घरौंदा : क्यों दोराहे पर खड़ी थी रेखा की जिंदगी

लेखिका- प्रमिला नानिवेडकर

दिल्ली से उस के पति का तबादला जब हैदराबाद की वायुसेना अकादमी में हुआ था तब उस ने उस नई जगह के बारे में उत्सुकतावश पति से कई प्रश्न पूछ डाले थे. उस के पति अरुण ने बताया था कि अकादमी हैदराबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर है. वायुसैनिकों के परिवारों के अलावा वहां और कोई नहीं रहता. काफी शांत जगह है. यह सुन कर रेखा काफी प्रसन्न हुई थी. स्वभाव से वह संकोचप्रिय थी. उसे संगीत और पुस्तकों में बहुत रुचि थी. उस ने सोचा, चलो, 3 साल तो मशीनी, शहरी जिंदगी से दूर एकांत में गुजरेंगे. अकादमी में पहुंचते ही घर मिल गया था, यह सब से बड़ी बात थी. बच्चों का स्कूल, पति का दफ्तर सब नजदीक ही थे. बढि़या पुस्तकालय था और मैस, कैंटीन भी अच्छी थी.

पर इसी कैंटीन से उस के हृदय के फफोलों की शुरुआत हुई थी. वहां पहुंचने के दूसरे ही दिन उसे कुछ जरूरी कागजात स्पीड पोस्ट करने थे, इसलिए उन्हें बैग में रख कर कुछ सामान लेने के लिए वह कैंटीन में पहुंची. सामान खरीद चुकने के बाद घड़ी देखी तो एक बजने को था. अभी खाना नहीं बना था. बच्चे और पति डेढ़ बजे खाने के लिए घर आने वाले थे. सुबह से ही नए घर में सामान जमाने में वह इतनी व्यस्त थी कि समय ही न मिला था. कैंटीन के एक कर्मचारी से उस ने पूछा, ‘‘यहां नजदीक कोई पोस्ट औफिस है क्या?’’

‘‘नहीं, पोस्ट औफिस तो….’’

तभी उस के पास खड़े एक व्यक्ति, जो वेशभूषा से अधिकारी ही लगता था, ने उस से अंगरेजी में पूछा था, ‘‘क्या मैं आप की मदद कर सकता हूं? मैं उधर ही जा रहा हूं.’’ थोड़ी सी झिझक के साथ ही उस के साथ चल दी थी और उस के प्रति आभार प्रदर्शित किया था.

रेखा शायद वह बात भूल भी जाती क्योंकि नील के व्यक्तित्व में कोई असाधारण बात नहीं थी लेकिन उसी शाम को नील उस के पति से मिलने आया था और फिर उन लोगों में दोस्ती हो गई थी.

नील देखने में साधारण ही था, पर उस का हंसमुख मिजाज, संगीत में रुचि, किताबीभाषा में रसीली बातें करने की आदत और सब से बढ़ कर लोगों की अच्छाइयों को सराहने की उस की तत्परता, इन सब गुणों से रेखा, पता नहीं कब, दोस्ती कर उस के बहुत करीब पहुंच गई थी.

नील की पत्नी, अपने बच्चों के साथ बेंगलुरु में रहती थी. वह अपने पिता की इकलौती बेटी थी और विशाल संपत्ति की मालकिन. अपनी संपत्ति को वह बड़ी कुशलता से संभालती थी. बच्चे वहीं पढ़ते थे. छुट्टियों में वे नील के पास आ जाते या नील बेंगलुरु चला जाता.

लोगों ने उस के और उस की पत्नी के बारे में अनेक अफवाहें फैला रखी थीं. कोई कहता, ‘बड़ी घमंडी औरत है, नील को तो अपनी जूती के बराबर भी नहीं समझती.’ दूसरा कहता, ‘नहीं भई, नील तो दूसरी लड़की को चाहता था, लेकिन पढ़ाई का खर्चा दे कर उस के ससुर ने उसे खरीद लिया.’ स्त्रियां कहतीं, ‘वह इस के साथ कैसे खुश रह सकती है? उसे तो विविधता पसंद है.’

लेकिन नील इन सब अफवाहों से अलग था. वह जिस तरह सब से मेलजोल रखता था, उसे देख कर यह सोचना भी असंभव लगता कि उस की पत्नी से पटती नहीं होगी.

रेखा को इन अफवाहों की परवा नहीं थी. दूसरों की त्रुटियों में उसे कोई रुचि नहीं थी. जल्दी ही उसे अपने मन की गहराइयों में छिपी बात का पता लग गया था, और तब गहरे पानी में डूबने वाले व्यक्ति की सी घुटन उस ने महसूस की थी. ‘यह क्या हो गया?’ यही वह अपनेआप से पूछती रहती थी.

रेखा को पति से कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि वह उसे प्यार ही करती आई थी. अपने बच्चों से, अपने घर से उसे बेहद लगाव था. शायद इसी को वह प्यार समझती थी. लेकिन अब 40 की उम्र के करीब पहुंच कर उस के मन ने जो विद्रोह कर दिया था, उस से वह परेशान हो गईर् थी.

वह नील से मिलने का बहाना ढूंढ़ती रहती. उसे देखते ही रेखा के शरीर में एक विद्युतलहरी सी दौड़ जाती. नील के साथ बात करने में उसे एक विचित्र आनंद मिलता, और सब से अजीब बात तो यह थी कि नील की भी वैसी ही हालत थी. रेखा उस की आंखों का प्यार, याचना, स्नेह, परवशता-सब समझ लेती थी और नील भी उस की स्थिति समझता था.

वहां के मुक्त वातावरण में लोगों का ध्यान इस तरफ जाना आसान नहीं था. और इसी कारण से दोनों दूसरों से छिप कर मानसिक साहचर्य की खोज में रहते और मौका मिलते ही, उस साहचर्य का आनंद ले लेते.

अजीब हालत थी. जब मन नील की प्रतीक्षा में मग्न रहता, तभी न जाने कौन उसे धिक्कारने लगता. कई बार वह नील से दूर रहने का निर्णय लेती पर दूसरे ही क्षण न जाने कैसे अपने ही निर्णय को भूल जाती और नील की स्मृति में खो जाती. रेखा अरुण से भी लज्जित थी. अरुण की नील से अच्छी दोस्ती थी. वह अकसर उसे खाने पर या पिकनिक के लिए बुला लाता. ऐसे मौकों पर जब वह मुग्ध सी नील की बातों में खो जाती, तब मन का कोई कोना उसे बुरी तरह धिक्कारता.

रेखा के दिमाग पर इन सब का बहुत बुरा असर पड़ रहा था. न तो वह हैदराबाद छोड़ कर कहीं जाने को तैयार थी, न हैदराबाद में वह सुखी थी. कई बार वह छोटी सी बात के लिए जमीनआसमान एक कर देती और किसी के जरा सा कुछ कहने पर रो देती. अरुण ने कईर् बार कहा, ‘‘तुम अपनी बहन सुधा के पास 15-20 दिनों के लिए चली जाओ, रेखा. शायद तुम बहुत थक गई हो, वहां थोड़ा अच्छा महसूस करोगी.’’

रेखा की आंखें, इन प्यारभरी बातों से भरभर आतीं, लेकिन बच्चों के स्कूल का बहाना कर के वह टाल जाती. ऐसे में उस ने नील के तबादले की बात सुनी. उस का हृदय धक से रह गया. इस की कल्पना तो उस ने या नील ने कभी नहीं की थी. हालांकि दोनों में से एक को तो अकादमी छोड़ कर पहले जाना ही था. अब क्या होगा? रेखा सोचती रही, ‘इतनी जल्दी?’

एक दिन नील का मैसेज आया. उस ने स्पष्ट शब्दों में पूछा था, ‘‘क्या तुम अरुण को छोड़ कर मेरे साथ आ सकती हो?’’ बहुत संभव है कि फिर हमें एक साथ, एक जगह, रहने का मौका कभी न मिले. मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा, पता नहीं. पर, मैं तुम्हें मजबूर भी नहीं करूंगा. सोच कर मुझे बताना. सिर्फ हां या न कहने से मैं समझ जाऊंगा. मुझे कभी कोई शिकायत नहीं होगी.’’

रेखा ने मैसेज कई बार पढ़ा. हर शब्द जलते अंगारे की तरह उस के दिल पर फफोले उगा रहा था. आगे के लिए बहुत सपने थे. अरुण से भी बेहतर आदमी के साथ एक सुलझा हुआ जीवन बिताने का निमंत्रण था.

और पीछे…17 साल से तिनकातिनका इकट्ठा कर के बनाया हुआ छोटा सा घरौंदा था. प्यारेप्यारे बच्चे थे, खूबियों और खामियों से भरपूर मगर प्यार करने वाला पति था. सामाजिक प्रतिष्ठा थी, और बच्चों का भविष्य उस पर निर्भर था.

लेकिन उन्हीं के साथ, उसी घरौंदे में विलीन हो चुका उस का अपना निजी व्यक्तित्व था. कितने टूटे हुए सपने थे, कितनी राख हो चुकी उम्मीदें थीं. बहुत से छोटेबड़े घाव थे. अब भी याद आने पर उन में से कभीकभी खून बहता है. चाहे प्रौढ़त्व ने अब उसे उन सब दुखों पर हंसना सिखा दिया हो पर यौवन के कितने अमूल्य क्षणों का इसी पति की जिद के लिए, उस के परिवार के लिए उस ने गला घोंट लिया. शायद नील के साथ का जीवन इन बंधनों से मुक्त होगा. शायद वहां साहचर्य का सच्चा सुख मिलेगा. शायद…

लेकिन पता नहीं. अरुण के साथ कई वर्ष गुजारने के बाद अब वह क्या नील की कमजोरियों से भी प्यार कर सकेगी? क्या बच्चों को भूल सकेगी? नील की पत्नी, उस के बच्चे, अरुण, अपने बच्चे-इन सब की तरफ उठने वाली उंगलियां क्या वह सह सकेगी?

नहीं…नहीं…इतनी शक्ति अब उस के पास नहीं बची है. काश, नील पहले मिलता.

रेखा रोई. खूब रोई. कई दिन उलझनों में फंसी रही.

उस शाम जब उस ने अरुण के  साथ पार्टी वाले हौल में प्रवेश किया तो उस की आंखें नील को ढूंढ़ रही थीं. उस का मन शांत था, होंठों पर उदास मुसकान थी. डीजे की धूम मची थी. सुंदर कपड़ों में लिपटी कितनी सुंदरियां थिरक रही थीं. पाम के गमले रंगबिरंगे लट्टुओं से चमक रहे थे और खिड़की के पास रखे हुए लैंप स्टैंड के पास नील खड़ा था हाथ में शराब का गिलास लिए, आकर्षक भविष्य के सपनों, आत्मविश्वास और आशंका के मिलेजुले भावों में डूबताउतराता सा.

अरुण के साथ रेखा वहां चली गई. ‘‘आप के लिए क्या लाऊं?’’ नील ने पूछा. रेखा ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘नहीं, कुछ नहीं, मैं शराब नहीं पीती.’’

नील कुछ समझा नहीं, हंस कर बोला, ‘‘मैं तो जानता हूं आप शराब नहीं पीतीं, पर और कुछ?’’

‘‘नहीं, मैं फिर एक बार कह रही हूं, नहीं,’’ रेखा ने कहा और वहां से दूर चली गई. अरुण आश्चर्य से देखता रहा लेकिन नील सबकुछ समझ गया था.

सुपर पॉवर मिलने पर अभिनेत्री रिया शर्मा क्या करना चाहती है, पढ़े इंटरव्यू

अभिनेत्री रिया शर्मा महाराष्ट्र के नागपुर की है. उनकी मां प्रतिमा शर्मा एक यूट्यूबर हैं. उन्होंने नागपुर, महाराष्ट्र के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है. उन्होंने ‘सात फेरो की हेरा फेरी’, से कैरियर की शुरुआत की थी, इसके बाद उन्होंने “ये रिश्ते हैं प्यार के”, “तू सूरज मैं साँझ पियाजी”, “इतना ना करो मुझे प्यार के लिए” आदि कई धारावाहिकों में अभिनय के लिए जानी जाती हैं. आज उनका नाम टेलीविज़न जगत में बड़ी अभिनेत्रीयों में गिना जाता हैं. इसके अलावा वह हिंदी फिल्म रिया “एम.एस धोनी” में छोटा सा रोल निभा चुकी हैं. अभी रिया सोनी सब टीवी पर ‘ध्रुव तारा – समय सदी से परे’ यह एक फेंटासी शो है, जिसमें रिया ने तारा की भूमिका निभाई है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है. इस शो के प्रमोशन पर रिया ने अपनी जर्नी के बारें में बात की,पेश है कुछ अंश.

मिली प्रेरणा

रिया का कहना है कि मेरा अभिनय में आना एक इत्तफाक था. मुझे बचपन से ही परफोर्मेंस पसंद रहा, स्कूल से आने के बाद मैं आइने के सामने खड़ी होकर डायलाग बोलती थी. खुद से बातें करती थी और मुझे दर्शकों की वाहावाही बहुत पसंद थी, लेकिन मुझे ये पता नहीं था कि मैं एक्ट्रेस ही बनूँगी. दूर -दूर तक कभी मुंबई आने के बारें में नहीं सोचा था. अचानक मुझे शो ‘फियर फाइल्स’ एपिसोड की लीड के लिए बुलाया गया था, मैंने ऑडिशन दिया और चुनी गई और मुंबई आ गयी, जबकि मेरी पूरी फॅमिली एजुकेशन बैकग्राउंड से है.

मिला सहयोग

रिया कहती है कि मेरी माँ प्रतिमा शर्मा बहुत सपोर्टिव थी, बचपन में मुझे पोएट्री रिसाईटिंग, स्टेज ड्रामा आदि में ले जाती थी. उन्हें पता था कि मुझे ये सब पसंद है. कॉलेज में आने के बाद मैंने अभिनय को लेकर सोचना शुरू किया, लेकिन इतने बड़े शहर में अकेले जाना मेरे लिए बड़ी बात थी, लेकिन जब इत्तफाक से मैं अभिनय के लिए चुनी गई, तो मेरे पेरेंट्स ने साथ दिया. 17 साल की उम्र से मैंने अभिनय शुरू किया.

रिलेटेबल है ये कहानी

रिया कहती है कि मैंने इस तरह के फेंटासी शो पहले भी किये है और इसे सुनकर मैं बहुत उत्साहित थी. इसमें कॉमेडी, ड्रामा और अलग तरीके की बातचीत सबकुछ शामिल है. जो मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं हमेशा ही कुछ न कुछ आगे के लाइफ के बारें में सोचती रहती हूँ और उसे इमेजिन भी करती हूँ. मुझे लगता है सभी जीवन में ऐसी बातें हमेशा ही सोचते है,

आगे क्या होगा, पीछे क्या हुआ था, लोग तब कैसे थे ये सब जानने की इच्छा होती है.

मुझे पास्ट और फ्यूचर में जाने की भी बहुत इच्छा है. इस चरित्र से मैं कुछ अवश्य रिलेट करती हूँ, जैसे छोटी-छोटी हाव-भाव जो मुझसे मेल खाती है. मैंने पहले जो भी भूमिका निभाई है, हर चरित्र से खुद को रिलेट कर पाई हूँ. इसमें तारा हर चीज को देखकर उत्साहित हो जाती है. मैं भी रियल लाइफ में छोटी-छोटी चीजो से खुश हो जाती हूँ.

होती है अनुभव की कमी

कोविड की वजह से लोगों ने भविष्य की प्लानिंग करना छोड़ दिया है, क्योंकि कल के बारें में किसी को पता नहीं, लेकिन टाइम लाइन पर अगर कोई भविष्य को जान पाता है, तो उसे लाइफ की प्लानिंग करना आसान होगा क्या? इस बारें में रिया कहती है कि अगर फ्यूचर देखकर उसमे कुछ सुधार कर सकती थी, तो जीवन में आये उतार-चढ़ाव का सामना करने के अनुभव को पाने में समर्थ नहीं होती.

था संघर्ष

रिया आगे कहती है कि रियलिटी यहाँ का अलग ही था, मैं नागपुर जैसे छोटे शहर से आई थी, जहाँ ट्राफिक नहीं थी, लाइफ इजी थी. कभी मैंने इतना संघर्ष नहीं किया, थोड़े पैसे जो घर से मिले थे. जब वह खत्म होने लगी, तब चिंता सताने लगी, इससे पहले मुंबई इसकी ग्लैमर से बहुत प्रभावित थी, यहाँ समस्या यह थी कि शूट की पेमेंट 40 दिन बाद होती है और मुझे पैसों की जरूरत थी, लेकिन मैंने पेरेंट्स से पैसे नहीं मांगे और अपने पैसे से गुजारा करना चाहती थी. हालाँकि पेरेंट्स ने कभी पैसे के लिए मना नहीं किया, बल्कि ख़ुशी से देते थे, पर मेरे लिए अपने दम पर घर चलाना एक चुनौती थी और मैं वह कर पाई, जो मेरे लिए बड़ी बात रही. मैंने जिंदगी के बहुत कठिन समय को नजदीक से देखा है, इसलिए

आज जो भी मुझे मिलता है, उसमें खुश रहती हूँ.

इसके अलावा संघर्ष हमेशा रहता है, ये सही है कि अब चीजे थोड़ी आसान हुई है, लेकिन हमेशा कुछ अच्छा करने की कोशिश में संघर्ष है. असल में इंडस्ट्री के बारें में पता कर पाना आसान नहीं, क्योंकि यहाँ कभी काम है, कभी नहीं. कई बार एक काम मिलने के बाद आगे अच्छा मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं होती. मेरी माँ ने हमेशा कहा है कि लाइफ में रिस्क नहीं लेने से व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता और मुझे भी वह ऐसी ही सलाह देती आई है.

करना है हिंदी वेब और फिल्मों में काम

रिया हंसती हुई कहती है कि मैं हर शो के बाद मैं हिंदी फिल्मों और वेब में काम करने की इच्छा रखती हूँ, लेकिन कोई ढंग का काम नहीं मिलता. इसके अलावा मैं सोचती हूँ कि जब मुझे अच्छी शो में काम मिल रहा है, तो मैं मना कैसे कर सकती हूँ, क्योंकि आज बहुतों के पास एक अच्छा काम नहीं है. मुझे आगे चलकर हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज को भी एक्स्प्लोर करना है. मुझे को-स्टार अभिनेता संजय दत्त और निर्देशक राजकुमार हिरानी के साथ काम करने की बहुत इच्छा है.

फैशन है पसंद

रिया को वेस्टर्न और इंडियन दोनों तरीके की पोशाक पसंद है. ये अधिकतर उनके मूड पर निर्भर होता है. वह हर तरीके की ड्रेस पहनती है.

रिश्तों को सहेजना है जरुरी

रिया कहती है कि रिश्तों में आजकल बहुत सारे बदलाव आ चुके है, आज रिश्तों में एक एडवेंचर या चुनौती होती है. मेरे हिसाब से किसी रिश्ते को संबंधों में बाँध लेने से उसे जीने में आसानी होती है, पर आज ऐसा नहीं है, बिना शर्तों के प्यार चलती है, शर्तों से वे बिगड़ जाती है. सपनो का राजकुमार मेरे जीवन में नहीं है. अभी सपने सिर्फ कैरियर ही है. तनाव होने पर मैं खुद को समझा लेती हूँ कि मुझे एक अच्छा काम मिला है और मुझे इसे दिल से करना है. अधिकतर मुझे पेरेंट्स की याद आती है और समय की कमी की वजह से जा नहीं पाती. फ़ोन पर बात कर लेती हूँ.

दिया सन्देश

युवाओं को मेरा मेसेज है कि सभी को अपने पेरेंट्स को देखकर, उनके मेहनत को देखकर सीख लेनी है, किसी चीज के न मिलने पर परेशान न हो, बल्कि धीरज धरे और आगे बढे, तनाव न लें. इससे सफलता अवश्य मिलेगी. मुझे कोई सुपर पॉवर मिलने पर असहाय लोग और जानवरों के लिए कुछ काम करना चाहती हूँ.

Summer Fashion: इन 4 टिप्स के साथ दिखें कूल और स्टाइलिश

गर्मियों का मौसम आ चुका है. ऐसे में हर किसी को अपने स्किन की खास देखभाल करने की जरूरत होती है. वहीं गर्मियों में आप किस तरह के कपड़े पहनती हैं, किस तरह की जूलरी कैरी करती है, इससे भी आपकी त्वचा की देखभाल पर काफी असर पड़ता है. फैशन की बात करें तो कई बार महिलाओं के लिए यह तय करना बेहद मुश्किल हो जाता है कि वे किन फैशन टिप्स को फौलो करें. ताकि गर्मी में भी कूल और स्टाइलिश दिख सकें. ऐसे में अगर आप भी गर्मियों में कूल दिखने के साथ ही स्टाइलिश दिखना चाहती हैं, तो यहां हमारे बताएं कुछ टिप्स को फौलो करें.

कपड़ें

गर्मियों में किस तरह के कपड़ें पहने जाएं ये तय करना काफी जरूरी होता है. गर्मियों में लूज कपड़े पहनना एक बढ़िया विकल्प है. ऐसा इसलिए क्योंकि जितना कम कपड़ा आपके शरीर से टच होगा उतना ही यह आपको कूल रहने में मदद करेगा.

फैब्रिक पर ध्यान दें

गर्मियो मे कोई भी कपड़ा खरीदने से पहले उसके फैब्रिक पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. रेयान, पालियेस्टर, नायलान जैसे फैब्रिक्स को एवाइड करना ही बेहतर है. कई फैशन एक्सपर्ट्स के मुताबिक गर्मियों के लिए कौटन बेस्ट होता है. इसके अलावा हल्कें रंगो को कपड़े पहनना चाहिए.

फुल कवर

गर्मी में अक्सर लोग खुद को कूल रखने के लिए कट-स्लीव्स या फिर शौर्ट्स पहनने के बारे में सोचते हैं लेकिन इसका स्किन पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता. स्किन को धूप से बचाना जरूरी होता है ऐसे में आप जितना अपनी बौडी को कवर करके रखेंगी उतना ही आपके लिए फायदेमंद होगा. साथ ही गर्दन या चेहरे को ढ़कने के लिए कौटन स्कार्फ का इस्तेमाल करें. साथ ही कैप-हैट और आंखों के लिए सनग्लासिस भी साथ में रखें.

जूलरी

गर्मियों के दिनों में जितना हो सके उतनी ही कम जूलरी पहनने की कोशिश करें. अगर आपको जूलरी पहननी ही है तो छोटी इयररिंग्ज, पेंडेंट्स का इस्तेमाल करें. इस तरह  जूलरी आपकी त्वचा के कौन्टैक्ट में कम आएंगी. इससे आपकी स्किन सुरक्षित रहेगी. हो सके तो ब्रेसलेट्स, रिंग्स और मेटैलिक जूलरी को एवाइड करें.

घर पर बनाएं रेस्टोरेंट स्टाइल क्रीमी रोस्टेड बेल पेपर पास्ता

आजकल की बिजी लाइफ में लोग पास्ता और नूडल्स खाना ज्यादा पसंद करते हैं. वह पास्ता खाने के लिए रेस्टोरेंट जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि घर पर भी रेस्टोरेंट स्टाइल पास्ता बनाया जा सकता है. आज हम आपको क्रीम रोस्टेड बेल पेपर पास्ता की आसान रेसिपी बताएंगे, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को ब्रेकफास्ट या स्नैक्स में परोस सकते हैं.

हमें चाहिए-

-1 हरी शिमलामिर्च

–  1 कप पास्ता पका

– 2 हरे प्याज

-1 मिर्च

– 1/2 कप पनीर के छोटेछोटे टुकड़े

– 1 बड़ा चम्मच तेल

-1 बड़ा चम्मच क्रीम

-नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

शिमलामिर्च को अच्छी तरह धो कर साफ कर आंच पर रोस्ट करें. रोस्ट होने पर छिलका और बीज निकाल कर अलग रखें. इसी तरह प्याज को भी रोस्ट करें. मिक्सी में हरी शिमलामिर्च, प्याज और मिर्च का पेस्ट बना लें. कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर उस में पेस्ट को हलका भून लें. पनीर, क्रीम और पका पास्ता मिला कर गरमगरम सर्व करें.

फिर एक दिन: भाग 1- आखिर क्या थी सबीना की दर्दभरी कहानी

रात को अचानक अमोल की आंख खुली तो देखा, बराबर में लेटी अमृता का शरीर हलकेहलके हिल रहा है. कहीं वह रो तो नहीं रही, यह विचार आते ही वह उठ बैठा. उस ने कमरे में हलकी सी बाहर से आती रोशनी में गौर से अमृता का चेहरा देखा तो अमृता ने भी आहट से आंखें खोल दीं साइड लैंप का स्विच औन किया. वह रो रही थी. अमोल ने उसे बांहों में भर लिया. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

अमृता और जोर से सिसक पड़ी. ऐसा होता है न, जब मन किसी दुख में जल रहा हो, कोई शीतल सा स्पर्श पाते ही मन भरभरा पड़ता है, स्नेहिल स्पर्श से और बिखरबखर जाता है.

अमोल ने उस के बाल सहलाए, ‘‘अब तो चिंता के दिन गए, अमृता. हमारी परेशानी खत्म होने वाली है, जल्दी ही घर में नन्हा मेहमान आने वाला है. अब तो उस के वैलकम की तैयारी करो.’’

अमृता उठ कर बैठ गई. भरे गले से बोली, ‘‘काश, मेरी हिस्टेरेक्टोमी न हुई होती, यूटरस न निकाला गया होता, मैं अपने बच्चे की मां खुद बनती तो कितना अच्छा होता. यह सरोगेसी के चक्कर में पड़ना ही न पड़ता.’’

‘‘तुम्हें तो इस बात पर खुश होना चाहिए कि आज इस तकनीक से हमारे घर में भी रौनक होगी. घर वाले भी यह मान गए हैं, किसी ने कोई आपत्ति नहीं की. अब सो जाओ, कल डाक्टर छवि के पास भी जाना है. चिंता मत करो, सब ठीक होगा.’’

अमोल ने उसे तो सोने के लिए कह दिया पर उस की आंखों से भी नींद गायब हो चुकी थी. कुछ अजीब तो लग रहा था. पता नहीं कौन औरत उस के बच्चे को अपनी कोख में रखेगी, कैसे संस्कार होंगे, धर्मकर्म वाली होगी भी या नहीं, यह सब तो पता नहीं चलने वाला था. उस की बस एक ही चिंता थी कि वह औरत उन्हीं के जैसी हो. अब वह 40 का हो चुका था, अमृता 38 की. अब तो अमृता की बीमारी के बाद यह स्पष्ट हो चुका था कि जब यूटरस ही नहीं रहा तो बच्चा कहां से आता. बहुत विचारविमर्श के बाद डाक्टर छवि से सैरोगेट मदर के माध्यम से बच्चा पैदा करने की बात की थी.

अमोल उत्तर प्रदेश के राजातालाब में रहने वाला कपड़ों का एक बड़ा व्यापारी. उस का रैडीमेड कपड़ों का एक बड़ा शोरूम था. सुंदर, सलोनी सी अमृता, उस की प्यारी पत्नी जिस पर वह जान छिड़कता. घर में ये दोनों ही थे. अब जैसेजैसे समय सरक रहा था, घर का सन्नाटा अकसर अस्वस्थ रहने वाली अमृता को और उदास कर जाता. दोनों को बच्चे की कमी शिद्दत से खलती तो अब डाक्टर छवि से, आगे क्या कर सकते हैं, इस पर बातचीत चल रही थी. यों ही सोतेजागते दोनों की रात बीती.

अगली सुबह दोनों नाश्ता कर के डाक्टर के क्लीनिक चले गए. डाक्टर छवि का ‘जीवन ज्योति’ क्लीनिक छोटा था पर मरीजों की लाइन लगी रहती. वह लगभग 45 साल की खुशमिजाज डाक्टर थी. उस से बात करते हुए मरीज को अपनी तकलीफ, परेशानी यों ही कम लगने लगती थी जोकि एक डाक्टर की बड़ी खासीयत होती है.

छोटी जगह की हंसमुख डाक्टर अब अमृता से बात कर रही थी, ‘‘क्या हुआ? आप लोग इतने परेशान क्यों लग रहे हो? अब तो आप की मुश्किल भी खत्म हो गई है. एजेंट बता रहा था कि बनारस की एक विधवा ब्राह्मण आप के काम के लिए मिल गई है, आप को ब्राह्मण ही चाहिए थी न? इस प्रक्रिया में ऐसा कम ही होता है कि सैरोगेट मदर अपनी मरजी के धर्म की मिले. फिर क्यों परेशान हो रही हो, अमृता?’’

‘‘हम उस से मिल सकते हैं? एक बार देख लें जो हमारे बच्चे को जन्म देगी कि वह कैसी है.’’

‘‘वैसे तो मिलना नहीं चाहिए पर एक बार वह प्रैगनैंट हो जाए तो मिलवा दूंगी. पहले प्रक्रिया पूरी हो जाए.’’

‘‘क्याक्या करना है, डाक्टर साहब?’’ अमोल ने बेचैनी से पूछा. मां कहलाए जाने की जितनी बेचैनी एक औरत के अंदर होती है, पुरुष भी पिता कहलाए जाने के लिए उतना ही अधीर रहता है. यह अलग बात है कि वह जाहिर नहीं करता.

‘‘यह ठीक रहेगा?’’ अमृता ने फिर पूछ लिया.

छवि ने मुसकराते हुए दोनों के सवालों के जवाब दिए, ‘‘बिलकुल ठीक रहेगा.

प्रियंका चोपड़ा, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जौहर, शिल्पा शेट्टी सब ने ही तो यह रास्ता अपनाया है, इस में कोई बुराई नहीं है. आसान शब्दों में सम?ाती हूं, अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी महिला की कोख में अपने बच्चे को पालना सरोगेसी है. सैरोगेसी मतलब किराए की कोख. अमोल के स्पर्म्स और मां के एग्स को मिला कर, सिम्मी, हां उस औरत का नाम सिम्मी है, के यूटरस में प्रत्यारोपित कर देंगे. सैरोगसी के नियमों के अनुसार वह 32 साल की है, शादीशुदा है, मनोचिकित्सक से बात हो गई है, मानसिक रूप से फिट होने का सर्टिफिकेट भी मिल जाएगा.’’

‘‘पैसे कितने लगेंगे और कितना टाइम लगेगा?’’

‘‘एजेंट बता रहा था कि वह क्व10 लाख लेगी और बाकी खर्चे भी आप ही देंगे… और 15 से 18 महीने का टाइम लग सकता है.’’

‘‘यह तो बहुत ज्यादा है.’’

‘‘यह आप लोग देख लीजिए. मेरी फीस अलग है. इतना तो लगता ही है.’’

‘‘हम एक बार उसे देख लेते तो हमें तसल्ली हो जाती.’’

छवि ने कुछ देर सोचा, अमोल और अमृता से पुरानी जानपहचान थी, कहा, ‘‘ठीक है, कल ही उसे आप से मिलवाने की कोशिश करती हूं.’’

अमृता के मन में कई तरह की जिज्ञासाएं थीं जो स्वाभाविक भी थीं. उस ने फिर पूछ लिया, ‘‘डाक्टर साहब, यह सब कैसे हो जाता है? मैं तो सोचसोच कर हैरान होती रहती हूं.’’

छवि ने उस की भोली सी जिज्ञासा पर मुसकराते हुए कहा, ‘‘पहले एग फर्टिलाइज डिश में होता है, फिर उसे सैरोगेट के यूटरस में प्लांट कर देते हैं. ऐसा भी होता है कि थोड़ा टाइम लग जाए, कई बार फर्टिलाइज्ड एग यूटरस में टिकता नहीं है. थोड़ा धैर्य बनाए रखना… यह सब जल्दीजल्दी का काम नहीं है.’’

एक्टिंग की कच्ची खिलाड़ी हैं खुशी कपूर

कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो फिल्म इंडस्ट्री में स्टार किड्स चल नहीं पाए हैं. शुरू की एकदो फिल्मों में उन के नाम का हल्ला जरूर रहता है पर कुछ समय बाद वे गायब से हो जाते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि उन में जिस तरह की स्किल्स चाहिए होती हैं वे कैटर नहीं कर पाते.

बौलीवुड व नैपोटिजम का एक उदाहरण इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल होते देखा जा रहा है. अपने डायरैक्शन के खास स्टाइल के लिए जानी जाने वाली जोया अख्तर ने ‘आर्चीज’ नाम से फिल्म बनाई, जिस में स्टार्स के बच्चों को एज ए रंगरूट भरती किया गया पर जैसे ही इस फिल्म और इस के ऐक्टर्स को ले कर सोशल मीडिया पर रिस्पौंस मिलने की गुंजाइश थी, वैसा ही हुआ.

फिल्म में नएनवेले ऐक्टर्स की एक्ंिटग को ले कर खूब मजे लिए गए. जो जैसा लताड़ सकता था उस ने वैसे लताड़ा. फिल्म के एक सीन में खुशी कपूर और सुहाना खान एक रैस्टोरैंट में बैठे होते हैं और बात कर रहे हैं जिस में सुहाना खान खुशी कपूर से माफी मांग रही होती है. उन के माफी मांगने वाले सीन में दोनों के ही फेस पर उन के एक्सप्रैशन उन के डायलौग से जरा भी मैच नहीं कर रहे होते.

एक और सीन है जिस में खुशी कहती है, ‘‘अगर हम ने आज यह पार्क जाने दिया तो एक भी पेड़ नहीं बचेगा.’’ यह डायलौग बोलते हुए खुशी सपाट लग रही होती है. उस से पेड़ शब्द भी सही से बोला नहीं जा रहा होता. जबकि फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले जोया अख्तर ने स्टारकिड्स को एक साल की ऐक्ंिटग वर्कशौप भी करवाई थी. लेकिन फिर भी इन की यह हालत बताती है कि इस पेशे में जबरन घुसपैठ करना खुद के आग में हाथ डालने जैसा है.

फिल्म देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि स्टारकिड्स को मम्मीपापा के फेमस होने का पूरा फायदा मिला है. तभी नैटफ्लिक्स पर रिलीज हुई इस फिल्म में स्टारकिड्स की ऐक्ंिटग देखने के बाद इन्फ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स ने जम कर इन की क्लास भी लगाई है.

सोशल मीडिया पर कईयों ने लिखा, ‘इन से अच्छी ऐक्ंिटग तो मेरी कामवाली बाई कर लेती है.’ कुछ ने यहां तक लिख दिया कि इसे देखने के बाद मेरे सिर में दर्द होने लगा. कई यूट्यूबर्स ने निर्माता जोया अख्तर से अपील की है कि अगर आप नहीं चाहतीं कि आप की फिल्म को थिएटर में अंडे पड़ें तो इस के लिए आप स्टारकिड्स का साथ छोड दें.

फिल्म की सभी स्टारकास्ट बौलीवुड के हीरोहीरोइन के बच्चे हैं जो सिर्फ लाइमलाइट में आना जानते हैं, ऐक्ंिटग से दूरदूर तक इन का नाता नहीं है, चाहे खुद उन के घर में बड़ेबड़े स्टार्स क्यों न हों. अगर किसी का ऐक्ंिटग से जुड़ाव भी हो तो भी ये सोसाइटी से इतने कटेकटे रहते हैं कि एक्ट तो कर लेते हैं पर इमोशन नहीं पकड़ पाते.

बात करें अगर खुशी कपूर की लाइफ की तो ऐक्ट्रैस श्रीदेवी और मशहूर निर्माता बोनी कपूर की बेटी है जिस का जन्म 5 नंवबर, 2000 को महाराष्ट्र के मुंबई शहर में हुआ था. खुशी कपूर ने अपनी स्कूली पढ़ाई धीरूभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल से की है. उस ने लंदन कालेज से ग्रेजुएशन की है.

उस की बड़ी बहन जाह्नवी कपूर बौलीवुड का एक जानामाना चेहरा है. वहीं उन के सौतेले भाई अर्जुन कपूर भी एक ऐक्टर हैं. तीनों भाईबहन ऐक्ंिटग के लिहाज से सामान्य से नीचे हैं. उस की एक सौतेली बहन अंशुला कपूर भी है जो सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती है और अपनी पोस्ट के जरिए लाखों रुपए कमाती है. साथ ही, वह प्रोडक्ट्स के प्रमोशन भी करती है.

खुशी कपूर यंगस्टर्स के बीच कितनी फेमस है, इस का अंदाजा उस के इंस्टाग्राम अकांउट से ही लगाया जा सकता है. उस की इंस्ट्राग्राम आईडी है ्यद्धह्वह्यद्धद्ब05-173. उस के इंस्टाग्राम पर 1.3 मिलियन फौलोअर्स हैं. उस की एक पोस्ट पर लाखों लाइक्स आते हैं. इस के अलावा वह अपने स्टाइल और फैशन सैंस के लिए यंगस्टर्स के बीच काफी पौपुलर है.

वह रैगुलर जिम जाती है. उस का फेवरेट सिंगर जस्टिन बीबर है. शुरुआत में वह एक मौडल बनना चाहती थी लेकिन फिल्मी बैकग्राउंड के चलते वह भी फिल्मों में आ गई क्योंकि उसे यह खानदानी बिजनैस लगा पर लगता है उस का यह डिसिजन उसे ले डूबेगा क्योंकि उस की हालिया रिलीज फिल्म देख कर महसूस होता है कि अगर कोई करन जौहर टाइप निर्देशक उस के ऊपर लंबे समय तक दांव लगा सके तो ही वह आगे कुछ निखर पाए.

खुशी कपूर ने जोया अख्तर की फिल्म ‘द आर्चीज’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की है. फिल्म देख कर यह साफ कहा जा सकता है कि वह ऐक्ंिटग के मामले में नौसिखिया है. उस के फेस पर कोई एक्सप्रैशन नहीं हैं. डायलौग डिलीवरी तो ऐसी कि 12 साल का बच्चा उस से ज्यादा अच्छी ऐक्ंिटग कर ले.

स्टार और स्टारकिड्स को यह समझना चाहिए कि जरूरी नहीं है कि डाक्टर का बेटा डाक्टर ही बने, क्रिकेटर का बेटा क्रिकेटर ही बने. अगर आप किसी और चीज में माहिर हैं तो वहां हाथ आजमा कर बहुत आगे बढ़ा जा सकता है. वह काम करो जिस में आप का मन हो या अपनी स्किल्स पर काम कर सको और रिजल्ट में दम लाओ. इस के बाद ही फैसला करो कि आप को ऐक्टर बनना भी है या नहीं.

दरअसल, समस्या यह है कि खुशी कपूर या उस के समकक्ष स्टारकिड्स एक तरह की लैविश लाइफ जीते हैं, उन्हें पार्टियां करना पसंद है, देशविदेश की यात्राएं करते हैं, बड़ेबड़े महंगे देशविदेश के स्कूलकालेज में पढ़ते हैं. इन स्टारकिड्स को चकाचौंध तो पसंद आती है लेकिन उस चकाचौंध को कमाया कैसे जाता है, यह नहीं आता.

इन में से आधे से ज्यादा ऐक्टर्स को ठीक से हिंदी तक नहीं आती. ये लिटरेचर भी पढ़ते हैं तो अधिकतर विदेश का. रोमियोजूलियट पढ़ते हुए प्रेम में डूब जाते हैं पर हीररांझा, सोनीमहिवाल, लैलामजनूं के प्रेम को महसूस ही नहीं कर पाते. शेक्सपियर, हेनरी, फ्रेनान्दो, मिखाइल, पाब्लो, चार्ल्स डिकेन, दोस्तोवस्की को तो पढ़ लेते हैं पर कबीर, टैगोर, मिर्जा, खुशवंत, प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध को भूल जाते हैं.

इन स्टारकिड्स को समझना चाहिए कि आज भी शाहरुख खान नौन फिल्मी बैकग्राउंड के कलाकारों के लिए रोलमौडल इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने यह मुकाम तब हासिल किया जब उन के पास दौलत व शोहरत कुछ भी न थी. उन्होंने अगर परदे पर रोमांस किया तो उस का भारतीयकरण किया. इसी ने युवाओं को उन से जोड़ा.

हर बार जरूरी नहीं कि अच्छी शक्ल और फिगर काम कर जाए. टैलेंट होगा तो फिगर और शक्ल भी नोटिस की जाएगी.

मरजी की मालकिन: भाग-3 घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी रश्मि

औपचारिक बातचीत के बाद रश्मि ने पिछले दिनों अपने बेहोश होने की बात बताई. वर्षा के बताए कुछ टैस्ट्स की रिपोर्ट ले कर वह अगले दिन वर्षा के क्लीनिक पहुंची. उस की रिपोर्ट्स देखते ही वर्षा एकदम भड़क गई और गुस्से से बोली, ‘‘नौकरी के अलावा तु  झे कभी अपनी परवाह भी होती है बीपी, शुगर दोनों की शिकार हो चुकी है तू और हीमोग्लोबिन एकदम बाउंडरी पर है. ऐसे में तू बेहोश नहीं होगी तो और क्या होगा.

वर्षा से प्रिस्क्रिप्शन लेकर रश्मि घर आ गई. उन्हीं दिनों उस के मम्मीपापा अपनी बेटी से मिलने मुंबई आए. रश्मि की हालत देख कर उस की मां की आंखों में तो आंसू ही आ गए. बोलीं, ‘‘क्या हालत बना ली तूने बेटा… कितनी कमजोर हो गई है… अपना ध्यान क्यों नहीं रखती?’’

मां हमेशा से उस की सब से अच्छी दोस्त रही थीं सो मां के प्यार भरे शब्दों को सुनते ही वह फट पड़ी और रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘मां थक गई हूं अब मैं औफिस, घर और अक्षिता को संभालतेसंभालते,’’ यह कह कर उस ने सारी आपबीती मां को कह सुनाई.

‘‘जब तुम दोनों ही कामकाजी हों तो सारी जिम्मेदारियों को भी मिल कर ही संभालना चाहिए. यदि एक इंसान ही घरबाहर दोनों मोरचे पर लड़ेगा तो पस्त तो होगा ही. यदि अनुराग तु  झे सपोर्ट नहीं कर पा रहे तो मेरी मान छोड़ दे तू नौकरी, अब तेरी बेटी बड़ी हो रही है उसे समय दे… और अपनी सेहत पर ध्यान दे. जब तेरी सेहत ही नहीं रहेगी तो नौकरी कर के भी क्या करेगी बेटा.’’

कुछ दिनों बाद मम्मीपापा तो चले गए पर अपनी बेटी और अपनी खातिर उस ने बैंक से इस्तीफा देने का मन बना लिया. 6 माह के मानसिक द्वंद्व के उपरांत आखिर एक दिन उस ने इस्तीफा अपने बौस को सौंप दिया. घर आ कर जैसे ही उस ने इस की सूचना अनुराग को दी वह बिफर पड़ा, ‘‘क्या करोगी घर में पड़ीपड़ी… इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले एक बार मु  झ से पूछने की भी जरूरत नहीं सम  झी तुम ने. क्या जरूरत थी यह सब करने की? सब ठीक तो चल रहा था? इतनी महंगाई के जमाने में लगीलगाई नौकरी कोई छोड़ता है क्या? अपने खर्चे तुम्हें पता नहीं हैं क्या?’’ शायद उसे रश्मि के ऐसा करने की उम्मीद नहीं थी.

‘‘मेरी नौकरी, मेरी मरजी, जिस आत्मसम्मान के लिए मेरे मातापिता ने मु  झे आत्मनिर्भर बनाया वही नहीं है तो मेरे नौकरी करने का भी क्या लाभ… याद है जब मैं ने तुम्हें औफिस में बेहोश हो जाने की बात बताई थी तो तुम ने क्या कहा था, अपना ध्यान तो तुम्हें ही रखना पड़ेगा… कोई बात नहीं वर्षा को दिखा कर दवा ले लेना.’’

‘‘तुम्हारे बराबर कमाने के बाद भी अपने लिए एक साड़ी मैं नहीं खरीद सकती तो क्यों खटूं मैं घर, बैंक और बच्ची के बीच में.नौकरी मेरी मैं करूं या न करूं. मैं ने तो दसियों बार तुम से कहा था कि मु  झे मैनेज करने में परेशानी आ रही है पर शादी से पहले महिलापुरुष की बराबरी की बातें करने वाले तुम ने मेरी समस्या को समस्या ही नहीं सम  झा बल्कि हर बार यही कहा कि मैनेज नहीं कर पा रही तो छोड़ दो तो मैं ने छोड़ दी,’’ रश्मि ने कहा तो अनुराग वहां से उठ कर बैडरूम में चला गया और टीवी देखने में व्यस्त हो गया.

इस के बाद से रश्मि के और अनुराग के संबंधों में कुछ ठंडापन सा आ गया. कुछ दिनों तक नाराज रहने के बाद अनुराग एक दिन बड़े ही अच्छे मूड में था सो अंतरंग क्षणों में उस के बालों में अपनी उंगलियां फिरातेफिराते बोला, ‘‘रेषु क्या सच में तुम ने इस्तीफा दे दिया है?’’

‘‘हां अनुराग मैं मैनेज करने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी… तुम से पूछती तो तुम निस्संदेह मना करते… जबजब मैं ने अपनी परेशानी तुम से शेयर की तुम ने बजाय हल बताने या मेरी मदद करने के एक ही बात कही, नहीं कर पा रही हो तो छोड़ दो नौकरी. घरबाहर सभी जगहों पर तुम्हारा सहयोग नगण्य था… 40 की उम्र में मैं शुगर और बीपी जैसी बीमारियों को अपने गले लगा बैठी हूं… अब मैं अपनी पसंद का काम करूंगी और जिंदगी के मजे लूंगी क्योंकि मु  झे लगता है जिंदगी जीने के लिए है ढोने के लिए नहीं.’’

अनुराग चुपचाप सुनता रहा फिर धीरे से बोला, ‘‘वैसे कौन सा पसंद का काम करोगी और कौन से मजे लोगी मैं भी तो सुनूं?’’ अनुराग ने हलके से तैश से कहा.

‘‘शांति की जिंदगी, अपने शौक, अपनी बिटिया का साथ और अपनी सेहत. हम महिलाओं की यही तो समस्या है कि सब से पहले अपनी सेहत से सम  झौता कर लेती हैं पर मेरे लिए मेरी सेहत सब से पहले है. जो भी करूंगी अपने मन का करूंगी और अपना एक नया वजूद बनाऊंगी. जरूरी तो नहीं कुछ करने के लिए घर से बाहर ही जाया जाए. आधी उम्र तो खटतेखटते ही निकल गई है पर अब और नहीं,’’ कह कर रश्मि करवट ले कर सो गई.

भले ही अनुराग को रश्मि का निर्णय पसंद नहीं आया था पर चुप रह कर स्वीकार करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था.

अब रश्मि ने अपना पूरा ध्यान अपनी सेहत और अक्षिता पर केंद्रित कर दिया. उस की मेहनत का ही परिणाम था कि अक्षिता ने टैंथ में अपनी क्लास में टौप किया और वह खुद भी स्वयं को काफी सेहतमंद महसूस करने लगी थी.

उन्हीं दिनों उस की अभिन्न सखी अनीता का मुंबई आगमन हुआ. अनीता वनारस की ही थी और स्कूल से ले कर कालेज तक साथसाथ रहने के कारण दोनों की मित्रता बड़ी प्रगाढ़ थी. उस के पति अविनाश एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और अब मुंबई में ही शिफ्ट हो गए थे.

अनीता ने स्वयं भी कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की थी इसलिए जहां भी पति की सर्विस होती थी वहीं अपनी जौब भी ले लेती थी. सो यहां भी उस ने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में जौब जौइन कर ली थी. फोन पर तो अकसर दोनों की बातचीत होती ही रहती थी सो एक दिन जब रश्मि ने उसे अपनी नौकरी छोड़ने की बात बताई तो वह एकदम चौंक गई और अगले ही दिन उस के घर आ धमकी, ‘‘पागल हो गई है क्या, इतनी मेहनत से प्राप्त की नौकरी तूने छोड़ दी… तु  झे याद है कि तेरा पहली बार में ही चयन हुआ था और अनुराग का दूसरी बार में.’’

‘‘सब याद है माई डियर… तु  झे क्या लगता है मैं ने यों ही छोड़ दी होगी लगीलगाई नौकरी… एक नहीं हजारों बार सोचा मैं ने छोड़ने से पहले… बैंक और घर 2 मोरचों पर लड़तेलड़ते मैं पस्त होने लगी थी. इस का सीधा असर मेरी सेहत, बेटी अक्षिता और घर की शांति पर पड़ रहा था. हम दोनों में से कोई भी उसे वक्त नहीं दे पा रहा था. अनुराग घरबाहर कहीं भी सहयोग कर ही नहीं पा रहे थे. मैं उन की गलती भी नहीं मानती क्योंकि उन के घर में लड़कों को अपनी पत्नियों और बहनों का सहयोग करना सिखाया ही नहीं गया तो वे करें भी क्या… उन्हें तो अपने स्वयं के काम करने तक की आदत नहीं है. उन के घर में हमेशा से वित्तीय मामले अनुराग के पापा ने ही देखे हैं इसलिए उन्हें भी मेरी राय तक लेना ठीक नहीं लगता. इस के अलावा अपने कमाए पैसे को भी मु  झे. खर्च करने की आजादी तक नहीं थी… एक पैसा कमाने की मशीन बन कर जीना पसंद नहीं आ रहा था मु  झे हमारे पुरुषवादी समाज की यही तो खासीयत है कि नौकरी वाली पत्नी और बहू तो चाहिए पर अपेक्षाओं से कोई सम  झौता नहीं… और सहयोग लेशमात्र भी नहीं… और उस के कमाए पैसे को अपनी मरजी से खर्च करने का अधिकार भी नहीं. तु  झे पता है इतनी कमउम्र में बीपी और शुगर की मरीज बन गई हूं मैं. मेरी इकलौती बेटी अपनी कक्षा में पिछड़ने लगी थी. हम उसे जरा भी समय नहीं दे पा रहे थे. इस में उस का क्या दोष. इस स्थिति में मेरे पास 2 ही रास्ते थे या तो पूरी जिंदगी कलह और तनाव में गुजारूं या फिर नौकरी छोड़ अपनी मरजी से जीऊं.

‘‘तुझे आश्चर्य होगा कि नौकरी छोड़े मु  झे 8 माह से ऊपर हो गए पर एक दिन भी मु  झे अपने निर्णय पर पछतावा नहीं हुआ. अक्षिता की परफौर्मैंस में बहुत सुधार है. मेरी सेहत में भी काफी सुधार आ गया है. अपने घर को अपने मनमुताबिक संवारनासजाना और ढंग से चलाना क्या किसी नौकरी से कम है? इस के अलावा अपनी बेटी की कीमत पर मैं कुछ नहीं करना चाहती थी. देख मु  झ में अगर टेलैंट है तो मैं घर में रह कर भी चारों ओर अपनी छटा बिखेरूंगी,’’  रश्मि ने उत्साह से कहा.

‘‘मु  झे जहां तक याद है अनुराग तो कालेज में अपनी फेमनिस्ट विचारधारा के लिए जाना जाता था फिर अपने ही घर में उस का ऐसा व्यवहार कुछ सम  झ नहीं आ रहा,’’ अनीता आश्चर्य से बोली.

‘‘विचार बनाने और अपने घर में लागू करने में बहुत अंतर होता है मेरी जान. हमारे समाज में अनुराग ही नहीं अधिकांश पुरुष दोहरा व्यक्तित्व रखते हैं. बाहर बहुत उदार और आजाद खयालों वाले लोग अपने घर की महिलाओं को 7 परदों में कैद कर के रखना पसंद करते हैं और इसे कहते हैं थोथी फेमनिज्म और हमारे समाज के अधिकांश पुरुष इस थोथी फेमनिज्म से ही ओतप्रोत रहते हैं,’’ रश्मि ने व्यंग्य से कहा.

‘‘तु  झ से बात कर के तो लग रहा है कि तूने बिलकुल ठीक किया… पर हां मेरी मान खाली मत बैठ वरना फ्रस्टेड हो जाएगी… फुल टाइम नहीं तो तू कोई पार्ट टाइम जौब कर ले जिस से एक्जर्शन भी नहीं होगा और तू काम भी कर पाएगी क्योंकि अभी तो नयानया है इसलिए तू ऐंजौय कर रही है. कुछ दिनों बाद जब अक्षिता भी चली जाएगी तो तू फ्रस्टेड होने लगेगी.’’

‘‘चल ठीक है सोचूंगी इस बारे में… फिर तु  झे बताऊंगी.’’

इस के बाद अनीता चली गई. काफी सोचविचार और गूगल सर्चिंग के बाद रश्मि ने इग्नू से एमबीए करने का निश्चय किया और फौर्म भर दिया. इग्नू का चयन करने का लाभ यह था कि घर और अक्षिता को छोड़े बिना वह अपनी योग्यता बढ़ा सकती थी. इस तरह 2 वर्षों में उस ने अपनी एक डिगरी हासिल कर ली. अब तक अक्षिता भी 10वीं पास कर के 11वीं में आ गई थी और पहले से काफी मैच्योर हो गई थी. उन्हीं दिनों अनीता ने उसे बताया कि उस की ही कंपनी में एक इंप्लोई की जरूरत है. अगर इंट्रैस्टेड हो तो कल आ कर प्लेसमैंट औफिसर और कंपनी के मालिक से मिल ले.

उस दिन रात के खाने के समय रश्मि ने अनुराग से जौब जौइन करने के बारे में बताया तो अनुराग बोले, ‘‘देखो तुम ने छोड़ी भी अपनी मरजी से और अब पार्टटाइम फुल टाइम जो भी करना है अपनी मरजी से करो. मैं इस बारे में कुछ भी नहीं कह सकता,’’ कह कर अनुराग ने अपना पल्ला   झाड़ लिया.

काफी सोच-विचार के बाद अगले दिन जींसटौप पहन कर रश्मि अनीता की कंपनी जा पहुंची. उसे बैंकिंग का 15 साल का ऐक्सपीरियंस तो था ही, साथ ही अब उस ने एमबीए भी कर लिया था. सो उस की योग्यता से तो कंपनी के मालिक राज बेहद प्रभावित हो गए. दरअसल, उन की कंस्ट्रक्शन कंपनी थी, जिस के अंतर्गत वे सरकारी स्कीम्स के अंतर्गत आने वाले ओवरब्रिज और सड़कों का निर्माण करवाते थे. सरकारी स्कीम्स के अंतर्गत टैंडर प्राप्त करना सब से टेढ़ी खीर होती थी जिस के लिए ही उन्हें एक अनुभवी, फाइनैंशियल मामलों के जानकार और होशियार इंप्लोई की जरूरत थी जो उन्हें सरकारी टैंडर दिलवा सके.

रश्मि से बातचीत करने के बाद वे बोले, ‘‘रश्मिजी जैसाकि आप ने कहा कि आप औफिस आएं या न आएं काम पूरा करेंगी यह हमें मंजूर है. आप कल से काम कर सकती हैं.’’

उस दिन अति उत्साह से भर कर डिनर के समय जब रश्मि ने यह न्यूज अनुराग को बताई तो

वे बोले, ‘‘जब इतनी अच्छी सरकारी बैंक की नौकरी छोड़ दी थी तो अब फिर से यह नौकरी… तुम्हारा हिसाबकिताब मु  झे तो कुछ सम  झ नहीं आता.’’

‘‘अनु, जिंदगी में हमेशा सबकुछ एकजैसा नहीं होता. उस समय अगर मैं नौकरी नहीं छोड़ती तो अब तक अधमरी तो हो जाती दूसरे अक्षिता जो आज अपनी क्लास की टौपर है डफर में कन्वर्ट हो चुकी होती. अभी मैं ने जो जौब ली है वह अपनी शर्तों पर अपनी मरजी से ली है. अक्षिता जब स्कूल जाएगी तब मैं जाऊंगी और उस के आने से पहले आ जाऊंगी, बचा काम मैं घर से ही करूंगी. इस से मेरी सेहत भी प्रभावित नहीं होगी और कुछ न करने का मलाल भी नहीं रहेगा.’’

इस तरह रश्मि एक बार फिर से एक कंपनी की कर्मचारी हो गई. अभी काम करते हुए उसे 1 साल ही हुआ था और यह कंपनी का पहला टैंडर था जिस की जिम्मेदारी उसे दी गई थी. उस ने भी इस में अपनी पूरी जीजान लगा दी थी. उस ने इसे पूरे मार्केट का वैल्युएशन कर के बहुत अधिक मेहनत और कैलकुलेशन कर के डाला था और इस तरह पहली ही बार में उस ने अपनी सफलता के   झंडे गाढ़ दिए थे और इस तरह कुछ ही सालों में अपने टेलैंट के बल पर कंपनी के डाइरैक्टर के पद तक जा पहुंची. सब से बड़ी बात थी कि यहां वह अपनी मरजी की मालिक थी.

वैलकम : भाग-1 आखिर क्या किया था अनुराग ने शेफाली के साथ

ऐसा क्या किया था अनुराग ने शेफाली के साथ कि वह उस दिन का इंतजार कर रही थी जब अनुराग से उस की मुलाकात अकेले में हो? और फिर जब एक दिन यह मौका आया तो वह आपे से बाहर हो गई.. जैसे ही कैप्टन ने एअरक्राफ्ट को पीछे करना शुरू किया, विंडो सीट पर बैठी शेफाली को लगा जैसे उस के बहुत दिनों से संजोए मधुर सपनों का संसार भी उस की आकांक्षाओं के आंचल से सरक कर दूर जा गिरा है. बड़ी-बड़ी पलको की कोरों से   झांकते आंसू बराबर वाले देख न लें, इसलिए उसने   झटसे किताब उठा ली. हालांकि ज्यादातर अपने मोबाइलों में डूबे हुए थे. शेफाली ने पढ़ने के बहाने   झट से अपना चेहरा नीचे कर लिया.

मगर वहां तो किताब का हर अक्षर उसकी स्मृति के पन्नों से जुड़ कर उस का उपहास उड़ा रहा था. ग्राउंड आईआईटी इंजीनियर अनुराग स्वस्थ, सुंदर, खूबसूरत, अच्छी नौकरी, लंबाई 5 फुट 11 इंच. क्या तू उस की बीवी बनने योग्य है? नहीं, कभी नहीं, स्वप्न में भी नहीं. तू तो ठिगनी है. क्या हुआ जो तू हर

ऐग्जाम में फर्स्ट डिवीजन में पास होती आई है, सुडौल है, नैननक्ष तीखे हैं, रंग कश्मीरियों जैसा है और गायिका भी है, लेकिन कद तो सिर्फ 5 फुट 2 इंच ही है, जबकि अनुराग और उस के मातापिता चाहते हैं कि उन की बहू कम से कम 5 फुट 4 इंच हो. कद में इस 2 इंच की कमी ने ही तो शेफाली की सारी योग्यता, सारी सुंदरता पर पानी फेर दिया. महीनों से संजोया उस का सपनों का महल धराशायी हो गया. उस की 1-1 ईंट गल कर उस के मन को आंसुओं से सराबोर कर गई.

बहुत प्रयत्न करने पर भी शेफाली हठीले आंसुओं को न रोक सकी. आंसू ढलते रहे, वह किताब पढ़ने की आड़ ले कर उन्हें सुखाती रही. जो कुछ बीत चुका था और घाव बन कर उसे कुरेद रहा था, न चाहते हुए भी उन उपहास भरे क्षणों के बीच निराश नायिका की तरह उसे दौड़ना पड़ रहा था और साथ ही दौड़ रही थीं

उस के बीमार भैया और असमर्थ भाभी की आंसू भरी निगाहें. कैसी रिमझिम रिमझिम सोंधी सुगंध से भरापूरा था वह दिन, जब कॉलेज पहुंचते ही शरारती उर्वशी ने उसे मोबाइल पकड़ा कर उस के गुलाबी कपोलों को मल कर बिलकुल सिंदूरी कर दिया था. फिर कहा, ‘‘ले, आ गया तेरे अनुराग का बुलावा. रसगुल्ले जैसी कुछ मधुरमधुर बात है तभी तो तु  झे भैया ने मु  झ से कह कर बुलाया है. देख शेफाली, बढि़या मिठाई ले कर न लौटी तो कमरे में न घुसने दूंगी. अरी, अब तो तू भी आकाश में उड़ेगी. फिर मु  झ धरती वालों की तू कहां सुधि लेगी.’’

और उत्तर में पुलक से भर कर शेफाली ने अपनी प्रिय सहेली को पकड़ कर चूम लिया, ‘‘अरी पगली, समय तो आने दे, तु  झे रस के सागर में डुबो दूंगी,’’ और फिर पुलकित तनमन से धरती से आकाश तक आकांक्षाओं को समेटे वह उसी क्षण छुट्टी ले कर बैंगलुरु से भैयाभाभी के पास लखनऊ के लिए चल पड़ी थी.

रात 8 बजे जब शेफली घर पहुंची तो भाभी उस के थकान से भरे चेहरे की ओर देख कर घबरा कर बोली थीं, ‘‘अरे शेफाली, तू किधर से अंदर घुसी है? वे लोग तु  झ से मिलने के लिए आए हुए हैं. अनुराग की भाभी, बहन और छोटा भाई सभी लोग आए हुए हैं और बाहर ड्राइंगरूम में ही ठहरे हैं. कहीं तु  झे इस थके, कुम्हलाए रूप में देखा तो नहीं उन लोगों ने?’’ ‘‘भाभी, मु  झे क्या मालूम था कि अपने ही घर में मुझे चोर की तरह छिपकर आना चाहिए था. इन लोगों को इस समय क्यों बुला लिया भाभी? सफर से सारा शरीर टूट रहा है. पहले गरम चाय दो न,’और हमेशा की तरह दुलार से वह भाभी से लिपट गई.

‘‘यही तो तेरी सब से कड़ी परीक्षा का समय है, शेफाली. लेकिन मेरी शेफाली में क्या कमी है- कश्मीरियों को भी मात करने वाला रंग है, सुंदर है, स्वस्थ है, मधुर कंठ है और पढ़ाई में भी हमेशा अव्वल आई है.’’ ‘‘बसबस भाभी, अपने दही को तो सभी मीठा कहते हैं, लेकिन…’’ और इस के बाद भाभी की आश्चर्य भरी दृष्टि देख कर वह स्वयं लज्जा से लाल हो कर छोटी भतीजी को उठा कर कमरे से बाहर भाग गई.

दूसरे दिन भोर में चाय पर ही शेफाली को दिखाने की बात थी. भोर से ही उस के मन में इस प्रदर्शन को ले कर हीनभावना नहीं थी. उस ने दर्पण के सामने जा कर स्वयं से कई बार पूछा कि आाखिर मु  झ में क्या कमी है? फिर वे लोग मु  झे कैसे नकार सकते हैं? उस मैट्रिमोनियल साइट में डले कितने ही फोटो हैं. वे फोटो तो पसंद आ ही गए हैं, यह तो मात्र एक औपचारिकता भर होगी. अनुराग से चैटिंग भी होती रही है. वीडियो कौल भी हुई है. विवाह के बाद जब मिलूंगी तो उन की अच्छी तरह खबर लूंगी.

अनुराग को ले कर शेफाली सपनों की गहराइयों में डूब गईर् कि उसी समय एक लौंग ड्रैस तथा मेकअप का सामान ले कर भाभी आ गई, ‘‘अरे शेफाली, तू यहां बैठी क्या कर रही है? जल्दी से तैयार हो जा न. वे लोग इंतजार रहे हैं. और सुन, वे लोग कैसा भी व्यवहार करें, तू अपनी जबान ज्यादा न खोलना. सदा की तरह आज भी अपने भैया की लाज रखना. और हां, अपनी ऊंची एड़ी के सैंडिल जरूर पहन लेना,’’ और यह कह कर भाभी तेजी से चली गई.

गर्मी के मौसम के लिए अपने घर को करें तैयार, अपनाएं ये आसान टिप्स

इशिता को अपने घर के लिए एक ए सी खरीदना था आज कल करते करते कब फरवरी मार्च निकल गया उसे ही पता न चला, अप्रेल के प्रारम्भ में जब वह ए सी लेने पहुंची तो दुकानों पर इतनी अधिक भीड़ थी कि दुकानदार को ढंग से ए सी दिखाने तक का समय नहीं था.

मिसेज गुप्ता ने समय रहते एसी की सर्विसिंग नहीं करवाई अब एसी की सर्विसिंग करवाने वालों का ट्रेफिक इतना बढ़ गया कि दोगुने दाम पर सर्विसिंग करवानी पड़ी.

फरवरी माह के समाप्त होते होते सर्दियां विलुप्त होने लगतीं हैं और गर्मियां धीरे धीरे अपना प्रकोप दिखाना प्रारम्भ कर देती हैं. इस समय तक सर्दियों के कपड़ों को बोक्सेज में रखने की तैयारी प्रारम्भ हो जातीं है और गर्मियों के हल्के कपड़ों को निकालना शुरू हो जाता है. यह एकदम सही और उपयुक्त समय होता है जब हमें अपने घर को समर फ्रेंडली बनाने की तैयारी प्रारम्भ कर देनी चाहिए ताकि एकदम से किसी भी अनचाही स्थिति का सामना न करना पड़े.

1-पर्दे से दें नया लुक

सर्दियों में जहां घर को गर्मी की आवश्यकता होती है और हम घर में हवा को कम से कम आने देने के लिए भारी भारी पर्दे लगाते हैं वहीँ गर्मियों में घर को ठंडा रखने की आवश्यकता होती है ताकि हम गर्मी के प्रभाव से बचे रहें. अब समय है भारी पर्दों को हल्के नेट जैसे फेब्रिक के पर्दों से रिप्लेस करने का.

2-गार्डन को करें सुरक्षित

गर्मी की तेज धूप से एग्लोनिमा, पाम, एलोवीरा, सिंगोनिंयम जैसे इनडोर प्लांटस तेज धूप के प्रभाव से मुरझाने लगते हैं या फिर इनके पत्ते काले पड़ने लग जाते हैं इसलिए इन्हें खुले से हटाकर छाया में रखने का प्रबंध करें. आपका बालकनी गार्डन हो या टेरेस गार्डन दोनों को ही तेज धूप के प्रभाव से बचाने के लिए ग्रीन नेट लगवाने की व्यवस्था करें.

3-कारपेट को रिमूव करें

सर्दियों में फर्श बहुत ठंडा हो जाता है इसलिए हम सर्दियों में फर्श को कारपेट से कवर कर देते हैं परन्तु गर्मियों में पैरों को ठंडक अच्छी लगती है इसलिए इन दिनों में फर्श कारपेट को साफ़ करके रोल करके रखना बेहतर होता है. कारपेट को रखने से पहले पूरे कारपेट पर नमक स्प्रे करके आधा घंटे के लिए छोड़ दें फिर ब्रश से रगड़कर साफ़ करके रख दें.

4-किचन भी करें समर फ्रेंडली

इन दिनों में चाय, कॉफ़ी जैसी गरम खाद्य पदार्थों का स्थान सॉफ्ट ड्रिंक, ज्युसेज, आदि लेने लगते हैं इसलिए अपनी पेंट्री को इन चीजों से फुलफिल कर लीजिये साथ ही फ्रिज की बोटल्स, कांच के ग्लासेज और ट्रे को भी अपडेट कर लीजिये ताकि आप समय रहते आवश्यकतानुसार खरीददारी भी कर सकें.

5-ठंडक के साधनों की सर्विसिंग

गर्मियों में ठंडक के प्रमुख साधन ए सी, फ्रिज, कूलर और पंखे होते हैं यह सही समय इन सभी की सर्विसिंग करने का, यदि आप स्वयं करते हैं तो धीरे धीरे करना प्रारम्भ कर दीजिये और यदि कम्पनी से करवाते हैं तो भी या उपयुक्त समय है क्योंकि मार्च के अंत तक सर्विसिंग कम्पनियों पर लोड बहुत अधिक हो जाता है जिससे वे अनचाहे टेक्सेज लगाकर अपने रेट बढ़ा देतीं हैं, साथ ही इन चीजों की शोपिंग करने का भी यही सही समय है.

6-इनडोर प्लांटस को दें जगह

गर्मियों में हरे और सफेद रंग आँखों को शीतलता प्रदान करते हैं आप लिविंग रूम, बेडरूम और ड्राइंग रूम में हरे, नीले, पिंक जैसे हल्के पेस्टल रंगों का प्रयोग कर सकतीं हैं. घर के अंदर विविध इनडोर प्लांट्स को जगह दें ये भरी गर्मी में भी आंखों को शीतलता प्रदान करेंगे.

7-भोजन में बदलाव की तैयारी

सर्दियों के दिनों में जहां हमारी पाचन क्षमता अच्छी खासी स्ट्रोंग हो जाती है वहीँ गर्मियों में हमारा पाचनतंत्र काफी कमजोर हो जाता है इसीलिए आहार विशेषग्य इन दिनों दलिया, खिचड़ी, पोहा जैसे हल्के और सुपाच्य भोजन की सलाह देते हैं. अपने परिवार की पसंद अनुसार आप अपने मेन्यू में बदलाव की तयारी करें साथ ही वीकली मेन्यू तैयार करें ताकि आपको हर दिन क्या बनाऊ की समस्या से दो चार न होना पड़े.

क्या आइब्रो की कम ग्रोथ से आप भी हैं परेशान, तो बस अपनाएं ये नेचुरल उपाय

आंखें हमारे चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाती हैं और इन आंखों की खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं, इनके ठीक ऊपर बनी आइब्रो. अगर ऑईब्रो घनी और परफेट शेप में होंगी तो ये चेहरे की रंगत बढ़ा देती हैं और ये हल्की हों तो चेहरे पर एक खालीपन रहता है. जिस कारण कई बार हमें शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ता है इन्हें घना बनाने के चक़्कर में हम कई सारे प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल करती हैं लेकिन जरूरी नहीं उनसे मनचाहा परिणाम मिले, इसलिए हमें आपको कुछ घरेलू चीजों के उपयोग के बारे में बता रहें हैं जिन्हे आप अपने ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ भी इस्तेमाल कर सकती हैं और आप अपनी आइब्रो को खूबसूरत और घनी बना सकती हैं.

विटामन ई

विटामिन ई एक पावरफुल एंटी-ऑक्सीडेंट है यह हमारी स्किन व बालो के लिए बहुत लाभकारी होता है.इसके रेगुलर इस्तेमाल से बालों को नुकसान पहुंचाने वाले ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम होता है. बेहतर रिजल्ट के लिए रात में सोने से पहले आप इसे अपनी आईब्रो पर अप्लाई कर सकती हैं.

कैस्टर (आरंडी )ऑयल

कैस्टर ऑयल में रिकिनोइलिक एसिड पाया जाता है, जिसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. इसके अलावा कई और अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

इसे आप नारियल के तेल के साथ मिक्स कर के लगाएं. इस प्रक्रिया को लगातार 1 से 2 महीने तक जरूर ट्राई करें.फर्क आपको खुद नजर आने लगेगा.

ऑलिव ऑयल

ऑलिव ऑयल में फेनोलिक कंपाउंड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो बालों को लंबा और घना बनाने का काम करते हैं.

एलोवेरा जेल

एलोवेरा में विटामिन और खनिज होते हैं इसे आप फ्रेश भी लगा सकती हैं या बाजार में मिलने वाले जेल भी इस्तेमाल कर सकती है एलोवेरा से 10 मिनट के लिए मसाज करें और रात भर के लिए ऐसे ही छोड़ दें.

कच्चा दूध

कच्चे दूध में कई सारे प्रोटीन, विटामिन्स, मिनिरल्स और फैटी एसिड्स होते हैं, जो आइब्रो की ग्रोथ बढ़ाने के साथ साथ बालों की ग्रोथ को कोमल बनाते हैं.

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