बिखरते बिखरते : माया क्या सोच कर भावुक हो रही थी

महेश ने कहा, ‘‘माया, आज शाम को गाड़ी से मुझे मुंबई जाना है. मेरा सूटकेस तैयार कर देना.’’ ‘‘शाम को जाना है और अब बता रहे हैं, कल रात भी तो बता सकते थे,’’ माया को पति की लापरवाही पर क्रोध आ रहा था.

‘‘ऐसी कौन सी नई बात है. हमेशा ही तो मुझे बाहर आनाजाना पड़ता है,’’ महेश ने कुरसी से उठते हुए कहा.

‘‘कब तक लौटोगे?’’ आने वाले दिनों के अकेलेपन की कल्पना से माया भावुक हो गई.

‘‘यही कोई 10 दिन लग जाएंगे. तुम चाहो तो अपनी मौसी के यहां चली जाना. नहीं तो आया से रात को यहीं सो जाने को कहना,’’ कह कर महेश अपना ब्रीफकेस ले कर निकल पड़ा.

दरवाजा बंद कर माया सोफे पर आ बैठी तो उस का दिल भर आया. माया कुछ क्षण घुटनों में सिर छिपाए बैठी रही. अपनी कारोबारी दुनिया में खोए रहने वाले महेश के पास माया के लिए दोचार पल भी नहीं रह गए हैं. कम से कम सुषमा साथ होती तो यह दुख वह भूल जाती. इतने बड़े मकान में घंटों अकेले पड़े रहना कितना खलता है. माया के 12 वर्षों के दांपत्य जीवन में न कोई महकता क्षण है, न कोई मधुर स्मृति.

महेश शाम को औफिस से लौट कर झटपट तैयार हो कर निकल पड़ा. रसोई की बत्ती बुझा कर माया कमरे में चली आई. माया लेट चुकी थी. नींद तो आने से रही. अलमारी से यों ही एक किताब ले कर पलंग पर बैठ गई. पहला पन्ना उलटते ही माया की नजर वहीं ठहर गई : ‘प्यार सहित– सौरभ.’ माया के 20वें जन्मदिवस के अवसर पर सौरभ ने यह किताब उसे भेंट की थी. माया का मन अतीत की स्मृतियों में खो गया…

‘माया, मेरे सौरभ भैया अपनी पढ़ाई खत्म कर के कोलकाता से आ गए हैं. भैया भी तुम्हारी तरह बहुत अच्छा वायलिन बजाते हैं. शाम को आना,’ रिंकू कालेज जाते समय उसे न्योता दे गई. माया का संगीतप्रेम उसे शाम को रिंकू के घर खींच ले गया. सौरभ ने वायलिन बजाना शुरू किया और माया वायलिन की धुनों में खो गई. सौरभ की नौकरी, उस के पिता की फैक्टरी में ही लग गई. माया नईनई धुनें सीखने के लिए सौरभ के पास जाने लगी थी. सौरभ उस की खूबसूरती व मासूमियत पर फिदा हो गया था. एक दिन सौरभ ने अचानक ही पूछ डाला, ‘माया, अपने पापा से बात क्यों नहीं करती?’

‘किस बारे में?’

‘हम दोनों के विवाह के बारे में.’

माया वायलिन एक ओर रख कर खिड़की के पास जा खड़ी हुई. लौन में लाल गुलाब खिले हुए थे. वह उन फूलों को कुछ पल निहारती रही. आज तक वह पापा के सामने खड़ी हो बेझिझक कोई बात नहीं कह पाई है. फिर इतनी बड़ी बात भला कैसे कह पाएगी? किंतु आखिर कब तक टाला जा सकता है? देखतेदेखते 3 वर्ष बीत गए थे. उस ने एमएससी कर लिया था. अब तक तो पढ़ाई का बहाना कर के वह सौरभ को रुकने के लिए कहती आई थी.

अचानक उसे एक बात सूझ गई. वह बोली, ‘सौरभ, तुम स्वयं ही आ कर पापा से कह दो न, मुझे बड़ी झिझक हो रही है.’

‘माया, झिझक नहीं. डर कहो. समस्या से दूर भागने की यह सोच ही तुम्हारी कमजोरी है. खैर, ठीक है. मैं कल शाम को आऊंगा,’ सौरभ ने हंसते हुए माया से विदा ली. पापा ने दफ्तर से आ कर चाय पी और अखबार ले कर आरामकुरसी पर बैठ गए. माया का दिल यह सोच कर धकधक कर रहा था कि बस, अब सौरभ आता ही होगा.

थोड़ी देर बाद सौरभ आया. हाथ जोड़ कर उस ने कहा, ‘नमस्ते, अंकल.’ कुछ देर तक इधरउधर की आम बातें हुईं. फिर सौरभ ने अपने स्वभाव के मुताबिक सीधे प्रस्ताव रख दिया, ‘अंकल, मैं और माया एकदूसरे को पसंद करते हैं. मैं आप से माया का हाथ मांगने आया हूं.’ ‘क्या?’ उन के हाथ से अखबार गिर गया. उन्हें अपनी सरलसंकोची बेटी के इस फैसले पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. कुछ पलों बाद उन्होंने स्वयं को संयत करते हुए कठोर आवाज में कहा, ‘देखो सौरभ, मुझे यह बचकाना तरीका बरदाश्त नहीं है. तुम लोग खुद विवाह का निर्णय करो, यह गलत है. अच्छा, तुम अपने पापा को भेजना.’

अच्छी बात है. मैं अपने पापा को भेज दूंगा,’ सौरभ उठ कर नमस्ते कर के चल पड़ा.

रविवार को वृद्घ ज्योतिषी आ पहुंचे. कमरे में मौन छाया था. माया और सौरभ की कुंडली सामने बिछा कर लंबे समय तक गणना करने के बाद ज्योतिषी ने सिर उठाया, ‘रमाकांत, दोनों कुंडलियां तनिक मेल नहीं खातीं. कन्या पर गंभीर मंगलदोष है. लड़के की कुंडली तो गंगाजल की तरह दोषहीन है. मंगलदोष वाली कन्या का विवाह उसी दोष वाले वर के साथ होना ही श्रेष्ठ होता है. तुम्हारी कन्या का विवाह इस वर के साथ होने पर 4-5 बरसों में ही वर की मृत्यु हो जाएगी.’ पंडितजी के शब्द सब को दहला गए.

सौरभ के पापा सिर झुकाए चले गए. परदे की ओट में बैठी माया जड़ हो गई. पंडितजी के शब्द मानो कोई माने नहीं रखते. नहीं, वह कुछ नहीं सुन रही थी. यह तो कोई बुरा सपना है. माया खयालों में खो गई.

‘दीदी, बैठेबैठे सो रही हो क्या? पापा कब से बुला रहे हैं तुम्हें.’ छोटी बहन ने माया को झकझोर कर उठाया.

माया बोझिल कदमों से पापा के सामने जा खड़ी हुई थी. कमरे में उन की आवाज गूंज उठी, ‘माया, ज्योतिषी ने साफ कह दिया है. दोनों जन्मकुंडलियां तनिक भी मेल नहीं खातीं. यह विवाह हो ही नहीं सकता. अनिष्ट के लक्षण स्पष्ट हैं. भूल जाओ सबकुछ.’

मां का दबा गुस्सा फूट पड़ा था, ‘लड़की मांबाप का लिहाज न कर स्वयं वर ढूंढ़ने निकलेगी तो अनर्थ नहीं तो और क्या होगा? कान खोल कर सुन लो, उस से मेलजोल बिलकुल बंद कर दो. कोई गलत कदम उठा कर उस भले लड़के की जान मत ले लेना.’ कहनेसुनने को अब रह ही क्या गया था. माया चुपचाप अपने कमरे की ओर लौट आई थी. माया लौन में बैठी पत्रिका पढ़ रही थी. मन पढ़ने में लग ही नहीं रहा था. माया अपने अंदर ही घुटती जा रही थी. देखतेदेखते 3 माह गुजर गए. न सौरभ का कोई फोन आया, न मिलने की कोशिश ही की. क्या करे वह. सौरभ कोलकाता में नई नौकरी के लिए जा चुका था. वह कशमकश में थी. वह नहीं विश्वास करती थी ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर. ज्योतिषी की बात पत्थर की लकीर है क्या? वह सौरभ से विवाह जरूर करेगी. लेकिन अगर पंडितजी की वाणी सही निकल गई तो?

अशोक भैया ने पंडितजी का विरोध कर विवाह किया था. आज विधुर हुए बैठे हैं नन्हीं पुत्री को लिए. ज्योतिषी का लोहा पूरा परिवार मानता है. क्या उस के प्यार में स्वार्थ की ही प्रधानता है? सौरभ के जीवन से बढ़ कर क्या उस का निजी सुख है? नहीं, नहीं, सौरभ के अहित की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती. सौरभ से हमेशा के लिए बिछुड़ने की बात सोच कर उस का दिल बैठा जा रहा है.

खटाक…कोई गेट खोल कर आ रहा था. अरे, 3 महीने बाद आज रिंकू  आ रही है. रिंकू  उस के पास आ कर कुछ पल मौन खड़ी रही.

चुप्पी तोड़ते हुए रिंकू  ने कहा, ‘माया, कल मेरा जन्मदिन है. छोटी सी पार्टी रखी है. घर आओगी न?’

माया ने डबडबाती आंखों से रिंकू  को देखा, ‘पता नहीं मां तुम्हारे घर जाने की अनुमति देंगी कि नहीं?’ रिंकू वापस चली गई तो माया ने किसी तरह मां को मना कर रिंकू के घर जाने की अनुमति ले ली. माया की उदासी ने शायद मां का दिल पिघला दिया था. अगले दिन रिंकू के घर जा कर वह बेमन से ही पार्टी में भाग ले रही थी. तभी उसे लगा कोई उस के निकट आ बैठा है, पलट कर देखा तो हैरान रह गई थी.

‘सौरभ ़ ़ ़’ माया खुशी के मारे लगभग चीख पड़ी थी. फिर सोचने लगी कि कब आया सौरभ कोलकाता से? रिंकू ने कल कुछ भी नहीं बताया था. सौरभ और माया लौन में एक ओर जा कर बैठ गए. माया का जी बुरी तरह घबरा रहा था. सौरभ से इस तरह अचानक मुलाकात के लिए वह बिलकुल तैयार न थी. ‘माया, आखिर क्या निर्णय किया तुम ने? मैं ज्योतिषियों की बात में विश्वास नहीं करता. भविष्य के किसी अनिश्चित अनिष्ट की कल्पना मात्र से वर्तमान को नष्ट करना भला कहां की अक्लमंदी है? छोड़ो अपना डर. हम विवाह जरूर करेंगे,’ सौरभ का स्वर दृढ़ था. ‘ओह सौरभ, बात मेरे अनिष्ट की होती तो मैं जरा भी नहीं सोचती. लेकिन तुम्हारे अनिष्ट की बात सोच कर मेरा दिल कांप उठता है,’ बोलते हुए माया की सिसकियां नहीं रुक रही थीं.

‘माया, तुम सारा भार मुझ पर डाल कर हां कर दो. विवाह के लिए मन का मेल ग्रहों व कुंडलियों के बेतुके मेल से अधिक महत्त्वपूर्ण है,’ सौरभ के स्वर में उस का आत्मविश्वास झलक रहा था.

‘नहीं सौरभ, नहीं. मैं किसी भी तरह मन को समझा नहीं पा रही हूं. यह अपराधभाव लिए मैं तुम्हारे साथ जी ही नहीं सकती,’ माया ने आंसू पोंछ लिए.

‘तो मैं समझूं कि हमारे बीच जो कुछ था वह समाप्त हो गया. ठीक है, माया, सिर्फ यादों के सहारे हम जीवन की लंबी राह काट नहीं सकेंगे. जल्दी ही दूसरी जगह विवाह कर प्रसन्नता से रहना.’ सौरभ चला गया था. अकेली बैठी माया बुत बनी उसे देखती रही थी. माया अपने ही कालेज में पढ़ाने लगी थी. सौरभ वापस कोलकाता चला गया, अपनी नौकरी में रम गया था. रिंकू लखनऊ चली गई थी. सप्ताह, माह में बदल कर अतीत की कभी न खुलने वाली गुहा में फिसल कर बंद हुए जा रहे थे. माया दिनभर कालेज में व्यस्त रहती थी, शाम को घर लौटते ही उदासी के घेरे में घिर जाती थी. देखतेदेखते सौरभ से बिछुड़े पूरा 1 वर्ष बीत गया था.

एक दिन शाम को कालेज से लौट कर सामने रिंकू को बैठी देख माया को बड़ा आश्चर्य हुआ. रिंकू  अचानक लखनऊ से कैसे आ गई? चाय पीते हुए दोनों इधरउधर की बातें करती रहीं. फिर रिंकू ने अपना पर्स खोल कर एक सुंदर सा शादी का कार्ड माया की ओर बढ़ाया.

‘माया, अगले रविवार को सौरभ भैया की शादी है. भैया का अव्यवस्थित जीवन और अंदर ही अंदर घुलते जाना मुझ से देखा नहीं गया. मैं ने बड़ी मुश्किल से उन को शादी के लिए तैयार किया है. तुम तो अपनी जिद पर अड़ी हुई हो, दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है,’ रिंकू का चेहरा गंभीर हो गया था. मूर्तिवत बैठी माया को करुण नेत्रों से देखती हुई रिंकू चली गई थी.

माया कार्ड को भावहीन नेत्रों से देखती रही. दिल में कई बातें उठने लगीं, क्या उस का सौरभ पराया हो गया, मात्र 1 वर्ष में? सुमिता जैसी सुशील सुकन्या को पा कर सौरभ का जीवन खिल उठेगा. एक वह है जो सौरभ की याद में घुलती जा रही है. लेकिन उसे क्रोध क्यों आ रहा है? क्या सौरभ जीवनभर कुंआरा रह कर उस के गम में बैठा रहता? ठीक ही तो किया उस ने. पर उसे इतनी जल्दी क्या थी? जब तक मेरी शादी कहीं तय नहीं होती तब तक तो इंतजार कर ही सकता था? अभिमानी सौरभ, यह मत समझना कि सुमिता के साथ तुम ही मधुर जीवन जी सकोगे. मैं भी आऊंगी तुम्हारे घर अपने विवाह का न्योता देने. तुम से अधिक सुंदर, स्मार्ट लड़के की खोज कर के. माया ने हाथ में लिए हुए कार्ड के टुकड़ेटुकड़े कर डाले.

माया के लिए उस के पापा ने वर ढूंढ़ने शुरू कर दिए लेकिन माया की नजरों में वे खरे नहीं उतरते थे. उस की जोड़ का एक भी तो नहीं था. मां और पापा कितना ही समझाने की कोशिश करते, लेकिन माया नहीं झुकी. अंत में पापा ने माया के लिए वर ढूंढ़ना छोड़ दिया था.

समय अपनी गति से घूमता रहा.

10 वर्ष जाने कैसे सपने से बीत गए. छोटी बहन और भाई की शादी हो चुकी थी. माया उम्र के एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ी थी जहां आदर्श टूट जाते हैं, कल्पनाएं धुएं की तरह उड़ जाती हैं और जीवन अपने कटु यथार्थ के धरातल पर आ जाता है. प्यार, गुस्सा, बदला, सौरभ सबकुछ मन के किसी अवचेतन कोने में जा कर दुबक गए थे. माया ने अनुभव किया कि अब उसे पुरुष की बलिष्ठ, संरक्षक बांहों की आवश्यकता है.

छोटी बहन की ससुराल से महेश आए थे. महेश ने माया से ब्याह करने का प्रस्ताव रखा था. महेश का व्यक्तित्व अति सामान्य और अनाकर्षक था. उन की अपनी एक छोटी फैक्टरी थी. क्या इस अनाकर्षक 42 वर्षीय प्रौढ़ के लिए ही उस ने इतनी लंबी प्रतीक्षा की थी? लेकिन अपने मन की ख्वाहिशों को दबा कर माया ने महेश का हाथ थाम लिया.

विवाह के अगले वर्ष सुषमा का जन्म हुआ था. माया अपनी पिछली कड़वाहट भूल कर बेटी में खो गई थी. पर माया के शांत जीवन में अचानक आंधी आ गई. महेश सुषमा को होस्टल में भेजना चाहते थे. माया ने लाख मिन्नतें कीं पर महेश ने अपना निर्णय नहीं बदला. सुषमा के होस्टल में चले जाने के बाद माया गुमसुम सी हो गई थी. न ही वह महेश के साथ उस की पार्टियों में जा कर घंटों बैठ पाती थी, न महेश की नीरस बातें सहन कर पाती थी. उसे सब से अधिक खलती थी, महेश की संगीत के प्रति अरुचि. न महेश को उस का वायलिन बजाना भाता था, न ही वह संगीत कार्यक्रमों में जाता था. माया का नौकरी करना भी उसे पसंद नहीं था. न कोई रोमांस, न रोमांच. माया दुख और अलगाव में जीतेजीते पत्थर सी हो गई थी.

‘‘बीबीजी, चाय बना लाऊं? दूध आ गया है,’’ नौकरानी की आवाज से माया की तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में लौट आई.

सिर भारी हो आया है. ओह, अकेले 10 दिन वह नहीं रहेगी घर में. मौसी के यहां चली जाएगी. नौकरानी से चाय बनाने के लिए कह कर माया हाथमुंह धोने चली गई.

माया ने अपनी गाड़ी एक ओर खड़ी की और मौसी के लिए फल खरीदने स्टोर में घुस गई.

‘‘कार्ड पेमैंट है?’’ पेमैंट के लिए लाइन में खड़ी माया यह आवाज सुन कर चौंक उठी. लाइन में आगे खड़ी रिंकू को देखा.

‘‘रिंकू,’’ माया खुश हो जोर से बोली.

रिंकू ने माया को बांहों में भर लिया. पेमैंट कर रिंकू माया की गाड़ी में आ बैठी.

रिंकू अपना किस्सा सुनाने लगी. उस ने रिसर्च पूरा कर लिया था. उसी दौरान उस की शादी हो गई थी. उस की भी इकलौती बेटी है जिस की पिछले अक्तूबर में शादी हो गई है. वह यहां पति के साथ आई थी, कुछ काम था उन का.

रिंकू ने माया को नहीं छोड़ा. खोदखोद कर उस की निजी जिंदगी के संबंध में पूछने लगी. कईर् वर्षों बाद किसी अपने ने उस की दुखती रग पर हाथ रखा था. सो, माया का मन मर्यादा त्याग कर उमड़ पड़ा, ‘‘रिंकू, मैं पूरा जीवन भटकती ही रह गई. मुझे कुछ भी न मिला. आखिरकार मेरा अपना बन कर कोई भी तो न रहा. मेरे चारों ओर है केवल उदासी, उलझन, तनाव. मैं जाने कब टूट कर बिखर जाऊं,’’ माया सिसक रही थी.

रिंकू सिसकती माया को चुपचाप देखती रही. रोने दो जीभर. बरसों की घुटन आंखों की राह बह जाए तो माया का तनाव कुछ कम हो जाएगा. कक्षा में सब से आगे रहने वाली माया की कुशाग्र बुद्धि उसे जीवनसंग्राम में विजयी बनने की राह नहीं दिखा सकी.

‘‘माया,’’ रिंकू ने माया के कंधे पर हाथ रखा. माया सिर उठा कर भरे नेत्रों से रिंकू की ओर देख रही थी.

‘‘माया, क्या इस सारे बिखराव का कारण तुम स्वयं नहीं हो? तुम में निर्णय करने और जोखिम मोल लेने की हिम्मत ही नहीं थी. किसी ज्योतिषी की ग्रहगणना में तो तुम्हें विश्वास था, लेकिन सौरभ के आश्वासनों पर, उस के दृढ़ संकल्पों पर तुम विश्वास नहीं कर सकीं. हम ने न सौरभ के ब्याह में जन्मपत्रियां मिलवाईं, न मेरे ब्याह में ही. मैं ने अपनी बेटी के ब्याह में भी पत्रियां नहीं मिलवाईं. फिर भी हम सब सुखी दांपत्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

‘‘माया, सचाई यह है कि तुम्हारे अंतर्मन में सौरभ निराकार रूप में आज भी व्याप्त है. मन की यही गांठ महेश के साथ सुखद और आनंदमय जीवन जीने से तुम्हें निरंतर रोक रही है.’’

रिंकू कुछ देर मौन बैठी रही, फिर माया के माथे पर आए पसीने की बूंदों को पोंछते हुए बोली, ‘‘माया, जरा सोचो तो, आखिर महेश में ऐसी क्या कमी है? वे व्यस्त व्यवसायी हैं. उन के व्यवहार में उन का अपना संस्कार छाया हुआ है. संस्कारों को आसानी से बदला भी तो नहीं जा सकता. सुषमा को उन्होंने होस्टल तुम से छीनने के लिए तो नहीं भेजा है, बल्कि उस के अच्छे भविष्य के लिए ही भेजा है. माया, जरा सोचो? क्या तुम ने अपने पति के साथ न्याय किया है. न कभी उन के व्यवसाय में दिलचस्पी ली, न उन के दोस्तों में. तुम्हारा सान्निध्य तो महेश को कभी मिला ही नहीं. माया, न तो तुम में सौरभ से ब्याह करने की हिम्मत थी, न ही उस की स्मृति में अकेले दृढ़ जीवन बिताने का साहस. तुम स्वयं को भी समझ नहीं पाईं,’’ रिंकू एक सांस में ही इतना कुछ कह कर हांफने लगी थी.

कुछ पल तक दोनों मौन बैठी सजल नयनों से सड़क की ओर देखती रहीं. रिंकू ने घड़ी की ओर देखा. फिर झट गाड़ी से उतर पड़ी और उस के कंधे पर हाथ रख कर बोली, ‘‘माया, देर हो रही है, मैं चलूं. कम से कम जीवन के बचे चंद दिनों को अब महेश के साथ प्रसन्नता से जी लो.’’ माया ने रूमाल निकाल कर अच्छी तरह चेहरा पोंछ लिया. आकाश से छंटे बादलों की तरह उसे अपना मन साफ लगा. महेश, सुषमा, महेश का व्यवसाय सबकुछ तो उस का अपना है. अब वह नहीं बिखरेगी, नहीं भटकेगी. उसे तो अभी बहुतकुछ करना है पति के लिए, बेटी के लिए.

इन 4 नैचुरल नुस्खों के भी हैं साइड इफेक्ट्स

भारतीय लोग अमूमन घरेलू और पारंपरिक उपचार पर यकीन करते हैं, जिनमें कि हर्ब्स, सब्जियां आदि नैचुरल तत्व शामिल होते हैं. ज्यादातर लोगों का यकीन होता है कि नैचुरल चीज का इस्तेमाल अन्य चीजों के मुकाबले ज्यादा सेफ है और इसके साइड इफेक्ट भी नहीं होते. लेकिन लोगों की यह धारणा दरअसल गलत है. आइए आपको बताते हैं कि नैचुरल चीजों से कैसे हो सकता है आपको नुकसान.

1. हर्बल चाय

अगर आपको कफ की शिकायत है तो काली मिर्च, शहद से बनने वाली हर्बल चाय का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. एक्सपर्ट के मुताबिक, काली मिर्च बहुत गर्म और सूखी होती है. अगर आपको सूखा कफ आ रहा है तो इसके इस्तेमाल से घरघराहट बढ़ सकती है.

2. शहद भी है घातक

चेहरे पर शहद का इस्तेमाल करना सौ फीसदी चमक की गारंटी बताया जाता है. शहद और दूध जैसे नैचुरल प्रॉडक्ट्स चेहरे पर सफेद या काले धब्बे डाल सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि ये तैलीय होते हैं.

आपकी उम्र चाहे कितनी ही क्यों न हो, सूखी त्वचा के मुकाबले शहद या दूध का इस्तेमाल करना ज्यादा एलर्जिक होता है. सूखी त्वचा ऐक्टिव नहीं होती है और ऐसे में उसमें मुंहासे निकलने की आशंका कम रहती है. शहद या दूध का इस्तेमाल ऑयल ग्लैंड्स को ब्लॉक कर देता है और इसके चलते मुंहासे निकल आते हैं.

3. चंपी

नारियल, सरसों आदि के तेल का इस्तेमाल करने से आपको इंफेक्शन भी हो सकता है. अगर आपकी त्वचा सेंसटिव है तो आपके सिर में छोटे—छोटे दाने निकल सकते हैं.

4. तो कानों में होगा दर्द

कान में दर्द होने पर कई बार हम अदरक का जूस इस्तेमला कर लेते हैं. इसके पीछे लॉजिक देते हैं कि यह कान के इंफेक्शन से लड़ने में कारगर है. जबकि विशेषज्ञों की मानें तो इसके इस्तेमाल से कान ब्लॉक भी हो सकता है. इसमें इयर ड्रम के जरिए कान में इंफेक्शन की आशंका भी बढ़ जाती है. जूस सीधा कान की कैविटी में जाकर आपकी सुनने की क्षमता को भी खत्म कर सकता है.

मुझे न पुकारना

बस में बहुत भीड़ थी, दम घुटा जा रहा था. मैं ने खिड़की से बाहर मुंह निकाल कर 2-3 गहरीगहरी सांसें लीं. चंद लमहे धूप की तपिश बरदाश्त की, फिर सिर को अंदर कर लिया. छोटे बच्चे ने फिर ‘पानीपानी’ की रट लगा दी. थर्मस में पानी कब का खत्म हो चुका था और इस भीड़ से गुजर कर बाहर जा कर पानी लाना बहुत मुश्किल काम था. मैं ने उस को बहुत बहलाया, डराया, धमकाया, तंग आ कर उस के फूल से गाल पर चुटकी भी ली, मगर वह न माना.

मैं ने बेबसी से इधरउधर देखा. मेरी निगाह सामने की सीट पर बैठी हुई एक अधेड़ उम्र की औरत पर पड़ी और जैसे जम कर ही रह गई, ‘इसे कहीं देखा है, कहां देखा है, कब देखा है?’

मैं अपने दिमाग पर जोर दे रही थी. उसी वक्त उस औरत ने भी मेरी तरफ देखा और उस की आंखों में जो चमक उभरी, वह साफ बता गई कि उस ने मुझे पहचान लिया है. लेकिन दूसरे ही पल वह चमक बुझ गई. औरत ने अजीब बेरुखी से अपना चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया और हाथ उठा कर अपना आंचल ठीक करने लगी. ऐसा करते हुए उस के हाथ में पड़ी हुई सोने की मोटीमोटी चूडि़यां आपस में टकराईं और उन से जो झंकार निकली, उस ने गोया मेरे दिमाग के पट खोल दिए.

उन खुले पटों से चांदी की चूडि़यां टकरा रही थीं…सलीमन बूआ…सलीमन बूआ…हां, वे सलीमन बूआ ही थीं. बरसों बाद उन्हें देखा था, लेकिन फिर भी पहचान लिया था. वे बहुत बदल चुकी थीं. अगर मैं ने उन को बहुत करीब से न देखा होता तो कभी न पहचान पाती.

दुबलीपतली, काली सलीमन बूआ चिकने स्याह गोश्त का ढेर बन गई थीं. मिस्कीन चेहरे पर ऐसा रोबदार इतमीनान और घमंड झलक रहा था जो बेहद पैसे वालों के चेहरों पर हुआ करता है. अपने ऊपर वह हजारों का सोना लादे हुए थीं. कान, हाथ, नाक कुछ भी तो खाली नहीं था. साड़ी भी बड़ी कीमती थी और वह पर्स भी, जो उन की गोद में रखा हुआ था. मेरा बच्चा रो रहा था और मैं उस को थपकते हुए कहीं दूर, बहुत दूर, बरसों पीछे भागी चली जा रही थी. मैं जब बच्ची थी तो यही सलीमन बूआ सिर्फ मेरी देखभाल के लिए रखी गई थीं. उन दिनों वे बहुत दुखी थीं. उन के तीसरे मियां ने उन को तलाक दे दिया था और लड़के को भी उन से छीन लिया था. सलीमन बूआ ने अपनी सारी ममता मुझ पर निछावर कर दी. मैं अपनी मां की ममता इसलिए कम पा रही थी क्योंकि मुझ से छोटे 2 और बच्चे भी थे.

अम्मा बेचारी क्या करतीं, मुझे संभालतीं या मेरे नन्हे भाइयों को देखतीं. सलीमन बूआ की मैं ऐसी आशिक हुई कि रात को भी उन के पास रहती. अब्बाजान सोते में मुझे अपने बिस्तर पर उठा ले जाते, लेकिन रात को जब भी मेरी आंख खुलती, फिर भाग कर सलीमन बूआ के पास पहुंच जाती. वे जाग कर, हंस कर मुझे चिपटा लेतीं, ‘आ गई मेरी बिटिया रानी…’ और फिर अपनी बारीक आवाज में वे लोरी गाने लगतीं, जिस को सुन कर मैं फौरन सो जाती. मुझे नहलाना, मेरे कपड़े बदलना, कंघी करना, काजल लगाना, खिलानापिलाना, सुलाना, कहानियां सुनाना, बाहर टहलाने ले जाना, यह सब बूआ के जिम्मे था. अम्मा मेरी तरफ से बेफिक्र हो कर दूसरे बच्चों में लग गई थीं.

बड़े भाई और आपा मुझे चिढ़ाते, ‘देखो, परवीन की बूआ क्या काली डरावनी सी है. अंधेरे में देखो तो डर जाओ. अरे, भैंस है पूरी, शैतान की खाला.’ मैं रोरो मरती, दोनों को काटने दौड़ती, चप्पल खींचखींच मारती. सलीमन बूआ यह सब सुन कर बस मुसकरा दिया करतीं और मुझ से दोगुना लाड़ करने लगतीं. मैं काफी बड़ी हो गई थी, लेकिन फिर भी उन की गोद में लदी रहती. मुहर्रम में मातम या 7 तारीख का कुदरती आलम देखने के लिए मैं इतनी दूर से खुरदपुरा और सय्यदवाड़ा महल्लों में उन की गोद में ही लद कर जाया करती. वह हांफ जातीं, थक कर चूर हो जातीं, मगर न मैं उन की गोद से उतरती न वे उतारतीं.

कोई औरत टोकती, ‘ऐ सलीमन बूआ, इस मोटी को लादे घूम रही हो, फेफड़ा फट जाएगा.’

तब वे बहुत बुरा मानतीं, ‘फटने दो मेरा फेफड़ा, तुम काहे को फिक्र करती हो, बड़ी आई मेरी बिटिया को नजर लगाने वाली.’ घर आ कर वे मेरी नजर उतारतीं तो मैं बड़े घमंड से गरदन अकड़ाअकड़ा कर बड़े भाई और आपा को देखती. तब वे दोनों जलभुन कर रह जाते. सचमुच मुझे अपनी काली डरावनी सी सलीमन बूआ से कितना प्यार था. बचपन छूटा, जवानी ने गले लगाया, फिर भी सलीमन बूआ मेरे उतने ही करीब रहीं. मैं अकसर उन के साथ ही सोती. तब मुझे कभी रात में नींद न आती तो वे मुझे लोरी सुनाने लगतीं, ‘चंदन का है पालना, रेशम की है डोर…जीवे मेरी रानी बिटिया…’

मैं हंस देती, ‘बूआ, अब तो लोरी न सुनाया करो, मैं बड़ी हो गई हूं.’

‘लाख बड़ी हो जाओ, मेरे लिए तो वही छटांक भर की हो.’

सलीमन बूआ ने 3 शादियां की थीं, 2 से कोई बच्चा नहीं हुआ तो तलाक हो गया कि वे बांझ हैं.

मगर तीसरी शादी हुई तो 9वें महीने ही बूआ की गोद भर गई. यह शादी 5 साल चली. लेकिन यहां भी दुखों ने बूआ का पीछा न छोड़ा. उन के मियां का दूसरी औरत से दिल लग गया. बूआ यह बरदाश्त न कर सकीं. झगड़ा बढ़ा तो मर्द ने तलाक दे दिया और घर से निकाल दिया. साथ ही उस ने बच्चा भी छीन लिया. हारी, दुत्कारी सलीमन बूआ घरघर का कामकाज कर के पेट की आग बुझा रही थीं कि चाचा ने उन को अम्मा के पास पहुंचा दिया और उन्होंने उन को मेरे लिए रख लिया. खाना, कपड़ा, तनख्वाह, पान, दवा, बिछौना, बस और क्या चाहिए था उन्हें. बूआ हमारे घर में जम कर पूरे 16 बरस रहीं. बच्चे बड़े हो गए. बड़े अधेड़ हो गए, बूआ हमारे घर का एक जरूरी पुरजा बन गई थीं.

मगर एक दिन 21 बरस का ऊंचा, तगड़ा, गहरा सांवला नौजवान हमारे दरवाजे पर आ कर खड़ा हुआ. उस ने पुकारा, ‘अम्मा.’

बूआ, जो मेरे लिए उबटन पीस रही थीं, आवाज को सुनते ही दरवाजे की तरफ देखने लगीं. उन का हाथ रुका तो चांदी की चूडि़यों का खनकना बंद हो गया.

‘कौन है?’ बड़े भाई ने डपट कर पूछा, क्योंकि वह नौजवान सीधा अंदर घुसा आ रहा था. नीली पैंट, सफेद कमीज, हाथ में शानदार बैग, चमकते जूते और कलाई में सोने की घड़ी देख सब ठिठक कर रह गए.

‘मैं हूं…कलीम…अम्मा को लेने आया हूं,’ उस ने कहा.

बूआ ने 21 बरस के उस नौजवान में अपने 5 साल के कल्लू को बिलबिलाता देख लिया था. वे चीख मार कर दौड़ीं, ‘कलुवा.’

‘अम्मा,’ और दोनों एकदूसरे से लिपट गए.

उफ, बेमुरव्वत, बेवफा सलीमन बूआ एकदम सब कुछ भूल गईं. अपनी जिंदगी के 16 बरस उन्होंने एक पल में झटक कर दूर फेंक दिए. उन्होंने तो उस बिखरे उबटन को भी न उठाया, जो चक्की के इर्दगिर्द पड़ा था और जिस को पीसते हुए वे लहकलहक कर गा रही थीं, ‘गंगाजमनी तेरी ससुराल से आया सेहरा… अब्बा मियां ने खड़े हो के बंधाया सेहरा…’

मैं सन्न बैठी रह गई, अचानक पत्थर की मूरत बन गई. बस, टुकुरटुकुर बूआ को देखती रह गई. यह बड़ी खुशी की बात थी कि उन का बेटा उन को लेने आया था. रोता, बिलखता कलुवा अब हंसतामुसकराता कलीम अहमद बन गया था. उस का बाप मर गया था और अपने पीछे ढेर सी दौलत छोड़ गया था, जिस का कलीम अकेला वारिस था क्योंकि उस की सौतेली मां बहुत बरस पहले ही उस के बाप को छोड़ कर भाग गई थी. बाप की बेड़ी कटी तो वह अपनी मां का पता लगातेलगाते हमारे यहां आ पहुंचा और 2 घंटे के बाद ही बूआ को ले कर चलता बना. 2 घंटों में बूआ सिर्फ एक बार मेरे पास आई थीं, वह भी जाते वक्त, ‘जा रही हूं बीबी…हमेशा सुखी रहो…’ मैं ने सोचा था कि बूआ बिलख उठेंगी, मुझे किसी नन्ही बच्ची की तरह गोद में भर लेंगी, कलीम से लड़ेंगी, कहेंगी, ‘वाह, मैं क्यों जाऊं अपनी बेटी को छोड़ कर…’

मगर नहीं, बूआ की तो बाछें खिल उठी थीं. कालाकलूटा चेहरा, जो मुझ को सलोना नजर आता था, खुशी के मारे और खून की तमतमाहट से और स्याह हो गया था. ‘जा रही हो बूआ?’ मेरी आवाज थरथरा गई.

‘हां, बेटी…मेरा कलुवा अब बहुत बड़ा आदमी बन गया है. कह रहा है, मेरी बड़ी बेइज्जती होती है, तुम क्यों दूसरों के दर पर पड़ी हो? ठीक भी है…ऐसे कब तक जिंदगी गुजारती. अच्छा, चलता हूं…’

यह कह कर उन्होंने मेरा सिर थपका और बगल में दबी हुई अपने कपड़ों की पोटली ठीक करने लगीं. फिर यह जा, वह जा. फिर उड़तीपड़ती खबरें मैं सुनती रही कि बूआ कलकत्ता में हैं, बड़े मजे कर रही हैं. कलीम की एक नहीं, कई दुकानें खुल गई हैं. कार भी खरीद ली है और मकान भी बन गया है. आज बरसों बाद मैं सलीमन बूआ को फिर देख रही थी. नजर थी कि उन पर से हटने का नाम नहीं ले रही थी. बच्चा मेरी गोद में रोतेरोते निढाल हो चुका था और अब सिसकियां भर रहा था. मैं सोचने लगी कि बूआ कितनी बेवफा और संगदिल निकलीं. कभी किस चाव से कहा करती थीं, ‘इतनी उम्र यहां गुजरी, अब जो रह गई है, वह भी रानी बिटिया के साथ इस के ससुराल में गुजर जाएगी. बिटिया को पाला है, इस के बच्चे भी पालूंगी, आंखों के तारे बना कर रखूंगी…’

लेकिन इस वक्त मैं भी सामने थी और मेरे दोनों बच्चे भी मेरे साथ थे. मेरा छोटा बच्चा प्यास के मारे रो रहा था. और सलीमन बूआ ने चंद मिनट पहले ही किस मजे से अपने खूबसूरत थर्मस से पानी पिया था. फिर बड़ी नफासत से रूमाल से मुंह पोंछा, थर्मस बंद कर के बराबर में रखी हुई टोकरी के अंदर रखते हुए भी उन्होंने मेरी या मेरे बच्चों की तरफ नहीं देखा.

मेरा जी चाह रहा था कि पुकारूं, ‘सलीमन बूआ’, मगर उन की ठंडीठंडी बेरुखी ने मेरे होंठ सीं दिए.

‘‘लो बहन, बच्चे को पानी पिला दो,’’ एक औरत भीड़ को चीर कर बड़ी मुश्किल से मेरे पास पहुंची तो मेरी जान में जान आ गई.

‘‘बहन, बहुतबहुत शुक्रिया,’’ मैं इतना ही कह पाई.

‘‘शुक्रिया कैसा बहनजी, बच्चा जान दिए दे रहा था…मैं ने नरेश के पिता से पानी मंगवाया, कोई साथ में नहीं है क्या?’’

‘‘नहीं, मेरे पति मुझे स्टेशन पर मिल जाएंगे. मैं अपने मायके से आ रही हूं.’’

यह बात मैं ने सिर्फ सलीमन बूआ को सुनाने के लिए जरा ऊंची आवाज में कही. मगर वे उसी तरह ठस बनी बैठी खिड़की से बाहर देखती रहीं. बच्चे ने जी भर पानी पिया और मेरी ओर देख कर हंसने लगा.

इतने में ड्राइवर आ गया और उस ने हौर्न बजाया. खुश हो कर बच्चे ने पूछा, ‘‘अम्मा, अब बस चलेगी?’’

‘‘हां, बेटा…अब चलने ही वाली है.’’

‘‘आहा…बस चल रही है,’’ उस ने अपने नन्हेमुन्ने हाथों से ताली बजाई. 2-3 आदमी उस की मासूम खुशी देख कर हंसने लगे. मैं ने बड़ी उम्मीद से सलीमन बूआ की तरफ देखा कि शायद वे भी देखें, शायद उन के चेहरे पर भी मुसकराहट उभरे और शायद वे अपनी बेमुरव्वती अब न निभा सकें. मगर बूआ का चेहरा सपाट था, चिकना स्याह पत्थर, जिस पर हलकीहलकी झुर्रियों का जाल सा बंधा हुआ था. मैं ने सोचा, शायद बराबर में बैठा हुआ 8-9 बरस का लड़का उन का पोता होगा. वे उस से बातें कर रही थीं. वही आवाज, वही अंदाज, वही होंठों का खास खिंचाव…

मेरा नन्हा बाबी ऊंघने लगा था. मैं ने उस को गोद में लिटा लिया और उस के नर्म बालों में उंगलियां फेरते हुए बिना इरादा ही गुनगुनाने लगी, ‘‘चंदन का है पालना, रेशम की डोर, जीवे मेरा राजा बेटा…’’

एकाएक एक अजीब, बहुत अजीब सी बात हुई. सलीमन बूआ के चेहरे पर एक चमक सी आई, उन की नजरें मेरे चेहरे से होती हुई बाबी पर जम गईं. मेरा दिल जोरजोर से धड़क उठा, लव कांप रहे थे. मैं ने सोचा, अब सलीमन बूआ उठीं और अब उन्होंने मेरी गोद से बाबी को ले कर कलेजे से लगाया और अपनी उसी मीठी, सुरीली आवाज में गुनगुनाने लगीं, ‘चंदन का है पालना…’

वह उठीं और बीच की सीट पर मेरी तरफ पीठ किए बैठे आदमी से कहने लगीं, ‘‘ओ बच्चे, तू इधर मेरी सीट पर बैठ जा, मैं उधर बैठ जाऊंगी.’’ वह जरा कसमसाया, मगर सोने की चूडि़यों की चमक और खनक के रोब में आ गया. वह उठ कर बूआ की जगह जा बैठा और बूआ अपना भारी जिस्म समेट कर उस की जगह पर धंस गईं. अब मेरी तरफ उन की पीठ थी.

सबकुछ बदल गया था, मगर उन का जूड़ा नहीं बदला था. वही पहाड़ी आलू जैसा उजड़ा, सूखा जूड़ा और उस के गिर्द लाल फीता. मेरे दिल में गुदगुदी सी उठी, मैं सब कुछ भूल गई. मैं तो बस वही शोख और खिलंदरी परवीन बन गई थी जो दिन में कम से कम 15 बार बूआ का जूड़ा हिला कर ढीला कर दिया करती थी. तब बूआ मुहब्बत भरी झिड़कियां दे कर अपनी नन्ही सी चोटी खोल कर लाल फीता दांतों में दबाए नए सिरे से जूड़ा बनाने लगती थीं. मैं ने हाथ बढ़ा कर उन का नन्हा सा जूड़ा छू लिया तो उन के बदन में बिजली सी दौड़ गई. वे मुड़ीं और घूर कर मेरी तरफ देखा. मैं मुसकराई, फिर हंस पड़ी, ‘‘बूआ…’’ मैं ने आगे कुछ कहना चाहा, लेकिन बड़ी सर्द आवाज में और बड़ी नागवारी से उन्होंने तेज सरगोशी की, ‘‘मुझे बूआ न पुकारना… इस तरह तो मेरी बेइज्जती होगी, कहना हो तो आंटीजी कहो.’’ सहसा मेरे होंठों पर आई हंसी एक खिंचाव की सूरत में जम कर रह गई.

मेरे पति किसी दूसरी औरत से बात करते है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैंने शादी के 4 साल बाद एक दिन अपने पति को एक औरत से फोन पर बात करते सुना. औरत उन की पहले की परिचित थी और इस के बारे में उन्होंने स्वयं मुझे बताया था कि इस ने उन्हें प्रपोज किया था पर उन्होंने उस का प्रपोजल ठुकरा दिया था. इस के बाद दोनों में कोई संपर्क नहीं रहा. पर अपने कानों से उस से बातें करते सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ. तब मैं ने उन से बात करना बंद कर दिया और उदास रहने लगी. फिर मैं ने भी एक युवक से जो विवाह से पहले मुझे चाहता था, से संपर्क स्थापित कर लिया. पति को जलाने के लिए मैं जानबूझ कर उन के सामने उस युवक से बातचीत करने लगी, जिस का असर यह हुआ कि पति ने अपनी परिचिता से बात करना बंद कर दिया और मुझ पर खूब प्यार लुटाने लगे. ज्यादा से ज्यादा समय घर पर बिताने लगे. तब परिणामस्वरूप मैं ने भी अपने मित्र को गुडबाय कह दिया. मैं पति से बहुत प्यार करती हूं और उन्हें खोना नहीं चाहती. रहरह कर मेरे मन में संदेह उपजता है कि कहीं पति दोबारा पुराना सिलसिला न शुरू कर दें. बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब-

पतिपत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास पर टिका होता है. आप के पति ने यदि आप के विश्वास को ठेस पहुंचाई थी, तो आप ने क्या किया? आप ने भी उन्हीं की तरह आचरण किया जो ठीक नहीं था. आप उन्हें वैसे भी समझा सकती थीं. पर जो हुआ सो हुआ. हालात सामान्य हो गए, यही खुशी की बात है. आप के पति आप का पूरा ध्यान रखते हैं, आप से प्यार करते हैं, तो आप भी उन्हें दिल खोल कर प्यार करें. इस से उन्हें कहीं और जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. सब से अहम बात यह कि आप अपने दिमाग में शक का कीड़ा न कुलबुलाने दें. पति पर भरोसा करें. सतर्कता बरतें पर जासूसी न करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कैसी वाग्दत्ता: परख से क्या दूर हो गई तनीषा

सामने वाली कोठी में रंगरोगन हो रहा था. चारों ओर जंगली बेलों से घिरी वह कोठी किसी खंडहर से कम नहीं लगती थी. सालों से उस में न जाने किस जमाने का जंग लगा बड़ा ताला लटक रहा था. वैसे इस कोठी को देख कर लगता था कि किसी जमाने में वह भी किसी नवयौवना की भांति असीम सौंदर्य की स्वामिनी रही होगी. उस की दीवारें न जाने कितने आंधीतूफानों और वर्षा को झेल कर कालीकाली सी हो रही थीं. खिड़कियों के पल्ले जर्जर हो चुके थे, मगर न जाने किन कीलकांटों से जड़े थे कि अभी तक अपनी जगह टिके हुए थे.

तनीषा की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. कौन आ रहा है यहां रहने के लिए. क्या किसी ने इसे खरीद लिया है. कौन हो सकता है इस विशाल कोठी को खरीदने वाला. जबकि आजकल तो लोग फ्लैट में रहना ज्यादा पसंद करते हैं. यह कौन असाधारण व्यक्ति है, जो इतनी बड़ी कोठी में रहने के लिए आ रहा है.

उस का मन जिज्ञासा की सारी हदें पार करने को मचल रहा था. तभी एक नौजवान उस के घर की ओर आता दिखा. सोचा उसी से कुछ पता किया जाए किंतु फिर उस ने अपनी उत्सुकता को शांत किया, ‘‘छोड़ो होगा कोई सिरफिरा या फिर कोई पुरातत्त्ववेत्ता जिसे इस भुतही कोठी को खरीदने का कोई लोभ खींच लाया होगा. वैसे यह कोई ऐतिहासिक कोठी भी तो नहीं है. लेकिन किसी की पसंद पर कोई अंकुश तो नहीं लगाया जा सकता है न.’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी,’’ आगंतुक उस के घर के गेट के सामने खड़ा था.

वह चौंक कर इधरउधर देखने लगी, ‘‘कौन हो सकता है? क्या यह मुझे ही बुला रहा है?’’ उस ने इधरउधर देखा, कोई भी नहीं दिखा.

‘‘हैलो आंटी, मैं आप से ही बात कर रहा हूं.’’ आगंतुक ने उस का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. आंटी उसे अजीब सा लगा. क्या मैं आंटी सी लगती हूं? उस का मन सवाल करने लगा. ठीक है कि मेरी उम्र 50 की हो रही है लेकिन लगती तो मैं 35 से ज्यादा की नहीं हूं. अभी भी शरीर उसी प्रकार कसा हुआ है. हां इक्कादुक्का बाल जरूर सफेद हो गए हैं. लेकिन आकल बालों का सफेद होना तो आम बात है.

वह थोड़ी अनमनी सी हो गई. तत्काल ही उसे गेट पर खड़े उस युवक का ध्यान आया. वह तुरंत उस की ओर बढ़ी. बड़ा ही सौम्य युवक था. बड़ी शिष्टता से उस युवक ने कहा, ‘‘जी मेरा नाम अनुज मित्तल है. क्या पानी मिलेगा? दरअसल घर में काम चल रहा है. पानी की लाइन शाम तक ही चालू हो सकेगी. लेकिन जरूरत तो अभी है न.’’

‘‘हां, हां आओ न अंदर. पानी जरूर मिलेगा,’’ उस ने अपने माली को आवाज दे कर कहा कि नल में पाइप लगा कर सामने वाले घर की ओर कर दो जितनी जरूरत हो पानी ले लें. फिर उस ने अनुज से कहा, ‘‘आओ बेटा, मैं चाय बनाती हूं. भूख भी लगी होगी, कुछ खाया तो होगा नहीं.’’

चायनाश्ता करते हुए उस ने अनुज व उस के परिवार के बारे में  पूरी जानकारी हासिल कर ली. अवनीश मित्तलजी की वह पुरानी खानदानी कोठी थी. बहुत पहले उन के पिता अभय मित्तल भारत छोड़ कर व्यवसाय के सिलसिले में नैरोबी में जा कर बस गए थे. अवनीश मित्तल भी उसी व्यापार में संलग्न थे. इसलिए बच्चों का पालन पोषण भी वहीं हुआ. अब वे अपनी बेटी की शादी भारत में अपने पुरखों की हवेली से ही करना चाहती थे इसलिए रंगरोगन कर के उस का हुलिया दुरुस्त किया जा रहा था.

‘‘विवाह कब है?’’ तनीषा ने पूछा.

‘‘जी अगले महीने की 25 तारीख को. अब ज्यादा समय भी नहीं बचा है. इसीलिए सब जल्दीजल्दी हो रहा है. मुझे ही इस की देखभाल करने के लिए भेजा गया है,’’ चायनाश्ता कर के वह चला गया. तनु भी तत्काल ही आईने के सामने जा कर खड़ी हो गई. उस ने मुझे आंटी क्यों कहा? सोचने लगी. क्या सच में मैं आंटी लगने लगी हूं. उस ने शीशे में खुद को निहारा. सिर में झिलमिलाते चांदी के तारों से भी उस की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी.

तनीषा अकेली ही रहती थी. आसपास के सभी लोग उसे जानते थे और यह भी जानते थे कि वह अविवाहित है. लोग इस विषय पर चर्चा भी करते थे. किंतु अप्रत्यक्ष रूप में ही, कारण भी कोई नहीं जानता था. किंतु तनीषा? वह तो अपने चिरकुंआरी रहने का राज बखूबी जानती थी. लेकिन दोष किस का था? नियति का, घर वालों का या स्वयं उस का? शायद उसी का दोष था. यदि उस की शादी हुई होती तो आज अनुज के बराबर उस का भी बेटा होता. उस ने एक गहरी सांस ली और बड़बड़ाने लगी, ‘कहां हो परख, क्या तुम्हें मेरी याद आती है या बिलकुल ही भूल गए हो?’ अतीत उसे भ्रमित करने लगा था…

‘‘तनु, आज क्लास के बाद मिलते हैं,’’  परख ने उसे रोकते हुए कहा. वह तनीषा को तनु ही पुकारता था.

‘‘ठीक है परख. लेकिन आज मेरा प्रैक्टिकल है वह भी लास्ट पीरियड में, उस के तुरंत बाद घर भी जाना है. जानते हो न जरा सी भी देर होने पर मां कितनी नाराज होती हैं.’’

‘‘परख को तनु की भावनाओं का बहुत अच्छी तरह भान था फिर भी उस ने मुसकराते हुए जाने के लिए अपने पैर आगे बढ़ाए.

‘‘ठीक है, पर मैं ने भी कह दिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कहते हुए परख चला गया. तनीषा मन ही मन मुसकरा रही थी परख की बेसब्री देख कर.  तनीषा मानव विज्ञान में एम.ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा थी. जबकि परख उस का सीनियर था. वह मानव विज्ञान में ही रिसर्च कर रहा था. अकसर पढ़ाई में उस की सहायता भी करता था. हालांकि तनु से एक वर्ष ही सीनियर था. किंतु जब कभी प्रोफैसर नहीं आते थे तब वही प्रैक्टिकल भी लेता था.

उस के समझाने का अपना एक अलग ही अंदाज था और उस के इसी लहजे पर तनु फिदा रहती थी. परख भी तनीषा के प्रति एक अव्यक्त सा आकर्षण महसूस करता था. उस का चंपई गोरा रंग, चमकती काली आंखें, लहराते काले बाल सभी तो उसे सम्मोहित करते थे. विभाग में सभी लोग इन दोनों के प्यार से वाकिफ  थे. कभीकभी छेड़ते भी थे. लेकिन कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. तनीषा के मातापिता को भी इस की भनक लग गई और उन्होंने तनु से इस की पूछताछ शुरू कर दी.

‘‘तनु सच क्या है, मुझे बता. ये परख कौन है? क्यों शुभ्रा उस का नाम ले कर तुझे चिढ़ा  रही थी?’’

‘‘कोई नहीं मां, मेरा सीनियर है. हां, नोट्स बनाने या प्रैक्टिकल में कभीकभी हैल्प कर देता है. बस और कुछ नहीं,’’ तनु ने मां कि उत्सुकता को शांत करने का प्रयास किया.

‘‘अगर ऐसा है तो ठीक, अन्यथा मुझे कुछ और सोचना पड़ेगा,’’ मां ने धमकाते हुए कहा.

‘मां, ऐसा क्यों कह रही हैं? क्या सच में परख मेरी जिंदगी में कुछ माने रखता है,’ उस ने अपने मन से पूछा. ‘कुछ, अरे बहुत माने रखता है. कभी चेहरा देखा है आईने में अपना. कैसे उसे देखते ही लाल हो जाता है. क्यों तू हर पल उस की प्रतीक्षा करती रहती है और परख, वह भी तुझे ही पूछता रहता है. यह प्यार नहीं तो और क्या है?’ उस का मन उसी से उस की चुगली कर रहा था.

लेकिन यह राज अब राज न रहा था. एक दिन जब वह लाइब्रेरी में थी, तभी परख की आवाज सुन कर वह चौंक गई.

‘‘अरे तुम यहां? कुछ खास बात करनी है क्या?’’ वह अचंभित सी थी.

‘‘हां, कुछ खास बात ही करनी है. मुझे बताओ मैं तुम्हारी जिंदगी में क्या स्थान रखता हूं? परख के स्वर में उतावलापन था.’’

‘‘ऐसे क्यों पूछ रहे हो? क्या अब ये भी बताना पड़ेगा कि मेरी जिंदगी में तुम्हारी क्या अहमियत है. तुम्हारे बिना तो मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है. परख है तो तनीषा है. क्या कभी पेड़ से लिपटी लता को भी यह बताना पड़ेगा कि उस के जीवन में उस पेड़ के क्या माने हैं,’’ तनीषा कहने को तो कह गई परंतु तुरंत ही उस ने अपनी जबान काट ली, ‘‘अरे, यह मैं ने क्या कह दिया. भला परख भी क्या सोचता होगा, कितनी बेशर्म लड़की है.’’

‘‘बोलोबोलो तनु चुप क्यों हो गईं. आखिर सच तुम्हारे मुंह से निकल ही गया. मुझे विश्वास तो था किंतु मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता था,’’ कहते हुए उस ने उसे अपनी बलिष्ठ भुजाओं में बांध कर उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर जड़ दी. तनीषा शर्म से दुहरी हुई जा रही थी. बिना कुछ कहे हौले से अपनेआप को छुड़ा कर वहां से भाग गई.

दोनों का प्यार परवान चढ़ता जा रहा था. लोग कहने लगे थे कि ये दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. उन के प्यार की गंभीरता को उन के मातापिता भी समझने लगे थे. उन्होंने दोनों का विवाह कर देना ही उचित समझा. परख भी अब तैयार था, क्योंकि उसे चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में लैक्चररशिप भी मिल गई थी. खुशी से तनीषा के पांव भी अब जमीन पर नहीं पड़ते थे. किंतु परख की दादी ने तनीषा और परख की जन्मपत्री मिलवाने की बात कही और जब कुंडली मिलवाई गई तो तनीषा घोर मांगलिक निकली.

उस के मातापिता को ये सब दकियानूसी बातें लगती थीं, इसलिए सच जानते हुए भी उन्होंने कभी कुंडली आदि के लिए कुछ सोचा भी नहीं. उन के हिसाब से ये सब खोखले अंधविश्वास हैं. पंडितों और पुरोहितों की कमाई का स्रोत हैं. लेकिन परख की दादी ने इस विवाह के लिए मना कर दिया, क्योंकि परख उन का इकलौता पोता था, उन के खानदान का अकेला वारिस. लेकिन परख आजकल का पढ़ालिखा युवक था. उस के दिल में तनीषा के सिवा किसी और के लिए कोई स्थान नहीं था. वह जिद पर अड़ गया कि यदि उस का प्यार उसे न मिला तो वह कभी विवाह नहीं करेगा.

जब तनीषा को ये सब बातें पता चलीं तो उस ने विवाह करने से ही मना कर दिया. उस ने परख से कहा, ‘‘यदि इस विवाह से तुम्हारी जान को खतरा है तो मैं तुम्हें आजाद करती हूं, क्योंकि मुझे तुम्हारे साथ अपना पूरा जीवन बिताना है न केवल तुम्हें पाना. यदि तुम्हें कुछ हो गया तो मैं तुम्हारे बिना क्या करूंगी?’’

परख को बड़ा ही आश्चर्य हुआ. उस ने कहा, ‘‘अब जब हम दोनों ही एकदूसरे को प्यार करते हैं तो फिर इन रूढि़वादी रिवाजों के डर से तुम अपने कदम पीछे क्यों कर रही हो? क्या तुम्हें तुम्हारी शिक्षा इन्हीं सब अंधविश्वासों को मानने के लिए ही मिली है? बी लौजिकल.’’

लेकिन तनीषा अपनी बात पर अडिग रही. उस ने परख को कोई उत्तर नहीं दिया. किंतु परख ने उस की बाएं हाथ की उंगली में अपने नाम की हीरों जड़ी अंगूठी पहना ही दी.

‘‘यह अंगूठी मेरी ओर से हमारी सगाई का प्रतीक है. मैं तुम्हारी हां की प्रतीक्षा करूंगा,’’ कह कर परख वहां से चला गया. तनीषा ने अब परख से मिलनाजुलना भी कम कर दिया था. डरती थी कि कहीं वह कमजोर न पड़ जाए और परख की बात मान ले. परख भी अब चुपचाप उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जब उस की तनु विवाह के लिए हां कर दे. इस बीच तनु को एक स्थानीय कालेज में लैक्चररशिप मिल गई और उस ने खुद को अध्यापन कार्य में ही व्यस्त कर लिया.

इधर परख भी एक फैलोशिप पा कर कनाडा चला गया था 2 वर्षों के लिए. फिर कुछ ऐसा इत्तेफाक हुआ कि उस के कनाडा प्रवास की अवधि बढ़ती ही चली गई. दोनों की फोन पर या व्हाट्सऐप पर ही बातें होती थीं. लेकिन धीरेधीरे वह भी कम होता चला गया और फिर एक दिन उस की सहेली शुभ्रा ने जोकि परख के मामा की ही बेटी थी, परख के ब्याह की खबर दे कर उसे अचंभित कर दिया.

उस ने यह भी बताया कि दादी मृत्यु शैय्या पर पड़ी थीं और परख का विवाह देखना चाहती थीं. उस ने दादी की इच्छा का सम्मान करते हुए अपनी रजामंदी दे दी थी. तनीषा ने अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को जबरन रोका और परख के नाम की अंगूठी को, जिसे पहन कर वह खुद को उस की वाग्दत्ता समझने लगी थी, अपने दूसरे हाथ से कस कर भींच लिया.

‘‘नहीं, मैं उस की हूं और वह मेरा है. भले ही उस का ब्याह किसी से हो जाए. मेरी उंगली में तो उसी के प्यार की निशानी है,’’ और इस प्रकार उस ने खुद को अकेले रहने को बाध्य कर लिया.

कुछ दिनों बाद उस के विवाह न करने के फैसले को देखते हुए उस के मातापिता ने उस के भाई का विवाह कर दिया. उन की मृत्यु के उपरांत वह भाईभाभी तथा उन के बच्चों के साथ रहने लगी. किंतु भाभी को अब उस का वहां रहना अखरने लगा था. जबतब वे उसे ताने सुना ही देती थीं, ‘‘भई अकेले की जिंदगी भी कोई जिंदगी होती है. अपने घरपरिवार की जरूरत तो सभी को होती है.’’

तनीषा भलीभांति समझती थी कि वे ऐसा क्यों कहती थीं. पिछली बार जब वह 2 माह टायफाइड से पीडि़त रही तब भाभी को उस की सेवा करनी पड़ी थी. इसीलिए वे ये सब बातें सुना देती थीं. लेकिन शायद वे भूल जाती थीं कि उन की 3-3 जचगी में उस ने किस प्रकार उन की सेवा की थी. वे सो सकें इसलिए वह रातरात भर जाग कर बच्चों को संभालती थी और सवेरे घर का सारा काम निबटा कर क्लासेज लेने के लिए कालेज भी जाती थी. घरखर्च के रूप में वह भाभी के हाथ पर अपने वेतन का एक हिस्सा रख ही देती थी. जबकि भाभी बनावटी आंसू बहाते हुए कहती थीं, ‘‘अरे मेरा हाथ कट कर गिर जाए, अपनी बेटी सरीखी ननद से घरखर्च में मदद लेते हुए. लेकिन क्या करें महंगाई भी तो बढ़ती ही जा रही है.’’

तनीषा इन सब बातों का मतलब समझती थी और जब भाई ने अपना अलग फ्लैट लिया तब उसे यह समझने में देर न लगी कि अब वे लोग उस के साथ और नहीं रहना चाहते. बिना यह सोचे की वह अकेली रह जाएगी, उस का भाई अपने परिवार को ले कर चला गया और वह अब एकदम अकेली ही रह गई थी.

डौरबैल की आवाज से वह वर्तमान में लौटी और दरवाजे पर जा कर देखा अनुज ही था. बहन के विवाह का निमंत्रण ले कर आया था. ‘नीरजा परिणय प्रतीक’ उस ने कार्ड को उलटपलट कर देखा. वर के पिता का नाम परख जालान पढ़ कर वह चिहुंक सी गई.

‘तो क्या प्रतीक मेरे परख का ही बेटा है? नहींनहीं यह कोई और परख भी तो हो सकता है,’ उस ने अपने को आश्वस्त किया.

‘आंटी, आप को जरूर आना है,’ कह कर अनुज चला गया.  न जाने क्यों आज वह आईने में खुद को गौर से निहार रही थी. क्या सच में उसे वार्धक्य की आहट सुनाई दे रही है. वह सोचने लगी, ‘‘हां, समय ने उस पर अपना भरपूर प्रहार जो किया था. काश कि बीता समय लौट पाता तो वह परख को अपनी बांहों में कस कर जकड़ लेती,’’  ‘आ जाओ परख, तुम्हारी तनु आज भी तुम्हारा इंतजार कर रही है,’ उस के मुंह से एक निश्वास निकल गया.  आज 25 तारीख है. शाम को नीरजा की बरात आने वाली है. उस ने अपनी कोई भी तैयारी नहीं की थी. जाऊं या न जाऊं, वह उलझन में पड़ी हुई थी. अभी तो उस के लिए कोई गिफ्ट भी नहीं खरीदा था. आखिर कुछ न कुछ देना तो होगा ही. खैर कैश ही दे देगी उस ने सोचा.

बैंडबाजे की आवाज से उस की तंद्रा भंग हो गई. लगता है बरात आ गई  है. वह जल्दी से तैयार होने लगी. बालों को फ्रैंच बुफे स्टाइल में कानों के ऊपर से उठा कर प्यारा सा जूड़ा बनाया. हलके नीले रंग की सिल्क की साड़ी पहनी, सफेद मोतियों का सैट पहना, उंगली में अंगूठी पहनने की जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि वहां तो परख का प्यार पहले से ही अपना अधिकार जमाए हुए था.

पूरी कोठी दुलहन की तरह सजी हुई थी. बरात दरवाजे पर आ गई थी. तभी उस की नजर दुल्हे के पिता पर पड़ी. परख ही था. अपने समधी के किसी मजाक पर हंसहंस कर दुहरा हुआ जा रहा था. तनीषा की नजरें अपने परख को ढूंढ़ रहीं थीं जो कहीं खो सा गया था. उस के सिर के खिचड़ी हो गए बाल, कलमों के पास थोड़ीथोड़ी सफेदी उस की बढ़ती उम्र का परिचय दे रहे थे. तनिक निकली हुई छोटी सी तोंद उस की सुख तथा समृद्धि का प्रतीक थी. नहीं, यह मेरा परख नहीं हो सकता है. सोचते हुए वह घर के अंदर जाने के लिए मुड़ी कि तभी उस ने देखा सामने से नीरजा दुलहन बनी हुई अपनी सहेलियों के साथ जयमाला ले कर आ रही थी. उस ने तत्काल ही एक निर्णय लिया और आगे बढ़ कर नीरजा की उंगली में परख के नाम की अंगूठी पहना दी. जब तक नीरजा कुछ समझ पाती वह वहां से वापस लौट पड़ी. अब उस का वहां कोई काम नहीं था.

‘‘जब भी परख अपनी बहू की उंगली में यह अंगूठी देखेगा तो क्या उसे मेरी याद आएगी?’’ सोचते हुए वह नींद के आगोश में चली गई, क्योंकि अब उसे परख के लौटने की कोई उम्मीद जो नहीं थी. उसे एक पुराना गीत याद आ रहा था ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…’ और अब उस का मन शांत हो गया था.

पराया लहू- भाग 3: मायके आकर क्यों खुश नहीं थी वर्षा

लव अकेला पड़ा था. वर्षा का मन फिर से भीगने लगा. वह उस के नजदीक बैठ कर प्यार से उसे खिलाने लगी. फिर उठ कर चली तो लव ने उस की साड़ी का पल्लू थाम लिया और बोला, ‘‘कुछ देर और बैठो, मां.’’

वर्षा रुक कर उस के सिर पर हाथ फेरती रही. लव ने सुख का आभास कर के आंखें बंद कर लीं, पर भरत की पुकार पर वर्षा को नीचे आना पड़ा.

अगले दिन सुबह नाश्ते से निबट कर उस ने लव की चारपाई छत पर डाल दी और जाले साफ कर के कमरा रगड़रगड़ कर धोया, अगरबत्तियां जला कर बदबू दूर की फिर उस के मैले वस्त्रों को धो कर चमकाया. तत्पश्चात वह लव की मालिश करने बैठ गई.

मां कहती रहीं, ‘‘मैं कर दूंगी, तू फालतू की मेहनत क्यों कर रही है. इस कमरे में अकेला लव थोड़े ही सोता है, मैं भी तो सोती हूं.’’

मगर वर्षा के हाथ नहीं रुके, वह लव के सारे काम खुद ही निबटाती रही.

दोपहर ढलते ही अचानक ड्राइवर वर्षा व भरत को लेने आ पहुंचा तो सब को आश्चर्य हुआ. मां ने टोक दिया, ‘‘अभी 2 दिन कहां पूरे हुए हैं?’’

ड्राइवर बोला, ‘‘मुझे साहब ने दोनों को तुरंत लाने को कहा है. साहब भरत को बहुत प्यार करते हैं. भरत के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. इस के अलावा सब लोगों को एक शादी पर भी जाना है.’’

बेटी पराए घर की अमानत ठहरी सो मां भी कहां रोक सकती थीं. वह वर्षा की विदाई की तैयारी करने लगीं, पर सुधीर का न आना सब को खल रहा था.

पिताजी आर्द्र स्वर में कह उठे, ‘‘हम चाहे कितने भी गरीब सही पर दामाद का स्वागत करने में तो समर्थ हैं ही. विवाह के बाद दामाद एक बार भी हमारे घर नहीं आए.’’

‘‘मां, तुम लोग भी तो दिल्ली आया करो, आनाजाना तो दोनों तरफ से होता है.’’

‘‘ठीक है, हम भी आएंगे,’’ मां आंचल से आंखें पोंछती हुई बोलीं.

वर्षा ने भरत की नजर बचा कर 500 रुपए का एक नोट भाभी को थमा दिया और बोली, ‘‘भाभी, लव का इलाज अच्छी तरह से कराती रहना.’’

भाभी ने लपक कर नोट को अपने ब्लाउज में खोंस लिया और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘लव की चिंता मत करो, दीदी, वह हमारा भी तो बेटा है.’’

आखिर में वर्षा ऊपर जा कर लव से मिल कर भारी मन से ससुराल के लिए विदा हुई. कार आंखों से ओझल होने तक घर के सभी लोग सड़क पर खड़े रहे.

वर्षा रास्ते भर सोचती रही कि उस ने साल भर तक मेरठ न आ कर लव के साथ सचमुच बहुत अन्याय किया है. अपनी जिम्मेदारियां दूसरों के गले मढ़ने से क्या लाभ, लव की देखभाल उसे खुद ही करनी चाहिए.

वह इस बारे में सुधीर से बात करने के लिए अपना मन तैयार करने लगी. सुधीर को न तो दौलत का अभाव है न वह कंजूस है. वह थोड़ी नानुकुर के बाद उस की बात अवश्य मान लेगा व लव को अपना लेगा. फिर तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी.

सुधीर घर में बैठा उन दोनों की प्रतीक्षा कर रहा था. भरत कार से उतर कर पिता की तरफ दौड़ पड़ा. सुधीर ने उसे गोद में उठा लिया, ‘‘मेरा राजा बेटा आ गया.’’

‘‘हां, देखो पिताजी, मैं क्या लाया हूं?’’ भरत, ननिहाल में मिले खिलौने दिखाने लगा. मांजी ने चाय बना कर सब को प्याले थमा दिए. सब पीने बैठ गए.

मांजी व सुधीर भरत से मेरठ की बातें पूछने लगे, ‘‘तुम्हारे नानानानी, मामामामी सब कुशल तो हैं न?’’

भरत उत्साहित हो कर छोटीछोटी बातें भी बताने लगा, फिर एकाएक कह उठा, ‘‘वहां बहुत गंदा एक लड़का भी देखा. उस के दांत भी बहुत गंदे थे. उस ने ब्रश भी नहीं किया था.’’

‘‘बहू, यह किस के बारे में कह रहा है?’’ मांजी पूछ बैठीं तो वर्षा को लव के बारे में सबकुछ बताना पड़ा.

सुधीर सबकुछ सुनता रहा, पर उस ने एक शब्द भी लव के बारे में नहीं कहा. वर्षा को उस की यह चुप्पी नागवार गुजरी. वह उस से कुछ कहना ही चाहती थी कि मांजी ने टोक दिया, ‘‘बहू, बातें फिर कभी हो जाएंगी, इस वक्त शादी में चलने की तैयारी करो, नहीं तो देरी हो जाएगी.’’

मांजी के मायके में किसी रिश्तेदार की शादी थी. वर्षा ने भरत को तैयार किया, फिर खुद भी तैयार होने लगी. रास्ते भर खामोश रही पर वर्षा भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी, वह सुधीर से बात करने के पक्के मनसूबे बना चुकी थी.

आखिर एक दिन वर्षा को मौका मिल ही गया. मांजी भरत को ले कर पड़ोस में गई हुई थीं. वर्षा ने बात शुरू कर दी, ‘‘लव को भैयाभाभी के आश्रित बना कर अधिक दिनों तक वहां नहीं रखा जा सकता.’’

‘‘फिर वह कहां जाएगा?’’

‘‘उसे हम अपने साथ ही रख लें, तभी उचित रहेगा.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ कहते हुए सुधीर के चेहरे पर कठोरता छा गई, ‘‘मैं ने तुम से शादी ही इस शर्त पर की थी कि…’’

‘‘मेरी बात समझने की कोशिश करो. जिस प्रकार भरत मेरा बेटा है उसी प्रकार लव भी तुम्हारा बेटा है. फिर उसे साथ रखने में कैसी आपत्ति,’’ वर्षा ने उस की बात काटते हुए कहा.

‘‘मैं तुम्हारे लव को अपना बेटा कैसे मान सकता हूं? सपोज करो, मैं ने उसे बेटा मान भी लिया तो भी क्या मैं उसे घर में रखने की इजाजत दे दूंगा? क्या मेरा भरत, लव को अपना सकेगा? मां अपना सकेंगी?’’

यह सुन कर वर्षा चुप बैठी सोचती रही.

सुधीर उसे समझाने के अंदाज में फिर बोला, ‘‘अपनी भावुकता पर नियंत्रण रखो वर्षा, लव को भूल जाने में ही तुम्हारी भलाई है. उसे उस के हाल पर ही छोड़ दो.’’

‘‘मैं मां हूं, सुधीर,’’ वर्षा सिसक पड़ी, ‘‘अपनी संतान को तिलतिल कर मरते हुए कैसे देख सकती हूं? लव अब पहले से आधा भी नहीं रह गया. वह न ढंग से खा पाता है न पढ़ पाता है. भैयाभाभी के साथ और अधिक रह लिया तो उस का भविष्य खराब हो जाएगा.’’

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, वर्षा. किसी अन्य को घर में आश्रय दे कर मैं अपने भरत के रास्ते में कांटे नहीं बो सकता,’’ सुधीर ने दोटूक जवाब दे दिया.

वर्षा को चुप्पी लगानी पड़ गई, साथ ही उस के हृदय में बनी सुधीर की छवि भी बिगड़ती चली गई कि कितना महान समझा था उस ने सुधीर को, लेकिन वह तो मात्र पत्थर निकला.

इंतकाम: भाग 2- सुजय ने संजय को रास्ते से कैसे हटाया

मन की शांति की तलाश में सुजय अपने एक दोस्त के कहने पर बाबा सेवकानंद के आश्रम पहुंचा. 2-3 घंटे बाबा का प्रवचन सुनने के बाद उस ने तय किया कि यहां हर सप्ताह आया करेगा. उस ने यही किया. हर सप्ताह वह बाबा के दर्शन के लिए पहुंचने लगा. बाबा की तेज नजर सुजय पर पड़ी तो उन्हें सम झ आ गया कि एक मोटा मुरगा फंसा है. मुरगे को हलाल करने के लिए थोड़ी तैयारी की जरूरत होती है. बाबा ने अपना पासा फेंकने की सोची और सुजय को पास बुलाया.

सुजय ने अपनी समस्या बताई. उस के समाधान के लिए बाबा ने उसे एक अनुष्ठान कराने की सलाह दी. यह अनुष्ठान आश्रम में होना तय हुआ और इस की तैयारी के लिए सुजय को क्व20 हजार की रकम लाने को कहा गया. सुजय ने रुपए दिए तो काम शुरू हुआ. हवन की सामग्री के साथ कुछ और चीजें मंगाई गईं. अनुष्ठान के दौरान भी उस से काफी रुपए खर्च कराए गए और फिर दानदक्षिणा के नाम पर भी बाबा ने काफी रुपए ऐंठे.

तय दिन हवन और अनुष्ठान संपन्न हुआ. बाबा ने बताया था कि अनुष्ठान वाली रात उसे सफेद कपड़े पहन कर एक कमरे में आश्रम में ही ठहरना होगा.

सुजय ने ऐसा ही किया. आधी रात को उस के कमरे में बाबा की 2 दासियों ने प्रवेश किया. उन्होंने अपनेअपने तरीके से सुजय को लुभाने और हमबिस्तर होने की कोशिश की तो सुजय का दिमाग चकरा गया. वह सम झ नहीं पा रहा था कि आश्रम की औरतें उस से इस तरह का व्यवहार करेंगी. वह रात में ही अपना सामान और बची इज्जत ले कर दफा हो गया.

इस घटना के कुछ दिन बाद एक बार जब सुजय औफिशियल मीटिंग के लिए शहर से बाहर गया हुआ था तो नेहा संजय के पास पहुंच गई. संजय को तो ऐसे ही मौकों का इंतजार रहता था. उस ने नेहा को बांहों में भर लिया.

तब नेहा शिकायती लहजे में बोली, ‘‘ऐसा कब तक चलेगा संजय. तुम मु झे प्यार करते हो तो अपना बनाते क्यों नहीं? इस तरह छिपछिप कर कब तक मिलते रहेंगे?’’

‘‘जब तक तुम्हारे बेवकूफ पति को पता न चले,’’ संजय ने कहा.

‘‘वह बेवकूफ नहीं और उसे सब पता चल चुका है.’’

‘‘तो ठीक है उस ने कुछ कहा तो नहीं न,’’ संजय ने पूछा.

‘‘कहा नहीं मगर मु झे लगता है जैसे वह बच्चे को ले कर इस शक में है कि वह उस का है या नहीं,’’ नेहा कुछ सोचती हुई बोली.

‘‘वह पति है तो बच्चा तो उसी का होगा न,’’ कह कर संजय बेशर्मी से हंसने लगा.

नेहा खुद को उस की गिरफ्त से आजाद करती हुई बोली, ‘‘दिल के हाथों मजबूर नहीं होती न, तो कभी तेरे पास नहीं आती. तु झे पता है वह बच्चा तेरा है मगर तू जिम्मेदारियां लेना ही नहीं चाहता. कहीं तू मेरे जज्बातों के साथ खेल तो नहीं रहा?’’

‘‘नहीं माई डियर. सैटल होते ही तु झ से शादी करूंगा और अपने बच्चे को अपना नाम भी दूंगा. अब तो खुश है,’’ कह कर संजय ने नेहा की आंखों में  झांका तो वह फिर से उस के सीने से लग गई.

‘‘इसी आस में तो सबकुछ सह रही हूं. तू बस एक बार कह दे मैं सब कुछ छोड़ कर हमेशा के लिए तेरे पास आ जाऊंगी,’’ नेहा ने भावुक होते हुए कहा.

इसी तरह समय गुजरता रहा. नेहा के पेट में एक बार फिर संजय का बच्चा था. नेहा फिर से सुजय के ज्यादा करीब आने लगी ताकि बच्चे को ले कर उसे कोई शक न हो. इधर सुजय अपने दिल के हाथों मजबूर था. वह नेहा का सामीप्य पा कर उस से नाराज नहीं रह पाता था. दूसरी बार नेहा को बेटी हुई. फूल सी बच्ची को गोद में ले कर सुजय संजय का चैप्टर भूल गया और अपने परिवार के कंपलीट होने की खुशी मनाने लगा.

नेहा के बच्चे अब थोड़े बड़े हो गए थे. दोनों स्कूल जाने लगे थे. बच्चों को स्कूल और पति को औफिस भेज कर नेहा संजय से बातें करने में मशगूल हो जाती.

पीछे से जब सुजय फोन करता तो उसे नेहा का फोन व्यस्त मिलता. सुजय जब इस बात को ले कर टोकता तो नेहा बहाने बना देती कि वह मायके वालों से बातें कर रही थी. कई बार नेहा मायके जाने की बात कह कर संजय के साथ कहीं भी निकल जाती.

एक दिन नेहा ने संडे को ऐसा ही बहाना बनाया और चली गई. इधर सुजय ने अपना शक दूर करने के लिए नेहा के मायके फोन लगाया तो उसे पता चला कि नेहा वहां नहीं है. सुजय सम झ गया कि नेहा उस से अभी भी चीट कर रही है. वह फिर से परेशान रहने लगा.

इधर एक दिन जब नेहा सजधज कर संजय से मिलने पहुंची तो देखा कि संजय के घर से कोई और खूबसूरत लड़की निकल रही है.

यह देख कर नेहा संजय पर भड़क उठी, ‘‘यह क्या था संजय. अब मैं सम झी कि तुम मु झे आजकल इग्नोर क्यों करने लगे हो. तुम मेरे पीछे किसी और के साथ…’’

‘‘तो इस में कौन सी बड़ी बात हो गई नेहा. तुम भी तो किसी और मर्द के साथ रहती हो. मैं ने तो कभी कुछ नहीं कहा,’’ संजय बोला.

‘‘मैं मजबूरी में रहती हूं क्योंकि तुम ने मु झ से अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘अब तक क्या नेहा. तुम भी पता नहीं किस मुगालते में जीती हो. 2 बच्चे की शादीशुदा महिला से मैं एक अविवाहित, हैंडसम, वैल सैटल लड़का शादी क्यों करेगा. उस पर तुम्हारी जाति अलग होने का पंगा भी है.’’

‘‘मगर तुम मु झ से प्यार करते हो न. शादी करने के लिए क्या यही एक वजह काफी नहीं?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘नहीं माई डियर बिलकुल नहीं और फिर प्यार खत्म कहां हो रहा है. तुम जब चाहो आ सकती हो मेरा प्यार पाने के लिए.’’

‘‘डिसगस्टिंग संजय. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम इतना गिर सकते हो. मौम ने मु झे पहले ही आगाह किया था मगर मैं तुम्हारे प्यार में पागल बनी रही,’’ नेहा अपने किए पर पछता रही थी.

‘‘तो फिर एक बात और सुन लो डार्लिंग, मैं अगले महीने हिना से शादी करने वाला हूं,’’ संजय ने उसे हकीकत से अवगत कराया तो वह तड़प उठी.

‘‘शादी के वादे मु झ से और शादी किसी और से. तुम इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हो संजय?’’ नेहा की आंखों में आंसू आ गए.

संजय हंसता हुआ बोला, ‘‘क्या यार तुम इतने सालों में यह नहीं सम झ सकी कि मेरी तुम से शादी करने में रुचि नहीं है. अब तो मैच्योर बनो और इस मामले को अच्छे से हैंडल करो.’’

‘‘बिलकुल अब मैं सबकुछ अच्छे से हैंडल करूंगी. तुम्हारे लिए मैं ने अपने पति से चीट किया, तुम्हारी हर गलती इग्नोर की, तुम्हारे धोखे को महसूस ही नहीं कर सकी. मगर अब सब क्लीयर हो गया,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा खोला और जोर से बंद करती हुई बाहर निकल गई.

घर आ कर नेहा काफी देर तक रोती रही. संजय की तरफ से उस का मन पूरी तरह से खट्टा हो चुका था. उसे महसूस हो रहा था जैसे संजय ने उस के प्यार को मजाक बना दिया हो. उस के साथ संजय ने विश्वासघात किया था. उसे धोखा दिया था.

2-3 घंटे वह इस धोखे को याद कर सुबकती रही. पुरानी यादें जेहन में तीखे तीर बन कर चुभ रही थीं. उस ने संजय का फोटो निकाला जिसे उस ने कालेज के समय से संभल कर रखा था. फिर उस के छोटेछोटे टुकड़े कर डस्टबिन में फेंक दिए. अपने मोबाइल से संजय की सभी तसवीरें डिलीट कर दीं. इतने में भी सुकून नहीं मिला तो उस का नंबर भी ब्लौक कर दिया.

फूलगोभी के डंठल की अमेजिंग चटनी

बचपन में काफी लोगों ने अपने घर की बुजुर्ग महिलाओं को खाने के बचे हुए टुकड़ों का रचनात्मक तरीके से उपयोग करते हुए देखा होगा. उन्हीं पुरानी यादों से प्रेरित होकर, आमतौर पर फेंक दी जाने वाली सब्जियों के छिलकों का उपयोग करके “सस्टेनेबिलिटी चटनी” बनाने के विचार को हम आपके साथ साझा कर रहे हैं.

कम्पास ग्रुप इंडिया में पाककला और सीपीयू के उपाध्यक्ष अर्ज्यो बनर्जी के मुताबिक यह फूलगोभी के डंठल की अमेजिंग चटनी न केवल भोजन में वैरायटी और स्वाद को बढ़ावा दे सकती है बल्कि भोजन की बर्बादी को कम करने के लिए भी प्रेरित करती है. यही नहीं इसमें प्रयोग किये गये अदरक, लहसुन, हल्दी और विभिन्न मसाले नेचुरल इम्यूनिटी बूस्टर का काम भी करते हैं.

असल में यह रेसिपी खाना पकाने में रचनात्मकता और भोजन के पोषण मूल्य को बढ़ाते हुए रसोई के कचरे को पुन: उपयोग करने के अभिनव तरीके खोजने के महत्व पर जोर देती है. अधिकांश लोग फूलगोभी के डंठल को बेकार समझ कर फेंक देते हैं। अर्ज्यो बनर्जी के अनुसार फूलगोभी के डंठल की चटनी बनाना आसान है और इसके लिए केवल कुछ सामग्री की आवश्यकता होती है. आइए जानते हैं तरीका-

कैसे बनाएं फूलगोभी के डंठल की चटनी की रेसिपी?

फूलगोभी के डंठल की चटनी बनाने के लिए आपको आवश्यकता होगी:

1. 250 ग्राम फूलगोभी के डंठल नरम होने तक उबालें

 2. 240 ग्राम चने उबले हुए

 3. 40 ग्राम तेल ऑलिव एक्स्ट्रा वर्जिन

 4. 40 ग्राम नींबू का रस

 5. 20 ग्राम ताहिनी

 6. 20 ग्राम लहसुन का पेस्ट

 7. 06 ग्राम नमक

 8. 02 ग्राम लाल शिमला मिर्च पाउडर (गार्निश के लिए)

 9. 04 ग्राम जीरा पाउडर भुना हुआ और कुचला हुआ

फूलगोभी के डंठल की चटनी बनाने का तरीका

  • चने को रात भर भिगो दें,
  • फूलगोभी के डंठल को अच्छी तरह साफ करके धो लीजिये.
  • चने और डंठल को नरम होने तक उबालें.
  • फूड प्रोसेसर में उबली हुई फूलगोभी के डंठल का बारीक पेस्ट बना लें
  • पेस्ट को एक कटोरे में लें, उसमें जैतून का तेल, नींबू का रस, लहसुन का पेस्ट, ताहिनी और नमक, भुना जीरा पाउडर डालें, अच्छी तरह मिलाएं और ठंडा करें.
  • इसे सर्विंग या डिपिंग बाउल में रखें। जैतून के तेल और लाल शिमला मिर्च से गार्निश करें.
  • गर्म टोस्ट के साथ परोसें.
  • अपने पसंदीदा व्यंजन के साथ फूलगोभी के डंठल की चटनी का आनंद लें.
  • यह चटनी न केवल भोजन में विविधता और स्वाद बढ़ाती है बल्कि भोजन की बर्बादी को कम करने में भी भूमिका निभाती है.

एक्सपर्ट के अनुसार यह विधि रसोई के वेस्ट को दोबारा उपयोग करने और खाना पकाने में पोषण मूल्य को बढ़ावा देने के नए तरीकों के महत्व को बढ़ाता है.

5 ब्‍यूटी टिप्स जो आपको बनाएंगे और भी खूबसूरत

महीने के आखिरी दिन आते आते पॉकेट में पैसे थोड़े कम हो जाते हैं. ऐसे में आप खुद की खूबसूरती को निखारने के लिये क्‍या कर सकती हैं?

आज हम आपको बताएंगे कि आप बिना पैसे खर्च किये प्राकृतिक चीजों से अपनी देखभाल कर सकती हैं. आइये जानते हैं कैसे…

1. गरम-ठंडे पानी से नहाएं

अपने दिन की शुरुआत गरम और ठंडे पानी से नहा कर कीजिये. इस विधि से आपका ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ेगा, आपके अंदर एनर्जी भरेगी, निगेटिविटी खतम होगी और शरीर शुद्ध होगा. सबसे पहले गरम पानी से नहाएं और फिर दो मिनट के बाद ठंडे पानी को शरीर पर डालें. ऐसा कई बार करें और इसी तरह से नहाएं.

2. स्‍क्रब करने के लिये बेकिंग सोडा

बेकिंग सोडा से चेहरा एकदम साफ और मुलायम हो जाता है. अगर इसमें थोड़ा नींबू का रस और पानी भी मिला दिया जाए तो यह और भी असरदार बन जाता है. इस पेस्‍ट को चेहरे पर 2 मिनट के लिये स्‍क्रब करें और फिर चेहरे को धो लें.

3. मॉइस्‍चराजर की जगह तेल का प्रयोग

स्‍किन को स्‍क्रब करने के बाद उसको मॉइस्‍चराइज कीजिये. इसके लिये आपको तेल लगाना होगा. अगर आपकी स्‍किन ड्राई है तो आपके लिये जोजोबा ऑइल और जितनी स्‍किन तैलिय और पिंपल से भरी है उनके लिये बादाम का तेल अच्‍छा रहेगा. ये तेल त्‍वचा में अच्‍छी प्रकार से समा जाते हैं और चिपचिप भी नहीं करते.

4. हेयर कंडीशनिंग के लिये शहद

अगर आपके बाल रूखे और डैमेज हैं, तो 2 चम्‍मच शहद में 1 चम्‍मच जैतून या नारियल तेल और 1 चम्‍मच छाछ मिक्‍स कर के गैस पर रख कर थोड़ा गरम कर लीजिये. फिर बालों को धो कर उस पर इसे लगाइये और शावर कैप पहन लीजिये. 10 मिनट के बाद बालों को दुबारा धो लीजिये. ऐसा हर हफ्ते करें.

5. मैनीक्‍योर और पैडीक्‍योर के लिये नींबू

पैडीक्‍योर करने के लिये एक टब में कुछ बूंद बेबी शैंपू, 1 चम्‍मच रॉक सॉल्‍ट और एक नींबू निचोड़ें. नींबू में विटामिन सी होता है जो काली पड़ गई त्‍वचा को निखारता है. टब में गरम पानी डालें और उसमें अपने पैरों को 15 मिनट के लिये डुबोएं. फिर प्‍यूमिक स्‍टोन से पैरों को रगड़ें और फिर उसे पोछ लें. उसके बाद पैरों पर मॉइस्‍चराइजर लगा लें.

मैनीक्‍योर करने के लिये अपने हाथों को एक बडे़ कटोरे में गरम पानी और नींबू का रस मिला कर 15 मिनट तक डुबोए रखें. फिर उन्‍हें बाहर निकाल कर नाखूनों को काटें और पोछ कर उस पर मॉइस्‍चराइजर लगाएं.

काले घेरों के लिये खीरा या ठंडा टी बैग रखें अगर आंखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं, तो आप आलू की स्‍लाइस या खीरे की स्‍लाइस या फिर ठंडे टी बैग्‍स भी आंखों पर रख सकती हैं. इससे क्रीम जैसा ही फायदा होता है.

मुरझाया मन: उसे प्यार में क्यों मिला धोखा

‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’

‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को समझो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’

‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की  करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’

‘‘मैं ने कब कहा कि हमेशा अच्छी बातें करो, पर हां मन ही मन यह मनोकामना जरूर की,’’ मां ने ढेर सारा प्यार उडे़लते हुए कहा. वह अब मां को खूब भावुक करता रहा और तब तक जब तक कि मां की किटी पार्टी का समय नहीं हो गया.

जब मां ने खुद ही गुडबाय कहा, तब जा कर उस ने चैन पाया. बस कुछ घंटों में वह भवाली पहुंचने वाला था. अभी बस रामपुर पहुंची थी, किला दूर से दिखाई दे रहा था. कितनी चहलपहल और रौनक थी रामपुर में. उस ने बाहर  झांक कर देखा. बहुत ही मजेदार नजारे थे.

एक किशोरी नीबू पानी बेच रही थी. उस ने भी खरीदा और गटागट पी गया. बस फिर चल पड़ी थी. इस बार वह अपनी मरजी से बस में ही आया था. मां ने 50,000 रुपए उस के खाते में डाले थे कि टैक्सी कर लेना. पर वह टैक्सी से नहीं गया. दरअसल, वह सफर के पलपल का भरपूर मजा लेना चाहता था.

नीबू पानी पी कर उस को मीठी सी  झपकी आ गई और कहा कि रामपुर के बाद पंतनगर, टांडा का घनघोर जंगल, रुद्रपुर, बिलासपुर, काठगोदाम कब पार किया, उस को खबर ही नहीं लगी.

‘भवालीभवाली’ का शोर सुन कर उस की आंख खुली. वह पहली बार किसी पहाड़ी सफर पर गया था. जब उस ने सफेद बर्फ से संवरे ऊंचेऊंचे पहाड़ देखे, तो अपलक  निहारता ही रह गया. वह मन भर कर इस खूबसूरती को पी लेना चाहता था.

उधर एक लड़की रेडीमेड नाश्ता बेच रही थी. उस पहाड़ी नजर ने उस के इश्किया अंदाज को भांप लिया और   उस चाय बेचने वाले नौजवान से उस को संदेश भिजवाया और वह नौजवान मस्ती में  जा कर फुसफुसाया उस के कानों में.

‘‘पलकें भी नहीं  झपका रहे हो, ये कैसे देख रहे हो मु झे.’’

‘‘हां, क्या…?’’ वह चौंक ही पड़ा, पर उस से पहले नौजवान ने उस के ठंड से कंपकंपाते हुए हाथों में गरमागरम चाय थमा दी.

उस ने चाय सुड़कते हुए उस नौजवान की आवाज को फिर याद किया और अभीअभी कहे गए शब्द दोहराए, तो पहाड़ी लड़की के सुर को उस के दिल ने भी सुन और सम झ लिया. पहले तो उस को कुछ संकोच सा हुआ और मन ही मन उस ने सोचा कि अभी इस जमीन पर पैर रखे हुए 10 मिनट ही हुए हैं, इतनी जल्दी भी ठीक नहीं.

मगर अगले ही सैकंड उस को याद आया कि बस 10 दिन हैं उस के पास, अब अगर वह हर बात और हर मौका टालता ही जाएगा, तो कुछ तजरबा होगा कैसै? इसलिए वह एक संतुलन बनाता हुआ  नजरें हटाए बगैर ही बुदबुदाया.

बचपन में मैं ने अनुभव से एक बात सीखी थी कि फोटो लेते समय शरीर के किसी अंग को हरकत नहीं करनी है, सांस भी रोक कर रखना है.

‘‘अब मेरी जो आंखें हैं, वे अपनी सांस रोक कर मेरे दिल में बना रही हैं तुम्हारा स्कैच,’’ उस की यह बात वहां उसी नौजवान ने जस की तस पहुंचा दी.

उस के आसपास वाले एक स्थानीय लड़के ने भी यह सब सुना और उस को मंदमंद मुसकराता देख कर पहाड़ी लड़की शर्म से लाल हो गई. इस रूहानी इश्क को महसूस कर वहां की बर्फ भी  जरा सी पिघल गई और पास बह रही पहाड़ी नदी के पानी में मिल गई.

पर, 10 मिनट बाद ही उन दोनों की गपशप शुरू हो गई, वह लड़की टूरिस्ट गाइड थी. 4 घंटे के 300 रुपए वह मेहनताना लेती थी.

‘वाह, क्या सचमुच,’ उस ने मन ही मन सोचा. मगर आगे सचमुच बहुत सुविधा हो गई. उसी लड़की ने वाजिब दामों पर एक गैस्ट हाउस दिलवा दिया और अगले दिन नैनीताल पूरा घुमा लाई.

नैनीताल में एक साधारण भोजनालय में खाना और चायनाश्ता दोनों ने साथसाथ ही किया. 30 रुपए बस का किराया और दिनभर खानाचाय चना जोर गरम सब मिला कर 500 रुपए भी पूरे खर्च नहीं हुए थे.

कमाल हो गया. यह लड़की तो उस के लिए चमत्कार थी. दिनभर में वह सम झ गया था कि लड़की बहुत सम झदार भी थी. वे लोग शाम को वापस भवाली लौट आए थे. कितनी ऊर्जा थी उस में कमाल. वह मन ही मन उस के लिए कहता रहा. एकाध बार उस के चेहरे पर कुछ अजीब सी उदासी देख कर वह बोली थी, ‘‘यह लो अनारदाना… मुंह में रखो और सेहत बनाओ.’’

उस ने अनारदाना चखा. सचमुच बहुत ही जायकेदार था, वह कहने लगी, ‘‘सुनो, जो निराश हो गई है, वह अगर तुम्हारा मन है, तो किसी भी  उपाय  से कोई फर्क नहीं पड़ेगा पहाड़समंदर घूमने से, संगीतकलासाहित्य से भी बस थोड़ा फर्क पड़ेगा, और वह भी कुछ देर के लिए निराशा की बेचैनी तो बस उदासी तोड़ कर जीने से दूर होती है, अपने मूड के खिलाफ बगावत करने से दूर होती है, हर माहौल आंखों से आंखें मिला कर खड़े होने से दूर होती है.

‘‘शान से, असली इनसान की तरह जीने के मजे लूटने हैं, तो जागरूक हो जाओ. अपने भीतर जितना भी जीवन है, औरों को बांटते चलो, फिर देखो, कितना अनदेखा असर होता है. और अपनी बात पूरी कर के उस ने 6 घंटे के पूरे पैसे उस को थमा दिए.

वह लड़की उस से उम्र में कुछ  बड़ी थी. आगे रानीखेत, अलमोड़ा वगैरह की बस यात्रा उस ने अच्छी तरह सम झा दी थी. उस ने कुछ भी ठीक से नहीं सुना. यही सोच कर कि वह लड़की भी साथ तो चलेगी ही. मगर वह हर जगह अकेला ही गया. उस के बाद वह 4 दिन उस को  बिलकुल नजर नहीं आई. अब कुल  4 दिन और बचे थे, उस ने पिथौरागढ़ घूमने का कार्यक्रम बनाया और लड़की साथ हो ली. उस को उस लड़की में कुछ खास नजर आया. सब से कमाल की बात तो यह थी कि मां के दिए हुए रुपए काफी बच गए थे या यों कहें कि उस में से बहुत सी रकम वैसे की वैसी ही पड़ी थी.

उस ने चीड़ और देवदार की सूखी लकड़ी से बनी कुछ कलाकृतियां खरीद लीं और वहां पर शाल की फैक्टरी से मां, उन की कुछ सहेलियां और अपने दोस्तों के लिए शाल, मफलर, टोपियां वगैरह पसंद कर खरीद लीं. 2 दिन बाद वे दोनों पिथौरागढ़ से वापस आ गए.

यात्रा बहुत रोमांचक रही और सुकूनदायक भी. वह उस से कुछ कहना चाहता था, पर वह हमेशा ही उलझी हुई मिलती थी.

मन की बात कहने का मौका अपने बेकरार दिल के सामने बेकार कर देने का समय नहीं था. अब एक दिन और बचा था. उस ने आसपास के इलाके ज्योलीकोट और 2 गांव घूमने का निश्चय किया. वह यह सब नक्शे पर देख ही रहा था कि वह लड़की उस के पास भागीभागी चली आई. हांफते हुए वह बोली, ‘‘जरा सी ऐक्टिंग कर दो न.’’

‘‘क्या… पर, क्यों…?’’ वह  चौंक पड़ा.

‘‘अरे, सुनो. तुम कह रहे थे न, तुम बहुत अच्छी आवाज भी निकाल लेते हो.’’

‘‘यह क्या कह रही हो? मैं ऐक्टिंग और अभी… यह सब क्या है?’’

‘‘ओह, तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं. तुम बस मस्तमगन रहते हो और फालतू कुछ सोचने में समय खराब नहीं करते. चलोचलो, शुरू हो जाओ न.

‘‘हांहां ठीक है, अभी करता हूं.’’

‘‘सुनो, अभी यहां एक लफंगा आएगा. उस को कह दो न कि तुम फिल्म डायरैक्टर हो और अब मैं तुम्हारी अगली हीरोइन.’’

‘‘पर, मैं तो अभी बस 20 साल का  हूं?’’ कह कर वह टालने लगा.

‘‘हांहां, उस से कुछ नहीं होता, बस इतना कर दो. यह पुराना आशिक है मेरा, मगर तंग कर रहा है. इसे जरा बता दो कि तुम मुझे कितना चाहते हो.

‘‘फिर, मुझे तसल्ली से सगाई करनी है. वह देखो, वह बस चालक, वह उधर देखो, वही जो हम को पिथौरागढ़ अपनी बस में ले कर गया और वापस भी लाया.’’

वह बोलती जा रही थी और उस का दिमाग चकरघिन्नी बना जा रहा था.

वह अचानक गहरे सदमे में आ गया. पर उस की बात मान ली और उम्दा ऐक्टिंग की. लड़की ने दूर से सारा तमाशा देखा और उंगली का इशारा भी करती रही.

वह उसी समय बैग ले कर दिल्ली की तरफ जाती हुई एक बस में चढ़ा और पलट कर भी नहीं देखा. उस को लगा कि उस के दिल में गहरे घाव हो गए हैं और उस ने खुद बहुत सारा नमक अपने किसी घाव में लगा दिया है.

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