फिर अनीता के पिता ने ही पहल कर के उन्हें दिल्ली के नामी कोचिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला दिला दिया और आलोक ने भी उन को गलत साबित नहीं किया. पहली बार में ही उन का चयन हो गया. अनीता के पिता का जो सपना उन के बेटा या बेटी पूरा नहीं कर पाए वह उन के भावी दामाद ने पूरा कर दिया.
आलोक को यह रिश्ता मंजूर है या नहीं किसी ने उन से नहीं पूछा. अनीता के लिए आलोक एक जीवनसाथी नहीं, बल्कि एक ट्रौफी हसबैंड थे.
जब रात के 9 बज गए तो ताप्ती ने कहा, ‘‘आरवी आप का इंतजार कर रही होगी.’’
आलोक बोले, ‘‘दोनों मांबेटी नाना के घर गई हैं, परसों आएंगी. आज की रात में यहीं रुक जाऊं क्या?’’
ताप्ती की भी यही इच्छा थी, पर उसे डर भी लग रहा था.
आलोक शायद उस के चेहरे के भाव से समझ गए, इसलिए बोले, ‘‘फिक्र मत करो, मैं अपने सरकारी वाहन में नहीं आया हूं… सुबह ही निकल जाऊंगा.’’
उस रात पहली बार ताप्ती को पुरुष स्पर्श का एहसास हुआ जो नारी के सौंदर्य को दोगुना कर देता है.
सुबह जब उस ने आलोक को कौफी पकड़ाई तो आलोक बोले, ‘‘ताप्ती, अगले शनिवार भी आ सकता हूं क्या? और प्लीज वही साड़ी पहन कर रखना जो मैं ने तुम्हें भेजी थी.’’
वह 1 हफ्ता एक दिन की तरह बीत गया और फिर से शनिवार की शाम आ गई. ताप्ती ने आलोक के कहे अनुसार उन की ही साड़ी पहनी और आज उस ने गजब का शृंगार भी किया था. दरवाजे की घंटी बजते ही जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने अनीताजी को देख कर सकपका गई, साथ में आरवी भी थी.
ताप्ती को देखते ही आरवी बालसुलभता से बोली, ‘‘मैम, यह तो वही साड़ी है, जिसे उस दिन आप मौल में देख रही थीं. आज आप एकदम दुलहन जैसी लग रही हैं.’’
अनीताजी की आंखों से नफरत की चिनगारी निकल रही थी. उन्हें पता था कि इतनी महंगी साड़ी यह दो टके की लड़की नहीं खरीद सकती है. उन का शक अब यकीन में बदल गया था.
आरवी सब चीजों से अनजान अपनी मम्मी से बोल रही थी, ‘‘मम्मी, बात करो न मैम से कि वे मेरी हफ्ते में 1 दिन आ कर ही मदद कर दें.’’
अनीताजी कुछ न बोल आरवी का हाथ पकड़ कर तीर की तरह निकल गईं.
ताप्ती ऐसे ही बैठी रही. तभी आलोक आ गए, ताप्ती ने उन्हें पूरी बात बता दी. आलोक किसी और मूड से आए थे. वे ताप्ती के बालों से खेलने लगे, उन की उंगलियां उस के होंठों को छू रही थीं.
ताप्ती ने उन्हें धक्का दे कर कहा, ‘‘मैं क्या हूं… एक मिस्ट्रैस या मन बहलाने का साधन… आप क्या हर हफ्ते ऐसे ही झूठ बोल कर रात के अंधेरे में आएंगे?’’
आलोक शरारत से बोले, ‘‘सब रुतबे वाले आदमियों की मिस्ट्रैस होती हैं और पुलिस महकमा तो वैसे भी इन सब बातों के लिए बदनाम है.’’
ताप्ती इस से पहले और कुछ बोलती, आलोक ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. रातभर दोनों प्रेम के संगीत में डूबे रहे.
सुबह जाते हुए आलोक बोले, ‘‘चिंता मत करो ताप्ती, जल्द ही मैं सामने के
दरवाजे से आऊंगा, तुम मेरे लिए भोग की वस्तु नहीं हो, तुम मेरे मन के सुकून के लिए जरूरी हो.
‘‘बस थोड़ा सा और ताप्ती फिर तुम और मैं एकसाथ रहेंगे, दिन के उजाले में भी.’’
ताप्ती अपने बैंक पहुंची ही थी कि उसे चपरासी बुलाने आया कि मैनेजर साहब ने उसे अपने कैबिन में बुलाया है. अंदर जा कर देखा मैनेजर के साथ एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे थे. एकदम अनीता का ही नक्शा था.
ताप्ती को देखते ही गुस्से में बोले, ‘‘तो तुम हो ताप्ती… शर्म नहीं आती मेरी बहन के परिवार में आग लगाते हुए? नौकरी करती, खूबसूरत हो, यहांवहां मुंह मारने से अच्छा है तुम किसी ढंग के लड़के से शादी कर लो,’’ फिर व्यंग्य करते हुए बोले, ‘‘जानता हूं तुम्हारे आगेपीछे कोई नहीं है, कहीं की भी झूठी पत्तलें चाटो पर आलोक को बख्श दो,’’ जातेजाते वह शख्स नीचता पर उतर आया और ताप्ती को घूरते हुए बोला, ‘‘वैसे आलोक की जगह तुम मुझे भी दे सकती हो.’’
ताप्ती शर्म के कारण सिर नहीं उठा पा रही थी. पता नहीं मैनेजर क्या सोच रहे होंगे.
अनीता के भाई के जाने के बाद मैनेजर बोले, ‘‘ताप्ती आई कैन अंडरस्टैंड, पर तुम चिंता मत करो, हो जाता है कभीकभी, मुझे तुम्हारी समझदारी पर पूरा भरोसा है.’’
फिर से शनिवार की शाम आ गई थी. ताप्ती और आलोक किसी भी सोशल नैटवर्किंग साइट पर टच में नहीं थे, न ही वे कभी एकदूसरे के साथ फोन पर बात करते थे. बस शनिवार की शाम का यह अनुबंध था.’’
ताप्ती को विश्वास था अब आलोक कभी नहीं आएंगे, इसलिए वह एक पुराने से फ्रौक में बैठी थी.
घंटी बजी और आलोक आ गए. ताप्ती को बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘एकदम बार्बी डौल लग रही हो… जल्द ही आगे के दरवाजे से आऊंगा… मैं ने अनीता से बात कर ली है.’’
ताप्ती बोली, ‘‘आरवी का क्या होगा?’’ और फिर ताप्ती ने उस दिन की घटना भी विस्तार से बता दी. दरअसल, अब वह आलोक के साथसाथ अपनी सुरक्षा के लिए भी चिंतित थी.
पूरी घटना सुन कर आलोक बोले, ‘‘चिंता न करो, मैं ने अनीता के परिवार से भी बात कर ली है. तुम्हें अब कोई परेशान नहीं करेगा. तुम बस अपना मन बना लो… थोड़ा सा होहल्ला होगा पर फिर सब भूल जाएंगे, तुम मजबूत रहना.’’
रविवार की शाम मिहिम का फोन आया. उस ने ताप्ती से कहा, ‘‘तैयार रहना, आज डिनर पर चलेंगे.’’
ताप्ती ने वही स्कर्ट और कुरती पहनी जिन्हें आलोक उस के लिए दीवाली पर पहनने के लिए जयपुर से लाए थे.
वहां पहुंच कर देखा तो अनीताजी भी बैठी थीं. उस ने मिहिम को शिकायतभरी नजरों से देखा. बोलीं, ‘‘ताप्ती, मैं तुम पर कोई दोषारोपण करने नहीं आई हूं. अकेली तुम्हारी ही गलती नहीं है, पर कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार आरवी के बारे में जरूर सोचना.’’
‘‘मुझे मालूम है तुम एक दर्दनाक बचपन से गुजरी हो. क्या तुम आरवी के लिए भी ऐसा ही चाहोगी?
‘‘एक बच्चे को मां और पिता दोनों की आवश्यकता होती है और यह तुम से बेहतर कौन जान सकता है. प्लीज, उस की जिंदगी से चली जाओ. आलोक के सिर पर इश्क का जनून सवार है पर आलोक आरवी के बिना नहीं रह पाएगा. हां, मैं उसे हिटलर जैसी लगती हूं पर किस के फायदे के लिए, कभी समझ नहीं पाएगा. तुम ही कदम पीछे हटा लो ताप्ती, प्रेमी और पति में बहुत फर्क होता है.’’
अचानक ताप्ती को महसूस हुआ जैसे अनीता नहीं, उन के मुंह से उस की मां बोल रही हैं. मेज पर सजा खाना ताप्ती को जहर लग रहा था.
रास्तेभर मिहिम और ताप्ती चुप बैठे रहे. मिहिम ताप्ती के साथ अंदर आया और बोला, ‘‘ताप्ती, क्यों आग से खेल रही हो? तुम एक बार हां तो कहो, मैं तुम्हारे लिए लड़कों की लाइन लगा दूंगा.’’
ताप्ती डूबते स्वर में बोली, ‘‘मेरे साथ कौन शादी करेगा मिहिम?’’
मिहिम प्यार से उस के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोला, ‘‘ताप्ती मैं भी तैयार हूं, तुम हां तो करो.’’
ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मिहिम, प्लीज मैं और तुम कभी नहीं.’’
मिहिम को पता था, ताप्ती उसे बस अच्छा मित्र ही मानती है. न जाने क्यों
उसे आलोक से ईर्ष्या हो रही थी. उस मंगलवार की शाम ताप्ती अभी औफिस से आ कर बैठी ही थी कि आरवी अपनी आया के साथ आ गई. ताप्ती के गले लग कर सुबकते हुए बोली, ‘‘मैम, मैं और मम्मी अब नानाजी के घर रहेंगे… पापा दूसरी शादी कर रहे हैं… मैं मम्मी को अकेले नहीं छोड़ सकती, इसलिए उन के साथ जा रही हूं.’’
ताप्ती ने देखा लड़की बिलकुल मुरझा गई है… उसे लगा आरवी नहीं जैसे यह ताप्ती बोल रही हो. उस ने मन ही मन अनीता को धन्यवाद भी दिया कि उस ने आरवी को उस दूसरी औरत का नाम नहीं बताया अन्यथा आरवी कभी भी उसे माफ न कर पाती.
मगर जब आरवी वापस जा रही थी तो ताप्ती ने निर्णय ले लिया कि वह अपने प्यार का ताजमहल आरवी के बचपन पर कभी खड़ा नहीं करेगी. ताप्ती सोच रही थी कि इस शनिवार की रात वह आलोक को अपना निर्णय सुना देगी.
तभी फोन की घंटी बजी. मिहिम का फोन था. वह बता रहा था कि आलोक भैया का ट्रांसफर असम हो गया है. ताप्ती जानती थी कि किस कारण से आलोक ने अपना ट्रांसफर इतनी दूर करवाया है पर अब आरवी और अनीता ही आलोक के साथ जाएंगी.
तभी दरवाजे की घंटी बजी. ताप्ती ने सोचा शायद आलोक होंगे. वह मन ही मन अपनी लाइंस को दोहरा रही थी पर दरवाजे के बाहर तो हारे हुए जुआरी की तरह एक अधेड़ उम्र का पुरुष खड़ा था. ताप्ती ने देखा और एकदम से पीछे हट गई. फिर से ताप्ती के जीवन में पिता का आगमन हो गया था.
अचानक ताप्ती को मिहिम का वह छंद याद आ गया, जिसे वह हमेशा उसे परेशान करने के लिए गाता था-
‘‘ताप्ती क्यों तेरा यह रूपरंग कलकल बहता जाए,क्यों कोई पुरुष इस में सुकून की छांव न पाए,
निर्जन ही रहेगी मिहिम बिना तेरी जीवनधारा, हां तो कर दे मृगनयनी कब से खड़ा हूं यों हारा.’’