राम भरोसे स्वास्थ्य सेवा

नर्सिंग सेवाओं की लगातार बढ़ती मांग ने देशभर में नकली और अधकचरे नर्सिंग कालेजों की बाढ़ सी ला दी है. मध्य प्रदेश में 600 नर्सिंग कालेजों की हो रही जांच में पता चला कि कुछ नर्सिंग कालेज केवल नकली पते पर चल रहे हैं पर वे सुंदर आकर्षक सर्टिफिकेट दे देते हैं जिन के बलबूते पर कुकुरमुत्तों की तरह फैल रहे क्लीनिकों में नौकरियां मिल जाती हैं.

बहुत से डाक्टर और नर्सिंगहोम इन्हें ही प्रैफर करते हैं क्योंकि ये सर्टिफिकेट के बल पर बचे रहते हैं. जहां तक सिखाने की बात है, मोटीमोटी बातें तो किसी को भी 4 दिन में बताई जा सकती हैं. अगर कुछ गलत हो जाए तो अस्पताल इसे मरीज की गलती या मरीज की बीमारी पर थोप कर निकल जाता है.

जिस देश में 80% जनता झाड़फूंक, पूजापाठ पर ज्यादा भरोसा करती हो और छोटे डाक्टर या क्लीनिक में जाना भी उस के लिए मुश्किल हो, वह गलत सेवा दे रही नर्स के बारे में कुछ कहने की हैसियत नहीं रखता.

एक मामले में एक नर्सिंग कालेज 3 मंजिले मकान की एक मंजिल में 3 कमरों में चल रहा था और उस का मालिक प्रिंसिपल

मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग का डाइरैक्टर रह चुका है. वह जानता है कि सरकारी कंट्रोल से कैसे निबटा जाता है. नियमों के अनुसार नर्सिंग कालेज में 23 हजार वर्गफुट की जगह होनी चाहिए. उस घरेलू नर्सिंगहोम से 4 बैच निकल भी चुके हैं और नए छात्रछात्राएं आ रहे हैं.

क्या छात्रछात्राओं को मालूम नहीं होता कि वे जिस फेक और फ्रौड मैडिकल या पैरामैडिकल कालेज में पढ़ रहे हैं वह कुछ सिखा नहीं सकता? उन्हें मालूम होता है पर उन का मकसद तो सिर्फ डिगरी या सर्टिफिकेट लेना होता है. यह देश की परंपरा बन गई है जहां प्रधानमंत्री तक अपनी डिगरी के बारे में स्पष्ट कुछ कहने को तैयार नहीं हैं और कभी कुछ कभी कुछ कहते रहे.

ऐसे देश में जहां लोग हजारों की संख्या में लगभग अनपढ़, कुछ संस्कृत वाक्य रट कर करोड़ों का आश्रम चला सकते हैं या धर्म का बिजनैस कर सकते हैं वहां मैडिकल और पैरामैडिकल सेवाओं में जम कर बेईमानी न हो ऐसा कैसे हो सकता है. यह सब मांग और पूर्ति का मामला है. नर्सों की कमी है और किसी सर्टिफिकेट के लिए लड़की या लड़का छोटे डाक्टर या छोटे क्लीनिक के लिए काफी है. पहले भी रजिस्टर्ड मैडिकल प्रैक्टीशनरों के पास जो कंपाउंडर होते थे वे नौसिखिए ही होते थे.

ग्राहक की मानसिकता और उस की सेवा पाने की क्षमता इस मामले के लिए जिम्मेदार है. जब लोग कम पैसों में इलाज कराएंगे तो उन्हें पैरामैडिकल सेवाएं भी अधकचरी मिलेंगी और उन के लिए ट्रेंड करने वाले भी अधकचरे ही होंगे.

आज थोड़े से अक्लमंद लोग क्या कर सकते हैं, यह दिल्ली के एक ज्वैलर के यहां क्व25 करोड़

के डाके से साफ है जिस में एक लड़के ने एक रात में अकेले बिना अंदरूनी सहयोग के तिजोरी काट कर चोरी कर ली और कोई खास सुबूत नहीं छोड़ा. यह तो सैकड़ों कैमरों का कमाल है कि आज हर अपराधी कहीं न कहीं पकड़ा ही जाता है.

नर्सों, फार्मेसिस्टों के बारे में तो पूछिए ही नहीं. पैसे हैं तो अच्छी सेवा मिल जाएगी वरना जैसी मिल रही है उसी से खुश रहिए. यह न भूलें कि आज हर सेवा में बिचौलिए ज्यादा कमा रहे हैं, चाहे वे 4 जनों की फर्म चला रह हों या सैकड़ों टैकसैवी कर्मचारी रख कर औनलाइन सेवा दे रहे हों.

 

7 हैल्थ समस्याओं से बचाता है पू्रंस

कम कैलोरी और ज्यादा फाइबर वाला ड्राईफ्रूट पू्रंस यानी सूखा आलूबुखारा सेहत का ध्यान रखने वालों के बीच आजकल खासा ट्रैंड में है. इस में मौजूद पौलीफिनोल नामक ऐंटीऔक्सीडैंट और पोटैशियम दोनों हड्डियों को मजबूत बनाते हैं. बिगड़ी हुई जीवनशैली में हम छोटी भूख लगने पर कुछ भी खा लेते हैं. जबकि इस के बजाय दिन में एक बार 5-6 पू्रंस खा लें तो शरीर को सही पोषण मिल सकता है.

  1. आंतों को बनाए सेहतमंद

पू्रंस में सौल्यूबल फाइबर काफी मात्रा में होता है जिस से आंतों की सफाई अच्छी तरह होती है. इस के सेवन से आंतें स्वस्थ रहती हैं और कब्ज की समस्या में राहत मिलती है.

2. औस्टियोपोरोसिस में लाभदायक

कई मैडिकल शोधों में यह माना गया है कि औस्टियोपोरोसिस की समस्या से ग्रस्त लोगों में पू्रंस काफी लाभदायक रहा है. इस के संतुलित सेवन से बोन डैंसिटी में सुधार होने की संभावना बढ़ जाती है खासतौर पर यदि किसी महिला को मेनोपौज के बाद यह समस्या हुई है तो उसे डाक्टर की सलाह से इस का सेवन जरूर करना चाहिए.

3. ऐनीमिया से करे बचाव

पू्रंस आयरन के साथसाथ पोटैशियम, विटामिन के, विटामिन बी, जिंक और मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत है. इस के नियमित सेवन से आप के शरीर के लिए जरूरी मिनरल्स की जरूरत काफी हद तक पूरी हो सकती है.

4. डायबिटीज नियंत्रण में सहायक

चूंकि इस में सौल्यूबल फाइबर पाया जाता है इसलिए यह डाइजेशन प्रोसैस को धीमा करने में सहायक है और जब पाचनक्रिया धीमी हो जाए तो डायबिटीज की समस्या से ग्रस्त लोगों की ब्लड शुगर नियंत्रण में रहती है.

5. मांसपेशियों की चोट से उबारे

पू्रंस में बोरोन नाम का खनिज पाया जाता है जो मांसपेशियों के लिए बहुत जरूरी होता है. यदि आप को मांसपेशियों से जुड़ी समस्याएं हर दूसरे दिन हो जाती हैं तो यह संकेत है कि आप के शरीर में बोरोन की कमी है.

6. दिल की सेहत का रखे खयाल

चूंकि पू्रंस कौलेस्ट्रौल और शुगर को नियंत्रण में रखने में सहायक है इसलिए यह दिल के लिए भी लाभदायक है क्योंकि इन समस्याओं का सीधा असर दिल की सेहत पर पड़ता है.

7. ओबेसिटी कम करे

मोटापा आज की जीवनशैली में सब से बड़ी समस्या है. पू्रंस खाने से आप की बारबार कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती जिस से आप अपने वजन को नियंत्रित रख सकती हैं.

कैसे खाएं: वैसे तो पू्रंस को स्नैक की तरह भी खाया जा सकता है लेकिन दूसरे विकल्प भी हैं:

  •  नाश्ते में ओटमील या दलिया के साथ मिक्स कर खा सकती हैं.
  • दूसरे नट्स के साथ संतुलित मात्रा में मिक्स कर खा सकती हैं.
  • हैल्दी ड्रिंक्स या स्मूदी के साथ इसे ब्लैंड कर सकती हैं.
  • प्यूरी बना कर जैम की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • बेकिंग का शौक है तो कुछ डिशेज में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सेहत से जुड़े इन फायदों के साथसाथ पू्रंस के और भी कई फायदे हैं जैसे:

  • यह बालों को मजबूत बनाने में सहायक है.
  • आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद है.
  • इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक है.
  • समय से पहले झुर्रियों का आना रोकने में सहायक है.

Diwali 2023: इस दिवाली अपनी आंखों को दें ये नायाब तोहफा

क्‍या आप दीपावली के इस पर्व पर अपनी आंखों को तोहफा देना चाहेंगी ताकि आपकी आंखें भी सुंदर दिखें? हम आपको बताने वाले हैं कुछ खास आई मेकअप टिप्‍स.

आंखों का मेकअप करना हर लड़की को पसंद होता है. सिर्फ आंखों का मेकअप करके चेहरे पर सुंदरता लाई जा सकती है. इस दीवापली जब आप तैयार हों, तो हमारे बताए अनुसार आंखों का मेकअप करें, आपको अपना चेहरा जरूर प्‍यारा नजर आएगा.

कई लोग आंखों का मेकअप करना जरूरी नहीं समझते हैं या फिर वो गलत तरीके से मेकअप कर लेते हैं. मान लीजिए उनकी आंखें बहुत छोटी हैं और वो मेकअप भी लाइट ही करती हैं, ऐसे में आंखें सुंदर ही नहीं लगतीं या बड़ी आंखों पर हैवी मेकअप कर लेती हैं जिससे वो छोटी लगने लग जाती हैं.

आंखों का मेकअप करना एक आर्ट है जिसे सीखने में सेंस और टाइम दोनों की जरूरत होती है. आइए जानते हैं इस दीवाली आप अपनी आंखों को कैसे संजाएं:

1. आई मेकअप को आप ब्राउन और पिंक शेड में करें. इससे आंखों में नेचुरलपन भी रहेगा और ड्रामा भी शो होगा. बस आपको ध्‍यान इस बात का रखना होगा कि आप बहुत ज्‍यादा ओवर न कर लें.

2. क्‍लासिक विंडेज आईलाईनर और न्‍यूट्रल आईशैडो के साथ आंखों को सुंदर बनाया जा सकता है. आप पलकों के ऊपर मोटा सा लाइनर लगाएं और मस्‍कारा भी लगाएं.

3. पर्पल, सिल्‍वर और ब्रोंज ये तीन शेड जब आप मेकअप टूल के रूप में इस्‍तेमाल करें, तो बहुत अच्‍छा लुक देते हैं.

4. सब्‍सटेल रोज गोल्‍ड आईशैडो वाला लुक आंखों पर फबता है. अगर आप इस बार अनारकली सूट को पूजा के दौरान पहनने वाली हैं तो इसे ही एप्‍लाई करें. यकीन मानिए, आपकी आंखें बोल उठेंगी.

5. यह रोज गोल्‍ड से थोड़ा बोल्‍ड मेकअप होगा. इसे हालो आईशैडो भी कहा जाता है. आईशैडो के लिए डार्क पिंक शेड और डीप गोल्‍ड शेड का इस्‍तेमाल किया जा सकता है.

6. अगर आप थोड़ी सी भी डेयरिंग और मेकअप में ट्वीस्‍ट को पसंद करने वाली हैं तो आप ब्राइट क्रिम्‍सन आईशैडो लुक को ट्राई कर सकती हैं. जब आप इस लुक को दे रही हों तो लिपस्टिक की तरह ही लगाएं और बाद में उसी रंग की लिपस्‍टि‍क को होंठो पर एप्‍लाई करें.

7. यह शैम्‍पेन पिंक आईशैडो, आंखों पर फ्लोरल लुक दे देता है. अगर आप इसी रंग की ड्रेस पूजा के दौरान पहनने वाली हैं तो यह मेकअप आप पर बहुत फबेगा.

मोहपाश: भाग 1- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

रात का दूसरा प्रहर था. ट्रेन अपनी रफ्तार से गंतव्य की ओर बढ़ी चली जा रही थी. छवि ने धीरे से कंबल से झांक कर देखा, डब्बे में गहन खामोशी छाई थी. छवि की आंखों से नींद गायब थी. उस का शरीर तो साथ था पर मन कहीं पीछे भाग रहा था.

वह बीए फाइनल की छात्रा थी. सबकुछ अच्छा चल रहा था. उस की सहेली लता ने अपने घर में पार्टी रखी थी, वहीं छवि की मुलाकात रौनक सांवत से हुई थी. पहली ही मुलाकात में रौनक उसे भा गया. वह वकालत की पढ़ाई कर रहा था. उस ने स्वयं को शहर के एक प्रसिद्ध पार्क होटल का एकलौता वारिस बताया. जानपहचान कब प्यार में बदल गई, दोनों को पता न चला. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें तक खा लीं.

रौनक के प्यार की मीठी फुहार दिनप्रतिदिन छवि को इतना भिगोती जा रही थी कि भोली छवि अपनी मां की बनाई ‘हां’, ‘न’ की मार्यादित लकीर की गिरफ्त से फिसल कर कब बाहर आ गई, उसे पता ही नहीं चला. जब पता चला तब पैर के नीचे से जमीन निकल गई. 2 महीने बाद फाइनल परीक्षा थी. छवि परीक्षा की तैयारी में जुट गई. परीक्षा के प्रथम दिन उस की तबीयत ख़राब लगने लगी. उस का शक सही निकला, वह गर्भवती थी.

उस ने रौनक से बात करने की बहुत बार कोशिश की. हर बार उस का मोबाइल आउट औफ रीच बता रहा था. दूसरी परीक्षा देने के बाद छवि सीधे पार्क होटल पहुंची, वहां किसी ने भी रौनक को नहीं पहचाना. छवि समझ गई, उस के साथ धोखा हुआ है. छवि भारीमन से घर लौट आई. अच्छी तरह से ठगी गई है, इस का एहसास अब उसे हो गया था. मोबाइल का लगातार न लगना भी संदेह की पुष्टि कर रहा था. अपने अल्हड़पन के गलत मोहपाश ने उसे कहीं का न रखा. वह चुपचाप कमरे में बैठी थी. सुखदा ने आ कर बत्ती जलाई.

‘अंधेरे में क्यों बैठी हो छवि, क्या बात है, पेपर अच्छा नहीं गया क्या?’

‘मां, बत्ती मत जलाओ.’

‘क्या हुआ है, बताओ, कुछ हुआ है क्या?’ सुखदा ने घबरा कर पूछा.

‘मां, तुम मुझे मार डालो, मैं जीना नहीं चाहती.’

‘क्या हुआ है, बताओ तो, जल्दी बोलो,’ सुखदा की आवाज में घबराहट थी.

‘मां, मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई, मैं बरबाद हो गई, मैं कहीं की न रही.’

‘साफसाफ कहो, क्या हुआ है, मुझे बताओ, मैं तुम्हारी मां हूं.’

‘मां, मां, मैं प्रैग्नैंट हूं’

‘क्या, यह तुम ने क्या किया छवि, कौन है वह.’

‘मां, वह झूठा निकला. उस ने खुद को पार्क होटल का वारिस बताया. पर यह झूठ है. उस ने मुझे धोखा दिया, मां.’

‘उस ने तुझे धोखा नहीं दिया पागल लड़की. तूने अपनेआप को धोखा दिया. उसे फोन लगा, मैं बात करूंगी.’

‘उस का फोन बंद है मां. मैं होटल गई थी. वहां उसे कोई नहीं जानता. वह झूठा निकला.’

छवि अपनी नादानी पर जारजार रो रही थी. सुखदा की समझ में नहीं आ रहा था वह इस परिस्थिति से कैसे निबटे. आज नहीं तो कल, यह खबर पूरी कालोनी में आग की तरह फैल जाएगी. छवि की बदनामी होगी अलग. उस का जीवन बरबाद हो जाएगा. वह छवि से बोली,

‘मैं डाक्टर से बात करती हूं. खबरदार, अब कोई गलत कदम तुम नहीं उठाओगी, समझी…’

छवि ने हामी में सिर हिलाया.

दूसरे दिन सुखदा छवि को ले कर नर्सिंगहोम गई. आधे घंटे बाद डाक्टर आ कर बोली, ‘सौरी सुखदा जी, गर्भपात नहीं हो पाया. छवि का ब्लडप्रैशर बहुत ज्यादा लो हो जा रहा है, ऐसे में गर्भपात करने से वह भविष्य में वह मां नहीं बन पाएगी.’

‘एकदो दिनों बाद?’ सुखदा ने पूछा.

‘मुझे नहीं लगता है कि यह सभंव हो पाएगा. अगर फिर वही प्रौब्लम हुई तब रिस्क बढ़ जाएगा.’

घर आ कर सुखदा लगातार फोन पर लगी रही. उस ने छवि से कहा, ‘अपना सारा सामान बांध लो, हम लोग परसों कलकत्ता जा रहे हैं. कलकत्ता में मेरी सहेली देविका बोस है. वह महिला उत्थान समिति की प्रबंधक है. तुम को उसी के पास वहीं रहना है. हम आतेजाते रहेंगे.’

‘मां, तुम हम से बहुत नाराज हो न, इसलिए मुझे ख़ुद से अलग कर रही हो?’

‘ख़ुद से अलग नहीं कर रहु छवि. तुम मेरी बेटी हो. तुम को हम अपने से अलग कैसे कर सकते हैं बेटा. तुम्हारे पापा के नहीं रहने के बाद हम तुम को देख कर ही जी पाए. यहां रहना अब ठीक नहीं होगा. मेरी नौकरी, बस, 3 साल और है. सेवानिवृत्ति के बाद हम भी वहीं आ कर साथ रहेंगे.’

कलकत्ता पहुंच कर समिति की प्रबंधक देविका बोस से मिली. 2 दिन रह कर सुखदा वापस पटना लौट आई. उसे छवि के बिना घर बहुत वीराना लग रहा था. आते समय छवि का क्रदंन भी उस के मन को कचोट रहा था, पर वह परिस्थितियों के कारण मजबूर थी. सुखदा ने सभी को बताया छवि परीक्षा के बाद अपने मामा के यहां गई है. छवि 9वीं कक्षा में थी जब उस के पिता दुनिया छोड़ गए. पतिपत्नी एक ही स्कूल में टीचर थे. पति के नहीं रहने के बाद 4 कमरे में फैल कर रहने वाली सुखदा ने उस में किराया लगा दिया और खुद ऊपर बने 2 कमरे और हाल में आ गई. इस से अकेलेपन का भय कुछ हद तक मिट चला था और थोड़े पैसे भी आ गए थे. परिस्थितियों के बदलने से उसे छवि की भलाई के लिए अपने दिल पर पत्थर रख कर यह फैसला लेना पड़ा. छवि का मन भी स्तब्ध था. अनजाने में की गई एक भूल ने उस के जीवन को ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया था जहां से निकलने का रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था.

कलकत्ता में समिति में रहने वाली पीड़ित महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए उन की शिक्षा व योग्यता के आधार पर उपयोगी कक्षाओं का संचालन होता था. समिति में रहने वाली हर महिला का किसी न किसी संस्था में नामांकन जरूरी था ताकि भविष्य में वह आत्मनिर्भर रह सके. निसंतान देविका छवि को अपनी बेटी की तरह प्यार करने लगी. उस का हर संभव प्रयास थे कि वह छवि के खंडित मन को वह फिर से जीवित कर सके.

गरमी की छुट्टियों में जब सुखदा आई तब छवि के पेट का उभार साफ दिखने लगा था. उसे छवि के बढ़ते मनोबल को देख कर बहुत संतोष हुआ कि उस का निर्णय सही था. छुट्टियां बिता कर वह वापस चली गई. नियत समय पर छवि ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटे को जन्म दिया. प्रसूतिगृह से अपने कमरे में आने पर छवि लगातार अपने बच्चे को देखने की जिद करने लगी. एक बार तो सुखदा का मन हुआ कि वह छवि के उन्नत भविष्य के लिए झूठ कह दे कि उसे मृत बच्चा हुआ है, लेकिन मां बनी छवि बच्चे के लिए बेचैन हो पूछने लगी, ‘मां, कहां है मेरा बच्चा? प्रसव के बाद मैं ने डाक्टर की आवाज सुनी थी, वे कह रही थीं लड़का है. मैं ने बच्चे की रोने की आवाज़ भी सुनी थी. कहां है मेरा बेटा, बताओ न मां, कहां है मेरा बच्चा?’

नई जिंदगी की शुरुआत

शादीशुदा जिंदगी क्या होती है, दोनों ही इस का ककहरा भी नहीं जानते थे. भाग कर शहर तो आ गए, लेकिन बुतरू कोई काम ही नहीं करना चाहता था. वह बस्ती के बगल वाली सड़क पर दिनभर हंडि़या बेचने वाली औरतों के पास निठल्ला बैठा बातें करता और हंडि़या पीता रहता था. इसी तरह दिन महीनों में बीत गए और खाने के लाले पड़ने लगे.

फूलमनी कब तक बुतरू के आसरे बैठे रहती. उस ने अगलबगल की औरतों से दोस्ती गांठी. उन्होंने फूलमनी को ठेकेदारी में रेजा का काम दिलवा दिया. वह काम करने जाने लगी और बुतरू घर संभालने लगा. जल्द ही दोनों का प्यार छूमंतर हो गया.

बुतरू दिनभर घर में अकेला बैठा रहता. शाम को जब फूलमनी काम से घर लौटती, वह उस से सारा पैसा छीन लेता और गालीगलौज पर आमादा हो जाता, ‘‘तू अब आ रही है. दिनभर अपने भरतार के घर गई थी पैसा कमाने… ला दे, कितना पैसा लाई है…’’

फूलमनी दिनभर ठेकेदारी में ईंटबालू ढोतेढोते थक कर चूर हो जाती. घर लौट कर जमीन पर ही बिना हाथमुंह धोए, बिना खाना खाए लेट जाती. ऊपर से शराब के नशे में चूर बुतरू उस के आराम में खलल डालते हुए किसी भी अंग पर बेधड़क हाथ चला देता. वह छटपटा कर रह जाती.

एक तो हाड़तोड़ मेहनत, ऊपर से बुतरू की मार खाखा कर फूलमनी का गदराया बदन गलने लगा था. तरहतरह के खयाल उस के मन में आते रहते. कभी सोचती, ‘कितनी बड़ी गलती की ऐसे शराबी से शादी कर के. वह जवानी के जोश में भाग आई. इस से अच्छा तो वह सुखराम मिस्त्री है. उम्र्र में बुतरू से थोड़ा बड़ा ही होगा, पर अच्छा आदमी है. कितने प्यार से बात करता है…’

सुखराम फूलमनी के साथ ही ठेकेदारी में मिस्त्री का काम करता था. वह अकेला ही रहता था. पढ़ालिखा तो नहीं था, पर सोचविचार का अच्छा था. सुबहसवेरे नहाधो कर वह काम पर चला आता. शाम को लौट कर जो भी सुबह का पानीभात बचा रहता, उसे प्यार से खापी कर सो जाता.

शनिवार को सुखराम की खूब मौज रहती. उस दिन ठेकेदार हफ्तेभर की मजदूरी देता था. रविवार को सुखराम अपने ही घर में मुरगा पकाता था. मौजमस्ती करने के लिए थोड़ी शराब भी पी लेता और जम कर मुरगा खाता.

फूलमनी से सुखराम की नईनई जानपहचान हुई थी. एक रविवार को उस ने फूलमनी को भी अपने घर मुरगा खाने के लिए बुलाया, पर वह लाज के मारे नहीं गई.

साइट पर ठेकेदार का मुंशी सुखराम के साथ फूलमनी को ही भेजता था. सुखराम जब बिल्डिंग की दीवारें जोड़ता, तो फूलमनी फुरती दिखाते हुए जल्दीजल्दी उसे जुगाड़ मसलन ईंटबालू देती जाती थी.

सुखराम को बैठने की फुरसत ही नहीं मिलती थी. काम के समय दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती थी. काम करते हुए कभीकभी वे मजाक भी कर लिया करते थे. लंच के समय दोनों साथ ही खाना खाते. खाना भी एकदूसरे से साझा करते. आपस में एकदूसरे के सुखदुख के बारे में भी बतियाते थे.

एक दिन मुंशी ने सुखराम के साथ दूसरी रेजा को काम पर जाने के लिए भेजा, तो सुखराम उस से मिन्नतें करने लगा कि उस के साथ फूलमनी को ही भेज दे.

मुंशी ने तिरछी नजरों से सुखराम को देखा और कहा, ‘‘क्या बात है सुखराम, तुम फूलमनी को ही अपने साथ क्यों रखना चाहते हो?’’

सुखराम थोड़ा झेंप सा गया, फिर बोला ‘‘बाबू, बात यह है कि फूलमनी मेरे काम को अच्छी तरह सम?ाती है कि कब मुझे क्या जुगाड़ चाहिए. इस से काम करने में आसानी होती है.’’

‘‘ठीक है, तुम फूलमनी को अपने साथ रखो, मुझे कोई एतराज नहीं है. बस, काम सही से होना चाहिए… लेकिन, आज तो फूलमनी काम पर आई नहीं है. आज तुम इसी नई रेजा से काम चला लो.’’

झक मार कर सुखराम ने उस नई रेजा को अपने साथ रख लिया, मगर उस से उस के काम करने की पटरी नहीं बैठी, तो वह भी लंच में सिरदर्द का बहाना बना कर हाफ डे कर के घर निकल गया. दरअसल, फूलमनी के नहीं आने से उस का मन काम में नहीं लग रहा था.

दूसरे दिन सुखराम ने बस्ती जा कर फूलमनी का पता लगाया, तो मालूम हुआ कि बुतरू ने घर में रखे 20 किलो चावल बेच दिए हैं. फूलमनी से उस का खूब ?ागड़ा हुआ है. गुस्से में आ कर बुतरू ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई. वह तो उसे मारे ही जा रहा था, पर बस्ती के लोगों ने किसी तरह उस की जान बचाई.

सुखराम ने पड़ोस में पूछा, ‘‘बुतरू अभी कहां है?’’

किसी ने बताया कि वह शराब पी कर बेहोश पड़ा है. सुखराम हिम्मत कर के फूलमनी के घर गया. चौखट पर खड़े हो कर आवाज दी, तो फूलमनी आवाज सुन कर झोपड़ी से बाहर आई. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

सुखराम से उस की हालत देखी न गई. वह परेशान हो गया, लेकिन कर भी क्या सकता था. उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, जो 2 दिन से काम पर नहीं आ रही हो?’’

दर्द से कराहती फूलमनी ने कहा, ‘‘अब इस चांडाल के साथ रहा नहीं जाता सुखराम. यह नामर्द न कुछ करता है और न ही मुझे कुछ करने देता है. घर में खाने को चावल का एक दाना तक नहीं छोड़ा. सारे चावल बेच कर शराब पी गया.’’

‘‘जितना सहोगी उतना ही जुल्म होगा तुम पर. अब मैं तुम से क्या कहूं. कल काम पर आ जाना. तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता है,’’ इतना कह कर सुखराम वहां से चला आया.

सुखराम के जाने के बाद बहुत देर तक फूलमनी के मन में यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच सुखराम उसे चाहता है? फिर वह खुद ही लजा गई. वह भी तो उसे चाहने लगी है. कुछ शब्दों के एक वाक्य ने उस के मन पर इतना गहरा असर किया कि वह अपने सारे दुखदर्द भूल गई. उसे ऐसा लगने लगा, जैसे सुखराम उसे साइकिल के कैरियर पर बैठा कर ऐसी जगह लिए जा रहा है, जहां दोनों का अपना सुखी संसार होगा. वह भी पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाह रही थी. बस आगे और आगे खुले आसमान की ओर देख रही थी.

अचानक फूलमनी सपनों के संसार से लौट आई. एक गहरी सांस भरी कि काश, ऐसा बुतरू भी होता. कितना प्यार करती थी वह उस से. उस की खातिर अपने मांबाप को छोड़ कर यहां भाग आई और इस का सिला यह मिल रहा है. आंखों से आंसुओं की बूंदें टपक आईं. बुतरू का नाम आते ही उस का मन फिर कसैला हो गया.

अगले दिन सुबहसवेरे फूलमनी काम पर आई, तो उसे देख कर सुखराम का मन मयूर नाच उठा. काम बांटते समय मुंशी ने कहा, ‘‘सुखराम के साथ फूलमनी जाएगी.’’

साइट पर सुखराम आगेआगे अपने औजार ले कर चल पड़ा, पीछेपीछे फूलमनी पाटा, बेलचा, सीमेंट ढोने वाला तसला ले कर चल रही थी.

सुखराम ने पीछे घूम कर फूलमनी को एक बार फिर देखा. वह भी उसे ही देख रही थी. दोनों चुप थे. तभी सुखराम ने फूलमनी से कहा, ‘‘तुम ऐसे कब तक बुतरू से पिटती रहोगी फूलमनी?’’

‘‘देखें, जब तक मेरी किस्मत में लिखा है,’’ फूलमनी बोली.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’’ सुखराम ने सवाल किया.

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘मैं जो तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘एक बार तो घर छोड़ चुकी हूं और कितनी बार छोडूं? अब तो उसी के साथ जीना और मरना है.’’

‘‘ऐसे निकम्मे के हाथों पिटतेपिटाते एक दिन तुम्हारी जान चली जाएगी फूलमनी. क्या तुम मेरा कहा मानोगी?’’

‘‘बोलो…’’

‘‘बुतरू एक जोंक की तरह है, जो तुम्हारे बदन को चूस रहा है. कभी आईने में तुम ने अपनी शक्ल देखी है. एक बार देखो. जब तुम पहली बार आई थीं, कैसी लगती थीं. आज कैसी लग रही हो. तुम एक बार मेरा यकीन कर के

मेरे साथ चलो. हमारी अपनी प्यार की दुनिया होगी. हम दोनों इज्जत से कमाएंगेखाएंगे.’’

बातें करतेकरते दोनों उस जगह पहुंच चुके थे, जहां उन्हें काम करना था. आसपास कोई नहीं था. वे दोनों एकदूसरे की आंखों में समा चुके थे.

संयोग: मंजुला के प्यार का क्या था अंजाम

रात के 10 बज चुके थे. मरीजों को निबटा कर डा. मंजुला प्रियदर्शिनी अपने क्लिनिक में अकेली बैठी थीं. अचानक उन्होंने रिलेक्स के मूड में अपने जूड़े को खोल कर लंबे घने बालों को एक झटका सा दिया और इसी के साथ लंबी जुल्फें लहरा कर इजीचेयर पर फैल गईं.

डा. मंजुला इजीचेयर से उठीं और क्लिनिक के बगल में बने शानदार बाथरूम के आदमकद शीशे में अपने पूरे व्यक्तित्व को निहारने लगीं.

दिनभर की भीड़भाड़ भरी व्यस्त जिंदगी में डा. मंजुला अपने को भूल सी जाती हैं. जिस को समय का ही ध्यान नहीं रहता वह अपना ध्यान कैसे रख सकता है. किंतु समय तो अपनी गति से चलता ही जाता है न. शहर के पौश इलाके में बना उन का नर्सिंग होम  और क्लिनिक उन्हें इतना समय ही नहीं देते कि वह मरीजों को छोड़ कर अपने बारे में सोच सकें.

डा. मंजुला ने अपनी संपन्नता  अथक मेहनत से अर्जित की थी. वह अपनी व्यस्ततम जिंदगी से जब भी कुछ पल अपने लिए निकालतीं तो उन का अकेलापन उन्हें काटने को दौड़ता था. आखिर थीं तो वह भी एक औरत ही न. अपने को आईने में देखा तो 45-50 की ‘प्रियदर्शिनी’ का एक अछूता सा मादक सौंदर्य और यौवन उन्हें थिरकता नजर आया. बालों में थोड़ी सफेदी तो आ गई थी पर उसे स्वाभाविक रंग में रंग कर उन्होंने कलात्मकता से छिपा रखा था.

डा. मंजुला के मन के एक कोने से आवाज आई, काश, कोई उन के आज भी छिपे हुए मादक यौवन और गदराई देह को अपनी सबल बांहों में थाम लेता और उन्हें मसल कर रख देता. एक अनछुई सिहरन उन के मनप्राणों में समा गई. औरत के मन की यह अद्भुत विशेषता और विरोधाभास भी है कि वह जो अंतर्मन से चाहती है, उसे शायद शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर पाती. इसीलिए नारी अपनी कामनाओं को तब तक छिपा कर रखती है जब तक भावनाओं की आंधी में बहा कर ले जाने वाला और उस की अस्मिता की रक्षा करने का आश्वासन देने वाला कोई सबल पुरुष उस के रास्ते में न आ जाए.

बाथरूम से निकल कर डा. मंजुला अपने केबिन में आईं और इजीचेयर पर बैठते ही सिर पीछे की ओर टिका दिया. घर जाने का अभी मन नहीं कर रहा था अत: आंखें बंद कर वह अतीत में खो सी गईं.

20 वर्ष पहले वह मेडिकल कालिज में फाइनल की छात्रा थी. बिलकुल रिजर्व और अंतर्मुखी. लड़के भंवरा बन कर उस पर मंडराते थे क्योंकि मंजुला ‘प्रियदर्शिनी’ एक कलाकार के सांचे में ढली हुई चलतीफिरती प्रतिमा सी लगती थी. अद्भुत देहयष्टि और खिलाखिला सा रूपरंग, उस पर कालेकाले घुंघराले बाल और कजरारे नैननक्श की मलिका मंजुला जिधर से निकलती मनचलों पर बिजलियां सी टूट पड़तीं पर वह किसी को घास न डालती. कोई लड़का उस पर डोरे डालने का साहस भी नहीं जुटा पाता, क्योंकि उस के पिता मनोरम पुलिस के आला अफसर थे और मां माधुरी कलेक्टर जो थीं.

मुकेश कब और कैसे मंजुला के जीवन में आ गया, इसे शायद स्वयं मंजुला भी न समझ सकी. वह लजीला सा नवयुवक उस का सहपाठी तो था पर कभी उस ने मंजुला की ओर आंख उठा कर भर नजर देखा तक नहीं था, जबकि दूसरे लड़के मंजुला को देख कर दबी जबान कुछ न कुछ फब्तियां कस ही देते थे.

मंजुला कभी मुकेश को लाइब्रेरी के एक कोने में चुपचाप किताबों में डूबा हुआ देखती या फिर कक्षा से निकल कर घर जाते हुए. इस अंतर्मुखी लड़के के प्रति उस की उत्सुकता बढ़ती जाती. किंतु उस का अहं कोई पहल करने से उसे रोक देता.

मंजुला को उस दिन बड़ा आश्चर्य हुआ जब मुकेश ने उस के समीप आ कर पूछा, ‘आप इतनी चुपचुप क्यों रहती हैं? क्या आप को ऐसा नहीं लगता कि इस तरह रहने से आप को डिप्रेशन या हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी हो सकती है?’

मंजुला उस के भोलेपन पर मन ही मन मुसकरा उठी, साथ ही उस के शरारती मन को टटोलने का प्रयास भी करने लगी. ऊपर से सीधासादा दिखने वाला यह लड़का अंदर से थोड़ा शरारती भी है. तभी तो इतना खूबसूरत बहाना ढूंढ़ा है उस से बात करने का या उस के करीब आने का. फिर भी बनावटी मुसकराहट के साथ उस ने जवाब दिया, ‘नहीं तो, मुझे तो कुछ ऐसा नहीं लगता.’

मुकेश बड़ी विनम्रता से बोला, ‘यदि मैं कैंटीन में चल कर आप को एक कप कौफी पीने का निमंत्रण दूं तो आप बुरा तो न मानेंगी.’

इस बार मंजुला उस के भोलेपन पर सचमुच खिलखिला उठी, ‘चलिए, आई डोंट माइंड.’

कौफी पीतेपीते ही मंजुला से मुकेश का परिचय हुआ. मुकेश एक मध्यवर्ग के संभ्रांत परिवार का लड़का था. घर में उस की मां थीं, 2 बड़ी बहनें थीं,  जिन की शादियां हो चुकी थीं और वे अपनीअपनी गृहस्थी में खुश थीं. मुकेश के पिता एक सरकारी मुलाजिम थे जो लगभग 2 वर्ष पहले बीमारी के चलते दिवंगत हो चुके थे. मां को पिता की सरकारी नौकरी की पेंशन मिलती थी, किंतु गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए और अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के लिए मुकेश कालिज के बाद ट्यूशन पढ़ाया करता था.

मंजुला ने जैसे ही अपने बारे में मुकेश को बताना शुरू किया उस ने बीच में ही उसे टोक दिया, ‘मैडम, क्यों कौफी ठंडी कर रही हैं. आप के बारे में मैं तो क्या यह पूरा मेडिकल कालिज जानता है कि आप के मातापिता क्या हैं.’

मंजुला सीधेसादे मुकेश के प्रति एक अनजाना सा ख्ंिचाव महसूस करने लगी थी. उस ने अपने मन से कई बार पूछा कि कहीं वह मुकेश से प्यार तो नहीं करने लगी है?

नारी का मनोविज्ञान सदियों से वही रहा है जो आज है और आगे भी वही रहेगा. हर स्त्री के मन में प्यार और प्रशंसा पाने की ललक होती है, चाहे वह अवचेतन की किसी अतल गहराइयों में ही छिपी हो, जिसे वह समझ नहीं पाती या जाहिर नहीं कर पाती.

खैर, इस प्रकार मंजुला के जीवन में प्यार बन कर मुकेश कब आ गया इसे न मंजुला समझ पाई न मुकेश. दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा. दोनों ने अच्छे नंबरों से मेडिकल की परीक्षाएं पास कीं. मंजुला के पिता के पास पैसा था, सो उन्होंने एक खूबसूरत सा नर्सिंगहोम शहर के बीचोेंबीच एक पौश इलाके में खोल दिया और इसी के साथ डा. मंजुला के अपने कैरियर की शुरुआत करने के दरवाजे खुल गए.

मंजुला कुछ दिनों के लिए विदेश चली गई. लौटी तो ढेर सारी डिगरियां उस ने बटोर ली थीं. एम.डी., एम.एस. और भी कई डिगरियां. मंजुला अपने ही नाम वाले नर्सिंगहोम की मालिक बन कर जीवन में लगभग सेटल हो चुकी थी.

मुकेश अपने ही शहर के एक मेडिकल कालिज में लेक्चरर हो गया था. दोनों का जीवन नदी के दो किनारों की तरह मंथर गति से आगे बढ़ने लगा था. मंजुला के मातापिता ने उसे शादी के लिए प्रेरित करना शुरू किया, किंतु वह शादी से ज्यादा कुछ करने की, कुछ ऊंचाई छू लेने की हसरत रखती थी. इसलिए शादी के बहुतेरे प्रस्तावों को वह किसी न किसी बहाने टालती रही और अपने व्यावसायिक जीवन को संवारने में तनमन से जुट गई.

मुकेश ने मां के बेबस प्यार और आग्रह के सामने सिर झुका लिया. उस की शादी जिस युवती से हुई वह झगड़ालू प्रवृत्ति के साथसाथ हद दरजे की शक्की, बदमिजाज, स्वार्थी एवं ईर्ष्यालु भी थी. सामाजिक दबाव, आर्थिक समस्याओं आदि ने कोई विकल्प मुकेश के सामने छोड़ा ही नहीं और उस ने भी हथियार डाल दिए. आखिर किसी शायर ने ठीक ही तो फरमाया है, ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता.’

मुकेश अब कालिज की ड्यूटी के बाद घर लौट कर एक थीसिस की तैयारी में जुट जाता और देर रात तक उसी में व्यस्त रहता. पत्नी झींकती रहती, तकदीर को कोसती कि कैसे निखट्टू से पाला पड़ गया. मुकेश बेबस हो कर सुनता और चुप रह जाता.

मुकेश के जीवन की एक त्रासदी उस दिन उभर कर सामने आई जब उस की पत्नी चंचला और सास सविता ने उसे निसंतान होने का ताना देना शुरू किया. तमाम मेडिकल जांच के बाद यह तसवीर उभर कर सामने आई कि चंचला मां नहीं बन सकती. नतीजतन, चंचला और भी उग्र और आक्रामक बनती चली गई और मुकेश दीवार पर जड़ दिए गए फ्रेम में सहनशीलता की तसवीर भर बन कर रह गया.

उस दिन शाम के समय गाड़ी से मंजुला कुछ खरीदारी करने निकली थी. मौर्या कांपलेक्स के शौपिंग आरकेड में घुसते ही अचानक मुकेश पर उस की निगाहें टिक गईं. दोनों के बीच औपचारिक बातों के बाद मंजुला ने उसे अगले दिन अपने नर्सिंग होम में आ कर बातचीत करने का निमंत्रण दिया.

दूसरे दिन शाम को मुकेश आया तो दोनों बड़ी देर तक बातों में खोए रहे. रात घिर आई. बातों का सिलसिला टूटा तो घड़ी पर नजर गई. 12 बज चुके थे. मुकेश बाहर निकला तो हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई. मुकेश ने अपनी ईर्ष्यालु पत्नी चंचला का जिक्र छेड़ा तो मंजुला उसे घर छोड़ने का साहस नहीं कर पाई. मंजुला ने उस के खाने का आर्डर दे दिया. फिर उसे अपने नर्सिंग होम के आरामदायक गेस्ट हाउस में ही ठहर जाने का आग्रह किया.

मुकेश ने अपने घर टेलीफोन कर दिया कि एक आवश्यक काम के सिलसिले में उसे रात में रुकना पड़ा है. मुकेश मंजुला के आग्रह को नहीं ठुकरा पाने के कारण नर्सिंग होम के गेस्ट रूम में आराम करने के इरादे से रुक गया. खाना खाने के बाद मुकेश को ‘गुडनाइट’ कह कर मंजुला अपने निकटवर्ती आवास में आराम करने चली गई. मुकेश ने बत्ती बुझा कर थोड़ी झपकियां ही ली थीं कि उस के दरवाजे पर हलकी दस्तक हुई. उस ने अंदर से ही पूछा, ‘कौन?’

‘मैं हूं, मंजुला.’

इस आवाज ने उसे चौंका दिया. मुकेश ने दरवाजा खोला और बत्ती जला दी. मुकेश विस्मित सा मंजुला को सिर से पांव तक निहारता ही रह गया. कांधे तक लहराते गेसुओं और मंजुला की आकर्षक देहयष्टि को एक पारदर्शी नाइटी में देख कर कोई भी होता तो घबरा जाता. मंजुला कमरे की धीमी रोशनी में साक्षात सौंदर्य की प्रतिमा लग रही थी और उस के अंगअंग से रूप की मदिरा छलक रही थी. फिर भी अपने ऊपर संयम का आवरण ओढ़े मुकेश ने धीमे स्वर में पूछा, ‘इतनी रात गए? क्या बात है?’

मंजुला ने उबासियां लेते हुए अंगड़ाई ली तो उस के मादक यौवन में एक तरह का खुला आमंत्रण था जो कह रहा था कि मुकेश, अपनी बांहों में मुझे थाम लो. वह पुरुष था, एक औरत के खुले आमंत्रण को कैसे ठुकरा सकता था, वह भी उसे जिसे वह दिल से चाहता है.

मुकेश अपने को रोक न सका और मंजुला को अपनी बांहों में लेते हुए उस के लरजते होंठों पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. मंजुला तो मानो किसी दूसरी दुनिया में तिर रही थी. एक औरत के लिए पुरुष का यह पहला एहसास था. बंद आंखों से उस ने भी अपनी बांहों के घेरे में मुकेश को कस लिया और यौवन का ऐसा ज्वार आया कि दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस सुखद एहसास की पुनरावृत्ति मंजुला के जीवन में दोबारा नहीं हो सकी क्योंकि घटनाओं का सिलसिला ऐसा चला कि मुकेश का तबादला दूसरे शहर के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कालिज में हो गया. मंजुला के जीवन में वह मादक क्षण और वह मधुर रात अतीत का एक स्वप्न बन कर रह गई. तभी फोन की घंटी बजी तो वह सपनों की दुनिया से निकल कर वर्तमान में आ गई. फोन उठाया तो दूसरी ओर से उस की नौकरानी थी जो अभी तक घर न पहुंचने पर चिंता जता रही थी.

डा. मंजुला अपनी इजीचेयर से उठीं. घड़ी पर नजर डाली तो आधी रात हो चुकी थी. वह सधे कदमों से निवास की ओर चल दीं. थके हुए तनमन के साथ थोड़ा सा खाना खा कर वह कब नींद के आगोश में समा गईं, होश ही नहीं रहा. दूसरे दिन जब दिन चढ़ आया तब मंजुला की नींद खुली. बाथरूम में से निकल कर हलका सा बे्रकफास्ट लिया और अपने नर्सिंग होम के कामों को पूरा करने में जुट गईं.

मंजुला को अपने काम के सिलसिले में नैनीताल जाना पड़ा. 2 दिनों तक तो वह काम को पूरा करने में लगी रहीं. काम खत्म हुआ तो मंजुला प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर इस पहाड़ी शहर का आनंद लेने निकली थीं. वह अपनी वातानुकूलित गाड़ी में बैठी शहर के दर्शनीय स्थलों को देखने में खोई थीं कि एक जगह जा कर उन की नजर ठहर गई. उन्होंने गाड़ी रोक कर पास जा कर देखा तो वह मुकेश ही था. दाढ़ी बढ़ी हुई और नंगे पांव पैदल ही वह भीमताल की सड़कों पर जा रहा था. मंजुला ने गाड़ी एकदम उस के बगल में जा कर रोकी और गाड़ी से सिर निकाल कर बोलीं, ‘‘अरे, मुकेश, तुम यहां कैसे? कब आए? ह्वाट ए प्लिजेंट सरप्राइज?’’ कई प्रश्न एकसाथ मंजुला ने कर डाले.

मुकेश मूक ही बना रहा तो मंजुला ने ही चहक कर कहा, ‘‘आओ, गाड़ी में बैठो. अरे, मेरी बगल ही में बैठो भाई. मैं अच्छी ड्राइविंग करती हूं, घबराओ नहीं.’’

मुकेश को ले कर मंजुला अपने होटल वापस आ गईं और वहां के खुशनुमा माहौल में उसे बिठा कर बोलीं, ‘‘अच्छा बताओ, क्या लोगे? चाय, कौफी या डिनर. खैर, अभी तो मैं गरमागरम कौफी और पकौडे़ मंगवाती हूं.’’

मुकेश ने कौफी में उस का साथ देते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी, ‘‘मंजुला, मेरी यह दशा देख कर तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा पर यह वक्त की मार है जो मैं अकेले यहां झेल रहा हूं. यहां आने के कुछ महीनों बाद मां की मृत्यु हो गई. पत्नी चंचला पिछले साल ब्रेनफीवर की बीमारी से चल बसी. जीवन की इस त्रासदी को अकेले झेल रहा हूं,’’ अपनी कहानी बतातेबताते मुकेश की आंखें भर आई थीं. उस की दुखद कहानी सुन कर मंजुला भी दुखित हो उठी थी.

मुकेश चलने के लिए उठा तो मंजुला ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे बिठा लिया फिर याचना भरे स्वर में बोलीं, ‘‘इतने दिनों बाद मिले हो तो कम से कम आज तो साथ में बैठ कर खाना खा लो, फिर जहां जाना है चले जाना.’’

थोड़ी देर बाद ही होटल के कमरे में खाना आ गया. दोनों आमनेसामने बैठ कर खाना खा रहे थे. मंजुला ने मुकेश की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘मुकेश, मुझ से शादी करोगे?’’

मुकेश की आंखों से दो बूंद आंसू मोती बन कर टपक पड़े.

‘‘मंजुला, तुम ने इतनी प्रतीक्षा क्यों कराई? काश, तुम मेरे जीवन में पहली किरण बन कर आ जातीं तो जीवन में इतना भटकाव तो न आता.’’ इन शब्दों को सुनने के बाद मंजुला ने मुकेश के दोनों हाथों को जोर से जकड़ लिया और उस के कांधे पर सिर रख कर मंदमंद मुसकराने लगीं.

नीला पत्थर : आखिर क्या था काकी का फैसला

‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी…’’ पार्वती बूआ की कड़कती आवाज ने सब को चुप करा दिया. काकी की अटैची फिर हवेली के अंदर रख दी गई. यह तीसरी बार की बात थी. काकी के कुनबे ने फैसला किया था कि शादीशुदा लड़की का असली घर उस की ससुराल ही होती है. न चाहते हुए भी काकी मायका छोड़ कर ससुराल जा रही थी.

हालांकि ससुराल से उसे लिवाने कोई नहीं आया था. काकी को बोझ समझ कर उस के परिवार वाले उसे खुद ही उस की ससुराल फेंकने का मन बना चुके थे कि पार्वती बूआ को अपनी बरबाद हो चुकी जवानी याद आ गई. खुद उस के साथ कुनबे वालों ने कोई इंसाफ नहीं किया था और उसे कई बार उस की मरजी के खिलाफ ससुराल भेजा था, जहां उस की कोई कद्र नहीं थी.

तभी तो पार्वती बूआ बड़ेबूढ़ों की परवाह न करते हुए चीख उठी थी, ‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी. उन कसाइयों के पास भेजने के बजाय उसे अपने खेतों के पास वाली नहर में ही धक्का क्यों न दे दिया जाए. बिना किसी बुलावे के या बिना कुछ कहेसुने, बिना कोई इकरारनामे के काकी को ससुराल भेज देंगे, तो वे ससुरे इस बार जला कर मार डालेंगे इस मासूम बेजबान लड़की को. फिर उन का एकाध आदमी तुम मार आना और सारी उम्र कोर्टकचहरी के चक्कर में अपने आधे खेतों को गिरवी रखवा देना.’’

दूसरी बार काकी के एकलौते भाई की आंखों में खून उतर आया था. उस ने हवेली के दरवाजे से ही चीख कर कहा था, ‘‘काकी ससुराल नहीं जाएगी. उन्हें आ कर हम से माफी मांगनी होगी. हर तीसरे दिन का बखेड़ा अच्छा नहीं. क्या फायदा… किसी की जान चली जाएगी और कोई दूसरा जेल में अपनी जवानी गला देगा. बेहतर है कि कुछ और ही सोचो काकी के लिए.’’

काकी के लिए बस 3 बार पूरा कुनबा जुटा था उस के आंगन में. काकी को यहीं मायके में रखने पर सहमति बना कर वे लोग अपनेअपने कामों में मसरूफ हो गए थे. उस के बाद काकी के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत नहीं समझी और न ही कोई ऐसा मौका आया कि काकी के बारे में कोई अहम फैसला लेना पड़े.

काकी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह गूंगी थी और बहरी भी. मगर गूंगी तो गांव की 99 फीसदी लड़कियां होती हैं. क्या उन के बारे में भी कुनबा पंचायत या बिरादरी आंखें मींच कर फैसले करती है? कोई एकाध सिरफिरी लड़की अपने बारे में लिए गए इन एकतरफा फैसलों के खिलाफ बोल भी पड़ती है, तो उस के अपने ही भाइयों की आंखों में खून उतर आता है. ससुराल की लाठी उस पर चोट करती है या उस के जेठ के हाथ उस के बाल नोंचने लगते हैं.

ऐसी सिरफिरी मुंहफट लड़की की मां बस इतना कह कर चुप हो जाती है कि जहां एक लड़की की डोली उतरती है, वहां से ही उस की अरथी उठती है. यह एक हारे हुए परेशान आदमी का बेमेल सा तर्क ही तो है. एक अकेली छुईमुई लड़की क्या विद्रोह करे. उसे किसी फैसले में कब शामिल किया जाता है. सदियों से उस के खिलाफ फतवे ही जारी होते रहे हैं. वह कुछ बोले तो बिजली टूट कर गिरती है, आसमान फट पड़ता है.

अनगनित लोगों की शादियां टूटती हैं, मगर वे सब पागल नहीं हो जाते. बेहतर तो यही होता कि अपनी नाकाम शादी के बारे में काकी जितना जल्दी होता भूल जाती. ये शादीब्याह के मामले थानेकचहरी में चले जाएं, तो फिर रुसवाई तो तय ही है. आखिर हुआ क्या? शीशा पत्थर से टकराया और चूरचूर हो गया.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

काकी के कुनबे का फैसला सुनने के बाद तो वह हर तरफ से आजाद हो चुका था. उस के सुख के सारे दरवाजे खुल गए, मगर काकी का मोह भंग हो गया. अब वह खुद को एक चुकी हुई बूढ़ी खूसट मानने लगी थी.

भरी जवानी में ही काकी की हर रस, रंग, साज और मौजमस्ती से दूरी हो गई थी. उस के मन में नफरत और बदले के नागफनी इतने विकराल आकार लेते गए कि फिर उन में किसी दूसरे आदमी के प्रति प्यार या चाहत के फूल खिल ही न सके.

किसी ने उसे यह नहीं समझाया, ‘लाड़ो, अपने बेवफा शौहर के फिर मुंह लगेगी, तो क्या हासिल होगा तुझे? वह सच्चा होता तो क्या यों छोड़ कर जाता तुझे? उसे वापस ले भी आएगी, तो क्या अब वह तेरे भरोसे लायक बचा है? क्या करेगी अब उस का तू? वह तो ऐसी चीज है कि जो निगले भी नहीं बनेगा और बाहर थूकेगी, तो भी कसैली हो जाएगी तू.

‘वह तो बदचलन है ही, तू भी अगर उस की तलाश में थानाकचहरी जाएगी, तो तू तो वैसी ही हो जाएगी. शरीफ लोगों का काम नहीं है यह सब.’

कोई तो एक बार उसे कहता, ‘देख काकी, तेरे पास हुस्न है, जवानी है, अरमान हैं. तू क्यों आग में झोंकती है खुद को? दफा कर ऐसे पति को. पीछा छोड़ उस का. तू दोबारा घर बसा ले. वह 20 साल बाद आ कर तुझ पर अपना दावा दायर करने से रहा. फिर किस आधार पर वह तुझ पर अपना हक जमाएगा? इतने सालों से तेरे लिए बिलकुल पराया था. तेरे तन की जमीन को बंजर ही बनाता रहा वह.

‘शादी के पहले के कुछ दिनों में ही तेरे साथ रहा, सोया वह. यह तो अच्छा हुआ कि तेरी कोख में अपना कोई गंदा बीज रोप कर नहीं गया वह दुष्ट, वरना सारी उम्र उस से जान छुड़ानी मुश्किल हो जाती तुझे.’

कुनबे ने काकी के बारे में 3 बार फतवे जारी किए थे. पहली बार काकी की मां ने ऐसे ही विद्रोही शब्द कहे थे कि कहीं नहीं जाएगी काकी. पहली बार गांव में तब हंगामा हुआ था, जब काकी दीनू काका के बेटे रमेश के बहकावे में आ गई थी और उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बना ली थी. वह करती भी तो क्या करती.

35 बरस की हो गई थी वह, मगर कहीं उस के रिश्ते की बात जम नहीं रही थी. ऐसे में लड़कियां कब तक खिड़कियों के बाहर ताकझांक करती रहें कि उन के सपनों का राजकुमार कब आएगा. इन दिनों राजकुमार लड़की के रंगरूप या गुण नहीं देखता, वह उस के पिता की जागीर पर नजर रखता है, जहां से उसे मोटा दहेज मिलना होता है.

गरीब की बेटी और वह भी जन्म से गूंगीबहरी. कौन हाथ धरेगा उस पर? वैसे, काकी गजब की खूबसूरत थी. घर के कामकाज में भी माहिर. गोरीचिट्टी, लंबा कद. जब किसी शादीब्याह के लिए सजधज कर निकलती, तो कइयों के दिल पर सांप लोटने लगते. मगर उस के साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोचने मात्र की कोई कल्पना नहीं करता था.

वैसे तो किसी कुंआरी लड़की का दिल धड़कना ही नहीं चाहिए, अगर धड़के भी तो किसी को कानोंकान खबर न हो, वरना बरछे, तलवारें व गंड़ासियां लहराने लगती हैं. यह कैसा निजाम है कि जहां मर्द पचासों जगह मुंह मार सकता था, मगर औरत अपने दिल के आईने में किसी पराए मर्द की तसवीर नहीं देख सकती थी? न शादी से पहले और शादी के बाद तो कतई नहीं.

पर दीनू काका के फौजी बेटे रमेश का दिल काकी पर फिदा हो गया था. काकी भी उस से बेपनाह मुहब्बत करने लगी थी. मगर कहां दीनू काका की लंबीचौड़ी खेती और कहां काकी का गरीब कुनबा. कोई मेल नहीं था दोनों परिवारों में.

पहली ही नजर में रमेश काकी पर अपना सबकुछ लुटा बैठा, मगर काकी को क्या पता था कि ऐसा प्यार उस के भविष्य को चौपट कर देगा.

रमेश जानता था कि उस के परिवार वाले उस गूंगी लड़की से उस की शादी नहीं होने देंगे. बस, एक ही रास्ता बचा था कि कहीं भाग कर शादी कर ली जाए.

उन की इस योजना का पता अगले ही दिन चल गया था और कई परिवार, जो रमेश के साथ अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ना चाहते थे, सब दिशाओं में फैल गए. इश्क और मुश्क कहां छिपते हैं भला. फिर जब सारी दुनिया प्रेमियों के खिलाफ हो जाए, तो उस प्यार को जमाने वालों की बुरी नजर लग जाती है.

काकी का बचपन बड़े प्यार और खुशनुमा माहौल में बीता था. उस के छोटे भाई राजा को कोई चिढ़ाताडांटता या मारता, तो काकी की आंखें छलछला आतीं. अपनी एक साल की भूरी कटिया के मरने पर 2 दिन रोती रही थी वह. जब उस का प्यारा कुत्ता मरा तो कैसे फट पड़ी थी वह. सब से ज्यादा दुख तो उसे पिता के मरने पर हुआ था. मां के गले लग कर वह इतना रोई थी कि मानो सारे दुखों का अंत ही कर डालेगी. आंसू चुक गए. आवाज तो पहले से ही गूंगी थी. बस गला भरभर करता था और दिल रेशारेशा बिखरता जाता था. सबकुछ खत्म सा हो गया था तब.

अब जिंदा बच गई थी तो जीना तो था ही न. दुखों को रोरो कर हलका कर लेने की आदत तब से ही पड़ गई थी उसे. दुख रोने से और बढ़ते जाते थे.

रमेश से बलात छीन कर काकी को दूर फेंक दिया गया था एक अधेड़ उम्र के पिलपिले गरीब किसान के झोंपड़े में, जहां उस के जवान बेटों की भूखी नजरें काकी को नोंचने पर आमादा थीं.

काकी वहां कितने दिन साबुत बची रहती. भाग आई भेडि़यों के उस जंगल से. कोई रास्ता नहीं था उस जंगल से बाहर निकलने का.

जो रास्ता काकी ने खुद चुना था, उस के दरमियान सैकड़ों लोग खड़े हो गए थे. काकी के मायके की हालत खराब तो न थी, मगर इतने सोखे दिन भी नहीं थे कि कई दिन दिल खोल कर हंस लिया जाए. कभी धरती पर पड़े बीजों के अंकुरित होने पर नजरें गड़ी रहतीं, तो कभी आसमान के बादलों से मुरादें मांगती झोलियां फैलाए बैठी रहतीं मांबेटी.

रमेश से छिटक कर और फिर ससुराल से ठुकराई जाने के बाद काकी का दिल बुरी तरह हार माने बैठा था. अब काकी ने अपने शरीर की देखभाल करनी छोड़ दी थी. उस की मां उस से अकसर कहती कि गरीब की जवानी और पौष की चांदनी रात को कौन देखता है.

फटी हुई आंखों से काकी इस बात को समझने की कोशिश करती. मां झुंझला कर कहती, ‘‘तू तो जबान से ही नहीं, दिल से भी बिलकुल गूंगी ही है. मेरे कहने का मतलब है कि जैसे पूस की कड़कती सर्दी वाली रात में चांदनी को निहारने कोई नहीं बाहर निकलता, वैसे ही गरीब की जवानी को कोई नहीं देखता.’’

मां चल बसीं. काकी के भाई की गृहस्थी बढ़ चली थी. काकी की अपनी भाभी से जरा भी नहीं बनती थी. अब काकी काफी चिड़चिड़ी सी हो गई थी. भाई से अनबन क्या हुई, काकी तो दरबदर की ठोकरें खाने लगी. कभी चाची के पास कुछ दिन रहती, तो कभी बूआ काम करकर के थकटूट जाती थी. काकी एक बार खाट से क्या लगी कि सब उसे बोझ समझने लगे थे.

आखिरकार काकी की बिरादरी ने एक बार फिर काकी के बारे में फैसला करने के लिए समय निकाला. इन लोगों ने उस के लिए ऐसा इंतजाम कर दिया, जिस के तहत दिन तय कर दिए गए कि कुलीन व खातेपीते घरों में जा कर काकी खाना खा लिया करेगी.

कुछ दिन तक यह बंदोबस्त चला, मगर काकी को यों आंखें झुका कर गैर लोगों के घर जा कर रहम की भीख खाना चुभने लगा. अपनी बिरादरी के अब तक के तमाम फैसलों का काकी ने विरोध नहीं किया था, मगर इस आखिरी फैसले का काकी ने जवाब दिया. सुबह उस की लाश नहर से बरामद हुई थी. अब काकी गूंगीबहरी ही नहीं, बल्कि अहल्या की तरह सर्द नीला पत्थर हो चुकी थी.

मुझे दांतो में सेंसिटिविटी महसूस होती है, कोई उपाय बताएं

सवाल

मैं 42 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कछ दिनों से मुझे दांतों में संवेदनशीलता महसूस हो रही है. मुझे चायकौफी पीने में भी परेशानी हो रही है. क्या करूं?

जवाब

हमारे दांतों के ऊपर एक सुरक्षा परत होती है जिसे इनेमल कहते हैं. हम जो भी खाते हैं उस का पहला संपर्क हमारे दांतों से होता है. इनेमल हमें ताप और दूसरी चीजों से बचाता है. खानपान की गलत आदतों और कई अन्य कारणों से यह परत पतली या खराब हो जाती है. इस से दांतों में अति संवेदनशीलता की समस्या हो जाती है. दांतों में संवेदनशीलता विकसित होने के कारण ब्रश और फ्लौसिंग करने, खानेपीने के समय तेज दर्द होता है. अगर यह संवेदनशीलता अधिक नहीं है तो ऐंटीसैंसिटिविटी टूथपेस्ट से ठीक हो सकती है. अगर समस्या गंभीर है या ऐंटीसैंसिटिविटी टूथपेस्ट के इस्तेमाल के बाद भी ठीक नहीं हो तो उपचार करना जरूरी हो जाता है क्योंकि यह संवेदनशीलता किसी गंभीर समस्या का संकेत भी हो सकती है जैसे कैविटी या दांतों में दरार आ जाना.

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हमारे देश में ओरल कैंसर के बढ़ते हुए मामलों के बारे में सुन कर बहुत डर लगता है. मैं जानना चाहती हूं किन कारणों से ओरल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है?

जवाब

पूरे विश्व में हमारे देश में पुरुषों में ओरल कैंसर के मामले सब से अधिक सामने आते हैं. ओरल कैंसर को ओरल कैविटी या माउथ कैंसर भी कहते हैं. यह कैंसर होंठों, मसूड़ों, गालों की अंदरूनी भित्ती, तालू, जीभ के नीचे वाले हिस्से में हो सकता है. ओरल कैंसर को हैड ऐंड नैक कैंसर समूह में रखा जाता है. पश्चिमी देशों की तुलना में हमारे देश में ओरल कैंसर के काफी मामले सामने आते हैं. कुछ कारक हैं जो ओरल कैंसर का खतरा बढ़ा देते हैं जैसे तंबाकू चबाना या सूंघना, बीड़ी, सिगरेट, सिगार, हुक्का आदि पीना, अत्यधिक मात्रा में अल्कोहल का सेवन, अप्राकृतिक शारीरिक संबंधों के कारण एचपीवी का संक्रमण, कमजोर रोगप्रतिरोधक तंत्र, होंठों पर अत्यधिक सन ऐक्सपोजर आदि.

-डा. सुमन यादवहैड, मैक्सिलोफैशियल ऐंड डैंटल डिपार्टमैंट, नुमेड हौस्पिटल, नोएडा.

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इस दीवाली मेहमानों के लिए बनाएं बीटरूट हलवा और मिर्ची हलवा

दीवाली का त्योहार आ चुका है घरों में लोग सफाई कर रहे है. दीवाली त्योहार में पकवान के लिए बेहद खास है. मिठाई की मिठास से रिश्तों में रौनक आ जाती है. इस दीवाली अपने घर बनाए ये खास मिठाईयां जो स्वाद में एकदम हटके है. आइए आपको बताते है मिठाईयों की खास रेसिपी.

  1. बीटरूट हलवा

सामग्री

 1. 1 किलोग्राम चुकंदर

2.  21/2 कप चीनी

 3. 1/2 लिटर उबला दूध

 4. 2-3 कप पानी,

5. थोड़े टुकड़े काजू और किशमिश के

6. 2 बड़े चम्मच घी.

विधि

चुकंदर को छील कर कद्दूकस कर लें. फिर एक कड़ाही में पानी और चुकंदर डाल कर धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक कि पानी सूख न जाए. अब इस में चीनी और आधा दूध मिला कर गाढ़ा होेने तक पकाएं. अब इस में घी और बचा दूध डाल कर 2 मिनट धीमी आंच पर पकाएं. आंच से उतार कर काजू और किशमिश डाल कर सर्व करें.

2. जाफरानी रोल विद ड्राईफ्रूट

सामग्री

 1. 2 व्हाइट ब्रैडस्लाइस

 2. 5 ग्राम केसर

 3. 100 मिलीलिटर दूध

 4. 150 ग्राम चीनी

5. 50 ग्राम मावा

 6. 10 ग्राम काजू

 7. 5 ग्राम पिस्ता

 8. 5 ग्राम बादाम

 9. 20 ग्राम चौकलेट.

विधि

एक कड़ाही में घी गरम कर के ब्रैडस्लाइस को डीपफ्राई कर अलग रख दें. अब एक पैन में दूध, केसर और चीनी डाल कर गाढ़ा होने तक पकाएं. फिर इस में फ्राइड ब्रैडस्लाइस को डिप कर लें. एक बाउल में मावा, काजू, पिस्ता और बादाम मिक्स कर ब्रैडस्लाइस पर फैला कर रोल करें. पिघली चौकलेट में डिप कर सर्व करें.

3. मिर्ची हलवा

सामग्री

1. 150 ग्राम शिमलामिर्च कटी

 2. 500 मिलीलिटर दूध

  3. 75 ग्राम खोया कद्दूकस किया

 4. 100 ग्राम चीनी

 5. थोड़ा सा गुलाबजल.

विधि

शिमलामिर्च को उबाल कर ठंडे पानी से धो लें. एक पैन में दूध गरम करें और उबाल आने पर उस में चीनी मिलाएं. कुछ देर बाद उस में खोया मिला कर तब तक पकाएं जब तक कि दूध गाढ़ा न हो जाए. फिर इस में शिमलामिर्च डाल कर पकाएं. पक जाने पर गुलाबजल डाल कर सर्व करें.

4. गुलकंद पुडिंग

सामग्री

1. 20 ग्राम गुलकंद

 2. 30 मिलीलिटर रोज सिरप

 3. 150 ग्राम वैनिला आइसक्रीम

  4. 5 ग्राम अगरअगर

 5.  थोड़ी सी गुलाब की पंखुडि़यां

 6.  आवश्यकतानुसार पानी.

विधि

गुलकंद को बारीक काट लें और वैनिला आइसक्रीम में मिला लें. कुनकुने पानी में अगरअगर, रोज सिरप और गुलकंद का मिश्रण मिलाएं. इसे मोल्ड में डाल करें. 1 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें. फिर निकाल कर गुलाब की पंखुडि़यों से गार्निश कर सर्व करें.

दीवाली की व्यस्तता में भी इन 10 घरेलू टिप्स से अपने चेहरे को दें इंस्टेंट ग्लो

दीवाली यूं तो खुशी और उल्लास का प्रतीक है.. पर महिलाओं के लिए दीवाली के ये दिन बेहद थकान और व्यस्तता भरे होते हैं. बारिश के बाद घरों की डीप क्लीनिंग, पेंट, रंगरोगन व सजावट दीवाली के दिन तक चलती ही रहती है और जब यह साफ सफाई समाप्त होती है तो शुरू हो जाता है मिठाईयां और नाश्ता बनाने का सिलसिला जिसमें घर की गृहिणी इतनी अधिक व्यस्त हो जाती है कि महिलाओं को अपने लिए जरा भी वक़्त नहीं मिल पाता. आज हम आपको ऐसे कुछ टिप्स बता रहे हैं जिनसे आप अपने चेहरे पर इंस्टेंट ग्लो पा सकतीं हैं. इन दिनों चूंकि ब्यूटी पार्लर जाने का समय आपके पास होता नहीं है इसलिए आप इन घरेलू टिप्स को आजमाकर दीवाली की व्यस्तता में भी कुछ ही समय में अपने चेहरे पर ब्यूटी पार्लर जाए बिना भी इंस्टेंट ग्लो देकर खूबसूरत दिख सकतीं हैं-

1-पपीता जहां स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है वहीं सुंदरता के लिए भी पपीता एक वरदान होता है. पपीते के 1 चम्मच गूदे को 1/2 चम्मच शहद में मिलाकर चम्मच से अच्छी तरह मैश कर लें फिर इसे 15 मिनट के लिए चेहरे पर लगाएं, 15 मिनट बाद साफ पानी से चेहरा धोकर कोई भी क्रीम लगा लें.

2-1 चम्मच शहद को 1 चुटकी दालचीनी पाउडर और 1/2 चम्मच नींबू के रस में मिलाकर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद गुनगुने पानी से धो लें. चेहरा एकदम ग्लोइंग और शाइनी हो जाएगा.

3-1 चम्मच ओट्स को 1चम्मच दूध में 15 मिनट के लिए भिगोएं और फिर इस पेस्ट से अपने चेहरे की हल्के हाथ से 10 मिनट तक मसाज करें चेहरा एकदम साफ और चमकदार हो जाएगा.

4-1चम्मच बेकिंग सोडा में इतना पानी मिलाएं कि यह एक पेस्ट जैसा बन जाये अब इसे चेहरे पर 5 मिनट लगाकर छोड़ दें. 5 मिनट बाद चेहरे को धो लें.

5-पके केले के 2 इंच टुकड़े को एक बाउल में अच्छी तरह मैश करके चेहरे पर 20 मिनट तक  लगाएं फिर गुनगुने पानी से चेहरे को धो लें चेहरा एकदम चमक जाएगा.

6-पुदीने की पत्तियों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरा दाग धब्बे रहित और चमकदार हो जाता है.

7-गुलाब की ताजी पत्तियों को 1 चम्मच शहद के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरा एकदम ग्लो करने लगता है.

8-यदि आपको चेहरे की त्वचा एकदम रूखी, चटकी और बेजान सी लग रही है तो 1 चम्मच ताजी मलाई में 1/2 चम्मच नींबू का रस और 1/2 चम्मच शहद मिलाकर पेस्ट बनाएं और इसे 20-25 मिनट चेहरे पर लगाएं, 20 मिनट बाद गुनगुने पानी से धोकर सॉफ्ट टॉवेल से पोंछ लें.

9-एक चम्मच कच्चे दूध में कुछ केसर के धागे डालकर 10 मिनट के लिए रख दें और इसमें एक रुई का फाहा भिगोकर चेहरे पर अच्छी तरह लगाएं और 20 मिनट बाद चेहरे को धो लें.

10-एक चम्मच फ्रेश एलोवीरा गूदा या जेल में 4-5 बून्दे नीबू का रस मिलाकर चेहरे पर 20 मिनट तक  लगाएं और फिर चेहरे को साफ पानी से धो लें.

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