यादों के सहारे : आखिर नीलू की यादों में क्यों गुम रहता था प्रकाश

वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज  ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.

उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…

‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था. उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी. धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’ उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.

उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे. पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’

नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’

नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’

मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’ नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था. एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’

‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.

‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.

‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’

‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.

‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’

‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’

‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’

‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’

‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’

‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’ प्रकाश के पिता उदय बाबू अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे. धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’ पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’

‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.

‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’

‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’

‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा. उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए.

नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.

‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.

‘‘क्या तुम ने…?’’

‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’

यह सुन कर प्रकाश चुप था.

‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’

‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.

‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.ा

‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’ इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था. उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’

बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई. गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था. प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’

कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी. प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’

प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:

‘प्यारी नीलू,

‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था. ‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया. ‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए? ‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.

‘तुम्हारा प्रकाश…’

प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था.

 

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

अदितिभागीभागी बसस्टौप की तरफ जा रही थी. आज फिर से सारा काम काम खत्म करने में उसे देर हो गई थी. आज वह किसी भी कीमत पर बस नहीं छोड़ना चाहती थी.

बस छूटी और शुरू हो गया पति का लंबा लैक्चर, ‘‘टीचर ही तो हो… फिर भी तुम से कोई काम ढंग से नहीं होता. पता नहीं बच्चों को क्या सिखाती हो?’’

पिछले 5 सालों से वह यही सुन रही है.

अदिति 30 वर्ष की सुंदर नवयुवती है. अपने कैरियर की शुरुआत उस ने एक कंपनी में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर के पद से करी थी. वही कंपनी में उस की मुलाकात अपने पति अनुराग से हुई, जो उसी कंपनी में सेल्स मैनेजर का काम संभालता था. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में तबदील हो गई. शादी के बाद प्राथमिकताएं बदल गईं.

अनुराग और अदिति आंखों में ढेर सारे सपने संजो कर जीवन की राह पर चल पड़े. अदिति घर, दफ्तर का काम करतेकरते थक जाती थी. तब अनुराग ने ही एक मेड का बंदोबस्त कर दिया था.

जिंदगी गुजर रही थी और धीरेधीरे दोनों अपनी गृहस्थी को जमाने की कोशिश कर रहे थे. तभी उन की जिंदगी में एक फूल खिलने का आभास हुआ. डाक्टर ने अदिति को बैडरैस्ट करने को कहा, इसलिए उस के पास नौकरी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था. एक प्यारी सी परी आ गई थी. उन के जीवन में पर साथ ही बढ़ रही थी जिम्मेदारियां.

अदिति पिछले 2 सालों से घर पर थी, इसी बीच अनुराग ने बैंक से लोन ले कर एक प्लैट भी ले लिया था. उधर पापा भी रिटायर हो गए थे तो उधर की तरफ भी उस की थोड़ी जवाबदेही हो गई थी. जैसे हर मध्यवर्ग के साथ होता है. उन्होंने भी कुछ खर्चों में कटौती करी और मेड को हटा दिया और अदिति ने भी नौकरी के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए.

 

अदिति ने बहुत कंपनियों में कोशिश करी पर 2 साल का अंतराल एक खाई की तरह हो गया उस के और नौकरी के बीच में. फिर उस ने सोचविचार के बाद स्कूल में अप्लाई किया और जल्द ही एक स्कूल टीचर के रूप में उस की नियुक्ति हो गई.

अनुराग यह सुन कर खुश था क्योंकि वह समय से घर आ सकती है और अपनी बेटी के साथ समय बिता सकती है. समस्या थी कि 1 वर्ष की परी की. उसे किस के भरोसे छोड़ कर जाए, सम झ नहीं आ रहा था. परी के नानानानी और दादादादी उसे अपने साथ रखने को तैयार थे पर वहां आ कर रहना नहीं चाहते थे. मेड के भरोसे पूरा दिन परी को अदिति छोड़ना नहीं चाहती थी. फिर उन्हें पड़ोस में ही एक डे केयर मिल गया, हालांकि उस की फीस काफी ज्यादा थी पर अपनी बच्ची की सुरक्षा उन की प्राथमिकता थी.

आज अदिति को स्कूल जाना था. सुबह से ही अदिति की रेल बन गई. नाश्ता और खाना बनाना, फिर घर की साफसफाई और परी का भी पूरा बैग तैयार करना था. जब वह परी को डे केयर छोड़ कर बाहर निकली तो उस का रोना न सुन सकी और खुद ही कब सुबकने लगी, उसे पता ही नहीं चला. पर अदिति ने महसूस किया, जितनी वह बेबस है. उतनी ही बेबसी अनुराग की आंखों में भी है.

स्टाफरूप में उस का परिचय सब से कराया गया. सब खिलखिला रहे थे पर उसे सबकुछ नया और अलग लग रहा था. जब वह कंपनी में थी तो वहां पर आप कैसे भी व्यवहार कर सकते थे पर स्कूल के अपने नियमकायदे थे और उन्हें सब से पहले शिक्षक को ही अपने जीवन में उतारना होता है.

कक्षा में पहुंच कर देखा सारे बच्चे शोर मचा रहे थे. वह जोरजोर से चिल्ला रही थी पर कोई फायदा नहीं. उसे महसूस हुआ वह क्लास में नहीं एक सब्जी मंडी आ गई है. पास से ही प्रिंसिपल गुजर रही थीं. शोर सुन कर वे कक्षा में आ गईं, बच्चों को चुपचाप खड़े हो कर एक कड़ी नजर से देखा तो वे एकदम चुप हो कर बैठ गए.

पूरा दिन अदिति का बस चिल्लाते ही बीता. 6 घंटे के स्कूल में उसे बस मुश्किल से 15 मिनट लंच ब्रेक के मिले. अदिति को पहले दिन ही यह अनुमान लग गया कि यह इतना भी आसान नहीं है जितना वह सम झती है.

स्कूल बस में बैठ कर पता ही नहीं चला कब उस की आंख लग गई. जब साथ वाली अध्यापिका ने उसे  झं झोड़ कर उठाया तो उस की आंख खुली. डे केयर से परी को ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ी. वह पसीने से सराबोर थी और भूख से उस के प्राण निकल रहे थे. परी को गोद में लिए उस ने खाना खाया और लेट गई.

शाम को वह जैसे ही कमरे से बाहर निकली तो देखा दोपहर के जूठे बरतन उसे मुंह चिड़ा रहे थे. उस ने बरतन मांजने शुरू ही किए थे कि परी रोने लगी. हाथ का काम छोड़ कर, अदिति ने उस का दूध गरम किया. शाम की चाय उसे 7 बजे मिली. पहले जब वह नौकरी पर थी तो पूरे दिन की एक मेड रहती थी पर क्योंकि इस बार वह बस टीचर ही है और दोपहर तक घर आ जाएगी, यह सोच कर उस ने खुद ही अनुराग से काम वाली को मना कर दिया था. वैसे भी परी की डे केयर की फीस ही उन के बजट को गड़ाबड़ा रही थी.

रात को बिस्तर पर लेट कर अदिति को ऐसे लगा जैसे वह कोई जंग लड़ कर आई हो. अनुराग ने रात में जब प्यार जताने की कोशिश करनी चाही तो उस ने एक  झटके से उसे हटा दिया. बोली, ‘‘सुबह 4 बजे उठना है, प्लीज मैं बहुत थक गई हूं.’’

अनुराग मुंह बना कर बोला, ‘‘क्या थक गई हो? न तुम्हारे टारगेट होंगे न ही कोई गोल, तुम्हें तो हर माह बस फ्री की तनख्वाह मिलेगी, टीचर ही तो हो.’’

अदिति के पास बहस का समय नहीं था. अत: वह मुंह फेर कर सो गई.

अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.

अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’

अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’

प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन  को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’

बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’

अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.

उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’

अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’

तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.

आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.

रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’

अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.

 

सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते  ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.

उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’

अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.

वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.

अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.

अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी

भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती…

देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’

पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’

स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.

उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन  लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.

अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.

अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’

तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’

डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’

दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.

आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’

1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.

रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’

वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.

घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’

हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.

अनुराग अपनी मां के  साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.

फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.

इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.

चिंता: क्या पद्मजा को बचा पाया संपत

पद्मजा उस दिन घर पर अकेली गुमसुम बैठी थीं. पति संपत कैंप पर थे तो बेटा उच्च शिक्षा के लिए पड़ोसी प्रदेश में चला गया था और बेटी समीरा शादी कर के अपने ससुराल चली गई. बेटी के रहते पद्मजा को कभी कोई तकलीफ महसूस नहीं हुई. वह बड़ी हो जाने के बाद भी छोटी बच्ची की तरह मां का पल्लू पकड़े, पीछेपीछे घूमती रहती थी. एक अच्छी सहेली की तरह वह घरेलू कामों में पद्मजा का साथ देती थी. यहां तक कि वह एक सयानी लड़की की तरह मां को यह समझाती रहती थी कि किस मौके पर कौन सी साड़ी पहननी है और किस साड़ी पर कौन से गहने अच्छे लगते हैं.

ससुराल जाने के बाद समीरा अपनी सूक्तियां पत्रों द्वारा भेजती रहती जिन्हें पढ़ते समय पद्मजा को ऐसा लगता मानो बेटी सामने ही खड़ी हो.

उस दिन पद्मजा बड़ी बेचैनी से डाकिए की राह देख रही थीं और मन में सोच रही थीं कि जाने क्यों इस बार समीरा को चिट्ठी लिखने में  इतनी देर हो गई है. इस बार क्या लिखेगी वह चिट्ठी में? क्या वह मां बन जाने की खुशखबरी तो नहीं देगी? वैसी खबर की गंध मिल जाए तो मैं अगले क्षण ही वहां साड़ी, फल, फूलों के साथ पहुंच जाऊंगी.

तभी डाकिया आया और उन के हाथ में एक चिट्ठी दे गया. पद्मजा की उत्सुकता बढ़ गई.

चिट्ठी खोल कर देखा तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कारण, चिट्ठी में केवल 4 ही पंक्तियां लिखी थीं. उन्होंने उन पंक्तियों पर तुरंत नजर दौड़ाई.

‘‘मां,

तुम ने कई बार मेरी घरगृहस्थी के बारे में सवाल किया, लेकिन मैं इसलिए कुछ भी नहीं बोली कि अगर तुम्हें पता चल जाए तो तुम बरदाश्त नहीं कर पाओगी. मां, हम धोखा खा चुके हैं. वह शराबी हैं, जब भी पी कर घर आते हैं, मुझ से झगड़ा करते हैं. कल रात उन्होंने मुझ पर हाथ भी उठाया. अब मैं इस नरक में एक पल भी नहीं रह पाऊंगी. इसलिए सोचा कि इस दुनिया से विदा लेने से पहले तुम्हारे सामने अपना दिल खोलूं, तुम से भी आज्ञा ले लूं. मुझे माफ करो, मां. यह मेरी आखिरी चिट्ठी है. मैं हमेशाहमेशा के लिए चली जा रही हूं, दूर…इस दुनिया से बहुत दूर.

-समीरा.’’

पद्मजा को लगा मानो उन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. ऐसा लगा मानो एक भूचाल आया और वह मलबे के नीचे धंसती जा रही हैं.

‘क्या यह सच है? उन के दिल ने खुद से सवाल पूछा, क्योंकि ‘समीरा के लिए जब यह रिश्ता पक्का हुआ था तो वह कितनी खुश थी. समीरा तो फूली न समाई. लेकिन ऐसा कैसे हो गया?’

अतीत की बातें सोच कर पद्मजा का मन बोझिल हो गया. उन की आंखें डबडबाने लगीं.

वह फिर सोचने लगीं कि इस वक्त घर पर मैं अकेली हूं. अब कैसे जाऊं? ट्रेन या बस से जाने पर तो कम से कम 5-6 घंटे लग ही जाएंगे.’ तभी उन के दिमाग में एक उपाय कौंध गया और तुरंत उन्होंने अपने पति के मित्र केशवराव का नंबर मिलाया.

‘‘भैया, मुझे फौरन आप की गाड़ी चाहिए. मुझे अभी-अभी खबर मिली है कि समीरा की हालत बहुत खराब है. आप का एहसान कभी नहीं भूलूंगी,’’

केशवराव ने तुरंत ड्राइवर सहित अपनी गाड़ी भेज दी. गाड़ी में बैठते ही पद्मजा ने ड्राइवर से कहा, ‘‘भैया, जरा गाड़ी तेज चलाना.’’

गाड़ी नेशनल हाईवे पर दौड़ रही थी. पीछे वाली सीट पर बैठी पद्मजा का मन बेचैन था. रहरह कर उन्हें अपनी बेटी समीरा की लाश आंखों के सामने प्रत्यक्ष सी होने लगती थी.

कार की रफ्तार के साथ पद्मजा के विचार भी दौड़ रहे थे. उन का अतीत चलचित्र की भांति आंखों के सामने साकार होने लगा.

‘पद्मजा,’ तेरे मुंह में घीशक्कर. ले… लड़के वालों से चिट्ठी मिल गई. उन को तू पसंद आ गई,’ सावित्रम्मा का मन खुशी से नाच उठा.

‘मां, मैं कई बार तुम से कह चुकी हूं कि यह रिश्ता मुझे पसंद नहीं है. मैं ने शशिधर से प्यार किया है. मैं बस, उसी से शादी करूंगी. वरना…’ पद्मजा की आवाज में दृढ़ता थी.

‘चुप, यह क्या बक रही है तू. अगर कोई सुन लेता तो एक तो हम यह रिश्ता खो बैठेंगे और दूसरे तू जिंदगी भर कुंआरी बैठी रहेगी. मुझे सब पता है. शशिधर से तेरी जोड़ी नहीं बनेगी. वह तेरे लायक नहीं. हम तेरे मांबाप हैं. तुझ से ज्यादा हमें तेरी भलाई की चिंता है. हम तेरे दुश्मन थोड़े ही हैं,’ कहती हुई मां सावित्री गुस्से में वहां से चली गईं.

मां की बातों का असर पद्मजा पर बिलकुल नहीं पड़ा, उलटे उस का क्रोध दोगुना हो गया. वह सोचने लगी कि वह मां मां नहीं और वह बाप बाप नहीं जो अपनी संतान की पसंद, नापसंद को न समझे.

वैसे पद्मजा शुरू से ही तुनकमिजाज थी. उस में जोश ज्यादा था. जब भी कोई ऐसी घटना हो जाती थी जो उस के मन के खिलाफ हो, तो तुरंत वह आपे से बाहर हो जाती. वह अगले पल अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा बंद कर देती और पिता की नींद की गोलियां मुट्ठी भर ले कर निगल भी लेती थी.

सावित्रम्मा बेटी पद्मजा का स्वभाव अच्छी तरह से जानती थीं. इस से पहले भी एक बार मेडिकल में सीट न मिलने पर उस ने ब्लेड से अपनी एक नस काट दी थी. नतीजा यह हुआ कि उस की जान आफत में पड़ गई. इसी वजह से, सावित्रम्मा अपनी बेटी के व्यवहार पर नजर गड़ाए बैठी थीं. बेटी के अपने कमरे में घुसते ही उस ने यह खबर पति के कान में डाल दी. पतिपत्नी दोनों के बारबार बुलाने पर भी वह बाहर न आई. लाचार हो कर पतिपत्नी ने दरवाजा तोड़ दिया और पद्मजा को अस्पताल में दाखिल कर दिया.

‘पद्मा, यह तुम क्या कह रही हो? तुम्हारी मूर्खता रोजरोज बढ़ती जा रही है. पढ़ीलिखी हो कर तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए.’ संपत बड़ी बेचैनी से पत्नी पद्मजा से बोला. पद्मजा एकदम बिगड़ गई.

‘हां…पढ़ीलिखी होने की वजह से ही मैं आप से यह पूछ रही हूं. मेरे साथ अन्याय हो तो मैं क्यों बरदाश्त करूं? और कैसे बरदाश्त करूं? मैं पुराणयुग की भोली अबला थोड़े ही हूं कि आप अपनी मनमानी करते रहें, बाहर गुलछर्रे उड़ाएं, ऐश करें और मैं चुपचाप देखती रहूं. आप कभी यह नहीं समझना कि मैं सीतासावित्री के जमाने की हूं और आप की हर भूल को माफ कर दूंगी. आखिर मैं ने क्या भूल की है? क्या अपने पति पर सिर्फ अपना ही हक मानना अपराध है? दूसरी महिलाओं से नाता जोड़ना, उन के चारों ओर चक्कर काटना तो क्या मैं चुपचाप देखती रहूं.’

‘वैसा पूछना गलत नहीं हो सकता है लेकिन मैं ने वैसा किया कब था? यह सब तेरा वहम है. तेरे दिमाग पर शक का भूत सवार है. वह उठतेबैठते, किसी के साथ मिलते, बात करते मेरा पीछा कर रहा है. तेरी राय में मेरी कोई लेडी स्टेनो नहीं रहनी चाहिए. मेरे दोस्तों की बीवियों से भी मुझे बात नहीं करनी चाहिए… है न.’

‘ऐसा मैं ने थोड़े ही कहा है, जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा और कानों से सुना वही तो बता रही हूं. सचाई क्या है, मैं जानती हूं. आप के इस तरह चिल्लाने से सचाई दब नहीं सकती.’

‘छि:, बहुत हो गया. यह घर रोजरोज नरक बनता जा रहा है. न सुख है और न शांति.’ चिढ़ता हुआ संपत बाहर चला गया. पद्मजा रोतीबिलखती बिस्तर पर लेट गई.

पद्मजा रोज की तरह उस दिन भी  बाजार गई और वह सब्जी खरीद रही थी कि सामने एक ऐसा नजारा दिखाई पड़ा कि वह फौरन पीछे मुड़ी और बिना कुछ खरीदे ही घर लौट आई.

संपत स्कूटर पर कहीं जा रहा था और पीछे कोई खूबसूरत लड़की बैठी थी. दोनों अपनी दुनिया में मस्त थे. आपस में बातें करते हुए, हंसते हुए लोटपोट हो रहे थे. बस, इसी दृश्य ने पद्मजा को उत्तेजित, पागल और बेचैन कर दिया.

आते ही पद्मजा ने प्लास्टिक की थैली एक कोने में फेंक दी और सीधा रसोईघर में घुस गई. अलमारी से किरोसिन का डब्बा उठा कर उस ने अपने शरीर पर सारा तेल उड़ेल दिया. बस, अब तीली जला कर आत्महत्या करने ही वाली थी कि बाहर स्कूटर की आवाज सुनाई पड़ी.

पद्मजा का क्रोध मानो सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस के मन में ईर्ष्या ने ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया.

‘अब मुझे मर ही जाना चाहिए. जीवन भर उसे 8-8 आंसू बहाते, तड़पतड़प कर रहना चाहिए,’ पद्मजा का दिमाग ऐसे विचारों से भर गया.

संपत को घर में कदम रखते ही मिट्टी के तेल जैसी किसी चीज के जलने की गंध लग गई. रसोई में झांक कर देखा तो ज्वालाओं से घिरी पद्मजा दिखाई पड़ी. संपत हक्काबक्का रह गया. वह जोश में आ कर रसोई का दरवाजा पीटने लगा और पद्मजा को बारबार पुकार रहा था. अंत में दरवाजा टूट गया. 40 प्रतिशत जली पद्मजा अस्पताल में भरती कराई गई. फिर बड़ी मुश्किल से वह बच पाई. पद्मजा को जब यह पता चला कि उस दिन संपत के स्कूटर के पीछे बैठी नजर आई लड़की कोई और नहीं वह तो संपत के ताऊ

की बेटी थी, बस, पद्मजा का मन पश्चात्ताप से भर गया. उसे अपनी गलती महसूस हुई.

पद्मजा में अपने प्रति ग्लानि तब और बढ़ गई जब पति ने इलाज के दौरान जीतोड़ कर सेवा की. उसे बड़ी शरम महसूस हुई और अपनी जल्दबाजी, मूर्खता पर स्वयं को कोसने लगी.

दौड़ती कार के अचानक रुकते ही पद्मजा वर्तमान में आ गई. अतीत के सारे चलचित्र ओझल हो गए.

‘‘गाड़ी क्यों रोकी?’’ उस ने ड्राइवर से पूछा.

‘‘मांजी, यहां एक छोटा होटल है. सोचा, आप थक गई होंगी. प्यास भी लग गई होगी. क्या मैं आप के लिए थोड़ा ठंडा पानी ले आऊं?’’

‘‘नहीं, इस समय मुझे कुछ भी नहीं चाहिए. मुझे फौरन वहां पहुंचना है वरना…’’ इतना कहतेकहते ही पद्मजा का गला भर गया. उस समय केवल समीरा ही उन के दिलोदिमाग पर छाई हुई थी.

पद्मजा पीछे सीट की तरफ झुक गई. खिड़की के शीशे नीचे कर देने से ठंडी हवा के झोंके भीतर आ कर मानो उस की थकावट दूर करते हुए सांत्वना भी दे रहे थे. बस, उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

गाड़ी अचानक ब्रेक के कारण एक झटके के साथ रुकी तो पद्मजा एकदम सामने वाली सीट पर जा गिरी. तभी उस की आंख खुल गई. वह एकदम उछल पड़ी. चारों ओर नजर दौड़ाई. स्थिति सामान्य देख कर वह बोल पड़ी, ‘‘सत्यम, अचानक गाड़ी क्यों रोक दी तूने?’’ पद्मजा ने पूछा.

‘‘आप नींद में चीख उठीं, तो मैं डर गया कि आप के साथ कोई अनहोनी हुई होगी,’’ उस ने अपनी सफाई दी.

कार शहर में पहुंच गई थी और रामनगर महल्ले की तरफ जाने लगी. पद्मजा मन ही मन सोचने लगी कि उस की बिटिया सहीसलामत रहे.

लेकिन, जैसा उस के मन में डर था. पद्मजा ने वहां ऐसा कुछ भी नहीं पाया था. वातावरण एकदम शांत था. गाड़ी के रुकते ही वह दरवाजा खोल कर झट से कूदी और भीतर की तरफ दौड़ पड़ी.

घर के भीतर खामोशी फैली हुई थी. सहमी हुई पद्मजा ने भीतर कदम रखा कि उसे ये बातें सुनाई पड़ीं.

समीरा बोल रही थी. बेटी की आवाज सुन कर पद्मजा के सूखे दिल में मानो शीतल वर्षा हुई.

‘‘आप ने क्यों बचा लिया मुझे? एक पल और बीतता तो मैं फांसी के फंदे में झूल जाती और इस माहौल से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता.’’

‘‘समीरा…’’ यह आवाज पद्मजा के दामाद की थी.

‘‘मैं ने यह बिलकुल नहीं सोचा कि तुम इतनी ‘सेंसिटिव’ हो. अरे, पतिपत्नी के बीच झड़प हो जाती है, झगड़े भी हो जाते हैं. क्या इतनी छोटी सी बात के लिए मर जाएंगे? समीरा, मैं तुम को दिल से चाहता हूं. क्या तुम यह नहीं जानतीं कि मैं बगैर तुम्हारे एक पल भी नहीं रह सकता?’’

‘‘आप जानते हैं कि मुझे शराबियों से सख्त नफरत है. फिर भी आप…’’

‘‘समीरा, मैं शराबी थोड़े ही हूं. तुम्हारा यह सोचना गलत है कि मैं हमेशा पीता रहता हूं लेकिन कभीकभी पार्टियों में दोस्तों का मन रखने के लिए थोड़ा पीता हूं. यह तो सच है कि परसों रात मैं ने थोड़ी सी शराब पी थी लेकिन तुम ने जोश में आ कर भलाबुरा कहा, मेरा मजाक उड़ाया और बेइज्जती की और मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सका.

‘‘तुम पर अनजाने में हाथ उठाया उस के लिए तुम जो भी सजा दोगी, मैं उसे भुगतने को तैयार हूं. लेकिन ऐसी सजा तो मत दो, समीरा. इस दुनिया में तुम से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है. तुम्हारी खातिर मैं शराब छोड़ दूंगा. प्रामिस, तुम्हारी कसम, लेकिन बगैर तुम्हारे यह जिंदगी कोई जिंदगी थोड़े ही है.’’

दामाद के स्वर में अपनी बेटी के प्रति जो प्रेम, जो अपनापन था, उसे सुन कर पद्मजा मानो पिघल गईं. उन की आंखें भी भर आईं. वह अपने आप को संभाल ही नहीं सकीं. और तुरंत दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘कौन है?’’ समीरा और शेखर एकसाथ ही बेडरूम से बाहर आ गए.

मां को देखते ही भावुक हो समीरा दूर से ही ‘मां’ कहते हुए दौड़ आई और उन से लिपट गई.

‘‘यह क्या किया बेटी तूने? तेरी चिट्ठी देखते ही मेरी छाती फट गई. मेरी कोख में आग लगाने का खयाल तुझे क्यों आया? यह तूने सोचा कैसे कि बगैर तेरे हम जिएंगे?’’

‘‘माफ करो मम्मी, मैं ने जोश में आ कर वह चिट्ठी लिख दी थी. यह नहीं सोचा कि वह तुम्हें इतना सदमा पहुंचाएगी.’’

शेखर एकदम शर्मिंदा हो गया. उसे अब तक यह नहीं पता था कि समीरा ने अपनी मां को चिट्ठी लिखी है. उस की नजरें अपराधबोध से झुक गईं.

समीरा मां का चेहरा देख कर भांप गई कि उस ने चिट्ठी पढ़ने से ले कर यहां पहुंचने तक कुछ भी नहीं खाया है.

समीरा ने पंखा चलाया फिर मां और ड्राइवर को ठंडा पानी पिलाया. थोड़ी देर बाद वह गरमागरम काफी बना कर ले आई. उसे पीने के बाद मानो पद्मजा की जान में जान आ गई.

वहां से जाने से पहले पद्मजा बेटी को समझातेबुझाते दामाद के बारे में पूछ बैठीं, ‘‘समीरा, शेखर घर पर नहीं है क्या?’’

‘‘हां हैं,’’ समीरा ने जवाब दिया.

पद्मजा ने भांप लिया कि समीरा इस बात के लिए पछता रही है कि उस के कारण शेखर की नाक कट गई और अपनी मां के सामने वह शरम महसूस कर रही है.

‘‘जा, उसे मेरे जाने की बात बता दे,’’ पद्मजा ने बड़े संक्षेप में कहा.

समीरा के भीतर जा कर बताते ही शेखर बाहर आया. भले ही वह पद्मजा की तरफ मुंह कर के खड़ा था, नजरें जमीन में गड़ी हुई थीं.

‘‘शेखर, समीरा की तरफ से मैं माफी मांगती हूं. उसे माफ कर दो.’’ शेखर विस्मित रह गया.

पद्मजा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोलीं, ‘‘वह शुरू से ऐसी ही है, एकदम मेरे जैसी. वह बहुत भोली है, बिलकुल बच्चों जैसी. उसे यह भी नहीं पता कि जोश में आ कर जो भी फैसला वह करेगी, उस से सिर्फ उस को ही नहीं बल्कि दूसरों को भी दुख होता है.’’

समीरा और शेखर दोनों पद्मजा की बातें सुन कर चौंक पड़े.

‘‘बेटी, तू पूछती थी न, मेरे शरीर पर ये धब्बे क्या हैं? ये घाव के निशान हैं जो जल जाने के कारण हुए. मैं ने तुझे यह कभी नहीं बताया था, ये हुए कैसे? मैं सोचती थी, अगर बता दूं तो मेरे व्यक्तित्व पर कलंक लग जाएगा और मैं तेरी नजर से गिर भी सकती हूं. इसलिए मैं तुझ से झूठ बोलती आई.

‘‘बेटी, अब मैं पछता रही हूं कि मैं ने यह पहले ही तुझ से क्यों नहीं कहा? लेकिन मुझे यह देर से पता चला कि बड़ों के अनुभव छोटों को पाठ पढ़ाते हैं. शुरू में मेरे भीतर भी आत्महत्या की भावना रहती थी. हर छोटीबड़ी बात के लिए मैं आत्महत्या कर लेने का निर्णय लेती थी. ऐसा सोचने के पीछे मुझे वेदना या विपत्तियों से मुक्ति पा लेने के विचार की तुलना में किसी से बदला लेने या किसी को दुख पहुंचाने की बात ही ज्यादा रहती थी. कालक्रम में मेरा यह भ्रम दूर होता गया और यह पता चला कि जिंदगी कितनी अनमोल है.

शेखर, जो पहली बार अपनी सासूमां की जीवन संबंधी नई बात सुन रहा था विस्मित हो गया. समीरा की भी लगभग यही हालत थी.

पद्मजा आगे बताने लगी.

‘‘दरअसल, मौत किसी भी समस्या का समाधान नहीं. मौत से मतलब, जिंदगी से डर कर भाग जाना, समस्याओं और चुनौतियों से मुंह मोड़ लेना है. यह तो कायरों के लक्षण हैं. कमजोर दिल वाले ही खुदकुशी की बात सोचते हैं. बेटी, बहादुर लोग जीवन में एक ही बार मरते हैं लेकिन बुजदिल आदमी हर दिन, हर पल मरता रहता है. जिंदगी जीने के लिए है, बेटी, मरने के लिए नहीं. सुखदुख दोनों जीवन के अनिवार्य अंश हैं. जो दोनों को समान मानेगा वही जीवन का आनंद लूट सकेगा. समीरा, यह सब मैं तुझे इसलिए बता रही हूं कि अपनी समस्याओं का समाधान मर कर नहीं जीवित रह कर ढूंढ़ो. जीवन में समस्याओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक है. दोनों ठंडे दिमाग से सोच कर समस्या का समाधान ढूंढ़ो.

‘‘मैं भी जोश में आ कर आत्महत्या कर लेने का प्रयास कई बार कर चुकी हूं. उन में से अगर एक भी प्रयत्न सफल हो जाता तो आज न मुझे इतनी अच्छी जिंदगी मिलती, न इतना योग्य पति मिलता, न हीरेमोती जैसी संतानें मिलतीं. और न इतना अच्छा घर. अपने अनुभव के बल पर कहती हूं बेटी, मेरी बातें समझने की कोशिश करो. मुश्किलें कितनी ही कठिन हों, चुनौतियां कितनी ही गंभीर हों, आप अपने सुनहरे भविष्य को मत भूलें. आश्चर्य की बात यह है कि कभी जो उस समय कष्ट पहुंचाते हैं, वे ही भविष्य में हमारे लिए फायदेमंद होते हैं.’’

‘‘चलिए, अगर मैं ऐसा ही बोलती रहूंगी तो इस का कोई अंत नहीं होगा. जिंदगी, जिंदगी ही होती है,’’ बेटीदामाद से अलविदा कह कर वह जाने को तैयार हो गई.

पद्मजा के ओझल हो जाने तक वे दोनों उन्हें वहीं खड़ेखडे़ देखते रहे. उन के चले जाने के बाद जिंदगी के बारे में उन्होंने जो कहा, उस का सार उन दोनों के दिलोदिमाग में भर गया.

जैसे हर यात्रा की एक मंजिल होती है उसी तरह हर जिंदगी का भी एक मकसद होता है, एक लक्ष्य रहता है. यात्रा में थोड़ी सी थकावट महसूस होने पर जहां चाहे वहां नहीं उतर जाना चाहिए. मंजिल को पाने  तक हमारी जिंदगी का सफर चलता रहता है.

इस प्रकार समीरा के विचार नया मोड़ लेने लगे. अब तक की मां की वेदना उस की समझ में आ गई जिस ने चारों ओर नया आलोक फैला दिया. अब वह पहले वाली समीरा नहीं. इस समीरा को तो जीवन के मूल्यों का पता चल गया.

 

मसाले जो स्वाद के साथ हैं, गुणकारी भी, उपयोग की मात्रा हो कितनी, जानें यहां

22 वर्षीय उमा को नौकरी मिली और उसे बंगलुरु जाना पड़ा, लेकिन उन्हें खाना बनाना नहीं आता था, ऐसे में उनकी माँ ने सहज उपाय दिया और रेडीमेड मसाला लेने की बात कही, उमा ने वही किया और सभी तरह के मसाले खरीद लिए और किचन सजा लिया. आज वह अच्छा खाना बना रही है. इसमें उसे ये बात अच्छी लग रही है कि सही मसाले की एक निश्चित मात्रा डालने पर सब्जी अच्छी बन जाती है, क्योंकि इन पैक्ड मसालों में भी कई मसालों का मिश्रण होता है, जो स्वाद और सुगंध मे अच्छा होता है. उमा की किचन में आज किचन किंग, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, छोले मसाले, पाँव भाजी मसालें, गरम मसालें आदि सभी है.

मसालें के है कई फायदे

आमतौर पर बिना किसी दुष्प्रभाव के नियमित रूप से इनके सेवन को सुरक्षित माना जाता है. भोजन में मसालों का नियमित सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के साथ-साथ गठिया, कैंसर, मधुमेह और संक्रमण जैसी बीमारियों से लड़ने में भी सहायता करता सकता है. किसी भी व्यंजन को स्वादिष्ट बनाने में पहले हमारी दादी – नानी मसाले को पीसकर खाना बनाती थी, लेकिन आज उसका स्वरूप बदल चुका है आज हर मसाले को पीसकर उत्तम क्वालिटी के साथ पॅकिंग की जाती है, जिससे उसका स्वाद और गंध सही मात्रा मे मिल जाता है.

मसाले का इतिहास है पुराना

मसाले और सीज़निंग एक डिश को सादे से अलग, टेस्टी बनाने का काम करती है. मसालों की खोज और उनका उपयोग सैकड़ों वर्षों से कई व्यंजनों में किया जा रहा है, जिसे टेस्ट के अनुसार समय – समय पर विकसित किया जाता रहा है. मसाले भारतीय व्यंजनों की टेस्ट को क्रीऐट करने का मुख्य स्त्रोत हैं और उनके बिना, प्रामाणिक भोजन का स्वाद, सुगंध या फ्लेवर बनाना असंभव है. प्रारंभ में, मसालों का उपयोग पके हुए भोजन की ताजगी बनाए रखने के लिए किया जाता था, फिर प्रीजरवेटिव के रूप में किया जाता था, बाद में व्यंजनों में स्वाद और स्वाद जोड़ने के लिए किया जाने लगा है.

शेफ रणवीर ब्रार कहते है कि मसालों के प्रयोग से खाना टेस्टी बनाया जाता है इसलिए सालों से इसका प्रयोग होता आ रहा है, यही वजह है कि आज की हर महिला हो या पुरुष मसालों का प्रयोग अपने हिसाब से करना जानते है, या सीख जाते है, क्योंकि हर मसाले के डिब्बे के ऊपर व्यंजन की सामग्री के अनुसार मसाले के प्रयोग की सूची भी दी जाती है, जिससे खाना बनाना आसान होता है. फीके भोजन मे मसालें का तड़का ही किसी व्यंजन को स्वादिष्ट बनाता है. साथ ही मसाले के प्रयोग से व्यंजन की महक चारों तरफ फैल जाती है, जिससे उसका जायका सबको भोजन को खाने की ओर आकर्षित करता है. हर जगह का अपना मसाला होता है, जिसे लोग अपने हिसाब से प्रयोग करते है.
मसालें, जो किचन में रखना जरूरी

बिना मसालों के किचन बिना मेकअप किट के ब्यूटी क्वीन की तरह है. वह बिना मेकअप के अच्छी लग सकती है, लेकिन मेकअप उसकी प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ा देता है. जैसे बहुत अधिक मेकअप अच्छा नहीं लगता, वैसे ही भोजन के साथ, सही मात्रा और सही मसालों के प्रयोग से सादा भोजन भी मनोरम और स्वादिष्ट बन सकता है. मसाले जादुई रूप से भोजन को बदल सकते हैं. सुगंध जोड़ने से लेकर स्वाद बढ़ाने तक, मसाले आपके भोजन को पूरा करते हैं. व्यंजनों में एक चुटकी मसाले जादू का काम कर सकते हैं और साधारण व्यंजनों को स्वादिष्ट व्यंजनों में बदल सकते हैं.

भोजन के स्वाद को बदलने के लिए मसाले निम्न है, जो किसी भी व्यक्ति के किचन मे अवश्य होने चाहिए,
• काली मिर्च पाउडर, स्वाद की गर्मी और गहराई जोड़ता है. यह दिखने में थोड़ी छोटी, गोल और काले रंग की होती है. इसका स्वाद काफी तीखा होता है. काली मिर्च कई रंगों में आती है, लेकिन सबसे आम काला रंग है. काली मिर्च का इस्‍तेमाल करने का मतलब है कि हर बार जब आप इसे व्यंजन मे ऐड करेंगे, तो स्वाद में अतिरिक्त जायका मिलेगा.
• जीरा पाउडर, मिट्टी जैसा, अखरोट जैसा स्वाद देता है. यह मसाला नॉन-रोस्टेड और रोस्टेड दोनों प्रकार मार्केट में मिल जाते है. भुना हुआ जीरा पाउडर आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसका स्वाद तीखा होता है. अच्छी स्वाद के लिए करी में इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही इसे रायते या चाट पर छिड़कने पर यह तुरंत उस डिश की स्वाद बढ़ा देता है.
• सूखे तेज पत्ते, लकड़ी की सुगंध के साथ सूखे तेज पत्ते अक्सर सूप, लंबे समय तक उबाले हुए व्यंजन, नॉन वेज डिश और सब्जी को बनाने का इस्‍तेमाल किया जा सकता है. अधिकांश व्यंजनों में 1-2 सूखे तेज पत्ते की आवश्यकता होती है क्योंकि बहुत अधिक उपयोग करने से पकवान कड़वा हो सकता है. इन्हें खाने से पहले भोजन से हटा देना चाहिए.
• हर किचन में धनिया पाउडर का इस्‍तेमाल मसाले के तौर पर किया जाता है. धनिए के पौधे से प्राप्त, यह मसाला खाने को और भी स्वादिष्ट व खुशबूदार बना देता है. यह खाने में मीठा और नमकीन स्वाद का मिश्रण जोड़ता है. इसलिए इसे किचन में जरूर होना चाहिए.
• हल्दी पाउडर, जो गर्म, थोड़ा कड़वा स्वाद, जो खाने में पीले रंग को जोड़ता है. जिससे पकवान सुंदर और आकर्षक दिखता है.
• दालचीनी पाउडर, एक मीठा और गर्म स्वाद जोड़ता है, जिसे अक्सर डेसर्ट में इस्तेमाल किया जाता है. बेकिंग के लिए यह खास होता है. दालचीनी पाउडर का इस्‍तेमाल आमतौर पर पाई, योगर्ट जैसी मिठाइयों के लिए किया जाता है, हालांकि इसका इस्‍तेमाल उन व्यंजनों में भी किया जा सकता है, जहां आप कुछ एक्‍स्‍ट्रा मिठास चाहते हैं.
• जो कोई भी थोड़ा मसालेदार खाना पसंद करता है, उसे अपनी किचन की अलमारी में लालमिर्च पाउडर के पाउडर अवश्य रखने चाहिए. ये भी अलग – अलग तीखेपन और स्वाद मे मिलता है, अगर तीखापन कम और केवल एक जायकेदार रंग चाहते है तो वैसी ही मिर्च मार्केट मे आसानी से मिल जाता है. लाल मिर्च पाउडर कई प्रकार करी वाली सब्जियों में एक सुंदर लाल रंग भी जोड़ता है.
• अदरक पाउडर, एक मसालेदार और थोड़ा मीठा स्वाद जोड़ता है. इसे करी या सब्जी बनाने व्यक्त डालने से इसकी अच्छी खुशबू फैलती है.
• गरम मसाला, किचन में अवश्य होना चाहिए. यह सौंफ, तेज पत्ते, लौंग, जीरा, धनिया के बीज जैसे मसालों का कॉम्बिनेशन है. सभी सामग्री को जोड़कर बाजार मे भी ये मसाले आसानी से उपलब्ध हो जाते है. यह किसी भी करी या सूखी रेसिपी में रिचनेस को जोड़ता है. गरम मसाले में बहुत सारे मसाले मौजूद होने की वजह से व्यंजन में खुशबू आती है और जायके में अंतर आता है.
कुछ खास मिक्सचर वालें मसालें
इसके अलावा कई और विभिन्न मिक्स मसाले उपलब्ध हैं, जिसका उपयोग और स्वाद व्यंजन और उसके बनाने के तरीके के आधार पर भिन्न होते हैं. ऐसे खास कॉमबीनेशन वाले मसाले का प्रयोग करना आसान होता है. कुछ निम्न है,
किचन किंग – किचन किंग मसाले विभिन्न व्यंजनों के लिए उपयोग किये जाने वाले सबसे बेहतरीन मसाला होता हैं, इसे किसी भी पकवान में डालना आसान होता है, जैसे कि दाल, सब्जी, चावल, सांभर आदि में एक अलग टेस्ट जोड़ता है. किचन किंग में प्रयोग किये जाने वाले मसालें धनिया के बीज, जीरा, लाल मिर्च, हल्दी, काली मिर्च, आयोडीन युक्त नमक, सूखा अदरक, सरसों, सौंफ, बीज, लहसुन, तेज पत्ता, मेथी के पत्ते, इलायची, लौंग, जायफल, हरी इलायची, जावित्री, हींग आदि सभी का मिश्रण होता है, जिससे खाना पकाने वाले को किसी प्रकार की दूसरे मसाले की ओर झाँकने की जरूरत नहीं पड़ती. एक पाँव गोभी की सब्जी में एक टेबल स्पून इस मसाले को डालने पर सब्जी स्वादिष्ट बन जाती है.
मीट मसाला – बाजार में अच्छे ब्रांड के मीट मसालें मिलते है. नॉन वेज खाने के शौकीन इस मसाले का आसानी से प्रयोग मटन या चिकन में कर सकते है. इस मसालें में धनिया के बीज, जीरा, लाल मिर्च, हल्दी, काली मिर्च, आयोडीन युक्त नमक, सूखा अदरक, सरसों, सौंफ, बीज, लहसुन, तेज पत्ता, मेथी के पत्ते, इलायची, लौंग, जायफल, हरी इलायची, जावित्री, हींग आदि होते है, जिसे आधा किलो मटन या चिकन में दो बड़े भूने हुए प्याज के साथ, दो बड़े चम्मच मीट मसाला मिलाने पर व्यंजन स्वादिष्ट बन जाता है.
पाँव भाजी मसाला – पाँव भाजी मसाला महाराष्ट्र का सबसे प्रिय मसाला है, इसमें धनिया के बीज, जीरा, काली इलायची, स्टार ऐनीज़, हरी इलायची, सौंफ़ के बीज, सूखे अदरक, लाल मिर्च, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग और सूखे आम पाउडर जैसे मूल मसालों से बना होता है, इसका प्रयोग बहुत आसान होता है. आधा किलों सभी सब्जियों के मिश्रण, मसलन पत्ता गोभी, फूल गोभी, बैगन, शिमला मिर्च , आलू, पालक आदि को उबाल कर तड़कें में 2 टेबल स्पून पाँव भाजी मसाला मिलाने पर टेस्टी बन जाता है.
छोले मसालें – छोले मसाले भी छोले बनाने का उत्तम मसाला होता है, जिसमें सूखी लाल मिर्च, सूखा लहसुन, अधरक का पाउडर, तिल, हल्दी, धनिया, तमालपत्र, चक्रफूल और सौंफ होते है. इसका प्रयोग आधे किलो छोले को अच्छी तरह उबालने के बाद तड़के में 2 टेबल स्पून छोले मसाला मिलाकर पका लें, स्वाद निखर आएगा.

सही मात्रा में मसालों का प्रयोग जानें

खाना बनाते समय सही मात्रा में मसाले कैसे डालें, यह सीखने का सबसे अच्छा तरीका अभ्यास और प्रयोग होता है. कुछ सुझाव निम्न है
1. किसी व्यंजन में छोटी मात्रा से मसाले डालना शुरू करना उचित होता है. अत्यधिक मसाले हटाने की तुलना में धीरे-धीरे अधिक मसाले डालना आसान होता है. पहले छोटी मात्रा से मसालें डालने शुरू करें और स्वाद के अनुसार समायोजित करें.
2. खाना पकाते समय हमेशा खाना चखें और समायोजित करें. इससे आपको यह निर्धारित करने में मदद मिलेगी कि क्या अधिक मसालों की आवश्यकता है या नहीं. अपने स्वाद पर भरोसा रखें और उसके अनुसार समायोजन करें.
3. यदि आप मसालों के साथ प्रयोग कर रहे हैं, तो उपयोग किए गए संयोजनों और मात्राओं का रिकॉर्ड रखें. इस तरह सफल इनग्रेडिएंट को वापस देख सकते हैं और भविष्य में उन्हें फिर से बना सकते हैं.
4. विभिन्न मसालों की तीव्रता और स्वाद अलग-अलग होते हैं. उन मसालों से परिचित होना जरूरी होता है.
5. शुरुआत करते समय, मापने वाले चम्मच का उपयोग करें. जैसे – जैसे आप अनुभव प्राप्त करते हैं, आप अपने ज्ञान पर भरोसा कर सकते हैं.
6. पारंपरिक मसालें की इनग्रेडिएंट के बारे में जानने के लिए विभिन्न व्यंजनों और उनके बनाने के तरीके को मैगज़ीन और ऑनलाइन देख सकते है. इससे व्यक्ति को कुछ मसाले एक साथ काम करने के बारें मे जानकारी होगी.
7. मसालों को संतुलित करने की प्रत्यक्ष तकनीक सीखने के लिए अनुभवी रसोइयों का निरीक्षण करें या खाना पकाने की कक्षाओं में शामिल हों.
असल में स्वाद की समझ विकसित करना और अपने पसंदीदा मसाले का स्तर ढूंढना एक व्यक्तिगत जर्नी है, जो समय, अभ्यास और प्रयोग करने की इच्छा के साथ – साथ विकसित होता है. इसलिए खाना बनाने से परहेज न करें, क्योंकि ये आपकी शारीरिक समृद्धि के साथ मानसिक तनाव को भी कम करती है.

जाने सिर दर्द से राहत पाने के टिप्स

सिर दर्द की शिकायत होना बहुत सामान्य है लेकिन सिर दर्द होने पर हमारी पूरी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है. सिर दर्द का सीधा असर हमारे व्यवहार और काम पर पड़ता है.

आमतौर पर ऐसी स्थिति में लोग झट से कोई दर्द-निवारक ले लेते हैं. पर हर बार दर्द-निवारक लेना सही नहीं है. इन दवाओं के कई साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं. जो शुरू में भले नजर न आएं लेकिन उनके खतरनाक परिणाम भविष्य में सामने आ सकते हैं. ऐसे में आप चाहें तो इन देसी उपायों से सिर दर्द पर काबू पा सकते हैं. इसमें से कई चीजें तो ऐसी हैं जो आपको आपके किचन में ही मिल जाएंगी.

इन देसी उपायों से दूर करें सिर दर्द-

1. सिर दर्द दूर करने के लिए सिरके का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहेगा. एक कप गर्म पानी में एक बड़ा चम्मच सिरका मिला लें. इन दोनों को अच्छी तरह मिला लीजिए. सिर दर्द में सिरके और गर्म पानी का ये घोल बहुत फायदेमंद रहेगा. पर इस बात का ध्यान रखें कि इसे पीने के 15 मिनट बाद तक कुछ भी खाएं या पिएं नहीं.

2. अगर सिर दर्द हल्का हो तो ग्रीन टी पीना भी फायदेमंद रहता है. ग्रीन टी में अच्छी मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो दर्द कम करने में मददगार होते हैं. आप चाहें तो इसमें शहद भी मिला सकते हैं. अगर दर्द तेज हो तो चाय में दालचीनी भी मिला सकते हैं.

3. मसाला चाय पीने से भी सिर दर्द दूर होता है. मसाले के रूप में आप दालचीनी और कालीमिर्च मिला सकते हैं. चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद रहेगा. अगर आपको अदरक का स्वाद पसंद है तो इसमें अदरक का अर्क भी मिला सकते हैं. अदरक एक अच्छा दर्द निवारक है.

4. सिर दर्द दूर करने का ये सबसे आसान तरीका है. सिर दर्द में गर्म पानी पीना फायदेमंद रहता है. दिनभर कुछ-कुछ मात्रा में गर्म पानी का सेवन करते रहें. गर्म पानी पीने से पाच‍न क्रिया भी बेहतर रहती है.

5. सिर दर्द में कॉफी पीना भी बहुत फायदेमंद है. एक ओर जहां कॉफी पीने से सिर दर्द में राहत मिलती है वहीं इसका बहुत अधिक सेवन नुकसानदेह भी हो सकता है.

मुझे यकीन है: गुलशन के ससुराल वाले क्या ताना देते थे ?

पढ़ीलिखी गुलशन की शादी मसजिद के मुअज्जिन हबीब अली के बेटे परवेज अली से धूमधाम से हुई. लड़का कपड़े का कारोबार करता था. घर में जमीनजायदाद सबकुछ था. गुलशन ब्याह कर आई तो पहली रात ही उसे अपने मर्द की असलियत का पता चल गया. बादल गरजे जरूर, पर ठीक से बरस नहीं पाए और जमीन पानी की बूंदों के लिए तरसती रह गई. वलीमा के बाद गुलशन ससुराल दिल में मायूसी का दर्द ले कर लौटी. खानदानी घर की पढ़ीलिखी लड़की होने के बावजूद सीधीसादी गुलशन को एक ऐसे आदमी को सौंप दिया गया, जो सिर्फ चारापानी का इंतजाम तो करता, पर उस का इस्तेमाल नहीं कर पाता था.

गुलशन को एक हफ्ते बाद हबीब अली ससुराल ले कर आए. उस ने सोचा कि अब शायद जिंदगी में बहार आए, पर उस के अरमान अब भी अधूरे ही रहे. मौका पा कर एक रात को गुलशन ने अपने शौहर परवेज को छेड़ा, ‘‘आप अपना इलाज किसी अच्छे डाक्टर से क्यों नहीं कराते?’’

‘‘तुम चुपचाप सो जाओ. बहस न करो. समझी?’’ परवेज ने कहा.

गुलशन चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर के अपने अरमानों को दबा कर सो गई. समय बीतता गया. ससुराल से मायके आनेजाने का काम चलता रहा. इस बात को दोनों समझ रहे थे, पर कहते किसी से कुछ नहीं थे. दोनों परिवार उन्हें देखदेख कर खुश होते कि उन के बीच आज तक तूतूमैंमैं नहीं हुई है. इसी बीच एक ऐसी घटना घटी, जिस ने गुलशन की जिंदगी बदल दी. मसजिद में एक मौलाना आ कर रुके. उन की बातचीत से मुअज्जिन हबीब अली को ऐसा नशा छाया कि वे उन के मुरीद हो गए. झाड़फूंक व गंडेतावीज दे कर मौलाना ने तमाम लोगों का मन जीत लिया था. वे हबीब अली के घर के एक कमरे में रहने लगे.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी के 2 साल हो गए, पर मुझे दादा बनने का सुख नहीं मिला. कहो तो मौलाना से तावीज डलवा दूं, ताकि इस घर को एक औलाद मिल जाए?’’ हबीब अली ने अपनी बहू गुलशन से कहा. गुलशन समझदार थी. वह ससुर से उन के बेटे की कमी बताने में हिचक रही थी. चूंकि घर में ससुर, बेटे, बहू के सिवा कोई नहीं रहता था, इसलिए वह बोली, ‘‘बाद में देखेंगे अब्बूजी, अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ हबीब अली ने कुछ नहीं कहा.

मुअज्जिन हबीब अली के घर में रहते मौलाना को 2 महीने बीत गए, पर उन्होंने गुलशन को देखा तक नहीं था. उन के लिए सुबहशाम का खाना खुद हबीब अली लाते थे. दिनभर मौलाना मसजिद में इबादत करते. झाड़फूंक के लिए आने वालों को ले कर वे घर आते, जो मसजिद के करीब था. हबीब अली अपने बेटे परवेज के साथ दुकान में रहते थे. वे सिर्फ नमाज के वक्त घर या मसजिद आते थे. मौलाना की कमाई खूब हो रही थी. इसी बहाने हबीब अली के कपड़ों की बिक्री भी बढ़ गई थी. वे जीजान से मौलाना को चाहते थे और उन की बात नहीं टालते थे. एक दिन दोपहर के वक्त मौलाना घर आए और दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘जी, कौन है?’’ गुलशन ने अंदर से ही पूछा.

‘‘मैं मौलाना… पानी चाहिए.’’

‘‘जी, अभी लाई.’’

गुलशन पानी ले कर जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर निकली, गुलशन के जवां हुस्न को देख कर मौलाना के होश उड़ गए. लाजवाब हुस्न, हिरनी सी आंखें, सफेद संगमरमर सा जिस्म… मौलाना गुलशन को एकटक देखते रहे. वे पानी लेना भूल गए.

‘‘जी पानी,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘लाइए,’’ मौलाना ने मुसकराते हुए कहा.

पानी ले कर मौलाना अपने कमरे में लौट आए, पर दिल गुलशन के कदमों में दे कर. इधर गुलशन के दिल में पहली बार किसी पराए मर्द ने दस्तक दी थी. मौलाना अब कोई न कोई बहाना बना कर गुलशन को आवाज दे कर बुलाने लगे. इधर गुलशन भी राह ताकती कि कब मौलाना उसे आवाज दें. एक दिन पानी देने के बहाने गुलशन का हाथ मौलाना के हाथ से टकरा गया, उस के बाद जिस्म में सनसनी सी फैल गई. मुहब्बत ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था. ऊपरी मन से मौलाना ने कहा, ‘‘सुनो मियां हबीब, मैं कब तक तुम्हारा खाना मुफ्त में खाऊंगा. कल से मेरी जिम्मेदारी सब्जी लाने की. आखिर जैसा वह तुम्हारा बेटा, वैसा मेरा भी बेटा हुआ. उस की बहू मेरी बहू हुई. सोच कर कल तक बताओ, नहीं तो मैं दूसरी जगह जा कर रहूंगा.’’

मुअज्जिन हबीब अली ने सोचा कि अगर मौलाना चले गए, तो इस का असर उन की कमाई पर होगा. जो ग्राहक दुकान पर आ रहे हैं, वे नहीं आएंगे. उन को जो इज्जत मौलाना की वजह से मिल रही है, वह नहीं मिलेगी. इस समय पूरा गांव मौलाना के अंधविश्वास की गिरफ्त में था और वे जबरदस्ती तावीज, गंडे, अंगरेजी दवाओं को पीस कर उस में राख मिला कर इलाज कर रहे थे. हड्डियों को चुपचाप हाथों में रख कर भूतप्रेत निकालने का काम कर रहे थे. बापबेटे दोनों ने मौलाना से घर छोड़ कर न जाने की गुजारिश की. अब मौलाना दिखाऊ ‘बेटाबेटी’ कह कर मुअज्जिन हबीब अली का दिल जीतने की कोशिश करने लगे. नमाज के बाद घर लौटते हुए हबीब अली ने मौलाना से कहा, ‘‘जनाब, आप इसे अपना ही घर समझिए. आप की जैसी मरजी हो वैसे रहें. आज से आप घर पर ही खाना खाएंगे, मुझे गैर न समझें.’’ मौलाना के दिल की मुराद पूरी हो गई. अब वे ज्यादा वक्त घर पर गुजारने लगे. बाहर के मरीजों को जल्दी से तावीज दे कर भेज देते. इस काम में अब गुलशन भी चुपकेचुपके हाथ बंटाने लगी थी.

तकरीबन 6 महीने का समय बीत चुका था. गुलशन और मौलाना के बीच मुहब्बत ने जड़ें जमा ली थीं. एक दिन मौलाना ने सोचा कि आज अच्छा मौका है, गुलशन की चाहत का इम्तिहान ले लिया जाए और वे बिस्तर पर पेट दर्द का बहाना बना कर लेट गए. ‘‘मेरा आज पेट दर्द कर रहा है. बहुत तकलीफ हो रही है. तुम जरा सा गरम पानी से सेंक दो,’’ गुलशन के सामने कराहते हुए मौलाना ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पानी गरम करने चली गई. थोड़ी देर बाद वह नजदीक बैठ कर मौलाना का पेट सेंकने लगी. मौलाना कभीकभी उस का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर घुमाने लगे.

थोड़ा सा झिझक कर गुलशन मौलाना के पेट पर हाथ फिराने लगी. तभी मौलाना ने जोश में गुलशन का चुंबन ले कर अपने पास लिटा लिया. मौलाना के हाथ अब उस के नाजुक जिस्म के उस हिस्से को सहला रहे थे, जहां पर इनसान अपना सबकुछ भूल जाता है. आज बरसों बाद गुलशन को जवानी का वह मजा मिल रहा था, जिस के सपने उस ने संजो रखे थे. सांसों के तूफान से 2 जिस्म भड़की आग को शांत करने में लगे थे. जब तूफान शांत हुआ, तो गुलशन उठ कर अपने कमरे में पहुंच गई.

‘‘अब्बू, मुझे यकीन है कि मौलाना के तावीज से जरूर कामयाबी मिलेगी,’’ गुलशन ने अपने ससुर हबीब अली से कहा.

‘‘हां बेटी, मुझे भी यकीन है.’’

अब हबीब अली काफी मालदार हो गए थे. दिन काफी हंसीखुशी से गुजर रहे थे. तभी वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मुअज्जिन हबीब अली की जिंदगी में अंधेरा छा गया. एक दिन हबीब अली अचानक किसी जरूरी काम से घर आए. दरवाजे पर दस्तक देने के काफी देर बाद गुलशन ने आ कर दरवाजा खोला और पीछे हट गई. उस का चेहरा घबराहट से लाल हो गया था. बदन में कंपकंपी आ गई थी. हबीब अली ने अंदर जा कर देखा, तो गुलशन के बिस्तर पर मौलाना सोने का बहाना बना कर चुपचाप मुंह ढक कर लेटे थे. यह देख कर हबीब अली के हाथपैर फूल गए, पर वे चुपचाप दुकान लौट आए.

‘‘अब क्या होगा? मुझे डर लग रहा है,’’ कहते हुए गुलशन मौलाना के सीने से लिपट गई.

कुछ नहीं होगा. हम आज ही रात में घर छोड़ कर नई दुनिया बसाने निकल जाएंगे. मैं शहर से गाड़ी का इंतजाम कर के आता हूं. तुम तैयार हो न?’’ ‘‘मैं तैयार हूं. जैसा आप मुनासिब समझें.’’ मौलाना चुपचाप शहर चले गए. मौलाना को न पा कर हबीब अली ने समझा कि उन के डर की वजह से वह भाग गया है.

सुबह हबीब अली के बेटे परवेज ने बताया, ‘‘अब्बू, गुलशन भी घर पर नहीं है. मैं ने तमाम जगह खोज लिया, पर कहीं उस का पता नहीं है. वह बक्सा भी नहीं है, जिस में गहने रखे हैं.’’ हबीब अली घबरा कर अपनी जिंदगी की कमाई और बहू गुलशन को खोजने में लग गए. पर गुलशन उन की पहुंच से काफी दूर जा चुकी थी, मौलाना के साथ अपना नया घर बसान.

एहसास: कौन सी बात ने झकझोर दिया सविता का अस्तित्व?

नियत समय पर घड़ी का अलार्म बज उठा. आवाज सुन कर मधु चौंक पड़ी. देर रात तक घर का सब काम निबटा कर वह सोने के लिए गई थी लेकिन अलार्म बजा है तो अब उसे उठना ही होगा क्योंकि थोड़ा भी आलस किया तो बच्चों की स्कूल बस मिस हो जाएगी.

मधु अनमनी सी बिस्तर से बाहर निकली और मशीनी ढंग से रोजमर्रा के कामों में जुट गई. तब तक उस की काम वाली बाई भी आ पहुंची थी. उस ने रसोई का काम संभाल लिया और मधु 9 साल के रोहन और 11 साल की स्वाति को बिस्तर से उठा कर स्कूल भेजने की तैयारी में जुट गई.

उसी समय बच्चों के पापा का फोन आ गया. बच्चों ने मां की हबड़दबड़ की शिकायत की और मधु को सुनील का उलाहना सुनना पड़ा कि वह थोड़ा जल्दी क्यों नहीं उठ जाती ताकि बच्चों को प्यार से उठा कर आराम से तैयार कर सके.

मधु हैरान थी कि कुछ न करते हुए भी सुनील बच्चों के अच्छे पापा बने हुए हैं और वह सबकुछ करते हुए भी बच्चों की गंदी मम्मी बन गई है. कभीकभी तो मधु को अपने पति सुनील से बेहद ईर्ष्या होती.

सुनील सेना में कार्यरत था. वह अपने परिवार का बड़ा बेटा था. पिता की मौत के बाद मां और 4 छोटे भाईबहनों की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. चूंकि सुनील का सारा परिवार दूसरे शहर में रहता था अत: छुट्टी मिलने पर उस का ज्यादातर समय और पैसा उन की जरूरतें पूरी करने में ही जाता था, ऐसे में मधु अपनी नौकरी छोड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

सुबह से रात तक की भागदौड़ के बीच पिसती मधु अपने इस जीवन से कभीकभी बुरी तरह खीज उठती पर बच्चों की जिद और उन की अनंत मांगें उस के धैर्य की परीक्षा लेती रहतीं. दिन भर आफिस में कड़ी मेहनत के बाद शाम को बच्चों को स्कूल  से लेना, फिर बाजार के तमाम जरूरी काम निबटाते हुए घर लौटना और शाम का नाश्ता, रात का खाना बनातेबनाते बच्चों को होमवर्क कराना, इस के बाद भी अगर कहीं किसी बच्चे के नंबर कम आए तो सुनील उसे दुनिया भर की जलीकटी सुनाता.

सुनील के कहे शब्द मधु के कानों में लावा बन कर दहकते रहते. मधु को लगता कि वह एक ऐसी असहाय मकड़ी है जो स्वयं अपने ही बुने तानेबाने में बुरी तरह उलझ कर रह गई है. ऐसे में वह खुद को बहुत ही असहाय पाती. उसे लगता, जैसे उस के हाथपांव शिथिल होते जा रहे हैं और सांस लेने में भी उसे कठिनाई हो रही है पर अपने बच्चों की पुकार पर वह जैसेतैसे स्वयं को समेट फिर से उठ खड़ी होती.

बच्चों को तैयार कर मधु जब तक उन्हें ले कर बस स्टाप पर पहुंची, स्कूल बस जाने को तैयार खड़ी थी. बच्चों को बस में बिठा कर उस ने राहत की सांस ली और तेज कदम बढ़ाती वापस घर आ पहुंची.

घर आ कर मधु खुद दफ्तर जाने के लिए तैयार हुई. नाश्ता व लंच दोनों पैक कर के रख लिए कि समय से आफिस  पहुंच कर वहीं नाश्ता  कर लेगी. बैग उठा कर वह चलने को हुई कि फोन की घंटी बज उठी.

फोन पर सुनील की मां थीं जो आज के दिन को खास बताती हुई उसे याद से गाय के लिए आटे का पेड़ा ले जाने का निर्देश दे रही थीं. उन का कहना था कि आज के दिन गाय को आटे का पेड़ा खिलाना पति के लिए शुभ होता है. तुम दफ्तर जाते समय रास्ते में किसी गाय को आटे का बना पेड़ा खिला देना.

फोन रख कर मधु ने फ्रिज खोला. डोंगे में से आटा निकाला और उस का पेड़ा बना कर कागज में लपेट कर साथ ले लिया. उसे पता था कि अगर सुनील को एक छींक भी आ गई तो सास उस का जीना दूभर कर देंगी.

घर को ताला लगा मधु गाड़ी स्टार्ट कर दफ्तर के लिए चल दी. घर से दफ्तर की दूरी कुल 7 किलोमीटर थी पर सड़क पर भीड़ के चलते आफिस पहुंचने में 1 घंटा लगता था. रास्ते में गाय मिलने की संभावना भी थी, इसलिए उस ने आटे का पेड़ा अपने पास ही रख लिया था.

गाड़ी चलाते समय मधु की नजरें सड़क  पर टिकी थीं पर उस का दिमाग आफिस के बारे में सोच रहा था. आफिस में अकसर बौस को उस से शिकायत रहती कि चाहे कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, न तो वह कभी शाम को देर तक रुक पाती है और न ही कभी छुट्टी के दिन आ पाती है. इसलिए वह कभी भी अपने बौस की गुड लिस्ट में नहीं रही. तारीफ के हकदार हमेशा उस के सहयोगी ही रहते हैं, फिर भले ही वह आफिस टाइम में कितनी ही मेहनत क्यों न कर ले.

मधु पूरी रफ्तार से गाड़ी दौड़ा रही थी कि अचानक उस के आगे वाली 3-4 गाडि़यां जोर से ब्रेक लगने की आवाज के साथ एकदूसरे में भिड़ती हुई रुक गईं. उस ने भी अपनी गाड़ी को झटके से ब्रेक लगाए तो अगली गाड़ी से टक्कर होतेहोते बची. उस का दिल जोर से धड़क उठा.

मधु ने गाड़ी से बाहर नजर दौड़ाई तो आगे 3-4 गाडि़यां एकदूसरे से भिड़ी पड़ी थीं. वहीं गाडि़यों के एक तरफ  एक मोटरसाइकिल उलट गई थी और उस का चालक एक तरफ खड़ा  बड़ी मुश्किल से अपना हैलमेट उतार रहा था.

हैलमेट उतारने के बाद मधु ने जब उस का चेहरा देखा तो दहशत से पीली पड़ गई. सारा चेहरा खून से लथपथ था.

सड़क के बीचोंबीच 2 गायें इस हादसे से बेखबर खड़ी सड़क पर बिखरा सामान खाने में जुटी थीं. जैसे ही गाडि़यों के चालकों ने मोटरसाइकिल चालक की ऐसी दुर्दशा देखी, उन्होंने अपनी गाडि़यों के नुकसान की परवा न करते हुए ऐसे रफ्तार पकड़ी कि जैसे उन के पीछे पुलिस लगी हो.

मधु की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आज एक बेहद जरूरी मीटिंग थी और बौस ने खासतौर से उसे लेट न होने की हिदायत दी थी लेकिन अब जो स्थिति उस के सामने थी उस में उस का दिल एक युवक को यों छोड़ कर  आगे बढ़ जाने को तैयार नहीं था.

मधु ने अपनी गाड़ी सड़क  के किनारे लगाई और उस घायल व्यक्ति के पास जा पहुंची. वह युवक अब भी अपने खून से भीगे चेहरे को रूमाल से साफ कर रहा था. मगर  बालों से रिसरिस कर खून चेहरे को भिगो रहा था.

मधु ने पास जा कर उस युवक से घबराए स्वर में पूछा, ‘‘क्या मैं आप की कोई मदद कर सकती हूं?’’

युवक ने दर्द से कराहते हुए बड़ी मुश्किल से आंखें खोलीं तो उस की आंखों में जो भाव मधु ने देखे उसे देख कर वह डर गई.  उस ने भर्राए स्वर में मधु से कहा, ‘‘ओह, तो अब तुम मेरी मदद करना चाहती हो ? तुम्हीं  ने वह खाने के सामान से भरा लिफाफा  चलती गाड़ी से उन गायों की तरफ फेंका था न?’’

मधु चौंक उठी, ‘‘कौन सा खाने का लिफाफा?’’

युवक भर्राए स्वर में बोला, ‘‘वही खाने का लिफाफा जिसे देख कर सड़क के किनारे  खड़ी गायें एकाएक सड़क के बीच दौड़ पड़ीं और यह हादसा हो गया.’’

अब मधु की समझ में सारा किस्सा आ गया. तेज गति से सड़क पर जाते वाहनों के आगे एकाएक गायोें का भाग कर आना, वाहनों का अपनी रफ्तार पर काबू पाने के असफल प्रयास में एकदूसरे से भिड़ना और किन्हीं 2 कारों के बीच फंस कर उलट गई मोटरसाइकिल के इस सवार का इस कदर घायल होना.

यह सब समझ में आने के साथ ही मधु को यह भी एहसास हुआ कि वह युवक उसे ही इस हादसे का जिम्मेदार समझ रहा है. वह इस बात से अनजान है कि मधु की गाड़ी तो सब से पीछे थी.

मधु का सर्वांग भय से कांप उठा. फिर भी अपने भय पर काबू पाते हुए वह उस युवक से बोली, ‘‘देखिए, आप गलत समझ रहे हैं. मैं तो अपनी…’’

वह युवक दर्द से कराहते हुए जोर से चिल्लाया, ‘‘गलत मैं नहीं, तुम हो, तुम…यह कोई तरीका है गाय को खिलाने का…’’ इतना कह युवक ने अपनी खून से भीगी कमीज की जेब से अपना सैलफोन निकाला. मधु को लगा कि वह शायद पुलिस को बुलाने की फिराक में है. उस की आंखों के आगे अपने बौस का चेहरा घूम गया, जिस से उसे किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद नहीं थी. उस की आंखों के आगे अपने नन्हे  बच्चों के चेहरे घूम गए, जो उस के थोड़ी भी देर करने पर डरेडरे एकदूसरे का हाथ थामे सड़क पर नजर गड़ाए स्कूल के गेट के पास उस के इंतजार में खडे़ रहते थे.

मधु ने हथियार डाल दिए. उस घायल युवक की नजरों से बचती वह भारी कदमों से अपनी गाड़ी तक पहुंची… कांपते हाथों से गाड़ी स्टार्ट की और अपने रास्ते पर चल दी. लेकिन जातेजाते भी वह यही सोच रही थी कि कोई भला इनसान उस व्यक्ति की मदद के लिए रुक जाए.

आफिस पहुंचते ही बौस ने उसे जलती आंखों से देख कर व्यंग्य बाण छोड़ा, ‘‘आ गईं हर हाइनेस, बड़ी मेहरबानी की आज आप ने हम पर, इतनी जल्दी पहुंच कर. अब जरा पानी पी कर मेरे डाक्यूमेंट्स तैयार कर दें, हमें मीटिंग में पहुंचने के लिए तुरंत निकलना है.’’

मधु अपनी अस्तव्यस्त सांसों के बीच अपने मन के भाव दबाए मीटिंग की तैयारी में जुट गई. सारा दिन दफ्तर के कामों की भागदौड़ में कैसे और कब बीत गया, पता ही नहीं चला. शाम को वक्त पर काम निबटा कर वह बच्चों के स्कूल पहुंची. उस का मन कर रहा था कि आज वह कहीं और न जा कर सीधी घर पहुंच जाए. पर दोनों बच्चों ने बाजार से अपनीअपनी खरीदारी की लिस्ट पहले से ही बना रखी थी.

हार कर मधु ने गाड़ी बाजार की तरफ मोड़ दी. तभी रोहन ने कागज में लिपटे आटे के पेड़े को हाथ में ले कर पूछा, ‘‘ममा, यह क्या है?’’

मधु चौंक कर बोली, ‘‘ओह, यह यहीं रह गया…यह आटे का पेड़ा है बेटा, तुम्हारी दादी ने कहा था कि सुबह इसे गाय को खिला देना.’’

‘‘तो फिर आप ने अभी तक इसे गाय को खिलाया क्यों नहीं?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘वह, बस ऐसे ही, कोई गाय दिखी ही नहीं…’’ मधु ने बात को टालते हुए कहा.

तभी गाड़ी एक स्पीड बे्रकर से टकरा कर जोर से उछल गई तो रोहन चिल्लाया, ‘‘ममा, क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘ममा, गाड़ी ध्यान से चलाइए,’’ स्वाति बोली.

‘‘सौरी बेटा,’’ मधु के स्वर में बेबसी थी. वह चौकन्नी हो कर गाड़ी चलाने लगी. बाजार का सारा काम निबटाने के बाद उस ने बच्चों के लिए बर्गर पैक करवा लिए. घर जा कर खाना बनाने की हिम्मत उस में नहीं बची थी. घर पहुंच कर उस ने बच्चों को नहाने के लिए भेजा और खुद सुबह की तैयारी में जुट गई.

बच्चों को खिलापिला कर मधु ने उन का होमवर्क जैसेतैसे पूरा कराया और फिर खुद दर्द की एक गोली और एक कप गरम दूध ले कर बिस्तर पर निढाल हो गिर पड़ी तो उस का सारा बदन दर्द से टूट रहा था और आंखें आंसुओं से तरबतर थीं.

रोहन और स्वाति अपनी मां का यह हाल देख कर दंग रह गए. ऐसे तो उन्होंने पहले कभी अपनी मां को नहीं देखा था. दोनों बच्चे मां के पास सिमट आए.

‘‘ममा, क्या हुआ? आप रो क्यों रही हैं?’’ रोहन बोला.

‘‘ममा, क्या बात हुई है? क्या आप मुझे नहीं बताओगे?’’ स्वाति ने पूछा.

मधु को लगा कि कोई तो उस का अपना है, जिस से वह अपने मन की बात कह सकती है. अपनी सिसकियों पर जैसेतैसे नियंत्रण कर उस ने रुंधे कंठ से बच्चों को सुबह की दुर्घटना के बारे मेें संक्षेप में बता दिया.

‘‘कितनी बेवकूफ औरत थी वह, उसे गाय को ऐसे खिलाना चाहिए था क्या?’’ रोहन बोला.

‘‘हो सकता है बेटा, उसे भी उस की सास ने ऐसा करने को कहा हो जैसे तुम्हारी दादी ने मुझ से कहा था,’’ मधु ने फीकी हंसी के साथ कहा. वह बच्चों का मन उस घटना की गंभीरता से हटाना चाहती थी ताकि जिस डर और दहशत से वह स्वयं अभी तक कांप रही है, उस का असर बच्चों के मासूम मन पर न पडे़.

‘‘ममा, आप उस आदमी को ऐसी हालत में छोड़ कर चली कैसे गईं? आप कम से कम उसे अस्पताल तो पहुंचा देतीं और फिर आफिस चली जातीं,’’ रोहन के स्वर में हैरानी थी.

‘‘बेटा, मैं अकेली औरत भला क्या करती? दूसरा कोई तो रुक तक नहीं रहा था,’’ मधु ने अपनी सफाई देनी चाही.

‘‘क्या ममा, वैसे तो आप मुझे आदमीऔरत की बराबरी की बातें समझाते नहीं थकतीं लेकिन जब कुछ करने की बात आई तो आप अपने को औरत होने की दुहाई देने लगीं? आप की इस लापरवाही से क्या पता अब तक वह युवक मर भी गया हो,’’ स्वाति ने कहा.

अब मधु को एहसास हो चला था कि उस की बेटी बड़ी हो गई है.

‘‘ममा, आज की इस घटना को भूल कर प्लीज, आप अब लाइट बंद कीजिए और सो जाइए. सुबह जल्दी उठना है,’’ स्वाति ने कहा तो मधु हड़बड़ा कर उठ बैठी और कमरे की बत्ती बंद कर खुद बाथरूम में मुंह धोने चली गई.

दोनों बच्चे अपनेअपने बेड पर सो गए. मधु ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर अपना चेहरा जब आईने में देखा तो उस पर सवालिया निशान पड़ रहे थे. उसे लगा, उस का ही नहीं यहां हर औरत का चेहरा एक सवालिया निशान है. औरत चाहे खुद को कितनी भी सबल समझे, पढ़लिख जाए, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाए पर रहती है वह औरत ही. दोहरीतिहरी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी, बेसहारा…औरत कुछ भी कर ले, कहीं भी पहुंच जाए, रहेगी तो औरत ही न. फिर पुरुषों से मुकाबले और समानता का दंभ और पाखंड क्यों?

मधु को लगा कि स्त्री, पुरुष की हथेली पर रखा वह कोमल फूल है जिसे पुरुष जब चाहे सहलाए और जब चाहे मसल दे. स्त्री के जन्मजात गुणों में उस की कोमलता, संवेदनशीलता, शारीरिक दुर्बलता ही तो उस के सब से बडे़ शत्रु हैं. इन से निजात पाने के लिए तो उसे अपने स्त्रीत्व का ही त्याग करना होगा.

मधु अब तक शरीर और मन दोनों से बुरी तरह थक चुकी थी. उसे लगा, आज तक वह अपने बच्चों को जो स्त्रीपुरुष की समानता के सिद्धांत समझाती आई है वह वास्तव में नितांत खोखले और बेबुनियाद हैं. उसे अपनी बेटी को इन गलतफहमियों से दूर ही रखना होगा और स्त्री हो कर अपनी सारी कमियों और कमजोरियों को स्वीकार करते हुए समाज में अपनी जगह बनाने के लिए सक्षम बनाना होगा. यह काम मुश्किल जरूर है, पर नामुमकिन नहीं.

रात बहुत हो चुकी थी. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. मधु ने एकएक कर दोनों बच्चों का माथा सहलाया. स्वाति को प्यार करते हुए न जाने क्यों मधु की आंखों में पहली बार गर्व का स्थान नमी ने ले लिया. उस ने एक बार फिर झुक कर अपनी मासूम बेटी का माथा चूमा और फिर औरत की रचना कर उसे सृष्टि की जननी का महान दर्जा देने वाले को धन्यवाद देते हुए व्यंग्य से मुसकरा दी. अब उस की पलकें नींद से भारी हो रही थीं और उस के अवचेतन मन में एक नई सुबह का खौफ था, जब उसे उठ कर नए सिरे से संघर्ष करना था और नई तरह की स्थितियों से जूझते हुए स्वयं को हर पग पर चुनौतियों का सामना करना था.

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शादी के 2 साल भी गर्भवती नहीं हो सकी हूं?

सवाल-

मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक गर्भवती नहीं हो सकी हूं. डाक्टरी जांच में मेरी रिपोर्ट ठीक है. पति के शुक्राणुओं की संख्या भी 32 मिलियन पाई गई है. डाक्टरों के अनुसार यह संख्या संतोषजनक है, बावजूद इस के मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही हूं. इस का क्या कारण हो सकता है?

जवाब-

हां, आप के पति के शुक्राणुओं की संख्या संतोषजनक है. आपकी जांच रिपोर्ट भी नौर्मल है, इसलिए किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले आप को सलाह है कि आप हताश न हो कर प्रयास करते रहें. कोशिश करें कि पति से उन दिनों संबंध अवश्य बनाएं जब किसी औरत के गर्भवती होने की संभावना अधिक रहती है. उदाहरण के तौर पर अगर आप को मासिकधर्म महीने की पहली तारीख को आता है, तो आप दोनों को चाहिए कि 8 से ले कर 20 तारीख के बीच आप संबंध अवश्य बनाएं. अगर इस के बाद भी समस्या आती है तो आप आईयूआई तकनीक का सहारा ले सकती हैं.

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मां बनने का एहसास हर महिला के लिए सुखद होता है. लेकिन यदि किसी कारण से एक महिला मां के सुख से वंचित रह जाए तो उसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि, कंसीव न कर पाने के कई कारण होते हैं लेकिन यह एक महिला के जीवन को बेहद मुश्किल और दुखद बना देता है. दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है. इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है. जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है तो समाज उसे हीन भावना से देखने लगता है. इस कारण से एक महिला को लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ती है जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. ऐसी महिलाएं उम्मीद करती हैं कि लोग उनकी स्थित और भावनाओं को समझेंगे. परिवार और दोस्तों से बात करके उन्हें कुछ हद तक अच्छा महसूस होता है इसलिए ऐसे समय में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचें क्योंकि गर्भवती महिला या बच्चों को देखकर आप डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं.

 

खाने का स्वाद बढ़ाए लहसुन का अचार

खाने के साथ अचार खाने के शौकीन बहुत से लोग होते हैं. अचार से खाने का स्वाद और बढ़ जाता है. अचार कई चीजों का होता है लेकिन आज हम आपको लहसुन का अचार बनाने की रेसिपी बताएंगे, जिसे आप काफी आसानी से बना सकती हैं. लहसुन का अचार सेहत के लिए लाभदायक होने के साथ साथ खाने में भी बड़ा टेस्टी होता है. आईए जानते है इसे बनाने की विधि.

सामग्री

50 मिलीलीटर तेल

2 चम्मच सरसों के दानें

280 ग्राम लहसुन की कलियां

1/2 चम्मच हल्दी

1 चम्मच लाल मिर्च

1 चम्मच जीरा

1/2 चम्मच मेथी

1/8 चम्मच हींग

50 मिलीलीटर नींबू का रस

1 चम्मच काली मिर्च

1 बड़ा चम्मच नमक

विधि

सबसे पहले गर्म पैन में 50 मि.ली तेल, 2 चम्मच सरसों के दानें, 280 ग्राम लहसुन की कलियां, 1/2 चम्मच हल्दी, 1 चम्मच लाल मिर्च , 1 चम्मच जीरा, 1/2 चम्मच मेथी, 1/8 चम्मच हींग डालें. अब इसे 3-5 मिनट तक के लिए तलते रहें.

अब इसमें 1 चम्मच काली मिर्च, 50 मि.ली नींबू का रस, 1 बड़ा चम्मच नमक डालकर अच्छे से मिक्स कर लें. फिर 15-20 मिनट के लिए कम आंच पर पकाएं. आंच से उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें.

अब लहसुन के अचार बनकर तैयार है. इसे एयर टाइट कंटेनर में डालकर फ्रिज में रख दें.

यह थेरैपी बीमारी करे जड़ से खत्म

इनाया का जन्म आम बच्चे की तरह हुआ था. लेकिन जन्म के पहले सप्ताह में उस के मातापिता ने पाया कि उस की कलाइयां मुड़ी सी लग रही हैं. उस के पांव भी मुड़े पाए. 3 महीने होतेहोते उस की आंखों और गरदन का हिलना झटके से होने लगा. यह देख कर माता पिता हैरान हो गए और फिर डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने कई दवाएं दीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

6 महीने की आयु में उसे मिरगी के दौरे भी पड़ने लगे. जब भी दौरा पड़ता उस के हाथपांव पूरी तरह मुड़ जाते. जब दौरे ज्यादा पड़ने लगे तब किसी दोस्त के कहने पर मातापिता बच्ची को ले कर ‘स्टेम आर ऐक्स हौस्पिटल’ गए. वहां के स्टेम सैल ट्रांसप्लांट सर्जन डा. प्रदीप महाजन से मिले और बेटी का इलाज करवाया.

डा. का इस बारे में कहना है कि कम उम्र में इस थेरैपी के प्रयोग से पहले काफी जांचें करनी पड़ती हैं. मेसेनकिमल स्टेम सैल्स प्रक्रिया में इतनी क्षमता होती है कि वह कठिन रोगों को ठीक कर सकती है. इस बच्ची को 21 दिनों के लिए सैल्युलर थेरैपी 3 सत्रों में दी गई. इस से उसे काफी लाभ पहुंचा. वह बहुत हद तक नौर्मल हो चुकी है.

एक सैल यानी कोशिका से जीवन बनता है. क्या आप ने कभी सोचा कि इसी सैल से ही असाध्य रोगों का इलाज संभव है? मुंबई के सैवन हिल्स हौस्पिटल में जहां अब तक करीब 2 हजार मरीज अपना इलाज करवा चुके हैं, की चीफ औपरेटिंग औफिसर डा. रुचा पोंक्शे बताती हैं कि स्टेम सैल का प्रयोग सालों से होता आ रहा है. जिस रोगी को और्गन कैंसर होता था वहां उस के शरीर से स्टेम सैल निकाल कर कीमोथेरैपी के साथ दिए जाते थे ताकि कीमोथेरैपी अच्छी तरह से रोगी सह सके और उस का परिणाम अच्छा हो. कभी बीमारी ठीक हुई तो कभी नहीं, क्योंकि इसे कस्टमाइज्ड नहीं किया गया.

इलाज संभव है

पिछले 10 सालों से बच्चों के जन्म के बाद उस की नाल को रखने की विधि चलन में आई है. उस में अधिक से अधिक स्टेम सैल पाए जाते हैं, जिन का प्रयोग किसी कठिन रोग के इलाज के लिए किया जाता है. स्टेम सैल का इलाज मुंबई में पिछले 4 साल से हो रहा है.

बड़े होने पर भी हमारे अंदर ‘मदरसैल’ रहते हैं, जो जीवन के अंत तक रहते हैं. उन का प्रयोग इंटरनली रिपेयर, वियर ऐंड टियर में होता रहता है, जिस में नहाना, पेट के अंदर के सैल का बदलना, इन सब में स्टेम सैल का हाथ रहता है. इस पेशी का एक लाइफटाइम पहले से होता है, जो आप की आयु को बताती है. जैसे ही उम्र का बढ़ना चालू होता है वैसे ही स्टेम सैल की शक्ति कम होती जाती है. हम यहां उन व्यक्तियों के लिए काम करते हैं जिन्हें हाइपरटैंशन, मधुमेह आदि बीमारियां हो गई हों. ऐसे में उस शरीर के सैल्स को ले कर उस जगह पर डाल कर इलाज कर सकते हैं. परेशानी होने पर जल्दी डाक्टर के पास जाने से अच्छा रिजल्ट मिलता है. इस के अधिक उपयोगी होने की वजह यह है कि इसे रोगी के शरीर से निकाल कर उसे अच्छी तरह प्रोसैस कर फिर रोगी के अंदर डाला जाता है. इस के प्रोसैस निम्न हैं:

– पहले रोगी की काउंसलिंग कर उसे समझाया जाता है. अगर वह राजी हुआ तो इलाज शुरू किया जाता है.

– ‘बोनमैरो’ में हमेशा सैल्स तैयार होते रहते हैं. यह मशीनरी है, जो सैल्स तैयार करती है.

– स्टेम सैल्स हर व्यक्ति किसी भी उम्र में दे कर अपना इलाज करवा सकता है.

– स्टेम सैल्स को बोनमैरो या बौडी के ऊपर जो फैट रहता है उस में से ऐनेस्थीसिया कर निकाला जाता है, जिस तरह की बीमारी है उस तरह का कौंबिनेशन बनाया जाता है. सैल्स का भी वैसा ही कौंबिनेशन बनाना जरूरी होता है ताकि अच्छी तरह के स्टेम सैल्स निकलें. इस प्रक्रिया में 2-3 घंटे का समय लगता है.

– कई लोगों में आईवी के जरीए नौर्मल डोज दी जाती है. किसी में अगर हड्डियों की बीमारी है तो ब्रेन या स्पाइनल कौर्ड में इंजैक्शन देना आवश्यक होता है.

– ‘मस्कुलर डिस्ट्रोफी’ होने पर उन में जो कमजोर मांसपेशी है उसे पहचान कर वहां पर इंजैक्शन दिया जाता है.

– अगर किसी को ‘गैगरीन’ जैसी बीमारी है जिस में पांव काटना पड़ रहा है तो उस घाव के आसपास के एरिया में इंजैक्शन देते हैं.

– डोज का भी बंटवारा रोग के आधार पर पहले से ही तय करना पड़ता है.

डा. प्रदीप महाजन आगे कहते हैं कि यह थेरैपी अभी तक लोगों में अधिक प्रचलित नहीं है. यह साधारण चिकित्सा नहीं है. यह कस्टमाइज्ड विधि है. एक बीमारी के साथ कई बीमारियां होती हैं, इसलिए सब का पता कर फिर इलाज किया जाता है. यह ट्रीटमैंट दिन में 1 या 2 ही किया जा सकता है. नी रिप्लेसमैंट, हिप रिप्लेसमैंट, कैंसर, मधुमेह, किडनी का खराब हो जाना, स्पाइनल कौर्ड इंजरी, गठिया के दर्द आदि सभी का इलाज संभव है. आगे जा कर कई जैनेटिक डिसऔर्डर को भी यह थेरैपी ठीक कर सकेगी. जन्म से पहले अगर बच्चे की कमी को जान कर मां को पहले ही उस कम हुई सैल्स का इंजैक्शन दे दिया जाए तो बच्चे की स्वस्थ डिलिवरी भी हो सकेगी. थोड़े दिनों में स्टेम सैल ड्रग डिलिवरी का काम करेगी.

किसी को इस तरह के इलाज की आवश्यकता है और उस के पास पैसे कम हैं तो डा. महाजन फ्री में भी इलाज करते हैं. इलाज का खर्च बीमारी के आधार पर होता है.

इलाज के बाद सावधानी के बारे में पूछे जाने पर डा. महाजन का कहना है कि इस में सब से पहले लाइफस्टाइल को ठीक करना पड़ता है, जिस में खासकर डाइट पर ध्यान देना पड़ता है. इस के अलावा व्यक्ति का मिलनसार होना जरूरी है, जिस में घरपरिवार दोस्तों का होना जरूरी है ताकि वह अपने भाव को शेयर कर सके.

टाइप वन डायबिटीज बच्चों में हो या बड़ों में, उस में 100% उस व्यक्ति को लाभ होता है. उस की इंसुलिन लगाने की प्रक्रिया पूरी तरह खत्म हो जाती है.

गलत तरीके से इलाज करने पर इस का परिणाम गलत होता है, इसलिए जानकार डाक्टर के पास जाना ही सही रहता है. महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता के अलावा दुबई, मसकट, कनाडा, अमेरिका, नाईजीरिया आदि से भी लोग इलाज के लिए यहां आते हैं.

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