Women’s Day 2024: क्या करें जब आए तलाक की नौबत

अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट हो कर तलाक ले लेना बेशक उस समय किसी बंधन से मुक्त होना लगे, पर उस के बाद जीवन आसान हो जाएगा या जीवन में फिर से खुशियां लौट आएंगी, ऐसा सोचना भी एक भूल ही है. इसलिए डाइवोर्स लेने का निर्णय लेने से पहले उस के बाद पैदा होने वाली स्थितियों पर विचार करना निहायत आवश्यक है.

अगर आप डाइवोर्स लेने के बारे में सोच रही हैं, तो यह तो तय है कि आप के और आप के साथी के बीच कुछ गलत हुआ है या फिर छोटीछोटी बातें इतनी बड़ी हो गई हैं कि आप को लगने लगा है कि अब साथ रहना मुमकिन नहीं. ये बातें विचारों के बीच टकराव उत्पन्न होने से ले कर विवाहेतर संबंधों तक से जुड़ी हो सकती हैं या फिर बच्चों की परवरिश या आर्थिक परेशानियों से उपजी भी हो सकती हैं. यानी ये छोटेछोटे झगड़े समय के साथ न सिर्फ युगल के बीच फासला बढ़ाते जाते हैं वरन उन्हें अलग हो जाने के लिए भी मजबूर कर देते हैं.

एडजस्ट न कर पाने या मानसिक तौर पर डिस्टर्ब फील करने के कारण अलग हो जाना बेशक एक आसान रास्ता लगे, पर उस के लिए जिन कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वे भी कम दुखदायी नहीं होती हैं. अगर युगल शादी को यातना मानते हैं, तो उस से छुटकारा पाने के लिए भी कम यातनाएं नहीं सहनी पड़तीं.

मूल्यांकन करें

डाइवोर्स लेने से पहले ये सोचें कि वे कौन सी बातें हैं जो आप को परेशान कर रही हैं. हो सकता है उन्हें सुधारा जा सके. फिर यह निश्चित करें कि क्या वास्तव में आप उन में बदलाव लाना चाहती हैं? अपने विवाह के साथसाथ आप को अपना भी मूल्यांकन करना होगा कि क्या आप इस विवाह को बचाना चाहती हैं? डाइवोर्स की ओर कदम बढ़ाने से पहले खुद से यह अवश्य पूछें कि क्या जो असंतुष्टि की भावना आप के अंदर पल रही है वह कुछ समय के लिए है, जो समय के साथ दूर हो जाएगी? तलाक देने के बाद क्या आप फिर से एक नए संबंध में जुड़ने को तैयार हैं? आप के बच्चे पर इस का क्या असर पड़ेगा और क्या वह इस निर्णय में आप के साथ है?

कुछ लोग इसलिए अलग होते हैं, क्योंकि वे बहुत जल्दी शादी के बंधन में बंध गए थे और बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वे एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं. कुछ दशकों तक साथ रहते हैं और बच्चों के सैटल हो जाने के बाद उन्हें लगता है कि अब साथ रहना कोई मजबूरी नहीं है और वे अलग हो जाते हैं.

सबसे अहम कारण होता है साथी को धोखा देना. कुछ युगलों को लगता है कि अब उन के बीच प्यार नहीं रहा है. पैसे और विचारों में मतभेद होने की वजह से हमेशा झगड़ते रहते हैं. कुछ युगलों को लगता है कि उन्हें जीवन से कुछ और चाहिए. वे अब रिश्ते के साथ और समझौता नहीं कर सकते हैं.

सीनियर क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. भावना बर्मी के अनुसार, ‘‘तलाक की बढ़ती दर का मुख्य कारण है प्रोफैशनल स्तर पर औरत और पुरुष दोनों की लगातार बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं, जिन की वजह से उन की प्राथमिकताएं परिवार व संबंधों से हट कर कैरियर पर टिक गई हैं. आपस में बात करने तक का भी उन के पास टाइम नहीं है. वे काम और परिवार के बीच संतुलन नहीं बैठा पा रहे हैं. दोनों की आर्थिक आजादी ने उन की एकदूसरे पर निर्भरता कम कर दी है. सहने की शक्ति कम हो जाना मैट्रो शहरों में बढ़ते तलाक की सब से बड़ी वजह है. तलाक लेते समय यह पता होना चाहिए कि उन की जिंदगी आपस में बंधी है और इस की टूटन दोनों को ही बिखराव की राह पर ला सकती है. सामाजिक अलगाव भी उत्पन्न होने की संभावना इस से बहुत बढ़ जाती है.’’

क्या आप बदलाव के लिए तैयार हैं

आप का डाइवोर्स लेने का कारण, साथ बीता समय, आप की संपत्ति, बच्चे सब चीजें आप के निर्णय के लिए माने रखती हैं. लेकिन सब से अहम है यह समझना कि आप उसे किस तरह हैंडल करेंगी. इस की वजह से जिंदगी में होने वाले बदलावों का सामना करने को क्या आप तैयार हैं? डाइवोर्स जीवन का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ होता है, जिस के बाद आने वाले बदलाव सुखदायी या दुखदायी दोनों ही हो सकते हैं. इसलिए सोचसमझ कर ही इस का फैसला लेना चाहिए. हो सकता है कि मैरिज काउंसलर से मिलने के बाद आप अपना इरादा छोड़ दें.

तलाक का अर्थ ही है बदलाव और यह समझ लें कि किसी भी तरह के बदलाव का सामना करना आसान नहीं होता है. कई बार मन पीछे की तरफ भी देखता है, क्योंकि नए ढंग से जिंदगी की शुरुआत करते समय जब दिक्कतें आती हैं, तो मन बीती जिंदगी को याद कर अपराधबोध से भी भर जाता है. आप को खुद पर भरोसा रखना होगा कि आप किसी भी तरह की मुश्किल का सामना कर लेंगी और आप का निर्णय सही था.

लिस्ट बनाएं

तलाक लेने के कारणों की एक लिस्ट बनाएं. अपने रिश्ते के अच्छे व बुरे दोनों पक्षों के बारे में लिखें. अपने पार्टनर को किसी विलेन के दर्जे में न रखें, क्योंकि कमियां तो आप में भी होंगी. डाइवोर्स लेने के बाद सफल व सुखद जीवन जीने के लिए सोच को पौजिटिव रखना निहायत जरूरी है. यह मान कर चलें कि दोनों की ही गलतियों की वजह से आज अलग हो जाने की नौबत आई है. इसलिए अपने क्रोध और दर्द से एक रचनात्मक ढंग से निबटें.

डाइवोर्स के बाद आप को एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ेगी, जिस के कंधे पर सिर रख कर आप रो सकें. अपने मित्रों व रिश्तेदारों से सपोर्ट लेने से हिचकिचाएं नहीं. अगर आवश्यकता महसूस करें तो थेरैपिस्ट के पास जाएं और अपने इमोशंस शेयर करें ताकि आप को स्ट्रैस न हो.

सोच व्यावहारिक रखें

तलाक के बाद सब से बड़ी समस्या फाइनैंस की आती है. अगर आप कमाती हैं, तो भी पैसे से जुड़ी दिक्कतें बनी रहती हैं. अध्ययनों से यह बात सामने आई हैं कि जो औरतें डाइवोर्स की पीड़ा सहती हैं, उन के जीवनस्तर में 30% गिरावट आ जाती है और पुरुषों के जीवनस्तर में 10%. चाहे औरत इस अलगाव के लिए कितना भी तैयार क्यों न हो, वह आर्थिक स्तर पर अपने को अक्षम ही महसूस करती है.

बेहतर होगा कि अपनी भावनाओं के बस में हो कर डाइवोर्स लेने के बजाय एक व्यावहारिक सोच रखते हुए यह कदम उठाएं. इस से होने वाले लाभ से ज्यादा हानि पर गौर करें. अगर आप आत्मनिर्भर नहीं है तो जाहिर है कि बाद में आप को किसी और पर निर्भर होना पड़ेगा और इस तरह आप के आत्मसम्मान को चोट पहुंचेगी.

डाइवोर्स का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है, क्योंकि उन के लिए तो मातापिता दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं. अलगाव से उन के विश्वास को चोट पहुंचती है और कभीकभी तो वे भटक भी जाते हैं. अकेला अभिवक अपनी ही परेशानियों में ग्रस्त रहने के कारण उन पर सही ध्यान नहीं दे पाता.

कुछ प्रश्न खुद से पूछें

– क्या अपने साथी के प्रति अभी भी आप के मन में भावनाएं हैं? मगर ऐसा है तो एक बार रिश्ते को बचाने की कोशिश की जा सकती है.

– क्या आप इसलिए साथ रह रहे हैं, क्योंकि समाज का दबाव है वरना हर समय झगड़ते ही रहते हैं?

– आप क्या सचमुच तलाक चाहती हैं या सिर्फ यह धमकी है? केवल क्रोध प्रकट करने या इस तरह साथी को इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए ही तो आप यह कदम उठाना चाहतीं. इस तरह संबंध और बिगड़ेंगे ही.

– क्या आप शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व भावनात्मक रूप से इस के लिए तैयार हैं? क्या आप ने इस के नकारात्मक परिणामों के बारे में सोच लिया है? तलाक आप के साधनों में कमी कर सकता है, जिस से आप के कई सपने भी टूट सकते हैं.

– क्या आप के पास कोई सपोर्ट सिस्टम है? क्या आप बच्चों को समझा पाने व उन की तकलीफ दूर करने में सक्षम हैं?

– क्या आप कैरियर और अपनी निजी जिंदगी में बैलेंस कर पाएंगी?

डाइवोर्स लेने के बाद आप को नए अनुभवों, नए रिश्तों व चीजों को नए रूप में लेने के लिए अपने को तैयार करना होगा. अपने जीवन को पुन: गढ़ना होगा. अगर आप यह सोच कर बैठी हैं कि दूसरी शादी करने से आप की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी, आप की समस्याओं का समाधान हो जाएगा तो इस भ्रम से बाहर निकलें, क्योंकि दूसरी शादी सफल हो, इस की क्या गारंटी है. जरूरी नहीं कि इस बार परफैक्ट साथी मिले.

World Hearing Day 2024: कान बहने की समस्या को न लें हल्के में, जानें एक्सपर्ट की राय

World Hearing Day 2024: कान और उसकी हेल्थ के बारे में सीके बिरला हॉस्पिटल गुरुग्राम में लीड ईएनटी कंसल्टेंट डॉक्टर अनिष गुप्ता ने विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ समय में मिडल ईयर में बहाव के साथ ओटिटिस मीडिया का प्रसार काफी तेजी से बढ़ा है. इस परेशानी को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है लेकिन अगर इसका इलाज न कराया जाए तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं. 3 मार्च को मनाए जाने वाले वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर को देखते हुए ये जरूरी है कि सुनने की क्षमता वाली इस परेशानी के बारे में चर्चा की जाए और इसके खतरे के बारे में समझा जाए.

बहाव के साथ ओटिटिस मीडिया (ओएमई) होने के कई कारण हो सकते हैं जिसमें लगातार कोल्ड होना, एलर्जी, वायरल इंफेक्शन, एडेनोओडाइटिस और एडेनोइड हाइपरट्रॉफी शामिल है. इससे मिडल ईयर यानी मध्य कान का इंफेक्शन हो सकता है या मिडिल ईयर में धीरे-धीरे वेंटिलेशन की समस्या हो सकती है.

ओएमई की घटनाएं खासकर कोविड काल के बाद ज्यादा बढ़ी हैं और इसकी वजह एडेनोइड संक्रमण और हाइपरट्रॉफी को माना जाता है. हालांकि, कोविड वायरस से इसका डायरेक्ट रिलेशन स्थापित होना अभी बाकी है, लेकिन हाल के वक्त में ओएमई के मामलों में 25 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है. 3 से 6 साल के बच्चों को इस समस्या की गिरफ्त में आने का ज्यादा खतरा है, ऐसे में उनकी लगातार स्क्रीनिंग और चेकअप कराने की जरूरत है. जिन बच्चों को एडोनोइड हाइपरट्रॉफी, बार-बार सर्दी, खांसी और एलर्जी होती है, उनके लिए ये जरूरी है.

अगर ओएमई की समस्या की पहचान वक्त पर न हो पाए या फिर इलाज में देरी हो जाए तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं. ईयरड्रम को डैमेज हो सकता है, और फिर कान की बीमारी हो सकती है. इस सबके कारण सुनने की क्षमता कम हो सकती है, कान बहने लगते हैं और दूसरी अन्य समस्याएं भी हो जाती हैं. ऐसे में ओएमई के नकारात्मक प्रभाव से बचाव के लिए इससे बचाव और शुरुआती इंटरवेंशन बेहद जरूरी है. समय पर इलाज से ओएमई की समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है और सुनने की क्षमता को बचाया जा सकता है.

जिन लोगों को ये समस्या होने का खतरा है उनकी लगातार स्क्रीनिंग कराने की जरूरत है. मां-बाप, केयर टेकर और मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोगों के बीच अवेयरनेस फैलाने के साथ ही ओएमई के शुरुआती लक्षणों के बारे में सबको बताने की जरूरत है ताकि समय पर इलाज किया जा सके.

शैक्षिक अभियान और सामुदायिक आउटरीच प्रोग्राम ओएमई की रोकथाम और मैनेजमेंट में अहम भूमिका निभा सकते हैं. कान की हेल्थ के बारे में लोगों को सचेत करके, इसके अर्ली डिटेक्शन की जानकारी देकर हम संयुक्त रूप से ओएमई से संबंधित परेशानियों से बचाव कर सकते हैं.

इस वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर पर सब लोग मिलकर कान और सुनने की क्षमता पर ध्यान दें, ओएमई से संबंधित रिस्क के बचाव के बारे में जागरूकता फैलाएं. हम सब मिलकर ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर व्यक्ति की समय पर जांच हो, समय पर इलाज मिले और उनकी सुनने की शक्ति प्रभावित न हो. आइए मिलकर ऐसे समाज की कल्पना करें जहां हर शख्स को कान की सेहत से जुड़े मामलों में बेहतर से बेहतर ट्रीटमेंट मिल सके और वो मिडिल ईयर की समस्याओं से निजात पा सकें.

  मरीचिका: क्यों परेशान थी इला – भाग 1

राजन शाम को घर में घुसते ही बोला, ‘‘इला, शनिवार को तैयार रहना, सब मित्रों के साथ मनाली जाने का कार्यक्रम बनाया है.’’

इला सुन कर भी रसोई में बैठी चुपचाप अपना काम करती रही. अब की बार राजन जरा जोर से बोला, ‘‘इला, सुन लिया न, शनिवार को मनाली जाने का कार्यक्रम है?’’

इला ? झल्ला सी गई, ‘‘हांहां, सुन लिया. लेकिन तुम्हीं जाना. तुम तो जानते ही हो कि मुझे पहाड़ पर आनेजाने में कितनी परेशानी होती है.’’

‘‘इस में परेशानी की क्या बात है. मतली रोकने के लिए खट्टीमीठी गोलियां चूसती रहना.’’

‘‘मुझे साथ घसीटने की तुक क्या है? तुम्हारा मन है, तुम्हीं चले जाना,’’ इला ने दो टूक शब्दों में कहा.

राजन खिन्न सा हो गया कि पता नहीं कैसी है इला. कोई भी कार्यक्रम बनाओ, कभी सिरदर्द तो कभी मूड खराब, सदा कोई न कोई बहाना लगा ही रहता है. वह गुस्से में पैर पटकता हुआ बिना चाय पीए ही बाहर चला गया. इतना जरूर कहता गया, ‘‘अकेले ही जाना होता तो शादी किसलिए की थी?’’

इला को बुरा भी लगा व अपने पर क्रोध भी आया. कितना दुख देती है राजन को वह. हर समय उस के पिकनिक या सैर के उत्साह पर पानी फेर देती है. वह उसे प्रसन्न करने का भरसक प्रयत्न करता है परंतु इला का मन सदा बुआबुआ ही रहता है. शादी को 2 साल होने का आए परंतु अब तक वह अपने अतीत को नहीं भुला पाई।

कालेज में पढ़ते समय अपने सहपाठी रमण के साथ इला की जानपहचान मित्रता की सीमाओं से काफी आगे बढ़ गई थी. बस में दोनों एकसाथ चढ़ कर विश्वविद्यालय जाते थे. शुरूशुरू में तो मुलाकात एकदूसरे की पहचान तक ही सीमित रही, फिर धीरेधीरे अनजाने ही दोनों एकदूसरे की प्रतीक्षा करने लगे. जब तक दूसरा न आ जाता, उन में से कोई बस में न चढ़ता. सुब्रत पार्क से विश्वविद्यालय तक कितना लंबा सफर था. एकडेढ़ घंटे तक दोनों गप्पें मारते रहते. समय कैसे कट जाता, पता ही न चलता.

विश्वविद्यालय में दोनों आर्ट्स फैक्लटी के स्टौप पर उतरते. कक्षा के बाद अकसर दोनों कैफे में जा बैठते. चारों ओर छात्रों की भीड़ रहती. रमण काउंटर पर पेमैंट कर खानेपीने का सामान ले आता. कभी कड़की होने पर दोनोें एकएक हौट डौग खरीद कर कहीं छाया में बैठ कर खा लेते. दोनों की मित्रता सहज भाव से चल रही थी.

पढ़ाई का मूड होता तो दोपहर भी लाइब्रेरी में बैठ कर दोनों नोट बनाते रहते. रमण खूब मेधावी था. उस के सारे नोट तैयार भी हो जाते और इला अभी किताबों में ही उल?ा होती. फिर वह तंग आ कर रमण के नोट ही ले लेती.

एम.ए. (प्रथम वर्ष) में रमण ने इला की खूब सहायता की. तभी इला के पिता का ट्रांसफर दिल्ली से बाहर हो गया. बिछुड़ने के समय इला और रमण को पता चला कि उन की मित्रता मात्र मित्रता न रह कर प्रेम में परिवर्तित हो चुकी है. दोनों में चैटिंग होती रहा. फिर रमण सेना में कमीशन ले कर सैनिक अधिकारी हो गया. उसे लगा यह नौकरी अच्छी एडवैंचरस होगी.

प्रशिक्षण के बाद वह मोरचे पर भेज दिया गया. वहां से भी इला को उस के मैसेज आते रहे. पर इला हर समय भय और आशंका से त्रस्त रहती. कहीं किसी टैररिस्ट घटना में कुछ अनिष्ट न घट जाए. जब कुछ दिन पौलिटिकल डिप्लोमेसी से संघर्ष विराम हुआ तो इला की जान में जान आई.

अब रमण इला से मिलने आया. अब तक इला एक पब्लिक स्कूल में टीचर बन चुकी थी. रमण स्कूल से ही इला को चाय के लिए बाहर ले गया व उस के मातापिता से मिलने की इच्छा प्रकट की.

‘‘अभी नहीं रमण, घर में मेरे ताऊजी आए हुए हैं. वे बहुत पुराने विचारों के हैं. यदि उन्हें पता चला कि मैं तुम से प्रेम करती हूं तो वे मु?ो जान से ही मार देंगे. पिताजी भी उन की बात कभी नहीं टालते. वे उन्हें मेरे और तुम्हारे विरुद्ध कर देंगे. पिताजी उन की बहुत सुनते है क्योंकि वही गांव में पुश्तैनी 100 एकड़ जमीन संभालते हैं. उन का गांव और पौलिटिक्स में दबदबा है. वे गांव की खाप के मुखिया भी हैं.

‘‘परंतु मु?ा में क्या दोष है?’’ रमण बोला.

‘‘इतनी बात भी नहीं सम?ाते? तुम ब्राह्मण हो और हम जाट.’’

‘‘ओह,’’ कुछ क्षण चुप रहने के बाद रमण ने पूछा, ‘‘तुम भी यह सब मानती हो क्या?’’

‘‘सवाल मेरे मानने या न मानने का नहीं परंतु बड़ों को हम कैसे सम?ाएं?’’

रमण इला के पिता से मिलना चाहता था परंतु इला के मना करने पर न मिला. 2 दिन

ठहर कर वह फिर चला गया. जाते समय इला को लगा जैसे कोई उस के शरीर का एक भाग काट कर ले गया हो. कितना फब रहा था रमण सेना के कैप्टेन की वर्दी में. बिलकुल अभिनेता जैसा. क्या जानती थी इला कि यही उस से अंतिम भेंट है. फिर अचानक बहुत कुछ घट गया. पिता का रक्तचाप बहुत बढ़ गया. वह अचानक एक दिन आंगन में चक्कर खा कर गिर पड़े. डाक्टर ने आ कर देखा और पूरे 1 महीने तक आराम करने को कहा. घर में सब को सम?ा दिया गया कि उन्हें किसी प्रकार का सदमा न पहुंचने दिया जाए.

मानसिक आघात से हृदय को आघात लगने का खतरा था. इला के बड़े भाई, जिन्हें उस के व रमण के संबंधों की भनक मिल चुकी थी, इला को सम?ाने लगे कि इन दिनों पिताजी को स्वप्न में भी गुमान न हो कि वह एक विजातीय लड़के से प्रेम करती है. इस से उन का जीवन खतरे में पड़ जाएगा. इला ने रमण को एक चैट में सब बता दिया और आगे से चैट करने से मना कर दिया.

2 महीने बाद इला के पिता अच्छे हो गए और दफ्तर जाने लगे. तभी राजन के घर से इला के लिए रिश्ता आया. राजन हर प्रकार से उपयुक्त था. अच्छी नौकरी थी. देखने में भी अच्छाखासा था. फिर वह अपनी बिरादरी का भी था. पिता को यह रिश्ता बहुत पसंद आया और फिर लड़के वाले स्वयं रिश्ता मांग रहे थे. इला उन की एक ही बेटी थी. आंगन में गिरने की घटना से वे बहुत आशंकित रहने लगे थे. सोचते, पता नहीं कब जीवन का अंत हो जाए, जितनी शीघ्र बेटी के हाथ पीले हो जाएं, अच्छा है. अब तो घर बैठे इतना बढि़या रिश्ता आया था. इला की मां को उन्होंने इला से बात करने को कहा.

 

मां ने जब इला से बात चलाई तो वह सम?ा न पाई कि क्या उत्तर दे. कैसे अंधविश्वासों में डूबी मां से रमण के विषय में कहे. इस छोटे से शहर में ‘प्रेम विवाह’ के नाम से कैसा बवंडर

उठ खड़ा होगा, यह वह अपनी सखी रमा के विवाह के समय जान चुकी थी. रमा ने एक विजातीय लड़के से अदालत में विवाह कर लिया था परंतु रमा तो पहले ही अपने चाचाचाची के दुर्व्यवहार से तंग थी. शादी के बाद उस ने अपने सब पुराने रिश्ते तोड़ डाले थे और अपना नया घर बसाने चली गई थी. मगर इला तो ऐसा नहीं कर सकती थी.

और फिर कहीं पिता को रमण के साथ प्रेम संबंधों का पता चलाने पर दिल का दौरा पड़ गया तो? छोटे भाई अभी स्कूल में पढ़ रहे थे. उन की भोली सूरतें उस की आंखों के आगे घूम जातीं. पिताजी के बाद कमाने वाले तो केवल बड़े भैया ही हैं. कैसे वह इतनी स्वार्थी बन जाए? अपने प्रेम के लिए मां का सुहाग व बच्चों से पिता कैसे छीन ले?

मां से उस ने सोचने के लिए 2 दिन का समय ले लिया. मां ने भी सोचा, पढ़ीलिखी, अपने पैरों पर खड़ी लड़की है, ?ाट से हां कैसे कर देगी. इला ने भाई से बात की. भाई पहले तो सोच में पड़े रहे, फिर बोले, ‘‘देख ले, इला, पिताजी के हैल्थ के

विषय में तो तू जानती ही है. अपने भाई का भविष्य अंधकारमय कर क्या तू स्वयं पितृविहीन हो कर प्रसन्न रह सकेगी? फिर राजन में भी तो कोई कमी नहीं है. रमण ऐसा तु?ो क्या खास दे देगा, जो राजन के पास नहीं है?’’

इला ने निश्चय कर लिया कि रमण को अपनी स्मृति से निकाल कर मांबाप का कहना मानने में ही सब का कल्याण है. सो उस ने मां से ‘हां’ कह दी. जीवन के कटु यथार्थ के सामने भावुकता का क्या मूल्य? विवाह का निमंत्रणपत्र अपने हाथों से नाम व पता लिख कर उसे कूरियर से रमण को भेज दिया.

 

हर विभाजन दर्द देता है

हमारे यहां संयुक्त परिवार की बड़ी महत्ता गाई जाती है. ज्यादातर हिंदी धारावाही जौइंट फैमिली के किरदारों के चारों ओर घूमते हैं जिन में 1 सास, 2-3 बहुएं, ननदें, ननदोई, देवरदेवरानियां और कहींकहीं ताड़का समान एक विधवा बूआ या चाचीताई भी होती है. इन धारावाहियों में ही नहीं, असल जीवन में भी औरतों का ज्यादा समय इस तथाकथित जौइंट फैमिली को तोड़ने में लगता है. हम शायद जौइंट परिवार को तोड़ने की प्रक्रिया का एक अर्थ सम?ाते हैं और जब यह जौइंट परिवार टूट जाता है, दीवारें खड़ी हो जाती हैं, नजदीकी रिश्तों में अनबोला हो जाता है तो ही सुखी परिवार बनता है.

यह आम परिवार की ही कहानी नहीं, यह पूरे देश की कहानी है. इस देश की पौराणिक कहानियों को लें या उस इतिहास को लें जो अंगरेजों के बाद बौद्ध व मुसलिम लेखकों द्वारा लिखा गया और उन पांडुलिपियों के आधार पर तैयार किया गया जो सदियों से भारत भूमि से बाहर के मठों, मसजिदों में थीं. उन में भी हमारे यहां निरंतर तोड़ने की प्रक्रिया का दर्शन होता है.

अब यह रुक गया है क्या? टूटने की प्रक्रिया प्राकृतिक है. हर पेड़ टूटता है पर वह अपने टूटने से पहले कई नए पेड़ों को जन्म दे देता है. हमारे यहां टूटने के बाद अंत हो जाता है. रामायणकाल की कथा परिवार के टूटने के बाद खत्म हो जाती है. महाभारत में अंत में सब खास लोग युद्ध में मारे जाते हैं या फिर पहाड़ों में जा कर मर जाते हैं.

दोनों कथाओं में पारिवारिक विघटन ही केंद्र में है. उस युग की कोई चीज विरासत में हमें मिली है तो वह परिपार्टी है जिस में समय से पहले तोड़ने, पार्टीशन करने और पार्टीशन से पहले लंबे दुखदायी संघर्ष की ट्रेनिंग दी जाती है.

8 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली पर एक धार्मिक आधार पर टूटन के बाद. मुगलों ने बहुत बड़े इलाके को एकसाथ रखा और तब व्यापार बढ़ा, सड़कें बनीं, किले और दीवारदार शहर बसे. अंगरेजों ने देश को सड़कों, रेलों, टैलीग्राफ और बाद में टैलीफोन व रेडियो से जोड़ा. इन का ईजाद हमारे यहां नहीं हुआ हो पर अंगरेजों ने यहां के लोगों को उपहार में दे दिया ताकि हम जुड़े रहें. उन के पहले कोलकाता? से फिर दिल्ली से चलने वाले केंद्रीय शासन ने एक देश की कल्पना को साकार किया.

आज हम क्या कर रहे हैं? आज धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर तोड़ने को महिमामंडित किया जा रहा है. देशभर में तोड़ने पर आमादा लोगों को इकट्ठा किया जा रहा है और वे कोई न कोई बहाना बना रहे हैं. पहले की बनी इमारतों, सोच और हकों को तोड़ रहे हैं. सरकार कहती है कि वह देश को ऐक्सप्रैसवे से जोड़ रही है, हवाईजहाजों से जोड़ रही है, वंदे भारत ट्रेनों से जोड़ रही है पर यह जोड़ना उन खास लोगों तक सीमित है जो जाति, सत्ता या पैसे के शिखर पर बैठे हैं. जब 85 करोड़ लोगों को मुफ्त खाना दिया जा रहा हो तो क्या उन्हें उन से जुड़ा मानना चाहिए जो हवाईजहाजों और स्पैशल ट्रेनों में तोड़ने की प्रक्रिया के महान उत्सव में पहुंचे थे?

यह तोड़ना देश की रगरग में है. यह हमारा ही देश है जहां हर पौलिटिकल पार्टी टूटती है. भारतीय जनता पार्टी का भी एक बार बड़ा विभाजन हुआ था जब पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने अपनी पार्टी बनाई थी. हर मठ के कई हिस्से हो जाते हैं. मंदिरों में पुजारियों के विवाद अदालतों में चलते रहते हैं.

औद्योगिक घरानों की टूट तो जगजाहिर है. हर बड़ा घर टूट चुका है. जिन्होंने बड़े विशाल मंदिर बनाए थे, उन के भी. बड़ी बात है कि हर टूट के बाद बाजेगाजे से उत्सव मनता है. गलियों में लालाओं की बड़ी दुकान के 2 हिस्से होते हैं तो दोनों अपने हिस्से बड़े आयोजन से शुरू करते हैं. पूरे परिवार को बुलाया जाता है. कईकई दक्षिणा लेने वाले पहुंचते हैं, मुहूर्त देखे जाते हैं, मिठाइयां बंटती हैं. अफसोस नहीं होता कि यह अप्राकृतिक विभाजन हुआ क्यों.

हर विभाजन दर्द देता ही है, चाहे जितनी खुशियां मना लो. भारतपाकिस्तान और पाकिस्तान व बंगलादेश के विभाजनों ने इसे विशाल ब्रिटिश इंडिया जो 14 अगस्त, 1947 को एक था, के 3 टुकड़े देखे. तीनों के रहने वालों के दिलों में टूटन का दर्द है पर ऊपर से उछलते हैं जब दूसरे को कोई परेशानी हो. यही सनातन संस्कार हैं.

मेरी उम्र 25 साल है और मेरे कई दांत हिलने लगे हैं, इसके क्या कारण हैं ?

सवाल

मैं 25 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मेरे कई दांत हिलने लगे हैं. ऐसा क्यों है और इसका इलाज क्या है?

जवाब

दांतों का ढीलापन एक प्रकार की बीमारी है, जिसे पेरियोडोंटल के नाम से जाना जाता है. दांतों के हिलने की समस्या तब होती है जब दांतों के आसपास के टिशू यानी मसूढ़े ढीले पड़ने लगते हैं. ओरल हाइजीन में कमी होने से दांतों में कीड़ा लग जाता है, जो अन्य कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है. ये सभी चीजें मसूढ़ों को प्रभावित करती हैं, जिस से दांतों के हिलने की समस्या होती है.

इस समस्या से राहत पाने के लिए घरेलू उपायों की मदद ली जा सकती है, लेकिन सब से पहले डैंटल ऐक्सपर्ट से चैकअप कराना जरूरी है. जब तक बीमारी की जड़ न पकड़ में आ जाए, तब तक खुद से कोई इलाज नहीं अपनाना चाहिए.

दांतों के हिलने की समस्या को घरेलू उपायों से ठीक करना चाहती हैं, तो नमक के पानी से कुल्ला करें. ऐसा करने से दांत और मसूढ़े मजबूत बनते हैं. नियमितरूप से कालीमिर्च और हलदी के पेस्ट से दांतों की मालिश करने से भी समस्या दूर होगी. लहसुन में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, इसलिए इसे दांतों के बीच दबा कर रखने से उन्हें मजबूती मिलती है.

Hair Care Tips: जानिए कब और कितनी बार धोएं बाल

Hair Care Tips: आप बालों को हफ्ते में कितनी बार धोती हैं, यह बात कुछ हालातों पर आधारित होती हैं. इसके अलावा आपके बाल किस प्रकार के हैं, आपकी लाइफस्‍टाइल कैसी है और आपके सिर की त्‍वचा कैसी है, ये सब बातें बालों को शैंपू करने के लिए बहुत मायने रखती हैं. कई लोग एक ही बार शैंपू कर लेते हैं और सोचते हैं उनका काम खतम हो गया. पर ऐसा नहीं होता क्‍योंकि आपके सिर को नियमित सफाई की बहुत आवश्‍यकता होती है. चलिए जानते हैं कि किस प्रकार के बालों को कितनी बार धोना चाहिये.

कब धोएं बाल

1. औयली बाल

अगर आपके बाल तेलीय हैं तो आपको हर दूसरे दिन बाल धोने चाहिये. अगर आपको जानना है कि आपके बाल तेलीय हैं तो एक टेस्‍ट करें. अपने बालों को शैंपू से धोएं और दूसरे दिन अपनी सिर की त्‍वचा पर टिशू पेपर दबा कर देखें की बाल तेल लगा हैं या नहीं. इससे आपको पता चल जाएगा कि आपके बाल औयली किसम के हैं.

2. सूखी त्‍वचा

अगर आपके बालों में रूसी होती है तब आपको किसी अन्‍य किसम के ट्रीटमेंट की जरुरत पड़ेगी. वैसे तो आपको बाल शैंपू करने से पहले हॉट ऑइल से मसाज करनी चाहिये पर हर रोज़ यह करना संभव नहीं होगा. लेकिन अगर सिर को साफ पानी से रोज धो लिया जाए तो इस समस्‍या से छुटकारा मिल सकता है.

3. मोटे बाल

अगर आपके बाल नॉर्मल हैं और उनमें चमक भी है तो आपको दो दिन छोड़ कर बाल धोनें चाहिये. पर अगर उपयुक्‍त बातें आपको सूट नहीं करतीं तब आपको बालों की स्‍पेशल केयर करने की बहुत जरुरत पड़गी.

4. हेयरस्‍टाइल

अगर आपकी बाल खोलने की आदत है तो ज़ाहिर सी बात है कि उसमें गंदगी घुसेगी ही. इसलिए कोशिश करें कि अपने बालों को बांध लिया करें या फिर ऊपर से स्‍कार्फ लगा लिया करें. इससे आपके बालों को रोज रोज धोने की जरुरत नहीं पड़ेगी.

5. बालों की लंबाई

छोटे बालों को रोज धोने की जरुरत नहीं पडती है. पर लंबे बालों को हाई मेंटेन्‍स की बहुत जरुरत पड़ती है.

घरौंदा : क्यों दोराहे पर खड़ी थी रेखा की जिंदगी

लेखिका- प्रमिला नानिवेडकर

दिल्ली से उस के पति का तबादला जब हैदराबाद की वायुसेना अकादमी में हुआ था तब उस ने उस नई जगह के बारे में उत्सुकतावश पति से कई प्रश्न पूछ डाले थे. उस के पति अरुण ने बताया था कि अकादमी हैदराबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर है. वायुसैनिकों के परिवारों के अलावा वहां और कोई नहीं रहता. काफी शांत जगह है. यह सुन कर रेखा काफी प्रसन्न हुई थी. स्वभाव से वह संकोचप्रिय थी. उसे संगीत और पुस्तकों में बहुत रुचि थी. उस ने सोचा, चलो, 3 साल तो मशीनी, शहरी जिंदगी से दूर एकांत में गुजरेंगे. अकादमी में पहुंचते ही घर मिल गया था, यह सब से बड़ी बात थी. बच्चों का स्कूल, पति का दफ्तर सब नजदीक ही थे. बढि़या पुस्तकालय था और मैस, कैंटीन भी अच्छी थी.

पर इसी कैंटीन से उस के हृदय के फफोलों की शुरुआत हुई थी. वहां पहुंचने के दूसरे ही दिन उसे कुछ जरूरी कागजात स्पीड पोस्ट करने थे, इसलिए उन्हें बैग में रख कर कुछ सामान लेने के लिए वह कैंटीन में पहुंची. सामान खरीद चुकने के बाद घड़ी देखी तो एक बजने को था. अभी खाना नहीं बना था. बच्चे और पति डेढ़ बजे खाने के लिए घर आने वाले थे. सुबह से ही नए घर में सामान जमाने में वह इतनी व्यस्त थी कि समय ही न मिला था. कैंटीन के एक कर्मचारी से उस ने पूछा, ‘‘यहां नजदीक कोई पोस्ट औफिस है क्या?’’

‘‘नहीं, पोस्ट औफिस तो….’’

तभी उस के पास खड़े एक व्यक्ति, जो वेशभूषा से अधिकारी ही लगता था, ने उस से अंगरेजी में पूछा था, ‘‘क्या मैं आप की मदद कर सकता हूं? मैं उधर ही जा रहा हूं.’’ थोड़ी सी झिझक के साथ ही उस के साथ चल दी थी और उस के प्रति आभार प्रदर्शित किया था.

रेखा शायद वह बात भूल भी जाती क्योंकि नील के व्यक्तित्व में कोई असाधारण बात नहीं थी लेकिन उसी शाम को नील उस के पति से मिलने आया था और फिर उन लोगों में दोस्ती हो गई थी.

नील देखने में साधारण ही था, पर उस का हंसमुख मिजाज, संगीत में रुचि, किताबीभाषा में रसीली बातें करने की आदत और सब से बढ़ कर लोगों की अच्छाइयों को सराहने की उस की तत्परता, इन सब गुणों से रेखा, पता नहीं कब, दोस्ती कर उस के बहुत करीब पहुंच गई थी.

नील की पत्नी, अपने बच्चों के साथ बेंगलुरु में रहती थी. वह अपने पिता की इकलौती बेटी थी और विशाल संपत्ति की मालकिन. अपनी संपत्ति को वह बड़ी कुशलता से संभालती थी. बच्चे वहीं पढ़ते थे. छुट्टियों में वे नील के पास आ जाते या नील बेंगलुरु चला जाता.

लोगों ने उस के और उस की पत्नी के बारे में अनेक अफवाहें फैला रखी थीं. कोई कहता, ‘बड़ी घमंडी औरत है, नील को तो अपनी जूती के बराबर भी नहीं समझती.’ दूसरा कहता, ‘नहीं भई, नील तो दूसरी लड़की को चाहता था, लेकिन पढ़ाई का खर्चा दे कर उस के ससुर ने उसे खरीद लिया.’ स्त्रियां कहतीं, ‘वह इस के साथ कैसे खुश रह सकती है? उसे तो विविधता पसंद है.’

लेकिन नील इन सब अफवाहों से अलग था. वह जिस तरह सब से मेलजोल रखता था, उसे देख कर यह सोचना भी असंभव लगता कि उस की पत्नी से पटती नहीं होगी.

रेखा को इन अफवाहों की परवा नहीं थी. दूसरों की त्रुटियों में उसे कोई रुचि नहीं थी. जल्दी ही उसे अपने मन की गहराइयों में छिपी बात का पता लग गया था, और तब गहरे पानी में डूबने वाले व्यक्ति की सी घुटन उस ने महसूस की थी. ‘यह क्या हो गया?’ यही वह अपनेआप से पूछती रहती थी.

रेखा को पति से कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि वह उसे प्यार ही करती आई थी. अपने बच्चों से, अपने घर से उसे बेहद लगाव था. शायद इसी को वह प्यार समझती थी. लेकिन अब 40 की उम्र के करीब पहुंच कर उस के मन ने जो विद्रोह कर दिया था, उस से वह परेशान हो गईर् थी.

वह नील से मिलने का बहाना ढूंढ़ती रहती. उसे देखते ही रेखा के शरीर में एक विद्युतलहरी सी दौड़ जाती. नील के साथ बात करने में उसे एक विचित्र आनंद मिलता, और सब से अजीब बात तो यह थी कि नील की भी वैसी ही हालत थी. रेखा उस की आंखों का प्यार, याचना, स्नेह, परवशता-सब समझ लेती थी और नील भी उस की स्थिति समझता था.

वहां के मुक्त वातावरण में लोगों का ध्यान इस तरफ जाना आसान नहीं था. और इसी कारण से दोनों दूसरों से छिप कर मानसिक साहचर्य की खोज में रहते और मौका मिलते ही, उस साहचर्य का आनंद ले लेते.

अजीब हालत थी. जब मन नील की प्रतीक्षा में मग्न रहता, तभी न जाने कौन उसे धिक्कारने लगता. कई बार वह नील से दूर रहने का निर्णय लेती पर दूसरे ही क्षण न जाने कैसे अपने ही निर्णय को भूल जाती और नील की स्मृति में खो जाती. रेखा अरुण से भी लज्जित थी. अरुण की नील से अच्छी दोस्ती थी. वह अकसर उसे खाने पर या पिकनिक के लिए बुला लाता. ऐसे मौकों पर जब वह मुग्ध सी नील की बातों में खो जाती, तब मन का कोई कोना उसे बुरी तरह धिक्कारता.

रेखा के दिमाग पर इन सब का बहुत बुरा असर पड़ रहा था. न तो वह हैदराबाद छोड़ कर कहीं जाने को तैयार थी, न हैदराबाद में वह सुखी थी. कई बार वह छोटी सी बात के लिए जमीनआसमान एक कर देती और किसी के जरा सा कुछ कहने पर रो देती. अरुण ने कईर् बार कहा, ‘‘तुम अपनी बहन सुधा के पास 15-20 दिनों के लिए चली जाओ, रेखा. शायद तुम बहुत थक गई हो, वहां थोड़ा अच्छा महसूस करोगी.’’

रेखा की आंखें, इन प्यारभरी बातों से भरभर आतीं, लेकिन बच्चों के स्कूल का बहाना कर के वह टाल जाती. ऐसे में उस ने नील के तबादले की बात सुनी. उस का हृदय धक से रह गया. इस की कल्पना तो उस ने या नील ने कभी नहीं की थी. हालांकि दोनों में से एक को तो अकादमी छोड़ कर पहले जाना ही था. अब क्या होगा? रेखा सोचती रही, ‘इतनी जल्दी?’

एक दिन नील का मैसेज आया. उस ने स्पष्ट शब्दों में पूछा था, ‘‘क्या तुम अरुण को छोड़ कर मेरे साथ आ सकती हो?’’ बहुत संभव है कि फिर हमें एक साथ, एक जगह, रहने का मौका कभी न मिले. मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा, पता नहीं. पर, मैं तुम्हें मजबूर भी नहीं करूंगा. सोच कर मुझे बताना. सिर्फ हां या न कहने से मैं समझ जाऊंगा. मुझे कभी कोई शिकायत नहीं होगी.’’

रेखा ने मैसेज कई बार पढ़ा. हर शब्द जलते अंगारे की तरह उस के दिल पर फफोले उगा रहा था. आगे के लिए बहुत सपने थे. अरुण से भी बेहतर आदमी के साथ एक सुलझा हुआ जीवन बिताने का निमंत्रण था.

और पीछे…17 साल से तिनकातिनका इकट्ठा कर के बनाया हुआ छोटा सा घरौंदा था. प्यारेप्यारे बच्चे थे, खूबियों और खामियों से भरपूर मगर प्यार करने वाला पति था. सामाजिक प्रतिष्ठा थी, और बच्चों का भविष्य उस पर निर्भर था.

लेकिन उन्हीं के साथ, उसी घरौंदे में विलीन हो चुका उस का अपना निजी व्यक्तित्व था. कितने टूटे हुए सपने थे, कितनी राख हो चुकी उम्मीदें थीं. बहुत से छोटेबड़े घाव थे. अब भी याद आने पर उन में से कभीकभी खून बहता है. चाहे प्रौढ़त्व ने अब उसे उन सब दुखों पर हंसना सिखा दिया हो पर यौवन के कितने अमूल्य क्षणों का इसी पति की जिद के लिए, उस के परिवार के लिए उस ने गला घोंट लिया. शायद नील के साथ का जीवन इन बंधनों से मुक्त होगा. शायद वहां साहचर्य का सच्चा सुख मिलेगा. शायद…

लेकिन पता नहीं. अरुण के साथ कई वर्ष गुजारने के बाद अब वह क्या नील की कमजोरियों से भी प्यार कर सकेगी? क्या बच्चों को भूल सकेगी? नील की पत्नी, उस के बच्चे, अरुण, अपने बच्चे-इन सब की तरफ उठने वाली उंगलियां क्या वह सह सकेगी?

नहीं…नहीं…इतनी शक्ति अब उस के पास नहीं बची है. काश, नील पहले मिलता.

रेखा रोई. खूब रोई. कई दिन उलझनों में फंसी रही.

उस शाम जब उस ने अरुण के  साथ पार्टी वाले हौल में प्रवेश किया तो उस की आंखें नील को ढूंढ़ रही थीं. उस का मन शांत था, होंठों पर उदास मुसकान थी. डीजे की धूम मची थी. सुंदर कपड़ों में लिपटी कितनी सुंदरियां थिरक रही थीं. पाम के गमले रंगबिरंगे लट्टुओं से चमक रहे थे और खिड़की के पास रखे हुए लैंप स्टैंड के पास नील खड़ा था हाथ में शराब का गिलास लिए, आकर्षक भविष्य के सपनों, आत्मविश्वास और आशंका के मिलेजुले भावों में डूबताउतराता सा.

अरुण के साथ रेखा वहां चली गई. ‘‘आप के लिए क्या लाऊं?’’ नील ने पूछा. रेखा ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘नहीं, कुछ नहीं, मैं शराब नहीं पीती.’’

नील कुछ समझा नहीं, हंस कर बोला, ‘‘मैं तो जानता हूं आप शराब नहीं पीतीं, पर और कुछ?’’

‘‘नहीं, मैं फिर एक बार कह रही हूं, नहीं,’’ रेखा ने कहा और वहां से दूर चली गई. अरुण आश्चर्य से देखता रहा लेकिन नील सबकुछ समझ गया था.

सुपर पॉवर मिलने पर अभिनेत्री रिया शर्मा क्या करना चाहती है, पढ़े इंटरव्यू

अभिनेत्री रिया शर्मा महाराष्ट्र के नागपुर की है. उनकी मां प्रतिमा शर्मा एक यूट्यूबर हैं. उन्होंने नागपुर, महाराष्ट्र के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है. उन्होंने ‘सात फेरो की हेरा फेरी’, से कैरियर की शुरुआत की थी, इसके बाद उन्होंने “ये रिश्ते हैं प्यार के”, “तू सूरज मैं साँझ पियाजी”, “इतना ना करो मुझे प्यार के लिए” आदि कई धारावाहिकों में अभिनय के लिए जानी जाती हैं. आज उनका नाम टेलीविज़न जगत में बड़ी अभिनेत्रीयों में गिना जाता हैं. इसके अलावा वह हिंदी फिल्म रिया “एम.एस धोनी” में छोटा सा रोल निभा चुकी हैं. अभी रिया सोनी सब टीवी पर ‘ध्रुव तारा – समय सदी से परे’ यह एक फेंटासी शो है, जिसमें रिया ने तारा की भूमिका निभाई है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है. इस शो के प्रमोशन पर रिया ने अपनी जर्नी के बारें में बात की,पेश है कुछ अंश.

मिली प्रेरणा

रिया का कहना है कि मेरा अभिनय में आना एक इत्तफाक था. मुझे बचपन से ही परफोर्मेंस पसंद रहा, स्कूल से आने के बाद मैं आइने के सामने खड़ी होकर डायलाग बोलती थी. खुद से बातें करती थी और मुझे दर्शकों की वाहावाही बहुत पसंद थी, लेकिन मुझे ये पता नहीं था कि मैं एक्ट्रेस ही बनूँगी. दूर -दूर तक कभी मुंबई आने के बारें में नहीं सोचा था. अचानक मुझे शो ‘फियर फाइल्स’ एपिसोड की लीड के लिए बुलाया गया था, मैंने ऑडिशन दिया और चुनी गई और मुंबई आ गयी, जबकि मेरी पूरी फॅमिली एजुकेशन बैकग्राउंड से है.

मिला सहयोग

रिया कहती है कि मेरी माँ प्रतिमा शर्मा बहुत सपोर्टिव थी, बचपन में मुझे पोएट्री रिसाईटिंग, स्टेज ड्रामा आदि में ले जाती थी. उन्हें पता था कि मुझे ये सब पसंद है. कॉलेज में आने के बाद मैंने अभिनय को लेकर सोचना शुरू किया, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेले जाना मेरे लिए बड़ी बात थी, लेकिन जब इत्तफाक से मैं अभिनय के लिए चुनी गई, तो मेरे पेरेंट्स ने साथ दिया. 17 साल की उम्र से मैंने अभिनय शुरू किया.

रिलेटेबल है ये कहानी

रिया कहती है कि मैंने इस तरह के फेंटासी शो पहले भी किये है और इसे सुनकर मैं बहुत उत्साहित थी. इसमें कॉमेडी, ड्रामा और अलग तरीके की बातचीत सबकुछ शामिल है. जो मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं हमेशा ही कुछ न कुछ आगे के लाइफ के बारें में सोचती रहती हूँ और उसे इमेजिन भी करती हूँ. मुझे लगता है सभी जीवन में ऐसी बातें हमेशा ही सोचते है,

आगे क्या होगा, पीछे क्या हुआ था, लोग तब कैसे थे ये सब जानने की इच्छा होती है.

मुझे पास्ट और फ्यूचर में जाने की भी बहुत इच्छा है. इस चरित्र से मैं कुछ अवश्य रिलेट करती हूँ, जैसे छोटी-छोटी हाव-भाव जो मुझसे मेल खाती है. मैंने पहले जो भी भूमिका निभाई है, हर चरित्र से खुद को रिलेट कर पाई हूँ. इसमें तारा हर चीज को देखकर उत्साहित हो जाती है. मैं भी रियल लाइफ में छोटी-छोटी चीजो से खुश हो जाती हूँ.

होती है अनुभव की कमी

कोविड की वजह से लोगों ने भविष्य की प्लानिंग करना छोड़ दिया है, क्योंकि कल के बारें में किसी को पता नहीं, लेकिन टाइम लाइन पर अगर कोई भविष्य को जान पाता है, तो उसे लाइफ की प्लानिंग करना आसान होगा क्या? इस बारें में रिया कहती है कि अगर फ्यूचर देखकर उसमे कुछ सुधार कर सकती थी, तो जीवन में आये उतार-चढ़ाव का सामना करने के अनुभव को पाने में समर्थ नहीं होती.

था संघर्ष

रिया आगे कहती है कि रियलिटी यहाँ का अलग ही था, मैं नागपुर जैसे छोटे शहर से आई थी, जहाँ ट्राफिक नहीं थी, लाइफ इजी थी. कभी मैंने इतना संघर्ष नहीं किया, थोड़े पैसे जो घर से मिले थे. जब वह खत्म होने लगी, तब चिंता सताने लगी, इससे पहले मुंबई इसकी ग्लैमर से बहुत प्रभावित थी, यहाँ समस्या यह थी कि शूट की पेमेंट 40 दिन बाद होती है और मुझे पैसों की जरूरत थी, लेकिन मैंने पेरेंट्स से पैसे नहीं मांगे और अपने पैसे से गुजारा करना चाहती थी. हालाँकि पेरेंट्स ने कभी पैसे के लिए मना नहीं किया, बल्कि ख़ुशी से देते थे, पर मेरे लिए अपने दम पर घर चलाना एक चुनौती थी और मैं वह कर पाई, जो मेरे लिए बड़ी बात रही. मैंने जिंदगी के बहुत कठिन समय को नजदीक से देखा है, इसलिए

आज जो भी मुझे मिलता है, उसमें खुश रहती हूँ.

इसके अलावा संघर्ष हमेशा रहता है, ये सही है कि अब चीजे थोड़ी आसान हुई है, लेकिन हमेशा कुछ अच्छा करने की कोशिश में संघर्ष है. असल में इंडस्ट्री के बारें में पता कर पाना आसान नहीं, क्योंकि यहाँ कभी काम है, कभी नहीं. कई बार एक काम मिलने के बाद आगे अच्छा मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं होती. मेरी माँ ने हमेशा कहा है कि लाइफ में रिस्क नहीं लेने से व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता और मुझे भी वह ऐसी ही सलाह देती आई है.

करना है हिंदी वेब और फिल्मों में काम

रिया हंसती हुई कहती है कि मैं हर शो के बाद मैं हिंदी फिल्मों और वेब में काम करने की इच्छा रखती हूँ, लेकिन कोई ढंग का काम नहीं मिलता. इसके अलावा मैं सोचती हूँ कि जब मुझे अच्छी शो में काम मिल रहा है, तो मैं मना कैसे कर सकती हूँ, क्योंकि आज बहुतों के पास एक अच्छा काम नहीं है. मुझे आगे चलकर हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज को भी एक्स्प्लोर करना है. मुझे को-स्टार अभिनेता संजय दत्त और निर्देशक राजकुमार हिरानी के साथ काम करने की बहुत इच्छा है.

फैशन है पसंद

रिया को वेस्टर्न और इंडियन दोनों तरीके की पोशाक पसंद है. ये अधिकतर उनके मूड पर निर्भर होता है. वह हर तरीके की ड्रेस पहनती है.

रिश्तों को सहेजना है जरुरी

रिया कहती है कि रिश्तों में आजकल बहुत सारे बदलाव आ चुके है, आज रिश्तों में एक एडवेंचर या चुनौती होती है. मेरे हिसाब से किसी रिश्ते को संबंधों में बाँध लेने से उसे जीने में आसानी होती है, पर आज ऐसा नहीं है, बिना शर्तों के प्यार चलती है, शर्तों से वे बिगड़ जाती है. सपनो का राजकुमार मेरे जीवन में नहीं है. अभी सपने सिर्फ कैरियर ही है. तनाव होने पर मैं खुद को समझा लेती हूँ कि मुझे एक अच्छा काम मिला है और मुझे इसे दिल से करना है. अधिकतर मुझे पेरेंट्स की याद आती है और समय की कमी की वजह से जा नहीं पाती. फ़ोन पर बात कर लेती हूँ.

दिया सन्देश

युवाओं को मेरा मेसेज है कि सभी को अपने पेरेंट्स को देखकर, उनके मेहनत को देखकर सीख लेनी है, किसी चीज के न मिलने पर परेशान न हो, बल्कि धीरज धरे और आगे बढे, तनाव न लें. इससे सफलता अवश्य मिलेगी. मुझे कोई सुपर पॉवर मिलने पर असहाय लोग और जानवरों के लिए कुछ काम करना चाहती हूँ.

Summer Fashion: इन 4 टिप्स के साथ दिखें कूल और स्टाइलिश

गर्मियों का मौसम आ चुका है. ऐसे में हर किसी को अपने स्किन की खास देखभाल करने की जरूरत होती है. वहीं गर्मियों में आप किस तरह के कपड़े पहनती हैं, किस तरह की जूलरी कैरी करती है, इससे भी आपकी त्वचा की देखभाल पर काफी असर पड़ता है. फैशन की बात करें तो कई बार महिलाओं के लिए यह तय करना बेहद मुश्किल हो जाता है कि वे किन फैशन टिप्स को फौलो करें. ताकि गर्मी में भी कूल और स्टाइलिश दिख सकें. ऐसे में अगर आप भी गर्मियों में कूल दिखने के साथ ही स्टाइलिश दिखना चाहती हैं, तो यहां हमारे बताएं कुछ टिप्स को फौलो करें.

कपड़ें

गर्मियों में किस तरह के कपड़ें पहने जाएं ये तय करना काफी जरूरी होता है. गर्मियों में लूज कपड़े पहनना एक बढ़िया विकल्प है. ऐसा इसलिए क्योंकि जितना कम कपड़ा आपके शरीर से टच होगा उतना ही यह आपको कूल रहने में मदद करेगा.

फैब्रिक पर ध्यान दें

गर्मियो मे कोई भी कपड़ा खरीदने से पहले उसके फैब्रिक पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. रेयान, पालियेस्टर, नायलान जैसे फैब्रिक्स को एवाइड करना ही बेहतर है. कई फैशन एक्सपर्ट्स के मुताबिक गर्मियों के लिए कौटन बेस्ट होता है. इसके अलावा हल्कें रंगो को कपड़े पहनना चाहिए.

फुल कवर

गर्मी में अक्सर लोग खुद को कूल रखने के लिए कट-स्लीव्स या फिर शौर्ट्स पहनने के बारे में सोचते हैं लेकिन इसका स्किन पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता. स्किन को धूप से बचाना जरूरी होता है ऐसे में आप जितना अपनी बौडी को कवर करके रखेंगी उतना ही आपके लिए फायदेमंद होगा. साथ ही गर्दन या चेहरे को ढ़कने के लिए कौटन स्कार्फ का इस्तेमाल करें. साथ ही कैप-हैट और आंखों के लिए सनग्लासिस भी साथ में रखें.

जूलरी

गर्मियों के दिनों में जितना हो सके उतनी ही कम जूलरी पहनने की कोशिश करें. अगर आपको जूलरी पहननी ही है तो छोटी इयररिंग्ज, पेंडेंट्स का इस्तेमाल करें. इस तरह  जूलरी आपकी त्वचा के कौन्टैक्ट में कम आएंगी. इससे आपकी स्किन सुरक्षित रहेगी. हो सके तो ब्रेसलेट्स, रिंग्स और मेटैलिक जूलरी को एवाइड करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें