‘भुगत तो मैं भी रहा हूं. जुदाई का गम. कम से कम तुम्हारे पास तुम्हारा परिवार, हमारा बेटा तो है. मेरे पास कौन है?’ ‘हमारा बेटा. शायद तुम भूल रहे हो कि हमारा नहीं, सिर्फ और सिर्फ मेरा बेटा था. मेरे और कमल का बेटा.’ ‘मैं जानता हूं. लेकिन शायद तुम भूल रही हो कि दुनिया की नजर में आज भी प्रेम हमारा ही बेटा है. कमल का नहीं. भले उस के शरीर में मेरे खून का कतरा नहीं है लेकिन मेरे प्यार के रंग को कोई कैसे उतार सकता है. नंदजी कान्हा के पिता भले नहीं थे किंतु वासुदेव से पहले नंद का नाम ही लिया जाता है. यह उन का पुत्रप्रेम व समर्पण था. जिसे दुनिया सदैव से ही नमन करती आई है और करती रहेगी.’
‘तुम नंद नहीं हो, पर मुझे देवकी जरूर बना दिया. क्यों?’ ‘देवकी, मैं ने कैसे बनाया?’ ‘तुम्हारे घर वाले मेरे बच्चे को मुझ से छीन कर ले जा चुके हैं. मैं नहीं जानती किस अधिकार से ले गए.’ ‘मेरे घर वाले…मैं आश्चर्यचकित हूं. जिन्हें तुम से कभी विशेष मतलब न रहा, वो तुम्हारे बच्चे को क्यों ले कर जाएंगे.’ ‘यही बात तो मुझे समझ नहीं आई आज तक. लेकिन मैं तुम्हारे घर वालों के जुल्म के आगे झुक गई थी या शायद यहां भी मेरी ही गलती थी. मैं अपनी फिगर खोना नहीं चाहती थी. मैं ब्रैस्ट फीडिंग करवा कर अपने वक्ष को खराब नहीं करना चाहती थी. जो समय मुझे उस अबोध बालक को देना चाहिए था वह समय मैं कमल को दे दिया करती थी. जिस का लाभ तुम्हें मिलता रहा. मैं अपने ही बच्चे से दूर होती रही और तुम करीब आते चले गए. तुम्हारे करीब, तुम्हारे रिश्तेदारों के करीब, और एक दिन वही बच्चा मुझे छोड़ उन के साथ चला गया. यहां मैं मां भी नहीं बन सकी.’
मैं विचारों की उधेड़बुन में उलझी रही. वैमनस्य मन में विवाह की तैयारी करती रही. मैं तुम्हें बारबार भुलाने की कोशिश में लगी रही और तुम बारबार मेरे जेहन में आते रहे. मैं खुद को कामों में उलझाने की कोशिश में लगी रहती हूं ताकि तुम्हारी यादों से नजात पा सकूं पर फिर भी तुम याद आते रहते हो. मैं टैंट वाला, हलवाई के हिसाबकिताब करती रही और तुम अपनी कमी महसूस करवाते रहे. तुम होते तो ऐसा होता, तुम होते तो वैसा होता. तुम्हें इस तरह के कामों में आनंद जो मिलता था. शादीविवाह हो या कोई सामाजिक काम, तुम सब में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे. वह तुम्हारी कोमल हृदय की भावनाएं होती जिसे मैं कभी नहीं समझ पाई थी. एक बात जानते हो, मैं ने मी टू कैंपेन जौइन कर ली है.
मैं अब कमल के मामले को पूरी दुनिया को दिखाऊंगी. उस की करतूतों का परदाफाश कर के रहूंगी ताकि कोई और मेरी जैसी औरत उस के चुंगल में न फंसे. बहुत सताया है मुझे और जाने ही कितनों को. पर अब और नहीं. शादी की तैयारी करने में वक्त गुजरते देर न लगी और वह समय भी आ गया जब अभिलाषा को विदा कर के लेने दूलहेमियां असीम बरात ले कर आ गये और अब वह हमेशा के लिए अभिलाषा को मुझ से दूर ले कर चला जाएगा. मेरे अंदर भी बेचैनी होने लगी. क्या मैं अब अकेली रह जाऊंगी? क्या इस दुनिया में मेरे पास रहने वाला अपना कोई नहीं होगा? पर यह तो मेरे कर्मों का ही नतीजा है, फिर क्यों मुझे घबराहट हो रही है?
हां, मुझे पश्चात्ताप हो रहा है. शायद हां, मुझे पश्चात्ताप ही हो रहा है. मैं पश्चात्ताप की ही अग्नि में जल रही हूं. मेरा अहंकार जल रहा है. मेरा अस्तित्व जल रहा है. मैं एक कुंठित व महत्त्वाकांक्षी औरत हूं जिस के लिए शायद अब तक सजा मुकर्रर नहीं हुई है. पर यह तय है कि इस की सजा मुझे मिलेगी जरूर. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने दरवाजा खोला. मैं विस्मित देखती रह गई. मेरे सामने मोहित खड़ा था. मुझे खुद की ही आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. मुझे लगता, शायद मैं इतनों दिनों से मोहित के खयालों में डूबी हूं, उसी का असर है.
मोहित जब बोला, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ मेरी तंद्रा टूटी. वास्तव में मोहित ही है मेरा खयाल नहीं. मैं हड़बड़ाने लगी हूं, मेरी आंखों के कोर में न जाने कहां से आंसू के बादल छाने लगे. मैं रोकना चाहती थी उन आंसुओं की बूंदों को ढुलकने से, पर रोक नहीं पाई. वे लुढ़क कर मेरी नाक तक आ गए है. भर्राए हुए गले से मैं सिर्फ प्रेम बोल पाई हूं. मोहित ने कुछ जवाब नहीं दिया. वे मेरे संगसंग अंदर आ गए. मुझ से नजर मिलाए बिना ही मोहित बैठ गए. मैं पानी लेने चली गई. मैं अपने हाथों में पानी का गिलास लिए खड़ी थी. मोहित ने पानी का गिलास लेते हुए पूछा, ‘‘प्रेम कहां है माया?’’
मैं अपनी रुंधे हुई भर्राए गले से अटकअटक गई, ‘‘वो…वो प्रेम को तो…प्रेम को तो आप की मांबहन ले गईं थी.’’ मैं पहली बार मोहित को आप कह संबोधित कर रही थी. मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों? ‘‘मां ले गईं प्रेम को, पर क्यों?’’ ‘‘क्योंकि मेरी ममता मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई थी, मैं वासना के रसातल में विक्षिप्त प्राणी की तरह विलीन हो गई थी. सिर्फ और सिर्फ मेरा तन जाग्रत था, हृदय तो कब का मृत हो चुका था,’’ मैं फफकफफक कर रोते हुए बोली. ‘‘क्या इस का तुम्हें एहसास है?’’
‘‘एहसास, शायद छोटा सा अल्फाज है मुझ जैसी कलुषित औरत के लिए. मुझ जैसी औरतों को तो जितनी सजा दी जाए वह कम ही होगी.’’ ‘‘तुम्हें पश्चात्ताप हुआ, यह बहुत बड़ी बात है. लेकिन तुम फिर से यह कौन सी गलती दोहराने जा रही हो?’’ ‘‘गलती, क्या मतलब?’’ ‘‘तुम इतनी भोली भी नहीं हो कि मतलब बताना पड़े. फिर भी बता देता हूं… यह तुम्हारा मी टू कैंपेन क्या है? क्यों तुम किसी की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगाने पर तुली हो?’’ ‘‘पर उस ने जो किया, क्या वह सही था?’’ ‘‘उस ने जो किया वह गलत जरूर था. लेकिन वह अकेला गलत तो नहीं था, तुम भी तो बराबर की भागीदार रही. तुम्हारी भी उतनी ही हिस्सेदारी रही जितना कमल की. फिर अकेले कमल पर दोषारोपण क्यों?’’
‘‘तो क्या तुम्हारी नजर में कमल सही है और मैं ही पूरी जिम्मेदार थी?’’ ‘‘हां, कहीं न कहीं तुम ज्यादा जिम्मेदार थी. यदि तुम खुद को संयमित रखती तो दुनिया के किसी भी पुरुष के बाजू में इतनी ताकत नहीं कि तुम्हारे सतीत्व को छीन ले. तुम्हारा पति तो तुम्हारे संग ही था, फिर तुम कैसे मर्यादा भूल गईं. तुम्हें मेरी परवा भले न हो, अपनी परवा कभी तुम ने की नहीं, कम से कम प्रेम के बारे में तो एक बार सोच लेतीं. बड़ा होगा तो वैसे ही तुम्हारी करतूतों का पता चल जाएगा. लेकिन बारबार एक ही गलती दोहरा कर क्यों उसे जलालतभरी जिंदगी में झोंकने की तैयारी कर रही हो?
‘‘माना भारतीय कानून ने पराए मर्दों के संग सोने वाले रिश्तों में पति का दखल बंद करा दिया है लेकिन सभ्यता व संस्कार अभी भी इस प्रकार के औरत या मर्द को चरित्रहीन की ही श्रेणी में रखती हैं, और फिर प्रेम तो तुम्हारा ही बेटा है न, बड़े दंभ से कहती थीं, फिर क्यों उस के भविष्य को खराब करना चाहती हो? भूल जाओ माया पुरानी बातों को. जिंदगी को नए सिरे से शुरू करो. किसी के बसेबसाए घर को उजाड़ना भी ठीक नहीं है माया. बाकी तुम्हारी मरजी. तुम अधिक समझदार हो मुझ से.’’
मैं कुछ भी सोचनेसमझने की अवस्था में नहीं रह गईर् थी, मोहित के तर्क के सामने. उन की बातें भी तो सही थीं. मुझे प्रेम के बारे में तो सोचना चाहिए था. पर प्रेम के बारे में मैं क्यों नहीं सोच पाई? प्रेम कैसा होगा? मेरा बच्चा कहां होगा? और फिर मोहित को कैसे पता मेरे बारे में. शायद सोशल मीडिया से पता चला होगा. मैं कुछ बोलना चाहती थी पर बोल नहीं पाई. बस, प्रेमप्रेमप्रेम करती रह गई. ‘‘प्रेम मेरे पास है.’’ ‘‘आप के पास?’’ ‘‘तो लेते क्यों नहीं आए? एक बार नजर भर देख लेती,’’ बाकी शब्द मुंह में ही अटक गए. पहली बार महसूस हुआ कि मेरी ममता जागृत हो रही है.
‘‘मां’’, पैर छूते हुए एक 10 वर्षीय बच्चा मुझ से लिपट कर फिर बोला, ‘‘पापा, मौसी की शादी के बाद हम मां को अपने साथ ले जाएंगे.’’ प्रेम अपनी दादीदादा के साथ अभिलाषा के लिए गहनेकपड़े खरीदने बाजार चला गया था. सब लोग साथ ही आए थे. लेकिन मोहित मेरे पास पहले आ गए, बाकी लोग बाजार चले गए थे. मोहित की मां के जब मैं पैर छूने लगी तो वे उठ कर बोलीं, ‘‘बेटा, एक पत्नी गलत हो सकती है, हार भी सकती है दुनिया से, लेकिन एक मां न तो कभी हारती है और न ही गलत होती है.
प्रेम तुम्हारा बेटा था, है और रहेगा. बस, उस में अच्छे संस्कार के खादपानी की जरूरत है. अब हम भी बूढ़े हो गए हैं. तुम अभिलाषा की विदाई के साथ ही हमारे साथ आ कर अपना संसार संभालो, तेरे जाने के बाद तेरा घर बिखर गया है, आ कर समेट ले बेटा.’’ मैं कुछ बोल नहीं पाई, बस सहमति में सिर हिलाती रह गई.