ऊनी कपड़े रखते समय रखें इन 12 बातों का ध्यान

सर्दियां आते ही स्वेटर, जेकेट और कम्बल जैसे ऊनी कपड़ों का प्रयोग होना प्रारम्भ हो जाता है परन्तु अगले वर्ष ये तभी सुरक्षित मिल पाते हैं जब आपने इन्हें इस वर्ष सही ढंग से रखा हो क्योकिं जरा सी असावधानी से महंगे महंगे ऊनी कपड़े भी खराब हो जाते हैं. अब जब कि सर्दियां लगभग जा चुकीं हैं और गर्मियां अपने आगमन की दस्तक दे चुकीं हैं स्वेटर और अन्य ऊनी कपड़ों का उपयोग लगभग बंद सा हो चला है यही वह समय है जब आपको इन्हें साल भर के लिए सुरक्षित रखना है. अक्सर लोग इन्हें ऐसे ही उठाकर रख देते हैं कि अगली साल जब प्रयोग करेंगे तो धो लेंगे जो इन कपड़ों के लिए बेहद हानिकारक है क्योंकि कई बार इनमें भोजन के अंश, दवाइयां, धूल और मिटटी लगी रह जाती है जिससे इनमें कीड़ा लग जाता है और इनमें छोटे छोटे छेद हो जाते हैं और फिर स्वेटर पहनने लायक ही नहीं रह जाता. आज हम आपको कुछ टिप्स बता रहे हैं जिनका ध्यान रखकर आप इन्हें अगले साल भी नये नवेले से पा सकेंगें.

1-सर्वप्रथम पहनने वाले ऊनी कपड़ों की जेबें चेक करें और  यदि कोई दाग धब्बा लगा है तो उसे गीले नरम कपड़े से साफ़ कर दें. यदि दाग बहुत अधिक है उसे 1 चम्मच स्पिरिट में 2 चम्मच पानी मिलाकर सॉफ्ट कॉटन से हल्का सा रगडकर साफ करें फिर धूप में सुखाएं दाग साफ हो जायेगा.

2-अब गुनगुने पानी में वूलन कपड़ों के लिए विशेष रूप से बनाये गए तरल सोप को कपड़ों की संख्या के अनुसार 1 या 2 चम्मच डालें और कपड़ों को लगभग आधा घंटा भिगोकर रखें ताकि इनकी गंदगी फूल जाये.

3-अब इन्हें दोनों हथेली से हल्का हल्का सा रगड़ते हुए कपड़ों को धोएं, दबाकर सारा सर्फ निकाल दें और फिर 2—3 बार साफ़ पानी से धो कर एक साफ़ तौलिये या सूती चादर में स्वेटर को लपेटकर हाथ से दबा दें ताकि पानी तौलिया में आ जाये.

4-अब स्वेटर को किसी फ्लेट सर्फेस पर फैलाकर सुखाएं ताकि इनके आकार में कोई परिवर्तन न हो इन्हें कभी भी हैंगर में या तार पर लटकाकर न सुखाएं, लटकने के कारण ये फ़ैल जाते हैं और इनका साइज़ बढ़ जाता है.

5-सूखने के बाद देखें कि यदि किसी स्वेटर पर रोयें हैं तो उन्हें हटायें, रोयें आप हल्के हाथ से स्वेटर पर कंघा या रेजर चलाकर अथवा टेप लगाकर हटा सकतीं हैं अथवा आजकल बाजार में लिंट रिमूवर रोलर भी आता है जिससे आप बड़ी आसानी से ऊनी कपड़ों के रोयें हटा सकतीं हैं.

6-कोई भी पतला सूती कपड़ा या पेपर रखकर आप इन प्रेस करें ताकि इनका स्वाभविक लुक बरकरार रहे.

7-इन्हें पोलिथीन या प्लास्टिक बैग्स में डालकर रखें यदि आपके पास प्लास्टिक बैग्स नहीं हैं तो आप ऑनलाइन या ऑफ़लाइन इन्हें बड़ी आसानी से खरीद सकतीं हैं, ये काफी सस्ते मिलते हैं.

8-मशीन वाश करते समय इन्हें किसी लौंड्री बैग में डालकर ही धोएं इससे ये खराब नहीं होते, दूसरे मशीन में डालते समय इनकी चैन और बटन्स को बंद कर दें अन्यथा वे टूट सकतीं हैं,

9-मशीन में वाश करते समय इन्हें मशीन उपलब्ध वूल मोड पर ही धोएं. सामान्य कॉटन या अन्य किसी मोड पर धोने की गल्ती न करें.

10-जिस जगह आप इन्हें रखें वहां पर ओडोनिल या फिनायल की गोलियां, या नीम के कुछ पत्ते अवश्य डाल दें ताकि इनमें किसी भी प्रकार का कीड़ा लगने की सम्भावना न रहे. ध्यान रखें कि कोई भी कीटनाशक कपड़े के सीधे सम्पर्क में न रहे. इन्हें किसी कपड़े में बांधकर बोक्स या कवर्ड के कोने में डाल दें.

11-स्वेटर स्टोर करने वाले बॉक्स या कवर्ड को ऐसी जगह प् रखें जहां पर नमी न हो अन्यथा इनमें कीड़ा लगने की सम्भावना रहती हैं.

12-सर्दियों में ओढ़े जाने वाले ह, केट को आप हाथ से धो सकतीं हैं परन्तु भारी ब्लेंकेट को ड्राई क्लीन करवाकर ही रखें ताकि अगले वर्ष आप सर्दियां आते ही उनका प्रयोग कर सकें.

कल्पवृक्ष: भाग 3- विवाह के समय सभी व्यंग क्यों कर रहे थे?

लेखिका- छाया श्रीवास्तव

‘‘यह तो ठीक है पापा. परंतु आप मुकेश भैया से सब हाल तो सुन लो,’’ वह संकोच से बोला.

‘‘नहींनहीं, रहने दें. हम यहीं से दूसरे खरीद कर रख देंगे. आप अभी रस्म तो पूरी होने दें, यह जरूर है कि इतने भारी न ले पाएंगे, क्षमा चाहते हैं हम इस के लिए.’’

‘‘परंतु मैं चाहता हूं कि आप वह सब इन सब को भी सुना दें, जो मधु भाभी के बारे में मु झे बतलाया है. आप लोगों ने जानबू झ कर तो नहीं बताया, मेरे खुद पूछने पर ही तो बताया है,’’ संजय बोला.

सहसा निखिल का मुंह अपमान की भावना से तमतमा गया. उसे मन ही मन मधु की दानशीलता पर क्रोध आ रहा था. क्यों मान ली सब ने उस की बात? यदि सारा सामान इन लोगों ने लेने से इनकार कर दिया तो कितनी थूथू होगी. यही अखिल, मुकेश, पिताजी व साथ आए लोग सोच रहे थे. फिर संजय के बहुत जोर डालने पर मुकेश ने पिछली घटना सुना दी, जो सच थी कि कैसे वह इस संबंध को टाल रहे थे और कैसे मधु ने अपना सारा दहेज ननद विभा को दे कर रिश्ता पक्का कराया, आदि.

‘‘तो क्या हुआ, दे तो रहे हैं सब सामान. किस का है, इस से हमें क्या. हम ने भी तो तेरी बड़ी बहन को कुछ सामान तेरे बड़े भाई के दहेज का दिया था. नाम से क्या, कौन देखेगा नाम? थाल तो आए और रखे गए. कौन रोजरोज इस्तेमाल करता है, इतने बड़े बरतन,’’ पिताजी बोले तथा अन्य व्यक्तियों ने भी इस का अनुमोदन किया.

‘‘परंतु मु झे नहीं चाहिए यह सब,’’ ये शब्द संजय के मुंह से सुन कर सब के मुंह सफेद पड़ गए.

‘‘बेवकूफ है क्या?’’ बड़ा भाई अजय चिल्ला कर बोला.

‘‘तू सब हंसीखेल सम झता है. सामान लाना, खरीदना, ये लोग क्या इतना ले कर चले होंगे? चुपचाप बैठ कर दस्तूर होने दे. आप लोग चिंता न करें, यह तो ऐसा ही हठी है. पंडितजी, दस्तूर कराइए.’’

‘‘नहीं भैया, जब तक ये थाल नहीं चले जाएंगे, मैं कुछ नहीं कराऊंगा. आप अपने भीतर से थाल मंगाइए न,’’ वह अड़ गया.

‘‘तो ठहरिए साहब, हम बाजार से दूसरे ले कर आते हैं, तब तक ठहरना होगा,’’ मुकेश उठता हुआ बोला.

‘‘नहीं, भाईसाहब. आप बैठिए, अंदर से तो आ रहे हैं थाल.’’

‘‘अरे, ये सब तो शगुन के थाल आदि लड़की वाले के यहां से ही आते हैं, थोड़ा रुक लेते हैं.’’

“नहीं भैया, मैं यह सब अब न ले सकूंगा. जो लिस्ट आप लोगों ने बना कर भेजी थी और जो ये लोग देने वाले हैं. आप जानते ही हैं कि लड़कियों को अपने मायके की एकएक चीज कितनी प्यारी होती है, परंतु जिस घर में ऐसी उदारमना स्त्री हो जो खुशी से अपना सारा दहेज खुद दान कर रही हो उसे ले कर मैं उस उदार स्त्री से छोटा नहीं बन सकता. इस से मैं इन कपड़ों आदि के अलावा अब कोई कोई चीज स्वीकार नहीं करूंगा. मैं अब इस के अलावा आगे कुछ नहीं लूंगा. बिना दहेज के ही उस घर की बेटी ब्याह कर लाऊंगा.

‘‘मैं तो पहले ही भैया, जीजाजी से अनुरोध कर रहा था कि इतना लंबाचौड़ा दहेज मांग कर कन्यापक्ष को आफत में न डालें. अब जो हुआ सो हुआ, आगे कोई मु झे विवश न करे. बस, ये लोग साथ गए बरातियों का अच्छा स्वागत कर दें, वही काफी होगा.’’ पिताजी, बड़े भाई और बहनोई ने यह सुना तो सन्न रह गए. परिवार के अन्य सदस्य भी दौड़े आए. हर प्रकार सम झाया, परंतु संजय अपनी प्रतिज्ञा से नहीं डिगा. घर वालों को कोपभाजन बनने पर उस ने धमकी दे दी कि वे यदि तंग करेंगे तो वह कोर्टमैरिज कर सब की छुट्टी कर देगा. विवशता में उन सब को पीछे हट कर अपनी स्वीकृति देनी पड़ी.

‘‘क्यों निखिल भैया, आप की कोई साली कुंआरी है,’’ संजय के इस प्रश्न पर निखिल सहित सब चौंक गए. निखिल हंस कर बोला, ‘‘भई, क्या इरादे हैं?’’

‘‘इरादे तो नेक हैं, यदि हो तो मेरी बूआ के एकमात्र बेटे हैं ये, सुधीर, सबइंजीनियर, इन के लिए मधु भाभी सी लड़की चाहिए,’’ निखिल का चेहरा खुशी से दमक उठा.

‘‘है तो पर सगी नहीं, चचेरी है.’’

‘‘चचेरी. पता नहीं कैसी हो.’’

‘‘मधु से बढ़ कर. मधु अपनी मां से अधिक चाची को मानती है. संयुक्त परिवार होते हुए भी सब एक थाल में खाने वाले हैं. दोनों परिवारों में बहू व दामाद आ गए हैं, परंतु जैसे उस चोखे रंग में रंग कर एकाकार हो गए हैं. पता नहीं कौन सी ममता और अपनेपन की बूटी खाते हैं उस घर के लोग और वही मधु के साथ अपनेपन की बूटी हमारे घर चली आई है,’’ वह हंस कर बोला.

‘‘ठीक है. यदि लड़की पसंद आ गई तो वह अपनेपन की बूटी हमारी बूआ के घर भी आ जाएगी, शादी में तो आएगी ही वह.’’

‘‘हां, क्यों नहीं? पूरा परिवार आएगा. लड़की स्नातक, गोरीचिट्टी, सुंदर है. नापसंद का तो सवाल ही नहीं उठता.’’

‘‘तब सब से पहली पसंद मेरी होगी वह, है न सुधीर.’’

सुधीर  झेंप कर मुसकरा दिया.पहले निखिल मधु की अक्ल पर मन ही मन भरा बैठा था, परंतु उसे अब लग रहा था कि कब वह उड़ कर अपने घर पहुंचे और मधु को बांहों में भर कर नचा डाले और कहे कि बता तो, कौन सी बूटी की घुट्टी पी कर आई है कि सब को इतनी सरलता से उंगलियों पर नचा देती है. यदि वह कल्पवृक्ष उस के मायके के आंगन में लगा है तो वह उसे तोड़ कर पूरे परिवार को घोट कर पिला दे.

उस ने अपने भाइयों और पिताजी की ओर निहार कर देखा जो सभी प्रशंसक नजरों से उसे देख कर मुसकरा रहे थे. उस ने शरम से मुंह घुमा लिया.

दूसरे दिन जब वे गृहनगर पहुंचे तो सुबह हो गई थी. पूरा घर जाग उठा था. सब उन के आसपास एकत्र हो गए. सभी यह जानने को आतुर थे कि तिलक समारोह कैसा रहा.

‘‘मधु कहां है?’’ पिताजी ने उसे न देख कर पूछा.

‘‘होगी कहां, चायनाश्ते की तैयारी में जुटी होगी,’’ मांजी बोलीं. अभी बात भी पूरी नहीं कर पाईं कि वह चाय की ट्रे ले कर बैठक में चली आई. ट्रे मेज पर रख कर उस ने सब के चरण छुए, फिर उन के शब्द सुन कर मूर्ति की तरह खड़ी हो गई.

‘‘बाबूजी, मु झ से कुछ बड़ी गलती हो गई क्या. क्या हुआ मेरे कारण? कृपया बतलाइए न?’’

‘‘हां, बहुत बड़ी गलती हो गई रे. तू ने जो अपने मायके के थाल दिए थे न उन के कारण. ले उठा यहां से अपने थाल और रख आ उन्हें जहां से उठा लाई थी.’’

‘‘हे दाता, क्या उन्हें ये थाल पसंद नहीं आए थे?’’ वह भय से बोली.

‘‘नहीं लिए, क्योंकि तुम उन में विराजी जो थीं,’’ पिताजी गंभीरता से बोले.

‘‘मैं विराजी थी. क्या कह रहे हैं आप?’’ वह आंखें फाड़ कर बोली.

‘‘यह देख, तेरे हर थाल में यह रही मधु, है न?’’

‘‘ओह, मैं तो डर ही गई. तो क्या हुआ, नाम ही तो है, इस से क्या.’’

‘‘इसी से तो नहीं लिए, और वह सब भी नहीं लेंगे जिस में तेरा नाम है.’’

‘‘सब में नाम थोड़े लिखा है,’’ वह रोंआसी हो गई.

‘‘अब क्या होगा? क्या शादी रद्द हो गई?’’

‘‘अरे पगली, अब वे दहेज लेंगे ही नहीं. तेरा गुणगान सुन कर संजय ने दहेज न लेने की सौगंध खाई है. कह रहा था जिस घर में ऐसी ममतामयी बहू हो, उस घर से दानदहेज लेना पाप है. हम ने तेरी सब बातें बतलाईं, तो लड़का द्रवित होता चला गया.’’

‘‘आप बना रहे हैं, बाबूजी,’’ उस की आंखें भर आईं.

‘‘बैठ बेटी. तुम सब भी बैठो,’’ फिर उन्होंने शुरू से अंत तक सारा हाल बता दिया और मधु के सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘‘मधु, तु झे पा कर हम धन्य हुए. तेरी चचेरी बहन की शादी भी संजय की बूआ के लड़के से तय कर आए हैं. ऐसे परिवार की लड़की कौन पसंद नहीं करेगा जिस परिवार की हमारी मधु जैसी बहू हो. तेरे दोनों जेठ तेरी बड़ाई करते आए हैं, और निखिल तो वहां थालों के विवाद पर तमतमाया मुंह लिए खार खाए बैठा था. अब अपनेआप पानीपानी हो गया है. जा, वह कमरे में तेरी प्रतीक्षा कर रहा है.’’

मधु शरम से दोनों हाथों से मुंह छिपाए कमरे की ओर दौड़ती चली गई. सब ने उसे प्यारभरी नजरों से देख कर मुसकान बिखेर दी, मां तो जैसे धन्य हो गईं. मधु पास होती तो अवश्य उसे छाती से लगा कर रो पड़तीं.

जीवन लीला: भाग 3- क्या हुआ था अनिता के साथ

लेखकसंतोष सचदेव

नवीन का ट्रांसफर देहरादून हुआ तो उस के घर को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से 15-20 दिन के लिए मैं उस के साथ देहरादून चली गई. लौट कर आई तो सीढि़यों पर लगे लैटर बौक्स से अपने पत्र, पानी, बिजली और टेलीफोन के बिल निकाल कर लेती आई. उसी में एक लिफाफा था, जिस पर मेरा नामपता लिखा था. उस में डाक टिकट नहीं लगा था, इस का मतलब वह डाक से नहीं आया था. उस में उसी बीच की तारीख पड़ी थी, जिन दिनों मैं देहरादून में थी.

मैं ने लिफाफा खोला, तो उस में से एक पत्र निकला. उस में लिखा था, ‘मां, मैं न्यूयार्क से सिर्फ आप से मिलने आया था. मेरा नाम रोहित है. मिसेज एंटनी ने बताया था कि मेरा यह नाम आप ने ही रखा था. वैसे मुझे सब रौबर्ट कहते हैं. स्कूल में मेरा यही नाम है. मुझे पता नहीं, मैं कब पैदा हुआ, पर स्कूल रिकौर्ड के अनुसार मैं अब 16 साल का हो गया हूं. मैं मिसेज एंटनी को ही अपनी मां समझता रहा. मैं ने उन से कभी उन के पति (अपने पिता) के बारे में नहीं पूछा. सोचता था कि कहीं उन का दिल न दुखे. पर अचानक एक महीने पहले मृत्यु शैय्या पर पड़ी मिसेज एंटनी ने मुझे बताया कि वह मेरी मां नहीं हैं.

‘उन्होंने तो शादी ही नहीं की थी. उन का कहना था कि वह कई सालों पहले कैलीफोर्निया में मेरे पिता वरुण अरोड़ा के साथ नर्स के रूप में काम करती थीं. स्वास्थ्य खराब होने की वजह से वह नौकरी छोड़ कर अपने भाई के पास न्यूयार्क आ कर रहने लगी थीं. अपने एक मित्र से उन्हें पता चला कि डा. वरुण अरोड़ा ने भारत की एक महिला से शादी की थी और उन का एक बेटा है. उन की पत्नी ने अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने बेटे का नाम रोहित रखा था. कभी साल में एकाध बार डा. साहब से उन की बात हो जाती थी. वह कैलीफोर्निया से वाशिंगटन चले गए थे.

‘एक दिन अचानक डा. वरुण मुझे ले कर उन के घर आ पहुंचे और कहा कि रोहित की मां उसे छोड़ कर भारत चली गई है. इस की देखभाल के लिए कोई नहीं है, इसलिए मैं चाहता हूं कि इस की गवर्नेस बन कर वह इसे संभालें. डा. वरुण मेरे पालनपोषण का खर्च भेजते रहे, लेकिन कुछ महीनों बाद खर्च आना बंद हो गया. मिसेज एंटनी ने कैलीफोर्निया में अपने पुराने मित्रों से डा. वरुण के बारे में पता किया तो पता चला कि उन्होंने डा. मारिया नाम की एक अमेरिकी महिला से शादी कर ली है और उस के साथ नाइजीरिया चले गए हैं.

‘डा. वरुण और मेरी भारतीय मां का पता लगाने की उन्होंने बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला. थकहार कर वह मुझे अपना बेटा मान कर मेरा पालनपोषण करने लगी. पर मरने से पहले उन का यह रहस्योद्घाटन मेरे लिए एक बड़ी पहेली बन गया. मेरे पिता हैं तो कहां हैं? मेरी मां भारत में हैं तो कहां हैं?

‘दिनरात मैं इसी उधेड़बुन में पड़ा रहता. मेरी पढ़ाई छूट रही थी. मैं मिसेज एंटनी के पुराने सामान को खंगालता रहता. अचानक उन के भाई डेविड के साथ उन के पत्राचार में एक जगह लिखा मिला कि जर्मनी में कोई सरदार नानक सिंह हैं, जो मेरी भारतीय मां के बारे में जानते हैं. बस मैं ने उन्हें खोज निकाला और आप का पता पा लिया.

‘अब समस्या थी कि भारत में आप से कैसे संपर्क करूं? तभी मेरे एक मित्र स्टीफन के बड़े भाई की शादी दिल्ली में तय हो गई. वे लोग एक सप्ताह के लिए दिल्ली आ रहे थे. मेरे अनुरोध पर वे एक सप्ताह के लिए मुझे अपने साथ दिल्ली ले आए. मैं पहले ही दिन से आप के घर के चक्कर लगाने लगा, पर वहां ताला लगा था. पड़ोसियों से पता चला कि आप किसी दूसरे शहर देहरादून गई हैं, 15-20 दिनों में लौटेंगी.

‘मैं इतने दिनों तक नहीं रुक सकता था. मेरे लिए दिल्ली और यहां के लोग बिलकुल अजनबी थे. मुझे कल अपने मित्र के परिवार के साथ न्यूयार्क जाना है, अपने भीतर एक गहरी पीड़ा लिए मैं वापस जा रहा हूं, लेकिन आशा की डोर थामे हुए. नीचे मेरा पता और फोन नंबर लिखा है. मेरे मित्र का फोन नंबर और पता भी लिखा है. आप मेरा यह पत्र पढ़ते ही मुझे फोन करना. अब दुनिया में सिवाय आप के मेरा कोई नहीं है. आशा है, आप से जल्दी ही मिल पाऊंगा.

आप का रोहित.’

पत्र पढ़ते ही मेरा चेहरा बदरंग हो गया. सहमी और अधमरी सी हो गई मैं. मेरे भीतर का गहरा घाव फिर हरा हो गया. मैं कैसी मां हूं, अपने ही बेटे को भूल गई. बेटा तड़प रहा है और मैं? मेरे पति प्रेमकुमारजी ने मेरा अवाक चेहरा देखा तो मेरे हाथ से पत्र ले कर एक सांस में पढ़ गए. उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी खुशी, चलो अभी फोन करो.’’

मोबाइल, इंटरनेट का जमाना नहीं था. एसटीडी पर फोन बुक किया. कई घंटे बाद फोन मिला. घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया. समय काटे नहीं कट रहा था. हम ने रोहित के मित्र स्टीफन को फोन बुक किया. फोन मिला, पर जो सुनने को मिला, लगा जैसे किसी ने कोई विषैला तीर सीधा मेरे सीने में उतार दिया है. उस ने बताया, ‘‘रोहित ने एक सप्ताह पहले आत्महत्या कर ली थी. मरने से पहले उस ने अपनी स्कूल की कौपी के आखिरी पन्ने पर लिखा था, ‘मेरा इस दुनिया में कोई नहीं. काश, मिसेज एंटनी मरने से पहले मुझे यह न बतातीं कि वह मेरी मां नहीं थी. मैं अन्य अनाथ बच्चों की तरह मनमसोस कर रह जाता. पर मांबाप के होते हुए भी मैं अनाथ हूं. पिता का तो पता नहीं, उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी पर मेरी भारतीय मां, वह भी मुझे भूल गई. दोनों ने मुझे बस पैदा किया और छोड़ दिया. कितने उत्साह और कितनी कोशिशों के बाद मैं ने अपनी भारतीय मां को ढूंढ़ निकाला था.

पिछले 15 दिनों से मेरे फोन की हर घंटी मुझे मां के फोन की लगती थी. सुना था कि मां में अपने बच्चे के लिए बड़ी तड़प होती है, लेकिन मेरी मां तो अपने में ही मस्त है. क्या मां ऐसी ही होती हैं? जब मेरा कोई नहीं तो मैं किस के लिए जिऊं. हर एक का कोई बाप, मां, भाई बहन है, मेरा कोई नहीं तो मैं क्यों हूं? बस, अब और नहीं… बस.’’

फोन पर जो सुनाई दिया, मैं जड़वत सुनती रही. फिर क्या हुआ पता नहीं. मैं ने बिस्तर पकड़ लिया. 3-4 महीने तक मैं बिस्तर पर मरणासन्न पड़ी रही. प्रेमकुमार मेरी सेवा में लगे रहे. मैं अभागी मां, सिर्फ अपने को कोसती छत की कडि़यों में 3 साल के अपने बच्चे के बड़े हुए रूप के काल्पनिक चित्र को निहारती रहती. सुना था, वक्त वह मरहम है, जो हर घाव को भर देता है. घाव यदि गहरा हो तो निशान छोड़ जाता है, पर मेरा घाव तो फिर से हरा हो गया था. मन करता, मैं भी आत्महत्या कर लूं. पर आत्महत्या के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए, यह कायरों का काम नहीं है.

कहते हैं, कि जब मनुष्य जन्म लेता है तो उस की मौत तभी तय हो जाती है. पैदा होते ही मरने वालों की लाइन में लग जाती है. कब बुलावा आ जाए, पता नहीं. मैं तो नहीं मरी, पर प्रेमकुमारजी चले गए. मैं फिर अकेली रह गई. अब क्या करूं, किस का आश्रय ढूंढू? जानती थी, पर आश्रित होने से तो अच्छा है मृत्यु की आश्रित हो जाऊं.

बुढ़ापे में परआश्रित होने पर तो असहनीय पीड़ा, घुटन भरा जीवन, अपमानित होने का डर, रहीसही जीवन की आकांक्षाओं को डस लेता है. मैं सुबहशाम एक वृद्धाश्रम में अपना समय बिताने लगी.

जीवन का 85वां सोपान चढ़ चुकी हूं. जब इतना कुछ सहने पर भी मैं पाषाण की तरह अडिग हूं तो आने वाला कल मेरा क्या बिगाड़ लेगा? कहीं पढ़ा था, ‘‘चलते रहो, चलते रहो.’’ और मैं चल रही हूं. अंतिम क्षण तक चलती रहूंगी.

प्रियंका की बहन होने का कोई फायदा नहीं : मीरा चोपड़ा

अभिनेत्री मीरा चोपड़ा प्रियंका चोपड़ा, परिणीति और मनारा चोपड़ा की कजिन हैं. पिछले 8 सालों से वे फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं. हाल ही में जी 5 पर मीरा चोपड़ा द्वारा अभिनीत और संदीप सिंह द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सफेद’ में वे विधवा के किरदार में नजर आईं, जिसे एक किन्नर से मुहब्बत हो जाती है. इस मुहब्बत के पीछे उस जमाने में विधवा और किन्नर की दैनिक और अपमानित जिंदगी भी जिम्मेदार होती है.

मीरा चोपड़ा ने इस से पहले फिल्म ‘सैक्शन 365’ में रेप विक्टिम का किरदार निभाया था. अपने 8 साल के कैरियर में मीरा ने काफी अलग फिल्में की हैं क्योंकि उन का मानना है कि ग्लैमरस रोल तो कोई भी कर सकता है. मजा तो ऐसा रोल करने में है जिसे कोई न कर पाए.

40 वर्षीय मीरा चोपड़ा अपनेआप को सब से अलग मानती हैं क्योंकि वे ऐसी ही फिल्में सलैक्ट करती हैं जिन की कहानी अलग हो. जैसेकि आज तक उन्होंने किन्नर और विधवा की प्रेम कहानी के बारे में कभी नहीं सुना जोकि फिल्म ‘सफेद’ की कहानी है.

हाल ही में हुई मुलाकात के दौरान मीरा चोपड़ा ने फिल्म ‘सफेद’ में अपने किरदार, अपनी अब तक की अभिनय यात्रा, लव लाइफ, आज के समाज में औरतों के अधिकार और किन्नरों की दुखद जीवनयात्रा को ले कर ढेर सारी बातें कीं.

पेश हैं, मीरा चोपड़ा की बेबाक, दिलचस्प बातें खास अंदाज में:

संदीप सिंह द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सफेद’ में एक विधवा का किरदार निभाना आप के लिए कितना चैलेंजिंग था?

‘सफेद’ फिल्म में विधवा का किरदार निभाना मेरे लिए चैलेंजिंग के साथसाथ दिलचस्प भी था और बतौर अभिनेत्री ऐसा किरदार निभा कर मु झे अभिनय संतुष्टि मिली, साथ ही जब मैं इस किरदार को निभा रही थी तब मैं ने एक विधवा के दुख को भी महसूस किया जिस की कोई गलती न होते हुए भी समाज के द्वारा ठुकराए जाने की वजह से खराब जीवन गुजारना पड़ता है.

वहीं किन्नरों की भी दुखभरी स्थिति का अनुभव हुआ जो समाज में न सिर्फ हिकारत की नजरों से देखे जाते हैं बल्कि उन्हें किन्नर होने का बहुत सारा खमियाजा भी भुगतना पड़ता है. आज भी अगर आप छोटे शहरों और गांवों में जाओगे तो वहां पर विधवाओं की हालत बद से बदतर देखने को मिलेगी. मैं ऐसी औरतों से मिली हूं जो विधवा होने की वजह से बहुत दुख उठा रही हैं. उन्हें सिर पर बाल रखने की इजाजत नहीं है, साजशृंगार करने की इजाजत नहीं हैं और अच्छे ढंग से खाना भी नहीं दिया जाता. वे सिर पर पल्लू रख कर कोने में पड़ी रहती हैं.

फिल्म मैं आप को किन्नर से मोहब्बत हो जाती है. एक किन्नर के दुख को भी आप ने महसूस किया है. किन्नरों के प्रति आप की क्या भावना है?

इस फिल्म में काम करने के बाद मेरा रवैया किन्नरों के प्रति बदल गया है. अब अगर मेरी कार के सामने किन्नर आ जाता है तो मैं उसे दुत्कारती नहीं हूं बल्कि अपनी कार का शीशा नीचे कर के उसे जो मदद चाहिए वह देती हूं क्योंकि ‘सफेद’ में काम करने के बाद ही मैं ने महसूस किया कि किन्नर भी आप से सिर्फ सम्मान चाहते हैं और शांति का जीवन जीना चाहते हैं बाकी उन को आप से कुछ नहीं चाहिए. अगर वे किन्नर हैं तो उन में उन का कोई दोष नहीं है. इसलिए हम उन्हें सम्मान तो दे ही सकते हैं.

आप ने इस फिल्म से पहले ‘सैक्शन 365’ में रेप विकटम का किरदार निभाया है. आप की फिल्मों के किरदार काफी हट कर होते हैं. ऐसे किरदार का चुनाव आप खुद करती हैं या आप को ऐसे रोल औफर होते हैं?

सच कहूं तो ऐसे किरदार निभाने के लिए जिगर चाहिए. ग्लैमरस रोल तो कोई भी कर सकता है. इस तरह के किरदार निभाना अपनेआप में चुनौती है और मु झे चुनौती पूर्ण किरदार निभाना ही पसंद है. यही वजह है कि फिल्मों के मामले में मैं बहुत चूजी हूं. मेरी यही कोशिश रहती है कि मैं कुछ अलग तरह के किरदार निभाऊं. यही वजह कि मैं मु झे फिल्म इंडस्ट्री में 8 साल हो गए लेकिन मैं ने बहुत कम फिल्में की हैं मगर जो भी फिल्में की है वे अर्थपूर्ण फिल्में हैं.

आप प्रियंका चोपड़ा की कजिन बहन हैं. आप की कजिन बहनें परिणीति चोपड़ा और मनारा चोपड़ा भी फिल्मों में सक्रिय हैं. ऐसे में आप को प्रियंका चोपड़ा की बहन होने के क्या फायदेनुकसान हैं?

न तो मु झे कोई फायदा है और न ही कोई नुकसान है. हम चोपड़ा बहनें अभिनय कैरियर में सक्रिय जरूर हैं लेकिन सब अपने बलबूते पर अपनी पहचान बना रहे हैं. प्रियंका ने कभी किसी से मदद नहीं ली और न ही मैं ने प्रियंका से कभी मदद मांगी. प्रियंका ने भी कभी मदद करने की कोशिश की. अगर मु झे उन की मदद मिली होती तो मैं पिछले 8 सालों से अपनी अलग पहचान बनाने के लिए सक्रिय नहीं होती. प्रियंका की बहन होने का न तो मु झे कोई फायदा है और न ही नुकसान है. आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मेहनत से हूं.

आप की बहन मनारा चोपड़ा ‘बिग बौस 17’ में धमाल मचा रही है. अगर आप को ‘बिग बौस’ में जाने का औफर मिला तो क्या आप जाना पसंद करेंगे?

नहीं, बिलकुल नहीं. मु झे बिग बौस मैं जाना बिलकुल पसंद नहीं है.

‘सफेद’ फिल्म के डाइरैक्टर संदीप सिंह और ऐक्टर अभय वर्मा के साथ काम करने का आप का अनुभव कैसा रहा?

संदीप सिंह की बतौर डाइरैक्टर यह पहली फिल्म है. फिल्म का डाइरैक्शन उन्होंने एक मं झे हुए डाइरैक्टर जितना ही अच्छा किया है. मेरा बतौर ऐक्ट्रैस उन के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा, बहुत कुछ सीखने को मिला. अभय वर्मा एक अच्छे ऐक्टर हैं. उन्होंने अपने किरदार को बहुत ही अच्छे से जीया है. निजी जिंदगी में वे बहुत ही शांत और मिलनसार हैं.

‘सफेद’ की रिलीज के बाद आप का अगला कदम क्या है?

मेरी इच्छा है कि मेरा काम देख कर मु झे इसी तरह की और अच्छी फिल्में मिलें जिन में समाज के उन पहलुओं को दिखाने का मौका मिले जो हमारे समाज के लिए जहर हैं. मेरा मानना है कि हम फिल्मों के जरीए समाज में कुछ अच्छा बदलाव लाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं. अपनी फिल्मों के जरीए ऐसी लड़कियों को शिक्षित कर सकते हैं जो घर वालों और मांबाप के कहने पर समाज के डर से सूली पर चढ़ने को भी तैयार हो जाती हैं.

आप ने हमेशा अर्थपूर्ण फिल्मों को जो समाज को शिक्षित करने के लिए बनाई गईं, महत्ता दी है. इस तरह की फिल्मों में काम करने के आप की नजर में क्या फायदेनुकसान हैं?

फायदा यह हुआ कि मु झे बतौर अभिनेत्री अपने अभिनय के लिए सराहना मिली, पहचान मिली. नुकसान यह हुआ कि मैं अपनेआप को स्थापित करने के लिए अभी भी संघर्ष कर रही हूं.

आप काफी समय से सिंगल हैं. आगे शादी का क्या प्लान है?

प्रोग्राम तो है क्योंकि मैं ने काफी समय अकेले गुजार लिया है. पहले अमेरिका में पढ़ाई कर के, बाद में साउथ में कैरियर बनाने के चलते और पिछले 15 सालों से मुंबई में अकेली हूं. इसलिए 2024 में मेरा शादी कर के सैटल होने का प्लान है. शादी किस से करूंगी और कौन सी तारीख पर करूंगी यह मैं आप को बाद में बताऊंगी.

अभिनय के अलावा क्या आप फिल्मों से जुड़े किसी और क्षेत्र में भी दिलचस्पी रखती हैं?

हां, मेरी इच्छा है कि मैं खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू करूं ताकि अच्छी और दिलचस्प कहानियों पर मैं फिल्में बना सकूं.??

रुक्मिणी: आखिर शादीशुदा रुक्मिणी का क्या था अतीत

खिड़की के पास खड़ी हो कर रुक्मिणी रीति बिटिया को आंखों से दूर जाते देख रही थी. ज्योंज्यों रीति नजरों से ओ?ाल होती गई उस के अतीत का पन्ना फड़फड़ा कर खुलता चला गया…

रीति बस 3 बरस की ही थी जब विनय ने उसे तलाकदे दिया था. उस के बाद कब और कैसे उस की बिटिया इतनी जल्दी सयानी हो गई, उसे पता ही न लगा. बचपन से ही गंभीरता की चादर ऐसे ओढ़ ली थी कि सारी चंचलता ही छूमंतर हो गई. उफ, एक गलत फैसले ने उस का जीवन बरबाद कर दिया. विनय जैसे रसिए को भला क्योंकर न पहचान सकी. उस केबिछाए जाल में फंस कर जीवनसाथी आदित्य को धोखा दे दिया. बदले में उसे क्या मिला आखिर धोखा ही न. साथ ही मिली तनहाई जो हाथपांव फैला कर उस के जीवन में दूर तक पसर गई.

आदित्य ने उस से प्रेमविवाह किया था.

पूरे समाज के सामने बरात ले कर आया था. शहर की सब से खूबसूरत शादी थी उन की. सालों तक लोग उस शादी का गुणगान करते न थकते थे. दोनों ही नौकरीशुदा थे. आदित्य ने नेवी जौइन की और रुकु ने एअरलाइंस. पति महीनों बाहर रहता और रुकु अंतर्राष्ट्रीय विमानों में अनेक यात्रियों की मनपसंद परिचारिका बनी रही.

दोनों एकदूसरे को पागलों की तरह चाहते थे. महीनों बाद जब भी मिलते तो

लवबर्ड्स की तरह घोंसले में घुस जाते पर मिलना कम ही हो पाता था. कहते हैं न दूरदूर रहने से दूरियां आ ही जाती हैं ऊपर से एअरहोस्टेस की ग्लैमरस दुनिया…

जब से नए पायलट विनय ने जौइन किया था तब से पूरा माहौल ही बदल गया था. हर वक्त उस से फ्लर्ट करता रहता. बालों का पोनी टेल, कानों में बालियां और जबान पर गाली तो ऐसे रखता जैसे कोई बड़ा रौक स्टार हो. पूरा क्रू उस के पीछे था और वह रुकु के पीछे. आदित्य के ठीक विपरीत स्वभाव के इस प्राणी को रुक्मिणी कभी भाव तक न देती थी. वह उसे जितना ही टालती वह उतना ही पीछेपीछे आता. उस रात जब घर लौटने में देर हो रही थी तो उस ने विनय की कार में लिफ्ट ले ली और वही उस के जीवन की सब से बड़ी गलती हो गई.

रात भी कमाल थी. तूफान के साथ बारिश जोरों पर थी. लगता था जैसे पूरे शहर को डुबो कर ही मानेगी. ऐसे में निर्दयता से उसे वापस कैसे भेज देती. कुछ औपचारिकता तो कुछ इंसानियत के नाते उसे रोक लिया. पहले कौफी, फिर वोदका और फिर ढेरों बातें करते न जाने कैसे वे खुलते चले गए यह पता ही नहीं लगा. नौकरानी खाना लगा कर अपने कमरे में सोने चली गई. महीनों से पति आदित्य से दूरी का असर था या फिर उस तूफानी रात का कहर कि न जाने कैसे 2 पैग के बाद वह उस की बांहों में थी. फिर क्या हुआ उसे कुछ भी याद नहीं.

कमली जब सुबह की चाय ले कर कमरे में आई तो मालकिन को निर्दोष बच्ची के समान विनय की छाती से लगा पाया. एक बार को तो उस का दिल धक से रह गया. महीनों की क्षुधा शांत हुई तो मुख पर अजीब सा भोलापन छाया था.

‘‘रुकु बेबी चाय…’’ कह कर वह निकल आई.

‘‘उफ, यह क्या हो गया?’’ बीती रात से लिपटी हर बात जैसे कानों में शोर मचाने लगी. उसे अपनी ही हालत पर बुरी तरह रोना आया तो विनय पर बिफर पड़ी पर वह तो मोटी चमड़ी का बना था. पूरी ढिठाई से बोला, ‘‘तुम ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं आदित्य की जगह होता तो तुम्हें अकेली कभी नहीं छोड़ता.’’

उस ने उलटी ही बात कहनी शुरु की. रुक्मिणी जानती थी कि वह गलत कर रही है पर कहते हैं न कोई गलती पहली बार ही गलती लगती है. बारबार की जाए तो वह आदत में शुमार हो जाती है. तब व्यक्ति में एक किस्म की ढिठाई आ जाती है. रुकु के साथ यही हो रहा था और विनय जैसा रसिक भला उसे कैसे सुधरने देता. पहले ही वह शराब की बोतल सी हसीन हसीना के नशे में डूबने को तरस रहा था. अब वह साथ ही रहने लग गया.

फिर वही हुआ जो अमूमन होता है. रुक्मिणी उलटियां करती परेशान हो रही थी. विनय बच्चे को हटाना चाहता था पर रुक्मिणी उसे जन्म देना चाहती थी. सब से पहले उस ने आदित्य को फोन पर यह बताया तो उसे गहरा सदमा लगा. चाहता तो लड़ सकता था. तमाम इलजाम लगा कर उस का अपमान कर सकता

था मगर रुक्मिणी से प्यार करता था. उस की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ़ कर उस ने खुद ही किनारा कर लिया. प्यार के लिए शादी की थी. जब प्यार ही न रहा तो फिर क्या कहतासुनता या प्रतिकार करता.

बच्चे को जन्म देने के लिए विवाह की अनिवार्यता थी. रुक्मिणी के पिता बचपन में ही गुजर गए थे. परिवार के नाम पर बस मां थीं. रुक्मिणी के दबंग व्यक्तिव के आगे मां की भी क्या चलती? विनय से शादी हो गई. शादी में आमंत्रित रिश्तेदारों के बीच कानाफूसी चलती रही. आखिर आदित्य से अचानक शादी टूटना और आननफानन में दूसरी शादी, लोगों को दाल में कुछ काला लग रहा था. बचाखुचा सस्पैंस 9वें महीने में खत्म हुआ जब दिन पूरे हुए और नन्ही रीति ने आंखें खोलीं.

रुक्मिणी अपनी बेटी को पा कर धन्य हो गई थी. नौकरी छोड़ कर पूरे मन से बेटी को बड़ा करने लगी. रातदिन बस एक ही धुन में लगी रहती जैसे जीताजागता खिलौना हाथ लग गया हो और विनय. उस जैसे भंवरे एक फूल पर कब टिकते हैं. आज यहां तो कल वहां. उस के पास हवाईजहाज उड़ाने का बहाना तो था ही, एक दिन ऐसा उड़ा कि लौट कर ही न आया. बस तलाक के कागज भिजवा दिए.

चोर जब तक चोरी करता है उसे लगता ही नहीं वह कुछ गलत कर रहा है पर जिस पल पछताता है उसे अपने सभी पाप याद आने लगते हैं. वह पश्चात्ताप की अग्नि में जलने लगता है. रुक्मिणी ने अनजाने में मन पर तन की इच्छा को महत्त्व दे दिया था. अब उसी अग्नि में तप रह थी. आदित्य जैसे भद्रपुरुष के ऊपर विनय जैसे तेजतर्रार लवर बौय को वरीयता दे कर पछताने

के सिवा और कुछ शेष न रहा था. उस के पास कुछ था तो एक 3 वर्षीय बच्ची, फ्लैट और कुछ बैंक बैलैंस जिस के सहारे उसे बेटी को बड़ा करना था.

रुक्मिणी याद है विदा होते वक्त आदित्य ने कहा था, ‘‘जब मन भर जाए तब लौट आना. मैं आजीवन तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मगर रुक्मिणी किस मुंह से लौटती. अब उसे अपनी बेटी का भविष्य संवारना था. उस ने अपनी मां को अपने पास बुला लिया और वापस एअरलाइंस जौइन कर ली. बेटी बड़ी होने लगी थी. देखते ही देखते 20 वर्ष निकल गए. आज के जमाने जैसे कोई गुण न थे उस में. सादगीभरी सुंदर काया की स्वामिनी कला की अद्भुत पुजारिन थी. ब्लू जींस के ऊपर

ढीलेढाले सिल्क के कुरते और बालों को मोड़ कर बनाए गए जूड़े में अल्ट्रा मौडर्न मां नहीं बल्कि अपनी नानी जैसी संजीदगी की मूरत दिखाई देती. बेटी के खयालों में खोई थी कि फोन की घंटी बजी.

‘‘मां, आप और नानी घर से निकले क्या? आज का दिन मेरे लिए बहुत बड़ा है. मैं इसे आप दोनों के साथ महसूस करना चाहती हूं.’’

‘‘हां बेटा, बस निकल रहे हैं.’’

अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ऐग्जिबिशन में उस के कई चित्रों को स्थान मिला था. रुक्मिणी मां

के साथ सही वक्त पर हौल में दाखिल हुई. वहां उस की बेटी को विदेशी डैलीगेट्स के द्वारा सम्मानित किया जाना था. पहली पंक्ति के आरक्षित स्थान पर पहुंचते ही बढ़ी हुई दाढ़ी में आदित्य को देख कर ठिठक गई. वह उस की बेटी की आर्ट ऐग्जिबिशन की स्पौंसरशिप कर रहा था.

इस पूरे आयोजन के पीछे उसी का योगदान था. नानी के चेहरे पर विजयभरी मुसकान दिखी. उन्होंने ही तो रीति की जिम्मेदारियां आदित्य को सौंप कर, पितापुत्री को एकदूसरे के स्नेह का अवलंब बनाया. आज उन का काम पूरा हो गया.

‘‘ये सब क्या है मां?’’ बेटी रुक्मिणी ने मां से पूछा तो वे सकपका गई.

‘‘तेरे पिता के जाने के बाद उन के लौट कर आने की कोई गुंजाइश नहीं थी तो मन मजबूत करना पड़ा मगर आदित्य जैसे भले इंसान से जीते जी दूरी क्यों?’’

‘‘मगर मां किसी की अच्छाई का फायदा क्यों उठाना?’’ रुक्मिणी ने कहा.

‘‘बेटा गुरूर में जवानी कट जाएगी बुढ़ापा नहीं… वह तु?ा से प्यार करता है. तभी तो मेरे आते ही मु?ा से मिलने आया. कब से तेरी ‘हां’ का इंतजार कर रहा है. तुम ने खुद के लिए जो अकेलेपन की सजा तामील की थी अब तो उसे खत्म कर दे.’’

तभी माइक पर रुक्मिणी को पुकारा गया. पूर्व पति और बेटी के साथ मंच पर खड़ी इन खूबसूरत पलों को महसूस कर मुसकराई तो दबी जबान में आदित्य ने पूछ ही लिया, ‘‘रीति मु?ो अपना धर्मपिता मानती है.

इस नाते क्या तुम्हें अपनी धर्मपत्नी बुला सकता हूं?’’

सहज भाव से पूछे गए प्रश्न का जवाब सरलता से ‘हां’ में देती रुकु को सम?ाते देर न लगी कि जन्मदाता से कहीं ज्यादा रीति में अपने धर्मपिता के सधे व्यक्तित्व की ?ालक है. इस पिता की छत्रछाया में ही उस की बेटी इतने सुंदर व्यक्तित्व की स्वामिनी बन सकी है.

कौन कहता है रक्त संबंधी ही अपने होते हैं. प्रेम से बढ़ कर कोई संवेदना नहीं, निस्स्वार्थ सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं, अच्छाई से बड़ा कोई आदर्श नहीं. इन तीनों गुणों से युक्त आदित्य अपनी धर्मपत्नी व पुत्री के साथ एक आदर्श रिश्ता निभाता हुआ अंतत: अपने ही परिवार में लौट आया.

Wedding Special: रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए भी अपना रूप निखारें

माना कि घर रिलैक्स करने, कंफर्टेबल होने की जगह है, लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि रिलैक्स होने के चक्कर में आप घर में झल्ली सी बनी रहती हैं, प्रैजैंटेबल नहीं रहतीं? हैरानी की बात है कि पत्नी जिस शख्स से सब से ज्यादा प्यार करती है, जिस के इर्दगिर्द ही उस की दुनिया बसती है यानी पति उसी के सामने वह सजीसंवरी नहीं रहती. हम यह नहीं कहते कि पत्नी घर में हाईहील पहन कर घूमे. हम एक मां, पत्नी की जिम्मेदारियों को समझते हैं, जिन के बीच उसे सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती है. लेकिन जब आप ग्रौसरी शौप तक भी तैयार हो कर व बाल बना कर जाती हैं यानी भले ही कैजुअली तैयार होती हैं, लेकिन होती हैं न? प्रैजैंटेबल दिखती हैं न? आप ऐसा इसलिए करती हैं ताकि अगर रास्ते में कोई पासपड़ोस का मिल जाए तो आप को मुंह न छिपाना पड़े, शर्मिंदगी न महसूस हो, तो फिर पति के सामने बनसंवर कर क्योंनहीं रहती हैं? आप की जिंदगी में तो उन की सब से ज्यादा अहमियत है.

जगाएं पति के मन में प्यार: पति औफिस से थकेहारे घर आएं और आप के कपड़ों से घी, तेल, मसालों की गंध आ रही हो, बाल बिखरे हों, कपड़े अस्तव्यस्त हों तो जरा सोचिए उन के मन में प्यार का खुमार कैसे जगेगा? पति के दिल में प्यार जगाना है, तो हमेशा उन के सामने सजीसंवरी रहें, बनीठनी रहें. ऐसी ड्रैस पहनें जो उन का मूड बना दे और आप को सैक्सी व सैंसुअस फील कराए. ऐसा नहीं कि आप मौडर्न ड्रैसेज में ही सैक्सी दिखेंगी. आप चाहें तो स्लीवलैस डीप कट ब्लाउज के साथ जौर्जेट या फिर शिफौन की साड़ी में भी पति का दिल जीत सकती हैं. अच्छी तरह तैयार हो कर पति को बारबार जताएं कि यह सिर्फ और सिर्फ उन के लिए ही कर रही हैं. आप ऐसे तैयार रहें कि उन की नजर आप पर से हटे ही नहीं. उस दौरान टीवी का रिमोट छिपा दें. उन्हें अपनी निगाहों, इशारों से छेड़ें, उन की उत्तेजना को बढ़ाएं. फोरप्ले का यह सैशन आप को सैक्स के लिए एक माइंड ब्लोइंग मौका देगा. पति को इंतजार कराएं. उन का यह इंतजार आप के प्यार को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण रोल अदा करेगा.

कहीं न जाना हो तो भी सजेंसंवरें: आप औफिस, पार्टी में जाने के लिए तो हमेशा तैयार होती हैं, लेकिन अपने उन के लिए आप कब तैयार हुईं? अब खासतौर पर उन के लिए सजेंसंवरें. पति के लिए खासतौर पर सजनासंवरना खास है, अमूल्य है. यह उन्हें स्पैशल फील कराएगा. वे जब भी आप को सजासंवरा देखेंगे तो उन के चेहरे की खुशी देखते ही बनेगी. वे आप को अपने चारों ओर मंडराते नजर आएंगे. पूरी तरह तैयार हो कर आप को कुछ नहीं कहना है सिर्फ अपने प्रति पति के भावों को औब्जर्व करना है. दिल आप का भी उन के नजदीक जाने को मचलेगा, लेकिन यही आप की परीक्षा की घड़ी है. आप उन्हें और बेकरार करें. रात होने का इंतजार करने दें, क्योंकि रात की नजदीकी आप दोनों को और नजदीक लाएगी. तैयार हो कर दिन में सिर्फ उन्हें छेड़ें, अपनी अदाओं से आकर्षित करने का प्रयास करें ताकि उन की बेकरारी बढ़ती जाए. यकीन मानिए आप का सजनासंवरना बेकार नहीं जाएगा. पति निहाल हो जाएंगे.

चुरा न ले उन्हें कोई और: आप के पति जब औफिस में रहते हैं, मीटिंग्स में जाते हैं, बिजनैस टूअर पर जाते हैं तो उन का सामना अनेक सजीसंवरी सुंदर महिलाओं व युवतियों से होता होगा, जो उन्हें लुभाती होंगी. ऐसे में जब वे घर आते हैं और आप को अस्तव्यस्त अवस्था में देखते हैं, तो आप की तुलना उन आकर्षक महिलाओं और युवतियों से करते हैं और यह वाजिब भी है. आप और उन महिलाओं के लुक्स और स्टाइल का अंतर आप को उन से दूर कर सकता है. हो सकता है उन का दिल किसी बाहर वाली सजीसंवरी महिला पर आ जाए. वैसे भी सजीसंवरी खूबसूरत चीज हर किसी को आकर्षित करती है. अगर आप नहीं चाहतीं कि आप के पति को कोई और चुरा ले तो घर में झल्ली न बनी रहें.

हमेशा पति के सामने सजीसंवरी रहें. उन्हें आकर्षित करने का कोई मौका न छोड़ें. जब उन्हें घर में ही खूबसूरती दिखाई देगी तो बाहर की खूबसूरती के प्रति आकर्षित नहीं होंगे. वैसे भी घर में तैयार होना काफी आसान है. आप के पास पूरा समय होता है. बस, टे्रन, मैट्रो पकड़ने की डैडलाइन नहीं है, इसलिए पति की मनपसंद ड्रैसेज पहनें, अलगअलग हेयरस्टाइल बनाएं, मेकअप करें. फिर देखें वे आप के आसपास ही नजर आएंगे और आप की शिकायत भी दूर हो जाएगी कि वे आप से प्यार नहीं करते, इग्नोर करते हैं. गलत मैसेज न दें: अगर आप कामकाजी महिला हैं तो औफिस जाने के लिए रोज नया लुक ट्राई करती हैं, अच्छी तरह तैयार हो कर जाती हैं. होममेकर हैं तो जब फ्रैंड्स के घर जाती हैं, पार्टी में जाती हैं, शौपिंग करने जाती हैं तो तैयार हो कर जाती हैं. लेकिन जब पति घर पर होते हैं आप अस्तव्यस्त रहती हैं तो पति को गलत मैसेज देती हैं कि आप को उन की परवाह नहीं है, आप उन से प्यार नहीं करतीं. इसीलिए तो उन के सामने सजतीसंवरती नहीं. लेकिन घर से बाहर औफिस, मौल सभी जगह सजसंवर कर जाती हैं. इस का अर्थ है आप पति के बजाय औरों के लिए सजतीसंवरती हैं, जो उन्हें आप से दूर कर देगा. इसलिए घर से बाहर जाते समय तो तैयार हों ही, घर में रहते हुए भी हमेशा तैयार रहें ताकि आप दोनों के बीच का आकर्षण बरकरार रहे. पति के प्रति अपने आकर्षण को बनाए और जगाए रखना हर महिला की खुशी के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है.

पूरा दिन अच्छी तरह सजसंवर कर पति को टीज व प्लीज करना आप दोनों के सुखद वैवाहिक जीवन के लिए अमूल्य उपहार होगा.

पिंपल और उनके दाग दूर करने का कोई उपाय बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 18 वर्ष है. मैं जब भी पिंपल के दाग दूर करने के लिए मसूर की दाल का उबटन लगाती हूं तो एक न एक पिंपल फिर से निकल आता है. पिंपल और उनके दाग दूर करने का कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप की प्रौब्लम से लगता है कि आप की स्किन अति संवेदनशील है तभी बार-बार आप के चेहरे पर दाने निकल आते हैं. आप उबटन का प्रयोग न करें. अकसर उबटन सूखने के बाद उसे मल कर छुड़ाने से स्किन के जिस भाग में नमी और तेल की जरूरत होती है, वहां से वह निकल जाती है. इसलिए प्रभावित स्थान पर नीम व तुलसी की पत्ती का पैक लगाएं. आप चाहें तो ताजा पत्तियों को पीस कर घर पर भी यह पैक तैयार कर सकती हैं. ऐलोवेरायुक्त क्रीम का इस्तेमाल भी आप के लिए फायदेमंद साबित होगा. इस से मुंहासे कम होंगे और धीरे-धीरे उन के दाग भी दूर हो जाएंगे.

हर लड़की बेदाग और निखरे त्वचा की चाहत रखती है, पर अक्सर ही मुंहासे या पिंपल होने की वजह से चेहरे पर दाग पड़ ही जाते हैं, जिससे चेहरे की खूबसूरती पर बहुत असर पड़ता है. कई बार तो मुंहासे ठीक हो जाते हैं पर उसके दाग इतने गहरे हो जाते हैं कि वह जल्‍दी जाने का नाम नहीं लेते. अलगअलग तरह की क्रीम का प्रयोग करने से अच्‍छा है की आप दाग को हटाने के लिए कुछ आसान घरेलू उपचार अपनाएं.

शहद

इसको पिंपल के दाग वाली जगह पर लगाएं और 45 मिनट तक ऐसे ही रहने दें. इसको सूखने के बाद ठंडे पानी से धो लें. शहद हर प्रकार के दाग को ठीक कर सकता है.

आइस क्‍यूब

मुंहासे होने की वजह से त्‍वचा के पोर्स काफी बड़े हो जाते हैं. इसको कम करने के लिए और दाग को हटाने के लिए चेहरे पर 15 मिनट तक बर्फ से मालिश करनी चाहिये.

खीरा

खीरे को कस लें और अपने चेहरे पर एक घंटे के लिए लगाएं और फिर ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इससे न केवल पिंपल साफ होता है बल्कि यह पिंपल को होने से रोकता भी है.

Wedding Speical: शादी के दिन जब खुद से करना पड़े मेकअप

शादी के दिन कई बार ऐसा भी होता है कि सब कुछ पहले से ठीक करने के बावजूद कुछ समस्या आ जाती है. इसमें मुख्य होता है सही मेकअप आर्टिस्ट का मिलना, जिसे खोजकर निकलना मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आप अपनी शादी पर खुद ही मेकअप करने के बारें में सोचें, तो कोई गलत बात नहीं, क्योंकि आप अपने चेहरे को जानती हैं और अगर आप थोड़ी सी भी मेकअप में रूचि रखती हैं तो क्या कहने. आप अपने अनुसार अपने आप को खूबसूरत बना सकती है

इस बारें में मेकअप आर्टिस्ट अन्नपूर्णा गोकन कहती हैं कि मेकअप करना कोई कठिन काम नहीं, अगर किसी को रंगों की पहचान, रूचि और अपना स्किन टोन पता है, तो आसानी से वह शादी में अपना मेकअप खुद कर सकती है. ‘वेडिंग डे’ पर अगर आप खुद ही मेकअप करना चाहती हैं तो निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें.

  1.  चेहरा

हर प्रकार के चेहरे को खुबसूरत बनाने में त्वचा की खास अहमियत होती है. मेकअप से एक रात पहले त्वचा पर एक सौफ्ट एक्सफोलिएटर और हाईड्रेटिंग मास्क की सहायता से मोइस्चराइज करें, त्वचा में जितनी नमी होगी, उस पर किया गया मेकअप उतना ही सुंदर होगा. अगर आपके चेहरे पर किसी प्रकार के दाग धब्बे हैं, तो ‘वेडिंग डे’ से एक दिन पहले अपनी स्किन के अनुसार ब्लीच कर लें. ये ध्यान रखें कि ब्लीच और मोइस्चराइजिंग में एक दिन का अंतर होना बहुत जरूरी है. वेडिंग में मेकअप करने के लिए सबसे पहले फाउंडेशन का प्रयोग अपनी रंगत के अनुसार करें, ये आपको हर उत्पाद में अच्छी तरह लिखा हुआ होता है. दाग-धब्बे होने पर उसे कंसीलर की लेयर से पैक कर फाउंडेशन लगाएं. आजकल वेलवेट मैट फाउंडेशन ट्रेंड में है. फाउंडेशन को चेहरे पर सही तरह से मिलाने के लिए स्पंज का प्रयोग करें, खासकर आंखों के नीचे इसे अच्छी तरह से फैलायें और इसे अच्छी तरह त्वचा में मिलने के लिए थोड़ी समय दें.

2. आंखें

‘वेडिंग ड्रेस’ के अनुसार आइ शैडो लगायें, डबल शेड आजकल काफी पौप्युलर है, लेकिन अगर आपको इसका सही पता नहीं चल रहा है, तो आप यूनिवर्सल रंग, गोल्डन या कापर आइ शैडो का प्रयोग कर सकती हैं, जो किसी भी रंग के परिधान पर सही बैठता है. इसके बाद वाटर प्रूफ आइलाइनर ब्लैक या ब्राउन अपने वेडिंग ड्रेस के अनुसार लगायें, बाद में मस्कारा लगाकर फिनिशिंग टच दें. कुछ अलग करने की इच्छा होने पर ड्रेस में प्रयोग किये गए रंगों के आधार पर भी आइलाइनर का प्रयोग कर सकती हैं. अगर आपके आंखों के नीचे काले घेरे हों, तो काजल का प्रयोग न करें.

3. होंठ

होठों पर लिपस्टिक वेडिंग परिधान के अनुसार ही लगाना सही होता है, इसमें मरून, पिंक, रेड आदि ट्रेंड में है. लिपस्टिक दो तरह के मिलते है ‘ग्लिटर’ और ‘मैट’. आजकल अधिकतर दुल्हने मैट वाली लिपस्टिक लगाती है, क्योंकि इससे नेचुरल लुक मिलता है और लिपस्टिक काफी समय तक टिका रहता है. अपने स्किन टोन से एक डार्क शेड लगाना सही रहता है. लिपस्टिक लगाने से पहले लिप लाइनर अवश्य लगायें. अगर लिप्स चौड़े हैं, तो उन्हें आप लिप लाइनर की सहायता से पतला बना सकती हैं और अगर पतले हैं, तो उन्हें अपने चेहरे के अनुसार शेप दे सकती हैं.

अंत में ब्लशर लगाना न भूलें, अपनी स्किन टोन के हिसाब से इसे लेकर ‘स्माइली फेस’ बनाकर ब्रश की सहायता से नीचे से ऊपर ब्लशर गालों और ठुड्डी पर लगायें.

खुद से मेकअप करना आसान है, पर कुछ बातों पर गौर करें, जो निम्न हैं.

– खुद से मेकअप करने के लिए तकरीबन एक घंटा एक्स्ट्रा समय अपने पास रखें, ताकि किसी काम में अधिक हड़बड़ी न हो.

– मेकअप में प्रयोग किया जाने वाला कोई भी ब्यूटी प्रोडक्ट हमेशा ब्रांडेड और वाटर प्रूफ ही लें, ताकि उसकी फिनिशिंग अच्छी हो और त्वचा पर किसी प्रकार का प्रभाव बाद में न दिखे.

– अपने रंगत के अनुसार उत्पाद लें और वेडिंग डे से पहले एक बार उसे लगाकर देख लें कि आपके मन मुताबिक रंग है या नहीं.

– वेडिंग डे पर रोशनी की व्यवस्था को अवश्य परख लें, ताकि आप सबसे अलग और शानदार दिखें.

– दोस्तों को भी अपने साथ तैयार होने को कहें, ताकि आपको उनका सहयोग बीच-बीच में मिलता रहे.

Karan Singh Birthday: दिल जीतने से लेकर बुलंदियों तक पहुंचने तक, पढ़ें एक्टर की अद्भुत यात्रा

Karan Singh Birthday: जैसा कि हम आज करण सिंह ग्रोवर का जन्मदिन मना रहे हैं, यह प्रभावशाली प्रदर्शनों से भरे उनके शानदार करियर पर विचार करने का एक उत्कृष्ट समय है. ‘दिल मिल गए’ में अपने शुरुआती दिनों से ही, करण लगातार दिलों की धड़कन रहे हैं और स्क्रीन पर अपनी आकर्षक उपस्थिति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करते रहे हैं.

प्रतिष्ठित सीरीज ‘दिल मिल गए’ में, जिसने मनोरंजन जगत में उनकी शुरुआत की, करण ने एक आकर्षक डॉक्टर, अरमान मलिक की भूमिका निभाई, जिसने उन्हें तुरंत टेलीविजन दर्शकों, विशेष रूप से युवाओं के बीच एक लोकप्रिय नाम बना दिया. सह-कलाकारों के साथ उनकी निर्विवाद केमिस्ट्री ने शो में आकर्षण की एक अतिरिक्त परत जोड़ दी, जिससे यह प्रशंसकों का पसंदीदा बन गया. ‘दिल मिल गए’ में अपनी सफलता के बाद, करण सफलता की सीढ़ियां चढ़ते रहे और खुद को सबसे लोकप्रिय टेलीविजन नायकों में से एक के रूप में स्थापित किया. उनकी प्रसिद्धि ‘कुबूल है’ से जारी रही, जिसमें उन्होंने असद अहमद खान के रूप में गहन प्रदर्शन किया.

ठीक उसी समय जब दर्शक करण को और अधिक चाहते थे, उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा और सिल्वर स्क्रीन पर धूम मचाने वाले कुछ चुनिंदा टेलीविजन सितारों में से एक बन गए. उन्होंने ऐसा उस समय किया जब एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाना एक चुनौती थी. उन्होंने 2008 में अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें ‘अलोन’ से प्रसिद्धि मिली, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी बिपाशा बसु के साथ अभिनय किया. उनकी हालिया रिलीज ‘फाइटर’ ने उन्हें प्रसिद्धि, सफलता और सुर्खियों का एक और स्तर जोड़ दिया है.

लेकिन फिल्मों में एक लोकप्रिय चेहरा बनने के बाद भी करण को मनोरंजन के अपने पहले माध्यम में लौटने से नहीं रोका. 2019 में, करण ने ‘कसौटी जिंदगी की 2’ में मिस्टर ऋषभ बजाज की भूमिका के साथ टेलीविजन पर विजयी वापसी की. उन्होंने ‘बॉस: बाप ऑफ स्पेशल सर्विसेज’ में अपने डिजिटल डेब्यू के साथ लहरें पैदा की, इसके बाद 2020 में वेब सीरीज ‘डेंजरस’ में अपने मनोरंजक प्रदर्शन के साथ उनकी टेलीविजन सीरीज ‘कुबूल है’. वह वेब-सीरीज़ के संस्करण में असद की अपनी प्रतिष्ठित भूमिका निभाने के लिए भी लौट आए.

काम के मोर्चे पर, करण ने ब्लॉकबस्टर ‘फाइटर’ में कैप्टन सरताज ‘ताज’ सिंह की भूमिका निभाई, जिसने बॉक्स ऑफिस पर 350 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की, जिससे वह उस फिल्म का हिस्सा बनने वाले अभिनेताओं में से एक बन गए जो बॉक्स ऑफिस पर राज कर रही है और पैसा कमा रही है. उम्मीद है कि अभिनेता अपने दर्शकों को आश्चर्यचकित करते रहेंगे और स्क्रीन पर अपनी बहुमुखी प्रतिभा दिखाते रहेंगे.

जन्मदिन मुबारक हो करण!

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