Summer Special: घर पर इन आसान टिप्स से बनाएं आम पापड़

लोगों को इमली, आम पापड़ जैसी चीजें अच्छी लगती हैं, लेकिन मार्केट से खरीदने में उतनी ही डर रहता है कि कहीं तबियत पर इससे कोई फर्क तो नही पड़ेगा. मार्केट से आप पापड़ खरीदते हैं और आपको ये बहुत पसंद है तो आज हम आपको घर पर आपका मनपसंद आम पापड़ बनाने की रेसिपी बताएंगे.

सामग्री

  1. 1 किलो (पके हुए) आम
  2. 1/4 कप शक्‍कर
  3. 5-6 नग (इच्‍छानुसार) काली मिर्च
  4. 4 नग छोटी इलाइची
  5. 1/2 छोटा चम्मच काला नमक
  6. 1/2 छोटा चम्मच घी

बनाने का तरीका

सबसे पहले आम को धो कर छील लें और गूदे को काट कर एक बाउल में निकाल लें. साथ ही काली मिर्च और इलायची को अलग-अलग बारीक पीस लें. इसके बाद आम के टुकड़े और शक्‍कर को मिक्‍सर में डालें और बारीक पीस लें.

एक फ्राई पैन आम का घोल डाल कर गैस पर रखें और मीडियम आंच पर पकायें. साथ ही काली मिर्च का पाउडर, छोटी इलायची का पाउडर और काला नमक भी मिला दें.

आम के रस में उबाल आने पर उसे चम्‍मच से चलाएं और लगभग 10 मिनट तक या गूदा गाढ़ा होने तक पकाएं. इसके बाद गैस बंद कर दें.

अब एक समतल प्‍लेट में घी लगाकर उसे चिकना कर लें. इसके बाद आम का घोल प्‍लेट में डालें और उसे चम्‍मच की मदद से बराबर फैल दें.

अब प्लेट को धूप में सुखने के लिए रख दें. धूप तेज होने पर आम पापड़ आमतौर से एक दिन में सूख जाता है. अगर पापड़ एक दिन में न सूखे, तो धूप जाने के बाद आम की प्‍लेट को ढक कर किचन में रख दें और अगले दिन फिर से धूप में रख दें.

सूखे हुए आम के पापड को प्‍लेट से निकाल लें (पूरी तरह से सूख जाने के बाद पापड़ आसानी से निकल जाता है) और चाकू से उसे मनचाहे शेप में काट लें. चाहें तो इसे तुरंत इस्‍तेमाल करें या फिर कांच के सूखे जार में रखकर एक महीने तक इस्‍तेमाल करें.

Summer Special: घर पर ही विटामिन सी सीरम कैसे बनाएं?

आप जानते होंगी कि विटामिन सी हमारे शरीर के लिए कितना लाभदायक होता है. इसे हम कई प्रकार से प्रयोग कर सकते हैं. जैसे यदि हम वह फल या वह पदार्थ खातीं हैं जिस में विटामिन सी होता है तो वह हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाता है. इसके साथ साथ विटामिन सी हमारी स्किन के लिए बहुत लाभदायक होता है. यह हमारी स्किन को एक दम क्लीयर करने और जवान दिखाने में बहुत फायदेमंद होता है. परंतु यदि हम विटामिन सी सीरम खरीदतीं हैं तो वह बहुत महंगे मिलते हैं. हम में से कुछ लोग उन्हें एफोर्ड नहीं कर पाते. इसलिए आप स्वयं ही अपने लिए विटामिन सी सीरम बना सकतीं हैं. आइए जानते हैं कैसे बनता है यह सीरम और कैसे इसे प्रयोग किया जाता है.

कैसे काम करता है विटामिन सी?

विटामिन सी सीरम आप की स्किन के लिए एक प्रकार के अमृत के समान होता है. यह आप की स्किन को टाईट करने में मदद करता है, हमारी स्किन कि झुर्रियां आदि को कम करता है, स्किन को निखारता है व जवान दिखाता है. यदि आप नियमित रूप से विटामिन सी सीरम का प्रयोग करतीं हैं तो आप की स्किन पहले से कहीं ज्यादा अधिक टाईट व ब्राइट हो जाएगी. इसके साथ साथ यह स्किन के खोए हुए निखार को वापिस लाने में सक्षम है. आप को अपने स्किन केयर रूटीन में विटामिन सी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. आप इसका प्रयोग रात में सोने से पहले कर सकतीं हैं.

किन किन चीजों की आवश्यकता होती है?

विटामिन सी को बनाते समय आप को किन किन चीजों की जरूरत होती है? आइए जानते हैं.

  • 2 विटामिन सी की टैबलेट.
  • 2 चम्मच गुलाब जल.
  • 1 चम्मच ग्लिसरीन.
  • एक विटामिन ई कैप्सूल.
  • सीरम को स्टोर करने के लिए एक खाली ग्लास बॉटल.

कैसे बनाएं विटामिन सी सीरम ?

विटामिन सी के टैबलेट्स को पीस कर उनका चुरा बना लें और उस चुरे को खाली बॉटल में डाल लें. अब इसमें गुलाब जल को मिलाएं और दोनों चीजों को अच्छे से मिक्स कर लें. जैसे ही वह पाउडर अच्छे से गुलाब जल में मिल नहीं जाता तब तक उसे अच्छे से हिलाएं. मिक्स होने के बाद विटामिन ई कैप्सूल को इस मिक्सचर में मिला दें. अब इस सारे मिक्सचर को एक दूसरे में अच्छे से मिलाने के लिए बॉटल को थोड़ी देर हिलाएं. इसके बाद बॉटल को किसी ठन्डे व अंधेरी जगह पर रख दें. यह सीरम आप 2 हफ़्तों के लिए प्रयोग कर सकते हो. उसके बाद नया सीरम बना लें.

यह सीरम भी आप की स्किन के लिए उतना ही असरदार है जितना कि बाजार वाले सीरम. यदि आप इस सीरम का प्रयोग नियमित रूप से करेंगे तो आप कुछ ही दिनों के अंदर अपनी स्किन में बहुत ज्यादा फर्क महसूस करना शुरू करेंगी. यदि आप की स्किन बहुत डल हो गई है और आप को एजिंग साइन दिखने लगे हैं तो आप को एक बार इस सीरम का प्रयोग अवश्य कर के देखना चाहिए. इसके नतीजों से आप एक दम चौक जाएंगी.

अब आओ न मीता- भाग 4: क्या सागर का प्यार अपना पाई मीता

फैक्टरी की गोल्डन जुबली थी उस दिन. सुबह से ही कड़ाके की सर्दी थी. 6 बजने को थे. मीता जल्दीजल्दी तैयार हो कर फैक्टरी की ओर चल दी. घर से निकलते ही थोड़ी दूर पर सागर उसी ओर आता दिखाई दिया.

‘अरे आप तो तैयार भी हो गईं…मैं आप ही को देखने आ रहा था. ‘तुम तैयार नहीं हुए?’ ‘धोबी को प्रेस के लिए कपड़े दिए हैं. बस, ला कर तैयार होना बाकी है. चलिए, आप को स्पेशल कौफी पिलाता हूं, फिर हम चलते हैं.’

दोनों सागर के घर आ गए. मीता ने कहा, ‘मैं जब तक कौफी बनाती हूं, तुम कपड़े ले आओ.’’ बसंती रंग की साड़ी में मीता की सादगी भरी सुंदरता को एकटक देखता रह गया सागर. ‘एक बात कहूं आप से?’मीता ने हामी भरते हुए गरदन हिलाई… ‘बड़ा बदकिस्मत रहा आप का पति जो आप के साथ न रह पाया. पर बड़ा खुशनसीब भी रहा जिस ने आप का प्यार भी पाया और फिर आप को भी.’

‘और तुम, सागर?’ ‘मुझ से तो आप को मिलना ही था.’ एक ठंडी सांस ली मीता ने. उस दिन सागर के घर पर ही इतनी देर हो गई कि उन्हें फैक्टरी के फंक्शन में जाने का प्रोग्राम टालना पड़ा था. उफ, यह मुलाकात कितने सारे सवाल छोड़ गई थी.

दूसरे दिन सागर जब मीता से मिला तो एक नई मीता उस के सामने थी…सागर को देखते ही अपने बदन के हर कोने पर सागर का स्पर्श महसूस होने लगा उसे. भीतर ही भीतर सिहर उठी वह. आंखें खोलने का मन नहीं हो रहा था उस का, क्योंकि बीती रात का अध्याय जो समाया था उस में. इतने करीब आ कर, इतने करीब से छू कर जो शांति और सुकून सागर से मिला था वह शब्दों से परे था…ज्ंिदगी ने सूद सहित जो कुछ लौटाया वह अनमोल था मीता के लिए. सागर ने बांहें फैलाईं और मीता उन में जा समाई… दोनों ही मौन थे…लेकिन उन के भीतर कुछ भी मौन न था…जैसे रात की खामोशी में झील का सफर…कश्ती अपनी धीमीधीमी रफ्तार में है और चांदनी रात का नशा खुमारी में बदलता जाता है.

शाम का अंधेरा घिरने लगा था. जंगल, गांव, पेड़ और सड़क सब पीछे छूटते जा रहे थे. टे्रन अपनी गति में थी. अधिकांश यात्री बर्थ खोल कर सोने की तैयारी में थे. मीता ने भी बैग से कंबल निकाल कर उस की तहें खोलीं. एअर पिलो निकाल कर हवा भरी और आराम से लेट गई. अभी तो सारी रात का सफर है. सुबह 10 बजे के आसपास घर पहुंचेगी.

कंबल को कस कर लपेटे वह फिर पिछली बातों में खोई हुई थी. मन की अंधेरी सुरंग पर तो बरसों से ताला पड़ा था. पहले वह मानती थी कि यह जंग लगा ताला न कभी खुलेगा, न उसे कभी चाबी की जरूरत पड़ेगी. लेकिन ऐसा हुआ कि न सिर्फ ताला टूटा बल्कि बरसों बाद मन की अंधेरी सुरंग में ठंडी हवा का झोंका बन कर कोई आया और सबकुछ बदल गया.

सफर में एकएक पल मीता की आंखों से गुजर रहा था.

जिंदगी के पाताल में कहां क्या दबा है, क्या छुपा है, कब कौन उभर कर ऊपर आ जाएगा, कौन नीचे तल में जा कर खो जाएगा, पता नहीं. विश्वास नहीं होता इस अनहोनी पर, जो सपनों में भी हजारों किलोमीटर दूर था वह कभी इतना पास भी हो सकता है कि हम उसे छू सकें…और यदि न छू पाएं तो बेचैन हो जाएं. जिंदगी की अपनी गति है गाड़ी की तरह. कहीं रोशनी, कहीं अंधेरा, कहीं जंगल, कहीं खालीपन.

यहां आशा दी के पास आना था. होली भी आने वाली है. बच्चों के एग्जाम भी थे और इस बीच किराए का मकान भी शिफ्ट किया था. उसे सेट करना था. सागर 3-4 दिन से अस्पताल में दाखिल था.

पीलिया का अंदेशा था. वह सागर को भी संभाले हुए थी. एक ट्रिप सामान मेटाडोर में भेज कर दूसरी ट्रिप की तैयारी कर सामान पैक कर के रख दिया. सोचा, सामान लोड करवा कर अस्पताल जाएगी, सागर को देख कर खाना पहुंचा देगी फिर लौट कर सामान सेट होता रहेगा. लेकिन तभी सागर खुद वहां आ पहुंचा.

‘अरे, तुम यहां. मैं तो यहां से फ्री हो कर तुम्हारे ही पास आ रही थी. लेकिन तुम आए कैसे? क्या डिस्चार्ज हो गए?’ ‘डिस्चार्ज नहीं हुआ पर जबरदस्ती आ गया हूं डिस्चार्ज हो कर.’ ‘क्यों, जबरदस्ती क्यों?’ ‘आप अकेली जो थीं. इतना सारा काम था और आप के साथ तो कोई नहीं है मदद के लिए…’ ‘खानाबदोश ज्ंिदगी ने आदी बना दिया है, सागर. ये काम तो ज्ंिदगी भर के हैं, क्योंकि कोई भी मकान मालिक एक या डेढ़ साल से ज्यादा रहने ही नहीं देता है.’

‘नहीं, ज्ंिदगी भर नहीं. अब आप को एक ही मकान में रहना होगा. बहुत हो गया यह बंजारा जीवन.’ ‘हां, सोच तो रही हूं… फ्लैट बुक कर लूंगी, साल के भीतर कहीं न कहीं.’ सागर खाली मकान में चुपचाप दीवार से टिका हुआ था. मीता को उस ने अपने पास बुलाया. मीता उस के करीब जा खड़ी हुई.

सागर पर एक अजीब सा जुनून सवार था. उस ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि इस घर से आप यों न जाएं, क्योंकि इस से हमारी बहुत सी यादें जुड़ी हैं.’ ‘तो कैसे जाऊं, तुम्हीं बता दो.’ ‘ऐेसे,’ सागर ने अपना पीछे वाला हाथ आगे किया और हाथ में रखे स्ंिदूर से मीता की मांग भर दी.

अचानक इस स्थिति के लिए तैयार न थी मीता. सागर की भावनाएं वह जानती थी…स्ंिदूर की लालिमा उस के लिए कालिख साबित हुई थी और अब सागर…उफ. निढाल हो गई वह. सागर ने संभाल लिया उसे. मीता की थरथराती और भरी आंखें छलकना चाह रही थीं.

ट्रेन की रफ्तार कम होने लगी थी. अतीत और भविष्य का अनोखा संगम है यह सफर. सागर और राजन. एक भविष्य एक अतीत. कल सागर से मिलूंगी तो पूछूंगी, क्यों न मिल गए थे 14 साल पहले. मिल जाते तो 14 सालों का बनवास तो न मिलता. ज्ंिदगी की बदरंग दीवारें अनारकली की तरह तो न चिनतीं मुझे.

मुसकरा उठी मीता. सागर से माफी मांग लूंगी दिल तोड़ कर जो आई थी उस का. सागर की याद आई तो उस की बोलती सी गहरी आंखें सामने आ गईं. 5 दिनों में 5 युगों का दर्द बसा होगा उन आंखों में.

टे्रन रुकी तो चायकौफी वालों की रेलपेल शुरू हो गई. मीता ने चाय पी और फिर कंबल ओढ़ कर लेट गई इस सपने के साथ कि सुबह 10 बजे जब टे्रन प्लेटफार्म पर रुकेगी…तो सागर उस के सामने होगा. नीलेश और यश उसे सरप्राइज देने आसपास कहीं छिपे होंगे.

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सुबह भी हुई, मीता की आंखें भी खुलीं, उस ने प्लेटफार्म पर कदम भी रखा, पर वहां न सागर, न नीलेश और न यश. थोड़ी देर उस ने इंतजार भी किया, लेकिन दूरदूर तक किसी का कोई पता न था. रोंआसी और निराश मीता ने अपना सामान उठाया और बाहर निकल कर आटो पकड़ा. क्या ज्ंिदगी ने फिर मजाक के लिए चुन लिया है उसे?

पूरे शहर में होली का हुड़दंग था. इन रंगों का वह क्या करे जब इंद्रधनुष के सारे रंग न जाने कहां गुम हो गए थे.

बहुत भीड़ थी रास्ते में. घर के सामने आटो रुका तो घर पर ताला लगा था. वह परेशान हो गई. अचानक घर के ऊपर नजर गई तो वहां ‘टुलेट’ का बोर्ड लगा था. उसी आटो वाले को सागर के घर का पता बता कर वापस बैठी मीता. अनेक आशंकाओं से घिरा मन रोनेरोने को हो गया.

सागर के घर के आगे बड़ी चहलपहल थी. टैंट लगा था. सजावट, वह भी फूलों की झालर और लाइटिंग से…गार्डन के सारे पेड़ों पर बल्बों की झालरें लगी थीं… खाने और मिठाइयों की सुगंध चारों ओर बिखरी थी. आटो के रुकते ही लगभग दौड़ती बदहवास मीता भीतर की ओर दौड़ी. भीतर पहुंचने से पहले ही जड़ हो कर वह जहां थी वहीं खड़ी रह गई.

दरवाजे पर आरती का थाल लिए सागर की मां और सुहाग जोड़ा, मंगलसूत्र और लाल चूडि़यों से भरा थाल पकड़े सागर की छोटी बहन खड़ी थी. नीचे की सीढ़ी पर हाथ जोड़ कर स्वागत करता सागर का छोटा भाई मुसकरा रहा था. मीता ने देखा झकाझक सफेद कुरतापाजामा पहने, लाल टीका लगाए सागर उसी सोफे पर बैठा यश को तैयार कर रहा था जहां उस शाम दोनों की जिंदगी ने रुख बदला था.

रोहित मस्ती में झूमता मीता की ओर आने लगा… सागर ने मीता को देखते ही आवाज लगाई, ‘‘नीलेश बेटे.’’ ‘‘जी, पापा.’’ ‘‘जाओ, आटो से मम्मी का सामान उतारो और आटो वाले को पैसे भी दे दो.’’

‘जी, पापा.’’ नीलेश बाहर आने लगा तो सागर ने फिर आवाज दी, ‘‘और सुनो, आटो वाले को मिठाई जरूर देना…’’ ‘‘जी, पापा.’’

मीता बुत बनी सागर को एकटक देख रही थी. सागर की गहरी आंखें कह रही थीं…इंजीनियर जरूर आधा हूं लेकिन घर पूरा बनाना जानता हूं. है न? अब आओ न मीता…

चिराग कहां रोशनी कहां : भाग 3

सुधा को धरम की यह दलील अच्छी नहीं लगी थी, फिर भी वह चुप रह गई. सुधा के टैस्ट्स की रिपोर्ट आ गई थी. डाक्टर ने बताया कि सुधा के गर्भाशय में कुछ ऐसी बीमारी थी कि वह मां बनने में अक्षम है.’’

सुधा के चेहरे पर घोर निराशा छा गई. डाक्टर ने कहा, ‘‘आप को इतना निराश होने की जरूरत नहीं है. आप दोनों संतान के लिए आधुनिक तरीके अपना सकते हैं.’’

‘‘कौन सा तरीका डाक्टर?’’ सुधा ने जिज्ञासा जाहिर करते हुए कहा.

‘‘अगर आप के पति चाहें तो सैरोगेट मदर की मदद से आप बच्चा पा सकती हैं. आप के पति ने उस समय अपना टैस्ट नहीं कराया था. बस, आप के पति का एक टैस्ट करना होगा. उम्मीद है, नतीजा ठीक ही होगा. तब बच्चा किसी सैरोगेट मदर के गर्भ में पलेगा.’’

‘‘नहीं, मु झे यह तरीका ठीक नहीं लग रहा है.’’

‘‘क्यों?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘डाक्टर, अभी हम चलते हैं. बाद में ठीक से सोच कर फैसला लेंगे,’’ धरम ने कहा और दोनों डाक्टर के क्लिनिक से निकल पड़े.

रास्ते में धरम ने सुधा से पूछा, ‘‘आखिर सैरोगेट मदर से तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘आप का अंश किसी गैर औरत की कोख में पले, मु झ से बरदाश्त नहीं होगा?’’

‘‘यह क्या दकियानूसी की बात हुई. वह औरत हमारी मदद करेगी, हमें तो उस का कृतज्ञ होना चाहिए.’’

‘‘जो भी हो, मु झे तो वह सौतन लगेगी.’’

‘‘क्या पागलपन की बात कर रही हो? मेरा उस से कोई शारीरिक संबंध नहीं होगा.’’

‘‘फिर भी, मु झे मंजूर नहीं है.’’

‘‘तब दूसरा एकमात्र रास्ता है कि हम किसी बच्चे को गोद ले लें,’’ धरम ने थोड़ा नाराज होते हुए कहा.

‘‘हां, इस पर मैं सोच कर बता दूंगी.’’

इधर, जेम्स और इहा दोनों ने मिल कर चेन्नई में अपना एक लैब खोला था. यह लैब शहर में मशहूर हो गया था. कुछ महीने बाद सुधा और धरम दोनों ने एक बच्चा गोद लेने का फैसला लिया. धरम तो मन ही मन खुश था कि अब उसे अपने टैस्ट कराने की जरूरत नहीं रही. वे अनाथालय गए. धरम ने एक बच्चे को देखा और सुधा से पूछा, ‘‘यह ठीक रहेगा न?’’

‘‘मैं तो एक लड़की चाह रही थी.’’

‘‘ठीक है, तुम जैसा कहो वही होगा.’’

अंत में अनाथालय से एक बच्ची को अडौप्ट करने पर दोनों तैयार हुए. उस के लिए उन्होंने कानूनी प्रक्रिया शुरू कर अनुमति ले ली. उस बच्ची को घर लाने से पहले धरम ने उस का पूरा ब्लड टैस्ट कराने की इच्छा व्यक्त की तो सुधा ने पूछा, ‘‘इस बच्ची का इतने सारे टैस्ट क्यों कराना चाहते हो?’’

‘‘अकसर अनाथालय में लावारिस या नाजायज बच्चे आते हैं, किसी वेश्या का बच्चा भी हो सकता है जिस में बुरे रोग की आशंका होती है.’’

बच्ची का सैंपल जिस लैब में भेजा गया वह इहा की लैब थी. सुधा और धरम दोनों बच्ची की रिपोर्ट लेने लैब गए थे. उन्होंने रिसैप्शन पर बैठी महिला से कहा, ‘‘मु झे अपनी बच्ची के ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट चाहिए.’’

‘‘प्लीज, बच्चे का नाम बताएं,’’ रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

‘‘आशा पाठक,’’ सुधा बोली.

‘‘मैम, आप को तो 2 बजे के बाद बुलाया गया था, अभी तो 12 बजे हैं. टैस्ट्स हो चुके हैं. रिपोर्ट भी तैयार है. इंचार्ज के पास सिग्नेचर के लिए भेजा हुआ है. कुछ समय लगेगा आने में. अभी वे अपने बेटे के साथ व्यस्त हैं.’’

‘‘क्या उन का बेटा भी यहीं काम करता है?’’

‘‘नो, वह तो 15-16 साल का होगा. उस ने स्कूल बोर्ड की परीक्षा में पूरे स्टेट में टौप किया है. उन का चैंबर सैकंड फ्लोर पर है.’’

‘‘आप इंचार्ज से मेरी बात कराएं. मैं उन्हें बधाई भी दे दूंगा और शायद वे साइन कर चुकी होंगी या जल्दी साइन कर दें. हम लोग काफी दूर से आए हैं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने लैब इंचार्ज से फोन पर पूछा, ‘‘मैम, आशा पाठक की रिपोर्ट के लिए उस के पेरैंट्स आए हैं. अगर साइन हो गए हों, तो मैं आ कर ले लेती हूं?’’

‘‘नहीं, तुम्हें आने की जरूरत नहीं है. मैं ने अभीअभी साइन कर दिया है. खुद ले कर आती हूं. डैनी को घर भी ड्रौप कर दूंगी.’’

कुछ मिनटों बाद सीढि़यों से उतरती हुई इहा रिसैप्शन के पास आई. उस का बेटा डैनी भी साथ में था. उन्हें आते देख कर रिसैप्शनिस्ट बोली, ‘‘लीजिए, आप की रिपोर्ट ले कर खुद मैम आ गईं.’’

धरम ने इहा की ओर देखा तो वह आश्चर्य से देखता रहा. उस के पीछे उस का बेटा डैनी था, उसे देख कर सुधा को काफी ताज्जुब हुआ. डैनी की शक्ल धरम से मिलती थी. इहा को देख कर धरम बोला, ‘‘व्हाट ए सरप्राइज, तुम यहां?’’

‘‘हां, मेरा ही लैब है तो मैं यहां रहूंगी ही. इस में सरप्राइज की क्या बात है़’’

‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’ सुधा ने धरम से पूछा.

‘‘हां, कभी हम साथ पढ़ते थे और अच्छे दोस्त भी थे.’’

डैनी का चेहरा अलबम में धरम की बचपन की तसवीर से हूबहू मिलता था, जिसे सुधा बारबार देख चुकी थी. उसे देख कर सुधा बोली, ‘‘इन के बच्चे का चेहरा तुम से काफी मिलता है.’’

‘‘यह मात्र संयोग है. कहा जाता है कि एक चेहरे जैसे दुनिया में कम से कम 2 इंसान होते हैं,’’ इहा ने कहा.

रिपोर्ट दे कर इहा ने बेटे से कहा, ‘‘चल, तेरे पापा इंतजार कर रहे होंगे.’’ और वह अपने बेटे के साथ चली गई.

उस के जाने के बाद सुधा ने रिसैप्शनिस्ट से पूछा, ‘‘क्या डैनी आप की मैम का सगा बेटा है?’’

‘‘हां, उन का अपना बेटा है. मेरी मां और इन की मौसी एक ही हौस्पिटल में नर्स थीं और अच्छी सहेली भी. डैनी बाबा की डिलीवरी मेरी मां ने ही कराई थी और यह भी कहा था कि इन के बौयफ्रैंड ने धोखा दिया था.’’

‘‘चलो, हमें अब देर हो रही है,’’ धरम ने कहा.

धरम और सुधा दोनों कार से जा रहे थे. सुधा के मन में रहरह कर रिसैप्शनिस्ट की बात याद आ रही थी, किसी ने इहा को चीट किया है, डैनी का चेहरा धरम से मिलना और धरम का अपने टैस्ट से इनकार करना. क्या सभी महज इत्तफाक ही है. उधर धरम भी मन में सोच रहा था, ‘डैनी मेरा बेटा होते हुए भी जेम्स का बेटा कहलाता है और उस का नाम रौशन कर रहा है. काश, मैं ने उसे अपनाया होता तो मु झे किसी अन्य बच्चे को गोद लेने की नौबत नहीं आती और डैनी आज मेरा नाम रौशन कर रहा होता.’

नो एंट्री- भाग 1 : ईशा क्यों पति से दूर होकर निशांत की तरफ आकर्षित हो रही थी

‘तुम्हीं मेरे हल पल में, तुम आज में तुम कल में …’

“हे शोना, हे शोना”, एफएम पर चल रहे गाने के साथ गुनगुनाती ईशा अपने विवाहित जीवन में काफी प्रसन्न थी. कॉलेज पूरा होते होते उसकी शादी हो गई. जैसे जीवनसाथी की उसने कल्पना की, मयूर ठीक वैसा ही निकला. देखने में आकर्षक कहना ठीक होगा. वैसे ईशा के मुकाबले मयूर उन्नीस ही था किंतु वह जानती थी कि लड़कों की सूरत से ज्यादा सीरत पररखना आवश्यक होता है. आखिर ताउम्र का साथ है. ईशा ने अपनी पूरी होशियारी दर्शाते हुए मयूर का चयन किया. ईशा जैसी खूबसूरत लड़की के लिए रिश्तो की कमी न थी. कई परिवार के जरिए आए तो कई मजनू जिंदगी में वैसे भी टकराए. किंतु वह अपना जीवनसाथी उसी को चुनेगी जो उसके मापदंडों पर खरा उतरेगा. मयूर अपनी शराफत, प्यार करने की काबिलियत, और सच्चाई के कारण अव्वल आया. दो वर्ष पूर्व जब मयूर एक कजिन की शादी में उस से टकराया तब उसे पहली नजर में वह एक शांत, सुशील और विनम्र लड़का लगा. फोन नंबर एक्सचेंज होते ही कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेज कर मयूर ने ईशा का मन पिघला दिया. और उसने इस रिश्ते के लिए जल्दी ही हामी भर दी. चट मंगनी पट ब्याह कर ईशा, मयूर के घर आ गई.

तब से लेकर आज तक दोनों एक दूसरे के प्यार में डुबकियां लगाते आए हैं. प्रेम का सागर होता ही इतना मीठा है कि चाहे जितनी बार गोते लगा लो यह प्यास नहीं बुझती. शादी के पश्चात कई महीनों तक दोनों इसी प्यार की लहरों में डूबा उभरा करते, एक दूसरे की आगोश में खोए जिंदगी के हसीन पलों का आनंद लेते. एक-दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाते हुए दोनों ने धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी को रोज़मर्रा की पटरी पर दौड़ने के लायक बना लिया. मयूर, एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पदासीन, ईशा की हर चाह को जुबान पर आने से पहले ही पूरा कर दिया करता. ईशा पूरे आनंद के साथ घर संभालने लगी. विवाहित जीवन सुखमय था. इससे ज्यादा की कामना भी नहीं थी ईशा को.

 

“इस शनिवार को हमारी कंपनी ने फैमिली डे का आयोजन रखा है. मेरी कंपनी हर साल यह आयोजन करती है जिसमें सभी अपने परिवारों के साथ आते हैं. खूब धूम मचती है – तरह तरह के खेल खिलाए जाते हैं, खाना-पीना, नाचना-गाना. सब एक दूसरे के परिवार के सदस्यों से भी मिल लेते हैं. पिछली बार तुम अपने मायके गयी हुई थीं इसलिए अबकी बार तुम पहले-पहल सबसे मिलोगी.”

“अच्छा, फिर तो बहुत मजा आएगा. इसी बहाने मैं तुम्हारी कंपनी के सहकर्मियों व उनके परिवारों से मिलूंगी”, मयूर की बात सुन ईशा भी खुश हो गई.

शनिवार को मयूर की मनपसंद मोरिया नीले रंग की पटोला साड़ी में ईशा का गोरा रंग और भी निखर आया. उस पर सोने का हल्का सेट पहनने से मानो उसकी खूबसूरती में चार चांद लग गए. सलीके से किया हुआ  मेकअप और स्ट्रेटन किए हुए कमर तक लहराते केश. ईशा को लेकर जैसे ही मयूर पार्टी में दाखिल हुआ सब निगाहें उसकी ओर उठ गईं. जोड़ी वाकई काबिले तारीफ लग रही थी.

फैमिली डे पर कहीं कोई भेदभाव नहीं था. जैसे कंपनी के मैनेजमेंट वैसे ही कंपनी के कर्मचारी और उसी तरह कंपनी के वर्कर्स के साथ भी बर्ताव किया जा रहा था. सभी अपने-अपने परिवारों के साथ घुल मिल रहे थे. कुछ ही देर में नाच गाना शुरू हुआ. कंपनी में काम करने वाले कुछ वर्कर्स आए और मयूर को कंधों पर उठाकर डांस फ्लोर की ओर ले गए. यह दृश्य देखकर ईशा का मन बाग-बाग हो गया. अपने पति के प्रति उसके मातहतों का इतना प्यार देख कर उसे आज मयूर पर नाज हो उठा. आज फैमिली डे में आकर ईशा को ज्ञात हुआ कि मयूर अपने परिश्रमी स्वभाव के कारण अपनी कंपनी में कितना चहेता है.

तभी एक हैंडसम नवयुवक ईशा के पास की कुर्सी खींच कर बैठते हुए बोला, “हाय, मेरा नाम निशांत है. मैं मयूर का दोस्त हूं. आपकी शादी में भी आया था पर इतने लोगों के बीच शायद मुलाकात याद ना रही हो.”

ईशा उस मुलाक़ात को कैसे भूल सकती थी भला! उसे अपनी शादी का वो मंज़र याद हो आया जब मयूर के सभी दोस्त स्टेज पर आकर फोटो खिंचवा रहे थे. तब सभी मित्र दुल्हा-दुल्हन बने मयूर और ईशा को घेरकर आगे-पीछे खड़े होने लगे. इतने में निशांत हँसकर ईशा के पास आ गया, “हम तो अपनी दुल्हनिया के पास बैठेंगे”, और उसी के सोफ़े पर उससे चिपक कर बैठ गया. अपनी बाँह ईशा के गले में डालते हुए उसने फोटोग्राफर से कहा था, “अब खींच ले, भाई, हमारी फोटो.”

ईशा को निशांत का नाम तब ज्ञात नहीं था किन्तु उसे उसकी दिलेरी बहुत भा गई. वो स्वयं भी एक बिंदास लड़की होने के कारण निशांत द्वारा भरी सभा में खुलेआम की गई ये हरकत उसे आकर्षित कर गई. मयूर बेहद नियमानुसार चलने वाला लड़का था. हर बात घरवालों के कहे अनुसार करना, हर निर्णय लेने से पहले बड़ों से पूछना, छोटे से छोटे कानून का पालन करना. उसके साथ रहने पर ईशा भी एक सीधी-सादी लड़की की भाँति रहने लगी क्योंकि आखिर ये एक अरेंज मैरिज थी, और वो चाहती थी कि मयूर आरंभ से उससे प्रभावित हो जाए.

आज ईशा ने निशांत को यहाँ देखने की उम्मीद नहीं की थी किन्तु जब वो सामने आया तो वह अंजान बनी रही, “ठीक कह रहे हैं आप. शादी के समय जितने लोगों से मिलना जुलना होता है वह कहां याद रह पाता है.

“जी नहीं, मैं तो ऑपरेशंस में हूं. देखा आपने, मयूर को वर्कर्स कितना पसंद करते हैं. बहुत सीधा है. सब में घुल मिल जाता है.”

“जी”, ईशा के चेहरे की मुस्कुराहट थमने का नाम नहीं ले रही थी.

“डांस करना पसंद करेंगी?”, कहते हुए निशांत ने अपना सीधा हाथ आगे बढ़ाया. ईशा आगे कुछ सोच पाती उससे पहले निशांत बोला, “मयूर बुरा नहीं मानेगा, उसे वर्कर्स के साथ डांस करने में ज्यादा मजा आ रहा है.”

आज निशांत ने पुनः ईशा के समक्ष अपनी अपरंपरागत सोच दर्शाई. कुछ ना कहते हुए ईशा, निशांत के साथ डांस फ्लोर पर उतर गई. नाचते-नाचते निशांत कहने लगा, “कहां आप – इतनी स्मार्ट और आकर्षक, और कहां मयूर! मेरा मतलब है आपकी स्मार्टनेस के आगे मयूर थोड़ा भोंदू ही लगता है.”

ईशा के अचकचा कर देखने पर निशांत ने आगे कहा, “बुरा मत मानिएगा, मेरा दोस्त है इसलिए कह सकता हूं.”
मयूर के आने पर निशांत बोला, “हूर के साथ लंगूर कैसे?!”

पर उत्तर में मयूर केवल हँसता रहा. फिर सारी पार्टी में निशांत, ईशा के आसपास ही घूमता रहा, कभी उसके लिए रसमलाई लाता तो कभी कोक का गिलास. उसकी उपस्थिति में निशांत, मयूर की हँसी भी उड़ाता रहा, और मयूर सब कुछ सुनकर हँसता रहा.

“यह निशांत कैसा लड़का है?”

“बहुत अच्छा लड़का है. मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. बहुत इंटेलिजेंट है. अपने डिपार्टमेंट का हीरा है.”

मयूर ने निशांत की प्रशंसा के पुल बांध दिए. “ठीक ही कह रहा था वह – मयूर वाकई भोंदू है जो यह नहीं समझता कि कौन उसका सच्चा दोस्त है और कौन नहीं”, ईशा सोच में पड़ गई. ईशा, निशांत की उससे फ़्लर्ट करने की कोशिश भली प्रकार समझ रही थी. निशांत की ये हरकतें ईशा को बुरी नहीं लगीं अपितु मन के किसी कोने में पुलकित कर गईं.

उसी हफ्ते एक दुपहरी ईशा को एक फोन आया. “सरप्राइस कर दिया न तुम्हें? देखा, कितना स्मार्ट हूं मैं, तुम्हारा नंबर निकाल लिया,” दूसरी ओर से निशांत की विजय से ओतप्रोत हँसी की आवाज़ आई.

परंतु ईशा इतनी जल्दी प्रभावित होने वाली कहाँ थी. अपने पीछे मजनुओं की पंक्तियों की उसे आदत थी. “कभी-कभी ज़्यादा स्मार्टनेस भारी पड़ जाती है. जनाब, अपना नाम तो बताइये”, ईशा ने पलटवार किया.

“सेव कर लो ये नंबर”, निशांत बोला, “निशांत बोल रहा हूँ, मैडम. मैंने तुम दोनों को अपने घर लंच पर बुलाने के लिए फोन किया है. मयूर को मैं ऑफिस में ही न्योता दे चुका हूं पर तुम्हें भी निजी तौर पर आमंत्रित करना चाहता था इसलिए फोन किया”, उसने अपनी बात पूरी की.

शाम को जब मयूर घर लौटा तो ईशा ने निशांत के फोन की बात बताई.

“हां, पता है. मुझसे ही तुम्हारा नंबर लिया था उसने”, मयूर ने लापरवाही से कहा.

“मेरा नंबर देने की क्या जरूरत थी? तुम्हें बुलाया, मुझे बुलाया, एक ही बात है”, ईशा इस सिलसिले में मयूर की  मानसिकता टटोलना चाहती थी.

“क्या फर्क पड़ता है… उसका मन था तुमसे बात करने का”, मयूर सरलता से कह गया. “इस रविवार दोपहर का लंच हम निशांत के साथ करेंगे. बहुत दूर नहीं है उसका घर.”

 

आउट्साइडर अभिनेत्री अदा शर्मा ने कामयाबी राज क्या बताया , पढ़ें इंटरव्यू

Adah Sharma: शांत और हंसमुख अदा शर्मा आउट्साइडर है और यहाँ तक पहुँचने मे उन्होंने काफी मेहनत की है, लेकिन आज वह बहुत खुश है, क्योंकि धीरे – धीरे ही सही दर्शक उनके अभिनय को पसंद कर रही है, जिससे उन्हे कई फिल्मों और वेब सीरीज मे काम करने का मौका मिल रहा है. अदा शर्मा इन दिनों अपनी फिल्म ‘ बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ को लेकर चर्चा में हैं. फिल्म मे अदा के किरदार को खूब पसंद किया जा रहा है. दर्शकों के साथ-साथ आलोचकों ने भी अदा के किरदार की खूब सराहना की है. अदा शर्मा ने इस फिल्म में अपने लुक को निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिल्‍म के लिए एक्‍ट्रेस ने अपना 10 किलो तक वजन बढ़ाया, ताकि रोल में फिट बैठ जाय, साथ ही फिट भी रहना था, क्योंकि उन्हे पहाड़ों पर चढ़ने के साथ राइफल के साथ एक्शन करना पड़ा था. अपना वजन बढ़ाने के लिए एक्‍ट्रेस ने एक दिन में 15 केले और अलसी के बीज के लड्डू खाई है, जिसे उनकी माँ ने खास बनाकर भेजा था. ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ से पहले अदा ने फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ में भी अपने किरदार के लिए खूब सुर्खियां बटोरी थीं. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी. उनकी वेब सीरीज सनफ्लावर 2 भी रिलीज हो चुकी है, जिसमे उन्होंने रोजी मेहता एक बार डान्सर की भूमिका निभाकर दर्शकों को चकित कर दिया है.

मिली प्रेरणा 

15 वर्ष की उम्र से अभिनय के क्षेत्र में उतरने वाली अभिनेत्री अदा शर्मा ने हॉरर फिल्म ‘1920’ से अभिनय शुरू किया. उन्हे हमेशा से ही अभिनेत्री बनने की इच्छा थी और उनके माता – पिता से उन्हे आजादी भी मिली थी.  हिंदी के अलावा उसने तमिल,तेलगू और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. मुंबई की अदा शर्मा के पिता मर्चेंट नेवी में थे और उनकी माँ एक क्लासिकल डांसर है. अदा एक जिमनास्ट है और तीन साल की उम्र से डांस सीखना शुरू किया था. उन्होंने सालसा, जैज़ नृत्य भी सीखा है और एक अच्छी बैले डांसर भी है. वह कहती है कि दसवीं परीक्षा देने के बाद  निर्णय लिया कि मैं फिल्मों में काम करुँगी,लेकिन पता नहीं ये कीड़ा कहाँ से आया था.लेकिन मैंने अपना पोर्टफोलियो बनवाकर ऑडिशन देना शुरू कर दिया था. मैं इंडस्ट्री से बाहर की हूँ मुझे पता था कि कोई भी काम मुझे आसानी से नहीं मिलेगा. करीब एक साल के बाद फिल्म ‘1920’ के लिए ऑडिशन हुआ और मुझे अभिनय करने का मौका मिला.

मिला सहयोग

अदा शर्मा के माता-पिता ने हमेशा उनके काम में सहयोग दिया है. वह कहती है कि बचपन में मैं हर तरह की फिल्में देखना पसंद करती थी.मुझे लगता है कि अगर फिल्म ख़राब है तो भी में देख लूँ. इससे मुझे पता चलता है कि मुझे ऐसा काम नहीं करना चाहिए.सबके लिए एक्टिंग भी करती हूँ. मुझे मिमिक्री करने का बहुत शौक है.

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रहना पड़ता है स्ट्रॉंग

ग्लैमर वर्ल्ड में टिके रहने के लिए अदा को हमेशा एक स्ट्रॉंग डिसीजन लेना पड़ता है, क्योंकि यहाँ लोग नकारात्मक सोच नए कलाकारों के दिमाग में डालने के लिए तैयार रहते है. वह मुसकुराती हुई कहती है कि हर क्षेत्र में लोग आपको नकारात्मक सोच देने के लिए  लगे रहते है. ग्लैमर वर्ल्ड में ये कुछ अधिक है, निगेटिविटी आपको यहाँ अधिक मिलती है. ‘पोजिटिविटी’ को बनाये रखना यहाँ बहुत कठिन होता है. बहुत सारे ऐसे लोग है जो आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते है. यहाँ मन से बहुत ‘स्ट्रोंग’ रहने की जरुरत होती है. यह क्षेत्र बहुत ‘शेकी’ है, आज जो ऊपर है, कल कहाँ होगा, कुछ पता नहीं होता,कुछ सुरक्षा नहीं होती. इसलिए हमेशा पॉजिटिव रहना, कुछ बुरा किसी के बारें में न सोचना बहुत जरुरी है. अगर आप उस चाल में एक बार फंस जाते है, तो किसी की बुराई करना, उसे भला-बुरा कहना आपकी आदत बन जाती है, जिसमें व्यक्ति खुद ही फंसता चल जाता है. मैंने ऐसा नहीं किया और ये शक्ति मुझे मेरे परिवार से मिला है. मेरे पिता ने हमेशा कहा है कि अपने आपको ऊँचा दिखाने के लिए किसी को नीचा करने की कोई जरुरत नहीं पड़ती.

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अंतरंग दृश्यों में आपत्ति नहीं  

इंटीमेट सीन्स को करने में अदा सहज है. वह कहती है कि जब मैं अभिनय की ओर आई तो हमेशा सोचा कि मैं अपने आपको किसी भी बात से न रोंकू,क्योंकि मैंने देखा है कि लोग कुछ कहते है,लेकिन कुछ सालों बाद वही सीन्स करते है.मैं बहुत साहसी हूँ और सच बोलना पसंद करती हूँ. मैं काफी बोल्ड हूँ.पहली फिल्म में दांतों पर काला-काला रंग लगाकर पर्दे पर आना, चीखना-चिल्लाना किसी भी हिरोइन के लिए आसान नहीं होता, ऐसे में किसिंग सीन्स तो बहुत आसान है.

समय मिलने पर अदा हर तरह की फिल्में देखती देखती है, पियानो बजाती और  डांस की प्रैक्टिस करती है. आज वह बहुत खुश है कि उन्हे अलग – अलग भूमिका करने को मिल रही है, जो उनकी चाहत रही है.

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Top 10 Social Story In Hindi: पढ़ें टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

Social Story In Hindi: समाज से जुड़ी कुछ नीतियां और कुरीतियां सभी को माननी पड़ती हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो इन नियमों को मानने की बजाय अपना रास्ता खुद बनाने का प्रयास करते हैं. हालांकि इस रास्ते पर उनकी जिंदगी में कई मुश्किलें आती है. लेकिन वह बिना हार माने अपनी जीत हासिल करते हैं. तो इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की Top 10 Social Story in Hindi. समाज का एक पहलू दिखाती ये कहानियां आपकी लाइफ में गहरी छाप छोड़ेंगी. तो पढ़िए गृहशोभा की Top 10 Social Story in Hindi.

1. खामोश जिद: क्या हुआ था रुकमा के साथ

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‘‘शहीद की शहादत को तो सभी याद रखते हैं, मगर उस की पत्नी, जो जिंदा भी है और भावनाओं से भरी भी. पति के जाने के बाद वह युद्ध करती है समाज से और घर वालों के तानों से. हर दिन वह अपने जज्बातों को शहीद करती है.

‘‘कौन याद रखता है ऐसी पत्नी और मां के त्याग को. वैसे भी इतिहास गवाह है कि शहीद का नाम सब की जबान पर होता है, पर शहीद की पत्नी और मां का शायद जेहन पर भी नहीं,’’ जैसे ही रुकमा ने ये चंद लाइनें बोलीं, तो सारा हाल तालियों से गूंज गया.

ब्रिगेडियर साहब खुद उठ कर आए और रुकमा के पास आ कर बोले, ‘‘हम हैड औफिस और रक्षा मंत्रालय को चिट्ठी लिखेंगे, जिस से वे तुम्हारे लिए और मदद कर सकें,’’ ऐसा कह कर रुकमा को चैक थमा दिया गया और शहीद की पत्नी के सम्मान समारोह की रस्म अदायगी भी पूरी हो गई.

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2. अंतिम निर्णय: रिश्तों के अकेलेपन में समाज के दायरे से जुड़ी सुहासिनी की कहानी

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सुहासिनी के अमेरिका से भारत आगमन की सूचना मिलते ही अपार्टमैंट की कई महिलाएं 11 बजते ही उस के घर पहुंच गईं. कुछ भुक्तभोगियों ने बिना कारण जाने ही एक स्वर में कहा, ‘‘हम ने तो पहले ही कहा था कि वहां अधिक दिन मन नहीं लगेगा, बच्चे तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं, हम सारा दिन अकेले वहां क्या करें? अनजान देश, अनजान लोग, अनजान भाषा और फिर ऐसी हमारी क्या मजबूरी है कि हम मन मार कर वहां रहें ही. आप के आने से न्यू ईयर के सैलिब्रेशन में और भी मजा आएगा. हम तो आप को बहुत मिस कर रहे थे, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

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3. बुड्ढा आशिक: किस तरह प्रोफेसर प्रसाद कर रहे थे मानसी का शोषण

 

मानसी अभी कालेज से लौट कर होस्टल पहुंची ही थी कि उस के डीन मिस्टर प्रसाद का फोन आ गया. वह बैग पटक कर मोबाइल अटैंड करने लगी. प्रसाद मानसी के पीएचडी गाइड थे और वे चाहते थे कि मानसी उन के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हो जाए, उन्हें तुरंत बाहर जाना है.

मानसी को समझ नहीं आया कि क्या कहे? हां कहे तो मुश्किल और ना कर दे तो और भी मुसीबत. तभी उसे अपने बचपन के साथी शिशिर का बहाने बनाने का फार्मूला याद आया.

उस ने कराहते हुए कहा, ‘‘सर, मैं तो एक कदम भी चल नहीं पा रही हूं.’’

प्रसाद भी बड़े घाघ थे, बोले, ‘‘अभी तो यहां से अच्छीभली निकली हो, अब क्या हो गया?’’

‘‘ओह,’’ मानसी आवाज में दर्द भर कर बोली, ‘‘सर, अभी यहां बस से उतरते समय मेरा पांव मुड़ गया जिस से मोच आ गई,’’ कहते हुए मानसी ने एक और कराह भरी.

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4.  गुलाब यूं ही खिले रहें- क्या हुआ था रिया के साथ

 

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शादी की शहनाइयां बज रही थीं. सभी मंडप के बाहर खड़े बरात का इंतजार कर रहे थे. शिखा अपने दोनों बच्चों को सजेधजे और मस्ती करते देख कर बहुत खुश हो रही थी और शादी के मजे लेते हुए उन पर नजर रखे हुए थी. तभी उस की नजर रिया पर पड़ी जो एक कोने में गुमसुम सी अपनी मां के साथ चिपकी खड़ी थी. रिया और शिखा दूर के रिश्ते की चचेरी बहनें थीं. दोनों बचपन से ही अकसर शादीब्याह जैसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलती थीं. रिया को देख शिखा ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘रिया…रिया…’’

शायद रिया अपनेआप में ही खोई हुई थी. उसे शिखा की आवाज सुनाई भी न दी. शिखा स्वयं ही उस के पास पहुंची और चहक कर बोली, ‘‘कैसी है रिया?’’

रिया ने जैसे ही शिखा को देखा, मुसकरा कर बोली, ‘‘ठीक हूं, तू कैसी है?’’

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5. आहत- शालिनी के प्यार में डूबा सौरभ उसके स्वार्थी प्रेम से कैसे था अनजान

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हैवलौक अंडमान का एक द्वीप है. कई छोटेबड़े रिजोर्ट्स हैं यहां. बढ़ती जनसंख्या ने शहरों में प्रकृति को तहसनहस कर दिया है, इसीलिए प्रकृति का सामीप्य पाने के लिए लोग पैसे खर्च कर के अपने घर से दूर यहां आते हैं.

1 साल से सौरभ ‘समंदर रिजोर्ट’ में सीनियर मैनेजर के पद पर काम कर रहा था. रात की स्याह चादर ओढ़े सागर के पास बैठना उसे बहुत पसंद था. रिजोर्ट के पास अपना एक व्यक्तिगत बीच भी था, इसलिए उसे कहीं दूर नहीं जाना पड़ता था. अपना काम समाप्त कर के रात में वह यहां आ कर बैठ जाता था. लोग अकसर उस से पूछते कि वह रात में ही यहां क्यों बैठता है?

सौरभ का जवाब होता, ‘‘रात की नीरवता, उस की खामोशी मुझे बहुत भाती है.’’

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6. संबंध- क्या शादी नहीं कर सकती विधवा

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‘‘इस औरत को देख रही हो… जिस की गोद में बच्चा है?’’

‘‘हांहां, देख रही हूं… कौन है यह?’’

‘‘अरे, इस को नहीं जानती तू?’’ पहली वाली औरत बोली.

‘‘हांहां, नहीं जानती,’’ दूसरी वाली औरत इनकार करते हुए बोली.

‘‘यह पवन सेठ की दूसरी औरत है. पहली औरत गुजर गई, तब उस ने इस औरत से शादी कर ली.’’

‘‘हाय, कहां पवन सेठ और कहां यह औरत…’’ हैरानी से दूसरी औरत बोली, ‘‘इस की गोद में जो लड़का है, वह पवन सेठ का नहीं है.’’

‘‘तब, फिर किस का है?’’

‘‘पवन सेठ के नौकर रामलाल का,’’ पहली वाली औरत ने जवाब दिया.

‘‘अरे, पवन सेठ की उम्र देखो, मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं…’’ दूसरी वाली औरत ने ताना मारते हुए कहा, ‘‘दोनों में उम्र का कितना फर्क है. इस औरत ने कैसे कर ली शादी?’’

‘‘सुना है, यह औरत विधवा थी,’’ पहली वाली औरत ने कहा.

‘‘विधवा थी तो क्या हुआ? अरे, उम्र देख कर तो शादी करती.’’

‘‘अरे, इस ने पवन सेठ को देख कर शादी नहीं की.’’

‘‘फिर क्या देख कर शादी की?’’ उस औरत ने पूछा.

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7. महकती विदाई: क्या था अंजू का राज

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अम्मां की नजरों में शारीरिक सुंदरता का कोई मोल नहीं था इसीलिए उन्होंने बेटे राज के लिए अंजू जैसी साधारण लड़की को चुना. खाने का डब्बा और कपड़ों का बैग उठाए हुए अंजू ने तेज कदमों से अस्पताल का बरामदा पार किया. वह जल्द से जल्द अम्मां के पास पहुंचना चाहती थी. उस की सास जिन्हें वह प्यार से अम्मां कह कर बुलाती है, अस्पताल के आई.सी.यू. में पड़ी जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं. एक साल पहले उन्हें कैंसर हुआ था और धीरेधीरे वह उन के पूरे शरीर को ही खोखला बना गया था. अब तो डाक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी.

आज जब वह डा. वर्मा से मिली तो वह बोले, ‘‘आप रोगी को घर ले जा सकती हैं. जितनी सांसें बाकी हैं उन्हें आराम से लेने दो.’’

पापा मानने को तैयार नहीं थे. वह बोले, ‘‘डाक्टर साहब, आप इन का इलाज जारी रखें. शायद कोई चमत्कार हो ही जाए.’’

8. बीरा- गांव वालों ने क्यों मांगी माफी

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आज भी बीरा के मांबाप को भजन सिंह चेताने आए थे, ‘‘तुम अपनी बेटी को संभाल कर रखो, नहीं तो मैं उस के हाथपैर तोड़ दूंगा.’’

हर रोज बीरा किसी न किसी लड़के से झगड़ा कर लेती थी. गांव के लड़के बीरा को हमेशा छेड़ा करते थे, ‘तुम लड़के जैसी लगती हो, लेकिन तुम्हारी आवाज लड़की जैसी है. एक पप्पी नहीं दोगी…’

कोई लड़का बीरा के गाल को पकड़ लेता तो कोई मौका मिलते ही उस की छाती को भी. बीरा कभी बरदाश्त नहीं करती और मारपीट पर उतारू हो जाती. स्कूल, गलीमहल्ले, खेतखलिहान, खेल के मैदान, बीरा को हर रोज इन समस्याओं से जूझना पड़ता था.

धीरेधीरे पूरे गांव में यह प्रचार होने लगा कि बीरा किन्नर है.

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9. वार्निंग साइन बोर्ड: आखिर क्या हुआ था 7 साल की निधि के साथ?

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निशा औफिस के बाद निधि को लेने स्कूल पहुंची. उसे देखते ही दौड़ कर उस के पास आने वाली निधि ठीक से चल भी नहीं पा रही थी.

निशा को देखते ही अटैंडैंट ने दवा देते हुए कहा, ‘‘मैम, आज निधि दर्द की शिकायत कर रही थी. डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने यह दवा दी है. आप इस दवा को दिन में 2 बार तो इस दवा को दिन में 3 बार देना.’’

‘‘मुझे फोन कर दिया होता?’’

‘‘हो सकता है न मिला हो, इसलिए डाक्टर को बुला कर दिखाया हो.’’

‘‘ओके, डाक्टर का परचा?’’

‘‘डाक्टर ने परचा नहीं दिया, सिर्फ यह दवा दी है.’’

निशा ने सोचा शायद इस से परचा कहीं खो गया होगा. अत: झूठ बोल रही है… फिर उस ने मन ही मन स्कूल प्रशासन को धन्यवाद दिया. नाम के अनुरूप काम भी है, सोच कर संतुष्टि की सांस ली. निधि को किस कर गोद में उठा कर कार तक ले गई. निधि कार में बैठते ही सो गई. कैसी भागदौड़ वाली जिंदगी है उस की… वह अपनी बेटी को भी समय नहीं दे पा रही है. स्कूल तो ढाई बजे ही बंद हो जाता है पर घर में किसी के न होने के कारण उसे निधि को स्कूल के क्रैच में ही छोड़ना पड़ता है. कभीकभी लगता है कि एक छोटी सी बच्ची पर कहीं जरूरत से ज्यादा शारीरिक और मानसिक बोझ तो नहीं पड़ रहा है. पर करे भी तो क्या करे? अपनेअपने कार्यक्षेत्र में व्यस्त होने के कारण न तो उस के और न ही दीपक के मातापिता का लगातार उन के साथ रहना संभव है. बस एक ही उपाय है कि वह नौकरी छोड़ दे, पर उसे लगता है कि अगर नौकरी छोड़ देगी तो फिर पता नहीं ऐसी नौकरी मिले या न मिले.

10. कलंक: बलात्कारी होने का कलंक अपने माथे पर लेकर कैसे जीएंगे वे तीनों ?

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उस रात 9 बजे ही ठंड बहुत बढ़ गई थी. संजय, नरेश और आलोक ने गरमाहट पाने के लिए सड़क के किनारे कार रोक कर शराब पी. नशे के चलते सामने आती अकेली लड़की को देख कर उन के भीतर का शैतान जागा तो वे उस लड़की को छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाए.

‘‘जानेमन, इतनी रात को अकेली क्यों घूम रही हो? किसी प्यार करने वाले की तलाश है तो हमें आजमा लो,’’ आसपास किसी को न देख कर नरेश ने उस लड़की को ऊंची आवाज में छेड़ा.

‘‘शटअप एंड गो टू हैल, यू बास्टर्ड,’’ उस लड़की ने बिना देर किए अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘तुम साथ चलो तो ‘हैल’ में भी मौजमस्ती रहेगी, स्वीटहार्ट.’’

‘‘तेरे साथ जाने को पुलिस को बुलाऊं?’’ लड़की ने अपना मोबाइल फोन उन्हें दिखा कर सवाल पूछा.

‘‘पुलिस को बीच में क्यों ला रही हो मेरी जान?’’

‘‘पुलिस नहीं चाहिए तो अपनी मां या बहनों…’’

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कानूनी संपत्ति और प्रौपर्टी पर पता होने चाहिए ये अधिकार

आज महिलाएं घर संभालने के साथसाथ कमाई करने बाहर भी जाती हैं. बच्चों के पालनपोषण और परिवार की देखभाल के साथ ही घर खर्च में भी मदद करती हैं. हाल ही में वर्किंग स्त्री नाम की एक सर्वे रिपोर्ट जारी हुई. करीब 10 हजार महिलाओं पर किए गए इस सर्वे में पाया गया कि दिल्ली में 67त्न से अधिक कामकाजी महिलाएं अपनी तनख्वाह से घर खर्च में सक्रिय योगदान देती हैं. वहीं 31त्न महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी

आधी सैलरी घर की जिम्मेदारियों पर खर्च करती हैं.

जाहिर है आर्थिक रूप से महिलाएं जिम्मेदार और आत्मनिर्भर हैं. इस के बावजूद आज भी वित्तीय फैसले वे पिता, भाई और पति की मदद से ही लेती हैं, ‘औनलाइन मार्केट प्लेस इंडिया लैंड्स’ द्वारा कराए गए इस सर्वे में मैट्रो, टियर

1 और टियर 2 की 21 से 65 उम्र वर्ग की 10 हजार से ज्यादा कामकाजी महिलाओं से सवाल पूछे गए. रिपोर्ट में कामकाजी महिलाओं को ले कर जो आंकड़े सामने आए वे वाकई चौंका देने वाले हैं. दिल्ली की 47 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया कि घर के खर्चों को नियमित रूप से ट्रैक करने में मुश्किल होती है. 37त्न महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें क्रैडिट स्कोर से संबंधित कोई जानकारी नहीं. वहीं दिल्ली की करीब

32त्न कामकाजी महिलाओं ने बताया कि बचत और निवेश से जुड़े फैसले लेने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है. हालांकि यह समस्या केवल दिल्ली की महिलाओं को ही नहीं बल्कि देशभर में अधिकतर कामकाजी महिलाएं वित्तीय फैसले लेने के लिए अपने पिता, पति या भाई पर निर्भर होती हैं.

पुरुषों की तुलना में कम भागेदारी इसी तरह एलएक्सएमई द्वारा एक्सिस माय इंडिया (ए ऐंड माई इंडिया) के साथ मिल कर किए सर्वे के अनुसार देश की 33त्न महिलाएं निवेश  के बारे में कुछ भी ध्यान नहीं देती हैं. बाकी महिलाओं की पहली पसंद सोना और फिक्स्ड डिपौजिट है. इस से आगे वे सोच ही नहीं पातीं. शेयर बाजार और दूसरे तरह के निवेश में उन की भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम है. कई महिलाएं कंपनियों में बड़ी जिम्मेरियां के चलते सिर्फ अपने घर और बच्चों की चिंता में उल?ो रहने के कारण निवेश नहीं कर पाती हैं.

निवेश और वित्तीय फैसलों के साथसाथ महिलाएं अकसर अपनी संपत्ति की सुरक्षा और संपत्ति से जुड़े अधिकारों की भी जानकारी नहीं रखतीं. यह भी देखने को मिलता है कि महिलाओं को फाइनैंस कभी पसंद नहीं आता खासकर पढ़ाई के समय. ज्यादातर लड़कियां आर्ट्स या साइंस लेती हैं मगर कौमर्स लेने वाली लड़कियों की संख्या बहुत कम होती है. इसी तरह महिलाओं की तुलना में पुरुषों द्वारा वित्तीय सलाहकार से संपर्क किए जाने की संभावना 2 गुना अधिक होती है. घरेलू जीवन में महिलाएं अपने पैसों को मैनेज करने के लिए अपने पिता, भाई या

औफिस के किसी सहकर्मी पर निर्भर रहती हैं. मगर सवाल उठता है कि जब वे अपने घर को कलात्मक ढंग से मैनेज करती हैं तो पैसों को मैनेज करने से हिचकती क्यों हैं? उस तरफ ध्यान क्यों नहीं देतीं? शिक्षा के लिहाज से भी महिलाओं का डिगरी हासिल करने का प्रतिशत बढ़ रहा है, साथ ही उन की कमाई भी बढ़ी है. पिछले 30 वर्षों में कामकाजी महिलाओं की संख्या दोगुनी हो गई है और आज कार्य बल में प्रवेश करने वाली महिलाओं ने अपने भाइयों और पतियों के साथ आर्थिक समानता हासिल कर ली है.

कानून ने भी महिलाओं को संपत्ति से जुड़े बहुत से हक दे दिए हैं. अब उन्हें पिता की संपत्ति में भाइयों के बराबर हिस्सा मिलता है. यानी महिलाओं के पास अब अधिक पैसा है और उन्हें इसे मैनेज करने की पूरी जानकारी होनी चाहिए.

महिलाओं के संपत्ति से जुड़े अधिकार मायके की संपत्ति पर हक: एक लड़की को शादी में पर्याप्त दहेज दिया गया तो इस का यह मतलब नहीं है कि उस का अपने परिवार की संपत्ति पर अधिकार खत्म हो गया. मायके की संपत्ति पर महिला का अधिकार होता है खासकर 2005 के संसोधन के बाद महिलाओं को मायके की संपत्ति पर भाइयों के साथ बराबरी का हक मिला है भले ही वे विवाहित हों या अविवाहित.

यह 2 तरह से लागू हो सकता है: पहला- अगर पिता ने संपत्ति खुद अर्जित की है और पिता की मौत बिना किसी वसीयत के हो जाती है तो संपत्ति बेटों और बेटियों में बराबर बांटी जाएगी. अगर मां जिंदा हैं तो उन को भी संपत्ति पर अधिकार मिलेगा. अगर पिता अपनी वसीयत बना कर किसी एक बच्चे को या किसी अजनबी को भी अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं तो संपत्ति उस व्यक्ति को मिलेगी. जहां तक शादी के बाद इस अधिकार का सवाल है तो यह अधिकार शादी के बाद भी कायम रहेगा.

दूसरा पैतृक संपत्ति का अधिकार जन्म से तय होता है. हिंदू सैक्शन एक्ट, 1956 में पहले घर में पैदा होने वाले बेटों को संपत्ति पर अधिकार मिलता था. 2005 में कानून में बदलाव किया गया. अब किसी घर में पैदा होने वाले पुरुष और महिला का उस परिवार की पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार होता है. शादीशुदा बेटी और गोद लिए बच्चे को भी बराबर अधिकार दिए गए हैं.

ससुराल की संपत्ति पर महिला का अधिकार

यहां भी 2 पहलू हैं: पहला- अगर संपत्ति पति की कमाई हुई है तो पत्नी पति की संपत्ति में बच्चों और मां समेत बराबर की अधिकारी होती है. यदि किसी शख्स की बिना वसीयत के मौत हो जाती है तो उस की संपत्ति उन सभी में बराबर बंटती है. मगर अगर वह शख्स वसीयत में किसी को अपना वारिस बना कर जाता है तो वह प्रौपर्टी उस के वारिस को ही मिलेगी.

दूसरा- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के मुताबिक अगर एक महिला की ससुराल में संपत्ति पैतृक है और पति की मौत हो जाती है तो पति की संपत्ति में महिला को बच्चों के साथ बराबर का हक मिलेगा.

तलाक में महिला के संपत्ति से जुड़े अधिकार

अगर एक महिला अपने पति से अलग होना चाहती है तो हिंदू मैरिज एक्ट के सैक्शन 24 के तहत वह पति से अपना भरणपोषण मांग सकती है. यह भरणपोषण पति और पत्नी दोनों की आर्थिक स्थिति के आधार पर तय होता है. यह तलाक का वन टाइम सैटलमैंट भी हो सकता है और मासिक भत्ता भी. इस के साथ ही तलाक के बाद अगर बच्चे मां के साथ रहते हैं तो पति को उन का भरणपोषण भी देना होगा.

स्त्री धन पर अधिकार

एक महिला को शादी से पहले, शादी में और शादी के बाद गिफ्ट में जो भी कैश, गहने या सामान मिलता है उस सब पर महिला का ही पूरा अधिकार होता है. हिंदू सैक्शन एक्ट का सैक्शन 14 और हिंदू मैरिज एक्ट के सैक्शन 27 दोनों अधिकार देते हैं. इस के अलावा वरवधू को कौमन यूज की तमाम चीजें दी जाती हैं ये भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं. स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार होता है.

अगर ससुराल वालों ने महिला का स्त्रीधन अपने पास रख लिया है तो महिला इस के खिलाफ आईपीसी की धारा-406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत कर सकती है. इस के तहत कोर्ट के आदेश से महिला को अपना स्त्रीधन वापस मिल सकता है. इस के अलावा महिला डोमैस्टिक वायलैंस एक्ट के सैक्शन 19 ए के तहत पुलिस में शिकायत भी कर सकती है.

खुद की संपत्ति पर अधिकार

कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को चाहे तो उसे बेच भी सकती है. इस में कोई दखल नहीं दे सकता. महिला इस संपत्ति की वसीयत कर सकती है और चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चों को बेदखल भी कर सकती है.

कैसे करें अपनी प्रौपर्टी मैनेज: अपनी प्रौपर्टी मैनेज करने के लिए एक अलग सीए रखिए जो आप को सही सलाह दे. अगर आप पति के साथ जौइंट में कोई सीए रखती हैं तो वह फायदे दिलाने के नाम पर या टैक्स बचाने की बात कह कर आप की प्रौपर्टी आप के बेटे के नाम ट्रांसफर कर सकता है या फिर पति के साथ मिलाने की कवायद शुरू करेगा. इस तरह वह आप से ज्यादा आप के पति या बेटे को फायदा पहुंचाएगा और आप रिश्तों की वजह से न भी नहीं कह सकेंगी.

कभी भी बैंक वगैरह जाना हो तो खुद जाएं. अकसर महिलाएं अपने बैंक अपडेट रखने और पैसे जमा करने या निकालने के लिए पति पर निर्भर रहती हैं. पति को अपने बैंक के साइन, क्रैडिट कार्ड का पासवर्ड वगैरह सब दे देती हैं. यह सही नहीं है. जब भी बैंक का कोई काम हो तो खुद जाएं और अपने पैसे की ग्रोथ के लिए हर संभव कोशिश करें. आजकल शेयर मार्केट और म्यूचुअल फंड वगैरह निवेश के अच्छे विकल्प हैं.

अगर आप के नाम से कोई घर है और आप उस में किराएदार रख रही हैं तो खुद ही किराएदार का चयन करें और किराया वगैरह लेने का काम भी खुद करें. उन पैसों को अपने खाते में जमा करें. ध्यान रखें अपनी प्रौपर्टी से जुड़े सारे कागजात अपने पास एक फाइल में रखें ताकि जब भी कोई जरूरत हो तो आप कागज दिखा सकें और आप के पति यह उलाहना न दें कि आप से कुछ नहीं संभलता. इस तरह फाइल में सारे कागज सही से रखने पर वे खोते भी नहीं और आप को अपनी प्रौपर्टी से जुड़ी हर जानकारी भी बनी रहती है.

जब तक बच्चे छोटे हैं तब तक पति को कहें कि वे आप को ही हर जगह नौमिनी बनाएं. कई घरों में जब बच्चे छोटे होते हैं या नहीं होते तो पुरुष अपना नौमिनी अपने भाइयों को बना देते हैं. यह उचित नहीं है. इस के विपरीत ऐसे में पत्नी को नौमिनी बनाना ही सुरक्षित रहता है. इसी तरह महिलाओं को भी अपने भाइयों पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए और पति या बच्चों को ही अपना नौमिनी बनाना चाहिए.

अभिनय की कोई भाषा नहीं होती वैष्णवी पटवर्धन

2016में मिस इंडिया प्रतिस्पर्धा में फाइनल रहीं वैष्णवी पटवर्धन तेलुगु फिल्मों में भी योगदान दे चुकी हैं. इस के अलावा कन्नड़ फिल्म ‘श्रीमंथा’ में भी अभिनय किया है. फिलहाल वैष्णवी अपनी जल्द ही रिलीज होने वाली फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’ को ले कर चर्चा में हैं. यह एक कौमेडी फिल्म है जो आज की जिंदगी में चल रहे हालात पर है. इस फिल्म में वैष्णवी मुख्य भूमिका निभा रही हैं.

तेलुगु और हिंदी फिल्मों में काम करने के अलावा वैष्णवी का एक यूट्यूब चैनल भी है, जिस में वे फैशन लाइफस्टाइल से संबंधित ब्लौग बनाती हैं. ‘वाट ए किस्मत’ में वैष्णवी का क्या किरदार है? इस फिल्म में उन का काम करने का अनुभव कैसा रहा? हिंदी फिल्मों में वे अपना भविष्य बतौर अभिनेत्री कैसे दिखती हैं? ऐसे ही कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए वैष्णवी ने खास बातचीत के दौरान:

फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’ से आप को कितनी उम्मीदें हैं?

उम्मीदें तो बहुत हैं क्योंकि यह एक लाइट हार्टेड कौमेडी फिल्म है, जिस में जीवन की सचाई को दिखाया गया है. खासतौर पर हालात जब खराब हों तो क्या होता है और जब हालात पलटते हैं तो क्या होता है. आशा है फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी और मेरे जीवन में भी कुछ अच्छा हो जाए.

यह हीरो प्रधान फिल्म है. ऐसे में आप के करने लायक कितना पावरफुल रोल है?

मेरा रोल फिल्म में बहुत महत्त्वपूर्ण है. मैं फिल्म के हीरो चंदू की पत्नी आरती का किरदार निभा रही हूं. जिस के खुद के भी बहुत सारे सपने हैं, खुद का संघर्ष है, अपने पति से बहुत सारी उम्मीदें हैं, लेकिन जब उस का पति उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता तो पतिपत्नी के बीच प्यारभरे ?ागड़ा भी हैं. इस हिसाब से मु?ो लगता है अगर फिल्म में हीरोइन न हो तो हीरो का कोई महत्त्व नहीं होता. कहने का मतलब यह है जिस तरह पतिपत्नी एकदूसरे के बगैर अधूरे हैं उसी तरह कोई भी फिल्म हीरोहीरोइन के बगैर अधूरी है. फिल्म में मेरा भी उतना ही योगदान है जितना हीरो का है.

आप की यह पहली हिंदी फिल्म है या इस से पहले भी आप ने कोई फिल्म की थी?

मैं ने इस से पहले एक फिल्म की थी जो हिंदी और पंजाबी दोनों भाषाओं में बनी थी. पूरी तरह से यह फिल्म मेरी पहली हिंदी फिल्म है और इस में मेरा काम करने का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा. शूटिंग के आखिरी दिन हम सभी बहुत दुखी हो गए थे यह सोच कर कि हमारा साथ यहीं तक था. फिल्म की पूरी यूनिट डाइरैक्टर, ऐक्टर्स सभी ने मु?ो बहुत इज्जत दी.

अपने हिंदी फिल्म के अलावा तेलुगु फिल्म में भी काम किया है. सुना है वहां हीरोइन को कमतर आंका जाता है क्योंकि तेलुगु फिल्में ज्यादातर हीरो प्रधान होती हैं. इस बारे में आप का क्या कहना है?

हां, मैं ने भी काफी इस तरह की बातें सुनी थीं कि तेलुगु इंडस्ट्री में हीरो को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. मैं ने जो तेलुगु फिल्म की उस में मु?ो अच्छा रिस्पौंस मिला फिल्म भी अच्छी चल रही है. फिल्म का नाम ‘साधा नानू नाडिपे’ है. इस फिल्म में काम करने के दौरान मेरा अनुभव काफी अच्छा रहा.

अभिनय के अलावा आप फैशन और लाइफस्टाइल में भी दिलचस्पी रखती हैं जिस के चलते आप का एक यूट्यूब चैनल भी है. उसे बारे में कुछ बताएंगे?

हां, मेरी कालेज के समय से ही फैशन, मेकअप, और लाइफस्टाइल से संबंधित चीजों में बहुत दिलचस्पी थी और मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लेने के दौरान मैं ने काफी कुछ सीखा भी था. लिहाजा 2016 में मिस इंडिया प्रतिस्पर्धा में फाइनलिस्ट होने के बाद मैं ने वैष्णवी पटवर्धन के नाम से अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया, जिस में मैं ने फैशन मेकअप और लाइफस्टाइल से रिलेटेड बहुत सारे ब्लौग बनाएं. फिलहाल मेरे 10 हजार फौलोअर्स हैं. मैं खुश हूं कि मु?ो अभिनय और चैनल दोनों में दर्शकों का पूरी सपोर्ट मिली है.

‘व्हाट ए किस्मत’ की आरती और आप में कितनी समानताएं हैं?

आरती और मु?ा में काफी समानताएं हैं जैसे हम दोनों ही आत्मनिर्भर हैं, अपने हिसाब से जिंदगी जीना पसंद करते हैं. इस के अलावा आरती की जिंदगी में जो संघर्ष है मैं ने भी वह संघर्ष तय किया है इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए. हम दोनों ही मेहनती हैं और कभी न हार मानने वाले शख्स हैं.

आजकल तेलुगु इंडस्ट्री से कई सारे कलाकार हिंदी इंडस्ट्री में काम करने आ रहे हैं. आप ने भी तेलुगू इंडस्ट्री में काम किया है तो क्या अब आप भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खुद को आजमाना चाहेंगी?

मेरा मानना है तेलुगु हो या हिंदी इंडस्ट्री अभिनय की कोई भाषा नहीं होती. मु?ो जहां भी अच्छा काम करने का मौका मिलेगा वहां मैं अभिनय करना चाहूंगी.

आज छोटा परदा छोटा नहीं रहा. छोटा परदा अर्थात टीवी से कई छोटेबड़े कलाकारों को प्रसिद्धि मिल रही है. खासतौर पर कलर्स चैनल के रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ के जरीए कई कलाकारों को नाम, पैसा और शोहरत मिली है.

अगर आप को बिग बौस में जाने का औफर मिला तो क्या आप जाना पसंद करेंगी?

सच कहूं तो मैं ने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं. लेकिन मैं इस बात से भी पूरी तरह सहमत हूं कि छोटा परदा बड़े परदे से कहीं ज्यादा पावरफुल है क्योंकि छोटा परदा तब से प्रसिद्ध है जब मैं खुद छोटी सी थी. इस की पहुंच छोटेछोटे गांवों तक है. ऐसे में अगर मु?ो बिग बौस का औफर मिला तो मैं जरूर जाना चाहूंगी. आप अपनी फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’ के नाम के मुताबिक किस्मत पर ज्यादा भरोसा करती हैं या मेहनत पर? अगर आप तकदीर पर भरोसा कर के हाथ पर हाथ धरे बैठ गए मेहनत नहीं की तो किस्मत भी साथ नहीं देगी. अगर मेहनत करते रहें तो एक न एक दिन सफलता जरूर मिलती है.

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