मायोसाइटिस को समझने में ना करें देरी ,समय रहते इलाज है जरूरी

Myositis: हाल ही में दंगल फ़िल्म कि छोटी बबिता का रोल अदा करने वाली सुहानी भटनागर की मौत का कारण बनी एक ऐसी बीमारी जो 10 लाख लोगो में किसी एक को होती है. इस बीमारी का नाम है डर्मेटोमायोसाइटिस. यह मायोसाइटिस का एक प्रकार है।मायोसाइटिस एक तरह की ऑटो इम्यून डिजीज है.

इस बीमारी में सबसे ज्यादा मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं यह रोग त्वचा के साथ साथ शरीर के किसी भी अंग को अपनी चपेट में लें लेता है.इस बीमारी के कारण पीड़ित को उठने – बैठने,चलने में परेशानी होती है अगर समय रहते बीमारी का इलाज ना हो तो मरीज की जान भी जा सकती है.

जाने क्या है मायोसाइटिस

आमतौर पर यह समस्या 40 से 60 साल की उम्र के लोगो को होती है लेकिन कई बार बच्चे भी इसका शिकार हो सकते हैं. यह बीमारी इम्यून सिस्टम पर वार करती है जिस कारण हमारा शरीर बीमारियों से लड़ने में असमर्थ हो जाता है और ऐसे एंटीबाडी डेवलप होने लगते हैं जो मांसपेशियों को कमजोर करते हैं.

मायोसाइटिस के कारण

किसी वायरस द्वारा इन्फेक्शन होना,रूमेटाइड अर्थराइटिस
दवाई का साइड इफ़ेक्ट, लुपस ,स्क्लेरोडर्मा इस बीमारी के मुख्य कारण हैं.

लक्षण

इस बीमारी के आम लक्षण है मांसपेशियों में दर्द रहना कंधे,कूल्हे, गर्दन, के आसपास दर्द होना,सांस फूलना,स्किन पर रेशेज का होना,रोजमरा की क्रिया करने में परेशानी आना, घुटने,पाँव, नाखुनो के आसपास सुजन व दर्द होना. कई बार इसके लक्षण सामन्य लगते है और जब बीमारी घातक हो जाती है तब पता चलता है समय रहते इलाज मिलने से मरीज को ठीक किया जा सकता है.

मायोसाइटिस के प्रकार

डर्मेटोमायोसाइटिस
इंक्लूजन-बॉडी मायोसाइटिस
जूवेनाइल मायोसाइटिस
पोलिमायोसाइटिस
टॉक्सिक मायोसाइटिस
मायोसाइटिस का इलाज
मायोसाइटिस के लिए कोई सटीक इलाज नहीं है, इसलिए उचित इलाज का पता लगाने के लिए डॉक्टर को कई अलग-अलग इलाज प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करके देखना पड़ता है।जिसके लिए मांसपेशियों की बायोप्सी इलेक्ट्रोमायोग्राफी,एमआरआई,ब्लड टेस्ट,मायोसाइटिस स्पेसिफिक एंटीबॉडी पैनल टेस्ट व जेनेटिक टेस्ट करके पता लगाया जाता है कि किस तरह का मायोसाइटिस है और और तब इलाज शुरू किया जाता है.

11 टिप्स: बच्चों के लिए ऐसे करें टिफिन तैयार

बच्चों का टिफिन तैयार कर रही हैं तो रखें इन बातों का खयाल:

1. सब से पहले तो टिफिन बौक्स ऐसा लें जिसे बच्चा आसानी से खोल और बंद कर सके.

2. टिफिन बौक्स तैयार करते समय बच्चे की पौष्टिकता का ध्यान रखें जैसे ज्यादा तला खाना न दें वरना बच्चे का बारबार पानी पीने का मन करता है और जी मिचलाता है. घर में बना खाना ही दें. ढोकला, बेसन का चीला, दाल परांठा, पीनट मसाला, ओट्स मसाला, इडली फ्राई ओट्स, मूंगदाल स्प्राउट्स इत्यादि पोषक लंच विकल्प हैं. इन से बच्चे को प्रोटीन तो मिलेगा ही, स्वाद भी अलग हो जाएगा.

3. टिफिन बौक्स पैक करते समय स्पून और पेपर नैपकिन जरूर रखें ताकि बच्चा खाना खाने के बाद अपने हाथ पोंछ सके.

4. रोटी, परांठा काट कर दें ताकि बच्चा आसानी से खा सके.

5.. अगर आप बच्चे के टिफिन में फ्रूट्स रख रही हैं तो काट कर रखें. अगर सूखे मेवे रख रही हैं तो उन्हें भून या तल कर नमक लगा कर रखें. अगर बच्चे को मीठा पसंद है तो मेवे को टुकड़े कर के गुड़ की चाश्नी में मिला कर लड्डू बना कर रख सकती हैं.

6. सब से बड़ी बात यह कि खानेपीने की चीजें मौसम के अनुसार दें जैसे तिल, गुड़, सब्जियां आदि. इस से उन का स्वाद बना रहेगा और बच्चे की खाने में रुचि भी बढ़ेगी.

7. अगर पोहा में नीबू का रस नहीं मिला सकती हैं तो बच्चे से पूछ कर नीबू काट कर दें ताकि पोहा, उपमा में नीबू निचोड़ कर खा सके. नीबू के बीज निकाल दें.

8. लंच बौक्स को अच्छी तरह बंद करने के बाद पौलिथीन में अवश्य रखें ताकि अगर गलती से ढक्कन खुल जाए तो किताबकापियों पर सब्जी आदि न गिरे.

9. टिफिन बौक्स में ब्रैड रख रही हैं तो ताजा ही रखें पुरानी ब्रैड से बच्चे को नुकसान हो सकता है. अगर सैंडविच बना कर रख रही हैं तो तिकोने आकार में टुकड़े कर के और सौस अलग से रखें ताकि वह खाने में अच्छा लगे. ब्रैड को कई प्रकार से बना कर रख सकती हैं.

10. राइस बिरयानी रख रही हैं तो उस की गार्निशिंग अच्छी तरह करें. अगर घर में नट्स हों तो राइस पर डाल दें. खाना और अच्छा लगेगा.

11. मावे वाली चीजें टेस्ट कर रखें. हो सकता है रात में मावे की चीजें खराब हो गई हों. गरमी के मौसम में इस बात का खास खयाल रखें.

Women’s Day 2024: मर्यादा- क्या हुआ था स्वाति के साथ

रात के 12 बज रहे थे, लेकिन स्वाति की आंखों में नींद नहीं थी. वह करवटें बदल रही थी. उस की बगल में लेटा पति वरुण गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. स्वाति दिन भर की थकान के बाद भी सो नहीं पा रही थी. आज का घटनाक्रम बारबार उस की आंखों में घूम रहा था. आज ऐसा कुछ हुआ कि वह कांप कर रह गई. जिसे वह सिर्फ खेल समझती थी वह कितना गंभीर हो सकता है, उसे इस बात का भान नहीं था. वह मर्दों से हलकाफुलका मजाक और फ्लर्टिंग को सामान्य बात समझती थी. स्वाति अपनी फ्रैंड्स और रिश्तेदारों से कहती थी कि उस की मार्केट में इतनी जानपहचान है कि कोई भी सामान उसे स्पैशल डिस्काउंट पर मिलता है.

स्वाति फोन पर अपने मायके में भाभी से कहती कि आज मैं ने वैस्टर्न ड्रैस खरीदी. इतनी बढि़या और अच्छे डिजाइन में बहुत सस्ती मिल गई. मैं ने साड़ी बिलकुल नए कलर में खरीदी. 1000 की है पर मुझे सिर्फ 500 में मिल गई. डायमंड रिंग अपनी फ्रैंड से और्डर दे कर बनवाई. ऐसी रिंग क्व2 लाख से कम नहीं, परंतु मुझे क्व11/2 लाख में मिल गई. भाभी की नजरों में स्वाति की छवि बहुत ही समझदार और पारखी महिला के रूप में थी. वह जब भी कोई सामान खरीद कर भेजने को कहती, स्वाति खुशीखुशी भिजवा देती. पूरे परिवार में उस के नाम का डंका बजता था.

स्वाति आकर्षक नैननक्श वाली पढ़ीलिखी महिला थी. बचपन से ही उसे खरीदारी का बेहद शौक था. लाखों रुपए की खरीदारी इतने कम दाम और चुटकियों में करती कि हर कोई हैरान रह जाता. स्वाति का मायका मिडल क्लास फैमिली से था. 15 साल पहले एक बड़े उद्योगपति परिवार में उस की शादी हुई. शादी भले ही करोड़पति घर में हो गई, लेकिन संस्कार वही मिडल क्लास फैमिली वाले ही थे. 1-1 पैसे की कीमत वह जानती थी. घर खर्च में पैसा बचाना और उस पैसे से स्वयं के लिए खरीदारी करने में उसे बहुत मजा आता. पति से भी पैसे मारना स्वाति को अच्छा लगता था. अच्छे संस्कार, पढ़ीलिखी और समझदार स्वाति को एक बात बड़ी आसानी से समझ आ गई थी कि पुरुषों की कमजोरी क्या है. कैसे कम रेट पर खरीदारी करनी है. वह उस दुकान या शोरूम में ही खरीदारी करती जहां पुरुष मालिक होते. वह सेल्समैन से बात नहीं करती. सेल्समैन से वह कहती, ‘‘आप तो सामान दिखा दो, रेट मैं अपनेआप भैया से तय कर लूंगी.’’

और जब हिसाबकिताब की बारी आती, तो वह सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहती, ‘‘भैया सही रेट बताओ. आज की नहीं 10 सालों से आप की शौप पर आ रही हूं.’’

‘‘भाभी, आप को रेट गलत नहीं लगेगा, क्यों चिंता करती हैं?’’ सेठ कहता.

‘‘नहीं, इस बार ज्यादा लगा रहे हो. मुझे तो स्पैशल डिस्काउंट मिलता है, आप की शौप पर,’’ कहते हुए स्वाति काउंटर पर खड़े सेठ के हाथों को बातोंबातों में स्पर्श करती या फिर कहती, ‘‘भैया, आप तो मेरे देवर की तरह हो. देवरभाभी के बीच रुपएपैसे मत लाओ न.’’

अकसर दुकानदार स्वाति की मीठीमीठी बातों में आ कर उसे 10-20% तक स्पैशल डिस्काउंट दे देते थे. एक ज्वैलर से तो स्वाति ने जीजासाली का रिश्ता ही बना लिया था. ज्वैलरी आमतौर पर औरतों की कमजोरी होती है, स्वाति की भी कमजोरी थी. वह अकसर इस ज्वैलर के यहां पहुंच जाती. क्याक्या नई डिजाइनें आई हैं, देखने जाती तो कुछ न कुछ पसंद आ ही जाता. तब जीजासाली के बीच हंसीमजाक शुरू हो जाता.

स्वाति कहती, ‘‘साली आधी घरवाली होती है जीजाजी, इतने ही दूंगी.’’

ज्वैलर स्वाति का स्पर्शसुख पा कर निहाल हो जाता. उस के मन में स्पर्श को आगे बढ़ाने की प्लानिंग चलती रहती, पर स्वाति थी कि काबू में ही नहीं आती थी. सामान खरीदा और उड़न छू. उस दिन भतीजी की शादी के लिए सामान व ज्वैलरी खरीदने स्वाति ज्वैलर के यहां पहुंच गई. उसे भाभी ने बताया था कि क्याक्या खरीदना है.

स्वाति ने घर से निकलने से पहले ही ज्वैलर को फोन किया, ‘‘भतीजी की शादी के लिए ज्वैलरी खरीदने आ रही हूं. आप अच्छीअच्छी डिजाइनों का चयन करा कर रखना. मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं होगा.’’

‘‘आप आइए तो सही साली साहिबा. आप के लिए सब हाजिर है,’’ ज्वैलर ने कहा. ज्वैलरी की यह दुकान कोई बड़ा शोरूम नहीं था, लेकिन वह खुद अच्छा कारीगर था और और्डर पर ज्वैलरी तैयार करता था. शहर की एक कालोनी में उस की दुकान थी जहां कुछ खास लोगों को और्डर पर तैयार ज्वैलरी भी दिखा कर बेच देता था और और्डर देने वाले को कुछ दिन बाद सप्लाई दे देता. स्वाति की एक फ्रैंड रजनी ने उस ज्वैलर्स से उस की मुलाकात कराई थी. लेकिन रजनी कभी यह बात समझ नहीं पाई थी कि आखिर यह ज्वैलर स्वाति पर इतना मेहरबान क्यों रहता है. उसे नईनई डिजाइनें दिखाता है और अतिरिक्त डिस्काउंट भी देता है.

‘‘जीजाजी, कुछ और डिजाइनें दिखाओ. ये तो मैं ने पिछली बार देखी थीं,’’ स्वाति ने ज्वैलर की आंखों में झांकते हुए कहा.

स्वाति को ज्वैलर की आंखों में शरारत नजर आ रही थी. वह बारबार सहज होने की कोशिश कर रहा था. अपनी आदत के मुताबिक स्वाति ने बातोंबातों में ज्वैलर के हाथों पर इधरउधर स्पर्श किया. उस का यह स्पर्श ज्वैलर को बेचैन कर रहा था. उस ने भी स्वाति की हरकतें देख हौसला दिखाना शुरू कर दिया. वह भी बातोंबातों में स्वाति के हाथों पर स्पर्श करने लगा. यह स्पर्श स्वाति को कुछ बेचैन कर रहा था, लेकिन वह सहज रही. उसे कुछ देर की हरकतों से स्पैशल डिस्काउंट जो लेना था. स्वाति ने देखा कि आज दुकान पर सिर्फ एक लड़का ही हैल्पर के तौर पर काम कर रहा था बाकी स्टाफ न था. ज्वैलर ने उसे एक सूची थमाते हुए कहा कि यह सामान मार्केट से ले आओ. और जाने से पहले फ्रिज में रखे 2 कोल्ड ड्रिंक खोल कर दे जाओ.’’

‘‘आप और नई डिजाइनें दिखाइए न,’’ स्वाति ने कहा.

‘‘हां, अभी दिखाता हूं. कल ही आई हैं. आप के लिए ही रखी हुई हैं अलग से.’’

‘‘तो दिखाइए न,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘आप ऐसा करें अंदर वाले कैबिन में आ कर पसंद कर लें. अभी अंदर ही रखी हैं… लड़का भी जा चुका है तो…’’

स्वाति ने देखा लड़का सामान की सूची ले कर जा चुका था. अब दुकान पर सिर्फ ज्वैलर और स्वाति ही थे. स्वाति को एक पल के लिए डर लगा कि अकेली देख ज्वैलर कोई हरकत न कर दे. वह ऐसा कुछ चाहती भी नहीं थी. वह तो सिर्फ कुछ हलकीफुलकी अदाएं दिखा कर दुकानदारों से फायदा उठाती आई थी. आज भी ऐसा कुछ कर के ज्वैलर से स्पैशल डिस्काउंट लेने की फिराक में थी. उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी खरीदारी कर के निकल ले. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था कि क्या करे. वह अपनेआप को संभाल कर कैबिन में ज्वैलरी देखने घुस गई. उस ने अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, आज कुछ सुस्त लग रहे हो क्या बात है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘कोई तो बात है, मुझ से छिपाओगे क्या?’’

‘‘आप नैकलैस देखिए, साथसाथ बातें करते हैं,’’ ज्वैलर ने कहा. स्वाति गजब की सुंदर लग रही थी. वह बनठन कर निकली थी. ज्वैलर के मन में हलचल थी जो उसे बेचैन कर रही थी. उस ने सोचा कि हिम्मत दिखाई जा सकती है. अत: उस ने स्वाति के हाथ को स्पर्श किया तो वह सहम गई. लेकिन उस ने सोचा कि अगर थोड़ा छू लिया तो उस से क्या फर्क पड़ेगा. स्वाति के रुख को देख ज्वैलर का हौसला बढ़ गया. उस ने स्वाति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा. ज्वैलर की इस आकस्मिक हरकत से वह हड़बड़ा गई.

‘‘क्या कर रहे हो?’’ स्वाति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

ज्वैलर ने अपनी हरकत जारी रखी. स्वाति घबरा गई. ज्वैलर की हिम्मत देख दंग रह गई वह. मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने की सोच उसे भारी पड़ती नजर आ रही थी. वह कैसे ज्वैलर के चंगुल से बचे, सोचने लगी. फिर उस ने हिम्मत दिखाई और ज्वैलर के गाल पर थप्पड़ों की बारिश कर दी. स्वाति क्रोध से कांप रही थी. उस का यह रूप देख ज्वैलर हड़बड़ा गया. इसी हड़बड़ी में वह जमीन पर गिर गया. स्वाति के लिए यही मौका था कैबिन से बाहर निकल भागने का. अत: वह फुरती दिखाते हुए तुरंत कैबिन से बाहर निकल अपनी कार में जा बैठी. फिर तुरंत कार स्टार्ट कर वहां से चल दी. उस के अंदर तूफान चल रहा था. उसे आत्मग्लानि हो रही थी. लंबे समय से स्वाति जिसे खेल समझती आ रही थी, वह कितना गंभीर हो सकता है, उस ने यह कभी सोचा भी नहीं था.

हैप्पीनैस हार्मोन: क्यों दिल से खुश नहीं था दूर्वा

कालेज कंपाउंड में चारों दोस्त सुमति को सांत्वना दे रहे थे. अब हो भी कुछ नहीं सकता था. आज अकाउंट्स के प्रैक्टिकल जमा करने का आखिरी दिन था. सुमति को भी यह बात पता थी परंतु बूआ के लड़के की शादी में जाने के कारण उस के दिमाग से यह बात निकल गई. आज छुट्टियों के बाद कालेज आई तो मालूम पड़ा प्रैक्टिकल पूरे 20 नंबर का है.

‘‘गए 20 नंबर पानी में,’’ सुरक्षा दुखी स्वर में बोली.

‘‘20 नंबर बड़ी अहमियत रखते हैं,’’ रोनी सूरत बनाते हुए सुमति बोली.’’

‘‘मैडम बड़ी स्ट्रिक्ट हैं. आज प्रैक्टिकल सबमिट नहीं किया तो फिर लेंगी नहीं,’’ राजन बोला.

‘‘प्रैक्टिकल में जीरो मिलना मतलब कैंपस इंटरव्यू में भी अवसर खोना,’’ सुयश ने अपना पक्ष रखा.

‘‘इस का असर तो कैरियर पर पड़ेगा,’’ धीरज बोला.

‘‘लो, दूर्वा भी आ गया,’’ दूर से आते हुए देख सुयश बोला. ‘‘मतलब हम 6 में से 5 के प्रैक्टिकल कंपलीट हैं.’’

‘‘यारो, हंसो. रोनी सूरत क्यों बना रखी,’’ दूर्वा जोर से गाता हुआ गु्रप के बीच आ कर खड़ा हो गया.

‘‘क्या मस्तीमजाक करते रहते हो हर टाइम,’’ सुमति चिढ़ कर बोली, ’’यहां मेरी जान पर बनी हुई और तुम्हें मजाक सूझ रहा है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ दूर्वा लापरवाही वाले अंदाज में बोला.

पूरा माजरा सुनने के बाद दूर्वा बोला, ‘‘अगर हम सभी आज प्रैक्टिकल जमा न करें तो.’’

‘‘तो क्या? अभी सिर्फ सुमति का नुकसान हो रहा है. फिर हम सब को जीरो नंबर मिलेंगे,’’ सुरक्षा बोली.

‘‘नहीं, मेरा मतलब है पूरी क्लास,’’ दूर्वा बोला.

‘‘मगर क्लास ऐसा करेगी क्यों?’’ सुमति आश्चर्य से बोली.

‘‘अगर मैं ऐसा करवा दूं तो मुझे क्या दोगी?’’ दूर्वा ने प्रश्न किया.

‘‘जो तुम बोलोगे, मैं दे दूंगी पर आज का यह प्रोग्राम डिले करवा दो,’’ सुमति बोली.

‘‘ठीक है अगले 3 दिनों तक बड़ा पिज्जा पार्सल करवा देना,’’ दूर्वा ने शर्त रखी.

‘‘मुझे मंजूर है. बस, तुम प्रैक्टिकल सबमिशन का प्रोग्राम रुकवा दो,’’ सुमति अनुरोध करती हुई बोली.

‘‘देखो, 2 ही कारण से प्रैक्टिकल नहीं लिया जा सकता, या तो कोईर् बड़ा नेता अचानक मर जाए या फिर क्लास में किसी का ऐक्सिडैंट हो जाए.’’

‘‘आज क्लास में एक ऐक्सिडैंट होगा,’’ दूर्वा बोला.

‘‘कैसे, कुछ उलटासीधा करोगे क्या?’’ सुमति ने पूछा.

‘‘देखो, कुल 40 मिनट का पीरियड है. अटेडैंस लेने में 5 मिनट निकल जाएंगे. 5 मिनट मैडम बताने और समझाने में निकाल देगी. बचे 30 मिनट. जैसे ही मैडम बोलेगी प्रैक्टिकल जमा कीजिए, सब से पहले मैं उठूंगा और टेबल पर कौपी रखने से पहले चक्कर खा कर गिर पड़ूंगा. मेरे गिरते ही तुम पांचों मुझे घेर लेना और जोरजोर से चिल्लाना, बेहोश हो गया, बेहोश हो गया. जल्दी पानी लाओ, और पानी लेने के लिए तुम में से ही कोई जाएगा जो कम से कम 15 मिनट बाद ही आएगा. जब पानी आए तब पानी के हलकेहलके छींटे मारना. यदि समय बचा तो मैं होश में आ कर कमजोरी की ऐक्टिंग कर के पीरियड निकाल दूंगा,’’ दूर्वा ने अपनी योजना समझाई.

‘‘इस में रिस्क है दूर्वा,’’ सुरक्षा ने आशंका जाहिर की.

‘‘कोई बात नहीं, दोस्तों के लिए जान हाजिर है. लेकिन सुमति, अपना वादा याद रखना,’’ दूर्वा ने सुमति की तरफ देख कर कहा. दूर्वा का ऐक्टिंग प्रोग्राम सफल रहा, बल्कि मैडम तो घबरा कर प्रिंसिपल के पास चली गईर् और एंबुलैंस बुलवा ली. आधे घंटे बाद एंबुलैंस आई और दूर्वा को अस्पताल ले गई. डाक्टर ने जांच की तो दूर्वा को स्वस्थ पाया.

डाक्टरों ने कहा कि कभीकभी थकान और नींद पूरी नहीं होने की वजह से ऐसा हो जाता है. चिंता की कोई बात नहीं.

‘‘थैंक्यू दूर्वा, तुम्हारे कारण मुझे प्रैक्टिकल में नंबर मिल जाएंगे,’’ सुमति कृतज्ञताभरे शब्दों में बोली.

‘‘नो इमोशनल ब्लैकमेलिंग. अपना वादा पूरा करो. पिज्जा वह भी लार्ज साइज,’’ दूर्वा अधिकारपूर्वक बोला.

‘‘अरे, पैक क्यों करवा रहे हो? यहीं बैठ कर खा लेते हैं न,’’ सुयश बोला.

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं खा सकता,’’ दूर्वा सपाट शब्दों में बोला.

‘‘क्यों? क्यों नहीं खा सकते?’’ सुयश ने फिर पूछा.

‘‘क्योंकि मेरी नाक में दांत हैं और मैं नाक से खाता हूं,’’ दूर्वा मजाक करता हुआ बोला.

‘‘चायसमोसे तो तुम हमारे साथ खा लेते हो,’’ सुरक्षा बोली.

‘‘यह लो तुम्हारा पिज्जा,’’ सुमति पैकेट बढ़ाती हुई बोली.

‘‘कल और परसों का भी तैयार रखना,’’ पिज्जा बौक्स लेते हुए दूर्वा ने कहा.

परीक्षा के रिजल्ट में सुमति ने अपनी पिछली स्थिति से बेहतर प्रदर्शन किया था और इस का पूरा श्रेय वह दूर्वा को दे रही थी.

‘‘अरे, मेरे देश की रोती प्रजा. आज क्या माजरा है, तुम लोगों के चेहरे खींचे हुए रबर की तरह क्यों लटके हुए हैं?’’ धीरज के टकले सिर पर धीमे से चपत लगाता हुआ दूर्वा बोला.

‘‘फिर मजाक दूर्वा. कभी तो सीरियस रहा करो. अभी राजन के पापा का फोन आया था. उस के चाचा का सीरियय ऐक्सिडैंट हो गया है और उन्हें तुरंत ब्लड देना है. डाक्टर्स ब्लडबैंक की जगह किसी स्वस्थ व्यक्ति के ताजे ब्लड का इंतजाम करने को बोल रहे हैं. उस के पापा कोशिश कर रहे हैं, पर टाइम तो लगेगा ही,’’ सुरक्षा ने बताया.

‘‘कौन सा ब्लड गु्रप चाहिए?’’ दूर्वा ने पूछा.

‘‘ओ नैगेटिव,’’ राजन बोला.

‘‘लो, इसे कहते हैं बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा. हम हैं न इस रेयर गु्रप के मालिक,’’ दूर्वा बोला.

‘‘तू सच बोल रहा है?’’ सुरक्षा ने पूछा.

‘‘हां,’’ दूर्वा हंसता हुआ बोला.

दूर्वा का ब्लड राजन के चाचा से मेल खा गया और राजन के चाचा की जान बच गई.

‘‘दूर्वा, तुम सचमुच कमाल के लड़के हो, हंसीहंसी में ही समस्या का समाधान कर देते हो,’’ राजन कृतज्ञ भाव से बोला.

‘‘तुम हम सब में खुशी का संचार करते हो. हम सब के लिए आशाजनक खुशी का माहौल बनाए रखते हो. जैसे बौडी की ग्रोथ के लिए हार्मोंस जरूरी होते हैं, उसी तरह तुम इस गु्रप के लिए जरूरी हो और तुम्हारा नाम है हैप्पीनैस हार्मोन,’’ सुमति बोली.

‘‘अरे, मक्खन लगाना छोड़ो और शर्त के मुताबिक 3 दिनों के लिए पिज्जा पार्सल करवा दो, बड़ा वाला,’’ दूर्वा अपने चिरपरिचित अंदाज में बेतक्कलुफी से बोला.

‘‘यार, तू भी कमाल करता है. अगर सब के साथ बैठ कर खाएगा तो मजा दोगुना हो जाएगा,’’ राजन बोला.

‘‘मैं पहले हाथमुंह धोता हूं. फिर पिज्जा खाता हूं, ‘‘दूर्वा अपने पुराने अंदाज में बोला. यारदोस्तों के हंसीमंजाक में यों ही दिन बीत रहे थे. पर कुछ दिनों से दूर्वा कालेज नहीं आ रहा था.

‘‘यार, अब फाइनल एग्जाम्स को सिर्फ एक महीना बचा है और ऐसे क्रूशियल पीरियड में हैप्पीनैस हार्मोन नहीं आ रहा है. क्या बात है? कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं?’’ सुरक्षा बोली.

‘‘हां, कल मैं ने फोन किया था, लेकिन कुछ ठीक से बात नहीं हो पा रही थी,’’ राजन ने बताया.

‘‘हमें उस के घर चलना चाहिए. शायद किसी मदद की जरूरत हो उसे,’’ सुमति बोली.

‘‘घर कहां है उस का? देखा है?’’ सुरक्षा ने पूछा.

‘‘देखा तो नहीं, परंतु निचली बस्ती में कहीं रहता है. वहीं जा कर पूछना पड़ेगा,’’ सुयश बोला.

‘‘ठीक है. चलो, हम सब चलते हैं,’’ धीरज बोला.

‘‘क्यों बेटा, यहां कोई दूर्वा कुमार रहता है क्या?’’ निचली बस्ती में प्रवेश करते ही सामने खेल रहे एक 12-13 वर्षीय बालक से सुयश ने पूछा.

‘‘कौन दूर्वा कुमार? वही भैया जो हमेशा जींस और नीली चप्पल पहने रहते हैं?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘हां, हां, वही,’’ सुयश बोला.

‘‘सामने संकरी गली में पहला कमरा है उन का,’’ लड़के ने पता बताया.

गली में घुसते ही सामने एक साफसुथरा कमरा दिखाई दिया, जिस में एक पलंग रखा हुआ था और उस पर एक महिला लेटी हुईर् थी. दूर्वा महिला को पंखा झल रहा था.

‘‘दूर्वा,’’ जैसे ही सुयश ने आवाज दी, दूर्वा हड़बड़ा कर उठा.

‘‘अरे, तुम लोग? तुम लोग यहां कैसे? सब ठीक तो है न? आओ, आओ,’’ दूर्वा सभी को आश्चर्य से देखते हुए बोला.

‘‘तुम एक हफ्ते से कालेज नहीं आ रहे हो, तो देखने आए हैं, क्या कारण है?’’ सुमति बोली.

‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, इसी कारण नहीं आ पाया,’’ दूर्वा कुछ उदास हो कर बोला.

‘‘डाक्टर को दिखाया, क्या कहा?’’ सुमति ने पूछा.

‘‘नहीं दिखाया और दिखा भी नहीं पाऊंगा. कालेज की फीस भरने व घर का किराया देने के बाद पैसे बचे ही नहीं. मैडिकल स्टोर वाले से पूछ कर दवा दे दी है. उस दवा से या खुद की इच्छाशक्ति से धीरेधीरे ठीक हो रही हैं,’’ दूर्वा की आंखों में आंसू और आवाज में अजीब सा भारीपन था.

‘‘अरे, हमें तो कहा होता, हम कोईर् पराए हैं क्या?’’ धीरज ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

अब तक रोक कर रखी गई रुलाई दूर्वा के गले से फूट पड़ी. वह बच्चों की तरह रोने लगा. कुछ देर जीभर कर रोने के बाद बोला, ‘‘पिताजी का बचपन में ही देहांत हो गया था. तभी से दिनरात लोगों के कपड़े सीसी कर मां ने मुझे पढ़ाया है. अब स्थिति यह है कि मां 5-7 मिनट से अधिक बैठ नहीं पातीं. महल्ले में सभी को पता है. सभी मां की बहुत इज्जत करते हैं. इसी कारण महल्ले के बड़े किराने वाले ने मुझे दोपहर 2 से 6 बजे तक की नौकरी पर रख लिया है.

मैं उन का दिनभर का अकाउंट्स व्यवस्थित कर देता हूं. इस से उन के सीए को भी आसानी हो जाती है. 5 हजार रुपए महीना देते हैं. फीस के लिए भी समय पर पैसे दे देते हैं. अकसर वे मुझे बिस्कुट के पैकेट या इसी तरह की कोई खाने की चीज यह कहते हुए दे देते हैं कि जल्दी ही एक्सपायर्ड होने वाली है, खापी कर खत्म करो. जबकि, मैं जानता हूं कि यदि वे चाहें तो सीधे कंपनी से भी बदलवा सकते हैं.’’

‘‘कभी हमें भी तो हिंट्स करते, कुछ मदद हम भी कर देते. तुम हमेशा हंसीमजाक करते रहते हो. कभी परिवार के बारे में कुछ बताया नहीं,’’ सुमति बोली.

‘‘समान ध्रुव वाले चुंबक प्रतिकर्षण का काम करते हैं. मैं तुम्हें अपनी परेशानियों के बारे में बताने से डरता था. मुझे लगता था शायद मैं तुम को खो दूंगा. यही कारण है कि मैं हमेशा हंसता रहता था. हंसते रहो तो समस्या का समाधान भी शीघ्र हो जाता है,’’ दूर्वा बोला.

‘‘जो हुआ उसे छोड़ो, मेरे पापा डाक्टर हैं, अभी उन्हें बुला कर दिखा देते हैं,’’ सुमति बोली.

‘‘पर मेरे पास दवा के लिए पैसे नहीं हैं,’’ दूर्वा कातर स्वर में बोला.

‘‘मेरे पापा मेरे सभी दोस्तों को बायनेम पहचानते हैं. उन्होंने ही तुम्हें हैप्पीनैस हार्मोन का नाम दिया है. उन्हें पूरी स्थिति बता कर बुलवा लेते हैं. सैंपल वाली दवा होगी तो वह भी लेते आएंगे,’’ सुमति बोली.

कुछ ही देर में सुमति के पापा आ गए. अपने पास से दवा भी दे गए. चिंता वाली कोई बात नहीं थी. जातेजाते बोले, ‘‘कमाल का जज्बा है दूर्वा तुम में, कीप इट अप. अपना हैप्पीनैस हार्मोन कभी कम मत होने देना. और हो सके तो तुम पांचों भी इस से सबक लेना. खुशियां देने से बौंडिंग बढ़ती है, समस्याओं के समाधान के नए रास्ते खुलते हैं.’’

दूर्वा की आंखों में जिंदगी की हर कठिनाई को झेलने की नई उम्मीद, जोश, आशा साफ झलक रही थी.

सजा: तरन्नुम ने आखिर असगर को किस बात की दी थी सजा

मेरी फैमिली मुझ पर शादी का दबाव डाल रही है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 27 साल की हूं शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

कभी-कभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें. फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझाएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Women’s Day 2024: काली सोच-शुभा की आंखों पर पड़ा था कैसा परदा?

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुसकरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिडि़या अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया.

हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’

मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े.

साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.

सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गई थी.

हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.

जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.

हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.

हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’

‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.

‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.

‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.

‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.

‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता.’

‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.

‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.

‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.

‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.

‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.

‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’

‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’

‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’

‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.

‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी.

‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.

अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे.

पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.

‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.

‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.

‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.

हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.

अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की.

ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.

‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.

‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’

‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.

‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा.

‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48  घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.

‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?

‘मैं भी बुद्धू हूं.

‘मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.

रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’

‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.

आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.

इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं.

मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.

Women’s Day 2024: रीति रिवाज़ों को बढ़ावा देते हुए रुक गया है महिलाओं का विकास

आधुनिक समाजों की तुलना में हमारी महिलाएं पिछड़ रही है। वैसे तो विश्व में ज्यादातर समाजों में आदमियों की ही चलती है. हर जगह महिलाओं की स्थिति दोयम है. पुरुष ही तय करते हैं कि महिलाओं को क्या सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, व न्याय के हक दें.

21वीं सदी में भी अधिकतर पुरुष महिलाओं को धर्मों की बनाई दृष्टि से देखते हैं.

नेतृत्व में महिलाओं की कमी है.
गरीबी औरतों में ज्यादा है
आर्थिक अवसरों की कमी है
कार्यस्थल पर भेदभाव और असमानताएं हैं
सामाजिक मानदंड औरतों को दबाते हैं.
धार्मिक प्रथाएं औरतों का शोधन करती हैं
महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा हर जगह हो रही है.

रीति रिवाज़ों को बढ़ावा देते हुए रुक गया है खुद का ही विकास

स्त्री के आत्मनिर्भर होने का यह मतलब यह रह गया है कि वे खुद पूजा-पाठ कर लें. या फिर सिंदूर न लगाएं. सभी रीति रिवाज़ महिलाओं के लिए ही हैं. सिर्फ महिलाएं ही पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखतीं हैं. पहले सती प्रथा हुआ करती थी जिसमें पति की मृत्यु हो जाने पर बीवी को पापिन कह कर आग में धकेल दिया जाता था। लेकिन अब इस कुरीति पर रोक है। कहने को दहेज प्रथा के लिए सरकारी द्वारा रोक लग चुकी है, लेकिन अंदर ही अंदर बहुत से राज्यों में यह जोर शोर पर है.

प्राकृतिक रूप से होने वाली माहवारी (पिरियड्स) होने पर आज भी उनके प्रति बुरा बर्ताव किया जाता है या वे खुद को अपवित्र मान कर रसोईघर में घुसने, आंगन में बैठने और यहां तक कि नए कपड़े नहीं पहनती.

रिवाजों के नाम पर भारत में पत्नियों से जबरदस्ती व्रत रखवाया जाता है. हिजाब, घूंघट, सिर पर पल्लू प्रथा का चलन ज़ोर-शोर से चल रहा है. एक तरफ तो उनसे घूंघट करवा लिया जाता है और वहीं दूसरी ओर यह अपेक्षा भी की जाती है की वे उसी घूंघट में घर के सभी काम करें। इन प्रताड़नाओं के जिम्मेदार पुरूष वर्ग ही हैं. वे स्वयं इतने कष्टों से जीवन यापन करती है, और उसके बावजूद भी उन रिवाजों को खत्म करने की बजाए अपनी बेटियों और बहुओं से अपेक्षा करती है कि वे भी उन्हीं की तरह उस तरह से जीवन यापन करें.

जब तक हम महिलाएं पुरुष को श्रेष्ठ मान कर उनसे अपेक्षा लगाए रहेंगे तब तक इस पितृसत्तात्मक समाज से चंगुल से निकल पाना असम्भव है. ऐसी स्थितियों में महिलाओं को पुरुषों से अपेक्षा न रखते हुए, खुद के हक के लिए कुछ कदम उठाने पढ़ेंगे. कभी-कभी आप जो चाहते हैं उस पर दृढ़ रहने से भी बहुत मदद मिलती है.

मन के दर्पण में– भाग 2

अस्पताल पहुंच कर ललितजी से बोलीं, ‘‘यह क्या हरकत की आप ने…’’ एकदम क्रुद्ध हो उठीं मृदुला, ‘‘फौजी महोदय रोज आते हैं, उन से कहलवा नहीं सकते थे आप? फोन नहीं कर सकते थे? इतना पराया समझ लिया आप ने मुझे…’’ बरसती चली गईं मृदुलाजी.

हंस दिए ललितजी, ‘‘तुम्हें तकलीफ नहीं देना चाहता था,’’ आवाज में लापरवाही थी, ‘‘असल बात यह है कि तुम्हें पता चलता तो तुम मुझ से ज्यादा परेशान हो जातीं. तुम्हारी परेशानी से मेरा मन ज्यादा दुखी होता…अपना दुख कम करने के लिए तुम्हें नहीं सूचित किया.’’

‘‘बेटीदामाद नहीं आते यहां? उन में से किसी को यहां रहना चाहिए,’’ मृदुला बोलीं.

‘‘सुबहशाम आते हैं. जरूरत की हर चीज दे जाते हैं. नर्स और डाक्टरों से सब पूछ लेते हैं. नौकरी करते हैं दोनों. कहां तक छुट्टियां लें? फिर वे यहां रह कर भी क्या कर लेंगे? इलाज तो डाक्टरों को करना है,’’ ललितजी ने बताया.

‘‘अब मैं रहूंगी यहां…’’ मृदुलाजी बोलीं तो हंस दिए ललित, ‘‘क्या करोगी तुम यहां रह कर? नर्स साफसफाई करती है. डायटीशियन निश्चित खाना देती है. नर्सें ही डाक्टरों के बताए अनुसार वक्त पर दवाएं और इंजेक्शन देती हैं. सारा खर्च बेटीदामाद अस्पताल में जमा करते हैं…तुम क्या करोगी इस में? व्यर्थ लोगों की नजरों में आओगी और बेमतलब की बातें चल पड़ेंगी, जिन से मुझे ज्यादा तकलीफ होगी…तुम जानती हो कि मैं सबकुछ बरदाश्त कर सकता हूं पर तुम्हारी बदनामी कतई नहीं सह सकता… अपनेआप से ज्यादा मैं तुम्हें मानता हूं, यह तुम अच्छी तरह जानती हो…’’

‘‘इतना ज्यादा मानते हो कि मुझे सूचना तक देना जरूरी नहीं समझा,’’ कुपित बनी रहीं मृदुला, ‘‘आप कुछ भी कहें, मुझे आप की यह हरकत बहुत अखरी है. आप ने मुझे इस हरकत से एकदम पराया बना दिया,’’ आंसू आ गए मृदुला की पलकों पर.

‘‘सौरी, मृदुला…मैं नहीं समझता था कि तुम्हें मेरे इस व्यवहार से इतनी चोट पहुंचेगी…आइंदा ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जो तुम्हें दुख पहुंचाए,’’ ललितजी अपलक मृदुला की तरफ ताकते हुए कहते रहे, ‘‘मुझे शायद विश्वास नहीं था कि तुम मुझ से इतनी गहराई तक जुड़ी हुई हो.’’

‘‘अगर कोई ऐसा तरीका होता कि मैं अपना कलेजा चीर कर दिखा सकती तो दिखाती कि भीतर दिल की जगह ललितजी ही धड़कते हैं, यह जानते हैं आप,’’ कहते हुए मृदुला लाल पड़ गईं. उन्हें लगा कि झोंक में क्या कह गईं.

अपना हाथ बढ़ा कर ललितजी ने मृदुला का हाथ थाम लिया, ‘‘बहुत अच्छा लगा सचमुच तुम्हारी यह अपनत्व भरी बातें सुन कर…अब तुम देखोगी कि मैं बहुत जल्दी अच्छा हो जाऊंगा. मैं समझता था कि अब मेरी किसी को जरूरत नहीं है…बेटीदामाद की अपनी दुनिया है और कोई है नहीं अपना जिसे परवा हो…आज पता चला कि कोई और भी है सगे- संबंधियों के अलावा, जिस के लिए मैं अब जरूर जिंदा रहना चाहूंगा…जल्दी से जल्दी अपनेआप को अच्छा करना और देखना चाहूंगा…जीने का मन हो गया सचमुच अब…’’

‘‘मरें आप के दुश्मन,’’ मृदुला बोलीं, ‘‘डाक्टर लोग कब छुट्टी देंगे?’’

‘‘बेटी को पता होगा. उसी से डाक्टर बात करते हैं.’’

‘‘अस्पताल से आप को सीधे मेरे घर चलना पड़ेगा,’’ कह गईं मृदुला.

‘‘पागल हो रही हो क्या? लोग क्या कहेंगे? पहले मैं बेटीदामाद के साथ जाऊंगा फिर बाद में सोचूंगा, मुझे क्या करना चाहिए…’’

‘‘पति का जी.पी.एफ. का पैसा अब तक निदेशालय से नहीं आया है,’’ ललितजी के स्वस्थ होने के बाद मृदुला ने एक दिन उन्हें बगीचे में बताया.

‘‘लखनऊ चलना पड़ेगा,’’ ललितजी बोले, ‘‘तुम उन की वास्तविक वारिस हो इस के प्रमाणपत्र दोबारा ले कर चलना होगा. तुम्हारी बेटी और बेटे ने जो अनापत्तिपत्र दिए हैं उन की मूलप्रतियां भी साथ में ले लेना.’’

‘‘हम कब चल सकेंगे?’’ मृदुलाजी ने पूछा.

ललितजी कुछ देर सोचते रहे फिर बोले, ‘‘दफ्तर से मुझे भी अपनी पैंशन संबंधी फाइल बनवा कर निदेशालय ले जानी है. तुम तो जानती ही हो कि आजकल हर दफ्तर में बाबू रूपी देवता की भेंटपूजा जरूरी हो गई है. जब तक उन्हें चढ़ावा न चढ़ाया जाए, कोई काम नहीं होता. सरकार कितने ही दावे करे पर इस देश की व्यवस्था का सब से बुरा पक्ष भ्रष्टाचार है.’’

‘‘भ्रष्टाचार नहीं, शिष्टाचार कहते थे मेरे पति,’’ हंस दीं मृदुला, ‘‘आप की फाइल कब तक तैयार हो जाएगी?’’

‘‘बहुत जल्दी है क्या तुम्हें? अगर पैसे की जरूरत हो तो मुझे बताओ…मैं इंतजाम कर दूंगा.’’

‘‘नहीं, वह बात नहीं है,’’ सकुचा गईं मृदुला, ‘‘हमारा पैसा सरकार के पास क्यों बना रहे? हमारे काम आए…अब हमारी जिंदगी ही कितनी बची है? पैसा मिल जाए तो उस का कोई सही उपयोग करूं.’’

‘‘जहां इतने महीने सब्र किया, एकडेढ़ सप्ताह और सही…फाइल ले कर तुम्हारे साथ चलूंगा तो लोगों को बातें बनाने का मौका नहीं मिलेगा…’’

‘‘लोगों को क्यों बीच में लाते हैं आप? यह क्यों नहीं कहते कि बेटीदामाद का डर है आप को. उन के कारण ही आप खुलेआम मुझ से मिलने से कतराते हैं.’’

यह सुन कर हंसते रहे ललितजी, फिर झेंप कर बोले, ‘‘जब सबकुछ जानतीसमझती हो तो पूछती क्यों हो?’’

मुसकराती रहीं मृदुलाजी, ‘‘चलिए, आप के संकोच और भय को माने लेती हूं. एकडेढ़ सप्ताह बाद क्या फिर आप से पूछना पड़ेगा?’’

‘‘नहीं. फाइल तैयार होते ही तुम्हें बता दूंगा, बल्कि शताब्दी में टिकटें भी रिजर्व करवा लूंगा…तुम सारे कागजों के साथ अपनी अटैची तैयार रखना,’’ ललितजी हंसते हुए बोले.

वह लखनऊ का एक पांचसितारा होटल था जिस में ललितजी मृदुला को ले कर पहुंचे. होटल की सजधज देख कर मृदुला सकुचा सी गईं, ‘‘इसी होटल में क्यों?’’ सहसा सवाल पूछा मृदुला ने.

‘‘दो कारणों से. एक तो यहां से निदेशालय पास है, दूसरे, जब मैं विश्व- विद्यालय में पढ़ता था और शोध कर रहा था तब इस होटल में अपनी किसी महिला दोस्त के साथ यहां आ कर ठहरा था और आज वही सब किसी दूसरे के साथ मैं दोबारा जीना चाहता हूं.’’

‘‘ऐ जनाब, बदमाशी नहीं चलेगी. गलत हरकत करेंगे तो पुलिस को फोन कर दूंगी. आप जानते हैं कि लखनऊ में एक पुलिस अफसर है मेरा रिश्तेदार. एक फोन पर आप को हवालात की हवा खानी पड़ेगी.’’

‘‘तुम्हारे लिए तो हवालात क्या, फांसी पर चढ़ने को तैयार हूं. लगवा दो फांसी. तुम्हारे सब खून माफ,’’ हंसते रहे ललितजी.

होटल के एक ही कमरे में अपना सामान रख वे जल्दी से फ्रेश हो कागजात और फाइल ले टैक्सी से निदेशालय चले गए. वहां से लौटने में शाम हो गई.

बिकिनी वैक्सिंग के बाद रखें इन बातों का ध्यान

पहली बार वैक्सिंग कराने के बाद स्वैलिंग और स्किन का लाल होना आम बात है. इस से घबराएं नहीं, लेकिन कईं बार ये प्रौब्लम ज्यादा खतरनाक हो जाती हैं. इसीलिए बिकिनी वैक्स करवाने के बाद इन बातों का ख्याल जरूर रखें. ताकि आपकी खूबसूरती बनी रहे.

1. औयल का करें इस्तेमाल

वैक्सिंग के बाद स्किन लाल हो जाती या फिर सूज जाती है. ऐसे में तेल से मसाज करने पर काफी राहत मिलती है.

2. बर्फ का करें इस्तेमाल

वैक्सिंग के बाद बर्फ से मसाज करने पर लालपन कम हो जाता है.

3. ढीले कपड़े पहनें: वैक्सिंग के तुरंत बाद टाइट कपड़े पहनने से रगड़ से स्किन को नुकसान हो सकता है, इसलिए वैक्सिंग के तुरंत बाद टाइट कपड़े पहनने के बजाय ढीले और हवादार कपड़े पहनें ताकि स्किन भी सांस ले सके.

4. स्विमिंग से बचें: बिकिनी वैक्स कराने के 24 घंटों तक स्विमिंग से बचना चाहिए. वैक्सिंग के बाद स्किन सैंसिटिव हो जाती है और उसी दिन स्विमिंग करने जाने पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ने की वजह से आप को जलन व रैशेज की समस्या हो सकती है.

5. साबुन का न करें इस्तेमाल: बिकिनी वैक्स के तुरंत बाद उस जगह साबुन का इस्तेमाल न करें.

6. रेजर के इस्तेमाल से बचें: अगर आप बिकिनी वैक्सिंग करवाती हैं, तो भूल कर भी रेजर का इस्तेमाल न करें. इस से आप को वैक्सिंग कराते समय काफी दर्द का सामना करना पड़ सकता है.

बिकिनी वैक्स के फायदों के बारे में भी जान लें

वैसे तो बिकिनी वैक्स सुंदर दिखने और प्यूबिक हेयर से होने वाली इरिटेशन से बचने के लिए कराई जाती है, लेकिन सेहत के हिसाब से देखें, तो यह सफाई के लिहाज से भी बहुत अच्छी है. बिकिनी वैक्स के बाद प्राइवेट पार्ट और उस के आसपास की स्किन साफ और मुलायम हो जाती है. इस के अलावा इस के ये भी हैं फायदे:

– बिकिनी वैक्स शेविंग की तुलना में ज्यादा बेहतर है. इस से स्किन ऐक्सफौलिएट हो जाती है और दोबारा आने वाले बाल कोमल हो जाते हैं, जिस से अगली बार वैक्स करने में आसानी होती है.

– पीरियड्स में हेयर की वजह से चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है और फिर इन्फैक्शन होने का भी डर बना रहता है. ऐसे में बिकिनी वैक्सिंग से प्राइवेट पार्ट पूरी तरह क्लीन हो जाता है.

– बिकिनी वैक्स कराने के बाद वैजाइना और उस के आसपास के बालों को बारबार वैक्स करने की जरूरत नहीं होती. बिकिनी वैक्स का फायदा यह है कि इस से प्राइवेट पार्ट के बाल बहुत सौफ्ट हो जाते हैं, जिस से वे आप को असुविधा महसूस नहीं कराते.

– बिकिनी वैक्स में बाल आसानी से जड़ से निकल जाते हैं और उन्हें दोबारा आने में 2 महीने का समय लग जाता है, जो बारबार शेविंग के झंझट से बचाए रखता है.

– इस से आप को प्यूबिक एरिया पर कठोर बालों से छुटकारा मिलता है.

– बिकिनी वैक्स प्यूबिक एरिया पर कालेपन को कम करने में भी मदद करती है.

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