि मैं इस तुलनात्मक खेल को खेल कर अपने और अपने परिवार को दुख दे रहा था. आप शायद सही बोल रहे होंगे पर तब कुछ समझ नहीं आ रहा था.

शिखा बहुत अच्छी पत्नी थी, कभी कुछ नहीं मांगती. मेरे परिवार के साथ घुलमिल कर रहती, पर उस का कोई भी शिकायत न करना मुझे अंदर ही अंदर तोड़ देता. ऐसा लगता मैं इस काबिल भी हूं…

आज मैं जब दफ्तर से आया तो शिखा बहुत खुश लग रही थी. आते ही उस ने मेरे हाथ में एक बच्चे की तसवीर पकड़ा दी. समझ आ गया, हम 2 से 3 होने वाले हैं. अनिल का फोन आया मेरे पास बधाई देने के लिए पर फोन रखते हुए मेरा मन कसैला हो उठा था. वह तमाम चीजें बता रहा था जो मेरी औकात के परे थीं. वह वास्तव में इतना भोला था या फिर हर बार मुझे नीचा दिखाता था, नहीं मालूम, मगर मैं जितनी भी अपनी लकीर को बड़ा करने की कोशिश करता वह उतनी ही छोटी रहती.

अनिल के पास शायद कोई पारस का पत्थर था. वह जो भी करता उस

में सफल ही होता और मैं चाह कर भी सफल नहीं हो पा रहा था.

जैसेजैसे शिखा का प्रसवकाल नजदीक आ रहा था मेरी भी घबराहट बढ़ती जा रही थी. मेरी मां तो हमारे साथ रहती ही थीं पर मैं ने खुद ही पहल कर के शिखा की मां को भी बुला लिया. मुझे लगा शिखा बिना झिझक के अपनी मां को सबकुछ बता सकेगी पर मुझे नहीं पता था यह उस के और मेरे रिश्ते के लिए ठीक नहीं है.

शिखा अपनी मां के आने से बहुत खुश थी. 1 हफ्ते बाद की डाक्टर ने डेट दी थी. शिखा की मां उस के साथ ही सोती थीं. पता नहीं वे रातभर मेरी शिखा से क्या बोलती रहती थीं कि सुबह शिखा का चेहरा लटका रहता. मैं गुस्से और हीनभावना का शिकार होता गया.

मुझे आज भी याद है अन्वी के जन्म से 2 रोज पहले शिखा बोली, ‘‘सुमित, हम भी एक नौकर रख लेंगे न बच्चे के लिए.’’

मैं ने हंस कर कहा, ‘‘क्यों शिखा, हमारे घर में तो इतने सारे लोग हैं.’’

शिखा मासूमियत से बोली, ‘‘अनिल जीजाजी ने भी रखा था, करिश्मा के जन्म के बाद.’’

खुद को नियंत्रित करते हुए मैं ने कहा, ‘‘शिखा वे अकेले रहते हैं पर हमारा पूरा परिवार है. तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

मगर अनिल का जिक्र मुझे बुरी तरह खल गया. शिखा कुछ और बोलती उस से पहले ही मैं बुरी तरह चिल्ला पड़ा. उस की मां दौड़ी चली आईं. शिखा की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. मैं उसे कैसे मनाता, क्योंकि उस की मां ने उसे पूरी तरह घेर लिया था. मुझे बस यह सुनाई पड़ रहा था, ‘‘हमारे अनिल ने आज तक नीतू से ऊंची आवाज में बात नहीं करी.’’

मैं बिना कुछ खाएपीए दफ्तर चला गया. पूरा दिन मन शिखा में ही अटका रहा. घर आ कर जब तक उस के चेहरे पर मुसकान नहीं देखी तब तक चैन नहीं आया.

10 मई को शिखा और मेरे यहां एक प्यारी सी बेटी अन्वी हुई. शिखा का इमरजैंसी में औपरेशन हुआ था, इसलिए मैं चिंतित था पर शिखा की मां ने शिखा के आगे कुछ ऐसा बोला जैसे मुझे बेटी होने का दुख हुआ हो. कौन उन्हें समझाए अन्वी तो बाद में है, पहले तो शिखा ही मेरे लिए बहुत जरूरी है.

मैं हौस्पिटल में कमरे के बाहर ही बैठा था. तभी मेरे कानों में गरम सीसा डालती हुई एक आवाज आई, ‘‘हमारे अनिल ने तो करिश्मा के होने पर पूरे हौस्पिटल में मिठाई बांटी थी.’’

मैं खिड़की से साफ देख रहा था. शिखा के चेहरे पर एक ऐसी ही हीनभावना थी जो मुझे घेरे रहती थी. शिखा घर आ गई पर अब ऐसा लगने लगा था कि वह मेरी बीवी नहीं है, बस एक बेटी है. रातदिन अनिल का बखान और गुणगान, मेरे साथसाथ मेरे घर वाले भी पक गए और उन को भी लगने लगा शायद मैं नकारा ही हूं. घर के लोन की किस्तें और घर के खर्च, मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. फिर मैं ने कुछ ऐसा किया जहां से शुरू हुई मेरे पतन की कहानी…

मैं ने इधरउधर से क्व1 लाख उधार लिए और बहुत बड़ा जश्न किया. शिखा के लिए भी एक बहुत प्यारी नारंगी रंग की रेशम के काम की साड़ी ली. उस में शिखा का गेहुआं रंग और निखर रहा था. उस की आंखों में सितारे चमक रहे थे और मुझे अपने पर गर्व हो रहा था.

फिर किसी और से उधार ले कर मैं ने पहले व्यक्ति का उधार चुकाया और फिर यह धीरेधीरे मेरी आदत में शुमार हो गया.

मेरी देनदारी कभी मेरी मां तो कभी भाई चुका देते. शिखा और अन्वी से सब प्यार करते थे, इसलिए उन तक बात नहीं पहुंचती थी.

ऐसा नहीं था कि मैं इस जाल से बाहर नहीं निकलना चाहता था पर जब सब खाक हो जाता है तब लगता है काश मैं पहले शर्म न करता या शिखा से पहले बोल पाता. मैं एक काम कर के अपनी लकीर को थोड़ा बढ़ाता पर अनिल फिर उस लकीर को बढ़ा देता.

यह खेल चलता रहा और फिर धीरेधीरे मेरे और शिखा के रिश्ते में खटास आने लगी.

शिखा को खुश करने की कोशिश में मैं कुछ भी करता पर उस के चेहरे पर हंसी न ला पाता. शिखा के मन में एक अनजाना डर बैठ गया था. उसे लगने लगा था मैं कभी कुछ भी ठीक नहीं कर सकता या मुझे ऐसा लगने लगा था कि शिखा मेरे बारे में ऐसा सोचती है.

अन्वी 2 साल की हुई और शिखा ने एक दफ्तर में नौकरी आरंभ कर दी. मुझे काफी मदद मिल गई. मैं ने नौकरी छोड़ कर व्यापार की तरफ कदम बढ़ाए. शिखा ने अपनी सारी बचत से और मेरी मां ने भी मेरी मदद करी.

2-3 माह में थोड़ाथोड़ा मुनाफा होने लगा. उस दौड़ में पहला स्थान प्राप्त करने के चक्कर में मैं शायद सहीगलत में फर्क को नजरअंदाज करने लगा. थोड़ा सा पैसा आते ही दिलखोल कर खर्च करने लगा. अचानक एक दिन साइबर सैल से पुलिस आई जांच के लिए. पता चला कि मेरी कंपनी के द्वारा कुछ ऐसे पैसे का लेनदेन हुआ है जो कानून के दायरे में नहीं आता है. एक बार फिर से मैं हाशिए पर आ खड़ा हो गया. जितना कामयाब होने की कोशिश करता उतनी ही नाकामयाबी मेरे पीछेपीछे चली आती.

शिखा ने कहा कि मैं कभी भी उस के या अन्वी के बारे में नहीं सोचता. हमेशा सपनों की दुनिया में जीता हूं.

शायद वह अपनी जगह ठीक थी पर उसे यह नहीं मालूम था कि मैं सबकुछ उसे और अन्वी को एक बेहतर जिंदगी देने के लिए करता हूं. पर क्या करूं मैं ऊपर उठने की जितनी भी कोशिश करता उतना ही नीचे चला जाता हूं. हमारे रिश्ते की खाई गहरी होती गई. हम पतिपत्नी का प्यार अब न जाने कहां खोने लगा.

यह सोचता हुआ मैं वर्तमान में लौट आया हूं.

कल शिखा की छोटी बहन की शादी है. सभी रिश्तेदार एकत्रित हुए हैं. न जाने क्या सोच कर मैं शिखा के लिए अंगूठी खरीद ले आया. सब लोग शिखा की अंगूठी की तारीफ कर रहे थे और मैं खुशी महसूस कर रहा था. वह अलग बात है, मैं इन पैसों से पूरे महीने का खर्च चला सकता था.

तभी देखा कि नीतू सब को अपना कुंदन का सैट दिखा रही है जो उस ने खासतौर पर इस शादी में पहनने के लिए खरीदा था. मुझे अंदर से आज बहुत खालीखाली महसूस हो रहा था. मैं इन लकीरों के खेल में उलझ कर आज खुद को बौना महसूस कर रहा हूं.

बरात आ गई थी. चारों तरफ गहमागहमी का माहौल था. तभी अचानक पीछे से किसी ने आवाज लगाई. मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया.

मेरे सामने भावना खड़ी थी. भावना और मैं कालेज के समय बहुत अच्छे मित्र थे या यों कह सकते वह और मैं एकदूसरे के पूरक थे. प्यार जैसा कुछ था या नहीं, नहीं मालूम पर उस के विवाह के बाद बहुत खालीपन महसूस हुआ. भावना जरा भी नहीं बदली थी या यों कहूं पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. वही बिंदासपन, बातबात पर खिलखिलाना.

मुझे देखते ही बोली, ‘‘सुमि, क्या हाल बना रखा है… तुम्हारी आंखों की चमक कहां गई?’’

मैं चुपचाप मंदमंद मुसकराते हुए उसे एकटक देख रहा था. मन में अचानक यह

खयाल आया कि काश मैं और वह मिल कर

हम बन जाते.

भावना चिल्लाई, ‘‘यह क्या मैं ही बोले जा रही हूं और तुम खोए हुए हो?’’

हम गुजरे जमाने में पहुंच गए. 3 घंटे 3 मिनट की तरह बीत गए. होश तब आया जब शिखा अन्वी को ले कर आई और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें सब वहां ढूंढ़ रहे हैं.’’

मैं ने उन दोनों का परिचय कराया और फिर शिखा के साथ चला गया. पर मन वहीं भावना के पास अटका रह गया. जयमाला के बाद फिर से भावना से टकरा गया.

भावना निश्छल मन से शिखा से बोली, ‘‘शिखा, आज की रात तुम्हारे पति को चुरा रही हूं… हम दोनों बरसों बाद मिले हैं… फिर पता नहीं मिल पाएं या नहीं.’’

ये सब सुन कर मुझे पता लग गया था कि मैं अब भावना का अतीत ही हूं और शायद उस ने कभी मुझे मित्र से अधिक अहमियत नहीं दी थी. यह तो मैं ही हूं जो कोई गलतफहमी पाले बैठा था.

फिर भावना कौफी के 2 कप ले आई. मुसकराते हुए बोली, ‘‘चलो हो जाए कौफी

विद भावना.’’

मैं भी मुसकरा उठा. मैं ने औपचारिकतावश उस से उस के घरपरिवार के बारे में पूछा. उस से बातचीत कर के मुझे आभास हो गया था कि मेरी सब से प्यारी मित्र अपनी जिंदगी में बहुत खुश है पर यह क्या मुझे सच में बहुत खुशी हो रही थी?

भावना ने मुझ से पूछा, ‘‘और सुमि तुम्हारी कैसी कट रही है? बीवी तो तुम्हारी बहुत प्यारी है.’’

उस के आगे मैं कभी झूठ न बोल पाया था तो आज कैसे बोल पाता. अत: मैं ने उसे अपना दिल खोल कर दिखा दिया. मैं ने उस से कहा, ‘‘भावना, मैं क्या करूं… मैं हार गया यार… जितनी कोशिश करता हूं उतना ही नीचे चला जाता हूं.’’

भावना बोली, ‘‘सुमित, कभी शिखा से ऐसे बात की जैसे तुम ने आज मुझ से करी है?’’

मैं ने न में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘फिर हर समय इन लकीरों के खेल में उलझे रहना… पति न जाने क्यों अपनी पत्नियों को बेइंतहा प्यार करने के बावजूद उन्हें अपने दर्द से रूबरू नहीं करा पाते हैं. तुम पहले इंसान नहीं हो जो ऐसा कर रहे हो और न ही तुम आखिरी हो, पर सुमित तुम खुद इस के जिम्मेदार हो… इन लकीरों के खेल में तुम खुद उलझे हो… अपना सब से प्यारा दोस्त समझ कर यह बता रही हूं कि अपनी तुलना अगर दूसरों से करोगे तो खुद को कमतर ही पाओगे. सुमि, बड़ी लकीर अवश्य खींचो पर अपनी ही अतीत की छोटी लकीर के अनुपात में… तुम्हें कभी निराशा नहीं होगी. जैसे मछली जमीन पर नहीं रह सकती वैसे ही पंछी भी पानी में नहीं रह पाते. सुमि, शायद तुम एक मछली हो जो उड़ने की कोशिश कर रहे हो.

‘‘फिर बोलो गलती किस की है, तुम्हारी, शिखा या अनिल की?

‘‘दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं…

‘‘शिखा की मां हो या तुम्हारी सब अपनेअपने ढंग से चीजों को देखेंगे पर यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम कैसे अपने रिश्ते निभाते हो.

‘‘जैसे एक बहू को शादी के बाद अपने नए परिवार में तालमेल बैठाना पड़ता है

वैसे ही एक पुरुष को भी शादी के बाद सब से तालमेल बैठाना पड़ता है पर इस बात को एक पति, दामाद अकसर नजरअंदाज कर देते हैं… अनिल से अपनी तुलना करने के बजाय उस से कुछ सीखो और मुझे यकीन है तुम्हारे अंदर भी ऐसे गुण होंगे जो अनिल ने तुम से सीखे होंगे. नकारात्मकता को अपने और शिखा के ऊपर हावी न होने दो. जैसे तुम खुद को देखोगे वैसे ही दूसरे लोग तुम्हें देखेंगे.

‘‘यह उम्मीद करती हूं कि अगली बार फिर कभी जीवन के किसी मोड़ पर टकरा गए तो फिर से अपने पुराने सुमि को देखना चाहूंगी,’’ कह भावना चली गई.

मैं चुपचाप उसे सुनता रहा और फिर मनन करने लगा कि शायद भावना सही बोल रही है. लकीरों के खेल में उलझ कर मैं खुद ही हीनभावना से ग्रस्त हो गया हूं. शायद अब समय आ गया है हमेशा के लिए इस खेल को खत्म करने का पर इस बार अपनी शिखा को साथ ले कर मैं अपनी जिंदगी की एक नई लकीर बनाऊंगा बिना किसी के साथ तुलना कर के और फिर कभी भावना से टकरा गया तो अपनी जिंदगी के नए सफर की कहानी सुनाऊंगा.

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