उफ हो ही गया: उस रात नर्वस क्यों था मंयक

‘‘ऐसेकैसे किसी भी लड़की से शादी की जा सकती है? कोई मजाक है क्या?

जिसे न जाना न समझ उस के साथ जिंदगी कैसे निभ सकती है?’’ मयंक अपनी मां सुमेधा पर झंझलाया.

तभी पिता किशोर बातचीत में कूद पड़े, ‘‘जैसे हमारी निभ रही है,’’ किशोर ने प्यार से पत्नी की तरफ देखते हुए कहा तो गोरी सुमेधा गुलाबी हो गई.

मयंक से उन की यह प्रतिक्रिया कहां छिप सकी थी. यह अलग बात है कि उस ने अपनी अनदेखी जाहिर की.

‘‘आप तो बाबा आदम के जमाने के दिव्य स्त्रीपुरुष हो. वह सेब आप दोनों ने ही तो खाया था. आप का मुकाबला यह आज के जमाने का तुच्छ मानव नहीं कर सकता,’’ मयंक ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर जिस नाटकीय अंदाज में अपना ऐतराज दर्ज कराया उस पर किसी की भी हंसी छूटना स्वाभाविक था.

‘‘तो ठीक है करो अपनी पसंद की लड़की से शादी. हमें बुलाओगे भी या किसी दिन सामने ही ला कर खड़ी कर दोगे,’’ सुमेधा चिढ़ कर बोली तो मयंक नाक सिकोड़ कर गरदन झटकता हुआ अपने कमरे में घुस गया.

यह आज का किस्सा नहीं है. यह तो एक आम सा दृश्य है जो इस घर में पिछले 2 सालों से लगभग हर महीने 2 महीने में दोहराया जा रहा है. सुमेधा और किशोर का बेटे पर शादी करने का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. वैसे उन का ऐसा करना गलत भी नहीं है.

‘‘तीस का होने जा रहा है. अभी नहीं तो फिर कब शादी करेगा? शादी के बाद भी तो

कुछ साल मौजमजे के लिए चाहिए कि नहीं? फिर बच्चे कब करेगा? एक उम्र के बाद बच्चे होने में भी तो दिक्कत आने लगती है. फिर काटते रहो अस्पतालों के चक्कर और लगाते रहो डाक्टरों के फेरे. चढ़ाते रहो अपनी गाड़ी कमाई का चढ़ावा इन आधुनिक मंदिरों में,’’ सुमेधा गुस्से से बोली.

मयंक का खीजते हुए अपने कानों में इयरफोन ठूंस लेना घर में एक तनाव को पसार देता है. फिर शुरू होती है उस तनाव को बाहर का रास्ता दिखाने की कवायद. सुमेधा की रसोई में बरतनों की आवाजें तेज होने लगती हैं और राकेश का अंगूठा टीवी के रिमोट के वौल्यूम वाले बटन को बारबार ऊपर की तरफ दबाने लगता है.

घर का तनाव शोर में बदल जाता है तो मयंक गुस्से में आकर टीवी बंद कर देता है और मां को कमर से पकड़ कर खींचता हुआ रसोई से बाहर ले आता है. कुछ देर के सन्नाटे के बाद मयंक अदरक वाली चाय के 3 कप बना कर लाता है और उस की चुसकियों के साथ आपसी तनाव को भी पीया जाता है. सब सहज होते हैं तो घर भी सुकून की सांस लेता है.

आज भी यही हुआ. लेकिन आज बात इस से भी कुछ आगे बढ़ी. सुमेधा आरपार वाले मूड में थी. बोली, ‘‘बहुत बचपना हो गया मयंक. अब शादी कर ही लो. चलो, हमारी न सही अपनी पसंद की लड़की ही ले आओ. लेकिन उम्र को बुढ़ाने में कोई सम?ादारी नहीं है.’’

सुमेधा ने हथियार डालते हुए कहा तो मयंक मन ही मन अपनी जीत पर खुश हुआ. पलक ?ापके बिना ही कालेज की साथी और अपने साथ काम करने वाली कई लड़कियां 1-1 कर उस के सामने से रैंप वाक करती गुजरने लगीं.

‘‘तो अब आप सास बनने की तैयारी कर ही लो,’’ मयंक ने कुछ इस अंदाज में कहा मानो लड़की दरवाजे पर वरमाला हाथ में लिए खड़ी उसी का इंतजार कर रही है. मामले में सुलह होती देख कर राकेश ने भी राहत की सांस ली.

मां की चुनौती स्वीकार करते ही मयंक के जेहन में अपनी पहली क्रश मोहिनी की तसवीर कौंध गई. लेकिन मोहिनी से संपर्क टूटे तो 5 साल बीत गए. अब तो सोशल मीडिया पर भी संपर्क में नहीं है.

सोशल मीडिया का खयाल आते ही मयंक ने मोहिनी को सर्च करना शुरू किया. न जाने कितने फिल्टर लगाने के बाद आखिर मोहिनी उसे मिल गई. प्रोफाइल खंगालते ही उसे झटका सा लगा. लेटैस्ट अपडेट में उस ने अपने हनीमून की मोहक तसवीरें लगा रखी थीं. मयंक का दिल टूटा तो नहीं लेकिन चटक जरूर गया.

कालेज में फाइनल ईयर वाली शालिनी के साथ भी कुछ इसी तरह का अनुभव उसे हुआ. शालिनी की गोद में गोलमोल बच्चे को देख कर उस ने आह भर ली.

‘मां सही कह रही है. मेरी शादी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से साल 2 साल लेट चल रही है. मुझे अपनी ट्रेन भाग कर ही पकड़नी पड़ेगी,’ सोचते हुए मयंक ने स्कूलकालेज की साथियों को छोड़ कर अपनी सहकर्मियों पर ध्यान केंद्रित करना तय किया.

सब से पहले सूई वृंदा पर ही जा कर अटकी. मयंक वृंदा की नशीली आंखों को याद कर उन में गोते लगाने लगा. उस ने वृंदा को फोन लगाया, ‘‘हैलो वृंदा, आज शाम औफिस के बाद पार्किंग में मिलना. कौफीहाउस चलेंगे,’’ मयंक ने मन ही मन उसे प्रपोज करने की भूमिका साधते हुए कहा.

वृंदा ने उस का प्रस्ताव स्वीकार कर के उसे पहले पायदान पर जीत का एहसास दिलाया.

कौफी के घूंट के साथ कुछ इधरउधर की बातें चल रही थीं. आखिरी घूंट भर कर कप को मेज पर रखने के बाद मयंक ने अपनी आंखें वृंदा के चेहरे पर गड़ा दीं. वृंदा का कप अभी भी उस के होंठों से ही लगा था. उस ने कप के ऊपर से झंकती अपनी मोटीमोटी आंखों की भौंहों को चढ़ाते हुए इशारे से पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

मयंक ने इनकार में सिर हिला दिया. वह उस के कप नीचे रखने का इंतजार कर रहा था. जैसे ही उस ने कप नीचे रखा मयंक ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘आई लव यू.’’

मयंक ने जिस तरह कहा उसे सुन कर वृंदा अचकचा गई. फिर कुछ समझ तो मुसकरा दी, ‘‘मैं भी,’’ और उस ने आंखें  झुका कर अपनी स्वीकृति दे दी.

मयंक अपनी सफलता पर फूला नहीं समाया.

‘‘शादी करोगी मुझ से?’’ उत्साह में आए मयंक ने अगला प्रश्न दागा.

यह प्रश्न वृंदा को सचमुच गोली जैसा ही लगा. वह आश्चर्य से मयंक की तरफ देखने लगी. फिर बोली, ‘‘शादी नहीं कर सकती,’’ वृंदा ने ठंडा सा उत्तर दिया जिस की मयंक को कतई उम्मीद नहीं थी.

‘‘लेकिन अभी तो तुम ने कहा कि तुम भी मुझ से प्यार करती हो,’’ मयंक अब भी उस के जवाब पर विश्वास नहीं कर पा रहा था.

‘‘तो मैं कहां इनकार कर रही हूं. लेकिन शादी और प्यार 2 बिलकुल अलग तसवीरें हैं. शादी कोई बच्चों का खेल नहीं है. बहुत सी अपेक्षाओं, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का मिलाजुला नाम है शादी. मु?ो नहीं लगता कि मैं अभी ऐसी किसी भी स्थिति में पड़ने के लिए तैयार हूं. तुम अपने पेरैंट्स से कहो न कि तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी लड़की तलाश करें. यकीन मानो इस मामले में उन की परख बहुत ही व्यावहारिक होती है. मैं तो अपने लिए ऐसा ही करने वाली हूं.’’

वृंदा की बेबाक टिप्पणी सुन कर मयंक को लगा जैसे उस ने किसी पत्थर के सनम को प्यार का फूल चढ़ाया है. वह अपना सा मुंह ले कर रह गया.

कुछ दिन देवदास का किरदार जीने के बाद मयंक को रीना का खयाल आया. रीना एक बहुत ही दिलचस्प लड़की है. मौडर्न सोसाइटी में एकदम फिट बैठने वाली. उस के साथ शामें बहुत ही शानदार गुजरती हैं. लेकिन इस के साथ ही उसे रीना का पी कर बहकना भी याद आ गया और वह उस की शादी की उम्मीदवारी से हट गई. रीना के बाद श्यामा और फिर इसी तरह मेघा भी दावेदारी से बाहर हो गई.

मयंक सकते में था कि शादी की बात आते ही वह इतनी दूर की क्यों सोचने लगा. कहां तो उसे यह वहम था कि वह चाहे तो शाम से पहले किसी भी लड़की को दुलहन बना मां के सामने ला कर खड़ी कर दे और कहां वह किसी एक नाम को अंतिम रूप नहीं दे पा रहा.

कई दिनों की माथापच्ची के बाद मयंक ने हार स्वीकार कर ली कि ऐसी लड़की जो खुद उस की पसंद की हो और मां की उम्मीदों पर भी खरी उतरे तलाश करना कम से कम उस के लिए तो आसान काम नहीं ही है. आखिर उस ने यह विशेषाधिकार फिर से मां को ही दे दिया. सुमेधा तो जैसे तैयार ही बैठी थी. झट काम्या की तसवीर और बायोडाटा मयंक के सामने रख दिया.

मुसकराती हुई आंखों वाली इंजीनियर काम्या मयंक को तसवीर देखने मात्र से ही अपनी सी लगने लगी. उसे इस एहसास पर आश्चर्य भी कम नहीं था. पूरा बायोडाटा पढ़ने के बाद पता चला कि काम्या मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती है. यह पढ़ते ही मयंक के जेहन में एक बार फिर से अपनी सहकर्मी लड़कियां डूबनेउतराने लगीं.

‘‘पता नहीं यह कैसी होगी? वृंदा, रीना जैसी या फिर मोहिनी शालिनी जैसी. क्या शादी निभा पाएगी या कहीं मैं ही न निभा पाया तो?’’ जैसे कई खयाल मन में उथलपुथल मचाने लगे. मयंक ने एक आजमाइश की सोची.

‘‘मुझे आप की पसंद पर एतराज नहीं लेकिन मैं इसे अपने तरीके से भी परखना चाहता हूं,’’ मयंक ने कहा तो सुमेधा चौंकी.

‘‘तुम्हारा तरीका कौन सा है?’’ सुमेधा ने पूछा.

‘‘वह काम्या समझ जाएगी,’’ मयंक ने कहा तो सुमेधा ने काम्या की मम्मी से बात कर के मयंक से मिलने की इजाजत ले ली.

आपस में बात कर के शनिवार शाम को दोनों ने एक क्लब में मिलना तय किया. काम्या जींस और खुले गले के टौप में काफी आकर्षक लग रही थी और मयंक की कल्पना से विपरीत भी.

कुछ देर की बातचीत के बाद मयंक ने सिगरेट सुलगा ली. 1-2 कश के बाद उस ने काम्या की तरफ बढ़ा दी.

‘‘पीती हो?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘यदि पीना आप के लिए सही है तो मेरे लिए गलत कैसे हो सकता है,’’ कह कर उसे गहरी आंखों से देखती काम्या ने सिगरेट अपनी उंगलियों में थाम ली और कश खींचने लगी.

मयंक उसे घूर रहा था, ‘‘अल्कोहल?’’ मयंक के इस बार पूछने में एक खीज भी शामिल थी.

काम्या मुसकरा दी, ‘‘सेम आंसर.’’

मयंक को माथे पर कुछ नमी सी महसूस हुई. उस ने टिशू पेपर उठा कर बूंदों को थपथपाया. काम्या अब भी शांत थी.

‘‘बेचारी भोली मां. इस के प्रपोजल फोटोग्राफ पर री?ा गई. काश, हकीकत जान पाती,’’ मयंक को सुमेधा के चयन पर तरस आ रहा था.

2-4 मुलाकातों के बाद भी मयंक काम्या को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाया. वह न तो उस के व्यवहार को ठीक से समझ पाया और न ही उस के बारे में कोई अच्छी या बुरी राय अपने मन में बना पाया. हर बार काम्या उसे पिछली बार से अलग एक नए ही अवतार में नजर आती. हार कर उस ने हर परिणाम भविष्य पर छोड़ दिया. इस एक मात्र निर्णय से ही उसे कितना सुकून मिला यह सिर्फ वही जान सका.

सगाई में हरेपीले लहंगे में सजी, लंबे बालों को फूलों की वेणी में बांधे काम्या उसे इस ट्रैडिशनल ड्रैस में भी उतनी ही सहज लग रही थी जितनी किसी वैस्टर्न ड्रैस में.

काम्या उसे एक पहेली सी लग रही थी और वही क्यों, काम्या से मिलने के बाद उसे तो सभी लड़कियां पहेली सी उलझ हुई ही लगने लगी थीं.

इसी पहेली की उलझन में भटकता मयंक एक रोज काम्या को अपनी शेष जिंदगी की हमसफर बना कर घर ले आया.

शादी के बाद जब उस के दोस्त उसे कमरे में छोड़ने की औपचारिकता कर रहे थे तब मयंक सचमुच ही बहुत नर्वस महसूस कर रहा था. इतना संकोच तो उसे अपनी सब से पहली गर्लफ्रैंड का हाथ पकड़ने पर भी नहीं हुआ था.

एक ही रात में ऐसा कुछ हो गया कि काम्या उसे अपने सब से अधिक नजदीक लगने लगी.

‘‘क्या तन से जुड़ाव ही मन से जुड़ाव की पहली सीढ़ी होती है?’’ यह प्रश्न मयंक के सामने आ कर खड़ा हो गया लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे पाया. अब तक तो वह इस का उलट ही सही समझता आ रहा था. उस की थ्योरी के अनुसार तो पहले दिल मिलने चाहिए थे. शरीर का मिलन तो उस के बाद होता है. आज उसे समझ में आया कि थ्योरी पढ़ने और प्रैक्टिकल करने में कितना अंतर होता है.

हनीमून पर काम्या का साथ उस में एक अलग ही ऊर्जा का संचार कर रहा था. अनजानी काम्या उसे तिलिस्म से भरी किसी बंद किताब सी लग रही थी जिसे पन्ने दर पन्ने पढ़ना बेहद रोमांचकारी था. उस की आदतें, उस का व्यवहार, उस की पसंदनापसंद यानी काम्या से जुड़ी हर छोटी से छोटी बात भी मयंक को कुतूहल का विषय लग रही थी. उस में उस की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही थी.

‘‘आजकल सिगरेट नहीं पीते क्या?’’ एक शाम काम्या ने पूछा.

‘‘जो आदत मैं तुम्हारे लिए बुरी समझता हूं, वो मेरे लिए अच्छी कैसे हो सकती है?’’ मयंक ने जवाब दिया तो काम्या मुसकरा दी.

‘‘और अल्कोहल?’’ काम्या ने फिर पूछा.

‘‘सेम आंसर,’’ मयंक मुसकराया.

सुन कर काम्या पति के जरा और पास खिसक आई. हनीमून खत्म हो गया. दोनों ने अपनाअपना औफिस फिर से जौइन कर लिया. मयंक अब पूरे 10 घंटे काम्या से दूर रहता. वह काम्या के दिल का हाल तो नहीं जानता था लेकिन खुद वह लगभग हर 10 मिनट के बाद उस के बारे में सोचने लगता. काम्या कभी उसे बिस्तर पर लेटी उस का इंतजार करती नजर आती तो कभी चुपचाप बिस्तर पर पटका उस का गीला तौलिया उठा कर तार पर टांगने जाती दिखाई देती. कभी वह मां के साथ टेबल पर नाश्ता लगा रही होती तो कभी अपनी अलमारी में से पहनने के लिए कपड़े चुनने में मदद के लिए उस की तरफ देखती आंखों ही आंखों में सवाल करती और उस से सहमति लेती महसूस होती.

मयंक को इस तरह का अनुभव पहली बार हो रहा था. ऐसा नहीं है कि प्यार ने उस की जिंदगी में दस्तक पहली बार दी हो, लेकिन यह एहसास पिछली हर बार से अलग होता. यहां खोने या ब्रेकअप का डर नहीं है. नाराजगी के बाद मानने या न मानने की चिंता के बाद भी नहीं. किसी के देख लेने और पकड़े जाने की घबराहट नहीं है. दो घड़ी एकांत की तलाश में शहर के कोने खोजने की छटपटाहट नहीं है.

‘यह प्यार का कौनसा रूप है? इतनी लड़कियों से रिलेशन के बाद भी यह सौम्यता कभी महसूस क्यों नहीं हुई? रिश्ता इतना मुलायम क्यों नहीं लगा?’ मयंक सोचता और इतना सोचने भर से ही काम्या फिर से उस के खयालों में दखलंदाजी करने लगती.

मयंक का औफिस के बाद दोस्तों के साथ चिल करना भी इन दिनों काफी कम हो गया था. हर शाम वह खूंटा तुड़ाई गाय सा काम्या के पास दौड़ पड़ता.

आज शाम जैसे ही घर में घुसा, काम्या के पिताजी को बैठे देख कर चौंक गया. नमस्ते कर के भीतर गया तो देखा कि काम्या अपने कपड़े जमा रही थी.

‘‘ये कपड़े क्यों जमा रही हो?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘मम्मी का फोन आया था कि शादी के बाद आई ही नहीं. आगे 2 दिन छुट्टी है, तो पापा को भेज दिया लिवाने के लिए,’’ काम्या ने सूटकेस बंद करते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं ने वीकैंड प्लान कर रखा था. तुम ने मुझे बताया तक नहीं,’’ अपना प्लान चौपट होते देख कर मयंक खीज गया.

‘‘वीकैंड तो आते ही रहेंगे. हम फिर कभी चल लेंगे. इस बार मां से मिलने का बहुत मन है,’’ काम्या ने बहुत ही सहजता से कहा.

मयंक का मुंह लटक गया. वह यह सोच कर ही बोरियत महसूस करने लगा कि 2 दिन अकेला घर में बैठ कर करेगा क्या? क्या काम्या वाकई उस के लिए इतनी जरूरी हो गई है? क्या वह उस का आदी होने लगा है?

काम्या अपने पापा के साथ चली गई. शादी के बाद पहली बार वह अपने बिस्तर पर अकेला लेटा. कंबल में से आती काम्या के शरीर की खुशबू उसे बेचैन करने लगी तो वह बैड पर काम्या वाली साइड जा कर लेट गया और उस के तकिए को कस कर जकड़ लिया. लंबीलंबी सांसें ले कर उस की महक को अपने भीतर उतारने लगा. फिर अपनी इस बचकानी हरकत पर खुद ही झेंप गया.

किसी तरह रात ढली और दिन निकला. मां चाय लेकर आई तो वह बड़ी मुश्किल से बिस्तर से निकल पाया. काम्या अब भी तकिए की शक्ल में उस की बगल में मौजूद थी. शाम होतेहोते न जाने कितने ही पल ऐसे आए जब काम्या उसे शिद्दत से याद आई.

आज नहाने के बाद मयंक ने अपना गीला तौलिया खुद ही बालकनी में जा कर धूप में डाला. अपना बिस्तर भी समेटा और गंदे मौजे भी धुलने के लिए लौंड्री बैग में रखे. मां के साथ टेबल पर खाना लगवाया और शाम को चाय के साथ काम्या की पसंद की मेथी मठरी भी खाई. ये सब करते हुए उसे लग रहा था मानो वह काम्या को पलपल अपने पास महसूस कर रहा हो.

सच ही कहा है किसी ने कि जब हम अपने प्रिय व्यक्तियों से दूर होते हैं तो उन की आदतों को अपना कर उन्हें अपने पास महसूस करने की कोशिश करते हैं. शायद मयंक भी यही कर रहा था. टहलते हुए पास के बाजार गया तो एक दुकान पर लालकाले रंग का लहरिए का दुपट्टा टंगा हुआ देखा.

इस से पहले मयंक ने कभी कोई जनाना आइटम नहीं खरीदी थी बल्कि वह तो खरीदने वाले अपने दोस्तों का जीभर कर मजाक भी उड़ाता था, लेकिन आज पता नहीं क्यों वह यह दुपट्टा खरीदने का लोभ संवरण नहीं कर पाया. शायद काम्या ने कभी लहरिए पर अपनी पसंद जाहिर की थी.

मयंक को लग रहा था जैसेकि ये सब बहुत फिल्मी सा हो रहा है लेकिन वह भी न जाने किस अज्ञात शक्ति से प्रेरित हुआ ये मासूम हरकतें बस करता ही चला जा रहा था.

‘कहीं मुझे प्यार तो नहीं हो गया?’ सोच मयंक को खुद पर शक हुआ.

‘हो सकता है कि मांपापा के बीच भी इसी तरह प्यार की शुरुआत हुई हो,’ सोच कर उस ने मुसकराते हुए टीवी औन किया.

‘‘हो गया है तुझ को तो प्यार सजना… लाख कर ले तू इनकार सजना…’’ गाना बज रहा था. मयंक ने काम्या के तकिए को फिर से खींच कर भींच लिया और आंखें बंद कर लेट गया. उफ, कमबख्त प्यार हो ही गया.

यह कैसा प्रेम: आलिया से क्यों प्यार करता था वह

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गुलाबी कागज: हरा भरा जीवन हुआ बदरंग

विनती एक एटीएम से दूसरे एटीएम बदहवास सी भागी जा रही थी. कहीं कैश नहीं था. मां नारायणी और बड़ी बहन माया अस्पताल में बेचैनी से उस की प्रतीक्षा कर रही थीं. बाबूजी की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी पर डाक्टर 500 व 1,000 रुपए के पुराने नोट लेने को तैयार न थे. कल ही तो माया का इन पुराने नोटों की खातिर एक रिश्ता टूटा था. कहां तो आज माया डोली में बैठ कर विदा होने को थी और कहां बाबूजी ने सल्फास की गोलियां खा कर खुद अपनी विदाई का प्रबंध कर लिया था.

विनती के आगे लाइन में 30-40 लोग, बड़ी मुश्किल से मिले कैश वाले एटीएम के सामने खड़े थे. ‘जब तक उस का नंबर आए, कहीं कैश ही न खत्म हो जाए,’ वह यही सोच रही थी. आगे खड़े लोगों से आगे जाने के लिए उस की मिन्नतें कोई सुनसमझ नहीं रहा था. समझता भी कैसे, सब की अपनीअपनी विकराल जरूरतें मुंहबाए जो खड़ी थीं. तभी शोर मचा कि सुबह 5 बजे से लाइन में लगी घुटनों के बल जमीन पर बैठी वह वृद्ध, गरीब अम्मा चल बसी, भूखीप्यासी. वह किसी बड़े आदमी की मां तो न थी जो भरपेट पकवान खा कर 5-6 सेवकों के सहारे से नोट बदलवाने आती. कलेजा उछल कर मानो हलक में अटक गया. ‘ऐसे ही बाबूजी के साथ कहीं कुछ बुरा न हो गया हो,’ विनती इस आशंका से कांप उठी. उस ने माया दीदी को फिर फोन लगाया था.

कौल लगते ही पहले उधर से आवाज आई थी, ‘‘विनती, पैसे मिल गए क्या?’’

‘‘नहीं दीदी, अभी 30-40 लोग आगे हैं बस, हमारी बारी तक कैश खत्म नहीं होना चाहिए. बाबा को देखना…भैया के नोट बदले? फोन आया क्या?’’

‘‘कुछ जतन कर जल्दी, अनिल भी अभी तक हजार के उन नोटों में 2 भी कहीं नहीं बदल पाया. मां फिर बेहोश हो गई थीं. किसी तरह पानी के छींटे मारे तब होश आया. बहुत घबराहट हो रही है उन्हें. बाबूजी के पास ही लिटा दिया है. क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा.’’

‘‘बैंक खुल गया है, अभीअभी 10 लोग अंदर गए हैं. देखो, शायद अब जल्दी नंबर आ जाए.’’

‘‘तू कोशिश करती रह,’’ फोन कट गया था.

उधर, अनिल धक्कामुक्की में लाइन में चौथे नंबर पर पहुंच चुका था. तभी 4 लोग लंबी सी गाड़ी से उतरे और बिना रोकटोक के बैंक में घुस गए. ‘‘बैंक के अफसर तो नहीं लगते,’’ अनिल ने बाहर चौकीदारी पर तैनात बैंककर्मी को टोका था.

‘‘अंदर क्यों जाने दिया इन्हें, हम इतनी देर से लाइन में लग कर बड़ी मुश्किल से यहां पहुंचे हैं. यह तो गलत बात है.’’ सभी क्रोध और विरोध में धक्का दे कर  बैंक के अंदर घुसना चाह रहे थे. भगदड़ सी मच गई. पुलिस और बैंककर्मी के सहयोग से वे 4 लोग अंदर हो लिए तो गेट बंद कर पुलिस वालों ने लगभग सवा सौ आदमियों पर लाठियां भाजनीं शुरू कर दीं. अनिल जो आगे ही खड़ा था, उसे भी लाठी लगी. उस का माथा फूट गया. वह बैंक की सीढि़यों पर ही गिर गया. रूमाल बांध कर किसी तरह उस ने खून के रिसाव को रोका और वहीं डट कर बैठ गया, कुछ भी हो नोट बदल कर ही जाऊंगा. डंडे खा कर बाकी लोग लाचारगी में शांत हो गए थे. तभी गेट खुला, वे चारों लोग बाहर हो लिए थे. गेटकीपर ने फिर गेट बंद कर दिया और कैश खत्म की तख्ती लटकाने लगा.

‘‘यह क्या, अभी तो बताया था आप ने लंच तक काफी लोग निबट जाएंगे आज इतना कैश है, फिर…?’’

‘‘भाई मेरे, उन्होंने नंबर पहले किसी से लगवा रखे थे. 2 लाख रुपए बचे थे.

50-50 हजार रुपए के 4 चैक से उन्होंने नोट निकाल लिए. हम मना तो नहीं कर सकते ऐसे में किसी को.’’

‘‘यह बेईमानी है.’’

‘‘जनता के साथ सरासर धोखा है.’’

‘‘रोजरोज के बदलते नियमोंफैसलों से थक कर परेशान हैं हम. क्यों नहीं सभी सही नोटों पर एक्सपाइरी छाप देते और आरबीआई की स्टैंप लगाते जाते, इस तरह का कोई आसान हल ढूंढ़ते पहले.’’

‘‘हम सब भी देश की प्रगति चाहते हैं, कालाधन बंद हो, पर उचित व्यवस्था तो पहले कर लेनी चाहिए थी.’’

‘‘न पर्याप्त नए नोट ही छपे, न एटीएम ही काम कर रहे.’’

‘‘पर नकली नोट बड़ी तेजी से छप कर मार्केट में आ जाते हैं, कमाल है, कालेधन पर ऐसे नियंत्रण होगा?’’

‘‘उस पर से, कमीशन पर पैसे बदलने के नएनए खुलते जा रहे धंधोंहथकंडों का क्या?’’

चारों ओर मचे शोर में अनिल की आवाज भी कहीं शामिल हो कर खो रही थी. उस का सिर घूमने लगा. वह सिर पकड़ कर थोड़ी देर को बैठना चाहता था, पर नहीं, उसे किसी भी हालत में नोट बदल कर बाबा के पास पहुंचना ही होगा, यों बैठ नहीं सकता. वह निकल पड़ा दूसरी ब्रांच, दूसरे एटीएम की ओर. उस की बाइक की तरह उस का सिर भी तेजी से घूम रहा था. परेशानियों के साथ घाव अपना शिकंजा कसता ही जा रहा था. बैलेंस बिगड़ा, अचानक वह डिवाइडर से टकराया और फिर बाइक कहीं, हैलमेट कहीं, वह सड़क पर गिर पड़ा. पीछे से आ रही तेज रफ्तार किसी अमीरजादे की, बीएमडब्लू उसे बेफिक्री से हिट कर सरपट जा चुकी थी. वह औंधेमुंह अचेतन सड़क पर पड़ा था. कुछ लोग इकट्ठे हो गए. पुलिस ने आ कर काम शुरू कर दिया, तो एटीएम कार्ड के साथ एक हजार रुपए के 5 नोट और आधारकार्ड मिल गए थे.

इधर, विनती लाइन में लगी 10वें नंबर पर आ गई थी. ‘इस बार 10 लोगों को अंदर किया तो मुझे भी पैसे मिल जाएंगे,’ यह सोच कर उसे थोड़ी आस बंधी.

‘‘चलिएचलिए, 10-12 लोग अंदर आ जाइए.’’ बैंककर्मी की आवाज आते ही रेले के साथ विनती भी अंदर हो ली. जब तक उसे पैसे मिल नहीं गए, धुकधुक लगी रही. चैक से मिल गए थे उसे 2 गुलाबी कागज यानी 2 हजार रुपए. ‘2 पिंक नोट, कितने कीमती, बाबा की जान बचा सकेंगे.’ उस ने राहत की सांस ली.’ ‘जल्दी पहुंचना होगा. दीदी को बता दूं पैसे मिल गए,’ पर मोबाइल डिस्चार्ज हो चुका था. वह तेजी से भागी. परेशान मन उस से तेज भाग रहा था. ‘क्या पता भैया ही नोट बदलवा कर पहले पहुंच गए हों और बाबा का उपचार हो रहा हो. काश, ऐसा ही हुआ हो’, रास्तेभर ऐसा ही सोचतेसोचते वह अस्पताल में लगभग भागती हुई घुसी.

गुलाबी कागज हाथ में भींचे हुए वह कैश काउंटर पर पहुंची थी. पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा था. उस की माया दीदी थी, ‘‘बाबा, हमें छोड़ कर चले गए दुनिया से, विनती.’’ वह विनती से लिपट कर फफक कर रो पड़ी. हृदयविदारक चीख निकली थी दोनों बहनों की. बाबूजी की छाती पर सिर रखे अम्मा उन्हें बारबार उठ जाने के लिए कह रही थीं.

‘‘तैयार नहीं हुए? माया की बरात आने वाली है. देखो, सब बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, जल्दी करो.’’ सदमे का उन के दिमाग पर असर हो गया था. वे बकझक करने लगी थीं.

इधर, माया का मोबाइल बजा था. ‘‘कहां था? कब से फोन लगा रही तुझे. सब ख़त्म हो गया, बाबूजी नहीं रहे. अन्नू, आ जा बहुत हो गई नोट बदली. सरकार ने तो हम सब की जिंदगी बदल कर रख दी.’’ एक सांस में बोल कर माया रोए जा रही थी तो विनती ने फोन ले कर अपने कानों से लगाया तो आवाज सुनाई दी, ‘‘मैडम, बात सुनिए, मैं पुलिस इंस्पैक्टर यादव, सफदर जंग अस्पताल से बोल रहा हूं. अनिल के सिर पर गंभीर चोटें आई हैं, यहां इमरजैंसी में भरती है, इलाज चल रहा है, फौरन पहुंचें.’’

हृदय चीत्कार उठा. सुनते ही विनती ने उन पिंक नोटों को मुट्ठी में भींच लिया जैसे वे अब केवल कागज हों…गुलाबी कागज, जिन का कुछ रंग उतर कर उस की हथेली पर आ गया था, जिस ने उन के हरेभरे जीवन को बदरंग कर दिया. आंसुओं में भीगे शून्य में ताकते कई चेहरे इसी तरह स्याह, सफेद व बेरंग होते रहे, फिर चाहे अस्पताल हो, बैंक एटीएम हो या और कोई जगह. पर फर्क किसे पड़ा? किसे पड़ना चाहिए था? कौन देखता है? बस, जनता के सेवकों की तानाशाही राजनीति जारी है, वह बखूबी चलनी चाहिए. विनती की मुट्ठी का मुड़ातुड़ा नोट जैसे यही बयान किए जा रहा था.

तेंदूपत्ता : क्या था शर्मिष्ठा का असली सच

शर्मिष्ठा ने कार को धीमा करते हुए ब्रैक लगाई. झटका लगने से सहयात्री सीट पर बैठी जेनिथ, जो ऊंघ रही थी, की आंखें खुल गईं, उस ने आंखें मिचका कर आसपास देखा. समुद्रतट के साथ लगते गांव का कुदरती नजारा. बड़ेबड़े, ऊंचेऊंचे नारियल और पाम के पेड़, सर्वत्र नयनाभिराम हरियाली.

‘‘आप का गांव आ गया?’’

‘‘लगता तो है.’’ सड़क के किनारे लगे मील के पत्थर को पढ़ते शर्मिष्ठा ने कहा. दोढाई फुट ऊंचे, आधे सफेद आधे पीले रंग से रंगे मील के पत्थर पर अंगरेजी और मलयाली भाषा में गांव का नाम और मील की संख्या लिखी थी.

‘‘यहां भाषा की समस्या होगी?’’ जेनिथ ने पूछा.

‘नहीं, सारे भारत में से केरल सर्वसाक्षर प्रदेश है. यहां अंगरेजी भाषा सब बोल और समझ लेते हैं. मलयाली भाषा के साथसाथ अंगरेजी भाषा में बोलचाल सामान्य है.’’

‘‘तुम यहां पहले कभी आई हो?’’

‘‘नहीं, यह मेरा जन्मस्थान है, ऐसा बताते हैं. मगर मैं ने होश अमेरिका की ईसाई मिशनरी में संभाला था.’’ शर्मिष्ठा ने कहा.

‘‘तुम्हारी मेरी जीवनगाथा बिलकुल एकसमान है.’’

कार से उतर कर दोनों ने इधरउधर देखा. चारों तरफ फैले लंबेचौड़े धान के खेतों में धान की मोटीभारी बालियां लिए ऊंचेऊंचे पौधे लहरा रहे थे.

समुद्र से उठती ठंडी हवा का स्पर्श मनमस्तिष्क को ताजा कर रहा था. धान के खेतों से लगते बड़ेबड़े गुच्छों से लदे केले के पेड़ भी दिख रहे थे.

एक वृद्ध लाठी टेकता उन के समीप से गुजरा.

‘‘बाबा, यहां गांव का रास्ता कौन सा है?’’ थोड़े संकोचभरे स्वर में शर्मिष्ठा ने अंगरेजी में पूछा.

लाठी टेक कर वृद्ध खड़ा हो गया, बोला, ‘‘आप यहां बाहर से आए हो?’’ साफसुथरी अंगरेजी में उस वृद्ध ने पूछा.

‘‘जी हां.’’

‘‘यहां किस से मिलना है?’’

‘‘कौयिम्मा नाम की एक स्त्री से.’’

‘‘वह नाथर है या नादर? इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक सवर्ण जाति की है, दूसरी दलित है. पहली, आजकल सरकारी डाकबंगले में मालिन है, खाली समय में तेंदूपत्ते तोड़ कर बीडि़यां बनाती है. दूसरी, मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़ी है.’’

फिर उस वृद्ध ने उन को एक कच्चा वृत्ताकार रास्ता दिखाया जो सरकारी डाकबंगले को जाता था. दोनों ने उस वृद्ध, जिस का नाम जौन मिथाई था और जो धर्मांतरण कर के ईसाई बना था, का धन्यवाद किया.

कार मंथर गति से चलती, डगमगाती, कच्चे रास्ते पर आगे बढ़ चली.

डाकबंगला अंगरेजों के जमाने का बना था व विशाल प्रागंण से घिरा था. चारदीवारी कहींकहीं से खस्ता थी. मगर एकमंजिली इमारत सदियों बाद भी पुख्ता थी. डाकबंगले का गेट भी पुराने जमाने की लकड़ी का बना था. गेट बंद था.

कार गेट के सामने रुकी. ‘‘यहां सुनसान है. दोपहर ढल रही है. यहां कहीं होटल होता?’’ जेनिथ ने कहा.

शर्मिष्ठा खामोश रही. उस ने कार से बाहर निकल डाकबंगले का गेट खोला और प्रागंण में झांका, सब तरफ सन्नाटा था.

एक सफेद सन के समान बालों वाली स्त्री एक क्यारी में खुरपी लिए गुड़ाई कर रही थी. उस ने सिर उठा कर शर्मिष्ठा की तरफ देखा और सधे स्वर में पूछा, ‘‘आप किस को देख रही हैं?’’

‘‘यहां कौन रहता है?’’

‘‘कोई नहीं. सरकारी डाकबंगला है. कभीकभी कोई सरकारी अफसर यहां दौरे पर आते हैं. तब उन के रहने का इंतजाम होता है,’’ वृद्ध स्त्री ने धीमेधीमे स्वर में कहा.

‘‘आप कौन हो?’’

‘मैं यहां मालिन हूं. कभीकभी खाना भी पकाना पड़ता है.’’

‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘मैं कौयिम्मा नाथर हूं’’

शर्मिष्ठा खामोश नजरों से क्यारी में सब्जियों की गुड़ाई करती वृद्धा को देखती रही.

उस को अपनी मां की तलाश थी. मगर उस का पूरा नाम उस को मालूम नहीं था. कौयिम्मा नाथर या कौयिम्मा नादर.

‘‘आप को यहां डाकबंगले में  ठहरना है?’’ वृद्धा ने हाथ में पकड़ी खुरपी को एक तरफ रखते हुए कहा.

‘‘यहां कोई होटल या धर्मशाला है?’’

‘‘नहीं, यहां कौन आता है?’’

‘‘खानेपीने का इंतजाम क्या है?’’

‘‘रसोईघर है, मगर खाली बरतन हैं. लकड़ी से जलने वाला चूल्हा है. गांव की हाट से सामान ला कर खाना पका देते हैं.’’

‘‘बिस्तर वगैरा?’’

‘‘उस का इंतजाम अच्छा है.’’

‘‘यहां का मैनेजर कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सरकारी रजिस्टर है. ठहरने वाला खुद ही रजिस्टर में अपना नाम, पता, मकसद सब दर्ज करता है,’’ वृद्धा साफसुथरी अंगरेजी बोल रही थी.

‘‘आप अच्छी अंगरेजी बोलती हैं. कितनी पढ़ीलिखी हैं?’’

‘‘यहां मिडिल क्लास तक का सरकारी स्कूल है. ज्यादा ऊंची कक्षा तक का होता तो ज्यादा पढ़ जाती,’’ वृद्धा ने अपने मात्र मिडिल कक्षा यानी 8वीं कक्षा तक ही पढ़ेलिखे होने पर जैसे अफसोस किया.

शर्मिष्ठा और उस की अमेरिकन साथी जेनिथ को मात्र 8वीं कक्षा तक पढ़ीलिखी स्त्री को इतनी साफसुथरी अंगरेजी बोलने पर आश्चर्य हुआ.

वृद्धा ने एक बड़ा कमरा खोल दिया. साफसुथरा डबलबैड, पुराने जमाने का

2 बड़ेबड़े पंखों वाला खटरखटर करता सीलिंग फैन, आबनूस की मेज, बेत की कुरसियां.

चंद मिनटों बाद 2 कप कौफी और चावल के बने नमकीन कुरमुरे की प्लेट लिए कौयिम्मा नाथर आई.

‘‘आप पैसा दे दो, मैं गांव की हाट से सामान ले आऊं.’’

शर्मिष्ठा ने उस को 500 रुपए का एक नोट थमा दिया. एक थैला उठाए कौयिम्मा नाथर सधे कदमों से हाट की तरफ चली गई.

कौयिम्मा नाथर अच्छी कुक थी. उस ने शाकाहारी और मांसाहारी भोजन पकाया. मीठा हलवा भी बनाया. खाना खा दोनों सो गईं.

शाम को दोनों घूमने निकलीं. कौयिम्मा नाथर साथसाथ चली. बड़े खुले प्रागंण में ऊंचेऊंचे कगूंरों वाला मंदिर था.

‘‘यह प्राचीन मंदिर है. यहां दलितों प्रवेश निषेध है.’’

थोड़ा आगे खपरैलों से बनी हौलनुमा एक बड़ी झोंपड़ी थी. उस के ऊपर बांस से बनी बड़ी बूर्जि थी. उस पर एक सलीब टंगी थी.

‘‘यह चर्च है. जिन दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता था, वे सम्मानजनक जीवन जीने के लिए हिंदू धर्म को छोड़ कर ईसाई बन गए. उन सब ने मिल कर यह चर्च बनाया. हर रविवार को ईसाइयों का एक बड़ा समूह यहां मोमबत्ती जलाने आता है,’’ कौयिम्मा नाथर के स्वर में धर्मपरिवर्तन के लिए विवश करने वालों के प्रति रोष झलक रहा था.

मंथर गति से चलती तीनों गांव घूमने लगीं. सारा गांव बेतरतीब बसा था. कहींकहीं पक्के मकान थे, कहींकहीं खपरैलों से बनी छोटीबड़ी झोंपडि़यां.

एक बड़े मकान के प्रागंण में थोड़ीथोड़ी दूरी पर छोटीछोटी झोंपडि़यां बनी थीं.

‘‘प्रागंण की ये झोंपडि़यां क्या नौकरों के लिए हैं?’’

‘‘नहीं, ये बेटी और जंवाई की झोंपड़ी कहलाती हैं.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘अधिकांश इलाके में मातृकुल का प्रचलन है. यहां बेटियों के पति घरजंवाई बन कर रहते आए हैं. अब इस परंपरा में धीरेधीरे परिवर्तन आ रहा है,’’ कौयिम्मा नाथर ने बताया.

‘‘मगर अलगअलग स्थानों पर झोंपडि़यां?’’

‘‘यहां बेटियां बहुतायत में होती हैं. आधा दर्जन या दर्जनभर बेटियां सामान्य बात है. शादी की रस्म साधारण सी है. जो पुरुष या लड़का, बेटी को पसंद आ जाता है उस से एक धोती लड़की को दिला दी जाती है. बस, वह उस की पत्नी बन जाती है.’’

‘‘और अगर संबंधविच्छेद करना हो तो?’’

‘‘वो भी एकदम सीधे ढंग से हो जाता है. पति का बिस्तर और चटाई लपेट कर झोंपड़ी के बाहर रख दी जाती है. पति संबंधविच्छेद हुआ समझा जाता है. वह चुपचाप अपना रास्ता पकड़ता है.’’

कौयिम्मा नाथर ने विद्रूपताभरे स्वर में कहा, ‘‘मानो, पति नहीं कोई खिलौना हो जिस को दिल भरते फेंक दिया जाता है.’’ वृद्धा ने आगे कहा, ‘‘मगर इस खिलौने की भी अपनी सामाजिक हैसियत है.’’

‘‘अच्छा, वह क्या?’’ जेनिथ, जो अब तक खामोश थी, ने पूछा.

‘‘मातृकुल परंपरा में भी पिता नाम के व्यक्ति का अपना स्थान है. समाज में अपना और संतान का सम्मान पाने के लिए किसी भद्र पुरुष की पत्नी होना या कहलाना जरूरी है.’’

शर्मिष्ठा और जेनिथ को कौयिम्मा नाथर का मंतव्य समझ आ रहा था.

‘‘आप का मतलब है कि स्त्री के गर्भ में पनप रहा बच्चा चाहे किसी असम्मानित व्यक्ति का हो मगर बच्चे को समाज में सम्मान पाने के लिए उस की माता का किसी सम्मानित पुरुष की पत्नी कहलाना जरूरी है,’’ जेनिथ ने कहा.

कौयिम्मा नाथर खामोश रही. शाम का धुंधलका गहरे अंधकार में बदल रहा था. तीनों डाकबंगले में लौट आईं.

अगली सुबह कौयिम्मा नाथर उन को नाश्ता करवाने के बाद तेंदूपत्ते की पत्तियां गोल करती, उन में तंबाकू भरती बीडि़यां बनाने बैठ गई. दोनों अपनेअपने कंधे पर कैमरा लटकाए गांव की तरफ निकलीं.

एक भारतीय लड़की और एक अंगरेज लड़की को गांव घूमते देखना ग्रामीणों के लिए सामान्य ही था. ऐसे पर्यटक वहां आतेजाते रहते थे.

चर्च का मुख्य पादरी अप्पा साहब बातूनी था. साथ ही, उस को गांव के सवर्ण या उच्च जाति वालों से खुंदक थी. सवर्ण जाति वालों के अनाचार और अपमान से त्रस्त हो कर उस ने धर्मपरिवर्तन कर ईसाईर् धर्म अपनाया था.

उस ने बताया कि कौयिम्मा नाथर एक सवर्ण जाति के परिवार से है जो गरीब परिवार था. गांव में सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन थी. जिस को आजादी से पहले तत्कालीन राजा के अधिकारी और कानूनगो ने जबरन गांव के अनेक परिवारों के नाम चढ़ा दी थी.

विवश हो उन परिवारों को खेती कर या मजदूरों से काम करवा कर राजा को लगान देना पड़ता था. एक बार लगान की वसूली के दौरान कानूनगो रास शंकरन की नजर नईनई जवान हुई कौयिम्मा नाथर पर पड़ी. उस ने उस को काबू कर लिया था.

जब उस को गर्भ ठहर गया तब कानूनगो ने कौयिम्मा को अपने एक कारिंदे कुरू कुनाल नाथर से धोती दिला दी थी. इस प्रकार कुरू नाथर कौयिम्मा का पति बन कर उस की झोंपड़ी में सोने लगा था.

जब कौयिम्मा नाथर को बेटी के रूप में एक संतान हो गई तब उस ने एक दोपहर कुरू कुनाल नाथर का बिस्तर और चटाई दरवाजे के बाहर रख दी. शाम को जब कुरू कुनाल नाथर लौटा तब उस को दरवाजा बंद मिला. तब वह चुपचाप अपना बिस्तर उठा किसी अन्य स्त्री को धोती देने चला गया.

बेटी का भविष्य भी मेरे ही समान न हो, इस आशय से कौयिम्मा नाथर ने एक रोज अपनी बेटी को ईसाई मिशनरी के अनाथालय में दे दिया था. वहां से वह बेटी केंद्रीय मिशनरी के अनाथालय में चली गई थी.

इतना वृतांत बताने के बाद पादरी खामोश हो गए. आगे की कहानी शर्मिष्ठा को मालूम थी. ईसाई मिशनरी के केंद्रीय अनाथालय से उस को अमेरिका में रहने वाले निसंतान दंपती ने गोद ले लिया था.

अब शर्मिष्ठा मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत थी. जब उस को पता चला था कि वह घोष दंपती की गोद ली संतान है तो वह अपने वास्तविक मातापिता का पता लगाने के लिए भारत चली आई.

माता का पता चल गया था. पिता दो थे. एक जिस ने माता को गर्भवती किया था. दूसरा, जिस ने माता को समाज में सम्मान बनाए रखने के लिए धोती दी थी.

अजीब विडंबनात्मक स्थिति थी. सारे गांव को मालूम था. कौयिम्मा नाथर का असल पति कौन था. धोती देने वाला कौन था. तब भी थोथा सम्मान थोथी मानप्रतिष्ठा.

रिटायर्ड कानूनगो बीमार पड़ा था. उस के बड़े हवेलीनुमा मकान में पुरुषों की संख्या की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या काफी ज्यादा थी. अपने सेवाकाल में पद के रोब में कानूनगो ने पता नहीं कितनी स्त्रियों को अपना शिकार बनाया था. बाद में बच्चे की वैध संतान कहलाने के लिए उस स्त्री को किसी जरूरतमंद से धोती दिला दी थी.

बाद में वही संतान अगर लड़की हुई, तो उस को बड़ी होने पर कोई प्रभावशाली भोगता और बाद में उस को धोती दिला दी जाती.

यह बहाना बना कर कि वे दोनों पुराने जमाने की हवेलियों पर पुस्तक लिख रही हैं, शर्मिष्ठा और जेनिथ हवेली और उस के कामुक मालिक को देख कर वापस लौट गईं.

धोती देने वाला पिता मंदिर के प्रागंण में बने एक कमरे में आश्रय लिए पड़ा था. उस को मंदिर से रोजाना भात और तरकारी मिल जाती थी. उस की इस स्थिति को देख कर शर्मिष्ठा दुखी हुई. मगर वह क्या कर सकती थी. दोनों चुपचाप डाकबंगले में लौट आईं.

दोनों पिताओं में किसी को भी शर्मिष्ठा अपना पिता नहीं कह सकती थी. मगर क्या माता उस को स्वीकार कर अपनी बेटी कहेगी? यह देखना था.

‘‘मुझे अपनी मां को पाना है, वे इसी गांव की निवासी हैं, क्या आप मदद कर सकती हैं?’’ अगली सुबह नाश्ता करते शर्मिष्ठा ने वृद्धा से सीधा सवाल किया.

‘‘उस का नाम क्या है?’’

‘‘कौयिम्मा.’’

‘‘नाथर या नादर?’’

‘‘मालूम नहीं. बस, इतना मालूम है कि कौयिम्मा है. उस ने मुझे यहां कि ईसाई मिशनरी के अनाथालय में डाल दिया था.’’

‘‘अब आप कहां रहती हो?’’

‘‘मैं अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हूं. मुझे गोद लेने वाले मातापिता अमीर और प्रतिष्ठित हैं.’’

‘‘मां को ढूंढ़ कर क्या करोगी?’’

‘‘मां, मां होती है.’’

बेटी के इन शब्दों को सुन कर मां की आंखें भर आईं, वह मुंह फेर कर बाहर चली आई. रसोई में काम करते कौयिम्मा सोच रही थी, क्या करे, क्या उस को बताए कि वह उस की मां थी. मगर ऐसे में उस का भविष्य नहीं बिगड़ जाएगा.

अनाथालय ने ब्लैकहोल के समान शर्मिष्ठा के बैकग्राउंड, उस के अतीत को चूस कर उस को सिर्फ एक अनाथ की संज्ञा दे दी थी. जिस का न कोई धर्म था न कोई जाति या वर्ग. वहां वह सिर्फ एक अनाथ थी.

अब वह एक सम्मानित परिवार की बेटी थी. वैल स्टैंड थी. कौयिम्मा नाथर द्वारा यह स्वीकार करने पर कि वह उस कि मां थी, उस पर एक अवैध संतान होने का धब्बा लग सकता था.

एक निश्चय कर कौयिम्मा नाथर रसोई से बाहर आई. ‘‘मेम साहब,

आप को शायद गलतफहमी हो गई है. इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक मैं कौयिम्मा नाथर, दूसरी कौयिम्मा नादर. दोनों ही अविवाहित हैं. आप ने गांव कौन सा बताया है?’’

‘‘अप्पा नाडू.’’

‘‘यहां 3 गांवों के नाम अप्पा नाडू हैं. 2 यहां से अगली तहसील में पड़ते हैं. वहां पता करें.’’

शर्मिष्ठा खामोश थी. जेनिथ भी खामोश थी. मां बेटी को अपनी बेटी स्वीकार नहीं कर रही थी. कारण? कहीं उस का भविष्य न बिगड़ जाए. पिता को पिता कैसे कहे? कौन से पिता को पिता कहे.

कार में बैठने से पहले एक नोटों का बंडल बिना गिने बख्शिश के तौर पर शर्मिष्ठा ने अपनी जननी को थमाया और उस को प्रणाम कर कार में बैठ गई. कार वापस मुड़ गई.

‘‘कोई मां इतनी त्यागमयी भी होती है?’’ जेनिथ ने कहा.

‘‘मां मां होती है,’’ अश्रुपूरित नेत्रों से शर्मिष्ठा ने कहा. कार गति पकड़ती जा रही थी.

Diwali Special: थोड़ी सी मिठास बनाए दीवाली खास…

दीवाली का त्योहार आ चुका है घरों में लोग सफाई कर रहे है. दीवाली त्योहार में पकवान के लिए बेहद खास है. मिठाई की मिठास से रिश्तों में रौनक आ जाती है. इस दीवाली अपने घर बनाए ये खास मिठाईयां जो स्वाद में एकदम हटके है. आइए आपको बताते है मिठाईयों की खास रेसिपी.

  1. खजूर की पोटली

सामग्री

1. 1 कप मैदा

 2. 1/4 कप सूजी

 3. 1/4 कप घी

 4. 1 कप दूध

 5.  50 ग्राम मावा

6. 2 बड़े चम्मच पिसी चीनी

 7. 1/4 कप खजूर

 8. 1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

 9. 1/3 कप चीनी

10.  थोड़ा सा केसर.

विधि

एक बाउल में मैदा, सूजी और घी को मिलाएं फिर इस में थोड़ाथोड़ा दूध मिलाते हुए मुलायम आटा गूंध लें. भरावन तैयार करने के लिए मावा व खजूर को भून कर चीनी मिला कर ठंडा होने दें. फिर इस में इलायची पाउडर और केसर मिला कर अलग रख दें. गुंधे आटे की छोटीछोटी लोइयां बना कर उन्हें पूरियों की तरह बेल लें. अब प्रत्येक पूरी में भरावन भर कर पोटली का आकार दें और घी में सुनहरा होने तक तलें. अब एक पैन में 1/4 कप पानी और चीनी डाल कर चाशनी बना लें. चाशनी में सभी पोटली डिप कर सर्व करें.

2. केला पनीहारम

सामग्री

1. 50 ग्राम जामुन गुठली निकला

 2. 80 ग्राम पका केला

 3. 100 ग्राम मैदा

4.  60 मिलीलिटर दूध,

5. 50 ग्राम मक्खन

6. 5 ग्राम बेकिंग पाउडर

7. सजाने के लिए थोड़े से अनार के दाने.

विधि

एक बाउल में केले को मैश कर के अलग रख दें. अब दूसरे बाउल में दूध, मैदा, पिघला मक्खन और जामुन मिला लें. इस में मैश्ड केला और बेकिंग पाउडर मिलाएं. अब पनीहारम मोल्ड में बैटर डाल कर 5 मिनट तक पकाएं. जब एक तरफ से पक जाए तो पलट कर दूसरी तरफ से भी पकाएं. अनारदाने से सजा कर सर्व करें.

3. शबनम के मोती औन शौर्ट क्रस्ट बोट

सामग्री

1. 50 ग्राम मक्खन 

   2.100 ग्राम आइसिंग शुगर

  3. 100 ग्राम मैदा

  4. 1 अंडा,

 5. 50 ग्राम रबड़ी

6. 8 रसगुल्ले छोटे वाले

7. थोड़े से काजू.

8. रबड़ी की सामग्री

9. 150 मिलीलिटर दूध

10.  60 ग्राम शुगर

11. 1 टुकड़ा इलायची.

 रबड़ी  विधि

दूध में इलायची डाल कर उबालें. जब एकचौथाई दूध बच जाए तो उस में चीनी मिला कर फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें.

विधि

आइसिंग शुगर और मक्खन को मिला लें. इस में अंडा डाल कर तब तक फेंटें जब तक कि मिश्रण पतला न हो जाए. इस के बाद इस में मैदा मिला कर 1 घंटे के लिए फ्रिज में रखें. फिर इस में मैदा मिला कर गूंध लें और 1 घंटे के लिए फिर से फ्रिज में रख दें. फिर इसे निकाल कर लोइयां बना कर बोट की शेप दे कर 160० सैंटीग्रेड पर बेक कर लें. तैयार बोट में रबड़ी भर कर ऊपर रसगुल्ले लगाएं. काजू से गार्निश करें.

टैडी बियर: भाग 2- क्या था अदिति का राज

 

देवांशी परेशान अदिति के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘क्या वाकई, तुम्हारा प्यार छलावा था?’’

‘‘कैसी बात कर रही है? मेरी जान है धु्रव… प्यार करती हूं तभी तो उस के लिए ये सब कर रही हूं. हाय एक टैडीबियर हमारे प्यार को साबित करेगा… ये सब कितनी बेवकूफी है.’’

अदिति के मुंह से ये सब सुन कर देवांशी को पहले तो हंसी आई पर फिर गंभीर हो कर बोली, ‘‘सब जानती है तो क्यों ये सब धु्रव से छिपा रही है? वहां अर्णव परेशान है और यहां तुम.’’

‘‘फिर क्या करूं बता?’’ अदिति मायूसी

से बोली.

देवांशी कुछ सोचते हुए कहने लगी, ‘‘चलो, अब इतने झूठ बोले हैं तो एक और बोल दो. कह दो कि टैडी कोई बच्चा उठा ले गया या फिर तुम्हारी मम्मी ने किसी को दे दिया अथवा गुम हो गया.’’

अदिति चहकी, ‘‘हां देवांशी, यह गुम होने वाला आइडिया सब से अच्छा है, क्योंकि लेनेदेने वाले आइडिया में पाने की कोई न कोई गुंजाइश होती है पर गुम हुआ यानी मिलने की न के बराबर उम्मीद है,’’ यह कहते ही उत्साहित अदिति के चेहरे पर सुकून छा गया. जैसे कोई बहुत बड़ा निबटारा हो गया हो.

दूसरे दिन देवांशी को अदिति ने फोन पर सूचित किया कि उन की तरकीब काम

कर गई है. अर्णव ने अपने जीजू से माफी मांगते हुए टैडी के गुम होने की बात कह दी. धु्रव एक बार फिर बहकावे में आ गया… उस से झूठ बोलना अच्छा नहीं लगा. फिर भी अदिति खुश थी कि इस टैडी वाले प्रसंग से हमेशा के लिए पीछा छूटा…

इस बात को हफ्ता बीत गया. उन की शादी की सालगिरह आ गई. शादी की सालगिरह पर घरबाहर के बहुत सारे मेहमान आए. बड़ों के आशीर्वाद और संगीसाथियों की ढेर सारी बधाइयों के बीच दोनों यानी धु्रवअदिति सब के आकर्षण के केंद्र बने थे.

इस फंक्शन में अर्णव भी आया था. फंक्शन के बाद मौका पा कर अदिति ने अपने भाई को आड़े हाथों लिया.

तब उस ने भी इस बेवजह के अवांछित प्रसंग को ले कर और अपनी गर्लफ्रैंड के साथ

उस अपरिपक्व हरकत पर अफसोस जाहिर करते हुए इतने दिनों बाद उठी बात पर खुलासा किया, ‘‘दीदी, मेरी और अंजना की लड़ाई के बीच आप फंस गईं. हुआ यों कि ब्रेकअप के बाद… कुछ महीने सब ठीक रहा पर अचानक एक दिन उस ने मुझे से टैडी मांग लिया. मुझे भी बहुत अजीब लगा.

‘‘शुरू में मैं ने टाला आप की वजह से. पर वह जिद करने लगी कि उसे अपना टैडी चाहिए ही चाहिए. ऐसे में मैं ने सोचा कि कहीं उसे यह न लगने लगे कि मैं अब भी उस में रुचि रखता हूं… फिर एक दिन मेरा और आप का झगड़ा हो गया. बस उसी का फायदा उठा कर मैं ने तुम से जबरदस्ती टैडी मांग कर उस के हवाले कर के मुसीबत से पीछा छुड़ा लिया.’’

‘‘और मेरी मुसीबत बढ़ा दी पागल…’’

‘‘पर दीदी मैं ने भी उसे दिए सारे गिफ्ट मांग लिए थे.’’

‘‘पर उस से क्या अर्णव… ऐसा भी क्या टैडी से मोह जो उस के बगैर नहीं रह पाई… उस टैडी में कहीं तू तो नहीं दिखता था उसे?’’

‘‘अरे नहीं दीदी,’’ वह खिसिया कर बोला.

अदिति तुरंत उसे चिढ़ाती हुई कहने लगी, ‘‘फिर पक्का उस ने अपने दूसरे बौयफ्रैंड को टिका कर अपने पैसे बचाए होंगे… पर सच, तुम दोनों की बेवकूफी में मैं अच्छा फंसी.’’

‘‘अरे अब माफ भी कर दे न,’’ अर्णव प्यार से बोला.

‘‘किस बात की माफी मांगी जा रही है साले साहब?’’ अचानक ध्रुव की आवाज कानों में पड़ी. धु्रव को अचानक कमरे में आता देख दोनों संभल कर बैठ गए. अर्णव उठते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं जीजू, आज शाम को मैं देर से क्यों आया इस बात को ले कर आप की बीवी मुझे डांट रही है… अच्छा दीदीजीजू अब बाकी बातें कल करेंगे. थक गया हूं.’’ कह वह सोने चला गया.

दूसरे दिन सुबह सब सो रहे थे. लगातार बजती कौलबैल से अदिति की नींद खुली तो देखा दरवाजे पर अटैची के साथ खड़ी एक लड़की भाभी कहते हुए उस के गले लग गई. अदिति  को हैरानी से ताकते देख कर वह मुसकराई और फिर भीतर आते हुए बोली, ‘‘अरे भाभी, मैं नीलांजना… धु्रव भैया कहां हैं…?’’

अदिति को याद आई धु्रव की कजिन, जो शादी के एन मौके पर एमबीए करने के लिए आस्ट्रेलिया चली गई थी. अदिति से बात करते वह इधरउधर देखते हुए बड़े इत्मिनान और हक से भीतर आते बोली, ‘‘देखो भाभी, मुझ पर कबाब में हड्डी होने का आरोप न लगे, इसलिए मैं कल नहीं आई…’’

नीलांजना की बात पर अदिति कुछ कहती उस से पहले ही धु्रव की आवाज आ गई, ‘‘कबाब में हड्डी तो कल आ ही गई थी हमारे बीच तुम भी आ जाती तो कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

धु्रव का इशारा अर्णव की तरफ है, यह समझ कर अदिति ने उसे घूरा तो गुस्ताखी माफ कहते हुए उस ने धीरे से कान पकड़ लिए.

‘‘क्या हुआ कोई और भी आया

है क्या?’’

नीला के पूछने पर अदिति ने कहा, ‘‘मेरा छोटा भाई आया है.’’

‘‘ओह, ग्रेट…’’ कहते हुए उस की नजर मेज पर बिखरे ढेर सारे गिफ्टों पर चली गई, ‘‘वाऊ, कितने सारे गिफ्ट हैं. अभी तक खोले नहीं… मेरा इंतजार कर रहे थे क्या? जानती हैं भाभी कि गिफ्ट खोलना मुझे बहुत अच्छा लगता है…’’ कहते हुए वह उत्साह से मेज की ओर बढ़ी तो अदिति ने उसे हैरानी से देखा. लगा ही नहीं कि वह नीलांजना से पहली बार मिल रही है.

धु्रव ने भी एक बार को उसे टोका, ‘‘अरे रुक जा…पहले कुछ खापी ले…’’

‘‘हांहां बस, चायबिस्कुट लूंगी. भाभी अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं गिफ्ट खोलू?’’ वह मेज के ऊपर रखे गिफ्ट उत्साह से देखती हुई बोली.

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ कहते हुए अदिति कुछ अजीब नजरों से उसे देख कर किचन में आ गई. चाय बना कर लाई तो देखा धु्रव के साथ बैठी नीला गिफ्ट देख कर उत्साहित हो रही थी. लगभग सभी गिफ्ट खुल चुके थे. सिर्फ एक बाकी था.

उसे अदिति की ओर बढ़ाते हुए नीला कहने लगी, ‘‘भाभी, इसे आप खोलो.’’

चाय की ट्रे रख कर अदिति ने उस गिफ्ट को चारों ओर से घुमा कर

देखा. उस पर किसी का नाम नहीं था. ‘‘किस का है, यह… कुछ पता ही नहीं चल रहा है,’’ कहते हुए अदिति ने उसे खोला तो हैरान रह गई. हूबहू वैसा ही टैडीबियर, जिसे वह इतने दिनों से ढूंढ़ती फिर रही थी…

धु्रव मुसकराते हुए बोल रहा था, ‘‘अच्छा तो यह अर्णव का सरप्राइज है,’’ धु्रव अदिति की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘मुझे नहीं पता कहां से आया है यह… हाय, यह तो बिलकुल वैसा है,’’ अटपटाते हुए वह बोली. तभी अर्णव की आवाज आई, ‘‘वैसा ही नहीं, वही है दीदी,’’ कमरे में आते हुए अर्णव बोला. फिर वह हैरानी से कभी नीलांजना को तो कभी टैडी को देख रहा था.

समलैगिकता के साथ भारतीय परिवारों के पाखांड पर बात करती फिल्म ‘‘सहेला’’

ब्रिटिश फिल्मकार डैनी बॉयल ने 2008 में भारत आकर जुहू की स्लम बस्ती में पलने वाले 18 साल के बालक जमाल की कहानी बयां करने वाली फिल्म ‘स्लमडौग मिलेनियर’ का फिल्मांकन झुग्गी झोपड़ी में किया था,जिसमें जमाल का किरदार देव पटेल ने निभाया था.इसी के चलते वह महज अठारह साल की उम्र में स्टार कलाकार बन गए थे.यह उनके कैरियर की दूसरी फिल्म थी.इंग्लैंड में बसे देव पटेल गुजराती भी बोलते हैं.उनके पूर्वज भारत के गुजरात में जामनगर और उंझा में रहते थे.तब से अब तक वह  ‘लायन’,‘होटल मंुबई’,‘आई लास्ट माई बौडी’ सहित तकरीबन सत्रह फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.देव पटेल ने 2018 में घोषणा की थी कि अब वह अभिनय के साथ ही बतौर सह लेखक और निर्देशक एक्शन रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘मंकी मैन’’ बना रहे है ,जिसके निर्माता रघुवीर जोशी थे.इस फिल्म की क्या प्रगति हुई पता नही ,मगर अब देव पटेल ने रघुवीर जोशी के निर्देशन में अंग्रेजी-हिंदी भाषी फिल्म ‘‘सहेला’’ (कंपेनियन) का निर्माण किया है,जिसका दक्षिण एशियाई प्रीमियर 27 अक्टूबर से पांच नवंबर तक चलने वाले ‘जियो मामी मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2023’ हो रहा है.

सिडनी में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘सहेला (कंपेनियन)’’ की कहानी पश्चिमी सिडनी में रह रहे भारतीय समुदाय और वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है.जिसमें षादी के बाद पति पत्नी के बीच उस वक्त दरार पैदा होती है,जब पत्नी नित्या को पता चलता है कि उसका पति रवि ओझा समलैंगिक है.वीर (एंटोनियो अकील) और नित्या (अनुला नावलेकर) सिडनी के पैरामाट्टा में रहने वाले एक खुशहाल शादीशुदा जोड़े हैं.उन्हें एक साथ सितार बजाना पसंद है, वह एक सफल दंत चिकित्सक है, और वह अपनी लेखांकन परीक्षा के लिए अध्ययन कर रहा है.हालाँकि, जैसे-जैसे बचपन से उनमें निहित सांस्कृतिक अपेक्षाएँ प्रभावित होने लगती हैं, यह दोनों दिखावे को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं.टूटने के बिंदु पर पहुंचने के बाद, वीर अपनी कामुकता के बारे में नित्या के सामने आता है.यह रहस्योद्घाटन जोड़े के बीच अलगाव का कारण बनता है, जिससे उनके परिवार के गहरे सांस्कृतिक मूल्यों पर सामाजिक अपमान के बादल मंडराते हैं. जैसे ही वीर आत्म-खोज की यात्रा पर निकलता है, नित्या अपनी वास्तविकता के ताने-बाने से जूझती है, और उन्हें अन्वेषण और परिवर्तन के रास्ते पर ले जाती है. यद्यपि वह अभी भी भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से बंधे हुए हैं, फिर भी वह प्रेम पर एक वैकल्पिक दृष्टिकोण खोजते हैं.

मुंबई में जन्में व पले बढ़े मूलतः गुजराती रघुवीर जोशी का देव पटेल के संग काफी पुराना जुड़ाव है. देव पटेल के अभिनय से सजी फिल्मों ‘बेस्ट एक्सोटिक मैरीगोल्ड होटल (1-2), जीरो डार्क थर्टी और द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट जैसी फिल्मों में सहायक निर्देशक के रूप में रघवुीर जोशी ने काम किया. वह डेम जूडी डेंच के सहायक और अभिनेता देव पटेल को हिंदी भाषा के कोच रहे हैं.  2018 में रघुवीर जोशी ने लघु फिल्म ‘यमन’ का निर्देशन किया,जिसे पाम स्प्रिंग्स फिल्म फेस्टिवल और इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ लॉस एंजिल्स (आईएफएफएलए) के लिए चुना गया था और सकारात्मक समीक्षा मिली, जिसने ‘सहेला‘ की अवधारणा के प्रमाण के रूप में मार्ग प्रशस्त किया. रघुवीर जोशी,देव पटेल के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘मंकी मैन’ के सह-निर्माता भी हैं, जो ब्रॉन स्टूडियो और थंडर रोड द्वारा निर्मित है.पर अब रघुवीर जोशी निर्देशित फिल्म ‘‘सहेला’’ का निर्माण देव पटेल ने किया है.

निर्देशक रघुवीर जोशी कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म ‘सहेला’ भारतीय परिवारों के पाखंड को रेखांकित करती है.यह फिल्म प्यार और आत्म- खोज का एक अंतरंग चित्रण है,जो हमारे समाज में पारिवारिक अपेक्षाओं और स्थापित लैंगिक भूमिकाओं के बोझ को चुनौती देती है.यह एक ऐसी कहानी है,जो प्रेम के बारे में हमारी धारणाओं को फिर से परिभाषित करती है,कामुकता की जटिलता और अनुरूपता को तोड़ने से मिलने वाली स्वतंत्रता की खोज करती है.अपनी फिल्म ‘सहेला‘ में मैंने इस बात को भी रेखांकित किया है कि प्यार का सबसे गहरा काम ‘जाने देने’ की शक्ति है.’’

फिल्म ‘‘सहेला’’ (कंपेनियन) को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-एंटोनियो अकील,अनुला नावलेकर, हरीश पटेल,अनिता पटेल, निकोलस ब्राउन,जॉर्जिया ब्लिजार्ड,गस मरे, निकोलस बर्टन,सबा जैदी आब्दी,  जैन अयूब,शीबा चड्ढा,लीना बहल,विपिन शर्मा,सक्षम शर्मा,अनन्या दीक्षित, ताई हारा,मार्टिन हार्पर,मिरांडा डौट्री,वसीम खान व अन्य.

35 साल बाद साथ आए कमल हासन और मणिरत्न, रिलीज हुआ ‘ठग लाइफ’ का टीजर

साउथ इंडस्ट्री के मशहूर अभिनेता कमल हासन का आज 7 नंवबर को 69वां जन्मदिन था. एक्टर के बर्थडे के एक दिन पहले ‘ठग लाइफ’ टीजर रिलीज हो चुका है. फिल्म की टीजर सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. दरअसल, अभिनेता कमल हासन और साउथ फिल्म के डायरेक्टर मणिरत्न 35 साल बाद फिर एक साथ काम करने जा रहे है. ‘ठग लाइफ’ से अभिनेता इतने साल बाद मणिरत्न के साथ काम करने जा रहे है. इससे पहले अभिनेता कमल हासन ट्वीट करके जानकारी दे चुके है कि उनकी  फिल्म K234 का नाम बदलकर ‘ठग लाइफ’ कर दिया गया है.

जन्मदिन के एक दिन पहले रिलीज हुआ टीजर

साउथ सुपरस्टार कमल हासन ने अपने जन्मदिन से पहले सोशल मीडिया हैंडल इंस्टाग्राम पर ‘ठग लाइफ’का टीजर जारी किया. फैंस इस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया दे रहे है, यह फिल्म मणिरत्न और ए आर रहमान के बैनर तले बन रही है. इस फिल्म में अभिनेता कमल हासन का पैसा भी लगा है इसके साथ ही वह हीरो के भूमिका में भी नजर आएंगे. इस फिल्म का टीजर इतना धांसू है, जब ट्रेलर रिलीज होगा तब फैंस की प्रतिक्रिया क्या होगी. यह तो पता चल ही जाएगा.

 

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 ‘ठग लाइफ’ एक एक्शन पैक्ड फिल्म है

जैसे कि अभिनेता कमल हासन की अपकमिंग फिल्म का ‘ठग लाइफ’ टीजर रिलीज हो चुका है. यह फैंस से को काफी पसंद आया है. टीजर की शुरुआत में कमल हासन एक वीरान मैदान में निहत्थे खड़े हैं. उन्होंने एक क्रीम कलर की शॉल ओढ़ रखी है. हाथों में पट्टियां बांधी हुई है, उनकी आंखो में गुस्सा दिख रहा है. वह एक्शन करते नजर आ रहे है उनके पीछे मौजूद काले कपड़े पहने हुए राक्षस नजर आ रहे है. जिसे अभिनेता दमदार एक्शन के साथ उन्हें मारते नजर आ रहे है.

इतना ही नहीं कमल हासन के साथ-साथ इस फिल्म में जयम रवि, त्रिशा कृष्णम, अभिरमी नासिर अहम रोल में नजर आएंगे.   ‘ठग लाइफ’ क्शपैक्ड धांसू फिल्म हैं, दावा किया जा रहा है कि यह फिल्म केजीएफ को टक्कर देगी.

कमल हासन की वर्कफ्रांट

साउथ के सुपरस्टार कमल हासन ‘विक्राम में नजर आए थे. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया था. वहीं अभिनेता अपनी अपकमिंग फिल्म  ‘ठग लाइफ’ में नजर आएंगे.

रियालिटी शो बिग बौस को अपराधियों का सहारा

विवादास्पद टीवी रियालिटी शो ‘बिग बॉस’ दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने के साथ-साथ दर्शकों को चैंकाने और आश्चर्य चकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता. प्रत्येक सीजन में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से विविध प्रकार के प्रतियोगी घर में प्रवेश करते हैं. लेकिन लगभग हर सीजन में आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रतिस्पर्धियों की उपस्थित जरुर नजर आती है.

टीवी रियालिटी शो ‘‘बिग बौस’’ का सीजन 17 प्रसारित हो रहा है.जैसे जैसे इसके सीजन बढ़ रहे हैं,वैसे वैसे इसकी टीआरपी भी लगातार गिरती जा रही है.‘बिग बौस’ के हर सीजन में प्रतियोगियों के बीच आपस में झगड़ने से लेकर बहुत कुछ ऐसा होता है,जिसके खिलाफ लगातार आवाजें उठती रही हैं. मगर ‘बिग बौस’ की पहचान झगड़ा व अश्लीलता ही बनकर रह गयी है. ‘बिग बौस 17’ शुरू होने से पहले सलमान खान ने कहा था कि अगर उन्हे लगेगा कि शो में कुछ भी हिंदुस्तानी कल्चर के अनुरूप नहीं है,तो वह उस पर बंदिश लगाएंगे और प्रतिस्पर्धी के खिलाफ एक्शन लेंगे. मगर ‘बिग बौस 17’ में दो प्रतिस्पर्धी हैं- ईशा मालवीय और समर्थ.पूरे विश्व ने देखा कि यह दोनों कलाकार बेड के अंदर किस तरह की अश्लील हरकतें कर रहे थे.पर सलमान खान चुप हैं.

इतना ही नही पिछले दिनों जब केद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने एल्विश पर सांप व सांप का जहर बेचने सहित कई गंदे आरोप लगाए,तब उत्तर प्रदेश पुलिस ने नोएडा के एक फार्म हाउस पर छापा मारकर सांप व सांप का विष बेचने के आरोप में पांच लोगों को गिरफ्तार करते हुए उन पांच के साथ ही एल्विश का भी नाम एफआई आर में लिखा गया और उन्हे पकड़ने के लिए भागदौड़ शुरू की. तब एलविश ने मेनका गांधी पर पलट वार करते हुए कहा कि उन्हे माफी मांगने पडे़गी,ऐसी धमकी दे डाली.और खुद ‘बिग बौस 17’ में पहुॅच गए. उधर जिस पुलिस इंस्पेक्टर ने एफआई आर में एल्विश का नाम लिखा था,उसे लाइन हाजिर कर दिया गया.यानी कि उस पुलिस इंस्पेक्टर को सजा दे दी गयी.क्योंकि एल्विश का भाजपा से अति गहरे संबंध हैं.मगर लोग कह रहे है कि ‘बिग बौस’ को तो अपराधियों के ही सहारे की दरकार रहती है.

बिग बौस सीजन: दो से ही अपराधियों को बोलबाला

जब रियालिटी षो ‘‘बिग बौस’’ की शुरूआत हुई थी,तब पहला और तीसरा सीजन कम विवादास्पद थे.पहले सीजन के हौस्ट अरशद वारसी थे.दूसरे सीजन की हौस्ट शिल्पा शेट्टी थीं.दूसरे सीजन में अपराधियो का ही बोलबाला था.‘बिग बौस’ के सीजन दो में राहुल महाजन, आशुतोष कौशिक,राजा चैधरी,देवेंद्र सिंह उर्फ बंटी चोर और मोनिका बेदी प्रतिस्पर्धी थीं.मोनिका बेदी का संबंध गैंगस्टर अबू सलेम से रहा है. सितंबर 2002 में मोनिका बेदी और अबू सलेम को जाली दस्तावेजों पर देश में प्रवेश करने के लिए पुर्तगाल में जेल की सजा दी गई थी.2006 में एक भारतीय अदालत ने बेदी को फर्जी नाम पर पासपोर्ट हासिल करने के लिए दोषी ठहराया.नवंबर 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी सजा को बरकरार रखा,लेकिन जेल की सजा को उस अवधि तक कम कर दिया,जो वह पहले ही काट चुकी थीं.

‘बिग बौस’ राहुल महाजन का अच्छा संबंध है.राहुल महाजन डोमैस्टिक वायलेंस’ के अपराधी हैं.सबसे पहले वह 2010 में ‘बिग बौस सीजन’ दो के प्रतिस्पर्धी बने.वह सीजन के फाइनलिस्ट थे. लेकिन ग्रैंड फिनाले से कुछ दिन पहले राहुल महाजन, राजा चैधरी, आशुतोष कौशिक और जुल्फी सैयद घर से बाहर निकलने के लिए दीवार पर चढ़ गए थे.उसके बाद 2015 में राहुल महाजन ‘बिग बौस हल्ला बोल’ तथा 2020 में ‘बिग बौस सीजन 14’ का भी हिस्सा बने.उन पर अपने दिवंगत पिता प्रमोद महाजन के आवास पर शराब में नशीली दवाओं का सेवन करने का आरोप लगाया गया था. हालाँकि, उन्हें मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप से बरी कर दिया गया था और उन पर केवल प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के लिए मामला दर्ज किया गया था.बाद में उनकी पूर्व पत्नी डिंपी महाजन ने भी उनके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था.

अभिनेत्री श्वेता तिवारी के पूर्व पति और अभिनेता राजा चैधरी  भी घरेलू हिंसा के आरोप में जेल जा .चुके हैं. आशुतोष कौशिक भी शराब पीकर मोटर सायकल चलाने के आरोप में जेल जा चुके हैं. देवेंद्र सिंह उर्फ बंटी चोर पर छह सौ से अधिक चोरी के मुकदमे दर्ज हैं. वह 15 साल जेल में रहे और कई बार जेल से भागे.पर ‘बिग बौस ’के सीजन दो से उनके अपराध धुल गए.

तीसरे सीजन में हौस्ट के रूप में अमिताभ बच्चन आए,तो माना गया कि अब ‘बिग बौस’ शायद पारिवारिक रियालिटी शो बन जाएगा.मगर अफसोस ऐसा नही हुआ.

बिग बौस सीजन 4

चैथे सीजन से हौस्ट /संचालन की बागडोर सलमान खान ने संभाली और तब से इस शो में अश्लीलता व अपराधियों का बोलबाला हो गया. ‘बिग बौस’ के सीजन चार के हौस्ट के रूप में सलमान खान की एंट्री होने के साथ ही इस शो में सैंकड़ों हत्याएं और अपहरण करके चारों तरफ दहशत फैला चुकी चंबल घाटी की रानी सीमा परिहार प्रतिभागी बनकर आ गयी थी. सीमा परिहार के अलावा ‘बिग बौस 4‘ में श्वेता तिवारी, साक्षी प्रधान, मनोज तिवारी, वीना मलिक और अश्मित पटेल जैसे सेलेब्स भी थे.लेकिन सीमा परिहार, सलमान खान की फेवरेट बन गई थीं. उन्हें शो में सलमान खान से खूब प्यार मिला था. ज्ञातब्य है कि बिग बौस के सरगना यानी कि हौस्ट अभिनेता सलमान खान ‘हिट एंड रन’ के अलावा काले हिरण के शिकार के मामले में अपराधी हैं. वह जेल जा चुके हैं.दोनों ही भयानक अपराध हैं.हालाँकि अब वह उस दौर से उबर चुके हैं, लेकिन वह अक्सर उन कठिनाइयों को साझा करते हैं,जिनका सामना उन्हें तब करना पड़ख् जब उन पर आपराधिक आरोप लगाए गए थे.बहरहाल,‘बिग बौस’ के सीजन 4 से दबी जुबान लोगों नेे कहा था कि जब अपराधी ‘बिग बौस’ का सरगना होगा,तो अब इस शो में अपराधियों का महिमा मंडन किया जाएगा.हर अपराधी को पाक साफ साबित करने का अवसर देने वाला शो बन जाएगा,और उसके बाद हर सीजन में इस शो के साथ अपराधी का जुड़ना अनिवार्य सा हो गया है.जबकि इस शो में एडल्ट फिल्म स्टार से लेकर चोर व अन्य अपराधियों के प्रतिभागी बनने से भी खूब विवाद होते रहते हैं.

बिग बौस सीजन 6

राजनीतिक कार्टूनिस्ट और कार्यकर्ता असीम त्रिवेदी ‘बिग बौस 6’ का हिस्सा थे.उन पर अपने कार्टून के माध्यम से राष्ट्रीय प्रतीक, संसद, भारतीय ध्वज और संविधान का अपमान करने के गंभीर आरोप लगे. इसके अलावा उनके खिलाफ राजद्रोह (भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए) का मामला भी दर्ज किया गया था.उन्हें अपने काम की सामग्री से संबंधित राजद्रोह के आरोप में मुंबई में गिरफ्तार किया गया था.

बिग बौस सीजन 7

अजाज खान ने बिग बॉस सीजन 7 में भाग लिया था और उन्हें ड्रग्स रखने के आरोप में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने गिरफ्तार किया था. 26 माह की जेल की सजा काटने के बाद वह जमानत पर रिहा हुए.उसके बाद अपना दर्दनाक अनुभव साझा करते हुए उन्होने सर्वोच्च न्यायालय पर अपना भरोसा जताया.

अरमान कोहली को 2013 में बिग बॉस हाउस से गिरफ्तार किया गया था, जब उन्होंने कथित तौर पर बिग बॉस 7 में सह-प्रतियोगी सोफिया हयात का शारीरिक शोषण किया था.2021 में उन्हें कोकीन रखने के लिए ड्रग मामले में एनसीबी द्वारा गिरफ्तार किया गया था और एक साल की जेल की सजा हुई थी.

बिग बौस सीजन 16

बिग बौस सीजन 16 में साजिद खान थे,जिन पर दर्शकों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निशाना साधा था.क्योंकि साजिद खान पर 2018 में ‘मी टू’ आंदोलन के समय गभीर आरोप लगे थे.कई अभिनेत्रियों ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. उन्हें हाउसफुल 4 छोड़ने के लिए कहा गया और फरहाद सामजी ने निर्देशक का पद संभाला.यहां तक कि गायिका सोना महापात्रा ने भी साजिद को प्रतियोगियों में से एक के रूप में अनुमति देने के लिए चैनल की आलोचना की थी.

बिग बौस सीजन 17 ने दी सीजन दो कोे मात

‘बिग बौस’ के सीजन 17 ने तो सारे रिकार्ड तोड़ डाले.इस शो में जेल जा चुकी जिग्ना वोरा व मुनव्वर फारूकी प्रतिस्पर्धी हैं.जबकि सांप और सांप का विष बेचने के आरोप में  गिरफ्तारी की तलवार लटकते ही गेस्ट के तौर पर एलविष भी ‘बिग बौस 17’ में जगह दे दी गयी है.

जी हाॅ! बिग बौस 17 की प्रतिस्पर्धी जिग्ना वोरा भी जेल जा चुकी हैं.उन पर पत्रकार जे डे की हत्या के आरोप में जेल भेजा गया था.लंबे समय तक चले मुकदमे के बाद अदालत ने उन्हे बरी कर दिया था.मुनव्वर फारूकी को 2021 में हिंदू देवी देवताओं के खिलाफ बयानबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, बाद में उन्हे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली.इस षो में जिग्ना वोरा हमदर्दी बटोरने के सारे हथकंडे अपना रही हैं.

एक एपीसोड में जिग्ना वोरा ने मुनव्वर फारुकी से एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति के साथ अपने रिश्ते का जिक्र कर अपनी भावनाओं और बेबसी को व्यक्त करते हुए बताती हैं कि तलाक के बाद उसके एक्स ने शादी कर ली. वह एक दिल दहला देने वाली घटना साझा करती है-‘ जब मुझे गिरफ्तार कर लिया गया था,तब मेरे एक्स को कोई चिंता नहीं हुई.वह सुबह ही अहमदाबाद से मुंबई हवाई जहाज से आया था.एअरपोर्ट पर उसने ब्रेकिंग न्यूज में मेरी गिरफ्तारी की खबर देखी और एअरपोर्ट से ही वह वापस अहमदाबाद चला गया था.

स्टैंडअप कमेडियन मुनव्वर फारूकी भी अपराधी है.2021 में मध्यप्रदेष पुलिस ने हिंदू देवी देवताओं का अपमान करने के जुर्म में गिरफ्तार किया था.बाद में उन्हे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी.2020 में मुनव्वर फारूकी ने यूट्यूब पर एक वीडियो पोस्ट किया था,तब भी उन पर मुकदमा दर्ज हुआ था.‘बिग बौस सजन 17’ में मुनव्वर फारूकी ने बताया कि गुजरात दंगे में किस तरह उनका घर तबाह हुआ था.

‘बिग बौस 17’ में जहां कई आपराध के आरोपी प्रतियोगी हैं,वहीं इस बार ड्ग्स मामले में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की जमानत के लिए लड़ाई लड़ने वाली वकील सना रईस खान भी प्रतिस्पर्धी हैं.सना रईस खान मुंबई की एक आपराधिक वकील हैं, जो बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मामलों पर बहस करती हैं.बिग बौस में डेब्यू से पहले इंस्टाग्राम पर सना के 47,000 फॉलोअर्स थे.सना नियमित रूप से अपने द्वारा संभाले जाने वाले कुछ मामलों में अपनी उपलब्धियों की समाचार क्लिपिंग और अपने निजी जीवन की कुछ झलकियाँ भी इंस्टाग्राम पर साझा करती रहती हैं.  कुल मिलाकर ‘बिग बौस’ और इसके प्रतियोगियों का कानूनी मामलों से एक लंबा इतिहास रहा

भविष्य को जन्म देता आईवीएफ

इंदिरा आईवीएफ, बिरला आईवीएफ, दिल्ली आईवीएफ का नाम तो आप ने सुना ही होगा. आजकल इन के फर्टिलिटी ऐंड आईवीएफ क्लीनिक्स जगहजगह आप को देखने को मिल जाएंगे. ये क्लीनिक्स भारत और दुनिया में बढ़ रही एक गंभीर समस्या घटती प्रजनन दर की तरफ इशारा करते हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है, फिलहाल भारत में तो नहीं.

साल दर साल प्रजनन दर में देखी जा रही लगातार गिरवट इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में ये एक बड़ी समस्या बन कर सामने आ सकती है. भारत में अभी इस का कोई खास असर दिखाई नहीं देता, लेकिन समस्या बढ़ रही है.

रिसर्च ऐक्सपर्ट ऐरन ओ नाईल के द्वारा अगस्त, 2023 में पब्लिश की गई फर्टिलिटी रेट के अनुसार एशिया के प्रमुख देशों में प्रजनन क्षमता काफी कम देखी गई. प्रजनन क्षमता का अर्थ एक औरत अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देती है से लिया जाता है.

पिछले 50 वर्षों में दुनियाभर में प्रजन्न दर में भारी गिरावट आई है. 1952 में औसत वैश्विक परिवार में 5 बच्चे थे जिन की संख्या अब 2 या 3 तक सिमट कर रह गई है और एशियाई देशों में यह 1 तक पहुंच चुकी है.

नशे की लत है गलत

इस की कुछ खास वजहें हैं जिन के कारण ऐसा होना माना जा रहा है. जैसेकि बढ़ता शैक्षिक स्तर खासकर महिलाओं में जो उन्हें लेट और कम बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करता है ताकि जीवन स्तर का ध्यान रखा जा सके. इसी को ध्यान में रखते हुए महिला व पुरुष शादी नहीं कर रहे. इस में उन्हें 35-40 साल की उम्र लग रही है, जिस उम्र में महिला में ऐग बनना कम होने लगते हैं और पुरुष में स्पर्म. ऐसे में महिलाएं गर्भधारण की समस्या से जूझने लगती हैं.

हाल ही के दिनों में तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं और आधुनिक जीवनशैली का पालन कर रही हैं और इसी के साथ उन की खानेपीने की आदतें बदल रही हैं. धूम्रपान और शराब का सेवन कामकाजी के लिए अब आम बात हो गई है.

साथ ही महिला और पुरुष की शारीरिक क्रियाओं में कमी आ रही है. शारीरिक निष्क्रियता को महिलाओं की फर्टिलिटी के कम होने का मुख्य कारण माना जाता है. घरों में आधुनिक तकनीकों के आ जाने से वे अब शारीरिक श्रम नहीं करतीं. जिस से पिछले कुछ सालों में फर्टिलिटी दर में कमी आई है. इस के अलावा बढ़ती उम्र, अनियमित मासिकधर्म पैटर्न भी इस के कुछ कारणों में से हैं.

इन सब कारणों से गर्भधारण करने में समस्याएं आ रही हैं, जिस का वैज्ञानिक कृत्रिम उपाय ढूढ़ चुके हैं आईवीएफ के रूप में.

क्या है आईवीएफ

आप ने ‘विक्की डोनर’ और ‘गुड न्यूज’ जैसी फिल्में तो देखी ही होंगी. ये फिल्में इसी आईवीएफ तकनीक के आसपास घूमती हैं. ‘विक्की डोनर’ में वह एक क्लीनिक में अपने स्पर्म डोनेट कर के जो औरतें मां नहीं बन पा रही हैं उन की मदद करता है. अन्नू कपूर उस क्लीनिक का मालिक है जो उसे स्पर्म डोनेशन के लिए तैयार करता है. वहीं ‘गुड न्यूज’ आईवीएफ की प्रक्रिया के दौरान कपल्स को किनकिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है को बताती है. डाक्टर की गलती के कारण 2 कपल के स्पर्म आपस में ऐक्सचेंज हो जाते हैं. फिर वह कपल किस तरह मानसिक तनाव से गुजरता है. इसे यह फिल्म बखूबी दिखाती है.

1978 में सर्जन पैट्रिक स्टेप्टी ने राबर्ट एडवर्ड के साथ मिल कर पहली बार आईवीएफ तकनीक में सफलता प्राप्त की, जिस के द्वारा 1978 में ही लुइस ब्राउन का जन्म हुआ. इस के बाद इस के परीक्षणों का सिलसिला चलता रहा और आईवीएफ जिसे विट्रो फर्टिलाइजेशन भी कहा जाता है तकनीक में सफलता हासिल होती गई.

आईवीएफ प्रक्रिया की बात करें तो यह जटिल क्रियाओं की एक शृंखला है, जिस में गर्भधारण (कंसीव) नहीं कर पा रही महिलाओं के कंसीव कर पाने को संभव बनाया जाता है. इस का उपयोग बच्चों में आनुवंशिक समस्याओं को फैलने से रोकने के लिए भी किया जा सकता है.

आनुवंशिक और शारीरिक समस्याओं के चलते महिलाओं में कंसीव करने की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. यदि कंसीव हो भी जाए तो मिसकैरिज हो जाता है या डिलिवरी में दिक्कत आती है. ऐसी समस्याओं से ही छुटकारा पाने के लिए डाक्टरों के सुझाव पर दंपतियों द्वारा आईवीएफ ट्रीटमैंट का इस्तेमाल किया जाता है, जिस में जब महिला का शरीर ऐग को फर्टिलाइज करने में सक्षम नहीं होता है, तो उसे लैब में फर्टिलाइज किया जाता है. इस में महिला के ऐग्स और पुरुष के स्पर्म को मिलाया जाता है. जब भू्रण का निर्माण हो जाता है, तो उसे वापस महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है.

यह एक लंबी प्रक्रिया है

डाक्टर परामर्श के बाद ओवेरियन स्टिम्युलेशन में अंडाशय में अंडे की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ हारमोनल दवाइयां दी जाती हैं. 8 से 10 दिन तक रोजाना इंजैक्शन दिए जाते हैं. फिर ट्रिगर इंजैक्शन, जिस से अंडे को मैच्योरिटी दी जाती है. जब अंडे मैच्योर हो जाते हैं तो अल्ट्रासाउंड की मदद से महिला के अंडाशय से मैच्योर अंडों को बाहर निकाल लिया जाता है. उस के बाद पुरुष का स्पर्म ले कर उस में से सही स्पर्म को अलग कर लिया जाता है. अंडे और स्पर्म को लैब में फर्टिलाइजेशन के लिए रखा जाता है. सावधानी के साथ 1-1 कर के स्पर्म को अंडे के अंदर डाला जाता है. अंडा जब भ्रूण बन जाता है, तो कुछ दिन उसे मौनिटर करने के बाद गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है.

डाक्टर की सलाह से भ्रूण स्थानांतरण तक एक औसत आईवीएफ प्रक्रिया में लगभग 6 से 8 सप्ताह का समय लगता है. स्थितियों के आधार पर हर रोगी के लिए स्टैप्स समान होते हैं. लेकिन महिला का शरीर हर स्टैप पर कैसे प्रतिक्रिया करता है यह महिला और उस के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है.

जानकारों का कहना है कि आईवीएफ आप को गर्भधारण की 100त्न गारंटी नहीं देता है. कंसीव होने की संभावना एक महिला के अंडों की उम्र और एक जोड़े के लिए कई अन्य कारकों पर निर्भर करती है. लेकिन औसतन 35 वर्ष की उम्र के बाद कंसीव कर पाने की संभावनाएं कम होती जाती हैं.

तैयार होने की जरूरत

एक इंटरव्यू के दौरान फिल्म अभिनेत्री कश्मीरा शाह ने खुलासा किया कि 10 साल और 14 आईवीएफ कोशिशों के बाद के शरीर में बहुत सारे स्टेराइड्स जा चुके थे जिस से उस का लुक बहुत खराब और वजनी हो गया था. उस के बाद भी वे मां नहीं बन पाईं. आईवीएफ के जरीए प्रैगनैंट न होने के बाद कश्मीरा और कृष्णा ने सैरोगेसी का रास्ता अपनाया.

रिएलिटी शो ‘शार्क टैंक इंडिया सीजन 2’ में नमिता थापर जो वहां जज थीं आईवीएफ पर अपना अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं कि यह एक महिला के लिए मानसिक और शारीरिक पीड़ा ला सकता है.

एमक्योर फार्मास्यूटिकल्स की मालिक ने आईवीएफ प्रक्रिया के साथ अपने संघर्ष के बारे में बात की. उन का कहना था कि जो 25 इंजैक्शन दिए गए थे उन से उन्हें शारीरिक और मानसिक पेन से गुजरना पड़ा था.

इस तरह महिला को मां बनने के लिए आईवीएफ के दौरान कई शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिन के लिए उन्हें पहले से तैयार होने की जरूरत होती है.

बड़ा है बाजार

आईवीएफ का देश में 6 हजार करोड़ का कारोबार है. इस तकनीक से भारत में सालाना 2 लाख बच्चे पैदा होते हैं. यह बाजार कितना बड़ा है इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत की सब से बड़ी फर्टिलिटी क्लीनिक शृंखला इंदिरा आईवीएफ में हिस्सेदारी खरीदने के लिए इच्छा रखने वालों की लाइन लगी है. इस शृंखला का मूल्य 8 हजार करोड़ रुपए से 10 हजार करोड़ रुपये रहने का अंदाजा है.

वर्तमान में इस के पास भारतीय आईवीएफ बाजार की 16 से 17त्न हिस्सेदारी है तथा देशभर में 116 क्लीनिक चलाती है.

भारत में आईवीएफ इलाज के लिए सामान्य खर्च 90 हजार रुपए से ले कर 1 लाख 70 हजार रुपए के बीच आता है. यह एक जनरल आकड़ा है. यह खर्च इस से भी ज्यादा हो सकता है क्योंकि ये एक जटिल प्रक्रिया है. खर्च कितना होगा यह राज्य, हौस्पिटल, उस में दी जाने वाली सुविधाओं और महिलापुरुष के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है.

गर्भावस्था के 9 महीने की अवधि को ध्यान में रखें, तो एक से डेढ़ लाख रुपए और जुड़ जाते हैं. भारत में सालाना 2 लाख से 2 लाख 50 हजार रुपए या इस से भी अधिक लोग आईवीएफ के माध्यम से पेरैंट बन रहे हैं.

सावधान रहे क्योंकि आईवीएफ इस से जुड़ी समस्याओं और खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जो शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह के हो सकते हैं.

आईवीएफ ट्रीटमैंट के दौरान महिलाओं के शारीरिक स्वास्थ्य के अनुसार मां और बच्चे को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. ये समस्याएं ट्रीटमैंट के कारण और खराब स्वास्थ्य के कारण भी हो सकती हैं.

जानकारों का मानना है कि आईवीएफ ट्रीटमैंट की वजह से प्रीमैच्योर डिलिवरी का रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है, जिस से शिशु भी अंडरवेट व कमजोर जन्म लेता. अधिकतर केसों में यह संभावना होती है. अगर महिला के गर्भाशय में गलती से एक से ज्यादा भू्रण चले जाते हैं, तो मल्टीपल बर्थ होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. मिसकैरिज का रिस्क भी उतना ही रहता है जितना कि नैचुरल तरीके से कंसीव करने वाली महिलाओं को.

ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी

सब से बड़ा रिस्क होता है एक्टोपिक प्रैगनैंसी का. फर्टिलाइज एग जब गर्भाशय में न जा कर किसी दूसरे भाग में चला जाता है जैसे फैलोपियन ट्यूब, ऐब्डौमिनल कैविटी या गर्भाशय ग्रीवा में तो यह महिला स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाता है. अगर समय रहते ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी का पता न चले, तो महिला की जान भी जा सकती है.

ये शारीरिक रूप से होने वाली समस्याएं हैं. यह जरूरी भी नहीं कि हर महिला को इन समस्यों का सामना करना पड़ता हो. लेकिन ट्रीटमैंट के खतरों को नकारा भी नहीं जा सकता.

इस से अलग आईवीएफ में धोखाधड़ी की समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं. इस पर कोई भी कंट्रोल बौडी न होने और किसी भी सरकारी संस्था के नजर न रखे जाने के अभाव में देश में बिजली की रफ्तार से सैकड़ों फर्टिलिटी क्लीनिक खुल गए हैं. उन की सेवाओं और उपचार पर निगरानी रखने वाला कोई नहीं है. मां बनने की इच्छा रखने वाली महिलाओं के साथ आईवीएफ के नाम पर कितनी ही जगह धोखाधड़ी देखी जा रही है. अत: इस से सावधान रहने की जरूरत है.

2022 में वाराणसी में आईवीएफ के नाम पर 53 महिलाओं के साथ धोखाधड़ी का मामला सामने आया था. यह मामला दिल्ली की स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. मनिका खन्ना के खिलाफ वाराणसी के कैंट का है, जिस में डा. ने आईवीएफ की ऐवज में प्रति महिला औसतन ढाई से तीन लाख रुपए वसूले जिस के बाद भी कोई महिला मां नहीं बन सकी. ऐसे में उन्हें आर्थिक, मानसिक और शारीरिक यातनाओं से गुजरना पड़ा.

उसी साल ग्रेटर नोएडा में फर्जी डाक्टर ने पकड़े जाने से पहले तक 80 से ज्यादा महिलाओं का आईवीएफ ट्रीटमैंट किया. यह काम वह फर्जी डिगरी के सहारे कर रहा था. इस बात का खुलासा तब हुआ जब लापरवाही के चलते एक महिला की जान भी चली गई. महिला के परिजनों की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया तब जा कर डाक्टर पकड़ा गया.

धोखाधड़ी से बचें

आईवीएफ फर्टीलिटी सैंटर धोखाधड़ी का घर बनते जा रहे हैं.यदि आप सतर्कता न बरतें तो ऐसी धोखाधड़ी आपके साथ भी हो सकती है.

भारत में क्यों बढ़ रहा आईवीएफ का कोरबार? भारत में औरत का मां न बन पाना एक अभिशाप की तरह लिया जाता है. मां न बन पाने के कारण उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है. समाज में उन का मिलनाजुलना कम हो जाता है. शादीब्याह, गोदभराई और शुभकामों में उस की उपस्थिति सब को खटकने लगती है. पुरुष घरों में उस की अनदेखी शुरू कर देते हैं. अपनों द्वारा दिए गए बां?ा, नपुंसक जैसे संबोधन शब्द महिलापुरुष दोनों को मानसिक रूप से परेशान कर देते हैं. इसे एक सामाजिक कलंक या टैबू की तरह लिया जाता है. इस से तनाव इतना बढ़ जाता है कि कई औरतों के मन में खुद को खत्म कर लेने जैसे विचार आने लगते हैं.

आदर्श समाज का चोला ओढ़ा समाज प्राकृतिक रूप से मां न बन पाने के कारण औरतों को तरहतरह की यातनाएं देता है. उन पर मानसिक, शारीरिक आघात करता है. तलाक व दूसरी शादी जैसी धमकियां आम हो जाती हैं. महिलाओं के लिए आईवीएफ किसी वरदान से कम नहीं है.

यह उपचार महंगा भी है पर जब वंशवृद्धि की बात आती है तो यह समाज किसी भी पद्धति को अपनाने से पीछे नहीं हटना चाहता. यही कारण है कि देश में इस का बाजार बढ़ रहा है.

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