तेरे जाने के बाद- भाग 4 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का पर्दा

‘भुगत तो मैं भी रहा हूं. जुदाई का गम. कम से कम तुम्हारे पास तुम्हारा परिवार, हमारा बेटा तो है. मेरे पास कौन है?’ ‘हमारा बेटा. शायद तुम भूल रहे हो कि हमारा नहीं, सिर्फ और सिर्फ मेरा बेटा था. मेरे और कमल का बेटा.’ ‘मैं जानता हूं. लेकिन शायद तुम भूल रही हो कि दुनिया की नजर में आज भी प्रेम हमारा ही बेटा है. कमल का नहीं. भले उस के शरीर में मेरे खून का कतरा नहीं है लेकिन मेरे प्यार के रंग को कोई कैसे उतार सकता है. नंदजी कान्हा के पिता भले नहीं थे किंतु वासुदेव से पहले नंद का नाम ही लिया जाता है. यह उन का पुत्रप्रेम व समर्पण था. जिसे दुनिया सदैव से ही नमन करती आई है और करती रहेगी.’

‘तुम नंद नहीं हो, पर मुझे देवकी जरूर बना दिया. क्यों?’ ‘देवकी, मैं ने कैसे बनाया?’ ‘तुम्हारे घर वाले मेरे बच्चे को मुझ से छीन कर ले जा चुके हैं. मैं नहीं जानती किस अधिकार से ले गए.’ ‘मेरे घर वाले…मैं आश्चर्यचकित हूं. जिन्हें तुम से कभी विशेष मतलब न रहा, वो तुम्हारे बच्चे को क्यों ले कर जाएंगे.’ ‘यही बात तो मुझे समझ नहीं आई आज तक. लेकिन मैं तुम्हारे घर वालों के जुल्म के आगे झुक गई थी या शायद यहां भी मेरी ही गलती थी. मैं अपनी फिगर खोना नहीं चाहती थी. मैं ब्रैस्ट फीडिंग करवा कर अपने वक्ष को खराब नहीं करना चाहती थी. जो समय मुझे उस अबोध बालक को देना चाहिए था वह समय मैं कमल को दे दिया करती थी. जिस का लाभ तुम्हें मिलता रहा. मैं अपने ही बच्चे से दूर होती रही और तुम करीब आते चले गए. तुम्हारे करीब, तुम्हारे रिश्तेदारों के करीब, और एक दिन वही बच्चा मुझे छोड़ उन के साथ चला गया. यहां मैं मां भी नहीं बन सकी.’

मैं विचारों की उधेड़बुन में उलझी रही. वैमनस्य मन में विवाह की तैयारी करती रही. मैं तुम्हें बारबार भुलाने की कोशिश में लगी रही और तुम बारबार मेरे जेहन में आते रहे. मैं खुद को कामों में उलझाने की कोशिश में लगी रहती हूं ताकि तुम्हारी यादों से नजात पा सकूं पर फिर भी तुम याद आते रहते हो. मैं टैंट वाला, हलवाई के हिसाबकिताब करती रही और तुम अपनी कमी महसूस करवाते रहे. तुम होते तो ऐसा होता, तुम होते तो वैसा होता. तुम्हें इस तरह के कामों में आनंद जो मिलता था. शादीविवाह हो या कोई सामाजिक काम, तुम सब में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे. वह तुम्हारी कोमल हृदय की भावनाएं होती जिसे मैं कभी नहीं समझ पाई थी. एक बात जानते हो, मैं ने मी टू कैंपेन जौइन कर ली है.

मैं अब कमल के मामले को पूरी दुनिया को दिखाऊंगी. उस की करतूतों का परदाफाश कर के रहूंगी ताकि कोई और मेरी जैसी औरत उस के चुंगल में न फंसे. बहुत सताया है मुझे और जाने ही कितनों को. पर अब और नहीं. शादी की तैयारी करने में वक्त गुजरते देर न लगी और वह समय भी आ गया जब अभिलाषा को विदा कर के लेने दूलहेमियां असीम बरात ले कर आ गये और अब वह हमेशा के लिए अभिलाषा को मुझ से दूर ले कर चला जाएगा. मेरे अंदर भी बेचैनी होने लगी. क्या मैं अब अकेली रह जाऊंगी? क्या इस दुनिया में मेरे पास रहने वाला अपना कोई नहीं होगा? पर यह तो मेरे कर्मों का ही नतीजा है, फिर क्यों मुझे घबराहट हो रही है?

हां, मुझे पश्चात्ताप हो रहा है. शायद हां, मुझे पश्चात्ताप ही हो रहा है. मैं पश्चात्ताप की ही अग्नि में जल रही हूं. मेरा अहंकार जल रहा है. मेरा अस्तित्व जल रहा है. मैं एक कुंठित व महत्त्वाकांक्षी औरत हूं जिस के लिए शायद अब तक सजा मुकर्रर नहीं हुई है. पर यह तय है कि इस की सजा मुझे मिलेगी जरूर. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने दरवाजा खोला. मैं विस्मित देखती रह गई. मेरे सामने मोहित खड़ा था. मुझे खुद की ही आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. मुझे लगता, शायद मैं इतनों दिनों से मोहित के खयालों में डूबी हूं, उसी का असर है.

मोहित जब बोला, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ मेरी तंद्रा टूटी. वास्तव में मोहित ही है मेरा खयाल नहीं. मैं हड़बड़ाने लगी हूं, मेरी आंखों के कोर में न जाने कहां से आंसू के बादल छाने लगे. मैं रोकना चाहती थी उन आंसुओं की बूंदों को ढुलकने से, पर रोक नहीं पाई. वे लुढ़क कर मेरी नाक तक आ गए है. भर्राए हुए गले से मैं सिर्फ प्रेम बोल पाई हूं. मोहित ने कुछ जवाब नहीं दिया. वे मेरे संगसंग अंदर आ गए. मुझ से नजर मिलाए बिना ही मोहित बैठ गए. मैं पानी लेने चली गई. मैं अपने हाथों में पानी का गिलास लिए खड़ी थी. मोहित ने पानी का गिलास लेते हुए पूछा, ‘‘प्रेम कहां है माया?’’

मैं अपनी रुंधे हुई भर्राए गले से अटकअटक गई, ‘‘वो…वो प्रेम को तो…प्रेम को तो आप की मांबहन ले गईं थी.’’ मैं पहली बार मोहित को आप कह संबोधित कर रही थी. मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों? ‘‘मां ले गईं प्रेम को, पर क्यों?’’ ‘‘क्योंकि मेरी ममता मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई थी, मैं वासना के रसातल में विक्षिप्त प्राणी की तरह विलीन हो गई थी. सिर्फ और सिर्फ मेरा तन जाग्रत था, हृदय तो कब का मृत हो चुका था,’’ मैं फफकफफक कर रोते हुए बोली. ‘‘क्या इस का तुम्हें एहसास है?’’

‘‘एहसास, शायद छोटा सा अल्फाज है मुझ जैसी कलुषित औरत के लिए. मुझ जैसी औरतों को तो जितनी सजा दी जाए वह कम ही होगी.’’ ‘‘तुम्हें पश्चात्ताप हुआ, यह बहुत बड़ी बात है. लेकिन तुम फिर से यह कौन सी गलती दोहराने जा रही हो?’’ ‘‘गलती, क्या मतलब?’’ ‘‘तुम इतनी भोली भी नहीं हो कि मतलब बताना पड़े. फिर भी बता देता हूं… यह तुम्हारा मी टू कैंपेन क्या है? क्यों तुम किसी की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगाने पर तुली हो?’’ ‘‘पर उस ने जो किया, क्या वह सही था?’’ ‘‘उस ने जो किया वह गलत जरूर था. लेकिन वह अकेला गलत तो नहीं था, तुम भी तो बराबर की भागीदार रही. तुम्हारी भी उतनी ही हिस्सेदारी रही जितना कमल की. फिर अकेले कमल पर दोषारोपण क्यों?’’

‘‘तो क्या तुम्हारी नजर में कमल सही है और मैं ही पूरी जिम्मेदार थी?’’ ‘‘हां, कहीं न कहीं तुम ज्यादा जिम्मेदार थी. यदि तुम खुद को संयमित रखती तो दुनिया के किसी भी पुरुष के बाजू में इतनी ताकत नहीं कि तुम्हारे सतीत्व को छीन ले. तुम्हारा पति तो तुम्हारे संग ही था, फिर तुम कैसे मर्यादा भूल गईं. तुम्हें मेरी परवा भले न हो, अपनी परवा कभी तुम ने की नहीं, कम से कम प्रेम के बारे में तो एक बार सोच लेतीं. बड़ा होगा तो वैसे ही तुम्हारी करतूतों का पता चल जाएगा. लेकिन बारबार एक ही गलती दोहरा कर क्यों उसे जलालतभरी जिंदगी में झोंकने की तैयारी कर रही हो?

‘‘माना भारतीय कानून ने पराए मर्दों के संग सोने वाले रिश्तों में पति का दखल बंद करा दिया है लेकिन सभ्यता व संस्कार अभी भी इस प्रकार के औरत या मर्द को चरित्रहीन की ही श्रेणी में रखती हैं, और फिर प्रेम तो तुम्हारा ही बेटा है न, बड़े दंभ से कहती थीं, फिर क्यों उस के भविष्य को खराब करना चाहती हो? भूल जाओ माया पुरानी बातों को. जिंदगी को नए सिरे से शुरू करो. किसी के बसेबसाए घर को उजाड़ना भी ठीक नहीं है माया. बाकी तुम्हारी मरजी. तुम अधिक समझदार हो मुझ से.’’

मैं कुछ भी सोचनेसमझने की अवस्था में नहीं रह गईर् थी, मोहित के तर्क के सामने. उन की बातें भी तो सही थीं. मुझे प्रेम के बारे में तो सोचना चाहिए था. पर प्रेम के बारे में मैं क्यों नहीं सोच पाई? प्रेम कैसा होगा? मेरा बच्चा कहां होगा? और फिर मोहित को कैसे पता मेरे बारे में. शायद सोशल मीडिया से पता चला होगा. मैं कुछ बोलना चाहती थी पर बोल नहीं पाई. बस, प्रेमप्रेमप्रेम करती रह गई. ‘‘प्रेम मेरे पास है.’’ ‘‘आप के पास?’’ ‘‘तो लेते क्यों नहीं आए? एक बार नजर भर देख लेती,’’ बाकी शब्द मुंह में ही अटक गए. पहली बार महसूस हुआ कि मेरी ममता जागृत हो रही है.

‘‘मां’’, पैर छूते हुए एक 10 वर्षीय बच्चा मुझ से लिपट कर फिर बोला, ‘‘पापा, मौसी की शादी के बाद हम मां को अपने साथ ले जाएंगे.’’ प्रेम अपनी दादीदादा के साथ अभिलाषा के लिए गहनेकपड़े खरीदने बाजार चला गया था. सब लोग साथ ही आए थे. लेकिन मोहित मेरे पास पहले आ गए, बाकी लोग बाजार चले गए थे. मोहित की मां के जब मैं पैर छूने लगी तो वे उठ कर बोलीं, ‘‘बेटा, एक पत्नी गलत हो सकती है, हार भी सकती है दुनिया से, लेकिन एक मां न तो कभी हारती है और न ही गलत होती है.

प्रेम तुम्हारा बेटा था, है और रहेगा. बस, उस में अच्छे संस्कार के खादपानी की जरूरत है. अब हम भी बूढ़े हो गए हैं. तुम अभिलाषा की विदाई के साथ ही हमारे साथ आ कर अपना संसार संभालो, तेरे जाने के बाद तेरा घर बिखर गया है, आ कर समेट ले बेटा.’’ मैं कुछ बोल नहीं पाई, बस सहमति में सिर हिलाती रह गई.

 

कटरीना कैफ ने क्यों ठुकराई फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’, फिल्ममेकर अली अब्बास जफर का बड़ा खुलासा

जल्द ही डायरेक्टर अली अब्बास जफर की फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ सिनेमाघरों में आने वाली है. इस फिल्म में मेन हीरोइन की कास्टिंग को लेकर अली ने बताया कि फिल्म में हीरोइन के रोल के लिए उनकी पहली पसंद कटरीना कैफ थी. कटरीना के किसी दूसरे काम में व्यस्त रहने के कारण उन्होंने इस फिल्म को करने से मना कर दिया था. कटरीना ने फिल्म के ट्रेलर की खूब तारीफ की है.

एक इंटरव्यू में अली अब्बास ने बताया कि वह जब भी किसी फिल्म के बारे में सोचते हैं तो उनके दिमाग में हमेशा कटरीना ही आती हैं और अगर वो ऐसा नहीं करती हैं तो वह हमेशा कहती है कि तुम मुझे अपनी फिल्म में क्यों नहीं ले रहे हो.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Katrina Kaif (@katrinakaif)

हम दोनों के बीच बहुत अच्छी बौंडिंग है. एक्टर के तौर पर देखा जाए तो कटरीना में बहुत पोटैंशियल है और मैं उम्मीद करता हूं कि वो अगली फिल्म के लिए अवेलबल रहें.

इस फिल्म में लीड रोल अक्षय कुमार, टाइगर श्रॉफ, दिशा पाटनी और अलाया एफ लीड रोल निभा रहे हैं जबकि साउथ के स्टार पृथ्वीराज सुकुमारन विलेन का रोल कर रहे हैं. फिल्म ईद पर रीलिज होगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Katrina Kaif (@katrinakaif)

इस फिल्म की खास बात है कि फिल्म में अली अब्बास जाफर भी एक्टिंग कर रहे हैं.

आपको बता दें कि इससे पहले अली कटरीना कैफ के साथ फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’, ‘भारत’ और ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’ फिल्म में काम कर चुके हैं. फिल्म में वाशू भागनानी, दीपशिखा देशमुख, जैकी भगनानी और हिमांशू किशन मेहरा भई एक्टिंग कर रहे हैं.

सिनेमाघरों में अजय देवगन की फिल्म ‘मैदान’ भी आनेवाली है अब देखते हैं कि दर्शकों को दोनों में से कौनसी फिल्म ज्यादा पसंद आती है.

हैंडसम वकार शेख के स्टाइल स्टेटमेंट पर मरती हैं लड़कियां

इन दिनों रुपाली गांगुली स्टारर स्टार प्लस के फेमस शो ‘अनुपमा’ की शूटिंग अमेरिका में हो रही है और वहां अनुपमा ‘स्पाइस एंड चटनी’ नामक एक होटल में काम कर रही हैं. टीवी कलाकार वकार शेख इस होटल के मालिक की भूमिका निभा रहे हैं, उनके किरदार का नाम यशपाल है.

इन्हीं वकार शेख के स्टाइल स्टेटमेंट पर लड़कियां अपनी जान छिड़कती हैं. हाल ही में वकार ने बताया कि वे लेटेस्ट फैशन ट्रेंड को लेकर अपडेट रहते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे वही पहनते हैं जो फैशन में चल रहा है. वकार कहते हैं कि आजकल फ्लैनल चेक्स और कोरियन पैंट्स ट्रेंड में हैं और वे वही ट्रेंड फॉलो करते हैं.

वकार शेख ने आगे बताया कि इंस्टाग्राम पर कई ऐसी साइट्स हैं जहां पर पता लगता है कि ट्रेंड में क्या चल रहा है और वे उसी के अनुसार कपड़े पहनते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Vaquar Shaikh (@imvaquarshaikh)

आपको बता दें कि ‘अनुपमा’ शो के मेन मेल लीड सुधांशु पांडे, जो वनराज शाह की भूमिका निभा रहे हैं, वकार शेख के साथ उनके म्यूजिकल बैंड (बैंड ऑफ बॉयज) में भी काम कर चुके हैं. इस बैंड का फेमस गाना था ‘मेरी नींद उड़ गई है’. इस गाने को युवाओं ने बहुत पसंद किया था.

वकार शेख ने एक इंटरव्यू में बताया कि रुपाली गांगुली मानती थीं कि वकार बहुत गुस्सैल हैं. इस शो से पहले भी वे दोनों साथ में काम कर चुके हैं और ‘अनुपमा’ में दोनों की केमेस्ट्री को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं.

वकार शेख इससे पहले ‘कबूल है’, ‘आहट’, ‘सीआईडी’, ‘साया’, ‘जन्नत’, ‘सरस्वतीचंद्र’ और अन्य कई टीवी शोज में भी काम कर चुके हैं. वकार की पर्सनल लाइफ की बात करें तो इन की पत्नी का नाम शबनम शेख है और दो बच्चे जोया और अयान शेख हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Vaquar Shaikh (@imvaquarshaikh)

वकार शेख कई फिल्मों में भी साइड रोल कर चुके हैं. उन की अभिनीत कुछ प्रमुख फिल्में हैं ‘मसंद’, ‘मिट्टी’, ‘सरबजीत’, ‘म्यूजिक स्कूल’, ‘ताजमहल’ आदि.

बच्चा होने के बाद पति और मैं अलग रहने लगे हैं?

सवाल-

मैं 21 साल की महिला हूं. मेरा डेढ़ साल का एक बच्चा है. शादी के बाद से ही पति मेरे साथ सैक्स संबंध को ले कर संतुष्ट नहीं रहते हैं. वे नियमित सैक्स करना चाहते हैं जबकि घर और बच्चे की देखभाल से मैं बेहद थक जाती हूं और रात में जल्द ही मुझे नींद आ जाती है. पति मु झे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए मैं उन्हें नाराज भी नहीं देख सकती. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

बच्चे पैदा होने के बाद सैक्स संबंध को ले कर महिलाएं आमतौर पर उदासीन हो जाती हैं, जबकि बच्चों की परवरिश के साथसाथ पति के साथ सैक्स संबंध दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाता है.

इस में कोई दोराय नहीं कि एक गृहिणी घर और बच्चों की देखभाल में इतनी व्यस्त रहती है कि खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पाती. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आप घर के कामों को पति के साथ बांट लें. घर की साफसफाई, कपड़े धोना आदि कार्य प्यार से पति से करा सकती हैं. इस से आप पर काम का बो झ ज्यादा नहीं पड़ेगा. इस से न केवल आप खुद के लिए वक्त निकाल पाएंगी, बल्कि पति के साथ भी ज्यादा समय बिताने को मिलेगा. फिर जैसाकि आप ने बताया कि आप का बच्चा अब डेढ़ साल का हो चुका है और अब आप शारीरिक रूप से फिट भी हो चुकी हैं, तो ऐसे में सैक्स संबंध का लुत्फ उठा सकती हैं.

ये भी पढ़ें

महिलाओं को विवाह के बाद अपने व्यक्तित्व को, स्वभाव को बहुत बदलना पड़ता है. समाज सोचता है कि नारी की स्वयं की पहचान कुछ नहीं है. विवाह के बाद बड़े प्यारदुलार से उस की सामाजिक, मानसिक स्वतंत्रता उस से छीनी जाती है. छीनने वाला और कोई नहीं स्वयं उस के मातापिता, सासससुर और पति नामक प्राणी होता है. विदाई के समय मांबाप बेटी को रोतेरोते समझाते हैं कि बेटी यह तुम्हारा दूसरा जन्म है. सासससुर और पति की आज्ञा का पालन करना तुम्हारा परम कर्त्तव्य है.

ये भी पढ़ें- बेड़ी नहीं विवाह: शादी के बाद क्यों कठपुतली बन जाती है लड़की

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

फिट ऐंड फाइन डिलिवरी के बाद भी

शिल्पा शेट्टी या करिश्मा कपूर की पतली कमर देख कर भला किस का दिल नहीं मचलेगा. इन अभिनेत्रियों की परफैक्ट फिगर व चमकती त्वचा को देख कर भला कौन कह सकता है कि ये न केवल शादीशुदा हैं बल्कि मां भी बन चुकी हैं अधिकतर महिलाएं शादी मां बनने के बाद खुद को रिटायर समझने लगती हैं और सोचने लगती हैं कि अब उन की फिगर पहले जैसा आकार नहीं ले सकती. इसलिए वे अपनी फिटनैस को ले कर लापरवाह हो जाती हैं, उसके लिए कोई कोशिश ही नहीं करतीं. नतीजतन उन का शरीर थुलथुला हो जाता है व त्वचा मुरझा जाती है. जबकि हकीकत यह है कि बच्चा पैदा होने के बाद यदि थोड़ा सा भी ध्यान खुद पर दिया जाए तो कोई भी महिला इन अभिनेत्रियों की तरह सुंदर दिख सकती है.

आइए जानते हैं कि कैसे डिलिवरी के बाद भी अपने को फिट और खूबसूरत रख सकती हैं.

कब शुरू करें व्यायाम

दिल्ली के सार्थक मैडिकल सैंटर की डायरैक्टर (गाइने) डाक्टर निम्मी रस्तोगी का कहना है, ‘‘अगर डिलिवरी सामान्य हुई हो तो डिलिवरी के 6 हफ्तों के बाद कोई भी महिला ऐक्सरसाइज शुरू कर सकती है और अगर डिलिवरी सिजेरियन हुई हो तो 3 महीनों के बाद महिला ऐक्सरसाइज शुरू कर सकती है.’’ डिलिवरी के समय वेट गेन होना यानी वजन का बढ़ना स्वाभाविक है. हर महिला 9 किलोग्राम से 11 किलोग्राम तक वेट गेन करती है. चूंकि इस समय फिजिकल ऐक्टिविटीज नहीं होती और घी, ड्राई फू्रट्स आदि हाईकैलोरी वाली चीजों का सेवन ज्यादा किया जाता है, तो वजन बढ़ ही जाता है. अगर नियमित रूप से व्यायाम और खानपान का ध्यान रखा जाए तो बढ़े वजन को घटाया जा सकता है.

कैसे करें ऐक्सरसाइज

सब से अच्छी ऐक्सरसाइज वाकिंग है. जितना अधिक चल सकें चलें, पानी बौडी को मूव करती रहें. शुरुआत सरल व्यायाम से करें. शुरू में 15 मिनट ही व्यायाम करें. धीरेधीरे व्यायाम का समय बढ़ा कर 45 मिनट करें. टोनिंग, ब्रीदिंग आदि ऐक्सरसाइज करें. ध्यान रहे हैवी  पीरियड्स के दौरान ऐक्सरसाइज न करें. ऐक्सरसाइज उतनी ही करें जिस से थकान न हो. ऐसी ऐक्सरसाइज भी न करें जिस से शरीर में खिंचाव या दर्द महसूस हो. डिलिवरी के बाद हारमोनों के प्रभाव से जोड़ों में ढीलापन आ जाता है. पेट की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं. ऐसे में व्यायाम द्वारा उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है.

केगेल ऐक्सरसाइज

डिलिवरी के बाद योनि पर नियंत्रण कम होने से हंसते या खांसते समय यूरिन पास होने लगता है. इस समस्या के लिए केगेल ऐक्सरसाइज बहुत जरूरी है. यह ढीली हो चुकी योनि को मजबूत बनाती है. इस ऐक्सरसाइज द्वारा योनि को संकुचित किया जाता है. इस ऐक्सरसाइज में सांस को रोक कर योनि को 10-15 सैकंड तक सिकोड़ कर रखें. फिर ढीला छोड़ दें. इस ऐक्सरसाइज को दिन में 5 बार करें. इस से योनि की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, उन का ढीलापन कम होता है.

पेट की ऐक्सरसाइज

पेट की मांसपेशियों के लिए पीठ के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ लें. पेट पर दोनों हाथ क्रौस की मुद्रा में रखें. फिर सिर को उठाएं. सिर उठाने पर पेट की मांसपेशियां सख्त हो जाएंगी. फिर एक गहरी सांस लें. फिर सांस छोड़ते हुए सिर और कंधों को 45 डिग्री के कोण तक उठाएं और पेट की मांसपेशियों को सख्त कर लें. धीरेधीरे वापस पहले वाली स्थिति में आ जाएं. इस व्यायाम को धीरेधीरे बढ़ाते हुए रोज 50 बार करें.

मौर्निंग वाक के फायदे

यदि आप हमेशा फिट रहना चाहती हैं और अपने चेहरे की चमक भी बरकरार रखनी है तो प्रतिदिन वाकिंग को अपनी आदत में शामिल करें. इस से ब्लड में कोलैस्ट्रौल कम होने के साथसाथ हृदयरोग का खतरा भी कम होता है. जोड़ भी मजबूत होते हैं और शरीर में मैटाबोलिज्म की गति तीव्र होती है. वाक आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. इस से इमोशनल सपोर्ट भी मिलता है. 

खानपान कैसा हो

आप प्रोटीनयुक्त भोजन करें तो ज्यादा फायदा होगा. हम जो भोजन करते हैं उस में 60% कार्बोहाइड्रेट और 25 से 40% वसा होती है जबकि प्रोटीन कम होता है. कार्बोहाइड्रेट व वसा की मात्रा कम कर के यदि प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें तो मोटापा आसानी से कम किया जा सकता है. पनीर: यह दांतों के लिए बेहद लाभकारी होता है. इस में पाए जाने वाले खनिज, लवण, कैल्सियम और फास्फोरस दांतों के इनैमल की रक्षा करते हैं. पनीर हड्डियों को भी मजबूत बनाता है.

अंकुरित अनाज: अंकुरित अनाज में बहुत सारे प्रोटीन होते हैं, जो शरीर को मजबूत रखते हैं और बीमारियों से बचाते हैं. यह पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट और विटामिन ए,बी,सी भरपूर होते हैं.

फाइबरयुक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आप का पाचनतंत्र मजबूत बनता है. अंकुरित अनाज में कैलोरी बहुत कम होती है.

पपीता: पपीते में विटामिन ए, बी, सी और डी, प्रोटीन तथा बीटा कैरोटिन जैसे तत्त्व पाए जाते हैं. पपीता वजन कम करने में बेहद सहायक है.

हरी पत्तेदार सब्जियां लौहयुक्त होती हैं. इन्हें खाने से डिलिवरी के बाद लौह की कमी से होने वाले एनीमिया से बचाव होता है. महिलाओं को प्रतिदिन 100 ग्राम हरी सब्जियां जरूरी खानी चाहिए. ये हमारे इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाती हैं और आंखों के लिए भी लाभदायक होती हैं. ये ब्रैस्ट कैंसर व लंग्स कैंसर की रोकथाम में भी कारगर हैं. सब्जियों में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है.

दिल्ली के तारकोर इन इंडिया जिम सैंटर के फिटनैस ऐक्सपर्ट पीयूष कुमार के अनुसार, ‘‘डिलिवरी के बाद ऐसी ऐक्सरसाइज करें जिस से स्टमक पर ज्यादा जोर न पड़े. इस के लिए हलकी स्ट्रैचिंग, नौर्मल क्रंच आदि करें. बैठेबैठे पैरों को क्रौस कर हिलाएं. पीठ के बल लेट कर घुटनों को मोड़ सकती हैं. पैरों को 10 बार ऊपरनीचे करें. खड़े हो कर दोनों हाथों को ऊपर की तरफ खींचें. सीधी खड़ी हो कर लैफ्टराइट मूव करें.’’ दिल्ली के ब्यूटी ऐक्सपर्ट साक्षी थडानी का कहना है कि डिलिवरी के बाद महिलाओं में हारमोनल बदलाव की वजह से थकावट सी रहती है. वे पार्लर में जाने से आलस करती हैं. ऐसे में वे घर बैठे ही खूबसूरती को कायम रख सकती हैं. क्लींजर या टोनर से चेहरे की मसाज कर के चेहरा साफ कर लें. फिर चेहरे पर लाइट बेस पाउडर लगाएं. लिप कलर लाइट कलर का ही लगाएं.घर पर ही किसी ब्यूटीशियन को बुला कर थ्रैडिंग, वैक्सिंग कराएं. थ्रैडिंग करवाने से चेहरा साफ दिखेगा. औलिव औयल से पूरी बौडी की मालिश करवाएं और फेशियल जरूर करवाएं.                 

डिलिवरी के बाद ब्यूटी टिप्स

अधिकतर महिलाएं डिलिवरी के बाद अपने लुक के प्रति सतर्क नहीं रहतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि घर से बाहर तो जाना नहीं है, फिर भला क्यों बनावशृंगार किया जाए. परिणामस्वरूप उन की त्वचा डल सी दिखने लगती है. अगर आप थोड़ा सा समय निकाल कर दिल्ली की ब्यूटी ऐक्सपर्ट रेनू महेश्वरी के बताए निम्न ब्यूटी टिप्स पर अमल करें तो डिलिवरी के बाद भी आप की त्वचा चमकदार और खूबसूरत दिखेगी.

डिलिवरी के बाद स्किन बहुत ड्राई हो जाती है. अत: केले को मसल कर चेहरे की हलके हाथों से मसाज करें.

डिलिवरी के बाद बौडी में स्वैलिंग आ जाती है. ऐसे में चेहरे पर कोई फ्रूट पैक लगा कर थोड़ी देर रैस्ट करें.

पपीते को मैश कर के फेस पर लगाने से स्किन ग्लोइंग और मुलायम हो जाती है और रिंकल्स भी खत्म हो जाती हैं.

चेहरे की क्लीनिंग और टोनिंग जरूर करें. इस के बाद चेहरा कौटन से पोंछ कर मौइश्चराइजर लगाएं.

हफ्ते में 2 बार स्क्रब जरूर करें. चाहे स्क्रब घरेलू हो या फिर रेडीमेड.

अगर चेहरे पर दाने से निकलते हैं, तो लगातर स्किन टोनर का प्रयोग करें.

ऐक्यूप्रैशर से खुद अपने हाथों से मसाज करें. पैरों को गोलगोल घुमाएं.

गरम पानी में नीबू के छिलके या सी साल्ट डाल कर पैरों को डिप करें. इस से थकावट दूर होगी और पैर खूबसूरत हो जाएंगे.

डिलिवरी के बाद पूरे शरीर की अरोमा औयल से मसाज करें. इस से रक्तसंचार बढ़ता है और त्वचा में चमक आती है. हां, अगर सिजेरियन डिलिवरी हुई हो तो पेट की मसाज न करें.

1 चम्मच मौइश्चराइजर में 3-4 बूदें नैरोली औयल की मिला कर मसाज करें.

डिलिवरी के बाद बेचैनी और रात को नींद नहीं आती हो तो अपने तकिए पर कुछ बूंदें नैरोली औयल की डाल लें. इस से नींद अच्छी आती है. भरपूर नींद लेना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है और यह खूबसूरती भी बढ़ाती है.

केशों के लिए विटामिन ई औयल से रोज हलके हाथों से मसाज करें. कंघी भी हलके हाथों से करें. इस से केशों के झड़ने की समस्या दूर होती है.

केले को मैश कर के केशों में लगाने से केश नर्म, मुलायम और चमकदार हो जाते हैं.

खूब पानी पीना और अपनी डाइट को संतुलित रखना बहुत जरूरी है. इस से चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं रहेगा और त्वचा भी खिलीखिली लगेगी.

गर्मियों में जमकर करें पार्टी और स्विमिंग, नहीं बहेगा आपका मेकअप

गर्मी के मौसम में युवतियों को अपने मेकअप को लेकर ज्यादा टेंशन रहती है. उन्हें डर रहता है कि कहीं पसीने से उनका मेकअप बहने न लग जाए. कई बार तो स्विमिंग पूल में छलांग लगाने के कुछ मिनट बाद ही मेकअप धोखा दे देता है और रेन डांस की मस्ती में टेंशन की जगह मेकअप बह जाता है. ऐसे में आपका सारा इंप्रेशन खराब हो जाता है. इसलिए गर्मी के मौसम में मेकअप चुनते समय आपको खास ध्यान रखना चाहिए. आप हमेशा वाटर प्रूफ मेकअप का ही यूज करें. इस मेकअप पर मौसम और आपकी एक्टिविटीज का कोई असर नहीं पड़ता है. फिर चाहे आप रेन डांस करें या फिर स्विमिंग, ये मेकअप आपके फेस पर चिपक कर रहेगा और आपका शानदार लुक बरकरार रहेगा. हालांकि वाटरप्रूफ मेकअप को यूज करने से पहले आपको कुछ बातें जरूर फॉलो करनी चाहिए. तब ही आपका मेकअप लंबे समय तक आपको ग्लोइंग स्किन देगा.

प्राइमर से बनाएं बेस

किसी भी मेकअप का पहला स्टेप है प्राइमर. इससे आपकी स्किन को कई लाभ होते हैं. इससे आपकी स्किन के पोर्स लॉक हो जाएंगे और आपको चिकनी स्किन मिलेगी. साथ ही मेकअप आपके चेहरे पर लंबे समय तक रहेगा. सबसे पहले अपनी स्किन को अच्छे से वॉश करें और उसपर किसी अच्छे ब्रांड का प्राइमर लगाएं. हमेशा सिलिकॉन बेस प्राइमर लगाएं, ​इससे स्किन पिगमेंट रहेगी. प्राइमर पानी के संपर्क में आकर भी आपके मेकअप को हिलने नहीं देगा.

वाटरप्रूफ फॉर्मूलेशन चुनें

मेकअप को लंबे समय तक चलाना है ​तो हमेशा वाटरप्रूफ फॉर्मूलेशन वाले मेकअप प्रोडक्ट्स ही चुनें. आपका फाउंडेशन से लेकर मस्कारा, आई लाइनर सभी वाटरप्रूफ फॉर्मूलेशन वाले होने चाहिए, जो पानी या पसीने के संपर्क में आकर बहे नहीं. ये मेकअप आपको दिनभर फ्रेश रखेंगे.

मेकअप लगाते समय इस बात का ध्यान

मेकअप में प्रोडक्ट्स के साथ ही लेयरिंग भी बहुत महत्वपूर्ण है. इसमें की गई गलती आपका लुक और इंप्रेशन दोनों खराब कर सकती है. प्राइमर लगाने के बाद मेकअप की शुरुआत टिंटेड मॉइस्चराइजर या लाइट फाउंडेशन से करें. इसे लॉक करने के लिए सेटिंग पाउडर लगाएं. इससे मेकअप लंबे समय तक चलेगा.

होंठ न बिगाड़ दें लुक

पार्टी, फंक्शन, आउटिंग या फिर ऑफिस में पैची लिपस्टिक आपके होंठों और आपका लुक बिगाड़ देती है. इसलिए ऐसी लिक्विड लिपस्टिक या लिप स्टेन यूज करें जो वाटरप्रूफ हो और कुछ खाने पीने के बाद भी आपके होंठों से हटे नहीं. आजकल आपको बाजार में लॉन्ग स्टे वाली, ट्रांसफर प्रूफ कई लिपस्टिक मिल जाएंगी. इन्हें बार-बार टचअप की जरूरत भी नहीं पड़ती है.

बहुत कुछ बोलती हैं आंखें

आपके लुक में आई मेकअप बहुत ही इंपोर्टेंट होता है. बहता हुआ आई लाइनर और मस्कारा आपका पूरा इंप्रेशन खराब कर सकते हैं. इसलिए हमेशा वाटरप्रूफ आईलाइनर और मस्कारा का इस्तेमाल करें.

ब्लॉटिंग पेपर रखें साथ

गर्मी के मौसम में स्किन पर पसीना और ऑयल बहुत ज्यादा आता है. इसलिए अपने साथ ब्लॉटिंग पेपर का पैकेट रखें. यह आपका मेकअप खराब किए बिना एक्स्ट्रा ऑयल और पसीना सोख लेते हैं.

सेटिंग स्प्रे से सील करें मेकअप

मेकअप के बाद सेटिंग स्प्रे लगाकर इसे लॉक करें. ये मेकअप के लिए किसी शील्ड की तरह काम करता है. गर्मियों में यह और भी जरूरी हो जाता है. इससे मेकअप पिघलने का डर नहीं रहता.

 

 

कौकरोच भगाने के घरेलू टिप्स

कौकरोच आपके किचन को अपना घर समझ कर किसी भी कोने में अपना जगह ढूंढ़ लेते है. और मजे से रहते हैं. जब भी आप किचन में जाती हैं तब ही आपको 2-3 कौकरोच इधर-उधर भागते हुए दिख जाते है. बेशक आप इन गन्दगी फैलाने वाले कौकरोच से परेशान होती हैं तो देर किस बात की, आइए बताते है आपको घरेलू नुस्खे, जिससे आप कौकरेच से छुटकारा पा सकती है.

–  एक कटोरे में थोडा सा बेकिंग पाउडर मिलाएं और उस कटोरे को कैबिन के अंदर याफिर  बाहर रखें. 10-15 दिनों में इस सोडे को बदलती रहें क्योंकि नमी की वजह से इसकी महक चली जाएगी.

–  अण्डे का छिलका भी कौकरोच भगाने के काम आता है. अण्डे के छिलको को किचन कैबिनेट या स्लेब पर रख दें, इससे कौकरोच किचन में प्रवेश नहीं करेंगे.

–  लौंग को हम खाना बनाते समय यूज करते हैं लेकिन आप इसे कौकरोच को भगाने के लिए भी प्रयोग कर सकती हैं.

सौगात: बरसों बाद मिली स्मिता से प्रणव को क्या सौगात मिली?

लेखिका- कंचन

स्मिता तेज कदमों से चलती हुई स्टेशन की एक खाली बैंच पर बैठ गई. कानपुर वाली ट्रेन आने में अभी 2 घंटे बाकी थे. एक बार उस ने सोचा कि वेटिंगरूम में जा कर थोड़ा सुस्ता ले, पर फिर विचार बदल दिया. आज उस के दिल में जो खुशी का ज्वार फूट रहा था, उस के आगे कोई भी परेशानी माने नहीं रखती थी. स्मिता आज दिनभर की घटनाओं के क्रम और रफ्तार को सोच कर हैरान थी. आज सुबह ही ब्रह्मपुत्र मेल से 8 बज कर 25 मिनट पर कानपुर से इलाहाबाद पहुंची थी. होटल दीप में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इलाहाबाद के प्रसिद्ध व्यवसायी विपिन चंद्र की तरफ से स्मिता को निमंत्रणपत्र भेजा गया था. विपिन चंद्र पेशे से फैक्टरियों के मालिक होते हुए भी दिल से कवि और कलापारखी थे. वे साल में इस प्रकार के कवि सम्मेलन 1-2 बार आयोजित करते थे. ऐसे सम्मेलनों में वे जानेमाने कवियों के साथ उभरते नए कवियों को भी बुलाते थे, ताकि उन की कला को मंच मिल सके और आर्थिक रूप से भी उन की मदद हो सके. हमारे देश में आर्थिक तंगी से तंग हो कर कितनी ही प्रतिभाएं हर रोज दम तोड़ देती हैं. स्मिता सोचने लगी कि यह भी एक तरह का समाज कल्याण कार्य है.

सिविल लाइंस स्थित दीप होटल कुछ खास बड़ा नहीं था, परंतु पुराना और जानामाना अवश्य था. आटो वाले को दीप होटल का पता था इसलिए स्मिता को उस ने मात्र 20 मिनट में ही होटल के बाहर उतार दिया. स्मिता ने होटल में जा कर रिसैप्शनिस्ट को अपना परिचयपत्र और निमंत्रणपत्र दिखाया. रिसैप्शनिस्ट ने उसे लौबी में बैठाया और कहा, ‘‘मैं अभी मैनेजर साहब को खबर करती हूं.’’ स्मिता ने सोफे पर बैठते हुए सोचा, ‘कवि सम्मेलन के लिए मैं ही शायद सब से पहले आ गई हूं. स्टेशन पर बैठी रहती तो अच्छा था. सम्मेलन शुरू होने में अभी डेढ़ घंटा बाकी है. क्या करूंगी साढ़े 10 बजे तक?’ स्मिता ने सामने रखी पत्रिकाओं पर निगाह डाली और एक पत्रिका उठाने ही जा रही थी कि पीछे से किसी की आवाज आई, ‘‘आप को आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई न?’’

‘‘जी, नहीं,’’ कह कर स्मिता ने जैसे ही नजर घुमाई तो देखा सामने प्रणव खड़ा था. कोट पर लगे बिल्ले से पता चला, प्रणव ही मैनेजर था. स्मिता हैरान थी, उस का सहपाठी, प्रेमी प्रणव इस साधारण से होटल में मैनेजर था? कितनी तनख्वाह पाता होगा, 15-20 या 25 हजार? प्रणव तो इतना मेधावी छात्र हुआ करता था, और उस के आईएएस बनने की खबर भी तो आई थी, उस का क्या हुआ?

प्रणव ने स्मिता को पहचान कर कहा, ‘‘मेहमान कवियों में जब तुम्हारा नाम देखा तो मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि स्मिता तुम होगी, तुम तो मलिक थीं न?’’

‘‘हां, तो? 25 साल तक कुंआरी बैठी रहूं और पढ़पढ़ कर बुड्ढी होती रहूं? अरे भई, राम नरेश सहाय से मेरी शादी हुए 23 साल हो गए हैं,’’ स्मिता ने हंसते हुए कहा. अपनी गरिमा और गांभीर्य की चादर को उतार कर स्मिता अचानक पहले वाली कालेज गर्ल बन गई थी.

प्रणव ने कहा, ‘‘चलो, मेरे केबिन में चल कर बात करते हैं.’’ इतना कह कर प्रणव ने एक कर्मचारी को बुला कर चायनाश्ता मंगवाया और स्मिता के साथ केबिन में चला आया. होटल की तरह प्रणव का केबिन भी कुछ खास बढि़या न था. स्मिता और प्रणव दोनों टेबल के दोनों ओर आराम से बैठ गए. स्मिता ने पूछा, ‘‘तुम बताओ, यहां पर कैसे? मैं ने तो सुना था तुम एक बार टीवी के किसी ‘क्विज शो’ में गए थे. बाद में सुना तुम्हारा आईएएस में सलैक्शन हो गया है.’’

प्रणव मुसकरा कर बोला, ‘‘मेरे बारे में बड़ी खबरें रखती रहीं. कालेज में तो मुझे कभी भाव नहीं दिया.’’

‘‘सही कहा तुम ने, कभी भाव नहीं दिया, पर खबरें रखने में क्या जाता है?’’ स्मिता ने बात को बदल कर पूछा, ‘‘यह बताओ, तुम ने शादी की? इस होटल में कैसे नौकरी कर रहे हो? शक्ल तो देखो, अपनी उम्र से 10 साल बड़े लग रहे हो.’’ प्रणव ने हंस कर कहा, ‘‘जब से आई हो प्रश्नों की बौछार कर रही हो. एक बात तो तय है कि तुम्हें मेरी परवा पहले भी थी और अब भी है. हालांकि तुम ने अपने मुंह से कभी कुछ कहा नहीं, पर मुझे तुम्हारी भावनाओं का एहसास है.’’ इतने में नाश्ता आ गया तो जैसे स्मिता को बात बदलने का मौका मिल गया, कहने लगी, ‘‘अरे वाह, क्या बढि़या समोसे हैं. होटल में खाना बढि़या बनता है, यह मानना पड़ेगा.’’ प्रणव समझ गया स्मिता पहले की तरह प्यार की बातों को किसी बहाने टालने का प्रयास कर रही थी. वह स्वयं भी समझता  था कि अब स्मिता एक शादीशुदा औरत थी. उस ने कालेज के दिनों में ही प्रणव के प्रणय निवेदन को स्वीकारा नहीं था. स्मिता और प्रणव दोनों चुपचाप नाश्ता करने लगे. दोनों अपनेअपने ढंग से अतीत को देख रहे थे.

कालेज के रंगारंग कार्यक्रम में स्मिता और प्रणव पहली बार मिले थे. दोनों को युगल गान के लिए चुना गया था. प्रणव में संगीतकारों वाली समझ थी. गीत बढि़या गाया जाए, उस के लिए यह काफी न था. गीत को विभिन्न वाद्यों के मेल से कैसे सजा कर पेश किया जाए यह उन के लिए माने रखता था. तमाम तैयारियों के बाद जब कार्यक्रम के दौरान प्रणव और स्मिता ने गीत गाया तो उन्हें खूब तालियां मिलीं. कालेज के शिक्षकों ने भी उन की प्रशंसा की. धीरेधीरे उन के सहपाठियों ने उस युगल गान के बहाने उन की युगल जोड़ी बनानी शुरू कर दी. ऐसी बातें सुन प्रणव तो खुश होता था पर स्मिता हंस कर कहती, ‘तुम लोग कहानी बना रहे हो, ऐसा कुछ नहीं है’ प्रणव ने कई बार स्मिता से इस बारे में बात करनी चाही पर स्मिता कोई न कोई बहाने से टाल जाती. धीरेधीरे प्रणव समझ गया कि स्मिता शायद उसे प्रेमी के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहती थी. इस के बावजूद वह स्मिता का दोस्त बने रहना चाहता था. प्रणव पढ़ाई में अत्यंत प्रखर छात्र था. उस ने स्मिता को अपने नोट्स दिए. पुस्तकालय से किताबें इश्यू करा कर दीं. स्मिता को याद है वह प्रायोगिक परीक्षा का दिन, जब प्रणव ने उस में आत्मबल जगाया था. कालेज के नियम के अनुसार, प्रत्येक परीक्षार्थी को शिक्षक के सामने 2 पर्चियां उठानी होती थीं. उन में किन्हीं 2 प्रयोगों के नाम लिखे होते थे. परीक्षार्थी को उन प्रयोगों में से एक का चुनाव कर शिक्षक को बताना पड़ता था और उसी प्रयोग को प्रयोगशाला में करना पड़ता था. स्मिता ने जिन पर्चियों का चुनाव किया था उन में लिखे दोनों प्रयोग उसे मुश्किल लग रहे थे. आखिरकार उस ने एक प्रयोग चुना और शिक्षक को बताया. स्मिता प्रयोगशाला में प्रयोग करने जा रही थी कि अचानक प्रणव ने आ कर कहा, ‘चेहरे का बल्ब क्यों औफ है? कौन सा प्रैक्टिकल मिला?’ स्मिता ने धीरे से अपनी पर्ची दिखाई.

‘अरे, यह तो बहुत आसान है. समय से पहले कर लोगी तुम, घबराना नहीं.’ उस ने उस प्रयोग के बारे में जरूरी टिप्स दिए और शिक्षकों की नजर बचा कर जल्दी से खिसक गया. उस की इन्हीं छोटीछोटी मदद के कारण स्मिता अच्छे अंकों से पास हो गई.इसी बीच स्मिता के पिता का तबादला हैदराबाद हो गया. प्रणव ने बड़ी मिन्नत कर के स्मिता से मिलने का समय मांगा तो वह मान गई. स्मिता ने अपने भाई को भी उसी समय कालेज से ले जाने का समय दे दिया. प्रणव पुस्तकालय के बाहर स्मिता से मिलते ही बोला, ‘सुना है तुम हैदराबाद जा रही हो?’

‘हां.’

‘यहीं होस्टल में रह जाओ न?’

‘यह संभव नहीं है.’

‘पता है मैं ने हमारे गाने की रिकौर्डिंग अपने घर में मम्मी को सुनाई है. मम्मी को तुम्हारे बारे में भी बताया है. मेरे पेरैंट्स मुझे आईएएस अधिकारी के रूप में देखना चाहते हैं जबकि मैं तो संगीतकार बनना चाहता हूं. जगजीत सिंह-चित्रा सिंह के जैसी हमारी जोड़ी भी क्या खूब जमेगी, है न?’स्मिता गंभीरता से बोली, जो वह कई बार अकेले में अभ्यास कर चुकी थी, ‘देखो प्रणव, मैं कोई चलतीफिरती मूर्ति नहीं हूं जो तुम्हारे प्यार को समझ न सकूं. मैं एक रूढि़वादी परिवार से हूं. हमारे घर में प्यार शब्द को सिर्फ गाने में इस्तेमाल करने की इजाजत है. प्यार कर घर बसाने की तो मैं सपनों में भी नहीं सोच सकती. तुम एक मेधावी छात्र हो. अपने मांबाप की इच्छा पूरी कर आईएएस अधिकारी बनो, देश की सेवा करो. हर जोड़ी जगजीत सिंह-चित्रा सिंह जैसी कामयाब नहीं बनती है. फिल्म अभिमान की कहानी याद है न? अभिमान में अमिताभ-जया दोनों गायक कलाकार थे. दोनों में प्यार हुआ, शादी हुई. उस के बाद जो दोनों के अहं आपस में टकराए तो बस, कहानी बन गई.’ स्मिता थोड़ा रुक कर बोली, ‘मुझे उम्मीद है कि तुम्हें मुझ से कई गुणा सुंदर और गुणी जीवनसंगिनी मिलेगी.’ इतने मे स्मिता के भैया आते दिखाई दिए. स्मिता ने आगे बढ़ कर प्रणव का परिचय भैया से करवाया. उन तीनों में औपचारिकतावश 2-4 बातें हुईं. इस के बाद स्मिता हमेशा के लिए उस कालेज और प्रणव की जिंदगी से चली गई. अतीत के पन्नों से निकल स्मिता ने नजरें उठाईं तो प्रणव को अपनी ओर देखते पाया. स्मिता ने सोचा, ‘प्रणव क्या देख रहा है? कहीं उसे चेहरे की हलकीहलकी झुर्रियां तो दिखाई नहीं दे रहीं? आने से पहले तो मैं फेशियल करवा आई थी.’

इतने में प्रणव ने कहा, ‘‘तुम ने अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’

‘‘हैदराबाद आ कर मैं ने राजनीतिशास्त्र में उस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर यानी एमए की डिगरी हासिल की,’’ स्मिता सहज हो कर बोलने लगी, ‘‘इस के बाद डेढ़ साल स्कूल में शिक्षिका रही. बस. फिर शादी हो गई. एक बेटा हो गया. बेटा अब बड़ा हो गया है. उसे पढ़ाने की जिम्मेदारी अब मेरी नहीं है, कोचिंग वालों की है. इसलिए अब खाली समय में थोड़ा लिखने का प्रयास करती हूं. कहानी खत्म.’’ यह कह कर स्मिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर प्रणव से पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे आए, यह तुम ने अब तक नहीं बताया?’’

प्रणव बोला, ‘‘क्या करोगी जान कर? हर कहानी रोचक नहीं होती है न.’’

‘‘इसीलिए तो जानना चाहती हूं. यह कहानी रोचक कैसे नहीं बन पाई? प्लीज, अपनी मित्रता की खातिर ही सही, कालेज के बाद की जिंदगी के बारे में बताओ. हो सकता है, शायद मैं तुम्हारे कुछ काम आ सकूं.’’

‘‘मेरे काम? तुम्हारे पतिदेव को बताऊं, स्मिता ऐसा कह रही है?’’ कह कर प्रणव हंसने लगा. स्मिता झेंप गई, फिर बोली, ‘‘मेरे कहने का मतलब तुम्हारी मदद करना था. तुम्हारी बात पकड़ने की आदत अभी गई नहीं है.’’ प्रणव मुसकरा रहा था. थोड़ी देर बाद उस ने शांतभाव से कहना शुरू किया, ‘‘तुम्हारे जाने के बाद मैं ने भी राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर का कोर्स जौइन किया. प्रथम वर्ष में ही मैं ने आईएएस की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली और मुख्य परीक्षा की तैयारियों में लग गया. जिस दिन मुख्य परीक्षा पास की तो मैं और निश्चित हो गया. सोचा, बस, अब अंतिम सीढ़ी साक्षात्कार रह गई है. साक्षात्कार को अभी कुछ दिन बाकी थे कि मेरे पिताजी अकस्मात हार्टअटैक के कारण चल बसे. मैं ने जोधपुर अपने घर जा कर मां और दीदी को संभाला. जिस दिन साक्षात्कार था, उसी दिन पिताजी का श्राद्ध था. मैं रस्मों और रिश्तेदारों में उलझा हुआ था.’’ यह कहतेकहते प्रणव शांत हो गया. थोड़ी देर बाद यंत्रवत फिर कहने लगा, ‘‘रिश्तेदारों के जाने के बाद मैं ने प्राइवेट ही स्नातकोत्तर डिगरी हासिल करने के लिए फौर्म भर दिया. साथ ही, घर चलाने के लिए छोटेमोटे काम ढूंढ़ने लगा. कभी दुकान का सेल्समैन तो कभी स्कूल का क्लर्क.’’

स्मिता व्यथित हो कर बोली, ‘‘आईएएस की तैयारी बीच में ही छोड़ दी, दोबारा प्रयास कर सकते थे?’’ प्रणव के स्वर में झुंझलाहट सुनाई पड़ी जब वह बोला, ‘‘अरे मैडम, कविताएं और कहानियां वास्तविक नहीं होती हैं,’’ यह कह कर वह चुप हो गया. स्मिता ने कहना चाहा कि कविता और कहानी सभी यथार्थ से ही प्रेरित होती हैं. तभी तो साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है. इस समय स्मिता ने चुप रहना ही बेहतर समझा. थोड़ी देर बाद प्रणव स्वयं ही संयत हो बोला, ‘‘मेरे बाबूजी अपनी ईमानदारी की कमाई से केवल घर का खर्च चलाते और हमें पढ़ाते थे. उन के जाने के बाद सिर्फ पुश्तैनी मकान रह गया था. दीदी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती और मैं अपनी कमाई से घर और बाहर का काम संभालने लगा. जिंदगी मंथर गति से चल रही थी कि पता चला, मां ब्लड कैंसर से ग्रस्त हैं. शायद हम दोनों भाईबहन के भविष्य की चिंता में ही मां ऐसा रोग लगा बैठी थीं. उन्होंने बीमारी को हम से छिपा कर भी रखा था, पड़ोस की आंटी को पता था. 4 महीने में मां भी हमें छोड़ गईं.’’ प्रणव थोड़ा रुका. स्मिता को उस की आंखों में आंसू दिखे. उस ने भी महसूस किया कि मांबाप का साया सिर से उठ जाए तो कैसी बेचारगी होती है. यों ही बच्चे अनाथ नहीं कहलाते. प्रणव फिर संवेदनशून्य हो कर कहने लगा, ‘‘अब मेरी दीदी के ब्याह की जिम्मेदारी मेरी थी. पता चला दूल्हे तो शादी के बाजार में भारी दहेज में बिकते थे. कहीं कोई बात बन नहीं रही थी. ऐसे में एक परिवार में बात चली तो लड़के वाले हमारे पुश्तैनी मकान के बदले दीदी को बहू बनाने को तैयार हो गए. मैं अपने ही घर में अपने जीजा और दीदी के सासससुर का नौकर बन कर रह गया. दीदी कुछ कह नहीं पाती थीं क्योंकि वे अपने पति को छोड़ कर भाई पर दोबारा बोझ बनना नहीं चाहती थीं.

‘‘जब जीवन असहनीय हो गया तो मैं यहां भाग आया. यहां भी छोटेमोटे काम किए, फिर दीप होटल में काम मिला. अब शादीशुदा हूं 2 बच्चे हैं. कह सकती हो कि जिंदगी कट रही है.’’ स्मिता सोचने लगी, जीवन खुल कर जीना और सिर्फ काटने में अंतर होता है. पैदा होते ही हम मौत की तरफ बढ़ते हुए जिंदगी काटते ही तो हैं. प्रणव की आवाज आई तो स्मिता ध्यान से सुनने लगी. प्रणव कह रहा था, ‘‘मेरा अनुभव यह कहता है कि जिंदगी अचानक ही घटी घटनाओं का क्रम है. जैसे आज इतने सालों बाद तुम मिली हो, वह भी कवयित्री बन कर. पता है, कभीकभी ऐसा लगता है यदि जिंदगी को फ्लैशबैक में जा कर दोबारा जीने का अवसर मिलता तो शायद मैं अलग ढंग से जीता.’’ प्रणव ज्यादा बोलने की वजह से हांफ रहा था. स्मिता ने सोचा कि कहीं प्रणव हाई ब्लडप्रैशर का रोगी तो नहीं. इस से पहले कि स्मिता कुछ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती, होटल का एक कर्मचारी आया और प्रणव से बोला, ‘‘सर, बाहर मेहमान लोग आना शुरू हो गए हैं, उन्हें लौबी में बिठाऊं या कन्वैंशन हौल में?’’

प्रणव ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘अरे, समय का पता ही नहीं लगा. तुम उन्हें लौबी में ही बिठाओ. पानी सर्व करवाओ, मैं अभी आता हूं.’’ इतना कह कर प्रणव स्मिता से बोला, ‘‘तुम्हें भी मैं अन्य कवियों के साथ छोड़ देता हूं. मुझे सभागार की व्यवस्था दोबारा चैक करनी है. तुम्हारी कविताएं अवश्य सुनूंगा, पक्का वादा. सम्मेलन के बाद मिलते हैं.’’ प्रणव ने स्मिता को लौबी में छोड़ा और तेजी से सभागार की ओर बढ़ गया. स्मिता अन्य कवियों से नमस्ते, आदाब वगैरह कहने लगी. उन में अशोक चक्रधर की स्मिता बहुत बड़ी प्रशंसक थी. उन से बातचीत कर वह बहुत प्रसन्न हुई. इतने में सभी कविगणों को सभागार में बैठाया गया. इस के बाद विपिन चंद्र, होटल के मालिक, विश्वनाथ के साथ पधारे तो सभी ने उठ कर उन दोनों का अभिवादन किया. विश्वनाथ ने मंच पर जा कर अतिथि कवियों का स्वागत किया और कवि सम्मेलन शुरू करने की घोषणा अपनी एक छोटी सी कविता से की. कवियों में सर्वप्रथम जानेमाने कवि गौरव को बुलाया गया. गौरव मूलत: हास्य कवि हैं जो अपनी छोटीछोटी कविताओं में व्यंग्य के रूप में बड़ीबड़ी बात समझा जाते हैं. उन्होंने आते ही अपनी आत्महत्या की योजना के बारे में व्यंग्यात्मक ढंग की कविता सुनाई. वातावरण पूरा हास्यमय हो गया. इस के बाद दिल्ली के उभरते कवि विनय विनम्र ने नेताओं की देशभक्ति पर एक गीत प्रस्तुत किया तो श्रोताओं ने तालियों से उन का जोरदार समर्थन किया. ऐसे ही कार्यक्रम बढ़ता रहा पर स्मिता का मन कहीं और भटक रहा था. उसे यह खयाल बारबार परेशान कर रहा था कि प्रणव जैसा मेधावी छात्र अपनेआप को समाज में प्रतिष्ठित न कर पाया. मां से बचपन में सुनी कहावत ‘पढ़ोगे, लिखोगे तो बनोगे नवाब…’ उसे झूठी लग रही थी.

इसी बीच जलपान करने के लिए सभी कवियों और श्रोताओं को पास ही के हौल में बुलाया गया. स्मिता ने देखा कि विश्वनाथ और विपिन चंद्र बैठे बातचीत कर रहे थे. स्मिता ने मन ही मन साहस बटोरा और उन दोनों के पास पहुंच गई. उस ने अभिवादन कर विपिनजी से कहा, ‘‘सर, मैं आप से थोड़ी देर बात करना चाहती हूं.’’ विपिनजी स्मिता को जानते थे, बोले, ‘‘हां जी, कहिए, आप को चैक तो मिल गया है न?’’ स्मिता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जी, वह तो मिल गया है. पर आज मैं आप से इस होटल के मैनेजर प्रणव के बारे में बात करना चाहती हूं.’’ इतना कह कर स्मिता ने कालेज के सब से प्रतिभावान छात्र प्रणव की कहानी संक्षेप में कह डाली. उस ने फिर कहा, ‘‘आप जैसे कलापारखी शायद प्रणव की प्रतिभा का उचित मूल्य दे सकेंगे. क्या आप उसे अपने व्यवसाय में किसी प्रकार का कार्य दिला सकते हैं?’’ विपिनजी बोले, ‘‘अरे स्मिताजी, आप के सहपाठी को हम भी अच्छी तरह जानते हैं. दरअसल, अभी विश्वनाथ भी हमें यही बता रहे थे कि आर्थिक तंगियों की वजह से यह होटल बंद होने की कगार पर था कि तभी प्रणव ने जौइन किया. कर्मचारी कम होने की वजह से प्रणव ने हर तरह का काम किया. आज फिर से यह होटल चल पड़ा है. मेरी एक फैक्टरी, जिस में साबुन, शैंपू वगैरह बनते हैं, ऐसे ही हालात से गुजर रही है. ठीक है, देखते हैं, प्रणव वहां भी अपनी जादू की छड़ी घुमा सकता है या नहीं.’’

स्मिता खुश हो कर बोली, ‘‘धन्यवाद, सर, मुझे उम्मीद थी कि आप मेरी विनती का मान जरूर रखेंगे.’’ विपिनजी बोले, ‘‘अरेअरे, इस में धन्यवाद कैसा? भई, हमें भी तो कर्मठ और ईमानदार स्टाफ की जरूरत पड़ती है या नहीं?’’ स्मिता थोड़ा सोच कर बोली, ‘‘एक और बात है सर, प्रणव को यह मालूम नहीं होना चाहिए कि मैं ने आप से उस की सिफारिश की है. इस से उस के आत्मसम्मान को ठेस लग सकती है. मुझे विश्वास है प्रणव स्वयं ही अपनी काबिलीयत साबित कर पाएगा. आप को निराशा नहीं होगी. अच्छा सर, अब मैं चलती हूं. सब लोग जलपान हौल से वापस आ रहे हैं.’’ इतना कह कर स्मिता तेजी से सभागार की अपनी सीट पर जा बैठी. कवि सम्मेलन जलपान के अल्पविराम के बाद फिर से शुरू हुआ. कई जानेमाने गीतकार भी आए. हमारे फिल्म संगीत की एक विचित्र परंपरा यह है कि गीतकार का गीत चाहे जनजन की जबां पर आ जाए पर उस के पीछे गीतकार को कोई जानता ही नहीं है. कोई जानना चाहता भी नहीं है. गीत के गायक या बहुत हुआ तो संगीतकार, जिस ने धुन बनाई है, पर आ कर बात थम जाती है. फिल्म ‘शोर’ का गाना इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है…इसे गुनगुनाते समय कितने लोग भला उस गीत के गीतकार संतोष आनंद को याद करते होंगे. ऐसे में गीतकारों को अपने गीत कह कर, गा कर सुनाते देख अच्छा लगा. इतने में स्मिता का नाम पुकारा गया तो वह भी साड़ी संभालती हुई, हाथ में कविता की डायरी लिए पहुंच गई. सभी को नमस्कार कर उस ने प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज की कुछ लाइनें पढ़ीं. इस के बाद स्मिता ने उड़ान नामक अपनी कविता, जिस में एक पंछी के माध्यम से जीवन की वास्तविकता और उस से समझौता कर कैसे अपनी उड़ान जारी रखी जा सकती है, का सस्वर पाठ किया. इस के बाद उस ने अपनी मधुमेह रोग पर लिखी हास्य कविता का पाठ किया. उस ने मंच से देखा, प्रणव श्रोताओं में पीछे खड़ा था और उस की कविता सुन कर ‘वाहवाह’ कहता हुआ तालियां बजा रहा था.

अंत में अशोक चक्रधरजी की सारगर्भित, व्यंग्यात्मक कविताओं का रसास्वादन सभी ने किया. तत्पश्चात विपिन चंद्र ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया व सभा की समाप्ति अपनी कविता के साथ की. सभा समाप्ति के बाद स्मिता ने देखा विपिनजी ने प्रणव को बुलाया. स्मिता उत्सुकतावश वहीं पड़े एक बड़े से टेबल के पीछे छिप गई. उस ने सुना, विपिनजी कह रहे थे, ‘‘प्रणव, विश्वनाथजी तुम्हारे काम की बड़ी तारीफ कर रहे थे. क्या तुम मेरी फैक्टरी में मैंनेजिंग डायरैक्टर का पद संभालना चाहोगे? 80 हजार प्रति माह वेतन के साथ मकान और गाड़ी भी दी जाएगी.’’ प्रणव को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने बड़ी मुश्किल से कहा, ‘‘ये…ये आप क्या कह रहे हैं? क्या यह सच है?’’ स्मिता ने देखा, विपिनजी और विश्वनाथजी दोनों मुसकरा कर हामी भरते हुए सिर हिला रहे थे. विपिनजी ने कहा, ‘‘बिलकुल सच कह रहे हैं. विश्वनाथ को जब तक नया मैनेजर नहीं मिल जाता, तुम इन का कार्यभार भी रोज कुछ समय के लिए आ कर संभाल देना. कंप्यूटर पर भी इन का औफिशियल काम कर सकते हो. हां, यदि तुम्हें कोई आपत्ति है तो बता सकते हो.’’

प्रणव बोला, ‘‘आपत्ति क्या सर, बस, यही लग रहा है कि ऐसा काम पहले कभी किया नहीं है तो…’’ अब विश्वनाथजी ने उस से कहा, ‘‘प्रणव, तुम ने हर तरह का काम किया है. यही तुम्हारी काबिलीयत का सुबूत है. आज तुम्हें अच्छा अवसर मिल रहा है. जाओ, खूब मेहनत करो और अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी दो.’’ प्रणव के कानों में अपनी ही कही बातें गूंजने लगीं, जिंदगी अचानक घटी घटनाओं का क्रम है. उस ने भावातिरेक में विपिन व विश्वनाथजी को झुक कर प्रणाम किया. स्मिता ने देखा पास ही एक दरवाजा है, वह बैठेबैठे ही टेबल के पीछे से दरवाजे तक पहुंच गई और एक ही झटके में दरवाजे से निकल पड़ी. इस के बाद लौबी पार कर वह सीधी होटल के बाहर निकल गई. इधर, थोड़ी देर बाद प्रणव स्मिता को ढूंढ़ते हुए रिसैप्शनिस्ट के पास पहुंचा. रिसैप्शनिस्ट ने बताया, ‘‘स्मिता सहाय, वे मैडम तो अभी 5 मिनट पहले होटल से निकल गई हैं. बहुत जल्दी में लग रही थीं. शायद उन की गाड़ी का समय हो गया होगा.’’

प्रणव ने स्मिता को याद किया और मुसकरा दिया. सोचा, स्मिता की कन्नी काटने की आदत अभी गई नहीं है. थोड़ी देर रुकती तो बताता कि उस से दोबारा मिलना हसीन यादें ही नहीं दे गया बल्कि उस की जिंदगी में आर्थिक बदलाव की बहुत बड़ी सौगात ले कर आया. प्रणव ने पदोन्नति की  खबर देने के लिए तुरंत घर पर फोन किया और अपनी पत्नी मोना से बातें करने लगा. मन ही मन सोचने लगा, जीवन के सफर में ऐसे खूबसूरत मोड़ आते रहे तो सफर अब आसान हो जाएगा. होटल से बाहर आ कर स्मिता ने एक अजीब हलकापन महसूस किया. उसे विवेकानंद की कही बातें याद आ गईं. उन के अनुसार, जब किसी दूसरे की भलाई के लिए व्यक्ति कुछ काम करता है तो उस में किसी सिंह की तरह अपार शक्ति का संचार हो जाता है. शायद इसी कारण स्वभावत: चुप रहने वाली स्मिता आज मुखर हो पाई थी. उस ने मन ही मन विपिनजी को धन्यवाद दिया. हालांकि सच्चे प्यार में बदला लेना या देना संभव नहीं है. तब भी कालेज में प्रणव से ली गई छोटीछोटी मदद के बदले आज उस का उपकार कर आंतरिक खुशी हुई. मनमयूर जैसे नाच उठा. शायद प्रणव से दोबारा मुलाकात न हो, इस से कोई फर्क भी नहीं पड़ता. जिंदगीभर के लिए आज की यादें उस के तनहा पलों को गुदगुदाने के लिए काफी थीं. स्मिता आंखों में आंसू और होंठों पर मुसकान लिए चलती रही. आखिरकार स्टेशन की बैंच पर बैठ कर दिनभर की घटनाओं को याद करने लगी. उसे लगा प्रणव से उस का प्रेम किसी भी आशा अपेक्षा से परे था. बिलकुल निस्वार्थ, बंधनहीन.

 

औरत पैर की जूती: किस बात पर अड़े थे वकील साहब

मैं  अपने चैंबर में बैठ कर मेज पर  रखी फाइलों को निबटा रहा था. उसी समय नरेश एक रौबदार मूंछ वाले व्यक्ति के साथ कमरे में घुसा. लंबा कद और घुंघराले बालों वाले उस व्यक्ति की उम्र कोई 40 साल के आसपास की लग रही थी. चेहरे से परेशान उस व्यक्ति का परिचय नरेश ने कराया, ‘‘यह कैलाशजी हैं, गुजराती होटल के मैनेजर. इन के मकानमालिक ने इन का सारा सामान घर से निकाल कर सड़क के किनारे रखवा दिया है. बेचारे, बहुत मुसीबत में हैं. सर, इन की मदद कर दें.’’

‘‘इन्होंने मकान का भाड़ा नहीं दिया होगा?’’

‘‘अजी, किराया तो मैं पहली तारीख की शाम को एडवांस में ही दे देता हूं, अपुन मर्द आदमी है. किसी का उधार नहीं रखते.’’

‘‘तो फिर उस की बहन या लड़की को छेड़ा होगा?’’

‘‘सर, इस उम्र में किसी की बहन या लड़की को क्यों छेड़ेंगे.’’ कैलाश बोला, ‘‘मैं पिछले 10 सालों से उस का किराएदार हूं, अब मकानमालिक को लगता है कि कहीं मैं उस का मकान न हड़प लूं. इसलिए पिछले एक साल से डरा रहा है कि मकान खाली करो, वरना सामान निकाल कर बाहर फेंक दूंगा.’’

‘‘अब उस ने सामान बाहर फेंक कर अपनी धमकी पूरी कर दी,’’ मैं बोला.

‘‘जी, आप ने बिलकुल ठीक सोचा. अपुन मर्द आदमी है. चाहे तो मकान मालिक का सिर फोड़ सकता है, पर नरेश ने समझाया कि ऐसा बिलकुल नहीं करना. अब नरेश ही आप के पास मुझे ले कर आया है,’’ कैलाश ने उत्तर दिया.

नरेश मेरे पास पिछले 5 महीनों से वकालत का काम सीख रहा था. नरेश और कैलाश आपस में अच्छे मित्र थे. मैं ने नरेश को आदेश दिया कि वह कैलाश को साथ ले कर थाने जाए और पहले वहां कैलाश की रिपोर्ट दर्ज करा कर उस रिपोर्ट की कापी मेरे पास ले कर लौटे.

उन दोनों के जाने के बाद मैं ने कैलाश के इलाके के थाने में गणपतराव थानेदार को फोन कर के आग्रह किया कि वह कैलाश की रिपोर्ट लिखवा लें और कैलाश का मकानमालिक के साथ कोई उचित समझौता करवा दें.

गणपतराव मेरा कोर्ट का साथी है. अत: गणपतराव और मुझ में अकसर बातचीत होती रहती थी.

मेरी छोटी सी सहायता के चलते कैलाश का अपने मकानमालिक से सम्मानजनक समझौता हो गया. कैलाश को एक साल की मोहलत मिल गई. कैलाश को उम्मीद थी कि इस एक साल के भीतर ही वह अपने प्लाट पर खुद का मकान बनवा लेगा.

फीस के रूप में कैलाश ने मुझे 5 हजार रुपए की एक गड्डी पेश की. मैं ने इसे लेने से इनकार कर दिया क्योंकि मेरा जमीर इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था. पर इस व्यवहार से कैलाश इतना प्रभावित हुआ कि वह मेरा मित्र बन गया. वह खुद भी बहुत मिलनसार था और उस के दोस्तों की शहर में कमी न थी.

उस ने मेरे छोटेमोटे कई काम किए थे. अच्छा भुगतान करने वाले कुछ मुवक्किल भी मुझे दिलाए थे. अत: उस के प्रति स्नेह और सम्मान का भाव मेरे मन में पैदा होना स्वाभाविक था.

कैलाश की यह एक बात मुझे बहुत चुभती थी कि वह हर बात छिड़ने पर कहता था, ‘अपुन मर्द आदमी है. किसी का उधार नहीं रखता.’ शायद इस तरह का संवाद बोलना उस का तकिया कलाम बन चुका था.

उस का यह तकियाकलाम सुनते- सुनते मैं अब तंग आ चुका था. अत: एक दिन जब कैलाश ने यही संवाद दोहराया तो मैं मुसकराते हुए बोला, ‘‘क्या तुम भाभीजी के सामने भी इसी तरह का संवाद बोल कर अपनी मर्दानगी दिखाते रहते हो? वह बरदाश्त कर लेती हैं क्या तुम्हारी हेकड़ी?’’

बस, फिर क्या था. कैलाश चालू हो गया, बोला, ‘‘अरे, तुम्हारी भाभी क्या कर लेगी? अपुन मर्द आदमी है. घर पर पूरा पैसा देता है, किसी भी तरह की कमी नहीं छोड़ता,’’ और जोर से होहो कर हंसते हुए बोला, ‘‘औरत को ताज चाहिए न तख्त……झापड़ चाहिए सख्त. पैर की जूती होती है, औरत.’’

मुझे कैलाश की बात पर बहुत हंसी आ रही थी और गुस्सा भी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम औरत के बारे में इतने पिछड़े विचार आज के आधुनिक जमाने में रखते हो. आजकल तो औरतें आदमी को उंगली पर नचा रही हैं. तुम इतना सबकुछ पत्नी को सुनाने के बाद घर में शांति से खाना खा लेते हो?’’

‘‘वकील साहब, मेरी होटल की नौकरी है. रात को 1 बजे घर पहुंचता हूं तो वह मुझे ताजी रोटी बना कर खिलाती है. मैं बीवी को सिर पर नहीं चढ़ाता. पैर की जूती है वह,’’ कैलाश बहुत ही अभिमान के साथ बोला.

मेरी आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थीं. मुझे लगता था कि मेरी पढ़ाई और मेरा अनुभव बेकार है. मेरी वकालत पर कैलाश के अभिमान से आंच आने लगी थी. मेरी खुद की हिम्मत ऐसी नहीं थी कि मैं अपनी पत्नी या किसी दूसरी औरत के बारे में इतना खुला वक्तव्य दे सकूं.

यदि वह अपनी पत्नी से ऐसी बातें करे तो क्या इस के घर में झगड़ा नहीं होता होगा. क्या इस की पत्नी ऐसी बातें बरदाश्त कर लेती होगी? आखिर मैं अपना संयम रोक नहीं सका. उस से पूछ ही बैठा, ‘‘तब तो तुम्हारे घर में रोज ही खूब झगड़ा होता होगा?’’

‘‘झगड़ा…?’’ कैलाश अपनी आंखें चौड़ी कर के बोला, ‘‘बिलकुल नहीं होता. तुम्हारी भाभी की हिम्मत नहीं होती मेरे से झगड़ा करने की. अपुन मर्द आदमी है. औरतों का क्या, पैरों की जूतियां होती हैं. तुम्हारी भाभी को भी मैं ऐसे ही रखता हूं, जैसे पैर की जूती.’’

मेरे मन में उस समय कई तरह के प्रश्न उठ रहे थे. यदि कैलाश के दावे में दंभ अधिक नहीं है तो जरूर उस की पत्नी कोई असाधारण औरत होगी. यदि ऐसा नहीं है तो कैलाश के दावे का परीक्षण करना होगा. यह सोचते हुए मैं ने किसी समय कैलाश के घर जाने का फैसला लिया.

यह सुअवसर भी जल्दी ही मिल गया. कैलाश के 10 वर्षीय बेटे अजय का जन्मदिन था और इस मौके पर कैलाश अपने मित्रों को शाम का खाना घर पर ही खिलाना चाहता था. अत: उस ने अपने खासखास मित्रों को दावत पर बुलाया. मैं भी अपने जूनियर नरेश के साथ दावत में पहुंच गया.

कैलाश के घर का एकएक सामान करीने से लगा हुआ था. ड्राईंग रूम, बेड रूम, किचन और यहां तक कि टायलेट भी बहुत साफसुथरे थे. पता चला कि यह सब उस की पत्नी माला का कमाल था. मैं और नरेश तो कैलाश के छोटे भाई गोपाल के साथ उस का घर देख रहे थे.

इस के बाद हम घर के पीछे बने मैदान में गए. वहां एक शानदार शामियाना लगा हुआ था. वहीं कैलाश और उस की पत्नी माला आने वाले मेहमानों का स्वागत करते मिले.

मैं ने माला को देखा. वह 34-35 साल की उम्र में भी बहुत सुंदर लग रही थी. मैरून रंग की साड़ी और मैच करता ब्लाउज, गले में लाल रंग के मोतियों की माला, गोल चेहरा और शालीन व्यक्तित्व.

कैलाश ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी धर्मपत्नी माला देवी हैं.’’

मैं ने तुरंत दोनों हाथ जोड़ कर माला को नमस्कार किया.

कैलाश ने माला से कहा, ‘‘ये वकील साहब राजेंद्र कुमारजी हैं.’’

‘‘अच्छा…अच्छा…समझ गई,’’ माला ने तुरंत कहा और मुझे हाथ के इशारे से आगे मेजकुरसी दिखाते हुए बोली, ‘‘आइए, भाई साहब, आप तो हमारे खास मेहमान हैं.’’

माला के साथ आगे बढ़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘लगता है कि आप मुझे जानती हैं?’’

‘‘देखा तो आज ही है, पर नाम से परिचित हूं क्योंकि इन की जबान पर हमेशा आप का ही नाम रहता है.’’

माला ने मुझे एक सोफे पर बैठने का इशारा किया और 1-2 मिनट के लिए इजाजत ले कर चली गई. जब वह वापस लौटी तो उसके हाथ की टे्र में संतरे का जूस 2 गिलासों में मौजूद था. उस के आग्रह पर मैं ने और नरेश ने जूस का एकएक गिलास थाम लिया. फिर वह बहुत ही कोमल लहजे में हम से इजाजत ले कर कैलाश के पास चली गई.

मैं और नरेश आपस में बातचीत करते रहे. पता चला कि माला ने हिंदी साहित्य में एम.ए. किया है. घर में कैलाश के 2 बच्चे, (एक लड़का व एक लड़की) कैलाश की विधवा बहन तथा एक कुंवारा छोटा भाई मिल कर रहते हैं.

शामियाना थोड़ी ही देर में खचाखच भर गया तो कैलाश मेरे पास आया और केक की टेबल पर चलने का आग्रह किया. कैलाश का बेटा, पत्नी माला और निकट संबंधी भी केक की टेबल पर पहुंचे. ‘तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों कई हजार’ गाने की ध्वनि के साथ कैलाश के बेटे ने केक काटा. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ मेहमानों ने उसे बधाई दी. उपहार दिए. फोटोग्राफर फोटो लेने लगे. इस के साथ ही भोजन का कार्यक्रम शुरू हो गया.

कैलाश ने पहली प्लेट मुझे पकड़ाई. मैं प्लेट में खाना डालने लगा. तभी कैलाश को निकट संबंधियों की सेवा में जाना पड़ा. कुछ देर बाद कैलाश की पत्नी माला मेरे पास आई. मैं ने उस से आग्रह किया कि वह भी साथ में खाना ले ले. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘सारे मेहमानों के बाद इन के साथ ही खाना लूंगी. आप के साथ सलाद ले लेती हूं,’’ और इतना कह कर उस ने एक गाजर का टुकड़ा उठा लिया.

मैं ने भी उसी मुसकराहट के साथ उत्तर दिया, ‘‘हांहां, आप अपने पति के साथ ही खाना, मेरे साथ सलाद लेने के लिए आप का बहुतबहुत धन्यवाद. लगता है कि उम्र के इस मोड़ पर भी आप अपने पति को बहुत चाहती हैं?’’

‘‘बढ़ती उम्र के साथ तो पतिपत्नी के बीच प्यार भी बढ़ना चाहिए न?’’ माला बोली.

‘‘आप दिल से कह रही हैं या असलियत कुछ और है?’’

‘‘भाई साहब, आप के मन में कोई शंका हो तो साफसाफ बताइए न, पहेलियां क्यों बूझ रहे हैं? हमारा जीवन तो खुली किताब है.’’

मैं थोड़ा संकोच के साथ बोला, ‘‘कैलाशजी मेरे परम मित्र हैं पर जब वह स्त्री जाति के बारे में कहते हैं कि वह तो पैर की जूती होती है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है. वह कहते हैं कि मैं अपनी पत्नी को भी पैर की जूती समझता हूं. आप बताइए, अपने बारे में इतना जान कर आप कैसा महसूस कर रही हैं?’’

‘‘आप का प्रश्न कोई अनोखा नहीं है. इस तरह के प्रश्न अकसर लोग मुझ से पूछते रहते हैं. शुरू में यह सुन कर मुझे भी बहुत तकलीफ हुई थी पर अब तो आदत सी पड़ गई है. मैं ने इन को समझाया भी कि ऐसी गंदी बातें मत किया करो लेकिन यह सुधरते नहीं. अब तो मैं ने इन्हें इन के हाल पर छोड़ दिया है. वक्त ही इन्हें सुधारेगा. यदि मैं लोगों के उकसाने पर चलती तो शायद इन से मेरा तलाक हो जाता पर मैं ने बहुत ही गंभीरता से सारी परिस्थितियों पर विचार किया है.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां, इन से झगड़ा कर के अपने घर की सुखशांति भंग करने के बजाय मैं बात की तह में गई कि यह ऐसे संवाद आखिर क्यों बोलते हैं?’’

‘‘कुछ मिला?’’

‘‘हां, इन के बूढ़े पिता, जिन का अब स्वर्गवास हो चुका है, अपने जातिगत एवं पुरातनपंथी संस्कारों से पीडि़त थे. अपनी जवानी क्या, बुढ़ापे तक वह शराब का सेवन करते रहे. वह अपनी बीवी यानी मेरी सास की पिटाई भी किया करते थे.

‘‘अपनी मां को मार खाते देख कर इन्हें गुस्सा बहुत आता था. पर इन्होंने कभी मुझे मारा नहीं. ये शराब भी नहीं पीते. फिर भी अपने पिता की तरह खुद को बड़ा मर्द समझते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें पिता की तरह ही रखी हुई हैं. कहते हैं कि मूंछें  रखना हमारी खानदानी परंपरा है. अपने पिता की तरह बारबार दोहराते हैं, ‘ढोर, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी.’

‘‘डींग हांकते हुए कहते हैं कि औरत तो मर्द के पैर की जूती होती है. अगर मैं इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लूं तो हम दोनों एक पल भी साथ नहीं रह सकते. इन में यही एक कमी है. इसलिए मैं ने इन को अधिक से अधिक प्यार दे कर हिंसक नहीं बनने दिया. पर इन के तकियाकलाम और नारी जाति के बारे में ऐसे संवादों पर रोक नहीं लगा पाई.’’

मेरी प्लेट का खाना खत्म हो चुका था. जूठी प्लेट एक बड़ी प्लास्टिक की टोकरी में डालते हुए मैं बोला, ‘‘भाभीजी, यदि आप जैसी समझदार महिलाओं की संख्या समाज में बढ़ जाए तो व्यर्थ के घरेलू झगड़े कम हो जाएं. कैलाश को तो वक्त ही ठीक करेगा.’’

‘‘अच्छा, मै चलता हूं,’’ कहते हुए मैं ने उन से इजाजत ली.

इस के बाद कैलाश से कई मुलाकातें हुईं, वह अपनी पत्नी को ले कर मेरे घर भी आया. मेरी पत्नी को भी माला का स्वभाव अच्छा लगा.

जून माह के बाद मुझे कैलाश कई दिनों तक नहीं मिला. अपना मकान बनवाने के कारण नरेश भी 2 महीने की छुट्टी पर था. छुट्टी के बाद नरेश काम पर आया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘कैलाश की कोई खैरखबर है? पिछले 3 महीनों से वह दिखाई नहीं दिया.’’

‘‘सर, वह तो महाराजा यशवंतराव अस्पताल में भरती है.’’

‘‘आश्चर्य की बात है. मुझे  किसी ने खबर नहीं दी. तुम्हारा भी कोई फोन इस संबंध में नहीं आया?’’

‘‘सर, मुझे खुद परसों पता लगा है.’’

मैं शाम को अस्पताल में पहुंच कर कैलाश के बारे में पूछतेपूछते उस के वार्ड तक जा पहुंचा. वार्ड में अभी मैं कैलाश का बेड ढूंढ़ ही रहा था कि मुझे माला ने देख लिया और बोली, ‘‘आइए, भाई साहब.’’

माला मुझे आवाज न देती तो शायद मैं उसे पहचान भी नहीं पाता. वह सूख कर कांटा हो गई थी. उस के गोरे गाल किशमिश की तरह पिचक गए थे.

मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अरे, तुम इतनी बीमार कैसे हो गईं? मैं ने तो सुना था कि कैलाशजी बीमार हैं.’’

‘‘आप ने ठीक सुना था, भाई साहब, मैं नहीं आप के भाई बीमार हैं. देखिए, वह पड़े हैं पलंग पर, लेकिन अब पहले से बहुत ठीक हैं.’’

मुझे देख कर कैलाश पलंग पर ही उठ बैठा. मैं स्टूल खींच कर उस के पास बैठ गया.

‘‘क्या हो गया था, कैलाश? तुम ने या माला ने तो कोई सूचना भी नहीं भेजी. क्या तुम लोगों के लिए मैं इतना गैर हो गया,’’ कैलाश को कमजोर हालत में देख कर मैं ने शिकायत की.

कैलाश की पीठ के पीछे बड़ा सा तकिया लगाते हुए माला बोली, ‘‘भाई साहब, अभी तक तो हम लोग ही इन्हें संभाल रहे थे. यदि कोई कठिनाई आती तो आप के पास ही आते.

‘‘इन्हें पीलिया हो गया था. इन का न तो कोई खाने का समय है और न ही सोने का. लिवर पर तो असर पड़ना ही था. पीलिया का इलाज चल रहा था कि इन्हें टायफाइड हो गया. अब इन्हें आवश्यक रूप से बिस्तर पर आराम करना पड़ रहा है,’’ यह कहते हुए माला को हंसी आ गई.

मुझे लग रहा था कि मेरे पहुंचने से इन दोनों को बहुत राहत मिली थी. अत: माला के उदास चेहरे पर भी बहुत दिनों बाद हंसी की रेखा फूटी होगी.

कैलाश भी मुसकाराया और बोला, ‘‘वकील साहब, यह मेरी सेवा करतेकरते खुद बीमार हो गई है. इस ने मुझे मरने से बचा लिया है. बहन और रिश्तेदार तो आतेजाते रहते थे पर माला मुझे छोड़ कर एक पल के लिए भी घर नहीं गई.’’

‘‘अरे, आप कम बोलो ना? डाक्टर ने ज्यादा बोलने के लिए मना किया है,’’ माला ने कैलाश को रोका.

कैलाश रुका नहीं, बोलता रहा, ‘‘मैं बुखार में चीखताचिल्लाता था. माला पर अपना गुस्सा उतारता था. पर यह औरत ठंडे पानी की पट्टियां मेरे सिर और बदन पर रखते हुए हर समय मुझे बच्चा मान कर दिलासा देती रहती थी. मैं इस का यह कर्ज इस जीवन में उतार नहीं पाऊंगा,’’ इतना बतातेबताते कैलाश की आंखों में आंसू आ गए थे.

वह एक पल को रुक कर बोला, ‘‘यह कब जागती थी और कब सोती थी, मुझे नहीं पता. लेकिन जब भी रात में मेरी आंख खुलती  थी तो यह मेरी सेवा करते मिलती. मेरे कारण देखो इस का शरीर कितना कमजोर हो गया है.’’

‘‘यह ठीक हो गए. अब घर जाने पर मैं भी अपनेआप ठीक हो जाऊंगी,’’ माला बोली.

मैं अपने साथ कुछ फल लाया था. उस में से एक संतरा निकाल कर छीला और फांके कैलाश को दी. माला को भी दिया. इस के बाद हम लोेग गपशप करने लगे. जब माहौल पूरी तरह से प्रसन्नता का हो गया तो मैं ने कैलाश से चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘कैलाश, तुम तो कहते थे, औरत पैर की जूती होती है. माला भी इसी दरजे में आती है. अब तुम माला को महान कह रहे हो. तुम्हारी यह राय सचमुच बदल गई है या सिर्फ अस्पताल तक सीमित है.’’

‘‘आप, वकील साहब सुधरेंगे नहीं, यहां अस्पताल में भी अपनी वकालत दिखा कर रहेंगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं चौंका.

‘‘मतलब यह है कि आप मेरे गुनाहों को सब के सामने कबूलने के लिए कहेंगे?’’

‘‘मेरी ओर से कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. मुजरिम भी तुम खुद हो और यह अदालत भी तुम्हारी है, जो मर्जी में आए फैसला लिख लो.’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो वकील साहब मेरा फैसला भी सुन लो. मैं अपने दंभ और झूठे घमंड के कारण औरत को पैर की जूती कहता था. अब जमाना बदल गया है. कई मामलों में औरत आदमी से आगे निकल गई है. उसे सलाम करना होगा. उस का स्थान पैरों पर नहीं दिल और माथे पर है.

दोषी कौन: रश्मि के पति ने क्यों तोड़ा भरोसा

लॉकडाउन के कारण सभी की जानकारी में आई भोपाल की इस सच्ची कहानी में असली दोषी कौन है यह मैं आपको वाकिए के आखिर में बता पाऊँगा तो उसकी अपनी वजहें भी हैं . मिसेज वर्मा कोई 17 साल की अल्हड़ हाई स्कूल की स्टूडेंट नहीं हैं जिसे नादान , दीवानी या बाबली करार देते हुये बात हवा में उड़ा दी जाये . यहाँ सवाल दो गृहस्थियों और तीन ज़िंदगियों का है इसलिए फैसला करना मुझे तो क्या आपको और मामला अगर अदालत में गया तो किसी जज को लेना भी कोई आसान काम नहीं होगा .

जब कोई पेशेवर लिखने बाला किसी घटना को कहानी की शक्ल देता है तो उसके सामने कई चुनौतियाँ होती हैं जिनमें से पहली और अहम यह होती है कि वह इतने संभल कर लिखे कि किसी भी पात्र के साथ ज्यादती न हो इसलिए कभी कभी क्या अक्सर उस पात्र की जगह खुद को रखकर सोचना जरूरी हो जाता है . चूंकि इस कहानी का मुख्य पात्र 45 वर्षीय रोहित है इसलिए बात उसी से शुरू करना बेहतर होगा हालांकि इस प्लेटोनिक और मेच्योर लव स्टोरी की केंद्रीय पात्र 57 वर्षीय श्रीमति वर्मा हैं जिनका जिक्र ऊपर आया है .

श्रीमति वर्मा भोपाल के एक सरकारी विभाग में अफसर हैं लेकिन चूंकि विधवा हैं. इसलिए सभी के लिए उत्सुकता , आकर्षण और दिखावटी सहानुभूति की पात्र रहती हैं . दिखने वे ठीकठाक और फिट हैं लेकिन ठीक वैसे ही रहना उनकी मजबूरी है जैसे कि समाज चाहता है . हालांकि कामकाजी होने के चलते कई वर्जनाओं और बन्दिशों से उन्हें छूट मिली हुई है पर याद रहे इसे आजादी समझने की भूल न की जाए . कार्यस्थल पर और रिश्तेदारी में हर किसी की नजर उन पर रहती है कि कहीं वे विधवा जीवन के उसूल तो नहीं तोड़ रहीं . ऐसे लोगों को मैं सीसीटीवी केमरे के खिताब से नबाजता रहता हूँ जिन्हें दूसरों की ज़िंदगी में तांकझांक अपनी ज़िम्मेदारी लगती है .

उनके पति की मृत्यु कोई दस साल पहले हुई थी लिहाजा वे टूट तो तभी गईं थीं लेकिन जीने का एक खूबसूरत बहाना और मकसद इकलौता बेटा था जिसकी शादी कुछ साल पहले ही उन्होने बड़ी धूमधाम से की थी . उम्मीद थी कि बहू आएगी तो घर में चहल पहल और रौनक लेकर आएगी , कुछ साल बाद किलकारियाँ घर में गूँजेंगी और उन्हें जीने एक नया बहाना और मकसद मिल जाएगा . उम्मीद तो यह भी उन्हें थी कि बहू के आने के बाद उनका अकेलापन भी दूर हो जाएगा जो उन्हें काट खाने को दौड़ता था . कहने को तो बल्कि यूं कहना ज्यादा बेहतर होगा कि कहने को ही उनके पास सब कुछ था , ख़ासी पगार बाली सरकारी नौकरी रचना नगर जैसे पोश इलाके में खुद का घर और जवान होता बेटा , लेकिन जो नहीं था उसकी भरपाई इन चीजों से होना असंभव सी बात थी .

बहरहाल वक्त गुजरता गया और वे एक आस लिए जीती रहीं . यह आस भी जल्द टूट गई , बहू वैसी नहीं निकली जैसी वे उम्मीद कर रहीं थीं .  बेटे ने भी शादी के तुरंत बाद रंग दिखाना शुरू कर दिए . यहाँ मेरी नजर में इस बात यानि खटपट के कोई खास माने नहीं क्योंकि ऐसा हर घर में होता है कि बहू आई नहीं कि मनमुटाव शुरू हुआ और जल्द ही चूल्हे भी दो हो जाते हैं .  लेकिन जाने क्यों श्रीमति वर्मा से मुझे सहानुभूति इस मामले में हो रही है लेकिन पूरा दोष मैं उनके बेटे और बहू को नहीं दे सकता .

ऊपर से देखने में सब सामान्य दिख रहा था पर श्रीमति वर्मा की मनोदशा हर कोई नहीं समझ सकता जो जो दस साल की अपनी सूनी और बेरंग ज़िंदगी का सिला बेटे बहू से चाह रहीं थीं . कहानी में जो आगे आ रहा है उसका इस मनोदशा से गहरा ताल्लुक है जिसने खासा फसाद 30 अप्रेल को खड़ा कर दिया . इस दिन भी लोग असमंजस में थे कि 3 मई को लॉकडाउन हटेगा या फिर और आगे बढ़ा दिया जाएगा . बात सच भी है कि कोरोना के खतरे को गंभीरता से समझने बाले भी लॉकडाउन से आजिज़ तो आ गए थे .  खासतौर से वे लोग जो अकेले हैं लेकिन उनसे भी ज्यादा वे लोग परेशानी और तनाव महसूस रहे थे जो घर में औरों के होते हुये भी तन्हा थे जैसे कि श्रीमति वर्मा .

मुझे जाने क्यों लग रहा है कि कहानी में गैरज़रूरी और ज्यादा सस्पेंस पैदा करने की गरज से मैं उसे लंबा खींचे जा रहा हूँ .  मुझे सीधे कह देना चाहिए कि श्रीमति वर्मा अपने सहकर्मी रोहित से प्यार करने लगीं थीं जो उम्र में उनसे दो चार नहीं बल्कि 12 साल छोटा था और काबिले गौर बात यह कि शादीशुदा था . रोहित की पत्नी का नाम मैं सहूलियत के लिए रश्मि रख लेता हूँ . ईमानदारी से कहूँ तो मुझे वाकई नहीं मालूम कि रोहित और रश्मि के बाल बच्चे हैं या नहीं लेकिन इतना जरूर मैं गारंटी से कह सकता हूँ कि शादी के 14 साल बाद भी दोनों में अच्छी ट्यूनिंग थी . ये लोग भी भोपाल के दूसरे पाश इलाके चूनाभट्टी में रहते हैं .

लॉकडाउन के दौरान सरकारी दफ्तर भी बंद हैं इसलिए श्रीमति वर्मा और रोहित एक दूसरे से मिल नहीं पा रहे थे .  चूनाभट्टी और रचनानगर के बीच की दूरी कोई 8 किलोमीटर है , रास्ते में जगह जगह पुलिस की नाकाबंदी है जिससे इज्जतदार मध्यमवर्गीय लोग ज्यादा डरते हैं और बेवजह घरों से बाहर नहीं निकल रहे .  इससे फायदा यह है कि वे खुद को कोरोना के संकमण से बचाए हुए हैं . नुकसान यह है प्रेमी प्रेमिकाएं एक दूसरे से रूबरू मिल नहीं पा रहे . जुदाई का यह वक्त उन पति पत्नियों पर भी भारी पड़ रहा है जो एक दूसरे से दूर या अलग फंस गए हैं .

जिन्हें सहूलियत है वे तो वीडियो काल के जरिये एक दूसरे को देखते दिल का हाल बयां कर पा रहे हैं लेकिन शायद श्रीमति वर्मा और रोहित को यह सहूलियत नहीं थी और थी भी तो बहुत सीमित रही होगी क्योंकि रश्मि घर में थी .  श्रीमति वर्मा तो एक बारगी अपने बेडरूम से वीडियो काल कर भी सकतीं थीं लेकिन रोहित यह रिस्क नहीं ले सकता था . जिस प्यार या अफेयर पर दस साल से परदा पड़ा था और जो चोरी चोरी चुपके चुपके परवान चढ़ चुका था वह परदा अगर जरा सी बेसब्री में उठ जाता तो लेने के देने पड़ जाते .

लेकिन न न करते ऐसा हो ही गया . 30 अप्रेल की सुबह श्रीमति वर्मा रोहित के घर पहुँच ही गईं . कहने को तो अब कहानी में कुछ खास नहीं रह गया है लेकिन मेरी नजर में कहानी शुरू ही अब होती है . रश्मि किचिन से चाय बनाकर निकली तो उसने देखा कि रोहित एक महिला से पूरे अपनेपन और अंतरंगता से बतिया रहा है तो उसका माथा ठनक उठा . खुद पर काबू रखते उसने जब इस बात का लब्बोलुआब जानना चाहा तो सच सुनकर उसके हाथ के तोते उड़ गए .

श्रीमति वर्मा ने पूरी दिलेरी से कहा कि वे और रोहित एक दूसरे से प्यार करते हैं और लॉकडाउन की जुदाई उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए वे रोहित से मिलने चलीं आईं .  इतना सुनना भर था कि रश्मि का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा उसने सवालिया निगाहों से रोहित की तरफ देखा तो माजरा झट से उसकी समझ आ गया . चोर निगाहों से इधर उधर देखते रोहित की हिम्मत पत्नी से निगाहें मिलकर बात करने की नहीं पड़ी .

रश्मि की हालत काटो तो खून नहीं जैसी थी लिहाजा वह आपा खोते हिस्टीरिया और सीजोफ़्रेनिया के मरीजों जैसी फट पड़ी . जब एक पत्नी का भरोसा आखो के सामने पति पर से उठता है तो उसकी हालत क्या होती होगी यह सहज समझा जा सकता है . अब ड्राइंग रूम में कहानी के तीनों प्रमुख किरदार मौजूद थे और अपनी अपनी भूमिकाएँ तय कर रहे थे . खामोशी से शुरू हुई बात जल्द ही कलह और तू तू मैं मैं में बदल गई . रोहित बेचारा बना प्रेमिका और पत्नी के बीच अपराधियों सरीखा खड़ा था उसके चेहरे से मास्क यानि नकाब उतर चुका था .

कहते हैं सौत तो पुतले या मिट्टी की भी नहीं सुहाती फिर यहाँ तो रश्मि के सामने साक्षात श्रीमति वर्मा खड़ी थीं जिनके चेहरे या बातों में कोई गिल्ट नहीं था . उल्टे हद तो तब हो गई जब बात बढ़ते देख उन्होने रश्मि से यह कहा कि चाहो तो मेरी सारी जायदाद ले लो लेकिन मेरा रोहित मुझे दे दो , मुझे उसके साथ रह लेने दो .

पानी अब सर से ऊपर बहने लगा था इसलिए रश्मि ने चिल्लाना शुरू कर दिया रोहित अब भी खामोशी से सारा तमाशा देख रहा था इसके अलावा कोई और रास्ता उसके पास बचा भी नहीं था . दृश्य अनिल कपूर , श्रीदेवी और उर्मिला मांतोंडकर अभिनीत फिल्म जुदाई जैसा हो गया था , जिसमें मध्यमवर्गीय श्रीदेवी  रईस उर्मिला को पैसो की खातिर पति अनिल कपूर को न केवल सौंप देती है बल्कि दोनों की शादी भी करा देती है .

इस मामले में पूरी तरह ऐसा नहीं था फिल्म में अनिल कपूर उर्मिला को नहीं चाहता था बल्कि उर्मिला ही उस पर फिदा हो गई थी और श्रीदेवी की पैसों की हवस देखते उसने अपना प्यार और प्रेमी खरीद लिया था . इधर हकीकत में रोहित अब हिम्मत जुटाते रश्मि को यह कहते शांत कराते यह कह रह था कि श्रीमति वर्मा उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि दोस्त हैं जो अकेलेपन से घबराकर सहारा मांगने चली आई है .

एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी की तर्ज पर पति की यह सफाई सुनकर  रश्मि और भड़क उठी और इतनी भड़की कि उनके पड़ोसी को शोरशराबा सुनकर उनके घर की कालबेल बजाने मजबूर होना पड़ा . आगुंतक पड़ोसी का नाम अशोक जी मान लें जो अंदर आए तो नजारा देख सकपका उठे . यकीन माने अशोक जी अगर ठीक वक्त पर एंट्री न मारते तो मुझे यह कहानी मनोहर कहानिया या सत्यकथा के लिए पूरा मिर्च मसाला उड़ेल कर लिखनी पड़ती .

अशोक जी ने मौके की नजाकत को समझा और तुरंत पुलिस को इत्तला कर दी . पुलिस के आने तक उनका रोल मध्यस्थ सरीखा रहा जो दरअसल में एक हादसे को रोकने का भी पुण्य कमा रहा था . इस दौरान भी श्रीमति वर्मा यह दोहराती रहीं कि वे अपनी सारी प्रापर्टी रश्मि के नाम करने तैयार हैं लेकिन एवज में उन्हें रोहित के साथ रहने की इजाजत चाहिए . लेकिन चूंकि रश्मि श्रीदेवी की तरह पति बेचने को तैयार नहीं थीं क्योंकि उसने शायद जुदाई  फिल्म देखी थी कि फिल्म के क्लाइमेक्स में जब अनिल कपूर उर्मिला के साथ जाने लगता है तो उसकी हालत पागलों सरीखी हो जाती है और तब उसे पति की अहमियत समझ आती है और उसके प्यार का व रिश्ते का एहसास होता है .

खैर पुलिस आई और सारा मामला सुनने समझने के बाद हैरान रह गई मुमकिन है लॉकडाउन की झंझटों के बीच कुछ पुलिस बालों को इस अनूठी प्रेम कहानी पर हंसी भी आई हो लेकिन उसे उन्होने दबा लिया हो . बात अब घर की दहलीज लांघ कर परिवार परामर्श केंद्र तक जा पहुंची जिसकी काउन्सलर सरिता राजानी ने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश की . बात श्रीमति वर्मा के बेटे बहू से भी की गई लेकिन कोई समाधान नहीं निकला . श्रीमति वर्मा अंगद के पैर की तरह अपने प्रेमी के घर जम गईं थीं यह रश्मि के लिए नई मुसीबत थी .

सरिता राजानी को जो समझ आया वह इतना ही था कि श्रीमति वर्मा बेटे बहू की अनदेखी और अबोले के चलते लॉकडाउन के अकेलेपन से घबराकर रोहित के घर आ गईं थीं . इधर रश्मि का कहना यह था कि शादी के 14 साल बाद रोहित ने उसे धोखा दिया है जिसके लिए वे कभी उसे माफ नहीं करेंगी . रोहित के पास बोलने कुछ खास था नहीं उसकी चुप्पी ही उसका कनफेशन थी . दिन भर एक दिलचस्प काउन्सलिन्ग वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए चली जिसका सुखद नतीजा यह निकला कि श्रीमति वर्मा अपने घर वापस चली गईं लेकिन कहानी अभी बाकी है .

अब जो भी हो लेकिन अभी तक जो भी हुआ वह आमतौर पर इस तरह नहीं होता . हर किसी के विवाहेत्तर संबंध होते हैं जिनमे से अधिकांश अस्थायी होते हैं पर जो स्थाई हो जाते हैं उनका अंजाम तो वही होता है जो इस मामले में हुआ . ऐसे अफसानो को कोई साहिर लुधियानबी किसी खूबसूरत मोड पर नहीं ले जा सकते .  इनकी मंजिल तो अलगाव या ज़िंदगी भर की घुटन ही होती है और यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर दोष किसके सर मढ़ा जाए .

एक अनुभवी लेखक होने की नाते मैं पाठकों की यह जिज्ञासा बखूबी समझ रहा हूँ कि आखिर श्रीमति वर्मा और रोहित के बीच शारीरिक यानि नाजायज करार दिए जाने बाले संबंध थे या नहीं .  कुछ तो झल्लाकर यह तक सोचने लगे होंगे कि एक तरफ फेंको यह किस्सा और फलसफा  पहले मुद्दे और तुक की बात करो . लेकिन पूरी लेखकीय चालाकी दिखाते मैं इतना ही कहूँगा कि हो भी सकते हैं और नहीं भी .  वैसे भी इस मसले पर कुछ कहना बेमानी होगा इसलिए पाठक खुद अंदाजा लगाने स्वतंत्र हैं . ऊपर मैंने श्रीमति वर्मा की तुलना किसी स्कूली लड़की से जानबूझकर एक खास मकसद से की है और इसके लिए अब हमें कहानी से बाहर आकर सोचना पड़ेगा .

मेरे लिए दिलचस्प और चिंतनीय बात एक अधेड़ महिला का सारे बंधन तोड़कर अपने प्रेमी के यहाँ बेखौफ पहुँच जाना है जो जानती समझती है कि इसका अंजाम और शबब सिवाय जग हँसाई और बदनामी के कुछ नहीं होगा . दिल के हाथों मजबूर लोग मुझे इसलिए अच्छे लगते हैं कि उनमें एक वो हिम्मत होती है जो धर्म , समाज और घर परिवार नाते रिश्तेदारी किसी की परवाह नहीं करती .  वह अपने प्यार के बाबत किसी मुहर या किसी तरह की स्वीकृति की मोहताज नहीं उसका यह जज्बा और रूप नैतिकता से परे मेरी नजर मैं एक सेल्यूट का हकदार है .

रोहित को भी दोषी मैं नहीं मानता क्योंकि उसने समाज से उपेक्षित और लगभग प्रताड़ित विधवा को भावनात्मक सहारा दिया .  यहाँ मैं इस प्रचिलित मान्यता को भी खारिज करता हूँ कि किसी विवाहित पुरुष को पत्नी के अलावा किसी दूसरी स्त्री से प्यार नहीं करना चाहिए . मुझे मालूम है अधिकतर लोग मेरी इस दलील से इत्तफाक नहीं रखेंगे लेकिन मेरी नजर में ये वही लोग होंगे जो यह राग अलापेंगे कि किसी विधवा को तो प्यार करने जैसी हिमाकत करनी ही नहीं चाहिए .  उसके लिए तो उन्हीं सामाजिक और धार्मिक दिशा निर्देशों का पालन करते रहना चाहिए जो राज कपूर की फिल्म प्रेम रोग में दिखाए गए है . फिल्म का कथानक रूढ़ियों और खोखले उसूलो में जकड़े एक ठाकुर जमींदार खानदान के इर्द गिर्द घूमता रहता है .

इस फिल्म में नायक की भूमिका में हाल ही में दुनिया छोड़ गए ऋषि कपूर थे . नायिका पद्मिनी कोल्हापुरे विधवा हो जाती है तो उस पर तरह तरह के अमानवीय जुल्म उसके ससुराल और मायके बाले ढाते हैं .  यहाँ तक कि उसके जेठ की भूमिका निभा रहे रजा मुराद तो उसका बलात्कार तक कर डालते हैं .  एक दृश्य में यह भी दिखाया गया गया है कि विधवा नायिका के मुंडन तक की तैयारियां हो गई हैं . नायिका जब वापस मायके आती है ऋषि कपूर से उसका प्यार परवान चढ़ने लगता है .  इसकी भनक जैसे ही ठाकुरों को लगती है तो वे भड़ककर बंदूक उठा लेते हैं . ऐसे में इस फिल्म में शम्मी कपूर द्वारा बोला यह डायलोग बेहद प्रासंगिक और उल्लेखनीय है कि समाज सहारा देने होना चाहिए न कि छीनने .

चल रही इस कहानी में इकलौता पेंच या उलझन रोहित का शादीशुदा होना है .  कहा जा सकता है कि उसने रश्मि से बेबफाई की , उसे धोखा दिया . इस मोड पर मेरे ख्याल में हमे धैर्य और समझ से काम लेना चाहिए . श्रीमति वर्मा से प्यार करने का हक छीना नहीं जा सकता और न ही रोहित से सिर्फ इस बिना पर कि वह शादीशुदा है . दो टूक सवाल ये कि क्या कोई शादीशुदा मर्द प्यार करने का हक नहीं रखता या कोई भी पति , पत्नी के अलावा किसी और औरत से प्यार करने का हकदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए . एक साथ दो स्त्रियों से प्यार करना गुनाह क्यों जबकि वह दोनों को भावनात्मक और शारीरिक संतुष्टि या सुख दे सकता है .

रश्मि का तो कोई दोष ही नहीं जो एक सीधी सादी घरेलू महिला है.  उसके लिए तो उसका पति और प्यार ही सब कुछ है पर उसका भरोसा ही नहीं बल्कि दिल भी टूटा है . मैं उससे इतने बड़े दिल की होने की उम्मीद नहीं करता कि वह पति की बेबफाई को पचा ले लेकिन यह उम्मीद तो उससे की जा सकती है कि वह श्रीमति वर्मा की हालत समझे . रोहित ने उन्हें बुरे वक्त में सहारा दिया इसके लिए वह उसकी तारीफ भले ही न करे और कर भी नहीं सकती लेकिन महिला होने के नाते यह तो समझ ही सकती है कि पति की प्रेमिका किन हालातों में उसके नजदीक आई और इस तरह दस साल रोहित के साथ गुजारे कि किसी को हवा तक नहीं लगी . वैसे भी यह विवाहेत्तर सम्बन्धों का पहला या आखिरी उजागर मामला नहीं है .

कहानी को दिए शीर्षक के मुताबिक यह बताना भी मेरी लेखकीय ज़िम्मेदारी है कि अगर सभी बेगुनाह हैं हैं तो फिर दोषी कौन है  . उसका नाम बताने के पहले मैं यह जरूर बताना चाहूँगा कि ऐसे मामले जब तक उजागर नहीं होते तब तक कोई नोटिस नहीं लेता यानि ढका रहे तो गुनाह गुनाह नहीं रह जाता . यह मामला उजागर हुआ है तो मेरी नजर में दोषी है – 

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें