महिलाओं के लिए ड्राइविंग सीखना क्यों जरूरी

ऐसा समय भी था जब केवल पुरुष ही कार या बाइक चलाते थे. महिलाएं कार या बाइक नहीं चलाती थीं, लेकिन बदलते समय के साथसाथ अब केवल पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी ड्राइविंग सीट पर हैं. आंखें पुरुषों से अधिक सेफ ड्राइविंग करती हैं.

आज की महिलाएं शिक्षा के साथसाथ ड्राइविंग को भी महत्त्व देने लगी हैं क्योंकि यह उन की स्टाइल स्टेटमैंट बन चुकी है. आज महिलाएं आत्मनिर्भर हैं, उन्हें कहीं जानेआने, रिश्तेदारों, दोस्तों से मिलने या शौक से भी ड्राइविंग करती हैं. इतना ही नहीं अब महिला ड्राइवर्स टैक्सी और बसें चला कर पैसे भी कमा रही हैं. महिला ड्राइवर के साथ कहीं आनेजाने में बुजुर्ग या लड़कियां खुद को सुरक्षित भी मानती हैं क्योंकि दिन हो या रात किसी इमरजैंसी में महिला ड्राइवर के साथ किसी को भी कही जाने में परहेज नहीं होता.

मुंबई के एक पौश एरिया में रहने वाली सुधा के पति की आधी रात को अचानक तबीयत बिगड़ गई. उस ने औनलाइन कार खोजने की कोशिश की, लेकिन कहीं कार नहीं मिली, फिर वह खुद उन्हें ड्राइव कर हौस्पिटल ले गई जहां उन्हें तुरंत इलाज मिला. इस के अलावा कभी बच्चों की स्कूल बस मिस होने या अन्य किसी इमरजैंसी में हमेशा ही महिलाएं कार, स्कूटी ड्राइव कर उस काम को समय से कर सकती हैं.

महिलाएं करती हैं सेफ ड्राइविंग

एक रिपोर्ट के अनुसार भीषण हादसों का शिकार होने वाले ड्राइवरों में महिलाएं सिर्फ 3त्न ही हैं. सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में 56,334 (97.3त्न) पुरुष व 1551 (2.7त्न) महिला चालकों की हादसों में मौत हुई, जबकि देश के कुल 20.58 करोड़ ड्राइवरों में से 1.39 करोड़ महिलाएं (6.76त्न) हैं. शोध यह भी कहता है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं स्पीड लिमिट का उल्लंघन 12त्न कम करती हैं.

इस प्रकार महिला ड्राइवर को हर लिहाज से सुरक्षित माना जाता है. यही वजह है कि दिल्ली की सरकार और कई कार ड्राइविंग संस्थाएं ऐसी हैं, जो महिलाओं को मुफ्त ड्राइविंग सीखने में मदद करती हैं.

ड्राइविंग के फायदे

द्य यह महिला को अधिक स्वतंत्र बनाती है, उन्हें कहीं जाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहता. वे अपनी सुविधानुसार कभी भी कहीं भी किसी काम को कर सकती हैं.

द्य ड्राइविंग महिला के कौन्फिडैंस को बढ़ाती है क्योंकि ड्राइविंग करते वक्त गाड़ी का पूरा कंट्रोल व्यक्ति के हाथ में होता है, जिस में स्पीड, ब्रेक, क्लच आदि होता है. शुरू में कई बार ड्राइविंग करना कठिन लगता है, लेकिन समय के साथ इस में परिपक्वता आ जाती है.

द्य ड्राइविंग सीखने से समय की बचत अधिक होती है क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जानेआने में समय अधिक लगता है. इस के अलावा अगर कोई ड्राइव कर जा रहा हो, तो उस के समय के अनुसार चलना पड़ता है, जो कई बार सूट

नहीं करता. ड्राइविंग जानने पर महिला अपने समय के अनुसार आते हुए कई काम निबटा सकती है.

बरतें सावधानी

इस बारे में मुंबई ट्रैफिक पुलिस इंस्पैक्टर मुकुंद वैंकटेश यादव कहते हैं कि मुंबई जैसे भीड़भाड़ वाले शहर में महिलाओं के लिए ड्राइविंग करना आसान नहीं होता. उन्हें घंटों जाम में फंसना पड़ता है. ऐसे में ड्राइविंग आनी चाहिए ताकि किसी इमरजैंसी में वे परिवार या आसपास के लोगों के काम आ सकें. कई बार वे गाड़ी चला कर रोजगार भी कर सकती हैं, लेकिन कार या बाइक ड्राइविंग करते हुए उन्हें इन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए:

  •  ड्राइविंग सीट पर बैठने के बाद सब से पहले सीट बैल्ट पहनें और फिर अपने कंफर्ट के अनुसार सीट की हाइट एडजस्ट करें. इस से गाड़ी चलाने में आसानी होती है. मोबाइल फोन को साइलैंट मोड पर रखें.
  •  एबीसी की सही जानकारी यानी ए का अर्थ है ऐक्सलेरेटर, ब्रेक, सी क्लच से है. इन सभी 3 चीजों का मानदंड प्रशिक्षण लेते वक्त सैट कर लें ताकि सड़क पर गाड़ी चलते वक्त किसी प्रकार की समस्या न हो.
  •  ट्रैफिक नियमों को पूरी तरह सम?ा लें, किस जगह कार रोकनी है, कार किस लेन में चलानी है, कार को ट्रैफिक जंप या अन्य प्रकार के चालान से कैसे बचाना है आदि. कार चलाते समय साथ लाइसैंस जरूर रखें वरना काफी जुरमाना हो सकता है. बाइक चलाते हुए हैलमेट अवश्य पहनें.
  •  जिस कार या बाइक को चलाना है उस की सभी खूबियों को अच्छी तरह जान लें. मसलन, कार में एसी, पावर विंडो, कंट्रोल्स, वायरलैस चार्जिंग, स्मार्टफोन कनैक्टिविटी के साथ ही लाइट्स और साउंड सिस्टम से जुड़े बटन्स होते हैं, जिन की सही जानकारी जरूरी है.
  •  यंग जैनरेशन को ओवरस्पीड या ओवरटेक पसंद आता है, जिसे वे ड्राइविंग फन समझते हैं, लेकिन ऐसा कोई फन उन्हें हादसे के करीब ले जा सकता है. अत: जितना संभव हो स्पीड लिमिट और आगे की गाड़ी से दूरी का खयाल रखें.
  •  कार चलाने वाली महिला सिगनल इंडिकेटर्स का ध्यान रखें, जिस में लैफ्टराइट इंडिकेटर्स, हजार्ड लाइट्स, स्टौप, हैडलैंप और टेललैंप, डीमडीपर या अन्य कुछ जरूरी बातों को अच्छी तरह सम?ा लेना चाहिए. इस से दिन या रात के समय ड्राइविंग में किसी प्रकार की समस्या नहीं होगी.
  •  आप अगर गाड़ी चला रही हैं, तो ड्राइविंग के समय दोनों हाथ स्टीयरिंग व्हील पर रखें, एक हाथ की स्टीयरिंग छोड़ कर इधरउधर की बातें न करें. मैनुअल कार हो या औटोमैटिक सभी में आप का फोकस गाड़ी की स्टीयरिंग व्हील पर होना चाहिए.
  •  गाड़ी चलाते समय महिला की नजरें बराबर लैफ्ट और राइट व्यू मिरर के साथ ही कैबिन के अंदर रियर व्यू मिरर पर भी बनी रहनी चाहिए ताकि बाएंदाएं और पीछे से आ रही कारों या अन्य गाडि़यों के साथ ही सभी जरूरी चीजें देख सकें और कार आदि से टकराने से टक्कर से बचाया जा सके.

ड्राइविंग करते वक्त खुद पर विश्वास रखें कि आप एक अच्छी चालक हैं. खुद पर विश्वास और धैर्य रखें. किसी प्रकार की हड़बड़ी न करें. ऐसा करने पर बिना किसी परेशानी के कार या बाइक को अच्छी तरह चला सकती हैं.

 

ब्रेकफास्ट में बनाएं ये हैल्दी रेसिपीज

दीवाली के त्यौहार में हमारा खानपान बहुत अव्यवस्थित हो जाता है. मिठाइयों और तले भुने खाद्य पदार्थ खाकर हम अपनी कैलोरी तो बढ़ा ही लेते हैं साथ ही हमारा पाचनतंत्र भी अपनी क्षमता से अधिक कार्य करके परेशान हो जाता है अब त्यौहार बीत गया है और हमारा रूटीन भी अब अपने ढर्रे पर आ चुका है तो अब जरूरत है कुछ हैल्दी खाने की. नाश्ता हमेशा ही हर घर की बहुत बड़ी समस्या होती है इसी बात को ध्यान में रखकर हम आपको कुछ हैल्दी नाश्ता बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर में उपलब्ध सामग्री से ही बहुत आसानी से बना सकते हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं.

 1. लौकीओट्स उत्तपम

कितने लोगों के लिए   4

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप  वेज

सामग्री

प्लेन ओट्स   1 कप

किसी लौकी  1/2 कप

ताजा दही   1/2 कप

नीबू का रस  1/2 टीस्पून

बारीक कटी शिमला मिर्च  1 टेबलस्पून

किसी गाजर   1 टेबलस्पून

बारीक कटा प्याज   1 टेबलस्पून

बारीक कटी हरी मिर्च    2

बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून

नमक  1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर  1/4 टीस्पून

चाट मसाला  1/2 टीस्पून

कश्मीरी लाल मिर्च   1/4 टीस्पून

तेल अथवा घी  2 टीस्पून

विधि

ओट्स को मिक्सी में बारीक पीस लें. अब इसमें किसी लौकी और दही मिलाकर 20 मिनट के लिए ढककर रख दें. 20 मिनट के बाद इसमें कश्मीरी लाल मिर्च और चाट मसाले को छोड़कर अन्य सभी मसाले, कटी सब्जियां और नीबू का रस अच्छी तरह मिलाएं. तैयार बेटर से चिकनाई लगे तवे पर उत्तपम बनाएं. दोनों तरफ से सुनहरा हो जाने पर चाट मसाला और कश्मीरी लाल मिर्च बुरककर टोमेटो सॉस या चटनी के साथ सर्व करें.

 2. खील स्टफ्ड बॉल्स

कितने लोगों के लिए  6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप  वेज

सामग्री

दीवाली की बची खील   2 कप

सूजी  1/2 कप

चावल का आटा  1/2 कप

दही  1 कप

पानी 1/4 कप

किसा अदरक  1 इंच

हल्दी पाउडर  1/4 टीस्पून

किसा  पनीर  1 कप

बारीक  कटा प्याज  1 टेबलस्पून

बारीक कटी हरी मिर्च   2

बारीक कटा हरा धनिया  1 टेबलस्पून

नमक  स्वादानुसार

लाल मिर्च पाउडर  1/4 टीस्पून

जीरा 1/4 टीस्पून

राई के दाने   1 टीस्पून

तिल्ली  1 टीस्पून

तेल  सेंकने के लिए

विधि

दही में खीलें, सूजी और चावल के आटे को भिगोकर 30 मिनट के लिए ढककर रख दें. पनीर में प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया, लाल मिर्च मिलाकर छोटी छोटी बॉल्स बनाकर अलग रख लें. 30 मिनट बाद भीगी खीलों में हल्दी पाउडर, 1 टीस्पून नमक और पानी डालकर अच्छी तरह चलाएं. अब अप्पे पैन में दो बूंद तेल डालकर थोड़ी सी तिल्ली और राई के दाने डालकर तैयार मिश्रण में से 1/2 चम्मच मिश्रण डालकर पनीर की बाल रखें और ऊपर से पुनः तैयार खीलों का बेटर इस तरह डालें कि वह  पनीर की बाल को अच्छी तरह कवर कर दें. इसी प्रकार अप्पे के प्रत्येक सांचे में मिश्रण को  डालकर ढक दें और धीमी आंच पर ढककर 20 से 25 मिनट तक पकाएं. जब बॉल्स दोनों तरफ से सुनहरी हो जाएं तो बटर पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस या हरे धनिये की चटनी के साथ सर्व करें.

उपहार: डिंपल ने पुष्पाजी को क्या दिया?

कैलेंडर देख कर विशाल चौंक उठा. बोला, ‘‘अरे, मुझे तो याद ही नहीं था कि कल 20 फरवरी है. कल मां का जन्मदिन है. कल हम लोग अपनी मां का बर्थडे मनाएंगे,’’ पल भर में ही उस ने शोर मचा दिया.

पुष्पाजी झेंप गईं कि क्या वे बच्ची हैं, जो उन का जन्मदिन मनाया जाए. फिर इस से पहले कभी जन्मदिन मनाया भी तो नहीं था, जो वे खुश होतीं.

अगली सुबह भी और दिनों की तरह ही थी. कुमार साहब सुबह की सैर के लिए निकल गए. पुष्पाजी आंगन में आ कर महरी और दूध वाले के इंतजार में टहलने लगीं. तभी विशाल की पत्नी डिंपल ने पुकारा, ‘‘मां, चाय.’’

आज के भौतिकवादी युग में सुबहसवेरे कमरे में बहू चाय दे जाए, इस से बड़ा सुख और कौन सा होगा? पुष्पाजी, बहू का मुसकराता चेहरा निहारती रह गईं. सुबह इतमीनान से आंगन में बैठ कर चाय पीना उन का एकमात्र शौक था. पहले स्वयं बनानी पड़ती थी, लेकिन जब से डिंपल आई है, बनीबनाई चाय मिल जाती है. अपने पति विशाल के माध्यम से उस ने पुष्पाजी की पसंदनापसंद की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी.

बड़ी बहू अंजू सौफ्टवेयर इंजीनियर है. सुबह कपिल और अंजू दोनों एकसाथ दफ्तर के लिए निकलते हैं, इसलिए दोनों के लिए सुविधाएं जुटाना पुष्पाजी अपना कर्तव्य समझती थीं.

छोटे बेटे विशाल ने एम.बी.ए. कर लिया तो पुष्पाजी को पूरी उम्मीद थी कि उस ने भी कपिल की तरह अपने साथ पढ़ने वाली कोई लड़की पसंद कर ली होगी. इस जमाने का यही तो प्रचलन है. एकसाथ पढ़ने या काम करने वाले युवकयुवतियां प्रेमविवाह कर के अपने मातापिता को ‘मैच’ ढूंढ़ने की जिम्मेदारी से खुद ही मुक्त कर देते हैं.

लेकिन जब विशाल ने उन्हें वधू ढूंढ़ लाने के लिए कहा तो वे दंग रह गई थीं. कैसे कर पाएंगी यह सब? एक जमाना था जब मित्रगण या सगेसंबंधी मध्यस्थ की भूमिका निभा कर रिश्ता तय करवा देते थे. योग्य लड़का और प्रतिष्ठित घराना देख कर रिश्तों की लाइन लग जाती थी. अब तो कोई बीच में पड़ना ही नहीं चाहता. समाचारपत्र या इंटरनैट पर फोटो के साथ बायोडाटा डाल दिया जाता है. आजकल के बच्चों की विचारधारा भी तो पुरानी पीढ़ी की सोच से सर्वथा भिन्न है. कपिल, अंजू को देख कर पुष्पाजी मन ही मन खुश रहतीं कि दोनों की सोच तो आपस में मिलती ही है, उन्हें भी पूरापूरा मानसम्मान मिलता है.

अखबार में विज्ञापन के साथसाथ इंटरनैट पर भी विशाल का बायोडाटा डाल दिया था. कई प्रस्ताव आए. पुष्पाजी की नजर एक बायोडाटा को पढ़ते हुए उस पर ठहर गई. लड़की का जन्मस्थान उन्हें जानापहचाना सा लगा. शैक्षणिक योग्यता बी.ए. थी. कालेज का नाम बालिका विद्यालय, बिलासपुर देख कर वे चौंक उठी थीं. कई यादें जुड़ी हुई थीं उन की इस कालेज से. वे स्वयं भी तो इसी कालेज की छात्रा रह चुकी थीं.

उसी कालेज में जब वे सितारवादन का पुरस्कार पा रही थीं तब समारोह के बाद कुमारजी ने उन का हाथ मांगा, तो उन के मातापिता ने तुरंत हामी भर दी थी. स्वयं पुष्पाजी भी बेहद खुश थीं. ऐसे संगीतप्रेमी और कला पारखी कुमार साहब के साथ उन की संगीत कला परवान चढ़ेगी, इसी विश्वास के साथ उन्होंने अपनी ससुराल की चौखट पर कदम रखा था.

हर क्षेत्र में अव्वल रहने वाली पुष्पाजी के लिए घरगृहस्थी की बागडोर संभालना सहज नहीं था. जब शादी के 4-5 माह बाद उन्होंने अपना सितार और तबला घर से मंगवाया था तो कुमारजी के पापा देखते ही फट पड़े थे, ‘‘यह तुम्हारे नाचनेगाने की उम्र है क्या?’’

उन की निगाहें चुभ सी रही थीं. भय से पुष्पाजी का शरीर कांपने लगा था. लेकिन मामला ऐसा था कि वे अपनी बात रखने से खुद को रोक न सकी थीं, ‘‘पापा, आप की बातें सही हैं, लेकिन यह भी सच है कि संगीत मेरी पहली और आखिरी ख्वाहिश है.’’

‘‘देखो बहू, इस खानदान की परंपरा और प्रतिष्ठा के समक्ष व्यक्तिगत रुचियों और इच्छाओं का कोई महत्त्व नहीं है. तुम्हें स्वयं को बदलना ही होगा,’’ कह कर पापा चले गए थे.

पुष्पाजी घंटों बैठी रही थीं. सूझ नहीं रहा था कि क्या करें, क्या नहीं. शायद कुमारजी कुछ मदद करें, मन में जब यह खयाल आया तो कुछ तसल्ली हुई थी. उस दिन वे काफी देर से घर लौटे थे.

तनिक रूठी हुई भावमुद्रा में पुष्पाजी ने कहा, ‘‘जानते हैं, आज क्या हुआ?’’

‘‘हूं, पापा बता रहे थे.’’

‘‘तो उन्हें समझाइए न.’’

‘‘पुष्पा, यहां कहां सितार बजाओगी. बाबूजी न जाने क्या कहेंगे. जब कभी मेरा तबादला इस शहर से होगा, तब मैं तुम्हें सितार खरीद दूंगा. तब खूब बजाना,’’ कह कुमारजी तेजी से कमरे से बाहर निकल गए.

आखिर उन का तबादला भोपाल हो ही गया. कुमारजी को मनचाहा कार्य मिल गया. जब घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया और एक पटरी पर चलने लगा तो एक दिन पुष्पाजी ने दबी आवाज में सितार की बात छेड़ी.

कुमारजी हंस दिए, ‘‘अब तो तुम्हारे घर दूसरा ही सितार आने वाला है. पहले उसेपालोपोसो. उस का संगीत सुनो.’’

कपिल गोद में आया तो पुष्पाजी उस के संगीत में लीन हो गईं. जब वह स्कूल जाने लगा तब फिर सितार की याद आई उन्हें. पति से कहने की सोच ही रही थीं कि फिर उलटियां होने लगीं. विशाल के गोद में आ जाने के बाद तो वे और व्यस्त हो गईं. 2-2 बच्चों का काम. अवकाश के क्षण तो कभी मिलते ही नहीं थे. विशाल भी जब स्कूल जाने लगा, तो थोड़ी राहत मिली.

एक दिन रेडियो पर सितारवादन चल रहा था. पुष्पाजी तन्मय हो कर सुन रही थीं. पति चाय पी रहे थे. बोले, ‘‘अच्छा लगता है न सितारवादन?’’

‘‘हां.’’

‘‘ऐसा बजा सकती हो?’’

‘‘ऐसा कैसे बजा सकूंगी? अभ्यास ही नहीं है. अब तो थोड़ी फुरसत मिलने लगी है. सितार ला दोगे तो अभ्यास शुरू कर दूंगी. पिछला सीखा हुआ फिर से याद आ जाएगा.’’

‘‘अभी फालतू पैसे बरबाद नहीं करेंगे. मकान बनवाना है न.’’

मकान बनवाने में वर्षों लग गए. तब तक बच्चे भी सयाने हो गए. उन्हें पढ़ानेलिखाने में अच्छा समय बीत जाता था.

डिंपल का बायोडाटा और फोटो सामने आ गया तो उस ने फिर से उन्हें अपने अतीत की याद दिला दी थी.

लड़की की मां का नाम मीरा जानापहचाना सा था. डिंपल से मिलते ही उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी थी. सभी आश्चर्य में पड़ गए. विशाल जैसे होनहार एम.बी.ए. के लिए डिंपल जैसी मात्र बी.ए. पास लड़की?

पुष्पाजी ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ. डिंपल अच्छी बहू सिद्ध हुई. घर का कामकाज निबटा कर वह उन के साथ बैठ कर कविता पाठ करती, साहित्य और संगीत से जुड़ी बारीकियों पर विचारविमर्श करती तो पुष्पाजी को अपने कालेज के दिन याद आ जाते.

आज भी पुष्पाजी रोज की तरह अपने काम में लग गईं. सभी तैयार हो कर अपनेअपने काम पर चले गए. किसी ने भी उन के जन्मदिन के विषय में कोई प्रसंग नहीं छेड़ा. पुष्पाजी के मन में आशंका जागी कि कहीं ये लोग उन का जन्मदिन मनाने की बात भूल तो नहीं गए? हो सकता है, सब ने यह बात हंसीमजाक में की हो और अब भूल गए हों. तभी तो किसी ने चर्चा तक नहीं की.

शाम ढलने को थी. डिंपल पास ही खड़ी थी, हाथ बंटाने के लिए. दहीबड़े, मटरपनीर, गाजर का हलवा और पूरीकचौड़ी बनाए गए. दाल छौंकने भर का काम उस ने पुष्पाजी पर छोड़ दिया था. पूरी तैयारी हो गई. हाथ धो कर थोड़ा निश्चिंत हुईं कि तभी कपिल और अंजू कमरे में मुसकराते हुए दाखिल हुए. पुष्पाजी ने अपने हाथ से पकाए स्वादिष्ठ व्यंजन डोंगे में पलटे, तो डिंपल ने मेज पोंछ दी. तभी शोर मचाता हुआ विशाल कमरे में घुसा. हाथ में बड़ा सा केक का डब्बा था. आते ही उस ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया और मां के गले में बांहें डाल कर बोला, ‘‘मां, जन्मदिन मुबारक.’’

पुष्पाजी का मन हर्ष से भर उठा कि इस का मतलब विशाल को याद था.

मेज पर केक सजा था. साथ में मोमबत्तियां भी जल रही थीं, कपिल और अंजू के हाथों में खूबसूरत गिफ्ट पैक थे. यही नहीं, एक फूलों का बुके भी था. पुष्पाजी अनमनी सी आ कर सब के बीच बैठ गईं. उन की पोती कृति ने कूदतेफांदते सारे पैकेट खोल डाले थे.

‘‘यह देखिए मां, मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं. यह नौनस्टिक कुकवेयर सैट है. इस में कम घीतेल में कुछ भी पका सकती हैं आप.’’

अंजू ने दूसरा पैकेट खोला, फिर बेहद विनम्र स्वर में बोली, ‘‘और यह है जूसर अटैचमैंट. मिक्सी तो हमारे पास है ही. इस अटैचमैंट से आप को बेहद सुविधा हो जाएगी.’’

कुमारजी बोले, ‘‘क्या बात है पुष्पा, बेटेबहू ने इतने महंगे उपहार दिए, तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’’

पति की बात सुन कर पुष्पाजी की आंखें नम हो गईं. ये उपहार एक गृहिणी के लिए हो सकते हैं, मां के लिए हो सकते हैं, पर पुष्पाजी के लिए नहीं हो सकते. आंसुओं को मुश्किल से रोक कर वे वहीं बैठी रहीं. मन की गहराइयों में स्तब्धता छाती जा रही थी. सामने रखे उपहार उन्हें अपने नहीं लग रहे थे. मन में आया कि चीख कर कहें कि अपने उपहार वापस ले जाओ. नहीं चाहिए मुझे ये सब.

रात होतेहोते पुष्पाजी को अपना सिर भारी लगने लगा. हलकाहलका सिरदर्द भी महसूस होने लगा था. कुमारजी रात का खाना खाने के बाद बाहर टहलने चले गए. बच्चे अपनेअपने कमरे में टीवी देख रहे थे. आसमान में धुंधला सा चांद निकल आया था. उस की रोशनी पुष्पाजी को हौले से स्पर्श कर गई. वे उठ कर अपने कमरे में आ कर आरामकुरसी पर बैठ गईं. आंखें बंद कर के अपनेआप को एकाग्र करने का प्रयत्न कर रही थीं, तभी किसी ने माथे पर हलके से स्पर्श किया और मीठे स्वर में पुकारा, ‘‘मां.’’

चौंक कर पुष्पाजी ने आंखें खोलीं तो सामने डिंपल को खड़ा पाया.

‘‘यहां अकेली क्यों बैठी हैं?’’

‘‘बस यों ही,’’ धीमे से पुष्पाजी ने उत्तर दिया.

डिंपल थोड़ा संकोच से बोली, ‘‘मैं आप के लिए कुछ लाई हूं मां. सभी ने आप को इतने सुंदरसुंदर उपहार दिए. आप मां हैं सब की, परंतु यह उपहार मैं मां के लिए नहीं, पुष्पाजी के लिए लाई हूं, जो कभी प्रसिद्ध सितारवादक रह चुकी हैं.’’

वे कुछ बोलीं नहीं. हैरान सी डिंपल का चेहरा निहारती रह गईं.

डिंपल ने साहस बटोर कर पूछा, ‘‘मां, पसंद आया मेरा यह छोटा सा उपहार?’’

चिहुंक उठी थीं पुष्पाजी. उन के इस धीरगंभीर, अंतर्मुखी रूप को देख कर कोई यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि कभी वे सितार भी बजाया करती थीं, सुंदर कविताएं और कहानियां लिखा करती थीं. उन की योग्यता का मानदंड तो रसोई में खाना पकाने, घरगृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने तक ही सीमित रह गया था. फिर डिंपल को इस विषय की जानकारी कहां से मिली? इस ने उन के मन में क्या उमड़घुमड़ रहा है, कैसे जान लिया?

‘‘हां, मुझे मालूम है कि आप एक अच्छी सितारवादक हैं. लिखना, चित्रकारी करना आप का शौक है.’’

पुष्पाजी सोच में पड़ गई थीं कि जिस पुष्पाजी की बात डिंपल कर रही है, उस पुष्पा को तो वे खुद भी भूल चुकी हैं. अब तो खाना पकाना, घर को सुव्यवस्थित रखना, बच्चों के टिफिन तैयार करना, बस यही काम उन की दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए हैं. डिग्री धूल चाटने लगी है. फिर बोलीं, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम ये सब?’’

‘‘मालूम कैसे नहीं होगा, बचपन से ही तो सुनती आई हूं. मेरी मां, जो आप के साथ पढ़ती थीं कभी, बहुत प्रशंसा करती थीं आप की.’’

‘‘कौन मीरा?’’ पुष्पाजी ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया. यही नाम तो लिखा था बायोडाटा में. बचपन में दोनों एकसाथ पढ़ीं. एकसाथ ही ग्रेजुएशन भी किया. पुष्पाजी की शादी पहले हो गई थी, इसलिए मीरा के विवाह में नहीं जा पाई थीं. फिर घरगृहस्थी के दायित्वों के निर्वहन में ऐसी उलझीं कि उलझती ही चली गईं. धीरेधीरे बचपन की यादें धूमिल पड़ती चली गईं. डिंपल के बायोडाटा पर मीरा का नाम देख कर उन्होंने तो यही सोचा था कि होगी कोई दूसरी मीरा. कहां जानती थी कि डिंपल उन की घनिष्ठ मित्र मीरा की बेटी है. बरात में भी गई नहीं थीं. जातीं तो थोड़ीबहुत जानकारी जरूर मिल जाती उन्हें. बस, इतना जान पाई थीं कि पिछले माह, कैंसर रोग से मीरा की मृत्यु हो गई थी.

डिंपल अब भी कह रही थी, ‘‘ठीक ही तो कहती थीं मां कि हमारे साथ पुष्पा नाम की एक लड़की पढ़ती थी. वह जितनी सुंदर उतनी ही होनहार और प्रतिभाशाली भी थी. मैं चाहती हूं, तुम भी बिलकुल वैसी ही बनो. मेरी सहेली पुष्पा जैसी.’’

पुष्पाजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ऐसा लग रहा था, उन की नहीं, किसी दूसरी ही पुष्पा की प्रशंसा की जा रही है, लेकिन सच को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता. कानों में डिंपल के शब्द अब भी गूंज रहे थे. तो वह पुष्पा, अभी भी खोई नहीं है. कहीं न कहीं उस का वजूद अब भी है.

पुष्पाजी का मन भर आया. शायद उन का अचेतन मन यही उपहार चाहता था. फिर भी तसल्ली के लिए पूछ लिया था उन्होंने, ‘‘और क्या कहती थीं तुम्हारी मां?’’

‘‘यही कि तुझे गर्व होना चाहिए जो तुझे पुष्पा जैसी सास मिली. तुझे बहुत अच्छी ससुराल मिली है. तू बहुत खुश रहेगी. मां, सच कहूं तो मुझे विशाल से पहले आप से मिलने की उत्सुकता थी.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया?’’ डिंपल की आंखों में झांक कर पुष्पाजी ने हंस कर पूछा.

‘‘कैसे बताती? मैं तो आप के इस धीरगंभीर रूप में उस चंचल, हंसमुख पुष्पा को ही ढूंढ़ती रही इतने दिन.’’

‘‘वह पुष्पा कहां रही अब डिंपल. कब की पीछे छूट गई. सारा जीवन यों ही बीत गया, निरर्थक. न कोई चित्र बनाया, न ही कोई धुन बजाई. धुन बजाना तो दूर, सितार के तारों को छेड़ा तक नहीं मैं ने.’’

‘‘कौन कहता है आप का जीवन यों ही बीत गया मां?’’ डिंपल ने प्यार से पुष्पाजी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘आप का यह सजीव घरसंसार, किसी भी धुन से ज्यादा सुंदर है, मुखर है, जीवंत है.’’

‘‘घरर तो सभी का होता है,’’ पुष्पाजी धीरे से बोलीं, ‘‘इस में मेरा क्या योगदान है?’’

‘‘आप का ही तो योगदान है, मां. इस परिवार की बुलंद इमारत आप ही के त्याग और बलिदान की नींव पर टिकी है.’’

अभिभूत हो गईं पुष्पाजी. मंत्रमुग्ध हो गईं कि कौन कहता है भावुकता में निर्णय नहीं लेना चाहिए? उन्हें तो उन की भावुकता ने ही

डिंपल जैसा दुर्लभ रत्न थमा दिया. यदि डिंपल न होती, तो क्या बरसों पहले छूट गई

पुष्पा को फिर से पा सकती थीं? उस के दिए सितार को उन्होंने ममता से सहलाया जैसे बचपन के किसी संगीसाथी को सहला रही हों. उन्हें लगा कि आज सही अर्थों में उन का जन्मदिन है. बड़े प्रेम से उन्होंने दोनों हाथों में सितार उठाया और सितार के तार एक बार

फिर बरसों बाद झंकार से भर उठे. लग रहा था जैसे पुष्पाजी की उंगलियां तो कभी सितार को भूली ही नहीं थीं.

जानें क्या हैं ब्राइडल मेकअप की बारीकियां

हर दुलहन चाहती है कि उस का स्टाइल और लुक ऐसा हो, जिस से वह न सिर्फ उस के जीवनसाथी के, बल्कि ससुराल वालों के भी दिल का नूर बन जाए. तो ऐसा क्या किया जाए, जिस से दुलहन की खूबसूरती पति का मन मोह ले?

सैलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट ओजस राजानी बताती हैं कि सब से पहले दुलहन की पर्सनैलिटी, स्किन टाइप, बालों का टैक्स्चर, कलर, आईब्रोज शेप और फेस कट को परखना होता है. अगर इस में कहीं किसी तरह की कमी है, तो दुलहन को ऐक्सरसाइज और स्किन केयर रूटीन की सलाह दी जाती है, जिस से मेकअप से पहले स्किन और जवां व निखरीनिखरी दिखाई दे.

स्किन केयर रूटीन

स्किन केयर रूटीन के बारे में बात करते हुए ब्राइडल मेकअप आर्टिस्ट आकांक्षा नाइक का कहना है कि दुलहन के लिए अपनी स्किन टाइप के बारे में पता होना बेहद जरूरी है.

शादी से पहले उसे रोजाना क्लींजिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग का रूटीन अपनाना चाहिए. यदि स्किन ड्राई है तो सोप फ्री कंसीलर का इस्तेमाल करना चाहिए. त्वचा को दिन में 2 बार मौइश्चराइज भी करना चाहिए.

यदि स्किन टाइप औयली है, तो क्लींजिंग के साथसाथ दिन में 2-3 बार चेहरा धोना भी जरूरी है. औयली स्किन टाइप के लिए टोनिंग बेहद जरूरी है. इस से चेहरे के पोर्स बंद होते हैं और त्वचा से तेल का रिसाव रुकता है. इस के साथसाथ त्वचा को मौइश्चराइज्ड करने के लिए वाटर बेस्ड मौइश्चराइजर लगाना चाहिए. औयली स्किन के लिए फेस मास्क लगाना भी बेहद जरूरी है. इस से चेहरे की डैड स्किन से छुटकारा मिलता है और त्वचा सांस ले पाती है.

वाटर बेस्ड व क्रीम बेस्ड मेकअप का चुनाव

मेकअप में सब से जरूरी है फाउंडेशन का सही होना. अगर बेस मेकअप अच्छी तरह से लगाया गया है और फाउंडेशन का रंग स्किन से अच्छी तरह मेल खाता है, तो एक लाइनर लगा कर भी दुलहन खूबसूरत लग सकती है.

इसी तरह क्रीम बेस्ड मेकअप उन के लिए अच्छा है, जिन के चेहरे पर दागधब्बे, पिंपल्स और डार्क स्पौट्स नहीं होते. लेकिन औयली स्किन के लिए क्रीम बेस्ड मेकअप का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करना चाहिए, वहीं दागधब्बे वाली स्किन के लिए वाटर बेस्ड मेकअप जरूरी है. अगर शादी के दौरान धूप में रहना हो, तो वाटर बेस्ड मेकअप की जरूरत पड़ेगी.

कौंप्लैक्शन के अनुसार मेकअप

आकांक्षा ने बताया कि भारतीयों में 3 तरह के कौंप्लैक्शन होते हैं- गोरा, गेहुआं और सांवला. कौंप्लैक्शन के अनुसार मेकअप का चुनाव करें इस तरह:

गोरी त्वचा : अगर आप की रंगत गोरी है तो आप पर रोजी टिंट बेस कलर और कुछ मौकों पर सुनहरे रंग का फाउंडेशन बेस फबेगा. आंखों का मेकअप करते समय ध्यान रखें कि आईब्रोज को ब्राउन कलर से उभारें. जहां गोरे रंग पर पिंक और हलके लाल रंग का ब्लशर बेहद जंचता है, वहीं होंठों पर लाइट कलर की लिपस्टिक अच्छी लगती है.

गेहुआं रंग : अगर आप का कौंप्लैक्शन गेहुआं है, तो आप को स्किन कलर से मैच करता वाटर बेस्ड फाउंडेशन लगाना चाहिए. त्वचा पर लाइट रंग का फाउंडेशन लगाने से बचना चाहिए. आंखों के मेकअप के लिए ब्रौंज या ब्राउन कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. गालों पर ब्रौंज कलर के ब्लशर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस स्किनटोन के अनुसार आप पर डार्क रंग की लिपस्टिक जंचेगी.

सांवली त्वचा : सांवली त्वचा का मेकअप करने से पहले सब से ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए. सांवली त्वचा के लिए वाटर बेस्ड नैचुरल ब्राउन टोन फाउंडेशन का इस्तेमाल करना चाहिए, इस के लिए फाउंडेशन की ब्लैंडिंग पर भी अच्छी तरह से ध्यान देना चाहिए.

ध्यान रहे कि आप त्वचा के रंग से गहरे शेड का फाउंडेशन इस्तेमाल न करें. आंखों का मेकअप करते समय ध्यान दें कि लाइट रंग के आईब्रोज कलर का इस्तेमाल न करें, लेकिन आउटलाइन के लिए काजल का इस्तेमाल करें. ब्लशर के लिए प्लम और ब्रौंज कलर का इस्तेमाल करें. लिप कलर के लिए पर्पल, रोज और पिंक ग्लौस का इस्तेमाल कर सकती हैं.

ओजस के अनुसार दुलहन इस बात का भी खयाल रखे कि मेकअप ज्यादा नहीं होना चाहिए. इस से उस की उम्र ज्यादा दिखाई देती है, इसलिए हैवी मेकअप से बचें.

ध्यान से चुनें लिप कलर

ओजस के अनुसार आजकल बौलीवुड तारिकाएं भी कम मेकअप और लाइट शेड की लिपस्टिक लगाना पसंद करती हैं. अब हाई डैफिनेशन कैमरे के दिन हैं, जो आप के मेकअप की बारीकियों को और उभार देते हैं. अगर आप डार्क शेड लिपस्टिक लगाएंगी, तो इस से आप शादी की तसवीरों में डरावनी लग सकती हैं.

ट्रैंड के अनुसार आजकल मार्केट में कई तरह की लाइट शेड लिपस्टिक आ रही हैं, जो लाइट होते हुए भी आप को डार्क लिपस्टिक के जैसा लुक देंगी. इस से आप के लिप्स को थोड़ा पाउट लुक भी मिल जाएगा. वहीं अगर आप डार्क लिपस्टिक का चुनाव करती हैं, तो आप को आई मेकअप कम करना चाहिए. अगर आप हैवी आई मेकअप कर रही हैं, तो आप को लिप कलर में लाइट शेड ही चुनना चाहिए.

कलर्ड लैंस का चुनाव

ओजस बताती हैं कि आप का रंग गोरा हो, गेहुआं हो या सांवला, आप को आई लैंस के लिए हलके भूरे रंग का ही चुनाव करना चाहिए. आई लैंस में ग्रीन और ब्राउन को मिला कर एक नया कलर बनाया गया है, जो देखने में बहुत अच्छा लगता है. आप को ग्रे और नीला रंग नहीं चुनना चाहिए.

मेकअप से पहले फ्लैश टैस्ट

दुलहन हो या अदाकारा, आप का मेकअप बेस या फाउंडेशन परफैक्ट होना चाहिए. कैमरे की फ्लैश की वजह से मेकअप पहले ही ग्रे दिखाई देता है. ऐसे में आप को बेस लगाने के बाद अपने फोन के कैमरे की फ्लैश औन कर के एक तस्वीर लेनी चाहिए. इस से आप को साफ पता चल जाएगा कि आप ने फाउंडेशन अच्छी तरह से लगाया है या नहीं. इसे मेकअप आर्टिस्ट फ्लैश टैस्ट कहते हैं.

कम बेस के साथ जरूरत भर मेकअप को हमेशा तवज्जो देनी चाहिए. कम फाउंडेशन, लाइट कलर ब्लश और हलके रंग की लिपस्टिक आप के लुक को उभार देती है. इसी सौफ्ट स्टाइलिंग के साथ दुलहन बेहद खूबसूरत दिखाई देती है. इस के अलावा हमेशा अपनी पर्सनैलिटी को ध्यान में रख कर मेकअप करना चाहिए.

जरूरी मेकअप टिप्स

– दुलहन के पास हमेशा उस की स्किनटोन से मैच करता कंसीलर होना चाहिए ताकि वह आंखों के नीचे के काले घेरों और दागधब्बों को आसानी से छिपा सके. दुलहन के लिए टिंटेड मौइश्चराइजर भी बेहद जरूरी है, जिसे लगाने के बाद चेहरे पर हलका ग्लो आ जाता है.

– अगर आप के बाल सही तरह से स्टाइल किए गए हों, तो आप बेहद खूबसूरत दिखाई देंगी. अगर आप बालों को बेबी रखती हैं तो यह आप को एक स्टाइलिश और ग्लैमरस लुक देगा. स्ट्रेट बाल आप को मैच्योर लुक देंगे.

सुभा: भाग 1- देवी की मूर्ति हटाने की बात पर क्या हुआ सुभा के साथ

‘‘निर्धनतथा संपन्न, सबल तथा निर्बल के बीच कभी न समाप्त होने वाली असमानता व्याप्त है. परंतु इस क्षणभंगुर संसार में भी एकमात्र वही हैं, जिस ने बिना किसी पक्षपात हर श्रेणी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. नियत समय पर भयमुक्त आती है और मनुष्य को अपनी सत्ता दिखा जाती है, मृत्यु ही परम सत्य है.’’

‘‘परंतु मैम, जीवन क्या परम सत्य नहीं हैं?’’

‘‘आप के जीवन में नवांकुर पल्लवित होगा अथवा नहीं, इस में संशय हो सकता है, परंतु मृत्यु आएगी इस में कोई संशय नहीं है. इसलिए मेरे अनुसार जीवन एक सार्वभौमिक सत्य है परंतु परम सत्य तो मृत्यु ही है,’’ अपने प्रथम वर्ष के विधार्थियों की भीड़ को मुग्ध कर प्रोफैसर सुभा ने अपनी बात समाप्त की और कक्षा से निकल गई.

सुभा की सर्विस का यह 10वां वर्ष था. अपने इन 10 वर्षों के कार्यकाल में वह देहरादून स्थित एल.एम. कालेज में दर्शनशास्त्र का पर्याय बन गई थी. अपने सभी विद्यार्थियों को उस ने दर्शन कला में इतना निपुण बना दिया था कि उस ने पिछली बार कालेज के मुख्यातिथि, राज्यपाल को वर्ण व्यवस्था पर आधारित नाटिका में अपने विचारों से मुग्ध कर दिया था.

माननीय अतिथि के सम्मान में उस विलक्षण प्राध्यापिका ने प्राचार्य के कुछ ही क्षणों के दिए गए आदेश का पालन कर सुंदर कार्यक्रम ही प्रस्तुत नहीं किया, एक मानपत्र भी भेंट किया. उस की लच्छेदार और त्रुटिरहित भाषा की सराहना स्वयं राज्यपाल ने भी की थी.

इस वर्ष भी कार्यक्रम की सूत्रधार सुभा ही थी. उस के निर्देशन में दर्शनशास्त्र के छात्र एक विशेष नाटिका की तैयारी में व्यस्त थे. ‘सबरी का प्रेम’ नामक नाटक के मंचन की तैयारियां चल रही थीं. यह एक सवर्ण राजकुमार और दलित कन्या के प्रेम पर आधारित नाटिका थी.

नवल को भी नाटक में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिल गया था. वह दर्शनशास्त्र के प्रथम वर्ष का छात्र था. उस के  पिता देवेन देहरादून के प्रख्यात हीरा व्यवसायी थे. नवल उन का एकमात्र पुत्र था.

उस की उम्र में समाज और स्वयं को ले कर ढेरों प्रश्न होते हैं. अपने इन्हीं प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए वह सुभा के समीप जाने लगा था. प्रतिदिन की मुलाकातों और सुभा के दोस्ताना व्यवहार ने नवल को मुखर बना दिया था. हालांकि सुभा का आचरण सब विद्यार्थियों के साथ समान ही था, परंतु अपरिपक्व नवल स्वयं को उस के निकट अनुभव करने लगा था.

सुभा को देख कर कोई दोबारा देखने का लोभ विस्मरण नहीं कर पाता था. उस के जैसी ओजस्वी वक्ता अपनी मीठी वाणी और अकर्तित तर्कों के मोहपाश में कड़े से कड़े आलोचक को भी बांध देती थी तो फिर नवल तो एक अपरिपक्व और अपरिणामदर्शी युवक था. सुभा को देख कर उस के भीतर विस्मय मिश्रित श्रद्धा का भाव उत्पन्न हुआ था, जिस ने कालांतर में एकतरफा प्रेम का रूप ले लिया.

एक दिन नाटक के प्राभ्यास के पश्चात जब सभी थोड़ा विश्राम कर रहे थे नवल ने अनायास ही एक प्रश्न पूछ लिया, ‘‘मैम, समानता कब आएगी?’’

सुभा ने जरा हंस कर सामने पड़ी कुरसी को हाथ से ठेल कर कहा, ‘‘जिस दिन हर मनुष्य यह जान लेगा कि जिस धर्म, जाति, रंग, प्रदेश अथवा देश के दंभ में वह स्वयं को दूसरों से उच्च समझता है, वह उस की कमाई नहीं, बल्कि विरासत है, समानता उसी क्षण आ जाएगी.’’

नवल ने पुन: प्रश्न किया, ‘‘परंतु इस में तो संदेह है, तो क्या शांति कभी नहीं होगी?’’

सुभा पलभर चुप रह कर मीठे स्वर में बोली, ‘‘जब कर्मठ और मेहनतकश लोगों का राज होगा शांति तभी आएगी. उन की बस एक जाति होगी- कर्मण्यता. जो निठल्ले और नाकारा लोग हैं वे लड़ने और लड़ाने के अलावा कुछ सोच ही नहीं सकते.

‘‘यदि लोग अपनी हर मुसीबत का हल स्वयं ढूंढ़ने लगें तो सोचो पंडितों की तो दुकानें ही बंद हो जाएंगी,’’ सबरी का पात्र निभाने वाली मेघा की इस बात पर सभी हंस पड़े थे और माहौल हलका हो गया था.

नवल भी कुछ क्षण चुप रह कर बोला, ‘‘आरक्षण समानता के प्रथम सोपान की तरह था. परंतु आप को नहीं लगता कि वह भी समाज की सोच को नहीं बदल पाया?’’

‘‘हां, कह तो तुम सही रहे हो, परंतु यह बात भी तो है कि शोषित वर्ग की इस व्यवस्था में हिस्सेदारी भी तो बड़ी है. पहले उच्च पद पर कितने दलित मिलते थे, परंतु आज देखो,’’ उन में से एक छात्र रमन ने जवाब दिया.

‘‘हां, आज तो आलम यह है कि जो लोग पहले ऊंची जाति के गुमान में रहते थे, वे भी आरक्षण के दायरे में आने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. अब इसे क्या कहेंगे?’’ हरमन व्यंग्यात्मक मुसकान के साथ बोला.

सुभा चुप ही रही. वह विद्यार्थियों को अपना मत रखने देना चाहती थी.

नवल ने दुखी हो कर कहा, ‘‘इस से कुछ भी नहीं बदला, स्थिति आज भी सोचनीय है. हां, कभीकभी शोषक और शोषित की जाति बदल जाती है. किसी विभाग में उच्च अधिकारी निम्न वर्ग का होता है, तो वह सवर्ण जाति के अपने मातहतों का तिरस्कार करता है जैसे ऐसा करने से वह अपने पूर्वजों के अपमान का बदला ले रहा हो अथवा समाज में व्याप्त वर्ण व्यवस्था को चोट पहुंचा रहा हो,’’ गौतम उस की बात का जवाब देते हुए तुरंत बोल पड़ा, ‘‘अंधकार में यदि भूतों के भय से नेत्र बंद कर यदि तुम आराम पाते हो तो ऐसा ही सही, मैं तुम्हें नेत्र खोलने को नहीं कहूंगा. अपने मातहतों का अपमान करने वाला निम्नवर्ग का हो न हो दंभी अवश्य होता है. दफ्तरों में, विद्यालयों में यहां तक कि पूजास्थलों में भी दलितवर्ग को मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

‘‘मैं बड़े शहरों की बात नहीं कर रहा. वहां शायद स्थिति अपेक्षाकृत संतोषजनक है. इस का कारण लोगों की सोच में बदलाव हो, यह ठीकठीक तो नहीं कह सकता, परंतु मीडिया का सशक्त होना अवश्य है. परंतु छोटे शहरों खासकर गांवों में स्थिति आज भी चिंतनीय है. आज भी पुकारने के लिए हम निम्न और उच्चवर्ग शब्द का इस्तेमाल करते हैं, आज भी हमारे फार्म में जाति का एक कालम है. आज भी इस देश के चुनाव जाति और धर्म के नाम पर लड़े और जीते भी जाते हैं. यही साबित करता हैं कि असमानता की यह खाई कितनी चौड़ी है.

‘‘अनुत्तरित नवल ने उस की बात का अनुमोदन करते हुए चुपचाप सिर हिला दिया.

अब तक शांत खड़ी सुभा ने हाथ के पन्नों को ठीक स्थान पर रख कर बोलना शुरू  किया, ‘‘चाहे वह तथाकथित उच्चवर्ण हो अथवा तथाकथित निम्नवर्ण, प्रभुता की लड़ाई में पलड़ा जिस ओर ज्यादा झकेगा, विद्रोह होगा. शोषक और शोषित वर्ग की भूमिकाएं बदलती रहेंगी. यह विद्रोह विनाश लाएगा, प्रत्युत इस विनाश में ही नवजीवन का विकास निहित है.

‘‘इस संगति की उन्नति किसी एक वर्ग की समृद्धि में नहीं वरन सभी वर्गों की सम्मिलित विकासन में है. कोई भी वर्ग किसी दूसरे वर्ग का शोषण कर समानता नहीं ला सकता, समानता के लिए बौद्धिक विकास अनिवार्य है,’’ इतना कह झक कर नवल के कंधे को सहसा हलका सा दबा कर हौल के बाहर चली गई. नवल मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया.

यों ही अचानक: भाग 2- अकेले पड़ गए मुकुंद की जिंदगी में सारिका को क्या जगह मिली

अच्छी कदकाठी और तीखे नैननक्श वाली सारिका उन के इतना नजदीक आ  खड़ी हुई तो वे घबरा गए. स्वभाव से अंतर्मुखी और अपनेआप में सिमटे हुए से डाक्टर साहब, ‘‘नहीं… नहीं… बिलकुल भी नहीं, मैं अभी जल्दी में हूं,’’ आदि कह कर उसे जाने का विचलित सा संदेश देते रहे.

मगर सारिका ने कहा, ‘‘मैं अकेला रहना बिलकुल पसंद नहीं करती. मगर क्या बताऊं हमेशा अब अकेले रहना होगा. क्या हुआ जो अगर हम आपस में कभी थोड़ी बात कर लिया करें?’’

‘‘कर लेंगे पर आज मुझे देर हो रही है,’’ मुकुंदजी अब भी टका सा जवाब दे कर हटने के प्रयास में थे.

‘‘आप को देर नहीं होगी, आप बस तैयार हो कर मेरे घर आ जाइए… अपना टिफिन मुझे दे दीजिए… इस में मैं ‘न’ नहीं सुनूंगी.’’

डाक्टर साहब ने आखिर हार मानी और मुसकरा कर बोल पड़े, ‘‘बड़ी जिद्दी हो.’’

‘‘लाइए पहले टिफिन दीजिए,’’ और इस तरह सारिका को दीवारों से बेहतर सुनने वाला मिल गया था.

‘‘आज बाजार में दुकानदार ने मुझे ढंग लिया, आज स्कूल में टीचर को खूब खरीखरी सुना आई. मेरा पति तो इधर पटक कर मुझे भूल ही गया, आप ही बताएं क्या मैं अकेले उम्र बिताने को ब्याही गई?’’

डाक्टर साहब अपने बेटे को शाम को पढ़ा रहे होते या फिर उस की पढ़ाई के वक्त पास बैठते, सारिका इन दिनों अपने बच्चे को उस की पढ़ाई के लिए मुकुंदजी के घर ले आती. दोनों बच्चे पढ़ते और वे दोनों थोड़ी दूरी पर बैठे होते. मुकुंदजी तो कई तरह की किताबें और अखबार पढ़ते और सारिका ताबड़तोड़ अपने दिल की बात मुकुंदजी को बताती. उम्र का फासला सारिका में जरा भी झिझक पैदा नहीं कर पाता.

मुकुंदजी अब सारिका की बातों के आदी हो रहे थे. उन की झिझक कुछ कम हो रही थी. अब संग वे थोड़ा हंसते, थोड़ा मजाक भी कर लेते जैसेकि नहीं, उम्र बिताने की अब फिक्र कहां. अब तो सिलसिला चल ही पड़ा है.

सारिका भौचक उन की ओर ताकती, फिर कहती, ‘‘मैं चलती हूं. आप के बेटे को पढ़ने में दिक्कत हो रही होगी, मेरी बातों की वजह से.’’

डाक्टर साहब कहते, ‘‘चलो दूसरे कमरे में बैठें.’’

सारिका अवाक होती. पहले तो मुकुंदजी भगाने की फिराक में रहते, अब क्या? मुकुंदजी वाकई उसे ले कर अपने बैडरूम में आते. उसे बिस्तर पर बैठने का इशारा कर के खुद बगल में रखे चेयर पर बैठ जाते.

सारिका को फिर से इतिहास के खंडहरों से ले कर भविष्य के टाइम मशीन में सवार यों ही बोलतेबतियाते छोड़ देते.

सात 17 बोलते वह जब कभी मुकुंदजी से कोईर् जवाब मांगती तो वे भौचक से उस की ओर ताकते.

कई दिनों से मुकुंदजी को ले कर सारिका के दिल में एक  कचोट पैदा हो रही थी. एक दिन वह इस तरह विफर पड़ी कि डाक्टर साहब अवाक उसे देखते रह गए.

‘‘फिर क्या फर्क रह गया आप में और सुदेश में? मैं तो अपने घर में बैठी अकेली इसी तरह बकबक कर सकती हूं. सुदेश जब भी घर आते पैसा पकड़ाने और देह की भूख मिटाने के सिवा मुझ से कोई वास्ता न रखते और आजकल तो वह रस्म भी जाने कैसे खत्म हो गई. मैं हूं या नहीं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ठीक इसी तरह जैसे आप…’’

डाक्टर साहब शर्म से सिहर उठे. अवाक हो पहले तो सारिका को देखते रहे, फिर शर्म से गड़ने लगे.

अनर्गल बोलती सी सारिका अचानक ठिठक गई. महीना भर ही तो  हुआ है डाक्टर साहब से घुलतेमिलते, जाने क्याक्या वह बोल जाती है. उसे बहुत बुरा लग रहा था, वह चुप हो गई. डाक्टर साहब ऐसे ही शरमीले, इन बातों से वे शर्म से गड़ कर अखबार में ही धंस गए. उन दोनों की चुप्पी अब न जाने क्याक्या बोल उठी. डाक्टर साहब भी सुन रहे थे और सारिका भी. सारिका धीरे से उठी, नींद से बोझिल अपने बेटे को स्कूल बैग के साथ लिया और घर चली गई. 2 दिन वह नहीं आई. डाक्टर साहब ने भी कोई खबर नहीं ली.

चौथे दिन सारिका शाम 7 बजे उन के घर आई. कुछ ज्यादा ही अस्तव्यस्त, आंखें रोरो कर सूजी हुईं.

सारिका आते ही बोली, ‘‘कोई खोजखबर नहीं… मैं मुसीबत में पड़ूं तो क्या करूं. घर वाले इतनी दूर.’’

नर्मदिल डाक्टर साहब चिंतित से बोल पड़े, ‘‘क्यों क्या हुआ?’’

‘‘सुदेश बनारस गए हुए हैं, वहीं अचानक उन की तबीयत बहुत बिगड़ी… वे अस्पताल में हैं.’’

‘‘अरे क्या हुआ अचानक?’’

‘‘शायद लिवर में तकलीफ थी और अब तो बताया गया… और सारिका ने आंखें झका लीं, फिर तुरंत आगे कहने को उतावली सी डाक्टर साहब की ओर अपनी नजरें टिका दीं.

डाक्टर साहब ने उसे प्रेरित किया, ‘‘हां कहो और क्या बताया गया?’’

‘‘सैक्सट्रांसमिटेड डिजीज.’’

सारिका के कहते ही डाक्टर साहब की नजरें झक गईं. उन्हें सारिका पर बड़ा तरस आया कि बाकई दुखी स्त्री है.

डाक्टर साहब के साथ तो नीलिमा का प्यार और भरोसा हमेशा कायम है, लेकिन यह तो पति के रहते भी आज बहुत गरीब है.

डाक्टर साहब ने उसे अंदर ले जा कर कमरे में बैठाया. पूछा, ‘‘बनारस जाओगी?’’

‘‘मैं जाना चाहती हूं, मेरी जिंदगी यों मंझधार में…’’

सारिका को आंसू पोंछते देख डाक्टर साहब खुद को रोक नहीं पाए और आगे बढ़ उस के कंधे पर हाथ रखा. कहा, ‘‘ मैं ले जाऊंगा बनारस तुम्हें. अपने बेटे निलय को उस की बूआ के घर छोड़ दूंगा. तुम अंकित को…’’

सारिका उत्साहित सी बोल पड़ी, ‘‘मायके से कोई आ कर ले जाएगा, कहा था उन्होंने, अगर मैं बनारस जाऊं तो…’’

3 दिन बाद वे बनारस के एक होटल में थे. दोनों ने अगलबगल 2 कमरे लिए थे. तय हुआ दूसरे दिन वे अस्पताल सुदेश को देखने चलेंगे.

रात वे दोनों अपनेअपने कमरे में रहे. सुबह सारिका की  नींद खुली तो उसे बड़ी घबराहट हुई. वह तैयार हो कर मुकुंदजी के कमरे के दरवाजे पर गई. आवाज दी, सन्नाटे के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ उसे. फोन लगाया उस ने मुकुंदजी को. पता चला वे अलसुबह ही बनारस के घाट चले गए हैं.

सारिका उन्हें वहां अपने आने की इत्तला दे कर जल्दी बनारस घाट पहुंची. दूर से ही एकाकी कोने में बैठे मुकुंदजी सारिका को दिख गए. उगते सूरज को एकटक देख रहे थे वे.

सारिका कुछ देर उन के सामने खड़ी रही, फिर खुद ही बोल पड़ी, ‘‘आप मुझे छोड़ कर क्यों चल आए? अनजाने शहर में मेरी फिक्र नहीं की?’’

मुकुंदजी ने शांत भाव से सारिका को देखा और बोले, ‘‘फिक्र करता हूं तभी तो अनुमति लेने आया था.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘आगे की जिंदगी में न जाने कहां तक तुम्हारी फिक्र करनी पड़े, नीलिमा से कहे बिना कैसे तुम्हारा साथ दूं? मेरा मन कचोट रहा था, आज नीलिमा से अकेले में अपने मन की ऊहापोह…’’

एक बच्चे सी जिज्ञासा लिए सारिका पूछ बैठी, ‘‘नीलिमा दीदी से अनुमति मिल गई न?’’

डाक्टर साहब सिर झकाए बैठे रहे. क्या सारिका के प्रति वे दुर्बल हो रहे हैं? क्या उन के मन में सारिका को ले कर मोह और आकर्षण पैदा हो गया है?

और सारिका? क्या वह सिर्फ अपने हालात से जूझ रही या छोटी सी दूब उस की भी अनुभूतियों और कामनाओं की जमीन पर उग आईर् है? मुकुंदजी सारी असमंजस को एकतरफ ढकेल उठ खड़े हुए, ‘‘चलो तुम्हें अस्पताल चलना है न?’’ सारिका भी बिन कुछ कहे उठ खड़ी हुई. एक संतोष था कि शायद मुकुंदजी उस की परेशानी में साथ निभाएंगे.

सुदेश लंबा, स्मार्ट, गोराचिट्टा युवक जिसे अपने पैसे, औकात और व्यक्तित्व पर बड़ा घमंड था, जो किसी की सुनना अपनी तौहीन समझता था. अपने ऊंचे कांटेक्ट के बल पर वक्त को मुट्ठी में बांध सकता है, वह सोचता.

सुदेश जिस की पहली बीवी ने दुख झेला, बिन सहे चली गई, मगर दुख ले कर. दूसरी बीवी सहने की हद से गुजर गई तड़पती हुई. अनजाने ही दोनों की आहें लग गईं थी उसे. उस की बिंदास लापरवाह जिंदगी जीने के अंदाज ने उसे इस मरणखाट पर ला पटका था.

सुदेश से मिलने के बाद नर्स उन्हें अपने चैंबर में ले गईं. बोली, ‘‘मैं ने सुदेशजी से आप का फोन नंबर ले कर आप को फोन किया था. इन के दोस्त का नंबर मेरे पास है, वही इन का सबकुछ देख रहे हैं. कुछ देर में वे आ जाएंगे, इन के बिजनैस पार्टनर भी हैं. आप लोग उन से सारी बातें कर लें. सुदेशजी का लिवर सत्तर फीसदी खराब हो चुका है. साथ ही ट्रांसमिटेड डिजीज भी बहुत बढ़ा हुआ है, इन्फैक्शन अंदर तक फैल चुका है.’’

इस पूरे हालात में सारिका बहुत कमजोर सी पा रही थी खुद को. मुकुंदजी साथ न होते तो क्या होता… रहरह उस के दिमाग में यही खयाल आते.

नथनी: क्या खत्म हुई जेनी की सेरोगेट मदर की तलाश

मैं परेशान हूं क्योंकि सर्दियों में स्किन बहुत ड्राई हो जाती है, मैं क्या करुं?

सवाल-

सर्दियां शुरू हो गई हैं, मैं परेशान हूं क्योंकि सर्दियों में मेरी स्किन बहुत ड्राई हो जाती है. मौइस्चराइजर लगाने के बाद कुछ समय तक ठीक लगती है पर फिर ड्राई होने लगती है. बताएं क्या करूं?

जवाब-

सर्दियों में स्किन ज्यादा ड्राई हो जाती है. ऐसे में सामान्य मौइश्चराइजर लगाने से फायदा नहीं होता क्योंकि इस में पानी ज्यादा और औयल कम होता है. अत: आप को कोई औयल बेस्ड मौइश्चराइजर लगाना चाहिए. नहाने के बाद बौडी को पोंछ कर आमंड औयल या शिया बटर से भी पूरी बौडी की मसाज कर सकती हैं. वैसे भी हफ्ते में एक बार बौडी मसाज करना अच्छा रहता है.

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जैसे ही सर्दियां शुरू होती हैं वैसे ही ड्राई व रफ स्किन की समस्या भी शुरू हो जाती है. सर्दियों में स्किन की ऊपरी परत में पानी कम हो जाता है और इसलिए आप की स्किन बाहर से बहुत इरिटेट हो जाती है व बहुत ड्राई व बेजान लगने लगती है. यदि आप अपनी स्किन को हेल्दी बनाना चाहतीं हैं तो आप को अपनी डाइट भी हेल्दी रखनी होगी.

अपनी डाइट मे नट्स, एवोकाडो व सीड्स आदि को ज्यादा से ज्यादा शामिल करें. आप को हरी सब्जियां भी ज्यादा से ज्यादा खानी चाहिए. स्किन को हेल्दी रखने के लिए आप को स्किन केयर की भी आवश्यकता होती है. इसलिए पपीता पल्प का प्रयोग कर सकते हैं. यह आप की स्किन को हाइड्रेट करता है और आप इस को मिल्क क्रीम में मिला कर भी स्किन पर प्रयोग कर सकतीं हैं.

यदि आप की बहुत ज्यादा ड्राई स्किन है तो आप को उसे हाइड्रेट करने के लिए कई लेयर्स लगानी पड़ेगीं. स्किन केयर के पहले स्टेप के लिए आप को हर सुबह व शाम किसी अच्छे क्लींजर की मदद से अपने फेस को धोना पड़ेगा.

इसके बाद आप एक माइल्ड हाइड्रेटिंग क्रीम का प्रयोग कर सकते हैं. इसके ऊपर विटामिन सी सीरम को अप्लाई करे. सर्दियों में यह सब चीजें आप की स्किन के लिए बहुत अच्छी रहती हैं.

आप अपनी स्किन को मॉइश्चराइज करने के लिए रोसेहिप ऑयल व एक्स्ट्रा वर्जिन कोकोनट ऑयल का प्रयोग कर सकती हैं. यह एंटी आक्सिडेंट्स से भरपूर होते हैं जो आप की स्किन को नरिश करते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: जाड़े में भी स्वस्थ रहेंगे अस्थमा के रोगी

15 साल की अनुरिमा अस्थमा की शिकार है. बचपन से ही उसे अस्थमा के अटैक आते थे, जो बाद में उम्र के हिसाब से ओर बढ़ते गए. इस के लिए उसे नियमित दवा लेनी पड़ती है. दरअसल, यह बीमारी सर्दी के दिनों में और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि सर्द मौसम की वजह से श्वासनली में बलगम जल्दी जमा हो जाता है, जो श्वासनली को अवरुद्ध कर देता है, जिस से मरीज को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. फलस्वरूप सांस फूलने लगती है. कुछ लोगों को यह बीमारी उन्हें ठंड की ऐलर्जी होने की वजह से भी बढ़ जाती है.

इस बारें में मुंबई के एसआरवी हौस्पिटल की चैस्ट फिजिशियन डा. इंदु बूबना बताती है, ‘‘स्ट्रैस और धूम्रपान अस्थमा के ट्रिगर पौइंट हैं. इन से सब से अधिक अस्थमा बढ़ती है. इस के अलावा नींद की कमी व प्रदूषण भी इस के जिम्मेदार हैं. जाड़े के मौसम में इस बीमारी के बढ़ने का खतरा अधिक रहता है. लेकिन सही लाइफस्टाइल से इस खतरे को कम किया जा सकता है. मेरे पास कई मरीज ऐसे आते हैं, जो अस्थमा रोग का नाम सुन कर ही घबरा जाते हैं, जबकि यह बीमारी जानलेवा नहीं है.’’

डा. इंदु के अनुसार ये सावधानियां जाड़े  के मौसम में अस्थमा के रोगियों को अवश्य रखनी चाहिए:

– सब से पहले घर को साफसुथरा रखें. वैंटिलेशन सही हो.

–  सांस हमेशा नाक से लें इस से हवा गरम हो कर छाती तक पहुंचती है, जिस से ठंड कम लगती है. मुंह से सांस लेने की कोशिश कम करें.

–  फ्लू का वैक्सिन अवश्य लगा लें. इस से 70% व्यक्ति ठंड की ऐलर्जी से बच सकता है.

–  घर में अगर रूमहीटर का प्रयोग करते हैं, तो समयसमय पर उस के फिल्टर की सफाई अवश्य करें, ताकि उस पर धूलमिट्टी न जमें.

–  घर के पैट्स, टैडी बियर, फर वाले खिलौने, प्लांट्स आदि को बैड से दूर रखें.

–  ठंड से बचने के लिए अधिकतर लोग आग या रूमहीटर के पास बैठते हैं, जो ठीक नहीं, क्योंकि इस से ऊनी कपड़े के रेशे जल जाते हैं. उन से निकलने वाला धुआं अस्थमा के रोगी के लिए खतरनाक होता है. इसलिए रूमहीटर से घर को गरम जरूर करें, पर दूरी बनाए रखें. साथ ही घर की नमी को भी बनाए रखें.

–  पुराने सामान को घर में न रखें. डस्टिंग के वक्त धूल न उड़ाएं. घर की सफाई गीले कपड़े से  करें.

–  खाना खाने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो लें. इस से किसी भी प्रकार के वायरस से आप दूर रहेंगे.

–  सर्दियों में भी वर्कआउट अवश्य करें, लेकिन पहले अपनेआप को वार्मअप करना न भूलें.

–  ठंड में तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें. घर पर बना कम वसायुक्त खाना खाएं. ताजे फलसब्जियां अधिक लें. खट्टे पदार्थ खाने से अस्थमा नहीं बढ़ता. हां जिन्हें ऐलर्जी हो, वे न खाएं.

–  कपड़े हमेशा साफसुथरे ही पहनें. कौटन के कपड़े पहन कर ही ऊपर ऊनी कपड़े पहनें.

–  अगर छोटे बच्चे अस्थमा के शिकार हैं तो जाड़े में उन्हें हैल्दी, न्यूट्रिशन वाला भोजन दें.

–  दवा का सेवन नियमित करें.

शेयर केयर रिलेशनशिप रिपेयर

दृष्टि रावत 34 साल की है. वह फरीदाबाद में रहती है. देखने में ब्यूटीफुल और कौन्फिडैंट दृष्टि एक वौइस आर्टिस्ट है. 4 साल पहले उस ने विक्रम संवत के साथ लव मैरिज की थी. विक्रम एक बिजनेसमैन है. उस का क्रौकरी का बिजनैस है. बिजनैसमैन होने के नाते विक्रम बहुत बिजी रहता है. लेकिन इस के बावजूद वह घर और बाहर दोनों के काम में दृष्टि की हैल्प करता है.

कभीकभी तो वह खुद अकेले ही घर का सारा काम कर लेता है तो कभीकभी मार्केट जा कर राशन ले आता है. इतना ही नहीं विक्रम कई बार अकेले ही लंच और डिनर भी बना लेता है क्योंकि वह सम?ाता है कि असल माने में पार्टनर की यही परिभाषा है कि वह अपने पार्टनर की हर समय सपोर्ट करे.

दृष्टि और विक्रम दोनों हाउस होल्ड प्रौडक्ट भी साथ जा कर लाते हैं. चाहे घर के कामों से जुड़े टूल्स हों या फिर होम गैजेट हों दृष्टि और विक्रम उन्हें खरीदने साथ ही जाते हैं. इस का एक फायदा यह रहता है कि ये टूल्स और गैजेट कैसे काम करते हैं यह वे दोनों एकसाथ जान लेते हैं. ऐसे में जब दृष्टि घर में नहीं होती या अपने औफिस के काम में बिजी होती है तो विक्रम इन  टूल्स और गैजेट की हैल्प से घर को अच्छी तरह मैनेज कर लेता है.

एक लड़की क्या चाहती है

एक अच्छे हसबैंड की सारी खूबी विक्रम के अंदर है. किस तरह पार्टनर को खुश रखा जा सकता है, किस तरह अपने काम और मैरिड लाइफ को बैलेंस किया जाता है. इन सब बातों से विक्रम पूरी तरह अवगत है. तभी तो उस की मैरिड लाइफ में वे दिक्कतें नहीं हैं जो उन कपल्स के बीच होती हैं जहां घर के कामों को वाइफ या हसबैंड में से सिर्फ कोई एक संभाल रहा होता है.

जब विक्रम दृष्टि की हैल्प करता है तो वह बहुत खुश हो जाती है. यह सच भी है कि एक लड़की यही चाहती है कि उस का पार्टनर उस के सभी कामों में मदद करे. वह सही मानों में उस का हमसफर हो न सिर्फ कहने भर को.

क्लाउड किचन चलाने वाली रति अग्निहोत्री रिलेशनशिप पर अपनी राय देते हुए कहती है, कोई भी रिलेशन बिना केयर के नहीं चलता. ‘‘आप का पार्टनर भी आप से यही केयर चाहता है. आजकल हसबैंडवाइफ दोनों ही वर्किंग हैं. ऐसे में उन्हें अपने लिए बिलकुल समय नहीं मिलता है क्योंकि वाइफ औफिस के साथसाथ घर भी संभालती है. इस की वजह से वह हर वक्त थकान में चूर रहती है. ऐसे में उस में चिड़चिड़ापन आना स्वाभाविक है. लेकिन वहीं जहां आप का पार्टनर भी काम का कुछ भार अपने ऊपर ले ले तो यह भार कुछ कम हो सकता है. मैं भी अपना बिजनैस इसलिए कर पा रही हूं क्योंकि मेरे पार्टनर मेरे घर के कामों में मेरी हैल्प करते हैं.’’

ऐसे निभाएं रिश्ता

आंकड़े भी यही बताते हैं कि हैल्पिंग पार्टनर वाली मैरिज ज्यादा समय तक टिकती है. वहीं उन की रोमांटिक लाइफ भी उन कपल्स के मुकाबले ज्यादा हैप्पी होती है जहां सिर्फ फीमेल पार्टनर ही घर के सभी कार्यों का बोझ उठाती हैं.

अगर आप भी अपनी वाइफ या पार्टनर की हैल्प करना चाहते हैं लेकिन आप के पास इन सब के लिए बहुत कम समय है तो आप कुछ स्मार्ट होम ऐप्लायंसिस और गैजेट की हैल्प ले सकते हैं. इन के इस्तेमाल से आप कम समय में ही अपने घर के कामों को जल्दी निबटा पाएंगे और अपने पार्टनर के साथ समय बिता पाएंगे. आप की छोटी सी हैल्प से आप की रिलेशनशिप खुशियों से भर जाएगी.

मार्केट में ऐसे बहुत से प्रौडक्ट्स हैं जिन की हैल्प से आप अपने काम को जल्दी से जल्दी निबटा सकते हैं. इस के बाद बाकी बचे समय में आप अपने पार्टनर के साथ समय बिता सकते हैं. आप चाहे तो अपने रिलेटिव्स और फ्रैंड्स को उन के घर जा कर सरप्राइज भी दे सकते हैं.

अगर बात करें गैजेट की तो एक गैजेट है स्मार्ट रोबोट वैक्यूम क्लीनर. इस क्लीनर का इस्तेमाल फ्लोर की साफसफाई के लिए किया जाता है. इस का इस्तेमाल कर के आप चंद मिनटों में झड़ूपोंछा का काम निबटा सकते हैं. आप इसे अपने फोन से भी कनैक्ट कर सकते हैं.  इसी तरह आप ढो मेकर और रोटी मेकर का यूज कर के भी कम समय में रोटियां बना सकते हैं.

इसी तरह दही मेकर है जो आप को दही जमाने के झंझट से छुटकारा दिलाता है. इन कामों से बचे हुए टाइम को आप अपने क्वालिटी टाइम के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह से आप की फीमेल पार्टनर भी आप का साथ पा कर खुश हो जाएंगी.

सोचो अगर आप और आप की पार्टनर डिनर के बाद साथ में कुछ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना चाहते हैं लेकिन सिंक में बरतन धोने के लिए पड़े हुए हैं. सुबह आप दोनों को औफिस जाने की जल्दी होती है ऐसे में आप डिशवौशर का इस्तेमाल कर के क्वालिटी टाइम स्पैंड कर सकते हैं.

वहीं अगर आप के रिश्ते में किसी कारणवश खटास आ गई है तो आप उसे अपने पार्टनर की हैल्प और उन की केयर कर के दूर कर सकते हैं. यही वह समय है जब आप अपने उलझे रिश्ते को शेयरिंग और केयरिंग के जरीए सुलझ सकते हैं.

जब फीमेल पार्टनर घर का बोझ उठाएं

अगर बात करें उन लोगों की मैरिड लाइफ कैसी होती है जहां सिर्फ फीमेल पार्टनर ही घर का सारा भार उठाती हैं. यह बात हम श्रेया और अंकुश की कहानी से जानेंगे.

श्रेया और अंकुश दोनों ही वर्किंग हैं. ऐसे में श्रेया घर और औफिस दोनों का काम संभालती है. वहीं अंकुश सोफे पर बैठेबैठे और्डर देता रहता है. इतना ही नहीं अंकुश खाने में भी नुक्स निकालता है. अकसर खाने में वैराइटी और घर के कामों को ले कर उन के बीच बहस होती रहती है. श्रेया इन सब से बहुत परेशान हो गई है. वह इस रिश्ते से अब थक गई है. उस का ऐसा फील करना गलत भी नहीं है. जब एक ही पर्सन जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहा हो तो वह एक समय बाद तंग हो ही जाता है. ऐसा ही अभी श्रेया के साथ हो रहा है.

असल में जब एक ही व्यक्ति घर और बाहर दोनों के ही काम करता है तो वह फ्रस्ट्रेटिंग फील करता है. उसे बातबात पर गुस्सा आता है. इस से उस की रिलेशनशिप में भी प्रौब्लम होती है. वहीं अगर दोनों पार्टनर मिल कर सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं तो उन का रिलेशन खुशनुमा रहता है.

ऐसे बनाएं खुशहाल जिंदगी

ऐसा नहीं है कि पार्टनर के साथ मिल कर काम करने से आप सिर्फ उन की हैल्प कर रहे हैं. पार्टनर के साथ मिल कर काम करने से आप अपनी मैरिड लाइफ को ज्यादा समय दे पाते हैं. इस से मनमुटाव भी नहीं होता है और आप की लाइफ स्मूथली मूव करती है, साथ ही आप मैंटली और फिजिकली हैप्पी भी फील करती हैं.

अगर दोनों पार्टनर मिल कर घर और बाहर दोनों के काम को संभालते हैं तो यह किसी एक पर बोझ नहीं बनता. ऐसा करने से दोनों ही अपने वर्क और स्किल्स पर ध्यान दे पाते हैं, साथ ही उन की लव लाइफ भी अच्छी और खुशहाल रहती है. दोनों पार्टनर के साथ मिल कर काम करने से आप अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को भी ज्यादा समय दे पाते हैं. वहीं किसी एक को भी ऐसा नहीं लगता कि उसे अपना रिश्ता बचाने के लिए ऐक्स्ट्रा ऐर्फ्ट करना पड़ रहा है न ही उस का पार्टनर उसे टेक फौर गरांटेड ले रहा है.

कोई भी रिश्ता तभी बेहतर होता है जब आप अपने पार्टनर और उस की फैमिली को रिस्पैक्ट देते हैं. यहां यह बात समझनी बहुत जरूरी है कि सिर्फ मेल पार्टनर या हसबैंड के मांबाप को मांबाप न समझ जाए बल्कि फीमेल पार्टनर या वाइफ के मांबाप को भी मांबाप समझ जाए. आप अपनी फीमेल पार्टनर या वाइफ के मांबाप को भी वह सम्मान दें जो आप अपनी पार्टनर से अपने मांबाप के लिए चाहते हैं.

आखिर इज्जत का हक सिर्फ लड़के के मां बाप तक ही क्यों सीमित रहे. जब 2 लोग 1 रिश्ते में आ रहे हों तो सम्मान भी तो दोनों के मांबाप का होना चाहिए.

अगर आप भी अपने रिश्ते में शांति और सुकून चाहते हैं तो अपने पार्टनर की पूरी मदद करें, साथ ही उस के मां बाप को भी पूरा सम्मान दें. वहीं अगर आप के रिश्ते में तनाव या मनमुटाव चल रहा है तो इस बार अपने रिश्ते को केयरिंग से रिपेयर करें.

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