सिचुएशनशिप है लेटैस्ट रिलेशनशिप ट्रैंड

कुछ साल पहले तक लड़केलड़की या पुरुषमहिला के बीच प्यार के माने अलग थे. रिश्ते की शुरुआत बात करने से होती थी. उस के बाद दोस्ती होना, एकदूसरे के लिए अट्रैक्शन और फीलिंग्स महसूस करना, फिर डेटिंग और प्यार में पड़ना बहुत सहज और इमोशनल घटना होती थी. इस के बाद दोनों शादी के सपने देखते थे और पूरी जिंदगी साथ गुजारने का वादा करते थे. तब अपने पेरैंट्स से मिलवाने का शगल शुरू होता था.

वह ऐसा वक्त था जब लोग प्यार के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे और रिश्ता भावनाओं से भरपूर होता था. मगर आज के डिजिटल युग में सबकुछ बदलने लगा है. तेज रफ्तार मौडर्न जैनरेशन को हर चीज बदलने और कुछ नया पिक करने की आदत है. आज जो मोबाइल बहुत उत्साह से खरीदा है एकडेढ़ साल के अंदर वही मोबाइल आंखों में खटकने लगता है. उसे किनारे कर नए मौडल का मोबाइल लेने की होड़ लग जाती है. इसी तरह उन्हें रिश्ते भी बदलने की लत लगती जा रही है. एक ही रिश्ते को जिंदगीभर कौन ढोए?

क्या पता कल कोई और खूबसूरत लड़की मिल जाए, कल कोई ज्यादा पसंद आ जाए, ज्यादा कूल, रिच और स्मार्ट मिल जाए. बस इसी चक्कर में वे रिश्तों में भी कमिटमैंट से बचने लगे है.

रोमांचकारी अनुभव

लोगों को सबकुछ तुरंत चाहिए और मन भर जाए तो तुरंत स्क्रौल करते हुए आगे बढ़ जाते हैं. डिजिटल युग की वजह से आज औप्शन बहुत हैं इसलिए एक के पीछे समय बरबाद करना नहीं चाहते. यही वजह है कि आज रिलेशनशिप ट्रैंड में काफी बदलाव आए हैं. आज युवाओं की रिलेशनशिप्स में कमिटमैंट की कमी दिखने लगी है. वे सिचुएशनशिप के कौंसैप्ट को फौलो करने लगे हैं.

2011 में जस्टिन टिम्बरलेक और मिला कुनिस की फिल्म ‘फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स’ आई और इस के साथ रिलेशनशिप में फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स का कौंसैप्ट युवाओं में लोकप्रिय बन गया था. उसी साल एश्टन कचर और नताली पोर्टमैन ने भी युवा मिलेनियल्स को नौनकमिटल रिलेशनशिप का स्वाद दिया यानी बिना ज्यादा तनाव लिए या इमोशनल हुए रोमांस या प्यार के संबंधों में आगे बढ़ना.

यह नया और रोमांचकारी अनुभव था. सार्वजनिक रूप से एक जोड़े की तरह न तो साथ होने का दिखावा करना, न कोई रोमांटिक डायलौग बोलना, न इमोशनली जुड़ना और न ही कुछ और लागलपेट. बस सीधे संबंध बनाना और जिंदगी ऐंजौय करना.

इस नौनकमिटल रिलेशनशिप का एक नया रूप हाल ही में सामने आया है. जेन जेड और मिलेनियल्स ने अपने रोमांटिक संबंधों को परिभाषित करने के लिए अन्य कई भ्रामक शब्दों के एक समूह के बीच हमें एक और नया शब्द दिया है और वह है सिचुएशनशिप. यह शब्द 2019 में खासा लोकप्रिय हुआ. रिएलिटी टीवी शो लव आइलैंड की प्रतिभागी अलाना मौरिसन ने अपनी डेटिंग हिस्ट्री बताने के लिए इस ‘सिचुएशनशिप’
शब्द का इस्तेमाल किया था.

एक नया ट्रैंड

यही वजह है कि युवा पीढ़ी के बीच रिलेशनशिप का एक नया ट्रैंड बहुत तेजी से पौपुलर हो रहा है और वह है सिचुएशनशिप जिस में रिलेशनशिप में की जाने वाली किसी भी चीज का कोई प्रैशर नहीं होता खासतौर से कमिटमैंट का. रिश्ते तभी तक टिकते हैं जब तक सब सही चल रहा हो.

आज पुरुषों से ले कर महिलाओं तक डेटिंग ऐप का इस्तेमाल कर रही हैं. लोग सिंगल रहना ज्यादा पसंद कर रहे हैं और अगर शादी के बाद आपस में बन नहीं रही तो एकदूसरे को ?ोलने के बजाय अलग होने में बिलकुल संकोच नहीं कर रहे हैं. मतलब सबकुछ एकदम क्लीयर कट.

ऐसे ही नए नए ट्रैंड्स में एक और टर्म बहुत तेजी से पौपुलर हो रही है और वह है सिचुएशनशिप.

क्या है सिचुएशनशिप

सिचुएशनशिप हिंदी के 2 शब्दों ‘सिचुएशन’ और ‘रिलेशनशिप’ को मिला कर बनाया गया है. सिचुएशनशिप में सबकुछ परिस्थिति पर निर्भर करता है. रोमांस और फिजिकल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 2 लोग साथ में आ सकते हैं. दोनों एकदूसरे के साथ घूमने जा सकते हैं, लंच या डिनर कर सकते हैं. इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया जाता है. कई बार लोग सिचुएशनशिप में एकदूसरे के साथ सिर्फ वक्त बिताने के लिए भी साथ आ सकते हैं. इस रिश्ते में साथी बिना कुछ ऐक्सप्लेन किए दूसरे साथी को छोड़ सकता है.

सरल शब्दों में कहें तो सिचुएशनशिप एक अपरिभाषित रिश्ता है जहां लोग अंतरंग होते हैं लेकिन एक व्यक्ति तक सीमित होने या उस के साथ रिश्ते में बंधना पसंद नहीं करते हैं. यानी सिचुएशनशिप एक ऐसी डेटिंग है जिस में 2 लोग बिना किसी वादे या कमिटमैंट के एकसाथ रहते हैं.

वे इस रिश्ते के बारे में न तो किसी को बताना चाहते और न ही इसे कोई नाम देना चाहते हैं.
2 लोग एकदूसरे की जरूरत को पूरा करने के लिए साथ में रहते हैं. सिचुएशनशिप में कुछ भी परिभाषित नहीं है. आप इसे गोइंग विथ फ्लो कह सकते हैं. मिजाज बदला और पार्टनर भी बदल गए. कुछ ऐसा ही फलसफा है इस रिश्ते का. कुछ मामलों में यह सही है तो कुछ मामलों में बहुत गलत.

क्यों पसंद कर रहे हैं सिचुएशनशिप में रहना

नई जैनरेशन किसी भी शर्त पर अपनी आजादी के साथ सम?ाता नहीं करना चाहती है. युवा अपने मुताबिक जीवन जीना चाहते हैं और खुद को स्वतंत्र रखना चाहते हैं. दरअसल, जब आप किसी रिश्ते में होते हैं तो अपने साथी की बातों पर ध्यान देना होता है जिस से उन की आजादी छिन जाती है. इस के साथ ही लव रिलेशनशिप एक जिम्मेदारी भरा रिश्ता होता है.

इसलिए जब कोई इंसान कमिटमैंट या जिम्मेदारी जैसी चीजों से बचना चाहता है तो वह सिचुएशनशिप में रहना पसंद करता है क्योंकि इस में साथी से कोई वादा या कमिटमैंट करने की आवश्यकता नहीं होती है. इस में 2 लोग केवल एकदूसरे के साथ लव रिलेशनशिप के फायदों को शेयर करने के लिए साथ होते हैं.
इस के अलावा जब किसी इंसान को अपने पहले प्यार में धोखा या सफलता नहीं मिलती तो वह मात्र ऐंजौयमैंट के लिए सिचुएशनशिप में आना पसंद करता है.

सिचुएशनशिप और रिलेशनशिप में क्या अंतर

जब 2 लोगों के बीच गहरा प्यार होता है तो वे रिलेशनशिप में आते हैं यानी इस में 2 लोगों के रिश्ते को प्यार का नाम दिया जाता है. जो लोग इस रिश्ते में होते हैं वे एकदूसरे को अपने दोस्तों और परिवार वालों से मिलाना पसंद करते हैं. वे एकदूसरे को गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड के रूप में मिलवाते हैं. इस में दोनों लोगों के बीच प्यार होता है और वे फ्यूचर के बारे में बात करना पसंद करते हैं.

वे एकदूसरे के साथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं. जब 2 लोग रिलेशनशिप में होते हैं तो उन का रिश्ता शादी तक पहुंच सकता है. इस में दोनों को एकदूसरे के सवालों के जवाब देने होते हैं. एकदूसरे की जिम्मेदारियां उठानी पड़ती है, एकदूसरे की जरूरतों का खयाल रखना होता है.

वहीं आज के डिजिटल युग में ‘सिचुएशनशिप’ वर्ड काफी ट्रैंड कर रहा है. इस का मतलब है कि 2 लोग किसी सिचुएशन में एकसाथ रहते हैं.  इस में 2 अनजान लोग भी एकदूसरे के साथ जुड़ सकते हैं. सिचुएशनशिप की सब से बड़ी विभिन्नता है कि इस में कोई वादा नहीं होती है. सिचुएशनशिप में दोनों ही पार्टनर पर्सनल सवालों से मुक्त रहते हैं.

इस रिश्ते में दोनों लोग बिना किसी शर्त के एकसाथ रहते हैं और अच्छा समय बिताते हैं. रिलेशनशिप में 2 लोग प्यार की वजह से एकदूसरे के साथ जुड़े होते हैं, जबकि सिचुएशनशिप में 2 लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जुड़े होते हैं. सिचुएशनशिप में दोनों भविष्य के बारे में बातचीत से बचते हैं. लंबे समय के लिए योजनाओं, वादों या सपनों की चर्चा नहीं करते क्योंकि वे उस रिश्ते को लंबे समय तक निभाने की नहीं सोचते. सिचुएशनशिप में भावनात्मक संबंध और इंटिमेसी हो सकती है लेकिन यह प्यार के नौर्मल रिश्तों में अकसर पाई जाने वाली गहराई के स्तर तक नहीं पहुंच सकती है.

सिचुएशनशिप के फायदे

फ्लैक्सिबिलिटी: सिचुएशनशिप में फ्लैक्सिबिलिटी होती है मतलब कोई वादा, दिखावा नहीं करना पड़ता और न ही एकदूसरे से सवालजवाब का चक्कर होता है. इस माने में यह अच्छा है. आप अपने हिसाब से रिश्ते को मोल्ड कर सकते हैं. कमिटमैंट के दबाव के बिना कनैक्शन तलाशने की स्वतंत्रता होती है.
कम दबाव: सिचुएशनशिप में आप के ऊपर कोई बर्डन नहीं होता कि ऐसा ही करना पड़ेगा या रिश्ता निभाना ही पड़ेगा यानी इस में किसी के ऊपर किसी भी तरह का प्रैशर नहीं होता. आप अपनी मरजी और खुशी से इस रिश्ते में होते हैं. सम?ा न आए तो साथी को बिना कुछ ऐक्सप्लेन किए छोड़ भी सकते हैं. यह उन व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है जिन के जीवन में अन्य प्राथमिकताएं होती हैं. जो अपने
कैरियर या लाइफस्टाइल से सम?ाता नहीं करना चाहते या किसी और की वजह से जिंदगी का मकसद या जीने का तरीका नहीं बदलते.

नुकसान: मगर सच यह भी है कि भले ही साथ रहने का प्रैशर और जिम्मेदारियों के बो?ा से दूर सिचुएशनशिप एक बहुत सुखद स्थिति लग सकती है लेकिन यह बहुत कठिन रास्ता होता है जिस पर अगर सावधानी से न चला जाए तो जख्मी होने का खतरा रहता है. मुश्किल तब आती है जब इस में शामिल 2 लोगों में से किसी एक की भावनाएं गंभीर होने लगें और वह अपनेआप से कमिटमैंट चाहने लगे.

बानो के न्याय में शामिल हुई तीन महिलाएं

एक महिला सम्मान की हकदार है, भले ही उसे समाज में कितना भी ऊंचा या नीचा क्यों न माना जाए, चाहे वह किसी भी धर्म को मानती हो या किसी भी पंथ को मानती हो . क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों में दोषियों की सजा कम करके और उन्हें आजादी देकर सजा माफ की जा सकती है?’

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात राज्य द्वारा अगस्त 2022 में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और दो महीने के शिशु सहित उसके परिवार की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 लोगों को दी गई सामूहिक छूट के आदेश को रद्द कर दिया जिन्हे गुजरात सरकार द्वारा “अच्छे व्यवहार” के आधार पर रिहा कर दिया गया था.

सुश्री बानो, जो उस समय गर्भवती थीं, और उनके परिवार के साथ जो हुआ उसे” सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित वीभत्स और शैतानी अपराध” बताते हुए न्यायमूर्तिबी.वी. नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को तीखी फटकार लगाई . सोमवार का फैसला केंद्र के लिए एक झटका साबित हुआ जिसने पुरुषों की समयपूर्व रिहाई को मंजूरी दे दी थी .

यथास्थिति का आदेश देते हुए, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने तर्क दिया कि दोषियों को फिर से छूट का आवेदन करने के लिए भी पहले उन्हें जेल में वापस आना होगा . साथ ही अदालत ने कहा कि दोषियों को सजा में छूट देने का अधिकार गुजरात के पास नहीं था और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 432( 7)( बी) के तहत गुजरात “उपयुक्त सरकार” नहीं थी, जिस में सजा को निलंबित करने और माफ करने की शक्ति का विषय शामिल था .

यह मामला अगस्त 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दिया गया था . यह देखते हुए कि सुश्री बानो को एक अनाथ का जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया था . ग्रेटर मुंबई में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी .

इसलिए, अदालत ने यह स्पष्ट किया की वह महाराष्ट्र राज्य था, जहां 11 लोगों पर मुकदमा चलाया गया और सजा सुनाई गई थी न कि गुजरात, जहां अपराध हुआ था या दोषियों को कैद किया गया था, जो धारा 432 के तहत छूट देने के लिए” उचित सरकार” थी .

इस केस को देखते हुए महिलाओं के मन में सर्वप्रथम यह सवाल ज़रूर होगा की केसे अकेली बिल्किस ने कोर्ट में यह लड़ाई लड़ी होगी? तो जान लीजिए की बिलकिस का साथ के लिए आगे आयीं थी यह तीन महिलाएं-

लखनऊ विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा लखनऊ के लिए उड़ान भरने के लिए दिल्ली हवाई अड्डे पर थीं, तभी उन्हें एक मित्र का फोन आया और उन्होंने प्रोफेसर से पूछा कि क्या वह जनहित याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता बनेंगी . दोषियों को हत्या का भी दोषी पाया गया था. वर्मा तुरंत सहमत हो गए और सह- याचिकाकर्ता बनने के लिए अगले दिन कूरियर के माध्यम से उन्होंने अपना आधार कार्ड भेजा .

इस समय तक, सीपीआई( एम) की सुभाषिनी अली- जो 2002 में सामूहिक बलात्कार और हत्याओं के दो दिन बाद गुजरात के एक राहत शिविर में बिलकिस बानो से मिली थीं, पहले ही फैसला कर चुकी थीं की वह इस लड़ाई में बिलिस के लिए याचिकाकर्ता बनेंगी .

अब, टीम तीसरे याचिकाकर्ता की तलाश कर रही थी  और उसे वह पत्रकार रेवती लौल के रूप में मिली . रेवती लौल गुजरात में एनडीटीवी के पत्रकार थीं और घटना घटने के बाद उन्होंने बिलकिस से मुलाकात की थी. उन्होंने’ एनाटॉमी ऑफ हेट’ नाम से एक किताब भी लिखी है .

इस तरह बिलकिस बानो के न्याय की भागीदार हुईं तीन महिलाएं . जिन्होंने बानो की यह लड़ाई जारी रखी . इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस के पक्ष मे फैसला लेकर और उसे न्याय दिलाकर कई महिलाओं का न्यायालय के न्याय पर खोया हुआ विश्वास बहाल किया है.

Saras Salil Cine Award: दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ को इस फिल्म के लिए मिला बेस्ट एक्टर का अवार्ड

‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में इस बार भारी संख्या में आवेदन आए थे. लेकिन जूरी द्वारा फिल्मों में ऐक्टिंग, ऐडिटिंग, संगीत, मारधाड़, कथापटकथा इत्यादि के आधार पर जिन लोगों का चयन किया गया, उस में सब से ऊपर नाम दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे का रहा, क्योंकि इन दोनों सितारों को ऐक्टिंग की ओवरआल श्रेणी में बैस्ट ऐक्टर का अवार्ड दिया गया.

दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ को जहां उन की फिल्म ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ में की गई ऐक्टिंग के लिए बैस्ट ऐक्टर का अवार्ड दिया गया, वहीं आम्रपाली दुबे को फिल्म ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट ऐक्ट्रैस का अवार्ड दिया गया. रजनीश मिश्र को ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ के लिए बैस्ट डायरैक्टर और बैस्ट म्यूजिक डायरैक्टर का अवार्ड मिला.

‘5वें सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में सब से ज्यादा अवार्ड निशांत उज्ज्वल को मिला. उन्हें विभिन्न कैटेगिरी में कुल 3 अवार्ड मिले, जिस में ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ को बैस्ट फिल्म का, ‘विवाह 3’ के लिए बैस्ट संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने वाली फिल्म और बैस्ट डिस्ट्रीब्यूटर के अवार्ड से नवाजा गया. ‘माई प्राइड औफ भोजपुरी’ के लिए ही जनार्दन पांडेय ‘बबलू पंडित’ को बैस्ट लाइन प्रोड्यूसर, प्यारेलाल यादव ‘कविजी’ को बैस्ट गीतकार, प्रियंका सिंह को बैस्ट सिंगर, दिलीप यादव को बैस्ट ऐक्शन, कानू मुखर्जी को बैस्ट कोरियोग्राफर, ज्योति देशपांडेय को बैस्ट फिल्म निर्माता का अवार्ड दिया गया. ‘दाग एगो लांछन’ फिल्म के लिए जितेंद्र सिंह ‘जीतू’ को बैस्ट ऐडिटर, प्रेमांशु सिंह को बैस्ट डायरैक्टर भोजपुरी फैमिली वैल्यूज मूवी, मनोज कुशवाहा को ‘दाग एगो लांछन’ के लिए बैस्ट स्टोरी, विक्रांत सिंह को बैस्ट सैकंड लीड ‘दाग एगो लांछन’ के लिए प्रदान किया गया. ‘विवाह 3’ के आधार पर महेंद्र सेरला बैस्ट डीओपी रहे, वहीं ऐक्ट्रैस पाखी हेगड़े को महिला प्रधान फिल्मों में विशिष्ट योगदान के लिए अवार्ड दिया गया. saras salil award

सिनेमाघरों में लंबे समय तक चलने वाली भोजपुरी फिल्म ‘हीरा बाबू एमबीबीएस’ के हीरो विमल पांडेय को बैस्ट क्रिटिक ऐक्टर का अवार्ड प्रदान किया गया. इसी फिल्म से अखिलेश पांडेय को बैस्ट डायरैक्टर क्रिटिक अवार्ड से नवाजा गया.

इन लोगों को भी ओवरआल कैटेगिरी में मिला अवार्ड

ओवरआल कैटेगिरी में जिन्हें अवार्ड मिले, उन में संजय पांडेय को ‘संघर्ष 2’ में किए गए अभिनय के लिए बैस्ट विलेन का अवार्ड दिया गया, जबकि ‘सिंह साहब द राइजिंग’ के लिए बैस्ट ऐक्टर इन सपोर्टिंग रोल के लिए सुशील सिंह को अवार्ड प्रदान किया गया. विजय श्रीवस्तव को ‘डार्लिंग’ फिल्म के लिए बैस्ट आर्ट डायरैक्टर का अवार्ड मिला.

इस के अलावा राहुल शर्मा को फिल्म ‘डार्लिंग’ के लिए बैस्ट डैब्यू ऐक्टर, रंजन सिन्हा को बैस्ट पीआरओ, आनंद त्रिपाठी को बैस्ट फिल्म पत्रकार, सीपी भट्ट को फिल्म ‘पड़ोसन’ के लिए बैस्ट कौमेडियन, अनारा गुप्ता को फिल्म ‘सनक’ के लिए बैस्ट आइटम नंबर का अवार्ड, रवि तिवारी को फिल्म ‘आसरा’ के लिए बैस्ट असिस्टैंट डायरैक्टर का अवार्ड दिया गया. इस के अलावा फिल्म ‘दादू आई लव यू’ के लिए आर्यन बाबू को बैस्ट चाइल्ड ऐक्टर मेल, ‘अफसर बिटिया’ फिल्म के लिए आयुषी मिश्रा बैस्ट चाइल्ड ऐक्टर फीमेल, प्रमिला घोष को बैस्ट स्टेज परफौर्मेंस, विजय यादव को बैस्ट फोक डांस ‘फरूआही’ के लिए प्रदान किया गया.

राकेश त्रिपाठी और कन्हैया विश्वकर्मा को ‘अफसर बिटिया’ के लिए बैस्ट डैब्यू डायरैक्टर का अवार्ड दिया गया, जबकि ‘आसरा’ फिल्म से बैस्ट डैब्यू ऐक्ट्रैस का अवार्ड सपना चैहान को, हितेश्वर को बैस्ट भोजपुरी रैपर का अवार्ड प्रदान किया गया.

सामंजस्य: क्या रमोला औफिस और घर में सामंजस्य बिठा पाई?

रमोला के हाथ जल्दीजल्दी काम निबटा रहे थे, पर नजरें रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ ही थीं. चाय के घूंट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रैड लगाने लगी.

‘‘श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी,’’ उस ने बेटे को आवाज दी.

‘‘मम्मा, मेरे मोजे नहीं मिल रहे.’’

मोजे खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो रही थी. अत: रमोला उस के कमरे की तरफ भागी. मोजे दे कर उस का बस्ता चैक किया और फिर पानी की बोतल भरने लगी.

‘‘चलो बेटा दूध, कौर्नफ्लैक्स जल्दी खत्म करो. यह केला भी खाना है.’’

‘‘मम्मा, आज लंचबौक्स में क्या दिया है?’’

श्रेयांश के इस सवाल से वह घबराती थी. अत: धीरे से बोली, ‘‘सैंडविच.’’

‘‘उफ, आप ने कल भी यही दिया था. मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदलबदल कर चीजें देती हैं लंचबौक्स में,’’ श्रेयांश पैर पटकते हुए बोला.

‘‘मालती दीदी 2 दिनों से नहीं आ रही है. जिस दिन वह आ जाएगी मैं अपने राजा बेटे को रोज नईनई चीजें दिया करूंगी उस से बनवा कर. अब मान जा बेटा. अच्छा ये लो रुपए कैंटीन में मनपसंद का कुछ खा लेना.’’

रेहान की गृहिणी मां से मात खाने से बचने का अब यही एक उपाय शेष था. सोचा तो था कि रात में ही कुछ नया सोच श्रेयांश के लंचबौक्स की तैयारी कर के सोएगी पर कल दफ्तर से लौटतेलौटते इतनी देर हो गई कि खाना बाहर से ही पैक करा कर लेती आई.

खिड़की के बाहर देखा. गेट पर कोई आहट नहीं थी. घड़ी देखी 7 बज रहे थे. स्कूल बस आती ही होगी. बेटे को पुचकारते हुए जल्दीजल्दी सीढि़यां उतरने लगी.

ये बाइयां भी अपनी अहमियत खूब समझती हैं. अत: मनमानी करने से बाज नहीं आती हैं. मालती पिछले 3 सालों से उस के यहां काम कर रही थी. सुबह 6 बजे ही हाजिर हो जाती और फिर रमोला के जाने के वक्त 9 बजे तक लगभग सारे काम निबटा लेती. वह खाना भी काफी अच्छा बनाती थी. उसी की बदौलत लंचबौक्स में रोज नएनए स्वादिष्ठ व्यंजन रहते थे. शाम 6 बजे उस के दफ्तर से लौटते वह फिर हाजिर हो जाती. चाय के साथ मालती कुछ स्नैक्स भी जरूर थमाती.

मालती की बदौलत ही रमोला घर के कामों से बेफिक्र रहती थी और दफ्तर में अच्छा काम कर पाती. नतीजा 3 सालों में 2 प्रमोशन. अब तो वह रोहन से दोगुनी सैलरी पाती थी. परंतु अब मालती के न होने पर काम के बोझ तले उस का दम निकले जा रहा था. बढ़ती सैलरी अपने साथ बेहिसाब जिम्मेदारियां ले कर आ गई थी. हां, साथ ही साथ घर में सुखसुविधाएं भी बढ़ गई थीं. तभी रोहन और रमोला इस पौश इलाके में इतने बड़े फ्लैट को खरीद पाने में सक्षम हुए थे.

मालती के रहते उसे कभी किसी और नौकर या दूसरी कामवाली की जरूरत महसूस नहीं हुई थी. लगभग उसी की उम्र की औरत होगी मालती और काम बिलकुल उसी लगन से करती जैसे वह अपनी कंपनी के लिए करती थी. इसी से रमोला हमेशा उस का खास ध्यान रखती और घर के सदस्य जैसा ही सम्मान देती. परंतु इधर कुछ महीनों से मालती का रवैया कुछ बदलता जा रहा था. सुबह अकसर देर से आती या न भी आती. बिना बताए 2-2, 3-3 दिनों तक गायब रहती. अचानक उस के न आने से रमोला परेशान हो जाती. पर समयाभाव के चलते रमोला ज्यादा इस मामले में पड़ नहीं रही थी. मालती की गैरमौजूदगी में किसी तरह काम हो ही जाता और फिर जब वह आती तो सब संभाल लेती.

श्रेयांश को बस में बैठा रमोला तेजी से सीढि़यां चढ़ते हुए घर में घुसी. बिखरी हुई बैठक को अनदेखा कर वह एक बार फिर रसोई में घुस गई. वह कम से कम 2 सब्जियां बना लेना चाहती थी, क्योंकि आज रात उसे लौटने में फिर देर जो होनी थी.

हाथ भले छुरी से सब्जी काट रहे थे पर उस का ध्यान आज दफ्तर में होने वाली मीटिंग पर अटका था. देर रात एक विदेशी क्लाइंट के साथ एक बड़ी डील के लिए वीडियो कौन्फ्रैंसिंग भी करनी थी. उस के पहले मीटिंग में सारी बातें तय करनी थीं. आधेपौने घंटे में उस ने काफी कुछ बना लिया. अब रोहन को उठाना जरूरी था वरना उसे भी देर हो जाएगी.

रोहन कभी घर के कामों में उस का हाथ नहीं बंटाता था उलटे हजार नखरे करता. कल रात भी वह बड़ी देर से आया था. उलझ कर वक्त जाया न हो, इसलिए रमोला ने ज्यादा सवालजवाब नहीं किए. जबकि रोहन का बैंक 6 बजे तक बंद हो जाता था. वह महसूस कर रही थी कि इन दिनों रोहन के खर्चों में बेहिसाब वृद्धि हो रही है. शौक भी उस के महंगे हो गए थे. आएदिन महंगे होटलों की पार्टियां रमोला को नहीं भातीं. फिर सोचती आखिर कमा किस लिए रहे हैं. घर और दोनों गाडि़यों की मासिक किश्तों और उस पर बढ़ रहे ब्याज के विषय में सोचती तो उस के काम की गति बढ़ जाती.

‘‘आज तुम श्रेयांश को मम्मी के घर से लाने ही नहीं गए, बेचारा इंतजार करता वहीं सो गया था. तुम तो जानते ही हो मम्मी के हार्ट का औपरेशन हुआ है. वह श्रेयांश की देखभाल करने में असमर्थ हैं,’’ रमोला ने बेहद नर्म लहजे में कहा पर मन तो हो रहा था कि पूछे इस बार क्रैडिट कार्ड का बिल इतना अधिक क्यों आया?

मगर रोहन फट पड़ा, ‘‘हां मैं तो बेकार बैठा हूं. मैडम खुद देर रात तक बाहर गुलछर्रे उड़ा कर घर आएं. मैं जल्दी घर आ कर करूंगा क्या? बच्चे की देखभाल?’’

रोहन के इस जवाब से रमोला हैरान रह गई. उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. सिर झुकाए लैपटौप पर काम करती रही. क्लाइंट से मीटिंग  के पहले यह प्रेजैंटेशन तैयार कर उसे कल अपने मातहतों को दिखानी जरूरी थी. कनखियों से उस ने देखा रोहन सीधे बिस्तर पर ही पसर गया. खून का घूंट पी वह लैपटौप पर तेजी से उंगलियां चलाने लगी.

चाय बन चुकी थी पर रोहन अभी तक उठा नहीं था. अपनी चाय पी वह दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी. अपने बिखरे पेपर्स समेटे, लैपटौप बंद किया. साथसाथ वह नाश्ता भी करती जा रही थी. हलकी गुलाबी फौर्मल शर्ट के साथ किस रंग की पतलून पहने वह सोच रही थी. आज खास दिन जो था.

तभी रोहन की खटरपटर सुनाई देने लगी. लगता है जाग गया है. यह सोच रमोला उस की चाय वहीं देने चली गई.

‘‘गुड मौर्निंग डार्लिंग… अब जल्दी चाय पी लो. मैं बस निकलने वाली हूं,’’ परदे को सरकाते हुए रमोला ने कहा.

‘‘क्या यार जब देखो हड़बड़ी में ही रहती हो. कभी मेरे पास भी बैठ जाया करो,’’ रोहन लेटेलेटे ही उस के हाथ को खींचने लगा.

‘‘मुझे चाय नहीं पीनी, मुझे तो रात से ही भूख लगी है. पहले मैं खाऊंगा,’’ कहते हुए रोहन ने उसे बिस्तर पर खींच लिया.

‘‘रोहन, अब ज्यादा रोमांटिक न बनो, मेरी कमीज पर सलवटें पड़ जाएंगी. छोड़ो मुझे. नाश्ता और लंचबौक्स मैं ने तैयार कर दिया है. खा लेना, 9 बजने को हैं. तुम भी तैयार हो जाओ,’’ कह रमोला हाथ छुड़ा चल दी.

‘‘रोहन, दरवाजा बंद कर लो मैं निकल रही हूं,’’ रमोला ने कहा और फिर सीढि़यां उतर गैराज से कार निकाल दफ्तर चल दी. रमोला मन ही मन मीटिंग का प्लान बनाती जा रही थी.

‘उमेश को वह वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के वक्त अपने साथ रखेगी. बंदा स्मार्ट है और उसे इस प्रोजैक्ट का पूरा ज्ञान भी है. जितेश को मार्केटिंग डिटेल्स लाने को कहा ही है. एक बार सब को अपना प्रेजैंटेशन दिखा, उन के विचार जान ले तो फिर फाइनल प्रेजैंटेशन रचना तैयार कर ही लेगी. सब सहीसही सोचे अनुसार हो जाए तो एक प्रमोशन और पक्की,’ यह सोचते रमोला के अधरों पर मुसकान फैल गई.

दफ्तर के गेट के पास पहुंच उसे ध्यान आया कि लैपटौप, लंचबौक्स सहित जरूरी कागजात वह सब घर भूल आई है. आज इतनी दौड़भाग थी सुबह से कि निकलते वक्त तक मन थक चुका था. रमोला ने कार को घर की तरफ घुमा दिया. कार को सड़क पर ही छोड़ वह तेजी से सीढि़यां चढ़ने लगी. दरवाजा अंदर से बंद न था. हलकी थपकी से ही खुल गया. बैठक में कदम रखते ही उसे जोरजोर से हंसने की आवाजें सुनाई दीं.

‘‘ओह मीतू रानी तुम ने आज मन खुश कर दिया… सारी भूख मिट गई… मीतू यू आर ग्रेट,’’ रोहन की आवाज थी.

‘‘साहबजी आप भी न…’’

‘तो मालती आ चुकी है… रोहन उसे ही मीतू बोल रहा है. पर इस तरह…’ सोच रमोला का सिर मानो घूमने लगा, पैर जड़ हो गए.

जबान तालू से चिपक गई. उस की बचीखुची होश की हवा चूडि़यों की खनखनाहट और रोहन के ठहाकों ने निकाल दी. वह उलटे पांव लौट गई. बिना लैपटौप लिए ही जा कर कार में बैठ गई. उस के तो पांव तले से जमीन खिसक गई थी.

‘मेरी पीठ पीछे ऐसा कब से चल रहा है… मुझे तो कुछ पता ही नहीं चला. रोहन मेरे साथ ऐसी बेवफाई करेगा, मैं सोच भी नहीं सकती. घर संभालतेसंभालते महरी उस के पति को भी संभालने लगी,’ मालती की जुरअत पर वह तड़प उठी कि कब रोहन उस से इतनी दूर हो गया. वह तो हमेशा हाथ बढ़ाता था. मैं ही छिटक देती थी. उस के प्यारइजहार की भाषा को मैं ने खूब अनदेखा किया.

‘रोहन को इस गुनाह के रास्ते पर धकेलने वाली मैं ही हूं. साथसाथ तो चल रहे थे हम… अचानक यह क्या हो गया. शायद साथ नहीं, मैं कुछ ज्यादा तेज चल रही थी, पर मैं तो घर, पति और बच्चे के लिए ही काम कर रही हूं, उन की जरूरतें और शौक पूरा हो इस के लिए दिनरात घरबाहर मेहनत करती हूं. क्या रोहन का कोई फर्ज नहीं? वह अपनी ऐयाशी के लिए बेवफाई करने की छूट रखता है?’ विचारों की अंधड़ में घिरी कार चला वह किधर जा रही थी, उसे होश नहीं था. बगल की सीट पर रखे मोबाइल पर दफ्तर से लगातार फोन आ रहे थे. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की बेहद उच्च पदासीन रमोला अचानक खुद को हारी हुई, लुटीपिटी, असहाय महसूस करने लगी. उसे सब कुछ बेमानी लगने लगा कि कैसी तरक्की के पीछे वह भागी जा रही है. उसे होश ही न रहा कि वह कार चला रही है.

जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. सिरहाने रोहन और श्रेयांश बैठे थे. डाक्टर बता रहे थे कि अचानक रक्तचाप काफी बढ़ जाने से ये बेहोश हो गई थीं. कुछ दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी हो गई. उमेश और जितेश दफ्तर से उस से मिलने आए थे. उन की बातों से लगा कि उस की अनुपस्थिति में दफ्तर में काफी मुश्किलें आ रही हैं. रमोला ने उन्हें आश्वासन दिया कि बेहतर महसूस करते ही वह दफ्तर आने लगेगी, तब तक घर से स्काइप के जरीए वर्क ऐट होम करेगी.

रोहन को देख उसे घृणा हो जाती. उस दिन की हंसी और चूडि़यों की खनखनाहट की गूंज उसे बेचैन किए रहती. रोहन को छोड़ने यानी तलाक की बात भी उस के दिमाग में आ रही थी. पर फिर मासूम श्रेयांश का चेहरा सामने आ जाता कि क्यों उस का जीवन बरबाद किया जाए. उस के उच्च शिक्षित होने का क्या फायदा यदि वह अपनी जिंदगी की उलझनों को न सुलझा सके.

‘हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा’ एक कवि की ये पंक्ति उसे हमेशा उत्साहित करती थी, विपरीत परिस्थितियों में शांतिपूर्वक जूझने के लिए प्रेरणा देती थी. आज भी वह हार नहीं मानेगी और अपने घर को टूटने से बचा लेगी, ऐसा उसे विश्वास था.

रमोला से उस की कालेज की एक सहेली मिलने आई. वह यूएस में रहती थी. बातोंबातों में उस ने बताया कि वहां तो नौकर, दाई मिलते नहीं. अत: सारा काम पतिपत्नी मिल कर करते हैं. रमोला को उस की बात जंच गई कि अपने घर का काम करने में शर्म कैसी.

उस के जाने के बाद कुछ सोचते हुए रमोला ने रोहन से कहा, ‘‘रोहन मैं सोचती हूं कि मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूं. घर पर रह कर तुम्हारी तथा श्रेयांश की देखभाल करूं. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी कि मैं बहुत व्यस्त रहती हूं, घर पर ध्यान नहीं देती हूं.’’

यह सुनना था कि रोहन मानो हड़बड़ा गया. उसे अपनी औकात का पल भर में भान हो गया. श्रेयांश के महंगे स्कूल की फीस, फ्लैट और गाडि़यों की मोटी किस्त ये सब तो उस के बूते पूरा होने से रहा. कुछ ही पलों में उसे अपनी सारी ऐयाशियां याद आ गईं.

‘‘नहीं डियर, नौकरी छोड़ने की बात क्यों कर रही हो? मैं हूं न,’’ हकलाते हुए रोहन ने कहा.

‘‘ताकि तुम अपनी मीतू के साथ गुलछर्रे उड़ा सको… नहीं मुझे अब घर पर रहना है और किसी महरी को नहीं रखना है,’’ रमोला ने सख्त लहजे में तंज कसा.

रोहन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह घुटनों के बल वहीं जमीन पर बैठ गया और रमोला से माफी मांगने लगा. भारतीय नारी की यही खासीयत है, चाहे वह कम पढ़ीलिखी हो या ज्यादा घर हमेशा बचाए रखना चाहती है. रमोला ने भी रोहन को एक मौका और दिया वरना दूसरे रास्ते तो हमेशा खुले हैं उस के पास.

रमोला ठीक हो दफ्तर जाने लगी. गाड़ी के पहियों की तरह दोनों अपनी गृहस्थी की गाड़ी आगे खींचने लगे. अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए रमोला ने भी तय कर लिया था कि वह घर और दफ्तर दोनों में सामंजस्य बैठा कर चलेगी, भले ही एकाध तरक्की कम हो. नौकरी छोड़ने की उस की धमकी के बाद से रोहन अब घर के कामों में उस का हाथ बंटाने लगा था. इन सब बदलावों के बाद श्रेयांश पहले से ज्यादा खुश रहने लगा था, क्योंकि लंचबौक्स उस की मम्मी खुद तैयार करती और रोज नईनई डिश देती.

Winter Special: सर्दियों में चाहती हैं निखरी त्वचा, तो चेहरे पर लगाएं गुड़ से बने ये फेस पैक

Winter Special: सर्दियों में गुड़ खाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. यह पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है, इसके अलावा गुड़ खाने से इम्युनिटी भी बूस्ट होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं स्किन के लिए भी गुड़ बहुत ही लाभकारी  है. आप इससे तरह-तरह के फेस पैक बना सकते हैं. जिनके इस्तेमाल से झुर्रियों से लेकर दाग-धब्बों से छुटकारा पा सकते हैं. आइए जानते हैं, घर पर गुड़ से फेस पैक कैसे बनाएं.

गुड़, शहद और नींबू का पैक

इस फेस पैक को बनाने के लिए एक छोटे बाउल में 1 चम्मच पिसा हुआ गुड़, 1 चम्मच शहद और नींबू का रस मिक्स करें. इन सभी सामग्रियों का स्मूद पेस्ट तैयार कर लें. अब इस पैक को चेहरे पर लगाएं, करीब 15-20 मिनट बाद गुनगुने पानी से धो लें. आप इस फेस पैक का इस्तेमाल हफ्ते में एक-दो बार कर सकते हैं, इससे आपकी त्वचा मुलायम और चमकदार होगी.

गुड़, टमाटर और हल्दी पाउडर

आप इस फेस पैक के इस्तेमाल से मुंहासे और दाग-धब्बों से राहत पा सकते है. इस फेस पैक को बनाने के लिए एक बाउल में हल्दी पाउडर, टमाटर का रस और गुड़ का पाउडर मिक्स करें. इसमें नींबू का रस डालें और इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं, लगभग 10-15 मिनट बाद पानी से धो लें. ग्लोइंग स्किन के लिए आप हफ्ते में 2-3 बार इस पैक का इस्तेमाल जरूर करें.

गुड़, अंगूर और चायपती का फेस पैक

यह फेस पैक एक एंटी एजिंग के रूप में काम करता है. इस पैक को बनाने के लिए एक बाउल में अंगूर का गूदा लें, इसमें काली चाय, एक चुटकी हल्दी और गुड़ पाउडर मिक्स करें. इस पैक को चेहरे पर लगाएं, सूखने के बाद गुनगुने पानी से धो लें.

गुड़ और गुलाब जल

चेहरे पर मौजूद फाइन लाइन्स को कम करना चाहते हैं, तो इस फेस पैक का जरूर इस्तेमाल करें, इसे बनाने के लिए एक छोटे बाउल में गुड़ का पाउडर लें, इसमें गुलाब जल मिक्स कर पेस्ट बना लें, इस पैक को हफ्ते में एक-दो बार लगाएं. आपको इससे फर्क नजर आएगा.

खुश क्यों नहीं आप्रवासी भारतीय

‘वि देश’ शब्द पढ़ते ही आंखों के आगे सुख, आराम, अमीरी, आजादी और खुलेपन आदि को चित्र उभर आते हैं. इस आकर्षक शब्द के मोहजाल में विश्व का कोई एक देश नहीं बल्कि समूचा विश्व और वहां के हर वर्ग के लोग आकर्षित हैं. दूसरा देश कैसा है, वहां की चीजें कैसी हैं, वहां का वातावरण कैसा है, उस देश का इतिहास क्या रहा है और उस ने कितनी आधुनिक प्रगति की है आदि बातों को जानने, देखने के
लिए इनसान अपने मन में एक खिंचाव सा महसूस करता है.

नरेंद्र मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री जास्टिन ट्रूडो का खालिस्तान समर्थक कनाडा नागरिकों को ले कर पैदा हुआ विवाद वहां बसे 14-15 लाख भारतीय मूल के लोगों के लिए एक खतरा है क्योंकि वे अब न तो अपने रिश्तेदारों को बुला पा रहे हैं न भारत जाने का रिस्क ले रहे हैं.

अक्तूबर, 2023 में दोनों देशों ने वीजा देना बंद कर दिया था. अपनों से न मिल पाना दूसरे देश में रह रहे लोगों के लिए एक मानसिक जेल बन जाता है. जीवनसाथी के रूप में विदेशी औरत और पुरुष का आकर्षण कोई आधुनिक समय की देन नहीं है बल्कि यह आदिकाल में भी था. तभी तो किस्सेकहानियों में कहा जाता है कि अमुक देश के राजकुमार ने अमुक देश की राजकुमारी से विवाह रचाया था. वह दूसरे देश को देखने और सम?ाने का कुतूहल ही था जिस ने कोलंबस और वास्कोडिगामा को सागर में उतरने को मजबूर किया. दरअसल, नए की खोज और कुछ नया जानने की कल्पना करना इनसान की प्रकृति है.

क्यों जाते हैं विदेश

यह ‘विदेश’ का मोह अलगअलग लोगों को अलगअलग तरह का होता है. जहां विकसित देशों के लोग चमकदमक से दूर शांत प्रकृति की गोद में कुछ समय गुजारना चाहते हैं वहीं विकासशील देशों के लोग चमकदमक वाले देशों की चकाचौंध को नजदीक से देखना चाहते हैं. गरीब और पिछड़े देशों के लोग अपने आर्थिक स्तर को बढ़ाने के लिए विदेश जाते हैं.

इसे सीधेसीधे शब्दों में कहें तो अमेरिका, इंगलैंड, कनाडा और फ्रांस के लोग वातावरण व स्थान बदली के लिए विश्वपर्यटन पर निकलते हैं तो चीन, जापान व दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के लोग यूरोप व अमेरिका के देशों को देखने के लिए जाते हैं जो वहां कुछ सप्ताह घूम कर वहां की ढेरों यादें और आनंद समेटे वापस घर लौट आते हैं.

गरीब देशों के लोग अपने आसपास की परिस्थितियों से भाग कर रोजीरोटी कमाने के लिए विदेश का रास्ता अपनाते हैं और वहीं बस जाते हैं. ऐसे लोगों को आप्रवासी कहा जाता है. कुछ लोग इन्हें रिफ्यूजी भी कहते हैं. इन में कुछ ऐसे लोगों की भी संख्या होती है जो समाज के बंधनों से घबरा कर विदेश भागते हैं.

भारत से विदेश गए लोगों का मुख्य ध्येय विदेशों में रह कर आर्थिक रूप से विकसित होना है. कुछ समय पहले एक सर्वे में यह भी पता चला है कि आप्रवासी भारतीयों को यदि अपने देश में वे सारी सुविधाएं मसलन अच्छी नौकरी, अच्छी डाक्टरी सुविधा, बच्चों के लिए उच्च शिक्षा, साफ शुद्ध खानेपीने की वस्तुएं मिलें तो ये लोग अपने देश में ही रहना ज्यादा पसंद करेंगे.

एक सच यह भी इसी के साथ एक सच यह भी है कि जब आज समूचा विश्व सिमट कर एक शहर के रूप में बदल गया है तो क्यों न ऐसे लोग उन का लाभ उठाएं जिन में संकल्प है, लगन, साधना करने की क्षमता है और वे महत्त्वाकांक्षी भी हैं पर भारतीय तो अपने देश में रह कर ‘विदेश’ की कल्पना सोनेचांदी के ढेर से या अति आधुनिक वस्तुओं से सजा जीवनस्तर से करता है.

दरअसल, विदेशी लड्डू उसे बड़ा मीठा और खत्म न होने वाला लगता है पर जो इस लड्डू का स्वाद ले रहा है उस के दिल से पूछिए कि उस लड्डू तक पहुंचने के लिए उसे क्याक्या करना पड़ा. कितने ऐसे लोगों को मैं ने देखा है कि घर को सही ढंग से चलाने और बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्हें अपनी तमाम व्यक्तिगत खुशी को दांव पर लगाना पड़ा है.

आज भारतीय आप्रवासी विश्व के कोनेकोने में हैं. मेहनतकश मजदूर के रूप में खाड़ी के
देशों में जहां आप्रवासी भारतीयों की भरमार है वहीं उच्च शिक्षिति लोगों ने इंगलैंड, अमेरिका और कनाडा में अपनी अच्छीखांसा पहचान बना रखी है.

पैसा कमाना मुख्य ध्येय

सालों से यह सिलसिला चल रहा है कि जो छात्र अमेरिका पढ़ने जाते हैं, उच्च शिक्षा पाने के बाद वे वहीं के हो कर रह जाते हैं. आज इंगलैंड और अमेरिका में तो कुछ शहर ऐसे हैं जिन्हें छोटा भारत के रूप में देखा जाता है.

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आम भारतीय विदेशों में जाने से पहले यही सोचता है कि वह पैसा कमा कर अपने देश वापस आ जाएगा पर जब वहां जाने के बाद तमाम स्थानीय परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए वह अपने पैर जमा लेता है तब सोचता है कि जमेजमाए धंधे को छोड़ कर अब क्यों जाए. इन्हीं में ऐसे लोग जो नियम कानून, भाषा, वातावरण से घबरा जाते हैं वापस भी आ जाते हैं. पर एक बात तो जरूरी है कि
आप किसी भी देश में रोजगार की नीयत से जाएं, वहां के बारे में संपूर्ण जानकारी अवश्य रखें.

यदि भारतीय अंगरेजी भाषा वाले देश में आते हैं तो उन के लिए काम व परिस्थितियां दोनों आसान हो जातीं लेकिन विश्व में कुछ देश ऐसे भी हैं जहां अंगरेजी में कामकाज नहीं होता क्योंकि वे अपनी भाषा में इतने प्रगतिशील हैं कि उसी में सब काम करना चाहते हैं. ऐसे देशों में जाने से पहले वहां की भाषा का अच्छी तरह ज्ञान होना चाहिए. आप चाहें कि वहां पहुंच कर भाषा सीख कर सफलता पा लेंगे तो यह सोच गलत है
और सफलता पाने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ सकता है.

भारत में वह बात नहीं विदेशों में हर शिक्षित को उस की शिक्षा के अनुसार काम नहीं मिलता. ऐसे आप्रवासी भारतीयों की हालत अलगअलग देशों में अलगअलग तरह की होती है. कई लोग तो नए देश और नए वातावरण में तालमेल न बैठा पाने के कारण उदास, चिड़चिड़े हो जाते हैं, कुछ खुद को कोसते हुए
देखे जा सकते हैं तो कुछ गलत जगह पर गलत बात करते हैं, उन्हें खुद ही सम?ा में नहीं आता कि ऐसे समय में क्या करना चाहिए.

इंगलैंड में आप्रवासियों और उन के बच्चों की स्थिति क्या है यह अब किसी से छिपा नहीं है. रंगभेद के शिकार बच्चे अपने भविष्य के लिए मातापिता को दोषी मानते हैं कि वे क्यों इंगलैंड आए थे. हां, अमेरिका और कनाडा का हाल इंगलैंड से बेहतर है जहां रंगभेद नहीं है और स्थानीय लोग खुले विचारों वाले और उच्च शिक्षित हैं.

यद्यपि मैं यह नहीं कह सकता कि वहां कर आप्रवासी सुखी है. इस धनी देश में भी विशाल मध्यवर्ग है, जो भारत की तरह ही चक्की के दो पाटों के बीच फंस कर गेहूं की तरह पिस रहा है. यहां के लोगों में जो खास बात देखने को मिलती है वह दिखावा है. वे बैंक से मोटी रकम उधार ले कर आलिशान घर, मोटर और तमाम दूसरी शानशौकत की चीजें बटोर तो लेते हैं, अपने को इतने कर्ज में डुबो लेते हैं कि मेहनत से
कमाई पूंजी का एक बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में ही खर्च करना पड़ता है. पीड़ा यह है कि इस दिखावे की जिंदगी के लिए उन्हें लगातार अधिक काम करना पड़ता है.

अब तो उन के पास इतना भी समय नहीं है कि वे अपने बच्चों की देखभाल कर सकें. लिहाजा, भारत से अपने माता या पिता को बुला कर उन पर बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर कुछ निश्चिंत होना चाहते हैं. चूंकि उन की आर्थिक हैसियत ऐसी नहीं है कि वे नौकरानी रख सकें. अत: अपने बुजुर्गों से वे यह उम्मीद भी रखते हैं कि वे घर का सारा काम जैसे खाना बनाना, बाजार जा कर सब्जी लाना, बच्चो को स्कूल बस तक
छोड़ना और लाना आदि सभी काम करें.

रंगभेद व असमानता का सामना मातापिता को यह कह कर बुलाया जाता है कि आप यहां आएं और आराम करें पर जब धीरेधीरे उन पर जिम्मेदारियां थोपी जाती हैं तो वे अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं और फिर जल्द ही इस फिराक में लग जाते हैं कि कैसे वापस भारत जाया जाए.

आप्रवासी भारतीयों के जवान बच्चे कभी घर तो कभी बाहर के माहौल के बीच टकराते रहते हैं. परंपरागत जीवन का बहिष्कार करने पर उन्हें बिगड़ैल और उद्दंड कहा जाता है. यदि बच्चे अपने संस्कारों के साथ जुड़ कर चलते हैं तो उन्हें आजाद खयाल अपने दोस्तों के बीच नीचा देखना पड़ता है. कई बच्चे आज्ञाकारी हो कर अपने अरमानों का खून कर देते हैं और कई अंतर्मुखी हो जाते हैं. घर का माहौल संघर्षमय है तो
कुछ बच्चे दूसरों के मुकाबले जीवन में संभावनाओं को न पा कर उदास हो जाते हैं.

आप्रवासियों के बच्चे शिक्षा ले कर काम की तलाश में निकलते हैं, यहां तक तो ठीक है पर जब उन्हें काम की तलाश में रंगभेद व असमानता का सामना करना पड़ता है तब वे तिलमिला उठते हैं क्योंकि वे अपने को किसी भी तरह आप्रवासी मानने को तैयार नहीं होते. वे अपने को उस देश का नागरिक मानते हैं
और इस से उन के अंदर जो विद्रोह पनपता है वह उन के बाकी के समूचे जीवन को प्रभावित करता है.

कहीं आप भी तो नहीं है तनाव के शिकार, इन आसान तरीकों से पाएं टेंशन से राहत

इन दिनों लोगो का  स्ट्रेस लेवल इस कदर बढ़ रहा है कि पीड़ित ख़ुदकुशी जैसा कदम उठाने से नहीं कतराता है.ऐसा ही एक मामला हाल ही में नोएडा के सेक्टर 142 क्षेत्र में सामने आया.आईटी कंपनी में काम करने वाली एक युवती जो कि उम्र में महज 22 साल की ही थी  और कंपनी में वेबसाइट बनाने का काम करती थी.उसने ऑफिस में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उसका शव उसकी  केबिन में ही लटका हुआ मिला.आजकल आए दिन इस तरह के मामले देखने को मिल  जाते हैं. यहां तक कि अर्ली टींस भी बात बात पर टेंशन जैसे शब्दों को अपनी आम बोली चाली में प्रयोग करते नहीं थकते. जिससे उनमें  भी टेंशन यानि तनाव बढ़ने लगता है. अधिकतर हम सभी जाने अनजाने में जाने कितनी बार इस वाक्य को दोहराते हैं कि ‘मुझे टेंशन हो रही है’ और इस बात को खुद पर इतना हावी कर लेते हैं कि नार्मल बात को भी हम एक चुनौती  की तरह  लेते हैं और अपने आप को तनावग्रस्त कर लेते हैं नतीजतन हम धीरे धीरे मानसिक रूप से कमजोर महसूस करने लगते हैं इसके लिए जरूरी अपने जीवन में कुछ आदतों में बदलाव करना. तो चलिए जानते हैं .

तनाव का जिक्र ना करें

आज कल ऐसा हर एक पीढ़ी के लोगो के साथ हो रहा है चाहे युवा हो या बूढ़ा पर बड़ों की बातों का असर बहुत जल्दी पड़ता है. हमारी सोच ही  हमारा जीवन जीने का तरीका बनती जाती है किसी भी बात को नेगेटिव विचार के साथ अंत ना करें बल्कि पॉजिटिव  सोच के साथ अंत करें.और जो बातें आपको तनाव पूर्ण बनाती हो उन से परहेज करें.

मन का काम जरूर करें

यदि आपको लगता है कि आप तनाव में हैं और आपका ध्यान ऐसी बातों से हट नहीं रहा है तो आप खुद को अपने पसंदिता काम में व्यस्त रखें. खुद को क्रिएटिव कामों में व्यस्त रखें.इससे दिमाग रिलैक्स होता है  फील गुड फैक्टर आता है. साथ ही अपना स्क्रीन टाइम कम करें, मोबइल का प्रयोग कम  करें .

स्वछता है जरूरी

जरूरी है कि हम शरारिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहें. जिस तरह हमें अपने आस पास फैला हुआ कचरा पसंद नहीं होता उसी प्रकार हमें अपने दिमाग़ में कड़वी या कष्ट देने वाली बातों को इकठे नहीं होने देना चाहिए. अपनी परेशानी को किसी के साथ  साझा अवश्य करें इससे मन का बोझ  हल्का होता है और दिमाग़ भी.

एक्सरसाइज करें

एक्सरसाइज करना वैसे तो हर किसी के लिए बहतर ही होता है लेकिन यदि कोई तनावग्रस्त या डिप्रेशन में है तो रिलैक्स करना और थोड़ी एक्सरसाइज उसके लिए सबसे बेहतर है.

किताबें पढ़े

आजकल सभी डिजिटल मीडिया को अधिक तवज्जो देते हैं और ऑनलाइन अपने पसंदीदा टॉपिक या बुक  भी पढ़ लेते है देखा जाए तो यह गलत नहीं है लेकिन यदि हम किताबें पढ़ते है तो  उनसे एक जुड़ाव बनता है   जिससे दिमाग़ शांत और स्थिर होता है इसलिए अपनी पसंद की  किताबें पढ़े जिससे आप खुद को रिलैक्स महसूस कर पाएंगे. यह रीडिंग थेरेपी भी कहलाती है. हर समय मोबाइल के साथ बुक्स भी पास रखें.

संगीत सुने

संगीत सुनना एक बहुत अच्छी थेरेपी है इससे  आपके शरीर में कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) स्तर कम होते है. इसीलिए जब भी आप खुद तनाव ग्रस्त महसूस करें तो संगीत सुने या गाने गुनगुनाएं.यह  हमें तनाव मुक्त बनता है.

New Year Special: सर्दियों में भी होती है टैनिंग की समस्या, इस तरह पाएं राहत

बर्फ की चादर से ढकी वादियों में छुट्टियां बिताने का मजा उस समय किरकिरा हो जाता है, जब आपकी पूरी त्वचा सनबर्न के कारण काली पड़ जाती है. वहीं सर्दियों के मौसम में घंटों धूप सेंकने के लिए बैठे रहने से भी स्किन टेन और सनबर्न की शिकायत होने लगती है. जब आप अपनी स्किन पर ध्यान नहीं देते हैं तो परेशानी और भी बढ़ जाती है. सूरज की हानिकारक किरणें आपकी त्वचा को अंदर तक प्रभावित करती हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों के समय में भी धूप में निकलते समय अपनी स्किन केयर का पूरा ध्यान रखें. कैसे, चलिए हम बताते हैं.

इसलिए सर्दियों में बढ़ती है परेशानी

दरअसल, ​सर्दियों में लंबे समय तक धूप में बैठने से सूरज की यूवी किरणें त्वचा को प्रभावित करती हैं. मेलेनिन के असमान स्थानांतरण से भी त्वचा पर काले धब्बे नजर आने लगते हैं. ये धब्बे कई बार पैच के रूप में नजर आते हैं, जिससे हाइपरपिग्मेंटेशन दिखता है. इतना ही नहीं इसके कारण त्वचा अपनी नमी खो देती है और बहुत ही रूखी व बेजान नजर आने लगती है.

इस मौसम में हवा में आर्द्रता की कमी होती है, जिसके कारण भी त्वचा शुष्क होने लगती है. कई बार इसके कारण त्वचा हाइड्रेट नहीं रह पाती और वह फट जाती है या उसमें जलन होने लगती है. कई बार खुजली और चकत्तों का खतरा भी हो जाता है.

सनस्क्रीन है बेहद जरूरी

किसी भी मौसम में धूप में निकलने से पहले आप सनस्क्रीन जरूर लगाएं. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सर्दियों की धूप आपको नुकसान नहीं पहुंचाएगी. इस मौसम की धूप भी त्वचा के लिए हानिकारक है. इसलिए आप कम से कम 30 या उससे ज्यादा एसपीएफ वाला सनस्क्रीन लोशन यूज करें. सनस्क्रीन आपकी त्वचा को यूवीए और यूवीबी किरणों से बचाता है, जिससे त्वचा का कैंसर, सनबर्न,  हाइपरपिगमेंटेशन कम होता है. ये स्किन को हाइड्रेट भी रखता है.

इस बात का रखें खास ध्यान

इस बात का ध्यान रखें कि आप एक उन्नत किस्म का सनस्क्रीन लोशन का उपयोग करें. जिसमें एपिडर्मिस हो. यह त्वचा की ढाल की तरह सुरक्षा करने के साथ ही उसे जलन से बचाता है. यह स्किन में आसानी से अवशोषित हो जाता है, जिससे यह त्वचा पर बहुत ही प्रभावशीलता से काम करता है. सनस्क्रीन हमेशा अपनी स्किन टाइप के अनुसार चुनें. सनस्क्रीन के उपयोग से हाइपरपिगमेंटेशन को दूर किया जा सकता है. धूप में निकलने से कम से कम 20 मिनट पहले आप स्किन पर सनस्क्रीन लगाएं. ध्यान रखें इसे हर चार घंटे में री-अप्लाई करें, तब ही आपकी त्वचा की पूरी सुरक्षा होगी.

ये सावधानियां हैं जरूरी

अगर आप अपनी त्वचा को सनबर्न और हाइपरपिग्मेंटेशन से बचाना चाहते हैं तो कुछ सावधानियां आपको जरूर रखनी होंगी.

  • धूप में सीमित समय के लिए निकलें.
  • धूप में जाने से पहले अपनी स्किन को अच्छे से मॉइस्चराइज करें और फिर सनस्क्रीन जरूर लगाएं.
  • सर्दियों में हवाएं शुष्क होती हैं, इसलिए अपनी स्किन में नमी बनाएं रखें. पानी भरपूर पिएं.
  • ऐसे स्किन प्रोडक्ट चुनें जिनमें अल्फा हाइड्रॉक्सी एसिड हो, ये हाइपरपिगमेंटेशन को कम करते हैं.
  • दिन के साथ ही अपनी स्किन की नाइट केयर पर भी ध्यान दें. जिससे ​त्वचा को रिपेयर होने का समय मिले.
  • रात में हमेशा चेहरा धोकर उसे मॉइस्चराइज करें, फिर उसपर अपनी त्वचा के अनुसार फेस सीरम लगाएं.
  • त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाने के लिए आप नियमित स्क्रब करें.
  • त्वचा की जरूरत के अनुसार आप सप्ताह में कम से कम तीन बार मास्क जरूर लगाएं. इससे आपकी ​त्वचा के धब्बे दूर होंगे और चमक निखरेगी.

सिंदूर लगाने की वजह से मेरी मांग बहुत चौड़ी हो गई, क्या करूं?

सवाल

मैं हमेशा सिंदूर लगाती रही हूं. इस से मेरी मांग बहुत चौड़ी हो गई है और बहुत ही खराब लगती है. कोई तरीका बताएं जिस से मेरी मांग में बाल आ जाएं?

जवाब

मांग में बाल आना तो बहुत मुश्किल हैलेकिन आजकल बहुत ही अच्छा तरीका है हेयर टौपर इस्तेमाल करने का. आप अपने हैड के सैंटर में टौपर लगा सकती हैं. इस से आप के बाल बहुत घने लगेंगे. आप की मांग भी खराब नहीं लगेगी. इस में ह्यूमन हेयर यूज होते हैं और यह खास तरीके से सिल्क बेस पर बनाया जाता हैजिस से आप को कोई परेशानी नहीं होती. कोई इन्फैक्शन नहीं होता और खूबसूरती बढ़ जाती है. इस में अलगअलग लंबाई और चौड़ाई के अनुसार  टौपर मिल जाते हैं. टौपर के बालों की लंबाईकलर भी आप के बालों के अनुसार चुना जा सकता है. आप किसी अच्छे कौस्मेटिक क्लीनिक या सैलून से कौंटैक्ट करें या फिर औनलाइन भी टौपर खरीद सकती हैं.

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सवाल

मैं आईएएस के ऐग्जाम की तैयारी कर रही हूंइसलिए मुझे बहुत देर पढ़ाई करनी पड़ती है. पर मुझे बहुत खराब लग रहा है कि मेरी आंखों के नीचे कालापन आता जा रहा है. कोई इलाज बताएं ताकि मैं पढ़ाई के साथसाथ कुछ करती रहूं जिस से कि मेरी आंखों के डार्क सर्कल्स कम हो जाएं?

जवाब

जब आप पढ़ाई करती हैं तो आंखों पर काफी स्ट्रैस पड़ता है. पहली बात पढ़ाई करते वक्त आप लाइट का ध्यान रखें कि लाइट कम न हो. अच्छी लाइट में पढ़ाई करेंगी तो आंखों पर स्ट्रैस कम पड़ेगा. आप आमंड औयल का 1 चम्मच ले कर उस में  5 बूंदें औरेंज औयल की डालें. इस औयल से तरजनी उंगली से अपनी आंखों के आसपास रोज 2-3 मिनट मसाज करें. जब भी आप पढ़ाई के बीचबीच में रैस्ट करने लगें तो कुकुंबर को कस कर के उस की 2 पोटलियां बना लें और उन्हें अपनी आंखों पर रख लें. इस से आप की रैस्ट भी हो जाएगीस्ट्रैस भी कम होगा और डाक सर्कल्स भी कम होंगे. जब आप पढ़ती हैं तो खाने का ज्यादा ध्यान नहीं रख पाते. इस से भी डार्क सर्कल्स आ जाते हैं. अत: संतुलित भोजन लें और रोज 8-10 गिलास पानी पीएं. चाहें तो विटामिन ए और ई के कैप्सूल भी ले सकती हैं.

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स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

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