फ्रिंज हेयर कट देगा आपको कौंफिडेंट लुक

आपको साठ के दशक की फिल्म “लव इन शिमला” तो याद होगी ना, जिसमें अभिनेत्री साधना की अदाकारी से लेकर उनका हिट हेयर स्टाइल ने सबके दिलों को जीत लिया था. उस फिल्म के बाद से आज तक ‘साधना कट’ हर महिला का पसंदीदा हेयरकट बन गया है. इसके अलावा आपने कई इंडोर्समेंट इवेंट्स में बौलीवुड सुंदरियों जैसे प्रियंका चोपड़ा, दीया मिर्जा, काल्कि कोचलिन, कटरीना कैफ आदि को भी इस फ्रिंज हेयर कट में देखा होगा.

फ्रिंज या बैंग हेयर स्टाइल एक ऐसा हेयर स्टाइल है जो सही मायनो में चेहरे को हाईलाइट कर आपको एक नया लुक देता है. लेकिन फ्रिंज कट को अपनाने से पहले कुछ खास बातों को ध्यान में रखना जरूरी है, आइये जानते हैं इसके बारे में –

कैसे फेस कट पर कैसी फ्रिंज कट फबेगी

ओवल फेस

ओवल फेस यानी अंडाकार चेहरा. इस तरह के चेहरे पर हर तरह का हेयर कट अच्छा लगता है. फ्रिंज के अलावा आप रेजर्ड, एंगल्ड या असीमिट्रिकल, साइड स्विफ्ट, पार्टेड या ब्लंट बैंग आदि हेयर कट भी ट्राई कर सकती हैं, ये आपको दुसरें से हटकर व एक कौंफिडेंट लुक देता है.

राउंड फेस कट के लिए

गोल पर रेजर्ड या स्ट्रेट फ्रिंज अच्छी लगेगी. यदि आपके गाल उभरे हुए हैं तो ऐसे में फ्रिंज, मांग के दोनों तरफ या साइड पर हों तो चेहरा को एक नया लुक मिलेगा जो देखने में काफी सुन्दर लगेगा.

लंबा फेस कट

लंबे चेहरे पर माथे से आती गालों तक व मांग के दोनों छोर पर बिखरी ब्लंट फ्रिंज चेहरे को अंडाकार लुक देती है.

स्क्वायर शेप

अगर आपका चेहरा स्क्वायर शेप का है तो ऐसे में साइड व सेंटर पार्टिंग के दोनों ओर व गालों तक आती इनवर्ड रोल (अंदर की ओर मुड़ी हुई) व कर्व (घुंघराली) फ्रिंज चेहरे को नया आकार देती है.

फ्रिंज वेरायटी के बारे में जाने

प्रमुख फ्रिंज वेराइटी हैं –

साइड स्विफ्ट फ्रिंज (मांग की एक तरफ से)

पार्टेड फ्रिंज (मांग के दोनों तरफ)

ब्लंट फ्रिंज (फ्रिंज को स्ट्रेटनिंग रोड से सीधा इनर रोल किया जाता है)

चौपी फ्रिंज (मांग की दोनों या एक तरफ व फ्रिंज में बालों की थिक लेयर)

असीमिट्रिकल फ्रिंज (मांग के दोनों ओर या एक तरफ बालों में रेजर कट दिया जाता है और इन्हें बाउंसी व शोर्ट कट दिया जाता है ताकि किसी तरफ से मांग निकालने पर फ्रिंज trimmed व Even दिखते हैं)

कुछ महत्त्वपूर्ण बातें और

फ्रिंज स्टाइल स्ट्रेट व बाउंसी बालों में अधिक अच्छा लगता है. बालों को वेवी व बाउंसी दिखाने के लिए फ्रिंज में बालों की थिक लेयर व क्राउन (माथे का सेंटर प्वाइंट) से लेकर फोरहेड तक फ्रिंज कटवाए, महीने में एक बार इन्हें ट्रिम जरूर करवाएं. तैलीय और कर्ली बालों में फ्रिंज कट नहीं जंचता है.

इसके अलावा ऊंचे माथे पर आईब्रो तक आती पतली व लंबी फ्रिंज, छोटे माथे पर सीधी व छोटी फ्रिंज, चौड़े माथे को छुपाने के लिए फ्रिंज थिक शार्ट लेन्थ होनी चाहिए.

प्रेग्नेंसी के बाद कम करना है वजन तो अपनाएं ये आसान तरीके

प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाना एक बड़ी चुनौती होती है. आमतौर पर प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और आपकी लाख कोशिशों के बाद भी वो अपना वजन कम नहीं कर पाती. इस खबर में हम आपको उन तरीकों के बारे में बताएंगे जिनकी मदद से आप प्रेग्नेंसी के बाद भी अपना वजन कम कर सकेंगी.

 खूब पीएं पानी

पानी पीना वजन कम करने का सबसे आसान तरीका है. अगर आप सच में अपना वजन कम करना चाहती हैं तो अभी से रोजाना 10 से 12 ग्लास पानी पीना शुरू कर दें.

टहला करें

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप वौक शुरू करें. कई रिपोर्टों में भी ये बाते सामने आई है कि प्रेग्नेंसी के बाद वजन घटाने के लिए जरूरी है टहलना.

खाना और नींद रखें अच्छी

आपको बता दें कि तनाव और नींद पूरी ना होने से कई तरह के रोग हो जाते हैं. इसके अलावा आप बाहर का खाना बंद कर दें. घर का बना खाना खाएं और पर्याप्त नींद लें. स्ट्रेस ना लें. खुद को कूल रखें.

बच्चे को कराएं ब्रेस्टफीड

आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये सच है कि ब्रेस्टफीड कराने से महिलाओं के वजन में तेजी से गिरावट आती है. और इस बात का खुसाला कई शोधों में भी हो चुका है. ब्रेस्टफीड कराने से शरीर की 300 से 500 कैलोरी खर्च होती है. कई जानकारों का मानना है कि स्तमपान कराने से महिलाओं का अतिरिक्त वजन कम होता है.

ऐसे बनाएं स्वादिष्ट रशियन सलाद

सामग्री

– फ्रेंच बीन्स (½ कप)

– गाजर, हरे मटर और आलू (कटे और आधे उबले)

–  कैन्ड पाइनएप्पल (½ कप कटी हुई)

– क्रीम (½ कप)

– मेयोनीज़ (½ कप)

– चीनी (½ टी स्पून)

-नमक (स्वादानुसार)

– काली मिर्च(कम मात्रा में)

बनाने की विधि

– एक बड़ा प्याला लें और इसमें फ्रेंच बीन्स, गाजर, हरे मटर और आलू और पाइनएप्पल दाल दें.

– इसमें मेयोनीज़, नमक, चीनी और काली मिर्च डालकर सही तरह मिला लें.

– फिर इसमें ताजी क्रीम डालकर फिर से मिला लें.

– इसके बाद इसे कम से कम 1 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें.

लीजिए आपकी रशियन सलाद तैयार है, इसे ठंडा ही परोसें.

भैरवी: भाग 3- आखिर मल्हार और भैरवी की शादी क्यों नहीं हुई

उस समय डूबता सूरज जातेजाते दो पल को ठिठक गया था. सांझ अधिक सिंदूरी हो उठी थी और वक्त अपनी सांसें रोक कर थम गया था.

‘‘क्या सोच रही हैं मैडम? आप की चाय ठंडी हो रही है,’’ मोहना ने फिर उसे वर्तमान के कठोर धरातल पर ला पटका था, जहां न तो मोगरे से महकते बचपन की सुगंध थी और न ही गुलाब से महकते कैशोर्य की मादकता.

घड़ी की सूइयों के साथ समय अगले दिन मं प्रवेश कर चुका था. मां सुबहसुबह ही

एअरपोर्ट के लिए निकल गई थीं. दिन में मंत्री महोदय के साथ मीटिंग काफी अच्छी रही थी. मंत्री भी भैरवी के काम करने के तरीके से बहुत प्रभावित थे. वैसे भी लखनऊ जैसे शहर का जिलाधिकारी होना कोई मामूली बात नहीं थी, जिस में हर दिन उस का अलगअलग पार्टियों के नेताओं से आमनासामना होता रहता था. सभी से अच्छे संबंध बना कर रखना भैरवी को भलीभांति आता था.

दिनभर रहरह कर भैरवी को मल्हार का खयाल आता रहा, जबकि उसे यह भी ठीक तरीके से पता नहीं था कि यह वही ‘मल्हार वेद’ है अथवा नहीं. उस के मन में मल्हार के लिए कोई बेचैनी या तड़प नहीं थी, बस एक उत्सुकता भर थी कि वह अब न जाने कैसा दिखता होगा. उस ने विवाह कर लिया होगा तो उस की पत्नी भी साथ आईर् होगी. न जाने उस के परिवार में कौनकौन होगा.

आर्ट गैलरी के उद्घाटन का कार्यक्रम समाप्त होतेहोते शाम के 6 बज गए थे. मल्हार का कार्यक्रम आरंभ होने में अभी भी 1 घंटा शेष था इसलिए भैरवी ने ड्राइवर से अपनी सरकारी गाड़ी घर की ओर मोड़ने के लिए कहा. घर पहुंच कर उस ने हलके वसंती रंग की हरे बौर्डर वाली अपनी मनपसंद साड़ी निकाली.

फिर अचानक ही नन्हा सा मल्हार टपक पड़ा, ‘‘तू यह पीले रंग की फ्रौक में कितनी प्यारी लगती है. यह रंग बहुत जंचता है तुझ पर.’’

‘‘हां, मालूम है मुझे. मां कहती हैं कि सांवली रंगत पर हलके रंग ही फबते हैं. कुदरत ने मुझे सांवला रंग क्यों दिया मल्हार. मैं सोनी जैसी गोरी चिट्ठी क्यों नहीं?’’

उस समय भैरवी ने यह मासूमियत भरा प्रश्न किया था. वह नहीं जानती थी कि एक दिन यह सांवला रंग ही उस की जिंदगी बदल देगा.

ऐसा नहीं था कि अब भैरवी के जीवन में कोई कमी थी. सबकुछ तो था उस के पास. नाम, पैसा, इज्जत, शोहरत. बस नहीं था तो एक अपना कहने वाला परिवार. उस के भाईबहन और यहां तक कि मां को भी बस उस के पैसों और शोेहरत से लगाव था. इस से अधिक कुछ नहीं. उस के भतीजेभतीजियां भी रोज अपनी फरमाइशों की सूची उस के पास भेजा करते कि बूआ मुझे बैटरी वाली डौल चाहिए या बूआ मुझे लाइट वाली साइकिल.

भैरवी जब भी अपनी सहेलियों और हमउम्र औरतों को अपने पति और बच्चों के साथ देखती तो उस के कलेजे में एक हूक सी उठती. फिर वह सबकुछ भूल कर अपने काम में जुट जाती.

जब भैरवी मल्हार के कार्यक्रम वाले आयोजन स्थल पर पहुंची तो हाल खचाखच भर चुका था. भीड़ देख कर भैरवी को एक सुखद आश्चर्य भी हुआ कि आज पौप के संगीत के जमाने में भी लोग लोकसंगीत को इतना पसंद करते हैं.

आयोजकों ने आगे बढ़ कर भैरवी का स्वागत किया और उसे स्टेज के सामने सब से आगे वाली कतार में ले जा कर बैठा दिया.

भैरवी की नजरें स्टेज पर टिक गईं. स्टेज के बीचोंबीच पीले सिल्क के कुरते और सफेद पाजामे में मल्हार खड़ा था. वैसी ही पतली मूंछें और करीने से कढ़े हुए बाल. हां, उस के भी बालों में चांदी ने घर बना लिया था. उम्र के साथ मल्हार का गोरा रंग और भी निखर आया था.

भैरवी को कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्ज्वलित कर स्टेज पर आमंत्रित किया. जब भैरवी स्टेज पर चढ़ी तब मल्हार की नजरों से उस की आंखें जा मिलीं. मल्हार की आंखों में आश्चर्य व प्रसन्नता के मिलेजुले से भाव उभरे और वह बोल पड़ा, ‘‘अरे तुम… म… म… मेरा मतलब है भैरवीजी आप? यहां? मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि आप से यहां मुलाकात हो जाएगी.’’

भैरवी ने कोई उत्तर नहीं दिया, बस मुसकरा कर रह गई. दीप प्रज्ज्वलन के बाद भैरवी अपने स्थान पर आ कर बैठ गई. स्टेज से उतरते समय मल्हार की निगाहें अपनी पीठ पर चिपकी हुई सी महसूस हुई उसे. कार्यक्रम के दौरान उसे लगता रहा कि  जैसे मल्हार उसे देख कर ही गा रहा हो. मल्हार के गीतों में वह स्वयं की कल्पना उस विरहन नायिका की तरह करती रही, जिस का पति परदेश चला गया है या फिर जिस का प्रेमी या पति हरी चूडि़यां लाने का वादा कर के देश की सीमा पर शहीद हो गया है.

दर्शक भी मल्हार की जादुई आवाज में डूब कर लोकसंगीत की पावन, सुरीली, सुरम्य धारा में सराबोर होते रहे. मल्हार के हर गीत की समाप्ति पर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा.

भैरवी का मन भी यह सोच कर गर्व की अनुभूति में डूबताउतराता रहा कि  वह उस मल्हार को बचपन से जानती है, प्रेम करती है, जिस की आवाज की सारी दुनिया दीवानी है. कार्यक्रम लगभग ढाई घंटे तक चला. कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात वहां उपस्थित पत्रकारों ने मल्हार को घेर लिया. भैरवी भी वापस घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई, हालांकि आयोजक उस से रात्रि का भोजन कर के वापस जाने का आग्रह करते रहे. परंतु भैरवी वहां से भाग जाना चाहती थी, अपनेआप से भाग जाना चाहती थी. दरअसल, वह मल्हार का सामना नहीं करना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि अतीत की जिन मृतप्राय यादों को उस ने किसी अंधेरी घुप्प कोठरी में कैद कर रखा है, वे उस कोठरी से निकल कर पुन: जीवित हो जाएं.

तभी किसी पत्रकार के शब्द उस के कानों से आ टकराए, ‘‘मल्हारजी, आप ने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया? क्या आप को अभी तक कोईर् भी ऐसी स्त्री नहीं मिली जो आप की जीवनसंगिनी बन सके?’’

मल्हार ने तिरछी नजरों से भैरवी की ओर देखा, जैसे वे नजरें बस उड़ती हुई सी

भैरवी को छू कर निकल गई हों, फिर बोला, ‘‘संगिनी तो मिली थी, परंतु वह मेरी जीवनसंगिनी न बन सकी.’’

भैरवी तेज कदमों से हौल के बाहर चली गई और अपनी गाड़ी में बैठ गई. उस की गाड़ी घर की ओर तेजी से भाग रही थी. आसपास के मकान, पेड़पौधे, दुकानें सबकुछ पीछे छूटता जा रहा था, ठीक वैसे ही जैसी भैरवी अपने बचपन से ले कर अब तक के बिताए पलों को पीछे छोड़, आगे निकल जाना चाहती थी. उस के मन में भावनाओं का ज्वार उफन रहा था जिन में लहरों की तरह हजारों सवाल उस के दिमाग में आ रहे थे कि ओह, तो अभी तक मल्हार ने भी विवाह नहीं किया है, मैं क्यों उस के प्यार की गहराई नहीं सम?ा पाई. मैं ने क्यों बीते इतने

सालों में मल्हार की कोई खोजखबर नहीं ली. मल्हार ने भी कभी मुझे ढूंढने या मिलने का प्रयास क्यों नहीं किया. क्या हमारा प्रेम इतना उथला था. क्या अब भी साथसाथ हमारा कोई भविष्य हो सकता है. मैं क्यों आप मल्हार का सामना नहीं करना चाहती.

घर पहुंच कर भैरवी ने कपड़े बदले और अपने मनपसंद शास्त्रीय गायक भीमसेन जोशी की सीडी अपने लैपटौप पर लगा दी. जब भी उस का मन उद्विग्न होता तो शास्त्रीय संगीत न केवल उस के मन को शांत करता बल्कि उसे सुकून भी पहुंचाता. पंडितजी की आवाज में सुकून की संगीत लहरियां पूरे घर में गूंजने लगीं.

तभी भैरवी के इंटरकाम फोन की घंटी बजी. फोन उठाने पर उस के बंगले पर तैनात दरबान ने बताया, ‘‘मैडमजी, कोई मल्हार नाम के सज्जन आप से मिलना चाहते हैं. मैं ने उन से कहा भी कि हमारी मैडम इतनी रात गए किसी से नहीं मिलतीं परंतु वे यहां से जाने को तैयार ही नहीं हैं. कह रहे कि मैडम से बिना मिले नहीं जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, अंदर आने दो उन्हें,’’ कह कर भैरवी ने फोन रख दिया.

भैरवी का हृदय उसी षोडषी कन्या की तरह जोरजोर से धड़कने लगा, जो अपने घर वालों से छिप कर अपने प्रेमी से मिलने जा रही हो.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो भैरवी ने दरवाजा खोला. मल्हार और भैरवी दोनों ने एकदूसरे को भरपूर नजरों से देखा, चुपचाप एकटक जैसे सालों के विछोह के बाद आमनेसामने होने पर दोनों की नजरें तृप्त हो जाना चाहती हों. उन पलों में समय वैसे ही ठहर गया जैसे किसी झील का ठहरा हुआ पानी.

मल्हार ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘इतने सालों बाद तुम्हें देख कर मैं कितना खुश हूं, बता नहीं सकता. मैं तो तुम से मिलने की उम्मीद ही छोड़ बैठा था. मुझे लगता था कि तुम्हारी शादी हो गई होगी और तुम अपनी गृहस्थी में मस्तमगन होगी. आज पता चला कि तुम ने भी मेरी तरह शादी नहीं की, तो डीएम साहिबा, क्या अपने घर के अंदर नहीं बुलाओगी? हम यों ही दरवाजे पर खड़ेखड़े ही बातें करेंगे?’’

‘‘रात बहुत हो चुकी है मल्हार, हम कल बात करें,’’ भैरवी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘परंतु मुझे तो अभी ही तुम से ढेर सारी बातें करनी हैं. तुम्हारे साथ अपने भविष्य के सपने सजाने हैं. हम दोनों ने ही इतने सालों तक एकदूसरे का इंतजार किया है. अब हमें अपनी जिंदगी एकसाथ बिताने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए भैरवी. सीधे शब्दों में कहूं तो मैं तुम्हारे समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखना चाहता हूं, क्यों न हम जल्द से जल्द विवाह बंधन में बंध जाएं. तुम्हारा क्या खयाल है? मुझ से विवाह करोगी न?’’ मल्हार ने भैरवी की आंखों में झंकते हुए कहा.

भैरवी ने देखा, बाहर बरामदे में लगे लैंपपोस्ट की रोशनी में मल्हार की आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं, भोली, निश्छल सी आंखें जिन में भैरवी के लिए प्रेम छलका पड़ रहा था.

भैरवी ने अपनी नजरें झुका लीं, ‘‘उम्र के जो वसंत बीत जाएं, वे दोबारा नहीं लौटा करते मल्हार, यह सच है कि मैं ने भी तुम्हें टूट कर चाहा है. अपनी कल्पनाओं की दुनिया में न

जाने कितनी बार मैं तुम्हारी दुलहन बनी हूं और तुम मेरे प्रियतम परंतु जिस संगीत ने हम दोनों

को जोड़ा था, वह संगीत ही मेरे भीतर अब सूख चुका है. अब इस पतझड़ के मौसम में बहारें दोबारा नहीं आ पाएंगी, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना.’’

‘‘यह क्या कह रही हो भैरवी. तुम तो ऐसी नहीं थीं. तुम इतनी निष्ठुर कैसे बन सकती हो,’’ मल्हार की आवाज भावुकता में बह कर लड़खड़ाने लगी.

‘‘निष्ठुर मैं नहीं, हमारी नियति है मल्हार. अब तुम जाओ, मुझे सोना है,’’ कह कर भैरवी ने दरवाजा बंद कर दिया और दरवाजे पर पीठ टिका कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से गंगाजमुना बह निकली.

भैरवी के मन के भीतर समाई लड़की का मन हुआ कि वह दरवाजा खोल कर देखे कि मल्हार वहीं खड़ा है या चला गया. वह दौड़ कर मल्हार के सीने से लग जाए और कहे कि हां, मल्हार, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं. मैं भी तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं, तुम्हारी बांहों में मरना चाहती हूं. मगर तुरंत ही उस प्रेम में पगी हुई लड़की का स्थान जिलाधिकारी भैरवी ने ले लिया.

घर में पंडित भीमसेन जोशी की आवाज में राग मल्हार गूंज रहा था और भैरवी की आंखों से आंसुओं की बरसात लगातार हो रही थी.

मुखौटा: समर का सच सामने आने के बाद क्या था संचिता का फैसला

भारतीयलड़कियों की किसी अमेरिकन या अंगरेज लड़के से शादी करने के बाद क्या हालत होती है इस का वर्णन करना आसान नहीं है. वे धोखा केवल इसलिए खाती हैं क्योंकि उन के परिवार वाले शादी से पहले लड़के की ठीक से तहकीकात नहीं करते.

निर्मला पुणे की रहने वाली हैं. उन की माता और महिला मंडल में आने वाली वत्सलाजी से अच्छी जानपहचान थी. एक दिन बातोंबातों में संचिता की शादी का जिक्र किया तब वत्सलाजी ने उन्हें अपने अमेरिका में रहने वाले भतीजे समर के बारे में बताया जो शादी के लायक हो गया था.

फिर दोनों अपनेअपने घर में इस बारे में बात करती हैं. संचिता अमेरिका में रहने वाले लड़के से शादी के लिए तैयार हो जाती है. वत्सलाजी भी समर को फोन कर के उस की राय मांगती है. तब वह भी शादी के लिए राजी हो जाता है. दोनों वीडियो चैट करते हैं तो सब ठीकठाक लगता है.

समर 2 महीनों के लिए भारत आ गया और झट मंगनी पट ब्याह हो गया. समर की

कोई भी तहकीकात किए बिना सिर्फ वत्सलाजी के भरोसे संचिता के मातापिता उस का ब्याह समर से कर दिया. वैसे वत्सलाजी पर भरोसा करने के पीछे एक वजह और थी और वह यह कि समर को वत्सलाजी ने ही पालपोस कर बड़ा किया था. समर  जब छोटा था तब उस के मातापिता की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी.

समर की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई तैयार नहीं था. पर जब समर के अमीर मातापिता की प्रौपर्टी में से समर का पालनपोषण करने

वाले व्यक्ति क ो हर महीने 25 हजार रुपए देने की बात सामने आई, जोकि उन की प्रौपर्टी के पैसों के ब्याज में दिए जाने थे, वत्सलाजी उसे संभालने के लिए आगे आ गईं. वत्सलाजी विधवा थीं, उन्हें बच्चे भी नहीं थे और उन्हें मिलने वाली पैंशन से वे सिर्फ अपना ही गुजारा कर सकती थीं, इसलिए वे पहले समर को पालने के लिए मना पर 25 हजार रुपए महीने मिलने की बात सुन कर वे समर को पालने के लिए राजी हो गई.

वत्सलाजी ने समर के पालनपोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया. उसे सौफ्टवेयर इंजीनियर बनाया. समर के 18 बरस का होने के बाद उस की प्रौपर्टी उस के नाम कर दी गई और 21 साल का होने के बाद उस के हाथों सौंप दी गई. पर पैसा मिलते ही समर की ख्वाहिशें बढ़ने लगीं और वह अमेरिका में बसने के सपने देखने लगा और फिर उस ने वैसा ही किया.

सौफ्टवेयर इंजीनियर बनते ही वह एक कंपनी में नौकरी के जरीए अमेरिका चला गया और वहीं पर बस गया. अब शादी के सिलसिले में वह भारत आया और संचिता के साथ शादी कर के उसे भी अमेरिका ले गया. समर के साथ खुशीखुशी कब 2 साल बीत गए संचिता को पता ही नहीं चला. उसे लगने लगा था मानो समर के साथ उसे दुनिया के सारे सुख मिल रहे हैं. ऐसे में ही उसे अपने गर्भवती होने का एहसास हुआ. डाक्टर के पास चैकअप करा कर इस बात की तसल्ली कर ली और फिर समर के आने की राह देखने लगी. वह जल्द से जल्द यह खुशखबरी समर को बताना चाहती थी.

शाम को समर के घर आते ही उस ने सब से पहले उसे यही खुशखबरी दी. पर उस के चेहरे पर खुशी की जगह और ही भाव नजर

आने लगे. उस का बदला रूप देख कर संचिता पलभर के लिए कांप गई. लेकिन कुछ ही क्षणों में समर संभल गया और संचिता को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है मैं बाप बनने वाला हूं. सच कहूं तो तुम ने जब यह खुशखबरी दी तब मुझे कुछ सूझा ही नहीं. अब तुम आराम करो. कल हम अपनी अच्छी पहचान वाली लेडी डाक्टर के पास जाएंगे ताकि वह अच्छी तरह तुम्हारा चैकअप करें.’’

दूसरे दिन संचिता ने जब आंखें खोली तब उसे अपनी कमर के नीचे का भाग कुछ भारीभारी सा लग रहा था. उस ने कमरे का निरीक्षण किया तब उसे ऐसा लगा कि वह किसी अस्पताल के कमरे में है. उस ने उठने की कोशिश की तो उस से उठा भी नहीं जा रहा था. तब एक नर्स दौड़ती हुई उस के पास आई और बोली, ‘‘अब थोड़ी देर और आराम करो. 2-3 तीन घंटे बाद तुम उठ सकती हो.’’

संचिता ने जब उस से पूछा कि उसे क्या हुआ तब नर्स ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा कि तुम्हारा अबौर्शन हुआ है. सुनते ही संचिता के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई क्योंकि वह तो सिर्फ चैकअप के लिए आई थी. डाक्टर ने

उसे कोलड्रिंक पीने के लिए दिया था. उस के बाद उसे गहरी नींद आने लगी और वह सो गई. पर अब उसे सब पता चल गया था. कुछ घंटों बाद समर आ कर उसे ले गया. घर जाने के

बाद उस ने शाम को संचिता से बस इतना ही कहा कि अभी वह बच्चे के लिए तैयार नहीं है. उसे अभी बहुत कुछ करना है. अगर वह उसे गर्भपात कराने को कहता तो शायद वह कभी तैयार नहीं होती, इसलिए उस ने यह रास्ता अपनाया.

अब संचिता के पास झल्लाने के सिवा कुछ नहीं बचा था. उस ने समर से बात करना छोड़ दिया. पहले समर के प्रति उस के मन में जो प्यार और आदर की भावना थी उस की जगह अब उस पर घृणा, तिरस्कार और चिड़ आने लगी थी. पर यहां विदेश में समर से बैर लेना उस ने उचित नहीं समझ क्योंकि यहां उस का कोई नहीं था. न कोई दोस्त न रिश्तेदार न पड़ोसी. अपना दर्द वह किसे सुनाती.

तभी एक दिन दोपहर को वत्सला बूआ का फोन आया. उन्होंने उसे बताया कि पिछले 15 दिनों में समर का 3 बार फोन आ चुका है और वह हर बार 25 लाख रुपए उस के अमेरिका के खाते में जमा करने की बात कह रहा है. उस ने बूआ को यह कहा कि  उस ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और खुद का कोई कारखाना शुरू करना चाहता है, जिस के लिए उसे पैसों की सख्त जरूर है. पर बूआ को दाल में कुछ काला नजर आया, इसलिए उन्होंने संचिता से इस बारे में पूछना चाहा. पर संचिता को तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. उलटा उस ने जब समर द्वारा धोखे से उस का गर्भपात कराने की बात वत्सला बूआ को बताई तब वे और भी हैरान रह गईं.

अब तो संचिता को समर से डर लगने लगा था. उस की सारी सचाई सामने आने लगी थी. विदेश में उस से बैर लेना मुनासिब नहीं था और मामापिता को सचाई बता कर वह उन्हें मुश्किल में नहीं डालना चाहती थी.

दूसरे दिन अब आगे क्या करना है, इस कशमकश में डूबी संचिता भारतीय

भूल के अमेरिका में रह रहे लोगों के लिए निकाले जा रहे अखबार के पन्ने पलट रही थी. तब एक तसवीर देख कर उस के हाथ रुक गए और उस ने वह खबर पढ़ी. प्रणोती, क्राइम विभाग की पत्रकार ने अपनी हिम्मत और दिमाग से बड़े सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और सफेदपोश कहे जाने वाले भारत और पाकिस्तान के काले दरिंदों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उस ने 2-3 बार वह खबर पढ़ी. उसे आशा की किरण नजर आने लगी. उस ने तुरंत अखबार के कार्यालय में फोन लगाया और प्रणोती के घर का पता और फोन नंबर ले लिया. प्रणोती उस की सहपाठी निकली. दोनों पूना में एकसाथ पढ़ा करती थीं. उस के पिताजी नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गए और उस की मां को भी साथ ले गए और फिर हमेशा के लिए अमेरिका में ही बस गए.

संचिता ने फोन कर के प्रणोती से संपर्क किया और उस से मिलने की इच्छा जाहिर की. प्रणोती ने उसे तुरंत अपने घर बुला लिया. अमेरिका में भी उस का अपना कोई है यह जान कर संचिता को बहुत अच्छा लगा. प्रणोती से मिल कर उस ने उस के साथ जो कुछ घटा और वत्सला बूआ ने 25 लाख रुपयों के बारे में जो कुछ कहा वह सब बताया.

प्रणोती ध्यान से उस की बातें सुनती रही. लगभग 2 घंटे दोनों में इस बात पर चर्चा चली. फिर प्रणोती से विदा ले कर संचिता अपने घर चली गई. प्रणोती ने उसे आश्वासन दिया कि वह मामले की तह तक जाएगी.

इधर संचिता रातभर समर की राह देखती रही पर वह घर नहीं आया. फिर कब उस की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला. पर सुबह भी वह नहीं आया. उस ने झट से चाय बना कर पी और नहाधो कर प्रणोती से मिलने जाने की तैयारी की. उस की गैरहाजिरी से समर घर आ सकता था, इसलिए उसे जाते एक चिट्ठी छोड़ दी कि वह मार्केट जा रही है.

प्रणोती के घर जाते ही प्रणोती ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘आज मैं जो बताने जा रही हूं उसे धैर्य से सुनना. तुम ने मुझे समर के औफिस का पता और उस के बारे में जो जरूरी जानकारी दी थी उस के आधार पर मैं ने कल ही उस की तहकीकात शुरू कर दी थी. संचिता, कल रात समर को खून के मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वह शबर के पुलिस लौकअप में बंद है. दूसरी बात उस ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया बल्कि उसे नौकरी से निकाला गया है क्योंकि उस ने औफिस में भारतीय मुद्रा के रूप में 25 लाख रुपयों का गबन किया था. वत्सला बूआ से उस ने सब झठ कहा था. कल सुबह उस के खाते में पैसे जमा होते ही उस ने वे पैसे कंपनी में भर कर खुद को छुड़ा लिया.

‘‘फिर दिनभर यहांवहां भटक कर शराब के नशे में धुत्त हो कर वह देर रात को कैसिनो में पहुंचा. वह हमेशा का ग्राहक था इसलिए कैसिनो के मालिक ने उसे जुआ खोलने के लिए 2 लाख रुपए उधार दिए, पर समर घंटेभर में ही सारे

पैसे हार गया और उस ने कैसिनो के मालिक से फिर से पैसों की मांग की. पर कैनो के मालिक ने उसे पहले के दो लाख रुपए 24 घंटों के अंदर वापस करने की बात कहते हुए और

पैसे देने से मना कर दिया. तब दोनों में इस बात को ले कर झगड़ा हो गया और झगड़ा बढ़तेबढ़ते लड़ाई में बदल गया जिस में समर के हाथों कैसिनो के मालिक का खून हो गया. वह वहां

से भागने की फिराक में था पर कैसिनो के बाउसरों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.

‘‘और अब मैं जो कहने जा रही हूं वह सुन कर तुम्हारे पांवों तले की जमीन खिसक जाएगी. तुम्हारी शादी से 6 महीने पहले उस ने एक जरमन लड़की से शादी की पर उस लड़की ने समर की चालढाल देख कर उसे छोड़ दिया. दोनों का अब तक कानूनी तौर पर तलाक भी नहीं हुआ है. इसलिए तुम्हारी शादी गैरकानूनी मानी जा सकती है. तुम्हारा गर्भपात कराने के पीछे भी शायद यही मंशा थी कि तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे की वजह से वह मुश्किल में पड़ सकता था.

‘‘संचिता, समर पूरी तरह फ्रौड निकला. उस पर दया करने की कोई जरूरत नहीं है. तू जैसे भी हो अपनेआप को उस के चंगुल से छुड़ा ले. मैं अपने वकील से बात करती हूं. देखते हैं वे क्या सलाह देते हैं. कल दोपहर को समर को कोर्ट में हाजिर किया जाएगा. हम वहां अपने वकील के साथ जाएंगे. अभी तुम अपने घर जाओ और तुम्हारा जितना सामान, जेवरात और पैसे हैं उन्हें ले कर मेरे घर आ जाओ. यहां तुम्हारी सारी चीजें बिलकुल महफूज रहेंगी और मामला पूरी तरह से निबटने तक तुम मेरे घर मेरी सहेली, मेरी बहन बन कर रह सकती हो.’’

संचिता ने आंसू पोंछे और प्रणोती के हाथों पर हाथ रख कर हां में सिर हिलाते हुए चली गई. घर पहुंचते ही संचिता ने तुरंत अपनी बैग निकाला और सारे कपड़े उस में भर दिए.

अपने जेवर सहीसलामत देख कर उसे राहत महसूस हुई. उस ने जेवर, नकद रुपए, अपने सारे कागजात और पासपोर्ट व वीजा भी बैग में रखा. फिर पूरे घर पर एक नजर डाल कर अपना बैग उठा कर प्रणोती के घर चल दी.

दूसरे दिन समर को कोर्ट में हाजिर किया गया. संचिता प्रणोती के साथ वहीं खड़ी थी. कोर्ट से बाहर आने के बाद संचिता ने समर का कौलर पकड़ कर उस से पूछा कि उस ने

ऐसा क्यों किया, पर समर ने कोई जवाब नहीं दिया और पुलिस की गाड़ी में जा बैठा. संचिता प्रणोती के साथ मिल कर उस जरमन लड़की से भी मिली जिसे समर ने धोखा दिया था. समर के कारनामे सुन कर वह लड़की हैरान रह गई. उस ने संचिता से सहानुभूति दिखाई और कहा कि समर से छुटकारा पाने के लिए अगर उसे उस से कोई मदद चाहिए तो वह उस की जरूर मदद करेगी.

अब संचिता को विश्वास हो गया कि वह समर से आसानी से छुटकारा पा लेगी. लेकिन समर का केस पूरे डेढ़ साल तक चला. समर को 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई. इस बार संचिता ने उस के सामने तलाक के कागजात रख दिए और समर ने भी बिना कुछ कहे उन पर साइन कर दिए. संचिता आजाद हो चुकी थी. उस ने प्रणोती को बहुतबहुत धन्यवाद दिया.

समर के काले कारनामों की पूरी जानकारी संचिता ने वत्सला बूआ और अपने मातापिता को दे दी. उन सभी को गहरा आघात लगा. वत्सला बूआ ने संचिता के मातापिता से माफी मांगी. लेकिन इस में वत्सला बूआ की कोई गलती नहीं थी और वे भी समर के धोखे की शिकार हुई थीं, इसलिए संचिता के मातापिता ने उन्हें माफ कर दिया.

अगले हफ्ते संचिता मुंबई के सहारा हवाईअड्डे पर उतर रही थी. उस के मातापिता और वत्सला बूआ उस के स्वागत के लिए खड़े थे, उस ने समर के चेहरे पर लगा झठ का मुखौटा जो निकाल फेंका था और उस का असली चेहरा दुनिया के सामने लाया था. ऐसे और भी कितने समर इस दुनिया में मौजूद हैं, जिन के चेहरे पर चढ़ा झठ का मुखौटा निकाल फेंकने के लिए खुद महिलाओं को ही आगे आना होगा.

उसका दुख: क्या नंदा को मिल पाया पति का प्यार

टैक्सी हिचकोले खा रही थी. कच्ची सड़क पार कर पक्की सड़क पर आते ही मैं ने अपने माथे से पंडितजी द्वारा कस कर बांधा गया मुकुट उतार दिया. पगड़ी और मुकुट पसीने से चिपचिपे हो गए थे. बगल में बैठी सिमटीसिकुड़ी दुलहन की ओर नजर घुमा कर देखा, तो वह टैक्सी की खिड़की की ओर थोड़े से घूंघट से सिर निकाल कर अपने पीछे छोड़ आए बाबुल के घर की यादें अपनी भीगी आंखों में संजो लेने की कोशिश कर रही थी.

मैं ने धीरे से कहा, ‘‘अभी बहुत दूर जाना है. मुकुट उतार लो.’’

चूडि़यों की खनक हुई और इसी खनक के संगीत में उस ने अपना मुकुट उतार कर वहीं पीछे रख दिया, जहां मैं ने मुकुट रखा था.  चूडि़यों के इस संगीत ने मुझे दूर यादों में पहुंचा दिया. मुझे ऐसा लगने लगा, जैसे मेरे अंदर कुछ उफनने लगा हो, जो उबाल आ कर आंखों की राह बह चलेगा. आज से 15 साल पहले मैं इसी तरह नंदा को दुलहन बना कर ला रहा था. तब नएपन का जोश था, उमंग थी, कुतूहल था. तब मैं ने इसी तरह कार में बैठी लाज से सिकुड़ी दुलहन का मौका देख कर चुपके से घूंघट उठाने की कोशिश की थी. वह मेरा हाथ रोक कर और भी ज्यादा सिकुड़ गई थी.

मैं ने उसे अभी तक देखा ही नहीं था. मैं ने चाचाजी की पसंद को ही अपनी पसंद मान लिया था. अब उसे देखने के लिए मन उतावला हो रहा था. नंदा को पा कर मैं फूला नहीं समा रहा था. वह भी खुश थी. भरेपूरे परिवार में वह जल्दी ही हिलमिल गई. मां उस की तारीफ करते नहीं अघाती थीं. घर में जो भी औरतें आतीं, वे अपनी बहू से उन्हें जरूर मिलाती थीं. अपने 5 बेटों और बड़ी बहू का वे उतना ध्यान नहीं रखतीं, जितना उस का रखती थीं. सासससुर की देखरेख, देवरननदों की पढ़ाई की सुविधा जुटाना, मुझे कालेज में जाने के लिए कपड़े, जूते, किताबें तैयार कराना, नौकरचाकरों को अपनी देखरेख में काम कराना उस के जिम्मे लगने लगा था. अगर मैं कभीशहर घूम आने या अपने दोस्तों के यहां चलने के लिए कहता, तो वह धीरे से कह देती, ‘ससुरजी को दवा देनी है. नौकरों से सब्जी की गुड़ाई करानी है. जानवरों के सानीपानी देना है. जेठानीजी अकेले कहां करा पाएंगी इतना सारा काम? मैं चली जाऊंगी, तो सासूमां को तकलीफ उठानी पड़ेगी. आज नहीं, फिर कभी.’

उस की ऐसी दलीलों को सुन कर मन मसोस कर मुझे चुप रह जाना पड़ता. जोशीजी की पत्नी ताना दे कर कहतीं, ‘‘मास्टरजी, कभी बहू को तो यहां लाया करो. आप ने तो उन्हें ऐसे छिपा लिया है, जैसे हम नजर लगा देंगे.’’ कालेज से जब घर लौटता, तो थक कर चूर हो जाता था. कभीकभी तो आठों पीरियड पढ़ाने पड़ जाते थे. मेरी तकलीफ नंदा जानती थी. समय निकाल कर जिद कर के वह मालिश करने लग जाती. एक दिन वह मुझ से नाराज थी. रात को बिना खाए ही सो गई. बात यह थी कि उस ने उस दिन मेरे पास आ कर कहा था, ‘‘पतिजी, एक बात कहूं? अगर आप मानोगे, तो तब कहूंगी,’’ वह बड़ी ही मासूमियत से बोली थी. वह अकेले में मुझे ‘पतिजी’ कहती थी.

मैं ने प्यार से कहा, ‘‘कहो तो सही.’’

‘‘पहले मानूंगा कहो,’’ वह बोली.

‘‘अच्छा बाबा, मानूंगा,’’ मैं बोला.

‘‘मुझे कुछ ज्यादा पैसे चाहिए,’’ उस ने कहा.

‘‘किसलिए चाहिए, यह तो बताओ?’’

‘‘अभी यह मत पूछो. तुम्हें अपनेआप पता चल जाएगा. मुझे 3 सौ रुपए की जरूरत है,’’ वह बोली.

‘‘जब तक तुम वजह नहीं बताओगी, पैसे नहीं मिलेंगे,’’ मैं ने भी अपना फैसला सुना दिया. इस के बाद वह रात को मुझ से नहीं बोली. सब को खाना खिला कर वह बिना खाए ही सो गई. दूसरे दिन मांजी को नंदा से कहते हुए सुना, ‘‘क्या बात है, जसौद हरीश व हंसी को साथ ले कर नैनीताल नंदा देवी देखने ले जाने वाला था, अभी तक तैयार नहीं हुए?’’

‘‘पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया मांजी. अगर आप थोड़ा पैसों की मदद कर दें, तो मैं उन से मांग कर आप को दे दूंगी, नहीं तो बच्चों का दिल टूट जाएगा. वे एक हफ्ते से कितने बेचैन हैं?’’ कहते हुए वह मांजी की ओर याचना भरी नजरों से देख रही थी.

‘‘ऐसा था, तो अभी तक क्यों नहीं कहा… मैं तो सोच रही थी कि शायद तुम्हारे जाने का प्रोग्राम बदल गया है,’’ मां बोलीं.

‘‘मांजी, मैं ने सोचा कि उन से कह कर…’’ मुझे देख कर वह चुप हो गई. मैं कालेज जाने की तैयारी कर रहा था. सासबहू की बातें मेरे कानों में पड़ीं, तो मैं उन के पास पहुंचा और जेब से पैसे निकाल कर नंदा को थमाते हुए बोला, ‘‘अरे भई, पहले ही कह दिया होता. वजह तो मैं पूछ ही रहा था. मैं ने कभी मना किया है तुम्हें?’’

वह मुसकराते हुए पैसे ले कर अंदर की ओर चल दी. वह देवरननद को यह खुशखबरी देने की बेचैनी अपने में नहीं रोक सकी. देवर व ननद से इतना लगाव देख कर मुझे उस से और भी प्यार हो आया. हमारी खुशहाल जिंदगी के 2 साल बीत गए. इस बीच हमारी गोद में एक नन्हा मुन्ना भी आ गया. बच्चे की जिम्मेदारी मांजी ने अपने ऊपर ले ली थी. वे ही उसे नहलातींधुलातीं, देखरेख करतीं. नंदा केवल अपना दूध पिलाने और रात को पास में ही सुलाने की ड्यूटी निभाती. सब ठीक ही चल रहा था. बोझ का एहसास तो तब हुआ, जब 4 साल और 2 साल के फर्क में 2 लड़कियां और चली आईं. उस दिन मेरा बेटा नवीन मेरे पलंग पर आ कर सो गया था. बड़ी बेटी मां के पास सो रही थी. छोटी बेटी को नंदा थपकी दे कर अपनी चारपाई पर सुला रही थी. मैं ने नंदा के मन को टटोलने के लिए पूछ लिया, ‘‘आधा दर्जन पूरा होने में 3 ही अदद की तो कमी रह गई. तुम्हारा क्या विचार है?’’

वह झुंझला कर बोली, ‘‘तुम भी कैसी बात करते हो जी? इन 2 लड़कियों की फिक्र ही मेरा दिमाग चाट रही है. 2-1 और हो जाएं, तो घर का भट्ठा ही बैठ जाएगा. ब्याहने के लिए कहां से लाओगे इतने पैसे?’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो. वह तो मैं ने तुम्हारे विचार जानने के लिए कहा था. सोच रहा हूं कि इस आने वाले जाड़ों में परिवार नियोजन करा लूं.’’

यह सुन कर वह चौंक पड़ी. कुछ देर वह मेरी ओर ताकती रही, फिर मेरे पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘तुम इतने कमजोर हो. कहीं तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं क्या करूंगी? मैं तो कहीं की नहीं रहूंगी. मुझे ही फैमिली प्लानिंग करा लेने दो. तुम जब कहो, तब मैं अस्पताल चल दूंगी.’’

मैं खीझ उठा, ‘‘तुम्हारी सोच तो बस जिद करने की आदत है. तुम यह क्यों नहीं समझतीं कि मर्द को फैमिली प्लानिंग में ज्यादा मुश्किल नहीं होती. औरत के लिए दिक्कत होती है. अस्पताल में कम से कम 2 दिन रुकना पड़ता है. दूसरा कोई आसान तरीका अभी नहीं निकला है. तुम निश्चिंत रहो. मुझे कुछ नहीं होने वाला है.’’

‘‘नहीं, तुम यह कभी मत करना. मैं ने सुना है कि मर्द कमजोर हो जाते हैं. मैं सारी तकलीफ झेलने को तैयार हूं, पर तुम्हें आपरेशन नहीं कराने दूंगी.’’

उस के मासूम चेहरे को देख कर मुझे ‘हां’ कहने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखा.

3 महीने भी नहीं गुजरे थे कि सरकारी आदेश आ गया. 2 बच्चों से ज्यादा जिन के बच्चे हैं, तुरंत नसबंदी कराने के सख्त आदेश कर दिए. उन दिनों इमर्जैंसी चल रही थी. चमचों और पिछलग्गुओं की बन आई थी. नेताओं को खुश करने के लिए, सरकार को खुश करने के लिए जनता पर जीतोड़ कहर ढाया जा रहा था. तब प्रिंसिपल भी भला पीछे क्यों रहें. उन के तो दोनों हाथ में लड्डू थे. सरकार को भी खुश करो और दर्जनभर केस दिलवा कर एक इंक्रीमैंट और जुड़वा लो. मैं ने आपरेशन कराने से पहले नंदा की रजामंदी ले लेना ठीक समझा, वरना उसे मनाना मुश्किल होगा. इन दिनों वह बच्चों को ले कर रामगढ़ गई हुई थी. जब उसे मालूम हुआ कि मैं आपरेशन कराने वाला हूं, वह दौड़ीदौड़ी चली आई. मेरे समझाने पर भी वह नहीं मानी. आपरेशन की ड्रैस पहना कर जब नर्सें उसे आपरेशन रूम में ले जा रही थीं, तब मेरा कलेजा काटने को आ रहा था. मैं अपने को धिक्कार रहा था कि मैं उसे क्यों अस्पताल ले आया? क्यों उस की बात मानी?

आपरेशन रूम से बाहर लाने में तकरीबन आधा घंटा लगा होगा. मुझे वे पल घंटों लंबे लगे. स्ट्रेचर पर सफेद कपड़ों में उसे बेहोश देख कर मुझे एकबारगी रोना सा आ गया. गला ऐसा भर आया, मानो कोई गला घोंटने लगा हो. बेहोशी में कराह के बीच उस का पहला साफ शब्द था, ‘‘पतिजी…’’ 3 साल बाद शादी की 13वीं सालगिरह की मनहूस आखिरी रील चल रही थी. इस रील के प्रमुख पात्र थे. मैं नायक था, नायिका नंदा थी और खलनायक खुद ऊपर वाला. खलनायक को नंदा का मेरे पास रहना अब नागवार सा लगा. फिर क्या था, उस ने उसे मुझ से छीनने की साजिश रच डाली. चिनगारी बुझने से पहले खूब रोशनी करती है न, ऊपर वाले ने नंदा की जिंदगी का भी यही सब से अच्छा सुनहरा साल चला दिया.

उस का छोटा भाई अपनी दीदी से मिलने आया था. नंदा अपनी खुशी को नहीं संभाल पा रही थी. अंदरबाहर इधरउधर वह तितली सी फुदक रही थी. रात को जब सब लोग मेरे बैडरूम में रेडियो के गानों के बीच गपशप में मशगूल थे, तो नंदा ने मुझ से अपनी तकलीफ जाहिर की, ‘‘आज मैं खाना नहीं खा सकी. मेरे जबड़े में बहुत तेज दर्द हो रहा है.’’

‘‘ज्यादा बोलती है न, इसलिए जबड़ा दर्द करेगा ही,’’ मैं ने बात हंसी में टाल दी. सुबह अपने भाई को विदा कर वह मेरे पास आ रही थी. आते ही वह सिसकियों से भर गई. आखिर इतना दुख वह कब से अपने में रोके थी? मैं हैरान रह गया. शायद भाई की जुदाई हो. पर ऐसी कोई बात न थी. उस का रोना शारीरिक दुख था. वह अपना मुंह पूरी तरह नहीं खोल पा रही थी. जबड़े दर्द के साथसाथ कसते चले जा रहे थे. मात्र उंगली डालने लायक जगह बची थी. मैं सहम गया.

उस ने मुझे छुट्टी ले कर अस्पताल चलने को कहा. मैं तुरंत उसे ले कर डाक्टर मेहरा के प्राइवेट अस्पताल को चल दिया. राधा भाभी को भी अपने साथ ले लिया.

डाक्टर मेहरा ने देखा और पूछा, ‘‘कहीं चोट तो नहीं लगी है?’’

नंदा ने सिर हिला कर जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’

‘‘कहीं कील या ब्लेड तो नहीं चुभा था?’’

जवाब था, ‘‘नहीं.’’

‘‘इधर महीनेभर के अंदर कोई ऐसी बात याद करो कि तुम्हारे शरीर से खून निकला हो या शरीर में कुछ चुभा हो या फिर तुम ने किसी पिन, सूई जैसी किसी चीज से दांत खुरचा हो?’’

कुछ देर सोचने के बाद उस ने ही कहा, ‘‘कुछ याद नहीं पड़ता.’’

मैं डाक्टर के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था. डाक्टर के चेहरे पर हैरानी और उतारचढ़ाव साफ जाहिर हो रहा था. डाक्टर बोला, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. जरूर कुछ न कुछ हुआ होगा, जो तुम याद नहीं कर पा रही हो. बिना चोट के तो यह मुमकिन ही नहीं है.’’ फिर डाक्टर ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘मुझे टिटनैस का डर लग रहा है. आप इन्हें जितनी जल्दी हो सके, सरकारी अस्पताल में भरती करा दें.’’

बीमारी का नाम सुनते ही मेरे पैरों की जमीन खिसकने लगी. मैं घबरा गया और उन से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, कहीं खतरा तो नहीं है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. अगर समय पर टिटनैस के इंजैक्शन लग जाएंगे, तो ठीक हो जाएंगी.’’ मुझे याद नहीं कि मैं ने कब परचा लिया और कब हम तीनों सरकारी अस्पताल पहुंच गए. हम में से किसी को होश नहीं था. खतरे का डर सब को हो गया था, क्योंकि इस बीमारी की भयंकरता सब ने सुन रखी थी. डाक्टर ने देखा, जांचा, परखा, पूछा आखिर में पहले डाक्टर की बात का समर्थन करते हुए नंदा को स्पैशल वार्ड में दाखिल कर दिया. एटीएस के 50,000 पावर के इंजैक्शन का इंतजाम भी मुझे ही करना था. वह इंजैक्शन अस्पताल में नहीं था. देर करना खतरनाक था. नंदा के पास भाभी को छोड़ कर मैं सब्र से काम लेने के लिए कह कर जाने लगा, तो वे दोनों मुंह दबा कर फफक कर रो उठीं.

मैं ने अपने को भरसक संभाला. लगा, जैसे सीना फट जाएगा. समय गंवाना ठीक न समझ कर मैं शहर को चल दिया. घंटेभर बाद इंजैक्शन का भी इंतजाम हो गया. घर में सूचना देते समय मेरा गला भर गया, आंखें बरसने लगीं. सारे घर में अजीब सा सन्नाटा छा गया. पहली रात हलकीहलकी कराहने की आवाजें आती रहीं. मैं उस के साथ था. मैं उस के माथे को सहला रहा था. उस ने अपना पर्स, कानों के कनफूल, मंगलसूत्र सब मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘पतिजी, इन्हें रख लो. अपना खयाल रखना. बच्चों का खयाल रखना,’’ वह आगे कुछ न कह सकी. आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

मैं ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करो, तुम बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ हम दोनों को ही एहसास हो चुका था कि अलविदा का समय नजदीक आ चुका है. शायद रातभर में हम इतना ही बोले थे. दूसरे दिन तक सारे गांव, इलाके, रिश्तेदारों तक को सूचना मिल गई थी. अस्पताल में भीड़ रोके नहीं रुक रही थी. अब नंदा का रूम डार्करूम बना दिया गया था. आंखों पर पट्टी रख दी गई थी. उस के आसपास आवाज करने की मनाही कर दी गई थी.

अगले दिन उस के पैरों में जकड़न चालू हो गई. पीठ में दर्द, ऐंठन बढ़ गई. दांत आपस में भिंच गए. धीरेधीरे जकड़न व ऐंठन सारे बदन में दाखिल हो गई. हलकेहलके झटके भी पड़ने चालू हो गए.

जब झटके पड़ते, ऐंठन होती, तो हम लोग उस के हाथ, पैर, सीना हलके से मलते. ग्लूकोज की बोतलों में तरहतरह की दवाओं का मिश्रण उसे दिया जा रहा था. एटीएस का तब तक दूसरा भी 50,000 पावर का इंजैक्शन लगा दिया गया था.

एकएक दिन खिसक रहे थे और उस की हालत दिनबदिन खराब होती जा रही थी. उस का शरीर इंजैक्शनों से छलनी हो गया था. पानी के बिना वहां सूखी पपडि़यां तड़क आई थीं. दांत कसने से खून बह रहा था. जूस व पानी के लिए वह संकेत करती, लेकिन डाक्टर की इजाजत नहीं थी. दिल मसोस कर रह जाना पड़ता. फट आए होंठों में ग्रीसलीन लगा कर तर करने की कोशिश की. पानी की 2-4 बूंदें तो दरारों में ही समा जाती थीं. इधर झटके तेज होते गए. दौरों की लंबाई भी बढ़ती गई. दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए उसे नींद के इंजैक्शन दिए जा रहे थे, पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था.

अब ग्लूकोज को भी शरीर ने खींचना छोड़ दिया था. निराशा में सब का दिल डूबने लगा. अभी छठे दिन की पौ नहीं फटी थी. रात को बारिश के बाद धुंधला सा उजाला होने लगा था. नर्स नींद का इंजैक्शन दे कर चली गई. कुछ समय बाद मैं दूसरे लोगों की देखरेख में नंदा को सौंप कर नहानेधोने चला गया. जब लौट कर आया, तब तक नंदा नहीं रही थी. अब न कोई झटके थे. न दौरे थे. न दर्द था. न कराहें थीं. थीं तो बस घर वालों की, दोस्तों की घुटती सिसकियां. मेरा सबकुछ लुट गया था. मैं खोयाखोया सा रहने लगा. छोटी बच्चियां जब टकटकी लगा कर मेरी ओर देखतीं, कलेजा मुंह में आने को हो जाता. थपकियां दिला कर, सीने से लगाए उन्हें सुला देता. नवीन ने चुप्पी साध ली थी. चुपचाप आ कर पुस्तक पढ़ने लग जाता. अब मांजी ही बच्चों की परवरिश कर रही थीं. धीरेधीरे 2 साल निकल गए. मांजी बच्चों की खातिर दोबारा शादी करने की बात छेड़तीं, तो मैं टाल जाता था. ससुराल वालों ने भी शादी के लिए कहना शुरू कर दिया. कई जगह से रिश्ते भी आने शुरू हो गए, लेकिन मैं साफ मना कर देता. भला पराए बच्चों को कौन नवेली अपना लेगी?

सासजी को शादी के लायक हो आई अपनी बेटी खुशी की उतनी चिंता न थी, जितनी मेरी और मेरे बच्चों की. मैं ने खुशी के लिए योग्य लड़का तलाश कर सूचना भेजी, तो जवाब आया कि खुशी ने इसलिए इनकार कर दिया है कि जब तक जीजाजी शादी नहीं कर लेंगे, वह भी शादी नहीं करेगी. बात बिगड़ती देख ससुराल वालों ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न खुशी से ही मेरी शादी कर दी जाए. खुशी ने भी अपनी दीदी के बच्चों की खातिर अपना त्याग स्वीकार कर लिया. लेकिन मैं इसे कैसे स्वीकार कर लेता?

मैं ने उसे समझाया, ‘‘खुशी, तुम यह क्या कर रही हो? जरा सोचो तो… मेरी उम्र का 38वां साल पार होने जा रहा है, जबकि तुम अभी 20 साल की होगी. फिर मैं 3 बच्चों का पिता भी हूं. मेरी खातिर अपनी जिंदगी क्यों बरबाद करने पर तुली हो? यह सही नहीं है.’’

वह धीरे से बोली, ‘‘आप मेरी चिंता न करें. सब सोचसमझ कर ही तो मैं ने हां की है. उम्र की क्या कहते हैं? माथे में उम्र लिखी होती, तो दीदी यों ही हमें छोड़ कर चली थोड़े ही जातीं? बच्चे मुझ से हिलेमिले हैं. मां का दुख भूल जाएंगे.

‘‘दीदी पर जितना हक आप का था, क्या मेरा हक नहीं? मुझे भी तो उस का दुख उतना ही है, जितना आप को,’’ उस के अंदर अपनापन और त्याग की भावना साफ झलक रही थी. बहुत समझाने पर भी उस ने अपना इरादा नहीं बदला, तब मुझे भी सहमति देनी पड़ी. आखिर किसकिस का मुंह संभालता? टैक्सी ने हिचकोला खाया, तो मेरी पिछली यादें टूट गईं. मैं अपनी यादों में इतना खो गया था कि मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि मैं वर बना बैठा हूं. एक दुलहन भीगी पलकों से मुझे ही निहार रही है. मुझे पढ़ रही है. समझ रही है. शायद तब तक मेरी आंखों के रास्ते कुछ बह कर सूख गया था. वह मुझ पर लुढ़क गई और मेरी गोदी में सो गई.

प्रियंका चोपड़ा को क्यों बेचने पड़े दो फ्लैट महज 6 करोड़ में

इन दिनों फिल्म कलाकारों द्वारा अपनी प्रापर्टी बेचने की खबरें काफी आ रही हैं. लोग कयास लगा रहे हैं कि इसकी वजह बौलीवुड की फिल्मों का लगातार अफसल होना है अथवा सरकार के दावों के बावजूद देश की इकोनामी में आ रही गिरावट हैं.बहरहाल,अब खबर है खुद को हौलीवुड स्टार मानने वाली अदाकारा भारतीय अभिनेत्री व 2000 की ‘मिस वल्र्ड’ विजेता ‘प्रियंका चोपड़ा ने भी दीवाली के त्यौहार के आस पास ही मुंबई के अपने दो फ्लैट महज छह करोड़ रूपए में बेच दिया.

बता दें कि यारी रोड पर ‘राज क्लासिक’ में आलीशान डुपलेक्स फ्लैट खरीदने से पहले प्रियंका चोपड़ा ने अंधेरी के लोखंडवाला इलाके में करण अपार्टमेंट नामक इमारत में दो फलैट कई वर्ष पहले खरीदे थे.इन फ्लैट का क्षेत्रफल 2300 स्क्वायर फुट है.जब प्रियंका चोपड़ा ने यारी रोड पर ‘राज क्लासिक’ के आलीशान डुपलेक्स फलैट में रहना शुरू किया,तब लोखंडवाला के फलैट में प्रियंका चोपड़ा की मां डाक्टर मधु चोपड़ा ने अपना क्लीनिक खोल लिया था.पर अब तो प्रियंका चोपड़ा अपने पति निक जोनांस के साथ ज्यादातर अमरीका में ही रहती है.

खबर है कि दिवाली से कुछ दिन पहले प्रियंका चोपड़ा ने लोखंडवाला के करण अपार्टमेंट के दोनोे फ्लैट छह करोड़ रूपए में बेच दिया.बताया जा रहा है कि यह काररवाही प्रियंका चोपड़ा की अनुपस्थिति में ‘पाॅवर आफ अटार्नी’ के बल पर डाॅक्टर मधु चोपड़ा ने ही की.यानी कि फ्लट बेचने के अग्र्रीमेंट पर डाॅक्टर मधु चोपड़ा ने ही हस्ताक्षर किए हैं. इन फ्लैट को ‘इश्कियां’ ,‘उड़ता पंजाब’ व ‘सोन चिड़िया’ जैसी फिल्मों के निर्देशक अभिषेक चैबे ने खरीदा है.इन दो फ्लैट के बेचे जाने पर प्रियंका चोपड़ा की मां ने चुप्पी साध रखी है.जब से यह खबर गर्म हुई है तब से लोग सवाल उठा रहे हैं आखिर प्रियंका चोपड़ा को इतनी क्या कड़की लग गयी कि उन्हे महज छह करोड़ के लिए अपनी मुंबई की प्रापर्टी बेचनी पड़ी? लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या प्रियंका चोपड़ा व उनके पति रोजमर्रा का खर्च चला सकने जितनी रकम भी नहीं कमा पा रहे हैं? ज्ञातब्य है कि प्रियंका चोपड़ा ने 2018 में निक जोनास संग षादी रचायी थी.उसके बाद से वह अमरीका ही रह रही हैं.कभी कभार वह भारत आती हैं.भारत आने पर वह अपनी व्यस्तता की बातें तो बहुत करती हैं. मगर 2018 से अब तक उनका कोई खास काम सामने नजर नहीं आया.

BB 17: Elvish Yadav ने दिया हिंट, वाइल्ड कार्ड बनकर धांसू एंट्री मारेंगी Anjali Arora

सलमान खान का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो बिग बॉस 17 के पांच हफ्ते बीच चुके है छठा हफ्ता चल रहा है लेकिन शो में कंटेस्टेंट्स कमाल नहीं दिख रहा.  इस बार यह सीजन काफी अलग है पिछले हर सीजन में बिग बॉस के घर में टास्क होते थे. हालांकि इस बार के थीम में मेकर्स ने टास्क को नहीं जोड़ा है. इस सीजन में मेकर्स नए-नए ट्विस्ट लेकर आ रहे है फिर भी शो टीआरपी लिस्ट में कुछ खास नहीं कर रहा है. वैसे भी इस बार के कंटेस्टेंट्स दर्शकों को पसंद नहीं आ रहे. छठे हफ्ते में आ कर भी कई कंटेस्टेंट्स सोते हुए नजर आ रहे है. ऐसे में मेकर्स कई सारे वाइल्ड कार्ड की एंट्री करवा सकते है. ऐसे में अंजलि अरोड़ा का नाम भी सामने आया

बिग बॉस 17 में आएंगी अंजलि अरोड़ा

दरअसल, रियलिटी शो बिग बॉस 17 में एकसाथ पांच-छह वाइल्ड कार्ड की एंट्री होगी. ये बात एल्विश यादव ने भी अपने लेटेस्ट वीडियो में कही है. एल्विश यादव ने अपने व्लॉग में बिग बॉस 17 के वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट के बारे में बात की. इस वीडियो में एल्विश यादव ने खुलासा किया कि उन्हें बिग बॉस 17 के वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट्स के बारे में पता चल गया है. अब शो में एक मशहूर टिक टॉक स्टार की एंट्री कंफर्म होने वाली है. एल्विश के मुताबिक, वो टिक टॉक स्टार उनका दोस्त भी हो सकता है और उनका दुश्मन भी हो सकता है. एल्विश यादव का ये वीडियो देखने के बाद लोगों का मानना है कि शो में अंजलि अरोड़ा आ सकती हैं.

हालांकि अंजलि अरोड़ा का नाम पहले भी शो के कंटेस्टेंट लिस्ट में आ चुका है. लेकिन अभी तक अंजलि अरोड़ा ने इस रिपोर्ट पर चुप्पी नहीं तोड़ी.

इन सेलेब्स का भी नाम आया

बता दें कि, बिग बॉस 17 के वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट्स की लिस्ट सोशल मीडिया पर छाई हुई है. जिसमें कई सेलेब्स का नाम सामने आया है. इस लिस्ट में राखी सांवत, आदिल दुर्रानी, लव कटारिया, भाविन भानुशाली, पूनम पांडे, फ्लोरा सैनी, तसनीम नेरुरकर और राघव शर्मा का नाम सामने आया है. दावा किया जा रहा है इनमें से कुछ सेलेब्स वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट्स बनकर आ सकते है.

कहीं आप भी तो नहीं फोमो का शिकार

फोमो यानी फियर औफ मिसिंग आउट. फोमो का आशय किसी चीज से वंचित रहने पर अफसोस होना है यानी दुनिया की दौड़ से पीछे छूट जाने की भावना. कभी आप को ऐसा महसूस होता है कि आप की जिंदगी में कोई मजा नहीं है बस गुजर रही है जैसे आप को लगता हो कि आप के दोस्त और रिश्तेदार मजेदार चीजें कर रहे हैं पर आप वैसा नहीं कर पा रहे हैं.

आप बारबार अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के सोशल मीडिया अकाउंट को चैक करते रहते हैं ताकि उन के बारे में कुछ न कुछ पता लगता रहे और कुछ पता न लगने पर निराशा महसूस करते हैं या फिर आप बस सोशल मीडिया पर कुछ भी अपलोड करना चाहते है और लाइक्स और कमैंट्स पाने के लिए बेताब रहते हैं. यदि इन में से कोई भी लक्षण आप में है तो आप फोमो का शिकार है यानि आप को पीछे छूट जाने का डर सता रहा है.

कब महसूस होगा

क्या कभी आप के साथ ऐसा हुआ है कि आज आप का अपने दोस्तों संग पार्टी पर जाने का प्रोग्राम है और आप औफिस से समय पर घर आए भी, मगर किसी जरूरी काम की वजह से या किसी और पारिवारिक काम की वजह से पार्टी में नहीं जा पाए. ऐसे में क्या आप ने अपने काम को निबटाते हुए मन में एक अजीब सी बेचैनी महसूस की है और इस बेचैनी को दूर करने के लिए क्या आप बारबार अपना सोशल मीडिया अकाउंट स्क्राल कर उस पार्टी या ट्रिप के पोस्ट चैक करते हैं.

आप के दोस्त क्या खा रहे हैं और कैसे ऐंजौय कर रहे हैं, आप ने क्या मिस कर दिया, क्या अपने हालात की उन के ऐंजौयमैंट के साथ तुलना करते हैं? यदि हां तो आप सम?ा लीजिए कि आप फोमो का शिकार हो गए हैं.

आइए, इन कुछ उदाहरणों में से किसी भी स्थिति में यदि खुद को पाते हैं तो आप फोमो के शिकार हैं:

स्मार्ट फोन फोमो यानी दिनरात स्मार्टफोन से चिपके रहना. कुछ लोग पूरा समय अपने स्मार्ट फोन से चिपके रहते हैं. आवश्यकता न होने पर भी हर 10-15 मिनट में अपने मोबाइल को चैक करने लग जाते हैं ताकि वे हर समय अपडेट रहें और उन को अपने से  ज्यादा फिक्र स्मार्ट फोन की होती है कि कहीं मेरा फोन बंद न हो जाए या फिर सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ अपडेट करते रहना.

स्मार्ट फोन फोमो शिकार लोग इस के बिना एक पल भी नहीं रह सकते हैं. वे अपने फोन में ऐसी दुनिया बसा चुके होते हैं जो बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग है और वे बारबार अपने दोस्तों, परिचितों एवं रिश्तेदारों के स्टेटस और उन के द्वारा की गई कोई भी ऐक्टिविटी को  देखने में ज्यादा रुचि रखते हैं.

इस समस्या का हल

कुछ समय मोबाइल से दूरी बनाएं. इस के लिए 24 घंटे के बाद या जब सभी कामों से फ्री हों, आराम कर रहे हों या किसी के औफिस के प्रतीक्षाकक्ष में बैठे हों तब भी ये सब कर सकते हैं अथवा दिनभर में एक निश्चित समय पर कुछ देर के लिए यह काम कर सकते हैं जिसे आप व्यू टाइम कह सकते हैं.

फोमो शौपिंग

अमूनन सभी लोगो को नई वस्तु खरीदने का शौक होता है लेकिन यदि आप फोमो शौपिंग के शिकार हैं तो इन लोगों का शौक अलग तरीके का होता है. जैसे ऐसे लोगों के दिमाग मे हमेशा यही चलता रहता है कि बाजार में ऐसी कौन सी वस्तु नई आई है जो किसी के पास नहीं है और उन्हें डर सताता है कि अगर वह वस्तु उन्हें न मिली तो वे दूसरे लोगों से पीछे रह जाएंगे.

महंगी वस्तुओं पर पैसे खर्च करना और बिना मतलब की चीजें खरीदना ताकि वे दुनिया से पीछे न छूट जाएं. वे उस वस्तु को किसी भी कीमत पर प्राप्त करना चाहते हैं ताकि वे दुनिया के साथ अपडेट रह सकें और सभी को सोशल व मीडिया पर शेयर करते रहें अगर आप में भी ऐसी कोई आदत है तो आप फोमो शौपिंग के शिकार हैं.

सोशल मीडिया फोमो यानी किसी भी समय सोशल मीडिया चलाते रहना. बहुत से लोगों को सोशल मीडिया का इतना शौक होता है कि वे कहीं भी हों उन का एक हाथ मोबाइल और सोशल मीडिया चलाने में बिजी रहता है. इस की वजह से कई बार लोग काफी अकेला, ईष्यालु और दुखी महसूस करते हैं. उन का ध्यान अपनी मीटिंग या काम पर कम हो कर अपने सोशल मीडिया की बारबार जांच करने में ज्यादा होता है. ऐसे लोग उस पल में न रह कर सोशल मीडिया की दुनिया में क्या हो रहा है जानने में लग जाते हैं. उन का सुबह से ले कर रात सोने तक का पूरा समय सोशल मीडिया के लिए ही होता है.

सोशल मीडिया फोमो समस्या का हल

  •  अपनी जिंदगी में होने वाली सकारात्मक बातों की लिस्ट तैयार करें.
  • ख़ुद की तुलना दूसरों से करना बंद कर दें. किसी के सोशल मीडिया पर खुश या रोमांचक फोटो को पोस्ट करने से यह गारंटी नहीं मिलती कि वह वास्तव में खुश और पूर्ण है.
  • सोशल मीडिया आप को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाता है, जहां आप इस के साथ अपने जीवन की तुलना करना शुरू करते हैं. इस भावना से छुटकारा पाने के लिए सोशल मीडिया पर कम समय बिताएं.
  • अपने व्यस्त जीवन से थोड़ा विराम लें. अपना समय आसपास के माहौल में जैसे प्रकृति, दोस्तों, परिवार के बीच बिताएं.
  • प्रकृति के करीब होने से आप का दिमाग शांत होता है और आप की चिंता को शांत करने में मदद मिलती है.
  • आप अपने घर की बालकनी और पेड़पौधों की देखभाल में भी वक्त बिता सकते हैं.

नोटिफिकेशन फोमो

स्मार्ट फोन पर रातदिन हर पल आते नोटिफिकेशन जहां हमें अपडेट रखते हैं वहीं साथ ही हमारे ध्यान को भटकाने का भी काम करते हैं और हमारी एकाग्रता को भंग करते हैं. साथ ही किसी भी काम के ऊपर कंसन्ट्रेशन होने ही नहीं देते हैं. ये अनावश्यक पुश अलर्ट परेशान कर देते हैं और हमें नोटिफिकेशन फोमो का शिकार बनाते हैं.

इस तरह के फोमो के शिकार लोगों को यह डर लगा रहता है कि कोई नोटिफिकेशन अलर्ट देखने में देर न हो जाए और हम कमैंट, लाइक या रिप्लाई करने में पीछे न छूट जाएं.

दम बिरयानी की बात ही अलग है

फेस्टिव टाइम के बाद अपनों के साथ फुरसत के लम्हे बिताने का आनंद ही और है, फिर ऐसे में अगर बेहतरीन स्वाद वाली बिरयानी लंच में मिल जाए तो दिन बन जाता है. मां भी तो ऐसा ही करती थी, पूरा परिवार डाइनिंग टेबल पर बैठ कर मां के हाथों की बनी बेहतरीन बिरयानी का इंतजार करता था.

आप बिरयानी बनाएंगी तो सोचेंगी कि वो मां के हाथों का स्वाद कहां से लाएं और मसालों का संतुलन कैसे बनाएं. तो सनराइज़ का बिरयानी मसाला आपकी इस मुश्किल को आसान करेगा. इसमें है बिरयानी मसालों का ऐसा मिश्रण जो बिरयानी में जगा देगा मां के हाथों का स्वाद.

चिकन दम बिरयानी

सामग्री

1 किलोग्राम चिकन, 3 कप चावल, 2 चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट, 3 प्याज कटे, 1 बड़ा टमाटर कटा, 3-4 हरीमिर्चें बीच से कटी, 2 चम्मच दही, 2 चम्मच सनराइज़ बिरयानी मसाला, थोड़ी सी हरी इलायची, तेजपत्ता, दालचीनी और लौंग, थोड़ा सा भुना प्याज, नमक स्वादानुसार, थोड़ा सा देशी घी, तेल जरूरतानुसार.

विधि

एक गहरे पैन में पानी उबाल कर उसमे चावल, 2 चम्मच नमक, लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता डालकर 80% तक पका लें. पक जाने पर स्ट्रेन कर अलग रख लें. इसी बीच चिकन, दही, थोड़ा सा सनराइज़ बिरयानी मसाला, थोड़ा सा नमक मिलाकर चिकन मैरीनेट कर लें. अब मोटी पेंदी वाले बर्तन में तेल गरम कर प्याज, हरीमिर्चें, अदरक-लहसुन का पेस्ट भूनें. भुन जाने पर चिकन इसमे अच्छी तरह मिक्स करें. अब सनराइज़ बिरयानी मसाला, नमक और टमाटर मिलाएं. सब अच्छी तरह मिक्स कर मध्यम आंच पर चलाते हुए चिकन 90% तक पका लें. पक जाने पर थोड़ा चिकन बर्तन में छोड़ कर बाकी निकाल लें. अब बचे चिकन के ऊपर चावल की लेयर लगाएं. फिर से चिकन की लेयर लगा कर चावल की लेयर से कंप्लीट करें. ऊपर से भुना प्याज और देशी घी डालें. बर्तन के किनारों पर आटे की लोई लगाकर ढक्कन को सील करें. धीमी आंच पर 30 मिनट तक बिरयानी में दम लगाएं. तैयार बिरयानी सलाद और रायते के साथ परोसें.

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