बच्चों के लिए झटपट ऐसे बनाएं डोरा केक

केक का नाम सुनते ही बच्चे ही नहीं बड़ों के मुंह में भी पानी आ जाता है. आमतौर पर केक मैदा, बेकिंग पाउडर और शकर की मदद से माइक्रोबेव, ओ. टी. जी. या गैस पर बेक करके बनाया जाता है परन्तु आज हम आपको ऐसे केक के बारे में बता रहे हैं जिसे आप बड़ी ही आसानी से गैस पर बिना बेक किये रोटी परांठा बनाने वाले तवे पर ही बना सकती हैं. यह बेहद स्वादिष्ट तो होता ही है साथ ही इसमें फूलने और बेक करने का भी कोई झंझट नहीं है. इसे आप झटपट कभी भी बना सकते हैं. तो आइए जानते हैं इसकी रेसिपी-

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज/डेजर्ट

सामग्री

मैदा 1 कप
पिसी शकर 3/4 कप
बेकिंग पाउडर 1/2 टी स्पून
शहद 1 टेबलस्पून
कन्डेन्स्ड मिल्क 3 टीस्पून
वनीला एसेंस 1/2 टीस्पून
मक्खन 1 टीस्पून
दूध 1/2 कप
भरावन के लिए
2 टेबलस्पून हेजलनट बटर

विधि

मैदा, शकर, बेकिंग पाउडर, और कन्डेन्स्ड मिल्क को एक साथ अच्छी तरह मिलाएं. अब दूध डालकर चलाते हुये केक की कंसिस्टेंसी वाला घोल तैयार करें. वनीला एसेंस, मक्खन और शहद मिलाएं. गैस पर नॉनस्टिक पैन चढ़ाएं और एक चम्मच घोल तवे पर डालें, यह अपने आप फैल जायेगा.

अब इसे ढककर एकदम धीमी आंच पर सेंके. 3 से 4 मिनट बाद किनारे से उठाकर देंखें और हल्का ब्राउन हो जाने पर पलट दें तथा दूसरी तरफ से सेंकें. ध्यान रखें कि आंच बहुत धीमी ही हो. इसी प्रकार सारे केक तैयार करें.

अब तैयार केक में से एक केक पर आधा चम्मच हेजलनट फैलाएं, इसके ऊपर एक और केक रखकर दबा दें. इसी प्रकार अन्य केक भी तैयार कर लें. आधा घण्टे के लिए फ्रिज में सेट होने रखें और फिर बीच से दो भागों में काटकर सर्व करें.

नोट-इस केक में आंच का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है.
यदि आपके पास हेजलनट बटर नहीं है तो आप 4 टीस्पून चॉकलेट सॉस में 1 टेबलस्पून काजू या भुना मूंगफली पाउडर मिलाकर विकल्प के तौर पर प्रयोग कर सकतीं हैं.

Saras Salil Cine Award: इन भोजपुरी फिल्मों ने मचाया धमाल, देखें लिस्ट

भोजपुरी सिनेमा के लिए दिया जाने वाला ‘5वां सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ हाल ही में अयोध्या में शानदार तरीके से हुआ था, जिस में भोजपुरी सिनेमा के दिग्गज कलाकारों ने शिरकत की थी. इस अवार्ड शो में दर्शक भोजपुरी के तमाम कलाकारों को अपने सामने पा कर दंग थे. वे कड़ाके की ठंड में भी भोजपुरी कलाकारों का दीदार कर रहे थे.

वैसे तो इस अवार्ड शो में दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’, आम्रपाली दुबे, अंजना सिंह, अनारा गुप्ता, पाखी हेगड़े, संजय पांडेय, देव सिंह सरीखे कई दिग्गज कलाकार मौजूद थे, लेकिन इन सब के बीच भोजपुरी सिनेमा के एक खास कलाकार की मौजूदगी ने दर्शकों का हौसला बढ़ा दिया था. वह नाम है भोजपुरी सिनेमा में तकरीबन 43 सालों से अपनी ऐक्टिंग का सिक्का जमाए कुणाल सिंह का.

कुणाल सिंह भोजपुरी सिनेमा के शुरुआती दौर के उन गिनेचुने कलाकारों में शामिल हैं, जिन्होंने भोजपुरी सिनेमा को बुलंदियों पर पहुंचाया और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया.

विधायक का बेटा मुंबई में हीरो बनने आया

साल 1977 में कुणाल सिंह जब मुंबई में फिल्मों में काम करने आए, तब उन के पिता बुद्धदेव सिंह एक चर्चित नेता के साथसाथ विधायक भी थे. वे काफी दिनों तक मंत्री भी रहे थे.

कुणाल सिंह ने बताया, “जब मैं मुंबई आया, तब पिताजी खर्च भेजते रहे. मैं ने हीरो बनने के लिए काफी हाथपैर मारे, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही थी. पर मैं ने तय कर लिया था कि हीरो ही बनना है. उधर, पिताजी ने उम्मीद के मुताबिक कामयाबी न मिलने पर कुछ दिन बाद पैसा भेजना बंद कर दिया. ऐसा नहीं था कि वे मुझे पसंद नहीं करते थे, बल्कि वे मुझ से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. फिर भी उन्हें मेरे भविष्य की चिंता थी, लेकिन मैं कुछ और ही समझ बैठा. मुझे लगा कि मैं उन पर बोझ बन गया हूं, इसीलिए मैं ने भी कह दिया कि अब मैं नौकरी कर रहा हूं और अपना खर्च खुद चला लूंगा.”

हिंदी फिल्म से हुई शुरुआत

कुणाल सिंह ने बताया कि जब वे मुंबई में संघर्ष कर रहे थे, तभी उन्हें एक हिंदी फिल्म औफर हुई थी, जिस का नाम था ‘कल हमारा है’. इस फिल्म की कहानी बिहार के माहौल पर थी और इसीलिए उस में एक भोजपुरी बोलने वाले कलाकार की जरूरत थी. यह फिल्म जब रिलीज हुई, तो पटना में तकरीबन 37 हफ्ते तक चली थी.

इस फिल्म की कामयाबी ने न केवल कुणाल सिंह के लिए दूसरी फिल्मों में आने का रास्ता खोला, बल्कि इस फिल्म के जरीए मिले भोजपुरी किरदार ने उन्हें भोजपुरी फिल्मों का स्टार बना दिया.

फिल्मों की लगी लाइन

कुणाल सिंह ने बताया, “जब मेरी यह फिल्म हिट हुई, तो फिल्म निर्माताओं ने मुझ से फिल्मों में काम करने के औफर देने शुरू किए, जिन में से ज्यादातर फिल्म निर्माता भोजपुरी सिनेमा बनाने की इच्छा ले कर आ रहे थे. चूंकि मेरे पास उस समय काम नहीं था, इसलिए मैं ने भी फिल्में साइन करनी शुरू कर दीं. लेकिन यह जरूर खयाल रखा कि कभी ऐसी फिल्म न करूं, जिस से खुद की नजरों में ही गिर जाऊं. आज फिल्म इंडस्ट्री में मुझे काम करते हुए तकरीबन 43  साल हो गए हैं, लेकिन कोई मुझ पर सवाल नहीं उठा सकता. मुझे इस बात का गर्व भी है.”

इन फिल्मों ने मचाया धमाल

कुणाल सिंह बताते हैं, “जब मैं बतौर हीरो फिल्मों में काम कर रहा था, तब टीवी और यूट्यूब का जमाना नहीं था, इसलिए सभी फिल्में सिनेमाघरों में ही रिलीज होती थीं. ऐसे में जब मेरी फिल्में सिनेमाघरों में लगती थीं, तो हफ्तों तक सिनेमाघरों के आगे दर्शकों की लाइन लगी रहती थी.”

कुणाल सिंह ने बताया कि उन की फिल्में ‘धरती मईया’, ‘हमार भौजी’, ‘चुटकी भर सिंदूर’, ‘गंगा किनारे मोरा गांव’, ‘दूल्हा गंगा पार के’, ‘दगाबाज बलमा’, ‘हमार बेटवा’, ‘राम जइसन भइया हमार’, ‘बैरी कंगना’, ‘छोटकी बहू’, ‘घरअंगना’, ‘साथ हमारतोहार’ आज भी सब से हिट और ज्यादा चलने वाली फिल्मों में शामिल हैं.

इस फिल्म ने तोड़ा था रिकौर्ड

कुणाल सिंह ने साल 1983 में भोजपुरी फिल्म ‘गंगा किनारे मोरा गांव’ में बतौर लीड हीरो काम किया था. जब यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई, तो इस ने इतिहास ही रच दिया, क्योंकि यह फिल्म वाराणसी के एक थिएटर में लगातार 1 साल 4 महीने तक चली थी.

अमिताभ बच्चन से तुलना

कुणाल सिंह को भोजपुरिया बैल्ट में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की तरह भोजपुरी का महानायक कहा जाता है. कई लोग तो उन्हें ‘भोजपुरी का अमिताभ बच्चन’ कहते हैं. भोजपुरी और बौलीवुड के इन दोनों महानायकों ने भोजपुरी फिल्म ‘गंगोत्री’ में एकसाथ काम भी किया है.

Kunal Singh

चुनाव में भी आजमा चुके हैं हाथ

एक समय ऐसा भी आया था, जब कुणाल सिंह ने राजनीति में भी हाथ अजमाने का फैसला किया था और अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में भी कदम रखा था. उन्होंने कांग्रेस से टिकट ले कर पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ चुनाव लड़ा था और दूसरे नंबर पर रहे थे.

कभी रेप सीन नहीं किया

कुणाल सिंह जब पौजिटिव रोल करतेकरते ऊब गए थे, तब उन्होंने कुछ फिल्में बतौर विलेन भी करने का फैसला किया, लेकिन उन्होंने फिल्म निर्माताओं के सामने एक शर्त रखी थी कि वे विलेन के रूप में कभी भी फिल्मों में रेप सीन नहीं करेंगे.

कुणाल सिंह ने बताया, “मैं ने भोजपुरी में बतौर विलेन महज 2-3 ऐसी फिल्में ही की हैं, लेकिन इस शर्त के साथ कि इस फिल्म में न तो मैं किसी औरत के साथ रेप करूंगा, न उसे टच करूंगा.”

लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड

हाल ही में अयोध्या में हुए ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ शो में कुणाल सिंह को भोजपुरी सिनेमा में योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड से नवाजा गया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस लाइफटाइम अवार्ड ने ऐक्टिंग के प्रति उन की जवाबदेही और भी बढ़ा दी है. इस दौरान उन्होंने अपनी दमदार संवाद अदायगी से दर्शकों का मनोरंजन भी किया.

विरोधाभास: सबीर ने कैसे अपने चरित्र का सच दिखाया

मुजफ्फरपुर आए 2-3 दिन हो चुके थे. अभी मैं दफ्तर के लोगों को जानने, समझने, स्थानीय राजनीति की समीक्षा करने में ही लगा हुआ था. मेरा विभाग गुटबंदी का शिकार था. यूनियन 3 खेमों में बंटी थी और हर खेमा अपनी प्रमुखता और दूसरे की लघुता प्रमाणित करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ता था. 3 गेंदों को एकसाथ हवा में उछालने वाला जादूगर बिस्मार्क मुझे रहरह कर याद आता था. अचानक, ‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं,’ का स्वर मेरे कानों में पड़ा. मैं काफी देर से फाइलों में उलझा हुआ था. इस स्वर में निहित विनम्रता तथा संगीतमय खनक ने मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लिया. मैं ने गरदन ऊपर उठाई और चेहरे पर थोड़ी सी मुसकान ला कर कहा, ‘‘हांहां, आइए.’’

‘‘नमस्कार, सर. आप कैसे हैं ’’ आगंतुक सबीर अहमद ने बुलबुल की तरह चहकते हुए कहा. मैं ने हाथ के संकेत से उसे बैठने का इशारा कर दिया था. वह शायद संकेतों की भाषा में माहिर था. मुसकराते हुए मेरे सामने रखी कुरसियों में से एक पर बैठ गया.

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं, मि. अहमद ’’ मैं ने पूछा. ‘‘सर, पहली बात तो यह कि आप मुझे ‘मि. अहमद’ न कहें. यह बेहद औपचारिक लगता है. मेरी इल्तिजा है, मेरा अनुरोध है कि आप मुझे सबीर ही कहें. आप से हर मामले में छोटा हूं, उम्र में, नौकरी में, पद में, प्रतिष्ठा में…’’

‘‘बसबस, आगे कुछ मत कहिए, सबीर साहब. तारीफ जब सीमा लांघने लगती है तो उस में चापलूसी की बू आ जाती है, जो कहने और सुनने वाले, यानी दोनों के लिए नुकसानदेह होती है,’’ मैं ने प्यार से मुसकराते हुए कहा तो सबीर ने बड़ी अदा से सिर झुका कर आंखें बंद कर हथेलियों को माथे से सटाया.

मैं ने कहा, ‘‘और दूसरी बात क्या है ’’ ‘‘सर, दूसरी बात यह है कि आप बड़े चिंतित लग रहे हैं, पर ऊपर से सामान्य दिख रहे हैं. कृपया इसे चापलूसी न समझें. अगर आप मुझे अपने छोटे भाई की जगह दें तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

पता नहीं क्यों, सबीर के स्वर में मुझे सचाई की झलक महसूस हुई और मैं ने घंटी बजा कर चपरासी को बुला कर कहा, ‘‘2 कौफी…’’ चपरासी के जाने के बाद मैं ने गहरी सांस ली. अंदर की सारी परेशानी मानो थोड़ी देर के लिए बाहर निकल गई.

‘‘मैं गुडि़या और डौली के दाखिले को ले कर बहुत परेशान हूं. महिला कालेज में कई बार जा चुका हूं, पर रिसैप्शनिस्ट हर बार एक ही जवाब देती है कि सीट नहीं है. बेचारी लड़कियां नाउम्मीद सी हो गई हैं,’’ मैं ने कहा. ‘‘सर, आप बेफिक्र रहें, समझ लें कि यह काम हो गया. मैं वाइस चांसलर को जानता हूं. उन से कह कर यह काम करा लूंगा. बस, इस नाचीज को 24 घंटे की मुहलत दे दें और दोनों बेटियों के कागजात भी मुझे दे दें,’’ उस ने इतमीनान से कहा.

‘‘शुक्रिया, दोस्त. अगर यह काम हो गया तो मैं चैन की सांस ले सकूंगा,’’ मैं ने कहा. तभी कौफी आ गई और सबीर मुझे कौफी पर कई शेर सुनाता चला गया. उस की आवाज तो दिलकश थी ही, शेरों का चयन भी उम्दा था. मैं ने उस की खूब तारीफ की. थोड़ी देर बाद मुसकराता हुआ वह कागजात ले कर चला गया.

अगले दिन वह दोपहर के भोजन के समय मेरे घर पर आ गया. मुझे देखते ही बोला, ‘‘सर, दाखिला हो गया. यह रही रसीद और ये रहे बाकी पैसे.’’ डौली और गुडि़या, जो बेमन से खाना सजा रही थीं, यह बात सुनते ही उछल पड़ीं.

‘‘यह तुम्हारे सबीर चाचा हैं. इन्होंने ही इस काम को करवाया,’’ मैं ने बेटियों से कहा तो दोनों ने उन्हें धन्यवाद दिया. पत्नी ने अपनी खुशी का इजहार, ‘सबीर भाईसाहब, खाना खा कर ही जाइएगा,’ कह कर किया.

सबीर ने पहले तो इनकार किया, पर मां, बेटियां उस पर इतनी मेहरबान थीं कि बिना खिलाए जाने ही नहीं दिया. 2 दिनों बाद रविवार था. मैं बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था. अचानक सबीर को जीप से उतरते देखा. ‘यह तो मोटरसाइकिल सवार है, जीप से कैसे ’ मैं अभी सोच ही रहा था कि ड्राइवर ने पीछे से 2 गैस सिलिंडर उतारे और सबीर के निर्देश पर भीतर ले आया.

उसी समय मेरी पत्नी भी बाहर आ गई. गैस सिलिंडर देख कर वह बहुत प्रसन्न हुई. शायद मैं ने उसे बहुत कम मौकों पर इतना पुलकित देखा था. वह खिलखिलाती हुई बोली, ‘‘वाह, भाईसाहब, वाह, स्टोव से पीछा छुड़ाने का लाखलाख शुक्रिया.’’ सबीर नए दूल्हे की तरह शरमाता हुआ बोला, ‘‘इस में शुक्रिया काहे का, मालूम होता तो यह काम पहले ही हो जाता.’’

‘‘पर तुम्हें गैस के लिए किस ने और कब कहा ’’ मैं ने परेशान होते हुए पूछा. ‘‘मैं ने कहा था जब उस दिन आप स्नानघर में घुसे हुए थे. इन्होंने पूछा, ‘और कोई सेवा ’ और मैं ने अपना दुखड़ा सुना दिया,’’ जवाब पत्नी ने दिया.

‘‘पर यह सब करनेकराने की क्या जरूरत थी, 2-4 माह स्टोव पर ही…’’ मैं ने पत्नी पर नाराजगी उतारते हुए कहा, ‘‘तुम यूनियन वालों को नहीं जानतीं, वे लोग हंगामा खड़ा कर देंगे कि क्षेत्रीय प्रबंधक स्टाफ को अपना घरेलू नौकर समझते हैं. बनीबनाई इज्जत धूल में मिल जाएगी.’’ ‘‘सर, मैं ने आप से प्रार्थना की थी कि मुझे अपना छोटा भाई समझें. क्या भाभीजी का छोटामोटा काम आप के भाई नहीं करते क्या घर वाले एकदूसरे पर एहसान करते हैं ’’ उस ने दुखी स्वर में कहा.

‘‘माफ करना, भई, मेरा इरादा तुम्हें दुख पहुंचाना नहीं था, पर…’’ कहतेकहते मैं रुक गया. मुझे शब्द ही नहीं मिल रहे थे. ‘‘परवर कुछ नहीं, सर, डीएम का पीए मेरा भाई है, उसी से कह कर महीनों का काम कुछ दिनों में करवा लिया, वरना गैस एजेंसी वाले तो ऐसा चक्कर डालते हैं कि कभीकभी 2 साल भी लग जाते हैं. मैं आखिर किस मर्ज की दवा हूं…’’

मेरा परिवार सबीर पर फिदा था. पत्नी तो उसे घर का सदस्य ही समझती थी. चंद दिनों में उस ने राशनकार्ड भी बनवा दिया. घर की हर जरूरत, हर समस्या वह ‘भाभीजी’ यानी मेरी श्रीमती की इच्छानुसार पूरी करवाता. सबीर की निकटता ने मुझे यूनियन के झगड़ों से भी मुक्त कर दिया था. वह सभी गुटों का काम करता, करवाता. सब के बच्चों के दाखिले और शादीब्याह वगैरा में मदद करता. वह सब की आंखों का तारा, हरदिल अजीज सबीर भाई था.

वह औफिस के काम में भी बहुत चुस्त था. जो सूचना चाहिए, सबीर अहमद मिनटों में दे देता. औफिस के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तो वह जान ही था. अकसर मैं सोचता, ‘प्रकृति ने इस आदमी में एकसाथ इतने गुणों को भर दिया है कि सामने वाला न चाहते हुए भी खुद को इस पर निर्भर मानता है.’

वह मोतिहारी में क्षेत्राधिकारी था. मुजफ्फरपुर से मोतिहारी की दूरी 80-85 किलोमीटर है, पर उस के लिए यह सामान्य सी बात थी. मैं अभी मोतिहारी गया भी नहीं

था, सारे क्षेत्राधिकारी महीने में 1-2 बार मुख्यालय आते और आवश्यक जानकारी दे जाते. एक दिन सबीर ने प्रार्थनापत्र देते हुए कहा, ‘‘सर, मैं ने मोतिहारी में किराए का मकान ले लिया है, गांव से पत्नी और बच्चों को ले आया हूं. सरकारी नियमों के अनुसार, मकान में दफ्तर रखने पर किराया मिल जाता है, आप निरीक्षण कर लेते और ओसीआर यानी औफिस कम रैजीडैंस प्रमाणपत्र दे देते तो मुझे प्रतिमाह 15 सौ रुपए मिल जाते.’’

‘‘ठीक है, पता मेरे ड्राइवर को बता दो. मैं अगले सप्ताह मोतिहारी कार्यालय का निरीक्षण करने आऊंगा तो यह कार्य भी कर दूंगा.’’ ‘‘शुक्रिया, सर,’’ कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ. थोड़ी देर बाद उस की मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने की आवाज आई, जो धीरेधीरे दूर होती चली गई.

मैं ने पान की पीक थूकने के लिए खिड़की का परदा उठाया. आसमान पर हलकेहलके बादल तैर रहे थे, धूप की चमक फीकी हो रही थी, जो कि वर्षा आने का संकेत था. मौसम तेजी से बदल रहा था, जो कि स्वास्थ्य के लिए बुरा था.

मोतिहारी में सबीर का मकान ढूंढ़ना नहीं पड़ा. चांदमारी महल्ले के मोड़ पर ही सबीर मुझे पान की एक दुकान पर मिल गया. फिर अपने मकान पर ले गया. बाहर नेमप्लेट पर लिखा था, ‘सबीर अहमद, फील्ड औफिसर, इफको.’ वह मुझे बैठक में ले गया. कमरे को दफ्तर कहना ज्यादा श्रेष्ठ था. एक बड़ी सी मेज व 6 कुरसियां लगी थीं. मेज पर मेरे विभाग का कैलेंडर रखा था, डायरी थी, फाइलें थीं और कागज आदि थे. दीवार पर विभागीय मोनोग्राम लटका हुआ था. एक कोने में सोफासैट था, हम उस पर बैठ गए.

थोड़ी देर बाद 8-9 वर्ष की प्यारी सी गुडि़या कौफी ले कर आई. उस ने सलीके से ‘नमस्ते, अंकल,’ कहा और ट्रे मेज पर रख कर बाहर चली गई. सबीर ने हंस कर कहा, ‘‘बड़ी शरमीली बिटिया है.’’ मैं ने कहा, ‘‘नहीं, बड़ी प्यारी बिटिया है.’’

इस पर हम दोनों हंस पड़े. सबीर फाइलें लाता रहा, मुझे दिखाता रहा और अपने बारे में भी बताता रहा. उस ने कहा कि एक कमरे में उस की गर्भवती बहन रह रही है, जो प्रसव के लिए आई है, दूसरे में उस का परिवार है. बैठक को औफिस बना लिया है. एक स्टोर, रसोई और भोजनकक्ष है.

कुछ देर बाद वह भीतर गया और जल्दी ही लौट कर बोला, ‘‘सर, खाना तैयार है, अम्मी बुला रही हैं.’’ निरीक्षण के दौरान उस के घर खाना खाना मेरे अुनसार गलत कार्य था. मैं ने मना कर दिया, मगर उस के पैने तर्कों के आगे मेरे सिद्धांत फीके लग रहे थे. वह मां की ममता का वास्ता दे रहा था, ‘‘अम्मी बहुत दुखी हो जाएंगी. वे कह रही हैं कि हम मुसलमान हैं, इसलिए हमारे घर का खाना…’’

अंत में मुझे भोजन के लिए उठना ही पड़ा. पता नहीं मन की किस भावना ने मुझे खाने से ज्यादा उस की भावना के प्रति नतमस्तक कर दिया. रसोई सामने थी. एक बूढ़ी, विधवा औरत वहां मौजूद थी. मैं ने ‘प्रणाम, माताजी,’ कहा तो उन्होंने ‘जीते रहो, भैया,’ कह कर ममता का सागर उड़ेल दिया. खाना शाकाहारी व बेहद स्वादिष्ठ था. 2 स्त्रियां दूसरे कमरे में दिखीं, मगर मैं ने सोचा ‘परदे की वजह से शायद वे सामने नहीं आईं.’ चलते समय वह बच्ची फिर आई और ‘नमस्ते, अंकलजी, फिर कभी आएइगा,’ कह कर अपने नन्हे हाथों से बायबाय

कर गई. मैं संतुष्ट था, उस का मकान वास्तव में 15 सौ रुपए के लायक था, उस में दफ्तर मौजूद था ही, परिवार भी रहता था. मैं ने तुरंत ही ओसीआर रिपोर्ट पटना भेज दी. कुछ दिनों बाद उस की स्वीकृति भी आ गई और सबीर को हर माह 15 सौ रुपए मिलने लगे.

लगभग 4-5 महीने बाद मेरे बड़े भाई की लड़की की शादी मोतिहारी में होनी तय हुई. लड़का तो दिल्ली में नौकरी करता था. पर उस के मातापिता मोतिहारी में ही रहते थे. भैया को केवल उन का नाम और चांदमारी महल्ला ही पता था. अचानक बादलों में जैसे बिजली कौंध गई, सबीर का खयाल आते ही मैं स्फूर्ति से भर उठा. ड्राइवर ने मोतिहारी में सबीर के मकान के आगे गाड़ी रोकी. मैं अभी गाड़ी से उतर भी नहीं पाया था कि सबीर की नन्ही सी प्यारी सी, बिटिया ने ‘नमस्ते, अंकल,’ कहा.

मैं ने बिस्कुट का पैकेट बच्ची को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, पापा घर पर हैं ’’

‘‘जी हां.’’ थोड़ी देर में एक सज्जन अंदर से आए. लंबा कद और आंखों पर चश्मा. मैं ने पूछा, ‘‘सबीर घर पर हैं क्या ’’

वे हैरानी से बोेले, ‘‘कौन सबीर ’’ मैं ने प्रत्युत्तर में पूरी दास्तान सुनाते हुए कहा, ‘‘आप सबीर को नहीं जानते’’

‘‘अच्छाअच्छा, सबीर साहब, देखिए, उस दिन एक रोज के लिए यह घर उन्होंने एक हजार रुपए किराए पर लिया था. मेरी ‘नेमप्लेट’ उतारी गई और उन की पहचान टांगी गई और नौकरानी ने मां बन कर खाना खिलाया. मेरी बेटी ने उन की बेटी की भूमिका निभाई. बस, खेल खत्म पैसा हजम.’’ मैं ने वितृष्णा से कहा, ‘‘शर्म आनी चाहिए.’’

वे छूटते ही बोले, ‘‘किसे मुझे या सबीर साहब को अरे साहब, यह सब इस बिहार में दाल में नमक के बराबर भी नहीं, समुद्र में एक चम्मच चीनी मिलाने जैसा है. यहां आएदिन घोटाले हो रहे हैं, मंत्री अरबों लूट रहे हैं तो सरकारी कर्मचारी हरिश्चंद्र क्यों बने रहें ’’ मैं वापस चल पड़ा. नुक्कड़ पर पान वाले से आ कर पता पूछा. आज उस से अंतिम फैसला करना है. मैं गुस्से से उबल रहा था. मेरा विश्वास, मेरी ईमानदारी को सबीर ने दांव पर लगा दिया था.

पान वाले ने उस का नाम सुनते ही कहा, ‘‘हां साहब, जानते हैं हम. उन्हें हम ही क्या, इस शहर का हर पान वाला एक उम्दा इंसान समझता है. बड़े रईस आदमी हैं, मोतिहारी के चांदमारी में भी एक मकान है, चकिया में स्वयं रहते हैं. पीपराकोड़ी में उन का विशाल फार्महाउस है, वहां मेरा भाई दरबान है, हुजूर.’’ ‘स्वयं चकिया में, फार्महाउस पीपराकोठी में और पता चांदमारी का. वाह रे सबीर, क्या गुल खिलाया है तुम ने,’ मैं ने मन ही मन भन्नाते हुए कहा. मूड खराब हो चुका था. सो, लौट जाने का निर्णय किया.

अचानक मैं ने ड्राइवर से पीपराकोठी फार्महाउस चलने को कहा. ज्यादा परेशानी नहीं हुई. मुख्य सड़क से 14-15 किलोमीटर अंदर झखराग्राम में उस का फार्महाउस मिल गया. दरबान को उस के भाई का हवाला दिया तो उस ने विशाल फाटक खोल दिया. अंदर किले सा दृश्य था. चमचमाती सड़क और सुंदर सा गैस्टहाउस. गैस्टहाउस के पीछे एक विशाल गोदाम और वहां खड़े दर्जनों ट्रक. मैं ने वहां खड़े एक व्यक्ति से कहा, ‘‘मैं सीबीआई इंस्पैक्टर राणा हूं.’’

फार्महाउस में इफको खाद में नदी की बारीक रेत मिलामिला कर 1 टन खाद को 3 टन बनाया जा रहा था और करोड़ों रुपए गैरमामूली तौर पर कमाए जा रहे थे. पूछताछ से ज्ञात हुआ कि इस काले व्यापार में मंत्री महोदय भी बराबर के हिस्सेदार हैं. मैं सबीर के चरित्र के इस विरोधाभास पर हतप्रभ था.

फेसबुक: श्वेता और राशी क्या बच पाई इस जाल से

कालेज में फ्री पीरियड में जैसे ही श्वेता ने अपनी सहेली अमिता और राशी को अपने बौयफ्रैंड रोहन के बारे में बताया तो राशी हैरान होते हुए बोली, ‘‘तू बड़ी छिपीरुस्तम निकली, पिछले 6 महीने से तुम दोनों का चक्कर चल रहा है और हमें तू आज बता रही है.’’

‘‘तो तुम ने कौन सा अपने जयपुर वाले बिजनैसमैन बौयफ्रैंड संचित से हमें अभी तक मिलवाया है,’’ श्वेता ने पलट कर जवाब दिया.

‘‘प्लीज, दोनों लड़ो मत. चलो, कैंटीन चलते हैं, बाकी बातें वहीं कर लेना,’’ अमिता दोनों को चुप कराते हुए बोली.तीनों क्लास रूम से उठ कर कैंटीन की तरफ चल दीं.

राशी ने 3 बर्गर और हौट कौफी और्डर करते हुए श्वेता से पूछा, ‘‘चल छोड़, अब यह बता, तुम मिले कहां? रोहन के परिवार में कौनकौन है? हमें उस से कब मिलवा रही है?’’

‘‘क्या एक के बाद एक सवालों की बौछार कर रही है, आराम से एकएक कर के पूछ,’’ अमिता ने राशी को टोका.

‘‘अभी तो मैं ही रोहन से नहीं मिली तो तुम्हें कैसे मिलवाऊं,’’ श्वेता ने मजबूरी जताई.

‘‘तो पिछले 6 महीने से तुम एक बार भी नहीं मिले,’’ राशी ने हैरानी से पूछा.

‘‘तो तुम कौन सा संचित से मिली हो,’’ श्वेता ने उसी लहजे में राशी से पूछा.

‘‘संचित बिजनैस के सिलसिले में अकसर विदेश जाता है, उस ने तो मुझे अपने साथ सिंगापुर चलने के लिए कहा था, पर मैं ने ही मना कर दिया. शादी के बाद उस के साथ दुनिया घूमूंगी,’’ राशी चहकते हुए बोली.

‘‘चलो, चलो, बर्गर खाओ, ठंडा हो रहा है,’’ अमिता ने कहा.

‘‘अच्छा, यह तो बता रोहन दिखता कैसा है, उस का कोई फोटो तो दिखा,’’ राशी श्वेता का मोबाइल उठाते हुए बोली.

‘‘अभी उस की आर्मी की ट्रेनिंग पूरी नहीं हुई है, इसलिए उस ने कोई फोटो नहीं भेजा,’’ श्वेता ने जवाब दिया, ‘‘सुनो, कल उस का बर्थडे है, मैं तुम सब को ट्रीट दूंगी,’’ उस ने आगे कहा.

‘‘क्या तू ने रोहन के लिए कोई गिफ्ट नहीं भेजा,’’ अमिता ने श्वेता से पूछा.

‘‘क्यों नहीं, मैं ने उस की मनपसंद घड़ी कोरियर से एक हफ्ते पहले ही भेज दी थी,’’ श्वेता बोली.

‘‘पिछले महीने तेरे बर्थडे पर रोहन ने क्या दिया,’’ राशी ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘उस ने कहा कि वह ट्रेनिंग खत्म होते ही दिल्ली आएगा और मुझे मनपसंद शौपिंग कराएगा,’’ श्वेता चहकते हुए बोली.

‘‘ग्रेट,’’ राशी ने कहा.

‘‘एक मिनट, मुझे तो तुम दोनों के बौयफ्रैंड्स में कुछ गड़बड़ लग रही है,’’ अमिता परेशान होते हुए बोली.

‘‘तेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है, इसलिए तू हम से जलती है,’’ राशी तुनक कर बोली.

तीनों कैंटीन से आ कर क्लास रूम में बैठ गईं, पर अमिता का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था, वह यही सोचती रही कि जिन लड़कों को इन्होंने देखा नहीं, उन से मिली नहीं, उन के सपनों में खो कर अपना कीमती समय बरबाद कर रही हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दोनों को एक ही लड़का बेवकूफ बना रहा हो, लेकिन इन्हें समझाना बहुत मुश्किल है. उस ने मन ही मन एक प्लान बनाया और कालेज की छुट्टी के समय दोनों से बोली, ‘‘सुनो, तुम दोनों संडे को मेरे घर आ जाओ, मैं घर पर अकेली हूं, मम्मीपापा कहीं बाहर जा हे हैं.’’

राशी और श्वेता दोनों संडे को 11 बजे अमिता के घर पहुंच गईं. अमिता दोनों के लिए गरमागरम मैगी बना कर लाई. इसी बीच अमिता अपना लैपटौप भी उठा लाई और दोनों से बोली, ‘‘चलो, आज रोहन और संचित से चैटिंग करते हैं.’’

यह सुन कर श्वेता ने जल्दी से अपना फेसबुक अकाउंट ओपेन किया और रोहन से चैटिंग करने लगी.

‘‘सुन, तू उसे यह मत बताना कि मेरी सहेलियां भी साथ हैं. उस से उस के कुछ फोटो मंगा,’’ अमिता ने श्वेता को सलाह दी.

‘‘6 महीने में रोहन को पूरा विश्वास हो गया था कि श्वेता उस के जाल में पूरी तरह फंस चुकी है, इसलिए उस ने अपने कुछ फोटो उसे भेज दिए.’’

फोटो देखते ही राशी चौंक उठी और बोली, ‘‘ये तो संचित के फोटो हैं.’’

अमिता उसे शांत करते हुए बोली, ‘‘चौंक मत, संचित और रोहन अलग न हो कर एक ही शख्स है, यह न तो आर्मी में है और न ही बिजनैसमैन. यह तुम दोनों को अपने अलगअलग नामों से बेवकूफ बना रहा है.’’

‘‘यह तू क्या कह रही है, क्या तू इसे जानती है?’’ राशी ने अमिता से पूछा.

उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ही सोचो, तुम ने अपने बौयफ्रैंड्स को महंगे गिफ्ट भेजे, लेकिन उन्होंने तुम्हें कुछ नहीं दिया, मिलने के मौकों को टाला, यह तो अच्छा है कि तुम दोनों समय रहते बच गईं.’’

‘‘आजकल सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर आएदिन ऐसे किस्से सुनने को मिल रहे हैं. इसलिए इन सब से सावधान रहना चाहिए,’’ उस ने आगे कहा.

‘‘पर मुझे तो रोहन ने अपना एड्रैस दिया था, जिस पर मैं ने गिफ्ट भेजे हैं,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘मेरी भोली सहेली, जब तक तुम उस का पता करने उस के एड्रैस पर पहुंचोगी तब तक वह शातिर वहां से भाग चुका होगा, ऐसे लोग बहुत शातिर होते हैं, इसलिए कभी भी वे एक एड्रैस पर लंबे समय तक नहीं ठहरते. बस, अपना उल्लू सीधा किया और नौदो ग्यारह हो गए.’’ अमिता ने कहा.ॉ

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‘‘कम औन, पहले अपनी ग्रैजुएशन पूरी करो फिर बौयफ्रैंड बनाना,’’ उस ने दोनों को सुझाव दिया.

‘‘तू ठीक कहती है अमिता, तू ने हमें हकीकत से परिचित करवा कर समय रहते बचा लिया, न जाने यह हमें कितना बेवकूफ बनाता,’’ राशी बोली.

‘‘चलो, तुम दोनों किसी अनहोनी से बच गईं अन्यथा ताउम्र उन्हें इस का खमियाजा भुगतना पड़ता. आओ, इसी बात पर पकौड़े बनाते हैं,’’ कह कर अमिता दोनों सहेलियों को ले कर किचन की ओर बढ़ गई.

नाऊ वी आर ए टीम: क्या शादी के बाद अर्चना अपनी जिम्मेदारियों को निभा पाई?

आज अर्चना औफिस से घर जल्दी आ गई. फटाफट कपड़े बदले, इंटरनैट औन किया और हैदराबादी बिरयानी की रैसिपी ढूंढ़ निकाली. अनिमेश की फैवरेट डिश जो थी. अर्चना ने चावल भिगोए और मसाले डाल कर चिकन तैयार किया. अब बस कुकर में डाल कर सीटी लगाने की देर थी.

उस ने अनिमेश को फोन लगाया. घंटी बजी पर अनिमेश ने फोन नहीं उठाया. अर्चना ने घड़ी देखी, शाम के 6 बज रहे थे. सोचा, काम में उल  झे होंगे, बिरयानी बन जाए उस के बाद फिर से फोन करूंगी. फिर सब कुछ कुकर में डाल सीटियों का इंतजार करने लगी.

आज से पहले अर्चना ने चाय और मैगी के अलावा कुछ नहीं बनाया था. पढ़ाई और नौकरी के चक्कर में यह सब सीखने का समय नहीं मिल पाया था, न ही खाना बनाने में उस की कोई खास रुचि थी. पर अनिमेश के लिए ये सब करना उसे अच्छा लग रहा था.

अर्चना ने सोचा कि कुछ और रैसिपीस चैक की जाएं. चैक करतेकरते उसने कई स्वीट डिशेज जैसे, गाजर का हलवा, गुलाबजामुन और खीर की रैसिपीस पढ़ डालीं और सेव भी कर लीं. लेकिन इस चक्कर में वह कुकर की सीटियां गिनना ही भूल गई. बिरयानी की तरफ ध्यान तो उस का तब गया, जब कुछ जलने की बू आई. जल्दीजल्दी उस ने गैस बंद की, कुकर का ढक्कन हटाया पर बिरयानी जल गई थी.

सारी मेहनत बेकार. अर्चना रोंआसी हो आई. पर हार मानना उस ने सीखा नहीं था. पूरी प्रक्रिया फिर से दोहराई. इस बार ज्यादा चौकन्नी हो कर किचन से हिली ही नहीं. आखिरकार बिरयानी बन गई. सब करतेकरते साढ़े 7 बज गए.

अर्चना ने अनिमेश को दोबारा फोन लगाया. इस बार भी मोबाइल की घंटी बजती रही पर कोई जवाब नहीं मिला. अर्चना ने औफिस फोन लगाया, तो रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि अनिमेश को निकले आधा घंटा हो चुका है.

अर्चना ने अनुमान लगाया कि अनिमेश ड्राइव कर रहे होंगे, इसलिए फोन नहीं उठाया होगा. औफिस से घर आने में 45 मिनट लगते हैं. अनिमेश पहुंचते ही होंगे. अर्चना ने अपनी फैवरेट क्रौकरी निकाली, कैंडल भी और पीछे रोमांटिक गाने चला दिए. रोमांटिक डिनर की पूरी तैयारी हो गई थी. वह अनिमेश का इंतजार करने लगी, लेकिन साढ़े 8 बज गए पर अनिमेश नहीं पहुंचे. अर्चना को अब थोड़ी चिंता हुई.

फिर से अनिमेश को फोन किया तो अनिमेश ने इस बार फोन उठाया और जल्दीजल्दी में बोला, ‘‘यार बिजी हूं अभी…घर लेट आऊंगा…तुम खाना खा लेना, बाय.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया तो अर्चना का मूड खराब हो गया. दुख भी हुआ कि अनिमेश ने उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया. उस से पूछा तक नहीं कि उस ने फोन क्यों किया था.

उधर अनिमेश को जरा भी अंदाजा नहीं था कि अर्चना इतनी दुखी है. उस का सारा ध्यान तो अपने टैनिस मैच पर था. पहला मैच वह अपने ही औफिस के जूनियर से हार गया था. स्टेट लेवल चैंपियन, एक नौसिखिए से हार गया, यह बात अनिमेश से बरदाश्त नहीं हो रही थी और आज दूसरा मैच था. इस मैच में अनिमेश ने अपनी पूरी ताकत लगा दी और जीत भी गया था. पर जैसे ही जाने को हुआ, जूनियर ने अपने साथ कौफी पीने के लिए उसे रोक लिया. अनिमेश मना नहीं कर पाया. फिर अपनी जीत अर्चना के साथ सैलिब्रेट करने के इरादे से वह घर चला. इधर घर पर अर्चना ने खाना नहीं खाया था. कुछ करने में मन भी नहीं लग रहा था. गाने बंद कर दिए थे और सोफे पर लेट गई थी.

घर पहुंचते ही अनिमेश ने अर्चना को गेम के बारे में बताना शुरू कर दिया. अपनी जीत की खुशी में उस ने ध्यान ही नहीं दिया कि अर्चना का मूड खराब है. अनिमेश ने उसी ऐक्साइटमैंट में उस से पूछा, ‘‘खाना खा लिया?’’

बिना कोई जवाब दिए अर्चना ने अनिमेश के लिए खाना लगाया और बैडरूम में चली गई. जब अर्चना ने दरवाजा जोर से बंद किया तब अनिमेश का ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया. अब उसे सम  झ आया कि अर्चना ने रोमांटिक डिनर का प्लान बनाया था और उस के देर से आने की वजह से उस का मूड खराब था.

अनिमेश ने प्लेट में अर्चना के लिए खाना निकाला और कमरे का दरवाजा खटखटा कर बोला, ‘‘सौरी यार, मु  झे पता होता कि तुम ऐसा कुछ प्लैन कर रही हो तो मैं जल्दी आ जाता.’’

गुस्से में अर्चना अंदर से ही चिल्लाई, ‘‘बताने के लिए ही फोन किया था. पर तुम्हें मेरी बात सुनने की फुरसत कहां है…मु  झ से ज्यादा तो तुम्हारा टैनिस मैच इंपौर्टैंट है.’’

‘‘अरे यार ऐसा नहीं है. तुम क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो?’’ कहते हुए अनिमेश ने दरवाजा खोला.

अर्चना बोली, ‘‘शाम से तुम्हारे लिए बिरयानी बनाने में लगी थी, लेकिन तुम्हें क्या? मैं यहां परेशान हो रही थी और तुम मजे से टैनिस खेल रहे थे.’’

अनिमेश ने बात संभालने की कोशिश की, ‘‘अरे तो तुम्हें इतना परेशान होने कि क्या जरूरत थी? हम होटल से मंगा लेते.’’

‘‘और रोज जब तुम्हारी मम्मी फोन कर के पूछती हैं कि बहू आज क्या बनाया खाने में, तब मैं क्या कहा करूं?’’

‘‘यार, अब मम्मी कहां से आ गईं बीच में?’’

‘‘ठीक है, नहीं लाती बीच में. तुम सम  झोगे भी नहीं. तुम लड़कों पर तो शादी के बाद कोई प्रैशर होता नहीं है. उम्मीदें तो हम लड़कियों से ही होती हैं.’’

‘‘तुम से मैं ने कहा था क्या इतनी मेहनत करने को?’’

‘‘सही है, तुम ने नहीं कहा था. मैं ही पागल थी जो तुम्हारे लिए कुछ करना चाह रही थी. उस की तारीफ करना तो दूर…खैर तुम खा लो मु  झे भूख नहीं है,’’ कह कर अर्चना करवट बदल कर सो गई.

अनिमेश की सम  झ में नहीें आ रहा कि वह क्या करे? बिरयानी टेस्टी दिख रही थी, भूख भी लगी थी. सोचा, अगर खा लेता हूं तो अर्चना कल ताना जरूर देगी कि मैं तो भूखी सो गई थी और तुम मजे से बिरयानी खा रहे थे. और अगर नहीं खाता हूं तो कल सुबहसुबह ही सुनना पड़ेगा कि मैं ने इतनी मेहनत से बनाया और तुम ने चखा भी नहीं.

थोड़ी देर उल  झन में पड़े रहने के बाद वह चुपके से बाहर गया और बिरयानी खा ली. बहुत अच्छी बनी थी. अनिमेश को एहसास हुआ कि अर्चना ने वाकई बहुत मेहनत की थी. उस ने फैसला किया कि वह कल से शाम को घर जल्दी आ जाया करेगा.

अगली सुबह उस ने अर्चना की बिरयानी की तारीफ की और अपने घर जल्दी आने के फैसले के बारे में बताया तो अर्चना का गुस्सा कुछ कम हुआ.

अब अनिमेश शाम को औफिस से सीधा घर आता. अर्चना किचन में कुछ नया ट्राई करती और अनिमेश वीडियो गेम खेलता. लेकिन अभी

1 हफ्ता भी नहीं बीता था कि दोनों में फिर लड़ाई हो गई. अनिमेश को वीडियो गेम में तल्लीन देख कर अर्चना उस से बोली, ‘‘जब वीडियो गेम ही खेलना होता है, तो घर आते ही क्यों हो?’’

अनिमेश बोला, ‘‘एक तो तुम्हारे लिए अपना फैवरेट गेम छोड़ दिया, फिर भी तुम नाराज हो रही हो. तुम औरतों का न कुछ भी सम  झ में नहीं आता. अब तुम ही बताओ कि मैं क्या करूं? मैं तुम्हारे ही हिसाब से चल रहा हूं फिर भी तुम खुश नहीं हो. खाना नहीं बनाना तो मत बनाओ, इतना चिड़चिड़ाओ मत.’’

अर्चना को अचानक एहसास हुआ कि जिस चिकचिक, खिटपिट से उसे चिढ़ थी वही उस की जिंदगी का हिस्सा बनने लगी थी. उसे चिकचिक करने और एकदूसरे की कमियां गिनाने वाली जिंदगी नहीं चाहिए थी, यही सोच कर उस ने कोई प्रतिवाद नहीं किया. उसे तो बस अनिमेश का समय और साथ चाहिए था. लेकिन इस तरह लड़ कर नहीं. रात भर सोचती रही कि कहां क्या गलत हो गया? ठीक तो करना ही होगा.

अगली शाम को जानबू  झ कर वह अनिमेश के आने के बाद घर आई. अनिमेश रोज की तरह वीडियो गेम खेल रहा था. उस ने गेम से नजरें हटाए बिना पूछा, ‘‘कैसा था आज का दिन?’’

अर्चना को उस का नजरें उठा कर भी न देखना बुरा तो लगा फिर भी उस ने अपने स्वर को सयंत किया और बोली, ‘‘बहुत थक गई हूं,

1 कप चाय मिलेगी?’’

अनिमेश थोड़ा अचकचा गया. अर्चना ने कभी उस से पानी भी नहीं मांगा था. फिर भी ‘‘हांहां बिलकुल,’’ कहते हुए वह एकदम से खड़ा हो गया और किचन की तरफ बढ़ा. फिर थोड़ा सकुचाते हुए बोला, ‘‘लेकिन मु  झे तो चाय बनानी आती ही नहीं.’’

अर्चना मुसकराए बिना नहीं रह सकी, ‘‘कोई बात नहीं मैं बताती हूं, तुम बनाओ,’’ वह बोली.

अनिमेश उस मुसकराहट के लिए कुछ भी कर सकता था. उस ने चाय बनाई. चाय फीकी थी पर जितने प्यार से उस के लिए बनाई थी, उस ने अर्चना की सारी थकान दूर कर दी. फिर अनिमेश ने जैसे ही गेम का रिमोट उठाया, उस ने देखा कि अर्चना ने गेम को 2 प्लेयर्स मोड पर सैट कर दिया था.

अनिमेश चिढ़ाते हुए बोला, ‘‘तुम हार जाओगी. मैं ऐक्सपर्ट हूं इस गेम में.’’

शुरुआत के 2 गेम अर्चना हारी. तीसरे में उस ने अनिमेश को अच्छी टक्कर दे दी. फिर तो एक के बाद एक गेमों का सिलसिला चल निकला. 9 बज गए तो खाने की फिक्र हुई. अर्चना ने ़कुकर में चावलदाल चढ़ाया, तो अनिमेश भी पीछेपीछे आया. ‘‘कुछ मदद कर दूं?’’ वह बोला, तो अर्चना ने सब्जियां काटने के लिए उस की ओर ऐसे बढ़ाईं जैसे कोई चैलेंज दे रही हो.

अर्चना की स्पीड बेहतर थी. अनिमेश नौसिखिया था, लेकिन खेलखेल में खाना कब बन गया दोनों को पता भी नहीं चला.

‘‘आज बहुत दिन बाद एक मजेदार शाम बिताई है,’’ कहते हुए अनिमेश ने अर्चना को अपनी ओर खींच लिया.

अर्चना मुसकराते हुए बोली, ‘‘कल अपने जूनियर और उस की वाइफ को मिक्स्ड डबल्स के लिए बुलाओ.’’

‘‘लेकिन उस की वाइफ तो स्टेट लेवल प्लेयर है. मेरे जूनियर को उसी ने सिखाया है.’’

‘‘तुम बुलाओ तो सही. उस ने स्टेट खेला है तो मैं ने नैशनल.’’

अनिमेश चौंकते हुए बोला, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

अर्चना ने छेड़ा, ‘‘डरती थी कि कहीं तुम्हारा मेल ईगो हर्ट न हो जाए.’’

‘‘अरे, नाऊ वी आर ए टीम…ईगो के लिए बीच में जगह कहां है?’’ कहते हुए अनिमेश ने अर्चना को अपनी बांहों में कस लिया.

Anupamaa: क्या शाह हाउस में होगा बंटवारा, अनुज-अनुपमा आएंगे आमंने-सामने!

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर सीरियल अनुपमा में पांच लीप आने के बाद सीरियल की कहानी एक नया मोड़ ले रही है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि आद्या जोशी बहन से कितना नफरत करती है और वह श्रुति को भी मना करती है कि जोशी बहन से दूर रहे. तो दूसरी तरफ अनुपमा को आद्या से काफी जुड़ाव महसूस हो रहा है. फैंस को इंतजार है कि अनुज-अनुपमा कब आमने-सामने आएंगे. मेकर्स जल्द ही इस डिमांड को पूरे करने वाले हैं. आइए जानते हैं, अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

अपकमिंग एपिसोड में दिखा जाएगा कि अनुपमा सामान लेने टैक्सी से मार्केट जाती है, इसी बीच अनुज उस टैक्सी की तरफ भागता है, तभी उसका एक्सीडेंट हो जाता है और वह अनुपमा का नाम लेता है, अनुपमा अनुज की तरफ जाती है, तब तक लोग उसे अस्पताल लेकर चले जाते हैं.

 

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तो दूसरी तरफ शाह हाउस में पाखी बंटवारे की बात कर देगी, ऐसे में बा भड़क जाती है. बा भड़क जाती है और कहती है कि  मेरे और वनराज के बापू जी के रहते हुए बंटवारा नहीं हो सकता.

 

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अनुपमा में आप आगे ये देखेंगे कि अनुज अस्पताल से घर जाएगा, जिसके बाद वह बार-बार अनुपमा को याद करेगा. श्रुति और आद्या घबरा जाएंगी, इसके बाद श्रुति जोशी बहन को फोन कर के अनुज की हालत के बारे में बताएगी, अनुपमा उसे शांत करवाने की कोशिश करेगी. अब देखना ये होगा कि अनुज-अनुपमा कब आमने-सामंने आएंगे.

 

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वन मिनट प्लीज: क्या रोहन और रूपा का मिलन दोबारा हो पाया

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रूपा रोहन से शादी करना चाहती थी और इस मकसद में वह कामयाब भी हो गई थी. मगर शादी के कुछ ही महीनों बाद हालात ऐसे बन गए कि रोहन उसे छोड़ कर अचानक कहीं चला गया.

मॉइस्चराइजर और फेस सीरम में क्या है अंतर, कौन-सा है आपके लिए बेस्ट

एक समय था जब स्किन को बेदाग, चमकदार और जवां रखने के लिए घरेलू नुस्खे ही उपयोग में लिए जाते थे, लेकिन आज बाजार में स्किन केयर प्रोडक्ट्स की मानों बाढ़ सी आ गई है. मॉइस्चराइजर से लेकर नाइट क्रीम और सीरम तक इतने सारे विकल्प लोगों के पास हैं कि वे इन्हें लेकर कंफ्यूज हो गए हैं कि आखिर किस प्रोडक्ट को यूज करना उनकी स्किन के लिए बेस्ट है. वैसे तो ये तीनों ही स्किन की सेहत को सुधारते हैं, लेकिन त्वचा के प्रकार और जरूरत के अनुसार इनका चयन करना सही है. अगर आप भी नाइट क्रीम, मॉइस्चराइजर और सीरम को लेकर असमंजस में हैं, तो हम इसे दूर करने में आपकी मदद कर सकते हैं. चलिए जानते हैं इन तीनों में क्या अंतर है और क्या खासियतें हैं.

स्किन की मरम्मत करती है नाइट क्रीम

नाइट क्रीम आपके नाइट स्किन केयर रूटीन का हिस्सा है, जिसे आप सोने से पहले स्किन पर लगाते हैं. यह त्वचा की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने और दिनभर की क्षति की मरम्मत करने का काम करती है. यह स्किन को हाइड्रेट रखती है, कोलेजन को मजबूती देती है और स्किन का रूखापन दूर करती है.

स्किन को हाइड्रेट रहता है मॉइस्चराइजर

मॉइस्चराइजर आप दिन में किसी भी समय अपनी स्किन पर लगा सकते हैं. यह एक गाढ़ा फॉर्मूलेशन होता है, जिसे लगाने से स्किन हाइड्रेट और चिकनी रहती है. यह आपकी त्वचा की सबसे ऊपरी परत को नरम बनाता है.

त्वचा की समस्या के अनुसार चुनें सीरम

सीरम का उपयोग आपकी स्किन की समस्याओं के अनुसार किया जाता है. जैसे झुर्रियां कम करना, एक्ने के निशान हटाना, स्किन के ओपन पोर्स को कम करना या फिर पिगमेंटेशन कम करना आदि. इसमें अलग अलग फॉर्मूलेशन होते हैं, जिसे आप समस्या के अनुसार चुन सकते हैं। सीरम आपकी त्वचा में बहुत जल्दी अवशोषित होकर अपना काम शुरू कर देते हैं.

आपके लिए क्या है बेस्ट

मॉइस्चराइजर, नाइट क्रीम और सीरम तीनों ही आपकी स्किन के लिए महत्वपूर्ण हैं, बस उनके उपयोग का समय और तरीका अलग है. अगर आप स्वस्थ, ग्लोइंग, बेदाग स्किन चाहते हैं तो तीनों को ही अपने स्किन केयर रूटीन में शामिल करना चाहिए। हालांकि इनके चयन से पहले आपको अपनी ​त्वचा की समस्या और प्रकार दोनों का ध्यान रखना चाहिए.

नाइट क्रीम : त्वचा की मरम्मत के लिए नाइट क्रीम जरूरी है. आपकी त्वचा में कई परतें होती हैं। उम्र बढ़ने के साथ स्किन में कोलेजन कम होने लगता है और ये परतें पतली होने लगती है. यही कारण है कि स्किन पर झुर्रियां और महीन रेखाएं नजर आने लगती हैं. इसी के साथ प्रदूषण और खराब लाइफस्टाइल के कारण भी कोलेजन कम होने लगता है. नाइट क्रीम का नियमित उपयोग करने से ये परेशानियां कम होंगी। नाइट क्रीम मुख्य रूप से पेप्टाइड्स, रेटिनॉल, सेरामाइड्स आदि से बनाई जाती है. रेटिनॉल एक एंटी-एजिंग एजेंट है जो फाइन लाइंस, झुर्रियों और धब्बों को कम करता है. इससे हाइपरपिग्मेंटेशन की परेशानी दूर होती है. नाइट क्रीम में मौजूद हयालूरोनिक एसिड स्किन को हाइड्रेट कर नमी बनाए रखता है.

मॉइस्चराइजर : त्वचा की नमी को बनाए रखने के लिए मॉइस्चराइजर जरूरी है. यह स्किन को शुष्क होने से बचाता है और संक्रमण भी दूर करता है. मॉइस्चराइजर में एमोलिएंट्स और ह्यूमेक्टेंट्स जैसे तत्व होते हैं जो मॉइस्चराइजिंग एजेंट के रूप में काम करते हैं. इसी के साथ मॉइस्चराइजर में ग्लिसरीन, शहद, पैन्थेनॉल, सोर्बिटोल जैसे तत्व भी होते हैं, ​जो स्किन को हाइड्रेट रखते हैं. मॉइस्चराइजर का उपयोग दिन में किसी भी समय किया जा सकता है. हालांकि त्वचा को साफ करने के बाद ही इसका उपयोग करना चाहिए.

फेस सीरम : इन दिनों फेस सीरम काफी चलन में है. ये स्किन पर बहुत जल्दी असर दिखाना शुरू करते हैं. फेस सीरम का उपयोग आप अपनी स्किन टाइप और प्रॉब्लम के अनुसार कर सकते हैं. अल्फा-हाइड्रोक्सी एसिड और बीटा-हाइड्रोक्सी एसिड युक्त सीरम झुर्रियों, महीन रेखाओं, दाग-धब्बों, ओपन पोर्स आदि की परेशानी दूर करते हैं। ये एसिड त्वचा को एक्सफोलिएट कर उसे ग्लोइंग बनाते हैं. वहीं हयालूरोनिक एसिड सीरम आपकी बेजान ​त्वचा की रंगत लौटा सकता है। विटामिन सी, रेटिनॉल और विटामिन ई युक्त सीरम बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम कर स्किन को जवां बनाते हैं. विटामिन सी से त्वचा का रंग निखरता है. विटामिन ई एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है जो मुक्त कणों से लड़ता है और स्किन को जवां बनाता है.

मजेदार नाश्ते का लुत्फ उठाना चाहते हैं, तो इस तरह बनाएं पास्ता

डाइनिंग टेबल पर सुबह के नाश्ते में बेहतरीन पास्ता सजा हो या फिर बच्चे के लंच बॉक्स में, अचानक मूड चेंज हो जाता है. लेकिन पास्ता की फरमाइश आते ही मांओं के सामने अलग ही समस्या पैदा हो जाती है. जैसे टेस्ट को कैसे बेहतरीन बनाएं. आइए जानते हैं पास्ता बनाने की विधि.

वैजी पास्ता

सामग्री

2 कप मैकरोनी पास्ता, 1 प्याज बारीक कटा, 1 टमाटर बारीक कटा, थोड़ी शिमला मिर्च लंबी कटी, 1 गाजर लंबी कटी, 1 चम्मच पास्ता मसाला,
तेल जरूरतानुसार.

बनाने की विधि

गहरे पैन में पानी गरम कर पास्ता उबलने के लिए रखें. इसी समय इसमें कुछ बूंदें तेल भी मिक्स कर दें. 5-7 मिनट के बाद जब पास्ता थोड़ा नरम हो जाए तो गैस बंद कर पास्ता को तुरंत स्ट्रेनर में निकाल लें. अब पैन में तेल गरम कर बारी-बारी से प्याज, टमाटर, शिमलामिर्च और गाजर सौते करें. सब्जियां पकानी नहीं हैं बस उन्हें थोड़ा नरम करना है. फिर पास्ता मिक्स कर दें. अब पास्ता मसाला मिक्स कर
धीमी आंच पर हलके हाथों से चलाते रहें. पास्ता टूटना नहीं चाहिए. मनपसंद सीजनिंग से गार्निश कर परोसें.

लग्जरी से भरपूर लाइफ का आनंद लेना चाहते हैं, तो नए साल में करनी होगी कैरियर प्लानिंग

२४की उम्र में अच्छा सैलरी पैकेज पाना हर किसी की चाहत होती है. लेकिन बिस्तर पर पड़ेपड़े तो अच्छा पैकेज मिलेगा नहीं. अच्छा पैकेज तो छोडि़ए जनाब आप को एक अच्छी नौकरी भी नहीं मिलेगी. इसलिए बिस्तर को छोड़ कर अपने लक्ष्य की ओर दौडि़ए, तभी आप बिग ब्रैंड्स की बिग लाइफ जी पाएंगे.
इस के उलट अगर आप अपने आलस के कारण बिस्तर पर ही पड़े रहेंगे तो आप कभी लग्जरी लाइफ नहीं जी पाएंगे.

आप अपने दोस्तों को ऐसी लाइफ जीते देख कर अपने सिर के बाल नोचेंगे और अपनेआप को कोसेंगे कि काश मैं ने मेहनत कर ली होती. इस से पहले कि आप अपने किए पर पछताएं हम आप को समय रहते मेहनत करने की सलाह देते हैं. अगर आप ने अपने सपनों के लिए मेहनत की तो न सिर्फ आप अपने सपनों को पूरा कर पाएंगे बल्कि आप वह सब भी खरीद पाएंगे जिस की चाह आप को हमेशा से थी.

अगर आप मेहनत कर रहे हैं तो सफलता आप के कदम जरूर चूमेगी. इस बात की गवाह मधुरिमा चतुर्वेदी है. मधुरिमा 36 साल की है. वह पेशे से डाटाऐनालिस्ट है. वह गाजियाबाद की इंदिरापुरम सोसाइटी में रहती है. आज मधुरिमा के पास अपने खुद के पैसों के 2 घर हैं. अपने ही पैसों से उस ने मर्सडीज भी ले ली है. वह जानती है कि पैसे कैसे कमाए जाते हैं इसलिए उस ने स्टौक मार्केट में भी इनवैस्ट किया है.

मेहनत तो करनी पड़ेगी

ऐसा नहीं है कि मधुरिमा हमेशा से ही अमीर रही है. उस ने बचपन में बहुत स्ट्रगल किया है. बचपन में ही मधुरिमा के पिता की कैंसर से डैथ हो गई थी. मां ने छोटीमोटी नौकरी कर के किसी तरह मधुरिमा को पाला. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली मधुरिमा पढ़ाई में बहुत होशियार थी. वह अच्छी तरह जानती थी कि अगर अपने बदलने हैं तो मेहनत तो करनी ही होगी.

मधुरिमा ने अपने पूरे दिन का टाइम टेबल बनाया हुआ था. 10वीं क्लास से ही उस ने अपनी कैरियर प्लानिंग शुरू कर दी थी. वह जानती थी कि अपना भविष्य अच्छा बनाने के लिए अपने कैरियर पर फोकस करना होगा.

12वीं कक्षा पास करते ही मधुरिमा ने इंटर्नशिप स्टार्ट कर दी. सोसाइटी वाले उस के बारे में तरहतरह की बातें करने लगे. लेकिन वह नहीं रुकी. उस ने अपने सपनों की उड़ान जारी रखी और आज एक अच्छी पोस्ट पर है. इसी के जरीए उस ने अपनी लाइफ को बदला.

सपनों का साथ नहीं छोड़ा

मगर कभी वह समय भी था जब मधुरिमा ने त्योहारों पर पुराने कपड़े भी पहने थे लेकिन अब वह बड़ेबड़े ब्रैंड के कपड़े पहन रही है. ऐसा पौसिबल तब ही हो पाया जब उस ने अपने सपनों का साथ नहीं छोड़ा और खुद पर विश्वास रखा. यही वजह है कि आज मधुरिमा बिग ब्रैंड्स की बिग लाइफ ऐंजौय कर रही है.
मधुरिमा कहती है, ‘‘अगर आप को लाइफ में कुछ बड़ा करना है तो अपने आराम को मारना होगा और कड़ी मेहनत करनी होगी. आप का पैंशन और मेहनत ही आप के लाइफस्टाइल को बदलने की हिम्मत रखती है. पैसों के बिना कुछ नहीं है यह तो जग जाहिर है. ऐसे में आप को पैसे कमाने हैं तो बचपन से ही अपने कैरियर की प्लानिंग कर लें. लोगों की बातों में न आएं. सिर्फ अपने और अपने भविष्य के बारे में सोचें.

आप किसी के बहकावे में न आएं. धर्म के पाखंडी आप को धर्म के चक्कर में फंसाएंगे और खुद के साथ बांध कर रखना चाहेंगे लेकिन आप उन की बातों में फंसना मत. खासकर लड़कियां क्योंकि धर्म के पाखंडी उन्हें घरों में सिमटा कर रखना चाहते हैं.’’

मधुरिमा आगे कहती है, ‘‘आप अपना भविष्य बनाने में इतना भी मशगूल न हो जाओ कि अपने वर्तमान को ऐंजौय न कर पाओ. इसलिए कैरियर की चिंता करतेकरते लाइफ को भी ऐंजौय करते रहें.’’

महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत

सिर्फ मधुरिमा ही नहीं जिवामी की कोफाउंडर और सीईओ रिचा कर ने भी अपनी कड़ी मेहनत से क्व700 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी. उन की कंपनी जिवामी एक ऐसा औनलाइन प्लेटफौर्म है, जो महिलाओं के लिए लौंजरी बनाता है. रिचा कर ने लोगों व समाज की परवाह न करते हुए सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ है. उन की कहानी सभी युवाओं खासकर महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है.

हम ने अकसर देखा है कि लड़कियां लौंजरी खरीदते वक्त असहज महसूस करती हैं. रिचा ने लड़कियों की इस समस्या को सम?ा और उस पर काम किया. आज जिवामी अपनी सर्विस में 5 हजार से ज्यादा रेंज, 50 से ज्यादा ब्रैंड और 1 हजार से ज्यादा साइज शामिल कर चुका है. उन की वैबसाइट पर हर महीने 2.5 मिलियन विजिटर्स आते हैं. इस कंपनी में कई बड़ेबड़े इनवैस्टर्स ने फंड इनवैस्ट किया है.
जिवामी आज एक ऐसी कंपनी बन चुकी है जो लाखोंकरोड़ों महिलाओं को बैस्ट क्वालिटी प्रौडक्ट उपलब्ध कराती है. अपने हौसले और मेहनत के दम पर रिचा ने वह कर दिखाया जो कभी किसी ने सोचा भी नहीं था.

मेहनत का नतीजा

रिचा आज जिस मुकाम पर हैं वह उन की मेहनत का ही नतीजा है. अगर आज वे मर्सिडीज में घूम रही हैं तो इस के पीछे उन की दिनरात की मेहनत है. इसी तरह शुगर कौस्मैटिक्स की कोफाउंडर और सीईओ विनीता सिंह भी हैं, जिन्होंने अपनी क्व1 करोड़ की कौरपोरेट जौब को छोड़ कर अपना
बिजनैस करने की ठानी. इसी का नतीजा है कि वे आज करोड़ों की कंपनी की मालकिन हैं.

विनीता का मंत्र है, ‘‘अगर आप कुछ वर्ल्ड क्लास करना चाहते हैं तो आप को लगातार अपने काम में योगदान देना होगा और नतीजों को ले कर धैर्य रखना होगा.’’ अगर बात करें उन के बिजनैस की तो विनीता ने 2015 में शुगर कौस्मैटिक्स की शुरुआत की. आज शुगर कौस्मैटिक्स के 130 से ज्यादा
शहरों में 2,500 से ज्यादा आउटलैट हैं. उन की कंपनी की वैल्युएशन क्व750 करोड़ है.

2019-20 में उन की कंपनी का रेवेन्यु क्व105 करोड़ था. विनीता की कंपनी की कमाई एक दिन में क्व2 करोड़ है. mअगर आज विनिता इतनी स्टैबलिश हैं तो इस का कारण उन की मेहनत और कभी न हार मानने वाला दृढ़ निश्चय है. इसी के बलबूते आज कामयाबी उन के कदम चूम रही है. उन की मेहनत का ही नतीजा है कि आज शुगर कौस्मैटिक्स एक ऐसा ब्रैंड बन गया है जो हर महिला की जबान पर चढ़ा हुआ है.

हार नहीं मानी

मगर एक वक्त ऐसा भी आया जब विनीता ने क्व10 हजार महीना की नौकरी भी की थी. लेकिन उन्होंने खुद का बिजनैस करने के सपने को नहीं छोड़ा, हार नहीं मानी और आखिर में सफलता को अपने कदमों में ला कर ही दम लिया.

आजकल ब्यूटी इंडस्ट्री और स्टौक मार्केट

मार्केट में एक नया नाम छाया हुआ है. यह नाम और कोई नहीं नायका है. नायका की फाउंडर एक महिला है जो अखबपति महिलाओं की श्रेणी में शामिल है. इन का नाम है फाल्गुनी नायर. फाल्गुनी नायर ने विरासत में मिली किसी कंपनी को आगे नहीं बढ़ाया है बल्कि अपनी खुद की कंपनी खड़ी की और उसे आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया. फाल्गुनी चाहती तो कोटक महिंद्रा इनवैस्टमैंट बैंक की प्रबंध निर्देशक के पद
पर बनी रहती. लेकिन उन्होंने कोटक को छोड़ने का फैसला किया.

यहां से फाल्गुनी नायर ने अपनी लाइफ का दूसरा चैप्टर शुरू किया. फाल्गुनी ने 2012 में नायका की शुरुआत की. नायका एक ब्यूटी और पर्सनल केयर से जुड़ी कंपनी है. उन के 35 स्टोर हैं. इतना ही नहीं उन के नायका फैशन में एपेरल, एसैसरीज, फैशन से जुड़े प्रोडक्ट्स भी हैं. इस के अलावा 4 हजार से ज्यादा ब्यूटी, पर्सनल केयर और फैशन बै्रंड्स शामिल हैं.

सफलता की कहानी

नायका में फाल्गुनी 16 सौ से ज्यादा लोगों की टीम को लीड करती हैं. वर्तमान में फाल्गुनी नायर की नैटवर्थ 6.5 बिलियन डौलर से ज्यादा हो गई है. इसी के चलते फाल्गुनी नायर इंडिया की सब से अमीर सैल्फ मेड महिला बन गई हैं. उन की कंपनी नायका स्टौक ऐक्सचेंज में ऐंट्री करने वाली इंडिया की पहली महिला नेतृत्व वाली कंपनी बन चुकी है.

फिल्म ‘12वीं फेल’ की कहानी आईपीएस मनोज कुमार शर्मा की जिंदगी पर बेस्ड है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक लड़का अपने सपनों के पीछे भागताभागता एक दिन अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाता है. लेकिन उस का यह सफर आसान नहीं होता. अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए एक व्यक्ति के जीवन में क्या संघर्ष होता है यही इस फिल्म की कहानी है.

कहने का मतलब यह है कि अगर आप अपनी लाइफ में सफल होना चाहते हैं तो अपने आलस, अपने भाग्य को पीछे छोड़ कर अपनी मेहनत पर फोकस करें. अगर आप को लग्जरी लाइफ की चाह है तो आज ही से आप अपने कैरियर की प्लानिंग शुरू कर दें. याद रखें अगर आप के पास पैसा नहीं होगा तो आप अपनी जिंदगी में वह सब नहीं खरीद पाएंगे जो आप फिल्मी कलाकारों के पास देख कर सोचते हैं कि एक दिन आप के पास भी ये सभी चीजें होंगी.

आत्मनिर्भर बनें

वहीं अगर आप ने अपने स्कूली दिनों में ही अपने कैरियर की प्लानिंग नहीं की तो आप को पछताना पड़ेगा. आज ऐसा ही पछतावा विधि सिंह को है. आज वह एक हाउसमेकर है. हाउसमेकर होना कोई बुरा नहीं है लेकिन अकसर हाउसमेकर को अपने हस्बैंड से पैसों को ले कर बातें सुननी पड़ती हैं. उस का हस्बैंड आए दिन कहता है, ‘‘तुम कमा के नहीं लाती इसलिए ज्यादा मत बोला करो.’’

वहीं विधि की पड़ोसिन अनु बुटीक चलाती है. बुटीक से वह महीने में 30-35 हजार रुपए कमा लेती है. इस तरह वह भी घर कमाई करती है. उस का हस्बैंड मोहित भी पैसों को ले कर उसे ताने नहीं मारता. यही नहीं बुटीक की वजह से अनु में विधि से ज्यादा कौन्फिडैंस भी है.

अगर आप भी कौन्फिडैंस से भरी लग्जरी लाइफ जीना चाहते हैं तो छोटी उम्र से ही अपने कैरियर की प्लानिंग करें. अगर आप को भी गूची के बैग, जारा के टौप, लिवाइस, पैंटालून की जींस, ऐप्पल के मोबाइल फोन और बीएमडब्लू कार की चाह है तो अपने कैरियर पर काम करें. इस की शुरुआत अपने स्कूल के दिनों से ही करें. आप ऐसा कैरियर चुने जो ट्रैंड में हो और कैरियर टाइम पीरियड ज्यादा हो, साथ ही ऐक्स्ट्रा
एक्टिविटीज और ऐक्स्ट्रा कोर्स भी करें. ये आप के सीवी में प्लस पौइंट एड करते हैं.

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