Women’s Day 2024: क्या आप भी सोचती हैं कि ऐसा हो आपका हमसफर

आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि पुरुष महिलाओं की सुंदरता को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं लेकिन जब जीवनसाथी की बात आती है तो महिलाएं पुरुषों के सोशल स्टेटस और वित्तीय क्षमता को अधिक अहमियत देती हैं. हालांकि ये बात एक महिला से दूसरी महिला में भिन्न हो सकती है. तो आइए जानते हैं कि महिलाएं अपने होने वाले पति से क्या चाहती हैं.

1. भावनात्मकता और परिपक्वता

किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक बनाएं रखने के लिए जरुरी है कि दोनों पार्टनर भावनात्मक तौर पर स्थिर हो. महिलाएं जब अपने जीवनसाथी की विशेषताओं की बात करती है तो ये क्वालिटी उनकी लिस्ट में काफी ऊपर आती है. अगर कोई व्यक्ति परिपक्व है तो ऐसा माना जा सकता है कि वो रिश्तो को निभाना जानता है और उनकी अहमियत समझता है.

2. शिक्षा और बुद्धिमत्ता

महिलाएं इस विशेषता को काफी महत्वपूर्ण मानती है. उनका मानना है कि जो पुरुष उनका जीवनसाथी बनने जा रहा है उसमें ये विशेषता तो अवश्य ही होनी चाहिए. वो चाहती है कि उनका होने वाला पति शिक्षित और बुद्धिमान हो.

3. मिलनशीलता

मिलनशीलता को हम समाजशीलता भी कह सकते हैं. कोई भी व्यक्ति कितना सामाजिक है और वह दूसरे इंसानों के साथ कितना घुल-मिल पाता है यह बात भी महिलाओं को आकर्षित करती है. अगर पुरुष जानते हैं कि उन्हें परिवार के बीच और लोगों के सामने किस तरह से रहना है और समाज में उनका रहन-सहन अच्छा है तो उन पुरुषों को महिलाएं पसंद करती हैं.

4. फाइनेंशियल स्टेटस

पहले के समय की तुलना में आजकल अधिकतर महिलाएं चाहती है कि जिस व्यक्ति से वो शादी करने वाली है उसका फाइनेंशियल स्टेटस अच्छा हो. महिलाओं का मानना है कि जिस व्यक्ति आर्थिक पक्ष मजबूत है वह उनका जीवनसाथी बनने के लिए सही व्यक्ति हो सकता है.

5. अच्छा स्वास्थ्य

स्वास्थ्य को लेकर महिलाओं काफी सचेत दिखती है. वो चाहती है कि जिस व्यक्ति के साथ वो अपनी जिंदगी साझा करने वाली है वह मानसिक और शारीरिक तौर पर स्वस्थ और सेहतमंद इंसान हो. किसी भी रिश्ते और खासकर कि शादी के सफल होने में आपकी सेहत काफी बड़ा रोल निभाती है. अगर आप सेहतमंद होंगे तो अधिक खुशहाल और सफल होंगे जिससे आपका रिश्ता भी स्वस्थ रहेगा.

6. घर और परिवार को संभालने वाला

आज के समय में लोगों का घर और परिवारों से अलगाव हो रहा है, महिलाएं चाहती है कि उनके जीवनसाथी में घर और परिवार की इच्छा होनी चाहिए. जो कामकाजी महिलाएं है वो चाहती है कि उनका पति घर और परिवार को संभालने मे उनकी मदद करें. कुछ महिलाओं का मानना है कि जो पुरुष घर के कामों में उनकी मदद करते हैं वो उन्हें अधिक प्रभावित करते हैं. इसलिये जो पुरुष घर और परिवार के इच्छुक होंगे वो महिलाओं की लिस्ट में ऊपर होंगे.

मन के दर्पण में– भाग 3

‘‘अब?’’ मृदुला ने ललितजी की आंखों में मुसकराते हुए ताका.

‘‘अपनी मुमताज बेगम के साथ अब हजरतगंज में हजरतगंजिंग करेंगे,’’ ललितजी आदत के अनुसार हंसे, ‘‘बेगम तैयार हैं गंजिंग करने के लिए या नहीं? हम लोग जब यहां पढ़ते थे तो हजरतगंज में घूमने को गंजिंग कहा करते थे.’’

‘‘टेलीविजन पर एक विज्ञापन आता है जिस में मुमताज बेगम को अपने बूढ़े शाहजहां पर विश्वास नहीं है कि वे उन के लिए ताजमहल बनवाएंगे, क्योंकि उन्होंने ताजमहल के लिए आगरा में कहीं जमीन नहीं खरीदी है,’’ मृदुलाजी ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम्हें बूढ़े शाहजहां दिखाई दिए लेकिन झुर्रियों से छुआरे की तरह सिमटीसिकुड़ी मुमताज बेगम दिखाई नहीं दी?’’ ललितजी हंस कर बोले.

‘‘औरत अपनेआप को कभी बूढ़ी नहीं मान पाती मेरे आका,’’ हजरतगंज की चौड़ी सड़क पर बिना किसी की परवा किए मृदुला ने ललितजी का हाथ थाम लिया.

मृदुला को पास खींचते हुए ललितजी मुसकराए और बोले, ‘‘उस विज्ञापन में मुमताज बूढ़ी जरूर है पर यहां इस हजरतगंज में इस हजरत के संग जो मुमताज बेगम है वह एकदम ताजातरीन और कमसिन युवती है.’’

‘‘पानी पर मत चढ़ाओ, बह जाऊंगी,’’ लज्जित सी मृदुलाजी हंस कर बोलीं, ‘‘उम्र का असर हर किसी पर होता है…आदमी पर भी, औरत पर भी.’’

‘‘पर महबूबा हमेशा जवान रहती है बेगम,’’ ललितजी बोले.

‘‘किस के साथ ठहरे थे उस होटल में?’’ अचानक मृदुला ने पूछा तो ललितजी उन के चेहरे की तरफ गौर से देखने लगे…फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘सफी…उमेरा बानू सफी…कश्मीर की रहने वाली थी. मेरे साथ ही शोधकार्य कर रही थी विश्वविद्यालय में.’’

‘‘संग में शोध करतेकरते उस के संग होटल में शोध करने आ गए?’’ चुहल भरे अंदाज में पूछा मृदुला ने.

‘‘हम होटल में ही नहीं आए थे, बल्कि एक युवक युवती के साथ जो करता है वह सब भी हुआ था,’’ दंभ भरे स्वर में कहा उन्होंने.

‘‘बिलकुल गलत…एक मुसलमान लड़की, एक हिंदू के साथ इस तरह न तो होटल में जा सकती है, न इस सब के लिए राजी हो सकती है,’’ मृदुला हंसते हुए बोलीं, ‘‘मुझे तो लगता है कि तुम सचमुच डींग हांक रहे हो.’’

‘‘तो एक हिंदू पुरुष, एक हिंदू स्त्री के साथ होटल में टिक कर तो यह सब राजीबाजी से कर सकता है? बोलो?’’ शरारत थी ललितजी के चेहरे पर.

‘‘इस वक्त मैं मुसलमान मुमताज बेगम हूं और आप वे शाहजहां हैं जिन्हें ताजमहल के लिए कहीं आगरा में जमीन नहीं मिली.’’

हजरतगंज घूम कर वापस होटल के कमरे में आने पर सकुचाते हुए ललितजी ने मृदुला के सीने के उभारों को भर नजर ताकना शुरू किया तो उम्र के बावजूद मिर्च की तरह लाल पड़ गईं मृदुलाजी, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हैं आप? जानते हैं, ऐसी प्यारी नजरों का कितना मारक असर होता है किसी औरत पर.’’

‘‘मेरे मन में अरसे से एक गहरी प्यास है मृदुला,’’ जिन तृषित शब्दों में ललितजी ने कहा उस से मृदुला का पूरा बदन सिहर उठा.

‘‘मैं बाथरूम में स्नान के लिए जा रही हूं. आप की शेष बातें शेष रहेंगी,’’ प्यार की एक चिकोटी सी मृदुला ने ललितजी के गाल पर ली और पलंग से उठ गईं.

हाथ पकड़ लिया ललितजी ने, ‘‘सुनो तो सही. नहाने जा रही हो तो यह पैकेट अपने साथ बाथरूम में लिए जाओ… मैं चाहता हूं कि यही पहन कर तुम बाथरूम से बाहर आओ जो इस पैकेट में है.’’

लजा सी गईं मृदुला, ‘‘मुझे क्या आप ने वही पुरानी उमेरा बानू सफी समझ लिया है?’’

‘‘नहीं, शाहजहां की प्यारी मुमताज. वह ताजमहल जितना कीमती तोहफा तो नहीं है, पर मैं चाहता हूं कि मेरी इच्छा की पूर्ति तुम जरूर करो.’’

पैकेट लिए, शरारती नजरों से ललितजी को देखती मृदुला बाथरूम में चली गईं. स्नान के बाद जब पैकेट खोल कर देखा तो सन्न रह गईं.

बाथरूम से बाहर आते मृदुला को अपलक ताकते रह गए ललितजी और झेंपती रहीं मृदुलाजी. उन की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थीं. अरसे बाद तमाम चीजें फिर से जीवन में हो रही थीं. अंधेरे में एक नई छलांग…पता नहीं क्या परिणाम होगा इस छलांग का.

‘‘गुरुदत्त की पुरानी फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ देखी होगी मृदुला तुम ने. उस का प्रसिद्ध गीत आज मुझे बरबस याद आ रहा है तुम्हें देख कर. चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो.’’

‘‘इस उम्र में हमें क्या यह सब शोभा देता है?’’ झेंप रही थीं मृदुलाजी.

‘‘इश्क कभी बूढ़ा नहीं होता मृदुला…उम्र का असर शरीरों पर हो सकता है, मन पर नहीं होता. अपने मन के दर्पण में झांक कर देखो, वहां भी यही सच होगा.’’

फिर कुछ ठहर कर ललितजी बोले, ‘‘मेरी पत्नी की मृत्यु कैंसर से हुई थी. उस के दोनों स्तन डाक्टरों ने काट कर निकाल दिए थे, जबकि मेरे लिए उत्तेजना का केंद्र स्त्री के यही जीवंत अंग हैं. सपाट सीना लिए वह कुछ ही समय जी सकी. बीमारी ने बाद में उस का पूरा शरीर ही जकड़ लिया और वह नहीं रही. बरसों पुरानी तमन्ना तुम ने पूरी की है आज मेरी लाई हुई यह ब्रा और यह झीनी रेशमी दूधिया मैक्सी पहन कर. सचमुच पूरी परी लग रही हो तुम इस वक्त मुझे.’’

पता नहीं मृदुला को क्या हुआ कि ललितजी को बांहों में समेट लिया और देर तक पागलों की तरह उन पर चुंबनों की बौछार करती रहीं.

आवेग संयत होने पर उन की आंखों में ताकती हुई बोलीं, ‘‘अकेली नहीं रह पा रही सच…मेरे साथ रहेंगे?’’ फिर कुछ सोच कर पूछा, ‘‘बेटी मानेगी आप की?’’

‘‘तुम बताओ, तुम्हारे बच्चे मानेंगे?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘लड़का तो वापस इस देश में आएगा नहीं. लड़की और दामाद अपने में मगन हैं. शायद होहल्ला न मचाएं. आप बताइए, आप की बेटी मानेगी?’’

‘‘बेटी शायद मान जाए पर दामाद को लग सकता है कि ससुर का पैसा उस के हाथ नहीं आएगा,’’ वे बोले.

‘‘हो सकता है पैसा कारण न बने, मानसम्मान आड़े आए…यहीं रहते हैं. मेरी बेटीदामाद हैदराबाद में रहते हैं. दूर रहने के कारण उन के मानसम्मान का प्रश्न नहीं उठेगा, पर आप के…’’

‘‘देखा जाएगा…अभी तो हम इस पल को जी भर कर जिएं, मृदुला,’’ ललितजी ने मृदुला को अपनी बांहों में भर लिया और पलंग पर धीरे से लिटा कर उस रूपराशि को वे अपलक ताकते रहे फिर अपनी उंगलियों से उस के तन को सहलाने लगे…मृदुला का बदन अरसे बाद सितार के तारों की तरह झनझनाता रहा…

मन के दर्पण में रहरह कर पति के साथ बिस्तर पर बिताए गए रागात्मक क्षण याद आते फिर एकाएक ललितजी को उस दर्पण में देखने लगती. ‘यह सब क्या है?’ मृदुला सोचतीं, ‘क्यों हो रहा है यह सब? क्या शरीर में स्थित मन की यह चंचल स्थिति हर किसी को ऐसे छलती है?’ वे चाहती थीं कि पति का बिंब दर्पण में स्थायी बना रहे.  पर वह धुंधला जाता और उस कुहासे में ललितजी का बिंब स्पष्ट उभर आता.

जो आज है वह सच है. जो बीत गया है, उसे वापस नहीं लाया जा सकता, न फिर पाया जा सकता है. तब…तब क्या करना चाहिए? क्या इस आज के सुखद क्षणों को जी भर जी लेना चाहिए? एक क्षण को अपराध बोध उत्पन्न होता पर दूसरे क्षण ही मन उसे झटक देता. इस में गलत क्या है? क्या ललितजी अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद औरत के इस सुख को पाने के लिए अब तक तृषित नहीं रहे? क्या उन का यह प्रेम उन की पत्नी के साथ दगा है? देहों का सच क्या सच नहीं होता?

‘‘कहां खो गईं यार?’’ ललितजी ने उन के अधर चूम लिए, ‘‘मैं समझ सकता हूं तुम्हारे मन के इस अंतर्द्वंद्व को… महिलाएं बहुत भावुक होती हैं. इस में गलत क्या है. हम कहां किसी के साथ दगा कर रहे हैं? जो इस संसार में नहीं हैं, उन के लिए जीवन भर क्यों रोतेकलपते रहें? एक वाक्य होता है नाटकों में, ‘शो मस्ट गो औन.’ लोग कहते थे, आफ्टर नेहरू हू? इंदिरा इज इंडिया…अब दोनों नहीं हैं…क्या दोनों के बाद यह देश नहीं चल रहा है? लोग नहीं जी रहे हैं? भावनाएं अपनी जगह हैं, सोचविचार और जीवन का कटु सत्य अपनी जगह है. दोनों में तालमेल बैठाना ही जीवन है.’’

सुन कर निर्द्वंद्व मन से मृदुलाजी ललितजी की बांहों में समा गईं.

सही डोज: भाग 1- आखिर क्यों बनी सविता के दिल में दीवार

दीवारें  बन गई थीं. दिलों के भीतर बनी इन दीवारों के पीछे से घर का हर व्यक्ति एकदूसरे की हरकतों को देखता रहता था. सविता के दिल में दीवार की नींव तब पड़ी जब नवीन ने 1 साल पहले ही ब्याह कर आई अपनी पत्नी की सारी भारी-भारी साडि़यां, डैकोरेशन पीसेज, चांदी के बरतन सब उस को मना कर बहन की शादी में दे दिए थे. नवीन 2 बहनों का भाई था और अपनी जिम्मेदारियां संभालता था पर सविता की भावनाओं की कद्र उसने नहीं की. यह सारा सामान सविता चाहे इस्तेमाल नहीं करती थी पर मां-बाप की निशानी थी.

नवीन उठते तनाव को देख रहा था, पर वह चुप रहता था. वह मूक दर्शक था. पत्नी के व्यंग्य को तो बरदाश्त करता ही था, विवाहित और एक बची अविवाहित बहन की फरमाइशों को भी सुनता था. कभी-कभी मां फोन पर चिल्लाकर कहती, ‘‘अरे, तू कुछ बोलता क्यों नहीं?’’ तंग आ कर वह कहता, ‘‘क्या बोलूं, मम्मी आप लोग ही बोलने को काफी हैं.’’

सुबह 6 बजे से ही सविता की सास प्रमिला देवी को मैसेज नवीन के व्हाट्सऐप पर आने शुरू हो जाते. आज दफ्तर जाते समय 2 किलोग्राम आटा और 1 किलोग्राम चीनी देते जाना. तेरे पापा की दवाइयां खत्म हो गई हैं, शाम को लेते आना.

मगर वे अपनी बेटी रश्मि को कभी फोन नहीं लगाती थीं जो उन्हीं के साथ रहती थी. शायद उसी गुस्से से मैसेज देख लेने पर भी सविता करवट बदल कर फिर सो जाती थी. मम्मी के मैसेजों की टिनटिन आवाज से नींद नवीन की भी खुल जाती थी पर वह भी चुपचाप लेटा रहता था. वह सविता को भी उठने को नहीं कहता था.

उसके पापा नरेंद्रनाथ ने कभी चाय तक नहीं बनाई थी. जब से नवीन और सविता ने अलग रहना शुरू किया है उन्हें काम के लिए न जाने कितनी बार रसोई के चक्कर लगाने पड़ते हैं. प्रमिला 1 घंटा व्यायाम करने के बाद ही 1 प्याला चाय उन के सामने मेज पर रखती थीं. बेचारे चुपचाप उठा कर पीते. यह रोज की दिनचर्या जो थी, कहां तक बुरा मानते. नवीन व सविता ने सालभर यह देखा था या कहिए भुगता था. शादी के 10-15 दिन बाद घर की हालत कुछ ऐसी होती थी.

‘‘सवेरे-सवेरे उठ जाते हो, यह नहीं कि सब की तरह पड़े सोते रहो,’’ यह प्रमिला की आवाज होती थी.

‘‘क्या करूं, पुरानी आदत है, नींद जल्दी खुल जाती है और फिर 7 बजे उठा तो 9 बजे दफ्तर कैसे जा पाऊंगा,’’ कह कर नरेंद्रनाथ खाली प्याला पत्नी की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘1 प्याला और दे दो, आज कुछ ज्यादा ही थकावट लग रही है.’’

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’ प्रमिला आखिर पत्नी ही तो थीं.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं, अब उम्र का तकाजा है, प्रमिला,’’ कह कर उन्होंने प्यार से पत्नी के कंधे को छू लिया.

उधर युवा सविता उठी और उतरी सलवारकमीज को फिर से लपेट कर ऐसे बाहर जाने लगी जैसे कोई शेरनी शिकार के लिए निकल रही हो. ‘‘सविता, सुनो,’’ नवीन ने कुछ कहना चाहा, पर वह बिना जवाब दिए ही तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. शादी के सपने इतने जल्दी धुल जाएंगे, उसे उम्मीद नहीं थी.

रोज की तरह रसोई में जा कर वह काम में जुट गई. नाश्ते से निबटने के बाद खाने की तैयारी शुरू हो गई. नरेंद्रनाथ बाहर का खाना नहीं खाते हैं, इसलिए पहले उन का ही डब्बा तैयार कर के रख दिया गया. नवीन का दफ्तर पास ही है, इसलिए वह घर आ कर खा लेता है. अगर किसी वजह से घर न आ सके तो कैंटीन में ही खा लेता है.

‘‘अब तुम बोलो, क्वीन, तुम्हारे डब्बे में क्या रख दूं?’’ सविता ने अपनी ननद रश्मि से पूछा.

‘‘कुछ भी रख दो, भाभी देर हो गई है. नहीं बना हो तो बिना लिए ही चली जाऊंगी और हां भाभी, मुझे क्वीन तो नहीं कहो.’’

‘‘बिना लिए क्यों जाएगी, क्या तेरी मां मर गई है,’’ प्रमिला दूर से अपनी बेटी की बात सुन कर बोलीं.

‘‘रश्मि, अम्मांजी हजारों साल जिंदा रहें पर तुम्हारा खाने का डब्बा मुझे लगाना है, इसलिए जल्दी बोलो क्या चाहिए,’’ सविता ने फुसफुसा कर रश्मि से कहा. सविता की आवाज की गरमी से प्रमिला झलस कर रह गईं.

‘‘मैं तो इस घर में बस भाड़ ?झोंक रही हूं,’’ सविता बड़बड़ा उठी. प्रमिला ने सुन लेने के बाद भी पूछा, ‘‘क्या मुझसे कुछ कहा सविता?’’

‘‘नहीं मम्मी, सवेरे देर से उठी थी इसलिए हनुमान चालीसा पढ़ रही हूं.’’

‘‘पढ़ो बहू जरूर पढ़ो.’’

अब जब से वे नए घर में शिफ्ट हुए हैं, प्रमिला को पता चल रहा है कि घर संभालना उम्र हो जाने के बाद कितना कठिन हो जाता है. अब सविता ने घर से निकलते हुए बैठक की ओर देखा, चारों तरफ चीजें ढंग से रखी थीं.

सास- ससुर के घर में बाबूजी का आधा पढ़ा अखबार कुरसी पर चिडि़या की तरह अपने पंख फड़फड़ा रहा होता था. पैंसिलें कालीन पर पड़ी होतीं. रश्मि की चप्पलें खाने की मेज के नीचे रखी होती थीं. खाने की मेज पर जूठे बरतन, प्याले पड़े होते थे. प्रतिमा आराम से चौकी पर बैठ कर अपनी टांगों में तेल की मालिश कर रही होतीं और ऊंचे स्वर में भक्ति गीत गा रही होतीं. हर सुबह सविता को यह दृश्य देखने को मिला करता.

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Women’s Day 2024: स्क्रबिंग- कहीं आप भी तो नहीं करती ये गलतियां 

खूबसूरत, स्मूद व ग्लोइंग स्किन पाने के लिए हम सभी स्क्रबिंग का सहारा लेते हैं. क्योंकि एक्सफोलिएशन यानि स्क्रबिंग से हमारी आउटर लेयर यानि एपिडर्मिस से डेड स्किन रिमूव जो होती है. साथ ही ये पोर्स को बंद करके आपके रंग में निखार लाने का काम करता है. लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि अगर आप अपने चेहरे को लंबे समय तक साफ नहीं करते हैं तो स्किन डल होने के साथसाथ उस पर ब्लैकहेड्स, वाइटहेड्स के साथसाथ पिगमेंटेशन की भी शिकायत होने लगती है. ऐसे में जरूरी होता है अपने स्किन केयर रूटीन में स्क्रबिंग को ऐड करने की. लेकिन हम अकसर  स्क्रबिंग करते वक्त कुछ सामान्य सी गलतियां कर बैठते हैं , जिससे हमारी स्किन पर खरोच, कट्स , रेडनेस व जलन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है . इसलिए आपके साथ ऐसी परेशानी न हो, इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. इस संबंध में जानते हैं कोस्मोटोलोजिस्ट पूजा नागदेव से.

1. टाई ओनली नेचुरल स्क्रबर 

पौधों , बीजों  व फलों से उत्पन होने वाले  नेचुरल स्क्रबर चेहरे व शरीर के लिए बेस्ट माने जाते हैं. कानों पर स्क्रब करने के लिए हमेशा सोफ्ट ग्रैन्यूल्स का ही इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है . उदाहरण के लिए वालनट शैल काफी कठोर स्क्रबर  होता है. जिसे अगर स्किन पर तेजी से रब किया जाता है, तो स्किन रेड पड़ने के साथसाथ लाल भी पड़ सकती है. वहीं दूसरी तरफ पपाया सीड पाउडर, अनार के बीज का पाउडर व ऑरेंज पील पाउडर काफी माइल्ड स्क्रबर होते हैं , जो फेस को क्लीन करने के साथसाथ किसी तरह का कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाते हैं. इनका इस्तेमाल हर तरह की स्किन के लिए बेस्ट माना जाता है. हमेशा सल्फेट और पैराबीन फ्री नेचुरल इंग्रीडिएंट्स से बने स्क्रबर का ही इस्तेमाल करें.

2. जेंटली एक्सफोलिएट 

जब भी आप चेहरे पर स्क्रब करें तो आपको अपनी उंगलियों की मूवमेंट का खास ध्यान रखना होगा. आपको अपने फेस पर उंगलियों की मदद से सर्कुलर मोशन में आराम से मसाज करनी होगी. इससे अच्छे से डेड स्किन भी रिमूव होती है और आपकी स्किन को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. लेकिन अगर आप जल्दबाजी में स्किन पर स्क्रबिंग करेंगे तो इससे स्किन पर कट पड़ने के साथसाथ स्किन रेड भी हो सकती है.

3. स्किन टाइप को पहचानना जरूरी 

ये बहुत जरूरी है कि अपने स्किन टाइप को पहचान कर उसी के हिसाब से स्किन पर स्क्रब  करना चाहिए. क्योंकि जहां इससे स्किन को कोई नुकसान नहीं होता है, वहीं स्किन पर बेहतर रिजल्ट भी मिल पाता है. कुछ खास तरह के दानों को ड्राई स्किन के लिए सही नहीं माना जाता, क्योंकि इनके कारण स्किन और अधिक ड्राई हो सकती है. वहीं कुछ ऑयली स्किन के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं , क्योंकि ये सीबम के उत्पादन को और अधिक प्रेरित करने का काम करते हैं.  इसलिए एक्सपर्ट्स यही सलाह देते हैं कि अगर आपकी ऑयली है तो आपको हमेशा जैल बेस्ड प्रोडक्ट्स ही इस्तेमाल करने चाहिए. और अगर आपकी काफी ज्यादा ड्राई स्किन है तो आपको क्रीम या फिर आयल बेस्ड प्रोडक्ट्स ही यूज़ करने चाहिए. यकीन मानिए अगर आप स्किन टाइप के हिसाब से नेचुरल स्क्रबर का इस्तेमाल करेंगी तो आपकी स्किन चमकदमक उठेगी.

4. एक्सफोलेशन के बाद क्लोज पोर्स 

अकसर हम सब ये गलती करते हैं कि स्क्रबिंग के बाद क्रीम या फिर मॉइस्चराइजर को अप्लाई नहीं करते हैं. जबकि आपको बता दें कि स्क्रब करने से पोर्स ओपन हो जाते हैं ऐसे में आप स्क्रब के तुरंत बाद चेहरे पर मॉइस्चराइजर, फेस क्रीम, फेस आयल, सनस्क्रीन , सीरम को अप्लाई करके पोर्स को बंद करके मोइस्चर को लौक करें, जिससे स्किन हाइड्रेट व ग्लोइंग दिख सके.

5. स्क्रब की क्वांटिटी भी ध्यान रखें 

अकसर हम यही सोचते हैं कि जितना ज्यादा ब्यूटी प्रोडक्ट क्वांटिटी में इस्तेमाल करेंगे उतना ज्यादा फ़ायदा मिलेगा. जबकि ये सच नहीं है. अगर बात करें स्क्रब कि तो आपको फेस के लिए कोइन साइज अमाउंट में स्क्रब की जरूरत होती है और छोटा चम्मच बाकी जगह पर लगाने के लिए . इससे आपकी स्किन को फायदा मिलने के साथसाथ उसे कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता है. तो फिर स्क्रबिंग के सही तरीकों को अपनाकर अपनी स्किन को बनाएं चार्मिंग.

Women’s Day 2024: आधुनिक श्रवण कुमार- मीरा ने कैसे किया परिवार का सपना पूरा

पिछले साल जब मीरा ने समाचारपत्र में एक विदेश भ्रमण टूर के बारे में पढ़ा था तब से ही उस ने एक सपना देखना शुरू कर दिया था कि इस टूर में वह अपने परिवार के साथ वृद्ध मातापिता को भी ले कर जाए. चूंकि खर्चा अधिक था इसलिए वह पति राम और बेटे संजू से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं लेना चाहती थी. उसे पता था कि जब इस बात का पता पति राम को लगेगा तो वह कितना हंसेंगे और संजू कितना मजाक उड़ाएगा. पर उसे इस मामले में किसी की परवा नहीं थी. बस, एक ही उमंग उस के मन में थी कि वह अपने कमाए पैसे से मम्मीपापा को सैर कराएगी.

वह 11 बजने का इंतजार कर रही थी क्योंकि हर रोज 11 बजे वह मम्मी से फोन पर बात करती थी. आज फोन मिलाते ही बोली, ‘‘मम्मी, सुनो, जरा पापा को फोन देना.’’

पापा जैसे ही फोन पर आए मीरा चहकी, ‘‘पापा, आज ही अपना और मम्मी का पासपोर्ट बनने को दे दीजिए. हम सब अगस्त में सिंगापुर, बैंकाक और मलयेशिया के टूर पर जा रहे हैं.’’

‘‘तुम शौक से जाओ बेटी, इस के लिए तुम्हारे पास तो अपना पासपोर्ट है, हमें पासपोर्ट बनवाने की क्या जरूरत है?’’

‘‘पापा, मैं ने कहा न कि हम जा रहे हैं. इस का मतलब है कि आप और मम्मी भी हमारे साथ टूर पर रहेंगे.’’

‘‘हम कैसे चल सकते हैं? दोनों ही तो दिल के मरीज हैं. तुम तो डाक्टर हो फिर भी ऐसी बात कह रही हो जोकि संभव नहीं है.’’

‘‘पापा, आप अपने शब्दकोश से असंभव शब्द को निकाल दीजिए. बस, आप पासपोर्ट बनने को दे दीजिए. बाकी की सारी जिम्मेदारी मेरी.’’

बेटी की बातों से आत्मविश्वास की खनक आ रही थी. फिर भी उन्हें अपनी विदेश यात्रा पर शक ही था क्योंकि वह 80 साल के हो चुके थे और 2 बार बाईपास सर्जरी करवा चुके थे. उन की पत्नी पुष्पा 76 वर्ष की हो गई थीं और एक बार वह भी बाईपास सर्जरी करवा चुकी थीं. दोनों के लिए पैदल घूमना कठिन था. कार में तो वे सारे शहर का चक्कर मार आते थे और 10-15 मिनट पैदल भी चल लेते थे पर विदेश घूमने की बात उन्हें असंभव ही नजर आ रही थी.

वह बोले, ‘‘देखो बेटी, मैं मानता हूं कि तुम तीनों डाक्टर हो पर मेरे या अपनी मां के बदले तुम पैदल तो नहीं चल सकतीं.’’

‘‘पापा, आप पासपोर्ट तो बनने को दे दीजिए और बाकी बातें मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

‘‘ठीक है, मैं पासपोर्ट बनने को दे देता हूं. हम तो अब अगले लोक का पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में हैं.’’

‘‘पापा, ऐसी निराशावादी बातें आप मेरे साथ तो करें नहीं,’’ मीरा बोली, ‘‘आप आज ही भाई को कह कर पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू करवा दें. डेढ़ महीने में पासपोर्ट बन जाएगा. उस के बाद मैं आप को बताऊंगी कि हम कब घूमने निकलेंगे.’’

फोन पर बातें करने के बाद हरिजी अपनी पत्नी से बोले, ‘‘चल भई, तैयारी कर ले. तेरी बेटी तुझे विदेश घुमाने ले जाने वाली है.’’

‘‘आप भी कैसी बातें कर रहे हैं. मीरा का भी दिमाग खराब हो गया है. घर की सीढि़यां तो चढ़ी नहीं जातीं और वह हमें विदेश घुमाएगी.’’

‘‘मैं राजा को भेज कर आज ही पासपोर्ट के फार्म मंगवा लेता हूं. पासपोर्ट बनवाने में क्या हर्ज है. बेटी की बात का मान भी रह जाएगा. विदेश जा पाते हैं या नहीं यह तो बाद की बात है.’’

‘‘जैसा आप ठीक समझें, कर लें. अब तो कहीं घूमने की ही इच्छा नहीं है. बस, अपना काम स्वयं करते रहें और चलतेफिरते इस दुनिया से चले जाएं, यही इच्छा है.’’

उसी दिन मीरा ने रात को खाने पर पति राम और संजू से कहा, ‘‘आप लोग इतने दिनों से विदेश भ्रमण की योजना बना रहे थे. चलो, अब की बार अगस्त में 1 हफ्ते वाले टूर पर हम भी निकलते हैं.’’

‘‘अरे, मम्मी, जरा फिर से तो बोलो, मैं आज ही बुकिंग करवाता हूं,’’ बेटा संजू बोला.

राम बोले, ‘‘आज तुम इतनी मेहरबान कैसे हो गईं. तुम तो हमेशा ही मना करती थीं.’’

‘‘उस के पीछे एक कारण था. मैं अपने मम्मीपापा को भी साथ ले कर जाना चाहती थी और इस के लिए मेरे पास रुपए नहीं थे. 1 साल में मैं ने पूरे 1 लाख रुपए जोड़ लिए हैं. अब मम्मीपापा के लिए भी मैं टिकट खरीद सकती हूं.’’

‘‘यह मेरे और तेरे रुपए की बात कब से तुम्हारे मन में आई. तुम अगर अपने मम्मीपापा को साथ ले जाने की बात बोलतीं तो क्या मैं मना करता. 30 साल साथ रहने के बाद क्या तुम मुझे इतना ही जान पाई हो.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है पर मेरे मन में था कि मैं खुद कमा कर अपने पैसे से उन्हें घुमाऊं. बचपन में हम जब भी घूमने जाते थे तब पापा कहा करते थे कि जब मेरी बेटी डाक्टर बन जाएगी तब वह हमें विदेश घुमाएगी. उन की वह बात मैं कभी नहीं भूली. इसीलिए 1 साल में एक्स्ट्रा समय काम कर के मैं ने रुपए जोड़े और आज ही उन्हें फोन पर पासपोर्ट बनवाने को कहा है.’’

‘‘वाह भई, तुम 1 साल से योजना बनाए बैठी हो और हम दोनों को खबर ही न होने दी. बड़ी छिपीरुस्तम निकलीं तुम.’’

‘‘जो मरजी कह लो पर अगर हम लोग विदेश भ्रमण पर जाएंगे तो मम्मीपापा साथ जाएंगे.’’

‘‘तुम ने उन की तबीयत के बारे में भी कुछ सोचा है या नहीं या केवल भावुक हो कर सारी योजना बना ली?’’

‘‘अरे, हम 3 डाक्टर हैं और फिर वे दोनों वैसे तो ठीक ही हैं, केवल ज्यादा पैदल नहीं चल पाते हैं. उस के लिए हम टैक्सी कर लेंगे और जहां अंदर घूमने की बात होगी तो व्हीलचेयर में बैठा कर घुमा देंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो. तुम खुश तो हम सब भी खुश.’’

पासपोर्ट बन कर तैयार हो गए. 8 अगस्त की टिकटें खरीद ली गईं. थामस नामक टूरिस्ट एजेंसी के सिंगापुर, बैंकाक और मलयेशिया वाले ट्रिप में वे शामिल हो गए. उन की हवाई यात्रा चेन्नई से शुरू होनी थी.

मीरा, राम और संजू मम्मीपापा के पास चेन्नई पहुंच गए थे. मीरा ने दोनों के सूटकेस पैक किए. उस का उत्साह देखते ही बनता था. मम्मी बोलीं, ‘‘तुम तो छोटे बच्चों की तरह उत्साहित हो और मेरा दिल डूबा जा रहा है. हमें व्हीलचेयर पर बैठे देख लोग क्या कहेंगे कि बूढ़ेबुढि़या से जब चला नहीं जाता तो फिर बाहर घूमने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मम्मी, आप दूसरों की बातों को ले कर सोचना छोड़ दो. आप बस, इतना सोचिए कि आप की बेटी कितनी खुश है.’’

सुबह 9 बजे की फ्लाइट थी. सारे टूरिस्ट समय पर पहुंच चुके थे. पूरे ग्रुप में 60 लोग थे और सभी जवान और मध्यम आयु वर्ग वाले थे. केवल वे दोनों ही बूढे़ थे. चेन्नई एअरपोर्ट पर वे दोनों धीरेधीरे चल कर सिक्योरिटी चेक करवा कर लाज में आ कर बैठ गए थे. वहां बैठ कर आधा घंटा आराम किया और फिर धीरेधीरे चलते हुए वे हवाई जहाज में भी बैठ गए थे. दोनों के चेहरे पर एक विशेष खुशी थी और मीरा के चेहरे पर उन की खुशी से भी दोगुनी खुशी थी. आज उस का सपना पूरा होने जा रहा था.

3 घंटे की हवाई यात्रा के बाद वे सिंगापुर पहुंच गए थे. जहाज से उतर कर वे सीधे बस में बैठ गए जो उन्हें सीधे होटल तक ले गई. विशेष निवेदन पर उन्हें नीचे ही कमरे मिल गए थे.

यहां तक पहुंचने में किसी को भी कोई परेशानी नहीं हुई थी. होटल के कमरे में पहुंच कर मीरा बोली, ‘‘हां, तो मम्मी बताना, अभी आप कहां बैठी हैं?’’

‘‘सिंगापुर में. सच, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है. तू ने तो अपने पापा का सपना सच कर दिया.’’

इस पर पापा ने गर्व से बेटी की ओर देखा और मुसकरा दिए. शाम से घूमना शुरू हुआ. सब से पहले वे सिंगापुर के सब से बड़े मौल में पहुंचे. वहां बुजुर्गों और विकलांगों के लिए व्हीलचेयर का इंतजाम था. एक व्हील चेयर पर मम्मी और दूसरी पर पापा को बिठा कर मीरा और संजू ने सारा मौल घुमा दिया. फिर उन्हें एक कौफी रेस्तरां में बिठा कर मीरा ने अपने पति व बेटे के साथ जा कर थोड़ी शापिंग भी कर ली. रात में नाइट क्लब घूमने का प्रोग्राम था. वहां जाने से दोनों बुजुर्गों ने मना कर दिया अत: उन्हें होटल में छोड़ कर उन तीनों ने नाइट क्लब देखने का भी आनंद उठाया.

दूसरे दिन वे सैंटोजा अंडर वाटर वर्ल्ड और बर्डपार्क घूमने गए. शाम को ‘लिटिल इंडिया’ मार्केट का भी वे चक्कर लगा आए. तीसरे दिन सुबह वे सिंगापुर से बैंकाक के लिए रवाना हुए. बैंकाक में भी बड़ेबड़े शापिंग मौल हैं पर ‘गोल्डन बुद्धा’ की मूर्ति वहां का मुख्य आकर्षण है.

5 टन सोने की बनी बुद्ध की मूर्ति के दर्शन मम्मीपापा ने व्हीलचेयर पर बैठ कर ही किए. उस मूर्ति को देख कर सभी आश्चर्यचकित थे. वहां से उन का ग्रुप ‘पटाया’ गया. पटाया का बीच प्रसिद्ध है. यहां तक पहुंचने में भी दोनों बुजुर्गों को कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई. वहां रेत में बैठ कर वे दूसरों द्वारा खेले गए ‘वाटर गेम्स’ का लुत्फ उठाते रहे. बीच के आसपास ही बहुत से मसाज पार्लर हैं. वहां का ‘फुट मसाज’ बहुत प्रसिद्ध है. पापा ने तो वहां के फुट मसाज का भी आनंद उठाया.

रात को वहां एक ‘डांस शो’ था जहां लोकनृत्यों का आयोजन था. डेढ़ घंटे का यह शो भी सब को आनंदित कर गया. 2 दिन बैंकाक में बीते फिर वहां से कुआलालम्पुर पहुंचे. वहां पैटरौना टावर्स, जेनटिंग आइलैंड घूमे. दोनों ‘केबल कार’ में तो नहीं चढ़े, पर साधारण कार में चक्कर अवश्य लगाए. वहां के स्नोवर्ल्ड वाटर गेम्स और थीम पार्क में भी वे नहीं गए. उस दिन उन्होंने होटल में ही आराम किया.

देखते ही देखते 6 दिन बीत गए. 7वें दिन फिर से चेन्नई के एअरपोर्ट पर उतरे और घर की ओर रवाना हुए. उस के बाद मम्मीपापा का पसंदीदा वाक्य एक ही था, ‘‘मीरा और राम तो हमारे श्रवण कुमार हैं जिन्होंने हमें विदेश की सैर व्हीलचेयर पर करवा दी.’’

बिना आटा गूंथे बनाएं टेस्टी चिली गार्लिक परांठा

परांठे भारतीय भोजन का अभिन्न हिस्सा हैं. वास्तव में परांठा पूरी और रोटी के बीच का खाद्य पदार्थ है क्योंकि पूरी की तरह इसे तेल में तला नहीं जाता और रोटी की भांति बिना घी तेल के नहीं बनाया जाता. इसे तवे पर कम तेल या घी के साथ बनाया जाता है.

भारतीय भोजन में सादे परांठे की अपेक्षा विभिन्न सब्जियों के भरवां चटपटे मसालेदार परांठे बनाये जाते हैं. कई बार सब्जियों को आटे के साथ गूंथकर भी परांठे बनाये जाते हैं. आज हम आपको बच्चे बड़े सभी के फ़ेवरिट चिली गार्लिक परांठे की रेसिपी बताएंगे जिसे बिना आटा गूंथे बनाया जाता है. इसे बनाना तो बहुत आसान है ही साथ ही इसे दो माह तक आप बड़ी आसानी से स्टोर भी कर सकतीं हैं. तो आइए जानते हैं इसे कैसे बनाया जाता है.

चिली गार्लिक परांठा

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 10 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मक्खन 1 टेबलस्पून
कुटी लाल मिर्च 1 टीस्पून
लहसुन पेस्ट 2 टेबलस्पून
हरा धनिया 2 टेबलस्पून
हल्दी पाउडर 1/4 टीस्पून
मैदा 1 कप
गेहूं का आटा 1 कप
पानी 2 कप
चीनी 1 टीस्पून
नमक 1 टीस्पून

विधि

मक्खन में लाल मिर्च, लहसुन और हरा धनिया अच्छी तरह मिलाएं. एक कटोरे में मैदा, आटा और नमक मिलाएं. अब इसमें धीरे धीरे पानी मिलाएं ताकि गुठली न पड़ें. जब मिश्रण एकसार हो जाये तो तैयार बटर का मिश्रण मिलाएं. इसकी कंसिस्टेंसी डोसे या चीले के बेटर जैसी होनी चाहिए. एक नॉनस्टिक तवे पर चिकनाई लगाकर एक बड़ा चम्मच मिश्रण मध्यम मोटाई में फैलाएं. मध्यम आंच पर बटर लगाकर दोनों तरफ से सेंके. इसी प्रकार सारे परांठे तैयार करें.

ऐसे करें परांठों को स्टोर

आप इन परांठो को बिना चिकनाई लगाकर सेंककर दो माह तक फ्रिज में स्टोर कर सकतीं हैं. तैयार परांठो को ठंडा करके प्रत्येक परांठे के बीच में टिशू पेपर लगाएं और किचिन टॉवेल में लपेटकर किसी एयरटाइट जार में रखकर फ्रीजर में रख दें. प्रयोग करते समय चिकनाई लगाकर दोनों तरफ से सेंककर चटनी, अचार या सब्जी के साथ सर्व करें.

Women’s Day 2024: 40 की उम्र के बाद मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं ये एक्सरसाइज

40 की उम्र के बाद फिट रहने के लिए एक्सरसाइज करना बेहद जरूरी हो जाता है, मगर बहुत से लोग खासकर महिलाएं वर्कआउट करने से घबराती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस से बौडी पेन बढ़ जाएगा, थकान ज्यादा होगी. दूसरी तरफ कुछ लोग वर्कआउट करना तो शुरू करते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में अच्छे रिजल्ट्स न देख पाने के कारण वे भी वर्कआउट करना बंद कर देते हैं, क्योंकि 40 की उम्र के बाद मेटाबौलिज्म स्लो होने के कारण रिजल्ट तो आता है लेकिन उस में समय लगता है.

कुछ ऐसी एक्सरसाइज भी होती हैं जो 40 की उम्र के बाद अवौइड करनी चाहिए. हम जो वर्कआउट कर रहे हैं, वह हमारी बौडी के लिए सही है या नहीं? कहीं वह हमारी बौडी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा? यह भी ध्यान रखना चाहिए. ऐसे में अपने एक्सरसाइज रूटीन को सोचसमझ कर प्लान करें. ऐसी बहुत सी एक्सरसाइज हैं जो 40 के बाद अवौइड करनी चाहिए. आइए, जानते हैं ऐसी ही कुछ एक्सरसाइज के बारे में:

1. क्रंचेस

क्रंचेस हम बैली फैट को कम करने के लिए करते हैं. क्रंचेस करते समय हमारी स्पाइन पर बहुत ज्यादा स्ट्रेन पड़ता है. 40 की उम्र के बाद हमारी स्पाइन की फ्लैक्सिबिलिटी कम होने लगती है. इसलिए हमें क्रंचेस करते समय सही ऐंगल और पोजीशन का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन सही तरीके से एक्सरसाइज करने के बाद भी अगर आप बैक और नैक पेन महसूस करें तो हर तरह के क्रंचेस को अवौइड करना चाहिए.

2. इंटैंस कार्डियो वर्कआउट

इंटैंस कार्डियो वर्कआउट जैसे कि जंपिंग जैक्स, स्क्वैट जंप प्लैंकजैक्स, बट किक्स आदि को करते समय अगर आप पेन फील करें तो जबरन वर्कआउट करने की कोशिश न करें. ऐसा करने से बौडी का स्ट्रैस लैवल बढ़ जाता है और बौडी में कार्टिसोल नाम का एक हारमोन निकलता है. आप जान कर हैरान रह जाएंगे कि इस कंडीशन में आप के वर्कआउट का रिजल्ट रिवर्स हो जाता है और बौडी का वेट घटने की बजाय बढ़ने लगता है. इस हारमोन के रिलीज होते ही यह फैट को स्टोर करने लगता है.

इंटैंस कार्डियो वर्कआउट से सारा स्ट्रेन हमारे जौइंट्स पर आ जाता है, जिस से वे जौइंट्स जोकि पहले ही वीक हो गए हैं, उन में इंजरी भी हो सकती है. ध्यान रखें कि ऐसे हाई इंटैंसिटी वर्कआउट या इंटैंस वर्कआउट को अवौइड करें.

3. स्क्वैट

स्क्वैट लैग्स और ग्लूट्स के लिए एक अच्छी एक्सरसाइज मानी जाती है. लेकिन बढ़ती उम्र में घुटनों की मसल्स पर ज्यादा स्ट्रेन डालने से वे पुल हो सकती हैं, जिस से सीरियस इंजरी होने का रिस्क बढ़ सकता है.

4. इंटैंस स्ट्रैचिंग

इस उम्र में मसल्स वीक होने लगती हैं. अगर आप अपनी बौडी को हद से ज्यादा स्ट्रैच करेंगी तो आप की मसल्स पुल होने का खतरा बना रहता है. ज्यादा स्ट्रैच वाली एक्सरसाइज करने से बचें.

5. नैक एक्सरसाइज

40 की उम्र में सर्वाइकल की शिकायत ज्यादा पाई जाती है. सर्वाइकल नहीं है तो इंटैंस नैक स्ट्रैच या उस पर दबाव पड़ने से वह हो भी जाता है, लेकिन यह तब होता है जब आप की बौडी की मसल्स और बोंस पहले से ही वीक हों.

6. लैग ऐक्सटैंशन

लैग ऐक्सटैंशन करते समय वेट ऊपर की तरफ पुश करने से घुटनों और ऐडि़यों पर ज्यादा दबाव पड़ता है जिस से उन में इंजरी होने की संभावना बढ़ जाती है.ैै

7. पुशअप

पुशअप्स से लोअर बैक और कंधों पर बौडी का सारा वेट पड़ने के कारण दर्द की शिकायत हो सकती है, जोकि लौंग टर्म के लिए अच्छा नहीं है. आगे चल कर यह सीरियस इंजरी में भी बदल सकती है. सही रहेगा यदि आप 40 की उम्र के बाद किसी ऐक्सपर्ट की देखरेख में वर्कआउट करें. ऐसा न करना आप को अनफिट बना सकता है.

-संकल्प, फिटनैस ऐक्सपर्ट

कर्ली बालों को संभालने में बेहद दिक्कत होती है, कृपया कोई उपाय बताएं?

सवाल-

मुझे अपने कर्ली बालों को संभालने में बेहद दिक्कत महसूस होती है. क्योंकि ये बहुत ज्यादा उलझे हुए हैं. साथ ही बेजान और रुखे भी हो गए हैं. और झड़ने भी लगे हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

कर्ली बालों पर गरम तेल की मालिश करने से बालों को फायदा होता है. इसे नियमित रूप से अपनाने पर हमारे कर्ली बाल भी बेहद सुंदर हो जाते हैं. कोकोनट औैयल, औलिव या फिर आमंड औयल आदि से हम बालों पर मसाज कर सकते हैं. हर दिन बालों को शैंपू करने से बाल खराब हो सकते हैं. इस कारण बालों का गिरना शुरू हो जाता है और बाल डिहाइड्रैट होने लगते हैं. इसलिए यह सलाह दी जाती है कि बालों को ज्यादा न धोएं.

कर्ली बालों को बहुत कस कर न बांधें. ऐसा करने से घुंघराले बाल जड़ों से कमजोर हो कर टूटने लगते हैं. अगर आप के बाल घुंघराले हैं तो उन्हें हलका गीला होने पर ही कंघी करें. इस से बाल कम उलझेंगे. कर्ली हेयर पर ड्रायर का इस्तेमाल कम करें, क्योंकि इस के ज्यादा इस्तेमाल से बाल कमजोर होते हैं.

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कई लड़कियों के बाल बहुत कर्ली होते हैं जिन्‍हें वे संभाल नहीं पाती और धीरे धीरे उनके बाल रूखे और बेजान से हो जाते हैं. कर्ली बालों को अगर सौफ्ट रखना है तो उन्‍हें केमिकल वाले रंगों से दूर रखें और उन पर ज्‍यादा एक्‍सपेरिमेंट न करें. अगर आप अपने कर्ली बालों पर ध्‍यान देंगी तो वे मुलायम और चमकदार बन जाएगें. तो आइये जानते हैं कुछ खास टिप्स के बारे में.

  मरीचिका: क्यों परेशान थी इला – भाग 3

दूसरे दिन इला ने अपनेआप को बदलने का यत्न शुरू कर दिया. शाम को बालकनी में जब राजन के साथ बैठती तो उस की बातों में रुचि लेती. कभीकभार उस के दफ्तर के कामकाज के विषय में भी पूछती परंतु रात सोने के समय फिर कछुए की तरह अपनी खोल में सिमट जाती.

राजन इतने परिवर्तन से भी प्रसन्न था. सोचता था कि  आहिस्ताआहिस्ता इला अपनी ?ि?ाक से मुक्ति पा लेगी. इस बार राजन गंगटोक के दौरे पर जाने लगा तो एक छोटे से सूटकेस में 2-3 कपड़े ले कर इला भी कार में आ बैठी.

3-4 दिन में काम समाप्त कर राजन सिलीगुड़ी के लिए लौट पड़ा. इस बार राजन भी इतना खुश था कि  कार की टंकी भराने का भी उसे ध्यान न रहा. अभी वे लोग काली?ोरा तक ही पहुंचे थे कि कार बंद हो गई. रात होने लगी थी. किसी तरह कार ठेल कर वह काली?ोरा के रैस्टहाउस तक ले आया. पत्थरों पर उछलती, बहती पहाड़ी नदी के किनारे बना यह सुंदर रैस्टहाउस एक बड़ी चट्टान पर स्थित था.

गोलाकार सीढि़यां ऊपर तक चली गई थीं. रैस्टहाउस का चौकीदार राजन को पहचानता था. उस ने दोनों के लिए बड़ा वाला कमरा खोल दिया. राजन कार से एक ट्रक में लिफ्ट ले कर पैट्रोल लाने चला गया. जाने से पहले रात का खाना उस ने चौकीदार को बनाने को कह दिया था.

इला बरामदे के जंगले पर खड़ी नदी की ओर देखने लगी. वहां एक जोड़ा पानी के किनारे बैठा शायद पिकनिक मना रहा था. टिफिन एक किनारे पड़ा था. स्त्री की खनखनाती हंसी यहां तक सुनाई दे रही थी.

चौकीदार इला के पास आ कर खड़ा हो गया. उसे युगल जोड़े की ओर देखते पा कर बोला, ‘‘ये साहब लोग भी यहीं ठहरे हैं. छुट्टी पर आए हैं.’’

इला बोली, ‘‘मैं जरा नदी किनारे घूम

आती हूं.’’

जाने क्यों वह पुरुष उसे जानापहचाना लग रहा था. सीढि़यां उतर कर नदी का सूखा चौड़ा पाट पार कर के नदी किनारे तक पहुंचने में इला को काफी समय लग गया. इला की ओर उन दोनों की पीठ थी. तभी पुरुष बोला, ‘‘चलो, रैस्टहाउस में चल कर चाय पीएंगे.’’

‘‘नहीं, यहीं बना कर पिलाओ जैसे बाकी पिकनिक पर पिलाते हो.’’

इला अपने स्थान पर जड़ सी हो गई. रमण को पहचानने में वह कभी भी भूल नहीं कर सकती थी. तभी रमण पलटा व इला को सामने देख कर हत्प्रभ सा रह गया. बोला, ‘‘तुम.’’

रमण की पत्नी भी दोनों को देख रही थी.

‘‘आप एकदूसरे को जानते हैं क्या?’’

‘‘हां… आं… आं…’’  रमण संभला, ‘‘कालेज में हम एक साथ पढ़ते थे.’’

रमण ने दोनों का परिचय कराया. उस की पत्नी मीता ने रमण से फिर कहा, ‘‘जाइए न, लकडि़यां जमा कर के लाइए, अब तो इला को भी चाय पिलाएंगे.’’

रमण चला गया. मीता इला के साथ बातें करने लगी. बड़ी प्यारी सरल हृदया लड़की थी. 15 मिनट में ही चटाचट बोलती ढेरों बातें कर गई. अपने व रमण के हनीमून की बातें, प्यार?ागड़े का सारा ब्योरा उस ने इला को सुना डाला.

हंसतीखिलखिलाती, शर्म से दोहरी होती वह सब कहती गई. इला मुख पर मुसकराहट लिए उस की सब बातें सुनाती रही. तब तक रमण लकडि़यां जमा कर के ले आया. तीन बड़ेबड़े पत्थर जोड़ कर उस ने चूल्हा बना पतीले में चाय का पानी रख दिया. थोड़ी ही देर में उबलती चाय मगों में डाल कर उस ने दोनों को दे दी. स्वयं भी एक मग ले कर पास बैठ गया.

मीता नाक चढ़ा कर बोली, ‘‘एकदम कड़वी कर दी है. आज कैसी चाय बनाई है?’’

‘‘अच्छी तो है,’’ इला बोली.

‘‘नहीं इला, रोज सवेरे मु?ो बैड टी बना कर देते हैं. इतनी बढि़या बनाते हैं क्या बताऊं?’’

रमण शरमा सा गया, ‘‘क्या बेकार बातें कर रही हो, इला क्या सोचेगी?’’

इला हंस पड़ी. मीता रूठ कर मुंह फुला कर बैठ गई. दोनों ने मिल कर उसे मनाया, फिर सब सामान समेट कर रेस्ट हाउस की ओर चल पड़े.

‘‘तुम्हारे पति कहां हैं?’’

‘‘वह तो पैट्रोल लेने गए हैं.’’

तीनों सहज बातचीत करते हुए रेस्ट हाउस तक आ गए. मीता कपड़े बदलने चली गई तथा रमण व इला बरामदे में खड़े हो गए.

‘‘शादी कब की, रमण?’’ इला ने पूछा.

‘‘अभी 1 साल हुआ.’’

फिर चुप्पी छाई रही. जिस रमण के लिए इला इतनी उदासपरेशान रहती थी, आज सामने पा कर उसे उस से कोई बात करने के लिए नहीं सू?ा रही थी.

रमण ही बोला, ‘‘तुम्हारा कार्ड मिला था, उस से पहले पत्र भी मिला था.’’

‘‘तुम्हें मु?ा से कोई गिला तो नहीं रमण?’’ इला ने रुकरुक कर पूछा.

‘‘शुरू में बुरा लगा था परंतु तुम्हारे पत्र के बाद शादी का कार्ड मिलने पर मैं सम?ा गया. मैं तुम्हें किसी भी तरह दोष नहीं दे सका.’’

इला के हृदय से एक भारी बोे?ा सा उतर गया.

‘‘तुम्हारी शादी के बाद काफी समय तक खोया सा रहा. फिर मां ने मेरे लिए मीता को पसंद कर लिया. मां का दिल न दुखाने के लिए मैं ने भी हां कर  दी. तुम ने तो शादी कर ही ली थी. तुम्हारे वियोग में कब तक उदास बना बैठा रहता?’’ रमण हंसने लगा.

‘‘बहुत अच्छा किया रमण, मीता बहुत ही प्यारी लड़की है. वही तुम्हारा वर्तमान और भविष्य है. मैं और तुम एकदूसरे का अतीत हैं, जो मर चुका है.’’

‘‘हां इला, जीवन में कहीं कुछ खो देने पर जीवन वहीं तो समाप्त नहीं हो जाता. अपने समाज, परिवार, मातापिता के प्रति भी तो हमारा कुछ कर्तव्य होता है, जिसे भावनाओं की वेदी पर निछावर नहीं  किया जा सकता. टूटे तारों का जोड़ कर फिर प्यार का तारतम्य बैठाया जा सकता है. सुनने वाला बदल जाता है परंतु गीत तो वही रहता है.’’

‘‘अब आप इला के सामने क्या दर्शन ?ाड़ रहे हैं?’’ मीता अंदर से आते हुए बोली, ‘‘आप को तो दार्शनिक होना चाहिए था, फौज में कहां भरती हो गए फौजियों का नाम बदनाम करने.’’

कुछ देर बाद राजन भी पैट्रोल ले कर वापस आ गया. मीता व रमण से मिल कर वह बड़ा प्रसन्न हुआ. रात सब ने एकसाथ खाना खाया व देर तक बरामदे में कुरसियों पर बैठे गप्पें मारते रहे. सवेरे तड़के उन से विदा ले कर राजन व इला चल पड़े. रमण व मीता देर तक खड़े हाथ हिलाते रहे. वापसी में राजन ने उन से सिलीगुड़ी रुकने का वचन ले लिया.

राजन तेजी से कार चला रहा था. आज वह हर हालत में दफ्तर जाना चाहता था. उन का तो पिछली रात ही सिलीगुड़ी पहुंच जाने का कार्यक्रम था. आज उस ने एक जरूरी बैठक रखी हुई थी.

इला का तो एक रात में ही जैसे कायापलट हो गया था. जिस मरीचिका के पीछे वह कब से भाग रही थी, पिछली शाम उसे पा कर लगा कि वह तो सूखी जलती रेत के सिवा कुछ भी नहीं. उस का न खलिस्तान तो उस ने अपने घर में ही था, जिसे वह अपनी मूर्खता से अब तक मरुस्थल बनाए हुए थी. उसे अपने पर बड़ी ग्लानि हुई कि अब वह और नहीं भटकेगी.

अब वह राजन को कभी कुएं के पास से प्यासा नहीं जाने देगी. अपनी अनंत प्यास का भी उसे आज एहसास हो रहा था. रमण अपने वर्तमान से सम?ौता कर कितना प्रसन्न था. दोनों हाथों से मीता के साथ मिल कर जीवन की खुशियां बटोर रहा था, जबकि वह अपनी बेवकूफी से अपना आचंल रीता किए जा रही थी. पर अब वह कभी ऐसा नहीं होने देगी. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर राजन की गोद में रख दिया. राजन ने एक हाथ से स्टीयरिंग संभालते हुए दूसरे हाथ से इला का हाथ दबाया, जैसे दोनों में नए कौल इकरार हुए हों.

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