क्यों जरूरी है महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता

देश बदल रहा है. महिलाओं की दशा में सुधार हो रहा है. समय के साथसाथ नारी और सशक्त होती जा रही है. इंदिरा गांधी, इंदिरा नूई और किरण बेदी से ले कर सानिया मिर्जा, सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला तक जैसी कितनी ही आधुनिक भारत की महिलाओं ने देश को विश्वभर में गौरवान्वित किया. लेकिन फिर भी घर हो या बाहर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा और यौन अपराधों में लगातार वृद्धि होती रही है. इस की मूल वजह है महिलाओं की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता. महिला सशक्तीकरण तभी संभव है जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों.

आज भी महिलाओं की अधिकांश समस्याओं का कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भरता है. देश की कुल आबादी में 48 फीसदी महिलाएं हैं जिन में से मात्र एकतिहाई महिलाएं कामकाजी हैं. इसी वजह से भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 18 फीसदी है.

हमारे समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी सामाजिक बंधनों की बेडि़यों को पूरी तरह से तोड़ नहीं पाया है. उन का घर में अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है. एक तरह से हमारा पितृसत्तात्मक समाज उन्हें जन्म से ही ऐसे सांचे में ढालने लगता है कि वे अपने वजूद को बनाए रखने के लिए पुरुषों का सहारा ढूंढें़ और हर काम के लिए पुरुषों पर निर्भर रहें. जब कोई स्त्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है तब कितने रीतिरिवाजों, परंपराओं और पुराणों में लिखी सीख की दुहाई दे कर उसे परतंत्र जीवन जीने पर विवश कर दिया जाता है.

समान अवसर दिए जाएं

भारतीय संसद में केवल 14 फीसदी महिलाएं हैं. इसी तरह पंचायत स्तर पर अधिकांश महिलाओं को केवल मुखौटे की तरह इस्तेमाल किया जाता है यानी चुनाव तो महिला जीतती है लेकिन सत्ता से संबंधित सभी निर्णय उस के परिवार के पुरुष सदस्य करते हैं. देश के सर्वोच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायालयों में मौजूद न्यायाधीशों में महज 11 फीसदी महिलाएं हैं.

समय की मांग है कि अब महिलाएं अपनी क्षमता को पहचान कर, परंपरागत रूढि़यों को दरकिनार कर देश और परिवार की कमाऊ सदस्य बनें. यदि परिवार और समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को समाप्त कर उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्रदान किए जाएं तो दूसरी महिलाएं भी गीता गोपीनाथ, इंदिरा नूई किरण मजूमदार की तरह सशक्त हो सकती हैं.

शिक्षा और आत्मनिर्भरता

लड़कियों को बचपन से ही पाक कला और गृहकार्य में निपुणता की शिक्षा दी जाती है. मगर इस से ज्यादा जरूरी है महिलाओं का शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना. यह केवल परिवार के लिए नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी आवश्यक है. शिक्षा का महत्त्व तब पता चलता है जब परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा हो या किसी भी लड़की के वैवाहिक जीवन में अचानक परेशानी आ जाए.

ऐसे में शिक्षा और आर्थिक निर्भरता की बदौलत ही एक लड़की अपने मातापिता या पति की सहायता के बगैर भी सम्मानजनक जीवन जी सकती है.

महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना. भारत में कई ऐसी महिलाएं हैं जो एक कुशल गृहिणी और मां तो हैं लेकिन इन सब के बदले उन्हें अपने कैरियर से हाथ धोने पड़े. कई महिलाएं पढ़ीलिखी हैं लेकिन मैटरनिटी लीव के बाद कभी औफिस जौइन ही नहीं कर पाईं और इस वजह से उन का बना हुआ कैरियर भी खत्म हो जाता है. ऐसी महिलाओं के लिए बाद में कई तरह की दिक्कतें आने लगती हैं और उन्हें समस्याओं से उबरने का मौका ही नहीं मिल पाता.

आर्थिक निर्भरता के माने

भले ही जीवन में पैसा सबकुछ नहीं होता लेकिन पैसे के बिना बेहतर जीवन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. पैसा हमें आत्मनिर्भरता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है. आमतौर पर गृहिणियां घरबाहर के और अपने सभी छोटेछोटे खर्चों के लिए अपने पति पर निर्भर होती हैं. हालांकि पति की कमाई से खर्च करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन महिलाओं का वजूद दब सा जाता है. उन के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता के अपने अलग ही माने हैं.

जब एक महिला जौब या फिर कोई बिजनैस करती है तो वह केवल पैसे ही नहीं कमाती है बल्कि वह खुद को भी स्थापित करती है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनती है. वह कई तरह से खुद को एक बेहतर इंसान बनाने की तरफ कदम बढ़ाती है.

फाइनैंशियली इंडिपैंडैंट होने के कई लाभ

घर खर्च में कंधे से कंधा मिलाना. जब एक महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है तो वह बेहतर तरीके से अपने परिवार का सपोर्ट सिस्टम बन सकती है. आज के महंगाई के युग में केवल एक व्यक्ति की सैलरी से घर चलाना काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में महिला की आमदनी घर खर्च को काफी आसान बना देती है. वह अपना और बच्चों का खर्च वहन करने में सक्षम बनती है. पति कभी बीमार हो जाए या उस की जौब छूट जाए तो ऐसे में महिला परिवार का सहारा बन पाती है.

आर्थिक आजादी का एहसास

जब महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होती हैं तो उन्हें हर छोटेबड़े खर्चे के लिए पति से पैसे मांगने पड़ते हैं. अगर पति मना कर दे तो उन्हें अपना मन भी मार कर रहना पड़ता है. कई दफा पति पैसों को ले कर बात भी सुना देते हैं. तब महिलाएं हर्ट हो जाती हैं और अपनी जरूरतें सीमित करने लगती हैं. लेकिन आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को आर्थिक आजादी प्रदान करती है. जब वे खुद कमाती हैं तो वे खुद पर खर्च भी कर सकती हैं और इस के लिए उन्हें अलग से किसी की परमिशन लेने की आवश्यकता नहीं होती है.

परिवार में सम्मान बढ़ता है

जो महिलाएं कमाती हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं उन्हें घरपरिवार में अधिक सम्मान मिलता है. घर में भले ही वे 24×7 काम करने के लिए तैयार होती हैं लेकिन फिर भी परिवार में लोग उन के घरेलू कामों को अहमियत नहीं देते. वहीं अगर वे किसी कंपनी में जौब करती हैं या फिर खुद का ही बिजनैस है तो पति या घर वालों के अलावा रिश्तेदार व पड़ोसी भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं.

रूढि़यां तोड़ सकती हैं

भारतीय घरों में महिलाओं के साथ शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन अधिकतर महिलाएं इस हिंसा को सिर्फ इसलिए बरदाश्त करती हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती हैं. उन्हें यह लगता है कि अगर वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगी तो उन्हें घर छोड़ना पड़ेगा और फिर उन का व उन के बच्चों का गुजारा कैसे होगा. इसी सोच के चलते वे जीवनभर एक टौक्सिक रिश्ते में भी बंधी रहती हैं.

लेकिन अगर महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है तो वह ऐसे रिश्ते को ढोने से इनकार कर अकेली रह सकती है, उस का दिल करे तो वह अविवाहित भी रह सकती है. उस में हिम्मत होती है कि वह पुरानी सोच और रूढि़यों के खिलाफ जा सके.

आत्मविश्वास बढ़ता है

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता महिलाओं को अधिक आत्मविश्वासी भी बनाती है. उन्हें यह एहसास होता है कि वे अपने पति व परिवार की परछाईं से अलग अपनी भी कोई पहचान रखती हैं और समाज में लोग उन्हें केवल पति के नाम से ही नहीं जानते. उन का अपना वजूद होता है. लोग उन्हें उन के नाम से पहचानते हैं.

यह आत्मविश्वास उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है. वे खुद को बेहतर तरीके से ट्रीट कर पाती हैं और अपनी पर्सनैलिटी को बेहतर बना पाती हैं. हर तरह के कपड़े कैरी करती हैं और लोगों के आगे अपनी बात रखने का जज्बा रखती हैं.

महिलाएं कहां करें निवेश

आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए पैसे कमाने और बचत करने के साथसाथ उन्हें सही जगह निवेश करना भी आना चाहिए. महिलाओं के लिए निवेश के कई औप्शन हैं. सोने में निवेश करना पुराने समय से चला आ रहा है. सोने में निवेश करने के लिए बहुत सारे विकल्प हैं, जिन में गोल्ड फंड, गोल्ड ऐक्सचेंज ट्रेडेड फंड, बार, गहने, सिक्के, सौवरेन गोल्ड बौंड प्रोग्राम शामिल हैं.

भारत सरकार की रिटायरमैंट स्कीम में निवेश कर के कामकाजी महिलाएं बुढ़ापे के लिए पैंशन फंड एकत्रित कर सकती हैं. राष्ट्रीय पैंशन योजना में निवेश कर के पैसा सुरक्षित रख सकती हैं.

बिना रिस्क वाले निवेश विकल्पों की तलाश में तो उन के लिए एफडी भी एक बेहतर विकल्प है. कामकाजी महिलाएं हों या होम मेकर, पब्लिक प्रौविडैंट फंड उन के लिए निवेश का अच्छा विकल्प हो सकता है. इस में 15 साल तक निवेश करना होता है जिस पर सरकार अच्छा ब्याज देती है.

इसी तरह नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट सब से सुरक्षित निवेश की स्कीमों में से एक है. इस में आप एक निश्चित रकम एक निश्चित समय के लिए निवेश कर सकती हैं.

स्कीम मैच्योर होने के बाद आप को पूरा पैसा मिल जाता है. यह स्कीम महिलाओं के लिए इसलिए अच्छी है क्योंकि एक निश्चित समय में आप की बचत ब्याज समेत वापस मिल जाती है.

फिक्स्ड डिपौजिट स्कीम निवेश के साथसाथ सेविंग का भी एक अच्छा विकल्प है. इस में आप के खर्च के बाद जो भी रकम बचती है उस की आप एफडी करवा सकती हैं.

अलगअलग बैंकों में अलगअलग दर से ब्याज मिलता है. जरूरत पड़ने पर मैच्योरिटी से पहले भी एफडी तोड़ी जा सकती है. इसे किसी भी बैंक में खोला जा सकता है.

यदि आप थोड़े जोखिम के साथ निवेश प्लान के लिए तैयार हैं तो आप के लिए म्यूचुअल फंड एसआईपी बेहतर विकल्प साबित होगा. आप सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान (एसआईपी) के जरीए थोड़ाथोड़ा पैसा भी म्यूचुअल फंड में डाल सकती हैं.

आप अपने मोबाइल पर ऐप्लिकेशन डाउनलोड कर के म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू कर सकती हैं. इस निवेश पर होने वाले प्रौफिट में से म्यूचुअल फंड कंपनी अपनी फीस काट कर बाकी रकम आप को दे देती है. म्यूचुअल फंड्स की कई अलगअलग स्कीम्स मार्केट में उपलब्ध हैं जैसे डैब्ट फंड्स, इक्विटी फंड्स, बैलेंस्ड फंड्स आदि. म्यूचुअल फंड में होने वाला लौंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स फ्री होताहै. इस में आप को इनकम टैक्स में छूट भी मिलती है.

Wedding Special: 5 बातें शादी से पहले जरूर बताएं

शादी बेहद नाजुक बंधन होता है, जिस में 2 लोग अलगअलग परिवारों व अलग तरह के परिवेश से आते हैं. ऐसे में साथ मिल कर रहना और रिश्ते को संभालना काफी बड़ी जिम्मेदारी होती है. कई बार तालमेल न बैठने के कारण विवाह के बाद रिश्ते में दरार आ जाती है, तो कई दफा रिश्ता टूटने तक की नौबत आ जाती है. ऐसा न हो इस के लिए विवाह से पहले ही ये बातें साफतौर पर कर ली जाएं तो बेहतर है:

एकसाथ चुनौतियों का सामना

शादी का अर्थ सिर्फ साथ रहना ही नहीं है बल्कि साथ मिल कर आने वाली चुनौतियों का सामना करना भी होता है. ये चुनौतियां पारिवारिक, आर्थिक, मानसिक हो सकती हैं. ऐसे में अपने साथी के साथ मिल कर इन्हें सुल झाना और बिना नाराज हुए एकदूसरे की समस्याओं को भी दूर करना है.

कई दफा ऐसा भी होता है कि एक व्यक्ति जिम्मेदारियों से भागता है या सोचता है कि शादी के पहले तो इन समस्याओं के बारे में जिक्र नहीं किया था, तो अब मैं क्यों इन का हिस्सा बनूं. ऐसी सोच को रिश्ते के बीच न आने दें.

वक्त कभी एकसा नहीं होता. हो सकता है आज आप का साथी जिस मुश्किल में है कल आप उस की जगह पर हों. इसलिए समस्याओं से भागने के बजाय साथ मिल कर उन का सामना करें.

पारिवारिक दखलंदाजी

शादी सिर्फ 2 व्यक्तियों की ही नहीं बल्कि 2 परिवारों की भी होती है. लेकिन विवाह के बाद पतिपत्नी के बीच में परिवार का जरूरत से ज्यादा दखल रिश्ते में दरार पैदा कर देता है. इसलिए अच्छा होगा कि विवाह के पहले ही इस बारे में साफतौर पर बात कर ली जाए. इस के अलावा दोनों साथियों को इस बारे में भी बात कर लेनी चाहिए कि हर छोटी बात को घर वालों के साथ सा झा नहीं किया जाएगा.

कई महिलाएं घर की हर छोटी बात मायके पक्ष में बताती हैं. इस से परिवार के लोगों के मन में लड़के के प्रति खटास पैदा हो जाती है, तो वहीं पुरुष भी छोटेमोटे  झगड़े होने पर घर वालों को बता देते हैं. इस से परिवार के सदस्य बहू को गलत सम झने लगते हैं. इस से दूरियां कम होने के बजाय बढ़ने लगती हैं. इसलिए शादी के पहले ही इस बारे में बात कर लें कि आपसी समस्याएं मिल कर सुल झाएंगे न कि हर बात में परिवार को शामिल करेंगे.

शादी के बाद की जिंदगी

कई लोगों का मानना होता है कि विवाह आजादी छीन लेता है. शादी के बाद दोस्तों की बैठकें होने पर कई बार मजाक उड़ाया जाता है कि देखना अभी फोन आएगा और यह फौरन घर भागेगा या भागेगी. इसलिए दोनों ही इस बात पर राजी हों कि दोस्तों से मेलजोल शादी के बाद भी बना रहेगा अन्यथा एक समय ऐसा आएगा कि जो रिश्ता आप को शुरुआत में ख़ूबसूरत लग रहा है वह कुछ समय बाद घुटन मात्र बन कर रह जाएगा.

इसलिए इस बात को सम झें कि शादी स्वतंत्रता छीनती नहीं है बल्कि आप को एक साथी देती है जिस के साथ आप अपनी आजादी को सही तरह से जी सकते हैं. अपने होने वाले साथी को अपने दोस्तों से परिचित कराएं ताकि वे भी आप की दोस्ती का हिस्सा बन सकें.

संतान को ले कर आपसी समझ

यह निजी मामला है लेकिन बेहद जरूरी मुद्दा है. इस की चर्चा में  िझ झक तो होती है, लेकिन कई बार इस बारे में खुल कर बात न करना विवाह के बाद मुश्किलें बढ़ा देता है. कई बार शादी के कुछ समय बाद ही बच्चे को ले कर परिवार की तरफ से कभी सीधे तौर पर तो कभी घुमाफिरा कर इच्छा जताई जाती है. इसलिए रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले ही अपने मन की बात साफ कह सकते हैं कि आप विवाह पश्चात कितने समय बाद परिवार आगे बढ़ाना चाहते हैं.

शरमाने या  िझ झकने से बाद में आप को ही मुश्किल होगी क्योंकि संतान के जन्म से ले कर उस के पालन तक की जिम्मेदारी मातापिता की ही होती है. इसलिए अपनी इच्छा व सुविधानुसार भविष्य को ले कर जो बातें हैं उन्हें साफतौर पर कर लें.

विवाह के बाद कैरियर

विवाह तय होने से पहले अमूमन लड़कियों से यही कहा जाता है कि उन्हें शादी के बाद नौकरी छोड़ने की जरूरत नहीं है. लेकिन शादी होते ही ये सारी बातें हवा हो जाती हैं. इसलिए विवाह तय होने से पहले ही इस बारे में खुल कर अपनी राय रखें कि आप शादी के बाद नौकरी करेंगी या नहीं या फिर समय के अनुसार इस बारे में तय करेंगी. नौकरी को ले कर भावी ससुराल पक्ष और भावी जीवनसाथी के सामने अपने विचार खुल कर रखें.

अगर नौकरी करना चाह रही हैं तो भी बताएं और यदि बिजनैस आदि के बारे में कुछ सोच रखा है तो भी साफ बता दें. पहले ही सभी के विचार जान लें ताकि बाद में होने वाले गृहक्लेश से बच सकें.

मुझे कोई ऐसा इलाज बताएं जिस से मेरे ब्लैकहैड्स दूर हो जाएं?

सवाल

मेरी उम्र 27 साल है. मेरी त्वचा औयली है जिस के कारण मेरे चेहरे पर बहुत ब्लैकहैड्स हैं. इन्हें निकालने के कारण चेहरे पर हलके गड्ढे हो गए हैं जो बहुत ही खराब लगते हैं. मुझे कोई ऐसा इलाज बताएं जिस से मेरे ब्लैकहैड्स दूर हो जाएं?

जवाब

घर में ब्लैकहैड्स निकालने से अकसर गड्ढे पड़ जाते हैं क्योंकि हमें उन्हें निकालने का सही तरीका पता नहीं होता. ब्लैकहैड्स निकालने के लिए किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में फ्रूट या वेज पील कर सकती हैं. ब्लैकहैड्स निकालते वक्त ब्यूटीशियन आप को स्टीम और ओजोन देती हैं जिस से पोर्स बड़े हो जाते हैं और आराम से ब्लैकहेड्स निकल आते हैं और गड्ढे भी नहीं पड़ते. शुरू में लगातार 2-3 बार पील करवा लें और सारे ब्लैकहैड्स निकलवा लें. उस के बाद घर में ब्लैकहैड्स साफ करने के लिए

1 चम्मच दरदरी पिसी मसूर की दाल, 1/2 चम्मच औरेंज पील पाउडर, 1/2 चम्मच मुलतानी मिट्टी और 1/2 चम्मच जो के आटे में गुलाब जल डाल कर पेस्ट बना ले. इस पेस्ट को फेस पर लगा कर हलकेहलके हाथों से रगड़ें. सूख जाने पर पानी से धो लें. इस स्क्रब को रोजाना करने से ब्लैकहैड्स होने की संभावना कम हो जाती है. यदि हो जाए तो कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर ब्लैकहैड्स को निकलवा लें.

ये भी पढ़ें…

मेरी उम्र 20 साल है. मेरे नाखून पीले दिखते हैं. मुझे हर वक्त उन पर नेलपौलिश लगा कर रखनी पड़ती है. नाखून शुरू में कम पीले दिखते थे पर अब वह बहुत पीले हो गए हैं और भद्दे नजर आते हैं. इन का स्वाभाविक रंग कैसे वापस लाया जा सकता है?

शरीर में कैल्सियम और फास्फोरस की कमी के कारण नाखून पीले पड़ सकते हैं. अगर आप अपने खाने में दूध कम लेती हैं तो उस की मात्रा बढ़ा दें. हो सके तो रोजाना

1 अंडा जरूर खाएं. अगर आप कैल्सियम युक्त आहार का सेवन ठीक से कर रही हैं तो आप को विटामिन डी युक्त आहार का भी उचित सेवन करना होगा. शरीर में कैल्सियम के ठीक से अब्जौर्ब होने के लिए विटामिन डी की सहायता भी जरूरी होती है.

नाखूनों का पीलापन बढ़ रहा है तो आप नेलपौलिश भी अच्छी किस्म की ही इस्तेमाल कीजिए. खराब नेलपौलिश अपना रंग नाखूनों पर छोड़ देती है और कुछ समय बाद नाखून पीले पड़ने लग जाते हैं. आप नाखूनों पर पौलिश लगाने से पहले बेस कोट का इस्तेमाल करें. इस से नेल पेंट का रंग नाखूनों पर नहीं लगेगा.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

बौलीवुड में रहा ऐंटी हीरोज का बोलबाला

हिंदी फिल्मों में एक हीरो की छवि अच्छे इंसान की होती है. फिल्मी इतिहास गवाह है कि फिल्म का हीरो बेहद अच्छा, रिश्तों को निभाने वाला, पौजिटिव, 10 गुंडों को अकेला पीटने वाला, दर्शकों का चहेता होता है और यही दर्शकों का प्यारा हीरो जब गुंडों से मार खाता है तो उस हीरो को प्यार करने वाले दर्शक अपने पसंदीदा हीरो को मार खाते हुए भी नहीं देख पाते. दर्शकों का प्यार ही होता है जो एक हीरो को सुपरस्टार के सफर तक ले जाता है.

लेकिन यही स्टार जिस में अपने अभिनय के जरीए कुछ अलग कर दिखाने की लालसा होती है तो वह अपनी इमेज से बाहर निकल कर खलनायक अर्थात ऐंटी हीरो बन कर भी दर्शकों को लुभाने आ जाता है.

अपने फैवरिट हीरो को खलनायक के रूप में देख कर भी दर्शक उस से नफरत नहीं कर पाते बल्कि एक ऐक्टर के तौर पर अलग तरह का किरदार निभाने के लिए उसे दर्शकों का और ज्यादा प्यार मिलने लगता है. जैसेकि हाल ही में प्रदर्शित रणबीर कपूर और बौबी देओल द्वारा अभिनीत फिल्म ‘ऐनिमल’ में दोनों ही हीरो नैगेटिव भूमिका में थे बावजूद इस के दर्शकों ने बतौर ऐंटी हीरो न सिर्फ रणबीर और बौबी को पसंद किया बल्कि इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर सफलता के सारे रिकौर्ड भी तोड़ दिए.

इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि सच्चा कलाकार वही होता है जो किरदारों में विभिन्नता पेश करे. आज के दौर में कलाकारों में अच्छा किरदार निभाने की होड़ के चलते ज्यादातर हीरोज इमेज की कैद से बाहर निकल गए हैं और अलग तरह का किरदार निभाने के लिए नायक से खलनायक बनने को भी तैयार हैं. जैसेकि शाहरुख खान, संजय दत्त, बौबी देओल, रणबीर कपूर, रणवीर सिंह आदि कई ऐसे ऐक्टर हैं जिन्होंने नायक से खलनायक बन कर ढेर सारी लोकप्रियता बटोरी है.

पेश है, इसी पर खास नजर:

खलनायक का बोलबाला

अमिताभ बच्चन, संजय दत्त से ले कर शाहरुख खान, रणवीर सिंह, अक्षय कुमार तक ऐंटी हीरो की भूमिका निभाने के आकर्षण से कोई नहीं बच पाया.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि हीरो का किरदार निभाने में जितना मजा आता है उस से कहीं ज्यादा नैगेटिव किरदार निभाने में मजा आता है. इस के पीछे खास वजह यह है कि ऐंटी हीरो या विलेन के किरदार में ऐक्टर को अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का ज्यादा मौका मिलता है जैसेकि अमिताभ बच्चन ने फिल्म ‘डौन’ और ‘सत्ते पर सत्ता,’ ‘अग्निपथ’ फिल्मों में नैगेटिव किरदार निभा कर लोकप्रियता हासिल की थी.

शाहरुख का डर

इसी तरह जब शाहरुख खान ने बतौर ऐंटी हीरो फिल्म ‘बाजीगर’ में अपनी ही हीरोइन को छत से नीचे फेंक कर मौत के घाट उतार दिया था तो लोगों के मुंह से चीख निकल गई थी. शाहरुख खान यहीं नहीं रुके. उन्होंने फिल्म ‘डर’ में बतौर एंटी हीरो जहां जूही चावला को डराया, वही ‘अंजाम’ फिल्म में बतौर एंटी हीरो माधुरी दीक्षित को खून के आसू रुला दिया था. संजय दत्त फिल्म ‘खलनायक’ में नायक से खलनायक बन कर आए तो दर्शकों ने उन के इस रूप को भी बहुत पसंद किया. इस फिल्म के बाद संजय दत्त ने फिल्म ‘अग्निपथ’ में कांचा चीना का किरदार निभाया था जो आज भी लोगों के जेहन में है.

हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘के जी एफ 2’ में भी संजय दत्त खतरनाक विलेन की भूमिका में नजर आए. संजय दत्त की तरह अक्षय कुमार भी ‘2.0,’ ‘बच्चन पांडे,’ ‘ब्लू,’ ‘खिलाड़ी 420’ ‘अजनबी’ में ऐंटी हीरो की भूमिका में नजर आ चुके हैं. इसी तरह रणवीर सिंह बतौर खिलजी ‘पद्मावत’ फिल्म में, मनोज बाजपेई ‘सत्या’ और ‘बैंडिट क्वीन’ में, सैफ अली खान ‘ओमकारा,’ ‘आदि पुरुष,’ शाहिद कपूर फिल्म ‘कमीने’ में, विवेक ओबेराय ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ में. अजय देवगन फिल्म ‘खाकी,’ ‘कंपनी,’ ‘काल,’ में वरुण धवन ‘बदलापुर’ में, नवाजुद्दीन सिद्दीकी ‘गैंग्स औफ वासेपुर,’ ‘किक,’ ‘साइको रमन,’ ‘हीरोपंती 2’ में, जौन अब्राहम ‘धूम’ और ‘पठान,’ अर्जुन रामपाल ‘धाकड़’ में नैगेटिव किरदार निभा चुके हैं.

दर्शकों की तालियां

कहने का तात्पर्य यह है कि बौलीवुड के ज्यादातर नामीगिरामी ऐक्टरों ने ऐंटीहीरो की नैगेटिव भूमिका निभाई है.

ऐसे में कहना गलत न होगा कि जिस तरह बुराई के बिना अच्छाई को कोई नहीं पहचान सकता उसी तरह किसी भी फिल्म में विलेन के बिना हीरो की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि जब बुराई होगी तभी तो अच्छाई का पता चलेगा. जब विलेन को गालियां मिलेंगी तभी तो हीरो को तालियां मिलेंगी.

आने वाली फिल्मों में

सनी देओल जहां फिल्म ‘कसाई’ में नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे वहीं रणबीर कपूर द्वारा अभिनीत ‘रामायण’ फिल्म में साउथ ऐक्टर यश रावण के नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे.

सूत्रों के अनुसार रितिक रोशन ‘ब्रह्मास्त्र पार्ट 2’ में नैगेटिव किरदार देवा के रूप में नजर आएंगे. बौबी देओल आने वाली साउथ फिल्म जो हिंदी में भी बनेगी ‘हरा हरण बीरा मल्लू’ में विलेन के किरदार में नजर आएंगे.

इस फिल्म के साथसाथ साउथ की एक और फिल्म ‘कनबूबा’ है जो एक पीरियड फिल्म है इस फिल्म में भी बौबी देओल नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. संजय दत्त फिल्म ‘द वर्जनत्री’ में विलेन के किरदार में नजर आएंगे. ‘एनिमल पार्क पार्ट 2’ में ‘ऐनिमल’ के ही विलेन रणबीर कपूर नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. सैफ अली खान भी फिल्म ‘देवारा’ में नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. हीरो अर्जुन कपूर भी ‘सिंघम अगेन’ में नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. मोहित सूरी के डाइरैक्शन में बनी फिल्म ‘साइको’ में अक्षय कुमार नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे.   –

Potato Dishes: आलू से बनाएं स्मेश्ड चीजी पोटैटो

दिन चाहे सर्दी के हों या गर्मी के शाम होते होते भूख लगना स्वाभाविक सी बात है. शाम को अक्सर ऐसी भूख लगती है जिसमें कुछ हल्का फुल्का खाने का मन करता है ताकि भूख शांत भी हो जाये और पेट भी न भरे. आलू एक ऐसी सब्जी है जो प्रत्येक घर में पाई जाती है और बहुत अधिक महंगी भी नहीं होती. आलू की पौष्टिकता को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह पोटैशियम, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, अनेकों विटामिन्स और आयरन जैसे पौष्टिक तत्वों का प्रचुर स्रोत है. आज हम आपको आलू से ऐसी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसे आप घर में उपलब्ध सामग्री से ही बड़ी आसानी से बना सकती हैं और ये बच्चे बड़े सभी को बहुत पसंद आएगी तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

स्मेश्ड चीजी पोटैटो

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

मिनी आलू 500 ग्राम
तेल 2 टेबलस्पून
नमक 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1/4 टीस्पून
पानी 1/2 कप
चिली फ्लैक्स 1/2 टीस्पून
चीज क्यूब्स 4
पामेजॉन चीज 1 कप
ऑरिगेनो 1 टीस्पून
पिज्जा सीजनिंग 1/2 टीस्पून

विधि

आलुओं को अच्छी तरह धोकर नमक और पानी डालकर तेज आंच पर 1 सीटी ले लें. ध्यान रखें कि हमें सिर्फ इन्हें हाफ बॉईल करना है पूरी तरह पकाना नहीं है. अब इन उबले आलुओं के पानी को छलनी से निकाल दें और इन्हें एक प्लेट में फैलाकर एक चपटी कटोरी से दबाकर चपटा कर दें.

अब इन आलुओं में तेल, चिली फ्लैक्स और चाट मसाला अच्छी तरह मिलाएं ध्यान रखें कि चलाते समय आलू टूटने न पाएं. इन आलुओं को माइक्रोवेब सेफ प्लेट में फैलाकर माइक्रोवेब में ग्रिल मोड पर 5 मिनट पकाएं. बाहर निकालकर पलटें और पुनः 5 मिनट पकाएं ताकि आलू क्रिस्पी हो जाएं.

5 मिनट बाद जब आलू अच्छी तरह करारे हो जाएं तो इन पर चीज ग्रेट करें और पामेजॉन चीज को भी अच्छी तरह फैलाएं. ऊपर से ऑरिगेनो और पिज्जा सीजनिंग डालकर 2-3 मिनट बाद या चीज के मेल्ट होने तक पकाकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

टीबी सिर्फ फेफड़ों की बीमारी नहीं, हड्डियों को भी करती है प्रभावित

जिनको ये लगता है कि टीबी सिर्फ फेफड़ों की बीमारी है, तो उन्हें अपनी सोच पर दोबारा विचार करने की जरूरत है! मेडिकल के आंकड़ों के अनुसार, भारत में टीबी के कुल मरीजों में से 5-10% मरीज हड्डी की टीबी से पीड़ित हैं और यह आंकड़ा नरंतर बढ़ता जा रहा है. स्पाइनल टीबी को लेकर जागरुकता में कमी ही इसका मुख्य कारण है. यही वजह है कि लोग अक्सर इसके लक्षणों को अन्देखा करते हैं, जिसके कारण टीबी का बेक्टीरिया हड्डियों और स्पाइन को प्रभावित करता रहता है. यदि हम संख्याओं की बात करें तो भारत में लगभग 1 लाख लोग ऑस्टियोआर्टिकुलर टीबी से पीड़ित हैं, जिसके कारण बढ़ते बच्चों के हाथ-पैर आवश्यकता अनुसार नहीं बढ़ पाते हैं और कुछ मामलों में पूरा शरीर लकवे की चपेट में आजाता है.

हालांकि, आमतौर पर टीबी फेफड़ों को प्रभावित करती है लेकिन यह बीमारी खून के जरिए शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल सकती है, जिसे आमतौर पर एक्सट्रापल्मोनरी या प्रसारित टीबी कहते हैं. आमतौर पर लंबी हड्डियों और वर्टीब्रा के छोर इस बीमारी की सामान्य साइट्स होती हैं और यह बीमारी किसी भी स्तर के व्यक्ति को हो सकती है.

यह बीमारी किसी भी हड्डी को प्रभावित कर सकती है लेकिन आमतौर पर यह स्पाइन और जोड़ों, जैसे हाथ, कलाई, कोहनी आदि पर पहले हमला करती है. इसमें होने वाले दर्द का प्रकार भी टीबी की जगह पर निर्भर करता है. उदाहरण, स्पाइन टीबी के मामले में दर्द पीठ के निचले हिस्से में होता है और यह दर्द इतना तीव्र होता है कि मरीज को चिकित्सक की मदद लेनी ही पड़ती है.

स्पाइनल टीबी का निदान उचित तरीके से कैसे करें?

हड्डी की टीबी के शुरुआती चरण में जब इसकी जांच की जाती है तो अक्सर इसकी पहचान आर्थराइटिस के रूप में होती है. इसलिए इसमें और आर्थराइटिस के दर्द के बीच का फर्क पहचानने के लिए मरीज को अपने दर्द की प्रकृति पर ध्यान देना चाहिए. आर्थराइटिस के कई मरीजों को रात में लेटकर आराम करते हुए राहत महसूस होती है जबकि जो मरीज हड्डी की टीबी से ग्रस्त होते हैं उन्हें लेटने पर और अधिक समस्या होती है.

आर्थराइटिस के निदान के लिए एक्स-रे किया जाता है और प्रभावित क्षेत्र के तरल पदार्थ पर लैब टेस्ट किया जाता है. जबकि स्पाइन और जोड़ों की टीबी का निदान सीटी स्कैन और एमआरआई रिपोर्ट से ही किया जाना चाहिए.

स्पाइनल टीबी को ‘पॉट्स’ भी कहा जाता है. यह बीमारी आमतौर पर रीढ़ के वक्ष भाग को प्रभावित करती है. यह निरंतर और असहनीय दर्द का कारण बनती है. जोड़ों की टीबी में दर्द के साथ अकड़न भी महसूस होती है. इस संक्रमण का दर्द प्रभावित क्षेत्र के साथ-साथ उसके आसपास के क्षेत्र को भी अपनी चपेट में ले लेता है.

अगर कोई व्यक्ति जोड़ों के टीबी से पीड़ित है तो यह संक्रमण उसके कूल्हों और घुटनों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. डॉक्टर इस स्थिति को ‘मोनो आर्थराइटिस’ कहते हैं क्योंकि इसमें केवल एक ही जोड़ प्रभावित होता है. प्रभावित क्षेत्र में सूजन आजाती है और वहां तीव्र दर्द का अनुभव होता है, इसके बाद कुछ समय में वहां अकड़न होने के कारण चलने-फिरने में समस्या होने लगती है.

इलाज न करने में किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है?

यदि स्पाइनल टीबी का इलाज न किया जाए तो यह एक वर्टीब्रा से दूसरे में फैल सकता है. परिणामस्वरूप, हड्डियां कमजोर होने लगती है और उनके बीच के डिस्क खिसकने लगते हैं. मामला गंभीर होने पर रीढ़ की हड्डी टूट सकती है, जिससे शरीर के निचले हिस्से में लकवा हो जाता है. स्थिति और गंभीर होने पर कूबड़ की समस्या हो जाती है. यही कारण है कि इसके निदान और इलाज में देर नहीं की जानी चाहिए वर्ना मरीज का पूरा शरीर लकवे का शिकार बन सकता है, जिसे ठीक होने में सालों लग सकते हैं.

सही लक्षणों की पहचान कैसे हो?

हड्डी की टीबी के मरीजों को टीबी के सामान्य लक्षण यानी बुखार, थकान, रात में पसीना, वजन कम होना आदि जैसी समस्याएं हो भी सकती हैं और नहीं भी. चूंकि, हड्डी की टीबी के आधे मरीजों के फेफड़े भी संक्रमित होते हैं लेकिन वहां बीमारी सक्रिय नहीं होती है. इस मामले में मरीज को खांसी की शिकायत नहीं होती है. कई बार इसके लक्षण सालों तक नहीं नजर आते हैं.

हड्डी की टीबी एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलती है क्योंकि वाइरस खांसी के कारण बाहर आते हैं जबकि इस बीमारी में खांसी की कोई समस्या नहीं होती है. हालांकि, मरीज के पस के संपर्क में आने से यह बीमारी दूसरे में फैल सकती है. एक जरूरी बात यह है कि, सही समय और इलाज का पूरा कोर्स ही मरीज को ठीक कर सकता है. इलाज का समय बीमारी के क्षेत्र और गंभीरता पर निर्भर करता है. फेफड़ों की टीबी की तुलना में स्पाइनल या हड्डी की टीबी के इलाज में अधिक समय लग सकता है.

स्पाइनल टीबी का इलाज संभव

हड्डी की टीबी की सामान्य बीमारी के इलाज में लगभग 1 साल का समय लगता है और स्पाइन टीबी के कारण हुए लकवा का इलाज और रिकवरी समय लकवा की गंभीरता पर निर्भर करता है. एमआरडी टीबी के मामले में, जिसमें मरीज पर दवाइयों का कोई असर नहीं होता है, मरीज को ठीक होने में काफी समय लग सकता है. टीबी के मरीजों के लिए इलाज का कोर्स पूरा करना अनिवार्य है और बिना डॉक्टर की सलाह के इसे बीच में कभी नहीं छोड़ना चाहिए. मरीजों को यह पता होना चाहिए कि टीबी का इलाज संभव है बस इसका इलाज सही समय पर शुरू किया जाना चाहिए.

हड्डी की टीबी के मामले में आराम, स्वस्थ आहार, दवाइयां और फिजियोथेरेपी आदि चीजें मरीज को ठीक करने में सहायक हो सकती हैं. इसलिए लक्षणों को नजरअंदाज करने की बजाए तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं. इस बात का ख्याल रखिए कि टीबी सिर्फ फेफड़ों को ही प्रभावित नहीं करती है बल्कि अन्य हिस्सों  को भी संक्रमित कर सकती है. यदि सही समय पर इसका इलाज नहीं शुरू किया गया तो यह बीमारी जानलेवा तक हो सकती है.

डॉ. सतनाम सिंह छाबड़ा, न्यूरो स्पाइन विभाग के हेड, सर गंगाराम हॉस्पिटल से बातचीत पर आधारित..

दिल में लगा न कर्फ्यू: क्या हुआ निकहत की मां के साथ

दुनियाभरमें तहलका मचा था. कोरोना नाम की महामारी की वजह से दुनिया का हर शहर, हर गली, हर घर लौक डाउन हो रहा था. उधर मासूम निकहत के घर में लगातार टीवी चालू था और उस की मां टीवी स्क्रीन पर ऐसे नजरें गड़ाए थी जैसे कि उस के परिवार को टीवी ही इस मुसीबत से बाहर निकालेगा.

निकहत 5वीं कक्षा में थी. स्कूल बंद था. अब्बा पुलिस में थे तो ‘वर्क फ्रौम होम’ का सवाल ही नहीं था, जैसा कि अन्य विभागों में सरकार की ओर से लागू किया गया था. आसपास के सारे माहौल पर बंद का सन्नाटा छाया था. निकहत की मां बीचबीच में अपना फोन चैक कर रही थी और बीचबीच में किसी को काल भी करती थी. एक कौल आया, निकहत की मां ने दौड़ कर फोन उठाया. शायद वह इस फोन के इंतजार में थी.  ‘‘क्या हुआ भैया? कुछ इंतजाम हुआ? चार दिन से लगातार कोशिश कर रही हूं कि कहीं से ब्लड मिल जाए, लेकिन कहीं कोई राह नहीं. ब्लड कहीं उपलब्ध ही नहीं है, कोई डोनर नहीं मिला क्या भैया?’’

अनिश्चित आशंका से आखरी शब्द गले में ही लड़खड़ा गए थे निकहत की मां के. ‘‘दीदी हम ने भी बहुतों से पूछने की कोशिश की, कई परिचितों से तो संपर्क ही नहीं हो पा रहा है. अपने ही शहर में अकेले ऐसे बच्चों के ही केस डेढ़ सौ से ऊपर हैं, और आप तो जानती हैं उन्हें खून की कितनी जरूरत पड़ती है.’’

‘‘भैया पिछली ही बार मैं ने अपने पति को अपना ब्लड दिया था जब वे सरकारी काम में भीड़ के साथ मुठभेड़ में जख्मी हुए थे. मुझ में अभी प्लेटलेट्स और हीमोग्लोबिन की कमी है, मेरा खून अभी काम न आ सकेगा, कोई उपाय देखो भैया.’’ उस के करुण स्वर ने उस तरफ के व्यक्ति को भी आद्र कर दिया. ‘‘देखता हूं दीदी. कर्फ्यू और कोरोना के डर से तो कोई किसी काम में हाथ डालने को तैयार नहीं. कोशिश करता हूं.’’ बातचीत खत्म होने पर निकहत की मां पहले से ज्यादा परेशान हो गई. निकहत जब छोटी सी थी अचानक एक बार बुखार आया था. फिर तो वह ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी.

टैस्ट पर टैस्ट के बाद आखिर उस की बीमारी का पता चला तो नन्हीं निकहत को ले कर सारे घर वाले परेशान हो गए. नन्हीं निकहत को थैलेसीमिया था यानी ब्लड कैंसर. हर पंद्रह दिन में उस के शरीर में खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि इस बीमारी में खून बनना बंद हो जाता है. यदि मरीज को निश्चित अंतराल पर खून न चढ़ाया जाए तो उस की लाख जीने की इच्छा भी उस का जीवन नहीं बचा सकती. निकहत की मां का यह अंतहीन सिलसिला शुरू हो चुका था. और ऐसे में आया था यह कोरोना का कहर. शहरों की तालाबंदी से रोजमर्रा की जिंदगी जहां बाधित होने लगी है, जहां जीने की होड़ में लोग मृत्यु से रोजाना भिड़ रहे हैं, वहां पहले से ही जीवन पर काल बनी बीमारियों का सामना कैसे करें. जिन के घर के बच्चे पहले से ही असाध्य बीमारियों से जूझ रहे, उन का उपाय इस लौक डाउन शहर की कानीगूंगी गलियों में कैसे होगा?

जब देश में अचानक फैली इस महामारी से लड़ कर जीतने के लिए न तो पर्याप्त मैडिकल स्टाफ हैं, न वैंटिलेटर, न हाइजीन के लिए पर्याप्त सामान और न इस रोग की जांच के लिए अधिक हौस्पिटल. खून की बीमारी से जूझते बच्चों की तो ऐसे भी इम्यून शक्ति कमजोर होती है. कैसे बचाए प्यारी सी निकहत को उस की मां. अचानक पड़ोस के कल्याण ने निकहत के घर का दरवाजा खटखटाया. अब कोई भी घटना निकहत की मां को अच्छी नहीं लग रही है. खास कर लोगों से बोलनाबतियाना. 30 साल की उम्र में ही उस ने अपने मन को बांध कर रखना सीख लिया है और अभी तो निकहत को ले कर उस का मन बहुत ही आशंकित है. बाहर आ कर देखा बाजू में रहने वाला कल्याण है, एमटैक की स्टूडैंट.

वह और भी घबरा गई. अभीअभी इस का इस के पिता से जोरदार कहासुनी हो रही थी, पता नहीं क्या हुआ था और अब यह यहां. निकहत में खून की जबरदस्त कमी हो रही है, उस का किसी बाहरी से मिलनाजुलना ठीक नहीं. कोरोना वायरस की वजह से चेतावनी है कि लोग दूसरे के घरों में न जाएं. सभी ओर कर्फ्यू तो इसी वजह लगा है, फिर यह यहां क्यों? परेशान सी निकहत की अम्मी ने कल्याण पर प्रश्नसूचक निगाहें डाली. भाभी, अभी न्यूज पेपर में पढ़ा थैलेसीमिया के बच्चों को समय पर खून नहीं मिल पा रहा है, इस से उन की जिंदगी पर खतरा बढ़ गया है. लौकडाउन की वजह से कोई खून देने वाला नहीं मिल पा रहा है, ऊपर से रक्त कालाबाजारी भी तो होने लगती है, ऐसी आपदा में. क्या निकहत का इंतजाम हो गया है?

‘‘नहीं भाई, शुक्रिया तुम्हें याद रहा निकहत का.’’ ‘‘इस में शुक्रिया कहने की कोई बात नहीं. यदि आप को कोई ऐतराज न हो तो आप निकहत को ले कर अभी मेरे साथ कालोनी के ब्लड बैंक चल सकती हैं. कालोनी के बाहर जो ब्लड बैंक है वहां मैं ने फोन से पूछ रखा है, वे चढ़ा देंगे मेरा खून निकहत को.’’ निकहत की अम्मी को लगा जैसे कल्याण को वह दौड़ कर गले लगा ले. 23 वर्ष का यह नौजवान कितना संवेदनशील और समझदार है. बात तो सभी कर लेते हैं, लेकिन विपत्ति में पूछने वाले मिल जाएं तो दूर रह कर भी यह दुख झेला जा सकता है. ‘‘भाई बड़े मुसीबत में थी, इस के अब्बू ड्यूटी में हैं, कौन इंतजाम करे. इस करम का शुक्रिया अदा कर दूं. इतनी औकात नहीं मेरी, हां दुआ करती हूं परवरदिगार तुम्हें हजार नियामत बख्शे. भाई बुरा न मानो, एक बात पूछना चाहती हूं, अभी कुछ देर पहले तुम्हारे घर से तुम्हारे पिताजी के चीखने की आवाजें आ रही थीं, सब खैरियत तो है?’’

‘‘अरे बाबूजी को डर था कि खून देने गया तो मुझे कोरोना हो जाएगा. बिना समझे न डरें वही बता रहा था जब पूरे हाइजीन का खयाल रखा जाएगा, तो यह क्यों होगा. और बच्चों की जिंदगी भी तो बचानी है.’’ निकहत की मां कल्याण के साथ ब्लड बैंक जाती है, और औपचारिकताएं पूरी कर निकहत को खून चढ़ा दिया जाता है. खून के कतरों के साथ प्यार, विश्वास और कोरोना नहीं, करुणा की धार स्थानांतरित होती रही बच्ची में. निकहत की मां सोच रही थी, शहर में लाख कर्फ्यू लगा हो, मगर यदि दिल में कर्फ्यू नहीं लगा तो मुश्किल की घड़ी में एकदूसरे के काम आया जा सकता है.

Wedding Special: नेल्स को ऐसे दें परफेक्ट शेप

नाखून हाथों का एक ऐसा हिस्सा हैं जो किसी से बात करते हुए, कोई काम करते हुए, हाथ मिलाते हुए या खाली बैठे हुए भी लोगों को नजर आ जाते हैं. अगर आप के हाथ ऐलिगैंट और खूबसूरत दिखेंगे तो यकीनन आप से मिलने वाले लोग आप से प्रभावित होंगे. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि आप जिस तरह अपने कपड़ों, मेकअप और फैशन ऐक्सैसरीज का ध्यान रखती हैं उसी तरह अपने नेल्स को भी आकर्षक बनाएं.

कैसे चुनें सही शेप

आप के नेल्स की शेप आप के हाथ और उंगलियों के आकार पर निर्भर करती है. नेल्स को शेप देने से पहले अपनी पसंद और टाइप की शेप चुनें. वैसे तो कई प्रकार की नेल शेप्स हैं, लेकिन अत्यधिक पौपुलर कुछ ही हैं. इन में राउंड, ओवल, स्क्वेयर, आमंड कौफीन मुख्य हैं.

राउंड: यह सब से ईजी शेप है, जिसे मैंटेन करना बेहद आसान है. वे महिलाएं जो घर में काम के बीच अपने नेल्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पातीं और जिन के लिए पार्लर के चक्कर लगाते रहना मुश्किल है, उन के लिए यह शेप पर्फैक्ट है. यह आगे की तरफ से गोलाई में होती है और इस के लिए नेल्स का ज्यादा लंबा होना भी जरूरी नहीं है. लंबी उंगलियों और छोटे नाखूनों वाली महिलाओं के लिए यह शेप उपयुक्त है.

स्कवेयर: इस में नेल्स को आगे से चौकोर आकार दिया जाता है. यह शेप पाना आसान है और इस में भी अधिक लंबे नाखून रखने की जरूरत नहीं होती. इसे कंफर्टेबल शेप कहा जा सकता है. लंबी उंगलियों वाली महिलाएं इस शेप से अपने हाथों को ऐलिगैंट लुक दे सकती हैं.

ओवल: यह शेप सालों से चली आ रही है. इसे बेसिक शेप कह सकते हैं. इस की गोलाई आगे से ओवल यानी अंडाकार होती है. इस शेप के लिए नेल फौइलर को नेल्स की नैचुरल शेप में घुमाना होता है. यह शेप सभी टाइप के नेल्स के लिए उपयुक्त है. यह मोटी उंगलियों को पतला व पतली उंगलियों को वाइड शेप देती है.

आमंड: इस शेप में नेल्स ऐजी और हलके नुकीले होते हैं व उन की टिप राउंडेड होती है. यह शौर्ट नेल्स वाली महिलाओं के लिए नहीं है. लौंग नेल्स की महिलाएं इसे आसानी से अपना सकती हैं. आजकल मार्केट में ऐक्रिलिक नेल्स भी उपलब्ध हैं ताकि शौर्ट नेल्स वाली महिलाएं इस शेप को पा सकें.

कौफीन: इस शेप को बैलेरीना शेप भी कहते हैं, क्योंकि इस का लुक बैलेरीना व कौफीन दोनों की ही तरह का है. इस शेप को मैंटेन करना मुश्किल है. इस शेप के साथ घरेलू काम करने वाली महिलाओं को दिक्कत हो सकती है. यह शेप उन के लिए नहीं है, जिन के नेल्स पतले व नाजुक हों, क्योंकि इस शेप को हैंडल करने से वे जल्दी टूट व चटक सकते हैं.

ऐसे दें शेप

– अपने नेल्स को शेप देने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो व सुखा लें. नेल्स गीले व नमी वाले न हों वरना उन्हें शेप देने में प्रौब्लम होगी.

– बाजार में कई तरह के फौइलर उपलब्ध हैं, जिन में से आप एमरी बोर्ड चुन सकती हैं. ध्यान दें कि नैचुरल नेल्स के लिए 300-600 ग्रिड के बीच का नेल फौइलर चुनें.

– नेल्स को हमेशा एक ही डाइरैक्शन में घिसना शुरू करें. फौइलर को यों ही मदमस्त चलाने पर नेल्स में कट आने शुरू हो जाएंगे व वे टूटने लगेंगे.

– नेल्स को साइड से सैंटर की तरफ फौइल करें यानी बाहर से अंदर की तरफ. हाथों को हर मूव के साथ उठाती रहें, लगातार घिसती न रहें.

– फौइलर को नेल्स के टिप पर सीधा पकड़ें, झुका कर नहीं. झुका कर या ऐंगल पर पकड़ने पर नाखून घिस कर पतले हो जाएंगे और शेप नहीं आएगी.

– शेप देने के लिए शेप के अनुसार ही फौइलर को चलाएं.

– नेल फौइलर को फास्ट न चलाएं. इस से शेप बिगड़ भी सकती है व नेल्स डैमेज भी हो सकते हैं.

– शेप देने के बाद ऐक्सट्रा नेल शेडिंग को हटा दें.

मन का बोझ: भाग 3

भाई की यह कलेजा चीरने वाली बात सुन अभिषेक को तो मानो सांप सूंघ गया. वह कुछ देर यों ही बैठा रहा. वह सोचने लगा कि उस की कोई कीमत नहीं. इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर भी वह चूडि़यों के डब्बे घर से दुकान और दुकान से घर पर ढोता रहता है. उस से अच्छी तो उस की पत्नी है.

अभिषेक के पापा का आशुतोष से कुछ कहने का तो मन नहीं था लेकिन घर की बात घर में ही रहे, इसलिए उन्होंने आशुतोष से कह कर अभिषेक के लिए 8 हजार मासिक मेहनताना बंधवा दिया. अभिषेक ने डाकखाने और जीवन बीमे के एजेंट का काम भी शुरू कर दिया लेकिन इस काम के लिए वह इतना व्यावहारिक नहीं था. इसी बीच शीतल ने 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. एक लड़का, एक लड़की.

अभिषेक को अब एक नया काम मिल गया. वह काम था दोनों बच्चों को पालने का. शीतल कालेज जाती और कोचिंग क्लासेज लेती, बेचारा अभिषेक बच्चों को संभालता और घर के काम भी करता.

मगर धीरेधीरे अभिषेक के मन में यह बात गहराने लगी कि इस दुनिया में उस की कोई कीमत नहीं है. उस की इज्जत न घर में है और न बाहर. उस पर इंजीनियर होने का ठप्पा लगा हुआ था लेकिन वह अपने भाई का नौकर बन कर रह गया था. उधर उस के मन में बैठा पितृसत्तात्मक समाज उसे उलाहना देता कि अभिषेक तू अपने भाई का ही नौकर नहीं, अपनी जोरू का भी गुलाम है. तु?ो धिक्कार है, धिक्कार.

अभिषेक हीनभावना और कुंठा का शिकार होता चला गया. उसे अवसाद घेरने लगा. वह हर किसी से बच कर रहने लगा. उसे लगता जैसे दुनिया में उस का कोई नहीं. वह बिलकुल अकेला है. अभिषेक की मनोदशा को भांप कर एक दिन शीतल ने उस से कहा, ‘‘अभिषेक, तुम इतने उदास क्यों रहते हो? हमारे पास किस चीज की कमी है?’’

‘‘पता नहीं शीतल. लेकिन मेरे मन में एक अजीब सा बो?ा रहता है. मु?ो लगता है मैं इस दुनिया में फालतू का आदमी हूं.’’

‘‘अभिषेक, ऐसा क्यों कहते हो? तुम चाहो तो अपने भाई की दुकान पर जाना छोड़ दो. मैं पर्याप्त कमाती तो हूं. कहो तो अपने पैसे से तुम्हें अलग दुकान खुलवा दूं. वह कर लो.’’

मगर जिस के मन में नकारात्मक सत्ता ने अपना राज्य स्थापित कर लिया हो, उसे सकारात्मक बात कैसे सम?ा में आएगी. अभिषेक ने तुरंत भड़क कर कहा, ‘‘शीतल, दिखा दी न तुम ने मु?ो मेरी औकात. अब मैं दुकान भी खोलूंगा तो अपनी पत्नी के पैसे से. जोरू का गुलाम सम?ा रखा है मु?ा को?’’ शीतल चुप हो गई. वह अभिषेक की मानसिक दशा को और नहीं बिगाड़ना चाहती थी. अभिषेक न जाने क्याक्या बड़बड़ाता रहा.

अब अभिषेक ने अपनी पत्नी और बच्चों से भी किनारा करना शुरू कर दिया. वह बेवजह उन पर भड़क उठता. अपना गुस्सा घर के सामान पर निकालता. उसे उठा कर फेंकता, तोड़फोड़ करता. उस ने शीतल के साथ कहीं भी जाना छोड़ दिया. उसे लगता पूरी दुनिया उसे उस की पत्नी के सामने गिरी हुई नजरों से देखती है.

यह अवसाद, हीनभावना और कुंठा का रोग इस कदर बढ़ गया कि अभिषेक को दुनिया से ही नफरत हो गई. उसे लगा कि इस दुनिया में रहना ही बेकार है. इस दुनिया को अलविदा कह देना चाहिए. शीतल कालेज और बच्चे स्कूल गए हुए थे. वह अपने कमरे में अकेला था. उस ने एक मोटी रस्सी पंखे में डाल कर फांसी का फंदा तैयार किया और बिना कोई देरी किए उस में ?ाल गया. कुछ ही देर में उस की इहलीला समाप्त हो गई.

शीतल की मांग का सिंदूर उजड़ चुका था. लेकिन किसी को अभिषेक की आत्महत्या की बात गले नहीं उतर रही थी. जितने मुंह, उतनी बातें थीं. ऐसे में नकारात्मक बातों का प्रभाव ज्यादा होता है.

बेसिरपैर की बातें करने वाले कह रहे थे, ‘‘अरे कहने की बात ही क्या है? जिस की औरत जवान लौंडों को ट्यूशन पढ़ाती हो, उस का मर्द मरेगा नहीं तो क्या जिंदा रहेगा? भिड़ा लिए होंगे किसी लौंडे से नैन. बेचारा कैसे बरदाश्त करता, ?ाल गया पंखे से लटक कर.’’

अभिषेक का तेहरवीं होते ही आशुतोष ने भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. भाई तो फिर भी अपना था, शीतल कौन सी अपनी है. एक दिन उस ने शीतल से साफसाफ कह दिया, ‘‘शीतल, देखो यह मकान मेरा है. अगर तुम्हें यहां कोचिंग क्लासेज चलानी हैं तो 5 हजार रुपए प्रति माह किराया देना होगा.’’

जेठ की यह बात सुनते ही शीतल भौचक्की रह गई. जब उस ने यह बात अपने ससुर से कही तो वे अपने बेटे का पक्ष लेते हुए बोले, ‘‘शीतल बिटिया, मकान तो यह आशुतोष का ही है. उसी ने बनवाया था. तुम्हारे हिस्से में तो वह पुराना खंडहर है, वह भी आधा. कल अगर वह तुम से नीचे के दोनों कमरों का किराया मांगे या खाली करने को कहे, तो मु?ा से शिकायत मत करना, मैं मजबूर हूं.’’

शीतल सम?ा गई कि अब उस का यहां कोई नहीं है. उस को यहां से जाना ही होगा. इस से पहले कोई मुसीबत मुंह बाए आ खड़ी हो जाए उसे अपना बंदोबस्त कर लेना चाहिए. शीतल ने अपनी परेशानी अपनी बड़ी बहन मीतल को बताई जो चंडीगढ़ के एक डिगरी कालेज में प्रोफैसर थी. मीतल सम?ा गई कि

इन हालात में क्या करना है? उस ने तुरंत पता लगाया कि चंडीगढ़ के किस डिगरी कालेज में फिजिक्स लैक्चरर की पोस्ट खाली है. जल्द ही उसे ऐसे 3 कालेजों का पता चल गया. उन में से एक कालेज की प्रिंसिपल को मीतल व्यक्तिगत रूप से जानती थी.

शीतल का इंटरव्यू हुआ और उसे उस की योग्यता और अनुभव के आधार पर चयनित भी कर लिया गया. मीतल की सिफारिश भी खूब काम आई. अब शीतल ने बच्चों सहित अपनी ससुराल को छोड़ दिया. किसी ने उसे रोकने की

कोशिश तक नहीं की. किसी का कलेजा मोम नहीं था जो पिघलता. किसी ने यह तक नहीं पूछा कि वह कहां जा रही है? आशुतोष तो खुश था कि वह  भाई की इस विधवा बहू के बो?ा को ढोने से बच गया. उसे तो अपनी राह का एक बड़ा कांटा निकलता नजर आया. अब वह पूरी पैतृक संपत्ति का एकमुश्त मालिक था. कुछ वर्षों के बाद शीतल उसी कालेज में सरकारी प्रोफैसर हो गई. उस के बच्चे भी पढ़ने में काबिल निकले. शीतल ने उन्हें पढ़ाने में कोई कसर बाकी न रखी. बेटा रोहन साइंटिस्ट बन गया और बेटी कोकिला चंडीगढ़ में ही डाक्टर हो गई. शीतल ने चंडीगढ़ में ही एक फ्लैट ले लिया. दोनों बच्चों की शादी बड़ी धूमधाम से कर दी. मीतल हर काम में उस के साथ खड़ी होती.

बच्चों की शादी करने के बाद शीतल फ्लैट में अकेली रह गई थी. वह भाई से निवेदन कर के रुड़की से अपनी बूढ़ी मां को अपने साथ ले आई. एक रात जब मांबेटी अपनी पुरानी यादों में खोई थीं, तब बूढ़ी मां ने कहा, ‘‘शीतल बेटी, अब मेरे अंतिम दिन चल रहे हैं. एक बड़ा बो?ा मेरे मन पर है, उसे मरने से पहले उतार देना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सा बो?ा मां?’’ शीतल ने बड़ी व्यग्रता से पूछा.

‘‘शीतल, तु?ो याद है न, बचपन में एक दिन पढ़ाई न करने पर मैं ने एक जोरदार थप्पड़ तेरे गाल पर जड़ दिया था. उस थप्पड़ का बो?ा आज भी मेरे मन पर भारी है. मु?ो माफ कर देना बिटिया, मु?ो वह थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था. मैं उस थप्पड़ की गुनहगार हूं,’’ कहतेकहते बूढ़ी आंखों में आंसू भर आए.

बूढ़ी मां की आंखों में आंसू देख कर शीतल रोंआसी हो गई. मां की आंखों के आंसू अपने हाथों से पोंछते हुए, शीतल ने कहा, ‘‘हां मां, उस थप्पड़ को मैं कैसे भूल सकती हूं. उस थप्पड़ की गूंज तो आज भी मेरे कानों में गूंजती है. वह थप्पड़ ही इतना निराला था, मां. उस थप्पड़ ने तो मेरी जिंदगी बदल दी.’’

बूढ़ी मां की नजरें उत्सुकता से शीतल को देख रही थीं. शीतल ने अपनी मां के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘मां, तुम्हें विश्वास नहीं होगा. उस से पहले तक मेरा पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लगता था. मेरा पढ़ने का कोई इरादा ही नहीं था. मैं सोचती थी कि शादी के बाद वह कमा कर लाएगा और मैं घर में बैठ कर मजे करूंगी. लड़कियों को पढ़ने की जरूरत ही क्या है?

‘‘मगर सचमुच मां, उस थप्पड़ ने मेरी जिंदगी बदल दी. उस दिन से मैं ने पढ़लिख कर कुछ बनने की ठान ली. वही पढ़ाई मां आज मेरे काम आई. मैं तो कहती हूं मां न पढ़ने वाली हर लड़की के गाल पर ऐसा थप्पड़ पड़ना चाहिए ताकि वह पढ़ सके. मां, यही सोच कर मैं सिहर उठती हूं कि अगर वह थप्पड़ न पड़ा होता और मैं न पढ़ी होती तो…’’ इस से पहले कि शीतल का वाक्य पूरा होता, बूढ़ी मां की गरदन एक ओर लुढ़क चुकी थी. शायद मां के मन का बो?ा उतर चुका था.

 

Wedding Special: शादी का हर पल हो स्पैशल

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक ऐसी दुलहन का वीडियो वायरल हुआ जिस ने अपनी शादी में गजब का डांस कर के दूल्हे को भी शरमाने को मजबूर कर दिया. जनवरी, 2023 का यह वीडियो एक शादी समारोह से जुड़ा हुआ था. इस वीडियो में मंच पर मौजूद नवविवाहित दुलहन सब के सामने मस्ती में ऐसा बिंदास डांस करती है कि लोग उसे देखते रह जाते हैं.

दरअसल, वह दुलहन पूरी तरह अपनी शादी को ऐंजौय कर रही थी. इसी वजह से वह खुल कर डांस कर सकी और लोगों की नजरों में आ गई. कुछ ऐसा ही धमाल एक दूल्हे ने भी किया था. वायरल वीडियो में वह स्टेज पर अकेले ही धमाकेदार डांस करते हुए नजर आया था. दूल्हा अपनी ही शादी में इतना धांसू डांस कर रहा था कि सभी की नजरें दूल्हे पर ही टिकी रह गईं. फिर जब स्टेज पर दुलहन की ऐंट्री हुई तो वह भी दूल्हे के साथ ही डांस करना शुरू कर देती है. दूल्हादुलहन के डांस का यह वीडियो भी काफी वायरल हुआ था.

आप को डब्बू अंकल भी बखूबी याद होंगे जो अपने वायरल डांस वीडियो की वजह से रातोंरात देशभर में मशहूर हो गए थे. पेशे से प्रोफैसर डब्बू अंकल यानी संजीव श्रीवास्तव का अपने रिश्तेदार की शादी में डांस करने का वीडियो वायरल हो गया था. वीडियो में संजीव 1987 में आई फिल्म ‘खुदगर्ज’ के गाने ‘आप के आ जाने से…’ पर मस्त अंदाज में ऐंजौय करते हुए डांस करते दिखाई दिए थे. उन्हें इतनी शोहरत मिली कि विदिशा नगर पालिका ने संजीव श्रीवास्तव को अपना ब्रैंड ऐंबैसेडर नियुक्त कर लिया. यही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तक ने उन की तारीफ की थी. शादी के वीडियो वायरल होने के बाद उन को एक ऐड में काम करने का मौका भी मिला था.

दरअसल, जब हम शादी के लमहे सही माने में ऐंजौय करते हैं तो हम दिल से नाचते हैं. दिल से खुशियां मनाते हैं और एक खूबसूरत यादों का कारवां दिलोदिमाग में संजो लेते हैं. शादी कोई रोजरोज तो होती नहीं है. जब जिंदगी में शादी एक बार ही करनी है तो इस का लुत्फ भला भरपूर क्यों न उठाया जाए. यदि शादी किसी रिश्तेदार की है तो भी उसी अंदाज में खुशियां बांटनी चाहिए जैसेकि अपनी ही शादी हो.

अपनी शादी को करें दिल से ऐंजौय

अमूमन हर इंसान शादी जिंदगी में एक बार ही करता है. हर किसी की लाइफ में शादी जैसा पल काफी अहम होता है. हरकोई चाहता है कि उस की शादी सब से परफैक्ट हो लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. शादी जैसे अहम मौके हरकोई न कोई चीज अनपरफैक्ट रह ही जाती है. आप वैसी चीजों पर ध्यान न दें जहां कमी रह गई है, बल्कि उन चीजों को ऐंजौय करें जो आप के हिस्से में आई हैं. बेवजह का तनाव न लें और छोटीछोटी बातों को तूल न दें. यह आप के जीवन का बहुत बड़ा दिन है. इस दिन की खुशियों को अपनी नादानी की वजह से भूल कर भी स्पौइल न होने दें. इस खास मौके को भरपूर ऐंजौय करने के लिए हर पल को जीने की कोशिश करें. हर किसी का स्वागत करें और हर लमहे को यादगार बनाएं.

सोशल मीडिया पर फुल मस्ती

शादी एक बार होती है इसलिए इसे यादगार बनाने के लिए हर मौके की ढेरों तसवीरें और वीडिओग्राफी कराएं. यही नहीं कुछ लमहें जिन में केवल आप व पार्टनर हो ऐसे लमहों की पर्सनल तसवीरें अपने फोन से लें. खूब सारी सैल्फी भी लें. सैल्फी के जरीए अपने छोटेछोटे बैस्ट पलों को कैद कर लें. फिर अपनी इस खुशी को सोशल मीडिया के जरीए दूसरों के साथ शेयर करें और लोगों के कमैंट्स को ऐंजौय करें.

शादी को ले कर लड़का हो चाहे लड़की दोनों के ही कई सपने और शौक होते हैं. हालांकि इस की लिस्ट ज्यादा लंबी लड़कियों की होती है. अपनी शादी में हर लड़की को सबकुछ परफैक्ट चाहिए होता है. डैस, ज्वैलरी, मेकअप, डैकोरेशन से ले कर ब्राइडल ऐंट्री तक.

शादी के घर में हंसीखुशी और ऐंजौयमैंट का माहौल होता है. दूल्हा और दुलहन अपनी शादी को ले कर बहुत ऐक्साइटेड होते हैं और जिंदगी की नई शुरुआत के इस दिन को भरपूर जी लेना चाहते हैं. शादी का यह खूबसूरत माहौल ऐसा ही बना रहे इस के लिए इन बातों का खयाल जरूर रखें:

मीनमेख न निकालें

शादी अपनी हो या परिवार में किसी की हो, सब को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वह शादी सफलता से हंसीखुशी के माहौल में संपन्न हो. शादी की व्यवस्था में मीनमेख निकालना उचित नहीं.

घरपरिवार में किसी की शादी ऐसा अवसर होता है जब घर के बड़ों का तनाव बढ़ जाता है. सबकुछ अच्छे से करने की कोशिश में वे दिन रात हलकान होते रहते हैं. वे खुद एक नए अनजान परिवार के सामने एक अच्छे आयोजन और अच्छे व्यवहार का उदाहरण पेश करने की कोशिश में जुटे होते हैं. ऐसे में अपनी मीनमेख से उन की परेशानी बढ़ाना उचित नहीं.

विवाह 2 जिंदगियों को जोड़ने वाला आयोजन होता है. यह आप की स्मृतियों की दीवार पर सदा के लिए चस्पा हो जाने वाला ऐसा जीवंत फ्रेम होता है जिस में प्यार, सम्मान और अपनेपन का एहसास तथा दिल खुश करने वाली बातें, खूबसूरत तसवीरों की तरह साथ रह जाते हैं. वहीं उलाहने और कमियां खोजने वाली नजरें और नुक्स निकालते बोल मन में कहीं गहरे धंस जाते हैं. जानबू?ा कर कहे गए तीखे शब्द, अनजाने ही दिए गए ताने, सोचसम?ा कर बनाए गए बहाने मन को बेध जाते हैं.

वैसे भी शादी एक बड़ा काम होता है. इसीलिए क्या वह ठीक नहीं है, ऐसा क्यों किया, वैसा क्यों नहीं किया जैसे सवालों और शिकायतों के बजाय सोचिए कि आप क्या कर सकते हैं. मामा, बूआ, चाचा, दोस्त पड़ोसी या आप खुद किसी न किसी रिश्ते की डोर में बंधे हैं और नए बंधन की खुशियों को सैलिब्रेट करने वाले हैं. ऐसे में शिकायतों की झड़ी नहीं बल्कि लगाव और प्यार का माहौल बनाए रखें. हर पल को ऐंजौय करें.

याद रखें यह वक्त लौट कर नहीं आएगा. खुशी के मौके पर आप के शिकायती लहजे का हर शब्द खुद आप की छवि उकेर रहा होता है. आप का व्यवहार पुराने रिश्तों और नए जुड़ रहे संबंधियों को बता रहा होता है कि आप खुशदिल हैं या कमी ढूंढ़ने वाले, असंतुष्ट सोच वाले हैं या सहजता से खुशियों में शामिल होने वाले.

बैचलर पार्टी में होश न खोएं

शादी से पहले होने वाली बैचलर पार्टी में दूल्हा और दुलहन कई बार काफी नशा कर लेते हैं. वहीं नशे में अपने होश खोने के बाद दोनों कुछ गलत या अजीब हरकतें कर सकते हैं, जिस से रिश्तेदारों के सामने आप की इमेज खराब हो सकती है और आप गिल्ट महसूस कर के अपने मूड का बैंड बजा सकते हैं. कई बार ऐसे में शादी भी खतरे में आ सकती है.

ऐक्स से न करें बात

शादी से पहले कुछ लोग ऐक्स से आखिरी बार बात करने या मिलने की कोशिश करते हैं. अंतिम बार गुडबाय करने के लिए मिलने भी जाते हैं. मगर आप की इस हरकत से पार्टनर हर्ट हो सकता है. इसलिए शादी का फैसला लेने से पहले ऐक्स से सारे संबंध तोड़ दें और दोबारा उसे कभी भूल कर भी अप्रोच करने की कोशिश न करें वरना ऐक्स सैंटीमैंटल हो गया तो आप टैंशन में आ जाएंगे और शादी ऐंजौय ही नहीं कर पाएंगे.

शादी के खर्चे डिस्कस करने से बचें

कुछ लोग शादी से पहले या बाद में पार्टनर से बजट डिस्कस करने लगते हैं. ऐसे में पार्टनर आप की बात का गलत मतलब भी निकाल सकता है. आप दोनों के बीच पैसों को ले कर जिरह भी हो सकती है. इसलिए शादी के दौरान पार्टनर से घर के खर्चे और बजट की बातें हरगिज न करें. यह जिम्मेदारी आप अपने बड़ों को दे कर निश्चिंत रहें.

पार्टनर से न करें शिकायत

शादी से पहले लोग अकसर पार्टनर से अलगअलग शिकायत करना शुरू कर देते हैं. ऐसे में न सिर्फ पार्टनर का मूड अपसैट हो सकता है, बल्कि घर वालों की परेशानियां भी बढ़ने लगती हैं. छोटीछोटी बातों पर कुढ़ना या रोनाधोना शादी की सारी खुशियों पर पानी फेर सकता है. इसलिए शादी में ज्यादा से ज्यादा खुश और पौजिटिव रहना बेहतर रहता है.

लोग क्या कहेंगे यह सोचना बंद करें

इस बात को सोचना बंद करें कि लोग क्या कहेंगे. इस की परवाह न करते हुए अपनी लाइफ में देखे सभी सपनों को पूरा करें. आप की शादी से जुड़ी जितनी भी छोटीबड़ी खाव्हिशें हैं उन सब को पूरा करने का समय आ चुका है. अब आप जमाने के बारे में सोचने के बजाय केवल अपने और पार्टनर के बारे में सोचें. आप जिस तरह इन पलों को ऐंजौय करने की तमन्ना रखती हैं वैसे ही इन पलों को जीएं.

उदाहरण के लिए वैडिंग ड्रैस ही लीजिए. शादी में दूल्हादुलहन की वैडिंग ड्रैस के लिए सभी अपनेअपने सु?ाव दे रहे होते हैं, जिस से हमें उन्हीं की पसंद की ड्रैस खरीदनी पड़ती है और अपने सपने धरे के धरे रह जाते हैं. यह आप की शादी है इसलिए अपनी शादी में आप जो कुछ भी पहनें वह आप का हक है. इसी तरह बाकी चीजें भी अपने हिसाब से करें न कि दूसरों के हिसाब से.

हनीमून का प्लान

शादी के दौरान अकसर लोग पूछते हैं कि हनीमून का क्या प्लान है? जरूरी नहीं है आप हर किसी के साथ अपने हनीमून का प्लान शेयर करें और दूसरों की मरजी से हनीमून डैस्टिनेशन चुनें. शादी आप की हुई है इसलिए हनीमून के लिए बैस्ट डैस्टिनेशन आप खुद ही चुनें. वहां क्या ले जाना है, किस तरह जाना है और कहा रहना है यह सब पहले से पार्टनर के साथ मिल कर प्लान बनाएं और साथ में आने वाले रोमानी पलों को महसूस कर इन लमहों को ऐंजौय करें.

फूलों की चादर

फूलों की चादर वाली ऐंट्री वैसे तो थोड़ी कौमन सी है लेकिन फिर भी यह बेहद खूबसूरत लगती है. इसे अलगअलग फूलों से काफी आकर्षक बना सकते हैं. अगर दुलहन ने रैड ड्रैस पहनी है तो सफेद फूलों की चादर जिस में कुछ लाल फूल भी लगा लिए जाएं या फिर अगर उस ने पेस्टल लहंगा पहना है तो रंगबिरंगे फूलों के साथ ऐंट्री परफैक्ट लगती है.

विंटेज कार में ऐंट्री

विंटेज कार में ऐंट्री का कौंसैप्ट काफी कूल कौंसैप्ट है. वैसे भी विंटेज कार को रौयल शादियों की निशानी माना जाता है. ऐसे में इस तरह की ऐंट्री दूल्हे की शान बढ़ाती है तो दुलहन भी कम ऐक्ससाइटेड नहीं होती.

बोट पर ऐंट्री

अगर आप की शादी का वेन्यू ऐसा है जहां पर स्विमिंग पूल भी है तो यह आप के लिए बैस्ट आइडिया है. एक बोट को बहुत सुंदर सा सजाया जाए और दुलहन की ऐंट्री उस बोट में हो तो यह बेहद खूबसूरत और यूनीक लगता है.

डांस ऐंट्री

डांसिंग ब्राइड्स भी इन दिनों काफी ट्रैंड में हैं. वैसे तो दूल्हा बरात के साथ अपनी दुलहन को डांस करते हुए लेने आता है. लेकिन दुलहन भी नाचते हुए ही दूल्हे का स्वागत करे तो यह देखने में मजेदार लगता है और दुलहन इन लमहों को भरपूर ऐंजौय करती है. इसे यादगार और खास बनाने के लिए ऐसे गानों को चुनें जो आप दोनों के दिल के करीब हों या ऐसा गाना जो आप दोनों का ही फैवरिट हो.

पालकी स्टाइल

खूबसूरत सी औटोमूविंग पालकी को सजा कर उस में दुलहन बैठ कर जब आएगी तो मानो चांद धरती पर उतर आया हो वाली फीलिंग आएगी.

भारतीय शादी की कुछ मजेदार रस्में

भारतीय शादियां रंगोंरिवाजों और उत्साह से भरी होती हैं. इन में खुशी होती है, परंपराएं होती हैं, 2 परिवारों का मिलन होता है, खानापीना होता है, उत्सव होता है, हंसी की फुहारें होती हैं. भारतीय शादियां एक दिन में खत्म हो जाने वाला प्रयोजन नहीं बल्कि यह तो 1 हफ्ते तक चलने वाला उत्सव है. कई रिचुअल्स शादी के बाद तक चलते रहते हैं.

मेहंदी की रस्म

मेहंदी की रस्म शादी से 1 दिन पहले होती है. पूरे दिन मेहंदी सैलिब्रेशन चलता है. इस दिन दुलहन के हाथ और पैरों पर तो प्यारी सी मेहंदी लगती ही है साथ ही बाकी घर वाले भी मेहंदी लगवाते हैं. शादी की मेहंदी के रंग के बारे में माना जाता है कि दुलहन के हाथों में मेहंदी का रंग जितना ज्यादा गहरा चढ़ता है उस का पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है. मेहंदी के रंग को प्यार के रंग से जोड़ा जाता है और दुलहन के हाथ में मेहंदी से दूल्हे का नाम लिखा जाता है. मेहंदी वाले दिन दुलहन के घर में जम कर डांस और धमाल होता है. इस दिन डीजे होता है, खानापीना होता है. दुलहन की सहेलियां माहौल में रंग भर देती हैं. कई वैडिंग्स में थीम मेहंदी भी प्लान की जाती है जिस में आउटफिट्स भी उसी हिसाब से होते हैं.

संगीत सेरेमनी

भारतीय शादियों में लेडीज संगीत सेरेमनी अकसर मेहंदी वाले दिन के साथ ही सैलिब्रेट की जाती है. इस सेरेमनी में दोनों परिवार अपनेअपने घर में दिल खोल कर नाचते हैं. कुछ समय पहले तक यह समारोह केवल घर की महिलाओं तक ही सीमित हुआ करता था जिस में ढोलक पर नाचगाना हुआ करता था. लेकिन अब इस दिन के लिए प्रौपर डीजे अरेंजमैंट्स होते हैं. संगीत सेरेमनी में काफी रौनक होती है. इस दिन तक शादी में शामिल होने वाले ज्यादातर रिश्तेदार आ चुके होते हैं इसलिए सब मिल कर ऐंजौय करते हैं.

हल्दी सेरेमनी

शादी से पहले मस्ती से भरपूर हलदी सेरेमनी में दूल्हादुलहन को तेल और हलदी लगाई जाती है. शादी की इस रस्म में भी सारे मेहमान और घर वाले मिल कर खूब मस्ती करते हैं. दोस्त वगैरह भी होते हैं जो दूल्हा और दुलहन को भरभर कर हलदी लगाते और मस्ती करते हैं. बाद में दोनों को नहलाया जाता है.

चूड़ा सेरेमनी

कोई भी पंजाबी दुलहन चूड़ा सेरेमनी के बिना अपनी शादी की कल्पना भी नहीं कर सकती. रैडव्हाइट आइवरी बैंगल सैट से जुड़ी होती है कलीरों की रस्म. दुलहन अपनी सभी अनमैरिड सहेलियों के सिर पर बारीबारी से अपने चूड़ों में बंधे कलीरों को घुमाती है. जिस पर भी कलीरा टूट कर गिरता है माना जाता है कि शादी के लिए अगला नंबर उसका होगा.

दूल्हे की ऐंट्री

अधिकांश भारतीय शादियों में जब दूल्हा शादी वाली जगह प्रवेश करता है तो वधू पक्ष की ओर से दुलहन की बहनों और दोस्तों द्वारा द्वार छिकाई की जाती है. इस रस्म में अंदर आने के ऐवज में दूल्हे को अपनी सालियों को शगुन के रूप में कुछ रुपए देने होते हैं तभी वह ऐंट्री के लिए दरवाजे से हटती हैं. इस दौरान सालियों के साथ दूल्हे की प्यारी सी नोक?ांक और मस्ती होती है. भारत के कई स्थानों पर द्वार प्रवेश में दूल्हे की सास उस की नाक पकड़ कर खींचती है और उस का स्वागत करती है. इस रस्म को सभी बहुत ज्यादा ऐंजौय करते हैं.

जूता छिपाई

‘हम आप के हैं कौन’ फिल्म की जूता छिपाई वाला सीन सब को याद होगा. यह रस्म रिऐलिटी में भी मस्ती से भरपूर होती है. जब दूल्हा शादी की रस्मों को निभाने के लिए मंडप में अपने जूते उतार कर बैठता है तो उस की सालियां, जूता छिपा लेती हैं और फिर मोटी रकम वसूलने के बाद ही जूते वापस करती हैं. इस दौरान सौदेबाजी और मौजमस्ती के बीच दोनों परिवारों के बीच रिश्ते गहरे होते हैं.

विदाई

पूरी शादी का सब से इमोशनल मोमैंट विदाई है. हालांकि आजकल की शादियों में अब उतना रोनाधोना नहीं होता. फिर भी यह क्षण होता आज भी उतना ही इमोशनल है.

विदाई के समय चावल उछालने की रस्म

चावल उछालने की रस्म में दुलहन जब घर से विदा होती है तो अपने परिजनों से विदा लेते समय वह घर की तरफ चावल उछालती जाती है.  ऐसा माना जाता है कि यह दुलहन का अपने परिवार द्वारा दिए गए प्यार के प्रति आभार दिखाने का एक संकेत होता है.

जब दुलहन अपने नए घर में प्रवेश करती है, तो उसे प्रवेश करने से पहले अपने पैरों से चावल से भरा कलश गिराना होता है. यह उस के नए घर और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है.

पोस्ट वैडिंग गेम्स

लंबी और थका देने वाली शादी की रस्मों के बाद दुलहन की ससुराल में होने वाली रस्म स्ट्रैस बस्टर के जैसा काम करती है. दूल्हे के दोस्त, परिवार के सदस्य इस रस्म के लिए एक बड़े बरतन में दूध और पानी को मिला कर एक मिश्रण तैयार करते हैं, जिस में कुछ सिक्के, फूल आदि भी डले रहते हैं. इस में एक चांदी या सोने का गहना डाल कर दूल्हादुलहन को एकसाथ खोजने को कहा जाता है और माना जाता है कि जो पहले ढूंढ़ लेगा, घर में उस का ही हुक्म चलेगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें